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(१८११) मरुदेवादिपंचजिनमातृपादुकाः ॥ सं० १८७७ राधराकायां पाठक हीरधर्मोपदेशेन जयपुर वास्तव्य ओसवाल सेठ हुकुमचंदजेन उदयचंदेन अयोध्यायां श्री मरुदेवा १ विजया २ सिद्धार्था ४ सुमंगला ५ सुयशा १४ गर्भरत्नानां परमेष्ठिनां चरणन्यासाः कारिताः प्र० श्रीजिन
(१८१२) जिनकुशलसूरि-पादुका . ॥ सं० १८७७ राधराकायां पितामहानां श्रीजिनकुशलसूरीणामयोध्यायां चरणन्यासः प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा खरतरभट्टारक श्रीजिनलाभसूरि शिष्योपाध्याय श्रीहीरधर्मोपदेशेन कारिताः । जयनगर वासिना अधुना मिरजापुरस्थेन सेठ हुकुमचंदजेन। उदयचंदेन श्रेयोर्थं।
(१८१३) पार्श्वनाथः ॥सं॥ १८७७ राधराकायां श्रीपार्श्वबिंबं प्र। श्रीजिनहर्षसूरिणा कारितं मिरगां ज्ञाति.................. सिंहज पदार्थमल्लेन
(१८१४) पार्श्वनाथः सं० १८७७ वै। शु। १५ श्रीपार्श्वबिंबं प्र। श्रीजिनहर्षसूरीणां गोलवछा महता बोजानी मूलचंदेन धर्मचंदेन कारितं कास्यां बृहत्खरतरगणे
(१८१५) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १८७७ वै० सु० १५ श्रीपार्श्वबिंब प्र० जिनहर्षसूरिणा कारितं । छजलानी चतुर्भुज पुत्र्या दीपोनाम्न्या चोरडिया मनुलाल वधू
(१८१६) पार्श्वनाथ संवत् १८७७ वैशाख शुक्ल १५ श्रीपार्श्वबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्षसूरिणा गोलेछा महतावो-- मूलचन्द्र धर्मचन्द्रेण कारितं।
__ (१८१७) दादा-पादुका-युगल संवत् १८७७ रा वर्षे जेठ मासे शुक्ल पक्षे १० तिथौ बुधवासरे श्रीचन्द्रकुलाधिप बृहत् श्रीखरतरगच्छे जंगम युगप्रधान भट्टारक। श्री १०८ श्रीजिनदत्तसूरिजी श्री १०८ श्रीजिनकुशलसूरीणां चरण स्थापितं। उ श्रीरत्नसुन्दरजीगणि उपदेशात् साह श्रीदूगड़ बुधसिंह जी तत्पुत्र । बाबू श्रीप्रतापसिंह जी कारापितं ॥ श्रीसंघ हितार्थम् । जङ्गम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिजी विजयराज्ये श्रीरस्तु॥ श्रीकल्याणमस्तुः॥ १८११. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्या पू० जै०, भाग २, लेखांक १६४७ १८१२. अजितनाथ जिनालय, कटरा, अयोध्या, पू० जै० भाग २, लेखांक १६५६ १८१३. मूलमंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर १८१४. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: पू० जै०, भाग २, लेखांक १८३६ १८१५. सेठ धनसुखदास जी का मंदिर, मिर्जापुर पू० जै० भाग १, लेखांक ४३९ १८१६. पार्श्वनाथ मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : पू० जै०, भाग १, लेखांक ३४० १८१७. चन्द्रप्रभ जिनालय, रङ्गपुर, उत्तर बंगालः पू० जै०, भाग २, लेखांक १०२७ (३२०)
(खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:
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