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________________ (४१०) (४) र्मलं ॥ ये भव्याः स्फुरदुज्ज्वलेन मनसा ॥ ध्यायंति सौख्यार्थिनः । तेषां सर्वसमृद्धिवृद्धिरनिशं प्रादुर्भवेत्मंदिरे। कष्टादीनि परिव्रजंति सहसा दूरे पु (दु) रंतानि च: (च) ॥ २ ॥ आदिमं पृथ्वीनाथ (५) मादिमं नी: (निः) परिग्रहं । आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः ॥ ३ ॥ इति मंगलाचरणं ॥ स्वस्ति श्रीविक्रमादित्यराज्यात् संवत् १९२८ शालिवाहनकृत शाके १७९३ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे माघमासे धव (६) लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ गुरुवासरे महाराजाधिराज महारावलजी श्री श्री १०८ श्री श्री श्रीवैरीशालजीविजयराज्ये श्रीमज्जेशलमेरु वास्तव्य ओसवंशे बाफणागोत्रीय संघवी सेठजी श्रीगुमांनचंदजी तत्पुत्र परता (७) पचंदजी तत्पुत्र हिमतराजी जेठमली नथमलजी सागरमलजी उमेदमलजी तत्परिवार मुलचंद सगतमल केसरीमल ऋषभदास सांगीदास भगवांनदास भीषचंद चिंतामणदास लुणकिरण मना (८) लाल कनैयालाल सपरिवारयुतैः आत्मपरकल्याणार्थं श्रीसम्यक्त्वोद्दीपनार्थं च श्रीजेसलमेरुनगरसत्का अमरसागर समीपवर्त्तना समीचिना आरांमस्थांने श्री ऋषभदेवजिन(९) मन्दिरं नवीनं करापितं तत्र श्री आदिनाथबिंब प्राचिन बृहत्खरतरगणनाथेन प्रतिष्ठितं तत् श्रीमज्जिनमहेंद्रसूरिपदपंकजसेविना बृहत्खरतरगणाधीश्वरेण चतुर्विधसंघसहितेन (१०) श्रीजिनमुक्तिसूरिणा विधिपूर्व महता महोत्सवेन शोभनलग्ने श्रीमूलनायकत्वेन स्थापितं पुनअनेक बिंबानामंजनसिलाका विहिता पुनर्दुतियभूमिप्रासादे स्वप्रतिष्ठितं (११) श्रीपार्श्वनाथबिंब मुलनायकत्वेन स्थापितं पुनर्विंशविहरमांण प्रतिष्ठा कृतं मंदिर के पास बाजू जीमणे श्रीदादासाहेब को मंदिर हो जिण मांहे श्रीजिनकुशलसूरज (१२) म्हाराज की मुर्ति विच मांहे विराजमान तथा श्रीजिनदत्तसूरिचरणपादुका तथा श्रीजिनकुशलसूरिचरणपादुका तथा श्रीजिनहर्षसूरिचरणपादुका तथा जिनम (१३) हेंद्रसूरिचरणपादुका प्रमुख स्थापितं तथा भाई सवाईरामजी के घर का इठे था श्रीरतलाम सुं चिरूं सोभागमल चांदमल सोभागमल की मांजी वगेरे आया श्रीउदे (१४) पुर सुं चिरूं सिरदारमल तथा इणां की मांजी वगेरे आया ओर पण घणे दिसावरां सुं श्रीसंघ या सांमीवच्छल प्रमुष करी श्रीसंघ की बड़ी भक्ति करि तथा पांच (१५) शिष्यां नैं श्रीपूजजी म्हाराज के हाथ से दीक्षा दिनी जी दिन १५ सुधां श्री अमरसागर मैं रह्या asो ठाठ ओच्छ सुं नित्य नवि नवि पूजा प्रभावना हुई श्रीदरबार साहिब (१६) श्रीमंदिरजी मैं पधारीया तोबां का फेर हुवा पग मैं सोनो बगसीयो फेर श्रीसंघ समेत श्रीजेशलमेर आया उजमणा प्रमुख कीना श्रीपूजजी म्हाराज की (१७) पधरावणी दोय कीनी जिण मैं हजारां रुपीयां को माल इसबाब तथा रोकड भेंट कीनो उपाध्यायजी वगेरे ठावां ठावां ठांणां नै तथा श्रीवणारसवाला उपाध्याय (१८) जी श्रीबालचंद्रजी का चेला नै रोकड रूपीया तथा जोड़ तथा कपड़े का थान वगेरे अलग अलग दीना उपाध्यायजी श्रीसाहेबचंद्रजी गणि पं० प्रमेर Jain Education International खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004075
Book TitleKhartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages604
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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