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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास #
श्री वर्द्धमान स्वामी पिता सिद्धार्थको वैशालीके राजा चेटककी ७ कन्याओंमेंसे त्रिशला देवी ब्याही थी और त्रिशलादेवीकी बहिन चलना श्रेणिकको ब्याही थी । श्रेणिकके पुत्र कुणिकका दूसरा नाम अजातशत्रु या जितशत्रु भी है। श्री हरिवंशपुराण में लिखा है कि वसुदेवके पुत्र जरत्कुमारजी द्वारका भस्म हो जानेके बाद राज्य गद्दी पर बैठे अर्थात् पांडवोंने वंशरक्षार्थ कृष्णके बाद जरत्कुमारका राज्याभिषेक किया और इन्हींके वंशधर वंशपरम्परा में श्री वर्द्धमान स्वामीके समकालीन राजा जितशत्रु हुए जिनको अजातजत्रु भी कहते हैं । इन्हींको राजा सिद्धार्थकी बहिन ब्याही थी, परन्तु वर्त्तमानमें राजा श्रेणिकको बिम्बसार लिखा है और उनका वंश शैशुनाग लिखा है । परन्तु श्री वर्द्धमान स्वामी के समकालीन और और कोई जितशत्रु नहीं पाया जाता जिसका उल्लेख हो । इससे ऐसा मालूम होता है कि बहुत दिन होने से कई नामान्तर हो जाते हैं और राष्ट्रवंश ( राठौर वंश ) में शक संवत् ७०५ से ७३५ तक राजा दन्तिदुर्गके वंशमें ( अकालवर्ष ) प्रथम कृष्ण होते हैं । इन्हींको चेदीनरेश
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