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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
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लिखी है के १४ पुत्र छोड़कर मरे इस बातका उल्लेख
चौहान राजभाट मुकुर्जीने किया है। इन्हीके सन्तान लोग आकर इस ग्रोममें वसे है क्योंकि इनके समयकी आठ जैन मूर्तियां अब भी मौजूद हैं और इन पर राजा देवनाथ रायका नाम खुदा हुआ है। इनका समय वही विक्रम संवत् १४४३ में खुदा हुआ है 1 इन मूर्तियोको बुचसेन साहबने एक छोटेसे मंदिर में देखा था। चीनी यात्री नसेन साहबने उस समय १८१६ ई० में एक पुजारीसे पूछा था कि यह मंदिर कौनका है ? तब पुजारीने कहा था कि देवनाथ राय राजाका और उसी समय एक नवीन पार्श्वनाथ स्वामीका मंदिर बन रहा था जिसको आरा निवासी शंकरलालजी अग्रवाल बनवा रहे थे। उसी मंदिर तथा जिनबिम्ब प्रतिष्ठा उपर्युक्त श्री विश्वभूषणजी के शिष्य प्रशिष्य जिनेन्द्रभूषण महेन्द्र भूषण अटेर की गद्दीके भट्टारकोंने कराई थी। मसाढ़ से २५ कोस पर वैशाली ग्राम है जो कि विशाल राजाका बसाया हुआ है और यही वैशाली श्री वर्द्धमान स्वामी की
जन्म नगरी है । इसी में कुण्ड ग्राम है जिसे कुण्डलपुर कहते हैं ।
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