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________________ श्री भीषुजी भार्या संतोषदे तत्पुत्र दोसी श्रीकुशलसिंह भार्या कस्तूरदे तस्य पुत्री बाई माणिक बाई श्रीमहावीरबिम्ब रचितं श्रीपीपलीआगच्छे जिणधर्मसूरि तत्पट्टे जिणचन्द्रसूरि तत्पट्टे जिणहर्षसूरिबिंबं प्रतिष्ठितं । (१५६५) जिनकुशलसूरि-पादुका श्री दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी सं १८१६ आसुज सुद १० वार अदत । (१५६६ ) आदिनाथ: महाराणा अरसिंहजी नरपती स्वस्ति श्री मन्नृपविक्रमार्कसमयातीत सम्वत् १८१७ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे सुदि १० बुधवासरे श्रीउदयपुर महागढ वास्तव्य उपकेश ज्ञातीय वृद्ध शाखायाः समस्त श्रीसंघ समुदायेन प्रथमजिनऋषभदेवबिंबं कारितम् श्रीबृहत्खरतर पीपलीयागच्छे सुधर्मादिपरम्परा श्रीउद्योतनसूरयः तत्पट्टे वर्धमानसूरिभिः विमलमंत्रीसर प्रतिबोधित विमलवसही प्रतिष्ठितम् सम्वत् दस ( ) तत्पट्टे दुर्लभराज अणहिल्ल पत्तने खरतरविरुद सम्वत् १० ( ? ) श्रीजिनेश्वरसूरि तत्पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः तत्पट्टे श्रीअभयदेवसूरि नवाङ्गीवृतिकारकं तत्पट्टे श्रीजिनवल्लभसूरि तत्पट्टे श्रीजिनदत्तसूरि पटानुक्रमात् श्रीजिनकुशलसूरि तत्पट्टे तत्पटानुक्रमात् श्रीजिनवर्धमानसूरि (? जिनवर्धनसूरि ) तत्पट्टे श्रीजिनसागरसूरिं तत्पट्टानुक्रमात् श्रीजिनसिंहसूरि तत्पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि तत्पट्टे जिनरत्नसूरि तत्पट्टे श्रीजिनवर्द्धमानसूरि तत्पट्टे श्रीजिनधर्मसूरि तत्पट्टे श्रीसंवेगरंगेन रंजित भ० श्रीजिनचन्द्रसूरि शिष्य महोपाध्याय श्रीहीरसागर प्रतिष्ठितम् ॥ श्री ॥ (१५६७ ) आदिनाथः श्रीमन्नृपविक्रमार्कसमयातीत सम्वत् १८१७ वर्षे शालिवाहन शाके प्रवर्त्तमाने वैशाख मासे शुक्लपक्षे सुदि १० बुधवासरे श्रीउदयपुर महादुर्गे महाराणा श्री अरिसिंह विजयराज्ये तस्मिन् मंत्री श्रीबुद्धिनिधान उपकेश ज्ञाति वृद्धि शाषायां वर्द्धमान गोत्र बाफना श्रीजैनधर्मवासित दोशी. तस्य भार्या ललितादे तस्य पुत्र २ भिषजी द्वितीय पुत्र रूपजी भिषुपुत्र दोसी अडकपुरजी द्वितीय पुत्र दोसी सामलदासजी तृतीय पुत्र कुशलसिंहजी चतुर्थ पुत्र सोमजी दोसी कुशलसिंह भार्या कस्तूरदे तस्य पुत्री जैनो श्रद्धा रुचि (?) निपुण पुत्री ४ साध्वी प्रथमजिनऋषभदेवबिंबं का जीर्णोद्धार धनबाई माणक आत्मा अर्थ श्रीसुधर्मार्कपरम्पराविहित खरतरगच्छसमुद्र श्रीउद्योतनसूरि तत्पट्टे वर्द्धमानसूरि उपदेशात् विमल म० श्री. ( १५६८ ) ऋषभाननः ॥ संवत् १८१७ वर्षे वैशाख सुदि १० बुधवासरे श्री उदयपुर महानगरे उसवाल ज्ञातीय वृद्धि शाषायां समस्त श्री संघ समुदायेन बीस विहरमान सप्तम जिन श्रीरिषभाननजिनबिंबं कारितं श्रीबृहत्खरतर पीपलीयागच्छे भ० श्रीजिनवर्द्धमानसूरि तत्पट्टे भ० श्रीजिनधर्मसूरि तत्पट्टे संवेगरंगे रंजितान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः शिष्य महोपाध्याय श्रीहीरसागर प्रतिष्ठितं ॥ १५६५. पार्श्वनाथ जिनालय, लौद्रवपुर, जैसलमेर : ना० बी०, लेखांक २८८४, १५६६. पद्मनाभ मंदिर, चौगान (स्वरूप सागर), उदयपुर : १५६७. पद्मनाभ मंदिर, चौगान ( स्वरूप सागर), उदयपुर १५६८. आदिनाथ जिनालय, बदनोर की हवेली के पास, उदयपुरः ( २८०) Jain Education International खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004075
Book TitleKhartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages604
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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