Book Title: Khartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाक्षिारापातनापानापानापारबापटपाथम- Onvars AP शिपसरवरविमसमयकारतानादावलवसतिघलिकाका सासरनामिmanisha THकीasमानमरातत्यामपन लनरामसावेत मिक्सपावरतथि श्रीनिवाशित दकपदशकहत 12gमावा तनावनाबानगी पाधानकामुकरण झापा यादवमानलवरुपाखणानाबानागनदशीयवासह mag na vai ECO मासन vels कायपारी मंत्रोककर लारवनवणीदारवादमावतयारक दतीमलतचनदीमाधकीहिनदस्ताशतत्पश्रीमान्लावालादिमन हताटाणप्रतिानाधमानरमणिमंतिलालम्लधाडानमरातत्यहाडाशन दकितपाबामदयादिवAादमादितावादपकभाऊन पहालाउलखाकाबुरfar सिवित्रीमानश्वरमशिनत्यह जाडनपतावशितत्या OMबुरागच मजा गालिता हिनदंशितत्पहा वसतितिष्ठापनावम्यात दायलाश्रीसिनतालका रातत्पीडानासम्म पहानिर्द३३. कामाशिमंट दाभाऊानादयसागर VIहादजनन्काशन जानतारागाश्री वडा नत्पमच सावकाशक Talaझनघनत्र सिक्ररपातिमाह नमसातत्यह नदीमा काम नियतिरामान नमाणिक्यस्तारानता यलक्ष्मीकि सम६रणहातान 22सनननन नवीकरणgamy स्त्ररित्रविहितलाव सकलादिमय ननकानासवत्र श्रीरत्तताव मामवृक्षणदर्शनाता इलालदीनपनुमा कारनामुलगत मानानुरंजसमामादित सुस्तकारिकाधादाम मारिअरमाणत्रीजनताबम अमातत्सदनसमधाच मनपदारकतवाननवानदन शर२समामिaiaaमाम नातान्त्रर्वत्र गुवाम्नायकाचितवनदी५कटीau SIH वरसदाशिवरात्रीमंघोतकारकवियामानसुरुयुगबनी ऊनतहमारहरामराजाजीपातमReसनातन्याबाट कानसिंदमहापाध्यायदावनयसागवतीमता। जोपासायनिस्वादाममायामातशरू सिरिटाटानमामाज्ञायायामानातकसमरा Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तक के सम्बन्ध में... खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह जैन संस्कति के इतिहास का दिग्दर्शन कराने वाली एक अति महत्त्वपूर्ण, अनूठी कृति है। यह सर्वविदित है कि प्रतिष्ठित प्रतिमाओं पर लिखे प्रतिष्ठा लेख इतिहास निर्माण का प्रमाणिक आधार होते हैं। इनसे यह भली-भाँति रूप से ज्ञात हो सका है कि खरतरगच्छ के आचार्यों ने समृद्ध श्रावकों को प्रेरित कर देश के विभिन्न भागों में - बिहार, बंगाल, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, सौराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश आदि में - सैकड़ों मन्दिरों का निर्माण करवाया, जीर्णोद्धार करवाया, हजारों जिन-मूर्तियों की प्रतिष्ठा भी करवाई। यह निर्विवाद रूप से प्रकट है कि खरतरगच्छ का अभ्युदय चैत्यवासी शिथिलाचार के विरुद्ध जिनोपदिष्ट आगमिक आचार को पुनर्स्थापित करने के लिए क्रान्तिकारी उद्घोष था, जिसके आलोक में हजारों साधु-साध्वियों ने उज्वल श्रमणधारा को पुष्ट किया। प्रस्तुत लेख संग्रह में २७६० लेखों का संग्रह है। इसमें ईस्वी सन् की ११वीं शताब्दी से लेकर २०वीं शताब्दी तक के लेख एकत्रित हैं। इनसे ज्ञात होता है कि श्वेताम्बर परम्परा में आज जितने भी गच्छ वर्तमान में हैं, उनमें सर्वाधिक प्राचीन खरतरगच्छ ही है। इसका समाज और साहित्य के विविध क्षेत्रों में योगदान जैन धर्म-दर्शन-संस्कृति के इतिहास में सर्वदा स्मरणीय रहेगा।जिनेश्वरसूरि द्वारा संस्थापित खरतरगच्छ के आचार्यों ने जनसमुदाय के साथ-साथ अपने समसामायिक नरेशों को प्रतिबोध देकर कई युगानुकूल धर्महित के कार्य करने के लिए उनको प्रेरित किया। उन्होंने अपने उपदेशों से ओसवंश आदि जातियों और गोत्रों का निर्माणकर जो विशाल वृक्ष तैयार किया वह प्रेरणा प्रदायक है। इस तरह से नाना प्रकार की नूतन ऐतिहासिक सूचनाएँ इस लेख संग्रह से हमें प्राप्त होती है, जो जैन संस्कृति की उदात्त भावनाओं की दिग्दर्शिका है। साहित्य वाचस्पति महोपाध्याय श्री विनयसागरजी ने खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह नामक पुस्तक लिखकर निःसन्देह एक अभावकी पूर्ति की है। उनकी यह अमर कृति है जो ऐतिहासिक प्रश्नों को हल करने में सक्षम है। इसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं। मैं उनके यशस्वी जीवन की कामना करता हूँ। डॉ. कमलचन्द सोगाणी For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणि पुष्प - ५ प्राकृत भारती पुष्प - खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह (१२वीं शती से लेकर २०वीं शती तक खरतरगच्छाचार्यों द्वारा प्रतिषित प्रतिमा लेखों का संग्रह) लेखक - सम्पादक साहित्य वाचस्पति महोपाध्याय विनयसागर प्रकाशक प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर एम० एस० पी० एस० जी० चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट, माण्डवला For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक: • देवेन्द्र राज मेहता संस्थापक प्राकृत भारती अकादमी १३ - ए, मेन मालवीय नगर जयपुर - ३०२०१७ दूरभाष : ०१४१ - २५२४८२७, २५२४८२८ • • • • • प्रथम संस्करण, २००५ मूल्य: ६००/ © म० विनयसागर लेजर टाईप सैटिंग नूतन चौधरी, जयपुर मुद्रक: पोपुलर प्रिन्टर्स, जयपुर • सी० जैन मँ जैन मैनेजिंग ट्रस्टी एस०एस० पी० एस० जी० चेरिटेबल ट्रस्ट १३ - ए, मेन मालवीय नगर जयपुर - ३०२०१७ दूरभाष : ०१४१ - २५२४८२८ मोबाइल : ०१४१ - ९३१४८८९९०३ डॉo यू० महामन्त्री श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट माण्डवला - ३४३ ०४२ जिला - जालोर (राज.) फोन : ०२९७३ - २५६१०७ KHARATARGACCHA PRATISHTHA LEKH SANGRAHA M. VINAYSAGAR For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानवता के विकास में जितना महत्त्वपूर्ण स्थान इतिहास का है उतना ही महत्त्वपूर्ण स्थान साक्ष्यों का इतिहास में है । प्रामाणिकता के अभाव में इतिहास धीरे-धीरे किंवदंती बन जाता है और उस पर भविष्य की पीढियाँ विश्वास नहीं करतीं । इतिहास के साक्ष्यों की एक कड़ी है मूर्तियों पर अंकित प्रतिष्ठा लेख। जैन प्रतिमाओं पर अंकित लेख महत्त्वपूर्ण सूचनाओं के स्रोत होते हैं । प्रतिष्ठित प्रतिमाओं के लेखों से अनेक महत्त्वपूर्ण बिन्दु स्वतः प्रमाणित हो जाते हैं । उनके निर्माता उपासकों का समय, जाति और गोत्र तथा आचार्यों एवं पदवीधारी साधुजनों का समय निर्धारण होने के साथ गुरु परम्परा भी निश्चित हो जाती है। उनके गच्छ का भी निर्धारण हो जाता है । कई-कई लेखों में उस काल के राजाओं के नामोल्लेख और ग्राम-नगरों के नामोल्लेख भी प्राप्त होते हैं । कई विस्तृत शिलालेख प्रशस्तियों में उस राजवंश का और निर्माताओं के वंश का वर्णन भी होता है और उनके कार्यकलापों का भी । (प्रकाशकीय अर्वाचीन जैन परम्परा में इसके संकलन को महत्त्व देना आरम्भ हुआ था किन्तु कष्ट साध्य कार्य होने से पिछली अर्धशती में इस कार्य की उपेक्षा उसी प्रकार हुई है जिस प्रकार जैन इतिहास संबंधी अन्वेषण कार्य की । खरतरगच्छ के इतिहास के प्रकाशन की महती योजना की दूसरी कड़ी के रूप में 'खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह' पुस्तक अपने पाठकों के समक्ष रखते हुए हमें अतीव प्रसन्नता हो रही है। इस योजना को क्रियान्वित व सम्पन्न करने के लिए हम इसके मनीषी लेखकसंपादक साहित्य वाचस्पति महोपाध्याय विनयसागरजी के प्रति आभार प्रकट करते हैं । साथ ही विभिन्न संस्थाओं, स्थानीय संघों व व्यक्तिगत दानदाताओं के प्रति भी आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने श्रद्धेय साधु-साध्वियों की प्रेरणा से इस प्रकाशन में सहयोग प्रदान किया है। हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह ग्रन्थ पाठकों के लिए रोचक व शिक्षाप्रद सिद्ध होगा और शोधार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी तथा प्रेरक भी । जै मैनेजिंग ट्रस्टी देवेन्द्र राज मेहता संस्थापक एम०एस०पी०एस०जी० चेरिटेबल ट्रस्ट श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट प्राकृत भारती अकादमी जयपुर जयपुर डॉ० यू.सी. जैन महामंत्री माण्डवला For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रमणिका प्रस्तावना पुरोवाक् • प्रतिष्ठा लेख संग्रह (मूल लेख) ० परिशिष्ट १-७ १. लेख संग्रह में उद्धृत पुस्तकों की नामानुक्रमणी २. सम्बन्धित लेखों के प्राप्ति-स्थान ३. लेखस्थ आचार्यों एवं मुनियों की नामानुक्रमणी ४. लेखस्थ राजाओं आदि की नामानुक्रमणी ५. लेखस्थ ग्रामानुक्रमणिका ६. लेखस्थ जातियों की नामानुक्रमणी ७. लेखस्थ गोत्रों की नामानुक्रमणी For Personal & Private Use Only पृष्ठाङ्क VII-X XI-XXXII १-४७४ ४७५-५४३ ४७५-४८२ ४८३-५०४ ५०५-५२४ ५२५-५२७ ५२८-५३३ ५३४-५३६ ५३७-५४३ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महोपाध्याय श्री सुमतिसागर जी महाराज For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य श्री जिनमणिसागरसूरि जी महाराज Jan Education matematon For Personeel seems Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्ग - पृथ्वी - पाताल में स्थित उन पावन जिन-मन्दिरों को, जिनके स्मरण और दर्शन मात्र से भव-भव के पाप विलीन हो जाते हैं 玲 समर्पण For Personal & Private Use Only - म० विनयसागर Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मङ्गलम् ) वर्तमान प्रचलित गच्छों में सबसे प्राचीन खरतरगच्छ की परम्परा है। खरतरगच्छ के आचार्यों, साधुओं, श्रावकों ने साधना, आराधना के हर क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। कल्याणक भूमियों की पावनता को साधना का आधार बनाने के लिये वहाँ पवित्र जिन मन्दिर का निर्माण, खरतरगच्छ के आचार्यों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। बिहार, उत्तरप्रदेश क्षेत्र जहाँ अधिकतर कल्याण भूमियाँ हैं, वहाँ के मन्दिर प्रायः खरतरगच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठित हैं। प्राचीन समय में प्रतिमाओं पर नामोत्कीर्ण की परम्परा प्रायः नहीं थी। सम्राट् सम्प्रति द्वारा लाखों जिनबिम्ब भराने का उल्लेख शास्त्रों में उपलब्ध होता है परन्तु उनके द्वारा भराई गई किसी भी प्रतिमा पर कोई शिलालेख उपलब्ध नहीं होता। प्रतिमा की बनावट ही उनका प्रमाण है। आज भी स्थान-स्थान पर सम्राट् सम्प्रति द्वारा भराई प्रतिमाएँ उपलब्ध होती हैं। वैज्ञानिकों द्वारा कार्बन परीक्षण द्वारा उन प्रतिमाओं का वह समय प्रमाणित हो चुका है। प्रतिमाओं पर नामांकन किये जाने का प्रारम्भ काफी बाद में हुआ प्रतीत होता है। इतिहासकारों के अनुसार विक्रम की छठी-सातवीं शताब्दी के शिलालेख प्राचीनतम प्रतिमाशिलालेख माने जाते हैं। शिलालेख इतिहास का प्रामाणिक दस्तावेज है। यह उस समय का ऐसा दर्पण है, जिसके आधार पर तत्कालीन परिस्थितियों का सटीक अनुमान किया जा सकता है। यह अनुमान, अनुमान कम यथार्थ अधिक होता है। प्राचीन शिलालेखों में उस समय के राजा, आचार्य, व्यक्ति, गोत्र, गच्छ आदि प्रचुर ऐतिहासिक, सामग्री उपलब्ध होती है। कई शिलालेखों में सिलावटों के नाम आदि का उल्लेख उनके प्रति सम्मान की सूचना देता है। - जैन समाज के पास इतिहास की यह अनमोल धरोहर शिलालेखों के रूप में सुरक्षित है। हांलाकि यह भी उतना ही सही है कि समाज उस धरोहर की मूल्यवत्ता सम्यक् रूप से नहीं जान पाया है। इस कारण शिलालेखों की सुरक्षा के प्रति वह जागरूक नहीं है। यह कथन भी सही होगा, वह शिलालेखों के नष्ट होने का कारण भी बना है। ____500 वर्ष से अधिक समय पूर्व की प्रतिमाओं पर नाम-लेखन प्रायः आगे नहीं किया जाता था। प्रतिमा के पीछे के भग में गादी पर किया जाता था। आगे चौकोर आकार की अच्छी डिजाईन बनाई जाती थी। कहीं-कहीं उसमें अष्ट मंगल उत्कीर्ण किये जाते थे। प्रतिष्ठा के समय प्रतिमा की मजबूती आदि के लक्ष्य से इतना सीमेन्ट पोत दिया जाता था कि शिलालेख उसी में दब कर रह जाता था। इस प्रकार शासन का बहुत बड़ा इतिहास समाज की असावधानी की भेंट चढ़ गया। आज भी प्रायः यही स्थिति है। For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुत सारा इतिहास बदल दिया गया/बदला जा रहा है। यह इतिहास का दुर्भाग्य है कि वर्तमान में जीर्णोद्धार आदि के नाम पर गच्छ-द्वेष अथवा स्वनाम-व्यामोह के घृणित आधार पर प्राचीन शिलालेखों को खंडित किये जाने व उन प्राचीन प्रतिमाओं का उत्थापन कर नई प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की जा रही हैं। ___ बहुत सारे शिलालेख आज भी प्रकाश में नहीं आ पाये हैं। बाबू पूरणचंदजी नाहर ने सर्वप्रथम शिलालेख संकलन का कार्य प्रारम्भ किया था। पुरातत्त्वाचार्य श्री जिनविजयजी, श्री अगरचंदजी, भंवरलालजी नाहटा, मुनि श्री कान्तिसागरजी, महोपाध्याय विनयसागरजी, श्री विजयधर्मसूरिजी, श्री पार्श्व आदि कई विद्वानों ने इस कार्य को गति दी है। मेरे दादा गुरु आचार्य प्रवर श्री जिनहरिसागरसूरिजी, म. पूज्य आचार्य श्री जिनकवीन्द्रसागरसूरिजी की शिलालेख-आलेखन की तीव्र रुचि थी। उनके द्वारा संकलित शिलालेख संग्रह हमारे भण्डार श्री जिनहरिसागरसूरि ज्ञान भण्डार, लोहावट, वर्तमान में जहाज मन्दिर में उपलब्ध है। इस संग्रह में अधिकतर शिलालेख अजीमगंज, कलकत्ता व उधर के तीर्थों, कुछ उत्तर प्रदेश के तीर्थों व मन्दिरों के हैं। यह संकलन प्रकाशित होने पर काफी नई सामग्री उपलब्ध होगी। मेरा प्रयास है कि उस संकलन का व्यवस्थित वर्गीकरण कर शीघ्र प्रकाशन किया जाय। मेरी स्वयं की अभिरुचि भी शिलालेख संग्रह की खूब रही है। पिछले सात-आठ वर्षों में जिस क्षेत्र में मेरा विहार हुआ है, वहाँ की प्रतिमाओं के शिलालेख प्रायः मैंने लिखे हैं। यह संकलन भी शीघ्र ही प्रकाशित हो सकेगा, ऐसा लक्ष्य है। इतिहासविद् महोपाध्याय श्री विनयसागरजी ने ग्रन्थों के संपादन, संकलन, अनुवाद, सर्जन आदि द्वारा जिनशासन की महती सेवा की है, विशेष रूप से खरतरगच्छ को उनकी महत्त्वपूर्ण देन रही है। खरतरगच्छ के इतिहास का सुव्यवस्थित रूप से प्रकाशन कर एक बहुत बड़ी कमी पूरी की है। तो यह ग्रन्थ उसी श्रृंखला के दूसरे भाग के रूप में प्रकाशित हो रहा है। इस ग्रन्थ में उन्होंने खरतरगच्छ से संबंधित शिलालेखों का संग्रह किया है। इस संग्रह से खरतरगच्छ की उस समय की स्थिति, उसके प्रभाव, आचार्यों के प्रति संघ की श्रद्धा, उनके विहारक्षेत्र की विशालता, अनुयायियों की विपुलता आदि का पर्याप्त बोध होता है। मैं चकित हूँ कि इस वृद्ध अवस्था में भी वे निरंतर कार्य कर रहे हैं और अवढरदानी बन कर समाज को, इतिहास को लाभान्वित कर रहे हैं। आने वाला समय उनके पुरुषार्थ के परिणाम के रूप में और कई मूल्यवान ग्रन्थों का साक्षी बनेगा, ऐसी कामना है। -आचार्य जिनकान्तिसागरसूरि शिष्य उपाध्याय मणिप्रभसागर For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (अर्थ सहयोग) उपाध्याय प्रवर श्री मणिप्रभसागर जी महाराज की प्ररेणा से 1. श्री जिनकुशलसूरि जैन दादावाडी ट्रस्ट, बसवनगुडी, बैंगलोर 2. श्री जिनहरि विहार ट्रस्ट, पालीताणा 3. युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि जैन दादावाडी ट्रस्ट, गांधीनगर, बैंगलोर 4. श्री संपतराजजी इन्द्रा देवी गादिया, आहोर- बैंगलोर 5. श्री पुखराजजी तेजराजजी गुलेच्छा, मोकलसर- बैंगलोर 6. श्री राजेन्द्रकुमारजी तिलोककुमारजी बोथरा, बीकानेर- बैंगलोर 7. श्री दानमलजी प्रसन्नचंद्रजी बागमार, कोलकाता 8. श्री विजयराजजी हंसराजजी कुशलराजजी डोसी, खजवाणा- बैंगलोर 9. श्री तेजराजजी मनोजकुमारजी आनन्दकुमारजी मालाणी, मोकलसर- बैंगलोर 10. श्री नरेन्द्रकुमारजी ईश्वरचन्दजी टांक, जयपुर- बैंगलोर For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह. संयुक्त प्रकाशक एवं विशिष्ट सहयोगी श्रेष्ठिवर्य स्व० श्री कपूरचन्द जी श्रीमाल की स्मृति में श्री पी० सी० श्रीमाल सपरिवार, हैदराबाद For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्व. श्री कपूरचन्दजी श्रीमाल OMPIN otion international E esanilayati rimply Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दृढ़ निश्चयी दानवीर श्री कपूरचन्दजी श्रीम - धार्मिक और सामाजिक कार्यों में सर्वदा अग्रगामी रहने वाले श्री कपूरचन्दजी श्रीमाल का जन्म २७ मई १८९९ में दिल्ली में हुआ था। आपके पिताजी का शुभ नाम खूबचन्दजी झाड़चूर था और माता श्री का हीराबाई | वंश श्री इनका श्रीमाल था और गोत्र था झाड़चूर। आपके चार भाई और थे। बड़े थे - श्री फूलचन्दजी, छोटे थे कस्तूरचन्दजी, श्री केसरीचन्दजी और श्री पूनमचन्दजी। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती सोहनबाई था। केवल मैट्रिक तक शिक्षार्जन किया था । व्यवसाय हेतु रिक्तहस्त हैदराबाद गये थे। वहाँ अत्यधिक परिश्रम कर समृद्धिवान बने । इनका व्यक्तित्व विराट था। खरतरगच्छ के सुदृढ़ स्तम्भ थे । धार्मिक कार्यों में सदा अग्रगण्य रहते थे । सामाजिक सेवा के कार्यों में भी पीछे नहीं हटते थे। वकील न होते हुए भी कानूनी दाव-पेचों के सिद्धहस्त जानकार थे। सभी समुदायों के प्रति समान आदर भाव रखते थे, किन्तु अपनी गच्छ की क्रिया के प्रति दृढ़निश्चयी थे। श्री खरतरगच्छ संघ और जिनदत्तसूरि सेवा संघ के लगभग ८-१० वर्षों तक अध्यक्ष रहे। श्री कुलपाक तीर्थ की व्यवस्था समिति के सन् १९७५ तक उपाध्यक्ष और तत्पश्चात् मृत्यु पर्यन्त अध्यक्ष पद पर रहे। आपकी अध्यक्षता काल में ही कुलपाक तीर्थ का विशाल प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ था। जैन श्वेताम्बर मंदिर, चार कमान (हैदराबाद) के लगभग ४० वर्षों तक आप अध्यक्ष रहे। इस मंदिर की व्यवस्था में आमूल-चूल परिर्वतन का श्रेय आप ही को जाता है। श्री अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर सुल्तान बाजार, हैदराबाद के मंदिर का जीर्णेद्धार भी आप ही के सतत प्रयत्नों एवं आर्थिक सहायता से सम्पन्न हुआ था । हैदराबाद संघ के तो आप धर्मप्राण ही थे । आपके दृढ़निश्चय के कारण ही भगवान् अजितनाथ के मंदिर में केवल चन्दन से ही पूजा होती है, केसर और वर्क नहीं चढ़ाए जाते। यह परम्परा आज भी चालू है। आपके सुकृत कार्यकलापों की सूची इस प्रकार है: कुलपाक तीर्थ की दादाबाड़ी के निर्माण हेतु ११,००,०००, जैन दादाबाड़ी बुलडाना के निर्माण हेतु ११,००,०००, , चार कमानस्थ जैन मंदिर के पृथक् उपाश्रय हेतु ५,००,०००, सिकन्दराबाद जैन दादाबाड़ी के लिए ६,००,०००, विपश्यना केन्द्र हेतु २,००,०००, और रायचूर जैन मंदिर के लिए १,११,००० दान स्वरूप प्रदान किये थे। दान सूची तो विस्तृत है किन्तु यहाँ विशिष्ट का ही उल्लेख किया गया है। धार्मिक कार्यों के लिए सुल्तान बाजार में ही सन् १९९३ में २५,००,००० के मूल्य का भवन क्रय किया जिसमें सन् १९६४ से नियमित रूप से आयम्बिल खाता चलता है। रोगियों की सेवा-शुश्रूषा के लिए ५००० से १०,००० रु० मासिक प्रदान करते थे। अपनी धर्मपत्नी सोहनबाई की स्मृति में पालीताणा में जतन स्वर्ण विचक्षण भवन में एक भव्य हॉल बनवाया था । सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी, अहमदाबाद के आप प्रतिनिधि रहे, हैदराबाद स्टॉक एक्सचेंज के संस्थापक और अध्यक्ष भी रहे। हैदराबाद नगर के सर्वश्रेष्ठ दलाल भी थे। ९८ वर्ष की विशिष्ट आयु में २३ अक्टूबर १९९६ को हैदराबाद में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके दो पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं। बड़े पुत्र सिताबचन्दजी और छोटे पुत्र विजयचन्दजी। दोनों पुत्रियों के नाम है- श्रीमती राजबाई चौपड़ा और श्रीमती कंवरबाई सुराणा । सिताबचन्दजी के दो पुत्र विद्यमान हैं - श्री प्रकाशचन्दजी इस समय भी हैदराबाद शेयर बाजार के अध्यक्ष पद पर है। श्री प्रसन्नचन्दजी, अमेरिका विश्वविद्यालय में भी रहे और वर्तमान में Indina Institute of Management, Banglore कॉलेज में प्रोफेसर पद पर कार्यरत हैं। इन दोनों भाईयों का समृद्ध परिवार भी धार्मिक एवं मानव सेवा कार्यों में सक्रिय भाग लेता है । 事事事 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना) भारत श्रद्धा एवं शिल्प का खजाना है। श्रद्धा भारत की आत्मा रही है। श्रद्धा के अतिरेक का ही यह परिणाम है कि यहाँ ठौर-ठौर मंदिर, आराधना-स्थल एवं स्मारक मिल जाते हैं। अनेक शिल्पांकित मंदिर भूमिसात हो जाने के बावजूद अतीत के आध्यात्मिक अवशेषों को देश ने सुरक्षित रखा है। मंदिरों के निर्माण के प्रति तो यह देश आस्थावान रहा ही है, उनकी रक्षा के प्रति भी सजगसक्रिय रहा है। उस राष्ट्र की श्रद्धा को प्रणाम है, जहाँ प्राणों को न्यौछावर करके भी मंदिर-मूर्तियों की सुरक्षा की गई। भारतवर्ष में मुख्यतः हिन्दु, जैन, बौद्ध, सिख, इस्लाम और ईसाइयत बाहर से आए हैं, जबकि हिन्दु, जैन, बौद्ध व सिखों की जन्म-स्थली ही भारत है। इन धर्मों के प्रवर्तकों, धर्माचार्यों और सन्तों ने अपने आध्यात्मिक श्रम एवं दिशा निर्देशों से इस राष्ट्र के धरातल का सिंचन, वर्धन और संरक्षण किया है। राष्ट्र उनके प्रति कृतज्ञ तो है ही, उनके संदेश ही वास्तव में राष्ट्र के सिद्धान्त बने हुए हैं। भगवान महावीर की अहिंसा, बुद्ध का मध्यम मार्ग, राम की मर्यादा और कृष्ण का कर्मयोग इस राष्ट्र की परम आधारशिला है। जैन धर्म का अभ्युदय भारत माता की गोद में हुआ है। इस देश के हर अंचल में इस धर्म की किलकारियाँ पहुँची हैं। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, असंग्रह और ब्रह्मचर्य के साथ सम्यक् दृष्टि, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र के नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक सिद्धान्तों पर आधारित इस धर्म ने राष्ट्र को हर दृष्टि से बहुत कुछ दिया है। राष्ट्र इस दृष्टि से जैन धर्म को अवढर दानी की संज्ञा देगा। भारत के इतिहास में कोई पृष्ठ तो क्या एक पंक्ति भी ऐसी नहीं मिलेगी जिससे जैनत्व के द्वारा राष्ट्र की गरिमा को आघात पहुँचा हो। जैनत्व के संदेश वास्तव में भारत के ही संदेश हैं। . भारत जैनत्व की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म की पूज्य पावन धरा है। जैन धर्म के समस्त तीर्थंकर एवं शलाका पुरुष भारत में ही हुए हैं। इसलिए यहाँ जैन धर्म के विस्तार के साथ जैन तीर्थ और मंदिर भी विपुल मात्रा में स्थित हैं। जैन धर्म के सैकड़ों तीर्थ, हजारों मंदिर और तीर्थंकरों की लाखों प्रतिमाएँ हमारे वैभवपूर्ण इतिहास और अतिशय श्रद्धा को प्रगट कर रहे हैं। यद्यपि भारत मूलतः मंदिरों एवं प्रतिमाओं के प्रति एकनिष्ठ श्रद्धाशील रहा है, क्योंकि मंदिर वह केन्द्र होता है जहाँ हमारी श्रद्धा बलवती होती है। मंदिर में जाने से परमात्मा की स्मृति तो आती है, अगर हम मंदिर के पास से गुजरें तब भी हृदय प्रणाम करने के लिए भावपूर्ण हो जाता है। तीर्थ और मंदिर हमारी श्रद्धा एवं निष्ठा के सर्वोपरि मापदण्ड हैं। इनसे हमारी श्रद्धा तो जुड़ी प्रस्तावना VII For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहती है साथ ही हमारे इतिहास का प्रतिबिम्ब भी यहां झलकता है। मंदिर में प्रवेश करने मात्र से मन को शांति मिलती है, हृदय में प्रफुल्लता जाग्रत होती है और चेतना में अध्यात्म की दिव्य ज्योति प्रज्वलित होती है। निराकार की साकार उपासना करने के लिए तो मंदिर प्रथम और अंतिम साधन है। भवासक्त प्राणी को मृत्युलोक में परमात्मा की स्मृति दिलाने के लिए तीर्थ और मंदिर आधारभूत हैं। मंदिरों को पुरा-युग में चैत्य शब्द से भी पहचाना जाता है। चैत्यालय वास्तव में चैत्य से ही बना है। चैत्य का मूल संबन्ध चेतना से है जबकि मंदिर का मन से। चैतन्यशुद्धि एवं मनोशुद्धि के लिए हमारे तीर्थ और मंदिर आदर्श हैं। मंदिरों में विराजमान प्रतिमाएँ हमारी श्रद्धा के केन्द्र तो हैं ही उनके नीचे उत्कीर्ण शिलालेख एक तरह से इतिहास का आईना ही है जिसमें हम अपना प्रामाणिक इतिहास देख सकते हैं। इसलिए ये मंदिर केवल पूजा या आराधना के केन्द्र ही नहीं होते अपितु हमें यहाँ सबसे प्रामाणिक इतिहास भी उपलब्ध हो जाता है। पाषाण शिालाओं पर लिखे गए लेख ही शिलालेख कहलाते हैं। शिलालेखों का इतिहास की जानकारियाँ प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। कागज एवं ताड़पत्रों में लिखे गए लेखों की आयु सीमित होती है, अतः काफी पुरा-काल में शिलालेखों की परम्परा प्रारम्भ हो गई थी। ब्राह्मी लिपि तक के शिलालेख हमें उपलब्ध हैं। और देश के कई पर्वतमालाओं की गुफाओं में, प्राचीन मंदिरों में एवं भूगर्भ से निकलने वाली प्रतिमाओं में हमें विविध प्रकार के शिलालेख प्राप्त होते हैं। शिलालेखों की दो तरह की परम्परा रही है। एक वे शिलालेख जिनमें मानवता के लिए कल्याणकारी, प्रेरणास्पद वचन अंकित किये जाते हैं और दूसरे तरह के शिलालेख वे होते हैं जो मूर्तियों के नीचे अथवा मंदिर के किसी भाग पर पत्थर पर अंकित किए जाते हैं। कलिंग विजय के बाद अंतरहृदय का रूपान्तरण होने पर सम्राट अशोक ने अहिंसा और मानव मूल्यों की स्थापना के लिए कई बड़े-बड़े शिलालेख तैयार करवाये थे, जिनसे हमें आज भी नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक संदेशों की जानकारियाँ मिलती हैं। वहीं दूसरी ओर मंदिरों और मूर्तियों के नीचे अंकित शिलालेखों से हमें उस मंदिर का इतिहास तो ज्ञात होता ही है साथ ही प्रतिष्ठाकारक आचार्य, उपस्थित साधु-साध्वीवृंद एवं मंदिर और मूर्तियों के निर्माता श्रावकों का इतिहास भी ज्ञात हो जाता है। कई शिलालेखों में तो तत्कालीन राजाओं का भी उल्लेख मिलता है जो इतिहासवेत्ताओं के लिए कई संदर्भो में प्रामाणिक निर्णय के लिए मील के पत्थर साबित होते हैं। इस तरह ये शिलालेख हमारे अतीत की वह थाती है जिनसे हमें जीवन संदेशों के साथ VIII प्रस्तावना For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतीत का इतिहास भी ज्ञात हो जाता है । विगत शाताब्दी में कई विद्वानों के द्वारा शिलालेखों के संग्रह प्रकाशित किए गए हैं जिन्होंने भारतीय इतिहास एवं विविध धर्मों के इतिहास के लेखन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। जैन धर्म में भी प्राचीन शिलालेखों के संग्रह के रूप में श्री पूरणचन्द नाहर, श्री अगरचंद नाहटा, श्री भंवरलाल नाहटा आदि विद्वानों ने उल्लेखनीय प्रयास किए हैं। लेकिन ऐसे प्रयासों की आवश्यकता फिर भी बनी रहती है। जैन धर्म के यशस्वी विद्वान महोपाध्याय श्री विनयसागर जी द्वारा सम्पादित संग्रह इसी क्षेत्र में किया गया एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। उन्होंने जैन धर्म की एक विशिष्ट शाखा खरतरगच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं एवं चरणों के शिलालेखों का इसमें संग्रह किया है। I जैन धर्म के सार्वभौम विकास में खरतरगच्छ का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । ' खरतर ' शब्द अपने आप में बड़ा विशद, सूक्ष्म और गरिमापूर्ण अर्थ लिये है । 'खर' का अर्थ है तीव्र, तेजोमय, गतिमय, शक्तिमय । खर के आगे तर जुड़कर उसकी तीव्रता, गतिमयता और शक्तिमत्ता को और बढ़ा देता है । बड़ा प्रेरणास्प्रद है यह शब्द जिसने युग-युग तक धर्मानुप्राणित समाज को स्फूर्ति प्रदान की है। महामहिम आचार्य जिनेश्वरसूरि इस आध्यात्मिक परम्परा के सूत्रधार रहे हैं। चारों दादा गुरुदेव - श्रीजिनदत्तसूरि, मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि, श्री जिनकुशलसूरि एवं श्रीजिनचन्द्रसूरि तो इस गच्छ के सर्वश्रद्धेय आचार्य दादा गुरुदेव के रूप में विख्यात रहे हैं, साथ ही आचार्य श्री अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि, महोपाध्याय समयसुन्दर, योगीराज आनन्दघन, उपाध्याय देवचन्द्र आदि इस गच्छ की महान विभूतियों में हैं । साहित्य सेवा के क्षेत्र में तो यह गच्छ सिरमौर रहा है। मंदिर निर्माण, प्रतिमा निर्माण एवं प्रतिष्ठाओं के क्षेत्र में भी यह गच्छ सम्पूर्ण श्वेताम्बर समाज में अग्रणी रहा है। खरतरगच्छाचार्यों की पावन निश्रा में हजारों जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई। देश के कई प्रमुख तीर्थ नाकोड़ा, सम्मेतशिखर, पावापुरी, क्षत्रियकुंड, चम्पापुरी, जैसलमेर आदि अनेक तीर्थ के प्रतिष्ठापक खरतरगच्छाचार्य ही थे । जैन तीर्थों की समुचित व्यवस्था के लिए सेठ आणंदजी कल्याण जी पेढ़ी जैसी राष्ट्रीय प्रबन्ध समितियाँ इस गच्छ ने ही स्थापित की हैं। तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ जो सर्वत्र पूजनीय हैं, किन्तु गुरुओं की मूर्तियों और चरण पादुकाओं को प्रतिष्ठित करने का श्रेय खरतरगच्छ को ही है । लम्बे अर्से से आवश्यकता थी खरतरगच्छाचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं के शिलालेखों के प्रामाणिक संकलन के प्रकाशन की । प्रस्तुत ग्रन्थ में इस आवश्यकता की अप्रतिम आपूर्ति है । प्रस्तावना For Personal & Private Use Only IX Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह ग्रन्थ इतिहासकारों के लिए- जो आचार्यों, नृपतियों, गोत्रों या श्रावकों के बारे में लेखन करते हैं, काफी उपयोगी सिद्ध होगा । इस ग्रन्थ के सम्पादक महोपाध्याय श्री विनयसागर जी जैन धर्म, उसमें विशेषकर खरतरगच्छ के इतिहासवेत्ता हैं। वे अनेक भाषाविद् तो हैं साथ ही अनुवादन और इतिहास - लेखन में भी सिद्धहस्त हैं। उनके द्वारा सम्पादित, अनुवादित एवं लिखित लगभग पचास से अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। 'दादा गुरु भजनावली' (७०० भजनों का संग्रह), 'खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची', 'खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावली', 'खरतरगच्छ पट्टावली संग्रह', 'विधिमार्ग प्रपा' आदि ग्रन्थों का सम्पादन कर खरतरगच्छ की अनुपम सेवा की है । अधुना कुछ माह पूर्व ही 'खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास' नामक उनका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है। जिसका सम्पूर्ण देश में स्वागत हुआ है। महोपाध्याय श्री विनयसागर जी आगम एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु सदैव प्रयत्नशील रहे हैं। उनका अधिकांश जीवन जैन साहित्य एवं संस्कृति की सेवा के लिए समर्पित रहा है । वे जैन साहित्य एवं इतिहास के गम्भीर अध्येता एवं प्राचीन भारतीय भाषाओं अनुसंधान में प्रयत्नशील रहे हैं। उनकी तथ्यपरक, परिश्रमयुक्त लेखन - कला अभिनन्दनीय है । श्री विनयसागर जी ने जैन धर्म, दर्शन, संस्कृति एवं साहित्य की अनुपम सेवाएं की हैं। प्राचीन भारतीय लिपियों, मूर्ति-लेखों, पाण्डुलिपि लेखन और सम्पादन की कला को अर्जित करने के कारण ही वे प्रस्तुत ग्रन्थ तैयार कर पाए । इस तरह के साहित्य के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य कर वे महोपाध्याय पद को सार्थक कर रहे हैं। सद्भावना सहित संबोधि-धाम, कायलाना रोड़, जोधपुर (राज.) प्रस्तावना For Personal & Private Use Only महोपाध्याय ललितप्रभ सागर Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरोवाक) प्राचीन इतिहास और जैनाचार्यों के प्रामाणिक इतिहास लेखन के लिए शिलालेख, मूर्तियों के प्रतिष्ठा लेख, ग्रन्थ रचना प्रशस्तियाँ, ग्रन्थ लेखन पुष्पिकाएँ, पट्टावलियाँ/गुर्वावलियाँ, नन्दी सूची, आचार्यों से सम्बन्धित रास, भास, गहुलियाँ और श्रीपूज्यों की दफ्तर बही आदि अन्तरंग साक्ष्य/साहित्य अत्यन्त आवश्यक है। इनके बिना प्रामाणिक इतिहास नहीं लिखा जा सकता। पट्टावलियों में प्रारम्भ से लेकर लेखन समय तक की आचार्यों की पट्ट-परम्परा पूर्ण रूप से प्राप्त होती है। इन पट्टावलियों के भी ३ रूप होते हैं - लघु, मध्यम और बृहद् । लघु में केवल आचार्यों के नाम प्राप्त होते हैं। मध्यम में कुछ जीवन परिचय होता है और बृहद् में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का पूर्ण रूप से अथवा किंचित् दिग्दर्शन होता है। इन पट्टावलियों में भी पूर्व की आचार्य-परम्परा का वर्णन श्रुत-परम्परा पर आधारित होता है और वर्तमान आचार्यों का आँखों देखा वर्णन। अतः श्रुत-परम्परा के आधार पर लिखित पूर्ण रूप से प्रामाणिक नहीं हो सकता। लेखक द्वारा वर्णित तात्कालिक आचार्यों का वर्णन प्रामाणिक होता है। हाँ, इसके वर्णन में कुछ अतिशयोक्ति हो सकती है। जिनपालोपाध्याय एवं उनके परवर्ती शिष्यों द्वारा लिखित खरतरगच्छालंकार युगप्रधानाचार्य बृहद् गुर्वावलि पूर्ण रूप से ऐतिहासिक व प्रामाणिक है। इसमें वर्णित राजकीय उल्लेख अन्य इतिहास द्वारा समर्थित हैं और प्रतिष्ठा सम्बन्धी प्रतिमाएँ आज भी प्राप्त होती हैं। यह गुर्वावलि आँखों देखी घटनाओं का सजीव वर्णन है अर्थात् उन लेखों की दैनन्दिन डायरी है। प्रतिष्ठित प्रतिमाओं के लेखों से स्वतः प्रमाणित हो जाता है कि उनके निर्माता उपासकों का समय, जाति और गोत्र तथा आचार्यों एवं पदवीधारी साधुजनों का समय-निर्धारण के साथ गुरु परम्परा भी निश्चित हो जाती है। उनके गच्छ का भी निर्धारण हो जाता है। कई-कई लेखों में उस समय के राजाओं के नामोल्लेख और ग्राम-नगरों के नामोल्लेख भी प्राप्त होते हैं। कई विस्तृत शिलालेख प्रशस्तियों में उस राजवंश का और निर्माताओं के वंश का वर्णन भी होता है और उनके कार्य-कलापों का भी। खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह भी उस इतिहास की एक कड़ी है, दस्तावेज है। खरतरगच्छ के प्रौढ़ आचार्यों ने शास्त्र-सम्मत आचारों का सम्यक् पालन करते हुए, भगवान् महावीर के उपदेशों का सम्यक् प्रचार-प्रसार करते हुए, अपने उपदेशों से ओसवंश आदि जातियाँ और गोत्रों का निर्माण कर जो विशाल वट-वृक्ष तैयार किया है वह अनुपमेय है। आततायियों द्वारा मंदिरों एवं प्राचीन कला-संस्कृति का जो ध्वंस हुआ था उस कलासंस्कृति पुनरुज्जीवित करने के लिए खरतरगच्छ के आचार्यों ने सैकड़ों नव-मंदिरों का निर्माण पुरोवाक् XI For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करवाया, जीर्णोद्धार करवाये और एक साथ सैकड़ों नहीं, हजारों जिन-मूर्तियों की प्रतिष्ठा भी करवाई। दादा जिनकुशलसूरि ने शत्रुञ्जय मानतुंग विहार की प्रतिष्ठा के समय ५०० से अधिक मूर्तियों की और जिनभद्रसूरि आदि ने जैसलमेर प्रतिष्ठा के समय हजारों जिनमूर्तियों की एक साथ प्रतिष्ठा करवाई थी। हमें खेद है कि फिर भी हम उसकी सुरक्षा नहीं कर सके। वर्तमान में उन प्रतिष्ठित हजारों मूर्तियों में से गिनती की प्रतिमाएँ ही प्राप्त होती हैं। जो प्राप्त होती हैं और इत: पूर्व उन मूर्तियों के लेखों को जिन-जिन विद्वानों ने अत्यन्त परिश्रम के साथ प्रकाशित किया है उन्हीं लेखों में से खरतरगच्छ के लेखों का यह संग्रह है । खरतरगच्छ द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थ समय खरतरगच्छ छायादार वट वृक्ष की तरह विशाल था । दादा जिनकुशलसूरि उनकी आज्ञा में विचरण करने वाले १३०० विद्वान् साधु थे और अकबर प्रतिबोधक युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि की आज्ञा में रहने वाले २१०० साधु थे । इनकी अधीनता में रहने वाली साध्वी समुदाय इसमें सम्मिलित नहीं हैं। ऐसे ही गच्छ की अन्य छः शाखाओं के आचार्य एवं साधुओं की गणना इसमें सम्मिलित नहीं है । ये प्रभावशाली आचार्यगण और विद्वान् साधु भारत के कोने-कोने में विचरण कर रहे थे। सेठ साधारण, सेठ कुलधर, सेठ क्षेमन्धर, ठक्कुर फेरु, मंत्री कर्मचन्द्र बच्छावत, सेठ मोतीशाह नाहटा और राय बहादुर बद्रीदास जैसे ऐश्वर्य सम्पन्न श्रावक इनके परम भक्त थे । अतः स्वाभाविक है कि इस गच्छ का प्रचार-प्रसार और फैलाव अत्यधिक हुआ। आचार्यगण मंदिरों के उद्धार, नवीन निर्माण और संरक्षण इन तीनों दृष्टियों को साथ लेकर चलते थे। भारत के प्रत्येक प्रदेश में इनके द्वारा प्रतिष्ठापित एवं रक्षित तीर्थस्थल पाये जाते हैं। श्री वर्धमानसूरि द्वारा आबू की विमलवसही श्री अभयदेवसूरि द्वारा स्थापित स्तम्भन पार्श्वनाथ तीर्थ, श्री जिनवल्लभसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित चित्तौड़, नागौर, मरुकोट्ट के मंदिर, युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि द्वारा प्रतिष्ठित अजमेर, कन्यानयन, विक्रमपुर, नरहड़ आदि के मन्दिर, श्री जिनपतिसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित स्वर्णगिरि, खेटक आदि के और श्री जिनेश्वरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित नगरकोट (हिमाचल प्रदेश), बीजापुर, पालनपुर, भीमपल्ली आदि श्री जिनचन्द्रसूरि स्थापित पाटण, सांचोर, शंखेश्वर, सिवाना, जैसलमेर, बाड़मेर आदि, श्री जिनकुशलसूरि द्वारा स्थापित शत्रुंजय में मानतुंग विहार, पाटण, सिंध के देवराजपुर, उच्चानगर, हाला आदि और भुवनहिताचार्य द्वारा राजगृह आदि स्थानों में मंदिर स्थापित करने और प्रतिष्ठापित करने के उल्लेख मिलते ही हैं। बिहार / बंगाल प्रदेश में सम्मेतशिखर, पावापुरी, राजगृह, चम्पापुरी, अजीमगंज, मिथिला, जौनपुर, क्षत्रियकुण्ड, कलकत्ता आदि, हिमाचल प्रदेश में नगरकोट (कांगड़ा), पंजाब में लाहोर, उत्तर प्रदेश में लखनऊ, कंपिलपुर, हस्तिनापुर, राजस्थान में जैसलमेर, लौद्रवा, ब्रह्मसर, बाड़मेर, नाकोड़ा पार्श्वनाथ, कापरड़ा, करेड़ा, जोधपुर, बीकानेर, जयपुर, त्रिभुवनगिरि, नागोर, XII पुरोवाक् For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चूरू, उदयपुर, देलवाड़ा, आबू - खरतरवसही, सौराष्ट्र में शत्रुंजय मानतुंग विहार, खरतरवसही, तलेटी मंदिर, गिरनार तीर्थ की खरतरवसही आदि, में पाटण गुजरात वाड़ी पार्श्वनाथ, खेतरवाड़ा जो कि खरतरपाटक का ही अपभ्रंश प्रतीत होता है, अहमदाबाद में सोमजी शिवाजी मंदिर, दादासाहब की पोल, मध्यप्रदेश में उज्जैन, इंदौर, धार, सैलाना, रतलाम, महीदपुर, रायपुर, नागपुर आदि स्थानों पर खरतरगच्छ के समृद्ध श्रावकों द्वारा मंदिरों का निर्माण हुआ था और वे खरतरगच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित थे । इस प्रकार देखा जाए तो भारत के प्रमुख - प्रमुख तीर्थ खरतरगच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित थे और व्यवस्था भी इसी गच्छ के श्रावकों द्वारा होती थी। आज वर्तमान में इन तीर्थों की व्यवस्था और रक्षा चाहे किसी के हाथों में हो किन्तु पूर्व में तो ये खरतरगच्छ द्वारा ही प्रतिष्ठित और संरक्षित थे । विधि - चैत्य आचार्य श्री जिनेश्वरसूरि ने शिथिलाचारि चैत्यवासियों की मान्यता - प्रतिपादन का पूर्णरूपेण निषेध / खण्डन महाराजा दुर्लभराज की राजसभा में किया और आगम-सम्मत प्रमाणों आधारों पर उनकी समस्त भ्रान्त धारणाओं का जड़ मूल से खण्डन किया । आचार्य जिनेश्वर केवल शास्त्र - विरुद्ध प्ररूपणाओं का ही निषेध कर रहे थे, आचार्य जिनवल्लभसूरि ने उस महत्त्वपूर्ण कार्य को आगे बढाया और उन चैत्यवासियों की मान्यताओं का प्रबल वेग से साथ खण्डन तो किया ही, साथ ही वैधानिक रूप से किस प्रकार से धर्म कार्य करना चाहिए? विधि - सम्म मार्ग भी दिखलाया। महाराज दुर्लभराज ने जो आचार्य जिनेश्वर को शास्त्रार्थ विजय के उपलक्ष में खरतर विरुद दिया था, उसका उन्होंने विरुद मानकर कभी भी प्रयोग नहीं किया । हाँ, सुविहित और संविग्न शब्दों का प्रकर्षता के साथ उपयोग किया। जिनवल्लभसूरि के समय में 'विधि' पर अत्यधिक जोर होने के कारण उनके अनुयायी विधिपक्ष के नाम से सम्बोधित किये जाने लगे। जैन परम्परा के प्रमुखतः समस्त क्रिया विधान भगवद् मूर्ति के समक्ष मन्दिरों में ही होते है । मन्दिर और मूर्तियाँ ही विधि - सम्मत न होकर परम्पराओं के अखाड़े हों तो स्वाभाविक है कि नवीन मन्दिरों का निर्माण करवाया जाए । जिनवल्लभसूरि के समय से ये मन्दिर भी विधिचैत्य के नाम से सम्बोधित होने लगे। प्रतिष्ठित मन्दिरों और मूर्तियों में भी 'विधि' शब्द का उल्लेख होने लगा । उदाहरण के तौर पर - लेखाङ्क १ 'विधि-चैत्य' (श्लोक ६५ एवं ७५), लेखाङ्क ३ सम्वत् ११७६ के लेख में 'वीरचैत्यविधौ', लेखाङ्क २० ‘महावीरविधिचैत्य - जावालीपुरे श्रीमहावीरविधिचैत्य', लेखाङ्क ३५ - 'विधिचैत्य', लेखाङ्क ३८ - 'प्रह्लादनपुरे श्रीयुगादिदेवविधिचैत्य', लेखाङ्क ४२-४३ - 'युगादिदेवविधिचैत्य', इस लेख में खरतरगच्छीय संघ को भी 'विधि संघ' शब्द से अभिहित किया है । लेखाङ्क ४६ 'श्री जैसलमेरुपार्श्वनाथविधिचैत्य' और 'श्रीपत्तने शान्तिनाथविधिचैत्य', लेखाङ्क ४७ ' श्रीपत्तने श्रीशान्तिनाथविधिचैत्य', लेखाङ्क ५४, ५५, ५६, ६६, ६७, ७९ और ८० में 'श्रीपत्तने शान्तिनाथविधिचैत्य' का उल्लेखनीय प्रयोग प्राप्त होता है । विधिचैत्य का प्रयोग १२वीं शताब्दी पुरोवाक् - For Personal & Private Use Only - XIII Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से प्रारम्भ होकर १४वीं शताब्दी तक तो चला ही है किन्तु १७वीं शताब्दी में भी इस शब्द के कहीं-कहीं उल्लेख प्राप्त होते हैं। जैसे - लेखाङ्क ११९४ और १२०५ में अहमदाबाद और पाटण के लेखों में 'शान्तिवीरविधिचैत्य' तथा लेखाङ्क ११९५, ११९७, ११९८ में 'शान्तिनाथविधिचैत्य' अहमदाबाद के उल्लेख प्राप्त होते हैं। लेखों का वैशिष्ट्य . ___ इस लेख संग्रह में २७६० लेखों का संग्रह किया गया है। ये लेख विक्रम सम्वत् ११६२ से लेकर मुख्यतः २०वीं शताब्दी के ही हैं। इन लेखों में जिन विशिष्ट-विशिष्ट बातों का उल्लेख हुआ है उनका सारांश यहाँ देना अभीष्ट है। लेखाङ्क १ - यह चित्तौड़ में विधि पक्ष द्वारा निर्मापित महावीर चैत्य की प्रशस्ति है। इसकी प्रतिष्ठा विक्रम सम्वत् ११६२ आचार्य जिनवल्लभसूरि ने करवाई थी। ७८ पद्य होने के कारण यह अष्टसप्तति के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस प्रशस्ति का शिलालेख आज अनुपलब्ध है, केवल हस्तप्रति ही प्राप्त है। इस प्रशस्ति को प्रशस्ति के आलोक में जिनवल्लभगणि ने अपने, जीवन की लघ-आत्म कथा लिखी हो. यह कहना अधिक उपयुक्त है। इस प्रकार की आत्मकथारूप कृति इत:पूर्व जैन साहित्य में उपलब्ध नहीं है। लेख का सारांश है : ___कूर्चपुरगच्छीय श्री जिनेश्वरसूरि का मैं शिष्य था, उनसे गणिपद भी प्राप्त किया था और अभयदेवसूरि से आगम-वाचना लेकर मैंने उनसे उप-सम्पदा ग्रहण की थी। मैं क्रमशः चित्तौड़ आया। यहाँ चैत्यवासियों को जोर था। मेरे द्वारा शास्त्र-सम्मत विधि-पक्ष, विधि-चैत्य और सुविहित साधुओं का स्वरूप समझ कर बहुत से लोग मेरे उपासक हो गये थे। मेरे द्वारा प्रतिबोधित विधिपथानुयायी कई श्रेष्ठियों के नाम भी दिये हैं:- धर्कटवंशीय सोमिलक, वर्द्धमान का पुत्र वीरक, पल्लिकापुरी (पाली) में प्रख्यात प्रद्युम्नवंशीय माणिक्य का पुत्र सुमति, क्षेमसरीय (संभवतः खींवसर निवासी) भिषग्वर सर्वदेव और उसके तीनों पुत्र रासल, धन्धक एवं वीरक, खण्डेलवंशीय मानदेव और पद्मप्रभ का पुत्र प्रह्लक, पल्लिका में विश्रुत शालिभद्र का पुत्र साधारण और पल्लिका में चन्द्र समान ऋषभ का पुत्र सड्ढक आदि। चित्तौड़ में धर्माराधन हेतु विधिचैत्य का अभाव था। तत्रस्थ चैत्यवासियों के विरोध के बावजूद भगवान् महावीर का विशाल विधि-चैत्य बना जिसकी प्रतिष्ठा वि०सं० ११६२ में हुई। नरपति नरवर्म ने भी मंदिर की अर्चानिमित्त धनदाय विभाग से दान भी किया। उस समय में मालवपति महाराजा भोज के वंशज और महाराजा उदयादित्य के पुत्र महाराजा नरवर्म का चित्तौड़ पर आधिपत्य था। यह दुर्लभ ऐतिहासिक उल्लेख भी इसमें प्राप्त है। लेखाङ्क २ - श्री जिनवल्लभगणि (आचार्य जिनवल्लभसूरि) द्वारा प्रतिष्ठित चित्रकूटीय पार्श्वनाथ चैत्य प्रशस्ति भी आज प्राप्त नहीं है किन्तु उस प्रशस्ति का कुछ अंश प्रस्तर शिलालेख पर XIV पुरोवाक् For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आलेखित प्राप्त है जो कि राजकीय पुरातत्त्व एवं संग्रहालय चित्तौड़ में सुरक्षित है। कमलाकार छः पंखुड़ियों में चित्र-काव्य के रूप में आलेखित है। चित्रकाव्यों के रूप में यह प्रतिष्ठा लेख सर्वप्रथम प्राप्त होता है। लेखाङ्क ५ - नवाङ्गवृत्तिकार श्री अभयदेवसूरि के सन्तानीय श्रीचन्द्रसूरि, लेखांक ७ में अभयदेवसूरि के सन्तानीय धर्मघोषसूरि, लेखांक ९ नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि के सन्तानीय श्री हेमचन्द्रसूरि के शिष्य श्री धर्मघोषसूरि का उल्लेख है। सम्भव है श्री अभयदेवसूरि की मूल पट्ट-परम्परा के अतिरिक्त उनके अन्य शिष्यों की परम्परा भी चली हो और उसी में ये आचार्य भी हुए हों। लेखाङ्क १२ से १६, २० के लेख श्री जिनपतिसूरि के शिष्य श्री जिनेश्वरसूरि द्वितीय, लेखाङ्क २३ से ३६ तक श्री जिनप्रबोधसूरि द्वारा प्रतिष्ठित, लेखाङ्क ३७ से ४६ तक कलिकालकेवली श्री जिनचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठित, लेखाङ्क ४७ से ७१ एवं ७४ से ७८ तक के लेख युगप्रधान दादा श्री जिनकुशलसूरि द्वारा प्रतिष्ठित हैं और ७९ से ८१ तक के लेखाङ्क जिनकुशलसूरि के पट्टधर जिनपद्मसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित हैं। खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावलि में जिनपालोपाध्याय (१३०७) और किसी विज्ञ विद्वान् द्वारा (सम्वत् १३९५ तक) उल्लिखित प्रतिष्ठाओं के समय की ये प्रतिमाएँ हैं। लेखाङ्क ८६ - यह राजगृह पार्श्वनाथ मंदिर की विक्रम सम्वत् १४१२ की प्रशस्ति है। इसमें श्री उद्योतनसूरि से लेकर श्री जिनलब्धिसूरि के पट्टधर श्री जिनचन्द्रसूरि तक के आचार्यों की परम्परा के नाम भी दिये हैं। इसमें सुरत्राण साहि पेरोज के द्वारा नियुक्त मलिकवय नामक मण्डलेश्वर के समय में उसके सेवक सहणास दूरदीन के सहयोग से इस मन्दिर का निर्माण हआ है। निर्माणकर्ता हैं - मंत्रिदलीय सहजपाल के वंशज ठक्कर वच्छराज और देवराज। श्री भुवनहितोपाध्याय (श्री भुवनहिताचार्य) ने इसकी प्रतिष्ठा करवाई थी। लेखाङ्क २६ - सम्वत् १३३४ में जिनप्रबोधसूरि द्वारा प्रतिष्ठित जिनदत्तसूरि मूर्ति, लेखाङ्क ३८सम्वत् १३५१ में जिनप्रबोधसूरि के शिष्य श्री जिनचन्द्रसूरि प्रतिष्ठित जिनप्रबोधसूरि मूर्ति । लेखाङ्क ४१ - सम्वत् १३५४ में प्रतिष्ठित श्री जिनचन्द्रसूरि मूर्ति, लेखाङ्क ५० - सम्वत् १३७९ में श्री जिनकुशलसूरि द्वारा प्रतिष्ठित जिनरत्नसूरि की मूर्तियाँ, लेखाङ्क ५२ - इसी सम्वत् में जिनकुशलसूरि द्वारा प्रतिष्ठित जिनचन्द्रसूरि मूर्ति, लेखाङ्क ६६ - सम्वत् १३८१ में जिनकुशलसूरि द्वारा प्रतिष्ठित जिनप्रबोधसूरि मूर्ति, लेखाङ्क १४१ - सम्वत् १४६९ में जिनवर्धनसूरि द्वारा प्रतिष्ठित जिनराजसूरि की मूर्ति और लेखाङ्क १४५ - इसी वर्ष में जिनवर्धनसूरि द्वारा प्रतिष्ठित मेरुनन्दनोपाध्याय मूर्ति आदि प्राचीनतम गुरु मूर्तियाँ हैं। लेखाङ्क १४६ - लक्ष्मणविहार पार्श्वनाथ मंदिर, जैसलमेर की प्रशस्ति है। इस प्रशस्ति की रचना सम्वत् १४७३ में कीर्तिराज (कीर्तिरत्नसूरि) ने की और इसका संशोधन श्री जयसागरोपाध्याय ने किया। इस प्रशस्ति में जैसलमेर के महाराजा जैत्रसिंह से लेकर लक्ष्मणसिंह तक की राज __ पुरोवाक् XV For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंशावली दी है। लक्ष्मणसिंह को श्री जिनराजसूरि प्रथम और श्री जिनवर्धनसूरि का परम भक्त बतलाया है । इस पार्श्वनाथ मंदिर को लक्ष्मणविहार के नाम से बतलाया है । गुरु परम्परा में जिनदत्तसूरि के सन्तानीय श्री जिनकुशलसूरि से लेकर जिनवर्धनसूरि तक की परम्परा भी दी है। श्री जिनवर्धनसूरि की पूर्व- देश की यात्रा का भी इसमें उल्लेख है। लेखाङ्क १४७ विक्रम सम्वत् १४७३ में निर्मित पार्श्वनाथ मंदिर, जैसलमेर की प्रशस्ति है। प्रशस्ति के निर्माता वाचनाचार्य श्री जयसागरगणि हैं। मंदिर के निर्माता रांका गोत्रीय जाखदेव और आसदेव की पूर्ण वंश-परम्परा देते हुए लिखा है - श्री जिनोदयसूरि के उपदेश से मूल के पुत्रों ने सम्वत् १४२५ में देवराजपुर (देराउर ) का तीर्थ यात्रा संघ निकाला था । सं. १४२७ में प्रतिष्ठा महोत्सव करवाया था । सम्वत् १४३६ में संघपति आम्बा ने शत्रुंजय गिरनार का संघ निकाला था । सम्वत् १४४९ में मोहन के पुत्र कीहट ने शत्रुंजय - गिरनार का संघ निकाला था । समस्त रांका परिवार के साथ श्रेष्ठि धन्ना, जयसिंह, नरसिंह आदि ने इस मंदिर की प्रतिष्ठा श्री जिनकुशलसूरिजी - सन्तानीय श्री जिनवर्धनसूरि से करवाई थी । लेखाङ्क २५६ महाराणा मोकल के पुत्र महाराणा कुम्भकर्ण के विजय राज्य में मेवाड़ देश में देवकुलपाटक (देलवाड़ा, एकलिंगजी के पास ) नवलखा गोत्रीय मंत्री लक्ष्मीधर के पुत्र रामदेव ने अपने समस्त परिवार के साथ नवीन मंदिर का निर्माण करवाकर अनेक बिम्बों की प्रतिष्ठाएँ करवाई थीं, जिनमें जिनवर्धनसूरि आदि आचार्यों की मूर्तियाँ ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्व रखती हैं। देलवाड़ा का यह मंदिर कला की दृष्टि से आबू के मंदिरों की कोटि में आता । सम्वत् १४८६ से १४९४ तक इनके द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाएँ प्राप्त होती हैं। मंत्री रामदेव आदि का परिवार पिप्पलक शाखीय श्री जिनवर्धनसूरि का उपासक था । लेखाङ्क १९२, १९५, १९६, २१२- २१५, २२५, २२७, २४६ आदि भी द्रष्टव्य हैं । लेखाङ्क २५० सम्वत् १४९३ की जिनभद्रसूरि प्रतिष्ठित सागरचन्द्राचार्य की मूर्ति उल्लेखनीय है । लेखाङ्क २५५ - सम्वत् १४९४ में पिप्पलक शाखा के श्री जिनसागरसूरिजी के आदेश से श्री विवेकहंसोपाध्याय ने विधि समुदाय सहित आबू के आदिनाथ और नेमिनाथ मंदिर की यात्रा की थी । लेखाङ्क २७४ - सम्वत् १४९६ में नाहट गोत्रीय शाह मातण ने अपने परिवार सहित करहेटक (करेड़ा) पार्श्वनाथ मंदिर में देवकुलिका का निर्माण करवाया था और उसकी प्रतिष्ठा श्री जिनवर्धनसूरि के पौत्र शिष्य श्री जिनसागरसूरि से करवाई थी । - लेखाङ्क २८८ सम्भवनाथ मंदिर, जैसलमेर की प्रशस्ति है । इस मंदिर की प्रतिष्ठा १४९७ में श्री जिनभद्रसूरि ने की थी और इस प्रशस्ति की रचना उपाध्याय श्री जयसागर के शिष्य सोमकुंजरगणि ने लिखी थी। चौपड़ा वंशीय हेमराज से लेकर उनकी कई पीढ़ियों की वंशावली इसमें प्राप्त होती है और उनके द्वारा किये हुए धार्मिक कार्य-कलापों का भी विस्तृत वर्णन है । राजवंशावली में यदुवंशीय राउल जइतसिंह से लेकर राउल लक्ष्मणसिंह और उनके पुत्र राउल वैरसिंह की वंशावली दी गई है। आचार्य - परम्परा में भी वर्धमानसूरि से प्रारम्भ कर जिनभद्रसूरि XVI पुरोवाक् For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तक दी गई है। जिनभद्रसूरि के विशिष्ट कृत्यों में लिखा है कि जिनके उपदेश से गिरनार, चित्तौड़, माण्डव्यपुर, जालौर आदि स्थानों पर नवीन मंदिर का निर्माण और प्रतिष्ठाएँ हुई थीं, साथ ही इनके उपदेश से अणहिलपुर, मण्डपदुर्ग, प्रह्लादनपुर आदि स्थानों पर ज्ञान भण्डार स्थापित किये गये थे। जिनभद्रसूरि अनेकान्तजयपताका और विशेषावश्यकभाष्य और कर्मप्रकृति आदि के उद्भट विद्वान् थे। महाराजा वैरसिंह, त्र्यंबकदास आदि इनके भक्त थे। इस प्रतिष्ठा के समय जिनभद्रसूरि ने सम्भवनाथ आदि ३०० मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई थी। चौपड़ा वंश द्वारा स्थापित मूर्तियों के लेखों में लेखाङ्क २८०, २८१, २८८, ६०७, ६४४ आदि द्रष्टव्य हैं। लेखाङ्क ३५९ - सम्वत् १५०५ में महाराणा कुम्भकर्ण के कोष व्यापारी शाह कोला के पुत्ररत्न भण्डारी वेला ने परिवार सहित अष्टापद तुल्य श्री शांतिनाथ का मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठा करवाई। इसकी प्रतिष्ठा पिप्पलक शाखीय जिनसागरसूरि के पट्टधर जिनसुंदरसूरि ने की। लेखाङ्क ३६० - सम्वत् १५०५ में जैसलमेर में राउल चाचिगदेव के विजयराज्य में शंखवाल गोत्रीय आसराज ने तपपट्टिका का निर्माण करवाकर श्री जिनभद्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई थी। प्रशस्ति लेख मेरुसुन्दरगणि ने लिखा। इस प्रशस्ति में उद्योतनसूरि से लेकर जिनभद्रसूरि तक के आचार्यों की नामावलि दी गई है। लेखाङ्क ४४७ - सम्वत् १५१० के दिन गोपाचल नगर (ग्वालियर) के राजाधिराज डूंगरसिंह के राज्य में देवराज ने संभवनाथ प्रतिमा की प्रतिष्ठा पिप्पलक शाखीय श्री जिनसागरसूरि से करवाई। लेखाङ्क ५३७ - सम्वत् १५१५ में महाराणा कुम्भकर्ण के विजय राज्य में खरतरवसहीचतुर्मुखप्रासाद आबू का निर्माण दरड़ा गोत्रीय आसराज के पुत्र संघपति मण्डलिक ने करवाया। ये मण्डलिक श्री जयसागरोपाध्याय के भाई थे। इसकी प्रतिष्ठा श्री जिनभद्रसूरि के शिष्य श्री जिनचन्द्रसूरि से करवाई। इनसे सम्बन्धित अन्य लेखांक ५३७ से ५५६ तक द्रष्टव्य हैं। लेखाङ्क ६०९ - पार्श्वनाथ मंदिर, जैसलमेर में राउल चाचिगदेव के विजय राज्य में सम्वत् १५१८ में मण्डोवर वासी नाहटा समरा ने परिवार सहित नन्दीश्वर पट्ट का निर्माण करवाया। लेखाङ्क ७०२ - श्री कमलसंयमोपाध्याय के उपदेश से जिनभद्रसूरि की पादुका वैभारगिरि में प्रतिष्ठित की गई। लेखाङ्क ७१५ - सम्वत् १५२५ में श्री कीर्तिरत्नसूरि का स्तूप और पादुका प्रतिष्ठित की गई। यह शिलालेख प्रशस्ति प्राप्त नहीं है। इसकी हस्तलिपि प्रति प्राप्त होती है। इस प्रशस्ति में वीरमपुर (महेवा, नाकोड़ा) के अधिपति भोजराज के पुत्र राठौड़ वीदा को बतलाया है। शंखवाल गोत्रीय कोचर की सन्तान-परम्परा में देपा के पुत्र देल्हा का वर्णन किया गया है। देल्हा ही दीक्षित होकर कीर्तिराज बनते हैं और जिनभद्रसूरि से आचार्य पद प्राप्त कर कीर्तिरत्नसूरि कहलाते हैं। इनके प्रमुख शिष्यों के नामोल्लेख और कीर्तिरत्नसूरि का अन्तिमावस्था पुरोवाक् पगेलात XVII For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में अनशन और स्वर्गवास सम्वत् १५२५ में हुआ । शाह केला के पुत्र मालाशाह आदि ने शत्रुंजय - गिरनार का संघ निकाला था। इन्होंने पादुका सहित स्तूप बनवाया और इन्हीं मालाशाह ने नाकोड़ा में शान्तिनाथ का मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठा करवाई थी । लेखाङ्क ७२५ - सम्वत् १५२५ में मंत्री विजपाल की वंश-परम्परा में शाह आसा जो कि पहले दिल्ली में और बाद में अहमदाबाद में निवास करता था, क्षत्रपकुल में प्रसिद्ध था । उसने आबृ तीर्थ की यात्रा करते समय विष्णुदेव के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया । लेखाङ्क ७६० सम्वत् १५२८ में प्रतिष्ठापित कीर्तिरत्नसूरि स्तूप में षोडशदल कमल गर्भित और स्वस्तिकबद्ध चित्र काव्यों में कीर्तिरत्नसूरि की प्रशंसा की गई है। लेखाङ्क ८८७ सम्वत् १५३६ विंशति विहरमान पट्ट में श्री जिनसमुद्रसूरि, गुणरत्नाचार्य, समयभक्तोपाध्याय, मुनिसोमगणि का उल्लेख किया गया है और जैसलमेर के राउल देवकर्ण का नाम भी प्राप्त होता है । = लेखाङ्क ८९२ सम्वत् १५३६ में छाजहड़ गोत्रीय मंत्री फलधर के वंशजों ने भरतचक्रवर्ती की मूर्ति का निर्माण करवाया और बेगड़शाखा के जिनेश्वरसूरि की शाखा में जिनधर्मसूरि के पट्टधर जिनचन्द्रसूरि ने प्रतिष्ठा करवाई । 1 लेखाङ्क ९३२ - सम्वत् १५४३ में महाराणा रायमल्ल के विजयराज्य में पुण्यनंदी के उपदेश से सुकोशल प्रतिमा का निर्माण हुआ। > लेखाङ्क १०८९ विक्रम सम्वत् १५८३ में जैसलमेर दुर्ग पर राउल श्री चाचिगदेव राउल देवकर्ण > राउल जयतसिंह और कुमार लूणकर्ण के राज्य में शंखवाल गोत्रीय और चौपड़ा गोत्रीय दोनों परिवारों ने मिलकर दो मंजिला अष्टापद मंदिर और शान्तिनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई। शंखवाल गोत्र की वंशावली संघवी कोचर से प्रारम्भ होकर संघवी जेठा के पुत्र आसराज और उसके पुत्र खेता तक है । खेता ने १५११ से १५२४ तक शत्रुंजय तीर्थ की १३वीं बार यात्रा की थी । XVIII चौपड़ा गोत्रीय पांचा के ४ पुत्र संघवी शिवराज, संघवी महिराज, संघवी लोला और संघवी लाखण थे। पांचा की पुत्री का नाम गेली था और इसका वैवाहिक सम्बन्ध शंखवाल गोत्रीय आसराज के परिवार के साथ हुआ था, इसलिए शंखवाल और चौपड़ा दोनों परिवारों ने मिलकर जो धार्मिक कृत्य किये उनका विस्तार से वर्णन है और उनकी वंश परम्परा भी विस्तार से दी गई है। इन लोगों ने जिनहंससूरि का पदाभिषेक महोत्सव भी किया था, यात्री संघ भी निकलवाये थे और १५८१ में राउल जयतसिंह के आदेशानुसार पार्श्वनाथ और अष्टापद दोनों मंदिरों के बीच सेरी बनवाई थी जिसके नीचे सड़क / राजमार्ग था । इन लोगों ने गढ़ के निर्माण में भी भाग लिया था । लक्ष्मीनारायण सहित दशावतार की मूर्ति का निर्माण भी करवाया था। यह सारे धार्मिक एवं प्रतिष्ठा कृत्य श्री जिनमाणिक्यसूरि के विजयराज्य में हुए और यह पुरोवाक् - For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रशस्ति देवतिलकोपाध्याय ने लिखी है। उक्त चौपड़ा गोत्रीय और शंखवाल गोत्र के द्वारा निर्मापित एवं प्रतिष्ठित जिन मूर्तियों के अनेकों लेख हैं। लेखाङ्क ११०७ - विक्रम सम्वत् १३८० में श्री जिनकुशलसूरिजी ने आदिनाथ चतुर्विंशति पट्ट की प्रतिष्ठा की थी, जो मण्डोवर के मंदिर में मूलनायक के रूप में विराजमान थी, उस मूर्ति के परिकर को पातशाह कम्मरां मुगल ने नष्ट कर दिया था। मूलनायक की मूर्ति को वहाँ से लाकर बीकानेर के राजा जयतसिंह के राज्य में वहाँ के मंत्री वच्छा (वत्सराज) के पुत्र मंत्री वरसिंह ने परिवार सहित जिनमाणिक्यसूरि से पुनः प्रतिष्ठा करवाकर चिन्तामणि मंदिर, बीकानेर में मूलनायक के रूप में सम्वत् १५९२ में विराजमान की। लेखाङ्क १११६ - सम्वत् १५९३ में बीकानेर के मंत्री वच्छा ने परिवार सहित मन्दिर बनवाकर भगवान् नमिनाथ को मूलनायक के रूप में विराजमान किया। लेखाङ्क ११३४ - सम्वत् १५९७ में कमलसंयम महोपाध्याय की पादुका प्रतिष्ठित की गई। लेखाङ्क ११५७ - सम्वत् १६१४ में वीरमपुर (नाकोड़ा) में युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के विजयराज्य में श्री धनराजोपाध्याय के उपदेश से शानितनाथ चैत्य में प्रशस्ति लिखी गई। उस प्रशस्ति के लेखक थे- पंडित मुनिमेरु और राज्यकाल था राउल मेघराज का। लेखाङ्क ११९२ - सम्वत् १६४४ में फलौदी में मंत्री संग्राम के पुत्र मंत्री कर्मचन्द्र बच्छावत ने जिनदत्तसूरि की पादुका की प्रतिष्ठा करवाई। लेखाङ्क ११९३ - सम्वत् १६४६ विजयदशमी के दिन सम्राट अकबर के राज्य में अहमदाबाद नगर में २५ देवकुलिका के साथ शान्तिनाथ विधि-चैत्य का उद्धार हुआ। प्रारम्भ में श्री उद्योतनसूरि से लेकर युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि की पट्ट-परम्परा दी गई है। इस परम्परा में कतिपय आचार्यों की महनीय कार्यों का भी वर्णन है, जो निम्न है: १. उद्योतनसूरि - उद्यतविहारी थे। २. वर्धमानसूरि - विमल दण्डनायक निर्मापित विमलवसही आबू के प्रतिष्ठापक थे और श्री सीमन्धर स्वामी के मुख से संशोधित सूरिमन्त्र के आराधक थे। ३. जिनेश्वरसूरि - अणहिलपत्तन के भूपति दुर्लभराज की राज्यसभा में चैत्यवासी आचार्यों के साथ शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त की थी और महाराजा से खरतर विरुद प्राप्त किया था। . ४. अभयदेवसूरि - नवाङ्गवृत्तिकारक और स्तम्भन पार्श्वनाथ मूर्ति के प्रकटकर्ता थे। ५. जिनवल्लभसूरि - इनके ग्रन्थ द्वादशकुलक के द्वारा वागड़ देश के १०,००० श्रावको को विधि-पक्ष का अनुयायी बनाया गया था और पिण्डविशुद्धि आदि प्रकरणों के निर्माता थे। ६. जिनदत्तसूरि - ६४ योगिनियों को और सिन्धु देश के पाँचों पीरों को अपने वश में करने वाले तथा युगप्रधान पदवीधारक थे। पुरोवाक् XIX For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. जिनचन्द्रसूरि - इनका भालस्थल मणि-मण्डित था। ८. जिनपतिसूरि - ३६ वादों में विजय प्राप्त करने वाले, प्रबोधोदय आदि ग्रन्थों के निर्माता और खरतरगच्छ के सूत्रधार थे। ९. जिनेश्वरसूरि - लाडउल, विजापुर के शान्तिनाथ और महावीर विधि-चैत्यों के प्रतिष्ठापक थे। १०. जिनचन्द्रसूरि - ४ राजाओं को प्रतिबोध देने वाले थे। ११. जिनकुशलसूरि - शत्रुजय तीर्थ के मण्डनभूत खरतरवसही के प्रतिष्ठापक थे और जिनकी यशोकीर्ति विख्यात थी। १२. जिनभद्रसूरि - स्थान-स्थान पर ज्ञान-भण्डारों की स्थापना करने वाले थे। १३. जिनसमुद्रसूरि - पंचयक्ष साधक थे और विशिष्ट क्रियाचरण के धारक थे। १४. जिनहंससूरि - तत्कालीन बादशाह से सम्मानित और उनको उपदेश देकर ५०० बंदियों को छुड़ाने वाले थे। १५. जिनमाणिक्यसूरि - पंच नदी साधक थे तथा अपने ध्यान-बल से यवनों के उपद्रवों का निवारण करने वाले थे। १६. युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि - वादिविजेता और क्रियोद्धारक थे। इन्हीं के उपदेश से मंत्री सारंगधर और देवकर्ण तथा शत्रुजय संघाधिपति मंत्री जोगजी, सोमजी, शिवाजी आदि खरतरगच्छ के प्रमुख संघ ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। पण्डित सकलचन्द्रगणि पुरस्कृत वाचक कल्याणकमलगणि और वाचक महिमराजगणि ने इस प्रशस्ति को लिखा। लेखाङ्क १२०१ - सम्राट अकबर के राज्यकाल से प्रवर्तित सम्वत् ३९ में मंत्री कर्मचन्द्र बच्छावत ने लाभपुर (लाहोर) में जिनकुशलसूरि की पादुका प्रतिष्ठित करवाई। लेखाङ्क १२०४ - सम्वत् १६५१ में मंत्री कर्मचन्द्र के पुत्र भागचन्द्र और लक्ष्मीचन्द्र ने जिनकुशलसूरि की मूर्ति सिरोही नगर के महाराजा सुरताण के विजय राज्य में प्रतिष्ठित करवाई। प्रतिष्ठाकारक थे वाचक दयाकमलगणि। लेखाङ्क १२०५ - सम्वत् १६५१ में सम्राट अकबर के राज्यकाल में वाडी पार्श्वनाथ विधिचैत्य, पाटण का निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ था और सम्वत् १६५२ में इसकी प्रतिष्ठा हुई थी। इस प्रशस्ति में उद्योतनसूरि से लेकर युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि तक गुरु-परम्परा विस्तार से दी गई है जो कि लेखाङ्क ११९३ के अनुसार ही है। इसमें आचार्यों के वर्णन में जो विशेषताएँ हैं वे निम्न हैं :- मणिधारी जिनचन्द्रसूरिजी के लिए लिखा है कि वे श्रीमाल, ओसवाल और महत्तियाण आदि जातियों के प्रतिबोधक थे। जिनमाणिक्यसूरि पट्टधर जिनचन्द्रसूरि के लिए लिखा है - वादि-विजेता थे, क्रियोद्धारक थे, सूरिमन्त्र के आराधक थे। सम्वत् १६४८ में स्तम्भतीर्थ में चातुर्मास करते हुए सम्राट अकबर के विशेष आग्रह पर लाहोर पधारे थे। उनके XX पुरोवाक् For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपदेशों से प्रभावित होकर अकबर ने आषाढ़ महीने के ८ दिन तक अमारी का फरमान, स्तम्भ तीर्थ के समुद्र में जलचर जीवों की रक्षा के लिए फरमान निकाले और उन्हीं से युगप्रधान पद प्राप्त किया था। गुरु आम्नाय के अनुसार पंच नदी के पाँचों पीरों को वशीभूत किया था। अकबर के समक्ष ही जिनचन्द्रसूरि ने अपने हाथों से जिनसिंहसूरि को आचार्य पद प्रदान किया था। इन्हीं यु० जिनचन्द्रसूरि के उपदेश से मंत्री भीम की वंश-परम्परा में मंत्री चांपा ने पुत्रपौत्र आदि परिवार के साथ अणहिलपुर पाटण में चौमुखा विधिचैत्य का और पौषधशाला का निर्माण करवाया था। यह प्रशस्ति उदयसागरगणि और लक्ष्मणप्रमोदमुनि ने लिखी है। लेखाङ्क १२११ - अमरसर के श्रीसंघ ने जिनकुशलसूरि की पादुका निर्माण करवाई और युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई। यह कार्य स्थानीय थानसिंह के उद्यम से हुआ था और मूल स्तम्भ के प्रारम्भकर्ता थे मंत्री कर्मचन्द्र। लेखाङ्क १२१३ - इसमें अल्लाही सम्वत् ४२ का उल्लेख है जो कि अकबर के राज्यकाल का सूचक है अर्थात् १६५३ में अहमदाबाद में प्राग्वाट ज्ञातीय शाह साईया के पौत्र और जोगी के पुत्र संघपति सोमजी और शिवाजी ने अपने समस्त परिवार के साथ भगवान् आदिनाथ का मंदिर निर्माण करवाकर युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई थी। लेखाङ्क १२०५ के अनुसार युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के गुणों के वर्णन के अतिरिक्त जो वर्णन किया गया है, वह निम्न है: अकबर को अपने उपदेश से प्रतिबोधित कर छ: मास पर्यन्त अमारी की घोषणा करवाने वाले, समस्त गौवंश की रक्षा कराने वाले, शत्रुजय महातीर्थ को कर-मुक्त कराने वाले और जिजिया कर हटाने वाले थे। अकबर के द्वारा लाभपुर (लाहोर) में युगप्रधान पद का महोत्सव मंत्रीवर कर्मचन्द्र बच्छावत ने किया था। प्रशस्तिकार ने सोमजी शिवाजी के लिए लिखा है कि वे खरतरगच्छ की समाचारी को हृदय से धारण करने वाले थे, साधर्मिकों की भक्ति करने वाले थे, शत्रुजय महातीर्थ का यात्रा संघ निकाला था और अनेक जिन प्रतिमाओं का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठा करवाई थी। इस प्रशस्ति के लेखक थे - समयराजोपाध्याय और प्रतिष्ठा के समय युगप्रधान जिनचन्द्रसूरिजी अपने शिष्य आचार्य जिनसिंहसूरि और रत्ननिधानोपाध्याय के साथ थे। लेखाङ्क १२२४ - अल्लाही सम्वत् ४४ विक्रम सम्वत् १६५७ में सोरठपति महाराजा राजसिंह के राज्य में विक्रमपुर (बीकानेर) वासी लिग्गा गोत्रीय खेतसिंह के पुत्र संघपति सतीदास ने शत्रुजय की तलहटी में सतीबाव (बावड़ी) का निर्माण करवाया था। यह निर्माण युगप्रधान जिनचन्दसूरि के उपदेशों से हुआ था। लेखाङ्क १२३८ - बीकानेर के महाराजा राजसिंह के विजयराज्य में विक्रमनगर (बीकानेर) के निवासी खरतरगच्छ के सकल श्रीसंघ ने भगवान् आदिनाथ का मंदिर बनवाकर युगप्रधान पुरोवाक् XXI For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनचन्द्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई थी, उस समय उनके साथ आचार्य जिनसिंहसूरि, समयराजोपाध्याय, हंसप्रमोदगणि, सुमतिकल्लोलगणि, वाचक पुण्यप्रधानगण और सुमतिसागर आदि सम्मिलित थे । लेखाङ्क १२७० सम्वत् १६६३ में जामनगर में शत्रुसल्ल जाम राज्य में बाफणा गोत्रीय समरसिंह के पुत्र शाह भरथ जो पत्तन नगर के राजा द्वारा वरश्रेष्ठि पद के धारक थे, ने अपने परिवार सहित श्री जिनकुशलसूरि का स्तूप बनवाया और युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के राज्य में श्री यशः कुशलगणि से प्रतिष्ठा करवाई । > - > > लेखाङ्क १२७१ - जिनगुणप्रभसूरि के स्तूप और पादुका के निर्माता थे छाजहड़ गोत्रीय मंत्री विजपाल और मंत्री तेजपाल । प्रशस्ति में इनके पूर्वजों का ऐतिहासिक उल्लेख है। राठौड़ वंश के महाराजा आस्थाम धांधल रामदेव काजल । काजल को सेठ के यहाँ गोद दिया गया। उसने श्रावक धर्म स्वीकार किया और उनके वंशज क्रमशः इस प्रकार हुए काजल कुलधर > अजित> सामन्त > हेमराज बादा माला जूठिल कालू । कालू घड़सी चौहान के मंत्री हुए। कालू ने रायपुर नगर में मंदिर बनवाया । उनके पुत्र थे- रादे, छाहड़, नेणा, सोनपाल, नोडराजा, पुत्री का नाम था अरघू । मंत्री सोनपाल थाहरू । थाहरू की पुत्री सहजलदें। उसके तीन पुत्र हुए मंत्री सतपाल, देपाल, महीराज मंत्री देपाल उदयकर्ण श्रीकर्ण > सहसकीर्ण। सहसकीर्ण के मंत्री सूर्यमल्ल और मंत्री दीदा । सूर्यमल्ल > हरिशचन्द्र > मंत्रीश्वर विजपाल। मंत्री दीदा हम्मीर कर्मसिंह धर्मदास । हम्मीर का पुत्र था देवीदास । मंत्री विजपाल के पुत्र मंत्रीश्वर तेजपाल ने यह स्तूप और पादुका बनवाई। इसकी प्रतिष्ठा खरतरगच्छ की बेगड़ शाखा के जिनेश्वरसूरि जिनशेखरसूरि जिनधर्मसूरिजिनचन्द्रसूरि > जिनमेरुसूरि और जिनगुणप्रभसूरि के पट्टधर जिनचन्द्रसूरि ने सम्वत् १६५३ में की थी। जैसलमेर के राउल भीमसेन के विजयराज्य में जिनगुणप्रभसूरि के शिष्य मतिसागर ने यह प्रशस्ति लिखी। मंत्री भीमा के पुत्र, मंत्री पदा के पुत्र मंत्री माणिक ने इस देहरी के लिए रुपये दिये। प्रतिष्ठा के समय पं० विद्यासागर, पं० आनन्दसागर, पं० उद्योतविजय आदि सम्मिलित थे । लेखाङ्क १३०५ सम्वत् १६७३ में जैसलमेर नगर के राउल कल्याणजी के राज्यकाल में खरतरगच्छ बेगड़ शाखा के जिनेश्वरसूरि के विजयराज्य में छाजहड़ गोत्रीय मंत्री कुलधर के वंशज मंत्री बेगड़ > मंत्री सूरा मंत्री देवदत्त मंत्री गुणदत्त मंत्री सुरजन > मंत्री वकमा । मंत्री सुरजन> जीया > मंत्री पंचाईण मंत्री चांपसी, मंत्री उदयसिंह, मंत्री टोडरमल । चांपसी के पुत्र देवकरण। उदयसिंह के पुत्र महिराज और मंत्री टोडरमल के पुत्र सोनपाल ने परिवार सहित बेगड़ गच्छ का उपाश्रय बनवाया। > XXII 1 लेखाङ्क १३१० नूरदीन जहाँगीर के सवाई विजयराज्य में शाहजादा खोसडू खुरम इत्यादि के समय में अहमदाबाद निवासी प्राग्वाट ज्ञातीय श्रेष्ठि देवराज की वंश-परम्परा में संघपति जोगी के पुत्ररत्न संघपति सोमजी और शिवाजी ने समस्त परिवार के साथ चौमुख प्रासाद खरतरवसही का निर्माण करवाकर भगवान् आदिनाथ की प्रतिमा निर्माण करवाई और इसकी प्रतिष्ठा श्री पुरोवाक् - - For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनराजसूरि ने की। इस प्रशस्ति में उद्योतनसूरि से लेकर युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि और जिनसिंहसूरि की पट्ट-परम्परा का नामोल्लेख किया है। युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के लिए लिखा है कि अकबर ने इन्हें युगप्रधान पद दिया था और इस पदवीदान समारोह में मंत्री कर्मचन्द्र ने सवा करोड रुपया खर्च किया था। यहाँ एक विशेषण विशेष रूप से प्राप्त होता है "कुपित-जहाँगीरसाहिरंजक तत्स्वमण्डलबहिष्कृतसाधुरक्षक" इससे संकेत मिलता है कि किसी साधु के अवांछनीय व्यवहार को लेकर जहाँगीर कुपित हो गया था और श्वेताम्बर साधुओं को अपनी राज्य सीमा से बाहर निकलने का आदेश दे दिया था। युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि इस आदेश से अत्यन्त दुःखित हुए और जहाँगीर से मिलने के लिए अपने साधना बल से वहाँ पहुचे। जहाँगीर को प्रसन्न कर इस आदेश को वापस करवाया और समस्त साधुजनों का विचरण वापस करवाया। जहाँगीर ने ही जिनसिंहसूरि को युगप्रधान पद दिया था, उन्हीं के पट्टधर देवी अम्बिका के वरदान को धारण करने वाले, घंघाणीपुर में प्रकट प्रतिमाओं का लेख बांचने वाले, बोहित्थ वंशीय धर्मसीधारल्ल देवी के पुत्र, सर्व शास्त्रों के ज्ञाता जिनराजसूरि ने इसकी प्रतिष्ठा करवाई थी। प्रतिष्ठा के समय आचार्य जिनसागरसूरि, महोपाध्याय जयसोम, गुणविनयोपाध्याय, धर्मनिधानोपाध्याय, पं० आनन्दकीर्ति और भद्रसेन आदि भी सम्मिलित थे। लेखाङ्क १३११ से १३१६ तक के पूर्वोक्त लेख १३१० का समर्थन करते हैं। इसी प्रकार संघपति सोमजी शिवाजी के लेखांक १३२६ से १३२८ द्रष्टव्य हैं। लेखाङ्क १३३५ - शतदलपद्मयन्त्र के कर्ता वाचनाचार्य रत्नसार के शिष्य सहजकीर्तिगणि हैं। इसकी रचना सम्वत् १६७५ में जिनराजसूरि के विजयराज्य में लौद्रवपुर (लौद्रवा) पार्श्वनाथ मंदिर के निर्मापकभणसाली गोत्रीय श्रीमल्ल के पुत्र थाहरूशाह के आग्रह से की गई। इस शतदल पद्मयन्त्र की विशेषता है कि मध्य में मकार शब्द का प्रयोग किया गया है और उसकी १०० पंखुड़ियों के अन्त में यह मकार सम्बद्ध हो जाता है। पार्श्वनाथ की स्तुति रूप इस प्रकार की रचनाएँ नहीं के समान प्राप्त होती हैं । सहजकीर्ति ने अपने वैदुष्य का प्रयोग करते हुए चित्रकाव्य के रूप में इसकी रचना की। लेखाङ्क १३३६ से १३४७ - संघपति थाहरूशाह और उनके परिवार से सम्बन्धित हैं। इन्होंने शत्रुजय तीर्थ की यात्रा करने हेतु संघ निकाला था। उसका एक कपड़े पर चित्रपट्ट भी लगभग ३५ वर्ष पूर्व जयपुर में प्राप्त था किन्तु आज वह अप्राप्त है। तीर्थ यात्रा में जिस रथ का प्रयोग किया था वह रथ आज भी लौद्रवा में मौजूद है। लेखाङ्क १३८६, १३८७ और १४२३ से १४२७ भी इनसे सम्बन्धित हैं। लेखाङ्क १३५५ से १३६९ - लेखों का सारांश है :- सम्वत् १६७७ में गणधर चौपड़ा गोत्रीय संघपति नग्गा > संग्राम> माला > देका > कचरा ) अमरसी के पुत्ररत्न आसकरण और उनके चाचा चांपसी तथा उनके भाई अमीपाल कपूरचन्द और आसकरण के पुत्र ऋषभदास, सूरदास आदि परिवार के साथ मेड़ता नगर में मंदिर और मूर्तियों का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठाएँ करवाई पुरोवाक् XXIII For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थीं, उनसे सम्बन्धित है। आबू और सिद्धाचल का यात्रीसंघ निकाल कर इस परिवार ने संघपति पद प्राप्त किया था। प्रतिष्ठापक थे - अकबर प्रतिबोधक साधूपद्रवारक युगप्रधान पदधारक श्री जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर श्री जिनसिंहसूरि के पट्टधर जहाँगीर शाह के द्वारा प्रदत्त युगप्रधान पद के धारक, शत्रुजय चौमुखजी मंदिर के प्रतिष्ठापक श्री जिनराजसूरि । भाणवड़ नगर में शान्तिनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा के समय मूलनायक की मूर्ति से अमीझारा की वर्षा हुई थी। लेखाङ्क १३७४ - सम्वत् १६७८ में महाराजा गजसिंह के विजयराज्य में राय लाखण संतानीय भंडारी गोत्रीय अमराजी के पुत्र भाणाजी ने अपने परिवार सहित कापरडा के स्वयंभू पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठा करवाई थी। प्रतिष्ठापक थे - श्री जिनदेवसूरि के पौत्र शिष्य श्री जिनसिंहसूरि के पट्ट शिष्य श्री जिनचन्द्रसूरि । लेखाङ्क १४३५ - बादशाह शाहजहाँ के विजयराज्य में पावापुरी नगर में महावीर की निर्वाण भूमि पर सम्वत् १६९८ में महावीर स्वामी का मंदिर मंत्रीदल संतानीय सकल संघ ने मिलकर बनाया है। इस प्रशस्ति में लिखा है, मंत्रीदल ज्ञाति के चौपड़ा, रोहदिय, महधा, काद्रड़ा, वार्तीदिया, नानहरा, संघेला, काणा, जाजीयाण, पाहड़िया, मीणमाण, बजागरा, जूझ, चौधरी आदि गोत्रों के महत्तियाण संघ ने यह मंदिर बनवाया। इस मंदिर की प्रतिष्ठा श्री जिनराजसूरि के आदेश से युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के प्रशिष्य श्री समयराजोपाध्याय के शिष्य पूर्व देश में विहार करने वाले कमललाभोपाध्याय ने पं० लब्धिकीर्ति, पं० राजहंसगणि, देवविजयगणि आदि शिष्य परिवार के साथ कराई। लेखाङ्क १५०० - सम्वत् १७६७ में महाराजा अजितसिंह के विजयराज्य में हम्मीरपुर (फलौदी) में युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के शिष्य परम्परा में महोपाध्याय पुण्यप्रधानगणि > उपाध्याय सुमतिसागरगणि > वाचनाचार्य साधुरंगगणि > उपाध्याय विनयप्रमोदगणि > वाचनाचार्य विनयलाभगणि की छतरी और पादुकाएँ पंडित सुमतिविमल ने स्थापित की। (महोपाध्याय पुण्यप्रधान की दो परम्पराएँ चलीं- १. अध्यात्म योगी देवचन्द्रजी की और २. विनयप्रमोद की)। लेखाङ्क १५१४ - सम्वत् १७८१ में जैसलमेर के राउल अखयसिंहजी के विजयराज्य में खरतरगच्छ की बेगड़शाखा के जिनेश्वरसूरि की पट्ट परम्परा में जिनगुणप्रभसूरि > श्री जिनेश्वरसूरि > श्री जिनचन्द्रसूरि > श्री जिनसमुद्रसूरि > श्री जिनसुन्दरसूरि > श्री जिनउदयसूरि के विजय राज्य में उपाश्रय का निर्माण करवाया गया। लेखाङ्क १५२२ से १५३१, १५३६, १५३८ से १५४२, १५४८, १५४९ आदि लेख, उपाध्याय दीपचन्द एवं देवचन्द्र उपाध्याय से सम्बन्धित हैं। युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि की परम्परा में महोपाध्याय श्री राजसागरजी > महोपाध्याय ज्ञानधर्म > उपाध्याय दीपचन्द्रगणि > उपाध्याय देवचन्द्र ने प्रतिष्ठा करवाई। लेखाङ्क १५४० में देवचन्दजी के लिए लिखा गया है कि वे संवेग XXIV पुरोवाक् For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्ग के अग्रणी थे और शत्रुजय, गिरनार, आबू आदि तीर्थों के प्रतिष्ठाकारक थे। १५४२ के लेख में लिखा है शत्रुजय आदि तीर्थों के उद्धार के लिए उद्यम करने वाले थे। (श्री देवचन्द्रजी के उपदेशों और प्रयत्नों से शत्रुजय आदि तीर्थों के उद्धार करने के लिए शत्रुजय तीर्थ पर कारखाना खोला गया था। यही कारखाना पेढ़ी का रूप धारण कर आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो आज भी समस्त तीर्थों के उद्धार के लिए प्रयत्नशील है।) लेखाङ्क १५६२ - सम्वत् १८११ में स्थापित उपाश्रय का यह लेख साधु-परम्परा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। श्री जिनलाभसूरि के विजयराज्य में क्षेमकीर्ति शाखा के महोपाध्याय रत्नशेखरजी के मुख्य शिष्य रूपदत्तगणि थे और उनके गुरु भाई थे - दीपकुञ्जर, महिमामूर्ति और लक्ष्मीसुख। रूपदत्तजी के शिष्य थे - हस्तरत्नगणि, ऋद्धिरत्न, ज्ञानकल्लोल और मुनिकल्लोल। प्रशिष्य थे - युक्तिसेन, महिमाराज आदि। वाचक हस्तरत्नगणि के उद्यम से नाथूसर में यह नवीन उपाश्रय। बारहट खेतजी, नथमल्लजी, हिम्मतसिंहजी, लालचन्दजी, सूर्यमल्लजी, दौलतसिंहजी, सगतदानजी, वखतसिंहजी और भवानीसिंह के सहयोग से बना। लेखाङ्क १५६६ - सम्वत् १८१७ में उदयपुर में समस्त संघ ने मिलकर ऋषभदेव का मंदिर बनवाया और प्रतिष्ठा करवाई। प्रतिष्ठाकारक थे - उद्योतनसूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि और जिनदत्तसूरि की परम्परा में तथा श्री जिनकुशलसूरि की परम्परा में श्री जिनवर्धनसूरि की पिप्पलक शाखा में जिनसिंहसूरि > जिनचन्द्रसूरि > जिनरत्नसूरि > जिनवर्धमानसूरि > जिनधर्मसूरि > जिनचन्द्रसूरि के शिष्य महोपाध्याय हीरसागर। महाराणा अरिसिंह का विजयराज्य था। लेखाङ्क १५६७ से १५७६ - तक के लेख इसी परम्परा से सम्बन्धित हैं। लेखांक १५७२ के अनुसार पद्मनाभ मंदिर में पद्मनाभ मूलनायक हैं जो कि आगामी चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर होंगे। लेखाङ्क १६०३ - सम्वत् १८३७ में साण्डेचा गोत्रीय ही. रायमल पुत्र देवचन्द्र, रामगोपाल आदि ने श्री जिनकुशलसूरिजी की पादुका बनवाकर विजयगच्छीय श्री महेन्द्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई थी। (महोपाध्याय विनयसागर प्रतिष्ठा लेख संग्रह भाग २ लेखांक ३७३ के अनुसार देवचन्द के पुत्र जीवराज आमेर देशाधिपति द्वारा प्रदत्त दीवान पद के धारक थे।) लेखाङ्क १६१७ - सम्वत् १८४४ में महाराजा श्री विजयसिंहजी के विजयराज्य में हम्मीरपुर (फलौदी) में सवाई युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि की शाखा में सुमतिविमलगणि > सुमतिसुन्दरगणि > सुमतिहेमगणि > कुशलभक्तिगणि > पं० रूपधीर और हितधीर ने छतरी बनवाई। लेखाङ्क १६९५ - सम्वत् १८६० में जोधपुर के महाराजा मानसिंहजी के विजयराज्य में फलौदी में युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजी के शिष्य महोपाध्याय पुण्यप्रधानगणि > महोपाध्याय सुमतिसागरगणि पुरोवाक् XXV For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ > वाचनाचार्य साधुरंगगणि > उपाध्याय विनयप्रमोदगणि > वाचनाचार्य विनयलाभगणि > श्री सुमतिविमलगणि > वाचनाचार्य सुमतिसुन्दरगणि > वाचनाचार्य सुमतिहेमगणि > वाचनाचार्य सुमतिवल्लभगणि > वाचनाचार्य सुमतिधर्मगणि अपरनाम रूपचन्द्रजीगणि > पं० भगवानदास ने धर्मशाला बनवाई। लेखाङ्क १७१८ - सम्वत् १८६२ में श्री जिनहर्षसूरि के विजयराज्य में श्री रत्नराजगणि के शिष्य ज्ञानसारजी (नारायण बाबा) की विद्यमानता में ही उनके शिष्यों ने उनके चरण बनवाकर प्रतिष्ठापित किये। लेखाङ्क १८१८ - सम्वत् १८७७ में सवाई जयसिंह के विजयराज्य में आमेर नगर में सवाई जयनगर आदि के श्री संघ ने चन्द्रप्रभ मंदिर बनवाया और उसकी प्रतिष्ठा जिनहर्षसूरि के राज्य में क्षेमकीर्तिशाखीय महोपाध्याय रूपचन्द्र के प्रशिष्य वाचक पुण्यशीलगणि के शिष्य महोपाध्याय शिवचन्द्रगणि ने करवाई। लेखाङ्क १८३६ - सम्वत् १८७६ में सूरतनगर में शाह कल्याणचन्द के पुत्र शाह सोमचन्द ने खरतरगच्छीय उपाध्याय दीपचन्द के शिष्य पं० देवचन्द्र के मुख से विशेषावश्यक वृत्तिगत गणधर- स्थापन और समवशरण विधि श्रवण कर महावीर स्वामी का समवशरण बनवाया और उसकी प्रतिष्ठा ज्ञानविमलसूरि के पट्टधर श्री सौभाग्यसूरि के पट्टालंकार सुमतिसागरसूरि से करवाई। लेखाङ्क १९४२ - सम्वत् १८९३ मुम्बई निवासी नाहटा गोत्रीय सेठ अमीचन्द के पुत्र सेठ मोतीचन्द के पुत्र संघपति खेमचन्द ने शत्रुजय पर मोतीशाह की ट्रॅक बनवाकर आदिनाथ आदि प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई। प्रतिष्ठाकारक थे - पिप्पलक शाखा के श्री जिनदेवसूरि के पट्टधर जिनचन्द्रसूरि की विद्यमानता में श्री जिनमहेन्द्रसूरि। सेठ मोतीशाह से सम्बन्धित अन्य लेखांक हैं- १९४३, १९४८, १९४९ आदि। लेखाङ्क १९५८ - सम्वत् १८९१ में जैसलमेर नगर के महारावल श्री गजसिंहजी और राणावत रूपजी के विजयराज्य में श्री जिनहर्षसूरि के पट्टधर श्री जिनमहेन्द्रसूरि के उपदेश से बाफणा गोत्रीय श्री देवराज के पौत्र श्री गुमानचन्दजी के पुत्र > बहादरमल्ल, सवाईराम, मगनीराम, जोरावरमल्ल, प्रतापचन्द और बहादरमल्लजी के पुत्र दानमल्ल आदि ने सिद्धाचलजी का संघ निकलवाया था। सवाईरामजी आदि भाईयों की वंश-परम्परा भी दी है। पाली से संघ ने प्रयाण किया था। बामनवाड़, आबू, जीरावला, तारंगा, शंखेश्वर, पंचासर, गिरनारजी होकर पालीताणा पहुँचा। समस्त चैत्यों को नमस्कार कर महोत्सव किया। इस संघ में ११ श्रीपूज्य और ५१०० साधु-साध्वी थे। जिनमहेन्द्रसूरि ने संघमाला पहनाई। सिद्धाचल मूलनायकजी के भण्डार पर तीन ताले गुजरातियों के थे और चौथा ताला इन बाफनाओं ने लगाया। लौटते हुए राधनपुर, गौड़ीजी होकर पाली आए। दानमलजी कोटा चले गए। चारों भाई जैसलमेर आए। रावलजी ने सन्मुख जाकर वधाया, भेंट की। रावलजी ने सिरपाव दिया और लौद्रवा का ताम्र पत्र दिया। XXVI पुरोवाक् For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदयपुर के महाराणा, कोटा के महाराव, बीकानेर, किशनगढ़ और बूंदी के महाराजा तथा इंदौर के होलकर, बाफनाओं के घर पधारे। अंग्रेजों ने इनको सेठ पदवी दे रखी थी। बहादरमलजी ने जैसलमेर संघ में लाहणी की। संघ की सुरक्षा के लिए ४ तोपें और ४००० सैनिक साथ में थे। जिसमें उदयपुर के राणाजी, कोटा के महाराव, जोधपुर के महाराजा, जैसलमेर के रावल, टोंक के नवाब आदि के सैनिक नगारे निशान के साथ थे। संघ में ७ पालकी, ४ हाथी, ५१ म्याना, १०० रथ, ४०० बैलगाड़ियाँ, १५०० ऊँट यह तो संघपति की ओर से थे। इस संघ यात्रा में १३,००,००० रुपये व्यय हुए। संघपति ने धुलेवा में नोबत खाना और आभूषण चढ़ाएँ, १,००,००० रुपया लगा। मक्सीजी के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। उदयपुर में २ मंदिर, दादा साहब की छतरी बनवाई और धर्मशाला बनवाई। कोटा में २ मंदिर, दादा साहब की छतरी और धर्मशाला बनवाई। जैसलमेर अमरसागर में मंदिर बनवाया। लौद्रवाजी में धर्मशाला बनवाई। बीकानेर में दादा साहबजी की छतरी बनवाई। इस प्रशस्ति की रचना मुनि केसरीचन्द्र ने की। लेखाङ्क १९७६ - सम्वत् १८९७ जैसलमेर के महारावल गजसिंहजी और महारानी राणावतजी के विजयराज्य में जैसलमेर निवासी बाफणा गोत्रीय संघपति गुमानमलजी के पुत्रों, पौत्रों श्री बहादरमल्लजी आदि ने अमरसागर में आदिनाथ भगवान् का मंदिर बनवाकर जिनमहेन्द्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई। लेखाङ्क २०७१ - सम्वत् १९०२ में नागौर में महाराजा तख्तसिंहजी के विजयराज्य में जिनरत्नसूरि की शाखा में वाचनाचार्य कर्मचन्द्र > अखेचन्द्र > रत्नचन्द्र > चैनसुखजी > मोतीचन्द > हीरानन्द , कुशलचन्द , रूपचन्दजी के उपदेश से कशलचन्दजी के बगीचे में समतिनाथ मंदिर का सभा मण्डप श्रीसंघ ने बनवाया। लेखाङ्क २०७९ - पं० रूपचन्द ने अपने ही बगीचे में उक्त छः गुरुओं की चरण स्थापना की। लेखाङ्क २१५० के अनुसार सम्वत् १९०७ में अपने गुरु कुशलचन्दजी की बगीची में दोनों दादाजी के चरण स्थापित किये थे। (इन्हीं रूपचन्दजी के शिष्य क्रियोद्धारक मोहनलालजी महाराज थे।) लेखाङ्क २०७८ - हठीसिंहजी की वाड़ी मंदिर की प्रतिष्ठा सम्वत् १९०३ में हुई थी। उसकी प्रतिष्ठाप्रशस्ति खरतरगच्छीय क्षेमशाखा के महोपाध्याय हितप्रमोद के शिष्य स्वरूपचन्द्र ने लिखी थी। लेखाङ्क २२१९ - सम्वत् १९१२ में महोपाध्याय शिवचन्द्रगणि के शिष्य रामचन्द्रमुनि ने मक्सी तीर्थ में अभयदेवसूरि आदि पाँच चरणों की प्रतिष्ठा की। इसी प्रकार लेखांक २२२० में धुलेवा नगर में अभयदेवसूरि आदि ४ चरणों की प्रतिष्ठा की। लेखाङ्क २२९१ - सम्वत् १९२० बूंदी नगर में महाराजा रामसिंहजी और राजकुमार भीमसिंह के विजयराज्य में बाफणा बहादरमलजी के पुत्र दानमल्ल, हम्मीरमल्ल, राजमल्ल द्वारा निर्मित आदिनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा श्री जिनमहेन्द्रसूरि के पट्टधर श्री जिनमुक्तिसूरि ने करवाई। लेखाङ्क २३३७ - सम्वत् १९२४ उपाश्रय के लेखानुसार कीर्तिरत्नसूरि शाखा में उपाध्याय पुरोवाक् XXVII For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमृतसुन्दरगणि > वाचक जयकीर्तिगणि > प्रतापसौभाग्यगणि > सुमतिविशालमुनि > समुद्रसोम के परम्परा से नाम प्राप्त होते हैं। यही नाम लेखाङ्क २३४३ में भी प्राप्त होते हैं। लेखाङ्क २३६३ - विक्रम सम्वत् १९२८ जैसलमेर महारावल श्री वैरीशालजी के विजयराज्य में बाफणा गोत्रीय संघवी गुमानचन्दजी के पौत्र प्रतापचन्द्रजी पुत्र हिम्मतरामजी आदि ने परिवार के साथ जैसलमेर के समीप अमरसागर पर श्री ऋषभदेवजी का मंदिर बनवाकर श्री जिनमहेन्द्रसूरिजी के पट्टधर श्री जिनमुक्तिसूरि से प्रतिष्ठा करवाई तथा दादाओं की चरण पादुका भी स्थापित करवाई। बनारस वाले उपाध्याय बालचन्द्रजी के शिष्य भी यहाँ आए थे तथा साहेबचन्द्रजी-मयाचन्द्रजी के प्रयत्नों से इस मंदिर का निर्माण हुआ था। संघवी प्रतापचन्द्रजी के पुत्र-पौत्रादि का विस्तार से वर्णन है। इस महोत्सव में रतलाम से चाँदमलजी सौभागमलजी की माताजी और उदयपुर के सरदारमलजी की माताजी आदि भी सम्मिलित हुई थीं। इस उद्यान में प्रतापचन्दजी की मूर्ति भी स्थापित की गई थी। लेखाङ्क २४६४ - विक्रम सम्वत् १९४४ में ब्रह्मसर ग्राम में जैसलमेर के महारावल वैरीशाल के विजयराज्य में वागरेचा गोत्रीय हीरालाल ने पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया और उसकी प्रतिष्ठा श्री मोहनलालजी महाराज ने की। लेखाङ्क २४७९ - सम्वत् १९५१ उपाश्रय लेख से गुरु परम्परा प्राप्त होती है, जो निम्नलिखित है:- श्री जिनचन्द्रसूरिजी > पाठक उदयतिलकगणि > पाठक अमरविजयगणि > लाभकुशलगणि > विनयहेमगणि > सुगुणप्रमोदगणि > विद्याविशालगणि > पाठक लक्ष्मीप्रधानगणि > मुत्ति कमलगणि (मोहनलाल)। लेखाङ्क २५२४ में इस परम्परा के आठों की चरण पादुकाएँ सम्वत् १९५८ में स्थापित की गई थी। लेखाङ्क २४८८ - सम्वत् १९५२ में राजगढ़ नगर में बाफणा ताराचन्द हुकमीचन्द कारित दादागुरुदेवों की पादुका की प्रतिष्ठा श्री राजेन्द्रसूरि (त्रिस्तुतिक विजयराजेन्द्रसूरि) ने करवाई। लेखाङ्क २४९२ - सम्वत् १९५२ में रतलाम नगर में महाराजा सज्जनसिंहजी के विजयराज्य में पंवार क्षत्रीय बाफणा गोत्रीय संघवी गुमानचन्दजी वंशज सेठ चाँदमलजी, रायबहादुर केसरीसिंहजी आदि ने अपने रतलाम नगर के उद्यान में चन्द्रप्रभ स्वामीजी का मंदिर बनवाकर जिनमुक्तिसूरि से प्रतिष्ठा करवाई। इस लेख में बाफणा परिवार के समस्त वंशजों और उनकी पत्नियों के नाम भी दिये गये हैं। लेखाङ्क २५६२, २५६३ - सम्वत् १९७१ में अजमेर में भड़गतिया फतहमलजी कल्याणमलजी के पुत्र कस्तूरमलजी जेवन्तमलजी की माताजी ने अपने मंदिर में दोनों दादा गुरुदेवों के चरण स्थापित करवाये थे। उसकी प्रतिष्ठा जिनचन्द्रसूरि के विजयराज्य में पंन्यास हर्षमुनि और उपाध्याय प्रेमसुखमुनि ने करवाई थी। (श्री पूज्य जिनचन्द्रसूरि के विजयराज्य का उल्लेख होने से स्पष्ट है कि १९७१ तक पंन्यास हर्षमुनिजी आदि खरतरगच्छ की मान्यता को ही प्रधानता देते थे।) XXVIII पुरोवाक् For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखाङ्क २५७४ सम्वत् १९७२ में मद्रास के साहुकार पेठ में श्री चन्द्रप्रभ स्वामी के बिम्ब की प्रतिष्ठा श्री जिनहेमसूरि के पट्टधर श्री जिनसिद्धिसूरि ने करवाई थी । विधिकारक थे यति किशोरचन्द्र के शिष्य मनसाचन्द्र । लेखाङ्क २६२९ सम्वत् १९९७ में क्षेमकीर्ति शाखा के धर्मशीलगणि के प्रशिष्य और कुशलनिधानगणि के शिष्य महोपाध्याय ऋद्धिसारगणि की मूर्ति की स्थापना यति खेमचन्दजी आदि ने करवाई थी और प्रतिष्ठा जिनचारित्रसूरिजी के राज्य में हुई थी। बीकानेर नरेश गंगासिंहजी का राज्यकाल था । ऋद्धिसारगणि निर्मित्त १५ पुस्तकों के भी नाम दिये गये हैं । लेखाङ्क २६८६ विक्रम सम्वत् २०१३ बीकानेर निवासी कोचर गोत्रीय सेठ भैरुदान के पुत्र प्रसन्नचन्द्र ने दादा जिनदत्तसूरि की मूर्ति बनवाकर विजयवल्लभसूरि के पट्टधर विजय समुद्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई | प्रकाशन का इतिहास लगभग ३०-३५ वर्षों से मेरी यह अभिलाषा थी कि खरतरगच्छ जो वर्तमान गच्छों में सब से प्राचीन गच्छ है, इसका प्रारम्भ से लेकर आज तक का इतिहास - सम्मत कोई भी प्रामाणिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं है, अतः इसका प्रामाणिक इतिहास लिखा जाए। इस गच्छ के मनीषियों ने उग्रतम साध्वाचार का पालन करते हुए, समाज के उत्कर्ष को ध्यान में रखते हुए, अपने उपदेशों से सहस्रों जिन मंदिरों का उद्धार और सहस्रों जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कर जिनेश्वर देवों की पूजा-अर्चना का जो मार्ग प्रशस्त किया है उन प्रतिमाओं के प्रतिष्ठा लेखों का संकलन कर प्रकाशन किया जाए। इसी प्रकार निरन्तर श्रुतोपासना करते हुए जो विपुल साहित्य-निर्माण किया है, वह भी साहित्य जगत् के समक्ष रखा जाए। समय परिपक्व न होने के कारण उक्त भावना केवल भावना ही रही, कार्यरूप में परिणत न हो सकी। हाँ, मैं निरन्तर इस ओर सचेष्ट रहा, सामग्री संकलित करता रहा और आज वह अभिलाषा पूर्ण होने जा रही है। लगन और परिश्रम के साथ तैयार किया हुआ खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास दो माह पूर्व ही प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत ग्रन्थ स्वर्गीय श्री पूरणचन्दजी नाहर के जैन लेख संग्रह से लेकर प्रतिमा लेखों से सम्बन्धित पुस्तकों से खरतरगच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमा लेखों का संग्रह किया गया है जो कि १२वीं शताब्दी से लेकर विक्रम सम्वत् २००० तक के लेखों का संकलन है । जिन-जिन पुस्तकों से मैंने लेखों का चयन किया है, उनकी सूची परिशिष्ट नं० १ में द्रष्टव्य है। तत्पश्चात् के कुछ लेख श्री भँवरलालजी नाहटा के अप्रकाशित लेखों से संकलित किये गये हैं। कुछ लेख हैदराबाद, नागपुर इत्यादि के मेरे द्वारा संकलित हैं। इस प्रकार कुल २७६० लेखों का इस पुस्तक में संग्रह किया गया है । पुरोवाक् For Personal & Private Use Only XXIX www.jalnelibrary.org Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यहाँ ये उद्गार प्रकट करना समीचीन होगा कि वर्तमान में ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण व उनके आधार पर इतिहास को प्रामाणिकता प्रदान करने के कार्य में संघों की रुचि नगण्य सी है । मेरा अनुमान है कि यदि प्रतिष्ठा लेखों के संकलन के कार्य को आगे बढाया जाए तो यह ३००० के लगभग की संख्या दस हज़ार से अधिक हो सकती है । समस्त संघों को आधुनिक सुविधाओं का उपयोग कर इस ओर प्रयत्न करने चाहिए। खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह पुस्तक में जो मैंने सम्पादन शैली स्वीकार की है, वह इस प्रकार है : १. २. ३. XXX प्रत्येक लेख सम्वत्, मास, तिथि, तीर्थंकर नामक्रम और दादागुरु चरणों के क्रम से रखे गये हैं । लेखांक के साथ आदिनाथः, नेमिनाथः इत्यादि शब्द प्रस्तर ( पाषाण) मूर्तियों के सूचक हैं, आदिनाथ पंचतीर्थी, शान्तिनाथ चतुर्विंशति, पार्श्वनाथ एकतीर्थी आदि शब्द धातु मूर्तियों के सूचक हैं। दादागुरु की मूर्तियों और चरणों के लिए मूर्ति और पादुका शब्द का उपयोग किया गया है। ये मूर्तियाँ, चरण आदि किस स्थान पर और किस मंदिर में प्राप्त हैं ? इसका संकेत प्रत्येक लेख की टिप्पणी के साथ उसी लेखांक के रूप में दिया गया है। उस स्थान का उल्लेख करने के पश्चात् जिस पुस्तक के लेख लिये गए हैं, उस पुस्तक का नाम और लेखांक दिये गये है जिससे की पाठक मिलान करना चाहें तो उन पुस्तकों से कर सकते हैं। इन लेखों में ५-७ लेख ऐसे भी हैं जो कि प्रतिमाओं से सम्बद्ध न हो कर उपाश्रय, ज्ञानभण्डार और धर्मशाला से सम्बन्धित हैं, जो कि भूल से दिये गये हैं । जैसे लेखांक २४७९, २५२० एवं २५२१ आदि । कुछ लेख गणेशमूर्ति, सेठसेठाणियों के भी हैं, जो आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठित हैं । - पूर्व पुस्तकों में जिन स्थानों का, मंदिरों का, उपाश्रयों का उल्लेख किया गया है, उनमें से कतिपय मूर्तियों के स्थान परिवर्तित हो गए हैं, जैसे- जयपुर इमलीवाली धर्मशाला। अथवा उन स्थानों पर वे मूर्तियाँ आज प्राप्त नहीं हैं । वे कहाँ गई ? अतापता भी नहीं है । जैसे जयपुर पार्श्वचन्द्रगच्छीय उपाश्रय, यति श्यामलालजी का उपाश्रय और जयपुर नया मंदिर का शिलापट्ट आदि । किन्तु उन प्राचीन पुस्तकों से यह स्पष्ट सिद्ध है कि उन स्थानों पर वे मूर्तियाँ आदि प्राप्त थीं जो कि आज नहीं हैं । शोधार्थियों के लिए ग्रन्थ के अन्त में ७ परिशिष्ट दिये गये हैं, जो निम्न हैं : १. जिन-जिन पुस्तकों से ये लेख लिए गये हैं, उन पुस्तकों के नाम, लेखक, प्रकाशन सन् आदि देते हुए लेखांक सूची वर्णानुक्रम से दी गई है। ये लेखांक इस पुस्तक के लेखांक हैं, न कि उन पुस्तकों के जिनके लेख इनमें संग्रहित किये गए हैं। पुरोवाक् For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. दूसरे परिशिष्ट में ग्राम-नगरों की सूची के साथ यह लेख किस मंदिर की मूर्ति का है, उसका नाम दिया है और उसके साथ ही कितने लेख इस मंदिर की मूर्तियों के है? उसके लेखांक दिये गये हैं। इसमें जिन आचार्यों, उपाध्यायों और साधुओं के द्वारा मूर्ति की अंजनशलाका/ प्रतिष्ठा की गई, उन समस्त मुनियों, आचार्यों की सूची नामानुक्रमणिका के साथ दी गई है। इस सूची में जिनचन्द्रसूरि, जिनसिंहसूरि, जिनराजसूरि आदि कई शाखाओं के आचार्यों के नाम प्राप्त होते हैं, उनको स्पष्ट करने के लिए (पट्टधर या शाखा) के नाम का उल्लेख किया गया है, जिससे पाठकों को देखने में सुविधा हो। इसमें लेखस्थ राजाओं, युवराजों, ठाकुरों, मंत्रियो और पदधारियों के नाम अकारानुक्रम से दिये गए हैं। लेखों में यत्र-तत्र ग्राम और नगरों के नाम भी प्राप्त होते हैं अर्थात् उस नगरनिवासी श्रावकं ने यह मूर्ति भराई है अथवा इस मूर्ति की प्रतिष्ठा उस स्थान पर हुई है, उसके सूचक हैं। इन नामों को भी अकारानुक्रम से दिया गया है। मूर्ति निर्माता उपासक किस ज्ञाति का था? उन ज्ञातियों के नाम भी अकारानुक्रम से दिये गये हैं। ७. इसी प्रकार मूर्ति-निर्माता या मूर्ति भराने वाला श्रावक किस गोत्र का था? उन गोत्रों की सूची भी अकारानुक्रम से दी गई है। आचार्यों, श्रीपूज्यों, मुनिगणों और यतिगणों की मूर्तियाँ और चरण भी उनकी स्मृति में स्थापित और प्रतिष्ठित किये गये थे। उन सबके प्राप्त लेख भी इनमें संग्रहित किये गये हैं। इससे उन आचार्यों का, मुनिजनों का समय और गुरु का निर्धारण करने में इतिहासविदों को अत्यन्त सुविधा रहेगी। . खरतरगच्छ की जो १० शाखाएँ - मधुकर, रुद्रपल्लीय, लघु, पिप्पलक, आद्यपक्षीय, बेगड़, भावहर्षीय, आचार्य, जिनरंगसूरि और मंडोवरा शाखा एवं ४ उपशाखाओं - क्षेमकीर्ति, सागरचन्द्रसूरि, जिनभद्रसूरि और कीर्तिरत्नसूरि के भी जो लेख प्राप्त होते हैं वे इसमें संकलित किये गए हैं। - मधुकर शाखा जो खरतरगच्छ की ही एक शाखा मानी जाती है उसका कोई इतिवृत्त प्राप्त नहीं होता है। जो. १०-१५ लेख प्राप्त होते हैं उनमें नवांगवृत्तिकार अभयदेवसूरि संतानीय शब्द दृष्टिगोचर होते है। अतः संभव है कि यह शाखा अभयदेवसूरि के शिष्यों में से ही प्रारम्भ हुई हो। इस शाखा के लेख भी इसमें सम्मिलित किए गए हैं। पुरोवाक् XXXI. For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आभार इस संग्रह में विशेष रूप से आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरि, श्री विजयधर्मसूरि, मुनि श्री जयन्तविजय, मुनि श्री कान्तिसागर, श्री पूरणचन्द्र नाहर, श्री अगरचन्द भँवरलाल नाहटा आदि की पुस्तकों का उपयोग किया गया हैं, साथ ही जिन-जिन लेखकों की पुस्तकों से लेख लिए गए है उन-उन लेखकों और प्रकाशकों का मैं हृदय से आभारी हूँ। इस संग्रह में जो प्राचीन चित्र दिये गए हैं उसके लिए मैं स्वर्गीय आचार्य श्री विजयकलापूर्णसूरिजी महाराज, आगमप्रज्ञ श्री जम्बूविजयजी महाराज, श्री जैन श्वेताम्बर लौद्रवा जैसलमेर पार्श्वनाथ ट्रस्ट, जैसलमेर के अध्यक्ष श्री किशनचन्दजी बोहरा, हाला संघ के अध्यक्ष श्री रूपचन्दजी भंसाली, डॉ० नारायणचन्दजी मेहता और श्री महेन्द्र कुमार कोठारी आदि के प्रति भी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। मेरे आत्मीय महोपाध्याय श्री ललितप्रभसागरजी ने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर प्रस्तावना लिखी है, उसके लिए भी मैं उनका कृतज्ञ हूँ। ___मेरे प्रिय डॉ० शिवप्रसाद, सम्पादक श्रमण, वाराणसी ने मेरे अनुरोध पर लेखों का चयन कर जो मुझे सहयोग प्रदान किया, उसके लिए मैं उन्हें हृदय से साधुवाद देता हूँ। पूज्य गुरुदेवों की कृपा है कि उनके ही गच्छ का कार्य होने से उनकी ही अनभ्र कृपावृष्टि हुई। उसी के फलस्वरूप यह ग्रन्थ भी आपके कर-कमलों में पहुंच रहा है। मेरे परमाराध्य पूज्य स्वर्गीय गुरुदेव श्री जिनमणिसागरसूरिजी महाराज के अमोघ आशीर्वाद के फलस्वरूप ही मैं इस कार्य को सम्पन्न करने में सफल हो सका। : श्री देवेन्द्रराजजी मेहता, संस्थापक, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, श्री मंजुल जैन, मैंनेजिंग ट्रस्टी, एम.एस.पी.एस.जी. चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर और डॉ० यू. सी. जैन, महामन्त्री, श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट, माण्डवला को भी मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूँ कि इन तीनों संस्थानों के सहयोग से यह ग्रन्थ पाठकों के कर-कमलों में पहुंच रहा है। लेजर टाईप सैटिंग में नूतन चौधरी, श्याम अग्रवाल और नयनाभिराम मुद्रण एवं बाईंडिंग के लिए श्री महावीरजी गोयल, श्री निर्मलजी गोयल, प्रोपराइटर पापुलर प्रिन्टर्स, जयपुर को भी हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। ___ अन्त में आत्मीय अनुज श्री सुरेन्द्र बोथरा की सतत प्रेरणा से मैं लेखन कार्य की ओर पुनः प्रवृत्त हो सका, और आयुष्मान मंजुल, पुत्रवधु नीलम, पुत्र विशाल, पौत्री तितिक्षा और पौत्र वर्धमान के स्नेह, समर्पण और सहयोग के लिए ढेर सारे साधुवाद और अन्तरंग आशीर्वाद। दिनांक : १०-०१-२००५ - म. विनयसागर पौष वदि सोमवती अमावस्या, सम्वत् २०६१, जयपुर XXXII पुरोवाक् For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain on Internationa भगवान पार्श्वनाथ पार्श्वनाथ मन्दिर, जैसलमेर www.jainelibrary Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COIMEDIAS ga thlivicugiabi FebripMalaieARDI DELETERANDIलाद PHATRENASHIKARANना निरालाAFTORY C OMSCCCCMS सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ, लौद्रवा, लेखांक १३४१ For Personal & Private Use Only e Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवसरण चौमुखजी सं० १३७९ जिनकुशलसूरि जी प्रतिष्ठित, हाला, मन्दिर, ब्यावर, लेखांक ५३ For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माँ अम्बिका देवी, માથે काकड । माँ अम्बिका देवी, पृष्ठभाग सं० १३८० जिनकुशलसूरि जी प्रतिष्ठित, हाला मन्दिर, ब्यावर, लेखांक ६२ Aprivate Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BASSAGE सवत१२२४ वास्त गणधर गौतमस्वामी सं० १३३४ जिनप्रबोधसूरि प्रतिष्ठित, भीलड़िया, लेखांक २४ For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WE Sunity Education International 230 श्री पा श्री जिनवर्द्धनसूरि जी महाराज सं० १४८६ में प्रतिष्ठित, पार्श्वनाथ जिनालय, देलवाड़ा, लेखांक १९५ For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणधर-श्रीगौतमस्वामिने नमः। दादागुरु-श्रीजिनकुशलसूरये नमः । गुरुवर-श्रीजिनमणिसागरसूरये नमः। खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः (१) चित्रकूटीय-वीरचैत्य-प्रशस्तिः (अष्टसप्ततिः) स्वयम्भुवोऽक्षावलियाम आदृता, विशेषतु[ष्य] वृषभावभासिनः। चतुर्मुख श्री[ध] रशङ्कराश्चिरं, भवस्थितिध्वंसकृतः पुनन्तु वः॥ १॥ भक्तिव्यक्ति भरा] नतामलवपुःसङ्क्रान्तकान्तस्फुरत् सर्वाङ्गस्तदनुस्मृतेरिव तरां बिभ्रत्तदेकात्मताम्। यः सद्धर्मकथाक्षणे सममि[ मं] त्रातुं समग्रं जनं, क्लृप्तानेकतनुर्व्यभाव्यत स वो वीरः शिवं यच्छतात् ॥ २ ॥ स जिनो जीयादलिकुल[ललामविलुलितसुकामे]बहुलजटम्। मुखचन्द्रचन्द्रिकावा[ या]मकाम विचरंश्चकोर इव ॥ ३॥ बद्धाञ्जलिस्त्रिदशसंहतिरास्यपद्म-निर्यद्वचो मधुरसं निभृतं पिबन्ती। यत्कायकान्तिविसरच्छुरितावभासे, भृङ्गावलीव भविनां स मुदे सु[ऽस्तु] पार्श्वः॥ ४॥ श्रीलीलासद्मपद्मं मुखशशिविशदाभीशु(षु)भिभिन्नमुच्चै रुन्मीलत्पत्रपुञ्जारुणरुचिरुचिरं हस्तपादानुलग्नम्। जिह्वालं [शं] जगत्याः समुदितमिव वाक्सारसंसारहेतो र्बिभ्राणा भूरिभूतिस्त्रिभुवनजननी पातु देवी गिरां वः॥ ५ ॥ मथितदवथौ सम्पूर्णांशे सदामृतवर्षिणि, प्रसरति घनच्छाये प्राज्ये प्रमारनृपान्वये। स्फुटशुचिरुचिः श्रीमान्मुक्तोपमोऽद्भुतवैभव-स्त्रिभुवनजयी राजा भोजो बभूव विभुर्भुवः॥ ६ ॥ कान्तित्यक्ताश्च्युतार्था गलितगुणरसौज:समाधिप्रसादाः, .. सन्मार्गातिक्रमेण त्रिजगदवमता हीनवर्णस्वराश्च । १. यह प्रशस्ति चित्तौड़ के वीर-चैत्य में शिलापट्ट पर उत्कीर्ण की गई थी किन्तु आज यह प्राप्त नहीं है। इसकी एकमात्र प्रतिलिपि हस्तलिखित प्रति के रूप में लालभाई दलपतभाई भारतीय संकृति विद्या मन्दिर, अहमदाबाद, पू० मुनि श्री पुण्यविजयजी के संग्रह में ग्रन्थाङ्क ६९३ पर प्राप्त है। इस प्रशस्ति का प्रसिद्ध नाम 'अष्टसप्तति' भी है। इसके प्रणेता श्रीजिनवल्लभंसूरि हैं। (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (१) For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्लिष्टाः शिष्टैरजुष्टाः स्खलितपदभृतो प्रष्टभावानुभावाः, यस्यालङ्कारमुक्ताः कुकविगिर इवाख्यातिमापुर्विपक्षाः॥ ७॥ यश्चकार कलिं भूयः कृतप्रतिकृतिं बलात्। चक्रे च द्वापरं नासावत्रेतायां जयश्रियि ॥८॥ स्थिराशोकः पृथ्वीतलमदनवारः सुकरजः, शमीश्रीपुन्नागः प्रियकलवलीवंशतिलकः। जयारम्भारोही सरलसहकारोऽर्जुनरुचि-र्य इत्थं स त्यागप्रकृतिरपि नाधत्त विटपान्॥९॥ उत्सर्पद्दर्पसर्पत्सुभटभरकरोद्भूतधौतासिधारा संघट्टस्पष्टनिर्यज्ज्वलदनलकणव्याप्तरोदोन्तरालः। संख्ये संसक्तमुक्ताफलनिकरनिभस्वेदवार्बिन्दुसीते, यद्वक्षोऽनल्पतल्पे दितदवथुरिवाशे सुस्था जयश्रीः॥ १० ॥ वेदाभ्यासजडं पुराणपुरुषं हित्वा गुणान्वेषिणी, शश्चद् यद्वदनाम्बुजं ध्रुवमशेश्रीयिष्ट वाग्देवता। तर्कव्याकरणेतिहासगतिणदित्यद्भुतं वाङ्मयं, स्रष्टेवाभुजदन्यथा कथमयं निःशेषमिच्छावशात् ॥ ११ ॥ नम्रानेकक्षितीशोद्भटमुकुटतटीकोटिकाषोज्ज्वलांहे लक्ष्मीर्यस्याक्षिपद्मं ध्रुवमखिलगुणैः सार्द्धमेवाध्युवास। लोकन्यक्कारहेतावधमतमजनेऽप्याशु यदृष्टिपाता .................नकस्मादहमहमिकया सद्गुणाश्च श्रियश्च ॥ १२ ।। कर्णाटीकिलकिञ्चितक्षतिकृतः कामार्तजाताङ्गना, तुङ्गानङ्गनिषङ्गभङ्गगुरवो गौडीमदच्छेदिनः। लाटीकुट्टमितान्तकाः समभवन्नाभीरनाभीभवद् भूयो विभ्रमभेदिनो विजयिनो यस्य प्रयाणोद्यमाः॥ १३ ॥ नित्यानन्ददशान्वितो नवशशिच्छायोऽष्टदिङ्नायकः, सप्ताश्वप्रतिमाऽरिषट्कविजयी पञ्चाङ्गमन्त्रोद्यमी। चातुर्वर्ण्यविभुः शुभोदयफलाभिव्यक्तशक्तित्रयः, श्रीमान्यः समिति द्विधा दधदरीनेकः क्षितीशोऽभवत् ॥ १४ ॥ सर्वो[:]पतिगर्वखर्वणचणे दैवात्प्रतीपोल्बणे, न्यग्भूते पर[सर्व] पार्थिकवगणे मग्ना विपक्षार्णवे। येनैकेन महावराहवपुषा मालव्यभूरुद्धृता, कृष्णेनेव ततः स सत्य उदयादित्योऽभवद् भूपतिः॥ १५ ॥ (२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्खलितसुललितगतिर्दानप्रसरप्रसादितजनालि: । गुरुगिरि निबद्धरागः, स्फुटमभवदनेकपो भुवि यः ॥ १६ ॥ नीलत्तालतमालपत्रविशदश्यामासिपत्रप्रभा पुङ्खैर्नीलपटावगुण्ठनमिव प्रावृत्य विष्वक्कृतैः । युद्धेषूद्धतवैरिवीरविसरं मुक्त्वानुरागग्रहा वेशाद द्रागभिसारिकेव विजयश्रीः शिश्रिये यं स्वयम् ॥ १७ ॥ यत्सैन्यैरेव लुण्ठत्तुरगखरखुराग्रक्षतक्षोणिपृष्ठप्रोत्सर्पत्पांशुपुञ्जस्थगितसुरपथे प्रस्थिते दिग्जयाय। यद्वीक्षा कौतुकिन्योऽनिमिषमृगदृशो विस्मयस्फारिताक्ष्यो, व्योम्नि व्यासर्पि रेणूत्करकलि "पिप्रियु बिभ्रज्जागरमादधद्विजयतां धैर्यं समुन्मूलयन्, कुर्वन् गाढमनोज्वरं प्रतिकलं निघ्नन् विवेकोदयम् । तन्वानस्तनुकम्पसम्पदमलं लज्जां समुज्जासयत्, यः स्त्रीणां द्विषतां च पर्णशयने तुल्यं स्थितिश्चेतसि ॥ १९ ॥ शस्त्रोद्भिन्नमहेभकुम्भर्विगलत्कीलालकुल्याशता, श्रोतोवेगवहन्मृतोद्भटभट श्रेणीशिरः संकटाः । चञ्चच्चञ्चलचञ्चु विचरत्" ''कङ्करङ्कोत्करा कीर्णा : : काककुलाकुला रणभुवः प्रोचुर्यदुज्जृम्भितम् ॥ २० ॥ स्वकायकान्त्या जितजातरूपः, पुरूरवः पार्थपृथुस्वरूपः । साम्राज्यमज्यानि ततोऽनुरूपः, समासदच्छ्रीनरवर्मभूपः ॥ २१ ॥ यद् `यात्रासु प्रसर्पद्बहलवरभ[टो ] द्भूतधूलीविताने, रुन्धाने व्योमसद्यो मनसि घनघटाटोपमारोपयद्भिः । 'श्च ॥ १८ ॥ स्फूर्जत्पर्जन्यगर्जोर्जितजयपटहध्वानमाकर्ण्य नूनं, नेशे कुत्रापि देशे भयतरल [लस ]न्मानसं राजहंसैः ॥ २२ ॥ प्रणयिजनकल्पवृक्षो हरिचन्दनकान्तिरमलसंतानः । मन्दारसुरतरुचितवपुरपि योऽपारिजातोऽभूत् ॥ २३ ॥ सौम्यः पूर्णकलामयः कविगुरुर्भूनन्दनोऽत्यूर्जित स्फूर्जद्वीर्यशिखी विभाकरवपुर्भास्वत्सुतः सत्तमः। शत्रूणामनवग्रहप्रकृतिरप्याश्चर्यचर्याकरः, श्रीमानित्थमहो नवग्रहमयीमूर्तिर्बिभर्त्ति स्म यः ॥ २४ ॥ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : For Personal & Private Use Only (३) www.jalnelibrary.org Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धृतासिरेकोऽपि सदैव सोऽरीन्-द्विधा व्यधाद् यत्र रणाजिरे यान्। पञ्चत्वमप्याप्य तदैव चित्रं, त एव तत्र त्रिदशत्वमीयुः॥ २५ ॥ तत्कालोन्मीलदन्तर्मदवशमुकुलं लोलनेत्रोत्पलानि, द्रागुद्यद्रागवेगोद्गतरतिजलतिम्यन्नितम्बाम्बराणि। सद्यः स्वेदोदवाहस्नपितजडतनूत्फुल्लसत्कम्पशीर्य न्नीवीबन्धानि जजुर्विजितरतिपतिं वीक्ष्य यं यौवतानि ॥ २६ ॥ अपरितिमिताः कण्ठे हारावरोधविधानतः, समुदितशुचोऽलंकारार्हाः सदानविलासिनः। अवनिमवनिप्रापुर्यत्र द्विषः सुहृदोऽपि च, स्फुटकुपतिताः कान्तारागाश्रयाः परमश्रियम् ॥ २७ ॥ सीत्काराः कण्टकार्त्या कुचकलशतटे साध्वसात्कम्पसम्पत्, त्रासायासप्रणाशान्निवसनकबरीलंसनास्तद्वदेव। रोमाञ्चः शीतवातैः प्रहणनमुरसः शश्वदस्तोकशोकात्, कान्तारेपीत्यभूवन् यदरिमृगदृशां केलिलीलाविलासाः॥ २८॥ दोर्दण्डचण्डिमवशीकृतमेदपाट-क्षोणीललाटतिलकोपममस्ति तस्य। श्रीचित्रकूटगिरिदुर्गमुदग्रकूट-कोटीविटङ्कितसुघट्टितपुष्पदन्तम्॥ २९ ॥ यत्रेन्दुद्युतिचौरपौरसुदृशो गम्भीरनाभ्यन्तर ___ भ्राम्यत्तोयरयोच्छलत्कलकुहूत्कारभ्रमत्कुक्कुहम्। व्यातेनुः स्मितनेत्रवक्त्रमिषतो गाम्भीरमम्भोमिलत्, फुल्लेन्दीवरपङ्कजं किल[वपुः?]क्रीडाक्षणेषु क्षणम्॥ ३०॥ , व्यक्तं ...... प्रतिरतिगृहं गातु सम्भोगभङ्गि-व्यासक्तानां त्रिलयनिपुणप्रौढ़पण्याङ्गनानाम्। कामाह्वानध्वनिमिव रताघातसीत्कारमिश्र, लोको यस्मिन्ननिशमसृणोन्म मञ्जीरसिञ्जाम् ॥ ३१ ॥ शश्वद्देहा[भा] वस्थितगिरितनया कोपशङ्काकुलेन त्र्यक्षेणावीक्षितानां जितसुरसदृशां यत्र लीलावतीनाम् । भ्रूवक्रे चापलेखां जघनभुवि रतिं दृग्विलासेषु वालान्, धृत्वा शृंगारसारं कुचकलशतटे निर्वृतोऽभून्मनोभूः॥ ३२ ॥ प्रवालमणिरुच्छलच्छविरुचौ कपोलस्थले, गले च मणिमालिका विशदबिन्दुमालालिके। शशप्लुतकमद्धरे स्तनभरे विडू(?)रित्युदै दनंगरतिषु..................." यत्र वामभ्रुवा॥ ३३ ॥ शुभ्रादभ्रस्फुटाभ्रङ्कषशिखरतटीकोटिसंघातघात प्राज्यज्योतिर्विमानत्रुटितमणिशिलाखण्डपिण्डभ्रमाणाम्। (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतश्च यत्रार्हद्वेश्मपंक्तिस्फुरितशुचिरुचिस्फारहैमाण्डकानां, श्रेणिर्निश्रेणिकेव त्रिदिवशिवपदप्राप्तये भक्तिभाजाम् ॥ ३४ ॥ श्रद्धाबुद्धिविशुद्धबन्धुरविधिप्रस्तावक श्रावक स्तोमे शान्तमतौ वितन्वति यथाऽर्हषड्विधावश्यकम् । तद्वर्णोज्ज्वलवी [च] गर्भनिनदैर्मन्त्रैरिव त्रासितं, सम्यक्शुश्रुवुषामनश्यदशुभं यत्राङ्गिनां दूरतः ॥ ३५ ॥ तत्राम्बक-केहिल-वर्द्धमानदेवप्रमुखप्रचुरवणिजाम्। सद्धर्मकर्मनिर्मितिमान् वसति स्म समुदायः ॥ ३६ ॥ दाक्षिण्यं निर्व्यपेक्षं कृतविविधबुधाश्चर्यमौदार्यमार्यं, शुद्ध बोधः प्रियत्वं जगति निरुपमं पापगर्हा प्रवर्हा । शुश्रूषा विश्वभूषा जिनवचसि गुरुर्धर्मरागोपरागः, प्रायः सम्यक्त्वलिङ्गं गुणगण इति यस्मिन् समालक्षि तज्ञैः ॥ ३७ ॥ तृष्णाकृष्णाहिताक्षाः कृतविलसदसदृष्टिसम्मोह'''''न्, प्रारोहोन्ता ( ? ) हदाह : प्रचितभवदवज्वालजालाम्बुवाहः । तथ्यार्हद्धर्मपथ्यारुचिंविजिदगदः क्रोधकण्डूतिभूति प्रोद्धूतिस्फीतवातः प्रतिसमयमदीपिष्ट यद्दर्शनात् सः ॥ ३८ ॥ नृचकोरदयितमपमलमदोषमतमोऽनिरस्तसद्वृत्तम्। नानीककृतविकासोदयमपरं चान्द्रमस्ति कुलम् ॥ ३९ ॥ तस्मिन्बुधोऽभवदसङ्गविहारवर्ती, सूरिर्जिनेश्वर इति प्रथितोदय श्रीः । श्रीवर्द्धमानगुरुदेवमतानुसारी, हारोऽभवन् हृदि सदा गिरिदेवतायाः॥ ४० ॥ सामाचार्यं च सत्यं दशविधमनिशं साधुधर्मञ्च बिभ्र तत्त्वानि ब्रह्मगुप्तनवविधविदुर: प्राणभाजश्च रक्षन् । हित्वाष्टौ दुष्टशत्रूनिव सपदि मदान् कामभेदान् च पञ्च, भव्येभ्यो वस्तुभङ्गान्विनयमथ नयान् सप्तधाऽदीदिपद्यः ॥ ४१ ॥ क्रूराकस्मिकभस्मकग्रहवशेऽस्मिन् दुःखमादोषतो, बाढं मौढ्यदृढाढ्यदूढ्यकुगुरुग्रस्ते विहस्ते जने । मध्येराजसभं जिनागमपथं प्रोद्भाव्य भव्ये हितं, सर्वत्रास्खलितं विहारमकरोत् संविग्नवर्गस्य यः ॥ ४२ ॥ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (५) Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूर्खन्ति कुतीर्थिका न च न [वा] नाकन्ति वा वादिनो, लोकाः केचन किंकरन्ति न च के खर्वन्ति वा गर्विताः । शिष्टः शिष्यति को न पुत्रति न कः साधुर्न मित्रन्ति वा, के मित्राः करुणास्पदन्ति न च के यस्याग्रतो जन्तवः ॥ ४३ ॥ यस्मिन्मोहवनप्लुषि स्मरपिषि ध्वस्तोग्ररागत्विषि, क्षीणद्वेषदवार्चिषि स्मयमुषि ध्यान्ध्यं सतां जक्षुषि । दृष्टे पुण्यपुषि प्रशान्तवपुषि प्रत्तप्रशस्ताशिषि, (६) द्रष्टुर्ध्यानजुषि क्षणात्क्षतरुषि प्रीतिर्बभौ चक्षुषि ॥ ४४ ॥ अनेकवि[ध]नायकस्तुतपदः सदोमाश्रयः, स्फुरद्वृषपरिग्रहस्तुहिनधामरम्याकृतिः । प्रभूतपतिरद्भुतश्रुतविभूतिरस्तस्मरो, महेश्वर इवोदभूदभयदेवसूरिस्ततः ॥ ४५ ॥ हर्षोत्कर्षोरुपुष्यत्पुलककणमिषा यद्वचः शुश्रुवांसः, स्फीतान्त:[पुण्य?]पुञ्जोपचितमिव दलन्मोदकन्दोत्करञ्च । श्रद्धाम्बूत्सेकसुस्थं (?) परमशिवसुखप्राज्यबीजप्रभूतं, प्रोद्भूतं कूरपूरप्रथितमिव वपुर्बभ्रिरे भव्यसभ्याः ॥ ४६ ॥ दर्पासेवाविशेषान् दश नव निदानानि माना तथाष्टौ, भीतिः सप्तापभाषा: षडपि च विषयान्पञ्च संज्ञाश्चतस्रः । त्रीन् दण्डान् बन्धने द्वे प्रथमगुणभृदप्येकमज्ञानमित्थं, मिथ्यादृग्बन्धहेतून् व्यमुचदपरथा [पञ्च ] पञ्चाशतं यः ॥ ४७ ॥ श्री वीरान्वयवृद्धये गणभृता नानार्थरत्नैर्दधे, यः स्थानादिनवाङ्गशेवधिगणः कैरप्यनुद्घाटितः । तद्वंश्यः स्वगुरूपदेशविशदप्रज्ञः करिष्यत्शुभां तट्टकामुदीघटत्तमखिलं श्रीसंघतोषाय यः ॥ ४८ ॥ सत्तर्कन्यायचर्चार्चितचतुरगिर : श्रीप्रसन्नेन्दुसूरिः, सूरि श्रीवर्द्धमानो यतिपतिहरिभद्रो मुनीड् देवभद्रः । इत्याद्याः सर्वविद्यार्णवकलशभुवः सञ्चरिष्णूरुकीर्तिः, स्तम्भायन्तेऽधुनाऽपि श्रुतचरणरमाराजिनो यस्य शिष्याः ॥ ४९ ॥ सद्गन्धेन च सद्रसे न च [ शुभ ] स्पर्शे न चेष्टे स्वरे, पादाते न च हास्ति न च न वा श्वीये न च श्रीगृहे । साम्राज्ये न च वैभवे न च न च स्त्रैणे न चैन्द्रे पदे, यस्यात्माऽसृजदागमस्थिरधियोऽन्यत्र क्व विद्वान्न च ॥ ५० ॥ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह :) For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिक्कान्ताकर्णपूरप्रणयपरिचितान्वर्णन सा[ न्] प्रोद्दामानन्दमन्दं गुणिजनमनिशं कुर्वतः सर्वतोऽपि । यस्तस्य स्फूर्जदूर्जस्वलसकलगुणान्वक्तुमीहेत वाचा, सर्वाकाशप्रदेशानपि विशकलितान् सोऽर्हति द्रष्टृमक्ष्णा ॥ ५१ ॥ लोकार्च्यकूर्चपुरगच्छमहाघनोत्थ- मुक्ताफलोज्ज्वलजिनेश्वरसूरिशिष्यः । प्राप्तः प्रथां भुवि गणिर्जिनवल्लभोऽत्र, तस्योपसम्पदमवाप ततः श्रुतञ्च ॥ ५२ ॥ योग्यस्थानानवाप्तेः पृथुदवथुमिथोविप्रयोगाग्नितप्ते:, शश्वद्विश्वभ्रमार्त्तेरपि च तनुतरामात्ममूर्तिं दधत्यः। सत्यं यद्वक्त्रपङ्केरुहसदसि सहावासमासाद्य सद्य: विद्याः प्रीत्येव सर्वा युगपदुपचयं लेभिरे भूरिकालात् ॥ ५३ ॥ कदाचित् विहरन् सोऽथ, चित्रकूटमुपाययौ । तत्रत्यसमुदायश्च तं सद्गुरुममन्यत ॥ ५४ ॥ यद्वाक्सारकुठारदारितचिरोदग्रग्रहग्रन्थयः । अर्हच्छास्त्रनिशातशाणनशिलाशातीकृतप्रोल्लसत्, उन्मीलद्विमलावबोधविकसत्सद्दर्शनास्तत्त्वत स्ते प्रायः समुदायिनो नवमिवार्हच्छासनं मेनिरे ॥ ५५ ॥ बिभ्युश्च भस्मकात्प्रास्थन्, प्रस्थितं तत्पथे जनम् । तदुक्तीस्तत्यजुर्जजुस्तद्दौष्ट्यं तुष्टुवुर्गुरून् ॥ ५६ ॥ तथ्यताथागताम्नाय श्रुतिवर्धिष्णुसद्धियः । कर्हिचित्तेऽथ संविग्नाश्चित्ते चिरमचिन्तयन् ॥ ५७ ॥ कान्ताकुञ्चितकुन्तलालिकुटिलः संसारवासोङ्गिनां, तद्विस्तीर्णनितम्बपालिविपुलं दुःखं मनःकायजम् । तद्व्याल[प्र] विलोचनाञ्चलबलं लक्ष्म्यादि तद्विभ्रम भ्रान्तभ्रूयुगभ[ङ्गुरं]गुरुपदं तन्मध्यतुच्छं सुखम्॥ ५८ ॥ आः क्रूर कामवैरीं बत विषयकषायाः कृतारुच्यपाया, हारौद्रा: कापथौघा अहह सुविषमाः साधयो व्याधयोऽपि । ही भीमो मोहभिल्लः प्रविलसति हहा मृत्युरत्युग्ररूपः, संसारेऽतः श्रुतोक्त्या भवहरमुचितं धर्म्मकर्म्म प्रकुर्म्मः ॥ ५९ ॥ श्रीमान् सोमिलकोत्थधर्कटवराऽथो वर्द्धमानाङ्गभू र्वर्ण्यः स्वर्णवणिक्षु धार्मिकगणाग्र्यो वीरदेवः सुधीः । माणिक्याङ्गरुहश्च धर्कटवृषा श्रीपल्लिकायां पुरिप्रख्यातः सुमतिः प्रणष्टकुमति: प्रद्युम्नवंशाग्रजः ॥ ६० ॥ भिषग्वरः क्षेमसरीय-सर्वदेवाङ्गभूः रासल धन्धमध्यः । सद्धर्मधीर्वीरक आद्यहेतुर्विशेषतश्चैत्यचतुष्कसिद्धेः ॥ ६१ ॥ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (७) Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खण्डेल्लवंश्योऽग्रजमानदेवः, पाद्मप्रभिः प्रह्लक इत्युदात्तः। विचार्यबुद्ध्या जिनधर्मरत्नं, जग्राह यः कुग्रहनिग्रहीता ॥ ६२ ॥ श्रीपल्लिकाविश्रुतशालिभद्र-सूनुः समग्राग्र्यगुणाधिवासः । साधारणः साधुसधर्मचारि-समर्थसामर्थ्यतया यथार्थः॥ ६३ ॥ ईदृग्गुणाढ्यः खलु सढकोऽपि-श्रीपल्लिकेन्दोर्ऋषभस्य पुत्रः । यः प्राप्तुमिच्छुः पदमक्षरं स्वे, चैत्यालयेऽलेखयदक्षराणि ॥ ६४॥ ध्यात्वा विशेषत इमे समुदायमध्याम धर्मविधिबन्धुरवृद्धबोधाः। क्षेत्रप्रकीर्णविभवा विधिचैत्यवेश्मा-[धी]शाज्ञया किल चिकारयिषां बभूवुः॥ ६५ ॥ यतः - क्षुद्राचीर्णकुबोधकुग्रहहते स्वं धार्मिकं तन्वति, द्विष्टानिष्टनिकृष्टधृष्टमनसि क्लिष्टे जने भूयसि। तादृग्लोकपरिग्रहेण निबिडद्वेषोग्ररागग्रह ___ ग्रस्तैस्तद्गुरुसात्कृतेषु च जिनावासेषु भूमाधुना ॥ ६६ ॥ तत्त्वद्वेषविशेष एष यदसन्मार्गे प्रवृत्तिः सदा, सेयं धर्मविरोधबोधविधुतिर्यत्सत्पथे साम्यधीः। तस्मात्सत्पथमुद्विभावयिषुभिः कृत्यं कृतं स्यादिति, श्रीवीरास्पदमाप्तसम्मतमिदं ते कारयांचक्रिरे॥ ६७॥ तेने तेनेह कीर्तिः शशि[रुचि]रुचिराऽदारि दारिद्रमुद्रा, चक्रे चक्रेश्वरत्वं स्ववशमुपचयं प्रापि पापप्रपञ्चः। सत्यङ्कारः सुरेन्द्र(श्रियमुपदददे)पत्रलाऽलेखि मोक्षे, कामं कल्याणभाजा विधिजिनसदनं कारितं येन भक्त्या॥ ६८ ॥ इति सुजनसमाजैः साञ्जसैनंद्यमाना, द्विजवरनृपलोकैः सम्यगुत्साह्यमानाः। शिवपथरथरूपं साधयामासुरेते, जिनगृहमिदमेतत् कीर्तिकूटोत्कटश्रि॥ ६९ ।। प्रारम्भादपि चात्र विस्तृतशिलासंघट्टपिष्टा इव, क्लेशा नेशुरमन्दवाद्यनिनदोद्विग्नेन भग्ना विपत् । भव्यानां शिखराग्रचञ्चल[चल]द्वातक्वणत्किङ्गिणी क्वाणेन ध्वजतर्जनीचलनतश्चागाद्विभीतेव भीः॥ ७० ॥ अस्मिन्नस्मरवैरबन्धुरभवत्कल्याणकाद्युत्सव प्रोद्भूतोद्धरधूपधूमविसरव्याजेन भव्याङ्गिनाम्। (८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्ति[व्यक्ति?] विविक्तसत्कृत[तति?]स्तोमावरुद्धान्तर श्चित्तेभ्यश्चिरसञ्चिताशुभचयो नश्यन्निवालक्ष्यते ॥ ७१ ॥ अत्रस्तत्र पवित्र भगवद्यात्रासु कालागुरु प्रोत्सर्पच्चितभूमधूमपटलीमीलदृशेवाश्रिया। भक्त्या भव्यजनो मनोहरजनस्फाराक्षवक्त्रेक्षण क्षिप्ताक्षो न कदापि कोऽपि कथमप्यालोकितुं शक्यते ॥ ७२ ॥ प्रतिरविसंक्रान्ति ददौ पारुत्थद्वितयमिह जिनार्चार्थम्। श्रीचित्रकूटपिण्ठामार्गादायान्नृवर्मनृपः ।। ७३ ।। इह न खलु निषेधः कस्यचिद्वन्दनादौ, श्रुतविधिबहुमानी त्वत्र सर्वाधिकारी। त्रिचतुरजनदृष्ट्या चात्र चैत्यार्थवृद्धि-र्व्ययविनिमयरक्षा चैत्यकृत्यादि कार्यम् ॥ ७४ ॥ अत्रोत्सूत्रजनक्रमो न च न च स्नात्रं रजन्यां सदा, साधूनां ममताश्रयो न च न च स्त्रीणां प्रवेशो निशि। जातिज्ञातिकदाग्रहो न च न च श्राद्धेषु ताम्बूलमि त्याज्ञाऽत्रेयमनिश्रिते विधिकृते श्रीवीरचैत्यालये ॥ ७५ ॥ ततश्च विभ्राणेन मतिं जिनेषु बलवल्लग्नेन जैन क्रमे, : सत्सर्वज्ञमतेने पूतवचसा भद्रावलीमिच्छुना। हित्वा चर्च्यपदावहेऽत्र वचने गहाँ प्रमादं दरं, रन्तव्यं विधिना सदा स्वहितदे मेधाविना सादरम्॥ ७६ ॥ _ 'जिनवल्लभगणेर्वचनमिदं' नामाङ्कचक्रम् । त्रैलोक्यं पट्टिकेयं कुमतिरिह मषी लेखनी काललीला ___ तत्स्वं(?) भापञ्चसौधेन्द्रवरसकलशः सम्मृतिर्लेखशाला। . लेखाचार्यः स्वकर्मेत्यशुभशुभफलं लिख्यते जन्तुशिष्यै वित्तावन्नमस्यजननिनद इनः प्रोच्चरन् खं रुण ॥ ७७ ॥ चक्रे श्रीजिनवल्लभेन गणिना संविग्नगीतव्रति ग्रामण्या कुकविप्रमोदसदनायेयं प्रशस्तिः किल। शाके वर्षगृ(ग्य?)णे वसुद्विदशके(१०२८)तां रामदेव:सुधीः, - सुव्यक्तां जसदेवसूनुरुदकारीत् सूत्रधाराग्रणी ः॥ ७८ ॥ ___प्रशस्तिर्जिनवल्लभीति। छ। श्री छ श्री छ : : (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) चित्रकूटीय पार्श्वचैत्य-प्रशस्तिः (कमलदलगर्भम् ) १. [निर्वाणार्थी विधत्ते] वरद सुरुचिरावस्थितस्थानगामिन्सर्बो [पी]२. [ह स्तवं ते] निहतवृजिन हे मानवेन्द्रादिनम्य (1) संसारक्लेशदाह [स्त्व]३. [यि] च विनयिनां नश्यति श्रावकानां देव ध्यायामि चित्ते तदहमृषि४. [वर] त्वां सदा वच्मि वाचा [ 1]-१॥ नन्दन्ति प्रोल्लसन्तः सततमपि हठ[क्षि]५. [प्तचि] तोत्थमल्लं प्रेक्ष्य त्वां पावनश्रीभवनशमितसंमोहरोहत्कुत६. [र्काः।] भूत्यै भक्तयाप्तपार्था समसमुदितयोनिभ्रमे मोहवाझै ७. [स्वा] मिन्पोतस्त्वमुद्यत्कुनयजलयुजि स्याः सदा विश्ववं(बं)धो ( ॥२॥ ८. नवनं पार्वाय जिनवल्लभमुनिविरचितमिह इति नामांकं च[के।] ९. [स]त्सौभाग्यनिधे भवद्गुणकथां सख्या मिथः प्रस्तुतामुत्क्षिप्तैकत१०. संभ्रमरसादाकर्णयन्त्याः क्षणात् । गंडाभोगमलंकरोति विश(दं) ११. [स्वे]दांवु(बु) सेकादिव प्रोद्गच्छन्पुलकच्छलेन सुतनोः शृंगारकन्दांकु१२. [र:] ॥ १॥ पुरस्तादाकर्णप्रततधनुषं प्रेक्ष्य मृगयुं चलत्तारां चा [रु प्रि]- .. १३. [य] सहचरी पाशपतितां (ताम्) । भयप्रेमाकूताकुल-तरलचक्षुर्मुहु१४. [र] हो कुरङ्गः सर्वागं जिगमिषति तिष्ठासति पुनः॥ २ सद्वृत्त[र]१५. [म्यप] दया मत्तमातङ्गगामिनी। दोषालकमुखी तन्वी तथा१६. [पि] रतये नृणां(णाम्) ॥ ३ क्षीरनीरधिकल्लोल-लोललोचनया१७. नया। क्षा(ल)यित्वेव लोकानां स्थैर्य धैर्यं च नीयते ॥ ४॥ (३) परिकरोपरिलेखः ॥ संवत् ११७६ मार्गसिर वदि ६ श्रीमज्जांगलकूपदुर्ग नगरे। श्री वीरचैत्ये,विधौ । श्रीमच्छांतिजिनस्य बिंबमतुलं भक्त्या परं कारितं । तत्रासीद्वरकीर्तिभाजनमतः श्रीनाढकः श्रावकस्तत्सूनुर्गुणरत्नरोहणगिरिश्रीतिल्हको विद्यते ॥ ११० तेन तच्छुद्धवित्तेन श्रेयोर्थं च मनोरमम् । शुक्लाख्याया निजस्वसुरात्मनो मुक्तिमिच्छता ॥ २ ॥ छः॥ (४) परिकरोपरिलेखः १.९० संवतु ११७९ मार्ग २. सिर वदि ६ पुगेरी (?) अ३. जयपुरे विधिकारि ४. ते सामुदायिक प्रति५. ष्ठाः॥ राण समुदायेन ६. श्रीमहावीरप्रतिमाका७. रिता ॥ मंगलं भवतु॥ २. पुरातत्त्व संग्रहालय एवं म्युजियम, चित्तौड़ ३. महावीरस्वामी का मन्दिर, डागों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १५४३ ४. चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१ (१०) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) नेमिनाथः कल्याणत्रये श्रीनेमिनाथबिम्बानि प्रतिष्ठितानि नवाङ्गवृत्तिकार-श्रीमदभयदेवसूरिसंतानीय श्रीचन्द्रसूरिभिः श्रे० सुमिग श्रे० वीरदेव श्रेष्ठी गुणदेवस्य भार्या जयतश्री साहूपुत्र वइरा पुना लुणा विक्रम खेता हरपति कर्मट राणा कर्मटपुत्र खीमसिंह तथा वीरदेवसुत-अरसिंहपुत्रभृतिकुटुम्बसहितेन गांगदेवेन कारितानि...... (६) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १२३४ वर्षे आषाढ़ सुदि १ गुरौ ऊकेशवंशे जहड़गोत्रे सा० उगच पु० सा० खरहकेन भा० नीविणि पुत्र माला वला पासड सहितेन धर्मनाथबिंब निज श्रेयोर्थं कारापितं श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (७) महावीर-पञ्चतीर्थीः सं(व)त् १२६० ज्येष्ठसुदि २ रेनुमा (?) पु० चोराकेनात्मश्रेयो) श्रीमहावीरबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीअभयदेवसूरिभि॥ (८) शान्तिनाथः र्द० ॥ स्वस्ति श्रीनृपविक्रमसंवत् १२९३ वर्षे वैशाखसुदि १५ शनौ अद्येह श्रीअर्बुदाचलमहातीर्थे अणहिल्लपुरवास्तव्य श्रीप्राग्वाटज्ञातीय ठ० श्रीचंडप ठ० श्रीचंडप्रसाद महं० श्रीसोमान्वये ठ० श्रीआसराजसुत महं० श्रीमल्लदेव महं० श्रीवस्तुपालयोरनुजमहं० श्रीतेजपालेन कारितश्रीलूणसीहवसहिकायां श्रीनेमिनाथ(*) देवचैत्यजगत्यां श्रीचंद्रावतीवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० वीरचंद्र भार्या श्रियादेवि पुत्र श्रे० साढदेव श्रे० छाहड श्रे० साढदेव भार्या माऊ पुत्र आसल श्रे० जेलण जयतल जसधर श्रे० छाहडभार्या थिरदेवि पुत्र घांघस श्रे० गोलण जगसीह पाल्हण तथा श्रे० जेलण पुत्र श्रे० समुद्धर श्रे० जयतल पुत्र देवधर मयधर श्रीधर आंबड॥ (*) जसधर पुत्र आसपाल। तथा श्रे० गोलण पुत्र वीरदेव विजयसीह कुमरसीह रत्नसीह जगसीह पुत्र सोमा तथा आसपाल पुत्र सिरिपाल विजयसीह पुत्र अरसीह श्रीधर पुत्र अभयसीह तथा श्रे० गोलणसमुद्धर-प्रमुखकुटुंबसमुदायेन श्रीशान्तिनाथदेवबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं नवांगवृत्तिकार श्रीअभयदेवसूरिसंतानीयैः श्रीधर्मघोषसूरिभिः ।। (९) शिलालेखः ॐ ॥ सं० १२९३ फागुण सुदि ११ शनौ ठ० जसचंद्रभार्या ठ० चाहिणदेवि तत्पुत्र महं पेथड तत् (द्) भार्या महं ललतू तत्पुत्र ठ० जयतपाल भार्या आमदेवि ठ० जयतपालेन पितृमातृश्रेयोर्थं श्रीमहावीरस्य जीर्णोद्धारः कृतः प्रतिष्ठितः नवाङ्गवृत्तिकारसंतानीय श्रीहेमचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीधर्मघोषसूरिभिः॥ छ । ५. नमिनाथ मन्दिर, आरासणा : अ० प्र० जै० ले० सं०, भा०५, लेखांक ११ ६. धर्मनाथ जिनालय, हीरावाड़ी, नागौर : पू० जै० भाग २, लेखांक १२८९ ७. जलमन्दिर, पावापुरी : पू० जै०, भाग २, लेखांक २०२९ ८. लूणवसही, आबू : प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ८५ ९. संभवनाथ जिनालय, देरणा : अ० प्र० जे० ले० सं०, भा०५, लेखांक ६३८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) आदिनाथसपरिकरः सं० १३०२ [वर्षे] मार्ग वदि ९ शनौ.... ....संतानीय श्रीरुद्रपल्लीय श्रीम[दभ] यदेवसूरिशिष्याणां श्रीदेवभद्रसूरीणामुपदेशेन मं० पल्ल पुत्र मं० चाहड पुत्र्या थेहिकया श्रीमदादिनाथबिंब सपरिकर आत्मश्रेयोऽर्थं कारितं [प्रतिष्ठितं] च श्रीमद्देवभद्रसूरिभिरेव ।। (११) नेमिनाथः संवत् १३०२ श्रीमदर्बुदमहातीर्थे देवश्रीआदिनाथचैत्ये कांतालज्ञातीय ठ० उदयपाल पुत्र ठ० श्रीधर प्रणयिन्या ठ० नागा पुत्र्या ठ० आंब देवसिंह जनन्या वीरिकया खत्तकसमेतं श्रीनेमिनाथबिंबं आत्मश्रेयोऽर्थं कारितं प्रतिष्ठितं रुद्रपल्लीय श्रीदेवभद्रसूरिभिरेव॥ (१२) ऋषभनाथ-पञ्चतीर्थीः १ सं० १३०५ आषाढ सुदि १० श्रीऋषभनाथ प्रतिमा श्रीजिनपतिसूरिशिष्यश्रीजिनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठिता ग्रामलोक श्रावकेण कारिता। (१३) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १० श्रीजिनपतिसूरिशिष्यैः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः सुमतिनाथ (?) प्रतिमा प्रतिष्ठिता कारिता साक० लोलू श्रावकेण ॥ — (१४) अरनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १३ श्रीजिनपतिसूरिशिष्यैः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः श्रीअरनाथ प्रतिष्ठिता साक० लोलू श्रावकेण कारिता। (१५) पञ्चतीर्थीः सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १० श्रीजिनपतिसूरिशिष्यैः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठिता स्ता० भुवणपाल भार्यया तिहुणपालही श्राविकया कारिता। (१६) पञ्चतीर्थीः सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १३ श्रीजिनपतिसूरिशिष्य-श्रीजिनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठिता स्ता० भुवणपाल भार्यया तिहुणपालही श्राविकया कारिता। १०. विमलवसही, आबू : प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक २१० ११. विमलवसही, आबू : प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक २०९ १२. निर्ग्रन्थ, अंक १, घोघानी मध्यकालीन धातुप्रतिमाओ १३. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४२ १४. चिन्तामणि जी का मदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४३ १५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४५ १६. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४४ (१२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १३०८ वर्षे मि० वै० सु ५ लूणियागोत्रे सा० होपा। श्री शान्तिनाथ बिं० का० प्र० खरतरगच्छे। (१८) जीर्णोद्धारलेखः संवत् १३०८ वर्षे फाल्गुन वदि ११ शुक्रे श्रीवालीपुरवास्तव्य चन्द्रगच्छीय खरतर सा० दुलहसुत सधीरण तत्जुत सा० वीजा तत्पुत्र सा० सलषणेन पितामही राजमाता साउ भार्या माल्हणदेवी सहितेन श्रीआदिनाथसत्क सर्वांगाभरणस्य साउश्रेयो) जीर्णोद्धारः कृतः। (१९) स्तम्भलेखः संवत् १३०८ वर्षे फाल्गुन वदि ११ शुक्रे श्रीजावालिपुरवास्तवव्य चन्द्रगच्छीय खरतर सा० दूलह सुत सधीरण तत्सुत सा० वीजा तत्पुत्र सा० सलषणेन पितामही राजू माता साऊ भार्या माल्हणदेवि (वी) सहितेन श्रीआदिनाथसत्क सर्वांगाभरणस्य साऊ श्रेयोर्थं जीर्णोद्धारः कृतः॥ (२०) नेमिनाथ: ॥ अहँ । विक्रम संवत् १३१० वैशाख सुदि १३ श्रीनेमिनाथप्रतिमा श्रीजिनपतिसूरिशिष्यैः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठिता श्री जावालीपुरे श्रीमहावीरविधिचैत्ये कारिता गोष्ठिक राजा सुत हीरा मोल्हा मनोरथश्रावके: सत्परिकरश्च हीराभार्या धनदेवही मोल्हा भार्या कामदेवही श्रेयार्थं कारितः॥ (२१) नमिनाथ: सं० १३११ फाल्गुन सुदि १२ शुक्रे श्रीनमिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं रुद्रपल्लीय प्रभानंदसूरिभिः॥ (२२) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १३२७ श्रीमदूकेशज्ञातीय सा० लोला सुत सा० हेमा तत्तनयाभ्यां बाहड़-पद्मदेवाभ्यां स्वपितुः श्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं थ (? च) रुद्रपल्लीय श्रीचन्द्रसूरिभिः (२३) शिलालेखः संवत् १३३३ वर्षे ज्येष्ठ वदि १४ भौमे श्रीजिनप्रबोधसूरिसुगुरूपदेशात् उच्चापुरीवास्तव्येन श्रे० आसपालसुत श्रे० हरिपालेन आत्मनः स्वमातृ हरियालाश्च श्रेयोऽर्थं श्रीउज्जयन्तमहातीर्थे श्रीनेमिनाथदेवस्य नित्यपूजार्थं द्र० २०० शतद्वयं प्रदत्तं। अमीषां व्याजेन पुष्पसहस्र २००० द्वयेन प्रतिदिनं पूजा कर्तव्या श्रीदेवकीय आरामवाटिका सत्कपुष्पानि श्रीदेवक....................... पंचकुलेन श्रीदेवाय ऊटापनीयानि ॥ १७. मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा : प्रतिष्ठा लेख संग्रह, भाग १, लेखांक ६४ १८. देवकुलिका लेख, लूणवसही, आबू : प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक २३२ १९. विमलवसही, आबू : अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक १८५ २०. पार्श्वनाथ मन्दिर, जालोर: जिनहरिसागरसूरि लेख संग्रह, अप्रकाशित २१. B. BHATTACHARYA The bhale Symbal of the Jains Berliner Indologische Studion Band 8. 1995 Plate XXII २२. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १६९ २३. नेमिनाथ जिनालय, गिरनार : प्रा० जै० ले० सं० भाग २, लेखांक ५४; जैन तीर्थ सर्व संग्रह, भाग १, खंड १,लेखांक १२२ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) गौतमस्वामीमूर्तिः संवत् १३३४ वैशाख वदि ५ बुधे श्रीगौतमस्वामीमूर्ति : श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्य- श्रीजिनप्रबोधूसरिभिः प्रतिष्ठिता कारिता च सा० बोहिथसुत व्य० बइजलेन मूलदेवादि भ्रातृसहितेन च स्वश्रेयोर्थं स्वकुटुंब श्रेयोर्थं च । (२५) पार्श्वनाथ - एकतीर्थी: संवत् १३३२ ज्येष्ठ वदि १ श्रीपार्श्वनाथप्रतिमा श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्य- श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठिता कारिता च नवलक्ष. . श्रावकेण स्वपितृ हरिपाल मातृ पद्मणि (णी) श्रेयोर्थं । (२६) जिनदत्तसूरिमूर्तिः संवत् १३३४ वैशाख वदि ५ श्रीजिनदत्तसूरिमूर्ति : श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्य - श्रीजिनप्रबोधसूरि (२७) अनन्तनाथः संवत् १३३७ ज्येष्ठ वदि ५ श्री अनंतनाथ देवगृ (हिका बिंबं च) श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं च वटपद्रवास्तव्य सा खीवा आवड़ श्रावकाभ्यां आत्मश्रेयोनिमित्तः ॥ ( २८ ) अजितनाथ - परिकरलेख : सं० १३३७ ज्येष्ठ वदि ५ श्री अजितनाथबिंबं श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्य - श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीमुनिचंद्रसूरिवंशीय" 'सा नाहडा तत्पुत्र शा भालु आत्मश्रेयोर्थं। शुभमस्तु । कारितं (२९) सुपार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १३३७ ज्येष्ठ वदि ५ श्रीसुपार्श्वजिनबिंबं श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्यैः श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठितं 'सुतेन | (३०) सुविधिनाथ- परिकरलेखः संवत् १३३७ ज्येष्ठ वदि ५ श्रीसुविधिनाथबिंबं देवगृहिका च श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं च शा० मोहणप्रमुखपुत्रैर्निजमातुः पदमलश्राविकायाः श्रेयोर्थम् ॥ + (३१) श्रेयांसनाथ- परिकरलेखः संवत् १३३७ ज्येष्ठ वदि ५ श्री श्रेयांसबिंबं देवकुलिका च श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठितं । शा० तिहुणसिंह सुत भीमसिंह "आत्मश्रेयोर्थं । २४. जैन मंदिर, भीलड़ियाजी तीर्थ : जै० प्र० ले० सं०, लेखांक ३३९; जैन तीर्थ सर्व संग्रह, भाग १, खंड १, पृ० ३६ २५. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, चिन्तामणि शेरी, राधनपुर : मुनि विशालविजय - रा० प्र० ले० सं०, लेखांक ४० २६. झवेरीवाडा का जैन मन्दिर, पाटण : प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५२४ २७. शत्रुंजय गिरिना केटलाक अप्रकट प्रतिमा लेखो - मधु० ढांकी व लक्ष्मण भोजक- सम्बोधि वो० ७, नं० ४; भंवर ० (अप्रकाशित), लेखांक १०३ २८. देहरी क्रमांक ९७/१, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक ८६ २९. खरतरवसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ६८ ३०. खरतरवसही, समवसरण २, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक १२२; भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ८२ ३१. देहरी क्रमांक ९२/५, खरतरवसही, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक ११६, भँवर० (अप्रका०), लेखांक ७० (१४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) शान्तिनाथ - परिकरलेखः संवत् १३३७ ज्येष्ठ वदि ५ श्रीशांतिनाथदेवबिंबं श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठितं गौर्जर ज्ञातीय ठ० श्रीभीमसिंह बृहत्भ्रातृश्रेयोर्थं ठकुर श्रीउदयदेवेन प्रतिपन्नसारेण सुविचारेण कारितं। ( ३३ ) शान्तिनाथ - परिकरलेखः संवत् १३३७ ज्येष्ठ वदि ५ श्रीशांतिनाथबिंबं श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं च उकेशवंशीय शा० सोला पुत्र शा० रत्नसिंह श्रावकेण आत्मश्रेयोनिमित्तं ॥ (३४) मल्लिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १३३७ ज्येष्ठ वदि ५ श्रीमल्लिनाथदेवगृहिका - बिंबं च श्रीजिनप्रबोधसूरिभि: प्रतिष्ठितं कारितं च ऊकेशवंशीय ठ०(?) ऊदाकेन - जनातृ तील्ह (?) श्रेयोर्थं । (३५) मुनिसुव्रत- परिकरलेखः संवत् १३३७ ज्येष्ठ वदि ५ श्रीमुनिसुव्रतस्वामी बिंबं च श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्यैः श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठितं । कारितं च देहड़सुतेन 'पालेन' 'विधिचैत्यगोष्ठिकेन स्वश्रेयार्थे शुभम् ॥ (३६) महावीर - पञ्चतीर्थी : संवत् १३३७ ज्येष्ठ वदि ५ श्रीमहावीरबिंबं श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्यैः श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं च श्रीमालवं (शी) य ठ० हासिल पुत्र ठ० देहड रामदेव - थिरदेव श्रावकैरात्म श्रेयोर्थं ॥ शुभं भवतु ॥ (३७) सपरिकरपार्श्वनाथ पञ्चतीर्थीः ॥ र्द० ॥ सं० १३४६ वैशाख सुदि ७ श्रीपार्श्वनाथबिंबं श्रीजिनप्रबोधसूरिशिष्यैः श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं "रा० खीदा सुतेन सा० भुवण श्रावकेन स्वश्रेयोर्थं अच्चंद्रार्कं नंदतात् (३८) जिनप्रबोधसूरिमूर्तिः सं० १३५१ माघ वदि १ श्रीप्रह्लादनपुरे श्रीयुगादिदेवविधिचैत्ये श्रीजिनप्रबोधसूरिशिष्यश्रीजिनचंन्द्रसूरिभि: श्रीजिनप्रबोधसूरिमूर्तिः प्रतिष्ठिता कारिता 'रामसिंह सुताभ्यां सा० नोहा-कर्मण श्रावकाभ्यां स्वमातृराईमई श्रेयोऽर्थं ॥ ३२. खरतरवसही शत्रुंजय - भँवर० (अप्रका०), लेखांक ८१; खरतरवसही, समवसरण, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक १२१ ३३. खरतरवसही, समवसरण - ३, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक १२३; खरतरवसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ८३ ३४. शत्रुंजयगिरिना अप्रकट प्रतिमालेखो - मधुसूदन ढांकी एवं लक्ष्मण भोजक- सम्बोधि, वो० ७, नं० ४, भँवर० (अप्रका० ), लेखांक १०४ ३५. देहरी क्रमांक १०६, खरतरवसही, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक १२०; भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ७२ ३६. शत्रुंजय गिरिना केटलाक अप्रकट प्रतिमा लेखो - मधुसूदन ढांकी और लक्ष्मण भोजनक- सम्बोधि, वो० ७, नं०४, भँवर० (अप्रका० ), लेखांक १०२ ३७. महावीर स्वामी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १३५७ ३८. शांतिनाथ जिनालय, जीरारपाड़ो, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग-२, लेखांक ७३४ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१५) Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९) शान्तिनाथः सम्वत् १३५३ माघ वदि १ श्रीशान्तिनाथ प्रति० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठिता च सा० हेमचन्द्र भा० रतन सुत श्रावकाभ्यां देव (?) लक्ष्मी श्रेयोर्थं । (४०) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १३५४(?) वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे बोहिथिरा गोत्रे सा० तेजा भा० वर्जू पुत्र सा० मांडा सुश्रावकेण भार्या माणिकदे पु० ऊदा भा० उत्तमदे पुत्र सधारणादि परिवारयुतेन श्रीआदिनाथबिंब कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि-पट्टालंकार-श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितः॥ (४१) जिनचन्द्रसूरि-मूर्तिः सं० १३५४ कार्तिक सुदि १५ गुरौ महं श्रीमंडलीकेन श्रीशजयमहातीर्थे श्रीजिनचन्द्रसूरीणां मूर्ति............. (४२) शिलालेखः ॐ ॥ संवत् १३५६ कार्तिक्यां श्रीयुगादिदेवविधिचैत्ये श्रीजिनप्रबोधसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिसुगुरूपदेशेन सा० जाल्हण सा० नागपालश्रावकेण सा० गहणादिपुत्रपरिवृतेन मध्यचतुष्किका स्व० पुत्र सा० मूलदेवश्रेयोर्थं सर्वसंघप्रमोदार्थं कारिता। आचंद्राक्कँ । शुभं ।। (४३) शिलालेखः ॐ ॥ संवत् १३५६ कार्तिक्यां श्रीयुगादिदेवविधिचैत्ये श्रीजिनप्रबोधसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिसुगुरूपदेशेन सा० आल्हण सुत सा० राजदेव सत्पुत्रेण सा० सलखणश्रावकेण सा० मोकलसिंह तिहूणसिंहपरिवृतेन स्वमातुः सा पउमिणिसुश्राविकायाः श्रेयोर्थं सर्वसंघप्रमोदार्थं पार्श्ववर्तिचतुष्किकाद्वयं कारितं ॥ आचंद्रार्क नंदतात् ॥ (४४) शिलालेखः संवत् १३६० आषाढ़ वदि ४ श्रीखरतरगच्छे जिनेश्वरसूरि-पट्टनायक-श्रीजिनप्रबोधसूरिशिष्य श्रीदिवाकराचार्याः पंडित लक्ष्मीनिवासगणि हेमतिलकगणि मतिकलशमुनि मुनिचन्द्रमुनि अमररत्नगणि यश:कीर्तिमुनि साधु-साध्वी-चतुर्विध-श्रीविधिसंघसहिताः। श्रीआदिनाथ-नेमिनाथ-देवाधिदेवौ नित्यं प्रणमंति। ३९. बडा मन्दिर, नागपुर, जै० धा० प्र० लेख० सं० भाग-१ लेखांक २०, ४०. महावीर जिनालय (वेदों का) बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १२५८ ४१. देहरी क्रमांक ४४२ - शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक १०२ ४२. जैन मंदिर, जूना बाड़मेर ; जैन तीर्थ सर्व संग्रह, भाग १, खंड २, पृ० १८२ ४३. जैन मंदिर, जूना बाड़मेर; जैन तीर्थ सर्व संग्रह, भाग १, खंड २ पृ० १८२ ४४. लूणवसही, आबू : अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३१७ (१६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) महावीर - पञ्चतीर्थी: सं० १३६१ वैशाख सुदि ६ श्रीमहावीरबिंबं श्रीजिनप्रबोधसूरिशिष्य- श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं । कारितं च श्रे० पद्मसी सुत ऊधासीह पुत्र सोहड़ सलखण पौत्र सोमपालेन सर्वकुटुंब श्रेयोर्थं ॥ ( ४६ ) शिलालेख : ॐ अर्हं ॥ संवत् १३६६ वर्षे प्रतापाक्रांतभूतल - श्रीअलावदीन सुरत्राणप्रतिशरीरश्रीअल्पखानविजयराज्ये श्रीस्तंभतीर्थे श्रीसुधर्म्मस्वामिसंतानन भोनभोमणिसुविहितचूडामणिप्रभुश्रीजिनेश्वरसूरिपट्टालंकारप्रभु- श्रीजिनप्रबोधसूरिशिष्य- चूडामणियुगप्रधानप्रभुश्रीजिनचंद्रसूरिसुगुरूपदेशेन ऊकेशवंशीय - साह - जिनदेव साह सहदेवकुलमंडनस्य श्रीजेसलमेरौ श्रीपार्श्वनाथविधिचैत्ये कारित श्रीसंमेतशिखरप्रासादस्य साह - केसवस्य पुत्ररत्नेन श्रीस्तंभतीर्थे निर्मापितसकलस्वपक्षपरपक्षचमत्कारकारि-नानाविधमार्गणलोकद्रारिद्र्यमुद्रापहारि-गुणरत्नाकर - स्वगुरुगुरुतरप्रवेशकमहोत्सवेन संपादित श्रीशत्रुंजयोज्जयंतमहातीर्थयात्रासमुपार्जितपुण्यप्राग्भारेण श्रीपत्तनसंस्थापित-कोद्दडिकालंकारश्रीशांतिनाथविधिचैत्यालय श्री श्रावकपौषधशालाकारापणोपचितप्रसृमरयश: संभारेण भ्रातृ-साह - राजदेव साह - वोलिय - साह - जेहड- साह-लषपति-साह-गुणधर - पुत्ररत्न - साह - जयसिंह - साह - जगधर - साह-सलषणसाह-रत्नसिंहप्रमुखपरिवारसारेण श्रीजिनशासनप्रभावकेण सकलसाधनिकवत्सलेन साहजेसलसुश्रावकेण कोद्दंडिकास्थापनपूर्व श्रीश्रावकपौषधशालासहितः सकलविधिलक्ष्मीविलासालय : श्री अजितस्वामिदेवविधिचैत्यालयः कारित आचंद्रार्कं यावन्नन्दतात् शुभमस्तु श्रीर्भूयात् श्री श्रमण संघस्य ॥ छ ॥ श्रीः ॥ (४७) चन्द्रप्रभः संवत् १३७६ कार्तिक सुदि १४ श्रीपत्तने श्रीशांतिनाथविधिचैत्ये श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं श्रीशत्रुंजययोग्यं श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिः प्रतिष्ठितं कारितं स्व-पितृ-मातृ सा० धीणा सा०धन्नी सा० भुवनपाल सा० गोसल सा० खेतसिंह सुश्रावकैः पुत्र गणदेव - छूटड़ - जयसिंह - परिवृतैः । - ४८) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी : ॐ संवत् १३७९ मार्ग० वदि ५ प्रभु श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभि: श्रीशांतिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं कारितं च सा० पूना पुत्र सा० सहजपाल पुत्रैः सा० घाघल गयधर थिरचंद्र स्वपितृपुण्यार्थं ॥ (४९) महावीर - एकतीर्थीः ॐ सम्वत् १३०९ (? १३७९) मार्गशीर्ष वदि ५ श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिः श्रीमहावीरदेवबिंबं प्रतिष्ठितं कारितं च स्वश्रेई (य) से भण० गांगा सुतेन भण० बचरा सुश्रावकेण पुत्र सोनपाल सहितेन ॥ ४५. चिन्तामणि जी का मंदिर, भूमिगृह बीकानेर; ना० बी०, लेखांक २२५ ४६. स्तम्भन पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १०५४; प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, ले० ४४७ ४७. शत्रुंजयगिरिना केटलाक अप्र० प्रतिमा लेखो:, मधुसूदन ढांकी और लक्ष्मण भोजक, सम्बोधि वो० नं० ४; भँवर० (अप्रका० ), लेखांक १०५ ४८. शीतलनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २३८९ ४९. कुन्थुनाथ मन्दिर, अचलगढ, अ० प्रा० जै० ले० स०, भाग २, लेखांक ५२७, खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१७) Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) जिनरत्नसूरि - मूर्तिः संवत् १३७९ मार्ग वदि ५ श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्य - श्रीजिनरत्नसूरिमूर्ति श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिः प्रतिष्ठिता कारिता च खरतर सा० जाल्हण पुत्ररत्न तेजपाल रुद्रपाल श्रावक" समुदायसहितं । (उपर जिन प्रतिमा दोनों ओर १२ आचार्य ) (५१) जिनरत्नसूरि - मूर्तिः सं० १३७९ मार्ग वदि ५ श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्य श्रीजिनरत्नसूरिमूर्त्तिः श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यै: श्री जिनकुशलसूरिभि: प्रति । का। खरतरगच्छे। (५२) जिनचन्द्रसूरि-मूर्तिः सं० १३७९ मार्ग व० ५ खरतर० श्रीजिनकुशलसूरिभि: श्रीजिनचन्द्रसूरि प्रतिष्ठितं ॥ (५३) समवसरणं ( धातुः ) सं० १३७९ मार्ग वदि ५ आ । जिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभि: श्रीसमवसरण (णं) प्रतिष्ठितं कारितं सा० वीजडसुतेन सा० पातासु श्रावकेण ॥ प्रतिमा (५४) पद्मप्रभमूर्ति - परिकरलेखः संवत् १३७९ श्रीपत्तने श्रीशांतिनाथविधिचैत्ये श्रीपद्मप्रभबिंबं श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं च शा० हेमल पुत्र कडुआ शा० पूर्णचन्द्र शा० हरिपाल - कुलधरसुश्रावकैः : पुत्र ककुआ प्रमुखसर्वकुटुंबपरिवृतैः स्वश्रेयोर्थं ॥ शुभमस्तु ॥ (५५) परिकरलेखः सं० १३७९ श्रीमत्पत्तने श्रीशांतिनाथीयचैत्ये श्रीअनंतनाथदेवस्य बिंबं श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ कारितं व्य० ब्रह्मशांति व्य० कडुक व्य० मेतुलाकेन ॥ (५६) महावीर - मूर्तिः संवत् १३७९ श्रीपत्तने श्रीशांतिनाथविधिचैत्ये श्रीमहावीरदेवबिंबं श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं सा० सहजपाल पुत्रैः सा० गयधर सा० थिरचन्द्र सुश्रावकैः सर्वकुटुंबपरिवृतेन भगिनी वीरिणी श्राविका श्रेयार्थं । ५०. खरतरवसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ८७ ५१. छीपावसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ), लेखांक २८; देहरी क्रमांक ७८४ / ३४ / २, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक १४४ ५२. शान्तिनाथ मन्दिर भण्डारस्थ, नाकोडा : विनयसागर, नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, लेखांक ८ ५३. पार्श्वनाथ मंदिर, हाला, पाकिस्तान; जैन तीर्थ सर्व संग्रह भाग २, पृ० ३७२ ५४. देहरी क्रमांक १०४, खरतरवही, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक ११९ ५५. देरी क्रमांक ९७/२ शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक ८७ ५६. खरतरवसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ७३; देहरी क्रमांक १०१, ख०, शत्रुंजय : श० गि० द०, (१८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : For Personal & Private Use Only - . लेखांक ११८ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) परिकरलेखः संवत् १३७९ श्रीश→जये यु.. जिनकुशलसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं ॥ (५८) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १३९९ (? १३७९) भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिः श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं कारितं च सा केशव पुत्ररत्न सा जेहदु सुश्रावकेन पुण्यार्थं । (५९) मुनिसुव्रत-परिकरलेखः संवत् १३८० आषाढ़ वदि ८ श्रीशत्रुजये श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं च पद्मा................ त० रासल त० राजपाल पुत्र त० नायड त० नेमिचंद्र त० दुसल श्रावकैः पुत्र त० वीरम-डमकू-देवचंद्र-मूलचंद्र-महणसिंह ठारपुरिष्ठनिजकुटुंब-श्रेयोर्थं ॥ शुभमस्तु॥ (६०) महावीरः सं० १३८० कार्तिक सुदि १२ (? १४) खरतरगच्छालङ्कार - श्रीजिनकुशलसूरि श्रीमहावीरदेवबिंब प्रतिष्ठितं ॥ (६१) पञ्चतीर्थीः संवत् १३८० वर्षे कार्तिक सुदि १३ खरतर श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टालंकार "प्रतिष्ठितं॥ (६२) अम्बिका-मूर्तिः सं० १३८० कार्तिक सुदि १४ श्रीजिनचंद्रसूरि-शिष्य-जिनकुशलसूरिभिः श्रीअंबिका प्रतिष्ठितं । ___ (६३) आदिनाथमूर्तिः संवत् १३८१ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ ? वारे' ....................... श्रीजिनकुशलसूरिभिः (आदि) नाथदेवबिंबं कारितं सा० वामदेव। (६४) सं० १३८१ वैशाख वदि ५ श्रीपत्तने श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरि [प्रति] ष्ठितं । कारितं ५७. देरी क्रमांक ६७/३, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक ८२ ५८. पद्मप्रभ मन्दिर, लखनऊ, पू० जै०, भाग २ लेखांक १५४५, ५९. खरतरवसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ७१; श० गि० द०, लेखांक ११७ ६०. जैन मन्दिर, सराणा, जिनहरिसागरसूरि ले० सं०, अप्रकाशित ६१. भाभा पार्श्वनाथ देरासर, पाटण : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २३६; भो० पा०, लेखांक १५९० ६२. हाला मंदिर, ब्यावर, भँवर० (अप्रका०), क्रमांक १; जै० ती० सर्व०, भाग २ पृ० ३७२ ६३. खरतरवसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ६९ । ६४. "शत्रुजय गिरिराज अप्रकट प्रतिमालेखो", मधुसूदन ढांकी और लक्ष्मण भोजक : सम्बोधि, वो० ७, नं० ४; भँवर० (अप्रका०), लेखांक १०६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः श्रीजिनकुशल For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च श्रीदेवगिरिवास्तव्य ऊकेशवंशीय सो० नाना-पुत्ररत्नेन सो० गोगा सुश्रावकेण सो०. भ्रातृ सा० सागण भार्या काऊ सुश्राविकायाः श्रे[ योर्थं] आचंद्रार्क नंदतात् ॥ ६ ॥ शुभं भ [ वतु] (६५) अम्बिकामूर्तिः सं० १३८१ वैशाख व० ५ श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिरंबिका प्रतिष्ठिता ।। (६६) जिनप्रबोधसूरिमूर्तिः ॥ सं १३८१ वैशाख वदि ५ श्रीपत्तने श्रीशांतिनाथविधिचैत्ये श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्री जिनकुशलसूरिभि: श्रीजिनप्रबोधसूरिमूर्तिः प्रतिष्ठिता । कारिता सपरिवारैः स्वश्रेयोऽर्थं ॥ ६ ॥ (६७) जिनप्रबोधसूरिमूर्तिः ॥ सं १३८१ वैशाख वदि ५ श्रीपत्तने श्रीशांतिनाथविधिचैत्ये श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिः श्रीजिनप्रबोधसूरिमूर्तिः प्रतिष्ठिता । कारिता च सा० कुमारपालरत्नैः सा० महणसिंह सा० देपाल सा० जगसिंह सा० मेहा सुश्रावकैः सपरिवारैः स्वश्रेयोऽर्थं ॥ ६ ॥ (६८) नमिनाथ- परिकरलेख : संवत् १३८१ वर्षे वैशाख वदि ९ गुरौ वारे खरतरगच्छीय - श्रीम जिनकुशलसूरिभिः श्रीनमिनाथदेवबिंबं प्रतिष्ठितं 'देवकुल प्रदीपक “श्रीमद्देवगुरुआज्ञाचिन्तामणी • संगमकेन (६९) शान्तिनाथ -पञ्चतीर्थी : सं० १३८१ वर्षे आषाढ़ वदि का०प्र० श्रेयोर्थं देहसुतेन धामासुश्रावकेण ॥ ( ७० ) धर्मनाथः ॥र्द० ॥ संवत् १३८१ श्रीधर्मनाथबिंबं श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्य श्रीजिनकुशलसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं सा० सामंतसुत सा० रउला भार्या तेजू पुत्रैः सा० धणपति सा० नरसिंघ सा० रणसिंह सा० गोविन्द सा० हकीमसिंघ सुश्रावकैः "आचंद्रार्कं नंदतात् । शुभंभवतु । सकलविधिसंघस्य । “खरतर श्रीजिनकुशलसूरिभिः श्रीशांतिनाथबिंबं (७१) परिकरलेख: संवत् १३८१ श्रीधर्मनाथबिंबं श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं च । ६५. महावीर जिनालय (वैदो का) बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १३१२ ६६. हाला मंदिर, ब्यावर : भँवर० (अप्रका०), क्रमांक १ ७०. खरतरवसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ६७ ७१. देहरी क्रमांक ८४९/८२, खरतरवसही, शत्रुंजय : श० गि० द०, (२०) तस्य 11 ६७. खरतरवसही, ऋषभदेव मंदिर, देलवाड़ा (उदयपुर) प्रा० ले० सं०, लेखांक ५६; पू० जै०, भाग २, ले० १९८८ ६८. देहरी क्रमांक ८६, खरतरवसही, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक ११३ ६९. शांतिनाथ देरासर, कनासा पाड़ा, पाटण : भो० पा०, लेखांक १७२९ अ; महावीर जिनालय, कनासानो पाडो, पाटण: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३७८ लेखांक ११२ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सा० सामंत सुत सा० राउल भार्या तेजु पुत्रैः सा० धणपति सा० नरसिंघ सा० गोविंद सा० भीमसिंह उपकेशगच्छे (सातेउरीगच्छे) राउल भार्या श्रेयार्थं ॥ छः। शुभं भवतु चतुर्विधसंघस्य ।। (७२) चारुचन्द्रसूरिमूर्तिः [१] संवत् १३८३ वर्षे ज्येष्ठ वदि ८ गुरौ रौद्र[२] पल्लीय श्रीचारुचंद्रसूरीणां मूर्तिः....'कु'"म [३]-चन्द्रशिष्य बुद्धिनिवास कारापिता॥ (अष्टापदमंदिरे पाषाणस्थते स्थिता साधुभिमूर्तिः सन्मुखे चामरधारिश साधुमूर्तिमस्तकोपरितनभागे जिनमुर्तिः।।) (७३) चारुचन्द्रसूरि-मूर्तिः संवत् १३८३ वर्षे ज्येष्ठ वदि ८ गुरौ रौद्रपल्लीय श्रीचारुचंद्रसूरीणां मूर्ति वा० कुमुदचंद-शिष्य वा० बुद्धिनिवासेन कारापिता॥ (७४) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥६॥संवत् १३८३ वर्षे फाल्गुन वदि नवमी दिने सोमे श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्य श्रीजिनकुशलसूरिभिः श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठिता कारितं दो० राजा पुत्रेण दो० अरसिंहेन स्वमातृः पितृः श्रेयोर्थं ॥ ' (७५) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: • सं० १३८४ माघ सुदि ५ श्रीजिनकुशलसूरिभिः श्रीआदिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं कारितं च सा० सोमण पुत्र सा० लाखण श्रावकेन भावग हरिपाल युतेन। (७६) अम्बिकामूर्तिः ॐ ॥ सं० १३८४ माघ सुदि ५ श्रीजिनकुशलसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं च............."सा० उ................ पाली स॥ (७७) पञ्चतीर्थीः सं० १३८४ माघ सु० ५ श्रीजिनकुशलसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं च शा० बठेर पालीका (७८) समवशरणं (धातुः) श्रीजिनचंद्रसूरि शिष्य श्रीजिनकुशलसूरिभिः ७२. अनुपूर्ति लेख, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक ५३३ ७३. देहरी क्रमांक २६८/२ - शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक १०१ ७४. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७६७ ७५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २९९ ७६. पार्श्वनाथमंदिर, श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १२४ ७७. बड़ा मन्दिर, नागोर : जिनहरिसागरसूरि लेख संग्रह अप्रकाशित ७८. हाला मंदिर, ब्यावर: भँवर० (अप्रका०), क्रमांक २ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (२१) For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७९) भरतेश्वरमूर्तिः सं० १३९१ माघ सुदि १५ श्रीपत्तने श्रीशांतिनाथदेवविधिचैत्ये श्रीजिनकुशलसूरिशिष्यैः श्रीजिनपद्मसूरिभिः श्रीभरतेश्वरमूर्ति प्रतिष्ठित कारिता च व्य० घड़सिंह भार्या राणी सुश्राविकया पुं० (८०) बाहुबलिमूर्तिः संवत् १३९१ माघ सुदि १५ श्रीपत्तने श्रीशांतिनाथविधि (चैत्ये) खरतर श्रीजिनकुशलसूरिशिष्यैः श्रीजिनपद्मसूरिभिः श्रीबाहुबलिमूर्ति प्रतिष्ठितं च कारितं व्य० • सिंह पुत्रै: जा (८१) पार्श्वनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १३९१ मा० सु० १५ खरतरगच्छीय श्रीजिनकुशलसूरिशिष्यैः श्रीजिनपद्मसूरिभिः श्रीपार्श्वनाथ प्रतिमा प्रतिष्ठिता कारिता च मव० बाहि सुतेन रत्नसिंहेन पुत्र आल्हादि परिवृतेन स्वपितृव्य सर्व पितृव्य पुण्यार्थं । (८२) पट्टिकालेखः श्रीमुनिसुव्रतजिनः । खरतर जाल्हणपुत्र तेजाकेन श्रीपुत्री वीरी श्रे० कारितं ॥ (८३) वाचक- हेमप्रभमूर्तिः वा० हेमप्रभमूर्त्ति (८४) वासुपूज्य - पञ्चतीर्थी : सं० १४०० वर्षे वैशाख सुदि १० रवौ उपकेशज्ञा० माए " कणकूश्रेयोर्थं वणसिंहेन श्रीवासुपूज्यबिंबं का०प्र० रुद्रपल्लीयपक्षे श्रीसूरिभिः॥ (८५) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १४०८ वैशाख सुदि ५ उपकेश साधु पेथड़ भार्या वील्हू सुत महं० बाहड़ेन पूर्वजनिमित्तं श्री पार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (८६ ) राजगृहगतपार्श्वनाथमंदिर-प्रशस्तिः (१) प०॥ ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथाय ॥ श्रेयश्रीविपुलाचलामर गिरिस्थेयः स्थितिस्वीकृति : ७९. वल्लभ विहार, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ५३ ८०. रायणवृक्ष के पास, देहरी में, वल्लभ विहार, शत्रुंजय: भँवर०, लेखांक ५२ ८१. पार्श्वनाथ मन्दिर, करेडा: पू०जै०, भाग-२, लेखांक १९२६, "भा० धांधलदेवि द्वि० भा० लेखांक ११३ ८२. विमलवसही, आबू : प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक १८१; अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, ८३. वल्लभ - विहार, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ५४; १ [ इन्हें १३३६ वै० व० ७ को वाचनाचार्य पद मिला था ] ८४. जैन मंदिर, ऊंझा : जै० धा० प्र० ले० सं०, लेखांक १९१ ८५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ४१७ ८६. पार्श्वनाथ मन्दिर, राजगृह: पू० जै०, भाग १, लेखांक २३६; प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३८० (२२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्रश्रेणिरमाभिरामभुजगाधीशस्फटासंस्थितिः। पादासीनदिवस्पतिः शुभफलश्रीकीर्तिपुष्पोद्गमः श्रीसङ्घाय ददातु वाञ्छितफलं (२) श्रीपार्श्वकल्पद्रुमः॥ १॥ यत्र श्रीमुनिसुव्रतस्य सुविभोर्जन्म व्रतं केवलं सम्राजां जयरामलक्ष्मण जरासन्धादिभूमीभूजां। जज्ञे चक्रिबलाच्युतप्रतिहरिश्रीशालिनां सम्भवः प्रापुः श्रेणिकभूधवादि(३) भविनो वीराच्च जैनी रमां॥ २॥ यत्राभयकुमारश्रीशालिधन्यादिमा घनाः। सर्वार्थसिद्धिसम्भोगभुजो जाता द्विधाऽपि हि ॥ ३॥ यत्र श्रीविपुलाभिधोऽवनिधरो वैभारनामापि च श्रीजैनेन्द्रविहारभूषणधरौ पूर्वाप(४) राशास्थितौ । श्रेयो लोकयुगेऽपि निश्चितमितो लभ्यं ब्रुवाते नृणां तीर्थं राजगृहाभिधानमिह तत्कैः कैर्न संस्तूयते ॥४॥ तत्र च-संसारापारपारावारपरपारप्रापणप्रवणमहत्तमतीर्थे । श्रीराजगृहम(५) हातीर्थे । गजेन्द्राकारमहापोतप्रकार श्रीविपुलगिरिविपुलचूलापीठे सकलमहीपालचक्रचूलामा णिक्यमरीचिमञ्जरीपिञ्जरितचरणसरोजे। सुरत्राणश्रीसाहिपेरोजे महीमनुशासति । तदीय(६) नियोगान्मगधेषु मलिकवयोनाममण्डलेश्वरसमये। तदीयसेवकसहणासदुरदीनसाहाय्येन। यादाय निर्गुणखनिर्गुणिरङ्गभाजां॥ पुंमौक्तिकावलिरलं कुरुते सुराज्यं वक्षः श्रुती अपि शिरः (७) सुतरां सुतारा सोयं विभाति भुवि मन्त्रिदलीयवंशः॥ ५॥ वंशेमुत्रपवित्रधीः सहजपालाख्यः सुमुख्यः सतां जज्ञेऽनन्यसमानसद्गुणमणीशृङ्गारितांग: पुरा। तत्सूनुस्तु जनस्तुतस्तिहुणपालेति प्रतीतोऽभव(८) ज्जातस्तस्य कुले सुधांशुधवले राहाभिधानो धनी॥ ६॥ तस्यात्मजोजनि च ठक्करमण्डनाख्यः सद्धर्मकर्मविधिशिष्ट जनेषु मुख्यः। निःसीमशीलकमलादिगुणालिधाम जज्ञे गृहेऽस्य गृहिणी थिरदेविनाम॥ (९) ७ पुत्रास्तयोः समभवन् भुवने विचित्राः पंचात्र संततिभृतः सुगुणैः पवित्राः। तत्रादिमास्त्रय इमे सहदेवकामदेवाभिधानसहराज इति प्रतीताः॥ तुर्यः पुनर्जयति सम्प्रति वच्छराजः श्रीमा(१०) न् सुबुद्धिलघुबान्धवदेवराजः। याभ्यां जडाधिकतया घनपङ्कपूर्वदेशेपि धर्मरथधुर्यपदं प्रपेदे ॥ ९॥ प्रथममनवमाया वच्छराजस्य जाया समजनि रतनीति स्फीतिसन्नीतिरीतिः। प्रभवति पहराजः सद्गु(११) णश्रीसमाजः सुत इत इह मुख्यस्तत्परश्चोढराख्यः॥ १०॥ द्वितीया च प्रिया भाति वीधीरिति विधिप्रिया। धनसिंहादयश्चास्याः सुता बहुरमाश्रिताः॥ ११॥ अजनि च दयिताद्या देवराजस्य राजी गुणम(१२) णिमयतारापारशृंगारसारा॥ स्म भवति तनुजातो धर्मसिंहोत्र धुर्यस्तदनु च गुणराजः सत्कलाकेलिवर्यः॥ . १२ अपरमथ कलत्रं पद्मिनी तस्य गेहे तत उरुगुणजात: षीमराजोंगजातः। प्रथम उदितपद्मः पद्म(१३) सिंहो द्वितीयस्तदपरघडसिंहः पुत्रिका चाच्छरीति ॥ १३ इतश्च ॥ श्रीवर्द्धमानजिनशासनमूलकन्दः पुण्यात्मनां समुपदर्शितमुक्तिभन्दः। सिद्धान्तसूत्ररचको गणभृत्सुधर्मनामाजनि प्रथमकोऽत्रयुग(१४) प्रधानः॥ १४॥ तस्यान्वये समभवद्दशपूर्विवज्रस्वामी मनोभवमहीधरभेदवज्रः। यस्मात्परं प्रवचने . प्रससार वज्रशाखा सुपात्रसुमन:सकलप्रशाखा ॥ १५ ॥ तस्यामहर्निशमतीव विकाशवत्यां चान्द्रे कु(१५) ले विमलसर्वकलाविलासः उद्योतनो गुरुरभाद्विबुधो यदीये पट्टेऽजनिष्ट सुमुनिर्गणिवर्द्धमानः॥ १६ ॥ तदन भुवनाश्रान्तख्यातावदातगणोत्तर: सचरणरमाभरि: सरिर्बभव जिनेश्वरः। खरतर इ(१६) ति ख्यातिं यस्मादवाप गणेप्ययं परिमलकल्पश्रीप"डुगणो वनौ ॥ १७॥ ततः श्रीजिनचन्द्राख्यो बभूव मुनिपुङ्गवः। संवेगरंगशालां यश्चकार च बभार च ॥ १८॥ स्तुत्वा मन्त्रपदाक्षरैरवनितः श्रीपा (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (२३) For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) र्श्वचिन्तामणि ........."ताकारिणं । स्थानेनंतसुखोदयं विवरणं चक्रे नवांग्या यकैः श्रीमन्तोऽभयदेवसूरिगुरवस्तेऽतः परं जज्ञिरे ॥ १९-------- (१८) .........."जिनवल्लभ'शांगनोवल्लभो......"प्रियः यदीयगुणगौरवं श्रुतिपुटेन सौधोपमं निपीय शिरसोऽधुनापि कुरुते न कस्तांडवं ॥ २०॥ तत्पट्टे जिनदत्तसूरिरभवद्योगीन्द्रचूडामणिर्मिथ्याध्वां(१९) तनिरुद्धदर्शन ........ अंबिकया न्यदेशिसुगुरुः क्षेत्रेऽत्र सर्वोत्तमः सेव्यः पुण्यवतां सतां सुचरणज्ञानश्रिया सत्तमः॥ २१ ॥ ततः परं श्रीजिनचन्द्रसूरिर्बभूव नि:संग गुणास्तभूरिः। (२०) चिन्तामणि लितले यदीयेऽध्युवास वासादिव भाग्यलक्ष्म्याः ॥ २२॥ पक्षे लक्ष्यगते सुसाधनमपि प्रेत्यापि दुःसाधनं दृष्टांतस्थितिबन्धबंधुरमपि प्रक्षीणदृष्टान्तकं । वादे वादिगतप्रमाणमपि यैर्वाक्यं (२१) प्रमाणस्थितं ते वागीश्वरपुंगवा जिनपतिप्रख्या बभूवुस्ततः ॥ २३ ॥ अथ जिनेश्वरसूरियतीश्वरा दिनकरा इव गोभरभास्वराः। भुवि विबोधितसत्कमलाकराः समुदिता वियति . स्थितिसुन्दराः॥२४॥ जिनप्र(२२) बोधा हतमोहयोधा जने विरेजुर्जनितप्रबोधाः। ततः पदे पुण्यपदेऽदसीये गणेन्द्रचर्या यतिधम्मधुर्याः ॥ २५॥ निरंधानो गोभिः प्रकृतिजडधीनां विलसितं भ्रमभ्रश्यज्ज्योती रसदशकलाकेलि(२३) विकलः। उदीतस्तत्पट्टे प्रतिहततमःकुग्रहमतिर्नवीनोऽसौ चंद्रो जगति जिनचन्द्रो यतिपतिः ॥ २६ ॥ प्राकट्यं पंचमारे दधति विधिपथश्रीविलासप्रकारे धर्माधारे सुसारे विपुलगिरिवरे मानतुंगे विहा(२४) रे कृत्वा संस्थापनां श्रीप्रथमजिनपतेर्येन सौवैर्यशोभिश्चित्रं चक्रे जगत्यां जिनकुशलगुरुस्तत्पदेऽसावशोभि ॥ २७॥ बाल्येपि यत्र गणनायकलक्ष्मिकांताकेलिविलोक्य सरसा हृदि शारदापि । सौभाग्य(२५) तः सरभसं विललास सायं जातस्ततो मुनिपतिर्जिनपद्मसूरिः ॥ २८॥ दृष्टापदृष्टसुविशिष्टनिजान्य शास्त्रव्याख्यानसम्यगवधाननिधानसिद्धिः। जज्ञे ततोऽस्तकलिकालजनासमानज्ञानक्रिया(२६) ब्धिजिनलब्धियुगप्रधानः ॥२९॥ तस्यासने विजयते समसूरिवर्यः सम्यग्दृगंगिगणरंजकचारुचर्यः। श्रीजैनशासनविकासनभूरिधामा कामापनोदनमना जिनचन्द्रनामा। ३० । तत्कोपदेश(२७) वशतः प्रभुपार्श्वनाथप्रसादमुत्तममचीकरत---------- । श्रमिद्विहारपुरवस्थितिवच्छराजः श्रीसिद्धये समतिसोदरदेवराजः॥३१॥महेन गरुणा चात्र वच्छराज: सबांधवः। प्रतिष्ठां कारयामास मंडनान्वय(२८) मंडनः॥ ३२ श्रीजिनचंद्रसूरीन्द्रा येषां संयमदायकाः। शास्त्रेष्वध्यापकास्तु श्रीजिनलब्धियत ३३॥ कर्त्तारोऽत्र प्रतिष्ठायास्ते उपाध्यायपुङ्गवाः। श्रीमंतो भुवनहिताभिधाना गुरुशासनात् ।। ३४ ॥ न(२९) यनचंद्रपयोनिधिभूमिते व्रजति विक्रमभूभृदनेहसि। बहुलषष्टिदिने शुचिमासगे महमचीकरदेनमयं सुधीः ॥ ३५ श्रीपार्श्वनाथजिननाथसनाथमध्यः प्रासाद एष कलसध्वजमण्डितो(३०) र्द्ध:। निर्मापकोस्य गुरवोत्र कृतप्रतिष्ठा नंदंतु संघसहिता भुवि सुप्रतिष्ठाः॥ ३६ ॥ श्रीमद्भिर्भुवनहिताभिषेकवर्यैः प्रशस्तीरेषात्र । कृत्वा विचित्रवृत्ता लिखिता श्रीकीर्तिरिव मूर्ता ॥ ३७॥ उत्कीर्णा च सुवर्णा ठक्कुरमा(३१) ल्हांगजेन पुण्यार्थं । वैज्ञानिकसुश्रावकवरेण वीधाभिधानेन ॥३८॥ इति विक्रमसंवत् १४१२ आषाढवदि ६ दिने। श्रीखरतरगच्छशृंगारसुगुरुश्रीजिनलब्धिसूरिपट्टालङ्कारश्रीजिनेन्दुसूरीणामुपदे(३२) शेन। श्रीमंत्रिवंशमंडन ठ० मंडननंदनाभ्यां। श्रीभुवनहितोपाध्यायानां पं० हरिप्रभगणि मोदमूर्तिगणि हर्षमूर्त्तिगणि पुण्यप्रधानगणिसहितानां पूर्वदेशविहारश्रीमहातीर्थयात्रासंसूत्र(३३) णादिमहाप्रभावनया सकलश्रीविधिसंघसमानंदनाभ्यां। ठ० वच्छराज ठ० देवराजसुश्रावकाभ्यां कारितस्य श्रीपार्श्वनाथप्रसादस्य प्रशस्तिः॥ शुभं भवतु श्रीसंघस्य॥ (२४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८७) वासुपूज्य - पञ्चतीर्थीः सं० १४१५ वर्षे ज्येष्ठ वदि १३ ओसवालज्ञा० विनायक । ५ । गोत्रे सा० सुहडसीह भा० सुहागदेवि सरसादे पु० वीकमेन भ्रातृ खीमनिमित्तं श्रीवासुपूज्यबिम्बं का०प्र० रुद्रपल्लीय श्रीगुणचंद्रसूरिभिः॥ (८८) एकतीर्थीः सं० १४१५ ज्येष्ठ वदि १३ उपकेशज्ञा० भाभू ॥ गोत्रे सा० खीदा पु० अर्जुन पु० दत्ता भार्या संगाहा पुत्र गाजणेन पितृ का० प्र० रुद्रपल्लीयगच्छे श्रीगुणचंद्रसूरिभिः ॥ श्रेयसे (८९) चन्द्रप्रभ - पञ्चतीर्थी : सं० १४१५ श्री ऊकेश ज्ञा 'गोत्रे सा० भइया पुत्र लाला भा० माणदेवही पु० सा० काजाकेन आत्मश्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभबिं० का० प्र० श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे श्रीगुणचंद्रसूरिभिः (९०) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : ॐ ॥ सं० १४१६ माग व० ५ सा० दहड पुत्र सा० हेमाश्रावकेण स्वपूना । श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे श्रीजिनोदयसूरिभिः ॥ ( ९१ ) संवत् १४१७ [व] आषाढ़ सुदि ५ दिने श्रीसंघतिलकसूरिभिः पूर्णचंद्रगणिना । (९२) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १४२१ वर्षे माघ वदि ६ दिने नाहर गोत्रे सा० देवराज भा० रूपी पु० सा० लोला भार्या नाल्ही पौत्रादिसहितै आत्मश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं श्रीरुद्रपल्लीयग०भ० श्रीजिनहंससूरिपदे श्रीजिनराजसूरिभिः ॥ (९३) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १४२२ वैशाख सुदि ६ श्री आदिनाथबिंबं सा० गयधरपुत्रेण सा० प्रथमसीहेन स्वश्रुवकेन स्वपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनोदयसूरिभिः। ८७. शान्तिनाथ जिनालय, कनासानो पाडो, पाटण : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३४० ८८. शीतलनाथ जिनालय, पांजरापोल, अहमदाबाद : Parikha & Shelat Jain Image Inscriptsores of Ahmadabad, (J.I.I.A.) No.-30 ८९. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक १९३३ ९०. चन्द्रप्रभ जिनालय, दुर्ग, जेसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २२६७ ९१. लूणवसही, आबूः अ० प्रा० जै० ले० संदोह, भाग २, लेखांक २८३ ९२. शीतलनाथ जिनालय, उदयपुरः पू० जै० भाग २, लेखांक १०५२ ९३. श्रीगंगागोल्डेन जुबली म्यूजियम, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१६२ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२५) Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९४) आदिनाथ-पंचतीर्थीः सं० १४२५ वर्षे वैशाख सुदि १ .. ..... मं० श्रीधर पुत्र देवयाकेन भ्रातृ पवलणदे(?) श्रेयोर्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छीय श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः (९५) महावीर-पञ्चतीर्थीः सं० १४२५ वर्षे वैशाख सुदि ११ शु० श्रीमहावीरबिंबं मं० झाझण माता धाधलदे पुण्यार्थं कारिता महं वेराके श्रीखरतरगच्छीय श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।। (९६) पञ्चतीर्थीः सं० १४२७ वर्षे ज्येष्ठ व० १ शुक्रे ऊकेशज्ञाती टाल्हण पुण्याय मं० नरदे० भ० श्री-- प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनेश्वरसूरिभिः (९७) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः ६० ॥ संवत् १४२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १२ (? ११) सोमवारे श्रीपार्श्वनाथदेवबिंबं श्रे० राणदेव पुत्र श्रे.........."ड़उ श्रे० मूलराज सुश्रावकेण कारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनकुशलसूरिशिष्यश्रीजिनोदयसूरिभिः। (९८) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४३० वर्षे वैशाख सुदि ३ सा० महीपाल पुत्र भीमा सुश्रावकेण स्वपुण्यार्थं श्रीशान्तिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं खरतरभट्टारक श्रीजिनोदयसूरिभिः । (९९) शिलालेखः संवत् १४३० ज्येष्ठ वदि ४ मुला (तुला)र्के मडली मंत्रीमंडलीकेण मंत्रीजी नीदजी युगम सं० पुना सं० विरासुश्रावक-प्रमुखकुटुंबयुतेन ढीलागांसादिपरिवारपरिवृताभ्यां कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनोदयसूरिभिः॥ चिरं नंदतु ॥ (१००) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १४३२ वर्षे फागुण सुदि २ शुक्रे श्रीमालज्ञाती (य) श्रेष्ठि सोमा भार्या सूमलदे पु० तेजाकेन मातृपितृश्रेयोर्थं पंचायतन श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्र० श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे श्रीअभयदेवसूरिभिः ९४. चोसठिया जी का मंदिर, नागौर: प्रतिष्ठा लेख संग्रह- १, लेखांक १५५ ९५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ४७३ ९६. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७६८ ९७. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ४८२ ९८. आदिनाथ जिनालय, कोटा : प्रतिष्ठा लेख संग्रह- १, लेखांक १५७ ९९. बृहद् ढूंक, देहरी क्रमांक ३२४, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक १४० १००. आदिनाथ देरासर, पूना : प्रा० ले० सं०, लेखांक ८१ (२६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०१) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४३४ वर्षे वैशाख वदि २....................... गोत्रे सा० धना पु० सलषण भा० सलषणदे पु० नरदेव धनाश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्र० रुद्रपल्लीय श्रीअभयदेवसूरिभिः॥ (१०२) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४३४ वर्षे वैशाख वदि २ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीयसं०............... सीहभार्या धणदेवि...................... महं० लाडाकेन श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं महूंकर श्रीगुणप्रभसूरिभिः॥ (१०३) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४३४ ज्येष्ठ मासे २ दिने श्रीपार्श्वबिंबं उकेशवंशे माल्हशाखायां सा० गोपाल पुत्र देवराज भार्यया साहु० कीकी श्राविकया स्वस्य पुण्यार्थं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः। (१०४) पञ्चतीर्थी: संवत् १४३५ वर्षे वैशाख सुदि १३ सा० दोदा सुत महीपाल श्रेयो) पंचतीर्थीबिंबं कारितं सा० पद्माकेन प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरि (भिः) श्रेयोभवतु। __(१०५) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४३६(?) वर्षे फा० सु० ३ दिने मंत्रिदलीय गोत्रे सा० सारङ्ग भा० सारू पु० सीधरण भा० सुहवदे पुत्र सा० मांज मैस परवतादियुतेन श्रीकुन्थुनाथबिंब का०प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ___ (१०६) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४३८ वर्षे माघ वदि व० प्रतापसिंह सुत वीरधवल तत्पुत्र सा० लाखा सा० भोजाभ्यां लखमणादिपुत्रसपरिकराभ्यां पुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः । (१०७) जिनमूर्तिः सं० १४३८ श्री..............."तिनाथ प्रति० सा० पद्मसिंहेन समस्तपरिवारयुतेन निजपितृ सा देल्हा पुण्यार्थं का० प्र० श्रीजिनराजसूरि । १०१. शान्तिनाथ देरासर, देवसानो पाडो, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११२८ १०२. अनन्तनाथ जिनालय, खारवाडो, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १०३८ १०३. चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ५१४ १०४. दि० जैन मंदिर, सिंदी : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ४८ १०५. शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर : पू० जै० भाग २, लेखांक १०५६ १०६. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ५३५ १०७. मथियान मोहल्ले का मंदिर, बिहार: पू०जै०भाग १, लेखांक २११ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०८) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १४३९ वर्षे पौष वदि ८ सोमे लोढागोत्रे सा० डाह्या भा० लवई पुत्रेण धन्हुकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंब का०प्र० श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे श्रीसिंहतिलकसूरिभिः॥ __ (१०९) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४४१ वर्षे वैशाख वदि १२ नाहटवंशालंकारेण सा० घडसिंह पुत्रेण भ्रातृ सा० सरषणादि सा० सलकेन युतेन श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिभिः॥ श्रीखरतरगच्छेशैः। (११०) श्रावक-श्राविका:मूर्तिः संवत् १४४२ वर्षे माघ वदि १ बुधे खरतरग[च्छे] .......... क्षे साह तेजा सुत साह पुरणा (१११) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४४४ गुर्जरज्ञतीय वाउयागोत्रे सा० प्रथमसीह पुत्र सा० नवरंग छाजी पुत्र सा० कर्मसीह भ्रातृ सा० कीर्तिपालाभ्यां आत्मश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं का० प्रति० खरतरगच्छीय भट्टारक श्रीजिनहितसूरिभिः॥ श्री॥ __ (११२ ) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४४४ वर्षे श्रीमाली टातामड पुत्र सा० वयरसिंहेन भ्रातृ लाषमसीगिरयुत (तेन) श्रीआदिनाथबिंब कारितं । स्वपुण्यार्थं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः। (११३) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः ___ संवत् १४४७ फाल्गुन सुदि ८ सोमे श्रीमालवंशे ढोरगोत्रे ठ० रतनपु० नरदेवभार्या बा० नाल्ही पु० ठ० धिरियाराम-कर्मसीह-टीलादिभिः श्रीपार्श्वनाथसहिता पंचतीर्थी का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनमेरुसूरिपट्टे श्रीजिनहितसूरिभिः॥ (११४) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४५० वर्षे माघ वदि ९ सोमे श्रीमालज्ञातीय धांधियागोत्रे ठकुर हरिराज पु० ठ० हापा ठ० जयपालनिमित्तं ठ० हेमाकेन श्रीअजितनाथबिंबं का०प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनवल्लभसूरिभिः । १०८. शान्तिनाथ देरासर, देवसानो पाडो, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११४६ १०९. मुनिसुव्रत जिनालय : जोधपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३७; पू० जै०, भाग १, लेखांक ६१५ ११०. "शत्रुजयगिरिना अप्रकट प्रतिमा लेखो," मधुसूदन ढांकी और लक्ष्मण भोजक, सम्बोधि, वो०७, नं० ४; भँवर० (अप्रका०), लेखांक १०७; अनुपूर्तिलेख, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक ५४५ १११. जैन मंदिर, कोका का पाड़ा, पाटन : भो० पा०, लेखांक १०७ ११२. आदिनाथ जिनालय, चित्तौड़ : प्रा० ले० सं०, लेखांक ८८ ११३. आदिनाथ जिनालय, मांडवीपोल, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६१७ ११४. आदिनाथ चैत्य, थराद : जै० प्र० ले० सं०, लेखांक १३६ (२८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४५२ वर्षे जेष्ठे श्रीशांतिनाथबिंबं। सा० कुष्टा कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे ।। श्रीजिनराजसूरिभिः॥ ___ (११६) सपरिकर-पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४५२ वर्षे । ज्येष्ठ मासि। सा० मूला सुत सा० महणसिंह सुश्रावकेण पुत्र मेघादि युतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं गृहीतं । प्रतिष्ठितं श्रीजिनोदयसूरिपट्टालंकरण श्रीजिनराजसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे । (११७) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४५३ वैशाख सु० २ शनौ उपकेश चोपड़ा केल्हण भार्या कील्हणदे द्वि० भा० रूपिणि श्रेयोर्थं सुत धनाकेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः॥ (११८ ) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १४५४ वर्षे वैशाख सुदि ६ तिथौ श्रीखरतरपक्षे श्रीउसवा० पितृव्य सा० आंबा भार्या अमीदे श्रे० सुत सीसाकेन श्रीशान्तिनाथबिंबं का० प्र० श्रीजिनराजसूरिभिः ___ (११९) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४५४ वर्षे भोढ़ा(? लोढा) गोत्रे उ० ज्ञा० सा० पोपा भा० पाषी पुत्र लाषाकेन स्वपुत्र वीसल श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० श्रीरुद्रपल्लीय गच्छ सूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः। (१२०) चतुर्विंशतिः ___ संवत् १४५६ वर्षे ज्येष्ठ वदि १३ शनौ उपकेशज्ञाति लोढ़ागोत्रे सा० ग्रहा पुत्र मुल्हु भार्या ग्राल्हाही निजपतिश्रेयसे श्रीचतुर्विंशतिपट्टका० प्र० श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे श्रीहर्षसुंदरसूरिभिः॥ (१२१) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४५७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ सा० हरिपाल पुत्र सा० पूनपाल पुत्र सा० जेठू सा० नेमा सा० हेमासुश्रावकैः स्वपुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिंबं कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः॥ चिरं नंद्यात् पूजामानत्॥ ११५.. शीतलनाथ जी का मंदिर, कोटड़ा-बाड़मेर : बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ३४ ११६. महावीर जिनालय, बोहरों की सेरी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७१७ ११७. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ५६१ ११८. महावीर जिनालय, सांगानेर: प्र० ले० सं०- १, लेखांक १७८ ११९. नवघरे का मंदिर, चेलपुरी-दिल्ली: पू० जै०, भाग १, लेखांक ४६१ १२०. देहरी क्रमांक ५९३/३, शत्रुजय : श० गि०द ०, लेखांक २२६ १२१. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१७७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) (२९) For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२२) अजितनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १४५८ वर्षे वैशाखसुदि ९ बुधे का० झांझण सुत कां गुणधर सुत का० ईसरसु श्रावकेन निजपुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिभिः । श्रीखरतरगच्छे ॥ (१२३) अजितनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १४५८ वर्षे वैशाखसुदि ९ दिने सा० लाखा पुत्र सहसा - सालिंगाभ्यां श्रीअजितनाथदेवबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः । सं० १४५८ वर्षे माघ सुदि श्रीजिनराजसूरिभिः ॥ ( १२४) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी : (१२५) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १४५९ वर्षे माघ सुदि ११ म० हापसिंह पुत्री सरवदे केन पुत्र पुजा काजा युतेन पितृश्रेयोऽर्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिभिः ॥ श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे (१२६) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : ॐ ॥ संवत् १४५९ वर्षे माघसु० ११ तिथौ चो० दीतापुत्राभ्यां साहड़-कर्म्मणश्राद्धाभ्यां पूर्वजपुण्यार्थं श्रीपार्श्वबिंबं का० प्रति० श्रीजिनराजसूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ ॐ॥ संवत् १४६१ श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्र० (१२७) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १४५९ वर्षे व्यव० खेतसीह पुत्राभ्यां व्यव० सीहा व्यव० सूदा सुश्रावकाभ्यां श्रीशीतलनाथबिंबं पितृपुण्यार्थं का० प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः । (१२८) अजितनाथ- पञ्चतीर्थी: शंखवालीय सा० सादासु श्रावकेन धर्म्मा-कर्म्मा-पवारतादिपुत्रसहितेन श्रीजिनराजसूरिभिः॥ (१२९) पार्श्वनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १४६७ वर्षे ज्येष्ठ वदि पञ्चमी श्रीमालवं । महं। जेसा पुत्र आसा - पूजन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः ॥ १२२. चन्द्रप्रभ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २२८२ १२३. कोटावालों की धर्मशाला, पाटन : भो० पा०, लेखांक १३१ १२४. शान्तिनाथ जी का मंदिर, लींबडीपाड़ा, पाटण : भो० पा०, लेखांक १६२९ १२५. महावीर जिनालय, जोधपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४०; पू० जै०, भाग १, लेखांक ५८३ १२६. चन्द्रप्रभ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २२८३ १२७. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७७० १२८. चन्द्रप्रभ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २२८५ १२९. मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा : प्र० ले० सं०-१, लेखांक १९२ (३०) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४६७ वर्षे माघ सुदि ५ दि० श्रीमाल धांधीया गोत्रे सा० सारंग पु०सा० दोदा भा० संपूरी । पु०सा० मालण सा० ऊदा सा० गला सा० मालण पु० गोपचन्द्र श्रीचन्द्र इत्यादि परिवृताभ्यां सा० ऊदा सा० टालाभ्यां श्रीसुविधिनाथबिं० का० स्वपितृव्य दोदा श्री संसरी पुण्यार्थं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिपट्टे जिनचन्द्रसूरिभिः॥ (१३१) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४६८ वर्षे वैशाख वदि ३ शुक्रे श्रीश्रीमाल ज्ञा० पितृ सहज। मातृ सहजलदे पितृव्य लषमण सुत सहसा श्रेयोर्थं सुत लोलाकेन श्रीशांतिनाथपंचतीर्थी कारिता। प्रतिष्ठिता श्रीसूरिभिः॥ मधुकरान्वये। शुभंभवत् (तु)॥ (१३२ ) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४६८ वर्षे मार्गसिर वदि ११ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय संघ गोवल भार्या माल्हणदे तयोः सुतः महमाइयाकेन श्रीसुमतिनाथस्वामीबिंबं कारापितं श्रीजिनहंसगणिश्रेयोर्थं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः..........."ईज वास्तव्यः (१३३) आदिनाथ-मूलनायकः स्वस्ति सं० १४६९ वर्षे माघ सुदि ६ रवौ श्रीमालवंशे नावरगोत्रे ठ० ऊहडसंताने श्रीपुत्रमंत्रि करमसि श्रेयोर्थं लघुभ्रातृ ठ० देपालेन भ्रातृव्य ठ० भोजराज ठ० नयणसिंह भार्या माल्हदेसहितेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितः (तं) प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः देवकुलपाटके। ___ (१३४) सम्भवनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४६९ वर्षे माघ सुदि ६ रवौ ऊकेशवंशीय नाहटा हाथिया सुत सा० मेहाश्रावकेण पुत्र गूजरकरमणाभ्यां परिवृतेन श्रीसंभवनाथबिंबं का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिभिः॥ (१३५ ) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १४६९ वर्षे माघ सुदि ६ दिने उकेशवंशे सा० सामंत पुत्रेण सा० लषमणेन पुत्र रतना नरसिंह नयणा भा०............ दादि परिवारसहितेन निजपुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥ १३०, पंचायती मंदिर, लस्कर, ग्वालियरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १४१५ १३१. शान्तिनाथ देरासर, मांडल: प्रा० ले० सं०, लेखांक १०२ १३२. कुमारसिंह हाल, कलकत्ता: पू० जै०, भाग २, लेखांक २०१० १३३. ऋषभदेवजी का मंदिर, देवकुलपाटक : देवकुलपाटक- विजयधर्मसूरि, लेखांक १२; प्रा० ले० सं०, लेखांक १०४; पू० जै०, भाग २, लेखांक १९९३ १३४. शांतिनाथ का मंदिर, कड़ा शाह का पाड़ा, पाटन : भो० पा०, लेखांक १५५ १३५. मथियान मोहल्ले का मन्दिर, बिहार: पू० जै०, भाग १,लेखांक २१२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (३१) For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३६) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४६९ वर्षे माघ सुदि ६ दिने श्रीउकेशवंशे सा० डालू पताकेन श्रीशांतिबिंबं का० प्र० श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः (१३७) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४६९ वर्षे माघ सुदि ६ रवौ मं० कुमरसिंह सुत मं० अर्जुन मं० मांडण श्रावकेन पुत्र जयसिंह ईसर युतेन श्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिगुरुभिः॥ (१३८) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४६९ वर्षे माघ सुदि ६ दिने औप................."कुसल पुत्र सा० देवराज सुश्रावकेण पुत्र राणा डूंगर सहितेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥ (१३९) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४६९ वर्षे माघ सुदि ६ दिने श्रेष्टिज्ञातीय सा० जाल्हण पुत्र सा० कुनचंद्रेण श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनचंद्रसूरिभिः (१४०) महावीर-पञ्चतीर्थीः ॐ ॥ सं० १४६९ वर्षे माघसुदि ६ दिने ऊकेशवंशे दा० आसला सुत फमणेन भ्रा० साल्हाकुसला-उद्धरणयुतेन श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे जिनवर्द्धनसूरिभिः ।। (१४१) जिनराजसूरिमूर्तिः संवत् १४६९ वर्षे माघ सुदि ६ दिने ऊकेशवंशे सा० सोषासंताने सा० सुहडा पुत्रेण सा० नान्हाकेन पुत्र वीरमादिपरिवारयुतेन श्रीजिनराजसूरिमूर्तिः कारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः। (१४२) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४६९ वर्षे ऊकेशवंशे नवलखागोत्रे सा० सायर श्रावकेण स्वपुणयार्थं श्रीआदिनाथबिंब कारितं प्रति। खरतर० श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः १३६. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ६४८ १३७. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ६४७ १३८. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०-१, लेखांक १९७ १३९. आदिनाथ जिनालय, लूणकरणसर : ना० बी०, लेखांक २४९६ १४०. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २२८७ १४१. आदिनाथ मंदिर देलवाड़ा (उदयपुर): प्रा० ले० सं०,लेखांक १०५; पू० जै०, भाग २, लेखांक १९९६; देवकुलपाटक विजयधर्मसूरि, लेखांक १६ १४२. पंचायती मंदिर, जयपुरः प्रतिष्ठा लेख संग्रह-१, लेखांक २००; पू० जै०, भाग २, लेखांक ११३९ (३२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४३) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सम्वत् १४६९ वर्षे उकेशवंशे सा० खेता-सन्ताने सा० नूना पुत्र नाह सुत्रण (?) भा० गोरलकेन भ्रातृ वाछा पुत्र नाला देपु युतेन श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः खरतरगच्छे । (१४४) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४६९ वर्षे ........................"दि ३ साह सहदे पुत्रेण सा० तोल्हाकेन पुत्र................. श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः। (१४५) मेरुनंदनोपाध्यायमूर्तिः सं० १४६९ वर्षे सा० रामदेवभार्यया श्रीमेलादेश्राविकया स्वभ्रातृस्नेहलया श्रीजिनदेवसूरिशिष्याणां श्रीमेरुनंदनोपाध्यायानां मूर्तिः कारिता। प्रतिष्ठिता श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥ (१४६) शिलालेखः (१) ॥ ॐ ॥ नमः श्रीपार्श्वनाथाय सर्वकल्याणकारिणे। अर्हते जितरागाय सर्वज्ञाय महात्मने ॥ १॥ विज्ञानदूतेन निवेदिताया मुक्तयंगनाया विरहादिवात्र । रात्रिंदिवं यो विगत प्रमी(२) लो विघ्नापनोदं स तनोतु पार्श्वः॥ २॥ समस्ति शस्तं परमर्द्धिपात्रं परं पुरं जेसलमेरुनाम। यदाह सर्वस्वमिव क्षमायाः कुलांगनाया इव सौवकांतं ॥ ३॥ तत्राभूवनखंडा यदुकुल(३) कमलोल्लासमार्तंडचंड़ा दोडाक्रांतचंडादितनरपतयः पुष्कला भूमिपालाः। येषामद्यापि लोकैः श्रुतिततिपुटकैः पीयते श्र्लोकयूषस्तत्पूर्ण विश्वभांडं कुतुकमिह यतो जा(४) यते नैव रिक्तं ॥ ४॥ तत्र क्रमादभवदुग्रसमग्रतेजाः श्रीक्षेत्रसिंहनरराज इति प्रतीतः। चिच्छेद शात्रवनृपानसिनांजसा यो वज्रेण शैलनिवहानिव वज्रपाणिः॥ ५ ॥ तस्य प्रशस्यौ तन(५) यावभूतां श्रीमूलदेवोथ च रत्नसिंहः। न्यायेन भुंक्तः स्म तथा भुवं यौ यथा पुरा लक्ष्मणरामदेवौ ॥६॥ श्रीरत्नसिंहस्य महीधवस्य बभूव पुत्रो घटसिंहनामा। यः ।। (६) सिंहवन् म्लेच्छगजान् विदार्य बलादलाद्वप्रदरीमरिभ्यः॥ ७॥ सुनंदनत्वाद्विबुधैर्नुतत्वाद् गोरक्षणाच् श्रीदसमाश्रितत्वात् श्रीमूलराजक्षितिपालसूनुर्यथार्थ(७) नामाजनि देवराजः॥ ८॥ तदंगजो निर्भयचित्तवृत्तिः परैरधृष्यप्रगुणानुवृत्तिः। पराक्रमक्रांतपरद्विपेंद्र: श्रीकेहरि: केशरिणा समोभूत् ॥ ९॥ तस्यास्ति सूनुः (८) स्वगुणैरनूनः श्रीलक्ष्मणाख्यः क्षितिपालमुख्यः। राज्ञोपि यस्यातिविसारितेजश्चित्रं न्यकार्षीद्रविबिंबलक्ष्मीं॥ १०॥ शत्रुघ्नबंधुरिह सन्नपि लक्ष्मणोपि रा(९) माभिधानजिनभक्तिपरायणोपि। एतत् कुतूहलमहो मनसाप्यसौ यन्नापीडयन्निविडपुण्यजनान् कदाचित् ॥११॥ तथा सुमित्रामितनंददायी न दीनबंधे निरतोव १४३. ऋषभदेवजिनालय, भैंसरोडगढ़ : प्रतिष्ठा लेख संग्रह-१, लेखांक २०१ १४४. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ६५२ १४५. ऋषभदेव जी का मंदिर, देलवाड़ा : देवकुलपाटक-विजयधर्मसूरि, लेखांक १७; प्रा० ले० सं०,लेखांक १०७; पू० जै०, भाग २, लेखांक १९९७ १४६. पार्श्वनाथ मन्दिर, जैसलमेर: पू० जै० भाग-३, लेखांक २११२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (३३) For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) तीर्णः । पुनः प्रजां पालयितुं किलायं श्रीलक्ष्मणो लक्ष्मणदेव एव ॥ १२ ॥ यद्गुणैर्गुफिता भाति नवीनेयं यशः पटी । व्याप्नोत्येकापि यद्विश्व न मालिन्यं कदाप्य 1 (११) धात् ॥ १३ ॥ गांभीर्यवत्वात्परमोदकत्वाद्दधार यः सागरचंद्रलक्ष्मीं । युक्तं स भेजे तदिदं कृतज्ञ: सूरीश्वरान् सागरचंद्रपादान् ॥ १४ ॥ प्रासाददेवालयधर्म्मशालामठाद्यमेयं सुकृतास्प(१२) दं तु । सार्द्धं कुलेनोद्धृतमार्यलोकैर्यत्रावनिं शासति भूमिपाले ॥ १५ ॥ इतश्च । चांद्रे कुले यतींद्र : श्रीमज्जिनदत्तसूरिराराध्यः । तस्यान्वयशृंगारः समजनि जिनकुशलगुरुसा (१३) र: ॥ १६ ॥ जिनपद्मसूरिजिनलब्धिसूरिजिनचंद्रसूरयो जाताः । समुद्वैयरुरिह गच्छे जिनोदया मोदयागुरवः ॥ १७ ॥ तदासनांभोरुहराजहंसः श्रीसाधुलोकाग्रशिरोवतंसः । नम (१४) स्तमस्तोमनिरासहंसो बभूव सूरिर्जिनराजराजः ॥ १८ ॥ क्रूरग्रहैरनाक्रांतः सदा सर्वकलान्वितः । नवीनरजनीनाथो नालीकस्य प्रकाशकः ॥ १९ ॥ तस्य श्रीजिनराजसूरिसुगुरो (१५) रादेशतः सर्वतो राज्ये लक्ष्मणभूपतेर्विजयिनि प्राप्तप्रतिष्ठोदये । अर्हद्धर्म्मधुरंधु(ध)रः खरतरः श्रीसंघभट्टारकः प्रासादं जिनपुंगवस्य विशदं प्रारब्धवान् श्रीपदं ॥ २० ॥ (१६) नवेषुवार्द्धन्दुमितेथ वर्षे निदेशतः श्रीजिनराजसूरे: । अस्थापयन् गर्भगृहेत्र बिंबं मुनीश्वराः सागरचंद्रसाराः॥ २१॥ ये चक्रुर्मुनिपा विहारममलं श्रीपूर्वदेशे पुरा ये (१७) गच्छं च समुन्नतौ खरतरं संप्रापयन् सर्वतः । मिथ्यावादवदावदद्विपकुले यैः सिंहलीलायितं येषां चंद्रकलाकलान् गुणगणान् स्तोतुं क्षमः कोथवा ॥ २२ ॥ तेषां श्री जिनव (१८) र्द्धनाभिधगणाधीशां समादेशतः श्रीसंघो गुरुभक्तियुक्तिनलिनीलीलन्मरालोपमः । संपूर्णी कृतवानमुं खरतरप्रासादचूडामणिं त्रिद्वीपांबुधियामिनीपति (१९) मिते संवत्सरे विक्रमात् ॥ २३ ॥ अंकतोपि संवत् १४७३ । वर्ण्यं तन्नगरं जिनेशभवनं यत्रेदमालोक्यते सश्लाध्यः कृतिनां महीपतिरिदं राज्ये य (२०) दीयेजनि । येनेदं निरमायि सौवविभवैर्धन्यः स संघः क्षितौ तेभ्यो धन्यतरास्तु ते सुकृतिनः पश्यंति येदः सदा ॥ २४ ॥ श्रीलक्ष्मणविहारोयमि (२१) ति ख्यातो जिनालयः । श्रीनंदीवर्द्धमानश्च वास्तुविद्यानुसारतः ॥ २५ ॥ यावद् गगनश्रृंगारौ सूर्यचंद्रौ विराजतः । तावदापूज्यमानोयं प्रासादो नं (२२) दताश्चिरं ॥ २६ ॥ प्रशस्तिर्विहिता चेयं कीर्त्तिराजेन साधुना । धन्नाकेन समुत्कीर्णा सूत्रधारेण सा मुदा ॥ २७ ॥ शोधिता वा० जयसागरगणिना श्री । (१४७ ) शिलालेखः (१) ॥ जगदभिमतफलवितरणविधिना निरवधिगुणेन यशसा च । यः पूरितविश्वासः स कोपि भगवा(२) न् जिनो जयति ॥ १ ॥ मनोभीष्टार्थसिद्ध्यर्थं कृतुनम्यनमस्कृतिः । प्रशस्तिमथ वक्ष्येहं प्रतिष्ठादिमह : (३) कृतां ॥ २॥ ऊकेशवंशे विशदप्रशंसे रंकान्वये श्रेष्ठिकुलप्रदीपौ । श्रीजाषदेवः पुनरासदेवस्तज्जाष(४) देवोद्भवझांवटोभूत्॥ ३ ॥ विश्वत्रयी विश्रुतनामधेयस्तदंगजो धांधलनामधेयः । ततोपि च द्वौ तनयाव(५) भूता: (तां) गजूस्तथान्यः किल भीमसिंहः ॥ ४ ॥ सुतौ गजूजौ गणदेव - मोषदेवौ च तत्र प्रथमस्य जाताः । १४७. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, जैसलमेर : पू० जै०, लेखांक २११३ (३४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) मेघस्तथा जेसल-मोहणौ च वेडूरितीमे तनया नयाढ्याः ॥ ५ ॥ तन्मध्ये जेशलस्यासन् विशिष्टाः (७) सूनवस्त्रयः । आंब: प्राच्चोपरो जींदो मूलराजस्तृतीयकः ॥ ६ ॥ तत्र श्रीजिनोदयसूरिप्रवरादेशसलिलेशके(८) शव: संवत् १४२५ वर्षे श्रीदेवराजपुरकृतसविस्तरतीर्थयात्रोत्सवस्तथा संवत् १४२७ वर्षे श्रीजिनोदयसूरि(९) संसूत्रितप्रतिष्ठोत्सवांभोदोदकपल्लवितकमनीयकीर्त्तिवल्लीवलयः सं० १४३६ वर्षे श्रीजिनराजसूरिसदु(१०) पदेशमकरंदमापीय संजातसंघपतिपदवीको राजहंस इव सं० आंबाक: श्रीशत्रुंजयोज्जयंताचलादि(११) तीर्थमानसरो यात्रां चकृवान् । तथा मोहणस्य पुनः पुत्राः कीहट: पासदत्तकः । देल्हो धन्नश्च चत्वारश्च(१२) तुर्वर्गा इवांगिनः॥ १ ॥ शिवराजो महीराजो जातावाम्रसुतावुभौ । मूलराजभवश्चास्ति सहस्रराजनामकः (१३) ॥ २ ॥ तथा तत्र श्री जिनराजसूरिसदाज्ञासरसीहंसेन संवत् १४४९ वर्षे श्री शत्रुंजयगिरिनारतीर्थयात्रानिरमा(१४) पि सं० कीहटेनेति । धामा कान्हा जगन्मल्ला इत्येते कीहटांगजाः । वीरदत्तश्च विमलदत्त - कर्मण हेमकाः ॥ १ ॥ ठा (१५) कुरसिंह इत्येते पासदत्तसुता मताः ॥ २ ॥ देल्हजौ साधुजीवंदकुंपौ धन्नांगजाः पुनः। जगपालस्तथा नाथूरमर (१६) श्चेति विश्रुताः ॥ ३ ॥ तथा ॥ भीमसिंहस्य पुत्रोभूल्लाषणस्तस्य मम्मणः । जयसिंहो नरसिंहो माम्मणी श्रेष्ठिना (१७) वुभौ ॥ ४॥ तत्र स्तो जयसिंहस्य रूपाघिल्हाभिधौ सुतौ । नारसिंही पुनर्भोजो हरिराजश्च राजतः॥ ५ ॥ इत्थं पुरु (१८) षरत्नौघाकुलं श्रेष्ठिकुलं कलौ । जयत्यधर्मविच्छेदि निःकलंकमदः कलं ॥ १६ ॥ इतश्च । श्रीवीरतीर्थे श्रीसु (१९) धर्मस्वामिवंशे युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूर्यन्वये । श्रीजिनकुशलसूरि-श्रीजिनपद्मसूरि-श्रीजिनलब्धिसू(२०) रि-श्रीजिनचंद्रसूरि-श्रीजिनोदयसूरयो जाताः । तत्पट्टे श्रीजिनराजसूरय उदैषुः। अथ तत्पट्टे श्रीखरत(२१) रगणश्रृंगारसाराः कृत श्रीपूर्वदेशविहारा: श्रीजिनवर्द्धनसूरयो जयंति । अथ श्रीजेशलमेरौ श्रीलक्ष्म(२२) णराजराज्ये विजयिनि सं० १४७३ वर्षे चैत्रसुदि १५ दिने तै: श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः प्रागुक्तान्वयास्ते (२३) श्रेष्ठिधना जयसिंहनरसिंहधामा: समुदायकारितप्रासादप्रतिष्ठया सह जिनबिंबप्रतिष्ठां कारितवं(२४) त इति। वा० जयसागरगणिविरचिता प्रशस्तिरियमुत्कीर्णा सूत्रधार - हापाकेनेति नंदतात्॥ पुण्यार्थं (१४८) परिकर - लेख : सं० १४७३ वर्षे चैत्र सुदि १५ दिने साधुशाखीय सा० ''देवबिंब कारितं प्रतिष्ठितं ( १४९ ) अजितनाथ: सं० १४७३ वर्षे चैत्र सु० १५ वा० सता पुत्र पांचाकेन पुत्र सिवराज - महिराजादियुतेन श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतर श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः ॥ १४८. पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६५८ १४९. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २२८९ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: 'सा० जइरा मातृ रामी 'श्रीजिनवर्द्धन 1 For Personal & Private Use Only (३५) Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५०) अजितनाथः सं० १४७३ वर्षे चैत्र सुदि पूर्णिमादिने सो० जीबिंद सो० कूपाश्रावकाभ्यां श्रीअजितनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः ।। (१५१) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४७३ वर्षे चैत्र सुदि १५ सो० आंबा होरी पुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतर श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥ ___ (१५२ ) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४७३ वर्षे चैत्र पूर्णिमा वो० दीता पुत्रेण वो० गुणदेवेन पुत्र चउड़ा ईसरादियुतेन श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥ (१५३) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४७३ वर्षे चैत्र सुदि......... ..."साधुशाखायां सा० साहुल पुत्रेण सा० जीहाकेन पुत्र समधरविकान्वितेन श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥' (१५४) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४७३ वर्षे चैत्र सुदि १५ से० पासह" बील्हाकेन श्रीपार्श्वबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥ (१५५) महावीर-पञ्चतीर्थीः ॥ ६०॥ संवत् १४७३ वर्षे चैत्र सुदि १५. श्रीऊकेशवंशे लूणियागोत्रे सा० ठाकुरसी पुत्राभ्यां हेमा-देवाभ्यां श्रीमहावीरबिंबं कारितं । भ्रातृ जेठा पुण्यार्थं प्रतिष्ठितं खरतर श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥ (१५६) जिनमातृपट्टः (१) ॥ ॐ ॥ संवत् १४७३ वर्षे चैत्र सुदि १५ दिने ऊकेशवंशे डागा भोजा पुत्रेण सा० मेहाकेन स्वभार्या सलषण पुण्यार्थं ॥ (२) श्रीचतुर्विंशति-तीर्थंकर-मातृ पट्टिकाकारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छालंकार-श्रीजिनराज(३) सूरिपट्टालंकरणैः श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥ भाग्यभूरि-प्रभावपूरिभिः॥ १५०. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २२८८ १५१. चन्द्रप्रभ जिनालय, बेगानियों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १६५० १५२. वृहत्खरतर गच्छ का उपाश्रय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४७९ १५३. आदीश्वर जी का देहरासर, वसावाडा, पाटण : भो० पा०, लेखांक १६७ १५४. सवाई हिम्मतराम जी का मंदिर, अमरसागर, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५३८ १५५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ६६५ १५६. महावीर जिनालय, जैसलमेर : पू० जै, भाग ३, लेखांक २४३२; पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६२६ (३६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५७) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४७३ वर्षे वैशाख वदि १ उपकेशवंशे श्रे० छाडा पुत्र श्रेष्ठि केल्हाकेन कुमारपाल देपालादियुतेन श्रीशांतिनाथबिंबं स्वपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥ (१५८) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४७३ वर्षे वैशाख वदि १ दिने उपकेशवंशे श्रे० पछाडा पुत्र श्रे० केल्हाकेन कुंउरपाल दे(व) पालादियुतेन श्रीशांतिनाथबिंबं स्वपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥ __ (१५९) चतुर्विंशतिजिनपट्टः ॥ ॐ ॥ संवत् १४७३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ४ गुरुवारे सा० आंबा पुत्र सा० वीराकेन स्वमातृ आंबा श्राविका स्वपुण्यार्थं ॥ श्री चतुर्विंशति-जिनपट्टक: कारितः श्रीखरतरगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः॥ (१६०) शान्तिनाथ-चतुर्विंशतिः १॥९० ॥ संवत् १४७३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ४ गुरुवारे ऊकेशवंशे साहूशाख मंत्री आजल सुत सेळ सायर सांगा सठर सादूल परिवारे नवकेण सुपुण्या)...................'श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः। (१६१) पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः ॥ सं० १४७३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ लीटा गोत्रे० सा० कूगंडीपुत्रेण कालू श्रावकेण श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजि (१६२) अजितनाथः ____सं० १४७३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि........................ गोत्रे सा० कालू हांसू वस्तु भोजा श्रावकैः श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनक (१६३) सम्भवनाथ-परिकरः सं० १४७३ वर्षे श्रीजिनभद्रसूरिप्रतिष्ठितं श्रीसंभवपरिकरः सा० पारस सुश्रावकेण निज मातृ................दे पुण्यार्थं । १५७. ऋषभदेव जिनालय, हीरावाडी, नागोर : पु० जै०, भाग २, लेखांक १२३८ १५८. बड़ा मंदिर, नागोर : प्रतिष्ठा लेख संग्रह-१, लेखांक २०८ १५९. ऋषभदेव जिनालय, देलवाड़ा, : पू० जै०, भाग २, लेखांक १९९५; प्रा० ले० सं०, लेखांक ११२; देवकुलपाटक-विजयधर्मसूरि, लेखांक १५ १६०. गाजियाबाद: भँवर० (अप्रका०), क्रमांक १ १६१. आदीश्वर मंदिर, कुसुम्बवाड, दोशीवाड़ा पोल, अहमदाबादः परीख और शेलेट-JIIA.No.-89 १६२. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ४६ १६३. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६३३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (३७)) For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६४ ) द्वार लेख: संवत् १४७४ वर्षे श्रावणमासे शुक्लपक्षे तिथि पंचमी वार शनौ षरतरपषे भं० लूणासंताने भं० दूला हापलसंताने भं० मूलापुत्र भीमा हीरुण वाल्हण म० हीरा | ( १६५ ) पार्श्वनाथ: ॥ ९० ॥ संवत् १४७५ ज्येष्ठ सुदि ७ गुरुवारे श्रीमालज्ञातीय मंत्री 'णूंप्रासुत नंदिगेस । सुत पुत्र सा० आसासुश्रावकेण श्रीपार्श्वनाथबिंबं स्वपुण्यार्थे (र्थं) कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः प्रतिष्ठितं॥ ( १६६ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १४७६ वर्षे माघ वदि ११ तिथौ श्रीमालान्वये ढोरगोत्रे सा० तोल्हा तद्भार्या आ० माणी तत् पुत्र सा० महराज श्रीशांतिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे भ० श्री जिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (१६७) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी : ( सपरिकर ) ॥ सं० १४७७ वर्षे माघ सुदि ६ गुरौ काणागोत्रे ठाकुर समरसिंहेन उदयसिंहयुतेन स्वपितृ ठाकुर अमरसिंह पुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिभिः ॥ शुभं भवतु पूजकस्य मंगलमस्तु ॥ श्री ॥ ( १६८ ) शान्तिनाथ पञ्चतीर्थी : ( सपरिकर ) सं० १४७७ वर्षे माघ सुदि ६ गुरौ काणागोत्रे व० समरसीहेन पु० पहिराजसुतेन पितृव्य पुण्यार्थं श्रीशांतिनाथ प्रतिष्ठितं परतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ ० ॥ ( १६९ ) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: सं० १४७८ वर्षे वैशाख सुदि ३ शुक्रे उसिवाल ज्ञातीय लोढा गोत्रे सा० डाहा भार्या गेलाही पु०स० खल्ह भार्या खेताही पु० वीरधवल निमित्तं लघु भात्रि सा० वीरदेवेण श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं रुद्रपल्लीयगच्छे भट्टारिक श्रीहर्षसुन्दरसूरिभिः ( १७० ) अम्बिका - मूर्ति: संवत् १४७८ वर्षे बुथड़ा गोत्रीय सा० भीमड़ पुत्र सा० समरा श्रावक रा पुत्र दवा दद सहितेन श्री अंबिकामूर्त्तिः कारिताः प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः । १६४. देहरी क्रमांक १७ के दरवाजे के ऊपर लेख : अ० प्र० जै० ले० सं०, भाग ५, लेखांक १२५ १६५. ऋषभदेव जी का मंदिर, देवकुलपाटक : देवकुलपाटक- विजयधर्मसूरि, लेखांक ७; पार्श्वनाथ देरासर, देलवाड़ा : प्रा० ले० सं०, लेखांक ११५; पू० जै०, भाग २, लेखांक १९८७ लेखांक १२०६ १६६. आदिनाथ का नया मंदिर, जयपुर: पू० जै०, भाग २, १६७. संभवनाथ मंदिर, मोतीपोल, अहमदाबाद : पारीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक ९७ १६८. संभवनाथ मंदिर, कामेश्वरपोल, अहमदाबाद : पारीख और शेलट; जै० इ० इ०अ०, लेखांक ९६ १६९. शांतिनाथजी का मंदिर, हनुमानगढ़ : ना० बी०, लेखांक २५३५ लेखांक १७६८ १७०. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, (३८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७१) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४७९ वर्षे भा० सु० ४ काकसवंशे वोहराशाखीय सा० राणिंगसिंघ पुत्र गांगा भा० महंघलदे सुत सांवलाकेन पुत्र वस्ता तेजा सहितेन भा० खेतलदे वल्लालदे श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ ___(१७२ ) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४७९ वर्षे माघ सुदि ४ दिने श्रीऊकेशवंशे मंत्रि पदमा पुत्र मंत्रि जिणा पुत्र मं० वरजांगसुश्रावकेण भ्रातृ समरसिंहप्रमुखपरिवारसहितेन श्रीआदिनाथबिंबं निजपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (१७३ ) सम्भवनाथः ___ सं० १४७९ वर्षे माघ सुदि ४ दिने श्रीसम्भवनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रे० सामल पुत्र आदा.............................. स्वमातृ हेमादे पु० का० । (१७४) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १४७९ वर्षे माघ सुदि ४ शुक्रे ओसवालज्ञातौ भण० सा० झाझण सुत सा० सामलेन पुत्र सऊंद्रा(?) साजण-समरा-सहसा-समधर-सांगा-पौत्र सा० पासिवा(?) भोजा-सोनानायकादिपरिवारसहितेनात्मपुण्यार्थं श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (१७५) नेमिनाथः संवत् १४७९ वर्षे माघ सुदि ४ श्रीऊकेशवंशे सा० ताल्हण पुत्र सा० भोजा पुत्र सा० वणरा सहितेन सा० वछाकेन भ्रातृ कर्मा पुत्र हासा धन्ना सहसा परिवृत्तेन स्वपुण्यार्थं श्रीनेमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः। (१७६) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः • संवत् १४७९ वर्षे माघ सुदि ४ दिने श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः कारितं दा० सा० सादा पुत्र वरसिंहयुतेन (१७७) महावीर-पञ्चतीर्थीः सं० १४७९ वर्षे माघ सुदि ४ दिने धरणा पुत्र संग्राम समरासिंघ श्रावकः श्रीमहावीरबिंबं पुण्यार्थं कारिते प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः। १७१. आदिनाथ चैत्य, थराद : जै० प्र० ले० सं०, लेखांक ६६ १७२. शान्तिनाथ देरासर, वीसनगर : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५२० १७३. भण्डारस्थ प्रतिमा, शांतिनाथ जिनालय, नाकोड़ा : ना० पा० ती०, लेखांक १४ १७४. भीड़ भंजन पार्श्वनाथ जिनालय, पाटण : भो० पा०, लेखांक १९३ १७५. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८१५ १७६. अखयसिंह का देरासर, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४६७ १७७. नवघरे का मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली : पू० जै० भाग १, लेखांक ४६५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (३९) For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७८) आदिनाथ-परिकरः (क) ॥६०॥ संवत् १४७९ वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरि-पट्टालंकार-भट्टारक श्रीश्रीजिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितम्। डागा । सा० आल्हा कारित श्रीआदिनाथस्य परिकर (ख) श्रीजिनभद्रसूरिराजोपदेशात् डा० सा० मोहण पुत्र सा० नाथू सा० देवाभ्यां सा० कन्ना सुत सा० नग्गा सा० नाल्हा चाचा सा० मंडलिक पुत्र काजा सा० कूड़ा पुत्र सा० वीदा जिणदास भादा प्रभृतिश्राद्धैः । (१७९) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४८० वर्षे वैशाख सु० ३ उपकेशज्ञातौ दूगड़गोत्रे सा० रूपा भा० मोहिलहि पु० वीरधवलेन स्वभार्या वामहि श्रे० श्रीआदिनाथबिंबं का० प्र० श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे श्रीहर्षसुंदरसूरिभिः॥ (१८०) चतुर्विंशतिपट्टः सं० १४८० वर्षे फागुण व० १० बुधे उप०ज्ञा० भं० मंडलिक भार्या माल्हणदे पुत्र ऊदा नींबा आका झांझण नींबा भार्या तारादे पुत्र सहसाकेन भार्या कपूरदे पुत्र देदा स० पितृ-पितृव्य-श्रेयसे श्रीचतुर्विं० का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः (१८१) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४८२ वर्षे फा० सु० ३ उकेशवंशीय सा० जैसिंग सुत सामल भार्या सहजलदे सुत सा० जसा भा० जासलदे भ्रातृ देधर भार्या श्रा० संगाई स्वश्रेयोर्थं श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (१८२) देहरी-लेख: संवत् १४८३ वर्षे प्रथमवैशाख शुदि १३ गुरौ श्रीषरतरगच्छ-भट्टारक- श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनवर्द्धनसूरि [उपदेशेन] सा० ईश्वरसुत सा० मूंधराज सा० मेघा मीठडीया साजा भार्या वेजलदे पुत्र चंपु पुत्री गुरी तस्या [ :] द्वौ पुत्रौ सा० मीला सा० सूरीभ्यां देहरीकारापिता आत्मश्रेयसे । (१८३) संवत(त्) १४८३ वर्षे श्रीखरतरगच्छे महंतिआणि बंसे (शे) जवणपुरवास्तव्य ठाकुर मोल्हण पुत्र वीरनाथ श्रीआदिनाथ सदा प्रणमति सपरिवारं॥१॥ ___ (१८४) स्फटिकप्रतिमायाः सिंहासनोपरि ॥६०॥ संवत् १४८४ वर्षे वैसाख वदि पंचमी दिने कूकडागोत्रीय म० पादा पु० सा० महीपाल १७८. पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६२३ १७९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ६९७ १८०. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी, लेखांक ६९८ १८१. शांतिनाथ जिनालय, वोहारन टोला, लखनऊ : पू० जै०, भाग २, लेखांक १५०३ १८२. पार्श्वनाथ मंदिर, जीरावला: देहरी क्रमांक ३४ का लेख : अ० प्र० जै० ले० सं०, भाग ५, लेखांक १५१ १८३. लूणवसही, आबू : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ५; विमलसही, आबू : अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक १७६ १८४. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६९२ (४०) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्पु० सा० . भा० लीली तदंगज सा० वीर - सुश्रावका पुत्र सा० वीरम सा दूल्हा पौत्र कर्मसींहादि परिवारयुतेन बिंबं चारयुतः श्रीप्रासादकारितः प्रतिष्ठितः श्रीखरतर श्रीजिनराजसूरि-पट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (१८५) वासुपूज्य - पञ्चतीर्थी : ॥ ॐ ॥ सं० १४८४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ दिने ऊकेशवंशे भ० मउर भा० मेकमादे सुत भन पुत्र रतना रासणकलाण (?) 'देल्हा प्रमुखपुत्रादियुतेन सपुण्यार्थं कारितं श्रीवासूपज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः । शुभं भवतु । (१८६ ) अजितनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १४८४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १५ दिन श्रीप्राग्वंशे सा० देपा भार्या देऊ पुत्र धरणाकेन भातृ करणा । खेता पुत्र टाला परिवारसहितेन स्वपुण्यार्थं कारितं श्रीअजितबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ (१८७ ) महावीर : ॥ सं० १४८४ वर्षे माघ सुदि ५ दिने भ० भादा भार्या चाहिमदे पुत्र भ० धरमा भार्या सुत कान्हा श्रावकैः पुत्रादिपरिवारसहितैः स्वपुण्यार्थं कारितं श्रीमहावीरबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (१८८ ) वर्धमान - पञ्चतीर्थी : सं० १४८४ वर्षे श्रीश्रीमालवंशे सा० लामा सा० हापा सुश्रावकेण पुत्र आढ़ा सहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीवर्द्धमानबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ (१८९ ) सपरिकर - चन्द्रपभ-पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १४८५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ बुधे श्रीऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा० समरा पु० दोदा भार्या हलहदे पु० सांगा श्रावकेन भा० सूहवदे पुत्र सूरजनादि सहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ ( १९० ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १४८५ वर्षे माघ सुदि खरतरगच्छे जिनराज (? भद्र) सूरिभिः ॥ ( १९१) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १४८६ वर्षे शाके १३५१ वै० व० १० गुरुवारे का०प्र० श्रीजिनवर्धनसूरिभिः ॥ १८५. पार्श्वनाथ जिनालय, लौद्रवा, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५४७ १८६. ऋषभदेव मंदिर, धामनोद : प्रतिष्ठा लेख संग्रह, भाग १, लेखांक २५० १८७. मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २५१ १८८. महावीर जिनालय, माणिकतल्ला, कलकत्ता : पू० जै०, भाग १, लेखांक ११६ १८९. आदिनाथ मंदिर, बाघनपोल, अहमदाबाद: पारख और शेलेट, जै० इ० इ० अ, लेखांक १२५ १९०. शान्तिनाथ जिनालय, लिम्बडी पाड़ा, पाटण : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २७६ १९१. कुन्थुनाथ देरासर, बडनगर : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५७३ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: 'श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं का०प्र० For Personal & Private Use Only श्री आदिनाथबिंबं (४१) Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) (२) (३) 2 ( १९२ ) शिलालेखः ॥ ॐ ॥ संवत् १४८६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ शुक्रे नवलक्षगोत्रे सा० रामदेव भार्या मेलादे श्राविकया निजपुण्यार्थं . श्री आदिनाथप्रासाद कारितं ॥ प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ( १९३) पार्श्वनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १४८६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ शुक्रे उसवालज्ञातीय सा० समरा पुत्र सा० धरणा भा० कुंतादेवि पुत्र मोखणसीह-लखमसीहाभ्यां आत्मश्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारापितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजी (जि) नचंद्रसूरिभिः ॥ ( १९४) महावीरः ॥ ॐ॥ सं० १४८६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ शुक्रे श्रीमालज्ञातीय सा० पदमा सुत गुणराज पुण्यार्थं श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ . ( १९५ ) जिनवर्धनसूरिमूर्तिः संवत् १४८६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ दिने नवलक्षशाखीय सा० रामदेवभार्यया श्रीमेलादेव्या श्रीजिनवर्धनसूरिमूर्त्तिः कारिता प्र० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । ( १९६) द्रोणाचार्यमूर्तिः संवत् १४८६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ सा० रामदेवभार्या मेलादेव्या श्रीद्रोणाचार्यगुरुमूर्त्तिः कारिता प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ( १९७) सपरिकर - चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १४८७ वर्षे आषाढ़ सुदि ५ गुरौ उपकेशज्ञातौ भरहटिगोत्रे सा० झुंत भा० सोमलदे पु० साधु जाल्हाकेन पितृव्य सा० कुया - कुंरसीहयोः भ्रातुः केल्हाकस्य च निमित्तं श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का० प्र० रुद्रपल्लीयगच्छे श्रीजयाणंदसूरिभिः ॥ १९२. पार्श्वनाथ जिनालय, देलवाड़ा, मेवाड़ : पू० जै०, भाग २, लेखांक १९८१ १९३. शांतिनाथ जी का मंदिर, तलशेरिया, पाटण : भो० पा०, लेखांक २३१ १९४. मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २५८ १९५. ऋषभदेव जी का मंदिर, देवकुलपाटक : देवकुलपाटक- विजयधर्मसूरि, लेखांक ११; पार्श्वनाथ जिनालय, देलवाड़ा, मेवाड़ : पू० जै०, भाग २, लेखांक १९६४; प्रा० ले० सं०, लेखांक १३८ १९६. ऋषभदेव जी का मंदिर, देवकुलपाटक : देवकुलपाटक- विजयधर्मसूरि, लेखांक १०, पार्श्वनाथ जिनालय, देलवाड़ा, (मेवाड़) : प्रा० ले० सं०, लेखांक १३९; पू० जै०, भाग २, लेखांक १९६५ १९७. आदिनाथ जिनालय, कुसुमवाड़, दोशीपोल, अहमदाबादः परीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक १३२ ((४२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री......... (१९८) सुमतिनाथः ॐ संवत् १४८७ वर्षे मार्गसिर वदि ३ दिने श्रीसुमतिबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः कारितं सं० सहसा भार्या मसी श्रे० (१९९) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४८७ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ५ सोमे श्रीऊकेशज्ञातौ दूगड़ गोत्रे सा। कृत्त । भार्या तोलियाही नाम्नी० गजसिंहेन भ्रातृ ऊदा श्रेयोर्थं श्रीश्रेयांसजिनबिंबं कारितं प्र० रुद्रपल्लीय श्रीहर्षसुन्दरसूरिपट्टे श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः। (२००) आदिनाथः सं० १४८७ फागुण सुदि बुधे.................................... 'श्रीऋषभजिनबिंबं प्रतिष्ठितं ...खरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ (२०१) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४८८ वर्षे फागुण वदि १ दिने श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्री...... जिनभद्रसूरिगुरुभिः श्रीसुमतिनाथबिंबं का०प्र० श्रीमालवंशे बाहुकटागोत्रे सा० पद्मसंताने सा० जय भा० सौआ सु० माणि...............श्रावकेण मातृ..................." (२०२) नेमिनाथ-पञ्चतीर्थी: : सं० १४८८ फागुण वदि १ दिने श्रीमाल वंशे वैग (? द्य) गोत्रे ठ० नापा भा० वाल्ही तत्पुत्रैः ठ० चांपा वीरा पेढ़ पिउपालै श्रीनेमिबिंबं कारापितं खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिगणधरैः प्रतिष्ठितं ॥ (२०३) पञ्चतीर्थीः सं० १४८८ व० फा० व० १ श्रीमालवंशे..........."गोत्रे ठा० कामा भार्या मानी कारिता.......श्री.........."ज..."राजसूरिपट्टे जिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ __ (२०४) .....नाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४८९ वर्षे आषाढ सु० १ बुधवारे उपकेशन्यातीय श्रीनाह(र)गोत्रे श्री....... भार्या बालू....... नाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः(?) १९८. संभवनाथ जिनालय के नीचे भंडार में रखी मूर्ति, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४३६ १९९. शान्तिमनाथ मंदिर (नाहटों में), बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८३५ २००. संभवनाथ जिनालय, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५२ २०१. सुपार्श्वनाथ जिनालय, झवेरीवाड़, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८७७ २०२. महावीर जिनालय (वैदों का), बीकानेर : ना० बी, लेखांक १२७३ २०३. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर, पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३०३ २०४. महावीर जिनालय, सांगानेर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २७५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०५) सपरिकर-सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ए० ॥ संवत् १४८९ वर्षे माघ सुदि १० ऊकेशवंशे ढींक गोत्रे मंत्रि बदासुत सिवाकेन नाथू धीरा हीरा प्रमुखपरिवारसहितेन पितृमातृश्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ __ (२०६) पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १४८९ वर्षे माघ सु० १० शुक्रे थुल्हागोत्री मंत्रि लखमसीह पु०म० पदमा भा० पदमलदे सुत सा० नोडाश्रावकेण भा० नामलदेकुक्षिजातक पु० हांसामल्ल पौत्र सीधर-श्रीवच्छ-श्रीवंतादिपरिवारसहितेन श्रीपद्मप्रभबिंबं का०प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ __ (२०७) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १४८९ वर्षे माघ सु० १० दिने ऊकेशवंशे सा० जोल्हा पुत्र सा० जयसिंघ पुत्र सा० गुणियाकेन निजपितुः पुण्यार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं का०प्र० च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः । (२०८) महावीर-पञ्चतीर्थी: सं० १४८९ वर्षे माघ सुदि १० शुक्रे ऊकेशवंशे दरडागोत्रे सा० हरिपालसंताने आसा सुत पाल्हाभोटाभ्यां गोविंद रतनपाल हरषराजप्रमुखकुटुंब सहिताभ्यां श्रीमहावीरबिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (२०९) पद्मपभ-पञ्चतीर्थीः ॐ ॥ सं० १४८९ माघ सुदि १३ दिने श्रीऊकेशवंशे सा० सिवा पुत्र पहिराजेन भ्रातृ मेघादियुतेन श्रीपद्मप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (२१०) सुपार्श्वदेवकुलिका संवत् १४८९ फा० शु० ३ दिने ऊकेशज्ञातीय सा० पद्मा भार्या पदमलदे पुत्र गोइद भार्या गउरदे सुत सा० आंबा सा० सांगण सहदेव तन्मध्ये सा० सहदे भार्या पोई पुत्र श्रीधर ईसर पुत्री राजिप्रभृतिकुटुंबयुतेन भ० कान्हाकारितप्रासादे स्वश्रेयोऽर्थं श्रीसुपार्श्वजिनयुतदेवकुलिका कारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छाधीशेन श्रीजिनसागर (२११) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९० वर्षे वैशाख वदि ९ उपकेशज्ञा० कनउजगोत्रे सा० सोना भा० सोनलदे द्विप० पूंजी पु० गांगा भा० धानी श्रीआदिनाथबिंबं का० आत्मश्रे० पुण्या० श्रीखरतरगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीजिनभ २०५. पंच भाई पोल, अहमदाबाद : पारीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक १४१ २०६. गृहदेरासर, वसावडा, पाटण : भो० पा०, लेखांक २४१ २०७. शांतिनाथ जी का देहरासर, वसावाड़ा, पाटण : भो० पा०, लेखांक २४२ २०८. जैन मंदिर, महुवा : प्रा० ले० सं०,लेखांक १४२ २०९. सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २७६ २१०. जैन देरासर, जावर, उदयपुर : प्रा० ले० सं०, लेखांक १४३ २११. पार्श्वनाथ देरासर, जडाउ : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २७७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१२ ) शिलालेख: संवत् १४९१ वर्षे माघ वदि ५ बुधे ऊकेशवंशे नवलखा गोत्रे साधु श्रीरामदेवभार्या मेलादे तत्पुत्र साधु श्रीसहणपाले [न] भार्या नारिंगदे पुत्र रणमल्लादिसहितेन देवकुलपाटके पूर्वाचलगिरौ श्रीशत्रुंजयावतारे मोरनागकुरिका सहिता प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि तत्पट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ (२१३ ) शिलापट्टलेखः (१) सं० १४९१ वर्षे माघ सुदि ५ नवलक्षगोत्रे सा० रामदेव भार्या मेला(२) दे पुत्र सहणपाल भार्या नारिंगदेव्या श्री (३) तिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ "जिनमूर्ति बिंबानि प्र (२१४) शिलालेखः (१) ॥ ॐ ॥ संवत् १४९१ वर्षे माघ सुदि ५ बुधवारे ऊकेशवंशे श्रीनवलखागोत्रे श्रीरामदेव भार्या श्राविका मेलादे पुत्र साधु श्रीसहणपाल भार्यया नारिंगदे श्राविकया पुत्र सा० रणमल्ल सा० रणवीर रणभ्रम सा० कर्मसी पौत्रादि सहितया निजपुण्यार्थं जिनानां (२) श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनवर्धनसूरि तत्पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि तत्पट्टपूर्वाचल श्रीयुत श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ (२१५) मोरनागकुरिका - शिलालेखः संवत् १४९१ वर्षे माघ वदि (? सुदि ) ५ बुधे ऊकेशवंशे नवलखा गावि (गोत्रे) साधु श्रीरामदेव भार्या मेलादे तत्पुत्र साधुश्रीसहणपाले [न] भार्या नारिंगदे पुत्र रणमल्लादिसहितेन देवकुलपाटके पूर्वाचलगिरौ श्रीशत्रुंजयावतारे मोरनागकुरिका सहिता प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनंवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि तत्पट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (२१६ ) अजितनाथ - पञ्चतीर्थी: संवत् १४९१ वर्षे माह सुदि ५ दिने बुधवारे ऊकेशवंशे वलाहीगोत्रे सा० धणसी पुत्र हीरा भार्या हीरादे तत् पुत्र सा० हासाकेन पुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ (२१७) अजितनाथ पञ्चतीर्थी: सं० १४९१ वर्षे माघ सुदि ५ बुधे ओसवंशे पंचाणेचा सा० बस्ता भार्या लीलादे पुत्र ऊमाकेन सपरिवारेण स्वपुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० खरतरग० श्रीजिनसागरसूरिभिः २१२. आदिनाथ जी का मंदिर, खरतरवसही, देवकुलपाटक : देवकुलपाटक, लेखांक १३ लेखांक १९८४ २१३. पार्श्वनाथ जिनालय, देलवाड़ा: पू० जै० भाग २, ले० १९७७ २१४. पार्श्वनाथ जिनालय, देलवाड़ा, मेवाड़ : पू० जै०, भाग २, २१५. आदिनाथ जिनालय, देलवाड़ा (उदयपुर) : प्रा० ले० सं०, लेखांक १५३ २१६. वखत जी की शेरी, पाटन : भो०पा०, लेखांक २५४ २१७. शीतलनाथ जिनालय, उदयपुरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १०७५; प्रा० ले० सं०, लेखांक १५१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : For Personal & Private Use Only (४५) www.jalnelibrary.org Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१८) अजितनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १४९१ वर्षे माघ सुदि ५ बुधे ऊकेशवंशे रांकागोत्रे सा० राणा सुत सा० नगराज भार्या सापू तत्पुत्र सा० नरसा-वरसाभ्यां । निजपुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरिभिः ॥ (२१९) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी : सं० १४९१ वर्षे माघ सुदि ५ बुधे भणसालीगोत्रे उकेशवंशे सा० जयता (नयता) पुण्यार्थं पुत्र सा० जोलाकेन श्रीचंद्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रति० श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ ( २२० ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १४९१ वर्षे माघ सुदि ५ उसवंसे सो० तेजा सु० सो० हेमा भार्या धनाई पुत्र सो० भौतृ स्वपुण्यार्थं श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ (२२१) नमिनाथ पञ्चतीर्थी: ओ सं० १४९१ वर्षे माघ सुदि ५ बुधे श्रीमालवंशे वहगटा गोत्रे सा० ऊदा पुत्र सा० जगकेन आसा जूसा सहसादि पुत्रयुतेन पुण्यार्थं श्रीनमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीज़िनसागरसूरिभिः। ( २२२) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ ॐ ॥ संवत् १४९१ वर्षे माघ सुदि ५ बुधवारे ऊकेशवंशे लोढागोत्रे सा० मोक्षसी भार्या भोली पुत्र सा० पर्वतकेन सपरिवारेण निजपितृपुण्यार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ शुभंभूयात् ॥ छ। ( २२३ ) पार्श्वनाथ: (१) ॥ ॐ ॥ स्वस्ति॥ संवत् १४९१ वर्षे ॥ माघ मासे शुक्लपक्षे पंचम्यां तिथौ बुधवारे श्रीमालज्ञातीय मउठियागोत्रे सा० ठाहन सा० धाना भा० दूल्हा पुत्र सं० हेमराज सं० थिरराज सं० लोलू सं० गइपाल कु (२) 'दे पुत्र सा० हेमराज पुत्र समुद्रपाल भार्या "श्रेयसे श्रीपार्श्वबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनप्रभसूरि अन्वये । श्रीजिनसर्वसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (२२४) पार्श्वनाथ: सं० १४९१ वर्षे माह सुदि ५ बुधे खरतरगच्छे नाग" गणि पार्श्वनाथबिंब I २१८. जूनीआ : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २८५ २१९. कल्याण पार्श्वनाथ देरासर, बीसनगर : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४९९ २२०. अष्टापद जी का मंदिर, पाटण : भो० पा०, लेखांक २५४ २२१. बावन जिनालय, करेड़ा, मेवाड़ : पू०जै०, भाग २, लेखांक १९३२ २२२. ऋषभदेव जिनालय, मालपुरा, प्र० ले० स०, भाग १, लेखांक २८६ २२३. बावन जिनालय, करेड़ा, पू० जै०, भाग २, लेखांक १९५६ २२४. ऋषभदेव जिनालय, देलवाड़ा, मेवाड़, पू० जै०, भाग २, लेखांक २००४ (४६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only 'मुनिचंद्रशिष्य भव्यराज Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२५) पादुका - लेखः संवत् १४९१ वर्षे माघ सुदि ५ दिने बुधे ऊकेशवंशे नवलखागोत्रे साधु श्रीरामदेव भार्या मालादे तत्पुत्र साधु श्रीसहणपालेन भार्या नारिंगदे पुत्र रणमल्लादि सहितेन देवकुलपाटके पूर्वांचलगिरा श्रीशत्रुंजयावतार मोरनागकुरिका सहिता प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि तत्पट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः । (२२६) अम्बिकामूर्तिः सं० १४९१ माघ सुदि ५ बुध ओसवंशे संखवालेचागोत्रे सा० बीका पुत्र भोजाकेन गोत्रदेवी अम्बिका कारिता प्रति० श्रीजिनसागरसूरिभिः । २२७ ) जिनचन्द्रसूरिमूर्तिः संवत् १४९१ वर्षे माह सुदि ५ बुधे नवलक्षगोत्रे सा० सहजपालेण (न) स्वपुण्यार्थे (र्थं) श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरीणां मूर्त्तिः प्र० श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ (२२८) वासुपूज्य - पञ्चतीर्थी : संवत् १४९१ वर्षे माह सुदि ६ बुधे उप० बोहड़ वर्धमानगोत्रे सा० राणा भा० सूहवदे पु० महिपा मोकल श्रेयोर्थं श्रीवासुपूज्य बिंबं कारितं खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरि प्रति० ॥ (२२९) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १४९१ वर्षे फागण वदि ३ दिने मंत्रिदलीयवंशे मडवाड़ाभिधाननात्र सा० रत्नसींह पुत्र सा० खेताकेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनसागरसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे। ( २३० ) अजितनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १४९१ फाल्गुन शु० १२ गुरौ उपकेशज्ञातौ छाजहड़गोत्रे मं० बेगड़ भा० कउतिगदे पु० भुणपालेन भा० हिमादे श्रेयोर्थं श्री अजितनाथबिंबं का । प्र । खरतरगच्छे श्रीजिनधर्मसूरिभिः ॥ शुभं ॥ ( २३१ ) नेमिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १४९२ वर्षे कार्ति० व० १० रवौ श्रीमालज्ञातीय गोत्रि लाडणु वा०सा० पहसज ( ? ) सुत तेजा खरतरगच्छे श्रीकीर्तिराजोपाध्या "श्रीनेमिनाथ २२५. ऋषभदेव जिनालय, देलवाड़ा, मेवाड़ : पू० जै०, भाग २, लेखांक १९९४ २२६. महावीर जिनालय, वैदों का चौक, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १२३१ २२७. ऋषभदेव जी का मंदिर, देवकुलपाटक : देवकुलपाटक, लेखांक ९; पार्श्वनाथ जिनालय, देलवाड़ा, मेवाड़: पू० जै०, भाग २, लेखांक १९८९; प्रा० ले० सं०, लेखांक १५२ २२८. पंचायती मंदिर, लश्कर, ग्वालियर, पू० जै०, भाग २, लेखांक १३६६ २२९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ७५५ २३०. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७४० २३१. मनमोहन जी की शेरी, फोफलिया वाडा, पाटण : भो० पा०, लेखांक २६१ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only ((४७) Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३२) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: सम्वत् १४९२ वर्षे श्रीआदिनाथबिंबं प्रति० खरतरगणे श्रीजिनभद्रसूरिभिः कारितं कांकरिया सा० सोहड भार्या हीरादेवी श्राविकया। (२३३) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १४९२ वर्षे श्रीआदिनाथबिंब प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः कारितं कांकरिया सा० सोहड़ भाऱ्या हीरादेवी श्री."कया। (२३४) सपरिकर-सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ए॥ संवत् १४९२ वर्षे श्रीमालज्ञातीय कादमियागोत्रीय सा० धामा सुत साधारणेन पुत्र वीरपाल जगमाल सहितेन श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्र० श्री खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्र(? भद्र)सूरीणामुपदेशेन । __(२३५) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९२ वर्षे श्रीऊकेशवंशे कांकरीयागोत्रे सा० सोहड भा० हीरादे तत्पुत्रेण साधुतापरेण श्रीपार्श्वनाथमूर्तिः का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः फागुण वदि १० ॥ (२३६) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १४९३ वर्षे माघ सुदि ११ गुरौ उसवंशे बोहड़गोत्रे सा० सामंत पुत्र नाथू सिंघा सांडाकेन माता पूना पुण्यार्थं श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः। (२३७) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९३ वर्षे माघ सुदि १३ उपकेश व्य० मं० मांडण भा० सिरीयादे पु० काजाकेन भा० भलीसहितेन आत्मश्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं का०प्र० श्रीमहूकरगच्छे भ० । श्रीधनप्रभसूरिभिः॥ (२३८) शिलालेखः (१) ॥ ॐ ॥ स्वस्ति श्रीऊकेशवंशे गणधर गो(२) त्रे सा० रत्नसिंहः स्थापितं स्वस्ति श्रीसुपार्श्व(३) नाथ श्रीजिणराजपाटे श्रीजिनभद्रसूरिभिः सर्व(४) लक्षणसंयुक्त राज्यं भवति। ऊकेशवंशे गणधर गो(५) त्रे साह रत्नशाह सुत गजशाह तत्पुत्र सा० नाथू भार्या २३२. गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, पायधुनी, मुम्बई : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ८२ २३३. जैन मंदिर, पटना : पू० जै०, भाग १, लेखांक २७५ ।। २३४. धर्मनाथ का मंदिर, देवसापाड़ा, अहमदाबाद : परीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक १६५; पार्श्वनाथ देरासर, देवसानोपाडो, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०९६ २३५. सीमंधरस्वामी का देरासर, देवसानो पाड़ो, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १ लेखांक ११७६ २३६. बालावसही, शत्रुजय; शत्रुजय वैभव, लेखांक ७६ २३७. पार्श्वनाथ का मंदिर, रोहिडाः अ० प्र० जै० ले० सं०, भाग ५, लेखांक ५७५ २३८. पार्श्वनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर : पू० ना०, भाग ३, लेखांक २११४ (४८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जिनभद्रसूरि जी महाराज सं० १५१८ प्रतिष्ठित शान्तिनाथ मन्दिर, नाकोड़ा sit Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MOMOTIOMOTRAM MORTAINER CHI SC नानावाड़ी, चैनई नानावाडी, केशरवाड़ी (पोलाल), चैबई Festal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T. - KAALAXKAKA KARMA नवरंगपुरा नावाडी, अहमदाबाद नाproPoem पEx USER For Personal & Private Use Only www.ainery.org Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N AMERI FOR al Education Internatione For Personal & Priyale ale on IMiladATHAK सं० १४७३ प्रतिष्ठित, पार्श्वनाथ मन्दिर, जैसलमेर, लेरवांक १४६ लक्ष्मण विहार- पार्श्वनाथ मन्दिर प्रशस्ति Con नम:शिवनापासर्वकाव्याणकारिण(कमीतजित्तरामायसवकाटमदात्मने विज्ञान ते ननिवेदितायाउ तीगनायाविरहादिवा बारादिवंटोविज्ञान प्रमा लोविनावानादसतने उपाय२म मनिशासपर मलिषा परंपुरोठसलमेलनामायदाद सर्वमिवनमायाहअलीगनायाश्वासावकील इतवासवन्नरखेडायडजाल कमालावासमाप्तडवंडादादडाकोतवंडादितनयतप:9 कला मिशालामात्यांमद्यापिालाकः प्रतिततिझटाके वायतरस्माकयूपन्न तरसविश्वलोडऊकमियतोना वातावरि १२३क्रमादनवासमा श्रीक्षेत्रासिंद नरराना निवनीन विवाद सावानानांत मायानाक्षणाशलनिवहा निववतणावमाएतराव शास्योतन । याउनूती श्रीप्रसादावाधवर मिसान्या यननु कस्मतातायायधापुरातहागरामादायोदश्रीरत्नसिंहस्यमदीपदस्पबश्वबाघरसिंहनामााय: सिंदवनालगतानविदार्यवत्तारला हादरामJिIमदन बाहिवाटतवानागार क्षणावग्रीद समाप्रितदाताप्राशलराजक्षितिपालनयाध नामानिदवरातातिदंगातानिर्भयवित्र तिःपारेरणा पिराक्रमकांतपरहिड्त्रीकहासिकशरिणसामावतारतस्यामिश्नः योगरत्न नीलमणारा वितिपालमुराराकापियस्यातिदिसाशितजधिरनाकापडिविविबलदमाश उप्रबं पुरिदसन्नपिल लागो विरा॥ मानिधनमतिपरायणापिएततुऊनहलमाहामनसाया सायनापीडयनिविपुजनानकदाति नातिघासुमिवामितनंददायीनदीनबंध निस्तोत्र ताजानः तापात विउकिलायत्रीलमपो लक्षणादवएव।। श्याण फितानातिन्वीनियात्प्टीयानात्यकापियविधनमालिन्यंकदाण धारामांना विश्वानारमोदकराधारया सागस्वंटलदंगी।युक्तंसान तदिदंशतशःमरीमानसागरवंद्वपादानाप्रासादादवालयधर्मशालामवा धामीसतास्य दंडामाई कालागाह तमायला कार्यावनिशासतिरसिंपाला५तश्चानाडकालयती ब्रामहिनदलहरिराराधमातस्यावयोगारसमजनिर्जिनऊशल गुरुता रः१६ मिनपदाहरिजिनलबिमरिजिनवंदसराया जातामअहेयरुरिगजिनादयामादयाउरवातदासनाला सहराऊदसम्श्रीसाधालाकायशिगवर्तमातम ग्रमन्नो मनिरासदसोबश्वसरिजिनराज गमावर गारनाकांत सदासर्वकलान्वित । नवीनरमनानायोनालीकसारकाशकःगतस्यत्राजिनराज रिजवारा गदे वातहमवतोगतान ट्याण-तपातर्विजयिनिवाशप्रतिरोदयाप्रदीपुरंभुरहरखरतरत्रासघनुहारक घासानिगावसाविशद पारख वानबीपदी॥२०॥ धेशवादी दमितवानाद वाताप्रानि नरामगारापयनगर्न शहबाज बन चराहसागत्वंइसारामाशयेचऊमानपाविहारममलयात्वादशेषराय गचममनातोखरतरंधावयन सर्वतःमियादादवदावदहिपोलायसिंहलालायितायाधडकलाकलानगुएगागा नसाउमाकाथवा ॥२शतोषाजिना हनानिधन एवीसमादेशात वाघोपुर नक्ति यति नलिनीतीलमालोपगहासंपली इतवान से खरतरंजामादसूडामणिविद पालवयामिनीपति मिति रीवत्सरेविकमात्॥२३ अंक तोविसंवत १४ वतन गजिनेवारवनयवेदमालाक्यातस मायनातिनामहीपतिरिदराजोस दाट जनिायेनेदंनिरमाय सौनविनवेनियः ससंघहिातो ते न्योधनातनुतेसह तिना पीपतियेदासदा।।२४ सालझागविहारोयना निख्यातातिनालयात्रीनंदातई मानवासविधान सारतापयावद गगनगारी सूर्यनादो विगऊतातावदापूत्वमा नोट प्रासाटो। दवालिगा२६३३सिलिहितावेटकीतिरादनमा धनाधनाकेनसनकावधारेगसामुदा॥२७शोधिताबा जयसा गगलिनी Dhar Reld Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) धनी तयोः सुत सा० पासड भ्रातृ सचा सुश्रावकेद्भवतिः (७) सा० पासड भार्या प्रेमलदे सुतु(त) जीवंद साह सचा भार्या सिं(८) गारदे नंदन धर्मसिंह जिणदत्त देवसिंह भीमसिंह सपरिवा(९) रेण। संवत् १४९३ वर्षे फागुण वदि प्रतिपदादिने श्रीसुपा(१०) र्श्वनाथबिंबं सुपरिकरविधाय(:) प्रतिष्ठितं पूजनीयार्थे श्री(११) संघसहितेन राज श्रीवयरशहूराज्ये स्थापितं (१२) श्रीसंघसमुदाय: पूज्यमानं चिरं (१३) नंदयतिः (२३९) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९३ वर्षे फागुण वदि १ दिने उकेशवंशे नवलक्षशाखायां सा० पाल्हा पुत्र सा० पीचाफमणश्रावकाभ्यां श्रीआदिनाथबिंबं का०, प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसरिभिः। (२४० ) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १४९३ वर्षे फा० व०. १ दिने ऊकेशवंशे लूंकड़गोत्रीय सा० लींबा सुत आंबाकेन शोभा मंडलीक रूपसी वयरसीह महिरावणादि कुटुंबसहितेन निजपितृपुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ __ (२४१) आदिनाथ-पंञ्चतीर्थीः __ ९०॥ सं० १४९३ वर्षे फाल्गुन वदि १ बुधे ऊकेशवंशे श्रेष्ठिगोत्रे श्रे० मम्मणसंताने श्रे० नरसिंह भार्या धीरिणिः। तयोः पुत्र भोजा हरिराज सहसकरण सूरा महीपति पौत्र गोधा इत्यादि कुटुंबं ॥ तत्र श्रे० हरिराजेन आत्मनस्तथा भार्या मेघु श्राविकायाः पुत्री कामण काई-प्रभृतिसंततिसहिताया स्व श्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं कारितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितम् ॥ (२४२) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९३ व० फागु० वदि १ ऊकेशवंशे श्रे० सोनाभर पुत्र श्रे० ईसर-जावडाभ्यां श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ रांकागोत्रे ।। (२४३) सपरिकर-पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १४९३ वर्षे फाल्गुन वदि १ दिने श्रीऊकेशवंशे मंत्रि मूंजासुत मं० जगा तत्सुत मं० धाभार्या भरमादे तयोः पुत्रो मं० शिवा सुश्रावकः स्वपुत्र धनपति-हर्षराजप्रमुखपरिवारसहितः स्वभार्या मं० वरणू श्राविका श्रेयोर्थं श्रीपद्मप्रभबिंबं कारयामास श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरि गुरुवशविधिवत्प्रत्यतिष्ठत । श्रेयोस्तु॥ २३९. आदिनाथ चैत्य, थराद : जै० प्र० ले० सं०, लेखांक ७३ २४०. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ७७१ २४१. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटो में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४३७ २४२. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१८० २४३. पद्मप्रभ मंदिर, तालियापोल, अहमदाबाद; परीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक १६७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (४९) For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४४) पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थीः ॥६०॥ संवत् १४९३ वर्ष फा० वदि १ दिने ऊकेशवंशे लूणियाशाखायां जेठा पु० सा० पोमाकेन श्रीपद्मप्रभबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः। शुभमस्तुः॥ (२४५) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १४९३ वर्षे फा० व० १ श्रीऊकेशवंशे वहरागोत्रे सोमण सुत धणसा श्रेयोर्थं श्रीश्रेयांसबिंब कारितं । प्रति श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः (२४६) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९३ वर्षे फा० व० १ दिने श्रीऊकेशवंशे बहरागोत्रे सोमण सुत धनसा श्रेयोर्थं श्रीश्रेयांसबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (२४७) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४९३ वर्षे फाल्गुन वदि १ बुधवारे श्रीविमलनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टालङ्कार श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ ऊकेशवंशे डागागोत्रे सा० महणासन्ताने सा० कुंउरपाल पुत्र सा० सादा सुश्रावकेण पुत्र वरसिंघ तत्पुत्र मेघराजसहितेन द्वितीयपुत्र महिपाल जननी-जनक-पुण्यार्थं कारितं ॥ श्रीः॥ (२४८) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४९३ वर्षे फागुण वदि १ दिने ऊकेशवंसे रांका गोत्रे श्रे० धीरा पुत्र श्रे० लाखाकेन तत्पुत्र देल्हा तेजा जिणदत्त गुणदत्त परिवार युतेन स्वपुण्यार्थ श्रीशांतिनाथबिंब कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजयेन्द्र(? जिनभद्र)सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (२४९) महावीर-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ सं० १४९३ वर्षे फागुण वदि १ दिने श्रीवीरबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः उकेशवंशे सा० बाहड पुत्र पूंजाकेन कारितं॥ (२५०) सागरचन्द्रसूरिमूर्तिः ॐ संवत् १४९३ वर्षे फाल्गुण वदि १ दिने श्रीसागरचंद्राचार्यमूर्ति प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ऊकेशवंशे घु............... गोत्रे सा० ....................."पुत्र सा० राखी॥ २४४. पार्श्वनाथ जिनालय, सरदारशहर : ना० बी०, लेखांक २३८५ २४५. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७६९ २४६. शीतलनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३९२ २४७. सेठ जी का घर देरासर, कोटा :प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३०० २४८. चन्द्रप्रभजी का मंदिर, गांधी चौक, बाड़मेर : बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १७४ २४९. बड़ामंदिर, नागोर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २९८; पू० जै०, भाग २, लेखांक १२४४ २५०. पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१३८ (५०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५१ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: ६० ॥ सं० १४९३ वर्षे फा० व० १३ उपकेशवंशे दरडा दाहड़ सुत सा० डामर पुत्र दरड़ा कुसला द० कीहनाभ्यां सपरिवाराभ्यां आत्मश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं खरतर श्रीजिनभद्रसूरिभिः (२५२ ) परिकरलेख: सं० १४९३ वर्षे श्री खरतरगच्छे जिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितं श्रीनमिनाथसिंहासनकारितं चो०सं० सिवराज सा० महिराज सा० लोल सा० लाखणाद्यैः । (२५३ ) नेमिनाथ पञ्चतीर्थी : सं० १४९४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० भौमे उ० ज्ञातीय पाल्हाउतगोत्रे भा० जगसीह पु० झांझण भा० झांझी पुत्र धणराज भा० धण्णा पु० नगराज वाच्छा बींजा सहितेन पित्रो श्रे० श्रीनेमिनाथबिं० का० प्र० रुद्रपल्लीयगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ १ ॥ (२५४) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १४९४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ बुधे श्रीमालवंशे वैद्यगोत्रे सा० हाला भार्या ऊदी पुत्र सा० भीमान स्वपुण्यार्थं श्रीपद्मप्रभबिंबं का०प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ (२५५ ) स्तम्भलेखः श्रीमन्नाभिसुतो भूयात् सर्व्वकल्याणदः सदा। चारुचीमाकरज्योतिः श्रिये श्रेयस्करः सदा ॥ १ ॥ संवत् १४९४ वर्षे पौष सुदि २ रवौ । श्रीखरतरगच्छे श्रीपूज्य श्रीजिनसागरसूरि गच्छनायकसमादेशेन निरंतरं श्रीविवेकहंसोपाध्यायाः पं० लक्ष्मीसागरगणि जयकीर्तिमुनि रत्नलाभमुनि देवसमुद्रक्षुल्लक धर्मसमुद्रक्षुल्लक-प्रमुखसाधु सहाया [ : ] ॥ तथा भावमतिगणि [नी] प्र० धर्मप्रभागणि [नी] रत्नसुंदरि (री) साध्वी प्रमुख सं० मोल्हा सं० डूंगर सा० मेला - प्रमुख - श्रावक-श्राविका - प्रभृति-श्रीविधिसमुदायसहिताः श्रीआदिनाथ-श्रीनेमिनाथौ प्रत्यहं प्रणमैति ॥ ६ ॥ शुभं भवतु ॥ ( २५६ ) शान्तिनाथः ॥ संवत् १४९४ वर्षे माघ सुदि ११ गुरुवारे श्रीमेदपाटदेशे श्रीदेवकुलपाटकपुरवरे नरेश्वर श्रीमोकलपुत्र श्रीकुंभकर्णभूपतिविजयराज्ये श्रीउसवंसे (शे) श्रीनवलक्षशाषमंडन सा० लक्ष्मीधर सुत सा० लाधू तत्पुत्र साधुश्रीरामदेव तद्भार्या प्रथमा मेलादे द्वितीया माल्हणदे । मेलादेकुक्षिसंभूत सा० श्रीसिहणपाल। माल्हणदे २५१. आदिनाथ जी का मन्दिर, नाहटो में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४७६ २५२. पार्श्वनाथजी का मंदिर, जैसलमेर : ना० बी, लेखांक २६७४ २५३. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक ७७६ २५४. आदिनाथ जिनालय, पूना : प्रा० ले० सं०, लेखांक १६५ २५५. विमलवसही, आबू : अ०प्रा०जै०ले०सं०, भाग २, लेखांक १८८ २५६. शान्तिनाथ जिनालय, नागदा : प्रा०ले०सं०, लेखांक १६३; जै० ती० स० सं०, भाग २, पृ० ३३७, देवकुलपाटक, ले० १८ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (५१) For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुक्षिसरोजहंसोपमजिनधर्मकर्पूरवातसद्य धीनुक सा० सारंग। तदंगना हीमादे लखमादेप्रमुखपरिवारसंहितेन सा० सारंगेन(ण) निजभुजोपार्जितलक्ष्मीसफलीकरणार्थं निरुपममद्भुतं श्रीमहत् श्रीशांतिजिनवरबिंबं सपरिकरं कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीवर्धमानस्वाम्यन्वये श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनवर्धनसूरित(स्त)त्पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि त(स्त)त्पट्टपूर्वाचलचूलिकासहश्र(स्र)करावतारैः श्रीमजिनसागरसूरिभिः॥ सदा वंदंते श्रीमद् धर्ममूर्तिउपाध्यायाः घटितं सूत्रधार मदन पुत्र धरण-वीकाभ्यां आचंद्रार्क नंद्यात् ॥ श्रीः॥ छ (२५७) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १४९४ वर्षे माह सुदि ११ गुरौ उ०ज्ञा० लिंगा गो० सहजा भा० ऊमादे पु० मेल्हा गेला ईसर सहिणैः मूलू निमित्तं श्रीआदिनाथबिं० का० प्र० श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे जयहंससूरिभिः॥ (? जिनहंससूरिभिः) (२५८) अभिनन्दन-पञ्चतीर्थीः सं० १४९४ वर्षे माघ सुदि ११ गुरु दिने बहुरप गोत्रे र० भीमा पु० साल्हा तत्पुत्र गउल हीरा आत्मश्रेयो) श्रीअ......(भिनं?)दनबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनसागरसूरिभिः। (२५९) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९४ वर्षे माघ सुदि ११ गुरौ उसवंशे बोहड़गोत्रे सा० सामता पुत्र नाथु सिंघा साडाकैः मातापितापुण्यार्थं श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः (२६०) शिलापट्टलेखः सं० १४९५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ बुधे श्रीऊकेशवंशे नवलक्षा शाखायां सा० राम भार्या नारिंगदे पुण्यार्थं श्रीश्रीसिद्धिशिलाकायां श्रीजिनवर्द्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः। (२६१) शिलालेखः सं० १४९५ ज्येष्ठ सुदि १४ बुधे श्रीविमलनाथबिंब कारितं भानसिरिश्राविकया। प्र [०] । श्रीजिनसागरसूरिभिः। श्रीमालज्ञातीय भांझियागोत्रे। (२६२) अजितनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १४९५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ बुधे ऊकेशवंशे सो० तेजा तत्पुत्र सो० हेमा तत्पुत्र सो० राज़ तद्भार्या अमरी तत्पुत्र सो० धीरा-सो० जीवाभ्यां अजितनाथबिंबं स्वपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ २५७. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना०बी०, लेखांक ७७९ २५८. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना०बी०, लेखांक ७७८ २५९. कोठार, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक २५४ २६०. पार्श्वनाथ जिनालय, देलवाड़ा, मेवाड़ : पू००, भाग २, लेखांक १९७५ २६१. पार्श्वनाथ मंदिर, देलवाडा, उदयपुर : प्रा०ले०सं०, लेखांक १६८ २६२. महालक्ष्मी का पाडा, पाटण : भो० पा०, लेखांक २८० (५२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६३) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९५ ज्येष्ठ सुदि १४ बुधे श्रीविमलनाथबिंबं कारितं भानसिरिश्राविकया। प्र [०] श्रीजिनसागरसूरिभिः । श्रीमालज्ञातीय भांझियागोत्रे। (२६४) धर्मनाथः सं० १४९५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ शुक्रवारे (?) उकेशवंशे नवलक्षगोत्रे सा० सहसा भार्या श्रा० नारिंगदेव्या निजपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्र० खरतरग० श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (२६५) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ बुधे ऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा० समर भार्या सिंगारदे पुत्र सा० देवलकेन भ्रातृ छाजूयुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीसंभवनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (२६६) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः सं० १४९५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ बुधे ऊकेशवंशे साधुशाखामण्डन सा० मंडलिक भा० फदकू सुत सा० डूंगर भार्या दूल्हादे पुत्र सा० सोना जीवण निजमातृपुण्यार्थं श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरितत्पट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (२६७) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः :: संवत् १४९५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ बुधे उपकेशवंशे लघुशाखा मण्मण सा० मन्दलिक भार्या कदकू सुत सा० मूंगरसी भार्या बल्हादे पुत्र सा० सोना जीवा थीनेन मातृपुण्यार्थं श्रीमुनिसुव्रतबिंब कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि तत्पट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (२६८) गूढमण्डपस्थितलेखः [सं०] १४९५ वर्षे ऊकेशवंशे दरडागोत्रीय सं० मंडलिक ॥ माला महिपतिश्रावकै : श्रीगौतमस्वामिमूर्तिः कारिता खरतरगच्छे (२६९) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥६० ॥ संवत् १४९६ वर्षे वैशाख सु० ९ श्रीउपकेशवंशे साधुशाखीय सा०जेठा पुत्र सा० वेलाकेन पुत्र कम्मा रिणमल भउणा देदायुतेन श्रीश्रेयांसबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीश्रीश्रीजिनभद्रसूरिभिः। २६३.. आदिनाथ जी का मंदिर, देवकुलपाटक : देवकुलपाटक-विजयधर्मसूरि, लेखांक १४ २६४. मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३१२ २६५. धर्मनाथ मंदिर, भानीपोल, राधनपुर : मुनि विशालविजय- रा० प्र० ले०सं०, लेखांक १२४ २६६. बड़ा मंदिर, नागोर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३१३ २६७. ऋषभदेव जिनालय, हीरावाड़ी, नागोर : पू० जै०, भाग २, लेखांक १२४५ २६८. पित्तलहर, आबू : अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२१ २६९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ७७८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह :) (५३), For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७०) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १४९६ वर्षे वैशाख सुदि ९ सोमे कुसलागोत्रे सा० षेता पु०सा० हरिया तत्पुत्र सा० लाखामहिराजाभ्यां माता वीरू पुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं का०प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ (२७१ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १४९६ वर्षे वैशाख सित ९ दिने उकेशवंशे साधुशाखायां सा० साजण पुत्र सा० सिवा सा० सदा सुश्रावकैः पुत्र सिवदत्त - सोमदत्तसहितैः श्रीशांतिनाथबिंबं का०प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ (२७२ ) सुपार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १४९६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ गुरौ उकेशवंशे माल्हागोत्रे सा० अमरा पुत्र सा० धाराकेन पुत्र सा० चांपादियुतेन सुपुत्र लांपा पुण्यार्थं तत्पुत्र लाखा पूजमाद्यं श्रीसुपार्श्वबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्र (? भद्र ) सूरिभिः ॥ (२७३ ) शिलालेखः (१) ॥ ॐ ॥ सं० १४९६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ बुधवारे श्रीऊकेशवंशे नाहट शाखायां । सा० माजण पुत्र सां० व(२) णवीर पुत्र सा० भीमा। वीसल रणपाल प्रमुखपौत्रादिपरिवारसहितेन श्रीकरहेटकस्थाने श्रीपार्श्व(३) नाथभुवने श्रीविमलनाथदेवस्य देवकुलिका कारापिता । प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसू(४) रीणामनुक्रमे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टकमलमार्तण्डमंडलिः श्रीमज्जिनसागरसूरिभिः ॥ शिवमस्तु ॥ (५) वरसंग देवराज पुण्यार्थः ॥ २७४ ) शिलालेख : संवत् १४९६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ बुधवारे श्रीऊकेशवंशे वाहटशाखायां मात ( ? )ण पुत्र सा० कणवीर पुत्र सा० भीमा । वीसल पाल प्रमुखपौत्रादिपरिवारसहितेन श्रीकरहेटक गते (ग्राम) श्रीपार्श्वनाथभुवने श्रीविमलनाथदेवस्य देवकुलिका कारापिता । प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरीणानुक्रमे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टकमलमार्तंड श्रीमज्जिनसागरसूरिभिः ॥ (२७५ ) शिलालेख: संवत् १४९६ वर्षे आषाढ़ सुदि १३ गुरौ जंझणपुरिवास्तव्या महतीआणी खरतरगच्छे गौत्र नन्हडे साह चादूरसंताने साह गुणराज सुत साह जाजा वीरम देवापुत्र माणकचंद भ्रातृ संघवी राइमल श्रीगिरि [नारि] जात्रा करी श्रीनेमि [नाथस्य ] २७० शान्तिनाथ जिनालय, शान्तिनाथ पोल, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १२६७ २७१. शांतिनाथ जी का मंदिर डँख मेहता का पाड़ा, पाटण : भो० पा०, लेखांक २८६ २७२. मालवांचल के जैन लेख, (परिशिष्ट), लेखांक २९३ २७३. बावन जिनालय, करेड़ा : पू० जै०, भाग २, लेखांक १९५८ २७४. जैन मंदिर करेडा : प्रा० ले० सं०, लेखांक १७० २७५. नेमिनाथ जिनालय, गिरनार : प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६० (५४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७६) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९७ व० ज्येष्ठ सुदि २ सोमे उकेशवंशे रांकागोत्रे सा०माझू भा० कमला पु० .....करसीकेन भा० नामलदे पु० सिरीपाल श्री..........सहितेन पु० सीधर पुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरि तत्पट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (२७७) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: ॐ ॥ सं० १४९७ वर्षे मार्गवदि ३ दिने ऊकेशवंशे म० हरराज भार्या हीरादे पुत्र सिंघा भार्या सुहागदे पुत्र म० मालासुश्रावकेन पितृ सिंहापुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे जिनभद्रसूरिभिः॥ (२७८) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ संवत् १४९७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ दिने बुधे उपकेशवंशे चो० दीता पुत्र चो० पांचा पुत्र सा० लोला श्रावकेण पुत्र सहजपाल भूरा प्रमुखपरिवारसहितेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (२७९) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ संवत् १४९७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ दिने ऊकेशवंशे चो० दीता पुत्र चो० पांचा पुत्र चो० महिराज श्रावकेण पुत्र सहस साजण प्रमुखपरिवारसहितेन श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (२८०) कायोत्सर्गस्थित-सुपार्श्वनाथः (१) ॥ ॐ ॥ सं० १४९७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ दिने बुधवारे श्रीऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा दीता(२) त्मज सा० पांचा तद्भार्या रूपी तत्पुत्रैः सा० सिवराज-महिराज-लोला-लाषणसुश्रावकैः पुत्र थरा (३) सहसा-सहजपाल-सिषरा-समराइ-मुरापरिवारसहितैः कायोत्सर्गस्थिता श्रीसुपार्श्वप्रतिमा (४) सुगुणालंकारिता श्रीलाषण भार्या लषमादे श्राविकया प्रतिष्ठिता श्रीजेसलमेरु (५) महादुर्गे श्रीवयरसिंहविजयराज्ये श्रीखरतरगच्छे श्रीनवांगवृत्तिकारश्रीअभय(६) देवश्रेयोर्थं प्रकटी कारिता अभयदेवसूरिसंताने................''श्रीजिनभद्रसूरिसुगुरुराज्ये॥ (२८१) कायोत्सर्गस्थित-पार्श्वनाथः (१) ॥ ॐ ॥ संवत् १४९७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ बुधवारे श्रीऊकेशवंशे। (२) ॥ चोपड़ागोत्रे सा० दीतात्मज सा० पांचा तद्भार्या रूपी तत्पुत्र सा० सिवराज-महिराज-लोला-लाष। (३) ॥णसुश्रावकैः पुत्र थिरा-सहसा-सहजपाल-सिषराइमुरापरिवारसहितैः कायोत्सर्गस्था २७६. जैन मंदिर, आगर (मालवा) : मालवांचल के जैन लेख, लेखांक ९७ २७७. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर, पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३१३ २७८. थीरूशाह का देरासर, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४५२ २७९. थीरूशाह का देरासर, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४५१ २८०. संभवनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१४६ २८१. संभवनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१४५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ॥ श्रीपार्श्वनाथप्रतिमा कारिता स्वपुण्यार्थं सा० लोला भार्या लीलादे गुणकादे । प्रतिष्ठिता खर(५) ॥तरगच्छ श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ श्री जेसलमेरुनग्रे (गरे) श्रीवैरिसिंहराज्ये ॥ (२८२) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः ॐ संवत् १४९७ वर्षे मार्गशीर्षवदि ३ बुधे ऊकेशवंशे चो० दीता पुत्र पांचा पुत्र लाषा श्रावकेन सिखरादिसुतयुतेन श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ श्रीः॥ ___(२८३) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४९७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ बुधे ऊकेशवंशे चो० दीता पु० पांचा पुत्र लाखण..... केन सिखरादिसुतयुतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः (२८४) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४९७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ बुधे ऊकेशवंशे लूणीया गोत्रे साः षीमा पुत्र साः सधारण श्रावकेण पुत्र सीहा सहितेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः खरतरगच्छे। (२८५) शान्तिनाथः ॥ ॐ ॥ संवत् १४९७ वर्षे मार्ग सुदि ३ श्री शांतिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः। कारिते ऊकेशवंशे पीपाडगोत्रे भीमापुत्र देल्हासुश्रावकेण पुत्र आसासहितेन भ्रातृलाखूपुण्यार्थं ॥ (२८६) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४९७ वर्षे माघ सुदि ५ बुधे श्रीमालज्ञातीय नान्दीगोत्रे सा० प्रल्हा पुत्र शा० प्रेताक्षेन पुत्र हरेराज सहित तत् पिता पुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (२८७) ........पञ्चतीर्थीः सं० १४९७ वर्षे फाल्गुनशुदि ५ गुरौ श्रीऊकेशवंशे शंखवालगोत्रे सा० आसराज भार्या पारस पुत्र षेता-पातादियुतैः श्री......."बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्र(? भद्र)सूरिभिः ॥ श्रीरेवताचल॥ (२८८) शिलालेख-प्रशस्तिः (१) ॥ ॐ ॥ अहँ ॥ स्वस्ति श्रीस्तंभनपार्श्वनाथपादकल्पद्रुमेभ्यः॥ प्रत्यक्ष: कल्पवृक्षस्त्रिजगदधिपतिः पार्श्वनाथो जिनेद्रः श्रीसंघस्येप्सितानि प्रथयतु स सदा शक्रचक्रा(२) भिवंद्यः। प्रोत्सर्पति प्रकामातिशयकिशलया मंगल श्रीफलाढ्याः स्फूजर्द्धर्थिवल्ल्यो यदनुपमतमध्यानशीर्षं श्रयंत्यः॥ १॥ श्रीशांतितीर्थंकरवासरेश्वरः सुप्रा२८२. शांतिनाथ जिनालय, जैसलमेर दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१५७ २८३. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी, लेखाक २७४९ २८४. पाप्रभ जिनालय, मुर्शिदावाद : पू० जै०, भाग १, लेखांक ८ २८५. घंघाणी तीर्थ : जैन तीर्थ सर्व संग्रह, भाग १, खंड २, पृ० १९४ २८६. जैन मंदिर, साहूकार पेठ, मद्रास : पू० जै०, भाग २, लेखांक २०७२ २८७. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१८१ २८८. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१३९ (५६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) तमाविष्कुरुतां स्फुरद्युतिः। यस्य प्रतापादशिवक्षपाक्षये पुण्यप्रकाशः प्रससार सर्वतः॥ २ ॥ कल्याणकल्पद्रुममेरुभूमिः संपल्लतोल्लासनवारिवाहः। प्रभावरत्नावलिरोहणाद्रि : श्री(४) संभवेशः शिवतातिरस्तु ॥ ३॥ प्रासादत्रितये नत्वा मूलनाथत्रयं मुदा। रत्नत्रयमिवाध्यक्षं प्रशस्ति रचयाम्यहं ॥ ४॥ यत्प्राकारवरं विलोक्य बलिनो म्लेच्छावनीपा अपि प्रोद्यत्सैन्यसहस्रदुर्ग्रहमिदं गेहं हि (५) गोस्वामिनः । भग्नोपायबला वदंत इति ते मुंचंति मानं निजं तच् श्रीजेसलमेरुनाम नगरं जीयाज्जनत्रायकं ॥ ५॥ वंशो यद्यदुनायकैर्नरवरैः श्रीनेमिकृष्णादिभिर्जन्मेन प्रवरावदातनिकरैरत्य(६) द्भुतैराख्यतः। तेनासौ लभते गुणं त्रिभुवनं सन्नादतो रंजयेत् कोवा ह्यत्तममानितो न भवति श्लाघापदं सर्वतः॥ ६॥ श्रीनेमिनारायणरौहिणेया दुःखत्रयात् त्रातुमिव त्रिलोकं यत्रोदिता: श्रीपु(७) रुषोत्तमास्ते स वर्णनीयो यदुराजवंशः॥ ७॥ तस्मिन् श्रीयादववंशे। राउल श्रीजइतसिंह- मूलराज रत्नसिंह-राउलश्रीदूदा-राउलश्रीघटसिंह-मूलराजपुत्र-देवराजनामानो राजानोभूवन्। त(८) तोभूत्केसरी राजा केसरीव पराक्रमी । वैरिवारणसंहारं यश्चकारासिदंष्ट्रया॥१॥ श्रीमत्केसरिराजसूनुरभवच श्रीलक्ष्मणो भूपतिर्विद्वल्लक्ष्मणलक्षतोषणशरच् श्रीलक्ष्मणस्तेजसा। दाना(९) शाय करग्रहाश्च सकलं लोकं व्यधाल्लक्ष्मणं यो बिंबं मृगलक्ष्मणोपि यशसा सौवाभिधानं न्यधात् ॥ २॥ तदीयसिंहासनपूर्वशैलप्राप्तोदयोत्युग्रतरप्रतापः। श्रीवैरसिंहक्षितिपाल भानुर्वि(१०) भासते वैरितमो निरस्यन् ॥ ३॥ इतश्च ॥ चंद्रकुले श्रीखरतरविधिपक्षे॥ श्रीवर्धमानाभिधसूरिराजो जाताः क्रमादर्बुदपर्वताये। मंत्रीश्वरश्रीविमलाभिधानः प्राचीकरद्यद्वचनेन चैत्यं ॥ १ ॥ अ(११) हिल्लपाटकपुरे यैर्दुर्लभराजपर्षदि विवादे। प्राप्तं खरतरबिरुदं जिनेश्वरास्सूरयो जजुः ॥ २॥ ततः क्रमेण श्रीजिनचंद्रसूरि-नवांगीवृत्तिकारश्रीस्तंभनपार्श्वनाथप्रकटीकार-श्रीअभय(१२) देवसूरि-श्रीपिंडविशुद्धयादिप्रकरणकार श्रीजिनवल्लभसूरि-श्रीअंबिकादेवताप्रकाशितयुगप्रधानपद श्रीजिनदत्तसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरि-श्रीजिनपतिसूरि-श्रीजिनेश्वरसूरि-श्रीजिनप्रबो(१३) धसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरि-श्रीजिनकुशलसूरि-श्रीजिनपद्मसूरि-श्रीजिनलब्धिसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरयः । श्रीजिनशासनं प्रभासितवंतः॥ ततः। श्रीगच्छलक्ष्मीधरणे जिनोदयाः प्रकाशित(१४) प्राज्ञसभाजिनोदयाः। कल्याणवार्द्धा दशवाजिनोदयाः पाथोजहंसा अभवञ् जिनोदयाः॥ १॥ जिनराजसूरिराजः कलहंसा इव बभुर्जिनमताब्जे । सन्मानसहितगतयः सदाम(१५) रालीश्रिता विमलाः॥ २॥ तत्पट्टे ॥ ये सिद्धांतविचारसारचतुरा यानाश्रयन् पंडिताः सत्यं शीलगुणेन यैरनुकृतः श्रीस्थूलभद्रो मुनिः। येभ्यः शं वितनोति शासनसुरा श्रीसंघदीप्तिर्य(१६) तो येषां सार्वजनीनमाप्तवचनं येष्वद्भुतं सौभगं॥ १॥ श्रीउज्जयंताचलचित्रकूटमांडव्यपूर्जाउरमुख्यकेषु । स्थानेषु येषामुपदेशवाक्यान्निर्मापिताः श्राद्धवरैर्विहाराः॥ २ ॥ अणहिल्ल(१७) पाट क पुर प्रमुखस्थानेषु यै र कार्यत। श्रीज्ञानरत्नकोशा विधिपक्षश्राद्धसंघेन ॥ ३ ॥ मंडपदुर्गप्रह्लादनपुरतलपाटकादिनगरेषु । यैर्जिनवरबिंबानां विधिप्रतिष्ठाः क्रियते स्म ॥ ४॥ यैर्नि(१८) जबुद्ध्यानेकांतजयपताकादिका महाग्रंथाः। पाठ्यंते च विशेषावश्यकमुख्या अपि मुनीनां ॥ ५॥ कर्मप्रकृतिप्रमुखग्रंथार्थविचारसारकथनेन। परपक्षमुनीनामपि यैश्चित्तचमत्कृतिः क्रिय (१९) ते॥ ६॥ छत्रधरवैरिसिंहत्र्यंबकदासक्षितीन्द्रमहिपालैः। येषां चरणद्वंद्वं प्रणम्यते भक्तिपूरेण ॥ ७॥ शमदमसंयमनिधयः सिद्धांतसमुद्रपारदृश्वानः। श्रीजिनभद्रयतींद्रा विजयंते ते (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (५७) For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) गणाधीशाः ॥ ८ ॥ इति श्रीगुरुवर्णनाष्टकं ॥ इतश्च ॥ श्रीमानूकेशवंशोयं वर्धतां सरलाशयः । नरमुक्ताफलं तत्र जायते जनमंडनं॥ १ ॥ तस्मिञ् श्रीऊकेशवंशे चोपडागोत्रे । सा० हे (२१) मराजः तदंगजः सा० पूनाकस्तदात्मजः सा० दीताख्यस्तत्पुत्राः सा० सोहड कर्मण गणदेव महिपा सा० पांचा सा० ठाकुरसिंहनामानः षट् । तत्र सा० पांचा भार्या रूपादे तत्पुत्रा इमे य(२२) था | शिवराज-महीराज- लोला-लाषणनामकः । चत्वारः श्रीचतुर्वर्गसाधकाः संति पांचयः ॥ १ ॥ एतेषां भगिनी श्राविका गेली । तत्र सा० शिवा भार्या सूहवदे तयोः पुत्रः थिराख्यः पुत्री हीराई (२३) महिरा भार्या महघलदे तयोरंगजाः सादा - सहसा - साजणाख्याः सुते नारंगदे - बल्हीनाम्न्यौ । लोलाभार्या लीलादे पुत्रौ सहसपाल मेलाकौ पुत्री लषाई । लाषण भार्या लषमादे तदात्मजाः (२४) शिखरा-समरा- मालाख्याः ॥ इत्यादिपरिवारेण संयुताः श्रावका इमे । कुर्वंति धर्मकार्याणि शासनोन्नतिहेतवे ॥ १ ॥ विक्रमवर्षचतुर्दशसप्ताशीतौ विनिर्ममे यात्रा । शत्रुंजयरैवतगिरितीर्थे संघा(२५) न्वितैरेभिः॥ २ ॥ पंचम्युद्यापनं चक्रे वत्सरे नवतौ पुनः । चतुर्भिर्बांधवैरेभिश्चतुर्धा धर्मकारकैः ॥ ३ ॥ अथ संवत् १४९४ वर्षे श्रीवैरिसिंहराउलराज्ये श्रीजिनभद्रसूरीणामुपदेशेन नवीनः प्रासा - (२६) दः कारितः । ततः संवत् १४९७ वर्षे कुंकुमपत्रिकाभिः सर्वदेशवास्तव्यपरः सहस्र श्रावकानामंत्र्य प्रतिष्ठामहोत्सवः सा० शिवाद्यैः कारितः । तत्र च महसि श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीसंभवनाथप्रमु (२७) खबिंबानि ३०० प्रतिष्ठितानि प्रासादश्च ध्वजशेखरः प्रतिष्ठितः । तत्र श्रीसंभवनाथो मूलनायकत्वेन स्थापितः। तत्र चावसरे सा० शिवामहिरालोलालाषण श्राद्धैः दिन ७ साधर्मिकवात्सल्यं कृतं राउ(२८) लश्रीवैरसिंहेन साकं श्रीसंघो विविधवस्त्रैः परिधापितः । राउल श्रीवैरसिंहेनापि चत्वारस्ते बांधवाः स्वबांधववद्वस्त्रालंकारादिदानेन सम्मानिता इति ॥ अथ जिनपतिपार्श्वो राजतां यत्प्र-. (२९) सादात् सकलसुकृतकार्यं सिध्यति ध्यायकानां । जिनकुशलमुनींद्रास्ते जयंतु त्रिलोक्यां खरतरविधिपक्षे तन्वते ये सुखानि॥ १ ॥ सरस्यामिव रोदस्यां पुष्पदंतौ विराजतः। हंसवन्नं (३०) दतात्तावत् प्रासादः संभवेशितुः ॥ २ ॥ प्रासादकारकाणां प्रासादविधिप्रतिष्ठितिकराणां । सूरीणां श्राद्धानां दिने दिने वर्द्धतां संपत्॥ ३ ॥ सेवायै त्रिजगज्जनाञ् जिनपतेर्यच्शृंगमूले स्थिता (३१) दंडव्याजभृतस्त्रयः सुपुरुषा आमंत्रयंति ध्रुवं । प्रेंखोलद्ध्वजपाणिभी रणरणघंटानिनादेन तत् प्रासादत्रितयं त्रिलोकतिलकं वंदे मुदाहं त्रिधा ॥ ४ ॥ प्रासादत्रितयं नंद्यात् त्रिलोकीतल (३२) मंडनं । त्रिविधेन त्रिधा शुद्धया वंदितं त्रिजगज्जनैः ॥ ५ ॥ सौभाग्यभाग्यनिधयो मम विद्यादायकाः कविगजेंद्राः। श्रीजयसागरगुरवो विजयंते वाचकगरिष्ठाः ॥ ६ ॥ तच्शिष्यो वा (३३) चनाचार्यो वर्त्तते सोमकुंजरः । प्रशस्तिर्विहिता तेन वाचनीया विचक्षणैः ॥ ७ ॥ श्रीः ॥ श्रीः ॥ श्रीः ॥ लिखिता च पं० भानुप्रभगणिना ॥ सर्वसंख्यायां कवित्वानि ३३ ॥ शुभं भवतु संघस्य (३४) ॥ ८ ॥ जिनसेनगणिश्चात्र चैत्येकार्षीद् बहूद्यमं । सूत्रभृच्शिवदेवेन प्रशस्तिरुदकारि च ॥ १ ॥ प्रासादे क्रियमाणेथ बहुविध्नोपशांतये । विज्ञानं रचयामास जिनसेनो (३५) महामुनिः ॥ २ ॥ शुभं । (२८९ ) विंशतिविहरमानपट्टिका ॥ ॐ ॥ संवत् १४९७ वर्षे श्रीऊकेशवंशे चोपड़ा गोत्रे सा० दीता तत्पुत्र सा० पांचा तदीय पुत्र ॥ चो० सिवराज महिराज लोला लाषण श्रावकैः पुत्र थिरा सहसा सहजपाल सिखरा प्रमुख। परिवारसहितैः २८९. संभवनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर : पू०जै०, भाग ३, लेखांक २१४३ (५८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीविंशतिविहरणमाणपट्टिका पुण्यार्थं कारिता। प्रतिष्ठिता मार्गशीर्ष वदि ३ दिने बुधे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिगणिः। ___ (२९०) नन्दीश्वरपट्टिका ॥ ॐ ॥ संवत् १४९७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे चो० सा० सिवराजमहिराज-लोला-लाषणश्रावकैः पुत्र थिरा-सहसा-सहजपाल-साजण-शिखरा-समरा-मूला मालाप्रमुखपरिवारसहितैः श्रीनंदीश्वरपट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (२९१) वासुपूज्य-परिकरः सं० १४९७ वर्षे श्री खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितम् सा० पासड सं.............."वासुपूज्यस्य परिकरः कारितः सा० पासडे पुत्र सा० ......(जीचंद्र) श्रा.....'पुत्र सधारण सहितेन वा० रत्नमूर्त्तिगणिनामुपदेशात् शुभंभूयात् (२९२ ) शान्तिनाथ-परिकरः संवत् १४९७ वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितं श्रीशांतिनाथबिंबपरिकरः कारितं सा० अजा सुत सं० मेरा भार्यया नारंगी श्राविकया वा० रत्नमूर्त्तिगणिनामुप० । (२९३) पार्श्वनाथमूर्ति-सिंहासन: सं १४९७ वर्षे श्रीजिनभद्रसूरि प्र० सा० रिणधी कारितं श्रीपार्श्वनाथ सिंहासन । (२९४) ......."नाथः • संवत् १४९७ वर्षे श्रीजिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितं..........."नाथबिंबस्य परिकरः कारित सा० नेता पुत्र सा० रूपा सुश्रावकेण॥ (२९५) मुनिसुव्रतः ॥६० ॥ संवत् १४९८ मार्गसिर वदि ३ बुधे उपकेश। नाहटा गोत्रे सा० जयता भार्या जयतलदे पुत्र देपाकेन श्रीमुनिसुव्रतबिंब पुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनभद्रसूरि। (२९६) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४९८ वर्षे फा० सुदि ५ गुरौ श्रीउकेशवंशे बडालिया (? बरडिया) गोत्रीय सा भीमसिंह सुतं सयामन........"सोमदत्त सहितन (तेन) श्रीशांतिनाथबिंबं का०प्र० श्रीजिनभद्रसूरिभिः खरतरगच्छे। २९०. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१४२ २९१. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६९८ २९२. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६९६ २९३. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६९३ २९४. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६९४ २९५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ८०१ २९६. जैन मंदिर, शाहपुर, थाणा-महाराष्ट्र : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ८८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (५९) For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९७ ) नमिनाथः ॥ ६० ॥ संवत् १४९८ फा० सुदि ५ दिने उपकेशवंशे नाहटागोत्रे सा० जयता भा० जयतलदे पु० हापाकेन श्रीनमिनाथबिंबं पुण्यार्थं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (२९८) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९९ वर्षे माघ सित १३ दिने श्रीउकेशवंशे शा० देवराज पुत्र सा० नाप्तश्रावकेन पुत्र वजादि सहितेन श्रीश्रेयांसबिंब का० प्र० श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (२९९) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ओ॥ सं० १४९९ वर्षे फा० सुदि २ दिने ओसवालज्ञातीय सा० झाझड़ पु० सा० भुदा सुश्रावक भार्या रतनु तत्सुतेन सा० सोमाकेन पुत्र देवदत्त जगमालादि सहितेन श्रीकुंथुनाथबिंबं का प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ श्री॥ (३००) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५०० वर्षे वै० सु० ५ दिने ऊकेशवंशे नवलक्षशाखायां सा० आका भा० मनी पुत्र सा० तेजा भा० संपूरी पुत्ररत्नेन सा० मांडणश्रावकेण निजपितामहीश्रा० मनीपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंब का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्री जिनसागरसूरिभिः॥ (३०१) पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०० वर्षे वै० सु० ५ दिने ऊकेशवंशे श्रीसाधुशाखामंडन सा० जेठा भार्या हर्षाईश्राविकया निजपुण्यार्थं श्रीपद्मप्रभबिंब का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (३०२) सपरिकर-श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५०० वर्षे वैशाख सुदि ५ दिने ऊकेशवंशे सो० जावड भार्या अची पुत्र सो० मयणाकेन निजपितृपुण्यार्थं श्रीश्रेयांसनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे जिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (३०३) महावीर-पञ्चतीर्थीः संवत् १५०० वर्षे वैशाख सुदि ५ श्रीमालज्ञातीय चिणालीयागोत्रे सा० सेटू भार्या हीरी पुत्र सा० जाटाकेन भार्या प्रा० स्याणी-पुण्यार्थं श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिश्रीजिनसागरसूरिभिः चिरनंद्यात्॥ छ २९७. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ८०५ २९८. आदिनाथ जिना०, खेरालु : जै०धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७६० २९९. ऋषभनाथ जी का मंदिर, सेठों की हवेली के पास, उदयपुर : पू० जै०, भाग २, लेखांक १९०० ३००. शान्तिनाथ जी का मंदिर, कणाशाह का पाड़ा, पाटण : भो० पा०, लेखांक ३१४ ३०१. शान्तिनाथ जी का मंदिर, कणा शाह का पाड़ा, पाटण : भो० पा०, लेखांक ३१६ ३०२. अजितनाथ मंदिर, वाघनपोल, अहमदाबाद : परीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक १९२ ३०३. सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३३५ (६०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०४) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५०व० माघ सुदि १० शनौ ऊकेशवंशे थुल्लगोत्रे सा० सांडा भा० करणू पुत्र सा० जिनन्द्रतेन सं० जगमाल साधु जीवा सा० जोग प्रमुखपरिवारयुतेन स्वभार्याश्राविका लखमादे पुण्यार्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं कारापितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टेशः श्रीजिनसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्री॥ (३०५) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४..."वर्षे माह सुदि ११ शनि उपकेशवंशे गादरियागोत्रे से० आजल भार्या आल्हणदे निमित्तं से० सांगा से० साजणभ्यां मातृनिमित्तं श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनव.....(र्धन) सूरिभिः॥ ___(३०६) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः ........... वदि १ दिने ऊकेशवंशे सा० हेमाकेन पुत्र हमाधिजामा परिवारयुतेन श्रीचंद्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (३०७) मूर्तिः ......... श्रावकः स्वपितृ मातृ श्रीजिनवर्द्धनसूरिगुरुभिः। - (३०८) मूर्तिः । ..............."पितृ मातृ झावा खीमि..................."वर्द्धनसूरिभिः । (३०९) अनिलस्वामीमूर्तिः श्री अनिलस्वामीमू. 'श्रीजिनभद्रसूरिभिः (सिंहासनस्थ वेदी पर) ___(३१०) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: ....................... सुदि ...........रेण निजपित्रोः पुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (३११) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ..................."ते भ० भार्या नयणी पुत्र घुम्मण उद्धरण अभयराय युतेन स्व० पु० श्रीआदिनाथबिं० का० प्र० रुद्रपल्लीय गुणसुंदरसूरिभिः॥ ३०४. तपागच्छीय जैन मंदिर, बालापुर : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ९३ ३०५. देहरी क्रमांक २६६/२, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक १९२ ३०६. श्री गंगा सुवर्ण जयन्ती संग्रहालय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१६३ ३०७. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६७६ ३०८. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६७८ ३०९. ऋषभदेव मंदिर, मालपुरा : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३३७ ३१०. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ८२६ ३११. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ८२५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (६१) सं... For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१२) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥६० ॥ संवत् १५०१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ९ शनौ ऊकेशवंशे वीणायगगोत्रे सा० लूणा पुत्र सा० हीरा भार्या राजो तत्पुत्र सा० लूणा सुश्रावकेन पुत्र आसादिपरिवारयुतेन श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ १ __ (३१३) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०१ वर्षे आषाढ़ वदि ९ ऊकेशवंशे परीक्षगोत्रे का भार्या छिक्कू पुत्र महिराज हरिराज नगराज स्वपितृपुण्यार्थं श्रीसुमतिबिंबं कारितं प्रति० खरतरगण(णे) श्रीजिनभद्रसूरिभिः। (३१४) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥सं० १५०१ वर्षे आषाढ़ सुदि ९ दिने उकेशवंशे करमदीयागोत्रे सा० वील्हा तत्पुत्र लाखा वाल्हा वाछा प्रमुखसपरिवारेण श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीमत् श्रीजिनसागरसूरिशिरोमणिभिः॥ शुभम्॥ (३१५) पञ्चतीर्थीः सं० १५०१ वर्षे आषाढ़ सुदि ९ सोमे लोढ़ागोत्रे सा०बीजा भा० पद्दी पुत्र सा ढोला सुश्रावकेण पुत्र वीरम प्रमुखपुत्रपरिवारयुतेन स्वपुण्यार्थं का०प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः __ (३१६) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं०१५०१ वर्षे माघ वदि ६ उपकेशज्ञातौ लोढागोत्रे सा० भार्या(?)पूना पु० हांसाकेन निजपूर्वजा षेमधर मोहा प्रीत्यर्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे भ० श्रीदेवसुंदरसूरि पदे प्र० श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः __(३१७) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०१ वर्षे माघ वदि ६ बुधे उपकेशज्ञातीय छाजह....... मं० जूवि (ठि)ल भार्या जयतलदेवी तयो पुत्र मं० जसवीरेण भार्या लखमादेवीसहितेन श्रीअजितनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनधर्मसूरिभिः प्रतिष्ठितं (३१८) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५०१ वर्षे माघ वदि ६ बुधे खटवड़गोत्रे सं० घेला संताने सं० भोला पुत्र जाटा तत्पुत्रेण सा। सहसाकेन केसराजादिपुत्रयुतेन निजपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंब का० प्र० रुद्रपल्लीगच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः ३१२. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ८४७ ३१३. मोतीशाह की ट्रॅक, शत्रुजय : श० वै०, लेखांक ९३ ३१४. बड़ा मन्दिर नागोर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३४०; पू० जै०, भाग २, लेखांक १२४८ ३१५. बालावसही, शत्रुजय : शत्रु० वै०, लेखांक ९१ ३१६. जैन मंदिर, अलवर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ९९० ३१७. आदिनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९५८ ३१८. चिन्तामणि जी का मंदिर बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ८५१ (६२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१९) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०१ (?) वर्षे माघ वदि पष्ठी बुधे श्री उपकेशवंशे छाजहड़गोत्रे मंत्री कालू भा० करमादे पु० मं० रादे छाहड़ नयणा सोना नोडा पितृमातृश्रेयसे सुमतिनाथबिंबं कारापितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनधर्मसूरिभिः। (३२०) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०१ श्रीमालवंशे सं० पाहू पत्नी सं० (?) देउ स्वपुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिंब का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिन....... (३२१) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५०२ वर्षे ज्येष्ठ सु० १२ श्रीउकेशवंशे वर्धमान बोहड़ साखायां दोसीगोत्रे सा० लहरू पु० सा० वीझा भा० कसमाही पु० सा० तेजसी पु० जाणा रणवीर अंजा सा० नाथू पु० देवीदास सा० जादादि श्राद्धे(?) अजितनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे। (३२२ ) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ६० ॥ सं० १५०२ वर्षे फाल्गुण वदि २ दिने ऊकेशवंशे पुसलागोत्रे देवचंद्र पु० आका भार्या मचकू पु० सोता सहजा रूवा खाना धनपा भ्रातृयुते सहजाकेन स्वश्रेयसे श्रीआदिनाथ बिं० का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (३२३) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०२ वर्ष फाल्गुन वदि २ दिन ऊकेशवंशे फसलागोत्रे सा० आजड़ संताने सा० पूना भार्या पुनादे पुत्र सा० लोलाकेन भार्या लाखणदे पुत्र सा० छाजू तोलादि सहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीमत् श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ शुभम्॥ (३२४) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५०३ वर्षे वैशाख सु० ५ श० श्रीमालवंशे स्वर्णगिरियागोत्रे सा० चाहड भार्या गौरी सुतस्य सं० चन्द्रस्य स्वपितृव्य-भ्रातुःपुण्यार्थं सं० देहड भा० गंगा सुत सं० धनराजेन ल० भ्रातृ सं० खीमराज सं० उदयराजादियुतेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरग० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं नंदतात्॥ (३२५) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०३ आषाढ़ सुदि २ गुरौ इलदुर्गीय श्रीश्रीमालज्ञातीय मं० पाताकेन भा० माल्हणदे पुत्री कमाई श्रेयोऽर्थं श्रीश्रेयांसनाथबिंबं.का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ ३१९. चन्द्रप्रभ जिनालाय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७३९ ३२०. शामला पार्श्वनाथ, खरतरवसही, पाटण : भो० पा०, लेखाक ३३० ३२१. चन्द्रप्रभ देरासर, उज्जैन: मालवांचल के जैन लेख, लेखाक ५१ ३२२. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ८६३ ३२३. विमलनाथ जिनालय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १५८१ ३२४. विमलनाथ जिनालय, सवाईमाधोपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३६४ ३२५. पार्श्वनाथ जिनालय, देवसानो पाडो, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११०४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (६३) For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२६) सपरिकर-श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५०३ आश्विन सुदि गुरौ इलादुर्गीय श्रीश्रीमालज्ञाति मं० पाताकेन भा० माल्हणदे पुत्रो कर्माई श्रेयोर्थं श्रीश्रेयांसनाथबिंब कारितं प्रतिष्टि [ष्ठि ]तं खरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ __ (३२७) महावीरः (१) ॥ ओं॥ सं० १५०३ वर्षे माघ वदि ६ दिने श्रीमालवंशे नांदीगोत्रे सं० नरपाल भार्या महु(२) री कारितं श्रीमहावीरबिंबं । श्रीखरतरगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (३२८) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः १५०३ वर्षे माघ० पूर्ण सोमे उप० ज्ञा० व जगैमालेन भ्रातृ डामरपुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिं० का० खरतरग० भ० श्रीजिनधर्मसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ ___ (३२९) अजितनाथ-पञ्चतीर्थी: सवंत १५०३ वर्षे माल्हूगोत्रे सा० भाखर भरमी श्राविकाया: पुण्यार्थं मा० काच्छाकेन जीदा खीदा भीदा भादा पुत्रयुतेन कारितं स्वपुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रजिनभद्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे। (३३०) संभवनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५०३ वर्षे जागड़गोत्रे सा० हांसाश्राद्धेन पुत्र जेसा सामत पूना-धमसीहै : संभवनाथबिंबं का० प्र० श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (३३१) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५०३ वर्षे दोसी धर्माकस्य पुण्यार्थं दो० वच्छा पुत्र संग्राम श्रावकेण कारितं श्रीश्रेयांसबिंब प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे ।। ___ (३३२) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५०३ वर्षे डोसी-धर्माकस्य पुण्यार्थं दो० वूछा संग्राम श्रावकेण कारितः श्रीश्रेयांसबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे। (३३३) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५०३ वर्षे श्रीमालज्ञातीय ठाकुर पुत्र कादा नाल्हा हांसा श्रावकपुण्यार्थं श्रीशान्तिनाथबिं० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।। ३२६. आदीश्वर मंदिर, बागेश्वर पाल, अहमदाबाद : परीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक २२० ३२७. शिखरचन्द जी का मन्दिर, बनारस : पू० जै०, भाग २, लेखांक १८६५ ३२८. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखाक २३२१ ३२९. शांतिनाथ जिनालय, नागोर : प्र० ले० स०, भाग १, लेखांक ३७४; पू० जै०, भाग २, लेखांक १३२५ ३३०. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३२२ ३३१. संभवनाथ जिनालय, जोधपुर: प्र० ले० सं०, भाग०२, लेखांक ६९ ३३२. धर्मनाथ जिनालय, जोधपुर : पू० जै, भाग १, लेखांक ६२० ३३३. सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखाक ३७५ (६४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३४ ) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५०३ वर्षे जांगड़गोत्रे नरदेव पुत्र हेमाकेन सुरा साजा सादा भादा त्रकुतेन कारिता श्रीशान्तिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे || ( ३३५) सुमतिनाथ- पञ्चतीर्थी :- सपरिकरः ॥ ए० ॥ संवत् १५०४ वर्षे वैशाख वदि ४ दिने ऊकेश० लघुशाखा मंडल सं० सहसा भार्या सीतादे सुत सं० रत्ना सा० माणिक सुश्रावकाभ्यां श्रेयोर्थं श्रीसुमतिबिंबं कारितं प्रतिष्टित [ष्ठि ] तं श्रीखरतरगच्छे श्री जिनसागरसूरिभि: शुभमस्तु ॥ छ ( ३३६ ) अजितनाथ - पञ्चतीर्थी: संवत् १५०४ वर्षे वैशाख सुदि ७ बुधे श्रीमालज्ञातीय सिंधूणगोत्रे सा० केसराज पु० सा० भोजराज सा० विजयराज सा० अजयराज श्रावकैः श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ ( ३३७ ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५०४ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने बुधे ऊकेशवंशे दरड़ागोत्रे सा० कालू पुत्र सा० छूदा श्रावकेण पुत्र चाचा समन्वितेन श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः। ( ३३८ ) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ ॐ ॥ सं० १५०४ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने ऊकेशवंशे भांडशालिकगोत्रे भ० वीकम भार्या वउलदे तत्पुत्रौ भ० जोगा गाऊदसिंहो तत्र ठाकुरसिंहेनात्मस्वश्रेयसे श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छेशैः श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ ( ३३९) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५०४ वैशाख सु० ७ दिने श्रीउकेशवंशे सा० डीडा पुत्र सा० नाय स्वपुण्यार्थं श्रीपार्श्वजिनबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः (३४० ) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५०४ वर्षे आषाढ वदि २ सोमे प्राग्वाटवंशे झांझण भार्या कपूरदे पुत्र अजा भार्या सीपू सहितेन श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनधर्मसूरिभिः ॥ ३३४. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ८६४ ३३५. नेमिनाथ मंदिर, पाड़ा पोल, अहमदाबाद: पारीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक २२९ ३३६. सीमंधर स्वामी देरासर, लखीयार वाडा, पाटण : भो० पा०, लेखांक ३६२ ३३७. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३७६ ३३८. शान्तिनाथ जिनालय, सेमलियाः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३७७ ३३९. शीतलनाथ जिनालय, बालोतरा : पू० जै०, भाग १, लेखांक ७३१ ३४०. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी० लेखांक ८८१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: 'सहितेन For Personal & Private Use Only (६५) Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४१) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५०४ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ७ दिने उकेशवंशे साधुशाखायां सा० लखमण सुत सा० महीपाल सा० बील्हाख्य तेत्र (?) सा० महीपा भा० रूपी पुत्र सा० तेजा सा० वस्ताभ्यां पुत्राादिपरिवारयुताभ्यां स्वश्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं श्रीखरतर-श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्रीः॥ (३४२) आदिनाथः सं० १५०४ फागुण सुदि ९ दिने महतियाणवंशे जाटडगोत्रे सं० देवराज सं० षीमराज पुत्र सं० सिवराजेन। भार्या सं० माणिकदे पुत्र सं० रणमल धर्मदास सकुटुम्बेन श्रीआदिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनवर्द्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरीणां निदेसेन वाचनाचार्य शुभशीलगणिभिः श्रीखरतरगच्छे। (३४३) शान्तिनाथः सम्वत् १५०४ फागुण सुदि ९ दिन महतिआणवंशे जाटड़गोत्रे सा० देवराज पुत्र सं० षीमराज पुत्र सं० सिवराज तेन पुत्र सं० रणमल धर्मदास । श्रीशान्तिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरीणां निदेसेन वाचनाचार्य शुभशील गणिभिः। . (३४४) शान्तिनाथः (१) ॥संवत् १५०४ वर्षे फागण सुदि ९ महतीयाणवंशे ठ० देवसी पुत्र सं० भोलू वहनी लखाई भार्या वेणी । श्री शांति(२) नाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठतं श्रीजिनसागरसूरीणां निदेशन वा० शुभशीलगणिभिः (३४५) पार्श्वनाथः (१) संवत् १५०४ वर्षे फागुण सुदि ९ दिने महतीयाणवंशे वर्त्तिदिया (?) गोत्रे ठ० हरिपा(२) लेन लार्या लाडो पु० ठ० हरिसि। श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्टितं । श्री (३) खरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरीणां निदेशेन वाच(४) नाचार्य शुभशीलगणिभिः॥ (३४६) पार्श्वनाथः संवत् १५०४ वर्षे फागुण सुदि ९ दिने महतियाण....." .......... श्रीपार्श्वनाथबिंबं श्रीखरतरगच्छे ........... श्री जिनसागरसूरीणां निदेशेन श्रीशुभशीलगणिभिः॥ ३४१. चोसठिया जी का मंदिर, नागोर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३८० ३४२. स्वर्णगिरि, राजगिर: पू० जै०, भाग १, लेखांक २५६; जै० ती० स० सं०, भाग २, पृ० ४५९ ३४३. गाँव का मंदिर, राजगिरः पू० जै०, भाग १, लेखांक २३९ ३४४. गांव का मंदिर, राजगिर: पू० जै०, भाग २, लेखांक १८४६ ३४५. खण्डहर, वैभारगिरिः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८५६ ३४६. बड़ा मंदिर, वैभारगिरिः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८५४ (६६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४७) महावीरः ॥ सं० १५०४ वर्षे फागुण सुदि ९ दिने महतियाणवंशे काणागोत्रे स० कउरसी पुत्र म० भीषण कारितं श्रीमहावीरबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरीणां निदेशेन वाचनाचार्य शुभशीलगणिभिः। (३४८) महावीरः ॥ औं संवत् १५०४ वर्षे फागुण सुदि ९ दिने महतीयाणवंशे जाटडगोत्रे सं० देवराज पुत्र सं० षीमराज पुत्र सं० जिणदासेन श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्र सूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरीणां निदेशेन वाचनाचार्य शुभशीलगणिभिः॥ (३४९) महावीरः संवत १५०४ फागुण सुदि ९ महतियाण वंशे मुंडतोड़गोत्रे । मं० महणसी पुत्र सं० देपाल भार्या मू० महिणि स्वकुटुंबेन भ्राता व० मित्र लखमी पुत्र व्य० हंसराज पुत्र.......... श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर वा० शुभशीलगणिभिः................. "| (३५०) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०५ वैशाख सुदि २ बुधे लठाउरागोत्रे सं० नगराज भा ० लाढ़ी सु० सं० धनराजेन भा० सेनाई पु० सं० कालुप्रमुखपरिवारेण स्वश्रेयोर्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीगुरु श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं । (३५१) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ संवत् १५०४ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने ऊकेशवंशे सा० झांझा पु० सा० गेहाकेन भार्या गौरदे गंगादे पुत्र कालू खेता जइता दूल्हा माल्या पौत्र तोल्हा केलू वरसिंह................... ग युतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छाधीश। श्री जिनभद्रसूरिभिः॥ श्री: (३५२) पार्श्वनाथ-परिकर : · श्रीखरतरगणे श्रीजिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितं श्रीपार्श्वनाथबिंबं परिकर: कारि.."सहितेन सं० १५०५ वर्ष ज्येष्ठ.......... (३५३) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः स० १५०५ वर्षे आषाढ़ सुदि ७ दिने श्रीमालज्ञातीय महतागोत्रे मं० झांझड़ पुत्र वाहड़ सं. भाहड़ ३४७. जैन मंदिर, कुण्डलपुर बिहार : पू० जै०, भाग १, लेखांक २७० ३४८. खण्डहर, वैभारगिरि, पू० जै०, भाग २, लेखांक १८५५ ३४९. काकंदी तीर्थ : पू० जे०, भाग १, लेखांक १७१ ३५०. आदिनाथ चैत्य, थराद : जै० प्र० ले० सं०, लेखांक ९७ ३५१. शांतिनाथ जिनालय, रामपुरा: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३९० ३५२. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २६९१ ३५३. बालावसही, शत्रुजयः श० वै०, लेखांक १०३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सं० नाहड देहड़ पदम सुता.... ....... साहमऊ सं० धनराजेन षीमराज उदयराज पंजराज देहड़ मातृपितृश्रेयो) श्रीआदिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः __(३५४) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०५ वर्षे मार्गवदि ७ दिने शुक्र सवराशाह साखगोत्रे सा० उगड़ा भार्या पोपहादे पुत्र वीराकेन भा० वोकलदे कारिता प्रतिष्ठित खरतरगच्छे श्रीतितवईसूरि श्रीनिहालगरसूरिभिः श्रीअजितनाथबिंबं॥ (३५५) सुमितनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं०१५०५ वर्षे पोष सुदि १५ दिने ऊकेशवंशे प्राहमेचागोत्रे सा० नरसी भार्या देवलदे सुत सा० कडुआकेन स्वपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं । श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीजिनसागरसूरिभिः। (३५६) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०५ वर्षे पौषसुदि १५ दिने ऊकेशवंशे सा० सुधर्मभा० सलषणदे सुत.सा० बलाकेन भा० चंपाई सु० सहसकरणश्रीकरणादिकुटुंबयुतेन स्वश्रेयोऽर्थं श्रीचंद्रप्रभस्वामिबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीस्तंभतीर्थवास्तव्यानामेषां ऋद्धिर्वृद्धिर्भवतु कल्याणं भवतु ॥ (३५७) आदिनाथ- पञ्चतीर्थीः संवत् १५०५ वर्षे माघ वदि ७ बंभगोत्रे सा० सहजपाल पुत्र सहसाकेन पुत्र जेसा पुण्यार्थं पुत्र सहितेन खरतरगच्छे श्रीआदिनाथबिंब कारिता प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (३५८) अरनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५०५ वर्षे माह वदि ७ गुरु॥ श्रीमालवंशे पागणीगोत्रे सा० डूंगर सा० । देवराज भार्या गांगी श्रीअरनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीनि (३५९) शिलालेखः ___ सं० १५०५ वर्षे राणा-श्रीलाखापुत्र राणा श्रीमोकलनंदन राणा श्रीकुंभकर्णकोशव्यापारिणा साह कोला पुत्ररत्न भंडारी श्रीवेलाकेन भार्या वील्हणदे विजयमानभार्या रतनादे पुत्र भं० मूंधराज भं० धनराज भं० कुं र पालादिपुत्रयुतेन श्रीअष्टापदाह्वः श्रीश्रीश्रीशांतिनाथमूलनायक प्रासाद[:] कारित: श्रीजिनसागरसूरिप्रतिष्ठितः श्रीखरतरगच्छे चिरं राजतु । श्रीजिनराजसूरि श्रीजिनवर्द्धनसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनसागरसूरिपट्टाभोजार्कनंदतु श्रीजिनसुंदरसूरि प्रसादतः। शुभं भवतु। पं० उदयशीलगणि नंनमति॥ ३५४. नेमिनाथ जी का मंदिर, भाड़रबा : बा० प्रा० जै०शि०, लेखांक २२८ ३५५. ऋषभदेव जिनालय, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३९६ ३५६. शांतिनाथ जिनालय, जीरारपाड़ो, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७३९ ३५७. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ८९३ ३५८. अजितनाथ जिनालय, उज्जैन : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७४ ३५९. श्रृंगार चावडी जैन मंदिर, चित्तौड़ : प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४१६ (६८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६०) तपपट्टिका ... रत्नमूर्ति गणि॥ वा० जितसेन गणि। पं० हर्षभद्रगणि। मेरुसुंदरगणि जयाकरगणिजीवदेव ग....... (१) ॐ ॥ श्रीमहावीरतीर्थे श्रीसुधर्मस्वामिसंताने श्रीखरतरगच्छे श्रीउद्योतनसू(२) रि। श्रीवर्धमानसूरि। श्रीजिनेश्वरसूरि। श्रीजिनचंद्रसूरि। श्रीअभयदेवसूरि। श्री(३) जिनवल्लभसूरि। श्रीजिनदत्तसूरि। श्रीजिनचंद्रसूरि। श्रीजिनपतिसूरि। श्रीजिने(४) श्वरसूरि। श्रीजिनप्रबोधसूरि। श्रीजिनचंद्रसूरि। श्रीजिनकुशलसूरि। श्रीजिनपद्म(५) सूरि। श्रीजिनलब्धिसूरि। श्रीजिनचंद्रसूरि। श्रीजिनोदयसूरि । श्रीजिनराजसूरिसुगु(६) रुपट्टालंकार श्रीजिनभद्रसूरि विजयराज्ये श्रीजेसलमेरु दुर्गे श्रीचाचिगदे(७) वे पृथिवीं शासति सति संवत् १५०५ वर्षे(८) श्रीशंखवालगोत्रे सा० पेथा पुत्र सा० आसराज(९) भार्यया सा० खेता सा० पाता जनन्या गेली श्रावि(१०) कया वाचनाचार्य रत्नमूर्तिगणि सदुपदे(११) शेन वा० जितसेनगणि रम्योद्यमेन श्री त(१२) प: पट्टिका कारिता। लिखिता च पं० मेरुसंद(१३) र गणिना ॥ शुभमस्तु ॥ सद्भिर्वाच्यमाना चिरं नंद्यात्(१४) । श्रीकीर्तिरत्नसूरि (३६१) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०५ वर्षे कस............."रालाट । गोत्रे सा० कपूरा भार्या वीसल" संभवनाथबिंबं प्रतिष्ठितं ...................."जिनभद्रसूरिभिः (३६२) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५०५ वर्षे सुदि ५ रवौ उपकेशवंशे साधुशाखायां सा० धन्ना भा० धन्नादे पुत्र सा० मंडन सा० पहजाभ्यां स्वपितु:श्रेयसे श्रेयांसनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः। (३६३) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५०६ वर्षे वैशाख सुदि ६ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ मांकड मातृ मेलादे भ्रातृ गांगा गेलानिमित्तं सुत लालाकेन श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्र० चतुर्दशीपक्षे महूकरगच्छे भ० श्रीधनप्रभसूरिभिः॥ ३६०. संभवनाथ मंदिर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१४४ ३६१. महावीर जिनालय (वेदों का), बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १२८४ ३६२. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पायधुनी, मुम्बई : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १०२ ३६३. संभवनाथ का मंदिर, झवेरीवाड़, अहमदाबादः प्रा० ले० सं०, लेखांक २२३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह :) (६९) For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६४) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०६ वर्षे वैशाख सुदि ६ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञा० पितृ मांकड मातृ मेलादे भ्रातृ गांगागेलानिमित्तं सुत लालाकेन श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्र० चतुर्दशीपक्षे महूकरगच्छे भ० श्रीधनप्रभसूरिभिः ।। (३६५ ) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०६ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने ऊकेशवंशे सा० नाथू पुत्र सा० अमराकेन भ्रा० वधा पु० दशरथ पुना कुशलायुतेन श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (३६६) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ४ दिने सोनीगोत्रे सा० जीऊसन्ताने सा० खीमा पुत्र सा० करमाकेन महणा-पुण्यार्थ श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं रुद्रपल्लीयगच्छे श्रीजिनहंससूरिपट्टे श्रीजिनराजसूरिभिः __ (३६७) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ संवत् १५०६ वर्षे पोष सुदि १५ दिने श्रीऊकेशवंशे अजितनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे-श्रीजिनभद्रसूरि गुरुराज्ञाविधेयी सं० पूना भा० विल्ही श्राविकया। (३६८) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः . ॥ ॐ ॥ सं० १५०६ पौ० शुद्ध १५ ऊकेशवंशे नाहरशाखायां सा० सरवण भार्या धर्मिणी पुत्र सा० सामल भार्या सामलदे पुत्र सा० श्रीरंगेण भार्या राजलदे पुत्र सा० साधारण प्रमुखपरिवारयुतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छाधिपति-जिनभद्रसूरिभिः॥ शुभंभवतु पूजकानाम्। (३६९) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०६ वर्षे पौष सुदि १५ दिने श्रीउकेशवंशे चोहितगोत्रे सा० हंसी भार्या सुखदे तत्पुत्र सा० मेहा जेठाभ्यां सा वर्धनामृतादि सपरिवाराभ्यां पुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं श्रीजिनराजसूरि प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ ___ (३७० ) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ सं० १५०६ पो० शु० १५ सोमे श्रीसामकठगोत्रे सा० करमा भा० करमादे पुत्र सा० जगसीरत्नाभ्यां पुत्र देल्हा पौत्र छाजू प्रमुखपरिवारयुताभ्यां श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतर० श्रीजिनभद्रसूरिसर्वप्रवरागमैः॥ ३६४. महावीर देरासर, झवेरीवाड, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८६३ ३६५. संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८०६ ३६६. आदिनाथ जिनालय, भैंसरोडगढ़ः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४०१ ३६७. महावीर जिनालय, भिनायः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४०६ . ३६८. यति लालचंद जी का मंदिर, रतलामः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४०५ ३६९. जैन मंदिर बड़ोद (मालवा): मालवांचल के जैन लेख, लेखांक २५१ ३७०. ऋषभदेव जिनालय, मालपुरा: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४०४ (७०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७१) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५०६ माघ वदि ११ तिथौ श्रीमालान्वये ढोरगोत्रे सा० तोल्हा तद्भार्या सरामानी तत्पुत्र सा० महराजी श्रीशान्तिनाथबिंब कारापितं प्रतिष्ठितं । श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ शुभंभवंतु। (३७२) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: सं १५०६ फागुण सुदी ४ सोमवार आश्विन्या लोढागोत्रे सा० शांशा संतान सा० हांसा पु० सा० वस्तुपालेन पितृश्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्र० रुद्रपल्लीय श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः॥ (३७३) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॐ ॥ सं० १५०६ वर्षे श्रीऊकेशज्ञातीय कांकरियागोत्रे सा० महीपाल भार्या वारु पुत्र सा० नरसिंह श्रावकेण भ्रातृ अरसी पुत्र पूंजा सहितेन निजश्रेयसे श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (३७४) नोमिनाथ-तोरण संवत् १५०६ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि विजयराज्ये श्रीनेमिनाथतोरण कारितं । सा० आपमल्ल पुत्र सा० पेथा तत्पुत्र सा० आसराज तत्पुत्र सा० खेता सा० पाताभ्याम् निज मातृ गेली श्राविका पुण्यार्थं । (३७५ ) परिकरलेख: संवत् १५०६ वर्षे श्रीजिनभद्रसूरिसद्गुरूपदेशेन सा ० रतना पुत्र सा० साजण सा० मूला संसारचन्द्रश्रावकैः परिकरः कारितः स्थापितश्च वा० रत्नमूर्ति गणिना। (३७६) धर्मनाथः ॥ संवत् १५०७ वर्षे ज्येष्ठ वदि २ दिने सोमवारे ऊकेशवंशे बुहरागोत्रे सा० अजु तत्पुत्र सा० महिराज तत्पुत्र गोरा प्रमुखसारपरिवारयुतेन माल्हणदे पुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ . (३७७) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ ॐ ॥ सं० १५०७ वर्षे ज्येष्ठसुदि १ दिने श्रीऊकेशवंशे लोढागोत्रे सा० देवराजसंताने सा० षेड़ाभार्या भरमी पुत्र मूला राणा सा० नयणाश्राद्धैः मूला पुत्र लषमणयुतैः पुण्यार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंब कारि० प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिगणधरैः॥ श्रीः॥ ३७१. पंचायती मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४०७ ३७२. आदिनाथ जिनालय, राजगढ़, धार: मालवांचल के जैन लेख, लेखांक १४० ३७३. पंचायती मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४१२ ३७४. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २६९५; जैन तीर्थ सर्वसंग्रह, भाग १, खंड २, पृ० १६७ ३७५. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, जैसलमेर: ना० बी० लेखांक २६६८ ३७६. मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४१५ ३७७. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३२३ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) (७१) For Personal & Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७८) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५०७ ज्येष्ठ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे सा० भोणसी भार्या कपूरदे श्राविकया निज भर्तृ भोसीपुण्यार्थं श्री आदिनाथबिंब कारि० प्रति० खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनराजसूरिपट्टालंकार प्रति० श्रीजिनभद्रसूरिराजैः ॥ (३७९ ) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५०७ ज्येष्ठ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे गणधरगोत्रे सायर पुत्र शिखरा श्राद्धनदेव दशरथ प्रमुख परिवारयुतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्री श्रीजिनभद्रसूरिभिः (३८०) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५०७ ज्येष्ठ सु० २ दिने उकेशवशे नाहटागोत्रे सा० जयता भार्या जयतलदे तत्पुत्र सा० संगरेण पुत्र सलषा अजादि परिवारयुतेन श्रीसुमतिनाथ बिं० का० प्र० श्रीजिनभद्रसूरिभिः खरतरगच्छे। (३८१) वासुपूज्य - पञ्चतीर्थी : ए । सं० १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने श्रीउकेशवंशे लोढागोत्रे सा० भोला संताने सा० बीरा भार्या भावलदे पुत्र सा० भाडाकेन पुत्र नीसल बीसल दूदा माका सहितेन श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छाधीश श्रीजिनराजसूरिपट्टालङ्कार श्रीजिनभद्रसूरि-युगप्रधानगुरुराजौ । (३८२) वासुपूज्य - पञ्चतीर्थी : ॥ ६० ॥ सं० १५०७ ज्येष्ट सु० २ दिने ऊकेशवंशे संखवालगोत्रे सा० कोचर मूलू हीरा पुत्र सा० मिहरा श्राद्धेन पु० सा० लाला देका राउलयुतेन श्री वासुपूज्यबिंबं कारि० प्रति० खरतरगच्छाधीश श्रीजिनभद्रसूरि युगप्रधानवरैः ( ३८३) अनन्तनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे वरहड़ियागोत्रे सा० देपा श्रावकेण पुत्र काकमादिसहितेन भार्या सोखी श्रेयोर्थं श्री अनंतनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ ( ३८४ ) शांतिनाथ - पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे संखवालेचागोत्रे कोचर संताने सोना सांगा पुत्र सा० वीरम श्राद्धेन भार्या करमादे पुत्र पदमा पीथा सहितेन पुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारि० प्रति० श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनराजसूरिपट्टालंकार श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ ३७८. पंचायती मंदिर, लस्कर, ग्वालियरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १४०० ३७९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ९१६ ३८०. नवघरे का मंदिर, चेलपुरी, दिल्लीः पू० जै०, भाग १, लेखांक ४७३ ३८१. मथियान मोहल्ला, बिहारः पू० जै०, भाग १, लेखांक २१४ ३८२. महावीर स्वामी का मंदिर (वैदों का), बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १३२१ ३८३. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २३२४ ३८४. ऋषभदेवजी का मंदिर, नाहटो में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४३६ (७२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८५) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥६० ॥ संवत् १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने श्रीऊकेशवंशे बोथिरागोत्रे सा० जेसल भार्या सूदी पुत्र सा० देवराज सा० वच्छा श्रावकाभ्यां श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिपट्टालंकार श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे || शुभम्॥ ___ (३८६) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः सं० १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे चौपड़ागोत्रे सा० कमोण पुत्र सा० देशलेन युतेन श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का० प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (३८७) अभिनन्दनः ॥ सं० १५०७ वर्षे फागुण वदि ३........ श्रीसहजपालेन........ श्रीअभिनन्दनबिंब कारि० श्रीखरतरगच्छे प्र० श्रीजिनसागरसूरिभिः।। (३८८) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५०७ वर्षे फा० व० ३ बुधे ओशवंशे बहुरा हीरा भा० हीरादे पु० व० खेता भा० खेतलदे पुत्र व० महीपति पितृश्रेयसे श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरि-श्रीजिनसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं । __ (३८९) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०७ वर्षे फा० व० ३ बुध नवलक्ष शाखा सा० रतना पु० पांचा पु० जिणदत्तेन फामण पु० पार्थ श्रीकुंथुनाथबिंब कारितं श्रीजिनसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (३९०) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ संवत् १५०७ वर्षे फागुण वदि ३ दिने बुधे ऊकेशवंशे वडू (इ) नातालागोत्रे सा० लाहड पुत्र सा० कउराकेन श्रीमुनिसुव्रतनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्र(? चन्द्र)सूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः। (३९१) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०७ वर्षे चैत्र वदि ५ शनौ लोढागोत्रे । श्रे० गुणा भार्या गुणश्री पुत्र श्रे० पूंजा-काचरभ्यां पितृव्य धन्ना पुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिं० का० प्र० खरतर० श्रीजिनचन्द्रसूरि-श्रीजिनसागरसूरिभिः।। ३८५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखाक ९१५ ३८६. शीतलनाथ जी का मंदिर, कोटडा बाड़मेर: बा० प्रा० ०शि०, लेखांक ३९ ३८७. चन्द्रप्रभ जिनालय, केकड़ी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४२७ ३८८. युगादीश्वर मंदिर, मेड़ता सिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखाक ४२५; प्रा० जै० ले० स०, भाग २, लेखांक ४३३; __पू० जै० भाग १, लेखांक ७६७ ३८९. महावीर जिनालय (वैदो का) बीकानेर : ना० बी० लेखांक १२७९ ३९०. शंखेश्ववर पार्श्वनाथ जिनालय, शंखेश्वर : शंखेश्वर महातीर्थ, लेखांक १७ ३९१. चन्द्रप्रभ जिनालय, आमेर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४१३; पू० जै०, भाग २, लेखांक ११५१ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) (७३) For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९२) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५०९ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने श्रीमालज्ञाते धेकरीयागोत्रे सा० रामा पुत्र सा० राजाकेन पुत्र खेता वील्हा कल्हायुतेन बृहत्पुत्र छडा पुण्यार्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रति ० श्रीजिनभद्रसूरिभिः खरतरगच्छे ॥ (३९३) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५०९ वर्षे आषाढ़ सु० २ शने उपकेशज्ञाति छाजहड़गोत्रे सं० झूठिल सुत महं ० कालू भा० कर्मादे पु० मं० नोडाकेन स्वपु० श्रेयांसबिंब का० प्र० खरतरगच्छे भ० श्रीजिनशेखरसूरि प० भ० जिनधर्मसूरिभिः॥ शुभं॥ (३९४) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५०९ वर्षे आषाढ सुदि २ शनौ उपकेशज्ञातो छाजहड़गोत्रे म० झूठी। लसूत महं कालू भा० कर्मादे पु० मं० नोड़ाकेन स्वपु० श्रेयांसबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे भ० श्रीजयशेखरसूरिभिः प्र० ॥ (३९५) अनंतनाथ-चतुर्विंशतिः संवत् १५०९ वर्षे कार्तिक सुदि ३ गुरौ ॥ ऊकेशवंशे भ० भीमा सुत भ० दसराज भा० जीविणि पुत्र भ० महिपति सोनपाल सहिताभ्यां आत्मपुण्यार्थं श्रेयोर्थं श० चतुर्विंशतिपट्टः। कारापितः प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीअनंतनाथबिंबं । (३९६) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०९ वर्षे का० सुदि १३ गुरौ उकेशवंशे वालढगोत्रे सा० तुणसी भा० जसमादे पुत्र सा० वीरमेण पत्नी देविणि पुत्र सा० जूठा सा० पापा पौत्र कुरा करणा हर्षा हरिराज पहिराज बहूआदिपरिवारेण श्रीचंद्रप्रभबिंबं का० खरतरश्रीजिनभद्रसूरिभिः प्र०॥ (३९७) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः , ॥ ॐ ॥ सं० १५०९ वर्षे कार्तिक सुदि १३ ऊकेशवंशे भणसरिलगोत्रे सा० जैसिंह भार्या राजलदे सुत सा० वीदाकेन भ्रातृव्य सं० मेरा सा० रणधीराभ्यां पुत्र देवराज वत्सराज प्रमुखपरिवारयुतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीचंद्रप्रभबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभि : प्रतिष्ठितं ॥ (३९८) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थाः सं० १५०९ वर्षे का० सु० १३ ऊकेशवंशे रीहड़गोत्रे वक्कण भा० बारू सुत सा० जेठाकेन भार्या सीतादे पुत्र मालो बग्गा ईसर प्रमुख परिवारयुतेन श्रीश्रेयांसबिंबं का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ ३९२. देहरी क्रमांक २५९, शत्रुजयः श० गि० द०, लेखांक १९० ३९३. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी० लेखांक २७४१ ३९४. शांतिनाथ जिनालय, जैसलमेर दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१५९ ३९५. सहस्रफणा पार्श्वनाथ मंदिर, अम्बाबाड़ी शेरी, राधनपुर : रा०प्र० ले० सं०, लेखांक १५८ ३९६. चौमुखजी देरासर अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग० १, लेखांक ८९१ ३९७. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३२८ ३९८. शांतिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८२३ (७४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९९) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १५०९ वर्षे कार्तिक सु० १३ गुरौ उपकेशवंशे वहरागोत्रे सा० ................. पुत्र हरिपाल भार्या राजलदे पुत्र सा० धरमा भार्या धनाई पुत्र सा० सहजाकेन स्वपितृपुण्यार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं। श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रधानगुरुभिः प्रतिष्ठितः। (४००) पार्श्वनाथ-पञ्चती : सं० १५०९ वर्षे का० सुदि १३ गुरौ ऊकेशवंशे डाकुलियागोत्रे सा० जिणदे सुत सा० देवा भार्या सारू पुत्र सा० केशवेन भार्या रखी रुकमिणि पुत्र जेठा मण्डलिक रणधीरादि परिवारेण श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर-श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रवरेण । __ (४०१) महावीर-पञ्चतीर्थीः सं० १५०९ वर्षे कार्तिक सुदि १३ दिने ऊकेशवंशे भणसालीगोत्रे भं० सुहडा सुत भं० सादा भार्या सहजलदे सुत भं० सोमसीहेन भार्या दूल्हादे पुत्र भ० मदन तत्पुत्र भ० ठाकुरसीप्रमुख परिवारयुतेन श्रीमहावीरबिंबं स्व श्रेयो) कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (४०२) महावीर-पञ्चतीर्थीः सं० १५०९ वर्षे कार्तिक सु० १३ श्रीमाल सं० रेडा भा० खीमिणि पुत्र सं० चांपाकेन भार्या कपूरी प्रमुखपरिवारयुतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीमहावीरबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (४०३) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥६० ॥ संवत् १५०९ मार्गशीर्ष सुदि ६ दिने श्रीऊकेशवंशे साहूसखागोत्रे सा० सखा भार्या खेडी तत्पुत्र सा०डूंगर श्रावकेण पुत्र सा० धासायरादि परिवारसहितेन निजपुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिराजभिः॥ (४०४) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०९ वर्षे मार्ग सुदि ६ दि ऊकेशवंशे साधुशाखायां प० जेठा भा० जसमादे पु० दूदाकेन पु० पद्मा पौत्र वस्तायुतेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टालंकार श्रीजिनभद्रसूरिभिः शुभंभवतु ३९९. शीतलनाथ जिनालय, बालोतरा: पू० जै०, भाग १, लेखांक ७३२ ४००. महावीर जिनालय, वैदों का, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १२२१ ४०१. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, चिन्तामणि शेरी, राधनपुरः रा० प्र० ले० सं०, लेखांक १५६ . ४०२. जैन मंदिर, कलारवाड़ा, पाटण : भो० पा०, लेखांक ४१७ ४०३. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८४३ ४०४. पार्श्वनाथ सेढूजी का मंदिर, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक १९८० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०५) आदिनाथ पञ्चतीर्थी: सपरिकर ॥ ए ॥ संवत् १५०९ वर्षे मार्गसिर सुदि ६ दिने श्रीऊकेशवंशे कांकरियागोत्रे सा० देल्हा भा० सूण तत्पुत्र सा० जीवा - साहाभ्यां पु० जगा - कमलादियुताभ्यां स्वपितृपुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारि० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्टि[ष्ठि]तं ॥ (४०६) सुमतिनाथ - चतुर्विंशतिः ॥ संवत् १५०९ वर्षे मार्गसरि सुदि ६ श्रीमालवंशे माधालगोत्रे सा० रणसी संताने सा० नानिग भार्या संपूरी पुत्र सा० श्रीमेघराजेन भ्रातृ श्रीखीमराज युतेन भा० हंसाई श्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथ प्रमुखचतुर्विंशतिजिनपट्टः कारितः । प्रतिष्ठितः श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टालंकार - श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रधान शिरोमणिभिः ॥ (४०७ ) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : संवत् १५०९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ६ दिने ऊकेशवंशे नाहरगोत्रे सा० धनु पुत्र साजणेन भार्या सहजलदे पुत्र मूला गहा गेहा पौत्र हापा नगा भादायुतेन श्रीसुमतिबी (बिं) बं कारि० प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टेश्वर - श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ ४०८ ) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५०९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ६ दिने ऊकेशवंशे श्रे० सीहा भार्या सलषू पुत्रेण श्रेष्ठिमहिराजेन निजमातृपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टेश-श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रवरागमैः ॥ (४०९ ) सुमतिनाथ : सं० १५०९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ६ दिने ऊकेशवंशे साधुशाखायां प० जेता भा० जल्हणदे पुत्र सा० सदा श्राद्धेन भा० सहजलदे पुत्र हापा थावरयुतेन श्रीसुमतिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपदे श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रवरागमे । कल्याणं भवतु । ( ४१० ) सुमतिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५०९ वर्षे मार्गशीर्ष सु० ६ दिने ऊकेशवंशे साधुशाखायां प० जेता भार्या जाल्हणदे पुत्र सा० सदा श्राद्धेन भा० सहजलदे पुत्र हापा - थावरयुतेन श्रीसुमतिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रवरागमैः ॥ कल्याणमस्तु ४०५. आदीश्वर मंदिर, बाघेश्वरपोल, अहमदाबाद: पारीख और शेलेट : जै० इ० इ० अ, लेखांक २६५ ४०६. पार्श्वनाथ जिनालय, औरंगाबाद : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ८३ ४०७. आदिनाथ जिनालय, जामनगर : प्रा० ले० सं०, लेखांक २४३ ४०८. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३० ४०९. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८२३ ४१०. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१४८ (७६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४११) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १५०९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ६ दिने ऊकेशवंशे कांकरियागोत्रे सा० खीमा पु० हीरा भा० मटकाई पु० जीवा-जगाभ्यां श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० श्रीजिनराजसूरिपट्टालंकार-श्रीजिनभद्रसूरिखरतरगच्छेश ।। (४१२) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५०९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ६ दिने श्रीमालवंशे मथा(घा)लगोत्रे सा० नानिग पुत्र सा० मेघा सा० खीमा भगिन्या चंगाईश्राविकया श्रीविमलनाथबिंब कारितं श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं शुभं॥ (४१३) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि६ श्रीऊकेशवंशे शंखवालीगोत्रे सा० वस्तापुत्र सा० कुमरपाल भार्या कर्मिणि पुत्र सा० तोलाकेन पितृपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंब कार(रितं) प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ शुभमस्तु॥ (४१४) धर्मनाथनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५०९ वर्षे मार्गसिर सुदि ६ शनौ ऊकेशवंशे कादीगोत्रे कादा सा० नेमण भा० श्रा० गरिनारी पुत्र का० सा० जीवाभा० सोनाई स्वपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ - (४१५) सपरिकर-शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: एर्द० ॥ संवत् १५०९ वर्षे मार्गसिर सुदि ६ दिने श्रीमालवंशे मघालगोत्रे सा० रणसिसंताने सा० नानिगभार्या संपूरी तत्पुत्र सा० षीमराजेन स्वपितृपुण्यार्थं श्रीशांतिदेवबिंबं कारितं प्रतिष्टि[ष्ठि]तं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ श्री॥ (४१६) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५०९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ७ दिने ऊकेशवंशे भणसाली गोत्रे सा० काल्हा पुत्र भोजा श्राद्धेन भार्या भोजलदे पुत्र तोला चोल्हा केल्हा युतेन श्रीशान्तिबिंबं का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीश्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (४१७) धर्मनाथ-चतुर्विंशतिः सं० १५०९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि सप्तम्यां ऊकेशवंशे भाण्डशालिकगोत्रे महिराज भा० माल्हणदे सुत भा० धरणाकेन भा० हांसु पुत्र तेजपाल स्वज्येष्ठभ्रातृ भं० करणा भार्या पुराई पुत्र सिवदत्तादिपरिवारयुतेन ४११. शान्तिनाथ देरासर, शेखनो पाडो, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०४८ ४१२. शान्तिनाथ जिनालय, छांणी : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २५८ ४१३. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, लाजग्राम : अ० प्र० जै० ले० सं०, भाग ५, लेखांक ४७६ ४१४. आदिनाथ जिनालय, परा, खेड़ा : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२४ ४१५. पद्मप्रभ जिनालय, सारंगपुर, अहमदाबाद : पारीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक २६६ ४१६. महावीर जिनालय बोरों की शेरी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७१८ ४१७. आदीश्वर मंदिर, झवेरीवाड़, पाटण : भो० पा०, लेखांक ४१८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (७७) For Personal & Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वश्रेयसे श्रीधर्मनाथचतुर्विंशतिपट्टः का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे भट्टारक श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रति० चिरंनंदतु श्रीसत्यपुरवास्तव्य॥ (४१८) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०९ वर्षे मार्गशीर्ष सु० ७ ऊकेशवंशे व्यवहारिगोत्रे सा० जांउण सा० भट्टा भा० रत्नादे पु० सोमाकेन भा० हीमादे पु० सा० माका सा० जगमाल सा० पूनमालप्रमुखपरिवारयुतेन स्वश्रेयसे श्रीकुन्थुनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं ॥ श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः। चिरंनन्दतु (४१९) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०९ वर्षे मार्ग सुदि ७ ऊकेशवंशे गा(? मा)लू शाखायां सा० पूना सुत सा० सहसाकेन पुत्र ईसर महिरावण गिरराज माला पांचा महिया प्रमुखपरिवारेण स्वश्रेयोर्थं श्रीकुन्थुनाथबिंबं का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्री॥ (४२०) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५०९ वर्षे मार्गशिर सुदि ७ दिने उपकेशवंशे साधुशाखायां सा० लखमण सुतं सा० महिपाल सा० वील्हाख्यौ तत्र सा० महिपाल भार्या रूपी पुत्र सा० तेजा सा० वस्ताभ्यां पुत्रादिपरिवारयुताभ्यां स्वश्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं श्रीखरतर-श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्रीः॥ • (४२१) अम्बिकामूर्तिः ॥ सं० १५०९ वर्षे मगसिर सुदि ७ दिने श्रीमालवंशे भडियागोत्रे सा० छाडा भार्या मेषु पुत्र सा० प्रमदाकेन भ्रातृ सा० काला श्रेयोर्थं श्रीअंबिकामूर्तिः का० प्र० श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीसस......... (४२२) अभिनन्दन-पञ्चतीर्थीः . सं० १५०९ वर्षे मगसर सु......................"ऊकेशवंशे रीहडगोत्रे सा० खीमसी भा० रानू पु० सा० जावड़सुश्रावकेण भार्या रोहिणि-पुत्र गोनाप्रमुखपरिवारसहितेन श्रीअभिनन्दनबिंब का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितं ॥ श्री॥ (४२३) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०९ माघ सुदि ५ श्रीऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा० ठाकुरसी सुत सा० कालू केन पुत्र मेघा माला नाल्हा पौत्र सुरजन प्र० परिवारेण स्वश्रेयोर्थं श्रीविमलबिंबं का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं। ४१८. शान्तिनाथ देरासर, वीसनगर : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १,लेखांक ५०८ ४१९. महावीर जिनालय, आसाणियों का चौक, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८९५ ४२०. ऋषभदेव जिनालय, हीरावाडी, नागोर : पू० जै०, भाग २, लेखांक १२५५ ४२१. पित्तलहर मंदिर, आबू : अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२२ ४२२. नारंग पार्श्वनाथ मंदिर, झवेरीवाड़, पाटण : भो० पा०, लेखांक ४१९ ४२३. चीरेखाने का मंदिर, दिल्ली : पू० जै०, भाग १, लेखांक ५०९ (७८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२४) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५०९ वर्षे माघ सुदि ७ ऊकेशवंशे मालू शाखायां सा० पूना सुत सा० सहसाकेन पुत्र ईसर महिरावण गिरराज माला पांचा महिपा प्रमुखपरिवारेण स्वश्रेयोर्थं श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्री ॥ (४२५) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५०९ वर्षे माघ सु० १० शनौ श्रीमालज्ञा० मूठियागोत्रे सा० खींवपाल पु० सोनाकेन आत्मश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनतिलकसूरिभिः ॥ (४२६ ) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५०९ वर्षे माघ सुदि १० शनौ श्रीमालज्ञा० मुठीयागोत्रे सा० षिपाल पु० सोनाकेन आत्मश्रेयसे आदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनतिलकसूरिभिः ॥ (४२७) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५०९ माघ सुदि १० शनै ऊ० व० वाघ. 'कर्मसी धर्मसी तोल्हादि भ्रातृ युतेन सा० सेकुकेन भा० सुहवदे पु० काला गोरा कान्हा सीहा प्रमुख परिवार सहितेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ श्री ॥ ( ४२८ ) आदिनाथ- पञ्चतीर्थीः संवत् १५०९ माघ सुदि १० शनौ ऊकेशवंशे माल्हूगोत्रे मं० भोजराज भार्या उमादे पुत्र सं० देवोकेन भ्रा० मं० सोनार - संग्रामादिसहितेन सू ( ? ) भार्या देवलदे श्रेयोर्थं श्रीअजितबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्री जिनसागरसूरिभिः ॥ (४२९) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५०९ वर्षे माघ सुदि १० शनौ ऊकेशवंशे साहुगोत्रे सा० तुंणा भा० भूपादे पु०स० सातलकेन भा० संसारदे पुत्र सा० हेमादियुतेन श्रीकुन्थुबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः। (४३०) कुन्थुनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५०९ वर्षे माघ सुदि १० ऊकेशवंशे साहगोत्रे सा० कालू भा० सारूश्राविकया पु० सा० तांता रांगा युतया श्री कुन्थुनाथ का० प्र० वरत (? खरतर ) श्रीजिनसागरसूरि (भिः) ४२४. शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय, आसानियों का मुहल्ला, बीकानेर : पू० जै०, भाग २, लेखांक १३३३ ४२५. बड़ा मंदिर, नागोर, प्रतिष्ठा लेख संग्रह, भाग १, लेखांक ४४५ ४२६. आदिनाथ जिनालय, हीरावाडी, नागोर, पू० जै०, भाग २, लेखांक १२५७ ४२७. आदिनाथ जिनालय, राजगढ़, धार : मालवांचल के जैन लेख, लेखांक १३९ ४२८. पंचायती मंदिर, लस्कर, ग्वालियर : पू० जै०, भाग २, लेखांक १३७२ ४२९. अजितनाथ का मंदिर, तारंगा : पू० जै०, भाग २, लेखांक १७२५ ४३०. महावीर स्वामी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १३४२ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : For Personal & Private Use Only (७९) Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३१) मुनिसुव्रत - पञ्चतीर्थी : सं० १५०९ वर्षे माघ सु० १० ऊकेशवंशे थुल्हगोत्रे सा० सलखा पुत्र सा० कुशलाकेन भा० तिगदे पुत्र भोला जोखा देपति हापादियुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का० खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्री जिनसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्रीरस्तुः ॥ ( ४३२ ) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी : संवत् १५०९ वर्षे ऊकेशवंशे दोशीगोत्रे मं० डूंडा पुत्र सा० परवत भार्या सांपू तत्पुत्रैः सा० आना चउडा धारा सुश्रावके पुत्र गणपति गुणदत्तादिकुटुम्बसहितैः श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे जिनभद्रसूरिभिः ॥ (४३३ ) सपरिकर-सम्भवनाथ - एकतीर्थीः ॥ संवत् १५०९ वर्षे श्रीऊकेशवंशे चंडालीगोत्रे भणसाली शामल भार्या विल्हणदे सुतस्य भ्रातृ भा० समराधिधरसुतस्य भा० सहसाकस्य भार्या देसाई नाम्न्या आत्मश्रेयोऽर्थं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरीणामुपदेशेन श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्टि[ष्ठि]तं श्रीसूरिभिः ॥ (४३४) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५०९ वर्षे - - उपकेशवंशे बहरागोत्रे सा०--- - श्रीसुमतिनाथबिंबं कारिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं । ( ४३५ ) अजितनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५० ........ "वर्षे जा(?) सुदि २ दिने ऊकेशवंशे लूणियागोत्रे सा० ऊधरण भार्या माणिकदे तत्पुत्र सा० दूदा सूदा भा० पुत्र सा० तेजा सा० बीकादिपरिवारसहिताभ्यां श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छ श्रीजिनराजसूरिपदे श्रीजिनभद्रसूरिभिः (४३६ ) प्रतिमा भ० हरा का० प्रतिष्ठितं च जिनभद्रसूरिभिः । (४३७ ) प्रतिमा भ० दूदाकारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः । ४३१. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७६४ ४३२. नेमिनाथ जिनालय, भिंडी बाजार, मुम्बई: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ११४ ४३३. वासुपूज्य मंदिर, शेखनो पाडो, अहमदाबाद : पारीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक २८२ ४३४. शीतलनाथ जिनालय, बालोतरा : पू० जै०, भाग १, लेखांक ७३३ ४३५. ऋषभदेवजी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४४३ ४३६. पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६४३ ४३७. पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६४२ (८०)) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३८ ) प्रतिमा दूदा कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीजिनभद्रसूरिभिः । (४३९) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५०(?) माघ सुदि १० शनौ उकेशवंशे थुल्लगोत्रे सा० सांडा भार्या करणू पुत्र सा० जिनदत्तेन सा० जगमाल साधु जीवा सा० जोग प्रमुखपरिवारयुतेन स्वभार्या श्राविकालखमादे पुण्यार्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं कारापितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टेश: श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ श्री ॥ (४४० ) वासुपूज्य - चतुर्विंशतिः ॥ संवत् १५९(? ०९) वर्षे श्रीमालवंशे नाचणगोत्रे सा० माल भार्या सरसति तत्पुत्र सा० अभयराजेन स्वमातृपुण्यार्थं मूलनायक श्रीवासुपूज्योपेत चतुर्विंशतिपट्टका० प्र० श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। खरतरगच्छे ॥ (४४१ ) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ ६० ॥ सं० वर्षे वै० ब० ४ दिने ऊकेशज्ञातीय दरड़ाशाखीय सा० कान्हड़ भार्या कपूर सुत सा० भावदेवेन सभा० गिजक्षिजात पुत्र भोला रणधीर प्रमुखकुटुंबसहितेन श्रीविमलनाथबिंबं कारिता प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ पित्रोः श्रेयोर्थं भोलाकेन का० (४४२ ) पार्श्वनाथ: 'देवा जयसिंह नरसिंहयुतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्ट (ट्टे) श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (४४३ ) परिकरलेख: खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । ( ४४४ ) अजितनाथ: श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीअजितनाथबिंबं ४३८. . पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६४४ ४३९. तपागच्छीय जैन मंदिर, बालापुर : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३०२ ४४०. संभवनाथ जिनालय, आंचलियों का वास, देशनोक, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२१८ ४४१. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ९६६ ४४२. महावीर जिनालय, अजारी : अ० प्र० जै० ले० सं०, भाग ५, लेखांक ४३३ ४४३. शान्तिनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७९६ ४४४. शान्तिनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७९१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (८१) Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४५) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥सं०...... .........."माणिकदे लखमाई खेमाइ प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीविमलनाथबिंबं स्वश्रेयोर्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। (४४६) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१० वर्षे चैत्र सुदि पूर्णिमायां श्रीश्रीमालज्ञातीय वहकटीगोत्रे सं० जमणा पुत्र सं० जयमल भा० रत्तूश्राविकया पुत्र जावड़ थाहरादिपरिवारयुतया स्वश्रेयोर्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः (४४७) संभवनाथः (१) ॥ सिद्धि ॥ संवत् १५१० वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ दिने शुक्रवासरे श्रीगोपाचलनगरे राजाधिराज श्रीडूंगरसिंह देवराज्ये ऊकेशबिं(वं)शे। (२) [पं०] चलउटगोत्रे भणमारी देवराज भार्या देल्हणदे तत्पुत्र भं० नाथा भार्या रूपाईस्वश्रेयोर्थं श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रति(३) ष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्य श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ श्रीरस्तु॥ (४४८) अजितनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ बुधे दीसावालवंशे मं० भीमसी पुत्र मं० ठोसा सुत मं० हेमाकेन भार्या चंगी भ्रा० मं० मेघायुतेन मातृपितृपुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरि श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ श्रीरस्तु। (४४९) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि द्वितीया दिने ऊकेशवंशे बहुरागोत्रे । सा० राजा भार्या वइजलदे। पुत्र सा० मल्हूकेन कलत्ररूपणि सुत कर्मसी प्रमुखकुटुंबयुतेन श्रीसंभवनाथबिंबं स्वपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (४५०) पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ बुधे उकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा० वरसिंग भा० सोषू पुत्र सा० गणपत सं० धणपतिभ्यां भा० माई भा० हर्षु पु० सा० पूंनसी युताभ्यां श्रीपद्मप्रभबिंबं का० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्री............" ४४५. शान्तिनाथ जिनालय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ११४८ ४४६. मोतीशाह की ट्रॅक, शत्रुजय : श० वै०, लेखांक १२९ ४४७. जैन मंदिर, अलवर : पू० जै०, भाग २, लेखांक १२३२ ४४८. अजितनाथ मंदिर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद : पारीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक २८९ ४४९. शान्तिनाथ देरासर, वीसनगर : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५२६ ४५०. महावीर स्वामी का मंदिर, तम्बोली शेरी, राधनपुर : रा० प्र० ले० सं०, लेखांक १६६ (८२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५१ ) सपरिकरः सुपार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ ए सं० १५१० वर्षे ज्येष्ट [ष्ठ] सुदि २ दिने मंत्रिदलीय कारुणागोत्रे सा० भोजा भार्या हांसू रंगाई श्राविकया स्वपुण्यार्थे श्रीसुपार्श्वबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्री जिनसागरसूरिभिः प्रतिष्टि [ष्ठि ] तं मू० मूला श्री ॥ ( ४५२) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठसुदि २ दिने ऊकेश छाजहडसा० हस्तिराज सा० नरसिंह सा० सिवा पु० सा० सहजपालेन सा० लखराज पुत्र सा० महिपालयुतेन सा० अदादिपूर्वजपुण्यार्थं श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का० श्रीखरतर० श्रीजिनसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (४५३) सपरिकर - सुविधिनाथ-चतुर्विंशतिः सं० १५१० वर्षे, ज्येष्ट (ष्ठ) सुदि २ दिने ऊकेश चोपड़ागोत्रे सा० वरसिंघ भार्या सोषू पुत्रेण गणपतियुतेन सं० धणपतिना भा० हर्षू पु० पुनसीहाद्या युतेन श्रीसुविधिनाथबिं० का ॥ श्रीजिनसागरसूरिभिः खरतरगच्छेश्वरैः ॥ (४५४) सपरिकर - सुविधिनाथ - चतुर्विंशतिः सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ दिने महतीयाण वीसलपुराज्ञातीय सुनामडागोत्रे सा० झाल्हा हरिराज भा० धीकीसुत सा० नरसीकेन भा० पूनारिमदसुत नगराज" "हेमासुत पासासवकारादि परिवारयुतेन निजमातृपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्री जिनसागरसूरिभिः ॥ श्री ॥ शुभं भवतु ॥ (४५५) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५१० वर्षे ज्येष्ठ सु० ३ गुरौ ऊकेशज्ञातीय छाजहडगोत्रे सा० जगडा भार्या कुंति पु० तिहुणाकेन भार्या वयजलदे पु० गेंदा देदा सहितेन मातृपितृस्वपुण्यार्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं । श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनशेखरसूरिपट्टे । भ० श्रीजिनधर्मसूरिभिः॥ छ ॥ ( ४५६ ) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५१० ज्येष्ठ सुदि ३ दिने ऊ० सा० गिरराज भा० श्रा० हर्ष पुत्रेण सा० जयसिंघेन विजपाल पुत्र सहितेन स्वमातृपितृपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ लेखांक २९१ ४५१. विमलनाथ मंदिर, लालभाई पोल, अहमदाबाद : परीख और शेलेट जै० इ० इ० अ०, ४५२. पार्श्वनाथ जिनालय, माणेकचौक, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ९१६ ४५३. सीमंधरस्वामी मंदिर, दोशीवाडापोल, अहमदाबाद: पारीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक २९० ४५४. आदीश्वर मंदिर, वाघणपोल, अहमदाबाद : पारीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक २९३ ४५५. आदिनाथ जिनालय, मालपुरा : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४५९ ४५६. धर्मनाथ जिनालय, औरंगाबाद : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ८७ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (८३) Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ........ __ (४५७) सपरिकर-महावीर-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१० ज्येष्ट(ष्ठ) सुदि......................."दिने मंत्रि० वंशे वायडगोत्रे ठ० थिरराज सुत सा० पहिराज भार्या रूपाई पुत्र सा० विजासहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ शुभंभवतु। __ (४५८) सम्भवनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि मंत्रिदलीयवंशे मुंडतोडगोत्रे सा० रत्नसिंह भार्या वाउ सा० देवसीकेन भार्या माणिक्यदेवी लूणदे० भ्रा० सा० सुदासी देवराज पुत्र बाछायुतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीसंभवनाथबिंबं का० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरि प्रतिष्ठितं ॥ (४५९) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१० वर्षे आषाढ़ वदि १ शुक्रे उपकेशवंशे भणगोत्रे म० माला भार्या माल्हणदे पु० कावाश्रावकेन बंधव गुणिया डूंगर मदा वदा राजा प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीशान्तिनाथबिंबं स्वपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ - (४६०) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः .............. वदि १ ऊकेशवंशे सा० हेमाकेन पुत्र हमाधिजामामुपरिवारयुतेन श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (४६१) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॐ ॥ संवत् १५१० वर्षे आषाढ़ वदि १० सोमे श्रीऊकेशवंशे माल्हूगोत्रे सा० जिणदत्त भार्या वणु पु० गांगा भा० गांगादे पुत्र कूमादियुतेन श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरग० श्रीजिनभद्रसूरिभिः (४६२) सपरिकर-वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १५१० वर्षे आषाढ़ वदि १२ सोमे ऊकेशवंशे माल्हूगोत्रे सा० जिनदत्तभार्यायां वरजूपुत्र सा० सारंग सुश्रावकेण भार्या जसवा[मा]दे पुत्र मेलादि सहितेन मातृपितृश्रेयसे श्रीवासुपूज्यबिंब कारितं प्रति० श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (४६३) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ संवत् १५१० वर्षे माघ सुदि ५ दिने गुरौ श्रीऊकेशवंशे लूणीयागोत्रे सा० लोहेर भा० ईसरदे पुत्र सा० सहसाकेन भा० रूपादे पु० जयतादिपरिवारयुतेन श्रीशान्तिनाथ कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे। ४५७. ऋषभदेव मंदिर, दोशीवाड़ापोल, अहमदाबाद : पारीख और शेलेट; जै० इ० इ० अ०, लेखांक २९६ ४५८. शान्तिनाथ जैन मंदिर, भिंडी बाजार, मुम्बई : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १२३ ४५९. आदिनाथ चैत्य, थराद : जै० प्र० ले० सं०, लेखांक ४८ ४६०. श्रीगंगा गोल्डेन जुबली म्यूजियम, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१६३ ४६१. पार्श्वचन्द्रगच्छ उपाश्रय, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४६२ ४६२. आदीश्वर मंदिर, पंचभाई की पोल, घीकांटा, अहमदाबाद : पारख और शेलेट-जै० इ० इ० अ०, लेखांक २९९ ४६३. पार्श्वनाथ जिनालय, लोद्रवा, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५४८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह :) For Personal & Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६४) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५१० माह सु० ५ श्रीमालवंशे नवलगोत्रे । सा० वीना पु० सा० गणपति पुत्र जगमाल। श्रीकुन्थुनाथबिंब कारितं श्रीखरतरगच्छे। श्रीजिनप्रभसूरिअन्व। प्र० जिनतिलकसूरिभिः॥ (४६५) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१० वर्षे माघ सुदि १२ शुक्र दिने श्रीमालज्ञातीय टांकगोत्रे सा० अर्जुन पुत्र सा० चारा तत्पुत्र सा० रेडा तेन निजश्रेयोर्थं श्रीशान्तिनाथबिंबं का० प्र० श्रीजिनतिलकसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे॥ __ (४६६) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१० फा० व० ३ शुक्रे श्रीऊकेशवंशे कूकडागोत्रे मं० लखमसी पुत्र मं० वयरसी पु० संपिघमा मं० कालाभ्यां मं० धणपतिपुण्यार्थं श्रीनमिनाथबिं कारितं । श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे । (४६७) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१० वर्षे मंत्रीदलीयगोत्रे सा० पाल्हा पुत्र गुणा पुत्र घोषा सहितेन आत्मपुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे॥ (४६८) आदिनाथः (१) ओ स्वस्ति संवत् १५११ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ पुष्यनक्षत्रे गुरौ श्रीमालवंशे ढोरगोत्रे सोवनपाल भार्या ....... (२) ......... ................................."आदिनाथ (३) खरतरग० श्रीजिनहर्षसूरिसंताने श्रीजिनतिलकसूरि प्रतिष्ठितं (४६९) सुमतिनाथः (१) ओ संवत् १५११ वर्षे ज्येष्ठ सु० ३ गुरौ (२) श्रीमालवंशे [ढोर]गोत्रे व० (३) सं० नढख अजीमल्ल भार्याया (४) पुत्र............ (५) श्रीसुमतिनाथबिंबं का० (६) प्रति० श्रीजिनचन्द्रसूरि....." (७) श्रीजिनतिलकसूरिभिः प्रतिष्ठितं ४६४. महावीर जिनालय, सांगानेर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४६५ ४६५. महावीर जिनालय, वैदों का, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १२२८ ४६६. आदिनाथ जिनालय, वडनगर : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५३८ ४६७. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ९३५ ४६८. शिखरचंद जी का जैन मंदिर, वाराणसी : पू० जै०, भाग २, लेखांक १८६१ ४६९. शिखरचंद जी का जैन मंदिर, वाराणसी : पू० जै०, भाग २, लेखांक १८६० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७०) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५११ वर्षे आषाढ़ वदि ७ ऊकेशवंशे नाहटगोत्रे सा० चांपा भार्या चांपलदे तत्पुत्र सा० बडूयाकेन पुत्र महिपति-महिराज-महिपालादिपरिवारयुतेन भगिनीस्याणीपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ . (४७१) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५११ वर्षे आषाढ़ वदि ७ ऊकेशवंशे मंत्रि मूजासंताने मं० जगा पुत्र मं० उदयसीह भार्या हांसलदे पुत्र मं० सरवणसुश्रावकेण भार्या वील्हण पुत्र सोना-महिपतिसहितेन श्रीकुन्थुनाथबिंबं का० प्र० श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रधानगुरुभिः खरतरगच्छे शुभं॥ (४७२) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः - ॥ ॐ ॥ संवत् १५११ वर्षे आषाढ वदि ९ ऊकेशवंशे रीहड़गोत्रे रतनसी संताने सा० पासड़ भार्या हीरू पुत्र साह धर्मा श्रावकेण भ्रातृ हेमा पु० साल्हा पद्मायुतेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे जिनराजसूरिपट्टालंकार श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (४७३) सम्भवनाथ-पञ्चतीर्थीः . ॐ ॥ सं० १५११ वर्षे आषाढ वदि ९ ऊकेशवंशे तेलहरागोत्रे मं० वाचा भा० चाहिणदे पुत्र मं० भादाश्रेयसे धना भा० धांधलदे पुत्र मं० पासा मं० आसाभ्यां पुत्र वच्छराजसहितो श्रीसंभवनाथबिंबं का० प्र० खरतर० श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (४७४) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५११ वर्षे आषाढ़ वदि ९ उकेशवंशे परीक्षगोत्रे का भार्या छक्कु पुत्र महिराज-हरिराजनगराजैः स्वपितृपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रति० खर० गण श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (४७५) सपरिकर-सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५११ वर्षे आषाढ़ वदि ९ ऊकेशवंशे मं० भीमासंताने मं० चांपा भार्या सूहवदे सुत मं० महिपतिना भ्रातृ गणपति भार्या अमरी सुत वस्तुपालयुतेन श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरियुगवरैः प्रतिष्टि[ष्ठि]तं। (४७६) सपरिकर-शीतलनाथ चतुर्विंशतिः ॥ ए सं० १५११ आषाढ़ वदि ९ श्रीऊकेशवंशे भणशालीगोत्रे भ० भीमा भार्या रूपादे पुत्र भ० दूदा ४७०. नारंग पार्श्वनाथ जिनालय, झवेरीवाड़, पाटण : भो० पा०, लेखांक ४७२ ४७१. कोका का पाड़ा, पाटण : भो० पा०, लेखांक ४७१ ४७२. बृहत् खरतरगच्छ का उपाश्रय : जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४८० ४७३. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१८३ ४७४. मोतीशाह ढूंक, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक ४४२ ४७५. कुन्थुनाथ जिनालय, सरदार सेठ की पोल, अहमदाबाद : परीख और शेलेट- जै० इ० इ० अ०, लेखांक ३१७ ४७६. आदीश्वर मंदिर, दोशीवाड़ा पोल, अहमदाबाद : पारीख और शेलेट- जै० इ० इ० अ०, लेखांक ३२० (८६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंपाई पुत्र भ० मांडणश्रावकेण भ्रातृ भ० हमीरस-समधर-सधारण प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीशीतलनाथप्रमुखचतुर्विंशतिजिनपट्टः कारितः। प्रतिष्टि[ष्ठि]तः श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे पूर्वाचलचूलिका। सहस्रकर श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रधानगणधरराजेन्द्रैः। (४७७) सपरिकर-वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५११ आषाढ वदि ९ ऊकेशवंशे टपणो श्रेयां वहरा सारंग भार्या चनू तत् पुत्र सा० उदेसी भा० सूहवदे पुत्र गोला श्रावकेण भा० जेसू पुत्र राजा वरसिंघ देवराजयुतेन श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्टि[ष्ठि]तं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (४७८) विमलनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५११ वर्षे आषाढ़ वदि ९ ऊकेशवंशे दोसीगोत्रे साह वरसिंघ पुत्र वडुया कडुया राजाश्रावकैः पुत्र लाडण वसू मनायुतेन विमलबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ शुभंभवतु। (४७९) शान्तिनाथ-चतुर्विंशतिः सं० १५११ वर्षे आषाढ़ वंदि ९ ऊकेशवंशे भ० गोत्रे आभूसंताने सा० पारस भा० पाबू पुत्र कम्मा भा० साधू पु० वज्रांग श्रवाकेण भा० गांगी लखमाई भ्रा० जीवा वज्रांगद प्रमुखपरिवारसहितेन श्रीशान्तिनाथबिंब का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टालंकृतिभिः श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (४८०) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५११ वर्षे आषाढ़ वदि ९ ऊकेशवंशे श्रेष्ठि रांकासंताने सं० धन्ना पुत्रेण सं० जगपाल श्रावकेण भार्या नायकदे पुण्यार्थं श्रीशान्तिनाथबंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (४८१) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५११ वर्षे आषाढ़ वदि ९ ऊकेशवंशे श्रेष्ठि रांकासंताने स० धन्ना पुत्रेण सं० जगपाल श्रावकेण भार्या नायकदे पुण्यार्थ श्रीशान्तिनाथबंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (४८२) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५११ वर्षे आषाढ़ वदि ९ श्रीउकेशवंशे शाहशाखायां सा० सोभ्रम श्रावकेन भार्या उसली पुत्र हरिपाल कुंरपालयुतेन श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिगुरुभिः॥ श्रीखरतरगच्छे॥ ४७७. चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, शान्तिनाथ पोल, अहमदाबाद : परीख और शेलेट- जै० इ० इ० अ०, लेखांक ३१९ ४७८. अजितनाथ मंदिर, भोयरा शेरी, राधनपुर : रा० प्र० ले० सं०, लेखांक १७७ ४७९. बाबू पन्नालाल पूर्णचन्द्र का घर देरासर, पाटण : भो० पा०,लेखांक १७३५; जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३८४ ४८०. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३३१ ४८१. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३३२ ४८२. नया जैन मंदिर, नागपुर : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १३० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (८७) For Personal & Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८३) सपरिकर-पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५११ वर्षे आषाढ़ वदि ९ ऊकेशवंशे मं० धरमासुत मं० गोलाकेन पुत्रमाइवांधेनायुतेन स्वभार्या गउरादे पुण्यार्थं श्रीपार्श्वनाथ कारितं । प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (४८४) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५११ वर्षे आषाढ़ वदि ९ डागा ऊकेशज्ञातीय सा० जैसिंग भा० चंमी पुत्रेण सा० वीदाकेन भा० नषी सहितेन स्वश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ श्रीझुंझणूवास्तव्य। (४८५) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५११ वर्षे माघ वदि ५ बुधदिने श्रीलोढागोत्रे सा० गोल्हा संताने सा० ऊधर भार्या उदयणि पुत्रः सा० खाभाकेन आत्मश्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का० प्रति० श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे श्रीदेवसुन्दरसूरिप० श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः॥ शुभंभवतु॥ ___ (४८६) शान्तिनाथ-चतुर्विंशतिः संवत् १५११ वर्षे माघ वदि ५ श्रीअणहिलपत्तनवासि ऊकेश सा० जगसी भा० झुमकू पुत्री रूडो नाम्न्या सा० कीता भा० कपूरदे पुत्र सा दढातदभायर्तियात(?) पुत्र सा० शिवा भार्या शिंगारदे सा० धणपति पुत्री गटकाइप्रमुखकुटुंबयुतया स्वश्रेयसे श्रीशान्तिनाथचतुर्विंशतिपट्टका० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्री श्री श्री (४८७) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५११ वर्षे माघ सुदि ५ गुरौ श्रीउकेशवंशे दोसीगोत्रे मं० डूडा पुत्र सा० नरचंद्र भा० सीतू तत्पुत्रेण सा० धाराकेन भार्या मणकाई पुत्र उदयसिंहयुतेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः। (४८८) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५११ वर्षे माघ सुदि ५ गुरौ ऊकेशवंशे टीकगोत्रे मं० शिवाभा० हर्कपु० महं धीराकेन भा० राणी पु० माला-सरवणसहितेन निजश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (४८९) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५११ वर्षे फागुण सुदि १ दिने ऊकेशवंशे माल्हूगोत्रे सा० षेता पुत्र सा० लींबा भा० ४८३. चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, शान्तिनाथ पोल, अहमदाबाद : परीख और शेलेट-जै० इ० इ० अ०, लेखांक ३१८ ४८४. चन्द्र स्वामी का मंदिर, माणिकतल्ला, कलकत्ता : पू० जै०, भाग १, लेखांक १२१ ४८५. तपागच्छीय जैन मंदिर, बालापुर : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १२६ ४८६. पोल की शेरी, पाटण : भो० पा०, लेखांक ४६२ . ४८७. पद्मप्रभ जिनालय, चूड़ी वाली गली, लखनऊ : पू० जै०, भाग २, लेखांक १५५० ४८८. श्रेयांसनाथ देरासर, फताशाह की पोल, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १३६१ ४८९. चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ९५२ (८८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयणादे पुत्र सा० खरहत भार्या सहजलदे निजश्रेयोर्थं श्रीमुनिसुव्रतस्वामीबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिभिः ॥ ( ४९० ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५१२ वर्षे आषाढ़ वदि १ श्रीऊकेशवंशे सा० आभूसंताने भ० कर्मासाधूपुत्र सा० वच्छाकेन भार्या हसाई प्रमुखपरिवारसहितेन स्वश्रेयसे श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ ( ४९१ ) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५१२ वर्षे आषाढ़ व० १ श्रीऊकेशवंशे दरड़ागोत्रे सा० हरिपाल सुत सा० आसा सांषू तत्पुत्र सं० मंडलिक सुश्रावकेन भार्या सं० रोहिणी पुत्र सं० साजण परिवारप्रमुखसहितेन निजश्रेयसे विमलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च० खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ ( ४९२ ) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी: ॐ ॥ सं० १५१२ वर्षे आषाढ़ वदि १ दिने श्रीऊकेशवंशे थुल्लगोत्रे सा० सादूल भार्या सूहवदे पुत्र सा० पासा श्रावकेण भार्या रूपादे पुत्र पूंजा प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ ( ४९३ ) वासुपूज्य - पञ्चतीर्थी : संवत् १५१२ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दि० श्रीऊकेशवंशे झाबकगोत्रे सा० जगमाल पुत्र सा० जेठा सा० त्रउंडाभ्यां पुण्यार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः। (४९४) सपरिकर - सुपार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५१२ वर्षे का० श्री श्रीमालज्ञातीय सो० परवत भार्या मांकू सुत सो० हरदास भ्रातृ सूराकेन भार्या धनीयुतेन श्री सुपासबिंबं कारितं प्रतिष्टि [ष्ठि ] तं खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ श्री ॥ ( ४९५ ) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५१२ वर्षे माघ ७ बुधे उपकेश ज्ञा० झांझण श्रावकेन भार्या सूरिंगदे पुत्र जाटा सहितेन श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ श्री ॥ ( ४९६ ) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५१२ वर्षे फा० शु० ५ श्रीमालवंशे छक्कडियागोत्रे सं० गुणराज भार्या चांपलदे पुत्र सं० ४९०. शान्तिनाथ जिनालय, कडाकोटडी, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०८ ४९१. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, पायधुनी, मुम्बई : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १३२ ४९२. धर्मनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४८३ ४९३. पार्श्वनाथ जिनालय, धनज : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ९२ ४९४. आदीश्वर मंदिर, दोशीवाड़ा, अहमदाबाद : परीख और शेलेट- जै० इ० इ० अ०, ४९५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ९५८ ४९६. शान्तिनाथ जिनालय, आरीपाड़ो, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५८९ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only लेखांक ३३६ (८९) www.jalnelibrary.org Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवदत्तश्रावकेण भार्या माणिकदेपुण्यार्थं पुत्रादिपरिवारयुतेन श्रीश्रेयासंनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः (४९७) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१२ फा० सु० १२ दिने थुलगोत्रे सा० मूला पुत्र जेसाकेन पु० पेमा खेता खेमायुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंब का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीः॥ ___ (४९८) अभिनन्दन-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१२ फा० सुदि १२ दिने चो० गोत्रे सा० ठाकुरसी पुत्र चो० चतुर पु० सिवेन चो० सादादि परिवारसहितेन श्रीश्रीअभिनंदनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः। (४९९) अभिनन्दन-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१२ फा० सु० १२ दिने लोढागोत्रे स० पासदत्त भार्या अपूदे तत्पुत्र सा०. कमलाकेन पुत्र जावा गोरादि परियुतेन श्रेयसे पुण्यार्थं श्रीअभिनन्दनकारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ श्री॥ (५००) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१२ फा० सु० १२ दिने श्रेष्ठिगोत्रे सा० पाता भार्या पाल्हणदे तत्पुत्र श्रे० सहजपाल श्रे० सालिग श्रावकेन भार्या संसारदे तत्पुत्र श्रे० सदादि परिवारयुतेन श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितम् ॥ (५०१) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१२ वर्षे फा० सु० ... श्रीऊकेशवंशे आभूसंताने भ० सा० वीक्रम वीकमदे पुत्रैः सा० वयरसल्ल सा० वीरधवल विजाकैः पुत्र मोल्हादिपरिवारयुतैः श्रीविमलनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (५०२) विमलनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१२ वर्षे ........ ............"श्रीऊकेशवंशे माल्हूगोत्रे सा० सालगहांसू पुत्र सा० लालाकेन भा० ललतादे पुत्र चाचां वउडा हर्षाप्रमुखपरिवारयुतेन श्रीविमलनाथबिंबं का० प्रति० श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (५०३) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१२ वर्षे ..............................."'श्रीऊकेशवंशे माल्हूगोत्रे सा० सालग हांसू पुत्र ४९७. विमलनाथ जिनालय, सवाईमाधोपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४९६ ४९८. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटो में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७६२ ४९९. नवघरे का मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली : पू० जै०, भाग १, लेखांक ४७८ ५००. आदिनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९६१ ५०१. शान्तिनाथ जी का मंदिर, घीया का पाड़ा, पाटन : भो० पा०, लेखांक ४९३ ५०२. शान्तिनाथ देरासर, कनासानो पाडो, पाटण : भो० पा०, लेखांक १७२७ ५०३. महावीर जिनालय, कनासानो पडो, पाटण : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३७६ (९०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सा० लालाकेन भा० ललतादे पुत्र चाचां वउडा हर्षाप्रमुखपरिवारयुतेन श्रीविमलनाथबिंबं का० प्रति० श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (५०४) धर्मनाथः ॥ सं० १५१३ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ गुरौ श्रीमालवंशे आकदूधियागोत्रे श्रे० सा० इरिया भा० बालहदे पुत्र सं० डूंगर सुश्रावकेण श्रे० जेवंत जीदा साधु परिवृतेन भा० लीलादे-श्राविकापुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंब का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (आगे पलांठी पर) सा० डूंगर भा० लीला धर्मनाथं प्रणमति (५०५) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थी: ॐ ॥ संवत् १५१३ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ दिने श्रीऊकेशवंशे गोलवच्छागोत्रे सा० कर्मू भा० करमादे पुत्र सा० हेमाकेन पुत्र जावड़-सारंगादियुतेन श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे प्र० भ० श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रधानागच्छ ॥ श्रीशुभंभवतु ॥ (५०६) कुन्थुनाथः ॥ सं० १५१३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ गुरौ ..'श्रीपारखगोत्रे सा० मोल्हा भा० राजू पुत्र ईसर सुश्रावकेण भा० जादवदे युतेन श्रीकुंथुनाथबिंबं का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ __ (५०७) पार्श्वनाथ-पञ्चती : संवत् १५१३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ दिने ऊकेशवंशे लूणियागोत्रे सा० आसपाल भार्या लाषणदे पुत्र गेराकेन भार्या गोरदे तत्पुत्र नाथू सीहा सिवा। नाथू पुत्र सा० कुशलादिपरिवारयुतेन श्रीपार्श्वबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (५०८) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ ॐ संवत् १५१३ वर्षे आषाढ सुदि २ ऊकेशवंशे भ०गोत्रे सा० जेठा पुत्र सीधर भा० मंदोयरी पुत्र सोनाकेन भ्रातृ भोजा भा० सोनगदे पुत्र हेमा-महिराजसहितेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं ।। श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।। (५०९) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१३ वर्षे आषाढ़ सुदि २ श्रीउकेशवंशे झाबकगोत्रे सा० जगमाल पुत्र सा० जेठा सा० त्रउडाम्य स्वपुण्यार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः __ (५१०) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः ॥६० ॥ १५१३ वर्षे आषाढ़ सु० २ दिने ऊकेशवंशे बापणागोत्रे सा० हरभएम भार्या हासलदे पुत्र ५०४. मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५०८ ५०५. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१८५ ५०६. चन्द्रप्रभ जिनालय, केकड़ी, प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५१२ ५०७. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१८६ ५०८. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१८८ ५०९. जैन मंदिर धनजबाजार, अमरावती : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १४८ ५१०. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ९७१ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह :) (९१) For Personal & Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डूगरेण भा० मेलादे श्रीखरतरगच्छे । पुत्र मेरा देवराज हेमराज युतेन श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ( ५११ ) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी: ॥ ॐ ॥ सं० १५१३ वर्षे आषाढ़ सु० २ दिने ऊकेशवंशे कूकडागोत्रे । चोपड़ा सा० ईसर भा० राणीसुत सरवणेन भ्रातृ राल्हा कूपा पु० मला रत्ना चांपा वरसिंघ खीमा हर्षा आंबा व्रजांग चाचादिपरिवारसहितेन श्रीशान्तिबिंबं कारितं प्र० खरतर० श्रीजिनभद्रसूरिभिः ( ५१२ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ ६० ॥ संवत् १५१३ वर्षे आषाढ़ सु० २ दिने ऊकेशवंशे ॥ कूकड़ागोत्रे सा० मेहा भार्या भोजी पुत्र सा० गोसलेन भ्रातृ भादा पुत्र हीरा नयणा नरसिंह युतेन । श्रीशान्तिनाथबिंबं का० श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे । (५१३) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी : ॥ ६० ॥ संवत् १५१३ वर्षे आषाढ़ सु० २ दिने ऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा० अमरा भार्या ललू पुत्र सदूकेन पुत्र ऊदा शान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ (५१४) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ ॐ ॥ संवत् १५१३ वर्षे आषाढसु० २ दिने ऊकेशवंशे रांकागोत्रे सा० लखा भा० सुगुनी पुत्र श्रे० जावडेन पु० सोनारूपापदव्यादियुतेन श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रधानगुरुभिः प्रतिष्ठितं ॥ शुभं ॥ (५१५) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ ॐ सं० १५१३ वर्षे आषाढ सुदि ९ दिने उकेशवंशे मंत्रि पूंजा पुत्र मं० धन्नाकेन निज भार्या सोनादे पुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरत० श्री श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ श्री ॥ (५१६) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५१३ वर्षे मार्गशीर्ष मासे ऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा० करमण सुत सा० जेसा भार्या मदी पुत्र सा० खोखाकेन भार्या हरषू पुत्रपौत्रादिपरिवारसहितेन श्रीधर्म्मनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ छ ॥ ५११. पार्श्वनाथ जिनालय, बूंदी : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५१३ ५१२. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ९७२ ५१३. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ९७० ५१४. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१८७ ५१५. विमलनाथ जिनालय, सवाईमाधोपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५१७ ५१६. विमलनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४४२ (९२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१७) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५१३ वर्षे माहसुदि ३ सोमे उपकेशज्ञातीय सा० कीहट पुत्र धामा भार्या चांपू तयोः पुत्र सोमाकेन भार्या मकूसहितेन श्रेयसे श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ ( ५१८ ) धर्मनाथ : सं० १५१३ वर्षे माघ सुदि ३ शुक्रे उपकेशज्ञातीय छाजहड़गोत्रे मं० देवदत्त भार्या रयणादे तयोः पुत्र मं० गुणदत्तेन भार्या सोनलदे सहितेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनशेखरसूरिपट्टे भ० श्रीजिनधर्मसूरिभिः। ( ५१९) धर्मनाथ -पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५१३ वर्षे माघ सुदि ३ शुक्रे उपकेशज्ञातीय छाजहड़गोत्रे मं० देवदत्त भार्या रयणादे तयोः पुत्र मं० गुणदत्तेन भार्या सांतलदे सहितेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनशेषरसूरिपट्टे भ० श्रीजिनधर्म्मसूरिभिः ॥ ( ५२० ) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : संवत् १५१३ वर्षे उपकेशवंशे बोथरागोत्रे सा० नगराज भा० मदू पुत्र सा० महिराजेन स्वपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनसुंद (रसूरिभिः) (५२१) सुमतिनाथ पञ्चतीर्थीः सं० १५१३ वर्षे 'श्रीऊकेशवंशे नाहटागोत्रे सा० मेघा भा० रोहिणी पु० सा० रणमल्ल भ्रातृ सा० दूला पु० छीतरादि सहितेन स्वश्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्री जिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिभिः शुभं भूयात् ॥ (५२२) नेमिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५१३ वर्षे ऊकेशवंशे कटारियागोत्रे सा० तेजसी पुत्र तिहुणा भार्या कील्हणदे पुत्र कुलचंदेन भार्या कुतिगदे प्रभृतिपुत्रपौत्रादिपरिवारयुतेन श्रीनेमिनाथबिंबं का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ ( ५२३) अभिनन्दन - पञ्चतीर्थी : सं० १५१५ वैशाख वदि २ गुरु उपकेशज्ञा० पितृ सारंग मातृ सारू सु० पद्माश्रेयोऽर्थं भ्रातृ सूराकेन श्रीअभिनंदननाथबिंबं का० रुद्रपल्लीयगच्छे श्रीजिनराजसूरिभि: प्र० श्रीसंघेन बडुद्रावास्तव्य ॥ ५१७. शान्तिनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१६० ५१८. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८२४ ५१९. अष्टापदजी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, ५२०. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ९६५ ५२१. पार्श्वनाथ जिनालय, कोचरों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १६१९ लेखांक २१६९ ५२२. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ९६३ ५२३. शान्तिनाथ देरासर, शान्तिनाथपोल, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १२६२ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : For Personal & Private Use Only (९३) Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२४) कीर्तिरत्नसूरि-पादुका ॥ संवत् १५१५ वर्षे वैशाख वदि ५ दिने श्रीवीरमपुरे श्रीखरतरगच्छे श्रीकीर्तिरत्नसूरीणां स्वर्गः तत्पादुके संखवालेचा गोत्रे सा। काजल पुत्र साह त्रिलोकसिंह खेतसिंह जिणदास गउडीदास कुशलाकेन भरापिते सं० १६३१(? १५३१) वर्षे मार्गसिर वदि ३ प्रतिष्ठितं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (५२५) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ संवत् १५१५ वर्षे ज्येष्ठ वदि १ दिने श्रीमालज्ञातौ खारडगोत्रे सा० वील्हा वयरा श्रावकेण सपरिवारेण श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनभद्रसूरिपट्टाङ्कारसारगुरुश्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीसंघस्य भद्रं भूयात् (५२६) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः || ॐ ॥ संवत् १५१५ वर्षे ज्येष्ठ वदि १ दिने श्रीश्रीमालज्ञातौ खारडगोत्रे सा० वाडा बठूरा सुश्रावकेण स्वपुण्यार्थे चन्द्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिगुरुभिः। (५२७ ) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१५ ज्येष्ठ सुदि १ श्रीऊकेशवंशे दरडागोत्रे सा० आसा भा० सोषू पुत्रेण श्रीश्रीजयसागरोपाध्यायबांधवेन सं० मंडलिकेन भा० रोहिणि-पुत्र साजणप्रमुखपरिवारसहितेन स्वश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (५२८) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ ॐ ॥ संवत् १५१५ वर्षे ज्येष्ठ सु० ४ शुक्रे ऊकेशवंशे रांकाश्रेष्ठिगोत्रे श्रे० नरसिंह पुत्र श्रे० महीपति भार्या भदू पुत्रेण श्रेष्ठि वच्छराजेन सपरिकरेण स्वश्रेयोर्थं श्रीश्रेयांसबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि मुगुली.................. ॥ (५२९) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ४ शुभदिने श्रीमालवंशे भांडियागोत्रे सा० महणा भा० नानिगी पु० आभा जाटा खेमपाल प्रमुखे मातृश्रयसे श्रीवासुपूज्यबिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ ५२४. शान्तिनाथ जिनालय, नाकोड़ा : ना० पा० ती०, लेखांक ५३ ५२५. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५३३ ५२६. शान्तिनाथ जिनालय, चांदलाई : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५३२ ५२७. भीड़ भंजन पार्श्वनाथ जिनालय, मारफतीया, पाटण : भो० पा०, लेखांक ५५२ ५२८. आदिनाथ जिनालय, चाडसू : प्र० ले० सं०, भाग १,लेखांक ५३४ ५२९. गौडी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९३० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३०) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १५ दिने ऊकेशवंशे भणसालीगोत्रे सा० सायर भा० सिंगारदे पुत्र सा० शेषा श्रावकेण भार्या सलखणदे पु० सा० भीमा भ्रा० शिवदत्त पौत्र सा० पेथा चांपादिपरिवारयुतेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं स्वश्रेयोर्थं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः (५३१) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॐ ॥ सं० १५१५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि............"प्राग्वाटवंशे आमगोत्रे सा० झगडा भा० धारलदे पुत्र सा० पूजा सा० काजाभ्यां भार्या हीरादे कामलदे पुत्र आंबा वयरसींह रूपा कूपा डाहादिपरिवारयुताभ्यां श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (५३२) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५१५ वर्षे जेठ सुदि."ऊकेशवंशे साधुशाखायां सा० पाल्हणसी भा० जइतू पुत्र धर्मसिंहेन सा० नरपति भा० धारलदे पुत्र सीहा प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीशान्तिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (५३३) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः ॐ संवत् १५१५ वर्षे आषाढ़ वदि १ ऊकेशवंशे ढींक गोत्रे म० सिवा भा० हर्षु पु० म० हीराकेण भा० रङ्गादे पुत्री सेनाइप्रमुखपरिवारयुतेन श्रीचंद्रप्रभबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीः॥ (५३४) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संव० १५१५ वर्षे आषा० व० १ ऊकेशवंशे नाहटागोत्रे सा० पाल्हा भार्या पाल्हणदे सुत सा० देपाकेन भा० देल्हणदे भ्रातृ. लखा पुत्र देवा पेथराज नगराजादियुतेन श्रीश्रेयांसबिंबं स्वपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ श्रीरस्तुः॥ (५३५) शान्तिनाथ: सं० १५१५ वर्षे आषाढ़ वदि १ दिने श्रीउकेशवंशे थुल्लगोत्रे सा० सार्दूल जाया सुहवादे पुत्र स० पांसा श्रावकेण भार्या रूपादे पुत्र पूजा प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः। ५३०. पार्श्वनाथ जिनालय, मेड़ता रोड़ः प्र० ले ० सं०, भाग १, लेखांक ५३८ ५३१. महावीर जिनालय, मेड़ता सिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५३९ ५३२. चन्द्रप्रभ जिनालय, कोटा: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५४० ५३३. संभवनाथ जिनालय, बालुचरः पू० जै०, भाग १, लेखांक ४७ ५३४. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना०बी०, लेखांक ९८४ ५३५. धर्मनाथ जी का मंदिर, मेड़ताः पृ० जै०, भाग १,लेखांक ७५९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री............ (५३६) नमिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१५ वर्षे आषाढ़ वदी १ ऊकेशवंशे आयरियागोत्रे सा० पूना पुत्र सा० रूपा भार्या मोल्ही तत्पुत्रेण सा० कान्हा सुश्रावकेण पुत्र लखमणादिसहितेन श्रीनमिबिंबं का० श्रीखरतरगच्छे श्रीश्रीश्रीजिनभद्रसूरिपट्टे .....प्रतिष्ठितं । शुभंभवतु ___(५३७) फणेश्वर-पार्श्वनाथः संवत् १५१५ वर्षे आषाढ़ व[दि १ शुक्रे राजाधिराज श्रीकुंभकर्णविजयराज्ये ................. हरिपाल?] भार्या सीतादे सुत सा० आसराज भा० सोषू तत्पुत्ररत्नेन संघाधिपति मंडलिक सुश्रावकेण".... ........... श्रीसदयराज तथा सा० आंटा भा० अमरी पु० श्री[पाल भीमसीह?] .......................... परिवारपरिवृतै [ :] श्रीअर्बुदमहातीर्थे श्रीफणेश्वरपार्श्वनाथः कारित: [प्रतिष्ठितश्च खरतरगच्छाधिपति श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ?] श्रीरस्तु श्रीश्रमणसंघस्य। (५३८) पार्श्वनाथः ॥०॥ संवत् १५१५ वर्षे आषाढ़ वदि"....." ..................." जयसागरोपाध्यायबांधवेन"................ ................. ........................ सा० पोमसीह भार्या सा० ............ ...... (५३९) पार्श्वनाथः संवत(त्) १५१५ वर्षे आषाढ़ वदि १ शुक्रे राजाधिराज [श्रीकुंभकर्णविजयराज्ये श्रीअर्बुदगिरिमहातीर्थे ?] सं० मंडलिकसुश्रावकेण भार्या हीराई (०) पुत्र सं० साजण द्वितीयाभार्या रोहिणि... सा० भीमसिंह तथा सा० (०) माला भार्या मांकू(जू) पुत्र सा० ........"बिंबं कारितं प्रतिष्ठि(०)तं श्रीमत्श्रीखरतरगच्छ (५४०) शिलालेखः (१) श्रीखरतरगच्छे श्रीमनोरथकल्पद्रुमश्रीपार्श्वनाथ: सं० मंडलिककारितः (२) श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितः श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथः । सं० मंडलिककारितः। (३) श्रीखरतरगच्छे श्रीमंगलाकरश्रीपार्श्वनाथ: सं० मंडलिक कारितः (४) श्रीखरतरगच्छे श्री . ..पार्श्वनाथः सं० मंडलिककारित: श्रीखरतरगच्छे ।। ५३६. जैन मंदिर, सांवेर, इन्दौर: मालवांचल के जैन लेख, लेखांक २४८ ५३७. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४१ ५३८. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४२ ५३९. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४४ ५४०. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४५; प्रा० ० ले० सं०, भाग २, लेखांक २६२ (९६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४१) पार्श्वनाथः द०॥ सं० १५१५ वर्षे आषाढ़ वदि १ शुक्रे राजाधिराज श्रीकुंभकर्णविजयि(य) राज्ये श्री[बुंदगिरिमहातीर्थे ?] सा० आसराज भार्या सोषू पुत्ररत्नेन संघाधिपतिमंडलिकसुश्रावकेण भार्या हीरा(*)ई पुत्र सा० साजण भा० सोनाई बृहद्बांधव सा० पाल्हा भा० सारू पुत्र सा० रत्ना तत्पु[त्र] सा० आंबड सदयराज तथा सा० आंब भा० अमरी पु० श्रीपाल भीमसीह तथा(*)लघुबांधव सा० माला भा० मांजू पु० सा० पोमसिंह तत्सुत सह समल्ल वस्तुपाल हि....... पुत्र..............."प्रमुखपरिवारसहितेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्टि(ष्ठि)तं(*)................."लंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। शुभंभवतु (५४२) आदिनाथः || र्द० ॥ संवत् १५१५ वर्षे आषाढवदि १ दिने शुक्रे श्रीअर्बुदमहातीर्थे ऊकेशवंशे कांकरीयागोत्रे...(प्रा०?) सलषा (*) आम भार्या तैजलदे पुत्र सा० धना सुश्रावकेण भार्या ...................... गुणपति सा० जयता सीहा पौत्र सा० मणीर लष(ख)मसी(*) रत्नसीह सा० सद्धा सिवदत्त प्रमुखपुत्रपौत्रादिपरिवारसहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्टि(ष्ठि)तं(*) श्रीखरतरगच्छे जिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (५४३) नवफणा-पार्श्वनाथ: ॥ र्द० ॥ संवत(त) १५१५ वर्षे आषाढवदि १ दिने शुक्रवारे श्री....................................... आसा भार्या सोषू पुत्रेण श्रीजयसागरमहोपाध्यायबांधवेन(*) ॥ संघपति मंडलिके[न] सुश्रावकेण भार्या हीराई पुत्र सा० साजण...... ... [परि ?]वारसहितेन श्रीचतुर्मुखप्रासादे श्रीनवफणपार्शवनाथ ( * ) बिंबं कारितं प्रतिष्टि (ष्ठि ) तं श्रीखर तर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिशि[ष्यश्रीजिनचन्द्रसूरिभिः] .......... "द्वितीयभूमिकाया(यां)॥ कल्याणमस्तु । (५४४) सुमतिनाथः ॥ र्द० ॥ संवत् १५१५ वर्षे आषाढवदि १ शुक्रे ...................................... श्राविका रत्नादे पुत्री मांजू श्राविकया स्वश्रेयोर्थं श्री(*)सुमतिनाथबिंबं कारितं श्रीखरतर[गच्छे ?] ... ............. रिकलिकालयुग[प्र]धानगुरुभिः। प्र( * )तिष्टि[ष्ठि]तं ॥ (५४५) (१) श्रीपार्श्वनाथः। द्वितीयभूमौ (२) कां० सा० धन्ना श्रावकेण श्रीआदिनाथबिंबं कारितं ॥ ५४१. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४७ ५४२. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४८ ५४३. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४९ ५४४. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५० ५४५. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० स०, भाग २, लेखांक ४५१; प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक २६० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) (९७) For Personal & Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ................... (३) श्रीखरतरगच्छे श्रीपार्श्वनाथः सा० माला भा० मांजू श्राविका कारितः॥ (४) म० मांजू श्राविकया श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं (५४६) अम्बिकामूर्तिः ० ॥सं० १५१५ वर्षे आषाढ़ वदि १ शुक्रे श्रीऊकेशवंशे दरडागोत्रे सा० आसा भा० सोधू.... . पुत्रेण सं०................ मंडलिकेन भा० हीराई पु० साजण द्वि० भा० रोहिणि प्र(बृ?)० भ्रा० सा० पाल्हादिपरिवारसंयुतेन श्रीचतुर्मुखप्रासादे श्रीअंबिकामूर्तिः का० प्र० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (५४७) (१) मेघू सत्कं (८) कउतिगदे (२) शांति: लावू (९) सं० मंडलिक भा० हीराई..... (३) श्रीमहावीरः (१०) श्री वासुपूज्य बा० । तामी॥ (४) सा० जयता का० (११) धनराज.... (५) श्रीमहावीरः प्रणमति (१२) श्रीसंभव। सा० पुंना......(सर)पति (६) सा० जइता (१३) सहसमल्ल (७) सहजा श्रीमहावीरः (१४) सहजलदे (५४८) नवफण-पार्श्वनाथः र्द० ॥ सं० १५१५ वर्षे आषाढ़वदि १ शुक्रे श्रीअर्बुदमहातीर्थे श्री.......... [संघ?]पतिमंडलिकसुश्रावकेण भा० हीराई पुत्र साजण द्वितीय(*) भार्या रोहिण वृं(ब)हत्बांधव सा० पाल्हा सा० देल्हा सा० झांटा लघुभ्रा० ...................................... [श्रीचतुर्मु ?]खप्रासादे श्रीनवफणपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठिं (*)तं च श्रीखरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टा[लंकारश्रीजिनचंद्रसूरिभिः ?] .......... ........... [२]मणसंघस्य श्रीरस्तु श्री: श्री: श्री: (५४९) नवफण-पार्श्वनाथः द०॥ संवत् १५१५ वर्षे आषाढ वदि १ शुक्रे श्रीअर्बुदगिरिम[हातीर्थे ?] ........................................" तत्पुत्र हरिपाल भा० सीतादे पुत्र सा० आसराज भार्या सोषू तत्पु(*)त्र श्रीजयसागरोपाध्यायबांधवेन संघाधिपतिमंडलिकेन... ......................... [परि?]वारसहितेन श्रीनवफणपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री(*)[खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार ?] श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ द्वितीयभूमिकायां ५४६. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५२ ५४७. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५३ ५४८. खरतरवसही, आबू : अ० प्रा० जे० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५४ ५४९. खरतरवसही, आबू:अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५५ (९८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५०) नवफण-पार्श्वनाथ: सं० १५१५ वर्षे आषाढवदि १ शुक्रे श्रीअर्बुदमहातीर्थे.. ..........त्रेण श्रीजयसागरमहोपाध्यायबांधवेन संघपति(*)मंडलिक सुश्रावकेण भा० हीराई पुत्र साजण द्वितीय भार्या रोहिणी?]...........................................[स]हितेन श्रीचतुर्मुखप्रासादे श्रीनवफणपार्श्वनाथबिं(*)बं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छाधीश्वर श्री[जिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिन ?] चंद्रसूरिभिः॥ श्रीः॥[द्वि ?]तीयभूमिकायां (५५१) पार्श्वनाथः द० ॥ संवत् १५१५ वर्षे आषाढ वदि १ शुक्रे श्रीअर्बुदगिरि [महातीर्थे ?] ..............[सा० आ]सराज भार्या सोषू तत्पुत्र श्रीजयसागरमहोपाध्याय(*)बांधवेन संघपति मंडलिकेन बहदबांधव सा० पाल्हा................ ..............श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्टि(ष्ठि)तं खरतरगच्छे( *)[श्रीजिनभद्रसूरिपट्टभाकरश्रीजिनचन्द्रसूरिभिः?] द्वितीयभूमिकायां ॥ (५५२) (१) श्रीपार्श्वनाथः॥ संघ मंडलिकः॥ (२) [श्रीपार्श्वनाथ: सं० मंडलिक॥?] (३) श्रीपार्श्वनाथ: सं० मंडलिक कारितः॥ (४) द्वितीयभूमौ श्रीपार्श्वनाथः॥ __ (५५३) अम्बिका-मूर्तिः संवत् १५१५ वर्षे आषाढ़ वदि १ शुक्रे श्रीउकेशवंशे दरडागोत्रे सा० आसा भा० सोखु पुत्रेण सं० मंडलिकेन भा० हीराई पु० साजण भा० रोहिणि प्र० भा० सा० पाल्हादि परिवारसंयुक्तेन श्रीचतुर्मुखप्रासादे श्रीअंबिकामूर्तिः का० प्र० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (५५४) संवत् १५१५. वर्ष आषाढ़ वदि १ शुक्रे... अ(आ)सराज भार्या सोषू तत्पुत्ररलेन संघाधिपति मंडलिक सुश्रावकेण........ सा० कीहट पु० आंबड सदयराज तथा सा०.. ....................अर्बुदमहातीर्थे. ५५०. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५६ ५५१. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५७ ५५२. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५८; प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक २६१ ५५३. खरतरवसही, आबू: प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक २५९; शांतिनाथ जिनालय, अचलगढ़: पू० जै०, भाग २, लेखांक २०२२ ५५४. खरतरवसही, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) (९९)) For Personal & Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) (२) (३) (४) (५) (६) (५५५) शिलालेखः श्रीमहावीर: श्रा० धर्माई क(का)रितः॥ श्रीपार्श्वनाथं सं० मंडलिकः श्रीआदिनाथ: गामाइ कारितः श्रीपार्श्वनाथ: सं० मंडलिक कारितः अ०हरराज श्रीपार्श्वनाथ: सं० मंडलिक कारितः सा पाहा(लहा) भार्या सारू अजितनाथ: (७) (८) (९) (५५६) शान्तिनाथ: श्रीखरतर श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। श्रीशांतिनाथबिंबं श्रा० मणकाई कारितं। (५५७) अजितनाथः संवत् १५१५ वर्षे आषाढवदि १ ब्राह्मण सुशर्म पुत्री देवसिरि कारि० श्रीअजितनाथः प्र० श्रीखरतर श्रीजिनचंद्रसूरिभिः देवसिरि (५५८) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५१५ वर्षे आषाढ़ वदि २ शुक्रे ऊकेशवंशे परीक्षगोत्रे पं० सारंग सुत पं० अजा भार्या आमलदे पु० पं० पर्वत सुश्रावकेण युशस जगमाल.............परिवारसहितेन ,श्रीसुमतिबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (५५९) विमलनाथ-पञ्चतीर्थाः ॐ सं० १५१५ वर्षे आषाढ़ वदि ५ श्रीऊकेशवंशे दरड़ा गोत्रे सा० हरिपाल सुत भा० आसा सोषू तत्पुत्र मं मण्डलिक सुश्रावकेण भार्या सं० रोहिणि पुत्र स० साजण प्रमुखसपरिवारसहितेन निजश्रेयसे श्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपदे श्रीजिनभद्रसूरिभिः । (५६०) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थी: ॐ ॥ सं० १५१५ वर्षे आषाढ़ वदि १० दिने ऊकेशवंशे गोठीगोत्रे सा० सहदे[व] भा० पुत्र दीता ५५५. खरतरवही, आबू: अ० प्रा० जे० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४६ ५५६. पित्तलहर, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२० ५५७. अनुपूर्ति लेख, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५०० ५५८. सेठ केशरीमल का देरासर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४६३ ५५९. माधोलाल जी दूगड़ का घर देरासर, कलकत्ता: पू० जै०, भाग १, लेखांक १२९ ५६०. आदिनाथ जिनालय, ओरग्राम: अ० प्र० जै० ले० सं०, भाग ५, लेखांक ६४३ (१००) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मांडण जेसाश्रावकैः श्रीसंभवनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ भद्रं भूयात्॥ (५६१) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५१५ आषाढ़ सुदि १ उपकेशवंशे पाटदडगोत्रे सा० गेला भा० अणपू..................पु० सा० संतोक भा० खेतलदे पु० कर्णादिपरिवारयुतेन श्रीमुनिसुव्रतबिंब का० प्र० श्रीखरतर० श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (५६२) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१५ वर्षे आषाढ़ सुदि ४ सोमे श्रीमालज्ञा० षोवड़ागोत्रे सा० सोमा पु० सा० वल्हु भा० वल्हादेश्राविकया स्वपुण्यार्थं श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीज्ञानसुंदरसूरिभिः॥ (५६३) मुनिसुवतः संवत् १५१५ वर्षे आषाढ़ सुदि ४ सोमे उसवंशे सा रामसी पुत्र सा० नयणा भार्या नयणादे पुत्र सा० कोचर सा० नयणाकेन स्वपुण्यार्थं श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिभिः॥ (५६४) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१५ वर्षे मार्गसिर सुदि १ दिने ऊकेशवंशे डाकुलियागोत्रे सा० संग्राम पुत्र सा० सहसाकेन भार्या मयणलदे पुत्र साधारण प्रमुखपरिवारसहितेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (५६५) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१५ वर्षे मार्ग सु० १ दिने ऊकेशवंशे प० सूरा पु० भीमा सोनी पोया पुत्रेन प० पारस श्रावकेण भार्या रोहिणी पुत्र खेता रीखा परिवृतेन श्रीचन्द्रप्रभस्वामीबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः निजपुण्यार्थमिति। __ (५६६) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५१५ वर्षे मार्गसुदि १ दिने ऊकेशवंशे प० सूरा पुत्र भीमा सोमी पुत्रेण प० पारसश्रावकेण भार्या रोहिणि पुत्र घेतारिषापरिवृतेन श्रीचंद्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः निजपुण्यार्थमिति ॥ ५६१. बड़ा मंदिर, नागोरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५४३ ५६२. वीर जिनालय, रीजरोड़, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९८४ ५६३. खरतरवसही, शत्रुजय: श० गि० द०, लेखांक ४२७ ५६४. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ९८६ ५६५. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७६४ ५६६. अष्टांपद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१७० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (१०१) For Personal & Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६७) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५१५ वर्षे मार्ग शुक्ल १ दिने श्रीऊकेशवंशे परि० धन्ना पुत्र परिक्ष लुढा सुश्रावकेन भार्या लूनादे पुत्र सा० वीरम भा० गुणदत्त प्रमुखपरिवारयुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । (५६८ ) महावीर - पञ्चतीर्थी : सं० १५१५ वर्षे माग० सुदि ७ दिने श्रीउकेशवंशे दोसीगोत्रे मं० डूंडा पुत्र सा० नरवद भार्या सांतू तत्पुत्र सा० नगराजेन पुत्र खीमराज - हांसासहितेन श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः स्वश्रेयोर्थं ॥ (५६९) सुपार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५१५ वर्षे माघ सुदि ७ गुरौ पोसीनासावली निवासी ओसवाल सं० लाषा भा० हर्षू सु०. सं० तिहुणाकेन भा० नीती भातृ खीमायुतेन श्रीसुपार्श्वनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ (५७०) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५१५ वर्षे माह सु० ११ भूमे ऊकेशवंशे साहूसषागोत्रे साहु सुइ भा० सोनलदे पु० सा० देवदत्त भा० रत्नाइ पु० सा० हरषासहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरितत्पट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः । (५७१ ) सम्भवनाथ पञ्चतीर्थी: सं० १५१५ वर्षे माघ सु० १४ दिने ऊ० वं० जांगडागोत्रे सा० काल्हा भार्या झकू सुत सा रूपाकेन सपरिवारेण श्रीसम्भवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री ख० ग० श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्री जिनसुन्दरसूरिभिः ॥ (५७२) धर्मनाथ -पञ्चतीर्थी : सं० १५१५ वर्षे माघ सुदि १४ बुधे प्राग्वाटवंशे पंचाणेचागोत्रे सा० कान्हा भार्या कश्मीरदे पुत्र सा० सांगाकेन भा० चांपलदे पु० सा० रणधीर पर्वतादिसहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुन्दरसूरिभिः ५६७. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ९८७ ५६८. कल्याण पार्श्वनाथ देरासर, वीसनगर: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५२८ ५६९. सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, मातर: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४९५ ५७०. मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, पटोलिया पोल, बड़ोदरा: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७७ ५७१. नवघरे का जैन मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली : पू० जै०, भाग १, लेखांक ४८० ५७२. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ९८८ (१०२) खरतरगच्छ प्रतिष्ठा-लेख संग्रह :) For Personal & Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७३) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१५ वर्षे फागण सुदि ९ सोमे श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे० पोवा भा० रूडी सु० मोकल-कालाभ्यां पितृमातृश्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्र० महूकरगच्छे भ० धनप्रभसूरिभिः॥ तालध्वजनगरे॥ ___(५७४) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः । ॐ ॥ सं० १५१५ वर्षे ....श्रीऊकेशवंशे परिक्षिगोत्रे प० जयता भरमादे पुत्र प० डूंगरसिंहेन भा० प्रेमलदे पुत्र नगराज गांगा नयणा नरपाल सहितेन स्वश्रेयसे श्रीसुविधिजिनबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (५७५) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१६ वर्षे वै० व० ४ ऊकेशवंशे साधुशाखायां सं० नेमा भार्या सारू सुत सा० रहीया सा० मेघा सा० समरा श्रावकैः स्वश्रेयसे सुमतिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि सहगुरुभिः॥ ___ (५७६) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१६ वर्षे वैव० ४ ऊकेशवंशे साधुशाषायां सं० नेमा भार्या सारू सुत सा० रहिया सा० मेधा सा० समराश्रावकैः स्वश्रेयसे सुमतिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि सह गुरुभिः ॥ (५७७) पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थीः ___ सं० १५१६ वर्षे वैशाख वदि ४ श्रीपद्मप्रभबिंबं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (५७८) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१६ वर्षे वैशा० वदि ४ ऊकेशवंशे रीहड़गोत्रे मं० थक्कण भा० वारू पु० मं० जेठाकेन भा० सीतादे पु० वागा ईसरप्रमुखपुत्र-पौत्रादि-युतेन स्वज्येष्ठ पु० मं० माल्हा पुण्यार्थं श्रीश्रेयांसबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठित श्री। ५७३. शान्तिनाथ जिनालय, लिम्बडी पाड़ा, पाटण: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २७० ५७४. आदिनाथ जिनालय, अमरसागर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५२१ ५७५. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७५० ५७६. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१७१ ५७७. बड़ा देरासर, माणसा: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ३९३ ५७८. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी, लेखांक २७५३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) १०३) For Personal & Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५७९ ) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५१६ वर्षे वैशाखवदि ४ ऊकेशवंशे रीहड़गोत्रे मं० थकण भार्या वारू पु० भ० जेठान भार्या सीतादे पु० | बगा - ईसरप्रमुखपुत्रपौत्रादियुतेन स्वज्येष्ठपु० मं० मालापुण्यार्थं श्री श्रेयांसबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्रीः ॥ ( ५८० ) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५१६ वर्षे वैशाख वदि ४ ऊकेशवंशे भ० गोत्रे । भ० भीमा भा० भरमादे पुत्र भ० दसाकेन भा० जीवणि संजातपुत्र भ० महिपति सोना पूना पौत्र आसादिसहितेन स्वश्रेयोर्थं श्रीविमलनाथबिंबं कारितं श्रीखर [तर] गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि प० श्री [ जिन ] चन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं । ( ५८१ ) सं० १५(?) १६ मि. १ वैशाख सुद ३ दिने श्रीजिनस्यबिंबं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे. (५८२) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५१६ वर्षे वै० शु० ११ श्रीमालगुजर ज्ञा० वहंकटागोत्रे सा० जइता पुत्र सा० साधा तद्भार्यया सूदी श्राविकया स्वपुण्यार्थं श्री आदिनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिभिः ॥ ( ५८३ ) अजितनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५१६ वर्षे वैशा० शु० १३ हस्तार्क दिने महतिआण सा० सुरपति भा० त्रिलोकादे पुत्र्या सा० ग्यान भगिन्या सा० चाचिग भार्या नारंगदेव्या श्रीअजितबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरिभिः ॥ श्री ॥ ( ५८४) नेमिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५१६ वर्षे वैशाख सुदि १३ हस्तार्क दिने गोवर चो० गोत्र महतीआण कलाल भार्या धर्मसी सुत श्रीआसधर भा० चांपलदे सुत नेमदासेन भा० गारवदेवी पुत्र उधरण तेजपाल वस्तुपाल कुंअरपाल प्रमुखकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयोर्थं श्री श्री श्रीनेमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभि: पट्टालंकार श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (५८५ ) सम्भवनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५१६ वर्षे आषाढ़ सुदि ३ दिने प्राग्वाटज्ञातीय सा० वहिदे भा० तू (लू) सुत सा० गुणीआ ५७९. शांतिनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१६१ ५८०. सहस्रफणा पार्श्वनाथ मंदिर, अम्बावाडी शेरी, राधनपुरः रा० प्र० ले० सं०, लेखांक २०२ ५८१. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई: ब० चि०, लेखांक ६ ५८२. जैन मंदिर, ऊंझा : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १५८ ५८३. नवघरे का मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली : पू० जै० भाग १, लेखांक ४८२ ५८४. जैन मंदिर, भायखला, मुम्बई: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १५९ ५८५. आदिनाथ मंदिर, आदीश्वर खड़की, राधनपुर: मुनि विशाल विजय- रा० प्र० ले० सं०, लेखांक २०५ (१०४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : For Personal & Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भा० मटी सुत सा० राजाकेन आत्मश्रेयोर्थं श्रीसंभवनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छेश श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ मंडपवास्तव्य॥ (५८६) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१६ वर्षे आषाढ़ सुदि ३ रवौ ऊकेशवंशे साहू भेलड़ीया सा० नरसिंग भा० मानलदे पु० सा० संग्राम भा० बगीचली(?) पुत्र सा० जगमाल भ्रातृ सहि० सा० जिणाकेन पूर्वजपु० श्रीसुविधिबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुन्दरसूरिभिः (५८७) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५१६ वर्षे आषाढ़ सुदि ३ रवौ प्राग्वाटज्ञातीय सा० वहिदे भा० रतू सुत सा० गुणीया भार्या मटा सुत सा० भोजाकेन स्वश्रेयोर्थं श्रीशीतलनाथबिंब कारापितं प्रति० च खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ शुभं श्री: मंडपवास्तव्यः॥ (५८८) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१६ वर्षे आषाढ़ सुदि ३ रवौ महतीयाणज्ञातीय आंधागोत्रे सा० फूंग भार्या अरधू पुत्र सा० भापुकेन भार्या अमकू पुत्र सा० कुंअरपाल युतेन श्रीमुनिसुव्रतनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुन्दरसूरिभिः॥ (५८९) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१६ आषाढ़ सुदि ३ रवौ ऊकेशवंशे भं० गोत्रे भं० सादा भा० सहजलदे भं० देवराज भा० फटू स्वपुण्यार्थं पुत्र धणपति रत्ना गुणीयायुतेन श्रीनमिनाथबिंबं का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिभिः प्र०॥ (५९०) सपरिकर-सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५१६ वर्षे आषाढ़ सुदि ४ सोमे मुहतियाण वंस गोवरचोरगोत्रे म० जयता भार्या चांपू सु० पांचा भा० मुचकू पांचू धर्मणि सु० काना गोव्यंदकेन भा० राजलदे सु० देवदासेन श्रीसुमतिबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुन्दरसूरिभिः॥ श्रीः॥ (५९१) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५१६ वर्षे आ० सु० ९ शुक्रे उपकेशज्ञातीय विनाकीयागोत्रे सा० थिरू सुत सा० महणा आत्मश्रेयसे सुमतिनाथबिंबं श्रीरुद्रपल्लीये श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ ५८६. खेजड़ा का पाड़ा, धीमतो, पाटण: भो० पा०, लेखांक ५९५ ५८७. वखत जी की शेरी, पाटण : भो० पा०, लेखांक ५९३ ५८८. जैन मंदिर, बालाघाट, मध्यप्रदेश: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १५८ ५८९. पार्श्वनाथ जिनालय, अहमदाबादः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९०५ ५९०. आदीश्वर मंदिर, दोशीवाड़ापोल, अहमदाबादः परीख और शेलेट- जै० इ० इ० अ०, लेखांक ४१६ ५९१. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३३७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) १०५) For Personal & Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५९२) सपरिकर-अभिनन्दन-पञ्चतीर्थीः ॥ ए सं० १५१६ वर्षे मार्ग० सुदि १ दिने ऊकेशवंशे गोत्रे श्रे० आसा अमकू भार्या पुत्र थिरपाल सहितया श्रेयोर्थं श्रीअभिनंदनबिंबं कारितं प्रतिष्टि[ष्ठि]तं श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिभि ॥ शुभं भवतु ॥ श्री॥ श्री॥ (५९३) अभिनन्दन-पञ्चतीर्थी: सं० १५१६ वर्षे मार्ग० सुदि १ दिने ऊकेशवंशे रांका श्रे० गोत्रे श्रे० आसा भा० अमकू पु० थिरपालसहितया श्रेयोऽर्थं श्रीअभिनन्दनबिंबंका० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (५९४) अभिनन्दन-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१६ वर्षे माग(माघ) सुदि उकेशवंशे रांकागोत्रे श्रे० सुरा० पु० आसाकेन भार्या झांझण चमढू पुत्र हरपाल, थिरपाल, वधु-रंगाई प्रमुखपरिवारसहितेन श्रेयोर्थं अभिनन्दनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्री जिनचन्द्रसूरिभिः॥ (५९५) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१६ चैत्र वदि ४ ऊकेश वंशे सा० श्रे० धन्ना भार्या तारू पु० शिवाकेन भा० भापा पु० उदा तारा कीका ४ भ्रा० सादा पु० सोभा ५ त्रासरवण २ भ्रा० सूरा पु० दूल्हादिक परिवारयुतेन स्वश्रेयो) श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं राका भूया। (५९६) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५१६ वर्षे चैत्र वदि ४ दिने ऊकेशवंशे श्रेष्ठिगोत्रे श्रीस्तंभतीर्थवास्तव्य श्रेष्ठि देल्हा भार्या देल्हणदे पु० श्री० नरबदेन भार्या सपूरी पुत्र श्रीमल्ल जगपालादि परिवारयुतेन स्वश्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतबिंब कारितं श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्रीखरतरगच्छे । (५९७) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थी: संवत् १५१६ वर्षे चैत्र वदि ८ ऊकेशवंशे श्रीस्तंभतीर्थे श्रेष्ठिगोत्रे श्रे० देल्हा भा० देल्हणदे पु० सा० चांपा भा० पद्माई पु० सा० श्रीराजेन भा० सोनाई भ्रातृ रमादि परिवारयुतेन श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्र० श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे ॥ श्री॥ (५९८) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१७ वर्षे चैत्र सुदि पूर्णिमायां श्रीमालज्ञातीय खेडरियागोत्रे सं० कानू पुत्र सं० रणवीर ५९२. धर्मनाथ मंदिर, देवसानो पाड़ो, अहमदाबादः परीख और शेलेट- जै० इ० इ० अ०, लेखांक ३९३ ५९३. पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाड़ो, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०५६ ५९४. जैन मंदिर, भायखला, मुम्बई: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १६० ५९५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ९९३ ५९६. केशरियानाथ मंदिर, देशनोक: ना० बी०, लेखांक २२४६ ५९७. वासुपूज्य मन्दिर, दोशीवाड़ा पोल, अहमदाबादः परीख और शेलेट- जै० इ० इ० अ०, लेखांक ३९८ ५९८. आदिनाथ चैत्य, थराद : जै० प्र० ले० सं०, लेखांक ८४ (१०६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह :) For Personal & Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रावकेन भा० हरखूश्राविका पुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । (५९९ ) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी : संवत् १५१७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने सोमवारे ऊकेशवंशे लोढागोत्रे सा० वीशल भार्या भावलदे तत्पुत्र सा० कर्म्मा तद्भार्या कउतिगदे तत्पुत्र सा० सहसमल्ल श्रावकेण सपरिवारेण आत्मश्रेयोर्थं श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (६००) कुन्थुनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५१७ वर्षे आषाढ़ सुदि १० बुधे ऊकेशवंशे लुंकडगोत्रे सा० गूजर पु० सा० देवराज पु० आसा पु० सा० समधरेण स्वमातृचांईपुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीविवेकरत्नसूरिभिः॥ (६०१ ) कुन्थुनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५१७ वर्षे आषाढ़ सुदि १० बुधे ऊकेशवंशे लुंकडगोत्रे शा० गुजर पु० शा० देवराज पुत्र आशा पु० शा० समधरेण स्वमातृ चांई पुण्यार्थं श्री कुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीविवेकरत्नसूरिभिः ॥ ( ६०२ ) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५१७ वर्षे माघ वदि ५ दिने उपकेशज्ञातौ दूगड़गो० सा० सुहडा भा० गुणपालही पु० नगराज भा० नावलदे पु० नानिग मूला सोढल वीरदे हमीरदे सहितेन श्री श्रेयांसबिंबं का० श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे श्रीदेवसुन्दरसूरिपट्टे प्र० श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः॥ ( ६०३ ) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी : संवत् १५१७ वर्षे माघ सुदि ५ शुक्रे दूगड़गोत्रे सा० जयसिंघ पुत्र सधारण भार्या महिरानही पुत्र नथाकेन' स्वपितृश्रेयसे श्रीचंद्रप्र० बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे श्रीदेवसुन्दरसूरिपट्टे श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः ॥ (६०४) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी : सं० १५१७ वर्षे फा० सुदि २ उपकेशवंशे । बहरागोत्रे । सा० सोढा भा० शाणी सु० नगाकेन भा० नायकदे पुत्र लापा गोपा प्र० परिवारसहितेन स्वपितु सा० सोढा पुण्यार्थं श्री श्रेयासंबं० का ० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ ५९९. नेमिनाथ जिनालय, अजीमगंज, मुर्शिदावाद: पू० जै०, भाग २, लेखांक १०१० ६००. आदिनाथ जिनालय, जामनगरः प्रा० ले० सं०, लेखांक ३१७ ६०१. सुमतिनाथ जिनालय, माधवलाल बाबू की धर्मशाला, पालिताना : पू० जै०, भाग २, लेखांक १७५५ ६०२. बड़ा मंदिर, नागोर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५७० ६०३. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १००४ ६०४. संभवनाथ जिनालय, अजमेर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५७४; पू० जै० भाग १, लेखांक ५५६ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : For Personal & Private Use Only (१०७) www.jalnelibrary.org Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०५) सम्भवनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५१७ वर्षे चैत्र वदि ७ ऊकेशवंशे तातहड़गोत्रे सा० आंबा भा० अहीवदे सुत सा० पूनाकेन भा० पउमदे तथा भ्रातृ समधरा समरा शिखरा प्रमुखपरिवारसहितेन श्रीसंभवनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (६०६) शीतलनाथ-चतुर्विंशतिः ___ संवत् १५१८ वर्षे वैशाख सुदि ५ रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीय संघवी टीलाभा० सं० लापू सुत हांसा भार्या हांसलदे सुत रूपा जूठा धूडा एतैः पितृमातृश्रेयोऽर्थं चतुर्विंशतिपट्टमुख्य-श्रीशीतलनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमधुकरगच्छे भ० श्रीधनप्रभसूरिभिः पाटरीवास्तव्यः॥ (६०७) श@जय-गिरनार-पट्टिका संवत् १५१८ वर्षे वैशाख सुदि १० दिने राउल श्रीवयरसिंह-पुत्र राउल श्रीचाचिगदेव विजयराज्ये चोपड़ागोत्रे सा० सिवराज-महिराज-लोलाबांधव सं० लाषणसुश्रावकेण सं० थिरा सं० सहसा सं० सहजपाल सा० सिषरा सा० समरा-माला-सहणा-कुंरा-पौत्र-श्रीकरण-उदयकरणप्रमुखपरिवारसहितेन श्रीसित्तुंजयगिरनारावतारपट्टिका समरा भार्या सहजलदे श्राविका पुण्यार्थं कारिता प्रतिष्ठिता खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीश्रीजिनचंद्रसूरिभिः। श्रीवाचनाचार्यकमलराजगणयः प्रत्यहं प्रणमंति॥ ब॥ श्री ॥ शुभं भवतु ॥ १॥ (६०८) शत्रुजय-गिरनार-पट्टिका ॥ संवत् १५१८ वर्षे वैशाखसुदि १० दिने संखवालगोत्रे सा० पेथापुत्र सा० आसराजश्रावकेण पुत्र घेता पौत्र वीदा-हेमराजप्रमुखपरिवारसहितेन निजभार्यापुण्यार्थं वा० कमलराजगणीश्वराणां सदुपदेशेन श्रीशत्रुजयगिरनारावतारपट्टिका कारिता ॥ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। उत्तमलाभगणि प्रणमति सादरं ॥ (६०९) नंदीश्वरपट्टः (१) ॥ ॐ ॥ अर्ह ॥ परमैश्वर्यधुर्याय नमः श्रीआश्वसेनये। पार्श्व(२) नाथार्हते भक्तया जगदानंददायिने ॥ १॥ अभिमतशतदाता (३) विश्वविख्याततेजाः परमनिरुपमश्रीप्रीणितास्त्येकलोकः। स(४) कलकुशलवल्लीमातनोतु प्रजानां चरणनतसुरेन्द्रः श्रीसुपार्यो (५) जिनेंद्र ॥२॥ समुप()स्य जिनवरेंद्रौ निजगुरुविशदप्रसादतः सम्यक्। शस्तप्रशस्तिमेनां लिखामि संक्षेपतः सारां ॥ ३ श्रीमज्जेसलमेरु राउल-श्रीवयरसिंह-पुत्र-राउल-श्रीचाचिगदेवविजयिराज्ये विक्रमात् सं० १५१८ वर्षे वैशाख सुदि ६०५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ९९९ ६०६. शान्तिनाथ जिनालय, मीयागास : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २८८ ६०७. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१४० ६०८. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१४१ ६०९. पार्श्वनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २११५-१६ (संयुक्त) (१०८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० दिने नाहटा समरापुत्र सं० सजाकेन सं० सद्धासहदे सेढा राणा जावड भावड सं० सोही रांभू वीजूप्रमुखपुत्रपुत्रिकादिपरिवारसहितेन श्रीमंडोवरनगरवास्तव्येन भार्यासूहबदेपुण्यार्थं श्रीनंदीश्वरपट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (६१०) नंदीरश्वरपट्टः संवत् १५१८ वर्षे वैशाख सुदि १० दिने गणधरगोत्रे सा० नाथुपुत्र सं० पासड भार्या प्रेमलदे पुत्र सं० जीवंदसुश्रावकेण पुत्र साधारण-धीराप्रमुखपरिवारसहितेन निजमात्रा-प्रेमलदे पुण्यार्थं नंदीश्वरपट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। वा० कमलराजगणिवराणां शिष्य उत्तमलाभगणिः प्रणमति ॥ (६११) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१८ वर्षे वैशाख सुदि १० दिने उकेशवंशे सागरनालो (?) गोत्रे केन पुत्र देवा श्रीआदिनाथबिंबं का० प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे (६१२) वासुपूज्य: सं० १५१८ वर्षे मिति वैसाखसुदि १० दिने थुल्लगोत्रे सा० जिण पुत्र सं० सुखराज..... पुत्र......सहितेन श्रीवासपूज्यबिंबं कारितं प्र० श्री जिनचंद्रसूरिभिः (६१३) मूर्तिः : सं० १५१८ वर्षे वैशाष मासे धवलपक्षे १० दिने श्रीजिनचंद्रसूरि..अत्र प्रतिष्ठितं......संखवाल सा० लखा पुत्र कुंभा भार्या...... (६१४) शत्रुजय-गिरनारपट्टः सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठवदि ४ दिने श्रीचाचिगदेवविजयराज्ये गणधरगोत्रे जगसी पुत्र नाथू तत्पुत्र सं० सच्चराज भार्या संघविणि सिंगारदे पुत्र सं० धरमा सं० जिनदत्त देवसी भीमसी पौत्र लाषा रिणमल्ल देवा अमरा भउणा सूरा सामलादिपरिवारयुतेन श्रीशत्रुजयगिरनारावतारपट्टिका स्वभार्या सिंगारदे पुण्यार्थं श्रीशत्रुजयगिरनारावतारपट्टी कारिता । प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। आखात्रीजदिने लिखितं॥ (६१५) नंदीश्वरपट्टः सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ मासे प्रथम चतुर्थे दिने श्रीचाचिगदेवविजयराज्ये गणधरगोत्रे सा० गजसी पुत्र नाथू तत्पुत्र संघवी सत्ता तत्पुत्र सं० धना जिणदत्त नेतसी भीमसी सुश्रावकैः गोरी हांसू लाखा देवा रिणमल्ल ६१०. पार्श्वनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २११८ ६११. पडीगुंडी का पाडा, पाटण, भो० पा०, लेखांक ६३९ ६१२. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २६९० ६१३. पार्श्वनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१२२ ६१४. पार्श्वनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २११७ ६१५. पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २११९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (१०९) For Personal & Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमरा सउणा सूरा सामलादि प्रमुखपरिवारसहितैः । ना० सज्जा भार्या सूहवदे पुत्री धारलदे पुण्यार्थं तंत्पुत्री रनूकरजी पुण्यार्थं च श्रीनंदीश्वरपट्टिका कारिता ॥ जिनवराणां शिला श्रीखरतरगच्छे प्रतिष्ठिता ॥ श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (६१६) आदिनाथ-पादुका सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने ऊकेशवंशे कूकडागोत्रे चोपडाशाखायां सा० पांचा पुत्र सं० सिवराज महिराज पुत्र लोला बांधवेन सं० लाखण सुश्रावकेण पुत्र सिखरा समरा माला महणा सहणा कउंरा पोत्र श्रीकरण उदयकरण प्रमुखपरिवारसहितेन श्रीआदिनाथपादौकारे वो प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (६१७) आदिनाथः सं० १५१८ वर्षे जेष्ठ वदि ४ दिने छाजहड़गोत्रे सा० कीहड़ कुशला.....दि युताभ्यां श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर..... (६१८) आदिनाथः संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिन सं० माल्हा भार्या माणकदे पुत्र म० नाथू श्रावकेण पुत्र डूंगर सुरजा प्रमुखपरिवारसहितेन मातृ पुण्यार्थं आदिनाथ..............प्रतिष्ठितं श्रीजिनचंद्र.... (६१९) सुमतिनाथः सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने संखवालगोत्रे सा० जेठा पुत्र........चांपादिपरिवारस० स्वमातृ जसमादे पुण्यार्थं श्रीसुमतिबिंब कारितं.......खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्र...................। (६२०) सुमतिनाथः सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने संखवालगोत्रे सा० जेठा पुत्र सं० मेहा गुणदत्त चांपादि परिवार स० स्वमातृ जसमादे पुण्यार्थं श्रीसुमतिबिंबं कारितं.......................खरतरगच्छ श्रीजिनचं....... (६२१) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठवदि ४ दिने ऊकेशवंशे लूणिआगोत्रे सा० आसकरण पुत्र सा० गजा सा० रता सा० तेजाश्रावकैः सपरिवारैः श्रीश्रेयांसबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ ६१६. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७०३ ६१७. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८०५ ६१८. अष्टापद जी का मन्दिर, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७२० ६१९. शीतलनाथ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३८३ ६२०. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २६८४ ६२१. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१९० खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२२ ) वासुपूज्य - तोरणः संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिणा प्रसादेन श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिणां आदेशेन गणधरगोत्रे सा० नाथू भार्या धतृ पुत्र सा० पासड सं० सच्चा सं० पासड भार्या प्रेमलदे पुत्र सं० श्रीचंद श्रावकेण भार्या जीवादे पुत्र सधारण धीरा भगिनी विमली पूरी परूसै प्रमुखपरिवारसहितेन वा० कमलराज गणिवराणां सदुपदेशेन श्रीवासुपूज्यबिंबं तोरणं कारितं प्रतिष्ठितम् च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ उत्तमलाभगणिः प्रणमति । (६२३) धर्मनाथ पञ्चतीर्थी: संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने श्रीऊकेशवंशे नानहड़गोत्रे सा० धना भार्या रेणी पुत्र मा० सालिग श्राद्धेन जईता माला पाना जगमालादियुतेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ( ६२४ ) शांतिनाथ संवत् १५१८ ज्येष्ठ वदि ४ दिने संखवालगोत्रे सा० जेठा पुत्री (सं० महतु) पुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीकीर्तिरत्नसूरिप्रमुखपरिवारसहितैः ( ६२५ ) शांतिनाथः संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने ऊकेशवंशे संखवालगोत्रे सा० केल्हा भार्या केल्हणदे श्राविकया.............. चं० धन्नापुत्र मालादिपरिवारसहितया शांतिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिप्रमुखपरिवारसहितैः ॥ (६२६ ) शांतिनाथ : संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने ऊकेशवंशे संखवालगोत्रे सा० केल्हा भार्याया केल्हणदे श्राविकया........ त धन्ना पता माल्हादि परिवारसहितया श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिप्रमुखपरिवारसहितैः (६२७) शांतिनाथ - पञ्चतीर्थी: संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने ऊकेशवंशे थुल्लगोत्रे मं० धारा भार्या धाधलदे पुत्र सं० विजयसु श्रावकेण भार्या पूरी । मल्ही पुत्र जगमालादिसहितेन श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे प्र० श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ श्री ॥ ६२२. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६९७; जै० ती० स० सं०, भाग १, खण्ड २, पृ० १६७ ६२३. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै० भाग २, लेखांक २३४१ ६२४. पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी० लेखांक २६८६ ६२६. पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० ६२७. खडाखोटडी, पाटणः भो० पा०, ६२५. शीतलनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २३८२ बी०, लेखांक २६८५ लेखांक ६४३ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only १११) Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२८) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने ऊकेशवंशे साद्रसाषे पा० जेसा भार्या जेसादे पुत्र साधारण तेजसी समरसिंह कारितं श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (६२९) कुन्थुनाथ पञ्चतीर्थी : सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने ऊकेशवंशे परीक्षि सोनी पुत्र सा० सुरपति सहिजा करमसिंह करमसी पुत्र जनदास - देवकर्णाभ्यां सुरपति पु० वेलादियुतः पितृव्यराजापुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथबिंबं का० प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे ॥ (६३०) पार्श्वनाथ: संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने (म) डा० पुत्र नाथूकेन समातृ वीरमती पुण्यार्थं पार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । सला (६३१ ) सपरिकर - मूर्तिः सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने फोफलयागोत्रे सा० पुत्र द ..... 'प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । ...नाथमूर्तिः (६३२) सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ दिने श्रीसंखवाल. कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः. (६३३) जिनभद्रसूरिमूर्तिः [१] संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ दिने ऊकेशवंशे व्य । कुशलाकेन [२] सपरिवारेण श्रेयोर्थं श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणां मूर्तिः कारिता । प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । ६२८. बृहत्खरतरगच्छ का उपाश्रय, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २४८२ ६२९. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २१८९ ६३०. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६८२ ( ६३४) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दिने श्राविका बानू निजपुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः दि०, भाग २, लेखांक ३, पृ० १९८; प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ११० दत्त धणदत्त 'कारिता ६३१. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर ना० बी०, लेखांक २७०० ६३२. आदिनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ३१ ६३३. शांतिनाथ जिनालय, गर्भगृह, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ३२; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ४८१; य० वि० ६३४. पार्श्वनाथ सेढू जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९८२ (११२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: . स्वपुण्यार्थं . ...बिंबं For Personal & Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३५ ) शांतिनाथ: संवत् १५१८ पौष वदि ५ दिने उकेशवंशे संखवालगोत्रे सा० केल्हा भार्यया कलूणदे श्राविकया पुत्रपौत्रासत्क मानादिपरिवारसहितया श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रति श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिप्रमुखपरिवारसहितैः ॥ (६३६) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५१८ वर्षे। माघ सुदि १० उकेशवंशे थूलगोत्रे सा० गुजरेण भा० गउरदे पुत्र वेदा अजाण दूला कुशलादिपरिवारसहितेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (६३७) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५१८ वर्षे माघ सुदि दशम्यां बुधे श्रीमालज्ञातीय सं० रूपा भार्या ढाली आत्मश्रेयोर्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीमण्डपे ठाकुरगोत्रे ॥ (६३८) अभिनन्दन - पञ्चतीर्थी : ॥ ॐ॥ संवत् १५१८ वर्षे माह सु० १० ऊकेशवंशे गोलवच्छा गोत्रे सा० समरा पुत्र महिराज भार्या रोहणी तत्पुत्र साह सधारेण श्रीअभिनन्दनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (६३९) पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५१८ वर्षे माह सु० १० ऊकेशवंशे गोलवच्छा गोत्रे । पुगलिया वास्तव्यम्। सा० डूंगर भा० कर्मी पुत्र सा० डामरेण भार्या दाडमदे पुत्र कीहट देवराजादि परिवारेण स्वश्रेयोर्थं श्रीपद्मप्रभबिंबं का० प्र० खरतर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (६४० ) पद्मप्रभ - पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५१८ वर्षे माह सु० १० ऊकेशवंश सा० देसल सा० कुसला श्रावण स्वपुण्या आत्मश्रेयसे श्रीपद्मप्रभबिंबं कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः । (६४१ ) श्रेयांसनाथ - चतुर्विंशतिः ॥ ॐ ॥ सं० १५१८ वर्षे चैत्र वदि १ सोम दिने श्रीमालवंशे जूनीवालगोत्रे सा० दासा पुत्र सा० खिंउराजकेन समस्तपरिवारेण आत्मश्रेयसे श्री श्रेयांसनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनप्रभसू० अन्व० प्रतिष्ठितं श्रीजिनतिलकसूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ छ ॥ ६३५. पार्श्वनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१२३ ६३६. बड़ा मंदिर, नागोर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५८५ ६३७. चन्द्रप्रभ जिनालय, रायपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५८६ ६३८. पार्श्वनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर पू० जै० भाग २, लेखांक २१३१ ६३९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १०१२ ६४०. नेमिनाथ जी का मंदिर, भाडरवा, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २२५ ६४१. पंचायती मंदिर, जयपुर प्र० लेखसंग्रह भाग १, लेखांक ५७५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (११३) www.jalnelibrary.org Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४२) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५१८ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने ऊकेशवंशे बोथिरागोत्रे मं० मयर भार्या सिंगारदे पुत्र सा० थिमा भार्या सुंदरी पुत्र सा० मेला जिणदत्त सहितेन श्रीधर्मनाथबिंब कारितं स्वपुण्यार्थं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। . (६४३) पार्श्वनाथः सं० १५१८ वर्षे चैत्र दिने ऊकेशवंशे लोढ़ा........ मणसदत्त पुत्र सं० श्रीपालेन स्व०पितृपुण्यार्थं दोषनिवारणार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः (६४४) सुमतिनाथादि-चौमुखः (A) विक्रम सं० १५१८ वर्षे श्री जैसलमेरमहादुर्गे राउल श्रीचाचिगदेवविजयिराज्ये ऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा० हेमा पुत्र पूना तत्पुत्र दीता तत्पुत्र पांचा तत्पुत्र सं० सिवराज सं० महिराज सं० लोला तद् बांधवेन सं०.. (B) सूहवदे पुत्र सं० थिरा सं० महिराज भार्या महिगलदे पुत्र सहसा साजण सं० लोला भार्या लीलादे पुत्र सं० सहजपाल रत्नपाल सं० लाखण भार्या लखमादे पुत्र सिखरा समरा माला मोढा सोढा कउंरा पौत्र ऊधा श्रीवत्स सारंग सद्धा श्रीकरणं ऊगमसी सदारंग भारमल्ल सालिग सुरजन मंडलिक पारस प्रमुख परिवार सहितेन वा० कमलराजगणिवराणां सदुपदेशेन मातृ रूपी पुण्यार्थं श्री कल्याण त्रय। (C) श्रीसुमतिबिंबानि कारितानि प्रतिष्ठिातानि श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। वा० कमलराजगणिवराणां शिष्य वा० उत्तमलाभ गणि प्रणमति। (६४५) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ वर्षे वैशाख व० ११ शुक्रे ओसवालज्ञा० नाहटशाखायां सा० सारंग भा० ग्रहगदे पुत्र सा० चांपा भा० बाहू मांजू पुत्र सा० श्री धर्मभाइय। पा आत्मश्रेयसे श्रीचन्दप्रभस्वामिबिंबं का प्र० श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनसागरसूरि भ० श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (६४६) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ वैशाख वदि ११ शुक्रे श्रीऊकेशवंशे नाहटावंशे सा० साजण भा० लाछू पुत्र सा० सदा सुश्रावकेण भा० पूरी । भातृ सा० सीराज सा० माणिक प्रमुखपरिवारयुतेन स्वश्रेयसे श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीखरतरैः॥ ६४२. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी० लेखांक १००८ ६४३. श्री भंवर ले० सं० (अप्रका०) हाथरस के लेख, क्रमांक २ ६४४. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७०२ ६४५. जैन मंदिर, ऊंझा, जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १६९ ६४६. अजितनाथ मंदिर, उज्जैन: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १२४ (११४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४७) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५१९ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने ऊकेशवंशे श्रेष्ठिगोत्रे सा हूंफा भार्या सीतू पुत्र हापा भा० तेजू पुत्र सा० देवदत्तेन स्वश्रेयोर्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं । प्र० श्रीखरतरगच्छेश्वर श्रीजिनभद्रपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (६४८ ) आदिनाथ-चतुर्विंशतिः सं० १५१९ वर्षे आषाढ़ वदि १ मंत्रिदलीय काणागोत्रे ठ० श्री नगराज सुत ठ० श्री लघूभार्या धर्मिणि पुत्र स० सिंगारसी भा० कुंवरदे पु० स० राजमल्ल सुश्रावकेण पुत्रादिपरिवारसहितेन श्रीआदिनाथमूलबिंबश्चतुर्विंशतिपट्ट कारितः प्रतिष्ठित: खरतर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभि: युगप्र वरागमः ॥ छ ॥ (६४९) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५१९ आषाढ़ व० १ मंत्रिदलीय श्रीकाणागोत्रे ठ० लहू भा० धर्मिणी पुत्र सं० अचलदास सुश्रावकेन पु० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन देवपाल वीरसेन पहिराजादिपरिवारयुतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीआदिनाथदेवः कारितं प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रगुरुभि: (सूरिभिः) ॥ ( ६५० ) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५१९ वर्षे आषाढ़ वदि १ मंत्रिदलीय श्रीकाणागोत्रे ठ० लहू भा० धर्मिणि पुत्र सं० अचलदासेन पुत्र ठ० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन देवपाल वीरसेन पहिराजादियुतेन श्रीआदिनाथबिंबं का० सं० सिंगारसी पु० मदनपूजनार्थं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ( ६५१) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५१९ आषाढ़ वदि...... मंत्रिदलीय श्रीकाणागोत्रे ठा० लाधू भा० धर्मिणि पु० स० अचलदान पु० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेनादियुतेन श्रीआदिबिंबं का० प्र० श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे ॥ श्रीः ॥ ( ६५२ ) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५१९ वर्षे आषाढ़ वदि १ मंत्रिदलीय काणागोत्रे ठ० नगराज सुत ठ० लघूभार्या धामिणि पु० सं० श्री अचलदासेन पुत्र ठ० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन वीरसेन देपाल पहिराजादि परिवार वृतेन स्वश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ६४७. शांतिनाथ जिनालय, मांडलः प्रा० ले० सं०, लेखांक ३४० ६४८. मथियान मोहल्ला, बिहार : पू० जै० भाग १, लेखांक २१७ ६४९. चन्द्रप्रभ देरासर उज्जैन: मालवांचल के जैन लेख, लेखांक ४८ ६५०. कुंथुनाथ जिनालय, घड़ियालीपोल, बडोदरा: जै० धा० प्र० ले० सं० भाग २, लेखांक १६१ ६५१. कुशला जी का मंदिर, रामघाट, वाराणसी पू० जै० भाग १, लेखांक ४१९ ६५२. मथिंयान मुहल्ला : पू० जै०, भाग १, लेखांक २१५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (११५) www.jalnelibrary.org Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५३) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ वर्षे आषाढ़ वदि १ श्री मंत्रिदलीय ठ० लाधू भार्या धर्मिणि पुत्र स० अचलदासेन पुत्र उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन देवपाल वीरसेन पहिराजादि युतेन स्वश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टालंकार श्रीजिनहर्षसूरिवरैः। (६५४) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१९ वर्षे आषाढ़ वदि १ श्रीमंत्रिदलीयशाखायां बायड़ा गोत्रे स० षौमराज भा० सुरदेवी पुत्र ठ० दासू भा० कपूरदे पु० ठ० सदय वछ (?) प्रमुखपरिवारसहितेन स्वश्रेयसे श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ श्री॥ (६५५) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ आषाढ़ व० १ मंत्रिदलीय। श्रीकाणागोत्रे ठ० लाधू भा० धर्मिणि पु० सं० अचलदासेन पु० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन देपालादियुतेन श्रीशान्तिबिंबं का० प्रति० श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (६५६) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ व० आषाढ वदि १ मंत्रिदलीय श्रीकाणागोत्रे ठ० लाधू भा० धर्मिणि पु० सं० अचलदासेन पु० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन देवपाल वीरसेन पहिराजादियुतेन श्रीशान्तिबिंबं का० प्रति० श्रीख० श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ।। (६५७) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१९ वर्ष आषाढ़ वदि १ मंत्रीदलीय श्रीकाणागोत्रे ठ० लाधू भा० धर्मिणि पु० अचलदासेन पु० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन देवपाल वीरसेन पहिराजादियुतेन श्रीशान्तिनाथदेव का० श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः (६५८) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ वर्षे आषाढ़ वदि १ मंत्रिदलीय काणागोत्रे ठ० नागराज सु० लडू भार्या धर्मिणि सु० सं० श्रीकेवलदास भार्या वीरसिंघि पु० स० सूर्यसेन श्रावकेण श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ ६५३. प्रतिष्ठासथान-सम्भवनाथ जिनालय-वालुचरः पू० जै०, भाग १, लेखांक ४८ ६५४. मथियान मुहल्ला: पू० जै०, भाग १, लेखांक २१६ ६५५. चन्द्रप्रभ जिनालय, आमेरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५९६ ६५६. महावीर जिनालय, चोथ का बरबाड़ाः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५९७ ६५७. खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर, तूलापट्टी, कलकत्ता : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १७३ ६५८. कुशलाजी का मंदिर, रामघाट, वाराणसी: पू० जै०, भाग १, लेखांक ४१८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५९) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ वर्षे आषाढ़ व० १ दिने श्रीमंत्रिदलीय श्रीभगाडगोत्रे ठ० चंदन भार्या सिंगारदेवी पुत्र ठ० सं० नाथेन भार्या नामलदेव्यादिपरिवारसहितेन आत्मश्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (६६०) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १९१९ आषाढ़ वदि १ (?) मंत्रिदलीयवंशे काणागोत्रे ठ० लाधू भा० धरमणि पु० सं० अचलदासेन स्वपुण्यार्थं श्रीनमिनाथबिंबं का० उसीयडगोत्रे ठ० वीरनाथ भा० तिलोकदे पु० ठ० करणस्य दत्तं च प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (६६१) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ वर्षे आषाढ़ वदि १ श्रीमंत्रिद० श्रीकाणागोत्रे सा० लाधू भार्या धर्मिणि पुत्र सं० अचल दासेन पुत्र उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन देवपाल महिराजादियुतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः। (६६२ ) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ वर्षे आषाढ़ व० १ मंत्रिदलीय काणागोत्रे ठ० नागराज सु० ठ० लदुका धर्मिणि सु० सं० श्रीअचलदास भार्या कीरसिधि सु० स० वीरसेन श्रावकेण श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ श्री॥ (६६३) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ आषाढ़ वदि २ श्रीमंत्रीदल्लीये श्रीतुशीयडगोत्रे सं० मेघराज सु० ठ० जिनदास पु० सुमगरभार्या पद्मिणी पु० ठ० लक्ष्मीसेनश्रावकेण स्वश्रेयोऽर्थं श्रीशान्तिनाथबिंब कारापितं श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः खरतरगच्छे प्र० श्रीरस्तु॥ (६६४) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५९९ आसाढ़ वदि १० मंत्रिदलिय श्रीउसियड़गोत्रे स० मेघराज सु० जिणदास प्रा० करगिणि पुत्रेण स० शुभकरण भा० पद्मिन्याः पु० लक्ष्मीसेन हालू जनन्याः श्रेयोर्थ श्री संभवनाथबिंबं का० श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रेयोस्तुः। ६५९. सुमतिनाथ मुख्य ५२ जिनालय, मातर : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४८७ ६६०. महावीर जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४२१ ६६१. शहर मंदिर, पटना : पू० जै०, भाग १, लेखांक २८१ ६६२. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नौहर : ना० बी०, लेखांक २४८४ ६६३. जैन मंदिर, ईडर: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १४०४ ६६४. गांव का मंदिर, पावपुरी तीर्थ: पू० जै०, भाग १, लेखांक १८६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः ११७) For Personal & Private Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६५) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१९ वर्षे आषाढ़ सुदि १० मंत्रिदलीय श्रीकाणागोत्रे ठ० लाधू भा० धर्मिणि पु० अचलदासेन पु० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन देवपाल वीरसेन महिराजादियुतेन श्रीशान्तिनाथं का० श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (६६६) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ वर्षे मार्गसिर वदि ५ गुरु श्रीमालवंशे सोवनगिरागोत्रे सं० धनराज सं० पूजा जीता संग्रामयुतेन माताकणकूसुहागदे पुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः।। (६६७) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ माघ सुदि ४ रवौ उपकेशज्ञा० पितामहजयताभा० मेचू द्वि० भार्यासारू पू० मालाभा० माणिकदेसु० वर्द्धनवीशलकमाभ्यां पित्रोः श्रेयसे श्रीश्रीवासुपूज्यबिंबं का० रुद्रपल्लीय प्र० श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः॥ (६६८) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५१९........मंत्रिदलीय श्रीकाणागोत्र उ० लाधू भा० धम्मिणि पु० स० अचलदासेन पु० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेनादियुतेन श्रीशान्तिनाथबिंबं का० प्रति० श्री जिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः। (६६९) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५२० वर्षे वैशाख सु० ११ दिने ५ उकेशवंशे साहूशाखायां सा० सिवापु० सा० सद्धाभा० सुहगदेपुत्र सा० श्रीमल्लेन भा० पल्हाईप्रमुखानि पूजार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः। अहमदाबाद वास्तव्यः __ (६७०) नमिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५२० वर्षे वैशाख सुदि ११ बुधे उपकेशवंशे साधुशाखायां सा० डूंगरभा० दूल्हादेसुत सा० जीवाकेन भा० हंसाई पु० साह सहसधीर-सहसवीरयुतेन श्रीनमिनाथबिंबं का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (६७१) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२० वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने ऊकेश चोपड़ागोत्रे सा० वरसिंघ भा० सोपू पुत्रेण सा० ६६५. धर्मनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, बड़ा बाजार, कलकत्ताः पू० जै०, भाग १, लेखांक १०३ ६६६. शांतिनाथ जिनालय, नडियाड: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३७९ ६६७. सुमतिनाथ जिनालय, सीनोर: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३६६ ६६८. बाबू सुखराजराय का घर देरासर, नाथनगर: पू० जै०, भाग १, लेखांक १६१ ६६९. भीड़भंजन पार्श्वनाथ जिनालय,खेड़ा: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४३ ६७०. आदिनाथ जिनालय, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९० ६७१. शान्तिनाथ जिनालय, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११८० (११८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणपतियुतेन सं० धणपतिना भा० सं० ह— पु० पूनासिंहाद्युपेतेन श्रीसुविधिनाथबिंबं का० प्र० श्रीजिनसागरसूरिभिः खरतरगच्छेश्वरैः॥ (६७२) वासुपूज्य-चतुर्मुखः सं० १५२० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ८ भौमे श्रावक मूजी श्राविका सपूरी श्रा० फालू श्रा० रतनाई पुण्यार्थं श्रीवासपूज्यचतुर्मुखबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (६७३) नमिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५२० वर्षे .....................व० ३ काश्यपगोत्रे सा० देवसी पुत्र सा० भीमस [सी] || भार्या रूपाणी पुत्र सा० देवीदास.............चन्द्र प्रमुखपरिवारयुतेन स्वश्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (६७४) पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५२१ वर्षे वैशाख सुदि १० दिने श्रीमालज्ञातीय बहुरागोत्रे सं० वीदा भार्या बिकलदे पुत्र सं० सारंग भार्या सं० स्याणी पौत्र रामणयुतेन श्रीपद्मप्रभ स्वपुण्यार्थं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (६७५) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५२१ वर्षे वैशाख सुदि १० दिने श्रीऊकेशवंशे बहुरागोत्रे सा० धरणा पुत्र सा० सालिग भार्या वासून पुत्र सा० जेसा भार्या कर्माइ स० श्रीचन्द्रप्रभबिंब का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ __(६७६ ) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५२१ वर्षे वैशाख सुदि १० दिने श्रीमालज्ञातीय श्रीठाकुरागोत्रे सं० देल्हा पुत्र सं० गुणराजभार्या चांपलदे पुत्र सं० देवराज सं० देवदत्तभार्या माणिकदे पुण्यार्थं भ्रातृव्य सा० सोनपाल तदनु सा० पासा सा० आशा सा० सीपादिभिः श्रा० गउरी पुत्री पुण्यार्थं श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ श्री ।। (६७७ ) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२१ वर्षे वैशाख सुदि १० दिने श्रीमालज्ञातीय बहकटागोत्रे सा० जगमाल पुत्र सांचाकेन भार्या स्याणी पुण्यार्थं श्रीकुन्थुनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ ६७२. पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१२८ ६७३. अजितनाथ जिनालय, भोयराशेरी, राधनपुर: मुनि विशाल विजय-रा० प्र० ले० सं०, लेखांक २३४ ६७४. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक १७६३ ६७५. कोटावालों की धर्मशाला, पाटण: भो० पा०, लेखांक ६८२ ६७६. जैन मंदिर, सादड़ी: प्रा० ले० सं०, लेखांक ३५९ ।। ६७७. आदिनाथ मंदिर, चाडसूः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ६१२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (११९) For Personal & Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७८) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५२१ वर्षे जे० व० ९ रवौ ऊके० भणसालीगोत्रे सा० रतना पु० चुडा भा० सारू पु० सोनाकेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं चुडानिमित्तं श्रीखरतरगच्छे जिनहर्षसूरिभिः ॥ १ ६७९) महावीर : ९ संवत् १५२१ वर्षे मार्ग० वदि १२ दिने ऊ० बुथड़ागोत्रे सा० तोला पुत्र स्वपुण्यार्थं श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्र० । श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । ( ६८० ) पञ्चतीर्थी : १ दिने ऊकेशवंशे. संवत् १५२२ वर्षे पौष वदि प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः शुभं भवतु ॥ ( ६८१ ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५२२ वर्षे माघ वदि ५ शुभवासरे श्रीउसवंशे भाटी आगोत्रे सा० पूना सुत साह जइता भा० श्रा० सुहासिणि पुत्ररत्नेन । भाटीआ सा पहिराजेन भा० प्रेमलदे पु० सा० धर्म्मसी सहितेन स्वपुण्यार्थं श्री शीतलनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरि - श्रीजिनचंद्रसूरि - श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ( ६८२ ) शीतलनाथ: सं० १५२३ वर्षे वैशाष (ख) सुदि १३ गुरौ श्रीशीतलनाथबिंबं सा० सुदा भा० श्रा० सुहवदेव्या का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभि: विजयचंद्रेण ॥ ( ६८३ ) शीतलनाथः सं० १५२३ वर्षे वैशाख सुदि १३ गुरौ श्रीशीतलनाथबिंबं सा० सुदा भा० श्रीसुहवदेव्या का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः विजयचंद्रेन ॥ ( ६८४ ) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५२३ वर्षे वैशाख सुदि १३ दिने मंत्रिदलीय मुंडलेहगोत्रे सा० रतनसी भार्या बाऊँ पुत्र सा॰ देवराजेन भार्या रामति पुत्र सा० मेघराजयुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ ६७८. पार्श्वनाथ मंदिर, मसूदा : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६१३ ६७९. श्रीगंगा गोल्डेन जुबली म्यूजियम, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक २१५५ ६८०. शान्तिनाथ जिनालय, माणेक चौक, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ९८५ ६८१. जैन देरासर, त्रापजः प्रा० ले० सं०, लेखांक ३६४ कारितं ६८२. पित्तलहर, आबूः अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४१५ ६८३. खरतरवसही, आबूः प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक २५८ ६८४. चन्द्रप्रभ मंदिर, आमेर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ६२८ (१२०) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पु०. (६८५ ) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५२३ वर्षे वैशाख सुदि ६ दिने श्रीश्रीमालज्ञा० सं० जइत पु० सं० मांडण भा० लीलादे ..जावडयुतेन श्रीपार्श्वबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ ( ६८६ ) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५२३ वर्षे वैशाख सुदि १३ दिने मंत्रिदलीय ज्ञातीय मुंडगोत्रे सा० रतनसी भार्या बाकुं पुत्र सा देवराज भार्या रामति पुत्र सा० मेघराज युतेन स्वपुण्यार्थं श्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छ श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (६८७) सपरिकर - शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: । सं० १५२३ वर्षे वैशाख सुदि १३ दिने मंत्री [मंत्रि] दलीयज्ञातीय मंत्राडगोत्रे सा० वला पुत्र सा० रतनजी भार्या वाकूंपुत्र सा० देवराजेन भार्या रामति पुत्र सा० मेघराजयुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्टि [ष्ठि] तं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ ( ६८८ ) शान्तिनाथ - एकतीर्थी: ॥ सं० १५२३ वर्षे वैशाख सुदि १३ गुरौ श्री शांतिनाथबिंबं सा० सुदा भा० सुहवदेव्या का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (६८९) गौतमस्वामी - मूर्तिः सं० १५२३ वर्षे वैशाख सुदि १३ गुरु मन्त्रिदलीय ज्ञा० मुंडतोड़ गोत्रे सा० रतनसी भा० श्राविका राऊ तत्पुत्र सा० सूदा भा० श्राविका बाई सूहवदे केन स्वपुण्यार्थं श्रीगौतमस्वामिबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ श्री ॥ ( ६९० ) अजितनाथ - पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५१३ वर्षे मार्ग० व० १२ श्रीउकेशवंशे भंडशालिकगोत्रे भ० महिराज भा० माल्हणदे पुत्र भ० करणा भा० पूराई पुत्र शा० सिवदत्त सुश्रावकेण भा० कल्लौ पुत्र डूंगर प्रमुखपरिवारयुतेन स्वपितुः श्रेयसे अजितनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (६९१ ) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी : संवत् १५२३ वर्षे मार्गशीर्षवदि १२ संखवालगोत्रे सा० देपा पुत्र केल्हा केल्हणदे पुत्र सेखाकेन ६८५: वीर जिनालय, रीजरोड़, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९४३ ६८६. सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, जयपुर पू० जै०, भाग २, लेखांक ११५७ ६८७. संभवनाथ जी का मंदिर, नागजी भूधर पोल, अहमदाबादः परीख और शेलेट - जै० इ० इ० अ०, ६८८. शान्तिनाथ मंदिर, हालापोल, अहमदाबादः परीख और शेलेट: जै० इ० इ० अ०, लेखांक ५४६ ६८९. अजितनाथ जिनालय, कोचरों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५५६ ६९०. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, राधनपुरः रा० प्र० ले० सं०, लेखांक २४८ ६९१. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१९२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : For Personal & Private Use Only लेखांक ५५० ( १२१) Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भार्या सलषणदे पुत्र देवराजादिपरिवृतेन स्वपुण्यार्थं श्रीचंद्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ (६९२) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५२३ वर्षे मार्गशीर्ष वदि १२ वउहरागोत्रे सा० तीमाषेमी पुत्रेण सा० मूलाकेन पुत्र समरा वरिसिंहादिपरिवारपरिवृतेन स्वपुण्यार्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ( ६९३ ) अनन्तनाथ: संवत् १५२३ वर्षे माह वदि ८ सोमे भं० आसकरेण श्रीअनन्तनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं । श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (६९४) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५२४ वैशाख सुदि ३ ऊकेश सा० लाषा भा० हर्षू प्रमुखकुटुंबयुताभ्यां पितृव्य सं० कर्मसी श्रेयसे श्री सुविधिनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ संवत् १५२४ वर्षे ज्येष्ठ वदि. (६९५) ....नाथ .. श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः सा० माला पुत्र भाऊ । ( ६९६ ) अजितनाथ: सं० १५२४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ६ ऊकेशवंशे संखवाल सा०. श्रीकीर्तिरत्नाचार्योपदेशात् श्रीअजितनाथ.. ... श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । (६९७) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५२४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ६ उपकेशवंशे तेलहरागोत्रे म० मदन पुत्र म० वाहड़ पुत्र म० राजा म० देवदतयो म० राजाकेन पुत्र सूरासहितेन श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः शुभं भूयात् ॥ णी ..स्वपितृव्य ( ६९८ ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५२४ ज्येष्ठ सुदि ६ ऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा० मलयसी पुत्र सा० फफण सुश्रावण भार्या पूरी पुत्र सा० मेहा प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीशीतलनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतर जिनचंद्रसूरिभिः ॥ ६९२. पार्श्वनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेरः पू० जै० भाग ३, लेखांक २१३२ ६९३. पार्श्वनाथ मंदिर, मंडोर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३०८ ६९४. शान्तिनाथ देरासर, शान्तिनाथ पोल, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १२६३ ६९५. शान्तिनाथ जिनालयस्थ नेमिनाथ देहरी, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ३८ ६९६. भण्डारस्थ प्रतिमा, शान्तिनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ३९ ६९७. अजितनाथ जी का मंदिर, नगर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ९७ ६९८. शीतलनाथ जी का मंदिर, रिणी, (तारानगर) ना० बी०, लेखांक २४४७ (१२२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६९९) श्रेयांसनाथः संवत् १५२४ ज्येष्ठ सुदि ६ दिने श्रीसंखवालगोत्रे सा० जेठा पुत्र मेहा पु० गोदत्त चांपा भा० न्या................पुत्र भावड भार्या रोहिणी श्राविकया स्वपितृव्य श्रीकीर्तिनाचार्योपदेशात् श्रीश्रेयांसबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (७००) वासुपूज्यः संवत् १५२४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ६ दिने श्रीसाहूसाखे सा० शिवाकेन स्वभार्या जोली पुण्यार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० खरतर श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (७०१) वासुपूज्य: ॥ संवत् १५२४ ज्येष्ठ सुदि ६ दिने रीहड़गोत्रे सा० माला भार्यया थावर पुत्री वीरणि श्राविकया श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (७०२) जिनभद्रसूरिपादुका ॥ श्राँ सं० १५२४ आषाढ़ सुदि २३ खरतर गणेश श्री जिनचंद्रसूरि विजयराज्ये तदादेशे ..श्रीकमलसंयमोपाध्यायैः स्वगुरु श्रीजिनभद्रसूरिपादुके प्र० का० श्रीमाल वं० भीषू पुत्र ठ० छीतमल श्रावकेण श्रीवैभार गिरौ मुनि मेरुणा लि० ॥ (७०३) धन्नाशालिभद्रमूर्तिः . ॥ सं० १५२४ आषाढ़ सुदि २३ श्रीजिनचंद्रसूरीणामादेशेन श्रीकमलसंयमोपाध्यायै : धन्नाशालिभद्रमूर्ति........... का० प्र० षीमसिंह(?) श्रावकेण। (७०४) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२४ वर्षे मार्ग व० २ ऊकेशवंशे तातहड़गोत्रे सा० ठाकुर रयणादे पुत्रैः सा० महिराजादिभिः भ्रातृ रूपा श्रेयोर्थं श्रीश्रेयांसनाथ: कारितः प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (७०५) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः __संवत् १५२४ वर्षे मार्गसिर वदि १० दिने ऊकेशवंशे कुर्कटगोत्रे चोपड़ा सा० ठाकुरसी भार्या ऊमादे पुत्र सा० तुडा भार्या तारादे पुत्र जिणा वीदा वस्ता प्र० पुत्रपरिवारसहितेन श्रेयोर्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ ६९९. भण्डारस्थ प्रतिमा, शान्तिनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ४० ७००, भण्डारस्थ प्रतिमा, शान्तिनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ४१ ७०१. भण्डारस्थ प्रतिमा, शान्तिनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ४२ ७०२. गांव का जैन मंदिर, वैभारगिरि, राजगिरिः पू० जै०, भाग १, लेखांक २५७ ७०३. मणियारमठ, राजगिरिः पू० जैः, भाग १, लेखांक २५८ ७०४. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १०३६ ७०५. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९३४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (१२३) For Personal & Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०६) आदिनाथ-मूलनायकः (१) सं० १५२४ वर्षे मार्गशीर्ष वदि १२ दिने श्रीऊकेशवंशे श्रीशंखवालेचागोत्रे सा० देवा भार्या देवलदे पु० सा० लखा सा० भादा सा० केल्हा सा० लषा भा० सोनलदे (२) पुत्र सा० मणगरेन भा० ह— पुत्र सा० झांझण सा० जयता प्रमुखपरिवारयुतेन स्वपितुः पुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि (३) शिष्य श्रीजिनचंद्रसूरिभिः सा० नगराज कारितं प्रतिष्ठायां (७०७) शान्तिनाथः सं० १५२४ वर्षे मार्गशीर्ष वदि १२.................... सा० धीधा श्रावकेण स्वपितुः पुण्यार्थं श्री शान्तिनाथबिंबं का०......... श्रीजिनचंद्रसूरिभिः (७०८) शान्तिनाथः ___ सं० १५२४ वर्षे मार्गसिर वदि १२ दिने श्रीऊकेशवंशे सा...............श्रीशान्तिनाथबिंब का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिशिष्य श्रीजिनचंद्रसूरिभिः सा० नगराज का० प्रति० (७०९) मूर्तिः ॐ ॥ संवत् १५२४ वर्षे मार्गशीर्ष वदि १२ दिने सोमे श्रीउकेशवंशे श्रीथुल्लगोत्रे सा० पदमा सुत सा० तणीया भा० नोडा सा० धणपति नामानः तेषु सा० धणपति भा० लाछलदे पुत्ररत्न सा० शिवदत्त सा० नगराज सा० लखराज सा० जीवराजाद्याः तेषु सा० भवदत्त भा० धरमाई वर जू सा० न.......ज........मु०.................श्रीविक्रमपुरमहानगरे राजाधिराज श्रीरणमल्लविजयराज्ये राज श्रीअरडक्कमल्ल युवराज्ये सा० धणपति इत्यादि पुत्रपौत्रादिसत्परिवारसहितेन सा० नगराज सुश्रावकेण श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरियुगवरशिष्यैः श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (७१०) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५२४ वर्षे मा० वा बद २ सोम ऊ० भ० गोत्रे सा० सालिग भा० राजतदे पु० सा० जेसिंघ श्रावकेण श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (७११) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५२४ वर्षे फाग० सु० ७ दिने श्रीमालज्ञातीय । ठाकुरगोत्रे सा० जयता पु० सा० मांडण सुश्रावकेण पु० झांझणादि सहि० श्रीश्रेयांसबिं० ११ कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः मंडपदुर्गे। ७०६. सवाईराम बाफणा का मंदिर, अमरसर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५२५ ७०७. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८१३ ७०८. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर, ना० बी० , लेखांक १८१४ ७०९. सवाईराम बाफणा का मंदिर, अमरसर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५२६ ७१०. बड़ा उपासरा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २५४० ७११. भैरूपोल जैन मंदिर, सिरोही: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ६५१ (१२४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः ॥ For Personal & Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१२) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२४ वर्षे फागुण सुदी ७ दिने श्रीमालज्ञातीय ठाकुरगोत्रे सा० जयता पु० सा० मांडण सुश्रावकेन पु० झांझणादि सहि० श्रीश्रेयांसबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः मण्डपदुर्गे। (७१३) एकतीर्थीः १ संवत् १५२४ वर्षे. ...म दे पु.... २ ............सराज...... ...................शिष्य श्रीजिनचंद्रसूरिभिः (७१४) अम्बिका-मूर्तिः संवत् १५२४ वर्षे खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिआदिः मुहतागोत्रे स० भीमसी भा० नायकदे। अंबिकादेवी कारापिता॥ (७१५) कीर्तिरत्नसूरि-स्तूप-प्रशस्तिः श्रीवर्द्धमानदेवस्य शासनं जयताच्चिरम्। अद्यापि यत्र दृश्यन्ते बहु सर्वा नरोत्तमाः॥१॥ किं कल्पद्ररयं व्यधायि विधिना किं वा दधीची: शुचिः, किं वा कर्णनरेश्वरः पुनरसौ भूमण्डले वाचरत् । यं दृष्ट्वेति वितर्कयन्ति कवयो दानं ददानं धनं, श्रीवीदाधिपभूपतिः सजयति श्रीभोजराजाङ्गजः ॥ २॥ प्रतापतपनाक्रन्ताः श्रीवीदा पृथिवीपते। घूका इवारयः सर्वे सेवन्ते गिरिकन्दराः ॥३॥ तथाहि ___ श्रीऊकेशवंशे श्रीशंखवाले शाखायां सा। कोचरसन्ताने सा० रतना भार्या मोहणदेवी पुत्रौ सा० आपमल्ल सा० देपाभिधानो धनिनो बभूवतुः सा० आपमल्ल- पुत्राः सा० पेथा सा० भीमा सा० जेठाख्या अभवन् । सा० देपा भार्या देवलीदेवी पुत्रा: सा० लक्खा सा० भादा सा० केल्हा सा० देल्हाभिधा धनवन्तः। तेषु च सा० देल्हाकः श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिकरे सं०: १४३६ आषाढाद्य ११ दिने दीक्षां लात्वा, सं० १४७० वर्षे श्रीर्कीतिराजगणि वाचनाचार्यो भूत्वा, संवत् १४८० वर्षे वैशाखसुदि १० दिने श्रीजिनभद्रसूरिकरे उपाध्यायपदं प्राप्य, सं० १४९७ माघसितदशम्यां श्रीजेसलमेरौ श्रीजिनभद्रसूरिहस्ते स्वभातृ सा० लक्खा सा० केल्हा कारितानि विस्तारोत्सवे श्रीभावप्रभसूरिपटटे श्रीकीर्तिरत्नाचार्या बभूवतुः। ते चोत्तरदिशादिषु प्रतिबोधितानेकनवीनश्रावकसंघाः, गीतार्था कृताः श्रीलावण्यशीलोपाध्याय वा० शान्तिरत्नगणि वा। क्षान्तिरत्नगणि वा। धर्मधीरगणि अनेकशिष्यवर्गाः। तत आत्मायरन्तं विज्ञाय पंचदशोपवासैः प्रथमं संलेखनं कृत्वा, षोडशोपवासि सदा साहसिकतयाऽर्हदादीन् साक्षीकृत्य चतुर्विधसंघसमक्षं स्वमुखेनानशनं गृहीत्वा, पालयित्वा दशदिनान्, एवं पञ्चविंशति दिनान् शुभध्यानतोऽतिवाह्य,सं० १५२५ वैशाखवदि ५ पञ्चम्यां श्रीवीरमपुरे स्वर्गं प्रसूताः। तस्मिन् दिने तत्पुण्यानुभावतः श्रीजिनविहारे स्वयं प्रादाव्य प्रदीपा: स्पष्टं बभूवतुरिति। ... तस्मिन् श्री राठोडवंशचूडामणिः श्री वीदानामनरेश्वरः स्वयं स्थापित श्रीवीरमपुरे न्यायराज्यं प्रतिपालयति सति, तदादेशात् सा० केल्हा भार्या केल्हणदेवी पुत्र सं० धन्ना सं० मना सं० माला सा० गौरा ७१२. मालवाचंल के जैन लेख, लेखांक २७६ ७१३. श्रीगंगा गोल्डेन जुबली म्यूजियम,बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१५६ ७१४. चन्द्रप्रभ जिनालय, जानीशेरी, बडोदरा : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १४८ ७१५. यह स्तूप प्रशस्ति अब प्राप्त नहीं हैं। किन्तु बाडमेर के खरतरगच्छीय ज्ञान भण्डार में एक पत्र लिखित प्राप्त है। (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (१२५) For Personal & Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सा। डूंगर सा। शेषराज सुश्रावकैः सा । भादा पुत्र सा । भोजा सा । लक्खा सा । गणदत्त तत्पुत्र सा० माण्डण सा । जगा - प्रमुखपरिवारस श्रीकै : सं० १५१४ बहु संघ मिलन श्रीशत्रुञ्जयश्रीगिरनार तीर्थातिविस्तार तीर्थ यात्राकरणप्राप्तसंघपतितिलकै : श्रीगिरनारदेव्य श्रीवीरमपुरे श्रीशान्तिनाथमहाप्रसादविधापनसफलीक्रियमाणलक्ष्मीकैः संवत् १५२५ रा वैशाख वदि ६ दिने श्रीकीर्तिरत्नाचार्याणां स्तूप: स्थापितः कारितश्च पादुकासहितश्च प्रतिष्ठितश्च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपटट् श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । शुभं भवतु । शिष्यः कल्याणचन्द्रसेवितः, प्रशस्तिलेखन हर्षविशालो प्रशस्तिश्चिरं नन्दतु श्रीरस्तुः ॥ (७१६) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५२५ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने श्रीमालज्ञातौ थेउरीयागोत्रे सा० रामापुत्र सा० राजाकेन पुत्र घेता वील्हा कान्हायुतेन बृहत्पुत्र छाड़ा पुण्यार्थं श्रीसुविधिविव (बिबं) कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनसुंदरसूरिभिः खरतर ( ७१७ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५२५ वर्षे ज्येष्ठसुदि १० दिने ऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे म० गुणाराज तत्पुत्र स० चांपसी तत्पुत्र स० सुरताण वर्द्धमान स० थिरसी भार्या कउडिमदेव्या श्रीशांतिनाथबिंबं कारापितं थापितं.. श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभि: (?) ॥ ( ७१८ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५२५ वर्षे मार्गसिरसुदि १० दिने प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० गांगा भार्या हरखू पुत्र श्रे० जालाकेन भार्या लीलाई पुत्र हरपतियुतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ ( ७१९ ) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५२५ वर्षे माहा वदि ११ भू (भौ) मे उकेशवंशे साहूसषागोत्रे साह सउद्र भार्या सोनलदे पुत्र साह देवदत्त (त्तेन) भार्या रत्नाई ततपु (त्पु) त्र साह हर्षासहितेन रत्नाईपुण्यार्थं श्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभि: शुभ (भं) भवतु ( ७२० ) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५२५ वर्षे माह सुदि ११ भूमे ऊकेशवंशे साहूसषागोत्रे साह सउद्र भार्या सोनलदे पुत्र साह देवदत्त भार्या रत्नाई तत्पुत्र साह हर्षासहितेन रत्नाईपुण्यार्थं श्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ ७१६. बालावसही, शत्रुंजयः श० वै०, लेखांक १८३ ७१७. पार्श्वनाथ जिनालय दुर्ग, जैसलमेर पू० जै० भाग ३, लेखांक २१३५ ७१८. जैनमंदिर, घाटकोपर, मुम्बई: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक १९७ ७१९. जैनमंदिर, भ्रामरा ग्रामः अ० प्र० जै० ले० सं०, भाग ५, लेखांक १७९ ७२०. शांतिनाथ जिनालय, कडाकोटडी, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०५ (१२६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२१) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५२५ वर्षे फागुण सुदि ७ शनौ उपकेशज्ञातीय श्रीनाहरगोत्रे सा० देवराजसंताने सा० लोलापुत्र साह सोनपालेन भार्या गोरी पुत्र वूवासहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनोदयसूरिभिः। (७२२) सुमतिनाथ-चतुर्विंशतिः ॥ सं० १५२५ वर्षे फागुण सुदि ७ शनौ उपकेशज्ञातीय श्रीनाहरगोत्रे सा० जाटा माल्हा संताने सा० देवराज पुत्र सा० लाला भार्या पुत्र सं० सुख्यतेन भार्या सूदी पुत्र सं० करमा सहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथचतुर्विंशतिपट्ट : कारित: प्रतिष्ठ तं श्रीरुद्र पल्लीयगच्छे श्रीजिनराजसूरि पट्टे भ० श्रीजिनोदयसूरिभिः॥श्री॥ (७२३) संभवनाथः ॥ ॐ ॥ संवत् १५२५ वर्षे फागुण सुदि ७ शनौ गूर्जर श्रीमालज्ञातीय साह राजपाल भा० वानू नाम्न्या स्वजनक म०......... (सु) हं सगर भार्या माणिकदे पु०........ (धोड) श्रेयोर्थं श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः धोड श्रीसंभवनाथ (७२४) पार्श्वनाथ: ॥ ॐ ॥ संवत् १५२५ वर्षे फागुण सुदि ७ शनौ श्रीमालज्ञा० सं० उदयराज भा० शृंगारदे पुत्र साह राजपाल भार्या वयजलदे प्र० कुटुंबयुतेन स्वपितृमातृश्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्र० खरतर श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। सा० राजपाल (७२५) प्रस्तरपट्टिकालेख: ॐ संवत् १५ आषाढादि २५ वर्षे शाके १३५७(?) प्रवर्त्तमाने फाल्गुनमासे शुक्लपक्षे नवम्यां तिथौ सोमवासरे श्रीगुर्जर श्रीमालज्ञातीय सेथालगोत्रे श्रीखरतरपक्षीय मंत्रि विजपाल सुत मंत्रि मंडलिक तत्पुत्र मं० रणसिंह तत्पुत्र ४ प्रथमः सा० सायरः द्वितीय सा० खेटाभिधः तृतीयः सा० सामन्त: चतुर्थ: सा० चाचिगः। तन्मध्यतः सा० सायर भा० बाई पल्ही तत्पुत्र ४ पुत्री ३ प्रथमः सा० पद्माभिधः द्वितीयः सा० रत्नाख्य: तृतीयः सा० आसाख्यः चतुर्थः सा० पाचाख्यः पंचम-धर्मपुत्रः सा० पूयाभिधानः तद्भागिनी बाई अल्हाई बाई रंगाई बाई लखाई एतन्मध्ये श्रीअर्बुदाचलमहातीर्थ यात्रार्थं समागतेन पूर्व-योगिनीपुरवास्तव्येन पश्चात् साम्प्रतं अहमदाबाद श्रीनगरनिवासिना श्रीक्षत्रपकुलप्रसिद्धेन साह आसाकेन प्रथम भा० माघी द्वितीय भा० हमीरदे तृतीय भा० टबकू पुत्र सा० जीवराम प्रभृतिसमस्तकुटुम्बसहितेन स्वभुजोपार्जितवित्तेन चित्तोल्लासतः श्रीमद्विष्णुदेवप्रसादजीर्णोद्धारः कारितं श्रीमद्देवगुरुप्रसादात् आचन्द्रार्क जीयात् ॥ ७२१. जैनमंदिर, करेड़ा: प्रा० ले० सं०, लेखांक ३९२ ७२२. महावीर जिनालय (वेदों का) बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १२५२ ७२३. अनुपूर्ति लेख, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४९९ ७२४, अनुपूर्ति लेख, आबू: अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४९८ ७२५. द्वारिकानाथ मंदिर, आबूः प्र० ले० सं०, भाग १,लेखांक ६७६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (१२७) For Personal & Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२६) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५२५ वर्षे फागुण सुदि ९ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय ठ० लींबा भा० बाली सु० मूलूकेन पितृमातृश्रेयोर्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं महूकरगच्छे नवाङ्गवृत्तिकारक॰ श्रीधनप्रभसूरिभिः महूआनगरे ॥ (७२७) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी : सं० १५२५ चैत्र वदि १० ओसवंशे भण० साल्हा भा० संसारदे सुत वस्ताही अमरादिभिः आत्मश्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभसा (स्वा) मिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । (७२८) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी : सं० १५२५ वर्षे श्रीउकेशवंशे श्रीनाहटागोत्रे सा० सोमसीह भा० रगू पुत्रेण सा० सापाकेन भ्रातृ सा० चांदू फदकू पुत्र नरभम (?) हर्षा मोकल पुहिराजसहितेन श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्र (? चन्द्र ) सूरिभिः ॥ ( ७२९) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५२६ वर्षे वैशाख वदि ७ भौमवारे प्रामेचागोत्रे सा० जाटा भा० जइतो पुरषी माता जाटी पु० भइरवदास........... भा० दुल्लादे सहितेन लाछि निमित्ते श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं खरतरगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । शुभं भवतु (७३०) कीर्तिरत्नसूरिपादुका ॥ ० ॥ सं० १५२६ वर्षे आषाढ़ सुदि नवम्यां वा० श्रीकीर्तिरत्न... कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः वा० दयासानमति नित्यं । (७३१) चन्द्रप्रभ - पञ्चतीर्थी: सं० १५२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ८ सोमे ऊकेशवंशे नवलक्षशाखायां सा० श्रीधर भा० हंसाई पुत्र सा० सहजा भातृ सा० अमाकेन भा० रमाई पुत्र जयवंत श्रीवंतयुतेन श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (७३२) वासुपूज्य - पञ्चतीर्थी : ॐ संवत् १५२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ८ सोमे प्राग्वाटज्ञातीय वु० गांगा वु० मुजा पुत्र वु० महिराज भा० ७२६. जैन देरासर, महुआ प्रा० ले०सं०, लेखांक ३९४ ७२७. शान्तिनाथ मंदिर रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ६५४ ७२८. शांतिनाथजी का मंदिर, डंख मेहता का पाड़ा, पाटणः भो० पा०, लेखांक ७५६ ७२९. पंचायती मंदिर, लस्कर ग्वालियर: पू० जै० भाग २, लेखांक १३७९ ७३०. शांतिनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ५१ ७३१. पंचासरा पार्श्वनाथ मंदिर, पाटणः भो० पा०, लेखांक ७७५ ७३२. सम्भवनाथ जिनालय, बालुचरः पू० जै०, भाग १, लेखांक ५२ (१२८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: . सांगणादि त्र्यम्बकै : For Personal & Private Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रमाई श्राविकया श्रीवासुपूज्यबिंब कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरि-श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टराज श्री ३ जिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीरस्तु कल्याणं भूयात्।। __ (७३३) वासुपूज्य-चतुर्मुखः संवत् १५२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ८ सोमे श्राविका मूजी श्राविका सपूरी श्रा० फालू० भा० रतनाई पुण्यार्थं श्रीवासुपूज्य- चतुर्मुखबिंबं कारतं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः। ___(७३४) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२७ वर्षे पौष वदि ४ गुरौ श्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठि जोगा भार्या स्नू सुत हेमा-हरजाभ्यां पितृमातृ-निमित्तं आत्मश्रेयोर्थं श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० श्रीमहूकरगच्छे श्रीधनप्रभसूरिभिः। मेलिपुरनगरे। (७३५) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२७ वर्षे माघ वदि ५ शुक्रे मंत्रिदली० वंश दुल्लहगोत्रे ठ० पाल्हणसीकेन पु० ठ० कर्णसी ठ० उभयचन्द ठ० हेमा पुत्री अजाइब सहितेन परिवारयुतेन श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरयस्तत्पट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं । (७३६) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १५२७ वर्षे श्रीऊकेशवंशे कानइड़ा गोत्रे सा० ताल्हा पुत्र सा० पोमाकेन भा० पोगीदे पुत्र सा० लखमण लोला सहितेन निजपूर्वजनिमित्तं श्रीवासुपूज्यबिंब कारितं श्रीखरतरगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्षसूरिभिः ।। (७३७) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः ॥सं० १५२८ वैशाख वदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे भणशाली गोत्रे सा० हरीभां भार्या हांसलदे पुत्रेण सा० वणवीर श्रावकेण भार्या लीलू पुत्र दशरथादियुतेन श्रीचंद्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिरिति। . (७३८) अनन्तनाथ-पञ्चतीर्थीः · सं० १५२८ वैशाख वदि ५ दिने ऊकेशवंशे कांकरिया गोत्रे सा० पूना भा० होली श्राविकया लाषा चाचा चउड़ा जनन्या करमा देवराज आसा प्रमुखपौत्रादिपरिवारयुतया स्वपुण्यार्थं श्रीअनंतनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (७३९) सुमतिनाथ-पञ्चती : संवत् १५२८ वर्षे वैशाख वदि ६ दिने सोमे ऊकेशवंश कुर्कुटशाखायां व्य० तोता भार्या खेतलदे ७३३. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, जैसलमेर: ना० बी० लेखांक २६८० ७३४. जैन मंदिर, अलवर: पू० जै०, भाग १, लेखांक ९९५ । ७३५. नेमिनाथ का पंचायती मंदिर, अजीमगंज, मुर्शिदाबादः पू० जै० भाग १, लेखांक १९ ७३६. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १०४९ ७३७. पार्श्वनाथ जिनालय, लोद्रवा, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५४९ ७३८. सुपार्श्वनाथ जिनालय, ऊदासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१७५ ७३९. केशरियानाथ मंदिर, जोधपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १३२; पू० जै०, भाग १, लेखांक ६१० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) (१२९) For Personal & Private Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुत्र सहसमल्लेन तील्हादि पुत्र-पौत्रादियुतेन स्वश्रेयोऽर्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ( ७४०) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५२८ वर्षे वैशाख वदि ११ रवौ श्रीउकेशवंशे सा० चाचा भा० मायरि सुत राजाकेन भार्या वरजू सहितेन श्रीसुविधिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ ( ७४१) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५२८ वर्षे वैशाख स० २ सनि रोहागा उवएसवंश दूगड़गो० नशंहदसंभान.. सद्गदेवरदात्तमाधमये (?) आदिनाथकारितं रुद्रपल्लीयगच्छे ख० श्रीगुणसुंदरसूरिभिः ( ७४२ ) नेमिनाथ: ॐ संवत् १५२८ वर्षे वैशाख मासे धवलपक्षे १० दिने श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं । संखवाल सा० लषा पुत्र कुंला भार्या चो० ठाकुरसी पुत्र्या नायकदे श्रा० नेमिबिंबं कारितं ॥ ( ७४३) आदिनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५२८ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे रांकागोत्रे श्रे० नरसिंह भा० धीरणि पुत्र ० हरिराजेन भा० मघाई पु० श्रे० जीवा श्रे० जिणदास श्रे० जगमाल श्रे० जयवंत पुत्री सा० माणकाई प्रमुख परिवारयुतेन श्रीआदिनाथबिंबं पुण्यार्थं कारयामासे प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीश्रीश्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीश्रीश्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ नगराज (७४४) अजितनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५२८ वर्षे आषाढ़सुदि २ दिने ऊकेशवंशे शंखवालगोत्रे सा० मेढी तत्पुत्र सा० धरण श्रावण सपरिवारेण श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ( ७४५) सम्भवनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५२८ वर्षे आषाढ़ सुदि २ सोमे श्रीऊकेशवंशे साधुशाखायां सा० पर्वत भा० मणकी पु० सा० तेजसीह श्रावकेण भा० डाही भ्रातृहर्षतिप्रमुखपरिवारसहितेन श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ७४०. सेठ नरसीनाथा का मंदिर, पालिताना: जै० ले० सं०, भाग १, लेखांक ६६२; देहरी क्रमांक ६१२/८/३, शत्रुंजय: श० गि० द०, लेखांक २७० ७४१. आदिनाथ जिनालय, राजलदेसर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३४२ ७४२. शीतलनाथ जिनालय, जैसलमेरः पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३८४ ७४३. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८७४ ७४४. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २१९३ ७४५. मल्लिनाथ जिनालय, भोंयरापाड़ो, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ९०६ (१३०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४६ ) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५२८ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे बुहरागोत्रे सा० पदमा सुत सा० राणा सुश्रावकेण भा० रयणादे पुत्र सा० कर्मण प्रमुखपुत्रपौत्रादियुतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (७४७) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२८ वर्षे आषाढ़ सुदि २ सोमे ऊकेशवंशे रोहडगोत्रे म० मोढा भा० मोहणदे पु० देवडगूंदा-गज्जड़-ओप्पु(?) गज्जड़भार्या लखमाइ-खीमाई पुत्ररत्ना फत्ता-जइता-सोनाद्यैः श्रीसुमतिबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनसिंह (? चन्द्र)सूरिभिः॥ (७४८) पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२८ आषाढ़ सुदि २ दिने श्रीऊकेशवंशे सा० सामलपुत्र सा० मांडा भार्या भावलदेवीपुत्रेण सा० पूनाश्रावकेण भ्रातृ सा० चोखाप्रमुखपरिवारसहितेन श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीरस्तु॥ (७४९) सुपार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५२८ वर्षे आषाढ़ सुदि २ सोमे ऊकेशवंशे कूकड़ागोत्रे सा० कुयश भार्या वीरणि पुत्र सा० संग्राम भार्या राणी पुत्र हापा-हादाभ्यां भा० वाल्ही पुत्र खेतायुताभ्यां श्रीसुपार्श्वबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (७५०) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५२८ वर्षे आषाढ़ सुदि २ सोमे ऊकेशवंशे भणसालीगोत्रे भ० दूदा भार्या चंपाइ पुत्र भ० मांडणसुश्रावकेण भार्या हीराई-पुत्र श्रीपाल-कुमरपाल अमिपाल-विजपालसहितेन श्रीशीतलनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (७५१) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२८ वर्षे आषाढ़ सुदि २ सोमे प्राग्वाटवंशे मं० साहूल पुत्र सा० सिवाकेन भार्या रत्नाई पुत्र श्रीराजगेईयादिसहितेन पूर्वजपुण्यार्थं श्रीश्रेयांसनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ ७४६. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १०५८ ७४७. नारंग पार्श्वनाथ, झवेरीवाड, पाटण : भो० पा०, लेखांक ७९९ ७४८. सोमपार्श्वनाथ जिनालय, संघवी पाड़ा, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७७९ ७४९. चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मंदिर, चिन्तामणि शेरी, राधनपुर : मुनि विशाल विजय-रा० प्र० ले० सं०, लेखांक २६१ ७५०. नेमीश्वर जी का मंदिर, तलशेरिया, पाटण : भो० पा०, लेखांक ७९८ ७५१. पार्श्वनाथ जिनालय, माणिक चौक, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ९३९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह :) For Personal & Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५२) अनंतनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५२८ वर्षे आषाढ़ सुदि २ उकेशवंशे साधुशाखायां सा० वेयणा भा० डाही पुत्र सा० देवकेन भा० देवलदे पुत्र जगपाल सोमसहितेन श्री अनंतनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ( ७५३ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५२८ वर्षे आषाढ़ सु० २ गुरौ श्रीमालीवंशे सा० फाफण भा० भीमिणि तत्पुत्र सा० मोकल सुश्रावकेण भा० बहिकू परिवारसहितेन स्वश्रेयार्थं श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (७५४) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५२८ वर्षे अषाढ़ सुदि २ सोमे श्रीऊकेशवंशे संखवालगोत्रे सा० मेढ़ा पुत्र सा० हेफकिन भ्रातृ उधरण चेला पु० पोमादि सहितेन श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतर श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । ( ७५५ ) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी: सं० १५२८ वर्षे आषाढ़ सुदि २ सोमे श्रीऊकेशवंशे कूकड़ागोत्रे मं० पिथमा भार्या मंदोअरि पुत्र देवराजेन भार्या डाही पुत्र कर्मण धर्मणादिसहितेन पितुः श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (७५६) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५२८ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने ऊकेशवशे संखवालगोत्रे सा० महिरा भार्या माल्हणदे तत्पुत्र सा० राऊलश्रावकेण सा० देवा तद्भर्या रयणादे तत्पुत्र सा० लाखादिपरिवारयुतेन श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (७५७) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ ॐ ॥ संवत् १५२८ वर्षे आषाढ़ सुदि २ सोमे ऊकेशवंशे साहूशाखायां सा० बोहिल भा० रोहिणि पुत्र सा० शिवराजेन भा० सूहवादे पुत्र सा० माला सा० बालादियुतेन श्रीकुंथुनाथबिंबं कारि० प्र० श्रीखरतरगच्छेश्वर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ (७५८) मुनिसुव्रत - पञ्चतीर्थी : संवत् १५२८ वर्षे आषाढ सुदि २ सोमे ऊकेशवंशे बहुरागोत्रे सा० वील्हा भा० वील्हणदे पुत्र सा० देईयाकेन भार्या देवलदे पुत्र नागा - पदमसीहसहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ७५२. चौमुख जी देरासर, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८९७ ७५३. महावीर स्वामी का मंदिर (वैदों का), बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १२९७ ७५४. जैन मंदिर, अलवर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ९९६ ७५५. मारफतीया मेहता का पाड़ा, पाटण : भो० पा०, लेखांक ७९६ ७५६. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, किसनगढ़ : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७०६ ७५७. महावीर जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४२३ ७५८. आदीश्वर जी का देरासर, टांगडीयावाडा, पाटण : भो० पा०, लेखांक ७९७ (१३२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५९) नमिनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५२८ आषाढ़ सुदि २ ऊकेशवंशे ढींकगोत्रे मं० सिवा भार्या हर्जूपुत्र मं० हीरा भार्या रंगाई पुत्र कडुयाकेन सपरिवारेण श्रीनमिनाथबिंब कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ।। (७६० ) कीर्तिरत्नसूरि-स्तूप-लेखः ..रतिपतिवरणं देवरणांकुरसमयनयचयपरिचयहरणं। - स्तूप के खण्डित छज्जे पर (२) ॥ ० ॥ श्रीसूरिमन्त्राहतविघ्नराजा श्रीकीर्तिरत्नाभिधसूरिराजा श्रीसंघराजोन्नतिहेतुराजा श्री.............नतभक्तिभाजा । १ । - स्तूप के पीताम पर (३) । ० । श्रीमत् श्रीजिनभद्रसूरिगणभृत्पाण्याम्बुजाप्तोदया। धन्याचार्यपदावदातवदिताः श्रीकीर्तिरत्नाह्वयाः॥ नम्रानम्रशिरतशिरोमणिविभा प्रोदभासितांहिया॥ राजानन्दकरा जयन्तु विलसत् श्रीशंखवालान्वयाः॥ -स्तूप की चौखट पर (४) सुरं सारं चरं स्वैरं वारं कारं निरन्तरम्। सारं सारतरं स्मेरं हरं शरं ज्वरं चरम्॥ -षोडशदलकमलगर्भित चित्रकाव्य मभास्वरगवनदं दमिकीर्तिराजः। मदे प्रदस्तरुवदं दमकीर्तिराजः॥ म...........श्रुतपदं दमितामिताक्षः। मदमानं तिरु....दं द..............धरोक्षः। ज्ञानं........नं सुनं पुनं सुनं चनं यनं डनं। धनं स्नानं वनं वीनं मेनं........नं मनं स्वनम॥ -स्वस्तिकबद्धचित्रकाव्य हारं हीरं तिरस्कार वैरं वारं हरं स्वरम्। .....पुरं.......स्मेरं स्मरं सूरं धुरं धुरम्॥ ___-षोडशदलकमलगर्भित चित्रकाव्य, स्तूप की देहली पर (५) १. सं० १............वर्षे माघ सुदि ५ दिने रविवारे श्री..........नगरे राउल श्रीकल्याणमल विजयराज्ये श्री........वरसिंघ............तापिते राज्ये आचार्य श्रीकीर्तिरत्नसूरिसन्तानीयोपा२. ध्याय श्री ५ श्रीक्षान्तिरत्नगणि...............गणि शान्तिरत्नगणि नित्योपदेशात्..............१५२८ ७५९. आदिनाथ जिनालय, माणेक चौक, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १००१ ७६०. कीर्तिरत्नसूरि दादाबाड़ी, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ५० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) १३३) For Personal & Private Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माघ सुदी ५ । कृपाचन्द पु। श्रीरामचन्द मेघराज सहतेन कारितं। ३. ......................श्रीरस्तु॥ -स्तूप की देहली के नीचे के हिस्से पर (७६१) नेमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२८ वर्षे माघ सुदि दशम्यां बुधे श्रीमालज्ञातीय स० छाजु भार्या धरणी आत्मश्रेयोर्थं श्रीनेमिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपदे श्रीजिनचंद्रसूरिराजैः॥ श्रीमंडपे दुर्गे महता गोत्रे (७६२) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२८ वर्षे फागुण......................श्रीमालज्ञातीय टामीगोत्रे स० भाविनो पुत्र श्रीभाग् श्रावक श्रीआदिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरि तत्प० श्रीसुंदरसूरिपट्टे श्रीहर्षसूरिभिः (७६३) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२८ वर्षे चैत्र वदि ११ शुक्रे श्रीमालज्ञा० मं० राऊल भा० झमकू सुत समधरेण भा०..................आत्मश्रेयसे श्रीकुंथुनाथबिंबं का० श्रीमधुकरगच्छे श्रीधनप्रभसूरिभिः प्र० गांफवास्तव्य ॥ (७६४) पार्श्वनाथ:-पञ्चतीर्थी: सं० १५२८ वर्षे ............................... श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे। . __ (७६५) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५२८ वर्षे विदि १ सोम दिन श्रीमालवंशे जूनीवालगोत्रे सा० दासा पुत्र सा० षिऊराजकेन समस्तं परिवारेण आत्मश्रेयसे श्रीश्रेयासंनाथबिंबं का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनप्रभसूरि अभिप्रतिष्ठितं श्रीजिनतिलकसूरिभिः। शुभं भवतु (७६६) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५२९ वर्षे ज्येष्ठ वदि ६ श्रीश्रीमालज्ञा० दो० सूरा भा० अर्पू(खू) श्रेयोऽर्थं सो० वेला भा० तेजू पुत्र पासाकेन भ्रातृ करणसीयुतेन स्वश्रेयसे श्रीश्रेयांसनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (७६७) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५२९ वर्षे ज्येष्ठ सु० शुक्रे उसवाल ज्ञा० ताहिगोत्रे सा० मूलू भा० लूणादे द्वि० सुहागदे पु० सा० भाषर भा० नीली पु० रणधीर जगा हडी रहा धीपा श्रेयोर्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसरिभिः। ७६१. मथियान महल्ला, बिहार: पू० जै०, भाग १, लेखांक २१८ ७६२. पार्श्वनाथ जिनालय, घीयामंडी, मथुरा : पू० जै०, भाग २, लेखांक १४३८ ७६३. पद्मप्रभ जिनालय, साणंद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ६२३ ७६४. पार्श्वनाथ जिनालय, नौहर : ना० बी०, लेखांक २४८७ ७६५. सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, जयपुर : पू० जै०, भाग २, लेखांक ११५८ ७६६. शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर : प्रा० ले० सं०, लेखांक ४२३ ७६७. शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर : पू० जै, भाग २, लेखांक १०९५ (१३४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६८) सपरिकर - पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ ए सं० १५२९ वर्षे आषाढ़ ऊकेशवंशे कुकडागोत्रे सा० गांगपति पुत्र सा० राजाकेन भा० ० श्री गउराई पु० सा० सोनपालयुतेन पूर्वजपुण्यार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे जिनसागरसूरिश्री जिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (७६९ ) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५२९ वर्षे आषाढ़ सुदि ९ सोमे उकेशवंशे लोढागोत्रे सा० विजा भा० पद्दि पुत्र सा० ताला सुश्रावकेन पुत्र वीरम प्रमुखपुत्रपरिवारसहितेन स्वपुण्यार्थं श्री श्रेयांसनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ ( ७७० ) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५२९ वर्षे फागुण वदि १ दिने शुक्रे श्रीमालवंशे साहूगोत्रे श्री सा० पद्दा पुत्र सा० पासा भा० पूनादे पुत्र साना पाइनादि परिवारपरिवृतेन श्री श्रेयांसनाथबिंबं स्वपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ( ७७१ ) शान्तिनाथ : सं० १५२- वर्षे श्रीउकेशवंशे थुल्लशाखायां मं० पद्मा पु० सा० नोडा भार्या नामलदे पु० सा० मल्ह भा० कर्माई श्राविकया पुत्र सा० सीधर सा० सुरपति सा० सुभकर सा० सहसमल्ल तेषु सा० सीधर पु० सा० उदयकर्ण सा० आसकर्ण सा० रायमल्ल सा० सहसमल्ल पुत्र सा० शुभचंद्र प्रमुखपरिवारसहितया स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः सा० सीधर सा० धरणा शुभं भूयात् (७७२ ) वासुपूज्य - पञ्चतीर्थी : संवत् १५३० वर्षे आषाढ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे चंडालियागोत्रे सं० संग्राम भार्या कउतिकदे तत्पुत्र सं० पासा सुश्रा [व] केन (ण) भार्या हेतसिरि पुत्र धिरणादिपरिवारपरिवृतेन स्वपुण्यार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि. (७७३ ) सुमतिनाथ -पञ्चतीर्थी : ॥ ६ ॥ सं० १५३० वर्षे उपकेशवंशे चोपड़ागोत्रे चो० सायर भार्या कपूरदे पुत्र सरवण साहणाभ्यां पुत्र जयतसींह हेमादि सपरिकराभ्यां निजपितृपुण्यार्थं श्रीसुमतिबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । ७६८. आदीश्वर मंदिर, दोशीवाड़ा पोल, अहमदाबाद : पारीख और शेलेट-जै० इ० इ० अ०, लेखांक ६४८ ७६९. देहरी क्रमांक ५/ ११, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक ३६९ ७७० नमिनाथ जिनालय, कासिम बाजार, मुर्शिदाबाद : पू० जै०, भाग १, लेखांक ७८ ७७१. महावीर स्वामी का मंदिर, मणीयाती पाडा, पाटण : भो० पा०, लेखांक ११६० ७७२. अनुपूर्तिलेख, आबू : अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६५० ७७३. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १०६५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१३५)) Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७४) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः सं० १५३१ वैशाख सुदि ३ शनौ उप० छाज० गोत्रे उगम भा०सीति पुत्र सा० जिदाकेन भा० भावलदे पुत्रपरिवारसहितेन आत्मश्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का० प्र० श्रीखरतर जिनधर्मसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ ___ (७७५) अभिनन्दन-पञ्चती : सं० १५३१ वर्षे वै० सु० ६ सोमे श्रीउशवंशे आभूसन्ताने भ० भोजा पुत्र नरणुतादूति भ० जोल्हा नारदाभ्यां श्रीअभिनन्दनजिनबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (७७६) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३१ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ सोमे श्रीमालज्ञातीय घेवरीया गोत्रे सा० केल्हण भा० झूणी पुत्र साहसू जगपतिकेन भा० साझू पुत्र सहसू युतेन श्रीविमलनाथबिंबं कारि० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ ___ (७७७) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५३१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ ऊकेशज्ञातीय सा० पूना भार्या पूनादे सुत सा० भावाकेन भा० नीणू सुत राणा-मांका-कृपादिकुटुम्बयुतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठित खरतर० श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ छ॥ श्री॥ (७७८) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५३१ वर्षे फागुण सुदि सप्तमी सोमे सा साडन भार्या मानकदे पुत्र ऋषभवीर भार्या नन्नोदेव्या आत्मपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (७७९) अनन्तनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३१ वर्षे चैत्र वदि ८ बुधे चंदेरा वास्तव्य ओसवाल सा० दापा भार्या हरखमदे सुत समराकेन भार्या सीतादे सु० वेला-मेघराज-हंसराज-प्रमुखकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीअनंतबिंबं का० प्र० श्रीषरतरगच्छे भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। ___ (७८०) अनन्तनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३१ वर्षे चैत्र वदि ८ बुधे वंदेरो वास्तव्य ओसवाल सा पहापाना० हरखमदे सुत रामहाकेन भार्या सीतादे सु० वेला मेहाराज हंसराज प्रमुखकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे अनन्तबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे भ० जिनचन्द्रसूरिभिः। ७७४. आदिनाथ जिनालय, बडनगर : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५५६ ७७५. खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर, तूलापट्टी, कलकत्ता : जै० धा० प्र० ले०,लेखांक २१७ ७७६. जैन मंदिर, पटना : पू० जै०, भाग १, लेखांक २८४ । ७७७. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७३४ ७७८. सेठजी का मंदिर, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७३९ ७७९. आदिनाथ का नया मंदिर, जयपुर : पू० जै०, भाग २, लेखांक १२०९ ७८०, बांठियों का मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४३७ (१३६) -(खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७८१) अभिनन्दन - पञ्चतीर्थी: सं० १५३२ वर्षे वै० सु० ६ सोमे श्रीऊकेशवंशे आभू सन्ताने भोजा पुत्र नखाता दूता भ० जोल्हा नारदाभ्यां श्रीअभिनन्दनजिनबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ( ७८२ ) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५३२ वर्षे वैशाख सुदि ६ सोमे ऊकेशवंशे जाजागोत्रे सा० धर्मा भा० धर्मादे पुत्र सा० काजा सुश्रावकेण भा० भोजा प्रमुखपरिवारसहितेन श्री श्रेयांसबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ( ७८३ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५३२ वर्षे वैशाख सुदि ६ दिने श्रीमालज्ञातीय नाचणगोत्रे सं० श्रा० दौसी नाल्हापूर्वजश्रेयोऽर्थं तत्संतानीय सा० श्रा० धरणपुत्र सा० लूणासुश्रावकेण श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ (७८४) मुनिसुव्रत - पञ्चतीर्थी : संवत् १५३२ वर्षे . सुदि ६ दिने श्रीमालज्ञातीय दक्कगोत्रे सं० तेजा सं० केशव पुत्र सुर्जनरामा पु० सं० आंबा भार्या रमाई परिवारसहितेन सुर्जन भार्या सबीरी पुण्याय श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ (७८५) कुन्थुनाथ-चतुर्विंशतिः सं० १५३२ वर्षे वैशाख सुदि १० सोमे ऊकेशवंशे श्रेष्ठिगोत्रे से० भीमसी पुत्र सेठि पाल्हा पुत्र सेठिया कर्मसी पु० से० बीकम पु० से० श्रीरंगना भार्या कीकी हंसाई पु० जागा अमरसी विजइसी परिवारसहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथचतुर्विशतिजिनपट्टः कारित: प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभि: श्रीस्तम्भतीर्थवास्तव्यः ॥ (७८६) वासुपूज्य - चतुर्विंशति ॥ संवत् १५३२ वर्षे वैशाख सुदि १३ सोमे ऊपकेशज्ञा० भाभूगोत्रे सा० सज्जन पु० भरहू भा० मेहिणी पु० देवा भा० देवलदे भातृ मया ऊदा सं० देवाकेन स्वपुण्यार्थं स्वश्रेयसे श्रीवासुपूज्यमुख्यबिंबं चतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितः श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे श्रीजिनोदयसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ मूलताण ७८१. धर्मनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, बड़ा बाजार, कलकत्ता : पू० जै०, भाग १, लेखांक १०७ ७८२. बावन जिनालय, करेड़ा, मेवाड़ : पू० जै०, भाग २, लेखांक १९४० ७८३. अजिनाथ जिनालय, गीपटी, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७१७ ७८४. धर्मनाथ देरासर, डभोई : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५० ७८५. पार्श्वनाथ जिनालय, भरुच : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३१३ ७८६. थीरूशाह का देरासर, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४५५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१३७ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७८७) पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थी : सं० १५३२ वर्षे ज्ये० व० ३ रवौ वणागीआ गोत्रे सा० वादी भ० षीमाइ सु० तिउण श्रेयोर्थं सा० सावन श्रीवंत साजण प्र० कुटुंबयुतेन श्रीपद्मप्रभबिंबं कारितं रोद्रपलियगच्छे श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे प्रतिष्ठितं श्रीगुणसुंदरसूरिभिः। ( ७८८ ) नमिनाथ: संवत् १५३२ वर्षे फागुण सुदि ३ रवौ उपकेशवंशे छाजहड़गोत्रे सं० बेगड़ा श्रेयोर्थं देवदत्त पुत्र मंत्री गुणदत्त भा० सोमलदे तयोः पुत्रेण धर्मसिंहेन पु० समरथादि परिवारस० भा० पुण्यार्थं श्रीनमिनाथबिंबं का० प्र० खरतर श्रीजिनधर्मसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ (७८९) पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थी: सं० १५३२ वर्षे चैत्र वदि ३ रवौ उपकेशज्ञा० चणगीयागोत्रे सा० वादी भा० खीमाई सु० तिहुण श्रेयोर्थं सा० भावडेन श्रीवंत साजण प्र० कुटुम्बंयुतेन श्रीपद्मप्रभस्वामिबिंबं कारितं रुद्रपल्लीयगच्छे श्रीदेवसुन्दरसूरिपट्टे प्रतिष्ठितं श्रीगुणसुन्दरसूरिभिः॥ (७९०) सुपार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५३३ वर्षे वै० शुदि ६ दिने श्रीमालवंशे सं० जइता पु० सं० मांडण भा० लीलादे पु० जावड युतेन श्रीसुपार्श्वबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । (७९१) महावीरः ॥ सं० १५३३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १०. श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । .श्रीमहावीरबिंबं. (७९२) शांतिनाथ - पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५३३ वर्षे मग (मार्ग) सुदि २ भ (भो) मे उ० षाटड़गोत्रे सा० ऊदा भार्या सत्यदे पुत्र साह आपा भार्या कपूरदे पुत्र.. .. श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारापितं श्रीष (ख) रतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ (७९३) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५३३ वर्षे पौष वदि १० गुरौ ऊकेशवंशे दो० भाचा भा० मांई पुत्र दो० समधरेण भा० डाही पुत्र सापा-पासादिकुटुंबयुतेन निजश्रेयसे श्रीविमलनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ ७८७. यति किशनचन्द जी, जयपुरः पू० जै०, भाग १, लेखांक ५७९ ७८८. बड़ा भंडार, संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४३७ ७८९. पार्श्वचन्द्रगच्छीय उपाश्रय, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७४१ ७९०. पंचायती मंदिर, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७५७; पू० जै०, भाग २, लेखांक ११६२ ७९१. जैन मंदिर, जसोल (मारवाड़) : पू० जै०, भाग २, लेखांक १८८१ ७९२. अनुपूर्ति लेख, आबूः अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६५३ ७९३. आदिनाथ जिनालय, परा, खेडा: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२२ (१३८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह :) .. खरतर For Personal & Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७९४ ) अजितनाथ - पञ्चतीर्थी: संवत् १५३३ वर्षे पौष सुदि १५ सोमे श्रीऊकेशवंशे श्रीदव (र) डागोत्रे सा० देल्हाभार्या देल्हणदे पुत्र साधुकीहट भा० धारु पुत्र साधु आंबड सुश्रावकेण भा० पदमाई पुत्र टोकर भा० उदयराज भा० कपूराईप्रमुखपरिवारयुतेन निजजनकादिश्रेयोर्थं श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । (७९५) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५३३ वर्षे माह वदि ५ दिने ऊकेशवंशे दोसीगोत्रे सा० सदा भा..... .पुत्र सा० भोजा.... ....... तत्पुत्र सा० मेहाजले प्र० श्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि प० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । (७९६ ) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५३३ वर्षे माघ वदि १० शुक्रे उकेशगोत्रे सा० रामा भार्या हसीरदे पुत्र सा० साताकेन भार्या गेही सुत खर............ तकानृल भा हेमा सु० पुरी- प्रमुख - कुटुंबयुतेन श्री आदिनाथबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ बाहडीग्रामे ॥ (कोटडी ग्रामे ) (७९७ ) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थी : सं० १५३३ वर्षे माघ सुदि ६ सोमे श्रीउकेशवंशे संखवालगोत्रे सा० ऊता भा० हर्षू पुत्र सा० वरजांग सुश्रावकेण भा० कमी पु० सदारंग सारंगयुतेन श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (७९८ ) संभवनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५३४ वर्षे वैशाख सुदि ४ दिने श्रीऊकेशवंशे छत्रधरगोत्रे सा० हापा भार्या हांसलदे पुत्र सा० पद्माकेन भार्या प्रेमलदे पुत्र सा० गज्जा सा० नरपाल प्रमुखपरिकरयुतेन श्रीसम्भवनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः प्रतिष्ठिता ॥ श्री ॥ ( ७९९ ) संभवनाथ: सं० १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० श्रीऊकेशवंशे गणधरगोत्रे सा० पासड भार्या लखमादे पुत्र सा० भोजा सुश्रावकेण भ्रातृ सा० पदा तत्पुत्र सा० कीका प्रमुख परिवार सहितेन सपुण्यार्थं श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ७९४. वैद्य त्रिभुवनदास भीखाभाई का घर देरासर, बडोदरा: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २२३ ७९५. चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मंदिर, चिन्तामणिशेरी, राधनपुर: मुनि विशाल विजय - रा० प्र० ले० सं०, लेखांक २८२ ७९६. देहरी क्रमांक २६६ / ३, शत्रुंजयः श० गि० द०, लेखांक १९३; बालावसही, शत्रुंजय: श० वै०, लेखांक २१५ ७९७. बांठियों का मंदिर, जयपुरः प्रा० ले० सं०, लेखांक ४४९ ७९८. आदिनाथ जिनालय, राजलदेसर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३४९ ७९९. नवलखा मंदिर, पाली : प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३८४; पू० जै०, भाग १, लेखांक ८२१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : For Personal & Private Use Only (१३९) www.jalnelibrary.org Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८०० ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दि० श्रीऊकेशवंश दोसी सा० भादा पुत्र सा० धणदत्त श्रावण पुत्र सा० वच्छराज प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीशीतलबिंबं मातृ अपू पुण्यार्थं कारितं प्र० खरतर श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। ( ८०१ ) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सित १० दिने सोमे ऊकेशवंशे कटारियागोत्रे सा० चांपा. ..भार्या पाल्हणदे पुत्र सा० नरसिंह श्रावकेण श्री श्रेयांसनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रेयसे । (८०२ ) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५३४ वर्षे ज्येष्ठ शित १० दिने सोमे उपकेशवंशे कटारीया गोत्रे भापचा भार्या पाल्हणदे पुत्र सामरसिंह श्रीरकेण श्रीश्रेयांसबिंबंकारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (८०३) वासुपूज्य - पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सु० १० सोमे श्रीऊकेशवंशे लूणियागोत्रे सा० सांजा भार्या लालू पुत्र सा० मेहाजल सा० मेला सा० तोला सा० धर्मसी प्रमुखैः स्वपुण्यार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे जिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ( ८०४ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० सोमे ओस० ज्ञा० मं० वीसल भा० गोई सु...... ..लाषा भा० अभू सु० नाथू डीडा भा० माल्ही सु० मेघा युतेन दोपकर ( ? ) निमित्तं श्रीशान्तिनाथबिंबं का० प्र० महूकरगच्छे प्रतिष्ठितं धनप्रभसूरिभिः जीराउलि वा० ॥ (८०५) मुनिसुव्रत - पञ्चतीर्थी : संवत् १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दिने ऊकेशवंशे साधुशाखायां सा० पाचा भार्या पाल्हणदे तोल्ही सा० देपा भा० जयती पुत्र सा० षेताकेन तोल्ही पुत्र झांझां जाल्हा रूपा चांपा चरमा युतेन सा० पोपा पुण्यार्थं श्रीमुनिसुव्रत का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (८०६) मुनिसुव्रत - पञ्चतीर्थी : संवत् १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दिने चोपड़ा गोत्रे सा० करना पुत्र देल्हाकेन भार्या देल्हणदे पुत्र देवादिपरिवारसहितेन स्वश्रयेसे श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। ८००. महावीर जिनालय, आसानियों का चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८८९ ८०१. बड़ा मंदिर, नागौर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७७१ ८०२. आदिनाथ जिनालय, हीराबाड़ी, नागौरः पू० जै० भाग २, लेखांक १२८७ ८०३. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३५४ ८०४. चन्द्रप्रभ मंदिर, जालना: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १४८ ८०५. जैनमंदिर, चेलपुरी, दिल्ली : पू० जै०, भाग १, लेखांक ४४५ ८०६. जै० धा० प्र० ले०, लेखांक २३१ ( १४० खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८०७) संभवनाथ पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे बापणागोत्रे सा० भावड भा० जसमादे पु० सा० सोमा सुश्रावकेण भा० सकतादे पु० अमर मेघा अमरा प्रमुखसहितेन श्रीसंभवनाथबिंबं का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ( ८०८ ) संभवनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने ऊकेश राखेचा गोत्रे सा० जगमाल भा० हिमे पु० सा० थेरु भ्रा० घेरूसुश्रावकेण भा० रत्नाई पु० सा० देवराज सहितेन भ्रातृ रूपा थिरु दसू सा० वच्छाप्रमुख परिवारेण श्रीसंभवनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्री ॥ (८०९) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ ६० ॥ संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे लूणिया गोत्रे सा० पूना भार्या पूनादे पुत्र रणधीर सुश्रावकेण भा० नयणादे पु० नालू सा० वालू वील्हा वीरमादिपरिवारयुतेन श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्री ॥ (८१०) शीतलनाथादि - चतुर्विंशतिः ॥ ६० ॥ सं० १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने श्रीऊकेशवंशे बोहित्थरागोत्रे सा० जेसल भार्या सूंदी पुत्र मं० देवराज बच्छराज मं० देवराजेन भा० रुयड़ लखमाई पु० दसू सउणा तेजपाल मं० दसू भार्या दूल्हादे पुत्र हीरा प्रमुखपरिवारसहितेन स्वभार्या लखमाई पुण्यार्थं श्रीशीतलनाथचतुर्विंशतिपट्टः का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः (८११ ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ ऊकेशवंशे फोफलियागोत्रे सा० अरसी भा० ऊंजी पुत्र सा० सिवा भा० रत्नादे पुत्र सा० चउराकेन भा० लखमादे प्रमुखपरिवारेण श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ ( ८१२ ) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५३४ वर्षे आषाढ़ सु० २ दि० ऊकेशवंशे बोथिरागोत्रे सा० जेसा पु० थाहा सुश्रावण भा० सुहागदे देल्हा हांसा नींबादियुतेन माता लखी पुण्यार्थं श्री श्रेयांसबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ८०७. महावीर मंदिर, सांगानेर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७७७ ८०८. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १०८५ ८०९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १०८७ ८१०. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक ३ ८११. सुमतिनाथ मंदिर, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७७६ ८१२. बड़ा मंदिर, नागौर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७७५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१४१) Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८१३) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने उपकेशवंशे बोथरागोत्रे शा० जेसा पु० थाहा सुश्रावण भा० सुहागदे पुत्र देल्हा मानी बाकि युतेन माता लखी पुण्यार्थं श्री श्रेयांसनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (८१४) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५३४ आषाढ़ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे चोपड़ा गोत्रे सा० आंबा भा० अहवदे तत्पुत्र सा० ऊधरण भ्रातृ सा० सधारणेन भार्या सुगुणादे पुत्र फलकू कीतादि परिवारयुतेन श्रीकुंथुनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं खरतरगच्छेश श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ (८१५) मुनिसुव्रत - पञ्चतीर्थी : ॥ ६० ॥ संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे सेठिगोत्रे से० पदा । भार्या कपूरदे पुत्र नाथू सुश्रावकेण भा० नारंगदे पुत्र ऊदा कर्मसी प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ (८१६) मुनिसुव्रत - पञ्चतीर्थी : संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे वायड़ागोत्रे सा० सूरा भा० माणिकदे पु० सा० झांझण सुश्रावकेण भा० पूनी पु० गांगादी परिवारसहितेन श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (८१७) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सु० ११ गुरौ उकेसवंशे छाजुहडगोत्रे सा० उगम पुत्र सा० खरहथेन भा० जीवीणी पु० माला बाला पासड सहितेन धर्मनाथबिंबं निजश्रेयोर्थं कारापितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (८१८) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि १५ ऊकेशवंशे चोपडागोत्रे को० ठाकुरसी भार्या ऊमादे पुत्र को ० शिखरा भा० साता सुश्रावकेण पुत्र सा० वीसल सा० अखयराज सा० नगराज प्रमुखपुत्रादिसहितेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः ॥ ८१३. आदिनाथ जिनालय, नागौर पू० जै०, भाग २, लेखांक १३१७ ८१४. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १०८८ ८१५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १०८६ ८१६. आदिनाथ जिनालय, देवीकोट, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५७८ ८१७. बड़ा मंदिर, नागौर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७७२; प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १५१ ८१८. पार्श्वनाथ मंदिर, हरसूली: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७७८ (१४२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८१९) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५३४ वर्षे मार्गसिर मासे कृष्णपक्षे नवम्यां तिथौ रविदिने गूजरज्ञातीय श्रीश्रीमालवंशे साहूगोत्रे सा० महणा भा० राणी पु० हरिचंद पु० वस्ता स्वहिते श्रीसंभवनाथबिंबं स्वश्रेयसे कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (८२०) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५३४ वर्षे फा० सुदि १३ दिने श्रीगूर्जरज्ञा० साहूगोत्रे सा० सहसा भा० श्रा० मानू पुत्र सा० वीराकेन भा० श्रा० सुहामणि पुत्र श्रीराजसहितेन श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (८२१) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५३४ वर्षे श्रीऊकेशवंशे भणसालीगोत्रे भ० गुणराज पुत्र भ० पुंजासुश्रावकेण भा० चंपाई पुत्र भ० महिपाल भ० जइतमलप्रमुखपरिवारयुतेन श्रीविमलनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (८२२) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३५ वर्षे माघ सुदि ३ रवौ श्रीऊकेशवंशे रायथला सेठियागोत्रे धरणा पुत्र वेलाकेन भा० विमलादे पुत्र खेमागेलागजादिनि० श्रीनमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। श्री:। (८२३) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३५ माघ सुदि ऊकेशवंशे बलाहीगोत्रे सा० रणमल भा० रमादे पुत्र महिराज काला मूला तत्र महिराज भार्यया मन्नाई श्राविकया श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ __ (८२४) संभवनाथः सं० १५३५ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने ऊकेशवंश भ० गोत्रे सा० नीवा भार्या पूजी सा० पूना श्रावकेण भातृ सजेहण मा० अंबा परिवारयुतेन श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (८२५) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५३५ वर्षे फा० सु० ३ दिने ऊकेशवंशे तातहड़गोत्रे सा० धन्ना भा० रयणा पुत्र सा० मूलाकेन भा० रत्नाई नांगू पुत्र रिक्खा तत्पुत्र ऊदा सूदा प्र० परिवारयुतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ ८१९. पार्श्वनाथ मंदिर, मंडोरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १४९ ८२०. आदिनाथ जिनालय, परा, खेड़ा: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४१० ८२१. भीडभंजन पार्श्वनाथ, मारफतीया, पाटणः भो० पा०, लेखांक ८७४ ८२२. आदिनाथ चैत्य, थराद: जै० प्र० ले० सं०, लेखांक ७२ ८२३. नेमिनाथ का मंदिर, गेलाशेठ की शेरी, राधनपुरः रा० प्र० ले० सं०, लेखांक २९५ ८२४. संभवनाथ जिनालय, अजमेर: पू० जै०, भाग १, लेखांक ५६२ ८२५. महावीर जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४२५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (१४३ For Personal & Private Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८२६) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५३५ वर्षे फागुण सुदि अष्टमी र उपकेशज्ञा० पितामह लीबा पितृव्य पारा । काला भ्रातृ सिंघा महिराज भ्रातृपुत्र धना पूर्वज पूसां निमित्तं श्रेयसे सा० जेसाकेन श्रीकुंथनाथबिंबं कारितं खरतरगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (८२७) कुन्थुनाथ - चतुर्विंशतिपट्टः सं० १५३६ वर्षे वैशाख वदि ८ रवौ ऊकेशज्ञातीय सा० वीरा भार्या वउलदे सुत सा० सीधरकेन भार्या सोखलदे सुत सा० साडा भा० भावलदे लघुभ्रातृ सा० भांडा भा० रोहण्यादि कुटुंबयुतेन श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं ॥ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि शिष्य श्री श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ पाल्हणपुर वास्तव्य ॥ छ ॥ श्रीः (८२८) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५३६ वर्षे वैशाख सुदि २ श्रीऊकेशवंशे श्रीदरड़ा गोत्रे सा० दूल्हा भार्या हस्तू पुत्र सा० मूलाकेन भा० माणिकदे भ्रातृ सा० रणवीर सा० पीमा पुत्र सा० पोमा सा० कुंभादि परिवारयुतेन श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (८२९) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५३६ वर्षे आषाढ़ सुदि ८ दिने । श्रीऊकेशवंशे गोलछागोत्रे सा० साजण भार्या राजलदे पुत्र सा० हमीरेण भ्रातृ रहीयादिसहितेन भ्रातृ जीवा श्रेयोऽर्थं श्री आदिनाथबिंबं कारितं प्रति श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ ( ८३०) चतुर्भूमितोरण सं० १५३६ वर्षे सावण सु.. .. शुभं भवतु श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचन्द्रसूरि विजयराज्ये वा० कमलराज गणि पं० उत्तमलाभ गणि हेमध्वज गणि शिवशेखरगणय देवान् गुरूंश्च वन्दते। सुत्रधार देवदास श्री ॥ ( ८३१ ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे मार्ग० शुदि ५ गुरौ खरतरगच्छे भ० बृ० भणसालीगोत्रे मं० चोहथ भा० लाछा पु० भादा भा० भरमादे पु० फूला खरहथ पितृश्रेयसे श्रीशीतलनाथबिंबं सा कारितं प्र० श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ ८२६. आदिनाथ जिनालय, जामनगरः प्रा० ले० सं०, लेखांक ४६० ८२७ जैन मंदिर, सरदार सेठ की पोल, अहमदाबादः परीख और शेलेट-जै० इ० इ० अ०, लेखांक ७१९ ८२८. महावीर जिनालय, (वेदों का) बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १२५७ ८२९. आदिनाथ देरासर, जामनगर : प्रा० ले० सं०, लेखांक ४७२ ८३०. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७३८ ८३१. सुमतिनाथ मंदिर, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७९९ (१४४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८३२) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ सं० १५३६ वर्षे माघ वदि ५ रवौ श्रीकुंथुनाथबिंबं श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीखरतरगच्छनायक श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं। प्राग्वाटज्ञातीय सा० मूजा पुत्र सा० साल्हा सुश्रावकेण भा० वीरणिपुत्र नाल्हादिपरिवारसहितेन कारितं च ॥श्रीः ।। (८३३) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ सं० १५३६ वर्षे माघसुदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे झाबकगोत्रे सा० हीरा भार्या श्रा० हीरु तत्पुत्र सा० थाहरुश्रावकेण भार्या नयणी पुत्र सा० देवदत्त सा० सांगणादिपरिवृतेन श्रीविमलनाथबिंबं स्वश्रेयोर्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीनि (८३४) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः सं० १५३६ वर्षे फागुण व [०] ३ दिने श्रीऊकेशवंशे दोसीगोत्रे सा० साल्हा भा० सुहागदे पु० सा० देढाकेन भा० नांटी पु० षीमा भा० देमाई तत्पुत्र जोगा तेजा पदमसी प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीमुनिसुव्रतबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (८३५) द्विसप्ततिजिनपट्टिका ॥ ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण वदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे श्रीगणधरगोत्रे सं० पासड भार्या प्रेमलदे पुत्र सं० जीवंद सुश्रावकेण सं० समधर भा० वरजू पुण्यार्थं द्विसप्ततिजिनपट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता खरतर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्र. ___(८३६) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५३६ वर्षे फागण वदि.................दिने श्रीऊकेशवंशे रांकागोत्रे श्रे० जेसिंघपुत्र श्रे० घिल्ला भा० करणु पु० श्रे० हरिपाल भा० हासलदे पुत्र श्रे० हर्षा भ्रा० जिणदत्तेन भा० कमलादे पुत्र सधरेण सोनपालादि परिवारेण स्वपितृपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (८३७) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३६ वर्षे फा० वदि.............दिने ऊकेशवंशे रांकागोत्रे श्रे० जेसिंघपुत्र श्रे० घिल्ला भार्या करणू पु० श्रे० हरिपाल भा० हांसलदे पुत्र श्रे० हर्षा भा०............ श्रे० जिणदत्तेन भा० कमलादे पु० ८३२. सुमतिनाथ जिनालय, मेडाग्राम: अ० प्र० जै० ले० सं०, भाग ५, लेखांक २२६ ८३३. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१९५ ८३४. आदिनाथ जिनालय, जामनगर: प्रा० ले० सं०, लेखांक ४६८ ८३५. आदिनाथ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४०५ ८३६. जैन मंदिर, ऊंझा: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १७० ८३७. कोका का पाड़ा, पाटण: भो० पा०, लेखांक ९०० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः १४५) For Personal & Private Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सधारण-सोनपालादिपरिवारेण स्वमातृपुण्यार्थं श्रीनमिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजि[न]चन्द्रसूरिभिः॥ (८३८) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५३६ व० फा० सुदि २ दिने चोपड़ाकूकड़ागोत्रे स० लाला भार्या लीलादे पुत्र रत्नपालाभिधेन भार्या वाल्हादे पु० देवदत्तादि पुत्रपरिवार स० श्रीकेण श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ चोप० प्रतिष्ठायाः॥ (८३९) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५३६ वर्षे फा० सुदि २ दिने ऊकेशवंशे आयरीगोत्रे। सा० महिराज सा० हर्षु पुत्र धणदत्त सुश्रावकेण सा० वील्हू पुत्र का पासादियुतेन श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं । श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं। चेला लिषि॥ (८४०) जिनभद्रसूरि-प्रतिमा ॥ संवत् १५३६ वर्षे फाल्गुन सुदि २ दिने श्रीखरतरगच्छनायक श्रीजिनराजसूरिपट्टालंकारहार श्रीजिनभद्रसूरिराजानां प्रतिमा। श्रीसंघेन श्रेयो) कारिता प्रतिष्ठिता श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ श्रीकमलसहो(? राजो)पाध्याय शिष्य श्रीमुनिउपाध्याय...... (८४१) मूर्तिः सं० १५३६ फाल्गुन सुदि २ दिने श्रीखरतरगच्छे (८४२) परिकरोपरि गुरुपरम्परा-लेख: ॥ ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीपत्तननगर वास्तव्य स० धणपति सुश्रावकेण श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ श्रीजेसलमेरमहादुर्गे श्रीराउल श्रीदेवकर्णविजयराज्ये। श्रीपार्श्वनाथबिंबं चैत्यालये स्थापितः। श्रीउद्योतनसूरि श्रीवर्द्धमानसूरि श्रीजिनेश्वरसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीअभयदेवसूरि श्रीजिनवल्लभसूरि श्रीजिनदत्तसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनपत्तिसूरि श्रीजिनेश्वरसूरि श्रीजिनप्रबोधसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनकुशलसूरि श्रीजिनपद्मसूरि श्रीजिनलब्धिसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनोदयसूरि श्रीजिनराजसूरि श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः सहितः प्रतिष्ठितं ।। ८३८. महावीर जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, २४२६ ८३९. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३५७ ८४०. संभवनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१५३ ८४१. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २६९९ ८४२. पार्श्वनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१२० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८४३) चतुर्विंशति-जिनपट्टिका सं० १५३६ फागुण सुदि ३ सं० लाखण पुत्र सं० समरा भा० मेघाई पुण्यार्थं चतुर्विंशतिजिनपट्ट का। प्र। खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। (८४४) द्विपंचाशजिनालय-पट्टिका संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे कूकड़ चोपड़ा गोत्रे सा० पांचा भा० रूपादे पु० सं० लालम भा० लखमादे पुण्यार्थं पुत्र सं० सिखरा सं० समरा सं० माल्हा सं० सुहणा सं० कुंरपाल सुश्रावकैः द्विपंचाशत् जिनालये पट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकारैः श्रीजिनचंद्रसूरिराजैः तत्शिष्य श्रीजिनसमुद्रसूरिसहितैः। श्रीजैसलमेरु महादुर्गे। श्रीदेवकर्ण राज्ये। (८४५) सप्ततिशतजिनपट्टिका सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे ईंदा क्षत्रियान्वये श्रीथुल्लगोत्रे सं० कुंदा पुत्र मं० धीधा पुत्र मं० लखमसी मं० लाखण तत्र लखमसी पुत्र मं० पद्मा मं० वीरा तत्र मं० वीरा पुत्र जींदा मं० धीरा देवराज। डाहा । वसता। सहजा। तत्र धारा भार्या धांधलदे पु० मं० तेजा मं० वीज्जा मं० गज्जा मं० साता। तत्र मं० तेजा भा० हांसलदे पुण्यार्थं पु० मं० रूपसी मं० सोमसीभ्यां तत्र रूपसी भा० रांभलदे पु० मं० राजा पुत्री हक्की। रुक्मणी सोमसी। भा० संसारदे पुत्री रोहिणी प्रमुखपरिवारसहिताभ्यां श्रीसत्तरिसयपट्टिका कारिताप्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिगच्छनायकै : शिष्य श्रीजिनसमुद्रसूरि श्रीगुणरत्नाचार्यप्रमुखसहितैः॥ दुर्गाधिप श्रीदेवकर्णनृपराज्ये॥शुभंभूयात् ॥ लिखिता कमलराज मुनिना श्रेयोस्तुः॥ (८४६) सप्ततिशतजिनपट्टिका ॥ ६० ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुन सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे वडहरा गोत्रे सा० सादा भा० सूहड़ादे सु० सा० चांपा भार्या डाही सुश्राविकया सुपुण्यार्थं सप्ततिशत-जिनवरेन्द्र-पट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे पूर्वाचलसहस्त्रकरावतार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ तत्शिष्य श्रीजिनसमुद्रसूरि श्रीगुणरत्नाचार्य श्रीसमयभक्तोपाध्याय (८४७) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः || सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे कूकड़ाचोपड़ागोत्रे सं० लाषण भार्या लषमादे पुत्र सा० सहणकेन भार्या श्रा० सोहागदे पुत्र सामंता परिवारयुतेन श्रीआदिनाथबिंब कारितं श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः शिष्य श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः श्री श्री नमः॥ ८४३. अष्टापद जी का मंदिर, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७२४ ८४४. अष्टापद जी का मंदिर, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७२५ ८४५. शान्तिनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७८१ ८४६. शान्तिनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७८२ ८४७. महावीर जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४२८ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) (१४७) For Personal & Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४८) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५३६ फा० सु० ३ दिने ऊकेशवंशे पडिहारगोत्रे सा० वलसी भा० नालहदे पुत्र पासडेन भार्या सरखू पुत्र रतना नाथादिपरिवारयुतेन श्रीआदिनाथबिंबं का० प्र० खरतर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ( ८४९) आदिनाथ: सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ रवौ फोफलियागोत्रे सा० मूला पुत्र देवदत्त भार्या सारु पुत्र सा० नरु श्रावकेण भार्या नामलदे परिवारयुतेन श्री आदिनाथबिंबं श्रेयसे कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि-श्रीजिनसमुद्रसूरि प्रतिष्ठितं ॥ (८५०) आदिनाथ- पादुका A संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ श्रीआदिनाथ पादुका बाई गेली कारिता । B ॥ संवत् १५३६ फागुण सुदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे संखवाल गोत्रे सा० आपमल्ल पुत्र सा० था सं० आसराज भार्या गेलमदे नाम्रा पुत्र सं० खेता पुत्र सं० वीदा नोडादि युतया श्री आदिनाथ पादुकायुग्मं कारयामास प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ( ८५१ ) अजितनाथ पञ्चतीर्थी: : सं० १५३६ फा० सु० ३ ऊकेशवंशे भा० आंधु संताने भ० माल्हा भा० कछू पुत्र भ० हराकेन भा० न्यमलदे पुत्र हर्षा रामा भूँमा नर भमादि परि० युतेन श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ( ८५२) अजितनाथ - पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५३६ वर्षे फागुणसुदि ३ दिने ऊकेशवंशे परीक्षगोत्रे प० हासा० पु० भउणपाल भा० रयणादे पु० रिम्माकुंटापरंपर्यायेन करणा पु० वीदादेवादिपरिवारयुतेन श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ ( ८५३) संभवनाथ पञ्चतीर्थी : ॥ ऐं ॥ संवत् १५३६ वर्षे फा० सु० ३ दिन ऊकेशवंशे तिलहरा गोत्रे सामरा भार्या सूहव पु० देवराजेन भा० रूपादे पु० गांगा रतना राज खरमा परिवारयुतेन श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ८४८. पार्श्वनाथ मंदिर, राजनांदगांव: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १६० ८४९. नवलखा मंदिर, पालीः प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३८६; पू० जै०, भाग १, लेखांक ८२३ ८५० : शान्तिनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७८४ ८५१. सवाईराम बाफणा का मंदिर, अमरसागर, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५२८ ८५२. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१९७ ८५३. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११०३ (१४८)) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८५४) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५३६ फा० सु० ३ दिने श्रीऊकेशवंशे कूकड़ चोपड़ागोत्रे सं० लाखण भार्या लखमादे पु० सं० मयणाकेन भार्या मेलादे द्वि० भा० माणिकदे पुत्र धन्ना वन्नादि युतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीजिनसमुद्रसूरिभिश्च ॥ (८५५) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३६ वर्षे फा० सु० ३ दिने श्रीऊकेशवंशे कूकड़ाचोपड़ागोत्रे श्रे० लाखण भा० लखमादे पु० सु० महणाकेन सामहि० भा० माणिकदे पु० धन्ना वन्नादिसुतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ श्रीजिनसमुद्रसूरिभिश्च ॥ (८५६) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे फा० सु० ३ ऊकेशवंशे दोसीगोत्रे सा० सरवण सिरियादे पुत्र सा० भांडाकेन पुत्र रतना-षेतापाताप्रमुखपरिवारसहितेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ साधुशाखायां ॥ (८५७) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३६ फा० सु० ३ ऊकेशवंशे बंबोड़ी गोत्रे सा० देपा भा० कपूरदे पुत्र जसा पद्मा जेल्हाद्यैः पुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (८५८) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५३६ वर्षे फागुणसुदि ३ रवौ ऊकेशवंशे छाजहड़गोत्रे मं० कालू पू० भयणाभा० नामलदे तयोः पुत्रेण व्य० सिंघाकेन भा० सिंगारदे पु० सादादिपरि० स० श्रेयोर्थं श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का० प्रति० श्रीखरतर श्रीजिनधर्म (? भद्र) सूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (८५९) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ ६० ॥ सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने नाहटा गोत्रे सा० चांपा भार्या चांपलदे तत्पुत्र सा० भोजा सुश्रावकेण भार्या भरत्यादे पुत्र कर्मसी प्रमुखपरिवारसहितेन स्वश्रेयसे श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रति० खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ ... (८६०) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३६ फागुण सु० ३ ऊकेशवंशे परीक्ष गोत्रे सा० मूला भा० अमरीपुत्र सा० मलाकेन भा० ८५४. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७४८ ८५५. शीतलनाथ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३९६ ८५६. अष्टापद जी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१९९ ८५७. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११०४ ८५८. महावीर जिनालय, भरुच: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३४४ ८५९. ऋषभदेवमंदिरस्थ पार्श्वनाथ जिनालयः, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५०८ ८६०. शीतलनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७११ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) १४९) For Personal & Private Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरषू पुत्र मेरा देसलादि परिवारयुतेन श्रीसुविधिनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः (८६१) सुविधिनाथः सं० १५३६ फागुण सु० ३ ऊकेशवंशे परिक्षगोत्रे सा० मूला भा० अमरी पुत्र सा० रालाकेण भा० हरखू पुत्र मेवादसेलादिपरिवारयुतेन श्रीसुविधिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (८६२ ) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५३६ फा० सुदि ३ ऊकेशवंशे कुकट शा० चोपड़ा गोत्रे सा० तोला भार्या पंजी पुत्र नाल्हा के० पुत्र देवादि परिवारयुतेन श्रीश्रेयांसबिंबं स्वपुण्यार्थं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (८६३) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे लूणीया गोत्रे सा० लोहर पुत्र सा० महसा भा० रूपादे पु० साहलदे पुत्र पदाकेन भ्रातृ सदा महिराज मन्नू प्रमुख परिवारयुतेन श्रीश्रेयांसबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। .. (८६४) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे श्रेष्ठिगोत्रे अमरा पुत्र श्रे० छाडाकेन भार्या सिद्धि पुत्र श्रे० झाझण सामल्ल सरजण अरजुनादि परिवारयुतेन श्रीश्रेयांसबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्र (सूरिभिः) (८६५) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे सा० जारा भार्या वरसणि पुत्र सा० जयसिंघ भार्या करमाई युतेन श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः। श्रीः। (८६६) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः ___ संवत् १५३६ वर्षे फाल्गुन सुदि ३ रवौ ऊकेशवंशे बाफणागोत्रे सा० पीदाकेन भार्या विल्हणदे पुत्र जगसी भादा वेला सूरा परिवारयुतेन श्रीविमलनाथबिंब कारितं श्रेयसे प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरि श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ ८६१. पार्श्वनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१२६ ८६२. अजितनाथ जिनालय, कोचरों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५५४ ८६३. पार्श्वनाथ जिनालय, लोद्रवा, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५५५ ८६४. महावीर जिनालय (वैदों का) बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १२९६ ८६५. चन्द्रप्रभ-जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३५८ ८६६. शांतिनाथ का मंदिर, भानीपोल, राधनपुर: रा० प्र० ले० सं०, लेखांक २९८ (१५०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६७) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५३६ वर्षे फा० सु० ३ रवौ ऊकेशवंशे दोसीगोत्रे सा० सीरग भार्या लाखणदे पुत्र सा० भूराकेन भार्या दाडिमदे पुत्र चीता तेजादि परिवारयुतेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं श्रेयसे प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः श्रीपद्मप्रभबिंबं॥ (८६८) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः ॐ सं० १५३६ फागुनसुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे कूकड़ाचोपड़ागोत्रे लाषण भा० लषमादे पु० सं० कूरपालसुश्रावकेन भार्या कोडमदे पु० सा० भोजराजादिपरिवारयुतेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि.... (८६९) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३६ वर्षे फा० सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे श्रेष्ठि गोत्रे श्रीकीहट भार्या लषी पुत्र देवण मांडण धर्मा श्रावकै: श्रे० देवण भार्या दाडिमदे सुत समरादि परिवारयुतैः श्रीधर्मनाथबिंबं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। (८७०) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५३६ वर्षे फागुणसुदि ३ रवौ ऊकेशवंशे गोलवछागोत्रे सा० सच्चा भार्या सिंगारदे पु० रिणमा [ल] सा० राणा भार्या माकूयुतेन श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (८७१) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥६० ॥ सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे चोपड़ा गोत्रे सा० सोना भा० पूजा पु० रता भा० तामाणि पुत्र राघाकेन श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीख० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः (८७२) कुन्थुनाथः सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३............छाजहड़ गोत्रे मं० देवदत्त पुत्र मं० पासदत्त भार्या सोमलदेव्या पुत्र सुरजणेन पु०..........सहसू पुत्रादि प० श्री...........पुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथबिंबं का० प्रति० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (८७३) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३६ वर्षे फा० सु० ३ दिने ऊकेशवंशे पड़िहारगोत्रे सा० फम्मण भा० कपू सु० सा० ८६७. मुनिसुव्रत मंदिर, जोधपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १५९; पू० जै०, भाग १, लेखांक ६१७ ८६८. शांतिनाथ जिनालय, किला, जैसलमेरः पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१६३ ८६९. नवघरे का मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली: पू० जै०, भाग १, लेखांक ४८८ ८७०. अष्टापदजी का मंदिर, दुर्ग, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१९८ ८७१. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११०२ ८७२. शान्तिनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७९४ ८७३. कुन्थुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६९५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (१५१) For Personal & Private Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहसाकेन भा० चांदू पु० हापादि परिवारयुतेन श्रीकुंथुनाथबिंबं का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । (८७४) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५३६ वर्षे फा० सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे भणसाली सा० रहिया भार्या रूपिणि पु० सा० शिषरेण भार्या पाईयुतेन श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (८७५) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे भंडारीगोत्रे सा० घड़सी मउणदे तत्पुत्र सा० शिखा श्रावकेण भा० सहजलदे पु० शिवराजा काजा पुंजादि परिवारयुतेन स्वश्रेयसे श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ (८७६) कुन्थुनाथ-चतुर्विंशतिः सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ रविवारे लि० गोत्रे सं० सीहा पुत्र सं० षिमपाल भार्ये खीमश्री भोजाही पुत्र पासदत्तेन पितुपुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं रुद्रपल्लीयगच्छे श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः (८७७) मल्लिनाथ: सं० १५३६ वर्षे मिति फागुण सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे लिंगा गोत्रे सा० सहसा पुत्र साह ......... हा.. सा० सहजपालादि परिवारयुतेन भा० भरणी पुण्यार्थं श्रीमल्लिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीजेसलमेरु दुर्गे श्री । ( ८७८ ) नमिनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५३६ वर्षे फा० सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे पारिक्ष गोत्रे । प० महिराज भार्या महिगल दे ० प० कोचर । लींबा । आका। राजा । तेजादि सहितेन श्रेयोर्थं श्रीनमिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्री ॥ ( ८७९ ) नमिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५३६ वर्षे फा० सु० ३ दिने ऊकेश. तद् भ्रातृ ली.... ..रा गोत्रे सा० दूल्हा पुण्यार्थं पुत्र सा० अषयराज ..युतेन श्रीनमिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्री ॥ ८७४. महावीर जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४२७ ८७५. गुरांसा जुहारमल जी का उपाश्रय, जोधपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १५८ ८७६. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४३९ ८७७. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८०८ ८७८. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८१७ ८७९. शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय, आसानियों का मुहल्ला, बीकानेर: पू० जै० भाग २, लेखांक १३४१ (१५२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्रातृ ली.. ( ८८०) नेमिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५३६ वर्षे फा० सु० ३ दिने ऊकेश......... ..रा गोत्रे सा० दूल्हा पुण्यार्थं पुत्र सा० अखयराजेन .. तेन श्रीनेमिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्री ( ८८१ ) पार्श्वनाथ: ॥ॐ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे कूकड़ा चोपड़ागोत्रे सा० पांचा पु० सं० लाखण सुश्रावकेण पुत्रपौत्रादिपरिवारयुतेन भार्या किसनादे पुण्यार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० प्र० श्रीजिनभद्रसूरिशिष्य श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ( ८८२) पार्श्वनाथ: ॥ ॐ ॥ सं० १५३६ वर्षे फागु० सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे कुकड़ाचोपड़ागोत्रे स० पांचा कु० रूपादे पुत्र सं० लाखण............ ..कुऊन भा० लखमादे पुत्रपौत्रादिपरिवारसहितेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिशिष्य - श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ( ८८३) मूर्तिः सं० १५३६ फागुण सु० ३ श्रीऊकेशवंशे कूकड़ चोपड़ा गोत्रे सा० जोगा भा० . खोखाकेन भा०. ..लदे पुत्र देवराज ........... . हाज धीरा प्रमुखपरिवारसहितेन श्री .. भ०....... प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ( ८८४) मूर्तिः सं० १५३६ फा० सु० ३ ऊकेशवंशे श्रे० रांका गोत्रे श्रे० रूपा. .. प्र० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ८८०. शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय, आसानियों का चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९१० ८८१. सेठ जी का मंदिर, रतलाम: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८०३ ८८२. सेठ जी का मंदिर, रतलाम: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८०४ ८८३. शान्तिनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७८० ८८४. अष्टापद जी का मंदिर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७१५ ८८५. अष्टापद जी का मंदिर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७२६ ८८६. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८०१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : पुत्र्या ( ८८५ ) मूर्ति: संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्री उपकेशवंशे श्रीसंखवाल गोत्रे स० मनगर पु० सा० जयता भार्या किस्तूराई श्राविकया कारि । प्रतिष्ठिता च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः .पुत्र सा० .. बिं० (८८६) चतुर्विंशतिजिनपट्टिका सं० १५३६ फागुण सुदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे गणधर गोत्रे सं० सच्चा भार्या श्रा० सिंगारदे पुत्र सं० For Personal & Private Use Only ..हिणि १५३) Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवसिंघेन पुत्र सा० रिणमा सा० भुणा सा० महणा । सा० महणा पौत्र. भा० श्रा० अमरीपुण्यार्थं पट्टिका कारिता.. .. मेघराज - जीवराजसहितेन ..खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः शुभम् (८८७) विंशतिविहरमानपट्टिका ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे श्रीगणधरचोपड़ागोत्रे सा० नाथू पुत्र सं० सच्चा भार्या सं० सिंगारदे पुत्र सं० भीमसी सुश्रावकेण भार्या श्रा० राजलदे पुण्यार्थं पुत्र सा० सूरा सा० सा सा० सरवण सा० कर्मसी भा० सूरजदे भार्या सांमलदे प्रमुखै संसार- परिवारसहितेन श्रीविंशतिविहरमाणश्रीजिनवरेंद्रपट्टिका कारयांचक्रे । प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीमत् श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकारसार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। तच्छिष्य श्रीजिनसमुद्रसूरि श्रीगुणरत्नाचार्य श्रीसमयभक्तोपाध्याय वा० मुनिसोमगणि प्रमुखसाधुपरिवारसहितेन श्रीजेसलमेरुदुर्गे श्रीदेवकर्णेश्वरराज्येदं कारितं प्रासादे मंडिता पूज्यमाना चिरंनंदतु ॥ (८८८ ) सप्ततिशतजिनपट्टिका ॥ ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीमदूकेशवंशे । श्रीबांठियागोत्रे सा० गांगा भार्या। श्राविका सोहग पुत्र धाड़ी वाहा सा० रहिया भार्या श्राविका देवलदे पुण्यार्थं पुत्र सा० हांमा सुश्रावकेण भार्या श्राविका हांसलदे पुत्र सा० मंडलिक सा० ईसर सा० कूरां प्रमुख सारपरिवार सश्रीकेण सप्ततिंशतजिनवरेंद्रपट्टिका कारयांचक्रे । प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे। श्रीवर्द्धमानसंताने। श्रीजिनदत्तसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरिश्रीजिनपत्तिसूरि-श्रीजिनेश्वरसूरि - श्रीजिनप्रबोधसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरि - श्रीजिनकुशलसुरि-श्रीजिनपद्मसूरिश्रीजिनलब्धिसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरि - श्रीजिनोदयसूरि- श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे श्रीदेवकर्णराउल - विजयराज्ये श्रीगणधरचोपड़ा प्रासादे स्वपुत्रि ..शुभं भवतु (८८९) द्वासप्ततिजिनपट्टिका संवत् १५३६ वर्षे फागु० सुदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे गणधरचोपड़ागोत्रे सं० पासड भार्या प्रेमलदे पुत्र सं० जीवंद सुश्रावकेण भार्या जीवादे पुत्र सा० सद्धा सा० धीरा सा० आंबा सा० हरषा पौत्र सा० रायमल्ल सा० आसकर्ण सा० उदयकर्ण सा० पारसादिपरिवार सहितेन भगिनी श्रा० पूरी पुण्यार्थं श्रीद्वासप्ततिजिनवरेंद्रपट्टिकां कारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे पूर्वाचलसहस्त्रकरावतार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ तत् शिष्यराज श्रीजिनसमुद्रसूरिभिश्च ॥ श्रीशुभं भूयात् ॥ (८९०) समवशरण ॥ ६० ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे श्रीगणधरचोपड़ागोत्रे सं० नथू पुत्र सा० सच्चा भार्या सिंगारदे पुत्र सं० जिणदत्त सुश्रावकेण भार्या लखाई पुत्र अमरा थावर पौत्र हीरादि युतेन श्रीसमवशरण कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिसंताने श्रीजिनकुशलसूरि । श्रीजिनपद्मसूरि ८८७. आदिनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४०६ ८८८. आदिनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४०४ ८८९. आदिनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४०३ ८९०. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८१०; पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४०९ (१५४) खरतरगच्छ प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजिनलब्धिसूरि-श्रीजिनराजसूरि-श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीजिनसमुद्रसूरिप्रमुखसहितैः (८९१) मरुदेवा - मूर्तिः ॥ ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे गणधरचोपड़ागोत्रे सा० पासड भार्या प्रेमलदे पुत्र सं० जीवंद सुश्रावकेण भार्या जीवादे पुत्र सा० सद्धा धीरा । आंबा । हरषा प्रमुखपरिवार सश्रीकेण श्रीमरुदेवा स्वामिनी मूर्तिः कारिता प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्रीजेसलमेरु महादुर्गे ॥ श्रीदेवकर्णविजयराज्ये ॥ श्रीदेवकर्णराज्ये । (१) ॥ संव० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ भौमवासरे श्रीउपके(२) शवंशे छाजहड़गोत्रे मंत्रि फलधरान्वये मं० जूठिल पुत्र मं० का(३) लू भा० कर्म्मादे पु० नयणा भा० नामलदे तयोः पुत्र मं (४) सीहा भार्यया चोपड़ा सा० सवा पुत्र सं० जिनदत्त भा० लषाई (५) पुत्र्या श्राविका अपुरव नाम्या पुत्र समधर समरा संदू सहितया स्वपुण्यार्थं श्रीआदिदेवप्रथमपुत्ररत्न प्रथम-चक्रवर्ति श्री भरतेश्वरस्य कायोत्सर्गस्थितस्य प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठि(८) ता श्रीखरतरगच्छमंडन श्रीजिनदत्तसूरि - श्रीजिनकुशलसू(९) रिसंतानीय श्रीजिनचंद्रसूरि पं० श्रीजिनेश्वरसूरिशाखायां । श्री ॥ (१०) जिनशेखरसूरिपट्टे श्रीजिनधर्म्मसूरिपट्टालंकार श्री पूज्य (११) ( श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ श्राविका सूरमदे कारापिता) (६) (७) (४) (५) (८९२) कायोत्सर्गस्थित-भरतेश्वरमूर्तिः (१) सं० १५३६ फा० सु० ५ श्रीऊकेशवंशे (२). वैदगोत्रे मं० सुरजण पुत्र मं० कछला (३) केन भा० रनु पुण्यार्थं मु० शिवकर युतेन श्रीबाहूबलिमूर्ति: कायोत्सर्गस्था कारिता प्रति० श्रीजेसलमेरुदुर्गे गण चोपड़ा से० धर्म्मा कारित प्रतिष्ठायां श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभि: श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः (६) (७) (८) (८९३) कायोत्सर्गस्थित बाहुबलिमूर्तिः ८९१. आदिनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४०० ८९२. आदिनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४०१ ८९३. आदिनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४०२ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: - For Personal & Private Use Only (१५५ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८९४) ऋषभदेव-मूलनायकः सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (८९५) आदिनाथ-पादुका ॥ संवत् १५३६ वर्षे फा० सुदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे संषवालगोत्रे सा० आपमल्ल पुत्र सा० मेघा पुत्र सा० आसराज पुत्र....................नाम्ना पुत्र सा० षेता पुत्र स० चांदा नोडादि युतया श्रीआदिनाथ पादुका युग्मं कारयामाप्त ॥ प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (८९६) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने ऊकेशवंशे गणधर चोपड़ा गोत्रे सा० शिवा पुत्र सा० लूणा भार्या लूणादे पुत्र ठाकुरकेन भार्या धाती पुत्र कुंभा लूभादि युतेन श्रीसंभवनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीजेसलमेरु (८९७) सम्भवनाथः संवत् १५३६ वर्षे फा० सु० ५ दिने श्रीऊकेशवंशे लिंगागोत्रे सा० सहसा भा० जीवी पुत्र आभा पु० सारु पुण्यार्थं सहसा..........सोभाकेन.....श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीसम्भवनाथ। (८९८) संभवनाथ: सं० १५३(६) वर्षे फा० सुदि ५ श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि प॥ श्रीसंभवनाथ। (८९९) सुपार्श्वनाथः संवत् १५३६ फागु० सु० ५ दिने श्रीऊकेशवंशे गणरधरगोत्रे सं० सच्चा पुत्र सं० धन्ना भा० धारलदे पुत्र सं० लाषाकेन पुत्र रत्ना युतेन भा० लाछलदे पुण्यार्थं सुपार्श्वबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (९००) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थीः । संव० १५३६ वर्षे फागुण सु० ५ दिने ऊकेशवंशे गणधरचोपड़ागोत्रे सं० सच्चा भार्या शृंगारदे पुत्र सं० जिणदत्त सुश्रावकेण भार्या लषाई पु० अमरा थावर पौ० हीरादि परिवारयुतेन। श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरग० श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ श्री॥ ८९४. ऋषभदेवजिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८११ ८९५. पार्श्वनाथ देरासर, लोद्रवा, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५५६ ८९६. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४७४ ८९७. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७३१ ८९८. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८०७ ८९९. आदिनाथ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३९९; जै० ती० स० सं०, भाग १, खंड २, पृ० १६९ ९००. आदिनाथ जिनालय, अमरसागर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५२३ (१५६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९०१) मुनिसुव्रतः सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीमाली......................गोत्रे सा० रांका भा० जीवी पुत्र धर्मसीकेन भा० वेगीपुण्यार्थं श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का० प्र० श्रीखरतर श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। __ (९०२) मूर्तिः सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। प्र० ॥ (९०३) सुमतिनाथः ॥ ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि..... .....................पति सुश्रावकेण भा० चंपाई पु० गुणराज........................श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं...............ब धर्मा पु० मं० शिवा भा० वरणु पु० मं० धणा..........महिपाल प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीसुमति........श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (९०४) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ६०॥ सं० १५३६ वर्षे ऊकेशवंशे चोपड़ा गोत्रे को० सायर भार्या कपूरदे पुत्र सरवणसाहणाभ्यां पुत्र जयसिंह-हेमादि सपरिकराभ्यां निजपितृपुण्यार्थं श्रीसुमतिबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (९०५) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३६ वर्षे महतीआण ज्ञा० वाइडागोत्रे सा० भूरा भा० साल्ही पु० रत्नपालकेन भा० संसारदे पु० नाथा श्रीचन्द्रयुतेन श्रीसुविधिनाथबिंब का० प्र० श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (९०६) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३६ वर्षे ऊकेशवंशे पारिखि गोत्रे सा० सालिग भा० पूरी पुत्र सा० देवदत्तेन पुत्र सा० राजा सा० साधारणादि परिवारयुतेन श्रीविमलबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः फागुन व० ३ श्रीगेसलगेरा (? जेसलमेरौ) (९०७) विमलनाथः सं० १५३६ श्रीविमलनाथबिंबं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (९०८) शांतिनाथ-मूलनायकः १ सं० १५३६ वर्षे.... ..... ..... .... .... .....न सा० मूलू सा० रउला पुत्र ९०१. जेठमल जी का उपाश्रय, नागौरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८०६ ९०२. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८०३ ९०३. पार्श्वनाथ जिनालय, दुर्ग, जैसलमेरः पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१२१ ९०४. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १०९५ ९०५. श्रेयांसनाथ जिना०, फताशाह की पोल, अहमदाबादः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १३७८ ९०६. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११०० ९०७. शान्तिनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७९२ ९०८. शान्तिनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७८५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (१५७) For Personal & Private Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ सा० आपमल्ल पुत्र ..... ...... ...... ... ....सरसती पुत्र सा० वीदा ३ सा० नोडा प्रमुख ..... ....... ..............जिनचंद्रसूरिभिः ४ श्रीजिन. ...........भवतु [सामने-]सं० १५३६ वर्षे फा० सु० ३ दिने श्री शांतिनाथ त जाथ (?) बिंबं श्री खेताक (९०९) कीर्तिरत्नसूरिमूर्तिः १ ए संवत् १५३६ वर्षे ५ श्रीकीर्तिरत्नसूरिगुरुभ्यो नमः सा० जेठापुत्री रोहिणी प्रणमति। __ (९१०) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः सं० १५३७ वर्षे ॥ वैशाख सुदि ९ सोमवारे छाजहड़गोत्रे उस० ज्ञाती सा० हांसा भार्या तारू सु० जयता भा० वरजू सु० सविराज देवराज पाल्हा युते० आत्मश्रे० श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का० प्र० खरतर भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः। (९११) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५३७ वर्षे वै० सुदि ६ दिने ऊकेशवंशे आईच्चणगोत्र साधुशाखायां पवछा भा० वालहदे पुत्र गेला नरा गेलाभ्यां भा० गेमलदे पु० सोना रत्नपाल नरा भा० नारिंगदे पु० सहजा भा० सुहागदे पु० गजादिस श्रीशान्तिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ __(९१२) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः संवत् १५३७ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने श्रीऊकेशवंशे सुल्लगोत्रे सा० उदयसी सुश्रावकेण पुत्र सूरा भार्या हानू प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ श्रीवगतटमरौ (९१३) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३७ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने श्रीउपकेशवंशे व....रा गोत्रे अभयसिंहसंताने सा० कुता भार्या लषमादे सा० डाहत्थ श्रावकेण भा० पूराई पुत्र मरा जीवा देवादियुतेन श्रीधर्मनाथबिंब का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितः॥ (९१४) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३७ वर्षे वैशाख सुदि....................ऊकेशज्ञातीय माल्हू गोत्रे सा० हापू भा० हीरादे ९०९. पार्श्वनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ५५; पू० जै०, भाग २, लेखांक १८८८; बा० प्रा० जै०शि०, लेखांक ३०९ ९१०. पंचायतीमंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८०९ ९११. शीतलनाथ जी का मंदिर, कोटड़ा-बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २६ ९१२. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३५९ ९१३. शीतलनाथ जिनालय, बालोतरा: पू० जै०, भाग १, लेखांक ७३५ ९१४. चन्द्रप्रभ मंदिर, जालना: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १६३ (१५८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुत सा० हीराकेन भा० साल्ही मचकू भ्रातृव्य सा० नगराज पुत्र नर्बदादि कुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (९१५) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३७ वर्षे वैशाख सुदि ऊकेशवंशे भाटीआगोत्रे सा० साअर भार्या रांऊ पुत्र सं० वेला भा० चंपाई पुत्र सा० लाषा द्वि० भार्या जीविणि पुत्र सा० हर्षा भार्या देमाई पुत्र नगराज द्वि० भा० रंगादे पुत्र नाथादिपरिवारयुतेन हर्षाकेन भा० देमाई पुण्या० श्रीकुंथुनाथबिंबं का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरि प० श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (९१६) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ भौमे श्रीसोनीगोत्रे जागूसंताने सा० डूंगर पु० सा० किसा भा० रइराही पु० सा० आजाकेन भा० रमू पु० नातू-श्रीमल्लयुतेन आत्मपुण्यार्थं श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारापितं प्र० जिनोदयसूरिपट्टे श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः॥ (९१७) चतुर्विंशतिः ॥ ॐ ॥ संवत् १५३८ वर्षे जेठ सुदि २ मंगलवारे उपकेशज्ञातीय सोनीगोत्री स० तिणाया पुत्र सा० संसार चंद्र पुण्यार्थं श्रीचतुर्विंशति कारापितं । प्र। रुद्रपल्लीयगच्छे भट्टारक श्रीजिनदत्तसूरिपट्टे (?श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे) भ० श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः॥ । (९१८) सपरिकर-अनन्तनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५३८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० सो० दि० ऊकेशवंशे वलाही गोत्रे सा० राउल भा० सांपू पुत्र हर्ष । तत्पुत्र जीवा समरथ परिवारयुतेन श्रीअनंतनाथबिंबं का० प्रति० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे ।।श्रीः॥ (९१९) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ॐ ॥ सं० १५३८ वर्षे आ० सु० २ दिने ऊकेशवंशे कटारियागोत्रे सा० खीदा भा० खेतलदे पुत्र काजा हांसी जेता भा० हांसलदे पु० बरजा मनषणा (?) मेघा लछमादियुतेन श्रीविमलनाथबिंब का। प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (९२०) सुपार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३८.............वर्षे श्रीमालज्ञा० ढोरगोत्रे सा० साधा सुत सा० मोल्हा (भोला) भा० रूपी पुत्र सा० अपा भा० सा० वीरोपुण्यार्थं श्रीसुपासनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतर श्रीजिनतिलकसूरिपट्टे श्रीजिनराजसूरिभिः॥ श्री॥ ९१५. आदीश्वर मंदिर, आदीश्वरखड़की, राधनपुरः मुनि विशाल विजय- रा०प्र० ले० सं०, लेखांक ३०२ ९१६. सुपार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २२०० ९१७. लाला हीरालाल चुन्नीलाल देरासर, लखनऊः पू० जै०, भाग २, लेखांक १६२१ ९१८. शीतलनाथ मंदिर, पांजरापोल, अहमदाबादः परीख और शेलेट- जै० इ० इ० अ०, लेखांक ७०३ ९१९. सुमतिनाथ मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८१७ ९२०. गौडी पार्श्वनाथ जिनालय, देरापोल, बाबाजी पुरा, बड़ोदरा: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २१७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) १५९) For Personal & Private Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९२१) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ....................दे युतेन श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ __ (९२२) अजितनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५४० वर्षे वै० वदि ८ दिने ऊकेशवंशे बलाहीगोत्रे सा० जिंदा भार्या राजलदे पुत्र सा० हेमराजेन भार्या लखमाई प्रमुखपरिवारेण श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (९२३) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५४० वर्षे वै० व० ८ दिने ऊकेशवंशे भणशालीगोत्रे भ० सामल पुत्र भ० समरा भार्या पंचाई पुत्र भ० सदाकेन भ्रातृ महिपायुतेन भार्या सारंगदे पुत्र ईसर-जिणदासप्रमुखसहितेन मातृपुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंब का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (९२४) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १५४१ वर्षे वैशाख सुदि ४ दिने गुरौ श्रीमालज्ञातीय कोडीयागोत्रे सा० कि (खि) मधर पुत्र सा० सांडाकेन बांधव सा० श्रीपालयुतेन सा० आसाकस्य पुण्यार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (९२५) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५४२ वर्षे वैशाख सुदि १० गुरौ ऊकेशवंशे कर्मदीयागोत्रे सा० मेहा भ्रा० धासू पुत्र सा० कर्मसीहेन तद्भार्या करमादे तत्पुत्र सा० खीमा-देवा-सिवा-महिपालादियुतेन स्वश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं का० खरतरगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीजिन ॥ श्रीरस्तु॥ (९२६) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५४२ माघ वदि १ दिने ऊकेशवंशे गोष्ठिकगोत्रे सो० नयणा पु० सो० मंडलिक भार्या आ० हर्षायाः श्रीअजितनाथबिंबं कारितं स्वपुण्यार्थं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः। श्रीमंडप॥ (९२७) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५४२ वर्षे माघ सुदि १३ श्रीऊकेशवंशे बहुरागोत्रे सा० कुरा भार्या लहटू पुत्र सा० वछा सा० पासाकेन भार्या रूपाइयुतेन पितृव्य सा० सदापुण्यार्थं श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ गुरुपुष्ययोगे॥ ९२१. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११०८ ९२२. खेतरपाल का पाड़ा, पाटणः भो० पा०, लेखांक ९१७ ९२३. भीड़भंजन पार्श्वनाथ, मारफतीया, पाटणः भो० पा०, लेखांक ९१६ ९२४. शीतलनाथ जिनालय, उदयपुरः प्रा० ले० सं०, लेखांक ४७९ ९२५. कोठार, शत्रुजयः श० गि० द०, लेखांक २४८; बालावसही, शत्रुजयः श० वै०, लेखांक २३१ ९२६. देहरी क्रमांक १३/१, वृहत्ट्रंक, शत्रुजयः श० गि० द०, लेखांक ३०२; बालावसही, शत्रुजयः श० वै०, लेखांक २३० ९२७. पुराना जैनमंदिर, अमरावती: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक २६४ (१६०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९२८) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः ___ सं० १५४४ वर्षे माघसुदि १३ रवौ ऊपकेशवंशे कर्मदियागोत्रे सा० देवापु० सा० धीराभा० धीरादेपु० सा० सोनपालेन भा० पूतलिपु० सा० मेघराजयुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीशीतलनाथबिंबं का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टमंडन जिनहर्षसूरिसद्गुरुभिः॥ (९२९) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५४२ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने उप० कांकरिआ गोत्रे सा० नरदे भा० सांपू पु० धन्नाकेन । सा० धन्ना भा० म्यापुरि पुत्र हीरा सहितेन आत्मपुण्यार्थं श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (९३०) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५४३ वर्षे वैशाख वदि १० शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञा० मं० नागा भा० नागलदे सु० मं० षीमाकेन भा० चंपाई सु० सहिजा सहितेन भ्रातृ हेमाश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं का० महुकरगच्छे श्रीमुनिप्रभसूरिभिः प्र० साणंदग्रामे॥ . (९३१) पञ्चतीर्थीः सं० १५४३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ सोमे ऊकेशवंशे ध्रवगोत्रे कोगरिशाखायाम् शा० पुनपाल पुत्र शा० वछराज भा० चांपू पु० जीवराजेन भा० पद्माई पु० शा० रत्ना शा० हेमा शा० मंवा प्र० परिवारयुतेन पितृव्य शा० देवाश्रेयोर्थं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे .................। (९३२) सुकोशलप्रतिमाप्रस्तरलेख: ॥ श्री० ॥ ॐ ही अहँ नमः स्वाहा तित्थगरे भगवंते जगजीववियाणए तिलोयगुरु। जो उ करेइ पमाणं सो उ पमाणं सुयधराणं ॥ १॥ दट्ठण अन्नतित्थयपराभवं भवभयाउ निव्विन्नो। नेगम अडसहस्सेण परिवुडो कत्तिउ सेट्ठी ॥१॥ पव्वइउ मुणिसुव्वयसामिसगासंमि बारसंगविऊ। बारसूसम परियाउ सोहम्मे सुरवई जाउ॥ २॥ मुग्गिलगिरिंमि सुक्कोसलेण वग्घीकउवसग्गेण। पत्तं परमं ठाणं कित्तिधरेण वि वरं नाणं ॥ ३ ॥ सुक्कोसलमुणिसुचरियपवित्तसिहरम्मि मुग्गिलगिरिमि। संपइ चित्तउडख्खे चिरतरबहु वेइ (?) ए थुणियो॥१॥ तीर्थेशोऽर्हन् कीर्तिधरः सुकोशलमुनिस्तथा व्याघ्री। सर्वेऽपि संतु सुखदाः श्रीखरतरपुण्यनंदिगणे॥ कीर्त्तिधर सुकोशल || वाघण और अर्हन् मूर्ति. ऋषिमूर्ति ऋषि मूर्ति. मुनिका चित्र | . (इन चारों मूर्तियों के नीचे निम्न लेख है :-) ९२८. पद्मप्रभ जिनालय, कडाकोटडी, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५९७ ९२९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११०७ ९३०. शांतिनाथ जी देरासर, अहमदाबादः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १२४४ ९३१. बावन जिनालय, पेथापुर: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ६८६ ९३२. कीर्तिस्तम्भ-गोमुख कुंड के पास, जैन मन्दिर, चित्तौडगढ़ः प्रा० ले० सं०, लेखांक ४८७ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (१६१) For Personal & Private Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री० ॥ सं० १५४३ वर्षे शाके १४०८ प्र० मार्गशीर्ष वदि १३ तिथौ। गुरुदिने। श्रीचित्रकूट महादुर्गे। श्रीरायमल्लराजेंद्रविजयराज्ये। सकल श्रीसंघेन। सतीर्थ (?) श्रीसुकोशलर्षि प्रतिमा कारिता। प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (९३३) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५४४ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे साकरीयागोत्रे सा० सेल्हा भार्या बाई श्राविकया पुत्र सा० परवतसहितया स्वश्रेयोर्थं श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः। (९३४) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थी: ____ सं० १५४४ वर्षे माघ सुदि १३ रवौ ऊपकेशवंशे कर्मदियागोत्रे सा० देवा पु० सा० धीरा भा० धीरादे पु० सा० सोनपाल (ले) न भा० पुतलि पु० सा० मेघराजयुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीशीतलनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टमंडन श्रीजिनहर्षसूरिसद्गुरुभिः॥ (९३५) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः संवत् १५४५ वर्षे आषाढ़ सुदि १२ बुधे उपकेश सा० केल्हा पुत्र सोना भार्या सारु। पुत्र सा० कान्हा भार्या कूडी पु० होडा रणधीर भ्रातृ हीरा भार्या वानू पुत्र रामा मेता सहितेन श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ शुभं ॥ (९३६) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५४७ माघ सुदि १३ रवौ श्रीश्रीमाल षारडगोत्रे सा० साल्हा भा० सरसति पु० सा० कुरां भा० बडू पु० सा० हे मा भा० हांसी हर्षदे प्रमुखयुतेन श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (९३७) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५४७ वर्षे माघ सुदि १३ रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीय शिया भार्या हेली सुत दो० धाइंयाकेन भा० सलखू सु० दो दासां राणा कर्ण सा गांगा पौत्र कमलसीह भा० पोता डाहिया प्र० कुटुम्बयुतेन प्र० श्रीमधुकरीयखरतर श्रीमुनिप्रभसूरिभिः। श्रीशीतलबिंबं कारितं । (९३८) अजितनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५४८ वर्षे वैशाख मासे ऊकेशवंशे दोसीगोत्रे सा० कलू सा० उषा भार्या रूपाई पु० लषमीधरेण भार्या लीलादे सहितेन श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः श्रेयस्तां ॥ ९३३. नये दादा की ट्रॅक, शत्रुजयः श० वै०, लेखांक २३४ ९३४. जैन मंदिर, भ्रामराग्रामः अ० प्र० जै० ले० सं०, भाग ५, लेखांक १८० ९३५. आदिनाथ मन्दिर, कोटाः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १७१ ९३६. सीमंधर स्वामी देरासर, देवसानो पाडो, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११७४ ९३७. धर्मनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८४८; पू० जै०, भाग १, लेखांक ७६१ ९३८. चन्द्रप्रभ जिनालय, मथियान मुहल्ला, पू० जै०, भाग १, लेखांक २२० (१६२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९३९) नमिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५४८ वर्षे कार्तिक सुदि १२ दिने श्रीऊकेशवंशे रांकागोत्रे मांजउत्रशाखायां सा० सिंघा पुत्र सालिग भा० सामू पुत्र सा० करणाकेन भा० कुडिमदे कमलादेव्यादियुतेन श्रीनमिनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरयस्तत्पट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः । (९४० ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५४८ वर्षे ऊकेशवंशे भणशाली गोत्रे सा० काना भार्या कामलदे पुत्र भ० वदा त्रा० (भ्रा०) भ० राजाकेन भार्या कर्माई वसुपालसहितेन तेजा श्रेयसे श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः ॥ शुभं भवतु पू० (९४१ ) सपरिकर-सुमतिनाथ- पञ्चतीर्थीः ॥ ए संवत् १५४९ वर्षे वैशाख शुक्ल पंचम्यां प० ऊकेशवंशे भणसाली गोत्रे भ० सादा पुत्र भ० माला भार्या जेठीपुत्र भ० हरपति भ० सुरपतियुतेन भ० नरपतिकेन भार्या श्रीसोनाई पुत्र भ० सूरचंद्र भ० सोमचन्द्रयुतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्री श्रीश्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्टि [ष्ठि] तं श्रीरस्तु ॥ (९४२) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५४९ वर्षे वैशाखशुक्ल ५ ऊकेशवंशे भणसालीगोत्रे भ० सादा पुत्र भ० माला भा० श्रा० जेठी पु० भ० हरपति भ० सुरपतियुतेन भ० नरपतिकेन भा० श्रा० सोनाई पु० भ० सूरचन्द भ० सोमचन्द श्रीसुमतिनाथबिंबं का० श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनवर्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे श्रीश्रीश्रीजिनहर्षसूरिभिः प्र० ॥ (९४३) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थी : सं० १५४९ वर्षे वै० सु० ५ दिने ऊकेशवंशे भ० गोत्रे माला भा० श्रा० जेठी पुत्र भ० नरपतिकेन भार्या सोनाई पुण्यार्थं पुत्रं भ० सुरचंद - सोमचंदादिपरिवारयुतेन श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (९४४) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५४९ वर्षे वै० सु० ९ रवौ उसवाल बुहरा गोत्रे सहनण भा० नायकदे पुत्र गया भार्या जीवादे पुत्र नाथादि युतेन स्वपुण्यार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारापितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभि: धाड़ीवा । ज्येष्ठ वदि १ दिने ९३९. सुमतिनाथ मंदिर, रतलाम: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८५२; मालवांचल के जैन लेख, लेखांक ११६ ९४०. आदीश्वर जिनालय, आदीश्वर खड़की, राधनपुर: मुनि विशाल विजय - रा० प्र० ले० सं०, लेखांक ३११ ९४१. सीमंधर स्वामी का मंदिर, दोशीवाड़ा पोल, अहमदाबादः परीख और शैलेट जै० इ० इ० अ०, लेखांक ७५३ ९४२. सीमंधर स्वामी देरासर, देवसानो पाड़ो, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११५९ ९४३. पंचासरा पार्श्वनाथ का मंदिर, पाटणः भो० पा०, लेखांक ९५५ ९४४. शान्तिनाथ जिनालय, हनुमानगढ़: ना० बी०, लेखांक २५३२ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१६३) Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९४५) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५४९ वर्षे ज्येष्ठ वदि १ दिन ऊकेशवंशे साधुशाखा परीक्षगोत्रे प० बेला भार्या विमलादे पुत्र नोडाकेन भार्या हीरादे पुत्र वाघा ताल्ही अमरा पांचादि प० युतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (९४६) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५४९ वर्षे ज्येष्ठ वदि १ दिने ऊकेशवंशे सा० अमरा भा० कउतिगदेपुण्यार्थं सा० काजाकेन पु० महिराजकेन रामादिपरिवारयुतेन श्रीनमिनाथबिंबं का० प्र० श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (९४७ ) मूलनायक-पार्श्वनाथ: १ ॥६०॥ संवत् १५४९ वर्षे ज्येष्ठ वदि १ दिने गुरुवारे उपकेशवंशे वर्द्धमान-बोहराशाखायां दोसी गोत्रे सा० वीघू भार्या कश्मीरदे। २ ॥ पुत्र साह तेजसी भार्या श्रा० हासलदे तत्पुत्र सा० गजानंद भार्या .....................पुत्री श्रा० लक्ष्मी तस्या पुण्यार्थं सा० सिरा मोकल सा० ३ ॥ झांझादि सपरिकरै श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः - (९४८) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५४९ वर्षे ऊकेशवंशे सा० पोपा भा० सारु पु० सा० वडूया सुश्रावकेण भा० कपूराई पु० हदा अदा श्रीपाल परिवारसश्रीकेण श्रीसुमतिनाथबिंब का० स्वश्रेयसे प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (९४९) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः .........५० माह शुदि ११ ऊकेशवंशे गादहियागोत्रे स० राजल भार्या.............दे निमित्तं सं० सांगा साजण भा० मातृनिमित्तं श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (९५०) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५५१ वर्षे वैशाख वदि २ सोमे ऊकेशवंशे करमदीयागोत्रे मं० गणीया भार्या लाली पुत्र मं० सहिजा भा० सहिजलदे पुत्र मं० मणोरादिसहितेन स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहरिखसूरिपट्टे श्रीजिनप (? चं) द्र सूरिभिः। ९४५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १११५ ९४६. पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाडो, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११०१ ९४७. शान्तिनाथ जिनालय, (चिन्तामणि) बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११५६ ९४८. शान्तिनाथ जिनालय, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १२४८ ९४९. बालावसही, शुत्रंजयः श० वै०, लेखांक ३२२ ९५०. आदिनाथ जिनालय, भायखला, मुंबई: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक २५८ (१६४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९५१) शांतिनाथ - पञ्चतीर्थी: सं० १५५१ वर्षे वैशाख सुदि १३ ऊकेशवंशे बइताला गोत्रे सा० मुलु पुत्र साधा भा० पूनी सा० जयसिंहेन भा० जसमादे पु० जयता जोधादि परिवारयुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (९५२) मुनिसुव्रत - पञ्चतीर्थी: सं० १५५१ वर्षे वैशाख सुदि १३ दिने श्रीऊकेशवंशे संखवालगोत्रे सा० लाला भा० ललतादे पुत्र सा० भावडेन भा० जवणादे पुत्र रायपाल तेजा बेला लीला रामपाल भार्या आंछू पुत्र लोहंट प्रमुख सपरिवार तेन श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्री ३ जिनसमुद्रसूरिभिः ॥ (९५३) आदिनाथ-चतुर्विंशतिः सं० १५५१ वर्षे मा० सु० १३ गुरु उकेशवंशे सिंघाड़िया गोत्रे सा० चांपा भा० राऊं पु० सा० जोला भा० लहिकू पु० सा० पूंजा० सा० राजा पु० धना सा० कालू सा० काजा भा० कुतिगदे इत्यादि परिवृतेन सा० काजाकेन श्रीआदिनाथचतुर्विंशतिपट्ट का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीपूज्य श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (९५४) वैरोट्या-प्रतिमा संवत् १५५२ वर्षे वैशाख वदि १० दिने प्राग्वाटवंशे आगमगोत्रे सं० कोचर पुत्र सो० कीकेन भा० म पुत्र सो० बाघा भार्या बउलदे पु० सो० रयणायरेण भा० रत्नादे पुत्र सो० देवदाससहितेन श्रीवैराट्याप्रतिमा कारिता प्रतिष्ठापिता श्रीखरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः ॥ (९५५) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : संवत् १५५२ वर्षे माघ वदि १२ बुधे श्रीमालज्ञा० संघवी मोटा भा० कउतिगदे पुत्र सा० रांपसीभा० जीजी श्राविकया स्वपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (९५६ ) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५५२ वर्षे माघ वदि १२ बुधे श्रीमालज्ञा० सं० फगण० सं० सारंग पु० सं० पोचा भ्रातृ सं० भोटा भा० सं० कुतिगदेव्या पु० सं० दत्ता सं० जावडप्रमुखपरिवारयुतया स्वपुण्यार्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ ९५१. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १११९ ९५२. विमलनाथ जिनालय, बालुचरः पू० जै०, भाग १, लेखांक ४१ ९५३. चम्पापुरी तीर्थ: पू० जै०, भाग १, लेखांक १५४ ९५४. शांतिनाथ जी का देहरासर, वसावाड़ा, पाटणः भो० पा०, लेखांक ९७२ ९५५. महावीर जिनालय, गीपटी, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७०७ ९५६. अजितनाथ जिनालय, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७१९ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१६५ www.jalnelibrary.org Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९५७) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५५२ वर्षे माघ सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे परिक्ष (? ख) सं० परबत भा० मणकी पु० सु० तेजसिंहेन भार्या डाही भातृ प० हतादिपरिवारयुतेन श्रीविमलनाथबिंबं कारितं खरतरगच्छे जिनसमुद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं। (९५८ ) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५५२ वर्षे माघ सुदि १३ श्रीऊकेशवंशे बहुरागोत्रे सा० कुंरा भा० लटू पुत्र सा० वच्छा सा० पासाकेन भा० रूपाई युतेन पितृव्य सा० सदा पुण्यार्थं श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः गुरुपुष्य योगे रवियोगे। __ (९५९) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १५५३ वर्षे वैशाख वदि ११ शुक्रे ऊकेशवंशे सा० नरबद भार्या मानू पुत्र साह वदा सुश्रावकेण भार्या धनाई पुत्र कुंरपाल प्रमुखसहितेन श्रीवासुपूज्यबिंबं स्वश्रेयोर्थं कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगछनायक श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः। (९६०) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५५३ वर्षे फा० व० ३ श्रीभरदवगोत्रे । व्य० साह समरासन्ताने सा० साजण पुत्र सा० हरिराजेन भार्या हीरादे पुत्र देवकरण सरवण माला सहितेन स्वपुण्यार्थं आदिनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे भ० श्रीगुणसुन्दरसूरिभिः॥ (९६१) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५५३ वर्षे सिवनाग्राम वास्तव्य श्रीमालज्ञातीय वहकटा गोत्रे,सा० जयतकर्ण सुत सा० जिणदत्त पुत्र सा० सोनपाल सुश्रावकेण भा० गउराई लघु भ्रातृ रत्नपाल पृथ्वीमल्ल सश्रीकेण श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (९६२) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५५५ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने प्राग्वाटवंशे श्रे० कमा भा० अमरी पु० श्रे० हीराकेन भा० हीरादे पु० श्रे० रामा-भीमादिसहितेन श्रीअजितनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः। कडिग्रामे ॥ ९५७. शांतिनाथ जिनालय, कोट, मुम्बई: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक २६२ ९५८. पार्श्वनाथ मंदिर, अमरावती: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १७९ ९५९. श्वेताम्बर जैनमंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६९२ ९६०. विमलनाथ मंदिर, सवाईमाधोपुर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८७३ ९६१. नवघरे का मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली: पू० जै०, भाग १, लेखांक ४९३ ९६२. वीर जिनालय, रीजरोड, अहमदाबादः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९२८ (१६६), खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९६३) अभिनन्दन - पञ्चतीर्थी : सं० १५५५ वर्षे वैशाख सुदि ३ शनौ भा० माला पु० भ० सुरपतिकेन भार्या पद्माईपुण्यार्थं पुत्र थावर - श्रीचंद-सकलचंद पवायण थावरभा - कपूरदे पुत्र सहसकिरण श्रीचंदभा - सुहवदे सकलचंद भार्या सरूपदे इत्यादि परिवारयुतेन श्रीअभिनंदनबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्री जिनसुंदरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (९६४) सुमतिनाथ -पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५५५ वर्षे वैशाख सुदि ३ शनौ ऊकेशवंशे भ० माला भार्या जेठू पुत्र भ० नपाकेन भार्या सोनाई पुत्र सूरचन्द सोमदत्त इत्यादिपरिवारयुतेन पुत्रिका श्री० लाडिक पुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (९६५) अभिनन्दन - पञ्चतीर्थी : संवत् १५५५ वर्षे वैशाख मासे शुदि ७ बुधवासरे उसवालज्ञातीय लाभूगोत्रे सा० हांसा भार्या हांसलदे पु० सा० कुशल भा० पूरिगदे पुत्र सा० ठाकुरसी श्रावकेण परिवारपरिवृतेन श्रीअभिनन्दनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः ॥ श्रेयोस्तु ॥ (९६६ ) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५५५ वर्षे कार्तिकमासे श्रीमालज्ञाती० बहकडागोत्रे चै० ठकरा पुत्र चोपरीतेका भार्या सेपलदे पुत्र चै० जोगा राजा चै० अमरी जीवा श्रीमघादिभिः स्वमातुः श्रेयोर्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ ९६७) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५५५ वर्षे माह सुदि १० दिने शनिवारे उपकेशवंशे सरवालगोत्रे सा० गुणदत्त भार्या भंगादे सा० धणदत्त भार्या धनश्री पुत्र सा० हीरादे परिवारयुतेन श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः । ९६८ ) संभवनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५५५ वर्षे फागुण सुदि २ बुधे सींधुडगोत्रे छघरी मही पाल भा० गोगवदे सुत वस्तुपाल भ्राता पोमदत्त वस्तुपाल भा० वल्हादे पौत्र त्रैलोक्यचंद श्रेयोर्थं श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे भ० श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः ॥ लेखांक ९९५ ९६३. पंचासरा पार्श्वनाथ का मंदिर, पाटणः भो० पा०, ९६४. खरतरगच्छीय आदिनाथ मंदिर, कोटा: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८८० ९६५. महावीर मंदिर, सांगानेर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८८१ ९६६. विजयगच्छीय मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८८२ ९६७. धर्मनाथ जिनालय, हीरावाड़ी, नागौर : पू० जै०, भाग २, लेखांक १२९८ ९६८. श्रीमालों का मंदिर, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८८४; पू० जै०, भाग २, लेखांक १२२४ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१६७) Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९६९) सपरिकर-सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ए संवत् १५५६ वर्षे वैशाख वदि २ बुधे श्रीमालवंशे षतिमा गोत्रे श्रीआशापल्या वास्तव्य सं० षधदा सुत सं० नाथा कपूरी पुत्र सं० आसधि भार्या अमरादे पुत्ररत्न संघवी माणिक सुश्रावकेन आत्मश्रेयसे श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं । प्रतिष्टि [ष्ठि] तं च श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनहंससूरिभिः। पूज्यमानं च चिरं समस्तपरिवारश्रेयस्करमस्तु । श्रीः। (९७०) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५५६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ६ रवौ दूगड़ गोत्रे सा० काला भार्या रूपादे तत्पुत्र सा० रावण भार्या रत्नादे पुत्र राजा पारस कुमरपाल महीपाल युतेन स्वपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं श्रीरुद्रपल्लीय गच्छे प्रतिष्ठितं सर्व्वसूरिभ्यः। (९७१) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५५६ वर्षे जेठ सुदि ६ रवौ उपकेशन्यातीय श्रीनाहर गोत्रे सा० सादा संताने सा० बाला भार्या पाल्ही पुत्र सा० दसरथ भार्या पुत्र सहितेन श्रीशीतलनाथबिंब कारितं प्रति० श्रीरुंद्रपल्लीयगच्छे भ० श्रीदेवसुंदरसूरिभिः॥ श्री॥ (९७२) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः .. संवत् १५५६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दिने ऊकेशवंशे दोसी सा० भादा पुत्र सा० धणदत्त तथा ठकण पुत्र सा० वच्छराज प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीशीतलनाथबिंबं मातृ अपू पुण्यार्थं कारितं प्र० खरतर श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (९७३) सुविधिनाथः ॥ ८॥ संवत् १५५६ वर्षे आषाढ़ वदि २ दिने श्रेष्ठि कल्हड़ आढक प्रमुख ४ पुत्रैः (? मातृ) वर्जू स्वात्मश्रेयोर्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं का० प्र० श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः खरतरगच्छे। (९७४) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५५६ वर्षे माघ वदि ७ दिने दोसीगोत्रे सा० मांडण भार्या निपुनी पुत्र सा० लखमण रादा वेलाकेन कारितं श्रीआदिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (९७५) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५५६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे सेठि गोत्रे श्रे० सीधरेण भा० घिरी सुलूणी ९६९. संभवनाथ जी का मंदिर, कालूशाह की पोल, अहमदाबादः परीख और शैलेट-जै० इ० इ० अ०, लेखांक ७७७ ९७०. पार्श्वनाथ जिनालय, कोचरों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६२६ ९७१. शांतिनाथ जिनालय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११२६ ९७२. शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर, आसानियों का चौक, बीकानेर: पू० जै०, भाग २, लेखांक १३३५ ९७३. शान्तिनाथ मंदिर, भोपालगढ़ (बड़लू): ९७४. महावीर मंदिर, सांगानेर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८८८ ९७५. रायबुधसिंह दुधेडिया का घर देरासर, अजीमगंजः पू० जै०, भाग १, लेखांक २९ (१६८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पु० थावरसिंह । जटादि युतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपदे (पट्टे) श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (९७६) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५५७ वर्षे वैशाख शु० ४ गुरौ पहाणेचागोत्रे सा० वडुआ भा० वडुआदे पु० सा० सामंत भार्या सुहागदे पु० लाखा भा० बहुरी लाखा पु० देवा नगा प्रमु० परिवारयुतेन आदिनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं। (९७७) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः । सं० १५५७ वर्षे वैशाख सुदि ४ भोमे ओ० ज्ञा० सा० उदयसी सुत मांडा सा० देऊ सुत ३ वाहड १ कुदा २ मेहामांडा ३ भा० देऊतिस्ति श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे भ० श्रीजिनहंससूरिभिः॥ (९७८) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५५७ वर्षे माह सुदि १० शनौ ऊकेशवंशे श्रेष्ठि गोत्रे सा० सहसा भा० जीऊ पुत्र सा० चाहड़ेन भा० चांपलदे पु० साधाराणा राघव रायमल्ल प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीचंद्रप्रभबिंबं कारितं स्वश्रेयो) प्रति० श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ (९७९) चन्द्रप्रभः संवत् १५५८ वर्षे वै० वदि १३ सोमे चंडालीयागोत्रे म० वाधा भार्या राजू पुत्र बना भार्या श्रीवती पुत्र सा० दीझा० प्रमुखपरिवार-स्वपुण्यार्थं बिंबं कारितं श्रीचन्द्रप्रभबिंबं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः प्रतिष्ठितं। (९८०) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५५८ वर्षे वैशाख सुदि ५ गुरौ श्रीऊकेशवंशे कांकरीयागोत्रे सा० लूंभा भा० गंगादे पुत्र सा० हर्षा भार्या रोहिणि पुत्र। सा० केला वेला विसल परिवारयुतेन श्रीअजितनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ ___ (९८१) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५५८ वर्षे माघ सुदि ५ गुरौ ऊकेशवंशे सा० देपा भा० हापू पुत्र सा० समधरेण भार्या कीनाई पु० रीडा प्रमुखपरिवारसहितेन भ्रातृ भाना पुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ श्री॥ ९७६. पार्श्वनाथ मंदिर, मुंडावाः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८९४ ९७७. संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ८१२ ९७८. शान्तिनाथ जिनालय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११२८ ९७९. कल्याणपुरा मंदिर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १९० ९८०. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३६२ ९८१. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३६१ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह :) १६९) For Personal & Private Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९८२) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः संवत् १५५८ वर्षे माघ सुदि १२ गुरौ ओकेशज्ञातीय भारडा सुत मेहा भार्या पदमाई श्रेयसे भणसाली पताकेन श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः। (९८३) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥६० ॥ सं० १५५९ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ५ गुरौ ऊकेशवंशे भणशाली गोत्रे सं० भोजा भा० कन्हाई तत्पुत्र मं० श्रीतेजसिंहेन भा० लीलादेव्यादि परिवारयुतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (९८४) अभिनन्दन-पञ्चतीर्थी: संवत् १५५९ वर्षे माह सुदि १० दिने शनौ ऊकेशवंशे गणधरगोत्रे सा० देवा पुत्र सा० हर्ष श्रावकेण भार्या हीरादे पुत्र उदादियुतेन श्रीअभिनन्दनबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ (९८५) सुविधिनाथः संवत् १५५९ वर्षे माह सुदि १० श्रीमालवंशे वहकटा गोत्रे सा० तेजा पुत्र सा० जोगाकेन पुत्रादियुतेन श्रा० अमरसहितेन श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ श्रेयसे॥ . (९८६) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५५९ माह सुदि १० दिने शनिवारे उपकेशवंशे शंखवालगोत्रे। सा० गुणदत्त भार्या गङ्गादे पुत्र सा० धणदत्त भार्या धनश्री पुत्र सा० हीरादिपरिवारयुतेन शीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः कल्याणमस्तु ॥ श्रीः । (९८७) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५५९ माघ सुदि ११ ककमवह माहाराज सु० मु० मोखराज नातम पुण्यार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंब का० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः (९८८) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५६० वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने श्रीउपकेशवंशे कूकड़ा चोपड़ा गोत्रे सं० लाखण भा० लखमादे पु० सं० कुंरपाल सुश्रावकेण भा० कोडमदे पु० सा० भोजराजादि परिवारयुतेन श्रीधर्मनाथबिंब कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ९८२. पद्मप्रभ जिनालय, अजीमगंज, मुर्शिदबादः पू० जै०, भाग १, लेखांक १० ९८३. शान्तिनाथ जिनालय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११२९ ९८४. शीतलनाथ जी का मंदिर, कोटड़ा-बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ३१ ९८५. सीमंधर स्वामी का मंदिर, रोशन मुहल्ला, आगरा: पू० जै०, भाग २, लेखांक १४६३ ९८६. बड़ा मंदिर, नागौरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९०७ ९८७. पार्श्वनाथ जिनालय, नौहर: ना० बी०, लेखांक २४८९ ९८८. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७५२ (१७०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९८९) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५६० वर्षे वैशाख सुदि १० श्रीमालवंशे कुंकुमलोल गोत्रे मं० शवा भा० हर्षू पुत्र मं० जीवा भार्यया तेजी श्राविकया श्रीसुविधिनाथबिंबं का० स्वपुण्यार्थं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः । (९९०) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५६० वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने श्रीमालवंशे सिंधुड़ गोत्रे व० अभयराज भार्या आमलदे पुत्र चउ० ठकुरसीहेन भा० ठकुरादे पुत्र व० भारमल्ल प्रमुखपरिवृतेन श्री आदिजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीपूज्य श्रीजिनहंससूरिभिः । ( ९९१ ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: 1 ॥ संवत् १५६० ज्येष्ठ वदि ४ दिने । ऊकेशवंशे बोहित्थरा गोत्रे । मं० देवरा भार्या लखमादे पुत्र मं० भऊणाकेन भार्या भरमादे । गौरादे प्रमुखपरिवारयुतेन । श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं । प्रति० । श्रीखरतरगच्छे श्री जिनसमुद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनहंससूरिगुरुभिः 1 (९९२) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी : ॐ संवत् १५६० वर्षे श्रीश्रीमालवंशे आववाडीयागोत्रे मं० भरु पु० भोला भार्या मानू पु० सहजाकेन स्वपितृश्रेयोर्थं श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः । (९९३) अभिनन्दन - पञ्चतीर्थी: संवत् १५६१ वर्षे दोसी गोत्रे ऊकेशवंशे स० साल्हा पुत्र आंबा भार्या ऊमादे पु० हीराकेन भार्या • हीरादे पुत्र तोल्हा ऊदादि परिवारयुतेन श्रीअभिनंदनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः पट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः श्रेयस्तु ॥ पूजकस्य ॥ ज्येष्ठ वदि ४ दिने प्रतिष्ठितं बिंबं ॥ (१९९४) मुनिसुव्रत - पञ्चतीर्थी : संवत् १५६१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ९ दिने श्रीमालवंशे फोफलियागोत्रे सं० लाषा भार्या लीलादे पु० सं० जेसिंघ भा० षीमाईनाम्न्या श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ (९९५) शिलालेख - प्रशस्तिः (१ ) ॥ संवत् १५६१ वर्षे आषाढ़ (? वैसाख ) सुदि ६ दिने वार रवि । श्री बीकानेर मध्ये ॥ (२) महाराजा राव श्री श्री श्री बीकाजी विजय राज्ये देहरौ करायौ श्री संघ ॥ (३) सं० १३८० वर्षे श्रीजिनकुशलसूरि प्रतिष्ठितम् श्रीमंडोवर मूलनायकस्य । ९८९. महावीर स्वामी का मंदिर, डागों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५२८ ९९०. जैनमंदिर, चेलपुरी, दिल्ली : पू० जै०, भाग १, लेखांक ४४७ ९९१. सुमतिनाथ - भांडासर जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी० लेखांक ११६८ ९९२. शांतिनाथ मंदिर, रतलाम: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९१२ ९९३. पार्श्वनाथ जिनालय, कोचरों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५९७ ९९४. सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, मातर: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४८४ ९९५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १; पू० जै०, भाग २, लेखांक १३५० खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only १७१ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्री श्री आदिनाथचतुर्विंशति पट्टस्यः । नवलक्षक रासल पुत्र नवलक्षक (५) राजपाल पुत्र से नवलक्षक सा० नेमिचंद्र सुश्रावकेण साह० वीरम (६) दुसाऊ देवचंद्र कान्हड़ महं० ॥ ॥ सं० १५९१ वर्षे श्री श्री (७) श्री चउवीसठइजी रो परघो महं बच्छावते भरायौ छै ॥ ( ९९६) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५६२ वर्षे वैसाख सु० १० दिने श्रीमालज्ञातीय गोत्रे मौठिप्पा सा० रणमल पुत्र सा० दीपचंद भार्या जीवादे कारितं । श्रीखरतरगच्छे भट्टारिक श्रीजिनहंससूरिगुरुभ्यो नमः ॥ प्रतिमा श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं ॥ (९९७) पार्श्वनाथ पञ्चतीर्थी: सं० १५६२ वर्षे वैशाख सु० १० रवौ श्रीमाल मउवीया गोत्रे सा० परसंताने सा० पहराज पुत्र सा० सरेण भा० तिलकू पु० त्रिपुरदास युतेन पार्श्वनाथबिंबं स्वपुण्यार्थं कारितं । प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनतिलकसूरि प० श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीभिः ॥ (९९८ ) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : संवत् १५६२ वर्षे माघ सुदि १५ दिने ऊकेशवंशे घोरवाडगोत्रे सा० वाघा भा० वाहिणदे पुत्र सा० रंगाकेन भा० रत्नादे पुत्र सा० माहा घेता प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः (९९९) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५६३ वर्षे वैशाख वदि ११ शुक्रे अणहिलपत्तनवास्तव्य भ० नरपति भा० पद्माईपुत्र थावर श्रीचद्र सकल पंचायण थावर पुत्र सहसकिरण श्रीचंद्रपुत्र सवचंद्र - देवचंदपरिवारयुतेन भ्रातृथावर निमित्तं श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ ( १००० ) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५६३ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने श्रीमालज्ञातीय भांडीया गोत्री (त्रे) सा० अजिता पुत्र सा० लाख भार्या अटी सुश्राविकया श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं स्वपुण्यार्थं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टालंकार-श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ कल्याणं भूयात् महासुदि १५ दिने । ( १००१) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी : सं० १५६३ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने श्रीमालज्ञातीय भांडिया गोत्रीय सा० अजिता पुत्री सा० लाखा ९९६. गांव का मंदिर, पावापुरी तीर्थ: पू० जै०, भाग १, लेखांक १८७ ९९७. रामचन्द्र जी का मंदिर, वाराणसी: पू० जै०, भाग १, लेखांक ४१४ ९९८. पार्श्वनाथ जिनालय, बेगम बाजार, हैदराबाद: पू० जै०, भाग २, लेखांक २०४६ ९९९. अष्टापद जी का मंदिर, पाटणः भो० पा०, लेखांक १०२९ १०००. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पायधुनी, मुम्बई: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक २७६ १००१. जैन मंदिर, पाटलिपुत्र (पटना) : पू० जै०, भाग १, लेखांक २८९ (१७२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भार्या आढ़ी सुश्राविकया श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं स्वपुण्यार्थं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनहंससूरिभिः कल्याणं भूयात् माह सुदि १ ॥ दिने ॥ (१००२) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५६३ वर्षे वैशाखशु० ६ दिने ऊकेशवंशे भंडारीगोत्रे मं० भोजापुत्र मं० आसापुत्र मं० मूधराज भा० कस्तुराई पुत्र मं० लटकणसुश्रावकेण पुत्रपौत्रसपरिवारेण स्वभार्याश्रा० नाकूश्रेयोऽर्थं श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ (१००३ ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५६३ वर्षे पौष वदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे श्रीभणशालीगोत्रे भ० दसरथ भा० जीवणि पुत्र भ० सोनपाल भा० मनाइ श्राविकया पुत्र भ० जयवंत भ० श्रीवंत भ० रणधीर भ० जेठा - नरपतिप्रमुखपुत्रपौत्रादिपरिवारसहितया स्वपुण्यार्थं श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ (१००४) ऋषभदेव - पञ्चतीर्थी : ॥ ६० ॥ सं० १५६३ वर्षे माघ सुदि १५ दिने ऊकेशवंशे साहूशाखा गोत्रे सा० सारंग पुत्र सा० न्न भार्या धांधलदे पुत्र सा० हर्षा सुश्रावकेण भा० सोहागदे पुत्र सा० नानिग सा० राजादि युतेन श्रीॠषभबिंबं कारितं । प्रतिष्ठितं । श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरि पट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ श्री ॥ (१००५) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५६३ वर्षे माह सुदि १५ दिने श्रीऊकेशवंशे संखवालेचागोत्रे सा० माला भार्या वीझू पुत्र सा० गांग सुश्रावकेण भार्या भावलदे पुत्र सा० पासवीर सहसवीर भार्या जयतू पुत्र वीरम प्रमुखसहितेन श्रीसुविधिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः प्रतिष्ठितं । श्री । शुभं भवतु ॥ श्री ॥ (१००६) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५६३ वर्षे माह सुदि १५ दिने चोपड़ा गोत्रे सं० तोला भा० वील्हू नाम्ना पुत्र रत्ना पासा वस्ता श्रीवंत सहितेन स्वश्रेयोर्थं श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः । (१००७) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थीः सं० १५६३ वर्षे माघ सुदि १५ दिने ऊकेशवंशे साउसखा गोत्रे सा० सींहा पुत्र सा० चांपाकेन भार्या १००२. शान्तिनाथ जिनालय, माणेकचौक, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ९९१ १००३. महालक्ष्मी का पाड़ा, पाटणः भो० पा०, लेखांक १०२५ १००४. संभवनाथ जिनालय, आँचलियों का वास, देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२२१ १००५. कुन्थुनाथ मंदिर, जोधपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १८९ १००६. चन्द्रप्रभ जिनालय, कालू: ना० बी०, लेखांक २५१२ १००७. ऋषभदेव मंदिरस्थ पार्श्वनाथ जिनालयः, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५०४ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१७३) Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चांपलदे पुत्र सा० वरसिंह सा० जयता पौत्र रायपाल जाठा पोपा लींबा लालिग प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनहंससूरीसरा ॥ श्रीरस्तुः ॥ (१००८) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी: चांपलदे ॥ संवत् १५६३ वर्षे माह सु० १५ दिने श्रीऊकेश वे (वं ) शे चोपड़ा गोत्रे को० चउहथ भा० पुत्र को० वच्छु भा० वारु तारु वारु पुत्र को० नींबा सुश्रावकेण भा० नवरंगदे पु० झांझण बाघा परिवारसहितेन श्रीश्रेयांसनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ श्रेयोसु (? स्तु) ॥ श्री ॥ (१००९) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५६३ वर्षे फागुण सुदि २ रवौ ऊकेशवंशे बूचडागोत्रे कोठारी तोला भार्या माणिकदे पुत्र सा० मेघा भा० मेलादे पुत्र को० साल्हाकेन भा० सिरियादे सरुपदे युतेन स्वश्रेयोर्थं श्री श्री श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ श्रीः ॥ ( १०१० ) सपरिकर - चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी : ॥ ए सं० १५६३ वर्षे ऊकेशवंशे ढींक गोत्रे सा० धीरा सुत सा० माला भार्यया गउरदे सुश्राविकया पुत्र सा० हापा सा० हेमा सा० आसा० सा० पांचा पौत्र हर्षा सहितया निजपुण्यार्थं श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ श्रीः ॥ ( १०११) श्रेयासंनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५६४ वर्षे वैशाख वदि ८ शनौ उपकेशज्ञा० छा० गोत्रे जूठिल वं० मं० निणा भा० नामलदे पु० मं० सीहा भा० सूरमदे पुत्र मं० समधर भा० सक्तादे पुत्र सदारंग कीका युते पुण्यार्थं श्रीश्रेयासंनाथबिंबं का० श्रीख० गच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनमे .. ..सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (१०१२) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५६४ वर्षे वैशाख सुदि ८ श्री श्रीमालज्ञातौ घेउरियागोत्रे सा० देपा पुत्र सा० महिया पुत्र शाह करणार्या श्राविका पूरी पुत्र सा० जीजा भार्यया सा० मेघा पुत्रिकया देवगुरुभक्तया रत्नाई सुश्राविकया स्वभर्तृश्रेयार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं । प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ (१०१३) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५६४ वैशाख सुदि ८ श्री श्रीमालज्ञातौ घेउरियागोत्रे सा० देपा पुत्र सा० महिया पुत्र सा १००८. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७५६ १००९. धर्मनाथ मंदिर, खजवानाः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९१९ १०१०.संभवनाथ मंदिर, कालूशाहपोल, अहमदाबादः परीख और शैलेट-जै० इ० इ० अ०, लेखांक ८०० १०११. आदिनाथ जिनालय, जैसलमेरः, पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४०८ १०१२. पार्श्वनाथ मंदिर, अमरावती : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १९१ १०१३. पुरातन जैन मंदिर, अमरावती: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक २७८ (१७४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करणा भा० श्राविका कस्तूरी पुत्र सा जीजा भार्यया सा० मेघा पुत्रिकया देवगुरुभक्तिकया रत्नाई सुश्रावकिया स्वभर्तृश्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे जिनहंससूरिभिः । __ (१०१४) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५६४ वर्षे ज्येष्ठ वदि ८ शनौ उपकेश बोहड़ वर्धमान गौत्रे सा० शिखरा भा० वीरणि पुत्र सा० सोमदत्त भा० सिंगारदे पुत्र भा० सुरताणेन भा० सुरताणदे परिवारयुतेन श्रेयोर्थं श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः (१०१५) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५६४ वर्षे ज्येष्ठ वदि ८ शनौ ऊकेशवंशे दोसी वोहडगोत्रे सा० सादूल पुत्र सा० सदयवच्छ भा० वर्जू पुण्यार्थं पुत्र सा० ऊमा सा० टालाभ्यां ऊमा पुत्र शिवराज प्रमुखसपरिवाराभ्यां श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ शुभंभवतु ॥ (१०१६) पादुका ॥ संवत् १५६४ वर्षे फाल्गुण सुदि १२ दिने श्रीवीरमपुरनगरे श्रीखरतरगच्छे श्रीसागरचन्द्रसूरि शिष्य श्रीसंसा..................गणिनां पादुका कारिता श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं श्रीजिनहंससूरिभिः॥ श्री॥शुभंभवतु ॥ __ (१०१७) सपरिकर-मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ॥ ए संवत् १५६६ वर्षे वैशाख मासे प्राग्वंशे जिनरक्षत गोत्रे सो व्यातर भा० गोमति पुत्र सो० नरपालकेन पुत्र लाखा-वर्धनादि परिवृतेन श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं श्रेयोर्थं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ (१०१८) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५६६ वर्षे ज्येष्ठ शुक्ल पंचम्यां। श्रीमालान्वये महतागोत्रे सा० हाल्हा तस्य भार्या हीरा तयोः पुत्र । सकतन साध्वेति । तस्य भार्या । तेनेदं धर्मनाथबिंबं कारापितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं। (१०१९) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५६६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ७ श्रीमालज्ञातीय सिंधुड गोत्रे सा० घोल्हरण पु० सा० छेयतन श्रीश्रेयांसनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। १०१४.अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद १०१५.माणिकसागर जी का मंदिर, कोटा: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९२० १०१६.भण्डारस्थ पादुका, शान्तिनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ६१ १०१७.आदीश्वर मंदिर, राजामेहता की पोल, अहमदाबादः परीख और शैलेट- जै० इ० इ० अ०, लेखांक ८११ १०१८.माणिकसागर जी का मंदिर, कोटाः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९२६ १०१९.चीरेखाने का मंदिर, दिल्ली: पू० जै०, भाग १, लेखांक ५२४, (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) (१७५) For Personal & Private Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२० ) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५६६ वर्षे ज्येष्ठ शुक्ल नवम्यां श्रीमालवंशे महता गोत्रे सा० हाल्हा तस्य पुत्र सा० तकतनेनेदं पार्श्वनाथबिंबं कारितं खरतरगच्छे श्रीजिनदत्त (?) सूरि अनुक्रमे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ ( १०२१) संभवनाथ पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५६६ वर्षे आषाढ़ सुदि ३ श्रीश्रीमालवंशे चन्डालियागोत्रे सा० जोल्हा भार्या गोरी पुत्र सा० देगू सुश्रावकेण भार्या नाथी पुत्र सा० भूपति भार्या खेमाई पुत्र गोरा भयरव प्रमुखपरिवारसश्रीकेण श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनहंससूरिभिः । (१०२२) मुनिसुव्रत- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५६६ वर्षे आषाढ़ सुदि ३ श्रीश्रीमालवंशे चन्डालियागोत्रे सा । जेल्हा भार्या गोरी पुत्र सा०. खेमा सुश्रावकेण भार्या भाऊ पुत्र सा० हेमा सा० तिलोगचन्द साधारण अमीपाल कुलचन्द प्रमुखपरिवारस श्रीकेण श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छेश श्रीजिनहंससूरिभिः । (१०२३) अजितनाथ - चतुर्विंशतिः संवत् १५६६ वर्षे फागुण सुदि ३ सोमवारे ऊकेशवंशे बोहित्थरा गोत्रे श्रीविक्रमनगरे मं० वच्छा भार्या वील्हादे पुत्र मं० रत्नाकेन भार्या रत्नादे हर्षू युतेन श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ छः॥ ( १०२४) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५६७ वैशाख सुदि १० ऊकेशवंशे नाहटागोत्रे सा० हापा भार्या साहणदे सुत सा० झाझणपरिवारसश्रीकेण निजपुण्यार्थं श्रीशीतलनाथबिंबं कारितः प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः पूजमाना चिरंनंदतु । ( १०२५ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५६७ वर्षे वैशाख सुदि १० ऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा० महणा भार्या मेलादे पुत्र स० धन्नाख्येन सं० सांगणादि पुत्रपरिवारपरिवृतेन श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ जैसलमेर वास्तव्य ॥ १०२०. जैन मंदिर, पटना: पू० जै०, भाग १, लेखांक २९० १०२१. शान्तिनाथ मंदिर, पापड़दाः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९२८ १०२२.खरतरगच्छीय आदिनाथ मंदिर, कोटा: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९२७ १०२३. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक ४ १०२४.मुनिसुव्रत का मंदिर, आसोतरा, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ९ १०२५. विमलनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४४३ (१७६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : For Personal & Private Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२६) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थी: स० १५६७ वष आषाढ़ सुदि ५ बुधे गोठी मातृ सा०.......................तत्पुत्र रायमल्ल भा० स० वीरा धी..........................पु० सिरोहत इत्यादि परिवारयुतेन श्रीसुविधिनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः (१०२७) सुविधिनाथः सं० १५६७ वर्षे श्री माह सुदि ५ बुधे गोठि गोत्रे सा०...................तत्पुत्र पहराज तत्पुत्र राठा.................त्यादि परिवारयुतेन सुविधिनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (१०२८) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५६७ वर्षे माघ सु० ५ दिने श्रीमालज्ञातीय धांधीया गोत्रे सा० दोदा भार्या संपूरी पुत्र सा० उदयराज भा० टीलाभ्यां श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं वृद्धभ्रातृ सा० डालण पुण्यार्थं प्रतिष्ठितं श्रीलघुखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। वैशाख सु० १० (१०२९) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५६८ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे बुहरा गोत्रे सा० भारमल्ल भा० भोजलदे भा० वारिणि पुत्र सा० तोला पु० सा० अमरा सुश्रावकेण भा० सारू पु० सा० महिराज सा० मेरा सा० पासा प्रमुख परिवारसहितेन श्रीवासुपूज्यबिंबं स्वश्रेयोर्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छेश श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ श्रीशुभं भवतु ॥ (१०३०) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५६८ वर्षे मागशर सुदि ७ श्रीऊकेशवंशे साधुशाखायां शा देल्हा भार्या देल्हणदे सुत शा कडुआकेन भ्रातृ सिंघा शा० महिराज शा प्रथमा भ्रातृव्य जागापरिवारयुतेन स्व श्रेयो) श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छाधिराज-श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रवरागमैः॥ (१०३१) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः सं० १५६८ वर्षे माह सुदि २ दिने ऊकेशवंशे नाहटा गोत्रे सा० राजा भा० अपू पु० सा० षीमा भार्या रत्नू पु० श्रीपाल-नाथूभ्यां मातृपुण्यार्थं श्रीचंद्रप्रभबिंब का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ (१०३२) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५६८ वर्षे माह सुदि ४ दिने ऊकेशवंशे नाहटा गोत्रे सा० राजा भा० अपू पु० सा० षीमा भा० रत्नू पु० श्रीपाल-नाथूभ्यां मातृपुण्यार्थं श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः १०२६.संभवनाथ जिनालय, अजमेर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९३५ १०२७.संभवनाथ जिनालय, अजमेरः पू० जै०, भाग १, लेखांक ५६७ १०२८.कुन्थुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी० , लेखांक १६९४ १०२९.पार्श्वनाथ जिनालय, लोद्रवा, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५५० १०३०.बावन जिनालय, पेथापुर: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७०७ १०३१.नवघरे का मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली: पू० जै०, भाग १, लेखांक ४९९ १०३२.अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (१७७) For Personal & Private Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०३३) नमिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५६८ वर्षे मा० सुदि ४ दिने ऊकेशवंशे कांकरिया गोत्रे सा० सूरा पुत्र सा० मोका भार्या तारादे पुत्र राउल भार्या रंगादे पुत्र हमीरादि परिवारसहितेन श्रीनमिनाथबिंबं कारपितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः। (१०३४) नमिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५६८ वर्षे माह सु० ४ दिने ऊकेशवंशे कांकरियागोत्रे सा० रुमा पुत्र सा० मूका भा० तारादे पुत्र राउल भा० रगीदे पुत्र हमीरादिपरिवारसहितेन श्रीनमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ (१०३५) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५६८ वर्षे माह सु० ५ दिने ऊकेशवंशे साहुसाखगोत्रे सा० समउरा भार्या ललतादे पुत्र सा० सोना भार्या सोनलदे भ्रातृ सोना युत पुत्र मांडण भार्या सोमलदे पुत्र हरखादिपरिवारसहितेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ श्रीः ॥ (१०३६) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५६८ वर्षे माह सुदि ५ गुरौ उपकेशज्ञातीय सा० भावड भार्या जांजणदे पु० सा० पदा भा पदमदे परिवारयुतेन शीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ ( १०३७) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५६८ वर्षे माघ सुदि ५ दिने श्रीमालवंशे भांडियागोत्रे सा० साल्हा पुत्र सा० भरहा सुत सा० नरपाल भार्या नामलदे स्वपुण्यार्थं श्री श्री श्रेयांसबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं ॥ श्रीजिनहंससूरिभिः खरतरगच्छे ॥ (१०३८) ह्रींकार - यंत्रम् (१) श्रीधरणेन्द्राय नमः भ० श्रीरत्नप्रभसूरयः नाभिः राजा पेरावण (२) गोमुख यक्षः ॥ गौतम स्वामी ॥ जिन पादुका ॥ दापि दक्षणावर्त्त (३) पेरावण श्रीपद्मावत्ये नमः श्रीसर्वानन्दसूरिः॥ मरुदेवीः॥ श्रीरुद्रपल्लीय गच्छे उ० श्रीआणंदसुन्दर शि० उ० चारित्रराजेन (४) वा० श्रीदेवरत्न ॥ चक्रेश्वरी निधान पट्टः क्षेत्रपाल : वैरुट्या । सं० १५६९ वर्षे श्राव सु० ५ दिने प्र० श्रीविनयराजसूरिभिः । १०३३. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७७४ १०३४. शीतलनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३९७ १०३५. शान्तिनाथ मंदिर, मेड़तासिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९३९ १०३६.बड़ा मंदिर, नागौर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९४० १०३७. धर्मनाथ मंदिर, मेड़ता सिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९३८; पू० जै०, भाग १, लेखांक ७६३ १०३८. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४५५ (१७८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३९) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५७० वर्षे माघ व० ५ रवौ ऊकेशज्ञातीय दूगड़गोत्रे सहसा भा० मेघी सुत सा० केशवन भा० मना समरथ दशरथ सुत रावण प्रमुखकुटुंबयुतेन श्री आदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं रुदलिया गच्छ श्रीगुणसमुद्रसूरिभिः । (१०४०) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५७० वर्षे माह सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे बोहित्थिरा गोत्र मं० जेसल पुत्र मं० देवराज भार्या लखमादे पुत्र मं० दसू भार्या दूल्हादे पुत्र मं० रूपाकेन भार्या वीरां पुत्र मं० जयवंत मं० श्रीवंतादि युतेन श्रीचंद्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिगुरुभिः बीकानेर नगरे प्रतिष्ठितं । लिखितं सोनी देवा लाल्हाः ॥ १०४१) कुंथुनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५७० वर्षे माह सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे बोहिथहरा गोत्रे सा० ठाकुर पुत्र सा० गोपा भा० गलिमदे पुत्र सा० गुणाकेन भा० सुगुणादे पु० सा० पचहथ सा० चापादि युतेन श्रीकुंथुनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्री जे (? जि) नहंससूरिभिः ॥ श्रीबीकानगरे । लिखितं सोनी नरसंघ डुंगरणी । (१०४२) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५७० वर्षे माह मासे शुक्लपक्षे । सप्तम्यां । रविवारे। ऊकेशवंशे । पारिखगोत्रे सा० सीहा भार्या श्रा० सिंहादे पुत्र सा० राजा सा० तेजा पूंजा। रतना पासु प्रमुखैर्वपितुः श्रेयोर्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः । (१०४३) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५७० वर्षे माह सुदि...... दिने श्रीऊकेशवंशे बोहित्थरा गोत्रे मं० देवराज पुत्र मं० दशरथ भार्या दूल्हादे पुत्र मं० जोगाकेन श्रीबीकानगरे श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः (१०४४) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५७१ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे श्रीमत्परा ॥ ते ॥ मधूज गोत्रे । स० इम भ० .. सुश्रावकेण भा० जीवादे पु० आनन्द सा० सोहिल प्रमुख सहितेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे ॥ श्रीजिनरत्नसूरिभिः ॥ १०३९. महावीर स्वामी का मंदिर, डागों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५३४ १०४०. चन्द्रप्रभ जिनालय, बेगानियों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९४८ १०४१. महावीर स्वामी का मंदिर, डागों में, बीकानेर: ना० बी०, • लेखांक १५३२ १०४२. महावीर मंदिर, भिनायः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९४४ १०४३. चन्द्रप्रभ जिनालय, बेगानियों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९४९ १०४४. बाबू सुखराजराय का घर देरासर, नाथनगर: पू० जै०, भाग १, लेखांक १६२ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१७९) Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४५) अजितनाथ-चतुर्विंशतिः सं० १५७१ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे श्रीमालज्ञातौ खारडगोत्रे ठ० सरवण भार्यया विधिश्राविकया ठ० कुंरपाल ठ० सोनपाल सहितया चुवीसीबिंबमध्ये अजितनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ (१०४६) शिलालेखः १- सं० १५७१ वर्षे आसो २- सुदि २ रवौ राजाधिराज ३- श्रीलूणकरण जी विजयराज्ये ४- साह भांडा प्रासाद नाम त्रैलो५- क्यदीपक करावितं सूत्र० ६- गोदा कारित (१०४७) धर्मनाथ-चतुर्विंशतिः ॥ सं० १५७२ वर्षे चैत्र वदि ३ दिने । ऊकेशवंशे छाजहड़गोत्रे सं० फुझा भा० श्रा० कपूरदे .पुत्र सं० देवदत्त भा० जीवणिश्राविकया। पु० सं० नाकर सं० धनपाल पौत्र रूपा सूटा कान्हादिपरिवारयुतया स्वपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे । श्रीजिनसागरसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ शुभं भवतु श्रीरस्तु॥ (१०४८) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५७२ वर्षे चैत्र वदि ३ बुधे ऊकेशवंशे वईताला गोत्रे सा० तोला भा० डीडी पु० सा० आसाकेन भा० रानादे पुत्र जीवा द्वितीय भार्या अचलादे पुत्र गोल्हा पदमादि परिवारयुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ पं० कुशल ..............सुप...................। (१०४९) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः संवत् १५७२ वर्षे चैत्र वदि ३ बुधे ऊकेशवंशे भाटीयागोत्रे सा० वेला सुत सा० हर्षा भा० देमाइ द्वि० रंगाइ देमाइपुत्रेण सा० नगराजेन भा० वारिंगदे पुत्र सा० वचा-हासा-भोजा-वीरपाल पौत्र पदमसी प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (१०५०) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५७२ वर्षे सा० राजा० भा० गुरादे पु० सा० भोजराज उदिराज भोश्र वच्छराज श्रीखरतरगच्छ श्रीजिनहंससूरि प्रतिष्ठितं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारापितं पुण्यार्थं १०४५.चन्द्रप्रभ मंदिर, आमेरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९४८ १०४६.सुमतिनाथ मंदिर, भांडासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११६५ १०४७.धर्मनाथ जिनालय, भानीशेरी, राधनपुर: मुनि विशाल विजय-रा० प्र० ले० सं०, लेखांक ३३० १०४८.ऋषभदेव जी का मंदिर, कसैरी गली, उदयपुर: पू० जै०, भाग २, लेखांक १८९६ . १०४९.मनमोहन की शेरी, फोफलीया वाड़ा, पाटण: भो० पा०, लेखांक १०७४ १०५०.महावीर जिनालय (वैदों का) बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १२८० (१८०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०५१ ) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी : सं० १५७३ वर्षे वैशाख सुदि ५ दिने वोहडवर्धमानगोत्रे सा० सापा भा० हीरादे पु० सा० चांदा भा० श्रीपनाघलदे इत्यादि पुत्रपरिवारयुतेन निजपूर्वजपुण्यार्थं श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभि: ( ? ) ॥ ( १०५२) शांतिनाथ - पञ्चतीर्थी: सं० १५७३ वर्षे चैत्र वदि अष्टमी रवौ उसवालज्ञातीय बलाही साह अमीपाल भार्या करमाई पुत्र साह धरणा मातृनिमित्तं श्रीशांतिनाथबिंबं कारापितं खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिप्रतिष्ठितं । श्रीपत्तनवास्तव्य । ( १०५३) शांतिनाथ - पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५७५ वर्षे आसोज सुदि ९ दिने ऊकेशवंशे गोलवछागोत्रे सा० वीरम भार्या श्रीधर्मा पुत्र वयरा चोला सूजादिपुत्रपौत्रादिपरिवृतेन श्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ ( १०५४ ) शांतिनाथ पञ्चतीर्थी: सं० १५७५ वर्षे आसोज सुदि ९ दिने ऊकेशवंशे गोलवछा गोत्रे सा० वीरम भार्या सा० धनी पुत्र सा० वैरा चोला सूजादि पुत्रपौत्रादिपरिवृत्तेन श्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहंससूरिभिः । (१०५५) मुनिसुव्रत- पञ्चतीर्थी : सं० १५७५ वर्षे फागण वदि ४ गुरौ उपकेशवंशे पड़सूत्रीया गोत्रे सा० पउणा महिदा थोमण सं० भूणा भार्या भावलदे भर्मादे पुत्र सा० पहुराथिररासपक्क मेहातेषराखाने भार्या कउडमदे पुत्र भांडासहितं श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छेश्वर श्रीजिनहंससूरिभिः । (१०५६ ) चतुर्विंशतिजिनमातृ-पट्टिका सं० १५७६ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे भणसाली गोत्रे श्रीचोपड़ागोत्रे । भ० जाडा भार्या कपू पुत्र भ० जीवट पौत्र भ० नगराजादि परिवारसहितेन अपरंच श्रीचोपड़ा गोत्रे भादा भार्या श्रा० भूदलदे पुत्र सं० सूटां सं० वरसीहादि परिवारसहितेन श्रा० कपू श्रा० भूदलदेव्या कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः सौभाग्यभूरिभिः । (१०५७) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५७६ वर्षे वैशाख सुदि ६ सोमे उपकेशवंशे वृद्धशाखायां कर्म्मदीयागोत्रे सा० देवाभा० देवलदे पु० सा० धीरा सा० हीरा भा० हीरादे पु० सा० सोनपाल भा० पूनी तयोः पुत्रेण मेघराजेन १०५१. शांतिनाथ देरासर, शेखनो पाडो, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०४७ १०५२. कपड़वंज श्रीसंघ मंदिर, शत्रुंजयः श० वै० लेखांक २७२; देहरी क्रमांक ५५४/४, श० गि० द०, लेखांक ३१७ १०५३. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेरः पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३६४ १०५४. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६८१ १०५५. शान्तिनाथ जिनालय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११४१ १०५६.चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७३७ १०५७. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५७५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१८१) Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..जइतपाल-रत्नपालादिपरिवारयुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभि: श्रीरस्तु ॥ भा०. (१०५८) कुन्थुनाथ-चतुर्विंशतिः सं० १५७६ वर्षे शाके १४४२ प्र० वै० सु० ७ सोमे श्रीऊकेशवंशे छाजहड़गोत्रे मं० जूठिल पुत्र कालू पु० नयणा भा० नामलदे पु० मं० सिंघा भा० सिंगारदे पु० मं० सोहल भा० संसारदे पु० मं० श्रीपालेन भार्या रंगादे भ्रातृ-मं० श्रीमल्ल - भा० सरूपदे पु० सहसवीर पुत्र कर्मसीह सहितेनात्मश्रेयसे बिंबं चतुर्विंशतिजिनैः परिवृतं कारापितं श्रीकुन्थुनाथस्य बेगड़खरतरगच्छे आ० श्रीजयसिंहसूरिभिः प्रतिष्ठितं भद्रं भवतात् ॥ श्री ॥ ( १०५९ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५७६ वर्षे माघ वदि ११ तिथौ श्रीमालान्वये ढोरगोत्रे सा० तोल्हा तद्भार्या सा० माणी तत्पुत्र सा० महराज | श्रीशांतिनाथबिंबं कारापितं । प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनप्रभसूरिभिः पट्टानुक्रमे भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ ( १०६० ) ..नाथः सं० १५७६ वर्षे माह वदि १५ दिने श्रा० सामलदे पुण्यार्थं कारितं.. कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहंससूरिभिः (१०६१ ) चतुर्विंशतिजिन - पट्टिका सं० १५७६ वर्षे फागुण वदि ९ दिने श्रीऊकेशवंशे परीक्ष गोत्रे प० डूंगरसी पुत्र गांगा भार्या गंगादे पु० प० नोडा राजसी आंबा पौत्र मालादि परिवारसहिताया श्राविका गंगादेव्या चतुर्विंशतिजिनादिका पूज्यत्र सo बीजपाल भार्या वीजलदे पुत्र भ० जगमाल पौत्र साह भ० सहसमलादि परिवारसहितया श्रा० वीजलदेभ्यां पट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभि: सौभाग्यभूरिभिः । (१०६२) सुमतिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५७६ वर्षे श्रीखरतरगच्छे चोपड़ा गोत्रे को० सहणा को० हेमा को० भाड़ाकेन भार्या भरमादे पुत्र राजसी को० नान्हू प्रमुख यु० श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ ..नाथबिंबं ( १०६३ ) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ ६० ॥ सं० १५७६ वर्षे बोथिरा गोत्रे सा० केल्हणेन भार्या कपूरदे पुत्र सा० पबा भार्या नेना । सा० जयवंत स० जगमाल सा० घड़सी कीकादि यु० श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं श्रीजिनहंससूरिभिः माह वदि ११ १०५८. कूटकीया वाड़ा, पाटणः भो० पा०, लेखांक १०९३ १०५९.नया मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९६० १०६०. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ३५ १०६१. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७३३ १०६२.पायचंदसूरिजी (आदिनाथ जिनालय), बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २००५ १०६३.विमलनाथ जिनालय, कोचरों का, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५८० (१८२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६४) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५७६ वर्षे श्रीखरतरगच्छे बोहित्थरा गोत्र साह० जाणा भार्या सक्तादे पुत्र सा० अमराकेन भार्या उछरंगदे सुत कीकादि युतेन श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहंससूरिभिः॥ माह वदि ११ दिने । (१०६५) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॐ संवत् १५७६ वर्षे श्रीखरतरगच्छे भाड़ीया गोत्रे सा० नाथू पुत्र सा० पाल्ह सा० लकू भा० नीप्पा रा-सटकया मपसीसू प्रमुख कुटुंबिकया श्रीआदिनाथबिं० का० भ० श्रीजिनहंससूरिभिः प्रतिष्ठितं । श्री ॥ (१०६६ ) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५७६ वर्षे श्रीखरतरगच्छे लूणीया गोत्रे शाह जगसी भार्या हांसू पुत्र सीधरेण श्रीसुमतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं भ० श्रीजिनहंससूरिभिः श्रीविक्रमनगरे श्री:! (१०६७) कुन्थुनाथ-चतुर्विंशतिः ॥ ॐ ॥ संवत् १५७७ वर्षे कार्तिक सुदि १२ दिने ऊकेशवंशे साहुसाखगोत्रे सा० तोल्हा पुत्र सा० सांगा भार्या सुहागदे पु० सा० सूदा गोइंद शिवकर सच्चा तत्पुत्र सगरा रत्नराजयुता सा० शिवकर भा० सक्तादे पु० सा० श्रीधरेण धर्मादिसपरिवारयुतेन स्वपुण्यार्थं श्रीकुन्थुनाथबिंब कारितं बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिपट्टे संप्रति श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। प्रतिष्ठितं ॥ (१०६८) पार्श्वनाथ: सं० १५७८ आषाढ़ सुदि ९ ऊकेशवंशे परीखि गोत्रे सा० वीदा पुण्यार्थं पुत्र प० राजा पौत्र..............जेन कारितं । पा० गुणराज कारित शिवराज सहितेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः __ (१०६९) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५७८ वर्षे माघ वदि ८ रवौ श्रीऊकेशवंशे रेहड़गोत्रे मं० गजड भार्या षीमाइ पु० मं० जयताकेन भा० चंद्राउली-पु० पदमसी-धरमसी भ्रातृपौत्र हंसराज-काला-कमलसी-पास-वीर-वस्तुपालनाकरादिपरिवारसहितेन श्रीधर्मनाथबिंबं का० श्रेयसे प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनहंससूरिभिः श्रीरस्तु॥ १०६४.पार्श्वनाथ जिनालय, भीनासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१९३ १०६५.विमलनाथ जिनालय, बालुचर: पू० जै०, भाग १, लेखांक ४२ १०६६.पार्श्वनाथ जिनालय, कोचरों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५९९ १०६७.उपकेश ग० शांतिनाथ मंदिर, मेड़ता सिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९६५ १०६८.अष्टापद जी का मंदिर, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७१७ १०६९.नारंग पार्श्वनाथ, झवेरीवाड़, पाटण: भो० पा०, लेखांक ११०२ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) १८३) For Personal & Private Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७० ) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५७८ वर्षे माघ वदि ८ रवौ श्रीउसवालज्ञातीय भ० जगू भ० सहसमल्ल सुकुटुंबयुतेन श्रीमुनिसुव्रतबिंब कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः प्रतिष्ठितं जेसलमेर वास्तव्य ॥ (१०७१) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः संवत् १५७९ वर्षे वैशाख सुदि ४ रवौ उएशवंशे । भाटीआगोत्रे सा० वेला पु० सा० हर्षा भार्या श्री० रंगाई पु० सा० माका भा० श्रा० धनाईकेन ने (नि) जपुण्यार्थं श्रीवास (सु) पूज्यबिंबं का० खरतरगच्छे प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीपत्तने अणहिल्ल॥ (१०७२) सपरिकर-आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५७९ वैशाख सुदि ५ सोमे उसवंशे लाही गोत्रे साह कुंथा पुत्र सा० षीमा सुश्रावकेण भार्या षीमी पुत्र रत्नसिंह उदयसिंहसश्रीकेण स्वश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्टि (ष्ठि) तं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिप्रवरैः शुभंभवतु॥ (१०७३) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५७९ वर्षे आषाढ़ सुदि १३ चोप० गोत्र सा० चो० तोला पुत्र सा० चो० पासाकेन सा० नरसिंघादियुतेन स्वभार्या श्रा० प्रेमलदे पुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ .(१०७४) पार्श्वनाथः संवत् १५७९ वर्षे आषाढ़ सुदि १३ दिने रविवारे श्रीफसला गोत्रे मं० सधारण पुत्ररत्न मं० माणिक भार्या माणिकदे पुत्र मूलाकेन पुत्रपौत्रादिपरिवृतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः श्रीपत्तन महानगरे। (१०७५) नेमिनाथ-पञ्चतीर्थीः ' ॐ ॥ संवत् १५७९ वर्षे माघ सुदि ४ श्रीऊकेशवंशे सा० ताल्हण पुत्र सा० भोजा पुत्र सा० वणरा सहितेन सा० वच्छाकेन भ्रातृ कम्मा पुत्र हांसा धन्ना सहसा परिवृतेन स्वपुण्यार्थं श्रीनेमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (१०७६ ) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५८० वैशाख वदि ४ गुरौ श्रीउसवाल ज्ञाती सा० साहुशाखायां पारिखि (? पारिख) गोत्रे पा० शिवकर भार्या वाल्ही पु० परिखि जागमालेन झब्बू पुत्र धीरा सोमासिंहादि कुटुंबयुतेन स्वश्रेयसे श्रीश्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ मंगलपुर वास्तव्य ॥ १०७०.चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३६६ १०७१.चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मंदिर, चिन्तामणि शेरी, राधनपुर: रा० प्र० ले० सं०, लेखांक ३३५ १०७२.पार्श्वनाथ मंदिर, देवसा नो पाड़ो, अहमदाबादः परीख और शैलेट-जै० इ० इ० अ०, लेखांक ८४६ १०७३.पार्श्वनाथ सेढू जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९८१ १०७४.संभवनाथ जिनालय, अजमेरः पू० जै०, भाग १, लेखांक ५६८ १०७५.चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग २, लेखांक २३६७ १०७६. गणेशमल सौभाग्यमल मंदिर, झवेरी बाजार, मुंबई: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक २९७ (१८४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७७ ) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थी: सं० १५८० वर्षे वै० व० १२ शुक्रवारे ओसवालज्ञातीय कांकरीयागोत्रे सीधरपुत्र गेला भार्या गलमदे पुत्र कीता-साठीदा (?) मेघराज-करमशी प्रमुख० सपुण्यार्थं कारापि० श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं प्रति० श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनहंससूरिभिः॥ __ (१०७८) शान्तिनाथ-चतुर्विंशतिः सं० १५८० वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ सोमे श्रीश्रीमालज्ञा० मं० पोवा भा० प्रीमलदे सु० भीमा भा० जासभभतुः विणिसुत । वेषण रुडउ श्रीपाल भाणु रूडा भा० रमादे आत्मकुटुंबश्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथबिंब का० श्रीखरतरमहुकरगच्छे भ० श्रीमुनिप्रभसूरि तत्पट्टे श्रीचारित्रप्रभसूरिभिः प्रति० ॥ वुकडमांकडा॥ (१०७९) विहरमान-जिनपट्टिका संवत् १५८० वर्षे आषाढ़ सुदि द्वादशी दिने बुधवारे प० डूंगरसी प० गांगा प० नोडा पुत्र राजसी पुत्र आंबा माल्हा श्रा० गंगादे पुण्यार्थं पट्टि कारिता खरतरगच्छ। (१०८०) चतुर्विंशति-जिनपट्टिका संवत् १५८० वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीचतुर्विंशतिजिनपट्टिका ऊकेशवंशे चोपड़ा गोत्रे संघवी कुंयरपाल भार्या श्राविकया कउतिगदेव्या पुत्र सं० भोजा सं० मयणा सं० नरपति पुत्रपौत्रादियुतया कारिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः प्रतिष्ठिता (१०८१) सपरिकर-सप्तफणा-पार्श्व-प्रतिमा (A.) । संवतु १०२१ क्लिपत्य कूप चैत्ये स्नात्र प्रतिमा...... (B.) । पुन प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छनायक श्रीजिनहंससूरिभिः बो। सा................नल्हा पुत्र रामा खेमा पुण्याह्वा काला भाखर (१०८२) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५८१ वर्षे वैशाख सुदि २ सोमे उ० ज्ञातीय सा० नरपाल भा० लखमी पु० जीदा भा० हीरादे का० मातृ लखमी नमित्त स्वश्रेयोर्थं श्रीधर्मनाथबिंबं का० स्वश्रेयसे प्र० श्रीजिनहंससूरिः (१०८३) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५८१ वर्षे माघ वदि षष्टी बुधे श्रीउपकेशवंशे छाजहड़गोत्रे मंत्रि कालू भा० करमादे १०७७.भूमिगृह में, निशाल की शेरी, खेतरवसही, पाटण: भो० पा०, लेखांक १११४ १०७८.शान्तिनाथ जिनालय, कनासानो पाडो, पाटण: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २९८ १०७९.चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७३४ १०८० अष्टापद जी का मंदिर, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २३२७ १०८१.नेमिनाथ जिनालय, बेगानियों का वास, झज्झू, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३१७ १०८२.पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८७८ १०८३.चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३६८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) १८५) For Personal & Private Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुत्र मं० रादे छाहड़ा नयणा सोना नोडा पितृ । मातृश्रेयसे श्रीसुमतिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ (१०८४) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥संवत् १५८१ वर्षे श्रीविक्रमनगरे ऊकेशवंशे बोहिथिरागोत्रे सा० नेम सुत सा० नींबा सुश्रावकेण भार्या नींबडदे पुत्र जोवा काजा ताल्हण पञ्चायण भारमल्ल भादा नरसिंह सहितेन श्रीश्रेयांसनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहंससूरिभिः श्रीखरतरगच्छे ।। (१०८५) श्रीशांतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५८२ वर्षे वैशाख सुदि ७ गुरुवार श्रीऊकेशवंशे बोथिरा गोत्रे परबत पुण्यार्थं मं० दसू पुत्र मं० रूपा जोगा नींबाद्यैः श्रीशांतिनाथबिबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं। (१०८६) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५८२ वर्षे वैशाख सुदि ७ गुरुवार ऊकेशवंशे श्रेष्ठि चंद्र भार्या शीतादेव्या पुत्र साह जीवा हीरा सथु मुख्यादिपरिवारपरिव्रतैः स्वपुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंब कारितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।' (१०८७) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५८३ वर्षे जयेष्ठ सुदि १३ ऊकेशवंशे कूकड़ा चोपड़ा गोत्रे मं० गणीया भार्या तारू पुत्र मं० पंचायणेन पत्तनवास्तव्येन भा० कूआरि पुत्र मं० मंगलादिसहितेन पुण्यार्थं श्रीविमलनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिपट्टे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः स्वश्रेयोर्थं ॥ (१०८८) विमलनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५८३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ दिने ऊकेशवंशे कूकडा चोपड़ा गोत्रे मं गणीया सुत मं० सांगण भार्या अरघाई सुत विजयसंघेनं श्रीविमलनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः स्वपुण्यार्थं कारितं॥ (१०८९) शांतिनाथ-मंदिरस्थ शिलालेख: (०१) ॐ ॥ स्वस्ति॥ श्रीपार्श्वनाथस्य जिनेश्वरस्य प्रसादतः संतु समीहितानि। श्रीशांतिनाथस्य प(०२) दप्रसादाद्विघ्नानि नश्यतु भवेच्च शांतिः॥१॥ संवत् १५८३ वर्षे मागसिर सुदि (०३) ११ दिने श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे राउल श्रीचाचिगदेवपट्टे राउल श्रीदेवकर्ण (०४) पट्टे महाराजाधिराज राउल श्रीजयतसिंह विजयिराज्ये कुमर श्रीलूणकर्णयुव(०५) राज्ये श्रीऊकेशवंशे श्रीसंखवालगोत्रे सं० आंबा पुत्र सं० कोचर हूया। जिणइ कोरंटई १०८४.धर्मनाथ मंदिर, मेड़ता सिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९७० १०८५. पार्श्वनाथ जिनालय, सुजानगढ़ः ना० बी०, लेखांक २३७२ १०८६.शान्तिनाथ जिनालय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११४३ १०८७.अरनाथ देरासर, विजापुर: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ४४६ १०८८.पंचासरा पार्श्वनाथ, पाटण: भो० पा०, लेखांक ११२६ १०८९.शान्तिनाथ मंदिर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१५४ (१८६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (०६) नगरि अनइ संखवाली गामइ उत्तंगतोरण जैनप्रासाद कराव्या । आबू जीराउलइ श्रीसंघि (०७) सुं यात्रा कीधी। जिणइ आपण उदारगुणइ आपणा घरनउ सर्व धन लोकनां देई कोरंटइ कर्ण (०८) नामना लीघी । सं० कोचर पुत्र सं० मूला तत्पुत्र सं० रउला सं० हीरा । सं० रउला भार्या सं० माणिकदे (०९) पुत्र सं० आपमल्ल सं० देपमल्ल । सं० आपमल्ल भार्या कमलादे पुत्र सं० पेथा सं० भीमा सं० जेठा सं० पेथा (१०) भार्या पूनादे पुत्र सं० आसराज सं० मूंधराज पुत्रिका स्याणी । सं० आसराजइ श्रीशत्रुंजयमहातीर्थ (११) श्रीसंघ सहित यात्रा करी आपणा वित्त सफल कीधा । सं० आसराज भार्या चो० सं० पांचा पुत्री गेली (१२) जिणइ श्रीशत्रुंजय - गिरनार - आबूतीर्थे यात्रा कीघी । श्रीशत्रुंजयादि तीर्थावतारपाटी करावी सतोर - (१३) ण सपरिकर श्रीनेमिनाथनां बिंब भरावी श्रीसंभवनाथनइ देहरइ मंडाव्या । समस्त कल्याणकादि(१४) कतपनी पाटी सैलमय करावी । सं० आसराज पुत्र सं० षेता सं० पाता । सं० षेतइ संवत् १५११ श्रीशत्रुंजयगिर (१५) नारतीर्थइ श्रीसंघ सहित यात्रा कीधी । इम वरसइ २ तीर्थयात्रा करता संवत् १५२४ तेरमी यात्रा करी श्रीशत्रुंज (१६) य ऊपरि छअरी पालता श्रीआदिनाथप्रमुखतीर्थकरनी पूजा करता छठ तप करी बिलाष नवकार गुणी चतुर्वि (१७) धसंघनी भक्ति करी आपणा वित्त सफल कीधा ॥ वली चोपड़ा सं० पांचा पुत्र सं० सिवराज सं० महिराज सं० लोला सं (१८) घवी लाषण पुत्रिका सं० गेली । सं० लाषण पुत्र सं० सिषरा सं० समरा सं० माला सं० महणा सं० सहणा सं० कुं (१९) रांप्रमुखपरिवारसहित चो० सं० लाषण संखवाल सं० आसराज पुत्र सं० घेता ए बिहु मिली श्रीजेसलमेरु नगरि ग (२०) ढ़.ऊपरि बिभूमिक श्री अष्टापदमहातीर्थप्रासाद कराव्या । सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने राउल श्रीदेवकर्णराज्ये (२१) समस्तदेसना संघ मेलवी श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनसमुद्रसूरि कन्हलि प्रतिष्ठा करावी श्रीकुंथुनाथ श्रीशांतिनाथ मूलना (२२) यक थपाव्या । चउवीस तीर्थंकरनी अनेक प्रतिमा भरावी । सं० षेतइ समस्त मारुयाडि माहि रूपानाणा सहित समकितलाडू (२३) लाह्या । सोनाने आषरे श्रीकल्पसिद्धांतनां पोथां लिखाव्यां । श्रीजिनसमुद्रसूरि कन्हां श्रीशांतिसागरसूरि आचार्यनी प (२४) द स्थापना करावी । श्री अष्टापदतीर्थइ बिहू भूमिकाए जगति करावी बिंब मंडाव्या । सं० घेता भार्या सं० सरसति पुत्र (२५) सं० वीदा सं० नोडा पुत्रिका धानू बीजू । सं० वोडा भार्या सं० नायकदे सं० पूनी । सं० वीदा भार्या सं० अमरादे सं० विमला खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१८७) Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) दे सं० विमलादे पुत्र सं० सहसमल्ल सं० करणा सं० धरणा। पुत्रिका हरषू सलषू हस्तू। सं० सं० सहसमल्ल भार्या सं० (२७) कुंरी पुत्र भोला सं० सवीरी पुत्र डाहा सं० करणा सं० कनकादे पुत्र षीदा। पुत्रिका लाला सं० धरणा भार्या धरणिगदे पु(२८) त्रिका वाल्ही। इत्यादि परिवार सहित सं० वीदइ श्रीशत्रुजयगिरनारआबूतीर्थ यात्रा कीधी। समकितमो(२९) दक घृत षांड साकरनी लाहिणि कीधी श्रीजिनहंससूरिगछनायकनी वर्षग्रंथि महोछव करी अल्ली घर २ प्रतइ (३०) लाही। पांचमिनां ऊजमणा कीधा। पांच सोनइया प्रमुख अनेक वस्तु ऊजमणइ मांडी। श्रीकल्पसिद्धांतपुस्तक घणी(३१) वार वचाव्या। पांचवार लाष नवकार गुणी चारसा जोडी अल्लीनी लाहिणि कीधी। सं० सहसमल्ल श्रीशत्रु(३२) जयतीर्थइ यात्रा करी जूनइगढि राणपुर वीरमगाम पाटण पारकरि षांड अल्ली लाहणि करी घरे आव्या (३३) पछइ सं० वीदइ घर २ प्रतइ दस २ सेर घृत लाह्या। अष्टापदप्रासादइ बिहु भूमिकाए जंगतिना बारणा(३४) नी चउकी करावी। पउडसाण जाली २४ सुहणा देहरा ऊपरि कांगुरा अष्टापदइ कराव्या । काउसग्गीया (३५) श्रीपार्श्वनाथनां बि कराव्या। बिहुं हाथिए सं० षेता सं० सरसतिनी मूर्ति करावी। संवत् १५८१ वर्षे मागसिर व(३६) दि १० रविवारे महाराजाधिराज राउल श्रीजयतसिंह तथा कुमर श्रीलूणकर्णवचनात् श्रीपार्श्वनाथ (३७) अष्टापद विचालइ सं० वीदइ सेरी छावी। कुतना वड बंधाव्या। वारणा पउडसाण कराव्या। वेईबंध छज्जा(३८) वलि करावी। कोहर एक कराव्या। गाइ सहस १ जोडी घृत अन्न गुल रुत घणी वार षट्दरसण ब्राह्मणा(३९) दिकनां दीधा। श्रीजेसलमेरुगढनी दक्षिण दिसइ घाघरा बंधाव्या। देहरानी सेरी नइ घाघरा बेऊ० श्रीजय(४०) तसिंह राउलनइ आदेसइ सं० वीदइ कराव्या। गउष करावी दस अवतार सहित लषमीनारायणनी मू(४१) र्ति गउषइ मंडावी॥ जिनो दशावतारोऽप्यवताररहितस्य तु । श्रीषोडसजिनेंद्रस्य समियाय परीष्ट(४२) ये॥ १ शुद्धसम्यक्त्वधारित्वाद्भावितीर्थंकरत्वतः। स लक्ष्मीकः समायातो जिनो दातुमिव श्रियं ॥ २ मंडपा(४३) दिकनी कमठा सं० सहसमल्ल सं० करणा सं० धरणा कराविस्यइ ॥ इत्येषा प्रशस्तिः श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजि(४४) नहंससूरिपट्टालंकारश्रीजिनमाणिक्यसूरिविजयिराज्ये श्रीदेवतिलकोपाध्यायेन लिखिता चिरं नंदतु ॥ (४५) सूत्रधार मनसुख पुत्र सूत्रधार घेताकेन मुदकारि प्रशस्तिरेषा कोरीतं ॥ :॥ श्रीभवतु ॥ (१८८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०९०) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५८४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ श्रीश्रीमालिज्ञातौ श्रीआचवाडियागोत्रे मं० हर्षा भार्या कीकी पुत्र मं० महिपालेन भार्या इंद्राणी पु० मं० चांपसी नाकर ठाकुर पौत्र श्रीकरण-धरणादिपरिवारवृतेन स्वश्रेयसे श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिपट्टे जिनमाणिक्यसूरिभिः॥ (१०९१) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५८४ ज्येष्ठ सुदि १३ ऊकेशवंशे कांकरीयागोत्रे सा० रत्ना भार्या षीमाई पुत्र साह राजपालेन भार्या वीराई पुत्र विद्याधरादिसहितेन स्वश्रेयसे श्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः॥ (१०९२) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५८५ वर्षे माघ सुदि १ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय सं० वइरसी भा० लष्मादे सु० वानर भा० मेठू सु० गहगाकेन पितृ-मातृ-आत्मश्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं का० प्र० श्रीमधुकरगच्छे भ० श्रीधनप्रभसूरिभिः॥ पाररीवा०॥ (१०९३) शत्रुजय-गिरनारतीर्थपट्टिका ॥सं० १५८५ वर्षे माघमासे श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे श्रीजयतसिंह राउल पट्टालंकार श्रीलूणकर्णराउल विजयिराज्ये श्रीशंखवालगोत्रे सं० कोचर पुत्र सं० मूल पुत्र सं० रोला पुत्र सं० आपमल पुत्र सं० पेथा पुत्र सं० आसराज भार्या गेल्ही पुत्र सं० खेता सं० (भा०) सरसती पुत्र सं० दीवा भार्या सं० अमरादे सं० विमलादे पुत्र सं० सहसमल भार्या सं० कुरी पुत्र सं० भोला द्वितीय भार्या सं० सवीरदे पुत्र डाहा सं० करण भार्या सं० कनकादे पुत्र सं० खीदा सं० नरसिंह पुत्र सं० धरणा भार्या धरणिगदे सं०.......प्रमुखपरिवारसहितया सं० वीदा भार्या सं० विमलादे श्राविकायाः पुण्यार्थं श्रीशत्रुजयमहातीर्थ-श्रीगिरनारतीर्थपट्टिका श्रेष्ठमांगलिक्ययुता सं० सहसमल्ल सं० धरणाभ्यां कारापिता० श्रीबृहतखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिपट्टालंकार श्रीजिनमाणिक्यसूरिराज्ये प्रतिष्ठिता श्रीदेवतिलकोपाध्यायेन लिपीकृ ता प्रशस्तिरेषा चिरं नंदतु० सूत्रधार धाना पुत्र सेडू सूत्रधारेण प्रशस्तिरुदकारि० श्रीशंत्रुजयगिरनारतीर्थावतारपाटी घटिता। श्रीसंघेन जोत्कार्यमाणा पूज्यमाना चिरं नंदतु ॥ (१०९४) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५८६ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ७ सोमे ऊकेशवंशे श्रीबोहित्थरा गोत्रे मं० देवराज पुत्र मं० दशरथ पु० मंत्री जोगा सुश्रावकेण पु० मं० पंचायण युतेन भ्रातृव्य परबत पुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिपट्टे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः १०९०.सुमतिनाथ मुख्य बावनजिनालय, मातर: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५०५ १०९१.पार्श्वनाथ जिनालय, माणेकचौक, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ९४४ १०९२.शान्तिनाथ जिनालय, लिम्बडीपाड़ा, पाटण: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २८५ १०९३.शांतिनाथ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २१५५ १०९४.गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९५० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (१८९ For Personal & Private Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०९५ ) ऋषभनाथः संवत् १५८७ वर्षे वैशाख वदि ५ शनौ मांगलज्ञातीय वृद्धशाखायां पुत्र जेठु तत्पुत्र हाईया श्री ऋषभबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे.. सातल. झकोर.. (१०९६) विंशतिविहरमान: संवत् १५८७ वर्षे वैशाख वदि ५ शनौ श्री श्रीगुर्जरज्ञातीय. ..नरसिंघ पुत्रादिकेन भार्या पव्हि पुत्रली. .बिंबं का०. .. प्रति० खरतरगच्छे (१०९७) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५८७ वर्षे वैशाख वदि ७ सोमे ऊकेशवंशे रीहड़ गोत्रे सा० कुरा भा० श्रा० मन्वी पु० सा० धना । मेघा पितृमातृपुण्यार्थं श्रीसुविधिनाथबिंबं कारापितं श्रीखरतरग० प्रतिष्ठि (तं) श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ( १०९८ ) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५८७ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने रविवारे । ऊकेशवंशे गणधर गोत्र सा० चांपा भार्या चांपलदे पुत्र सा० ऊदा बीदाभ्यां युतेन सुश्रावकेण सपरिवारेण श्रीविमलनाथबिंबं कारितं स्वश्रेयोर्थं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिपट्टे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ शुभं भवतु ॥ छः ॥ ( १०९९) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५८७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ७ दिने उसवालज्ञातीय जांगड़ा गोत्रे दो० वस्ता भार्या विमलादे पुत्र डूंगर रायमल्ल पांचायण परिवारयुतेन श्री आदिनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ( ११०० ) जिनहंससूरि- पादुका ॥ ६०॥ संवत् १५८७ मार्गशिर वदि दिने श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरि पट्टालंकार श्री श्रीजिनहंससूरीश्वराणां पादुके तत्शिष्यैः श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठिते कारिते च चो० तेजा भार्या राजू पुत्र श्रीवंत सुश्रावण ॥ ( ११०१) आदिनाथः सं० १५८७ वर्षे फागुण सुदि.. श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ .भो० मेगाई श्रावक ...नी भार्या ..वयरसूरीनाथाय नमः ॥ ..बुधे. १०९५.देरी क्रमांक १२१ / २, शत्रुंजयः श० गि० द०, लेखांक ८४ १०९६.देरी क्रमांक १२१ / १, शत्रुंजयः श० गि० द०, लेखांक ८३ १०९७. गोलेछों का मंदिर, सरदार शहर: ना० बी०, लेखांक २३९२ १०९८.आदिनाथ जिनलाय, लूणकरणसरः ना० बी०, लेखांक २५०० १०९९. मक्सीजी तीर्थ, भँवर० (अप्रका० ), क्रमांक ३ ११००. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६७५ ११०१. संभवनाथ मंदिर, अजमेर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९८० (१९०) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०२) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५८७ वर्षे .... .....श्रीमालज्ञातीय टांक गोत्रे ........आत्मपुण्यार्थं श्रेयांसबिंबं कारितं खरतर० प्र० श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे भ० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः॥ (११०३) भद्रोदयगणि-पादुका संवत् १५८९ वर्षे माघ मासे शुक्लपक्षे। पंचमीदिने। श्रीखरतरगच्छे श्रीश्रीहर्षराजमहोपाध्यायशिष्य वा० भद्रोदयगणीनां पादुका कारापिता श्रीसंघेन। सूत्रधार करणाकेन निपादिता। (११०४) धर्मनाथः संवत् १५८..................वर्षे माघ सुदि १० ऊकेशवंशे छाजहडगोत्रे सा० साध पुत्र सा० उमला भ्रातृ पुण्यार्थं श्रीधर्मनाथ का० प्र० श्रीजिन सा..................सूरिभिः (११०५) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५९० वर्षे वैशाख सुदि ११ मुहतियाण-मुंडतोडगोत्रे सा० शेखराज भार्या वीरु श्राविकया श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (११०६) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५९१ वर्षे वैशाख वदि ६ शुक्रे मासे (?) श्रीमालज्ञातीय खारडगोत्रे कुंरपाल भार्या खेमी सुत चू० महीपाल सुश्रावकेण पुत्र चू० विजयराजादियुतेन श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः॥श्रीः॥ (११०७) मूलनायक-श्रीआदिनाथादि-चतुर्विंशतिः (क) नवलक्षक रासल पुत्र नवलक्षक राजपाल पुत्ररत्नेन नवलक्षक सा० नेमिचंद्र सुश्रावकेण सा० वीरम दुसाऊ देवचंद्र कान्हड़ महं (१)॥६०॥ सं० १५९२ वर्षे श्रीबीकानेयर महादुर्गे। पूर्वं सं० १३८० वर्षे श्रीजिनकुशलसूरिभिः प्रतिष्ठितम् (२) श्रीमंडोवर-मूलनायकस्य श्रीआदिनाथादि-चतुर्विंशतिपट्टस्य। सं० १५९१ वर्षे मुद्गलाधिप कम्मरां पातसाहि समा(३) गमे विनाशित परिकरस्य उद्र(द्ध)रित श्रीआदिनाथ मूलनायकस्य बोहिथहरा गोत्रे मं० वच्छा पुत्र मं० वरसिंह भार्या (ख) ११०२.विमलनाथ मंदिर, सवाई माधोपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९८२ ११०३.भण्डारस्थ पादुका, शान्तिनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ६४ ११०४.जैन मंदिर, राणकपुर: पू० जै० भाग १, लेखांक ७१२। ११०५.चन्द्रप्रभ मंदिर, जोमनेर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९८४ ११०६.जयपुर बड़ा मंदिर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९८६ ११०७.चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (१९१) For Personal & Private Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्रा० ठीऊल (? वीझल) दे पुत्र मं० मेघा भार्या महिगलदे पुत्र मं० वयरसिंह । मं० पद्ममीटा (सीहा ?) भ्यां पुत्र मं० श्रीचंद मं० महग्गादि। (५) सपरिवाराभ्यां... ..........खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरीश्वराणां पट्टालंकार (६).....................श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः.................. श्रीजयतसिंह विजयराज्ये । श्री॥ (११०८) सुमतिनाथः संवत् १५९३ वर्षे माह वदि १ गुरु पुष्य योगे ऊके शवंशे मं० राजा पुत्र मं० ................. श्रीसुमतिजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः (११०९) सु..........नाथः सं० १५९३ वर्षे माह व० १ दिने मं० राजा पु० मं० . केन स्वभार्या पाटिमदे पुण्यार्थं श्रीसु.........नाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः (१११०) शीतलनाथः ॥६०॥ संवत् १५९३ वर्षे माह वदि १ दिने गुरु-पुष्य-योगे ऊकेशवंशे बोहित्थरा गोत्रे मं० कर्मसी भार्या कउतिगदे पुत्र सं० सूजा भार्या सूरजदेव्या स्वसपत्न्या सुरताणदेव्या पुण्यार्थं श्रीशीतलनाथबिंब का प्रतिष्ठितं च श्री ख० जिनमाणिक्यसूरिभिः (११११) शीतलनाथ: ॥ संवत् १५९३ वर्षे माह वदि १ दिने बोहित्थरा गोत्रे मं० रत्नाकेन स्वभार्या सकतादेव्या पुण्यार्थं श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिपट्टे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः (१११२) श्रेयांसनाथ-चतुर्विंशतिः ॥ संवत् १५९३ वर्षे माह वदि १ दिने गुरु पुक्षयोगे श्रीऊकेशवंशे चोपड़ा गोत्रे को० सरवण पुत्र को० जेसिंघ भार्या जसमादे पुत्र को० समराकेन भार्या हीरादे पुत्र को० बीदा को० जगमाल को० जगतमाल को० सिवराज प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीश्रेयांसबिंबं कारिता प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिपट्टे पूर्वांचलसहस्रकरावतार श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः शुभम् ॥ (१११३) विमलनाथः संवत् १५९३ वर्षे माह वदि १ दिने मं० डूंगरसी पुत्र नरवद भा० लालदेव्या स्वपुण्यार्थं कारितं विमलनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ११०८.चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ३२ ११०९.चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ३७ १११०.चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २८ ११११.चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ४२ १११२.सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७५३ १११३.चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी० लेखांक ४१ (१९२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १११४) धर्मनाथ: संवत् १५९३ वर्षे माह व० १ दिने बोहित्थरा गोत्रे सा० जाणा भार्या सकतादे पुत्र सा० केल्हण भार्या कपूरदे पुत्र वच्छा नेता जयवंत जगमाल घड़सी जोधादि युतेन स्वात्मापुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः (१९१५) कुंथुनाथ- पञ्चतीर्थी : ॐ॥ सं० १५९३ वर्षे शाके १४५८ प्रवर्त्तमाने महामाङ्गल्यप्रद श्रीमाह व० प्रतिपदादिने गुरौ पुष्यनक्षत्रे ॥ श्रीबापनागोत्रे सा० माला पु० वरहदा भा० सिरियादे निमित्ते श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं भ० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ॥ ( १११६ ) नमिनाथ - मूलनायक : (१) ॥ ६० ॥ संवत् १५९३ वर्षे माह वदि १ दिने गुरौ .. भार्या वाल्हादे पुत्र मं० कर्मसी भार्या कउतिगदे (२) पुत्र राजा भार्या रयणादे पुत्र मं० पिथा म० रमदे मं० जगमाल मं० मानसिंह प्रमुख (३) परिवार युतेन मं० पिथाकेन स्वपिताम... प्रतिष्ठितं च बृ० ख० गच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ( १११७ ) नेमिनाथ: ॥ ६० ॥ संवत् १५९३ वर्षे माहवदि १ दिने गुरु पुक्ष (ष्य) योगे श्रीऊकेशवंशे श्रीबोहित्थिरा गोत्रे मं० वच्छा भार्या वील्हादे पुत्र मं० कर्मसींह भार्या कउतगदे पुत्र मं० राजा भार्या रयणादे अमृतदे पुत्र मं० पेथा मं० काला मं० जयतमाला मं० वीरमदे मं० जगमाल मं० मानसिंघ स्वपितामह श्रेयसे श्रीनेमिनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ( १११८ ) ..नाथः संवत् १५९३.वर्षे माह वदि १ श्री भणसाली गोत्रे मं० डामर पुत्र मं० लींबा भार्या वाल्ही पुत्र राजपाल म० रायपालेन कारितं प्र० श्री. ( १११९ ) .............नाथः सं० १५९३ दिने बोहित्थरागोत्रे मं० देवराज पु० मं०. श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः । १११४. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी० लेखांक ३६ १११५. चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २३६९ १११६. नमिनाथ का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११९३ १११७. चिन्तामणि जी का मंदिर बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २७ १११८. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ४३ १११९. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, सरदारशहर: ना० बी०, लेखांक २३८३ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only ..खरतरगच्छे (१९३ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२० ) आदिनाथ: ॥ सं० १५९३ च० केल्हण तत्पुत्र पेथड़ भार्या रेडाई पुत्र समरथ भार्या पावां पुन्नू अमरा वाहड़ सपरिवारेण श्री आदिनाथबिंबं का । प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः (१९२१) आदिनाथ: ॥ सं० १५९३ वर्षे ॥ सकतादे पुण्यार्थं श्री आदिनाथ बिंबं प्र० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः । ( ११२२) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: सं० १५९३ वर्षे श्रीश्रीमाल वारिआववाडगोत्रे खरतरगच्छे सं० महीपाल भा० इन्द्राणीश्राविकया श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का० प्र० श्रीमाणिक्यसूरिभिः फा० सु० ३ सोमे । ( ११२३) वासुपूज्यः ॥ संवत् १५९३ वर्षे सं० लाडण भा० पद्मादेदेव्या स्वपुण्यार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं । श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ॥ ( ११२४) विमलनाथ: ॥ संवत् १५९३ वर्षे सोहगदेव्या स्वपुण्यार्थं श्रीविमलनाथबिंबं कारितं (११२५ ) शान्तिनाथः ॥ संवत् १५९३ वर्षे साह हर्षा भार्या सुहागदेव्या श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः॥ साउसाख गोत्र श्री भार्या दालक्खू (११२६) कुंथुनाथ: ॥ संवत् १५९३ वर्षे.....लाणी स्वपुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रति श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः (११२७ ) .............नाथः ॥ सं० १५९३ वर्षे मं० केल्हण तत्पुत्र पेथड़ भार्या रिड़ाइ पुत्र समरंथ भार्या पाना पु. नाथ: ( ११२८ ) म० वग्गाकेन कारितं प्र० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ॥ ११२०. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ३८ ११२१. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ३४ ११२२. शान्तिनाथ जिनालय, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११३६ ११२३. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ४५ ११२४. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी० लेखांक ३९ ११२५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ४४ ११२६. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ४० ११२७. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ३३ ११२८.सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७८६ (१९४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२९) अभिनन्दन - चतुर्विंशतिः ॥ ६० ॥ सं० १५९५ वर्षे जेठ सुदि ३ दिने । बो० गोत्रे मं० वच्छापुत्र मं० वरसिंह भार्या बीझलदे तत्पुत्र मंत्रि हराकेन भार्या हीरादे पुत्र मं० जोधा पुत्र मं० जिणदास भयरवदासादि युतेन स्वपुण्यार्थं श्रीअभिनंदनबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः ( ११३०) आदिनाथ - चतुर्विंशतिः ॥ सं० १५९५ वर्षे माघ वदि १ | रविवारे पुष्यनक्षत्रे श्रा० अप्पू पुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः शुभं भवतु कल्याणमस्तु ॥ ( ११३१) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५९५ वर्षे माघ वदि ३ ऊपकेशवंशे प्राग्वाटगोत्रे सा० कानड पुत्र सा० वाहड सा० नाथा भा० सांकु पुत्र भीमा भा० करमादे पुत्र सिंहा मातृयुतेन वाघाकेन भा० रत्नादे भा० वासद्धायुतेन श्रीआदिनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे जिनचंद्रसूरिपट्टे जिनशीलसूरिभिः ॥ ( ११३२) चन्द्रप्रभ - पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५९६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ द्वितीया शनौ उ० लिंबोदियागोत्रे मं० जावड भा० पादू पु० जगा जयवंत अचला मं० जगा भा० लाछलदे पु० वाघा मं० जयवंत भा० जवणादे पु० जाला जावा लघु वृद्धि समस्त राजधर लीला हीरा प्रमुखकुटुम्बयुतेन श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं कारापितं श्रीखरतरगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीजिनशीलूसरिभिः ॥ श्रीः ॥ ( ११३३ ) स्तम्भ - लेख : सं० १५९७ वर्षे फाल्गुण सुदि ५ श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनप्रभसूरियन्वए (र्यन्वये) उ० श्री आनंदराज सि० (शि) उ० श्रीअभयचंद सि ( शि० ) उ० श्रीहरिकलश सि ( शि० ) ष्य वा० श्रीसहजकलशगणि सि० (शि०) भक्तिलाभ मतिलाभ । भावलाभ परिवारसहितेन यात्रा कृता आदिनाथस्य सु० (शु) भं भवतु ॥ श्रीमालन्याती विनालियागोत्रे चौ० योधा पुत्र जगराज सहितेन यात्रा कृताः (ता ) ॥ नित्यं प्रणमतिः (ति) ( ११३४) कमलसंयम- पादुका संवत् १५९७ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीकमलसंयम महोपाध्याय पादुके भक्त्यर्थं कारिते ११२९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर:, ना० बी०, लेखांक ५ ११३०. आदिनाथ मंदिर, वासाः अ० प्र० जै० ले० सं०, भाग ५, लेखांक ५५४ ११३१. जैन देरासर, सौदागर पोल, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७९० ११३२.चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, किशनगढ़ : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९९३ ११३३. विमलवसही, आबू : अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक २०० ११३४. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १६ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (१९५ www.jalnelibrary.org Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११३५) अजितनाथ - पञ्चतीर्थी: सं० १५९८ वर्षे वैशाख शुदि ५ गुरौ श्रीऊकेशवंशे दरडागोत्रे सा० द० भीमसी भा० समाई पु० सा० हमीर सा० राजपाल भ्रातृज सा० सचवीर सा० चांपा सा० रतनसी सश्रीकेण सा० तेजपाल भा० वइजलदे पु० सारंगधरादियुतेन श्री अजितनाथबिंबं का० प्र० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे ॥ (१९३६) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५९९ वर्षे वैशाख सुदि ५ गुरौ श्री रुद्रपल्लीयगच्छे भ० श्रीगुणसुन्दरसूरि शिष्य उ० श्रीगुणप्रभ.. . श्री आदिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं । श्रीविवेकरत्नसूरिभिः। ( ११३८ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १६०० व० वइ० सु० २ गुरु चांपानेरवास्तव्य ओसवालज्ञाति सा० धरमापु० सा० लटकण तास भार्या बा० ललतादे तासुपु० सा० रीडा राजपाल चोपड़ागोत्रे खरतरगच्छे श्रीसूरिभिः उपाध्याय श्री विद्यासागरप्रतिष्ठितं श्रीशांतिनाथबिंबं कारापितं बा० ललतादेश्रेयोर्थं शुभं भवतु ॥ (१९३९) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० ०.........व ब १२ सोमे उ० भ० गोत्रे सा० सालिग भा० राजलदे पु० सा० जेसा श्रावण श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ( ११३७ ) ..स्वमातृ चांई पुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे ( ११४० ) पार्श्वनाथ: .. सार्वभौमराजेश्वर राजाधिराज महाराज श्रीराजसिंह विजयराज्ये. .. वर्षे भं० अमरा .. भाषहणसन्तानीय ऊकेशवंशे भांडागारिकगोत्रे भंडारी नगराज पुत्र .. रत्नचन्द नारायण नरसिंह सोमचन्द संगार अचलदास कपूरदासादिपरिवार ..के श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं आद्यपक्षीय श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनदेवसूरिपट्टे श्रीजिनसिंहसूरिभि: श्रीमज्ज.. I वैशाखमासे सितपक्षे. तत्पुत्र माना. ११३५.पार्श्वनाथ जिनालय, देवसानो पाड़ो, अहमदाबाद : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०६२ ११३६.नवघरे का मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली : पू० जै०, भाग १, . लेखांक ५०१ ११३७. सुमतिनाथ जिनालय, माधवलाल बाबू की धर्मशाला, पालिताणा : श० वै० लेखांक ३२० अ ११३८. स्तम्भन पार्श्वनाथ जिनालय, खारवाडो, खंभात, जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक १०५३ ११३९. महावीर सेनिटोरियम, उदरामसर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१९६ ११४०. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११६१ (१९६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४१ ) एकतीर्थीः संवत् १६०१ वर्षे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं । श्रीजैसलमेरौ वा० कुशलधीरस्य प्रसन्नाभव। (१९४२) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १६०२ वर्षे आषाढमास शुक्लपक्षे नवम्यां तिथौ रविवार श्रीकोटड़ासंघेन कारित श्रीमज्जिनकुशलसूरीश्वरपादुका । स्वस्ति श्रीजयो नित्यम् ॥ ( ११४३) अजितनाथ: संवत् १६०२ वर्षे मिगसर वदि ३ दिने बुधवासरे पुमतलनगरवास्तव्य संखवालगोत्रीय केवाट नारिंगदे पुत्र सा० रतना धी रतनदे सा० जीदा सा० हरिचंद प्रमुखपरिवारसहितेन सा० रत्नासुश्रावकेन श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छेश श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः शुभं । ( ११४४ ) शांतिनाथ - पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १६०२ वर्षे मग० सु० ९ म्यां ना० मंत्रि राणा भार्या लीलादेव्या श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्र० श्री खर० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ॥ ( ११४५ ) चतुर्विंशति - जिनपट्टिका संवत् १६०३ वर्षे आषाढ़ शुक्ल द्वितीया दिने श्रीजैसलमेर महाद्रग्गे राउल श्रीलूणकर्ण विजयिराज्ये श्रीउकेशवंशे पारिखगोत्रे प० वीदा भार्या श्रा० वाल्ही सुश्राविकायाः पुत्र प० भोजा प० राजा प० वीका प० गुणराज । सवराज रंगा पासदत्त रूपमल केडा नोडा धरमदास भयरवदास प्रमुखपुत्रपौत्रादि सत्परिवारसहितया स्वपुण्यार्थं श्रीचतुर्विंशतिजिनवरपट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनहंससूरिपद-पूर्वांचलसहस्रकरावतार श्रीजिनमाणिक्यसूरिभि: लिपिकृता पं० विजयराज मुनिना सूत्र ० केल्हाकेन कारिता ( ११४६ ) जिनकुशलसूरि- प्रतिमा संवत् १६०४ वर्षे आषाढ़ वदि ६.......... .... ललवाणीगोत्रे सा०. श्रीजिनकुशलसूरिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ॥ ( १९१४७) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ श्री पार्श्वनाथ सं० १६०५ फागुन सुदी दसमी चरवडियागोत्रे गागपत्नी त्वरमिनी पुत्र तु लघु प्रनमल गुरु श्रीजिनभद्रसूरि रुद्रपलीगच्छे भ० श्रीभावतिलकसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री समेतसिषर । ११४१. धर्मनाथ मन्दिर, मेड़ता सिटी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २१८ ११४२. शीतलनाथ जी का मन्दिर, कोटड़ा, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि, लेखांक २४ ११४३. रोशन मुहल्ला, आगरा: भंवर० (अप्रका० ), लेख क्रमांक १ ११४४. श्रीशांतिनाथ जिनालय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११५२ ११४५. शान्तिनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी० लेखांक २७८३ ११४६. भंवर० (अप्रका० ), उज्जैन के लेख क्रं० १, ११४७. जैन मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली : पू० जै० भाग १, लेखांक ४४९ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: ..पुत्रपौत्रादिपरिवृतेन For Personal & Private Use Only (१९७) Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११४८) पञ्चतीर्थीः सं० १६०५ फागुण सुदी दसमि समेतसिखरे प्रतिष्ठितं मागपत्नी त्वरमिनि पुत्र षवु लघु प्रनमल गुरु श्रीजिनभद्रसूरि........... (११४९) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १६०६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १२ दिने बुचागोत्रीय सा० लखमण बु (? पु) त्र सीमा जयता अरजुन सीहा परिवारसहितेन पुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः खरतरगच्छे। (११५० ) जिनमातृकापट्टिका १ ।। संवत् १६०६ वर्षे फागुण वदि ७ दिने। श्रीबृहत्खरतरगच्छे। श्रीजिनभद्रसूरिसंताने श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे। २ ।। श्रीजिनहंससूरितत्पट्टालंकार श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीचतुर्विंशति-जिनमातृणां पट्टिका॥ कारिता श्रीविक्रमनगर संघेन।। (११५१) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १६०८ वर्षे चैत्र सुदि १३ दिने। ऊकेशवंशे साउंसखागोत्रे सा० कुंपा पुत्र साह वस्ता भार्या श्रा० वाल्हादे पुत्र सा० जगमाल सा० धनराज प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः। (११५२) पार्श्वनाथः ॥ ॐ ॥ संवत् १६११ वर्षे बृहत्खरतरगच्छे। श्रीजिनमाणिक्यसूरिविजयिराज्ये ।। श्रीमालज्ञातीय ॥ पापडगोत्रे ठाकुर रावण सुत ठा० गढमल तद्भार्या नयणी। तत्पुत्र जीवराजेन श्रीपार्श्वनाथपरिगृहकारापितं । वा० धर्मसुन्दरगणिना प्रतिष्ठितं ।। शुभंभवतु ॥ छ॥ (११५३) जिनमाणिक्यसूरि-पादुका संवत् १६१२ वर्षे कार्तिक सुदि ९ दिने शनिवारे।। रवियोगे श्रीजिनमाणिक्यसूरीणां पादुके कारिते चो० थिराख्येन सपरिकरेण प्रतिष्ठिते च श्रीजिनचंद्रसूरिभिः शुभमस्तु श्री॥ (११५४) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १६१२ चैत्रमासे कृष्णपक्षे चतुर्थीवासरे शनिवारे स्वातिनक्षत्रे श्रीखर तरगच्छे श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुके..............श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं.............ल पुत्र सा० श्रीवन्तेन कारितं॥ ११४८. नवघरे का मन्दिर, दिल्ली: पू० जै०, भाग १, लेखांक ५१२ ११४९. ऋषभदेवजी का मन्दिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४३१ ११५०. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८; पू० जै०, भाग २, लेखांक १३५१ ११५१. पार्श्वनाथ जिनालय, सरदारशहर: ना० बी०, लेखांक २३८७ ११५२. युगादीश्वर मंदिर, मेड़तासिटी : प्र० ले० स०, भाग १, लेखांक १००९; प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४३१ ११५३. पार्श्वनाथ जी का मन्दिर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २६७७ ११५४. भण्डारस्थ पादुका, शान्तिनाथ जिनालय, नाकोड़ाः ना० पा० ती०, लेखांक ७९ (१९८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९५५) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १६१२ वर्षे श्रीआदिनाथबिंबं खरतरगच्छे प्रति० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ।। श्रीस्तंभतीर्थवा० ( १९५६ ) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १६१३ वर्षे शा० १४७७ प्र० ज्ये० शुदि ११ शनौ छाजहडगोत्रे सा० अमीपाल पु० नानायुतेन श्री आदिनाथपंचतीर्थीपट्टः का० श्रीखरतरगच्छे प्र० श्रीविद्यादानसूरिभिः कर्मक्षयार्थं । । ( ११५७) नालिमण्डप - प्रशस्तिः [१] संवत् १६१४ वर्षे श्रीवीरमपुरे ॥ श्रीशान्तिनाथचैत्ये मार्गशीर्षमासे प्रथम - द्वितीयादिने ॥ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये ॥ सश्रीकवीरमपुरे विधिचैत्येराजे । । प्रोत्तुंगचंगशिखरे तदेवराजे । सौवर्णवर्णवपुषं सुविशुद्धपक्षे । श्रीशान्तितीर्थ - प्रतिमाकृतशुद्धपक्षं ॥ १ [२] ॥ अर्हन्तमर्हतगतान्तलतान्तभक्त्या । श्रीशान्तिनामकमनन्तनितान्तभक्त्या । श्रीविश्वसेनतनुजं भजतात्मशक्त्या। सारंगलक्षणजिनं स्मरतोक्तयुक्त्या ॥ २ ॥ यस्यातीतभवेऽप्यकारि महता शक्रस्तवामर्षिणा। श्येनाकारभृता कपोततनुभृद्रक्षापरीक्षा [३] र्हतः। भोक्ता यौगिकयोगिचक्रिपदवीं साम्राज्यराज्यश्रियः । स श्रीशान्तिजिनोऽस्तु धार्मिकनृणां दातात्मसम्पच्छ्रियः ॥ ३ श्रीशान्तिदेवोऽवतु देवदेवो धर्मोपदिष्टा मुददायिसेवः । नन्तास्ति यस्यादिमवर्णनामा राज्योपमास्तस्य सुभक्तिनामा ॥ ४ श्रीधनराजोपाध्यायानामुपदेशेन । [४] पण्डित मुनिमेरु लिखितं ॥ सूत्रधार जोधा रंगा गदा नरसिंगकेन कोरितानि काव्यानि चतुष्किकामूलमण्डपे || शुभं भूयात् ॥ राउल श्रीमेघराजविजयराज्ये श्रीशान्तिनाथनालिमण्डपो निष्पन्नः । । ( १९५८ ) पौषधशाला - शिलालेख : वंदित ॥ ६०॥ श्रीलक्ष्मीराणी विलास वक्षतमान श्रीकोटड़ा खेरपुर पृथ्वीराजनराधिप.. खरतरसाधुचूडामणि श्रीमजिनचंद्रसूरि सुगुरु पिठिपादश ? स्तुतिः ॥ १ ॥ संवसारं मुनि प्रहग्म रासंदुमान । विशाख मासि सितम नवमी पधराना ? सिधवरणो धर्मशीलो पाठकः ॥ २ ॥ युग्मं ॥ संवत् १६१४ वर्षे वैशाख सुदि ९ तिथौ बुधवारे श्रीकोटड़ानगरे । । राणा श्रीपृथ्वीराजविजयराज्ये ॥ श्रीबृहद्खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिसंताने श्रीजिनचंद्रसूरि - श्रीजिनसमुद्रसूरिश्रीजिनहंससूरि-श्रीजिनमाणिक्यसूरि-पट्टपूर्वाचलसहस्रकरावतार श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वर प्रवरधर्मकथानुयोग श्रवणप्रवण श्रवणान वसति करावण जात श्रीजैन। श्रीसुविदितणा हंसधन निर्मापिता पौषधशाला श्रीमद्देवगुरुप्रसादिना चन्द्रार्कं चिरंजयतात्। श्रीरस्तु कल्यामस्तु ॥ श्रीः श्रीः श्रीः ११५५. चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय, कड़ी: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७४० ११५६. शांतिनाथ देरासर, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १२५७ ११५७. शांतिनाथ जिनालय, नालिमण्डप का शिलालेख, नाकोड़ा : ना० पा० ती०, लेखांक ८१; प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४१७; य० वि० दि०, भाग २, लेखांक ५, पृ १९९-२०० ११५८. शीतलनाथ जी का मंदिर, कोटड़ा, बाडमेर : बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ४० खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only १९९ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५९) शिलापट्ट-प्रशस्तिः [१] ॥ संवत् १६......४ (१४) वर्ष भाद्रवा सुदि १२ सोमे राउल श्रीमेघराज विजै राज्ये श्रीखरतरगच्छे जिनचन्द्रसूरि विजै राज्ये। [२] सूत्रधार जोधा सूत्रधार सामल सुरताण उदा सोजिग गोदा रूपा ईसर श्रा थीपा। [३] उजल। (११६०) आदिनाथ-चतुर्विंशतिः ॥ संवत् १६१५ वर्षे । वैशाख वदि ६ दिने श्रीओसवंशज्ञातीय वधसाजन्य (वृद्धशाखायां) संखवालगोत्रीय सा० राजा भार्या बाई चोली सुत सा० पंचायण भा० लाछी सुत सा० पदमसी भ्रा० तेजसी पुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरभाणसालीअगच्छे श्रीय(जि)नचन्द्रसूरि प्रतिष्ठितं जैसलमेरवास्तव्य। __ (११६१) पार्श्वनाथ: सं० १६१५ वर्षे वैशाख वदि ६ श्रीओसवंशे संखवालगोत्रे सा० राजा पुत्र पंचायणेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० खरतरगच्छे श्रीज्ञानचंद्रसूरिभिः (११६२) आदिनाथः ॥ सं० १६१५ मग व ६ श्रीआदिनाथबिंबं श्री लोह.. .................................. प्रति श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (११६३ ) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १६१५ वर्षे माह वदि ६ दिने शुक्रवारे श्रीपत्तनमध्ये ओसवालगोत्रे सा० छराज (?) भा० श्रीकमलादे पुत्र सा० कमा भार्या कउडिमदे पुत्र सा० सूर्यमल्लादिपरिवारयुतेन श्रीशांतिनाथबिंब कारितं स्वपुण्यार्थं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (११६४) वासुपूज्य-चतुर्विंशतिः संवत् १६१६ वर्षे वैशाख वदि ६ दिनौ। ओसवालज्ञातीय राखेचागोत्रे म० हीरा भार्या हांसू भा० हीरादे पुत्र देवदत्त भा० देवलदे सुत उदयसिंघ रायसिंघ कुटुंबयुतेन म० देवदत्तेन श्रीवासुपूज्यचतुर्विंशतिपट्टः कारापितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्री॥ __ (११६५) सीमन्धरस्वामी: || सं० १६१६ वर्षे वइसाख सुदि ६ बहुरागोत्रे सा० श्रीवन्तेन श्रीसीमन्धरस्वामीबिम्बं का० प्रति० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। ११५९. शान्तिनाथ मंदिर, चौकी मण्डप का, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ८० ११६०. ऋषभदेव मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०१३ ११६१. विमलनाथ जिनालय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४४० ११६२. शान्तिनाथ जिनालय (भंडारस्थ प्रतिमा), नाकोड़ाः ना० पा० ती० लेखांक ८२ ११६३. जैनमंदिर, पंचोटी, पाटण: भो० पा०, लेखांक ११८९ ।। ११६४. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९२६ ११६५. शान्तिनाथ जिनालय, (भंडारस्थ) नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ८३ (२००) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९६६ ) शांतिनाथ पञ्चतीर्थी: सं० १६१६ वर्षे असाड सु० ५ गुरु श्रीमहिता आणपुत्र सहसकीरण भार्या रंगादे श्रीखरतरगच्छे जिनसिंघसूरिभि: शांतिनाथबिंबं प्र० का० ॥ ( १९६७) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १६१६ वर्षे श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ( ११६८ ) पादुकालेखः सं० १६१७ मार्गसिरसुदि ८ दिने श्रीगौतमस्वामी श्रीजिनचन्द्रसूरि श्रीजिनकुशलसूरि श्रीजिनसमुद्रसूरिपादुका का० सा० महमाकेन प्रति० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभि: (?) ॥ ( १९६९ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १६१७ वर्षे पौष वदि १ गुरौ ओसवालज्ञा० सा० सहसवीर भा० सिरियादेपु० सा० सकलचन्द्र लषा-जसा- रतायुतेन च श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसिंहसूरिभिः ॥ ( ११७० ) चन्द्रप्रभ - पञ्चतीर्थी: संवत् १६१७ वर्षे फाल्गुन सुदि पंचमी दिने बृहस्पतिवारे शुभवेलायां कटारीयागोत्रे सा० हरखा भार्या रत्नादे पुत्र रतू सा० जूवा भार्या जवणादे पुत्र नीरजी प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे प्रतिष्ठितं युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः कल्याणमस्तु ॥ श्री श्री ॥ ( ११७१) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १६१८ वर्षे मार्गसिर वदि ५ दिने सोमवारे चोपड़ागोत्रे मं० कुसला आसकरण रणधीर सहसकरण सपरिवारेण श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारापितं स्वश्रेयोर्थं प्रतिष्ठितं श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ ( ११७२ ) सुपार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: .सं० १६२२ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमवारे उपकेशवंशे राखेचागोत्रे साह आपू तत्पु० साह भांडाकेन पुत्र सा० नींबा माडु मेखा। हेमराज धनू । श्रीसुपार्श्वबिंबं कारापितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टाधिप श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं शुभमस्तु । ११६६. बावन जिनालय, पेथापुर: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ७०८ ११६७. महावीर जिनालय, आसानियों का चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८९१ ११६८. महावीर स्वामी का मंदिर, मणीयाती पाड़ा, पाटणः भो० पा०, लेखांक ११९४ ११६९. अजितनाथ देरासर, सुतार की खड़की, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १३५२ ११७०. जैन मंदिर, शाह का पाड़ा, पाटणः भो० पा०, लेखांक ११९५ ११७१. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९४२ ११७२. वासुपूज्य जिनालय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १३९१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only ( २०१) Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७३) सद्गुरु-पादुका-लेख: सं० १६२२ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे श्रीओसवंशे शंखवालगोत्रे सा० कोचरसंताने सा० देवापुत्र सा० भोजापुत्र सा० ताल्हणभार्या रंगादेपुत्र सा० वच्छा भा० वल्हादे वइजलदे पुत्र सा० हीरजी सा० सूरजी वीरजी सपरिवारान् श्रेयोऽर्थं सद्गुरुपादुकानि कारापितानि श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीअभयदेवसूरि श्रीजिनवल्लभसूरि श्रीजिनदत्तसूरिपट्टानुक्रमे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि प्रतिष्ठितानि सुखंभवतु॥ (११७४) यंत्रलेखः [१] संवत् १६२२ वर्षे वैशाख सुदि ३ भौमे श्रीओसवंशे संखवालगोत्रे सा० कोचर संताने सा० देपा पुत्र सा० भांदा पुत्र सा० भोजापुत्र सा० काल्हण भार्या रंगादे पुत्र सा० नीबा भार्या धरमाई पुत्र सा० कजा सा० कमलसी सपरिवारेण श्रेयोर्थं श्रीजिनवल्लभसूरिगच्छे (? पट्टे) श्रीजिनदत्तसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टानुक्रमे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि प्रतिष्ठितं श्रीजिनदत्तसूरि श्रीजिनकुशलसूरि श्रीकीर्तिरत्नसूरि श्रीशासनदेवता इकवीसयंत्र श्रीपद्मावतीदेवी [२] श्री जिनदत्तसूरि श्रीजिनकुशलसूरि श्रीकीर्तिरत्नसूरि (११७५) मूर्तिः संवत् १६२३ ज्येष्ठ शुक्ल ५ महोपाध्याय युग प्र० विजयेन................... प्रतिष्ठितं जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसिंहसूरिराज्ये। (११७६) सपरिकर-पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः ॥ सं० १६२४ वर्षे आषाढ सुदि ६ उपकेश ज्ञा० सा० अर्जन सा० धर्मा तत्पुत्र लाडाकेन आत्मपुण्यार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ॥ (११७७) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १६२५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दिने ऊकेशवंशे बावड़ागोत्रे मं० वणराज तत्पुत्र सा० चांपसी तत्पुत्र सा० सुरताण वर्द्धमान सा० धारसी भार्या कोडिमदेव्या श्रीशान्तिनाथबिंबं कारापितं ..............पुण्यार्थं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः (११७८) अनंतनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १६२७ वर्षे वैशाख सुदि ३ शुक्रे ऊकेशवंशे रांकागोत्रे सा० पूना भार्या लाड़की पुत्र सा० सेफा भा० रेउ सा० भीम भार्या भरमादे पुण्यार्थं श्रीअनन्तनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनकीर्तिसूरिपट्टे श्रीजिनसिंहसूरिभिः॥ पत्तनवास्तव्य॥ ११७३. शान्तिनाथ जिनालय, जीरारपाड़ो, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं० , भाग २, लेखांक ७२९ ११७४. महावीर जिनालय, वाघणपोल, अहमदाबाद: भंवर० (अप्रकाशित), लेखांक ११७५. लाभचन्द जी का घर, देरासर, पुलिस हॉस्पिटल रोड, कलकत्ताः पू० जै०, भाग २, लेखांक १००५ ११७६. वासुपूज्य मंदिर, शेखपाडो, अहमदाबादः परीख और शेलेट - जै० इ० इ० अ०, लेखांक ८९१ ११७७. शीतलनाथ जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७०७ ११७८. जैनमंदिर, वखत जी की शेरी, पाटणः भो० पा०, लेखांक १२३७ (२०२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९७९) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १६२७ वर्षे वैशाख सुदि ३ शुक्रे ऊकेशवंशे गोठगोत्रे सोप श्रीवछ सोप ओला पुत्र सो० उदयकरण भार्या अछवोदे पुत्र सो० जसवीर । सो० नका सो० धवजी प्रमुखपरिवारयुतैः श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनसिंहसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्रीः ॥ ( ११८० ) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १६२७ वर्षे वैशाख सुदि ३ शुक्रे उकेशवंशे पिपलीयागोत्रे सा० गठिया भा० ववा लघुभ्राता पु० सा० वीरजी स्वपुण्यार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः प्र० ॥ ( ११८१ ) पादुकालेखः संवत् १६२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ दिने मंगलवारे सा० गोरा भा० गोरादे श्रेयोर्थं गुरुपादुकानि प्रतिष्ठिता श्रीजिनचन्द्रसूरिजी खरतरगच्छे | सा० चांपा संवत् १६२८ वर्षे ज्येष्ठ वदि. २ भ० श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ ( १९८२) सुपार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : . श्रीसुपार्श्वनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे ( १९८३ ) पार्श्वनाथ: संवत् १६२८ आषाढ वदि २ । मित्रवाल वंशी षी (वी) सेखारगोत्रीय सं० गनपति पु० स० तारात पुत्र हेमराज पार्श्वनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे जिनभद्रसूरिभिः ॥ शुभमस्तु ॥ ( ११८४) कीर्तिरत्नसूरि- पादुका ॥ संवत् १५२५ वर्षे वैशाख वदि ५ दिन श्रीवीरमपुरे श्रीखरतरगच्छे श्रीकीर्तिरत्नसूरीणां स्वर्गः तत्पादुके संखवालेचागोत्रे सा० काजल पुत्र साह त्रिलोकसिंह खेतसिंह जिणदास गउडीदास कुसलाकेन भरापितै सं० १६३१ वर्षे मार्गशिर वदि ३ प्रतिष्ठितं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ १९८५) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ नागपुर संघस्य ॥ संवत् १६३३ वर्षे माह वदि ५ दिने श्री जिनकुशलसूरि ॥ लेखांक ११०६ ११७९. पंचायती मंदिर, लस्कर, ग्वालियरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १३८८ ११८०. पार्श्वनाथ देरासर, देवसानोपाडो, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, ११८१. मनमोहन पार्श्वनाथ जी का मंदिर, खजूरीपाडा, पाटणः भो० पा०, लेखांक १६०६ ११८२. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, रोशनमुहल्ला, आगराः पू० जै०, भाग २, लेखांक १४४८ ११८३. गाँव का मंदिर, राजगीर : पू० जै०, भाग २, लेखांक ९८४५ ११८४. शान्तिनाथ जी का मन्दिर, नाकोड़ा: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ४६८; पू० जै०, भाग २, लेखांक १८८५ १९८५. दादाबाड़ी, नागौर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०२९ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: खरतरगच्छे For Personal & Private Use Only (२०३) Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११८६) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १६३८ वर्षे माह सुदि १० दिने श्रीऊकेशवंशे । छाजहड़गोत्रे सा० चाचा तत्पुत्र सा० अमरसीकेन कारितं श्रीअजितनाथबिंबं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः (११८७) अजितनाथ: संवत् १६३९ माह सुदि ५ तिथौ गुरुवारे ............................. उसवालज्ञातीय लोढागोत्रे सं० मेघराज पुत्र सं० हरषा पुत्र पं० समावरा आदियुतेन श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनदेवसूरिपट्टे श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ शुभंभवतु ॥ श्रीः।। (११८८) सकलचन्द्र-गणि-पादुका ................. वर्षे ......................... सुदि ३ दिने शनौ सिद्धियोगे श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यमुख्य पं० सकल ..............चरण पादुका श्रीखरतरगच्छाधीश्वर युगप्रधान प्रभु श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ...................... ... रीहड़ जयवंत लूणाभ्यां कारिते ........... (११८९) पादुकालेखः ॥ संवत् १६४० वर्षे भाद्रवा सुदि १३ दिने श्रीखरतरगच्छे श्रीविक्रमनगरे वा० अमरमाणिक्य() नां पादुका ॥ (११९०) पादुका ॥ ऐं० ॥ १६४० वर्षे भाद्रवा १३ दिने । श्रीखरतरगच्छे वा० श्रीदे.............. पादुका श्रीविक्रमनगरे । (११९१) पौषधशाला-लेखः ' ............सुरत्राण साम्राज्ये श्री.....................श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीमत्जिनदेवसूरि ...श्रीजिनसिंहसूरीणामुपदेशेन संघेश................ रायमल भारमलौ रायमल आर्या रंगादे पुत्री देव.......................साधर्मिकवात्सल्यपर्वपारणा-पुस्तक-लेखन-दान ................प्रमुखपुण्यप्रसवसावित्री सं० जीवा सं० जयवन्त ...............राज भीमराज प्रमुख भ्रातृसौहार्दधारिणी स्व ................. पुण्यप्रभाविका वीरा नाम्नी पक्षशाला द्वार ..............अकारयत् अपवरक बृहत्शालाविधाने चतुर्थांस प्राददाच्च सा चतुर्विधसंघेन सेव्यमानं चिरं नंद्यात्॥ वर्षे व्योमार्णवेन्दूज्वलकिरणचिते [१६४०] फाल्गुने वल्गु मासि। श्रीमत् श्रीजैन ................खरतरगणप (?) सूपदेशैस्त्वदीयैः। सप्तक्षेत्र्यां ..............धनमधिकतमा ...........त सद्धर्मसेवा। वृद्ध-श्रद्धालु-दात्री सुतविमलमते रायमल्लस्य पुत्री। वीरा नाम्न्याहती ..............पि ११८६. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी० लेखांक १४३२ ११८७. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मेड़तासिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०३७ ११८८. चौमुख स्तूप, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२८७ ११८९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५ ११९०. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ५३ ११९१. उपाश्रय, महावीर मन्दिर, भोपालगढ़ (बड़लू): (२०४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सघनतरैभरशालां विशाला। मप्यन्यां पार्श्वशालां विपुलवृकृते-कारयद् भव्यभावात् । तुर्यांशं पुण्यपूर्णं द्रविणप्रददौ तूच्चशाला विधाने। नन्द्याद् धर्माश्रयोयं जननयनमुदे...........व विजली व॥ श्रीजिनदत्तयतीन्द्राः॥ श्रीमज्जिनकुशलसूर ..................कुर्वन्तु ...............। (११९२ ) जिनदत्तसूरिपादुका सं० १६४४ वर्षे माघ सुदि ५ दिने सोमवासरे फलवर्धिनगर्यां श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका मंत्री संग्राम पुत्रेण मंत्री कर्मचन्द्रेण श्रेयोर्थं कारापितं । (११९३) शिलालेखः १. ॥ ० ॥ स्वस्ति श्रीशांतिकल्पद्रुः कामितार्थफलप्रदः। सच्छायः षु(सु)मनः संघ। समृध्येतत्ताच्चिरम् ॥ १ श्रीविक्रमनृपसमया। संवृति र२. ससिंधुदर्शनेंदु १६४६ मिते सोमे विजयदशम्यां। श्रवणहिते श्रवणनक्षत्रे ॥ २ पातिसाहि श्रीअकब्बर राज्ये ॥ श्रीअहम्म३. दावादनगरे ॥ शासनाधीश्वर श्रीवर्धमानस्वामिपट्टाविच्छिन्नपरंपरायात। उद्यतविहारोद्योति श्रीउद्योतनसूरि ॥ तत्पट्टप्र४. भाकरप्रवरविमलदंडनायककारितार्बुदाचलवसतिप्रतिष्ठापक। श्रीसीमंधरस्वामिशोधित सूरिमंत्राराधक। श्रीवर्ध५. मानसूरि ॥ तत्पंट्ट० अणधि(हि)ल्लपत्तनाधीशदुर्लभराजसंस। ज्वैत्यवासीपक्षविक्षेपाशीत्यधिक.. दशशतसंवत्सरप्राप्तखर६. तरविरुद श्रीजिनेश्वरसूरि। तत्पट्ट० श्रीजिनचन्द्रसूरि ॥ तत्पट्ट० शासनादे उपदेशप्रकटित। दुष्टकुष्टप्रमाथहेतु। ७. श्रीस्तंभनपार्श्वनाथ। नवांगाद्यनेकशास्त्रविवरणकरणप्राप्तप्रतिष्ठ श्रीअभयदेवसूरि ॥ तत्पट्ट० लेखरूप[द्वा]दशकुल८. कप्रेषणप्रबोधि वागडदेशीय दश दश शत श्रावक। सुविहितनिजकठिनक्रियाकरण। . . पिंडविशुद्धयादिप्रकर९. णं। जिनशासनप्रभावक। श्रीजिनवल्लभसूरि ॥ तत्पट्ट ० स्वशक्तिवशीकृतविकृत चतुष्षष्टियोगिनीचक्र। द्विपंचा१०. शद्वीर सिंधुदेशीयपीर। अंबडश्रावककरलिखितस्वण्र्णाक्षरवाचनाविर्भूत युगप्रधानपदवी समलंकृत पंचन११. दीसाधक श्रीजिनदत्तसूरि ॥ तत्पट्ट० नरमणिमंडितभालस्थल। श्रीजिनचंद्रसूरि त० भ० नेमिचंद्र . परीक्षित। प्रबोधो१२. दयादिग्रंथरूप षट्त्रिंशद्वादसाधित विधिपक्ष। खरतरगच्छस्वच्छसूत्रणा सूत्रधार। श्री जिनपतिसूरि ॥ तत्पट्ट० प्रभा० १३. लाडउल-विजापुर-प्रतिष्ठित श्रीशांतिवीरविधिचैत्य श्रीजिनेश्वरसूरि ॥ तत्पट्ट० श्रीजिनप्रबोधसूरि ११९२. दादाबाड़ी रानीसर, (पोखरण) फलौदी: प्र० ले० सं० भाग २, लेखांक ७५२ ११९३. शिवासोमजी का मन्दिर, अहमदाबाद: निर्ग्रन्थ, भाग १, प्र० १९९५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (२०५) For Personal & Private Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त० राजचतु०१४. ष्टयप्रतिबोधोबुद्ध राजगच्छसंज्ञाशोभित श्रीजिनचंद्रसूरि ॥ तत्पट्ट० श्रीशत्रुजयमंडनखरतरवसति प्रतिष्ठा१५. पक स्वगच्छप्रतिपालनबद्धकक्ष विख्यातातिशयलक्ष श्रीजिनकुशलसूरि ॥ त० श्रीजिनपद्मसूरि ॥ त० श्रीजि१६. नलब्धिसूरिं। त० श्री जिनचंद्रसूरि। त० देवांगनावसरवासप्रक्षेपोदित संघपतिपदाद्युदय श्रीजिनोदयसूरि१७. त० श्री जिनराजसूरि ॥ त० स्थान(ने) २ (स्थाने) स्थापित सारज्ञानभांडागार श्रीजिनभद्रसूरि त० श्रीजिनचंद्रसूरि ॥ तत्पट्ट० १८. पंचयक्षसाधक विशिष्टक्रिय श्रीजिनसमुद्रसूरि ॥ तत्प० तपोध्यानविधानचमत्कृत-पातिसाहि पंचशतबंदि॥ १९. मोचन सम्मानित श्री जिनहंससूरि। त० पंचनदीसाधकाधिकध्यान-बल शफलीकृत यवनोपद्रवातिशयविराज२०. मान जिनमाणिक्यसूरि तत्पट्टालंकार दुर्वारवादिविजयलक्ष्मीशरण। पूर्वं क्रियासमुद्धरण श्रीजिनचंद्रसूरि विज२१. यि राज्ये ॥ पंचविंशति देवकुलिकालंकृतं । श्रीशांतिनाथविधिचैत्यम् प्रभूतद्रव्यव्ययेन समुधृद्धि) तम् समूलम्। श्रीः . २२. ॥ देवगृहकार्याध्यक्ष मंत्रि सारंगधर देवकर्ण । शत्रुजय-संघाधिपति मं० जोगी। सोमजी। शिवजी। सूरजी। लघु॥ २३. सोमजी। सा० कमलसा। सा० माना। सा० गद्दा। यादव। भाथा। सा० अमीपाल। पच्चा। सा० अमरदत्त । कुंअरजी। प्रभू२४. तद्रव्यवितरण सान्निध्यकारक। श्रीश्रीमालीज्ञातीय सा० जीवा। सा० धन्ना। सा० लक्ष्मीदास। सा० कुंअरजी। मं० २५. वच्छराज पं० सूरजी। हीरजी। मं० नारायणजी। सा० जावद्धा। सीता। प० धन्नू। भ० राजपाल। सा० जिणदास । गू० लक्ष्मी२६. दास। नरपति । रवा। सा० वच्छा। दो० धर्मसी। सिंघा । मं० विजयकर्ण । मं० शुभकर । सा० कम्मा। ए० रतनसी। कर्म२७. सी। सा० राजा। मुला। वारुणी(?) सा० देवीदास। सं० लषमी वुप-जीवा भू० पोपट। रत्ना। कचरा। सा० नयणसी। सा० क२८. ष्णा: कीका। सा० वीरजी। सा० रहिया कुदा। लषमण। सा० नउला। गोपाला सधुआ। लाल। सोमजी २९. मता कुंभा। मं० राघूवा। उदयकर्ण। सा० द्योमसी। नेता धनजी। शिवा। सूरचंद प्रमुख श्री खरतरगच्छीय संघेन ॥ याव पूषा आसोमौ नंदतु । ३०. लिखितेयं ॥ पं० सकलचंद्र गणि पुरस्कृत।वा० कल्याणकमल गणि वा० महिमराजगणिभ्याम्॥ श्रावक पुण्यप्रभा (२०६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१. वक हारिता ।। भा० श्राविका वीराई पुत्री हांसाई। मंगाई प्रमुख सहित ७ कोरिता गजधर गदुआकेन (११९४) शिलालेखः १. ॥ दण्॥ स्वस्ति श्री॥ संवत १६४६ वर्षे ॥ अ(आ)श्वयुक् पूर्णिमास्यां(यां) १५ शनौ ॥ श्रीखरतरगच्छे२. श्रीमज्जिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार-श्रीजिनचंद्रसूरि विजयिराज्ये ॥श्री राज३. धान्यां(याम्) ॥ श्रीशांतिनाथविधिचैत्य जगती। ब्रामेचा गोत्रे सा० हीरा पुत्र सा० गोरा ४. नाम्नः पुण्यार्थं सा० लक्ष्मीदास सा० सामीदास। सा० उदयनाथ। सा० रायसिंघा५. भिधैः पुत्रैः श्राविका गोरादे। लाडिमदे। आसकरणादिपरिवारसहितै(तैः) ६. देवकुलिका कारिता॥ चिरं नंदतु॥ श्रीजिनकुशलसूरि प्रसादात् (११९५) शिलालेख: १. ॥र्द० ॥ संवत १६४६ वर्षे ॥ आसोज सुदि १० विजयदशम्याम् ॥ श्री सोमवारे २. श्रवणनक्षत्रे ॥ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार ३. श्रीजिनचंद्रसूरि विजयिराज्ये ॥ उकेशवंशे श्रीशंखवालगोत्रे॥ ४. साह सामल तत्पुत्र साह डंगर भार्या श्राविका लाडां। पुत्ररत्न मा० धन्ना५. केन सा० वन्ना सा० मिहाजल सा० धर्मसी प्रमुखसारपरिवारसहि६. तेन। श्रीराजधान्याम् श्री शांतिनाथविधिचैत्यजगत्यां । देवकुलिका७. कारिता । स्वश्रेयोर्थम् ॥ पूज्यमाना। चिरं नंदतु । श्री जिनकुशलसूरिप्र८. सा० धानानी देरी। सधथा पाथमणी (११९६ ) शिलालेखः १. ॥संवत १६४६ वर्षे । आश्विन सुदि १० विजयद२.. शम्यां सोमवारे। श्रवण नक्षत्रे। श्रीखरतरगच्छे। ३. श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकारसार श्रीम४. ज्जिनचंद्रसूरि विजयिराज्ये श्रीमदूकेशवंशे ५. शंखवाल गोत्रे साह सामल तत्पुत्र साह डुंगर त६. द्भार्या लाडा श्राविकाया पुत्र साह धन्ना साह ७. वन्ना साह मेहाजल साह धरमसी प्रमुखपुत्र८. पौत्रादिसारपरिवारसहितेयं श्रीमदहम्मदा९. वादनगरे। श्रीशांतिनाथविधिचैत्यजगत्यां दे१०. वकुलिका कारिता स्वश्रेयो) श्रीजिनकुशल ११९४. शिवासोमजी का मन्दिर, अहमदाबादः निर्ग्रन्थ, भाग १, प्र० १९९५ ११९५. शिवासोमजी का मन्दिर, अहमदाबादः निर्ग्रन्थ, भाग १, प्र० १९९५ ११९६. शिवासोमजी का मन्दिर, अहमदाबादः निर्ग्रन्थ, भाग १, प्र० १९९५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (२०७) For Personal & Private Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११. सूरि गुरुप्रसादात् पूज्यमाना चिरं नंदतु ॥ शुभं। १२. ॥ श्राविका लाडानाम्निकया देवकुलिका कारितेयं ।। (११९७) शिलालेख: १. ॥र्द० ॥ स्वस्ति श्री संवत् १६४६ आसो सुदि १० २. दिने॥ श्रीबृहत्खरतरगछा(च्छा)धीश्वर श्रीजिनमा३. णिक्यसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरि वि४. जयराज्ये ॥ श्रीब्राह्मेचा गोत्रे साह हीरा तत्५. पुत्र साह गोरा भार्या गउरादे। लघु भार्या जीवादे ६. तत्पुत्र साह लषमीदास । साह सामीदास। साह ७. उदे(द)यसिंघ साह रायसिंघ ॥ श्राविका दाडिमदे ८. श्राविका भगतादे पुत्र आसकरण प्रमुखसारपरि९. वार सहितः। श्रीराजधान्यां। श्रीशांतिनाथविधि१०. चैत्यजगत्यां स्वपितृपुण्यार्थं देवकुलिका कारिता। (११९८) शिलालेख: १. ॥र्द० ॥ संवत १६४६ वर्षे आश्विन सुदि १० विजयदशम्यां २. सोमवारे। श्रवण नक्षत्रे । श्रीबृहत्खरतरगच्छे । ३. श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसू४. रि विजयिराज्ये ॥ श्रीमदूकेशवंशे॥ श्रीशंखवा५. ल गोत्रे ॥ साह सामल तत्पुत्र साह डुंगर तद्भार्या ६. श्राविका लाडा तत्पुत्ररत्न साह धन्नाकेन । साह ॥ ७. वन्ना साह मेहाजल साह धरमसी प्रमुख भ्रातृ८. पुत्रादिसारपरिवारसहितेन। श्री गूर्जरप्रदेश ९. राजधानी श्रीमदहम्मदावादनगरे। श्री शांतिना१०. थ विधिचे(चै)त्यजगत्यां देवकुलिका काल(रि)ता॥ स्व११. श्रेये(यो)र्थम् ॥ पूज्यमाना चिरं नंदतु ॥ श्रीजिनकुश१२. लसूरिप्रसादात् कल्य(ल्या)णमाला॥ समुल्लसतु॥ (११९९) आदिनाथः संवत् १६४७ वर्षे वैशाख सुदि ३ शुक्रे ऊकेशवंशे गादहीयागोत्रे सा० समा भार्या सूहवदे पुत्र सा० छाजू भार्या रजाइ पुत्र सा० पासधीर सा० सहसवीर पुत्र............. पुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरीणां पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनशीलसूरि-श्रीजिनकीर्त्तिसूरीणां पट्टे श्रीजिनसिंहसूरिभिः। श्रीरस्तु। पत्तनवास्तव्य। ११९७. शिवासोमजी का मन्दिर, अहमदाबादः निर्ग्रन्थ, भाग १, प्र० १९९५ ११९८. शिवासोमजी का मन्दिर, अहमदाबादः निर्ग्रन्थ, भाग १, प्र० १९९५ ११९९. वखत जी की शेरी, पाटणः भो० पा०, लेखांक १२६३ (२०८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jairt Education Internal For Personal & Private Use Only Fer Personal & Porvalo de Only सं० १४७३ प्रतिष्ठित, पार्श्वनाथ मन्दिर, जैसलमेर, लेखांक १४७ । पार्श्वनाथ मन्दिर प्रशस्ति तादिनिमताफलतिरंगविधनानिरवधिसमोनयशसावाय रितविनाशकोपिलाता नडिगाडयनियमानानीहासिहा हातनमानमहति प्रशन्नमवादास्तादिम: रु॥२ऊ के शवविशदप्रशाशरंकाहायपिऊलपदातोश्रीजालदेवमनरासदेवनका वाड़वाबाटानाविश्वटीविशुतमामयन्त दगडोमचलनामध्यरातताविवाहातनद्यांजा तामामधानाकि ललीम सिंह सुतिगतु डॉगपादवाम बादावाक्तवपक्षमस्ताना मघमघाऊसलामादागाचरितामतनयानयातायातमाशङशलस्ासनावागा। सनवमयाबःप्राशायरोजादोपलरामृतीयकवादतमान नोदासाहपूर्वरादशमलाका शव:त पवा श्रीदिवरारतसविस्तरतायावादावसधा सवता५२वा (नानादयसा संक्तियतिधोत्सवालादेोदकपलवित कमनीयकीर्तिवलीवत: 07चक्षामनरामसार सजा दशमकरंदमारामजातसंघाविपदवीकारजसस०शावाकडीयानयादरतालाक्षिा सतमान मरायावावरूवातानमा माद वसनीहर:मनकादायबरच गावातिन:itiranडोमदीराजानातावामानाबानामलराजलवशासिम दसरात नामक !! तहत श्री तिन राजारासदज्ञासरसादासनवताधीशमाकनारमाध्यानानिरमाया सं०ीदारानतिमिमाकाहानाधारातेकागतीश वारदहविमलदत्तलमादिकाता करसिंह हातातपासदतोम ताहाराजोसाघुजी वंदऊपधन्त्रां गताः मुनालापालनहानामा तिविनायघाालीमसिंदमापात्रातूंचालणसमसमाजयासहीनरासदाला। वाला तत्रासाजयसिंह म्यरूपावितिसतानारसिंहानसा जादासनवराततपास राऊन प्रिनि कलंकालावताधर्मगिदिनिकलक नकलीतच शहारता या सामवायाप्रवानगीतिनदसूर्ययात्रीनिनऊशलमूत्रा जपदासरशी जिननस रिश्री सनद सूरिश्रीनानादयनरथाजा तातपोशाजनरासयबादेशमतपत्रारत समारसाराततश्रीवदिशतिद्वारा श्रीजिन वहनयानयाताम्रपत्रातुशलमातबालकर रारा जयविनायनिROMEBlauदिननि:श्रीनिनवहनमति:प्रायकान्यास दिनानयमिहनरसिमामासमटायलारितपासावनियामहाडनावपतिमानित इति वाजय गरग शिविरचिताशतिरिसमुत्कारामित्रधारहापाकननिदतवा Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ jainelibrary.org सम्भवनाथ सं० १४१७ प्रतिष्ठित, सम्भवनाथ मन्दिर, जैसलमेर, लेखांक २८८ मंन्दिर प्रशस्ति नाना पाकला मेन्यू: । तपःकल्प ह क मिधिपतिः पार्थना हो जिनंदः श्रीमंघमितानिप्रमादाशकत्र का (नवद्यःप्राकतिकामा विज्ञान कि बाल या मंगल- श्री फलादाः सुविन द म त मधानी याद करदास तुमावितासति तद शिवकाः स स सर्वतः ॥ . क ना एक लाम मे कुसूमः संपतो वामन वारिवादावर जाद लिए श्री देवावृता शसादविताना मूल नाम मात्र ३ चियामा दी।४ प्रकार व विनासु लिने से बावनी एशिया सदमिदंगे के दि शिल सावदे तु तितति मा नि त जिमन मे ना मन गरे जी. या जननायके ॥ द्यदुना बाक नवीन मिला हो जनप्रदर हुनेवाः तेना मोललते शिवसेना दातारे आयोका नाममा तिनवति श्राघातः ६ श्री मिनाना पहिल्या दुःखालिका (३ ता सत्रमा सवसनीय दुराज देहात मिश्री यादववाह एलीत सिंह मूल राजन सिंह राउल श्री दारा श्री घट (मंद मूलवाड व देवराना माना जा तो केसरीमा के मयूराक मी दिवा मेदानंदा अकाल मि६ या ॥ १ श्रीमहि स दिवार श्रील पर पति विडेल का एल देता श्री लहजे से सा दिन ध्याय करय हा सकने लाल गरामा मिवानि गृधात ॥ तदीन सिंहासन पूर्व बिल प्राप्ता दाया तक ती तिला वि नासात विमा निक्का ॥२॥ कले श्री खर तर विविक श्री वर्धमाना निजिताः मादक इच ट्रक दुलराज पदि विवाद प्राप्ते खवं तर देऊन (लाॐ ततः कामए श्री जिनवेदमूनि नवी गीतिकार श्री नगई ना89 कटी कार श्री शु दिवस रिचार्ड दिपकरण कार श्रीनिवासेविकादिवता की शितगुन पद श्री ॐ नम विश्री जिनवं विश्रतिपति श्री जिन घर सूरि श्री जिनबा यस विश्री जिम व ३ सरिश्रीजि नऊशल श्री जिनपासूर श्री जनति श्रीजिनचंद्रसूरयः श्री निशामनं प्रनामिती जिलादयाः प्रकाशित प्रा. मला जिनो देयाः कला एवा है दशवाजि नोया घाजहंसाचल व डिनोदय जिनराज विड़: कलमान निनतामा सन्मान सहित नयः स दाम एली श्रिता विमला भारतत्य ॥ येमि हौ तदिदार सारच उरायाना श्रीडिताः सत्यः श्रोल निभायन्ती वित्त विज्ञान कारी श्रीमंघानिय तो मार्वनीन मानव वनं ते सोलताच विकट नरक निविदा निमाविताः श्रा इवावे विदा दि कटक र प्रमुख छाने व कार्य ज्ञानको शदिदिया ज्ञानपुर तट का दिनेगरे आये नवरदान विनियत मर ॥४ जाने का प्रयता का दि काम कार्य क्षण कति विद्यादपक रानापक तिवसा (विज्ञान सारक पन नापनी नामये शिवम कृतिः किय विवि सिंह चैब के दाम किती इम दिपाले वेटर हूँ हैं मातरि ॥ ज्ञामद सम्म लिषाः मि होतममुद्र पार नलडती डा. विकसित राणा श्री गाः ॥ तिश्री गुरु वर्तनाटकं ॥ ॥ ॥श्रीमान किशीगादी व तारायानरमुकाम लेय वयात जनमंडनं ॥ श्त मिश्री के शर्वशिरोडा बारे (लादे मराजःत ढंगज: मा० नाक सदान्म: मा०दो तार की : मा० सौदा कर्मण देवस दिया साथ पाँच सा०वाकर सिंह नामान: टू (सा० चा नायक पाट सुचा शिवराम दीरा ला ला ला नाम काःविवाद: श्री सर्व साधकाःतिपोवटाः । पातील गिनी विकासावर व तयो: : ( रचः पुत्री दी गई। महिला यमिह लाटेत या सादामद सामाद्याः सु तिला रंग बिहान निर्यातीलाद असद पालामला (क) लाई नालाल मादित ढा शिवरा मामलामा जारथाः॥ त्या दिवि वारे में ताः श्रावका कार्यात मानाचतिहित वि॥ विकसति मामाची रेवत मिलिती से विशतेर निः॥२३ जुद्याप चितवन निवासावेर नि अधर्म कारा: । मिरा राज्यश्रीला नवीनः प्रत :कानिः संव१४०० वर्ष ॐ ॐमपत्रिका तिः सर्व दावा 202 : सहश्रावका नाम प्रति माह वः मा० शिवा हो: कामिद मिश्रजिनल इस लि सलवा 895 निर्दिनि ३०० तिता निशा सादर प्रतितः श्री नवनाथो मूलनायक विवाद सारसा० शिवम दिवालो लाला महादेः दिन] साभिक वादन्यं तं राज ल श्री विर सिंदिन सा के श्री माया विविध विधापितः श्री वेद सिंह नापित बार वो ददाः सुबोध व इसाले का दिन भरि मनिपतिश्रीराजनाय सादाम के ले सुत कार्य (सायकाना जिनकुशल लोक तास मुरदा नि सस्था जियारा दस दे तो विराड़ तादं सव देताना व यासादः संवेशामाद कार का प्रसाद विधितिष्ठति गरी हानी दिनदिनवता मराये (अगनितीश दंडया नृतः कामं जयंति। वालजतिनीरण गाउँदा निनादिन तत्प्रासादवित बिलाक तिल के वाद मुदा क्षत्रिय प्रासाद वितयं नं द्यो शिला कतिल मेडन त्रिविविन विद्या वंदित त्रिजगज निशा सोना यता नियोमम विद्यादाय काः क विग जे डाः श्री जटा सागर गुदा विजय तिवाद का विप्राः ॥६ शिल्या के वनाचा यवतीत साम.ॐ ॐ. का पता मे विदितानि वाचनीयादिवः ॥ ॥ श्रीः॥ श्रीः ॥ श्रीः ॥ लिखितान्तानुगणि सर्व संस्था या कविचानि: ३|| दस्य जिनसे नगविश्वावित्ये काडी इंद्र दाम शिव देवेन प्रशत्रिक द का विच ॥११ सार किय माध्य व विशेषज्ञताया विता में खयामा सजिवाला महामुनिधार ॥ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Deशिक्षिश्रीवाडीपरपाखिन संधचित्यकावाव्यालक्ष्मीदेवयान नसंख:करोउसदार श्रीवाडीपुरपानावत्याश्रीवत्स्वानरगुडपहायला मिस्खमपूर्वेधशारितालमताईनन्याग्यातिमाहिनीवरराज्यामयसमा वात्सवातापामारासिननवमादिवसोमवाराहनपदमदानापावेला योश्रादिपानावासनाधावाश्रीमहावीरवामिपाविधिनयरपस्यरउद्यानवहारोटा किया उद्यान्नमशिसत्यापनाचारवरविमलदंडनायककारिताबदावलसतितिहारका आसीधर खानिEिARमेवाराधकीवईमानस्वरातत्यहाअगदपतनाथ लेजरावसाहत्यवासिपदविकृयाशीत्यधिकचाशतमवझरधानखरतरवि श्रीलरशिरत्याग्रीसिनवदमाशतत्पEDIशासनादिकरदिवाकरात 5212माधाहम्मतनपानाहानयोगीपाद्यानकशासकरपात्र विश्री मलयादवकसितत्पहारलस्वरुपवाफलकवणवातिनागदरायदवासह सावकामविदितहिनकदिशक्रियाकरलपिडाध्यादिप्रकर0पुरूषणानशासन चुनावकुसाक्रिनवलत्तारातत्यरातिदेवीकृत:थाशिनावकाचा शक्षामिकादशीयताराकोबमष्टावककलिरिवनखणकिरवाचनाविनयुगका नादवाममलतपंचनदीपराधकश्रीहिनदस्तशितत्याशीमालवानादिमन मरतीयाणप्रतिानाधकानउमसिमेहतनालालचीनमशिनगारीने मसंपादितपवासियादिवरूपबशक्षादयाधितविधिवत्रीनिवा तत्पशालाउलीडारतिविम्श्रीशांतिवीरविधिवित्पीहानश्वरमशिलत्यह ॥श्रीडिनपखाधनप्रशितत्यानाडवउश्यापतिबाबुराऊगडावशोनिता प्रीङिनवेदमशिनत्यहपाश्रीवाडयमंडनवरतरवसतितिष्ठापक विस्त्यात नेवायलदायीकिनकवालस्तशिनत्यहाश्रीझिनमद्रासशितत्पश्रीडितलाथम haपाश्रीनशरिरातत्यादिवानादसरबास कपादिसंघana दियश्रीनिादयतारातत्परपीडनराडासशिपहरवानगनस्वापर सौरज्ञानतांडागास्त्रीसिनलडशिपहपाश्रीजानवइमारतत्पहार रूसाधेकविशिष्टकियही जिनसमुद्धराशनत्यहातापाध्यातविक्षनचमक हासिकदरपातिसाहितबदामाचमसम्मानिनश्रीडिनमसरातत्यहा विशदीमालेकादियानबलवाकलीकरयानाएवानियाaरामान नमाणिक्यस्यानाहालकारमारऽवरिवादिवि लक्ष्मीबाणकि राससुझरणस्वानस्वानप्राशप्रतिदिनक्षमा नादयसयतनाविनुन निधीकरणवलपणावध्यानापानातितरविवस्त्ररित्रवतिलय कक्षकलवादिस्मयानिङपादविहारमाविनाचनिनल ठक्रामणसंवर ४पत्रीस्तत्तताईचतुर्मासकवानसमुतामिममिरगदर्शनाके वाजलालदानधनुपाति-सादिखीमदकबरसमाकारणमिलनस्वगुणगए न्मिानारंडानसमामा दित्सकलनालाखिलईनुसुस्तकारिाधाढाटा हामारिअरमाणश्रीमतीधमिसुदमीनदाएमागतबदनसनमधीह विधानपदभरकतहचाननमानयनश२२मरमामिसंवतिमाघमित शीनाताधोत्रप्रवसुबाम्नायमावितपंचनदीपकटीपंतपीरजात्र 'मेaश्तदादिवानापश्रीमंघोaतिकारक विटामान सुरुयुगमनश्री ॥ऊनइमरिसूरीश्वराणाधीपातिसारिसमक्षमतदनन्दापितवावाट जिनसिंहसरसपरिकराणामुपादाजागाउमवालज्ञातीयमावतीभसंतान एचपासायाचितवादातवमहमतितज्ञायोमरीशमलवयात भार्या(सरियादात्मानमालतज्ञार्याधापमानातऊदिसाबामरालट लिनमानानिमसरणादवमालादवगंधरमसकविताङिनधर्मातरम.स काकवावंशमंडनमारमश्वशायरिननादान्त्रमथरज्ञार्या सानागादाबदनिवाइवानीमाजावलीमुरापोता दिमायरिवाश्यते नाभीपदिनरपानगावमाश्मुरनवगनोरंजनसुरगिरिसमानवर राजमानवधानविधावत्यकारताशीशिषधशालापाटमापतिदयुक सिंगकायप्रमितसंवस्त रवार्षविनाववादिबाशीवासारण IRरवतीनदत्रानावनाामहामहःपूर्वाजनिीवाडोमानाचा तापनवमझदव-गात्रवप्रसादनवद्यमानीसमानसमा साहनिनावरेजीयानाकलाएमनाएवापाकाजव्यस्ारममनाना FDIdeasसामनियादाराणानिdिana নাভীবাশুনাহি নি, सं० १६५२ युगप्रधान श्री जिनचन्दसूरि प्रतिष्ठित वाडी पार्श्वनाथ मन्दिर, पाटगा, लेखील २००० Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वास्वनिधीपावनाघस्यजिनेश्वरस्याप्रसादतः संउसमीदतानाश्रीशा तनातस्यप दससादाविधानिनयुउजवेवशातिरसंवत्पश्वाषेमागसिरमदि दिनेत्रीजेसलमेरुमदाऽर्येराउलश्रीचाधिगदेवपहराउनश्रीदेवकर्म पटमदाराजाधिराज राउलश्रीजयतसिंहविजविराज्येऊमरशीलाकयुवा राज्ये प्रीजकेशर्दशैश्रीमरखवालगोत्रसं०ाबापत्रसकाचररुयाजिणकोरई नगरिमन संखवालीगाम उतंगतारणजिनपासादकरागााबूजीराउलश्नासवि मुंयावाकीद निगड्यापणउदारगुणश्वापणधरनउसर्वधनलोकनीदईकोरटकर्ण नामनालीदासण्कारपत्रसम्मलातत्पुनसंगरउलासन्हारासगरउलातासिं०मालको पुनसं०ापमल्लसंपदेपमल्लास०आपमल्लतार्याकमलादपत्रसम्पपासनीमासजेवासंपेछा तार्यापनादेवसासराङसमूधराIYEकास्पाएगासासराजनीशईजयमहाताव श्रीससहितयादाकरी आपणावत सफलकीपासण्ासराजनायांचा संपांचापागली जिणश्रीशजयगिरनारयातीध्यानाकीधाश्रीशजयादिताधावतारपाटीकरावासतौर एएसपरकरश्रीन मिनाधना बिबनरावीश्रीसतवनोधनदहरूमंडायासमलकल्याणका दि कनपनापाटीसलमयकरावीस०आसराजत्ता-सम्बेतास०पातासंष्तसं०१५११श्रीराउँनयागर नारताश्रीसंघसहितयानाकीधामवरसरतीक्ष्यानाकरतासंपवतरमीयानाकरीश्रीगज यकपरित अरीपालतात्रीआदिनाथपमुखतीर्य करनीपूजाकरताबडतपकरा बिलापनवकारगुणीववि घसंघनानक्तिकरी आरएविक्षसफलकीवावलीवापडासम्पावापुत्र सं०सिवराजसं०महिरानसंगलोलास घवीलाबणविकासोलासँपलाषण पुत्रससिएरासन्समरासं०मालासंगमहणासंसहाणासं0ऊ पसरवपरिवारसहितव० सं०लाषा संरखवालसासराजपुत्रसम्बेतापविक मिलीश्रीजेसलमेरुनगरिग कप(रविन(मश्रीशपदमहातीबंप्रासादकराया।सं०१५३६ववफायणदिने राउतसादेवकणराज्य समसदेसनासंघमेलवीश्रीनिनवंद्रसरिश्रीजिनसमरमरिकन लिपनिशकरावीश्रीनाथश्रीशानिनाघमूलना यकक्षपायाचवीसतीर्थकरनीअनेक पतिमातराव।संवतश्ससनमार याउिमाहिरूपालापासाहतसमाकतलाश लागासीनानेवाषरेश्रीकल्पासहीतनोपाषालिरवाद्यांश्रिीनिनसमुइसरिक हाश्रीशा तसागरसूरित्राचायनाव सापनाकरावी श्रीनरापदतीबिजमकारजगतिकरावाविबममाव्यासं०तानामिन्सरसतिपत्र सं०वीदासनोमानकापातवासनोमानार्यासानायकदेस०पूनीसिंवादानाय सं०अमरादेसवमला रेसं०विमलादेनसं०सहसमन्न सं०करणासं०वरात्रिकाहरपसलहस्त्रास०स०सहसमल्ल लायासे । ऊँरी तोलाससवीरीत्रमाहास०करएस०कनकादेवीदारापत्रिकालालासाभरणनायोपजिगदपु विकावान्धी इत्यादिपरिवार सहितासं०वीदीश जयगिरनाराबूताछयानाकीदासम कितमादकरताउसाकरनालाहिगिकीवाश्रीजिनई सस(रंगनायकवष्यमहोळवशअल्लीघरसत जाहीरापाव मिनीकजमणाकाधापांव सोनश्याप्रमुखानेकवसुकजमलइमामी श्रीकल्पासहीत पुसकाणी वारववाद्यापीदवारलाषनवकारगुलीवारसाजोडाअल्लानालाहिलिकाधासंगसहसमनश्री जयंतीयानाकरीजनशदिराणपुरवीरमगामपाटलपारकरिबामपल्लीलाहलकरीघराव्या पळसम्वादधस्तश्वसरसरश्तलाया।शपद्मासाबिजनमिऽऽकारजगतिनाबारणा नीवठकीकरावी।पउउसागजाली सहणारेहराजपरिकागराशपदकरायााकाउसमाया श्रीपार्थनापली विकराव्याबिजहाविरसं०घेतासंसरसतिनामूनिकरावी सं०२५वर्षमागासरव (१० रविवारेमहाराजाधिराजराउलीजयतसिंहतघाऊ मरश्रीलगाकर्मवचनात श्रीपानाच अापरविवारसम्वादश्सरीजाबी ऊतनावबंधायााबारगापडसाएकराचाविश्ववजा वतिकराव कोहर९ककराया।गाइसहसजाउशितपन्नगुलरुतणावारषदरसल बाणा रिकनीतीधा प्रोजेसलमेरुगटनीतिणदिसघाघराबंधायादेदरानासरानघाघराबेऊनया तसिंहराउलनःप्रादेसश्सम्बादकरायागउषकरावाट्सअवतारसहितलषमीनारायणनामू परममावी।जिनादशादताराप्यवताररहित स्याश्रीषाउनेइस्यासामयायपराम येशुहसम्पचधारिचाहावितीधकरवतःसलमीकल्समायाता जिनोदानमिव प्राविमाया दिकता कमठासं०सहसमल्लसं०करणासंद करा विस्पत्येषाप्रशासःश्रीरहश्वरतरगने श्रीनि नर्दस गरिपटालंकारश्री तिनमालिका सूरिवितथिराज्यश्रीदेवतिलकोपाध्या टोनलिखिताबिलंदना सदधारमनसुन पुत्र खत्रधारपिता किनगुदकारप्रशस्तिषाकोराताश्रीनवर शान्तिनाथ मन्दिर प्रशस्ति सं० १५८३ प्रतिष्ठित, शान्तिनाथ अष्टापद मन्दिर, जैसलमेर, लेखांक १०८९ FORPqasioned Okinsora Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२००) जिनदत्तसूरि-पादुका संवत् १६४७ वर्षे माह सुदि ५ दिने सोमवारे । फलवर्द्धिकानगर्यां । श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुके मंत्रि संग्रामपुत्रेण मंत्रि श्रीकर्मचंद्रेण स्वपुत्रपरिवारेण श्रेयो) कारितं........ (१२०१ ) पादुकालेखः श्रीमदकबरसाहिसुरत्राण संवत् ३९ वैशाख शुक्लपक्षीय तृतीयायां जिनकुशलसूरिपादुके मंत्रिकर्मचंद्रकारितेति [जंगमयुग] प्रधान ..रिभिः श्रीखरतरगच्छे श्रीलाभपुर। श्री। संघस्य कल्याणमस्तु॥ - (१२०२) शिलालेख-प्रशस्तिः (१) ॥ संवत् १६५० वर्षे आषाढ मासे शुक्लपक्षे युत नवमीदिने (२) रव(वि)वारे चित्रानक्षत्रे रावल श्रीभीमजीविजयिराज्ये श्री (३) श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुके कारिते युगप्र(४) धान श्रीजिनचंद्रसूरीश्वराणां आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि (५) समलंत्क(कृ)तानामादेशेनं श्रीपुण्यसागरमहोपाध्यायः (६) प्रतिष्ठिते तत्प्रतिष्ठोत्सवश्च सं० पासदत्त सुश्रावकेण (७) भार्या लीलादेः पुत्र सं० शालिभद्र केवंना चंद्रसेन (८) प्रमुखपुत्रादिपरिवारस० श्रीकेण कारयांचक्रे । कल्या(९) णस्त:(स्तु) ॥ श्री: संभावंश नारंइण मणी लिखतं ॥ (१२०३) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ संवत् १६५० वर्षे आषाढ शुक्लपक्षे चंद्रवासरे द्वितीयातिथौ पुष्यनक्षत्रे सिद्धियोगे भट्टारक श्री श्रीजिनकुशलसूरिपादुका प्रतिष्ठितं ... __ (१२०४) शिलालेखः सिरोही नगर महाराजाधिराज श्रीसुरताण्णजी विज(यि) राज्ये ॥ १ ॥ संवत् १६५१ वर्षे मगसिर (मार्गशीर्ष) वदि ११ दिने बुधवार श्रीबृहद्गच्छे युगप्रधान भट्टारक श्री ५ श्रीश्रीश्रीश्रीश्री आचार्यश्रीजिनसिंहसूरिविजयराज्ये बोहित्थरागोत्रीय मंत्रिकर्मचंद तत्पुत्ररत्न सं० भागचंद सं० लक्ष्मीचन्द सपरिवारेण श्रीजिनकुशलसूरिमूर्तिः कारापिता प्रतिष्ठिता वा० दयाकमलगणिभिः॥ श्रीरस्तु॥ कल्याणमस्तु १२००. राणीसर तालाब, दादाबाड़ी, फलौदी: भंवर० (अप्रका०), लेखांक १२०१. जैन मंदिर, लाहोर: जै० ती० स० सं०, भाग २, पृ० ३६० । १२०२. दादाबाड़ी जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४९४ १२०३. दादावाड़ी, जैसलमेर: जैनसंग्रह, पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४९५ १२०४. शांतिनाथ मंदिर, सिरोही: अ० प्र० जै० ले० सं०, भाग ५, लेखांक २५३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) २०९) For Personal & Private Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२०५) वाडीपार्श्वनाथ-विधिचैत्य-प्रशस्ति-शिलालेख: स्वस्ति श्रीवाडीपार्श्वजिनसंघचैत्यकाराय। लक्ष्मीमुदयं श्रेयः पत्तनसंस्थं करोतु सदा। श्रीवाडीपुरपार्श्वनाथचैत्ये श्रीबृहत्खरतरगुरुपट्टावलीलिखनपूर्वं प्रशस्तिर्लिख्यते। श्रीअहँ नत्वा। .. पातिशाहि श्रीअकब्बरराज्ये श्रीविक्रमनृपसंवत्संवते १६५१ मार्गशीर्षसितनवमीदिने सोमवारे पूर्वभद्रपदनक्षत्रे शुभवेलायां आदिप्रारंभः। शासनाधीशश्रीमहावीरस्वामिपटाविच्छिन्नपरंपरायां उद्यतविहारोद्यतश्रीउद्योतनसरि। तत्पप्रभाकरप्रवरविमलदंडनायककारितार्बुदाचलवसतिप्रतिष्ठापक-श्रीसीमंधरस्वामिशोधितसूरिमंत्राराधक-श्रीवर्धमानसूरि। तत्पट्ट०अणहिल्लपत्तनाधीशदुर्लभराजसंसच्चैत्यवासिपक्षविक्षेपाशीत्यधिकदशशतसंवत्सरप्राप्तखरतरबिरुदश्रीजिनेश्वरसूरि । तत्पट्ट० श्रीजिनचंद्रसूरि । तत्पट्ट० शासनदेव्युपदेशप्रकटितदुष्टकुष्टप्रमाथहेतुस्तंभनपार्श्वनाथनवांगीवृत्त्याद्येनकशास्रकरणप्राप्तप्रतिष्ठ-श्रीअभयदेवसूरि । तत्पट्ट ० लेखरूपद्वादशकुलकप्रेषणप्रतिबोधितवागडदेशीयदशसहस्रश्रावक-सुविहितकठिनक्रियाकरण-पिंडविशुद्ध्यादिप्रकरणप्ररूपणजिनशासनप्रभावक-श्रीजिनवल्लभसूरि। तत्पट्ट० स्वशक्तिवशीकृतचतुःषष्टियोगिनीचक्र-द्विपंचाशत्वीरसिंधुदेशीयपीर-अंबड श्रावककरलिखितस्वर्णाक्षरवाचनाविर्भूतयुगप्रधानपदवीसमलंकृत-पंचनदीसाधकश्रीजिनदत्तसूरि। तत्पट्ट० श्रीमाल-ओसवालादिप्रधान-श्रीमहतीयानप्रतिबोधक-नरमणिमंडितभालस्थलश्रीजिनचंद्रसूरि । तत्पट्ट० भंडारिनेमिचंद्रपरीक्षित-प्रबोधोदयादिग्रंथरूपषट्त्रिंशद्वादसाधितविधिपक्षश्रीजिनपतिसूरि। तत्पट्ट० लाडोल-वीजापुरप्रतिष्ठित श्रीशांति-वीरविधिचैत्य-श्रीजिनेश्वरसूरि। तत्पट्ट० श्रीजिनप्रबोधसूरि। तत्पट्ट० राजचतुष्टयप्रतिबोधोबुद्धराजगच्छसंज्ञाशोभितश्रीजिनचंद्रसूरि । तत्पट्ट० श्रीशत्रुजयमंडनखरतरवसहिप्रतिष्ठापक-विख्यातातिशयलक्ष-श्रीजिनकुशलसूरि। तत्पट्ट० श्रीजिनपद्मसूरि । तत्पट्ट० श्रीजिनलब्धिसूरि । तत्पट्ट० श्रीजिनचन्द्रसूरि । तत्पट्ट० देवांगणावसरवासप्रक्षेपोदितसंघपतिपदाद्युदयश्रीजिनोदयसूरि । तत्पट्ट० श्रीजिनराजसूरि । तत्पट्ट० स्थान-स्थानस्थापितसारज्ञानभांडागार-श्रीजिनभद्रसूरि । तत्पट्ट ० श्रीजिनचंद्रसूरि । तत्पट्ट० पंचयक्षसाधक-विशिष्ट क्रिय-श्रीजिनसमुद्रसूरि। तत्पट्ट० तपोध्यानविधानचमत्कृतश्रीसिकंदरपातशाहिपंचशतबंदीमोचनसम्मानित-श्रीजिनहं ससूरि। तत्पट्ट ० पंचनदीसाधकाधिध्यानबलशकलीकृतयवनोपद्रवातिशयर्द्धिराजमान-श्रीजिनमाणिक्यसूरि । तत्पट्टालंकारसारदुर्वादिविजयलक्ष्मीशरण-पूर्वक्रियासमुद्धरण-स्थानस्थानप्राप्तजय-प्रतिदिनवर्द्धमानोदय-सदय-सन्नयत्रिभुवनजनवशीकरणप्रवणपणवध्यानोपशोभितपवित्रसूरिमंत्रविहितलय-दूरीकृतसकलवादिस्मयनिजपादविहारपावितावनीतल-अनुक्रमेण १६४८ श्रीस्तंभतीर्थचतुर्मासकस्थानसमुद्भूतामितमहिमश्रवणदर्शनोत्कंठित जलालदीनप्रभुपातिशाहिश्रीमद्अकब्बरसमाकरण-मिलन-स्वगुणगणतन्मनोनुरंजनसमासादितसकलभूतलाखिलजंतुसुखकारि आषाढाष्टाह्रि कामारिफरमान-श्रीस्तंभतीर्थसमुद्रमीनरक्षणफुरमानतत्प्रदत्तसत्तम श्रीयुगप्रधानपदधारक-तद्वचने न च नयन-शर-रस-रसा[१६५२] मितसंवति माघसितद्वादशीशुभतिथौ अपूर्वपर्व-गुर्वानायसाधितपंचनदीप्रकटीकृतपंचपीरप्राप्तपरमवर-तदादिविशेषश्रीसंघोन्नतिकारक-विजयमानगुरुयुगप्रधानश्री १०८ श्रीजिनचंद्रसूरिसूरीश्वराणां श्रीपातिशाहिसमक्षस्वहस्तस्थापिताचार्यश्रीजिनसिंहसूरिसपरिकराणामुपदेशेन ओसवालज्ञातीयमंत्रिभीमसंताने मंत्रिचांपाभार्यासुहवदे तत्पुत्रमं० महिपति तद्भार्या अमरी तत्पुत्र मंत्री वस्तपाल तद्भार्या शिरीयादे तत्पुत्र मंत्री तेजपाल तद्भार्या श्रीमांनु तत्कुक्षिसरोमराल अर्थिजनमनोभिमतपूरणदेवशाल-देव-गुरुपरमभक्त विशेषतो जिनधर्मानुरक्तस्वांत १२०५. वाडी पार्श्वनाथ मन्दिर, पाटणः (२१०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊकेशवंशमंडन- शाह अमरदत्तभार्या रतनादे तत्पुत्ररत्न कुंवरजी तद्भार्या सोभागदे बहिनीबाई वाछी पुत्री बाई जीवणी प्रमुखपुत्र-पौत्रादिसारपरिवारयुतेन तेन श्रीअणहिल्लपुरपत्तन शृंगारसार - सुरनरमनोरंजनसुरगिरिसमानचतुर्मुखविराजमान-प्रधानविधिचैत्यं कारितं श्रीपौषधशालापाटकमध्ये । तदनु कर-करण - काय[१६५२] प्रमित संवत् अल्लाई ४१ वर्षे वैशाखवदि द्वादशीवासरे गुरुवारे रेवतीनक्षत्रे शुभवेलायां महामहपूर्वं प्रतिमा श्रीवाडीपार्श्वनाथस्य स्थापिता ॥ एतत् सर्वं देव - गुरु - गोत्रजदेवीप्रसादेन वंद्यमानं पूज्यमानं समस्त श्रीसंघसहितेन चिरं जीयात् कल्याणमस्तु ॥ एषा पट्टिका पं. उदयसारगणिना लिपीकृता। पं. लक्ष्मीप्रमोदमुनि आदरेण कोरिता गजधरगल्लाकेन । शुभं भवतु नित्यं ॥ (१२०६ ) शांतिनाथ - पञ्चतीर्थी: संवत् १६५२ वर्षे वैशाख सुदि १० बुधवारे । श्रीऊकेशवंशे बोथरागोत्रे सा० मेहा पुत्ररत्न सा० महिकरणेन मातृ सा० आदित्यादि युतेन श्रीशांतिबिंब का० प्र० श्रीखरतरगच्छे युगप्र० श्री श्री श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ (१२०७) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १६५२ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ दिने श्री श्री श्रीजिनकुशलसूरिपादुके कारितः । ( १२०८ ) चन्द्रप्रभ - पञ्चतीर्थी : सं० १६५२ वर्षे माह सुदि १० दिने कुक्डचोपड़ागोत्रे पं० विजय तत्पुत्र देवजीसिंघ भार्या विमलादे बकां तत्पुत्र पं० मेहा जेठा० रायसिंहपरिवारयुतेन श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ तत्पुत्र. (१२०९ ) पादुकालेखः सं० १६५२ वर्षे श्रीखरतरगच्छे आचार्य श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुका करापिता श्रीसूत्रधार पवहण (१२१० ) भित्तिलेखः अथ संवत्सरे श्री नु श्रीनर्पति विक्रमादीति राजे संवत् १६५३ वर्षे चैत्र सुदी १५ सुक्रत लिखत खेता गांगा कूवो वण (१२११ ) जिनकुशलसूरि-पादुका ओम् सिद्धः संवत् १६५३ वर्षे वैशाखाद्य ५ दिने श्रीजिनकुशलसूरिसद्गुरूणां पादुके कारिते अमरसरवास्तव्य श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभि: चित्रः खण्डिका निष्पन्ना सा० थानसिंहोद्यमेन मूलस्थंभ प्रारंभकर्ता मंत्रि कर्मचन्द्रः श्रेयोर्थम्। १२०६. शांतिनाथ जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ११५३ १२०७. शीतलनाथ जिनालय, रिणी (तारानगर) : ना० बी०, लेखांक २४६० १२०८. मनमोहन जी की शेरी, फोफलीयावाड़ा, पाटणः भो० पा०, लेखांक १२७४ १२०९. अजितनाथ जी का मंदिर, नगर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ८६ १२१०. दादावाड़ी, अमरसर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७५४ १२११. द्रादावाड़ी, अमरसर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७५३ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२११) Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२१२ ) शीतलनाथचतुर्विंशति: । सं० १६५३ वर्षे अलाई ४२ माह सुदि ७ दिने ऊकेशवंशे संखवालगोत्रे सा० रायपाल भार्या रूपादे पुत्र सा० पूना भार्या पूनादे पुत्र सं० पाना देदा पुत्र सं० जयदास चांपा मूला मोदा स........... सोमलदास प्रमुखपरिवारेण श्रीशीतलनाथप्रमुखचतुर्विंशतिजिनपट्टः कारितः प्रतिष्ठितश्च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार युगप्रधान श्री श्री श्री श्री श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः पातिसाहअकबरप्रतिबोधकैः ॥ (१२१३) परिकरसहित - आदिनाथः ॥ ६० ॥ स्वस्ति श्री अल्लाइ ४२ वर्षे माघ मासे शुक्ल दशमी दिने । श्री अहम्मदावादमहानगरे । प्रगटप्रभाव प्रौढप्रतापप्राग्भार प्रसाधितनिखिलप्रबलप्रतिस्पर्द्धक परमपार्थिवपटल ॥ यावज्जीवषाण्मासिजीवामारिप्रवर्तनकुशलविशेष विहतसकलगोरक्षण समस्तजिनसम्मतसंतत सुकृतसारहारसंगत श्रीशत्रुञ्जयमहातीर्थकरमोचन वरविचक्षणसकलस्वदेशपर देशशुल्क जीजियाकरमोचन विधिसमुत्पादितजगज्जीवसमाधान परबलदलनप्रत्यलनिरशुल निर्मलप्रबल स्वीकृतसकलभूमंडललक्ष्मीलीलाविलाससावधान । करुणारसनिधान । प्रभूतयवनप्रधान संप्रति दिल्लीपति - सुरत्राण - श्री अकब्बरसाहिविजयराज्ये ॥ श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिप श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टप्रभाकर स्वधर्मदेशानाद्यनेक प्रगुणगणरंजित श्रीमदकब्बर साहि प्रदत्तयुगप्रधानपद । स्तम्भतीर्थ समीपां भोधिजलचर जीवामारि प्रसृतामर यशोंनाद सदाषाढीयाष्टाह्निकासकलजीवाभयदानदायक गणनायक युगप्रधान गुरु श्रीजिनचन्द्रसूरिभि: साहिशुभादरेण साहि सनाखत. .. मंत्रिवर कर्मचन्द्रकृतनन्दीमहोत्सवैर्लाभपुरे स्वहस्तसंस्थापित श्रीजिनसिंहसूरि प्रमुखोपाध्याय - वाचनाचार्य-संघसाधुसंघयुतैः ॥ अहम्मदावादवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय सा० साईया पुत्र सा० जोगी भार्या जसमादेवीकुक्षिसुक्तिमौक्तिकेन । श्रीखरतरगच्छसमाचारीवासितान्त:करणेन स्वदे... व साधर्मिकप्रतिगृहरजताद्धलंभनिकाविधायकेन । स्वगच्छपरगच्छीयसंघसपरिकरनिजगुरुराजादिसार्धेन विहितश्रीशत्रुंजयमहातीर्थयात्रासुकृतेन । कृतानेकजैनप्रतिमाप्रासादप्रतिष्ठादिधर्ममहोत्सवेन। साधर्मिकवात्सल्यादिधर्मकरणरसिकेन संघवी सोमजीकेन भ्रातृ सिवा युतेन । पुत्र सं० रतनजी सं० रूपजी सं० खीमजी । पौत्र सं० सुंदरदास प्रमुखपुत्रपौत्रादिपरिवारशोभितेन महाद्रव्यव्ययोत्सवपूर्वक निष्पादितसमहामहं प्रतिष्ठापितं च सपञ्चतीर्थीपरिकरं श्रीऋषभबिंबं ॥ पूज्यमानं च चिरंनंद्यात् यावच्चन्द्रदिवाकरौ गुरुगोत्रदेवीप्रसादात् शुभम् श्रीसमयराजोपाध्यायैः प्रशस्तिरियं कारिता ॥ ( सिंहासन के नीचे ) ॥ ६०॥ संवत् १६५३ अलाइ ४२ वर्षे पातिसाहि श्री अकबरविजईराज्ये महासुदि १० सोमे प्राग्वाटज्ञातीय श्रीअहम्मदावादनगरवास्तव्य सा० साइया भार्या नाकू पुत्र सं० जोगी भार्या जसमादे कुक्षे संघपति सोमजीकेन भ्रातृ शिवा पुत्ररत्न सं० रतनजी सं० रूपजी सं० खीमजी पौत्र सुंदरदास प्रमुखपरिवारसहितेन श्री आदिनाथबिंबं सपरिकरं कारितं प्रतिष्ठितं च ॥ दिल्लीपति श्री अकब्बरपातिसाहिप्रदत्तयुगप्रधानविरुदधारक श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिप श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभि: आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि श्रीरत्ननिधानोपाध्याय प्रमुखपरिवारसहितं ॥ (मूर्ति के नीचे ) श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्टालंकार दिल्लीपति पातिसाहि श्री अकब्बरप्रदत्तयुगप्रधानविरुदधारक श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ आचार्य श्रीजिनसिंहसूरिप्रमुखप्ररिवारयुतैः ॥ श्रेयोस्तु ॥ सूत्रधार गल्ला मुकुंदकारितं ॥ १२१२. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, किशनगढ: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०६२ १२१३. शिवासोमजी का मंदिर, अहमदाबाद: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २२८ (२१२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२१४ ) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी: संवत् १६५३ वर्षे अलाई ४२ संवत् ॥ माघ सुदि १० दिने सोमवारे ऊकेशवंशे संखवालगोत्रीय सा० रायपाल भार्या पूनादे पुत्र मं० पाना सं० देदाभ्यां पुत्र जिणदास सं० चांपा मूलादे पु० सामल सपरिकराभ्यां श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर - श्री अकबरसाहिप्रतिबोधक श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । ( १२१५ ) पञ्चतीर्थी: सं० १६५३ माघ सुदि १० प्र० युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः आचारयसंघसूरिभिः (आचार्य जिनसिंहसूरिभिः) ॥ ( १२१६ ) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १९५३ वर्षे अलाई ४२ माघ सुदि १५ सोमे उकेशवंशे चौपड़ागोत्रे सं० पूनरी पुत्र सं० श्रीराज पुत्र संगुणायां उदयसिंह पुत्र अभयराज वच्छराज गोपालदास प्रमुखतया श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार युगप्रधान श्री श्री श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ( १२१७) पद्मप्रभ - पञ्चतीर्थी: संवत् १६५४ वै० शु० ५ सोम ऊपकेशवंशे बोहित्थिरागोत्रे बच्छावत सं० अमृत सुत भगवानदासेन पुत्र मं॰ लालचंदादिपरिवारपरिवृतेन श्रीपद्मप्रभबिंबं कारितं प्र० बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनसिंहसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्री अहमदावादे । (१२१८) पद्ममंदिर - पादुका संवत् १६५४ वर्षे ज्येष्ठ वदि पंचम्यां पं० श्रीपद्ममंदिरगणिनां पादुके कारिते श्री ॥ (१२१९ ) जिनदत्तसूरि- पादुका संवत् १६५४ वर्षे जेठ सुदि ११ रवौ दिने श्री बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनदत्तसूरिपादुका कारापित श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं । शुभं भवतु । (१२२० ) जिनदत्तसूरि- पादुका संवत् १६५४ वर्षे जेठ सुदि ११ रवौ दिने श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनदत्तसूरि पादुका कारापित श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं । शुभं भवतु । १२१४. सुमतिनाथ मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०६३; पू० जै० भाग २, लेखांक ११९६ १२१५. महावीर जिनालय, वडनगर: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ५९२ १२१६. शीतलनाथ जी का मंदिर, कोटड़ा, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ३० १२१७. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, कुचेरा : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०६४ १२१८. गौडी पार्श्वनाथ सम्मेतशिखर मंदिर, गोगादरवाजा, बीकानेर: ना० बी० लेखांक १९६८ १२१९. छीपावसही, शत्रुंजय: भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ४८ १२२०. छीपावसही, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ४७ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२१३) Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२२१) कनकरंगगणि-पादुका संवत् १६५४ वर्षे मगसिर सुदि २ दिने बुधवार श्रीबृहत्खरतरगच्छे वा० श्रीचारित्रमेरुगणि शिष्य पं० कनकरंग गणि दिवंगतपादुके कारा(पि)त शुभंभवतु । (१२२२) अजितनाथ-चतुर्विंशतिः ॥ संवत् १६५६ वर्षे वैशाख मासे सित ३ दिने रविवारे उकेशवंशे लोढामोत्रे संघवी डाहा भार्या तेजलदे पुत्र सं० रायमल्ल भार्या रंगादे पुत्र सं० जयवंत भीमराज तयोर्भगिनी सुश्राविका वीरी नाम्न्या स्वश्रेयसे श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीचतुर्विंशतिजिननामधेयं ................. श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनदेवसूरितत्पट्टे श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकार विजयमानश्रीजिनचंद्रसूरिभिः सकलसंघेन पूज्यमानं आचन्द्रार्कं नन्दतात् शुभंभवतु ॥ (१२२३) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १६५६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि द्वादशी दिने शनिवारे श्रीसंग्रामपुरे श्रीमानसिंहविजयराज्ये खरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये महामंत्रिणा करमचन्द्रेण श्रीजिनकुशलसूरिपादुका कारिता प्रतिष्ठितं वाचनाचार्य श्रीयश:कुशलैश्च सर्वसंघस्य कल्याणाय भवतु शुभम्।। (१२२४) प्रशस्तिशिलापट्टः संवत् १६५७ वर्षे । सनि इलाही ४४॥ चैत्र मास पूर्णिमा दिने सूदन सिरकार सोराठपति साहे श्रीअकबरदे विजयिराज्ये जागीरदार राष्ट्रकूटकुलकुमुददिवाकर महाराजाधिराज महाराज श्रीश्रीश्रीराजसिंहजी नरमणि विजयमान तदधिकारि लदा(?) मुख्य खवास श्रीतेजाजी तत्कृत्य धुरा धरंधरा श्रीजलालदीन श्रीअकबर शाहि प्रदत्तयुगप्रधानपदधारक आषाढाष्टाह्निकासकलसत्वनिक र मारि निवारक संवत्सरावधिस्तंभतीर्थीयजलनिधिजलचरजीवजालमोचक: पंचनदीसाधक : श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्ट प्रभाकर युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि-चरणकमलसेवक विक्रमपुरवास्तव्य॥लिग्गोत्रीय सा। खेतसी पुत्ररत्न संघपति सतीदास सुश्रावकेण भ्रातृ लक्ष्मीदास पु० सं० सूरदासादिपरिवारसश्रीकेण श्रीशत्रुजयतीर्थतलहट्टिकायां तीर्थभक्तिनिमित्तं यात्रागतः सकलश्रीसंघोपकाराय च सतीवापीत्यभिधान वापीरत्न कारितः ऊपर ठाही मालासोहल(?) (१२२५) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १६५७ वर्षे वै० श्रु० ५ भौमे श्रीमालज्ञातीय ढोरगोत्रे सा० धमरगज भार्या वीरू सुत सा० सतीदास भार्या वा० ईन्द्राणी ताभ्यां पुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। श्रीजिनभानुसूरीणामुपदेशेन । अभाई: ४५ वर्षे श्री अकबर राज्ये । १२२१. गुरुपादुका एवं मथेरणां की छतरी, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक १९६७ १२२२. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मेडतासीटी : प्र० ले० सं०, भाग १.लेखांक १०६९: प० जै०, भाग १.लेखांक ७८० १२२३. दादावाड़ी, सांगानेर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०७०, भाग २, ७५५ १२२४. सतीबाव, तलहटी, शत्रुजयः भंवर (अप्रका०), लेखांक १३२ १२२५. विमलनाथ जिनालय, बालुचरः पू० जै०, भाग १, लेखांक ४३ (२१४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२२६) जिनकुशलसूरि-पादुका स्वस्ति श्री संवत् १६५७ वर्षे आषाढ सित तृतीया शुभवासरे श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्टोदयगिरिप्रभाकर सकल....................... त श्रवण निजवचनचातुरी रतिकर ति............. क। पातिसाहश्रीअकबरदत्तयुगप्रधानविरुदधर.....................राज्य......................अष्टाह्निकादिअमारिप्रवर्तक...............क निजग्रहपरंपराका पंचनदीसाधक सर्वत्र व अजय....................................दय युगप्रधान भट्टारक प्रभु श्रीश्रीश्रीश्रीजिनचंद्रसूरिसूरीश्वराणां आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि सपरिकराणां पद.. .........................महाराज श्रीरायसिंघ राज्ये उपकेशवंशे बोहित्थरागोत्रे विक्रमनगर वासि .........................उदयकरण. ...........उत्तम सांवल वीरम...............प्रमुख सपरि.....................पुण्योदया श्रीजिनकुशलसूरिस्तूपपादुका क(रा पि)ता प्रतिष्ठिता श्रीगिरनार ...............चतुर्विंशतमापट्टा.......................सुंदरगणि.................पद्मकुशल ........... शुभंभवतु................................ ॥ (१२२७) अष्टदलम् सं० १६५७ वर्षे । माघ सुदि। (१) दशमी दिने श्रीसिरोही नगरे (२) राजाधिराज महाराजराय श्रीसुर(३)त्राणविजयराज्ये। ऊकेशवंशे। (४) बोहित्थरागोत्रे विक्रमनगरवा-(५) स्तव्य मं० दसू पौत्र मं० खेतसी पुत्र मं० दूदाकेन स(६)परिकरेण कमलाकार देवगृहमंडि(७)तं पार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च(८) श्रीबृहत्खर तर गच्छाधिप श्रीजिनमा(९)णिक्यसूरि पट्टालंकार दिल्लीपति (१०)........ ...........(११).......... (१२)..................................................(१३)............................................................ (१४) वाचकसाधुसंघयुतः । पूज्यमानं नं(१५)द्यमानं चिरनंदतु लि० उ० समयराजैः ॥ (१६) (१२२८) पञ्चतीर्थी: संवत् १६५९ वर्षे आषाढ वदि ५ दिने गुरौ उत्तराषाढायां उसवाल ज्ञातीय लोढागोत्रे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। श्रीखरतरगच्छे । (१२२९) जिनकुशलसूरि-पादुका . संवत् १६६० वर्षे माह सुदि १३ दिने प्र० । बृहत्खरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये श्रीजिनकुशलसूरिपादुके प्रतिष्ठितं कनकसोमेन ग । चामरधान कारिते पादुके। (१२३०) शान्तिनाथ: . ॥ संवत् १६६१ वर्षे वैशाख वदि ८ सोमे ओसवालज्ञातीय लोढागोत्रे सं० खींवराज पुत्र पेमराज १२२६. गिरनार तीर्थ: भँवर०.(अप्रका०), लेखांक १२२७. चन्द्रप्रभ जिनालय, बेगानियों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६५६ १२२८ आदिनाथ जिनालय, भायखला, मुम्बई: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३१८ १२२९. मुनिसुव्रत मंदिर, मालपुरा: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०७६ १२३०. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मेड़तासिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०७७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (२१५) For Personal & Private Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त० चांपसी मदनसी गोसा प्रमुखपुत्रयुतेन श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनदेवसूरिपट्टे श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ श्रीमेड़तानगरे । ( १२३१ ) शान्तिनाथ: संवत् १६६१ अलाई ५० वर्षे श्री अकबरविजयिराज्ये वैशाखवदि ११ शुक्रे ओसवाल ज्ञातीय नवलक्खागोत्रे सा० टोकर भा० दयासुत वाधा भा० पार्वती पुत्ररत्न सा० पु० रत्नपालभार्या हंसाई ताभ्यां स्वपुण्याय श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनसिंहसूरयस्तत्पट्टालंकार श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ (१२३२ ) विमलनाथ-चतुर्विंशतिः संवत् १६६१ वर्षे मार्गशिरवदि ५ गुरौ श्रीऊकेशवंश भं० गोत्रे भं० रूपा भा० रूपल पुत्र नगू भार्या नागलदेपु० मेघराज भा० महिमादे पुत्र सा० जिनदास तद्भ्राता वीरदासेन पुत्र जीवराजादिसपरिकरेण कारितं श्रीविमलनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकारसार- पंचदीसाधक श्रीअकबरपातिसाहिप्रतिबोधक सर्वत्राषाढाष्टाह्निकामारिप्रवर्तक साहिदत्तयुगप्रधानपदधारक युगप्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः आचार्य श्रीजिनसिंहसूरिसपरिकरैः लिखितं वा० श्रीसुन्दरगणिना ॥ (१२३३ ) सुमतिनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १६६१ वर्षे मार्गशीर्षमासे प्रथमपक्षे पंचमीवासरे गुरुवारे ऊकेशवंशे बहुरागोत्रे साह अमरसी साह रामा पुत्ररत्न . रेण श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृह ..सार युगप्रधान श्री श्री श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । (१२३४) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १६६१ व० चै० वदि ११ शु० सा० वदीया कारितं श्रीपार्श्वबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे । श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (१२३५ ) नमिनाथः ॥ संवत् १६६१ वर्षे। श्रीबृहत्खरतरगच्छे ॥ प्रतिवर्षषाण्मासिकाभयदानदायकैः सकलगौरक्षाकारकैः श्रीशत्रुञ्जयमहातीर्थकरनिवारकैः पंचनदीपतिपीरसाधकैः । युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । आ० श्रीजिनसिंहसूरि श्रीसमयराजोपाध्याय- प्रमुखपाठक-वाचक - साधुयुतैः । प्रतिष्ठितं का० नमिजिनबिंबं मं० सूदौदेव्या श्रेयः ॥ वा० पुण्यप्रधानगणिभिलिखितम् ॥ १२३१. जैन मंदिर, वारेजः प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३६ १२३२. मुनिसुव्रत जिनालय, भरूचः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३२२ १२३३. पार्श्वनाथ जिनालय, कोचरो में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६२४ १२३४. चीरेखाने का मंदिर, दिल्ली : पू० जै० भाग १, लेखांक ५२३ १२३५. कुन्थुनाथ मंदिर, मेड़तासिटी: प्र० ले० सं० भाग १, लेखांक १०८० (२१६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२३६) मूलनायक-पद्मासनः ॥ संवत १६६१ वर्षे ........... .............. श्रीमेड़तानगरे श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीश्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टप्रभाकरैः । श्रीअकब्बरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानपदप्रवरैः। प्रतिवर्षाढा द्याष्टान्हिकादिषाण्मासिकामारिप्रर्वतकैः। श्रीस्तंभतीर्थीय मीनादिजीवरक्षकैः। श्रीशत्रुञ्जयादितीर्थकरमोचकैः। सर्वत्रगोरक्षकारकैः। पञ्चनदीपीरसाधकैः। युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। आचार्य श्रीजिनसिंहसूरिसूरिः। श्रीसमयराजोपाध्यायः॥ वा० हंसप्रमोद वा० पुण्यप्रधानादिसाधुयुतैः॥ _[सिंहासनोपरि] ॥ ॐ ॥ श्री संघेन ॥ प्रतिष्ठि तं श्रीश्रीबृहद् खर तर गच्छै : ॥ श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टपूर्वाचलसहस्रकरावतार-श्रीअकब्बरपातिसाहि प्रतिबोधक। श्रीशत्रुञ्जयादितीर्थकरमोचक। सर्वमण्डल। षण्मासजीवदयाप्रतिपालक........ ..............................निमन्त्रनिराकरण-युगप्रधानविरुदधारक। भट्टारकप्रधान श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीजिनचन्द्रसूरिभिः सश्रीजिनसिंहसूरिभिः॥ श्रीचतुर्विधश्रीसंघयुतैः। शा०...........णी कञ्जरवादि हर्षनन्दनगणिना॥ (१२३७) कनकसोम-पादुका संवत् १६६२ वर्षे चैत्र वदि ५ दिने सोमवारे श्रीखरतरगच्छे वाचनाचार्यवर्य श्री ५ श्रीकनकसोमगणीनां पादुके प्रतिष्ठितेयं युग० श्रीनिनचन्द्रसूरिभि : । (१२३८) मूलनायक-ऋषभदेवः १ ॥संवत् १९६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने । विक्रमनगरे ॥ महाराजाधिराज महाराजा श्रीरायसिंह जी विजयराज्ये। २ श्रीविक्रमनगरवास्तव्य खरतरसकलश्रीसंघेन श्रीआदिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री गुरूपदेशादेव यावज्जीवषाण्मासिकजीवामारिप्रवर्तक सकलजैन३ सम्मत श्रीशत्रुजयादिमहातीर्थकरमोचन स्वदेश-परदेश-शुल्क-जीजियादिकरनिवर्त्तन दिल्लीपतिसुरत्राणश्रीअकबरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानविरुदधरैः संतुष्टसाहिदत्ताषाढीयासदमारि स्तंभ४ तीर्थीय समुद्रजलचरजीवजातसंरक्षणसमुद्भूतप्रभूतयशसंभारैः वितथतया साहिराजसमक्षं निराकृतकुमतिकृतोत्सूत्रासत्यवचनमयप्रवचनपरीक्षादिशास्त्रव्याख्यानविचारै : विशिष्ट : स्वेष्टमंत्रादिप्रभा५ वप्रसाधितपंचनदीपतिसोमराजादियक्षपरिवारैः श्रीशासनाधीश्वर-वर्द्धमानस्वामीपट्ट-प्रभाकर पंचमगणधर श्रीसुधर्मस्वामीप्रमुखयुगप्रधानाचार्याविच्छिन्नपरंपरायात श्रीचन्द्रकुलाभरण। दुर्लभराजमुखो६ पलब्ध खरतरविरुद श्रीजिनेश्वरसूरि-श्रीजिनचन्द्रसूरि-नवांगीवृत्तिकारक-स्तंभनकपार्श्वनाथ १२३६. वासुपुज्य मंदिर, मेड़तासिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०७८ १२३७. दादाबाड़ी, अमरसर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७५६ १२३८. ऋषभदेव मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी० लेखांक १३९९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (२१७) For Personal & Private Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिमाविर्भावक श्रीअभयदेवसूरि-श्रीजिनवल्लभसूरि-श्रीजिनदत्तसूरि-पट्टानुक्रमसमांगत सुगृहीतनामधेय श्रीश्रीश्री७ जिनमाणिक्यसूरिपट्टप्रभाकरैः सदुपदेशादादिम एव प्रतिबोधित सलेमसाहिप्रदत्तजीवाभयधर्म प्रकरैः। सुविहितचक्रचूडामणि युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिपुरंदरैः। शिष्य श्रीमदाचार्य जिनसिंहसूरि ॥ श्री८ समयराजोपाध्याय वा० हंसप्रमोद गणि ॥ ........... सुमतिकल्लोल गणि वा० पुण्यप्रधान गणि ....... सुमतिसागर-प्रमुखसकलसाधुसंघसपरिकरैः श्रीआदिनाथबिंबं । (१२३९) अजितनाथः सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि७ दिने श्रीअमरसर । वास्तव्य श्रीमालज्ञातीय बउहरागोत्रे सा० अचलदास पुत्र सा० थानसिंह भार्या सुपियारदे नामिकया पुत्र ऋषभदास सहितया अचलदास पुत्री मोतां सहितया च श्रीश्रीअजितबिंब कारितं प्रति० श्रीगुरूपदेशादेव यावज्जीवषाण्मासिकजीवामारिप्रवर्त्तकै: श्रीदिल्लीपति सुरत्राणेन प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीअकबरसाहिदत्तयुगप्रधानविरुदै: साहिदत्ताषाढीयाऽष्टान्हिकामारि स्तम्भतीर्थीयजलचरजीवरक्षणयशप्रकरैः श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः आ० श्रीजिनसिंहसूरि श्रीसमयराजोपाध्याय वा० पुण्यप्रधान प्र० सा० संघयुतैः ___ (१२४०.) संभवनाथ: सं०१६६२ चैत्र वदि ७ डागागोत्रे सं० पदमसी भार्या प्रतापदे श्राविकया पुत्र श्री पोमसी सहितया संभवबिंबं कारितं प्रति० खरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ___ (१२४१) सुमतिनाथ-मूलनायक ॥ संवत् १६६२ वर्षे चैत्र वदि सप्तमी......... भार्या सिंगारदे श्राविकया पुत्र कुमर । जगड। अम्मू प्रमुख ........सुमतिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं ॥ महाराजाधिराज महाराज श्रीरायसिंहजी विजयराज्ये । श्रीसाहिदत्तयुगप्रधानविरुदै: आषाढामारिषाण्मासिकजीवाभयदायकैः श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधानश्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ वा० पुण्यप्रधानो नौति॥ (१२४२) सुमतिनाथः सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने कूकड़ चो० सुरताण भार्या सुरताणदे श्राविकया पुत्र वर्द्धमान प्रमुख सहितया श्रीसुमतिबिंबं का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीसाहिदत्तयुगप्रधानविरुदैः। श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युग० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः (१२४३) सुपार्श्वनाथः सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने श्री विक्रमनगरे राजाधिराज राजा श्रीरायसिंह जी राज्ये श्रीखरतरगच्छे १२३९. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४०२ १२४०. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४६३ १२४१. सुमतिनाथ मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०८१ १२४२. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४१४ १२४३. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४०३ (२१८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिल्लीपतिसुरत्राण-श्रीमदकबरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानविरुदप्रवरैः सन्तुष्टसाहिदत्ताषाढीयाऽष्टान्हिका सत्का सदमारि स्तम्भती यसमुद्रजलचरजीवसंरक्षणसंजातयशप्रकरैः स्वेष्टमंत्रादिप्रभावप्रसाधितपंचनदीपतियक्षनिकरैः श्रीशत्रुजयकरमोचकैः सदुपदेशप्रतिबोधितश्रीसलेमशाहि प्र० श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं च वा० मन्त्री कान्हा भार्या कुसुम्भदे श्राविकया। श्रीसुपार्श्वबिंबं चिरं नन्दतु॥ (१२४४) सुपार्श्वनाथः सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने सा० कमा भार्या करमादे श्राविकया श्रीसुपार्श्वबिंब कारितं प्रतिष्ठितं दिल्लीपतिश्रीअकबरसाहिदत्तयुगप्रधानविरुदैः श्रीशत्रुजयादितीर्थकरमोचकैः सलेमसाहिबो० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्रीजिनन्द्रसूरिभिः आचार्य श्रीजिनसिंह सूरि श्रीसमयराजोपाध्यायैः वा० पुण्यप्रधान प्र० युतैः (१२४५) चन्द्रप्रभः सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने गणधरगोत्रे सं० कचरा पुत्र सा० अमरसी भार्या अमरादे श्राविकया पुत्र आसकरण अमीपाल कपूर प्रमुखपरिवारसहितया श्रीचन्द्रप्रभबिंबं प्रतिष्ठितं दिल्लीपति श्रीअकबर साहिदत्तयुगप्रधानविरुदैः सदाषाढीयाऽष्टान्हिकादि-षण्मासिकजीवामारिप्रवर्तकः श्रीशजयादितीर्थकरमोचकैः पञ्चनदीसाधकैः श्रीखरतरगच्छे राजाश्री रायसिंह राज्ये । श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः शिष्य आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि श्रीसमयराजोपाध्याय वा० पुण्यप्रधान प्र० युतैः वा० हंसप्रमोद नौति। चिरं नंदतु ॥ श्री ॥ (१२४६ ) वासुपूज्यः सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने डा० हेमराज भार्या दाडिमदे नामिकया का० श्रीवासुपूज्यबिंब प्र० श्रीखरतरगच्छे। दिल्लीपतिश्रीअकबरशाहिप्रदत्तयुगप्रधानपदप्रवरैः श्रीश@जयादिमहातीर्थकरमोचकैः श्रीसलेमशाहिप्रतिबोधकैः॥ श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (१२४७) शीतलनाथः . सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने श्रे० पीथाकेन श्रे० नेतसी पासदत्त ..................... पोमसी। पहिराज प्र० सहितेन श्रीशीतलबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (१२४८) विमलनाथ : सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने को० कपूर भार्या कपूरदे श्राविकया श्रीविमलनाथबिंब कारितं १२४४. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४११ १२४५. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४०८ १२४६. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४०५ १२४७. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४०६ १२४८. ऋषभदेवजी का मन्दिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४१० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (२१९) For Personal & Private Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे दिल्लीपतिसुरत्राणश्रीअकबरसाहिदत्तयुगप्रधानविरुदप्रवरैः साहिदत्ताषा० श्रीसलेमसाहिप्रतिबोधकैः श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः (१२४९) मुनिसुव्रतः सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने लिग्गागोत्रे मं० सतीदास भार्या सिन्दूरदे हरखमदे श्राविकाभ्यां पुत्ररत्न सं० सूरदास सहिताभ्यां मुनिसुव्रतस्वामीबिंबं कारितं प्रति० अकबरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानविरुदैः सं० सिंदूरदे श्रा० हरखमदे का० श्रीखरतरगच्छे महाराजाधिराज राजा रायसिंहजी राज्ये श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः पूज्यमानं चिरनंदतु । वा० पुण्यप्रधानो नोति (१२५० ) मुनिसुव्रतः सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने श्रीविक्रमनगरे राजाधिराज महाराजा श्रीरायसिंहजी राज्ये श्रीखरतरगच्छे श्रीमदकबरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानविरुदप्रवरैः संतुष्टसाहिदत्ताषाढीयाऽष्टाह्निकासदमारि स्तंभतीर्थीयसमुद्रजलचरजीवसंरक्षणसंजातयशप्रकरैः श्रीशनुंजयादिसमस्ततीर्थकरमोचकैः श्रीसलेमसाहिप्रतिबोधकैः सदेन युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्र० का० को० माना भार्या महिमादे श्राविकया श्रीमुनिसुव्रतस्य बिंबं का० पूज्यमानं चिरं नन्दतु ॥ ५ ॥ (१२५१) नमिनाथ: ॥सं० १६६२ वर्षे । चैत्र वदि७ दिने बुधवारे। श्रीविक्रमनगरे राजाधिराज महाराज राज श्रीरायसिंहजी राज्ये डागागोत्रे सं० हमीरभार्या कश्मीरदे पुत्र सं० पारसेन भ्रातृ परवत पुत्र परतापसी परमाणंद । पृथ्वीमल परिवारयुतेन श्रीनमिनाथबिंबं श्रेयोर्थं कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्श्रीखरतरगच्छे । श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकारैः श्रीअकबरशाहिप्रदत्तयुगप्रधानविरुदै: युगप्रधान श्रीश्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ पूज्यमानं। चिरंनंदतु ॥ (१२५२ ) नमिनाथः ( अष्टदल कमल) डा० पारस नमिबिंबं प्रति० युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसू (१२५३) नेमिनाथः ___ सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने वो० गोत्रे सिन्धु पुत्र लाडण भार्या लीलमदे कारितं नेमिबिंबं प्र० श्रीअकबरसाहिदत्तयुगप्रधानविरुदैः श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः वा० पुण्यप्रधानो नोति॥ ___ (१२५४) पार्श्वनाथः सं० १६६२ चैत्र वदि ७ दिने श्रे० हरखा भर्या हरखमदे श्राविकया श्रे० नेतसी जेतश्री सपरिवार सहितया श्रीपार्श्वबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः १२४९. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४०९ १२५०. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४०४ १२५१. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४५० १२५२. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४५१ १२५३. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४१२ १२५४. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४१३ (२२०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "नाथ: ( १२५५ ) श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने दरड़ा अचला भार्या अचलादे श्राविकया पु० केसा ( १२५६ ) महावीर: सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ बो० मंत्री अमृत भार्या लाछलदे श्राविकया पुत्र भगवानदास सहितया महावीरबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ( १२५७ ) धनराजोपाध्याय - पादुका सं० १६६२ चैत्र वदि ७ दिने श्रीधनराजोपाध्याय पादुके ( १२५८ ) अजितनाथ : (१) श्रीविक्रमनगरे महाराजाधिराज महाराजा श्रीरायसिंह जी विजयराज्ये । (२) श्रा० जयमा का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीपंचनदीपतिसाधकैः श्रीसलेमसाहिप्रबोधकैः श्री(३) जिनमाणिक्यसूरि पट्टप्रभाकर युगप्रधान श्री श्री श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः शिष्य आचार्य श्रीजिनसिंह(४) सूरि श्रीसमयराजोपाध्याय वा० पुण्यप्रधान गणि प्रमुखसाधुसंघयुतैः पूज्यमानं ( १२५९ ) संभवनाथ: गोत्रे सा० धर्मसी भार्या श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ( १२६० ) सुपार्श्वनाथः श्रीखरतरगच्छे ॥ राजाधिराज श्रीरायसिंह जी राज्ये । श्रा० रंगादे कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिप्रभाकर युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः शिष्य आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि श्रीसमयराजोपाध्याय वा० पुण्यप्रधान गणि साधुयुतैः चिरंनंदतु ॥ ( १२६१ ) चन्द्रप्रभ- मूलनायक : राजाधिराज श्रीरायसिंहजीराज्ये ॥ श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः शिष्य आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि श्रीसमयराजोपाध्याय वा० पुण्यप्रधान प्र० सा० युतैः । १२५५.. ऋषभदेवस्थ पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४९३ १२५६ ऋषभदेवजी का मन्दिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४०७ १२५७. ऋषभदेवजी का मन्दिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४५९ १२५८. ऋषभदेवजी का मन्दिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४०० १२५९. पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४९४ १२६०. ऋषभदेवजी का मन्दिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४०१ १२६१. चन्द्रप्रभ मंदिर, सांगानेर: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११२५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: श्रीसंभवबिंबं प्रति० For Personal & Private Use Only (२२१) Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२६२ ) मुनिसुव्रतः सं० १६६२ (?) वर्षे वै० व० ११ शुक्रे उ० ज्ञातीय शिवराज सुत पासा भा० साढिक सुत कुंअरसी भा० का ................ दि सपरिवारैः श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का० प्र० श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्र (१२६३) वासुपूज्यः सं० १६६२ ................... ....................... भार्या ................................ सिन्दू .....श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिन ..............(चंद्रसूरिभिः) । (१२६४).... ...."नाथः श्रीखरतरगच्छे दिल्लीपतिअकबरसाहिदत्तयुगप्रधानविरुदैः साहिदत्ताषाढीयाष्टान्हिकामारि स्तंभतीर्थीयजलचररक्षणसंजातयशःप्रक.................श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । वा पुण्यप्रधानो नोति। (१२६५)" "नाथः सं० १६६२ को ............. भार्या मना श्राविकयाः श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ........................ (१२६६).."नाथ: .......बं० का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः .......... (१२६७).. "नाथः श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः वा० पु० प्रधानो नौति । (१२६८)" "नाथः महाराजा श्रीरायसिंह जी राज्ये श्रीखरतरगच्छे । जीवादे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः शिष्य आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि श्रीसमयराजोपाध्याय वा० पुण्यप्रधानगणि प्र० साधु संघे .. .......... १२६२. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७७० १२६३. महावीर जिनालय, बोरों की सेरी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक, १७१३ १२६४. पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४९२ १२६५. पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४९७ १२६६. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७२४ १२६७. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों मे, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक १७२५ १२६८. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७२३ (२२२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सं० १६६२ ब० ( १२६९ ) श्रीखरतरगच्छे (१२७० ) जिनकुशलसूरिस्तूपः ॥ सं० १६६३ वर्षे वैशाख सुदि नवमी दिने शनिवारे ओसवंशे बाफणागोत्रे खरतरगच्छे सा० समरसिंह तत्पुत्र पत्तननगरे राज्ञास्थापितवर श्रेष्ठिपदयुक्त सा० ॥ भरथ तत्पुत्र सुरजण भार्या सूहवदे तत्पुत्र सा हेमराज तत्भार्या हांसलदे तया पुत्ररत्नौ प्रसूतौ ज्येष्ठः चांपसी इत्याख्यस्य लघुभ्राता पुंजाख्य अस्य भार्या जीवादे चांपसी भार्या चांपलदे तत्पुत्र सा० योगीदास जयमल्ल जीवा कान्हजी पंचायणादि परिवारयुतैः । श्रीजिनकुशलसूरिगुरोः स्तूपकारितः प्रतिष्ठापितं च । युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये तत्पट्टे श्रीजिनसिंहसूरिविद्यमाने प्रतिष्ठितं च । श्रीयशः कुशलगणिभिः श्रेयोस्तु कल्याणमस्तु परिवारवृद्धिरस्तु राजाधिराज शत्रुसल्ल जाम राज्ये कल्याणमस्तु ॥ 'नाथ: (१२७१ ) जिनगुणप्रभसूरिस्तूपपादुकालेखः (१) ॥ ॐ ॥ श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् । थम्भ प्रतिष्ठा करावणहारना नाम ॥ प्रशस्ति लषियां छई । ऊकेशवंश छाजहड़गोत्रे । पूर्वई क्षत्रिय । (२) ॥ राठौड़वंशे। तिहां आस्थाम राजा । तिहनइ पुत्र धांधलादि १३ । धांधल नो पुत्र ऊदिला तिहनो पुत्र रामदेव। तत्पुत्र काजला ते । (३) ॥ संप्रति श्रेष्ठिनई षोले आप्यो । जिणइ श्रावकनउ धर्म आदरयउ । तेहनइ अनुक्रमी ऊधरण हुवो । तेहनउं पुत्र कुलधर । कुलधर पुत्र अ । (४) ॥ जित । अजित पुत्र सामंता । तेहनो पुत्र हेमराज । हेमराज पुत्र बादा तत्पुत्र माला मलसिंह नामइ । माला पुत्र ठिल । जूठिल पुत्र । (५) ॥ कालू प्रधानः। चंहुआण घडसी राजारइ राज्यनइ विषइ मंत्रीश्वर हुवो। रायपुर नगर मां देहरउ कराव्यउ । तत्पत्नी सीलालंकार धा (६) रिणी। कर्मादे नामतः । तेहनि कुक्षि संभूत पांच पुत्र । रादे । छाहड नेणा । सोनपाल । राजा: । अरघू नामी बहिन । तेह माहे सोनपा । (७) ॥ ल मंत्रीश्वर तेहनी भार्या सं० थाहरू तणी पुत्री । सहजलदे नाम ता पुत्ररत्न त्रयं प्रसूता । मंत्री सतोपाल । तत्प्रिया चांपलदे । द्विती (८) यो देपालः। तस्य प्रिया दाडिमदे । तृतीयो महिराज । तत् प्रिया महिगलदे । तन् मध्ये मंत्रीश्वर देपाल । देपाल भार्या दाडिमदे । पुत्र ३ (९) ॥ उदयकर्ण ॥ श्रीकर्ण । सहसकिरण। हिवई सहसकिरण भार्या सिरियादे । तत् कुक्षिसंभुत । मंत्रीश्वर सूर्यमल्ल। मंत्री दीदा । सूर्यम (१०) ल्ल भार्या मूलादे । कुक्षिसमुत्पन्न मं० हरिश्चंद्रः । मंत्रीश्वर विजपाल नाम धेअः । मं० दीदा भार्या श्रा० सवीरदे । पुत्र त्रयं प्रसूता । आद्यो मंत्री १२६९. पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४९८ १२७०. दादाबाड़ी, जामनगर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २३४ १२७१. श्मशान भूमि, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५०५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२२३) Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) श्वर हम्मीरः। द्वितीयो कर्मसिंहः। तृतीयो धर्मदासाक्ष्य:(ख्यः) मं० हमीर भार्या श्रा० चांपलदे। तत् कुक्षिसंभूत देवीदास पुत्रो विजयते (१२) || मं० विजपाल भार्या श्रा० विमलादे तत् कुक्षिभंभूत मंत्रीश्वर तेजपालेन तेजपाल भार्या श्राविका कनकादे प्रभृति समस्त परिवार(१३) ॥ सहितेन ॥ संवत् १६६३ वर्षे । मार्गशीर्षमासे बहुलपक्षे। षष्ठ्यां तिथौ। सोमवासरे। पुष्यनक्षत्रे । ब्रह्मयोगे। श्रीमत्खरतरवेग(१४) ॥ डगछे । श्रीजिनेश्वरसूरितत्पट्टे श्रीजिनशेषरसूरयः। तत्पट्टालंकार श्रीजिनधर्मसूरयः। तत्पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरयः। तत्पट्टप्र(१५) भाकर श्रीजिनमेरुसूरीश्वराः। तत्पट्टांभोजविकासदिनमणिकल्पाः॥ श्रीजिनगुणप्रभसूरयः। तेषां गुरूणां स्तूपे पादु(१६) ॥ का प्रतिष्ठा कारिता। शुभमुहूर्ते प्रतिष्ठिता च श्रीजिनेश्वरसूरिभिः॥ सपरिकरः॥ श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे राउल श्रीभी(१७) मसेनविजयराज्ये। श्रीपार्श्वनाथादिचैत्यविराज्यमाने। चिरंनंदतादाचद्रार्क यावत् । श्रीसंघसमस्तस्य कल्याणं भूयात् ॥ (१८) श्रीजिनगुणप्रभसूरीश्वराणां शिष्य पं० मतिसागरेण एषां पट्टिका लिखिता॥ मंत्री भीमा पुत्र मं० पदा तत्पु० मंत्री माणिके(१९) ॥ न रूपीया १० देहरीनइ दीधा। तथा थंभ सिलावट अषो सिलावट सिवदास हेमांणीए कीधा। चिरं नंदतु॥ श्रीः॥ (२०) ॥ पं० विद्यासागर। पं० आणंदविजय। पं० उद्योतविजयादिपरिवारसहितैः शुभं भूयात् ॥ सिलावट जसा वधूआणी॥ कीधा (२१) समस्त लघुवृद्धि संघनइ कल्याणं भूयात् ___ (१२७२ ) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १६६४ प्रमिते वैशाख सुदि ७ गुरु पुष्ये राजा श्रीरायसिंह विजयराज्ये श्रीविक्रमनगर वास्तव्य श्रीओसवालज्ञातीय गोलवच्छागोत्रीय सा० रूपा भार्या रूपादे पुत्र मिन्ना भार्या माणिकदे पुत्ररत्न सा० बन्नाकेन भार्या वल्हादे पुत्र नथमल्ल कपूरचन्द्र प्रमुख परिवार सश्रीकेन श्रीश्रेयासंबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च। श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार (हार) श्रीसाहि प्रतिबोधक ॥ युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ पूज्यमानं चिरंनंदतु ॥ श्रेयः॥ ___(१२७३) कुंथुनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १६६४ वर्षे वैशाख सुदि ७ गुरुवारे राजा श्रीरायसिंह विजयराज्ये, श्रीविक्रमनगर वास्तव्य श्रीओसवालज्ञातीय बोहत्थरागोत्रीय सा० वणवीर भार्या वीरमदे पुत्र हीरा भार्या हीरादे पुत्र पासा भार्या पाटमदे पुत्र तिलोकसी भार्या तारादे पुत्ररत्न लखमसीकेन अपर मातृ रंगादे पुत्र चोला सपरिवार सश्रीकेन १२७२. शांतिनाथ जिनालय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११५४ १२७३. महावीर स्वामी का मंदिर, डागों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५३१ (२२४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कुंथुनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ पूज्यमानं चिरंनंदतु ॥ कल्यामस्तु ॥ ( १२७४) श्रेयांसनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १६६४ वर्षे माघ सुदि ३ सोमे प्राग्वाटज्ञा० मं० वेगड़ भार्या चलहणदे पु० देवजीकेन भा० धनबाई पुत्र मुकुंद भाणजी प्रमुखसहितेन श्रीश्रेयांसबिंबं का० प्र० बृहत्खरतरगच्छाधिपश्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ (१२७५) अष्टदलकमललेखः सं० १६६४ वर्षे फाल्गुन शुक्ल पंचमी गुरौ विक्रमनगरवास्तव्य । श्रीओसवालज्ञातीय फसला। गोत्रीय । सा० हीरा । तत्पुत्र सा० मोकल । तत्पुत्र अज्जा । तत्पुत्र दत्तू । तत्पुत्र सा० अमीपाल भार्या अमोलिकदे पुत्ररत्नेन सा० लाखाकेन। भार्या लखमादे । लाछलदे पुत्र सा० चन्द्रसेन । पूनसी सा० पदमसी प्रमुखपुत्रपौत्रादिपरिवारसहितेन श्रीपार्श्वबिंबं अष्टदलकमलसंपुटसहितकारितं प्रतिष्ठितं श्रीशत्रुंजय महातीर्थे । श्रीबृहत्खरतरगणाधीश श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकारक। श्रीपातिसाहिप्रतिबोधक युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि पूज्यमानं चिरं नंदतु आचन्द्रार्कं ॥ (१२७६ ) जिनदेवसूरि- पादुका ॥ संवत् १६६५ वर्षे. मार्गशीर्ष वदि २ दिने सोमवारे श्रीखरतरगच्छीय भट्टारक श्रीजिनदेवसूरयः कृतानशनाः सुरालयमलंचक्रुः तेषां पादपद्मस्थापनेयं ॥ श्रीसंघस्य श्रेयसे 11 (१२७७ ) अजितनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १६६५ वर्षे माह वदि ६ गुरुवारे ओसवाज्ञातीय बहुरागोत्रे धाड़ीवालशाखायां सा० वीदा भा० विमलादे पुत्र सा० राजसी नाम्ना भा० रंगादे पुत्र होला वच्छा धन्ना पौत्र सपरिकेण श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे आद्यपक्षी श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः शुभम्भवतु। (१२७८ ) शिलापट्टप्रशस्तिः [१] ॥ एं ॥ संवत् १६६६ वर्षे । भाद्रपद शुक्लपक्षे । श्री द्वितीया दिने । शुक्रवारे । श्रीवीरमपुरवरे । श्री शान्तिनाथप्रासादे । [२] भूमि गृहे । श्रीखरतरगच्छे। युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि विजयिराज्ये । आचार्य जिनसिंहसूरि यौवराज्ये । श्री [३] राउल श्रीतेजसीजी विजयिराज्ये । कारितं श्रीसंघेन ॥ लिखितं वा० श्रीगुणरत्नगणीनां विनेयेन रत्नविशालगणिना १२७४. वीर जिनालय, रीज रोड़, अहमदाबाद: जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ९२३ १२७५. महावीर जिनालय, वेदों का, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १२५९ १२७६. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर, मेड़तासिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०६१ १२७७ विजयगच्छीय मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०८५ १२७८. शांतिनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ८८; पू० जै० भाग २, लेखांक १७१५; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ४८२; य० वि० दि० भाग २, लेखांक ४, पृ० १९८-१९९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only २२५. Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] सूत्रधार चांपापुत्र । रत्नापुत्र । जोधा रामा। पुत्र मन्ना धन्ना। वरजांगेन कृता भत्रीजा सीमा किल्याण। केल्ला मेघा। श्रीरस्तु। (१२७९) शिलालेखः संवत् १६६६ भाद्रपद शुक्ल पक्ष तिथि द्वितीया दिने शुक्रवासरे वीरमपुर श्रीशांतिनाथप्रासाद भूमिगृहे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरि विजयाधिराज आचार्य श्रीसिंहसूरि राज्ये श्रीसंघेन लिखितं । (१२८०) दादागुरु-चरणपादुका सं० १६६७ व० वैशाख सु० ४ दिने प० भीमसीकेन का० प्र० श्रीजिनसिंहसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे। (१२८१) वर्णकीर्ति-पादुकालेख: (१) ॥ संवत् १६६७ वर्षे शाके १५४१ [प्रवर्तमा] (२) ने भाद्रवमासे शुक्लपक्षे २ तिथौ श्रीवाचना(३) चार्य श्रीवर्णदत्त श्रीकमलोदयगणि त(४) शिष्यशिरोमणि प० वर्णकीर्ति प० श्री(५) देवसार वृ (?) त्ति पादुका ।। (१२८२) पादुका-युगल संवत् १६६७ वर्षे फाल्गुन सुदि ५ दिने गुरुवार अश्विनीनक्षत्रे श्रीखरतरगच्छे साध्वी गुणमाला पादुके साध्वी क्षेममाला पादुके प्रतिष्ठितं युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिभिः भक्तेन कारितं ओसवंशे रीहड़गोत्रे रायमल कारापितं। (१२८३) खरतर-जयप्रासाद-प्रशस्तिः संवत् १६६७ वर्षे फाल्गुन...................गुरुवासरे श्रीविक्रमनगर वास्तव्य............ज्ञातीय लिग्गा गोत्रीय सं। रवैपाल पुत्ररत्नेन.............महाराजश्रीरायसिंहजी-दत्त-सर्वस्वाधिकारेण सं० सतीदास सुश्रावकेण भ्रातृ सं० लक्ष्मीदास प्रमुख सपरिकरेण श्रीशत्रुजयतीर्थयात्रासमागतश्रीसंघभक्त्यर्थं तगिरिमूले स्वधनं व्ययेन विरचित वापीकूपेन परोपकारिरसिकेन कारित: आदिनाथपरिकरः प्रतिष्ठितश्च खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार श्रीपातिसाहि अकब्बर प्रतिबोधक तद्दत युगप्रधानविरुदधारक स्वगुणरंजितयवनाधीशवितीर्णाषाढीयाष्टाह्निका स्तंभतीर्थीयजलचरजीवनरक्षणप्रभृति षाण्मासिकजीवाभयदानदायक युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीजिनसिंहसूरि प्रमुखसाधुसंघसत्परिकरैः॥ श्री ॥ श्री॥ [इति-खरतर-जयप्रासाद-प्रशस्तिः श्रीश@जयतीर्थोपरि बृहत्प्राकारमध्ये । वाम भागे॥ श्रीरस्तु॥] १२७९. नाकोड़ा तीर्थ: पू० जै०, भाग १, लेखांक ७२३ १२८०. महावीर जिनालय, गीपटी, खंभातः जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९९ १२८१. जिनचंद्रसूरि जी का स्थान, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५१४ १२८२. वल्लभ विहार, शत्रुजय: भंवर० (अप्रका०), लेखांक ५६ १२८३. धनवसही, तलहटी दादावाड़ी, शत्रुजयः भंवर० (अप्रका०), लेखांक १३१ (२२६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२८४) अभिनन्दनः सं। १६६७ का ......................अभिनन्दन ....... । जं० । यु । प्र । भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (१२८५) चन्द्राननः (१) स्वस्तिश्री संवत् १६६८ वर्षे ११ ज्येष्ठ सुदि १५ तिथी गुरुवासरे (२) अनुराधा नक्षत्रे उसवाल ज्ञातीय अगड़कठोली गोत्रे सा० कू - 7 (३) ॥ संताने सा० कान्हड़। भा० भामनी ............. पुत्र सा० पहीराज.. (४) भा० इंद्राणी। भा० सोनी पुत्र सा० निहालचंद । तेन श्रीचंद्रानन शाश्वतजि(५) न बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं । श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धनसूरिसंताने (६) श्रीजिनसिंहसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ श्रीआगरानगरे ॥ शुभं भवतु ॥ (१२८६) पार्श्वनाथः (१) ॥ संवत् १६६८ ज्येष्ठ सुदि १५ गुरौ ॥ ओसवा(२) लज्ञातिशृंगार । अरडक सोनीगोत्रे (३) सा० हीरानंद पुत्र सा निहालचंदे(४) न श्रीपार्श्वनाथकारितः सर्वरूपाकार (५) श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसिंहसूरि पटे श्री(६) जिनचंद्रसूरिणा। श्रीआगरा नगरे (१२८७)......"नाथ: ॐ सिद्धिः॥ संवत् १६६८ ज्येष्ठ सुदि १५ तिथौ गुरुवासरे अनुराधा नक्षत्रे । ओसवालज्ञातीय अरडक सोनीगोत्रे साह पूना संताने सा० कान्हड़ भा० भामनी बहुपुत्र सा० हीरानंदेन बिंबं कारापितं प्रतिष्टितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्धनसूरिसंताने ........................ श्रीलब्धिवर्धनशिष्येन (१२८८) धर्मनाथः । सं० १६६८ । श्रीधर्मनाथबिंबं का० सा० हीरानंदेन । प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । (१२८९) पादुकालेखः संवत् १६६९ ....................... वैशाख वदि ५ शुक्रवारे .... युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि शिष्य श्रीसमयराजोपाध्याय शिष्य वाचनाचार्य समयसुंदरगणयोः इमे पादुके कारिते श्रीचोपड़ागोत्रीय सं० कवन्ना भार्या कयवलदे पुत्र सारंगधरेण प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे १२८४. धर्मस्वामी जी का मंदिर, रोनाही रत्नपुरी: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६६९ १२८५. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, सुंघी टोला, लखनऊ : पू० जै०, भाग २, लेखांक १५८५ १२८६. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, रोशन मुहल्ला, आगरा: पू० जै०, भाग २, लेखांक १४५७ १२८७. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, रोशन मुहल्ला, आगरा: पू० जै०, भाग ३, लेखांक १४५१ १२८८. जैन मंदिर, चम्पापुरी: पू० जै०, भाग १, लेखांक १३५ १२८९. छीपावसही , शत्रुजय: भंवर० (अप्रका०), लेखांक २५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (२२७) For Personal & Private Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजिनराजसूरिभिः श्रीकमललाभोपाध्याय पं० लब्धिकीर्ति गणिः पं० । राजहंस दयामेरु देवविजय देवजी युतोपदेशेन श्रेयसे भवतां (१२९०) पद्मपभः ॥सं० १६६९ वर्षे आषाढ मासे .......... गुरुवारे .................... श्रीओसवालज्ञातीय लोढागोत्रे सं० डाहा भार्या तेजलदे पुत्र रायमल्ल भार्या रंगादे पुत्र ......................... भीमराज धारावत भार्या जसवंतदे ..................................पु० सं० आसराज पुत्रयुतेन श्रीपद्मप्रभंबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनदेवसूरिपट्टे श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचन्द्रसूरिभि : .............. .............॥ (१२९१) परिकरे ॥ ॐ ॥ संवत् १६६९ वर्षे शाके १५३४॥ मार्गशीर्ष मासे श्रीपातिसाहि नूरदीन अहल्लं जहांगीर विजयराज्ये। श्रीमेड़तामहाकोटैः ॥ महाराजाधिराज महाराज श्रीसूर्यसिंहजी महाराजकुमार श्रीगजसिंहजी। राजश्री गोविन्ददासजी वचनात्॥ श्री॥.....................................गोलवच्छागोत्रीय। सा० देवसी तत्पुत्र सा० रायमल्ल तत्पुत्र सा० कल्ला सा० अमरसी तत्पुत्र सा० खेता पौत्र सा० राजसी सा० नरसिंघ। रायसिंह उदयसिंह वल्लभराजा नारायणादिसत्परिवारयुतेन। श्रीवासुपूज्यनाथ निजन्यायोपार्जितदेवद्रव्येन। परिकरेण प्रतिष्ठापिता॥ (१२९२) शान्तिनाथः ॥संवत् १६६९ वर्षे माह सुदि ५ दिने शुक्रवारे महाराजाधिराज महाराज श्रीसूर्यसिंहजी विजयिराज्ये उसवालज्ञातीय लोढागोत्रे संघवी डाहा तत्पुत्र सं० रायमल्ल भार्या रंगादे सं० लाखाकेन भार्या लाडिमदे पुत्र वस्तुपाल सहितेन श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीआद्यपक्षीय श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनदेवसूरिपट्टे श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ छः॥ श्रीः॥ , (१२९३) पार्श्वनाथ-मूलनायकः ॥संवत् १६६९ वर्षे माह सुदि ७ शुक्रवारे महाराजाधिराज श्रीसूर्यसिंहजी विजयराज्ये श्रीउपकेशज्ञातीय लोढागोत्रे सा० डाहा तत्पुत्र सं० रायमल्ल भार्या रंगादे तत्पुत्र सं० भीमाकेन भार्या लाडिमदे। पुत्र वस्तुपाल युतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमबृहत्खरतरगच्छे श्रीआद्यपक्षीय श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनदेवसूरितत्पट्टालंकार श्रीजिनसिंहसूरितत्पट्टोदयाद्रिशृंगभानु-श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ शुभंभवतु । __ (१२९४) यु० जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥ संवत् १६७० वर्षे मार्गशीर्ष सुदि १० दिने । श्रीजेसलमेरुसंघेन कारिते। पा० सवाईयुगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीणां प्र० श्रीजिनसिंहसूरिभिः ॥ १२९०. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मेड़तासिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०९४ १२९१. वासुपूज्य मंदिर, मेड़तासीटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०७९ १२९२. चिन्तामणि पाश्र्वनाथ मंदिर, मेड़तासिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०९५ १२९३. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मेड़तासिटी:प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०९६; प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४३५; पू० जै०, भाग १, लेखांक ७७३ १२९४. शांतिनाथ जिनालय, मेड़तासीटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १०९९ (२२८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२९५) युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥संवत् १६७० वर्षे फागुण वदि ९ दिने युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीणां पादुके कारापिता तातहड़गोत्रीय ................... केन प्रतिष्ठितं श्रीजिनसिंहसूरिभि सा० सोहित पुत्र सा० रा ...................... तातहड़.. (१२९६) गुरुपादुकालेखः संवत् १६७१ वर्षे वैशाख वदि ३ दिने श्री ........................यानां पादुका .........................पादुका प्रतिष्ठितं श्रीगुरुभिः __ (१२९७ ) सुमतिलक्ष्मी-पादुका र्द० ॥ संवत् १६७१ वर्षे वैशाख वदि ३ दिने गुरुवारे खरतरगच्छे साध्वी ज्ञानलक्ष्मी शिष्यणी सुमतिलक्ष्मी पादुके युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिभिः...................... (१२९८) लब्धिमंडनगणि-पादुका द० ॥ संवत् १६७१ वर्षे वैशाख वदि पंचमी तिथौ शनिवासरे श्रीबृहत्खरतरगच्छे वा० श्रीलब्धिमंडनगणि .................प्रतिष्ठितं श्रीजिनसिंहसूरिभिः... . (१२९९) पादुका-लेखः सं० १६७१ वर्षे वैशाख वदि ५ दिने श्रीबृहत्खरतरगच्छे .. पादुके प्रतिष्ठितं युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिभिः ................................... नंदकीर्ति प्रणमति (१३०० ) पादुका-लेखः संवत् १६७१ वर्षे आसू वदि १० रविवार पुष्ययोग श्रीखरतरगच्छ श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि पादुके कारितस्त ॥ (१३०१) गुरु-पादुके संवत् १६७१(?) वर्षे माघ...... ७ तिथौ श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरि शिष्य उ० श्रीराजसागरजी शि। श्रीमुनिचंद्र प्रीतसारजी पादुके प्रतिष्ठिते श्रीदीपचन्द्र गणिना ॥ (१३०२) स्तम्भलेखः (१) ॥ संवत् १६७२ वर्षे वैशाख सुदि ९ दिने सोमवारे श्रीजेसलमेरु १२९५. श्रीमालों का उपाश्रय, जयपुर: भंवर० (अप्रका०), लेखांक १२९६. छीपावसही, शत्रुजय: भंवर० (अप्रका०), लेखांक ५९ १२९७. वल्लभविहार, शत्रुजयः भंवर० (अप्रका०), लेखांक ५५ १२९८. वल्लभविहार, शत्रुजय: भंवर० (अप्रका०), लेखांक ५७ १२९९. वल्लभविहार, शत्रुजयः भंवर० (अप्रका०), लेखांक ५८ १३००. खरतरगच्छीय दादावाड़ी, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १५० १३०१. छीपावही, शत्रुजय: भंवर० (अप्रका०), लेखांक ३१ १३०२. दादाबाड़ी, जैसलमेर: पू० जै० भाग ३, लेखांक २४९७ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (२२९) For Personal & Private Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) वास्तव्य राउल श्रीकल्याणदासजी विजयराज्ये कुंअर श्री : (३) मनोहरदास जी। सवाई युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरीश्वर । (४) पादुके कारिते युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनसिंहसूरि ॥ श्रीख(५) रतरसंघेन तैव सर्वदा श्रीसंघस्य समुन्नतिसुखश्रेयोवृद्धि कृ(६) ते। वाचयेतामिति ॥ पं० उदयसिंघ लिपी कृतं ॥ श्री श्री श्रीः ॥ (१३०३ ) यु० जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥ संवत् १६७२ वर्षे वैशाख सुदि ९ सोमवारे भट्टारक सवाई युगप्रधान श्री श्री श्री श्रीजिनचंद्रसूरिपादुका प्रतिष्ठिता (१३०४) यु० श्रीजिनचंद्रसूरि - पादुका सं० १६७३ वर्षे वैशाख मासे अक्षयतृतीया सोमवारे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार सवाई युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरीणां पादुके श्रीविक्रमनगर वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन (१३०५) बेगडगच्छ- उपाश्रयलेखः (१) ॥ श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ संवत् १६ चैत्रादि ७३ वर्षे जेठ सुदि (२) १५ सोमवारे मूलनक्षत्रे । श्रीजेसलमेरुनगरे राउल श्रीक (३) ल्याणजी विजयराज्ये । श्रीखरतरवेगड़गच्छे । भ० श्रीजिनेश्वरसूरि (४) विजयराज्ये । छाजहड़गोत्रे । मं० कुलधरान्वये । मंत्री वेगड़ । पुत्र मं० (५) सूरा। तत्पुत्र मं० देवदत्त । पुत्र मंत्री गुणदत्त । तत्पुत्र मं० सुरजन । मं० (६) वकमा । धरमसी । रत्ना । लषमसी। मंत्री सुरजन पुत्र । मं० जीआदे (७) सू। जीया पुत्र मंत्री पंचाइण । पुत्र मं० चांपसी। मं० उदयसिंह मं० (८) बांकुरसी। मं० टोडरमल्ल । चांपसी पुत्र देवकर्ण । उदयसिंह पुत्र (९) महिराज । प्र. ........ राज्ञा मंत्री टोडरमल्लेण पुत्र सोनपाल सहिते(१०) न उपासरा द्वारं सुघटं कारितं ॥ चिरं जयतु ॥ श्रीसंघस्य ॥ (११) ॥ सूत्रधार पांचाकेन कृतं ॥ अंबाणी ॥ ( १३०६ ) सं० १६७३ वर्षे बृहतखरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनचंद्रसूरि (१३०७ ) यु० जिनचन्द्रसूरि - पादुका संवत् १६७४ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ५ शुक्रवारे । श्रीजेसलमेरौ । श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश सवाई १३०३. दादाबाड़ी, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २४९६ १३०४. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०३५ १३०५. बेगडगच्छ उपाश्रय, जैसलमेरः पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४४७ १३०६. शांतिनाथ का बड़ा देरासर, कनासा पाडा, पाटणः भो० पा०, लेखांक १३७० १३०७. दादावाडी (देदानसर तालाब), जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८६७; पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५०० (२३० खरतरगच्छ प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि पादुका प्रति० श्रीधर्मनिधानोपाध्यायैः । गणधरगोत्रे । हरष पुत्र सा० तिलोकसीकेन पुत्र राजसी पुनसी भीमसी सहितेन प्रतिष्ठा कारिता। विनेय पंडित धर्मकीर्ति गणि वन्दते गुरुपादान् । श्री ५ सुखसागर गणि पं० समयकीर्ति गणि पं० सदारंग मुनि प्रमुखा: वन्दते पं० उदयसिंघ लि० । (१३०८) शिलालेखः संवत् १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १२ श्रीअहमदावाद वास्तव्य चारभाइया गोत्रे ओसवालज्ञातीय श्रीपालसुत शाह चांपसी सुत शाह करमसी भारजा बाइ करमादे खरतरगच्छे ॥ पीपल्या ॥ शुभंभवतु ॥ (१३०९) आदिनाथ-पादुका ॥ सं० १६७५ वैशाख सुदि १३ तिथौ शुक्रवारे सुरताणनूरदीनजहांगीरसवाईविजयिराज्ये । श्रीअहम्मदा[वाद] वास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय लघुशाखाप्रदीपक सं० माईआ भार्या नाकू पुत्र सं० जोगी भार्या जसमादे पुत्ररत्न सकलसुश्रावककर्तव्यताकरणविहितरत्न सं० सोमजी भार्या राजलदे पुत्र संघपति रूपजीकेन भार्या जेठी पुत्र चि० उदयवंत बाई कोडी कुंअरि प्रमुखसारपरिवारसहितेन स्वयंकारितसप्राकार श्रीविमलाचलोपरि मूलोद्धारसारचतुर्मुखविहारशृंगारक श्रीयुगादिदेवप्रतिष्ठायां श्रीआदिनाथपादुके परमप्रमोदाय कारिते प्रतिष्ठिते च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराजश्रीजिनराजसूरिसूरिशिरस्तिलकैः॥ प्रणमति भुवनकीर्तिगणिः॥ (१३१०) आदिनाथ: सं० १६७५ मिते सुरतामनूरदीनजहांगीरसवाईविजयराज्ये साहिजादासुरताणषोस[डू]प्रवरे श्रीराजीनगरे सोबईसाहियानसुरताणषुरमे वैशाख सित १३ शुक्रे श्रीअहम्मदावादवास्तव्य लघुशाखाप्रकटप्राग्वाटज्ञातीय से० देवराज भार्या [डू]डी पुत्र से० गोपाल भार्या राजू पुत्र से० राजा पुत्र सं० साईआ भार्या नाकू पुत्र सं० जोग भार्या जसमादे पुत्ररत्न श्रीशत्रुजयतीर्थयात्राविधानसंप्राप्तश्रीसंघपतितिलक नवीनजिनभवनबिंबप्रतिष्ठा साधर्मिकवात्सल्यादिधर्मक्षेत्रोप्तस्ववित्त सं० सोमजी भार्या राजलदे कुक्षिरत्न राजसभाशृंगार सं० [डू]पजीकेन पितृव्य सं० शिवा स्ववृद्धभ्रातृ रत्नजी पुत्र सुंदर[ दास] सपर लघुभ्रातृ षीमजी पुत्र रविजी स्वभार्या जेठी पु० उदयवंत पितामह भ्रातृ सं० नाथा पुत्र सं० सूर जी प्रमुखसार परिवार सहि तेन स्वयं समुद्धारितसप्राकारश्रीविमलाचलोपरि मूलोद्धरसारचतुर्मुखविहारशृंगारहारश्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमहावीरदेवपट्टानुपट्टाविच्छिन्नपरंपरायातश्रीउद्योतनसूरि-श्रीवर्धमानसूरि-वसतिमार्गप्रकाशकश्रीजिनेश्वरसूरि - श्रीजिनचंद्रसूरि-नवांगवृत्तिकारक श्रीस्तंभनपार्श्वनाथप्रकटक- श्रीअभयदेवसूरिश्रीजिनवल्लभसूरि-देवताप्रदत्तयुगप्रधानपदश्रीजिनदत्तसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरि-श्रीजिनपतिसूरि-श्रीजिनेश्वरसूरिश्रीजिनप्रबोधसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरि-श्रीजिनकुशलसूरि-श्रीजिनपद्मसूरि-श्रीजिनलब्धिसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनोदयसूरि-श्रीजिनराजसूरि-श्रीजिनभद्रसूरि-श्रीजिनचंद्रसूरि-श्रीजिनसमुद्रसूरि-श्रीजिनहंससूरिश्रीजिनमाणिक्यसूरि-दिल्लीपतिपातसाहि श्रीअक ब्बर प्रतिबोधक तत्प्रदत्तयुगप्रधानविरुदधारक सकलदेशाष्टाह्निकामारिप्रवर्तावक कुपित-जहांगीरसाहिरंजक तत्स्वमण्डलबहिष्कृतसाधुरक्षक युगप्रधान श्रीजिनचंद्र सूरि मंत्रिकर्मचंद्र कारित-सपादकोटि वित्तव्ययरूपनंदिमहोत्सवप्रकार कठिन १३०८. देहरी क्रमांक ९०/२, खरतरवसही, शत्रुजयः श० गि० द०, लेखांक ११५ १३०९. खरतरवही, शत्रुजयः प्रा० ० ले० सं०, भाग २, लेखांक १५ १३१०. चतुर्मख विहार, शत्रुजयः प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक १७ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (२३१) For Personal & Private Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काश्मीरादिदेशविहारकारक श्रीअकब्बरसाहिमन:-कमलभ्रमरानुकारक वर्षावधिजलधिजलजंतुजातघातनिवर्तक श्रीपुर गोलकुंडागजणाप्रमुखदेशामारि प्रवर्तक सकलविद्याप्रधान जहांगीर नूरदीनमहम्मदपातिसाहिप्रदत्तयुगप्रधानपद-श्रीजिनसिंहसूरि-पट्टालंकारक श्रीअंबिकावरधारक-तबलवाचितघंघाणीपुरप्रकटि तचिरंतनप्रतिमाप्रशस्ति-[व-] तर बोहित्थवंशीय सा० धर्म सी-धार लदे-दारक चतुःशस्रपारीणधुरीणशृंगारक भट्टारकवृंदारक श्रीजिनराजसूरिसूरिशिरो [ मुकुटैः॥] आचार्य श्रीजिनसागरसूरि । श्रीजयसोम महोपाध्याय श्रीगुणविनयोपाध्याय श्रीधर्मनिधानोपाध्याय पं० आनंदकीर्ति स्वलघुसहोदरवा० [भद्रसेनादिसत्परिकरैः॥] (१३११) शिलालेखः संवत् १६७५ प्रमिते सुरताणनूरदीनजहांगीरसवाईविजयराज्ये साहिजादा सुरताणषोस(डू)प्रवरे राजनगरे सोबइसाहियान सुरताणषुरमे ॥ वैशाख सित १३ शुक्रे । श्रीअहम्मदावादवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय से० देवराज भार्या (रू)डी पुत्र से० गोपाल भा० राजू पु० से० राजा पु० साईआ भा० नाकू पु० सं० जोगी भार्या जसमादे पुत्ररत्न० श्रीशत्रुजयतीर्थयात्राविधानसंप्राप्त-संघपतितिलक नवीनजिनभवनबिंबप्रतिष्ठासाधर्मिकवात्सल्यादिधर्मक्षेत्रोप्तस्ववित्त सं० सोमजी भार्या राजलदे कुक्षिरत्न संघपति(डू) पजीकेन पितृव्य सं० शिवा स्ववृद्धभातृ रत्नजी सुत सुंदरदास सपर लघुभ्रातृ खीमजी पुत्र रविजी पितामहभ्रातृ सं० नाथा पुत्र सूरजी स्वपुत्र उदयवंत प्रमुखपरिवृते न स्वयंसमुद्धत श्रीविमलाचलो परि मूलोद्धारसारचतुर्मुखविहार श्रृंगार श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमहावीरदेवाविच्छिन्नपरंपरायात श्रीउद्द्योतनसूरि-श्रीवर्द्धमानसूरि-वसंतिमार्गप्रकाशकश्रीजिनेश्वरसूरि-श्रीजिनचन्द्रसूरि-नवांगवृत्तिकारक श्रीस्तंभनकपार्श्वप्रकट-श्रीअभयदेवसूरि-श्रीजिनवल्लभसूरि-युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरिपाद-श्रीजिनभद्रसूरिपादश्रीअकबरप्रतिबोधक तत्प्रदत्तयुगप्रधानपदधारक सकलदेशाष्टाह्निकामारिपालक षाण्मासिकाभयदानदायक युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि मंत्रिकर्मचंद्रकारित श्रीअकबरसाहिसमक्षसपादशतलक्षवित्तव्ययरूप-नंदिमहोत्सववि(स्तार) विहितकठिनकाश्मीरादिदेशविहार मधुरतरातिशायि स्ववचनचातुरि रंजितानेकहिंदुकतुरुष्काधिपति श्रीअकबरसाहि श्रीकारश्रीपुरगोलकुंडागजणाप्रमुखदेशामारिप्रवर्तावक वर्षावधिजलधिजलजंतुघातनिवर्तावक सुरताणनूरदीनजहांगीरसाहिप्रदत्तयुगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरि-पट्टप्रभाकर समुपलब्ध श्रीअंबिकावर बोहित्थवंशीय सा० धर्मसी-धारलदेनंदन भट्टारकचक्र चक्रवर्ति भट्टारकशिरस्तिलक श्रीजिनराजसूरिसूरिराजैः॥ श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराजैः । आचार्य श्रीजिनसागरसूरि पं० आनंदकीर्ति स्वलघुभ्रातृ वा० भद्रसेनादिसत्परिकरैः॥ (१३१२) शिलालेख संवत् १६७५ मिते सुरताणनूरदीनजहांगीरसवाईविजयराज्ये साहियादासुरताणषोस(डू)प्रवरे राजनगरे सोबईसाहियानसुरताणषुरमे वैशाख सित १३ शुक्रे श्रीअहम्मदावादवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय से० सा० (डू) डी पुत्र से० गोपाल भार्या राजू पुत्र से० राजा पुत्र सं० साईआ भार्या नाकू पुत्र सं० जोगी भार्या जसमादे पु० श्रीश@जयतीर्थयात्राविधानसंप्राप्तसंघपतितिलक नवीनजिनभवनबिबसाधर्मिकवात्सल्यादिधर्मक्षेत्रोप्तस्ववित्त सं० सोमजी भार्या राजलदे पुत्ररत्न संघपति(डू) पजीकेन पितृव्य शिवा लालजी स्ववृद्धभ्रातृरत्न रत्नजी(पु०) सुंदरदास लघुभ्रातृ षीमजी सुत रविजी पितामहभ्रातृ सं० नाथा पुत्र सूरजी स्वपुत्र उदयवंत प्रमुख परिवारसहितेन १३११. चतुर्मुख विहार (चौमुखजी ट्रॅक), शत्रुजयः प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक १८ १३१२. चतुर्मुख विहार, शत्रुजयः प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक १९ (२३२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वयंसमुद्घारितसप्राकार श्रीविमलाचलोपरि मूलोद्धारसारचतुर्मुखविहारशृंगारहारश्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमहावीर देवाविच्छिन्नपरंपरायात श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज श्रीअकबरसाहि प्रतिबोधक तत्प्रदत्तयुगप्रधानविरुदधारक षाण्मासिकाभयदानदायक सकलदेशाष्टाह्निकामारिप्रवर्ताविक युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि मंत्रिमुख्यकर्मचंद्रकारित श्रीअकबरसाहिसमक्षसपादशतलक्षवित्तव्ययरूपनंदिपदमहोत्सवविस्तार विहितकठिनकाश्मीरादिदेशविहार मधुरतरातिशायिस्ववचनचातुरीरंजितानेकहिंदुकतुरुष्कराजाधिप श्रीअकबरसाहि श्रीकार श्रीपुरगोलकुंडा-गजणाप्रमुखदेशामारिप्रवर्त्तावक वर्षावधिजलधिजलजंतु-जातघातनिवर्तावक सुरताणनूरदीजहांगीरसवाईप्रदत्तयुगप्रधानपदधारक सकलविद्याप्रधान युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रभावक श्रीअंबिकावरप्रवाचितघंघाणीपुरप्रकटितचिरंतनप्रतिमाप्रशस्तिवर्णा बोहित्थवंशीय सा० धर्मसी-धारलदे-नंदन भट्टारक शिरोमणि श्रीजिनराजसूरिसूरिपुरंदरैः॥ आचार्य श्रीजिनसागरसूरि श्रीजयसोममहोपाध्याय श्रीगुणविनयोपाध्याय श्रीधर्मनिधानोपाध्याय पं० आनंदकीर्ति स्वलघुभ्रातृ वा० भद्रसेन पं० राजधीर पं० भुवनराजादिसत्परिकरैः ॥ __ (१३१३) शिलालेखः संवत् १६७५ प्रमिते सुरताणनूरदीनजहांगीरसवाईविजयिराज्ये साहिजादासुरताणषोस(रू)प्रवरे श्रीराजनगरे सोबइसाहिआनसुरताणषुरमे वैशाख सित १३ शुक्रे श्रीअहम्मदावादवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय से० देवराज भार्या (डू)डी पुत्र से० गोपाल भार्या राजू पु० से० राजा पु० सं० साईआ भार्या नाकू पुत्र सं० जोगी भार्या जसमादे पुत्र श्रीशजयतीर्थयात्राविधानसंप्राप्तसंघपतिपदवीक नवीनजिनभवनबिंबप्रतिष्ठासाधर्मिकवात्सल्यादिसत्कर्मधर्मकारक सं० सोमजी भार्या राजलदे पुत्ररत्न संघपति (डू) पजीकेन भार्या जेठी पुत्र उदयवंत पितृव्य सं० शिवा स्ववृद्धभ्रातृ रत्नजी पुत्र सुंदरदास सपर स्वलघुभ्रातृ षीमजी सुत रविजी पितामहभ्रातृ सं० नाथा पुत्र (सं०) सूरजी प्रमुखपरिवारसहितेन स्वयं कारितसप्राकार श्रीविमलाचलोपरि मूलोद्धारसारचतुर्मुखविहारशृंगारक श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीवीरतीर्थंकराविच्छिन्नपरंपरायात श्रीबहत्खरतरगच्छाधिप श्रीअकबरसाहिप्रतिबोधक तत्प्रदत्तयगप्रधानविरुदधारक सकलदेशाष्टाह्निकामारिप्रवर्तावक युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीअकबरसाहिरंजक विविधजीवदयालाभग्राहक-सुरताणनुरदीजहांगीरसवाईप्रदत्तयुगप्रधानविरुदधारकप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टविभूषण-बोहित्थवंशीय सा० धर्मसी-धारलदेनंदन भट्टारकचक्रचूडामणि-श्रीजिनराजसूरिसूरिदिनमणिभिः ॥ आचार्य श्रीजिनसागरसूरि पं० आनंदकीर्ति स्वलघुसहोदर वा० भद्रसेनादिसत्परिकरैः ॥ (१३१४) शिलालेखः स्वस्ति श्रीजहांगीरशाहिबकृतयशबहुंमान ................... स्वस्तिश्रीजयमंगलाभ्युदयाय श्रीशत्रुजयाष्टमोद्धारसारशृंगार-चतुर्दार-श्रीयुगादिदेवविहारपुरः प्रवरहारानुकार-श्रीद्वितीयजिनवरनिश्रारप्रासादः॥ प्रासाद-प्रशस्तिरियम्। संवत् १६७५ मिते वैशाख सुदि १३ शुक्रे ओसवालज्ञातीय- श्रीमदहम्मदावादवास्तव्य नव्यनव्यभव्यकारणियतरणियप्रसवेन रचितविसर-भान्डशालिक-कुलालंकार-प्रवराय हरितिलकलसेमा भार्या मूली पुत्र कमलसी भार्या कमलादे पुत्र जखराज भार्या नरबाई पुत्ररत्न सा० सईआकेन भार्या पुहती पुत्र चिरं रहिया सारपरिवारसहितेन श्रीअजितनाथबिंब-चैत्यकारितं प्रतिष्ठितं च तत् ॥ श्रीमहावीरराजाधिराज१३१३. चतुर्मुख विहार, शत्रुजय: प्रा० जै० ले० सं०, लेखांक २० १३१४. खरतरवसही, शत्रुजयः श० वि० द०, लेखांक १२८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (२३३) For Personal & Private Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानाविच्छिन्नपरंपरायात चांद्रकुलीन संवेगरं करण प्रवा . लाडल - नवाकुलप्रतापभापनोपमान- श्रीकोटीगणाभरणश्रीवज्रशाखातिशायिप्रद्योतन- श्रीउद्योतनसूरि- श्रीमदर्बुदाचलोपरिविहितखाण.. सानिध्यश्रीसीमंधरसोधितश्रीसू रिमंत्रवर्णसमाम्नाय श्रीवर्धमानसूरि- श्रीमद्- अणहिलपत्तनाधिप-श्रीदुर्लभ चैत्यवासियत्याभास . पक्षे स्थापिता वसतिमार्गदीपक- श्रीखरतरविरुदवर- श्रीजिनेश्वरसूरिश्रीजिनचंद्रसूरि-जयतिहु अणद्वात्रिंशिकाविधान-प्रगटीकृतं स्तंभनकाभिधानपार्श्वनाथ- प्रधानप्रासादसमर्थि- नवांगीवृत्तिरचकान - निकषपट्टे श्री अभयदेवसूरि : कंदकुदालाभ-पं० दत्त ....समाचारि - विचारचंचुबंधुरश्रीजिनवल्लभसूरि-चतुषष्टियोगिनिविजय पंचनंददशसूरिक्रमागतश्रीदत्रसूरिसंतान-विषमदुः षमारक-प्रसरपारावारलहरिभरनिमग्न-सक्रियोद्धारणसमुवा० बंदाततोपित वि.............ति श्रींमदकबरप्रदत्तयुगवरपदवीधर - कुमतितिमिरर्पितदुर्म-नमथनोधुर- प्रतिवर्षाढीयामारिसिंचन श्रीजिनचंद्रसूरि - चउरनर - राजनंदि व. . विहित साध्य विदारणप्रदमिता ॥ (१३१५ ) शिलालेख: संवत् १६७५ सित १३ शुक्रे सुरताणनूरदीनजहांगीरविजयराज्ये श्रीराजनगरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञात से० देवराज भार्या रूडी पुत्र से० गोपाल भार्या राजू सुत० साईआ भार्या नाकू पुत्र सं० नाथा भार्या नारिंगदे पुत्ररत्न सं० सूरजीकेन भार्या सुखमादे पुत्रायित इंद्रजी सहितेन श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज - श्री अकबरपातिसाहिभूपालप्रदत्त - षाण्मासिकाभयदान- तद्प्रदत्तयुगप्रधान विरुदधारक-सकलदेशाष्टान्हिकामारिप्रवर्तावक युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टोद्दीपक- कठिनकाश्मीरदेशविहारकारक श्री अकबरसाहि - चितरंजन प्रपालित श्रीपुरगोलकुंडा - गज्जण प्रमुख देशामारि जहांगीर साहिप्रदत्त-युगप्रधानपदधारि श्रीजिनसिंहसूरिपट्टोदयकारक - भट्टारकशिरोरत्न श्रीजिनराजसूरि.. ॥ श्री ॥ श्री ॥ (१३१६ ) शिलालेखः संवत् १६७५ वैशाख सित १३ शुक्रे सुरताणनूरदीनजहांगीर सवाई - विजयराज्ये । श्रीराजनगरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय सं० साइआ भार्या नाकू पुत्र सं० जोगी भार्या जसमादे पुत्र विविधपुण्यकर्मोपार्जक सं० सोमजी भार्या राजलदे पुत्र सं० रतनजी भार्या सुजाणदे पुत्र २ सुंदरदास - सखराभ्यां पितृनाम्ना श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि जहांगीरसाहिप्रदत्त युगप्रधान विरुदधारक श्री अकबारसाहिचित्तरंजक कठिनकाश्मीरादिदेशविहारकारक युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकार बोहित्थवंशशृंगारक भट्टारकवृंदारक श्रीजिनराजसूरिसूरिमृगराजैः ॥ श्रीः ॥ श्रीः ॥ (१३१७ ) शिलापट्टलेखः संवत् १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १३ श्री अहम्मदावाद वास्तव्य चोरवेड़ियागोत्रे ओसवालज्ञाती साहा सुत साह चांपसी सुत सा० कर्मसी भारजा बाई कर्मदि खरतरगच्छे पीपलिया । शुभं भवतु १३१५. देरी नं० . शत्रुंजयः श० गि० द०, लेखांक २१ १३१६. शत्रुंजय: श०गि० द०, लेखांक २२ १३१७. खरतरवसही, शत्रुंजय: भंवर० (अप्रका० ), लेखांक ७८ (२३४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३१८) देवकुलिकालेखः १६७५ वैशाख सुदि १३ शुक्रे संखवाल गोत्रे कोचरसंताने सा० केल्हा पुत्र सा० धन्ना पु० नरसिंह पु० कुंअरा पु० नच्छा भार्या नवरंगदे पु० सुरताण भार्या सैंदूरदे पुत्र श्रीशत्रुजयतीर्थयात्राविधानसंप्राप्तसंघपतितिलक सप्तक्षेत्रोप्तस्ववित्त सा० षेतसी भा० सोभागदे पु० पदमसी भार्या प्रेमलदे पु० इंद्रजी भार्या वा० वीरमदे द्वितीयपुत्र सोमसी स्वलघुपुत्र सा० विमलसी भार्या लाडिमदे पुत्र पोमसी द्वितीय भार्या विमलादे पुत्र दूजणसी पोमसी भार्या केसरदे पुत्र वि० डूंगरसी प्रमुखपुत्रपौत्रप्रपौत्रपरिवारसहितेन चतुर्मुखविहारपूर्वाभिमुखस्थाने ........................देवगृहिका कुटुबश्रेयोर्थं कारिता श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकारक (०) शत्रुजयाष्टमोद्धारप्रतिष्ठाकारक श्रीजिनराजसूरिसूरि (समाजराजाधिराजैः॥) (१३१९) आदिनाथ-पादुका संवत् १६७५ वैशाख सुदि १३ शुक्रे । ओसवालज्ञातीय लोढागोत्रीय सा० रायमल्ल भार्या रंगादे पुत्र सा० जयवंत भार्या जयवंतदे पुत्र विविधपुण्यकर्मकारक श्रीशजययात्राविधानसंप्राप्तसंघपतितिलक सं० राजसीकेन भार्या कसुभदे तुरंगदे पु० अषयराज भार्या अहकारदे पु० अजयराज स्वभ्रातृ सं० अमीपाल भार्या गूजरदे पु० वीरधवल भा० (जु)गतादे स्वलघुभातृ सं० वीरपाल भार्या लीलादे प्रमुखपरिवारसहितेन श्रीआदिनाथपादुके कारिते प्रतिष्ठिते युगप्रधानश्रीजिनसिंहसूरिपट्टोद्योतक श्रीजिनराजसूरिभिः श्रीशजयोद्धारप्रतिष्ठायां श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराजैः ॥ . (१३२०) अजितनाथ: ॥ सूरताणनूरदीनजहांगरीसवाईविजयराज्ये सं० १६७५ वैशाख सुदि १३ शुक्रे ओसवालज्ञातीय भणसाली शा० साता भार्या मूली पु० कमलसी भार्या कमलादे पुत्र लखराज भार्या वरबाई पुत्ररत्न सा० सडुआकेन भार्या पहुती पुत्री देवकी प्रमुखसहितेन श्रीराजनगरवास्तव्येन श्रीअजितनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीशत्रुजयोद्घारप्रतिष्ठायां श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकारक श्रीजिनराजसूरिसूरिचक्रवर्तिभिः __(१३२१) अजितनाथ-चतुर्विंशतिः सं० १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १३ शुक्रे शंखवालगोत्रे सा० रंग पुत्र रतन भार्या रतनादे सा० जइतसी भार्या जसमादे अमोलकदे पुत्र कुंअरजी सागरचंद लखमीचंद सूरचंद चंद्रसेनेन सं० खेतसी पुत्री वीरवाई प्रमुखसपरिवारेण श्रीअजितनाथबिंबं मुख्यचतुर्विंशतिजिनपट्टक: कारितं प्रतिष्ठितं श्रीशत्रुजयोद्धारप्रतिष्ठायां श्रीजिनराजसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे। __ (१३२२) अजितनाथः सं। १६७५ वैशाख सुदि १३ शुक्रे श्रीबृहत्खरतरसंघेन कारितं श्रीअजितनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिभिः युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिशिष्यैः । १३१८. खरतरवसही, शत्रुजय: प्रा० जै० ले० सं० , भाग २, लेखांक १४ १३१९. खरतरवसही, शत्रुजय: प्रा० जै० ले० सं० , भाग २, लेखांक १६ १३२०. देहरी क्रमांक ८८४-३४, खरतरवसही: श० गि० द०, लेखांक १४१ १३२१. जैनमंदिर, बांगरोद, जिला रतलाम: मालवांचल के जैनलेख, लेखांक २३९ १३२२. धर्मनाथ जिनालय, रत्नपुरी: पू० जै० भाग २, लेखांक १६७० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (२३५) For Personal & Private Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३२३) अभिनन्दनः संवत् १६७५ वैशाख सुदि १३ शुक्रे पातसाहश्रीजारविजयराज्ये श्रीश्रीमालज्ञातीय भतिचा महतरहासनाथ भार्या बाई अजाई तत्पुत्र महेता क्षेमाकेन श्रीअभिनंदनबिंबं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टारक ........................ श्रीजिनराजसूरिभिः । (१३२४) धर्मनाथः संवत् १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १३ शुक्रे पातसाहश्रीजहांगीरविजयराज्ये ओसवालज्ञातीय श्रीअहमदावादनगरवास्तव्य व्य० भणसाली सोना भार्या बाई मूली पुत्र भणसाली कमलसी भार्या बाई कमलादे पुत्र भणसाली लखराज भार्या बाई वखाई पुत्र भणसाली सइआ धर्मसी बाईवखाई समेत श्रीधर्मनाथबिंबं सपरिकरं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार दिल्लीपति पातसा ....... ॥ (१३२५) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १३ शुक्रे सांकु (उ) सखा गोत्रे वरसी भा० कनकादे पुत्र . वेन भा० अमृतदे मासालजी . ...... का श्रीधर्मनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे । (१३२६) शांतिनाथ: संवत् १६७५ वैशाख सुदि १३ शुक्रे सूरत्राणनूरदीजहांगीरसवाइविजयीराज्ये श्रीराजनगरवास्तव्य प्राग्वाट्ज्ञातीय शे० देवराज भार्या रूडी, पुत्र शा० गोपाल भार्या राजु पुत्र राजा पुत्र सं० माआ भार्या नाकु पुत्र सं० जोगी भार्या जलदे पुत्र सं० शिवाकेन भार्या विमलदे पुत्र लालजी भार्या मानों पुत्र गोटा प्रमुख परिवार सहितेन श्रीपारगत-पुजासाधर्मिक-वात्सल्य.........क्षेत्रवित्तबीजवपननिरतेन श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे दिल्लीपतिपातसाहिश्रीअकबर-प्रदत्त-युगप्रधानविरुदधारक श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टोतंस वर्षावधिजलजंतुजातरक्षक-श्रीअकबरशाहिचित्तरंजक-स्ववचनचातुरीरंजित-हिंदुककुलं................ जहांगीरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानपदधारक-जिनसिंहसूरिपट्टशृंगारश्रीअंबिकावरोदयकारक भट्टारकश्रीजिनराजसूरिभिः (१३२७) शान्तिनाथ : सं० १६७५ वैशाख सित १३ शुक्रे सुरताणनूरदीनजहांगीरसवाईविजयिराज्ये। श्रीराजनगरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय से० देवराज भार्या [रू]डी पुत्र से० गोपाल भार्या राजू सुत राजा पुत्र सं० साईआ भार्या नाकू पुत्र सं० नाथा भार्या नारिंगदे पुत्ररत्न सं० सूरजीकेन भार्या सुषमादे पुत्रायित इंद्रजी सहितेन श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतर[ग]च्छाधिराज श्रीअकबरपातसाहिभूपाल-प्रदत्तषाण्मासिकाभयदानतत्प्रदत्तयुगप्रधानविरुदधारक सकलदेशाष्टान्हिकामारिप्रवर्तावक युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टोद्दीपक १३२३. बाजरिया का देरासर, शत्रुजय: श० गि० द०, लेखांक ७८ १३२४. देहरी क्रमांक ४४८-१, शत्रुजयः श०गि०द०, लेखांक १५८ १३२५. शांतिनाथ का मंदिर, भानीपोल, राधनपुरः रा० प्र० ले० सं०, लेखांक ३७३ १३२६. खरतरवसही के पीछे देवकुलिका, शत्रुजयः श० गि० द०, लेखांक १४३ १३२७. चतुर्मुखप्रासाद, खरतरवसही, शत्रुजय: प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक २३ (२३६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कठिनकाश्मीरादिदेशविहारकारक श्रीअकबरसाहिचित्तरंजनप्रपालित श्रीपुरगोलकुंडागजणाप्रमुखदेशामारि जहांगीरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानपदधारि श्रीजिनसिंहसूरिपट्टोदयकारक भट्टारकशिरोरत्न श्रीजिनराजसूरि (१३२८) शान्तिनाथः संवत् १६७५ वैशाख सित १३ शुक्रे सुरताणनूरदीनजहांगीरसवाईविजयिराज्ये । श्रीराजनगरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय सं० साईआ भार्या नाकू पुत्र सं० जोगी भार्या जसमादे पुत्र विविधपुण्यकर्मोपार्जक सं० सोमजी भार्या राजलदे पु० सं० रतनजी भार्या सूजाणदे पुत्र २ सुंदरदास सषराभ्यां पितृनाम्ना श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि जहांगीरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानविरुदधारक श्रीअकबरसाहिचित्तरंजक कठिनकाश्मीरादिदेशविहारकारक युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकारक बोहित्थवंशशृंगारक भट्टारकवृंदारक श्रीजिनराजसूरिसूरिमृगराजैः ॥ (१३२९) शांतिनाथः ___ संवत् १६७५ वैशाखसुदि १३ शुक्रे सं० खीमजी भार्या बाई ............ रविजी मात्रा प्रमुख .......................... श्रीशांतिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिभिः खरतरगच्छे । (१३३० ) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १३ शुक्रे फोफलिया गोत्रे जेठा पुत्र धरमसी पुत्र धनजी युत भार्या लाडीदे भार्या पांची । पुत्र रतनसी केन का० श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिभिः खरतरगच्छे। (१३३१) कपर्दियक्षमूर्तिः संवत् १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १३ शुक्रे भणसाली कबडयक्षमूर्ति कारिता प्रतिष्ठिता॥ श्रीजिनराजसूरिभिः॥ (१३३२ ) जिनदत्तसूरि-मूर्तिः सं० १६७५ वैशाख सुदि १३ शुक्रे सा० रूपजीके न परमक ................ ................. श्रीजिनचन्द्रसूरिमूर्तिकारिता ॥ श्री ॥ (१३३३) जिनकुशलसूरि-मूर्तिः सं० १६७५ वैशाख सुदि १३ शुक्रे सं० रूपजीकेन श्रीजिन[कुशलसूरि] मूर्ति कारिता ..... । ह्य १३२८. चतुर्मुखप्रासाद, खरतरवसही, शत्रुजय: प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक २४ १३२९. देरी नं० ६८३, शत्रुजयः श० वि० द०, लेखांक ७९ १३३०. पार्श्वनाथ जिनालय, लोद्रवा, जैसलमेर: पू० जै० भाग ३, लेखांक २५५२ १३३१. छीपावसही, शत्रुजय: श० गि० द०, लेखांक १६६ १३३२. खरतरवसही, शत्रुजय : भंवर० (अप्रका०), लेखांक ८० १३३३. खरतरवसही, शत्रुजय : भंवर० (अप्रका०), लेखांक ७९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) २३७) For Personal & Private Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३३४) जिनसिंहसूरिपादुकाः ॥ सं० १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १३ शुक्रे काश्मीराद्यनार्यदेशबोधविहारादिप्रचारप्रथामारिप्रवर्तक सर्वविद्यानर्तकीनर्तक जहांगीरनूरदीनपातिशाहिप्रदत्तयुगप्रधानपद श्रीजिनसिंहसूरीणां पादुके प्रतिष्ठिते श्रीजिनराजसूरिभिः सकलसूरिराजाधिराज खरतरगच्छे शिष्य पं० । प्र। खेमकीर्ति - (१३३५) शतदलपद्म-यंत्रम् (१) श्रीनिवासं सुरश्रेणिसेव्यक्रमं (२) वामकामाग्निसंतापनीरोपमं। (३) माधवेशादिदेवाधिकोपक्रम (४) तत्त्वसंज्ञानविज्ञानभव्याश्रमं ॥१॥ (५) नव्यनीरागताकेलिकर्मक्षम (६) यं(य)स्य भव्यैर्भजे नाम संपद्रमं। (७) नीरसं पापहं स्मर्यते सत्तम (८) तिग्ममोहार्तिविध्वंसतायाभ्रमं ॥२॥ (९) लब्धप्रमोदजनकादरसौख्यधामं (१०) तापाधिकप्रमदसागरमस्तकाम। (११) घंटारवप्रकटिताद्भुतकीर्तिराम (१२) नक्षत्रराजिरजना(नी)शनताभिरामं ॥३॥ (१३) घंटापथप्रथितकीर्तिरमोपयामं (१४) नागाधिपः परमभक्तिवशात्सवाम। (१५) गंभीरधीरसमतामयमाजगामं __(१६) मं(म)र्त्यानतं नमत तं जिनपंक्तिकामं ॥४॥ (१७) संसारकांतारमपास्य नाम (१८) कल्याणमालास्पदमस्तशामं । (१९) लाभाय बभ्राम तवाविराम (२०) लोभाभिभूतः श्रितरागधूमं ॥५॥ (२१) कर्मणां राशिरस्ते कलोकोद्गम (२२). संसृतेः कारणं मे जिनेशावमं। (२३) पूर्णपुण्याढ्य दु:खं विधत्तेंऽतिमं (२४) र्ण(न)क्षमस्त्वां विना कोऽपि तं दुर्गमं ॥६॥ (२५) कार्मणं निर्वृतेहँतुमन्योऽसमः (२६) यं(य)क्षराट्पूज्य तेनोच्यते निर्ममं। (२७) श्रीपते तं जहि द्राग् विधायोद्यम (२८) दानशौंडाद्य मे देहि रुद्धिप्रमं ॥७॥ (२९) यस्य कृपाजलधेर्विश्राम (३०) कंठगताशुसुभटसंग्राम।। (३१) भयजनकव्यायाम | (३२) जेतारं जगतः श्रितयामं ॥८॥ (३३) कक्षीकृतवसुभृत्पुर्यामं (३४) लापोच्चारमहामं। (३५) केशोच्चयमिह नयने क्षामं (३६) लिंगति कमलां कुरु ते क्षेमं ॥९॥ (३७) कलयति जगताप्रेम (३८) लंभयति सौख्य पटलमुद्दामं। (३९) कालं हंति च गतपरिणाम (४०) महतंमहिमस्तोमं ॥१०॥ (४१) रसनयेप्सितदानसुरद्रुमं (४२) हितमहीरुहवृद्धिजलोत्तमं। (४३) सं(त)रुणपुण्यरमोदयसंगम . (४४) समरसामृतसुंदरसंयमं॥११॥ (४५) हिनस्ति सद्ध्यानवशातस्य मध्यमं (४६) तं तीर्थनाथं स्वमतः प्लवंगमं । (४७) सुरासुराधीशममोघनैयमं (४८) रैः नाथसंपूजितपयुगं स्तुमं ॥१२॥ (४९) संसारमालाकुलचित्तमादिमं (५०) सास्त्रार्थसंवेदनशून्यमश्रमं । (५१) रम्याप्तभावस्थितपूर्णचिद्दमं (५२) सर्षांकित: शोषितपापकर्दमः ॥१३॥ (५३) रत्नत्रयालंकृतनित्यहेम (५४) सीमाद्रिसारोपमसत्त्वसोम। . १३३४. छीपावसही, शत्रुजय : भंवर० (अप्रका०), लेखांक १६ १३३५. पार्श्वनाथ जिनालय, लोद्रवा, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५४३ (२३८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) शोभामयो ज्ञानमयं विसामं (५७) भावविभासकनष्टविलोमं (५९) रंगपतंगनिवारण सुभीमं (६१) मंत्रेश्वरः पार्श्वपतिः परिश्रमं (६३) कर्मोत्थितं मे जिनसाधु नैगमं (६५) समितिसारशरीरमविभ्रमं (६७) श्रयत तं नितमानभुजंगमं (६९) णम्रैर्यशः सृजति शं जिनसार्व्वभौमः (७१) शोकारिमारिविरहयतवात्तदामं (७३) माद्यांबुजध्वंसविधौ महद्धिमं (७५) मंत्रोपमं ते जिन राम पंचमं (७७) कलिशैलोरु व्याधाम (७९) लब्धश्रितवसुत्रामं (८१) लोकोत्पत्तिविनाशसंस्थितिविदां मुख्यंजनं वैस्तुमं (८३) परपक्षस्य तव स्तवं त्वन्निमित्तकरींद्रगे (८४) (८५) नयनाननसद्रोमं (८६) (८७) स्थावराशु (सु) मतां स्याम (८८) (८९) दासानुदासस्य मम (९१) माद्यति प्राप्य सुमं (९३) क्षमाबोहित्थनिर्यामं (९५) गुणिपूज्यं प्रीणयाम (९७) स्मरंति यं सुंदरयक्षकर्द्दमं (९९) . मिथो मिलित्वा मवुजाड्यकुंकुमं (केन्द्र में "मं:") (५६) षड्वर्ग मां देव विधेह्यकामं ॥१४॥ (५८) स्कंदितस्कंदलतं प्रणमामं । (६०) कंबुदानं जिनपहत ते भौमं ॥१५ ॥ (६२) लालाश्रितस्यापनया मनोरमं । (६४) रंभाविलासालसनेत्रनिर्गमं ॥१६॥ (६६) हरिनतोत्तमभूरिगमागमं । (६८) फलसमृद्धिविधानपराक्रमं ॥ १७॥ (७०) तारस्वरेण विबुधैः श्रित शतैर्होम | भव्यैः स्तुतं निहतदुर्मतदंडषमं ॥१८॥ (७२) (७४) (७६) (७८) (८०) (८२) न वाजयत्याशु मनस्तुरंगमं । स्तवेन युक्तं गुणरत्नकुट्टिमं ॥ १९ ॥ माहात्म्यं हृदयंगमं । यंतिवर्गस्तुतं नुमं ॥२०॥ द्रव्यारक्तसमाधरं नमत भो (१) इत्थं पार्श्वजिनेश्वरो भुवनदिक्कुंभ्यंगचं(२) द्रात्मके वर्षे वाचकरत्नसारकृपया राका (३) दिने कार्त्तिके । मासे लोद्रपुरस्थितः शतद(४) लोपेतेन पद्मेन सन् नूतोयं सहजादिकी(५) र्त्तिगणिना कल्याणमालाप्रदः ॥ २५ ॥ श्रीवामातनयं नीतिलताघं न घनागमं । सकला लोक संपूर्णकायं श्रीदायकं भजे ॥ १ ॥ कलाकेलिं कलंकामरहितं सहितं सुरैः । संसारसरसी शोष भास्करं कमलाकरं ॥ २ ॥ सहस्रफणताशोभमानमस्तकमालयं । पूजां वरां पाश्चिमं । तत्तद्भावमयं वस वदतस्त्रैकाभ्यस्तर्वंद ॥ २१ ॥ संततिं तव जंगम । नयते शमकृत्रिमं ॥ २२ ॥ नवानंद विहंगमं । (९०) (९२) नंपा (नया) क्षत्तां महाद्रुमं ॥ २३ ॥ (९४) मानवार्य्यं महाक्षमं । (९६) रुं (रु) चिं स्तौमि नमं नमं ॥ २४ ॥ (९८) (१००) रागात् समादाय महंति कौंकुमं । चंद्राननं तं प्रविलोकताद्रमं ॥२५ ॥ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२३९) www.jalnelibrary.org Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विना लोद्रपतन संस्थान दान मानं क्षमा गुरुं ॥३॥ स्मरामिचं (बायां अंश) (१) ॥ ऐं नमः॥ श्रीसाहिर्गुणयोगतो युगवरेत्यत्थं पदं दत्तवान्। येभ्यः श्री (२) जिनचंद्रसूरय इला विख्यातसत्कीर्तयः। तत्पट्टेमिततेजसो युगव(३) राः श्राजैनसिंहाभिधास्तत्पट्टांबुजभास्करा गणधराः श्रीजैनराजाः (४) श्रुताः॥१ तैर्भाग्योदयसुंदरैरि(५) षुसरस्वत्षोडशाब्दे १६७५ (६) सितद्वादश्यां सहसः प्र (७) तिष्ठितमिदं चैत्यं (८) स्वहस्तश्रिया। (९) यस्य प्रौढत (१०) रप्रतापत(११) रणे: श्री (१२) पार्श्वना(१३) थेशि (१४) तुः (दाहिने अंश के नीचे भाग में) (१) सोयं पुण्यभरां तनो- (२) तु विपुलां लक्ष्मी .. (३) जिनः सर्व। (४) दा॥२ पू(५) र्वं श्रीस (६) गरो (७) नृपो (८) भ(नीचे भाग में दाहिना अंश) (१) व (२) दलं (३) कारोन्व (४) ये यादवे (५) पुत्रौ श्रीधर (६) राजपूर्वकधरौ (७) तस्याथ ताभ्यां क्षितौ (८) श्रीमल्लोद्रपुरे जिनेश- , (९) भवनं सत्कारितं षीमसी। तत्पु- (१०) त्रस्तदनुक्रमेण सुकृती जातः सुतः (११) पूनसी ॥३ तत्पुत्रो वरधर्म (१२) सद्रुणैः श्रीमल्लस्तनयोथ तस्य कर्मणि रतः ख्यातोऽखिलै सुकृती श्रीथाहरूं ना। (१३) मकः। श्रीशत्रुजयतीर्थसंघरचनादीन्युत्तमानि ध्रु(बायां अंश) (१) वं (२) यः का(३) र्याण्य (४) करोत्त(५) थात्वसर (६) फी पूण्ाँ प्रति(७) ष्ठाक्षणे ॥ ४ प्रा (८) दात्सर्वजनस्य जै (९) नसमयं चालेखयत् (१०) पुस्तकं । सर्वं पुण्यभरेण पा (११) वनमलं जन्म स्वकीयं (१२) यं भुवनस्य यस्य जिनपस्योद्धारक: व्यधात्॥ तेना कारितः। सार्द्ध सद्भ(१३) रराजमेघतनयाभ्यां पार्श्वनाथो मुदे॥ ५ श्री: (२४०) —खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) (२) (३) (४) (१) (२) (३) (४) ( १३३६ ) अजितनाथ - मूलनायकः (१) श्री लुद्रपुरपत्तने श्रीमत् श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीशैः (२) ॥ ओं ॥ संवत् १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ गुरौ ॥ श्रीअजितनाथबिंबं का० सं० थाहरु भार्या भा० (३) कनकादे पुत्ररत्न हरराजेन प्र० युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रभाकर श्रीजिनराजसूरिभिः ॥ ( १३३७ ) सम्भवनाथ - मूलनायक : (१) ॥ सं० १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ गुरौ श्रीसंभवनाथ बिंबं का० भ० श्री(२) कनकादेव्या प्र० युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रभाकर श्रीजिनराजसूरिभि: श्रीबृहत् खरतर (३) गच्छाधीशैः ॥ ( १३३९ ) नमिनाथ: संवत् १६७५ मार्गशीर्ष १२ गुरौ श्रीनमिनाथबिंबं का० भ० थाहरू भार्या कनकादे पुत्ररत्न मेघराजेन प्र० श्रीजिनराजसूरिभिः । श्रीबृहत्खरतरगच्छ. ( १३३८ ) संभवनाथ: सं० १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ श्रीसंभवनाथबिंबं का० भ० थाहरूकेन प्र० युगप्रधान ...... ( १३४० ) चिन्तामणि- पार्श्वनाथः श्रीलोद्रवनगरे। श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीशैः सं० १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ गुरौ भांडशालिक श्रीमल्ल भार्या चांपलदे पुत्ररत्न थाहरुकेन भार्या कनकादे पुत्र हरराज मेघराजादियुतेन श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथ बिंबं का० प्र० भ० युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकार भ० श्रीजिनराजसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ ( १३४१ ) चिन्तामणि- पार्श्वनाथ-मूलनायकः ॥ श्री लोद्रवाऩगरे। श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीशैः॥ सं० १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ तिथौ गुरौ भांडशालिक सा० श्रीमल भा० चांपलदे पुत्ररत्न थाहरुकेण भार्या कनकादे पुत्र हरराज मेघराजादियुजा श्रीचिंतामणि पार्श्वना बिंबं का० प्र० च युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रभाकर भ० श्रीजिनराजसूरिभिः प्रतिष्ठितं । १३३६. पार्श्वनाथ का मंदिर, लोद्रवाः पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५६८ १३३७. संभवनाथ जिनालय, लोद्रवाः पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५७० १३३८. पार्श्वनाथ जिनालय, लौद्रवपुर: ना० बी०, लेखांक २८७९ १३३९. पार्श्वनाथ जिनालय, लौद्रवपुर: ना० बी०, लेखांक २८७८ १३४०. पार्श्वनाथ जिनालय, लोद्रवा, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५४४; जै० ती० स० सं०, भाग १, खंड २, पृष्ठ १७२ १३४१. पार्श्वनाथ जिनालय, मंदिर नं० ४ लोद्रवा, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५७२ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२४१) Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) (२) (१) (२) (३) (१३४२) आदिनाथ- मूलनायक : ॥ सं० १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ गुरौ भ० थाहरु भार्या कनकादे पुत्री वीरां कारितं ॥ श्रीआदिनाथबिंबं । प्र० श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश श्रीजिनराजसूरिभिः ॥ (१३४३) अजितनाथ - मूलनायक : श्रीलुद्रपुरपत्तने श्रीमत् श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीशैः ॥ ओं॥ संवत् १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ गुरौ ॥ श्रीअजितनाथबिंबं का० सं० थाहरू भार्या श्रा० कनकादे पुत्ररत्न हरराजेन प्र० युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रभाकर श्रीजिनराजसूरिभिः ॥ (१३४४) सम्भवनाथ - मूलनायक : (१) ॥ सं० १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ गुरौ श्रीसंभवनाथबिंबं का० भ० श्रीमल पुत्ररत्न भ० थाहरु भार्या श्र० (२) कनकादेव्या प्र० युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रभाकर श्रीजिनराजसूरिभिः श्रीबृहत्खरतर - (३) गच्छाधीशैः ॥ (१३४५) जिनदत्तसूरि-मूर्त्तिः सं० १६७५ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि १२ तिथौ गुरुवारे उपकेशवंशे "क साह श्रीमल्ल भार्या चांपलदे तत्पुत्र सा० थिरराज नाम्म्रा सुपुत्र हरराज सहितेन युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरीन्द्रणां मूर्त्ति कारिता प्रतिष्ठि (१३४६ ) जिनकुशलसूरि-मूर्त्तिः संवत् १६७५ प्रमिते मार्गशीर्ष सुदि १२ तिथौ गुरुवारे भणसाली श्रीमल्ल भार्या सुश्राविका चांपलदे पुत्ररत्न सा० थिरराज नाम्ना सुपुत्र हरराज ति० मेघराज यतेन श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां मूर्त्तिः कारिता प्रतिष्ठिताश्च श्रीबृहत्खरतरगच्छराजाधिराज श्रीमज्जिनराजसूरीश्वरै: सकल श्रीसाधुपरिवारैः ॥ (१३४७) यु० जिनसिंहसूरि- पादुका संवत् १६७५ वर्षे माघ वदि १३ रवौ बृहत्खरतरगच्छाधीश्वरयुगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्यश्रीजिनसिंहसूरिपादुके श्रीसंघेनकारिते। प्रतिष्ठिते । श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥ ( १३४८ ) गौडीपार्श्वनाथः श्रीगौडीपार्श्वबिंबं प्र० श्रीजिनराजसूरिभिः १३४२. पार्श्वनाथ जिनालय, मंदिर नं० १ लोद्रवा, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५६६ १३४३. पार्श्वनाथ जिनालय, मंदिर नं० २ लोद्रवा, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५६० १३४४. पार्श्वनाथ जिनालय, मंदिर नं० ३ लोद्रवा, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५७० १३४५. पार्श्वनाथ जिनालय, लौद्रवपुर: ना० बी०, लेखांक २८७७ १३४६. पार्श्वनाथ जिनालय, लौद्रवपुर तीर्थ, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८७६ १३४७. शान्तिनाथ मंदिर, मेड़तासिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११२६ १३४८. पार्श्वनाथ जिनालय, लौद्रवपुर: ना० बी०, लेखांक २८८० (२४२)) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४९) जिनसिंहसूरि-पादुकाः सं० १६७६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ दिने युगप्रधान श्री ६ श्रीजिनसिंहसूरिसूरीश्वराणां पादुके कारिते प्रतिष्ठिते च ॥ शुभं भवतु। (१३५०) प्रतिष्ठा-लेखः संवत् १६७६ वर्षे माह सुदि १५ रविवार पुष नक्षत्रे राउत श्रीउदेसिंहजीविजयराज्ये श्रीसुमतिनाथ...............''श्रीसंघ करावऊ सूत्रधार षीमा नारायण नरसंघ खरतरगच्छ भट्टार्क जिनराजसूरिविजयराज्ये। (१३५१) सभामंडपलेख ॥ ॐ ॥ संवत् १६७६ वर्षे माघ सुदि १५ रविवासरे खरतरगच्छ भट्टारक श्रीजिनरत्न........"पुष्य नक्षत्रे: राऊत श्रीउदयसिंहजी विसरि विजयराज्ये जय राज्ये ॥ श्रीसुमतिनाथ रउ नववु कीउ श्रीसंघ करावउ सूत्रधार षीसा पुत्र नता नववु कीउ। सूत्रधार नारयण नट संघ घन। . (१३५२) शांतिनाथः संवत् १६७६ फागुण सुदि २ शुक्रे ॥ ओसवालज्ञातीय-वलाहीगोत्रीय सा० जसपाल पु० पंचायण भार्या जयवंती सा० उदयकरण भा० उच्छरंगदे पुत्ररत्न सप्तक्षेत्रीसमुप्तवित्त सा० सहसकरणेन भ्रातृ देवकरणश्रीकरण-आसकरण-राजकरण-महिकरण विमातृज खीमपाल भ्रातृव्य जयकरणादि सारपरिवारेण मंत्री रूपजी कारितं शत्रुजयाष्टमोद्धारप्रतिष्ठासमये स्वयं प्रपंचित सवाखरवहीर-शृंगारक श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीमहावीरदेवाविच्छिन्न-परंपरायात-श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर-युगप्रधान.........."साधूपद्रववारकश्रीयुगप्रधान-श्रीजिनचंद्रसूरि-सर्वतीर्थकरमोचक युग० श्रीजिनसिंहसूरिपट्टोत्तंसश्रीशत्रुजयाष्टमोद्धारप्रतिष्ठ भट्टारक प्रभु श्रीजिनराजसूरिभिः। सा० चांपसी का० प्रतिष्ठायाः॥ (१३५३) अजितनाथः प्रतिष्ठितं तपागच्छे भट्टारक श्री ५ श्रीविजयदेवसूरिभिः॥ संवत् १६७७ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने। शनौ। श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीमेडतानगरे। श्रीमालज्ञातीय चंडालियागोत्रे । टङ्कशालीय नखसातृ श्रीमल्ल पुत्र पास। पढ़े। पासु पुत्र सुखू पटू पुत्र कल्ला सुखू पुत्र वीरदासेन कल्ला पुत्र रायसिंह वीरदास पुत्र सूजा पञ्चायण जिणदास प्रमुखपुत्रपौत्रादिपरिवार सहि तेन श्रीअजितनाथबिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छाधीश श्रीजिनमाणिक्यसूरि तत्पट्ट पूर्वाचलसहस्रक रावतार युगप्रधान श्रीजिनचन्द्र सूरि पट्ट प्रभाकर श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रभाकर वर्तमानभट्टारक श्रीजिनराजसूरिविजयराज्ये आ० श्रीजिनसागरसूरि यौवराज्ये॥ श्रीरस्तु ॥ आचंद्रार्कं चिरं नन्दतु । श्रीः॥ १३४९. रेल दादा जी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०५६ १३५०. आदीश्वर भगवान् का मंदिर, बाडमेर : बा० प्रा० जै०शि०, लेखांक १५४ १३५१. जैन मंदिर, बाड़मेर: पू० जै०, भाग १, लेखांक ७४७ १३५२. देहरीक्रमांक ३८३-शत्रुजयः श० गि० द०, लेखांक १०९ १३५३. आदिनाथ मंदिर, मेड़तासिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११२९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (२४३) For Personal & Private Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५४) सुमतिनाथः प्रतिष्ठितं तपागच्छे भट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिः॥ स्वस्तिश्रीः॥ संवत् १६७७ वर्षे वैशाख सित ३ तिथौ सार्वभौमजहांगीरपातिसाहिविजयिराज्ये उसवालज्ञातीय चोरबेडियागोत्रे सा० खिबुधा सा० जाल्हा पु० दत्ता पु० डूङ्गरसी भा० डूङ्गरदे पुत्र नेतसी भार्या नवरङ्गदे द्वि० नवलादे भ्रा० जीवराज भूपति भाण नैतसी पुत्र जयवन्त प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे आद्यपक्षीय भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे.... .... ॥ (१३५५) आदिनाथः (१) सं० १६७७ ज्येष्ठवदि ५ गुरौ ओसवालज्ञातीय गणधरचोपडागोत्रीय सं० नग्गाभार्या नयणादे पुत्र संग्राम भार्या तोली पु० माला भार्या माल्हणदे पु० देका भा० देवलदे पु० कचरा भार्या (२) कउडमदे चतुरंगदे पुत्र अमरसी भार्या अमरादे पुत्ररत्नेन श्रीअर्बुदाचलश्रीविमलादि प्रधानतीर्थयात्रादिसद्धर्मकरणसम्प्राप्तसंघतिलकेन श्रीआसकरणेन पितृव्य चांपसी भ्रातृ अमीपाल कपूरचंद स्वपुत्र ऋषभदास सूरदास भ्रातृव्य गरीबदास प्रमुख सश्रीकपरिवारेण सं० रूपजीकारितशंत्रुजयाष्टमोद्धारमध्यस्वयं कारितप्रवरविहारशृंगारहार श्रीआदीश्वरबिंबंकारितं (४) पितामहवचनेन प्रपितामह पुत्र मेघा कोझा रतना प्रमुख पूर्वजनाम्ना प्रतिष्ठि तं श्रीबहत्खरतरगच्छाधीश-साधूपद्रववारक प्रतिबोधितसाहि-श्रीमदकब्बरप्रदत्तयुगप्रधान पदधारक श्रीजिनचंद्रसूरि (५) जहांगीरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानपदधारक श्रीजिनसिंहसूरिपट्टपूर्वाचलसहस्रकरावतार-प्रतिष्ठित श्रीशत्रुजयाष्टमोद्धार-श्रीभाणवटनगरश्रीशांतिनाथबिंबं प्रतिष्ठासमयनिर्झरत्सुधारसश्रीपार्श्वप्रति(६) हार सकलभट्टारकचकचक्रवर्ति श्रीजिनराजसूरिशिरःशृंगारसारमुकुटोपमानप्रधानैः॥ . (१३५६) आदिनाथ: ॥ सं० १६७७ ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ सं० आसराज भार्या अपूरवदे पुत्र गरीबदासादिश्रेयो) श्रीआदिनाथबिंब कारितं प्र० श्रीजिनराजसूरिभिः सूरितिलकैः। (१३५७) अजितनाथः (१) प्र० भट्टारकप्रभु श्रीजिनराजसूरिभिः। (२) संवत् १६७७ ज्येष्ठवदि ५ गुरौ श्रीओसवालज्ञातीय गणधरचोपड़ागोत्रीय सं० कचरा भार्या कउडिमदे चतुरंगदे (३) पुत्र सं० अमरसी भा० अमरादे पुत्ररत्र(न) सं० अमीपालेन पितृव्य चांपसी वृद्धभ्रातृ सं० आसकरण लघुभ्रातृ कपूरचंद स्वभार्या (४) अपूरवदे पु० गरीबदासादिपरिवारेण श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० बृ० खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनराजसूरिसूरिचक्रवर्ति१३५४. आदिनाथ मंदिर, मेड़तासिटी: प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११३२ १३५५. युगादीश्वर मंदिर, मेड़तासीटी: प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४३९; प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११४४; पू० जै०, भाग १, लेखांक ७७१ १३५६. स्टेशन मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११५५ १३५७. महावीर मन्दिर, मेड़तासीटी: प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४३; पू० जै०, भाग १, लेखांक ७८५-७८६ (२४४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) पट्टप्रभाकरैः। श्रीअकब्बरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानपदप्रवरैः प्रतिवर्षाषाढी(६) याष्टाह्निकादिषाण्मासिकामारिप्रवर्तकैः। श्रीषंभाततीर्थोदधिमीनादिजीवरक्षकैः। श्रीशत्रु(७) जयादितीर्थकर मोचकै :। सर्वत्रगोरक्षाकरकै: पंचनदीपीर साधकै : । युगप्रधानश्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (८) आचार्यश्रीजिनसिंहसूरि श्रीसमयराजोपाध्याय वा० हंसप्रमोद वा० समयसुंदर वा० पुण्यप्रधानादिसाधुयुतैः॥ (१३५८) अजितनाथः सं० १६७७ ज्येष्ट वदि ५ गुरौ श्रीओसवालज्ञातीय गणधरचोपड़ागोत्रीय सं० कचरा भार्या कउडिमदे चतुरंगदे पुत्र स० अमरसी भा० अमरादे पुत्ररत्न स० अमीपालेन पितृव्य चांपसी वृद्ध भ्रातृ सं० आसकरण लघु भ्रातृ कपूरचन्द स्वभार्या अपूरवदे पु० गरीबदासादि परिवारेण श्रीअजितनाथ बिं० का० प्र० बृ० खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनराजसूरि-सूरिचक्रवर्तिः॥ (१३५९) अजितनाथ-मूलनायकः प्र० भट्टारकप्रभु श्रीजिनरांजसूरिभिः॥ संवत् १६७७ ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ श्रीओसवालज्ञातीय गणधरचोपडागोत्रीय सं० कचरा भार्या कउडिमदे चतुरंगदे पुत्र सं० अमरसी भा० अमरादे पुत्ररत्न सं० अमीपालेन पितृव्य चांपसी वृद्धभ्रातृ सं० आसकरण लघुभ्रातृ कपूरचन्द्र स्वभार्यापि अपूरवदे पु० गरीबदासादिपरिवारेण श्रीअजितनाथबिंब का० प्र० बृ० खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनराजसूरिचक्रचक्रवर्तिभिः॥ (१३६०) सम्भवनाथ-मूलनायक ॥ सं० १६७७ ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ सं० अमरसी भा० अमरादे पु० सं० आसकरण अमीपाल कपूरचन्द्रेण श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं स्वपरिवारश्रेयोर्थं प्र० बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनराजसूरिभिः॥ (१३६१) सुमतिनाथः प्र० श्रीजिनराजसूरिसूरिसार्वभौमैः। सं० १६७७ ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ श्रीओसवालज्ञातीय गणधरचोपड़ागोत्रीय सं० अमरसी भा० अमरादे पुत्ररत्न सं० आसकरण भा० अजाइबदे पु० ऋषभदास कपूर दास प्रवरया श्रीसुमतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत् खरतरगच्छाधिप युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालङ्कारक भट्टारकपुण्डरीक श्रीजिनराजसूरिसूरिदिनकरैः। (१३६२) चन्द्रप्रभः सं० १६७७ ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ श्रीओसवालज्ञातीय गणधरचोपड़ागोत्रीय सं० अमरसी भार्या अमरादे पुत्ररत्न सं० कपूरचन्द्रेरण भार्या महिमादे श्रेयोर्थं श्रीचन्द्रप्रभबिंबं० का० प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छनायक १३५८. चिन्तामणि जी का मंदिर, मेड़ता: पू० जै०, भाग १, लेखांक ७८५ १३६९. शांतिनाथ मंदिर, मेड़ता सिटी : प्र० ले० सं० भाग १, लेखांक ११४६ १३६०. संभवनाथ मन्दिर, अजमेरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११५०; प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २४५ १३६१. शांतिनाथ मंदिर, मेड़तासिटी : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११४८ १३६२. शांतिनाथ मंदिर, मेड़तासिटी : प्र० ले० सं०, भाग १,लेखांक ११४९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) २४५ For Personal & Private Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीशत्रुञ्जयाष्टमोद्धारप्रतिष्ठापक प्रतिष्ठितभाणवडनगरप्रवरसुधाभरवर्षकश्रीपार्श्वदेव भट्टारकशिरोरत्न श्रीजिनराजसूरिभिः॥ (१३६३) श्रेयांसनाथः सं० १६७७ ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ । सं० आसकरणेन भार्या अजायबदे पुत्र सूरदासश्रेयोर्थ श्रीश्रेयांसबिंब का प्र० श्रीजिनराजसूरिभिवृ० खरतरगच्छैः॥ (१३६४) धर्मनाथः प्र० श्रीजिनराजसूरिसूरिचक्रवर्तिभिः। सं० १६७७ ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ श्रीओसवालज्ञातीय गणधरचोपड़ागोत्रीय सं० अमरसी भार्या अमरादे पुत्र सं० आसकरणेन भा० अजाइबदे पु० ऋषभदास भा० रत्नावती श्रेयोर्थं श्रीधर्मनाथबिंबं का० प्र० श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज युग० श्रीजिनसिंहसूरिपट्टोत्तंसश्रीजिनराजसूरिसूरिः। (१३६५) शान्तिनाथ-मूलनायकः प्रतिष्ठितं भट्टारकप्रभुश्रीजिनराजसूरिसूरिपुरन्दरैः। श्रीमेडतानगरमध्ये । संवत् १६७७ ज्येष्ठ वदि ५ गुरुवारे पातसाहिश्रीजहांगीरविजयिराज्ये साहियादा साहिजहांराज्ये ओसवालज्ञातीय गणधरचोपडागोत्रीय सं० नग्गा भार्या नयणादे पुत्र संग्राम भा० तोली पु० माला भा० माल्हणदे पु० देका भा० देवलदे पु० कचरा भा० कउडिमदे चतुरङ्गदे पु० अमरसी भा० अमरादे पुत्ररत्न संप्राप्तश्रीअर्बुदाचलविमलाचलसङ्घपतितिलककारित युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनराजसूरिपदनन्दीमहोत्सवविविधधर्मकर्त्तव्यविधायक सं० आसकरणेन पितृव्य चांपसी भ्रातृ अमीपाल कपूरचन्द स्वभार्या अजाइबदे पु० ऋषभदास सूरदास भ्रातृव्य गरीबदासादिसारपरिवारेण श्रेयो) स्वयंकारितमम्माणीमयविहारशृङ्गारक श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमहावीरदेवाविछिन्नपरम्परायात श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिपति श्रीजिनभद्रसूरिसन्तानीय प्रतिबोधितसाहि श्रीमदक ब्बर प्रदत्तयुगप्रधानपदवीधर श्रीजिनचन्द्र सूरि सुविहि तक ठिनकाश्मीरविहारवारसिन्दूरगजरणा च विविधदेशामारिप्रवर्तक जहांगीरप्रदत्त युगप्रधानपदधारक श्रीजिनसिंहसूरिपट्टोत्तंस लब्धश्रीअम्बिकावरप्रतिष्ठित श्रीशत्रुञ्जयाष्टमोद्धारप्रदर्शित-भाणवडमध्यप्रतिष्ठितश्रीपार्श्वप्रतिमापीयूषवर्षणप्रभाव बोहित्थवंशमण्डन धर्मसी-धरलदे नन्दन भट्टारक चक्र - चक्रवर्तिश्रीजिनराजसूरिसूरिदिनकरैः आचार्य श्रीजिनसागरसूरिप्रभृतियतिराजैः। सूत्रधार सूजा। (१३६६) शांतिनाथः ॥सं० १६७७ ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ ओसवालज्ञातीय गणधरचोपडागोत्रीय सं० लाखा भार्या लाडिमदे पु० वीरपाल भार्या वील्हादे.. ..श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिप श्रीजिनराजसूरिसूरिसुजयैः॥ १३६३. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११५१ १३६४. शान्तिनाथ मंदिर, मेड़तासिटी : प्र० ले० सं० भाग १, लेखांक ११४७ १३६५. शान्तिनाथ मंदिर, मेड़तासिटी : प्र० ले० सं० भाग १, लेखांक ११४३; प्रा० जै० ले० सं० भाग २, लेखांक ४३४; पू० जै० भाग १, लेखांक ७८७ १३६६. शीतलनाथ मंदिर, मेड़तासिटी : प्र० ले० सं० भाग १, लेखांक ११५२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह) For Personal & Private Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३६७) पार्श्वनाथ: सं० १६७७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ श्रीओसवालज्ञातीय गणधरचोपड़ागोत्रीय सं० कचरा भार्या कउडिमदे चतुरंगदे पु० सं० अमरसी भा० अमरादे पुत्ररत्न सं० आसकरणेन पितृव्य चांपसी भ्रातृ गरीबदासादिपरिवारेण पितामही चतुरंगदे पुण्यार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालङ्कारक सकलभट्टारकशिरस्तिलकायमान श्रीशत्रुञ्जयाष्टमोद्धारप्रतिष्ठापक श्रीजिनराजसूरिसूरिविनायकैः॥ ___ (१३६८) जिनदत्तसूरिमूर्तिः सं० १६७७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ सं० आसकरणेन पितृव्य चांपसी भ्रातृ अमीपाल कपूरदास.... ...................श्रीजिनदत्तसूरिमूर्तिः कारिता प्र० भ० जिनसागरसूरिभिः॥ (१३६९) जिनकुशलसूरिमूर्तिः सं० १६७७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ सं० आसकरणेन भ्रातृ अमीपाल कपूर - प्रभृतिभिः...........श्रीजिनकुशलसूरिमूर्तिः कारिता प्र० श्रीजिनसागरसूरिभिः॥ (१३७०) सुमतिनाथः संवत् १६७७ वर्षे श्रावण २ दिने मेड़तानागर सा० रत्न भार्या रखणादे पुत्र सा..........भार्या लालनदे नाम्ना श्रीसुमतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं जुग प्र० भट्टारक श्री म० श्रीजिनराजसूरीश्वरसहित॥ (१३७१) पादुका-लेखः संवत् १६७७ आसु सुदि ४ तिथौ पं० अभयवर्द्धनमुनिशिष्य नां पादुके कोटड़ा श्रीसंघ कारितं । प्र० बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः॥ (१३७२) यु० जिनचन्द्रसूरि-पादुका सं० १६७७ वर्षे माघ वदि १० दिने गुरुवारे युगप्रघान श्रीजिनचंद्रसूरीणां पादुके कारितं खरतरगच्छे ओसवंशे................... ते सं० जसराजभार्या जसलदे पुत्र भ मांडणकेन प्रति० युगप्र० श्रीजिनसिंहसूरिवरैः। (१३७३) प्रतिष्ठितं युगप्रधान श्रीजिनराजसूरिभिः १३६७. शांतिनाथ मंदिर मेड़तासिटी : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११४५ १३६८. शांतिनाथमंदिर, मेड़तासिटी, प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११५३ १३६९. शांतिनाथ मंदिर, मेड़तासिटी : प्र० ले० सं० भाग १, लेखांक ११५४ १३७०. शांतिनाथ जी का मंदिर, पचपदरा, बाड़मेर : बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १०३ १३७१. शीतलनाथ जी का मंदिर, कोटड़ा, बाड़मेर : बा० प्रा० जे०शि० लेखांक २२ १३७२. नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, भोयरापाडो, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ८८२ १३७३. पार्श्वनाथ जिनालयः नाहटों में, बीकानेर : ना० बी० लेखांक १४९५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) २४७) For Personal & Private Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३७४) मूलनायक - पार्श्वनाथः संवत् १६७८ वर्षे वैशाखसित १५ तिथी सोमवारे स्वातौ महाराजाधिराज महाराजश्री गजसिंह विजयराज्य ऊकेशे रायलाखणसंताने भांडागारिकगोत्रे अमरा पुत्र भांनाकेन भार्या भगतादेः पुत्ररत्न नारायण नरसिंह सोढा पौत्र ताराचंद खगार - नेमिदासादि परिवारसहितेन श्री श्रीकर्पटहेटके स्वयंभु पार्श्वनाथचैत्ये श्री पार्श्वनाथ... .. सिंह सूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः सुप्रसन्नो भवतु । (१३७५) शिलालेखः संवत् १६७८ वर्षे माघसुदि १५ रविवासरे खरतरगच्छ भट्टारकीय पुष्यनक्षत्रे राउल श्रीउदेसिंघजी विजयराज्ये श्रीसुमतिनाथनउ नवचोकिउ श्रीसंघ करावउ, सूत्रधार षीमापुत्र हेमा नवउ कीधुं सूत्रधार नारायण साथइ । (१) (२) (३) (४) (५) (६) (७) (८) ( १३७६ ) स्तम्भ लेख: ॥ ॐ॥ संवत् १६७८ फाल्गुण सित ५ दिने । श्रीजेसलमेरु महादुर्गे ॥ महाराजाधिराज महाराज महाराउल श्रीकल्याणदास जीविजयिराज्ये ॥ कुमार श्रीमनोहरदासजी जाग्रद्यौवराज्ये । सकल श्रीजैनदर्शन रक्षाकर युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टप्रभाकर श्रीजाहंगीर पातिसाहि श्रीसलेम साहि प्रदत्त युगप्रधान विरुदघर श्रीजिनसिंहसूरिराजानां भूपतिवेशः कारितं श्रीजेसल - मेरुवास्तव्य सकल श्रीखरतरगच्छीय श्रीसंघेन । प्रतिष्ठितश्च । युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकार। श्रीलोद्रपुरपत्तनमण्डन सहस्रफणामणि चिंतामणिपार्श्वनाथ श्रीशत्रुंजयमौलश्रृंगमौली (९) I (१०) यमानाष्टमोद्धारप्रतिष्ठाकार । श्रीभाणवडनगर प्रवर श्रीशांतितीर्थक(११) रप्रतिष्ठावसरप्रसरच्छ्रीसूरिमंत्रस्मरणं प्रकटित पे (पी) यूषयूषवर्षि श्रीपार्श्वबिंबा(१२) वलोकनजनितजगज्जनचमत्कार । यवनराज्यमध्यविदित श्रीमेदतद(१३) प्रकट मम्माणीमय जिनालय प्रथम श्रीशांतिनाथ प्रभृतिप्रतिमाप्रतिष्ठान (१४) समधिष्टानविधानलब्ध प्रधानातिशय मुंनार। जाग्रदिष्टदेव सान्नि(१५) ध्यविहित पंचपीराद्यनेकयवनदेवाधिष्ठान दुर्गमसिन्धुदेश(१६) विहार । बोहित्थवंशमुक्ताप्रकार । सा० धर्म्मसी - धारलदे - कुमार । मंड(१७) ल भट्टारक वृंदवृंदारक पुरंदरावतार श्रीजिनराजसूरिसूरिराज्यैः ॥ (१३७७) कीर्तिरत्नसूरि - पादुका संवत् १६७९ वर्षे वैशाख वदि १ सोमे श्रीबृहत्खरतरगच्छे स्तम्भतीर्थे आचार्यकीर्तिरत्नसूरिपादुके १३७४. कापरड़ा तीर्थ : पू० जै० भाग १ लेखांक ९८१; जै० ती० स० सं०, भाग १, खंड २ पृ० १९५ १३७५. खरतरगच्छीय उपाश्रय, बाड़मेर : य० वि० दि०, भाग २ पृ० २०७ १३७६. दादाबाड़ी, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २४९८ १३७७. नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, भोंयरापाडो, खंभात : जै० धा प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ८८४ (२४८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारिते श्रीओसवंशे शंखवालगोत्रे सा० समदत्त पुत्र जसवीर भार्या जसमादे पुत्र सा० सुभकर सा० करमचन्द्राभ्यां पुत्रपौत्रादिपरिवारपरिव्रि (वृ) तैः प्रतिष्ठितः श्रीजिनराजसूरिवचनैः वा० हर्षवल्लभगणिभिः ॥ (१३७८ ) युगप्रधान - जिनदत्तसूरि-प्रतिमा ॥र्द॥ सं० १६७९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ गुरौ श्रीअहम्मदावादवास्तव्य ओसवालज्ञाती श्रीब्राह्मेचागोत्रे । सा० कम्मा सुत अरजुन तत्पुत्र हीरा तत्पुत्र भा० गोरा तद्भार्या गौरादे तत्पुत्र सा० लक्ष्मीदास लघुभ्रातृ राइसिंघ युताभ्यां श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनवल्लभसूरिपट्टे श्रीयुगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरीणां प्रतिमा कारिता प्रति युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीणां पट्टे श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रभाकर वादिगजसिंह भट्टारक श्रीजिनराजसूरिभिः ॥ प्रणमति वा० हर्षवल्लभ ॥ (१३७९ ) युगप्रधान जिनकुशलसूरि-प्रतिमा ॥र्द॥ सं० १६७९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ गुरौ श्रीअहम्मदावादवास्तव्य ओसवालज्ञाती श्रीब्राह्मेचागोत्रे । सा० कम्मा सुत अरजुन तत्पुत्र सा० गोरा भार्या गोरादे तत्पुत्र लखमीदास लघुभ्रातृ राइसिंघ युताभ्यां ॥ श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरीणां पट्टे श्रीजिनकुशलसूरीणां प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसिंहसूरिपट्टे श्रीजिनराजसूरिभिः॥ ( १३८० ) चतुर्विंशतिजिनेन्द्रपट्टकः ॐसंवत् १६७९ बर्षे माघ सु० ४ दिने शनिवासरे श्रीचतुर्विंशतिजिनेन्द्रपट्टकः प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छावतंस श्रीजिनदत्तसूरि क्रमेण श्रीजिनदत्तसूरि तद्वंशे मुक्तामणि श्रीजिनचन्द्रसूरि श्रीजिनकुशलसूरि श्रीजिनपद्मसूरि श्रीजिनलब्धिसूरि श्रीजिनचन्द्रसूरि श्रीजिनोदयसूरि श्रीजिनराजसूरि तत्पट्टालंकारहारै: श्रीजिनभद्रसूरिभिः कारितं श्रीउकेशवंशे डागाशाषायां सा० करमा पु० सा० लूणा साहड़ मूलू महणा देव्या तन्मध्ये साहड़ पुत्राः पंचाभवन सा० भोजा जगसिंह हेमा मोहण आल्हाख्या: तत: मूलू पुत्राः पंच. ( १३८१ ) महिमसुन्दरगणि-पादुका ॥ संवत् १६८० वर्षे माह सुदि ६ दिने वादीन्द्र श्रीसाधुकीर्त्यपाध्यायानां शिष्य वा० महिमसुन्दरगणिनां पादुके प्रतिष्ठिते भट्टारक श्रीजिनराजसूरिराजैः । ( १३८२ ) हर्षसोमगणि-पादुका संवत् १६८१ द्वितीय चैत्र वदि द्वितीयायां श्रीक्षेमकीर्त्ति. .. पद्मनिधान शिष्य पं० श्रीहर्षसोमगणीनां पादुके स्थापिते श्रेयसे श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनराजसूरि विजयराज्ये ज्ञानमंदिर गणिनामादरेण शिष्य वाचक श्रीभुवनकीर्त्ति कुशलविजय युजाम् । १३७८. शांतिनाथ जिनालय, दादा साहब की पोल, अहमदाबादः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २४७ १३७९. शांतिनाथ जिनालय, दादा साहब की पोल, अहमदाबादः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २४८ १३८०. शीतलनाथ जिनालय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग २, लेखांक २३८५ १३८१. भण्डारस्थ, शांतिनाथ जिनालय, नाकोड़ा : ना० पा० ती०, लेखांक ९३ १३८२. छीपावसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ) लेखांक ३० खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२४९) Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३८३ ) कल्याणधीर - पादुका सं० १६८१ द्वितीय चैत्र वदि २ बुधे श्रीबृहत्खरतरगच्छेश्वर श्रीजिनमाणिक्यसूरिशिष्य वा । कल्याणधीर पादुके प्रतिष्ठिते श्रीजिनराजसूरिसूरिराजैः। का। वा। कल्याणसोमगणिभिः॥ (१३८४) यु० जिनचन्द्रसूरि - पादुका संवत् १६८१.. .. युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरीश्वराणां पादुके कारितं डोसी गोत्रीय सं० क............ श्रीकमललाभोपाध्याय पं । लब्धिकीर्त्ति पं| राजहंस गणि पं० दयामेरु देवविजयादियुतेन उ० देशेन तव श्रेयसे भवतु.. . प्रतिष्ठितः श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनराजसूरिभिः (१३८५ ) विनयकल्लोलगणि-पादुका संवत् १६८२ मिति चैत्र सुदि १५ रवौ श्री .. .. वाचनाचार्य श्रीविनयकल्लोल गणीनां पादुके प्रतिष्ठिते च बृ। खरतर भट्टारक श्रीजिनराजसूरिराजैः सपरिवाराभ्युदयाय भवतामिति ॥ ( १३८६ ) गणधर - पादुका " ॥ ॐ ॥ नमः श्रीमारुदेवादिवर्द्धमानांततीर्थंकराणां श्रीपुंडरीकाद्यगौतमस्वामिपर्यन्तेभ्यो गणधरेभ्यः सभ्यजनैः पूज्यमानेभ्यः सेव्यमानेभ्यश्च । संवत् १६८२ ज्येष्ठ वदि १० शुक्रे श्रीजेसलमेरु वास्तव्योपकेशवंशीय भांडशालिके सुश्रावककर्त्तव्यताप्रवीणधुराणि सा० श्रीमल्ल भार्या चांपलदे पुत्र पवित्र चारित्र लोद्रवापत्तनकारितजीर्णोद्धारविहारमंडन - श्रीचिंतामणिनामपार्श्वनाथाभिरामप्रतिष्ठाविधायक प्रतिष्ठासमयार्हसुवर्णलंभनिकाप्रदायक संघनायक करणीयदेवगुरुसाधर्म्मिकवात्सल्यविधान प्रभासितसम्यक्त्वशुद्धि प्रसिद्धसप्तक्षेत्रव्ययविहित श्रीशत्रुंजयसंघलब्धसंघाधिपतिलक सं० थाहरू नामको द्विपंचाशदुत्तरचतुर्दशशत १४५२ मितगणधराणां श्रीपुंडरीकादिगौतमानां पादुकास्थानमजातपूर्वमचीकरत् स्वपुत्र हरराज - मेघराजसहितः समेधमानपुण्योदयाय प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनराजसूरिसूरिराजै: पुज्यमानं चिरं नंदनात् । (१३८७) गणधर - पादुका - लेखः I ॥ । १ । जहांगीरनूरदीनप्रदत्त युगप्रधानपदधारक श्री ॥२ ॥ जिनसिंहसूरिपट्टे पूर्वाचलसहस्रकरावतारबोहित्थ-॥ ३॥ वंश-शृंगार प्रतिष्ठित - श्रीशत्रुंजयाष्टमोद्धार संप्राप्त ॥ ४ ॥ जगदंबिकावरप्रसारसमधिगतमणिपर्यंततर्कप्रकार ॥ ५ ॥ भाग्यसौभाग्यमाधार बिं धर्म्मसी - धारलदेविकुमारवावित घंघाणीपुर प्रव्य ॥ ६ ॥ जित जीर्णप्रतिमालिपिविशेषविचार सकलभट्टारके । सजएट्ठ दारप्रकार श्री ॥ ७ ॥ मत् श्री १८ श्रीजिनराजसूरिसूरिराज्यैः । आचार्य श्रीजिनसागरसूरि.. पाध्याय ॥ ८ ॥ व्य... आचार्यशिष्यप्रशिष्य-संसेवितचरणसरोजैः ॥ इदं भव्यजनैः प्रयुज्यमानं ॥ ९ ॥ सेव्यमानं चिरंतन तादोषासोमौ पुत्रास्त्रिरियं श्रीक्षेमशाखामुख्य-श्रीशिवसुंदरोपाध्याय-शिप्याणु शिष्य - पं० हेमसोमगणिशिष्य-वाचनाचार्य्यश्रीज्ञाननंदिविनेयलिखिताष्टमोद्धार-प्रतिष्ठाप्रतिष्ठित प्रतिभाभिधानभुवनकीर्ति स पं० लावण्यकीर्तिना लिलिखे मुदाय ॥१०॥ १३८३. छीपावसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ११ १३८४. छीपावसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ), लेखांक २४ १३८५. छीपावसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ), लेखांक १२ १३८६. खरतरवसही, शत्रुंजय : प्रा० जै० ले० सं० भाग २ लेखांक २६; श० गि० द० लेखांक २४ १३८७. खरतरवसही, शत्रुंजय : श० गि० द० लेखांक १७३ (२५० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरदिशास्थित श्रीधर्म्मनाथादिजिनदशकगणधराणां द्वाचत्वारिंशदग्रद्विशत० २४२ मितानां पादुके । समवायांगत्रिषष्टिशलाकाचरित्रानुसारेण सर्वजिनाद्यगणधराभिधानं लिखितमस्ति समस्त स्वस्ति........निदानं श्रेयोस्तु चतुर्विध श्रीसंघस्य श्री ॥ ११ ॥ संवधर्नक्रमेण शिलेयं तृतीया ॥ ३ ॥ ।१ । सं० १६८२ ज्येष्ठ वदि १० शुक्रे श्रीजेसलमेरु भांडशालिक गोत्रीय सा० श्रीमल्लभार्या चांपलदे पुत्ररत्न श्रावककरणी । २ । अप्रमत्तं सं० थाहरु नाम्नाभार्या कनकादे. .. चाशदधिकचतुर्दशशत १४५२ मित गणधरपादुकाध्यान । ३ । मनून पूर्व शिला.... बचु..... 1 प्रवर्धमानपुण्य श्रेये कारितं.. .श्रीजिनराजसूरिसूरिराजैः । पश्चिम दिशा ॥ ३ कास्थित पार्श्वजिनादिनी.....संवधातं क्रमेण शिला । १ । सं० १६८२ मिते जेष्ट वदि १० शुक्रे श्रीमदुपकेशवंशीय श्रीजेसलमेरुवास्तव्य भा.... शालि... 1 सा पूनसी भार्या.....पुत्ररत्न श्रीमल्लभार्या चांपलदे पुत्र पवित्र धर्म्म । २ । तानघ संघवि विधिपूर्वकप्रतिष्ठापक लेखितागमभाण्डागार विहितसाधर्मिकवात्सल्य संभारपर्या..... रूपभट्टारक यु० श्रीजिनराजसूरिदश्रीशत्रुंजय । ३ । तीर्थ...सत्तवाचतुर्विंशतिजिनेश्वरवरद्विपंचाशदग्र चतुर्दशशतगणधरपादुकालंकृत्य भूतपूर्व शिलाचतुष्क.. ..रनु....... कारि संन्यवेशि । १ । ...... करणपरायण श्रीलोद्रवापत्तन प्रवरजीर्णोद्धारविहारशृंगारक- श्रीदिनमणिनामघघवा ..गेघमहामहोत्सवरूपीरूपकनकमुद्र । समर्पण सक्कारि......... । २ । य संघपतिपदतिलकालंकार सुश्रावककर्तव्यधारीण सं० थाहरु नाम्ना भार्या कनकादे पुत्र हरराज भा० हजा ...... द्वितीयपुत्र मेघराज सुतेन श्रीमद ला० ला० ला० ला० ला० ला० ला० ला० ला० ला० १. पूर्वदिशवर्ति मारुदेवाजिनजिन २. सो० पुंडरीक सिंहसेन, प्रभृतग ३. णधरः १७९ तेषामिमाः पादुकाः १. प्रागवाटवंशीय सं० सोमजी सुत संघाधिप २. रूपजी कारिताष्टमोधार - सप्राकार - चतुर्द्वार वि ३. हारे प्रतिष्ठितं च श्रीमन्महावीरदेवाधिदेवा ४. विछिन्नपरंपरायात-श्रीकोटिकगणगगनांगणदिनमणिचांद्रकुलावचूलाचूडामणि वज्रीशाखानुसरणि • श्रीमदुद्योतनसूरिसूरिसूरिमु-- धक श्रीवर्धमानसूरि- । ५. सममुछेदक - खरतरविरुदप्रापक श्रीजिनेश्वरसूरि - श्रीजिनचंद्रसूरि - नवांगीवृतिकारकश्रीस्तंभनकाधीशपार्श्वनाथाति.......श्रीमदभयदेवसूरिपट्ट.......। ६. पट्टायात- श्रीजिनभद्रसूरिसंतानीय-प्रतिबोधितदिल्लीपति जलालदीन साही-श्रीमद्अकबरप्रदत्तयुगप्रधान पदधारक पंचनदी शाधकषाढीयामारिप्र ...। ..तीर्था. ७. र्त्तक बृहत्खरतरगच्छाघीश्वर-युगप्रधान जिनचंद्रसूरि वर्षावधि. णां. ..वगतजंतुजाता..... .. कवित कुर..... ..वारादिदेशाम् । (१३८८ ) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १६८२ मार्गशीर्ष सुदि ५ सा० कटारमल तस्यात्मज सा० कल्याणमल पुत्र चिंतामणि श्रीजिनकुशलसूरि० भ । वेगमपूर वास्तव्य । १३८८. दादाबाड़ी, पटना : पू० जै०, लेखांक ३३२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: भाग १, For Personal & Private Use Only (२५१) Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) (३) (४) (4) (६) (७) (८) (९) (१०) (१) (२) (३) (४) (५) ॥ संवत् १६८३ वर्षे मगसिर वदि २ दिने श्रीजेसलमेरुकोट्टे रावल श्रीकल्याणजीविजयराज्ये ॥ श्रीखरतरगच्छे। भट्टारक श्रीजिनराज़सूरिविजयराज्ये। आचार्य श्रीजिनसागरसूरिविजयराज्ये ॥ श्री. सं० १६८३ वर्षे मिगसर ( १३८९ ) पादुकालेखः (१३९१ ) युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥ संवत् १६८४ वर्षे । वैशाख सुदि ८ । गुरौ श्रीबृहत्खरतराधीश | युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराणां पादुके। कारिते। कां । राघव चांदा। सुरताण। जसवंत । कमलसी । भ्रातृव्य राजसीसहितैः । भट्टारक श्रीजिनराजसूरि विजयराज्ये। आ० श्रीजिनसागरसूरि यौवराज्ये प्र० श्रीधर्मनिधानमहोपाध्यायैः । श्रीवीरमपुरसकलसंघस्य शं स्तात् । प्रणमति । वि० धर्मकीर्तिगणि: सूत्रधार मेघाकेन ॥ (१३९२) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १६८४ वर्षे -- माघ सुदि ९ दिने भोमवासरे श्रवण नक्षत्रे. झाडेन तत्पुत्र ठाकुर दुली..... श्री जिनकुशलसूरीणां पादुके कारितं । ( १३९३ ) स्तूपलेखः संवत् १६८५ वर्षे मार्गशीर्ष मासे कृष्णपक्षे द्वितीयायां तिथौ चन्द्रवारे रोहिणी नक्षत्रे शुभयोगे श्रीमत्खरतरवेगडगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरि ( १३९० ) जिनचन्द्रसूरि - पादुका .. श्रीजिनचंद्रसूरि पादुका. १३८९. श्मशान जैसलमेर : पू० जै० भाग ३ लेखांक २५१५ ; , १३९०. श्मशान, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३ लेखांक २५१६ १३९१. केसरघर के पास की शाल में, नाकोड़ा : ना० पा० ती०, लेखांक ९८; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ४७३ १३९२. चन्द्रप्रभ जिनालय, मथियान मुहल्ला, विहार: पू० जै०, भाग १ लेखांक २२७ १३९३. श्मशान, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५०७ (२५२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: ...गोत्रे ठाकुर. ..ठाकुर For Personal & Private Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) (७) ......राउल श्रीमनोहरदास विजयते (१३९४) पादुका सं० १६८५ प्रमिते माघ वदि ९ दिने बुधवारे श्रीखरतरगच्छे । गच्छाधीश श्रीजिनराजसूरि विजयराजे प्रतिष्ठित..............हरिस................। (१३९५) गौतमस्वामी-पादुका सं० १६८६ वर्षे वैशाष सुदि १५ दिने मंत्रिदलवंशे चोपडागोत्रे ठा० विमलदास तत्पुत्र ठा० तुलसीदास तत्पुत्र ठा० संग्राम गोवर्द्धनदास तस्य माता ठ० नीहालो तत्पुत्र भार्या ठकुरेटी देहुरा गोतमस्वामीका चरण गुल्वर ग्राम.......कारा पिता बृहत्खरतरगच्छे पूज्य श्री श्री जिनराजसूरि विद्यमाने उ० अक्षयधर्मेन प्रतिष्ठा कृता॥ (१३९६ ) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १६८६ वर्षे आश्विन मासे शुक्लपक्षे १५ तिथौ सोमवारे श्रीजिनकुशलसूरि पादुका वर..........। (१३९७) आदीश्वर-पादुका सं० १६८६ वर्षे मारगृशि शु........श्री॥ बृहत्खरतरगच्छ श्रीश्रीआदीश्वर पादुका प्रतिष्ठित युगप्रधान श्री............जिनराजसूरिभिः श्राविका जयतादे कारिते॥ (१३९८) सीमंधरः सं० १६८६ वर्षे चैत्र वदि ४ जयमा श्रा० का० श्रीसीमंधरस्वामीप्रतिमा प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिराज................ । (१३९९) यु० जिनचन्द्रसूरि-मूर्तिः १. सं० १६८६ वर्षे चैत्र वदि ४ दिने श्री खरतरगच्छाधीश्वर युगप्रधान श्री २. जिनचंद्रसूरीणां प्रतिमा का० जयमा श्रा० युगप्रधान श्रीजिनराजसूरिराजैः। (१४०० ) जिनसिंहसूरि-पादुका संवत्..........(१६८६) चैत्र वदि ४ दिने युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिणां पादुके कारिते जयमा श्राविकया भट्टारक युगप्रधान श्रीजिनराजसूरिराज.............. १३९४. ऋषभदेव जी का मंदिर : नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४६० . १३९५. गौतमस्वामी का मंदिर , कुण्डलपुर, विहार: पू० जै० भाग १, लेखांक २७१ १३९६. महावीर जिनालय , जैसलमेर: पू० जै० भाग ३, लेखांक २४३५ १३९७. ऋषभदेवजी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी० लेखांक १४६१ १३९८. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४७२ १३९९. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४२५ १४००. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४२४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (२५३) For Personal & Private Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४०१) मरुदेवी-मूर्तिः सं० १६८६ वर्षे । घेवरपृष्टेऽऽरोहिते श्रीमरुदेवीप्रतिमाकारिता चोपड़ा जयमा श्राविकया प्रतिष्ठिता...................श्रीजिनराजसूरिराजैः (१४०२) पादुकालेखः संवत् १६८६ वर्षे-क--- । प्रवर्त्त---:। श्रीखरतरगच्छे श्रीउपाध्यायरत्नतिलकगणिनां त० शिष्येन श्रीलब्धिसेनगणि श्रीयुगप्रधान श्रीचन्दशाखायां कारापितं उपदेन--गुजु--पाठकस्य---श्री रत्नतिलकगणि प्रतिष्ठितं वा० तब्धिसेनगणि प्रतिष्ठा कृता॥ श्री रस्तु श्रीः॥१॥ (१४०३) पादुकालेखः मूलनायक----राज्ञ सभासन धारकं। ० ० गुर्जर मह- नति-- गोत्रे ---ठ० बेनीदास । तुलसीदासमाणिकदास--कारापितं । श्री---स्यां पादुका श्री--स्य गुरु--श्री जिनलब्धिसेनसूरि कृता॥ यस्यां पादुके बृहत् श्रीखरतरगणा- यं० युग--श्रीयुगप्रधान--श्री जिनचंद्रसूरिशाखायां श्रीउपाध्याय-श्री रत्नतिलक-- तत्पट्टालंकार श्री वाचनाचार्य-लब्धिसेनगणि आदेशेन श्री दलचंद--सरणा बालिड़िवा गोत्रे । नैरवन --ठा० गुजरमल्लेन--श्री रत्नतिलक वा०---त ठा० करेन प्रतिष्ठा पुनमीया--- | (१४०४) जिनचंद्रसूरि-पादुका संवत् १६८६ वर्षे शाके १५५१ प्रवर्त्तमाने----मासि शुक्लपक्षे सप्तमी गुरुवासरे बृहत् श्रीखरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिपादुका ठाकुर देवा तस्यात्मज मांडन तस्य भार्यान्हालो पुण्यप्रभाविका तस्य पुत्र दुलिचन्द्रेण प्रतिमा कारापिता श्रीमाहतीयाल (महतियाण) श्रावकेन गुरु दुलिचन्द्र प्रतिष्ठा क० श्री उपाध्याय श्रीरत्नतिलक गणि पादुके प्रतिष्ठितं वा० लब्धिसेन गणि प्रतिष्ठा० । (१४०५) भरत-प्रतिमा ॥ संवत् १६८७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० भौमे उत्तराफाल्गुन्यां श्रीखरतरगच्छे श्रीभरतचक्रभृतमहामुनिबिंब कारितं समस्त श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं श्री (१४०६) भरत-प्रतिमा श्री भरत प्रतिमा कारिता जयमा श्रा० प्रति० श्री जिनराजसूरिभिः॥ (१४०७ ) बाहुबलि-प्रतिमा ॥ संवत् १६८७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दिने भौमे उत्तराफाल्गुन्यां महाराजाधिराज श्री सूर्यसिंहजी १४०१. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४२८ १४०२. जलमंदिर, पावापुरी तीर्थ : पू० जै०, भाग १ लेखांक १९६ १४०३. जलमंदिर, पावापुरी : पू० जै०, भाग १, लेखांक १९७ १४०४. जैनमंदिर, कुण्डलपुर, विहारः पू० जै० भाग १, लेखांक २७२ १४०५. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४२६ १४०६. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४२९ १४०७. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४२७ (२५४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजयि राज्ये श्रीखरतरगच्छे श्रीबाहुबलिबिंबं कारितं श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं श्री जिनसिहंसूरि पट्टालंकार युगप्रधान श्रीजिनराजसूरिभिराचंद्रा नंदतु ॥ (१४०८) देवसिंह-पादुका ॥६० ॥ संवत् १६८७ वर्षे आसोज विजयदशम्यां दिने शनिसरवारे श्रीबृहत्खरतरगच्छे वा० श्री श्री कनकचंद्रगणि तत्शिष्य पं० श्रीदेवसिंहजी देवांगत ॥ शुभंभवतु (१४०९) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १६८७ वर्षे मगसिर सुदि ४ दिने। श्रीसुमतिनाथबिंबं श्राविका राजीमानीकारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः। (१४१०) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १६८८ वर्षे वैशाख सुदि १५ तिथौ मंत्रीदल बंसे (वंशे) चोपडागोत्रे ठा० विमलदास तत्पुत्र ठा० तुलसीदास तत्पुत्र श्री ठा० संग्राम गोवर्द्धनदास तस्य माता ठकुरी श्रीनिहाली तत्पुत्र भार्या ठकोरी यु० भ (०) श्रीजिनकुसलसूरिका कारि (रा) पिता पूज्य श्रीश्रीपू श्रीश्रीराजसूरिविद्यमाने उपाध्याय अभयधर्मेन प्रतिष्ठा स्थिरलग्ने खरतरगच्छे॥ . (१४११) आनन्दवर्धनगणि-पादुका ___ सं० १६८८ वर्षे आषाढ़ सुदि ८ दिने श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनसिंहसूरि शिष्य......हेममंदिर गणिना शिष्य वा० आनंदवर्द्धन गणिनां पादुके। (१४१२) परिकरः संवत् १६८८ वर्षे श्रीकापडहेडा स्वयंभूपार्श्वनाथस्य परिकर: कारितः प्रतिष्ठितः श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (१४१३) जिनचन्द्रसूरि-पादुका संवत् १६८९ वर्षे भादरवा सुदि ६ दिने श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टा०...................युगप्रधान ............श्रीजिनचन्द्रसूरिपादुका श्रीजिनवर्धनसूरि प्रतिष्ठितं शुभं भूयात् ॥ (१४१४) ह्रींकारयंत्रम् संवत् १६८९ वर्षे पोष मासे १० दिने श्री बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिविजयराज्ये चंदा पूम्यां ओसवालज्ञातीय नाहटा गोत्रे सा० सहजराज पु० सा० सिंघराज तत्पुत्राः सा० श्रीचंद संवतु १ सा० साधारण सा० श्रीहंस सा० करसण हासा सधारण भार्या सहयदे तत्पुत्रा सहसकरण सुमति सहोदर शुभकर प्रतिष्ठितं श्रीमत् श्री परानयन सुहगुरूणा॥ हितं कारापितं ॥ १४०८. गुरु पादुका एवं मथेरणों की छतरी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९७० १४०९. धर्मनाथ मंदिर, भानीपोल, राधनपुर : विशाल विजय-रा० प्र० ले० सं०, लेखांक ३७९ १४१०. महावीर मंदिर, गुणाया : जैनतीर्थ सर्वसंग्रह, भाग २, पृ० ४४३; पू० जै०, भाग १, लेखांक १७६ १४११. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक १७ १४१२. जैनमंदिर, कापरडाजीतीर्थ : जैनतीर्थ सर्व संग्रह, भाग १ खंड २ पृ० १९५ १४१३. श्री शांतिनाथ जी का मंदिर, कणाशाह का पाड़ा, पाटण: भो० पा० लेखांक १३१६ १४१४. बावन जिनालय, करेड़ा, मेवाड़ः पू० जै० भाग २, लेखांक १९४७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (२५५) For Personal & Private Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४१५) पञ्चतीर्थीः सं० १६९० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ सोमे उकेसवंशे मांगरेचा गोत्रे सा० गोविन्द भार्या गारवदे पुत्र सा० समरथ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनकीर्तिसूरि श्रीजिनसिंहसूरिभिः प्रतिष्ठितं। (१४१६) जयकीर्तिगणि-पादुका संवत् १६९० वर्षे भाद्रव सुदि १ श्रीबृहत्खरतरगच्छे वा० जयकीर्तिगणीनां पादुके ॥ पं। ..कारापितं (१४१७ ) गौतम-गणधर-मूर्तिः १. ॥ सं० १६९० फागुण वदि ६ दिने को० ठाकुरसी भार्या ठकुरादे २. ॥ श्रीगौतमगणधृद्बिबं कारितं प्रतिष्ठितं यु० श्री जिनराजसूरिभिः (१४१८) शांतिनाथः सं० १६९० फाल्गुण वदि ७ श्रीशांतिबिंबं प्र० श्री जिनराजसू० (१४१९) मूर्तिः सं० १६९० व० वदि ७ ऊ० गोत्रे तेज. ...बिंबं का० प्र० श्रीजिनराज..... (१४२०) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १६९१ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने गुरुवारे रोहणी नक्षत्रे खरतरगच्छे श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां पादुका प्रतिष्ठितं चिरंनंदतात् मु०वनाकेन लिखतं । (१४२१) ज्ञानप्रमोदगणि-पादुका संवत् १६९१ वर्षे मिती वैशाख सित ८ बुधवार ना श्रीखरतरगच्छे श्रीसागरचन्द्राचार्यसंतानीय श्रीज्ञानप्रमोदगणिनां पादुके॥ (१४२२) ज्ञानविलासगणि-पादुका संवत् १६९१ वर्षे चैत्र वदि १ दिने भोमवार श्रीखरतरगच्छेश्वर श्रीयुगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि शिष्य पं० ज्ञानविलासगणिनां पादुके का० प्र० श्रीकल्याणमस्तु ॥ १४१५. शीतलनाथ जिनालय उदयपुरः पू० जै० भाग २, लेखांक ११०७ १४१६. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक १४ १४१७. ऋषभदेवजी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४२३ १४१८. ऋषभदेवजी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४६२ १४१९. ऋषभदेव मंदिरस्थ पार्श्वनाथ जिनालय: नाहटों में, बीकानेर : ना० बी० लेखांक १५०० १४२०. वेगड़गच्छ की दादाबाड़ी, गढ़सीवाणा: भँवर० (अप्रकाशित); बा० प्रा० जै० शि० लेखांक २८९ १४२१. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०) लेखांक १८ १४२२. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रकाश०), लेखांक १९ (२५६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ cucation International utoriस्व मिश्रा सतिण ते जा रखमुहिएलामवास है पानिमादबीमाटि नीरसकलन ममलामराग्रीनसितमजिनागमधीतीरवशमानवामि नवलकात्याकपविविधवावारीपरिसर प्रीतारमनसाया धनजनराज पवमानक ततश्राव महाराज मकलमलमश्रिीदेवनायम इति माण मानारतमागावीय संघनायक संघातलमादा मनावानिहालोर संयाम लघवागावनितेनपालनजर राम राम परमालदसपरिवारमा प्राविश तविकतानातायो मादाममगार ऊसली दादास रोदाका मटाने DIARRILM तामदासादिमाग दम्ममा काम मालकवर मनले मनात चंदा कारगमा मन्त्रक दिना बदासपना alaसनकालताताकाबानिसकाइमामन्याल दासमोवालदास दाल तासगारागारदामाकाका वायवतमान समसंद महोfiNTHI Nainiजयमल नंदलालामामागे काम वसुदरनाanta के मतदाता निमबल कनावनामापारमिया Far Persepal & Private Use July सं० १६९८ में प्रतिष्ठित, पावापुरी तीर्थ मन्दिर की प्रशस्ति PEDIAltretSHEL3ZEREMORRHAREETRIORUPTJREFireour. Purunettutodauntrieviden-IITTERtgaASEELEMEJM RitertElithiEDEOLARITERPREMuTERALLY टासमतीमधेनदARHEARTIरतपरतरगचा रागवधानत्रा अHिATuzyaniATERTAsthaniमयमानगरीकतामाराम विसanRaiyiपशामायापछिसय सीमावा तय NEETan कमलनाuneपहलाकाहानि माग RAGHMEIPRni-ATEGOATEHRETimire NAAVAT Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educ बाफना हिम्मतराम जी का मन्दिर, अमरसागर- जैसलमेर की प्रशस्ति ॥ श्री ॥ ।। श्री पारस जिन अएम् पूज्य श्री जितरा जिरा जिचर (एँ। जो ज६मं नि श्री मनदेवे जयतित राम्॥ मनोज दासकृतन पनमस्कृतः स्मिथ नोदं प्रतिदिन कृता मानिस स्फुर लिन मनसा ध्यायेति सोना पिनः तिषां सर्व समृद्धि कि निर्मात्रा इनवेदिकादीनि परिब्रजनिसद् साह रे तुरंता निचरा आदिमंधवाना मादिमंती: परियदितीर्धनाचा वन स्वामिनः सुमनाचा स्वभाविकमादि राज्य २८ बाद १७९१ प्रवर्तमानमासोनम मासेम धमासे धन क्षेत्रयोदश्मानि मे गुरुवासरे महाराजा विराजमदारावली श्री १०८ श्री श्रीश्रीवेरील जी विजयराज्ये श्रीमनेशन स्वास्त माजी संघवा सेवजी गुमांनचंदजी न सुपरना एनजी व दिमतराम जेम्मलं गीन यमन की सागर मेल जीमेली परिवार मुल बंद संगनमत के सरी मलपत्रदास साजीदास गवानदास नीम चंदाचित म दास तुल किरण मना लालकनैया लाल सपरिवार पर कमाएार्थ श्री सम्मको दीपनार्थच श्रीनगर या मरसागर सभी पवर्त्तना सभी चिना आरामस्थानी कृषनदेव जिन मन्दिरं चैनक रात्रि जी दिन मिनट हन्वनर एनायेन प्रतिष्ठित पदक असे विनादन खरतर गला विश्वरे एचन विधिसंघ सरितेन श्रीजिनमक्ति नामको सर्वश्री मूननायकत्वेनापिनपुन नेव चिवा नाम जन सिजाका विहितापन तमासादेवप्रतिष तं श्री बहु नायक न्वेन स्थापितंपुन र्विज्ञवहिद मानप्रतिष्ठा तंदिर के पास बाजूनी ऐ श्री दादा साहेब को मंदिर जलमा जिनका जी स्ाराज की त्रिच मांदे विराजमान तथा प्रीजिनंदन मुस्चिया कातथा जिनकुशलस्त्ररिन्दर पाकात श्री जिन्द सूरिचर पाडु का नया श्री जिनम मरि चरपा का मुरवस्था नितंबाना सवाइ रामजी के घर का थामी रतलाम से चिरुं सो नागभल चांदमल सोभाग मलकी मांजी वगैरेयामा श्री उदे श्रचिरुं सिरदार मलन भाई ए की मांजी बगेरेच्याया ओर पघले दिसावरा श्री संघा या सांमी वळल प्रमुणकरी श्री संघ की ही क्लिक पांच म्हाराज के दीक्षा दिनी जी दिन १५ सुधी मासागरमेर झाको गति त्यनविन विज्ञापन्तावना 5. ई. श्री दरबार साहिब, श्री मंदिरजा मे पधारी माती बी का फेरा पग में सेना सीमो के श्री संघ समेत श्रीजेशल मेख्यादजमुखी श्री प्रजजी महाराजक दोयक नीजिए नारी रूपी यो को मालइ सबाबत या कमनेट की नो उपाध्याय जी वगैरे गया गया तथा वारसवालाउपाध्याय विज्ञानेकरुपीयानया साल जोडात थारूपये का यानवगेरे जग लगदीना उपाध्याय जी श्री साहेब जलपुर मुख सागादिरूपी या दूसरो कुममान प्रत्येक प्रत्येक दी जातथा गळके तीयांको सत का यानी तरे कीनो श्री सिर कार की पंधरावी की नी घोड़ा सिरपाववरीरे मोका लो तिजरा ऐकी नोम सदीव गेरेग वागवा सर्वने सिर पावदी नासिवका ने जिदीव रूपी या चा रती सन नदिन की तक जिसने सोनेकार्थ नवगेरे सरपावदना श्रजिनल इस रिसावायां श्रमाची गणितत शिष्यांपास रुपचनश्रीनेशन में रूपादे सीनायं सस्तीरचिता कारगर सिजावट बी राम के दासुश्री मंदिरजीव शिजा जी के परिवारनो मोलेकी ती यां काकडी मंदीप नवगैरे मारण्वदीना श्रीमंदिर के मुलगे नारे या तपासे दिषेनी तरफ परतापचंदजी कोणी मुरती उ तरतरी की तारजा यांदीप मी मुरती बेनिनमंदिर के सामने उगल की तरफ पन्तममुबी चौतरी करा पजिए उपरपर नाप चंद जी की री तथा परनापचंदजी की नारजायां सपरिवारसी की मुरीयां स्थापितकीनी ४५ मिनी निगसरसुंदर वाद सगजेमी बाफ का कविनदाद को नासि जन चंदना समजाप जिव चंद ॥ कर्मरोग सभी मीलधारसमिती जयजय समग्रह दिन सत्गुरुसी । एहिजादपुर मागले ज्योतिजमानादिगुणांक रोप त्या जगन्निदम्मान श्राव एन्जयो समर सनि रमलजी नरथोनीमाथि निजची परीने बानि नषसहजसमाना नियोजान देक वीनसंग सज्जनतासांना ५॥ श्री श्री श्री॥ ॥ श्री Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) सं० १६९३ मार्गशीर्ष सु (३) थाहरूकेण श्री आ (५) घुभार्या सुहागदेवी (७) ष्ठि श्रीजिनराजि (१) सं० १६९३ मार्गशीर्ष (३) थाहरूकेण श्रीसंभ(५) मेघराज पौत्र भोज(७) र्थमकारि । प्र० श्री (१४२३) स्तंभ पर (१) संवत् १६९३ मार्गशीर्ष सुदि (३) रूकेण श्रीअजितदेव गृ(५) र्थमकारि प्र० श्रीजिन (१) सं० १६९३ मार्गशीर्ष (३) वी थाहरूकेण श्रीपा(५) द्ध भार्या कनकादेवी (७) श्रीजिनंराजसूरि (२) दि ८ भणसाली संघवी (४) दिनाथ देवगृह स्वल(६) पुण्यार्थमकारि प्रति ( १४२४) स्तंभ पर (२) ८ भणशाली संघवी थाह(४) ह पुत्रररत्न हरराज पुण्या(६) राजसूरिभिः ॥ (१४२५) स्तंभ- पर (२) दि ८ भणसाली सं० (४) वनाथदेवगृहं पुत्र (६) राज सुखमल्ल पुण्या(८) जिनराजै: (१४२६ ) स्तंभ पर सु (२) दि ८ भणसाली संघ(४) र्श्वनाथ देवगृहस्य वृ(६) पुण्यार्थमकारि प्र० (c) ft:11 (१४२७) पादुका (१) सं० १६९३ मार्गशीर्ष सुदि ८ सं० थाहरूक यु(२) तेन भगिनी सजना स्वमातृ चापलदे भरां(३) वी पादुकाः ॥ प्र० श्रीजिनराजसूरि ( १४२८ ) शिलालेख: संवत् १६९३ वर्षे मग (मार्ग० ) सुद (दि) १० ष (ख) रतरगच्छे पं० गुणनंदन गणिभिः पं० सीरराजमुनि पं० गिरराजमुनि पं० हीराणं (नं ) दप्रमुखसाधुसहितैर्यात्रा कृता संतपानधाकारि (?) ॥ १४२३. पार्श्वनाथ मंदिर, लोद्रवा मन्दिर नं० १, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५६७ १४२४. पार्श्वनाथ मंदिर, लोद्रवा मंदिर नं० २, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५६९ १४२५. संभवनाथ जिनालय, लोद्रवा, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५७१ १४२६. पार्श्वनाथ मंदिर नं० ४ लोद्रवा, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५७३ १४२७. पार्श्वनाथ जिनालय, लोद्रवा, जैसलमेर पू० जै० भाग ३, लेखांक २५६२ १४२८. जैनमंदिर, मेवानगर : जैनतीर्थ सर्वसंग्रह, भाग १ खंड २ पृ० १८३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२५७) Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४२९) हर्षविशालगणि-पादुका __ सं० १६९४ वैशाख सुदि ३ दिने शुभवारे वा० श्रीहर्षविशालगणि-पादुके प्रतिष्ठितं सवाईभट्टारक युग० श्रीजिनरंगसूरिवचनैः महामहोपाध्याय श्रीज्ञानसमुद्रगणिशिष्यवा० ज्ञानराजगणिभिः॥ (१४३०) सुविधिनाथः सं० १६९४ फागुण वदि७ सोमे। चोपड़ागोत्रीय मंत्रि खीमराज पुत्र नेढा (मेहा?) भार्या जीवादेव्या पुत्ररत्न नरहरदास युतया श्रीसुविधिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं युगप्रधान श्रीजिनराजसूरिभिः (१४३१) पुंडरीक-मूर्तिः ॥ सं० १६९४ वर्षे फागुण वदि ७ दिने राखेचागोत्रीय सा० करमचंद भार्या सजनादेव्या श्रीपुण्डरीकबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिराजैः (१४३२) सुपार्श्वनाथ: ___ सं० १६९५ वर्षे मार्गशिर वदि ४ गुरुवारे खरतरगच्छे विक्रमपुरे श्रा.......छा श्रीसुपार्श्वनाथ कायोत्सर्ग सू० प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता (१४३३) महावीर-पादुका स्वस्ति श्रीजयमंगलाभ्युदयश्च ॥ श्री गौतमस्वामिनो लब्धिः। संवत् १६९७ वैशाख सुदि ५ सोमवासरे॥ श्री विहारनगरवास्तव्य श्रीऋषभजिनेश्वर-प्रथमपुत्र श्रीभरतचक्रवर्ति राजानमुख्य मंत्रिदलसंतानीय महतीयाणज्ञाती मुख्य चोपड़ागोत्रीय संघनायक मं० संग्राम । राहदिआगोत्रीय संघ० परमाणन्द प्रमख श्री बहतखरतरगच्छीय नरमणिमण्डितभालस्थल श्रीजिनचन्द्रसूरिप्रतिबोधित महतीयाण-श्रीसंघ-कारित श्रीवीरजिननिर्वाणभूमि श्रीपावापुरी समीपवर्त्ति वरविमानानुकार-श्रीवीरजिनप्रासादभूमौ धाम प्रतिष्ठितं श्रीमहावीर-वर्द्धमानश्रीजिनराजपादुके महतियाणश्रीसंघेन कारिते। प्रतिष्ठिते च श्री बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर श्रीशत्रुजयाष्टमोद्धारप्रतिष्ठाकार युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टोदयगिरिदिनकर युगप्रधान श्रीजिनराजसूरिभिः॥ श्रीर्भवतु। श्रीकमललाभोपाध्यायाः पं० लब्धिकीर्ति राजहंसादि शिष्यसहिताः प्रणमंति। (१४३४) नमिनाथ-एकतीर्थीः सं० १६९७ श्री नमिनाथ क० प्र० खरतरग० श्रीजिनसिंह सू.......... (१४३५) शिलालेखः (१) ॥एं।स्वस्ति श्रीसंवति १६९८ वैशाख सुदि ५ सोमवासरे। पातिसाह श्री साहिजांह सकलनूर १४२९. नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, भोयरापाडो, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं० भाग २, लेखांक ८८१ १४३०. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी० लेखांक १४१७ १४३१. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी० लेखांक १४१५ १४३२. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी० लेखांक १४२० १४३३. जलमंदिर, पावापुरी : पू० जै०, भाग १ लेखांक १९० १४३४. गोलछों का मंदिर, सरदारशहर : ना० बी०, लेखांक २३९६ १४३५. जल मन्दिर, पावापुरी: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६९६ (२५८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) मंडलाधीश्वर विजयिराजे॥ श्रीचतुर्विंशतितमजिनाधिराज श्रीवीरवर्द्धमानस्वामी (३) निर्वाण कल्याणिक पवित्रित पावापुरी परिसरे श्रीवीरजिनचैत्यनिवेशः। श्री(४) ऋषभजिनराज-प्रथमपुत्र चक्रवर्ती श्रीभरतमहाराज सकलमंत्रिमंडलश्रेष्ठ मंत्रिश्रीदलसन्तानीय म० हतिआणज्ञातिशृङ्गार चोपडागोत्रीय संघनायक संघवी तुलसीदास भार्या निहालो पुत्र सं० संग्राम। लघुभ्रातृ गोवर्द्धन तेजपाल भोजराज। रोहदीय गोत्रीय मं० परमाणंद सपरिवार महधा गोत्रीय विशेष धर्म। कर्मोद्यम विधायक ठ० दुलीचंद काद्रड़ा गोत्रीय मं० मदनस्वामीदास मनोहर कुशला सुंदरदास रोहदिया। मथुरादास नारायणदासः गिरिधर सन्तादास प्रसादी। वार्त्तिदिया गो० गूजरमल्ल बूदड़मल्ल मोहनदास। माणिकचन्द बूदमल्ल जेठमल्ल ठ० जगन नूरीचन्द । नान्हरा गो० ठ० कल्याणमल्ल मलूकचन्द सभा(१०) चन्द। संघेला गोत्रीय ठ० सिंभू कीर्तिपाल बाबूराय केसवराय सूरतिसिंघ। कारड़ा गो० दयाल(११) दास भोवालदास कृपालदास मोर मुरारीदास किलू । काणा गोत्रीय ठ० राजपाल रामचन्द।। (१२) महधा गो० कीर्तिसिंघ रो० छबीचन्द। जाजीयाण गो० मं० नथमल्ल नंदलाल नान्हड़ा गोत्रीय। (१३) ठ० सुन्दरदास नागरमल्ल कमलदास ॥रो० सुन्दर सूरति मूरति सबल कृती प्रताप पाहड़िया। (१४) गो० हेमराज भूपति। काणा गो० मोहन सुखमल्ल ठ० गढ़मल्ल जा० हरदास पुरसोत्तम। मीणवा(१५) ण गो० बिहारीदास बिंदु। मह० मेदनी भगवान गरीबदास साहरेणपुरीय जीवण बजागरा .. गो०। (१६) मलूकचन्द जूझ गो० सचल बन्दी संती। चो० गो० नरसिंघ हीरा धरमू उत्तम वर्द्धमान प्रमुख श्री। (१७) बिहार वास्तव्य महतीयाण श्रीसंघेन कारितः तत् प्रतिष्ठा च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर . युगप्रधान श्री। (१८) जिनसिंहसूरि पट्टप्रभाकर युगप्रधान श्रीजिनराजसूरि विजयमान गुरुराजानामादेशेन कृतं । . (१९) पूर्वदेशविहारे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि शिष्य श्रीसमयराजोपाध्याय शिष्य वा० अभयसुन्दर ग(२०) णिविनेय श्रीकमललाभोपाध्यायैः शिष्य पं० लब्धकीर्त्ति गणि पं० राजहंस गणि देवविजय ग (२१) णि थिरकुमार चरणकुमार मेघकुमार जीवराज सांकर जसवन्त महाजलादि शिष्यसन्ततिः . सपरिवायौँ। श्रीः। (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) २५९) For Personal & Private Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४३६) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ' सं० १६९९ व० वै० सु० ९ दि० सर..... श्रीशान्तिनाथबिं० का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसिंहसूरिभिः ।। (१४३७) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः संव १६९९ वर्षे माह सुद ६ दिने रविवारे माल्हा देदू तत्पुत्र लालचंद गुलालचंद नारायणचंद अबीरचंद उत्तमचंद प्रमुख भ्रातृभिः श्री(ध)मनाथबिंब का० प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर युगप्रधान श्रीजिनराजसूरिभिः शि० उ० श्रीरत्नसोमाभिधानैः (१४३८) युगप्रधान-जिनदत्तसूरि-पादुका संवत् १६............................शुदि ६ तिथौ................. ...युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरिजी............ (१४३९) पादुका ................महामंगलप्रदे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे द्वितीया तिथौ सोमवारे श्रीमृत्बृहत् श्रीखरतरगच्छे वा० श्रीकनकचंद्र................... (१४४० ) शिलापट्ट-प्रशस्तिः ॥ संवत् १६..........४ वर्षे भाद्रवा सुदि १२ सोमे राउल श्रीमेघराज विजै राज्ये श्रीखरतरगच्छे जिनचन्द्रसूरिविजैराज्ये सूत्रधार जोधा सूत्रधार सामल सुरताण उदा सोजिग गोदा रूपा ईसर श्रीथीपा। उजल (१४४१) वासुपूज्य-अष्टदलकमलम् ओसवालज्ञातीय छाजडगोत्रीय पा० रूपापुत्र तेजा हरदास। पांचा। तेजसी भार्या पद्दीपुत्र ऊदाकेन श्रेयोर्थं । श्रीवासुपूज्यबिंबं अष्टदकमलं संपुटसहितं कारितं प्रतिष्ठितं व(बृहत् व (ख)रतरगच्छठी(राधि)राज श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार। श्रीपातिसाहिप्रतिबोधकतत्प्रदत्तयुगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिभिः पूज्यमानं चिरं नंदतु ॥ (१४४२ ) सुपार्श्वनाथ: श्रीसुपार्श्वनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। १४३६. बड़ा मंदिर, नागोरः प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११९६ १४३७. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में,बीकानेर: ना० बी०,लेखांक १८२२ १४३८. दादाबाड़ी, किशनगढ़ः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २६६ १४३९. गुरु पादुका एवं मथेरणों की छतरी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९७१ १४४०. शान्तिनाथ जी का मंदिर, नाकोडाः बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ४७० १४४१. सुमतिनाथ मंदिर, पिंडदादनखान: जै० ती० स० सं०, भाग २, पृ० ३६५ १४४२. अजितनाथ जी का मंदिर, नगर-बाड़मेर: बा० प्रा० ०शि०, लेखांक ९२ २६०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४३) एकतीर्थीः श्री............नाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (१४४४) कपर्दियक्ष-प्रतिमा श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्टप्रभाकर युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये कपर्दियक्ष प्रतिमा कारापिता मं० सारंग पं० धर्मसिंधुरगणि........................सुमतिकल्लोल गणि प्रणमति २॥ __ (१४४५) श्रावक रतनसी प्रतिमा श्रा० श्रीरतनसी प्रतिरूप कारितं प्रतिष्ठितं खरतरभट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्री (१४४६) श्राविका रंगादे प्रतिमा श्रीरंगादे प्रतिरूपकारितं प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिभिरिति श्री (१४४७) पादुका-लेखः श्रीजिनकुशलसूरिणां पादुका कारापितां प्रतिष्ठितं श्रीश्रीजिनसिंहसूरिभिः कल्याणमस्तु। __ (१४४८) सुमतिसागर-पादुका श्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्य महोपाध्याय पुण्यप्रधान जी शिष्य उपा० श्रीसुमतिसागरजी पादुके प्र० श्रीजिनसिंहसूरिभिः। (१४४९) पार्श्वनाथः श्रीपार्श्वनाथजी संगमरमर प्रतिमा श्रीभ० श्रीजिनराजसूरि गुणचन्द्रः शान्ति। (१४५०) उपा० साधुकीर्ति-पादुका श्रीसाधुकीर्ति उपाध्याय प्रवराणां पादुका प्रतिष्ठिते श्रीजिनराजसूरिभिः। १४४३. गोलछों का मंदिर, सरदारशहर: ना० बी०, लेखांक २३९७ १४४४. खरतरवसही, शत्रुजय, भंवर० (अप्रका०), लेखांक ९६; शत्रुजय गिरिना केटलाक अप्रकट प्रतिमालेखो, मधुसूदन ढांकी एंव लक्ष्मण भोजक, सम्बोधि Vo17 No. 4; देरी क्रमांक ४३९-शत्रुजयः श० गि० द०, लेखांक ११० १४४५. हाजा पटेल पोल का मंदिर, अहमदाबाद: भंवर (अप्रका०), लेखांक १ १४४६. हाजा पटेल पोल का मंदिर, अहमदाबाद: भंवर (अप्रका०), लेखांक २ १४४७. अजितनाथ जी का मंदिर, नगर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ८८ १४४८. छीपावसही, शत्रुजयः भंवर० (अप्रका०), लेखांक ४९ १४४९. शान्तिनाथ जी का मंदिर, पचपदरा, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १०२ १४५०. छीपांवसही, शत्रुजयः भंवर० (अप्रका०), लेखांक १३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (२६१) For Personal & Private Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संवत् १७०१ वर्षे माघ सित पंचम्यां. 1 सूरिपादुका....... (१४५१ ) जिनोदयसूरि- पादुका (१४५२ ) महो० समयसुन्दर - पादुका संवत् १७०५ वर्षे पौष वदि ३ गुरुवारे श्रीसमयसुन्दरमहोपाध्यायानां पादुका प्रतिष्ठिते वादि श्रीहर्षनंदन गणिभिः । ( १४५३ ) महो० समयसुन्दर - पादुका संवत् १७०५ वर्षे फाल्गुण सुदि ४ सोमे श्रीसमयसुन्दरमहोपाध्याय पादुके कारिते श्रीसंघेन प्रतिष्ठिते हर्षनंदनहीँनमः भट्टारक जिनोदय ( १४५४ ) शिलालेख: संवत् १७०७ शाके १५७२ प्रवर्त्तमाने आश्विन शुक्ल पक्षे त्रयोदश्यां शुक्रवासरे । श्रीबिहारवास्तव्येन महतीयाण ज्ञातीय चोपड़ागोत्रेण म० तुलसीदास तत्भार्या संघवण निहालो तत्तनयेन मं० संग्रामेण यवीसात्पुत्र गोवर्द्धनेन सह श्रीराजगृहविपुलगिरौ . ..अमै जीर्णा उद्धरिता संघवी संग्रामेण प्र० कल्याणकीर्त्त्यपदेशात् श्रीखरतरगच्छे लिषतं रतनसी खंडेलवालगोत्रे पाटनी गुमानासिं हीरासिंग ग्राम मुकाम राजग्रिही । (१४५५) सुमतिनाथ - मूलनायक : संवत् १७०८ वर्षे वैशाख सुदि ७ गुरौ । श्रीउसवाल भणशालीगोत्रे.. .. पुत्र भणशाली मगनभार्या लाली पुत्र भ० बंधू भा० कपूरा भ० रूपचन्द्रादि. ..भा० हवा कुटुम्बपरिवारयुतेन श्रीसुमतिनाथबिंबं कारापितं ॥ प्रतिष्ठितं श्रीजिनरत्नसूरिभिः ॥ - ( १४५६ ) जिनकुशलसूरि- पादुका ॥ सं० १७०८ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने गुरुवारे श्रीजिनकुशलसूरीश्वर पादुकेयं प्रतिष्ठितं उपाध्याय श्रीललितकीर्त्ति कारितं श्रीमहाजनसंघेन । १४५१. गुरांसा जुहारमल जी का उपासरा, जोधपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २६९ १४५२. समयसुन्दर जी का उपाश्रय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८७४ (१४५७) रूपाजी - पादुका संवत् १७०९ वर्षे मिति दु० वैशाख वदी ५ सोमवासरे पं० श्री श्री श्रीहेमकलश तत्शिष्य पं० श्री श्री श्रीरूपाजी देवलोक प्राप्ताः ॥ १४५३. चौमुखस्तूप, नाल, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक २२८८ १४५४. जैनमंदिर, विपुलगिरि : पू० जै०, भाग १, लेखांक २४५ १४५५. सुमतिनाथ जिनालय, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २९१ १४५६. चन्द्रप्रभ जिनालय, महाजन : ना० बी०, लेखांक २५१७ १४५७. गौडीपार्श्वनाथ जिनालय के अन्तर्गत सम्मेतशिखर मंदिर, गोगादरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९६९ २६२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४५८) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ स्वस्ति श्रीः॥ संवत् १७०९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि तृतीया दिने पुष्यार्के श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनरत्नसूरिविजयराज्ये भट्टारक युगप्रधान श्रीजिनकुशलसूरि पादुके उसवालज्ञातीय बाफणागोत्रीय साह हेमराज साह खेमा साह पदमसी सपरिकरैः प्रतिष्ठिते उ० सुमतिसिन्धुरगणि। श्रीरस्तु॥ (१४५९) कमल"पादुका संवत् १७११ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ तिथौ गुरुवासरे भ० श्रीजिनराजसूरिशिष्य वा० मानविजय शिष्य वा० कमल........गणिनां पादुके। (१४६०) सुविधिनाथ: स्वस्ति श्री ॥ संवत् १७१२ वर्षे फाल्गुण वदि ८ गुरौ लोढागोत्रे सं० वीरधवल भार्यया पूनमदेवी नाम्न्या श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च..................श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ श्रीरस्तु॥ (१४६१) विनयमेरु-पादुका सं० १७१३ वर्षे मिति माह सुदि १ दिने उपाध्याय श्रीविनयमेरूणां पादुके। (१४६२) जिनराजसूरि-पादुका संवत् १७१३ वर्षे माह सुदि ३ तिथौ भट्टारक श्रीजिनसिंहसूरिपट्टे श्रीयुगप्रधान श्रीजिनराजसूरिपादुके भट्टारकयुगप्रधान श्रीजिनरंगसूरिप्रतिष्ठिते संघवी बांठीया.......................तद्भार्या वीरमदे कारिते संघकल्याणाय॥ (१४६३) पार्श्वनाथः संवत् १७१४ वैशाख सुदि पंचम्यां महाराजाधिराज महाराजा श्रीजसवंतसिंहजी विजयिराज्ये भं० ताराचंद भार्यया कल्याणदेव्या श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं। श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीआद्यपक्षीय भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ शुभं भूयात् । ____ (१४६४) पार्श्वनाथः संवत् १७१४ वर्षे वैशाख सुदि पंचम्यां बुधे महाराजाधिराज महाराजा श्रीजसवंतसिंहजी विजयिराज्ये भं० ताराचंद द्वितीय भार्यया संतोषदेव्या श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीआद्यपक्षीय भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ शुभं भूयात् । १४५८. दादाबाड़ी, टोडारायसिंह : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २९३ १४५९. आदिनाथ जिनालय, लूणकरणसर : ना० बी०, लेखांक २५०८ १४६०. उपकेशगच्छीय शांतिनाथ मंदिर, मेड़तासीटी : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक २९७ १४६१. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४६८ १४६२. नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, भोयरापाडो, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ८८० १४६३. पार्श्वनाथ मंदिर, मंडोर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३०० १४६४. पार्श्वनाथ जिनालय, मंडोर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३०१ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः २६३) For Personal & Private Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४६५ ) वासुपूज्यः संवत् १७१४ वर्षे माहमासे कृष्णपक्षे चतुर्थी तिथौ बुधवारे महाराजा श्रीजसवंतसिंहजी कुमर श्री पृथ्वीसिंहजी विजयराज्ये उपकेशज्ञातीय सरहसुखागोत्रीय साह कम्माभार्या कर्मादे पुत्र वीराभार्या विमलादे पुत्ररत्न मनोहरभार्या प्रेमादे भातृ आसाभार्या अजाइबदे युताभ्यां श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छेश श्रीश्रीश्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (१४६६ ) जिनकुशलसूरि- पादुका संवत् १७१५ वर्षे आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदि तिथौ शुक्रवारे चोपड़ागोत्रे को० धर्मसीकेन सु० गुणराज तेन श्री जिनकुशलसूरिपादुके कारिते प्रतिष्ठिते श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुखसूरिभिः ॥ ( १४६७ ) जयरत्नगणि-पादुका संवत् १७१९ वर्षे वैशाख वदि १० बुधे वा० श्रीजयरत्नगणि चरणपादुका प्रतिष्ठिता । (१४६८ ) साधुरंगगणि-पादुका संवत् १७२१ वर्षे मिगसर सुदि.... तिथौ श्रीखरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि शिष्य उ । श्रीपुण्यप्रधानगणि... .. श्रीसुमतिसागरजी शिष्य वा० साधुरंगगणिपादुके प्र० श्रीराजसारेण । (१४६९ ) पार्श्वनाथ: सं० १७२२ वर्षे महा वदि ८ सोमे महाराजाधिराज श्रीजसवंतसिंहजी कुंवर पृथ्वीसिंह मेघराज विजयराज्ये ओसवालज्ञातीय भंडारी भानाजी पुत्र नारायण तत्पुत्र भं० ताराचंदेन पुत्रपौत्रादियुतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे ॥ श्रीजिनदेवसूरि श्रीजिनसंघसूरि श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरि आ० श्रीलक्ष्मीकुशल... ( १४७० ) पद्मप्रभः संवत् १७२३ वर्षे माह वदि ८ सोमे भं० ताराचंदेन पद्मप्रभनाथबिंबं कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीउपाध्याय श्रीकीर्तिवर्धनगणिभिः खरतरगच्छ आद्यपक्षीयः ॥ ( १४७१ ) चन्द्रप्रभः संवत् १७२३ वर्षे माघ वदि ८ सोमवारे भंडारी पीथा पुत्र भं० भारिमलेन सगतिसिंह मेघराज पुत्रसहितेन श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे. .. उपाध्याय श्रीकीर्त्तिवर्द्धनगणिभिः ॥ १४६५. पार्श्वनाथ जिनालय, मंडोर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३०३ १४६६. दादाबाड़ी, भैरों बाग, जोधपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३०४ १४६७. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नौहर : ना० बी०, लेखांक २५०९ १४६८. छीपावसही, शत्रुंजय : भँवर (अप्रका०), लेखांक ४६ १४६९. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मंडोर : जैनतीर्थ संर्वसग्रह, भाग १, खंड २, पृ० १६३ १४७०. पार्श्वनाथ मंदिर, मंडोर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३०७ १४७१. पार्श्वनाथ मंदिर, मंडोर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३११ (२६४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७२) धर्मनाथः संवत् १७२३ वर्षे माह वदि ८ दिने सोमवारे डागा जित पुत्र वच्छाकेन धर्मनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे........उपाध्याय श्रीकीर्तिवर्द्धनगणिभिः॥ (१४७३) पार्श्वनाथः संवत् १७२३ वर्षे माह वदि ८ सोमवारे महाराजाधिराज श्रीजसवंतसिंहजी कुमर पृथ्वीसिंह मेघराज विजयराज्ये ओसवालज्ञातीय भंडारी भानाजी पुत्र नारायण तत्पुत्र भं० ताराचन्देन पुत्रपौत्रादियुतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे आद्यपक्षे श्रीजिनदेवसूरि श्रीजिनसिंहसूरि श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः आ० लब्धिकुशलसूरीणामुपदेशात् कीर्तिवर्धनोपाध्यायैः॥ (१४७४) पार्श्वनाथ-मूलनायकः सं० १७२३ वर्षे भं० ताराचंद पार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्षसूरिभिः खरतरगच्छे आद्यपक्षीय॥ (१४७५) पार्श्वनाथ-पादुका संवत् १७२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ७ रवौ खरतरगच्छीय महोपाध्याय रामविनयगणिना प्र० पार्श्वबिंबं। ___ (१४७६ ) पुष्पमाला-प्रेममाला-पादुकायुग्म संवत् १७३० वर्षे माह वदि ५ शुक्रवारे शुभयोगे श्रीखरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनधर्मसूरि राज्ये साध्वी विनयमाला शिष्यणी सव छा॥ १३॥ लनी पुष्पमाला प्रेममाला पादुके कारापिते। ' ॥ पुष्पमाला पादुके १॥ ॥ साध्वी प्रेममाला पादुके २॥ (१४७७ ) जिनचन्द्रसूरि-पादुका संवत् १७३१ वर्षे चैत्र वदि २ शुक्रे श्रीमजिनचन्द्रसूरिनां पादुके श्रीउदयनिधानगणि कारिते च पं० पुण्यहर्षेन नदिनयरतेन (?)॥ (१४७८) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १७३२ वर्षे चैत्र वदि द्वितीयायां श्रीजिनकुशलसूरिणा पादुके प्रतिष्ठितं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (१४७९) जिनचंद्रसूरि-पादुका संवत् १७३२ वर्षे चैत्र वदि द्वितीयायां सोमे श्रीमज्जिन श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं पादुके वा० श्रीपुण्यनिधानगणि कारिते च पं० पुण्यहर्षेण। १४७२. पार्श्वनाथ मंदिर, मंडोवर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३१० १४७३. पार्श्वनाथ मंदिर, मंडोवर : प्र० ले० सं० भाग २, लेखांक ३०९ १४७४. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगादरवाजा, बीकानेर ना० बी०, लेखांक १९१९ १४७५. लाभचंद सेठ का घर देरासर, पुलिस हास्पिटल रोड, कलकत्ता : पू० जै० भाग २, लेखांक १००६ १४७६. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ५४ १४७७. भावहर्षगच्छीय उपासरा, बालोतरा : बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २११ १४७८. भावहर्षगच्छीय उपासरा, बालोतरा : बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २१२ १४७९. खरतरगच्छीय दादाबाड़ी के पीछे, बालोतरा : बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २१९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) २६५) For Personal & Private Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४८०) विमलोदय-पादुका संवत् १७३२ वर्षे चैत्र वदि २ दिने चन्द्रेश श्रीअनंतहंसगणिना शिष्य पंन्यास श्रीविमलोदयानां पादुके प्रतिष्ठिते श्रीपं०जिनचन्द्रसूरिभिः (१४८१) कल्याणविजय-पादुका सं० १७३२ वर्षे श्रीकल्याणविजय उपाध्याय पादुकेन (१४८२ ) जिनदत्तसूरि-पादुका संवत् १७३५.........मिगसर सुदि.... तिथौ बुधवारे श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुके...........कारापितं श्रीविक्रमपुर वास्तव्य समस्त श्रीखरतरसंघेन॥ (१४८३) दादापादुका-युग्म संवत् १७३७ वर्षे चैत्र वदि १ श्रीजिनदत्तसूरि पादुके श्रीजिनकुशलसूरि पादुके। (१४८४) चन्दनमाला-पादुका संवत् १७४० वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे ५ तिथौ भृगुवासरे पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रे पंचाग शुद्धौ... ..................त् शिष्यणी साध्वी चन्दनमाला पादुके कारिते सा० सौभाग्यमाला ' (१४८५) विनयविशाल-पादुका संवत् १७४९ वर्षे युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिसंताने श्रीसमयसुंदरोपाध्याय शिष्य वा० महिमासमुद्र तत्शिष्य पंडित विद्याविजय गणि तत् शिष्य वाचनाचारिज श्रीविनयविशालगणि पादुके ॥ शुभं भवतुः॥ (१४८६) विजयहर्षगणि-पादुका , सं० १७५४ वर्षे आषाढ़मासे कृष्णपक्षे दशमी तिथौ शुक्रवारे वाचकश्रीविजयहर्षगणिनां पादुके स्थापिते श्री (१४८७) हेमहर्ष-पादुका ॥ संवत् १७५५ वर्ष आषाढ़ वदि ५ दिने शनिवासरे श्रीखरतरगच्छे श्रीसागरचन्द्रसूरिसंताने वा० श्रीहेमहर्षगणि तत्शिष्य पंडित प्रवर अभयमाणिक्यगणिभिः कारापितं । १४८०. भावहर्षगच्छीय उपासरा, बालोतरा : बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २१० १४८१. रेलदादाजी बाहर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २११२ १४८२. दादाजी का मंदिर, उदरामसर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२०० १४८३. शांतिनाथ जिनालय, नापासर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २३३१ १४८४. चिंतामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ५२ १४८५. चिंतामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ५५ १४८६. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४७० १४८७. शांतिनाथ जी का मंदिर, चुरू : ना० बी०,लेखांक २४१४ (२६६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४८८) उदयतिलक-पादुका सं० १७५६ वर्षे श्रावण वदि ५ दिने शुक्रवारे बृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनचंद्रसूरिजी शिष्य उपाध्याय श्रीउदयतिलकजी गणिनां देवंगत पहुंता पालीमध्ये। (१४८९) पञ्चतीर्थीः संवत् १७५८ वर्षे आषाढ़ सुदि १३ । रविवार शुभदिने श्रीबृहत्खरतरगच्छ भट्टारक श्रीजिनराजसूरि। गणे शिष्य...........। (१४९० ) सामीदास मथेण की छतरी सं० १७६० मिति आषाढ़ सुदि ९ दिने मथेण सामीदास ऊसवाला जीवतछतरी करावतं श्रीबीकानेर मध्ये॥ श्री ॥१॥ कर्त्तव्यं सूत्रधार रामचंद्र ॥ १॥ महाराजा श्रीसुजाणसिंघजी विजयराज्ये श्रीशुभंभवतुः॥ (१४९१) मथेण सामीदासभार्या की छतरी श्रीरामजी। सं० १७५५ मिती वैशाख सुदि ३ मथेण सामीदास ऊसवाला गृहे भार्या देवलोक प्राप्त हुई तेरी छतरी सं० १७६० मिती आषाढ़ सुदि ९ कराई खरतरगच्छे मथेण भारमलरी बेटी नवमीमी देवलोक गतं श्रीबीकानेर मध्ये ॥ १॥ कर्त्तव्यं सूत्रधार रामचंद्र ॥ १॥ महाराज सुजाणसिंह विजयराज्ये। (१४९२) अजितनाथः संवत् १७६१ वर्षे माघ सुदि ५ गुरु श्रीमालज्ञातीय गुलाबचंद्र पुत्र धनदेव सहित श्रीअजितनाथबिंब प्र० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। (१४९३) पादुका सं० १७६२ वर्षे श्रावण वदि...................दिने वाणारसजी कीर्तिसुन्दरगणि तत्शिष्य पं० सामजी पादुका कारापिता (१४९४) हेमधर्म-पादुका संवत् १७६२ वर्षे मगसिर सुदि पांचिम दिने वा० गजसारगणि तच्छिष्य पं०हेमधर्मगणि पादुके प्रतिष्ठिते श्रेयोभवतु । कल्याणश्री॥ (१४९५) सं० १७६२ मगसिर सुदि १० दिने बृहत्खरतरगच्छे क्षेमशाखायां सत्यरत्नजी शि० कानजी। १४८८. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४६९ १४८९. जैनमंदिर, ओसियां: पू० जै०, भाग १, लेखांक ८०२ १४९०. गौड़ी पार्श्वनाथ मंदिर के अन्तर्गत सम्मेतशिखर मंदिर, गोगा दरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९७३ १४९१. मथेरणों की छतरी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९७४ १४९२. चन्द्रप्रभ जिनालय, कोटा : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३२२ १४९३. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०५४ १४९४. शीतलनाथ जी का मंदिर, रिणी, तारानगर : ना० बी०, लेखांक २४६२ १४९५. सुपार्श्वनाथ जिनालय, राजगढ़-शार्दुलपुर : ना० बी०, लेखांक २४३३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) २६७) For Personal & Private Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४९६ ) स्तूपलेखः (१) ॥ ॐ ॥ श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ संवत् १७६४ चैत्रतः अषाडात् ६५ वर्षे मार्गसिरमासे धवलपक्षे (२) राउल श्रीकल्याणजी विजयराज्ये श्रीमत् श्रीछाजहड़गोत्रे । काजलपुत्र धरण । पुत्र कुलध (३) र । पुत्र अजित । पु० माधव पु०. (४) (4) (६) (61) (१४९७) पार्श्वनाथ: संवत् १७६६ वर्षे मिति वैशाख सुदि ७ दिने संघवी मुण भंडारीजी श्रीतारामलजी तत्पुत्रं भं० रूपचंदजी श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारापितं भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ( १४९८ ) हर्षनिधानगणि-पादुका सं० १७६७ वर्षे आषाढ़ सुंदि ८ दिने उपा० श्रीहर्षनिधानजिद्गणिवराणां पादुके स्थापिते वा० हर्षसागरेण । ( १४९९ ) महो० पुण्यप्रधानगणि-पादुका ॥ ॐ ॥ श्रीसुमतिजिद्गणिनां पादुके संवत् १७६७ आषाढ़ सुदि ९ तिथौ । महोपाध्याय श्रीपुण्यप्रधानगणि सद्गुरूणां पादुका कारापिताम् सुमतिविमलेन ॥ ( १५०० ) शिलालेखः I संवत् १७६७ आषाढमासे शुक्लपक्षे । ९ तिथौ शनिवारे ॥ महाराजाधिराज महाराज श्री १०८ श्रीअजीतसिंघजी विजयराज्ये । श्रीहमीरपुर मध्ये । श्रीबृहत्खरतरगच्छे। पातीशाह श्री अकबर प्रदत्त युगप्रधान पदधारक भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि शिष्य महोपाध्याय श्रीपुण्यप्रधान गणि शिष्य उपाध्याय श्रीसुमतिसागरगणि शिष्य वाचनाचार्य श्री साधुरंगगणि शिष्य उपाध्याय श्रीविनोदप्रमोदगणि शिष्य सर्वविद्याविशारद वाचनाचार्य श्री १०८ श्रीविनयलाभगणि सद्गुरूणाम् छत्री कारापितं शिष्य पं० सुमतिविमलेन । श्रीसंघेन सानिध्यता कृता उस्ता महमद । मुसा । अहमदआदी सन्त ७ जनैः ॥ श्री विक्रमपुर वास्तव्य श्रीरस्तु ॥ १४९६. जिनचंद्रसूरि जी का स्थान, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५०६ १४९७. संभवनाथ जिनालय, जोधपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३२४ १४९८. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०८८ १४९९. नेमिनाथ जिनालय, राणीसर तालाब, फलौधी: संकलनकर्ता भँवर० १५०० नेमिनाथ जिनालय, राणीसर तालाब, फलौधी: संकलनकर्ता भँवर ० (२६८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५०१) विनयलाभगणि-पादुका संवत् १७६७ आषाढ़ सुदि ९ तिथौ शनिवारे वाचनाचार्य श्री १०८ श्री विनयलाभगणिसद्गुरूणाम् पादुका प्रतिष्ठितं ॥ आचंद्रा6 चिरंनंद्यात् ॥ शिष्य पं० सुमतिविमलेन (१५०२) पादुकालेखः संवत् १७६९ वर्षे शाके १६३४ प्रवर्त्तमाने आषाढ़ सुदि ९ दिने सोमवारे श्रीखरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनसुंदरसूरि विजयराज्ये एषां पादुका प्रतिष्ठिताः॥ श्री ॥ महाराजाधिराज श्रीअजीतसिंघजी विजयराज्ये श्रीसीवाणा गढ़ महादुर्गे पं० भट्टारक श्रीजिनसुंदरसूरीश्वराणां पादुका वा० श्रीसमीदासजीकेन पादुका पं० बेनीदासजीकेन पादुका पं० देवीदासजीकेन पादुका ॥ पवत्तणी श्रीजैमालाजी पादुका कारापिता सिलावट असरामेण कृत्वाः॥ ... (१५०३) शालालेखः (१)॥ श्रीसर्वज्ञाय नमः॥ (२) ॥ स्वस्ति श्रीर्जयोमंगलाभ्युदयश्च । श्रीमन्महाराजाधिराज महाराज। (३) श्रीविक्रमादित्यराज्यात् संवत् १७६९ वर्षे श्रीशालिवाहन कृ. (४) त राज्यात् शाके १६३४ प्रवर्त्तमाने महामांगल्यप्रदे मार्गसिरमासे (५) कृष्णपक्षे पंचम्यां पुण्यतिथौ शुक्रवारे पुनर्वसुनक्षत्रे शुभयोगे (६) महाराजाधिराज महाराज श्रीबुधसिंघजी विजयराज्ये भट्टारक (७) श्रीजिनसुखसूरिविजयमानेषु श्रीजैसलमेरु महादुर्गे ॥ सा० (८) भणसालीगोत्रीया सा० हाथी तत्पुत्र हेमराज भ्रातृ जयरा(९) ज तत्पुत्र धारसी भ्रातृ देवजी तत्पुत्र गंगाराम सपरिवारेण .(१०)दादा श्रीजिनकुशलसूरि प्रासाद पार्श्वे प्रतिशाला कारिता (११)प्रतिष्ठिता च॥ वाणारस श्रीतत्त्वसंदरगणि उपदेशात ॥ श्रीः॥ (१२) ॥ शुभं भवतु श्रीरस्तु॥ सिलावटा थिराकेन कृता॥ (१५०४) कुशलकमलमुनि-पादुका सं० १७७१ मिति मिगसिर सुदि ६ पं० प्र० श्रीकुशलकमलमुनि पादुका १५०१. नेमिनाथ जिनालय, राणीसर तालाब, फलौधी: संकलनकर्ता भँवर० १५०२. बेगडगच्छ दादाबाडी, गढ़सीवाणा: भँवर० (अप्रका०) १५०३. दादाबाड़ी, जैसलमेरः पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५०१ १५०४. , रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०६९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (२६९) For Personal & Private Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' (१५०५) महावीरः ॥ सं० १७७२ वर्षे फाल्गुण सुदि ८ .............................श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं......................श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ (१५०६) राजसिद्धि-पादुका सं० १७७५ व० श्रीसाध्वी राजसिद्धि गणिनी पादुके कारिते श्च षण(?) श्राविकाभिः श्रादी क मर........... ............(?) (१५०७) सुखलाभ-पादुका सं० १७७६ वर्षे पौष वदि ६ दिने महोपाध्याय श्रीसुखलाभगणयो दिवं प्राप्तास्तेषां पादन्यास । खरतरे..................। (१५०८) पार्श्वनाथः सं० १७७७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि पूर्णिमा तिथौ गुरुवारे मूलनायक श्रीपार्श्वनाथ जिनपञ्चतीर्थीजिनैः प्रतिष्ठितं श्रीबहतपरमभट्टारक श्रीजिनसखसरीश्वराणां उपाध्याय श्रीक्षेत्रराम गणिभिः॥ श्रीरस्तु॥ कारितं चैतत् गणधर चौपड़ागोत्रे शाह श्रीलालचंदजी पुत्ररत्न श्रीकपूरचंदजीकेन स्वपुन्यविवृद्ध्यर्थं ॥ शुभं भवतु॥ श्रीआदिजिनबिंबं॥ नेमिनाथजिनबिंबं॥ श्रीशांतिजिनबिंबं॥ श्रीमहावीरस्वामीबिंबं॥ (१५०९) ठाकुरसीजी-पादुका ॥ संवत् १७७९ वर्षे मिति ज्येष्ठ सुदि ७ शुभे दिने महोपाध्याय श्रीकाशीदासजी शिष्य वा० श्रीठाकुरसीजी गणि उसये (?) पादुका कारिते। सिलावट खेतावत श्रीरस्तु॥ . (१५१०) पादुकालेखः सम्वत् १७८० वर्षे मिति माह वदि ३ वार गुरु दिने कारितमिदं पंडित मुनिभद्रगणिवरेण प्रतिष्ठितश्च विधिना उ० श्रीकर्पूरप्रिय गणिभिः................कास्माबाजार...............। (१५११) जिनसुखसूरि-पादुका संवत् १७८० वर्षे शाके १६४५ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे १० तिथौ शनिवारे भट्टारक श्रीजिनसुखसूरिजी देवलोकं गतः तेषां पादुके श्रीरेणी मध्ये भट्टारक श्रीजिनभक्तिसूरिभिः प्रतिष्ठितं शुभंभूयात्। माह सुदि६ तिथौ। १५०५. मेड़तासिटी उप० ग० शांतिनाथ मंदिर : प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक ११०६ । १५०६. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४७१ १५०७. शीतलनाथ जी का मंदिर, रिणी : ना० बी०, लेखांक २४६१ १५०८. पद्मप्रभ स्वामी का मंदिर, चुड़ीवाली गली, लखनऊ : पू० जै,भाग २, लेखांक १५५७ १५०९. दादाबाड़ी, मेड़ता सिटीः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३३२ १५१०. नमिनाथ जी का मंदिर, कासिमबाजार, अजीमगंज : पू० जै०, भाग १, लेखांक ८१ १५११. शीतलनाथ जिनालय, रिणी : ना० बी०, लेखांक २४५९ (२७०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५१२ ) पादुकायुग्म सं० १७८० मा वर्षे सिते १२ ॥ बृहत्खरतरगच्छे यु० भ० श्रीजिनरङ्गसूरिशाखायां० शि० चरणरेणुना दीपविजयाया: स्थापिते । श्रीकीर्त्तिविजयायां.. .. चरणसरसीरुहे प्रतिष्ठितं ॥ साध्वी ॥ श्रीसौभाग्यविजयाया । पादपद्म प्रतिष्ठितं । ( १५१३ ) शांतिनाथः श्री शांतिनाथजिनबिंबं कारितं प्र श्रीजिनसुखसूरिभिः ( १५१४) वेगड़गच्छ- उपाश्रयलेखः (१) ॥ ॐ ॥ ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ श्रीवागडेशाय नमः (२) ॥ संवत् १७८१ वर्षे शाके १७४६ प्रवर्त्तमाने महामांगल्यप्रदो (३) मासोत्तम चैत्रमासे लीलविलासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां (४) गुरुवारे उत्तराफाल्गुनीनक्षत्रे वृद्धिनामयोगे एवं शुभदि(५) ने श्रीजैसलमेरुगढ़ महादुर्गे राउल श्री ८ अषैसिंहजी विजैराज्ये (६) श्रीखरतरवेगडगच्छे भट्टारक श्रीजिनेश्वरसूरि संताने भट्टारक (७) श्रीजिनगुणप्रभसूरिपट्टे भ० श्रीजिनेशरसूरि तत्पट्टे भट्टारक (८) जिनचंद्रसूरि पट्टे भट्टारक श्रीजिनसमुद्रसूरि तत्पट्टालंकारहार सा० (९) भट्टारक श्री १०७ श्रीजिनसुंदरसूरि तत्पट्टे युगप्रधान भट्टारक श्री (१०) ७ श्रीजिनउदयसूरि विजयराज्ये प्राज्यसम्राज्ये ॥ श्रीरस्तुः ॥ श्री ॥ (१५१५) पादुकायुग्म संवत् १७८१ वर्षे वैशाख सुदि ३ बुधे श्रीमद्बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर तरवरवरतन (?) तत्पट्टे दीपसूरि सुभिधान श्रीवर्द्धमानसूरीणां पादुके ॥ तत्पट्टे भट्टारक श्रीजिनधर्मसूरीणां पादुके प्रतिष्ठिते श्रीजिनेसरसूरिभिः ( १५१६ ) चतुर्विंशतिः संवत् १७८१ मिती आषाढ़ सुदि १३ कारितं चोरबेड़िया सा० सांवल पतिना । प्रतिष्ठितं उ० श्री० कर्पूरप्रिय गणिभिः । ( १५१७ ) उपाश्रयलेखः ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ संवत् १७८१ वर्ष शाके १६४६ प्रवर्त्तमाने मृगसिरमासे शुक्लपक्षे सप्तमी तिथौ गुरुवासरे श्रीजेसलमेर नगर महाराजाधिराज महाराजा रावल श्री श्रीअखैसिंहजी विजैराज्ये १५१२. जलमंदिर, पावापुरी : पू० जै० भाग १, लेखांक २०५ १५१३. अजितनाथ मंदिर, नागपुर: १५१४. वेगड़गच्छ उपाश्रय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४४६ १५१५. छीपावसही, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक २१ १५१६. चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, रंगपुर, बंगाल : पू० जै०, भाग २, लेखांक १०२४ १५१७. खरतरगच्छाचार्य उपाश्रय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८७५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२७१) Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..................... श्रीखरतरआचार्यांयागच्छे श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये श्रीजिनसागरसूरिशाखायां वा० माधवदासजी गणि शिष्य पं० नेतसी गणि शिष्य उदैभाण श्रीरावलजी नेतसी ने उपासरो कराय दीधौ संवत् १७८१ रा मिती मिगसर सुदि ७ उपासरौ काम झाल्यौ पौष वदि ४ बार सोम पुक्षनक्षत्र दिने उपासरैरी रांगभराई संवत् १८७४ रै वैशाख वदि ७ उपासरै रो काम प्रमाण चढ्यौ उपरठाइ छड़ीदार अखौ मोहणाणी सिलावटो थिरो नथवाणी। यावज्जंबूदीवा यावनक्षत्र मण्डितो मेरु। यावच्चन्द्रादित्यो तावत् उपाश्रय स्थिरी भवतुः लिखितं पंडित उदैभाण मुनिभिः शुभंभवतु श्रीसंघस्य। ___ (१५१८) मुनिरूपचंद-पादुका संवत् १७८२ ना माघ सुदि ५ .........................श्रीजिनचंद्रसूरिसंतानीय श्रीदीपचंदगणि शिष्य पं० श्रीदेवचंद्र शिष्य पं० श्रीरूपचंदपादुके। (१५१९) पादुकायुग्म संवत् १७८३ वर्षे मिगसर सुदि ४ शुभदिने श्रीबृहत्खरतर महो० राजसारजी पादन्यास उ। श्रीज्ञानधर्मजी पादुका श्रीदीपचंद्रगणिना प्रतिष्ठितं ॥ (१५२०) स्तम्भलेखः संवत् १७८४ वर्षे मि० वैशाख वदि १३ दिने महोपाध्याय श्रीधर्मवर्द्धनजी छतरी कारापिता शिष्य पं० साम.. (१५२१) महो० हर्षसागर-पादुका ___सं० १७८४ वर्षे वैशाख सुदि अष्टमी सोमवारे महोपाध्याय श्रीहर्षनिधान शिष्य महो० श्रीहर्षसांगर पादुके प्रतिष्ठितं च। (१५२२) सीमंधर-स्वामी संवत् १७८४ वर्षे मर्गशिर वदि ५ बुधवासरे। अहम्मदावादवास्तव्य ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां शाह बाघजी पुत्र शाह उदेचंद भार्या देवकुअर पुत्र शाह सकलचंद। हेमचंद। करमचंद। हीराचंद। संयुतेन ॥ श्रीसीमंधरस्वामिबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज-श्रीअकबरसाहीप्रतिबोधकतत्प्रदत्तयुगप्रधानभट्टारक-श्रीजिनचंद्रसूरिभिः.........महोपाध्याय श्रीराजसागरजी शिष्य महोपाध्याय श्रीज्ञानधर्मजी शिष्य उपाध्याय श्रीदीपचंद्र ॥ पं० देवचंद्र प्रमुख परिवारेन (१५२३) थावच्चासुत-पादुका संवत् १७८४ वर्षे मिगसर वदि ५ दिने श्रीनेमिनाथजी शिष्य सहस्र साधुयुत श्रीथावच्चा सुत १५१८. छीपावसही शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक २६ १५१९. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक १० १५२०. कुण्ड के पास की छतरी के स्तम्भ पर लेख, रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २११० १५२१. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०५३ १५२२. खरतरवसही के पीछे देवकुलिका, शत्रुजयः श० गि० द०, लेखांक १४२ १५२३. छीपावसही, शत्रुजयः भंवर० (अप्रका०), लेखांक ४१ (२७२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पादुके कारितं प्रतिष्ठिते च खरतरगच्छे महोपाध्याय श्रीराजसारजी शिष्य उ । श्रीज्ञानधर्मजी शिष्य उपाध्याय श्री दीपचंद्र ( १५२४) नंदीश्वरद्वीप - लेख : संवत् १७८४ वर्ष मगसिर वदि ५ दिने श्रीनंदीश्वरद्वीप द्विपंचाशत् चैत्यशाश्वतजिनबिंबं स्थापिता कारिता श्री अहमदाबाद वास्तव्य श्रीमाली ज्ञातीय सा० ताराचंद पुत्र हरखचंद्रेण कारिता प्रतिष्ठिता श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्री १०७ श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां महोपाध्याय श्रीराजसारजी तत्शिष्य महोपाध्याय श्रीज्ञानधर्मजी शिष्य उपाध्याय श्रीदीपचंद्रगणिभिः । पं । देवचंद्रगणि संयुतैः सम्यग्दर्शनप्राप्त्यर्थं भवतु । लिखितं पं । मतिरत्न मुनिना (१५२५) पाषणसिद्धचक्र-लेखः (पाषाण ) संवत् १७८४ वर्षे मिगसिर वदि ५ तिथौ श्रीराजनगरवास्तव्य श्री ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां शाह दुनीचंद्रेण श्रीसिद्धचक्रकारापितं च श्रीमहावीरदेवाविच्छिन्नपरंपरायात श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज श्रीअकबर साहिप्रतिबोधक तत्प्रदत्त युगप्रधान भट्टारक १०७ श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां महोपाध्याय श्रीराजसागरजी तत्शिष्य महोपाध्याय-ज्ञानधर्मजी - तत्शिष्य उपाध्याय - श्रीदीपचंद्र - तत्शिष्यपंडित देवचंद्रयुतेन ॥ (१५२६) सेलग - पादुका सं० १७८४ मिगसर वदि ५ दिने श्रीसंलग पंथग प्रमुख ५०० पंचशत. पादुके कारि श्रीमालीज्ञातीय शाह उदेसिंघ.. ..चंद भार्या बाई मीठी प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे उपाध्याय श्रीदीपचंद्र शिष्य पं । देवचंद्रयुतैः ॥ श्री ॥ ( १५२७) अष्टोत्तरशतसिद्ध-पादुका सं० १७८४ वर्षे मिग़सर वदि ५ अष्टापदे अष्टोत्तरशतसिद्धपादुका दीपचंदजी प्रति० विजयचंद .भवानीदास कारितं ( १५२८ ) पाषाणसिद्धचक्रः संवत् १७८७ वर्षे माह सुदि ५ शुभदिने राधणपुरवास्तव्य श्रीमालीलघुशाखायां शाह घजा भार्या आणंदीबाई सिद्धचक्रं कारापित ॥ प्रतिष्ठितं च श्रीमहावीरदेवाच्छिन्नपंरपरायात श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज श्रीअकबरशाहिप्रतिबोधक तत्प्रदत्तयुगप्रधान भट्टारक श्री १०७ श्री श्री श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां महोपाध्यायश्रीराजसागरजी तत्शिष्य महोपाध्याय श्रीज्ञानधर्मजी तत्शिष्य श्रीउपाध्याय श्रीदीपचंद्र तत्शिष्य पंडितप्रवर देवचंद्रयुतेन ॥ श्रीगोमुख चक्रेश्वरी कवड माणभद्रयक्ष चतुर्विंशति यक्षयक्षीणी षोडस विद्यादेवि श्रीजिनशासनभक्त देवदेविगण शासनाधिष्ठायक सर्वक्षेत्राधीशा शांतिकरा सन्तु ॥ श्रीरस्तु ॥ श्री ॥ १५२४. खरतरवसही, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ७७ १५२५. देहरी क्रमाकं ४२/२, खरतरवसही, शत्रुंजयः श० गि० द०, १५२६. छीपावसही शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ३२ १५२७. खरतरवसही, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ६० १५२८. देहरी क्रमांक ९० ११, खरतरवसही, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक ११४ • भंवरलाल जी नाहटा ने अपने लेख संग्रह में वि० सं० १७९२ का उल्लेख किया है। लेखांक १२७ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२७३) Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५२९) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १७८८ वर्षे माघ सुदि ६ शुक्रे श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं बाई रतन पुत्र जगजीवनेन प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे उपाध्याय श्रीदीपचंद्रगणिभिः (१५३० ) युधिष्ठिरप्रतिमा संवत् १७८८ वर्षे माघ सुदि ६ शुक्रे श्रीखरतरगच्छे शा० कीका पुत्र दुलीचंद च युधिष्ठिरमुनिबिंबं प्रतिष्ठितं उपाध्याय दीपचंदगणिभिः ॥ श्रीरस्तु कल्याणमस्तु ॥ ( १५३१) भीमप्रतिमा संवत् १७८८ वर्षे माघ सुदि ६ शुक्रे खरतरगच्छे शा० कीका पुत्र दुलीचंद कारितं श्रीभीममुनिबिंबं प्रतिष्ठितं उपाध्याय श्रीदीपचंदगणिभिः । शुभं भवतु । श्रीरस्तु । ( १५३२ ) पार्श्वनाथः सं० १७८.. वर्षे श्रीपार्श्वनाथबिंबं श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ( १५३३ ) पार्श्वनाथ: ॥ सं० १७८... वर्षे श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्र० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः 1 (१५३४) दयाविनय - पादुका सं० १७८९ मि० सु० ४ रवौ वा० श्रीदयाविनयपादुः (१५३५) सूरि- पादुकायुग्म ॥ १७९० वर्षे शाके १६५५ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम वैशाख सुदि ७ रविवासरे श्रीबृहत्खरतर भावहर्ष गणाधिराज श्रीजिनरत्नसूरिराजानां तत्पट्टधर श्रीजिनधर्मप्रमोदसूरीश्वराणां पादुके कारापिते प्रतिष्ठिते च श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीस्तात् ॥ श्रीजिनरत्नसूरिपादुके ॥ श्रीजिनप्रमोदसूरिपादु (१५३६ ) जिनचंद्रसूरि - पादुका संवत् १७९० वर्षे काति वदि ६ खरतरआचार्यगच्छे भट्टारक श्रीजिनसागरसूरिशिष्य भट्टारक श्रीजिनधर्मसूरि पट्टे भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिपादुके कारिते प्रतिष्ठिते उ० दीपचंद्रशिष्य पं० देवचंद्रेण । १५२९. खरतरवसही, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ८६ १५३०. पंच पाण्डवमंदिर, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक १२९ १५३१. पंच पाण्डवमंदिर, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक १३० १५३२. संभवनाथ जिनालय, अजमेर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३३९ १५३३. संभवनाथ जिनालय, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३४० १५३४. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०६७ १५३५. छीपावसही, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक २२ १५३६. छीपावसही शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक २० (२७४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३७) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १७९० मिगसर वदि ९ दिने श्रीजिनकुशलसूरि पादुके। कारापिता । स। दमसी जेराज श्रेयोर्थं (१५३८) आदिनाथ-मूलनायकः संवत् १७९१ वर्षे वैशाख सुदि ७ विधिपक्षे विद्यासागरसूरिराज्ये सूरतनगरवास्तव्य सेठगोविन्दजी पुत्र गोडीदास भ्राता जीवनदास कारितं आदिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे उपाध्याय दीपचंदगणिपट्टे देवचंदगणिना॥ (१५३९) राजसुन्दर-पादुका सं० १७९२ वर्षे मिती भादवा वदि ७ दिने वा० श्रीराजलाभजीगणि तत्शिष्य वा० श्रीराजसुन्दरजी गणिनां चरणपादुका प्रतिष्ठिता। (१५४०) शिलालेखः स्वस्ति श्रीजयो मंगलाभ्युदयश्च ॥ संवत् १७९४ वर्षे शाके १६५९ प्रवर्त्तमाने आषाढ़ सुदि १० रविवासरे ओइसवंशे वृद्धशाखायां नाडूलगोत्रे भंडारीजी श्रीभानजी तत्पुत्र भं। नारायण जी पुत्र भं। ताराचंद्रजी पुत्र अनेक चैत्योद्धारक भं। रूपचंदजी तत्पुत्र न्यायकलित अनेक जैनशासनकार्यकारक भं। सिवचंद्रजी पुत्र हर्षचंद्रयुतेन श्रीशत्रुजयोपरि चैत्योद्धार कारितं श्रीपार्श्वबिंबं स्थापितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये तथा प्रतिष्ठितं च महोपाध्याय श्रीराजसागरजी तत्शिष्य उ० श्रीज्ञानधर्मजी तत् शिष्य उ० श्रीदीपचंद्रजी तत् शिष्य संवेग मार्गाग्रणी श्रीशत्रुजय-गिरनार-आबूप्रमुखचैत्यप्रतिष्ठाकारक पंडित देवचंद्रेण डूंगरवाल सा० भैरवदासोत सा० किसनदासोत सहायात् श्रीजैतारणवास्तव्य मुरधर ॥ लि० सेवग किसोरदास बीकानेरीया॥ शुभं भवतु ॥ श्रीनेमिनाथबिंबं स्थापितं॥ (१५४१) लेखः संवत् १७९४ वर्ष मागसिरमासे कृष्णपक्षे ५(७) तिथौ त्रीप्रकार समोवसरण श्रीअहमदाबादवास्तव्य लघुप्राग्वाठ-साखीय शा० लींगजी पुत्र शा० जगसी पुत्र शाह निहालचंदजी भार्या बाईरूपकुंवरि तथा पुत्र अमरचंद पुत्र हरखचंद मूलचन्द युतया कारितं ।। चैत्यप्रतिष्ठितं खरतर-आचार्यगच्छे महोपाध्याय दीपचंदगणि शिष्य पं० देवचंदगणिना। शिष्य पं० मतिदेव पं० विजयचंद पं० ज्ञानकुशल पं० विमलचंदयुतेन ॥ श्रीरस्तु । (१५४२ ) शिलालेखः संवत् १७९४ मगसर वदि..... तिथौ अहमदाबादवास्तव्य लघुप्राग्वाटशाखायां बाईबंची कारित १५३७. पार्श्वनाथ जिनालय, लोद्रवा, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५६३ १५३८. छीपावसही, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक १६५ १५३९. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नौहर : ना० बी०, लेखांक २५०६ १५४०. छीपावसही, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०) लेखांक ४ १५४१. खरतरवसही समवशरण-४, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक १२४ १५४२. खरतरवसही समवशरण-५, शत्रुजयः श० गि० द०, लेखांक १२५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः २७५) For Personal & Private Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्ये प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे महोपाध्याय दीपचंद्रगणि शिष्य श्रीशत्रुंजयादितीर्थोद्धारधर्मोद्यमकारक पं० देवचंद्रगणिना सपरिवारेण ॥ सिलाट आत्मरामेण ॥ ( १५४३ ) जिनचंद्रसूरि - पादुका सं० १७९४ वर्षे मिती फाल्गुन वदि ५ रवौ श्रीविक्रमपुरे भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरीणां पादुके कारापितं प्रतिष्ठितं च भ० श्रीजिनविजयसूरिभिः । १५४४ ) हर्षहंस- पादुका सं० १७९४ वर्षे फाल्गुन वदि ५ रवौ श्रीविक्रमपुरनगरमध्ये स्वर्गप्राप्तानां श्रीखरतराचार्यगच्छीय उ० श्रीहर्षहंसगुरूणां पादुका कारापिता प्रतिष्ठापितं च प्रशिष्य ..... ( १५४५) जिनचंद्रसूरि - पादुका सं० १७९५ वर्षे शाके १६६० प्रवर्त्तमाने स्तंभतीर्थ श्रीखरतरग० श्रीपीपलीयागच्छे आषाढ़ सुदि २ गुरुवारे भट्टारक युगप्रधान श्रीजिनवर्द्धनसूरि तत्शिष्यभट्टारक श्रीजिनधर्मसूरि प० भट्टारक युगप्रधान श्रीप्रभाविक श्रीजिनचंद्रसूरीश्वराणां प्रसिद्धनाम श्रीजिनचंद्रसूरीणां (?) पादुका कारापिता श्रीसमस्त श्रीसंघेन पादुका प्रतिष्ठिता मकारइ श्री ५ ॥ ( १५४६ ) सुमतिनंदनादि - पादुके संवत् १७९७ वर्षे कार्त्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथौ १५ गुरुवासरे बृहत्खरतरगच्छे यु० प्र० श्रीजिनरंगसूरिशाखायां आचार्य श्रीजिनचंद्रसूरीणां शिष्य वा० श्रीसुमतिनंदनगणिनां पादपद्मे स्थाप्यते० वा० भुवनचंदेन। वा० सुमतनंदनगणिनां चरणकमले भवतुः आ० श्रीजिनचंद्रसूरीणां चरण कमले इमे भवतः । ( १५४७ ) जिनरंगसूरि - पादुका सं० १७९७ वर्षे कार्त्तिक मासे शुक्ल पक्षे पूर्णिमा तिथौ १५ गुरुवासरे बृहत्खरतरगच्छे यु० भ० । श्रीजिनरंग. ( १५४८ ) यु० जिनचंद्रसूरि - पादुका संवत् . ..वर्ष मासोत्तम मासे. ..शुक्रे.. युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि पादुके कारितं प्रतिष्ठितं श्री वृ । ख । ग । उ । श्रीदीपचंदजीगणि शिष्य देवचंद्रगणिना । १५४३. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०५७ १५४४. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०७७ १५४५. नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, भोंयरापाडो, खंभात : जै० धा० प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ८८३ १५४६. जैनमंदिर, पावापुरी : पू० जै०, भाग १, लेखांक २०३ १५४७. जैनमंदिर, पावापुरी : पू० जै०, भाग १, लेखांक २०२ १५४८. छीपावसही, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक ९ (२७६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५४९) ज्ञानधर्म-पादुका श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां वा० ज्ञानधर्मजी शिष्य वा० दीपचंद्रशिष्य देवचंद्रगणिभिः ज्ञानधर्मजी पादुके॥ (१५५०) जिनप्रभसूरिमूर्तिः श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनप्रभसूरीणां मूर्तिः (१५५१) जिनसागरसूरि-पादुका सं०..... ...चैत्र वदि २ दिने भट्टारक श्रीजिनसागर सूरि पादुके कारापिते.........................नारायणगणि। (१५५२) भावसिद्धि-पादुका ......खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनधर्मसूरि राज्ये साध्वी भावसिद्धि पादुके। शिष्यणी जयसिद्धि कारापितं । श्रेयसे। ' (१५५३) जिनसुखसूरि-पादुका सं० १८०० वर्षे मिती वैशाख सुदि १३ श्रीमूलतान मध्ये श्रीजिनसुखसूरि-पादुका............. • (१५५४) पादुका-लेखः सं० १८०१ वर्षे मिती मिगसिर सुदि ५ वार स.............श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये...........कास्य पादुका प्रतिष्ठिता करापिता। (१५५५) शिलालेखः सं० १८०३ वर्षे शाके १६६८ प्रवर्त्तमाने मगशिर सुदि २ दिने सोमवारे महाराज राजराजेश्वर महाराजा जी श्रीअभयसिंहजी कुंवर श्रीरामसिहंजी विजयराज्ये बृहत्खरतर श्रीआचार्यगच्छे। भट्टारक श्रीजिनकीर्तिसूरिजी वर्तमाने सति। श्रीबिलाडा नगरे कटारिया कलावत साह श्रीतुंताजी पुत्र गिरधरदासजीकेन जिनालय करापितः स्थानकोद्यमः उपाध्यायजी श्रीकरमचंद हरषचन्दाभ्यां कृतः कलावतश्रावकाणामपि विशेषोपदेशो दत्तस्तेनायं श्रीसुमतिनाथजी देवलो जातः.........द्गधर भीषन कमाभ्यां कृतः उपाध्याय श्री करमचंद गणि पं० हरषचंद गणि पं० प्रतापसीगणि प्रमुख सपरिकरेन बिंबं श्रीर्भवतु। १५४९. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक २७ १५५०. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक २९ १५५१. रेलदादाजी के बाहर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१११ १५५२. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ५१ १५५३. महावीर जिनालय, बोरों की सेरी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७२१ १५५४. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी० लेखांक २०६८ १५५५. जैनमंदिर, बिलाड़ा (मारवाड़) : पू० जै०, भाग १, लेखांक ९३७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (२७७) For Personal & Private Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( १५५६ ) मुनिपादुका सं० १८०६ वै० सु० ३ थावच्चासुत शिष्य शुकमुनिराजप्रमुख सहस्रमुनिपादुके कारिते श्रीसंघेन खरतरगच्छेयं देवचंद्र गणि उपदेशात् ( १५५७ ) स्तूप - चरणलेखः (१) ॥ ॐ ॥ श्रीपार्श्वनाथ नमः ॥ संवत् १८०६ वर्षे शाके १६ (२) ७१ प्रवर्त्तमान्ये महामांगल्यप्रदे मासोत्तममासे पौष मासे शुक्लपक्षे (३) षष्ठीतिथौ भौमवासरे उत्तराभाद्रपदानक्षत्रे एवं शुभदिने श्रीजेसल - (४) मेरगढ़ महादुर्गे राउल श्री ५ श्री अखैसिंहजी विजयराज्ये श्रीखरतरवे(५) गडगच्छे भट्टारक श्रीजिनसुंदरसूरजी तत्पट्टे विद्यमान भट्टारकी (६) जिनउदयसूरिभिः तत् भ्रातृ वा० श्रीमुनिसुंदरजी तेषां गुरूणां (७) स्तंभेन पादुका प्रतिष्ठितं शिष्य पंडित जसोवल्लभ पं० मानसिंघ पं० (८) भवहाट (?) पं० जगसी पं० वर्धमान सपरिकरैः सिलावटा हथा झांझुवांणी (९) थंभेन मंडिता चिरं नंदतु शुभं श्रेयात् (१५५८) गुणसुन्दर - पादुका संवत् १८०८ वर्षे मिति मिगसर सुदि ६ सोमवारे महोपाध्याय श्री ५ श्री श्रीगुणसुन्दरगणिनां पादुका श्रीनवहरमध्ये देवगताः ॥ श्री ॥ (१५५९ ) शिलापट्टप्रशस्ति १. वर्षे शैलघनाघने भवसुधा संख्ये शुचावर्त्मने । पक्षे सौम्य सुवासरे हि दशमी तिथ्यां जिनौ को २. मुदा । श्रीसीमंधरस्वामिनः सुरुचिरं श्रीविक्रमे पत्तने । श्रीसंघेन सुकारितं वरतरं जीयात् चिरंभू । ३. तले ॥१॥ श्रीराठौड़नभोक्र्कसन्निभमहान्विख्यातकीर्त्तिस्फुरन् । श्रीमत्सूरतसिंहकस्यमभवत्त्यागे४. न ख्यातौ भुवि । तत्पट्टे जनपालनैकनिपुण: प्रोद्यत् प्रतापारुणस्तस्मिन् राज्ञि जयि प्रतापमहिम : T श्री ५. रत्नसिंहाभिधः ॥ २ ॥ जज्ञे सूरिवरा बृहत्खरतरा श्रीजैनचंद्राह्वयाः ख्यातास्ते क्षितिमंडले नि६. जगुणै: सद्धर्म्मसंदेशकाः तत्पट्टोत्पलबोधनैककिरणैस्सत्साधुसंसेवितैः श्रीमंतैर्जिनह७. र्षसूरिमुनिपैर्भट्टारकैर्गच्छपैः ॥ ३ ॥ कोविदोपासितैर्दक्षैः कामाकंशजनार्द्दनैः प्रतिष्ठिमि८. दं चैत्यं नंदताद्वसुधातले ॥ ४ ॥ त्रिभिर्वैशेषिकम् ॥ श्रीमत्बृहत्खरतरगच्छीय संविग्नोपा९. ध्याय श्रीक्षमाकल्याण गणीनां शिष्य पं० धर्मानंद मुनेरुपदेशात् । श्रीर्भूयात् सर्व्वेषां ॥ १५५६. छीपावसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ४२ जै०, भाग ३, लेखांक २५०८ १५५८. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नौहर : ना० बी०, लेखांक २४७३ १५५७. श्मशान, जैसलमेर : पू० १५५९. सीमंधर स्वामी का मंदिर, भांडासर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ११७२ (२७८ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६० ) चन्द्रप्रभः ॥ सं० १८०८ माघ सुदि ५ सोमे श्रीचंद्रप्रभजिनबिंबं कारितं ओसवंसे नवलखागोत्रे मोटामल पुत्र यशरूपेन प्र। बृहत्खरतरगच्छे। श्रीजिनाक्षयसूरिचरणकजचंचरीक श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ ( १५६१ ) पञ्चतीर्थी: संवत् १८१० वैशाख सुदि १२ विजयनन्दनसूरिगच्छे शाह देवशाबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे जिनलाभरि । ( १५६२ ) उपाश्रयलेख: ॥ संवत् १८११ वर्षे मार्गसिर मासे कृष्ण पक्षे १० तिथौ शनिवारे पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रे ऐन्द्र योगे वणिजकरणे एवं पंञ्चांग शुद्धौ बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्री १०५ श्री श्रीजिनलाभसूरिजीविजयराज्ये क्षेमकीर्त्तिशाखायां महोपाध्याय श्री १०५ श्रीरत्नशेखरजीगणिशिष्यमुख्य पं० । प्र० रूपदत्तजी गणि भ्रातृ पंडित पं० दीपकुञ्ज भ्रातृ पं० । प्र । महिमामूर्त्तिजी गणि लघु भ्रातृ पं । प्र । लक्ष्मीसुख तत्प्रशिष्य वा० हस्तरत्नगणि भ्रातृ पण्डित ऋद्धिरत्न भ्रातृ पण्डित ज्ञानकल्लोल भ्रातृ पण्डित मुनिकल्लोल तत्प्रशिष्य युक्तिसेन भ्रातृ पण्डित महिमाराज सहितेन वा० हस्तरत्त्र गणि कृतोद्यमेन नवीनाशाला कारापिता नाथूसर मध्ये । वारहट्ट खेतसीजी तत् भ्रातृ नथमल्लजी हिमतसंघजी लालचन्दजी सूर्यमल्लजी दौलतसंघजी सगतदानजी वखतसंघजी भवानीसंघ सहाज्ये सा.... .. संघ आज्ञाय पं । प्र । महिमामूर्तिगणि पुण्यायल (पौषधशाल) कारापिता । रू० ५५ (?) लागा (१५६३) जिनोदयसूरिस्तूपचरणलेखः (१) ॥ ॐ ॥ श्रीपार्श्वनाथ नमः ॥ संवत् १८१२ वर्षे मार्गशीर्ष मासे बहुलपक्षे (२) त्रयोदश्यां तिथौ सोमवासरे स्वातिनक्षत्रे शुभयोगे एवं शुभदिने महाराउल श्रीअ(३)षयसिंहजीविजयराज्ये बृहत्खरतरवेगडगच्छे वेगडाशाष जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिने(४) श्वरसूरिपट्टे भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरि तत्पट्टे भट्टारक श्रीजिनसमुद्रसूरि तत्पट्टे श्री (५) भट्टारक श्रीजिनसुंदरसूरि तत्पट्टालंकार श्री भट्टारक श्रीजिनउदयसूरीश्वराणां (६)तत् ॥ पूज्यपादुकानि भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरेण सुपेष स्थापितानि प्रतिष्ठितानि च (७) ( १५६४ ) महावीर : ॥ स्वस्ति श्रीऋद्धिवृद्धिमंगलजयोदय : अथ सुसंवत्सरेस्मिन् श्रीनृपविक्रमार्कसमयातीत सं० १८१५ शाके १६८० प्रवर्तमाने मासोत्तमे मासे तस्मिन् मासे वैशाखमासे शुक्लपक्षे दसम्यां १० बुधवासरे श्री उदयपुर नगरे चित्तौडाधिपति राजाधिराज महाराणा श्रीराजसिंहजी विजयराज्ये पवित्र ऊसवाल प्र गोत्रे दोसी १५६०. चन्द्रप्रभ जिनालय, मधुवन, सम्मेतशिखरः पू० जै० भाग २, लेखांक १८३४ १५६१. गोडी पार्श्वनाथ जिनालय, पायधुनी, मुम्बई : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३३९ १५६२. उपाश्रय, नाथूसर बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २५५५ १५६३. श्मशान, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५०९ १५६४. आदिनाथ जिनालय, बदनोर हवेली के पास, उदयपुरः खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२७९) Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री भीषुजी भार्या संतोषदे तत्पुत्र दोसी श्रीकुशलसिंह भार्या कस्तूरदे तस्य पुत्री बाई माणिक बाई श्रीमहावीरबिम्ब रचितं श्रीपीपलीआगच्छे जिणधर्मसूरि तत्पट्टे जिणचन्द्रसूरि तत्पट्टे जिणहर्षसूरिबिंबं प्रतिष्ठितं । (१५६५) जिनकुशलसूरि-पादुका श्री दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी सं १८१६ आसुज सुद १० वार अदत । (१५६६ ) आदिनाथ: महाराणा अरसिंहजी नरपती स्वस्ति श्री मन्नृपविक्रमार्कसमयातीत सम्वत् १८१७ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे सुदि १० बुधवासरे श्रीउदयपुर महागढ वास्तव्य उपकेश ज्ञातीय वृद्ध शाखायाः समस्त श्रीसंघ समुदायेन प्रथमजिनऋषभदेवबिंबं कारितम् श्रीबृहत्खरतर पीपलीयागच्छे सुधर्मादिपरम्परा श्रीउद्योतनसूरयः तत्पट्टे वर्धमानसूरिभिः विमलमंत्रीसर प्रतिबोधित विमलवसही प्रतिष्ठितम् सम्वत् दस ( ) तत्पट्टे दुर्लभराज अणहिल्ल पत्तने खरतरविरुद सम्वत् १० ( ? ) श्रीजिनेश्वरसूरि तत्पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः तत्पट्टे श्रीअभयदेवसूरि नवाङ्गीवृतिकारकं तत्पट्टे श्रीजिनवल्लभसूरि तत्पट्टे श्रीजिनदत्तसूरि पटानुक्रमात् श्रीजिनकुशलसूरि तत्पट्टे तत्पटानुक्रमात् श्रीजिनवर्धमानसूरि (? जिनवर्धनसूरि ) तत्पट्टे श्रीजिनसागरसूरिं तत्पट्टानुक्रमात् श्रीजिनसिंहसूरि तत्पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि तत्पट्टे जिनरत्नसूरि तत्पट्टे श्रीजिनवर्द्धमानसूरि तत्पट्टे श्रीजिनधर्मसूरि तत्पट्टे श्रीसंवेगरंगेन रंजित भ० श्रीजिनचन्द्रसूरि शिष्य महोपाध्याय श्रीहीरसागर प्रतिष्ठितम् ॥ श्री ॥ (१५६७ ) आदिनाथः श्रीमन्नृपविक्रमार्कसमयातीत सम्वत् १८१७ वर्षे शालिवाहन शाके प्रवर्त्तमाने वैशाख मासे शुक्लपक्षे सुदि १० बुधवासरे श्रीउदयपुर महादुर्गे महाराणा श्री अरिसिंह विजयराज्ये तस्मिन् मंत्री श्रीबुद्धिनिधान उपकेश ज्ञाति वृद्धि शाषायां वर्द्धमान गोत्र बाफना श्रीजैनधर्मवासित दोशी. तस्य भार्या ललितादे तस्य पुत्र २ भिषजी द्वितीय पुत्र रूपजी भिषुपुत्र दोसी अडकपुरजी द्वितीय पुत्र दोसी सामलदासजी तृतीय पुत्र कुशलसिंहजी चतुर्थ पुत्र सोमजी दोसी कुशलसिंह भार्या कस्तूरदे तस्य पुत्री जैनो श्रद्धा रुचि (?) निपुण पुत्री ४ साध्वी प्रथमजिनऋषभदेवबिंबं का जीर्णोद्धार धनबाई माणक आत्मा अर्थ श्रीसुधर्मार्कपरम्पराविहित खरतरगच्छसमुद्र श्रीउद्योतनसूरि तत्पट्टे वर्द्धमानसूरि उपदेशात् विमल म० श्री. ( १५६८ ) ऋषभाननः ॥ संवत् १८१७ वर्षे वैशाख सुदि १० बुधवासरे श्री उदयपुर महानगरे उसवाल ज्ञातीय वृद्धि शाषायां समस्त श्री संघ समुदायेन बीस विहरमान सप्तम जिन श्रीरिषभाननजिनबिंबं कारितं श्रीबृहत्खरतर पीपलीयागच्छे भ० श्रीजिनवर्द्धमानसूरि तत्पट्टे भ० श्रीजिनधर्मसूरि तत्पट्टे संवेगरंगे रंजितान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः शिष्य महोपाध्याय श्रीहीरसागर प्रतिष्ठितं ॥ १५६५. पार्श्वनाथ जिनालय, लौद्रवपुर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८८४, १५६६. पद्मनाभ मंदिर, चौगान (स्वरूप सागर), उदयपुर : १५६७. पद्मनाभ मंदिर, चौगान ( स्वरूप सागर), उदयपुर १५६८. आदिनाथ जिनालय, बदनोर की हवेली के पास, उदयपुरः ( २८०) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६९) संभवनाथः ॥ संवत् १८१७ वर्षे माह मासे कृष्ण पक्षे ५ रविवासरे श्रीउदयपुर नगर वास्तव्य ऊसवाल वृद्धिशाषायां दोसी लषु तस्य पुत्र दोसी भीषुजी तस्य भार्या संतोषदे तस्य पुत्र दो० कुशलसिंघ तस्य भार्या कस्तूरदे तस्य पुत्री बाई माणक श्री संभवबिंबं कारितं बृहतखरतर पीपलीया गच्छे भ० श्री.................... (१५७०) शीतलनाथ: ॥ संवत् १८१७ वर्षे माह मासे कृष्ण पक्षे ५ रविवासरे श्री उदयपुर वास्तव्य उसवाल वृद्धि शाषायां दोसी भीषुजी तस्य भार्या संतोषदे तस्य पुत्र सांमलदासजी तस्य भा० सोभागदे तस्य पुत्र दोसी अजबसिंघजी तस्य भार्या अजबादे तस्य पुत्र चतुर्भुज तस्य भार्या चतुरंगदे तस्य पुत्र किसनदास श्री श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं श्रीबृहत्खरतरपीपलीयागच्छे...' (१५७१) वीरसेनः ......श्रीजिनवर्द्धमानसूरि तत्पट्टे श्रीजिनधर्मसूरि तत्पट्टे संवेगरंगेन रंजितान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः वहीते वासी प्रथमशिष्य महोपाध्याय श्रीहीरसागर गणिभिः : खरतरगच्छे प्रतिष्ठितम् कल्याणमस्तु ॥ दोसीजी श्रीकुशलसिंहजी भार्या कस्तूरदे तस्य पुत्री बाई माणक साह कारितम् श्रेयोस्तुः कल्याणमस्तुः। श्रीरस्तुः कल्याणमस्तुः। श्रीः। • (१५७२) पद्मनाभ-मूलनायकः स्वस्ति श्रीमन्नृपविक्रमार्क सम्वत् १८१९ वर्षे शालिवाहन शाके १६८४ प्रवर्त्तमाने मासोत्तमे मासे माह मासे शुक्लपक्षे ५ बुधवासरे श्रीमदुदयपुरवास्तव्य मेदपाटे देशे इक्ष्वागवंशे सीसोदिया गोत्रे गढ़पती महाराणा श्रीअरिसिंह विजयराज्ये तस्य नगर वास्तव्य उशवंश वृद्धिशाखायां नवलख सेणपाल देवकुलपत्तने खरतरवसहीकृत जिनवर्द्धनसूरि उपदेशात् सम्वत् १४९२ वर्षे कारितं महाराणा कुंभकर्ण राज्ये मध्ये महा इष्टदाय कारितं नागदा नगरे अदबुदतीर्थ कारितम् तस्य ११ महा द्रव्यव्ययं कारिति द्रव्य खरच्यो तस्य कुले कुलावंतसक नवलषा (खा) साह वर्धमान तस्य भार्या विमलादे तस्य पुत्र जिनधर्मरत सुश्रद्धावन्त रत्नत्रयीवल्लभ पुण्यपवित्र साह कपूरचंद वर्द्धमान स्वपरसम्यक्त्वहितकाराय स्वभवसम्यक्त्वहितकाराय स्वभवनिर्मलीकरणे कर्मक्षयकारक अनागत चौवीसी मध्ये प्रथम प्रभु श्रेणिक जीव श्रीमहावीर भक्तिवशेन तीर्थंकरनामकर्मोपार्जितस्याभिधानं पद्मनाभ तीर्थंकर कारितं जंगम युगप्रधान चक्रचूडावृतमणि दो हजार चार वर्तमान चौबीसी मध्यैकाद (व) तारि श्रीजिनधर्मप्रभाविक पुण्यसहायकार दोषनिवारक अज्ञानविनाशक स्वपरहितकारक दुप्पसह प्रमुख वर्तमान सर्व सूरिभिः प्रतिष्ठितम्। जिनदुप्पसहिष्णु प्रवर्तमान सद्धर्म सूरिभिः श्रीरस्तु कल्याणमस्तु १५६९. आदिनाथ जिनालय, बदनोर की हवेली के पास, उदयपुरः १५७०. आदिनाथ जिनालय, बदनोर की हवेली के पास, उदयपुरः १५७१. पद्मनाभ जिनालय, चौगान (स्वरूप सागर), उदयपुर: १५७२. पद्मनाभ मंदिर, चौगान (स्वरूप सागर) उदयपुरः (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) २८१) For Personal & Private Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५७३) शिलालेखः स्वस्ति श्रीसदनं ध्वस्तमदनवदनश्रियः। निरस्तकदनं नत्वा सुपार्श्व पशुमंहसः॥१॥ लिखामि प्रशान्तिं प्रशस्ता प्रशस्तिं........................."प्रशस्तावकीनाम्। त्वमेवाश्रसाहय्यमाव्रज्यनेन, रंजय्य समष्ट्या समक्षं विधत्तात् ॥ २॥ त्वां श्रेयसा श्रेष्ठतमं जगत्पतेः सम्प्रगृहशं श्रेष्ठ ................. स्वस्तिक-सेवनान् यथा नुत्पत्तितः प्रत्ययमत्र तन्वताम् ॥ ३॥ जिनेन्द्रचित्रं भरतश्चरित्रं प्रत्येतिकश्चित्विरलो विपश्चित्। मुमुक्षु...................."सत्त्वान्धमाश्चर्यकरं तदेतत् ॥ ४॥ चातुर्यमर्यं भवतोवतो जनान्, जनेन शेषेण कथं जिनेश तत्। शमे स्थितस्य प्रसभं धनतो रिपुः..............."साप्यतद्गृहः॥५॥ श्रीमद हत्खर तर गच्छे स्वच्छे भ० श्रीजिनवर्द्धनसूरि-सन्ताने श्रीजिनचन्द्र सूरि पट्ट - पूर्वाद्रिसूरलसद्विद्याविलास-पराकृत मरहट्ठ प्रभृति जनपद-विद्वद्घन श्रीमदर्हदुक्तानागारमाचारलब्धप्रतिष्ठ शिष्टचतुःषष्टिसुरेन्द्र.........सहस्र बिम्ब प्रतिष्ठापक भ० श्रीजिनसागरसूरिभिःसं०१६९५ वर्षे श्रीमेदपाटाधिपति महाराज श्रीअमरसिंह प्रभ.........................तटाकजलजीववधानां श्रीमदागरसमिरावनीसुर रा(ज्य).......................य ने न पावन पुन पुण न कर रोपित कृपाण चतुरुदधिपरतीरधरानिखात जयपताक मार्गणा(..............) चक्र चक्रवर्त्ति श्रीमत्साहिजहां.................चित्रत करोदत्त जनानां तस्यैव स्वपितृ श्रीमज्जहांगीर स्वद्ध..................युतदान हृष्ट परमसाहसिक रणरसिक हिन्दूपति श्रीजगतसिंह जिनगृहनवीनानां । तेनैव चत...............प्रसादीकृ तेन्द्रियकर २५ मित राजतमुद्रावार्षिकाणां पं० जयसिंह(....................)नाचार्य श्रीदयासागरगणी नामु (प) देशात्(अं)बाडीगोत्रशृंगारहार सा० श्री राघव पुत्ररत्न सा० किसनाकेन बृहद् भ्रातृ कल्याण............................"सा० हाथी पुत्रोदयभाण चतुर्भुज तत्लघुभ्रातृ हरचन्द पुत्र कर्मसी प्रमुख परिवार युतेन स्वपुत्ररत्न सा० सुन्दरदास स................... दिने उकेशवंशे नवलक्ष शाखायां सा० सारंग भार्या गोरादे पुत्री अमरी कारितस्य श्रीमुनिसुव्रतबिम्बस्य लोकोद........................विभवार्जितं लक्ष्मीलाभग्रहणाय कर्मक्षयाय च चैत्यरचनापूर्वं पदस्थापनं चक्रे। भ० श्री जिनचन्द्रसूरि सूरेषु......................सूरि सूरिराजेषु च प्राज्यं साम्राज्यं कुर्वत्सु ॥ संवति पाण्डव गगनाहर्मणिवाज्यास्यचन्द्रम् प्रमिते ज्येष्ठस्य वदि नवम्या............................कंदर्पसर्प सर्वधर्मद्विषद्भिः प्रयतैः प्रशस्तिः। प्रशस्तवर्णा जिनवर्द्धमानसूरीन्द्रवर्यै लिखिता श्रियेऽस्तु ॥ २॥ प्रय......................मण्डलाखाण्डितशासन महाराणा श्रीजगत्सिंहस्य विजयिराज्ये तेनैव च स्वकीयकरवितीर्णामात्यपदशालि दोशी........................गोत्रीय साह श्रीदशरथस्य पुत्र सा० लाधू सा० माधू सा० साधू प्रमुख परिवारयुतस्य श्रीसुपार्श्वपरमेष्ठिबिम्ब............... (उत्कीर्णा प्रशस्ति चैषा गजधर हरिवंशसुत जोगीदासेन।) (१५७४) एकतीर्थीः सं० १८२० वर्षे मिः मि- सु० ३ श्री भ० श्रीजिनलाभ सूरि. १५७३. पद्मनाभ मंदिर, चौगान (स्वरूपसागर), उदयपुरः १५७४. श्वे. जैन मंदिर, पटना : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३०२ (२८२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५७५) सं० १८२० वर्षे माघ सुदि ४ अर्कवासरे भ० श्रीजिनलाभसूरिजी प्र० श्री न० तत्पितृ ? हीरानंद पिम् कारी. सं० १८२० वर्ष मि: मा० .जिनः ............ । (१५७७ ) चन्द्रप्रभ - एकतीर्थी : सं० १८२० फाल्गुन सुदि २ बुधे प्रतापसिंहजी भार्या महताबकुंवर कारितं श्रीचन्द्रप्रभ श्रीसागरचन्द्रगणि प्रतिष्ठितं । ( १५७६ ) एकतीर्थी: सु० ५ श्री भ० जिनलाभसूरि प्र० धीरगोत्रे श्रे० मोतीचंद ( १५८८ ) जिनकुशलसूरि-रजतपादुका सं० १८२१ मिती वैशाख सुद २ श्रीजिनकुशलसूरिजी (१५७९ ) जिनकीर्तिसूरि- पादुका सं० १८२१ वर्षे शाके १६८६ प्र । माघ मासे शुक्लपक्षे त्रयोदशी तिथौ १३ रवौ श्रीविक्रमपुरवरे भट्टारक श्रीजिनकीर्त्तिसूरीणां पादुका कारापितं प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीजिनयुक्तिसूरिभि: श्रीबृहत्खरतराचार्यगच्छे ( १५८०) दादा - पादुका -युग्म ॥ श्री ॐ नमः॥संवत् १८२१ मिति माघ सुदि १५ दिने महोपाध्याय जी श्री १०८ श्रीसमयसुन्दरजीगणि गजेंद्राणां शिष्य मुख्योत्तम श्री १०५ हर्षनंदनजी शाखायां पंडितोत्तम प्रवर श्री ७ श्रीभीमजी श्रीसारङ्गजी तत्शिष्य पं० बोधाजी तत्शिष्य पं० हजारीनन्दस्य उपदेशेन सुश्रावक पुण्यप्रभावक कातेलगोत्रे साहजी श्रीसोभाचन्दजी तत् भातृ मोतीचन्दजी श्रीमत् बृहत्खरतरगच्छे जङ्गम युगप्रधान चूड़ामणि भट्टारक प्रभु श्री १०८ श्रीदादाजी श्रीजिनदत्तसूरिजी दादाजी श्री १०७ श्रीजिनकुशलसूरिसूरीश्वराणां पादुका कारापिता मकशूदावाद मध्ये प्रतिष्ठितं महेन्द्रसागरसूरिभिः॥ शुभमस्तु । ( १५८१) सुपार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १८२२ वर्षे वैशाख सुदि १३ गुरौ उसवंशज्ञातीय सा० साकरचन्द सुत सा० भाइचन्द स्वकुटुम्ब श्रेयोर्थं सुपार्श्वनाथ कारापितं श्रीसूर्यपूरे खरतरगच्छे । १५७५. चन्द्रप्रभ जिनालय, कालू: ना० बी०, लेखांक २५१५ १५७६. जैनमंदिर, पटना : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३०३. १५७७. शिखरचन्दजी का मन्दिर, वाराणसी : पू० जै०, भाग २, लेखांक १८७१ १५७८. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक १७९० १५७९. रेलदादा जी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०६५ १५८०. दादास्थान का मंदिर, बालुचर, मुर्शिदावाद : पू० जै०, भाग १, लेखांक ६७ १५८१.. इ ., शांतिनाथ जिनालय, कोट : मुम्बई: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३४० खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (२८३) Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५८२) मूर्तिः ॥ संवत् १८२२ वैशाख सुदि १३ गुरौ श्रीखरतरगच्छ आचार्यांय सा भीमजी सुत सा निहालचंदेन पं०...........कारापितं (१५८३) जिनयुक्तिसूरि-स्तूपलेखः (१) ॥ श्रीवषतकुंअरी नाम्नी माऊजी श्रीसोढीजीतः पुण्यकृतमिदं सि (२) ॥ ॐ ॥ संवत् १८२५ वर्षे शाके १६९० प्रवर्त्तमाने । मा(३) र्गशीर्षासित पंचमी सोमे। श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे म।। (४) हाराजाधिराज महारावल श्रीमूलराजजीविजयरा(५) ज्ये। सकलसूरिशिरोमणि भट्टारक श्रीजिनकीर्ति(६) सूरिराजानां पट्टप्रभाकर श्रीजिनयुक्तिसूरीन्द्राणां। । (७) स्तूपनिवेश: कारितं श्रीजेसलमेरुवास्तव्य श्रीबृहत् (८) खरतराचार्य श्रीसंघेन। प्रतिष्ठितश्व श्रीजिनयुक्तिसूरि(९) पट्टालंकार भट्टारक वृंदवृंदारकावतार श्रीजिनचन्द्र। (१०) सूरिराजैर्लिपी कृतं । पंडित भीमराज मुनिभिश्च ॥श्री॥ (११) दरवारसूं ऊपर ठाठ सिपाही धीरनदे ईदानांणी दरोगां। (१२) सिलावटां दरवाररां गच्छर गोदड़ नरसींगाणी॥ आचं॥ (१३) द्रार्के चिरं ते च सर्वदा श्रीसंघस्य सुकृतसुखश्रेयोवृद्धिकृते भ(१४) वेत्यमिति ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याणमस्तु ॥श्रीः॥ (१५८४) जिनविजयसूरि-स्तूपलेख: ॥ ६०॥ संवत् १८२५ वर्षे मृगशिरो सित पंचमी ५ सोमे। श्रीजेसलमेरु महादुर्गे । महाराजाधिराज महारावलजी श्रीमूलराजजी विजयराज्ये कुमार श्रीरायसिंघ जी जाग्रद्यौवराज्ये। युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनविजयसूरिराजानां स्तूपे पादुका कारिते।.प्रतिष्ठिते च श्रीजिनयुक्तिसूरि पट्टोदया अर्क युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि शिरोमुकुटैः॥ लिखितं पण्डिताणु भीमराज मुनिना ॥ श्रीसंघस्य सदैवाभिनवमंगलाय यातामिति ॥ श्री। श्री॥ बहुमानकारिणां श्रेयसेस्तु ॥१॥ (१५८५) जयराज-पादुका ॥ स्वस्ति॥ १८२५ मार्गशिरो सित पंचमी ५ सोमवारे भट्टारक श्रीजिनविजयसूरीन्द्राणां शिष्य पंडित जयराजमुनि पादुके कारिते प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। १५८२. जगतसेठ का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: पू० जै०, भाग २, लेखांक १८१७ १५८३. जिनचन्द्रसूरि का स्थान, दादाबाड़ी, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५०३ १५८४. दादाबाड़ी जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८६२ ।। १५८५. दादाबाड़ी, देदानसर जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८६१ (२८४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५८६) माणिक्यमूर्ति-पादुका संवत् १८२५ मिती फागण वदि ६ दिने शनिवारे श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिसंताने महो० माणिक्यमूर्तिजीगणि पादुका श्रीरिणी प्र०............। ____ (१५८७ ) आदिनाथ-एकतीर्थीः ___ सं० १८२७ । वै० । सु० । १२ गुढा वास्तव्येन सा० झांझा ऋषभजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतर। भ॥ श्रीजिनलाभसूरि (१५८८) जिनकुशलसूरि-पादुका ___ संवत् १८२७ वैशाख सुदि १२ शुक्रे दादा श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुका सा० भाईदासेनकारिता प्रतिष्ठिता च भट्टारक श्रीजिनलाभसूरिभिः। ___ (१५८९) जिनचन्द्रसूरि-पादुका संवत् १८२७ वैशाख सुदि द्वादशी तिथौ शुक्रे दादा श्रीजिनचन्द्रसूरीणां पादुका सा० भाईदासेनकारिता प्रतिष्ठिता च श्रीजिनलाभसूरिभिः। . __(१५९०) यु० जिनचन्द्रसूरि-पादुका संवत् १८२७ प्रवर्त्तमाने वैशाख शुदि १२ तिथौ शुक्रे अकब्बर प्रतिबोधक दादाश्रीजिनचन्द्रसूरि पादुका सा नेमिदास कारिता दास सुत भाईदासेन प्रतिष्ठिता बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनलाभसूरिभिः। (१५९१) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १८२८ मिती वैशाख सु० ६ श्रीजिनकुशलसूरि जी पादुका गुरुवारे (१५९२) शीतलनाथ-एकतीर्थीः सं० १८२८ वै० सु० १२ गुरौ सा। भाईदासेन शीतलजिनबिंबं कारितं प्र। खरतरगच्छे श्रीजिनलाभसूरिभिः सूरत बिं। (१५९३)धर्मनाथ: सं० १८२८ । वै० । सु। १२ गुरौ सेठ भाईदासेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनलाभ....... १५८६. दादाबाड़ी, रिणी (तारानगर): ना० बी०, लेखांक २४६४ १५८७. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नाहटो में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १५२५ १५८८. जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३४१ १५८९. आदिनाथ जिनालय, भायखला, मुम्बई : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३४२ १५९०. आदिनाथ जिनालय, भायखला, मुम्बई : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३४३ १५९१. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों मे, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४८६ १५९२. पार्श्वनाथ सेढू जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९८४ १५९३. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक ५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः २८५) For Personal & Private Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५९४) पद्मावती सं० १८२८ शा० १६९४ प्र० वै० सु० १२ गुरौ सा० । भाईदासेन श्रीपद्मावतीमूर्ति कारिता प्र। श्रीखरतरगच्छे...... (१५९५) मूलनायक-गौडी-पार्श्वनाथ: सं० १८२८ शा० १६९४ व० वै० सु० १३ गुरौ ओ० । वृ० शा० । भाईदासेन श्रीगौडीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च । श्रीखरतरगच्छे भ० । श्रीजिनलाभसूरिभिः॥ (१५९६) अनन्तनाथः सं० १८२८ शा० १६९४ वै० सु० १३ गुरौ से० । भाईदासेन अनन्तनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे भ। श्रीजिनलाभसूरिभिः सूरतबिंदरे। (१५९७) शिलापट्टः सं० १८२९ वर्षे शाके १६९४ प्रवर्त्तमाने आषाढ़ मासे शुक्ल पक्षे ६ गुरुवासरे स्वातनामनि नक्षत्रे स्थिते चन्द्रवंशे वेगवाणी गोत्रे सा० श्री अमीचंद जी तस्यात्मज साह श्रीवीभाराम जी तस्य भार्या चित्ररंग देव्यो मलताण वास्तव्यो भणसाली श्रा ताह (?) चोथमलजी तस्य पुत्री बाई वनीकेन कारापितं श्रीगौड़ीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं गच्छाधीश्वर भ० श्रीजिनलाभसूरिभिः॥ श्रीरस्तुः (१५९८) पार्श्वनाथ-मूलनायकः सं० १८३१ फा० सित ७ तिथौ श्रीगौड़ीपार्श्वनाथजिनबिंबं भ० श्री जिनलाभसूरिभिः प्रतिष्ठितं । वा० नयविजय गणि शिष्य पं० सुखरत्न शिष्य दयावर्द्धन कारापितं देशलसर मध्ये। (१५९९) जिनकुशलसूरि-पादुका , सं० १८३१ फा० सुद ७ श्री जिनकुशलसूरिजी पादुके (१६०० ) जिनदत्तसूरि-पादुका. सं० १८३१ फा० सुद ७ श्रीजिनदत्तसूरि पादुके (१६०१) देववल्लभगणि-पादुका सं० १८३५ वर्षे मि० वैशाख शुक्लैकादश्यां तिथौ पं० प्र० श्रीदेववल्लभजी गणि पादुका कारापिता श्री० १५९४. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक २४ १५९५. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, मुम्बई : बम्बई चिन्तामणि- लेखांक १ १५९६. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक २ १५९७. ऋषभदेव मंदिरस्थ पार्श्वनाथ जिनालय : नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४९० १५९८. पार्श्वनाथ जिनालय, नोखामंडी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२६४ १५९९. पार्श्वनाथ जिनालय, नोखामंडी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२६६ १६००. पार्श्वनाथ जिनालय, नोखामंडी बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२६५ १६०१. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०७५ (२८६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६०२ ) लाभकुशलगणि-पादुका संवत् १८३६ वर्षे मिति आश्विन शुक्ल विजयदशम्यां वा० श्रीलाभकुशलजी गणि पादुका स्थापिता। (१६०३ ) जिनकुशलसूरि- पादुका संवत् १८३७ वर्षे शाके १७०२ मासोत्तममासे शुभे शुक्लपक्षे तिथौ १३ बुधवासरे ओशवंशे सांडेचागोत्रे धर्ममूरति सा । ही० रायमलजी तत्बृहद्पुत्र सा० ही देवचंद ... .. रामगोपाल सकलपरिवार संयुक्तेन जंगमयुगप्रधान खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनकुशलसूरि दादादेव चरणपादुका कारितं प्र० श्रीमन्महेन्द्र सूरिभि:... I (१६०४) पद्मकुशलगणि-पादुका सं० १८३७ वर्षे माह सुदि ९ तिथौ भृगुवारे श्रीसागरचन्द्रसूरिशाखायां महो० श्रीपद्मकुशलजिद्गणिनां पादुके कारिते प्रतिष्ठापिते चेति श्रेयः । (१६०५) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८३९ आश्विन शुक्ल १५ दिने कौटिकगण चन्द्रकुलाधिराज श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं सिद्धचक्रयंत्रमिदं कारापितं कोठरी प्रतापसिंहेन स्वश्रेयसे वा० लावण्यकमलगणिनामुपदेशात् ( १६०६ ) सिद्धचक्रयन्त्रम् सं० १८३९ आश्विन शुक्ल १५ दिने कोटिकगण चन्द्रकुलाधिराज श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीसिद्धचक्रयंत्रं कारापितं सुराणा अभयचंद्रेण स्वश्रेयसे वा । श्रीलावण्यकमलगणिनामुपदेशात् (१६०७) सिद्धचक्रयन्त्रम् सं० १८३९ कार्तिक शुक्ल ११ दिने कोटिकगण चन्द्रकुलाधिराजः श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं सिद्धचक्र यंत्रमिदं कारापितं । लू । घासीराम । उत्तमचन्द्रादि सपरिकरै: स्वश्रेयसे । वा । लावण्यकमलगणिनामुपदेशात् ॥ (१६०८) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८४० वर्षे शाके १७३५ वैशाख शुक्ल चतुर्थीति सिद्धचक्रस्य श्रीभक्तिविलासगणि प्रतिष्ठितं । श्राविका राजाजी कारापितं अजीमगंजमध्ये १६०२. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०८१ १६०३. मोहनबाड़ी, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३६७ १६०४. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०७० १६०५. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १० १६०६. विजयगच्छीय मंदिर, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३७० १६०७. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३७१ १६०८. चन्द्रप्रभ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : भँवर० ( खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only २८७) Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६०९) शालालेख: (१) ॥ स्वस्ति श्रीरस्तु॥ संवत् १८४० मिति । मार्गशीर्ष मासे। बहु(२) लपक्षे। पंचम्यां तिथौ शुक्रवारे जेसलमेरुदुर्गे म(३) हाराजाधिराज महाराज श्रीमूलराजजीविजयिरा(४) ज्ये। कुंअर श्रीरायसिंहजीयौवराज्ये। श्रीबृहत्खर(५) तरगच्छाधीश्वर। भट्टारक श्रीजिनलाभसूरीश्वर पट्टालंका(६) र। भ। श्रीजिनचन्द्रसूरीणामुपदेशात् सकल श्रीसंघेन श्री (७) जिनकुशलसूरिसद्गुरुस्तूपपार्श्वे पूर्वस्यां पश्चिमायां च (८) अभिमुखं प्रतिशालाद्वयं कारितं च। तथा। (९) अग्रतः श्रीजिनलाभसूरिगुरुस्तूपः कारितः स्वश्रेयो(१०) र्थं । सर्वमेतत् श्रीसद्गुरुप्रसादान्निर्विघ्नं सञ्जातं ॥ श्री॥ (११) उस्ता। कंमू बीकानेरिया (१६१०) जिनलाभसूरि-पादुका सं० १८४० मिते मार्गशीर्षमासे बहुलपक्षपंचम्यां तिथौ शुक्रवारे श्रीजैसलमेरु द्रंगे श्रीबृहत्खरतरगच्छीय श्रीसंघेन भ। श्रीजिनलाभसूरीणां पादुके कारिते प्रतिष्ठिते च। भ। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ श्रीरस्तु॥ (१६११) सिद्धचक्रयंत्रम् श्री सिद्धचक्रो लिखतो मया वै। भट्टारकीयेन सुयंत्रराजः॥ श्रीसुन्दराणां किल शिष्येन। स्वरूपचंद्रेण सदर्थसिद्धयै ॥१॥ श्रीमन्नागपुरे रम्ये चंद्रवेदाऽष्ट भूमिते। अब्दे वैशाखमासस्य तृतीयायां सिते दले ॥२॥ (१६१२) सिद्धचक्रयंत्रम् सं० १८४२ मिति माघ कृष्ण ११ गुरुवासरे कौटिकगण चन्द्रकुलावतंस खरतरभट्टारक। जं॥ श्रीजिनचंद्रसूरीणामुपदेशात् कारापितं स्वश्रेयसे लूणिया उत्तमचन्द्रेण सिद्धचक्रयंत्र प्रतिष्ठितं। वाचक। लावण्यकमलगणिना __ (१६१३) धर्मनाथ पञ्चतीर्थी: सम्वत् १८४३ ई रै वे (वै) शाख सुदि ६ बुधे उसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां प्र० श्रीफतेलालजी तत्पुत्र साह श्रीसाकरलालजी बिम्बं धर्मनाथबिंबं (कारितं) श्रीबृहत्खरतरआचार्यगच्छे श्रीरूपचन्दजी अस्थायी भट्टारक ज० श्रीजिनचन्द्रसूरिराज्ये। १६०९. दादाबाड़ी, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५०२ १६१०. दादाबाड़ी, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८६० १६११. केशरियानाथ जी का मंदिर, मोतीचौक, जोधपुर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ६१३ १६१२. महावीर मंदिर, सांगानेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३७७ १६१३. तपागच्छीय जैन मंदिर, बालापुर : जै० धा० प्र० ले० सं०, लेखांक ३४५ (२८८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६१४) ऋषभदेवः संवत् १८४३ वै० सु० १५ पूर्णिमा तिथौ रविवासरे बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनभक्तिसूरि-पट्टालंकार भट्टारक श्री १०५ श्रीजिनलाभसूरिभिः ।............... श्रीरामविजयादी प्रमुखै सहूक.........आदेशात् सनीपुर.....श्रीऋषभदेवजी........... (१६१५) सिद्धचक्रयंत्रम् श्री संवत् १८४३ मिति मार्गशीर्ष तृतीयातिथौ श्रीमद् बृहत् खरतरगच्छे साह जी श्रीतिलोकचन्दजित्कस्यात्मज सा० श्रीजदूसिंघदासजी श्रीसिद्धचक्र कारापितं। जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। लिखितं पं० ॥ चातुर्यनंदि मुनिना॥ (१६१६) जयवल्लभस्तूपचरणलेख: (१) ॥ॐ ॥ श्रीपार्श्वनाथाय नमः॥ संवत् १८४३ वर्षे शाके (२) १७०८ प्रवर्त्तमाने मार्ग० मासे कृष्णपक्षे नवम्यां ९ तिथौ शुक्रे (३) स्वातिनक्षत्रे धृतियोगे तैतलकरणे एवं पंचांग शुद्धौ ॥ श्रीजेसल(४) मेरुदुर्गे। रावलजी श्री १०५ श्रीमूलराजजीविजयराज्ये श्री (५) मत्खरतरवेगडगच्छे भट्टारक श्री १०७ श्रीजिनेश्वरसूरिविजय (६) राज्ये। महोपाध्याय श्री १०५ श्रीजयोवल्लभजी गणीनां धुंभ पा(७) दुका कारापितं प्रतिष्ठितं च पंडित। रूपचंद्रेण तच्छिष्य (८) चिरं तिलोकचंद किसनचंद सहिताभ्यां ॥ शुभं भवतु॥ (९) ॥ सिलावट जेसा तत्पुत्र सिवदानकेन कृतं (१६१७) शिलालेखः ॥ संवत् १८४४ शाके १७१० वैशाख मासे शुक्ल पक्षे ३ तिथौ गुरुवारे महाराजाधिराज महाराजश्री १०८ श्रीविजयसिंहजी विजयराज्ये श्रीहमीरपुरे बृहत्खरतरगच्छे सवाईयुगप्रधान। श्री १०८ जिनचन्द्रसूरिशाखायां। श्रीसुमतिविमलजीगणिशिष्य वा० श्रीसुमतिसुन्दरजीगणिशिष्य पं० प्र० श्रीसुमतिहेमजीगणिशिष्य वा० श्री१०५ श्रीकुशलभक्तिजीगणी सद्गुरुनाम छत्री कारापिता शिष्य पं० रूपधीर हितधीराभ्यां। श्री संघेन सानिध्यात् कृता। (१६१८) सुमतिहेम-पादुका ॥ संवत् १८४४ शाके १७१० वैशाख शुक्ल ३ गुरुवारे पं० प्र० श्री १०८ श्रीसुमतिहेमजी नाम पादुके कारापितम् प्रतिष्ठितम्॥ १६१४. केशरियानाथ का मंदिर, मेवाड़ : पू० जै०, भाग १, लेखांक ६३८ १६१५. विमलनाथ जिनालय, जैसलमेरपू० जै०, भाग ३, लेखांक २४४४ १६१६. श्मशान, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५१० १६१७. नेमिनाथ जिनालय, राणीसर तालाब, फलौधी: १६१८. नेमिनाथ जिनालय, राणीसर तालाब, फलौधी: (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (२८९ For Personal & Private Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६१९) सुमतिसुन्दर-पादुका ॥ संवत् १८४४ शाके १७१० वैशाख शुक्ल ३ गुरुवारे वा० । श्री १०८ श्रीसुमतिसुन्दरजीणाम् पादुके कारापिता प्रतिष्ठिता॥ (१६२०) शिलालेखः संवत् १८४४ मिते वैशाख सुदि ५ रवौ। श्रीबालूचरपूरे। भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिजी विजयराज्ये वाचनाचार्य श्रीअमृतधर्म गणिनां पं० क्षमाकल्याण गणिः। तच्च कुमारादियुतानामुपदेशतः श्रीमकसूदावाद वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन श्रीसम्भवजिनप्रासादकारितः प्रतिष्ठापितश्च विधिना। सतां कल्याणवृध्यर्थम् ॥ (१६२१) उपाश्रयलेखः स्वस्ति श्री संवत् १८४५ वर्षे शाके १७१० प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे कृष्णपक्षे जन्माष्टमीतिथौ रविवासरे महाराजाधिराज महाराजा श्री १०८ श्रीसूरतसिंहजी विजयराज्ये भट्टारक श्री १०८ श्रीजिनचन्द्रसूरिजी विजयराज्ये उपाध्यायजी श्री ५ श्रीजसवन्तजी गणि वा० पद्मसोम पं० मलूकचन्द्रमुपदेशात् श्रीबीकानेरी बृहत्खरतराचार्यगच्छीय समस्त श्रीसंघेन पौषधशाला कारापितं कृत्वा च उस्ता असमान विरामेन। श्रीरस्तुः। . (१६२२ ) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १८४६ मिति वैसाख सुदी १३................। — (१६२३) विनयहेम-पादुका सं० १८४६ वर्षे आषाढ़ शुक्ल...........प्रवर श्रीविनयहेमगणिनां पादुके प्रतिष्ठितं श्रीस्यात् भ० श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां। (१६२४) वर्धमानस्तूप-चरणलेखः' (१) ॥ श्रीपार्श्वजिनं प्रणम्य ॥ सं० १८४६ वर्षे शाके १७११ प्रवर्त्तमाने महा(२) मांगल्यप्रदे मासोत्तममासे मिगसरमासे शुक्लपक्षे तिथि ९.दिने । वार गुरु श्री(३) मत्खरतर श्रीवेगडगच्छशाषे। श्री १०८ श्रीजिनेश्वरसूरीश्वरान् विजय राज्ये पं० (४) श्रीवधमानजी उपरे धुंभ कारापिता प्रतिष्ठिता॥ श्रीमहाराजाधिराज महारा(५) ज श्रीरावलजी श्री १०८ श्री श्रीमूलराजजी। कुंवरजी श्रीरायसिघंजी विजय (६) राज्ये ॥ दुहा ॥ जब लग मेरु अडग है। जब लग ससिहर सूर। जब लग या धुंभ........। र(७) हिगो सदा भरपूर ॥ शुभं भवतु ॥ (८) श्रीकल्याणमस्तु॥ १६१९. नेमिनाथ जिनालय, राणीसर तालाब, फलौधी: १६२०. सम्भवनाथ जिनालय, बालुचर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ४५ १६२१. बड़े उपाश्रय का शिलालेख, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २५४३ १६२२. जैनमंदिर तुंगिया नगरी : पू० जै०, भाग १, लेखांक २३२ १६२३. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०९२ १६२४. श्मशान, जैसलमेर, पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५११ (२९०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६२५) जिनलाभसूरि- पादुका संवत् १८४७ मिते माघ सुदि द्वितीयायां शनौ श्रीबृहत्खरतरगच्छे । भ० । जं० । यु० भट्टारक श्रीजिनलाभसूरिपादुके प्रतिष्ठिते च । श्रीजिनचंद्रसूरिभिः कारिते च । ग्यानसारिणा ॥ (१६२६ ) मतिविजया - पादुका सम्वत् १८४८ शाके १७१३ वर्षे मिति वैशाख शुक्ल ३ तिथौ भृगुवासरे श्री मत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनरङ्गसूरिशाखायां साध्वीमहत्तरा मतिविजयाकस्य पादुका शिष्यनी रूपविजिया पावापूरी मध्ये प्रतिष्ठापिते: (१६२७) दादागुरु-पादुके सं० १८४८ मिति ज्येष्ठ कृष्ण ८ तिथौ बुधवारे । भ । श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ भ। श्रीजिनकुशलसूरिजी पादुका ॥ भ । श्रीजिनदत्तसूरिजीरा पादुका । (१६२८ ) जिनमातृकापट्टः संवत् १८४८ मिति भाद्र सुदि ११ तिथौ ॥ श्री पाटलिपुत्रे माल्हू गोत्रे सा० हुकुमचन्दजी पुत्र गुलाबचन्द भार्या फुल्लो बीबीकया इष्टसिध्यर्थं श्रीचतुर्विंशतिजिनमातृस्थापना कारिता प्रतिष्ठिता च श्रीजिनभक्तिसूरि प्रशिष्य श्री अमृतधर्म वाचनाचाय्यैः श्री रस्तु । (१६२९ ) स्थूलभद्र - पादुका सं० १८४८ ॥ भाद्र सुदि ११ श्रीसंघेन । श्रुतकेवलि श्रीस्थूलभद्राचार्याणां देवगृहं कारयित्वा तत्र तेषां चरणन्यासः कारितः प्रतिष्ठितं श्री अमृतधर्मवाचनाचार्यैः॥ (१६३०) अतिमुक्तक-पादुका सं० १८४८ मिती कातिक सुदि ७ तिथौ । श्रीसंघेन । श्रीविपुलाचले मुक्तिंगतस्यातिमुक्तकमुने मूर्त्तिः कारिता। प्रतिष्ठिता च श्रीअमृतधर्मवाचकैः । ( १६३१ ) विंशति - जिनपट्टः संव्वत् १८४८ मिते माघ वदि ३ तिथौ श्रीसंघेन श्रीसम्मेतशिखरपार्श्ववर्तिमधुवनमंडनविहारे श्री अजितादिविंशतिजिनपट्टकारिता प्रतिष्ठिताश्च श्रीसूरिभिः ॥ पं० जयकल्याण. १६२५. सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३८२ १६२६. जलमंदिर परिसर, पावापुरी : पू० जै०, भाग १, लेखांक २०६ १६२७. जैनमंदिर, दीनाजपुर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ६३३ १६२८. जैनमंदिर, पाटलिपुत्र : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३०५ १६२९. स्थूलभद्र का मंदिर, पटना: पू० जै०, भाग १, लेखांक ३३० १६३०. जैनमंदिर, विपुलाचल पर्वत, राजगृह : पू० जै०, भाग १, लेखांक २४६ १६३१. शुभस्वामी की देहरी, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर०; जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३४६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only ....... (२९१) Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६३२) अमरविजय-पादुका संवत् १८४९ वर्षे मिती वैशाख वदि १४ शुक्रे श्रीकीर्तिरत्नसूरिसंताने उपाध्याय श्री अमरविजयगणयो दिवंगतास्तेषां पादुके कारिते श्री गडालय मध्ये ॥ संवन्निधिजलधिवसुचंद्रप्रमिते चैत्र कृष्ण द्वादश्यां सूर्यतनय वासरे। जं० । यु। प्र। श्रीजिनचंद्रसूरिसूरीश्वरैः श्री उ। अमर विजय......मिमे पादुके........ ___ (१६३३) देवचन्द्रगणि-मतिरत्न-पादुके संवत् १८४९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १२ वार शुक्रे आचार्यखरतरगच्छे वा० रायचंदजी तच्छिष्य पं । प्र० । श्रीचंद्रकारापिता। उ। श्रीदेवचद्रंगणिना पादुका वा। मतिरत्न गणिनां पादुका (१६३४) चन्द्रप्रभ-पादुका ॥ संवत् १८४९ माघमासे शुक्लपक्षे पंचमी तिथौ बुद्धवारे। श्रीचंद्रप्रभुजिनस्य चरणन्यासः श्रीसंघाग्रहेण। श्री बृहत्खरतरगच्छीय। जंगम। युगप्रधान भट्टारक। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। प्रतिष्ठितः॥ श्री॥ (१६३५) पार्श्वनाथ-पादुका संवत् १८४९ मिति माघमासे शुक्लपक्षे पंचमी तिथौ बुधवारे श्रीपार्श्वनाथजिनस्य चरणन्यासः श्री संघाग्रहेण । श्रीबृहत्खरतरगच्छीय। जंगम। युगप्रधान भट्टारक। श्री जिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितः श्रीरस्तु॥ __ (१६३६) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १८५० मिते वैशाख शुक्ल ३ भृगुवासरे बृहत्खरतरगच्छे भ० ज० यु० भ० श्रीजिनकुशलसूरिपादुका चूरू श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठितं च भ० ज० भ० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः।। (१६३७) अमृतोदय-पादुका | ॥ संवत् १८५० रा मिति ज्येष्ठ सुदि दशम्यां बुधवासरे। पं० । प्र। श्रीअमृतोदयजित्कस्य पादुके कारापिते पं। हेतोदयेन प्रतिष्ठिते च भ। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः रत्नवत्यां श्रीस्यात्। (१६३८) अमृतोदय-पादुका ॥ संवत् १८४० रा मिति ज्येष्ठ सुदि दशम्यां बुधवासरे। पं०। श्रीअमृतोदयजित्कस्य पादुके कारापितं पं। हेतोदयेन प्रतिष्ठिते च भ। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः रत्नवत्यां श्रीस्यात्। १६३२. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२९७ १६३३. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर०(अप्रका०), लेखांक १५ १६३४. चन्द्रप्रभ टोंक, सम्मेतशिखर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३५८ १६३५. सम्मेतशिखर: पू० जै० भाग २, लेखांक १८०७ १६३६. शान्तिनाथ जिनालय चुरू : ना० बी०, लेखांक २४०४ १६३७. श्मसान, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३८६ १६३८. अमृतसागर दादावाड़ी, रतलामः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३८५ (२९२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६३९) पादुका-चतुष्क सं० १८५० मि० ज्येष्ठ सुदि ६ तिथौ श्रीबृहत्खरतरगच्छेश श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये श्रीबीकानेर वास्तव्य श्री............युगप्रधान-गुरुपादन्यास कारिता प्रतिष्ठापिताश्च श्री॥ श्रीजिनदत्तसूरीणां । श्रीजिनकुशलसूरीणां । श्रीजिनचंद्रसूरीणां । श्रीजिनसिंहसूरीणां ॥ (१६४०) पादुका ॥ संवत् १८५० वर्षे मिति ज्येष्ठ सुदि दशम्यां १० बुधवासरे पं। प्र। श्रीहितसेदबरजित्कस्य(?) पादुके कारापिते। पं। दीपचन्द्रेण प्रतिष्ठिते च भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः रत्नवत्यां श्रीरस्तु॥ - (१६४१) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १८५० मिते माघ शुक्ला ५ श्री जिनकुशलसूरि पादुके कारिते वा० चारित्रप्रमोद गणिना प्रतिष्ठिते च ॥ श्री बृहत्खरतरगच्छे। भ। जं। यु। भ। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । (१६४२ ) जिनदत्तसूरि-पादुका ॥ संवत् १८५१ वर्षे वैशाख सुदि ३ तिथौ शुक्रे श्रीमत् श्रीजिनदत्तसूरिसुगुरूणां चारणांबुजे सकलसंघेन विन्यसिते प्रतिष्ठिते च। भ। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्री चूरू नगरमध्ये शुभं भवतुतरामिति ॥ (१६४३ ) सिद्धचक्र-यंत्र-रौप्यमय संवत् १८५२ मिते आषाढ़ सुदि १० दिने। शुक्रवारे। पद्मादेव्युपाश्रये सत्क समस्त श्राविकाभिः श्रीसिद्धचक्रयंत्रोद्धार कारितः प्रतिष्ठापितश्च ॥ भ० ॥ जिनचंद्रसूरिविजयराज्ये। पं० । कृपाकल्याणगणिना प्रतिष्ठितः॥ (१६४४) जिनदत्तसूरि-पादुका सं० १८५२ मिते आषाढ़ सुदि १० श्रीजिनदत्तसूरीणां पादन्यास श्रीसंघेन कारितः। (१६४५) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ संवत् १८५२ पौष सुदि ४ दिने। बृहस्पतिवासरे। श्रीसिद्धचक्रयंत्रमिदं प्रतिष्ठितं । वा। लालचंद्रगणिना। कारितं । सवाईजयनगर वास्तव्य सेठ। वखतमल। तत्पुत्र सुखलालेन श्रेयोर्थं ॥ १६३९. वासुपूज्य जिनालय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १३८४ १६४०. अमृतसागर दादाबाड़ी, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३८४ १६४१. दादासाहब की बगीची, चुरू : ना० बी०, लेखांक २४१७ १६४२. दादासाहब की बगीची, चूरू : ना० बी०, लेखांक २४१८ १६४३. तपागच्छ का उपाश्रय, जैसलमेर: पृ० जै०, भाग ३, लेखांक २४९० १६४४. दादाबाड़ी जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८७० १६४५. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३८९ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (२९३) For Personal & Private Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६४६) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८५२ पौष सुदि। ४ दिने । बृहस्पतिवासरे श्रीसिद्धचक्रयंत्रमिदं । प्रतिष्ठितं । सवाई जैनगरमध्ये वा। लालचन्द्रगणिना। बृहत्खरतरगच्छे। कारितं । बीकानेर वास्तव्य कोठारी जैठमल्लेन श्रेयो) ।। श्री॥ (१६४७) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८५२ वर्षे पोष सुदि ४ दिने सिद्धचक्र यंत्रमिदं प्रतिष्ठितं । वा। लालचन्द्रगणिना कारिता सवाई जयनगरमध्ये समस्तश्रीसंघेन। बृहत्खतरगच्छे। शुभमस्तु । (१६४८) सिद्धचक्रयंत्रम् सं० १८५२ पोस सुदि ४ दिने बृहस्पतिवासरे श्री सि० च० यं० मिदं प्र० लालचन्दगणिना कारितं जैनगरवास्तव्य श्रीमाल रत्नचंद टोडरमल्लेन श्रेयोर्थं । (१६४९ ) सिद्धचक्रयंत्रम् सं० १८५२ पौष सुदि ४ दिने बृहस्पतिवासरे। श्रीसिद्धचक्रयन्त्रमिदं । प्रतिष्ठितं । सवाईजयनगरमध्ये। वा। लालचन्द्रगणिना। बृहत्खरतरगच्छे कारितं । बीकानेर वास्तव्य। सारंगाणी गोत्रे । ढड्ढा । धरमसी। तत्पुत्र कपूरचन्द्रेण श्रेयो) । (१६५०) सिद्धचक्रयंत्रम् संवत् १८५२ पोस सुदि ४ दिने बृहस्पतिवासरे श्रीसिद्धचक्रयंत्रमिदं प्रतिष्ठितं जैनगरमध्ये वा० लालचन्द्रगणिना बृहत्खरतरगच्छे कारितं बीकानेर वास्तव्य जैठमल्लेन श्रेयोर्थं ॥ श्री ॥ (१६५१) सिद्धचक्रयंत्रम् संवत् १८५२ पौष सुदि ४ दिने। बृहस्पतिवासरे श्रीसिद्धचक्रयंत्रमिदं प्रतिष्ठितं सवाई जैनगर मध्ये वा० लालचन्द्र गणिना कारितं बीकानेर वास्तव्य कोठरी अनोपचंद तत्पुत्र जेठमल्लेन श्रेयोर्थं शुभं भवतु॥ (१६५२) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥संवत् १८५२ पौष सुदि ४ दिने बृहस्पतिवासरे। श्री सिद्धचक्रयन्त्रमिदं । प्रतिष्ठितं । वा० लालचन्द्र गणिना। सवाई जयनगर मध्ये कारितं कोठारी स्वरूपचन्द्रेण श्रेयोर्थं ॥ (१६५३) शिलालेखः श्री सिद्धचक्राय नमः॥ श्रीवाचनाचार्यपदप्रतिष्ठा गणीश्वरा भूरिगुणैर्वरिष्ठा। सत्यप्रतिज्ञामृतधर्म१६४६. सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३९० १६४७. नयामंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २ लेखांक ३९१ १६४८. नवघरे का मंदिर, दिल्ली : पू० जै०, भाग १, लेखांक ५१६ १६४९. संभवनाथ जिनालय, आंचलियों का वास, देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२२७ १६५०. सुमतिनाथ जिनालय, जयपुरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १२०५ १६५१. सुपार्श्वनाथ जी का मंदिर, घीया मंडी, मथुरा : पू० जै०, भाग २, लेखांक १४४१ १६५२. शांतिनाथ मंदिर, भूरों का आथूणा वास, देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२४० १६५३. श्रीअमृतधर्म स्मृतिशाला, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८४१ (२९४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा जयन्तु ते सद्गुरवो गुणज्ञाः॥ १॥ गणाधिपश्रीजिनभक्तिसूरि प्रशिष्य संघातसुविश्रुतानां । यैषाजजिहि श्रीमति वृद्धशाखे ऊकेशवंशेजनि कच्छदेशे ॥ २॥ भट्टारकश्रीजिनलाभसूरयः श्रीयुत प्रीत्यादिमसागराश्च ये आसन् सतीर्था किल तद् विनेयतामवाप्य यैः प्राप्तमनिन्दितं पदं। ३ । शत्रुजयाद्युत्तमतीर्थयात्रयोः सिद्धान्तयोगोद्वहनेन हारिणाः संवेगरंगाद्रितचेतसा पुनः पवित्रितं यैर्निजजन्मजीवितं ॥ ४॥ जिनेन्द्रचैत्यप्रकरो मनोरमो वरौ यः हेनकलशैर्विराजितः व्यधायि संघेन च पूर्वमण्डले येषां हि तेषामुपदेशतः स्फुटम्॥ ५ ॥ प्रभूतजन्तुप्रतिबोध्य यः पुनः स्वर्गं गता जैसलमेरु सत्पुरे। समाधिना चन्द्रशराष्टभूमिते संवत्सरे माघ सिताष्टमी तिथौ॥६॥स्थानांगसूत्रोक्तवचानुसाराद्विज्ञायते देवगतिस्तु येषां । यतो मुखादात्मविनिर्गमोभूत् साक्षात् सुविज्ञानभृतो विदंति ॥ ७॥ एवं विधाय श्रीगुरवः सुनिर्भरं कृपापराः सर्वजनेषु साम्प्रतं। क्षमादिणकल्याण प्रति स्वयं प्रमोदक द्राग् ददतु स्वदर्शनम्॥ ८॥ इत्यष्टकम्॥ संवत् १८५२ मिते पोष सुदि ५ तिथौ महाराउल श्री मूलराजजी विजयि राज्ये॥भ॥ श्रीजिनचन्द्रसूरिजी धर्मराज्ये श्रेयोर्थ निर्मापिता क्षमाकल्याणगणिभिर्लिखिताक्षर धोरणी उत्कीर्ण शिवदानेन सूत्रधारेण हारिणी॥९॥ पं० विवेकविजयो नमति सद्गुरुन्॥ (१६५४) सिद्धचक्रयंत्रम् सं० १८५२ पौष सुदि ४ बृहस्पतिवासरे श्री सिद्धचक्रयंत्रमिदम् प्रतिष्ठितं वा। लालचन्द्रगणिना कारितं सवाई जैनगर वास्तव्य से० वषतमल तत् पुत्र सुखलालेन श्रेयोर्थं । (१६५५ ) जिनभक्तिसूरि-पादुका सं० १८०४ मिते ज्येष्ठ सुदि ४ तिथौ श्रीकच्छ देशे माडंवी बिंदरे स्वर्गंगताना श्रीजिनभक्तिसूरीणां पादन्यासः सं० १८५२ मिते पोष सुदि ५ तिथौ कारितं श्रीसंघेन प्रतिष्ठितश्च वा० क्षमाकल्याणगणिभिः (१६५६) प्रीतिसागर-पादुका ॥ सं० १८०८ मिते कार्तिक वदि १३ तिथौ श्रीबीकानेरनगरे स्वर्गगतानां श्रीप्रीतिसागरगणिनां पादन्यासः सं० १८५२ मिते पौष सुदि ५ तिथौ श्रीसंघेन कारितं प्रतिष्ठितश्च वा० क्षमाकल्याणगणिभिः (१६५७) अमृतधर्म-पादुका . सं० १८५२ मिते पोष सुदि ५ तिथौ श्रीजिनचन्द्रसूरि विजयराज्ये वाचनाचार्य श्रीअमृतधर्मगणीनां पादन्यासः श्रीसंघेन कारितः प्रतिष्ठितश्च वा० क्षमाकल्याणगणिभिः (१६५८) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८५३ वर्षे वैशाख सुदि। शुक्लपक्षे तिथौ। ४ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं । वा। लालचन्द्र गणिना। कारितं जेसलमेरुवास्तव्य । बोहरा गोत्रे बाई । मङ्गली। सुश्राविकया। श्रेयोर्थ । शुभभवतुः॥ १६५४. सुपार्श्वनाथ जी का पंचायती बड़ा मंदिर, जयपुर : पू० जै०, भाग २, लेखांक ११७८ १६५५. अमृतधर्म स्मृति शाला, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८४३ १६५६. अमृतधर्म स्मृति शाला, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८४४ १६५७. श्रीअमृतधर्म स्मृतिशाला, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८४२ १६५८. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३९४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (२९५) For Personal & Private Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६५९ ) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ संवत् १८५३ केषु । वैशाखमासे । शुक्लपक्षे । तिथौ । ६ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं वा । लालचन्द्र गणिना । कारितं । सोज्झित नगर वास्तव्य । उसवालज्ञातीय । बलाही गोत्रे । ओटामल श्रेयोर्थम् ॥ श्रीः ॥ (१६६० ) सिद्धचक्रयंत्रम् सं० १८५३ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे तिथौ ६ सिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं वा० लालचंद्रगणिना बृहत् खरतरगच्छे कारितं बीकानेर वास्तव्य बांठीया गोत्रे नथमल मोतीचंद्रेण श्रेयोर्थं ॥ (१६६१ ) दादा - पादुके ॥ सं० १८५३ वर्षे आश्विन सुदि विजयदशम्यां श्रीजिनदत्तसूरि - जिनकुशलसूरिपादुके श्रीमरुदेशवास्तव्य श्रीसंघेन प्रतिष्ठिते च श्रीखरतराचार्यगच्छीय जं० यु० भ० प्र० । श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयि राज्ये पं० । सिद्धिसेनेन मुनिना शुभंभवतु ॥ श्रीउज्जैनी पुर्यां सराफा मध्ये धर्मशालायाम् ॥ श्री || (१६६२ ) पादुका संवत् १८५४ वर्षे वैशाख सित पंचमी गुरुवासरे भावहर्षसूरि.. श्रीजिनचन्द्रसूरि. उदयवल्लभजीना पादुका पंकजानां च कारापिते श्रीजिनसूरिजी प्रतिष्ठिते श्री सिद्धाचले ॥ ( १६६३) पार्श्वनाथ: संवत् १८५४ वर्षे माघ वद ५ चंद्रे श्रीमत्खरतरपीपलगच्छे भ । श्रीजिनदेवसूरिवरराज्ये ओसवंश वृद्धशाखायां नाकोड़ा श्रीपार्श्वजिनबिंबं कारितं पं । पद्मविजे प्रतिष्ठितं ( १६६४ ) ॥ स्वस्ति श्री संवत् १८५५ वर्षे शाके १७२१ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे वै० मासे शुक्लपक्षे एकादशी ११ तिथौ बुधवासरे श्री बृहत्खरतरगच्छे पीपली भट्टारक श्रीजिणहर्षसूरिशिष्य पंडत गोकलथापी गुणहर्षेण श्रीपंच स्थापना करत्त श्रीजिणदेवसूरि आदेसात् श्रीउदेयपुर नगरे थोब करा महाराणाजी श्री भीमसिंघजी विजय राज्ये ॥ हुकम सदीर । ( १६६५ ) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८५५ प्रमिते। आश्विन शुक्ल पौर्णिमास्यां बुधवासरे । मरोटी। तनसुखराय तत् भार्या बिजू श्राविकया। श्रीसिद्धचक्रयन्त्रमकारि । प्रतिष्ठितं च । वाचक । लावण्यकमलगणिभिः ॥ श्रीग्वालेर मध्ये । श्रेयोर्थम्॥ १६५९. पंचायती मंदिर, जयपुर, प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३९५ १६६०. शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय, आसानियों का चौक, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९१४ १६६१. दादाबाड़ी, सराफा, उज्जैन : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३९६ १६६२. छीपावसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ), लेखांक २३ १६६३. कानपुर वालो का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : पू० जै०, भाग २, लेखांक १८२८ १६६४. वासुपूज्य जिनालय, तोरण वावडीमार्ग, बड़ा बाजार, उदयपुरः १६६५. चन्द्रप्रभ मंदिर, आमेर, प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४०० (२९६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६६६) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ संवत् १८५५ प्रमिते मिती आश्विन शुक्ल पूनिम तिथौ बुधवासरे श्रीबीकानेर स्थित सूराणा विनयचंदजी तत्पुत्र धर्मदासेन श्रीसिद्धचक्रयन्त्रमकारि ॥ प्रतिष्ठितं च। वा। लावण्यकमलगणिना। श्रेयोर्थं ॥ श्री॥ श्री॥ (१६६७) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८५५ प्रमिते। आश्विन शुक्ल पौर्णिमास्यां बुधवासरे। श्रीबीकानेरस्थित । सू० विनयचंद। तत्पुत्र । अभयराजेन श्रीसिद्धचक्रयन्त्रं कारितं । प्रतिष्ठितं च वा। लावण्यकमलगणिना। श्रीग्वालेर मध्ये॥ श्रीः॥ (१६६८) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८५५ वर्षे आश्विन शुक्ल १५ दिने सिद्धचक्रं यंत्रमिदं । प्रतिष्ठितं वा। लावण्यकमलगणिना। कारितं श्री नागोरनगरवास्तव्य लोढागोत्रे ज्ञानचंद्रेण श्रेयोर्थं ॥ श्रीरस्तु ।। __ (१६६९) शुभगणधरमूर्तिः संवत् १८५५ फाल्गुण शुक्ल तृतीयायां रवौ श्रीपार्श्वनाथस्य शुभस्वामीगणधरबिंबं प्रतिष्ठितं जिनहर्षसूरिभिः कारितं च बालुचर वास्तव्य श्रीसंघेन। . (१६७०) अजितनाथः संवत् १८५६ वैशाखमासे शुक्लपक्षे बुधवासरे ३ तिथौ श्री अजितनाथस्वामिबिंब प्रतिष्ठितं । श्री जिनचन्द्रसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे कारितं मकसुदावाद वास्तव्य....... । (१६७१) चन्द्रप्रभः सं० १८५६ वैशाखमासे शुक्ल तिथौ ३॥ बुधवासरे। श्री चन्द्रप्रभजिनबिंबं प्रतिष्ठितं भ० । श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। बृहत्खरतरगच्छे कारितं च। बीकानेर वास्तव्य कोठारी अनोपचंद तत्पुत्र जेठमलेन श्रेयोर्थं ॥ (१६७२) वासुपूज्यः संवत् १८५६ वैशाखमासे शुक्लपक्षे बुधवासरे ३ तिथौ श्रीवासुपूज्यस्वामिबिंबं प्रतिष्ठितं श्री जिनचन्द्रसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे अजिमगञ्ज वास्तव्य कारितं गोलेच्छा गोत्रे श्राविकया कारि॥ १६६६. लीलाधर जी का उपाश्रय, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४०१ १६६७. चन्द्रप्रभ मंदिर, खोह : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४०२ १६६८. पंचायती मंदिर, सराफा बाजार, ग्वालियर : पू० जै०, भाग २, लेखांक १४१७ १६६९. जैनमंदिर मधुवन, सम्मेतशिखर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३३८ १६७०. चम्पापुरी तीर्थ : पू० जै०, भाग १, लेखांक १३८ १६७१. चम्पापुरी तीर्थ : पू० जै०, भाग १, लेखांक १३९ १६७२. चम्पापुरी तीर्थ : पू० जै०, भाग १, लेखांक १४२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) २९७ For Personal & Private Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६७३) शांतिनाथः संवत् १८५६ वैशाखमासे शुक्ल प० ३ दिने श्री शांतिनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं । खरतरगच्छाधिराज भ० । श्रीजिनलाभसूरि पट्टालंकार । भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः कारितं । समस्त श्रीसंघेन श्रेयोर्थं (१६७४) महावीरः ___सं० १८५६ वैशाखमासे शुक्लपक्षे बुधवासरे। तृतीया तिथौ। श्रीमहावीरस्वामिबिंबं प्रतिष्ठितं । भ० । श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। बृहत्खरतरगच्छे कारितं समस्त श्रीसंघेन श्रेयोर्थं। (१६७५) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १८५६ वैशाख शुक्ल पक्षे तृतीयायां तिथौ श्रीजिनकुशलसूरिपादुके प्रतिष्ठितं भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे कारितं । समस्त श्रीसंघेन श्रेयोर्थं । ___ (१६७६ ) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८५६ वर्षे वैशाखमासे शुक्लपक्षे तिथौ ३ बुधवासरे श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं भ० जिनअक्षयसूरि पट्टालंकार श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः जयनगर वास्तव्य श्रीमालान्वये सींधड़ गोत्रीय किसनचन्द्र तत्पुत्र उदयचन्द्र सपरिकरेण कारितं स्वश्रेयोर्थं ॥ (१६७७ ) सिद्धचक्रयंत्रम् सम्वत् १८५६ वर्षे वैशाखमासे शुक्लपक्षे तिथौ ३ बुधे श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं श्रीजिनअक्षयसूरि पट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः जयनगर वास्तव्य श्रीमालान्वये झरगड़ गोत्रीय सुश्रावक खुबचन्द तत्पुत्र रोसनराय वृद्धिचन्द खुस्यालचन्द स्वरूपचन्द मोतीचन्द रूपचन्द सपरिकरेण कारितं स्वश्रेयोर्थं॥ (१६७८) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८५६ वर्षे वैशाखमासे शुक्लपक्षे तिथौ ३ बुधे श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं श्रीमबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः जयनगरवास्तव्य श्रीमालान्वये महिमवालगोत्रीय खूबचंद त० फतेचंद सपरि० कारितं स्वश्रेयोर्थम्॥ (१६७९) पादुकालेखः संवत् १८५६ वर्षे मिती श्रावण सुदि.....शुक्रवार श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्री जिनभद्रसूरिशाखायां उ० श्रीगुणसुंदरजीगणि तत्शिष्य वा० श्रीकमलसागर १६७३. चम्पापुरी तीर्थ : पू० जै०, भाग १, लेखांक १४१ १६७४. चम्पापुरी तीर्थ : पू० जै०, भाग १, लेखांक १४० १६७५. चम्पापुरी तीर्थ : पू० जै०, भाग १, लेखांक १४४ . १६७६. पार्श्वनाथ जिनालय, श्रीमालों का मुहल्ला, जयपुरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १२२७ १६७७. बाबू सुखराज राय जी का घर देरासर, नाथनगर : पू० जै०, भाग १, लेखांक १६३ १६७८. ऋषभदेव मंदिर, वरखेड़ा : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४०३ १६७९. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०९५ (२९८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ (१६८०) पार्श्वनाथ-एकतीर्थी-रौप्यमय संवत् १८५६ शाके १७२१ प्र० माघ सुदि ५ गुरौ । के........दीपचंद पुत्र सा। अमरचंदजी श्रीपार्श्वबिंबं कारापितं । जं० । यु०। भ० । श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं। (१६८१) पार्श्वनाथः सं० १८५६ शाके १७२१ वर्षे माघ शुक्ल ५ गुरौ श्रीमहिमापुरवास्तव्य गैहलड़ा गोत्रे बाबू गंगादास पुत्र हुकमचंद भार्या जयकुंवरकया श्रीपार्श्वनाथबिंब कारापितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छेश श्रीजिनहर्षसूरिभिः (१६८२) सिद्धचक्रयंत्रम् संवत् १८५६ माघमासे शुक्लपक्षे तिथौ ५ गुरौ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं श्रीमद्धृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः जयनगरवास्तव्य श्रीमालान्वये फोफलीयागोत्रीय आनंदराम त० खूबचंद पुत्र बहादुरसिंह सपरिकरेण कारितं स्वश्रेयोर्थं ॥ (१६८३) सिद्धचक्रयंत्रम् संवत् १८५६ वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे तिथौ ५ गुरौ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं श्रीमत्बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः जयनगरवास्तव्य श्रीमालान्वये खारडगोत्रीय गूजरमल त० छीतर केवल सपरिकरेण कारितं स्वश्रेयोर्थम्॥ (१६८४) सिद्धचक्रयंत्रम् . ॥संवत् १८५६ वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे तिथौ ५ गुरौ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं श्रीमद्धृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः जयनगरवास्तव्य श्रीमालान्वये झरगड़गोत्रीय रोसनराय पृथ्वीचंद खुश्यालचंद सपरिकरेण कारितं स्वश्रेयोर्थम् ॥ - (१६८५) सिद्धचक्रयंत्रम् संवत् १८५६ माघमासे शुक्लपक्षे तिथौ ५ गुरौ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्र० श्रीमबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः जयनगर वास्तव्य श्रीमालान्वय फोफलिया गोत्रीय आनन्दराम त० खूबचंद तत्पुत्र बहादुरसिंह सपरिकरेण कारितं स्वश्रेयोर्थं । ___ (१६८६) जिनचन्द्रसूरि-पादुका संवत् १८५६ मिते फाल्गुन सुदि सप्तम्यां रवौ श्रीबृहत्खतरगच्छे । जं० । यु० । भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरीणां पादुके प्रतिष्ठिते च। श्रीजिनहर्षसूरिभिः कारिते वा। ज्ञानसारिणा॥ १६८०. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४०७ १६८१. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०),लेखांक ३४ १६८२. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४०५ १६८३. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४०६ १६८४. महावीर जिनालय, सांगानेर : प्र० ले० सं०, भाग २,लेखांक ४०८ १६८५. सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, जयपुर: पू० जै०, भाग २, लेखांक ११७९ १६८६. दादाबाड़ी, सांगानेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४०९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) २९९) For Personal & Private Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६८७) जिनचन्द्रसूरि-पादुका कृत्वा दिग्विजय विहारविधिना पूर्वादिनिवृत्सुयैर्द्धर्मस्थानविधापनादिशुभचैत्यादिनिर्मापयत् श्रीमत् सूरतबंदरे सुकृतिभिः श्रीस्वर्गति संस्थिता श्रीजिनलाभसूरिजिः जिनचंद्रसूरि गुरवः स्यु शर्मदा सर्वदा।१ सं० १८५६ मिते फाल्गुण सुदि..... श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनलाभसूरि पट्टप्रभाकर समयोचित........लवाद्रमय चि........निखिलभट्टारक शिरोमणि श्रीजिनचंद्रसूरिणा पादन्यासः श्रीसंघकारित प्रतिष्ठितं च श्री (१६८८) एकादशजिन-पादुका सं० १८५७ मिति चैत्रक मासे कृष्ण पक्षे षष्ठ्यां कर्मवा० पूज्य भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरि विजयराज्ये श्रीसिंहपूरग्रामे तेषां केवलोत्पत्तिस्थाने गांधि गोत्रीय मयाचंद प्रमुख समस्त श्रीसंघेन श्री श्रेयांसाख्यानामेकादशानां लोकनाथानां पादन्यास: कारितः प्र० श्रीजिनलाभसूरीणां शिष्यै उपाध्याय श्रीहीरधर्म गणिभिः खरतरगच्छे। (१६८९) शालालेखः सं० १८५८ वर्षे पो० वदि पंचमी भ। श्री १०८ श्रीजिनहर्षसूरिजी राज्ये श्रीकीर्तिरत्रसूरिशाखायां वाचक श्री १०८ श्री जिनजयजी गणि शिष्योपाध्याय श्री १०६ श्रीक्षमामाणिक्यजिद्गणिना पृष्ठे पुण्यार्थेयं शाला वाचक विद्याहेमेन कारिता श्रीबृहत्खरतरगच्छे। (१६९०) शालालेखः सं० १८५८ रा........................तिथौ श्री ...........................श्रीजिनहर्षसूरि..... शिष्य वा० विद्याहेम गणिना कारापिता। (१६९१) उपाश्रय-लेखः (१) पृथ्वी तल माहे प्रगट: बड़ा नगर बीकांण। (२) सूरतसींह महाराजजुः राज करै सुविहाण॥१॥ (३) गुणी क्षमामाणिक्य गणि: पाठक पुण्यप्रधान। (४) वाचक विद्याहेम गणिः सुप्रत सुख संस्थान॥२॥ (५) सय अठार गुणसठ्ठ में महिरवान महाराज (६) नव्य बनाय उपासरो दियो सदा थित काज॥३॥ १६८७. खरतरवसही, शत्रुज्जयः भँवर (अप्रका०), लेखांक ७५ १६८८. श्रेयांयनाथ जिनालय, सिंहपुरी तीर्थ, वाराणसी: पू० जै०, भाग १, लेखांक ४२५ १६८९. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१०४ १६९०. शाला नं० २, रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१०५ १६९१. दानशेखर उपासरा, रांगड़ी चौक, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २५५० ; पू० जै०, भाग २, लेखांक १३४९ (३००) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६९२ ) आदिनाथ - मूलनायक : (१) ॥ संवत् १८६० मिते वैशाखमासे सुदि पक्षे ७ तिथौ गुरुवारे महाराजाधिराज महारावल श्री (२) मूलराजजी विजे राज्ये श्रीदेवीकोट नगरे समस्त श्रीसंघेन श्रीॠषभजिनदेवगृ(३) हं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमद्बृहत्खरतरगच्छाधीश भट्टारक श्रीजिनचंद्र(४) सूरि पट्टप्रभाकर श्रीजिनहर्षसूरिभिः श्रेयोस्तु सर्वेषाम् शुभं भवतु श्रीः श्रीः ॥ (१६९३ ) संभवनाथ: सं० १८६० मिते वैशाख सुदि ७ गुरौ बाफणा गोत्रीय । सा । गौड़ीदास लघुपुत्र प७रमानंदेन श्री संभवजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च भ । श्रीजिनहर्षसूरिभिः सं० १८६० रा । मि । देवीकोटमध्ये | ( १६९४) शान्तिनाथ - मूलनायक : । सुदि ७ श्रीशांतिनाथजिनबिंबं का प्र० श्रीजिनहर्षसूरिभिः सा । परमाणंद (१६९५ ) शिलालेखः संवत् १८६० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ६ तिथौ बुधवासरे महाराजाधिराज श्रीमानसिंहजी विजयराज्ये श्रीफलवर्धिपुरमध्ये बृहत्खरतरगच्छे पातशाह अकबरप्रदत्तयुगप्रधानपदधारक भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि शिष्य महोपाध्याय पुण्यप्रधानगणि शिष्य महोपाध्याय श्रीसुमतिसागरगणि शिष्य वाचनाचार्य श्रीसाधुरंगगणि शिष्य उपाध्याय श्रीविनयप्रमोदगणि शिष्य वाचनाचार्य श्रीविनयलाभगणि शिष्य श्रीसुमतिविमलगणि शिष्य वाचनाचार्य श्रीसुमतिसुंदरगणि शिष्य वाचनाचार्य श्रीसुमतिहेमगणि शिष्य वाचनाचार्य सुमतिवल्लभ शिष्य सर्वविद्याविशारद वाचनाचार्य श्री १०८ श्रीसुमतिधर्मगणि अपरनाम श्री १०८ श्री श्रीचंद्रजीगणि सद्गुरूणां पृष्ठे धर्मशाला कारापिता शिष्य पं० भगवानदासेन श्रीसंघसानिध्यात्कृता सूत्रधार पूरणदास अरजनदास प्रमुखजनैः व्रजवास्तव्यैः । सं० १८५९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि दशम्यां मंगलवारे भास्करोदये श्रीमद्गुरवः परलोके गता, श्रीरस्तु दिने दिने । (१६९६ ) गौड़ी - पार्श्वनाथ- पादुका ॥ संवत् १८६० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ६ तिथौ बुधवारे । श्री गौड़ी पार्श्वनाथ जिनेश्वराणाम् पादुकां प्रतिष्ठिता: खरतरगच्छाधीश भ० । श्रीजिनहर्षसूरिभिः श्रीरस्तु ॥ श्री फलवर्धिनगरे श्रीसंघेन कारापितं आचद्रार्कं यावन्नंद्यात्। १६९२. आदिनाथ जिनालय, देवीकोट, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५७५; ऋषभदेवजी का मंदिर, देवीकोट : य०वि० दि०, भाग २, लेखांक १, पृ० २१० १६९३. संभवनाथ जिनालय, आंचलियों का वास, देशनोक, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२१३ १६९४. दफ्तरियों का मंदिर, मंडोर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४१३ १६९५. तालाब के निकट का मंदिर, फलौधी : य० वि० दि०, भाग २, पृ० २२७-२८ १६९६.. नेमिनाथ जिनालय, राणीसर तालाब, फलौधी: भँवर० अप्रकाशित खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (३०१) Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६९७) सुमतिवल्लभगणि-पादुका सं० १८६० ज्येष्ठ सुदि ६ तिथौ बुधवासरे वाचनाचार्य श्रीसुमतिवल्लभजीगणी सद्गुरूणाम् पादुके प्रतिष्ठितम् शुभम् भवतु पं० भगवानदासेन पादुके कारापिता । ( १६९८ ) सुमतिधर्मगणि-पादुका संवत् १८६० ज्येष्ठ सुदि ६ तिथौ बुधवारे ॥ वाचनाचार्य १०८ श्री सुमतिधर्मजीगणि सद्गुरूणां पादुके प्रतिष्ठितं श्री रस्तुः । शिष्य पं० भगवानदासेन पादुके कारापिता । (१६९९ ) जिनकुशलसुरि- पादुका सं० १८६० वर्षे शाके १७२५ प्र । माघमासे शुक्लपक्षे ७ तिथौ गुरुवासरे कृष्णगढ़नगरवास्तव्य सकलश्रीसंघेन श्रीजिनकुशलसूरिपादुका जीर्णोद्धार कारापितं । प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छीय भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । श्रीविजयादिसप्तपरिकरैः महाराजाधिराज महाराज श्रीकल्याणसिंहजी विजयराज्ये ॥ शुभं भूयात् ॥ (१७०० ) स्तूपलेखः सं० १८६० शाके १७२५ माघ सुदि १२ चन्द्रे श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां प्रतिष्ठिते च भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः (१७०१ ) पुण्यप्रिय - पादुकां सं० १८६१ मिते चैत्र ३ चन्द्रे वा० पुण्यप्रियगणिना पादुका प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (१७०२) जिनदत्तसूरि- पादुका सं० १८६१ चैत्र शुक्ल पंचम्यां शनिवासरे कुलाधिप श्रीजिनदत्तसूरीणां चरणस्थापनं श्रीसंघाग्रहेण श्रीजिनहर्षसूरीणामुपदेशात्प्रतिष्ठितं ॥ ( १७०३ ) गांगजी - स्तूप - चरणलेखः ॥ श्रीगणेशायनमः ॥ संवत् १८६१ वर्षे शाके १७२६ मिते वैशाख वदि द्वितीयां तिथौ श्रीजेसलमेरदुर्गे रावलजी श्री १०५ श्रीमूलराजजी विजय राज्ये पं० प्र० श्री १०८ श्री गांगजीगणिनां थुंभपादुके कारापितं प्रतिष्ठितं च शिष्य। पं० रूपचंदेन भ्रातृव्य पं० वखता सहतेन ॥ शुभं भवतु ॥ सूत्रधार आजमेन कृतं १६९७. नेमिनाथ जिनालय, राणीसर तालाब, फलौधी: भँवर० अप्रकाशित १६९८. नेमिनाथ जिनालय, राणीसर तालाब, फलौधी भँवर० अप्रकाशित १६९९. दादाबाड़ी, किसनगढ़ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४१४ १७००. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २११४ १७०१. यति स्वरूपचंदजी का उपाश्रय, किशनगढ़ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४१५ १७०२. सांवलिया जी का मंदिर, बालुचर, मुर्शिदाबाद : पू० जै०, भाग १, लेखांक ६३ १७०३. जिनचन्द्रसूरि का स्थान, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २५१२ (३०२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा - लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०४) सर्वतोभद्र-यंत्रम् श्री सर्वतोभद्राख्य दुरितारिविजययंत्रमिदं का० प्र० च सं० १८६१ मिते ज्येष्ठ सुदि ७ उ० श्री क्षमाकल्याणगणिभिः (१७०५) शिलापट्ट-लेख: ॥ श्री सिद्धचक्राय नमः श्री करणीजी महाराज ॥ सं० १८६१ मिती माघ सुदि पंचम्यां चन्द्रे श्री देशनोक श्रीसंघेन श्रीपार्श्वनाथदेवगृह कारितं प्रतिष्ठितम् महाराजाधिराज श्रीसूरतसिंह जी विजयिराज्ये बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर। भट्टारक। श्री जिनचन्द्रसूरि पट्टालंकार भ० श्री जिनहर्षसूरि धर्मराज्ये प्रतिष्ठिता च उ० श्रीक्षमाकल्याणगणिभिः वा० श्रीकुशलकल्याणगणिनामुपदेशात् चैत्यमिदं समजनि श्रीरस्तु सर्वेषां वा० श्रीलालचन्देन उद्यम कारक। (१७०६) सिद्धचक्रयंत्रम् सं० १८६१ मि। माघ सुदि पंचम्यां ॥ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं । बाफणा श्रीगौडीदासजी पुत्र टिकणमल्लेन कारिता प्र० च उ० श्रीक्षमाकल्याणगणिभिः। (१७०७) दादापादुका-युग्म ___ श्री जिनदत्तसूरि। श्रीजिनकुशलसूरि ॥ ___ (१७०८)............"पादुका :: सं० १८६१ मिते माघ सुद पंचम्यां श्री बीकानेर...............उ० श्री जयमाणिक्य.. विद्याप्रिय कारितः प्रति० (१७०९)....."पादुका सं० १८६१ मिते माघ सुदि पंचम्यां चन्द्र....................चरण न्यासः कारितं वा। कुशलकल्याण गणिना का। (१७१०)............."पादुका सं० १८६१ वर्षे चैत्र वदि ६ गुरौ श्री विक्रमपुरे पं० प्र० श्री १०६ श्रीसत्यजी गणिनां पृष्ठे पं० भावविजै पं० ज्ञाननिधानमुनिनापादुका........ १७०४. महावीरस्वामी का मंदिर, डागों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १५४० १७०५. संभवनाथ जिनालय, आंचलियों का वास, देशनोक, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२१२ १७०६. सुमतिनाथ-भांडासर जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ११७० १७०७. संभवनाथ जिनालय, आंचलियों का वास, देशनोक, बीकानेर; ना० बी०, लेखांक २२१५ १७०८. रेलदादाजी, शाला नं. १, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१०२ १७०९. संभवनाथ जी का मंदिर, आंचलियों का वास, देशनोक: ना० बी०, लेखांक २२१६ १७१०. रेलंदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१०३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: ३०३) For Personal & Private Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७११) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १८६२ आषाढ़ सुदि १० तिथौ श्रीजयनगरे धर्मशालायां । वा। लावण्यकमल-वचनात् श्रीसंघेन श्रीबृहत्खरतरगच्छेश। भ। श्रीजिनकुशलसूरीणां पादन्यासः कारितः प्रतिष्ठितश्च श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ श्रीरस्तु (१७१२) अमरचन्द-पादुका बनारस अमरचन्द जी सं० १८६२ मिति आसोज सुदि ४ (१७१३) कुशलकल्याणगणि-पादुका सं० १८६२ का० सु० ५ वा० श्रीकुशलकल्याणगणिनां पादन्यास कारितं प्रतिष्ठापितश्च। (१७१४) शांतिनाथ-मूलनायकः संवत् १८६२ वर्षे माघ शुक्ल पंचम्यां श्रीकल्याणपुर श्रीसंघेन श्रीशांतिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (१७१५) जिनदत्त-कुशलसूरि-पादुके संवत् १८६२ मिते माघ सुदि पंचम्यां श्रीजयनगराभ्यर्णे। श्रीबृहत्खरतरगच्छीय युगप्रधान भ। श्रीजिनदत्तसूरीणां। भ। श्रीजिनकुशलसूरीणां पादन्यासैः श्रीजिनहर्षसूरिविजयिराज्ये। पं० । ज्ञानसारमुनिना कारापिता प्रतिष्ठापितौ च । तथामेव पूज्यानामुपदेशात्॥ __ (१७१६) जिनलाभसूरि-जिनचन्द्रसूरि- पादुके सं० १८६२ मिते माघ सुदि पंचम्यां श्रीजयनगराभ्यर्णे। श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश। यु० । भ० । श्रीजिनलाभसूरीणां । श्रीजिनचन्द्रसूरीणां पादन्यासैः श्रीजिनहर्षसूरिविजयराज्ये। पं० । ज्ञानसारमुनिना कारितौ प्रतिष्ठापितौ च॥ (१७१७ ) रत्नराजगणि-पादुका ___ सं० १८६२ मिते माघ सुदि पंचम्यां श्रीजयनगराभ्यर्णे। श्रीबृहत्खतरगच्छे श। भ० । श्रीजिनलाभसूरिशिष्य पंडितप्रवर श्रीरत्नराजगणिना पादन्यासः। श्रीजिनहर्षसूरिविजयराज्ये। पं० । ज्ञानसारमुनिना कारितः प्रतिष्ठापितश्च॥ १७११. इमलीवाली धर्मशाला, जयपुर : प्र० ले० से०, भाग २, लेखांक ४१६ १७१२. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नौहर : ना० बी०, लेखांक २४७४ १७१३. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०८९ १७१४. शांतिनाथ जी का मंदिर, कल्याणपुरा, बाड़मेर : बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १९ १७१५. मोहनबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४१७ १७१६. मोहनबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४१८ १७१७. मोहनबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४१९ (३०४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७१८ ) ज्ञानसार- पादुका सं० १८६२ मिते माघ सुदि पंचम्यां । श्रीजिनहर्षसूरिविजयराज्ये । विद्वद्वर्य श्रीरत्नराजगणिना शिष्य प्राज्ञज्ञानसार मुनेः विद्यमानस्य । पादन्यासः । शिष्यवर्गेण कारिता सुप्रतिष्ठापितश्च ॥ संवत् १८६२ वर्षे फा.. श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीशिवचन्द्रयुतैः॥ (१७१९ ) चन्द्रप्रभ - मूलनायक : .. कांकरीया गोत्रे चन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे (१७२० ) सर्वतोभद्रयन्त्रम् ॥ श्री सर्वतोभद्रनामयंत्रमिदं ॥ सं० १८६३ मिते आश्विन सुदि २ माघ वदि १० दिने प्रतिष्ठितं । उ० । श्री क्षमाकल्याणगणिभिः । ( १७२१ ) शिलालेख: श्रीविघ्नविच्छेदेभ्यो नमः । संवत् १८६३ वर्षे शाके १७२८ प्रवर्त्तमाने मार्गशीर्ष मासे शुक्लपक्षे १० तिथौ गुरुवासरे श्रीबृहत्खरतरगच्छीय सुश्रावक वरढीयागोत्रीय सं० सोभागचंद रूपचंदाणी वेकीबाईरत्नलघुपौषघशाला कारापितं श्रीदेवीकोटमध्ये जंगमयुगप्रधान भ० श्रीजिनहर्षसूरिजी जयतु कारीगर देवजी रासाणी प्रकुर्वे । (१७२२) अतीत- चतुर्विंशति - जिनचरणाः सं० १८६३ मि० माघ सु० ४ दिने श्री अतीत चौवसी भगवान जी की उसवाल वंशे नाहटागोत्रे राजा वच्छराज बाबू विश्वेश्वरदास बाबू भैरूनाथ बाबू वैजनाथ बाबू जगन्नाथ बाबू लक्ष्मणदास ने चरण भराया बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रेयोर्थं देवी अस्य मंदिरस्य रक्षां कुर्वंतु ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्रीलखनउनगरमध्ये नवाब साहब सहादत अलि विजयराज्ये । (१७२३) वर्तमान-चतुर्विंशति-जिनपादुकाः 'सं० १८६४ मि० वै० सु० ३ दिने वर्त्तमान चौविशी २४ भगवान जी के उसवाल वंशे कांकरियागो खुसालराय । बखतावरसिंह । गोकलचंद | माणकचंद । स्वरूपचंद । रतनचंद । ताराचंद । सपरिवारेण चरण बनवाया श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री लखनऊ नगरे। १७१८. मोहनबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२० १७१९. चन्द्रप्रभ मंदिर, खोह : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२१ १७२०. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२२ १७२१. ऋषभदेवजी का मंदिर, देवीकोट : य० वि० दि० भाग २, लेखांक ४, पृ० २१९ १७२२. शांतिनाथ जिनालय, बोहारन टोला, लखनऊ: पू० जै० भाग २, लेखांक १५२५ १७२३. शांतिनाथ जिनालय, बोहारन टोला, लखनऊ: पू० जै० भाग २, लेखांक १५२६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only ३०५ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७२४) अनागत - चतुर्विंशति- जिनपादुकाः सं० १८६४ मिते वैशाख सुदि ३ दिने अनागतचोविसी ओसवाल वंशे नाहटागोत्रे राजा वच्छराज तत्पुत्र बाबू जगन्नाथस्य भार्या स्वरूपनें इदं चरणं कारापितं श्रेयोर्थं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री लखनऊ नगरे । १७२५) विहरमान - शाश्वत - जिनपादुकाः सं० १८६४ मिते वैशाख सुदि ३ दिने २० विहरमान ४ शास्वतानि भगवानजी के ओसवालवंश कांकरियागोत्रे जेठमल बहादुरसिंह स्वरूपचंद सपरिवारेण चरण बनवाया श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीलखनऊ नगरे । (१७२६) जयधीर - पादुका सं० १८६४ आषाढ़ सुदि १५ जयधीर की पादुका (१७२७) शिलापट्ट - प्रशस्तिः (१) ॥ संवत् १८६४ वर्षे माघ वदि ५ सूर्जवासरे श्रीबृहत्खरतरगच्छे सकल भट्टारक (२) सिरोमणि जंगमयुगप्रधान भ । श्रीश्री १०८ श्री श्री श्री जिनहर्षसूरिजी सूरीश्वरराज (३) श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ जी महावीरजी सकलसंघ सहितेन श्रीपाताल (४) चैत्य नौतन कारापिते प्रतिष्ठितं । वा । जैराज लिपिकृतं देहरा री दरोगाइ मु प्रसादति सौनक पंच (५) दत्त। श्रीराठौड़वंशे राजश्री जेसिंगदेजी विजै राज्ये । सूत्रधार गजधर सम्भूकृतः (६) जोध हरदेवाजी री बेटी । (१७२८ ) सत्यमूर्ति - पादुका सं० १८६४ रा मिति माघ सुदि ५ तिथौ पं० प्र० श्रीसत्यमूर्तिजी गणिनां चरणन्यास (१७२९) प्रीतिविलास - पादुका श्रीप्रीतिविलासजी गणिनां चरण पादुका मिती माघ सुदि ५ तिथौ सोमवासरे ॥ श्री ॥ (१७३० ) लक्ष्मीराज - पादुका सं० १८६४ रा मिती माघ सुदि शुक्ला ५ तिथौ उ० श्री लक्ष्मीराजजी गणीनां चरणन्यास: पं० रामचन्द्रेण कारापितं ॥ श्री ॥ १७२४. शांतिनाथ जिनालय, बोहारन टोला, लखनऊ: पू० जै० भाग २, लेखांक १५२७ १७२५. शांतिनाथ जिनालय, बोहरन टोला, लखनऊ: पू० जै० भाग २, लेखांक १५२८ १७२६. खरतरवसही, शत्रुंजय: भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ८९ १७२७. पार्श्वनाथ जिनालय, गर्भगृह १ का शिलालेख, नाकोड़ा : ना० पा० ती०, लेखांक १०६ ; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ३२१ १७२८. दादाबाड़ी (गढीसर), जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८७१ १७२९. दादाबाड़ी, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८७२ १७३०. दादाबाड़ी, गढीसर तालाब, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८७३ (३०६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७३१ ) ऋषिमंडलयन्त्रम् ॥ सं० १८६४ मिते फाल्गुन सुदि २ श्रीजयनगरे श्रीऋषिमंडलयन्त्रमिदं प्रतिष्ठितं । उ । श्री क्षमाकल्याणगणिभिः । कारितं कोठारी जेठमल्लेन श्रेयोर्थं ॥ श्रीः (१७३२) दादापादुकायुग्मम् सं० १८६४ वैशाख वदि ७ रवौ कालूपुरे भ० श्रीजिनहर्षसूरि प्रतिष्ठितौ १ श्रीजिनदत्तसूरि २ भ० श्री जिनकुशलसूरि । ( १७३३ ) शालालेख: ॥ श्री सिद्धचक्राय नमः श्रीसद्गुरूणां प्रशस्तिः । ये योगीन्द्रसुरेन्द्रसेवितपदा : शान्ता सुधर्मोपमा सद्वाणी निकुरुंबरंजितजनाः श्रीमांडवीबिन्दरे । प्राप्तस्सत्रिदशालये युगवराः सद्भूतनामान्वित । स्ते स्युः श्रीजिनभक्तिसूरिगुरवस्संघस्य कामप्रदाः ॥ १ ॥ तत्शिष्य इह पाठकेन्द्रास्सकलगुणयुता प्राप्तसच्छाधुवादा श्रीमद् बंगालदेशे सकलपुरवरै शस्त राजादिगंजे स्वर्गं प्राप्तास्सुदेशेष्वतिसुभगतरं सद्विहारं विधाय । श्रीमन्तो धीविलास गणिपद सुमता शान्तये स्युर्जनानां ॥ २ ॥ तेषां विनेयास्सुधिया सुपाठका लक्ष्म्यादि सा राजपरागणिश्वराः जग्मु त्रासुते श्रीवर जैसलगढे पुण्याल वंश त्रिदशालयं वरं । तत्शिष्य पंडितात...... समीयादि गुणान्विता श्रीधरा सत्यमूर्त्याख्याः जग्मुरत्रैव सत्पदं ॥ ४ ॥ इति स्तुतिः ॥ संव्वति बाणरसवसुवसुधा १८६५ प्रमिते शाके १७३० प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठ शुक्ल पक्षे पचंमी तिथौ चन्द्रवारे महाराज राउलजी श्री श्रीमूलराजजी विजयिराज्ये श्रीबृहत्खरतरगच्छे जं । यु । भ श्री १०८ श्रीजिनहर्षसूरिजी धर्मराज्ये बिभ्रति च सति मनोहरायां धर्मशालायां श्रीमत्गुरूणां पादुका कारिताः प्रतिष्ठिताश्च पं० रामचन्द्रेणेति श्रेयः कृताश्चैषा सूत्रधारेण खुश्यालेन ॥ श्री ॥ ( १७३४ ) शिलालेखः संवत् १८६५ शाके १७२१ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे रसतिथौ शनिवासरे जंगम युगप्रधान भट्टारक पुरंदर भट्टारक श्री श्री श्रीजिनलाभसूरिजी तच्छिष्य पं० प्र० श्री पुण्यराजजी गणि तच्छिष्य पं० प्र० श्रीनेमिचन्द्रजीमुनि, तच्छिष्य पं० प्र० सदानंद चिरं वखता सहितेन श्रीदेवीकोटमध्ये चतुर्मासी कृता । ( १७३५ ) सर्वतोभद्रयंत्रम् श्रीसर्वतोभद्रनामकं यंत्रमिदं कारितम् । सं० १८६५ मिते कार्तिक वदि ६ प्र । उ । श्रीक्षमाकल्याणगणिभिः १७३१. चन्द्रप्रभ मंदिर, आमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२५ १७३२. चन्द्रप्रभ जिनालय, कालू : ना० बी०, लेखांक २५११ १७३३. दादाबाड़ी, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८६९ १७३४. ऋषभदेवजी का मंदिर, देवीकोट : य० वि० दि०, भाग २, लेखांक ५, पृ० २१२ १७३५. महावीर स्वामी का मंदिर, डागों मे, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १५४१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (३०७) Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७३६) शिलापट्टः (१) ॥ संवत् १८६५ वर्ष फागुण वदि १३ रविवारे श्रीबृहत्खरतरगच्छे। (२) जंगमयुगप्रधान सकलभट्टारिकशिरोमणि भट्टारकजी श्री श्री १०८ श्रीजिनचन्द्रसूरिजी (३) सूरीश्वरेण सकलश्रीसंघसहितेन नालमण्डपनौतनं कारापितं ॥ चैत्यसर्वेषु जीर्णोद्धार कारापिता (४) लिखितं वा। जयराज ॥ सूत्रधार रायचन्द्रजी पुत्र ढालजी कृतवास जोधपुर॥ श्रीरस्तु॥ कल्याणमस्तु॥ (१७३७) सप्तति-गुरुपादुकाः ॥ संवत् १८६६ मिते वैशाख सुदि ७ दिने श्री बीकानेर नगरे श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर भट्टारक श्रीमत्श्रीजिनचन्द्रसूरि पट्टालंकार भ। श्रीजिनहर्षसूरि सद्धर्मराज्ये सकल श्रीसंघेन सहर्ष श्रीमद्देवगुरूणां चरणन्यासा कारिता प्रतिष्ठितं च उ० श्रीक्षमाकल्याणगणिभिः श्रेयोर्थं ॥ (१७३८) सिद्धचक्रयंत्रम् __ संवत् १८६६ मिते मार्गशीर्ष वदि ५ सोमे। श्रीजयनगरे। बुहरा कस्तूरचंद वृद्धभार्या अब्बूबाई। नाम्न्या श्रीसिद्धचक्रयंत्रं कारितं । प्रतिष्ठितं च। उ० श्रीक्षमाकल्याणगणिभिः। सर्वेषां भक्तजन्तूनां श्रेयसे भवतु ॥ श्रीः . (१७३९) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १८६६ वर्षे शाके १७३१ प्रवर्त्तमाने माघमासे कृष्णपक्षे पंचम्यां तिथौ गुरुवारे श्रीजिनकुशलसूरीणां श्रीसंघेन पादुका प्रतिष्ठापितं कि० उत्तमचन्द। (१७४०) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी री पादुका ॥ संवत् १८६७ श्रीराजगढ़ मध्ये मिति वैशाख सुदि ३ वार अदीत। (१७४१) महिमारुचि-पादुका __संवत् १८६७ वर्षे शाके १७३२ प्रवर्त्तमाने मासोत्तमे आषाढ़मासे कृष्ण पंचम्यां श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां वा० श्रीमहिमारुचिजीकानां पादुके प्रतिष्ठिते। शुभं भवतुतराम् १७३६. पुण्डरीक गणधर की देहरी के भीतर की दीवाल का शिलालेख, नाकोड़ा : ना० पा० ती० लेखांक १०७; प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२६; वा० प्रा० ०शि०, लेखांक ४२९; य०वि० दि०, भाग २, पृ० १९३ १७३७. गुरुपादुका व मथेरणों की छतरी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९६५ १७३८. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२७ १७३९. दादाबाड़ी, रतनगढ़, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २३५८ १७४०. सुपार्श्वनाथ जी का मंदिर, राजगढ़ (सार्दूलपुर): ना० बी०, लेखांक २४३१ १७४१. आदिनाथ जिनालय, लूणकरणसरः ना० बी०, लेखांक २५०७ (३०८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७४२) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सम्वत १८६७ वर्षे मिति आषाढ़ सुदि ९ शुभदिन बुधवारे श्रीजिनकुशलसूरिजी सद्गुरूणां चरणन्यासः कारितः श्रीसंघेन। कास्माबाजार वास्तव्य श्रावकैः सुगुणोज्ज्वलैः। पूजनीयाः प्रतिदिनं गुरुपादाः...............भिः १॥ (१७४३) पद्मवाती-यंत्रम् संवत् १८६७ कार्तिकमासे दीपोत्सवतिथौ श्रीमालान्वये गोत्रे मनसुखरायेन कारितं पद्मावतीयंत्रं प्रतिष्ठितं च। सांगीयन भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः स्वश्रेयोर्थम् श्री। (१७४४) सिद्धचक्रयंत्रम् सं० १८६८ मिते वैशाख सुदि १२ दिने श्री बीकानेरवास्तव्य वैद मुंहता सवाईरामेण श्रीसिद्धचक्रयंत्रं कारितं प्रतिष्ठितं च पाठक श्रीक्षमाकल्याणगणिभिः॥ श्रेयोर्थं ॥ (१७४५) शिलालेख: ॥संवत् १८६८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ६ तिथौ बुधवारे महाराजाधिराज महाराजश्री मानसिंहजी विजयराज्ये श्रीफलवर्द्धिकापुरमध्ये बृहत्खरतरगच्छे पातिशाह श्रीअकबरप्रदत्त युगप्रधान पदधारक भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्य महोपाध्याय श्रीपुण्यप्रधानगणि शिष्य महोपाध्याय सुमतिसागरगणि शिष्य वाचनाचार्य श्रीसाधुराजगणि शिष्य उपाध्याय श्रीविनयप्रमोदगणि शिष्य वाचनाचार्य श्रीविनयलाभगणि शिष्य उपाध्याय श्रीसुमतिविमलगणि शिष्य वाचनाचार्य श्रीसुमतिसुंदरगणि शिष्य वाचनाचार्य श्रीसुमतिहेमगणि शिष्य वाचनाचार्य श्रीसुमतिवल्लभगणि शिष्य सर्वविद्याविशारद वाचनाचार्य श्री १०८ श्री सुमतिधर्मजीगणि अपरनाम श्री १०८ श्री रूपचंदजीगणि सद्गुरूणां पृष्ठे धर्मशाला कारापिता शिष्य पं० भगवानदासेन श्रीसिंघ सान्निध्यात् कृता सूत्रधार पूरणदास अरजनदासप्रमुख सप्त ७ जनैः व्रजवास्तव्यैः। सम्वत् १८५९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि दशम्यां १० मंगलवारे भास्करोदये श्रीमद्गुरवः परलोके गताः॥ श्री रस्तु दिने दिने (१७४६) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १८६९. शाके १७३४ दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी का चरण वैशाख वदि ५ (१७४७) सप्तसप्ततिगुरु-पादुकापट्टः सम्वत् १८६९ वर्षे शाके १७२४ प्र। फाल्गुनमासे शुक्लपक्षे ३ तिथौ शुक्रे श्रीमहावीरप्रभृतिसप्तसप्ततिगुरुपादुकाचक्रं कारितं प्रतिष्ठितं च श्री बृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः १७४२. नमिनाथ जिनालय, कासिमबाजारः पू० जै०, भाग १, लेखांक ८४ १७४३. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४२८ १७४४. संभवनाथ जिनालय, आंचलियो का वास, देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२२८ १७४५. नेमिनाथ जिनालय, राणीसर तालाब, फलौधी: १७४६. मोहनबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४३० १७४७. श्रीमालों का मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४३२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (३०९) For Personal & Private Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजयनगरवास्तव्यः सर्वश्रीसंघेन श्रेयो) महाराजाधिराज सवाईजगतसिंहविजयराज्ये सर्वपौरजनलोकानां शुभं भूयात् पादुकाराधकभव्यानां सदावृद्धितरां भूयात् ॥ (१७४८ ) जिनकुशलसूरि-पादुका-रौप्यमयी सं० १८६९ फा० सुदि ३ शुक्रे श्रीजिनकुशलसूरिपादुका भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ___(१७४९) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ संवत् १८६९ वर्षे शाके १७३४ प्रवर्त्तमाने फाल्गुनमासे शुक्लपक्षे ३ तिथौ शुक्रवासरे श्रीजिनकुशलसूरिपादुका प्रतिष्ठितं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। शुभं भूयात् ॥ (१७५०) सिद्धचक्रयंत्रम् सं० १८७० मिते आषाढ़ सुदि ९ दिने मेड़तावास्तव्य महिमियागोत्रीय साह रौडमल्लेन श्रीसिद्धचक्रं कारितं प्रतिष्ठितं च वाचनाचार्य श्रीअमृतधर्मगणिशिष्य पाठकश्रीक्षमाकल्याणगणिभिः॥ (१७५१) दादागुरुपादुके सं० १८७० आषाढ़ सुदि १० दिने दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिजी दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी (१७५२) कनकशेखरगणि-पादुका सं० १८७० आषाढ़ सुदि १० वा। कुशलविमलगणि। उ। महिमानिधानजीगणि वा। रामवल्लभजीगणि ॥ सं० १८७० आषाढ़ सुदि ११ तिथौ वा। कनकशेखरगणि स्वहस्तेन स्वजीवितपादुका कारितं श्रेयो) । श्रीखरतरगच्छे श्रीक्षेमशाखायां । श्रीजिनहर्षसूरि विजयराज्ये श्रीचौमुखजी टुंकमध्ये पादुका स्थापिता (१७५३) कनकशेखर-पादुका सं० १८७० वर्षे आषाढ़ सुदि ११ तिथौ वा। कनकशेखर स्वहस्तेन स्वजीवित पादुका कारिता श्रेयोर्थं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्री क्षेमशाखायां भ। श्रीजिनहर्षसूरिविजयराज्ये श्री चौमुखजीनी ट्रॅकमध्ये॥ (१७५४) गुरु-पादुका सं० १८७० ना आषाढ़ सुदि १० वा० कुशलविमलगणि शि० उपा० महिमानिधानजीगणि भ्रातृ वा। रामवल्लभजीगणि॥ १७४८. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४३१ १७४९. खरतरगच्छीय उपाश्रय किसनगढ़ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४३३ १७५०. संभवनाथ जिनालय, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४३४ १७५१. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ३६ १७५२. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ८ १७५३. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ३८ १७५४. छीपावसही, शत्रुजय : भंवर० (अप्रका०), लेखांक ३७ (३१०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७५५) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १८७१ वर्षे वैशाख शुक्ल पक्षे तिथौ ८ बुधे भट्टारक श्रीजिनकुशलसूरि पादुका कारिता श्री स्याहजानावाद नगर वास्तव्य श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं च बृहद्भट्टारक खरतरगच्छीय श्रीजिनचंद्रसूरिभिः स्वश्रेयो) श्रीमद्बादस्याह अकबरस्याह विजय राज्ये शुभं भूयात् ॥ संवत् १९०८. मिती चैत्र सुदि १२ सूर्य्यवारे श्रीजिननंदिवर्द्धनसरिभिः विजयसधर्मराज्ये श्री दिल्लीनगरे वास्तव्य सकल श्रीसंघेन जीर्णोद्धार पूर्वकं कारापितं पूज्याराधकानां मङ्गलमाला वृद्धितरां यायात्॥ श्रीमान्माणिक्यसूरिशाखायां पाठक मतिकुमार तच्छिष्य हर्षचंदोपदेशात्॥ (१७५६) विद्याहेमगणि-पादुका सं० १८७१ वर्षे शाके १७३६ प्रवर्त्तमाने वैशाख सुदि ८ दिने श्रीकीर्त्तिरत्नसूरि..... श्रीविद्याहेमजिद्गणिनां पादुका कारिताः प्रतिष्ठितं च श्रीमयाप्रमोदगणि पं० उदयरत्नगणि श्री बीकानेरनगरे। (१७५७) सर्वतोभद्रयन्त्रम् सर्वतोभद्रयंत्रमिदं कारितं प्रतिष्ठितं च उ० श्रीक्षमाकल्याण गणिभिः सं०१८७१ मिते ज्येष्ठ वदि २ दिने। . (१७५८) चिन्तामणियक्षमूर्तिः सं० १८७१ मिति वैशाख सुदि १० दिने गुरुवारे श्रीसंघेन चिन्तामणियक्षमूर्तिः कारिता प्रतिष्ठितं च उ० श्री क्षमाकल्याणगणिभिः (१७५९) अजितनाथः संवत् १८७१ माघ सुदि ३ बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनलाभसूरि शिष्य पाठक श्रीहीरधर्मगण्युपदेशेन श्रीमाल टांक जांवतराय सुतेन चुन्निलालेन सुत बहादुरसिंहयुतेन श्री अजितनाथबिंबं कारितं । श्री वाराणस्यां प्रतिष्ठितं । श्रीजिनहर्षसूरिणा श्रीखरतरगच्छे। ___ (१७६०) सर्वतोभद्रयंत्रम् 'सर्वतोभद्रचक्रमिदं प्रतिष्ठितम्। उ० श्रीक्षमाकल्याण गणिभिः सं० १८७१ मिते माघ सुदि पंचम्यां श्रीबीकानेर नगरे बाफणा रत्नचन्द्रस्य सपरिकरस्य (१७६१) शांतिनाथः श्री॥सम्वत् चन्द्रमुनिसिद्धिमेदिनी। १८७१ । प्रतिष्ठितं शाके रसवह्निमुनिशशी १७३६ संख्ये प्रवर्त्तमाने १७५५. छोटे दादाजी का मंदिर, चीराखाना, दिल्ली : पू० जै०, भाग १, लेखांक ५२७ १७५६. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१०६ १७५७. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९५३ १७५८. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९२५ । १७५९. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्या: पू० जै०, भाग १, लेखांक १६३८ १७६०. ऋषभदेवजी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४५५ १७६१. धर्मनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर बड़ा बाजार : पू० जै०, भाग १, लेखांक ८७; जै० ती० स० सं०, भाग २, पृ० ४९६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः ३११) For Personal & Private Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माघमासे धवलषष्ठि तिथौ बुधवासरे श्रीशांतिनाथजिनेद्राणां प्रासादोयम् । श्री कलकत्ता नगर वास्तव्य: श्री समस्त संघेन कारितं प्रतिष्ठितः श्रीखरतरगच्छेश भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः । श्रीरस्तु ॥ (१७६२ ) शिलालेखः (१) संवत् १८७१ रा मिते माघ सुदि ११ तिथौ श्रीबीकानेर नगरे श्रीबृहत्खरतरगच्छी (२) य श्रीसंघेन श्रीसुपार्श्वनाथजिनचैत्यं कारितं प्रतिष्ठापितं च जंगमयुगप्रधान भट्टारक शिरोमणि श्री १०८ श्रीजिनचंद्रसूरि प (३) ट्ट प्रभाकर श्री भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरि धर्मराज्ये सति । श्रेयसेस्तु सर्वेषां । सूत्रधार दयाराम कृतिरियं श्री ॥ (४) जैसे सिलावटा ॥ (१७६३ ) सर्वतोभद्रयंत्रम् श्रीसर्वतोभद्रयंत्रमिदं कारितं प्रतिष्ठितं च सं० १८७२ मिते ज्येष्ठ वदि द्वितीया दिने उ० श्रीक्षमाकल्याण गणिभिः बीकानेर नगरे । : (१७६४ ) तत्त्वधर्मगणि-पादुका सं० १८७२ मिते आषाढ़ सुदि १ श्रीबृहत्खरतर श्रीसंघेन उ० श्रीतत्त्वधर्मजिद्गणीनां चरणे कमले कारिते प्रतिष्ठा । (१७६५) राजप्रियगणि-पादुका सं० १८७२ मि० आषाढ़ सुदि १ श्रीबृहत्खरतर श्रीसंघेन वा० राजप्रिय गणिनां चरणकमले कारिते प्रतिष्ठापिते । (१७६६ ) लक्ष्मीप्रभगणि-पादुका सं० १८७२ मि० आषाढ़ सुदि १ श्रीबृहत्खरतर श्रीसंघेन वा० लक्ष्मीप्रभगणिनां पादुके कारिता (१७६७) ताम्रपत्र - लेख : ॥ स्वस्ति श्रीराजराजेश्वर महाराजाधिराज महाराजा शिरोमणि महाराजा श्रीसूरतसिंह जी महाराज कुंवर श्रीरतनसिंह जी वचनात् श्री जी साहबां परसन होय गाँव नाल में दादैजी श्रीजिनकुशलसूरिजी पादुका छै तिणांरी पूजा हुवै छै सु जमी वीघा ७५० अखरे वीघा साढी सातसै डोरी वीसरी चढाई छै सो तलाव तेजोलाव रे लारली गाँव नाल सुं आथुणवै पासै री सांसण तांबापत्र कर दीवी छै सु दादेजी पादुकावांरी पूजा टैहल वंदगी करसी सु जमी वाहसी जोड़सी वा मुकातै देसी तैरो हासल लेसी म्हांरौ पूत पोतो पालीया जासी सं० १८७३ मिति वैशाख सुदि ९ वार सोमवार श्लोक ॥ स्वदत्तं परदत्तं वा ये हरंति १७६२. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७२२ १७६३. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगादरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९५४ १७६४. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०४५ १७६५. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०४६ १७६६. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०४७ १७६७. बड़ा उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २६१५ (३१२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only . Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुंधरा। ते नरा नरकं यांति यावच्चन्द्र दिवाकरो ॥ १ ॥ स्वदत्त परदत्तं वा ये पालंति वसुन्धराः । ते नरा स्वर्गं यांति यावच्चन्द्र दिवाकरो ॥ कारापितं. संवत् १८७३ वर्षे. ( १७६८ ) चन्द्रप्रभः . सुदि दिने.. .. शीलचन्द्रेन। बालूचरमध्ये । (१७६९ ) स्तम्भ लेख: सं० १८७४ वर्षे वैशाख सुदि १३ दिने महोपाध्याय श्रीधरमसीजी री छतरी पं० शांतिसोमेन कारापिता छत्री छ: थंभी सदा २७ लागा पारवाण इलाख श्रीकु सिरपाव दीना विजणाने । . श्रीचन्द्रप्रभबिंबं प्रतिष्ठितं भ० श्रीजिनहर्षसूरि (१७७०) आदिनाथ- पादुका सम्वत् १८७४ वर्षे शाके १७३९ मिति ज्येष्ठ वदि ५ सोम दिने । श्री व्यवहारगिरिशिषरे । श्रीयुगादिदेवचरणन्यासः प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (१७७१ ) शांतिनाथ - पादुका संवत् १८७४ शाके १७३९ प्रवर्त्तमाने शुभे ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे पंचम्यां तिथौ सोमदिने श्री व्यवहारगिरिशिषरे श्रीशांतिज़िनचरण प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (१७७२) पार्श्वनाथ- पादुका सम्वत् १८७४ वर्षे शाके १७३९ मिति ज्येष्ठ वदि ५ सोमे दिने श्रीव्यवहारगिरिशिषरे श्रीपार्श्वनाथ चरणन्यासः प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः । (१७७३) उ० क्षमाकल्याण-पादुका सं० १८७४ आषाढ़ शुक्ला पष्ठी उ० श्री १०८ श्रीक्षमाकल्याणजिद्गणीनां पा० श्रीसं० कारि प्रतिष्ठापितं प्राज्ञ धर्मानंद मुनि प्रणमति (१) ॥ श्रीसदुरुभ्योनमः॥ संवत् १८७४ वर्षे (२) शाके १७३९ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे (३) मार्गशिरमासे शुक्लपक्षे दशमी तिथौ गु (१७७४) स्तूपशाला-लेखः १७६८. चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, रंगपुर, बंगाल : पू० जै०, भाग २, लेखांक १०१९ १७६९. कुण्डपास छतरी के स्तम्भ का लेख, रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१०९ १७७०. जैनमंदिर, वैभारगिरि, राजगिर : पू० जै०, भाग १, लेखांक २६२ १७७१. पटना संग्रहालय, पटना : पू० जै०, भाग १, लेखांक ५२५ १७७२. वैभारगिरि, राजगिर : पू० जै०, भाग १, लेखांक २६१ १७७३. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०४१ १७७४. आंदिनाथ जिनालय, देवीकोट, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५८० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only ३१३ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) रुवासरे। श्रीदेवीकोट नगरे श्रीबृहत्ख(५) रतरगच्छीय समस्त श्रीसंघेन दादाजी (६) श्रीश्रीजिनकुशलसूरिजी स्तूपशाला (७) कारापिता ॥ जं। यु। भ। श्रीजिनहर्षसूरिजी (८) ..........वा। जैसारजीगणि। पं। पं। अमरसिंह (९) ......पं। रिधविलास उपदेशात् (१०) ॥ श्रीरस्तु॥ (१७७५) जीर्णोद्धारलेखः सम्वद् बाणर्षिनागेन्दु राधशुक्लादशी भृगौ। मल्लिनम्योः पदं जीर्णमुद्धृतं खरतरेण च। श्रीजिनहर्षनिदेशी वा भाग्यधीरगणि: किल। माल्हुगोत्रस्य प्रष्णेन्दोर्वित्तमुदिश्य काप्यकृत्॥२॥युग्मम्॥ संवत् १८७५ मिति वैशाख १० शुक्रे मिथिलानग· श्रीमल्लिजिनन्यासः॥ (१७७६ ) जिनचन्द्रसूरि-स्तम्भ-लेखः .. ॥ॐ ॥ संवत् १८७५ वर्षे शाके १७४० प्र० । मासोत्तममासे। कार्त्तिकमासे शुक्लपक्षे पूर्णिमा १५ तिथौ भौमवारे श्रीमज्जेसलमेरुमहादुर्गे महाराजाधिराज महारावल जी श्रीमूलराजजी विजयराज्ये भट्टारक यंगमयुगप्रधान श्री १०८ श्रीजिनभक्तिसूरिजी तत्पट्ट प्रभाकर सकल जैनदर्शनागम। रक्षाकर। यंगमयुगप्रधान। भ० । श्री १०८ श्रीजिनचन्द्रसूरिजी स्वर्गं प्राप्त: तत्पृष्ठे स्तंभ । युता शालापादन्यासश्च कारापितः॥ श्रीजेसलमेरु वास्तव्य सकल श्रीबृहत्खरतराचार्यगच्छीय श्रीसंघेन सं० १८७६ व० । शा० १७४१ प्र० मासोत्तममासे महामासे शुक्लपक्षे ५ तिथौ गुरुवारे महाराजाधिराज महाराज रावल श्रीगजसिंहजी विजयिराज्ये तत्पट्टे प्रभाकर यं० । यु० । भ० । श्री १०८ श्रीजिनउदय। सूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन कृतमहोच्छवेन शिलापट्ट अ लीलषाणी लिपीकृतारियं पं० । प्र० । अभयसोमगणिना। श्रीरस्तु शुभं भवतु कल्याणमस्तु॥ (१७७७) जिनदत्तसूरि-पादुका सम्वत् १८७५ मि० मार्गशीर्ष ९ तिथौ रविवासरे श्रीजिनदत्तसूरिणाचरणपंकजानि ख० ग० जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं । १७७५. वासुपूज्य जिनालय, भागलपुर : जैन तीर्थ सर्वसंग्रह, भाग २, पृ० ४८४; पू० जै० भाग १, लेखांक १६६ १७७६. दादाबाड़ी, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५०४ १७७७. दादावाड़ी, मधुवन, सम्मेतशिखर : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३४८ (३१४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७७८ ) जिनकुशलसूरि- पादुका (१) ॥ सं० १८७५ । मिति मार्गशीर्ष शुक्ल ९ तिथौ रविवासरे (२) श्रीसद्गुरूणां पादो बृहत्खरतरग (३) च्छे। जं । यु । प्र । भ । श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्री ॥ (४) | दादाजी श्रीजिनकुशलसूरि : १८७५ (१७७९ ) जिनदत्तसूरि - पादुका (१) सं० १८७५ मि । मार्गशीर्ष ९ तिथौ रविवासरे (२) श्रीमच्छ्रीजिनदत्तसूरीणां चरणंपकजानि (३) बृ। ख। जं । यु । प्र । भ । जिनहर्ष । सू ॥ प्रतिष्ठितानि ॥ (१७८०) विद्याप्रियगणि-पादुका सं० १८७५ वर्षे मिति माह सुदि १३ दिने श्री वा० विद्याप्रियजी गणीनां पादुका स्थापिता पं० रत्ननिधान मुनिना श्री बीकानेरे । (१७८१ ) जिनकुशलसूरि- पादुका । । । । श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुके ॥ श्रीसंघेन कारापितं प्रतिष्ठा.. (१७८२) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १८७६ वर्षे शाके १८४१ वर्षे वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीयायां भौमे श्रीबृहत्खरतरभट्टारकगच्छे दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी चरणं प्रतिष्ठापितं नागपुर समीपस्थ करमणा ग्रामे भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिजी वीजे राज्ये प्रतिष्ठितं पं० मुक्तिरंगेण भट्टारकगच्छे श्रीसंघेन कारापितं । १७८३) जिनकुशलसूरि-पादुका सम्वत् १८७६ वर्षे शाके १८४१ प्र० वैशाख शुक्ल अक्षयतृतीयायां भौमे श्रीबृहत्खरतर भट्टारकगच्छे दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी चरणन्यासेयं श्रीनागपुर समीपस्थ करमणा ग्रामे भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिजी विजयराज्ये प्रतिष्ठितं । (१७८४) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ संवत् १८७६ वर्षे । शाके १७४१ प्रवर्त्तमाने । मिति आषाढ़ सुदि ७ तिथौ भृगुवारे १७७८. शुभस्वामी जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८४२ १७७९. शुभस्वामी जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८४१ १७८०. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१०१ १७८१. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर : हैदराबाद १७८२. मणिधारी जिनचन्द्रसूरि दादाबाड़ी, नागपुरः १७८३. दादाबाड़ी, करमणा, नागपुर : जै० धा०, प्र० ले०, लेखांक ३४९ १७८४. दांदाबाड़ी, नागपुर .. वि० सं० खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (३१५) Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहत्खरतराचार्यगच्छे। भट्टारक दादाजी श्री जिनकुशलसूरिजी के चरणों की स्थापना नगर नागपुर समीपे जङ्गमयुगप्रधान भट्टारक जिनउदयसूरिजी विजयराज्ये । प्रतिष्ठितम् । पं । सौभाग्यधीरेन। आचार्यगच्छे कासमस्थ श्रीसंघेन प्रतिष्ठा कारापितं । (१७८५) जिनदत्तसूरि- पादुका सम्वत् १८७६ वर्षे शाके १७४१ प्र० आषाढ़ मासे शुक्लपक्षे नवम्यां तिथौ भृगुवासरे खरतरगच्छे भट्टारक दादाजी श्रीमत्जिनदत्तसूरिजी चरणोन्यास्सेऽयं श्रीअहिपुर समीपस्थ करमणाग्रामे स्थापितं समस्त श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं शुभं भवतु । (१७८६) दादा - जिनदत्तसूरि- पादुका ॥सं० १८७६ वर्षे। शा। १७४१ प्र । आषाढमासे । शुक्लपक्षे नवम्याम् तिथौ । भृगुवासरे । खरतरगच्छे। भट्टारक दादाजी श्रीमद् श्रीजिनदत्तसूरिजी चरणन्यासेसम् अहिपुर समीपस्थ करमणा ग्रामे स्थापितं । समस्त श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं । शुभम् भवतुः ॥ (१७८७) रत्नसुन्दर - पादुका सं० १८७६ रा वर्षे मार्गशीर्षमासे शुक्लपक्षे १० तिथौ शुक्रवारे बृहत् श्रीखरतरगच्छे जं० । यु० । भ० । श्री १०८ श्रीजिनचंद्रसूरि सन्तानीय सकलशास्त्रार्थपाठनप्रधान बुद्धिनिधान । श्रीमदुपाध्यायजी श्री १०८ श्रीरत्नसुन्दरगणिजिद्वराणां चरण स्थापनं ॥ साहजी दूगड़ गोत्रीय श्री बाबु बुधसिंह जी तत्पुत्र बाबु श्री प्रतापसिंह जी आग्रहेण प्रतिष्ठितं श्री रस्तुः कल्याणमस्तुः। ( १७८८ ) संघयात्रालेखः संवत् १८७७ ना वईसाक वदि वार सुकरे श्रीकछदेस मधे मांडवी बंदर संघवी वरधमान वीकमसी सपरिवार सहेत संघ लईने जातरा करी छे तथा वईसाक शुभदिने श्रीतारंगाजीनी जातंरा करीने श्रीआरबदाचल आया छेतेनी जातरा वईसाक वदीनी थई छे सामीवछरल थआ छे श्रीराधनपरनो संघ तथा श्रीपालणपरनो संघ तथा वीसनगरनो संघ सरवेने भेगो करीने जतरा करावी छे । श्रीखरतरगछना संघवी छे श्री देलवाडा मधे पुजा अटकी हती ते आज पुजारी जणा २ तथा पखारनो जण १ गणी जमले जण ३ तथा केसर सुकड़ सरवे थईने रूपीआ १२५) अखरे एकसो पचवीस वरसपरते पोचाडवा टे रीत ठराव करीने पूजा चलु कीदी छे मुनि कुअरवजेजी ठाणा ४ संघाते जतरा करी छे मुनि कुअरवजेजी उपदेस थकी संघ नीसरो छे तथा पूजानो काम चालतो वेओ छे । (१७८९ ) पार्श्वनाथ-मूलनायक : सं० १८७७ वैशाख सुदि १ श्रीपार्श्वबिंबं प्र । श्रीजिनहर्षसूरिणा गो.. धर्मचंदेन कारयां बृहत्खरतरगणे । १७८५. आदिनाथ जिनालय, भायखला, मुम्बई: जै० धा० प्र०, ले०, लेखांक ३५० १७८६. मणिधारी जिनचन्द्रसूरि दादाबाड़ी, नागपुर १७८७. दादा जी का स्थान, बालुचर, मुर्शिदाबाद : पू० जै०, भाग १, लेखांक ६८ १७८८. अनुपूर्ति लेख, आबू : अ० प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५०५ १७८९. पार्श्वनाथ का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : भँवर० (३१६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह For Personal & Private Use Only .. महतावो जाति मूलचंदेन Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७९०) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥शुभ संवत् १८७७ वर्षे । वैशाख शुक्ल पंचम्यां चंद्रवासरे श्रीजिनकुशलसूरीश्वरसद्गुरूणां चरण पादुका प्रतिष्ठिता श्री मद्धृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनअक्षयसूरि पट्टालंकृत श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीमत्पाटलिपुर वास्तव्य। समस्त श्रीसंघैः प्रतिष्ठा कारापिता। पं० गणि श्रीकीर्युदयोपदेशात् ॥ श्रीरस्तु। ___ (१७९१) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सम्वत् ।। १८७७ ॥ वर्षे वैशाष शुक्ल पंचम्यां चन्द्रवासरे श्रीजिनकुशलसूरीश्वर सद्गुरूणां चरण पादुका प्रतिष्ठिता भट्टारक श्रीजिनअक्षयसूरिपट्टालंकृत श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः मनेरवास्तव्य श्रीमालान्वये........ वदलियागोत्रे सुश्रावक श्रीकल्याणचंद तत्पुत्र श्रीभग्गुलाल कीर्तिचन्द्र तत्पौत्र किसनप्रसाद अभयचन्द्रादि स्वश्रेयोर्थं प्रतिष्ठा कारापिता पं। ग। कीर्युदयोपदेशात्॥ (१७९२) सुपार्श्वनाथः ॥ सं० १८७७ वै० सु० १५ श्रीसुपार्श्वबिंबं प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणां.............कांकरिया. (१७९३) सुपार्श्वनाथः सं० १८७७ वै। सु० । १५ श्रीसुपार्श्वबिंबं प्र० श्रीजिनहर्षसूरिणा॥ १॥........................जया चुन्नीनाम्न्या वाराणस्यां......... (१७९४) सुपार्श्वनाथः सं० १८७७ वै० सु० १५ श्रीसुपार्श्वबिंबं प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा कारितं होगड़..........फतयचंदेन खरतरगणे........ . (१७९५) सुपार्श्वनाथः सं० १८७७ वै० सु० १५ श्रीसुपार्श्वबिंबं प्र० श्रीजिनहर्षसूरि ॥ कारितं सेठ................गुणदासेन खरतरगणे वाराणस्यां॥ (१७९६) सुपार्श्वनाथः सं० १८७७ वै। सु १५ श्रीसुपार्श्वबिंबं प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा कारितं १७९०. जैन मंदिर, पटना: पू० जै०, भाग १, लेखांक ३२० १७९१. जैन मंदिर, पटना: पू० जै०, भाग १, लेखांक ३२१ १७९२. पार्श्वनाथ मन्दिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर० १७९३. पार्श्वनाथ मन्दिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भंवर० १७९४. पार्श्वनाथ मन्दिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर० १७९५. पार्श्वनाथ मन्दिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर० १७९६. पार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भंवर० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) ३१७) For Personal & Private Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७९७) चन्द्रप्रभः सं० १८७७ वै० सु० १५ श्रीचंद्रप्रभबिंबं प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा कारितं कुंदनलालेन श्री..... (१७९८) चन्द्रप्रभः सं० १८७७ वै० सु० १५ श्रीचन्द्रप्रभबिंबं प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणां कारितं चंडालिया (१७९९) ऋषभदेव-पादुका ॥ सं० १८७७ राधराकायां श्रीजिनलाभसूरि शिष्योपाध्याय श्रीहीरधर्मोपदेशेन अयोध्यायां श्री वृषभनाथानां पादन्यास: कारितः ओसवाल । मिरगा जाति सामंतसिंहेन बडेर गोत्रीयेन बीकानेरस्थ पदार्थमल्लेन। प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्षसूरिणा। (१८००) समवसरणस्थ-अजितनाथ-पादुका ॥सं० १८७७ राधराकायां बृहत्खरतरभट्टारकगणीय पाठक हीरधर्मोपदेशेन जयनगरवासिना ओसवाल ज्ञातौ सेठ गोत्रीय हुकुमचंदजेन। उदयचंदेन अयोध्यायां श्रीअजितसर्वज्ञस्य पादन्यासः कारितः। प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा॥ (१८०१) अभिनन्दन-पादुका ॥ सं० १८७७ राधराकायां खरतरगणीय पाठक हीरधर्मोपदेशेन ओसवाल जातौ सेठ गोत्रीय हुकुमचंदजेन उदयचंदेन जयनगरस्थेन । अवधौ सर्वज्ञाभिनंदन पादाः कारिताः। प्र। जिनहर्षसूरिणा। (१८०२) सुमतिनाथ-पादुका ॥ सं० १८७७ राधराकायां खरतरगाणीय पाठक हीरधर्मोपदेशेन जयनगर वासिना ओसवाल जातौ सेठ गोत्रीय हुकुमचंदजेन। उदयचंदेन । अयोध्यायां श्रीसुमतिसर्वज्ञपादाः कारिताः प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा। (१८०३) अनन्तनाथ-पादुका . ॥ सं० १८७७ राधराकायां श्रीबृहत्खरतरगणेश श्रीजिनलाभसूरि शिष्योपाध्याय श्रीहीरधर्मोपदेशेन अवधौ सर्वज्ञानंतपादन्यासः कारितः सेठ उदयचंद प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा॥ १४॥ (१८०४) धर्मनाथ-पादुका संवत् १८७७ राधराकायां श्रीरत्नपुरे श्रीधर्मनाथानां पादाः कारिता: वरढ़ीया बूलचंदज वेणीप्रसाद १७९७. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : भंवर०; पू० जै० भाग २, लेखांक १८३७ १७९८. पार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : भँवर० १७९९. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्याः पू० जै० भाग २, लेखांक १६४९ १८००. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्याः पू० जै० भाग २, लेखांक १६४८ १८०१. अजितनाथ जिनालय, कटरा अयोध्या : पू० जै० भाग २, लेखांक १६५० १८०२. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्या: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६५१ १८०३. अजितनाथ जिनालय कटरा, अयोध्या: पू० जै० भाग २, लेखांक १६५२ १८०४. धर्मनाथ जिनालय, रोनाही, रत्नपुरी: पू० जै० भाग २, लेखांक १६६२ (३१८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्र। बृहत्खरतरगणेश श्रीजिनलाभसूरिशिष्य पाठक हीरधर्मोपदेशेन। ओसवालेन। काशीस्थेन प्रतिष्ठिताः श्रीजिनहर्षसूरिणा। (१८०५) धर्मार्हत्-पादुका संवत् १८७७ राधराकायां श्रीरत्नपुरे श्रीधर्मार्हतापादाः कारिताः बृहत्खरतरगणेश श्रीजिनलाभसूरि शिष्य पाठक हीरधर्मोपदेशेन वरढ़ीया बूलचंदज वेणीप्रसादेन भ। श्रीजिनहर्षसूरिणा बृहत्खरतरगणेशेन। (१८०६) धर्मपरमेष्ठी-पादुका । सं० १८७७ राधराकायां बृहत्खरतरगणेश श्रीजिनलाभसूरिशिष्य पाठक हीरधर्मोपदेशेन काशीस्थ वरढीया बूलचंदज। वेणीप्रसादेन श्रीधर्मपरमेष्ठिनां पादाः कारिताः श्रीरत्नपुरे प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा खरतरगणेश। (१८०७) गणधर-पादुका सं० १८७७ राधराकायां श्रीरत्नपुरे श्रीधर्मनाथाद्यः गणधर श्रीमद्अरिष्टाख्यानां पादाः कारिता: ओसवालवंशे वरढ़ीया बूलचंदज वेणीप्रसादेन बृहत्खरतरगणेश श्रीजिनलाभसूरि शिष्य पाठक हीरधर्मोपदेशेन। प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा। बृहत्खरतरगणेशेन। (१८०८) चतुः-जिनपादुका ॥ सं० १८७७ राधराकायां खरतरगणीय पाठक हीरधर्मोपदेशेन अयोध्यायां श्री अजिताभिनंदनसुमत्यनंतनाथानां चरणन्यास: कारित: जयनगर वासिना। ओसवाल सेठ गोत्रीय हुकुमचंद सुतेन। उदयचंदेन प्रतिष्ठितं खरतरभट्टारकगणेश श्रीजिनहर्षसूरिणा। (१८०९) पञ्च-जिनपितृ-पादुका: ॥ सं० १८७७ राधराकायां खरतरगणेश श्रीजिनलाभसूरि शिष्य पाठक हीरधर्मोपदेशेन । अयोध्यायां श्री नाभि १ जितशत्रु २ संवर ४ मेघ ५ सिंहसेन १४ जानामार्हतां क्रमन्यासः कारित: जयनगरस्थेन ओसवाल सेठ हुकुमचंद सुतेन। उदयचंदेन प्रतिष्ठितः श्रीजिनहर्षसूरिणा। (१८१०) चतुःतीर्थकर-गणधर-पादुकाः . ॥सं० १८७७ राधराकायां श्रीजिनलाभसूरि शिष्योपाध्याय हीरधर्मोपदेशेन जयनगरस्थेन ओसवाल सेठ हुकुमचंद सुतेन। उदयचंदेन । अयोध्यायां २।४।५।१४। जिनादयो गणधराणां श्रीसिंहसेन । वज्रनाभ। चमरगणि । यशसां पादाः कारिताः। प्रतिष्ठिताः श्रीजिनहर्षसूरिणा। १८०५. धर्मनाथ जिनालय, रोनाही: पू० जै० भाग २, लेखांक १६६३ १८०६. धर्मनाथ जिनालय, रोनाही, रत्नपुरी : पू० जै०, भाग २, लेखांक १६६४ १८०७. धर्मनाथ जिनालय, रत्नपुरी: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६६६ १८०८. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्या: पू० जै० भाग २, लेखांक १६५३ १८०९. अजितनाथ जिनालय कटरा, अयोध्या पू० जै० भाग २, लेखांक १६५४ १८१०. अजितनाथ जिनालय कटरा, अयोध्या पू० जै० भाग २, लेखांक १६५५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८११) मरुदेवादिपंचजिनमातृपादुकाः ॥ सं० १८७७ राधराकायां पाठक हीरधर्मोपदेशेन जयपुर वास्तव्य ओसवाल सेठ हुकुमचंदजेन उदयचंदेन अयोध्यायां श्री मरुदेवा १ विजया २ सिद्धार्था ४ सुमंगला ५ सुयशा १४ गर्भरत्नानां परमेष्ठिनां चरणन्यासाः कारिताः प्र० श्रीजिन (१८१२) जिनकुशलसूरि-पादुका . ॥ सं० १८७७ राधराकायां पितामहानां श्रीजिनकुशलसूरीणामयोध्यायां चरणन्यासः प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा खरतरभट्टारक श्रीजिनलाभसूरि शिष्योपाध्याय श्रीहीरधर्मोपदेशेन कारिताः । जयनगर वासिना अधुना मिरजापुरस्थेन सेठ हुकुमचंदजेन। उदयचंदेन श्रेयोर्थं। (१८१३) पार्श्वनाथः ॥सं॥ १८७७ राधराकायां श्रीपार्श्वबिंबं प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा कारितं मिरगां ज्ञाति.................. सिंहज पदार्थमल्लेन (१८१४) पार्श्वनाथः सं० १८७७ वै। शु। १५ श्रीपार्श्वबिंबं प्र। श्रीजिनहर्षसूरीणां गोलवछा महता बोजानी मूलचंदेन धर्मचंदेन कारितं कास्यां बृहत्खरतरगणे (१८१५) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १८७७ वै० सु० १५ श्रीपार्श्वबिंब प्र० जिनहर्षसूरिणा कारितं । छजलानी चतुर्भुज पुत्र्या दीपोनाम्न्या चोरडिया मनुलाल वधू (१८१६) पार्श्वनाथ संवत् १८७७ वैशाख शुक्ल १५ श्रीपार्श्वबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्षसूरिणा गोलेछा महतावो-- मूलचन्द्र धर्मचन्द्रेण कारितं। __ (१८१७) दादा-पादुका-युगल संवत् १८७७ रा वर्षे जेठ मासे शुक्ल पक्षे १० तिथौ बुधवासरे श्रीचन्द्रकुलाधिप बृहत् श्रीखरतरगच्छे जंगम युगप्रधान भट्टारक। श्री १०८ श्रीजिनदत्तसूरिजी श्री १०८ श्रीजिनकुशलसूरीणां चरण स्थापितं। उ श्रीरत्नसुन्दरजीगणि उपदेशात् साह श्रीदूगड़ बुधसिंह जी तत्पुत्र । बाबू श्रीप्रतापसिंह जी कारापितं ॥ श्रीसंघ हितार्थम् । जङ्गम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिजी विजयराज्ये श्रीरस्तु॥ श्रीकल्याणमस्तुः॥ १८११. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्या पू० जै०, भाग २, लेखांक १६४७ १८१२. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्या, पू० जै० भाग २, लेखांक १६५६ १८१३. मूलमंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर १८१४. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: पू० जै०, भाग २, लेखांक १८३६ १८१५. सेठ धनसुखदास जी का मंदिर, मिर्जापुर पू० जै० भाग १, लेखांक ४३९ १८१६. पार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३४० १८१७. चन्द्रप्रभ जिनालय, रङ्गपुर, उत्तर बंगालः पू० जै०, भाग २, लेखांक १०२७ (३२०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८१८) शिलालेखः १॥ त्रिलोकप्रभुः श्रीचन्द्रप्रभस्वामिजिनेन्द्राणामयं प्रासादश्चिरं विजयताम् ॥ संव्वत् १८७७ प्रमिते। शाके १७४२ प्रवर्त्तमाने। मासोत्तम द्वितीय ज्येष्ठ मासे वलक्षपक्षे पूर्णिमातिथौ । यामिनीनाथवासरे। राजराजेश्वर श्रीमन्महाराजाधिराज श्रीसवाई जयसिंहजितां विजयमाने साम्राज्ये ॥ बृहत्खरतरगच्छेश जं। यु। भ। श्रीजिनहर्षसूरिजितां धर्मराज्ये विद्यमाने। श्रीआम्बेर नगरे। श्रीसवाई जयनगरादिवास्तव्य समस्त श्रीसंघेनासौ कारितः॥ श्रीक्षेमकीर्त्तिशाखोद्भव महोपाध्याय श्रीरूपचन्द्रजिद्गणिगजेन्द्राणां शिष्य मुख्यवाचक श्रीपुण्यशीलजिद्गणीनां पौत्र विनेय महोपाध्याय श्रीशिवचन्द्रगणिना प्रासादोयं प्रतिष्ठितश्च । श्रीरस्तु (१८१९) सर्वतोभद्र-यंत्रम् सं० १८७७ मिती मिगसर सुदि ३ । का। प्र। च। उ। श्री क्षमाकल्याण जी गणिनां शिष्येण ।। श्रीरस्तु॥ (१८२०) यन्त्रम् सं० १८७७ मिती मिगसिर सुद ३। का। प्र। च। उ। श्रीक्षमाकल्याण गणिनां शिष्येण श्रीरस्तु। (१८२१) मेरुविजय-पादुका सं० १८७७ मि० पो० सु० १५ श्रीजिनचन्द्रसूरिशाखायां पं० मेरुविजय मुनि पा० स्था० प्र० ___ (१८२२ ) जिनकुशलसूरि-पादुका . संवत् १८७७ मिति माघ सुदि ५ शनिः श्रीजिनकुशलसूरिपादुका कारापितं पुन्यार्थेन प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरि। (१८२३) वासुपूज्य: सं० १८७७ माघ सुदि १३ बुधे ओसवंशे कठारा गोत्रीय लाला जमनादास तद्भार्या आसकुंवर तया श्रीवासुपूज्यजिनबिंबं कारितं मुनि हेमचंद्रोपदेशात्प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छीय श्रीजिन--------- | (१८२४) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थी ___ सं० १८७७ माघ सुदि १३ बुधे। उ० वंशे डागागोत्रे सेढमल तद्भार्या गिलहरी ताभ्यां श्री पार्श्वनाथजिनबिंबं का० । बृ० भ। खर। ग। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। १८१८. चन्द्रप्रभ जिनालय, आमेरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४१ १८१९. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७९१ १८२०. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९५५ १८२१. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०८२ १८२२. लीलाधर जी का उपाश्रय, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४२ १८२३. बाबू सुखराजराय का घर देरासर, नाथनगर : पू० जै०, भाग १, लेखांक १६० १८२४. संभवनाथ जिनालय, फूलवाली गली, लखनऊ पू० जै०, भाग २, लेखांक १५९५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) ३२१) For Personal & Private Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८२५) स्फटिकमूर्तिः संवत् १८७७ मा। सु० १३ प्र। ख। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (१८२६) पार्श्वनाथ-पंञ्चतीर्थी सं० १८७७ माघ शुक्ल पूनम बुधे श्रीपार्श्वनाथजिनबिंबं कारितं। प्र० । वृ०। भ०। ख। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (१८२७) शान्तिनाथः संवत् १८७७ वर्षे माघ सुदि..........यदेतीयस श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं चारित्रउदय उपदेशात् श्रीमद्धृहत्खरतरगच्छे । जं। यु। श्रीजिनाक्षयसूरि पदस्थ...................श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः बुद्धितराभूयात् ॥ (१८२८) कुन्थुनाथः ___ सं० १८७७ मि० फा० शु० १३ श्रीकुन्थुनाथजिनबिंबं टू० विसनचंदेन कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्षसूरिभिः (१८२९) पार्श्वनाथः संवत् १८७७ वर्षे मिति फाल्गुन सुदि १३ श्रीपार्श्वनाथबिंबं दूगड़......... भार्या फत्ति नान्या वाचक चारित्रनन्दनगणि उपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं ॥ श्री. (१८३०) पार्श्वनाथः संवत् १८७७............श्रीपार्श्वबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्षसूरिणां कारितं.............सावंत सिंहज पदार्थमल्लेन........। (१८३१) जिनचन्द्रसूरि-पादुका संवत् १८७७ का मिति चुत वदि १० यु श्रीदादाजिनचन्द्रसूरिजि संचेती ध०हरखचंदजी (१८३२) गुणकल्याणगणि-पादुका ....................७८ मिती आषाढ़ सु० ७ बृ० खरतरगच्छे वा० गुणकल्याणगणि पादुके पं० प्र० युक्तिधर्म क..... १८२५. लाभचंद जी सेठ का घर देरासर, पुलिस हास्पिटल रोड़, कलकत्ता : पू० जै०, भाग २, लेखांक १००७ १८२६. श्रीमालों का मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४४ १८२७. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४३ १८२८. पंचायती मंदिर, मिर्जापुर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ४३४ १८२९. मूलमंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : भँवर० १८३०. श्वे. जैन मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३३९ १८३१. लीलाधर जी का उपाश्रय, जयपुरः प्र० ले०, सं०, भाग २, लेखांक ४४० १८३२. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०८० (३२२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८३३) नेमिनाथः ॥ संवत् १८७८ वर्षे आषाढ़ सुदि नवम्यां रवौ चोपड़ा रूपचंदजी श्रीनेमिनाथबिंबं कारितं भ० श्रीजिनअक्षयसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे ।। (१८३४) सिद्धचक्रयंत्रम् संवत् १८७८ मिति काती सुदि५ दिने श्री बीकानेर वास्तव्य वैद मुहता सवाईरामजी श्रीसिद्धचक्रयंत्र । कारितं प्रतिष्ठितं । उ॥ श्रीश्रीक्षमाकल्याणजी गणिनां प्राज्ञ । धर्मानन्द मुनिः। श्रीरस्तुः॥ कल्याणमस्तु ॥६॥ (१८३५) मयाप्रमोदगणि-पादुका सं० १८७८ मिती मिगसर सुदि २ तिथौ श्रीजिनकीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां वा० मयाप्रमोदगणि पादुका प्रतिष्ठिता। (१८३६) समवसरण: संवत् १८७८ माहसुदि ६ दिने अ.......संघराज्ये श्रीमत्तपागच्छे.......श्रीविजयाणंदसूरिपक्षे श्री २५ श्रीविजयैऋधिसूरीराज्ये श्रीसुरतनगरवास्तव्य लघुशाखायां उकेशवंशे शाह कल्याणचंद भार्या कपुरबाई कुक्षीसरोहंसेन शाहसोमचंद्रेण श्रीमत्खरतरगच्छीय उपाध्याय दीपचंद्र शिष्य पं० देवचंद्रमुखात् श्रीविशेषावश्यकवृत्तिगत गणधरस्थापनसमोसरणविधिश्रवणात् संजातहर्षेन श्री १०५ श्रीमहावीरजिनचैत्यसमवसरणाकारकारितं स्वद्रव्यसहस्रसंख्याव्ययेनं प्रतिष्ठितं संविग्र तपापक्षीय भ० श्रीज्ञानविमलसूरि पट्टालंकार भ० श्रीसौभाग्यसागरसूरिपट्टालंकार श्रीसुमतिसागरसूरिभिः श्रीभार्यासागरबाईयुतेन, ___(१८३७) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८७८ वर्षे मिति फागुण वदि ५ दिने सूराणा अमरचंद्रेण सिद्धचक्र कारितं प्रतिष्ठितं च भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः श्रीउदयपुर नगरे (१८३८) दादा-पादुके संवत् १८७८ वर्षे शाके १७४३ प्रमिते फागुण सुदि ३ सूर्यवारे भट्टारक श्रीजिनदत्तसूरिजी। श्रीचरणकमलं भ० श्रीजिनकुशलसूरिजी चरणकमलं खरतरगच्छे सकल श्रीसंघेन.... ............स्थापितं प्रतिष्ठितं च अजमेरमध्ये॥ १८३३. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०भाग २, लेखांक ४४५ १८३४. संभवनाथ जिनालय, आंचलियों का वास, देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२२९ १८३५. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१०७ १८३६. देहरी क्रमाकं ६०१, विमलवसही, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक १४५ १८३७. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४८५ १८३८. दादाबाड़ी, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) (३२३) For Personal & Private Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८३९) यु० जिनदत्तसूरि- पादुका संवत् १८७८ वर्षे फागुण सुदि ३ रवौ जं । यु । भ । १०८ श्रीजिनदत्तसूरिजी चरणं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे पं० पद्महंसेन श्रीअजमेरदुर्गे. ..... I ( १८४० ) उपाश्रयलेख: ॥ संवत् १८७९ मि । वै । सु । ३ । महाराजाधिराज महाराज श्रीगजसिंहजी महाराजाधिराज महाराज श्रीसूरतसिंहजी शरीरसुखार्थमियं वसुधा । श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां उ । श्रीअमरविमलजी गणि उ । अमृतसुन्दरजिद्भ्यः दत्ता तै कारितः (१८४१ ) अमृतसुन्दरगणि-पादुका सं० ॥ १८७९ मि । आषाढ़ वदि १० भौमे जं । भ । श्रीजिनहर्षसूरिभिः श्रीकीर्त्तिरत्नसूरि शा । उ । श्री अमृतसुंदरगणीनां पादुके प्र । तत्पौत्रेण पं० कुशलेन कारिते च । (१८४२) कीर्त्तिरत्नसूरि- पादुका ॥ सं० १४६३ मध्ये शंखवाल गोत्रीय डेल्हाकस्य दीपाख्येन पित्रा संबन्धः कृतः विवाहार्थ दूल्हो गतः तत्र राडद्रह नगर शाखायां एको निज सेवक केनचिद् कारणेन मृतो दृष्टः तत् स्वरूपं दृष्ट्वा तस्य चित्ते वैराग्य समुत्पन्ना स्वरूपमनित्यं ज्ञात्वा भ । श्रीजिनवर्द्धनसूरि पार्श्वे चारित्रं ललौ कीर्त्तिराज नाम प्रदत्तं ततः शास्त्रविशारदो जातः महत्तपः कृत्वा भव्यजीवान् प्रतिबोधयामास ततः भ । श्रीजिनभद्रसूरयस्तं पदस्थयोग्यं ज्ञात्वा दुग सं। १४९७ मि। मा। सु१० ति । सूरि पदवीं च दत्त्वा श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिनामानां चक्रुस्तेभ्यः शाखैषा निर्गता ततो महेवा न । सं० १५२५ ति । वै । व ५ मि । २५ दिन यावदनशनं प्रपाल्य स्वर्गे गताः । तेषां पादुके सं० १८७९ मि । आ । व १० जं । यु । भ श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठि (१८४३ ) अभयसोम - पादुका ॥ सं०। १८७९ व। शा । १७४४ प्र । मिति दु आसोज वदि ५ रविवारे भ । जं । श्रीजिनचंद्रसूरि सूरिजी तत् शिष्य पं । अभयसोम पादुका स्थापिता ॥ ( १८४४) महिमाहेम-पादुका सं। १८७९ मि । शु। व। १० जं । भ । श्रीजिनहर्षसूरिभिः वा । महिमाहेमगणिनां पादुके प्रतिष्ठिते । तच्छिष्येण पं। कांतिरत्नेन श्रीकीर्त्तिरत्नसूरि शा । कारिते । १८३९. खरतरगच्छीय उपाश्रय किशनगढ़ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४४६ १८४०. उपाश्रय का शिलालेख, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २५४८ १८४१. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २३०० १८४२. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२९९ १८४३. दादाबाड़ी, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८६४ १८४४. शालाओं के लेख: नाल, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २३०५ (३२४) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८४५) सुमतिनाथ-मूलनायकः सं० १८७९ फागण वदि १२ तिथौ शनिवासरे ओशवंशीय नीनाकेन श्रीसुमतिजिनबिंबं कारितं, प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छीय भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभि...............शुभं भवतु __ (१८४६) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १८७९ फाल्गुण सुदि ४ वार शनि अयोध्यानगरे वंगलावसति वास्तव्य ओसवंशे नखत गोत्रीय जोरामल तत्पुत्र बखतावरसिंघ तत्पुत्र कनईयालालादिसहितेन श्रीजिनकुशलसूरिपादुका कारितं। प्रतिष्ठितं भट्टारक खरतरगच्छीय श्रीजिनचंद्रसूरिभिः कारक पूजकानां भूयसि वृद्धितरां भूयात्॥ (१८४७) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १८७९ मि। फा। सु० ४ श्रीजिनकुशलपादौ । प्र। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। (१८४८) शालालेखः श्रीगणेशायनमः॥ संवत् १८८१ रा वर्षे शाके १७४६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे मिगसरमासे कृष्ण पक्षे त्रयोदशी तिथौ गुरुवारे महाराजाधिराजा महाराजा जी श्रीगजसिंहजी विजयराज्ये बृहत्खरतर आचारजगच्छे जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिजी तत् बृहत्शिष्य पं। प्र। श्रीअभयसोमगणि संवत् १८७८ रा मिति माहसुदि १२ दिने स्वर्ग प्राप्तः तदोपरि पं० । ज्ञानकलशेन इदं शाला कारापिता संवत् १८८१ रा मिति मिगसिर वदि १३ दिने भट्टारक श्रीजिनउंदयसूरिजी री आज्ञात: पं० ॥ प्र। लब्धिधीरेण प्रतिष्ठिते श्रीसंघेन हर्षमहोत्सवो कृतः सीलावटो गजधर अलीलखानी शाला कृता । यावत् जम्बुद्वीपे यावत् नक्षत्र मण्डिपो मेरु यावत् चंद्रादित्यो तावत् शाला स्थिरी भवतु १ लिपिकृतारियं । पं । हर्षरंग मुनिभिः॥ शुभंभवतु ॥ श्रीकल्याणमस्तु॥ ॥ श्री॥ (१८४९) सुविधिनाथः सं० १८८१ माघ सुदि ५ सोमे श्रीसुविधिनाथजिनबिंबं कारितं ओसवंशे चोरडियागोत्रे चैनसुख पुत्र रत्नचन्द्रेण। प्र। बृ। भ। खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थितैः (१८५०) शिलापट्टः संवत् १८८१ वर्षे फाल्गुन कृष्णपक्षे द्वितीयातिथौ शनिवारे श्रीमहाजनग्रामे श्रीखरतरगच्छे जंगम युगप्रधान भट्टारक श्री १०५ श्रीजिनचन्द्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनहर्षसूरि विद्यमाने राज श्री ठाकुरां वैरीसालजी कुंवर श्रीअमरसिंहजी विजयिराज्ये श्रीसागरचन्द्रसूरिसंतानीय वाचनाचार्य श्रीसुमतिधीरजी गणि तत्शिष्य पं० उदयरंग मुनेः उपदेशात् सकल श्रीसंघेन श्रीचन्द्रप्रभस्वामी चैत्य कारितं प्रतिष्ठितं च। श्रीकल्याणमस्तु॥ १८४५. सुमतिनाथ जी का मंदिर, राणपुर : य० वि० दि०, भाग ३, पृ० ४५ १८४६. अजितनाथ जिनालय, पालखीखाना, फैजाबादः पू० जै०, भाग २, लेखांक १६७९ १८४७. शांतिनाथ जिनालय, पालखीखाना, फैजाबाद, पू० जै० भाग २, लेखांक १६८० १८४८. दादावाड़ी (देदानसर तालाब), जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८६३ १८४९. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई: ब० चि०, लेखांक ११ १८५०. चन्द्रप्रभ जिनालय, महाजनः ना० बी०, लेखांक २५१६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (३२५) For Personal & Private Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८५१) जयकीर्ति-पादुका ॥ सं० । १८८१ मि । फाल्गुन व । ५ सोमवारे । भ । श्रीजिनहर्षसूरिभिः श्रीकीर्त्तिरत्नसूरि शा । उ । श्रीअमृतसुन्दरजिद्गणयस्तदंतेवासी वा । श्रीजयकीर्त्तिजिद्गणीनां पादुका प्रतिष्ठि । (१८५२ ) शालालेख: ॥ श्रीजिनायनमः ॥ सं० १८८२ रा मिती आषाढ़ सुदि ५ श्री जेसलमेर नगरे राउल श्रीगजसिंह जी विजयराज्ये खरतर आचारज गच्छे श्री जिनसागरसूरिशाखायां भ । जं । श्रीजिनउदयसूरिजी विजयराज्ये ॥ उ । श्री १०८ श्रीसमयसुन्दरजी गणि पादुकामिदं ॥ उ । श्रीआणंदचंदजी तत्शिष्य पं । प्र । श्रीचतुरभुजजी तत्शिष्य पं० । लालचंद्रेण कारापितमियं थंभ पादुका शाला सही २ (१८५३) जीर्णोद्धार - प्रशस्तिः ॥ संवत् १८८२ शाके १७४७ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे द्वितीय श्रावणमासे शुक्लपक्षे १२ तिथौ गुरुवासरे खरतरभट्टारकगच्छे श्रीजिनसुखसूरिशाखायां । पं० । प्र । श्रीकीर्तिवर्धनजीगणि। पं । प्र । श्रीइलाधर्मगणि । पं। प्र। श्रीविनीतसुंदरजीगणि। तच्छिष्य। पं । गजानन्द मुनि उपदेशात् श्रीखरतरसंघेन दादाजी श्री श्री श्रीजिनकुशलसूरीणां छत्तरिकाणां जीर्णोद्धार कारापितं ॥ (१८५४) स्तम्भोपरि जीर्णोद्धार - लेख : ॥ संव्वत् १८८२ मिते कार्त्तिक सु १५ । भ । जं । यु । भ । श्रीजिनहर्षसूरिजी विजयराज्ये सद्गुरु स्थानके श्रीसंघेन कारितं । (१८५५) आदिनाथ- पादुका सं० १८८२ फा० व० १० श्री बीकानेर वास्तव्य वैद मु । मगनीरामेन श्रीआदिनाथपादुका कारापितं प्रतिष्ठितं च श्री बृहत्खरतरगच्छे जं । यु । प्र । श्रीजिनहर्षसूरिभिः (१८५६ ) सर्वतोभद्र-यंत्रम् . ॥ श्रीसर्वतोभद्रनामयन्त्रमिदम् ॥ संवत् १८८३ मिति मिगसर वदि २ दिने । प्रतिष्ठितं पं । प्र । श्रीक्षान्तिरत्नगणिभिः ॥ जैपुर मध्ये ॥ १८५७) सर्वतोभद्रयंत्रम् ॥ श्री सर्वतोभद्रनामयन्त्रमिदं ॥ संवत् १८८३ मिति मिगसर वदि २ दिने प्रतिष्ठितं । पं । प्र । श्रीक्षान्तिरत्नगणिभिः॥ जैपुरमध्ये । १८५१. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३०४ १८५२. श्यामसुन्दर जी की शाला, दादावाडी (देदानसर तालाब), जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८५४ १८५३. दादावाड़ी, नागोर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५१ १८५४. जिनकुशलसूरि मंदिर, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२८६ १८५५. खरतरवसही, शत्रुंजयः भंवर० (अप्रका० ), लेखांक ७६ १५५६. संभवनाथ जिनालय, अजमेर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५३ १८५७. संभवनाथ जिनालय, अजमेर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५४ (३२६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८५८) पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः सं० १८८३ माघ वदि ५ गुरौ पार्श्वनाथबिंबं प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। __ (१८५९) शिलालेखः श्रीऋषभदेवायनमः। सं० १८८३ वर्षे शाके १७४८ प्र० मासोत्तममासे.. शुक्लपक्षे ५ तिथौ गुरुवारे श्रीपोहकरणनगरे ठाकरां श्री १०५ श्रीवभूतसिंघजी विजयराज्ये श्रीऋषभदेवस्य प्रासादः श्रीखरतरगच्छआचारजसमस्तश्रीसंघेन कारापितं, प्रतिष्ठितं च पं० लालचंद पं० परमसुखेन श्रीजिनोदयसूरि आज्ञातः। यावजंबूद्वीपे यावन्नक्षत्रमंडितो मेरु: यावचन्द्रादित्यौ तावत्प्रासादस्थिरी भवतु। __ (१८६०) सिद्धचक्रयंत्रम् ___संवत् १८८४ मिते ज्येष्ठ वदि ७ दिने छाजेड़। साह बलदेवेन श्रीसिद्धचक्रयंत्रं कारितं प्रतिष्ठितं च पं। चारित्रसागरगणिभिः श्रीअजमेरनगरे॥ (१८६१) जिनदत्तसूरि-पादुका संवत् १८८५ आषाढ़ वदि ५ दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिजी पगला (१८६२) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १८८५ आषाढ़ वदि ५ वार रवि श्रीदादाजी जिनकुशल. (१८६३) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥सं० १८८५ मि। आसो सुदि ५ दिने श्रीसिद्धचक्रस्य यंत्रं भ। श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं जांगलू वास्तव्य पा। अजैराजजी तत्पुत्र तिलोकचंदेन कारितं श्रेयोर्थं। (१८६४) शान्तिनाथः सं० १८८५ मिति माघ सुदि ५ गुरौ श्रीशांतिनाथजिन प्रतिष्ठितं बृहत्भट्टारकश्रीजिनचन्द्रसूरि कारापितं श्रीसंघेन हरिदुर्गमध्ये स्वश्रेयार्थं ॥ (१८६५) शुभगणधर-प्रतिमा सम्वत १८८५ मिती फाल्गुन सुदि ३ रवौ श्रीपार्श्वनाथस्य श्रीशुभस्वामिगणधरबिम्बं प्रतिष्ठितं भ० । श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ बृहत्खरतरगच्छे कारितं बालूचरवास्तव्य श्रीसंघेन॥ १८५८. धर्मनाथमंदिर, मेड़ता सिटी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५५ १८५९. श्रीऋषभदेवजी का मंदिर, पोकरण: य० वि० दि०, भाग २, पृ० २२४ १८६०. सम्भवनाथ मंदिर, अजमेरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५६ १८६१. लूणवसही, आबूः भँवर (अप्रका०), आबू तीर्थः लेखांक ३ १८६२. लूणवसही, आबू: भँवर० (अप्रका०), आबू तीर्थः लेखांक ४ १८६३. पार्श्वनाथ जिनालय, जांगलू, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२५८ १८६४. जैन मंदिर, हाथरस, उत्तरप्रदेश: भँवर (अप्रका०), हाथरस के लेख, क्रमांक १ १८६५. मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३५१ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (३२७) For Personal & Private Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८६६) सिद्धचक्रयन्त्रम् सं० १८८५ मि । फाल्गुण सुदि १३ रवौ शिखरगिरौ श्रीसिद्धचक्रमिदं प्रतिष्ठितं भ। श्रीजिनहर्षसूरिभिः श्रीबृहत्खरतरगच्छे कारितं दु० पुरणचंदेन सभार्यया सपुत्रेण श्रेयोर्थं (१८६७) शालालेखः जं० भ० श्रीजिनलाभसूरि प्रपौत्रेण पं । सुखसागरेण श्याला कारिता सं। १८८६ वर्ष वैशाख सुदि ५ (१८६८) शालालेखः सं० १८८६ मि। वै। सु ५ श्रा। सां। दानसिंह अखूरवाई केन श्याला कारिता। (१८६९) शिलापट्ट-लेखः १ ॥ सं० १८८६ मिती माघ शुक्ल पंचम्यां श्री २ गौड़ी पार्श्वनाथ प्रासादोद्धार श्री सं३ घेन द्वादश सहस्र प्रमितेन द्रविणेन का४ रितः महाराजाधिराज श्रीश्रीरतन५ सिंहजी विजयिराज्ये। श्रीमद्धृहखर६ तरगच्छाधीश्वराणां जं० यु० प्र० भट्टारक ७ श्रीजिनहर्षसूरीश्वराणामुपदेशात् ॥ (१८७०) शिलालेखः संवत् १८८६ शाके १७५१ मासोत्तममासे फाल्गुनमासे तिथौ च ३ गुरुवारे रतलामनगरे मालवदेशे श्रीमान् भट्टारकजी श्रीश्री १०८ श्रीजिनहर्षसूरिभिः भट्टारकगच्छे प्रतिष्ठितं च श्रीजिनचन्द्रसूरिखरतरपीपलियागच्छे श्री ५ श्रीरियं । श्रीधनजी तत् शिष्य पं० श्रीहीरतिलक शिष्य कस्तूरचंद श्रीसंघ आज्ञाइं जिनबिंबं कारापितं श्रीमान्महाराजा बलवंतसिंघविजयराज्ये श्रीऋषभजिनप्रासादे श्रीरस्तु कल्याणमस्तु। (१८७१) शालालेखः सं० १८८६ मिती फा० सु० ५ सेठिया श्रीकेशरीचंदेन इयं शाला कारिता। (१८७२) सीमंधरस्वामी-मूलनायक १ संव्वत् १८८७ वर्षे आषाढ़ शुक्ला १० दिने वारे चांद्रौ श्रीसीमंधरस्वामिजि १८६६. सुपार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८३९; जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३५२ १८६७. दादाजी का मंदिर, उदरामसर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२०२ १८६८. दादाजी का मंदिर, उदरामसर: ना० बी०, लेखांक २२०३ १८६९. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९१८ १८७०. ऋषभदेव जी का मंदिर, रतलामः य० वि० दि०, भाग ४, लेखांक २६ १८७१. दादाजी का मंदिर, उदरामसरः ना० बी०, लेखांक २२०४ १८७२. सीमंधरस्वामी का मंदिर, भांडासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११७३ (३२८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ न बिंबं श्रीसंघेन कारितं श्रीमद्धृहत्खरतरगच्छे भट्टारक ३ यु। श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः (१८७३) सुपार्श्वनाथः सं० १८८७ आषाढ सु० १० श्रीसुपार्श्वनाथबिंबं का। सिरदारकुमर्या कारि।प्र। भ। श्रीजिनहर्षसूरिभिः श्री (१८७४) धर्मनाथः सं० १८८७ आषाढ शु० १० श्रीधर्मनाथबिंबं बा जिनहर्षसूरिः (१८७५) शान्तिनाथः १ ॥ संवत् १८८७ मिते आषाढ शुक्ला १० दिने चांद्रौ श्रीशान्तिनाथजि२ न बिंबं श्रीसंघेन कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक ३ जं० यु० प्र० सार्वभौम श्रीजिनचंद्रसूरि प.....................श्रीजिनहर्षसूरिभिः (१८७६) मल्लिनाथ-एकतीर्थीः सं० १८८७ आषा। सु। १० श्रीमल्लिबिंबं........................... | मोला। प्र। श्रीजिनहर्षसूरिभिः। (१८७७) मुनिसुव्रतः सं० १८८७ व। आषाढ शु० १० श्रीमुनिसुव्रतबिंब बा। चूनी कारितं प्रतिष्ठितं जं० यु० प्र० जिनहर्षसूरिभिः। (१८७८) पार्श्वनाथः १ ॥ संवत् १८८७ मिते आषाढ़ शुक्ल १० दिने श्रीपार्श्वनाथजिनबिंबं बृहत्२ खरतर भट्टारक श्रीसंघेन कारितं च जं। यु। प्र। सार्वभौम भट्टारक श्रीजिन३ चन्द्रसूरि पट्टालंकार भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं च ॥ श्री॥ (१८७९) पार्श्वनाथः ॥ सं० १८८७ रा। मि। आषा। सु। १० श्रीपार्श्वनाथबिंबं से। रायमल्लेन कारितं प्रतिष्ठितं भ० जिनहर्षसूरिभिः १८७३. चन्द्रप्रभ जिनालय, बेगानियों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६४१ १८७४. सीमंधर स्वामी का मंदिर, भांडासर: ना० बी०, लेखांक ११७८ १८७५. सीमंधर स्वामी का मन्दिर, भाण्डासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११७५ १८७६. अजितनाथ देरासर, सुगन जी का उपासरा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६६७ १८७७. सीमन्धर स्वामी का मन्दिर, भांडासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११७२ १८७८. सीमन्धर स्वामी का मन्दिर, भांडासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११७४ १८७९. सीमन्धर स्वामी मंदिर, भांडासरः ना० बी०, लेखांक ११८० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः ३२९) For Personal & Private Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८८० ) पार्श्वनाथ: ॥ सं० १८८७ वर्षे आषा । सु । १० श्रीपार्श्वनाथबिंबं नाहटा हठीसिंहेन कारितं प्रति० यु० भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः (१८८१ ) सम्मेतशिखरपट्टः ॥ स्वस्ति श्रीपार्श्वदेवेशो, विघ्ननात्तनिशंसकः। संघस्य मङ्गलं कुर्यादश्वसेननरेन्द्रभूः ॥ १ ॥ संव्वति १८८७ मिते शाके च १७५२ प्रवर्तमाने आषाढ शुद्धदशम्यां श्रीसम्मेतशिखरः पाषाणमयः पट्टः जं । यु । भ । श्रीजिनहर्षसूरिजी विजयि धर्मराज्ये जयपुरवास्तव्य श्रीसंघेन प्रतिष्ठा कारिता वा । रामचन्द्रगणेरुपदेशात् शुभम्भूयात् ॥ श्रीः॥ (१८८२) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ १८८७ मि। आषा। सु १० दि । श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुके भ । जं० । यु । श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्र । (१८८३) पादुकात्रय सं० १८८७ मि० आषाढ़ सुदि १० दिने बुधवारे संविग्रपक्षीय आर्या विनेश्री । श्रीखुशाल श्रीजी सौभाग्यश्रीकस्या पादन्यासाः कारिता प्र । जं । यु० । भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः श्रीबृहत्खरतरगच्छे । (१८८४) चन्द्रप्रभः सं० १८८७ वर्षे मिति फाल्गुण सुदि ३ गुरौ श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का । चारित्रनंदनगण्युपदेशात् नोलखा जसेन्दु कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्षसूरीणां बृहत्खरतरगणे ॥ श्री ॥ (१८८५ ) अरनाथः सं० १८८७ वर्षे मिति फाल्गुण सुदि ३ गुरौ श्रीअरनाथबिंबं वाचक चारित्रनंदनगण्युपदेशात् नोलखा जसेन्दु कारितं । श्रीजिनहर्षसूरीणां ॥ गोविन्ददास निर्मिता मूर्त्तिरियम् (१८८६ ) पार्श्वनाथ: संवत् १८८७ वर्षे फाल्गुण शुक्ल १३ श्रीपार्श्वनाथजिनबिंबं दुगड़ ज्येष्ठमल्ल भार्या फत्ती नाम्या वाचक चारित्रनंदिगणि उपदेशात् कारितं प्रतिष्ठितं च । लेखांक १४१८ १८८०. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, १८८१. चन्द्रप्रभ मंदिर, खोह: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४५७ १८८२. पार्श्वनाथ जिनालय, जांगलू, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२५६ १८८३. सीमंधर स्वामी जी का मंदिर, भांडासर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ११८६ १८८४. मूल मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : संकलनकर्ता, भँवर० १८८५. मूल मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : संकलनकर्ता, भँवर० १८८६. जैन मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : पू० जै० भाग १, लेखांक ३४१ (३३०) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८८७).. ."नाथः । संवत् १८८७ वर्षे मिति फाल्गुन शुक्ला १३ श्री...........कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्ष... (१८८८) काला भैरव मूर्तिः संवत् १८८८ वर्षे मिति वैशाख सुदि ३ सेठजी श्रीमोतीचंदजी खेमचंद श्रीकालाभैरवमूर्ति कारापितं प्रतिष्ठितं वाणारस अमरसिंधुरगणि श्रीखरतरगच्छे। (१८८९) पार्श्वनाथ-पादुका ॥ संवत् १८८८ प्रमिताब्दे द्वितीय वैशाख शुक्लपक्षे पंचम्यां ५ चन्द्रवासरे कारितं हरिदुर्गवास्तव्य श्रीसंघेन श्रीपार्श्वनाथपादुका प्रतिष्ठितं सकलकोविदोत्तमागंशेखरैः। जं। यु। श्रीजिनचन्द्रसूरिणा कृतप्रयत्न मुनि रूपचंद्रोपदेशात् ॥ श्रीकल्याणसिंहजी विजयराज्ये श्रेयोस्तु॥ (१८९०) प्रेमधीर-पादुका संव्वति १८८८ प्रमिताब्दे द्वितीय वैशाख शुक्लपक्षे तिथौ पंचम्यां ५ चन्द्रवासरे पंप्र० श्रीजिणदासजी शिष्य श्रीलालचंद तत्शिष्य श्रीप्रेमधीरजी तत्पादुका कारितं तत् सता ...........पं० रूपचंद्रमुनिना जं० यु० प्र० बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयिराज्ये ॥ (१८९१) दौलतविजय-पादुका संव्वति १८८८ प्रमिताब्दे द्वितीयवैशाखमासे शुक्लपक्षे तिथौ पंचम्यां ५ चन्द्रवासरे पं० प्र० श्रीजिणदासजी तत्शिष्य श्रीलालचंदजी तत्शिष्य श्रीप्रेमचंदजी तत्शिष्य दौलतविजयजी तत्पादुका कारितं तत्शिष्य रूपचंदमुनिना जं० यु० प्र० बृहद्भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये॥ (१८९२) विनयसिद्धि-पादुका सं० १८८८ द्वि० वै० सु० ७ जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्र० सा० विनयसिद्ध्या पादुका कारिता चामृतसिद्धिमिमाम्। (१८९३) गोरा-भैरव मूर्तिः - सं० १८८८ वर्षे मिति वैशाख सुदि.............खेमचंद गोरा भैरवमूर्ति कारापिता प्र। वाणारस अमरसिन्धुरगणिः खरतरगच्छे। १८८७. सुपार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : संकलनकर्ता, भँवर० १८८८. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक ३२ १८८९. दादाबाड़ी, किशनगढ़ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४६२ १८९०. दादाबाड़ी, किशनगढ़ : प्र० ले० सं०, भाग २,लेखांक ४६१ १८९१. दादाबाड़ी, किशनगढ़ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४६० १८९२. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०७९ १८९३.,चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक २५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) ३३१) For Personal & Private Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८९४) हर्षविजय-पादुका सं० १८८८ व। मि। ज्ये। सु। १ बुधे जं। यु। भ। श्रीजिनहर्षसूरिभिः वा। हर्षविजयगणीनां पादुके प्र। कारिते च पं। कल्याणसागरेण। (१८९५) आदिनाथ-पादुका सं० १८८८ मि० सु० ८ सोमे आदिनाथपादुका सेठ खुशालचंद पुत्र धर्मचंद्र पुत्र मिलापचंद्र ............श्रीजिनहर्षसूरिराज्ये देवचंद्र प्रति। (१८९६) आदिनाथः सं० १८८८ मा। सु। ५ । श्रीआदिजिनबिंबं कारितं उसवंशे पहलावतगो सदानंद पुत्र गुलाबराय भार्या जूनाख्या का प्र० । बृ। भ। खरतर । ग। श्रीजिनाक्षयसूरि तत्पङ्कज गैः श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। . . (१८९७) अभिनन्दनः ___ सं० १८८८ माघ शुक्ल ५ भौमे श्रीअभिनन्दनजिनबिंब का० । ओसवंशे बोहरागोत्रे हर्षचंद्र पुत्र कीर्तिसिंहेन भार्या दुनिख्या................ (१८९८) पद्मप्रभः सं० १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्रीपद्मप्रभजिनबिंब कारितं श्रीमालान्वये भांडिया गो० । मूलचंद्र पुत्र जात्री मल्लेन प्र० । बृ० । भ० । खरतर श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्री........... (१८९९) चन्द्रप्रभः सं० १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्रीचन्द्रप्रभजिनबिंब कारितं । प्र० वृ० भ। खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थैः ___ (१९००) चन्द्रप्रभः संवत् १८८८ माघ शुक्ल पंचम्यां चन्द्रवासरे श्रीचंद्रप्रभजिनबिंब कारितं ओशवंशे नवलखा गोत्रे मेटामल पुत्र जसरूपेन प्रतिष्ठितं च बृहद्भट्टारकखरतरगच्छ श्रीजिनाक्षयसूरी चंचरीक श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। (१९०१) सुविधिनाथ: सं० १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्रीसुविधिनाथबिंब कारितं श्रीमालान्वय महिमवाल गोत्रीय जीतमल्लस्य भार्या रूपाख्यया पुत्र धूमीमल्लेन। प्र० वृ० । १८९४. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २३०७ १८९५. खरतरवसही, शत्रुजय : भँवर (अप्रका०) लेखांक ६२ १८९६. आदिनाथ जिनालय, सहादतगंज, लखनऊ पू० जै० भाग २, लेखांक १६२९ १८९७. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक २९ १८९८. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक ८ १८९९. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक १७ १९००. श्वे. जैन मंदिर० मधुवन, सम्मेतशिखर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३४३ १९०१. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक १६ (३३२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९०२) शीतलनाथ: संवत् १८८८ माघ शुक्ल पंचम्यां सोमवासरे श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं ओसवंश दुगड़ गोत्र प्रतापसिंहेन प्रतिष्ठितं च श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। (१९०३) मल्लिनाथः ॥ सं० १८८८ माघ सु० ५ सोमे ओशवंशे कोठारी गुलाबचंद तद्भार्या बिंदो श्रीमल्लिजिनबिंबं कारितं प्र। च । बृ। ग। खर। ग। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। तत्श्रेयोर्थं। (१९०४) मुनिसुव्रतः ॥ संवत् १८८८ मा। सु। ५ श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का। श्रीमा० माणिकचन्द्र पुत्र ताराचन्द्रेण प्र। भ। खरतर ॥ श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (१९०५) पार्श्वनाथः सं० १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्री गउडीपार्श्वबिंबं कारितं ओसवंश दुगड़ मो प्रतापसिंहेन । प्र। बृ। भ। खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थितैः (१९०६) वर्धमानः सं० १८८८ मा० सु० ५ श्रीवर्धमानजिनबिंब कारितं उसवंशे चोरडिया गोत्रे हरीमल भार्या ननी तया। प्र। बृ। भ। खरतर ग। श्रीजिनाक्षयसूरिपङ्कजप्रबोध स्वपितृसम श्रीजिनचंद्रसूरिभिः कारितं पूजकयोः श्रेयोर्थं । लखनऊ नगरे __ (१९०७) महावीरः ॥सं० १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्रीमहावीरजिनबिंबं कारितं ओशवंशे कांकरियागोत्रे माणिकचन्द्र पुत्र ताराचन्द्रेण । प्र। बृ। भट्टारक खरतरग। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीजिनाक्षयसूरिपदांकितैः॥ स्वश्रेयोर्थं। (१९०८) महावीरः - सं० १८८८ माघ सुदि ५ श्री महावीरबिंबं कारितं श्रीमालान्वये फोफलियागोत्रे बखतावरसिंहस्य भार्या ज्ञाना १९०२. श्वे. जैन मंदिर० मधुवन, सम्मेतशिखर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३४२ १९०३. श्रीमालों का मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४६३ १९०४. श्रीमालों का मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४६६ १९०५. प्रतापसिंह जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८२२ १९०६. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी का मंदिर, सुधीटोला, लखनऊ : पू० जै०, भाग २, लेखांक १५८६ १९०७. श्रीमालों का मंदिर, जयपुर : प्र० ले०, सं० भाग २, लेखांक ४६४ १९०८, चिन्तामणि पार्श्वनार्थ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक १४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (३३३) For Personal & Private Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९०९)" ""नाथः सं० १८८८ ना मा।सु।५। श्रीश्रीमालवंशे इंटोणा गोत्रे सुरतराम पुत्र चुन्नीलालजी तत्पुत्र कालकादासेन लखणेउ नगर वास्तव्येन कारितं प्र। बृहत्ख। श्रीजिनाक्षयसूरि पत्कजचंचरीक श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (१९१०) युगमन्धरः सं० १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्रीयुगमंधरजिनबिंबं कारितं............ श्रीमालान्वये फोफलिया गो० । .................रायपुत्र सुखरायेण प्र। बृ० .................. (१९११) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्रीजिनकुशलसूरिचरणकमलकारितं श्रीमालान्वये फोफलियागोत्रीय वषतमल्ल पुत्र दिलसुखरायेण प्र। बृ। भ। खरतरग। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थैः (१९१२ ) सुपार्श्वनाथः सं० १८८८ । मा। ओशवंशे डागागोत्रे। सा० गोकलचंद्रेण श्रीसुपार्श्वनाथबिंब कारितं प्र। बृ। खरतरग। श्रीजिनाक्षयपत्कजचंचरीक श्रीजिनचंद्रसूरिभिः स्वश्रेयोर्थं ॥ (१९१३) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ सं० १८८९ मिति आषाढ़ सुदि १० श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्र। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा। कारितं वैद कल्याणचंदेन श्रेयोर्थम्। (१९१४) शिलालेखः संवत् १८९० वर्षे मिती वैशाख सित पंचम्यां............. वासरे श्रीपादलिप्तनगरे राजा श्रीगोहिल कांधाजी कुंअर नोंधणजी विजयराज्ये श्रीमिरजापुर वास्तव्य वृद्धशाखायां ऊकेशज्ञातीय सा० उदेचदंजी सेठ........श्रीविमलाचलोपरि कारितं श्रीपद्मप्रभुस्थापितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे सकल भट्टारक शिरोमणि जं० युगप्रधान श्रीजिनहर्षसूरिभिः विजयराज्ये पं० प्र० देवचंद्र प्रतिष्ठितं खेमशाखायां श्रीश्री (१९१५) शिलापट्ट-लेख: (१) सं० १८८९ वर्षे शा। १७५४ मिते माघ शुक्ल ६ बुधे राजराजेश्वर म(२) हाराजशिरोमणि श्रीरत्नसिंहजी विजयराज्ये से। गो। सा। बालचंद्र पु(३) त्र केशरीचंद्र पुत्र अमीचंद्र चतुर्भुज रायभाण करमचंद रावत अ १९०९. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ५ १९१०. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक १० १९११. जैनमंदिर, चन्द्रावती पू० जै० भाग २, लेखांक १६८३ १९१२. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४६७ १९१३. संभवनाथ जिनालय, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४६८ १९१४. खरतरवसही, शgजय : भँवर (अप्रका०), लेखांक ९७ ; श० गि० द० लेखांक १२६ १९१५. सम्मेतशिखर जी, गोगा दरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९६२ (३३४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) गरू भ्रातृ युतेन विक्रमपुरे श्रीसम्मेतशिखरस्य विंशति - जिनचरण (५) न्यासः प्रासादः कारितः प्र० बृहत्खरतरगच्छेश जं० यु० भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ ( १९१६ ) शिलालेखः ॥ संवत् १८८९ मिति माघ शुक्ल १० दशम्यां तिथौ श्री गोडी पार्श्वनाथस्य द्विभूमियुक्तचैत्यं । श्री बालूचर वास्तव्य दुगड़ गोत्रीय | श्री प्रतापसिंहेन कारितं प्रतिष्ठितं च श्री खरतरगच्छेशः जं । यु । भ । श्रीजिनहर्षसूरीणामुपदेशात् । उ । श्रीक्षमाकल्याणगणीनां शिष्येणेति ( १९१७) विंशतिजिन - पादुकाः (१) संवत् १८८९ मिति माघ शुक्ल १० दशम्यां तिथौ श्रीगौडीपार्श्वनाथचैत्ये विंशति-जिनेश्वराणां चरणन्यासाः श्री बालूचरनगरवास्त (२) व्य डुगड गोत्रीय साह श्री प्रतापसिंघेन कारिताः प्रतिष्ठिताश्च । श्री । बृहत्खरतरगच्छेशा: जंग(३) म युगप्रधान भट्टारका : श्रीजिनहर्षसूरीश्वराणामुपदेशात् उपाध्यायपदशोभिता । श्रीक्षमाकल्याणगणीनां शि (४) ष्य प्राज्ञ ज्ञानानंदेन पं । आनंदविमल पं । सुमतिशेखर सहितेनेनि । श्रेयोर्थं। सम्यक्त्ववृद्ध्यर्थं च॥ ॥ श्री अजितनाथजी २॥ श्रीसंभवनाथजी ३ ॥ श्रीअभिनंदननाथजी ४॥ श्रीसुमतिनाथजी ५॥ श्रीपद्मप्रभजी ६ ॥ श्री सुपार्श्वनाथजी ७ ॥ श्रीचंद्रप्रभजी ८ ॥ श्रीसुविधिनाथजी ९ ॥ श्रीशीतलनाथजी १० ॥ श्री श्रेयांसनाथजी ११ ॥ श्रीविमलनाथजी १३ ॥ श्री अनंतनाथजी १४ ॥ श्रीधर्मनाथजी १५ ॥ श्रीशांतिनाथजी १६ ॥ श्रीकुंथुनाथजी १७ ॥ श्रीअरनाथजी १८ ॥ श्रीमल्लिनाथजी १९ ॥ श्रीमुनिसुवतनाथजी २० ॥ श्रीनमिनाथजी २१ ॥ श्रीपार्श्वनाथजी २२ ॥ (१९१८) जिनकुशलसूरि- पादुका सं० १८९० व० । शा०१७५५ प्र । ज्येष्ठ शुक्ल १२ गुरौ पचेवरवास्तव्य सं० श्रीसिंहेन श्रीजिनकुशलसूरिपादुका कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छीय भ० श्रीजिनचन्द्रसूरीणां तत्शिष्य पद्मभाग्य उपदेशात् । (१९१९) शय्यापट्ट लेखः ॥ सं० १८९० मितेः आषाढ़ सुदि १३ वारे शनौ देशणोक बड़े वास वास्तव्य श्रीसंघेन वा । आनन्दवल्लभ गणेरुपदेशादसौ पट्टः कारित: श्री बृहत्खरतरगच्छे ॥ १९१६. प्रतापसिंह जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: पू० जै०, भाग २, लेखांक १८२१ १९१७. प्रतापसिंह जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८२४ १९१८. चन्द्रप्रभ जिनालय, पचेवर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४६९ १९१९. शांतिनाथ जिनालय, भूरों का वास, देशनोक, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२४२ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (३३५) Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९२०) शिलापट्ट लेखः ॥ सं० १८९० मि। काती व० १३ दिने भ॥ जं । यु । श्रीजिनहर्षसूरिरु । श्रीसिं० । का । (१९२१) पादुकात्रयम् ॥ सं० १८९० वर्षे मि। मार्गशीर्ष कृष्णैकादश्यां । पा । प्रतिष्ठि ॥ वा० श्री अमृतधर्मगणि ॥ श्री गौतमस्वामीगणभृत् ॥ उ० श्रीक्षमाकल्याणगणिः । (१९२२) पादुकात्रयम् ॥ सं० १८९० वर्षे मि। मिगसर वदी ११ । पा । का । श्रीजिनभक्तिसूरि ॥ श्रीपुंडरीकगणभृत्॥ श्रीप्रीतसागरगणिः ॥ ( १९२३) जिनकुशलसूरि- पादुका सं० १८९० में संघ के स्थापित श्रीजिनकुशलसूरिजी के चरण पादुकायै (१९२४) जिनपद्मसूरि- पादुका (संवत् १८९०) श्री १०८ श्रीजिनपद्मसूरिजी ॥ १॥ (१९२५) दादापादुका - युग्म ॥ संव्व० । १८९१ । मिति । आषाढ़ सु । पंचम्यां श्रीजिनदत्तसूरि : श्रीजिनकुशलसूरि पादु । श्रीसंघे। । प्रभ। जं । श्रीजिनहर्षसूरिभिः । ( १९२६) अजितनाथ: सं० १८९१ मा० सु०५ चंद्रवार श्रीमालज्ञातीय पालीतानावास्तव्य बोहरा अमरसीआदि कारितं अजितजिनबिंबं । खरतरगच्छे पं । देवचंद्रप्रति । (१९२७) चारित्रप्रमोद-पादुका सं० १८९१ मिते माघ शु० ५ बृहत्खरतर । भ । जं । श्रीसागरचंद्र० शाखायां वा० श्रीचारित्र प्रमोदगणि पादुका कारितं पं० कीर्त्तिसमुद्र मुनि प्रतिष्ठितं च । भ । जं । भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ २ ॥ १९२०. पार्श्वनाथ जिनालय, जांगलू, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२५४ १९२१. सीमन्धर स्वामी का मंदिर, भांडासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११८८ १९२२. सीमन्धर स्वामी का मंदिर, भांडासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११८९ १९२३. मुनिसुव्रत जिनालय, जोधपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४७० १९२४. दादाबाड़ी, नागपुर १९२५. शांतिनाथ जिनालय, भूरों का वास, देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२४१ १९२६. खरतरवसही, शत्रुंजय : भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ६३ १९२७. दादासाहब की बगीची, चुरू : ना० बी०, लेखांक २४२२ (३३६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९२८) शिलालेखः भ। श्रीजिनहर्षसूरिजित्विजय राज्ये ॥सं० १८९१ मि।मा।सु।५ पं० । अभयविलासमुनेरुपदेशादेषा शाला श्रीसंघेन कारिता। (१९२९) चन्द्रविजय-पादुका सं० १८९१ मिते माघ शुक्ल ५ बृहत्खरतरगच्छे भ। जं। श्रीसागरचन्द्रशाखायां पं० । प्र० । श्रीचन्द्रविजयमुनि पादु० कारि० पं० गुणप्रमोद मुनि प्रतिष्ठिते च भ। जं। भ। श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥२॥ (१९३०) सिद्धचक्रयन्त्रम् सं० १८९२ चैत्र शुक्ल राकायां चंद्रवासरे लक्ष्मणपुरस्थ श्रीमाल। दुसाज उमदामल पुत्र । उमरामल तत्पुत्र बहादरसिंह माय मुनीयाख्या सिद्धचक्र कारापितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनचंद्रसूरिपदस्थ नंदिवर्धनसूरिभिः॥ (१९३१) सिद्धचक्रयन्त्रम् सं० १८९२ चैत्र शुक्ल राकायां चन्द्रवासरे लक्ष्मणपुरस्थ श्रीमालान्वये भांडियागोत्रे हिरदेसिंघ भार्या चुनियाख्या आचाम्लतपोद्यापने श्रीसिद्धचक्रयंत्रं कारापितं श्रीमद्धृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जं०। यु०। भ० । श्रीजिनचंद्रसूरिपदस्थ भ० श्रीजिननंदीवर्धनसूरिभिः प्रतिष्ठितं। (१९३२) इन्द्रध्वजमाला-पादुका संवत् १८९२ रा शाके १७५७ प्र। पौष मासे शुक्र पक्षे ७ तिथौ भौमवारे यं। यु।भ। श्रीजिनउदयसूरिभिः सा। इन्द्रध्वजमालाया............पादुका प्रतिष्ठिता सा। धेनमाला कारापिता महाराजाधिराज श्रीरतनसिंहजी विजयराज्ये॥ (१९३३) चक्रेश्वरी (रजतमय) ॥सं० १८९२ मि । फागण वदि ३ भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्रति । गो। श्रीदौलतरामजी कारापितं॥ (१९३४) शिलालेखः सं० १८९३ ना मिते वैशाख सित १३ वार शुक्रे श्रीपादलिप्तनगरे श्री कांधाश्री कुअर नोंधणजी तत्पुत्र प्रतापसिंघजी विजयराज्ये श्रीमकसूदाबाद वास्तव्य वृ। प्रगट उकेशज्ञातीय दुगड़गोत्रे बाबू बुधसिंघजी तत्पुत्र बाबू बाहदरसिंघजी तत् भ्राता बाबू प्रतापसिंघजी तद्भार्या महताबकुंअर श्रीशत्रुजययात्राविधानसंप्राप्त बाबू प्रतापसिंघजी संघपतितिलक नवीनजिनभुवनप्रतिष्ठा साधर्मिकवात्सल्यादि धर्मक्षेत्रसप्तस्ववित्तशं १९२८. शांतिनाथ जी का मंदिर, भूरों का आथूणावास, देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२३० १९२९. दादासाहब की बगीची, चुरू : ना० बी०, लेखांक २४२० १९३०. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक २७ १९३१. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक २६ १९३२. खरतरगच्छीय शाला, नाल, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २३१५ १९३३. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १४८४ १९३४. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० लेखसंग्रह, लेखांक ७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः ३३७) For Personal & Private Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीविमलाचलोपरि विहारशृंगारहार श्रीसंभवनाथजी त। २३ त । १०बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमहावीरदेवपट्टानुपट्टपंरपरायात् श्रीउद्योतनसूरि। श्रीवर्द्धमानसूरि वसतिमार्गप्रकाशकः इत्यादि शास्त्रपारिधुरीण श्रृंगारक सकलभट्टारकपुरंदर वृंदारक जंगमयुगप्रधान श्रीजिनहर्षसूरीश्वर विजयराज्ये श्री। बृ। ख। वा। कनकशेखर जित्शिष्य पं० जयभद्रजी तत्शिष्य पं० देवचंद्रेण प्रतिष्ठितं च। उहासेती गु। टोडरमलजी ताराचंदजी आरासे अयं प्रशस्तिः श्रीरस्तु। श्रीः॥ कन्नाजी २ जयवंतजी. (१९३५) गोमुखयक्ष-प्रतिमा सं० १८९३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ बुधे गोमुखयक्षबिंब जैसलमेर वास्तव्य बाफणा गुमानचंदजी बहादरमलजी का। प्र। जं। यु। भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः खरतरगच्छे। (१९३६) शिलालेखः सं० १८९३ मिते। प्र। आषाढ़ सुदि १० तिथौ महाराजाधिराज श्री रतनसिंहजी विजयराज्ये। दा। श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां स्तम्भोद्धार श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश जं। यु० ।प्र। भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरीश्वराणामुपदेशात् श्री जैसलमेर वास्तव्य संघमुख्य बा। बहादरमलजी सवाईरामजी मगनीरामजी जोरावरमलजी प्रतापचंदजी दानमलजी सपरिवारेण कारितः जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरीश्वराणां विजयराज्ये श्रेयोभवतु ॥ श्री॥ (१९३७) नौचौके पर लेख संवत् १८९३ मिते प्र। आषाढ़ सुदि १० तिथौ शुक्रवारे बाफणागोत्रीय संघमुख्य श्रीबहादरमल्लजी सपरिवारेण जीर्णोद्धार कारितः (१९३८) शिलालेख: ॥सं० । १८९३ मिते श्राव।सु।७ तिथौ राजेश्वर श्रीरतनसिंहजी विजयराज्ये श्रीचंद्रप्रभप्रासादोद्धार बेगवाणी सर्व श्रीसंघेन कारितं श्रीमद्धृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जं। यु। भ श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्रति । (१९३९) आदिनाथ-पादुका __ संवत् १८९३ मि। श्रा। सु। ७ राजराजेश्वर श्रीरतनसिंहजी विजयराज्ये श्रीआदिनाथ पा। श्रीसंघेन पा। बृ। ख। जं। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र। ___ (१९४०) जिनकुशलसूरि-स्तूपलेख: (१) ॥ संवत् वह्निग्रहादिनागचन्द्रवर्षे (१८९३) (२) कार्त्तिकमासे शुक्लपक्षे अष्टम्यां तिथौ (३) भृगुवारे क्रतो(?) श्रीश्रीबृहत्खरतरग १९३५. छीपावसही, शत्रुजय : भँवर० लेखसंग्रह, लेखांक ३३ १९३६. दादाजी का मंदिर, उदरामसर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१९९ १९३७. दादाजी का मंदिर, उदरामसर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२०५ १९३८. चन्द्रप्रभ जिनालय, बेगानियों में, बीकानेर ना० बी०, लेखांक १६३९ १९३९. शांतिनाथ जिनालय, नापासर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २३३० १९४०. दादाजी का स्थान, ब्रह्मसर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५८५ (३३८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) च्छे भ। श्रीजिनहर्षसूरिभिः पं० खूबचंद शि(५) ष्य। पं। प्र। जगविशालमुनि उपदेशात् दादा (६) जी श्रीजिनकुशलसूरिश्वर जीर्ण पादुका (७) परि नवीन धुंभशाला कृता श्रीब्रह्मसर ग्रामे (८) ओशवाल समस्त श्रीसंघ सहितेन प्रतिष्ठा कृ(९) ता महारावल श्रीगजसिंहजी वारे तथा सी(१०) यड़ भोजराज श्रीब्रह्मसर कुंडात् पश्चिम दिशे धुं(११) भशाल स्थापना कृता १८९३ गजधर सरूपा (१९४१) शिलालेखः (१) अत्यद्भुतं सज्जनसिद्धिदायकं भव्यांगिना मो(२) क्षकरं निरन्तरं जिनालये रङ्गपुरे मनोहरे चन्द्रप्रभं (३) नौमि जिनं सनातनं ॥ १॥ संवत् १८९३ मि। माघ वदि १ । र(४) वौ श्रीरङ्गपुरे भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी विजयी। (५) राज्ये वा। आनन्दवल्लभगणेरुपदेशात् श्रीमक्षुदावा(६) द बालूचर वास्तव्य दू। निहालचंद तत्पुत्र बाबू इन्द्रच० (७) न्द्रेण श्रीचन्द्रप्रभजिनः प्रसादः कागपितः प्रतिष्ठापि(८) तश्च। विधिना ॥ सतां कल्याणवृद्ध्यर्थम्॥ (९) श्रीरस्तुः॥१॥ (१९४२) शिलालेखः ॥ श्री॥ सिद्धचक्राय नमः॥ संवत् १८९३ प्रमिते शाके १७५८ प्रवर्त्तमाने माघ शुक्ल दशम्यां तिथौ बुधवासरे मुंबई बिंदर वास्तव्य ओसवंश वृद्धशाखायां नाहटागोत्रे सेठ अमीचंदजिद्भार्या रूपबाई तत्पुत्र सेठ मोतिचंद्रजिद्भार्या दीवाली बाई तत्कुक्षि समुद्भूत पुत्ररत्न श्रीशत्रुजयतीर्थयात्राविधानसंप्राप्तश्रीसंघपतितिलक नवीनजिनबिंबंप्रतिष्ठा साधर्मीवात्सल्यादिसप्तक्षेत्रे स्ववित्तसफलीकृत संघमुख्य खेमचंद सपरिवारेण समुद्धारित सप्रकार श्रीविमलाचलोपरि मूलोद्धार श्रीआदिनाथ-प्रथमगणधर श्रीपुंडरीकबिंबं कारितं खर० श्री भ। जं। यु। श्रीजिनदेवसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि विद्यमाने सपरिकरसंयुते भ। जं। यु। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे ॥ श्रीरस्तु॥ (१९४३) आदिनाथ-मूलनायकः संवत् १८९३ प्रमितेवर्षे शाके १७५८ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममाघमासे शुक्लपक्षे १० दशम्यां बुधवासरे श्रीपादलिप्तनगरे गोहिलवंशे श्रीप्रतापसिंघजी विजयराज्ये। श्रीमुंबईबिंदरवास्तव्य उसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां नाहटागोत्रे । सेठ अमीचंदजी भार्या । रूपाबाई तत्पुत्र से० मोतीचंदजी भार्या दीवालीबाई तत्कुक्षिसमुद् १९४१. चन्द्रप्रभ जिनालय, माहीगंज रंगपुर- उत्तर बंगाल : पू० जै०, भाग २, लेखांक १०१७ १९४२. मोतीशाह की ट्रॅक, शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक २ १९४३. सेठ मोतीशाह का मंदिर, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक १६४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (३३९) For Personal & Private Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूतपुत्ररत्न श्रीशत्रुंजयतीर्थयात्राविधासंप्राप्तश्रीसंघपतितिलक नवीनजिनभवनबिंबप्रतिष्ठा साधर्मिकवात्सल्यादि स्ववृत्तसफलीकृत सि० (सं) घनायक । खेमराजजी परिवारयुतेन श्रीसिद्धाचलोपरि श्री आदिनाथबिंबं कारितं ॥ खरतरपिप्पलीयागच्छे श्रीजिनदेवसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिविद्यमाने सपरिवारयुते ॥ प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे। जं । ० । ० । श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर भ० । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः ॥ (१९४४) अभिनन्दनः ॥ सं । १८९३ शाके १७५८ प्र । माघ सुदि १० बुधवासरे श्रीपादलिप्तनगरे श्रीअभिनन्दनबिंबं कारितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ । जं । यु । श्रीमहेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (१९४५) सुमतिनाथ: सं०। १८९३ माघ सुदि १० बुधवासरे श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं बृहत्खरतरगच्छे प्रतिष्ठितं । ० । प्र० । भ० । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः । ( १९४६ ) सुपार्श्वनाथः संवत् १८९३ वर्षे शाके १७५८ प्रवर्त्तमाने माघसित १० बुधे श्रीपादलिप्तनगरे राज श्रीगोहिल कांधाजी कुंअर नोंघणजी तत्कुंअर प्रतापसिंहजी विजयराज्ये श्रीसुपार्श्वनाथबिंबं कारितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे जं । यु । प्र । भ । श्रीजिनहर्षसूरि तत्पट्टालंकार जं । यु । प्र । भ । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं । ( १९४७ ) चन्द्रप्रभः सं० १८९३ व । माघ सुदि १० बुध श्राविका बाई श्री चन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे भ। श्रीजिनहर्षसूरि पट्टदिवाकर जं० । यु० । भट्टारक। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः॥ ( १९४८ ) बाहुस्वामी संवत् १८९३ माघ सित १० बुधे मुंबई वास्तव्य ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां नाहटागोत्रे सेठ शा० करमचंद तत्पुत्र से० अमीचंदेन श्रीबाहुजिनबिंबं कारितं खरतरपिप्पलियागच्छे जं० यु० प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिविराजमाने प्रतिष्ठितं च जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः खरतरगच्छे श्रीपालीताणानगरे ॥ (१९४९) पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १८९३ माघशित १० बु । से। मोतीचंद तेन श्रीपञ्चतीर्थी कारितं खरतरपीप्पलीयगच्छे भ श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः विद्या प्रति खरतरगच्छे भ । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः । १९४४. धर्मनाथ जिनालय, रोनाही: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६७१ १९४५. धर्मनाथ जिनालय, रोनाही: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६७२ १९४६. मोतीशाह ही ट्रंक, शत्रुंजय : भँवर लेखसंग्रह (अप्रका० ) लेखांक ३ १९४७. चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुंबई : ब० चि०, लेखांक ३ १९४८. शांतिनाथ जी का मंदिर, लिम्बड़ी : य० वि० दि०, भाग ३, पृ० ४१ १९४९. कुन्थुनाथ जिनालय, कडुवामत की शेरी, राधनपुर : मुनि विशाल विजय- रा० प्र० ले० सं०, ३४० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only लेखांक ४५९ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९५०) यन्त्रम् सं० १८९३ माह। सु० । १० वरडिआ जोरावरमल्लेन का० भ० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे॥ (१९५१) शालालेखः ॥ जं। यु। प्र। भ। श्रीश्री १००८ श्रीजिनसौभाग्यसूरि विजैराज्ये सं० १८९४ आषाढ़ सुद १ शशिवासरे श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां पं। प्र। श्रीसुगुणप्रमोदमुनि पृष्ठे इयं शालां पं। विनैचंद पं। मनसुख मुनिभ्यां कारापिता। श्रीरस्तुः॥ (१९५२) हाथीराम-पादुका पं। प्र श्रीहाथीरामजी गणि चरणयुगलं । सं। १८९४ आषाढ़ सु १ (१९५३) जिनचंद्रसूरि-पादुका सं० १८९५ वर्षे वैशाख मासे शुक्लपक्ष तिथौ शुक्रे ६ बृहद्भट्टारक-खरतरगच्छीय श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचंद्रसूरिपादुके चारित्रउदय उपदेशेन कारितं जयनगर वास्तव्य सकलश्रीसंघेन प्रतिष्ठितं श्रीजिननंदीवर्धनसूरिभिः। न (१९५४) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ संवत् १८९५ मिति ज्येष्ठ शुक्ल १० शनिवासरे भट्टारक श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरीश्वरजी उपदेशात् श्रीमालगोत्रे खारडगो० । प्र सिंहरायजी तत्पुत्र सा० चैनसिंहजी श्रीसिद्धचक्रयंत्र कारापितं श्रीखरतरगच्छाधीश भट्टारक श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरीश्वरजी प्रतिष्ठितं श्री लक्ष्मणपुर। ___(१९५५) अष्टदलकमल । अथ शुभसंवत्सरेस्मिन् नृपतिश्रीविक्रमादित्यराज्यात् १८९५ वर्षे मासोत्तममासे फाल्गुनमासे शुक्लपक्षे पंचम्यां तिथौ चन्द्रवासरे रेवतीनक्षत्रे श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश युगप्रधान भट्टारक श्री श्री श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः विजयराज्ये श्रीसागरचंद्रसूरिशाखायां पं । प्र। श्रीचतुरनिधानजी तत्शिष्य पं० । श्रीचन्दजीशिष्य पं० ईश्वरसिंहेन आत्मपुण्यार्थं अष्टदलकमल कारापिते श्री पिंडनगर मध्ये। श्रीशुभ। श्रीपातसाहजी रणसिंहजीराज्ये। (१९५६) आदिनाथ: ॥ सं० १८९६ रा० शा० १७६१ वर्षे वैशाख सुदि ८ दिने प्रतिष्ठितं यं। यु। प्र। भट्टारक श्रीजिनकीर्तिसूरिभिः। कारापितं मुहणोत प्रेमचंदजी श्री...........खरतरबृहत्आचार्यगच्छे। श्रीऋषभदेवजीबिंबं । १९५०. धनराज जी का देरासर, जैसलमेर पू० जै० भाग ३, लेखांक २४७२ १९५१. दादाबाड़ी देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२५२ १९५२. दादाबाड़ी देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२५३ १९५३. दादाबाड़ी, सांगानेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४८६ १९५४. पंचायतीमंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४८७ १९५५. जयचंदजी का ज्ञान भंडार, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २५४१ १९५६. मुनिसुव्रत जिनालय, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४८९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) (३४१) For Personal & Private Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९५७) चन्द्रप्रभः सं० १८९३ शा० १७६१ वर्षे वैशाख सुदि ८ दिने श्रीचन्द्रप्रभजीबिंबं प्रतिष्ठितं । यं । यु । प्रधानभट्टारक श्रीजिनकीर्त्तिसूरिभिः श्रीखरतरबृहत्आचार्यगच्छे कारापितं .. I ( १९५८) पटवा - संघवर्णन - प्रशस्तिः (१) ॥ ॐ नमः ॥ दूहा ॥ ऋषभादिक चौबीस जिन पुंडरीक गणधार । मन वच काया एक कर प्रणमूं वारंवार ॥ १ ॥ विघन हरण संप (२) ति करण श्रीजिनदत्तसूरिंद। कुसल करण कुसलेस गुरु बंदूं खरतरइंद ॥ २ ॥ जाके नाम प्रभावतैं प्रगटै जय जय (३) कार । सानिधकारी परम गुरु रहौ सदा निरधार ॥ ३ ॥ सं० १८९१ रा मिति आषाढ सुदि ५ दिने श्रीजेसलमेरु नगरे महारा (४) जाधिराज महारावलजी श्री १०८ श्रीगजसिंघजी राणावतजी श्रीरूपजी बापजी विजयराज्ये ........ बृहत्खरतर भट्टारक (५) गच्छे जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः २ पट्टप्रभाकर जं० । यु० । भ० । श्री १०८ श्री जिनमहेंद्रसूरिभिः २ उपदेशा (६) त् श्रीबाफणागोत्रे सा० श्रीदेवराजजी तत्पुत्र गुमानचंदजी भार्या जैता तत्पुत्र ५ बहादरमल्लजी भार्या चतुरा। सवाईरांम (७) जी भार्या जीवां मगनीरांमजी भार्या परतापां जोरावरमल्लजी भार्या चौथां परतापचंदजी भार्या मांनां एवं बहादरमल्लजी त (८) त्पुत्र दांनमल्लजी सवाईरांमजी तत्पुत्र सामसिंघजी मांणकचंद । सामसिंघ पुत्र रतनलाल । मगनीरामजी तत्पुत्र भभूतसिंघ तत्पुत्र २ (९) पूनमचंद दीपचंद । जोरावरमल्लजी तत्पुत्र २ सुलतानमल्ल चंनणमल्ल सुलतानमल्ल पुत्र २ गंभीरचंद इंद्रचंद प्रतापचंदजी पुत्र ३ हिमतरा (१०) म जेठमल्ल नथमल । हिमतराम पुत्र जीवण जेठमल पुत्र मूलो गुमानचंदजी पुत्र्यां २ झबू सवाईरामजी पुत्र्यां ३ सिरदारी सिणगारी नानूडी (११) मगनीरामजी तत्पुत्र्यां २ हरकवर हसतू सपरिवारसहितैः सिद्धाचलजीरो संघ कढायो जिरी विगत जेसलमेरु उदयपुर कोटे सुं कुंकुमपत्र्यां सर्वं दे (१२) सावरां में दीवी । च्यार २ जीमण कीया नालेर दीया पछै संघ पाली भेलो हुवो उठै जीमण ४ कीया संघ तिलकरा संघतिलक मिति माह सुदि १३ दिने (१३) भ० । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिजी श्रीचतुर्विधसंघसमक्षे दीयो पछे संघ प्रयाण कीयो मार्ग में देसना सुणतां पूजा पडिकमणादिक करतां सातैं (१४) क्षेत्रां में द्रव्य लगावतां जायगा २ सामेलो हुतां रथयात्रा प्रमुख महोत्सव करतां श्रीपञ्चतीर्थीजी भणवाडी आबूजी जिरावलोजी तारं लेखांक ४९० १९५७. सुमतिनाथ जिनालय, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, १९५८. बाफणा हिम्मतरामजी मंदिर, अमरसागर, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५३० (३४२) खरतरगच्छ प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) गोजी संखेसरोजी पंचासरोजी गिरनारजी तथा मार्ग में सहरांरा गावांरा सर्व देहरा जुहास्या इभांत सर्व ठिकांणे मंदिर २ दीठ चढापो कीयो (१६) मुकुट कुंडल हार कंठी भुजबंध कडा श्रीफल नगदी चंद्रवा पुठिया इत्यादिक मोटा तीर्थमाथे चढावतो घणो हुवो गहणो सर्व जडाऊ हो सर्व (१७) ठिकांणे लाहण जीमण कीया सहसावनरा पगथ्या कराया उठै सूं सात कोस ठरै गांव सूं श्रीसिद्धगिरिजी मोत्यां सूं बधायनैं पालीतांणै बड़ा हंगाम (१८) सूं गाजा बाजतां तलेटी रो मंदिर जुहार डेरा दाखल हुवा दूजे दिन मिती वैशाख सुदि १४ दिने शांतिक पुष्टिक हुतां श्रीसिद्धगिरिजी पर्वत पर चढ्या (१९) श्रीमूलनायक चौमुखोजी खरतरवसीरा तथा दूजी वस्यां सर्व जुहारी मास १ रह्या उठै चढापो घणो हुवो अढाई लाख जात्री भेलो हुवो। पू (२०) रब मारवाड मेवाड गुजरात ढूंढाड़ हाडोती कछभुज मालवो दक्षण सिंध पंजाब प्रमुख सांरा उठै लहण १) सेर १ मिश्री घर दीठ दीवी जीम (२१) ण ५ संघव्यां मोटा कीया। जीमण १ बाई बीजू कीयो और जीमण पिण घणा हुवा | श्रीचौमुखाजी रैबार आला में गोमुखयक्ष चक्रेश्व (२२) री री प्रतिष्ठा करायनें पधराई चौमुखैजी रो सिखर सुधरायो १ नवो मंदिर करावण वास्ते नींव भराई । जूना मंदिरां रा जीर्णोद्धार कराया जन्म (२३) सफल की अथ च गुरुभक्ति इण मुजब कीनी ११ श्रीपूज्यजी हा ५१०० साधु साध्व्यां प्रमुख चोरासी गच्छाधिकारी त्यां प्रथम स्वगच्छ (२४) रा श्रीपूज्यजी री भक्ति सांचवी हजार पांच रो नकद माल दीयो दूजो खरच भर दीयो अनुक्रमे सारा दूजा श्रीपूजां री साधु साध्वीयां री भक्ति (२५) साचवी आहार पाणी गाडियांरो भाड़ो तंबू चीवरो ठांणे दीठ ४) रुपया दीया नगद दुसालावालांनैं दुसाला दीया सेवग ५०० हा जिणांनैं जण दीठ (२६) २१) इकीस रोट्यां खरच न्यारो मोजा पहरण रा ओषध खरची सारू रुपया चाहीज्यां जिणांनैं दीया पछै भ० । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिजी पासै सिंघ (२७) वियां २१ संघमाला पहरी जिणमै माला २ गुमास्तै सालगरांम महेसरी नै पहराई पछै बड़ा आडंबर सूं तलेटी रो मंदिर जुहार डेरा दाखल हुवा (२८) जाचकां नैं दांन दीयो पछै जीमण कीयो साधर्म्यं नै सिरपाव दीया राजा डेरे आयो जिणनैं सिरपाव हाथी दीया दूजां मार्ग में राजवी न (२९) बाब प्रमुख आया डेरै जिणांनै राज मुजब सिरपाव दीया श्रीमूलनायकजी रै भंडार रै ताला ३ गुजरातियां रा हा सो चौथो तालो संघव्यां आ (३०) परो दीयो सदावरत सरू देई जैसा २ मोटा काम करया पछै संघ कुसलषेम सूं अनुक्रमें राधनपुर आयो उठै अंगरेज श्रीगोडी (३१) जी रा दरसण करण नैं आयो उठै पांणी नहीं थो गैबाऊ नदी नीसरी श्रीगोडीजी नैं हाथी रै होदै विराजमान कर संघ नैं दरसण दि० ७ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (३४३) www.jalnelibrary.org Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४४) (३२) इकलग करायो चढापै रा साढा तीन लाख रुपया आया सवा महीनो रह्या जीमण घणा हुवा श्रीगोडीजी रै विराजण नै बडो चोतरो (३३) पक्को करायो ऊपर छतरी बणाई घणो द्रव्य खरच्यो बडो जस आयो अक्षत नाम कीयो साथे गुमास्तो महेसरी सालगरांम हो जिणनैं जै (३४) नरा शिवरा सर्व तीर्थ कराया पछै अनुक्रमें संघ पाली आयो जीमण १ करनै दानमल्ल कोटे गयो भाई ४ जेसलमेरु आया डेरा दरवाजै (३५) वाहिर कीया पछै सामेलो बडा थाट सूं हुवो श्रीरावलजी सांम पधारया हाथी रे होदै संघव्यां मैं श्रीरावलजी आपरे पूठै बैसाण नै (३६) सारा सहर मैं हुय देहरा जुहार उपासरै आय हवेल्यां दाखल हुवा पछै सर्व महेसरी वगेरै बत्तीस पौन नें लुगायां समेत पांच पकवान (३७) सूं जीमायो ब्राह्मणा नैं जणै दीठ एक रुपयो दिषणा रो दीयो पछै श्रीरावजी जनाने समेत संघव्यां री हवेली पधारया रुप्यां सूं चांत (३८) कीयो सिरपेच मोत्यांरी कंठी कड़ा मोती दुसाला नगदी हाथी घोड़ा पालखी नीजर कीया पाछा श्रीरावलजी इण मुजब हीज सिर (३९) पाव दीयो एक लुद्रवोजी ताबां पत्रां पट्टे दीयो इतो इजाफो कीयो आगे पिण इणांरी हवेली उदैपुर रांणोजी कोटेरा महारावजी (४०) बीकानेररा किसनगढरा बूंदीरा राजाजी इंदोरा हुलकरजी प्रमुख सर्व देसांरा राजवी जनांनै समेत इणारै घरे पधारया देणो (४१) लेणो हजारां रो कीयो दिल्ली रै पातसां री अंगरेजां रे पातसां री दीयोड़ी सेठ पदवी सुविख्यात हीज है छै संघरी लाहण न्यात मै (४२) दीवी पुतली १ हेमरी थाली १ मीश्री सेर १ घर दीठ पछै बहादरमल्लजी लारै लाहण कीवी रुपया ५) थाली १ मिश्री सेर (४३) १ घर दीठ दीवी जीमण कीयो पछै सहर मैं ठावां २ नैं सिरपाव दीया पछै गढ मांहला मंदिरां लुद्रवे उपासरे वडै चढापो कीयो इण (४४) मुजब हीज उदेपुर कोटे देणो लेणो कीयो हिवै संघमैं देरासर रो रथ हा जिणरा ५१००) लागा त्रगडो सोना रूपैरा २ (४५) जिणरा १००००) लागा मंदिर रा सुनैरी रूपैरी बासणां रा १५०००) लागा । दूजा फुटकर सरंजामनै लाख एक रुपया (४६) लागा। हमै संघ मैं जाबतो हो तिणरी विगत । तोपा ४ पलटण रा लोक ४००० असवार १५० नगारे निसांण समेत उदैपुर रारा (४७) णौजीरा असवार ५०० नगारै निसांण समेत कोटे रा महारावजी रा असवार १०० नगारै निसांण समेत जोधपुर रै राजाजी (४८) रा असवार ५० नगारै निसांण समेत । पाला १०० जेसलमेर रा रावलजी रा असवार २०० ट्रंक रे नबाब रा असवार ४०० फु (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४९) टकर असवार २०० घरू और अंगरेजी जाबतो चपरासी तिलंगा सोनेरी रूपैरी घोरेवाला जायगा २ परवाना बोला(५०) वा एवं पालख्यां ७ हाथी ४ म्याना ५१ रथ १०० गाड़ियां ४०० ऊंठ १५०० इतातो संघव्यां रा घरु संघ री गाड्यां ऊंठ प्रमुख न्यारा (५१) सर्व खरचरा तेरेलाख रुपया लागा इति संघ री संक्षेप पणै प्रशस्ति ॥ और पिण ठिकाणै २ धर्म रा काम कस्या सो संषेप (५२) लिखिये छै श्रीधूलेवाजी रै मंदिर बारणै नोबतखानो करायो गहणो चढायो लाख एक लागा मगसीजी रै मंदिर रो जीर्णोद्धार क(५३) रायो उदैपुर मैं मंदिर २ दादासाहिब री छतरी धर्मशाला कराई कोटा मैं मंदिर २ धर्मशाला दादासहिब री छतरी कराई (५४) जेसलमेरु मैं अमरसागर मैं बाग करायो जिणमैं मंदिर करायो जयवंतां रो उपासरो करायो लुद्रवैजी मैं धर्मशा(५५) ला कराई गढ माथे जमी मंदिरां वास्ते लीवी बीकानेर मैं दादासाहिब री छतरी कराई इत्यादिक ठिकाणे २ धर्मरा आ(५६) हीठांण कराया श्रीपूज्यजी रा चौमासा जायगा २ कराया पुस्तकां रा भंडार कराया भगवतीजी प्रमुख सुण्या प्र(५७) श्र दीठ २ मोती धस्यो कोठी मैं दोय लाख रुपया देनैं बंदीखानों छुडायो बीज पांचम आठम इग्यारस चउदसरा (५८) उजमणा कीया इत्यादिक काम धर्म रा कीया फेर ठिकाणे ठिकांणे धर्म रा काम कराय रह्या है इण मुजब हीज (५९) सवैयो ३१ सो॥ सोभनीक जैसाणै मैं बाफणा गुमानचंद ताके सुत पांच पांच पांडव समान है। संपदा मैं अच(६०) ल बुध मैं प्रबल राव रांणा ही मां. जाकी कान है। देव गुरु धरम रागी पुण्यवंत बडभागी • जगत सह वात जानै (६१) प्रमान है देसहू विदेश मांह कीरत प्रकास कीयो सेठ सहु हेठ कवि करत बखान है ॥ १ दूहा ॥ अठारसै छि(६२) नूवै जेठ मास सुदि दोय लेख लिख्यो अति चूंप सूं भवियण वांचो जोय॥ १ सकल सूरि सिर मुगटमणि (६३) श्रीजिनमहेन्द्रसूरिंद चरण कमल तिनके सदा सेवै भवियण वृंद ॥ २ कीनो अति आग्रह थकी जेश(६४) लमेरु चोमास संघ सहू भक्ति करै चढतै चित्त उलास ॥ ३ ताकी आज्ञा पाय करि धरि दिल मैं आणंद (६५) ज्युं थी त्युं रचना रची मुनि केसरीचंद॥ ४ भूलो जो परमाद मैं अक्षर घाट ही बाध लिखत षोट आ___(६६) ई हुवै सौ षमीयो अपराध ॥ ५ इति ॥ श्रीः॥ श्रीः॥ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९५९) गौड़ीपार्श्वनाथ-पादुका सं० १८९६ रा ज्ये। सु। १३ श्रीगवडीपार्श्वजितां पादुके करापिते श्रीआणंदरत्न गणिना प्रतिष्ठितं अपरनाम्ना उदयचन्द्रेण। ___ (१९६०) पार्श्वनाथ-एकतीर्थी: सं० १८९६ फा० व० ५ श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा। फो० गो० सेवाराम। (१९६१) गौडीपार्श्वनाथ-पादुका ॥ श्रीगोड़ीपार्श्वनाथ पादुका कारितं ब्रह्मसर संघेन श्री जं। यु। भ। महेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं १८९६ मि० फागुण सुदि ४ (१९६२) मणिधारी-जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥ सं० १८९६ वर्षे मिती फागुण सुदि ४ तिथौ शनिवारे श्रीमबृहत्खरतरगच्छे ब्रह्मसर ना समस्त श्रीसंघेन श्री जं। यु। भ। मणियाला जिनचन्द्रसूरिजी गुरो पादुका कारितः श्री जं।यु। भ० । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं॥ (१९६३) शिलापट्ट-प्रशस्तिः १॥ श्री ऐं नमः॥ संवत् १८९७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने मा२ सोत्तममासे वैशाखमासे शुक्लपक्षे षष्ठ्यां तिथौ ६ गुरुवारे बृहत्३ खरतरचार्य गच्छीय समस्त श्रीसंघेन श्रीशांतिनाथस्य प्रासादं ४ कारितम्। प्रतिष्ठितं च भट्टारक जंगम युगप्रधान भ५ ट्टारक शिरोमणि श्री श्री १००८ श्री जिनोदयसूरिभिः ६ महाराजाधिराज राजराजेश्वर नरेन्द्र शिरोमणि महाराज ७ श्री श्री रतनसिंह जी विजयराज्ये इति प्रशस्ति ॥ छ। ८ ज्यां लग मेरु अडिग्ग है जहां लग सूरज चंद। तहां ९ लग रहज्यो अचल यह जिनमंदिर सुखकंद॥ १॥ श्री: १० ॥ श्री संघयुता: तांकारक पूजकानां श्रेयोस्तु सततं श्री: (१९६४) शान्तिनाथ-मूलनायकः १ संवत १८९७ रा वर्ष शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे वैशाखमासे। शुक्लपक्षे तिथौ षष्ठ्यां गुरुवारे विक्रमपु १९५९. दफ्तरियों का मंदिर, मंडोवरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४९१ १९६०. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्याः पू० जै०, भाग २, लेखांक १६४४ १९६१. दादाजी का स्थान, ब्रह्मसर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५८७ १९६२. दादाजी का स्थान, ब्रह्मसर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५८८ १९६३. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७९४ १९६४. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७९५ (३४६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ र वास्तव्य ओसवंशे गोलछा गोत्रीय साहजी श्रीमुलतानचंद जी तद्भार्या तीजां तत्पुत्र माणकचंद तल्लघुभ्राता मिलाप३ चंद तयो भार्या अनुक्रमात् मघां मोतां इति तयोः पुत्रौः पुत्रौ च थानसिंह मोतीलालेति नामको एभिः श्रीशांतिनाथजिन....... (१९६५) शान्तिनाथ-मूलनायकः १ ॥सं० १८९७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने वैशाखमासे शुक्लपक्षे षष्ठ्यां तिथौ गुरुवारे २ विक्रमपुर वास्तव्य ओसवंशे गोलछागोत्रीय सा० श्रीमुलतानचंद तद्भार्या तीजां तत्पुत्र ३ माणकचंद तद्लघु भ्राता मिलापचंद्रः तयोः भार्या अनुक्रमात् मघां मोतां इति प्रसिद्धै तयोः ........... ५ पृष्ठे जिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च तथा च बृहत् आचार्य गच्छीय खरतरभट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि पदस्थित श्रीजिनोदयसूरिणामग्रतः तत्शिष्य दीपचंद्रोप६ देशात् प्रतिष्ठा महोत्सव साह श्रीमाणकचंदेन कारितं महाराजाधिराज नरेन्द्रशिरोमणि श्रीरतनसिंह जी विजयराज्ये कारकपूजकानां सदावृद्धितरां भूयात्। (१९६६) सहस्रफणापार्श्वनाथः १ ॥ सं० १८९७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने वैशाखमासे शुक्लपक्षे षष्ठ्यां तिथौ गुरुवारे २ विक्रमपुर वास्तव्ये ओसवंशे गोलेछा गोत्रीय सा० श्रीजेठमल्ल तद्भार्या अक्खां तत्पु . ३ ................... ४ (पृष्ठे) मोहनलाल तद्भार्या जेठी तत्पुत्रो जालिमचंद्रः। एभिः श्रीसहस्रफणा पा......... (१९६७) मुनिसुव्रतः १ ॥ संवत् १८९७ रा वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे वैशाखमासे शुभे शुक्लपक्षे तिथौ षष्ठ्यां गुरु...२ वारे विक्रमपुर वास्तव्य ओसवंशे गोलछा गोत्रीय शाहजी श्रीजेठमल्ल भार्या अखां तत्पुत्र अखैचंद श्रीमुनिसु३ व्रतजीबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरआचार्यगच्छीय भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि पदस्थित श्री........ (१९६८) ऋषभदेवः १ सं० १८९७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने वैशाखमासे शुक्लपक्षे षष्ठ्यां तिथौ गुरुवा२ रे विक्रमपुर वास्तव्ये ओसवंशे गोलेछा गोत्रीय सा० श्रीमुलतानचंद तद्भार्या तीजां तत्बृह - १९६५. शांतिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७९६ १९६६. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७९७ १९६७. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर, ना० बी०, लेखांक १७९८ १९६८. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८०० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (३४७) For Personal & Private Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ त् पुत्र माणकचंदः तद्लघुभ्राता मिलापचंद तयो भार्ये अनुक्रमात् मघां मोतां तयो पु४ त्रौ च थानसिंह मोतीलालेति नामको.................... ५ जिनबिंबं कारित प्रतिष्ठितं श्रीबृहदाचार्यगच्छीय खरतर भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि पदस्थित श्रीजिनोदयसूरिणामग्रतः तशिष्य दीपचं६ द्रोपदेशात् तद् बिंबं प्रतिष्ठा महोत्सव साह माणकचंद्रेण कारितं महाराजाधिराज शिरोमणि श्रीरतनसिंहजी विजयराज्ये कारक पू............. (१९६९) चन्द्रप्रभः १ सं० १८९७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने वैशाखमासे शुक्लपक्षे षष्ठ्यां तिथौ गुरुवारे विक्रमपुर वास्त२ व्ये ओसवंशे गोलछा गोत्रीय सा० श्रीमुलतानचंद्र तद्भार्या तीजां इत्यभिधेया तत्पुत्र ३ माणकचंद तद् लघुभ्राता मिलापचंद तयो भार्ये अनुक्रमात् मघां मोतां प्रसिद्ध ४ ............ ५ प्रभ जिनबिंबं कारितम् प्रतिष्ठितं च बृहदाचार्यगच्छीय खरतर भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि पदस्थित श्रीजिनोदयसूरिणामग्रत तत्शिष्य दीपचं६ द्रोपदेशात् प्रतिष्ठा महोत्सव साह श्रीमिलापचंद्रेण महाराजाधिराज शिरोमणि श्रीरतनसिंह जित् विजयराज्ये कारक ........... .............चंद्र (१९७०) कुन्थुनाथः १ ॥संवत् १८९७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने मासे वैशाखमासे शुक्लपक्षे तिथौ षष्ठ्यां गुरुवारे विक्रमपु२ र वास्तव्ये ओसवंशे गोलछा गोत्रीय साहजी श्रीमुलतानचंदजी तद्भार्या तीजां तत्पुत्र मिलापचंद्र श्रीकुंथुनाथबिं३ बंकारितं च तथा बृहत्खरतरआचार्यगच्छीय भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिपदस्थित श्रीजिनोदयसूरिभिः प्रतिष्ठितं ४ श्रीरतनसिंघजी बिजै राज्ये कारक पूजकानां सदा वृद्धिं भूयात् ॥ श्री (१९७१) आदिनाथ-रजतमूर्तिः सं० १८९७ वर्षे वैशाख कृष्णेतर....................दरा(?) गुरुवारे....................ओसवंशे डारगाणी ढढाज्ञातीय नेणसी टीकमसी तत्पुत्र जीलचंद तत्पुत्र बालचंद्रे न श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं. ........................(? खरतरा)चार्यगच्छीय श्रीजिनोदयसूरिभिः १९६९. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७९९ १९७०. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८०१ १९७१. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९५१ (३४८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९७२ ) गौतमस्वामी-मूर्तिः संवत् १८९७ रा वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने (वैशाख) शुक्ल पक्षे तिथौ षष्ठ्यां गुरुवासरे ओसवंशे को। गो० मु० मगनीराम पुत्र अबीरचंद सालमसिंह सेरसिंह पुत्र पुनालाल गंभीरमल रामचंद्र श्रीगौतमस्वामीजी री मूरत करापितं बृहत्खरतराचार्यगच्छे भट्टारक श्रीजिनोदयसूरिभिः प्रतिष्ठितं रतनसिंह जी विजय राज्ये॥ (१९७३) जिनचन्द्रसूरि-पादुका सं० १८९७ वर्षे शाके १७६२ प्र। वैशाखमासे शुक्लपक्षे षष्ठ्यां तिथौ गुरुवारे श्रीबृहदाचार्यगच्छीय भ। श्रीयुक्तसूरि पदस्थित जं।यु। दादाजी श्रीजिनचंद्रसूरि पादुके प्रतिष्ठिते च जं। यु। श्री १०८ श्रीजिनोदयसूरिभिः कारिते च पं० दीपचंद्र। चैनसुख। हीमतराम। अमीचंद। तत अनुक्रमात् धर्मचंद। हरखचंद। हीरालाल पन्नालाल । चुन्नीलाल तच्छिष्य तनसुखदासेन महाराजाधिराज शिरोमणि श्री १०८ श्रीरतनसिंहजी विजयराज्ये श्रीरस्तु॥ (१९७४) पार्श्वनाथ-एकतीर्थी: सं० १८९७ का० शु० ५ पार्श्वबिंबं । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा। बसपालेन॥ का। (१९७५) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १८९७ का० शु० ५ श्रीपार्श्वबिंबं प्र० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा का० । सकल श्रीसंघै। (१९७६) शिलालेख-प्रशस्तिः (१) ॥ श्रीमवृषभजिनेंद्रदेवानुग्रहात् ॥ संवत् १८९७ वर्षे शाके १७ (२) ६२ प्रमिते फाल्गुणमासे धवलपक्षे तृतीयायां तिथौ बुधवासरे म(३) हाराजाधिराज महारावलजी श्री ५ श्रीगजसिंघजी महाराणीजी श्री(४) राणावतजी सहितेन विजयराज्ये श्रीमज्जेसलमेरुवास्तव्य ओसवं(५) स बाफणागोत्री सिंघवी सेठजी श्रीगुमानमलजी तत्पुत्र बाहदर(६) मल्लजी सवाईरामजी मगनीरामजी जोरावमलजी प्रतापचंदजी (७) दांनमल्लजी सपरिवायुतैः आत्मपरकल्याणार्थं श्रीसम्यक्त्वोद्यापना(८) र्थं च श्रीजेसलमेरु नगर सत्का अमरसागर समीपवर्तिना समीचीना (९) आरामस्थाने श्रीजिनमंदिरं नवीनं कारापितं तत्र श्रीआदिनाथबिं(१०) बं प्राचीन बृहत्खरतरगणनाथेन प्रतिष्ठितं तत्र श्रीमज्जिनहर्षसूरिप(११) दपंकजसेविना बृहत्खरतरगणाधीश्वरेण चतुर्विधसंघसहितेन श्री (१२) जिनमहेंद्रसूरीणा विधिपूर्वकं महता महोत्सवेन शोभनलग्ने स्थापि१९७२. पार्श्वनाथ जिनालय, कोचरों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५९५ १९७३. शान्तिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८०६ १९७४. चन्द्रप्रभ मंदिर, आमेरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४९४ १९७५. सेठ धनसुखदास जी का मंदिर, मिर्जापुर: पू० जै०, भाग १, लेखांक ४४० १९७६. सवाईराम जी बाफणा का मंदिर, अमरसर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५२४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः ३४९) For Personal & Private Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) तं पुनर्मायाबीजं शिलापट्टशं (सं) स्थितं तत्रैव चैत्ये स्थापितं श्रीसंघ(१४) स्य सदा मंगलमालाः समुल्लसंतुतराम्॥ दूहा ॥ अचल चैत्य इल (१५) उपरै जग लग ग्रहगण बरतो भवि समकित करण कहत के(१६) सरीचंद॥ १॥ श्रीरस्तु ॥ श्रीकल्याणमस्तु । (१९७७) आदिनाथः सं० १८९७ फा० सु० ५ श्रीआदिनाथबिंबं प्र० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा का ० बोहरा नाथूराम पत्नी साहबां नाम्न्यात्मश्रेयसे वाचक चारित्रनन्दनगण्युपदेशतः॥ (१९७८) ऋषभदेवः ॥ सं० । १८९७ फा। शु। ५ काश्यां श्रीऋषभदेवबिं। प्र। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः। बुधोत्तम श्रीकुशलचन्द्रगण्युपदेशेन कारितं श्रीमालडूंगरिया गोत्रीय.......... चुन्नीदासे. (१९७९) नेमिनाथः ॥ सं० १८९७ फा। सु। ५ श्रीनेमि। बिं । प्र। श्रीजिनमहेन्द्रसूरि बुधोत्तम श्रीकुशलचन्द्रगण्युपदेशेन का। लालगोत्रीय जीवरात्मज चन्दनमल्लेन........................। (१९८०) पार्श्वनाथः सागरांकवसुचंद्रवर्षे १८९७ नेत्रषणगणधरायुते (?) शके १७६२ फाल्गुनांतिमदले सुनागके(५) भार्गवे सितपटौधपालके वाणारस्यां श्रीमद्भगवत्सहस्रफणालंकृत श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रमूर्तिका० से० उदयचन्द्रधर्मपत्नी महाकुंवराख्यया मूलचंद्रसुत युतया बृहत्खरतरगणेश श्रीजिनहर्षसूरिपदालंकृत श्रीजिनमहेंद्रसूरिणा प्रतिष्ठिता। उ। श्रीहीरधर्मगणिविनेय विद्वत्कलालकृत कुशल...... ___(१९८१) प्रशस्ति: || श्री॥ अभ्रांभोजकेभभूयुक्ते वर्षे फाल्गुनिकेसिते ............स्वेता तिथौ कुम्भे सम्मेतशिखरो ......पर्वते मधुवनमध्ये गज दि..........कुंभपुञ्जसंघटिते अर्हद्भक्तिमंता श्रीमिरजापुर.......... ना धनिना २ सेठ उदयचद्रात्मज सेठ श्रीमूलचंद्रेन श्रीपार्श्वभक्ति जननी-जनकसहितेन संरचिते ३ दण्डध्वजकुलक्रमिते श्वेताम्बर पासके चैत्ये श्रीसंघकृतिं कृतिमत्युण्योदये हे.........तत् ४ श्रीमबृहत्खरतर गणे....श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर श्रीजिनमहेन्द्रसूरि विजयराज्ये। वा। श्री चारित्रनंदनजिद्गणिसुधीश श्रीकुशलजिद्गणिभ्यां सहस्रफणायुक्त श्रीचिन्तामणिबिंम्बं स्थापिता। श्रीसर्वसूरिसम्मतेयम्............. १९७७. पंचायती मंदिर, मिर्जापुर: पू० जै०, भाग १, लेखांक ४३६ १९७८. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर०; जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३५५ १९७९. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भंवर० । १९८०. चिंतामणि पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : भँवर०; पू० जै०, भाग १, लेखांक ३४५; जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३५६ १९८१. चिंतामणि पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधवन, सम्मेतशिखर : भँवर० (३५०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९८२) पार्श्वनाथः सं० १८९७ फा० सु०५ श्री पार्श्वनाथबिं० प्र० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणामुपदेशेन कारिता । सेठ उदयचन्द धर्मपत्नी महाकुमारिभिधया। वाचनाचार्य श्रीचारित्रनंदनगणिनिर्देश.................... (१९८३) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १८९७ फा० सु० ५ श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्र० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा कारिता नाहटा लक्ष्मीचन्द्र तत् भार्या लक्ष्मीबीबी विधत्ते (१९८४) शिलालेखः श्रीराठौड़वंशान्वय नरेन्द्र श्रीसूरतसिंहजी तत्पट्टे महाराजाधिराज श्रीरतनसिंहजी विजयराज्ये । सं० १८९७ मि० फा० सु०५ तिथौ शुक्रे श्रीबृहत्खरतरगणाधीश्वर भ० श्रीजिनहर्षसूरि तत्पट्टालंकार । जं० यु० प्र० भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरि विजयराज्ये श्रीसिरदारनगरे।सा० माणकचन्द्रजी प्र० सर्व संघेन सादरं श्रीपार्श्वनाथ प्रासाद कारितः प्रतिष्ठापितश्च सदैव कल्याण। __ (१९८५) द्वारोपरि-लेखः श्रीदेरोजी॥ सं० १८९७ वर्षे मि० फागुण सुदि ५ शुक्रवारे साहजी श्रीमाणकचन्द्रजी कारापितं सूराणां लि० पं० प्र० विजैचन्द खरतरगच्छे उसतो वधू अमेद कारीगर चेजगारै मुलतान ऊभीयै जै रौ काम कियो। शुभं भवतु। (१९८६) शिलालेखः श्रीमद्विघ्नविच्छेदाय नमः। श्रीमन्नृपतिवीरविक्रमादित्य संवत्सरात् १८६० शालिवाहनकृतशाके १७७५ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे वैशाख सुदि ७ दिने श्रीदेवीकोटमध्ये श्रीऋषभदेवस्य मंदिरबिंबसहितं श्रीसंघेन कारापितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगणाधीशेन जं० यु० प्र० श्रीजिनहर्षसूरिणा तत्पदप्रभाकर जं० यु० प्र० श्रीमहेन्द्रसूरिभिः। संवत् १८९७ वर्षे चैत्र वदि ८ दिने पधार्या महामहोत्सवेन तत्र मंदिरस्य पुनः गुरुस्तूभस्य जीर्णोद्धार: कारापितं तठे श्रीसंघेन महोंमाहिं दोनांही वासरे धड़ा था, सु एकमेक किया, वड़ो जस हुओ, मास १ रया, धर्मरी महिमा घणी हुई, खमासणा प्रमुखरी भक्ति विशेष सांचवी तस्य प्रसादात् श्रीसंघरे सदा मंगलमाला भवतुतरां श्रीरस्तु कल्याणमस्तु। ___ (१९८७) जिनदत्तसूरि-पादुका सं० १८९८ मि० आषाढ़ सुदि ५ बुधवारे दादाजी श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां पादन्यासः श्रीरिणीनगर वास्तव्य श्रीसंघेन का० प्र० श्री जं० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः। १९८२. पंचायती मंदिर, मिर्जापुर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ४३५ १९८३. शिखरचन्द्र जी का मन्दिर, वाराणसी : पू० जै०, भाग २, लेखांक १८६९ १९८४. पार्श्वनाथ जिनालय, सरदारशहर : ना० बी०, लेखांक २३८१ १९८५. पार्श्वनाथ जिनालय, सरदार शहर : ना० बी०, लेखांक २३८० १९८६. ऋषभदेवजी का मंदिर, देवीकोट : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५७६; य० वि० दि०, लेखांक २-३, पृ० २१०-२११ १९८७. दादाबाड़ी, रिणी: ना० बी०, लेखांक २४६३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) ३५१) For Personal & Private Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९८८) शिलालेखः सं० १८९८ वैशाख सुदि ५ गुरुवारे श्रीवाणारसवास्तव्य ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां छिजलाणीगोत्रे सा० मालीरामजी तद्भार्या चंदनबाई तत्पुत्र सा० हरखचंदजी तत्भार्या रूपोबीबी श्रीविमलाचलोपरि कारितं सा० मालीरामजी ने श्रीआदिनाथबिंबं चंदनबाई ने श्रीनेमिनाथबिंबं रूपोबीबी ने श्रीपार्श्वनाथबिंब तभ्राता सा० माणकचंद्रजी स्थापितं प्रतिष्ठितं च। ___ (१९८९) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १८९९ प्र० शा० १७६४ प्र० मिती वैशाख सुदि १० गुरुवारे श्रीसूर्योदयवेलायां वृषलग्र मध्ये दादाजी श्री१०८ श्रीजिनकुशलसूरीश्वरान् चरणकमलमिदं प्रतिष्ठितं ॥ (१९९०) भावविजय-पादुका ॥ सं० १८९९ प्र० शा० १७६४ मिती वैशाख सुदि १० गुरुदिने श्रीबृ० खरतरगच्छे श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां उ। श्रीश्रीभावविजयजी गणिकस्य चरणपादुका प्रतिष्ठितं। (१९९१) चन्द्रप्रभः सं० १९०० वैशाख सित १५ गुरुवासरे श्रीलखनेऊवास्तव्य श्रीमालज्ञातीयवृद्धशाखायां सा० सदासुखजी तत्पुत्र छजमल चुन्नीलालजी शिवप्रसादजी सपरिवारयुतेन श्रीचन्द्रप्रभस्थापितं च श्रीबृ० खरतरगच्छे देवचंद्र शिष्य हीराचंद..................... (१९९२) केशरश्री-पादुका आर्या श्रीकेसरश्री कस्य पादुके श्रीसंघेन कारिते प्रतिष्ठिते च। सं० १८९९ (१९९३) खुशालश्री-पादुका आर्या श्रीखुसालश्री कस्य पादुके श्रीसंघेन कारिते प्रतिष्ठिते च सं १८९९ (१९९४) विनयश्री-पादुका आर्या श्रीविनयश्री कस्या पादुके श्रीसंघेन कारिते प्रतिष्ठापिते च। सं० १८९९ (१९९५).. "पादुका आर्या बोसरश्री कस्य पादुका (सं० १८९९) १९८८. खरतरवसही, शत्रुजयः भंवर० (अप्रका०) लेखांक ९८ १९८९. दादाबाड़ी, सुजानगढ़ : ना० बी०, लेखांक २३७८ १९९०. दादाबाड़ी, सुजानगढ़ : ना० बी०, लेखांक २३७९ १९९१. खरतरवसही, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक १०२ १९९२. सीमन्धर स्वामी का मंदिर, भांडासर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ११८४ १९९३. सीमन्धर स्वामी का मंदिर, भांडासर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ११८५ १९९४. सीमन्धर स्वामी का मंदिर, भांडासर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ११८३ १९९५. सीमन्धर स्वामी का मंदिर, भांडासर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ११८७ (३५२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९९६) आदिनाथः संवत् १९०० आषाढ़मासे सितपक्षे ५ रवौ.......गोत्रीय...........चारित्रउदय उपदेशेन श्रीमद्धृहत्भट्टारकखरतरगच्छीय........श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः॥ (१९९७ ) सपरिकर-पार्श्वनाथ- मूलनायकः संवत् १९०० आषाढ़ सुदि ५ रवौ श्रीपार्श्वजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमबृहत्भट्टारकखरतरगच्छे ..श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः॥ . (१९९८) पार्श्वनाथ-मूलनायकः ॥ सं० १९०० वर्षे शाके १७६५ प्रमिते आषाढ़ सित ५ रवौ श्रीजयनगरवास्तव्य श्रीसंघेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं चारित्रउदय प्रतिष्ठितं श्रीमबृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थ श्रीजिनचन्द्रसूरिचरणमधुकरेण श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः पूजका समृद्धिः॥ (१९९९) आदिनाथ: संवत् १९०० मिति आषाढ़ सित ९ गुरौ श्रीआदिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं । बृहत्खरतरभट्टारकगच्छेश भ० । श्रीजिनहर्षपट्टे दिनकर भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः कारितं च श्रीमालवंशे टांकगोत्रे मोहणदास पुत्र हनुतसिंहस्य भार्या फूलकुमार्या स्वश्रेयो) । (२०००) ऋषभदेवः सं० १९०० । मिते आषाढ़ सित ९ गुरौ श्रीऋषभदेवबिंबं प्रतिष्ठितं खरतरभट्टारकगच्छेश श्रीजिनहर्षसूरि पट्टदिवाकर........श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः-----------------बाबूनेमचंद भार्या महताब बीबी श्रेयोर्थं ॥ (२००१) संभवनाथः । सं० १९०० मिते आषाढ़ सित ९ गुरौ श्रीसंभवनाथबिंबं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरभट्टारकगच्छेश। श्रीजिनहर्षसूरि पट्टालंकार भ० । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः कारितं च चोपड़ा कोठरी केसोदास भार्या परभादे कया पुत्ररत्न माहसिंह आसकरण पौत्र मेघराजयुतया स्वश्रेयोर्थं । (२००२) सुपार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सम्वत् १९०० मिती आषाढ़ सुदि ९ गुरौ श्रीअजिमगंजे श्रीसुपार्श्वनाथबिंबं................. प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छेश भ श्रीजिनहर्षसूरि पट्टालंकार श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः कारितं च श्रीबीकानेरवास्तव्य समस्तसंघेन श्रेयोर्थं ॥ श्री॥ १९९६: श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४९८ १९९७. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ४९९ १९९८. श्रीमालों का मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५०० १९९९. पद्मप्रभ जिनालय, अजीमगंज, मुर्शिदाबाद : पू० जै० भाग १, लेखांक १२ २०००, मधुवन, सम्मेतशिखर: संकलनकर्ता भँवर० २००१. मूलमंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: संकलनकर्ता भंवर० २००२. मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३५८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) ३५३) For Personal & Private Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२००३) सुपार्श्वनाथः ___ सं० १९०० मिते आषाढ़ सुदि ९ गुरौ श्रीअजीमगंजे श्रीसुपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छेश श्रीजिनहर्षसूरि पट्टालंकार श्रीजिनसौभाग्यसूरि................... (२००४) शांतिनाथ: ___ सं० १९०० आषाढ़ सित ९ गुरौ श्रीशांतिनाथबिंबं बृ।ख। भ। गच्छेश। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः कारितं च ओसवंशे भोलानाथेन स्वश्रेयोर्थम ।। (२००५) पार्श्वनाथ-मूलनायकः सं० १९०० मिते आषाढ़ सित ९ गुरौ श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठापितं बृहत्खरतरभट्टारकगच्छेश भ। श्रीजिनहर्षसूरीश्वर पट्टालंकार श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः....................दासभार्या सादा वीदा स्वश्रेयोर्थं । (२००६) पार्श्वनाथ: सं० १९०० आषाढ़ सुदि ९ प्रति। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः कारितं नेमचंद स्वश्रेयोर्थं (२००७) महावीरः सं० १९०० मि० आषाढ़ सि० ९ गुरौ श्रीमहावीरजिनबिंबं प्रति० खरतरभट्टारकगच्छे भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टे दिनकर भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः कारितं तेन ओसवंशे दूगड़गोत्रे भोलानाथ पुत्र दोलतरामेन स्वश्रेयसोर्थम्। ___(२००८) विंशतिजिन-पादुकाः सं० १९०० मिते आषाढ़ सित ९ गुरौ विंशतिजिनेश्वराणां चरणन्यासा प्रतिष्ठिता श्रीखरतरभट्टारकगच्छे ........श्रीजिनहर्षसूरिपट्ट दिनकर जं। यु। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः कारितं च श्रीअग्रपुर वास्तव्य वैद मुहता रिद्धकरण सहजकरणेन............... | (२००९) पद्मप्रभ-पादुका ॐनमः सु० सं० १९०० वर्ष मार्गशीर्ष मासे शुक्लपक्षे १० द० श्रीपद्मप्रभुकस्य चरण क० प्र० श्री वृ० ष० ग० भ० श्रीजिननन्दीवर्द्धनसूरि वा० श्रीमुनिविनयविजयजि तत् शि० मु० कीर्तुदयोपदेशात् बाबू षुस्यालचन्द पीपाडागोत्रीयास्य पत्नी पराणकुंवरेन प्र० का० श्रीवैभारगिरे शुभमस्तु॥ २००३. सुपार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : संकलनकर्ता भँवर० २००४. चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : संकलनकर्ता भँवर० २००५. पार्श्वनाथ का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : संकलनकर्ता भँवर० २००६. अजितनाथ जिनालय, कोचरों में बीकानेर, ना० बी०, लेखांक १५६२ २००७. जैनमंदिर, पाटलिपुत्र, पटना : पू० जै० भाग १, लेखांक ३०६ २००८. सुपार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : संकलनकर्ता भंवर० २००९. जैनमंदिर, वैभारगिरि, राजगिर : पू० जै०, भाग १, लेखांक २६४ (३५४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०१०) चन्द्रप्रभः शु० सं० १९०० व मार्गशीर्षमासे शु० वा० श्रीचन्द्रप्रभकस्य च० क० प्र० श्री बृ० ख० ग० श्रीजिननंदीवर्द्धनसू० व० मुनिकीर्युदयोपदेशात् महताबचन्द संचेतीकस्य पत्नी चिंरोजी बीबी प्र० का० शुभमस्तु। (२०११) शान्तिनाथ-पादुकाः शुभ सं० १९०० वर्षे मार्गशीर्ष मासे शुक्लपक्षे १० दशम्यां तिथौ शुभवासरे श्रीमत्शांतिनाथचरणकमल प्र० श्रीमत्बृहत्खरतरग० श्रीजिनरंगसूरीश्वरशाखायां बृ० भ० यं० युं० श्रीजिनंदीवर्द्धनसूरिराज्ये वा० श्रीमुनिविनयविजयजि तशिष्य पं० मु० कीर्युदयोपदेशात् ओसवाल बं० बाबू मोहनलाल कस्यात्मज बाबू हकुमतरायेन प्र० का० शुभमस्तु ।। (२०१२) कुन्थुनाथ-पादुका ॥ ॐ नमः सिद्धं सं० १९०० वर्षे मार्गशीर्षमासे शुक्लपक्षे १० दशम्यां तिथौ शुभ वा० श्रीकुंथुनाथस्य चरणक० प्र० श्रीमत्बृ० ख० गच्छे श्रीजिनरंगसूरीश्वरसाषा० श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरि ब० वा० श्रीमुनिविनयविजयजि तत्शिष्य मुनिकीर्युदयोपदेशात् ओसवालवंसोद्भव बाबु मोहनलालजी कस्यात्मज बाबु हकुमत राय--कस्य गोत्रीय प्र० कारापित शुभमस्तु। वैभारगिरौ। (२०१३) पार्श्वनाथ-पादुका ॥ सु० सं० १९०० वर्षे मार्गशीर्षमासे शुक्लपक्षे १० दशम्यां शुभवासरे श्रीमत्पार्श्वनाथस्य चरण कमल प्र० श्रीमत्बृहतखरतरग० श्रीजिनरंगसूरीश्वरशाषायां श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिराज्ये वा० श्रीमुनिविनयविजयजि तत् शि० मु० कीयुदयोपदेशात् ओ० व० खुस्यालचन्द्र पीपाडागोत्रस्य पत्नी पराणकुंवरश्राविका प्र० का० वैभारगिरे। . (२०१४) पार्श्वनाथ-पादुका ॐ नमः सिद्धं ॥ शु० सं० १९०० वर्षे मार्गशीर्षमासे शुक्लपक्षे १० दशम्यां तिथौ शुभवासरे श्रीचिंतामणि' पार्श्वनाथस्य च० प्र० श्री मत्बृ० खरतरग० श्रीजिनरंगसूरिश्वरशाखायां भ० यं० यु० प्र० श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरि वर्तमान वा० श्रीविनयविजयजि तशि० मुनिकीर्युदयोपदेशात् बाबु महताबचन्दस्य संचितीगोत्रीयो तत्पुत्री चिरोंजी बीबी प्र० का० शुभमस्तु वैभारगिरे। (२०१५) महावीर-पादुका श्रीशुभ सम्वत् १९०० वर्षे मार्गशीर्षमासे शुक्लपक्षे दशम्यां तिथौ शुभवासरे श्रीवर्द्धमानतीर्थकरस्य चरणपादुका प्र० श्रीबृहत्खरतरगच्छे जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनरंगसूरीश्वरशाखायां यं० यु० भट्टारक २०१०. गांव का मंदिर, राजगिर : पू० जै०, भाग १, लेखांक २४३ २०११. जैनमंदिर, वैभारगिरि, राजगिर : पू० जै०, भाग १, लेखांक २६३ २०१२. जैनमंदिर, वैभारगिरि, राजगिर : पू० जै०, भाग १, लेखांक २६६ २०१३. जैनमंदिर, वैभारगिरि, राजगिर : पू० जै०, भाग १, लेखांक २६५ २०१४. जैनमंदिर, वैभारगिरि, राजगिर : पू० जै०, भाग १, लेखांक २६७ २०१५. गांव का मंदिर, राजगिर : पू० जै०, भाग १, लेखांक २४२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरी राज्ये श्रीवाचनाचार्य श्रीमुनिविनयविजयजी तत् शिष्य पं० कीत्र्योदयोपदेशात् ओसवाल वंशोद्भव बाबू खुस्यालचन्द्रस्य पत्नी बीबी पराणकंवरी तेन प्र० का० श्रीसंघस्य कल्याणकारिणो भवतु शुभमस्तु । (२०१६ ) स्तम्भलेखः सं० १९०० वर्षे शाके १७६५ मासोत्तमासे माघमासे शुक्लपक्षे दशम्यां तिथौ भौमवासरे । श्रीपार्श्वनाथ जिनालयं समस्त श्रीसंघेन कारापितं प्रतिष्ठितं जं० यु० भ० श्रीजिनहेमसूरिंभिः श्रीबृहत्खरतरगच्छे। नामराशियोगे ॥ सीलावट कालूराम । (२०१७) सिद्धचक्र यंत्रम् ॥ संवत् १८...... मिते माघ सुदि ५ दिने वरडिया रै उपाश्रय सत्का श्राविकाभिः श्रीसिद्धचक्रयंत्रः कारितः प्रतिष्ठितश्च । भ० । श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । श्रीजैसलमेरुनगरे ॥ श्रीरस्तु ॥ शुभं भवतु ॥ (२०१८) काष्ठपट्टिका-लेख: ....... श्रीगच्छ सं० १८... .. अनोपसहर सुं.. ..परम पूज्य परमाराध्य सुगुरु शिरोमणि.... सिणगारक कलियुग गौतमावतार खरतरगच्छ महाश्रीजिनशासन दिनकरान एकविध (२०१९) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी-मूलनायकः - सु० ४ श्रीचन्द्रप्रभबिंबं संघेन कारितं प्रतिष्ठितं च ॥ श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ श्रीविक्रमपूरे । सं० (२०२०) सुविधिनाथः .. सुलतानचंद कारितं श्रीसुविधिनाथबिंबं श्रीजिनहर्षसूरि प्रति० सूरतबंदरे ( २०२१) शांतिनाथः .. गली मोतु तुभ्यां श्रीशांतिबिंबं का० प्र० श्रीजिनहर्षसूरि । (२०२२) नमिनाथ: नमिनाथबिंबं कारितं प्र । भ । श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (२०२३) पादुका - चतुष्क श्रीजिनदत्तसूरिजी पादुके । श्रीजिनकुशलसूरिजी पादुके । श्रीजिनचंद्रसूरिजी । श्रीजिनसिंहसूरि पादुके । २०१६. शिखरयुक्त जैनमंदिर, मंडोद : मालवांचल के जैन लेख, लेखांक ९४ २०१७. तपागच्छ का उपाश्रय जैसलमेरः पू० जै० भाग ३, लेखांक २४९२ २०१८. खरतरगच्छ उपाश्रय, रिणीः ना० बी०, लेखांक २४६६ २०१९. जैनमंदिर, दीनाजपुर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ६२७ २०२०. छीपावसही, शत्रुंजयः भँवर (अप्रका०), लेखांक ३५ २०२१. पार्श्वनाथ जिनालय, लौद्रवपुर तीर्थः ना० बी०, लेखांक २८८५ २०२२. पंचायती मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५०१ २०२३. केशरियानाथ मंदिर, देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२४९ (३५६ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०२४) जिनकुशलसूरि-पादुका ..................पक्षे सप्तमी दिने सोमवारे शुभयोगे श्रीजिनकुशलसूरि गुरु पादुके कारापिता। शुभं भवतुः। (२०२५) जिनचन्द्रसूरि-पादुका ___जंगम युगप्रधान भट्टारकेन्द्र प्रभु श्री १०८ श्री श्री श्री श्री श्रीजिनचंद्रसूरिणां पादुके प्रतिष्ठितं भट्टारक शिरोमणि जं। यु। श्रीजिनोदयसूरिभिः। (२०२६) दादापादुका माह सुदि १३ दिने...............सूरीणां पादुके. .................. (२०२७) जिनसागरसूरि-पादुका श्रीखरतराचार्यगच्छे भट्टारक श्रीजिनसागरसूरिवराणां पादुके। श्रीरस्तु: (२०२८) समयसुन्दर-पादुका ॥ उ॥ श्री १०८ श्रीसमयसुन्दर गणि पादुका __ (२०२९) पादुका-युगल (१) ॥ सं० श्री ५ 'श्रीजिनविमलसूरि पादुका। (२) ॥ श्रीजिनललितसूरि पादुका।। (२०३०) आणंदचन्द-पादुका । उ। श्री १०८ श्रीआणंदचंदजी गणि पादुकामिदं॥ . (२०३१) कुशलभक्ति-पादुका ॥ श्री १०८ श्रीकुशलभक्तिजी सद्गुरूणाम् पादुके कारापितम् प्रतिष्ठितम् चिरंनंद्यात् (२०३२) क्षमाकल्याणमूर्तिः ...........ध वारे। उपाध्यायजी श्री १०६ श्रीक्षमाकल्याणजित् गणिनां मूर्ति श्रीसंघेन का० २०२४. गौड़ीपार्श्वनाथ मंदिर के अन्तर्गत सम्मेतशिखर मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९६६ २०२५. दादाबाड़ी, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८५३ २०२६. जैनमंदिर, पावापुरी तीर्थ : पू० जै०, भाग १, लेखांक १९५ २०२७. शांतिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८०५ २०२८. दादाबाड़ी, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८५५ २०२९. जैनमंदिर, पावापुरी : पू० जै०, भाग १, लेखांक २०१ २०३०. दादाबाड़ी, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८५६ २०३१. नेमिनाथ जिनालय, राणीसर तालाब, फलौधी: भंवर० २०३२. सीमन्धर स्वामी का मंदिर, भांडासर बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११८२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (३५७) For Personal & Private Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०३३) चतुर्भुज-पादुका ॥ पं० । प्र। श्री १०८ श्रीचतुरभुजजी गणि पादुकामिदं । (२०३४) चैनसुख-पादुका गुरांजी श्री १०८ पं। प्र। चैनसुखजी। (२०३५) नयविजय-पादुका पं० नयविजय पादुका __ (२०३६) लालचन्द-पादुका । पं। प्र। श्री १०८॥ श्रीलालचन्द्रजी गणि पादुकामिदं। (२०३७) सुखरत्न-पादुका पं० सुखरत्न पादुका (२०३८) ...............व्यो। ३ भ। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठिता (२०३९) बहादुरमल बाफणा पादुका सं० १९०१ शाके १७६६ प्रवर्त्तमाने वैशाखमासे शुक्लपक्षे सप्तमीतिथौ गुरुवासरे बाफणा श्रीगुमानचंदजी तत्पुत्र संघवीजी श्रीबहादरमलजी वासी जेसलमेर का सुखवासक कोटा रामपुरा में तस्य चरणपादुके कारापितं तस्य पुत्र संघवि दानमल प्रतिष्ठिते भट्टारक श्रीजिन १०८ श्री श्रीमहेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठा स्थापितः श्रेय भवतु श्रीकल्याणमस्तु। (२०४०) कुन्थुनाथः सं० १९०१ वर्षे मि। वैशाख शुक्ला १५ तिथौ बाफणा । गुमानजी तद्भार्या जेठादे श्रीकुंथुनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च भ। जं । यु। प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः। २०३३. दादाबाड़ी, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८५७ २०३४. दादाबाड़ी, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८६५ २०३५. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नोखामंडी: ना० बी०, लेखांक २२६७ २०३६. दादावाडी (देदानसर तालाब), जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८५९ २०३७. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नोखामंडी : ना० बी०, लेखांक २२६८ २०३८. चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक १३ २०३९. दादाबाड़ी, कोटा: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५०५ २०४०. अजितनाथ देरासर, सुगनजी का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६६३ (३५८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०४१) जयरत्नगणि-पादुका १ श्री संवत् १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्रवर्त। मासोत्तममासे आषाढ़ शुक्लपक्षे सप्तमी भृगुवारे महाराजाधिराज महारावलजी श्रीगजसिंहजी विजयराज्ये । जं । यु। प्र। भ। श्रीजिनचंद्रसूरि तत्शिष्य पं। प्र। जयरत्नगणि पादुका कारापितं । श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः॥ (२०४२) जीतरंग-पादुका ॥ संवत् १९०१ रा वर्षे शाके १७६६ । प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे आषाढ़मासे शुक्लपक्षे सप्तम्यां तिथौ भृगुवासरे महाराजाधिराज महाराउलजी श्रीगजसिंहजी विजयराज्ये प्रधानभट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि बृहत्शिष्य पं० जीतरंगगणि पादुका कारापितं श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः॥ (२०४३) ऋषभदेव-मूलनायकः स्वस्ति श्रीमज्जिनाधीशेभ्यो नमः। अथ सकलभूमंडलाखंडलश्रीमन्नृपतिविक्रमादित्यराज्यात्संवच्चद्राम्बरनिधिवसुन्धरा (१९०१) प्रमिते हायने श्रीमच्छालिवाहनभूभृद्विन्यस्तशस्तशाके १७६६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तमपौषमासे शुभे वलक्षपक्षे राकायां १५ तिथौ सुराचार्यवासरे पुष्यनक्षेत्रे श्रीऋषभजिनबिंबं श्रीरतलामसमस्त-श्रीसंघेन कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमबृहत्खरतरगणाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारकश्रीपुरन्दर भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरि पट्टप्रभावक जं० यु० भट्टारक श्रीमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरतलामपत्तने च पुनसिविहिता लूंकागोत्रे। (२०४४) अजितनाथः श्रीमज्जिनाधीशेभ्यो नमः। संवच्चन्द्राम्बरनिधिवसुन्धरा १९०१ प्रमिते हायने श्रीमच्छालिवाहनभूभृद्विन्यस्तशस्तशाके १७६६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तमपौषमासे शुभे वलक्षपक्षे राकायां १५ कर्मवाट्यां सुराचार्यवासरे पुष्यनक्षत्रे श्रीअजितनाथबिंबं बाफणा संघवी मगनीरामजी बभूतसिंघजी प्रतिष्ठितं च। उकेशवंशालंकार सद्गुरुचरणाम्बुजशिलीमुखोपधारक सकलश्रीसंघाग्रहूत प्रभूतसाम्राज्यभृच्छ्रीमबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरीश्वर पट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरीशैः सदुपाध्याय-वाचकायेकपंचाशत्साधुसपरिकरसमन्वितैः श्रीरतलाममहापत्तने चतुर्मासी च विहिता तत्र समुद्भूतप्रभूतविवेकातिरेक......... प्राज्ञप्रवर हीरतिलकमुनेः शिष्यमुख्य पंडितवर कल्याणविनयमुनेरुपदेशात् ॥ भद्रं भूयात् ॥ (२०४५) अजितनाथः ॥ सं० १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्रमिते पौष शुक्ल पूर्णिमायां १५ गुरुपुष्ये श्रीअजितजिनबिंबं वायडा माणाजी-वीरचन्द्राभ्यां कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरि पट्टालंकार श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः ।। २०४१. दादाबाड़ी, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८४९ २०४२. दादाबाड़ी, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४९९ २०४३. ऋषभदेवजी का मंदिर, रतलाम : य० वि० दि०. भाग ४. लेखांक २५ २०४४. बाबासा० का मंदिर, रतलामः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५०८ २०४५..बाबासा० का मंदिर, रतलाम: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५०९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः ३५९) For Personal & Private Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०४६) अजितनाथः सं० १९०१ वर्षे पौष शुक्ल १५ गुरुपुष्ये श्री अजितजिनबिंबं कटारिया पूनिमचंद जित्तेन कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधानभट्टारक श्रीजिनहर्षसूरि भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः (२०४७) संभवनाथ: सं० १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्रमिते पौष सुदि १५ गुरौ पुष्ये श्रीसंभवनाथजिनबिंबं पोहकत्रणा नातीरूथानी (?) कस्य भार्या रतनबाई कया कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधानभट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्याम् ॥ भार्या. ( २०४८ ) संभवनाथ: ॥ संवत् १९०१ मासोत्तममासे पौषमासे शुक्लपक्षे तिथौ १५ गुरुवासरे गुगलिया संघवि तेजाजी ..बाई संभवजिनबिंबं कारापितं भट्टा० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः । (२०४९) सुमतिनाथ: ॥ सं० १९०१ वर्षे पौष शुक्ल १५ गुरुपुष्ये श्रीसुमतिजिनबिंबं पाटणी सा । खेमचंदजी कालुरामजी धरमचंदैः कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टालंकार श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्याम् ॥ (२०५०) सुमतिनाथः ॥ सं० १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्रमिते पौष सुदि १५ गुरौ श्रीसुमतिजिनबिंबं । भंडारी सा नेमिचंदजी तस्य भार्या छादूबाई कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्री जिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्याम् ॥ (२०५१) विमलनाथ: ॥ सं० १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्र । पौषशुक्लपूर्णिमायां १५ गुरुपुष्ययोगे विमलजिनबिंबं का । सा। खिंमराजि तेन कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जं । यु । भ । श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्यां ॥ (२०५२) विमलनाथ: सं० ॥ १९०१ पौ० शु० १५ श्रीविमलजिनबिंबं का। सिवजी - सुधीराजाभ्यां.. श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः॥ २०४६. बाबासा० का मंदिर, रतलाम: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५१७ २०४७. बाबासा० का मंदिर, रतलाम: प्र० ले० २०४८. बाबासा० का मंदिर, रतलाम: प्र० ले० २०४९. बाबा सा० का मंदिर, रतलाम : प्र० ले० २०५०. बाबा सा० का मंदिर, रतलाम : प्र० ले० २०५१. बाबा सा० का मंदिर, रतलाम : प्र० ले० २०५२. बाबा सा० का मंदिर, रतलाम : प्र० ले० (३६०) सं०, भाग २, लेखांक ५१५ सं०, भाग २, लेखांक ५२१ सं०, भाग २, लेखांक ५१० सं०, भाग २, लेखांक ५१८ सं०, भाग २, लेखांक ५११ सं०, भाग २, लेखांक ५१३ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only यु० प्र० भ० Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०५३) शांतिनाथः ॥ सं० १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्रमिते पौष शुक्ल १५ तिथौ श्रीशांतिनाथबिंबं बीकानेरवास्तव्य ढढा कपूरचंदजिद्भार्या बाई अबुक्या कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधानभट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्याम्॥ (२०५४) शांतिनाथ: सं० १९०१ वर्षे पौष सुदि १५ गुरुपुष्ये श्रीशांतिजिनबिंबं। वायडा। रामचंद जापया चन्द्राभ्यां कारितं । प्रतिष्ठितं च। बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर। जंगमयुगप्रधानभट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्याम्॥ (२०५५) शांतिनाथ-पञ्चतीर्थी सं० १९०१ पौ० सु० १५ गुरौ श्रीशांतिनाथबिंबं मालवी गंगाराम.....................बृहत्खरतरगच्छेश जं० यु० भट्टारक........ (२०५६) मल्लिनाथ: ____॥ सं० १९०१ वर्षे पौष शु० १५ गुरौ श्रीमल्लिजिनबिंबं पोकरणा दुलाजी भार्या बाई रतनु कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः। (२०५७) मुनिसुव्रतः ॥ सं० १९०१ वर्षे शा। १७६६ प्रमिते पौष शुक्ल १५ गुरुपुष्ययोगे श्रीमुनिसुव्रतजिनबिंबं । वीरवाडन बाई झुमतिन कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्याम्॥ (२०५८) नेमिनाथः ॥ स्वस्ति श्रीमज्जिनाधीशेभ्यो नमः॥ संवच्चन्द्रान्बरनिधिवसुन्धरा १९०१ प्रमिते हायने श्रीमच्छालिवाहनभूभृद्विन्यस्तशके १७६६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे शुभे वलक्षपक्षे राकायां १५ कर्मवाट्यां सुराचार्यवासरे पुष्यनक्षत्रे श्रीनेमिनाथजिनबिंबं कटारियागोत्रे जवेरचंदजी विजैचंद्रजी तस्य भार्या होली कारितं प्रतिष्ठितं सकलश्रीसंघाग्रहूत प्रभूतसाम्राज्यभृच्छीमबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जं० यु० भट्टारक पुरुहूतभट्टारक श्रीमज्जिनहर्षसूरीश्वरपट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीमज्जिनमहेन्द्रसूरीश्वरैः सदुपाध्यायवाचकायेकपंचाशत्साधुसत्परिकरसमन्वितैः श्रीरतलामपत्तने चतुर्मासी च विहिता............. वंशोद्भव राजराजेश्वर श्रीबलवंतसिंहजिद्विजयि राज्ये ॥ लि। पं। प्र। साहि २०५३. बाबा सा० का मंदिर, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५०७ २०५४. बाबा सा० का मंदिर, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५१२ २०५५. आदिनाथ जिनालय, बखतगढ़, धारः मालवांचल के जैन लेख, लेखांक ८६ २०५६. बाबा सा० का मंदिर, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५२० २०५७. बाबा सा० का मंदिर, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५१४ २०५८. बाबा सा० का मंदिर, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५०६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०५९) सप्तफणा - पार्श्वनाथः सं० १९०१ वर्षे शा० १७६६ प्रमिते पौष शुक्ला पूर्णिमायां १५ श्रीसप्तफणांकित श्रीपार्श्वजिनबिंबं विक्रमपुरवास्तव्य ढढा कपूरचंदजित्तस्य पुत्र पन्नालालजी श्रीचंदजी सुखलालजित्तेन कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरीपट्टप्रभाकर जं० यु० भ० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः । रतन श्रीनगर्याम् । (२०६०) पार्श्वनाथ - रजतमय सं० १९०१ वर्षे पौष सु० १५ गुरौ पुष्ये श्रीपार्श्वजिनबिंबं बाफणा श्रीजोरावरमल्ल सपरिकरः कारितः प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः रतलाम । (२०६१) मूलनायक - पार्श्वनाथः सं० १९०१ वर्षे शाके १७६६ पौष सुदि १५ गुरौ पुष्ये श्रीपार्श्वजिनबिंबं खाचरोदवास्तव्य सेठिया ठाकुरसी सपरिवारकेण कारितं प्र० बृहत्खरतरगच्छाधिराज जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभि: पंन्यासरत्न विजयमुनेरुपदेशात् लि० जसविजयमुनीन् । (२०६२) महावीरः सं० १९०१ पौष सुदि १५ गुरौ पुष्ये श्रीमहावीरजिनबिंबं सुराणा जयकरणजी लच्छीरामाभ्यां कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे। जं० | युगप्रधानभट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः ( २०६३ ) जिनकुशलसूरि - पादुका १९०१ वर्षे शाके १७६६ पौष शुक्ल १५ तिथौ गुरौ पुष्ये श्रीजिनकुशलसूरिजित्सद्गुरूणां पादुके नीमचरी छावणीना समस्त श्रीसंघेन कारितं प्रतिष्ठितं । जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छाधीश्वरैः रतलामनगरे प्राज्ञप्रत्यक्ष सत्यमाणिक्यमुने उपदेशात् । भद्रं भूयात् ॥ श्री ॥ (२०६४) अजितनाथ: सं० १९०१ वर्षे माघवदि १३ गुरुवासरे श्रीअजमेरवास्तव्य ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां सा० कमलजी मुणोत तद्भार्या बाई किसनकंवर बाई तत्पुत्री बाई महताबकुंवर व फुलकुंवर श्री अजितजिनबिंबं स्थापितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे देवचंदजी पं० श्रीहीराचन्द्रेण प्रतिष्ठितम् (२०६५) जिनोदयसूरि- पादुका संवत् १९०१ रा शाके १७६६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे दशम्यां तिथौ रविवासरे २०५९. बाबा सा० जी का मंदिर, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५१९ २०६०. सेठ केशरीमल का देरासर, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४६० २०६१. गौड़ी पार्श्वनाथ जी का मंदिर, खाचरोद : य० वि० दि० भाग ४, लेखांक ३५ २०६२. बाबा सा० का० मंदिर, रतलाम : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखाकं ५१६ २०६३. ऋषभदेव जिनालय, उज्जैन : मालवांचल के जैन लेख, लेखांक ९१ २०६४. खरतरवसही शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक १०१ २०६५. खरतरगच्छीय शाला, नाल, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २३१६ (३६२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भट्टारक जंगमयुगप्रधान १०८ श्री श्रीजिनउदयसूरीश्वराणां पादुका जं । यु । भट्टारक श्री श्रीजिनहेमसूरिजिद्भिः प्रतिष्ठितं खरतर बृहदाचार्यगच्छे श्रीविक्रमपुरे मध्ये श्रीरतनसिंहजी विजयराज्ये शुभं भवतु ॥ श्री ॥ (२०६६) लब्धिधीर - पादुका संवत् १९०२ शाके १७६७ मासोत्तममासे ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ बुधवासरे पं । लब्धिधीरगणीनां पादुका वा० हर्षरंगगणिकारापितं रत्नसिंहजी विजयराज्ये श्रीरस्तु विक्रमपुरमध्ये । भ० श्रीजिनहेमसूरिजिद्भिः प्रतिष्ठितम् ॥ (२०६७) सिद्धचक्र यंत्रम् सं० १९०२ वर्षे आश्विनमासे शुक्लपक्षे पूर्णिमासितिथौ जयनगरवास्तव्य श्रीमालवंशे फोफलीया गोत्रीय चुन्नीलाल तत्पुत्र हीरालालेन श्रीसिद्धचक्रयंत्र कारितं चारित्रउदय उपदेशात् प्र । बृ । भ । खरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः पूजकानां प्रपितरांभूयात् । (२०६८) सिद्धचक्र-यंत्रम् सम्वत् १९०२ आश्विन शुक्ल पूर्णिमास्यां १५ सिद्धचक्रमिदं श्रीश्रीमालज्ञातौ मींडीयागोत्रीय मु । देवीदासजी तत्पुत्र मुनीलाल तत्भगिनी सुतोभिधानतया बृहत्खरतरगच्छीय जं० यु० प्र० भट्टार्क श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः मुनियोधराजाभिधानोपदेशात् । (२०६९) सुपार्श्वनाथ मंदिर - प्रशस्तिः ॥ सं० १९०२ मिते पौष सुदि ६ तिथौ रविवारे श्रीमधुवने श्रीपार्श्वनाथचैत्य श्रीबीकानेर वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन कारितं प्रतिष्ठापितं बृहत्खरतरभट्टारकगच्छाधीश श्रीजिनहर्षसूरि पट्टालंकार जं । यु । भ । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः श्रीसंघस्य श्रेयोर्थम् (२०७०) ज्ञानसार- पादुका ॥ सं० १९०२ वर्षे मा। सु । ६ पं । प्र । ज्ञानसार जी पादु । (२०७१ ) शिलापट्ट - प्रशस्तिः बृहत्खरतरभट्टारकगच्छे जंगमयुगप्रधान श्री श्री १०८ श्रीजिनरत्नसूरिशाखायां वाचनाचार्य श्री १०८ श्रीकर्मचन्द्रजीगणि तच्छिष्य पं । प्र । श्री१०८ श्रीअखेचंद्रजी गणि तच्छिष्य पं । प्र । श्री १०८ श्रीरत्नचंद्रमुनि पं। प्र। श्री१०८ श्रीचैनसुखजी मुनि पं । प्र । श्री १०८ श्रीमोतीचंद्रजी तच्छिष्य पं । प्र । श्रीहीरानंदजी मुनि पं । प्र । श्रीकुशलचन्द्र मुनि तस्य बगीची मध्ये श्री १०८ श्रीसुमतिनाथजी श्रीजिनमंदिर का सभामंडप श्रीसंघेन २०६६. खरतरगच्छीय शाला, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३१० २०६७. श्रीमालों का मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५२२; पू० २०६८. खरतरगच्छीय बडा मंदिर तुलापट्टी, कलकत्ता : जै० धा० प्र० ले०, २०६९. सुपार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : भँवर० २०७०. ज्ञानसार जी का समाधि मंदिर, गोगा दरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९८५ २०७१, सुमतिनाथ जिनालय, नागौरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५२३ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: जै०, भाग २, लेखांक १२२८ लेखांक ३५७ For Personal & Private Use Only (३६३) Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारापितं पंडित रूपचंद्र उपदेशात् संवत् १९०२ का मिति फागुन वदि ५ चन्द्रवासरे महाराज श्री १०८ श्रीतखतसिंहजी विजयिराज्ये शुभंभवतु __ (२०७२) जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥ स्वस्ति श्री ॥ संवत् १९०३ रा शाके १७६८ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे आषाढ़ शुक्ले ८ तिथौ भृगुवारे चित्रानाम नक्षत्रे पं। प्र। श्री १०८ श्रीजिनचन्द्रजिच्चरणौ प्रतिष्ठितौ ॥ श्रीरस्तु॥ __ (२०७३) लालचन्दस्तूप-लेख: ॥ श्रीजिनायनमः॥ १९०३ रा मिति आसोज सुदि ७ श्रीजैसलमेर नगरे राउल श्रीरणजीतसिंहजी विजेराज्ये श्रीखरतरआचारजगच्छे श्रीजिनसागरसूरिशाखायां भ। यु। श्रीजिनहेमसूरिजी विजेराज्ये पं। प्र। श्री १०८ श्रीलालचन्द्रजी गणि पादुकामिदं शिष्यं पं। हर्षचंद्रेण गुरो पादुका धुंभ कारापितमिदं ॥ सही २॥ द। श्रीअमरचंद रा छै ॥ श्री॥ श्री॥ श्री॥ (२०७४) इन्द्रभाण-पादुका श्री १०८ सु इंद्रभाणजी संवत् १९०३ का० सुदि १३। (२०७५) सुपार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १९०३ माघवदि पांचम अहमदाबाद वास्तव्यः उ० ज्ञा० ब० अनूपचन्द हरखचन्द भार्या दिपालीबाई श्रीसुपारसनाथजिनबिंब कारापितं खरतरगच्छे भ० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः प्र० । __ (२०७६) शांतिनाथ: संवत् १९०३ वर्षे शालिवाहन १७६८ माह कृष्णा ५ तिथौ भृगुवासरे मुंबईवास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय बृहत्शाखायां नाहटागोत्रे सेठ श्रीमोतीचंद तत्पुत्र खेमचंदभाई श्रीशांतिनाथजिनबिंब कारापितं श्रीखरतरपीपलियागच्छे भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं (२०७७) नेमिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १९०३ वर्षे शाके १७६८ प्रवर्त्तमाने माघमासे कृष्णपक्षे ५ तिथौ। भृगुवासरे श्रीमुंबईबंदरवास्तव्य उस० ज्ञाता। बृद्धशाखाया नाहटागोत्रे सेठ मोतिचंद त। भा। दिवालिबाई त। पुत्र सा० खेमचंदभाई तेन श्रीनेमिनाथपंचतिरथि कारापितं श्रीवृ। खर। पी। गच्छे श्रीजिनमहेन्द्रसूरि राज्ये प्रतिष्ठी। ___ (२०७८ ) मन्दिर-प्रशस्ति-शिलालेखः (१) ॥ एर्द० ॥ श्रीमदर्हते नमः॥ स्वस्ति श्रीमज्जिनं नत्वा ॥ प्रणम्य स्वगुरुं मुदा ॥ श्रीधर्मनाथचैत्यस्य॥ प्रश२०७२. दादाबाड़ी, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५२४ २०७३. दादाबाड़ी, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८५८ २०७४. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नौहर: ना० बी०, लेखांक २४७५ २०७५. महावीर जिनालय, पायधुनी, मुम्बई : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३५९ २०७६. मोतीशाह की ट्रॅक, (देहरी नं० ९) शत्रुजय : भंवर० (अप्रका०), लेखांक १ २०७७. मोतीशाह ढूंक, शत्रुजय : श० गि० द०, लेखांक ४६८ २०७८. धर्मनाथ मंदिर, हठीभाई की बाडी, अहमदाबादः प्रा० ० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५५६ (३६४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) स्तिर्वर्ण्यते वरा॥१॥अहम्मदावादपुरे॥ श्रीकंपिनी अंगरिजबहादुरः॥राज्यं करोति विधिना ॥ मर्यादा(३) पालने निपुणः॥ २॥ तद्राज्ये वास्तव्यो॥ गुरुशाख उक्केशवंशजातश्च ॥ जीवदयाधर्मार्थी॥ साहः श्रीनि(४) हालचंद्रश्च ॥ ३॥ तत्पुत्रः श्रीसाहषुस्सालचंद्र ॥ स्तत्पत्नी श्रीमाणकी धर्मकत्रीं ॥ तत्पुत्रः श्रीकेसरी(५) सिंहनामा॥ तद्भार्या श्रीसूर्यनाम्नी प्रसिद्धा ॥ ४॥ तस्याः कुक्षेः रत्नतुल्यः प्रजातः॥ श्रेष्ठी साहः श्रीहठीसिंहनामा॥ भाग्येनैवोपार्जितं द्रव्यवृंदं॥ भुक्तं दत्तं स्वीयहस्तेन तेन ॥५॥ अहम्मदावा(७) दपुरोपकंठे॥ दिश्युत्तरस्यां कृतवाटिकायां ॥ यत्कारितं श्रीजिनबिंबवृंदं ॥ जिनेंद्रचैत्यं तु मह(८) नवीनं ॥६॥ द्वापंचाशदैवत ॥ कुलिकामंडितं त्रिभूमिकं रम्यं ॥ मंडपयुगेन रुचिरं ॥ त्रिशिखरं (६) का (९) रितं स्ववित्तैः॥७॥ तस्मिन् जिनबिंबानां ॥ प्रासादानां तथा सुप्रतिष्ठा ॥ इह कारिता कृतैषा ॥ श्रीशां(१०) तिसागरसूरिभिश्च ॥ ८॥ जातोयं गुर्जरदेशे ॥ तस्माद्गुर्जरवर्णनम्॥ क्रियते बुद्धियोगेन॥ बुद्धि(११) मद्भिर्विभाव्यताम्॥९॥सान्निध्ये तीर्थराजो विमलगिरिवरो यस्य चैवौज्जयंत ॥ स्तारंगस्तंभना. (१२) ख्यो गवडिपुरभवो यत्र संखेश्वरश्च ॥ यत्संधौ संस्थितोयं विततगिरिवरो योऽर्बुदाख्यःसुधामा। अन्ये(१३) नेकेपि तीर्था वरभुवि नगरे यत्र देशे प्रसिद्धाः॥ १०॥ श्राद्धाः कुर्वंति यस्मिन् जिनवरभुवने भक्ति(१४) मुद्योतकर्ती ॥ पूजां स्नात्रं च मात्रां विरचति नृकुलो भक्तिभावार्द्रचित्तः॥ अर्हत्प्रोक्तागमानां श्रवण-. .(१५) मनुदिनं पात्रदानादिधाः सौंदर्ये कोपि देशो न भवति सदृशो गुजरणेह लक्ष्म्याः ॥ ११॥ विस्तीर्णह(१६) ट्टावभिराजमार्गा॥ उत्तंगहा जिनशुभ्रगेहाः॥ पुंभिर्धनाढ्यैश्च तथा गुणाढ्यै ॥ रहम्मदावाद इ (१७) तीह द्रंगः ॥ १२ ॥ तस्मिन् वाणिज्यकर्तृणां ॥ मुख्या बह्वर्धिनायकः। संघेशः श्रीहठीसिंहो जात:(१८) पूर्वोपवर्णितः॥ १३॥शीलवती च गुणवती॥ तस्य प्रथमा हि रुक्मणी भार्या ॥ हरकुमारिका चान्या (१९) ॥ पुत्रो जयसिंह इति नामा॥ १४॥ हठीसिंह गते स्वर्गे पत्नी हरकुमारिका ॥ भर्तुर्वाक्यैः क्रियां सर्वा॥ (२०) चक्रे पूर्वोपवर्णिताम् ॥१५॥त्रीजातावपि संजाता ॥ धन्या हरकुमारिका ॥ पुरुषैः कर्तुमशक्यं . यत्॥ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (३६५) For Personal & Private Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६६) (२१) तत्कार्यं साधितं तया ॥ १६ ॥ कुंकुमार्चितपत्रानि ॥ लिखितानि पुरे पुरे ॥ आगच्छंतु कृपां कृत्वा ॥ दर्श (२२) नार्थं ममांगणे ॥ १७ ॥ तत्पर्णमाकर्ण्य च दूतवाक्यं ॥ चतुर्विधा हर्षभरास्तु संघाः ॥ अहम्मदावादपुरो (२३) पकंठे प्राप्ताः प्रतिष्ठोत्सवमेव द्रष्टुं ॥ १८ ॥ आचार्याः संघमुख्याश्च ॥ संघैः सह समागताः चतुर्ल॥ (२४) क्षमिता मर्त्या ॥ मिलिता बहुदेशजाः ॥ १९ ॥ चैत्यबिंबं प्रतिष्ठासु ॥ वानल्पेषु सधर्मिणाम् ॥ सेवासु (२५) सूरिसाधूनां ॥ बहु वित्तव्ययं कृतम् ॥ २० ॥ श्रीविक्रमार्कसरदः ॥ प्रमिते सुवर्षे १९०३ एकोनविंश (२६) तिशताधिके तृतीये ॥ शाके तु सप्तदशसंख्य १७६८ शताधिकेष्ट ॥ षष्टिप्रवर्तनमते समयेसुशी (२७) ले ॥ २१ ॥ माघे मासे शुक्लपक्षे ॥ षष्ठीं च भृगुवासरं ॥ कृतमाडंबरेणैव ॥ जलयात्रामहोत्सवं ॥ २२ ॥ ए (२८) वं क्रमेण सप्तम्यां ॥ विहितं कुंभस्थापनं ॥ अष्टम्यां च नवम्यां तु ॥ नंद्यावर्तस्य पूजनं ॥ २३ ॥ दशम्यां ग्रह (२९) दिग्पाल ॥ क्षेत्रपालादिपूजनं ॥ विंशतिस्थानपूजा च ॥ एकादश्यां तिथौ कृता ॥ २४ ॥ द्वादश्यां च कृ (३०) तं श्राद्धैः॥ सिद्धचक्रादिपूजनं ॥ त्रयोदश्यां विरचितं ॥ च्यवनस्य महोत्सवं ॥ २५ ॥ चतुर्दश्यां जन्मभावो ॥ (३१) दिग्कुमारिभिरीरितं ॥ पूर्णिमायां कृतं मेरा ॥ विंद्राद्यैः स्नात्रकर्म च ॥ २६ ॥ माघे कृष्णे प्रतिपदि ॥ कृतं चंद्रे च (३२) वासरे॥ अष्टादशाभिषेकं तु ॥ द्वितीयायामथापरम् ॥ २७ ॥ उत्सवं पाठशालायां ॥ गमनस्य कृतं वरं (३३) ॥ तृतीयायां कृतं सद्भि ॥ विवाहस्योत्सवं वरं ॥ २८ ॥ दीक्षोत्सवं चतुर्थ्यां च ॥ पंचम्यां भृगुवासरे ॥ वृषलने (३४) च बिंबानां नेत्रोन्मिलनकं कृतं ॥ २९ ॥ षष्ठीतो दशमी यावत् ॥ कलशध्वजदंडयोः । प्रासादानां प्रतिष्ठा (३५) च ॥ महोत्सवैः कृता वरा ॥ ३० ॥ एकादश्यां गुरुदिने ॥ बिंबानां च प्रवेशनं ॥ स्थापना च कृता चैत्ये॥ वा (३६) सक्षेपसमन्विता ॥ ३१ ॥ तन्मंदिरे श्रीजिनधर्मनाथो | बिंबप्रवेशस्थितमूलमूर्त्तिः ॥ स्वश्रेयोर्थं च कृता प्र (३७) तिष्ठा ॥ भवे भवे मंगलकारिणीयम् ॥ ३२ ॥ इयं प्रशस्तिश्चैत्यस्य ॥ खरतरगच्छे तु क्षेमशाखायां ॥ महो० खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८) श्रीहितप्रमोद ॥ जितां कृता पं० सरूपेण ॥३३॥ इयं प्रशस्ति लिखिता॥ लेखक: विजयरांमेण॥ वनमालि(३९) दासपुत्रेण । मोडचातुर्वेदातिविप्रेण ॥ ३४॥ उत्कीरितं सूत्रधार: ईसफेन रहेमांनपुत्रेणः॥ श्रीरस्तु॥ श्रीः ॥ __ (२०७९) षट्-चरणपादुकाः ॥ बृहद्भट्टारकखरतरगच्छे जंगमयुगप्रधान भट्टारकजी श्रीजिनरत्नसूरिजित्शिष्य वा। श्री १०८ श्री चौथजी गणि वा। श्रीदीपचंदजी गणि वा। श्री १०८ श्रीकर्मचंद्रजित्कस्य चरणांघ्रि पं। प्र। श्रीअखेचंदजी जित्कस्य चरणांघ्रि पं। प्र। श्रीरत्नचंद्रजित्कस्य चरणांघ्रि पं। प्र। श्रीकुशलचन्द्रजित्कस्य चरणांघ्रि पं प्र। गुरांजी श्रीचैनसुखजित्कस्य चरणांघ्रि पं। प्र। श्री १०८ श्रीमोतीचन्द्रजित्कस्य चरणांघ्रि पं। हीरानंद। पं रूपचंद पधराया स्वबगीचा मध्ये सं० १९०३ का फा० सु० २ बुधवासरे महाराजाधिराज महाराजाजी श्रीतखतसिंहजी विजयराज्ये शुभंभवतुतराम्। (२०८०) मन्दिर-प्रशस्ति-शिलालेखः (१) ॥ श्रीआदिनाथाय नमः॥ (२) ॥ ॐ ॥ प्रीयात्सदा जगन्नायकजैनचन्द्रः सदा निरस्ताखिलशिष्टतंद्रः। स(३) दिष्टशिष्टीकृतसाधुधर्मा सत्तीर्थकृनिश्चितदृष्टिरागः॥१॥ पूज्यं श्रीजिनराजि(४) राजिचरणांभोजद्वयं निर्मलं ये भव्याः स्फुरदुज्ज्वलेन मनसा ध्यायंति सौ (५) ख्यार्थिनः। तेषा सर्वसमृद्धिवृद्धिरनिशं प्रादुर्भवेत्मंदिरे कष्टादीनि परिव्रजंति (६) सहसा दूरे दुरंतानि च ॥ २॥ सकलार्हत्प्रतिष्ठानमधिष्ठानं शिवश्रियः। भूर्भुवः (७) स्वस्त्रयीशानमार्हन्त्यं प्रणिदध्महे ॥३॥ नामाकृतिद्रव्यभावैः पुनतस्त्रिजगज्जनं । क्षेत्रे का(८) ले च सर्वस्मिन्नर्हतः समुपास्म्यहं ॥ ४॥ आदिमं पृथ्वीनार्थमादिमं नि:प(९) रिग्रहं । आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुम: ५ इति मंगलाचरणं । (१०) स्वस्ति श्रीविक्रमादित्यराज्यात्संवत् १९०३ शालवाहन कृत शाके १७६८ प्रव(११) र्तमाने मासोत्तमासे फाल्गुणमासे शुक्लपक्षे पंचम्यां तिथौ शुक्रवासरे घट्य। (१२) ५४ पलानि ३४ रेवतीनक्षत्रे घटय १४ पलानि ३८ तत्समये। महाराजाधिराज म(१३) हारावलजी श्री १०८ श्रीरणजीतसिंहजीविजयराज्ये। जं० । यु० । भ० । श्रीजिनचं(१४) द्रसूरि तत्पट्टे श्रीजिनहर्षसूरि तत्पट्टप्रभाकर श्रीजिनमहेन्द्रसूरि धर्मराज्ये श्री (१५) जिनचंद्रसूरि । बृहत्शिष्य। पं० । श्रीजीतरंगगणिना उपदेशात् श्रीआदिनाथ(१६) मंदिरं कारितं श्रीसंघेन। प्र० । कुँवरसी मुनिना प्रतिष्ठं च। लि० । पं० । दानमल्लेन । श्रीरस्तु। (२०८१) दादा-पादुकायुग्म सं० १९०३ वर्षे शाके १७६८ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे फागुणमासे तिथौ ५ श्री। पादुका प्रतिष्ठितं। जं। यु। दादा श्रीजिनदत्तसूरिभिः दादाश्रीजिनकुशलसूरिभिः २ सूरीश्वरान् । २०७९. सुमतिनाथ जिनालय, नागोर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५२६ २०८०. आदिनाथ जिनालय, अमरसागर, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५१८ २०८१. चन्द्रप्रभ देरासर, बीदासर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २३६३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः ३६७) For Personal & Private Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०८२) ऋषभदेवः सं० १९०४ रा प्रथम ज्येष्ठमासे शुक्लेतरपक्षे शनिवारे। ८ तिथौ श्रीऋषभदेवजिनबिंबं प्रतिष्ठितं भ० । जं। यु। प्र श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे कारितं श्रीबीकानेर वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन श्रेयोर्थम्॥ (२०८३) सम्भवनाथः सं० १९०४ प्र। जे। व। ८ संभवबिंबं प्रति। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे का० बीकानेर वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन श्रेयोर्थं । (२०८४) संभवनाथः सं० १९०४ रा प्रथम ज्येष्ठ मासे कृष्णपक्षे शनिवासरे ८ तिथौ श्रीसंभवनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः। __ (२०८५) सुपार्श्वनाथः संवत् १९०४ रा प्रथम ज्येष्ठ मासे कृष्णपक्षे शनिवासरे। ८ तिथौ श्रीसुपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं भ। जं। यु। प्रा (२०८६)चन्द्रप्रभः सं० १९०४ प्र० ज्येष्ठ वदि................। चन्द्रबिंब प्रति। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ (२०८७) शीतलनाथः संवत् १९०४ रा वर्षे प्रथम ज्येष्ठमासे। कृष्णपक्षे शनिवासरे। ८ तिथौ श्रीशीतलनाथजिनबिंब प्रतिष्ठितं। जं। यु। प्र। भ० । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे........श्रीसंघेन श्रेयोर्थम्॥ (२०८८) शीतलनाथः संवत् १९०४ वर्षे प्रथम ज्येष्ठ कृष्णपक्षे ८ तिथौ शनिवासरे श्रीशीतलजिनबिंबं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरभट्टारकगच्छे जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः समस्त श्रीसंघेन स्वश्रेयो) (२०८९) धर्मनाथः सं० १९०४ रा प्र। ज्येष्ठ कृष्णपक्षे ८ तिथौ श्रीधर्मजिनबिंबं । प्रति । बृहत्खरतरगच्छे जं। यु।प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्ख। का। वो। हिंदूमलजिद्भार्या कनना बाई स्वश्रेयोर्थं । २०८२. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७४३ २०८३. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७७० २०८४. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७३९ २०८५. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७५० २०८६. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४६६ २०८७. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७४५ २०८८. वासुपूज्य जिनालय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १३८६ २०८९. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८५९ (३६८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०९०) धर्मनाथः ॥ सं० १९०४ वर्षे प्रथम ज्येष्ठ कृष्णपक्षे ८ तिथौ श्रीधर्मजिनबिंबं प्रति जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतर । कारि। सू। श्रीकेसरीचंदजी स्वश्रेयोर्थं श्रीबीकानेर नगर व्य० (२०९१) शांतिनाथ: संवत् १९०४ रा वर्षे मासोत्तम प्रथम ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे शनिवासरे ८ तिथौ श्रीशांतिनाथजिनबिंब प्रतिष्ठितं जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे कारितं श्रीबीकानेरवास्तव्य समस्त श्रीसंघेन श्रेयोर्थम॥ __ (२०९२) कुंथुनाथः संवत् १९०४ रा वर्षे प्रथम ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे शनिवासरे ८ तिथौ श्रीकुथुजिनबिंबं प्रतिष्ठितं। जं। यु। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खर तर गच्छे कारितं श्रीबीकानेर वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन...... (२०९३) मूर्तिः सं० १९०४ रा प्रथम ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे शनिवासरे ८ तिथौ श्री...........नाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतर... (२०९४) मूर्तिः सं० १९०४ मि। प्र। ज्येष्ठ कृष्ण ८ तिथौ श्री.................बिंबं । प्रति बृहत्खरतरगच्छे जं। यु । प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः का० ताराचंदजिद्भार्या......................स्वश्रेयो) । (२०९५) एकतीर्थीः सं० १९०४ ज्येष्ठ । व। ८ प्रति भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः खरतरग.. (२०९६) मूर्तिः सं० १९०४ रा प्र। ज्ये................प्रति भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः . (२०९७) सिद्धचक्रयंत्र-रौप्यमय ॥ सं० १९०४ रा मि। कार्तिक सुदि ५ । भ। श्रीजिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं कोठारी कुंदनमल्लेन कारापितं॥ श्री श्री॥ २०९०. सुमतिनाथ भांडासर जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ११६९ २०९१. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७४७ २०९२. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७४४ २०९३. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७४८ २०९४. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८६३ २०९५. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८८५ २०९६. पार्श्वनाथ सेढू जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९७९ २०९७. श्रीमालों का मंदिर, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५२७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (३६९) For Personal & Private Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०९८) चतुर्विंशति-जिनमातृकापट्टः ॥संवत् १९०४ वर्षे पौषमासे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां तिथौ श्रीअजयमेरुदुर्गे श्रीचतुर्विंशतिजिनमातृका पट्ट । लूणियागोत्रेण । साह पृथ्वीराजेन कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रीबृहत्खरतरगणाधीश्वर जंगमयुगप्रधानभट्टारक श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः। विजयराजैः॥ (२०९९) आदि-महावीर-पादुके सं० १९०४ वर्षे पौषमासे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां तिथौ श्रीअजमेरनगरे श्रीआदिनाथस्य श्रीवर्द्धमानजिनस्य पादुका श्रीसंघेन श्रेयो) कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रीबृहत्खरतरगणाधीश्वर जं। भ। श्रीसौभाग्यसूरिभिः॥ श्रीविजयराज्ये॥ (२१००) सम्मेतशिखरपट्टः ॥ संवत् १९०४ वर्षे शाके १७६९ पौष शुक्ले पक्षे तिथौ पूर्णिमायां गुरुवारे अजमेरदुर्गे श्रीसम्मेतशिखरस्यपट्ट महमहियागोत्रेण साह । धनरूपमल तत्पुत्र खदिर वाघमल्लेन कारितं प्रतिष्ठापितश्च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जं। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः उपाध्यायजी श्रीक्षमाकल्याणजी गणीनां शिष्य पं० धर्मविशालमुनिना उपदेशात् इयं श्रीसम्मेतशिखरभावरचितः श्रेयोर्थम्। (२१०१) दादा-पादुका-युग्म ॥सं० १९०४ वर्षे पौष शुक्ल १५ तिथौ । श्रीजिनदत्तसूरिजी श्रीजिनकुशलसूरिजी पादुका श्रीसंघेन कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रीबृहत्खरतर.........................श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ (२१०२ ) शीतलनाथः सं० १९०४। माघसुदि १२ बुधे श्रीशीतलनाथबिंब पंचालदेशे कांपिल्यपुरे प्रतिष्ठितं च श्रीमबृहत्भट्टारक खरतरगच्छीय श्रीजिन.. (२१०३) शांतिनाथ-मूलनायकः सं० १९०४ माघ शुक्ल १२ बुधे श्रीशांतिनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं पंचालदेशे कंपिलपुरे श्रीमबृहत्खरतरभट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचन्द्रसूरिक्रमाब्जमधुकरोपम विनेय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः कारापितं च श्रीमालवंशे महमवालगोत्रे सा लालाजी सदासुखजी तेन प्रतिष्ठापितं स्वश्रेयोर्थं पूजकानां कल्याणं भवतु। २०९८. संभवनाथ मंदिर, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३०; पू० जै०, भाग १, लेखांक ५६९ २०९९. संभवनाथ मंदिर, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५२९ २१००. संभवनाथ मंदिर, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३१ २१०१. संभवनाथ मंदिर, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५२८ २१०२. चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुम्बई : ब० चि०, लेखांक १९ २१०३. शांतिनाथ जिनालय, दादाबाड़ी, लखनऊ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३६ (३७०) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१०४) शांतिनाथः सं० १९०४ माघ शुक्ल १२ बुधे श्रीशांतिजिनबिंबं पंचालदेशे कंपिलपुरे प्रतिष्ठितं च श्रीमद्बृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचन्द्रसूरिक्रमाब्जमधुकरोपम श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः कारितं च ओ। चोरडियागोत्रे लाला चुन्निलाल तत्पुत्र हर्षचन्द्र तद्भार्या बिवाश्रेयोर्थम्॥ (२१०५) पार्श्वनाथः सं० १९०४ माघ सु० १२ बुधे अंतरिक्षपार्श्वजिनबिंबं कंपिलपुरे प्रतिष्ठितं श्री बृह। खरतरगच्छे श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचन्द्रसूरिविनेय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः कारितं च ओशवंशे जडियागोत्रे लाला गोकलचंदजी तत्पुत्र छोटेलाल तेनेदं प्रतिष्ठापितं स्वश्रेयोर्थं ॥ श्रीः॥ (२१०६ ) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १९०४ वर्षे शाके १७६९ प्र० माघमासे शुक्लपक्षे १२ तिथौ लक्ष्मणपुरवास्तव्य ओशवंशे वरडियागोत्रे लाला छोटे मल दीपचंद्रेण श्रीजिनकुशलसूरिचरणपादुके कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमद्धृहद्खरतरभट्टारकगच्छीय श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचन्द्रसूरिक्रमाब्जमधुकरोपम विनेय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः महत्प्रमोदन सकलपूजकानां श्रेयभूयात् । (२१०७) जिनहर्षसूरि-पादुका संवत् १९०४ मिति माघ सुदि १२ श्रीमंडोवरनगरे श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर। जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनहर्षसूरिजित्सूरीश्वराणां पादुकेभ्यः। प्रतिष्ठितं च भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः कारापितं च ॥ (२१०८) सदारंग-पादुका ॥ सं० १९०४ मि० फा० सु० २ ५। प्र० श्री १०८ श्रीसदारंगजी मुनि चरणपादुका कारापितम्। (२१०९) आदिनाथः ___ सं० १९०५ वर्षे वैशाख मासे शुक्लपक्षे ३ । ऋषभजिनबिंब कारापितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः. (२११०) आदिनाथः (१) श्रीविक्रमसंवत्सरात् १९०५ रा वर्षे शाके १७७० । प्रवर्त्तमाने मासोत्तम माधवमासे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां १५ तिथौ बृह २१०४. शांतिनाथ मंदिर, दादाबाड़ी, लखनऊ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३४ २१०५. वासुपूज्य मंदिर, दादाबाड़ी लखनऊ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३२ २१०६. दादाबाड़ी, लखनऊ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३५ २१०७. दफ्तरियों का मंदिर, मण्डोवर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३३ २१०८. नेमिनाथ जी का मंदिर, बेगानियों का वास, झज्झू : ना० बी० लेखांक २३२२ २१०९. अजितनाथ जी का मंदिर, कोचरों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १५५० २११०. महावीर जिनालय (वैदों का), बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १२३६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) ३७१) For Personal & Private Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) स्पति वासरे। श्रीमरुधरदेशे श्रीबीकोर नगरे राठोड़ वंश उजागर महाराजाधिराज राजराजेश्वर नरेन्दशिरोमणि श्री रतनसिंहजी विजयराज्ये विक्रमपुर वास्तव्य ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां समस्त श्रीसंघेन आदिनाथजिनबिंबं कारा(४) पितं। बीकानेरवास्तव्य ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां समस्त श्रीसंघेन श्रीमहावीरदेव पट्टानुपट्टाविच्छिन्नपंरपरायात् श्रीउद्योतनसू(५) रि श्रीवर्द्धमानसूरि वसतिमार्गप्रकाशक यावत् श्रीजिनकुशलसूरि श्रीजिनराजसूरि श्रीजिनमाणिक्यसूरि यावत् श्रीजिनलाभसूरि श्रीजिनचन्द्रसूरि श्रीजिनहर्षसूरि............बृहत्खरतरभट्टारकगच्छेश जं। यु। प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (२१११) आदिनाथ: सं० १९०५ रा वर्षे मि० वैशाख शुक्ल १५ तिथौ गुरुवारे लू। सा। ...............श्रीऋषभदेवबिंब का० प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ ___(२११२) आदिनाथः सं० १९०५ मि० वैशाख सुदि १५ दिने मोणोत सा० कीरतमलजी भार्या कृष्णादे पुत्र सा० देवराजेन श्रीऋषभदेवबिंबं कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (२११३) आदिनाथः सं० १९०५ मि० वैशाख सुदि १५ श्रीआदिनाथबिंबं से। अमीचंदजी सपरिवारेण कारितं (२११४) अजितनाथ: ॥संवत् १९०५ वर्षे शाके १७७० प्रवर्त्तमाने वैशाख सुदि १५..........सा० जसराजजी..............प्र० श्री बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (२११५) अजितनाथः सं० १९०५ वर्षे मि। वैशाख सु १५ गणधर चोपड़ा कोठरी उमेदचंदजी तत्पुत्र माणचंदजी तद्भार्या जड़ावदे तत्पुत्र गेवरचंद श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ श्री॥ २१११. संभवनाथ जिनालय, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३९ २११२.संभवनाथ जिनालय, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५४७ २११३. गौड़ी पार्श्वनाथ मंदिर के अन्तर्गत सम्मेतशिखर मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९६४ २११४. संभवनाथ जिनालय, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५४२ २११५. अजितनाथ देरासर, सुगनजी का उपासरा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १६५७ (३७२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२११६) संभवनाथः सं० १९०५ वर्षे मि० वैशाख सु० १५ वै। मु। रत्नचंदजी तत्पुत्र गिरिधरचंदजी तद्भार्या कुनणादे तत्पुत्र करणीदानेन श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे जं। यु। प्र। भ० । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ श्री॥ (२११७) पद्मनाथः ॥ सं० १९०५ वर्षे मि वैशाख सु १५ श्रीसंघेन श्रीपद्मनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः (२११८) सुमतिनाथः सं० १९०५ वर्षे मि० । वैशाख सु० १५ सेठिया जीतमलजी तत्पुत्र लालजी ताराचंदेन सपरिवारेण सुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ (२११९) सुपार्श्वनाथः ॥७॥ सं० १९०५ वर्षे मि। वैशाख सुदि १५ बाफणा जसराजेन श्रीसुपार्श्वनाथबिंबं कारितं। प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः। __ (२१२०) चन्द्रप्रभः संवत् १९०५ वैशाख सुदि १५ बोरा सा० दलेलसिंहजी तत्भार्या इन्द्रादे श्रीचन्द्रप्रभस्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगणाधीश्वर। जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरि । (२१२१) चन्द्रप्रभः सं० १९०५ मि० वैशाख सुदि १५ बाफणा सा० मलूकचंदजी पु० अ०.................. श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (२१२२) चन्द्रप्रभः ॥ ८॥ सं० १९०५ वर्षे मि। वै। सु १५ गणधर चोपड़ागोत्रे उमेदचंदजी पु० माणकचंद तत्पु० गेवरचंदेन कारितं प्रतिष्ठितं च श्री बृहत्खरतरगच्छे जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ श्री॥ २११६. कुंथुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६८० २११७. अजितनाथ मंदिर, नागपुरः २११८. अजितनाथ देरासर, सुगनजी का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी० , लेखांक १६५८ २११९. अजितनाथ देरासर, सुगनजी का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६५९ २१२०. कुंथुनाथ जिनालय, जोधपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३७ २१२१. संभवनाथ जिनालय, अजमेरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५४५ २१२२. अजितनाथ देरासर, सुगनजी का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६६२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (३७३)) For Personal & Private Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१२३) चन्द्रप्रभः सं० १९०५ वर्षे वैशाख मासे । शुक्लपक्षे। चंद्रप्रभजिनबिंबं बीकानेर वास्तव्य कारापितं । प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः। (२१२४) चन्द्रप्रभः सं० १९०५ वर्षे वैशाख सुदि १५ .............प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (२१२५) सुविधिनाथः सं० १९०५ वर्षे मि० वैशाख सुदि १५ गो।अमरचंदजी भार्या मेदादे तत्पुत्र अगरचंदजी सपरिवारेण श्रीसुविधिनाथजीबिंब कारितं। श्रीबृहत्खरतरगच्छे जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं च॥ श्रीबीकानेर मध्ये। (२१२६) वासुपूज्य-मूलनायकः सं० १९०५ रा वर्षे मि। वैशाख सुदि १५ तिथौ गुरुवासरे श्रीबीकानेर नगरे श्रीवासुपूज्यजिनबिंब प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरभट्टारकगच्छेश जं० यु० प्र०। श्रीजिनहर्षसूरितत्पट्टालंकार जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः कारा । ह्वा। को० श्रीमदनचंदजी सपरिवार युतेन स्वश्रेयसे॥ (२१२७) विमलनाथ-मूलनायकः . सं० १९०५ वर्षे वैशाख सुदि १५ गुरुवारे श्रीविमलनाथस्य बिंबं कारितं प्रतिष्ठापितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः। (२१२८) धर्मनाथः सं० १९०५ वैशाख सु० १५ श्रीसंघेन कारितं श्रीधर्मनाथजीबिंबं प्रतिष्ठापितं श्रीखरतरगच्छे भ। जं। यु। प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (२१२९) धर्मनाथः सं। १९०५ वैशाख सुदि १५ वा० सा० अमरसी भार्या बुनादे पुत्र स० की. जसलेण श्रीधर्मनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधानभट्टारक श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः (२१३०) धर्मनाथः ॥ सं० १९०५ वर्षे मि० वैशाख शुक्ल १५ तिथौ गुरुवारे लूणिया सा० अमीराजजी तद्भार्या सिणगारदे श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनरत्नसूरिभि ।। २१२३. शांतिनाथ जिनालय , चुरू : ना० बी०, लेखांक २४०२ २१२४. संभवनाथ जिनालय, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५४० २१२५. कुंथुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी० , लेखांक १६७९ २१२६. वासुपूज्य जिनालय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १३८५ २१२७. विमलनाथ जिनालय, केसरगंज, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५४८ २१२८. अजितनाथ जी का मंदिर, सुगन जी का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६६१ २१२९. चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय, किशनगढ़ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५३८ २१३०. संभवनाथ जिनालय, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५४४ (३७४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१३१) शांतिनाथ सं० १९०५ वर्षे मि। वैशाख सुदि १५ दिने ढढा सा। भैरूदान श्रीशांतिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं च। यु।.................................श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः (२१३२) शांतिनाथः सं० १९०५ वर्षे वैशाख सुदि १५................प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (२१३३) कुन्थुनाथः संवत् १९०५ वर्षे मि० वैशाख..................श्रीकुंथुनाथजिनबिंबं । का। प्रति। बृहत्खरतरगच्छे............. श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः का। सा। श्री................. (२१३४) मुनिसुव्रतः सं० १९०५ वर्षे वैशाखमासे पूर्णिमास्यां तिथौ श्रीमुनिसुव्रतजिनबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छेश जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः। (२१३५) नेमिनाथः १ श्रीविक्रमसंवत्सरात् १९०५ रा वर्षे शाके १७७० प्रवर्त्तमाने माधवमासे शुक्लपक्षे पूर्णि२ मायां १५ तिथौ बृहस्पतिवासरे श्रीमरुधरदेशे श्रीबीकानेरनगरे। राठोड़वंश उजागर महाराजाधिराज राज३ राजेश्वर नरेन्द्रशिरोमणि श्रीरतनसिंहजी सवाईविजयराज्ये महाराज कुमार श्रीसिरदारसिंघजी युवराज्ये ४ श्रीनेमिनाथजिनबिंब कारापितं च श्रीबीकानेर वास्तव्य । ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां समस्त श्रीसंघेन श्रीमहावीरदेव- . ५ पट्टानुपट्टाविच्छिन्नपरंपरायात् श्रीउद्योतनसूरि श्रीवर्धमानसूरि वसतिमार्गप्रकाशक यावत् देवता. . प्रदत्तयुगप्रधानपद ६ श्रीजिनदत्तसूरि यावत् श्रीजिनकुशलसूरि यावत् श्रीजिनराजसूरि यावत् श्रीजिनमाणिक्यसूरि दिल्लीपति पतसाहि . ७ ..............यावत् श्रीबृहत्खरतरभट्टारक। जं। यु। प्र। श्रीजिनहर्षसूरि तत्पट्टालंकार जं० । यु० । प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभि० प्रति॥ २१३१. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८६५ २१३२. संभवनाथ जिनालय, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५४१ २१३३. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९२० २१३४. शांतिनाथ जिनालय, चुरू : ना० बी०, लेखांक २४०३ २१३५. महावीर जिनालय (वैदों का), बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १२३५ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (३७५) For Personal & Private Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१३६) नेमिनाथः ॥ सं० । १९०५ वर्षे वैशाख मासे। शुक्लपक्षे। पौर्णिमायां तिथौ श्रीनेमिनाथजिनबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ (२१३७) सहस्रफणा-पार्श्वनाथ-मूलनायकः १ ॥ प्रतिष्ठितं जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः । २ ॥ श्रीविक्रमसंवत्सरात् १९०५ रा वर्षे शाके १७०० प्रवर्त्तमाने मासे माधवमासे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां १५ तिथौ गुरुवा३ सरे। मरुधरदेशे श्रीबीकानेर नगरे राठौड़वंशउजागर महाराजाधिराज राजराजेश्वर नरेन्द्रशिरोमणि श्रीरतनसिंहजी सवाई वि४ जयराज्ये । महाराज कुंवर श्रीसिरदारसिंहजी युवराज्ये। श्रीसहस्रफणा पार्श्वजिनबिंब कारापितं श्रीबीकानेर वास्तव्य ओसवाल। ५ ज्ञातीय वृद्धशाखायां समस्त श्रीसंघेन श्रीमहावीरदेवपट्टानुपट्टाविच्छिन्नपरंपरायात् श्रीउद्योतनसूरि श्रीवर्धमानसूरि वस६ तिमार्गप्रकाशक यावत् देवताप्रदत्तयुगप्रधानपद श्रीजिनदत्तसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि यावत् श्रीजिनकुशलसूरि यावत् श्रीजिनराज७ सूरि यावत् श्रीजिनमाणिक्यसूरि दिल्लीपतिसाहि श्रीअकबरप्रतिबोधक तत्पदत्त युगप्रधान विरुद धारक सकलदेशाष्टाह्नि। ८ काजीवामारिप्रवर्तावक यावत् श्रीमबृहत्खरतरभट्टारक गच्छेश जं० । यु । प्र। श्रीजिनहर्षसूरि ___पट्टालंकार जं। यु। प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः ९ प्रतिष्ठितम्॥ (२१३८) पार्श्वनाथ-मूलनायकः सं० १९०५ मि। वैशाख १५ श्रीसंघेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रीखरतरगणाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः। (२१३९) पार्श्वनाथः सं० १९०५ वर्षे वैशाख मासे शुक्लपक्षे पूर्णिमातिथौ श्रीपार्श्वजिनबिंब का। प्र। बृहत्खरतरगच्छेश जं। यु। प्र। भ श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ (२१४० ) गौडी-पार्श्वनाथः ॥संवत् १९०५ मि० वैशाख सुदि १५ गुरौ ....चांदकुंवर बाई श्रीगौडीपार्श्वनाथ प्र० बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ २१३६. अजितनाथ मंदिर, नागपुरः २१३७. महावीर जिनालय (वैदों का), बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १२३४ २१३८. पार्श्वनाथ जिनालय, रामनिवास, गंगाशहर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१८१ २१३९. अजितनाथ देरासर, सुगन जी का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६६४ २१४०. संभवनाथ जिनालय अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५४३ (३७६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१४१) पार्श्वनाथः सं० १९०५ मि० वैशाख सुदि १५ चो० सा० गुलाबचंद श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (२१४२). .."नाथः सं० १९०५ वैशाख सुदि १५ तिथौ श्रीसंघेन कारितं ...............नाथजीबिंबं प्रतिष्ठापितं बृहत्खरतरगच्छीय. (२१४३) जिनहर्षसूरि-पादुका संवत् १९०५ वर्षे शाके १७७० प्रमिते माधवमासे शुक्लपक्षे पौर्णिमास्यां तिथौ गुरुवार बृहत्खरतरगणाधीश्वर भ। जं। युगप्र। श्री १०८ श्रीजिनहर्षसूरिजित्पादुके श्रीसंघेन कारापितं प्रतिष्ठितं च भ। जं। यु। प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ श्रीविक्रमपुरवरे ॥ श्री॥ (२१४४) .. ."नाथः सं० १९०५ मि। आषाढ़ ब० ९ जं। यु। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (२१४५) गौडी-पार्श्वनाथ-पादुका ॥सं० १९०६ रा शाके १७७१ प्र। मि। ज्ये। शु।१० गुरु श्रीगौडीपार्श्वनाथ पादुका जेसलमेरुवास्तव्य बाफणा संघवी दानमल्लादि सपरिवारेण कारापितं।प्र। बृ। खरतरगच्छाधीश श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः। कोटाभिधान नगर्याम्॥ ( २१४६) जिनदत्तसूरि-पादुका ॥ सं० १९०६ रा मिति ज्येष्ठ सुदि १० गुरौ श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका जेसलमेरुवास्तव्य ओशवंशे बाफणागोत्रे । से। दानमल्लादि कारापितं प्र। बृ। खरतरगच्छे श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः कोटानगरे (२१४७) जिनदत्तसूरि-पादुका ॥ सं० १९०६ मि। मिगसर सुदि ७ गुरु श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका रतलामवास्तव्य श्रीसंघप्रेरक से। खेमराजेन कारापितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छीय भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः सप्तविंशति-साधुपरिकरेण कोटानगर्याम्॥ २१४१. संभवनाथ जिनालय, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५४६ २१४२. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में बीकानेर: ना० बी० , लेखांक १७२७ २१४३. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७; पू० जै०, भाग २, लेखांक १३५२ २१४४. अजितनाथ देरासर, सुगन जी का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६७२ २१४५. ऋषभदेव जिनालय, बूंदी : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५५१ २१४६. ऋषभदेव जिनालय, बूंदी : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५५० २१४७. ऋषभदेव जिनालय, सांगोदिया : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५५२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (३७७) For Personal & Private Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१४८ ) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १९०६ मि । मिगसर सुदि ७ गुरु श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुका रतलामवास्तव्य श्रीसंघप्रेरक से। खेमराजेन कारापितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छीय भ । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः सप्तविंशति-साधुपरिकरेण कोटानगर्याम्॥ (२१४९ ) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥सं० १९०६ वर्षे शाके १७७१ प्र । पौष कृष्णा ८ तिथौ शुचि चारित्रउदय उपदेशेन जयनगरवास्तव्य समस्त श्रीसंघेन श्रीजिनकुशलसूरिपादुके कारिते प्र । बृ । भ । श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः ॥ (२१५० ) जिनकुशलसूरि-पादुका बृहत्भट्टारकखरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिशाखायां वाचनाचार्य श्री १०८ श्रीकर्मचन्द्रजीगणि तच्छिष्य श्री १०८ श्रीअखेचंदजीगणि तच्छिष्य पं । प्र । श्रीरत्नचंदजीगणि श्रीचैनसुखजी श्रीमोतीचंदजी तच्छिष्य पं । प्र। श्रीहीरचंदजी। पं । प्र । श्रीकुशलचंदमुनि तेषां बगीची मध्ये खरतरगच्छे जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीदादाजी श्री १०८ श्री जिनकुशलसूरिजी महाराज का चर्णपादुका श्रीसंघने कराया। पं० रूपचंद उपदेशात् सं० १९०७ का मिति आषाढ़ वदि ७ सोमवारे शुभ दुगड़िया में महाराजाजी श्रीतखतसिंघजी विजयराज्ये शुभंभवतु श्रीसंघस्य कारीगर मालीपन्नो ॥ . (२१५१ ) जिनदत्तसूरि - पादुका बृहद्भट्टारकखरतरगच्छे जंगमयुप्रधान भ० दादाजी श्री १०८ श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज का चर्णपादुका श्रीसंघ पधराया। प्र० । रूपचंदउपदेशात् ॥ सं० १९०७ का मिति आषाढ़ सुदि ९ बुधवारे महाराजाजी श्रीतखतसिंघजी विजयराज्ये शुभं भवतु.. । दादाजी की १०८ श्री अखेचंदजी तच्छिष्य श्रीरत्नचंदजी श्रीचैनसुखजी श्रीमोतीचंदजी तच्छिष्य श्रीहीरचंदजी पं० । श्रीकुशलचन्द्रं मुनि तेषां बगीचामध्ये ॥ (२१५२ ) पादुका की अंगी संवत् १९०७ मिते भादवा सुदि १५ दिने भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरि विजयराज्ये जं । यु । श्रीजिनदत्तसूरीणां पादन्यासः का। सुश्रावक खजानची वच्छराजजी श्रेयोर्थम् ॥ (२१५३) मनरूपजी - पादुका स्वतिश्री संवति १९०७ प्रमिते मासोत्तम मार्गसित ५ पंचम्यां गुरौ । श्रीमद्बृहद्खरतरभट्टारकगच्छे श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां पं । प्र । पं । श्रीमनरूपजित्कानां चरणसरोरुह युगलस्थापने ॥ २१४८. ऋषभदेव जिनालय, सांगोदिया : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५५३ २१४९. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५५४ २१५०. सुमतिनाथ जिनालय, नागोर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५५५ २१५१. सुमतिनाथ जिनालय नागोर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५५७ २१५२. दादाजी का मंदिर, उदरामसर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२०१ २१५३. दादाबाड़ी, अजमेर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५५८ (३७८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१५४) कांतिरत्न - पादुका संवत् १९०७ वर्षे मि। मि । व । १३ गुरुवारे श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां पं० प्र० कांतिरत्नमुनीनां पादुके कारापितं प्रतिष्ठिते च श्री ॥ ( २१५५) सुपार्श्वनाथ: सं० १९०७ माघ सुदि ५ तिथौ षष्ठि दिने श्रीसुपार्श्वबिंबं प्र । बृहत्खरतर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः सप्तविंशति साधुपरिकरेण कारापितं च सेठ मोहकमचंद पुत्र उदयचंद धर्मपत्नी महाकुमारी भिधेन श्रीमिरजापुर पं । प्र । पुण्यभक्तिनिर्देशित श्री । (२१५६ ) जिनकुशलसूरि- पादुका ॥ संवत् १९०७ माघ सुदि १२ सोमवारे दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी चरण. (२१५७) सुपार्श्वनाथ-मुलनायक : ॥ संवत् १९०७ रा वर्षे । मा । फागुण सुदि ३ गुरुवारे श्रीसुपार्श्वजिनबिंबं । प्रति । भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ ( २१५८ ) शांतिनाथ: संवत् १९०७ वर्षे मि० फागुण सुदि ३ दिने । श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं मकसुदाबाद वास्तव्य श्रीसंघेन श्रेयसे प्रतिष्ठितं च भ । श्रीजिनहर्षसूरि पट्टालंकार भ । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे। (२१५९) कुंथुनाथः ॥ संवत् १९०७ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने.. तिथौ भौमवारे बृहत्खरतराचार्य गच्छेश. श्री सरदारसिंह विजयराज्ये ॥ २१६० ) मूलनायकः श्रीवीरविक्रमादित्यराज्यात् संवत् १९०८ शाके १७७३ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे फाल्गुन वदि ५ .. भट्टारक श्रीजिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं रा० नौतिः । २१६१ ) उदयरत्नमुनि-पादुका सं० १९०९ मि० आषाढ वदि ८ गुरुवासरे श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां । पं० प्र० श्रीउदयरत्नमुनीनां पादुका पं० लक्ष्मीमंदिरेण प्रतिष्ठा कारितं । २१५४. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २२९८ २१५५. मूल मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखरः भँवर २१५६. यति श्यामलाल जी का उपाश्रय, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५५९ २१५७. सुपार्श्वनाथ जिनालय, पार्डी, नागपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५६० २१५८. चम्पापुरी तीर्थ : पू० जै०, भाग १, लेखांक १४७ २१५९. अजितनाथ मंदिर, नागपुर: २१६०. मुनिसुव्रत जिनालय, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२७९ २१६१. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २११५ . प्रतिष्ठितं श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः । खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (३७९) Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१६२) लब्धिविलासमुनि-पादुका सं० १९०९ मि० आषाढ़ वदी ८ ....................वासरे श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां पं० प्र० श्रीलब्धिविलासमुनीनां पादुका पं० दानशेखरेण प्रतिष्ठा कारिता। (२१६३) सिद्धचक्रयंत्रम् ___ श्री। संवत् १९०९ आ० सुदि ३ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं का० गांधी गुलाबचंद्रस्य भार्या कली नाम्ना प्र० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा श्रीबृहत्खरतरगच्छे। . (२१६४) जिनदत्तसूरि-पादुका जं। यु। प्र। भट्टारक दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिभिः। कारितं प्रतिष्ठितं जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरीश्वेरण। संवत् १९०९ वर्षे ___ (२१६५) शिलालेखः श्रीपादलिप्तनगरे राजराजेश्वर महाराजाधिराज गोहिल श्रीनोंघणजी कुंवर श्री प्रतापसिंह जी विजयराज्ये सं० १९१० ना वर्षे चैत्र मास शुक्लपक्षे तिथौ १५ बृहस्पतिवारे श्रीअजमेरवास्तव्य ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां श्रीमुमीयांगोत्रे से। धनरूपमलजी तद्भार्या अगरकुंवर बाई तत्पुत्र से बाघमलजी तद्भार्या अजितकुंवर बाई तत्पुत्री द्वौ राजकुंवर बाई तघु प्रतापकुंवर बाई श्रीसिद्धाचलजी ऊपर नवीन प्रासाद कारितं श्रीआदिजिनबिंब श्रीमुनिसुव्रतजी श्री आदिनाथजी श्रीनमिनाथजी श्रीआदिनाथजी श्रीमुनिसुव्रतजी श्रीशांतिनाथजी श्रीपार्श्वनाथजिनबिंबं अष्टौ स्थापितं च प्रतिष्ठितं च श्रीमबृहत्खरतरगच्छे सकलभट्टारक- पुरंदर जंगमयुगप्रधान श्रीजिनहर्षसूरिपट्ट प्रभाकर जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी विजयराज्ये पं । कनकशेखरजी तत्शिष्य जयभद्रजी तत्शिष्य दयाविलासजी तत्शिष्य हर्षकीर्तिमुनि शिष्य मानसुंदरजी तघु शिष्य हेमचंद्रेण प्रतिष्ठितं च। ___ (२१६६) आदिनाथः सं० १९१० ना चैत्र सुद १५ गुरुवासरे श्रीअजमेर वा। उ। ज्ञा। वृ। मुमीयागोत्रे से। धनरूपमल तद्भार्या अगरकुवर बाई तत्पुत्र से वाघमलजी श्रीआदिनाथबिंबं स्थापितं च प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छेश भ। यु। जं। यु। प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी विजयराज्ये। प्र। देवचंद्रजी शिष्य हीराचंद्रजी प्रतिष्ठितं च ॥ (२१६७) सेठ-सेठानी-मूर्तियुगल सं० १९१० चैत्र सुदि १५ वृ। अजमेर वास्तव्य धनरूपमलजी अगरकुंवर सेठ सेठाणी मूर्ति स्थापिता दयाविलास शिष्य हीराचंद प्रतिष्ठितं श्रीजिनसौभाग्यसूरि राज्ये। २१६२. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१०८ २१६३. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्याः पू० जै०, भाग २, लेखांक १६४५ २१६४. अजितनाथ मंदिर, नागपुरः २१६५. खरतरवसही शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ९० २१६६. खरतरवसही शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ९१ २१६७. खरतरवसही शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ९२ (३८०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१६८ ) मूलनायक - गौडी-पार्श्वनाथः संवत् १९१० शाके १७८५ मिती आषाढ़ कृष्ण २ श्रीगौडी पार्श्वनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठिता कृता बृहत्खरतरभट्टारकगणेश जङ्गम यु० प्रधान भट्टारक श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारिता च नाहटागोत्रीय लक्ष्मीचन्द्रात्मज दीपचन्द्रेन स्वश्रेयोर्थं सोमवासरे। ( २१६९ ) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: संवत् १९१० आसो सित ९ सा चन्द्रप्रभुबिंबं कारितं च नाहटा संतोषचन्द्र भार्या वसंता व्य० पुत्र निहालचन्द्र पौत्र ठल्लुयुतेन बृहत्खरतरगच्छेश भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं । (२१७० ) नेमिनाथ- मूलनायक : ॥ संवत् १९९० मी मिगसर वदि ५ प्रतिष्ठितं गुरुवासरे. श्रीबृहत्खरतर आचारजगच्छे नेमिनाथजिनबिंबं ॥ कारितं. (२१७१) अभिनंदनः श्री सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ माघ शुक्ल २ तिथौ श्रीअभिनंदनजिनबिंबं प्रति भ । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः ..तत् भार्या. (२१७२ ) सुपार्श्वनाथ - मूलनायक : : संवत् १९१० वर्षे शाके १७७५ माघ शुक्ल २ तिथौ श्रीसुपार्श्वनाथजिनबिंबं. श्रीजिनहर्षसूरीणां... भट्टा श्रीजिनहेमसूरिभिः (२१७३) सुपार्श्वनाथ: ॥ संवत् १९१० वर्षे शाके १७७५ माघ सुदि २ तिथौ श्रीसुपार्श्वनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरीणां पट्ट प्रभावक... २१६८. शिखरचंद जी का मन्दिर, बनारसः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८६६ २१६९. मधुवन, सम्मेतशिखर : जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३६० २१७०. नेमिनाथ जिनालय, सेठियों का वास, झज्झ, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २३२३ २१७१. पार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : भँवर० (२१७४ ) वासुपूज्यः सं० । १९१० वर्षे शा० १७७५ प्रवर्त्तमाने मिती माघ शुक्ल २ तिथौ श्रीवासुपूज्यजिनबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः कारितं च श्री.. २१७२. सुपार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर ० २१७३. लाला कालिकादास जी का मंदिर, कानपुरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८३० २१७४. सुपार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर० खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: ..खरतरगच्छे For Personal & Private Use Only (३८१) www.jalnelibrary.org Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१७५) वासुपूज्यः सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ माघ शुक्ल द्वितीयायां श्रीवासुपूज्यजिनबिंबं प्रतिष्ठितं भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः कारितं च श्री..................... (२१७६) विमलनाथः सं० १९१० वर्षे माघ शुक्ल २ श्रीविमलनाथबिंबं... ........................श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः। (२१७७) धर्मनाथः सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ माघ शुक्ल २ तिथौ श्रीधर्मनाथबिंबं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरीणां पट्टप्रभावक. (२१७८) धर्मनाथः सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ माघ शुक्ल २ तिथौ श्रीधर्मनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः कारितं श्री टां। गो। (२१७९) शांतिनाथ-मूलनायकः संवत् १९१० वर्षे मा।शुक्ल २ श्रीशांतिनाथजिनबिंबं। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं सकलश्रेयोर्थं ॥ (२१८० ) पार्श्वनाथः ॥ सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने माघ शुक्ल २ तिथौ पार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं भ० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः कारितं वमा (?) गोत्रीय श्रीहुकुमचंद तत्पुत्र अगरमल्ल तद्भार्या बुध तया श्रेयोर्थमाणंदपुरे। (२१८१) पार्श्वनाथः सं० १९१० शाके १७७५ माघ शुक्ल द्वितीयायां श्रीपार्श्वबिंबं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे............। (२१८२) सहस्रकूटबिम्बम् ॥ सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने माघ शुक्ल २ तिथौ सोमवासरे सहस्रकूटबिंबानि प्रतिष्ठितानि बृहत्खरतरभट्टारकगच्छे श्रीजिनहर्षसूरीणां पट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः सपरिकरैः कारितं श्रीलक्ष्मणपुरवास्तव्य प्रल्हावत गो० । श्रीजेठमल तत्पुत्र कालकादास तत्पुत्र बलदेवदासेन श्रेयोर्थमानंदपुरे म २१७५. लाला कालिकादास जी का मंदिर, कानपुरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८३१ २१७६. सुपार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर० २१७७. लाला कालिकादास जी का मंदिर, कानपुरः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८३२ २१७८. सुपार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर० २१७९. शांतिनाथ जिनालय, सिंहपुरी : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५६६ २१८०. धर्मनाथ जिनालय, रत्नपुरी: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६७३ २१८१. श्वे. जैन मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३४७ २१८२. शांतिनाथ जिनालय, बोहारन टोला, लखनऊः पू० जै०, भाग २, लेखांक १५२९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१८३) स्हस्रकूटबिंबम् ॥१९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने माघशुक्ल २ तिथौ सोमवासरे सहस्रकूटबिंबांनि प्रतिष्ठितानि बृहत्खरतरभट्टारकगच्छे श्रीजिनहर्षसूरीणां पट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः सपरिकरैः कारितं श्रीलक्ष्मणपुर वास्तव्य चो० । गो० । श्रे। हंसराज तद्भार्या सोनाबिबि तया श्रेयोर्थमानंदपुरे ॥ पं० । प्र० । कनकविजय मुण्युपदेशात्। (२१८४) सहस्रकूटबिंबम् ॥१९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने माघशुक्ल २ तिथौ सोमवासरे सहस्रकूटबिंबानि प्रतिष्ठितानि बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरीणां पट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः सपरिकरैः कारितं श्रीलक्ष्मणपुर वास्तव्य छा० गो० सा० उमेदचंद तत्पुत्र हरप्रसाद रामप्रसाद तत्पुत्र जीवनदास धनपतराय तत्पुत्र दुर्गाप्रसादेन सपरिकरैः श्रेयोर्थमानंदपुरे।। (२१८५) सहस्रकूटबिंबम् ॥सं० १९१० शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने माघ शुक्ल २ तिथौ सोमवासरे सहस्रकूटबिंबानि प्रतिष्ठितानि बृहत्खरतरभट्टारकगच्छे श्रीजिनहर्षसूरीणां पट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः सपरिकरैः कारितं श्रीलखनऊ समस्त श्रीसंघेन श्रेयोर्थमानंदपुरे। (२१८६) सिद्धचक्रयंत्रम् सं० १९१० वर्षेशाके १७७५ प्रवर्त्तमाने माघ शुक्ल द्वितीया तिथौ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्र० भ० श्रीमहेन्द्रसूरिभिःका० गो० नाहटा ओसवाल लक्ष्मणदास तद् भार्या मुन्निबिबि तत्पुत्र हजारीमल श्रेयोर्थमानंदपुरे। (२१८७) सिद्धचक्रयंत्रम् सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने माघशुक्ल २ तिथौ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्र। भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः का। गो। छाजड ओसवाल हरप्रसाद तत् भारज्या सोनाबीबी श्रेयोर्थमानंदपुरे। (२१८८) एकादशगणधर-पादुकाः सिरिदेवड्डिमणि खमासमणा होत्था तेसिं सिरिवीरनिव्वाणाउ नवसयअसीइं वरिसेहिं जिणागमरक्खगा पुत्थलेहकारणाउ बिंबमिणं पहठावियं सिरिजिणमहिंदसूरीहिं॥ सं० १९१० वर्षे मा। सु० २। (२१८९) गौतमस्वामी-पादुका सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने माघशुक्ल २ तिथौ। श्रीगौतमस्वामीजी पादन्यासौ। प्र। भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः। का। गां० श्री अगरमल्ल पुत्र छोटणलालेन आणंदपुरे॥ श्री॥ २१८३. शांतिनाथ जिनालय, बोहारन टोला, लखनऊः पू० जै०, भाग २, लेखांक १५३० २१८४. शांतिनाथ जिनालय, बोहारन टोला, लखनऊः पू० जै०, भाग २, लेखांक १५३१ २१८५. शांतिनाथ जिनालय, बोहारन टोला, लखनऊः पू० जै०, भाग २, लेखांक १५३२ २१८६. अजितनाथ जिनालय, कटरा अयोध्याः पू० जै०, भाग २, लेखांक १६४६ २१८७. चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुंबई : ब० चि०, लेखांक ५ २१८८. जलमंदिर, पावापुरी तीर्थ : पू० जै०, भाग १, लेखांक १९३ २१८९. धर्मनाथ जिनालय, रोनाही रत्नपुरी : पू० जै० भाग २, लेखांक १६६७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः ३८३) For Personal & Private Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१९०) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने माघ शुक्ल २ तिथौ सोमवासरे श्रीजिनकुशलसूरीणां पादन्यासौ प्रतिष्ठितः भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः का। गां। श्रीबेणीप्रसादांगज छोटणलालेण आणन्दपुरे। (२१९१) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ माघ शुक्ल २ श्रीजिनदत्तसूरीसद्गुरूणां श्रीजिनकुशलसूरीणां पादन्यासो प्रतिष्ठितं० भ० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः। का। छा। मो। श्रीसिवप्रसाद पुत्र शीतलप्रसादेन श्रेयोर्थमानंदपुरे॥ (२१९२) शांतिनाथ-मूलनायकः (१) ॥ सं॥ १९१० रा शाके १७७५ रा प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे माघमासे धवलपक्षे ५ तिथौ गुरुवासरे महाराजाधिराज महाराजाजी श्रीतखतसिंहजी (२) कु। श्रीजसवंतसिंघजी विजयराज्ये श्रीपालिनगरे समस्त श्रीसंघ महामहोच्छवेनांजनसिलाका कृतं ॥ जोधनयरे वास्तव्य श्रीओसवंशे मुं। श्रीअ(३) खेचन्दजी तत्पुत्र मुं॥ श्रीलक्ष्मीचन्दजी तत्पुत्र मुं॥ श्री ॥ मुकनचंदजी धर्मानुरागेन महोछव कारापितं श्रीमहेवापडगने श्रीवीरमपुरनगर मध्ये संखवालेचा (४) मालासा० कारापित श्रीजिनालये श्रीशांतिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं जगद्गुरुविरुदधारक खरतरभावहर्षगच्छेश। भ। श्रीजिनक्षिमासूरिपट्टे भ। श्रीजि(५) नपद्मसूरिभिः प्रतिष्ठितं सकल श्रेयोर्थम्॥ __ (२१९३) सुपार्श्वनाथ: ॥ सं० १९१० रा शाके १७७५ रा प्रवर्त्तमाने मासोत्तमासे माघमासे धवलपक्षे ५ तिथौ गुरुवासरे महाराजाधिराज महाराजाजी श्रीतखतसिंहजी। कु। श्रीजसवंतसिंघजी विजयराज्ये श्रीपालिनगरे समस्त श्रीसंघ महामहोच्छवेनांजनसिलाका कृतं मुं॥ श्रीमुकनचन्दजी धर्मानुरागेन महोच्छव कारापितं श्रीमहेवा पडगने श्रीवीरमपुर नगरमध्ये संखवाले चा मालासा कारापित श्रीजिनालये श्रीसुपार्श्वनाथबिंब प्रतिष्ठितं.. .............................भ० श्रीजिनपद्मसूरिभिः ...................। (२१९४) चन्द्रप्रभः ॥ सं० १९१० शाके १७७५ प्र० मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे ५ तिथौ गुरुवारे श्रीपालीनगरे अंजनशलाका कृतं। समस्तसंघसंयुतेन स्वश्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्रबिंबं कारितं। प्रतिष्ठितं । भ। श्रीजिनपद्मसूरिभिः खरतरश्रीभावहर्षगच्छे । श्रीमद्वीरमपुरनगरे जिनालय स्थापितं ॥ २१९०. धर्मनाथ जिनालय, रत्नपुरी: पू० जै भाग २, लेखांक १६६८ २१९१. जलमंदिर, पावापुरी : पू० जै० भाग १, लेखांक १९९ २१९२. शांतिनाथ मंदिर, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ११०; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ४७५; य० वि० दि०, भाग २, लेखांक १, पृ० १८७ २१९३. शांतिनाथ जिनालय, नाकोड़ा तीर्थ : ना० पा० ती०, लेखांक १११ २१९४. शांतिनाथ जिनालय नाकोड़ा : ना० पा० ती०, लेखांक ११२ (३८४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१९५) जिनदत्तसूरि- पादुका संवत् १९१० मिते माघ सुदि ५ गुरु दिने श्रीजिनदत्तसूरिजी पादुका का० उदयभक्ति गणिना । प्र० बृहत्खरतरगच्छ जं० यु० भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः । (२१९६ ) आदिनाथ - सपरिकरः सं० १९१० फाल्गुण सिते २ बुधे आदिजिनपरिकरं कारितं पंचालदेशे कांपिल्यपुरे प्रतिष्ठितं श्रीमद्बृहद्भट्टारकखरतरगच्छाधिराज श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचन्द्रसूरिपदकजलयलीन विनेय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः ओशवंशे पहलावतगोत्रे लाला महाचंदजी तत्पुत्र श्रीसदानंदजी तत्पुत्र लाला गुलाबराय तद्भार्या झुन्नुबीबी कारितं । महता प्रमोदेन । (२१९७ ) अजितनाथः सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे २ तिथौ बुधे ओशवंशे पहलावतगोत्रे गुलाबराय तत्पुत्र किसनचंदेन श्रीअजितजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमद्बृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः पूजकानां वृद्धितरां भूयात् । ( २१९८ ) सुमतिनाथः संवत् १९१० फाल्गुन सिति २ बुधे श्रीमा० महमवाल गो० । ला० । छाजूमल तत्पुत्र शिवपरसादेन श्रीसुमतनाथजिनबिंबं । (२१९९ ) शांतिनाथ: संवत् १९१० वर्षे फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे २ तिथौ बुधे ओशवंशे पहलावतगोत्रीय गुलाबराय तस्य भार्या अमरकुंवरतया शांतिनाथजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमद्बृहद्भट्टारक खरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धन सूरिभिः पूजकानां वृद्धितरां भूयात् । ( २२०० ) धर्मनाथ: संवत् १९१० फाल्गुन सिति २ बुधे श्रीधर्मनाथजिनबिंबं पंचालदेशे कांपिल्यपुरे प्रति. (२२०१ ) महावीर - सपरिकरः सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ प्र । फाल्गुनमासे कृ० २ तिथौ श्रीमालवंशे महमवालगोत्रीय खेमचंद तत्पुत्र विजयचंद तत्पुत्र. .. चारित्र उदयउपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्भट्टा० खरतरग० श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः ॥ २१९५. शांतिनाथ जिनालय, चुरू : ना० बी०, लेखांक २४०५ २१९६. ऋषभदेव जिनालय, दादाबाड़ी, लखनऊ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५७२ २१९७. ऋषभदेव जिनालय, दादाबाड़ी, लखनऊ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५७१ २१९८. चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुंबई : ब० चिं०, लेखांक १५ २१९९. ऋषभदेव जिनालय, दादाबाड़ी, लखनऊ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५७० २२००. चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुंबई : ब० चिं०, लेखांक २८ २२०१. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५६८ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (३८५) Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२०२) महावीरः सं० १९१० फाल्गुन सिते २ बुधे महावीरजिनबिंबं पंचालदेशे कांपिल्यपुरे प्रतिष्ठितं श्रीमद्बृहद्भट्टारकखरतरगच्छे। श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः । (२२०३ ) महावीरः ॥ संवत् १९१० वर्षे शाके १७७५ प्र । फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे २ तिथौ सकद.... दगोत्रे रोसनराय तत्पुत्र कानजीमलत. श्रीवर्द्धमानजिनबिंबं चारित्रउदयउपदेशात् कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्भट्टा० खरतरंग० श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः॥ (२२०४) जिनदत्तसूरि- पादुका संवत् १९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे ५ तिथौ जयनगरवास्तव्य समस्त श्रीसंघेन चारित्रउदयउपदेशेन श्रीजिनदत्तसूरिपादुके कारिते प्र । बृ । भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः २२०५ ) जिनचन्द्रसूरि - पादुका ॥ संवत् १९१० फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे ५ तिथौ बृहद्भट्टारकखरतरगच्छाधिराज श्री भ० श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थ श्रीजिनचन्द्रसूरिपादुके चारित्रउदय उपदेशेन जयनगरवास्तव्य समस्त श्रीसंघेन प्र। बृ । भ० श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः ॥ · (२२०६ ) ऋषभदेवः भट्टारक श्रीजिनहेमसूरिभिः शुभम् । वीक्रमपुरे श्रीसिरदारसिंह वीजे राज्ये ॥ सं० १९१० रा वर्षे शाके १७७५ प्र। वर्षे मासोत्तममासे शुभे फागुणमासे कृष्णपक्षे अष्टम्यां तिथौ : सोमवासरे श्रीबृहत्खरतराचार्यगच्छे श्रीजिनहेमसूरिभिः ॥ श्री (२२०७ ) शिलालेख: सं० १९१० मि। फा। शुक्ल २ बुध दुगड़ प्रतापसिंह महताबकुंवर श्रीकुंडपार्श्व २३ जिनबिंबं का उ। सदालाभगणिना प्र। श्रीजिनहंससूरिभिः ( २२०८) नेमिनाथ- पादुका सं० १९९१ व । शाके १७७६ प्र० शुचिः सुदि १ तिथौ श्रीनेमिनाथपादन्यासो कारा० प्र० भ० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः का । से० गो० श्रीउदयचन्द्रस्य पत्नी महाकुमा......तस्या श्रेयोर्थं भवतुः ॥ २२०२. दादाबाड़ी, लखनऊ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५६९ २२०३. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० २२०४. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० २२०५. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० २२०६. अजितनाथ मंदिर, नागपुर: २२०७. चिंतामणि पार्श्वनाथ का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : भँवर २२०८. जैनमंदिर, वैभारगिरि, राजगिर : पू० जै० भाग १, . लेखांक २६८ (३८६) सं०, भाग २, लेखांक ५६७ सं०, भाग २, लेखांक ५७३ सं०, भाग २, लेखांक ५७४ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२०९ ) चन्द्रप्रभः सं० १९११ व। शा० १७७६ प्र । शुचि । शु । १० ति । श्रीचन्द्रप्रभबिंबं प्र० । भ । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः का । सा श्रीहकु- - खरतरगच्छे । (२२१० ) शान्तिनाथ - पादुका संवत् १९११ वर्षे शाके १७७६ शुचि ॥ ० दिने श्रीशांतिजिनपादन्यासः । प्रतिष्ठितः खरतरगच्छ भट्टारक श्रीमहेन्द्रसूरिभिः सेठ श्रीउदयचंदभार्या पास कुमारजी ॥ (२२११ ) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १९११ शाके १७७६ प्रवर्त्तमाने मि । आषाढ़ व ५ तिथौ श्रीसिरदारशहर श्रीसंघेन । श्रीजिनकुशलसूरिणां पादुके कारिते । प्रतिष्ठापिते च ॥ प्रतिष्ठितं च । जं । यु । भ । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः । श्रीबृहत्खरतरभट्टारकगच्छे। श्रेयोर्थं । श्रीरस्तु दिने दिने ॥ (२२१२ ) शांतिसमुद्र - पादुका सं० १९११ वर्षे मिती आषाढ़ कृष्ण पंचम्यां गुरुवारे । वृ । ख । श्रीजिनसुखसूरिशा । उ । श्री १०८ श्रीशांतिसमुद्रगणीनां पादुका २ कारिता । १ । जयभक्तिमुनिना सपरिवारेण प्रतिष्ठापिता ॥ श्री ॥ ( २२१३ ) वासुपूज्यः सं० १९१२ शा० १७७७ मिगसर मासे कृष्णपक्षे पंचम्यां तिथौ बुधवारे श्रीविक्रमपुरवास्तव्य मुकीम मोतीलाल श्रीवासुपूज्यजीजिनबिंबं कारापितं बृ । ख । आ । जं । श्रीजिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री सिरदारसिंहजी विजयराज्ये । (२२१४ ) शांतिनाथः सं० १९१२ शा १७७७ मिगसरमासे कृष्णपक्षे पंचम्यां तिथौ बुधवारे विक्रमपुरवास्तव्य मुकीम मोतीलाल श्रीशांतिजिनबिंबं कारापितं बृ । ख । आ । जं श्रीहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्रीसिरदारसिंघ.. (२२१५) भक्तिविलास - पादुका सं० १९९२ वर्षे शाके १७७७ प्र । मिगसर वदि ५ बु । म । उ । भक्तिविलासकेन पादुका उ० विनयकलशेन कारापितं भ० जिनहेमसूरि प्रतिष्ठितं महाराजा सिरदारसिंहजी विजयराज्ये २२०९. गांव का मंदिर, राजगिरः पू० जै०, भाग १, लेखांक २४४ २२१०. पटना संग्रहालय, पटना : पू० जै०, भाग १, लेखांक ६३४ २२११. दादाबाड़ी, सरदारशहर: ना० बी०, लेखांक २३९९ २२१२. दादाबाड़ी, सरदारशहर: ना० बी०, लेखांक २४०० २२१३. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८६६ २२१४. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८६४ २२१५. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०६१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (३८७ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२१६) चेतविशाल-पादुका ॥सं। १९१२ शाके १७७७ प्रवर्त्तमाने मिगसर वदि पंचम्यां बुधवारे पं। चेतविशाल पादुका शिष्य पं। धर्मचन्द्रेण कारापिते। श्री। श्रीबृहत्खरतरआचार्यगच्छे। श्रीमहाराजाधिराज श्रीसिरदारसिंहजी विजयराज्ये॥ __ (२२१७) धर्मनाथ-पादुका ॥ सं० १९१२ वर्षे शाके १७७७ मिते मासोत्तममासे मार्गशीर्ष कृष्णपक्षे नवमी तिथौ सोमवासरे विजययोगे कुंभलग्ने श्रीसम्मेतशैले श्रीधर्मनाथचरणपादुका प्रतिष्ठिता बृहत्खरतरभट्टारकोत्तम भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरीणां पदप्रभाकर श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः ससाधुभिः कारिताश्च वाराणसीय श्रीसंघेन कालिपुरस्य संघेनया। (२२१८) विद्याविशालगणि-पादुका ___ सं० १९१२ रा मिति मिगसर सुदि २ बु० पं० प्र० श्रीविद्याविशालजिद्गणिनां पादुका प्रशिष्य पं०. लक्ष्मीप्रधानमुनिना प्रतिष्ठापितं श्रीरस्तु। __(२२१९) चरणपादुकालेखः संवत् १९१२ शाके १७७७ प्रवर्त्तमाने पौषमासे वदी दशमी तिथौ बुधवासरे श्रीसकलसंघेन पुनः श्रीक्षेमकीर्तिशाखायां महोपाध्याय श्रीशिवचन्द्रगणिगजेन्द्राणाम् शिष्य विद्वद्रामचन्द्रमुनिना च शिष्य पं० इन्द्रचन्द्र मोहनचन्द्र युतेन छत्रिकायुक् श्रीखरतरगच्छनायक नवांगीवृत्तिविधायक श्रीअभयदेवसूरि श्रीजिनदत्तसूरि नरमणिमंडितभाल श्रीजिनचन्द्रसूरि श्रीजिनकुशलसूरीणां श्रीगौडीजीनां शुभ मुहुर्ते महामहोत्सवे श्रीसद्गुरुचरणपादुका श्रीगौड़ीजीना छे ॥ ऋषभजिनपार्श्वनाथ ॥ (२२२०) दादागुरु-पादुका-चतुष्टय संवत् १९१२ का० मिति फागुन वदि ७ तिथौ गुरुवासरे श्रीधुलेवानगरे श्रीक्षेमकीर्तिशाखोद्भव महोपाध्याय श्रीरामविजयजीगणि शिष्य महोपाध्याय शिवचन्द्रगणि शिष्य.........रामचंद्रमुनिना शिष्य मोहनचंद्र युतेन श्रीसत्गुरुचरणकमलानि कारितानि महोत्सवं कृत्वा प्रतिष्ठापितानि स्थापितानि च वर्तमान श्रीबृहत्खरतरगच्छभट्टारकाज्ञया च श्रीअभयदेवसूरि जिनदत्तसूरि जिनचंद्रसूरि जिनकुशलसूरीणां चरणन्यासः। (२२२१) आदिनाथ-सपरिकरः ॥सं० १९१२ शाके १७७७ फाल्गुनमासे शुक्लपक्षे २ तिथौ श्रीमालवंशे फोफलियागोत्रीय खूबचंद तत्पुत्र बहादुरसिंह..............................चारित्रउदय उपदेशेन...................श्रीआदिनाथजिनबिंबं कारितं प्रति० श्रीमबृहद्भट्टारकखरतरगच्छे श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः॥ २२१६. खरतरगच्छीय शाला, नाल, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २३१३ २२१७. धर्मनाथ टोंक, सम्मेतशिखर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३६९ २२१८. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०८६ ।। २२१९. जैनमंदिर, मक्सी, शाजापुर : मालवांचल के जैन लेख, लेखांक २६३ २२२०. केशरियानाथ जी का मंदिर, मेवाड़ : पू० जै० भाग १, लेखांक ६४६ २२२१. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५८२ (३८८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ........... (२२२२) आदिनाथः ॥सं० १९१२ वर्षे शाके १७७७ फाल्गुनमासे सुदि ३ तिथौ श्रीमालवंशे फोफलीयागोत्रे बहादुरसिंहेन आदिनाथबिंबं कारितं चारित्रउदयउपदेशेन श्रीमबृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः॥ (२२२३)" ............."नाथः संवत् १९१२ वर्षे फाल्गुन शुक्ल..............श्रीमालवंशे ढोरगोत्रे जीवनलाल तद्भार्या. चारित्रउदयउपदेशेन श्रीमबृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः॥ (२२२४) उदयराजगणि-पादुका ॥ ॐ ॥ संवत् १९१३ रा शाके १७७८ प्र। मासे मासोत्तममासे माधवमासे शुक्लपक्षे अक्षयतृतीयां तिथौ बुधवासरे खरतरगच्छे पं० । उ० । शिवचंद्रजी गणे: पौत्र शिष्य पं० ।प्र। उदयराजजिच्चरणाब्जन्यासकृतं प्रतिष्ठापितं च। शि। तिलोकचन्द्र नेमिचन्द्रेण कारापितं ॥ (२२२५) शिलालेखः ॥ श्री॥ सं० १९१३ मिति वैशाख सुदि ५ शुक्रवासरे श्रीजिनभक्तिसूरिशाखायां उ० श्रीआनन्दवल्लभगणि । तत् शिष्य पं।प्र। सदालाभमुनि उपदेशात् श्रीअजिमगञ्जवास्तव्य नाहर श्रीखड्गसिंहजी तत्पुत्र श्रीउत्तमचन्दजी तत्भार्या श्रीमयाकुमार एषः श्रीसुमतिजिनप्रासाद कारित: प्रतिष्ठाप्य श्रीसंघाय समर्पितश्च विधिना सतां ॥ जं। यु।प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी विजयराज्ये॥ श्रीरस्तुः ॥ कल्याणमस्तुः॥ श्रीः॥ श्रीः॥१॥ (२२२६ ) शान्तिनाथ-पादुका संवत् १९१३ शाके १७७८ तिथौ माघ शुक्ल पंचम्यां ५ भृगुवासरे श्रीमत्शांतिनाथ जिनदीक्षा कल्याणक पादुका ओसवंशे बैद महतागोत्रीय...................प्रसाद कालिकादास तत्पुत्र अबुजि तत्पुत्र शिखरचंद्रादि सपरिवारेण बृहत्खरतरगच्छीय भ० जिनजयशेखरसूरिभिः श्रेयः __(२२२७) शांतिनाथ-पादुका संवत् १९१३ शाके १७७८ तिथौ माघ शुक्ल पंचम्यां...............दीक्षा कल्याणक पादुका उसवंशे महतागोत्रे.... ( २२२८) शांतिनाथ-पादुका संवत् १९१३ शाके १७७८ तिथौ माघ शुक्ल पंचम्यां परमार्हत् श्रीमत्शांतिजिनमोक्षकल्याण २२२२. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर : प्र० ले० सं०, लेखांक ५८३ २२२३. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुर : प्र० ले०सं०, भाग २, लेखांक ५८१ २२२४. मोहनबाड़ी जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५७७ २२२५. सुमतिनाथ जिनालय, अजीमगंज : पू० जै०, भाग १, पृष्ठ १ २२२६. चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुंबई : ब० चिं०, लेखांक २३ २२२७. शांतिनाथ जिनालय, बोहारन टोला, लखनऊ : पू० जै०, भाग २, लेखांक १५३४ २२२८. शांतिनाथ जिनालय, बोहारन टोला, लखनऊः पू० जै०, भाग २, लेखांक १५३३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) ३८९) For Personal & Private Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पादुका लक्ष्मणपुर वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन कारितं प्र० च बृहत्खरतरगच्छीय जं। यु। प्र। श्रीजिनचंद्रसूरिपङ्कजभृत् श्रीजिनजयशेखरसूरिभिः। (२२२९) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १९१३ शालिवाहन शाके १७७८ प्रवर्त्तमाने तिथौ माघ शुक्ल पंचम्यां शुक्रवारे जं । यु। प्र। भट्टारक श्रीजिनकुशलसूरिपादुकां लक्ष्मणपुर वास्तव्य श्रीसंघेन कारितं बृहत्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरि पट्टालंकृत श्रीजिनजयशेखरसूरिभिः॥ श्रेयोस्तु ॥ श्री (२२३०) शिलालेखः संवत् १९१३ शाके १७७८ तिथौ फाल्गुण कृष्णपक्षे त्रयोदश्यां १३ रवौ श्रीसम्मेतशिखरे बिंबमिदं चैत्यं कारितं श्रीमालवंशे टांकगोत्रीय लाला ज्वालानाथजिद्भार्या मुनीयाख्या तत्पुत्र भैरूंदास सपरिवारेण श्रीमत्कलकत्ता वास्तव्य बृहत्खरतरगच्छीय जं। यु। प्र। भट्टारक श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरि पट्टालंकार श्रीजिनजयशेखरसूरिभिः प्रतिष्ठितं॥ (२२३१) विजययक्षमूर्तिः संवत् १९१३ फाल्गुण शुक्ल सप्तम्यां विजययक्षमूर्ति प्रतिष्ठितं । भट्टारक। युगप्रधान श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः कारिता च काशीस्थ श्रीश्वेताम्बर श्रीसंघेन। (२२३२) ज्वालादेवी-मूर्तिः संवत् १९१३ फाल्गुन शुक्ल सप्तम्यां ज्वालादेवीमूर्ति प्रतिष्ठितं । भट्टारक। युगप्रधान श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः कारिता च काशीस्थ श्रीश्वेताम्बर श्रीसंघेन (२२३३) जिनकुशलसूरि-पादुका __॥ सं० १९१४ व० ज्ये। द्वि० । ति। चं। श्रीजिनकुशलसूरिपादौ भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः का। श्री गो। कन्हैयालालेन मुद्रार्थं। ___ (२२३४) गुणनन्दनगणि-पादुका सं० १९१४ वर्षे मिती ज्येष्ठ शुक्ला ५ शुक्रवारे वा० श्रीगुणनंदनजी गणिनां पादुका तत्शिष्य पं० मतिशेखर मनि प्रतिष्ठितं। (२२३५) प्रीतिकमलमुनि-पादुका सं० १९१४ रा मि० जे० सु० ५ दिने पं० प्र० प्रीतिकमलमुनिनां पादुका स्थापितमस्ति। २२२९. दादाजी का मंदिर, जौहरी बाग, लखनऊ: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६३७ २२३०. सुपार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर० २२३१. चन्द्रप्रभ जिनालय, चन्द्रावतीः पू० जै० भाग २, लेखांक १३८२ (ए) २२३२. चन्द्रप्रभ का मंदिर, चन्द्रावती : पू० जै०, भाग २, लेखांक १३८२ (बी) २२३३. लाला हीरालाल चुन्नीलाल देरासर, लखनऊ : पू० जै० भाग २, लेखांक १६२२ २२३४. दादाबाड़ी, रिणी : ना० बी०, लेखांक २४६५ २२३५. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०९१ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ (२२३६) लक्ष्मीधर्ममुनि-पादुका सं० १९१४ रा० मि० जे० सु० ५ दिने पं० प्र० लक्ष्मीधर्ममुनिनां पादुका स्थापितमस्ति। (२२३७) सम्भवनाथः सं० १९१४ रा वर्षे । मि आषाढ़ सुदि १० तिथौ बुधवासरे श्रीसंभवजिनबिंबं प्रति। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे । (२२३८) सुमतिनाथः संव। १९१४ रा वर्षे मिती आषाढ़ सुदि १० तिथौ बुधवासरे श्रीसुमतिनाथजिनबिंबं प्रति। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे। (२२३९) मुनिसुव्रतः ॥संवत् १९१४ रा वर्षे मिति आषाढ़ सुदि १० तिथौ बुधवासरे श्रीमुनिसुव्रतजिनबिंबं प्रति०............ (२२४० ) पार्श्वनाथः संवत् १९१४ रा वर्षे मिति अषाढ़ सुदि १० तिथौ बुधवासरे श्रीपारसनाथजिन... श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः श्रीमबृहत्खरतरगच्छे॥ • (२२४१) महावीरः ॥ संवत् १९१४ रा वर्षे । मि। आषाढ़ सुदि १० तिथौ बुधवासरे श्रीमहावीरजिनबिंबं प्रतिष्ठितं । भ० श्रीजिन.. (२२४२) जिनदत्तसूरि-पादुका (रौप्य) श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका...लू.. । पदमश्रीकारापितं प्र। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः (सं० १९१४ ?) - (२२४३) पार्श्वनाथ: सं० १९१५ माघ सुदि। २ शनौ श्रीपार्श्वजिनबिंबं भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र। ढिघ सा। लालचंदेन का। खरतरगच्छे। २२३६. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २०९० २२३७. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ४९ २२३८. चिंतामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ३० २२३९. श्रीपार्श्वनाथ जी का मंदिर, भीनासर : ना० बी०, लेखांक २१८८ २२४०. पद्मप्रभ जी का मंदिर, नाल : ना० बी०, लेखांक २२७५ २२४१. पार्श्वनाथ जिनालय, भीनासर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१८६ २२४२. सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५७५ २२४३. पार्श्वनाथ जिनालय, सूरतगढ़ : ना० बी०, लेखांक २५२० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: ३९१) For Personal & Private Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२४४) चन्द्रप्रभः सं० १९१६ मि। वै। शु ४ चंद्रप्रभबिंबं। श्रीसौभाग्यसूरिभिः प्र। बाई चौथां का० । खरतरगच्छे । (२२४५) भित्तिकालेखः संवत् १९१६ माधवमासे शुक्लपक्षे सप्तम्यां चन्द्रवासरे श्रीऋषभजिनप्रासादं ओसवालवंशे पहलावतगोत्रीय लाला सदानंदजी तदात्मज लाला गुलाबरायेन कारापितं प्रतिष्ठितं च बृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिनकल्याणसूरिभिः श्रीजिनजयशेखरसूरिपदस्थितैः श्रीरस्तु। कल्याणमस्तु। (२२४६) ऋषभदेवः सं० १९१६ मि। वैशाख सुदि ७ दिने श्रीऋषभजिनबिंबं । भ। जं । यु। प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र। श्रीदेशणोक आथमणा वास वास्तव्य श्रीसंघेन कारापितं च श्रीमबृहत्खरतरगच्छे श्रीविक्रमपुर मध्ये॥ श्रीः॥ (२२४७) ऋषभदेवः सं० १९१६ मि।वै। सु।७ श्रीऋषभजिनबिंबं भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र। गो। सा। गंभीरचंदेन का। श्रीबृहत्खरतरगच्छे॥ (२२४८) आदिनाथः सं० १९१६ मि० वै० सु० ७ श्रीऋषभजिनबिंबं प्र० जिनसौभाग्यसूरि (२२४९ ) अजितनाथः सं० १९१६ मि। वै। सु।७ अजितजिनबिंब.... (२२५०) सुमतिनाथः सं० १९१६ मि। वैशाख सुदि ७ दिने श्रीसुमतिजिनबिंबं भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र। पा। सा। भैरूदानजी कारापितं च बृहत्खरतरगच्छे (२२५१) सुमतिनाथ: सं० १९१६ मि० वै० सु० ७ सुमतिजिनबिंबं भ० श्रीजिनसौभाग्सूरिभिः प्र। .............। २२४४. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७३१ २२४५. ऋषभदेव जिनालय, लखनऊ : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५८७ २२४६. शांतिनाथ जिनालय, भूरों का वास, देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२३३ २२४७. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८६१ २२४८. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७३६ २२४९. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, भीनासर : ना० बी०, लेखांक २१८५ २२५०. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८६२ २२५१. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९२४ (३९२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२५२ ) सुपार्श्वनाथः सं० १९१६ मि। वै। सु ७ सुपार्श्वजिनबिंबं भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र० का । सा. ( २२५३ ) चन्द्रप्रभः सं० १९१६ । सु । ७ चंद्रप्रभबिंबं प्र । श्रीजिनसौभाग्यसूरि.. ( २२५४) विमलनाथ: सं० १९१६ मि । वै। सु । ७ श्रीविमलजिनबिंबं भ ( २२५५ ) शांतिनाथ: सं० १९१६ मि । वै । सु । ७ श्रीशांतिनाथबिंबं भ । श्रीजि ( २२५६ ) अरनाथः सं० १९१६ मि० । वै। सु । ७ श्रीअरनाथजिनबिंबं भ । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र । बाई मद्दैकुमर कारा० श्रीबृहत्खरतरगच्छे ॥ ( २२५७) मल्लिनाथ: सं० १९१६ मि। वै। सु। ७ श्रीमल्लिजिनबिंबं भ । (२२५८ ) मुनिसुव्रतः : सं० १९१६ मि । वै । सु । ७ श्रीमुनिसुव्रतबिंबं भ । जं । ( २२५९ ) नमिनाथ: सं० १९१६ वै० सु० ७ नमिजिनबिंबं भ । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र । बाई चुनी खरतरगच्छे ( २२६० ) नमिनाथ: सं० १९१६ वै० सु० ७ नमिजिन ( २२६१ ) नेमिनाथ: सं० १९९६ मि । वै । सु । ७ श्रीनमिजिनबिंबं भ । २२५२. गौड़ी पार्श्वनाथ मंदिर, गोगा दरवाजा, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १९२३ २२५३. कुंथुनाथ जिनालय, रांगड़ीचौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६८५ २२५४. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, भीनासर : ना० बी०, लेखांक २१८९ २२५५ : पार्श्वनाथ जी का मंदिर, भीनासर : ना० बी०, लेखांक २१८७ २२५६. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १८६७ २२५७. श्रीपार्श्वनाथ जी का मंदिर, भीनासर : ना० बी०, लेखांक २१९० २२५८. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, भीनासर : ना० बी०, लेखांक २१८४ २२५९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक ३१ २२६०. सुपार्श्वनाथ का मंदिर, (नाहटों में), बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७४१ २२६१. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, भीनासर : ना० बी०, लेखांक २१९१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : ..ते श्रीसंघेन । For Personal & Private Use Only (३९३) Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२६२) नेमिनाथः सं० १९१६ मि। वै। सु। ७ श्रीनेमिजिनबिंब भ .. (२२६३) पार्श्वनाथः सं० १९१६ मि। वै। सु ७ पार्श्वजिनबिंबं। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः ( २२६४) पार्श्वनाथः सं० १९१६ मि० वै० सं० ७ श्रीपार्श्वजिनबिंब .. (२२६५) पार्श्वनाथः सं० १९१६ मि० वै० सु० ७ पार्श्वजिनबिंबं......" (२२६६) जिनकुशलसूरि-पादुका-रौप्य ॥ सं० १९१६ ॥ श्रीजिनकुशलसूरीणां ॥ (२२६७) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १९१७ रा वर्षे १७८२ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे माधवमासे कृष्णपक्षे नवमी ९ तिथौ शनिवारे महाराजाधिराज महारावलजी श्रीरणजीतसिंघजी विजयराज्ये श्रीजैसलमेरुणा बृहत्खरतरभट्टारकगच्छेन श्रीसंघेन श्रीअमरसागर मध्ये श्रीजिनकुशलसूरि सद्गुरूणां शाला स्थंभ पादुका कारापितं श्रीजिनमहेन्द्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः। धर्मराज्ये श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां पं० । पद्महंसमुनि तत् शिष्य पं० । साहिबचंद्र मुनि प्रतिष्ठितं उपदेशात् पं० अगरचंदमुनि। भद्रं भूयात् ।। ___ (२२६८) पादुका-चतुष्टय सं० १९१७ मिति माघ सुदि ५ वार शुक्र ॥ जं। यु।प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी विजयराज्ये। उ। श्रीआणंदवल्लभगणि तत् शिष्य पं। सदालाभ प्रतिष्ठितं॥ (१) जं। यु। भ। श्रीजिनकुशलसूरि चरणन्यासः (२) जं। यु। भ। श्रीजिनचंद्रसूरिजी चरणन्यासः (३) जं। यु। भ। श्रीजिनजयशेखरसूरिजी चरणन्यासः (४) जं। यु। भ। श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिजी चरणन्यासः बाबू श्री ज्वालानाथजी तद्भार्या मनाबीबी तत्पुत्र चि बाबू श्री भैरूं प्रसाद जी कारापितं ॥ २२६२. सुपार्श्वनाथ मंदिर, (नाहटों में), बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७३७ २२६३. अजितनाथ मंदिर, नागपुरः । २२६४. सुपार्श्वनाथ मंदिर (नाहटों में), बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७३८ २२६५. सुपार्श्वनाथ मंदिर, नाहटों में बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७३५ २२६६. पंचायती, जयपुर : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५८९ २२६७. हिम्मतराम बाफणा का मंदिर, अमरसागर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५४२ २२६८. दादाबाड़ी नं० २, मधुवन सम्मेतशिखरः भँवर० (३९४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२६९) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १९१७ मिते। माघ सुदि ५ शुक्रवारे कलकत्ता वास्तव्य जुहरी श्रीज्वालानाथजी तद्भार्या मुनीबीबी तयो पुत्र भैरूंप्रसादजी कारापितं । उ। श्री आणंदवल्लभगणि शिष्य पं । सदालाभ प्रतिष्ठितं ॥ जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनकुशलसूरिजी चरणन्यासः (२२७०) लाभशेखर-पादुका सं० १९१७ मि । फागण वदि ८ दिने श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां पं । प्र। लाभशेखर मुनिनां पादुके। भ। जं। यु। प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र। ___ (२२७१) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १९१७ मि। फा। व। ८ दिने भ। श्रीजिनकुशलसूरिपादुके सूरतगढ़ वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन का। जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र। (२२७२ ) आदिनाथ-परिकरः सं० १९१७ फागुण शीत २ बुधे श्रीआदिजिनपरिकरं कारितं पांचालदेशे कांपिलपुरे प्रतिष्ठितं । श्रीभट्टारकबृहत्खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनअक्षयसूरिपट्टस्थित श्रीजिनचंद्रसूरिपदकजलयलीन विनेय श्रीजिननंदीवर्धनसूरिभिः उसवंशे पहलावतगोत्रे लालाजी श्रीसहानंदजी तत्पुत्र लाला श्रीसदानंदजी तत्पुत्र लाला गुलाबरायजी तद्भार्या जुन्नू बीबी तेन कारितं प्रमोदेन। (२२७३) अभिनन्दनः अभिनंदनजिनबिंबं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतर................जं । यु।प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः श्रीबीकानेर. (२२७४) सुपार्श्वनाथः सुपार्श्वजिनबिंब प्रतिष्ठितं च श्रीमबृहत्खरतरगच्छे जं० यु० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः कारापितं च को। श्रीपांचेलालजी।.. (२२७५) श्रेयांसनाथ: श्रीश्रेयांसजिनबिंबं प्रतिष्ठितं च श्रीमबृहत्खरतरगच्छे। जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बीकानेर २२६९. सुपार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : भँवर० २२७०. पार्श्वनाथ जिनालय, सूरतगढ़ : ना० बी०, लेखांक २५२५ २२७१. पार्श्वनाथ जिनालय, सूरतगढ़ : ना० बी०, लेखांक २५२४ २२७२. ऋषभदेव जिनालय, सहादतगंज लखनऊ: पू० जै० भाग १, लेखांक १६३० २२७३. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक १७३० २२७४. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर : ना० बी०,लेखांक १७४९ २२७५. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७५२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२७६) श्रेयांसनाथ: श्री श्रेयांसजिनबिंबं प्रति । भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभि: कारा. (२२७७) धर्मनाथ: श्रीधर्मनाथजिनबिंबं । प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छेश जं । यु । प्र । भ० श्रीजिनहर्षसूरिपट्टालंकार । जं । यु । प्र । भ श्रीजिन. (२२७८ ) मल्लिनाथ श्रीमल्लिनाथजिनबिबं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे जं । यु । प्र । भ । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः श्री बीकानेर... २२७९ ) सप्तफणा - पार्श्वनाथ: श्रीबीकानेर नगरे। बृहत्खरतरभट्टारकगच्छेश। जं । यु । प्र । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं च । सुश्रावक । पू । श्रीलछमणदासजी कारापितं स्वश्रेयोर्थं सं० १९. ( २२८० ) श्यामपाषाणमूर्तिः ..आषा० सुदि... श्रीजिनसौभाग्यसूरि ( २२८१ ) आदिनाथः सं० १९१८ शाके १७०३ मिती आषाढ़ कृष्ण २ सोमे श्रीऋषभदेवजिनबिंबं प्रतिष्ठा कृता बृहत्खरतरभट्टारकगणेश जं० यु० प्रधान श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारिता च नाहटागोत्रीय लक्ष्मीचन्द्रात्मज फूलचन्द्र श्रेयोर्थमिति । ( २२८२) महावीरः संवत् १९१८ शाके १७८३ मिति आषाढ़ कृष्ण २ सोमे श्रीवर्धमानजिनबिंबं प्रतिष्ठा कृता बृहत्खरतरभट्टारकगणेश जं० यु० प्र० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारिता च नाहटागोत्रीय लक्ष्मीचंद्र पौत्र मनोहरचंद्र श्रेयोर्थमिति । (२२८३) सिद्धचक्रयंत्रम् सं० १९१८ आषाढ़ कृष्ण २ सोमे श्रीसिद्धचक्रं प्रतिष्ठितं जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं च नाहटागोत्रीय लक्ष्मीचंद्रात्मज दीपचन्देन स्वहितार्थं । २२७६. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७४२ २२७७. सुपार्श्वनाथ जिनालय, उदासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१७१ २२७८. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७५१ २२७९. चिंतामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९ २२८०. कुंथुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६८३ २२८१. शिखरचन्द जी का मन्दिर, बनारस: पू० जै०, भाग २, लेखांक १८६८ २२८२. शिखरचन्द जी का मन्दिर, बनारसः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८६७ २२८३. शिखरचन्द जी का मन्दिर, बनारस: पू० जै०, भाग २, लेखांक १८७२ (३९६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२८४) जिनकुशलसूरि- पादुका - रौप्यमय ॥ सं० १९९८ माघ सुदि ५ । चं । श्रीजिनकुशलसूरिसद्गुरूणां चरणकमल उशवंशोद्भव चोपड़ा हुकुमचंद्रेण कारापितं प्रतिष्ठितं च । बृ । भ । श्रीजिनकल्याणसूरिभिः ॥ (२२८५) अमृतवर्धन - पादुका सं० १९९८ मिती फागण सुदि ७ स प्रतिष्ठापितश्च श्रीदानसागरमुनिना श्री श्री अमृतवर्द्धनजित्मुनेश्चरणन्यासः कारापितः (२२८६ ) जिनसौभाग्सूरि-पादुका सं० १९९८ वर्षे शाके १७८३ प्रवर्त्तमाने मि० फाल्गुन शुक्ले ८ अष्टम्यां तिथौ रविवासरे श्रीविक्रमपुरवास्तव्य श्रीसंघेन जं० युग० भ० श्रीजिनहर्षसूरीश्वर पट्टालंकार युग० भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरीणां पादुके कारापिते प्रतिष्ठिते च श्री जं० यु० भ० श्रीजिनहंससूरिभिः श्रीबृहत्खरतरभट्टारकगच्छे समस्त श्रीसंघसदा प्रणमति । (२२८७ ) काष्ठपट्टिकालेखः सं० १९१९ रा वर्षे शाके १७८४ प्रवर्त्तमाने वैशाख सुदि सप्तम्यां ७ तिथौ इन्दुवारे तद्दिन श्रीसूरतगढ़ वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन श्रीपार्श्वनाथचैत्यं कारापितं भ । जं । यु । प्र । श्रीजिनहंससूरिभिः प्रतिष्ठितं पं । प्र । लाभशेखर पं । राजसोम उपदेशात् ॥ 1 ( २२८८ ) शिलालेखः सं० १९१९ रा मिती मिगसर सुदि ३ दिने । जं० यु० प्र० भट्टारक बृहत्खरतरगच्छे वर्त्तमान भ । श्रीजिनहंससूरिवराः सपरिकरा : श्रीबीकानेर सुं विहारी ग्रामानुग्राम बंदावी। श्रीसरदारशहर बड़ोपल हनुमानगढ़ टीवी खड़ियाला राणिया सरसा नौहर भादरा राजगढ़ श्रीजीमहाराज पधार्या संवत् १९२०रा मि वैशा० सुद ६ श्रीसंघ हाकम कोचर मुँहता श्रीफतेचन्दजी कालूरामजी बड़ेहगांम सुं नगारो नीसाण घोड़ा प्रमुख इसदी आदि देकर सामेलो कीयो श्रीसाधु साथे बिहार में० वा० नंदरामजी गणि पं० प्र० चिमनीरामजी आदेशी पं० प्र० देवरामजी मुनि पं० प्र० आसकरणजी मुनि पं० प्र० रुघजी मुनि राजसुखजी पं० प्र० लछमणजी गणि पं० गोपीजी मुनि पं० हीरोजी पं० प्र० केवलजी मुनि पं० प्र० शिवलाल मुनि पं० प० अबीरजी मुनि पं० प्र० गुलाबजी वा० बुधजी ठा० १ पं० हिमतु मुनि पं० गुमान श्री राहसरीयो पं० सोमो पं० रुघलो पं० सुगणानन्द पं० बनोजी चिरं सदासुख चि० बींझो ठाणे ४१ साधु सर्व... पं० प्र० कचरमल्ल मुनि महाराज के साथ आदमी प्यादल रथ १ चपरासी हलकारे राजरो पौरो १ छड़ी छड़ीदार सेवग सुगणो चांदी री छड़ी १ सेवग बारीदार चौथूजी बिरधो नाइ २ नवलो मुलतानो दरजी ......तिनतस संवत् १९२० दीक्षा महोच्छव साधु २ योनै मि वै० सुद १० दिन भई बणारस पं०नि० बै० सु० १३ राजगढ़ में खमासण ७ मिठाई ४ सीरे २२८४. पंचायती मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ५९१ २२८५. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०४२ २२८६. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०९७ २२८७. पार्श्वनाथ जिनालय, सूरतगढ़: ना० बी०, लेखांक २५२१ २२८८. सुपार्श्वनाथ जिनालय, राजगढ़-शार्दूलपुर: ना० बी०, लेखांक २४३८ ( खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (३९७) Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ री ३ लूदीबास में १ मि० जेठ बदी ३ दिने रिणी नै बिहार को सतरभेदी पूजा हुई मि० जे० ब० २ नव अंगी ७ पं० प्र० चीमनीरामजी पं०........मुजमानी ११ भेट भई बेगार ऊंठ २५ । ___ (२२८९) जिनकुशलसूरि-पादुका (रौप्य) सं० १९२० वै। सु। ५ गु। चौपड़ा कोठारीगोत्रीय हुकमचंद तत्पुत्र लक्ष्मीचंद तेन श्रीजिनकुशलसूरीणां चरणपंकज कारितं प्र। श्रीजिनकल्याणसूरि (२२९० ) पार्श्वनाथः सं० १९२० शा १७८५ प्र। मा। मिगसरमासे कृष्णपक्षे तिथौ ५ गुरुवासरे। श्रीपार्श्वप्रभुबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतराचार्यगच्छे जं। यु। प्र। भट्टारक श्रीजिनहेमसूरिभिः। (२२९१) शिलापट्ट-प्रशस्ति श्रीजैनेन्द्रदेवो विजयते॥ स्वस्ति श्रीऋषभादिवर्द्धमानान्ता जिनाः शान्ताः शांतिकराः भवन्तु श्रीवृद्धिमंगलाभ्युदयश्च । श्रीवृन्दावत्यां नगर्या श्रीदीवाण राजराजेश्वर महाराजाधिराज महाराजाजी श्रीरामसिंहजी महाराजकुमार श्रीभीमसिंहजी विजयराज्ये श्रीमन्नृपति विक्रमादित्यसमयात् संवत्सरे खंनयनांकेन्दुमिते (१९२०) प्रवर्त्तमाने शाके ज्ञानसिद्धिमुनिचंद्रप्रमिते (१७८५) मासोत्तममासे माघमासे शुभे शुक्लपक्षे गुणेन्दुमितायां कर्मवाट्यां शनिवारे शुभमुहूर्ते श्रीऋषभजिनेन्द्रप्रासादः श्रीबृहखरतरभट्टारकगच्छे जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिजित् सूरीश्वराणां पट्टे सहस्रकिरणावतार भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिगुरुराजानां पट्टालंकार जंगमयुगप्रधान वर्तमानभट्टारक श्रीजिनमुक्तिसूरिवरैः प्रतिष्ठितं कारापितं, ओसवालज्ञातीय बहुफणागोत्रे संघवी बाहदरमल्लजी तत्पुत्र दानमल्ल हमीरमल्ल राजमल्लेन श्रेयो) स्वद्रव्येण श्रीजिनप्रासादं कारापितं श्रीगुरु उपदेशात् ॥ श्रीः॥ (२२९२) आदिनाथ-मूलनायकः संव्वत् १९२० शाके १७८५ प्र। वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ ऋषभजिनस्वामिबिंब कारितं। श्रीसंघेन । प्रतिष्ठितं । खरतरबृहद्भट्टारकगच्छे श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः। बाफणा संघवी बहादुरमल्ल दानमल्लेन स्वकारिता चैत्ये श्री..............वृन्दावत्यां नगर्या कारापिते। (२२९३) आदिनाथ: ॥ संव्वत् १९२० शाके १७८५ माघमासे शुक्लपक्षे १३ श्रीऋषभजिनबिंबं प्रतिष्ठितं बृहखरतरगच्छाधीश श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं पीस्सांगणस्थ समस्तश्रीसंघेन श्रीबूंदीनगरे महाराजाधिराज श्रीरामसिंहजी विजयराज्ये॥ २२८९. पंचायती मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०० २२९०. सुपार्श्वनाथ जिनालय, उदासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१७३ २२९१. सेठ जी का मंदिर, बूंदी : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०१ २२९२. सेठ जी का मंदिर बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०७ २२९३. सेठ जी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०४ (३९८) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२९४) आदिनाथ: ॥ सं० १९२० मा । शु। १३ ऋषभजिनबिंबं प्र० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः ॥ ( २२९५ ) पार्श्वनाथ: संव्वत् १९२० वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ श्रीपार्श्वजिनबिंबं प्रतिष्ठितं भ० । श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः ॥ का। समस्त श्रीसंघेन । श्रीखरतर भट्टारक । ( २२९६ ) पार्श्वनाथ: ॥ संव्वत् १९२० वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ पार्श्वजिनबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीवृंदावत्यां नगर्याम्॥ (२२९७ ) पार्श्वनाथ - एकतीर्थी :- रौप्यमय ॥ सं० १९२० मि । मा । सु । १३ प्र० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः । का। सं । श्रीबाहादरमल्ल दानमल्लेन ॥ ( २२९८ ) महावीरः ॥ संव्वत् १९२० वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ श्रीवर्द्धमानजिनबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं श्रीसंघेन श्रीवृन्दावत्यां नगर्यां ॥ बृ । खरतरगच्छे॥ ( २२९९ ) सीमंधर-पादुका : संवत् १९२० शाके १७८५ मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां कर्मवाट्यां श्रीसीमंधरजिनचरणयुगं प्रतिष्ठितं बृहद्खरतरगच्छेश श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः । कारितं । सं। बा। श्रीदानमल्ल हम्मीरमल्ल राजमल्लादिभिः श्रीबूंदीनगरे रावराजा.... .. महाराजाधिराज श्रीरामसिंघविजयराज्ये । श्रीरस्तु । ( २३०० ) चन्द्राननः ॥ सं० १९२० । माघ। सु । १३ श्रीचन्द्राननजिनबिंबं प्र० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः ॥ ( २३०१ ) सीमंधर-स्वर्ण-पादुका श्रीसीमंधरस्वामिपादुकामिदं ॥ बाफणा श्रीबाहादरमल्लजी तत्पुत्र संघवी दानमल्ल कारापितं श्रेयोर्थं प्रतिष्ठितं । पं । प्र । हर्षकल्याण २२९४. सेठ जी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६१६ २२९५. सेठ जी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०३ २२९६. सेठ जी का मंदिर, बूंदी : प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६१८ २२९७. सेठ जी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०६ २२९८. सेठ जी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०५ २२९९. सेठ जी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०८ २३००. सेठ जी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६१७ २३०१. सेठ जी का घर देरासर, कोटा: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६१३ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (३९९) Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३०२) पट्टोपरि-ताम्रपत्र ॥संवत् १९२० रा । मि। माघ । शुक्ल १३ प्रतिष्ठितं बृ। खरतरभट्टारकगच्छे श्रीजिनमुक्तिसूरीश्वरैः । का। सं। बा। दानमल्लेन स्वश्रेयोर्थं श्रीरस्तु। (२३०३) ताम्रयंत्रम् ॥ संवत् १९२० माघ शुद्ध प्र० भट्टारक श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः। का। बाफणा संघवी दानमल्ल हमीरमल्ल राजमल्लेन शुभम्। (२३०४) गणेश-मूर्तिः__ संव्वत् १९२० शाके १७७५ मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां कर्मवाट्यां श्रीगणाधिपमूर्ति प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छेश श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं । सं। बा। श्रीदानमल्ल हमीरमल्ल राजमल्ल स्वश्रेयोर्थं । श्रीबूंदीनगरे। ___ (२३०५) जिनमहेन्द्रसूरि-पादुका ॥ संव्वत् १९२० शाके १७८५ प्रमिते माघ शुक्ल त्रयोदश्यां शनौ श्रीबृहत्खरतरभट्टारकेन्द्र श्रीजिनमहेन्द्रसूरिजित्पादयुगं प्र। बृ। भ। श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः का। बा। सं। श्रीदानमल्लेन स्वश्रेयसे॥ (२३०६ ) पूर्वज-पादुका ॥ संवत् १९२० मि। मा। सु। १३। सं। बा। दानमल्ल हमीरमल्लेन कारापितं। प्र। बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीवृन्दावत्यां॥ (२३०७) सं० बहादुरमल-पादुका संव्वत् १९२० शाके १७८५ मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां कर्मवाट्यां । सं। बाफणा श्रीबहादुरमल्लजितश्चरणयुगं कारापितं। सं। बा। श्रीदानमल्ल हमीरमल्ल राजमल्लादिभिः प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छेश श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः सकलसाधुवर्ग-समन्वितं । रावराजा महाराजाधिराज श्रीरामसिंघजी विजयराज्ये श्रीरस्तु॥ (२३०८) चतुरकुंवर-पादुका ॥ संव्वत् १९२० शाके १७८५ वर्षे माघ शुक्ल १३ कर्मवाट्यां प्रतिष्ठितं श्रीजिनमुक्तिसूरिभि।सं। बाई चतुरकुंवरपादुकाः कारापितं । बा । सं। श्रीदानमल्लेन हमीरमल्लेन श्रीवृन्दावत्यां नगर्या स्वश्रेयोर्थम्। २३०२. सेठ जी का घर देरासर, कोटा: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६१५ २३०३. सेठजी का घर देरासर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६१४ २३०४. सेठ जी का मंदिरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०९ २३०५. सेठ जी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६११ २३०६. सेठ जी का घर देरासर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६१२ २३०७. सेठ जी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६१० २३०८. सेठ जी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६०२ (४००) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३०९) अजितनाथः ॥ १९२० मि० फा० कृ० २ बु० दुगड़ प्रतापसिंह भार्या महताबकुंवर अजितप्रभबिंबं का उ० सदालाभगणिना प्र। (२३१०) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १९२० फा० कृ० २ बुधे प्रतापसिंह दूगड़गोत्रे भार्या महताबकुंवर श्रीसुमतिजिन पञ्चतीर्थी का० भ० । सदालाभ गणिना श्रीजि (२३११) मल्लिनाथः सं० १९२० मि० फा० कृ० २ बुधे दुगड़ प्रतापसिंह भार्या महताबकुंवर श्रीमल्लिनाथबिंबं श्रीसदालाभगणिना प्र। श्रीजिनहंससूरिराज्ये। (२३१२).............."नाथः सं० १९२० मि। फा। कृष्णा २ बुधे दुगड़ प्रतापसिंह भार्या महताबकुंवर श्री............जिनबिंब कारितं सदालाभगणिना प्र० श्रीजिनहंससूरिराज्ये (२३१३) महावीर-पञ्चतीर्थीः ___ सं० १९२० मि० फाल्गुन कृ० २ बुधे मारु गो० केशरीचंद भार्या किसनबिबि वीरजिनबिंबं का। जं। यु। भ। श्रीजिनहंससूरिराज्ये उ। स। ग। च। प्रति० (२३१४) प्रियंक-मूर्तिः सं० १९२० मि० फा० कृष्ण २ बुधे दुगड़ प्रतापसिंह भार्या महताबकुंवर श्रीप्रियंकबिंब सदालाभगणिना प्र० श्रीजिनहंससूरिराज्ये। (२३१५) शीतलनाथ: सं० १९२० मि। फा। कृ २ बुधे दुगड़ प्रतापसिंहभार्या महताबकुंवर श्रीबिंबं का। सदालाभगणिना प्र। श्रीजिनहंससूरिराज्ये श्रीशीतलनाथजिन (२३१६) शान्तिनाथः संवत् १९२० फाल्गु सिति २ बुधे श्रीशांतिनाथ पंचालदेशे कापिल्यपुरे प्रतिष्ठितं श्रीमबृहद्भट्टारक खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनअक्षयसूरिपद...............भ० श्रीजिन... २३०९. मूलमंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखरः भँवर २३१०. जैनमंदिर, लछवाड़ः पू० जै० भाग २, लेखांक १७०१ २३११. चन्द्रप्रभ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भंवर० २३१२. मूलमंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर० २३१३. वीर जिनालय, लछवाड़: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६९९ २३१४. चन्द्रप्रभ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर० २३१५. मूलमंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखरः भँवर० २३१६. चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुंबई: ब० चि०, लेखांक ९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (४०१) For Personal & Private Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३१७) जिनदत्तसूरि-पादुका विक्रमात् संवत् १९२१ शाके १७८६ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे द्वादश्यां बुधे लखनेउ पुरोपकंठे ओशवंशे कांकरियागोत्रे लाला रत्नचन्द्रजी तत्पुत्र इन्द्रचन्द्र तत्सुत गोपीचंद्र लक्ष्मीचंद्र क्षेमचंद्र' सहितैः जं। यु। प्र। भट्टारक श्रीजिनदत्तसूरिपादुका कारिता प्रतिष्ठिता च मलधारि पूनिमिया बृहद्विजयगच्छीय श्रीजिनचंद्रसागरसूरिपट्टोदयाद्रिभास्कर श्रीपूज्य श्रीशांतिसागरसूरिभिः । ( २३१८) सिद्धचक्रयंत्रम् संवत् १९२१ मिति आश्विन शुक्ल १५ शनिवारे इदं जंत्रं कारापितं श्रीमालज्ञातौ टांकगोत्रे ज्वालानाथ तत्भार्या मुनीबीबी प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरि तत्शिष्य मुनि पद्मजस उपदेशात् ॥ कल्याणमस्तु॥ __ (२३१९) दादापादुका-युगल सं० १९२१ शाके १७८६ माघमासे शुक्लपक्षे षष्ठ्यां ६ पूर्वं तु मरुदेशे मेडतेति नाम नगरस्थोभूत् अधुना च मुरारि छावण्यां वास्तव्य धाड़ीवालगोत्रीय शंभुमल्ल सुजानमल्लाभ्यां युगप्रधान दादा श्रीजिनदत्तसूरीणां श्रीजिनकुशलसूरीणां च पादन्यासौ कारापितौ प्रतिष्ठितौ च बृ। भ। खरतरगच्छीय श्रीजिनकल्याणसूरिभिः उ० माणिक्यचंद तच्छिष्य पं० हुकुमचंद्रोपदेशात्। . (२३२०) सुमतिनाथः सं० १९२१ माह ॥ सु०।७। गु। श्रीसुमतिजिनबिंब कारितं। श्रीबृहत्खरतरगच्छीय श्रीजिनहंससूरिभिः प्रति....... (२३२१) चन्द्रप्रभः सं० १९२१ माह सुदि ७ गुरु। श्री चंद्रजिनबिंब कारितं । श्रीबृहत्खरतरगच्छीय भ० श्रीजिनहंससूरिभिः प्रति.......। ( २३२२) नेमिनाथः सं० १९२१ शाके १७८६ प्र० माघमासे शुक्लपक्षे ७ तिथौ गुरुवासरे बृहत्खरतर मरुदेशे आसोतरा ग्राम.................. श्रीनेमिनाथ. (२३२३) नेमिनाथः सं० १९२१ मा। सु। ७ गु। श्रीपालि। गोहिल श्रीप्रतापसिंघजी तत्पट्ट राजराजेश्वर महाराजाधिराज २३१७. पार्श्वनाथ मंदिर, लखनऊ: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६१९ २३१८. खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर, तुलापट्टी, कलकत्ता: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३६१ २३१९. दादाबाड़ी, मुरार, ग्वालियर: पू० जै० भाग २, लेखांक १४२५ २३२०. चन्द्रप्रभ जिनालय, शुला बाजार, मद्रास: पू० जै० भाग २, लेखांक २०६७ २३२१. चंद्रप्रभ जिनालय, शुला बाजार, मद्रास: पू० जै० भाग २, लेखांक २०६६ २३२२. मुनिसुव्रत मंदिर, आसोतरा, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ६ २३२३. छीपावसही, शत्रुजय: भँवर० (अप्रका०), लेखांक ६ (४०२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसूरसिंघजी विजयराज्ये श्रीनेमिनाथजिनबिंबं का० प्र० श्रीबृहत्ख। श्रीजिनमहेन्द्रसूरि तत्पट्टालं० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः (२३२४) शिलालेखः ॥ श्रीमजिनेन्द्रो विजयताम्॥ (१) ॥ संव्वत् १९२१ रा वर्षे शाके १७८६ प्रवर्त्तमाने मा(२) सोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे नवम्यां तिथौ (३) शनिवासरे महाराजाधिराज महारावलजी श्री (४) वैरीशालजी विजयराज्ये श्रीजैशलमेरु नयरे (५) बृहत्खरतर भट्टारकगच्छे समस्त श्रीसंघेन श्री (६) गजरूपसागर ऊपर श्रीजिनकुशलसूरि स(७) द्गुरूणां स्थंभ छतरी पादुका कारापितं श्रीजि(८) नमहेन्द्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः (९) धर्मराज्ये श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां पं। प्र। पद्महंस(१०) मुनिः तत्शिष्य उपाध्याय साहिबचन्द्रगणिः पं। अ(११) गरचन्द्रमुनि उपदेशात् आग्रह नागे बाबेरो इ(१२) णि बाबेरी जायगारे पास छे, गाधर आदम बिरामाणी॥ (२३२५) पादुकालेखः संवत् १९२१ शाके सतरे से छासी प्रवर्त्तमाने मासोत्तमासे पुण्यपवित्रमासे माघमासे शुक्लपक्षे तिथौ ज्येष्ठ शुक्ल (?) २ शुक्रे संघनायक संघमुख्य सेठ देवचंद लक्ष्मीचंद तथा जीर्णगढ़ नो संघ समस्त श्रीगिरनार क्षेत्रे मुनी प्रेमचंदजी नी पादुका तलाटी मध्ये थापयत्वात् पं० वल्लभविजे हस्ती शत्कः। श्रीमकसूदाबाद वास्तव्य ओ० । ज्ञा० । वृ० । गोलेच्छागोत्रे शा० धर्मचंदजी तत्पुत्र पूरणचंदजी संवेगी प्रेमचंदजी पादुकाकेन (?) कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे जं० । यु०। प्र० । भ० । श्री श्री श्री १००८ श्रीजिनसौभाग्यसूरीश्वरजी तत्पट्टे जं० । यु० । प्र० । भ० । श्री १००८ श्रीजिनहंससूरीश्वरेण प्रतिष्ठितं च ॥ श्री। __ (२३२६) सं० १९२१ मि। फा। कृष्ण २ बुधे दुगड़ प्रतापसिंह भार्या महताब कुँवर............सदालाभगणि प्रा। श्रीजिनहंससूरिभिः (२३२७) .........."पादुका - सं० १९२१ माघ वदि............... गुरौ श्रीराधाकिरणजी शि० अखैचंदजी. """"""""""नाथः २३२४. दादाजी का स्थान, गजरूपसागर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५९० २३२५. तलेटी मंदिर, गिरनारः सं० भँवर० २३२६. मूलमंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर० २३२७. बेगडगच्छ दादाबाडी, गढ सिवाणाः (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (४०३) For Personal & Private Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३२८) दादापादुका चतुष्टय संवत् १९२२ शाके १७७७ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठ मासे वदि दशमी तिथौ बुधवारे सकल संघेन पुनः श्रीक्षेमकीर्तिशाखायां महोपाध्याय श्रीशिवचंद्रजिद्गणिगजेन्द्राणां शिष्य श्रीरामचंद्र मुनिना...........शिष्य पं० प्रेम(?) चंद्रमोहन युतेन छत्रिकायुक् श्रीखरतरगच्छनायक नवांगवृत्तिविधायक श्रीअभयदेवसूरिजी श्रीजिनदत्तसूरिजी मणिमंडितभाल श्रीजिनचंद्रसूरिजी श्रीजिनकुशलसूरीणां ॥ श्रीगौड़ीजीनां शुभ महामहोत्सवे श्री सद्गुरुचरणानां पादुका श्रीगौड़ीजीना दुखभंजन पार्श्वनाथ (२३२९) अभिनंदनः संवत् १९२२ का। मि। फा० सु० ७ तिथौ श्रीअभिनंदनजिनबिंबं प्र० भ० श्रीजिनहंससूरिभिः। (२३३०) अभयविलास-पादुका सं। १९२३ वर्षे शाके १७८८ प्रवर्त्तमाने वैशाखमासे शुक्लपक्षे अष्टमी तिथौ श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां पं। प्र। श्रीअभयविलासजी मुनि पादुका प्रतिष्ठितं॥ ___ (२३३१) दानविशाल-पादुका ॥सं० १९२३ रा वर्षे शाके १७८८ प्रवर्त्तमाने वैशाखमासे शुक्लपक्षे अष्टमी तिथौ श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां पं । प्र। श्रीदानविशालजी पादुका प्रतिष्ठिता। ____ (२३३२ ) वृद्धिशेखरमुनि-पादुका सं० १९२३ वर्षे मिगसर वदि १२ बृ० ख० ग० श्रीजिनकीर्तिसूरिशाखायां पं० प्र० वृद्धिशेखरमुनि पादुका प्रतिष्ठितं। (२३३३ ) दानशेखरमुनि-पादुका सं० १९२३ वर्षे मि० व० १३ दिने बृ० ख० गच्छे श्रीजिनकीर्तिरत्नसूरिशाखायां पं० प्र० दानशेखरमुनि पादुका प्रतिष्ठितं श्रेयो) । श्री। (२३३४) महिमासेन-पादुका सं० १९२३ का मिती पोह सुद १५ पूर्णिमास्यां तिथौ रविवासरे श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां श्रीमहिमासेन मुनिनां पादुका तत्शिष्य पं० विनयप्रधान मुनि प्रतिष्ठापितं श्रीरस्तु कल्याणमस्तु शुभं भूयात् २३२८. मक्सीजी तीर्थ: भँवर० (अप्रका०) २३२९. गोलेछों का मंदिर, सरदारशहर: ना० बी०, लेखांक २३८९ २३३०. शालााओं के लेख, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३०३ २३३१. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३०२ २३३२. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०५८ २३३३. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०८७ २३३४. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०८५ (४०४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३३५) शिलापट्टलेखः सं० १९२३ रा मिती फाल्गुण वदि ७ सप्तम्यां...............श्रीबृहत्खरतर...................धान श्रीजिनहंससूरिजी विजयराज्ये उ। म। श्रीदेवचंद दानसागर गणीजी उपदेशात् सुराणा गोत्रीय सुश्रावक धर्मचंद................वी सेठीया गोत्रीय गंगारामस्यांगजा सुश्राविका लाभकँवर बाई श्रीऋषभदेव महाराजस्य जिनबिंबं स्थापितम स्वस्य कल्याणाय (२३३६) आदिजिन-पादुका ॥ सं। १९२४ वैशाख सु। १३ सोमे श्रीमकसुदाबादवास्तव्य उ। वृ। शा। नाहटागोत्रे सा। पनजी तस्य भार्या............ श्रीआदिजिनपादुका स्थापितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे जं। यु।प्र। भट्टा । श्रीजिनसौभाग्यसूरीश्वर तत्पट्टे श्रीजिनहंससूरि भ। विजयराज्ये खेमशाखायां पं । प्र। श्रीदेवचंदजी तत्शिष्य पं। हीराचंदजी तत्शिष्य पं। हेमचंद्रेण प्रतिष्ठितं च श्रीपालीतणा नगरे गोहेल श्रीप्रतापसिंहजी तत्पट्टे राजराजेश्वर महाराज श्रीसूरसिंहजी (२३३७) उपाश्रयलेखः अथ शुभाब्दे १९२४ शाके १७७९ चैतन्मिते ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे पंचम्यां तिथौ गुरुवासरे श्रीबृहत्खरतरगच्छे। जं। यु। भ। प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरीश्वराणामाज्ञया श्री। कीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां उ। श्रीअमृतसुन्दरगणिस्तच्छिष्य वा। श्रीजयकीर्त्तिगणिस्तच्छिष्य पं० प्र० प्रतापसौभाग्यमुनिस्तदंतेवासिना पं० प्र० सुमतिविशालमुनिनाऽयं शुभोपाश्रयः कारितः पं० समुद्रसोमादि हेतवे ॥ बीकानेरपुराधीशः राजेश्वरः शिरोमणिः श्रीसरदारसिंहाख्यो नृपो विजयतेतराम् १ यावन्मेरुर्महीमध्ये चाम्बरे शशिभास्करौ। तावत्साध्वालयश्चेषश्चिरं तिष्ठतु शर्मदः २ । कारीगर सूत्रधार । भीखाराम। श्री (२३३८) पाषाण-पट्टिका संवत् १९२४ रा मिती आषाढ़ सुदि १० बृहस्पतिवार दिने जं। यु।प्र। श्रीजिनहंससूरिजी विजयराज्ये पं० प्र० विद्याविशाल मुनि तशिष्य पं० लक्ष्मीप्रधान मुनि उपदेशात् समस्त श्रीसंघेन कारापितं । __ (२३३९) कुण्डोपरिलेखः (१) ॥ श्रीबीकानेर तथा पूर्व बंगाला तथा कामरू देश (२) आसाम का श्रीसंघ के पास प्रेरणा करके रूपी(३) या भेला करके कुंड तथा आगोर की नहर बना(४) या सुश्रावक पुण्यप्रभाविक देव गुरुभक्ति(५) कारक गुरुदेव के भक्त चोरडियागोत्रे सीपाणी (६) चनीलाल रावतमलाणी सिरदारमल का पो (७) ता सिंघीया की गुवाड़ में वसंता मायसिंघ मेघ२३३५. आदिनाथ जिनालय, गोगादरवाजा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९५६ २३३६. खरतरवसही, शत्रुजय, वर० (अप्रका०), लेखांक ४४ २३३७. उपाश्रय का शिलालेख, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २५४७ २३३८. चिंतामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२ २३३९. नमिनाथ जिनालय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ११९६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (४०५) For Personal & Private Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) राज कोठारी चोपड़ा मकसुदाबाद अजीम(९) गंज वाले का गुमास्ता और कुंड के ऊपर दाट इ(१०)केला बखतावरचंद सेठी बनाया। सं० १९२४ (११)शाके १७८९ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे भाद्रव (१२)मासे शुक्लपक्षे पंचम्यां तिथौ भोमवासरे॥ (२३४० ) जीर्णोद्धार-शिलालेखः सं० १९२४ मिति माघ कृष्ण ५ भौमे गुणशीलचैत्ये दूगडगोत्रे श्रीप्रतापसिंहजी तत्भार्या महताबकुंवर तद्पुत्र चिरू रायबहादुर तत्प्रथम पत्नी प्राणकुंवर जन्मसाफल्य कारापिता जीर्णोद्धारं । उ० श्रीआणंदवल्लभगणि तशिष्य उ० श्रीसागरचंदगणि उपदेशात् ।। श्रीः॥ शुभं भूयात् ॥ ___ (२३४१ ) आदिनाथ-पादुका संवत् १९२४ मिति माघ कृष्ण ५ भौमे श्रीगुणशिलाख्ये चैत्ये श्रीदूगड़ प्रतापसिंहजीत्कानां भार्या महताबकुंवर तत्कुक्षितोत्पन्न कनिष्ठ पुत्र श्रीराय धनपतसिंह बहादुर नाम्ना स्वपत्नी प्राणकुंवर जन्मसफलीकरणार्थं श्री अष्टापदतीर्थं श्रीशचंजयनिर्वाणलाभतया श्रीआदिजिनचरणपादुका कारापिता श्रीजिनभक्तिसूरिशाखायां उ० सदालाभगणिना प्रतिष्ठितं शुभम् (२३४२) ज्ञानमाला-पादुका संवत् १९२४ वर्षे शाके १७८९ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे सप्तम्यां भृगुवासरे जं। युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं सा। ज्ञानमाला पादुका। कारापितं सा। चनणश्री श्रीबृहत्खरतराचार्यगच्छे श्रीविक्रमपुर मध्ये श्रीरस्तु कल्याणमस्तु॥ (२३४३) शिलालेखः (१) ॥ सं० १९२४ वर्षे शाके १७८९ प्रवर्त्तमाने (२) मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे तिथौ अ(३) ष्टम्यां श्रीमद्धृहत्खरतरगच्छे जं० यु० प्र० भ० (४) श्री १०८ श्रीजिनहंससूरिजी सूरीश्वरान् (५) श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां उ० श्री १०८ अ(६) मृतसुंदरगणि तत्शिष्य वा० जयकीर्त्ति ग(७) णि तत्शिष्य पं० प्र० प्रतापसौभाग्यमुनिस्तदं(८) तेवासी पं। सुमतिविशालमुनिस्दंते(९) वासी पं० समुद्रसौम्य कारिता श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रस्य (१०)मंदिरं प्रतिष्ठितं च बीकानेरपुराधीश राजराजेश्वर शिरोमणि श्रीसरदारसिंहाख्यो नृपो विजयतेतराम्। २३४०. महावीर मंदिर, गुणायाः जै० ती० स० सं०, भाग २, पृ० ४४४, लेखांक १७९; पू० जै, भाग १, लेखांक १७९ २३४१. गुणायाजी तीर्थं: पू० जै० भाग १, लेखांक १७७ २३४२. खरतरगच्छीय शाला, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३११ २३४३. श्रीपार्श्वनाथ सेदू जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९७५ (४०६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३४४) जीर्णोद्धार-लेखः संवत् १९२४ शाके १७८९ माघमासे शुभे शुक्लपक्षे दशम्यां तिथौ रविवासरे दादाजी श्रीजिनकुशलसूरि जिच्चरणकमलन्यास उद्धार कारापितं श्रीसंघेन श्रीबृहत्खरतरगच्छीय जं। प्र० । भ। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्री॥ कल्याणनिधानगणिः उपदेशात् शुभं॥ (२३४५) सुमतिनाथः संवत् १९२४ माघ सुदि १३ गुरौ सुमतिजिनबिंबं कारितं श्रीमाल छम...................जी भावसिंघ.......... (२३४६) नवपद ॥ संवत् १९२५ मिति ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया तिथौ रविासरे दूगड़गोत्रे श्रीप्रतापसिंहजी तद्भार्या महताबकुंवर तत्पुत्र राय लक्ष्मीपत्तसिंघ बहादुर तत् लघुभ्राता राय धनपतसिंघ बहादुर तत्पत्नी प्राणकुंवर जन्मसफलीकरणार्थं । जं। यु० । प्र० श्रीजिनहंससूरिजी विजयराज्ये॥ उ० श्रीआनंदवल्लभगणि तशिष्य उ० श्री सदालाभगणि प्रतिष्ठिता ॥ पूज्याचार्य श्रीरतनचंद्रसूरि लुंपकगच्छे ॥ श्रीः॥ कल्याणमस्तु॥ श्रीनवपदजी श्रीचंपापूरीजी स्थापिताः ॥ श्रीः॥ (२३४७) वृद्धिचन्द्र-पादुका सं० १९२५ रा मिती शाके १७९० मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे पंचम्यां तिथौ चंद्रवासरे उ० मतिमंदिरकस्य शिष्य पं० वृद्धिचंद्रेण पादुका कारापिता भ० श्रीजिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं । (२३४८) वासुपूज्य-पादुका (१) सं० । १९२५ फा० कृष्ण ५ बुधवासरे श्रीचंपापुरे तीर्थ श्रीवासुपूज्यजी (२) पंच कल्याणकचरणन्यास मकसुदाबादवास्तव्य दुगड़ साः प्रतापसिंह (३) भार्या महताबकुंवर ज्येष्ठसुत लक्ष्मीपतस्य कनिष्ठभ्रात धनपतसिंह (४) कारापितं प्रतिष्ठितं भः श्रीजिनहंससूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे॥ (२३४९) वासुपूज्य-पादुका श्रीवासुपूज्यजी जन्म कल्याणक। सं० १९२५ मिः फाल्गुन कृष्ण ५ तिथौ दूगड़ श्रीप्रतापसिंहजी तत्पुत्र राय लक्ष्मीपतसिंघ बहादुर तत्भ्रात्र श्रीधनपत्तसिंघ बहादुर कारापितं जं०। यु०। प्र०। भ० । श्रीजिनहंससूरिजी विजयराज्ये ॥ उ० श्रीसागरचंदगणि प्रतिष्ठितं ॥ शुभंभूयात्। २३४४. चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुंबई: ब० चि०, लेखांक ३१ २३४५. चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर, मुंबई: ब० चि०, लेखांक १८ २३४६. चम्पापुरी तीर्थः पू० जै०, भाग १, लेखांक १४९ २३४७. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २११३ २३४८. टौक मंदिर, सम्मेतशिखर: पू० जै० भाग २, लेखांक १८१० २३४९. जैनमंदिर, चम्पापुरी: पू० जै०, भाग १, लेखांक १५० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (४०७) For Personal & Private Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३५० ) आदिनाथ- पादुका ॥ सं। १९२६ ना वैशाख सुदि १३ वार सोमे श्रीमकसुदाबाद वा । उ। बृ । बैदगोत्रे सा नीहालचंदजी तस्य भार्या..... श्रीआदिजिनपादुका स्थापितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे जं । यु । प्र । भ । श्रीजिनसौभाग्यसूरीश्वर तत्पट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः विजयराज्ये खेमशाखायां । पं । प्र । श्रीदेवचंद्रजी तत्शिष्य पं । हीराचंद्रेण प्रतिष्ठितं च श्रीपालीताणा नगरे गोहल श्रीप्रतापसिंहजी तत्पट्टे राजराजेश्वर महाराज श्रीसूरसिंघ जी विजयराज्ये ( २३५१ ) गजविनय - पादुका सं० १९२६ का मिती काती वदी ८ तिथौ गुरुवारे श्रीजिनकीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां पं । प्र । श्रीगजविनयमुनिनां पादु | पं० समुद्रसोम मुनि: कारापिताः प्रतिष्ठिता ॥ ( २३५२ ) सुमतिजय - पादुका ॥ सं० १९२६ मि। का। व । ८ श्रीजिनकी । पं । प्र । श्रीसुमतिजयमुनिनां पादु । तत्शिष्य । पं । युक्तिअमृतमुनिका । प्र । ( २३५३ ) सुमतिविशाल - पादुका ॥ सं० १९२६ मि। का । व । ८ तिथौ गुरुवारे श्रीजिनकीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां पं । म । श्रीसुमतिविशालमुनिनां पादु । तत्शि । पं । समुद्रसोममुनि का। प्र० । (२३५४) समुद्रसोम - पादुका सं० १९२६ रा मिती काती वदि तिथौ ... .. गुरुवारे श्रीजिनकीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां पं। प्र । श्रीसमुद्रसोममुनि स्वहस्तेन जीवितचरणस्थापनाकृताः॥ ( २३५५ ) विमलनाथ- पञ्चतीर्थीः सं० १९२६ मिती फागुण शुक्ल ७ बुधवासरे इदम् विमलजिनबिंबं कारापितं उसवालज्ञातौ महता भार्या मयनाबीबी प्रतिष्ठितं भ० श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ ( २३५६ ) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १९२६ मी० फागुन शुक्ल ७ बुधवासरे, इदम् धर्मजिनबिंबं कारापितम् उसवालज्ञातौ धाडेवागोत्रे कालूराम तत्भार्या छुनोबीबी प्रतिष्ठितम् श्रीजिनहंससूरिभिः । २३५०. छीपावसही, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक ४३ २३५१. ज्ञानसार जी समाधि मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९८९ २३५२. ज्ञानसार जी समाधि मंदिर, गोगादरवाजा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९८७ २३५३. ज्ञानसार जी समाधि मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९८६ २३५४. ज्ञानसार जी समाधि मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९८८ २३५५. खरतरगच्छीय जैनमंदिर, तुलापट्टी, कलकत्ता: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३६६ २३५६. खरतरगच्छीय जैनमंदिर, तुलापट्टी, कलकत्ता: जै० धा० प्र० ले० सं०, लेखांक ३६५ (४०८ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३५७) पार्श्वनाथ पादुका तिथौ ......... सं० १९२६ रा वर्षे मि । फागुण.. . बुधवासरे श्रीपार्श्व. प्रतिष्ठितः च श्रीजिनहंससूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे श्रीअजीमगंजमध्ये ( २३५८ ) रत्नमंदिरगणि-पादुका सं० १९२७ मिति काती सुदि ३ गुरुवासरे पं० रत्नमंदिरगणिनां पादुका कारापितं पं० हीरसौभाग्येन शुभं भवतु: प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीजिनहेमसूरि. .आचार्यगच्छे सं० १९२८ मी. पं० सुमतिमंडन प्रणमति .......... (२३५९) राजमंदिर - पादुका श्रीसंवत् १९२८ शाके १७९३ प्रवर्त्तमाने वैशाखमासे शुक्लपक्षे द्वितीया चतुर्थी ४ तिथौ चंद्रवारे महाराजाधिराज महारावल श्री श्री १०८ श्रीवैरीशालजी विजयराज्ये जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिबृहत्शिष्य पं० जीतरंग गणि तच्छिष्य पं । राजमंदिर मुनि पादुका कारापितं श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः .. जिनेश्वरचरण २३६० ) धर्मानंदमुनि - पादुका ..ज्येष्ठ वदी २ पं० प्र० धर्मानंदमुनि चरणन्यासः श्रीसंघेन कारापितं श्री ( २३६१ ) श्रृंगारचौकी-लेखः संवत् १९२८ वर्षे भाद्रपद २. ... बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीमातुसूरि रावतजी श्रीवाकीदास कु । जुहारसिंग विजयराज्ये श्रीसुमतिनाथजी शिणगार चौकी श्रीखरतरगच्छ कराई सलावट फूसा ॥ ( २३६२) मूलनायक - पार्श्वनाथः ॥ सं० १९२८ शाके १७९३ प्रवर्त्तमाने मिति माघ सुदि १३ गुरौ श्रीपार्श्वजिनबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीमद्बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनयशोसूरिभिः। ( २३६३ ) शिलालेख - प्रशस्तिः (१) ॥ श्री ॥ (२) ॥ श्रीपारस जिन प्रणम् ॥ (३) श्रीऋषभदेवो जयतितराम् ॥ मनोभीष्टार्थसिद्ध्यर्थं ॥ कृतनम्य नमस्कृतिः ॥ प्रशस्तिमथ वक्ष्येहं ॥ प्रतिष्ठादिमहः कृता ॥ १ ॥ पूज्यं श्रीजिनराजिराजिचरणांभोजद्वयं नि २३५७. मूलनायक, आले में, चरण, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर० २३५८. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०५५ २३५९. दादाबाड़ी, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८५० २३६०. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०४० २३६१. आदीश्वर भगवान का मंदिर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १५३ २३६२. श्रीपार्श्वनाथ जी का मंदिर, बोथरों का, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १६१ २३६३. हिम्मतरामजी का मंदिर, बाफणा, अमरसागर, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५३१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only ४०९) Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१०) (४) र्मलं ॥ ये भव्याः स्फुरदुज्ज्वलेन मनसा ॥ ध्यायंति सौख्यार्थिनः । तेषां सर्वसमृद्धिवृद्धिरनिशं प्रादुर्भवेत्मंदिरे। कष्टादीनि परिव्रजंति सहसा दूरे पु (दु) रंतानि च: (च) ॥ २ ॥ आदिमं पृथ्वीनाथ (५) मादिमं नी: (निः) परिग्रहं । आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः ॥ ३ ॥ इति मंगलाचरणं ॥ स्वस्ति श्रीविक्रमादित्यराज्यात् संवत् १९२८ शालिवाहनकृत शाके १७९३ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे माघमासे धव (६) लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ गुरुवासरे महाराजाधिराज महारावलजी श्री श्री १०८ श्री श्री श्रीवैरीशालजीविजयराज्ये श्रीमज्जेशलमेरु वास्तव्य ओसवंशे बाफणागोत्रीय संघवी सेठजी श्रीगुमांनचंदजी तत्पुत्र परता (७) पचंदजी तत्पुत्र हिमतराजी जेठमली नथमलजी सागरमलजी उमेदमलजी तत्परिवार मुलचंद सगतमल केसरीमल ऋषभदास सांगीदास भगवांनदास भीषचंद चिंतामणदास लुणकिरण मना (८) लाल कनैयालाल सपरिवारयुतैः आत्मपरकल्याणार्थं श्रीसम्यक्त्वोद्दीपनार्थं च श्रीजेसलमेरुनगरसत्का अमरसागर समीपवर्त्तना समीचिना आरांमस्थांने श्री ऋषभदेवजिन(९) मन्दिरं नवीनं करापितं तत्र श्री आदिनाथबिंब प्राचिन बृहत्खरतरगणनाथेन प्रतिष्ठितं तत् श्रीमज्जिनमहेंद्रसूरिपदपंकजसेविना बृहत्खरतरगणाधीश्वरेण चतुर्विधसंघसहितेन (१०) श्रीजिनमुक्तिसूरिणा विधिपूर्व महता महोत्सवेन शोभनलग्ने श्रीमूलनायकत्वेन स्थापितं पुनअनेक बिंबानामंजनसिलाका विहिता पुनर्दुतियभूमिप्रासादे स्वप्रतिष्ठितं (११) श्रीपार्श्वनाथबिंब मुलनायकत्वेन स्थापितं पुनर्विंशविहरमांण प्रतिष्ठा कृतं मंदिर के पास बाजू जीमणे श्रीदादासाहेब को मंदिर हो जिण मांहे श्रीजिनकुशलसूरज (१२) म्हाराज की मुर्ति विच मांहे विराजमान तथा श्रीजिनदत्तसूरिचरणपादुका तथा श्रीजिनकुशलसूरिचरणपादुका तथा श्रीजिनहर्षसूरिचरणपादुका तथा जिनम (१३) हेंद्रसूरिचरणपादुका प्रमुख स्थापितं तथा भाई सवाईरामजी के घर का इठे था श्रीरतलाम सुं चिरूं सोभागमल चांदमल सोभागमल की मांजी वगेरे आया श्रीउदे (१४) पुर सुं चिरूं सिरदारमल तथा इणां की मांजी वगेरे आया ओर पण घणे दिसावरां सुं श्रीसंघ या सांमीवच्छल प्रमुष करी श्रीसंघ की बड़ी भक्ति करि तथा पांच (१५) शिष्यां नैं श्रीपूजजी म्हाराज के हाथ से दीक्षा दिनी जी दिन १५ सुधां श्री अमरसागर मैं रह्या asो ठाठ ओच्छ सुं नित्य नवि नवि पूजा प्रभावना हुई श्रीदरबार साहिब (१६) श्रीमंदिरजी मैं पधारीया तोबां का फेर हुवा पग मैं सोनो बगसीयो फेर श्रीसंघ समेत श्रीजेशलमेर आया उजमणा प्रमुख कीना श्रीपूजजी म्हाराज की (१७) पधरावणी दोय कीनी जिण मैं हजारां रुपीयां को माल इसबाब तथा रोकड भेंट कीनो उपाध्यायजी वगेरे ठावां ठावां ठांणां नै तथा श्रीवणारसवाला उपाध्याय (१८) जी श्रीबालचंद्रजी का चेला नै रोकड रूपीया तथा जोड़ तथा कपड़े का थान वगेरे अलग अलग दीना उपाध्यायजी श्रीसाहेबचंद्रजी गणि पं० प्रमेर खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९) जी गणि प्रमुख साधू ठाणे ४१ था ठाणे दिठ रुपीया १०) दस रोकड थांन प्रत्येके प्रत्येके दीना तथा परगच्छ के यतीयां को सतकार आछी तरे कीनो श्रीसिर॥ (२०) कार की पधरांवणी कीनी घोडा सिरपाव वगेरे मोकलो निजराणे कीनो मुसंदी वगेरे ठावां ठावां सर्व ने सिरपाव दीना सेवकां में जिणे दीठ रुपीया ४) च्या(२१) र तो सर्वाले दिना कीतरांक जिणांने सोने का कडा तथा थांन वगेरे सिरपाव दीना श्रीजिनभद्रसूरिसाखायां पं ॥ प्र॥ श्रीमयाचंद्रजी गणि तत् शिष्य पं॥ स(२२) रूपचंद्रजी मुनी श्रीजेशलमेरु आदेसी ना इयं प्रसस्ती रचिता कारिगर सिलावट वीराम हाथ सुं श्रीमंदिरजी वणिया जीण के परिवार नां सोने की कंठीयां (२३) तथा कडा की जोड़ीयां तथा मंदील तथा दुपटा थांन वगेरे सीरपाव दीना श्रीमंदिर के मुल गंभारे में आसेपासे दिषण नी तरफ परतापचंद जी की षड़ी मुरती छै उ(२४) तर की तरफ परतापचंदजी की भारजायां की खड़ी मुरती छै निज मंदिर के सामने उगूण की तरफ पछम मुषो चोतरो कराय जिण उपर परतापचंदजी की मुरती (२५) तथा परतापचंदजी की भारजायां सदपरिवार सहीत की मुरतीयां स्थापित कीनी सं० ॥ १९४५ मिती मिगसर सुद २ वार बुध द॥ सगतमल जेठमलांणी बाफणे का सुभं (२६) दुहा॥ अष्ट कर्म वन दाह के॥ भये सिद्ध जिनचंद॥ ता सम जो आप्पा गिणे॥ ताकुं वंदे चंद॥१॥ कर्मरोग ओषध समी ग्यांन सुधारस वृष्टि ॥ सिव सुष अमृत बेलडी (२७) जय जय सम्यग् दृष्टि ॥ २॥ एहिज सदगुरु सीष छै॥ एहिज शिवपुर माग लेज्यो निज ग्यांनादि गुण ॥ करजो परगुण त्याग॥३॥ भेद ग्यांन श्रावण भयौ। समर(२८) स निरमल नीर ॥ अंतर धोबी आतमा॥धोवै निजगुण चीर ॥४॥ कर दुष अंगुरी नैन दुष॥ ___ तन दुष सहज समांन ॥ लिष्यो जात हे कठीन सुं। सठ जांनत आसांन ॥५॥ (२९) ॥ श्रीः॥ ॥ श्री श्री श्री॥ ॥ श्री॥ (२३६४) पार्श्वनाथ-मूलनायकः (१) निश्शेषानंता मंडलेन्द्र श्रीमद्विक्रमादित्यराज्यात्संव्वद्दिग्गजनेत्रांकोर्व्विमिते मासोत्तम माघार्जुन त्रयोदश्यां (२) गुरुयुतायां कर्मवाट्यां ॥ सं० १९२८ का शाके १७९३ प्रवर्त्तमाने माघ शुद १३ गुरौ - श्रीपार्श्वजिनबिं(३) बं प्रतिष्ठितं श्रीमबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर श्रीमन्महेन्द्रसूरि पट्टप्रभाकर जं। यु। प्र। सकल भ। चक्रचूड़ामणि (४) श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीमन्महाराजाधिराजा महारावलजी श्रीवैरिशालजी विजयराज्ये कारितं ___च श्रीजैशल(५) ................. २३६४. पार्श्वनाथ देरासर, ब्रह्मसर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५८२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) ४११) For Personal & Private Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३६५) मुनिसुव्रतः संवत् १९२८ का मि० माघ सुदि १३ गुरौ श्रीमुनिसुव्रतबिंबं श्री० जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारापितं च ........... ( २३६६ ) पार्श्वनाथ: (१) ॥ संवत् १९२८ शाके १७९३ प्रवर्त्तमाने मिती माघ सुदि १३ गुरौ श्रीपार्श्वजिनबिंबं प्र(२) तिष्ठितं श्रीमत्बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनमुक्तिसू(३) रिभिः ॥ महाराजाधिराज महारावलजी श्रीवैरिसालजी विजयरा (४) ज्ये श्रीजैसलमेर कारितं च संघवी बाफणा हिमतराम न (५) थमल्ल सागरमल्ल उमेदमल्ल मूलचंद सगनमल्लादिभिः॥ स्वश्रेयोर्थं ॥ ( २३६७) मूलनायक - पार्श्वनाथ- पंचतीर्थी : सं० १९२८ शाके १७९२ प्रवर्त्तमाने माघसुदि १३ गुरौ श्रीपार्श्वजिनबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीमत्बृहत्खरतराधीश्वर जं० यु० भ० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीकिशोर विजोरका संघेन कारितं जैसलमेर मध्ये | ( २३६८ ) पार्श्वनाथ: (१) सं० १९२८ शाके १७९३ मिती माघ सुदि १३ गुरौ श्रीपार्श्वजिनबिंबं प्र० । (२) श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः ॥ महाराजाधिराज महारावलजी श्रीवैरिसालजी ( २३६९ ) पार्श्वनाथः (१) ॥ सं० १९२८ शाके १७९३ मिति माघ सुदि १३ गुरौ श्रीपार्श्वजिन(२) बिंबं प्र० । श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं च । बा। सं० । हिमतराम। ( २३७० ) मूर्ति : सं० १९२८ मि० माघ सुदि १३ प्र० जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनमुक्तिसूरिभि: बृहत्खरतरगच्छे कारापिते श्रीजे. (२३७१) विंशति - विहरमानपट्टः (१) ॥ संवत् १९२८ का शाके १७९३ प्र० (२) वर्त्तमाने मिति माघ सुदि १३ गुरौ (३) श्रीबीस विहरमान जिनबिंबा(४) नि प्रतिष्ठितं च श्रीमद्बृहत्खरतर २३६५. अष्टापद जी का मंदिर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७१९ २३६६. हिम्मतराम बाफणा का मंदिर, अमरसागर, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २५३३ २३६७. जैनमंदिर, ग्राम केसूर : मालवांचल के जैन लेख, लेखांक १०७ २३६८. हिम्मतराम बाफणा का मंदिर, अमरसागर, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २५३४ २३६९. हिम्मतराम बाफणा का मंदिर, अमरसागर, जैसलमेर : पू० जै० भाग ३, लेखांक २५३५ २३७०. शीतलनाथ जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २७०६ २३७१ . हिम्मतराम बाफणा का मंदिर, अमरसागर, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५४० ४१२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) गच्छाधीश्वर । जं। यु। प्र। भट्टारक श्री (६) जिनमुक्तिसूरिभिः २ कारापितं श्री (७) जेशलमेरस्थ श्रीसंघेन स्वश्रे(८) योर्थं । लि । कृष्णचंद्र ॥ (२३७२) मूर्तिः ॥ सं० १९२८ माघ सुदि १३ प्र० । श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारापितं जैसलमेरस्थ श्रीसंघेन (२३७३) शांतिनाथः ॥ संवत् १९२९ वर्षे वैशाख मास शुक्लपक्षे ३ श्रीमालज्ञातीय धीधीदगोत्रे वखतावरसिंघकस्य भार्या महताबबीबी श्रीशांतिनाथबिंबं प्र० कारापितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनश्रीकल्याणसू० । (२३७४) पादुका-लेखः संवत् १९२९ शाके १७८७ (? १७९४) ज्येष्ठ मास शुक्लपक्षे.............श्रीमकसूदाबाद वास्तव्य ओ० ज्ञाति गोलछागोत्रे शा० धर्मचंद तत्पुत्र बाबू पूरणचंद्रजी श्रीरेवताचल तलेटीमध्ये पादुका केन (?) कारापितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छ जं० यु० प्र० भ० श्रीश्रीश्री १००८ श्रीजिनहंससूरीश्वरेण प्रतिष्ठितं विद्याअर्थि दयानंदजी वंदा (ना) ज्ञेयं । श्रीशुभं। ___(२३७५) शिलालेखः - मकशूदाबाद अजीमगंज वास्तव्य दूगडगोत्रे बाबु प्रतापसिंहजी तद्भार्या महताबकुंवर तत्पुत्र राय लक्ष्मीपत तत्लघु सहोदर राय धनपतसिंह बहादुरेण न्यायद्रव्यव्यय वीरप्रभु का जिनालय कारापितं लछवाड मध्ये उ० श्रीसागरचंद्रगणि प्रतिष्ठितं । सं० १९३० मिती वैशाख वदी २ चन्द्रे.....................। . (२३७६) चन्दनश्री-पादुका । सं० १९३० वर्षे शाके १७९५ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे वैशाखमासे कृष्णपक्षे तिथौ नवम्यां चन्द्रवासरे सा० धेनमाला शिष्यणी गुमानसिरी तत्शिष्यणी ज्ञानसिरि शिष्यणी चन्दनसिरी स्वहर्षतं स्वपादुका कारायितं श्रीबीकानेर मध्ये श्रीबृहत्खरतराचार्यगच्छे यं। युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीरस्तु कल्याणमस्तु महाराजाधिराज महाराज नरेन्द्र शिरोमणि बहादुर डूंगरसिंहजी विजयराज्ये। . (२३७७) साहिबचन्द्र-पादुका ॥ संवत् १९३० पौष वदि १ प्रतिपदा तिथौ जं। युगप्रधान भट्टारक बृहत्खरतरगच्छाधीशः श्री श्री १०८ श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीजेसलमेरेश रावलजी श्रीवैरिशालजी विजयराज्ये श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां उ। २३७२. बृहत्खरतरगच्छ का उपाश्रय, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४७५ २३७३. छोटे दादाजी का मंदिर, दिल्ली: पू० जै० भाग १, लेखांक ५२८ २३७४. तलेटी, गिरनारः सं० भँवर० २३७५. जैनमंदिर क्षत्रिय कुंडः पू० जै०, भाग १, लेखांक १७४ २३७६. खरतरगच्छीय शाला, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३१२ २३७७. दादाबाड़ी, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८४६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (४१३) For Personal & Private Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसाहिबचन्द्रगणेशचरणन्यास प्रतिष्ठाकृता कारिता च तत् भ्रातृव्य तत्शिष्य पं० अगरचंद्र मेघराजादिभिः श्रीरस्तुः॥ गजधर हासम (२३७८) महावीर-पादुका सं० १९३० माघ सु० ५ सकलसंघेन श्रीवीरपादुका कारापित श्रीगुणशीलचैत्ये आत्महिताय॥ (२३७९) सुपार्श्वनाथ-मूलनायकः . संवत् १९३१ वर्षे । शाके १७९६ मि० मासोत्तममासे माधवमासे कृष्णेतरपक्षे एकादश्यां तिथौ सोमवासरे। श्रीसुपार्श्वनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं । श्रीमबृहत्खरतरगच्छे । जं। यु। भट्टारक श्रीजिनहंससूरिभिः श्रीबीकानेरवास्तव्य समस्त श्रीसंघेन कारितं ॥ श्रेयोर्थं शुभंभवतु ॥ श्रीरस्तु॥ ( २३८०) पार्श्वनाथ-मूलनायकः सं० १९३१ वर्षे वैशाख सुदि ११ तिथौ श्रीपार्श्वजिनबिंबं प्र० श्रीजिनहंससूरिभिः कारितं श्रीसंघेन बीकानेरे। (२३८१) महावीरः सं० १९३१ वर्षे मिति वैशाखमासे कृष्णेतरपक्षे एकादश्यां तिथौ श्रीमहावीरजिनबिंबं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ श्रीजिनहंससूरिभिः......................कारितं श्रीबीकानेर ॥ - (२३८२ ) महावीरः सं० १९३१ मि। वै० शुक्ल ११ ति। श्रीमहावीरजिनबिंबं। प्र० बृ० ख० भ० श्रीजिनहंससूरिभिः नानगा हीरालालजी गृहे भार्या जिड़ाव का०..................................बीकानेर। (२३८३) चतुर्विंशतिः सं० । १९३१ व। मि। बै। सु। ११ ति। चौबीसीजी। प्र। बृ। ख। ग। भ। श्रीजिनहंससूरिभिः कारितं बाई नवली श्रेयोर्थम्॥ (२३८४) आदिनाथः __ सं० १९३१ वर्षे मि। वैशा।सु ११ । ति। श्रीआदिनाथजिन.. .ष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः २३७८. महावीर स्वामि का मंदिर, गुणायाः जै० ती० स० सं०, भाग २, पृ० ४४३ २३७९. सुपार्श्वनाथ जिनालय, ऊदासर बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१७० २३८०. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, कोचरों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५९३ २३८१. चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, बेगाानियो में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६४२ २३८२. पद्मप्रभ का मंदिर, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८६८ २३८३. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८७१ २३८४. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, गोगा दरवाजा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९२१ (४१४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३८५ ) आदिनाथः सं० १९३१ व । मि। वै । सु । ११ ति । श्रीआदिजिनबिंबं प्र० । बृ । ख । ग । भ । श्रीजिनहंससूरिभिः ना । केवलचन्द्र जी पु । केशरीचन्द्रजी गृहे भार्याभ्यां कारिते ॥ श्रीबीकानेर नगरे ( २३८६ ) अजितनाथ: ॥ सं० १९३१ व। मि। वै। सु । ११ ति । श्रीअजितजिनबिंबं प्र । बृ । ख । भ। श्रीजिनहंससूरिभिः लूणी । हीरालालजी सा । ना । करमचंदजी कारापितं श्रीबीकानेर नगरे ॥ सुपार्श्वबं। श्री ( २३८७ ) सुपार्श्वनाथ: .. जिनहंससूरि सं० १९३१ मि । वै० । सु । ११. ( २३८८ ) संभवनाथ: सं० १९३१ व । मि । वै । सु ११ ति श्रीसंभवजिन.. ( २३८९) श्रेयांसनाथ: सं० १९३१ मि० वै० सु० ११ ति । श्री श्रेयांसजिनबिंबं प्र० बृ० ख० ग० भ० श्रीजिनहंससूरिभिः सुराणा श्रीचंदजी तन्माता । ..श्रीजिनहंससूरिभिः ( २३९० ) वासुपूज्यः सं० १९३१ व। मि। वै । सु । ११ ति । श्रीवासुपूज्यजिनबिंबं प्र । बृ । ख । भ । श्रीजिनहंससूरिभिः हाकिम...........बीकानेरे ॥ ( २३९१ ) वासुपूज्यः सं० १९३१ व। वैशाख सु । ११ श्रीवासुपूज्यजिनबिंबं प्र । बृ । खं । ग । भ । श्रीजिनहंससूरिभिः ( २३९२ ) धर्मनाथ: सं० १९३१ वर्षे मि। वै। सु । ११ ति । श्रीधर्मजिनबिंबं । प्र । बृ । ख । ग । भ । श्रीजिनहंससूरिभिः को । ल....... ( २३९३ ) धर्मनाथ: सं० १९३१ वर्षे । मि । वै । सु० ११ ति श्रीधर्मजिनबिंबं प्र । बृ । ख । ग भ । श्रीजिनहंससूरिभिः २३८५. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४६७ २३८६. अजितनाथ देरासर, सुगन जी का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६६० २३८७. कुंथुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६८१ २३८८. अजितनाथ जी का मंदिर, कोचरों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५५१ २३८९. कुंथुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६७७ २३९०. महावीर जिनालय वैदों का, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १२३८ २३९१. पार्श्वनाथ सेढू जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९७७ २३९२. पार्श्वनाथ जिनालय, शिववाड़ी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१६७ २३९३. सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७२८ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (४१५) Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३९४) कुन्थुनाथ: सं० १९३१ व। वै० सु। ११ ति। श्रीकुंथुनाथबिं। प्र। भ। श्रीजिनहंसूरिभि............... भैरूदान........... (२३९५) कुन्थुनाथ-मूलनायकः सं० १९३१ मि० । वै। सु। ११ ति। श्रीकुंथुजिनबिंब प्र० बृ० ख० ग०. भ० श्रीजिनहंससूरिभिः दफ्तरी मदनमल तत्माता छोटीबाई कारापितं । (२३९६ ) मल्लिनाथ: सं। १९३१ मिते वैशा। शुक्लैकादश्यां ति। श्रीमल्लिनाथबिंबं प्रति। बृ। भ। श्रीजिनहंससूरिभिः कारितं च गो। कोदूमल भार्या अणंदकुमरिकया श्रीबीकानेरे॥ (२३९७ ) मुनिसुव्रतः सं० १९३१ मि० वै० सु० ११ ति। श्रीमुनिसुव्रतबिं० प्र० बृ० ख० भ० श्रीजिनहंससूरिभिः श्रीसंघेन कारितं॥ (२३९८) नेमिनाथः सं० १९३१ व। मि। वै। सु। ११ ति० श्रीनेमिजिनबिंबं प्र। श्रीजिनहंससूरिभिः। (२३९९) पार्श्वनाथः सं० १९३१ व। वै० सु ११ ति। श्रीपार्श्वजिनबिंबं प्र० बृहत्खर तर गच्छे । भ। श्रीजिनहंससूरिभिः..........ल गृहे भार्या चुन्नी का। (२४०० ) पार्श्वनाथ: सं० १९३१ व। मि। वैशाख सुदि ११ तिथौ श्रीपार्श्वजिनबिंबं। प्र। भ० श्रीजिनहंससूरिभिः॥ कारितं श्रीसंघेन श्रीबीकानेर नगरे॥ (२४०१) पार्श्वनाथः सं० १९३१ व। मि। वैशाख सुदि ११ तिथौ। श्रीपार्श्वनाथजिनबिंबं प्र। श्रीजिनहंससूरिभिः श्रीसंघेन कारितं बीकानेर.... २३९४. पार्श्वनाथ जिनालय, शिववाड़ी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१६६ २३९५. कुन्थुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६७६ २३९६. पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८६० २३९७. कुन्थुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६७८ २३९८. चन्द्रप्रभ जिनालय, बेगानियों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६४३ २३९९. पार्श्वनाथ जिनालय, शिवबाड़ी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१६५ २४००. चिंतामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १३ २४०१. सुपार्श्वनाथ जिनालय, ऊदासर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१७२ (४१६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४०२) महावीरः सं० १९३१ वर्षे । वै। सु। ११ ति। सोमे। श्रीवर्द्धमानजिनबिंबं प्र। भ। श्रीजिनहंससूरिभिः। गो ज्ञानचंद्रजी गृहे भार्या रूपा कारितं । बीकानेरे। (२४०३) मूर्तिः सं० १९३१ व। मि। वै। सु। ११ ति। प्र। भ। श्रीजिनहंससूरिभिः को। गो। सदासुख भार्या अच्छे......का (२४०४) मूर्तिः सं० १९३१ वर्षे मि। वै। सु।११ ति..................श्रीजिनहंससूरिभिः................राजजी कारितः __ (२४०५) स्थूलभद्र-पादुका सं० १९३१ व। मि। वै० सु ११ ति० । श्रीस्थूलिभद्रजी। बृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनहंससूरिभिः गो० ज्ञानचंदजी कारितं श्रेयोर्थम्॥ (२४०६) पादुका संवत् १९३१ रा वर्षे मि० । प्रथम आषाढ़ वदि ९ तिथौ सोमवासरे विजय सेठ विजय सेठाणी चरणन्यास प्रति० भ० श्रीजिनहंससूरिभिः बृ० ख भ० गच्छे । गो। ज्ञानचंदजी कारापितं स्वश्रेयोर्थं ॥ (२४०७) दानसागरगणि-पादुका सं० १९३१ वर्षे माघ सुदि ६ तिथौ गुरुवारे पं० प्र० मु० श्रीदानसागरगणे: चरणन्यास: हितवल्लभमुनिना कारितं प्रतिष्ठापितं . (२४०८) क्षमासागर-पादुका सं० १९३१ रा मि० माघ सुदि ६ गुरुवारे पं० श्रीक्षमासागरमुनिनां चरणं (२४०९) यंत्रम् (१) ॥ प्रतिष्ठितमिदं यंत्रं जंगमयुगप्रधान भट्टारकेन्दु श्री १०८ श्री श्रीजिनमुक्तिसूरिवरैः सपरिकरैः श्रीजेसलमेर अमर २४०२. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४१९ २४०३. चिंतामणि जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक ५० २४०४. पार्श्वनाथ सेढू जी का मंदिर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९७८ २४०५. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४२२ २४०६. ऋषभदेव जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १४२१ २४०७. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०५० २४०८. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०४३ २४०९. हिम्मतराम बाफणा का मंदिर, अमरसागर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५४१ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) ४१७) For Personal & Private Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) सागरमध्ये महारावलजी श्री १०८ श्रीवैरिसालजी विजयराज्ये कारितं बाफणा गोत्रीयः संघवी श्रीप्रतापचंद्र पुत्रैः हिम(३) तराम जेठमल नथमल्ल सागरमल्ल उमेदमल्लादि सपरिकरैः स्वश्रेयोर्थं संवत् १९३२ वैशाख सुदि १२ (४) सोमे॥ (२४१०) शिलालेखः (१) अत्यद्भुतं सज्जनसिद्धिदायकं भव्यांगिनां (२) मोक्षकरं निरन्तरं जिनालये रङ्गपुरे मनोहरे चं(३) द्रप्रभं नौमि जिनं सनातनं ॥ १॥ संवत् १९ (४) ३२ शाके १७९७ मिति आषाढ़ सुदि ९ चन्द्रवासरे (५) रङ्गपुरे। भ। श्रीजिनहंससूरीजी विजयराज्ये॥ श्री (६) हंसविलास गणि तत्शिष्य श्रीकनकनिधान मुनि(७) रुपदेशेन । श्रीमक्षुदाबाद बालूचर वास्तव्य (८) दूगड़ इन्द्रचन्द्रजी जीर्णोद्धार कारापितं ॥ नाहटा मौ(९) जीरामजी तत्पुत्र नाहटा गुलाबचन्दजी तत्पुत्र इन्द्र- . (१०) चन्द्रजी मारफत श्रीचन्द्रप्रभजिनप्रासादस्य सिषरं (११)नवीन रचिता वेदका नवीन निजद्रव्यै कारापितं ॥ प्रति(१२)ष्ठितं विधिना सतां कल्याणवृद्ध्यर्थम् ॥ १॥ (१३) ॥ मिस्तरी षोलाराम सिलावट लालू मक्सूदका (२४११) सं० १९३३ रा शा० १७९८ प्र० मि० आषाढ़ सुदि ५ दिने महो० श्रीधीरधर्मगणिलिपिन्यासः (२४१२) नवलश्री-पादुका । सं० १९३३ रा मि० आषा। सुदि ७ संवेगी लक्ष्मीश्रीपृष्ठे शि० नवलश्रीचरणस्थापना का (२४१३) पादुका-युगल ॥ सं० १९३३ रा मि। मि। व। ३ तिथौ श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां पं० प्र० श्रीकल्याणसागरजिन्मुनीनां पा। तच्छि० पं। हितकमल मुनि का। प्र। पं। प्र। श्रीकल्याणसागरजिन्मुनितच्छि। पं। प्र० कीर्तिधर्ममुनीनां चरणन्यासः॥ श्रीरस्तुः २४१०. चन्द्रप्रभ जिनालय, माहीगंज, रंगपुर, उत्तरबंगाल: पू० जै०, भाग २, लेखांक १०१८ २४११. रेलदादाजी के बाहर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २११६ २४१२. रेलदादाजी के बाहर: ना० बी०, लेखांक २११९ २४१३. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२९६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४१४) जिनदत्तसूरि-पादुका श्रीखरतरगच्छ शृंगारहार भट्टारक जंगम युगप्रधान चारित्रचूडामणि बृहत्भट्टारकगच्छे भट्टारक दादाजी श्रीजिनदत्तसूरीश्वर पादुका प्रतिष्ठितं सं० १९३३ वर्षे मासोत्तममासे शुभे माघमासे शुक्लपक्षे तिथौ ३ तृतीयायां ॥ ___ (२४१५) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १९३३ वर्षे मासोत्तममासे शुक्लपक्षे तीज तिथौ श्रीखरतरगच्छे । सिणगारहार जंगम युगप्रधान चारित्रचूडामणि जी श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टारक दादाजी श्री श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुका प्रतिष्ठितं। (२४१६) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १९३३ वर्षे मासोत्तममासे शुभे माघमासे शुक्लपक्षे तिथौ ३ श्रीतृतीयायां। श्रीखरतरगच्छ शृङ्गारहार जंगमयुगप्रधान चारित्रचूडामणिजी बृहत्भट्टारकगच्छे भट्टारक दादाजी श्रीजिनकुशलसूरीश्वरजी पादुका प्रतिष्ठितं (२४१७) शालालेखः संवत् १९३३ मि० माघ सुदि ५ पं० प्र० श्रीगुणप्रमोदजी मु० । पं० प्र० राजशेखरजी मुनि। (२४१८) यशराज-पादुका सं० १९३३ मिति माघ सुदि ५ भृगुवासरे श्रीबृहत्खरतरगच्छे पं० प्र० श्रीयशराजजी मुनिना पादुके श्रीचुरू पं० आणंदसोमेन कारितं प्रतिष्ठितं च । भ। जं। भ। श्रीजिनहंससूरिभिः शुभं॥ ___ (२४१९) भक्तिमाणिक्य-पादुका श्रीगणेशायनमः संवत् १९३३ शाके १७९८ प्रवर्त्तमाने फागुण सुदि ५ रविवारे श्रीजिनचंद्रसूरिजी तत्शिष्य जीतरंगजी गणि तत्शिष्य राजमंदिरजी गणि तशिष्यः भक्तिमाणिक्य गणिः उपरही श्रीसंघेन पादुका कारापितं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (२४२०) नेमिनाथ-त्रयकल्याणक-पादुका (१) संवत् १९३४ माघ वदि ५ बुधवारे श्रीनेमिनाथ जिन तीन कल्याणक रेवत...... (२) भवती तस्य चरणन्यासः समेतशिखर स्थापिता मकसूदाबाद अजीमगंज (३) वास्तव्य दुगड़ प्रतापसिंह भार्या महताबकुमर सुत लक्ष्मीपत कनिष्ठभ्राता (४) धनपतसिंह कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीपूज्यजी भः श्रीजिनहंससूरीतः खरतरगच्छे (५) बृहत्खरतरगच्छे २४१४. पार्श्वनाथ जिनालय, सुजानगढ़ः ना० बी०, लेखांक २३७४ २४१५. संभवनाथ जिनालय, जोधपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६३२ २४१६. पार्श्वनाथ जिनालय, देवसागर, सुजानगढ़: ना० बी०, लेखांक २३७५ २४१७. दादासाहेब की बगीची, चुरू: ना० बी०, लेखांक २४२५ २४१८. दादासाहब की बगीची, चुरू: ना० बी०, लेखांक २४२७ २४१९. दादाबाड़ी, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८५१ २४२०. टोंक, सम्मेतशिखर: पू० जै०, भाग २, लेखांक १८११ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४२१ ) जिनकुशलसूरि- पादुका संवत् १९३४ माघ शुक्ला ५ गुरौ कुक्कर चोपड़ागोत्रीय बाबू सुमेरचंदजी पुत्र बाबू देवीप्रसादजित्केन श्रीदादाजिनकुशलसूरि पादुका कारिता प्रतिष्ठिता च बृहन्नागपुरीय लुक्कागच्छ वा० रामचंद्रगणिभिः ॥ शुभम् । (२४२२) गौतमस्वामी - पादुका सं० १९३५ मि० आ० शुक्ल ५ इन्द्र गौतम गणधर पादुका कारापितं उसवाल चोरडिया गोत्रे नानकचंद जीवनदास प्र० बृ० । भ० श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरि तत्शिष्य मुनि पद्मजय उपदेशात् (२४२३) सुधर्मस्वामी - पादुका सं० १९३५ मि० आ० शुक्ल पंचमी इदं पादुका श्रीसुधर्मास्वामी कारापितं ओसवाल ज्ञातौ धड़ेवागोत्रे........ नसुख प्रतिष्ठितं बृ० भ० श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरि तत्शिष्य मुनि पद्मजय उपदेशात् । (२४२४) हंसविलासगणि-पादुका सं० १९३५ शाके १८०० प्रमिते माघमासे कृष्णपक्षैकादश्यां शनिवासरे बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः तच्छिष्य पं० प्र० श्री १०८ श्रीहंसेविलास गणिनां पादुका कारापिता शिष्य कीर्त्तिनिधानमुनिना शुभं भवतु सं० १९३५ शाके १८०० मि । माघ व.. तत्शिष्य पं० प्र० हंसविलासगणि तत्शिष्य पं० प्र० श्री (२४२५) चरण पादुका ( २४२६) शालालेख: सं० १९३५ रामि । मा । सु । ५ चंद्रवारे बृ । खरतरगच्छीय उ । श्रीलक्ष्मीप्रधानगणना क्रीणित भावेनेयं शाला कारापिता । संवत् १९३६ मिति आ०. कारापितं आणंदवल्लभजी तत्शिष्य.. .. श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः "कीर्त्तिचरणन्यास: पं० धर्मवल्लभमुनि कारापितं । २४२७) श्रीजिनकुशलसूरि- पादुका संवत् १९३५ दादाजी श्री १०८ श्रीजिनकुशलसूरिजी का चरणपादुका श्रीसंघेन कारापितं पं० ।" ( २४२८ ) शांतिनाथ : शुक्रवारे यु । प्र० श्री.. ..प्रतिष्ठितं । २४२१. भदैनीघाट, वाराणसी : भँवर० (अप्रका०) २४२२. जल मंदिर, पावासुरी : पू० जै०, भाग १, लेखांक १८२ २४२३. जल मंदिर, पावापुरी: पू० जै०, भाग १, लेखांक १८३ २४२४. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०६६ २४२५. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०७४ २४२६. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२९५ २४२७. सुमतिनाथ जिनालय, नागोर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६३४ २४२८. चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, रंगपुर, बंगाल: पू० जै०, भाग २, (४२०) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: लेखांक १०२० For Personal & Private Use Only . जी विजयराज्ये श्रीशांतिजिन Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४२९) हंसविलास-पादुका संवत् १९३६ शाके सं० १८०१ शनिवासरे रा मिगसर वद १ श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः तत्शिष्य पं० प्र० श्रीहंसविलासजी गणिनां इदं चरणन्यास उ। कल्याणनिधानगणिः पं० प्र० विवेकलब्धिमुनिः पं० प्र० श्रीधर्मवल्लभमुनिः कारापिता प्रतिष्ठिता श्रीजिनचंद्रसूरिभिः शुभं भूयात्। (२४३०) सुखराम-पादुका संवत् १९३६ । मि। मि० व० १ वा० १० श्रीरामचंद्रजिद्गणिः तच्छिष्य पं० प्र० १०८ श्रीसुखरामजी मुनि पादुके शि० उ० श्रीसुमतिशेखरगणि स्थापितौ॥ शुभंभूयात् । __ (२४३१) दादा-पादुके ॐ नमः दत्तसूरिजी ॐ नमः कुशलसूरिजी मिति माह सुदि ५ संवत् १९३६ का (२४३२) जिनकुशलसूरि-पादुका दादाजी श्री जं। यु। प्र। श्रीजिनदत्तसूरिजी, श्रीजिनकुशलसूरिजी सूरीश्वराणां चरणन्यासः। संवत् १९३६ रा शाके १८०१ प्र० मिती फाल्गुण शुक्ला तृतीया तिथौ श्री कीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां पं० प्र० सदाकमल मुनि कारापिता प्रति। (२४३३) दानमल्लबाफणा-पादुका श्रीऋषभाननजैनेन्द्रप्रासादे बाफणा संघवी। सेठजी श्रीदानमल्लस्य चरणपादुका कारापिता तत्पुत्रेण बा। सं। से हमीरमल राजमल्लेन स्थापितः श्रीबूंदीनगरे रसाग्न्यंकभूवर्षे शुक्लज्ञानमिते कर्मवाट्यां श्रीमच्छी जिनमुक्तिसूरीणामुपदेशात् उपाध्याय श्रीहर्षकल्याणगणिभिः स्थापितं ॥ श्रीभूयात् ॥ (२४३४) शालालेखः (१) ओसवाल समस्त की पंचायती की परशाल इ(२) णी तलाव के बंध ऊपरे थी सु बंध को हरजो देख (३) ने परसाल खोलाय कर बंध के पास चोकी करा(४) ई च्यारे पासे पेडालिया घलाया इणी चोकी के सा(५) ह्मने बंध ऊपरे गुरां धर्मचन्द्र आचार्यगच्छ (६) का जिणांकी परसाल ऊपर सुं खुली छे जिणे के (७) सामने चोकी कराई सं० । १९३६ के साल में॥ २४२९. दादा जिनकुशलसूरिजी का मंदिर, नाल: ना० बी०, लेखांक २२९० २४३०. दादा श्रीजिनकुशलजी का मंदिर, नाल: ना० बी०, लेखांक २२९३ २४३१. चन्द्रप्रभ जिनालय, साहूकार पेठ, मद्रास: पू० जै० भाग २, लेखांक २०७१ २४३२. आदिनाथ जिनालय, लूणकरणसर: ना० बी०, लेखांक २५०५ २४३३. सेठ जी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६३७ . २४३४. दादाजी का स्थान, गजरूप सागर, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५९१ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (४२१) For Personal & Private Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४३५) आदिनाथ: सं० १९३६...............सौभाग्यसूरिजी विजयराज्ये नाहटा मौजीरामजी तत्पुत्र गुलाबचन्दजी श्रीआदिजिन कारापितं श्री आनन्द...............। (२४३६) ह्रींकार-यंत्रम् ॥ संवत् १९३८ रा शा १८०३ प्र० वैशाख सुदि ३ रविवारे प्रतिष्ठितं जं० । यु। भ। श्री श्री १०८ श्रीजिनचंद्रसूरिभि खरतर श्रीभावहरख य ने ॥ गुलेछा से। श्रीअमरचंदजी अगरचंदजी रे भारजा लक्ष्मीदे शुभम् आरोग्यं मनोकारणसिद्धि-नवनिधि कुरवन्तु (२४३७) चतुःषष्टि-योगिनी यंत्रम् ॥संवत् १९३८ रा शाके १८०३ वर्षे वैशाख सुदि ३ रविवारे........प्रतिष्ठितं श्रीश्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीभावहर्षगच्छे धाड़ीवाल से श्री मदनचंदजी अनोपचंदजी रे शुभ हेतवे॥ श्रीनागपुर मध्ये श्रीजिनपद्मसूरि भावहर्षगच्छे। __ (२४३८) शांतिनाथः (१) संवत् १९३८ वर्षे शाके १८०३ प्रवर्त्तमाने (२) मासोत्तममासे ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे (३) द्वादशम्यां गुरुवासरे श्रीव्यवहारगिरिशिखरे(४) श्रीशांतिजिनचरणप्रतिष्ठा। प्रथम (५) श्रीजिनहर्षसूरिभिः वृद्धविजय प्रतिष्ठा (६) राय लछमिपत धनपत बा(७) हदर जिर्णोद्धार कारापितं श्री(८) रस्तु (२४३९) महावीर-पादुका (१) संवत् १९३८ वर्षे शाके १८०३ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे (२) शुभे ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे द्वादशी गुरुवासरे...........श्रीव्यवहार(३) गिरिशिखरे श्रीजिनचैत्यालये मूलनायक श्री (४) महावीरजिनचरणन्यासः प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छे वृद्धवि(५) जय थापीतं(दू) साह बहादरसंह प्रताप(६) सिंह तत् पुत्र राय लक्ष्मीपत धनपतसिंह (७) बाहाद(र) जिर्णोद्धार कारापितं श्रीरस्तु २४३५. चन्द्रप्रभ जिनालय, रंगपुर, उत्तर बंगाल पू० जै०, भाग २, लेखांक १०२१ २४३६. अजितनाथ मंदिर, नागपुर २४३७. अजितनाथ मंदिर, नागपुर २४३८. जैनमंदिर, वैभारगिरि, राजगृहः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८५० २४३९. चौथा मंदिर, वैभारगिरि, राजगृहः पू० जै०, भाग २, लेखांक १८४८ (४२२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) प्रथम प्रतिष्ठा संवत् १८७४ शा० १७३९ मासो(९) तमासे शुभे ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे पं(१०)चम्यां तिथौ सोमवासरे श्रीजिनचन्द्र(११)सूरिजी महाराज का० श्री। __ (२४४० ) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १९३८ आ० कृ० १३ इदम् श्रीजिनकुशलसूरि चरणम् लूणिया गो० मुन्नालाल पुत्र हीरालाल प्रतिष्ठितम् श्रीजिनचन्द्रसूरीणां। (२४४१) ... "पादुका संवत् १९३८ रा वर्षे मिति कार्तिक सुदि ११ दिने पं० प्र० श्रीहितकमलमुनि.................. । (२४४२) दादापादुका श्रीसीबाड़ीरे मंदिर जी सं० १९३८ साल में होयो जिण में श्रीदादाजीरा पगलिया चक्रेश्वरीजी सेंसकरणजी सावणसुखा रै अठे सुं पधराया (२४४३) अगरचंद-पादुका ॥ सं० १९३९ शाके १८०४ प्र ज्येष्ठ वदि १३ रविवारे जं। यु। प्र। भ। बृहत्खरतरगच्छाधीशैः श्रीश्री १०८ श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीजैसलमेरेश म। रावलजी श्रीवैरिशालजी राज्ये श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां पं० प्र० अगरचंद्रमुनिचरणन्यास प्रतिष्ठा कृता कारिता च तत्भ्रातृव्य तत्सुशिष्य पं । वृद्धिचंद्र जइतचंद्रादिभिः श्रीरस्तु। गजधर आदम॥ (२४४४) जिनकुशलसूरि-पादुका सं०। १९३९ फाल्गुण कृष्ण ७ गुरौ श्रीजिनकुशलसूरिपादन्यास जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनमुक्तिसूरीश्वराणामादेशात् श्रीदालचंद गणिभिः प्रतिष्ठितं ॥ सेठ गोत्रीय ताराचंदात्मज रामचंद्रेण कारितः स्वश्रेयोर्थं मिरजापुर बरो। (२४४५) गोमुखयक्षः श्रीगोमुखयक्ष मूर्तिः॥१॥सं० १९३९ फाल्गुण कृष्ण ७ गुरौ प्रतिष्ठितं जं। यु।प्र। बृहत्खरतरभट्टारकेन्दु श्रीजिनमुक्तिसूरिजितामादेशात्मंडलाचार्य श्रीविवेककीर्ति गणिना कारितं । श्रीसंघस्य श्रेयोर्थमयोध्यायाम्॥ शुभम्॥१॥ २४४०. खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर, तुलापट्टी, कलकत्ताः जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३६८ २४४१. रेलदादाजी के बाहर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २११७ २४४२. पार्श्वनाथ मंदिर, शिववाड़ी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१६८ २४४३. दादाबाड़ी, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८४७ २४४४. चन्द्रप्रभ जिनालय, मथियान महोल्ला, विहार: पू० जै० भाग १, लेखांक २३३ २४४५. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्याः पू० जै०, भाग २, लेखांक १६५७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) ४२३) For Personal & Private Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का ( २४४६ ) जिनचन्द्रसूरि-पादुका संवत् १९४० वर्षे शाके १८०५ मिति वैशाखमासे शुक्लपक्षे ३ तृतीयायां तिथौ बुधवासरे भ। यं । दादाजी श्रीजिनचन्द्रसूरिजी चरणपादुका भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन कारापिता ।। (२४४७) शालालेख श्री सं० १९४० शाके १८०५ मि० ज्ये० शु० १३ गु० पं। प्र। श्रीश्री १०८ आणंदसोमजी प्र॥ ___ (२४४८ ) जिनकुशलसूरि-पादुका दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी॥ सं० १९४० रा मि। मिगसर वदि ७ श्रीजिनचंद्रसूरिभिः (२४४९ ) सिद्धचक्रयंत्रम् श्रीसिद्धचक्रो लिखितो मया वै भट्टारकीयेन सुयंत्रराजः। श्रीसुन्दराणां किल शिष्यकेण, सरूपचंद्रेण सदर्थसिद्ध्यै ॥ १॥ श्रीमन्नागपुरे रम्ये, चंद्रवेदांकभूमिते (१९४१)। अब्दे वैशाखमासस्य तृतीयायां सिते दले॥२॥ (२४५०) दादागुरु-पादुके ___ संवत् १९४१ वर्षे शाके १८०६ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे पंचमतिथौ ५ गुरुवासरे दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिः जिनकुशलसूरीश्वरचरणप्रतिष्ठितं. ....................मुता धरमज श्रीसंघउपदेशतः श्रीरस्तु । कल्याणमस्तु। ___ (२४५१) निजैचंद्र-पादुका ॥ १९४१ मिति भाद्रव सुदि ३ गुरांजी पं। प्र। श्री १०८ श्रीनिजैचंद खरतरा अचरजगच्छ रा। (२४५२) सं० १९४२ चैत्र सुदि १० रविवासरे श्रीकलकत्तावास्तव्य ओसवंशे...........जीवणदास चुनीलाल भार्या गुलाबबाई पार्श्वनाथ। खरतरगच्छे देवचंद्रेण प्रति० (२४५३) आदिनाथः सं० १९४२ का मिति आषाढ़ वदि १३ दिने श्रीगोलछा धनाणीगोत्रे श्रावक बाघमलजी भार्या मघी कुंवर तस्य पुण्य हेतवे॥ २४४६. दादासाहब की बगीची, चुरू: ना० बी०, लेखांक २४१९ २४४७. दादासाहब की बगीची, चुरू: ना० बी०, लेखांक २४२३ २४४८. कुंथुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६८८ २४४९. केशरियानाथ मंदिर जोधपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६४१ २४५०. शांतिनाथ जी का मंदिर, पचपदरा, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १०४ २४५१. दादाबाड़ी, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८६६ २४५२. खरतरवसही, शत्रुजयः भँवर० ले० सं० (अप्रका०), लेखांक ६५ २४५३. शांतिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८०२ (४२४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. श्रीवीरविक्रमादित्य राज्यात् संव्वति १९२० रा शाके १७७४ (?) प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे शुभे मिगसर कृष्ण २. पक्षे (स)प्तम्यां तिथौ चंद्रवासरे श्रीबृहत्खरतराचार्यगच्छे का० श्रीसंघेन कारापितं श्रीमदादिजिन बिंबं प्रतिष्ठितं ३. जं० यु० प्रधान भट्टारक श्रीजिनहे मसूरिभिः श्रीविक्रमाख्ये पुरे श्रीसरदारसिंहजी (२४५४) पार्श्वनाथः १. सं० १९४२ का मिति आषाढ़ वदि १३ दिने श्रीगोलछा धनाणीगोत्रे श्रा२. वक करणीदानजी भार्या नवलकुंवार श्रीपार्श्वजिनबिंबं स्थापितं त............ ३. .............ख हेतवे। श्रीजिनहेमसूरिणां धर्मराज्ये।। (२४५५) चतुर्विंशति-जिनसाधुसंख्या-पादुका संवत् १९४२ का मि। पौष शुक्ल त्रयोदश्यां वरे सोमवारे श्रीचतुर्विंशति जिनसाधुसंख्या पादुकाः श्रीपार्श्वजिनगणधरपादुका खरतरगच्छे महो श्रीदानसागरजी गणिः तत् शिष्य पं। हितवल्लभ मुनिना प्रतिष्ठितं गुज्जर देशान्तरगत मांडल वास्तव्य.......... वीर सोभाग्यवर लक्ष्मीचंदेन श्रीसमेतशिखरि परिस्थापितं । .१। श्रीऋषभ १०००० साधुसुं अष्टापद ऊपर २ । श्रीअजित १००० साधु सुं३ । श्रीसंभव १००० साधुसुं ४। श्रीअभिनंदन १००० साधुसुं ५। श्रीसुमति १००० साधुसुं ६। श्रीपद्मप्रभ ३०० साधुसुं ७। श्रीसुपार्श्वनाथ ५०० साधुसुं ८। श्रीचंद्रप्रभ १००० साधुसुं ९ । श्रीसुविधि १००० साधुसुं १० । श्रीशीतल १००० साधुसुं ११ । श्रीश्रेयांस १००० साधुसुं १२ । वासुपूज्य ६०० साधु चंपापुर १३ । श्रीविमल ६००० साधुसुं १४। श्रीअनंत ७०० साधुसुं १५ । श्रीधर्म १०८ साधुसुं १६ । श्रीशांति ९०० साधुसुं १७ । श्रीकुंथु १००० साधुसुं १८। श्रीअरि १००० साधुसुं १९ । श्रीमल्लि ५०० साधुसुं २० । श्रीमुनिसुव्रत १००० साधु २१ श्रीनमि १००० साधुसु २२ । श्रीनेमि ५३६ साधुसुं गिरनार २३ । श्रीपार्श्व ३३ साधुसु २४ । श्रीमहावीर एकाकी पावापुरी॥ (२४५६) शांतिनाथः संवत् १९४३ का मि। वै। शु। ७ चं। वा। श्रीशांतिजिनबिंबं का। गोलवछा हर्षचंद्र इन्द्रचंद्राभ्यां प्रति । बृहत्ख। ग। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ ___(२४५७) अभयसिंह-पादुका सं० १९४३ रा मि० माघ सुदि १३ वार रवि पं० प्र० श्रीअभयसिंहमुनिनां पादुका पं० गुणदत्त मुनिना कारापिता प्रतिष्ठितं च २४५४. शांतिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८०३ २४५५. सम्मेतशिखर: पू० जै०, भाग २, लेखांक १८०८ २४५६. पार्श्वनाथ जिनालय, कोलड़ी, जोधपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६३९ २४५७. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०४४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) ४२५, For Personal & Private Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४५८) शिलापट्ट-प्रशस्तिः ॥ श्रीजिनेन्द्रप्रथमं प्रणम्य स्वस्तिप्रदातैः सकलं च संघं सूर्या ऋषभमस्तु कीर्तनादि प्रशस्तिरेषा लिखिता शुभंयुः॥ १॥ स्वस्ति श्री संवत् १९४३ शाके १८०८ फाल्गुण शुक्ल तृतीयायां ३ शुक्रवासरे वृषलग्ने वृषनवांसमध्ये श्रीश्रीश्री १००८ श्रीआदिनाथस्वामीजिनेन्द्रप्रतिमायाः श्रीसवाई जयपुरनगरमध्ये सोगा ए पास भाजे मदी (?) भ० श्रीपूज्यजी महाराज श्रीहेमचंद्रसूरिभिः पार्श्वचंद्रगच्छाधिकारिभिः श्रीपूज्यजी महाराज खरतरगच्छे भ० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः बांठियागोत्रे सेठजी सा० श्रीगंभीरमलजी वासी बीकानेर का हालवासी आगरा का तत्पुत्री बाई जवारकुंवर तत्पुत्री बाई राजकंवर तया श्रीआदिजिनेन्द्रभवनं कारयित्वा प्रतिष्ठा कारापिता। मारफत कन्हियालालजी डागा पुंजाणीगोत्रे । शुभंभूयात्। उसता जहेदीलाल॥ श्री॥ (२४५९) पादुकात्रय सं० १९४३ रा मि। फा। सु। ३ दिने श्रीगणधराणां चरणन्यासः श्रीसंघेन कारापितं जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्रीशम्बजी १७ श्रीपुण्डरीकजी १ श्रीगौतमस्वामीजी २४ (२४६०) पादुकात्रय __संवत् १९४३ रा मिति फा। शु। प्र। तृतीया दिने श्रीगुरूणां चरणन्यासः पं० उदयपद्म मुनिना स्थापितं प्रतिष्ठितं च॥ पं० प्र० श्रीहितधीरजिमुनिः। उ० श्रीसुमतिशेखरजिद्गणिः। पं० प्र० श्रीचारित्रअमृतजिमुनिः श्रीरस्तु॥ - (२४६१) हितधीरमुनि-पादुका सं० १९४३ रा मि० फा० सु० प्र० ३ दिने पं० प्र० हितधीरजिमुनीनां पादुका पं० उदयपद्ममुनिना स्थापितं श्रीरस्तु। (२४६२) मानलच्छी-पादुका , सं०। १९४३ मि। फा। सु। प्र। ३ दिने। सा। मानलच्छीनां पादुका सा० कनकलच्छीना स्थापिता. (२४६३) महिमाभक्ति-पादुका सं० १९४४ मि० वैशख कृष्ण ११ ति. चं० वासरे पं० प्र० श्रीमहिमाभक्तिगणीनां पादुका कारापिता प्रतिष्ठितं च पं० महिमाउदय मुनि पं० पद्मोदय मुनिभ्यां । (२४६४) शिलालेखः (१) ॥ स्वस्तिश्री संवत् १९४४ शाके॥ २४५८. नया मंदिर, जयपुरःप्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६४० २४५९. अजितनाथ देरासर, सुगन जी का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६८७ २४६०. दादा श्रीजिनकुशलजी का मंदिर, नाल: ना० बी०, लेखांक २२९२ २४६१. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०९३ २४६२. दादा श्रीजिनकुशलजी का मंदिर, नाल: ना० बी०, लेखांक २२९४ २४६३. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०७३ २४६४. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, ब्रह्मसर: जैसलमेर: पू० जै०, भाग २, लेखांक २५८१ (४२६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) १८०९ माघ शुक्ल ८ शनौ प्रवर्त॥ (३) माने ब्रह्मसर ग्रामे पार्श्वजिनचैत्यं (४) महारावलजी श्रीश्री १०५ श्रीवैरिशा(५) लजी विजयराज्ये कारापिता ओशवंशे (६) वाग(रे)चा गोत्रे गिरधारीलाल भार्या सिण(७) गारी तत्पुत्र हीरालालेन प्रतिष्ठितं जै(८) नभिक्षु मोहनमुनिना प्रेरक वाग(रे)चा (९) अमोलखचन्द्र पुत्र माणकलालेन कृ(१०)तं गजधर महादान पुत्र आदम ना(११)मेण श्रेयोभूयात् शुभं भवतु (२४६५) जीर्णोद्धार-लेखः सं० १९४५ मिती श्रावण सुदि ७ जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनोदयसूरीणां चत्वरस्य जीर्णोद्धारमकारि . (२४६६) जिनहेमसूरि-चत्वरम् सं० १९४५ मिती श्रावण सुदि ७ जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहेमसूरीणां चत्वरमकार्षीत् __ . (२४६७) जीर्णोद्धार-लेखः सं० १९४७ मि० वै० सु० २ चन्द्रे श्रीमन्महाराजाधिराज श्रीगंगासिंहजी विजयराज्ये श्री तपागच्छाधीश्वर श्रीविजयराजसूरि विजयराज्ये श्रीविक्रमाख्यपुरे वास्तव्य मु० को० मानमलजी जीर्णोद्धार कारापितं तिणारी लागत श्रीभण्डारजी माहेलुं रूपीया इण मुजब लागा है प्रतिष्ठितं पुनरपि बिंबं पं० सुमतिसागर पं० धीरपद्मेन श्रीसिरदारसहरमध्ये। चै । इदुः। खुदाबगस मुलजोड़ी और सर्वखाती मोती ने काम कियौ॥ श्रीरस्तुः॥ (२४६८) शिलालेखः सं० १९४७ शलिवाहन शाके १८१२ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे तिथौ ५ थिरवारे श्रीकालाबागवास्तव्य ओसवंशे लूणिया गोत्रे वृद्धशाखायां सं० दीवानचंद तत् भार्या सनमेराई तत्पुत्र जेठानंद जी ये श्रीपार्श्वनाथजिनबिंबं स्थापितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ। जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनमुक्तिसूरि तत्पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये पं । प्र। हर्षकीर्ति तत्पट्टे हेमचंद्रेण प्रतिष्ठितं च शुभं भवतु। (२४६९) गणेश-पादुकाः महाराजाधिराज श्री १०८ श्रीशालिवाहन राज्ये । श्री। संवत् १९४७ मिती चैत वदि १ श्रीखरतरगच्छे जं । यु। प्रधान श्रीजिनमुक्तिसूरि राज्ये पं। प्र। श्रीगणेशजी रा चरणछतरी॥ द० पं० विरधीचंद का। २४६५. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०५९ २४६६. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०६० २४६७. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, सरदारशहर: ना० बी०, लेखांक २३८२ २४६८.खरतरवसही, शत्रुजय भंवर० ले० सं०, (अप्रका०), लेखांक ९९ २४६९. दादाबाड़ी, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८५२ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) ४२७) For Personal & Private Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४७०) रतनश्री-पादुका सं० १९४८ रा मिति माघ शुक्ल ५ बुधवासरे आर्या श्रीरतनश्रीकस्य चरणपादुका कारापितं आर्याजतनश्रिया शुभं। (२४७१) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ संवत् १९४९ रा शाके १८१४ प्रमिते मिती पौष कृष्ण ५ दिने गुरुवासरे खरतरगच्छाधीश्वर जं। यु।प्र।भ। श्रीजिनकुशलसूरि सद्गुरूणां पादुका न्यास कारितं समस्त संघेन स्तूपयुतम् प्रतिष्ठितं श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखाधरेण पं । कृपाचंद्रेण मुनिना श्रीरस्तु॥ (२४७२ ) हर्षकीर्ति-पादुका सं० १९४९ मा० सु० १० शुक्रवारे श्रीपादलिप्तनगरवास्तव्य श्रीबृहत्खरतरगच्छे खेमशाखायां पं। प्र। श्रीकनकशेखरजी तत्पट्टे पं। दयाविलासजी तत्पट्टे पं। हर्षकीर्ति स्वपादुका जं। यु। प्र। भ श्री १००८. श्रीजिनहंससूरि तत्पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये श्रीसिद्धक्षेत्रोपरि श्री चउमुखनाम्नी स्वर्टकमध्ये युग्मचरण स्थापितं पं। प्र। श्रीहेमचंद्रेण प्रतिष्ठितं च गोहेल श्री ७ सूरसिंहजी तत्पट्टे श्रीमानसिंघजी विजयराज्ये। (२४७३) पार्श्वनाथ-स्फटिकरत्न ॥ संवत् १९४९ माघ सुदि १३ श्रीपार्श्वनाथ जी श्रीबिंब प्रतिष्ठा राजकंवरबाई श्रीमोहनलालजी मुनि। (२४७४) शिलालेखः ॥ श्रीमदिष्टदेवेभ्यो नमः॥ श्रीमच्छ्रीवीरविक्रमादित्यराज्यात् नभवर्णनिधिइंद्वब्द शाके इंद्रिचंद्रसिद्धिनक्षत्रेशप्रमिते मासोत्तममासे द्वितीय आषाढ़मासे शुक्लपक्षे अष्टम्यां तिथौ भार्गववासरे स्वातिनक्षत्रे साध्ययोगे बुधमार्गे एवं पंचागशुद्धावत्र समये कर्कार्कगते रवौ शेषे पजनिरिक्षितवेलायां श्रीमद्राजपरवरे मालगोत्रे साह तनसखदास तत्पुत्र साह आसकरणेनासौ श्रीचंद्रप्रभजिन्प्रभो प्रासाद कारितं स्वश्रेयोर्थं श्रीबृहत्खरतरभट्टारकगच्छाधिपै भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरीश्वर प्रतिष्ठितश्चेति पं० सिवलालमुनिरुपदेशात् । __ (२४७५) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं। १९५० आषाढ़ सुदि ८ अष्टम्यां शुक्रवासरे उ। श्रीतिलकधीरगणिना श्रीजिनकुशलसूरीणां चरणं श्रीसंघकारापितं प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। २४७०. रेल दादाजी के बाहर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१२१ २४७१. जैन मन्दिर, मक्सी जी तीर्थः भँवर० (अप्रका०), मालवांचल के जैन लेख, लेखांक २६६ २४७२. खरतरवसही, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक ६१ २४७३. सेठ जी का घर देरासर, कोटा: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६४३ २४७४. जैन मंदिर, सदरबाजार, रायपुर: पू० जै०, भाग २, लेखांक २०७७ २४७५. स्टेशन स्थित जिनालय, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६४४ (४२८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४७६ ) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १९५० के स्थापित जिनकुशलसूरि चरण हैं। (२४७७ ) ताम्रपत्रोत्कीर्ण-लेख: श्री जिनायनमः॥ श्रीमत् वीर सं० २४२१ विक्रम सं० । १९५१ शाके १८१६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे आषाढशुक्लपक्षे तृतिया तिथौ गुरुवारे पुष्यनक्षत्रे मिथुनार्कगते रवौ शेष शुभनिरिक्षितवेलायां श्रीरतं(राज) वरे मालू गोत्रे साह धनरूपजी तत्पुत्र साह फुलचंदजी कस्या भार्या हीरादेवी तया श्रीअभिनंदनजिनप्रभो प्रासादकारितं स्वश्रेयं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरीश्वरजी आदेशात् श्रीशिवलाल मुनि प्रतिष्ठितम्॥ श्रीशुभम्॥ . (२४७८) दादापादुका-युगल पगलीया श्रीदादाजिनदत्तसूरिजी श्रीजिनकुशलसूरिजी संवत् १९५१ रा मिती सावण सुद ५ वार सोमवार (२४७९) उपाश्रय-लेखः ॥ श्रीवीर सं० । २४२१ विक्रम संवत् १९५१ आश्विन शुक्लपक्षे विजयदशम्यां श्रीविक्रमपुरवरे श्रीमहाराजाधिराज गंगासिंहजी बहादुर विजयराज्ये चतुर्विंशतितम जगदीश्वर जैन दिवाकर पुरुषोत्तम श्रीमहावीर स्वामी के ६५ पाटे कौटिकगच्छ चन्द्रकुल वज्रशाखा श्रीबृहत्खरतरविरुदधारक श्रीजैनाचार्य श्रीजिनचंद्रसूरीश्वरजी के अंतेवासी विद्यानिधान पूज्य पाठक श्रीउदयतिलकजी गणि तत्छिष्य पूज्य पा० । श्री अमरविजयजी गणि त। पु। श्रीलाभकुशलजी गणि त। पु। श्रीविनयहेमजी गणि त। पू। सुगुणप्रमोदजी गणि त।पु। श्रीविद्याविशालजीगणिः। त।पू। पाठक वर्तमान श्रीलक्ष्मीप्रधानजीगणिः उपदेशात् त । पं० मोहनलाल अपर नाम मुक्तिकमलमुनिना तत्त्वदीपक मोहन मण्डली सर्व संघस्य ज्ञानवृद्ध्यर्थं श्रीजैनलक्ष्मीमोहनशाला नामकं इदं पुस्तकालयः कारापितं ॥ दूहा ॥ जब लग मेरु अडिग है, जब लग शशि अरु सूर। तब लग या शाला सदा रहजो गुण भरपूर ॥१॥ (२४८०) नवलश्री-पादुका सं० १९५१ शाके १८१६ मिते माघ शुक्ल पंचम्यां गुरुवारे आर्या नवलश्रीणां चरणन्यासः प्रशिष्यणी आर्या यतनश्री प्रतिष्ठापित श्रीरस्तुः २४७६. कुंथुनाथ जिनालय, जोधपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६४५ २४७७. जैनमंदिर, सदरबाजार, रायपुर, छत्तीसगढ़ः पू० जै०, भाग २, लेखांक २०७८ २४७८. सेठजी का मंदिर, बूंदी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६४७ २४७९. उपाश्रय का शिलालेख, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २५५२ २४८०. रेलदादाजी के बाहर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१२० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) ४२९ For Personal & Private Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४८१ ) पार्श्वनाथ- पादुका शुभ संवत् १९५१ रा मिती माघ शुक्ल नवमी उपरांत दशम्यां श्रीसम्मेतशिखरे श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रचरणपादुका कारितं प्रतिष्ठिता । उ । हितवल्लभगणिभिः श्रीखरतरगच्छे। बालोचरनगरे रायधनपतसिंहस्य चैत्ये । श्रीः । (२४८२) गिरिराज-पट्टः ॥ शुभ संवत् १९५१ का मिती माघ शुक्ल ९ उपरांत दशम्यां । शु। तिथौ श्रीऋषभदेवस्वामीचरणपादुका श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठिता उपाध्याय हितवल्लभगणिभिः श्रीखरतरगच्छे श्रीमुर्शिदाबाद वास्तव्य राय धनपतसिंहस्य चैत्यप्रतिष्ठायां स्वश्रेयोर्थं । (२४८३) दीपचन्द्र - पादुका उपाध्यायजी श्री १०८ श्रीदीपचन्द्रजी हरराजजी विक्रम संवत् १९५१ को पं० दीपचन्द्रजी .. ३० के देवलोक ..श्रीजिनफतेन्द्रसूरिजी (२४८४ ) शिलालेख: (१) ॥ संवत् १९५२ रा शाके १८१७ मासोत्तममासे ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे तिथौ दशम्यां रविवारे शूलाग्रामस्थः मालूगोत्रे सा० । कालू (२) राम रतनचंद खरतरगणोपासकेन कारापितं जिनभवने चंद्रप्रभुबिंबं स्थापितं खरतरगच्छे क्षेमकीर्त्तिशाखायां विद्वद्रामचंद्रगणि (३) तत्शिष्य पं प्र । उदयचंद्रगणिः तच्चरणांतेवासी उपाध्याय नेमिचंद्रेण प्रतिष्ठितं जिनभवनं स्थापितं बिंबं च पं० । श्यामलाल साकम् (२४८५ ) जीर्णोद्धार - लेख : श्रीदादाजी महाराज के मंदिर जी का जीरणउद्धार । लक्ष्मीचंद राखेचा की लड़की छोटी बीबी की तरफ से बनाया । भादो सुदि ४ शुक्रवारे सम्वत् १९५२ ( २४८६ ) ताम्र-यंत्रम् ॥ सं० १९५२ का माघ सुदि २ गुरुवासरे यंत्र प्रतिष्ठापितं बृ० । भ० । श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः । रतलाम नगरे कारितं । पं० प्र० सरूपचंदजी स्वश्रेयोर्थं ॥ (२४८७) जिनकुशलसूरि - पादुका संवत् १९५२ का मिति माघ शुक्ला ३ तिथौ गुरुवासरे जं० यु० प्रधान खरतरभट्टारक दादाजी २४८१. शुभस्वामी की देहरी, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर ० २४८२. शुभ स्वामी की देहरी, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर ० २४८३. दादाबाड़ी, नागपुर: २४८४. चन्द्रप्रभ जिनालय, शूलाबाजार, मद्रासः पू० जै०, भाग २, लेखांक २०६४ २४८५. चन्द्रप्रभ जिनालय, चन्द्रावती: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६८४ २४८६. तपागच्छ का उपाश्रय, जैसलमेर : पू० जै०, भाग ३, लेखांक २४९३ २४८७. नया मंदिर, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६४९ ४३०) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराज १०८ श्रीजिनकुशलसूरिजी महाराजरा चरण कमल प्रतिष्ठापितं जंगमयुगप्रधान बृ० ख० भ० । श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं........... ..............श्रेयोर्थं .......... ............कारितं बाईराजकुंअरि श्रेयोर्थं ॥ (२४८८) जिनदत्तसूरि-जिनकुशलसूरि-पादुके सं० १९५२ वर्षे माघ शुक्ल पूर्णिमा गुरौ श्रीजिनदत्तसूरि-जिनकुशलसूरिवरस्य पादुका प्रतिष्ठिता राजेन्द्रसूरिणा कारिता बहुफणा ओंकारजी तत्पुत्र ताराचन्द्र हुकमीचन्द्राभ्यां राजगढ़नगरे शुभंभवतु। (२४८९) मणिधारी-जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥संवत् १९५२ रा माघ सु०५ तिथौ जं । यु।प्र। खरतरभट्टारकदादाजी महाराज श्रीजिनचन्द्रसूरिजी मणिवालों के चरण कमल प्रतिष्ठापितं।ज। यु।प्र। बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीरतलामनगरे कारितं । जयपुरस्थ श्रीसंघेन स्वश्रेयोर्थं । गुरुवारे। ( २४९० ) पार्श्वनाथ-पादुका शुभ सम्वत् १९५२ का मिति माघ शुक्ल नवमी उपरान्त दशम्यां तिथौ भौम्यवासरे श्रीसम्मेतशिखर श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रचरणपादुका समस्त श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठिता हितवल्लभगणिभिः श्रीखरतरगच्छे श्रीमुर्शिदाबाद बालोचरनगरे राय धनपतसिंह स्वचैत्ये प्रतिष्ठिता॥ (२४९१) सरूपचन्द्र-पादुका संवत् १९५२ रा मिती माघ शुक्ल पूर्णमासी १५ तिथौ गुरुवासरे गुरांजी महाराज श्रीसरूपचंद्रजी स्वर्ग पोहता तस्य चरणपादुका स्थापितं । दूज जेठ सुदि ३ दिने। (२४९२) शिलालेखः स्वस्ति श्रीविक्रमादित्यराज्यात्संवत् १९५२ शालिवाहनकृतशाके १८१७ पु० ११ श्रवणनक्षत्रे घटी १२ पु० ३१ बब घ० । पु० ३५ तत्समये महाराजाधिराज महाराजजी श्री १०८ सज्जनसिंघजी विजयराज्ये श्रीजैसलमेरुवास्तव्य पुंवारजैनक्षत्रियओशवंश बहुफणागोत्रे संघवी सेठजी श्रीगुमानचंदजी तत्पुत्र मगनीरामजी तत्पुत्र बभूतसिंहजी तत्पुत्र पूनमचंदजी-दीपचंदजी तत्पुत्र सौभाग्यमलजी-चांदमलजी बा रायसाहब केशरीसिंहजी, पूनमचंदजी की भार्या धनकुंवर, दीपचंदजी की भार्या पदमकुंवर, सौभाग्यमल जी की भार्या आणंदकुंवर फूलकुंवर २, केशरीसिंहजी की भार्या उमरावकुंवर सपरिवारसहितेन आत्मस्वपरकल्याणार्थं श्रीरतलामनगरे वर्तिनी समीचीनारामस्थाने श्रीजिनमंदिरनवीनं कारापितं श्रीजिनचंद्रप्रभबिंबं प्राचीनं श्रीजिनकोटिकगच्छाचार्य समुद्रसूरिप्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे जं० यु० प्र० सकल भट्टारक शिरोमणि : श्री १०८. श्रीजिनमहेन्द्रसूरिपदपंकजसेविना श्रीजिनमुक्तिसूरि चतुर्विधश्रीसंघसहितेन विधिपूर्वक महत्ता २४८८. दादासाहेब की पादुका, राजगढ़: य० वि० दि०, भाग ४, लेखांक २० २४८९. दादाबाड़ी, सांगानेर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६५० २४९०. मधुवन, सम्मेतशिखर: जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३६९ २४९१. दादाबाड़ी, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८४८ २४९२. कोटा वाले सेठ जी की धर्मशाला स्थित चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, रतलामः य० वि० दि० भाग ४ लेखांक ३० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महोत्सवेन शोभनलग्ने श्रीमूलनायकजिनबिंबं स्थापितं पुनः बिंबोभयपार्श्वजिन के परिकर सहित मूलनायक जी के स्थापन किये। (२४९३) मुनि-कपूरचन्द्र-पादुका सं० १९५३ रा मिती ज्येष्ठ वदि ५ तिथौ शनिवारे श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां पं० प्र० कपूरचंद्रजी मुनिनां पादुका स्थापितं। ( २४९४) हितवल्लभगणि-पादुका सं० १९५३ शाके १८१८ ज्येष्ठ सुदि १४ तिथौ गुरुवासरे श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां म। श्रीदानसागरजिद्गणि तत्शिष्य उ० श्रीहितवल्लभजिद्गणिनां पादुका (२४९५) धर्मवल्लभ-मुनिपादुका सं० १९५३ वर्षे शाके १८१८ मि० भाद्रवपद शुक्ल दशम्यां बुधवासरे पं० प्र० धर्मवल्लभ मुनिचरणन्यासः कारापितं तत्शिष्य वा० नीतिकमलमुनिना श्रीरस्तु शुभंभवतु।। (२४९६) अरनाथः ॥ सं० १९५३ फा० व० ५ गु० । श्रीअरिनाथजिनबिंबं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः आहोरनगरे स्थापितं जैपुर । (२४९७) माणिक्यहर्ष-चत्वरम् सं० १९५३ मि० चैत वदि १२ दिने श्री म। उ। माणिक्यहर्षगणीनां चत्वरमकारि। (२४९८) उपाश्रय-लेखः ॥ ब्रह्मा विष्णु शिव शक्ति आदि स्वरूप श्रीऋषभ वीतरागाय नमः दादासाहिब श्रीजिनकुशलसूरि संतानीय क्षेमधाड़ शाखायां श्रीसाधुजी महाराज पं० । प्र। श्रीधर्मशीलमुनिः तत्शिष्य पं। प्र। श्रीहेमप्रियमुनि पं। प्र। कुशलनिधान मुनिः तत्शिष्य पं। प्र। श्रीयुक्तिवारिधि रामलाल ऋद्धिसार मुनिना ओसवाल माहेश्वरी अग्रवाल ब्राह्मणादि समस्त बीकानेर वास्तव्य प्रजा के कुष्ट भगंदरादि अनेक कष्ट मिटाय कर के विद्याशाला तथा ज्ञानशाला स्थापना करी है, इसमें सर्व मतों के पुस्तक का भण्डार स्थापना करा है, इसमें ऐसा नियम किया गया है कि पुस्तक या विद्याशला जो कोई लेवेगा या बेचेगा सो सर्वशक्तिमान परमेश्वर से गुनहगार होगा चेला सपूतों की मालकी एक गद्दीधर को रहेगी अगर कपूताई करेगा दीक्षा लजावेगा तदारक पंच तथा कमेटी करेगी सं० १९५४ वै। शु। ५ २४९३. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०९४ २४९४. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०४९ २४९५. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०७२ २४९६. पंचायती मंदिर, जयुपरःप्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६५७ २४९७. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०६२ २४९८. महो० रामलाल जी का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २५५३ (४३२) -खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४९९) दादापादुका-चतुष्टयः संवत् १९५५ पौष सुद १५ गुरु ॥ श्रीलुंपकगच्छे श्रीपूज्य अजयराजसूरिः प्रतिष्ठितम् ॥ बाबू लक्ष्मीपत गोविंदचंद की माजी कारापितं श्रीदादाजी चतु:चरणपादुकेभ्योः॥ श्रीस्थूलभद्रसूरिः॥ श्रीजिनदत्तसूरिः॥ श्रीजिनकुशलसूरिः॥ श्रीजिनचंद्रसूरिः॥ (२५००) पद्मप्रभः ॥ सं० १९५५ फा० व० ५ श्रीपद्मप्रभजिनबिंबं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः आहोर नगरे। (२५०१) धर्मनाथः ॥ सं० १९५५ फा। कृ। ५ गुरौ श्रीधर्मनाथजिनबिंब प्र० बृ० ख० भ। श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः आहोर ऊ। श। का। गाम.. (२५०२) शांतिनाथ-मूलनायकः सं० १९५५ का मिति फा। कृ।५ गु। शांतिबिंब प्र० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः आहोरनगरे अंजनशिला ( २५०३) शांतिनाथ-मूलनायकः संवत् १९५५ फा० कृ० ५ गुरौ श्रीशांतिनाथजिनबिंबं प्र० श्रीबृ० ख० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः। श्रीसंघ० प्र० आहोरनगरे काराषितं प्रतिमा भारूं५. नगरे॥ ___ (२५०४) शान्तिनाथः ___ संवत् १९५५ का मिती फा० वदि ५ गुरुवासरे श्रीशांतिनाथबिंबं ख० भट्टा० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः प्र० आहोरनगरे शुभंभवतु। __ (२५०५) शांतिनाथः संवत् १९५५ का० मि० फागुण वदि ५ दिने श्रीशांतिजिनबिंबं ख० भट्टा० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः प्रतिष्ठितं आहोरनगरे। (२५०६)शांतिनाथः संवत् १९५५ फागुण वदि ५ श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः॥ २४९९. चन्द्रप्रभ जिनालय, मथियान मुहल्ला, बिहारः पू० जै०, भाग १, लेखांक २३५ २५००. पंचायती मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६५६ २५०१. पार्श्वनाथ जिनालय, गर्भगृह-2, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक ११७ २५०२. शांतिनाथ जिनालय, चाकसूः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६५४ २५०३.शांतिनाथ जिनालय, भारूंदा: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६६१; य० वि० द०, भाग २, लेखांक ४७, पृ० ८९ २५०४. पार्श्वनाथ जिनालय, गोविन्दगढ़ः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६६२ २५०५. चन्द्रप्रभ जिनालय, जोबनेरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६५८ २५०६. पायचन्दगच्छ उपाश्रय, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६६० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) ४३३ For Personal & Private Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५०७) पार्श्वनाथः ॥ सं० १९५५ का फा० व० ५ श्रीपार्श्वनाथबिंबं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः आहोरनगरे। . ( २५०८) परमेष्ठी-यंत्रम् ॥सं० १९५५ फा० कृष्ण ५ गुरौ श्रीपंचपरमेष्ठीयंत्रं । बृहत्खरतरगच्छे जं। यु।प्र। श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः॥ श्रीः ॥ (२५०९) जीर्णोद्धार-लेखः संवत् १९५६ साल का मिती चैत्र सुदि ४ गाँव नापासर श्रीशांतिनाथजी के मंदिर का जीर्णोद्धार श्रीहितवल्लभजी महाराजगणि के उपदेश से मरामत वा धरमशाला श्रीसंघ बीकानेर वाला के मदत से वणा है मारफत खवास विसेसर मैणा कारीगर चूनगर इलाही वगस थाणेदार महमद अलीजी। (२५१०) पञ्च-चरण ॥ पं० श्रीशोभाचन्दजी पं० रूपचन्दजी पं० गौडीचन्दजी पं० रायचन्दजी पं० धर्मचन्दजी विक्रम १९५६ मिति वैशाख सुदि ३ वार गुरु दादाबाड़ी में प्रतिष्ठा किया। ( २५११) चक्रेश्वरीमूर्तिः ॥सं० १९५६ मिते ज्येष्ठ शुक्ल ३ रवौ इदं चक्रेश्वरी प्रतिष्ठितं जं० । यु।प्र। भ। श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ श्रेयस्तु। ___ (२५१२) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ श्री संवत् १९५६ मिति कुवार सुदि १५ बोहरागोत्रे कस्तूरचंदजी तद्भार्या मोहिनीबीबी कारापितं सिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं बृहद्भट्टारक श्रीजिनरत्नसूरिभिः श्रीजिनचन्द्रसूरिपदस्थितैः॥ ( २५१३) जिनदत्तसूरि-पादुका सं० १९५७ वर्षे ज्ये० शु० १२ तिथौ शुक्रवासरे॥ श्रीजिनकीर्तिसूरि प्रतिष्ठितं श्रीजिनदत्तसूरि नाम पादुका का०। (२५१४) लक्ष्मीप्रधान-पादुका संवत् १९५७ मिति मि० सु० १० श्रीबीकानेर मध्ये पु० उ० श्रीलक्ष्मीप्रधानजी गणि पादुका स्था० उ० श्रीमुक्तिकमलगणिः॥ २५०७. स्टेशन मंदिर, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६५५ २५०८. गुलाबचंदजी का घर देरासरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६५९ २५०९. शांतिनाथ जी का मंदिर, नापासर: ना० बी०, लेखांक २३३५ २५१०. दादाबाड़ी, नागपुर २५११. श्रीमालों का मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६६४ २५१२. श्रीमालों का मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६६५ २५१३. राय मेघराजजी का मंदिर, तेजपुर, आसामः पू० जै०, भाग १, लेखांक ३८५ २५१४. दादा जिनकुशलजी का मंदिर, नाल: ना० बी०, लेखांक २२९१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५१५) हेमकीर्त्ति-पादुका शुभ संवत् १९५७ का मिती फाल्गुन कृष्ण पंचम्यां शुक्रवासरे श्रीजिनकीर्त्तिरत्नसूरिशाखायां पं० प्र० श्रीहेमकीर्तिमुनि चरणपादुका कारापिता पं० प्र० नयभद्र मुनिना। (२५१६) हेमकीर्ति-पादुका संवत् १९५७ का मिती फाल्गुन शुक्ल तृतीयायां गुरुवारे श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां पं० प्र० श्रीहेमकीर्त्तिमुनीनां चरणन्यासः कारिता पं० प्र० नयभद्र मुनिना। (२५१७ ) शिलालेखः आर्याजी श्रीवीजांजी शिष्यणी लालकंवर चढापितं सं० १९५७ (२५१८) आदिनाथः सं० १९५८ का ज्येष्ठ शुक्ल १० शुक्रे श्रीऋषभदेवजीबिंबं कारि० खरतरगच्छे कासि निवासी श्रीनेमचन्दसूरिणा................. (२५१९) लक्ष्मीप्रधान-पादुका सं० १९५८ मि० जे० सु० १० उ० श्रीलक्ष्मीप्रधानजिद्पादुके श्री। सं। का। प्र। पं। मो। (२५२०) ज्ञानभंडार-शिलालेख: श्रीमहोपाध्याय दानसागरगणि पुस्तकभण्डार शिलापट्ट सं० १९५९ चै(?) सं। १(२)१ भण्डार के सब ग्रंथो का एक बड़ा सूचीपत्र है, जिसको सब कोई देख सकते हैं ॥ २ यदि कोई घर ले जाकर पुस्तक देखना चाहे तो पुस्तक का कुछ ही अंश दूसरे को दिये जा सकेंगे। ३ भण्डार से पुस्तक परिचित पुरुषों को ही दी जावेगी ले जाने वाला ७ दिन से अधिक अपने पास पुस्तक नहीं रख सकेगा॥४॥ नकल उतारना चाहे तो वो यहीं पर उतार सकता है। पुस्तक को हिफाजत से रखे।५ यदि ले जाने वाला और लिखने वाला बिगाड़ दे तो कीमत उससे ली जावेगी और ग्रन्थ भी उसको नहीं दिया जायेगा॥६॥ ग्रन्थ देने के समय व लेने के समय रजिस्टर में लिखा जावेगा॥७॥ ग्रन्थ लेने देने का अधिकार संरक्षक को ही होगा। यह ज्ञान भण्डार उ। श्रीहितवल्लभगणि स्थापितंः॥ (२५२१) उपाश्रय-लेखः ॥ महोला रांगड़ी॥ श्री जैन श्वेताम्बर साधर्मीशाला॥ ॥ श्रीजिनवीर सं। २४२८ विक्रम सं। १९५८ मि। आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी दिने श्री बीकानेर मध्ये २५१५. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०७६ २५१६. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२८९ २५१७. गौतमस्वामी की देहरी, रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०३८ २५१८. आदिनाथ जिनालय, राजगढ़, धार: मालवांचल के जैन लेख, लेखांक १२७ २५१९. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०८४ २५२०. श्रीबृहत्ज्ञानभण्डार, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २५३८ २५२१. धर्मशाला रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २५५६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः ४३५) For Personal & Private Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा श्रीगंगासिंहजी बहादुर विजयराज्ये श्रीबृहत्खरतर भट्टारक गच्छे श्रीपूज्यमहाराज श्रीजिनकीर्त्तिसूरिजी सूरीश्वराणामुपदेशात् महोपाध्याय श्रीदानसागरजी गणिः तत्शिष्य उ । श्रीहितवल्लभजी गणिः धर्मवृद्धि के तथा स्वपर कल्याण के अर्थ पं । प्र । श्रीखेतसीजी का शिष्य पंडित श्रीचन्दजी यति के पास से क्रीत भावे यह उपासरा लेकर इसमें सर्व संघ के सन्मुख पूजन उच्छव करके इसका नाम जैन श्वेताम्बरी साधर्मीशाला स्थापित किया इस खाते उ० श्रीमोहनलालजीगणि के शिष्य पं० जयचन्द्रजी मुनिवर की प्रेरणा से कलकत्ता मुर्शिदाबाद वाले श्रीसंघने पण अच्छी मदत दीनी है और श्रीसंघ मदत देते रहेंगे इसकी कुंची कबजा बड़े उपासरे के ज्ञानभंडार में सदैव कायम रहसी इसमें सदैव जैन श्वेताम्बर यात्री आवेंगे सो उतरते रहेंगे सही ॥ सु ॥ दसकत॥ वंशी महातमारा ॥ (२५२२) जिनदत्तसूरि - पादुका ॥ संवत् १९५८ वर्षे आषाढ़ सुदि ५ शुक्रे दादाश्रीजिनदत्तसूरि पादुके प्रतिष्ठितं श्रीजिनकीर्त्तिसूरिभिः ॥ (२५२३) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ संवत् १९५८ वर्षे आषाढ़ सुदि ५ शुक्रे दादाश्रीजिनकुशलसूरिपादुके प्रतिष्ठितं श्रीजिनकीर्त्तिसूरिभिः ॥ (२५२४) अष्टपादुका - चरण २४ मा श्रीमहावीर सं० २४२८ श्रीविक्रम संवत् १९५८ मास तिथौ आषाढ़ सुद ११ गुरुवासरे महाराजा श्रीगंगासिंहजी बहादुर विजयराज्ये श्री बृ । खरतर भट्टारक चंद्र गच्छे ॥ श्रीबीकानेरनगरे । सर्वगुरुपादुके श्रीसंघेन कारापितं प्रति० जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनकीर्त्तिसूरिभिः । जैनलक्ष्मी मोहनशाला अ० लि० एषा पं० । मोहनलाल मु । स्वहस्ते प्र । शिष्य पं० जयचंद्रादिश्रेयोर्थं ॥ श्रीवीरात् ६५ जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनचंद्रसूरिजी पा० ६६ महोपा० श्रीउदयतिलकजी गणिः ६७ । पु । उ । श्री अमरविजयजी गणिः । ६८ पु० उ० श्रीलाभकुशलजी गणिः ६९ पु० उपा० श्रीविनयहेमजी गणि पा० ७० पु० पा० श्रीसुगुणप्रमोदनी गणिः ७१ पु० पा० श्रीविद्याविशालजी गणिः ७२ पू० म ॥ उ लक्ष्मीप्रधानजी गणिः पं० प्र । पा । श्रीमुक्तिकमलजी गणिः ॥ T (२५२५) जिनकुशलसूरि-पादुकाः संवत् १९५८ मिति अघन वदि १२ सोमवार निहालचंद इन्द्रचन्द दुगड़ तस्य परिवार प्रतिष्ठा कारापितं मुर्शिदाबाद ॥ श्रीजिनकुशलसूरि महाराज का चरन ॥ शुभं भवतु २५२६ ) शिलालेख: ॐ श्री यह मंदिर श्री जैन श्वेताम्बराम्म्राय का श्री ऋषभदेवजी महाराज का है। इसका प्रतिष्ठा शुभ संवत् १९५८ शाके १८२३ माघ शुक्ला १२ बुधवार पुनर्वसुनक्षत्र मीनलग्न में खरतरगच्छाचार्य भट्टारक २५२२. पार्श्वनाथ जिनालय, अमरावतीः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६६७ २५२३. पार्श्वनाथ जिनालय, अमरावतीः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६६८ २५२४. कुन्थुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६८६ २५२५. जल मंदिर, पावापुरी: पू० जै०, भाग २, लेखांक २०३२ २५२६. स्टेशन मंदिर, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६७० (४३६ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पूज्यजीमहाराज श्री १०८ श्रीजिनसिद्धिसूरीजी बीकानेर वालों के करकमलों से हुई। यह मंदिर जी जौहरी सेठ भूरालाल गोकलचंद पुंगलिया जयपुर निवासी ने अपने द्रव्य से करवाया। शुभंभवतु। (२५२७) पादुका - युगल ॥ संवत् १९५८ का मिति माघ सुदि १३ गुरुवासरे जयपुर नगरवास्तव्य बृहत्खरतरभट्टारक गच्छे उ। तिलकधीरगणि उ । नेमिचंद्र इति नामकौ तत्शिष्य पं । प्र । लक्ष्मीचन्द्रगणि पं० ज्ञानलाभ पं । सुंदरलालेन गुरुचरणकमल प्रतिष्ठा कारापितं ॥ श्री ॥ जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्री १००८ श्री श्री श्री श्रीजिनकीर्त्तिसूरि विजयराज्ये ॥ जं। यु। प्र । भट्टा० । श्री १०८ श्री श्री श्री श्रीजिनचन्द्रसूरि प्रतिष्ठितं । ( २५२८ ) शिलालेखः सं० १९५९ शाके १८२४ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठ मासे शुक्लपक्षे चतुर्दशी १४ तिथौ गुरुवासरे अजीमगंज वास्तव्य दुधेड़िया गोत्रीय बाबू बुधसिंहजी रायबहादुर बाबू विजयसिंहेनायं शाला उ० हितवल्लभजिद्गणी तस्योपरि कारापिता (२५२९ ) हितवल्लभगणि-पादुका सं० १९५९ शाके १८२४ ज्येष्ठ वदि १४ तिथौ गुरुवासरे श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां म० श्रीदानसागरजिद्गणि तत्शिष्य उ० श्रीहितवल्लभजिद्गणिनां पादुका (२५३० ) महावीर: सं० १९५९ मि० फा० सु० ५ इदं श्रीमहावीरबिंबं कारापितं सेठ सराचंद प्र० भट्टारक जिनचंद्रसूरिभिः । (२५३१ ) शिलालेख: सं० १९५९ जीर्णोद्धार प्रशस्ति गुरांजि हेमचंद्र कर्मचंद्र विनयचंद्र चौमुख टुंक अद्भुतनाथ मंदिर सेठ जीतमल हजारीमल चंपालाल गोलछा जैसलमेर वाला हस्ते चुनीलाल... (२५३२) जिनकुशलसूरि- पादुका सं० १९६० मि। आ । ३ श्रीजिनकुशलसूरीणां चरणपादुका प्रति० श्री.. (२५३३) जिनदत्तसूरि-पादुकाः संवत् १९६१ का वर्षे मिति माघ सुदि ५ गुरुवासरे श्री जं० युगप्रधान जगद्दूड़ामणि दादा साहिब २५२७. मोहन बाड़ी, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६६९ २५२८. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०४८ २५२९. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०४९ २५३०. आदिनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्याः पू० जै०, भाग २, लेखांक १६४० २५३१. खरतरवसही, शत्रुंजय: भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ८८ २५३२. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १५०१ २५३३. पार्श्वनाथ जिनालय, बेगम बाजार, हैदराबाद: पू० जै०, भाग २, लेखाकं २०६१ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only ४३७) Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००८ श्रीजिनदत्तसूरि गुरुमहाराज चरणपादुका श्रीचारकवांण का श्रीसंघेन कारापितं । पं० चारित्रसुखेन प्रतिष्ठापितम् श्रीसंघस्य कल्याण खेम कुशलम् समुपस्थिता ॥ हैदराबाद ॥ (२५३४) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १९६१ वर्षे मि। माघ सु । ५ दिने । जं । युग० १००८ दादासाहेब श्रीजिनकुशलसूरि पादुका । च्यारकबांण । (२५३५ ) जिनदत्तसूरि- पादुका संवत् १९६२ शाके १८२७ श्रीपिंगलनाम संवत्सरे प्रवर्त्तमाने पौषमासे.. बुधवासरे विवे करणे कुकल शुभयोगे श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा महोत्सवे श्रीजिनदत्तसूरि चरणपादुके गोपा वीजा बोहिथरा वास बाहड़मेर भट्टारक जंगमयुगप्रधान बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनसिद्धिसूरिभिः कारितं रावत हीरासिंघजी भाराणी वंसे राज्य प्रधानात् श्रीरस्तु (२५३६) जिनकुशलसूरि- पादुका सं० १९६२ शाके १८२७ श्रीपींगलनाम संवत्सरे पौषमासे... . दिवसे बुधवासरे पुष्यनक्षत्रे ध्रुवयोगे बिबे करणे शुभयोगे श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा महोत्सवे श्रीजिनकुशलसूरीणां चरणपादुका स्थापितं भट्टारक जंगमयुगप्रधान बृहत्खरतरगच्छनायक आचार्यगच्छेश श्रीजिनसिद्धिसूरिभिः कारितं गोपा बोहिथरा बाहड़मेर रावत हीरासिंहजी भाराणी वंशे राज्य प्रधाना श्रीरस्तु । (२५३७ ) जिनकुशलसूरि-पादुका श्रीजिनकुशलसूरिचरणकमलपादुकेभ्यो नमः ॥ शुभ संवत् १९६४ वैशाख धवल १० गुरुवासरे प्रतिष्ठितम्॥ (२५३८ ) नवलश्री - पादुका सं० १९६४ वर्षे शाके १८२९ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे पंचम्यां तिथौ मार्त्तण्डवासरे चंदणश्री पदस्थ सा । नवलश्रीनां पादुका स्वजीवनावस्थायां नवलश्रियौस्य चरणयो स्थापितं कारितं च तया वैकुण्ठवासि.......... गुरुणी इधरा गुरणी..... .. चरणौ विराजमानौ कर्यिता च प्रतिष्ठाकारिता श्रीमद्बृहत्खरतराचार्य गच्छाधीश यं । यु । प्रधानभट्टारक श्री श्री १००८ श्री श्रीजिनसिद्धिसूरीश्वराणां विजयराज्ये । श्रीनालमध्ये महाराजाधिराज श्रीमद्गंगासिंह .. इ..........राजमान श्रीरस्तुः ॥ ....... (२५३९ ) श्रीजिनकुशलसूरि- पादुका श्री अर्गलपुरे साहगंजे प्रथम प्रतिष्ठा संवत् १७७९ मिति ज्येष्ठ सुदि १५ खरतरगच्छे श्री १०८ २५३४. पार्श्वनाथ जिनालय, बेगम बाजार, हैदराबाद पु० जै०, भाग २, लेखांक २०६२ २५३५. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १६३ २५३६. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १६२ २५३७. पार्श्वनाथ जिनालय, बेगम बाजार, हैदराबाद: पू० जै०, भाग २, लेखांक २०६३ २५३८. खरतरगच्छीय शाला, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३१४ २५३९. दादाबाड़ी, शाहगंज, आगराः पू० जै०, भाग २, लेखांक १४९९ (४३८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजिनकुशलसूरिजी के पादुके संवत् १९६४ मिति ज्येष्ठ सुदि २ गुरुवार प्रतिष्ठा समय विद्यमान श्रीतपागच्छ उपाध्याय श्रीवीरविजयजी॥ (२५४०) सहस्त्रफणा-पार्श्वनाथः सं० १९६४ मिति फागुण वदि २ सं० । पा० चांदमल्ल के प्र० वृद्धिचंद्र। (२५४१) शिलालेखः ॥ भ। श्रीजिनकीर्तिसूरि महाराज तत् समये महाराज गंगासिंह राजराजेश्वर । सं० १९६५ मि। चै। सु।५ देशनोक अथूणेवास जीर्णोद्धारः चन्द्रसोममुनिः तच्छिष्य धर्मदत्तमुनेरुपदेशात् कारितः सागरचन्द्रसूरिशाखायां छिला ग्राम वास्तव्य भूरा लक्ष्मीचंद चांदमल उद्यमकारक ताभ्यां कुण्डः कारितः संघ श्रेयोर्थं ॥ हीं॥ ( २५४२ ) जिनकुशलसूरि-पादुका - || संवत् १९६५ वर्षे वैशाख सुदि दशम्यां चन्द्रवारे दादासाहब श्रीजिनकुशलसूरि चरणपादुका स्थापिता श्रीराजनांदगांवनगरे समस्तसंघेन प्रतिष्ठितं मुनि सुमतिसागर.................। (२५४३) जिनदत्तसूरि-पादुका ॥ विक्रम सं० १९६५ शाके १८३० प्र० ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे १२ द्वादश्यां गुरुवारे बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक जंगमयुगप्रधान दादाजी महाराज श्रीश्रीश्री १०८ श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज पादुका प्रतिष्ठितं भङग० श्रे० करणमल्ल सावंतमल सुतः॥ प्रतिष्ठितं पं० लालविजयैन॥ (२५४४) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ विक्रम सं० १९६५ शा० १८३० प्र० ज्येष्ठमासे शुक्लपक्षे १२ द्वादश्यां गुरुवारे बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक जंगमयुगप्रधान दादाजी महाराज श्रीश्री १०८ श्रीजिनकुशलसूरिजी महाराज पादुका प्रतिष्ठितं भड़गतिया करणमल सावंतमल सुतः॥ प्रतिष्ठितं पं० लालविजयेन॥ __(२५४५) पादुका-त्रय युगप्रधान दादाजी महाराज ॥ श्रीजिनदत्तसूरिजी॥ श्री॥ श्रीअभयदेवसूरिजी॥ श्री॥ श्रीजिनकुशलसूरिजी॥ खरतरजैनाचार्य पादुके श्रीसंघेन कारा० श्रीवीर सं० १४३५ सं० १९६५ मिती जेठ सु। १३॥ श्रीदेशणोक नगरे उ। श्रीमोहनलालगणिः प्रतिष्ठिता स्थापिता च॥ २५४०. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २७३५ २५४१. शांतिनाथ जिनालय, भूरों का वास, देशनोक: ना० बी०,लेखांक २२३१ २५४२. पार्श्वनाथ जिनालय, राजनांदगांव: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६७३ २५४३. दादाबाड़ी, मेड़ता रोड: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६७६ २५४४. दादाबाड़ी, मेड़तारोडः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६७७ २५४५. दादाबाड़ी, देशनोक: ना० बी०, लेखांक २२५० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५४६ ) गुरुमन्दिर - शिलापट्टः ॥ श्रीअर्हन्ताय नमः ॥ श्रीचौरासीगच्छसिणगारहार जंगमयुगप्रधान परउपगारी भट्टारक दादाजी श्री श्री १०८ श्री श्रीजिनदत्तसूरिजी श्री श्रीजिनकुशलसूरिजी रो मिंदर भड़गतीया करणमलजी बेटा सावंतमलजी रा पोता सुरजमलजी रा मेड़ता वासी करायो तिणरी प्रतिष्ठा संवत् १९६५ जेठ सुद १२ कराय संवत् १९६५ रा आसोज वद १० ने श्रीसकल श्रीसंघने सुपरत कियो । (२५४७) जयराजगणि-पादुका सं० १८६५ मिते माघ सुदि ५ बृहत्खरतर भ । जं । श्रीसागरचन्द्र० शाखायां उ । श्रीजयराजगणि पादु० कारि० वा० । चारित्रप्रमोद गणि प्रतिष्ठिते च जं । यु । भ । श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ २ ॥ (२५४८ ) मणिधारी - जिनचन्द्रसूरि- पादुका दादाजी मणिधारक श्रीजिनचंद्रसूरिजी । पा । उ। मो। प्र । (१९६५) (२५४९ ) तनसुखदास- चत्वरः सं० १९६६ रा मिति आषाढ़ वदी ३ के दिन पं० प्र० तनसुखदासजी का चत्वरकारि श्रीशुभ (२५५० ) गौतमस्वामी - प्रतिमा सं० १९६७ वैशाख वद १० बुधवासरे प्रतिष्ठा कारापितं गोलछा कचराणी फतैचंद सुत सालमचंद पेमराज श्रीगौतमस्वामिबिंबं प्रतिष्ठितं भट्टारक श्री १००८ श्रीजिनसिद्धसूरिजी बृहत्खरतराचार्यगच्छे। महाराज गंगासिंहजी विजयराज्ये । बीकानेर मध्ये श्रीशांतिजिनालयेः (२५५१ ) सुधर्मा - गौतमस्वामी - पादुकायुगल श्रीसुधर्मास्वामीजी ॥ श्रीगौतमस्वामीजी ॥ संवत् १९६७ रा माघ सुदि ५ जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः हरिसचंद । (२५५२) दादापादुका - युगल ॥ दादाजी जिनदत्तसूरिजी ॥ जिनकुशलसूरि ॥ सं० १९६७ मा० सु० ५ जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं......... गोत्रीय । २५४६. दादाबाड़ी, मेड़तारोडः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६७५ २५४७. दादासाहब की बगीची, चुरू: ना० बी०, लेखांक २४२१ २५४८. दादाबाड़ी, देशनोक : ना० बी०, लेखांक २२५१ २५४९. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०६३ २५५०. शांतिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८०४ २५५१. पंचायती मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६७९ २५५२. पंचायती मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६७८ ४४० खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५५३ ) जिनदत्तसूरि- पादुका श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज चरणपादुकेभ्यो नमः वीर सं० २४४५ विक्रम सं० १९६९ पोष सुदि ९ 'गुरु मेड़तवाल श्री श्रीमल नेमिचंद केकड़ी श्रीश्रीश्री १०८ महाभट्टारक बृहद्खरतरगच्छाधिपति । (२५५४) शिवरामजी - पादुका नागाब्जखेटाब्जमिते सुवत्सरे सुमाधवे शुक्ल रसाख्यतिथ्यां । पादाब्जन्यासः शिवरामसाधोः सुस्थापितो भक्तजनैः सुभक्त्या ॥ १ ॥ (२५५५) सुमतिमंडनगणि-पादुका उ० श्रीसुमतिमंडनगणिना चरणपादुका श्रीसंघेन कारापिता सं० १९६८ मिति माघ शुक्ल पंचम्यां तिथौ बुधवासरे शाके १८३३ श्रीरस्तु (२५५६) पुण्यश्री - पादुका पूज्यपाद गुरुवर्या श्रीमती पुण्यश्रीजी महाराजसाहेब के चरणों की प्रतिष्ठा वीर सम्वत् २४४७ विक्रमसंवत् १९७० के वैशाख शुक्ल ६ गुरुवार के रोज समस्त श्रीसंघने करवायी । (२५५७) कल्याणनिधान- पादुका सं० १९७० मि० वै० सुद २ शुभदिने.. कुशलमुनि बीकानेर मध्ये · .. पादुका महो० श्रीकल्याणनिधानगणिनां पं० (२५५८) दादागुरुदेव - पादुका श्रीगंगाशहर के मंदिर जी में श्रीऋषभदेवजी महाराज की प्रतिमाजी व दादाजी रा पगलिया चक्रेश्वरीजी सैंसकरणजी सावणसुखा पधराया सं० १९७० जेठ वदि ८ (२५५९) ताम्रयंत्रम् ॥ संवत् १९७० रा शाके १८३५ रा ज्येष्ठ मासे कृष्णपक्षे तिथौ त्रयोदश्यायां चंद्रवासरे ॥ भट्टारक श्रीजिनफत्तेंद्रसूरि प्रतिष्ठितं श्रीमद्रास शूलामध्ये ॥ (२५६० ) प्रेमश्री - पादुका सं० १९७० रा मिती माह कृ० ३ वार विस्पतवार साध्वीप्रेमश्रीजी महाराज रा चरण प २५५३. चन्द्रप्रभ जिनालय, केकड़ी: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६८० २५५४: मोहनबाड़ी, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७१० २५५५. रेल दादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०३९ २५५६. मोहनबाड़ी, जयपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६८१ २५५७. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०७१ २५५८. आदिनाथ जी का मंदिर, गंगाशहर: ना० बी०, लेखांक २१७९ २५५९. चन्द्रप्रभ जिनालय, शूलाबाजार, मद्रास : पू० जै० भाग २, लेखांक २०६९ २५६०. रेलदादाजी के बाहर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१२६ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (४४१) I Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५६१ ) विंशतिस्थानपट्टः ॥ संवत् १९७१ शाके १८३६ वैशाखमासे शुभे कृष्णपक्षे १२ तिथौ बुधवासरे भड़गतिया फतेमलजी कल्याणमलजी तत्पुत्र कस्तुरमलजी जेवंतमलजी तत्माता जवांरबाई कारापितं प्रतिष्ठितं । मुनि श्रीहर्षमुनि.. ... उ० प्रेमसुखमुनि (२५६२) जिनदत्तसूरि-पादुका ॥ संवत् १९७१ शाके १८३६ वैशाखमासे शुभे कृष्णे १२ तिथौ बुधवासरे भड़गतिया फतेमलजी कल्याणमलजी तत्पुत्र कस्तूरमलजी जेवंतमलजी तत्माता जवांरबाई कारापितं प्रतिष्ठितं भ । ख । श्रीश्री १०८ श्रीजिनचंद्रसूरिभिः राज्ये प्रवर्त्तमाने पंन्यास हर्षमुनि पं । उ० प्रेमसुखमुनि. वि...............श्रीजिनदत्तसूरि चरणपादुका । (२५६३) जिनकुशलसूरि- पादुका ॥ संवत् १९७१ शाके १७३६ वैशाखमासे शुभे कृष्णे १२ तिथौ बुधवासरे भगतिया फतेमलजी कल्याणमलजी तत्पुत्र कस्तूरमलजी जेवंतमलजी तत्माता जवांरबाई कारापितं प्रतिष्ठितं भ। ख । श्रीश्री १०८ श्रीजिनचंद्रसूरिभिः राज्ये प्रवर्त्तमाने पंन्यास हर्षमुनि पं० । उ । प्रेमसुखमुनि वि.. .. श्रीजिनकुशलसूरि चरणपादुका । . (२५६४) मोहनमुनि - पादुका ॥ संवत् १९७१ शाके १८३६ वैशाखमासे शुभे कृष्णे १२ तिथौ बुधवासरे कस्तूरमलजी जेवंतमलजी भड़गतिया मोहनलाल मुनिना पादुका कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीहर्षमुनि.... .. प्रेमसुखमुनि ( २५६५ ) मुक्तिकमलगणि-पादुका (१) सं० १९७० मार्गशीर्ष कृ० ७ गुरुवासरे स्वर्गप्राप्त उ० मुक्तिकमलगणि (२) सं० १९७२ का द्वि० वै० सु० ५ ज्ञ वारे भ० श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां पूज्य महो० श्रीलक्ष्मीप्रधानजी गणिवराणां शिष्य श्रीमुक्तिकमलजिद्गणीनां चरणपादुका कारापिता प्रतिष्ठितं च जयचंद रावतमल यतिभ्यां स्वश्रेयोर्थं श्रीरस्तु । (२५६६ ) जिनहंससूरि - पादुका सं० १९७२ शाके १८३७ प्रवर्त्तमाने मि० द्वि० वैशाख शुक्ल तिथौ १० चंद्रवारे श्रीविक्रमपुर वास्तव्य श्रीसंघेन जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरीश्वर पट्टालंकार जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहंससूरिणां सं०, भाग २, लेखांक ६८३ सं०, भाग २, लेखांक ६८४ २५६१. भड़गतियों का आदीश्वर जिनालय, अजमेर: प्र० ले० २५६२. भड़गतियों का आदीश्वर जिनालय, अजमेर: प्र० ले० २५६३. भड़गतियों का आदीश्वर जिनालय, अजमेर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६८२ २५६४. भड़गतियों का आदीश्वर जिनालय, अजमेर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६८५ २५६५. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०८३ २५६६. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०९८ ४४२) खरतरगच्छ प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पादुके कारापिते प्रतिष्ठितं च श्री जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनचारित्रसूरिभिः श्रीबृहत्खरतर भट्टारकगच्छे समस्त श्रीसंघ सदा प्रणमति। (२५६७) जिनचंद्रसूरि-पादुका सं० १९७२ शाके १८३७ प्रवर्त्तमाने मि० द्वि० वैशाख शुक्ल १० तिथौ चंद्रवासरे श्रीविक्रमपुर वास्तव्य श्रीसंघेन जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहंससूरीश्वर पट्टालंकार जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनचंद्रसूरीणां पादुके कारापिते प्रतिष्ठिते च श्री जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनचारित्रसूरिभिः श्रीबृहत्खरतरभट्टारकगच्छे समस्त श्रीसंघ सदा प्रणमति। (२५६८) कीर्तिसूरि-पादुका सं० १९७२ वर्षे शाके १८३७ प्रवर्त्तमाने मि० द्वि० वैशाख शुक्ल १० सोमवासरे श्रीविक्रमपुर वास्तव्य श्रीसंघेन जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनचंद्रसूरीश्वर पट्टालंकार जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनकीर्तिसूरीणां पादुका कारापिते प्रतिष्ठिते च श्री जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनचारित्रसूरिभिः बृ० ख० भ० गच्छे समस्त श्रीसंघ सदा प्रणमति। • (२५६९) आदिनाथः संवत् १९७२ मि। मा। शुक्ल नवम्यां शनिवासरे अयं ऋषभदेवस्य बिंबं कारितं श्रीमालवंशे महमवालगोत्रे सा० जुवाहरमल्ल तत्पुत्र मोतीलालेन स्वश्रेयोर्थं जं। यु० प्र० रंगविजयगच्छीय भ। श्रीजिनचन्द्रसूरि पदस्थित श्रीजिनरत्नसूरिभिः। श्रीरस्तु। (२५७०) अजितनाथः ॥ सं० १९७२ मि माघ सुदि ९ शनिवासरे अजितनाथबिंब का। भड़गरागोत्रे सोभागचन्द्र तद्भार्या गुलाबदे प्र। भ। बृ। खर। ग। श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ __ (२५७१) संभवनाथः सं० १९७२ मि। माघ सु।९ शनि संभवनाथबिंबं का.............प्र। भ। खर । ग। श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (२५७२ ) सुमतिनाथः संवत् १९७२ मि। मा। शुक्ल नवम्यां शनिवासरे अयं सुमतिनाथस्य बिंबं कारितं श्रीमालवंशे महमवालगोत्रे ला० जुहारमल तत्पुत्र मोतीलाल तद्भार्या चंदाबीबी स्वश्रेयोर्थं प्रतिष्ठितं जं। यु। प्र। रंगविजयगच्छीय भ। श्रीजिनचंद्रसूरिपदस्थित श्रीजिनरत्नसूरिभिः। श्रीरस्तु। २५६७. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०९९ २५६८. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१०० २५६९. दादाबाड़ी, लखनऊः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६८७ २५७०. श्रीमालों का मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६८८ २५७१. श्रीमालों का मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६८९ २५७२. दादाबाड़ी, लखनऊः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६८६ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः (४४३) For Personal & Private Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५७३ ) जिनकल्याणसूरि-पादुका श्री सं० १९७२ मि० माघ शुक्ल ९ शनिवारे रंगविजयखरतरगच्छीय जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनकल्याणसूरि-चरणपादुका कारापितं । इंद्रप्रस्थ नगर वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं जं० यु० प्र० बृ० भ० रंगविजयखरतरगच्छीय श्रीजिनचंद्रसूरिपदाश्रिते भ० श्रीजिनरत्नसूरिभिः पूज्याराधकानां मंगलमाला वृद्धितरां यायात् श्रीसंघस्य शुभं भूयात् ॥ श्री ॥ (२५७४ ) शिलालेखः (१) ॐ ( २ ) ॥ नमः श्रीवीतरागाय ॥ (३) ॥ श्लोक ॥ आसीत्सूरिपदप्रतिष्ठितरणे : श्रीहेमसूरिप्रभुस्तत्पीठे प्रतिवादिवृन्द(४) भयदो विद्याकलानां निधिः ॥ श्रीसूरीश्वरमूर्द्धवन्दितपदः श्रीसिद्धसूरिगुरुर्ध(५) र्माजोदयत्तारकत्येतिनिपुणो वर्वर्त्ति सर्वोपरि ॥ १ ॥ प्रासादस्य कृतास्य तेन (६) विदुषा माघस्य शुक्ले बुधो त्र्योदश्यां श्रुतिसप्तनन्दकुमिते श्रीविक्रमाब्देऽधुना । (७) सौजन्यातमृतसागरेण जगतां धर्म्मोपकाराय वै श्रीमज्जैनधुरंधरेण कृतिना नूनं (८) प्रतिष्ठानघाः ॥ २ ॥ श्री विक्रम संवत् १९७२ माघ शुक्ल १३ बुधवारके दि(९) न श्री मदरास पत्तन शाहूकार पेठमें श्रीचन्द्रप्रभस्वामी बिम्ब प्रतिष्ठा श्री(१०)मज्जैनाचार्य बृहत्खरतरगच्छीय जं । यु । भट्टार्क श्रीजिनसिद्धसूरिजी । (११)महाराज के करकमलों से समस्त संघ सहित भैरुंबकसजी सुखलालजी । (१२) समदड़िया ने बड़े महोत्सव से कराई । हरषचंद रूपचंदजी ने बिम्ब स्थाप(१३)न किया बादरमलजी ने कलश चढ़ाया और हंसराजजी सागरमलजी (१४) ने ध्वजा आरोपण करी यह मंगल कार्य श्री संघको सर्वदा श्रेयकारी हो ॥ (१५) ॥ हस्ताक्षराणि यति किशोरचन्द्रजी तच्छिष्य मनसाचन्द्रस्य ॥ · (२५७५) दादापादुका युग्म ॥ ६० ॥ सं० । १९७२ (?) का मि फाल्गुनसित पक्षे २ द्वितीयायां तिथौ शुक्रवासरे झझू वास्तव्य समस्त श्रीसंघस्य श्रेयोर्थं श्री उ । सुमतिशेखरगणिभिः प्रतिष्ठितं ॥ दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिजी दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी ॥ ( २५७६ ) जिनकुशलसूरिमूर्तिः ॥ श्रीचतुरशीतिगच्छ श्रृंगाहार जंगमयुगप्रधान भट्टारक दादाजी श्री श्रीश्री १००८ श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणामियं मूर्तिः श्रीगुरुणीजी श्रीपुण्यश्रीजी के उपदेश से उदयपुर की सुश्राविका कुंवरबाई ने प्रतिष्ठा करवायी पं० प्र० श्रीकेशरमुनिजी गणि के पास ॥ संवत् १९७३ मिति फाल्गुन शुक्ल तृतीयायां शनिवासरे शुभं भवतु ॥ २५७३. छोटे दादाजी का मंदिर, चीराखाना, दिल्ली : पू० जै०, भाग १, लेखांक ५२९ २५७४. चन्द्रप्रभ जिनालय, साहूकार पेठ, मद्रासः पू० जै०, भाग २, लेखांक २०७० २५७५. नेमिनाथ जिनालय, बेगानियों का वास, झज्झू: बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३२१ २५७६. विजयगच्छीय मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९१ (४४४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५७७) श्रीमती गुरुणीजी महाराज विवेकश्रीजी महाराज सं० १९७४ श्रावण वद (२५७८) पादुकाः सं० १९७५ वै० सु० १ गीवायां चमणजी अभुजी कस्तुराजी रामी इंद पादुका ३ अंदर रामी बाहर शुभं। (२५७९) जिनकुशलसूरि-पादुका श्रीजिनकुशलसूरिभिः वीर सं० २४४५ वै० सु० (२५८०) जिनकुशलसूरिमूर्तिः ॥ स्वस्ति श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री १००८ श्री जं० यु० प्र० श्रीबृहत्खरतरगच्छ भट्टारक चौरासीगच्छ श्रृंगार दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी महाराज का बिंबं स्थापना किया श्रीप्रवर्तिनी पुण्यश्रीजी के उपदेश से सुश्रावक तेजकरणजी ने ॥ संवत् १९७५ श्रीवैशाख शुक्ला ६ गुरुवासरे॥ (२५८१) जिनकुशलसूरिमूर्तिः ॥ वि० सं० १९७५ श्री वै० सु० ६ गु० ॥ स्वस्तिश्री १००८ श्रीश्रीश्रीश्रीदादाजी जिनकुशलसूरिजी का बिंब प्रतिष्ठा। (२५८२ ) जिनयशःसूरिमूर्तिः परम संवेगी महातपस्वी प्रशान्त श्रीमज्जिनयश:सूरिजी प्रसिद्धनाम पंन्यास श्री यशोमुनिजी गणि महाराजस्य मूर्तिरियं ज्ञान-भांडागारसहिता स्थापिता श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं च शिष्य पंन्यास केशरमुनि गणिना सं० १९७५ माघ सु० ५ ___ (२५८३) चांदमल-हुलासकुंवर-स्मारक ॐ श्रीवीतरागाय नमः। विक्रम सम्वत् १९१७ मिति मिगसर वदि १४ को सेठ चांदमलजी साहब लूणिया का स्वर्गवास हुआ तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती हुल्लासकुंवर का स्वर्गवास संवत् १९३६ मिति आसोज वदि १३ को हुआ। उनकी दाहभूमि पर यह स्मारक भवन संवत् १९७६ मिति वैशाख सुदि १३ सोमवार मिथुन लग्न में उनके सुपुत्र रायबहादुर राजाबहादुर श्रीयुक्त सेठ थानमलजी लूणिया वर्तमान निवासी दक्षिण हैदराबाद रेजीडेन्सी बाजार वालों के करकमलों द्वारा शहर अजमेर स्थान दादाबाड़ी में प्र। १९७६ शुभम्। २५७७. रेलदादाजी के बाहर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१२२ २५७८. रेलदादाजी के बाहर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१२७ २५७९. कुंथुनाथ जिनालय, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७०३ २५८०. नयामंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९२ २५८१. इमलीवाली धर्मशाला, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९३ २५८२. जिनयशसूरिज्ञान भंडार, जोधपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९५ २५८३. दादाबाड़ी, अजमेरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५८४) कुण्डजीर्णोद्धार-लेखः ॥ सं० ॥ १९७६ शाके १८४१ सन् १९१९ श्रावण सुदि ८ चन्द्रवासरे........ महाराजाधिराज महाराजा श्री १०८ श्रीजवाहरसिंहजी महाराजकुमार श्रीगिरधरसिंहजी श्रीबृ० खरतरगच्छे उसवंशे बहुफणा हजारीमल मु० बरढिया राजमल श्रीलौद्रवपुर मध्ये जीर्णउद्धार धर्मशाला जलरो टांका पाने कुंड कारापितं । हस्ताक्षर पं० प्र० वृद्धिचंद्र मुनि कारीग० मेंणू लालूखां। (२५८५) धर्मसर्वज्ञ-पादुका सं० १९७७ राधराकायां श्रीरत्नपुरे श्रीधर्मसर्वज्ञानां पादाः कारिता ओसवंशे वरढीया मूलचंदज बेणीप्रसादेन श्रीकाशीस्थेन बृहत्खरतरगणनाथ श्रीजिनलाभसूरि शिष्य पाठक हीरधर्मोपदेशेन प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा खरतरगणेश। (२५८६) शालालेखः ॥ श्री ॥ क्षेमकीर्ति शाखायां । उपाध्याय श्रीरामलाल गणिना स्वशालाया जीर्णोद्धार कारापिता सं। १९७७ माघ शुक्ल ५। . (२५८७) जिनमहेन्द्रसूरि-पादुका ॥ श्रीनृपतिविक्रमार्कप्रवर्तित १९७८ मितेब्द वर्तमानि तत्र मार्गशीर्षमासे कृष्णपक्षे शुभतिथौ त्रयोदश्यां रविवासरे। जं० यु० प्र० ख० भ० । श्रीजिनमहेन्द्रसूरीश्वराणां चरणस्थापना श्रीजिनचन्द्रसूरीणामुपदेशेन जयपुरीय श्रीसंघेन कृता। (२५८८) जिनमुक्तिसूरि-पादुका श्रीनृपतिविक्रमार्कप्रवर्तित १९७८ मितेब्द वर्तमानि तत्र मार्गशीर्षमासे कृष्णपक्षे शुभतिथौ त्रयोदश्यां रविवासरे जं० यु० प्र० बृ० ख० भ। श्रीजिनमुक्तिसूरीश्वराणां चरणस्थापना श्रीजिनचंद्रसूरीश्वराणामुपदेशात्। जयपुर श्रीसंघेन कृता। (२५८९) गुरुमूर्तिः वी० सं० २४४९ वि० सं० १९७८.......सोमवासरे जं० यु० प्र० श्रीजिन.. __ (२५९०) दादाद्वय-पादुके जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां पादुके। श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां पादुके। वीर संवत् २४४८ वि० १९७९ आषाढ़ शुक्ल १ चंद्रे रांकागोत्रीय लाभचन्द्र शेठेन आत्मकल्याणार्थं इमे पादुके २५८४. धर्मशाला, लौद्रवपुरः ना० बी०, लेखांक २८८८ २५८५. धर्मनाथ जिनालय, रोनाही, रत्नपुरी: पू० जै०, भाग २, लेखांक १६६५ २५८६. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३०६ २५८७. मोहनबाड़ी, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९७ २५८८. मोहनबाड़ी, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९८ २५८९. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८१२ २५९०. लाभचन्द्र सेठ का घर देरासर, पुलिस हास्पिटल रोड, कलकत्ताः पू० जै०, भाग २, लेखांक १००८ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निर्मापिते श्री० बृ० ख० ग० जं० युग० भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिविजयराज्ये श्रीमद्दिङ्मण्डलाचार्य श्रीनेमिचंद्रसूरि अन्तेवासि पं० श्रीहीराचन्द्रेण यतिना प्रतिष्ठापिते श्रीशुभं भूयात् । (२५९१) अमृतसार-पादुका ॥ संवत् १९७९ मि। माघ शुक्ल ७ पं। प्र। अमृतसारमुनीनां पादुका चिरु प्यारेलाल स्थापिता कीर्तिरत्नसूरिशाखायां शुभं भवतु कल्याणमस्तु ।। श्री॥ (२५९२) शिलालेखः (१) ॥ वीर सं० २४४९ दत्त सू। सं। १९८० (२) ॥ ओशवं । संघवीगो। बहादरमल्लस्तत्पु। दुली(३) चन्द्रस्तद्भा। रायकुंवरी स्वांतसमये सर्व शुभ (४) योग्य निमित्त योग्य श्राद्धाधीन स्वलक्ष्मी विधा(५ )य सं। १९७८ आश्विन शु। ९ चं। वा० स्वर्गगता प(६) श्चाच्च जेसलमेरुदुर्गोपरि श्रीआदिनाथजिनप्रासा(७) दे श्रेयो निमित्तं तद्धनव्ययेन नवीन रावट्टी (८) विधाप्य तत्र सं। १९८० वैशाख शुक्लैकादश्यां (९) शुक्रे दादा श्रीजिनकुशलसूरिमूर्ति तत्पा (१०)दुका सम्राट अकबरप्रतिबोधक श्रीजिन: (११) चन्द्रसूरि पादुका नवीनालये चक्रेश्वरी मू (१२)र्तिश्च श्रीबृहत्खर० गच्छीय गणि श्रीर(१३)त्नमुनि यतिवर्य श्रीवृद्धिचन्द्रेभ्यः प्र(ति) स्था(१४)पिता॥ पुनस्त्र्यशीत्यधस्थित जिनबिंबानि (१५)प्रतिष्ठाप्योर्द्ध स्थापितानि ॥ भूयाच्च मू(१६)र्तिः कुशलाख्यसूरे सत्पादुका श्रीजिन• (१७) चन्द्रसूरे श्रीसंघरत्नाकर वृद्धिचान्द्रा भ(१८)क्तात्मवाञ्छापरिपूरकाय ॥ १ लि। लक्ष्मी(१९)न्दु ॥ लालुखां वल्द जादमखां मेणुना कृता १ (२५९३) युग० जिनचन्द्रसूरि-पादुका संवत् १९८० वै० सु० ११ शुक्रे जं० यु० प्र० बृ० ख० गच्छेश दादासा अकबरबोधकश्रीजिनचन्द्रसू। पादुका स्था० सा० दुलीचन्द्र भा० रायकुंवर स्वात्मभक्त्यर्थं प्र० पं० प्र० वृद्धिचन्द्र मु। जेसलमेर दुर्गे। २५९१. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३०१ २५९२. ऋषभदेव मन्दिर, दर्ग, जैसलमेरप० ०. भाग ३. लेखांक २५९२ २५९३. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८१४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५९४ ) जिनकुशलसूरि - पादुका संवत् १९८० वै० सु० ११ शुक्रे । जं० यु० प्र० बृ० ख० गच्छेश दादासा श्रीजिनकुशलसू । पादुका स्था० सा० दुलीचंद भा० रायकुंवर स्वात्मभक्त्यर्थं प्र० पं० प्र० वृद्धिचन्द्र मु । जैसलमेरु दुर्गे श्री आदीश्वरमूर्ति जैपुर वा० १९८० उखलाना गां० श्रीरस्तु । (२५९५) आदिनाथ - मूलनायक : ढढ्ढागोत्रे श्रेष्ठी कन्हैयालाल सत्कात् का० प्र० मुनि श्रीमग्नसागरे : सं० (२५९६ ) हितवल्लभगणि-पादुका ॥ शुभ सं० ॥ १९८१ का आ० कृष्ण ११ साधर्मीशाला उपदेशक उ । श्रीहितवल्लभगणीश्वराणांपादुका कारिता | श्रीरस्तु नित्यं ॥ ( २५९७ ) गौतमस्वामी- मूर्त्तिः सं० १९८१ आषाढ़ कृष्णौ द्वादश्यां तिथौ शुक्र दिने बिंबमिदं लृणीया रतनलाल छगनलालाभ्यां स्वश्रेयोर्थं कारितं प्रतिष्ठितं च खरतरगच्छीय भ० श्रीजिनचारित्रसूरिभिः बीकानेरनगरे (२५९८ ) जतनश्री - पादुका सं० १९८१ मिति फाल्गुन कृष्णपक्षे तिथौ ११ वार गुरुवारे दिने साध्वी श्रीजतन श्रीजी का पादुका कारिता समस्त श्रीसंघेन बीकानेर श्रीरस्तु शुभं सं० १९७५ साल सतोतर का वार सोमवार (?) ( २५९९ ) जयवंत श्री - पादुका सं० १९८१ मिती फाल्गुनमासे कृ० पक्षे तिथौ .. का पादुका सा० श्रीमदनचंदजी किशनचंदजी भुगड़ी का पिता श्री ( २६०० ) यंत्रम् शुभ सं० १९८४ का० चैत्र सुदि १५ वार रवि पूनमचन्द्र कोठारी भार्यया कारितं प्रतिष्ठितं च उ० जयचन्द्र गणिभिः (२६०१ ) पञ्च - पादुकाः ओम् नमः सिद्धेभ्यः । श्रीजिनकुशलसूरीभ्यो नमः । सं० १९८५ का माघ शुक्ल त्रयोदश्यां १३ २५९४. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८१३ २५९५. आदिनाथ जिनालय, उखलानाः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ६९९ २५९६. स्वधर्मी धर्मशाला, रांगड़ी चौक, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २५५८ २५९७. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०३७ २५९८. रेलदादाजी के बाहर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१२३ २५९९. रेलदादाजी के बाहर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१२४ २६००. कुन्थुनाथ जी का मंदिर, उदारामसरः ना० बी०, लेखांक २२११ २६०१. फतेहपुर शेखावटी, संकलनकर्ता भँवर० (४४८) ..वार दिने साध्वीजी श्रीजयवंत श्रीजी खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह : For Personal & Private Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुवासरे श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनदत्तसूरिसंतानीय श्रीभद्रसूरिशाखायां पृष्ठे पंचचरणपादुका विष्णुदयाल ऋद्धिकरणेन कारापिता स्थापिता स्वश्रेयोर्थं उ० श्रीजयचन्द्रजी गणि पं० खेमचंदजी यतिना विधिना प्रतिष्ठितं श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । श्रीजिनकुशलसूरिगुरुभ्यो नमो नमस्तरां ॥ शुभं। १ श्रीचैनसुखजी २ श्रीचिमनरामजी ३ श्रीज्ञानचंदजी ४ गजानंदजी ५ श्रीभैरोचन्द्रजी चरणारविन्दौः दीक्षा १९३३ स्वर्गतिथौ आश्विन शुक्ला द्वादश्यां १२ सं०...... (२६०२) पार्श्वनाथ-एकतीर्थी ॥सं० १९८६ मि। जे।सु। ११ श्रीपार्श्वबिंबं का। श्रीमालवंशे ढोरगोत्रे घासीलाल तत्पुत्र पूनमचंदेन कारि। प्रति। भ। रत्नसूरिभिः।। (२६०३) जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥ सं० १९८६ मिति ज्येष्ठ शुक्ल ११ सोमे इयं । चरणपादुका जं। यु। प्र। बृ। भ। श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराणां कारापितं जैपुरवास्तव्य ढोरगोत्रे गोपीचंद्र तत्पुत्र मांगीलालेन प्रतिष्ठितं रंगविजयखरतरगणे श्री॥ (२६०४) जिनरंगसूरि-पादुका ॥ सं० १९८६ मिति ज्येष्ठ शुक्ल ११ सोमे इयं चरणपादुका। जं। यु। प्र। बृ। भट्टारक श्रीजिनरंगसूरीश्वराणां कारापिता जैपुर वास्तव्य ढोरगोत्रे गोपीचन्द्र तत्पुत्र मांगीलालेन प्रतिष्ठितं रंगविजयखरतरगणे श्री। (२६०५) पादुका-चतुष्टय सं० १९८७ का ज्येष्ठ सुदि ५ रविवारे श्रीसंघेन का० प्र० श्रीजिनचारित्रसूरिभिः श्रीसंघ- श्रेयो) श्रीजिनदत्तसूरिजी श्रीजिनचंद्रसूरिजी श्रीजिनकुशलसूरिजी श्रीजिनभद्रसूरिजिः (२६०६) जिनदत्तसूरि-मूर्तिः जं० यु० भट्टारक श्रीजिनदत्तसूरिमूर्ति श्रीबीकानेरवास्तव्य समस्त श्रीसंघेन का० प्र० श्रीजिनचारित्रसूरिभिः सं० १९८७ का ज्येष्ठ सुदि ५ रविवारे श्रीसंघ श्रेयोर्थम् (२६०७) आदिनाथ-एकतीर्थी सं० १९८७ मि। माघ सुदि ६ ऋषभजिनबिंबं प्र। भ। श्रीजिनरत्नसूरिभिः । २६०२. पूनमचंद ढोर का गृहदेरासर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७०० २६०३. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७०१ २६०४. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७०२ २६०५. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०३४ २६०६. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०३३ २६०७. श्रीमालों की दादाबाड़ी, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७०३ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) ४४९) For Personal & Private Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६०८) उमेदश्री-पादुका ॐ श्रीमती साध्वीजी उमेदश्रीजी के स्वर्गवास सं० १९८८ का वैशाख वदि ७ वार बृहस्पति को हुआ उसकी चरणपादुका---- (२६०९) नेमिनाथ-पादुका ॥ ॐ ह्रीं श्री श्रीजीनेश्वरजी नेमीस्वर भगवान री चरणपादुका मु॥ सीरदारमल पारसमल वा। जोधपुर वाया टाटीया गोत्रे खरतरगच्छे वाला थापितं वीरमपुरनग्रे मध्येः संवत् १९८८ रा शाके १८५३ रा मासोत्तममासे आसोजमासे शुक्लपक्षे द्वादशी रविवारे: __(२६१०) जिनकुशलसूरि-पादुका शुभ संवत् १९८८ का माघ सुदि १० ज्ञवारे जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनकुशलसूरि-चरणकमल कारितं उदरामसरवास्तव्य बोह० हजारीमलादिभिः प्रति। महो० श्रीलक्ष्मीप्रधानगणि पौत्र शिष्य उ० जयेन्दुभिः (२६११) जिनकुशलसूरिमूर्तिः सं० १९८८ माघ सु० दशम्यां बुधवासरे जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां मूर्त्तिः बृहत्खरतरगच्छीय श्रीजिनचारित्रसूरिणामादेशाद् उ० श्रीजयचंद्रगणिना प्रतिष्ठिता वीरपुत्र श्रीआनंदसागरोपदेशात नाहटा जसकरण आसकरणयोर्द्रव्यव्ययेन कारापिता॥ ' (२६१२) दादापादुका-युग्म श्रीजिनेश्वराय नमः। सं० १९८८ का मिति फाल्गुन सुदि ३ गुरुवासरे श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां पं० प्र० भैरोचंद्रजी तत्शिष्य विष्णुचंद्रेण श्रीजिनदत्तसूरिजी श्रीजिनकुशलसूरिजी चरणपादुका कारापिता...............स्वश्रेयोर्थं शुभं भवतु। प्रति० उ० श्रीमुक्तिकमलगणिशिष्य उ० जयचंद्रगणिभिः॥ श्रीरस्तुनित्यं। (२६१३) सुवर्णश्रीपादुका सं० १९९० पौष कृ० ८ रविवारदिने बृहत्खरतरगच्छे पूज्य श्रीसुखसागरजी म० के शृंघाटकानुयायिनी प्रवर्तिनी जी सा० श्रीपुण्यश्रीजी म० की पट्टधारिणी प्र० श्रीसुवर्णश्रीजी महाराजके चरण बीकानेर मध्ये श्रीसंघेन कारापितम्। जन्म वि० सं० १९२७ ज्येष्ठ कृ० १२ अहमदनगर दीक्षा सं० १९४६ मिगसर सु० ५ नागौर, स्वर्ग सं० १९८९ माघ कृ०............ शुक्रवार दिने २६०८. रेलदादाजी के बाहर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१२५ २६०९. नेमिनाथ जी की टोंक, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक १२९, बा० प्रा० ०शि० लेखांक ४९३ २६१०. कुन्थुनाथ जिनालय, उदरामसर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२०६ २६११. अजितनाथ देरासर, सुगनजी का उपाश्रय, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६७४ २६१२. फतेहपुर, शेखावटी: संकलनकर्ता भंवर० २६१३. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१२८ (४५०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६१४) जिनदत्तसूरिमूर्तिः ॥ विक्रम संवत् १९९२ वर्षे मा० सु०६ श्रीखरतरगच्छनायक यं० यु० प्र० भ० श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां मूर्त्तिरियं यु० प्र० भ० श्रीजिनचारित्रसूरिवरैः प्रतिष्ठा कारापिता श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिशिष्य प्र० श्रीसुखसागरोपदेशात् श्रीसंघेन गुरुभवननिर्मापितम् श्रीपालीताणा नगरे __ (२६१५) जिनकुशलसूरिमूर्तिः सं० १९९२ वर्षे माह सु० ६ श्रीखरतरगच्छनायक जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां मूर्त्तिः जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनचारित्रसूरिवरैः प्रतिष्ठा कारापिता च श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिशिष्य प्र० सुखसागरोपदेशात् (२६१६) वीशस्थानकपट्टः संवत् १९९३ वर्षे वैशाख शुक्लपक्षे ६ षष्ठ्यां तिथौ सोमे ओशवंशीय पालेचा गोत्रीय तपागच्छीय विजयसिंह भार्यायाः पुत्रेण केसरिसिंहेन स्वमातृतपोद्यापनार्थे विंशतिस्थानकपट्टः कारितः प्रतिष्ठापितश्च यतिवर्य पं० प्र० श्यामलाल शिष्येण पं० विजयलालेन यतिना शुभं। (२६१७) नवपदपट्टः ऊँ नमः वि० सं० १९९३ वैशाख शुक्ला ६ चन्द्रवासरे जयपुरनगरे ओशवंशे संचेती श्रेष्ठि श्रीमत्फकीरचन्द्रात्मज श्रीयुत सागरमल सरदारमल्ल स्वतनुजेन सिरेमल्लेन श्रीनवपदतपोविहित तदुद्यापनमहोत्सवे श्रीनवपदमण्डलपट्टः प्रकीर्तितः प्रतिष्ठितः खरतरगच्छाधीशैः श्रीमज्जिनहरिसागरसूरिभिः श्रेयसेस्तु ॥ वि० यतिवर्य पं० श्यामलालैश्च॥ (२६१८) वीशस्थानक-पट्टः संवत् १९९३ वर्षे वैशाख शुक्ल ७ गुरुवारे जयपुरवास्तव्येन ओशवालवंशीय बांठियागोत्रीय खेतसीदासात्मजेन हजारीमल्लेन तद्भार्या सौभाग्यवती फूलकुंवर पुत्राः सुगनचन्द्र प्रभृतिना स्वमातृ तप उद्यापनार्थं श्रीविंशतिस्थानकपट्टः कारितः प्रतिष्ठापितश्च खरतरगच्छीय यतिवर्य पं० श्यामलालेन पं० विजयलालेन यतिना। . (२६१९) पञ्च-गुरुपादुकाः सं० १९९३ ज्येष्ठ वद ८ गुरु दिने बीकानेरनगरे ओसवाल दूगड़ मंगलचंद हड़मानमल्लेन कारापितं प्रतिष्ठितं च खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनचारित्रसूरिभिः २६१४. धनवसही दादाबाड़ी, तलहटी, पालिताना: भंवर० ले० सं० (अप्रका०), लेखांक १२८ २६१५. धनवसही, दादाबाड़ी, तलहटी, पालितानाः भँवर० ले० सं० (अप्रका०), लेखांक १२९ २६१६. सुमतिनाथ मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७०८ २६१७. सुमतिनाथ मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७०७ २६१८. विजयगच्छीय मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७०६ २६१९. नई दादाबाड़ी, दूगड़ों की बगीची, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९९७ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) ४५१) For Personal & Private Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. श्रीखरतरविरुदप्राप्त १०८० श्रीजिनेश्वरसूरि २. श्रीमद्अभयदेवसूरि ३ दादासाहेब श्रीजिनदत्तसूरि ४. प्रकटप्रभावी श्रीजिनकुशलसूरि ५ युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि (२६२० ) प्रतिमा सं० १९९३ ना मिती ज्येष्ठ वदि १२ गुरुवासरे श्रीमकसुदाबादवास्तव्य ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां नाहरगोत्रीय सा० खडगसिंहजी तत् पुत्र सा उत्तम चंदजी तत् भार्या बीबी मया कुंवर श्रीसिद्धाचलौपरि श्रीऋषभदेवजी परौ प्रासाद मध्ये आलोषे प्रतिमा विवि मयाकुंवर स्वहस्ते स्थापितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० । यं । जु। श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी विजैराज्ये पं० देवदत्तजी तत् शि० पं० हीराचंद्रेण प्रतिष्ठितं च॥ श्री॥ (२६२१) पार्श्वनाथ-पब्मासण ॥ ॐ नमः॥ गोलेच्छा पूर्वगोत्रे विलसति रविवच्छीदुलीचन्द्र श्रेष्ठी, पुत्रो हम्मीरमल्लोहथकरि विधिको माघशुक्ले दशम्यां। श्रेयोर्थं पूज्यपादैः खरतरगणपैः श्रीहरेः सागरेशैश्चक्रे शक्राभिवंद्यां जयपुरनगरे पार्श्वनाथप्रतिष्ठां । इहासूद्यौ च राज्येपि, राजेव विबुधा श्रियः। श्रीमद्धरणीन्द्राचार्यो, शांतिस्नात्रविधेः विधिः॥ (२६२२) कनकधी-पादुका वि० सं० १९९४ भाद्र कृ० ५ गुरौ प्रातः श्रीखरतरगणाधीश्वर श्रीसुखसागरसुगुरुसमुदायाधिपति वर्तमान श्रीजिनहरिसागरानुयायिनी प्रवर्तिनी श्रीपुण्यश्रीणां शिष्या आबालब्रह्मचारिणी दीर्घतपस्विनी श्रीकनकश्रीसा दिवंगताः। संस्कारभूमावत्र शांतिश्री रविश्री सदुपदेशात् तच्चरणकमले प्रतिष्ठिते मार्गः कृ० ५ चन्द्रे नागपुरे मरुधरे ॐ शांतिः (२६२३) शिलापट्ट-प्रशस्तिः श्रीखरतरगणाधीश्वर श्रीमत्सुखसागरजी महाराज साहब के समुदाय के वर्तमान जं० यु० प्र० भ० श्रीमज्जिनहरिसागरसूरीश्वरजी महाराज जी की शिष्यारत्न आबालब्रह्मचारिणी प्रवर्तिनी श्रीपुण्यश्रीजी महाराज जी शिष्या दीर्घतपस्विनी श्रीमती कनकश्रीजी महाराज का स्वर्गवास वि.सं. १९९४ भाद्रव वदि ५ गुरुवासरे नागोर में हुआ। उन्हीं की शिष्या श्री रविश्रीजी तथा शान्तिश्रीजी के सदुपदेश से शेठ तेजकरण चांदमलजी फर्म आगरा के वर्तमानवासी के बाबू पूर्णचन्द्र जी और कपूरचंदजी की मासा श्रीमती मगाबाई बसंतीबाई ने अपने खर्च से संस्कारभूमि में कनकमंदिर का निर्माण करवाया वि. सं. १९९४ के मिगसर वदि ५ सोमवार के दिन को समारोह में प्रतिष्ठा कराई। काम करने वाले निवेदक-इन्द्रचन्द्र खजान्ची २६२०. मोतीशाह की ट्रॅक, शत्रुजयः पू० जै०, भाग १, लेखांक ६९९ २६२१. मोहनबाड़ी, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७०९ २६२२. कनकमंदिर, दादाबाड़ी, नागोरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७१७ २६२३. कनकमंदिर, दादाबाड़ी, नागोरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७१६ (४५२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६२४ ) मूर्त्तिः जैसलमेर वासी खरतरगच्छीय। साह सागरमलजी पुत्र पन्नाचंद पत्नी सजनकुंवर (रतलाम) ऋषभदेवमुनिसुव्रत स्थापित सं० १९९५ वै० सु० (२६२५ ) जिनकृपाचन्द्रसूरिमूर्त्तिः जं० यु०प्र० बृ० भट्टारक खरतरगच्छीय जैनाचार्य श्री १००८ श्रीजिनकृपाचंद्रसूरीश्वराणां प्रतिकृतिरियं प्रतिष्ठिता काशी निवासी बृ० खरतरगच्छीय श्रीमद्दिङ्मंडलाचार्य श्रीनेमिचंद्रसूरिभिः वि० सं० १९९५ माघ शुक्ल सप्तम्यां शुक्रवासरे पादलिप्तपुरे । (२६२६) भैंरोचन्द्र - मूर्तिः दीक्षा १९३३ श्री भैरोंचन्द्रजी महाराज की मूर्ति छे स्व० १९९० आश्विन सुदि १२ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ गुरुजी महाराज श्री १०८ भैरौंचन्द्रजी कस्येयं मूर्तिः । विष्णुदयालेन कारापिता स्थापिता। प्रतिष्ठितं च उ० श्रीजयचंद्रजी गणि पं० खेमचन्द्रजी सं० १९९५ का माघ शुक्ल त्रयोदश्यां गुरुवासरे.................| (२६२७) जीर्णोद्धार - लेख : द्धदतुलयशो युगप्रधान : खरतरगच्छवराच्छरत्नराशिः । जिनकुशलसुनामधेयः धन्यो व्यतनुत नालपुरेत्र भावुकानि ॥ १ ॥ राधे शुक्ले दशम्यां रसनवनवभूवत्सरे विक्रमस्य । कोठारी रावतस्यात्मज इह मतिमानोशवंशावतंशः। श्रीभैरूदाननामा सममथ विविधेनान्य जीर्णोद्धरेण तत्पादाम्भोजयुग्मो परिदृषद् मलच्छत् मेतच्चकार ॥ २ ॥ श्रीपूज्यजिनचारित्रसूरिवर्योपदेशतः प्रतिष्ठां लभतामेषा स्थिरतामचलांचले ॥ ३ ॥ श्रीमज्जिन- हरिसागरसूरीणां समुर्वरितकीर्त्तिनां । समागतिः सहशिष्यैर्व्यधादिह विधानसाफल्यम्॥४॥ (२६२८ ) जीर्णोद्धार प्रशस्तिः ॐ अर्हं नमः । जंगम युगप्रधान बृहद्भट्टारक खरतरगच्छाधिराज दादाजी श्रीश्री १००८ श्री जिनकुशलसूरीश्वरजी महाराज के चरणारविन्दों पर श्रीपूज्यजी श्रीजिनचारित्रसूरीश्वरजी महाराज के सदुपदेश से नाल ग्राम में संगमर्मर की सुंदर छत्री अन्य आवश्यक जीर्णोद्धार के साथ बीकानेर निवासी स्व० सेठ श्रीरावतमलजी हाकिम कोठारी के सुपुत्र धर्मप्रेमी सेठ भैरोंदानजी महोदय ने भक्तिपूर्वक बनवाने का श्रेय प्राप्त किया मिती वै० शु० १० भृगुवार सं० १९९६ को बड़े समारोह के साथ ध्वजदंड कलशादि का प्रतिष्ठोत्सव सम्पन्न किया। इस सुअवसर में जैनाचार्य श्रीजिनहरिसागरसूरीश्वरजी महाराज की समुपस्थिति अपने विद्वान शिष्यों के साथ विशेष वर्णनीय थी । लेखांक ९३ २६२४. खरतरवसही, शत्रुंजय भँवर० ले० सं० (अप्रका० ), २६२५. धनवसही दादाबाड़ी, तलहटी, शत्रुंजय भँवर० ले० सं० (अप्रका० ), लेखांक १३० २६२६. फतेहपुर, शेखावटी, संकलनकर्ता भंवर ० २६२७. जिनकुशलसूरि मंदिर, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२८४ २६२८. जिनकुशलसूरि मंदिर, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २२८५ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (४५३) Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६२९) महो० रामलाल-मूर्तिः (१) ॐ सद्गुरुभ्यो नमः बृहत्खरतरगच्छाधिपति शासनप्रभाविक जंगमयुगप्रधान भट्टारक व्याख्यानवाचस्पति श्री श्री श्री १०८ श्रीजिनचारित्रसूरीश्वराणां। (२) शासने जैनानामुपरि प्रवर्त्तमाने बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर-क्षेमकीर्त्तिशाखायां मुनिवर्य पं० प्र० श्रीधर्मशीलगणयः तच्छिष्यः पं० प्र० श्रीकुशलनिधानग(३) णयः तच्छिष्यवर्याणां विद्वद्वर्याणां वैद्यदीपक-रत्नसमुञ्चय-जैनदिग्विजयपताका सिद्धमूर्त्तिविवेकविलास-ओसवंशमुक्तावली-श्रावक(४) व्यवहारालंकार-शकुनशास्त्र-सामुद्रिकशास्त्र-पूजामहोदधि-गुरुदेवस्तवनावलि सद्ज्ञानचिंतामणि- असत्याक्षेपनिर्णय-गु(५) णविलास-बाईससमुदाय-पंच प्रतिक्रमणसार्थ प्रभृति ग्रन्थकर्तृणां युक्तिवारिधीनां वादिगज केसरीणां प्राणाचार्याणां महोपाध्याय श्री (६) श्रीश्री १०८ श्रीरामऋद्धिसारगणिवराणां रामलालजी इति प्रसिद्ध नामधेयानां मूर्त्तिरियं तच्छिष्यवर्यैः पं० खेमचंद्रमुनिवर्यैः प्रशिष्य पं० बालचंद्र (७) प्र मुनिवर्यैश्च कारापिता प्रतिष्ठिता च। विक्रमपुरे श्रीमन्महाराजाधिराज श्रीगंगासिंहनृपति विजयराज्ये संवत् १९९७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ सोमवार (८) शिल्पकार नानगराम हीरालाल जयपुर (२६३०) जिनकुशलसूरि-पादुकाः सं० १९९७ जे० सु० ५ श्रीजिनकुशलसूरि० ___(२६३१) जिनकुशलसूरि-मूर्त्तिः श्रीजंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां प्रतिमामिमां श्रीजिनचारित्रसूरीश्वराणां विजयराज्ये महोपाध्याय श्रीरामऋद्धिसारगणि कारापितं वा सं० १९९७........... (२६३२ ) प्रतिष्ठा-लेखः । ॥ श्रीजिनाय नमः संवत् १९९९ वैशाखमासे शुक्ल दसमी तिथौ रविवासरे श्रीकल्याणपुरनगरे सकल श्रीजैन श्वेताम्बरसंघेन श्रीशांतिनाथजिनभवनस्य जीर्णोद्धार कारितं प्रतिष्ठापितं च देवदेवी सपरिवार एवं दादा श्रीजिनकुशलसूरि पादुकासहिते जिनबिंबानि बृहत्खरतरगच्छाधिपति श्रीजिनजयसागरसूरि नेतृत्वे पं० यतिवर्य नेमिचन्द्रेण क्रियाविधानं च कारितं ॥ श्रीरस्तु॥ यावजंबूदीवे यावन्नक्षत्रे मंडितो मेरुः यावच्चंद्रादित्यो तावद्भवनं स्थिरो भवतु। कल्याणमस्तु। २६२९. गुरु मंदिर, (पायचंदसूरि के सामने) बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २००० २६३०. गुरु मंदिर, (पायचंदसूरि के सामने) बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९९९ २६३१. गुरु मंदिर, (पायचंदसूरि के सामने) बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १९९८ २६३२. शांतिनाथ जैन मंदिर, कल्याणपुरा, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २० (४५४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६३३) आदिनाथः सं० १९९९ मि० फा० सु० ५ इदं श्रीऋषभदेवजी आदिनाथबिंबं कारितं श्रीउसवालवंशज ताराचंद लखमीचंद प्रतिष्ठितं बृहद्भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। __ (२६३४) जिनकुशलसूरि-प्रतिमा संवत् १९.... वर्षे ....... मासे...... पक्षे...... तिथौ....... वारे ओसवाल सूराणा गोत्रीय श्रीपूनमचंद्रस्य धर्मपत्नी श्रीमती जतनकुंवरेण भट्टारक दादा श्रीजिनकुशलसूरिभिः बिंबं कारापितं प्रतिष्ठापितं च। (२६३५) आदिनाथः आदिनाथबिंबं प्र० श्रीजिनहेम.... (२६३६) श्रेयांसनाथः श्रीश्रेयांसजिनबिंबं प्रतिष्ठितं च श्रीमबृहत्खरतरगच्छे। जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बीकानेर.......... (२६३७) मल्लिनाथः श्रीमल्लिनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे । जं० । यु० । प्र० । भ० । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः श्रीबीकानेर. (२६३८) गौडी-पार्श्वनाथ-पादुका ॥ श्रीगौडीपार्श्वनाथस्य। ह्रीं श्रीजिनरत्नसूरिविजयराज्ये पं। प्र। श्रीअभयमूर्तिगणिः खरतरगच्छे प्रतिष्ठितं ___(२६३९) दादापादुका-युग्म भ० श्रीजिनदत्तसूरिः भ० श्रीजिनकुशलसूरिः (२६४०) दादापादुका-युग्म दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिजी का चरण दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी का चरण २६३३. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्या: पू० जै० भाग २,लेखांक १६३९ २६३४. चन्द्रप्रभ जिनालय, बेगानियों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६४५ २६३५. सुपार्श्वनाथ मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७३२ २६३६. सुपार्श्वनाथ का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७५२ २६३७. सुपार्श्वनाथ का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७५१ २६३८. न्यात की बगीची, नागोरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७२५ २६३९. इमलीवाली धर्मशाला, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७३१ २६४०. हीराबाड़ी, नागोरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७४० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिजी श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका ० (२६४१ ) जिनदत्तसूरिमूर्तिः श्रीजिनदत्तसूरिजी का चरण (२६४२) जिनदत्तसूरि-पादुका दादासाहिब श्रीजिनदत्तसूरिजी दादाश्री जिनकुशलसूरिजी (२६४४) जिनदत्तसूरिपादुका - रौप्यमय ( २६४५ ) जिनदत्तसूरि-पादुका बृहद्भट्टारक जं० । यु० प्र० भ० १०८ श्रीजिनदत्तसूरिजीका चरण पादुका श्रीसंघेन कारापितं । (२६४६ ) जिनकुशलसूरिमूर्तिः ( २६४३ ) जिनदत्तसूरि- पादुका - रौप्यमय ( २६४७ ) जिनकुशलसूरि - पादुका दादा म० श्रीजिनकुशलसूरि पादुका प्र० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः । (२६४८ ) जिनकुशलसूरि- पादुका - रौप्यमय दादासाहिब श्रीजिनकुशलसूरिजी (२६४९ ) जिनकुशलसूरि- पादुका - रौप्यमय श्रीदादाजी श्रीजिनकुशलसूरि (२६५० ) जिनकुशलसूरि-पादुका जं० । ० । ० । श्रीजिनकुशलसूरि पादुके ॥ २६४१. दादाबाड़ी, अजमेर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७२८ २६४२. इमलीवाली धर्मशाला, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७३० २६४३. पूनमचन्द ढोर का घर देरासर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७३३ २६४४. पंचायती मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७३६ २६४५. सुमतिनाथ जिनालय, नागोरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७३८ २६४६. दादाबाड़ी, अजमेर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७२९ २६४७. विमलनाथ जिनालय, सवाईमाधोपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७२७ २६४८. पूनमचंद ढोर का घर देरासर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७३२ २६४९. यति श्यामलाल जी का उपाश्रय, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७३७ २६५०. केशरियानाथ मंदिर, जोधपुर: प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७३९ (४५६) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६५१) जिनकुशलसूरि-पादुका जंगम युगप्रधान भट्टारक छोटा दादा साहेब श्रीजिनकुशलसूरीजी वि० सं० १३३० (७) सिवाणा गांव में छाजेड़ गोत्र ना मन्त्री जिल्हागार की धर्मपत्नी माता ज्यतश्री की कुख से जन्म व सं० १३४७ में जिनचंद्रसूरीश्वरजी के पास दीक्षा व सं० १३६६ (७७) अणहीलपुर पटण में आचार्यपद, सं० १३८९ माह (फाग०) वदि ०० देरा० सं० (२६५२) जिनसागरसूरि-पादुका सं० ...........चैत्र वद २ दिने भट्टारक श्रीजिनसागरसूरिपादुके कारापिते नारायण गणि॥ ___(२६५३) हनुसागर-पादुका .............र्थ ह भट्टारक खरतरगच्छे वा। श्री १०८ श्रीजिनरंगजीगणि तच्छिष्य पं। प्र। श्रीहनुसागर मुनिना चरणपादुका प्र० रत्नविजय.........................। (२६५४) शालालेखः पं० प्र० कीर्तिसमुद्रमुनि। पं० प्र० श्रीज्ञानानन्दजी मुनि । (२६५५) शालालेखः पं० प्र० खेममण्डनमुनि। (२६५६) पुण्यधीर-पादुका वाचक पुण्यधीर पादुका (२६५७) क्षमाकल्याणमूर्तिः क्षमाकल्या जी की मूर्ति (२६५८) सुखसागरमूर्तिः पूज्यपाद खरतरगणाधीश्वर श्रीमान् सुखसागरजी महाराज सा० श्राद्धवर्य जतनलालजी डागा की धर्मपत्नी श्रीमती अनोपकुंवरबाई ने स्वकल्याणार्थ स्थापित की। दी० वि० भाद्रपद शुदि ५ स्वर्ग वि० सं० १९४३ माघ कृष्ण ४ २६५१. दादाजी की टोंक, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक २२१; बा० प्रा० जै०शि०, लेखांक ४९६ २६५२. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१११ २६५३. सुमतिनाथ जिनालय, नागोरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७४१ २६५४. दादासाहेब की बगीची, चुरू: ना० बी०, लेखांक २४२६ २६५५. दादासाहेब की बगीची, चुरू: ना० बी०, लेखांक २४२४ २६५६. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०६४ २६५७. अजितनाथ देरासर, सुगनजी का उपासरा, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १६७५ २६५८. इमली वाली धर्मशाला, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७४४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (४५७) For Personal & Private Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६५९ ) शिलालेख: अस्य नूतन जिनमंदिरस्य निर्माणितं उम्मेदपुरा (गढसिवाना) वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन प्रतिष्ठापितश्च प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छीय आचार्य श्रीमज्जिनकृपाचंद्रसूरीश्वराणां पट्टधर आचार्य श्रीमज्जिनजयसागरसूरीश्वरेण नेतृत्वे वि० सं० २००० रा वैशाख सुद ६ (२६६०) जिनदत्तसूरि- पादुका सं० २००० वर्षे वैशाख शुक्ला ६ श्रीगढसिवाणा उम्मेदपुरा श्रीसंघेन जं । यु । दादा श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां चरणपादुके कारितं खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनजयसागरसूरिनेतृत्वे पं० यति नेमिचन्द्रेण । (२६६१) दादापादुका - युग्म संवत् २००० वैशाख धवल ६ श्रीसिवाणा उम्मेदपुरा श्रीसंघेन युगप्रधान दादा श्रीजिनदत्तसूरि श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां चरणयुगलं कारितं च प्रतिष्ठित: खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनजयसागरसूरि नेतृत्वे पं० यति नेमिचन्द्रेण । (२६६२ ) जिनसिद्धिसूरि - पादुका श्रीमत्खरतराचार्यगच्छीय जैनाचार्य श्रीजिनसिद्धिसूरीश्वरजी महाराज की चरणपादुका बीकानेर निवासी गोलछा कचराणी गोत्रीय श्रे० बीजराजजी फतैचंदजी सालमचंदजी पेमराजजी नेमीचंदजी जयचंदजी की तरफ से बनवाई विक्रम संवत् २००० फा० सु० १ पं० प्र० यति श्रीनेमिचंद्रेण प्रतिष्ठितं (२६६३) दादा - पादुका - त्रय सं० २००० विक्रमी फागुण सुदि ५ मुताबिक २८ फरवरी १९४४ वीर निर्वाण सं० २४७० सेवक मुन्नीलाल जैन लाहोर (२६६४ ) जिनदत्तसूरि - पादुका ॐ ह्रीं श्रीदादाजी श्रीजिनदत्तसूरिजी गुरुभ्यो नमः (२६६५) मणिधारी - जिनचन्द्रसूरि - पादुका ॐ ह्रीं श्रीदादाजी श्रीमणिधारीजी जिनचन्द्रसूरिजी गुरुभ्यो नमः । (२६६६ ) जिनकुशलसूरि-पादुका ॐ ह्रीं श्रीदादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी गुरुभ्यो नमः २६५९. वासुपूज्य भगवान् का मंदिर, सिवाना, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २९१ २६६०. दादाबाड़ी, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक १६७; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ४९७ २६६१. संभवनाथ जी का मंदिर, पादरू, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १२४ २६६२. रेलदादाजी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २०९६ २६६३. सुमतिनाथ जिनालय, नवघरा, दिल्ली : भँवर० (अप्रका० ) २६६४. दादाबाड़ी, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक १६८; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ४९८ बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ४९९ बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ५०० २६६५. दादाबाड़ी, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक १६९; २६६६. दादाबाड़ी, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक १७०; (४५८) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६६७) जिनचंद्रसूरि-पादुका ॐ ह्रीं श्रीदादाजी श्रीजिनचंद्रसूरिजी गुरुभ्यो नमः (२६६८) गौतमस्वामी-मूर्ति गणधर श्रीगौतमस्वामिनः प्रतिमेयं बीकानेर वास्तव्यैः ओशवंशीय गोलछा कचराणीगोत्रीय श्रेष्ठि वीजराज फतैचंद सालमचंद प्रेमराज नेमीचंद प्रभृतिः सुश्रावकैः स्वकुटुम्बश्रेयोर्थं कारापितं वि० सम्वत् २००१ वर्षे वै० सु० १३ पं० प्र० श्रीनेमिचंद्रेण प्रतिष्ठिता। (२६६९) विजयशांतिसूरि-मूर्तिः ॐ नम: सिद्धं। सं० २००१ वि० फाल्गुन वदि ५ शनि को जगतगुरु आचार्य सम्राट योगीन्द्रचूड़ामणि जैनाचार्य श्री १००८ श्रीविजयशांतिसूरीश्वरजी की मूर्ति की प्रतिष्ठा श्रीपूज्याचार्य श्रीजिनधरणेन्द्रसूरि के करकमलों से जयपुरवास्तव्य श्रेष्ठी.. (२६७०) शिलापट्टः वि० सं० २००२ मि० सु० १० शुक्रे ओसवाल ज्ञा० हा० को० गो० रावतमलस्यात्मज श्रे० भैंरूदानजी तस्य भार्या चांदकुमारी इत्यनेन श्रीमहावीरस्वामिप्रासाद का० प्र० जं० यु० प्र० भ० जैनाचार्य सि० म० श्रीजिनविजयेन्द्रसूरीश्वरैः विक्रमपुरे॥ (२६७१) पट्टिका-लेखः वि० सं० २००२ मि० सु० १० शुक्रे हा० को० रावतमलस्यात्मज भैंरूदानस्य भार्या चांदकुमारी इत्यनेन श्रीवासुपूज्य वेदिका प्र० जं० यु० प्र० भ० बृ० जैनाचार्य सि० म० जिनविजयेन्द्रसूरि (भिः) विक्रमपुरे॥ (२६७२ ) गौतमस्वामी-मूर्तिः वि० सं० २००२ मार्गशीर्ष शुक्ला १० शुक्रे ओसवाल हाकिम कोठारीगोत्रीय श्रे० रावतमलस्यात्मज श्रे० भैंरूदानजी तस्य भार्या सुश्राविका चांदकुमारी (केन) गणधर श्रीगौतमस्वामीमूर्त्तिः का० प्र० बृ० खरतरगच्छाधिपति सिद्धान्त-महोदधि जं० यु० प्र० भ० जैनाचार्य श्रीजिनविजयेन्द्रसूरिभिः विक्रमनगरे। (२६७३ ) जिनकुशलसूरि-मूर्तिः वि० सं० २००२ मार्गशीर्ष शु० १० शुक्रे ओसवाल वंशे हाकिम कोठारीगोत्रीय श्रे० रावतमल्लजी तस्यात्मज श्रे० भैरूदानजी तस्य भार्या सुश्राविका चांदकुमारी इत्यनेन श्रीदादागुरुदेव श्रीजिनकुशलसूरिमूर्तिः २६६७. दादाबाड़ी, नाकोड़ा: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ५०१ २६६८. शांतिनाथ मंदिर, नाहटों में, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १८०७ २६६९. नया मंदिर, जयपुरः प्र० ले० सं०, भाग २, लेखांक ७५१ २६७०. महावीरस्वामी जी का मंदिर, बौरों की सेरी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७०५ . २६७१. महावीर जिनालय के अन्तर्गत वासुपूज्य स्वामी का मंदिर, बौरों की सेरी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७१४ २६७२. महावीर जिनालय, बोरों की सेरी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७०९ २६७३. महावीर जिनालय, बोरों की सेरी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७०८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारापिता प्र० बृ० श्रीखरतरगच्छाधिपति सिद्धान्तमहोदधि जं० यु० प्र० भ० जैनाचार्य श्रीजिनविजयेन्द्रसूरिभिः विक्रमपुरे॥ (२६७४) ब्रह्मशांतियक्षः विक्रम सं० २००२ मार्गशीर्ष शुक्ला १० शुक्रे ओसवाल ज्ञातीय हाकिम कोठारी श्रे० रावतमलस्यात्मज श्रीभैरूदानजी तस्यभार्या चांदकुमारी इत्यनेन श्रीब्रह्मशांतियक्षमूर्त्तिः का० प्र० श्री यु० प्र० भ० जैनाचार्य श्रीजिनविजयेन्द्रसूरिभिः विक्रमनगरे (२६७५) सिद्धायिकादेवी वि० सं० २००२ मा० सु० १० शुक्रे ओ० ज्ञा० को० श्रे० रावतमलस्यात्मज श्रे० भैरूदान तस्यभार्या चांदकुमारी इत्यनेन श्रीसिद्धायिकादेवी मूर्ति का० प्र० श्री जं० यु० प्र० भ० जैनाचार्य (जिनविजयेन्द्रसूरिभिः) (२६७६) जिनदत्तसूरि-पादुका ___ सं० २००५ मि। जे। सु १० जं। यु० प्रधान भट्टारक गुरुदेव दत्तसूरि चर्णपादुका भीखनचंदजी गिडिया प्रतिष्ठा कारापितं। (२६७७) सुखसागरजी-पादुका ___ सं० २००५ मि। जे। सु १० खरतरगच्छाधिपति परमपूज्य गुरुदेव श्रीसुखसागरजी मा० सा० के चर्णपादुका श्रीभीखनचंदजी गिड़ीया प्रतिष्ठा कारापितं। (२६७८) जिनचारित्रसूरि-पादुका सं० २००७ आषाढ़ कृ० एकादश्यां रवौ कचराणी गोलछा श्रेष्ठि दीपचन्द्रेणं जं० यु० प्र० भ० व्या० वा० श्रीजिनचारित्रसूरीश्वर पादुके कारितं जं० यु० प्र० भ० सि० म० व्या० वा० श्रीजिनविजयेन्द्रसूरीश्वरैः प्रतिष्ठापिते च। (२६७९) शिलालेखः बीकानेर निवासी श्रीमान् दानवीर स्वर्गीय सेठ भागचन्दजी कचराणी गोलछा के सुपुत्र दीपचन्दजी इनकी धर्मपत्नी आभादेवी ने १७ हजार रु० की लागत से बनवा कर नाल ग्राम में आषाढ़ कृष्णा ११ रविवारे सं० २००७ प्रतिष्ठा करवाई। २६७४. महावीर जिनालय, बोरों की सेरी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७११ २६७५. महावीर स्वामी का मंदिर, बोरों की सेरी, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक १७१२ २६७६. महावीर सेनिटोरियम, उदरामसरः ना० बी०, लेखांक २१९७ २६७७. महावीर सेनिटोरियम, उदरामसर, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २१९८ २६७८. श्रीजिनचारित्रसूरि मंदिर, नाल: ना० बी०, लेखांक २३०९ २६७९. श्रीजिनचारित्रसूरि मंदिर, नाल: ना० बी०, लेखांक २३०८ (४६०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६८० ) जिनदत्तसूरि-मूर्त्तिः वि० सं० २००८ मार्गशीर्ष शुक्ल १ गुरौ गढसिवाना निवासी ललवाणी जैन कुटुम्बेन खरतरगच्छाचार्य जंगमयुगप्रधान भट्टारक दादा श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां मूर्तिः कारिता श्रीजिनरत्नसूरिणा च प्रतिष्ठिता मेवानगरे (२६८१ ) जिनदत्तसूरि-मूर्त्तिः वि० सं० २००८ मार्गशीर्ष शुक्ल १ गुरौ गढसिवाना निवासी ललवानी जैन कुटुंबेन खरतरगच्छाचार्य जंगमयुगप्रधान भट्टारक दादा श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां मूर्तिः कारिता श्रीजिनरत्नसूरिणा च प्रतिष्ठा मेवानगरे । पेढ़ी द्वारा पुनः स्थापित सं० २०२६ मिती मार्ग शुक्ल ६ (२६८२ ) कीर्त्तिरत्नसूरि-मूर्ति वि० सं० २००८ मार्गशीर्ष शुक्ल १ गुरौ मेवानगरे जैन संघेन श्रीजिनकीर्त्तिरत्नसूरीश्वराणां मूर्तिः कारिता श्रीजिनरत्नसूरि प्रतिष्ठिता च सुविहित श्रीखरतरगच्छाचार्य श्रीजिनकृपाचंद्रसूरीणां शिष्य श्रीजिनजयसागरसूरीश्वराणामुपदेशेन श्रीजिनकीर्त्तिरत्नसूरिस्तूप जीर्णोद्धार निर्मापितः ॥ (२६८३) कीर्तिरत्नसूरि - पादुका वि० सं० २००८ मार्गशीर्ष शुक्ल १ गुरौ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनकीर्तिरत्नसूरिचरणपादुका श्रीसंघेन कारिता श्रीजिनरत्नसूरिणा च प्रति० । (२६८४) जिनकृपाचंद्रसूरि - पादुका वि० सं० २००८ मार्गशीर्ष शुक्ल १ गुरु मेवानगरे श्रीखरतरगच्छसंघेन खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिपादुका कारिता श्रीजिनरत्नसूरिणा च प्रतिष्ठिता । ( २६८५ ) जिनजयसागरसूरि- पादुका वि० सं० २००८ मार्गशीर्ष शुक्ल १ गुरु मेवानगरे श्रीखरतरगच्छसंघेन खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनजयसागरसूरिपादुका कारिता श्रीजिनरत्नसूरिणा च प्रतिष्ठिता । (२६८६ ) जिनदत्तसूरि-मूर्तिः र्द० ॥ स्वस्ति वीर सं० २४८२ वर्षे वि० सं० २०१३ वर्षे वैशाख शुक्लाक्षयतृतीयां शुभतिथौ रविवासरे मरुधर देशान्तर्गतश्रीबीकानेरवास्तव्य ओसवालज्ञातीय कोचरगोत्रीय श्रेष्ठी भैरूदान सुपुत्रेण श्रेष्ठिवर्य प्रसन्नचंद्रेण स्वपितु स्व मातु .. .. देव्या स्वधर्मपत्न्या केशरदेव्या आत्मनश्च श्रेयो निमित्ते जंगम युगप्रधान २६८०. भण्डारस्थ प्रतिमा, शांतिनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक १७८ २६८१. भण्डारस्थ प्रतिमा, शांतिनाथ जिनालय, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक १७९ २६८२. कीर्त्तिरत्नसूरि दादाबाड़ी, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक १८०; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ५१० २६८३. कीर्तिरत्नसूरि दादाबाड़ी, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक १८१; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ५०९ २६८४. कीर्तिरत्नसूरि दादाबाड़ी, नाकोड़ाः ना० पा० ती०, लेखांक १८२; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ५११ २६८५. कीर्तिरत्नसूरि दादाबाड़ी, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक १८३; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ५१२ २६८६. वल्लंभविहार, शत्रुंजय: भँवर० (अप्रका०), लेखांक ५० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only ४६१) Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खरतरगच्छशृंगार दादाजी इति प्रसिद्ध नाम्ना श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणांमूर्ति कारितं प्रतिष्ठिता च तपगच्छालंकार श्रीविजयवल्लभसूरि पट्टधरेण श्रीविजयसमुद्रसूरि..................मंगलम् (२६८७) जिनदत्तसूरि-प्रतिमा श्रीविक्रम सं० २०१६ वै० सु० ११ चन्द्रे श्रीबालचंद मुकनचंद पारख द्वारा युगप्रवर गुरुदेव श्रीजिनदत्तसूरिबिं० का० जैनाचार्य खरतरगच्छाधिपति भट्टारक श्रीजिनविजयेन्द्रसूरीणा दाढीनगरे प्रतिष्ठितं ॥ (२६८८) जिनकुशलसूरि-पादुका जं० यु० प्र० भ० दादासाहिब श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुका श्रीहैदराबाद सिकन्दराबाद श्रीसंघेन कारिता व्या० वा० श्रीकांतिसागर दर्शनसागराभ्यां प्रतिष्ठापिता च वि० सं० २०१६ पौष शुक्ला १३ कुलपाक तीर्थ (२६८९) शिलालेखः ॐ परम पूज्य गुरुदेव व्याख्यान वाचस्पति शासन प्रभावक श्री १००८ श्रीकांतिसागरजी म० सा० एवं० न्याय व्याकरण तीर्थ साहित्यशास्त्री मुनिराज श्रीदर्शनसागरजी म० सा० के सानिध्य में इस परम पवित्र श्रीकुलपाक तीर्थ में हैद्राबाद-सिकंदराबाद श्रीसंघ के द्वारा प्राचीन ध्वजदण्ड कलश का जीर्णोद्धार कराकर अठाई महोत्सव शांतिस्नात्र विधि-विधान पूर्वक प्रतिष्ठा कार्य संपन्न हुआ है। यहां के चौमुखजी की प्रतिष्ठा भी गुरुदेव से ही हुई थी। आपके यहां विराजने पर श्री उद्यापन एवं श्री उपधान तप महोत्सव भी सानंद हुए। श्रीसंघस्य श्रेयसे भवतु, श्रीतीर्थस्य जयो वर्ततु, वीर संवत् २४८६ विक्रम सं० २०१६ पोष शुक्ल १३ (२६९०) जिनदत्तसूरि-मूर्तिः संवत् २०१७ मार्ग शु० ६ दिने खरतरगच्छालंकार जं० यु० प्र० दादा श्री १००८ श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां मूर्तिः जिनकृपाचंद्रसूरिशिष्य उपाध्याय मुनिसुखसागरोपदेशात् श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठिता खरतरगणमुनीन्द्रैः ।। (२६९१) जिनकुशलसूरि-मूर्तिः वि० सं० २०१७ मार्गशीर्ष शु० ६ दिने श्रीखर तर गच्छालंकार जं० यु० भ० दादाश्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां मूर्तिः जिनकृपाचंद्रसूरिशिष्य उपाध्याय सुखसागरोपदेशात् श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठिता खरतरगणमुनीन्द्रैः॥ (२६९२) यु० जिनचन्द्रसूरि-मूर्तिः सं० २०१७ मार्ग शु० ६ दिने श्रीखरतरगच्छालंकार जं० यु० प्र० अकबरप्रतिबोधक दादा श्री २६८७. दाढ़ी दुर्ग (छत्तीसगढ): भँवर० (अप्रका०) २६८८. विनयसागर, कुलपाकतीर्थ, लेखांक ३४ २६८९. विनय सागर कुलपाक तीर्थः लेखांक ३६ २६९०. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक १२० २६९१. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक १२२ २६९२. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक १२१ (४६२) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००८ श्रीजिनचंद्रसूरीश्वराणां मूर्त्तिः जिनकृपाचंद्रसूरिशिष्य उपाध्याय मुनिसुखसागरोपदेशात् श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठिता च खरतरगण (२६९३ ) जिनकृपाचन्द्रसूरि-मूर्तिः वि० सं० २०१७ मार्ग शु० ६ दिने श्रीखरतरगच्छालंकार जैनाचार्य श्री १००८ श्रीजिनकृपाचंदसूरीणां मूर्त्तिः श्रीसिद्धाचलतीर्थे श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठिता च खरतरगणमुनीन्द्रैः (२६९४ ) जिनजयसागरसूरि-मूर्तिः वि० सं० १०१७ मार्ग सु ६ श्रीखरतरगच्छालंकार जैनाचार्य श्रीजिन (जय ) सागरसूरीणां मूर्त्तिः श्रीसिद्धाचलतीर्थे श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठिता च श्रीखरतरगणमुनीन्द्रैः (२६९५ ) शिलालेखः सं० २०१७ माघ शु० १० गुरौ दाढी श्रीसंघेन भगवान श्रीशांतिनाथप्रासाद कारितं प्रतिष्ठितं जं० यु० प्र० श्रीपूज्य जैनाचार्य श्रीजिनविजयेन्द्रसूरिणा वीर सं० २४८७ (२६९६ ) जिनदत्तसूरि- पादुका दादा श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां चरणपादुका वि० सं० २०१७ (२६९७ ) जिनकुशलसूरि- पादुका दादाश्री जिनकुशलसूरीश्वराणां पादुका वि० सं० २०१७ (२६९८ ) सम्मेतशिखरपट्टः विक्रम संवत् २०१८ के मगसर बदी ७ से इस तीर्थस्थान पर पुज्य अनेक संस्थाओं के संस्थापक विश्ववन्द्य जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्रीमज्जिनहरिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहिब के शिष्यरत्न व्याख्यानवाचस्पति शासनप्रभावक श्री १००८ श्रीकांतिसागरजी महाराज एवं व्याकरण न्यायतीर्थ साहित्यशास्त्री मुनिराज श्री दर्शनसागरजी महाराज के सानिध्य में उपध्यानतप शुरु होकर पोष शुदी १४ को माल उत्सव के उपलक्ष में उपध्यान तपस्वीयों की ओर से यह पट बनवाया गया। (२६९९ ) सिद्धाचलपट्टः विक्रम संवत् २०१८ के मगसर वदी ७ से इस तीर्थस्थान पर पुज्य अनेक संस्थाओ के संस्थापक विश्ववन्द्य जैनाचार्य श्रीश्री १००८ श्रीमज्जिनहरिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब के शिष्यरत्न व्याख्यानवाचस्पति २६९३. दादाबाड़ी, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक १२३ २६९४. दादाबाड़ी, शत्रुंजयः भँवर ० ( अप्रका० ), लेखांक १२४ २६९५. रोशनमुहल्ला आगराः भँवर० (अप्रका० ) २६९६. दादाबाड़ी शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक १२६ २६९७. दादाबाड़ी, शत्रुंजय : श्री भँवर० (अप्रका०), लेखांक १२७ २६९८. पञ्चतीर्थी मंदिर के बाहर की दीवार, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक २२० २६९९. पञ्चतीर्थी मंदिर के बाहर की दीवार, नाकोड़ा: ना० पा० ती०, लेखांक २१९; बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ३८१ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (४६३ For Personal & Private Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शासनप्रभावक श्री १००८ श्रीकान्तिसागरजी महाराज एवं व्याकरण-न्यायतीर्थ साहित्यशास्त्री मुनिराज श्रीदर्शनसागरजी महाराज के सानिध्य में उपध्यानतप शुरू होकर १४ को माल उत्सव के उपलक्ष में उपधान तपस्वीयों की ओर से यह पट्ट बनवाया गया। __ (२७०० ) केसरियानाथ-पादुका लूणावत फकीरचन्द तत्पुत्र रतनलाल माणकचंद धरमचंद प्रतिष्ठितं वि० सं० २०२६ ज्ये० सु०६ खरतरगच्छ जिनआनंदसूरि पट्टे उदयसागरेण (२७०१) ऋषभदेवः यह बिम्ब ढढ्ढागोत्रे पदमसी नेनसी अजमेर निवासी ने भराया सिंघवी गोत्रे तेजराज तत्पुत्र वीरधराज तत्पुत्र हरकराज उत्तमराज पदमराज रिखबराज धणसीजी निवासी वि० सं० २०२६ ज्ये० सु०६ गुरुवासरे प्रतिष्ठितं खरतरगच्छाचार्य जिनआनंदसूरि पट्टे उदयसागरेण कारापितं (२७०२) चन्द्रप्रभः यह बिम्ब ढढ्ढागोत्रे पदमसी नेनसी अजमेर निवासी ने भराया सिंघवी गोत्रे पदमचन्द वीजापुर वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरुवासरे खरतरगच्छाचार्य जिनआनंदसूरि पट्टे उदयसागरेण प्रतिष्ठितं कारापितं (२७०३) वासुपूज्यः श्रीमाल वंशे महेमवालगोत्रे मेघराज भार्या अनुराधाबेन तत्पुत्र छगनलाल जवाहरलाल कारापितं वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरु हैद्राबाद नगरे खरतरगच्छे जिनआनंदसागरसूरि पट्टे उदयसागरेण (२७०४) शांतिनाथः यह बिंब ढढ्ढागोत्रे पदमसी नेनसी अजमेर निवासी ने भराया कोचर गोत्रे मेघराज भार्या चांदबाई तत्पुत्र जयकुमार वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरु खरतरगच्छाचार्य श्रीआनंदसूरिपट्टे उदयसागरेण प्रतिष्ठा कारापितं (२७०५) पार्श्वनाथः यह बिम्ब ढढ्ढागोत्रे पदमसी नेनसी अजमेर निवासी ने भराया कीमतीगोत्रे पन्नालाल रामलाल तत्पुत्र सम्पतलाल भार्या मदनबाई परिवारेन प्रतिष्ठितं वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरुवासरे खरतरगच्छाचार्य जिनआनंदसूरि पट्टे उदयसागरेण प्रतिष्ठा कारापितं २७००. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७०१. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७०२. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७०३. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७०४. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७०५. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७०६) पार्श्वनाथ: यह बिम्ब ओसवाल वंशे ढढ्ढागोत्रे पदमसी नेनसी अजमेर निवासी ने भराया हैदराबाद नगरे भण्डारीगोत्रे पन्नालाल भार्या चन्द्रकुमारी तत्पुत्र विनयकुमार तत्पुत्र सुधीरकुमार प्रतिष्ठितं खरतरगच्छ जिन आनंदसूरि पट्टे उदयसागरेण वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरुवासरे प्रतिष्ठितं कारापितं (२७०७) ऋषभाननः कपूरचन्द कस्तूरचन्द झाडचूरगोत्रे श्रीमालसपरिवारेन श्रीऋषभाननबिंबं स्वपिता श्रीखूबचन्दजी व माता श्रीहीराबाई स्मरणार्थं प्रतिष्ठितं वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरौ खरतर० जिनआनंदसूरि उदयसागरेण (२७०८ ) चन्द्राननः श्रीमती सूरजबाई भार्या केशरीचन्द बोहरा ने श्रीचन्द्राननजिनबिंबं स्वपति श्रीकेसरीचन्दजी बोहरा श्रीमाल के स्मरणार्थं प्रतिष्ठितं वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरौ खरतरगच्छे श्रीजिनआनंदसागरसूरि पट्टे उदयसागरेण (२७०९ ) वारिषेण: श्रीमती वंसतीबाई फूलचन्दजी श्रीमाल सपरिवारेन श्रीवारिषेणजिनबिम्बस्य श्रीफूलचन्द झाडचूर वंशे श्रीमाल के स्मरणार्थ प्रतिष्ठितं वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरौ खरतर० श्रीजिनआनंदसूरि उदयसागरेण (२७१० ) वर्धमानः श्रीवर्धमानस्वामी सिताबचन्द ( भार्या सौ० प्रेमकंवर) विजयचन्द ( भार्या सौ० कमला देवी) सौ ० राजबाई सौ० कुंवरबाई ने अपनी स्व० मातुश्री सोहनबाई भार्या कपूरचन्दजी श्रीमाल के स्मरणार्थ श्रीवर्धमानजिनबिंबं प्रतिष्ठितं वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरौ खर० जिनआनंदसूरि उदयसागरेण (२७११ ) सीमन्धरस्वामी वि० सं० २०२६ ज्ये०सु० ६ गुरुवासरे पुष्यनक्षत्रे हैद्राबाद नगरे सुलतान बाजारे अजितजिनप्रासादे श्रीसीमन्धरस्वामीजिनबिंबं प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनआनंदसूरि पट्टे प्रतिष्ठाचार्य श्रीउदयसागरेण । श्रीमालवंशे झाडचूरगोत्रे खूबचन्द तत्पुत्र कपूरचन्द तत्पुत्र सिताबचन्द विजयचन्द परिवारयुतेन बिंबं भराया व प्रतिष्ठितः २७०६. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७०७. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७०८. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७०९. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७१०. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७११. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only (४६५) Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७१२) गौतमस्वामी यह बिंब भराया ओसवंशे सांखलागोत्रे लखमसी तत्पुत्र धनजी भार्या कस्तूरबेन परिवारेन वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरु पुष्यनक्षत्रे हैद्राबाद नगरे श्रीगौतमस्वामीबिंबं ओसवंशे सकलेचागोत्रे भगवानचन्द रूपचन्द घेवरचन्द वंशराज पादरूवाला प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे जिनआनंदसागरसूरि पट्टे उदयसागरेण __ (२७१३) मणिधारीजिनचन्द्रसूरि-मूर्तिः यह बिंब भराया मूथा बालचन्द्र तत्पुत्र प्रेमराज भार्या हेमलता तत्पुत्र वीरेन्द्रकुमार परिवारेन वि० सं० २०२६ ज्येष्ठ सु० ६ गुरु हैद्राबाद नगरे मणिधारीश्रीजिनचन्द्रसूरिबिंबं लूणियागोत्रे इन्द्रमल भार्या इचरजबाई तत्पुत्र सुरेन्द्रमल भार्या शशिबाला परिवारेन प्रतिष्ठितं ख० ग० श्रीजिनआनंदसागरसूरि पट्टे प्रतिष्ठाचार्य उदयसागरेण (२७१४) जिनकुशलसूरिमूर्तिः यह बिंब ओसवंशे संघवीगोत्रे रघुनाथमल भार्या संतोषबाई तत्पुत्र अमोलकचन्द भार्या उगमकंवर तत्पुत्र कुशलचन्द्र राकेशकुमार परिवारेन वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरुवारे पुष्य नक्षत्रे हैद्राबाद नगरे सुलतान बाजारे श्रीअजितनाथप्रसादे दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनआनंदसागरसूरिजी पट्टे प्रतिष्ठाचार्य आर्य उदयसागरेण . .. (२७१५) जिनकुशलसूरि-पादुका शाह नरसी वेलसी ने भराया तथा बदनमल जोधराज कांकरिया ने प्रतिष्ठा कराई। वि० सं० २०२६ ज्येष्ठ सु० ६ गुरु खरतरगच्छे जिनआनंदसागरसूरि पट्टे उदयसागरेण (२७१६) युगप्रधान-जिनचन्द्रसूरि-मूर्ति यह बिंब ओसवंशे लूणियागोत्रे इन्द्रमल भार्या इचरजबाई तत्पुत्र सुरेन्द्रमल भार्या शशिबाला परिवारेन भराया वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरुवासरे पुष्य नक्षत्रे हैद्राबाद नगरे सुलतान बाजारे श्रीअजितनाथप्रसादे अकबरप्रतिबोधक दादासाहब श्रीजिनचन्द्रसूरिजीबिंबं अग्रवालगोत्रे बंसलगोत्रे संघी गिरधारीलाल भार्या तारादेवी तत्पुत्र अशोककुमार अरुणकुमार युतेन प्रतिष्ठितं खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनआनंदसागरसूरि पट्टे प्रतिष्ठाचार्य आर्यपुत्र उदयसागरेण (२७१७) युगप्रधान-जिनदत्तसूरि-पादुका दादा जिनदत्तसूरि चरण धनराज धरमचन्द रांका ने भराया रामप्रसाद जानकीप्रसाद श्रीमालपरिवारेन प्रतिष्ठा कराई। वि० सं० २०२६ ज्ये० सु०६ गुरु खरतरगच्छे जिनआनंदसागरसूरि पट्टे उदयसागरेण २७१२. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७१३. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७१४. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७१५. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७१६. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७१७. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद (४६६) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह) For Personal & Private Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७१८) महायक्षः ओसवंशे धरोड़गोत्रे शाह टोकरसी लालजी भार्या अमृतबेन तत्पुत्र धीरजलाल कीर्तिकुमार ने बिंबं भराया व ओसवंशे भण्डारी गोत्रे भभूतमल तत्पुत्र हस्तीमल तत्पुत्र गजराज बाबूलाल चम्पालाल वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरौ खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनआनंदसागरसूरि पट्टे प्रतिष्ठाचार्य उदयसागरेण (२७१९) अजितबला-देवी ___ संघवी गनपतचन्द बिजापुर वाला वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ गुरु हैद्राबाद नगरे यक्षिणी अजितबला कारापितं खरतरगच्छे आनंदसूरि पट्टे उदयसागरेण (२७२०) पार्श्वयक्षः ओसवंशे गुजर वोरा मूलचन्द भार्या मंजुलाबेन कारापितं प्रतिष्ठितं वि० सं० २०२६ ज्ये० सु०६ गुरु खरतरगच्छे जिनआनंदसागरसूरि पट्टे उदयसागरेण (२७२१) पार्श्वयक्षः ओसवंशे श्रीश्रीमाल पटनीगोत्रे भगवानदास तत्पुत्र मोतीलाल भार्या वसन्तबेन सोजत निवासी वि० सं० २०२६ ज्ये० सु० ६ हैद्राबाद नगरे कारापितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे जिनआनंदसागरसूरि पट्टे उदयसागरेण (२७२२) जिनदत्तसूरि-मूर्तिः यह बिंब फलोदी निवासी गोलेछा गुलाबचन्द लक्ष्मीचन्द सपरिवार ने भराया श्रीमती बसंतीबाई धर्मपत्नी फूलचन्दजी झाडचूर गुलाबचन्द सपरिवारेन दादासाहब जिनदत्तसूरिजी प्रतिष्ठितं वि० सं० २०२६ आषाढ़ कृ० १० सोमवारे खरतरगच्छ आचार्य आनंदसूरि उदयसागरेण . (२७२३) शिलालेखः ॐ अहँ नमः । श्रीमाणिक्यस्वामिने नमः॥ तेलंगदेश मुकुटमणि श्रीश्वेताम्बर जैन कुलपाक महातीर्थे माणिक्यस्वामी श्रीआदीश्वर भगवंत श्री महावीर स्वामी आदि अलौकिक जिनबिंबों की यात्रार्थ खरतरगच्छाधिपति परमपूज्य नवांगी टीकाकर स्तंभनतीर्थ प्रगटकर्ता श्री अभयदेवसूरि, श्रीजिनवल्लभसूरि, श्रीजिनदत्तसूरि, श्रीजिनकुशलसूरि, अकबर बादशाह प्रतिबोधक श्रीजिनचन्द्रसूरि-पट्ट-परंपरा में गणाधीश्वर श्रीसुखसागरजी म० सा० के समुदायवर्ती पू० त्रैलोक्यसागरजी म० सा० के शिष्य सिद्धांतवेदी जैनाचार्य वीरपुत्र श्रीजिनआनंदसागरसूरिजी म० सा० एवं गणाधीश्वर श्रीहेमेन्द्रसागरजी म० सा० आज्ञानुयायी प्रतिष्ठाचार्य पू० उदयसागरजी म० सा० पू० महोदयसागरजी म० सा० एवं पू० प्र० श्रीपुण्यश्रीजी म० सोहनश्रीजी म० २७१८. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७१९. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७२०. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७२१. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७२२. अजितनाथ पार्श्वनाथ मंदिर, हैदराबाद २७२३. कुलपाकतीर्थः लेखांक ३८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (४६७) For Personal & Private Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जतनश्रीजी म० की शिष्यायें वयोवृद्धा विज्ञान श्रीजी म० विश्वप्रेमप्रचारिका पू० विचक्षणश्रीजी म० अविचल श्रीजी म० निपुणाश्रीजी म० तिलकश्रीजी म० आदि ठाणा १६ मद्रास, बेंग्लोर, मैसूर आदि देशो में धर्मप्रचार करते हुए पधारे। आप सबकी सान्निध्यता में हैदराबाद नवनिर्मित श्रीअजितनाथ जैन मंदिर की प्रतिमा की प्रतिष्ठा, अंजनशलाका, दीक्षाएं एवं उद्यापन आदि अनेक शुभ कार्य सम्पन्न हुए। तत्पश्चात् आपके ही सान्निध्य में स्थानीय श्रीसंघ ने कुलपाक तीर्थ की यात्रा के लिये वि० सं० २०२६ प्रथम आषाढ सुदि ५ शुक्रवार के शुभदिन में श्रीअजितनाथ जैन मंदिर सुलतान बाजार से प्रस्थान किया। वि० सं० २०२६ प्रथम आषाढ सुद ११ गुरुवार को श्री कुलपाकजी तीर्थ में सानंद प्रवेश किया। तीर्थ दर्शन एवं संघ दर्शन के लिये हैदराबाद, सिकंदराबाद, आदि निकटवर्ती स्थानों से यात्रीगण पधारे, सबने चतुर्विध संघ का स्वागत किया। - मंदिरजी में बड़ी पूजा एवं दादा गुरुदेव की पूजा, स्वामी वात्सल्य आदि शुभकार्यों के साथ पूज्य महाराजश्री के वरदहस्त से तीर्थमाला के उपलक्ष में संघपतियों की परम भावना से तीर्थोन्नति एवं प्रभुभक्ति निमित्त प्रतिदिन बड़ी पूजा पढाई जाय ऐसा शुभ निश्चय किया। (२७२४) जिनकुशलसूरि-प्रतिमा श्रीगाजियाबाद नगरे दादाजिनकुशलसूरि प्रतिष्ठा खरतरगच्छे श्रीजिनहरिसागरसूरिशिष्य कांतिसागरेण सं० २०२८ वैशाख शुक्ल ६ दिने (२७२५) जिनकुशलसूरि-पादुका ॐ हीं श्रीजिनकुशलसूरि सद्गुरुभ्यो नमः स्वस्ति श्रीबालोतरानगरे श्रीसंघेन कारिते दादाबाड़ी मध्ये श्रीजिनकुशलसूरिमूर्तिः पादुका च प्रतिष्ठितं नवाङ्गीटीकाकार अभयदेवसूरिसंतानीय जिनहरिसागरसूरिशिष्य अनुयोगाचार्य कांतिसागरैः श्रीखरतरगच्छे संवत् २०३६ ज्येष्ठ शुक्ल पंचम्यां गुरुवासरे। शुभं भवतु श्रीसंघस्य। __(२७२६) अभयदेवसूरि-पादुका स्वस्ति श्रीबालोतरानगरे सं० २०३६ ज्येष्ठ शुक्ल पंचम्यां गुरुवासरे नवाङ्गी टीकाकार खरतरगच्छाचार्य श्रीअभयदेवसूरीश्वराणां पादुका प्रतिष्ठितं जिनहरिसागरसूरिशिष्य खरतरगच्छचार्य श्रीकांतिसागरादि शुभं भवतु श्रीसंघस्य॥ (२७२७) जिनदत्तसूरिमूर्तिः स्वस्ति श्रीबालोतरानगरे सं० २०३६ ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी तिथौ गुरुवासरे खरतरगच्छसंघेन कारिते कलिकालकल्पतरु श्रीजिनदत्तसूरिमूर्तिः प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे जिनहरिसागरसूरिशिष्य अनुयोगाचार्य कांतिसागरादिभिः शुभं। २७२४. गाजियाबाद : भँवर० (अप्रका०) २७२५. खरतरगच्छीय दादाबाड़ी, बालोतराः बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २०५ २७२६. खरतरगच्छीय दादाबाड़ी, बालोतरा: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २०४ २७२७. केशरिया नाथ जी का मंदिर, बालोतरा: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २१८ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७२८) जिनकुशलसूरि-मूर्तिः स्वस्ति श्रीबालोतरानगरे सं० २०३६ ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी तिथौ गुरुवासरे खरतरगच्छसंघेन कारिते कलिकालकल्पतरु श्रीजिनकुशलसूरिमूर्तिः प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे जिनहरिसागरसूरिशिष्य अनुयोगाचार्य कांतिसागरादिभिः शुभं भवतु श्रीसंघस्य। ___ (२७२९) जिनकुशलसूरिमूर्ति ___ सं० २०३६ जे० सु० ६ शुक्रवासरे हरसानीनगरे पू० श्रीजिनकुशलसूरिबिंबं खरतरगच्छाचार्य श्रीआनंदसागरसूरिशिष्येण उदयसागर प्रतिष्ठितं श्रेष्ठि शेरमलजी छाजेड़ सत्र स्थापी छ। (२७३०) महावीरः वि० सं० २०३७ वैशाख वदि तृतीया दिने शुक्रवारे पालीताणातीर्थस्थापनार्थे श्रीवर्द्धमानस्वामीजिनबिंबं बीकानेर निवासी स्व० सेठ शंकरदानजी नाहटा सुपुत्र शुभराज भार्या छोटादेवी सुपुत्र तनसुखराय सुपुत्र प्रकाशकुमार नाहटा परिवारेण श्रेयोर्थं कारितं प्रतिष्ठितं च आ० श्रीबुद्धिसागरसूरिजी संतानीयाचार्य श्रीकैलाशसागरसूरिभिः। बीजापुरनगरे । शुभं भवतु संघस्य॥ (२७३१) सीमन्धरः वि० सं० २०३७ वर्षे वैशाख वदि तृतीया दिने शुक्रवारे पालीताणातीर्थस्थापनार्थे श्रीसीमंधरस्वामीजिनबिंबं बीकानेर निवासी स्व० श्रेष्ठीवर्य शंकरदानजी स्व० सुपुत्र भैरोदानजी भार्या दुर्गादेवी तत्सुपुत्र हरखचंदजी पौत्र ललितकुमार प्रदीपकुमार दिलीपकुमार नाहटा परिवारेण श्रेयो) कारितं प्रतिष्ठिता आचार्य श्रीबुद्धिसागरसूरीश्वरसंतानीय आचार्य श्रीकैलाशसागरसूरीश्वराणां बीजापुरनगरे शुभं भवतु संघस्य (२७३२) मणिधारी जिनचन्द्रसूरि-पादुका वि० सं० २०३७ वैशाख वदि ३ (गु०) युगप्रधान दादा साहेब मणिधारी श्रीजिनचंद्रसूरीश्वरजी चरणपादुका बीकानेर निवासी मेघराज नाहटा भार्या बरजीदेवी सुपुत्र केशरीचंद धर्मपत्नी कंचनदेवी नाहटा परिवार श्रेयोर्थं कारितं प्रतिष्ठा आचार्य श्रीकैलाशसागरसूरीश्वरजी शुभं भवतु संघस्य ॥ (२७३३) श्रीमद् राजचन्द्र-पादुका वि० सं० २०३७ मि० वैशाख वदि ३ पालीताणातीर्थस्थापनार्थं अलौकिक श्रीअध्यात्मशांति परमतत्त्ववेत्ता श्रीमद्राजचंद्र का चरणपादुका बीकानेर निवासी सेठ शुभराज धर्मपत्नी स्व० छोटादेवी नाहटा परिवार श्रेयो) कारितं प्रतिष्ठितं ॥ जन्म कार्तिक सुदि १५ देहोत्सर्ग वि० सं० १९५७ चैत्र वदि ५ २७२८. खरतरगच्छीय दादाबाड़ी, बालोतरा: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २०३ २७२९. शांतिनाथ जी का मंदिर, हरसाणी, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ३०७ २७३०. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक ११२ २७३१. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक १०९ २७३२. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक १२५ २७३३. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक ११९ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) (४६९) For Personal & Private Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७३४) विमलनाथः सं० २०३७ वै० सु० ३ श्रीविमलनाथजिनबिंबं अगरचंद भार्या पनी सुपुत्र धर्मचंद्र विजयचंद नाहटा परिवार श्रेयो) कारितं प्रतिष्ठितं श्रीकैलाशसागरसूरीश्वर (२७३५) वर्धमानः वि० सं० २०३८ मिती वैशाख सुदि ६ बुधवारे श्रीवर्धमानस्वामी की प्रतिष्ठा श्रीखरतरगच्छ विभूषण स्व० श्रीमोहनलालजी महाराज समुदाय के स्व० गणि श्रीबुद्धिमुनिजी के शिष्य श्रीशाम्यानंदमुनि श्रीजयानंदमुनिजी द्वारा हुई। (२७३६) सीमन्धरः वीर सं० २५०८ वि० सं २०३८ मिती मिगसर सुदि ६ बुधवार दिने श्रीपालीताणा नगरे श्रीसीमंधरस्वामीजी की प्रतिष्ठा श्रीखरतरगच्छ विभूषण श्रीमोहनलालजी म० सा० के समुदाय के गणिवर्य श्रीबुद्धिमुनिजी के शिष्यरत्न श्रीशाम्यानंदजीमुनि जयानंदजीमुनि के करकमल से संपन्न हुई। (२७३७) वि० सं० २४०८ वि० सं० २०३८ मिगसर सुदि ६ बुधवार दिने श्रीपालीताणानगरे श्रीस्व०आचार्य श्रीकृपाचंद्रसूरीश्वरजी के समुदाय के साध्वी श्रीमहेन्द्रप्रभाश्री के उपदेश से श्रीविमलनाथ प्रभु की प्रतिष्ठा जयपुर निवासी विमलचंद सुराणा की धर्मपत्नी मेमबाई ने खरतरगच्छ विभूषण श्रीशाम्यानंदमुनि जयानंदमुनि के करकमलों से संपन्न हुई। (२७३८) चन्द्रप्रभः वि० सं० २०३८ फागण वदि ३ गुरुवार पालीताणातीर्थस्थापनार्थं चंद्रप्रभस्वामीजिनबिंबं श्रीनासक निवासी स्व० श्रीमती वरनीबाई...............सेठ रतनलालजी पटना परिवार श्रेयोर्थं कारितं मूर्त्तिरियं खरतरगच्छ विभूषण बुद्धिमुनि म० सा० शि० शाम्यानंदमुनि....... (२७३९) शिलालेखः सं० २०४१ माघ शुक्ल त्रयोदश्यां रात्रौ प्रभुसंभवनाथ पार्श्वनाथादिबिम्बानां अंजनशलाका कारापितं सं० २०४१ माघ शुक्ल चतुर्दश्यां सोमवासरे पुष्यनक्षत्रे प्रभुसंभवनाथ, पार्श्वनाथ, गौतमस्वामी, दादाजिनकुशलसूरि, नाकोड़ा भैरव, घंटाकर्णमहावीर यक्ष-यक्षिण्यादि-बिंबानि प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छे आचार्य जिनकांतिसागरसूरि मणिप्रभसागरादिभिः॥ शुभं भवतु श्रीसंघस्य॥ २७३४. दादाबाड़ी, शत्रुजय: भँवर० (अप्रका०), लेखांक ११५ २७३५. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक ११३ २७३६. दादाबाड़ी, शत्रुजय: भँवर० (अप्रका०), लेखांक ११० २७३७. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक ११६ २७३८. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भंवर० (अप्रका०), लेखांक ११८ २७३९. संभवनाथ जी का मंदिर, बालोतरा: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २१६ (४७०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) For Personal & Private Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७४०) संभवनाथः सं० २०४१ माघ शुक्ल १४ बालोतरानगरे दादावाटिकायां जैनश्वे० खरतरगच्छसंघेन कारापितं श्रीसंभवनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छाचार्य जिनकांतिसागरसूरि मणिप्रभसागरादिभिः (२७४१) मूलनायक-विमलनाथः वि० सं० २०४२ ज्येष्ठ शुक्ल १२ बाड़मेर नगरे श्रीविमलनाथ चौमुखमंदिरे जिनबिंबानि दादागुरुदेव प्रतिमा, भैरवबिंबं यक्ष- यक्षिणीबिंबे प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छाचार्य जिनकांतिसागरसूरिभिः। सं० २०४२ ज्येष्ठ शुक्ल १० रात्रौ शुभलग्ने अंजन कारितं । शुभं भवतु श्रीसंघस्य। (२७४२ ) पार्श्वनाथः सं० २०४२ ज्ये० सु० १२ बाड़मेरनगरे पार्श्वनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छाचार्य जिनकांतिसागरसूरिभिः (२७४३) जिनकुशलसूरिमूर्तिः सं० २०४२ ज्ये० सु० १२ बाड़मेर नगरे दादासाहेब कुशलगुरुदेवबिंब प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छाचार्य जिनकांतिसागरसूरिभिः (२७४४) कल्याणसागरसूरिमूर्तिः ___ सं० २०४२ ज्येष्ठ सुदि १२ बाड़मेरनगरे दादाकल्याणसागरसूरिजी की मूर्त्तिबिंब प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छाचार्य जिनकांतिसागरसूरिभिः ___ (२७४५) शिलालेखः ___वि० सं० २०४२ ज्येष्ठ शुक्ल १२ शुक्रवासरे बाड़मेर नगरे श्रीगौड़ीपार्श्वनाथ, दादागुरुदेव, नाकोड़ा भैरवादि बिंबानि प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छाचार्य जिनकांतिसागरसूरिभिः शुभं भवतु श्रीसंघस्य। (२७४६) शिलालेखः प० पू० युगप्रभावक आचार्य श्रीजिनकांतिसागरसूरीश्वरजी म. सा० के आशीर्वाद से प० पू० प्रवर्तिनी प्रेमश्रीजी म. सा. की प्रशिष्या साध्वी सुलोचनाश्रीजी म० सा० साध्वी श्रीसुलक्षणाश्रीजी म० सा० के सदुपदेश से हुआ। प्रतिष्ठा सं० २०४२ ज्येष्ठ शुक्ला १२ शुक्रवार तारीख ३१-५-१९८२ २७४०. संभवनाथ जी का मंदिर, बालोतरा: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक २१७ २७४१. जैनमंदिर, दाणीबाजार, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १९३ २७४२. गौड़ी पार्श्वनाथ जी का मंदिर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १६६ २७४३. गौड़ी पार्श्वनाथ जी का मंदिर, बाडमेर: बा० प्रा० जै०शि०, लेखांक १६८ २७४४. गौड़ी पार्श्वनाथ जी का मंदिर, बाड़मेर: बा० प्रा० ०शि०, लेखांक १६७ २७४५. गौड़ीसा पार्श्वनाथ जी का मंदिर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक १६९ २७४६. गौड़ी पार्श्वनाथ जी का मंदिर, बाड़मेर: बा० प्रा० जै०शि०, लेखांक १७० (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: (४७१) For Personal & Private Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७४७) शिलालेखः खरतरगच्छाधिपति प० पू० आचार्य भगवन्त श्रीजिनउदयसागरसूरीश्वर जी एवं जिनकांतिसागरसूरीश्वरजी म० सा० के आशीर्वाद से आज्ञानुवर्ती प० पू० प्रवर्तनी प्रेमश्रीजी म० सा० की प्रशिष्या सुलोचना श्रीजी म० सा० सुलक्षणाश्रीजी म. सा. के सदउपदेश से मंदिर के केशर, धूप, दीप, दूध के लिये साधारण खातो की नामावली........ (२७४८) शिलालेखः सं० २०४२ फा० सु० ३ गुड़ामालानीग्रामे श्रीजिनकुशलसूरिप्रतिमा-प्राण प्रतिष्ठापितं आ० जिनकांतिसागरसूरि शिष्य मुनिमणिप्रभसागरेण खरतरगच्छ श्रीसंघेन कारापितं। (२७४९) शिलालेखः श्रीजिनदत्तसूरि दादाबाड़ी तलेटी रोड पालीताणा श्रीवर्धमानस्वामी देरासर एवं श्रीसीमंधरस्वामी देरासर के नवनिर्माण एवं दादाबाड़ी जीर्णोद्धार निमित्ते स्व० आचार्य श्रीकृपाचंदसूरीश्वरजी म० सा० समुदाय के प्रवर्तिनी स्व० महिमाश्रीजी एवं० स्व० साध्वीश्री ज्ञानश्रीजी व स्व० चंदनश्रीजी के शिष्या वर्तमान मुनि जयानंद के आज्ञावर्त्ति साध्वीजीश्री मेघश्रीजी श्रीमहेन्द्र श्रीजी श्रीप्रमोदश्रीजी श्रीमहेन्द्रप्रभाश्रीजी के सदुपदेश एवं प्रेरणा से खरतरगच्छ श्रीसंघ की ओर से ११००१) रु. प्रदान किए वि० सं०२०३८ . (२७५०) शिलालेखः श्रीवर्द्धमानस्वामीका बिंब व देहरी बीकानेर निवासी स्व० पु० सेठ शंकरदानजी एवं स्व० श्रीमती चुनीदेवी नाहटा की स्मृति में उनके सुपुत्र श्रीशुभराज नाहटा पुत्र वधू श्रीछोटादेवी पौत्र तनसुखराय प्रपौत्र प्रकाशकुमार नाहटा द्वारा निर्माण कराया। (२७५१) शिलालेखः __ श्रीबीकानेर निवासी स्व० पू० श्रीभैरवदानजी स्व० पु० दुर्गादेवी नाहटा की स्मृति में उनके पुत्र हरखचंद विमलचंद पौ० ललितकुमार प्रदीपकुमार दिलीपकुमार नाहटा परिवार द्वारा श्रीसीमंधर स्वामीजी की मूर्ति एवं देहरी निर्माण एवं प्रतिष्ठा कराया (२७५२) अलौकिक-पार्श्वनाथः ॥ वि० सं० २०५८ फाल्गुन कृ० ५ रविवासरे अलौकिक पार्श्वनाथजिनबिंबं खरतरगच्छीय गणाधीश कैलाशसागर आज्ञायाम् गणि पुर्णानन्दसागर प्रतिष्ठितम् महत्तरा साध्वी मनोहरश्री मणिप्रभाश्री सान्निध्ये नागपुर दादाबाड़ी जिनालय कारयितुश्च नागपुर इन्दौरा दादाबाड़ी सं० ०३.०३.२००२ २७४७. चन्द्रप्रभ जी का मंदिर, गांधीचौक, बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि० लेखांक १७९ २७४८. श्रीपार्श्वनाथ मंदिर व दादाबाड़ी, गुड़ामालानी- बाड़मेर: बा० प्रा० जै० शि०, लेखांक ५१ २७४९. दादाबाड़ी, शत्रुजय भँवर० (अप्रका०), लेखांक ११७ २७५०. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक ११४ २७५१. दादाबाड़ी, शत्रुजयः भँवर० (अप्रका०), लेखांक १११ २७५२. दादाबाड़ी, नागपुर (४७२) खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः For Personal & Private Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि० सं० २०५८ माघ शु० १० शुक्रवारे मालपुरा दादाबाड़ी प्रतिष्ठा प्रसङ्गे खरतरगच्छीय सर्व साधु-साध्वी निश्रायाम् अंजनविधि श्रीसंघस्य शुभम् भवतु। (२७५३) जिनकुशलसूरि-मूर्तिः (क) ॥सं० २०५८ फाल्गुन कृ०५ रविवासरे युगप्रधान दादाजिनकुशलगुरुदेव मूर्ति का० खरतरगच्छीय जिनआनंदसागरसूरि जिनउदयसागरसूरि शिष्य गणि पुर्णानंदसागर प्रतिष्ठितं । महत्तरा मनोहरश्री मणिप्रभाश्री सान्निध्ये श्रेष्ठि परिवारे श्रीमती सुंदरदेवी छोगमलजी गोलछा के सुपुत्र विमल निर्मल अनिल सुनील अजय गोलछा नागपुर परिवारेण नागपुर इन्दौरा दादाबाड़ी जिनालय कारयितुश्च ०३.०३.२००२ श्रीसंघस्य शुभम् भवतु। (२७५४) जिनकुशलसूरि-मूर्ति के नीचे (ख) दादागुरुदेव श्रीजिनकुशलसूरिजी की प्रतिष्ठा दिनांक ०३.०३.२००२ हस्ते गणिवर्य पुर्णानंदसागरजी महत्तरा मनोहरश्रीजी एवं साध्वी श्रीमणिप्रभाश्रीजी निश्रा में सौ० प्रेमाबाई जेठमलजी पारख हस्ते रमेशकुमार सुरेशकुमार पारख वि० सं० २०५८ फाल्गुन वदि ५ रविवार। ' (२७५५) विजयशांतिसूरि-मूर्तिः ॥ वि० सं० २०५८ फाल्गुन कृ० ५ रविवासरे विजयशांतिसूरिगुरुमूर्ति खरतरगच्छीय जिनआनंदसागरसूरि जिनउदयसागरसूरि शिष्य गणि पुर्णानंदसागर प्रतिष्ठितं । महत्तरा मनोहरश्री मणिप्रभाश्री सान्निध्ये श्रेष्ठि श्रीनथमल अजितमल किशोरकुमार सुनीलकुमार विपुल राहुल जय सोलंकी कोठारी परिवार ने नागपुर इन्दौरा दादाबाड़ी जिनालय कारयितुश्च ०३.०३.२००२ श्रीसंघस्य शुभम् भवतु। (२७५६) नाकोड़ा-पार्श्वनाथ-परिकरः ॥ सं० २०५९ माघ सु० १३ शनिवासरे श्रीनाकोड़ा-पार्श्वनाथ प्राकृत-भारती-परिसरे श्रीजैन श्वे० नाकोड़ा-पार्श्वनाथ-तीर्थ न्यास निर्मापिते श्रीनाकोड़ा-पार्श्वनाथ-मंदिरे मालवीयनगर जयपुरे न्यास कारितं मूलनायक श्री पार्श्वनाथप्रतिमायाः परिकरस्य प्रतिष्ठा कारिता। खरतरगच्छे श्रीजिनमहोदयसागरसूरि प्रथम शिष्य मुनि मणिरत्नसागरेण । संघस्य कल्याणं भवतु। (२७५७) गौतमस्वामी-मूर्तिः ॥ सं० २०५९ माघ शु० १३ शनिवासरे श्रीनाकोड़ापार्श्वनाथमंदिरप्रतिष्ठायां ओस० ज्ञा० सुराणागोत्रीय श्रीराजमल भार्या उमरावदेवी तयोः आत्मश्रेयसे समस्त सुराणा परिवारेण श्रीगौतमस्वामीप्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता च खरतरगच्छाधिपति श्रीजिनमहोदयसागरसूरेः प्रथम शिष्य मुनि मणिरत्नसागरेण मालवीयनगर जयपुरे। श्री: २७५३. दादाबाड़ी, नागपुर . २७५४. दादाबाड़ी, नागपुर २७५५. दादाबाड़ी, नागपुर २७५६. नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर, जयपुर २७५७. नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर, जयपुर (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः ४७३ For Personal & Private Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७५८) जिनकुशलसूरि-मूर्तिः ॥ सं० २०५९ माघ शु० १३ शनिवासरे श्रीनाकोड़ापार्श्वनाथमंदिरप्रतिष्ठायां खरतरगच्छविभूषण श्रीजिनमणिसागरसूरीणां पूर्वशिष्येण ओस० ज्ञा० झाबक गो० सुखलाल-पुत्रेण महो० विनयसागरेण भा० सन्तोष श्रेयोर्थं पु० मंजुल भा० नीलम विशाल पौत्री तितिक्षा वर्द्धमानादि परिवार-श्रेयसे श्रीजिनकुशलसूरीणां प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता च खरतर ग० मुनि मणिरत्नसागरेण मालवीयनगर जयपुरे। श्रीः (२७५९) पद्मावती-मूर्तिः ॥ सं० २०५९ माघ शु० १३ शनिवासरे श्रीनाकोड़ापार्श्वनाथमंदिरप्रतिष्ठायां श्रीमीठालाल भार्या प्यारीबाई तयोः आत्मश्रेयसे समस्त कुहाड़ परिवारेण श्रीपद्मावतीदेवीप्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता च खरतरगच्छाधिपति श्रीजिनमहोदयसागरसूरेः प्रथम शिष्य मुनि मणिरत्नसागरेण मालवीयनगर जयपुरे। श्री: (२७६०) नाकोड़ा-भैरवः ॥ सं० २०५९ माघ शु० १३ शनिवासरे श्रीनाकोड़ापार्श्वनाथमंदिरप्रतिष्ठायां ओस० ज्ञा० गोलेछागोत्रे श्रीमहताबचन्द्र भार्या जतनकंवर पु० श्रीराजेन्द्रकुमार भार्या आशादेवी पुत्र विक्रमकुमारेण सपरिवारेण पितामह- पितुः श्रेयसे च श्रीनाकोड़ाभैरवदेवप्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता च खरतरगच्छाधिपति श्रीजिनमहोदयसागरसूरेः प्रथम शिष्य मुनि मणिरत्नसागरेण मालवीयनगर जयपुरे। श्री २७५८. नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर, जयपुर २७५९. नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर, जयपुर २७६०. नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर, जयपुर (४७४) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः) For Personal & Private Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १- परिशिष्ट लेख संग्रह में उद्धृत पुस्तकों की नामानुक्रमणी *अ० प्रा० जै० ले० सं० भाग-२ अर्बुद प्राचीन लेख जैन संदोह भाग-२, संपा०- मुनि जयन्तविजय, प्रका० - श्री दीपचंद बांठिया, मंत्री, श्री विजयधर्मसूरि ग्रन्थमाला, उज्जैन वि० सं० १९९४ लेखाङ्क- १९, ४४, ४९, ८२, ९१, १८३, २५५, २६८, ४२१, ५३७, ५३८, ५३९, ५४०, ५४१, ५४२, ५४३, ५४४, ५४५, ५४६, ५४७, ५४८, ५४९, ५५०, ५५१, ५५२, ५५४, ५५५, ५५६, ५५७, ६८२, ६८३,७२३, ७२४, ७७२,७९२, ११३३, १७८८ अ० प्र० जै० ले०सं० भाग-५ अर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेख संदोह भाग-५, संपा०- मुनि जयन्तविजय, प्रका० - श्रीदीपचंद बांठिया, मंत्री, श्री विजयधर्मसूरि ग्रन्थमाला, उज्जैन, वि० सं० २००५ लेखाङ्क-५,९,१६४, १८२, २३७, ४१३, ४४२, ५६०,७१९,८३२, ९३४, ११३०, १२०४ कुलपाक तीर्थ, लेखक-महोपाध्याय विनयसागर, प्रकाशक- अमोलकचन्द सिंघवी, मंत्री, श्री श्वेताम्बर जैन तीर्थ, कुलपाक । प्रकाशन वर्ष- सन् १९८८ लेखाङ्क- २६८८, २६८९, २७२३ जिनहरिसागरसूरि लेख संग्रह, अप्रकाशित, श्री जिनहरिसागरसरि ज्ञान भण्डार, पालिताणा। लेखाङ्क- २०, ६०, ७८, जैन तीर्थ सर्व संग्रह भाग-१, खण्ड-१,लेखक- पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, प्रका०- आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी, अहमदाबाद, सन् १९५३ लेखाङ्क- २३, २४, जैन तीर्थ सर्व संग्रह भाग-१, खण्ड-२, लेखक- पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, प्रका०- आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी, अहमदाबाद, सन् १९५३ लेखाङ्क- ४२, ४३, २८५, ३८४, ६२२, ८९९, १३७४, १४१२, १४२८, १४६९ जैन तीर्थ सर्व संग्रह भांग-२,लेखक- पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, प्रका०- आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी, अहमदाबाद, प्र० सन् १९५३ लेखाङ्क-५३, ६२, २५६, ३४२, १२०१, १४१०, १४४१, १७६१, १७७५, २३४०, २३७८ जै० धा० प्र० ले० जैन धातु प्रतिमा लेख, संपा०- मुनि कान्तिसागर, प्रका०- श्री जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार, सूरत, प्र० सन् १९५० लेखाङ्क- ८४,१०४, २३२, २९६, ३०४, ३६२,४३२, ४३९, ४५८, ४८२, ४८५, ४९१,५०९, ५८४, ५८८,५९४,५९८, ६५७,७१८,७७५, ८०६, ९२७, ९५०, ९५७, १०००, १०१३, १०७६, १२२८, १५६१, १५८१, १५८८, १५८९, १५९०, १६१३, १६३१, १७७७, १७८३,१७८५, १८६५, १८६६,१९७८,१९८०, २००२, २८६६, २०६८, २०७५, २१६९, २३१८, २३५५, २३५६, २४४०, २४९० * पहले लेख-संग्रह में उद्धृत पुस्तकों के सांकेतिक नाम दिये हैं और बाद में पुस्तक का पूर्ण नाम और लेखक आदि का नाम दिया गया है। © लेखांक प्रस्तुत लेख-संग्रह के दिये गये हैं। परिशिष्ट-१ ) (४७५) For Personal & Private Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जै० धा० प्र० ले० सं० भाग- १ प्रतिमा लेख संग्रह, भाग १, संपा० बुद्धिसागरसूरि प्रका० श्री अध्यात्क ज्ञान प्रसारक मंडल, पादरा, प्र० जैन [ धातु सन् १९७३ लेखाङ्क- ३९, ६१, ६९, ८७, १०१, १०८, १७२, १९०, १९१, २०१, २१९, २३४, २३५, २७०, २९८, ३२५, ३६४, ३६५, ३९६, ४११, ४१८, ४४९, ४६६, ४७९, ४८८, ५०३, ५२३, ५६२, ५६८, ५७३, ५७७, ५८२, ५८९, ५९३, ६४५, ६६३, ६७१, ६८५, ६९४, ७५२, ७६३, ७७४, ७८४, ८३६, ९०५, ९३०, ९३१, ९३६, ९४२, ९४६, ९४८, ९६२, ९७७, १०३०, १०५१, १०७८, १०८७, १०९२, ११२२, ११३१, ११३५, ११५५, ११५६, ११६६, ११६९, ११८०, १२१५, १२७४ जै० धा० प्र० ले० सं० भाग- २ जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह भाग - २, संपा० बुद्धिसागरसूरि प्रका० श्री अध्यात्क ज्ञान प्रसारक मंडल, पादरा, प्र० सन् १९८० लेखाङ्क ३८, ४६, १०२, ११३, ३५६, ४०८, ४१२, ४१४, ४५२, ४९०, ४९६, ५६९, ५७०, ६०६, ६५०, ६५९, ६६६, ६६७, ६६९, ६७०, ६८०, ७१४, ७२०, ७४५, ७४८, ७५१, ७५९, ७८३, ७८५, ७९३, ७९४, ८२०, ८५८, ९२०, ९२८, ९५५, ९५६, ९९४, १००२, १०५७, १०९०, १०९१, ११३८, ११७३, १२३२, १२८०, १३७२, १३७७, १४२९, १४६२, १५४५ जै० प्र० ले० सं० जैन प्रतिमा लेख संग्रह, संपा० दौलतसिंह लोढा, अरविन्द, प्रका० श्री यतीन्द्र साहित्य संदन, धामणिया, मेवाड, प्र० सन् १९५१ लेखाङ्क- २४, ११४, १७१, २३९, ३५०, ४५९, ५९८, ८२२ देवकुल पाटक: संपा० विजयधर्मसूरि लेखाङ्क - १३३, १४१, १४५, १५९, १६५, १९५, १९६, २१२, २२७, २५६, २६३ ना० बी० बीकानेर जैन लेख संग्रह, संग्रा० संपा० अगरचन्द भँवरलाल नाहटा, प्रका०- नाहटा ब्रदर्स, कलकत्ता प्र० सन् १९५५ लेखाडू- ३, ४, १३, १४, १५, १६, २२, ३७, ४०, ४५, ६५, ७४, ७५, ८५, ८९, ९३, ९५, १६, १७, १०३. १०६, ११६, ११७, १२७, १३६, १३७, १३९, १४४, १४८, १५१, १५५, १५६, १६२, १६३, १६९, १७०, १७५, १७८, १७९, १८०, १८४, १९९, २०२, २२६, २२९, २३०, २४०, २४१, २४४, २४९, २५१, २५२, २५३, २५७, २५८, २६९, २८३, २९१, २९२, २९३, २९४, २९५, २९७, ३०६, ३०७, ३०८, ३१०, ३११, ३१२, ३१७, ३१८, ३१९, ३२२, ३२३, ३३४, ३४०, ३५२, ३५७, ३६१, ३७४, ३७५, ३७९, ३८२, ३८४, ३८५, ३८९, ३९३, ३९८, ४००, ४०३, ४०४, ४०९, ४१६, ४१९, ४३०, ४३१, ४३५, ४३६, ४३७, ४३८, ४४०, ४४१, ४४३, ४४४, ४४५, ४६०, ४६५, ४६७, ४८९, ४९५, ४९८, ५००, ५१०, ५१२, ५१३, ५१८, ५२०, ५२१, ५२२, ५२९, ५३४, ५६४, ५६५, ५६७, ५७२, ५७५, ५७८, ५९५, ५९६, ६०३, ६०५, ६१२, ६१६, ६१७, ६१८, ६२०, ६२२, ६२४, ६२६, ६३०, ६३१, ६३४, ६३९, ६४२, ६४४, ६६२, ६७४, ६७९, ६८९, ६९८, ७०४, ७०५, ७०७, ७०८, ७१०, ७१३, ७२२, ७३३, ७३६, ७३८, ७४१, ७४३, ७४६, ७५३, ७६४, ७७३, ७९८, ८००, ८०८, ८०९, ८१०, ८१४, ८१५, ८२८, ८३०, ८४१, ८४३, ८४४, ८४५, ८४६, ८५०, ८५३, ८५४, ८५७, ८५९, ८६०, ८६२, ८६४, ८७१, ८७२, ८७३, ८७६, ८७७, ८७८, ८८०, ८८३, ८८४, ८८५, ८८६, ८९०, ८९४, ८९६, ८९७, ८९८, ९०२, ९०४, ९०६, ९०७, ९०८, ९२१, ९२९, ९४४, ९४५, ९४७ ९५१, ९७०, ९७१, ९७८, ९८३, ९८७, ९८८, ९८९, ९९१, ९९३, ९९५, १००४, १००६, १००७, १००८, १०२३, १०२८, १०३३, १०३८, १०३९, १०४०, १०४१, १०४३, १०४६, १०५०, १०५४, १०५५, १०५६, १०६०, १०६१, १०६२, १०६३, १०६४, १०६६, १०६८, १०७३, १०७९, १०८०, १०८१, १०८२, १०८५, १०८६, १०९४, १०९७, १०९८, ११००, ११०७, ११०८, ११०९, १११०, ११११, १११२, १११३, १११४, १११६, १११७, १११८, १११९, ११२०, ११२१, ११२३ ११२४, ११२५, ११२६, ११२७, ११२८, ११२९. ११३४, ११३९, ११४४, ११४५, ११४९, ११५०, ११५१, ११५३, ११६४, ११६७, ११७१, ११७२, ११७७, ११८६, ११८८, (४७६) परिशिष्ट - १ For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८९, ११९०, १२०६, १२०७, १२१८, १२२१, १२२७, १२३३, १२३८, १२३९, १२४०, १२४२, १२४३, १२४४, १२४५, १२४६, १२४७, १२४८, १२४९, १२५०, १२५१, १२५२, १२५३, १२५४ १२५५, १२५६१२५७, १२५८, १२५९, १२६०, १२६२, १२६३, १२६४, १२६५, १२६६, १२६७, १२६८, १२६९, १२७२, १२७३, १२७५, १३०४, १३०७, १३३८, १३३९, १३४५, १३४६, १३४८, १३४९, १३७३, १३९४, १३९७, १३९८, १३९९, १४००, १४०१, १४०५, १४०६, १४०७, १४०८, १४१७, १४१८, १४१९, १४३०, १४३१. १४३२, १४३४, १४३७, १४३९, १४४३, १४५२. १४५३, १४५६, १४५७. १४५९, १४६१, १४६७, १४७४, १४७६, १४८१, १४८२, १४८३, १४८४, १४८५, १४८६, १४८७, १४८८, १४९०, १४९१, १४९३, १४९४ १४९५, १४९८, १५०४, १५०६, १५०७, १५११, १५१७ १५२०, १५२१, १५३४, १५३९, १५४३, १५४४, १५५१, १५५२, १५५३, १५५४, १५५८, १५५९, १५६२, १५६५, १५७५, १५७८, १५७९, १५८४, १५८५, १५८६, १५८७, १५९१,१५९२,१५९७, १५९८, १५९९, १६००, १६०१, १६०२, १६०४, १६०५, १६१०, १६२१, १६२३, १६३२, १६३६, १६३९, १६४१, १६४२, १६४४, १६४९, १६५२, १६५३, १६५५, १६५६, १६५७, १६६०, १६७९, १६८९, १६९०, १६९१, १६९३, १७००, १७०४, १७०५, १७०६, १७०७, १७०८, १७०९, १७१०, १७१२, १७१३, १७२८, १७२९, १७३०, १७३२, १७३३, १७३५, १७३७, १७३९, १७४०, १७४१, १७४४, १७५६, १७५७, १७५८, १७६०, १७६२, १७६३, १७६४, १७६५, १७६६, १७६७, १७६९, १७७३, १७८०, १८१९, १८२०, १८२१, १८३२, १८३४, १८३५, १८३७, १८४०, १८४१, १८४२, १८४३, १८४४, १८४८, १८५०, १८५१, १८५२, १८५४, १८६३, १८६७, १८६८, १८६९, १८७१, १८७२, १८७३, १८७४, १८७५, १८७६, १८७७, १८७८, १८७९, १८८०, १८८२, १८८३, १८९२, १८९४, १९१५, १९१९, १९२०, १९२१, १९२२, १९२५, १९२७, १९२८, १९२९, १९३२. १९३३, १९३६, १९३७, १९३८, १९३९, १९५१, १९५२, १९५५, १९६३, १९६४, १९६५, १९६६, १९६७, १९६८, १९६९, १९७०, १९७१, १९७२, १९७३, १९८४, १९८५, १९८७, १९८९, १९९०, १९९२, १९९३ १९९४ १९९५, २००६, २०१८, २०२१ २०२३ २०२४ २०२५ २०२७ २०२८ २०३० २०३२ २०३३ २०३४, २०३५ २०३६ २०३७, २०४० २०४१ २०६५, २०६६, २०७० २०७३, २०७४, २०८१ २०८२ २०८३ २०८४, २०८५ २०८६ २०८७ २०८८ २०८९ २०९० २०९१ २०९२ २०९३ २०९४ २०९५ २०९६, २१०८, २१०९, २११०, २११३, २११५, २११६, २११८, २११९, २१२२, २१२३, २१२५, २१२६, २१२८, २१३१, २१३३, २१३४, २१३५, २१३७, २१३८, २१३९, २१४२, २१४३, २१४४, २१५२, २१५४, २१६०, २१६१, २१६२, २१७०, २१९५, २२११, २२१२, २२१३, २२१४, २२१५, २२१६, २२१८, २२३४, २२३५, २२३६, २२३७, २२३८, २२३९, २२४०, २२४१, २२४३, २२४४, २२४६, २२४७, २२४८, २२४९, २२५०, २२५१, २२५२, २२५३, २२५४, २२५५, २२५६, २२५७, २२५८, २२५९, २२६०, २२६१, २२६२, २२६४, २२६५, २२७०, २२७१, २२७३, २२७४, २२७५, २२७६, २२७७, २२७८, २२७९, २२८०, २२८५, २२८६, २२८७, २२८८, २२९० २३२९,२३३०, २३३१,२३३२, २३३३ २३३४, २३३५, २३३७, २३३८, २३३९, २३४२, २३४३, २३४७, २३५१, २३५२, २३५३, २३५४, २३५८, २३५९, २३६०, २३६५, २३७०, २३७६, २३७७, २३७९, २३८०, २३८१, २३८२, २३८३, २३८४, २३८५, २३८६, २३८७, २३८८, २३८९, २३९०, २३९१, २३९२, २३९३, २३९४, २३९५, २३९६, २३९७, २३९८, २३९९ २४०० २४०१ २४०२, २४०३, २४०४, २४०५, २४०६, २४०७, २४०८, २४११ २४१२ २४१३, २४१४, २४१६, २४१७, २४१८, २४१९, २४२४, २४२५, २४२६, २४२९ २४३०, २४३२, २४३३, २४४१, २४४२, २४४३, २४४६, २४४७, २४४८, २४५१, २४५३, २४५४, २४५७, २४५९, २४६०, २४६१, २४६२, २४६३, २४६५, २४६६, २४६७, २४६९, २४७०, २४७९, २४८०, २४९१, २४९३, २४९४, २४९५, २४९७, २४९८, २५०९, २५१४, २५१५, २५१६, २५१७, २५१९, २५२०,२५२१, २५२४, २५२८, २५२९, २५३२, २५३८, २५४०, २५४१, २५४५, २५४७, २५४८, २५४९, २५५०, २५५५, २५५७, २५५८, २५६०, २५६५, २५६६, २५६७, २५६८, २५७५, २५७७, २५७८, २५७९, २५८४, २५८६, २५८९, २५९१, २५९३, २५९४, २५९६, २५९७, २५९८, २५९९, २६००, २६०५, २६०६, २६०८, २६१०, २६११, २६१३, २६१९, २६२७, २६२८, २६२९, २६३०, २६३१, २६३४, २६३५, २६३६, २६३७, २६५२, २६५४, २६५५, २६५६, २६५७, २६६२, २६६८, २६७०, २६७१, २६७२, २६७३, २६७४, २६७५, २६७६, २६७७, २६७८, २६७९ नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ : लेखक- महोपाध्याय विनयसागर प्रका० कुशल संस्थान, जयपुर, प्र० सन् १९८८ लेखाडू- ५२, १७३, ५२४, ६३२, ६३३, ६९५ ६९६, ६९९, ७००, ७०१, ७३०, ७६०, ९०९, १०१६, ११०३, ११५४, ११५७, ११५९, ११६२, ११६५, १२७८, १२७९, १३८१. १३९१, १७२७, १७३६, २१९२, २१९३ २१९४, २५०१, २६०९, परिशिष्ट - १ For Personal & Private Use Only (४७७) Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६५१, २६६०, २६६४, २६६५, २६६६, २६८०, २६८१, २६८२, २६८३, २६८४, २६८५, २६९८, २६९९ निर्ग्रन्थ, अंक १ लेखाडू- १२, ११९३, ११९४, ११९५, ११९६, ११९७, ११९८ घोघानी मध्यकालीन धातुप्रतिमाओना अप्रकट अभिलेखो', ले० लक्ष्मण ही० भोजक, प्रका० - शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेंटर, अहमदाबाद, सन् १९९५ पारीख एण्ड शैलेट : संपा० जे०३०३०अ०, अहमदाबाद लेखाडू- ८८, १६१, १६७, १६८, १८९, १९७, २०५, २३४, २४३, ३०२, ३२६, ३३५, ४०५, ४१५, ४३३, ४५१, ४५२, ४५४, ४५७, ४६२, ४७५, ४७६, ४७७, ४८३, ४९४, ५९०, ५९२, ५९७, ६८७, ६८८, ७६८, ८२७, ९१८, ९४१, ९६९, १०१०, १०१७, १०७२, ११७६ पुरातत्व संग्रहालय एवं म्युजियम, चित्तौड़ लेखाङ्क २ - पू० जै० भाग - १ जैन लेख संग्रह भाग-१ : संपा०- पूरणचन्द्र नाहर, कलकत्ता, प्र० सन् १९१८ लेखाडू- ८६, १०७, १०९, ११९, १२५, १३५, १७७, १८८, २३३, २८४, ३१६, ३३२, ३३९, ३४२, ३४३, ३४७, ३४९, ३८०, ३८१, ३८८, ३९९, ४२३, ४३४, ४८४, ४९९, ५३३, ५३५, ५५९, ५७१, ५८३, ६०४, ६४८, ६५१, ६५२, ६५३. ६५४, ६५८, ६६१, ६६४, ६६५, ६६८, ७०२, ७०३, ७३२, ७३४, ७३५, ७३९, ७४२, ७५४, ७६१, ७७०, ७७६, ७८१, ७८७, ७९९, ८०५, ८२४, ८४९, ८६७, ८६९, ९१३, ९३७, ९३८, ९५२, ९५३, ९६१९७५, ९८२, ९९०, ९९६, ९९७, १००१, १०१९, १०२०, १०२७, १०३१, १०३७, १०४४, १०६५, १०७४, ११०४, ११३६, ११४७, ११४८, १२२२, १२२५, १२३४, १२७९, १२८८, १२९३, १३५१, १३५५, १३५७, १३५८, १३६५, १३७४, १३८८, १३९२, १३९५, १४०२, १४०३, १४०४, १४१०, १४३३, १४५४, १४८९, १५१०, १५१२, १५४६, १५४७, १५७४, १५५५, १५७४, १५७६, १५८०, १६११, १६१४, १६२०, १६२२, १६२६, १६२७, १६२८, १६२९, १६३०, १६३४, १६४८, १६६९, १६७०, १६७१, १६७२, १६७३, १६७४, १६७५, १६७७, १६८८, १७०२, १७४२, १७५५, १७५९, १७६१, १७७०, १७७१, १७७२, १७७५, १७८७, १७९०, १७९१, १८१५, १८१६, १८२३, १८२८, १८३०, १८८६, १९००, १९०२, १९७५, १९७७, १९८०, १९८२, १९९९, २००७, २००९, २०१०, २०११, २०१२, २०१३, २०१४, २०१५, २०१९, २०२६, २०२९, २०९८, २१५८, २१८१, २१८८, २१९१, २२०८, २२०९, २२१०, २२१७, २२२०, २२२५, २२७२, २३४०, २३४१, २३४६, २३४९, २३७३, २३७५, २४२२, २४२३, २४४४, २४९९, २५१३, २५७३, २६२० (४७८) - पू० जै० भाग - २ जैन लेख संग्रह भाग-२ संपा०- पूरणचन्द्र नाहर, कलकत्ता, प्र० सन् १९२७ : लेखाङ्क- ६, ७, ५८, ६७, ८१, ९२, १०५, १३०, १३२, १३३, १४१, १४२, १४५, १५७, १५९, १६५, १६६, १८१, १९२, १९५, १९६, २१३, २१४, २१७, २२१, २२३, २२४, २२५, २२७, २२८, २४९, २६०, २६७, २७३, २८६, २९९, ३१४, ३२७, ३२९, ३४४, ३४५, ३४६, ३४८, ३७८, ३९१, ४२०, ४२४, ४२६, ४२८, ४२९, ४४७, ४६८, ४६९, ४८७, ५५३, ५९९, ६०१, ६२३, ६३८, ६८६, ७२९, ७६२, ७६५, ७६७, ७७९, ७८२, ७९०, ७९१, ८०२, ८१३, ८७९, ९०९, ९१७,९५९, ९६७, ९६८, ९७२, ९८५, ९९५, ९९८, १०४८, १०७५, ११५०, ११७५, ११७९, ११८२, ११८३, ११८४, १२१४, १२७८, १२८४, १२८५, १२८६, १३२२, १३८०, १४१४, १४१५, १४३५, १४७५, १५०८, १५१६, १५६०, १५७७, १५८२, १६३५, १६५०, १६५१, १६५४, १६६३, १६६८, १६७६, १६८५, १६९१, १७२२, १७२३, १७२४, १७२५, १७६८, १७७८, १७७९, १७९७, १७९९, १८००, १८०१, १८०२, १८०३, १८०४, १८०५, १८०६, १८०७, १८०८, १८०९, १८१०, १८११, १८१२, १८१४, १८१७, १८२४, १८२५, १८४६, १८४७, १८६६, १८९६, १९०५, १९०६, १९११, १९१६, १९१७, १९४१, १९४४, १९४५, १९६०, १९८३, २०६७, २१४३, २१६३, २१६८, २१७३, २१७५, २१७७, २१८०, २१८२, २१८३, २१८४, २१८५, २१८६, २१८९, २१९०, २२२७, २२२८, २२२९,२२३१, २२३२, २२३३, २२८१, २२८२, २२८३, २३१०, परिशिष्ट १ For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३१३, २३१९, २३२०, २३२१, २३४८, २४१०, २४२०, २४२८, २४३१, २४३५, २४३८, २४३९, २४४५, २४५५, २४६४ २४७४, २४७७ २४८४ २४८५, २५२५, २५३०, २५३३, २५३४, २५३७, २५३९, २५५९, २५७४, २५८५, २५९०, २६३३ जै० भाग-३ पू० जैन लेख संग्रह भाग-३ : संपा०- पूरणचन्द्र नाहर, कलकत्ता, प्र० सन् १९२९ लेखाडू- ४८, ९०, १२१, १२२, १२६, १२८, १४० १४६, १४७, १४९, १५०, १५२, १५४, १५६, १७६, १८५, १९८, २०३, २३८, २४२, २४६, २५०, २७७, २७८, २७९, २८०, २८१, २८२, २८७, २८८, २८९, २९०, ३२८, ३३०, ३६०, ३७७, ३८३, ३९४, ३९७, ४१०, ४६३, ४७२, ४७३, ४८०, ४८१, ५०५, ५०७, ५०८, ५१४, ५१६, ५१७, ५१९, ५५८, ५६६, ५७४, ५७६, ५७९, ५९१, ६०७, ६०८, ६०९, ६१०, ६१३, ६१४, ६१५, ६१९, ६२१, ६२५, ६२८, ६२९, ६३५, ६६०, ६७२, ६९१, ६९२, ७०६, ७०९, ७१७, ७३७, ७४२, ७४४, ७५७, ७८६, ७८८, ७९९, ८०३, ८१६, ८२५, ८३३, ८३५, ८३८, ८३९, ८४०, ८४२, ८४७, ८५१, ८५२, ८५५, ८५६, ८६१, ८६३, ८६५, ८६८, ८७०, ८७४, ८८७, ८८८, ८८९, ८९०, ८९१, ८९२, ८९३, ८९५, ८९९, ९००, ९०३, ९१२, ९१६, ९८०, ९८१, १०११, १०२५, १०२९, १०३४, १०५३, १०७०, १०८३, १०८९, १०९३, १११५, ११६१, १२०२, १२०३, १२७१, १२८१, १२८७, १३०२, १३०३, १३०५, १३०७, १३३०, १३३५, १३३६, १३३७, १३४०, १३४१, १३४२, १३४३, १३४४, १३७६ १३८९, १३९०, १३९२, १३९६, १४२३, १४२४, १४२५, १४२६, १४२७, १४९६, १५०३, १५१४, १५३७, १५५७, १५६३, १५८३, १६०९, १६१५, १६१६, १६२४, १६४३, १६९२, १७०३, १७७४, १७७६, १९४०, १९५०, १९५८, १९६१, १९६२, १९७६, १९८६, २०१७, २०४२, २०६० २०८०, २२६७, २३२४, २३६३, २३६४, २३६६, २३६८, २३६९, २३७१, २३७२, २४०९, २४३४, २४८६, २५९२ प्र० ले० सं० भाग- १ प्रतिष्ठा लेख संग्रह भाग १: संपा०- महोपाध्याय विनयसागर प्रका० सुमति सदन, कोटा, सन् १९५३ लेखाडू- १७,७६, ९४, ९८, ११८, १२९, १३८, १४२, १४३, १५८, १८६, १८७, १९४, २०४ २०९, २११, २१८, २२२, २४७, २४९, २६४, २६६, ३०३, ३०९, ३१४, ३२४, ३२९, ३३३, ३३७, ३३८, ३४१, ३५१, ३५५, ३६६, ३६७, ३६८, ३७०, ३७१, ३७३, ३७६, ३८७, ३८८, ३९१, ४२५, ४५५, ४६१, ४६४, ४९२, ४९७, ५०४, ५०६, ५११, ५१५, ५२५, ५२६, ५२८, ५३०, ५३१, ५३२, ५६१, ६०२, ६०४, ६३६, ६३७, ६४१, ६४५, ६५५, ६५६, ६७७, ६७८, ६८४, ७११, ७२५, ७२७, ७५६, ७७७, ७७८, ७८०, ७८९, ७९०, ८०१, ८०७, ८११, ८१२, ८१७, ८१८, ८३१, ८८१, ८८२, ९०१, ९१०, ९१९, ९३५, १९३९, ९६०, ९६४, ९६५, ९६६, ९६८, ९७४, ९७६, ९८६, ९९२, १००९, १०१५, १०१८, १०२१, १०२२, १०२६, १०३५, १०३६, १०३७, १०४२, १०४५, १०५९, १०६७, १०८४, ११०१. ११०२, ११०५, ११०६, ११३२, ११४०, ११५.२, ११६०, ११८५, ११८७, १२१२, १२१४, १२१७, १२२२, १२२३, १२२९, १२३०, १२३५, १२३६, १२४१, १२६१, १२७६, १२७७, १२९०, १२९१, १२९२, १२९३, १२९४, १३४७, १३५३, १३५४, १३५५, १३५६, १३५९, १३६०, १३६१, १३६२, १३६३, १३६४, १३६५, १३६६, १३६७, १३६८, १३६९, १४३६, १५०५ - प्र० ले० सं० भाग- २ प्रतिष्ठा लेख संग्रह भाग २: संपा०- महोपाध्याय विनयसागर, प्रका० प्राकृत भारती अकादमी एवं एम०एस०पी०एस० जी० चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर, प्र० सन् २००३ लेखाडू- १०९, १२५, २००, ३३१, ३५८, ४०६, ४५६, ४९३, ६३३, ६४६, ६७८, ६९३, ७३९, ८०४ ८१९, ८४८, ८६७, ८७५, ९१४, ९३५, ९५८, १००५, १०१२, ११४१, ११९२, १२१०, १२११, १२१३, १२३७, १२७०, १३६०, १३७८, १३७९, १४३८, १४५१, १४५५, १४५८, १४६०, १४६३, १४६४, १४६५, १४६६, १४७०, १४७१, १४७२, १४७३, १४९२, १४९७, १५०९, १५३२, १५३३, १६०३, १६०६, १६०७, १६१२, १६२५, १६३७, १६३८, १६४०, १६४५, १६४६, १६४७, १६५८, १६५९, १६६१, १६६५, १६६६, १६६७, १६७८, १६८०, १६८२, १६८३, १६८४, १६८६, १६९४, १६९९, १७०१, १७११, १७१५, १७१६, १७१७, १७१८, १७१९, १७२०, १७३१, १७३६, १७३८, १७४३, १७४६, १७४७, १७४८, १७४९, १७५०, १८१८, १८२२, १८२६, १८२७, १८३१, १८३३, १८३८, १८३९, १८५३, १८५६, १८५७, १८५८, १८६०, १८८१, परिशिष्ट - १ For Personal & Private Use Only . Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८९, १८९०, १८९१, १९०३, १९०४, १९०७, १९१२, १९१३, १९१८, १९२३, १९५३, १९५४, १९५६, १९५७, १९५९, १९७४, १९९६, १९९७, १९९८, २०२२, २०३९ २०४४ २०४५ २०४६ २०४७ २०४८ २०४९ २०५०, २०५१, २०५२, २०५३ २०५४ २०५६ २०५७ २०५८ २०५९ २०६२, २०६७, २०७१ २०७२ २०७९, २०९७ २०९८, २०९९, २१००, २१०१, २१०३, २१०४, २१०५, २१०६, २१०७, २१११, २११२, २११४, २१२०, २१२१, २१२४, २१२७, २१२९, २१३०, २१३२, २१४०, २१४१, २१४५, २१४६, २१४७, २१४८, २१४९, २१५०, २१५१, २१५३, २१५६, २१५७, २१७९, २१९६, २१९७,२१९९, २२०१, २२०२, २२०३, २२०४, २२०५, २२२१, २२२२, २२२३, २२२४, २२४२, २२४५, २२६६, २२८४, २२८९, २२९१, २२९२, २२९३, २२९४, २२९५, २२९६, २२९७, २२९८, २२९९ २३०० २३०१, २३०२, २३०३, २३०४, २३०५, २३०६, २३०७, २३०८, २३१७, २४१५, २४२७, २४३३, २४४९, २४५६, २४५८, २४७३, २४७५, २४७६, २४७८, २४८७, २४८९, २४९६, २५००, २५०२, २५०३, २५०४, २५०५, २५०६, २५०७, २५०८, २५११, २५१२, २५२२, २५२३, २५२६, २५२७, २५४२, २५४३, २५४४, २५४६, २५५१, २५५२, २५५३, २५५४, २५५६, २५६१, २५६२, २५६३, २५६४, २५६९, २५७०, २५७१, २५७२, २५७६, २५८०, २५८१, २५८२, २५८३, २५८७, २५८८, २५९५, २६०२, २६०३, २६०४, २६०७, २६१६, २६१७, २६१८, २६२१, २६२२, २६२३, २६३८, २६३९, २६४०, २६४१, २६४२, २६४३, २६४४, २६४५, २६४६, २६४७, २६४८, २६४९, २६५०, २६५३, २६५८, २६६९ प्रा० जै० ले० सं० भाग- २ : प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग २ संपा० जिनविजय प्रकाशक- श्री जेन आत्मानंद सभा, भावनगर, सन् १९२१ लेखाङ्क - ८, १०, ११, १८, २३, २६, ४६, ८२, ८६, २७५, ३५९, ३८८, ५४०, ५४५, ५५२, ५५३, ६८३, ७९९, ८४९, ११५२, ११५७, १२३१, १२९३, १३०९, १३१०, १३११, १३१२, १३१३, १३१८, १३१९, १३२७, १३२८, १३५५, १३५७, १३६५, १३८६, २०७८ प्रा० ले० सं० प्राचीन लेख संग्रह संग्राहक श्री विजयधर्मसूरि, संपा० विद्याविजय प्रकाशक- श्री यशोविजय जेन धर्ममाला भावनगर, : प्र० सन् १९२९ लेखाङ्क ६७, १००, ११२, १३१, १३३, १४१, १४५, १५९, १६५, १९५, १९६, २०८, २१०, २१५, २१७, २२७, २५४, २५६, २६१, २७४, ३६३, ४०७, ६००, ६४७, ६७६, ६८१, ७२१, ७२६, ७६६, ७९७, ८२६, ८२९, ८३४, ९२४, ९३२ बम्बई चिन्तामणि: बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तवनादि संग्रह संपा० अगरचन्द नाहटा, भँवरलाल नाहटा। लेखाडू- ५८१, १५९३, १५९४, १५९५, १५९६, १८४९, १८८८, १८९३, १८९७, १८९८, १८९९, १९०१, १९०८, १९१०, १९३०, १९३१, १९४७, २०३८, २११२, २१८७, २२००, २२२७, २३१६, २३२२, २३४४, २३४५ : बाड़मेर खरतरगच्छीय ज्ञान भण्डार लेखाडू- ७१५ बा.प्रा. जै. शि. बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख : प्रका०- श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवा नगर, सन् १९८७ लेखाडू- ११५, २४८, ३५४, ३८६, ६३३ ६४० ६९७ ९०९, ९११, ९७९, ९८४ १०२४, ११४२, ११५८, ११८४, १२०९, १२१६, १२७८, १३००, १३५०, १३७०, १३७१, १३९१, १४२०, १४४० १४४२. १४४७, १४४९, १४७७, १४७८, १४७९, १४८०, १७१४, १४२७, १७३६, २१९२, २३६२, २३६३, २४५०, २५३५, २५३६, २६०९, २६३२, २६५१, २६५९, २६६०, २६६१, २६६४, २६६५, २६६६, २६६७, २६८२, २६८३, २६८४, २६८५, २६९९ २७२५ २७२६, २७२७, २७२८, २७२९, २७३९, २७४०, २७४१, २७४२, २७४३, २७४४, २७४५, २७४६, २७४७, २७४८ बी भट्टाचार्य : B. Bhattacharya; The Bhale Symbal of the Jains Berliner Indologische Studion Band 8. 1995 Plate XXII लेखाडू- २१ ४८० परिशिष्ट - १ For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भँवर. अप्रकाशित : संग्राहक- श्री भंवरलाल नाहटा, कलकत्ता, अप्रकाशित लेख संग्रह। लेखाङ्क- २७, २९, ३०, ३१, ३२, ३३, ३५, ४७,५०,५१,५६,५९,६३,६४,६६,७०,७८,७९,८०, ८३, ११०, १६०, १८३, ६४३, १०९९, ११४३, ११४६, ११७४, १२००, १२१९, १२२०, १२२४, १२२६, १२८२, १२८३, १२८९, १२९५, १२९६,१२९७,१२९८,१२९९,१३०१,१३१७,१३३२,१३३३,१३३४,१३८२,१३८३,१३८४,१३८५,१४११,१४१६, १४२०,१४२१,१४२२, १४४४,१४४६,१४४८,१४५०,१४६८,१४९९,१५००,१५०१,१५०२,१५१५, १५१८,१५१९, १५२३,१५२४,१५२६,१५२७,१५२८,१५२९,१५३५,१५३६,१५४०, १५४८,१५४९,१५५०, १५५६, १६०८,१६३१, १६३३,१६६२,१६८१,१६८७,१६९६,१६९७,१६९८,१७२६,१७५१,१७५२,१७५३,१७५४,१७८९,१७९२,१७९३, १७९४, १७९५, १७९६, १७९७, १७९८,१८१३, १८२९, १८५५, १८६१, १८६२, १८६४, १८८४, १८८५, १८८७, १८९५, १९०९,१९१४,१९२६,१९३४,१९३५,१९४२,१९४६,१९७८,१९७९,१९८०,१९८१,१९८९,१९९१, २०००, २००१, २००३, २००४, २००५, २००८, २०२०, २०३१, २०६४, २०६९, २१५५, २१६५, २१६६, २१६७, २१७१, २१७२, २१७४, २१७६, २१७८,२२०७,२२३०,२२६८,२२६९,२३०९,२३११,२३१२, २३१४, २३१५, २३२३, २३२५, २३२६, २३२८, २३३६, २३५०, २३५७, २३७४, २४२१, २४५२, २४६८, २४७१, २४७२, २४८१, २४८२, २५३१, २६०१, २६१२, २६१४, २६१५, २६२४, २६२५, २६२६, २६६३, २६८६, २६८७,२६९०, २६९१, २६९२, २६९३, २६९४, २६९५, २६९६, २६९७, २७२४, २७३०, २७३१, २७३२, २७३३, २७३४, २७३५, २७३६, २७३७, २७३८, २७४९, २७५०, २७५१ भोपा: पाटण जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह : संपा०- लक्ष्मणभाई ही. भोजक, प्रकाशक- मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली एवं भोगीलाल लरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, दिल्ली, सन् २००२ लेखाङ्क- ६१, ६९, १११, १२३, १२४, १३४, १५३, १७४, १९३, २०६, २०७, २१६, २२०, २३१, २६३, २७१, ३००, ३०१, ३२०, ३३६, ४०२, ४१७,४२२, ४७०, ४७१, ००९, ४८६,५०१,५०२,५२७,५८६,५८७, ६११, ६२७, ६७५, ७२८,७३१,७४७, ७५०,७५५,७५८,७७१,८२१, ८३७, ९२२, ९४३, ९५४, ९६३, ९९९, १००३, १०४९, १०५८, १०६९, १०७७, १०८८,११६३, ११६८, ११७०, ११७८,११८१, ११९६, १२०८, १२६३, १३०६, १४१३ मालवांचल के जैन लेख : संपा०- श्री नन्दलाल लोढ़ा, प्रका०- कावेरी शोध संस्थान, उज्जैन, सन् १९९५ लेखाङ्क- २७२, २७६, २९३, ३२१, ३६९, ३७२, ४२७, ५३६, ६४९, ७१२, ९३९, १३२१, २०१६, २०५५, २०६३, २२१९, २३६७, २५१८ राधनपुर प्रतिमा लेख संग्रह : संपा०- मुनि विशाल विजय लेखाङ्क- २५, २६५, ३९५, ४०१, ४५०, ४७८,५८०,५८५, ६७३,६९०,७४९, ७९५, ८२३, ८६६,९१५, ९४०, १०४७, १०७१, १३२५, १४०९, १९४९ यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन भाग-२ : संपा०- मुनिराज यतीन्द्रविजयजी महाराज, प्रकाशक- श्री राजेन्द्र प्रवचन कार्यालय, . सन् १९३१ लेखाङ्क-६३३, ११५७, १२७८,१३७५, १६९२,१६९५, १७२१, १७३४, १७३६, १८५९, १९८६, २१९२, २५४३ यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन भाग-३: संपा०- मुनिराज यतीन्द्रविजयजी महाराज, प्रकाशक- श्री राजेन्द्र प्रवचन कार्यालय, सन् १९३५ लेखाङ्क- १८४५, १८७०, १९४८ यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन भाग-४: संपा०- मनिराज यतीन्द्रविजयजी महाराज, प्रकाशक- श्री राजेन्द्र प्रवचन कार्यालय, सन् १९३७ लेखाङ्क- २०४३, २०६१, २४८८, २४९२ लालभाई दलपत भाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अहमदाबाद लेखाङ्क-१ परिशिष्ट-१ ) ४८१) For Personal & Private Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंखेश्वर महातीर्थ : संपा०- मुनिराज जयन्तविजय, प्रकाशक- श्री विजय धर्मसूरि, जैन ग्रंथ माला, उज्जैन, वि० सम्वत् १९९८ लेखाङ्क- २९० शत्रुञ्जय गिरिनार ना केटलाक अप्रकट प्रतिमा लेखो, सम्बोधि भाग-४ : प्रकाशक- लालभाई दलपत भाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अहमदाबाद लेखाङ्क- २७, ४७, १४४४ . श. गि. द. श्री शत्रुञ्जय गिरिराज दर्शन : संपा०- पं. श्री कंचनसागरजी, प्रकाशक- आगमोद्धारक ग्रंथमाला, कपडवंज, सन् १९८२ लेखाङ्क- २८, ३०, ३१, ३२, ३३, ३५, ४१, ५१, ५४, ५५, ५६, ५७,५९, ६८,७१,७२,७३, ९९, ११०, १२०, २५९, ३०५, ३९२, ४७४, ५६३,७४०, ७६९, ७९६, ९२६, १०५२, १०९५, १०९६, १३०८, १३१४, १३१५, १३१६, १३२०, १३२३,१३२४,१३२६,१३२९,१३३१,१३५२,१३८६,१३८७,१४४४,१५२२,१५२५,१५२८,१५३०,१५३१,१५३८, १५४१, १५४२, १८३६, १९१४, १९४३, २०७७ शत्रुञ्जय वैभव : संपा०- मुनि कांतिसागर, प्रकाशक- कुशल संस्थान, जयपुर, सन् १९९० लेखाङ्क- २३६, ३१३, ३१५, ३५३, ४४६,७१७,७९६, ९२६, ९३३,९४९, १०५२, ११३७ . सम्बोधि-भाग-७, नम्बर ४ : प्रकाशक- लालभाई दलपत भाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अहमदाबाद लेखाङ्क- ३४, ३६, ६४, ११० परिशिष्ट-१ For Personal & Private Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २- परिशिष्ट ४४२ ७३५ ५९९ सम्बन्धित लेखों के प्राप्ति स्थान अचलगढ, (आबू) कुन्थुनाथ मन्दिर ४९,७७२,७९२ अचलगढ, (आबू) चौमुख मन्दिर ५५७,१७८८ अजमेर (भड़गतियों का) आदीश्वर जिनालय २५६१, २५६२, २५६३, २५६४ अजमेर, दादाबाड़ी १८३८, २०७२, २५८३, २६४१, २६४६, २१५३ अजमेर (केसरगंज) विमलनाथ जिनालय २१२७ अजमेर, संभवनाथ जिनालय २००, ६०४,८२४,१०२६, १०२७,१०७४, ११०१,१३६०, १५३२, १५३३, १७५०, १८५६, १८५७, १८६०, १९१३, २०९८, २०९९, २१००, २१०१, २१११, २११२, २११४, २१२१,२१४०,२१४१, २१२४, २१३०, २१३२ अजारी, महावीर जिनालय अजीमगंज (कासिमबाजार) नमिनाथजी का मंदिर १५१० अजीमगंज, नेमिनाथ का पंचायती मंदिर . अजीमगंज, नेमिनाथ जिनालय अजीमंगंज, पद्मप्रभ जिनालय २८४, ९८२, १९९९ अजीमगंज रायबुधसिंह दुधेड़िया का घर देरासर ९७५ अजीमगंज, सुमतिनाथ जिनालय २२२५ अमरसर, जयपुर, दादाबाड़ी १२१०, १२११, १२३७ अमरावती (धनजबाजार) जैन मंदिर ५०९ अमरावती, पार्श्वनाथ मंदिर ९५८,१०१२, २५२२, २५२३ अमरावती, पुराना जैन मंदिर ७२७,१०१३ अयोध्या (कटरा) अजितनाथ जिनालय १७५९, १७९९, १८००, १८०१, १८०२, १८०३, १८०८, १८०९, १८१०, १८११, १८१२, १९६०, २१६३, २१८६, २४४५, २५३०, २६३३ अलवर, जैन मंदिर ३१६,७३४,४४७,७५४ अहमदाबाद (कामेश्वरपोल) संभवनाथ मंदिर १६८, अहमदाबाद (कालूशाह की पोल) संभवनाथ जी का मंदिर ९६९,१०१० अहमदाबाद (घीकांटा, पंचभाई की पोल) आदीश्वर मंदिर ४६२ अहमदाबाद, चौमुखजी देरासर ३९६, ७५२ अहमदाबाद (झवेरीवाड़) अजितनाथ मंदिर अहमदाबाद (झवेरीवाड़) महावीर देरासर अहमदाबाद (झवेरीवाड़) संभवनाथ का मंदिर ३६३, ३६५, ९७७ अहमदाबाद (झवेरीवाड़) सुपार्श्वनाथ जिनालय २०१ अहमदाबाद (तालियापोल) पद्मप्रभ मंदिर २४३ अहमदाबाद (दादा साहब की पोल) शांतिनाथ जिनालय १३७८, १३७९ अहमदाबाद (देवसानो पाडो) धर्मनाथ का मंदिर २३४,५९२ अहमदाबाद (देवसानो पाडो) पार्श्वनाथ जिनालय ३२५, ५९३,९४६,१०७२,११३५,११८० अहमदाबाद (देवसानो पाडो) शांतिनाथ देरासर १०१,१०८ ४४८ ३६४ परिशिष्ट-२ ४८३) For Personal & Private Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहमदाबाद (देवसानो पाडो) सीमंधर स्वामी देरासर २३५, ९३६, ९४२ अहमदाबाद (देवसानो पाडो कुसुमवाड़) आदीश्वर मंदिर १६१ अहमदाबाद (दोशीपोल, कुसुमवाड़) आदीश्वर मंदिर १९७ अहमदाबाद (दोशीवाड़ा पोल) आदीश्वर मंदिर ४५७,४७६,४९४,५९०,७६८ अहमदाबाद (दोशीवाड़ा पोल) वासुपूज्य मंदिर अहमदाबाद (दोशीवाड़ा पोल) सीमंधरस्वामी मंदिर ४५३, ९४१ अहमदाबाद (नागजी भूधर पोल) संभवनाथजी का मंदिर ६८७ अहमदाबाद (पंच भाई पोल) २०५ अहमदाबाद (पांजरापोल) शीतलनाथ मंदिर ८८,९१८ अहमदाबाद (पाड़ा पोल) नेमिनाथ मंदिर ३३५ अहमदाबाद, पार्श्वनाथ जिनालय ५८९ अहमदाबाद (फतेहशाह की पोल) श्रेयांसनाथ मंदिर ४८८,९०५ अहमदाबाद (बाघनपोल) अजितनाथ मंदिर ३०२ अहमदाबाद (बाघनपोल) आदिनाथ मंदिर १८९,४५४ अहमदाबाद (बाघणपोल) महावीर जिनालय ११७४ अहमदाबाद (बाघेश्वर पोल) आदीश्वर मंदिर ३२६,४०५ अहमदाबाद (मोतीपोल) संभवनाथ मंदिर १६७ अहमदाबाद (राजा मेहता की पोल) आदीश्वर मंदिर १०१७ अहमदाबाद (रीजरोड़) वीर जिनालय ५६२, ६८५, ९६२, १२७४ अहमदाबाद (लालभाई पोल), विमलनाथ मंदिर १,४५१ अहमदाबाद, शांतिनाथ जिनालय ९४८, ९३०, ६७१, ११२२ अहमदाबाद (शांतिनाथ पोल) चन्द्रप्रभ मंदिर ४७७,७८३ अहमदाबाद (शांतिनाथ पोल) शांतिनाथ देरासर २९०,५२३, ६९४, ११५६ अहमदाबाद, शिवासोमजी का मंदिर १२१३, ११९३, ११९४, ११९५, ११९६, ११९७, ११९८ अहमदाबाद (शेखनो पाडो) वासुपूज्य मंदिर ४३३,११७६ अहमदाबाद (शेखनो पाडो) शांतिनाथ देरासर ४११,१०५१ अहमदाबाद (सरदार सेठ की पोल) कुन्थुनाथ जिनालय ४७५ अहमदाबाद (सरदार सेठ की पोल) जैन मंदिर ८२७ अहमदाबाद (सारंगपुर) पद्मप्रभ जिनालय अहमदाबाद (सुतार की खड़की) अजितनाथ देरासर ११६९ अहमदाबाद (सौदागर पोल) जैन देरासर ११३१ अहमदाबाद (हठीभाई की बाडी) धर्मनाथ मंदिर २०७८ अहमदाबाद (हाजा पटेल पोल) जैन मंदिर १४४५,१४४६ अहमदाबाद (हालापोल) शांतिनाथ मंदिर ६८८ आगर (मालवा) जैन मंदिर २७६ आगरा, रोशन मुहल्ला ११४३, २६९५ आगरा, (रोशन मुहल्ला) चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर ११८२, १२८६, १२८७ आगरा (रोशन मुहल्ला) सीमंधर स्वामी का मंदिर ९८५ आगरा (शाहगंज) दादाबाड़ी २५३९ आबू, खरतरवसही मंदिर ५३७,५३८,५३९,५४०,५४१, ५४२,५४३,५४४,५४५,५४६, ५४७,५४८,५४९, ५५०, ५५१,५५२,५५३,५५४,५५५, ६८३ ४१५ (४८४ परिशिष्ट-२ For Personal & Private Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२५ मादर आबू, द्वारिकानाथ मंदिर आबू, पित्तलहर मंदिर २६८, ४२१, ५५६, ६८२ आबू, लूणवसही मंदिर ८,१८,४४, ९१, १८३, १८६१, १८६२ आबू, विमलवसही मंदिर १०,११,१९,८२, २५५,७२३,८२४, ११३३ आमेर, चन्द्रप्रभ मंदिर ३९१, ६५५, ६८४,१०४५, १६६५, १८३१, १८१८, १९७४ आरासणा, नमिनाथ मंदिर आसोतरा (बाड़मेर) मुनिसुव्रत मंदिर २३२२,१०२४ ईडर, जैन मंदिर ६६३ उखलाना, आदिनाथ जिनालय २५९५ उज्जैन, अजितनाथ मंदिर ३५८,६४६ उज्जैन, ऋषभदेव जिनालय २०६३ उज्जैन, चन्द्रप्रभ देरासर ३२१, ६४९ उज्जैन दादाबाड़ी (सराफा) १६६१ उज्जैन, शांतिनाथ मंदिर ११४६ उदयपुर (कसैरी गली) ऋषभदेवजी का मंदिर १०४८ उदयपुर (चौगान, स्वरूप सागर) पद्मनाभ मंदिर १५६६,१५६७,१५७१,१५७२, १५७३ उदयपुर (बड़ा बाजार) वासुपूज्य जिनालय १६६४ उदयपुर (बदनोर हवेली के पास) आदिनाथ जिनालय १५६४, १५६८,१५६९, १५७० उदयपुर, शीतलनाथ जिनालय ९२,१०५ २१७,७६६,७६७,९२४,१४१५ उदयपुर (सेठों की हवेली के पास) ऋषभनाथ मंदिर २९९ उदरामसर, कुन्थुनाथ जी का मंदिर २६००, २६१० उदरामसर, दादाजी का मंदिर १४८२, १८६७, १८६८,१६७१, १९३६, १९३७, २१५२ उदरामसर, महावीर सेनिटोरियम ११३९, २६७६, २६७७ ऊंझा, जैन मंदिर ८४,५८२, ६४५,८३६. ऊदासर, सुपार्श्वनाथ जिनालय ७३८, २२७७, २२९०, २३७९, २४०१ ओरग्राम, आदिनाथ जिनालय ५६० ओसियां, महावीर स्वामी मंदिर . १४८९ औरंगाबाद, धर्मनाथ जिनालय ४५६ औरंगाबाद, पार्श्वनाथ जिनालयं ४०६ कड़ी (गुज.) चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय ११५५ करेड़ा, पार्श्वनाथ मंदिर ८१,२७४,७२१ करेड़ा, बावन जिनालय २२१, २२३, २७३,७८२,१४१४ कलकत्ता, कुमारसिंह हाल १३२ कलकत्ता (तूलापट्टी) खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर ६५७, ७७५, २०६८, २३१८, २३५५, २३५६, २४४० कलकत्ता (पुलिस हॉस्पिटल रोड) लाभचन्दजी का घर देरासर ११७५, १४७५, १८२५, २५९० कलकत्ता (बड़ा बाजार) धर्मनाथ पंचायती बड़ा मंदिर ६६५,७८१, १७६१ कलकत्ता (माणिकतल्ला) चन्द्रप्रभ मंदिर ४८४ कलकत्ता (माणिकतल्ला) महावीर जिनालय १८८ कलकत्ता, माधोलालजी दूगड़ का घर देरासर ५५९ काकंदी तीर्थ कानपुर, लाला कालिकादासजी का मंदिर २१७३,२१७५, २१७७ ३४९ परिशिष्ट-२ ४८५ For Personal & Private Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कापरड़ा तीर्थ, जैन मंदिर कालू, चन्द्रप्रभ जिनालय कासिमबाजार, नमिनाथ जिनालय किसनगढ़, खरतरगच्छीय उपाश्रय किशनगढ़, दादाबाड़ी किसनगढ़, चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर किशनगढ़, यति स्वरूपचंदजी का उपाश्रय कुचेरा, चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर कुण्डलपुर (बिहार) गौतमस्वामी का मंदिर कुण्डलपुर (बिहार) जैन मंदिर कुलपाकतीर्थ, माणिक्यदेव ऋषभदेव मन्दिर केकड़ी, चन्द्रप्रभ जिनालय केसूर (मालवा) जैन मंदिर कोटड़ा - बाड़मेर, शीतलनाथ जी का मंदिर कोटा, आदिनाथ मंदिर कोटा, खरतरगच्छीय आदिनाथ मंदिर कोटा, चन्द्रप्रभ जिनालय कोटा, दादाबाड़ी कोटा, माणिकसागर जी का मंदिर कोटा, सेठजी का घर देरासर क्षत्रिय कुंड, जैन मंदिर खजवाना, धर्मनाथ मंदिर खंभात, अजितनाथ जिनालय खंभात, आदिनाथ जिनालय खंभात (आरीपाडो) शांतिनाथ जिनालय खंभात (कडाकोटडी) पद्मप्रभ जिनालय खंभात (खारवाडो) अनन्तनाथ जिनालय खंभात (खारवाडो) स्तम्भन पार्श्वनाथ जिनालय खंभात ( गीपटी) अजितनाथ जिनालय खंभात ( गीपटी) महावीर जिनालय खंभात, चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय खंभात (जीरारपाड़ो) शांतिनाथ जिनालय खंभात (भौयपाडो) नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय खंभात (भयरापाड़ो) मल्लिनाथ जिनालय खंभात ( माणकचौक ) आदिनाथ जिनालय खंभात ( माणेकचौक) शांतिनाथ जिनालय खंभात ( माणेकचौक) पार्श्वनाथ जिनालय खंभात ( माणेक चौक) शांतिनाथ जिनालय, खंभात ( माण्डवीपोल) आदिनाथ जिनालय खंभात (संघवी पाड़ा) सोमपार्श्वनाथ जिनालय खंभात, स्तम्भन पार्श्वनाथ जिनालय (४८६) १३७४, १४१२ १००६, १५७५, १७३२ ७७०, १७४२ १७४९, १८३९ १४३८, १६९९, १८८९, १८९०, १८९१ ७५६, ११३२, १२१२, २१२९ १७०१ १२१७ १३९५ ३४७, १४०४ २६८८, २६८९, २७२३ ३८७, ५०६, २५५३ २३६७ ११५, ३८६, ९११, ९८४, ११४२, ११५८, १२१६, १३७१ ९८, ९३५ ९६४, १०२२ ५३२, १४९२ २०३९ १०१५, १०१८ २४७, २३०१, २३०२, २४७३ २३७५ १००९ ९५६ ६७० ४९६ ९२८, ४९०, ७२० १०२ ११३८ ७८३ ९५५, १२८० ४०८, १०५७ ३८, ३५६, ११७३ १३७२, १३७७, १४२९, १४६२, १५४५ ७४५ ७५९ १००२ ४५२, ७५१, १०९१ ६८० ११३ ७४८ ४६ परिशिष्ट - २ For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८५ १२ खाचरोद, गौड़ी पार्श्वनाथ जी का मंदिर २०६१ खेड़ा (परा) आदिनाथ जिनालय ४१४,८२०,७९३ खेड़ा, भीड़भंजन पार्श्वनाथ जिनालय ६६९ खेरालु, आदिनाथ जिनालय २९८ खोह, चन्द्रप्रभ मंदिर १६६७, १७१९, १८८१ गंगाशहर, आदिनाथ मंदिर २५५८ गंगाशहर (रामनिवास) पार्श्वनाथ जिनालय २१३८ गढ़सिवाणा, बेगड़गच्छ दादाबाड़ी १४२०,१५०२,२३२७ , गाजियाबाद जैन मंदिर १६०,२७२४ गिरनार, तलेटी मंदिर २३२५, २३७४ गिरनार तीर्थ १२२६ गिरनार, नेमिनाथ जिनालय २३,२७५ गुड़ामालानी-बाड़मेर, पार्श्वनाथ मंदिर व दादाबाड़ी २७४८ गुणाया, महावीर स्वामी मंदिर १४१०, २३४०, २३४१, २३७८ गोविन्दगढ़, पार्श्वनाथ जिनालय २५०४ ग्वालियर, लस्कर, पंचायती मंदिर १३०, २२८, २७९, ३७८,४२८,११७९, १६६८ घंघाणी तीर्थ घोघा, जैन मंदिर चन्द्रावती, चन्द्रप्रभ जिनालय २२३१, २२३२, २४५८ चन्द्रावती, जैन मंदिर १९११ चम्पापुरी तीर्थ ९५३, १२८८, १६७०, १६७१, १६७२, १६७३, १६७४, १६७५, २१५८, २३४६, २३४९ चाडसू, आदिनाथ मंदिर ५२८,६७७ चाडसू, शांतिनाथ जिनालय २५०२ चांदलाई, शांतिनाथ जिनालय चित्तौड़, आदिनाथ जिनालय चित्तौडगढ़, जैन मंदिर (कीर्तिस्तम्भ-गोमुख कुंड के पास) ९३२ चित्तौड़, पुरातत्त्व संग्रहालय एवं म्युजियम चित्तौड़ (शृंगार चावडी) जैन मंदिर ३५९ चूरू, दादासाहब की बगीची १६४१, १६४२, १९२९, १९२७, २४१७, २४१८, २४४६, २४४७, २५४७, २६५४, २६५५ चूरू, शांतिनाथ मंदिर १४८७,१६३६, २१९५, २१२३, २१३४ चोथ का बरबाड़ा, महावीर जिनालय छाणी, शांतिनाथ जिनालय ४१२ जडाउ, पार्श्वनाथ देरासर २११ जयपुर, इमलीवाली धर्मशाला २५८१, २६४२, २६३९, २६५८,१७११ जयपुर, गुलाबचन्दजी का घर देरासर २५०८ जयपुर, आदिनाथ का नया मंदिर १६६,७७९,१०५९,१६४७, २४५८, २४८७, २५८०, २६६९ जयपुर, नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर २७५६, २७५७, २७५८, २७५९, २७६० जयपुर, पार्श्वचन्द्रगच्छ उपाश्रय ४६१,७८७,७८९, २५०६ जयपुर, पूनमचंद ढोर का घर देरासर २६०२, २६४३, २६४८ ५२६ ११२ २ ६५६ परिशिष्ट- २ ४८७) For Personal & Private Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ जयपुर, मोहनबाड़ी १६०३, १७१५, १७१६, १७१७, १७१८, १७४६, २२२४, २५२७, २५५४, २५५६, २५८७, २५८८, २६२१ जयपुर, लीलाधर जी का उपाश्रय १६६६,१८२२, १८३१ जयपुर, विजयगच्छीय बांठियों का मंदिर ७८०,७९७, ९६६, १२७७, १६०६, २५७६, २६१८ जयपुर, यति श्यामलालजी का उपाश्रय २१५६,२६४९ जयपुर, श्रीमालों का मंदिर ९६८, १२९५, १६७६, १७४७, १८२६, १८२७, १९०३, १९०४, १९०७, १९९८, २०६७, २०९७, २५११, २५१२, २५७०, २५७१ जयपुर, श्रीमालों की दादाबाड़ी १९९६, १९९७, २१४९, २२०१, २२०३, २२०४, २२०५, २२२१, २२२२, २२२३, २६०३, २६०४, २६०७ जयपुर, श्रीमालों की दादाबाड़ी, पार्श्वनाथ मंदिर जयपुर, सुमतिनाथ मंदिर २०९, ३०३, ३३३, ८११, ८३१, ९१९, १२१४, १२४१, १६२५, १६४६,१६५०, २२४२, २६१६, २६१७ जयपुर, सुपार्श्वनाथ पंचायती मंदिर १३८,१४२, ३३७, ३७१, ३७३, ५२५, ६४१, ६८६,७६५, ७७७,७९०,९१०, ११०६, ११४०, १३६३,१६४५, १६०७, १६५४, १६५८, १६५९, १६७५, १६८०, १६८२,१६८३, १७२०, १७३८, १७४३, १७४८, १८३३, १९१२, १९५४, २०२२, २२६६, २२८४, २२५९, २४९६, २५००, २५५१, २५५२, २६४४ जयपुर, स्टेशन मंदिर १३५६, २४७५, २५०७,२५२६ जसोल (मारवाड़) जैन मंदिर ७९१ जांगलू, (बीकनेर) पार्श्वनाथ जिनालय १८६३,१८८२,१९२० जामनगर, आदिनाथ जिनालय ४०७, ६००, ८२६, ८२९, ८३४ जामनगर, दादाबाड़ी १२७० जालना, चन्द्रप्रभ मंदिर ८०४,९१४ जालोर, पार्श्वनाथ मंदिर जावर (उदयपुर) जैन देरासर २१० जीरावला, देहरी क्रमांक १७ के दरवाजे के ऊपर जीरावला, पार्श्वनाथ मंदिर १८२ जूना बाड़मेर, जैन मंदिर ४२,४३ जूनीआ २१८ जैसलमेर, अखयसिंह का देरासर १७६ जैसलमेर, अमरसागर, आदिनाथ जिनालय ५७४,९००,२०८० जैसलमेर, अमरसागर, सवाई हिम्मतराम जी का मंदिर १५४, १९५८, २२६७, २३६३, २३६६, २३६८, २३६९, २३७१, २४०९ जैसलमेर, अमरसर, सवाईराम बाफणा का मंदिर ७०६,७०९,८५१, १९७६ जैसलमेर, अमृतधर्म स्मृतिशाला १६५३,१६५५,१६५६,१६५७ जैसलमेर, अष्टापद जी का मंदिर १२१, २४२, २८७, ४७३, ५०५, ५०७,५०८, ५१४, ५१९, ५६६, ५७६, ६१८, ६२१, ६२९, ६९१, ७४४, ८३३, ८४३, ८४४,८५२,८५६,८७०,८८४,७७४,१०६८,१०८०, २३६५ जैसलमेर, आदिनाथ जिनालय ८३५, ८८७, ८८८,८८९,८९१, ८९२, ८९३,८९९, १०११ (४८८) परिशिष्ट-२ २० १६४ For Personal & Private Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैसलमेर, ऋषभदेव जिनालय जैसलमेर, खरतरगच्छाचार्य उपाश्रय जैसलमेर, चन्द्रप्रभ जिनालय जैसलमेर, जिनचंद्रसूरि जी का स्थान जैसलमेर, तपागच्छ का उपाश्रय जैसलमेर, थीरूशाह का देरासर जैसलमेर, दादाबाड़ी १७५, ४०९, ५१८, ६१७, ८७७, ८८६, ८९०, ८९४, ८९८, ९०२, २५८९, २५९२, २५९३, २५९४ १५१७ ९०, ९६, १२२, १२६, १२७, १२८, १४०, १४९, १५०, २०३, २३०, २४५, २७७, २८३,३१९, ३२८,३३०, ३७७, ३८३, ३९३, ३९७,४८०, ४८१, ५३५, ५७५, ५७८,५९१, ६२३,८०३,८३०, ८३९,८५४,८६५,८९७, ९८०, ९८१, ९८८,९१२,१०३३,१०५३,१०५६,१०६१,१०७०, १०७५, १०७९,१०८३,१११५ १२८१, १४९६,१५८३,१७०३ १६४३, २०१७, २४८६ २७८,२७९,७८६ १२०२, १२०३, १३०२, १३०३, १३७६, १५०३, १५८४, १६०९, १६१०, १६४४, १७२९, १७३३, १७७६, १८४३, २०२५, २०२८, २०३०, २०३३, २०३४, २०४१, २०४२, २०७३, २३५९, २३७७, २४१९, २४४३, २४५१, २४६९, २४९१ २३२४, २४३४ १७२८,१७३० १३०७,१५८५, १८४८, २०३६ जैसलमेर, दादाजी का स्थान, (गजरूपसागर) जैसलमेर, दादाबाड़ी, गढ़ीसर जैसलमेर, दादावाड़ी (देदानसर तालाब) जैसलमेर, दादावाडी (देदानसर तालाब), __ समयसुन्दरजी की शाला जैसलमेर (देवीकोट) आदिनाथ जिनालय जैसलमेर, धनराज जी का देरासरा जैसलमेर, पार्श्वनाथ मंदिर जैसलमेर, बृहत्खरतरगच्छ का उपाश्रय जैसलमेर, बेगडगच्छ उपाश्रय जैसलमेर, महावीर जिनालय जैसलमेर, विमलनाथ जिनालय जैसलमेर, शांतिनाथ मंदिर १८५२ ८१६ १९५० १४६, १४७, १४८, १६३, १७८, २३८, २५०, २५२, ३०७, ३०८, ३७५, ४३६, ४३७, ४३८, ६०९, ६१०, ६१३, ६१४, ६१५, ६२०, ६२४, ६२६, ६३०, ६३५, ६३८, ६७२, ६९२, ७१७,७३३, ८६१,९०३,१०५४,११००,११५३, २५४० १५२, ४७२, ६२८, २३७२ १३०५,१५१४ १५६,६६०,७५७,८२५, ८३८,८४७, ८७४, १३९६ ५१६, १०२५,११६१,१६१५ २८२, ३९४, ४४३, ४४४, ५१७, ५७९, ८४५, ८४६, ८५०, ८६८, ८७२, ८८३, ९०७, ९०८, १०८९, १०९३, ११४५ ४८, २४६, ६१९, ६५,७४२, ८५५, ८६०,१०३४, ११७७, १३८०,२३७० १२७१, १३८९, १३९०, १३९३, १५५७, १५६३, १६२४, १६१६ १४५२ १८४, २८०, २८१, २८८, २८९, २९०, २९१, २९२, २९३, जैसलमेर, शीतलनाथ मंदिर जैसलमेर, श्मशान भूमि . जैसलमेर, समयसुन्दर जी का उपाश्रय जैसलमेर, सम्भवनाथ मंदिर परिशिष्ट- २ (४८९) For Personal & Private Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैसलमेर, सम्भवनाथ मंदिर, बड़ा भंडार जैसलमेर, सुपार्श्वनाथ जिनालय जैसलमेर, सेठ केशरीमल का देरासर जोधपुर, कुन्थुनाथ मंदिर जोधपुर, केशरियानाथ मंदिर जोधपुर, कोलड़ी, पार्श्वनाथ जिनालय जोधपुर, गुरांसा जुहारमल जी का उपाश्रय जोधपुर, जिनयशसूरि ज्ञान भंडार जोधपुर, धर्मनाथ जिनालय जोधपुर, भैरों बाग, दादाबाड़ी जोधपुर, महावीर जिनालय जोधपुर, मुनिसुव्रत मंदिर जोधपुर, संभवनाथ जिनालय जोबनेर, चन्द्रप्रभ जिनालय झज्झ, बेगानियों का वास, नेमिनाथ जिनालय झज्यू, सेठियों का वास, नेमिनाथ जिनालय टोयारायसिंह, दादाबाड़ी डभोई, धर्मनाथ देरासर तारंगा, अजितनाथ का मंदिर तारानगर, रिणी, शीतलनाथ जी का मंदिर तुंगिया नगरी, जैन मंदिर त्रापज, जैन देरासर तेजपुर, राय मेघराजजी का मंदिर धराद, आदिनाथ चैत्य शाहपुर (धाणे महाराष्ट्र) जैन मंदिर दाढ़ी दुर्ग (छत्तीसगढ़) दिल्ली (चीराखाना) छोटे दादाजी का मंदिर दिल्ली, चीरेखाने का मंदिर दिल्ली (चेलपुरी) जैन मंदिर दिल्ली (चेलपुरी) नवघरे का मंदिर दिल्ली, नवघरा, सुमतिनाथ जिनालय दीनाजपुर, जैन मंदिर देरणा, संभवनाथ जिनालय देवीकोट, आदिनाथ जिनालय देवीकोट, ऋषभदेव मंदिर देलवाड़ा (मेवाड़) आदिनाथ जिनालय देलवाड़ा (मेवाड़), ऋषभदेव देलवाड़ा (मेवाड़) पार्श्वनाथ जिनालय २९४, ३५२, ३६०, ३७४, ४१०, ६०७, ६०८, ६१२, ६१६, ६२२, ६३१, ६४४, ८४०, ८४१, ८४२ १९८, ७८८ ९१६ ५५८, २०६० १००५, २१२०, २४७६ ७३९, १६११, २४९, २६५० २४५६ ८७५, १४५१ २५८२ ३३२ १४६६ १२५ १०९, ८६७, १९२३ ३३१, १४९७, २४१५ ११०५,२५०५ १०८१, २१०८, २५७५ २१७० १४५८ ७८४ ४२९ १४९४ १६२२ ६८१ २५१३ ११४, १७१, २३९, ३५०, ४५९, ५९८, ८२२ २९६ २६८७ १७५५, २३७३, २५७३ ४२३, १०१९, १२३४ ८०५,९९०, ११४७ ११९, १७७, ३८०, ४९९, ५७१, ५८३, ५६९, ९६१, १०३१, ११३६, ११४८, १६४८ २६६३ १६२७, २०१९ ९ १६९२, १७७४ १७२१, १७३४, १९८६ १४१, २१२, २१५, २२४, २२५, २६३ ६७, १३३, १४५, १५९, १६५, १९५, १९६, २२७ १९२, २१३, २१४, २६०, २६१ परिशिष्ट २ For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देशनोक (आंचलियों का वास) संभवनाथ जिनालय देशनोक, केशरियानाथ मंदिर देशनोक, दादाबाडी देशनोक (भूरों का आधूणा वास ) शांतिनाथ मंदिर धनज, पार्श्वनाथ जिनालय धामनोद, ऋषभदेव मंदिर धार, राजगढ़, आदिनाथ जिनालय धुलेवा (मेवाड़) केशरियानाथ का मंदिर नडियाड, शांतिनाथ जिनालय नाकोड़ा, आदिनाथ जिनालय नाकोड़ा, कीर्तिरत्नसूरि दादाबाड़ी नाकोड़ा जैन मंदिर नाकोड़ा, दादाजी की टोंक नाकोड़ा, दादाबाड़ी नाकोड़ा, नेमिनाथ जी की टोंक नाकोड़ा, पार्श्वनाथ मंदिर नाकोड़ा, पार्श्वनाथ मंदिर, केसरघर के पास की शाल नाकोड़ा, पार्श्वनाथ जिनालय, गर्भगृह १ नाकोड़ा, पार्श्वनाथ जिनालय, गर्भगृह २ नाकोडा, पुण्डरीक गणधर की देहरी नाकोड़ा, शांतिनाथ जिनालय (गर्भगृह) नाकोड़ा, शांतिनाथ जिनालय (नेमिनाथ देहरी ) नाकोड़ा, शांतिनाथ जिनालय (भण्डारस्थ) नाकोड़ा, शांतिनाथ जिनालय नाकोड़ा, शांतिनाथ जिनालय (नालिमण्डप) नाकोड़ा, शांतिनाथ मंदिर (चौकी मण्डप) नागदा, शांतिनाथ जिनालय नागपुर, अजितनाथ मंदिर (बड़ा मंदिर) नागपुर, नया जैन मंदिर नागपुर, दादाबाड़ी नागपुर, पाडी, सुपार्श्वनाथ जिनालय नागपुर, मणिधारी जिनचन्द्रसूरि दादाबाड़ी नागौर, चोसठिया जी का मंदिर नागौर, जेठमलजी का उपाश्रय नागौर दादाबाड़ी नागौर, दादाबाड़ी, कनकमंदिर नागौर न्यात की बगीची नागौर, (सुमतिनाथ जिनालय) बड़ा मंदिर ४४०, १००४, १६४९, १६९३, १७०५, १७०७, १७०९, १७४४, १८३४ ५९६, २०२३ १९५१, १९५२,२५४५, २५४८ १६५२, १९१९, १९२५, १९२८, २२४६, २५४१ ४९३ १८६ ३७२, ४२७, २५१८ १६१४, २२२० ६६६ ६३२ ७६०, २६८२, २६८३, २६८४, २६८५ १२७९ २६५१ २६६०, २६६४, २६६५, २६६६, २६६७ २६०९ ९०९, २६९८, २६९९ १३९१ १७२७ २५०१ १७३६ ६३३ ६९५ ५२, १७३, ५२४, ६९६, ६९९, ७००, ७०१, १०१६, ११०३, ११५४, ११६३, ११६५, १३८१, २६८०, २६८१ ७३०, ११८४, १२७८, १४४०, २१९२, २१९३, २१९४ ११५७ ११५९ २५६ ३९, १५१३, २११७, २१३६, २१५९ ४८२ १७८३, १७८४, १९२४, २४८३, २५१०, २७५२, २७५३. २७५४, २७५५ २१५७ १७८२, १७८६ ९४, २४१ ९०१ ११८५,१८५३ २६२२,२६२३ २६३८ ७७, १५८, २४९, २६६, २१४, ४२५, ५६१, ६०२, ६३६, परिशिष्ट २ (४९१) For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ cxo . नागौर (हीरावाडी) ऋषभदेव जिनालय नागौर (हीरावाड़ी) धर्मनाथ जिनालय नागौर, शांतिनाथ जिनालय नाथनगर, बाबू सुखराजराय का घर देरासर नाथूसर, उपाश्रय नापासर, शांतिनाथ मंदिर नाल, खरतरगच्छीय शाला नाल, चौमुखस्तूप नाल, जिनचारित्रसूरि जी स्मारक नाल, जिनकुशलसूरि मंदिर ८०१, ८१२, ८१७, ९८६, १०३६, १४३६, २०७१, २०७९, २१५०, २१५१, २४२७, २६४५, २६५३ १५७, २८७, ४२०, ४२६, ८०२, ८१३, २६४० ६,९६७ ३२९ ६६८,१०४४,१६७७, १८२३ १५६२ १४८३, १९३९, २५०९ १९३२, २०६५, २०६६,२२१६, २३४२, २३७६, २५३८ । १४५३,११८८ २६७८, २६७९ १८५४, २४२९, २४३०, २४६०, २४६२, २५१४, २६२७, २६२८ २२४० २१६० १६३२, १८४१, १८४२, १८४४, १८५१, १८९४, २१५४, २३३०, २३३१, २४१३, २४२६, २५१६, २५८६,२८९१ १५९८,१५९९, १६००, २०३५, २०३७ ६६२,७६४, ९८७, १४६७, १७१२, १५३९, १५५८, २०७४ २४५०,१३७०,१४४९, १९१८ २३३, १००१, १०२०, १५७४, १५७६, १६२८, १७९०, १७९१,२००७ १३८८ १७७१,२२१० नाल, पद्मप्रभ मंदिर नाल, मुनिसुव्रत जिनालय नाल, शालाओं के लेख नोखामंडी, पार्श्वनाथ मंदिर नौहर, पार्श्वनाथ मंदिर पचपदरा, शांतिनाथ जी का मंदिर पचेवर, चन्द्रप्रभ जिनालय पटना, जैन मंदिर ६६१ पटना, दादाबाड़ी पटना, पटना संग्रहालय पटना, शहर मंदिर पटना, स्थूलिभद्र का मंदिर पाटण, अष्टापद जी का मंदिर पाटन (कणा शाह का पाडा) शांतिनाथ का मंदिर पाटण (कनासानो पाडा) शांतिनाथ देरासर पाटण कनासानो पडो, महावीर जिनालय पाटण, कनासानो पाड़ो, शांतिनाथ जिनालय पाटण, कलारवाड़ा, जैन मंदिर पाटण (कूटकीया वाड़ा) पाटण (कोका का पाड़ा) जैन मंदिर पाटण (कोटावालों की धर्मशाला) पाटण (खजूरीपाडा) मनमोहन पार्श्वनाथ मंदिर पाटण (खडाखोटडी) पाटण (खरतरवसही) शामला पार्श्वनाथ मंदिर पाटण (खेतरपाल का पाड़ा) पाटण, (खेतरवसही, निशाल की शेरी, भूमिगृह में) १६२९ २२०,९९९ १३४,३००, ३०१,१४१३ ६९,८७,५०२ ५०३ १०७८, १३०६ ४०२ १०५८ १११, ४७१,८३७ १२३, ६७५ ११८१ ६२७ ३२० ९२२ १०७७ परिशिष्ट- २ For Personal & Private Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०१ ४१७ ४२२,४७०,७४७,१०६९ ७५८ २७१,७२८ ७५० १९३ ५८६ ७३१, ९४३,९६३,१०८८ ११६३ ६११ ४८६ २३१,१०४९,१२०८ ४७९ ६१ पाटण (घीया का पाडा) शांतिनाथ जी का मंदिर पाटण (झवेरीवाड़ा) आदीश्वर मंदिर पाटण (झवेरीवाड़ा) जैन मंदिर पाटण (झवेरीवाड़ा) नारंग पार्श्वनाथ मंदिर पाटण (टांगडीयावाड़ा) आदीश्वर देरासर पाटण (डंख मेहता का पाड़ा) शांतिनाथ जी का मंदिर पाटण (तलशेरिया) नेमीश्वर मंदिर पाटण (तलशेरिया) शांतिनाथ जी का मंदिर पाटण (धीमतो, खेजड़ा का पाडा) पाटण, पंचासरा पार्श्वनाथ मंदिर पाटण (पंचोटी) जैन मंदिर पाटण (पडीगुंडी का पाड़ा) पाटण (पोल की शेरी) पाटण (फोफलिया वाडा, मनमोहन जी की शेरी) पाटण, बाबू पन्नालाल पूर्णचन्द्र का घर देरासर पाटण, भाभा पार्श्वनाथ देरासर पाटण, भीड़भंजन पार्श्वनाथ जिनालय पाटण (मणीयाती पाड़ा) महावीर स्वामी का मंदिर पाटण (महालक्ष्मी का पाड़ा) पाटण (मारफतीया) भीड़भंजन पार्श्वनाथ, जिनालय पाटण (मारफतीया मेहता का पाड़ा) पाटण (लखीयार वाडा) सीमंधर स्वामी देरासर पाटण (लींबडीपाडा) शांतिनाथ जी का मंदिर पाटन (वखत जी की शेरी) पाटण (वसावाडा) आदीश्वरजी का देहरासर पाटण (वसावड़ा) गृहदेरासर पाटण (वसावाड़ा) शांतिनाथ जी का देहरासर पाटण, वाडी पार्श्वनाथ मंदिर पाटण (शाह का पाड़ा) जैन मंदिर पादरू, संभवनाथ जी का मंदिर पापड़दा, शांतिनाथ मंदिर पावापुरी, गांव का मंदिर पावापुरी, जलमंदिर १७४ ७७१,११६८ २३२,१००३ ५२७,७२१,९२३ ७५५ ३३६ १२४, १९०,५७३, १०९२ २१६,५८७, ११९९, ११७८ १५३ २०६ २०७,९५४ १२०५ ११७० २६६१ १०२१ ६६४,९९६ ७, १४०२, १४०३, १४३३, १४३५, १५१२, ६२६, २१८८, २१९१, २४२२, २४२३, २५२५ १५४६, १५४७, २०२९, २०२६ २६१४,२६१५ पावापुरी, जैनमंदिर पालिताना (तलहटी धनवसही) दादाबाड़ी पालिताना (माधवलाल बाबू की धर्मशाला) सुमतिनाथ जिनालय पालिताणा, सेठ नरसीनाथा का मंदिर पाली, नवलखा मंदिर पिंडदादनखान, सुमतिनाथ मंदिर ६०१,११३७ ७४० ७९९,८४९ १४४१ परिशिष्ट- २ ४९३ For Personal & Private Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूना, आदिनाथ देरासर १००, २५४ पेथापुर, बावन जिनालय ९३१,१०३०,११६६ पोकरण, ऋषभदेवजी का मंदिर १८५९ फलौदी (राणीसर तालाब) दादाबाड़ी ११९२,१२०० फलौदी (राणीसर तालाब) नेमिनाथ जिनालय २०३१, १४९९, १५००,१५०१,१६१७, १६१८,१६१९, १६९५, १६९६,१६९७, १६९८,१७४५ फतेहपुर (शेखावटी) दादाबाड़ी २६०१, २६१२,१६२६ फैजाबाद (पालखीखाना) अजितनाथ जिनालय १८४७,१८४६ बखतगढ़, आदिनाथ जिनालय २०५५,७७४ बडनगर, कुन्थुनाथ देरासर १९१ बडोद जैन मंदिर ३६९ बनारस, शिखरचन्द जी का मंदिर ३२७, २१६८, २२८१, २२८२, २२८३ बडोदरा (घड़ियालीपोल) कुंथुनाथ जिनालय ६५० बडोदरा (जानीशेरी) चन्द्रप्रभ जिनालय ७१४ बडोदरा (पटोलिया पोल) मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय ५७० बडोदरा (बाबजी पुरा, देरापोल) गौडी पार्श्वनाथ जिनालय ९२० बडोदरा वैद्य त्रिभुवनदास भीखाभाई का घर देरासर ७९४ बांगरोद, जैन मंदिर १३२१ बाड़मेर अजितनाथ मंदिर ६९७,१२०९,१४४२,१४४७ बाड़मेर, आदीश्वर मंदिर १३५०,२३६१ बाड़मेर (कल्याणपुरा) शांतिनाथ मंदिर ९७९,१७१४,२६३२ बाड़मेर, खरतरगच्छीय उपाश्रय १३७५,७१५,१३०० बाड़मेर (गाँधी चौक) चन्द्रप्रभ मंदिर २४८,२७४७ बाड़मेर, गौड़ी पार्श्वनाथ मंदिर २७४२,२७४३,२७४४,२७४५.२७४६ बाड़मेर, जैन मंदिर १३५१, . बाड़मेर, दाणीबाजार, जैन मंदिर २७४१ बाड़मेर, पार्श्वनाथ मंदिर २५३५, २५३६ बाड़मेर (बोथरों का) पार्श्वनाथ मंदिर २३६२ बालाघाट, जैन मंदिर ५८८ बालापुर, तपागच्छीय जैन मंदिर ३०४,४३९, ४८५,१६१३ बालुचर, दादास्थान का मंदिर १५८०,१७८७ बालुचर, विमलनाथ मंदिर ९५२, १०६५, १२२५, ५३३ बालुचर, सम्भवनाथ जिनालय ८३२,६५३,१६२० बालुचर, सांवलिया जी का मंदिर १७०२ बालोतरा, केशरियानाथ मंदिर २७२७ बालोतरा, खरतरगच्छीय दादाबाड़ी २७२५, २७२६, २७२८ बालोतरा, खरतरगच्छीय दादाबाड़ी के पीछे १४७९ बालोतरा, भावहर्षगच्छीय उपासरा १४७७,१४७८,१४८० बालोतरा, शीतलनाथ मंदिर ३३९, ३९९, ४३४, ९१३ बालोतरा, संभवनाथ मंदिर २७३८,२७४० बिलाड़ा (मारवाड़) जैन मंदिर १५५५ (४९४) परिशिष्ट-२ For Personal & Private Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार, मथियान मोहल्ले का मंदिर १०७,१३५, ३८१,६४८, ६५२,६५४,७६१ बिहार मथियान मुहल्ला, चन्द्रप्रभ जिनालय ९३८,१३९२, २४४४, २४९९ बीकानेर (आसानियों का चौक) महावीर जिनालय ४१९,४२४,८००,११६७ बीकानेर, (आसानियों का मुहल्ला) शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय ८७९, ८८०, ९७२, १६६० बीकानेर, उपाश्रय का शिलालेख १८४०, २३३७, २४७९ बीकानेर (कोचरों में) अजितनाथ जिनालय ६८९,८६२, २००६, २१०९, २३८८ बीकानेर (कोचरों में) पार्श्वनाथ जिनालय ५२१, ९७०, ९९३, १०६६, १२३३, १९७२, २३८० बीकानेर (कोचरों में) विमलनाथ जिनालय १०६३ बीकानेर, गुरुपादुका एवं मथेरणां की छतरी १२२१, १४०८, १४३९, १७३७, १७९१ बीकानेर (गोगा दरवाजा) आदिनाथ जिनालय २१७,५००, २३३५ बीकानेर (गोगा दरवाजा) गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय ८९,५२९,७०५, १०९४,११६४,११७१,१४७४, १७५७, १७५८,१७६३, १८२०, १८६९, १९८१, २१३३, २२५१, २२५२, २३८४ बीकानेर (गोगादरवाजा) गोड़ीपार्श्वनाथ जिनालय के अन्तर्गत सम्मेतशिखर मंदिर ११५७,१२१८, १४९०, १९१५, २०२४, २११३ बीकानेर (गोगादरवाजा) ज्ञानसागर जी का समाधि मंदिर २०७०, २३५१, २३५२, २३५३, २३५४ बीकानेर, चिंतामणिजी का मंदिर ४,१३,१४, १५, १६, २२, ४५,७५, ८५, ९५, ९७, १०३, १०६, ११७, १३६, १३७, १४४, १५५, १६२, १७९, १८०, २२९, २४०, २५३, २५७, २५८, २६९, २९५, २९७, ३१०, ३११, ३१२, ३१८, ३२२, ३३४, ३४०, ३५७, ३७९, ३८५, ४४१, ४६७, ४८९, ४९५, ५१०, ५१२, ५१३, ५२०, ५२२, ५३४, ५६४,५६७,५७२, ५९५, ६०३, ६०५, ५३९, ६४२, ७०४, ९३६, ९४६, ९९३, ८०८,८०९,८१०, ८१४, ८१५, ८५३, ८५७, ८७१, ९०४, ९०६, ९२१, ९२९, ९४५, ९५१, ९९५, १०२३, १०६०, ११०७, ११०८, ११०९, १११०, ११११, १११३, १११४, १११७, १११८, ११२०, ११२१, ११२३, ११२४, ११२५, ११२६, ११२७, ११२९, ११३४, ११५०, ११८९, ११९०, १४७६, १४८४, १४८५, १५५२, १६०५, २१४३, २२३७, २२३८, २२५९, २२७९, २३३८, २४००, २४०३ बीकानेर, जयचंदजी का ज्ञान भंडार १९५५ बीकानेर (डागों में) महावीर स्वामी का मंदिर ३, ९८९,१०३९,१०४१, १२७३,१७०४,१७३५ बीकानेर (दूगड़ो की बगीची) नई दादाबाड़ी २६१९ बीकानेर, धर्मशाला रांगड़ी चौक २५२१ बीकानेर, नमिनाथ मंदिर १११६, २३३९ बीकानेर (नाहटों में) ऋषभदेवजी का मंदिर २४१, २५१, ३८४, ४३५, ८७६, ७९६, १०३८, ११४९, ११८६, १२३८,१२३९, १२४०,१२४२,१२४३, १२४४, १२४५, १२४६, १२४७, १२४८, १२४९, १२५०, १२५१, १२५२, १२५३, १२५४, १२५६, १२५७, १२५८, १२६०, १३९४,१३९७,१३९८, १३९९, १४००,१४०१,१४०५, १४०६, १४०७, १४१७, १४१८, १४३०, १४३१, १४३२, परिशिष्ट-२ ) For Personal & Private Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६१, १४८६, १४८८, १५०६, १५९१, १७६०, १८३७, १८८०,१९३३, २३८५, २४०२, २४०५, २४०६ बीकानेर (नाहटों में) ऋषभदेवमंदिरस्थ पार्श्वनाथ जिनालय ८५९, १००७, १२५५, १४१९, १५९७, १५३.२, १२५९, १२६४,१२६५,१२६९,१३७३, १५८७ बीकानेर, (नाहटों में) शांतिनाथ मंदिर १९९, ३९८, ४०३, ७०७, ७०८, ८७८, १४३७, १९६३, १९६४, १९६५, १९६६, १९६७, १९६८, १९६९, १९७०, १९७३, २०२७, २४५३, २४५४,२५५०, २६६८ बीकानेर (नाहटों में) सुपार्श्वनाथ जिनालय ७४,१७०,४३१,४९८,६७४,१००८,१११२, ११२८,१२६२, १२६६, १२६७, १२६८, १५७८, १७६२, १८१९, २०८२, २०८३, २०८४, २०८५, २०८६, २०८७, २०९१, २०९३, २०९२, २०४२, २२४४, २२४८, २२६०, २२६२, २२६४, २२६५, २२७३, २२७४, २२७५, २२७६, २२७८, २६९३, २६३५, २६३६, २६३७ बीकानेर (पन्नीबाई का उपाश्रय) पद्मप्रभ जिनालय ७४३, १०८२, २०७९,२०९४, २०९५, २१३१, २२१३,२२१४, २२४७, २२५०, २२५६, २३८२, २३८३, २३९६ बीकानेर (पायचंदसूरिजी) आदिनाथ जिनालय १०६२ बीकानेर (पायचंदसूरिजी के सामने) गुरु मंदिर २६२९, २६३०,२६३१ बीकानेर, पार्श्वनाथ मंदिर २४४२ बीकानेर पार्श्वनाथ सेदजी का मंदिर ४०४,६३४,१०७३,१५९२, २०९६, २३४३, २३९१, २४०४ बीकानेर, बड़ा उपाश्रय ७१०,१७६७,१६२१ बीकानेर, बृहत्ज्ञान भण्डार २५२० बीकानेर (बेगानियों में) चन्द्रप्रभ जिनालय १५१, १०४०, १०४३, १२२९, १८७३, १९३८, २३८१, २३९८,२६३४ बीकानेर (बोरों की सेरी) महावीर जिनालय ११६,४१६,१२६३,१५५३,२६७०,२६७२,२६७३,२६७४, २६७५ बीकानेर (बोरों की सेरी) महावीर जिनालय के अन्तर्गत वासुपूज्य स्वामी का मंदिर २६७१ बीकानेर (भांडासर) सीमंधर स्वामी का मंदिर १५५९, १८७२, १८७४, १८७५, १८७७, १८७८, १८७९, १८८३, १९२१, १९२२, १९९२, १९९३, १९९४, १९९५, २०३२ बीकानेर (भांडासर) सुमतिनाथजी का मंदिर १७०६, ९९१, १०४६, २०९० बीकानेर, महो० रामलाल जी का उपाश्रय २४९८ बीकानेर (रांगड़ी चौक) कुंथुनाथ जिनालय ८७३, १०२८, २११६, २१२५, २२५३, २२८०, २३८७, २३८९, २३९५, २३९७, २४४८, २५२४, २५७९ बीकानेर (रांगड़ी चौक) दानशेखर उपासरा १६९१ बीकानेर (रांगड़ी चौक) स्वधर्मी धर्मशाला २५९६ बीकानेर, रेलदादाजी १३०४, १३४९, १३९३, १४९८, १५०४, १५२१, १५३४, १५४३, १५४४, १५५४, १५७९, १६०१, १६०२, १६०४, १६२३, १६७९, १७००, १७१०, १७१३, १७५६, १७६४, १७६५, १७६६, १७७३, १७८०, १८२१, १८३२, १८३५, १९९२, २१६१, २१६२, २२३५, २२१५, २२१८, २२३६, (४९६ परिशिष्ट-२ For Personal & Private Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीकानेर, रेलदादाजी, कुण्ड के पास की छतरी बीकानेर, रेलदादाजी के बाहर बीकानेर, रेलदादाजी, गौतमस्वामी की देहरी बीकानेर, रेलदादाजी शाला नं०१ बीकानेर, रेलदादाजी शाला नं०२ बीकानेर, वासुपूज्य जिनालय बीकानेर, विमलनाथ जिनालय बीकानेर (वेदों का) महावीर जिनालय २२८५, २२८६, २३३२, २३३३, २३३४, २३४७, २३५८, २३६०, २४०७, २४०८, २४११, २४१२, २४२४, २४२५, २४४१, २४५७, २४६१, २४६३, २४६५, २४६६, २४९३, २४९४, २४९५, २४९७, २५१५, २५१९, २५२८, २५१९, २५४९, २५५५, २५५७, २५६५, २५६६, २५६७, २५६८, २५९७, २६०५, २६०६, २६१३, २६५२, २६५६, २६६२ १५२०,१७६९ १४८१, १५५१, २४७०, २४८०, २५९९, २५६०, २५७७, २५७८, २५९८, २६०८ २५१७ १७०८ १६९० ११७२, १६३९, २०८८, २१२६ ३२३ ३७,४०,६५, २०२, २२६, ३६१, ३८२, ३८९,४३०, ४००, ४३०, ४६५, ७२२, ७५३, ८२८, ८६४, १०५०, १२७५, २११०,२१३५, २१३७,२३९० ४४५, ९४७, ९७१, ९७८, ९८३, १०५५, १०८६, ११४४, १२०६,१२७२ ९३ ३०६, ४६०, ६७९,७१३ १८७६, २११५, २११८, २११९, २१२२, २१२८, २१३९, २०४०, २१४४, २३८६, २४५९, २६११, २६५७ २०८१ २१९ ३५५, ११६०, २१४५, २१४६ ५११ २२९१, २२९२, २२९३, २२९४, २२९५, २२९६, २२९७, २२९८, २२९९, २३००, २३०३, २३०४, २३०५, २३०६, २३०७, २३०८, २४३३, २४७८ ६२,६६,७८ २३६४,२४६४ १९४०, १९६१, १९६२ बीकानेर, शांतिनाथ जिनालय बीकानेर, श्रीगंगागोल्डेन जुबली म्यूजियम बीकानेर, श्री गंगा सुवर्ण जयन्ती संग्रहालय बीकानेर (सुगनजी का उपासरा) अजितनाथ देरासर बीदासर, चन्द्रप्रभ देरासर बीसनगर, कल्याण पार्श्वनाथ देरासर बूंदी, ऋषभदेव मंदिर बूंदी, पार्श्वनाथ जिनालय बूंदी, सेठजी का मंदिर ७८५ ब्यावर, हाला मंदिर ब्रह्मसर, पार्श्वनाथ देरासर ब्रह्मसर, दादाजी का स्थान भरुच, पार्श्वनाथ जिनालय भरुच, महावीर जिनालय भरुच, मुनिसुव्रत जिनालय भागलपुर, वासुपूज्य जिनालय . भाडरवा, नेमिनाथ का मंदिर भारूंदा, शांतिनाथ जिनालय भिनाय, महावीर मंदिर ८५८ १२३२ १७७५ ३५४,६४० २५०३ ३६७,१०४२ परिशिष्ट-२ ४९७) For Personal & Private Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीनासर, पार्श्वनाथ जिनालय १०६४, २२४१, २२३९, २२४९, २२५४, २२५५, २२५७, २२५८,२२६१ २४ भीलड़ियाजी तीर्थ, जैन मंदिर भैंसरोडगढ़, ऋषभदेव मंदिर भोपालगढ़ (बड़लू) महावीर मंदिर, उपाश्रय भ्रामरा ग्राम, जैन मंदिर मक्सीजी तीर्थ मंडोद (मालवा) जैन मंदिर मंडोर, दफ्तरियों का मंदिर मंडोर, पार्श्वनाथ मंदिर मथुरा, घीयामंडी, पार्श्वनाथ जिनालय मद्रास (शुला बाजार) चन्द्रप्रभ जिनालय मद्रास (साहूकार पेठ) चन्द्रप्रभ मंदिर मसूदा, पार्श्वनाथ मंदिर महाजन, चन्द्रप्रभ जिनालय महीगंज-रंगपुर (उत्तर बंगाल) चन्द्रप्रभ जिनालय महुवा, जैन मंदिर मांडल, शांतिनाथ देरासर माणसा, बड़ा देरासर मातर, सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय मालपुरा, ऋषभदेव मंदिर मालपुरा, मुनिसुव्रत मंदिर मिर्जापुर, पंचायती मंदिर मिर्जापुर, सेठ धनसुखदासजी का मंदिर मीयागाम, शांतिनाथ जिनालय मुंडावा, पार्श्वनाथ मंदिर मुम्बई (कोट) शांतिनाथ जिनालय मुम्बई (घाटकोपर) जैन मंदिर मुम्बई (झवेरी बाजार) गणेशमल सौभाग्यमल मंदिर मुम्बई (पायधुनी) गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय मुम्बई (पायधुनी) चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय १४३, २६६ ११९१, ९७३ ७१९,९३४ १०९९, २३२८, २४७१ २०१६ १६९४, १९५९, २१०७ ६९३,८१९,१४६३,१४६४,१४६५,१४६९, १४७०,१४७१, १४७२,१४७३ ७६२,१६५१ २३२०, २३२१, २४८४, २५५९ २८६,२४३१, २५७४ ६७८ १४५६,१८५० १९४१ २०८,७२६ १३१,६४७ ५७७ ५६९, ६५९, ९९४,१०९० २२२,३०९, ३७०,४५५ १७, १२९, १८७, १९४, २६४, ३७६, ५०४, १२२९ १८२८, १९७७, १९८२ १९१५, १९७५ ६०६ ९७६ ९५७,१५८१ ७१८ १०७६ २३२, ३६२,१०००,१५६१ ४९१,५८१, १५९३, १५९४, १५९५, १५९६, १८४९, १८९७, १८८८, १८९३, १८९८, १८९९, १९०१, १९०८, १९१०, १९३०, १९३१, १९४७, २०३८, २१०२, २१८७, २१९८, २२००, २२२६, २३१६, २३४४, २३४५ २०७५ ५८४, ५९४, ९५०, १२२८, १५८९, १५९०, १७९५ ५३२ ४५८ २३१९ २५४३, २५४४, २५४६ मुम्बई (पायधुनी) महावीर जिनालय मुम्बई (भायखला) आदिनाथ जिनालय मुम्बई (भिंडी बाजार) नेमिनाथ जिनालय मुम्बई (भिंडी बाजार) शांतिनाथ जैन मंदिर मुरार ग्वालियर दादाबाड़ी मेड़ता रोड, दादाबाड़ी परिशिष्ट-२ For Personal & Private Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेड़ता रोड, पार्श्वनाथ जिनालय मेड़तासिटी, आदिनाथ मंदिर मेड़तासिटी, उपकेशगच्छीय शांतिनाथ मंदिर मेड़तासिटी, कुंथुनाथ मंदिर मेड़तासिटी, चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर मेड़ता सिटी, दादाबाड़ी मेड़ता सिटी, धर्मनाथ जिनालय मेड़ता सिटी, महावीर जिनालय मेड़ता सिटी, युगादीश्वर मंदिर मेड़ता सिटी, वासुपूज्य मंदिर मेड़तासिटी, शांतिनाथ मंदिर मेड़तासिटी, शीतलनाथ मंदिर मेडाग्राम, सुमतिनाथ जिनालय मेवानगर (नाकोड़ा) जैन मंदिर रंगपुर, बंगाल, चन्द्रप्रभ मंदिर रंगपुर, बंगाल, माहीगंज, चन्द्रप्रभ जिनालय रतनगढ़, दादाबाड़ी रतलाम, अमृतसागर दादाबाड़ी रतलाम, ऋषभदेवजी का मंदिर रतलाम, बाबासा० का मंदिर ५३० १३५३,१३५४ १४६०,१०६७,१५०५ १२३५ १२२२, १२३०, १२७६, १२९०, १२९२, १२९३, ११८७, १३५८ १५०९ ४९२,५३५,९३७,१०३७,१०८४,११४१,१८५८ ५३१,१३५७ ३८८,११५२,१३५५ १२३६,१२९१ १०३५, १२९४, १३४७, १३५९, १३६१, १३६२, १३६४, १३६५,१३६७,१३६८,१३६९ १३६६ ८३२ १४२८ १५१६, १७६८, १८१७, २४२८, २४३५ २४१० १७३९ १६३८,१६४० १८७०, २०४३ २०४४, २०४५, २०४६, २०४७, २०४८, २०४९, २०५०, २०५१, २०५२, २०५३, २०५४, २०५६, २०५७, २०५८, २०५९,२०६२ १९५६ ३६८ ७२७, ९९२ १६३७ ९३९, १४५५, १९५७ ७७८,८८१,८८२ २४९२ १३२२, १८०४, १८०५, १८०६, १८०७, १९४४, १९४५, २१८०, २१८९, २१९०, २५८५ १२८४ २४८८ १४९५, १७४०, २२८८ ३४३, ३४४, ११८३, २०१०, २०१५, २२०९ रतलाम, मुनिसुव्रत जिनालय रतलाम, यति लालचंद जी का मंदिर रतलाम, शांतिनाथ मंदिर . रतलाम, श्मसान रतलाम, सुमतिनाथ जिनालय रतलाम, सेठजी का मंदिर रतलाम, (कोटा वाले) सेठ जी का चन्द्रप्रभ मंदिर रत्नपुरी, नवराई, धर्मनाथ जिनालय रत्नपुरी, नवराइ, धर्मस्वामी का मंदिर राजगढ़, दादासाहेब की पादुका राजगढ़ (शार्दूलपुर) सुपार्श्वनाथ जिनालय राजगृह, गाँव का मंदिर . राजगृह, पार्श्वनाथ मंदिर राजगृह, मणियारमठ राजगृह, विपुलाचल, जैन मंदिर राजगृह, वैभारगिरि, खण्डहर ८६ ७०३ १४५४,१६३० ३४५, ३४८ परिशिष्ट-२ (४९९) For Personal & Private Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५१ राजगृह, वैभारगिरि, गांव का जैन मंदिर ७०२, १७७०, १७७२, २००९, २०११, २०१२, २०१३, २०१४,२२०८,२४३८ राजगृह, वैभारगिरि, चौथा मंदिर २४३९ राजगृह, वैभारगिरि, बड़ा मंदिर ३४६ राजगृह, स्वर्णगिरि जैन मंदिर ३४२ राजनांदगांव, पार्श्वनाथ मंदिर ८४८,२५४२ राजलदेसर, आदिनाथ जिनालय ७४१,७९८ राणकपुर, जैन मंदिर ११०४ राणपुर, सुमतिनाथ जी का मंदिर १८४५ राधनपुर (अम्बाबाड़ी शेरी) सहस्रफणा पार्श्वनाथ मंदिर ३९५,५८० राधनपुर, (आदीश्वर खड़की) आदिनाथ मंदिर ५८५,९१५, ९४० राधनपुर (कडुवामत की शेरी) कुन्थुनाथ जिनालय १९४९ राधनपुर (गेलाशेठ की शेरी) नेमिनाथ का मंदिर ८२३ राधनपुर, गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय ६९० राधनपुर (चिन्तामणि शेरी) चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय २५, ४०१,७४९, ७९५, १०७१ .. राधनपुर (तम्बोली शेरी) महावीर स्वामी का मंदिर ४५० राधनपुर (भानीपोल) धर्मनाथ मंदिर । २६५, १०४७, १४०९ राधनपुर (भानीपोल) शांतिनाथ का मंदिर ८६६, १३२५ राधनपुर (भोयरा शेरी) अजितनाथ मंदिर ४७८,६७३ रामपुरा, शांतिनाथ जिनालय रायपुर, चन्द्रप्रभ जिनालय ६३७ रायपुर, सदरबाजार, जैन मंदिर २४७४, २४७७ रिणी,खरतरगच्छ उपाश्रय २०१८ रिणी (तारानगर) दादाबाड़ी १५८६, १९८७, २२३४ , रिणी, शीतलनाथजी का मंदिर ६९८,१२०७,१५०७,१५११ रोहिडा, पार्श्वनाथ का मंदिर २३७ लखनऊ, ऋषभदेव जिनालय २२४५ लखनऊ (चूड़ी वाली गली) पद्मप्रभ जिनालय ४८७,१५०८ लखनऊ (जौहरी बाग) दादाजी का मंदिर २२२९ लखनऊ, दादाबाड़ी २१०६,२२०२, २५६९,२५७२ लखनऊ, दादाबाड़ी, ऋषभदेव जिनालय २१९६, २१९७, २१९९ लखनऊ, दादाबाड़ी, वासुपूज्य मंदिर २१०५ लखनऊ, दादाबाड़ी, शांतिनाथ जिनालय २१०३, २१०४ लखनऊ, पद्मप्रभ मन्दिर लखनऊ, पार्श्वनाथ मंदिर २३१७ लखनऊ (फूलवाली) संभवनाथ जिनालय १८२४ लखनऊ (बोहारन टोला) शांतिनाथ जिनालय १७२२, १७२३, १७२४, १७२५, २१८१, २१८२, २१८३, २१८४, २१८५, २२२७, २२२८ लखनऊ, लाला हीरालाल चुन्नीलाल देरासर ९१७, २२३३ लखनऊ, सहादतगंज, आदिनाथ जिनालय १८९६, २२७२ लखनऊ, सुंधी टोला, चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय १२८५, १९०६ (५००) - परिशिष्ट-२ For Personal & Private Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लछवाड़, जैन मंदिर लछवाड़, वीर जिनालय लाजग्राम, चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय लाहोर, जैन मंदिर लिम्बड़ी, शांतिनाथ जी का मंदिर लूणकरणसर, आदिनाथ जिनालय लौद्रवा धर्मशाला लौद्रवा पार्श्वनाथ जिनालय लौद्रवा, संभवनाथ जिनालय वडनगर, आदिनाथ जिनालय वडनगर, महावीर जिनालय वरखेड़ा, ऋषभदेव मंदिर वाराणसी, भदैनीघाट वाराणसी, रामघाट, कुशलाजी का मंदिर वाराणसी, रामचन्द्र जी का मंदिर वाराणसी शिखरचंदजी का जैन मंदिर वाराणसी, सिंहपुरी तीर्थ, श्रेयांसनाथ जिनालय वारेज, जैन मंदिर वासा, आदिनाथ मंदिर विजापुर, अरनाथ देरासर वीसनगर, कल्याण पार्श्वनाथ देरासर वीसनगर, शांतिनाथ देरासर शंखेश्वर, शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय शत्रुंजय शत्रुंजय, अनुपूर्ति लेख शत्रुंजय कोठार 3 शत्रुंजय, चतुर्मुख विहार शत्रुंजय, खरतरवसही शत्रुंजय, खरतरवसही, देहरी क्रमांक शत्रुंजय, खरतरवसही के पीछे देवकुलिका शत्रुंजय, खरतरवसही, चतुर्मुखप्रासाद शत्रुंजय, खरतरवसही, देहरी क्रमांक ९२/५ शत्रुंजय, खरंतरवसही, देहरी क्रमांक १०६ २३१० २३१३ ४१३ १२०१ १९४८ १३९, १०९८, १४५९, १७४१, २४३२ २५८४ १८५, ४६३, ७३७, ८६३, ८९५, १०२९, १३३०, १३३५, १३३६, १३३८, १३३९, १३४०, १३४१, १३४२, १३४३. १३४४, १३४५, १३४६, १३४८, १४२३, १४२४, १४२६, १४२७, १५३७, १६६५, २०२१ १३३७, १४२५ ४६६ १२१५ १६७८ २४२१ ६५१, ६५८ ९९७ ४६८, ४६९, १५७७, १९८३ १६८८ १२३१ ११३० १०८७ ५६८ १७२, ४१८, ४४९ ३९० २७, ३६, ४७, ६४, ११०, १३१६ ७२ २४९, ९२५ १३१०, १३११, १३१२, १३१३ २९, ३२, ५०, ५६, ५९, ६३, ७०, ५६३, १३०९, १३१४, १३१७, १३१८, १३१९, १३३२, १३३३, १३८६, १३८७, १४४४, १५२४, १५२७, १५२९, १६८७, १७२६, १८५५, १८९५, १९१४, १९२६, १९८८, १९९१, २०६४, २१६५, २१६६, २१६७, २३३६, २४५२, २४६८, २४७२, २५३१, २६२४, ६८, ६७, ८६ १३२६, १५२२ १३२७, १३२८ ३१ ३५ परिशिष्ट - २ For Personal & Private Use Only ((५०१) Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय, खरतरवसही, देहरी क्रमांक ८४९/८२ शत्रुजय, खरतरवसही, देहरी क्रमांक १०४ शत्रुजय, खरतरवही, देहरी क्रमांक ९०/२ शत्रुजय, खरतरवसही, देहरी क्रमांक ७७४-३४ शत्रुजय, खरतरवसही, देहरी क्रमांक ४२/२ शत्रुजय, खरतरवसही, देहरी क्रमांक ९०/१ शत्रुजय, खरतरवसही समवसरण २ शत्रुजय, खरतरवसही समवशरण-४ शत्रुजय, खरतरवसही समवशरण-५ शत्रुजय, छीपावसही १३०८ १३२० १५२५ १५२८ ३०,३३ १५४१ १५४२ ५१,१२१९, १२२०,१२८९, १२९६, १३०१, १३३१, १३३४, १३८२, १३८३, १३८४, १३८५, १४११, १४१६, १४२१, १४२२, १४४८, १४५०, १४६८, १५१५, १५१८, १५१९, १५२३, १५२६, १५३५, १५३६, १५३८, १५४०, १५४८, १५४९, १५५०, १५५६, १६३३, १६६२, १६८१, १७५१, १७५२, १७५३, १७५४, १९०९, १९३४, १९३५, २०२०, २३२३,२३५० २६२५, १२८३ १२२४ २६९०, २६९१, २६९२, २६९३, २६९४, २६९६, २६९७, २७३०, २७३१, २७३२, २७३३, २७३४, २७३५, २७३६, २७३७, २७३८, २७४९, २७५०, २७५१ ७६९ ९२६ ५७ २८ शत्रुजय, तलहटी, धनवसही दादाबाड़ी शत्रुजय, तलहटी, सतीबाव शत्रुजय, दादाबाड़ी १०९६ १०९५ ३९२ ३०५ ७९६ शत्रुजय, देहरी क्रमांक ५/११ शत्रुजय, देहरी क्रमांक १३/१, बृहत्ट्रंक शत्रुजय, देहरी क्रमांक ६७/३ शत्रुजय, देहरी क्रमांक ९७/१ शत्रुजय, देहरी क्रमांक ९७/२ शत्रुजय, देहरी क्रमांक १२१/१ शत्रुजय, देहरी क्रमांक १२१/२ शत्रुजय, देहरी क्रमांक २५९ शत्रुजय, देहरी क्रमांक २६६/२ शत्रुजय, देहरी क्रमांक २६६/३ शत्रुजय, देहरी क्रमांक २६८/२ शत्रुजय, देहरी क्रमांक ३२४, बृहद् ट्रॅक शत्रुजय, देहरी क्रमांक ३८३ शत्रुजय, देहरी क्रमांक ४४८-१ शत्रुजय, देहरी क्रमांक ४४२ शत्रुजय, देहरी क्रमांक ५९३/३ शत्रुजय, देहरी नं०६८३ शत्रुजय, देहरी नं०...... शत्रुजय, नये दादा के ट्रंक शत्रुजय, पंच पाण्डव मंदिर ७३ १३५२ १३२४ १२० १३२९ १३१५ ९३३ १५३०,१५३१ (५०२) परिशिष्ट-२ ) For Personal & Private Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२३ २३६,३१५, ३५३,७१६,९४९ ३१३, ४४६,४७४, १९४२, १९४३, १९४६, २०७७, २६२० २०७६ ७९,८३, १२८२,१२९७, १२९८,१२९९, २६८६ ८० शत्रुजय, बाजरिया का देरासर शत्रुजय, बालावसही शत्रुजय, मोतीशाह की ट्रॅक शत्रुजय, मोतीशाह की ट्रॅक, देहरी नं०९ शत्रुजय, वल्लभ विहार शत्रुजय, वल्लभविहार, देहरी में, रायणवृक्ष के पास शत्रुजय, विमलवसही, देहरी क्रमांक ६०१ शत्रुजय, (कपड़वंज), श्रीसंघ मंदिर शाजापुर, मक्सी, जैन मंदिर शिववाड़ी, बीकानेर, पार्श्वनाथ जिनालय सम्मेतशिखर सम्मेतशिखर, टोंक सम्मेतशिखर, धर्मनाथ टोंक सम्मेतशिखर, मधुवन सम्मेतशिखर, मधुवन, कानपुर वालों का मंदिर सम्मेतशिखर, मधुवन, चन्द्रप्रभ जिनालय सम्मेतशिखर, मधुवन, मूलनायक, आले में सम्मेतशिखर, मधुवन, चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर सम्मेतशिखर, मधुवन, जगतसेठ का मंदिर सम्मेतशिखर, मधुवन, दादावाड़ी' सम्मेतशिखर, मधुवन दादाबाड़ी नं०२ सम्मेतशिखर, मधुवन, पार्श्वनाथ का मंदिर १८३६ १०५२ २२१९ २३९२, २३९४,२३९९ २४५५ १६३५, २३४८,२४२०, २२१७ २१६९ १६६३ १५६०,१६०८,१६३४, २३११, २३१४ २३५७ १९७८,१९७९, १९८०, १९८१, २००४, २२०७ १५८२ १७७७ २२६८ १७८९, १७९२, १७९३, १७९४, १७९५, १७९६, १७९७, १७९८, १८१४, १८१६, २००५, २१७१ १९०५, १९१६, १९१७ १८१३, १८२९, १८६५, १८८४, १८८५, १८८६, २०००, २००१, २००२, २१५५, २३०९, २३१२, २३१५, २३२६ १६३१, २४८१, २४८२ १७७८,१७७९ ९५९,१६६९,१८३०, १९००, १९०२, २१८१ १८६६, १८८७, २००३, २००८, २०६९, २१७२, २१७४, २१७६, २१७८, २२३०, २२६९ १०९७,१४३४,१४४३, २३२९ २२११, २२१२ २४४, १११९, ११५१, १९८४, १९८५, २४६७ सम्मेतशिखर, मधुवन, प्रतापसिंहजी का मंदिर सम्मेतशिखर, मधुवन, मूल मंदिर सम्मेतशिखर, मधुवन, शुभस्वामी की देहरी सम्मेतशिखर, मधुवन, शुभस्वामी जी का मंदिर सम्मेतशिखर, मधुवन, श्वेताम्बर जैन मंदिर सम्मेतशिखर, मधुवन, सुपार्श्वनाथ मंदिर ६० सरदारशहर, गोलेछों का मंदिर सरदारशहर, दादाबाड़ी सरदारशहर, पार्श्वनाथ जिनालय सराणा, जैन मंदिर सवाई माधोपुर, विमलनाथ जिनालय सांगानेर, चन्द्रप्रभ मंदिर सांगानेर, दादाबाड़ी सांगानेर, महावीर जिनालय सांगोदिया, ऋषभदेव जिनालय साणंद, पद्मप्रभ जिनालय ३२४,४९७,५१५, ९६०,११०२, २६४७ १२६१ १२२३,१६८६, १९५३, २४८९ .. ११८, २०४,४६४,८०७,९६५, ९७४, १६१२, १६८४ २१४७, २१४८ ७६३ परिशिष्ट-२ (५०३) For Personal & Private Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ ६७६ १०४ २१७९ ७११ सांवेर, इंदौर, जैन मंदिर सादडी, जैन मंदिर सिंदी, दि० जैन मंदिर सिंहपुरी, शांतिनाथ जिनालय सिरोही, भैरूपोल जैन मंदिर सिरोही, शांतिनाथ मंदिर सिवाना, वासुपूज्य भगवान का मंदिर सीनोर, सुमतिनाथ जिनालय सुजानगढ़, दादाबाड़ी सुजानगढ़, पार्श्वनाथ जिनालय सेमलिया, शांतिनाथ जिनालय हनुमानगढ़, शांतिनाथजी का मंदिर हरसाणी, शांतिनाथ जी का मंदिर हरसूली, पार्श्वनाथ मंदिर हाथरस, जैन मंदिर हाला, पार्श्वनाथ मंदिर हैदराबाद, अजिनाथ पार्श्वनाथ मंदिर १२०४ २६५९ ६६७ १९८९,१९९० १०८५, २४१४, २४१६, २२७०, २२७१, २२४३, २२८७ ३३८ १६९,९४४ २७२९ ८१८ ६४३,१८६४ १०१४, १०३२, १७८१, २७००, २७०१, २७०२, २७०३, २७०४, २७०५, २७०६, २७०७, २७०८, २७०९, २७१०, २७११, २७१२, २७१३, २७१४, २७१५, २७१६, २७१७, २७१८, २७१९, २७२०, २७२१, २७२२ २५३३, २५३४,२५३७, ९९८ हैदराबाद, बेगम बाजार, पार्श्वनाथ जिनालय (५०४) -_ परिशिष्ट- २ -- परिशिष्ट-२ For Personal & Private Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३- परिशिष्ट नाम अक्षयधर्म उ० अखेचंद गणि अगरचन्द्रमुनि अनन्तहंसगणि अबीरजीमुनि अभयचंद उ० अभयदेवसूरि अभयदेवसूरि (रुद्र०) अभयधर्म उ० अभयमूर्त्तिगणि अभयविलास अभयमाणिक्यगणि अभयसुन्दरगणि अभयसोमगणि अमररत्नगणि अमरविजयगणि अमरविमलगणि अमरसिंह पं० अमरसिंधुरगणि अमृतधर्मगणि अमृतसुंदर अमृतसुंदरगणि अविचल श्री आनन्दकीर्त्ति पं० आनन्दचन्द्र उ० आनन्दरत्वगणि आनन्दराज उ० आनन्दवल्लभ आनन्दवल्लभगणि आनन्दविजय आनन्दविमल लेखस्थ आचार्यों एवं मुनियों की नामानुक्रमणी लेखाङ्क नाम १३९५ आनन्दसुन्दर उ० २०७१, २१५०, २१५१ आनन्दसोम २२६७, २३२४, २३७७ १४८० २२८८ ११३३ १.५,८,१०,८६, २८०, २८८, ३६०, ८४२, ११७३, ११९३, १२०५, १२३८, १३१०, १३११ १३१४, १३८७, १५६६, २७२३, ७, १००, १०१ १४१० २६३८ १९२८ १४८७ आसकरणमुनि इलाधर्मगणि इन्द्रचन्द्र इन्द्रसिंह उत्तमलाभगणि उदयचन्द्र उदयचन्द्रगणि उदयतिलकगणि उदयनिधानगणि उदयपद्यमुनि उदयभक्तिगणि उदयरंगमुनि उदयरत्नमुनि उदयशीलगणि उदयसागर १४३५ १७७६, १८४८ ४४ २४७९, २५२४ १८४०. १७७४ १८८८, १८९३ १६२०, १६२८, १६२९, १६३०, १७५०, १९२१ १८४०, १८५१ २३३७, २३४३ २७२३ १३१०, १३११, १३१२, १३१३ १८५२ १९५९ ११३३ उद्योतविजय १९१९, १९४१ ऋद्धिरत्न पं० २२२५, २२६८, २२६९, २३४०, ऋद्धिसारमुनि २३४६, २४२८ कचरमल्लमुनि १२७१ कनकचंद्रगणि १९१७ कनकनिधानमुनि उदयसागरगणि उदयसिंह पं० उदैभाण उद्योतनसूरि परिशिष्ट- ३ For Personal & Private Use Only लेखाङ्क १०३८ २४१८, २४४७ २२८८ १८५३ २२१९ १९५५ ६०८, ६१०, ६२२, ६४४, ८३० १९५८ २४८४ २४७९, २५२४ १४७७ २४६०, २४६१ २१९५ १८५० १७५६ ३५९ २७००, २७०१, २७०२, २७०३, २७०४, २७०५, २७०६, २७०७, २७०८, २७०९, २७१०, २७११, २७१२, २७१३, २७१४, २७१५, २७१६, २७१७, २७१८, २७१९, २७२०, २७२१, २७२२, २७२३, २७२९ १२०५ १३०२ १५१७ ३६०, ८४२, ११९३, १२०५, १३१०, १३११, १३१४, १३८७, १५६६, १५६७, १९३४, २११०. २१३५, २१३७ १२७१ १५६२ २४९८ २२८८ १४०८, १४३९ १४१० (५०५) Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कनकलच्छी कनकशेखर कनकसोमगणि करमचंदगणि कर्पूरप्रियगणि कस्तूरचन्द कमलराजमुनि कमलराज वा. कमलराजोपाध्याय कमललाभोपाध्याय कमलसंयमोपाध्याय कमलोदयगणि कल्याणकमलगणि कल्याणकीर्ति कल्याणचन्द्र कल्याणनिधानगणि कल्याणविनयमुनि कल्याणसागर पं० कल्याणसोमगणि वा. कांतिरत्न कांतिसागर २४६२ कीर्तिवर्धनगणि १९३२४, २१६५ १२२९ कीर्त्तिसमुद्र मुनि १५५५, २०७१, २१५०, २५३१ | | कीर्तिसुन्दरगणि १४१०,१५१६ कुँवरसीमुनि १८७० कुशल पं० ८४५ कुशलकल्याणगणि ६०७,६०८,६१०,६२२,६४४, कुशलचन्द्र ८३० ८४०,१२८९ कुशलभक्तिगणि १२८९, १३८४,१४३३, १४३५ | कुशलमुनि ७०२,७०३,११३४,१६७९ कुशलविजय १२८१ कुशलविमलगणि ११९३ कुशलधीर १४५४ कुशलनिधानगणि ७१५ कृपाकल्याणगणि २३४४, २४२९ कृपाचन्द्रमुनि २०४४ केवलजीमुनि १८९४ केशरमुनि १३८३ केसरीचन्द १८४४ कैलाशसागरगणि २६८८, २६८९, २६९८, २६९९, | क्षमाकल्याणगणि २७२४, २७२५, २७२६, २७२७, २७२८ १५०९ २५७४ १७९१,२००९,२०१०,२०११, २०१२, २०१३, २०१४, २०१५ २४२४ क्षमामाणिक्यगणि ३६०,५२४,६२२, ६२४,६२५, क्षान्तिरत्नगणि ६२६,६३५,६९६,६९९,७१५, क्षेत्ररामगणि ७६०, ९०९, १५८६, १६३२, क्षेममाला १६८९,१७००,१७४१, १७५६, खूबचन्द १८३५, १८४०,१८४१,१८४२, खेमकीर्ति पं० १८५१, १९९०, २१५३, २१५४, | खेमचन्द २१६१, २१६२, २२७०, २३३०, खेममण्डनमुनि २३३१, २३३२, २३३३, २३३७, गजानन्द २३४३, २३५१, २३५३, २३५४, | गजानन्दमुनि २४१३, २४३२, २४७१, २५१५, गिरराजमुनि २५१६, २५९१ गुणचन्द्रसूरि (रुद्र०) १४६, २३१ गुणदत्तमुनि १४७०,१४७१,१४७२,१४७३, १८५३ १९२७, २६५४ १४९३ २०८० १०४८,१८४१ १७०५,१७०९ १९७८, १९७९, १९८०, १९८१, २०७१, २१५०, २१५१ १६१७ २५५७ १३८२ १७५२ ११४१ २४९८,२६२९ १६४३ २४७१, २७३७, २७४९ २२८८ २५७६, २५८२ १९५८ २७५२ १५५९, १६२०,१६५३,१६५५, १६५६,१६५७,१७०४,१७०५, १७०६,१७२०, १७३१,१७३५, १७३७,१७३८,१७४४, १७५०, १७५७,१७५८,१७६०,१७६३, १८१९, १८२०, १८३४, १९१६, १९१७,१९२३, २१०० १६८९, १६९१, १९३१ ७१५,७६०, १८५६, १८५७ १५०८ १२८२ १९४० १३३४ २६०१,२६२६, २६२९ २६५५ १४९४ १८५३ १४२८ ८७,८८,८९ २४५७ काशीदास म० किशोरचन्द्र कीर्तिउदयगणि कीर्तिनिधानमुनि कीर्तिरत्नसूरि कीर्तिराज (५०६) परिशिष्ट-३ For Personal & Private Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणनन्दनगणि गुणप्रभसूरि (मधुकर ० ) गुणप्रभसूरि (रुद्र०) गुणप्रमोदमुनि गुणमाला साध्वी गुणरत्नगणि गुणरत्नाचार्य गुणविनयोपाध्याय गुणसुन्दरगणि गुणसुन्दरसूरि (रुद्र०) गुणसमुद्रसूरि (रुद्र०) मानसि गुलाब गोकुल पं० गोपीमुनि चतुर्भुज चतुरनिधान चनणश्री चन्दन श्री चन्द्रसोममुनि चरणकुमार चारित्र अमृत चारित्र उदय चातुर्यनन्दिमुनि चारित्रनन्दनगणि चुन्नीलाल चैनसुख चौथजी गणि जइतचन्द्र १४२८ १०२ ११३६ १९२९, २४१७ १२८२ १२७८ ८४५, ८४६, ८८७ १३१०, १३१२ २३७६ २२८८ १६७९ ३११, ७४१, ९६०, ७८७, ७८९, जयचन्द्रमुनि ९६०, ११३६ जयभद्र १०३९ जयभक्तिमुनि जयमाणिक्य उ० १६६४ २२८८ १८५२ १९५५ २३४२ २७४९ २५४१ चारित्रप्रभसूरि (मधुकर०) १०७८ चारित्रप्रमोदगणि वा. चारित्रमेरुगणि चारित्रराज उ० चारित्रसागरगणि चरित्रसुख चारुचन्द्रसूरि चिमनीराम १४३५ २४६० १९५३, २०६७, २१४९, २२०१ २२०३, २२०४, २२०५, २२२१, २२२२, २२२३ १६१५ १८२९, १९७७ १९८१, १९८२ १८८४, १८८५, १८८६ १६४१, १९२७, २५४७ १२२१ १०३८ १८६० २५३३ जगविशालमुनि जगसी पं० जतन श्री ७२, ७३ २२८८ १९७३ १९७३ २०७१, २१५०, २१५१ २०७९ २४४३ जयकल्याण जयकीर्त्तिगणि जयकीर्त्तिमुनि जयचंद जयचन्द्रगणि उ० जयराज वा० जयशेखरसूरि जयसागरगणि उ० जयसिंह जयसिंहसूर (बेगड़) जयसोममहोपाध्याय जयाकरगणि जयानन्दसूरि (रुद्र०) जयानंदमुनि जयोवल्लभगणि जसवन्त जसवन्तगणि जसविजय जसोवल्लभ पं० जिणदास जितसेनगणि जिन अक्षयसूरि जिन आनंदसूरि परिशिष्ट- ३ For Personal & Private Use Only १९४० १५५७ २४७०, २७२३ १६३१ २३३७, २३४३ २५५ २५६५ २६००, २६०१, २६१०, २६११, २६१२, २६२६ २५२१ १९३४, २१६५ २२१२ १७०८ १७३६ ३९४ १४६, १४७, २८८, ५३८, ५४३, ५४९, ५५०, ५५१ १५७३ १०५८ १३१०, १३१२ ३६० १९७ २७३५, २७३६, २७३७, २७४९ १६१६ १४३५ १६२१ २०६१ १५५७ १८९०, १८९१ ३६० १५६०, १६७६, १६७७, १७९०, १७९१, १८२७, १८३३, १८४९, १८९१, १८९६, १८९९, १९००, १९०५, १९०६, १९०७, १९०९, १९११, १९१२, १९५३, १९९८, २१०३ २१०४, २१०५, २१०६, २१९६, २२०५२२७२, २३१६ २७००, २७०१, २७०२, २७०३, २७०४ २७०५ २७०६, २७०७, २७०८, २७०९, २७१०, २७११, २७१२, २७१३, २७१४, २७१५, (५०७ Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनउदयसागरसूरि जिनउदयसूरि (बेगड़०) जिनउदयसूरि ( आचार्य०) (जिनोदयसूरि) जिनकल्याणसूर जिनकान्तिसागरसूरि (जिनहंससूरिपट्ट०) जिनकुशलसूरि जिनकीर्त्तिसूरि (पिप्पल०) ११७८, ११९९, १४१५ जिनकीर्त्तिसूरि (आचार्य०) १५५५, १५८३, १९५६, १९५७ जिनकीर्त्तिसूरि २५१३, २५२१, २५२२, २५२३, २५२४, २५२७, २५४१ ४७, ४८, ४९, ५०, ५१, ५२, ५३, ५४, ५५, ५६, ५७, ५८, ५९, ६०, ६१, ६२, ६३, ६४, ६५, ६६, ६७, ६८, ६९, ७०, ७१, ७४, ७५, ७६, ७७, ७८, ७९, ८०, ८१, ८६, ९७, १४६, १४७, २८८, ३६०, ८४२, ८८८, ८९०, ८९२, ९९५, ११०७, ११९१, ११९३, ११९४, ११९५, ११९६ १९९७ ११९८, १२०५. १२७०, १३१०, १३८०, १५६६, २११०, २१३५, २१३७, २७२३ २६१४, २६१५, २६५९, २६८२, २६९०, २६९१, २६९२ २७१६, २७१७, २७१८, २७१९, २७२०, २७२१, २७२२, २७२३ २७२९, २७४७, २७५४, २७५५ २७४७, २७५३, २७५४, २७५५ १५१४, १५५७, १५६३, १७७६ १७८४, १८४८, १८५२, १८५९, १९३२, १९६३, १९६५, १९६८, १९६९, १९७०, १९७१, १९७२, १९७३ २०२५, २०६५ २२४५, २२८४ २२८९, २३१९. २३७३ २७३९, २७४०, २७४१, २७४२ २७४३, २७४४, २७४५, २७४६, २७४७, २७४८ जिनकृपाचन्द्रसूरि जिनाक्षमासूर (भावहर्ष ० ) २१९२ जिनगुणप्रभसूरि (बेगड़०) १२७१, १५१४ जिनचन्द्रसूरि (जिनेश्वरसूरिपट्ट०) (५०८) ८६, २८८, ३६०, ८४२, ११७३, ११९३, १२०५, १२३८, १३१०, १३११, १३१४, १३८७, १५६६ जिनचन्द्रसूरि (मणिधारी) ८६, २८८, ३६०, ८४२, ८८८, ११७४, ११९३, १२०५, १३१०, १३७९, १४३३, २१३७ जिनचन्द्रसूरि (जिनप्रबोधसूरिपट्ट० ) जिनचन्द्रसूरि (जिनलब्धिसूरिपट्ट०) जिनचन्द्रसूरि (जिनभद्रसूरिपट्ट० ) परिशिष्ट- ३ For Personal & Private Use Only ३७, ३८, ३९, ४१, ४२, ४३, ४५,४६, ४७, ४८, ४९, ५०, ५१, ५२, ५३, ५४, ५५, ५६, ५८, ५९, ६१, ६२, ६४, ६५, ६६, ६७, ७०, ७१, ७४, ७८, ८६, २८८, ३६०, ८४२, ८८८, ११९३, १२०५, १३१० ८५, ८६, ९४, ९५,९६, १४६, १४७, २८८, ८४२. ८८८. ११९३, १२०५, १३१०, १३८० ४०, १०५, १३०, ३२१, ४४०, ४४२, ४४३, ४४४, ४४५, ४४६, ४७७, ४८८, ४८३, ४९४, ५०८, ५२४, ५२५, ५२६, ५२७, ५२८, ५२९,५३०, ५३१, ५३२, ५३३, ५३७, ५४०, ५४१, ५४२, ५४३. ५४६, ५४८, ५४९, ५५०, ५५१, ५५३, ५५६, ५५७, ५५८, ५६०, ५६४, ५६५, ५६६, ५६७, ५७४, ५७५, ५७६, ५७७, ५७८, ५७९, ५८०, ५८७, ५९२, ५१३, ५९४, ५९५, ५९६, ५९७, ५९८, ६०४, ६०५, ६०७, ६०८, ६०९, ६१०, ६११, ६१२,६१३.६१४, ६१५, ६१६, ६१८, ६१९, ६२०, ६२१, ६२२, ६२३, ६२४, ६२५, ६२६, ६२७, ६२८, ६२९, ६३०, ६३१, ६३२, ६३३, ६३४, ६३५, ६३६, ६३७, ६३८, ६३९, ६४२, ६४३, ६४४, ६४६, ६४७, ६४८, ६४९, ६५०, ६५१, ६५२, ६५७, ६६२, ६६३, ६६५, ६६६, ६७३, ६७४, ६७५, ६७६, ६७७, ६७९, ६८५, ६९० ६९१, ६९२, ६९४, ६९५, ६९६, ६९७, ६९८, ६९९, ७००, ७०१, ७०२, ७०३, ७०४, ७०५, ७०६, ७०७, ७०८, ७०९, ७१०, ७११, ७१२, ७१३, ७१५, ७२३, ७२४, ७२७, ७२८, ७२९, ७३०, ७३७, ७३८, ७३९, ७४२, ७४३, ७४४, ७४५, ७४६, ७४७, ७४८, , Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४९,७५०,७५१,७५२, ७५३, ७५४,७५५,७५६,७५७,७५८, ७५९,७६१,७६४,७६७,७७०, ७७१,७७३,७८१,७८२, ७८३, ७८४,७९०,७९१,७९४,७९५, ७९७,७९८,७९९,८००,८०१, ८०२,८०३,८०५,८०६,८०७, ८०८,८०९,८१०,८११,८१२, ८१३,८१४,८१५,८१६,८१७, ८२१,८२२,८२३,८२४,८२५, ८२६, ८२७, ८२८,८२९, ८३०, ८३२,८३४,८३५,८३६,८३७, ८३८,८३९,८४०,८४२,८४३, ८४४,८४५,८४६,८४७, ८४८, ८४९,८५०,८५१,८५२,८५३, ८५४,८५५,८५६,८५७,८५८, ८५९,८६०,८६१,८६२,८६३, ८६४,८६५,८६६,८६७,८६८, ८६९,८७०,८७१,८७२,८७३, ८७४, ८७५, ८७७,८७८,८७९, ८८०,८८१,८८२,८८३,८८४, ८८५,८८६,८८७,८८८,८८९, ८९०,८९१,८९३,८९४,८९५, ८९६,८९७,८९८,८९९,९००, ९०१, ९०२,९०४,९०६,९०७, जिनचन्द्रसूरि ९०८,९०९,९१०,९११,९१२, (जिनरत्नसूरिपट्ट०) ९१३,९१९,९३३,९३६,९४०, जिनचन्द्रसूरि ९४५, ९४६,९४७, ९४८,९६१, (जिनभक्तिसूरिपट्ट०) ९७५, ९८८, १०८९, १०९३, ११५०,११५८,११९३, १२०५, १३१० यु० जिनचन्द्रसूरि ११५३, ११५४, ११५७, ११५८, (जिनमाणिक्यसूरिपट्ट०) ११५९, ११६०,११६२,११६३, ११६४,११६५,११७०,११७१, ११७२,११७३,११७४, ११७६, ११७७,११८४,११८८,११९३, ११९४,११९५,११९७,११९८, १२०२,१२०५,१२०६,१२०८, १२११,१२१२,१२१३,१२१४, १२१५,१२१६,१२१९,१२२३, जिनचन्द्रसूरि १२२४,१२२५,१२२६,१२२८, १२२९,१२३२,१२३३,१२३४, १२३५,१२३६, १२३७,१२३८, १२३९,१२४०,१२४२, १२४३, १२४४,१२४५,१२४६,१२४७, १२४८,१२४९, १२५०,१२५१, १२५२,१२५३, १२५४,१२५५, १२५६,१२५८,१२५९,१२६०, १२६१,१२६२,१२६३,१२६४, १२६६,१२६७,१२६८,१२७०, १२७२,१२७३,१२७४, १२७५, १२७८,१२७९,१२८२,१२८३, १२८४, १२८९,१२९४,१३००, १३०१,१३०३,१३०४,१३०६, १३१०,१३११,१३१२, १३१३, १३१४,१३१५,१३१६,१३२६, १३२७,१३२८,१३४७,१३५२, १३५३,१३५५,१३५७,१३६५, १३७६,१३७८,१३७९,१३८७, १४०२,१४०३,१४२२,१४४०, १४४१,१४४२,१४४३,१४४४, १४४५,१४४६,१४४८,१४६८, १४८५,१५००,१५२२,१५२४, १५२५,१५२८, १५४९,१६१७, १६२३,१६९५,१७४५, २७२३ १४६५,१४७८,१४७९, २३३४, २३५९, २४१९ १५५९,१६०५,१६०६,१६०७, १६०९,१६१०,१६१२,१६१५, १६२०,१६२१,१६२५,१६२७, १६३२,१६३४,१६३५,१६३६, १६३७,१६३८,१६३९, १६४०, १६४१, १६४२, १६४३, १६५३, १६५७,१६७०,१६७१,१६७२, १६७३,१६७४,१६९२,१७०५, १७१९,१७३६,१७३७,१७६२, १७८७,१८४३,१८४८,१८५०, १८७२,१८७५,१८७८,१८८९, १९१८,२०४१, २०४२,२०८०, २११० २५२४, २४२९, २४३९, २४४०, ___परिशिष्ट-३ (५०९) For Personal & Private Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (जिनहंससूरिपट्ट०) २४४६, २४४८,२४५६, २४५९,| जिनचन्द्रसूरि (भावहर्षीयशा.) २४७२, २४७४, २४७५, २४७७, १५३५, २४३६, २४३७ २४७९, २५२७, २५३०, २५६८ | जिनचन्द्रसूरि (आचार्य शा. जिनधर्मसूरि-पट्ट) . जिनचन्द्रसूरि (रुद्रपल्लीय०)७८६,९१७ १५१७,१५१८,१५३२,१५३३, जिनचन्द्रसूरि (लघु खर.) २२३, ४६९, ९४९, १०११, १५४०,१५५४,१५८३,१५८४, १०१८,१०१९,१०२०,१०२६, १५८५,१६१३,१६६१ १०२७, १०२८,१०५९ |जिनचन्द्रसूरि (आचार्यशा०)१९६५, १९६७, १९६९, १९७० जिनचन्द्रसूरि (बेगड़०) ८९२, ९७२, १५१४, १५६३ | जिनचन्द्रसूरि (आचार्य शा० १६९९,१७४३,१७४७, १७४८, जिनचन्द्रसूरि (बेगड़०) ७७५,७७९,७८०,७९१,७९२, | जिनयुक्तिसूरि-पट्ट०) १७५५ (जिनधर्मसूरि-पट्ट०) १२७१ जिनचन्द्रसूरि (जिनरंगसूरि शा. जिनअक्षयसूरि-पट्ट०) जिनचन्द्रसूरि (पिप्पलक शा. जिनवर्द्धनसूरि-पट्ट०) १५४६,१५६०,१६७५, १६७६, १३३, १९२, १९४,१९५, १९६, १६७७,१६७८,१६८२,१६८३, २१२, २१३, २१४, २१५, २१८, १६८४,१६८५,१७९०,१७९१, २२२, २२५, २२७,२२८,२५४, १८२१,१८२२,१८२४,१८२५, २५६, २६०, २६५, २६६,२६७, १८२६, १८२७,१८४६,१८४७, २७३, २७४, २७६, ३००,३०२, १८४९, १८६४, १८९०, १८९६, ३०३,३०४,३१५, ३४२, ३४३, १८९८,१८९९,१९००,१९०१, ३४८, ३५५, ३५९, ३६२, ३८८, १.९०२, १९०३, १९०४, १९०६, ३९०, ३९१, ४३१, ४३९, ४४७, १९०७,१९०९,१९११, १९१२, ४४८,४५०,४५१,४५४,४५८, १९३०,१९३१,१९९८,२१०३, ५८४,५८५, ६८१,७६९,८१९, २१०४, २१०५, २१०६, २१९६, ९४२, ९७४, ११९९,१५७३ २२७२,२२२८ जिनचन्द्रसूरि (पिप्पलक शा. जिनसुन्दरसूरि-पट्ट०) |जिनचन्द्रसूरि (जिनरंगसूरि शा. जिनकल्याणसूरि-पट्ट०) ७७२ २३४४, २५१२, २५६९, २५७२, जिनचन्द्रसूरि (पिप्पलक शा. जिनहर्षसूरि-पट्ट०) २५७३ ९५०, १०४७, १०४८, १०४९, | जिनचन्द्रसूरि (मंडोवरा शा. जिनमुक्तिसूरि-पट्ट०) १०५७,१०६७,१०७१,१०९९, २४६८,२५६२, २५६३, २५८७, ११३१ २५८८, २५९० जिनचन्द्रसूरि (पिप्पलक शा. जिनसिंहसूरि-पट्ट०) जिनचन्द्रसूरि ६, १३९, १६६, ३२४, ३७१, १२८५,१२८६,१५६६ ४०५, ९१८, ९३५, ११३९, जिनचन्द्रसूरि (पिप्पलक शा. जिनधर्मसूरि-पट्ट०) ११५५,११६७,११८१,१२२०, ७७४, ७८८, ८९२, १५६४, १२८८,१४८०,१४९२,१८५८, १५६६,१५६८,१५७१, १८७० २०१७, २०१९ जिनचन्द्रसूरि (पिप्पलक शा.) १९४२, १९४३, १९४८, १९४९ | जिनचारित्रसूरि २५६६,२५६७,२५६८,२५९७, जिनचन्द्रसूरि (आद्यपक्षीय शा.) २६०५, २६०६, २६११, २६१४, ११८६,११८७,१२१७,१२२२, २६१५,२६१९,२६२७, २६२८, १२३०,१२३१,१२७७,१२९०, २६२९,२६३१ १२९२,१२९३,१३५४,१३७४, जिनजयगणि १६८९ १४१२,१४६९,१४७३, १४८८,| जिनजयशेखरसूरि (जिनरंगसूरि-शा.) १४९७, १५०५, २६३३ २२२६, २२२८, २२२९, २२३०, २२४५ (५१०) परिशिष्ट-३ For Personal & Private Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनजयसागरसूरि (जिनकृपाचन्द्रसूरि-पट्ट.) २६३२, २६५९, २६६०, २६६१, जिनपद्मसूरि २६८२ जिनतिलकसूरि (लघुखर. शा.) ४२५,४२६,४६४,४६५,४६८, ४६९, ६४१, ७६५, ९२०, ९९७ | जिनप्रबोधसूरि जिनदत्तसूरि ८६, १४६, १४७, २८८, ८४२, ८८८, ८९२, ३६०, ११७३, ११७४, ११९१,११९३, १२०५, १२३८, १३१०,१३११, १३८०, १५६६, २१३५, २१३७, २७२३ जिनदेवसूरि (लघु खर.-शा.) जिनप्रभसूरि १४५ जिनदेवसूरि (पिप्पलक-शा.) जिनफतेन्द्रसूरि १६६३, १६६४, १९४२, १९४३ | जिनभक्तिसूरि जिनदेवसूरि (आद्यपक्षीय-शा.) ११४०, ११८७, ११९१, १२२२, १२३०,१२९०, १२९२, १२९३, | जिनभद्रसूरि १४६९,१४७३ जिनधर्मसूरि (पिप्पलक-शा.) ' २३०,३१७, ३१९, ३२८,३४०, ३९३, ४५५,५१८,५१९,७७४, ७८८,१४७६, १५४५, १५६४, १५६६, १५६८,१५७१ जिनधर्मसूरि (बेगड़-शा.) ८९२, १२७१ जिनधर्मसूरि (आचार्य-शा.)१५३६, १५५१, जिनधरणेन्द्रसूरि (मंडोवरा-शा.) २६२१, २६६९ जिननन्दीवर्द्धनसूरि (जिनरंगसूरि-शा.) १७५५,१९३०,१९३१, १९५३, १९५४,१९९६,१९९७, १९९८, २००९, २०१०, २०११, २०१२, २०१३, २०१४, २०१५,२०६७, २०६८,२१०३, २१०४, २१०५, २१०६,२१४९, २१९६, २१९७, २१९९, २२०१, २२०२, २२०३, २२०४, २२०५, २२२१, २२२२, २२२३, २२२९, २२३०, २२७२, २३१८, २४२२, २४२३ जिनपतिसूरि १२, १३, १४, १५, १६, २०, ८६, २८८, ३६०, ८४२, ८८८, ११९३, १२०५,१३१० ७९,८०,८१,८६,१४६,१४७, २८८, ३६०, ८४२, ८८८,८९०, ११९३, १२०५, १३१०,१३८०, २१९२, २१९३, २१९४, २४३७ २३,२४,२५,२६,२७,२८,२९, ३०, ३१, ३२, ३३, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ४२, ४३, ४४, ४५,४६, ६६, ६७, ८६, २८८, ३६०, ८४२, ८८८, ११९३, १२०५,१३१० २२३, ४६४, ६४१, ७६५, १०५९,११३३ २४८३, २५५९ १५११,१६१४,१६२८,१६५५, १७३३,१७७६,१९२२, २२२५, २३४१ ४०,१०५, १६३, १७१,१७२, १७३,१७४, १७५,१७६,१७७, १७८,१८०,१८१, १८४,१८५, १८६,१८७,१८८,१९३,१९४, १९५, १९८, २०१, २०२, २०३, २०५, २०६, २०७, २०८,२०९, २११, २३२, २३३, २३४,२३५, २३८,२३९,२४०, २४१, २४२, २४३, २४४,२४५, २४६,२४७, २४८, २४९, २५०, २५१, २५२, २६९, २७०, २७१, २७२, २७७, २७८, २७९,२८०, २८१, २८२, २८३, २८४,२८५, २८७,२८८, २८९, २९०, २९१, २९२, २९३, २९४, २९५, २९६, २९७, २९८, २९९, ३०६, ३०९, ३१२,३१३, ३२१,३२९,३३०,३३१,३३२, ३३३,३३४,३३६,३३७,३३८, ३३९,३४१, ३५०,३५१,३५२, ३५३, ३५६, ३५७, ३५८, ३६०, ३६१,३६५, ३६७,३६८,३६९, ३७०,३७३, ३७४, ३७५,३७६, ३७७,३७८, ३७९, ३८०,३८१, ३८२,३८३,३८४,३८५,३८६, परिशिष्ट-३ For Personal & Private Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९२,३९५, ३९६, ३९७, ३९८, ८०७, ८०८,८०९,८१०, ८११, ३९९,४००,४०१,४०२,४०३, ८१२,८१३,८१५,८१६,८२४, ४०४,४०६,४०७, ४०८,४०९, ८२५,८२७,८२८,८२९,८३०, ४१०,४११, ४१२,४१३, ४१५, ८३२,८३४,८३५,८३६,८३७, ४१६,४१७,४१८,४१९,४२०, ८३८,८३९,८४०,८४२,८४४, ४२१,४२२,४२३,४२४,४३२, ८४५,८४६,८४७,८४८,८४९, ४३३,४३४,४३५,४३६,४३७, ८५०,८५१,८५२,८५४,८५५, ४३८,४४१,४४२,४४३, ४४४, ८५७,८५८,८५९,८६०,८६१, ४४६,४५९,४६०,४६१,४६२, ८६२,८६३,८६७,८६८,८६९, ४६३,४६६,४६७,४७०, ४७१, ८७३,८७४,८७५,८७७,८७८, ४७२,४७३,४७४, ४७५,४७६, ८७९,८८०,८८१,८८२,८८३, ४७८,४७९,४८०,४८१,४८२, ८८५,८८७,८८८,८८९,८९०, ४८४,४८६,४८७, ४९०,४९१, ८९१,८९३,८९६,८९७,८९८, ४९२,४९३, ४९५,४९६,४९७, ८९९,९००,९०२,९०४,९०६, ४९८,४९९,५००,५०१,५०२, ९१२, ९.१३., ९१९,९३६, ९७५, ५०३,५०४,५०५,५०६,५०७, ९८८,१०३०, १०७५, १०९३, ५०९,५१०,५११,५१२,५१३, ११५०,११५८,११८२,११८३, ५१४,५१५,५१६,५१७,५२२, ११९३,१२०५,१३१०,१३११, ५२५,५२६,५२८,५२९,५३०, १३६५,१३८०,१३८७,१६७९, ५३३,५३४,५३५,५३६, ५४२, १८४२,१९५१, २२६७,२३२४, ५४३,५४८,५४९,५५०,५५१, २३६३, २३७७, २४२४, २४२५, ५५८,५५९,५६०,५६४,५६७, २४४३, २४९३, २४९४, २५२९, ५६८,५६९,५७५,५७६,५७७, २५६५, २६०१ ५७८,५७९,५८०,५९२,५९३, | जिनभद्रसूरि (रुद्रपल्ली शा.) ११४७, ११४८ ५९५,५९६,५९७,५९८,५९९, | जिनभद्रसूरि (लघुखर. शा.)१०५१ ६०४,६०५, ६०७,६०८,६१०, जिनभानुसूरि १२२५, ६१४,६१५,६१६,६२१,६२२, | जिनमणिसागरसूरि २७५८ ६२७,६२८,६३१,६३३,६३४, | जिनमहेन्द्रसूरि १९१३,१९३५,१९४२,१९४३, ६३७,६३८,६३९,६४०,६४२, १९४४, १९४५,१९४६,१९४७, ६४३,६४४,६४६,६४७,६४८, १९४८, १९४९,१९५०,१९५८, ६४९,६५०,६५१,६५२,६५७, १९६०,१९६१,१९६२,१९७४, ६६२,६६३,६६४,६६५, ६७३, १९७५,१९७६,१९७७,१९७८, ६७४,६७५, ६७६,६७७,६८५, १९७९, १९८०,१९८१, १९८२, ६९०,६९७,७०२,७०५,७०६, १९८३,१९८६,२०३९, २०४१, ७०८,७०९,७१५,७१७,७२७, २०४२,२०४३,२०४४,२०४५, ७३८,७४३,७४४,७४६,७४७, २०४६, २०४७, २०४८, २०४९, ७४८,७५०,७५३,७५६,७५७, २०५०,२०५१, २०५२, २०५३, ७५८,७५९,७६०,७६१,७६४, २०५४, २०५६,२०५७, २०५८, ७७०,७७१,७७३,७८२,७८३, २०५९,२०६०,२०६१, २०६२, ७८४,७९०,७९४,७९५,७९८, २०६३, २०७४, २०७६, २०७७, ७९९,८०१,८०२,८०३,८०६, २०८०, २१०७, २१४५, २१४६, (५१२) परिशिष्ट-३ For Personal & Private Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४७, २१४८, २१५५, २१६३, | २२९८, २२९९, २३००, २३०२, २१७१,२१७४, २१७५, २१७६, २३०३,२३०४, २३०५, २३०६, २१७८,२१७९, २१८०, २१८२, २३०७,२३०८,२३२३, २३२४, २१८३, २१८४,२१८५, २१८६, २३५९,२३६३, २३६४,२३६५, २१८७, २१८८, २१८९, २१९०, २३६६, २३६७, २३६८, २३६९, २१९१, २२०८, २२०९, २२१०, २३७०,२३७१, २३७२,२३७७, २२१७, २२३१, २२३२, २२३३, २४०९, २४१९, २४३३, २४४३, २२४२, २२६७, २२९१, २३०५, २४४४,२४४५, २४५८, २४६८, २३२३, २३२४, २३६३, २३६४, २४६९,२४८६, २४८७, २४८९, २४९२ २४९२,२४९६,२५००,२५०१, जिनमहोदयसागरसूरि २७५६, २७५७, २७५९, २७६० २५०२,२५०३, २५०४, २५०५, जिनमाणिक्यसूरि १०८५, १०८६, १०८७, १०८८, २५०६,२५०७,२५०८,२५५१, १०८९,१०९०,१०९१,१०९३, २५५२,२६४७ १०९४,१०९७,१०९८,११००, | जिनमेरुसूरि (लघुखर. शा.) ११३,१०११ ११०२, ११०७,११०८,११०९, जिनमेरुसूरि (बेगड़. शा०) १२७१ ११११,१११२,१११३,१११४, जिनयशोसूरि २३६२ १११५,१११६,१११७,१११९, जिनयुक्तिसूरि (आचार्य) १५७९, १५८३, १५८४ ११२०,११२१,११२२,११२३, जिनरंगगणि २६५३ ११२५, ११२६, ११२८, ११३०, | जिनरंगसूरि १४२९, १४६२,१५१२, १५४६, ११३५,११४३,११४४,११४५, १५४७,१६२६, २०११, २०१२, ११४६,११४९,११५०,११५१, २०१३, २०१४, २०१५ ११५२,११५४,११५८,११६८, जिनरत्नसूरि ५०,५१, ११७२, ११७३,११७४, ११९३, | जिनरत्नसूरि १४५५,१४५८,२०७१, २०७९, ११९४,११९५,११९६,११९७, (जिनराजसूरि पट्ट.). २१५० ११९८,१२०५, १२१२, १२१३, | जिनरत्नसूरि २१५०, २५११, २५१२, २५६९, १२१४,१२१६,१२२४,१२२६, | (जिनरंगसूरि शा.) २५७०,२५७१, २५७२,२५७३, १.२२७,१२३२,१२३६, १२३८, २६०२, २६०७, २६३८, १२३९,१२४१,१२४२,१२४३, जिनरत्नसूरि २६८०, २६८१, २६८२, २६८३, . . १२४४,१२४५,१२४६,१२४७, (मोहनलालजी समुदाय) २६८४, २६८५ १२४८, १२४९, १२५१,१२५२, जिनरत्नसूरि (पिप्पलक शा.) १५६६ १२५३, १२५४,१२५५,१२५६, जिनरत्नसूरि (भावइर्षशा.) १५३५ १२५८,१२५९,१२६०,१२६१, जिनरत्नसूरि १०४४,१३५१, २१११, २११२, १२६३, १२६४,१२६५,१२६६, २११४, २१२१,२१२४, २१२७, १२६७,१२६८,१२७२,१२७३, २१३०, २१३२, २१४०, २१४१ १२७४, १२७५, १२८३, १३००, जिनराजसूरि (प्रथम) १०३,१०४, १०६,१०७,१०९, १३०४,१३१०,१३२४,१३८३, ११२,११५,११६,११७,११८, १४४१,१४४४,१७५५, २११०, १२१,१२२, १२३,१२४,१२५, २१३५, २१३७, १२६, १२७, १२८,१३०,१४१, जिनमुक्तिसूरि २१६८,२२६७, २२८१, २२८२, १४६,१४७,१५६,१७०,१७४, २२८३, २२९१, २२९२, २२९३, १७५, १७८,१८२, १८४, १८५, २२९४,२२९५, २२९६, २२९७, १८८,१९०, २०१, २०२, २०३, परिशिष्ट-३ (५१३) For Personal & Private Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ २०४,२०५,२०६,२०८,२१४, १४३५,१४३७,१४४९,१४५०, २३८,२४३,२४४,२४७, २४८, १४५९, १४८९ २५६, २६९,२८१, २८७, २८८, जिनराजसूरि (रुद्रपल्लीय) ९२, ३१८, ३६६, ५२३,७२१, २८९,३०५,३१२,३४१,३५९, ३६०, ३६९, ३७७, ३७८, ३७९, जिनराजसूरि ९२०, ९४८, ९८७, ९९७, ३८१, ३८४, ३८५,३९७, ३९८, (लघुखर. शा.) १०१८,१०२०,१०२८ ३९९, ४०१, ४०३, ४०४,४०५, जिनलब्धिसूरि ८६, १४६, १४७, २८८, ३६०, ४०६,४०७,४०८,४०९,४१०, ८४२, ८८८, ८९०, ११९३, ४११,४१२,४१५,४१६,४१७, १२०५,१३१०,१३८०,१४०३, ४१८,४१९,४२०,४२४,४३४, जिनलाभसूरि १५६१,१५६२,१५७४,१५७५, ४३५, ४५९,४६३,४६६, ४७१, १५७६,१५८७,१५८८,१५८९, ४७२,४७५,४७६, ४७८,४७९, १५९०,१५९२, १५९३, १५९५, ४८०,४८१,४८२,४९१,४९३, १५९६,१५९७,१५९८,१६०९, ४९८,४९९,५०५,५०७,५०९, १६१४,१६५३,१६७३,१६८७, ५१४,५१६,५५९,५९९,८४०, १६८८,१७१७,१७३४, १७५९, ८४२,८४५,८८७,८८८,८९०, १७९९,१८०३,१८०४,१८०५, १०७५,११९३, १२०५, २११०, १८०६,१८०७,१८०९, १८१०, २१३५, २१३७,१३१०,१३८० १८१२,१८६७, २११०, २५८५ जिनराजसूरि १२८९, १३०९, १३१०, १३११, जिनवर्द्धनसूरि १२९,१३४,१३५,१३६,१३७, (द्वितीय, जिनसिंहसूरि पट्ट.)१३१२,१३१३,१३१५,१३१६, १३८,१४०,१४१,१४२,१४३, १३१८, १३१९, १३२०, १३२१, १४४,१४५,१४६,१४७,१४८, १३२२,१३२३,१३२५,१३२६, १४९,१५०,१५१,१५२,१५३, १३२७,१३२८,१३२९,१३३०, १५४,१५५,१५६,१५७,१५८, १३३१,१३३४,१३३५,१३३६, १५९,१६०,१६१,१६२,१६५, १३३७,१३३९,१३४०,१३४१, १६७,१६८,१७०,१८२,१८९, १३४२,१३४३,१३४४,१३४६, १९१, १९२, २१२, २१४, २१५, १३४८,१३५०,१३५२,१३५३, २२५, २२७, २५४, २५६, २६०, १३५५, १३५६, १३५७, १३५८, २६२,२६५,२६६,२६७,२७३, १३५९,१३६०,१३६१,१३६२, २७४,३०४,३०५,३०७,३०८, १३६३, १३६४, १३६५, १३६६, ३४२, ३४३, ३५९,४३९, ४४८, १३६७,१३७०,१३७१,१३७३, ४५१,६८१,७१५,९४१, ९४२, १३७६,१३७७,१३७८,१३७९, ११९९,१२८५,१२८७, १४१३, १३८१,१३८२,१३८३,१३८४, १५४५, १५७२, १५७३, १८४२ १३८५,१३८६,१३८७,१३८९, जिनवर्द्धमानसूरि (पिप्प.) १५६६, १५६८,१५७१,१५७३ १३९१,१३९४, १३९५, १३९७, जिनविजयसूरि (आचार्य शा.)१५४३,१५८५ १३९८,१३९९,१४००,१४०१, | जिनविजयेन्द्रसूरि २६७०, २६७१, २६७२, २६७३, १४०५, १४०६, १४०७, १४१०, २६७४, २६७५, २६७८,२६८७, १४१४,१४१७, १४१८,१४१९, २६९५ १४२३,१४२४,१४२५, १४२६, जिनवल्लभगणि १,२ १४२७, १४३०, १४३१, १४३३, जिनवल्लभसूरि ८६, ११४, २८८, ३६०, ८४२, ११७३,११७४,११९३,१२०५, (५१४) परिशिष्ट-३ For Personal & Private Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३८,१३१०,१३११,१३१४, ४२७,४२८,४२९,४३०,४३१, १३७८,१५६६, २७२३ ४३९, ४४७, ४४८,४४९,४५१, जिनशीलसूरि ११३१, ११३२,११९९ ४५२,४५३, ४५४,४५६,४५७, जिनशेखरसूरि (बेगड़ शा.) ३९३, ४५५, ५१८,५१९, ८९२, ४५८,४८९,५२१,५६१,५६३, १२७१ ५७०,५७१,५८२,५८३,५८४, जिनसमुद्रसूरि २००,७९८,८१८,८४२,८४४, ५८९,६४५,६५३,६५८,६५९, ८४५,८४६,८४७,८४९,८५४, ६७१,६८१,६८९,७३२,७३५, ८५५, ८६५, ८६६,८६७,८८७, ७६२,७६८,७६९,८१९,९१५, ८८९,८९०,८९३, ८९९,९०३, ९२८,९३१,९३४,९३९,९४२, ९१०,९११,९१२,९१३,९१४, ९५३,९६२,९६३,९६४,९७४, ९२२,९२३,९२७,९३२,९३३, १०१५,१०४७,११८०,१५६६, ९३६,९३८,९४०,९४४,९४५, १५७३ ९४७,९४८,९५२,९५३,९५४, जिनसागरसूरि (आचार्य शा.) १३१०,१३११,१३१२,१३१३, ९५५,९५७,९५८,९५९,९६१, १३४७,१३५३,१३६५,१३६८, ९६५,९६६,९६७,९६८,९७३, १३६९, १३८७, १३८९, १३९१, ९७८,९८४,९८६,९९१,९९३, १३१०,१४०९,१५३६,१५१७, १०००,१००१,१००२,१००३, १८५२, २०७३ १००४,१००५,१००८,१०१०, जिनसिद्धिसूरि २५२६, २५३५, २५३६, २५३८, १०३५,१०४०,१०४१,१०४३, (आचार्य शा.) २५५०, २५७४ १०४५, १०५६,१०६८,१०६९, जिनसिंहसूरि (यु. जिनचन्द्रसूरि-पट्ट०) १०७०,१०७२,१०८९,१०९३, १२०२,१२०४,१२०५,१२१३, ११००,११०१,११०२,११५०, १२१५, १२२६, १२३२, १२३५, ११५८,११६८,११९३,१२०५, १२३६,१२३८,१२३९,१२४१, १३१० १२४४,१२४५, १२५८,१२६०, जिनसमुद्रसूरि (बेगड़ शा.) १५१४, १५६३ १२६१,१२६८,१२७०, १२७९, जिनसमुद्रसूरि (आद्यपक्षीय शा.) १२८०,१२८३,१२९४,१२९५, ११४०, १२९२,१२९३ १२९७,१२९८,१२९९,१३०२, जिनसर्वसूरि (लघुखर.शा.) २२३ १३१०,१३११,१३१२,१३१३, जिनसागरसूरि १८९, २१०, २१२, २१३, २१४, १३१५,१३१६,१३१८,१३१९, (पिप्पलक शा.) २१५, २१६, २१७, २१९, २२०, १३२०,१३२२,१३२६,१३२७, २२१, २२२, २२५, २२६, २२७, १३२८,१३३४,१३३५,१३३६, २२८, २२९, २३६,२५४,२५५, १३३७,१३४०,१३४१,१३४३, २५६,२५८,२५९,२६०, २६१, १३४४,१३५२,१३५३,१३५५, २६२, २६३, २६४,२६५, २६६, १३५७, १३६१, १३६४, १३६५, २६७, २७३, २७४, २७५, २८६ १३६७,१३७२,१३७६,१३७८, ३००, ३०१,३०२,३०३, ३०४, १३७९,१३८७,१४०७,१४११, ३१०, ३१४, ३१५, ३२२,३२३, १४३३,१४३४,१४३५,१४३६, ३२५,३२६,३२७,३३५,३४२, १४४७, १४४८,१४६२ ३४३, ३४४,३४५, ३४६, ३४७, जिनसिंहसूरि (पिप्पलक शा.) ३४८, ३५५,३५९,३६२, ३८७, ११६६,११६९,११७८,११९९, ३८८,३८९,३९०,३९१,४१४, १२८५, १२८६, १४१५, १५६६ परिशिष्ट-३ ) For Personal & Private Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनसिंहसूर (आद्यपक्षीय शा.) जिनसूरि ( आचार्य शा . ) जिनसेनगणि जिनसौभाग्यसूरि जिनसुखसूरि जिनसुन्दरसूरि (बेगड़ शा.) १५१४, १५५७, १५६३ जिनसुन्दरसूरि (पिप्पलक शा.) ((५१६) ११४०, ११७५, ११७९, ११८७, ११९१, १२१७, १२२२, १२३०, १२३१.१२९०, १२९२.१२९३. १३७४, १४६९, १४७३ १४६६, १५०३, १५०८, १५१३, १८५३, २२१२ २१८, ३५९, ४८९, ५२०, ५२१, जिनहरिसागरसूरि ५६३, ५७०, ५७१, ५७२, ५८२, ५८३, ५८६, ५८८, ५८९, ५९०, ६४५, ६५३, ६५४, ६५५, ६५६, ६५८, ६५९, ६६१, ६६८, ६६९, जिनहर्षसूरि (जिनचन्द्रसूरि - पट्ट.) ६७०, ६८०, ६८१, ६८७, ६८९, ७१६, ७१९, ७२०, ७३२, ७३५, ७६२, ७६८, ७७२, ७८५, ९१५, ९२८, ९३१, ९३४, ९३९, ९४२, ९४३, ९६२, ९६३, ९७६, १०१५, १५०२ १६६२ २८८ १९३३, १९३६, १९३८, १९३९, १९४१, १९५१, १९५५, १९८४, १९८७, १९९९, २०००, २००१, २००२, २००३, २००४, २००५, २००६, २००७, २००८, २०४०, २०६९, २०८२ २०८३ २०८४, २०८६ २०८७ २०८८ २०८९, २०९०, २०९१ २०९२, २०९३, २०९४ २०९५ २०९६, २०९८, २०१९, २१००, २१०१, २१०९, २११०, २११५, २११६, २११७, २११८, २११९, २१२०, २१२२, २१२३, २१२५, २१२६, २१२८, २१२९, २१३१, २१३३, २१३४, २१३५, २१३६, २१३७, २१३८, २१३९, २१४३, २१४४, २१५२, २१५७, २१५८, २१५९, २१६४, २१६५, २६६, २१६७, २१६९, २१९५२२११,२२२५, २२३७, परिशिष्ट- ३ २२३८, २२४०, २२४३, २२४४, २२४६, २२४७, २२४८, २२५०, २२५१, २२५२, २२५.३, २२५६, २२५९, २२६३, २२६८, २२७०, २२७१, २२७३, २२७४, २२७५, २२७६, २२७८, २२७९, २२८०, २२८६, २३२५, २३३६, २३३७, २३५०, २४३५, २५६६, २६२०, २६३६, २६३७ २६१७, २६२१, २६२२, २६२३, २६२७, २६२८, २६९८, २६९९, २७२४, २७२५, २७२६, २७२७, २७२८ For Personal & Private Use Only १६६९, १६८०, १६८१, १६८६, १६८८, १६८९, १६९०, १६९२. १६९३, १६९४, १६९६, १७००, १७०१, १७०२, १७०५, १७११, १७१४, १७१५, १७१६, १७१७, १७१८, १७२१, १७२२, १७२३, १७२४, १७२५, १७२६, १७२७, १७३२, १७३३, १७३७, १७५२, १७५३, १७५९, १७६१, १७६२, १७६८, १७७०, १७७१, १७७२, १७७४, १७७५, १७७७, १७७८, १७७९, १७८२, १७८३, १७८९, १७९२, १७९३, १७९४, १७९५, १७९६, १७९७, १७९८, १८००, १८०१.१८०२, १८०३, १८०४, १८०५, १८०६, १८०७, १८०८, १८०९, १८१०, १८११, १८१२, १८१३, १८१४, १८१५, १८१६, १८१७, १८१८, १८२८, १८३०, १८३७, १८४१, १८४२, १८४४, १८४५, १८५०, १८५१, १८५४, १८५५, १८६३, १८६५, १८६६, १८६९, १८७०, १८७२, १८७३, १८७४, १८७५, १८७६, १८७७, १८७८, १८७९, १८८०, १८८१, १८८२, १८८३, १८८४, १८८५, १८८७, १८९२.१८९४, १८९५. Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनहर्षसूरि (लघुखर. शा.) ४६८, ११०५ जिनहर्षसूरि (पिप्पलक शा.) १९१४, १९१५, १९१६, १९१७, १९२०, १९२५, १९२७, १९२८. जिनहंसगणि १९२९, १९३४, १९३६, १९४०, जिनहंससूरि (जिनसमुद्रसूरि-पट्ट.) १९४३, १९४६ १९४७, १९५८, १९७६, १९८० १९८१ १९८४, १९८६, १९९९, २०००, २००१, २००२, २००३, २००५, २००७, २००८, २०२०, २०२१, २०२२, २०४३ २०४४ २०४५ २०४६, २०४७, २०४९ २०५०, २०५१, २०५३ २०५४ २०५७, २०५८, २०५९, २०६३, २०६९, २०८०, २१०७, २११०, २१२६, २१३५, २१३७, २१५८, २१६५, २१७२, २१७३, २१७७, २१८२, २१८३, २१८४, २१८५, २२१७, २२७७, २२८६, २२९१, २४२४, २४२५, २४२९, २४३८, २५४७, २५८५ जिनहर्षसूरि ( आद्यपक्षीय शा.) ५७०, ६४५, ६५३, ६५४, ६५५, ६५६, ६५८, ६५९, ६६०, ६६१, ६६८, ६६९, ६७० ६७२, ६७८, ६८०, ६८१, ६८२, ६८३, ६८४, ६८६, ६८७, ६८८, ६८९, ६९३, ७१४, ७१८, ७१९, ७२०, ७३१, ७३२, ७३३, ७३५, ७३६, ७४०, . ७६२, ७६६, ७६८, ७७६, ७७७, जिनहंससूरि (जिनसौभाग्यसूरि-पट्ट.) ७७८, ७८५, ७९३, ७९६, ८२०, ८३१, ९०५, ९१५, ९२१, ९२४, ९२५, ९२६, ९२८, ९२९, ९३४, ९३९, ९४१, ९४२, ९४३, ९५०, ९५१, ९५६, ९६२, ९६३, ९६४, ९७६, ९८३, ९९९, १०१४, १०१५, १०४७, १०४८, १०४९, १०५७, १०६७, १०९९, १५६४, १५५९, १६६४ १४६०, १४६३, १४६४, १४६९, १४७३, १४७४ १३२ परिशिष्ट- ३ For Personal & Private Use Only २००, ८३३, ९६७, ९६९, ९७७, ९७८, ९७९, ९८०, ९८१, ९८२, ९८४, ९८५, ९८६, ९८९,९९०, ९९१, ९९२, ९९३, ९९४, ९९६, ९९८, १०००, १००१, १००२. १००३, १००४, १००५, १००६, १००७, १००८, १००९, १०१०, १०१२, १०१३, १०१६, १०१७, १०२१,१०२२,१०२३, १०२४, १०२५, १०२९, १०३१, १०३२, १०३३, १०३४, १०३५, १०३६, १०३७, १०४०, १०४१, १०४२, १०४३, १०४५, १०५०, १०५२, १०५३, १०५४, १०५५, १०५६, १०६०, १०६१, १०६२, १०६३, १०६४, १०६५, १०६६, १०६८, १०६९, १०७०, १०७२, १०७३, १०७४, १०७६, १०७७, १०८०, १०८१, १०८२.१०८३.१०८४, १०८७, १०८९, १०९०, १०९३, १०९४, १०९८, ११००, ११०१. ११०६, ११०७, १११०, ११११, १११२, ११२९, ११४५, ११५०, ११५८, ११९३, १२०५, १३१० २२०७ २२८६, २२८७, २२८८, २३१०, २३११.२३१२, २३१३. २३१४, २३१५, २३२०, २३२१, २३२५, २३२६, २३२९, २३३५, २३३६, २३३८, २३४३, २३४६, २३४८, २३४९, २३५०, २३५५, २३५६, २३५७, २३७४, २३७९, २३८०, २३८१, २३८२, २३८३, २३८४, २३८५ २३८६, २३८७, २३८८, २३८९, २३९०, २३९१, २३९२, २३९३, २३९४, २३९५, २३९६, २३९७, २३९८, २३९९, २४००, २४०१ २४०२, २४०३, (५१७) Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६५४ . . २४०४, २४०५, २४०६, २४१०, ज्ञानचन्द्रसूरि ११६१ २४१८, २४२०, २४७२, २५६६, | ज्ञानधर्म म. १५१९, १५२२, १५२३, १५२४, २५६७ १५२५, १५२८,१५४० जिनहंससूरि (रुद्रपल्लीय शा.) । ज्ञाननन्दि वा. १३८७ ९२, २५३, २५७, ३६६ ज्ञानमन्दिर वा. १३८२ जिनहितसूरि (जिनमेरुसूरि-पट्ट.) ज्ञानराजगणि १३२९ १११, ११३ ज्ञानलक्ष्मी साध्वी १२९७ जिनहेमसूरि (आचार्य शा.) २०१६, २०६५, २०६६, २०७३, ज्ञानलाभ २५२७ २०९७,२१६०,२१७०, २२०६, | ज्ञानश्री २७४९ २२१४, २२१३, २२१५, २२९०, ज्ञानसमुद्रगणि महो. १४२९ २३४२, २३४७, २३५८, २३७६, | ज्ञानसारमुनि १६२५, १७१५, १७१६,१७१७ २४५३, २४५४, २५७४, २६३५ ज्ञानसिरी २३७६ जिनेश्वरसूरि १,८६,९५,९६, २८८, ३६०, ज्ञानसुन्दरसूरि ५६२ (वर्धमानसूरि-पट्ट.) ८४२, ८८८, ८९०, ११७३, ज्ञानानन्द १९१७ ११९३,१२०५, १२३८,१३१०, ज्ञानानन्दमुनि १३११,१३१४,१३८७ तत्त्वसुन्दरगणि १५०३ जिनेश्वरसूरि (कूर्चपुर गच्छ.)१ तितवईसूरि (?) ३५४ - जिनेश्वरसूरि (जिनचन्द्रसूरि शिष्य) तिलकधीरगणि २४७५, २५२७ ९४ तिलकश्री प्र. २७२३ जिनेश्वरसूरि (बेगड़ शा.) ८९२, १२७१, १३०५, १३९३, | त्रिलोकचन्द्र २२२४ १५१४,१५१५, १५६३,१६१६, त्रैलोक्यसागर २७२३ १६२४ थिरकुमार १४३५ जिनेश्वरसूरि (जिनपतिसूरि-पट्ट.) दयाकमलगणि १२०४ १२, १३, १४, १५, १६, २०, दयामेरु पं० १२८९, १३८४ २४, २५, २६, २८, २९, ३५, दयाविलास २१६५, २१६७ ३६, ४४, ४६, ५०, ५१, ८६, दयासागरगणि १५७३ २८८, ३६०, ८४२, ११९३, दर्शनसागर. २६८८, २६८९, २६९८,२६९९ १२०५, १३१०,१५६६ दानशेखर २१६२ जिनोदयसूरि (जिनराजसूरि-पट्ट.) दानसागरमुनि २२८५ ९०, ९३, ९७, ९८, ९९, ११६, दानसागरगणि २३३५, २४५५, २४९४, २५२०, १४६, १४७, २८८,३६०,८४२, २५२१, २५२९ ८८८, १३१०,११९३, १२०५, दालचन्दगणि २४४४ १३८० दिवाकराचार्य जिनोदयसूरि (रुद्रपल्लीय शा.) दीपकुंजर पं० १५६२ ७२१,७२२,७८६,९१६ दीपचन्द्रगणि उ. १३०१,१५१८,१५१९, १५२२, जीतरंगगणि २०८०,२३५९,२४१९ १५२३,१५२४,१५२५,१५२६, जीवदेवगणि ३६० १५२७,१५२८,१५२९,१५३०, जीवराज १४३५ १५३१,१५३६,१५३८,१५४०, जैसारगणि १७७४ १५४१,१५४२,१५४८,१५४९, ज्ञानकल्लोल १५६२ १६४०, १८३६, १९७३, २०७९ ज्ञानकुशल पं० १५४१ दीपविजया सा. १५१२ (५१८) परिशिष्ट-३ For Personal & Private Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ देवचन्द्र १८९५,१९१४,१९२६, १९३४,| धर्मानन्दमुनि १९९१, २०६४,२०६४, २१६६, धीरधर्मगणि २३३५, २३३६, २४५२ धीरपद्म देवचन्द्रगणि उ. १५१८,१५२२,१५२४,१५२५, धेनमाला सा. १५२६, १५२८,१५३६, १५३८, नन्दरामगणि १५४०,१५४१,१५४२,१५४८, नयभद्रमुनि १५४९,१५५६, १८३६ नयविजयगणि देवतिलकोपाध्याय १०८९,१०९३ नारायणगणि देवदत्त २६२० निपुणाश्री सा. देवभद्रसूरि (प्रसन्नचन्द्रसूरि) निहालगरसूरि? १,१० नीतिकमलमुनि देवभद्रसूरि (रुद्र.) नेतसीगणि देवरत्न वा. १०३८ नेमिचन्द्र देवराममुनि २२८८ नेमिचन्द्रमुनि देवविजय १२८९,१३८४,१४३५ देवसमुद्र २५५ पद्मकुशल देवसार १२८१ पद्मजय देवसुन्दरसूरि (रुद्र.) ११९, १९९, ३१६, २१३, ३७२, पद्मजस ४८५,५९१,६०२, ६०३,६६७, पद्मनिधान ७८७,७८९, ८७६,९१६, ९१७, पद्मभाग्य ९७१ पद्मविजय पं० धनजी १८७० पद्मसोम वा. धनप्रभसूरि (मधुकर म.) २३७, ३६३, ३६४,५७३, ६०६, 3.3६४.५७३,६०६, पद्महंसमुनि ७२४,७२६,७६३,८०४,१०९२ | | पद्मोदयमुनि धनराजोपाध्याय ११५७,१२५७ परमसुख धर्मकीर्तिगणि १३०७,१३९१ पुण्यनिधानगणि धर्मघोषसूरि ८,९ पुण्यप्रधानगणि उ. (अभयदेव-सन्तानीय) धर्मचन्द्र २२१६, २४३४ धर्मदत्तमुनि २५४१ धर्मधीरगणि ७१५ धर्मनिधानोपाध्याय १३०७,१३१०,१३१२,१३९१ धर्मप्रभागणिनी २५५ पुण्यभक्ति धर्ममूर्ति उ. २५६ पुण्यराजगणि धर्मवल्लभमुनि २४२५,२४२९ पुण्यशील धर्मविशालमुनि २१०० पुण्यश्री प्र. धर्मशील वा. ११५८ पुण्यसागर महोपाध्याय धर्मशीलमुनि २४९८, २६२९ पुण्यहर्ष धर्मसमुद्र पुर्णानन्दसागर धर्मसिन्धुरगणि १४४४ पूर्णचन्द्रगणि (रुद्र.) धर्मसुन्दर वा. ११५२ प्यारेलाल १५५९, १७७३, १८३४ २४११ २४६७ २३७६ २२८८ २४१५, २५१६ १५९८ १५५१ २७२३ ३५४ २४९५ १५१७ २२२४ १७३४, २४८५, २५१८, २५२७, २५९०, २६२५, २६३२, २६६० १२२६ २४२२, २४२३ १३१८ १३८२ १९१८ १६६३ १६२१ २२६७,२३२४ २४६३ १८५९ १४७९ ८६, १२३५, १२३६, १२३८, १२३९, १२४१, १२४४,१२४५, १२४९, १२५३, १२५८,१२६०, १२३१,१२६४,१२६७,१२६८, १३५७,१४४८,१४६८,१५००, १६९५, १६९१,१७४५ २१५५ १७३४ १८१८ २५७६, २५८०,२६२३, २७२३ १२.२ १४७९ २७५२, २७५३,२७५४,२७५५ ९१ २५९१ २५५ परिशिष्ट-३ For Personal & Private Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतापसीगणि प्रतापसौभाग्यमुनि प्रभानन्दसूरि (रुद्र.) प्रमोदश्री प्र. प्रसन्नचन्द्रसूरि प्रीतिसागर ग. उ. प्रेमचन्द प्रेमश्री प्र० प्रेमसुखमुनि बालचन्द्र उ. बुद्धिमुनिगणि १५५५ मतिकुमार पाठक १७५५ २३३७,२३४३ मतिदेव पं० १५४१ २१ मतिमन्दिर २३४७ २७४९ मतिरत्नमुनि १५२४ मतिलाभ ११३३ १६५३, १९२२ मतिशेखरमुनि २२३४ १८९१, २३२५ मतिसागर १२७१ . २७४६, २७४७ मनसाचन्द २५७४ २५६१, २५६२, २५६३, २५६४ | मयाचन्द्रगणि २३६३ २३६३,२६२९ मयाप्रमोदगणि १७५६ २७३५, २७३६,२७३८ मलूकचन्द्र पं० १६२१ २२८८ महाजल १४३५ १५८० महिमराजगणि ११९३ ११३३ महिमाउदयमुनि २४६३ १६०८ महिमानिधानगणि १७५२ . . १६९५, १६९७, १६९८,१७४५ | महिमामूर्त्तिगणि १५६२ ११०३ महिमासमुद्र वा. १४८५ २२४ महिमाश्री प्र० २७४९ १३१०,१३११,१३१२,१३१३ महेन्द्रप्रभाश्री २७३७,२७४९ १७१० महेन्द्र श्री २७४९ १७७५ महोदयसागर २७२३ २८८ माणिक्यचन्द उ. माधवदासगणि १५१७ ११४७ मानविजय १४५९ २५५ मानसिंह पं० १५५७ ११३३ मानसुन्दर २१६५ १६६२ मुक्तिकमलमुनिगणि २४७९, २५१४, २५२४, २६१२ १५८० मुक्तिरंग १७८२ १५८३,१५८४ मुनिकल्लोल १५६२ १५४६ मुनिचन्द्र ४४, २२४ १३०९,१३८२,१३८७ मुनिप्रभसूरि (मधुकरगच्छ.) ९३०,९३७, १०७८ १३१२ मुनिभद्रगणि १५१० मुनिमेरु ७०२,११५७ २५९५ मुनिसुन्दर १५५७ २७३९, २७४०, २७४८ मुनिसोमगणि ८८७ २७५६,२७५७,२७५८,२७५९, १४३५ २७६० मेघराज २३७७ २७५२, २७५३, २७५४,२७५५ मेघश्री २७४९ १९५१ मेरजीगणि २३६३ २७५२, २७५३, २७५४, २७५५ | मेरुनन्दनोपाध्याय १४५ ४४ मेरुसुन्दरगणि ३६० २३१९ बोधाजी भक्तिलाभ उ. भक्तिविलासगणि भगवानदास भद्रोदयगणि भव्यराजगणि भद्रसेन वा. भागविजय भाग्यधीरगणि भानुप्रभगणि भावप्रभसूरि भावतिलकसूरि भावमतिगणि भावलाभ भावहर्षसूरि भीमजी भीमराजमुनि भुवनचन्द भुवनकीर्ति गणि भुवनराज पं० भुवनहित उ. मग्नसागर मणिप्रभसागर मणिरत्नसागर ७१५ ८६ मणिप्रभाश्री सा० मनसुख मनोहर श्री प्र० मतिकलश (५२०) परिशिष्ट-३ For Personal & Private Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोतीचन्द मोदमूर्तिगणि मोहनचन्द्र मोहनलालगणि मोहनलालजीमुनि यतनश्री यश:कीर्ति यश:कुशलगणि वा. युक्तिअमृतमुनि युक्तिसेन २५५ योधराज रत्नचन्द्रगणि रत्नतिलकगणि उ. रत्ननिधान रत्ननिधानोपाध्याय रत्नमर्तिगणि रत्नराजगणि रत्नलाभमुनि रत्नविशालगणि रत्नशेखरगणि रत्नसार वा. रत्नसुन्दरगणि रत्नसुन्दरीगणिनी रत्नसोम उ. रविश्री राजधीर राजमन्दिरगणि राजलाभगणि राजसार उ. राजसागर उ. २०७१, २१५०, २१५१ रामवल्लभगणि ८६ रामविनय महो. २२१९, २२२० रामविजय महो. २५२१, २५४५ रामविजयगणि २४७३, २५२४, २७३५, २७३६ | रायचन्द वा. २४८० रावतमल ४४ रिद्धविलास १२२३,१२७० रुघमुनि २३५२ रूपचन्द्र म. १५६२ २०६८ रूपचन्द्रमुनि २०७१, २१५०, २१५१ रूपदत्तगणि १४०२, १४०३,१४०४ रूपधीर १७८० रूपविजिया साध्वी १२१३ लक्ष्मीकुशल २९१, २९२,.३६०,३७५ लक्ष्मीचन्द्रगणि १७१८ लक्ष्मीनिवासगणि लक्ष्मीप्रधानगणि १२७८ १५६२ लक्ष्मीप्रमोद १३३५ लक्ष्मीमन्दिर १८१७ लक्ष्मीश्री सा. २५५ लक्ष्मीसागरगणि १४३७ लक्ष्मीसुख पं. २६२२, २६२३ लक्ष्मणगणि १३१२ लब्धिकीर्ति पं. २४१९ लब्धिकीर्ति पं. १५३९ लब्धिकुशलसूरि १४६८,१५२३,१५२४ । लब्धिधीर १३०१,१५२२, १५२५,१५२८, | लब्धिवर्धन १५४० लब्धिसेनगणि २४१७ ललितकीर्ति २२८८ लाभकुशलगणि २२८७ लाभशेखर १२८९ लालचन्द १३८४,१४३३,१४३५ लालचन्द्रगणि २६३१ १७३०,१७३३ १८८१, २४३०, २४८४ लावण्यकमलगणि २२१९, २२२०, २३२८ २४९८,२५८६ १७५२ १४७५ १६१४ २२२० १६३३ २५६५ १७७४ २२८८ १६१६,१७०३,१७४५,१८१८, १८८९, २०७९, २१५०, २१५२ १८९०, १८९१, २३६३ १५६२ १६१७ १६२६ १४६९ २५२७ ४४ २२१८,२३३८,२४२६,२४७९, २५२४, २५६५, २६१० १२०५ २१६९ २४१३ २५५ १५६२ २२८८ १२८९ १३८४,१४३३, १४३५ १४७३ १८४८ १२८७ १४०२,१४०३,१४०४ १४५६ २४७९,२५२४ २२८७ १८५२,१८५९, १८९०,१८९१ १६४५,१६४६, १६४७,१६४८, १६४९,१६५०,१६५१,१६५२, १६५४,,१६५८,१६५९,१६६० १६०५,१६०६,१६०७,१६१२, १६६५,१६६६,१६६७,१६६८, १७११ राजशेखरमुनि राजसुख राजसोम राजहंस राजहंसगणि रामऋद्धिसारगणि रामचन्द्र पं. रामचन्द्रगणि रामचन्द्रमुनि रामलालगणि परिशिष्ट-३ (५२१) For Personal & Private Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१५ ८६ वना लावण्यकीर्ति १३८७ | विवेकरत्नसूरि ६००,६०१,११३७ ।' लावण्यशीलोपाध्याय विवेकलब्धिमुनि २४२९ वखता १७०३ विवेकविजय १६५३ वज्रस्वामी विवेकहंसोपाध्याय २५५ १४२० वीरपुत्र आनन्दसागर २६११ वर्धमान पं. १५५७ वृद्धिचन्द २४४३, २५४०, २५८४, २५९२, वर्द्धमानसूरि १, ८६, २८८, ३६०, ८४२, २५९३, २५९४ ८८८, ११९३, १२०५, १३१०, शान्तिरत्नगणि ७१५,७६० १३११, १३१४, १३८७, १५६६, शान्तिश्री २६२३ १५६७, १९३४, २११०, २१३५, शान्तिसागरसूरि १०८९ २१३७ शान्तिसोम पं. १७६९ वर्द्धमानसूरि (अभयदेव-शिष्य) १ शाम्यानन्दमुनि २७३५, २७३६, २७३७, २७३८ वर्णकीर्ति १२८१ शिवचन्द्रगणि १८१८,२२१९, २२२०,२२२४, विचक्षणश्री प्र. २७२३ २३२८ विजयचन्द्र ६८२, ६८३,१५४२, १९८५ शिवलालमुनि २२८८, २४७७ विजयमुनि २०६१ शिवशेखर ८३० विजयराज मुनि ११४५ शिवसुन्दरोपाध्याय १३८७ विजयलाल २६१६, २६१८ शुभशीलगणि ३४२, ३४३, ३४४,३४५, ३४६, विजयवल्लभसूरि २६८६ ३४७, ३४८, ३४९ विजयसमुद्रसूरि २६८६ श्यामलाल २४८५, २६१६, २६१७, २६१८ विज्ञानश्री २७२३ श्रीचन्द्र १६३३, १९५५ विद्यादानसूरि ११५६ श्रीचन्द्रगणि १६९५ विद्याविजयगणि १४८५ श्रीचन्द्रसूरि (अभयदेवसन्ता.) ५ विद्याविशालमुनि २३३८,२४२४, २४७९ श्रीचन्द्रसूरि (रुद्र.) विद्यासागर उ. ११३८,१२७१ श्रीमुनि ८४० विद्याहेमगणि १६८९,१६९०,१६९१ श्रीसुन्दर १२३२,१६११, २४४९ विनयचन्द्र २५३१ संघतिलकसूरि (रुद्र.) विनयप्रधानमुनि २३३४ सकलचन्द्रगणि ११९३ विनयप्रमोदगणि १६९५,१७४५ सत्यजीगणि १७१० विनयराजसूरि १०३८ सत्यमाणिक्यमुनि २०६३ विनयलाभ १६९५ सत्यरत्न १४९५ विनयलाभगणि १५००,१७४५, सदाकमलमुनि २४३२ विनयविजय २००९,२०११,२०१२,२०१३, | सदानन्द १७३४ २०१४, २०१५ सदारंगमुनि १३०७ विनयसागर महो. २७५८ सदालाभगणि २२०७, २२२५, २२६८, २२६९, विनयहेमगणि २४७९, २५२४ २३०९, २३१०, २३११, २३१२, विनीतसुन्दरगणि १८५३ २३१४, २३१५,२३२६,२३४१, विनचन्द १९५१ २३४६ विनोदप्रमोदगणि १५०० समयकीर्तिगणि १३०७ विमलचन्द १५४१ समयभक्तोपाध्याय ८४६,८८७ विवेककीर्तिगणि २४४५ समयराजोपाध्याय १२१३,१२२७,१२३५,१२३६, ९१ परिशिष्ट-३ For Personal & Private Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समयसुन्दगरगणि समयसुन्दरगणि समयसुन्दरोपाध्याय समुद्रसूरि समुद्रसोम सरूपचन्द्र सर्वानन्दसूरि सहजकलशगणि सहजकीर्तिगणि सांकर सागरचन्द्रगणि सागरचन्द्रसूरि १२३८,१२३९,१२४४,१२४५, सुमतिवल्लभगणि १२५८,१२६०,१२६१,१२६८, सुमतिविमल १२८९,१३५७,१४३५ सुमतिविमलगणि १२८९ सुमतिविशालमुनि १३५७,१५८०,१८५२ सुमतिशेखरगणि १४८५ सुमतिसागर २४९२ २३३७, २३४३, २३५१, २३५३ | सुमतिसिन्धुरगणि २४४९, २४८६ सुमतिसुन्दरगणि १०३८ सुमतिहेमगणि ११३३ सुलक्षणाश्री १३३५ सुलोचनाश्री १४३५ सोमकुञ्जर १५७७, २३४०, २३४९, २३७५ | सोमसुन्दरसूरि (रुद्र.) १४६, १०१६, १४२१, १४८७, १६०४,१८५०,१९२७,१९२९, सोहनश्री प्र. १९५५,२५४१ सौभाग्यधीर पं. १३८१ सौभाग्यमाला सा. १५००,१६९५ सौभाग्यविजया सा. १७४५ स्वरूप १५८० स्वरूपचन्द्र २२६७,२३२४, २३६३ हजारीनन्द १०८ हरषचन्दगणि हरिकलश उ. १६६१ हर्षकल्याण २४७४ हरिप्रभगणि १४२८ हरिभद्रसूरि १५९८ हर्षकल्याणगणि १८६७, २६१३, २६२२, २६२३, हर्षकीर्ति २७२३ हर्षचन्द्र १३०७, २६१४, २६१५, हर्षनन्दनगणि २६९०,२६९१,२६९२ हर्षनिधान म. २२८८ हर्षभद्रगणि १९५१,२४७९,२५२४ हर्षमुनि ४६ हर्षमूर्ति २५२७ हर्षरंगमुनि १२३८,१४४४ हर्षराजमहोपाध्याय १६९५,१७४५ हर्षवल्लभगणि १८५० हर्षविशाल २३६० हर्षसागर १२९७ हर्षसुन्दरसूरि (रुद्र.) १६९५,१७४५ १४९९,१५०१,१५००,१६९५ १६१७,१७४५ २३३७, २३४३ १९१७, २४३०, २४६०, २५७५ १२३८,१४६८,१५००,१६९५, १७४५, २५४२, २४६७, १४५८ १६१७, १६९५, १७४५ १६१७, १६९५, १७४५ २७४६, २७४७ २७४६, २७४७ २८८ ३१६,३७२,४८५,५९१,६०२, ६०३ २७२३ १७८४ १४८४ १५१२ २०७८ १६११ १५८० १५५५ ११३३ २३०१ ८६ साधुकीÉपाध्याय साधुरंगगणि साधुराजगणि सारंग . साहिबचन्द्रमुनि सिंहतिलकसूरि (रुद्र.) सिद्धिसेनमुनि सिवलालमुनि सीरराजमुनि सुखरत्न . . सुखसागर सुखसागरगणि सुखसागरमुनि सुगणानन्द सुगुणप्रमोदमुनि सुधर्मस्वामि सुन्दरलाल सुमतिकल्लोलगणि सुमतिधर्मगणि सुमतिधीरगणि सुमतिमण्डन सुमतिलक्ष्मी २४३३ २१६५, २४६८ १७५५, २०७३ १२३६,१४५२,१४५३,१५८० १५२१ ३६० २५६१,२५६२,२५६३,२५६४ ८६ १८४८,२०६६ ११०३ १३७७ ७१५ १४९८ १२०, १६९, १७९, १९९ (५२३) परिशिष्ट-३ For Personal & Private Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हंसप्रमोद वा. हंसविलासगणि हस्तरत्नगणि हितकमल हितधीर हितप्रमोद हितवल्लभमुनि १९९१, २०६४, २१६६, २१६७, २३३६, २६२० १४२८, २०७१, २०७९ २२८८ २३१९ १६३७,१६३८ १४५७ २१६५, २३३६, २४६८, २४७२, २५३१ १२३६, १२३८, १२४५, १३५७ | हीराचन्द्र २४१०,२४२५ १५६२ हीरानन्द २४१३ हीरोजी १६१७, २४६० हुकमचन्द्र २०७८ हेतोदय २४०७, २४५५, २४८१, २४८२, हेमकलश २४९०,२४९४, २५०९, २५२०, हेमचन्द्र २५२१, २५२८ २२८८ हेमचन्द्रसूरि २१५१ (अभयदेव. सन्तानीय) १८७०, २०४४ हेमतिलकगणि १६८८,१७५९,१७९९,१८००, हेमध्वजगणि १८०१, १८०२,१८०३,१८०४, हेमप्रभ १८०५, १८०६,१८०७,१८०८, हेमप्रियमुनि १८०९,१८१०,१८११,१८१२, | हेममन्दिरगणि १९८०, २५८५ हेमसोमगणि १५६६,१५६८,१५७१ | हेमेन्द्रसागर हिमतु मुनि हीरचन्द्र हिततिलक हीरधर्मगणि ८३० . ८३ २४९८.. १४११ १३८७, २७२३ हीरसागर (५२४) परिशिष्ट-३ For Personal & Private Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४- परिशिष्ट लेखस्थ राजाओं आदि की नामानुक्रमणी नाम लेखाङ्क नाम अकब्बर ११९३, १२०१,१२०५ १२१२, कुलधर मंत्री १२१३,१२१४,१२२४,१२२५, | केसरीराज राउल १२२६, १२३१,१२३२,१२३६, गंगासिंह राजा १२३६,१२३८,१२३९,१२४३, १२४४,१२४५,१२४६,१२४८, गजसिंह युव. १२४९,१२५०,१२५१,१२५२, गजसिंह राजा १२५३,१२६४,१२८३,१३१०, गजसिंह राउल १३११,१३१२, १३१३,१३१४, १३१५,१३१६,१३२६,१३२७, गिरधरसिंह १३२८, १३५५, १३५७, १३६५, गुणदत्त मंत्री १३८७, १५००,१५२२,१६९५, | गोविन्ददास १७४५,१७५५, २१३७ . घटसिंह राउल अखैसिंह राउल १५१४, १५१७,१५५७,१५६३ | | घडसी चहुँआण अजीतसिंघ राजा १५००,१५०२ चम्पा मन्त्री अभयसिंह राजा १५५५ चांपसी मन्त्री अमरसिंह महाराणा १५७३, १५७४, १८५० चाचिगदेव राउल अमृत मन्त्री १२५६ अरिसिंह महाराणा १५६७,१५७२ जगतसिंह महाराणा अरडक्कमल युव. ७०९ जयतसिंह राजा अलावदीन सुरत्राण ४६. जयतसिंह राउल आस्थाम राठौड १२७१ जयसिंह देव राठौड़ उदयसिंह मन्त्री १३०५ जवाहरसिंह राउल उदयसिंह राउल . .. १३५०,१३५१,१३७५ जसवंतसिंह राजा उदयादित्य राजा ऊदिला राठौड १२७१ जहांगीर कर्मचन्द्र मन्त्री ११९२,१२०१,१२०४,१२११, १२१३, १२२३,१३१०,१३११ कल्याणदास राउल १३०२, १३०५,१३७६,१३८९, १४९६ कल्याणमल राउल कल्याणसिंह राजा १६९९, १८८९ जीआदे मंत्री कांधाजी गोहिल १९१४,१९३४ जुहारसिंह राउल काजल राठौड १२७१ जूठिल मन्त्री कालू मंत्री ८९२,१२७१ जैत्रसिंह राउल कुम्भकर्ण महाराणा २५६,२५९,५३७,५३९,५४१, टोडरमल्ल मंत्री १५७२ डूंगरसिंह राजा परिशिष्ट-४ लेखाङ्क १३०५ २८८ २४६७, २४७९, २५२४, २५३८, २५४१, २५५०, २६२९ १२९१ १३७४, १८४०,१८४८ १७७६,१८५२,१९४०,१९५८, १९७६, २०४१, २०४२ २५८४ १३०५ १२९१ १४६, २८८ १२७१ १२०५ १३०५ ३६०,६०७,६०९,६१४,६१५, ६४४, १०८९ १५७३ ११०७ २८८,१०८९,१०९३ १२२७ २५८४ १४६३,१४६४,१४६५,१४६९, १४७३, २१९२, २१९३ १२९१,१३०९, १३१०,१३११, १३१२,१३१३,१३१४,१३१५, १३१६,१३२०,१३२३,१३२४, १३२६,१३२७,१३२८,१३३४, १३५४,१३५५,१३६५,१३७६, १३८७,१५७३ १३०५ २३६१ ८९२ १४६ १३०५ ४४७, २३७६ ७६० For Personal & Private Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तखतसिंह राजा २०७१, २०७९, २१५०,२१५१, महिपति मन्त्री २१९२, २१९३ माणिक मंत्री तेजपाल मंत्री १२७१,१२०५ मानसिंह राजा तेजसीजी राजा १२७८ मानसिंह राजा गोहिल तेजाजी (मुख्य ख्वास) १२२४ मूलदेव राउल त्र्यंबकदास २८८ मूलराज राउल दीदा मंत्री १२७१ दुर्लभराज राजा २८८, ११९३, १२०५, १२३८, १३१४,१५६६ मेघराज कुं. दूदा राउल २८८ मेघराज राउल देपाल मंत्री १२७१ रणमल्ल राजा देवकर्ण राउल ८४२, ८४४,८४५,८८७,८८८, रणजीतसिंघ राउल ८९०,८९१,१०८९ रणसिंह राजा देवदत्त मंत्री १३०५ रणसिंह मन्त्री देवराज राउल १४६, २८८ रतनसिंह राजा नोंधणजी गोहिल राजा १९१४,१९३४, २१६५ धांधल राठौड़ १२७१ नरवर्म राजा पंचाइण मंत्री १३०५ पृथ्वीराज ठा. ११५८ पृथ्वीसिंह युव. १४६५, १४६९,१४७३ रत्नसिंह राउल प्रतापसिंह गोहिल राजा २१६५, २३२३, २३३७, २३५० | राजसिंह महाराणा फलधर मन्त्री राजसिंह राजा बलवंतसिंह राजा १८७०, २०५८ राणावत जी महाराणा बांकुरसी मंत्री १३०५ रामदेव राउल बाकीदास रावत २३६१ रामदेव राठौड़ बीकाजी ९९५ रामसिंह युव. बुधसिंघ राउल १५०३ रामसिंह राजा भभूतसिंह ठाकुर १८५९ रायमल्ल महाराणा भरथ वरश्रेष्टि १२७० रायसिंह राजा भीमजी रावल १२०२ भीम मन्त्री १२०५ भीमसिंघ महाराणा १६६४ भीमसेन राउल १२७१ रायसिंघ राउल भीमसिंह राजा २२९१ लक्षमण राउल भीमा मंत्री १२७१ लूणकरण राजा भोज राजा लूणकर्ण राउल भोजराज राजा ७१५ वकमा मंत्री माण्डलिक मन्त्री ७२५ वखत कुंवर सोढी जी मनोहरदास राउल १३०२,१३७६,१३९३ वरसिंघ राजा मलिकवय मंडलेश्वर ८६ वरसिंह मंत्री १२०५ १२७१ १२२३,१६९५,१७४५. २४७२ १४६ १४६, २८८, १५८३, १५८४, १६०९,१६१६,१६२४,१६५३, १६९२, १७०३, १७३३, १७७६ १४६९,१४७३ ११५७,११५९,१४४० ७०९ २०८०,२२६७ १९५५ ७२५ १५५९,१७६७,१८६९,१९१५, १९३२, १९३६, १९३८, १९३९, १९६३, १९६५,१९६८,१९६९, १९७०, १९७२, १९७३, १९८४, २०६५,२०६६, २११०, २१३५, २१३७ १४६,२८८ १५६४ ११४०, १२२४ १९७६ १४६ १२७१ १५५५ २२९१, २२९३, २२९९, २३०८ ९३२ १२२६, १२३८,१२४१, १२४३, १२४५,१२४९,१२५०,१२५१, १२५२,१२५८,१२६०,१२६१, १२६८,१२७२,१२७३,१२८३ १५८४, १६०९, १६२४ १४६, १४७, २८८ १०४६ १०८९,१०९३,११४५ १३०५ १५८३ ७६० ११०७ ८९२ परिशिष्ट-४ ) For Personal & Private Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वच्छा मंत्री वयरसिंह राउल वस्तपाल मंत्री विजयपाल मंत्री विजयसिंह राजा विमल मंत्री वेगड मंत्री वीदा राजा वैरसिंह राउल वैरीशाल राउल १२०४ ११०७ सवाई जगतसिंह राजा १७४७ २३८,२८०,६०७,६०९ सवाई जयसिंह राजा १८१८ १२०५ सहादत्त अलि नवाब १७२२ ७२५, १२७१ सारंगधर मन्त्री ११९२,१२०० १६१७ साहिजहां १४३५,१५७३ २८८,११९३,१२०५,१५६६ साहिपेरोज ८६ १३०५ सिकंदर पातिशाह १२०५ ७१५ सीहा मंत्री ८९२ २३८, २८८,६०७,६०९ सुजाणसिंघ राजा १४९०,१४९१ २३२४, २३५९, २३६३, २३६४, | सुरजन मंत्री १३०५ २३६६, २३६८, २३७७, २४०९, सुरताण्णजी राजा २४४३,२४६४ सुरत्राण राज्य १२२७ १८५० सुरताणषोसडू १३१०,१३११,१३१२,१३१३ सूर्यसिंह राजा १२९२, १२९३, १२९१, १४०७ १२७० सूरा मंत्री १३०५ ११९२,१२०० सूर्यमल्ल मंत्री १२७१ २४९२ सूरतसिंह राजा १५५९,१६२१,१६९१,१७०५, १२७१ १७६७,१८४० २१३५, २१३६, २१६०, २२०६, सूरसिंघ गोहिल राजा २३२३, २३३६, २३५०, २४७२ २२१३, २२१४, २२१५, २२१६, सोनपाल मंत्री १२७१ २३३७,२३४३, २४५३ सोबर साहिआन सुरताण खुरम १३१०, १३११,१३१२,१३१३ १२३८,१२४४,१२४६, १२४८, हम्मीर मंत्री १२७१ १२५०,१२५८ हीरासिंघजी रावत भाराणी २५३५, २५३६ २८१ वैरीशाल ठाकुर वैरिसिंह राउल . शत्रुसल्ल राजा संग्राम मंत्री सज्जनसिंह राजा सतोपाल मंत्री सरदारसिंह राजा सलेमसाहि परिशिष्ट- ४ For Personal & Private Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५- परिशिष्ट स्थान अग्रपुर अजमेर, अजयमेरु अजयपुर अजीमगंज अणहिल पत्तन, अणहिल पाटक, अणहिलपुर, अहिलपुर पाटण अमरसर अमरसागर अर्गलपुर अयोध्या अर्बुद, अर्बुदगिरि, अर्बुदाचल अवध अहमदनगर अहमदाबाद, अहम्मदाबाद, अहमदाबाद अहिपुर आगरा आनंदपुर (५२८) लेखस्थ ग्रामानुक्रमणिका स्थान लेखाडू २००८ १८३८, १८३९, २०६४, २०९८. २०९९, २१००, २१६५, २१६६, आबू २३६७, २५८३, २७०१ २७०२ आम्बेर २७०४, २७०५, २७०६, आसापल्ली ४ १६०८, १६७२ २००२ २००३ २२२५, २३२१, २३५७, २४२०, २५२८ ८, २८८, ४८५, ९९९, १०७१, ११९३, १२०५, १३१४, २६५१ १२११ १९५८, १९७६, २३६३, २४०९ २५३९ १७९९, १८०२, १८०८, १८०९, १८१०, १८११, १८१२, १८४६, २४४५ ८, १०, ५३९, ५४०, ५४१, ५४८, ५४९, ५५०, ५५१, ५५४, ७२५, ११९३, १२०५, १३१४, १८०१, १८०३ २६१३ आसाम आसोतरा आहोर इंदौर इन्द्रप्रस्थ इला दुर्ग उखलाना उच्चापुरी उज्जयन्त उज्जैन उदयपुर उदरामसर कच्छ देश कच्छ भुज कडि कनउज करहेटक कर्पटहेटक करमणा कलकत्ता ६६९, ७२५, ११९६, ११९८, १२१३, १२१७, १३०८, १३०९, १३१०, १३११, १३१२, १३१३, कांपिल्यपुर कल्याणपुर १३१४, १३१७, १३२४, १३७८, १३७९, १५२२, १५२४, १५४१, १५४२, २०७५, २०७९ १७८५, १७८६ १२८६, २४५८, २६२३ कालाबाग २१८२, २१८३, २१८४, २१८५, कालुपुर परिशिष्ट- ५ प कामरु For Personal & Private Use Only लेखाङ्क २१८६, २१८७, २१८९, २१९०, २१९१ १५४०, १०८९, १९५०, १९५८ १८१८ ९६९ २३३९ २३२२ २४९६, २५००, २५०१, २५०२, २५०३, २५०४, २५०५, २५०७ १९५८ २५७३ ३२६ २५९५ २३ २३, ४६, १४७, २८८ १६६१ १५६६, १५६७, १५६८, १५६९, १५७०, १६६४, १८३७, १९५८, २३६३, २५७६ २६१० १६५३, १६५५ १७८८ १९५८, ९६२ २११ २७३, २७४ १३७४ १७८२, १७८३ १७६१, २२३०, २२६९, २५२१ १७१४, २६३२ २१०२, २१०३, २१०४, २१०५, २१९६, २२००, २२०२, २२७२, २३१६ १४१२ २३३९ २४६८ १७३२ www.jalnelibrary.org Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काशी १५४० कास्माबाजार किशनगढ़ कुलपाक कृष्णगढ़ केकड़ी कोटडा (ग्राम) कोटा कोडीया कोरंटइ क्लिपत्य कूप खाचरोद खेरपुर गंगाशहर गज्जणा १८०४, १८०६, १८१४, २२३१, जयतारण २२३२, २५१८, २५८५, २६२५, | जयनगर, जयपुर, १७४२ जैपुर, सवाई जयनगर, १९५८ सवाई जयपुर, २६८८,२६८९, २७२३ १६९९ २५५३ ११४२, ११५८,१३७१ १९५८,२०३९, २१४५ ९२४ १०८९ १०८१ २०६१ ११५८ २५५८ १३१०, १३११, १३१२, १३१५, १३२७ १६३२ जवणपुर २६५९, २६६०, २६८०, २६८१ जाउर ७६३ जांगलकूपदुर्ग २७२४ जांगलू १४७,२७५,७१५,१०८९,१५४०, जावालिपुर १९५८, २३२५ जीराउली १९५८ जीरावला १५८७ जीर्णगढ़ २७४८ जूनागढ़ २४५५ जेसलमेर, जैसलमेर, ४४७ जैसलमेरु, जेसलमेरु . १३१०, १३११, १३१२, १३१५, १३२७ १६६५,१६६७ १३१०,१३१२,१३८७ ७७९ १६४५, १६४६, १६४७, १६४८, १६४९, १६५०, १६५१, १६५२, १६५४, १६७६, १६७७, १६७८, १६८२, १६८३, १६८४, १६८५, १७११, १७१५, १७१६, १७१७, १७३१, १७३८, १७४७, १८००, १८०१, १८०८, १८०९, १८१०, १८११, १८१२, १८१८, १८५७, १८८१, १९५३, १९९८, २०६७, २१४९, २२०४, २२०५, २४५८, २४८९, २४९६, २५२६, २५२७, २५८७, २५८८, २५९५, २६०३, २६०४, २६१७, २६१८, २६२१, २६६९, २७५६, २७५७, २७५९, २७६० १८३ २८८ गडालय गढ सिवाणाउम्मेदपुरा गांफ गाजियाबाद गिरिनार १८६३ १९, २० ८०४ १९५८ २३२५ १०८९ गुजरात गुढ़ा गुढ़ा मालाणी गुर्जरदेश गोपाचल नगर गोलकुण्डा ग्वालेर (ग्वालियर) घंगाणीपुर चंदेरा चन्द्रावती चम्पापुरी चाम्पानेर चित्रकूट, चित्तोड़ चूरु छिलाग्राम . जंझणपुरी ४६,१४६,१४७,१५७,२८०,२८१, २८८, ३६०, ६०९, ६४४, ७१५, ८४२, ८४४, ८९१, ८८७, ८८८, ८९३,८९६,९०६,१०७०,१०८९, १०९३, ११४१, ११४५, ११६०, १२९४, १३०२, १३०५, १३०७, १३७६, १३८६, १३८७, १३८९, १३८९, १५०३, १५१४, १५१७, १५८३; १५८४, १६०९, १६१०, १६१६, १६५३, १६५८, १७०३, १७३३, १७७६, १८५२, १९५८, १९३५, १९३६, १९७६, २०१७, २०३९, २०७३, २१४५, २१४६, २३४६, २३४८ ११३८ १, २८८, ९३२, १५६४ १६३६, १६४२ . २५४१ २७५ परिशिष्ट-५ पति For Personal & Private Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोधनयर जोधपुर झज्यू झुंझणू ट्रॅक (टोंक) टुंढाड तलपाटक ४८४ तारंगा तेलंगदेश दाढ़ीनगर दिल्ली देरावर देलवाड़ा देवकुल पत्तन देवकुल पाटक देवगिरि देवराजपुर देवीकोट २२६७, २३२४, २३६३, २३६४, २३६६, २३६७, २३७१, २३७७, पंचासरा २४०९, २४४३, २४९२, २५३१, पंजाब २५९२, २५९३, २५९४, २६२४ पचेवर २१९२ पत्तन १७३६,१९५८,२६०९ २५७५ पाटण १९५८ पाटरी १९५८ पाटलिपुत्र २८८ पादलिप्त १७८८,१९५८ २७२३ पारकर २६८७,२६९५ पाली १२३९,१७५५,१९५८ पालनपुर २६५१ पालीताणा १७८८ १५७२ १३३, २२५, २५६ ६४ पाल्हणपुर १४७ पावापुरी १६९२, १७२१, १७३४, १७७४, | पिण्ड नगर १९८६, १९९४ पिपलीया १७०५, १९१९, २२४६, २५४१, | पीपाड २५४५ पीस्सांगण १५९८ पुमतलनगर १९५८, २२२० पोसीनासावली १६६३ पोहकरण १५७२ प्रह्लादनपुर १६११, १७८२, १७८३, १७८४, फलवर्द्धि २४३७, २४४९, २६२२, २७५२, २७५३, २७५५ बंगाल १६६८,२६१३, २६२३ बंभणवाड १५६२ बडुद्रा २५०९ बनारस १७६७,२६२८ बाड़मेर, बाहड़मेरु २६२७ २०६३ बालीपुर बालोतरा २१०२, २१०३, २१०४, २१०५, २१९६, २२००, २२०२, २२७२, बालूचर परिशिष्ट-५ २३१६ १९५८ १९५८ १९१८ ४६, ४७,५४, ५५, ५६, ६६, ६७, ७९, ८०, ८४२, १०५२, १०७४, ११६३,११९९,१२७० १०८९ ६०६ १६२८,१७९० १९१४, १९३४, १९४३, १९४४, १९४६, २१६५, २४७२, २६२५ १०८९ १४८८, २१९२, २१९३, २१९४ १७८८ . १९२६, १९५८, २३२३, २३३६, २३५०, २६१४, २७३०, २७३१, २७३३, २७३६, २७३७, २७३८, २७४९ ८२७ १४३३,१४३५ १९५५ ११८० २८५ २२९३ ११४३ ५६९ १८५९ २८८ ११९२, १२००, १६९५, १६९६, १७४५, २३३९ १९५८ ५२३ २३६३ २५३५, २५३६, २७४१, २७४२, २७४३, २७४४,२७४५ देशनोक देशलसर धुलेवा नाकोड़ा नागदा नागपुर नागोर नाथूसर ग्राम नापासर नाल नालपुर नीमच छावणी पंचालदेश , पांचालदेश १८ २७२५, २७२६, २७२७, २७२८, २७४० १६२०, १६६९, १७६९, १८६५, (५३०) For Personal & Private Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाहडी ग्राम बिलाड़ा बीकानेर १९८१ १७९१ १६६१,२३१९,२३२२ २६२२ २११०, २१३५, २१३७,२६८६ १८५० १६८१ १८४२, २१९२ २४५५ १६५५,१७३३,१७८८ २८८ १९५८ २३१३ १०८९ १८७० २७५२ १९५८ १९१६, १९१७, १९४१, २४१०, | मधुवन २४८१, २४९० मनेर ग्राम ७९६ मरुदेश १५५५ मरुधर ९९५, १०४१, ११०७, १४९०, मरुधर देश १४९१, १५४०, १६२१, १६३९, महाजन १६४६, १६४९, १६५०, १६५१, महिमापुर १६५६, १६६६, १६६७, १६७१, महेवा १६९१, १७०८, १७३७, १७४४, माण्डल १७५६, १७६०, १७६२, १७६३, | | माण्डवी १७८०, १८३४, १९५८, २००२, माण्डव्यपुर २०५३, २०६९, २०८२, २०८३, मारवाड २०९०, २०९१, २०९२, २१२३, मारु २१२४, २१३५, २१३७, २२७९, मारुयाडी देश २२८८, २३३७, २३३९, २३४३, | मालवदेश २३७९, २३८०, २३८१, २३८२, मालपुरा २३८५, २३८६, २३९०, २३९६, मालवा २४००, २४०१, २४०२, २४५८, मालव्य २४९८, २५०९, २५१४, २५२२. | मिथिला २५२४, २५२६, २५५०, २५५७, मिर्जापुर २५९७, २५९८, २६०६, २६१३, १६१९, २६६२, २६६८, २६७९, मुम्बई २६८६, २७३०, २७३१, २७३२, मुरारी छावणी २७३३, २७५०, २७५१ मुर्शिदाबाद २११० १२०५, २७३०, २७३१ मुलताण, मूलताण मेडता १९५८, २२९३, २२९९, २३०४ १९४०,२४६४ १३५५,१३६२,१३६५,१३७६ । मेदपाट २५०३ मेलिपुर १५८०, १६२०, १६७०, १९३४, मेवाड १९४१, २१५८, २३२५, २३३६, मेवानगर २३४८, २३३९, २३७४, २४१०, २४२० योगिनीपुर १९५८ रंगपुर १०७६ रतलाम २८८,६३७,७११,९२६ ९९५, २१०७ २२९ रत्नपुर २५५९, २५७४ १७७५ १८१२, १९१४, १९८१, २१५५, २४४४ १९४२, १९४३, २०७६, २०७७ गुरास छावणा . २३१९ बीकोरनगर बीजापुर बुकडमांकड़ा ग्राम नाम ग्राम १०७८ बूंदी ब्रह्मसर भाणवड भारूंदा मक्सुदावाद २४८२, २४९०, २५२१, २५२५, २६२० ७८६, १५५३, १५९७ १२३०, १२३६, १२९१, १३५३, १३६५, १३७०, १७५०, २३१९, २५४६, २५६,१५७३ ७३४ १९५८ २६८०, २६८१, २६८२, २६८३, २६८४, २६८५ ७२५ १९४१, २४१० १८७०, २०४३, २०५८, २०६०, २१४७, २१४८, २३६३, २४८६, २४८९, २४९२ १८०४, १८०५, १८०६, १८०७, २५८५ (५३१) मगसी मंगलपुर मण्डप दुर्ग मंडोवर मडवाडा मद्रास परिशिष्ट-५ For Personal & Private Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नपुरी रनवती रत्नश्री राजगढ़ राजगृह राजनगर राजनांदगांव राजपुर राजीनगर राडद्रह राणपुर राधनपुर रिणी रक्तगिरि लक्ष्मणपुर लखनऊ, लखनेड लछवाड लाडउल लाड लाडोल लाभपुर लाहोर लुद्रपुर, लुद्रवा, लोद्रपुर, लौद्रवपुर, लोद्रवा वटपद्र वंदेरो ग्राम वागडदेश वाणारसी, वाराणसी विक्रमपुर, विक्रमनगर (५३२ २०४७, २०४९ २०५० २०५१, २०५३ २०५४ २०५७ १६३७, १६३८, १६४० २०५९ १७४०, २४८८ ८६, १४५४ १३११, १३१२, १३१३, १३१५. १३१६, १३२०, १३२६, १३२७, १३२८, १५२५ २५४२ २४७४, २४७७ १३१० १८४२ १०८९ १५२८, १७८८ १५११, १९८७ २८८ विजापुर विपुलगिरि विपुलगिरि मांगतुंग विहार विपुलाचल विमलाचल १९३०, १९३१, १९५४, २१०६, २१८२, २१८३,२१८४, २२२८. २२२९ बिहार नगर वीरमगाव १७२२, १७२३, १७२४, १७२५, वीरमपुर १९९१,२१८५, २३१७ २३७५ ११९३ २३१ १२०५ १२१३ २२६३ वीसनगर वृंदावती वेगमपुर वैभारगिरि १३३५, १३३६, १३४०, १३४१, १३४३, १३८६, १३८७, १९५८, व्रज २५८४ शंखेश्वर २७ शत्रुञ्जय ७८० ११९३, १२०५ १७५९, १७९५, १९८० १९८८ शिखरगिरि २२१७ श्रीपुर ७०९, १०६६, ११५०, ११८९, श्याहजानावाद ११९०, १२२४, १२२६, १२२७, संग्रामपुर १२३८, १२४३, १२५०, १२५१, सत्यपुर परिशिष्ट ५ For Personal & Private Use Only १२५८, १२७२, १२७३, १२७५, १३०४, १४३२, १५४३, १५४४, १५५९, १५७९, १७१०, १९१५, १९६४, १९६५, १९६६, १९६७, १९६८, १९६९, १९७०, २०१९, २०५९, २०६५ २०६६ २११०, २१४१, २२०६, २२१३, २२१४, २२४६, २२८६, २३४२, २४५३, २४६७, २४८०, २५६६, २५६७, २५६८, २६२९, २६७०, २६७१. २६७२, २६७३ २६७४, ११९३ ८६, १४५४ ८६ ८६, १६३० १३०९, १३१०, १३११, १३१२. १३१३ १४३३, १४५४ १०८९ ७१५, १०१६, ११५७, १९८४, १२७८, १२७९, २१९२, २१९४, २६०९ १७८८ २२९१, २२९२, २२९६, २२९८, २३०६, २३०८ १३८८ ८६, ४१८, ७०२, १७७०, १७७१, १७७२, २००९, २०१२, २०१३, २०१४, २४३८, २४३९ १७४५ १९५८ ४, ४१, ४७, ५७, ५९, १४७, २८८, ७१५, १०७९, ११९३, १२२४, १२७५, १५४०, १५४२ १८६६ १३१०, १३११, १३१२, १३१५, १३२७ १७५५ १२२३ ४१७ www.jalnelibrary.org Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मेतशिखर, सम्मेतशैल सागरनालो सिकन्दराबाद सिद्धगिरि सिद्धाचल सिन्ध सिन्धुदेश सिरदारनगर सिरदारशहर सिरोही सिवाणा सिवाणा उम्मेदपुरा सिंहपुर ४६, ११४७, ११४८, १६३९, सूरत १८८१, १९१५, १९८१, २२१७, २२३०, २४२०, २४५५, २४८१ ६११ २६८८, २६८९, २७२३ १९५८ १६६२, २१६५, २६२०, २६९३, २६९४ १९५८ ११९३, १२०५ १९८४ २२११,२४६७ १२०४, १२२७ १५०२. २६५१ २६६१ सूरतगढ़ सूर्यपुर सूलाग्राम सोजत स्तम्भ तीर्थ हमीरपुर हरसानी हरिदुर्ग हाडौती हैदराबाद परिशिष्ट - ५ For Personal & Private Use Only १६८८ १५३८, १६८७, १८३६, २०२० २२७१, २२८७ १५८१ २४८४ २७२१ ४६, ३५६, ५९६, ५९७, ७८५, १२०५, १३७७, १५४५ १५००, १६१७ २७२९ १८६४, १८८९ १९५८ २५३३, २५८३, २६८८, २६८९, २७०३, २७०६, २७११, २७१२, २७१३, २७१४, २७१६, २७१९, २७२१, २७२३ ((५३३) . Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६- परिशिष्ट लेखस्थ जातियों की नामानुक्रमणी उएस, उपकेश, उसवंश, उसवाल, ऊकेश, ओकेश ओस, ओसवाल, उ० उस० जाति/वंशलेखाङ्क-६, २२, ३३, ३४, ४०,४६, ६४,८४, ८५, ८७,८८,८९, ९६, १०३, ११७, ११८, १२०, १३४, १३५, १३६, १४०, १४१, १४२, १४३, १४७, १५५, १५६, १५७, १५८, १६०, १७२, १७४, १७५, १७९, १८०, १८१, १८५, १८९, १९३, १९७, १९९, २०४, २०५, २०७, २०८, २०९, २१०, २११, २१२, २१३, २१४, २१५, २१६, २१७, २१८, २१९, २२०, २२२, २२५, २२६, २२८, २३०, २३५, २३६, २३७, २३८, २३९, २४०, २४१, २४२, २४३, २४४, २४५, २४६, २४७, २४८, २४९, २५०, २५१, २५३, २५६, २५७, २५९, २६०, २६२, २६४, २६५, २६६, २६७, २६८, २६९, २७१, २७२, २७३, २७४, २७६, २७७, २७८, २७९, २८०, २८१, २८२, २८३, २८४, २८५, २८७, २८८, २८९, २९०, २९५, २९६, २९७, २९८, २९९, ३००, ३०१, ३०२, ३०४, ३०५, ३०६, ३१२, ३१३, ३१४, ३१६, ३१७, ३१९, ३२१, ३२२, ३२३, ३२८, ३३५, ३३७,३३८, ३३९, ३४१, ३५१, ३५५, ३५६, ३६२, ३६५, ३६७, ३६८,३६९, ३७३, ३७६, ३७७, ३७८,३७९, ३८०, ३८१,३८२, ३८३, ३८४,३८५, ३८६,३८८, ३९०, ३९३,३९४, ३९५, ३९६, ३९७, ३९८, ३९९, ४००, ४०१, ४०३, ४०४, ४०५, ४०७, ४०८, ४०९, ४१०, ४११, ४१४, ४१६, ४१७, ४१८, ४१९, ४२०, ४२२, ४२३, ४२४, ४२७, ४२८, ४२९, ४३०, ४३१, ४३२, ४३३, ४३४, ४३५, ४३९, ४४१, ४४७, ४४९, ४५०, ४५२, ४५३, ४५५, ४५६, ४५९, ४६०, ४६१, ४६२, ४६३, ४६६, ४७०, ४७१, ४७२, ४७३, ४७४, ४७५, ४७६, ४७७, ४७८, ४७९, ४८०, ४८१, ४८२, ४८३, ४८४, ४८६, ४८७, ४८८, ४८९, ४९०, ४९१, ४९२, ४९३, ४९५, ५०१, ५०२, ५०३, ५०५, ५०७, ५०८,५०९,५१०,५११, ५१२, ५१३,५१४, ५१५, १५६,५१७, ५१८, ५१९,५२०,५२१, ५२२, ५२३, ५२७, ५२८, ५३०, ५३२, ५३३, ५३४, ५३५, ५३६, ५४२, ५४६, ५५३, ५५८, ५५९, ५६०,५६१, ५६३, ५६४, ५६५, ५६६, ५६७, ५६८, ५६९, ५७०, ५७१, ५७४, ५७५, ५७६, ५७८, ५७९, ५८०, ५८६, ५८९, ५९१, ५९२, ५९३, ५९४, ५९५, ५९६, ५९७, ५९९, ६००, ६०१, ६०२, ६०४, ६०५, ६११, ६१६, ६२१, ६२३, ६२५, ६२६, ६२७, ६२८, ६२९, ६३३, ६३५, ६३६, ६३८, ६३९, ६४०, ६४२, ६४३, ६४४, ६४५, ६४६, ६४७, ६६७, ६६९, ६७०, ६७१, ६७५, ६७८, ६७९, ६८०, ६८१, ६९०, ६९४, ६९६, ६९७, ६९८,७०४,७०५,७०६,७०८,७०९, ७१०,७१५,७१७,७१९,७२०,७२१, ७२२, ७२७,७२८,७३१,७३६, ७३७,७३८,७३९,७४०,७४१,७४३, ७४४,७४५, ७४६, ७४७,७४८,७४९, ७५०,७५२, ७५४, ७५५, ७५६, ७५७, ७५८, ७५९,७६७,७६८,७६९, ७७१, ७७२, ७७३, ७७४, ७७५, ७७७, ७७९, ७८०, ७८१, ७८२, ७८५, ७८६, ७८८,७८९, ७९२, ७९३,७९४,७९५,७९६, ७९७,७९८,७९९,८००, ८०१,८०२,८०३, ८०४, ८०५, ८०७, ८०९,८१०, ८११, ८१२, ८१३, ८१४,८१५, ८१६, ८१७, ८१८,८२१, ८२२, ८२३, ८२४, ८२५, ८२६, ८२७, ८२८,८२९,८३३,८३४,८३५,८३६,८३७,८३९, ८४४,८४५, ८४६,८४७,८४८,८५०,८५१,८५२,८५३, ८५४, ८५५, ८५६, ८५७, ८५८,८६०, ८६१, ८६२, ८६३, ८६४, ८६५, ८६६, ८६७, ८६८, ८६९, ८७०, ८७१, ८७३, ८७४,८७५, ८७७,८७८,८७९,८८०,८८१,८८२,८८३,८८४,८८५, ८८६,८८७,८८८,८८९,८९०,८९१,८९२, ८९३,८९५, ८९६,८९७,८९९, ९००,९०४, ९०६, ९११, ९१२, ९१३, ९१४, ९१५, ९१७, ९१८, ९१९, ९२२, ९२३, ९२५, ९२६, ९२७, ९२८, ९२९, ९३१, ९३३, ९३४, ९३५, ९३८, ९३९, ९४०, ९४१, ९४२, ९४३, ९४४, ९४५, ९४६, ९४७, ९४८, ९४९, ९५०, ९५१, ९५२,९५३, ९५७,९५८,९५९, ९६४,९६५, ९६७, ९७१, ९७२, ९७५, ९७७, ९७८, ९८०,९८१, ९८२, ९८३,९८४,९८६,९८८,९९१,९९३,९९८,१००२,१००३,१००४,१००५, १००७,१००८,१००९, १०१०,१०११,१०१४,१०१५,१०२३,१०२४,१०२५,१०२९,१०३०,१०३१,१०३२,१०३३,१०३४,१०३५,१०३६, १०३९,१०४०,१०४१, १०४२, १०४३,१०४७,१०४८,१०४९, १०५२,१०५३, १०५४,१०५५,१०५६, १०५७,१०५८, १०६१,१०६७,१०६८,१०६९, १०७०,१०७१,१०७२,१०७५, १०७६, १०७७, १०८०,१०८२,१०८३,१०८४, १०८५, १०८६,१०८७,१०८८,१०८९,१०९१,१०९४,१०९७,१०९८,१०९९,११०४,११०८,१११०,१११२,१११७, ११३१, ११३२, ११३५, ११३८, ११३९, ११४०,११४५, ११५१, ११६०,११६१,११६३, ११६४,११६९,११७२, ११७३, ११७४, ११७६,११७७,११७८,११७९,११८०,११८६,११८७,११९५, ११९६, ११९८,११९९,१२०५, १२०६,१२१२,१२१४, (५३४) परिशिष्ट-६ For Personal & Private Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१६, १२१७, १२२२, १२२६, १२२७, १२२८, १२३०, १२३१, १२३२, १२३३, १२६२, १२७०, १२७२, १२७३, १२७५, १२७७, १२८५, १२८६, १२८७, १२९०, १२९२, १२९३, १३०८, १३१४, १३१७, १३१९, १३२०, १३२४, १३४५, १३५२, १३५५, १३५७, १३५८, १३५९, १३६१, १३६२, १३६४, १३६५, १३६६, १३६७, १३७२, १३७४, १३७८, १३७९, १३८०, १३८६, १३८७, १४१४, १४१५, १४४१, १४५५, १४५८, १४६५, १४६८, १४७३, १४९०, १४९१, १५२२, १५२५, १५४०, १५६०, १५६४, १५६६, १५६७, १५६८, १५६९, १५७०, १५७२, १५७३, १५८१, १६०३, १६१३, १७२२, १७२३, १७२४, १७२५, १७९९, १८००, १८०१, १८०२, १८०४, १८०७, १८०८, १८०९, १८१०, १८११, १८२३, १८२४, १८३६, १८४५, १८४९, १८९६, १८९७, १९००, १९०२, १९०३, १९०५, १९०६, १९०७, १९१२, १९१४, १९३४, १९४२, १९४२, १९४८, १९६४, १९६५, १९६६, १९६७, १९६८, १९६९, १९७०, १९७१, १९७२, १९७६, १९८८, २०११, २०१२, २०१३, २०१५, २०४४, २०६४, २०७५ २०७६ २०७७ २०७८ २११०, २१४६, २१६५, २१६६, २१९२, २१९६, २१९९, २२२६, २२२७, २२४५, २२७२, २२९१, २३१७, २३२५, २३३६, २३५५, २३५६, २३६३, २३७४, २४५२, २४६४, २४६८, २४९२, २५८४, २५८५, २५९२, २६१६, २६१७, २६१८, २६१९, २६२०, २६३३, २६३४, २६६८, २६७०, २६७२, २६७३, २६७४, २६७५, २६८६, २७०६, २७१२, २७१४, २७१६, २७१८, २७२०, २७५७, २७५८, २७६० कांताल (ज्ञाति) - लेखाङ्क- ११ खण्डेल (वंश). लेखाङ्क- १ - गौर्जर, गूजर, गूर्जर (ज्ञाति) - लेखाडू- ३२, १११, ८१९, ८२०१०९६ गोष्ठिक - लेखाङ्क २० चन्द्र (वंश) - लेखाङ्क - ५९७ दीसावाल (ज्ञाति) लेखाडू- ४४८ धर्कट (ज्ञाति)लेखाङ्क - १ प्रमार (वंश) - लेखाडू- १ प्राग्वाट लेखाङ्क - ८, १८६, ३४०, ५३१, ५७२, ५८५, ५८७, ७१८, ७३२, ७५१, ८३२, ९५४, ९६२, १०१७, १२१३, १२७४, १३०९, १३१०, ३१११, १३१२, १३१३, १३१५, १३१६, १३२६, १३२७, १३२८, १५४१, १५४२ मंत्रिदलीय, महतियाण, मुहतियाण (ज्ञाति) - लेखाङ्क - ८६, १०५, १८३, २७५, ३४२, ३४३, ३४४, ३४५, ३४६, ३४७, ३४८, ३४९, ४५१, ४५४, ४५७, ४५८, ४६७, ५८३, ५८४, ५८८, ५९०, ६४८, ६४९, ६५०, ६५१, ६५२, ६५३, ६५४, ६५५, ६५६, ६५७, ६५८, ६५९, ६६०, ६६१, ६६२, ६६३, ६६४, ६६५, ६६८, ६८४, ६८६, ६८७, ६८९, ७३५, ९०५, ११०५, १३९५, १४०४, १४१०, १४३३, १४५४ परिशिष्ट- ६ For Personal & Private Use Only (५३५) www.jalnelibrary.org Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मांगल (ज्ञाति)लेखाङ्क- १०९५ मित्रवाल (ज्ञाति) - लेखाङ्क- ११८३ मिरगा (जाति) - लेखाङ्क- ७९९, १८१३ यादव वंशलेखाङ्क- १४६, २८८ राठौड़ (वंश)लेखाङ्क- १२७१, २११०, २१३५, २१३७, श्रीमाल (ज्ञाति)लेखाङ्क- ३६, १००, ११३, ११४, १२९, १३०, १३३, १६५, १६६, १६९, १९४, २०१, २०२, २०३, २२१, २२३, २२९, २३१, २३४, २५४, २६१, २६३, २८६, ३०३, ३२०, ३२४, ३२७, ३३३, ३३६, ३५३, ३५८, ३७१, ३९२, ४०२, ४०६, ४१२, ४१५, ४२१, ४२५, ४२६, ४४०, ४६४,४६५, ४६८, ४६९, ४९४, ४९६, ५०४, ५२५, ५२९, ५६२, ५८१, ५९८, ६३७, ६४१,६६६,६७४, ६७६, ६७७,७०२,७११,७१२,७१६,७२३,७२४,७२५,७३४,७६१,७६२,७६३,७६५, ७६६, ७७०, ७७६, ७८३, ७८४, ७९०, ९२०, ९२४, ९५५, ९५६, ९६१, ९६६, ९६९, ९८५, ९८९, ९९०, ९९४, ९९६, ९९७,१०००,१००१,१०१८,१०१९, १०२०, १०२१, १०२८,१०३७, १०४५, १०५९, ११०२, ११०६, ११३३, ११५२, १२२५, १२३९, १३५३, १४९२, १६७६, १६७७, १६७८, १६८२, १६८३,१६८४,१६८५, १७४३, १७५९, १७९१, १८९८, १९०१, १९०८, १९०९, १९१०,१९११,१९२६, १९३०, १९३१, १९५४, १९७८, १९९१, २०६७, २०६८, २१०३, २१०४, २१०५, २१०६, २१९८, २२०१, २२२१, २२२२, २२२३, २२३०, २३१८, २३७३, २५६९, २५७२, २६०२, २७०३, २७०७, २७०९, २७१०, २७११, २७१७ श्रीश्रीमाल (ज्ञाति)लेखाङ्क- १०२, १३१, १३२, १८८, ३२५, ३२७, ३६३, ३६४, ४४६, ५२६, ५७३, ६०६, ६८५,७२६, ९३०,९३६,९३७, ९९२, १०१२, १०१३, १०२२, १०७८, १०९०, १०९२, ११२२, ११९३, १३२३, २७३१ श्रीमाली (ज्ञाति) - लेखाङ्क- ११२, ५२४,५२६,५२८,७५३,९०१ परिशिष्ट-६ For Personal & Private Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७- परिशिष्ट लेखस्थ गोत्रों की नामानुक्रमणी गोत्र लेखाङ्क गोत्र लेखाङ्क ७३६ ४५१ अगडकठोली अम्बाडी अरडक सोनी आईच्चण १२८५ १५७३ १२८६,१२८७ ९११ ५८८ ६७३ कानइड़ा कारुणा काश्यप कीमती कुंकुमलोल कुकडा, कूकडा आंधा ५०४ कुकडा-चोपड़ा आकदूधिया आगम आचवाडिया आम आयरिया आयरी आववाडीया इंटोणा उसियड़ कचराणी गोलेछा कटारिया ९५४ १०९० ५३१ ५३६ ८३९ ९९२ कुर्कट कठारा कर्मदिया, कर्मदीया २७०५ ९८९ १८४, ४६६, ५११, ५१२, ७४९, ७५५,७६८ ६१६, ८५४, ८५५, ८४४, ८४७, ८६२, ८६८, ८८१, ८८२, ८८३, ९८८, १०८७, १०८८, १२०८, १२४२, २४२१ ७०५,७३९ २७० २७५९ ९३१ २६८६, २७०४ १६०५, १६४६, १६५१, १६५२, १६७१, १७३१, १९०३, १९७२, २०९७,२४०३, २६००, २६२७ २३३९ २१५२,२६२३ ३१८ १४५४ ७९२ ५२५,५२६,९३६,१०४५,११०६, १६८३,१९५४ ११८३ ५९८ २३८, ३७९, ६१०, ६१४, ६१५, ६२२, ७९९, ८३५, ८८६, ८९९, ९८४, १०९८, १२४५, १३०७ ८८७, ८८९, ८९०, ८९१, ८९६, ९००, १३५५, १३५४, १३६५, १३६६, १३५७, १३५८, १३५९, १३६१,१३६२, १३६७ १९०९ कुशला . ६४६ कुहाड २६७८, २६७९ कोगरिशाखा ५२२,८०१,८०२, ९१९,११७०, कोचर १५५५, २०४६, २०५८ कोठारी १८२३ ३१४, ९२५, ९२८, ९३४, ९५०, १०५७ कोठारी चौपड़ा १५५५ खजान्ची २३२, २३३, २३५, ३७३, ४०५, खटवड ४११, ५४२, ७३८, ९२९, ९८०, खण्डेलवाल १०३३, १०३४, १०७७, १०९१, खाटड १७१९, १७२३, १७२५, १९०७, खारड २३१७, २७१५ १७१ खीसेगार १६७, १६८, ३४७, ६४८, ६४९, खेडरिया ६५०, ६५१, ६५२, ६५५, ६५६, गणधर ६५७, ६५८, ६६०, ६६१, ६६२, ६६३,६६८,१४३५ १५८० गणधर चोपड़ा कलावत कांकरिया . काकस वंश काणा २३४ कातेल कादमिया कादी काद्रडा ४१४ १४३५ परिशिष्ट-७ ) ५३७ For Personal & Private Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणधर - चौपड़ा कोठारी २११५ गांधी गादरिया गादहिया गीडिया गुगलिया गुब्बर बोरा गुलेच्छा, गोलछा, गोलेच्छा, गोलवच्छा गैहलड़ा गोठ गोठी गोलछा कचराणी गोलछा धनाणी गोलवला महता बोजानी गोवर चोर गोष्ठिक घेरिया घेवरीया घोरवाड चणगीया चण्डालिया चण्डाली चरखडिया चलउट चारभाइया चिणालीया चोपड़ा, चौपड़ा (५३८)) २१६३, २१८९, २१९० ३०५ ९४९, ११९९ २६७६, २६७७ २०४८ २७२०. ५०५, ६३८, ६३९, ८२९, ८७० १०५३, १०५४, १२७२, १२९१, १६७२, १९६४, १९६५, १९६६, १९६७, १९६८, १९६९, १९७०, चोरबेड़िया २३२५, २३७४, २४०२, २४०३, २४०५, २४०६, २४३६, २४५६, २५३१, २६२१, २७२२, २७५३, २७६० १६८१ ११७९ ५६०, १०२६, १०२७ २५५०, २६६२, २६६८ २४५३, २४५४ १८१४, १८१६ ५८४, ५९० ९२६, १०१२,१०१३ चोपडा-कुकडा चोपड़ा कोठारी चोरडिया, चौरड़िया ७७६ ९९८ चोहित छक्कडिया छत्रधर छाजहड़, छाजहड़, छाजेड़ छजलानी छिजलानी ड़िया जरगड़ ८७९ जहड़ ७७२, ९७९, १०२१. १०२२. जांगड १३५३, १७९८ जांगडा ४३३ जाजा ११४७ जाजीयाण ४४७ १३०९ ३०३ ११७, १८९, २५२, २६५, २७८, २७९, २८०, २८१, २८२, २८३, २८८, २८९,२९० ३८६, ४२३, ४५०, ४५३, ४९८, ५०७, ५१३, ५१६, ६४४, ६७०, ६९८, ७१७, जाटड जिनरक्षत जीराउला जुनीवाल जूझ झाडचूर झाबक परिशिष्ट- ७ For Personal & Private Use Only ७७३, ८०६, ८०८, ८१४, ८७१, ९०४, १००६, १००८, १०२५. १०५६, १०६२, १०७३, १०८०, १०८९, १११२, ११७१, १२१६, १२८९, १३९५, १४१०, १४३०, १४३३, १४३५, १४५४, १४६६, २१२२, २.२८४, १८३३ ८३८ २००१, २२८९ १८१५, १८३९, १९०६, २१०४, २३३९, २४२२ १३१७, १३५४, १५१६ ३६९ ४९६ ७९८ २३०, ३१७, ३१९, ३९३, ३९४, ४५२, ४५५, ५१८, ५१९, ६१७, ७७४, ७८८, ८१७, ८५८, ८७२, ८९२, ९१०, १०११, १०४७, १०५८, १०८३, ११०४, ११५६, ११८६, १२७१, १३०५, १४४१, १४९६, १८६०, २१८७, २१९१, २६५१, २७२९ १८१५ १९८८ २१०५ १६७७, १६८४ ६ ३३०, ३३४ ५७१, १०९९ ७८२ १४३५ ३४२, ३४३, ३४८ १०१७ १०८९ ६४१, ७६५ १४३५ २७०७, २७०९, २७११, २७२२ ४९३, ५०९, ८३३, २७५८ www.jalnelibrary.org Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टांक टांटीया टामी टीक ठाकुर ठाकुरा डाकुलिया डागा ४६५, ११०२, १७५९, १९९९, २२३०, २३१८ २६०९ ७६२ ४८८ ६३७,७११, ७१२ २२०७, २३०९, २३१०, २३११, २३१२, २३१४, २३१५, २३२६, २३४०, २३४१, २३४६, २३४८, २३४९, २३७५, २४१०, २४२०, २५२५, २६१९ २५२८ दुधेड़िया ६७६ दुल्लह ७३५ डागा-पुंजाणी डारगाणी-ढढा डूंगरिया डोसी ढढ्ढा १९३० ३२१, ३३१, ३३२, ४३२, ४७८, ४८७, ५६८, ७९५, ८००, ८३४, ८५६, ८६७, ९३८, ९४७, ९७२, ९७४, १५६७, १५६९, १५७०, १५७१,१६६४ १०१५ २४२३ २७१८ ११४, १३०, १०२८ २३१९, २४३७ २३५६ २३७३ १५७६ ३९२ ९३१ १८४६ ढीक ढोर धीर तातहड़ ताहि ४००,५६४ दुसाज १५६, १७८, २४७, ४८४, १२४०, दोसी १२४६, १२५१, १३८०, १४७२, १८२४, १९१२, २६५८ २४५८ १९७१ १९७८ दोसी-वोहड १३८४ धड़ेवा २०५३, २०५९, २१३१, २५९५, धरोड २७०१, २७०२, २७०४, २७०५, धांधिया २७०६ धाड़ीवाल २०५,५३३,७५९,१०१० धाड़ेवा ११३, १६६, ३७१, ४६८, ४६९, धीधीद ९२०, १०५९, १२२५, २२२३, २६०२, २६०३, २६०४ धेकरिया ६०५,७०४,८२५, १२९५ ध्रव ७६७ नखत ८५३ . नवल ६६३ नवलक्ष, नवलखा, ४७३,६९७ नौलखा २०६, ३०४, ४३१, ४३९, ४९२, ४९७, ५३५, ६१२, ६२७, ७०९, ७७१,८४५ ६३६ ७१६ ७८४ नांदी २३९५ नाचण २०८, २५१, २६८, ३३७, ४४१, नाडूल ४९१, ५२७, ५४६, ५५३, ५५९, नानगा ७९४, ८२८, ११३५, १२५५ नानहड़ १७९, १९९, ६०२, ६०३, ७४१, नान्हरा ९७०, १०३९, १८१७, १८२९, नावर १८७८, १८८६, १९०२, १९०५, नाहट, नाहटा १९१६, १९१७, १९३४, २००७, ४६४ तिलहरा तुशीयड तेलहरा थुल्ल, थुल्ह; थुल्हा थूल थेउरिया दक्क दफ्तरी २५,१४२,१९२,१९५,२१२,२१३, २१४, २१५, २२५, २२७, २३९, २५६, २६०, २६४, ३००, ३८९, ७३१, ९९५, ११०७, १२३१, १५६०, १५७२, १५७३, १८८४, १८८५,१९०० ३२७, २८६ ४४०,७८३ १५४० २३८२,२३८५ ६२३ १४३५ १३३ १०९, १३४, २७३, २९५, २९७, ३८०, ४०७, ४७०, ५२१, ५३४, दरडा दुगड़, दूगड़ परिशिष्ट-७ (५३९) For Personal & Private Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५५ ३२३, १०७४, १२७५ ६३१,८११, ८४९, ९९४, १३३०, १६८२, १६८५, १९०८, १९१०, १९११, २०६७, २२२१, २२२२ ९५१ ८५७ ३५७ २७१६ ९९५ नाहर २९६ पंचाणेचा पड़सूत्रीया पड़िहार पटना पटनी परीक्ष बहुरा परीखि पहलावत पहाणेचा पागणी पाटदड पाटणी पापड पारख पारीक पारीक्ष पारीख पालेचा पाल्हाउत पाहड़िया पिपाड़ा पुसला पोकरणा पोहकत्रणा प्राग्वाट गोत्र प्रहावत ६०९, ६४५, ६४६, ७२८, ८५९, प्राहमेचा १०२४, १०३१, १०३२, १४१४, फसला १७२२, १७२४, १८८०, १९४२, | फोफलिया १९४३, १९४८, १९८३, २०७६, २०७७, २१६८, २१६९, २१८६, २२८१, २२८२, २२८३, २३३६, बइताला २४१०, २४३५, २६११, २७३०, | बंबोड़ी २७३१, २७३२, २७३३, २७३४, बंभ २७५०,२७५१ बंसल ९२,२०४,३६८,७२१,७२२,९७१, बच्छावत २२२५, २६२० बडालिया २१७,५७२ बलाही १०५५ बहकटा ८४८,८७३ बहरा २७३८ बहुरप २७२१ ३१३, ४७४, ५५८, ५६७, ५७४, ६२९, ८५२, ८६०, ८६१, ९४५, बहुरा धाडीवाल ९५७,१०६१ बहुहरा १०६८ बहुफणा १८९६, २२४५ बांठिया ९७६ ३५८ बापणा, बापना ५६१ बाफणा २०४९ ११५२ ५०६, २६८७, २७५४ १०४२ ८७८ ९०६,१०७६,११४५ २६१६ २५३ १४३५ २००९,२०१३ बावड़ा ३२२ बाहुकटा २०५६ बुचा २०४७ बुथड़ा ११३१ बुहरा २१८२, २१९६, २१९७, २१९८, बूचडा-कोठारी २२७२ बेगवाणी ७२९ बोरा ८२३, ९२२,१०५२,१५५९ ६७७,९६६ ४३४ २५८ ३८८, ४४९, ६७४, ६७५, ७५८, ९२७, ९५८,११६५, १२३३ १२७७ १२३९ २२९१, २४८८, २४९२, २५८४ ८८९, १४६२, १६६०, २४५८, २६१८ ५१०,८०७,१११५ ८६६, १२७०, १४५८, १६९३, १७०६, १७६०, १९३५, १९३६, १९३७, १९५८, १९७६, २०३९, २०४०, २०४४, २०६०, २११९, २१२१, २१४६, २२९२, २२९९, २३०१, २३०२, २३०३, २३०४, २३०५, २३०६, २३०७, २३०८, २३६३, २३६६, २३६९, २४०९, २४३३ ६५४ ११७७ बायड़ा २०१ ११४९ १७०, ६७९ ३७६,६०४,७४६,९४४,१०२९ १००९ १९३८ २१२० प्रामेचा (५४०) परिशिष्ट-७ For Personal & Private Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२९, १०००, १००१, १०३७, १०६५, १८९८, १९३१ ६८१, ९१५, १०४९, १०७१ ११४०,१३७४ ८८,७८६ २५९९ २२३ ९९७ ४१५ ४१२ बोथरा ५२०,८१३, १२०६ भांडिया बोथिरा ३८५,८१२,६४२,१०६३,१०८५ बोहड-वर्धमान २२८,२३६, २५९,१०१४ . भाटिया, भाटीया बोहथरा २६१० भाण्डागारिक बोहरा १७१, १६५८, १८९७, १९२६, | भाभू १९७७, २५१२, २७०८ भुगड़ी बोहित्थ १३१०, १३११, १३१२, १३१३, मउठिया १३२८,१३६५,१३७६ मउवीया बोहित्थरा, बोहित्थिरा ४०, ८१०, ९९१, १०२३, १०४०, मघाल १०४१, १०४३, १०६४, १०८४, मथाल १०९४, ११०७, १११०, ११११, | मरोठी १११४, १११७, १११९, ११२९, महता १२०४, १२२६, १२२७, १२७३ | महधा बोहित्थिरा-बच्छावत १२१७ महमवाल ब्रामेचा ११९४,११९७,१३७८,१३७९ भंडारी ३५९,५८९,८७५,१००२,१२०५, महमहिया १२३२, १४६४, १४६९, १४७०, महिमवाल १४७१, १४७३, १४७४, १४९७, महिमिया १५४०, २०५०, २७०६, २७१८ । महेमवाल भडगतिया २५४३, २५४४, २५४६, २५६१, मांगरेचा २५६२, २५६३, २५६४ माधाल भडगरा २५७० मालवी भडिया ४२१ माल्ह भणसरील ३९७ माल्हा भणसाली, भडसालिक, मालु, मालू 'भाण्डसालिक १७४, २१९, ३३९, ३९५, ४०१, ४१६, ४१७, ४५९, ४७६, ४७९, | माल्हु, माल्हू ५.०८, ५३०, ५८०, ६७८, ६९०, ७२७, ७३७, ७५०, ८२१, ८२४, | मिण्डिया ८३१, ८७४, ९२३, ९४०, ९४१, मिधूज ९४२,९४३,९६४, ९८३,१००३, मिरगा १०५६, १११८, १३१४, १३२०, मीणवाण १३२४, १३३१, १३३७, १३३८, मुंत्राड १३३९, १३४०, १३४१, १३४२, १३४४, १३४६, १३८६, १३८७, मुकीम कोठारी १४२३, १४२४, १४२५, १४२६, मुणोत १४५५,१५०३,१५९७ मुण्ड भरदव ९६० मुण्डतोड भरहटि १९७ मुण्डलेह भांझिया २६१,२६३ मुमिया, मुमीया मुहणोत १६६५ ३५३,१०१८,१०२०, २२२७ १४३५ २१०३, २१९८, २२०१, २५६९, २५७२ २१०० १६७८,१९०१ १७५० २७०३ १४१५ ४०६ २००५ १०३ २७२ ४१९, ४२४, २४७४, २४७७, २४८४ ३२९, ४२८, ४६१, ४६२, ५०२, ५०३,९१४, १६२८,१७७५ २०६८ १०४४ १७९९,१८१३ . १४३५ ६८७ २२१३, २२१४ २४६७ २०६४ ६८६ . ३४९,४५८,६८९,११०५ ६८४ २१६५,२१६६ १९५६ परिशिष्ट-७ (५४१ For Personal & Private Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता मुंहता मूंथा मूठिया मेडतवाल मोणोत मौठिप्पा रांका ६९२ ८४६ ३९० राकेचा, राखेचा रायथला सेठिया रीहड वहंकटा २२१ ७१४,२१९३ १२३०, १२९०, १२९२, १२९३, २१९२ १३१९,१४६०,१६६८ २७१३ वईताला १०४८ ४२५,४२६ वउहरा २५५३ वडहरा २११२ वडूनाताला ९९६ वणागीआ ७८७ १४७, २१८, २४२, २४८, २७६, वदलिया १७९१ ४८०, ४८१, ५१४, ५२८, ५९३, वरडिया, वरढिया १७२१, १८०४, १८०५, १८०६, ५९४, ७४३, ८३६, ८३७, ८८४, १८०७, १९५०, २०१७, २१०६, ९३९, ११७८, २५९०, २७१७ २५८४,२५८५ ८०८, ११६४, ११७२, १४३१, वरहडिया ३८३ २४८५ वर्तिदिया ३४५,१४३५ ८२२ वर्धमान बाफना १५६७ ३९८, ४२२, ४७२, ५७८, ५७९, वर्धमान बोहड शाखा ३२१,९४७ ७०१,१०९७,११८८,१२८२ वलाहि, वलाही २१६, ९१८, १३५२ १०६९ वहकटा ९६१, ९८५ ७४७ ५८२ १४३५ वहकटी ३५० वहगटा ११४६, २६७०, २६८१ वहरा २४५, २४६, ३९९ ९६५ वाइडा १०७२ वाउया १११ २५७,८७६,८७७,८९७,१२२४ | वागरेचा २४६४ १२८३, १९४९ वायड ४५७ वायडा ८१६, २०४५, २०५४ ११३२ वारिआववाड ११२२ २४०, ६००,६०१ वालढ ३९६ २०४३ वाहट शाखा । २७४ २७०० वीणायग १७,१५५, २४४, २८४,४३५,४६३, | विनायक ५०७, ६२१, ८०३, ८०९, ८६३, विनायकीया ५९१ १०६६, १६०७, १६१२, २०९८, विनालिया ११३३ २१११, २१३०, २३८६, २४४०, वीरवाडन २०५७ २४६८, २५८३, २५९७, २७१३, १५९७ २७१६ वैद २०२, २५२,८९३, १९१३, २३५० १०८, ११९, १२०, १६९, २२२, | वैद महता २२२६ ३१५, ३१६, ३७२, ३७७, ३८१, वैदमुहता १८३४,२००८,२११६ ३९१, ४८५, ४९९, ५९९, ६४३, वैदमुंहता १७४४ ७६९, ११८७, १२२२, १२२८, १८५५ वोहड-वर्धमान रेहड़ रोहड रोहदीय लटाउरा ललवाणी, ललवानी लाभू लाहि लिंगा लिग्गा लिटा लिम्बोदिया लूंकड लूंका लूणावत लूणिया, लुणीया ९०५ १६१ ३१२ वेगवाणी लोढ़ा १०५१ (५४२ परिशिष्ट-७ For Personal & Private Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० साहु ४८२ शंखवाल, संखवाल सामकठ शंखवालेचा, संखवालेचा१२८, २२६, २७७, ३६०, ३८२, | सारंगाणी ढवा १६४९ ३८४, ४१३, ४३०, ५२४, ६०८,| सावणसुखा २४४२,२५५८ ६१३, ६१९, ६२०, ६२४, ६२५, ४२९ ६२६, ६३२, ६३५, ६९१, ६९६, | साहुशाख, साहुशाखा १६०,७५७, १००४, १०७६ ६९९,७०६, ७१५, ७४२, ७४४, साहुसाखा, साहूसाख ४०३, ५७०, ७००, ७१९, ७२०, ७५४, ७५६, ७६०, ८५०,८८५, १००७,१०३५,१०६७ ८९५, ९५२,९७९, ९८६,१००५, | साहू ७७०, ८१९,८२०, १०९३, ११४३, ११६०, ११६१, | साहू भेलड़ीया ५८६ ११७३, ११७४, ११८४, ११९५, | सिंघवी २७०१, २७०२ ११९६, ११९८, १२१२, १२१४, सिंघाड़िया ९५३ १३१८, १३२१, १३७७, १८४२, | सिंधड़ १६७६ २१९२ सिंधुड़ ९९०,१०१९ शाह ४३० सिंधूण ३३६ शाहशाखा सिसोदिया १५७२ षोवडा ५६२ सीधुड ९६८ श्रीभगाड ६५९ सीपाणी २३३९ श्रेष्ठि १३९, २४१, ५००, ५९६, ५९७, सुनामडा ४५४ ६४७, ७८५, ८६४, ८६९, ९७८ । सुराणा १६०६, १६६६, १६६७, १८३७, संघवी २५९२, २७१४, २७१९ १९८५, २०६२, २०९०, २३३५, संघेला २३८९, २६३४, २७३७, २७५७ संचिति २०१४ ९१२ संचेती १८३१, २०१०, २६१७ १८००, १८०१, १८०३, १८११, सकलेचा २७१२ १८१२, १९८०, १९८०, १९८१, समदडिया २५७४ १९८२, २१५५, २२०८, २२१०, सरवाल ९६७ २४४४ सरहसुखा १४६५ ८१५, ९७५ सवराशाह शाखा ३५४. सेठिया १८७१, २०६१, २११८,२३३५ साउसखा, सांउसाखा ११२५,११५१,१३२५ सेथाल ७२५ साकरिया ९३३ सोनी ३६६, ९१६, ९१७ सांखला २७१२ सोलंकी कोठारी २७५५ सांडेचा १६०३ सोवनगिरा ६६६ साद्रशाखा ६२८ स्वर्णगिरिया ३२४ साधुशाखा १४८, १५३, २६६, २६९, २७१, हाकम कोचर मुंहता २२८८ ३०१, ३४१, ३६२, ४०४, ४०९, | हाकिम कोठारी २६२८, २६७०, २६७१, २६७२, ४१०, ४२०, ५३२, ५७५, ५७६, २६७३, २६७४, २६७५ ६६९, ६७०, ७४५, ७५२, ८०५, | हाकिम २३९० ९११, ९४५, १०३० १४३५ सेठि परिशिष्ट-७ (५४३) For Personal & Private Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राष्ट्रपति-सम्मानित देवर्षि कलानाथ शास्त्री खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास - शतशः बधाइयाँ भारत में श्रमण संस्कृति के प्रमुख आधार स्तम्भ जैन धर्म की जो विभिन्न शाखाएँ पंथ, संघ, मार्ग आदि विकसित हुए उनमें खरतरगच्छ का विशिष्ट स्थान सुविदित है। इसका एक सहस्राब्दी का उज्ज्वल इतिहास है जो ओसवालों की गौरवमयी ध्वजा है, जिसमें अनेक शास्त्रविज्ञ मूर्धन्य मनीषी न केवल समाज को विशुद्ध आचार और पूर्णतः शास्त्र सम्मत चर्या का मार्गदर्शन देते रहे अपितु वाङ्मय को अमूल्य ग्रन्थरत्न विभिन्न भाषाओं में देते रहे, उत्कृष्ट चिन्तन का प्रसाद देश में बाँटते रहे । खरतरगच्छ नामक इस शाखा का इतिहास मेरी जानकारी में इतने योजनाबद्ध रूप में तथा प्रामाणिक संदर्भो सहित अब तक सामने नहीं आ पाया था, यथापि कुछ ग्रन्थ इसके विशिष्ट आयामों का परिचय कराने हेतु लिखे गये हैं। यह अत्यन्त हर्षप्रद है कि प्राकृत, संस्कृत, राजस्थानी, हिन्दी आदि अनेक भाषाओं के विख्यात विद्वान्, शोधमनीषी और जैनागम तथा दर्शनशाखाओं के प्रकाण्ड पण्डित महोपाध्याय विनयसागरजी ने क्रमबद्ध, प्रामाणिक और व्यापक संदर्भो से पुष्ट खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास लिखने का गुरुतर कार्य हाथ में लिया है जिसका प्रकाशन होने लगा है और एक नया प्रकाश सामने आया है। इसमें इस गच्छ की मूल अवधारणा का, उसकी दस शाखाओं और चार उपशाखाओं का एवं संविग्न परम्परा का प्रामाणिक इतिहास लेखबद्ध किया गया है यह देखकर मुझे परम सन्तोष हुआ। इसमें श्री वर्द्धमानसूरि, श्री जिनेश्वरसूरि और श्री बुद्धिसागरसूरि से लेकर अब तक हुए गच्छ के आचार्यों, सूरियों, गणियों, साधुओं, साध्वियों आदि का क्रमबद्ध परिचय उनके जीवन-विवरण के साथ उनके ग्रन्थों, कृतियों आदि का विवरण, गच्छ से सम्बद्ध विभिन्न गोत्रों, धार्मिक स्थलों, घटनाओं, शास्त्रार्थों आदि की जानकारी, समाज को उस काल खण्ड में इस गच्छ का अवदान इत्यादि तथ्यों का तत्कालीन अभिलेखों, पट्टावलियों आदि के प्रमाणों से पुष्ट तिथि- निर्धारण सहित इस प्रकार इतिवृत्त दिया गया है जो इसे सच्चे अर्थों में इतिहास बना सके। इन तथ्यों और प्रमाणों के संदर्भो के साथ संस्कृत, प्राकृत आदि के मूल श्लोक, गद्यांश आदि भी उद्धृत हैं, वंशावलियाँ, वंशवृक्ष, चित्र, छायानुकृतियाँ आदि भी मुद्रित हैं। इससे समूचे गच्छ का सर्वांगीण इतिहास सुरक्षित हो जाएगा जो अपने आप में महत्त्वपूर्ण, उल्लेखनीय तथा सर्वात्मना अभिनन्दनीय कार्य है। इस महनीय कार्य को महोपाध्याय विनयसागरजी जैसा शोध-विद्वान्, अनुभवी दर्शनाध्येता, आगम-पण्डित और इतिहासकार ही पूरा कर सकता था, यह स्पष्ट है। शोध के सुदीर्घ अनुभव के फलस्वरूप श्री विनयसागरजी ने इसे शोधार्थियों के लिए पूर्णत: उपयोगी बनाने हेतु अन्त में अकारादिक्रम की अनुक्रमणिका में समस्त नामावलियों के विभिन्न परिशिष्ट देकर सर्वांगपूर्ण बना दिया है, यह देखकर किसे सन्तोष और हर्ष नहीं होगा? निश्चित रूप से यह प्रामाणिक,शोधदृष्टि से संपन्न, सर्वांगीण इतिहास-ग्रन्थ इस देश में जैन धर्म के इस महत्त्वपूर्ण गच्छ की कीर्ति को अमर करने में प्रमुख आधारशिला की भूमिका निभाएगा और सदियों तक नई पीढ़ियों के लिए आकर ग्रन्थ बना रहेगा। इस उत्कृष्ट कार्य के लिए मैं विद्वान् लेखक सुहद्वर्य महोपाध्याय विनयसागरजी को शतशः बधाइयाँ और साधुवाद प्रेषित करता हूँ। For Personal & Private Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महोपाध्याय विनयसागर एक परिचय जन्म-तिथि : १ जुलाई १९२९ माता-पिता : (स्व.) श्री सुखलालजी झाबक, श्रीमती पानीबाई। गुरु : आचार्य स्व. श्री जिनमणिसागरसूरिजी महाराज शैक्षणिक योग्यता - १. साहित्य महोपाध्याय २.साहित्याचार्य ३. जैन दर्शन शास्त्री ४. साहित्यरत्न (संस्कृत-हिन्दी) आदि सामाजिक उपाधियाँशास्त्रविशारद, उपाध्याय, महामनीषी, महोपाध्याय, विद्वत्न सम्मानितराजस्थान शासन शिक्षा विभाग, जयपुर; नाहर सम्मान पुरस्कार, मुम्बई; साहित्य वाचस्पति : हिन्दी साहित्य सम्मेलन,प्रयाग की सर्वोच्च मानद उपाधि साहित्य सेवासन् १९४८ से निरन्तर शोध, लेखन, अनुवाद, संशोधन/संपादन; वल्लभ-भारती, कल्पसूत्र आदि विविध विषयों के ५५ ग्रन्थ प्रकाशित और प्राकृत भारती अकादमी के १७१ प्रकाशनों का सम्पादन; शोधपूर्ण पचासों निबन्ध प्रकाशित। भाषा एवं लिपि ज्ञानप्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी, हिन्दी भाषाओं एवं पुरालिपि का विशेष ज्ञान। कार्य क्षेत्रसन् १९७७ से प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के निदेशक एवं संयुक्त सचिव पद पर कार्यरत। For Personal & Private Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगाउ सररविमसमयककारताददावलसतितिाव प्रीमीपंधरवामिTHERaाराधीवमानस्तावत्पहागलपना इलेनरामावता कवितपासात्वावकर संक्शवावस्वरता श्रीनि7af जनवंदस्वाशिनत्य कपादक १४५मावाद नवागायत्पा पाति अजयादवस्तारात वामुलक विदरायदवार अणावकामविदित करणविडकि रूपनशा नावकमालिन विशक्ति मिनावका मासिका ककलरिव विनयगर मदतीला हिनदस्त वालादिम हतीयाणपुलिस रामंडितनालमा शहडा मउंदवमादितपदा वरूपशहरुमाऊनवर त्यहवालाउलवा ताप्रागतिधारावा मानश्वरमतित्व धातूनपतावनाशतत्वहजाराहावाबुहराजगढमाशाति कामिक नागार तरह ".... इतिहास पढना, इतिहास की घटनाओं का कहना, सुनना बहुत आसान है पर सदात्री इतिहास लिखना अत्यन्त श्रमसाध्य दुरूह कार्य है। हजारों वर्ष पूर्व घटित घटनाओं को १२साना आँखों देखी घटना की भाँति लिखना लेखक के लिए चुनौतीपूर्ण है। इसमें उसके धीरज की दिसावध कसौटीभी है।... .... परम विद्वान् महोपाध्याय श्री विनयसागरजी ने इस कठिन बीड़े को उठाया ही प्रासिक नहीं बल्कि इसे सफलतापूर्वक संपन्न करके साहित्य जगत कोलाभान्वित किया है।...." उनदीमा - उपाध्याय मणिप्रभसागर निमाणित "....महोपाध्याय विनयसागरजी ने अथक परिश्रम करते हुए इस ग्रन्य के माध्यम से हमें समु६रण खरतरगच्छ के इतिहास के सागर में किनारे उपस्थित होने का, सागर को समझने और उसकी गहराईयों को जानने का अनमोल अवसर प्रदान किया है।..." नवीक - महोपाध्याय ललितप्रभ सागर कसला "... प्रामाणिक, शोधदृष्टि से संपन्न, सर्वांगीण इतिहास-ग्रन्थ इस देश में जैन धर्म के इस श्रीरत्त महत्त्वपूर्णगच्छ की कीर्ति को अमर करने में प्रमुख आधारशिला की भूमिका निभाएगा और सदियों तक नई पीढ़ियों के लिए आकर ग्रन्थ बना रहेगा।..." तालाला -देवर्षि कलानाथ शास्त्री मानानुरंडा राष्ट्रपति-सम्मानित "...साहित्य वाचस्पति महोपाध्याय श्री विनयसागरजी ने खरतरगच्छ प्रतिष्ठालेखसंग्रह मारिअरम नामक पुस्तक लिखकरनिःसन्देह एक अभाव की पूर्ति की है। उनकी यह अमर कृति है जो मन पदव ऐतिहासिक प्रश्रों को हल करने में सक्षम है।..." शीलता - प्रो. (डॉ.) कमलचन्द सोगाणी नवरतदा। पूर्व प्रोफेसर दर्शनशास्त्र सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर डिन पिन निन्दा त्यह नघन सातत्य इराकमान EMAI नa हितला नगर नात गुलग ढा मधी मत न्यावा क्षण जापत्तावादहवादातर ताचाकतनात उघमा सार्या सरटादात्मानज्ञाया सामानानदहसरामराम Jairdeationernational le usely www.jaineliborg