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२८ श्री लँबेचू समाजका इतिहास * संकेत है ही कि बादजी तो इसका विस्तार यह है जो ऊपर लिखा है यह विशेष कथन दूसरी जगह हमने देखा है। स्यात् प्रारम्भिक जैन सिधान्त भाष्करकी किरणोंमें है जिसके संपादक श्रीमान् खुर्जा वाले पदमराज रानीवाले रहे हैं। और मैने पट्टावली और प्रशस्तिओंकी टीका की है तथा हरनाथ द्विवेदीजीने भी टीका की है उसकी पहिली ४ किरणोंमें होने शके है इन्हीं जगद्भूषणजीका दूसरा नाम ज्ञानभूषण होना चाहिये। उन्होंने ये यन्त्र प्रतिष्ठित किये हैं या इन्हींके शिष्यों में ज्ञान भूषण हुये होंगे। क्योंकि प्रधान २ आचार्य लिखे कोई २ बीच २ में छोड़ दिये इन्हीं गवालियरकी गद्दी सूरीपुर वर्तमान नाम बटेश्वरमें भी है। रही तथा गवालियर की ही गद्दी अटेरमें गई या सूरीपुर की गद्दी ही गवालियर रही हो प्राचीन कालमें क्योंकि इन दोनोंका सम्बन्ध है क्योंकि बटेश्वरके मन्दिरमें हमने सड़ी गली चहियो तथा कागजोंमें श्री विश्वभूषणजीका नाम देखा था । इन्हींके शिष्योंमें १८३८ में बटेश्वरका जिन मन्दिर श्री जिनेन्द्र भूषण महाराज भट्टारकने बनवाया ।