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________________ मानाविच्छिन्नपरंपरायात चांद्रकुलीन संवेगरं करण प्रवा . लाडल - नवाकुलप्रतापभापनोपमान- श्रीकोटीगणाभरणश्रीवज्रशाखातिशायिप्रद्योतन- श्रीउद्योतनसूरि- श्रीमदर्बुदाचलोपरिविहितखाण.. सानिध्यश्रीसीमंधरसोधितश्रीसू रिमंत्रवर्णसमाम्नाय श्रीवर्धमानसूरि- श्रीमद्- अणहिलपत्तनाधिप-श्रीदुर्लभ चैत्यवासियत्याभास . पक्षे स्थापिता वसतिमार्गदीपक- श्रीखरतरविरुदवर- श्रीजिनेश्वरसूरिश्रीजिनचंद्रसूरि-जयतिहु अणद्वात्रिंशिकाविधान-प्रगटीकृतं स्तंभनकाभिधानपार्श्वनाथ- प्रधानप्रासादसमर्थि- नवांगीवृत्तिरचकान - निकषपट्टे श्री अभयदेवसूरि : कंदकुदालाभ-पं० दत्त ....समाचारि - विचारचंचुबंधुरश्रीजिनवल्लभसूरि-चतुषष्टियोगिनिविजय पंचनंददशसूरिक्रमागतश्रीदत्रसूरिसंतान-विषमदुः षमारक-प्रसरपारावारलहरिभरनिमग्न-सक्रियोद्धारणसमुवा० बंदाततोपित वि.............ति श्रींमदकबरप्रदत्तयुगवरपदवीधर - कुमतितिमिरर्पितदुर्म-नमथनोधुर- प्रतिवर्षाढीयामारिसिंचन श्रीजिनचंद्रसूरि - चउरनर - राजनंदि व. . विहित साध्य विदारणप्रदमिता ॥ (१३१५ ) शिलालेख: संवत् १६७५ सित १३ शुक्रे सुरताणनूरदीनजहांगीरविजयराज्ये श्रीराजनगरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञात से० देवराज भार्या रूडी पुत्र से० गोपाल भार्या राजू सुत० साईआ भार्या नाकू पुत्र सं० नाथा भार्या नारिंगदे पुत्ररत्न सं० सूरजीकेन भार्या सुखमादे पुत्रायित इंद्रजी सहितेन श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज - श्री अकबरपातिसाहिभूपालप्रदत्त - षाण्मासिकाभयदान- तद्प्रदत्तयुगप्रधान विरुदधारक-सकलदेशाष्टान्हिकामारिप्रवर्तावक युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टोद्दीपक- कठिनकाश्मीरदेशविहारकारक श्री अकबरसाहि - चितरंजन प्रपालित श्रीपुरगोलकुंडा - गज्जण प्रमुख देशामारि जहांगीर साहिप्रदत्त-युगप्रधानपदधारि श्रीजिनसिंहसूरिपट्टोदयकारक - भट्टारकशिरोरत्न श्रीजिनराजसूरि.. ॥ श्री ॥ श्री ॥ (१३१६ ) शिलालेखः संवत् १६७५ वैशाख सित १३ शुक्रे सुरताणनूरदीनजहांगीर सवाई - विजयराज्ये । श्रीराजनगरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय सं० साइआ भार्या नाकू पुत्र सं० जोगी भार्या जसमादे पुत्र विविधपुण्यकर्मोपार्जक सं० सोमजी भार्या राजलदे पुत्र सं० रतनजी भार्या सुजाणदे पुत्र २ सुंदरदास - सखराभ्यां पितृनाम्ना श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि जहांगीरसाहिप्रदत्त युगप्रधान विरुदधारक श्री अकबारसाहिचित्तरंजक कठिनकाश्मीरादिदेशविहारकारक युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टालंकार बोहित्थवंशशृंगारक भट्टारकवृंदारक श्रीजिनराजसूरिसूरिमृगराजैः ॥ श्रीः ॥ श्रीः ॥ (१३१७ ) शिलापट्टलेखः संवत् १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १३ श्री अहम्मदावाद वास्तव्य चोरवेड़ियागोत्रे ओसवालज्ञाती साहा सुत साह चांपसी सुत सा० कर्मसी भारजा बाई कर्मदि खरतरगच्छे पीपलिया । शुभं भवतु १३१५. देरी नं० . शत्रुंजयः श० गि० द०, लेखांक २१ १३१६. शत्रुंजय: श०गि० द०, लेखांक २२ १३१७. खरतरवसही, शत्रुंजय: भंवर० (अप्रका० ), लेखांक ७८ (२३४) Jain Education International खरतरगच्छ-प्रतिष्ठा-लेख संग्रह: For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004075
Book TitleKhartargaccha Pratishtha Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages604
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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