Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : यह जानकर प्रसन्नता हुई कि स्व० पंडित रतनचन्दजी सा० मुख्तार की स्मृति में ग्रन्थ प्रकाशित होने जा रहा है । पण्डितजी जैसे सिद्धान्तवेत्ता, निरभिमानी एवं स्वाध्यायी विद्वान् का मंगल स्मरण हमें भी सम्यग्ज्ञान से आलोकित करे, यही भावना है।
जैनागमों का सचेतन पुस्तकालय * पण्डित प्यारेलालजी कोटड़िया, उदयपुर
___सुतो वा सूतपुत्रो वा यो वा को वा भवाम्यहम् ।
'देवायत्त कुले जन्म, ममायत्त हि पौरुषम् ॥
महान विद्वान, संस्कृति के प्रणेता एवं परम्परा के सतत सजग प्रहरी होने के कारण स्वर्गीय पूज्य मख्तार सा० का पुनीत स्मरण करना हम सबका परम कर्तव्य है क्योंकि विद्वान् केवली भगवान की वाणी की स्थिति सँभाल कर उसका सही दिग्दर्शन कराते हैं और जन-जन जिनवाणी की पूजा-उपासना कर अपना जीवन सफल करते हैं। .
यह हमारा सौभाग्य है कि इस धरती पर दर्शन के सम्यक् ज्ञाता और वस्तुस्वरूप का साङ्गोपाङ्ग विवेचन करनेवाले महापुरुषों ने समय-समय पर जन्म लिया है । ऐसे ही महापुरुषों की श्रृंखला में परमज्ञानी, उज्ज्वलचारित्रधारी, कर्मठ, संयमी, सिद्धान्ताचार्य, विद्यावारिधि पण्डित रत्न स्व० श्री रतनचन्दजी सा० मुख्तार का नाम भी प्रथम पंक्ति में रखे जाने योग्य है । आपके जीवन, कार्यकलाप, साहित्य और आगम सेवा से सभी सुपरिचित हैं। जब धवल, जयधवल, महाधवल आदि सिद्धान्त ग्रन्थ सामने आये और छपने प्रारम्भ हए तभी से आपने अपना सभी लौकिक व्यवसाय छोड़ दिया। आप चिन्तन और ग्रन्थ मन्थन में जुट गए; उनमें से नवनीत निकाल कर अनेक गूढ़ प्रश्नों का साङ्गोपाङ्ग सप्रमाण समाधान प्रस्तुत किया ।
आप अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी थे। धवल आदि सिद्धान्त ग्रन्थों में ही नहीं अपितु चारों अनुयोगों में आपका इतनी सरलता से प्रवेश था कि यदि आपको जैनागमों का सचेतन चलता-फिरता पुस्तकालय कहा जाता तो भी अनचित न होता। आप साक्षात् भगवती सरस्वती की सवाक मूर्ति ही थे।
आपने चारों अनुयोगों अर्थात् अध्यात्म और पागम का साङ्गोपाङ्ग अध्ययन कर प्रमाण नयनिक्षेप के सही स्वरूप का एवं उसकी सापेक्षता का प्रतिपादन किया। आगम का प्रत्येक विषय सापेक्ष, स्यावाद और अनेकान्त से ओतप्रोत है।
अध्यात्म और आगम को भिन्न-भिन्न ( विपरीत ) दृष्टि से देखने वालों और मूल सिद्धान्त के तलस्पर्शी अध्ययन रहित एकान्तवादियों को मार्गदर्शन ही नहीं दिया अपितु सन्मार्ग पर लाने का प्रयास भी किया। प्रतिपक्षी नय को झुठा समझने वालों के समक्ष आपने सापेक्ष स्याद्वाद और अनेकान्त स्वरूप का प्रतिपादन कर उन्हें सम्यकअध्ययन करने की प्रेरणा भी दी।
१. दैव से यहाँ आयु व गोत्रकर्म समझना चाहिए।
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