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(१५८२) मूर्तिः ॥ संवत् १८२२ वैशाख सुदि १३ गुरौ श्रीखरतरगच्छ आचार्यांय सा भीमजी सुत सा निहालचंदेन पं०...........कारापितं
(१५८३) जिनयुक्तिसूरि-स्तूपलेखः (१) ॥ श्रीवषतकुंअरी नाम्नी माऊजी श्रीसोढीजीतः पुण्यकृतमिदं सि (२) ॥ ॐ ॥ संवत् १८२५ वर्षे शाके १६९० प्रवर्त्तमाने । मा(३) र्गशीर्षासित पंचमी सोमे। श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे म।। (४) हाराजाधिराज महारावल श्रीमूलराजजीविजयरा(५) ज्ये। सकलसूरिशिरोमणि भट्टारक श्रीजिनकीर्ति(६) सूरिराजानां पट्टप्रभाकर श्रीजिनयुक्तिसूरीन्द्राणां। । (७) स्तूपनिवेश: कारितं श्रीजेसलमेरुवास्तव्य श्रीबृहत् (८) खरतराचार्य श्रीसंघेन। प्रतिष्ठितश्व श्रीजिनयुक्तिसूरि(९) पट्टालंकार भट्टारक वृंदवृंदारकावतार श्रीजिनचन्द्र। (१०) सूरिराजैर्लिपी कृतं । पंडित भीमराज मुनिभिश्च ॥श्री॥ (११) दरवारसूं ऊपर ठाठ सिपाही धीरनदे ईदानांणी दरोगां। (१२) सिलावटां दरवाररां गच्छर गोदड़ नरसींगाणी॥ आचं॥ (१३) द्रार्के चिरं ते च सर्वदा श्रीसंघस्य सुकृतसुखश्रेयोवृद्धिकृते भ(१४) वेत्यमिति ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याणमस्तु ॥श्रीः॥
(१५८४) जिनविजयसूरि-स्तूपलेख: ॥ ६०॥ संवत् १८२५ वर्षे मृगशिरो सित पंचमी ५ सोमे। श्रीजेसलमेरु महादुर्गे । महाराजाधिराज महारावलजी श्रीमूलराजजी विजयराज्ये कुमार श्रीरायसिंघ जी जाग्रद्यौवराज्ये। युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनविजयसूरिराजानां स्तूपे पादुका कारिते।.प्रतिष्ठिते च श्रीजिनयुक्तिसूरि पट्टोदया अर्क युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि शिरोमुकुटैः॥ लिखितं पण्डिताणु भीमराज मुनिना ॥ श्रीसंघस्य सदैवाभिनवमंगलाय यातामिति ॥ श्री। श्री॥ बहुमानकारिणां श्रेयसेस्तु ॥१॥
(१५८५) जयराज-पादुका ॥ स्वस्ति॥ १८२५ मार्गशिरो सित पंचमी ५ सोमवारे भट्टारक श्रीजिनविजयसूरीन्द्राणां शिष्य पंडित जयराजमुनि पादुके कारिते प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिभिः।
१५८२. जगतसेठ का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: पू० जै०, भाग २, लेखांक १८१७ १५८३. जिनचन्द्रसूरि का स्थान, दादाबाड़ी, जैसलमेर: पू० जै०, भाग ३, लेखांक २५०३ १५८४. दादाबाड़ी जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८६२ ।। १५८५. दादाबाड़ी, देदानसर जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८६१
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(खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः
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