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* श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * - २६ जो मन्दिरमें शिलालेख गोजद है, और सूरीपुर तीर्थक्षेत्र १ मील दूरीपर है कोई समय विशाल नगरी थी अब वहाँ जंगल है एक बड़े टीले प्रदेशमें कई मन्दिर हैं जहाँ हमलोगोंने जीर्णोद्धार कलकत्ता तथा आगरा आदि दिगम्बर जैन भाइयोंको शामिलकर तथा हमलोगोंने यथाशक्ति प्रदान कर कराया है और श्वेताम्बरोंसे मुकद्दमा लड़कर खेबट दिगम्बर जैनके नाम कराया है। श्री जिनेन्द्रभूषण जीको राजा भदोरियासे माफीमें भूमि मिली और राजमान्य हुये। सुनते हैं कि इन्हींकी कचनाउरमें बिना कहारों की पालकी चली तथा तामेका सुवर्ण बना लेते थे। बटेश्वरका जिन मन्दिर बीच जमुनामें बनबाया था। इसकी भी किंवदन्ती है कि ब्राह्मण लोग अटकाव करते थे। तब इन्होंने जमुनामें बैठ मन्त्र जाप किया और कहा कि जमुना हमें जगह देगी तब जमुना की धार कुछ हट गई तब मन्दिर बनवाया अब भी मन्दिरके नीचे जमुना बहती है। मन्दिर तीन तल्ला है। एक तल्ला पानीमें ड्वा रहता है जो आज तीन चार लाख रुपया लगाने पर भी मन्दिर तथा धर्मशाला नहीं