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१३.
कच्चू-कट हो। -कोढ़-पु० खुजली; गरमीकी बीमारी। -घड़ा- कछनी-स्त्री० घुटनेतककी कसी हुई धोती जिसमें दोनों पु० न पका हुआ घड़ा; सीखनेकी उम्रका, संस्कार ग्रहण ओर लाँग बाँधी जाती है। छोटी धोती; घुटनेतक रहनेकरने योग्य व्यक्ति (बालक आदि)। -चिट्ठा-पु० पूरा वाला एक तरहका धाँघरा; वह वस्तु जिससे कोई चीज विवरण, सञ्चा हाल, कथा; किसीकी गुप्त या गोपनीय बातें | काछी जाय। (खोलना, सुनाना)। -चूना-पु० बिना बुझाया हुआ | कछवाहा-पु० राजपूतोंकी एक उपजाति । चूना । -जिन-पु० मूर्ख; हठी, पीछे पड़ जानेवाला कछान-पु० कछनी काछना। आदमी। -जोड़,-टाका-पु० राँगेका जोड़। -पक्का- कछार-पु० नदीके किनारेकी तर और नीची जमीन । वि० सिझा-अनसिझा । -पैसा-पु० स्थान-विशेषमें | कछियाना-पु० काछियोंकी बस्ती; वह खेत जिसमें तरकाप्रचलित पैसा-गोरखपुरी, बालासाही आदि। -माल- रियाँ बोयी जाय तरकारियोंकी खेती। पु० वह वस्तु जिससे (शिल्प द्वारा) कोई चीज बनायी कछु*-वि० दे० 'कुछ' । जाय (जैसे कपड़ेके लिए. रुई); कच्चा बाना; कच्चा गोटा । | कछआ(वा)-पु० एक प्रसिद्ध जल-जंतु, कच्छप । -हाल-पु० दे० 'कच्चा चिट्टा'। कञ्ची कली-स्त्री० | कछक*-वि० दे० 'कुछ' । मुँहबँधी कली; अप्राप्त-यौवना स्त्री । -की-स्त्री० कछोटा-पु०, कछोटी-स्त्री० कछनी; स्त्रीको कछनीके मुकदमेका फैसला होनेके पहले निकलवायी जानेवाली कुकी, टुंगपर पहनी हुई धोती। मु०-मारना-स्त्रीका कछोटा -गोटी,-गोली-स्त्री० चौसरकी वह गोटी जिसने आधा बाँधना। या अधिक रास्ता पार न कर लिया हो। -चीनी-स्त्री० कज-वि० [फा०] टेढ़ा, झुका हुआ, वक्र । पु० ऐब (?) । राबसे शीरा निकालकर बनायी हुई चीनी जो अधिक
। निकालकर बनाया हुइ चाना जा आधक | कजरा*-पु० काजल; काली आँखोंवाला बैल । वि० काली साफ नहीं होती। -ज़बान-स्त्री० गाली, अपशब्द । आँखोंवाला; जिसकी आँखोंमें काजल लगा हो; श्याम । -जाकड-स्त्री. वह बही जिसमें कच्ची विक्री, जाकड़पर कजराई-स्त्री० कालापन । गयी हुई चीजका ब्योरा लिखा जाय। -नकल-स्त्री० कजरारा-वि० काजल लगा हुआ, अंजनयुक्त; काला । खानगी तौरपर ली हुई सरकारी कागजकी नकल । कजरी-पु० एक धान । स्त्री० दे० 'कजली' । -नीद-स्त्री० वह नींद जो पूरी न हुई हो । -पक्की कजरौटा, कजलौटा-पु० काजल पारने रखनेकी डॉडीदार बात-स्त्री० अपशब्द, गाली । -पेशी-स्त्री० मुकदमेकी डिबिया । पहली पेशी जिसमें फैसला नहीं होता। -बही-स्त्री० | कजरीटी, कजलौटी-स्त्री० छोटा कजरौटा। वह बही जिसमें कच्चा हिसाब, याददाश्तें आदि लिखी कजला-पु० स्याह रंगका एक पक्षी, मटिया। वि० काली जायँ । -रसोई-स्त्री० पानीमें पका हुआ अन्न, पक्की आँखोंवाला; जिसकी आँखों में अंजन लगा हो। रसोईका उलटा । -रोकड़-स्त्री० वह बही जिसमें | कजलाना-अ० क्रि० स्याह पड़ना; आगका जवाना । स० रोजके आय-व्ययका कचा हिमाव लिखा जाय । क्रि० काजल लगाना । -सड़क-स्त्री० वह सड़क जिसपर गिट्टियाँ या कंकड़ न कजली-स्त्री० कालिख पारे और गंधककी लुगदी; काली कूटे गये हों। -सिलाई-स्त्री० बखिया करनेके पहले आँखोंवाली गाय; एक तरहकी भेड़; स्त्रियोंका एक त्योहार डाला हुआ टाँका जो पीछे खोल दिया जाता है, लंगर । जो भादों बदी तीजको मनाया जाता है। इस अवसर के लिए कच्चे पक्के दिन-पु० चार-पाँच महीनेका गर्भ; दो मिट्टी में गोदकर उगाये गये जौके पौधे, जई; एक तरहका ऋतुओंका संधिकाल । -बच्चे-पु० छोटे बच्चे; बहुतसे | गीत जो बरसातमें मिर्जापुर आदिमें गाया जाता है। बाल-बच्चे। मु. कच्चा करना-वातिल ठहराना, काट | कजा*-स्त्री० माँड़, काँजी। देना; लजित करना; कच्ची सिलाई करना ।-जाना-गर्भ क्रजा-स्त्री० [अ०] ईश्वरीय आदेश; नियति, भाग्य; मृत्यु गिरना । -पड़ना- गलत ठहरना; सकुचाना ।-(ची) कर्तव्य-पालन; निर्णय या न्याय करना। गोटी, -गोली खेलना-अनाड़ी, अनुभवहीन होना। कजाक-पु० दे० 'कज्जाक'। कच्चे घड़े पानी भरना-कठिन काम करना ।
कजाकी -स्त्री० दे० 'काजाकी'; * छल, धोखेबाजी। कच्चू-स्त्री० अरवी, बंडा ।
कजाचा-पु० एक तरहकी ऊँटकी काठी। कच्छ-पु० [सं०] किनारेकी जमीन, कछार; अनूपदेश, कज़िया-पु० [अ०] झगड़ा, टंटा । दलदल जमीन धोतीकी काछ या लाँग, नौकाका भाग- |
कजी-स्त्री० [फा०] टेढ़ापन, वक्रता; दोष । विशेष; कच्छ देश; * कछुआ । -प-पु० कछुआ; | कजल-पु० [सं०] काजल; कालिख सुरमा बादल । विष्णुके २४ अवतारों से एक ।
कजलित--वि० [सं०] कालिखसे पुता हुआ; आँजा हुआ, कच्छटिका-स्त्री० [सं०] धोतीकी लाँग (कछोटा)। जिसमें काजल लगा हो। कच्छा-स्त्री० चौड़े छोरवाली बड़ी नाव जिसमें दो पतवारें कजली-स्त्री० [सं०] एक तरहकी मछली; रोशनाई पारे
लगती हैं। कई बड़ी नावोंको मिलाकर बनाया गया बेड़ा। और गंधकके मिश्रणसे बना हुआ एक द्रव्य। कच्छी-वि० कच्छ देशका। पु० कच्छ देशका निवासी रजाक-पु० [तु] एशियाई रूसकी एक तुर्क जाति जो कच्छ देशका घोड़ा जिसकी पीठ बीचमें कुछ गहरी वीरताके लिए प्रसिद्ध है; डाकू, लूट-मार करनेवाला । होती है।
करजाकी-स्त्री० [तु०] लुटेरापन, राहजनी । कछना-पु० दे० 'कछनी ।
। कट-पु० [सं०] हाथीका गंडस्थल; कटिदेश, श्रोणि चटाई,
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