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________________ (१३) तं पुनर्मायाबीजं शिलापट्टशं (सं) स्थितं तत्रैव चैत्ये स्थापितं श्रीसंघ(१४) स्य सदा मंगलमालाः समुल्लसंतुतराम्॥ दूहा ॥ अचल चैत्य इल (१५) उपरै जग लग ग्रहगण बरतो भवि समकित करण कहत के(१६) सरीचंद॥ १॥ श्रीरस्तु ॥ श्रीकल्याणमस्तु । (१९७७) आदिनाथः सं० १८९७ फा० सु० ५ श्रीआदिनाथबिंबं प्र० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा का ० बोहरा नाथूराम पत्नी साहबां नाम्न्यात्मश्रेयसे वाचक चारित्रनन्दनगण्युपदेशतः॥ (१९७८) ऋषभदेवः ॥ सं० । १८९७ फा। शु। ५ काश्यां श्रीऋषभदेवबिं। प्र। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः। बुधोत्तम श्रीकुशलचन्द्रगण्युपदेशेन कारितं श्रीमालडूंगरिया गोत्रीय.......... चुन्नीदासे. (१९७९) नेमिनाथः ॥ सं० १८९७ फा। सु। ५ श्रीनेमि। बिं । प्र। श्रीजिनमहेन्द्रसूरि बुधोत्तम श्रीकुशलचन्द्रगण्युपदेशेन का। लालगोत्रीय जीवरात्मज चन्दनमल्लेन........................। (१९८०) पार्श्वनाथः सागरांकवसुचंद्रवर्षे १८९७ नेत्रषणगणधरायुते (?) शके १७६२ फाल्गुनांतिमदले सुनागके(५) भार्गवे सितपटौधपालके वाणारस्यां श्रीमद्भगवत्सहस्रफणालंकृत श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रमूर्तिका० से० उदयचन्द्रधर्मपत्नी महाकुंवराख्यया मूलचंद्रसुत युतया बृहत्खरतरगणेश श्रीजिनहर्षसूरिपदालंकृत श्रीजिनमहेंद्रसूरिणा प्रतिष्ठिता। उ। श्रीहीरधर्मगणिविनेय विद्वत्कलालकृत कुशल...... ___(१९८१) प्रशस्ति: || श्री॥ अभ्रांभोजकेभभूयुक्ते वर्षे फाल्गुनिकेसिते ............स्वेता तिथौ कुम्भे सम्मेतशिखरो ......पर्वते मधुवनमध्ये गज दि..........कुंभपुञ्जसंघटिते अर्हद्भक्तिमंता श्रीमिरजापुर.......... ना धनिना २ सेठ उदयचद्रात्मज सेठ श्रीमूलचंद्रेन श्रीपार्श्वभक्ति जननी-जनकसहितेन संरचिते ३ दण्डध्वजकुलक्रमिते श्वेताम्बर पासके चैत्ये श्रीसंघकृतिं कृतिमत्युण्योदये हे.........तत् ४ श्रीमबृहत्खरतर गणे....श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर श्रीजिनमहेन्द्रसूरि विजयराज्ये। वा। श्री चारित्रनंदनजिद्गणिसुधीश श्रीकुशलजिद्गणिभ्यां सहस्रफणायुक्त श्रीचिन्तामणिबिंम्बं स्थापिता। श्रीसर्वसूरिसम्मतेयम्............. १९७७. पंचायती मंदिर, मिर्जापुर: पू० जै०, भाग १, लेखांक ४३६ १९७८. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भँवर०; जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३५५ १९७९. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर: भंवर० । १९८०. चिंतामणि पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर : भँवर०; पू० जै०, भाग १, लेखांक ३४५; जै० धा० प्र० ले०, लेखांक ३५६ १९८१. चिंतामणि पार्श्वनाथ जी का मंदिर, मधवन, सम्मेतशिखर : भँवर० (३५०) (खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह:) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004075
Book TitleKhartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages604
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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