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करवाया, जीर्णोद्धार करवाये और एक साथ सैकड़ों नहीं, हजारों जिन-मूर्तियों की प्रतिष्ठा भी करवाई। दादा जिनकुशलसूरि ने शत्रुञ्जय मानतुंग विहार की प्रतिष्ठा के समय ५०० से अधिक मूर्तियों की और जिनभद्रसूरि आदि ने जैसलमेर प्रतिष्ठा के समय हजारों जिनमूर्तियों की एक साथ प्रतिष्ठा करवाई थी। हमें खेद है कि फिर भी हम उसकी सुरक्षा नहीं कर सके। वर्तमान में उन प्रतिष्ठित हजारों मूर्तियों में से गिनती की प्रतिमाएँ ही प्राप्त होती हैं। जो प्राप्त होती हैं और इत: पूर्व उन मूर्तियों के लेखों को जिन-जिन विद्वानों ने अत्यन्त परिश्रम के साथ प्रकाशित किया है उन्हीं लेखों में से खरतरगच्छ के लेखों का यह संग्रह है ।
खरतरगच्छ द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थ
समय
खरतरगच्छ छायादार वट वृक्ष की तरह विशाल था । दादा जिनकुशलसूरि उनकी आज्ञा में विचरण करने वाले १३०० विद्वान् साधु थे और अकबर प्रतिबोधक युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि की आज्ञा में रहने वाले २१०० साधु थे । इनकी अधीनता में रहने वाली साध्वी समुदाय इसमें सम्मिलित नहीं हैं। ऐसे ही गच्छ की अन्य छः शाखाओं के आचार्य एवं साधुओं की गणना इसमें सम्मिलित नहीं है । ये प्रभावशाली आचार्यगण और विद्वान् साधु भारत के कोने-कोने में विचरण कर रहे थे। सेठ साधारण, सेठ कुलधर, सेठ क्षेमन्धर, ठक्कुर फेरु, मंत्री कर्मचन्द्र बच्छावत, सेठ मोतीशाह नाहटा और राय बहादुर बद्रीदास जैसे ऐश्वर्य सम्पन्न श्रावक इनके परम भक्त थे । अतः स्वाभाविक है कि इस गच्छ का प्रचार-प्रसार और फैलाव अत्यधिक हुआ।
आचार्यगण मंदिरों के उद्धार, नवीन निर्माण और संरक्षण इन तीनों दृष्टियों को साथ लेकर चलते थे। भारत के प्रत्येक प्रदेश में इनके द्वारा प्रतिष्ठापित एवं रक्षित तीर्थस्थल पाये जाते हैं। श्री वर्धमानसूरि द्वारा आबू की विमलवसही श्री अभयदेवसूरि द्वारा स्थापित स्तम्भन पार्श्वनाथ तीर्थ, श्री जिनवल्लभसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित चित्तौड़, नागौर, मरुकोट्ट के मंदिर, युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि द्वारा प्रतिष्ठित अजमेर, कन्यानयन, विक्रमपुर, नरहड़ आदि के मन्दिर, श्री जिनपतिसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित स्वर्णगिरि, खेटक आदि के और श्री जिनेश्वरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित नगरकोट (हिमाचल प्रदेश), बीजापुर, पालनपुर, भीमपल्ली आदि श्री जिनचन्द्रसूरि स्थापित पाटण, सांचोर, शंखेश्वर, सिवाना, जैसलमेर, बाड़मेर आदि, श्री जिनकुशलसूरि द्वारा स्थापित शत्रुंजय में मानतुंग विहार, पाटण, सिंध के देवराजपुर, उच्चानगर, हाला आदि और भुवनहिताचार्य द्वारा राजगृह आदि स्थानों में मंदिर स्थापित करने और प्रतिष्ठापित करने के उल्लेख मिलते ही
हैं।
बिहार / बंगाल प्रदेश में सम्मेतशिखर, पावापुरी, राजगृह, चम्पापुरी, अजीमगंज, मिथिला, जौनपुर, क्षत्रियकुण्ड, कलकत्ता आदि, हिमाचल प्रदेश में नगरकोट (कांगड़ा), पंजाब में लाहोर, उत्तर प्रदेश में लखनऊ, कंपिलपुर, हस्तिनापुर, राजस्थान में जैसलमेर, लौद्रवा, ब्रह्मसर, बाड़मेर, नाकोड़ा पार्श्वनाथ, कापरड़ा, करेड़ा, जोधपुर, बीकानेर, जयपुर, त्रिभुवनगिरि, नागोर,
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पुरोवाक्
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