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श्री लँबेचु समाजका इतिहास *
पुत्र श्री अमोघवर्ष मुनि हुए हैं जिन्होंने प्रश्नोत्तर रत्नमाला और शाकटायण व्याकरणके ऊपर अमोघ वृत्ति बनाई है । शाकटायण व्याकरणका उल्था (अनुवाद रूपमें) पाणिनीय व्याकरण हैं और अमोघ वृत्तिका धातु पाठ, गण पाठ सिद्धान्त कौमुदीमें रखा है और प्रश्नोत्तर रत्नमालाका अनुवाद शङ्कराचार्यने चर्पटपिजरिकामें किया है । इस अकाल वर्ष प्र० कृष्ण तथा जो कि राज्य पश्चिमी उपकुलसे लेकर पूर्व उपकूल तक, उत्तरमें विन्ध्या पर्वतसे लेकर मालवा तक तथा दक्षिणमें तुङ्ग नदी तक था और इनको परमेश्वर भट्टारक श्री बल्लभ महाराजाधिराज कीर्तिनारायण वीरनारायण इत्यादि पदवियाँ थीं। तृतीय गोविन्दकी पुत्री राणादेवी बंगालके महाराज धर्मपालको ब्याही थी । इत्यादि इतिहासके सम्बन्ध कथनका यह तात्पर्य है कि उन दोनों ताम्र यन्त्रोंसे किन-किन पट्टावलीके आचार्योंका तथा उनके शिष्य जैन क्षत्रिय राजाओंका श्रावकका सम्बन्ध सूचित होता है। वर्तमान राठौर क्षत्रिय यदुवंशी जैन क्षत्रिय रहे और १२०० शताब्दी में राजा परिमाल राठौर थे, जिनके राज्य महोबा में श्री अजितनाथ भगवान्की श्यामवर्ण