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________________ निर्मापिते श्री० बृ० ख० ग० जं० युग० भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिविजयराज्ये श्रीमद्दिङ्मण्डलाचार्य श्रीनेमिचंद्रसूरि अन्तेवासि पं० श्रीहीराचन्द्रेण यतिना प्रतिष्ठापिते श्रीशुभं भूयात् । (२५९१) अमृतसार-पादुका ॥ संवत् १९७९ मि। माघ शुक्ल ७ पं। प्र। अमृतसारमुनीनां पादुका चिरु प्यारेलाल स्थापिता कीर्तिरत्नसूरिशाखायां शुभं भवतु कल्याणमस्तु ।। श्री॥ (२५९२) शिलालेखः (१) ॥ वीर सं० २४४९ दत्त सू। सं। १९८० (२) ॥ ओशवं । संघवीगो। बहादरमल्लस्तत्पु। दुली(३) चन्द्रस्तद्भा। रायकुंवरी स्वांतसमये सर्व शुभ (४) योग्य निमित्त योग्य श्राद्धाधीन स्वलक्ष्मी विधा(५ )य सं। १९७८ आश्विन शु। ९ चं। वा० स्वर्गगता प(६) श्चाच्च जेसलमेरुदुर्गोपरि श्रीआदिनाथजिनप्रासा(७) दे श्रेयो निमित्तं तद्धनव्ययेन नवीन रावट्टी (८) विधाप्य तत्र सं। १९८० वैशाख शुक्लैकादश्यां (९) शुक्रे दादा श्रीजिनकुशलसूरिमूर्ति तत्पा (१०)दुका सम्राट अकबरप्रतिबोधक श्रीजिन: (११) चन्द्रसूरि पादुका नवीनालये चक्रेश्वरी मू (१२)र्तिश्च श्रीबृहत्खर० गच्छीय गणि श्रीर(१३)त्नमुनि यतिवर्य श्रीवृद्धिचन्द्रेभ्यः प्र(ति) स्था(१४)पिता॥ पुनस्त्र्यशीत्यधस्थित जिनबिंबानि (१५)प्रतिष्ठाप्योर्द्ध स्थापितानि ॥ भूयाच्च मू(१६)र्तिः कुशलाख्यसूरे सत्पादुका श्रीजिन• (१७) चन्द्रसूरे श्रीसंघरत्नाकर वृद्धिचान्द्रा भ(१८)क्तात्मवाञ्छापरिपूरकाय ॥ १ लि। लक्ष्मी(१९)न्दु ॥ लालुखां वल्द जादमखां मेणुना कृता १ (२५९३) युग० जिनचन्द्रसूरि-पादुका संवत् १९८० वै० सु० ११ शुक्रे जं० यु० प्र० बृ० ख० गच्छेश दादासा अकबरबोधकश्रीजिनचन्द्रसू। पादुका स्था० सा० दुलीचन्द्र भा० रायकुंवर स्वात्मभक्त्यर्थं प्र० पं० प्र० वृद्धिचन्द्र मु। जेसलमेर दुर्गे। २५९१. शालाओं के लेख, नाल, बीकानेर: ना० बी०, लेखांक २३०१ २५९२. ऋषभदेव मन्दिर, दर्ग, जैसलमेरप० ०. भाग ३. लेखांक २५९२ २५९३. ऋषभदेव जिनालय, जैसलमेर: ना० बी०, लेखांक २८१४ (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004075
Book TitleKhartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages604
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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