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यहाँ ये उद्गार प्रकट करना समीचीन होगा कि वर्तमान में ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण व उनके आधार पर इतिहास को प्रामाणिकता प्रदान करने के कार्य में संघों की रुचि नगण्य सी है । मेरा अनुमान है कि यदि प्रतिष्ठा लेखों के संकलन के कार्य को आगे बढाया जाए तो यह ३००० के लगभग की संख्या दस हज़ार से अधिक हो सकती है । समस्त संघों को आधुनिक सुविधाओं का उपयोग कर इस ओर प्रयत्न करने चाहिए।
खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह पुस्तक में जो मैंने सम्पादन शैली स्वीकार की है, वह इस प्रकार है :
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प्रत्येक लेख सम्वत्, मास, तिथि, तीर्थंकर नामक्रम और दादागुरु चरणों के क्रम से रखे गये हैं । लेखांक के साथ आदिनाथः, नेमिनाथः इत्यादि शब्द प्रस्तर ( पाषाण) मूर्तियों के सूचक हैं, आदिनाथ पंचतीर्थी, शान्तिनाथ चतुर्विंशति, पार्श्वनाथ एकतीर्थी आदि शब्द धातु मूर्तियों के सूचक हैं। दादागुरु की मूर्तियों और चरणों के लिए मूर्ति और पादुका शब्द का उपयोग किया गया है।
ये मूर्तियाँ, चरण आदि किस स्थान पर और किस मंदिर में प्राप्त हैं ? इसका संकेत प्रत्येक लेख की टिप्पणी के साथ उसी लेखांक के रूप में दिया गया है। उस स्थान का उल्लेख करने के पश्चात् जिस पुस्तक के लेख लिये गए हैं, उस पुस्तक का नाम और लेखांक दिये गये है जिससे की पाठक मिलान करना चाहें तो उन पुस्तकों से कर सकते हैं।
इन लेखों में ५-७ लेख ऐसे भी हैं जो कि प्रतिमाओं से सम्बद्ध न हो कर उपाश्रय, ज्ञानभण्डार और धर्मशाला से सम्बन्धित हैं, जो कि भूल से दिये गये हैं । जैसे लेखांक २४७९, २५२० एवं २५२१ आदि । कुछ लेख गणेशमूर्ति, सेठसेठाणियों के भी हैं, जो आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठित हैं ।
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पूर्व पुस्तकों में जिन स्थानों का, मंदिरों का, उपाश्रयों का उल्लेख किया गया है, उनमें से कतिपय मूर्तियों के स्थान परिवर्तित हो गए हैं, जैसे- जयपुर इमलीवाली धर्मशाला। अथवा उन स्थानों पर वे मूर्तियाँ आज प्राप्त नहीं हैं । वे कहाँ गई ? अतापता भी नहीं है । जैसे जयपुर पार्श्वचन्द्रगच्छीय उपाश्रय, यति श्यामलालजी का उपाश्रय और जयपुर नया मंदिर का शिलापट्ट आदि । किन्तु उन प्राचीन पुस्तकों से यह स्पष्ट सिद्ध है कि उन स्थानों पर वे मूर्तियाँ आदि प्राप्त थीं जो कि आज नहीं हैं । शोधार्थियों के लिए ग्रन्थ के अन्त में ७ परिशिष्ट दिये गये हैं, जो निम्न हैं :
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जिन-जिन पुस्तकों से ये लेख लिए गये हैं, उन पुस्तकों के नाम, लेखक, प्रकाशन सन् आदि देते हुए लेखांक सूची वर्णानुक्रम से दी गई है। ये लेखांक इस पुस्तक के लेखांक हैं, न कि उन पुस्तकों के जिनके लेख इनमें संग्रहित किये गए हैं।
पुरोवाक्
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