SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुस्तक के सम्बन्ध में... खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह जैन संस्कति के इतिहास का दिग्दर्शन कराने वाली एक अति महत्त्वपूर्ण, अनूठी कृति है। यह सर्वविदित है कि प्रतिष्ठित प्रतिमाओं पर लिखे प्रतिष्ठा लेख इतिहास निर्माण का प्रमाणिक आधार होते हैं। इनसे यह भली-भाँति रूप से ज्ञात हो सका है कि खरतरगच्छ के आचार्यों ने समृद्ध श्रावकों को प्रेरित कर देश के विभिन्न भागों में - बिहार, बंगाल, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, सौराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश आदि में - सैकड़ों मन्दिरों का निर्माण करवाया, जीर्णोद्धार करवाया, हजारों जिन-मूर्तियों की प्रतिष्ठा भी करवाई। यह निर्विवाद रूप से प्रकट है कि खरतरगच्छ का अभ्युदय चैत्यवासी शिथिलाचार के विरुद्ध जिनोपदिष्ट आगमिक आचार को पुनर्स्थापित करने के लिए क्रान्तिकारी उद्घोष था, जिसके आलोक में हजारों साधु-साध्वियों ने उज्वल श्रमणधारा को पुष्ट किया। प्रस्तुत लेख संग्रह में २७६० लेखों का संग्रह है। इसमें ईस्वी सन् की ११वीं शताब्दी से लेकर २०वीं शताब्दी तक के लेख एकत्रित हैं। इनसे ज्ञात होता है कि श्वेताम्बर परम्परा में आज जितने भी गच्छ वर्तमान में हैं, उनमें सर्वाधिक प्राचीन खरतरगच्छ ही है। इसका समाज और साहित्य के विविध क्षेत्रों में योगदान जैन धर्म-दर्शन-संस्कृति के इतिहास में सर्वदा स्मरणीय रहेगा।जिनेश्वरसूरि द्वारा संस्थापित खरतरगच्छ के आचार्यों ने जनसमुदाय के साथ-साथ अपने समसामायिक नरेशों को प्रतिबोध देकर कई युगानुकूल धर्महित के कार्य करने के लिए उनको प्रेरित किया। उन्होंने अपने उपदेशों से ओसवंश आदि जातियों और गोत्रों का निर्माणकर जो विशाल वृक्ष तैयार किया वह प्रेरणा प्रदायक है। इस तरह से नाना प्रकार की नूतन ऐतिहासिक सूचनाएँ इस लेख संग्रह से हमें प्राप्त होती है, जो जैन संस्कृति की उदात्त भावनाओं की दिग्दर्शिका है। साहित्य वाचस्पति महोपाध्याय श्री विनयसागरजी ने खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह नामक पुस्तक लिखकर निःसन्देह एक अभावकी पूर्ति की है। उनकी यह अमर कृति है जो ऐतिहासिक प्रश्नों को हल करने में सक्षम है। इसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं। मैं उनके यशस्वी जीवन की कामना करता हूँ। डॉ. कमलचन्द सोगाणी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004075
Book TitleKhartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages604
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy