SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पादुके कारितं प्रतिष्ठिते च खरतरगच्छे महोपाध्याय श्रीराजसारजी शिष्य उ । श्रीज्ञानधर्मजी शिष्य उपाध्याय श्री दीपचंद्र ( १५२४) नंदीश्वरद्वीप - लेख : संवत् १७८४ वर्ष मगसिर वदि ५ दिने श्रीनंदीश्वरद्वीप द्विपंचाशत् चैत्यशाश्वतजिनबिंबं स्थापिता कारिता श्री अहमदाबाद वास्तव्य श्रीमाली ज्ञातीय सा० ताराचंद पुत्र हरखचंद्रेण कारिता प्रतिष्ठिता श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्री १०७ श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां महोपाध्याय श्रीराजसारजी तत्शिष्य महोपाध्याय श्रीज्ञानधर्मजी शिष्य उपाध्याय श्रीदीपचंद्रगणिभिः । पं । देवचंद्रगणि संयुतैः सम्यग्दर्शनप्राप्त्यर्थं भवतु । लिखितं पं । मतिरत्न मुनिना (१५२५) पाषणसिद्धचक्र-लेखः (पाषाण ) संवत् १७८४ वर्षे मिगसिर वदि ५ तिथौ श्रीराजनगरवास्तव्य श्री ओसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां शाह दुनीचंद्रेण श्रीसिद्धचक्रकारापितं च श्रीमहावीरदेवाविच्छिन्नपरंपरायात श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज श्रीअकबर साहिप्रतिबोधक तत्प्रदत्त युगप्रधान भट्टारक १०७ श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां महोपाध्याय श्रीराजसागरजी तत्शिष्य महोपाध्याय-ज्ञानधर्मजी - तत्शिष्य उपाध्याय - श्रीदीपचंद्र - तत्शिष्यपंडित देवचंद्रयुतेन ॥ (१५२६) सेलग - पादुका सं० १७८४ मिगसर वदि ५ दिने श्रीसंलग पंथग प्रमुख ५०० पंचशत. पादुके कारि श्रीमालीज्ञातीय शाह उदेसिंघ.. ..चंद भार्या बाई मीठी प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे उपाध्याय श्रीदीपचंद्र शिष्य पं । देवचंद्रयुतैः ॥ श्री ॥ ( १५२७) अष्टोत्तरशतसिद्ध-पादुका सं० १७८४ वर्षे मिग़सर वदि ५ अष्टापदे अष्टोत्तरशतसिद्धपादुका दीपचंदजी प्रति० विजयचंद .भवानीदास कारितं ( १५२८ ) पाषाणसिद्धचक्रः संवत् १७८७ वर्षे माह सुदि ५ शुभदिने राधणपुरवास्तव्य श्रीमालीलघुशाखायां शाह घजा भार्या आणंदीबाई सिद्धचक्रं कारापित ॥ प्रतिष्ठितं च श्रीमहावीरदेवाच्छिन्नपंरपरायात श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज श्रीअकबरशाहिप्रतिबोधक तत्प्रदत्तयुगप्रधान भट्टारक श्री १०७ श्री श्री श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां महोपाध्यायश्रीराजसागरजी तत्शिष्य महोपाध्याय श्रीज्ञानधर्मजी तत्शिष्य श्रीउपाध्याय श्रीदीपचंद्र तत्शिष्य पंडितप्रवर देवचंद्रयुतेन ॥ श्रीगोमुख चक्रेश्वरी कवड माणभद्रयक्ष चतुर्विंशति यक्षयक्षीणी षोडस विद्यादेवि श्रीजिनशासनभक्त देवदेविगण शासनाधिष्ठायक सर्वक्षेत्राधीशा शांतिकरा सन्तु ॥ श्रीरस्तु ॥ श्री ॥ १५२४. खरतरवसही, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ७७ १५२५. देहरी क्रमाकं ४२/२, खरतरवसही, शत्रुंजयः श० गि० द०, १५२६. छीपावसही शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ३२ १५२७. खरतरवसही, शत्रुंजयः भँवर० (अप्रका० ), लेखांक ६० १५२८. देहरी क्रमांक ९० ११, खरतरवसही, शत्रुंजय : श० गि० द०, लेखांक ११४ • भंवरलाल जी नाहटा ने अपने लेख संग्रह में वि० सं० १७९२ का उल्लेख किया है। लेखांक १२७ खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: Jain Education International For Personal & Private Use Only (२७३) www.jainelibrary.org
SR No.004075
Book TitleKhartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages604
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy