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________________ (२१६२) लब्धिविलासमुनि-पादुका सं० १९०९ मि० आषाढ़ वदी ८ ....................वासरे श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां पं० प्र० श्रीलब्धिविलासमुनीनां पादुका पं० दानशेखरेण प्रतिष्ठा कारिता। (२१६३) सिद्धचक्रयंत्रम् ___ श्री। संवत् १९०९ आ० सुदि ३ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं का० गांधी गुलाबचंद्रस्य भार्या कली नाम्ना प्र० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा श्रीबृहत्खरतरगच्छे। . (२१६४) जिनदत्तसूरि-पादुका जं। यु। प्र। भट्टारक दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिभिः। कारितं प्रतिष्ठितं जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरीश्वेरण। संवत् १९०९ वर्षे ___ (२१६५) शिलालेखः श्रीपादलिप्तनगरे राजराजेश्वर महाराजाधिराज गोहिल श्रीनोंघणजी कुंवर श्री प्रतापसिंह जी विजयराज्ये सं० १९१० ना वर्षे चैत्र मास शुक्लपक्षे तिथौ १५ बृहस्पतिवारे श्रीअजमेरवास्तव्य ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां श्रीमुमीयांगोत्रे से। धनरूपमलजी तद्भार्या अगरकुंवर बाई तत्पुत्र से बाघमलजी तद्भार्या अजितकुंवर बाई तत्पुत्री द्वौ राजकुंवर बाई तघु प्रतापकुंवर बाई श्रीसिद्धाचलजी ऊपर नवीन प्रासाद कारितं श्रीआदिजिनबिंब श्रीमुनिसुव्रतजी श्री आदिनाथजी श्रीनमिनाथजी श्रीआदिनाथजी श्रीमुनिसुव्रतजी श्रीशांतिनाथजी श्रीपार्श्वनाथजिनबिंबं अष्टौ स्थापितं च प्रतिष्ठितं च श्रीमबृहत्खरतरगच्छे सकलभट्टारक- पुरंदर जंगमयुगप्रधान श्रीजिनहर्षसूरिपट्ट प्रभाकर जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी विजयराज्ये पं । कनकशेखरजी तत्शिष्य जयभद्रजी तत्शिष्य दयाविलासजी तत्शिष्य हर्षकीर्तिमुनि शिष्य मानसुंदरजी तघु शिष्य हेमचंद्रेण प्रतिष्ठितं च। ___ (२१६६) आदिनाथः सं० १९१० ना चैत्र सुद १५ गुरुवासरे श्रीअजमेर वा। उ। ज्ञा। वृ। मुमीयागोत्रे से। धनरूपमल तद्भार्या अगरकुवर बाई तत्पुत्र से वाघमलजी श्रीआदिनाथबिंबं स्थापितं च प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छेश भ। यु। जं। यु। प्र। श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी विजयराज्ये। प्र। देवचंद्रजी शिष्य हीराचंद्रजी प्रतिष्ठितं च ॥ (२१६७) सेठ-सेठानी-मूर्तियुगल सं० १९१० चैत्र सुदि १५ वृ। अजमेर वास्तव्य धनरूपमलजी अगरकुंवर सेठ सेठाणी मूर्ति स्थापिता दयाविलास शिष्य हीराचंद प्रतिष्ठितं श्रीजिनसौभाग्यसूरि राज्ये। २१६२. रेलदादाजी, बीकानेर : ना० बी०, लेखांक २१०८ २१६३. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्याः पू० जै०, भाग २, लेखांक १६४५ २१६४. अजितनाथ मंदिर, नागपुरः २१६५. खरतरवसही शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ९० २१६६. खरतरवसही शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ९१ २१६७. खरतरवसही शत्रुजय : भँवर० (अप्रका०), लेखांक ९२ (३८०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004075
Book TitleKhartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages604
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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