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७. जिनचन्द्रसूरि - इनका भालस्थल मणि-मण्डित था।
८. जिनपतिसूरि - ३६ वादों में विजय प्राप्त करने वाले, प्रबोधोदय आदि ग्रन्थों के निर्माता और खरतरगच्छ के सूत्रधार थे।
९. जिनेश्वरसूरि - लाडउल, विजापुर के शान्तिनाथ और महावीर विधि-चैत्यों के प्रतिष्ठापक थे। १०. जिनचन्द्रसूरि - ४ राजाओं को प्रतिबोध देने वाले थे।
११. जिनकुशलसूरि - शत्रुजय तीर्थ के मण्डनभूत खरतरवसही के प्रतिष्ठापक थे और जिनकी यशोकीर्ति विख्यात थी।
१२. जिनभद्रसूरि - स्थान-स्थान पर ज्ञान-भण्डारों की स्थापना करने वाले थे। १३. जिनसमुद्रसूरि - पंचयक्ष साधक थे और विशिष्ट क्रियाचरण के धारक थे।
१४. जिनहंससूरि - तत्कालीन बादशाह से सम्मानित और उनको उपदेश देकर ५०० बंदियों को छुड़ाने वाले थे।
१५. जिनमाणिक्यसूरि - पंच नदी साधक थे तथा अपने ध्यान-बल से यवनों के उपद्रवों का निवारण करने वाले थे।
१६. युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि - वादिविजेता और क्रियोद्धारक थे। इन्हीं के उपदेश से मंत्री सारंगधर और देवकर्ण तथा शत्रुजय संघाधिपति मंत्री जोगजी, सोमजी, शिवाजी आदि खरतरगच्छ के प्रमुख संघ ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। पण्डित सकलचन्द्रगणि पुरस्कृत वाचक कल्याणकमलगणि और वाचक महिमराजगणि ने इस प्रशस्ति को लिखा। लेखाङ्क १२०१ - सम्राट अकबर के राज्यकाल से प्रवर्तित सम्वत् ३९ में मंत्री कर्मचन्द्र बच्छावत ने लाभपुर (लाहोर) में जिनकुशलसूरि की पादुका प्रतिष्ठित करवाई। लेखाङ्क १२०४ - सम्वत् १६५१ में मंत्री कर्मचन्द्र के पुत्र भागचन्द्र और लक्ष्मीचन्द्र ने जिनकुशलसूरि की मूर्ति सिरोही नगर के महाराजा सुरताण के विजय राज्य में प्रतिष्ठित करवाई। प्रतिष्ठाकारक थे वाचक दयाकमलगणि। लेखाङ्क १२०५ - सम्वत् १६५१ में सम्राट अकबर के राज्यकाल में वाडी पार्श्वनाथ विधिचैत्य, पाटण का निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ था और सम्वत् १६५२ में इसकी प्रतिष्ठा हुई थी। इस प्रशस्ति में उद्योतनसूरि से लेकर युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि तक गुरु-परम्परा विस्तार से दी गई है जो कि लेखाङ्क ११९३ के अनुसार ही है। इसमें आचार्यों के वर्णन में जो विशेषताएँ हैं वे निम्न हैं :- मणिधारी जिनचन्द्रसूरिजी के लिए लिखा है कि वे श्रीमाल, ओसवाल और महत्तियाण आदि जातियों के प्रतिबोधक थे। जिनमाणिक्यसूरि पट्टधर जिनचन्द्रसूरि के लिए लिखा है - वादि-विजेता थे, क्रियोद्धारक थे, सूरिमन्त्र के आराधक थे। सम्वत् १६४८ में स्तम्भतीर्थ में चातुर्मास करते हुए सम्राट अकबर के विशेष आग्रह पर लाहोर पधारे थे। उनके
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