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- जीव - वि० एकरूप; अभिन्न । - टक - वि०, अ० [हिं०] बिना पलक गिरे या गिराये, अनिमेष । - तंत्र - वि० जिसमें सब शक्ति, अधिकार एक आदमीके हाथमें हो, एकहत्था (राज्य शासनप्रबंध); एक व्यक्ति द्वारा, एकके प्रबंध से परिचालित । -तरफ़ा - वि० [हिं०] एकपक्षीय, जिसमें दूसरे पक्षका विचार न किया गया हो। - ०डिग्री - स्त्री०, ०फैसला - पु० [हिं०] वह डिग्री या फैसला जो प्रतिवादी पक्षका जवाब सुने बिना ( उसकी अनुपस्थितिके कारण ) दी जाय या किया जाय । -तान - वि० एक ही विषयका ध्यान करनेवाला, एकचित्त, तल्लीन । - तानता - स्त्री० (मॉनोटोनी) तान या स्वरकी नीरस एकरूपता । - तार- वि० [हिं०] एकसा, एक रंग-रूपका । अ० लगातार ।-तारा - पु० [हिं०] एक तरहका तंबूरा जिसमें एक ही तार होता है । -तालवि० जिसमें ताल सुरका पूरा मेल हो । ताला - पु० [हिं०] संगीतका एक ताल | तीस - वि० [हिं०] तीस और एक, ३१ । पु० ३१ की संख्या । - दंत- पु० गणेश । वि० एक दाँतवाला । - दंता - वि० [हिं०] एक दाँतवाला (हाथी) । - दंष्ट्र - पु० गणेश । दम-अ० [हिं०] एकबारगी, तुरत; बिलकुल । -दरा - वि० [हिं०] एक दरका दालान, बैठक इ०।- दलीय शासनतंत्र - पु० (टोटलिटेरियनिज्म) समूचे देशके लिए एक ही दलके शासनकी प्रणाली जिसकी लपेट में नागरिकोंका सार्वजनिक जीवन ही नहीं, निजी और व्यक्तिगत जीवन भी आ जाता है। -दिल - वि० [हिं०] एक विचारके; एकचित्त; अभिन्न, एकरूप । - दिली - स्त्री० [हिं०] एक दिल होना, एका । - देशीय - वि० एक ही देशका; जो किसी विशेष स्थल या अवस्थामें ही लगे, सर्वत्र न लगे । - धर्मा (र्मन्), - धर्मी (मिंन्) - वि० समान धर्म या गुण-स्वभाववाला । -नयन - वि० एकाक्ष | पु० शिव; कौवा । - निष्ठ- वि० एकके ही ऊपर निष्ठा, रखनेवाला । - निष्ठा - स्त्री० एकनिष्ठता; अनन्यता; वफादारी । - पक्षीय - वि० एकतरफा; (यूनिलेटरल ) एक ही पक्ष या दलसे संबंध रखनेवाला; केवल एक तरफसे होने या किया जानेवाला । - पत्नीव्रत - पु० विवाहिता पत्नी के सिवा और किसी स्त्रीसे प्रेम न करने का व्रत । -पाठी (ठिन् ) - वि० जिसे एक ही बार पढ़ने या सुननेसे पाठ याद हो जाय । -पास * - अ० पास-पास । - प्राण- वि० एकजान, एकदिल । - फसला - वि० [हिं०] जिस (खेत या जमीन ) में साल में एक ही फसल उपजे । -ब-एक-अ० [हिं०] अचानक, यकायक । -बारगीअ० [हिं०] एक ही बार में; विलकुल । -मंजिला - वि० [हिं०] एक मंजिला या तल्लेवाला ( मकान ) । - मत- वि० एक या समान मत रखनेवाले । -मुश्त - अ० [हिं०] इकट्टा, एक बार में । - मोला - वि० [हिं०] एक दाम कहनेवाला, जो दाममें कमी-बेशी न करे । -रंग- वि० एक रंगवाला; एकरूप; बाहर-भीतर से एक, दुरंगीपनसे रहित, सच्चा, निष्कपट | - रदन - पु० गणेश । -रस - वि० जो सदा एक रूपमें रहे, कभी बदले नहीं, अपरिणामी; जो मिलकर एक हो गया हो, एकदिल । - रुखा - वि० [हिं०] एक रखवाला, जिसका मुँह एक ही ओर हो; एकतरफा;
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एक-एकत
एकचश्म । - रूप - वि० एक ही रूपवाला, जो सब अव स्थाओं में एकसा रहे ; समान रूपवाला; दे० 'एक-जातीय' । -लौता - वि०, पु० [हिं०] अपने माँ-बापका अकेला (बेटा) । -वचन - वि० एकका वाचक (सिंगुलर) । पु० एकका वाचक वचन या शब्द । - वस्त्रा - वि० स्त्री० जो वे ही कपड़े पहने रहे, रजस्वला । -वाक्यतास्त्री० एकराय होना; एकार्थता । - वेणि, - वेणी - स्त्री० सीधे-सादे ढंग से बँधा जूड़ा या चोटी । वि० इस प्रकारका जूड़ा बाँधनेवाली, विधवा, वियोगिनी । - सठ- वि० [हिं०] साठ और एक, ६१ । पु० ६१ की संख्या । -सत्ताक - वि० एकहत्था, एकतंत्र । - सदनात्मक - वि० ( यूनिकेमरल ) जिसमें केवल एक ही सदन, विधानसभा, हो । - सदस्य निर्वाचीक्षेत्र - पु० (सिंगिल मेम्बर कांसू टिटुएंसी ) वह निर्वाचनक्षेत्र जहाँसे केवल एक ही सदस्य चुना जानेको हो । - साँ- वि० [हिं०] समान, बराबर । - स्व-पु० दे० क्रममें ( सभास भी ) । - हत्था - वि० [हिं०] एक हाथमें केंद्रित, एक व्यक्ति द्वारा संचालित, एकतंत्र | मु० - अनार सौ बीमारचीज थोड़ी और चाहनेवाले बहुत । - आँख न भानातनिक भी न भाना, बिलकुल नापसंद होना । - आँख से सबको देखना - एकसा मानना, व्यवहार करना । - एकके दस-दस करना - खूब नफा कमाना । -और एक ग्यारह होते हैं- दोके मिलकर काम करनेसे शक्ति कई गुना बढ़ जाती है । -की चार लगाना - बढ़ा चढ़ाकर कहना, शिकायत करना; अपनी ओरसे बातें जोड़मिलाकर कहना; भड़काना । की दवा दो- एकको दबाने, हरानेके लिए दो बहुत होते हैं । -की दस सुनाना - एक कड़ी बातके बदले दस कड़ी बातें सुनाना । - चना भाड़ नहीं फोड़ सकता - एक आदमीके किये वह काम नहीं हो सकता जो कई आदमियोंके मिलकर करनेका हो । - चनेकी दाल- बिलकुल एकसे, हर बात में बरावर; सगे भाई । -जान दो क़ालिब-बहुत गहरे दोस्त, अभिन्नहृदय होना। तवेकी रोटी, क्या मोटी क्या छोटी - एक कुल, घरानेके सब आदमी बराबर हैं, कोई बड़ा-छोटा नहीं । - थैलीके चट्टे-बट्टे- दोनों एक-से हैं, दोनों में कोई वास्तविक अंतर नहीं । - न शुद दो शुद - एक बला थी ही, दूसरी और आ पड़ी; एक कष्ट या विपत्तिके रहते दूसरीका आ जाना। -पंथ दो काज-एक यत्न, उपायसे दो कार्य सिद्ध होना; एक काम करते हुए दूसरा हो जाना । - पाँव भीतर, एक पाँव बाहर- कामकी भीड़ या परेशानीसे एक जगह ठहर न सकना, कभी यहाँ, कभी वहाँ आते-जाते रहना । - पाँव रिकाबमें होना - यात्रा के लिए हर समय तैयार रहना । - पाँव से खड़ा रहना-आशाकी प्रतीक्षामें खड़ा रहना; ताबेदारी बजाना । लाठीसे सबको हाँकना - सबके साथ एक-सा बरताव करना, भले-बुरेका विचार न करना । -से दो होना-ब्याह होना, बीबीका घरमें आना ।
एकड़ पु० [अ०] एक नाप जो ३२ बिस्वेके लगभग होती है । एकत* - अ० एक ही स्थानपर, एकत्र ।
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