SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेशों से प्रभावित होकर अकबर ने आषाढ़ महीने के ८ दिन तक अमारी का फरमान, स्तम्भ तीर्थ के समुद्र में जलचर जीवों की रक्षा के लिए फरमान निकाले और उन्हीं से युगप्रधान पद प्राप्त किया था। गुरु आम्नाय के अनुसार पंच नदी के पाँचों पीरों को वशीभूत किया था। अकबर के समक्ष ही जिनचन्द्रसूरि ने अपने हाथों से जिनसिंहसूरि को आचार्य पद प्रदान किया था। इन्हीं यु० जिनचन्द्रसूरि के उपदेश से मंत्री भीम की वंश-परम्परा में मंत्री चांपा ने पुत्रपौत्र आदि परिवार के साथ अणहिलपुर पाटण में चौमुखा विधिचैत्य का और पौषधशाला का निर्माण करवाया था। यह प्रशस्ति उदयसागरगणि और लक्ष्मणप्रमोदमुनि ने लिखी है। लेखाङ्क १२११ - अमरसर के श्रीसंघ ने जिनकुशलसूरि की पादुका निर्माण करवाई और युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई। यह कार्य स्थानीय थानसिंह के उद्यम से हुआ था और मूल स्तम्भ के प्रारम्भकर्ता थे मंत्री कर्मचन्द्र। लेखाङ्क १२१३ - इसमें अल्लाही सम्वत् ४२ का उल्लेख है जो कि अकबर के राज्यकाल का सूचक है अर्थात् १६५३ में अहमदाबाद में प्राग्वाट ज्ञातीय शाह साईया के पौत्र और जोगी के पुत्र संघपति सोमजी और शिवाजी ने अपने समस्त परिवार के साथ भगवान् आदिनाथ का मंदिर निर्माण करवाकर युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई थी। लेखाङ्क १२०५ के अनुसार युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के गुणों के वर्णन के अतिरिक्त जो वर्णन किया गया है, वह निम्न है: अकबर को अपने उपदेश से प्रतिबोधित कर छ: मास पर्यन्त अमारी की घोषणा करवाने वाले, समस्त गौवंश की रक्षा कराने वाले, शत्रुजय महातीर्थ को कर-मुक्त कराने वाले और जिजिया कर हटाने वाले थे। अकबर के द्वारा लाभपुर (लाहोर) में युगप्रधान पद का महोत्सव मंत्रीवर कर्मचन्द्र बच्छावत ने किया था। प्रशस्तिकार ने सोमजी शिवाजी के लिए लिखा है कि वे खरतरगच्छ की समाचारी को हृदय से धारण करने वाले थे, साधर्मिकों की भक्ति करने वाले थे, शत्रुजय महातीर्थ का यात्रा संघ निकाला था और अनेक जिन प्रतिमाओं का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठा करवाई थी। इस प्रशस्ति के लेखक थे - समयराजोपाध्याय और प्रतिष्ठा के समय युगप्रधान जिनचन्द्रसूरिजी अपने शिष्य आचार्य जिनसिंहसूरि और रत्ननिधानोपाध्याय के साथ थे। लेखाङ्क १२२४ - अल्लाही सम्वत् ४४ विक्रम सम्वत् १६५७ में सोरठपति महाराजा राजसिंह के राज्य में विक्रमपुर (बीकानेर) वासी लिग्गा गोत्रीय खेतसिंह के पुत्र संघपति सतीदास ने शत्रुजय की तलहटी में सतीबाव (बावड़ी) का निर्माण करवाया था। यह निर्माण युगप्रधान जिनचन्दसूरि के उपदेशों से हुआ था। लेखाङ्क १२३८ - बीकानेर के महाराजा राजसिंह के विजयराज्य में विक्रमनगर (बीकानेर) के निवासी खरतरगच्छ के सकल श्रीसंघ ने भगवान् आदिनाथ का मंदिर बनवाकर युगप्रधान पुरोवाक् XXI Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004075
Book TitleKhartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages604
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy