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यह ग्रन्थ इतिहासकारों के लिए- जो आचार्यों, नृपतियों, गोत्रों या श्रावकों के बारे में लेखन करते हैं, काफी उपयोगी सिद्ध होगा ।
इस ग्रन्थ के सम्पादक महोपाध्याय श्री विनयसागर जी जैन धर्म, उसमें विशेषकर खरतरगच्छ के इतिहासवेत्ता हैं। वे अनेक भाषाविद् तो हैं साथ ही अनुवादन और इतिहास - लेखन में भी सिद्धहस्त हैं। उनके द्वारा सम्पादित, अनुवादित एवं लिखित लगभग पचास से अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। 'दादा गुरु भजनावली' (७०० भजनों का संग्रह), 'खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची', 'खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावली', 'खरतरगच्छ पट्टावली संग्रह', 'विधिमार्ग प्रपा' आदि ग्रन्थों का सम्पादन कर खरतरगच्छ की अनुपम सेवा की है । अधुना कुछ माह पूर्व ही 'खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास' नामक उनका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है। जिसका सम्पूर्ण देश में स्वागत हुआ है।
महोपाध्याय श्री विनयसागर जी आगम एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु सदैव प्रयत्नशील रहे हैं। उनका अधिकांश जीवन जैन साहित्य एवं संस्कृति की सेवा के लिए समर्पित रहा है । वे जैन साहित्य एवं इतिहास के गम्भीर अध्येता एवं प्राचीन भारतीय भाषाओं अनुसंधान में प्रयत्नशील रहे हैं। उनकी तथ्यपरक, परिश्रमयुक्त लेखन - कला अभिनन्दनीय है ।
श्री विनयसागर जी ने जैन धर्म, दर्शन, संस्कृति एवं साहित्य की अनुपम सेवाएं की हैं। प्राचीन भारतीय लिपियों, मूर्ति-लेखों, पाण्डुलिपि लेखन और सम्पादन की कला को अर्जित करने के कारण ही वे प्रस्तुत ग्रन्थ तैयार कर पाए ।
इस तरह के साहित्य के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य कर वे महोपाध्याय पद को सार्थक कर रहे हैं।
सद्भावना सहित
संबोधि-धाम, कायलाना रोड़, जोधपुर (राज.)
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प्रस्तावना
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महोपाध्याय ललितप्रभ सागर
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