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THE FREE INDOLOGICAL
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-The TFIC Team.
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भीनासर (बीकानेर) पुस्तक क्रमांक.. 23
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आ पुस्तकमा पंमित श्रीराम विजयजीविरचित शोजमा तीर्थकर जे श्रीशांतिनाथ नगवान् नेसनो रास दाखल करयो के.
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अत्यानंददायक मनोहर अने वेगग्यतारक वी
अनेक कथाआ आवेली छे.
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प्रथने चतुर्विध संघने भणवा बांचवा लायक जाणीने यापक खीमजीनीमसिंह माग
श्री मो गयीमा F ATRE PATTER.
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प्रस्तावना. धावेला ने, के जेना वांचवाथी वांचनारने तथा सांग नारने घमंद एवों आनंद उत्पन्न थाय ,ते आनंदतुं यथायोग्य वर्णन वामां अमारी कलम, काम करी शकती नथी.धने या ग्रंथ संस्कृतपरथी जे रासरूपें रच्यो ,ते तो कवियें केवल संस्कृतनापाना अविज्ञातजनोनो महोटो उपकार करेलो ने.केम के ? जो पा रास न करे, तो संस्कृतना अविज्ञातजनोने श्री शांति नाथना चरित्र वांचवानो लान मली शके नहिं.
हवेथा ग्रंथनेयमोयें ज्यारें बापवानो विचार करयो,त्यारे ते बापवाने मा. प्रथम आग्रंथनी प्रत जोश्य.तो पनी ते प्रतनो जे जे स्थलें मलवानो संजव हतो,ते ते स्थलें अमोयें पत्र धारा तपास कराव्यो,अने वली पाहिं मुंवश्मा पण प्रयासपूर्वक तपास कयो,परंतु कोइ पण स्थलथी तेनी एक पण प्रत अमोने उपलब्ध थ नही; मात्र नावनगरथी अमारा सुझसाधर्मीना जे शेव कुंवरजी आणंदजी ते अमोने एक प्रत मोकली. अने पड़ी एक प्रत थमारा घर पस्तको शोधवाथी मली यावी.तेमां अमारा घरनी प्रत शोध करेली होवाथा घणी गुम हती, परंतु ते प्रतमां प्रथमथी ते चोथा खमनी त्रीजी ढाल पर्यत पत्रोज हतां नहिं,त्यारें तो ते नावनग रथी श्रावेली प्रत उपरग्रीज अमायं पा ग्रंथ यथामति संशोधन कराचीने ते चोथा खमनी त्रीजी ढाल सुधी बाप्यो , माटें एक प्रतपरथी उपावाथी तेमां केटलीएक नूलो रही गश्हों . तदनंतर तो अमोयें या ग्रंथने वेदु प्रत सायें मेलावी, तेनुं प्रयास पूर्वक यथावुद्धि संशोधन करावी वाप्यो . तो पण या ग्रंथमां दृष्टिदोपथी तथा कंपोस करनारनी जूलथी तथा अज्ञा नी जे कां नूल चूक रही गइ होय,तो तेने सर्वसाधर्मिनाइयोये, मारी पर सुधारी बांचवारूप कृपा करवी. अने वली हे सुझजनो संसार विटंबणाने बधारनार एवा बीजा कार्योमा व्यर्थ व्यय न करतां श्राधा श्रमारा, सारो छेदक एवा उत्तम कार्योमांतन, मन धनधी उदार श्राश्रय श्रापबामांश्रमा रा पिताना समयमांजेम वरूपरिकर रहेता हता, तेम सांप्रतलमयमांपए रदेशो. एवी थमने पूर्ण श्राशावे. कारण के धावा ज्ञानवधिकार्यने उत्ते जन प्रापनारा जनोने झानदान समान पुण्यनी प्राप्ति थाय दे. तुमनिजनेषु फि बुद्ध शिलेखनेन । शुभं लयात् ॥
॥ श्रावक, खीमजी जीमसिंह माणक ।।
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प्रस्तावना .
धाजैनकथारत्नकोषनामा ग्रंथनोयासमोनाग बापी अमोयें अमारा सर्व साधर्मी सुझनाइयोनी समदमा मूकेलो .जे नागमा सम्यग्दृष्टि समस्तस ऊनोने वांचवा योग्य एवो मुनिवर्य पंमित श्रीरामविजयजी विरचित शोलमा तीर्थकर जे श्री शांतिनाथ जगवान्, तेमनो मात्र एक रास दाखल करेलो जे. कारण के जीवने नत्तम पुरुपोनां चरित्रो वांचवाथी तथा सांज जवाथी संसारनो निस्तार थाय . था रासना जूदा जूदा ब खमोजे, . नामां श्रीशांतिनाथ जगवानना वारे नवनी सविस्तर कथा आवेली . . तेमज वली श्री शांतिनाथजीना मुख्यगणधर जे श्री चक्रायुध तेमना पण सर्वनवनी कथा आवेली. या ग्रंथ एवो तो रमणीय बे, के जेनी प्रत्येक ढालो,सरस एवा नव रसें करी संमिलित ,अने तेमां घणुं करीने तो स्थचे स्थलें वैराग्यकारक उपदेशोज धावेला , के जेने ध्यान दने वांचवाथी वाचकवंदने संसारनु असारपणुं समजाय जे. अने तेथी तेमना अंतःकरणना परिणाम सुधरे , धने पनी तेने सजतिनी श्रेणि प्राप्त थाय . वली आ ग्रंथमां बीजी पण चित्तचमत्कतिकारक मंग लकलश कुमार,तथा सुमित्रानंदादिक तथा पुण्यसार वगेरेनी अनेक कथा आवेली .तेमज वली श्रावकना वार व्रतपरनी वार कथा आवेली ,तेनुं थाही अति वर्णन न करतां सर्व नाश्योने हुँ एटलीज जलामण करुं बु, के ते सर्व कथा तेथे पोतेंज पोतानी मेलें वांची तेनुंजे याथातथ्यस्वरूप बे, समजवू. या रास, मुनिवर्य पंमित श्रीरामविजयजीयें पंमितश्रीअजित प्रनसूरियें संस्कृत पद्यमा वनावेला श्री शांतिनाथचरित्र उपरथी रचेलो होय एम लागे . कारण के ते संस्कृतग्रंथ अने आ ग्रंथ ज्यारें धापणे मेलवी वांचीयें बैयें,त्यारे वदुशः वेदु ग्रंथनी अदरशः वात मसतीज आवे ने. मात्र था रासमा सहुने सारी रीतें समजी शकाय तेमाडे वैराग्यकारक कथानमां तथा केटलाएक कठिननागमां, यत्किंचित् चरित्रग्रंथगत न उतां वधारेल . तथा एवीज रीतें चैत्यवंदन स्तवन पण नवीनज बनावेलां वे. आरासमां प्रसंगोपात पृथक् पृथक्कविकृत श्लोको तथा दोहा तथा सिमां ननी गाथा पण सीधेलीयो दे.वलीया ग्रंथमांशब्दानुप्रास तो एवा उत्तम ।
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॥ यस्य ग्रंथस्यातिसंदिप्तानुक्रमणिका ॥
१ श्री शांतिनाथ नगवानना वार नवमांदेला पहेला नवमां श्रीशा' .
तिनाथजी श्रीपेणराजा यश उपन्या, तेनुं सविस्तर चरित्र. .... ? श्दश विधधर्माचरण करनारने सुख प्राप्त याय,तेविपे मंगलकलशकुमारक ३ बीजे नवें श्री शांतिनाथजी उत्तरकुरुमां युगलिया देव थइ उपन्या. ३० भत्रीजेनवें श्रीशांतिनाथ नगवान् सौधर्मदेवलोकमां देव थइ उपन्या. ३२
॥अथ द्वितीयवंमस्यानुक्रमणिका ॥ ५ श्रीशांतिनाथना चतुर्थनवप्रसंगार्थ हरि प्रतिहरिप्रमुखनु चरित्र. ३३ ६ चोथेनवें श्रीशांतिनाथनगवान,अमित तेजाविद्याधर थया, तेनुं च ध? सांतरायधर्म पालनधी सांतराय सुखप्राप्त थाय, तेमां मत्स्योदरक ० ५५ पांचमे नवें श्रीशांतिनाथ प्रागतदेवलोकमां दिव्यचूलनामा देव थ००५
॥अथ तृतीयखमस्यानुक्रमणिका ॥ बनवें श्रीशांतिनाथजीअपराजितनामें बलदेव थया, तेनुं चरित्र. ७७ १० अल्पपणकपायसेवनथी जीवछुःखी थाय ते पर मित्रानंदादिक क० ए० ११ संयमपालवामांकायरपणुंन राखवामां जिनपालने जिनरदित ११ १२ त्वग्गत. अस्थिगत ने मजागत एवा धर्ममां नरसिंह राजानीका १३३ १३ श्रीशांतिनाथ जगवान् सातमे नवें अच्युतश् देव थइ उपन्या, १४३
॥अथ चतुर्थखंमस्यानुक्रमणिका ॥ १४ धावमे नवें श्रीशांतिनाथजी बजायुधवक्री या उपन्या,तेनुंचरित्र. १४७ १५ विचारीकार्य करवामांश्राम्रनिपात्यादि दृष्टांतो,तेसांवीजी कथा १ ५३ १६ बजायुधचक्रीने चक उत्पन्न ययुं ते तथा चक्रीपपानीसंपदानुवर्णन. १७७ १७ पुण्यथी सुखप्राप्ति थाय , तेमां पुण्यसार कुमार कथा. ... १७४ १७ चतुर्विध बुद्धिमानी औत्पातिकी बुद्धिमा रोहकनी कथा. .... २७५ २ श्री शांतिनाथजी नवमे नवें नवमययेयके देवता थया. .... २१६
॥अथ पंचम खमस्यानुक्रमणिका ॥ २० दशमे नवें श्रीशांतिनाथ मेवरथराजा घया, तेनुं सविस्तर चरित्र. ११ १ पापयशालामां पोपट करया ठेला मेघराजानाशरणमा आवेला पारेचाने आपलायनयदानविप संवादर पे थनेकमनोहर कया. २२६
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अनुक्रमणिका.
२५ धर्मयी यापत्ति दूर थाय वे, अने सुखनी प्राप्ति याय बे, ते विषे अन्यथायुक्त गत नवमां शूरनामक ययेला वत्सराजनी कथा. २४ : २३ अग्यारमे नवें श्रीशांतिनाथजी सर्वार्थसिद्ध विमानमां देव थया. २९: ॥ अथ पष्ठखंमानुक्रमणिका ||
२४ बारमे नवें पोतेंज श्रीशांतिनाथजी चक्री, तथा श्रीशोलमा तीर्थ कर श्रीशांतिनाथ भगवान् यया तेमनुं मनोहर सविस्तर चरित्र. २६ २५ विपयत्यागथी सुख प्राप्ति थाय, तेमां गुणधर्मकुमारनी कथा. ३१६ २६ कषाय त्यागना उपदेशमां नागदत्तनुं वृत्तांत.
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३३६ ३३०
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२७ प्रथम प्राणातिपात व्रतना उपदेशमां यमपाशनी कथा. २८ द्वितीय मृपावाद विरमण व्रत उपदेशमां न श्रेष्ठिकथा. १० तृतीय स्थूलप्रदत्तादानविरमणव्रतपर जिनदत्तकथा. ३० चतुर्थ मैथुनविरमण व्रत पर कराल पिंगल पुरोहित कथा. ३१ पंचम परिग्रहपरिमाणव्रत उपदेशमां सुलसकथा...... ३२ पष्ठदिशिपरिमाण व्रतपर स्वयंजुदेवकथा.
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३३ सप्तम जोगोपभोग विरमण व्रत पर जितशत्रुतथा नित्य मंमिता कथा. ३८५ ३४ अष्टम अनर्थदमविरमण व्रत पर समृद्धिदत्तकथा. ३५ नवम सामायिक व्रतोपदेशमां सिंहश्रावक कथा.. ३६ दशम देशावका शिक व्रतोपदेशमां गंगदत्तनी कथा. ३७ एकादश पौपथ व्रतोपदेशमां जिनचंद कथानकम्.. ३८ द्वादश व्यतिथिसंविभाग व्रतोपदेशमां शूरपालकथा. ३८ ३० श्री शांतिनाथजीनापुत्रचक्रायुधें दीक्षा जीधीने मुख्य गणधरथया. ४१.५ ४० मोहराजानुं तथा तेना सैन्यनुं वर्णन. अने जीव, संसारदुःख भोगवे
३४
३५
बे, तेने ज्ञान प्राप्तिथी सुख थाय बे, तेमां रत्नचूडनो दृष्टांत ४१६ ४१ श्री शांतिनाथचतुस्त्रिंशदतिशवर्णन तथा तत्परिवारसंख्या कथन. ४२७ ४२ श्री शांतिनायनुं मोक्षगमन, ते पती देवादिकत शोक तथा देवकत निर्हरक्रिया, त्रिंशमोहस्थान विवेचन, कोटिशिलातीर्थमां चक्रा युध मुक्तिगमन, तथा शांति जिनस्तुति.
४३२ ४३ श्रीशांतिनाथजीना वार जवना नाम निर्देश प्रने ग्रंथकारनी प्रशस्ति, ४३५ ४४ स्त्रीयोने शिखामणना केटलाएक टूटा बूटा बोलो.
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॥ अथ ॥
|| पंकित श्रीरामविजयजी विरचित श्री शांतिनाथ भगवाननो
रास प्रारंभः ॥
॥ तत्र ॥ ॥ प्रथमखंमः प्रारच्यते ॥
॥ दोहा ॥ सकल श्रेयवरदायिनी, मुनिवरवंदित जेह ॥ जिनपद लक्ष्मी नितनमुं, याणी यधिक सनेह ॥ १ ॥ उजय र्थ वाहन नृपें, सदा विराजे जेह || ते श्रीतृपन प्रनू तणां, चरण नमुं गुणगेह ॥ २ ॥ यंत रंग रिपुवर्गदल, जिरा जिंत्युं कलमांहि ॥ यजित स्वामि पमुहा नमुं, ते जिन धरि उत्साह || ३ || महिमा महोटो जेहनो, सकल सुरक दातार ॥ नवि मनोवांवित पूरवा, कामकुंन अवतार ॥ ४ ॥ कुशलव लिवन सींचवा, जे पुष्कर जलधार ॥ विश्वसेनकुल व्यवस्था सकलजंतु याधार ॥ ५ ॥ शांतिनाथ प्रभु शोलमा, गजपुरस्वामी देव ॥ बेदु पदवी धारक थया, सारे सुर नर सेव || ६ || ते श्रीशांति जिणंदनो, सरस रसिक संबंध ॥ विस्तारें करि वर्णवु, छादश नव अनुबंध ॥ 8 ॥ गुण अनंत श्रीजिन तला, केम करि वर्णव्या जाय || पण ते प्रजुनी भक्तिनुं, महोटं मुक सहाय ॥ ८ ॥ श्री सुमति सुगुरु विद्यानिधे, पदगुं एह रसाल ॥ ढालवं श्री शांतिनो, रासप्रबंध विशाल ॥ एए ॥ नव नव जव चढती कला, शुक्ल पक जिम चंद ॥ जिम कीधा तिम वर्णयुं, धरि मनमां श्रानंद ॥ १० ॥ नव पहेले श्रीपेण नृप, विलसी बहु संपत्ति ॥ ते विस्तारें दुं कहुं, सुजो नवि इक चित्त ॥ ११ ॥
•
॥ ढाल पहेली ॥
॥ स्वस्ति श्रीशाला ॥ ए देशी ॥ जंबुद्वीप अनूपम उपे, सकलदीप शृंगार ॥ मेरुमदिर मध्य विराजे, लख योजन विस्तार ॥ जेमांहे जाजा गुन द्यावासा, वासरा दो चार ॥ तेह नये अंतर अत्यंतर नन्निवास सुविचार ॥ १ ॥ यक्तमागमे ॥ नरहं हेमवयंनि, हरियासति महा विदेहति ॥ रम्म गए रuवयं एरचयं चैव चासा ॥ १ ॥ तेमांदे गुजरत जन व संयु
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
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त, भरत नाम वरखित्तं ॥ जिनवर चक्रधरादिक नरवर, चरणवास सुपवि तं ॥ नरतनू मिनूपण गतदूपण, पत्तन बहुजनवासं ॥ रत्नपुरं पुरमा रत्नो पम, बहु मणि रयण निवासं ॥ २ ॥ वापी वत्र विहार विराजे, वाडी वन धाराम ॥ सकललोकधनवंत विलासी, वदुयाशा विश्राम || ज्ञानी ध्यानी दानी मानी, सजनजन सन्मान ॥ एवं नगर अनोपम उपे, इंड्पुरी उप मान ॥ ३ ॥ वारु नीति गुनरीति महामति, लक्ष्मीपति गुणधारी ॥ श्री पेणानिध नामें नूपति, नाणे सुर अवतारी ॥ नीम कांत नूपति गुण धारे, नरवसहो नरसिंहो || राजा राज्य करे अतुली वल, तेजें यकल व्यवीहो ॥ ४ ॥ तेह घर राणी गुलाली, जाणीती जगमांय ॥ रूपें रति राणी दोय पट्टराणी, वाहाली जीवित प्राय ॥ खनि सिंह यागल नंदिता जोडे, या वंते निधान ॥ विलसे ते सायें नृप जगनायें, जोडी जोडी समान ॥ ५ ॥ विलसंता जोगा पुण्यसंयोगा, एक दिवसने योग ॥ सुखसेजें सुती पुण्य पनोती, पहेली स्त्री नीरोग ॥ ऋतुधर्म सनाता तेज दिखाता, चंद सूर दोय इंद || देखे उत्संगें क्रीडा करता धरता यति यानंद ॥ ६ ॥ देखी सुपनंतर हर्प निरंतर, हियडे गजगति गेल ॥ यावी पियुपासें मन उल्ला सें, मानुं मोहनवेल ॥जय जय मुऊ स्वामी अंतरजामी, प्राण नाथ अवधार ॥ सुहणे में दीवा जाग्या मीठा, चंद सूर्य दोय सार ॥ ७ ॥ तेहनुं फल स्वामी कहो रतिकामी, पूहुं वे कर जोडी ॥ सांजल मृगनयणी अमृत वयणी, फल नांखुं मन कोड || होशे सुत सुंदर रूप पुरंदर, निजकुलदीपक दोय ॥ हरखी ते राणीने सुलिवाणी, यावी मंदिर सोय ॥ ८ ॥ दोय गर्न धरती ते गुणवंती, सोहे अंग अपार ॥ जाएग उपगारी दोयने धारी, धरणीपरें गुणधार ॥ गुन दोहला लाधे अंगज वाधे, साधे धर्मविचार ॥ शुनवेला राणी गुणमलि खाणी, प्रसवे दोय कुमार || ए || श्रीपेण नरिंदा घरे द्यानंदा, घ्यावंतां दर चार || वंदी बोडावे गुणिजन गावे, बोले जयजयकार | चिरं जीवो नंदन जग यानंदन, कोडाकोडि वरीस || सोहव इस गावे हर्प वधावे देती बहु आशीष ॥ १० ॥ देखी दोय पुत्ता गुणसंयुत्ता, मत्ता हर्पनरेण, माता दुलरावे वलि धवरावे, स्तन ग्रहि निज करेण ॥ सुत नामें सुंदर गुणमलि मंदिर, इंडपे विंडपे || चढती वय पामे बहुजन कामे, शोने रूपगले ए ॥ ११ ॥ हवे अष्टम वर्षे बहुले हर्पे, पाठविया दोय नंद || निशाले सुडा
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श्री शांतिनाथनो रास खंग पदेलो.
स खम पहला. ३ जिम ते रूडा, बुझे जेह अमंद ॥ रसग्रंथ अनुत्तर कला बदुत्तर, नणि या जारे नेद ॥ देखी दोय जाया दरवी माया, वाध्यो चित्त उमेद ॥१२॥ यौवन वय आया रूप सुहाया,मानुं दोय रतिकंत॥मावित्र मनोरथ करता सारथ, राजलील विलसंत ॥ पहेली ए ढालें पुण्य विशालें, दाख्यो राज विलास ॥ श्री सुमति सुगुरुनो शिप्य कहे नवि, सुणो शांतिजिनरास ॥१३॥
॥दोहा॥ ॥ण अवसरें जरतमां, मगधनाम गुन देश ॥ तेमां वदुर नखो, थचल नाम सन्निवेश ॥ १ ॥ वेदविचरण तिहां वसे, वारू वाडव एक ॥ धरणीजट नामें निपुण, सकल शास्त्र सुविवेक ॥ २ ॥ तस घरणी धरणी परें, मावंतमां लीह ॥ नाम यशोनश वली, मीठी जेहनी जीह ॥३ ॥ पियुसाथें सुख विलसतां, जन्म्या अंगज दोय ॥ नंदिनूति श्रीनूति वेगु, रूप अनूपम सोय ॥ ४ ॥
॥ ढाल बीजी॥ ॥श्रेणिक मन अचरिज थयो। ए देशी ॥ ते हिजना घरमा वसे, कपिता नामें दासी रे ॥ आवी यौवनवेशमां, प्रेम कला सुविलासी रे ॥ १ ॥ वि रुइ विषय विडंबना ॥ एयांकपी॥ जो जो जगत विमासी रे ॥ विपयसमी विपमी नहीं. महियल महोटी हांसी रे ॥ वि० ॥ २ ॥ रूप देखी दासी त', चाडव थयो विपरीतो रे।। वेदकला थलगी रही, मोहकलगमां खूतो रे ॥ विण ॥३॥ लोकलका नवि लेखवी, मोहतणे वश लीनो रे ॥ शील तजीने कुशीलिनी, थयो दासी थाधीनो रे ॥ वि० ॥ ४ ॥ सुख विलसंतां तेहगुं, कपिला कुरवनो जायो रे ॥ कपिल सुत त्रीजो थयो, जातिविही न गवायो रे ॥ वि० ॥ ५ ॥ अंगज दोयने यादरे, वेदाध्ययन करावे रे॥ जाति विहीन जाणी करी, कपिल नणीन जणावे रे ॥ वि०॥ ६ ॥ मानहीन . मति श्रागलो, अलगो रहि एक चिनें रे ॥ श्रवण मनन चिंतन करी, शास्त्रजणे शुन रीते रे ॥ वि ॥ ॥ सांजनता सबली कला. झीरव्यो सकस विचारो रे ।। वेदकलाकुशली थयो, मानधनी मतिधारो रे ॥ वि० ॥ ॥ जाति श्रवझाने नये, नगर मूकी नीमारियो रे ॥ बासूत्र दोय पारतो, मादा माहए जिम वरियो रे ॥ वि०॥ ॥ विद्यामदमा माहा जता, संचरतो पी रे ॥ धनुक्रमें रनपुरे गयो, सुख पाम्यो ते दी रे
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जैनकथा रत्नकोषनाग आठमो.. ॥ वि० ॥ १० ॥ नगर निरीक्षणकारणें, नमतो केपिल कदापि रे ॥ स त्यकी पावक तिहां वसे, हिजवर अमल अपापीरे ॥ वी० ॥ ११ ॥ बात्र नणावे ते बहु, कपिल गयो तस गेह रे ॥ वेद अर्थ पूजे घणा, अगम थगोचर जेह रे ॥ वि०॥ १२ ॥ उत्तर नवि दे शक्यो, बात्र सबल मति मंतो रे ॥ सत्यकी मन हरख्यो घणु, मतिगुण देखि महंतो. रे ॥ वि० ॥ १३ ॥ विद्याथी श्रादर लहे,विद्या सवल सखायी रे ॥ विद्या बंधु विदेशमां, विद्या दैवत सहायी रे ॥ वि०॥ १४ ॥ यउक्तं । हर्तुर्याति न गोचरं किम पिशं पुमाति सर्वात्मना, ह्यर्थिन्यः प्रतिदीयमानमनिशं वृद्धिं परामृजति ॥ कल्पांतेष्वपि न प्रयाति निधनं विद्यारख्यमंतनं, येषां तान प्रति मानमुबत जनाः कस्तैः सह स्पईते ॥ १॥पूर्वढाल ॥योग्य जाणीने सत्यकी, कपिलने निजपद स्थापे रे॥ विद्यागुण ए जीवने, बहु सुख पदवी आपे रे ॥ विण ॥१५॥ यउक्तं ॥ गुणाब्धावादरः कार्यः, किमाटोपैःप्रयोजनम् ॥ विक्रीयते न घंटानि, गावः वीरविवर्जिताः॥शादोहो॥निर्गुण मेथप्पणा, परपुले गुण वंत॥सिर धारिवण कुसुम,अंगज मल मंत॥३॥पूर्वढालापाकगृहिणी जंबुका, तस पुत्री सत्यनामा रे। कपिलने जाणी योग्यता, परणावी अनि रामा रे ॥ वि० ॥१६॥ नाम थयुं ते नयरमां, कपिल कपिल सदु बोले रे ॥ पुण्यदशा जस पाधरी, ते नरने कुण तोलें रे ॥ वि०॥ १७ ॥ नपाध्याय हरख्यो घणुं, मुफ जाग्य ए मलियो रे ॥ पुत्री पुण्यवंती घणुं, सवल मनो रथ फलियो रे ॥ वि० ॥ १७ ॥ जगजीवाडण एहवे, उषा ऋतु तिहां धावे रे ॥ सवल घटा घन मेलवी, जगमाहे जल वरसावे रे ॥ वि० ॥ १ ॥ चिटुं दिशें चमके दामिनी, सबल सजल घन गाजे रे । जलधारा बरसे घj, ताप जगतनो नांजे रे ॥ वि० ॥ २० ॥ इण अवसरें रयणी समे, नाटक देखण काजे रे ॥ कपिल गयो ते एकलो, वेठो जश्ने समाजें रे ॥ वि० ॥ २१ ॥ नाटक जोईने वट्यो, विरमी नहिं जलधारो रे ॥ मन चिंते शहां मनुष्यनो, नहिं कोई संचारो रे । वि० ॥ २२ ॥ कोण यंगुक नीनां करे, वस्त्र सकल ऊतारी रे ॥ थई निरंशुक नीसयो, कदातर सवि । धारी रे ॥ वि० ॥ २३ ॥ भावी निज घर आंगणे, अंगुक पहेरी अंगें। रे ॥ घर पेसंतां सामुही, सत्यनामा मन रंगे रे ॥ वि० ॥ २४॥ यंगुक . पियु आगल धयां, नूतन कपिल निहाली रे ॥ सुण वनिते मंत्रे करी,
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श्री शांतिनायनो रास खंग पहेलो.
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कोरां वस्त्र जो जाली रे | वि० ॥ २५ ॥ जलवाला उद्योतथी, देखी थंग जलनीनुं रे ॥ मनमांहे चिंते ए सही, नहिं याचरण कुलीनुं रे ॥ वि० ॥ २६ ॥ नग्नपणे घाव्यो इहां, धिक् एहशुं गृहवासो रे ॥ मंद रा गते ऊपरों, नामा गुण यावासो रे ॥ वि० ॥ २७ ॥ वीव्रं न पडे कंबलें, सहू कहे ए वातो रे । राम कहे बीजी ढालमां, जोई तेजो जातो रे ॥ वि० ॥ २८ ॥ || दोहा सोरठी ॥
॥ कपिल तो हवे वाप, कर्मव यथो दूबलो ॥ प्रगटधां पूरव पाप, दीप युं धन जेहनुं ॥ १ ॥ जोडीजें सो वार, राख्युं एह रहे नहिं ॥ खरचे कोइ गुन गम, जिम वाघे वमणुं वली ॥ २ ॥ यक्तं नैषधे ॥ पूर्वपुण्य विनवव्ययसृष्टाः, संपदोविपदएव विसृष्टाः ॥ पात्रपाणिकमला पेमासां, तासु शांतिक विधिर्विधिदृष्टः ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ मूकी मननुं मान, पर देशें ते संचयो || जाणी कपिल सन्मान, रत्नपुरे याव्यो वहीं ॥ ३ ॥ थावत दीठो तात, दोडी लाग्यो पाउले || जीड्यो हियडे जात, हर्ष धरी जालुवे ॥ ४ ॥ कोई मिप करि सोय, नोजन अवसरें कंतने ॥ लगो वेगे जोइ, चित्त चमक्युं नामा तनुं ॥ ५ ॥
॥ दाल त्रीजी ॥
॥ नमणी खमणी ने मन गमणी ॥ ए देशी ॥ जामा कर जोडी कहे वाच, ससराजी मुफ जांखो साच॥ गुं तुम अंगज एह के अवर, फूत कहो तो हत्या द्विजवर || १ | हत्यापातक विहितो तेह, साधुं कहे सुए बहु गुणगेह ॥ ए मुऊ दासीनो अंगजात, सांजनी समजी सघली बात | ५ ॥ धन प्राप्युं तिदां कपिल प्रवर, धरणीजट चाल्यो निज नगर | सत्य नामा गइ नृपनी पासें, कर जोडीने एणि परें जाने ॥ ३ ॥ स्वामी तुं पंचम लोकपाल, दीन नाय तो रखवाल ढुं दुःखणी ने बला चाल, कर कर स्वामी सार संभाल ॥ ४ ॥ यतः ॥ पूर्वजानामनाथानां, बालवृद्ध तपलिनाम् || न्यायपरिनूतानां सर्वेषां पार्थिवोगतिः ॥ २ ॥ उप्पय ॥ रोपे तरु उतवात, बाल तरुवरने सींचे ॥ कंटक काटे दूर, सरल तरु राखे वने ॥ ऊंच नमाडे जाउ, भूमि पडतां के रके ॥ जे व्य व फूल, तास पणवाद न चके ॥ एम अनेक माली तप्पा, गुण सपना यंगे परे ॥ राम कहे ते नृषिति, सकल लोक संपति करे || ३ || पूर्वदा ॥ जाति
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जैनकथारत्नकोप नाग आठमो. हीन पति मुफ कर चढियो, कोश्क पूरव पुष्कृत नडियो ॥ हवे एहगुं के हवो रतिराग, मुज मनमा वसियो वैराग॥ ५॥ ते माटें तुम पासें आवी, वात कहो तेने समजावी ॥ जिम आ जन्म लगे ढुं शील, पालुं जेहथी लहियें लील ॥ ६ ॥ श्रीपेणराय सुणी एम वात, तेड्यो कपिल जणी सादात ॥ तुझ गृहवासथी विरमी नार,, विगतनेह ऊपर श्यो प्यार ॥ ७ ॥ मूक तुं एहने जनकने, गेह, पाले शील सुनिर्मलदेह ॥ वलतुं बोले कपिल विमासी, महाराज शी मामी हांसी ॥ ॥ प्राणप्रिया ए केम मूकाय, ए विण घडी वरसां सो थाय ॥ राजन जीवननी ए मूली, प्रीति न जाये में उन्मूली॥ ए ॥प्राण कहूं तो ए न कहाय, ए विण प्राण घणुं । सीदाय ॥ स्वामी वलि वलि गुं बोलावो, प्राणप्रियाने घर वोलावो ॥ १०॥ | कहेनामा वलतुं मन मेली, ए साथे नवि करवी केली ॥ जो नहिं मेहले किमही एह, अनलशरण करशुं था देह ॥ ११ ॥ राजन कपिल नगी एम जांखे, केम माटीपणे एहने राखे ॥ मन मोती जाग्यां ने जेह, कहो किण परें संधाये तेह ॥ १२ ॥ मुज मंदिरमा रहेशे एह, पुत्रीपरें सांजल ससनेह ॥ वात सुणी विलखो थर वलियो, पण मनमां को कलक लियो ॥ १३ ॥नामा रहे राणीनी पासें, पाले शील अखम उल्लासें ॥ राम कहे त्रीजी ढाल मजार,धन्य जे राखे निज आचार॥१॥स०॥१५॥
॥दोहा॥ ॥ विमलबोध इण अवसरें, सूरीश्वर जगवंत ॥ बदु परिवारें परवस्था, नूमंगल विचरंत ॥ १ ॥ पावन करता पाउले, अवनीतल मुनिराज ॥ जे अगाध जवसिंधुना, तारण तरण जहाज ॥ २ ॥ समितियें समिता साधु जी, साचा जेहना वास ॥ दास कखो कंदर्पने, न पड्या आशापास ॥३॥ रत्नपुरीने परिसरें, देवरमण उद्यान ॥ ते मुनि आवि समोसया, श्रुतज्ञानी लगवान ॥ ४ ॥ सुणि बागमन मुनीशनु, लोकमुखें नरराज॥ मुनिवर वंदन नीलखो, लेई सवलो साज ॥ ५ ॥ विधियुं वंदी साधुनें, त्रिविधं थइ उजमाल ॥ निसुणे अमृतस्त्राविणी, मुनिदेशन सुरसाल ॥६॥
॥ढाल चोथी॥ ॥चेतन चेतो रे चेतना ॥ ए देशी ॥ मानवनव सवलो लई, उलहो दश दृष्टांतें रे ॥ मूकी रे निश मोहनी, धर्म करो एकांतें रे ॥ १॥ नवि
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पहेलो. यण नावे रे सांजलो॥ए थांकणी॥श्रीजिनवरनी वाणी रे ॥ उर्तनबोधीने दोहिली, मीती अमिय समाणी रे ॥ ज ॥२॥ दोप घढारथी वेगला, थरिहंत प्रनु धाराधो रे ॥ सेवो मुगुरु सुसाधुजी, आतमधर्मने साधो रे ॥ ॥३॥ एक असंयम टालीये, उविध धर्म आदरिय रे ॥ पर हरिय त्रण दंमने, चित्तमां चार न धरिये रे ॥ ज० ॥ ४ ॥ पंच निवारी हो पंचने, करि सबला मन साय रे ॥ पंचाराधनयी करो, पंचमगति सुख थाशे रे ॥ ज०॥५॥पट उपरें करुणा करो, पट लो0 नवि चलिये रे ॥ काढो पटक मिथ्याल, पट् वैरीने दलीय रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ सातनो जय नवि संपजे, सातने नाणे दिलमां रे ॥ सातमाहे नवि उपजे, धर्मे शिवसुख पलमा रे ॥ ॥ ७ ॥ पाठ जणी उन्मूलिये, भागने कीजें अलगा रे ॥ अहम पुढवीनां सुख लहे, जे ए धर्मगुं वलम्या रे ॥ न ॥ ॥ नवविध वाडि विशेपथी, धरिये शील सुरंगो रे ॥ नव निधि सहेजें रे संपजे, परनव शिवसुखयोगो रे ॥ ज० ॥ ए ॥ दश विध धर्म समाचरो, घाणीमन वैरागो रे । मंगलकलश तएी परें, धन्य ते नर माहानागो रे ॥ ज० ॥ १० ॥ तव श्रीपेण नरेश्वरु, बोले वे कर जोडी रे ॥ जगवन मंगलकलशनो, कहो संबंध गुण जोडी रे ॥ ज० ॥ ११ ॥ एकमना नवि सांजलो, एह सरस संबंध रे ॥ चोथी ढालमा मादामुनि, कहे देशन अनुबंधो रे ।। न० ॥ १२ ॥ नपकारी अपगारजी, नवि जन हितनारागी को श्रीपेण आगलं, वात सबल बरागीरेशान॥१३॥
॥दोहा॥ ॥ श्रीजिनवर पदकज नमी, धरि मनमां थानंद ।। मंगलकलश कुमा रनु, कद्धं चरित्र सुरवकंद ॥ १ ॥ नवरी अवंती अति नली, अमरपुरी अवतार ।। गढ मह मंदिर शोनती, बाच्च सरोवर लार ॥ २ ॥ चलिंद नाम नतो, गुणनिप्पन्न जस नाम || राजा गज्य करे तिहां, सुंदर गोना धाम ॥ ३ ॥ ते नयरीमांहे बमे, धनें धनद उपमान ॥ नामें धनदन शेतजी, सकलकलानो जाण ॥ ४ ॥ जाणे जीव अजीबने, सत्य भील
सुविनीत । जतिवंत गुरु देवनो. पाने शीत सुन !! ५॥ सत्यनामा ' नामें जली, शीलकुंन तृपदेन ।। नामिनी निज जतारयं, राखे अविचल
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जैनकथा रत्नकोष नाग आग्मो. नेह ॥ ६ ॥ सुख सघलां ते अनुनवे, पंच विषय वर जोग ॥. पण सुत नहिं कां तेहनें, सवल कर्म संयोग ॥ ७ ॥
॥ढाल पांचमी॥ . ॥ नाना सूडा हो, वात सुणो एक मीती ॥ ए देशी॥ एक दिवस ते शेठ ना चित्तमां, सुतनी चिंता पेठी ॥ कर जोडी कामिनी एम पूडे, पीयुनी पासें वेती ॥ १ ॥ प्रीतम प्यारा रे, वात कहो मन मूकी ॥ ए आंकणी॥ . अविनय आज लगें पियु तुमचो, नवि कीधो कांइ चूकी ॥ प्री ॥ ॥ . शेव कहे नारखी नीशासो, कामिनी सुत विण शूनुं ॥ रात दिवस ए वेदन। मनमा,वीजुं नहिं कांश जणुं ॥ प्री॥ ३ ॥ यउक्तं ॥ अपुत्रस्य गृहं शून्यं, . दिशः शून्या ह्यबांधवाः ॥ मूर्खस्य हृदयं शून्यं, सर्वशून्यं दरिश्ता ॥ १ ॥ ॥ पूर्वढाल ॥ वलतुं विनता कहे सुण कंता, शी चिंतो ए चिंता ॥ नावी नाव टले नहिं कोइ, रहियें मन निश्चिता ॥ प्री० ॥ ४ ॥ यजुक्तं ॥ प्राप्त व्योनियतिवलाश्रयेन योऽर्थः, सोवश्यं नवति तृणां शुजोशुजोवा ॥ नूतानां महति कतेपि हि प्रयत्ने, नानाव्यं नवति न जाविनोस्ति नाशः ॥ २ ॥ पूर्वढाल ॥ धर्म जगतमां सवि सुखकारी, करे धरी एकतारी ॥ जेहनी गया सुरतरु सरिखी, वांबित फल दातारी ॥ प्री० ॥ ५ ॥ यतः ॥ धर्म सिंधोधुवा सिद्धि, घुम्नप्रद्युम्नयोरपि ॥ उग्धोपलंने सुलना, संपत्ति धि सर्पिपोः ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ देवगुरुनी नक्ति करीजें, दान सुपात्रं दीजें ॥ परिगल वित्त पामी अलवेसर, गुजगमें वावीजें ॥प्री० ॥ ६ ॥ यतः ॥ व्याजे स्याद्विगुणं वित्तं, व्यवसाये चतुर्गुणम् ॥ देत्रे शतगुणं प्रोक्तं, पात्रेऽनंतगुणं नवेत् ॥ ४ ॥ पाकारेणोच्यते पापं, त्रकारस्त्राणवाचकः ॥ अदक्ष्यसंयोगे, पात्रमुक्तं मनीपिनिः ॥ ५ ॥ पूर्वढाल ॥ एम करतां जो सुत नवि थाशे, परनव निर्मल होशे ॥ देवगुरुनी नक्ति नलि परें, पाप पंकज सवि धोशे ॥ प्री० ॥ ७ ॥ मुफ मनडे मनमोहन वसियो, अनुनव रस अति मीठो ॥ जेह अनंते कालें प्रीतम, कहिये में नवि दीठो ॥ प्री० ॥ ७ ॥ वात सुणी विनतानी वारु, गइ विकलता मनथी । वचन कहे प्रीतम ए साचुं, हरख्यो ढुं हवे तनथी ॥प्री० ॥ ए ॥ मंदिर मालीने ते डीने, धन आपीने पोप्यो । प्रतिदिन परमेश्वर पूजानें, कुसुम नणी संतोप्यो । प्री० ॥ १० ॥ पोतें शेव जई तस वाडी, लावे फूल प्रनातें ॥ गृहजिन
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पदेलो. ए . पूजी जिन मंदिरमां, जाये मननी खांत ॥ प्री ॥ ११ ॥ पंचानिगमें त्रए त्रण निसिही, दशत्रिक जाणी उरमां ॥ परमेश्वर यागल परकासे, चैत्यवंदन जिन घरमां। प्री॥ १२ ॥ अथ चैत्यवंदन ॥ परमेश्वर परमा तमा, पाचन परमिह ॥ जय जगगुरु देवाधिदेव, नयणे में दिक॥ अचल अकल अविकार सार, करुणारस सिंधु ॥ जगतीजन आधार एक, निका रण बंधु ॥ गुण अनंत प्रतु ताहरा ए, किमही कट्या न जाय ॥ रामप्र जिनध्यानथी, चिदानंद सुख थाय ॥२॥निजरूपें शिवस्थानकें, इव्ये पण तिमही ॥ नाम स्थापना नेदथी, प्रगट जगमांही। अध्यातमथी जोडियें, निदेपा चार ॥ तो प्रनुरूप समान नाव, पामे निरधार ॥ पावन यातमनें करे ए. जन्म जरादिक दूर ॥ ते प्रनु पूजा ध्यानथी, राम कहे सुखपूर ॥ ॥ इति चेत्यवंदन ॥ पूर्वढाल ॥ शक्रस्तव पनणे कर जोडी, जाव धरी निज मनमा । स्तवन करे प्रनुनु लेखवतो, निज आतमने धन्यमां ॥जी॥ १३ ॥ अथ स्तवन ॥ राग सारंग ।। मन मोयुं प्रनु गुगतानमा ।। काल अनंत न जाण्यो जातो, मोहसुराके पानमां ॥म ॥ १ ॥ एक यि विति चरिंघियमां,काल गयो अज्ञानमां ॥ हवे कोक पुण्योदय प्रग ट्यो, श्राय मिलो प्रल ध्यानमां ॥ म०॥ २॥ धंतर नर्म गयो सवि दरें, तत्त्व सुधारसपानमा ॥ प्रनु तुम दृष्टि नई मोहि ऊपर, धंतर बातम शानमां ॥म ॥ ३ ॥ दरस सरस देख्यो जिनजीको, लम लगी तुक
झानमां ॥ केवल कमलाकंत रूपानिधि, उर न देखो जिहानमां ॥म० ।। ___५ ॥ शरणशरण जगत उपगारी, परमातम शुचि वानमां ॥ राम कहे
तुम या नवोनव. धारी नयर प्रमाणमां ॥ म ॥ ५ ॥ इति साधरण जिनस्तुतिः ॥ पूर्वढाल ॥ एम गुनध्याने जिनगुण धुणतां, नुगतां सशुरु वाणी ॥ पानें दान दिये जाने जावें, धनदन धन गुणवाणी प्री॥१४॥ धर्म प्रजावें शासनदेवी, तुष्ट थई एम बोले ॥ श्राप्यो सुत वर शेठ विचारे, नहिं कोई धर्मनें तोले । प्रो० ॥ १५ ॥ सत्यनामा रचणी दी], मंगल कालगनुं सुना ॥ मन चिंतें कतरो महार, वांजणी, लहि मदेणु ॥प्री०
॥ १७ ॥ पुराण नव मासे प्रसव्यो, सत संदर सोनागी ॥ पंचमीटार राम 'जिजय कदे, धर्म करो वरनानी प्री ॥ १३ ॥ सर्व गाया ! १२५ ।।
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१० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
॥दोहा॥ ॥ सुतजन्मोत्सव बदु कस्यो, खरची इव्य अपार ॥ सुपन जणी अनि.. धा नवे, मंगलकलश कुमार ॥ १ ॥ पंचधावें पाली जतो, बीज तणो जिम। चंद ॥ माय ताय मन वनहो, जीवन नयणानंद ॥ ॥ सुत दुल । रावे दर्पयुं, यापी निज उत्संग ॥ दे आशीष एणी परें, माता मनने रंग ॥ . ३ ॥ चिरं जीवो मुफ नानडा, वाहालेसर सुकुमार ॥ तुक अला वला जइ. पडो, खारा समुझ मजार ॥४॥ यो पंच वरष तगो, पाठवियो नीशाल ॥ मूकी विकथा गुरु कने, शास्त्र जणे उजमाल ॥ ५॥ निज नद्यमगति सुगुरु, चिंता रहित सुदेह ॥ विनय शास्त्र जरावा तणां, कारण सघलां एह ॥ ६ ॥ यतः ॥ आचार्य पुस्तक निवास सहाय वासो, बाह्या इमे पान पंचगुणा नराणाम् ॥ आरोग्य बुद्धिविनयोद्यमशास्त्ररांगा, अन्यंतराः पतन पंचगुणा नवंति ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ नणि प्रवीण पोढो थयो, आठ वरसनो जाम ॥ वाडी जातां जनकनी, साथै चाट्यो ताम ॥ ७ ॥ साथे . जइ लाव्यो कुसुम, पूज्या श्रीजिनराज ॥ प्रतिदिन लावे जइ तिहां, फुल सेवानें काज ॥ ७॥ वाडीमा जइ एकलो, लावे कुसुम सुवास ॥ कहेग न माने तातm,हियडे जिनगुणवास ॥ ए ॥ एम चिदु दिन वीत्या पली, एक दिवसने योग ॥ जेह थयुं ते सांजलो, गुननावीने नोग ॥ १०॥
॥ ढाल बही ॥ केसरवरणो हो,काढ कसुवो ॥ माहारा लाल ॥ए देशी ॥ जंवू ही हो, दक्षिण जरतें। माहारा लाल ॥चंपा नामें हो, अंगें वर्ते ॥मा॥ तिहां सुर सुंदर हो, राजा राजे ॥ मा० ॥ नामें गुणावली हो, राणी बाजे ॥ मा ॥ १ ॥ पुत्री रूडी हो, तेहनी जाय ॥ मा० ॥ त्रैलोक्यसुंदरी हो, विधि निपाई ।। मा० ॥ रूपें सारी हो, रंजा हारी ॥ मा ॥ गजगति सारी हो, : मोहनगारी॥ मा० ॥ २ ॥ तनु सुकुमाली हो, अंग निहाली ॥ मा० ॥ सुर नर मोहे हो, मुरखडं जाली ॥मा०॥ वेण संहाली हो, नागण काली
मा० ॥ मदमतिवाली हो, वाणी रसाली ॥मा०॥ ३ ॥ जर योवनमां । हो, लामा यावी ॥ माम् ॥ राजसनामां हो, राय बुलावी ॥ मा० ॥ पुत्रीने हें हो, मन बंधागो म चिंती नृपति हो, मन सपराणों ॥ मा० ॥ ४॥ यापुंघलगी हो, तो दरिसण उत्तहो । मा० ॥ ण न खमाये ,
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. श्री शांतिनाथनो रास खंम पहेलो. हो, एदनो बिरहो ॥ मा ॥ रागी साथें हो, एम निरधारी ॥ मा० ॥ तेव्यो मंत्री हो, सुबुद्धि विचारी मा॥५॥ तुफ अंगजने हो, आपुं वेटी ॥ मा० ॥ वदु धन साथें हो, गुणनी पेटी ॥ मा० ॥ राजन मूको हो, एह गाइ ॥ मा० ॥ सरखा सरखी हो, होवे सगाई ।। मा० ॥६॥ ढुंतुक पायक हो, तुं मुज स्वामी॥ मा० ॥ जोडीन जुगति हो, कहुँ शिर नामी । मा० ॥ सरिखा कुलगु हो, संबंध कीजें ॥ मा० ॥ यश जगमाहे हो, स बलो लीजें ॥ मा० ॥ ७ ॥ यतः ॥ कुलं च शीलं च सुनाथता च, विद्याच वित्तं च वपुर्वयश्च ।। बरे गुणाः सप्त विलोकनीया, स्ततः परं नाग्यव शा हि कन्या ॥ २ ॥ पूर्वढाल ।। राजन बोले हो, मनहुँ राजी ॥ मा० ॥ तोवलि एहमां हो, शुं करे काजी मा॥ एह उखाणो हो, साचो जाणी ॥ मा० ॥ बोल न बोलो हो. अम्हगुं ताणी ॥मा ॥ ७ ॥ पुत्री देवी हो, अवश्य अमारे ॥ मा० ॥ मनमां चिंते हो, सचिव तिवारें ॥ मा०॥ व्याघ्रतटीनो हो, न्याय ए श्राव्यो ॥ मा ॥ न रहे राजा हो, में सम काव्यो । मा० ॥ ए ॥ रति रंनासी हो, रायनी तनया ॥ मा० ॥ मुक्त सुत कुष्ठी हो, सबलो अन्या ॥ मा० ॥ योग बेदुनो हो, कहो किम म लगे। मा० ॥ अथवा नावी हो, कहो केम टलो ॥ मा० ॥ १० ॥ यवा कुलानी हो. देवी साधी । मा० ॥ करयुं कारज हो, में मति लाची ॥ मा० ।। मानी वातज दो, ते घर वलियो । मा० ॥ नृप राणीनो दो, चांछित फलियो | मा० ॥ ११ ॥ मंदिर थावी हो, देवी समरी ॥ मा॥ हरल्यो जाणी हो, श्रावी श्रमरी ॥ मा० ॥ पूरे कारण हो, किम सं नारी ॥ मा० ॥ सुत मंदिरमा हो, कोढी जारी ॥ मा० ॥ १२ ॥ गुंत वेचं दो, कगे नीरोगी ॥ मा० ॥ गनो राल्यो हो, बहु दिन रोगी । माप ॥ नारचे देवी हो, कर्म जे कीधा ॥ मा० ॥ चीकण रसनां हां, न जाये लीयां ॥ मा० ॥ १३ ॥ यतः ॥ रुतकर्मदायोनास्ति, कल्पको दिशतरपि ॥ अवश्यमेव नोक्तव्यं, कनं कर्म गुनागुनम ॥३॥या बतु गिरिशिखरं, समुश्मुसंध्य यान पातालम् ॥ विधिलिग्यिताक्षरमानं, फलति कपात न नृपालः ॥ ४ ॥ नमस्यामां देवान्ननु इतविधस्तपि नागा. विनियः गोपि प्रतिनियतकमफलदः ॥ फले कर्मायनं व विकिममरेः किं च विधिना, नमस्तसामन्यो विधिपि नयेन्यः प्रनानि ।।
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ॥ ५ ॥ पूर्वढाल ॥ मंत्री बोले हो, केम कुलदेवी । मा० ॥ काम न बावे हो, बहु दिन सेवी ॥ मा० ॥ देवी बोले हो, नहिं अम जोरो ॥ मा०॥ सो वदुवेता हो, एह निहोरो॥ मा० ॥ १४ ॥ कहो तो यापुं हो, एक नर धाणी ॥ मा० ॥ करशे चिंतित हो, कारिज जाणी ॥ मा० ॥ सचिव प यंपे हो, वात ए वहेली ॥ मा० ॥ देवी तुमने हो, करवी सहेली ॥ मा० ॥१५॥ तव कहे देवी हो, नगरनी बहारें ॥ मा० ॥ तुज अश्वप वेसे हो, लावं तेवारें ॥ मा० ॥ पुरने हारें हो, बाले वेशे ॥मा॥ ते नृपकन्या हो, परणी देशे ॥ मा० ॥ १६ ॥ गई कुल देवी हो, एह जांखी ॥ मा ॥ वात ए चित्तमां हो, सचिवें राखी ॥ मा० ॥ वाध्यो उजम हो, ढाल ए बही॥ मा० ॥ रामें दाखी हो, रागें मीठी ॥ मा ॥ १७॥ सर्व गाथा १५५
॥दोहा॥ ॥ हवे हर्षे वीवाहनां, मां अति मंमाण ॥ राय सचिव महोटे मनें, घुरवेढोल निशाण ॥ १ ॥ सामग्री सखरी सजी, मंझप अतिहि अनूप ॥ थंन थंन मणि पूतली, सोहे अतिहि सरूप ॥ २ ॥ अश्वपाल नर तेडिनें बानो निज धावास ॥ वात कही धुरथी सवे, मंत्री मन ननास ॥३॥ जे को धावे तुम कनें, बालक नवले रूप ॥ तेहने तुमें इहां लावजो, नेद न जाणे नृप ।। ४ ॥ हवे कुलदेवी सचिवनी, जावी जाणी कंत ॥
आवी उजेणी पुरी, हियडे हर्ष थरंत ॥ ५ ॥ फूल लेइ वाडीयकी, मार्ग वलतां ताम॥आकाशें कनी रही, देवी वोले आम ॥ ६ ॥ फूल ले जाये अडे, जे वालक निजगेह ॥ राजसुता पाणिग्रहण, जाडे करशे तेह ॥ ७ ॥ वात सुरणीने चिंतवे, जई कहुँ जनकने आज ॥ घेर गयो तव वीसयो,वल ग्यो गृहने काज ।। G ॥ वीजे दिन तिमहिज सुणी, चिंते जाम कुमार ॥ . महेव्यो उपाडी वातुले, चंपावनह मकार ॥ ५ ॥
॥ ढाल सातमी ॥ ॥सुण मेरी सजनी, रजनी न जावे रे ॥ ए देशी ॥ याव्यो चंपा नय.. री पासें रे, मनमां मंगलकलश विमासे रे ॥ कुण ए नगरी- कुण ए वाडी रे, केरों यायो मुझने उपाडी रे ॥१॥ नमतां याक्यो सरोवर दीतुं रे, पाणी पी, टाढू मीठे रे । सरोवर पा वड एक अलगो रे, तिहां जा दर्जनी दोरें वलगो रे ॥ २ ॥ अस्तंगत थयो रवि तिण वेला रे,
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' श्री शांतिनाथनो रास खंम पहेलो. कुमर विचारे कर्मनी लीला रे ॥ जोइ ज्वलित अनल वतरियो रे. तिण दिश चाल्यो शीत तरियो रे ॥ ३ ॥ अवाग्दक नर बहु नापे रे, प्रायो कुंवर ताल समीप रे ॥ हांसी करता ते नरने जाणी रे, सांकेतिक नर बोल्यो वाणी रे ॥ ४ ॥ याव्य तुं मुज पासें वत्त वहेलो रे, मंदिर माहरे थाइश सोहिलो रे ॥ एम कही पाण्यो मंदिर तेह रे,सोप्यो मंत्रीने करी नेह रे ॥ ५॥ अशन वसन थाप्यां मन गमतां रे, नाव जक्तिये करी जुगते जुगतां रे ॥ चिंते कुंवर कारिज कोइ रे, स्वारय विण श्रादर नवि होइ रे ॥ ६ ॥ यतः ॥ रदं वीणफलं त्यजति विहगाः, गुष्कं सरः सारसाः, पुप्पं पर्युपितं त्यति मधुपा दग्धं बनातं मृगाः ॥ निईव्यं पुरुपं त्यजति गणिका कुष्ठं नृपं सेवकाः, सर्वः स्वार्थव शोजनोनिरमते नो कस्य कोवलनः ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ कुंवर पूरे कारज दाखो रे, मं विरमां किम गनो राखो रे ॥ [ मुज सायें काम तुम्हारे रे, मनमां महोटी ब्रांति हमारे रे ॥ ॥ सचिव कहे ए चंपानयरी रे, सुर सुंदर नृप जीत्या वरी रे ॥ नाम उबुद्धि तस प्रधानो रे, हुं हुं कारज सुण सावधानो रे ॥ ७॥ नृपपुत्री मुफ पुत्रने प्रापी रे, परणी श्रापो रतिरसव्यापी रे ॥ कुमर लणे श्यो पाइ चडावो रे, अंगजने कां नदि परणाचो रे ॥ ए ॥ तेह कहे मुफ सुत ने कोही रे, कर्म तणी गति विय मी पोढी रे ।। कुमर कहे की, अविचारमुरे, पर्यागतनुं जल उतान्यु रे ॥ १८ ॥ कुण एवो मूरख अविचारी रे, परणी थापे परने नारी रे॥ मंत्री मुज कुल नहिं श्राचारो रे, कां बदु योनी सहा हारो रे ॥ ११ ॥ कूप उतारी बरतने कापे रे, जे परणी श्रबरने श्रापे रे ॥ ते मारें न कर ए कामो रे, पण वाटें परनव नदि नामोरे ॥ १२ ॥ यतः ॥ मित्र शंदी कतन्नन, स्तेची विश्वासघातकः । चत्वारः कर्मचांमालाः, पंचमी जातिसंचयः ॥ २॥ दस्ते नरकपाल नु मदिरामांसलदाणी ॥ जानुः प्रति शंकाती. केनेयं दीयते तटा ॥ ३ ॥ मित्रोही स्तनन्य स्नेची विद्यामधा तकः । स्वा च तत्परोयोहि, तनयं दीयने नटा । ॥ पूर्वहाल ॥ मंत्री बोले तो न परीक्षा हरे, तो मारोग न िनदेव रे ।। कुमर नगे मन्या व दातुं , पण पुरव महोदं मुफ लंदननु रे ॥ १३ ॥वनः। सोनमेंटगुणन कि पिरानना चद्यस्ति कि पान, सत्य नपना घ कि,
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१४ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. शुचिमनोयद्यस्ति तीर्थेन किम् ॥ सौजन्यं यदि किं निजैः स्वमहिमा यद्यस्ति किं मंझनैः, सहिद्या यदि किं धनैरपयशोयद्यस्ति किं मृत्युना ॥ ५॥ पूर्व ढाल ॥ वन उपाडी मारण धायो रे, वचमां पुरुचे मंत्री साह्यो रे । समकाव्यो मान ए वयण रे, नहिं हां कोई ताहरो सयण रे॥ १४ ॥ कुमरें देवती वाणी संजारी रे, नावि जाण्यं मन निरधारी रे ॥ मन पाखें मानी ए वात रे, हरख्यो मंत्री साते धात रे ॥ १५ ॥ वजडावे नोबत निशाण रे, बोले वंदीजन कल्याण रे ॥ गाये गोरी गीत सुजाण रे, चिरं जीवो कुंवर कुलनाण रे ॥ १६ ॥ हर्ष धरी कुंवर न्हवरावे रे, नूपण वस्त्र ने पहेरावे रे ॥ सदु कहे धन जिए माडीयें जायो रे, बहु दिवस अमें दरिसण पायो रे ॥ १७ ॥ हरख्यो साजन खंद विशेखी रे, कुमरतj मुखपंकज देखी रे ॥ सातमी ढालें वात वखाणी रे, आखर वहेशे ढालें पाणी रे ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ १७ ॥ गाथा तथा श्लोक ॥१॥
॥दोहा॥ ॥ कुमर कहे कर जोडीने, मंत्रीसरने डेक ॥ को न करे ते में कयुं, बात सुपो हवे एक ॥ १ ॥ जे थापे मुझने नृपति, अर्थ गरथ नंमार || ते सवि लेगुं दुं सही, एम कीधो निर्धार ॥ ॥ वस्तु उजेणी मारगें, लेई थापजो सर्व ॥ सचिवें सघ मानियुं, मनमां था निर्गवं ॥ ३ ॥ जन्मदिवस आव्यो निकट, वाज्यां मंगलवूर ॥ वरत्या उत्सव बदु परें, . सद्मन आनंदपूर ॥ ४ ॥
॥ढाल आतमी॥ ॥ देशी सोहेलानी ॥ हवे कुलवंती नारी, महान करावे मंगलकलशनें जी ॥ ले उर उपर सार, निर्मल जल नरे सोवन कलशने जी ॥ १॥ । पहेरावे सुकुमाल, अंगें अनुपम वस्त्र सोहामणां जी ॥ दीपे सुंदर वेप, जपणनपित अंग रलियामणां जी ॥ ॥ बेसारी गजबंध, फुलतो चाले कोतल बागलें जी ॥ सावेला सें व६, वाघे केसरीये आगे चले जी ॥३॥ टोले मलि मलि थोक, योकें थोकें करे एम वातडी जी ॥ त्रैलोक्यसुंदरी धन्य, विधिना ए सरखी जोडी घडी जी॥४॥ पग पग नाचे पात्र, यात्र करेवा जन बहु उलट्यां जी ॥ उंचां करि करि गात्र, दरिसा देखण न गणे गजघटा जी ॥ ५॥ बहु धामंवर एम,
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पहेलो. . १५ श्राव्या नृपति गृहनें यांगणे जी॥ हर्ष धरी मनमांहे, सासूयें पोंख्या घरने वारणे जी ॥ ६ ॥ वेता मायरामांहे, त्रैलोक्यसुंदरी मन हरखी घणुं जी ॥ वरियो कुमर सुरंग, रायें आप्युं धन धन नूपणुं जी ॥ ७ ॥ कर नवि मूके कुमार, रायें पूब्युं शी मन कामना जी ॥ आपे पंच तुरंग, चपलगति पाणी पंथना जी ॥ ॥ माग्युं आप्युं राय, हर्प दु विवाह सोहामणो जी ॥ देखी कन्यारूप, कुमर थयो मनमांहे दया मणो जी ॥॥ कीg सवल अकाज, कुमरी अमरी सरखी पनिणी जी। केम कोढीने हाथ, देतां निर्गमशे दिन जामिनी जी ॥ १० ॥ श्म चिंत वतो तेह, मंदिर आव्यो बहु आमंबरें जी ॥ देखी पियु चलचित्त, कुमरी चमकी हियडा नीतरें जी ॥ ११॥ इंगित जागी जाव, केड न मूके कुमरी तेहनी जी॥ मनमाहे दिलगीर, रागें रंगाणी मीजी जेहनी जी ॥ १२ ॥ मंत्री राय दिये मान, देहचिंताने मिष करी नीसखो जी॥ जल कारी लेइ नारि, चाली लावे. चूंघट वीसयो जी ॥ १३ ॥ जेह कयुं पण तेह, दीगो शून्यमनें उन्नो रह्यो जी ॥ सोपीयो तमने देह, नूख तृपा के ने मुझने कहो जी ॥ १४ ॥ हा ना न कहे रे कां, मन जागी मोदक मगाविया जी॥ कुंवर चारखी रे ले, अवसर वचन कहे रस नावियां जी ॥ १५ ॥ दोहो ॥ मीठा ए मोदक जला, खातां जांगे नूख ॥ पण नीर उजेणीनुं मले, तो सवि थाये सुख ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ चिंते राज कुमार, गुंए जाणे उजेपी नीरने जी ॥ अथवा तिहां कोई दीस, गयो होशे घर मात त्यां वीरने जी॥ १६ ॥ जलें कीचूं मुख शुरु, वीर्यु आप्यु हाथे कंथने जी ॥ श्राव्यो मंदिर सोय, विनता वोले लही चल चित्तनें जी॥ १७ ॥ केम पियु थें दिलगीर, वात कहो मनमां होवे जिसी जी ॥ उखे उदर मुज जोर, एम कही देहचिंता उठ्यो घसी जी ॥ १७ ॥ विनता रही विश्वास, जल लेइ के.थी जायें वही जी ॥ ते पहों च्यो ततकाल. वस्तु उजेणीपंथें जिहां रही जी ॥ १ए ॥ रथ आरोपी वस्तु, चार तुरंगम जोडें जोतस्या जी॥ बांध्यो पूत्रे रे एक, चाल्या तुरत तिहाथी पाधरा जी ॥ २०॥ पूर्व पंथीने पंय, कुमर वेठो रय निर्नयपणे जी ॥ घोडा दिवस मजार, कुमर पहोतो नगर यापणे जी॥ १ ॥ ,
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वाला ससनेह ॥ हरयन नीरेह ॥ ५ ॥धान, रज लूहे घणेन ए, बहु
२६ जैनकथा रत्नकोषनाग आठमो. पुण्यें सीधुं रे काज, आतमी ढालें रामविजय कहे जी ॥ पुण्य करो नवि लोक, इह जव परनव जेहथी सुख लहे जी ॥ २ ॥ सर्व ॥ २० ५
॥दोहा॥ - ॥ मात पिता मंगल तणां, फाखर फूरि थयांह ॥ सुतनी सुध लाधी नहिं, केता दिवस गयाह॥ १ ॥ मंदिर दीठो आवतो, रथ वेगे गुणवंत ॥ राजकुमर कोइअम घरे, रथ खेडीयावंत ॥ २ ॥ वायो पण न रह्यो किमे, थरहो याव्यो जाम ॥ मात पितायें उतरव्यो, निज अंगजने ताम ॥३॥ हीथडे हरखे हेजगुं, कुःख दोहग टलियांह ॥ मात पिताने पुत्र ए, बहु दिवसें मलीयांह ॥ ४ ॥ अंक बेसारी पुत्रने, रज लूहे घणे नेह ।। सुत नवरावे माडली, आंसने नीरेह ॥ ५ ॥ बात कही सघली तिणे, धूरि । ढूंती ससनेह ॥ हरख्यां मात पिता घणां, पुण्योदय लहि तेह ॥६॥ हवे त्रैलोक्यसुंदरी तणो, नवि निसुणो अवदात ॥ परण्या पूढे जे थयो, कहूँ सविस्तर वात ॥ ७ ॥
॥ढाल नवमी ॥ ॥ देशी मधुकरनी ॥राजकुंवरी के गइ, नवि दीगे निज कंत हो ॥ सुंदर ॥ मन विलवाणी महासती, नयों नीर ऊरंत हो ॥ सुं० ॥१॥ कर्म न छूटे आपणां ॥ ए बांकणी ॥ दीजें केहने दोप हो । सुं० ॥ परण्यो प्रीतम परहरी, केम गयो विण रोष हो ॥ सुं० ॥क० ॥ २ ॥ पहेरावे निजपुत्रने, मंगलकलशनो वेप हो ॥सुं॥राजकुमरी पासें मोकल्यो, सूवाने सन्निवेश हो॥सुं०॥॥॥आव्यो शय्याउपरें, कुमरीयें दीतो जाम हो ॥ सुंग ॥ कुत्सितरूपें कोढीयो, ऊबक उनी थ ताम हो । सुंग ।। क० ॥४॥ प्राणप्रिये केम वेगलां, जाकनां वार हो ॥ सुं० ॥
आवो रमो सुखसेजमां, तुं मुज प्राण आधार हो ॥ सुं० ॥ क० ॥ ५ ॥ वलतुं कहे सा सुंदरी, मूढ विमासी वोल हो ॥ सुंण् ॥ तुं कोण हूं कोण . एम सही, कहीये न वचन निटोल हो ॥सुं०॥का६॥ पूर्व कुष्कत याचखां, फल पाम्यो दो तास हो ॥ सुं० ॥ मूक दुःशीलपणुं इहां, नतिर लहिश विनाश हो ॥सुं॥॥७यतः॥ पंढत्वमिंडियदं, दो ग्यं च नवे नवे ।। नवेन्नराणां स्त्रीणां चा, न्यकीयासक्तचेतसाम् ॥१॥ पूर्वढाल ॥ रहे अलगो मुफथी सही, सो परनारी संग हो ॥ सुं० ॥ मुज पियुनयरी उलोणिमा,
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श्री शांतिनायनो रास खंम पहेलो. १७ पास वस्यो मनरंग हो ॥ सुं० ॥ कv ॥ ॥ वासनुवनथी ससंचमें, बाहिर यावी तेह हो ॥ सुं ॥ दासी समीप उनी रही, पूढे ते सस्नेह हो ॥ सुं० ॥ कल ॥ ए ॥ केम स्वामिनी उतावलां, मुख न समाये श्वास हो ॥ सुं० ॥ प्रीतमथी केम उजगी, नाखो श्म निःश्वास हो ॥ सुं०॥ क ॥ १० ॥ नहिं मुफ वनन इहां कने, दीसे कोढी कोय हो ॥ सुं० ॥ नाह गयो किहां माहरो, कहे एम सुदती रोय हो । सु॥ कण ॥ ११ ॥ रात्रि गई रवि कगीयो, गइ पीयर ते बाल हो ॥ सुं० ॥ वात सुणावी मातने, सुणि कती चित्त जाल हो ॥ सुं० ॥ कण ॥ १२ ॥ राजसनामांहे आवियो, मंत्री कुबुझिनिधान हो ॥ सुं० ॥ श्यामवदन नीचे मुखें, वो साव्यो राजान हो ॥ सुं०॥क ॥१३॥ केम तुमें आमण दूमणा, कहो मंत्री मन मेलि हो ॥ सुं॥ हर्षने ठामें खेद श्यो, करोयथारुचि केति हो ॥ सुंण् ॥ क० ॥ १५ ॥ राजन् अवली कर्मनी, गति दीसे असहाय हो ॥ सुंग ॥ विधि प्रतिकूल थयो यदा, सो जग कीजें उपाय हो । सुंग ॥ क७ ॥ १५ ॥ यमुक्तं माघे ॥ प्रतिकूलतामुपगतेहि विधौ, विफलत्वमेति बदु साधनता ॥ अवलंबनाय दिनन रनून्न पतिष्यतः करसहस्रमपि ॥ ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ कृत उदय थावे सही, विषु कत नावे कोय हो ॥ सुं॥ खेद किश्यो करवो शहां, कर्म करे सो होय हो ॥ सुं० ॥ कण् ॥ १६॥ यतः॥ उदयति यदि जानुः पश्चिमायां दिशायां, प्रचलति यदि मेरुः शीततां याति वह्निः ॥ विकसति यदि पद्मं पर्वताये शिलायां, तदपि न चलतीयं नाविनी कमरेवा ॥ ५॥ तथाचान्यदप्युक्तं ॥ गाथा ॥ रे जीव सुह उहेसु, निमित्तमित्तं परं वियाणा ॥ सकयफलं जूंजतो, कस्स मुहा कुप्पति प रस्स ॥३॥ पूर्वढाल ॥ राय कहे मंत्री कहो, दुःखनुं कारण मुज हो ॥ सुं० ॥ अंतर श्यो मुफ धागलें, प्रकासो निज गुम हो ॥ सुं० ॥ का ॥ १॥प्रीति तिहां पडदो, किस्यो पडदो तिहां कुणप्रीति हो।सुं॥ हेजें हियर्नु खोलियें, एहिज प्रीतिनी रीति हो ॥ सुं॥क ॥ १७॥यक्तं ॥ ददाति प्रतिगृह्णाति, गुप्तमारख्याति प्रवति ॥ शुंक्ते नोजयते चैव, पडिधं प्रीति लक्षणम् ॥ ४ ॥ पूर्वढाल ॥ नारखी निसासो ते कहे, राजन जे करे देव हो । सुंग ॥ तिहां नहिं जोरो केहनो, कृत जोगवीयं सदैव हो । सुं० ॥ क० ॥ १५ ॥ तुम पुत्रीनी संगतें, मुज अंगज गुणवंत हो ॥ सुंग
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. . ॥ विणती काया कोढथी, फरसनो दोप महंत हो ॥ सुं॥ क० ॥२०॥ कुलखंपण ए कुंवरी, कां ए विधाता दीध हो ॥ सुं ॥ देव कुमर सम कंतने, जेणी कोढी कीध हो ॥ सुं० ॥ क ॥ २१ ॥ वात सुपी वि लखो थयो, आव्यो मंत्री आवास हो ॥ सुंग ॥ जामाता देवी करी, दुई मनमांहि उदास हो ॥ सुं० ॥ कण् ॥ २२ ॥ कमैं ए कोढी थयो, पण पुत्री शिर दोष हो ॥ सुं०॥ एह चढयो अति आकरो, कीजें केहो रोष हो ॥ सुंण् ॥ क ॥ २३ ॥ राय कहे मंत्री सुणो, कीबूं में सबल अकाज हो ॥ सुं० ॥ जोरें आपी अंगजा, तुक सुत विणतो आज हो ॥ सुं० ॥ क० ॥ २४ ॥ दोष नहिं कांहिं राजनो, नहिं कांहिं वहूनो वांक हो ॥ सुं० ॥त्रण नुवनमांहे वालियो, कमैं धामो आंक हो ॥ सुं० ॥ क० ॥ २५॥ माटें कहुँ लु स्वामीने, रीप न करशो कोय हो ॥सुं॥ पुत्रीनी पेरें पालये, कर्म करे ते होय हो ॥ सुं० ॥ क० ॥ २६ ॥ कर्मवशे सहुने मनें, वात वसी तेणि वार हो ॥ सुं० ॥ वहाली पण वैरण थर, कोइ न ले तस सार हो ॥ सुं० ॥ क० ॥ २७॥ एक अलाश्धे मंदिरें, रहे ते अवला वाल हो ॥ सुं० ॥ चिंते ए मातुं मरणथी, मुझ माथे ए आल हो ॥ सुं॥ क० ॥ २७ ॥ नवि सुणो नवमी ढालमां, कडु कर्मजंजाल हो ॥ सुं० ॥ रामविजय कहे कोश्ने, कदिये न दीजें आल हो ॥ सुं० ॥ ७ ॥ श्ए ।
॥दोहा॥ ॥ त्रैलोक्यसुंदरी चिंतवे, विरुन कर्मविलास ॥ मुझ माथे भावी पड्यो, वेसी रहे उदास ॥ १ ॥ मुजने मूकीने गयो, वालम नवल सनेह ॥ अवगुण कोइ दाख्यो नहिं, साले मुझने तेह ॥ २ ॥ वली माथे सवलु चढ्यु, कोढी तणुं कलंक ॥ थइ सदुने अलखामणी, कर्मवशे हुँ रंक ॥ ३ ॥ यतः ॥ कुमुदवनमपनि श्रीमदंनोजखम, स्त्यजति मुदमुलूकः प्रीतिमांश्चक्रवाकः ॥ उदयमहिमरश्मिर्याति शीतांगुरस्तं, हतविधिसति तानां ही विचित्रो विपाकः ॥ १ ॥
॥ ढाल दशमी ॥ ॥ काची कली अनारकी रे हां ॥ ए देशी ॥ पूरवनव में प्राचखां रे हां, कोइक उरित कठोर ॥ कर्म विडंबना ॥ ए ग्रांकणी ॥ तेह उदय याव्यां यहां रेहां, पियु गयो मूकी निनोर ॥ क० ॥ १॥के में दूध विठोहियां रे हां,
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श्री शांतिनायनो रास खंम पहेलो. २५ ' स्तन पीतां लघु वात ॥क ॥ वंदर विल जलें पूरियां रे हां, के पाड्यां , मदुधाल ॥ कल ॥२॥ अवगुण अता काढिया रे हां, परने दीधा बाल
॥ ॥ के वली शीलनी खमना रे हां, कीधी कर्मचमाल ॥ कण्॥ ३ ॥ .. ,यतः ॥ कुरंग रंमत्तण उनगाइ, विलित्त निंदू विसकन्नगाइ ॥ जम्मतरे खंमि
य सीलनावा, नाचण कुद्या दढसीललावा ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ के पशु पंखी मनुजना रे हां, कीधा वालविडोह ॥ क० ॥ के सुत शोक्यनी ऊपरें रे हां, विरुन विमास्यो ह ॥ कण ॥ ४ ॥ के वली दव देवराविया रे हां, वनमाहे धरि ढूंश ॥का के तुब कारिज आपणे रे हां, कीधा देवगुरु सूस ॥ क० ॥ ५ ॥ इत्यादिक कहो कुण लहे रे हां, ज्ञानी विण नवि वात ॥ कण ॥ ते उदयेंज थयां यहां रे हां, माहरे माय ने तात ॥ क० ॥ ६ ॥ अथवा पियु उणमां रे हां, होशे नहिं संदेह ॥ कण् ॥ मोदक अवसर हितनपी रेहां, नाम कयुं गुणगेह ॥ कण् ॥ ७ ॥ धीरज
धरे मनमां सती रेहां, चिंते चित्त नपाय कामले मुमने जो वालहो रे हां, :: तो टलशे सुरित अपाय ॥क०॥॥ एक दिन सिंह सामंतने रे हां, तेड्यो
मंदिरमाहे ॥ क॥ वात कही सवि मूलथी रे हां, निसुणी धरी उत्साह ॥क०॥ ए ॥ सिंह कहे सुणो स्वामिनी रे हां, मधरो मन जंजाल क वात कहिश जई रायने रे हां, होशे मंगलमाल ॥क ॥ १० ॥ लहि घवसर जश् वीनवे रेहां, सुणो राजन मुफ वाण क० ॥ कष्टें पडी तुमची सुता रे हां, अवता वहु गुणवाण ॥ क० ॥ ११ ॥आलापन सन्मानता रे हां, दूर रहो माहाराज ॥क ॥ वाक्य श्रवणमात्रे प्रनु रे हां, तनुजा अरज निवाज ॥ कण्॥१२॥अश्रुजलाविल लोचने रेहां, तूप कहे सुग सीह ॥ क० ॥ वांध्यां उदय आवे वही रे हां, वीरुई कर्मनी लीह ॥ क०॥ १३ ॥ प्राणप्रिया ए मुफ सुता रे हां, यश् कलंकित देह ॥ क० ॥ इष्ट घनिष्ट यई घणुं रे हां, कहिये कोने एह ॥क ॥ २४ ॥ पण रूठे निज यातमा रे हां, नवि प्रनवियें लोक ॥क ॥ श्रावी कहे इहां कने सुखें रे 'हां, मन हित सो शोक ॥ क० ॥ १५ ॥ अनुमति लश्ावी कहे रे हां,
त्रैलोक्यसुंदरी ताम ॥ क०॥ तात वेप नरनो दीयो रे हां, करुं मनचिंतित । काम ॥ क० ॥ १६ ॥ सिंह कहे कारण वशे रे हां, स्त्री यहे नरनो वेप ॥ कर ॥ राजकुलें ए योग्यता रे हां, राय दीयो आदेश ॥ कल ॥ १७ ॥
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
सोंप्यो सिंह सामंतने रे हां, तस रहाने काज ॥ क० ॥ कुमरी कहे सुलो तातजी रे हां, जानं उजेली यान ॥ क० ॥ १८ ॥ कारण कहीश हुं या वीने रे हां, आागलथी शी वात ॥ कं० ॥ दोष न लागे वंशने रे हां, तेम करो इम कहे तात ॥ क० ॥ १५ ॥ सैन्य सहित लेइ सिंहने रे हां, ति हांथी कीध प्रयाण ॥ क० ॥ शोध कारण निज कंतनी रे हां, सुंदरी सु गुण सुजाण ॥ क० ॥२०॥ नावें जवियण सांनलो रे हां, मनोहर दशमी ढाल ॥०॥ राम कहे धन्य जगतमां रे हां, जे रहे मनडुं वाल ॥ ० ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ हवे प्रविचन्न प्रयाणथी, चालतां निर्भीक ॥ खाव्यां केटले एक दिनें, नयरी उणी नजीक ॥ १ ॥ वैरसिंह नृप सांगली, लोक मुखें एम वात ॥ यावे नयरें व्यापणे, चंपानृपनो जात ॥ २ ॥ दल जेइ साहामो चढ्यो, वैरसिंह भूपाल ॥ तेडी लाव्यो कुंवरनें, नयरमांहि उजमाल ॥ ३ ॥ स्वा गत पूबे कुमरने, देई बहु सन्मान ॥ कोण कारण ययुं श्रावनुं, नांखो सु गुणनिधान ॥ ४ ॥ तुम नगरी निरखण तणो, हतो बहू मन कोड | ति कार में याविया, कुमर कहे मद मोड ॥ ५ ॥ राजन कहे नलें याविया, म घर पावन कीध ॥ सप्तभूमि यावासमां, नृप कतारो दीध ॥ ६ ॥ राजसुता तिहां तो रहे, साथ सवल दलपूर || दे यादेश सेवक जणी, प्रह उगते सूर ॥ ७ ॥
|| ढाल अग्यारमी ॥
॥ रामचंदके वाग, चांपो मोरी रह्यो री ॥ ए देशी ॥ तेडी सेवक तेह, कुमरी एम जो री ॥ निरखो नीरनुं गम, जश्नें यत्न घणे री ॥ १ ॥ पूर्व दिशें एक स्वामि, बे जलगम नजूं री ॥ बहुजंतु विश्राम, नूशिर ति लक मनूं री ॥ २ ॥ लहिनृपनो प्रदेश, जलमारग निवसे री ॥ चर्या देख ए काज, कुमरी मन उनसे री ॥ ३ ॥ जल पीवानें काज, एक दिन ते निरखे री ॥ जाता हयवर पंच, मनसायें परखेरी ॥ ४ ॥ ए मुफ तातें दी, हय देखी हरखी री ॥ सीधां वांदित काज, चिंते ते निरखीरी ॥ ५॥ सेव कनें कहे धाम, एह स्वामी तणो री ॥ नाम ठाम निरधार, मुऊ धागे ए जो री ॥ ६ ॥ विनति करी कहे तेह, धनदत्त शेठ तो री ॥ मंगल कलश कुमार, एहेज स्वामी सुणो री ॥ ७ ॥ सिंह जी कहे वात, एह
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२५.
श्री शांतिनाथनो रास खंम पहेलो. कुमर तेडोरी॥जेम दयनो संबंध, सांजलीयें निमोरी ॥ ॥ लेखशाला
ये ताम, जातो तेह जाणी री॥अध्यापक संघात, प्रीति करी ताणी री॥ म. ए॥ एक दिन जोजन काज, बात्र सहित आवासें ॥ अध्यापक आणंद,
तेज्यो मन नन्नासें ॥ १० ॥ साथै निहाली नाथ, हियडे घणुं हरखी री॥ जेम चकोरी चं, उनसे चित्त परखी री ॥ ११ ॥ मांझे सोवन थाल, बादरे प्रीति घणी री॥ प्रीतमने निज पास, वेसारे सुगुणी री ॥ - १३ ॥ वीजणे ढोले वाय, जोजन जलां प्रीसे री॥ देखी प्रिय मुखचंद, अंतर दील हींसे री ॥ १३ ॥ वीजाने सामान्य, गौरव नक्ति करे री ॥ ते देखी सदु वाल, मनमां अणखधरे री ॥ १५॥ एवडुं एहने मान, का रण को न लहे री ॥ पंक्तिनेदतुं उख, मनडामांहे दहे री॥१५॥ जमी मल्या वलि तेह, सदुथी अवल शिरें री॥ दौमयुगल पियु काज, धापे हर्ष नरें री ॥ १६ ॥ अध्यापकनें एम, वात कहे सुविचारी ॥ ए तुम सघला बात्र, माहे माहापण नारी ॥ १७ ॥ जे होय ते मुज आज, वात कहो एक सारी ॥ ते निसुणी मुफ चित्त, हर्ष लहे संजारी ॥ १७ ॥ कोधतणे वश तेह, वोट्या सदु एमत्राडी ॥ कहेशे मंगल एह, नक्ति करी तुमें जाडी ॥ १५ ॥ वोट्या मंगल ताम, रहो तुमें सदु अलगारी॥ नक्ति करी ते माटें, गुं धावो वलगा री ॥ २० ॥ नक्ति करे सो वार, जिहां मन मान्युं दुवे री ॥ परने न करे कोय, टग मग साहामुं जुवे री ॥१॥ सामन मानी वात, कहोने तेह परी री ॥सांनलिये एक चित्त, प्रीतें रीति खरी री ॥ १२ ॥ एकादशमी ढाल, वात कही रदियाली ॥ हवे मंगल मन मेलि, कहेशे वात रसाली ॥ २३ ॥ सर्व गाथा ॥ ए५ ॥ श्लोक २७
॥दोहा ।। ॥ अध्यापक आनंदीयो, सांजली शिगुना बोल ॥ मंगलनें कहे वत्स तुमें, दाखो वात अमोल. ॥ १ ॥ मंगल चिंते चित्तमां, लोक्यसुं दरी एह ॥ मुफ कारण नरवेप धरि, यावी नहिं संदेह ॥ २ ॥ धन धन एहनी चातुरी, राख्यो जिणें निजधर्म ।। मुफ जेवो पापी नहिं, कीg जेणें विकर्म ॥ ३ ॥ कहेवा लाग्यो कुमर ते, कल्पित के अनुजूत ॥ कुमरी कहे अनुभव तणी, वात कहो अभुत ॥४॥ धुरहूंती मामी सकल, दारव्यो सफल संबंधायावत मंत्री काढीयो,तिहां लगे सवि अनुबंध ॥ हर्पित दुइ
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शुश जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. सा सुंदरी,सांजलीप्रीतम बोल॥रोम रोम तन नन्नस्यु,आजअधिक रंगरोल ६
॥ढाल वारमी ॥ ॥ मुखने मरकलडे ॥ ए देशी ॥ कृत्रिमकोप करीने जी ॥ कुमरी एम नांखे ॥ ग्रहो ए मिथ्यानापीने जी ॥ सदुकोनी साखें । एह जूतुं केम वोले जी ॥ कु० ॥ नहिं ए कोई नरनें तोले जी ॥ स० ॥ १ ॥ तेने ग्रह वा सेवक धाया जी ॥ कुछ ॥ तव वालक सवि उजाया जी॥ स ॥ ते ग्रही गृहमांहे आएयो जी ॥ कुछ ॥ ते समज्यो मनमांहि जी ॥ स० ॥ ॥ उत्तम आसन वेसारी जी ॥ कु० ॥ कर जोडी रही सा नारी जी ॥ स ॥ कहे सिंहने ए मुफ कंत जी ॥ कुं॥ ए यावी मिल्यो एकांत ॥ स ॥३॥ आज मनोवांनित सवे फलियां जी ॥ कु० ॥ प्राणजीवन मुफने मलिया जी ॥ स ॥ आज जीवित जन्म प्रमाण जी ॥ कु० ॥ मुफ त्रूच्या श्री जिननाण जी ॥ स॥ ४ ॥ मन संशय सिंहज जाणी जी॥ कु० ॥ ज जुवे अवर सहिनाणी जी ॥ स ॥ जाजन मुकतां ते दीधां जी ॥ कु० ॥ नामांकित असली सीधा जी ।। स० ॥५॥ जय जोयो ते सवि दीगो जी ॥ कुछ ॥ मन संशय सघलो नागे जी ॥ स०॥ धनदत्त शेठने कहे जाणीजी। कु०॥ए तुम सुतनीधणीयाणी जी ॥ स० ॥ ६॥सुपी वातने शेठ उजाणो जी ॥कुणावे तिहां श्वास नराणो जी॥ स० ॥ धरि रूप रमणीनुं धागें जी ॥ कुछ ॥ यावी श्वसुरने पाये लागे जी॥ स॥७॥ आवे नयर नरेश्वर रंगें नी॥ ॥जोवा मलियां वह उन रंगें जी ॥ स ॥ पंचसाखें राजकुमारी जी ॥ कुण् ॥ थइ रही मंगल घरनारी जी ॥ स ॥ ॥ पसरी बहु नयरें वात जी॥ कु० ॥ धन्य कुमरी एद सुजात जी ॥ स० ॥ नरवेप देइने चाल्यो जी ॥ कु० ॥ सिंह निन न यरी जणी याव्यो जी ॥ स ॥ए ॥ निजनृपति बागल.ावी जी ॥ कु० ॥ सवि बात कही समजावी ॥ स ॥ धन्य मुफ तनया चतुराइ जी ॥ कु० ॥ अहो जुन सचिव धीजी ॥ स० ॥ १० ॥ प्रीतियें न रहे गर्नु पाप जी ॥ कु० ॥ नवि दीजं पर उपताप जी ॥ स ॥ पठी करा एहने मावो जी ॥ कु० ॥ एक वार जमाने तेडावो जी ॥ स ॥११॥ सिंह मूकीने तेडावे जी ॥ कु० ॥ दंपती दोय चंपा यावे जी ॥ स ॥ नृप सामो अाव्यो या जी ॥ कुछ ॥ वदु मान जमाश्ने थापे जी ॥
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॥.९ कोटी जोस जपे एक तिहांत नारी
श्री शांतिनाथनो रास खंम पदेलो. १३ . स० ॥ १२ ॥ गजवरखंधे वेसारी जी ॥ कुछ ॥ असवाव संघातें नारी
जी ॥ स ॥ पुरमा आवे असवारी जी ॥ कु० ॥ तिहां खलक मल्यां नर नारी जी ॥ स ॥ १३ ॥ सङ जंपे ए चिरंजीवो जी॥ कु० ॥ कुंवर ए कुलनो दीवो जी ॥ स ॥ सघलो ए मंत्री वंक जी॥ कु० ॥ दी कूडं कोढी कलंक जी ॥ स ॥ १४ ॥ नव इजात एवं हारी जी
॥ कु० ॥ बोले पुरजन व्यवहारी जी ॥स ॥ मंदिर आव्यो कुलना जी . कु०॥ तव वाग्यां ढोल निशाण जी ।। स० ॥ १५॥ नृप सचिवनें कीधो कागे जी ॥ कु० ॥ कयो दुकम तलारने मागे जी ॥ स० ॥ कुण चोर तणो रखवाल जी ॥ कुछ ॥ बोले एम बाल गोपाल जी ॥ स ॥१६॥ फल पाम्यो प्रत्यद एह जी ॥ कु०॥ दी, आल सतीने जेह जी ॥स॥ महोकम माखो तव मूठे जी॥कुण॥ गडदा पाटू पड्या पूजें जीस॥१७॥ तिहां मंगलकलश विचारे जी ॥॥ सदु निजकतने अनुसारें जी ॥सण॥ निजातम दोष विनावे जी ॥ कु० ॥ इहां पर ते निमित्त कहावे जी ।। स॥१७॥ यमुक्तं ॥ रे जीव सुहहेसु० ॥१॥ अप्पा चेव दमेधचो, अप्पा दु खलु मुद्दमो॥अप्पा दंतो सुही होइ, अस्सि लोए परचय ॥॥पूर्वढाला। मुफ वे जो ए हणाय जी ॥ कुण् । अनुकंपावत कुःखाय जी॥ स०॥ . सदु जीवने जीवित प्यारं जी।कुण॥ कही नृपने एने नगारु जी॥स॥१॥ यमुक्तं ॥ अमेध्यमध्ये कीटस्य, सुरेंइस्य सुरालये ॥ समा च जीविताकां क्षा, समं मृत्युजयं योः ॥ ३ ॥ अन्यदर्शनेपि ॥ योदद्यान्मेरुवत्स्वर्ण, क स्नां चैव वसुंधराम् ॥ एकस्य जीवितं दद्या, न च तुल्यं युधिष्ठिर ॥ ४ ॥ पूर्व ढाल ॥ कहे नृपने प्रच अवधारो जी ॥ कु० ॥ सचिव उपरें कोप निवारो जी॥ स ॥ मुफ नपरें महेर करीजें जी ॥ कु० ॥ मंत्रीने जीवित दीजें जी स॥२०॥ धन्य उपगारी तेह जी ॥ कु० ॥ अवगुणी उपरें धरे नेह जी॥ स ॥ कही वारमी ढाल विचारी जी ॥ कु० ॥ गुणवंतनी जाउं व लिहारी जी ॥ स ॥ २१ ॥ सर्वगाथा॥ ३१ ॥ गाथा तथा श्लोक ३२
॥दोहा॥ ... ॥ नृपलामाता यायहें, तेड्यो मंत्री तेह ॥ जा मुक्यो तुम जीवतो, पण ण पुर नरदेह ॥१॥ निजनगरीयी नीलस्यो, सचिव तेह मतिहीन ।। जग सबलु ए जाएजो, उदयतणे याधीन ॥ २ ॥ उदये थावे कर्मनें,
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२४ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. महोटा मति मुंजाय ।। गयो परदेशे वापडो, पण कोइन दीये गाय ॥३॥ मान रहित मेलो मनें, मेती घरनुं राज ॥ करि परघरनी चाकरी, उदर नरेवा काज ॥४॥ हवे नृप मंगलकलशनें, थाप्यो सुतने गम ॥ जुवो जब गति पुण्यनी, पुण्ये सीफे काम॥५॥ तेडाव्यां तेहनां तिहां, मात पिता तेणि वार ॥ सदु परिवारें परवस्यो, विलसे सुख संसार ॥६॥ एहवे दीधी वधा मणी, वनपालक मतिमंत॥ यशोनइ मुनि उपवनें, समवसस्या गुणवंत॥७॥
॥ ढाल तेरमी॥ ॥ वारी मोरा साहेवा ॥ ए देशी ॥ नृप सुंदर सांजली दो राज,रीज्यो धर्मने राग ॥ वारी मोरा साधुजी ॥ ए आंकणी ॥ श्रीगुरुवंदन नीसयो हो राज, आज अजव लह्यो लाग ॥ वा ॥ १ ॥ तारण तरण नवांबुधि हो० ॥ जगमां जेम जहाज ॥ वा ॥ पंचानिगम ते साचवी हो॥
वांदे श्री मुनिराज ॥ वा ॥ २ ॥ दल देखी दिल बन्नस्युं हो ॥ दे दिल - नर उपदेश ॥ वा० ॥ धर्म करो धिंगड घसी हो ॥ यौवन वय सुविशेष
॥वा० ॥ ३ ॥ जर कुट्टी यौवन शशो हो ॥ काल बाहेडी नित्त ॥वा०॥ धर्मी विना धर्मज नहिं हो० ॥ कुशल किहांथी मित्त ॥ वा ॥ ५ ॥ वेदु पिशून वच्चे कूपडं हो ॥ जाइ नजाणो काल ॥ वा ॥ वहेती वारें शोधायें हो ॥ धर्म था उजमाल ॥ वा ॥ ५ ॥ रखे प्रमादने वश पडो हो ॥ धर्म ते शुद्ध स्वनाव ॥ वा ॥ अक्ष अनादिनी चेतना हो ॥ मोह्यो मोह दिनाव ॥ वा० ॥ ६ ॥ दृष्टिविपर्यय थइ रह्यो हो॥ पर उपरें निज नाव ॥ वाण ॥ निजवस्तु ए जाणो नहिं दो० ॥ देखी रहो चेतननाव ॥ वा० ॥ ७॥ गुं पुजलने वश पड्या हो ॥ ए कोण कोण तुम रूप ॥ वा० ॥ निज घर तजी परघर रमो हो ॥ शुं चतुराई रूप ॥ वा० ॥ ७ ॥ मन मानी गुरुदेशना हो ॥ आव्यो नववैराग्य ॥ वा० ॥ कहे श्रीगुरु तारो मुने हो॥ श्राज लह्यो में साग ॥ वा॥ ए ॥ कहे गुरु देवाणुप्पिया हो० ॥ करीयें नवि परमाद ॥ वा ॥ नावसंधी जमतां सही हो ॥ चारखो अनुनवस्वाद ॥ वा० ॥१०॥ यावी मंगलकलशने हो० ॥ सोंपीने निजराज ॥ वा ॥ राजन संयम यादयो हो । यातम साधन काज ॥ वा ॥ ११ ॥ पंच समिति सूधा यति हो॥ मावंत यागार ॥ वा० ॥ शुक्ष निरीह तप धादस्यो हो० ॥ करता उग्र
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श्री शांतिनायनो रास खंम पहेलो. - श्य विहार ॥ वा ॥ १२ ॥ गुरु बाणा शिर पाघडी हो ॥धारी राखे सार ॥ वा॥ विषय न वांडे पाघडी हो ॥ ढुं तेहनी वलिहार ॥वा॥१३॥ जे संयम सुख पागले हो॥सुर सुख पण तिलमात वा॥ नर देव पण नित्य जेहनां हो ॥ चरण नमे परमात ॥ वा० ॥ १५ ॥ यमुक्तं ॥ तण संथार निविछो, मुणिवरो जग्ग राग गयमोहो ॥ जं पाव मुत्तिसुहं, कित्तो तय चक्कवट्टीवि ॥१॥ पूर्वढाल ॥ गुरु चरणाराधनथकी हो० ॥ सुरसुंदर कपिराज ॥ वा० ॥ सुगति लही सिक दशा हो ॥ जिहां सुख मोज समाज ॥ वा ॥ १५ ॥ हवे पाले निजराजने दो० ॥ मंगलकलश नरेश वाणा राज्ये वणिकने थापीयो हो० ॥ निसुएयु अपर पुरेश ॥व० ॥१६॥ दल ले ते थाविया हो० ॥ राज्य लेवाने काज ॥ वा० ॥ मंगल नृप चढती कला हो ॥ वश कीधां सदु राज ॥ वा ॥ १७ ॥ पुण्यदशा जस पाधरी हो ॥ मंगलमाला थाय वा पदपद पामे संपदा हो । मन धारे ते उपाय ॥ वा० ॥ १७ ॥ ढाल नणी ए ते रमी हो॥ पुण्यो दयनी वात ॥ वा॥ धन्य जेहनी धर्मे करी हो ॥ रंगाणी सवि धात वा० ॥ १५॥ सर्व गाथा ॥३ए ॥ गाथा तथा श्लोक ॥ ३३ ॥
॥दोहा॥ ॥ सुख जोगवतां अनुक्रमें, त्रैलोक्यसुंदरी साथ ॥ सुत जन्म्यो एक सुं दरु, उत्सव करे धरनाथ ॥१॥ यानंद धरी अंगज त', यशशेखर अनि धान । सऊन संतोपी घj, थापे ते राजान ॥ ॥ जिनमंमित प्रथिवी करी, खरची बदु धन कोडि ॥ नक्ति करे जिनवर तणी, प्रणमे वे कर जोडि ॥ ३ ॥ इव्यनक्ति विरचे नली, नावनक्ति अनिलाख ॥ वरसप्रत्ये साहम्मी निमित्त, खरचे धन के लाख ॥ ४ ॥ जिनगुरु जिनमत संघनी, नक्ति नेद ए चार ॥ आदरतां नज्ज्वल दुवे, समकितनो धाचार ॥ ५ ॥ समरथ सुत धागल थयो, राजधुरंधर धीर ॥ प्रजापाल पाले प्रजा, पर उ:ख कायर वीर ॥६॥ इण अवसर तिहां आविया, श्री जयसिंह मुनीश ॥ श्रवनीपति चंदन चल्यो, साथै सवल जगीश ॥ ७॥ गुरु वांदी निसुणे नृपति, देशन अमृतवाण ॥ कथा रसिक संवेगनी, निवेदनीव खाण ॥ ७ ॥ देशन धंतें पूठी, नृप पूरव अवदात ॥ गुरु ज्ञानी नांखे प्रगट, पुरव नवनी बात ॥ ५ ॥
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२६ - जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
॥ ढाल चौदमी ॥ ॥ देशी बिंदलीनी ॥ देव जरत शुन नामें, पुर धरणीप्रतिष्ठित नामें हो ॥ राजन सुण वाणी ॥ वीपमी एकर्मकमाणी हो ॥राणामुण॥ निवसें कुलपुत्रक एक, सोमचंशनिध सुविवेक हो ॥रा ॥ १ ॥ तस घरे कांता श्री देवी, रूपें अमरीना जेहवी हो ॥ रा ॥ दंपती दोय प्रीति पनोतां, सुख विलसे सुर सम जोतां हो ॥राण ॥ ॥ श्रावक जिनदेव संघातें, तस प्रीति वनी एकांतें हो ॥ रा० ॥ नखमांस तणी परें पाले, नेह नि विड वेहू संनाले हो ॥ रा ॥ ३ ॥ धनहूते पण जिनदेव, परदेश जावा यइ टेव हो ॥ रा० ॥ कहे मित्रने हुँ अन्य देश, जाइश व्यापार उद्देश हो ॥रा० ॥ ४ ॥ पण मुज धन राखो पासें,वावरजो देव उनासें हो ॥रा॥ गुजपाचें जो वावीजें, परनवसंवत पामीजें हो ॥रा॥५॥यउक्तं ॥ व्याजे स्याद्विगुणं वित्तं, व्यवसाये चतुर्गुणम् ॥ क्षेत्रे शतगुणं प्रोक्तं, पात्रेऽनंतगुणं नवेत् ॥ ॥ नैपधेऽपि ॥ दानपात्रमधममिहैकग्राहि कोटिगुणितं दिविदायि ॥ साधुरेति सुकृतैर्यदि कत, पारलौकिककुस्तीदमसीदत् ॥ २ ॥ पाकारेणोच्यते पापं, त्रकारस्त्राणवाचकः ॥ अदक्ष्यसंयोगे, पापमाहुर्म नीषिणः ॥३॥ पूर्वढाल ॥ आपी दशसहस्त्र दीनार, परदेश चल्यो व्या पारें हो ॥ रा॥ हवे सोमचं विचारे, धन्य धन्य एहनो अवतार हो ॥ राम् ॥ ६ ॥ मुज हाथे बदु धन दीधो, एणे जन्म कृतारथ कीधो हो ॥राण ॥ तो कांक मुऊ उमेरी, खरचुं गुजलाम सवेरी हो ॥ रा० ॥७॥ पुजल मूळ कतारी, प्रशंसे तेहनी नारी हो ॥ रा० ॥ वेदु बांधी पुण्यनी राशि, सुख विलसे निज आवास हो ॥रा० ॥ ७ ॥ एक नशनामें नारी, श्रीदेवीने ते प्यारी हो ॥रा०॥ नंदशेत सुता गुणखाणी, देवदत्तनी ते धणी याणी हो ॥रा॥ ए ॥ तस पीयुनें अंगें रोग, थयो कुष्टनो पूरव जोग हो ॥राणा देखी जा दुई दिलगीर, नयणे जरे आंसू नीर हो ॥रा॥ १० ॥ श्रीदेवी साथ साहेली, करे वात वेदु मन मेली हो ॥राणा कोइ कर्म तणी गति विषमी, मुफ कंथने वेदन न शमी हो ॥ रा० ॥ ११ ॥ तब हांसीमां श्रीदेवी, बोली तुझ संगत एहवी हो ॥रा ॥ तुज सेव्ये ए व्याधि वलगी, जा उप मुफयी अलगी हो ॥ राम् ॥ १२ ॥ सुणी जश नीचे वयणे, जोई रही जरते नयणें हो ॥ रा ॥ मनडं थडे मांहे दुर्गु, सखायें
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पहेलो. - मुझ दीमहेणुं हो ॥ रा० ॥ १३ ॥ मन खेद उपन्यो जाणी, श्रीदेवी 'बोली वाणी हो ॥रा॥ मत खेद करो मुफ वहाली,में हांसीयें कहुं तुज
आली हो ॥ रा ॥ १४ ॥ थs सुप्रसन्न मनमां तेह, पहोती पोतानें गेह हो ॥ रा० ॥ माही पण चाली धामी, हांसीमां वात विगाडी हो॥१५॥ हांसी सम नहिं कोई पाप, नांखे त्रिजुवनपति आप हो ॥रा० ॥ बंधाये सात ने आठ, हांसीमां कर्मना गत हो ॥ राम् ॥ १६॥ यमुक्तं मागमे । जीवेणं ते हस्तमाणे कश कम्म पयडि वंधएवा ॥ गोयम सत्तविह बंधएवा, याविह बंधएवा ॥ ४ ॥ पूर्वढाल ॥ उत्तमने हतबु वारु, वेदु
समयमा एम निरधायुं हो ॥ यमुक्तं ॥ अश्रोसो अझ तोसो, अश्हासो .. उजयो हि संवासो ॥ अश् उप्नड आवेसो,पंच गुरुं अपि सदुयंति ॥ ५ ॥
पूर्वढाल ॥ नवि करीयें कोनी हांसी, जेहथी जग होवे खासी हो ॥ रा. ॥ १७ ॥ एम पाले आले जीव, वांधे परनव करें रीव हो ॥ रा० ॥ सोमचं अने श्रीदेवी, साधुनी संगति सेवी हो ॥रा ॥ १७ ॥ कयुं पुण्य ते या आवे, पहेले सुरलोकें जावे हो ॥ राण ॥ पंच पत्योपमनुं श्राय, दोय सुर थयां सुंदरकाय हो ॥ राम् ॥ १॥ सोमचंद चवी तुं तेह, थयो जूमिपति गुणगेह हो ॥ रा॥ त्रैलोक्यसुंदरी सारी, पहेली श्री देवी नारी हो ॥ राण॥ २०॥ परधनें पुण्य की, नारी, तिणें परएयो नाडे नारी हो ॥रा० ॥ हांसीमां कलंक चढाव्युं, ते आ नवें उदये थाव्यु हो । राम् ॥ २१ ॥ निसुणी श्रीगुरुनी वाणी, मन मोहदशा मूंकाणी हो राणा ए चौदमी ढाल वरवाणी, कहे रामविजय धन्य नाणी होराणाशा
॥दोहा॥ ॥ वांदी कर जोडी कहे, तारो श्री गुरुराज॥ नवजलमांहे मुफ मिल्यो, दर्शन तुम जहाज ॥ १ ॥ पतित नणी पावन करो, यो प्रनु मुफने दी ६॥ मनमा सुधी धारवी, सद्गुरु ताहरी शीख ॥ २ ॥ गुरु कहे देवाए पिया, तेम करिये मन वाम ॥ ए अनादि प्रतिबंधमां, नवि पडिये घर काम ॥३॥ गुरु वंदी मंदिर चल्यो, विनता सहित नरिंद ॥ राज्य व्यो निज तनुजने, मनमां धरि धानंद ॥ ४ ॥
॥ढाल पन्नरमी॥ ॥ चीर मुणो मोरी विनति ॥ ए देशी ॥ यशशेरवर धाणा लही, नृप
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YG जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. चाल्यो हो संयमने काज॥ वलि जयसिंह मुनीशने, कहे आपोहो मुझ सं यम राज ॥१॥ बलिहारी गुणवंतनी॥ नृप मांझे हो व्रत साथें नेह॥ कुमति , कुटिल नारी तजी, नजे समता हो सुंदरी गुणगेह ॥ब० ॥ २॥ दीख ग्रही नवतारिणी, गुरुसाथें हो विचरे मुनिहंस ॥ध्यान विमल मोती चूणे, मतिहंसी हो साथै शुन वंश ॥ व० ॥३॥ समयजलाशयने तरे, लख ने हो जड चेतननाव ॥अनुजव चंचुस्वनावथी, नय धारण हो पदन ज्ज्वलनाव ।। व० ॥॥ शु आहारें मन रमे, निर्दूषण हो नीरें संतोष॥ गुरुथाणायें चालतां, मन वाधे हो वैराग्यनो पोष ॥ब० ॥ ५॥ त्रैलो क्यसुंदरी साधवी, करे किरिया हो गुरुगीनी साथ ॥ व्रत आराधे ऊजलां, मन आएयु हो जेणें निज हाथ ॥ ब० ॥ ६ ॥ अंतें अणसण आदरी, . बेतु पहोतां हो पंचम सुर नाम ॥ त्रीजे नवें शिवसुख लह्यां, धर्म तारे . हो नवि निसुणो धाम ॥ ३० ॥ ७ ॥ कीधो कराव्यो ए सही, अनुमोद्यो हो थापे शिव धर्म ॥ त्रिकरण योगें आदस्यो, मनचिंतित हो पूरे शिव शर्म ॥1॥ ॥ श्रीपेण नृप एम सांजली, गुरुदेशने हो बूज्यो मनमांहे ॥ समंकित शुरू अंगीकरी, श्रावक व्रत हो ग्रहे मन उत्साह ॥ ब० ॥ ए॥ मुनि वंदी मंदिर वल्या, मन सूधे हो पाले आचार ॥ जीवदया पाले नली, देशमाहे हो वरतावी अपार ॥ व ॥ १० ॥ व्यसन निवारे वेगलां, मन वारे हो विषये सुविशेष ॥ आतमने उज्ज्वल करे, न लगाये हो कांश का ती रेख ॥ व ॥ ११ ॥ चेतन गुक्तपदी थयो, तस संगतें हो अनिनं दिता नार ॥ धर्म नज्यो जगवंतनो, जे साध्यो हो आपे नवपार ॥ ७॥ १२ ॥ नश्कनावपणुं लहे, अनिनंदिता हो राणी नृपसंग ॥ उत्तम संगति गुण करे, पलर पण हो तरे तुंव प्रसंग ॥ व ॥ १३ ॥ एहवे कोसंबी धणी, बलिराजा हो वलीयो नूपाल ॥ श्रीमतीकूखें उपनी, श्रीकांता हो पुत्री सुकुमार ॥ व ॥ १४ ॥ यौवनवय यावी जली, मोहरायने हो । रमवानुं नाम ॥ जोड न यावे तेहनी, जगतीमां हो जोतां कोई वाम ॥ व ॥ १५॥ श्रीपेण सुत इंपेगने, योग जापी हो सवले परिवार ॥ स्वयंवर साहमी मोकली, थावी उतरी हो वनमा तेणी वार ॥ व ॥ १६ ॥ पन्नरमी ढाल पूरी थर, नवि सुजो हो जावें उजमाल ॥ रामवि जय कहे तेहनां, नाम लीजें हो जेहने धर्मनी ढाल व॥१७॥३१॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पहेलो. शए
॥दोहा॥ ने ॥ रूपवती कुमरी घj, निरखी वेदु कुमार ॥ मनमथने ते वशे पड्या,
वाध्यो विषय विकार ॥१॥ निरखी निरुपम नायका, विषमी कुंची जेम ॥ वेती अंतर जायगा, नेयुं तालक प्रेम ॥ ॥ चित्त वेदु बंधव तणां, एक इव्य अनिलाष ॥ नेह रहित नीरस थयो, लीली जेहवी लाख ॥ ३ ॥
विषये विनय तज्यो परो, विउपेण कहे एम ॥ मकरिश आशा एहनी, - जो तुं वांजे देम ॥ ४ ॥
॥ढाल शोलमी॥ ॥ हरिया मन लाग्यु ए देशी ॥ वे बंधव अमरप चढ्या, देवरमण ' उद्यान रे ॥ विषय मदमाता ॥ तुं तुकारेंावीया, विदु ते यो युवान रे . ॥वि० ॥ १ ॥ लाज न आणी कुल तणी, न गण्यो जन अपवाद रे
॥ वि० ॥ एक तरुणीने कारणे, मांमयो एम संवाद रे ॥ वि० ॥३॥ • लाज तजी अलगी तेणें, नारख्या हथीयारें हाथ रे ॥ वि० ॥ चटपटमां
खटपट थइ, थाव्या वाथो वाथ रे ॥ वि०॥ ३ ॥ योध कुंमा धड धडहडे, कायर कंपे प्राण रे ॥ वि ॥ कोइ न डोडावी शके, मलिया राणो राण रे ॥ वि० ॥ ४ ॥ कामणगारी कामिनी, झुं कीg एवं एह रे ॥ वि० ॥ जोतां वेदु बंधवतणो, उमी गयो एम नेह रे ॥ वि० ॥५॥ वात सुपी श्रीपेाजी, वारणने असमब रे ॥वि चित्त चिंते ए उपन्यो, विषययकी धनरठ रे ॥ विण ॥ ६ ॥ धिक् धिक् ए लंपटपणुं, धिग् धिम् विपय विला सरे ॥ वि०॥ युवती रूपें जगतमां, मोहनू धरयो पास रे ॥ वि० ॥
॥ तिलमात्र सुख विपयत', दुःख मेरु उपमान रे ॥ वि०॥ विप यविलुझा मानवी, अंगें न वले वान रे ॥ वि० ॥ ॥ शल्यसमा जिनवर कह्या, काम धाशीविप तुव्य रे ॥ वि० ॥ जे एहथी विरम्या सही, ते नर रयण थमूल्य रे ॥ वि० ॥ ए॥ माहापण एहनु क्यां गयु, किहां गयो कु लयाचार रे ॥ विष ॥ निर्लज ए लाजे नहि, विषय पढ्यो धिक्कार रे ॥ वि० ॥ १० ॥ जे पुजन नासे सडे, धर्म संयोग धियोग रे ॥ वि०॥ ते उ पर मूळ सी, अहो अनादिनो रोग रे ॥ वि ॥ ११ ॥ यतं ॥ एता नि तानि धनयोवनगर्वितानि, हाराहारमणिनूपुरसंचितानि ॥ वस्त्रान पानशयनासनलालितानि, नमो खुतंति कुपितानि कनेवराणि ॥१॥
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जैनकथा रत्नकोप नागं आठमो.
अन्यदप्युक्तं ॥ विकलयति कलाकुशलं, दसति गुचिं पंमितं विडंबयति ॥ अधर यति धीरपुरुष, दोन मकरध्वजोदेवः ॥ २॥ लीलावतीनां सहजाविलासा, स्तएव मूढस्य हृदि स्फुरंति ॥ रांगोन जिन्याहि निसर्गसिद्ध, स्तत्र चमत्येव सुधा पडेद्रिः ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ कलह की विरम्या नहिं, लाज्यो मन नूपाल रे ॥ वि० ॥ एणें कुपुत्रं यादस्त्रो, निर्मल वंशविटाल रे ॥ वि० ॥ १२ ॥ केम देखा डिश लोकने, मुख दरवारें बेसी रे ॥ वि० ॥ मरण नलुं मुने इहां, घरने खूणे पेसी रे ॥ वि० ॥ १३ ॥ राणी यागल जइ कहुं, घरे परमेष्ठी ध्यान रे ॥ वि० ॥ विपमिश्रित लेइ कमलनें, सूंघे मरण निदान रे ॥ वि० ॥ १४ ॥ काल कस्यो श्रीषेणजी, राणी दोय पण तेम रे ॥ वि० ॥ सत्यनामा चोथी वली, जू अनरथ एम रे ॥वि०॥१५॥ उत्तर कुरुमां व पन्यां युगलपणे ते चार रे ॥वि०॥ एक नृप प्रथम प्रिया तनु, बीजी बीजी हिजनार रे ॥ वि० ॥ १६ ॥ एहवे चारण मुनिवरु, गगनें याव्यो कोय रे ॥ वि० ॥ देवरमण उद्यानमां, जिहां जूजे बे दोय रे ॥ वि० ॥ १७ ॥ हो उत्तम कुल उपन्या, चरमशरीरी होइ रे ॥ वि० ॥
एम केम लज वाता नथी, करता कुकरम दोइ रे ॥ वि० ॥ १८ ॥ एह कुचेष्टित तुम तणुं, देखी पित्तर परलोक रे ॥ वि० ॥ पहोता पण जाएयुं नहिं, धीक् तुम माहापण फोक रे ॥ वि० ॥ १५ ॥ नृणपएं कीधुं ननुं, थया तरुणीना यार रे ॥ वि० ॥ मरणहेतु मावित्रने, यया तुमें मूढ गमार रे ॥ वि० ॥ २० ॥ शब्द सुगी साधु तणो, चित्त प्राव्यं तव नाम रे ॥ वि० ॥ युद्ध तजी वेढू जणा, जांखे सुनिने ग्राम रे ॥ वि० ॥ २१ ॥ साचो शो लमी ढालमां, विपमो विषय जंजाल रे ॥ वि० ॥ रामविजय कहे ते जला, जेणें टाल्यो ए जंजाल रे ॥वि०॥ २२ ॥ सर्व गाथा ॥ ४०७ ॥ श्लो० ४१
॥ दोहा ॥
॥ तुं मने तारक मल्यो, निःकारण जगबंधु ॥ युद्ध करतां तारिया, पडता नवजल अंधु ॥ १ ॥ अशरण शरण तुमें यया, वली अनाथना नाथ ॥ श्रा वीने यम ऊपरें, कृपा धरी मुनिनाथ ॥ २ ॥ वांदीने दोडी चल्या, व्याव्या तेह व्यागार || पितर देखी धरणी ढव्या, चाली यांसुधार ॥ ३ ॥ रोता दियडे फाटते, करे विलाप अपार ॥ धार न खंचे नयण दो, जेम जाइव जल धार ॥ ४ ॥ हा हा हा ए गुं ययुं, यमयी सवल क ॥ केम कुकर्म
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श्री शांतिनायनो रास खंग पढ़ेलो.
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६ ए. बूटयुं, वांध्युं में निर्लऊ ॥ ५ ॥ मव्यो सहू परिवार तव, शोकाकुल ततकाल ॥ स्वामी तें माया तजी, कुण करशे संजाल ॥ ६ ॥ गया विदेशें बाहुडे, वाहला कोइक वार ॥ पण इस वाटें जे वव्या, ते न मले विजी वार ॥ ७ ॥ प्रेतकार्य करि पितरनां, खाली मन छंदोह | राज दीये गोत्री जली, मट्यो विषयनो मोह ॥ ८ ॥ एहवे याव्या सांजली, धर्मरुचि पगार || जे प्रगाध नवसिंधुना, सुधा तारणहार ॥ ए ॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥
॥ साहिबा मोतीडो रे हमारो ॥ ए देशी ॥ याव्या दोय कुमर वंदेवा, करे मुनि चरणनी सेवा ॥ साधुजी अमने छ्व तारो, मोहना मुने पार उतारो ॥ घमें अपराधी पापें नरिया, तुमें निरुपाधिक गुणना दरिया ॥ सा० ॥ मो० ॥१॥ यमें शब्दादिक गुण व्यासंगी, तुम तेहना सुपने नहिं संगी ॥ सा० ॥ मो० ॥ यमें क्रोधादिक कपायें नडिया, तुमें उत्तम गुणगणे चढिया ॥ सा० ॥ मा० ॥ २ ॥ यमें मदमातंगनें वश पडिया, नवि तुमें ते तिलमात्र खाडीया ॥ सा० ॥ मो० ॥ यमें घशरण घविनीत बजाए, तुमें जगशरण विनीत सुजाण ॥ सा० ॥ मो० ॥ ३ ॥ कीधी कमाई में यति खोटी मुनिवरजी तुम पदवी महोटी ॥ सा० ॥ मो० ॥ नव न्त्र निनंदी में बुपावी, तुमें पट कायना नहिं परितापी ॥ सा० ॥ मो०
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॥ ४ ॥ यमो ते इंदिये विषय राच्या, तुमें धनुभव सुखमां रह्या माच्या ॥ सा० ॥ मो० ॥ कीधी वात यमें यति काची, तुम किरिया निःक
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लंक ने साची ॥ सा० ॥ मो० ॥ ५ ॥ पतित में, पुरुषास्य हीला, तुमें पावन गुणज्ञान यहीणा ॥ सा० ॥ मो० ॥ हवे तुम चरणे यावी व लग्या, एक पलक नवि रहेगुं लगा ॥ सा० ॥ मो० ॥ ६ ॥ यो दीक्षा करो पावन काया, तो में जितनिशाण वजाया ॥ सा० ॥मो० ॥ चार स हस्रराजेश्वर सायें, लीधी दीक्षा श्रीगुरुहाये ॥ स० ॥ मो० ॥ ७ ॥ मुनि वर कीधो उय विहार, पाले चार माहाव्रत सार ॥ सा० ॥ मो० ॥ तप त पीयां ति कर गाढां, राखे रूडी चारित्र राढा ॥ सा०|| मो० ॥ ॥ सहे परिसह तापने राड, खड खड हिंमतां वाजे हाढ ॥ सा० ॥ मो० ॥ चढीया
श्रेणी श्रारोही, मुनिवर कल त्र्यवीह अकोही || सा० ॥ मो० ||||| वाध्या उपशम गुणना जोरा, नाता इष्ट मदादिक चोरा ॥ सा० ॥ मोना
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. नवपल्लव दुइ संयमवाडी, समताजल सींचतां जाडी ॥सा ॥ मो॥ ॥ १० ॥ वेदु मुनि निजगुणथी वाधे, साधन साधु ग्रहीने साधे ॥ सा ॥मो॥ अप्रमत्त नूमि निरधारी, मोह ऊपरें कीधी स्वारी ॥ सा० ॥ मो ॥ ११ ॥ नाग्यो मोह सवल नडवाह, चेतन जाति चल्यो उत्साह साग मो०॥ दीपमोह गुणगणे यावी, अंतर्मुहूर्त स्वारी टकावी ॥ सा ॥मो० ॥ १२॥ बेद करे आवरण वेदुनो, चेतन चढी तेरम गुण लीनो ॥ सा ॥ मो० ॥ प्रकट्यो केवलनाण विनास, नासक लोकालोक प्र काश ॥ सा ॥ मो ॥ १३ ॥ जय जय शब्द करे सुरराजी, देव निशाणे रघु अन गाजी ॥ सा० ॥ मो० ॥ वेदु मुनिवर केवल हि साधी, यंते सिदशा तेणें साधी ॥ सा ॥ मो० ॥ १४ ॥ हवे श्रीषेणादिक दोय युगल, त्रण पत्य आयु पालीने विमल ॥ सा० ॥ मो० ॥ तिहाथी चवि सौधर्मे चार, त्रीजे नवें सुरसुख लह्यां सार ॥ सा ॥ मो०॥ १५॥ ढाल सत्तरमी सुणतां प्यारी, शांति प्रनु गुण गाउँ विचारी ॥मो॥ सा॥ श्री गुरु सुमतिविजयनो शिष्य, राम कहे प्रथमो निश दीस ॥साणामो०॥१६॥
॥राग धन्याश्री॥ ॥ धातमा चित्तगुं चेत चातुरपणे, धर्म विण को दूजो न जगमां ॥ धर्म ते शु६ सहजातमा आपणो, तारो ते सही तुज वगमां ॥ था ॥१॥ निज उपादानथी निमित्त वल पामीये, धर्म अविरु६ सुविगुरू लेशी ॥ निमित्त शुन तेह जन संकया जाएजो, तुरत ते नक्तने मुक्ति देशी ॥धा० ॥ ॥ माहरे मन घणी नक्ति थुगवा तणी, शांति प्रनु रास रसनाधिकारें ॥ तेहनो खंग पहेलो थयो पुण्यथी, सनिलो नवि यणो निर्विकारें ॥ आ० ॥ ३ ॥ धागलें सरस रस शांतिजिनरासमां, तास रचना रचीगुं जलेरी ॥ वात विकथा तजी चित्त समता नजी, सांजलो बोडो निंदा अनेरी ॥ था० ॥ ४ ॥ सत्तर पंचाशीए राजनगरें रही, आदिजिन चरण सुपसाय साध्यो ॥ श्री सुमति सुगुरुतणुं सान्निध्य रामनें, आज यानंदनो पोप वाध्यो । आ॥ ५॥ सर्वगाथा ।। ४३७॥ गाथा तथा *लोक ॥ ४१ ॥ इति पंमित श्री रामविजयविरचित श्री शांति जिनवंधेप्राकृतप्न्वंधे सुरुतसंधे पूर्वनवानुवंधे मंगलकलशचरित्र प्रारुतहादश नवनिबंधे नवत्रयवर्णननामा प्रथमः खमः संपूर्णः ॥ १ ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम बीजो. ॥अथ दितीयखंमस्य प्रारंनोऽयं ॥
॥दोहा॥ ॥ अरिहंत सिह नमूं वली, आचारिज उवद्याय ॥ साधु सकल प रमेष्टिपद, नजियें नित सुखदाय ॥१॥ वीजो खंग र हवे, सरस कथा अधिकार ॥ शांतिनाथ नववर्णना, करतां नव निस्तार ॥ ॥ सुर लोकें सुख जोगवे, मनोवांनित वर योग ॥ नाटक व वत्रीशमा, नित नित नवला जोग ॥ ३ ॥ वैमानिक सुख जोगवे, ते चारे पुण्यवंत ॥ चवी कीहां ते अवतरे, ते दाखू विरतंत ॥ ४ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ ॥ देशी चोपानी ॥ जंवधीपें नरत मकार, वैताढ्य नामें पर्वत ज. सार ॥ पहोलपणे जोया पञ्चास, उंचपणे पचवीश विलास॥१॥राजे रजत
, तो गिरि तेह, कपर सोहे जिनवर गेह ॥ पुण्यवंतने वसवा उगम, उ ॥ नरश्रेणें पुर अनिराम ॥ २ ॥ नामें रथनूपुर चक्रवाल, कमें सोहे काक
जमाल ॥ विद्याधर सुखीया सदु कोय, फुःखीयो नामें न वसे कोय ॥ ॥ ३॥ साते सुख जिहां वासो वसे, धर्मी सदु धर्म उनसे ॥ साते सुखनां १०. दाखं नाम, काव्यथकी सुगजो मन मम ।। ४ ॥ काव्यं ॥ नीरोगत्वं नन
वति झणं चाऽप्रवासी तथैव, वासोनित्यं स्वजनसहितोनिर्नयस्थानकेषु ॥ लक्ष्मीः कांता तदनुसुनगा संगतिः श्रेष्ठपुंसां, चिनं गु६ विमलक पया सप्तधा सौख्यमेतत् ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ तिए नगरी विद्याधर धणी, ज्वलनजटी नामें बहुगुणी ॥ विद्यावंत वारू सुविवेक, वायुवेगा तस गृहि पी एक ॥ ५॥ लवणिम रूप गुणें उपती, शोल शृंगारे ते शोनती॥त यथा ॥ श्लोक ॥ श्रादो महानचारुनालतिलकं नेत्रांजनं कुंमलं, ना सामौक्तिकहारचारुकुसुमं ऊंकारवनूपुरम् ॥ अंगे चंदनलेपकंचुकमणिकु शवलीघंटिका, तांबुलं करकंकणं चतुरता शृगारकाः पोडश ॥ २ ॥ पूर्वटाल ॥ ए सोले ऊपर शिरदार, नारीने सजा धाचार ॥ ६ ॥ तलावंती ने माहासती, रु दासी कीधी रति ॥ अमुपन सूचित जुत जल्यो, थर्ककीनि नामें बदु नाम्यो ॥ ७ ॥ चोवन वय सद्ध मन ना वियु, युवराज पद शोनावीयु ॥ तदनंतर एक पुत्री जणी, चंश्लेखा सू
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३४ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.. चित वदुगुणी ॥ ७ ॥ स्वयंप्रना नामें सा दुइ, वृद्धिमती यौवन वय लही। .. अभिनंदन जगनंदन दोय, ननचारी वंदे मुनि सोय ॥ ए ॥ निसुणी धर्मतपी देशना, लाधी समकितनी वासना ॥ पर्वदिने पौषध अनुसरे,त्रण्य । काल जिनपूजा करे ॥ १० ॥ एक दिन जिनपूजा आदरी, नमण तणुं । जल ले। कुमरी ॥ जनकसमी घावी चंग, वेसारी तेहनें उबरंग ॥११॥ जोई रूप वाध्यो मन हर्ष, पुत्री परणावा नत्कर्ष ॥ वं जश् तप पारएं करो, उत्तम कारजने आदरो ॥ १२ ॥ तेड्या मंत्रीश्वर गतशोक, वर जोवो पुत्रीने योग्य ॥ श्राप थापणी मति अनुसरी, उत्तर आपे नृपर्ने फरी ॥ १३ ॥ एक वोल्यो सुकत अनिधान, मंत्रीश्वर बहुवुदिनिधान । राजन् जेहनो वारो आज, तेहने परणावो माहाराज ॥ १४ ॥ रत्नपुरें महोटो नूपाल, अश्वग्रीव त्रिदु खंम रखवाल ॥ प्रतिविम् तेहनें दीजीयें, परणावी लाहो लीजियें ॥ १५॥ अपर कहे उत्तरश्रेणीय, प्रनंकरा नगरी तेणीयें ॥ मेघधनानिध महोटो संत, मेघमालिनी केरो कंत ॥ १६ ॥ विद्युत्प्रन सुत वेटो वली, ज्योतिर्माला ने निर्मली ॥ तस सुतने ए पुत्री योग्य,तस पुत्री आपण सुत जोग्य ॥१॥ अपर कहे स्वयंवरने करो, पुत्री मन माने ते वरो॥सुणी विचार विसा तेह, राजन पहोतो आपण गेह ॥१॥ एकदिन नैमित्तिक आवियो, संनिन्नश्रोत्र नृप वोलावियो ॥ कहो मुज पुत्री वरनी वात, जो जाणो ज्योतिप सादात ॥१॥ हवे कहेशे ते वात र साल, वीजे खंमें पहेली ढाल ॥रामविजय नांखी मन रली, पागल वातज वे अति नली ॥ २० ॥ सर्व गाथा ॥ २४ ॥ गाथा तथा श्लोक ॥ ॥
॥दोहा॥ ॥ कहे नैमित्तिक रायने, वारू वयण विलास ॥ पोतनपुर नृपति नलो, नाम प्रजापति जास ॥ १ ॥ तस अंगज उत्तम सवल, त्रिप्टष्ट अचल वे बंधु ॥ वासुदेव वलन ते, थाशे गुणमणि सिंधु ॥ २॥ अश्वग्रीव प्रत्ये सही, हणशे ते मदमत्त ॥ एह साधुमुखें सुण्यु, ते तुं माने सत्य ॥ ३॥ तुमने अधिपत्ति थापशे, विद्याधर शिरदार ॥ तस पटराणी होयो, स्वयंप्रना वर नार ॥४॥ एवं लग्नवलें लहुँ, साधु तणे वयणेह ॥ देजोशाबासी मुने, जब देखो नयरोह ॥ ५ ॥ नृपति मन संतोपियो, सन्मान्यो देवड़ा। नक्तियें करी वोलावियो, नरपति सबल गुणज्ञ ॥ ६ ॥ हवे दूत मारीचि
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श्रीशांतिनाथनों रास खंम बीजो. ।। प्रत्ये, पाठवीयो तिण वाय ॥ पोतनपुर पहोतो तुरत, जाइ विन जीवियो राय ॥ ७ ॥
॥ ढाल वीजी॥ एं... ॥धाव टकानो कंकणो रे॥ नणदल॥ थरकी रही मोरी बांह ॥ कंकण मोल ॥ लीयो ॥ए देशी ॥ दूत कहे कर जोडीने रे॥ साहिवा ॥ सुण प्रजापति स्वामि॥ गु : वारू वयण सुणो ॥ ज्वलनजटीनो मोकल्यो रे ॥ सा० ॥ हुँ आव्यो गुन र काम ॥ वा ॥१॥ स्वयंप्रना नामें नली रे ॥ सा॥ कुमरी गुगनी खाण में . ॥ वा ॥ तुम तनुज त्रिप्टष्ठने रे ॥ सा ॥ देवा वांडे राण ॥ वा ॥ ॥ २ ॥ सरखे सरवी जोडली रे ॥ सा ॥हशे कोडी कल्याण ॥ वा० ॥
दूत सन्मानी वालीयो रे ॥ सा० ॥ मान्यु ए वचन प्रमाण ॥वा ॥ ३ ॥ण अवसरें प्रतिविभुजी रे ॥ सा० ॥ अश्वग्रीव नरिंद ॥ वा ॥ शोल सहस्त्र नृपालनो रे ॥ सा० ॥ नायक धरणी इंद । वा ॥॥ चढ्यो . यहमेवे याकरो रे ॥ सा ॥ नहिं को मुज समान ।। वा ॥ सदु किंकर मुफ बागलें रे ॥सा॥ ढुं त्रिदु ख सुलतान ॥वाण॥५॥ तनमद धनमद थाकलो रे॥ सा ॥ यौवनमद नन्माद॥ वा ॥ धींगो थइ धरा जोगवे रे ॥साणा वीट्यो नूप गरद ॥वाण॥६॥ मान चढ्युं धंस तेहने रे ॥सा॥ पूवे. एकदिन तेह ॥ वा० ॥ मोत होशे कोथी मुने रे ॥ सा ॥ कहे नेमित्तिक एह ॥ वा० ॥७॥ वलतुं कहे नेमित्तियो रे ॥ सा०॥ मत प्रागो ममदोप ॥ वा० ॥ दणशे तारा दूतने रे ॥ सा० ॥ जे चढियो जर रोप ॥ वा० ॥ ॥ शाल विणासे सिंहलो रे ॥सा० ॥ ताहरी सीम मजार ।। वा० ॥ हण्डो हाये तेहने रे ॥ सा० ॥ ते तुज मारणहार ॥ वा ॥ ए ॥ वात सुपी कोपं चढयो रे ॥ सा ॥ फेडं तेहy वाम ॥ वा० ॥ सामुं कुए नाली शके रे ।। सा० ॥ पाडं तेहनी माम ॥ वा ॥ १० ॥ इए अवसर कानें सुण्या रे ॥ सा० ॥ बलीया बंधव वेह ॥ वा० ॥ रखे प्रागल जाता थकां रे ॥ साप ॥ विहणे मुझने एह ॥ वा० ॥ ११ ॥ कर परीक्षा एहनी रे ॥ सा० ॥ पहेली वांधुं पाज ॥ वा० ॥ वैरी व्याधि ने दिये रे ॥ सा० ॥जगतां तत्काल ।। वा०॥ १२ ॥ सहेजें मलवाने मि रेसा॥ मोकलियो एक दूत वा०॥ चंमवेगानिध धाकरोरेमापोत नपुर तेद पद्धन ।। वा०॥ १३ ॥ नाटक जोवाने मनी रे॥ सा०॥ चाची गज
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३६ . जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कुली नत्रीश ॥ वा ॥ इणवेलामा रानलो रे आवी, दूत नमावे शीश ॥ वा० ॥१॥रायने शंका उपनी रेवाव्यो, प्रतिहरिनो केम दूत ॥वाणा नाटक नंग करयो एवं रेयावी, कोप्या दोय नृपपूत ॥वा॥१५॥ ते सन्मानीचा लियो रे पालो, मद मूंछे वल घालि वाणापू याची दो जगा रे बागे, महोकम कूट्यो जाति ॥ वा०॥१६॥ नाटक नंग अपराधिया रेघोडी, किहां जाइश हवे नाशि ॥ वा० ॥ वात सुणी राय धावियो रे दोडी, मूकाव्यो ए दास ॥ वा ॥ १७ ॥ राय खमावे दूतने रे घहेला, ए दोय वाल स नाव ॥ वा० ॥ घर आणी संतोषियो रे वहेलो, प्रतिहार जय मन नावि ॥ वा ॥ १७ ॥ आव्यो दूत उतावलो रे वनमां, विहितो श्रमरपनाव ॥ वा ॥ समय पागल बावीने रे जनमां, नांखे ते सनाव ।। वा० ॥ १॥ राय प्रजापति सारिखो रे ॥सा॥ नहिं कांहिं तेहनो दोष ॥वा॥ पण तस अंगज जगता रे ॥ सा॥ विष.अंकूरा नास ॥ वा ॥ २० ॥ वात सवे राय सांजली रे चित्तमां, चिंते अंतरगूढ ॥ वा ॥ मौन धरीने ते रह्यो रे कृत्यमां, मतिमूंज्यो दिङ्मूढ ॥वा ॥२१॥ जावीनाव टले नहिं रे नवियां, निसुणो वीजी ढाल ॥वा॥ धन्य मुनि टाट्यो जेणे रे विरुन, महोटो मदजंजाल ॥ वा ॥ २२ ॥ सर्व गाथा ॥ ५३ ॥ श्लोक ॥ २ ॥
॥दोहा॥ ॥ शालदेत्र प्रतिविमुनें, वे बहु निज परिजोग ॥ तास उपश्व नित्य करे, सिंह सवल बनयोग ।।१॥ तस चोकी चोंपे करे, प्रतिवर्षे राजान॥ छारें वहुपरिवारयुत, नृप आदेश सुजाण ॥ २ ॥ तिण वर्षे चारक विना, वाजिग्रीव नृपत्त ।। दुकम प्रजापतिने करे, मूकी दूत तुरत्त ॥३॥चित्त मां चिंता कपनी, दूतथकी थयुं काम ॥ कयुं कुकर्म अविचारिने, उदयें
आव्युं आम ॥॥ यतः॥ सहसा विदधीत न किया, मविवेकः परमापदां पदम् ॥ तृपुते हि विमृश्यकारिणं, गुगलुब्धाः स्वयमेव संपदः ॥ १ ॥ काज विचारीने करे, रहे तेउनी लाज ॥ अति उत्सुक कतावला, ते विसाडे काज ॥ ५ ॥ यमुक्तं ।। सुगुणमएगुणं वा कुर्वता कार्यजातं, परिणतिरवधार्या यत्नतः पंमितेन ॥ अतिरनसरूतानां कर्मणामाविपत्ते, नवति हृदयदाही शव्यतुल्यो विपाकः ॥ २॥
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श्री शांतिनाथनो रास खम बीजो. ३७
. ॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ किसके चेले किसके पूत ॥ ए देशी॥श्राव्या सनामां बंधव जोडी, प्र एमे पितरना पद कर जोडी ॥ वलवंत वे ॥ केम दीसो चिंतातुर आज, नांखो ते अमनें माहाराज ॥ दिल जे हो ॥ १ ॥ कहे जनक सुणो पुत्र सुजाण, कुलदीपक कुल अंबर जाण ॥ ३० ॥ विण वारे तेडं ययुं आज, तेणें जावु चोकीने काज ॥ दि० ॥ २ ॥ राज विराजो निज आवास, हु कम करो अमने नन्नास ॥ व ॥ ए वनचारी पगु अवतार, ए उपर गुं थया असवार ॥ दि० ॥३॥ चाल्या वलीया बंधव दोश, जगमां दैव करे
ते होय ॥२०॥ नाग्य वली तेजें तेजाल, चाले जिम मयगलनी - चाल ॥दि ॥ ४ ॥ शालदेवना कहे रखवाल, अहो तुम न मल्या - कोई नूपाल ॥ व ॥ गुं तुम निज जीवित नहिं काज, जे एकला आ
व्या बो आज ॥ दि० ॥ ५ ॥ नहिं साह्य ने नहिं परिवार, सिंह संघातें युद्ध विचार ॥ ३० ॥रे रे शोर करे शो गमार, करथी देखाडो वनचार ॥ दि० ॥ ६ ॥ देखाडयु पर्वतनुं हार, मांहे सूतो सिंह दुशियार ॥ ७ ॥ रथ वेसी आव्या तेणि वार, कानें सुण्यो रथनो चित्कार ।। दिप ॥ ७ ॥ ऊग्यो यालस मोडी अंग, पंचानन करवाने जंग ॥ व ॥ मुख विकाश्यु उपाडी फाल, आव्यो गुफा बाहिर नजमाल ॥ दि० ॥
॥ देवी ते पदचारी सिंह, रथ मूक्यो अलगो नरसिंह ॥ व ॥ देखी नि - रायुध ते मृगनाय, खगरत्न मूके नूनाय ॥ दि ॥ ए | केसरी चिंते अचरिज एक, मुफ पासें आवे ए एक ॥ ॥ वीजुं पदचारी मुफ जेम, जीती जाशे कहो ए केम ॥ दि० ॥ १७ ॥ त्रीजुं मूके आयु६ दूर, ए हना मनमां श्रमरप नूर ॥ व ॥ मुफ अवगएना करे निःशंक, कालु म रोडी एहनो वंक । दि० ॥ ११ ॥ उतनी नन हरि दीधी दोट, नावी हरि शिर करवा चोट ॥ब० ॥ कलें कर देपी मुख बन पोत, हाथे साही हरिना होठ ॥ दि० ॥ १२ ॥ नारव्यो विदारी जोतां तंत, जीरण शाटक परें बलवंत ॥ ॥ रोपें कजेवर थरके तास, सारधि कहे गुण सिंद दतातु
दि॥१३॥ मत माग्यो जागो सामान्य, निंह नुं नरनिंद यो युवान ॥१०॥ नि सिंह हायों नहिं दोप, मत त्राणे मनमा रोष ॥ दि० ॥ १४ ॥ तुणी चात न धरयां युद्ध प्राण. मरण लही नरकें गयो दीन ॥॥
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३७ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. चर्म से हरिनुं गुणवास, मोकलावे प्रतिहरिनी पास ॥ दि० ॥ १५ ॥ ! कहेवाडे माने मुफ पाड, सिंहतणां में पूखां लाड ॥ व ॥ जम्य वेठो हवे कूर ने नात, मुफ सान्निध्य म धरिश प्रतांत ॥ दि० ॥ १६ ॥ नि सुणी वैरीनां वयण कठोर, मनमांहे उहवाणो जोर ॥ व ॥ अंतर य नल प्रज्वलियो पूर, चिंते हवा ते वेदु शूर ॥ दि० ॥ १७ ॥ पुण्यदशा । जस चढती होय, झुं करे वैरी साहामुं जोय ॥ व ॥ श्राव्यो पोतनपु रनी हजूर, हर्षे वाज्यां तव जय नूर ॥ दि० ॥ १७ ॥ हवे नवि सुपजो - अधिकार, बागल वधशे वहु विस्तार ॥व ॥वीजे खमें त्रीजी ढाल, विरुन क्रोध वडो चांमाल ॥ दि० ॥१ए । सर्वगाथा ॥ ७७ ॥ श्लोक ॥ ४॥
॥दोहा॥ ॥ वाजिग्रीव इण अवसरें, स्वयंप्रना सुकुमार ॥ रमणी निरुपम सां. ! नली, वाध्यो विषयजंजाल ॥ १ ॥ मानिनी ए मोहनलता, मनमानी सुखदाय ॥ ज्वलननगी कहे तुज सुता, मुफ सीताव परणाय ॥ २ ॥ सुखिणी थाशे तुऊ सुता, वली पामिश बदु मान ॥ रस रहेशे आपण अधिक, ए वाते म करिश कान ॥३॥ यत्किंचित् उत्तर कही, वाल्यो चर। राजन ॥ पोतन पुर त्रिष्टष्ठने, परणावी प्रबन्न ॥४॥ वात नली अथवा धुरी, .. पटकणे दुई जेह ॥ पसरे पणिहारीमुखें, ढांकी न रहे तेह ॥ ५ ॥ यतः ॥ ' खंझण पीसण जलवहण, वाहर नूमि गयांद ॥ देवजुवण पप्पड वगण, रसगोती महिलांह ॥ १ ॥ पण वधशे ए वातथी, पागल बदु संताप ॥ घश्वग्रीव मागी हती,पण परणावी नहिं वाप ॥६॥सेवक मुख प्रतिहार सुणी, परणावी सा वाल॥त्रिप्टष्ठनपी सामीजइ,कतीअंतर जाल ॥७॥विषयथकी वाध्यो घणो, नारीतणे निमित्त । कोप चढयो जाणे नहिं,कोण शत्रु कुण मित्र॥ ७ ॥ जगमां नारी सम नहिं, अवर को जंजाल ॥ विपय विलुहां मानवी, पडियां मोहने जाल ए| समकाव्यो समजे नहिं, मंत्रीश्वर वय - रोह ॥ वली अज्ञाने आवस्यो, नवि निरखे नयणेह ॥ १० ॥ यमुक्तं ॥ एकं हि चकुरमलं सहजोविवेक, स्तभिरेव सह संवसतिर्वितीयम् ॥ एतद्द्यं । नुवि न यस्य स तत्त्वतोऽध, स्तस्यापमार्गचलने खलु कोऽपराधः ॥ २॥ यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शिदा तस्य करोति किम् ॥ लोचनान्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ॥३॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम बीजो... ३ए
॥ ढाल चोथी । ॥ देशी कडखानी ॥ कोप चढे क्रूरलोचन कहे शूरमां, सचिव धस्सि , 'उहां जा पहेला ॥ दोय ते उष्टनें ज्वलन त्रीजा जणी, वांधी मुसके
इहां ला वहेला ॥ १ ॥ जोयजो विपयथी विपम गति नीपजे, विपय नडिया बढे एम घेटा ॥ विपयथी सुरवरा नरवरा खेचरा, नारि यागें रह्या - जेम चेटा ॥ जो० ॥ २ ॥ दूत थाव्यो वही पोतनपुर सही, मद चढयो बोल बोले अटारो। मुख वन घालतो शत्रु दल पाडतो, वांकडो वांधि के. कटारो ॥ जो० ॥ ३ ॥ रे सुतारत्न मूकी निजस्वामीने, ज्वलन किम रंकने हाये दीg ॥ रत्ननुं गण प्रचुरेव पुहवीतलें, नीचर्नु वाक्य निसुण्यं न सीधू ॥जो ॥ ४॥यतः॥मणिर्मेदिनी चंदनं दिव्यति, वरं वामनेत्रांगजो
बाजिराजः ॥ विना नूनुजं कोहि नोक्तुं समर्थो, गृहे युज्यते नैव चान्य ' स्य पुंसः॥४॥ ज्वलन कहे दूत सुण एह साधु कहुँ, स्वामी जागी सुता .. एह दत्ता ॥ बोल तुं पाधरे निजधरा ए नहिं, कां सहे अन्यथा चरणसत्ता .. जो ॥ ५॥ कुमर कहे दूत वाचाल दीसे नलो, जा कहूँ जीवतो जीव लेई॥ .. पारकी नारी भाशा करे ताहरो, स्वामि मरशे अखूटेज एही ॥ जो॥६॥
जाणुं मरवा तपी होंश दीसे घणी, जे अकाजें न लाजे न चूके ॥ धावियो फोटणकाल तुम स्वामीनो, तो सही एहवी बुद्धि सूफे ॥ जो० ॥ ७॥ दूत • घाटो थयो तुरत पाठो गयो, स्वामी धागें सहू वात गाई । वात मुखि ऊतीयो सवल शिर चाटको, तुरत गेडी निशाणे दिवाई ॥जो० ॥ ७ ॥ हल हल था हथियार यहि सावदा, सबल विद्याधरो करो सजाई॥ तुरत पहोंच्यो जश्तेह पोतनपुरें, देखतां खेद नारख्यो उमा। जो॥ ए॥श्रावीचा तरवरा सेन्या परिवरया, नयर पोतनपुरे तेह वेला ॥ सिंहाजित सामुही थाची अडियो हती, दोट दीधी करया नेल नेला ॥ जो० ॥ १० ॥ देवी जावाय नाठा सद्ध बापडा, ऊडि श्राकाश पाता सिधाव्या ॥ कुमर याव्या नगरजीत फने करी, सधव मार्तगमोती वधाव्या ॥ जो० ॥ ११॥ त्रिप्टष्ट र प्रचल बेदु खेचरें परवन्या, प्राविया वतुरगेहें जमाई । कंत मयंप्रना कुमरीनो श्राविची, घर घरे बांटे सदुए बधाई ॥ जो० ॥ १२ ॥ सामुदो यावियो शत्रु निसुणी तदा, श्राप हयग्रीव कीधी चढ़ाई लाख बहनाली गज ड्यबरा हिंसत्ता, कोहि नव अश्वगं यायो धाई । जो०
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
१३ ॥ धडहडे धरणि नीशान तव गडगडे, नूर रणतूर ते सवल वाजे ॥ शब्द कालह तथा प्रतिहि वीहामणा, गुहिर वैताढ्यना कुहर गाजे ॥ जो० ॥ १४ ॥ सैन्य यणीयें मव्यां लोह तब उबल्यां, जाट नट कोटि जट दपट दीनी ॥ लटपटी याविया चटपटीमांहे ते, रुधिरकर्दम मही घोर कीनी ॥ जो० ॥ १५ ॥ युद्ध विद्याधरा साथ वाजे सहिं, होंश पूरी वढे सैन्य शूरा ॥ स्वामी गयवर चढ्या शिर वकारे जला, माहरा वीर वेहु परक पूरा || जो० ॥ १६ ॥ वहुत विद्यावलें रूप कीधां घणां, इष्ट वैतान सर्पादि जाए || फोज पाठी हवी त्रिष्टष्ट अचल तणी, यावि स्वामीलगें ते जाली ॥ जो० ॥ १७ ॥ जागीयुं सैन्य निज देखि कोपें चढ्यो, था प रथ वेसीने धींग धायो ॥ पाउल कोटि नट कबले यावता, मानुं महेराल ए पूर याव्यो || जो ॥ १८ ॥ पग नयी जोर धान्युं सर्वे कायरा, हाक वीरो तणी ताम वागी ॥ गया गया खलहल्यां, देव दानव मल्या, खाज सवली हलां प्राय लागी ॥ जो० ॥ १९॥ रथ चढी यावी साहामो प्रयो प्रतिहरि, दोय रिपु सामुहा यावि मलिया ॥ दल वेडु पासें देखे तमासो तिहां, धन्य राणीजाया एह वलीया ॥ जो० ॥ २० ॥ दिव्य हथियार धारया तदा मेघ जिम, प्रतिहरि घनथकी ताम वूठी ॥ राय परजापति सुत नवल लीलथी, शस्त्र बेदी पड़ी ते अपूवी || जो० ॥ २१ ॥ चक्र समसुं तदा राय हयग्रीवजी, समर रे समर जे इष्ट ताहरे || जय ' दिखाडे किश्यो लोहना खंमनो, चक्र मम मूक वलतुं वकारे ॥ जो० ॥ २२ ॥ मूकियुं चक्र तेणें मान मनमां घरी कोपथी हाथ उपरें नवाडी | यावि त्रिष्टष्ट नी पास ते पुण्यथी, तिहां रचुं तुंवयी व ताडी ॥ जो० ॥ २३ ॥ चक्र ले करें कहे हयग्रीवनें, मान्य मुऊ याप जा तुऊ मूक्यो | ते कहे मरण नतु बेरी नमवाथकी, नवि नमुं प्रतिहरि एम कूको । जो० ॥२४॥ मूकीयुं चक्र शिर बेदी याव्युं करें, प्रतिहरि नरकनी वाट लीधी ॥ प्रथम हरि एम उदघोषणा सुर करे, त्रिष्टष्ट शिर कुसुमनी वृष्टि कीधी ॥ जो० ॥ २५ ॥ साधियों पत्रिहुं जरत भूमी तथा सर्व नर असुरनां वृंद सायें ॥ वाम तुज व्यय कोटि शिल नझरी, पट्ट निपेके कीनो सनायें | जो० ॥ २६ ॥ राज्य धरा नौगवे पुण्य बलीया थकी, ढाल चोथी कही खंम वीजे ॥ राग च्याशावरी जाति कहखे सही, राम कहे पुष्यथी को न सीके || लो० ॥ २७॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंग वीजो,
॥दोहा॥ ॥ ज्वलननणी वेताढयर्नु, विद्याधरस्वामित्त ॥आपे अति कलट धरी, त्रिदु खमें अधिपत्त ।। १ ।। अर्ककीर्त्तिने आदरें, ज्योतिर्माला नाम ॥ विद्युत्प्रन नगिनी नणी, परणावी तिण नाम ॥ २ ॥ अति थाम्बरें था विया, निज नयरी नरसिंह ॥ वेदु बांधव सुख जोगवे, पुण्यें अकल थवीह ॥ ३ ॥ यजुक्तं ॥ तावञ्चश्वलं ततोग्रहवलं तारावलं नूबलं, तावद्योगनि योगमंत्रमहिमा तावत्कृतं पौरुपम्॥तावसिध्यति वांहितार्थमखिलंतावानः सजानो, यावत्पुण्यमिदं नृणां विजयते पुण्यदये दीयते ॥ १॥ शोल सहसमां मूलगी, स्वयंप्रना वर नारि ॥ सुख विलसे संसारनां, प्रियछं रति अनुकार ॥ ४ ॥ हवे पहेला सुरलोकथी, श्रीपेणादिक चार ॥ जिहां थावीने अवतरे, ते दामु अधिकार ॥ ५ ॥
॥ ढाल पांचमी ॥ - ॥ नदी यमुनानु रे तट रतीयामणुं ॥ए देशी ॥ चवि सुर लोकथकी श्रीपेणजीरे, नव चोथे अवतार ।।अर्ककीर्ति विद्याधर मंदिरें रे, ज्योतिर्माला रे नारी ॥ १ ॥ सांजलजो जव शांतिजिणंदनो रे ॥ एयांकणी ॥ नवि राखी मन मम ॥ गुण गातां सुणतां गिरुया तणा रे,सीके वांठित काम ॥सां० ॥ ॥ दीनो तेजें अमित रवि रातमां रे, सुपनें माहासुखकार ॥ नव मसवाड़े सुत जनम्यो सही रे, प्राची जेम दिनकार ॥ सां० ॥ ३ ॥ तेजें फलामल तनु देखी करी रे, हरव्यां दंपती दोय ॥ नाम तवे साजन संतोपिने रे, अमिततेजा गुण जोय ।। सांग ॥ ४ ॥ सुत दुलरावे माडी हर्पगुं रे, धरती अधिक जगीश ॥ चिरं जीवो मनमोहन माहरा रे, कोडा कोडि वरीस ॥ सां० ॥ ५ ॥ ज्वलनजटी इण अवसरें चादरे रे, अनिनंदन मुनिपास ॥ देशन सुणी व्रत गुणरयणे जयं रे, मोडी निविड नवपाश ॥सांग ॥ ६ ॥ बलीया यश् मुनिताथें नीसखा रे, हुं बलि हारी रे तास ॥ लेखवीयो इंजाल समोवडे रे, जेणे नव पुजनवास ॥ सां० ॥ ५ ॥ सत्यनामा तदनंतर अपनी रे, ज्योतिमालानी कृरख । तारकपुत रयणी सुहणुं सही रे, जागी सा गतव ॥ सां० ॥ ॥ शुन पेला राणी रयणीसमे रे, प्रसवी सुता सुकुमार ।। नाम सुतारा स्थाप्यु तेह रे, मोहनवेजि रसाल ॥ सां० ॥ ॥ तरुणपाएं पामी सा कुंवरी
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जैनकथा रत्नकोष जोग आठमो.. रे, यौवन रूप सुरंग॥मात पिताने वाहाली जीवथी रे, रमे जस अंगें थ, . नंग ॥ सां० ॥ १० ॥ स्वयंप्रनानी कुखें उपन्यो रे,अनिनंदितानो रे जाव ॥ . दीगो श्रीअनिषेक ते सुपनमां रे, वाध्यो हर्ष अतीवः ॥ सां० ॥ ११ ॥ जन्म्यो हरि उत्सव हर्षे करे रे, नाम श्रीविजयकुमार ॥ विजयन नामें वीजो दुन रे, रूपें देवकुमार ॥ सांग ॥ १२ ॥ नारायण मंदिर सिंहनंदिता रे, ज्योतिःप्रना अनिधान । स्वयंप्रनानी कूरखें उपनी रे, पुत्री रूपनिधान ॥ सां० ॥ १३ ॥ अनुक्रमें यौवन वय आवी नली रे, ज्योतिःप्रना रतिरूप ॥ स्वयंवर मांमयो तेहने कारणे रे, तेडाव्या बदु नूप ॥ सांग ॥ १४ ॥ मंझप रचीया अति महोटे मनें रे, अति उंचा रे । अाकाश ॥ मंझप स्थंन रची मणिपूतली रे, करती नाटक खास ॥ सांग ॥ १५॥ अर्ककीर्ति ए अवसर मोकले रे, सचिव नारायण पास ॥ ते कहे स्वामी सुण मुज स्वामीनी रे, एक सुंदर अरदास ॥ सां० ॥ १६ ॥ नामें सुतारा मुज पुत्री नली रे, आवी यौवन वेप ॥ ते इहां आवे स्वयंवर कारणे रे, जो होवे स्वामी आदेश ॥ सां० ॥ १७ ॥ नारा या कहे शहां श्रावो सुखें रे, नहिं अंतर अम कोय ॥ वाहाली वेला आवे वालहो रे, तो मन हर्पित होय ॥ सां ॥ १७ ॥ सचिवें
आवी वात सर्वे कही रे, अर्ककीर्ति उजमाल ॥ साथै सुतारा ले संचरे रे, सुत साथें तत्काल ॥ सां० ॥ १ए ॥ आव्यो पोतनपुर जतावलो रे, हरि दी● वहु मान ॥ मंगलशब्द बंदीजन उच्चरे रे, जाट करे रे कल्याण ॥ सांग ॥ २० ॥ मंझप वेठा बदु राजेश्वरा रे, विमु अने वलदेव ॥ मं मप आवी वे कुमरी नली रे, जिहां वेठा नरदेव ॥ ॥ २१ ॥ ज्योति प्रनायें पूरवनेहथी रे, अमिततेजाने रे कंठ ॥ वरमाला स्थापी वरियो नलो रे, आणी मन उत्कंठ ॥ सां० ॥ १२॥ श्री विजयकुमर तणे कं तवे रे, कुमरी सुतारा रे माल ॥ उजय संबंध थयो एम जाणीने रे, हरख्यो चित्तमां नूपाल ॥ सां० ॥ २३ ॥ सन्मानी नृप पाठा वालिया रे, निज निज कुमरी विवाह ॥ वेदु राजवीये कीधो रंग' रे, खरची व्य उत्साह ।। सां० ॥ ४ ॥ कुमरी मूकी वधूने लेश्ने रे, अर्ककीर्ति निज । धाम ॥धाव्यो ढाल यईए पांचमी रे, सुख विलसे गुज वाम ॥ सां०॥२५॥
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श्रीशांतिनाथनो रास खंम बीजो
॥दोहा॥ ॥ सुख जोगवतां अनुक्रमें, त्रिष्टष्ठ हरि ते पीत ॥ काल करीने ऊपन्यो, नर कावास अप ॥ १ ॥ सुख जोगवतां बहु परें, अर्ककीर्ति नूपाल ॥ व्रत लीधुं देश राज्य सुत, मूकी मोहजंजाल ॥ २ ॥ अचल बंधु नेहें घणो, रुदन करे तजि लाज॥नाईअवोट्यांथकी, एम केम सरशे काज ॥३॥ हसी वोलो मुफ वालहा, मूको रीप अलग्ग ॥ निपट निहेजा थायतां,
न रहे जेह एकंग ॥ ४ ॥ संस्कार करवा न दे, न मरे मारो वीर ॥ जे ____ कोई मून कहे, तस हणवा धाय धीर ॥ ५ ॥ यमुक्तं ॥ तीर्थकरणां सा , ब्राज्यं, सपत्नीवैरमेव च ॥ वासुदेववलस्नेहः, सर्वेन्योप्यतिरिच्यते ॥ १ ॥
बंधव ढुकोण पागलें, कहीश मननी वात ॥ समजाव्यो समफे नहीं, नेहें रंगी धात ॥६॥ नेहो कहवि न किज, अह किजा रयण कंवल सरितो॥ अहिएव धोयमाणो, सहावरंग न मे ॥ २ ॥ जाण अजाण थई रह्यो, मोहें घेयुं मन ॥ सहि जागुं वंधव मूळ, ज्यारे विरतुं तन्न ॥ ७ ॥ प्रेतकार्य करि बंधुनु, मोहवशे वलदेव ॥ उन मन निजराज्यथी, शीपु शलनी सेव ॥ ॥ श्रीश्रेयांस जिनवर तणा, स्वर्णकलश अनिधान ।। थाचारिन मुनि परवस्या, समवस्या उद्यान ॥ ए ॥ अचल चल्यो वंदण जणी, साथै लइ परिवार ।। मुनि वंदी देशन सुणे, जेहथीनव निस्तार ॥१०॥
॥ ढाल वही ॥ ॥ राग नट ॥ मोह संगतें बिगरी हेमति जनकी, स्वर्ग मृत्यु पाताल त्रिदं जगतमें, सवल उहाइ फरत उनकी। मो० ॥ एघांकणी ॥ दसएमोह चरण दोय ने, स्थिति नारी हे सबल जिनकी ॥ रोकी सनाव विनावमें धेरी, चेतन चाल धनादिनकी । मो० ॥ १ ॥ दोरत दोरत फिरत पवन ज्यु, हाथ न श्रावी दशा मनकी । हिनमें राग विराग तजत हे, यातप बांही न्युं मास सावनकी । मो० ॥२॥ धन रमणीके विपरसें रातो, जेमें मधुमारवी बनकी ॥ मदमातो नींतर ज्यों सूतो, खबर परे नहि रघतनकी 1 मो०॥ ३ ॥ तीन तार गले राग एनाची, तांचेकी लोटी गहि लोननकी ।। उंच नीच घर यंगण एण, व्हील मगाइये ज्युं बंननकी । मो० ॥ ४ ॥ धन्य जिणे मोह महामल जीत्यो, पूरित दशा नाठी गरणकी ॥ सो शुदा तम श्रातम पदवी, चदियो श्रेणि लही गुणकी । मो० ॥ ५ ॥ मोद
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. न्माद जीपे सो शूरो, एह वाणी गणधर जिनकीं ॥ कहे मुनि थचल थच ल गुण ध्यावो, तजि चंचलता ए निज मनकी॥ मो० ॥ ६ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मोह समो वैरी नहीं, काम समुं नहिं सुःख ॥ अनल नहिं को कोध सम, ज्ञान समुं नहिं सुख ॥ १ ॥ कहो प्रनु ते मुफ बंध, कुण गति लाधी एण ॥ सत्तम पुढवीयें उपन्यो, गुरु कहे कर्म वशेण ॥२॥ विन वीर तुजसी दुश्, गति एहवी गंजीर ॥ अचल विलाप करे घणा, हियडु न धरे धीर ॥ ३ ॥ कहे गुरु देवाणुप्पिया, न करो खेद लगार ॥ चरम जिरोसर वीर तुज, होशे नरत मझार ॥ ४ ॥ निसुणी आनंद व पन्यो, भावी नयर मकार ॥ राज्य देश श्रीवियजने, लीधो संयमनार ॥ ॥ ५ ॥ सूधो संयम आदरे, पाले निरतिचार ॥ मोह तजे संवर नजे, चाले गु-६ धाचार ॥ ६ ॥ हवे श्रीविजय नरेश्वरु, पोतनपुरनुं राज ॥ पाले अतिरूडी परें, करे धर्मनां काज ॥ ७॥ गोयमनें जिनवीर पर्यपे ॥ ए देशी ॥ एक दिवसें श्रीविजय नरेसर, वेतो पर्पदा पूरी रे ॥ राजकुली बत्रीशे धागल, ऊना सबल सनूरी रे ॥ १ ॥ सुण राजेश्वर अरज धमा री॥ ए आंकणी ॥ आव्यो एक परदेशी रे । नैमित्तिक तुम मलवा हेते, कहे प्रतिहार उद्देशी रे॥सु॥२॥ दुकम कखो भाव्यो दरवारें, करमा पुस्तक लेई रे॥जय नृपति नरसिंह सवल दल, वेटो आशिप देई रे। सु० ॥ ३ ॥ कहे नूपति मुफ आगल जांखे, वात गुनागुन जाणे रे ॥ कहे नैमित्तिक सवि जापुं पण, न कहाये इण टाणे रे ॥ सु ॥ ४ ॥ नृप आग्रहथी ते एम नांखे, आजथी सातमे दिवसें रे ॥ पोतनपुरस्वामीने मस्तकें, सहसा विद्युत् पडशे रे ॥ सु० ॥ ५ ॥ वजाहत एम सकल सना कहे, रे नैमि त्तिक हीणा रे ॥ नृपशिर विद्युत् तव तुऊ शिर गुं, पडसे कर्मविहीणा रे ॥ सु० ॥ ६ ॥ शो मुज दोप ए ज्ञाने नांखी, वात निर्वत राजननी रे ॥ जो कहो दो तो मुफ़ शिर याशे, वृष्टि तदा सोवननी रे ॥ सु० ॥ ॥ रा जन बोले रे नैमित्तिक, एह सवाल किहां शीख्यो रे ॥ ते कहे वलदेव संघातें, श्रीगुरु मुमने दाख्यो रे ॥ सु० ॥ ॥ नण्यो बागम थाम्नाय । नली परें, वात सकल तेणें जाणुं रे ॥ थयो पडिवाई याव्यो हां किण, खसीयुं मुफ गुगताएं रे ॥ सु० ॥ ए॥ पद्मिनी खंमें जनकस्वसानी पुत्री\ विवाहो रे ॥ ले दीक्षा मेट्यो तदनंतर, याव्यो इहां उल्लाहो रे
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श्री शांतिनाथनो रास खंम बीजो. ४५ ॥ सु० ॥ १० ॥ यौवन रूप रसीली देखी, मुफ मन मन्मथ चलीयो रे ॥ चारित्र चूकी धन कारण हुँ, याव्यो कर्म ए वलियो रे ।। सु॥ ११ ॥ सद्ध मनमानी वात ए साची, हा हा हवे अ॒ थाशे रे ॥ चुहिये व लीया मंत्री बहु मलिया, पाय उपाय विमासे रे ॥ सु० ॥ १५ ॥ एक कहे नृपर्ने राखीजें, यानारूढ ए जलमां रे ॥ यानपात्र जांगे तो शी गति, तेणें राखीजें स्थलमां रे ॥ १० ॥ १३ ॥ बीजो कहे वै ताढ्य गुफामां, पति राखीजें यत्ने रे ॥ त्रीजो कहे साचुं पण ढुं तुम, नवि थनुमोदूं मतने रे ॥ सु०॥ १४ ॥ जे कीजें गुन हेते कारज, ते होये कष्टन हेतु रे॥हिजसुतनो संवंध कर्बु श्हां, सुपजो तुमें एक चित्तें रे॥ सुप ॥ १५ ॥ हिजसंबंध कहेशे मंत्री, न टले जावी जाव रे ॥ बीजे खंमें ढाल ए बजी, राम कहे थनिराम रे ॥ सु०॥ १६ ॥ सर्व गाथा ॥१७॥
॥ दोहा ।। ॥ जोरावर नवितव्यता, जोर न चाले कोय ॥ बलियो हां करो को , नहीं, हृदय विमासी जोय ॥ १ ॥
॥ ढाल सातमी ॥ ॥ कोइ नलो राह बतावे रे ॥ ए देशी ॥ विजयपुरें नयरें एक नि बसे, वाडव इंश्तोम नामें हो ॥ ज्वलनशिखा तस घरणी तरुणी, दं पति दोय रति कामें हो ॥ १ ॥ कोई नियति तपी गति न्यारी हो, नि यति करे ते कोई न करे, सुणो जाइ हृदय विचारी हो । ए ग्रांकणी ॥ शिरव नामें नंदन तेदनो, करयो महोटो उठेरी हो ॥ जनक गयो परलो तेहवे, कर्मनी रीति भनेरी हो ॥ को ॥ २ ॥ तेणें नया एक राक्षस धाव्यो, करे मानवसंहार हो ॥ नित्यप्रत्ये एक माणस सं फत्पी, कखो तेहनो उपचार हो ॥ को० ॥ ३॥ राजदुकम तिण राह में मान्यो, सबले बात सुगावी हो ॥ नाम लखी बहु गोला नरिचा, नि त्यप्रत्यें एक चढावी हो ॥ को० ॥ ४ ॥ एक दिन ने हिजतने चारे, जननी रोवा लागी हो॥ एक श्राधार ए देव न सांस्यो, कोण करम गति जागी हो। कोण ॥ ५ ॥ श्रासनगृहस्थित नृतने करुणा, याची कहे निर्धारी हो । रेशरण न्यबसा मत रोवे, लेशून्य कगारी हो । को० ॥ ६ ॥ हिजतुत राजनेवरु जइ टोयो, राइस धागल लेई हो ॥
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. अपहरियो सांकेतिक अमरें, गयो निजमातनें देई हो ॥ को॥७॥ रादतनयथी गिरिनी गुफामां, हार शिला देश आडी हो ॥ मूके सुतनें तेह विलुछी, यत्न करीने माडी हो ॥ को० ॥ ॥ ते हिजसुतनें रातें ग लियो, जमते अजगरें जारी हो ॥ निसुणो नाई कर्म कमाई, झुं करे नर ने नारी हो ॥ को० ॥ ए॥यक्तं ॥ उदयति ॥ १ ॥ प्राप्तव्योनियतिवला श्रयेण योऽर्थः ॥२॥ एउपनय दाख्यो मंत्रीश्वर,त्रीजे नियति अनुसारी हो ॥ रामविजय कहे सुणो जवि प्राणी, जु तमें युक्ति विचारी दो ॥ को० ॥ १० ॥ दोहा ॥ चोथो चतुर कहे वत्ती, जे वोढुं ते साच ॥ पण पोतनपुरईश्वरें, ए नैमित्तिक वाच ॥ १ ॥ कीजे पोतनपति अवर, तस शिर विद्युत्पात ॥ पडशे स्वामी कगरे, मानी संघले वात ॥ ॥ नैमित्तिक कहे ए निपुण, मंत्रीश्वर शिरताज ॥ निजपति राखेवा सबल, वात वतावी आज ॥ ३ ॥ हुँ पण ए कहेवा नणी, धाव्यो बु शण ठाम ॥ सात दिवस लगें नियमयुत, स्वामी रहो निज धाम ॥ ४ ॥ रहो रहो रे जादव रीति नथी ॥ ए देशी ॥ कहे राजेश्वर सुणो मंत्री श्वर, एह वात केम कीजे रे ॥ परप्राणें निज प्राण उगारे, तेहने यधम कहीजे रे ॥क ॥१॥ मर नामें कुःख पामे मानव, किम जाणी तस हणीये रे ॥ तेहथी आप हणायो वारू, परनवें नय नवि गणी रे ॥ क० ॥ २ ॥ यमुक्तं वसुदेवहिं॥ हत्तूण परप्पाणे, अप्पाणं जो करे ३ सप्पाणं ॥धप्पाणं दिवसाणं, कएण पासेश्अप्पाणं ॥ १ ॥ पूर्वढाल॥ सकलधर्ममा प्रथम अहिंसा, नांखी जिनवरयंथे रे ॥ उहवे आप नप रने मुहवे, ते मुनि सूधे पंथें रे ॥ कण ॥ ३ ॥ तथाचोक्तं ॥ हिंसा त्या ज्या नरकपदवी सत्यमानापणीयं, हेयं स्तेयं सुरतविरतिः सर्वसंगानि वृत्तिः॥ जैनोधर्मोयदि न रुचितः, पापपंकायनेच्यस्तेन्यः सर्वेर्फटिति नित तिः सर्वदा सर्वथैव ॥ २ ॥ पूर्वढाल ॥ शुं ए प्राण सदा स्थिर रहेगे, या खर एक दिन मर रे ॥ पर हणीये निज प्राणने माटें, श्या उपर एक र, रे ॥ कर ॥॥ जीव एक उगारी तिण विषु, पडह धमारी वजाव्यो रे ॥ हिंसक जे जगमां अवतरिया, तेणें निजवंश सजाव्यो रे ॥०॥ ५।। नेह न दृष्टि विना सुख धन विष्णु. नारी विषु गृह जेम रे ॥ विप्र वेद विद्या विष उपशम, विषु विद्या वली नेम ॥रे ॥ क० ॥ ६ ॥ शूर शस्त्र
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श्री शांतिनाथनो रास खंग वीजो. ४७ विषु नारी पति विण, जेम जग शोन न पावे रे ॥ तेम मंत्रीश्वर धर्म तृपा विण, कोई काम नं यावे रे॥ कण ॥ ७॥ पुनरपि मंत्री मलि मन चिंते, ए हमां नहिं कांश काचुं रे ॥ तेहमांहे एक वोल्यो चातुर,कडं तुमने दु साधु रे॥ का ।। ७ ॥ यदपडिमा अनिपेक करीजें, काष्ठमयी एक याणी रे ॥ देवत अनुना नवि पडशे, तिहां विद्युत् एम जाणी रे ॥क ॥ ए ॥ जो पडशे तो नविन वनावी, यापीगुं तिए तामें रे ॥ सुरप समान नृपनें राखेवा, ते तिम की, काम रे ॥क ॥ १० ॥ नृप पौषध धरी श्रीजिनमंदिर, वेतो ध्याने तीणो रे ॥ पंच परमेश्वर चिंतन करतां, नहिं मन खेद अदीपो रे ॥क ॥ ११ ॥ सिंहासन यह पडिमा स्थापी, सेव करे सहु खांतें रे ।। सातमे दिवसें गगनधन उमट्यो, दुतिम चपलापातो रे ॥ क० ॥ १२ ॥ विपाठी यक्पडिमा नृप कुशलो, रह्यो सदुजन मन दरख्यो रे ॥ जयजयकार थयो ते पुरमां, गणक खरो एम परख्यो रे ॥ कण ॥ १३ ॥ पौपध पारी नृप घर याव्यो, नैमित्तिक सत्कारयो रे ॥ वृष्टि था तस शिर सोवननी, वस्त्रानरणे नाखो रे ॥ क० ॥ १४॥ विधन दल्युं नृपर्नु थति सबटुं, सातमी ढाल ए गाई रे ।। वीजे खंमें रामविजय कहे, अवि चल पुण्य सवाई रे ॥क ॥ १५ ॥ सर्व गाथा ॥ २० ॥
॥दोहा॥ ॥निजपुरमा उत्सव हुवा, घर घर मंगलमाल ॥ पूजारचावे जिनघरे, सत्तर नेदि सुविचार ॥ १ ॥ दिन दोहेला नघरे, धन खरचे सख कोडि ॥ पडह य मारी तथा वली, वजडावे मन कोडें ॥२॥ नगरमांहे सढुको सुखी, नहिं : खीनुं नाम ॥ श्रमिततेज इण धवसरे, श्राव्यो तेणें नाम ॥२॥ नगिनीने मजवा जणी. देखी उत्सव पद ॥ पूरे ए कारण कवण, दर्प तणुं सस्नेह ॥ ४ ॥ नगिनी मुख सवि सांजली, सनामांहे नृपाल ॥ चेहू राजेश्वर मल्या, फली मनोरयमाल ॥ ५॥ यमिततेज देवड़ने, यापे बदु धन सार ।। पंच दिवस रही यावीया, फरी निज नयर मकार ॥ ६ ॥
॥ दाल थामी ॥ ॥ गमवरणी का श्राणी रे ॥ ए देगी। एक दिवस श्रीविजय नरेसर, चन जोबा नीलीयो रे। मृगनयागी रमणी संघाने, साथ लवल परवरिया रे ॥ १ ॥ वाहाली मोहनपीएलीना जायजाण चल्ने विलने.प
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ती दोय रसीला रे ॥ वा० ॥ ए आंकणी ॥ क्रीडा करतां वन संचरतां, नाह रमणी ग्रहि हाथे रे॥ रतिकारक रसमेल बनावे, मन्मथ वेदुने सा थे रे ॥ वा० ॥ ३ ॥ण अवसरें कंचनमृग देखी, मनहरणी एम बोले रे ॥ प्रागजीवन मुफ लागे प्यारो, ए मृग अमृत तोलें रे ॥ वा० ॥ ३ ॥ आणी आपो मुझने प्रीतम, ए मन रमण कुरंगें रे ॥ नेह नसो नृपकेडे उजाणो, रंज्यो राणी रंगे रे ॥ वा ॥ ॥ जिम जिम नृप के. उजाये, तिम तिम दोडी जाये रे॥ नृप नारी मूकीने अलगो, पहोतोश्वास जराय रे ॥ वा ॥५॥प्राणप्रिया कर्कोट अहि मशी, गाढस्वरें पोकारी रे ॥प्राण . जीवनजी वहेला आवो, व्यो मुझने कगारी रे ॥ ६ ॥ स्वामी वाहार करो विनतानी रे ॥ ए आंकणी॥शी वालेसर विलंबनी वेला, कां वहेला । नथी वलता रे ॥ आवो नजाईने अलवेसर, जो बो मनना मलता रे ॥ स्वा॥७॥अंतरजामीभातमना, तो अ॒घणुं कहेवाडो रे ॥ करी उपा य कमलदल नयणा, मरती मुफ जीवाडो रे ॥ स्वा० ॥ ॥ शब्द सुणी विनतानो आव्यो, दोडी अवला पासें रे ॥ खमा खमा तुमने एम नांखे, राय जराणो श्वासें रे ॥ स्वा० ॥ ए॥ कण एकमां अबला मूर्नाणी, नृप उत्संगें लीधी रे ॥ नयण निमिट्य रही जव युवती, तव नृपें हा हा कीधी रे ॥ स्वा० ॥ १० ॥ मूर्तीगत थ धरणें ढलियो, मोह महा रिपु बलियो रे ॥ नृप चेतन पाम्यो वढु कटें, प्रेम पयोधि उन्नलियो रे ॥ स्वा० ॥ ११ ॥ महारे तो दूजी नहिं वनन, वाहाली सुतारा राणी रे ॥ तुक परण्या पूवें में वीजी, नारी न को दिल आणी रे ॥ स्वा० ॥ १२ ॥ हे मानिनि एम मान न कीजें, वोल हसीने दीजे रे ॥ विण वांके केम थाडो लीजें, तुज विरहें तन बीजे रे ॥ स्वा० ॥ १३ ॥ हे गुणवंती हसी वोलंती, गुण अणीयाले नयणे रे । मुज सामुं निरखो घणे हेजें, गुंजां बदु वयणे रे ।। स्वा० ॥ १४ ॥ विरहव्यथा जगमां अति विरु प्रीतिनी रीति बटारी रे ॥ वाहिर शीतल अंतर कनी, प्रीतिप्रनिगति न्यारी रे ॥ स्वा० ॥ १५॥ राय विमासे ए जीव्याथी, मरण नटुं ए साथें रे ॥ ए मूके पण हुँ नवि मूकुं, कोल दीयो में हाथे रे । स्वा० ॥ १६ ॥ राय रचावी चिता अति महोटी, तिरा अवसर तिहां थाय रे॥ ननमारग , खेचर दोय दोड्या, जिहां पोतन पुरराय रे ।। स्वा० ॥ १७ ॥ | मोह्यो
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श्री शांतिनायनो रास खेम बीजो. मायाने रूपें, जल मंत्री तेणें वांटी रे ॥ थर थर 5जंती तिण वेला, माया सुतारा नाती रे ॥ स्वा०॥ १७ ॥ राय कहे ए { मुफ नारखो, चिरंजीवो. थम स्वामी रे ॥ कर जोडी कहे खेचर वलतुं, निसुणो अंतरजामी रे ॥ वा ॥ १५ ॥ अमिततेजनो ठौं नेमित्तिक, संनिन्नश्रोत्र उत्कर्षे रे ॥ सुतयुं ज्योतिर्वनमा रमवा, चाव्या वेहु धमें हर्षे रे ॥ स्वा० ॥ २० ॥ मारगमाहे मुतारा दीती,धातमी ढाल एम नांखी रे ॥ बीजे खमें रामवि जय कहे, नृप सुपो धीर मनराखी रे ॥ स्वा० ॥२१॥ सर्वगाथा॥२३॥
॥दोहा॥ ॥ चमरचंचा नयरी तणो, अशनिघोप उनंत ॥ तेणे सुतारा अपहरी, लही जातां अमें दि०॥ १ ॥थामा श्रावो वालहा, वालेसर बलवंत ॥ महेलाची मुफने करो, नाथ सनाथ महंत ॥ २ ॥ अमिततेज बंधव हुँ तो, जननीजाया वीर ॥ वाहार करो बहेनी तणी, गिरुया साइत धीर ॥३॥ इस्यां वयण सुपी तेदनां, सही सुतारा तेह ।। दोडी जा रोक्यो अमें, बलियो दूतो जेह ॥ ४ ॥ रे पापी श्रम स्वामिनी, बहेन सुतारा ले ॥ केम जाइश हवे जीवतो, मेल के युद्ध करे ॥ ५ ॥ कई सुताराय तदा, धलं प्रयासें पंथि ॥ वेताली मोहित पियु, समजावो जइ तेथ ॥ ६ ॥ अमें श्राव्या ऊतावला, तुम्ह राखवा काज || नाती सुतारारूपिणी, वेताली माहाराज ॥ ७ ॥ चिंता मत करशो मने, करा -चिंतित काज ॥ आवो श्रम स्वामी नगर, वधशे तुम्हारी लाज ॥ ७ ॥
खबर - फहावी मातने, नृप चाल्यो ते साथ ॥ रथनूपुर पुर श्रावियो, श्री विजयो नरनाथ ॥ ए॥
॥ ढाल नवमी। ॥ बाया किसन पुरी ।। ए देगी ॥ श्रमिततेज ऊच्यो गुणवंत, देखी श्रीवि जयानिव संत ॥ १ ॥ जो जो सजन मल्या, श्राज मनोरथ मफल फल्या ।। ए म्यांकणी॥ पून, कम चिंतातुर श्राज.परकाशो मुमने महाराज ॥ जो
॥ ५ ॥ नारयो तिागं सबलो अवदात,यमिततेज कोप्यो सुणि वात जोन ... ॥ ३ ॥ जेणे की, ए काम कुचेत्र । पाघरोनेत्र कसं गणदेव ॥ जो .
॥ ॥ मनमा बाध्यो श्रमरायपुर ।। प्रगनिघोच नावं कचर ॥ जोर ॥ ५॥ मोकलियों शिववी एक दूत ॥ चमरचंचा पहोतो व नृत ॥
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५० जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. जो ॥ ६ ॥रे की, तें निर्लज अकाज ॥ परनारी लेइ थाव्यो थाज ॥ जो ॥ ७ ॥ परशय्या परदार परान्न, परमंदिर परवसन निदान ॥ जो ॥ ७ ॥ मूरख हृदय विमासी जोय, ए पांचे आपणां नवि होय ॥ जो ॥ ए॥ पररमणी नवि निरखे कंच ॥ तो तेहनें मुख शोजे मूड. ॥जो॥१॥ तुज सरिखा जे जगमां नुत, ते तिर्यंच विण शिंग ने पुत्र ॥ जो ॥ ११ ॥ परनारी लावंतां तूऊ, मति सघली तारी गई मूंग ॥ जो ॥ १२ ॥ पण तारो ईहां नहिं वंक, मल्यो नथी कोई सवल त्रिवंक ॥जो ॥ १३ ॥ पण जाणुं दुं सुण नूपाल ॥ श्राव्यो ने तुज फीटण काल ॥ जो ॥१४॥ पण मुज स्वामी ने वडनाग्य ॥ आप सुतारा पाये लाग्य ॥ जो ॥ १५ ॥ अशनिघोप कोप्यो अति जोर ॥ दूत प्रत्ये कहे व यण कठोर ।। जो० ॥ १६ ॥ लाव्यो सुतारा नुज वलयोग, रयण नहिं ए रंकनें नोग्य ॥ जो ॥ १७ ॥ शय्या वसन अने तांबूल, नारी शस्त्र र या वहुमूल ॥ जो० ॥ १७ ॥नोगवे जगमा वीर जे होय ॥ मूरख हृदय विमासी जोय ॥ जो ॥ १५ ॥ मुक पासेंथी नारी पाश ।। करतो ले दशे अंतें विनाश ॥ जो ॥ २० ॥ रहे वेगे मन राखी नाम, कहेजे दूत न घाले हाम ॥ जो ॥ २१ ॥ तुमने गुं माझं कंगाल, जेम आव्यो तेम वहेलो चाल ॥ जो ॥ २२ ॥ वल्यो दूत थइ नैरव रूप, पति धागे कहे वात स्वरूप ॥ जो ॥ २३ ॥ वीजे खंमें नवमी ढाल ॥ पूर्व वैर तणो जु ढाल ॥जो ॥॥ श्री सुमति सुगुरुनो कहे कवि राम, जगमां वैर न कीजें थाम ॥जो॥२५॥ सर्व गाथा ॥२६॥ श्लोक तथागथा ॥१३॥
॥दोहा॥ ॥ वचन सुणी वेरी तणां, सवल सजाई कीध ॥ विकट कटक नट ! मेलिया, तोर नगारे दीध ॥ १ ॥ वदु राजेश्वर संचस्या, धर थरके दल । नार ॥ कंत सुतारानो दु, तरत तिहां अस्वार ॥ २॥ तुरत जा पहोंचो तुमें, चमरचंदा ल्यो घेरि॥ सवल विद्याधर सैन्यगुं, करो अरिने फेर ॥३॥ ज्येष्ठ पुत्रगुं साधवा, जामु हिमगिरि आज ॥पर विद्या नदिनी,माहाज्वाला माहाराज ॥ ४॥ शीघ्र थावि मलगुं अमो,अने सवल सुत साथ ॥ नावु कनें कहे नावथी, सिझ करो नूनाथ ॥५॥ पिता पुत्र हिमगिरि जी, साधे विद्या सार ॥ हवे श्री विजयनरेजी, चढिया बदु परिवार ॥ ६ ॥
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श्री शांतिनायनो रास खंम बीजो.
॥ ढाल दशमी ॥ ॥ चित्रोडा राजा रे ॥ ए देशी ॥ राणीना जाया रे, चढी चपल उजा या रे, दल पूरे सिधाया,पाया चोपगुं रे ॥ १ ॥ गयण गाजे रे, निशाण . थवाजे रे, घन फोज विराजे, ऊंची उमती रे ॥ २ ॥ नयरी ते वेरी रे, रणनेरी नफेरी रे, सिंधूढे स्वर रूडे, जागे शूरिमा रे ॥३॥ रिपुत्रायो जाणी रे, मूके सुत वाणी रे, देई वोर निसाणे, ते चढिया घणा रे ॥ ४ ॥ वल शूरमा चहिया रे, श्रावी तिहां अडिया रे, दलपूर संघातें, प्राथडीया तदा रे॥ ५॥ अशनिघोप केरा रे, सुत सवल नलेरा रे, एक एक शूरा, श्राव्या सामुहा रे ॥ ६ ॥ सुत थमिततेजाना रे, नहिं जगमा टाना रे, अति सबल युवाना, धागल ते हूवा रे ॥ ७ ॥ जररोप जराणा रे, सहि स्वामी याणा रे, श्रावी साहामा मंगाणा, युझ्ने कारणे रे ॥ ७ ॥ रण लाग्यो मातो रे, नटरी रातो रे, एक मास उजातो, तिहां जाएयो नहिं रे ॥॥ नवि कोई हारे रे, वचें कोई न वारे रे, एम दु संहार, बहु सुन्नटां तयो रे ॥ १० ॥ वैरीसुत नाता रे, कर देखी काग रे, श्राव्या तेह जाता, अशनियोप धागलें रे ॥११॥ दल देखी जाग्यो रे,जगडो बनु लाग्यो रे,श्राव्यो धापणुं याघो, रण मेदानमां रे ॥१॥ मातुं दल जोई रे, नाता सहु कोई रे, सुत अमिततेजाना, पागउसस्था रे॥१३॥ श्री विजय सवाई रे, श्राव्यो तब धाई रे, मांहो मांहे लागि लडाई, घणी वेहुने रे ॥ १५ ॥ लइ खाने धायो रे, श्रीविजय उमाह्यो रे, रिपुशिर दीयो घायो, ने बरी दोय दुवा रे ॥१५।। दोय वेदे विशे रे, तब चारज देरखे रे, एम वाधे श्यलेखे, बरी वांकडो रे ॥ १६ ।। नृप चित्त विमासे रे, केम ए जीताशेरे, ए तो सवत तमासे, वात प्राची पडी रे ॥ १३ ॥ शोचे एम जामरे, अमित तेज ताम रे, सिह विद्यायें न्यायो काम, लवे सरे ।। १७ ॥ तस माया निवारी रे, बल देवी नारी रे, न रही स्वारी, कजी पुतणी रे ॥ १५ ॥ रिपुकडे उजागी रे, विद्या सपरागी रे, तुमने देवं याणी, ए पापी जुर्वरे ॥ २७ ॥ यह विद्या के रे, जायं नाम ए फंडे रे, न रयो तेह नेहें, उ जाणो घणु रे ।। २१ ॥ पाने जिननुवनें रे, बल कंवली चरणे रे, पेतो सागरणे, ते छतावली रे ॥ २२ ॥ वेची बली याची में, की ने सम कापी, एमाण मनायी, वेद बति ए मारे ॥२॥ पुण्य जर पायो
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५२ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. रे, खंम वीजे गायो रे, ढाल दशमी त्रिष्टप्ठनो जायो, तीहां जीतियो रे ॥२४॥
॥दोहा ॥ ॥ अमिततेज मारीचने, कहे एणी परें नास ॥ नगरमांहे जा तुमें, वहेन सुतारा पास ॥१॥ तेडी लावो अम कनें, अचलमुनिनी पास ॥ जीतनगारां देश वटयो, नावुक सहित उन्नास ॥ ॥ नगरीमें बलनमुनि, पासेंधाव्या नूप ॥ प्रथम गया जिनदेहरे, निरखे देव स्वरूप ॥ ३ ॥ निराकार जिनरूपनी, स्तवना करे अनूप ॥ जय युगादि जिन वर विनो, जय जय अकल अरूप ॥ ४ ॥ नमी स्तवी जिनराजने, यावे सशुरु संग ॥ मुनि देखी मन ऊपन्यो, सवल धर्मनो रंग ॥ ५ ॥ गुरु वंदे गुरुनक्तिशृं, गिरुथा ते गुणवंत ॥ मुनिवर देखीने थया, तेहनां शीतल मन्न ॥ ६ ॥ शील अखंमित ते सती, नारी सुतारा ठाम ॥ पूंचल धावी . पद्मिनी, निरुपम गुणतुं धाम ॥७॥ ते निरखी हर्षित दुधा, पति बांधव वेदु . प्रेम ॥ मन विकस्युं तन उन्नस्युं, जिनगुरुदर्शनें दम ॥ ॥ दिये दे शन मुनिवर हवे, नविक जीव हितकाज ॥ नवदव ताप शमाववा, जिम पुष्कर धनगाज ॥ ए॥
॥ढाल अग्यारमी॥ .. ॥ विमल केवली एक रे ॥ ए देशी ॥ केवली अचल मुणिंद, कहे न . वियण सुपो ॥ निज बातमं निर्मल करो ए ॥ १ ॥ काढो मेल अनादि, . . माहे जे जयो ॥ नव अनंत नेलो कस्यो ए ॥ २ ॥ नमो यावरणी जीव, नव चोगानमां ॥ भ्रांति विविध भ्रमनूलमा ए ॥ ३ ॥ जाणे सार असार, अस्थिरने घर कहे ॥ एम विपर्ययमां पज्यो ए॥ ४॥पीडे दोय विकल्प, : राग ने प ए॥अरति वधारण धाकला ए ॥५॥ महोटा ए परमाद,थात माहे कह्या ॥ कथला जग एहना घणा ए ॥६॥ कुण पावत जग सुख, न तो कुण सुरखी ॥ जो जग ए नडता नहीं ए ॥ ७ ॥ एक पेटमा दोय, दोय चली अन्येमां ॥ चार थाये वली चोगुणा ए॥ ७ ॥ एहनो बद्ध वि स्तार, वांधे जव घणो ॥ धन्य बलिया जिणें वश करखा ए ॥ ए॥ कोटि कटक जट जीते, रेणमा एकलो ॥ पण दोय जीते ते नलो ए॥ १७ ॥ ए जीत्ये सवि जीत्या बाजी जीवनी ॥ एम अनंतनाणी कमु ए ॥ ११ ॥ अशनिघोप नेपाल, मुग, मन समजीयो । धिकू में कुल मेलु कन्यु ए ॥
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- श्री शांतिनायनो रास खंम बीजो. ५३ १॥ न कहुं धातमकाल, गुए गलिया सवे ॥ वलीया पण मुजमां किस्यु .' ए॥ १३ ॥ गुस्साखें अपराध, रे खामे तेहने ॥ रोप रखे मन राखता ए .|| १४ ॥ केवललोकालोक, नासक प्रजु कह्यो ॥ राग केम ए ऊपरें ए
॥ १५॥ नहिं मुफ पापनी बुद्धि रे, महेलीमायिकने ॥ एहनें में ग्रहियाणीने ए॥१६॥ कहेशे नाणी वात रे, ढाल अग्यारमी ॥ बीजे खमें ए दुई ए ॥१७॥ .
॥दोहा॥ ॥ रत्नपुरें पूरव नवें, गुरु कहे ए श्रीपेण ॥ अमिततेज नृपति हतो, वलियो नाग्यवशेण ॥ १ ॥ कपिल नाम हिज तुं दुन, सत्यनामा तुज नारि ॥ नवनोगें इहां अवतरी, सती सुतारा सार ॥ २ ॥ कपिल जीव बदु नव नमी, कोइक नव थझान ॥ तप करिने शहां अवतखो,
अशनिघोप राजान ॥३॥ पूरव जव संबंधथी, राग विना हरि एह ॥ . गतरागी पूरव नवें, तेणें तुं मंदसनेह ॥ ४ ॥ अमिततेल निज जव चरित, निसुगी कहे मन कोड ।। धन्य ज्ञानी तुम झाननें, प्रपमुंबे कर जोडि ॥ ५॥ के हुँ जव्य धनव्य हुं, नांखो मुज मुनिराज ।। जवसायरमा तुं मल्यो, तारण तरण जहाज ॥ ६ ॥
॥ ढाल वारमी॥ ॥ ताहारो शहेर नलो योधाणो॥ राजा जी ए देशी नाखे धवल मु नीश्वर वाण ॥ राजा जी जाग्य महोटानोतुं धणी जी॥हांधी नव नवमे गुपपरवाणि ॥ रा० ॥ होशो जिनेश्वर बहुगुणी जी ॥ १ ॥ नव एके पं चम चकी ॥ राम् ॥ पोडशमो जिनवर बली जी ॥ तिहां श्री विजया निध नृप ॥रा ॥ पहेलो सुत मन रली जी ॥ २ ॥ करी घाती कर्मनी
अंत ॥रा ॥ थाशो तुमें तिहां केवली जी ॥ गुण गाशे तुज धरी रंग - ॥रा ॥ समवसरण सुर नर मनी जी ॥३॥ एम निसुणी झानीनी
पास ग ॥ दिल उनम् क्लट घणे जी ।। यदि पावरु त मन शुभ ...॥ नालीजी ॥ जयें तुमारे जामणे जी॥ ४ ॥ कहे यशनियोष मुनिराज
नाए ॥ तारो दो मुज करुणा करी जी ।। हूं तो यास्यों जया जोर
ना ॥ चरगतिमा फेरा फरी जी ॥ ५ ॥ तुमो जायो सपती बात ॥ ना० ॥ जे नुम यागत दाग्यवं जी ॥ तेनो मातनी धागल श्रादि । ना जेम मोशान नाखो जी॥ ८॥ हवे याव्यो तुमारी पाम ॥
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. स्वामीजी॥धाश धरी हियडे घणीजी ॥ मुज तारशो ए विश्वास ॥ना०॥ झायिक समकितना धणी जी ॥ ॥ कहे केवली जेम मन मम ॥ ना० ॥ तेम कीजें निश्चल थई जी ॥ सोंपी सुतने निज साम्राज्य ॥ना०॥ अशनिघो दीक्षा ग्रही जी ॥ ॥ वति स्वयंप्रना बदु नारी संघात, चरण ग्रहे केवली कने जी॥पाले पावन पंचाचार ॥ मुनिजी ॥ चरण करण गुणे एकमने जी ॥ ए ॥ हवे वांदी नृप दोय विशे, निज निज नयरें थाविया जी ॥ करे देवपूजा गुरु जक्ति सुवे, सदु जन मनमा नाविया जी ॥ १० ॥ दिये दीन रवीने दान अलेखे, नक्ति करे जिनमंदिरें जी। पाले श्रावकनो श्राचार अशे, सुख विलसे वरमंदिरें जी ॥ ११ ॥ एक दिवस अमिततेज राय ॥राजाजी॥ उज्ज्वल एक जिनगृह करे जी॥ माहे स्थाप्या आदि जिणंद, ते दीठे चित्तडं ठरे जी॥ १२ ॥ नित्य नक्ति करे प्रनात ॥ राम् ॥ अष्टप्रकारी उज्ज्वल मनें जी ॥ कहे चैत्यवंदन कर जोडी ॥रा ॥ नाव नले उल्लसित मनें जी ॥१३॥ अथ चैत्यवंदन ॥ उप्पय ।। जय सामी निज देव, जय अतिशय गुणधारी ॥जय पारंगत परम रूप,थ विचल अविकारी ॥ जय अध्यात्म जावधर्म, अकलंक थमायी। ज्ञानकला पूरण धणी, प्रनुताई पाई ॥ परमातम प्रेमें नमुं ए, प्रह गमते सूर ॥थ मिततेज प्रनुध्यानथी, दिन दिन चढते नूर ॥ १ ॥ सिह निरंजन नाथ नाम, धाता पुरुपोत्तम ॥ बुध अलख शंकर सदा, पर ब्रह्मा सत्तम ॥ चिदा नंद चेतन कहो, वली यादि अनादि ॥ अव्यय पदय ने यरुज, प्रनु पूर्णानंदी ॥ एम अनेक नामें करी ए, तुम ध्यातां कल्याण ॥ राम कहे सुर घेनुथी,अधिक तुम्हारीधाए ॥॥अथ स्तवन॥ राग केदारो॥आवो मुझ मन धाम जिनजी॥ ॥नेदथी एम रह्या यलगा, केम सरे श्रम काम ॥ जिल ॥श्रा० ॥ ॥ १ ॥ सम धमारा तुमें न मानो, हाथ न जालो दाम ॥ नेह नजरें न कोई निरखो, वीतराग तुमनाम ॥ जि॥या०॥ २ ॥ हूं सरागी राग तोरे, मोहीयो गुणग्राम ॥ कोइ हरि हर वन माने, कोइ ने मन राम ॥ जि ॥ था० ॥ ३ ॥ तुंही तुंही तुंही तुंही, जाप जपतां थाम के गुजरागें तस्खा एम, कहुँ केता स्वामि ॥ जि० ॥धा०॥ ४ ॥ लहे सरागी नावथी. वीतरागता परिणाम॥तेहनें शी खोट जस शिर, तुंही बातमराम ॥जि०॥धा॥५॥ इति स्तवनं ॥ एम स्तवतां केते काल ॥ मुनि जी॥
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- श्री शांतिनायनो रास खंम बीजो. ननमारग दोय याविया जी ॥ जागी कतरीचा जिनत्य ॥ मु०॥ प्रनु स्तवना करि नाविया जी॥ १४ ॥ श्रावी वंदे अमिततेजराय ॥ नगीनो । कहे स्वामी देशना दीयो जी॥वीजे वारमी ढालें श्री सुमति कविनो, राम कहे ए रस पियो जी ॥१५॥ सर्वगाथा॥३५॥ श्लोक तथा गाथा ॥१३॥
॥दोहा॥ ॥ मुनिवर जाणी योग्यता, परकासे निज धर्म ॥ वस्तु विनावातीत जे, क्लेश रहित आतम ॥ १ ॥ सामग्री लइ दोहिली, मत बांधो अंत . राय ॥ एह निरंतर श्रादरे, चिदानंद सुख थाय ॥२॥मन कुविकल्पं जे
करे, सांतराय सुख तास ॥ जिम मत्स्योदरने थयो, अंतर सहित विलास . ॥३॥ अमिततेज कहे कुप विनो, मत्स्योदर दुई तेह ।। रुपा करीने ... दाखवो, तस प्रबंध गुणगेह ॥ ४ ॥ मुनिवर नांखे तेह्नो, सरस संबंध __ . रसाल ॥निसुणो नवि लावें करी,धर्म उपर ए ढाल ॥ ५॥
॥ ढाल तेरमी ।। ॥ प्रभुजी प्रसन्न होजो ॥ ए देशी ॥ क्षेत्र नरत श्रमरावती सरिखो, नयर कनकपुर निरखो हो । लाखे सशुरु वाणी, मीती अमिय समाणी, गरुथा गुणमणि वाणी, निसुणो चिन हित थाणी ॥ नविका धर्म करे जो ॥ १ ॥ नामें कनकधर तिहां माहाराजा, सबलप्रतापं ताजा हो ॥ घरणी तस गुणरंजा, दी होय अचंना, कनकनी गतदंना, देवने ते इजना ॥ रमणी पुण्ये लही जो ॥ २ ॥ शेत रतनसार नामें सोजागी, तिहां निवसे बडनागी दो ॥ व्यवहारी गुणवतो, पोढो पुण्यपनोतो, राज ज्वारे समोतो, धर्म उपर दृढचेतो ॥ चारू सुखविलमे जो ॥२॥ रनतला रमाणीनो जायो, कुंबर कुलमा सवायो हो । नामें धनद कहायो, कुलदी पक कुल श्रायो,सद्ध साजन मन जायो, रूपं मयाण हरायो । वाम तनय श्रने जो ॥ ४ ॥ सिंहलनामें फिनव एक महोटो, तिन्हां निवसे दिन खोटो हो ॥ प्रारी गिरदार, मेवे ने अनाचार, एक दिन दायो गमार.श्राव्यो देवीचार ॥ जांचे शेप धरी जो ॥ ५ ॥ रहुं नुज देवकलें दं देवी, का
धन नाप न मेची हो। बहेनी प्रगट पहने. यापे धन मुजवहीन, ननि . तर गाल दाने,जागं हांची लेख्ने । वजा देवी कहे जो ॥ ८॥ नाद
रे या मुग याल्पं, के ए में नृमाले धान्यं हो ॥ श्राव्यों को सफल
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५६ - जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. तो, पागे ना वसवलतो, को ते कलकलतो, पर ले उचलतो ॥ देवी एम बोले जो ॥ ७ ॥ मूकि दीयो ए वयणना चटका, न करावो मूर्ति शत कटका हो ॥ देवी जाणो ए मानो, दीसे हियडानो कागे, नांजे मूर्चि वांतो, कांक देने बांटो ॥ देवी नीति लहे जो ॥ ७ ॥ पाप्यो रे एक कागतीयानो कटको, वोल्यो कितव अमिनो जटको हो ॥ रे रे गं करूं रंग,
पत्रने खंम, देवी कहे सुण लंत, एहथी होशे घमंग ॥ सांजल वात कहूँ जो ॥ ४ ॥ देजो गाथा तेहने सार, आपे जे सहस दिनार हो ॥ नितु . पी हियडामा हरख्यो, कागल रयण ज्युं परख्यो, थाव्यो चदुटे नत्कयो, कौतुक जोवाने सरिखो।नारखे गाथा ए लेजो ॥ १० ॥ लोक कहे मु गा थार्नु मूल, कहे सहस दिनार अमूल हो ॥ सांजली मुह मचकोडे, बलतुं साटुं न जोडे,कुण करे एहनी होड, धूर्त्तने शिर मोड ॥ को मुह न मांगे जो ॥ ११ ॥ नमियो पुरमांहे आखो दाहाडो, लोक कहे ए पवाडो हो । मलिया सांजनी वेला, कुमर धनद अलवेला, ते वेदु थया नेला, पूड़े वात सलीला ॥ कारण ए गुंडे जो ॥ १२ ॥ गाथा एहे वांची धन कुमार, करे चित्तमांहे विचार हो ॥ नाइ साचु ए नांरव्युं, न टले विहिये जे लेख्यु, प्रत्यद नजरें में देरव्युं, वयण न जाय उवेव्यु ॥ गाथा साची ने जो ॥ १३ ॥ गाथा ॥ जंचिय विहिणा लिहियं,तंचिय परिणमे सयल लोयस्स ॥ श्य जाणेवि दुधीरा, विदुरेवि न कायरा हुँति ॥ १ ॥पूर्वढाल ॥ दे सह स दीनार ने लीधी, गाथा हो वांचे प्रसिहि हो ॥ ढाल तेरमी नांखी, वीजे खमें हो आखी, राम कहे चित्त राखी, मुजो सजान सारखी ॥ नविका धर्म करेजो ॥१४॥ सर्वगाथा ॥३६६॥ श्लोक तथा गाथा ॥१४॥
॥ दोहा सोरती ॥ . ॥ चिंते धनद कुमार, गाथा बदु मूली मली ॥ लखमूले पण एह, मुजने मलवी दोहिली ॥१॥ वांचे वारं वार, करमां लेई पत्रिका ॥ उर उपर जिम हार, तिम ते राखी हृदयमां ॥ ॥ एहवे उर्जन कोय, रत्नसार बागल कहे ॥ तुम सुत मूरख जोय, धागल ए झुं रावशे ॥ ३ ॥ परवर नंजन केश, खल दीसे जगमा घणा ॥ देखे पण न कहे, लीजें तेहनां नामणां ॥ ४ ॥ य ॥ दोहा ॥ एक मारखी अरु फुट नर, देखो । . पके ज्ञान ॥काज पराये कारण, हत करी तजे पराण ॥१॥ शतके मन
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श्री शांतिनायनो रास खंग बीजो. ५७ की पुष्टता, देखत उपजत लाज ॥ चांब उडे श्रापणो, परवंधनके काज ॥५॥ पूर्वदोहा।। क्रोध जराणो शेत, कहे पुत्रने पापीयाकीधी में ताहारी वेठ, दवे जा महोलेंथी परो॥ ६॥शातादायी पूत, पण कुपुत्त रुडो नहिं ॥ शाला शूनी जव्य, पण तस्करपुरी कशी ॥ ७ ॥
॥ ढाल चोदमी ॥ ॥ धन. मुज वेला धाज, अचिरानो नंदन जिनजी नेट' जी। ए देशी ॥ सांनती वचन धनंद, मन विलखाणो घरथी नीसखो जी ॥ गाथा श्रर्थ विचार, धारे रे दिलमा ए मुफ धाशरो जी ॥ १ ॥ शी चिंता तुफ जीव, सायें कमाई श्रावे श्रापणी जी ॥ रखे मान करतो रे जीव, ताप किस्यो रे परनी तापणी जी ॥ २ ॥ चाल्यो धरि एक तार, नीरसरोवर निरव्यु धागलें जी ॥ नाही पीधुं रे नीर, विशामो सीधो जइ बडतरुतलें जी ॥ ३ ॥ धिक् धिक क्रोध चमाल, सार न कीधी पानी पुत्रनी जी ॥ रखे मन थाय कंगाल, जोय विचारी गाथा सूत्रनी जो ॥ ४ ॥ जिम जिम सांजरे जाव, तिम तिम गाहा दिलमांहे धरे जी ॥ अर्थ अमृत रसनाव, ध्यान धारायें पातां दिल परे जी॥ ५ ॥ धरि अरिहंतनुं ध्यान, तरुतलें सूतो करिने साथरो जी ॥ म करो कोइ गुमान, अथिर पदारथ छु मनमां घरो जी॥ ५॥रात्रि व्याध ययाण,श्याव्यो रे जाए' वनचर ने हां जी। ताकी नारख्यु रे वाण, वेभ्यु रे पगमां सूतो ते जिहां जी॥ ७ ॥ यावे जह रे व्याध, तेहवे रे जाग्यो मुग्वें गाहा जणे जी ॥ धिन धिक् चिंते र व्याध, पंथी में दणीयो भूतो श्रम घणे जी ॥ ७ ॥ पगे लागी अपरा ध, व्याध खमावे में मातुं कग्यु जी ॥ वांचे व्रण पटबंध, कुमर निवारे मुगा एगों सरयु जी ।। ए ॥ जा नुं ताहरे रे ठाम, काम नहिं कोई गाथा मारे जी। करशे सपना रे काम, वाट जोतां दो घेर ताहरे जी ॥ १० ॥ कुरा श्राप सुख हारव, श्राप कमाइए प्रावे उदे जी । लागी तम्प ने सुम्प, वेदन नाधी कही कोने बड़े जी ॥ ११ ॥ यये प्रनाने रे नेह, मृता
प्राची पृश्वी तल पच्चों जी ॥ मृत वाणी ३ नारंग, चचे महीने ध्याकाश नथ्यो जी ॥ १२॥ पहोतो पारिधि हीप. नारंग मृम्यो जइ शुन ज्यान जी ॥ जदा करनाने जाम, चाहे जीवंतो जाग्यो अचान जी १२ वटी गयो रे नारंग, शीनज गायें नन चेतना बली जी ॥
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कोण आएवो मुफ अांही, कोण दशा ए यहां आवी मली जी ॥१४॥ जीव म बाइश नीरू, सहस दिनारे जे गाया लही जी ॥ धर तेहनो मन नाव, शोच न लावे दिलमांहे सही जी ॥ १५ ॥ रुग्यो धरी मन धीर, नीर जोवाने चाल्यो जेटले जी॥ नहिं कोई मनुष्य प्रचार, नयर निहाले नहस तेटले जी ॥ १६ ॥ अस्थिर ए घरना रे मोह, मूकीने नानां दीले मानवी जी ॥ { हो कारण एह, कर्म तणी गति दीसे. अभिनवी जी ॥ १७ ॥ जोतां एक जलकूप, निरवीनें हरख्यो दिलमांहे घणुं जी॥ जल याकपी रे पीध, सुखीयुं ययुं रे तन मन तेह तणुं जी ॥ १७ ॥ फल कदलीनां रे आणि, कीधी कुमारे प्राणनी धारणा जी ॥ रहियो नयरथी दूर, रात एकांतें धर्मने धारतो जी ॥ १५ ॥ तिमिर पसयुं यति घोर, शीतनो जोरो पवनथकी थयो जी ॥ तरतो टाढें रे गाढ, निकटगिरि ने उपकंवें गयो जी ॥ २० ॥ मेली बदुला रे दारु, अनि उपाई कीg उतापणुं जी ॥ एकलडो वनमांहि, उदये आवे रे की, यापणुं जी ॥ २१ ॥ प्रात समय थयो एम, नूमि या अग्निये सोवनमयी जी ॥ चिंते शेतनो पूत, सोवनहीप सुएयो ते में सही जी ॥ २२ ॥ हरख्यो हियडा मकार, कंचन कीजे हवे हरखें करी जी ॥ कीधो इंट संघात, माटी लेग्ने सन कजम धरी जी ॥ २३ ॥ अग्नि तणे रे संयोग, कंचन तेहढं जाएँ नीपज्युं जी ॥ करे फल फूल बाहार, जो जो लवियो फल दवे पुण्यनुं जी॥ २४॥ वीजे खंम रे ढाल, चादमी दाखी अति रलियामपी जी॥ राम कहे रे रसाल, नाव धरीने सांजलजोगुणी जी॥२५॥ सर्वगाथा ॥३॥श्लोक॥१५
॥दोहा॥ ॥ एकदिवस गिरिकुंजमां, जमतां नाग्यवशेण ॥ रत्नसमुच्य दीउडो, हृदय जम्युं हरखेण ॥ १ ॥ धाएयां तिहाथी ते घणां, रारव्यां सोवन पास ।। कुंवर देखि उनसित थयो, मेव्यो वदुधनराशि ॥२॥प्राणवृत्ति तिहां कणे करे, सुंदर फल लेावि ॥ रहे समाधे ते हीपमां, कुंवर सरल स्वभाव ॥३॥ हवे नवियण तुमें सांजलो, मुख दुःख फल अधिकार ॥ नाग्यथकी जे नीपजे, सरसकथा विस्तार ॥ ४ ॥
॥ ढाल पन्नरमी ॥ ॥हांजा मारु घडी एक करहों मुकाव हो ॥ ए देशी ॥ एवं अवसरें
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श्री शांतिनाथनो रास खंम वीनो. - तिहां धावियों । मुणो नवि ॥ सार्थवाह मुदत्त हो ॥ प्रवहण लायें
घाणां लीयां ॥ सु ॥ सोवनहीप पद्धत हो ॥ १ ॥ कर्म अजवगति बांध्यु विविध मति, उदय यावे यति धाकलं ॥ ४० ॥ कर्म कोणे न कलाय हो ॥ए प्रांकणी ॥ बंदर श्राव्यं जाणीने ॥सु०॥ जल धान काज हो । लोक सचे तिहां कतरो ॥ सु ॥ जलसंचय कगे आज दो ॥ क० ॥ २ ॥ वदु नर साधे थावीयो । सु॥सार्थवाद सुजाण हो । नर जल जीवा नीसरया । सु० ॥ मलियो धनद गुणवाण हो ॥ क ॥ ३ ॥ जलस्त्रा नक तेणें वावडयुं ॥ सु० ॥ मलियां माणस खंद हो ॥ जल जीवन जग मां बहुं ॥ सु० ॥ जल विण श्यो आनंद हो । क.० ॥ ४ ॥ यक्तं ॥ एथि व्यां त्रीणि रत्नानि, जलमनं सुनापितम् ॥ मूढेः पापाणखमेट, ग्नसंज्ञा विधीयते ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ सार्थवाह त्यां धावियो ॥ सु० ॥ धन कयो प्रणाम हो ॥ श्रालिंगी बेहू मच्या ॥ नु० ॥ पून' कुगन नेणे ताम हो ॥ कर ॥ ॥ ५ ॥ कंचन रयण ए कोण तणां ॥ मु० ॥ धन कही सवि बात हो । मुक नबरें पहोंचाइजो ॥ सु० ॥ दरख्यो निसुग्गा धन दात हो । क ॥ ६ ॥ रयण सोवननी इटका ॥ सु० ॥ गणी ताप तेगि वार हो ॥ प्रवदणमांहे लेइ धरी । सु० ॥ धन अनरय करनार हो ॥20॥ ॥ चित्त चन्यु ते शेगनु ।। सु ॥धन मेनूं जगमांदि हो ।। एक हणे एह माहीं । सु० ॥ नहिं कोई बीजी यांहि हो । क. ॥ ७ ॥ शान करे सेवक जणी ॥ सु० ॥ नाखो ए कृपमजार दो ॥ प्रवद्रणमा प्रावो वही । सु ॥ धिक् धिक् लोनविकार हो । क. If yा लोन न मुं व को नहिं ॥ सु० ॥ लोन बडो जगमूल हो । लोनय दुई नही ।। सु ॥ नवनवमां मन्यो भुल हो । काय ॥10॥ नवरः धनः जणी करे । स० ॥ नुं जल ताणी श्राप हो । दानिश नुकत्याच दो ॥ १० ॥पत्रमचो काख काप हो।। 2011 ?? ॥ सन्याने र गारदो । सु० ॥ धनद भाव्यो तत्काल हो ॥ पाप करतां पापया 150 निज न लाजे चंमाल हो । क॥ १२ ॥ पन्त ने याचियो । म प्रचार अविनीन । मरि जीने नान्चीयो ॥ शु मनीशीत
॥१३॥ हिमामयानी सापांवार - ना मानोर ती ॥ निलंगनि गरारमा ।
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ए कीच हो ॥ क० ॥ १४ ॥ पडतां गाथा चित्त धरे ॥ मु ॥ इहां नहि कोइनो दोप हो ॥ कूपमेखल ऊपर पज्यो ॥ सु० ॥ न धरे जीवमां शोष हो ॥ क० ॥ १५॥ दीनां पावडीयां तिहां ॥ सु० ॥ कौतुक दीसे कोय हो ॥ नीचो थश्ने अतस्यो । सु० ॥ आगल पहोंच्यो सोय हो ॥ का ॥ १६ ॥ मनमांहे विस्मय पामतो ॥ सु० ॥ पन्नरमी वीजे ढाल हो । रामविजय कहे रंगगुं ॥ सु० ॥ वारू वात रसाल हो ॥ क० ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ ॥ पागल जातां देखीयु, देवल एक विशाल ॥ शोना अति दीसे नली, मोहन काक जमाल ॥ १ ॥ ते मांहे दीठी तिहां, चक्रा नामें देवि ॥ जिन शासन रखवालिका, सुर नर सारे सेव ॥५॥चरण नमी चक्री तणां, ऊनो वेदु कर जोडीहा स्तवना करे,मान रहित मद मोडि ॥३॥ अथ चके श्वरी स्तुतिः ॥ राग टोडी ॥ जय जय तुं चक्री अमरी रे, श्रीधादीश्वर पद पंकजमें, रसिक वसे तिम ज्युं चमरी रे ॥ ज०॥ ए ग्रांकणी ॥ गरुडासन वेठी गुणवंती, सुर नर कोडि सदा समरी रे ॥जे तुज ध्यान धरे एक चित्ते, तस घर फूले तुरंग करी रे ॥ ज० ॥१॥ चक्रायुध विपमुं कर लीधु, उष्ट निवा रण साची सुरी रे ॥ वावन वीर रहे तुझ धागे, कर जोडी करे सेव खरी रे॥ ज०॥ ॥ अनाथ तुम चरणें आयो, कर उपगार तुं महेर करी रे ॥ विहि नडियो सुःखकूपें पडियो, हवे मुझ वांबित द्यो नहरी रे ॥ज ॥ ३ ॥ कर जोडी रह्यो दास हुँ तोरो, मात मया कीजै सखरी रे ॥ दवे मुज शरण ए चरणज तोरां, एसी करो ज्युं नासे अरि रे ॥ज॥ ॥ इति चक्रेश्वरीस्तुतिः ॥पूर्वदोहा॥जक्त वचन एम सांजली, देवी थई प्रसन्न । वत्स माग्य जे वर रुचे, बोले इम सुवचन ॥ ४ ॥ तुम दीवे मुझ सधि मल्युं,फली मनोरथ माल ।। मात जवानी शंकरी,तुक दर्शन देवि रसाल ॥५॥
॥ ढाल शोलमी ॥ ॥ कंत तमाकू परिहरो॥ ए देशी ॥ पंच रतन यापे खरां, देवीधरी कलट। मोरा लाल ॥ फल दाखे तस रु.यडां, धनद सुणे परगट मो॥१॥ जो जो नवि फल पुण्यनां ॥ए यांकणी ॥ पुण्यं वांछित थाय ।मो॥ पुण्य करो रे प्राणीया, इह परनवें सुखदाय ॥ मो० ॥ जो ॥शाप्रयम रयण सोजाग्य दे, वीजे लक्ष्मीराशि ॥ मो० ॥ रोग हरे त्रीजु वली, चोथे विपनो नाम
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श्री शांतिनायनो रास खंम बीजो. । मो० ॥ जो० ॥ ३ ॥ कष्ट निवारे पांचमुं, एम कही देवी वाच ॥ ॥ मो० ॥ श्रदृश्य या चका सुरी, कुंवरेंमान्युं लाच ।। मोगा जो ॥ ४ ॥ थागल दीठी कुंवरें,व्रणरोहणी एक ॥ मो० ॥ लीधी जंघा दीने, स्थाप्यां रतन विवेक ॥ मो० ॥ जो० ॥ ५ ॥ वसंरोहणीय थयो, साजो ते निजथंग ॥ मो० ॥ पागल पुर पातालमां. देखी वाध्यो रंग । मो० जो० ॥ ६ ॥ दाट विराजे चह्नवटे, मंदिर उता उन ॥ मो० ॥ निर्मानुप शूनी पडी, चिटुं दरवाजे पोल ॥ मो० ॥ जो० ॥ ॥धैर्य धरीने चाली यो, जोवा पुरमा ख्याल ॥ मो० ॥ देखीने थयो दुमणो, नगर नचुं वेहा लामो० ॥जो ॥ ७॥ यक्तं ॥ वसुधालरणं पुरुपः. पुरुपानरणं हि चोनमा खनीः ॥ लक्ष्म्यानरणं दान, दानाचरणं सुपात्रं च ॥१॥पूर्वढाल ॥ राजनुवन एक देवियु, पेनो जोवा तेह ॥ मो० ॥ सातमी नूमिचें साहसी, चढीयो ऊंचो गेह ॥ मो० ॥ जो॥ ए ॥ एक पासे पलंगमां, बेनी अवता वाल ॥ मो० ॥ नवयोवन श्रावी नती, मोहनरूप रसाल ।। मो० ॥ जो० ॥ १० ॥ धणियाली जस व्याखडी, मानु कमलदल दोय ॥ मो० ॥ नमुह चमर वासो वसे, मोह्यो रमणी जोय ॥ मो० ॥जी॥ ११ ॥ कतीने मनी यई, कामणगारी नारि ।। मो० ॥ध्यासन याप्यु बेसवा, कीधी घणी मनोहार । मो० ॥ जो० ॥ १२ ॥ नयण लसूणे नेदयी, निरवे कमर स्वरुप । मो० ॥ बोल्ने वाला तुम तणुं, कहो श्रागमन स्वरूप । मो० ॥ जो० ॥ १३ ॥ नशतम निधि नाग्यना, इहां श्राव्या याणजाण ॥ मो० ॥ जय सबनो हां वे घणो, केम करी रावगी प्राण || मो० ॥ जो० ॥ १४ ॥ हमर कहे जय केदनो, ते दाखो मुक बात ॥ मो० ॥ शून्य नगर शीम किस्यु, शो तुमचा अवदात ॥ मो० ॥ जो० ॥ १५ ॥ धर्व कप गुण वर्ण, रंजी बनुग बाल । मो० ॥ कहे पुरुषोनम मादरी, वान गुणां वाचा
मो० ॥ जो ॥ १५ ॥ मुणो जन्तें नुनामिनी, निनक तिलकपुर रब्बान ।। मो० ॥ नाम महें महामति, नृपनि तिहां मुफ तात !! मो० ॥ जो० ॥ १३ ॥ नीमाडिये सवले मली. एग्निदियो मुकतात ॥ मो० ॥ पद कोइएक ध्यंतरें. ग्रानी कही त्यांबान । मो० ॥ जो ॥ १८ ॥ गजन पुगनव नागो, दुं तुज मित्र मुना ! मो० ॥ नुं गुरु वदाजी जीरची, दो कारज गुपयाण । मो० ॥जो ॥ जय नांजा बगे
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६५ - जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. तो, कीजें मुऊ साहन ॥ मो० ॥ वैरी थाये पाधरा, पालुं अखंमित राज ॥ मो० ॥ जो ॥ २० ॥ व्यंतर कहे सुण वालहा, इहां नहिं मा
हरूं जोर ॥मो॥ मुफहूंती वली ए घणा, शौर्य सेविता चोर ।। मो० ॥जो० . ॥ २१ ॥ लोक सहित मुफ तातने, पाण्यो एणे ताम ॥ मो० ॥ वैरी
राख्या वेगला, शहां कीधो विश्राम ॥ मो० ॥ जो० ॥ ॥ वास्युं नय । र पातालमें, कूपमाहे जस मार्ग । मो० ॥ वीजुं वाहिर पुर कयं, उरस्त जोई नूनाग ॥ मो० ॥ जो ॥ २३ ॥ लोक बहु इहांकण वस्यां, चिहुँ दिशि जलनिधि पूर ॥ मो० ॥ आवे बदु वाहाण नखां, अन्न इंधण इहां भूरि ॥ मो० ॥ जो ॥ २४ ॥ एहवे इहांकणे आवीयो, राक्स अति विकराल ॥ मो० ॥ कर्म संयोगें कूपमां, पेगे ते चांमाल ॥ मो० ॥ जो ॥ २५ ॥ सदुजनने नदण करी, बाहिर घाव्यो तेह ॥ मो० ॥ वाहाण वेसीने सदु, नातां मूकी गेह । मो० ॥ जो ॥ २६ ॥ शून्य कस्वां वेहू तिणे, नगर माहा विपरीत ॥ मो० ॥ कर्मकथा कहेतां यका, धजे माहीं चित्त ।। मो० ॥ जो॥ २७ ॥ मुफ उन गिणी देखतां, थयो वदुनो संहार मोराखी मुझने एकली, पापी प्रेम विकार ॥मो॥ जो ॥ २७॥ दुःख म धर रे मानिनी, तुजवरवानीपाश । मो० ॥ परणीने दिन सातमे, करा जोग विलास ॥ मो॥जो० ॥एवीजे खंमें शोलमी, ढालें कुमरी वात ।। मो॥ राम कहे ते नवि चले, जे दीतुं जगतात ॥ मो० ॥ जो० ॥ ३० ॥।
॥ दोहा ॥ ॥ बाज थयो दिन सातमो, कुमरी नांखे तास ॥ होशे पापी पा . वतो, मारे माणस वास ॥ १ ॥ तेमाटे तुमने कहूँ, रहेजो मन दुशि : यार ॥ नहिंतर मंदिर मूकीने, रहो अलगा ए वार ॥ ३ ॥ धनद कहे सुनगे सुगो, नहिं मुज एहनी नीति ।। मुफ हाये ए पापीयो, लहेशे मरण अनीति ॥ ३ ॥ पाके नूप कुमंत्रीथी, कालें फल परिपाक ॥ रोग पचे लं धनथकी, पापी कर्मविपाक ॥ ४ ॥
॥ ढाल सत्तरमी॥ .॥ ताहेरो गुण मान्यो राज ॥ ए देगी ॥ तिलकसुंदरी कहे सादिवा रे. ॥रदो ताना हो राज ॥ तस दार मृत्यु उपाय ॥ मोरे मन मान्या हो राज ।। विद्यापूजन कारणे रे ॥ रहो० ॥ ते वेसे वे ए नाय । मो० ॥१॥ ध्यान
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श्री शांतिनायनो रास खंग बीजो
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घरे रे नि य रे ॥रहो। ते चूके नहिं तिल मात ॥ मो॥ खह यहो मुरु जनकनुं रे ||हो। तुमें करजो एहनो घात ॥ मां० ॥ २ ॥ वात करे रे एम वेडु जणां रे ॥ रहो || तेजनी नेहें रंगाणी धात || मो० ॥ एहवे एक शव लेने रे ॥ रहो ॥ ते श्राव्यो नीच विख्यात | मो० ॥ ३ ॥ दीमे वर्ष वीदामणां रे || रहो || उंचो ताडनो त्रीजो नाग ॥ मो० ॥ ह ह हसतो एम कहे रे ॥ रहो० ॥ श्राज बागज व्याव्यो जाग ॥ मो० ॥ ॥ मृक्युं पडतुं रे तिहां ॥ रहो। जड़ वेठो उपचा जाप ॥ मो० ॥ बुद्धि ने बल बेदु गुं करे रे ॥ रहो | जब व्यावी लागे पाप || मो० ॥ ५ ॥ स्य प्रभावं तेहने रे || रहो० ॥ नवि जोये हुए निहाल ॥ मी० ॥ उपाडी ने ग्रावीवो रे । रहो० ॥ रे रे जोजे हुए संजाल ॥ मो० ॥ ६ ॥ जाएयुं इसे एमुकने रे । रहो० ॥ मुफ शुं हो ए कंगाल ॥ मो० ॥ घटेलसफाइमां रह्यो रे ॥ रहो० ॥ करवालें जणुं गलनाल ॥ मो० ॥ ७ ॥ पचायो यममंदिरें रे ॥ रहो० ॥ एम याची पहोतुं पाप ॥ मो० ॥ सामग्री विवाद तणी रे || रहो || ते सघली जीपी व्याप | मो० ॥ ॥ युं वेला क्ली रे || रहो० ॥ शुभ वेला धनद कुमार || मो० ॥ तिलकसुंदरी परणी तिहां रे || रहो० ॥ पुण्यें होवे जब जयकार | मो० ॥ ९ ॥ दंपती दोष दिल जर रमे रे || रंग मांगो हो राज ॥ करे दिन खोजीने वान ॥ माहूरी गुण मानो हो राज || नवल सुनंदा साहियारे ॥ ० ॥ मुऊ दाखो तुम श्रवदात ॥ सा० ॥ १० ॥ कामिनी स्वागत कंजी रे ॥ २० ॥ कहो मूलयकी संबंध || मा० ॥ बात सुनी विस्मय नही रे ॥ ० ॥ वाणी प्रेमने बंध | मा० ॥ ११ ॥ दिन केना एक तिहां रही है ॥ ० ॥ नेइरामा रतननी गधि || मा० ॥ सार वस्तु जीधी पाणी ॥ ० ॥ याचे कृपनी पास ॥ मा० ॥ १२ ॥ नमी दे ॥
गुणो माता हो ॥ करे स्तवना प्रेमने पूरे ॥ सा० ॥ तुक दर्शनथी मान ॥ सु ॥ वायुं मणुं नूर ॥ थइ तु शाता दो ॥ १३ ॥ एकतारे || कु० ॥ मुरु जीवनी जय हार ॥ ० ॥ नाक्षिष्य करी || कु० ॥ नुं निराधार साभार ॥ १५० ॥ १४ ॥ श्राच्या पाणी मी। मदिनाणी ॥ राम कडे करे ॥
॥ चीजे
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॥ श्रागत
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जैनकथा रत्नकोप नाग आरमो. संबंध रसाल । म ॥१५॥ सर्व गाथा ॥४७॥श्लोक तथा गाथा ॥१६॥
॥दोहा॥ ॥ याव्या कूपनी मेखला, दिलनर दंपती दोय ॥ जे तिण अवसरें नी पन्युं, ते निमुणो सदु कोय ॥ १ ॥ प्रवहण कोइ परदेश, थाव्युं तेणें छीप ॥ जल इंधणने तखां, वंदर जाणी समीप ॥ २ ॥ याव्या जलने जोवतां, कूपकंठ नर के॥जल बाकर्षण दोरिका, मूके हर्प धरे ॥३॥ धनदें दोरि ग्रही तदा, वोल्यो एम वचन ॥ कूपथकी काढो मुने, महोटा तुमें माहाजन ॥ ४ ॥ तिणे जइ निजपतिने कयुं, देवत्तने धाम ॥ आवो स्वामि उतावला, वे उपकारचं काम ॥ ५ ॥ ते आव्यो दोडी तिहां, मांची वांधी दोर ॥ धनद कुमरने काढीयो, देवदत्त करि जोर ॥ ६ ॥ सार्थवाह दोगे सखर, सुंदर वेप अवल ॥रे सजान तुं कोण ने, निर्मल रूप नवल ॥ ७॥ केम पडियो ए कूपमां, धनद कहे एक वार ॥ प्राण प्रिया पण माहरी, कूपमांहे निर्धार ॥ ॥ अवर वस्तु पण वे घणी, कूपमध्ये महाराज काढीने कहेगुं पड़ी, वात सकल मुज आज ॥ ए॥
॥ ढाल अढारमी॥ ॥ दुं दासी राम तुमारी ॥ ए देशी ॥ देवदत्त कहे सुविचारी, तुमे काढो परपी प्यारी ॥ सवि वस्तु निकासी सारी, ते दीठी सुंदर नारी रे॥१॥ नवि का लोन न करजो॥ लोन न कर जोजी॥ ए बांकपी॥ यंते ए फुःख दाइ, माया विपवेल सहा ॥ तृमा तरुणीनो नाइ, रघु एहथी जग लपटाइरे॥न० ॥ २॥ पूढे सार्थवाह तिवार, कहो तुमचो हवे अधिकार ॥ दोय ना ह रमणी निरधार, केम पडियां कूप मजार रे ॥ ज० ॥३॥ए नरत तो हुँ वासी, लु जातें वणिक विलासी ॥ धन उपराजण उल्लासी, चल्यो हीप कटाह विमासी रे ॥ ॥ ४ ॥ देवयोगें प्रवहण नांग्यु, एक फलक करें मुज लाग्युं ॥ दंपती दोय पाम्यां ताग, साध्यु ए बंदर नाग्य रे ॥ नए ॥ ५॥ जल जोतां ए कूप दीठो, मनमांहे लाग्यो मीगे ॥ नारी पग तिहां लपट्यो, जोतां मनडो करी धीठो रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ नारी के. उजाइ थाइ, पडतुं महेल्थु में धाइ ॥ कूपमेखल ऊपर जाइ, पडियो हूं पुण्य सखाइरे ॥ ॥ ७ ॥ जलदेवीथा सुप्रसन्न, आप्यांअम वसन रतन्न । कहे प्रव हण वेसी जतन, तुमें जाजो पुरप रतन रे ॥ न० ॥ ॥ थम नाग्य
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श्री शांतिनायनो रास खंग बीजो. ६५ तुम इहां श्राव्या, मनोवांवित सुख अमें पाया ।। तुम दर्शन अधिक सुहाया,जिम चं चकोरान्यावारेजा कहे सार्यवाह हरामी,यमें छीप - कटाहने पामी ॥ श्राव्या जरतयकी गुन कामी, जायं निजनय धामें रे ॥ ज० ॥ १० ॥ श्रावो तुम श्रम संघातें, व्यो वस्तु बली बनु सायें ॥ जल कीg ए जगनायें, तुम साथ मल्यो अम पंथें रे ॥ न ॥ ११ ॥ पहोंचाढो धनद कहे अमने, नाग ठहो देतुमने ॥ करगुं तुम मेवा लु मनें, मत मानजो कई कुमने रे ॥ न० ॥ १५ ॥ देवदन कहे उत्क पी, श्री माणासना तुं परवी ॥ तुम्ह सेवा मेवा सरखी, करगुं अमें दिबडे हरखी रे ॥ न० ॥ १३ ॥ बंड वेग बहाण मांहि, चाव्यां प्रपदण उत्साहि ॥ नारी देखी मन मांहि चिंते ते धूरत शाह रे ॥न ॥ १४ ॥ रमणी ते कपरलाली नरयोवनमांहे नाली ॥ गजगति वाले मतवाली, मृगन यनीतनसुकुमाली रे ॥न० ॥१५॥ मार्नु मन्मयनी ए घरमी, हाणं तेदन जेणें ए परणी ॥ करूं ए साथै सुख करणी. रेवियया पुर्गतिनीस गणी रे ॥ जा ॥ १६ ॥ हवे मानवजो नवि नाई, जुन विषयवकी गुं था ॥ विषयी पण अधिक कहावे, विषयामति प्रीति नसावे रे ॥ ॥ १२ ॥ वंम वीने यहारमी दाल, जग महोटो विषयनो जात ॥ कहे राममुनि उजमाल, जग विषय बडो माल रे ॥ ज० ॥ १७ ॥
॥दोहा ।। ॥ लोनें पट्यो काम नध्यो, देखी धन नारि ॥ देवदन निज मिनमां. श्रारत करे अपार ॥ १ ॥ धन रमणी प एकली. केम ले जाडो संघ । नारवं दरियामां ग्यगे, केई बहार न बंब ॥ ॥ तकणी ए माल लचि, चाशे मुफ प्राचीन ॥ परमेश्वर मुजा पायो, कन्यं काज अदीन ॥ ३॥ टे धनद कुमारणं. जद पट मामी जोर ॥ सरलपाणं निणं मधिला, तेदन दर कालोर ॥ ४॥ महान जन जाणे नहिं. उर्जननी गनि नान ॥ पाल्य न जा जगनी, विगगनी जाति ॥ ५ ॥
॥दासगणामी ।। मोजो पनन ग्रंपलो मेला ॥ एती धनदन खतमा मायोरेला, 'गार पर मन म
नमानम मनियां व निमसोयाजवशी रंग ॥ ॥ १ ॥ बजगति नजि कीजिये रे मोरांकी जो
नाई, जुन
३॥ समाधक कहावे.
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
॥
करे वानां लाख रे ॥ सु० ॥ मीगे यइ यावी मजे रे लो, फल किंपाकनी साखरे ॥ सु० ॥ ख० || २ || एक दिवस रयणी समे रे लो, देहचिंता स नाव रे ॥ चतुर नर ॥ वेठो मांची रूपरें रे लो, प्राव्यो वैरी दाव रे ॥ च० ॥ ख० ॥ ३ ॥ जोइ अवसर तेणें पापीये रे लो, कापी दोर तुरंत रे ॥ च० ॥ करतां एम घीये नहीं रे लो, पापी काम पुरंत रे ॥ च० ॥ ख ॥ ४ ॥ लडथडतो पड्यो चली रे लो, सायरमांहे कुमार रे ॥ च० ॥ गाथा दिलमांहे सांभरी रे लो, जीव दुई दुशियार रे ॥ च० ॥ ख० ॥ ५॥ नावी नाव टले नहीं रे लो, इहां नहिं केहनो वांक रे ॥ च० ॥ कर्म asi सदु जीवडो रे लो, कोण राजा कोण रंक रे ॥ च० ॥ ख० ॥ ६ ॥ सोर करी को सही रे लो, जुवो निहाली कोय रे ॥ च० ॥ माणस प डियो सिंधुमां रे लो, शब्द सुल्यो इम सोय रे ॥ च० ० ॥ ७ ॥ ऊत्रकि उठी सा सुंदरी रे लो, नवि देखे निज कंत रे ॥ च० ॥ धसक पड्यो तव भ्रा सको रे लो, विंडियो प्राणनाथ रे ॥ च० ॥ ० ॥ ८ ॥ हाथे हियहुँ कूट ती रेलो, रोती यवला बाल रे ॥ च० ॥ दुःख जर बाती फाडती रे लो, म लटी विरहनी जाल रे ॥ च ॥ ख० ॥ एए ॥ हा वालम मूकी गयो रे लो, म ःख सायरमा रे ॥०॥ सोर सुणी तिहां यावियो रे लो, देवदत्त सारयवाह रे ॥ च० ॥ ख० ॥ १० ॥ कृत्रिम रुदन करी कहे रे लो, गुंए थयो उतपात रे ॥ च० ॥ हा मित्र तुकने केम ययो रे लो, सायर ऊंपापात रे ॥ च॥ख ॥ ११ ॥ मुखें रोवे हियडे इसे रे लो, पापीमां शिरदार रे ॥ च॥ मुख मीठो धीठो हिये रे लो, ए खलना आचार रे ॥ च० ॥ ० ॥ १ ॥ प्राणप्रिया नवि रोइयें रे लो, रोये तन कुमलाय रे ॥ च० ॥ देव प्रते चाले नहिं रे लो, दैव करे ते याय रे ॥ च० ॥ ख० ॥ १३॥ वचन सुणी चतुरा चकी रेलो, ए पापीनां काम रे ॥ च० ॥ हा हा मुऊने हवे सही रे लो, ले जाशे निज गम रे ॥ च० ॥ ख० ॥ १४ ॥ शीन रतन केम राखगुं रे लो, किम रहेशे कुनलाज रे ॥ च० ॥ हा हा देव घटारडो रे लो, ए शुं कीधुं प्रकाज रे ॥ च० ॥ ख० ॥ १५ ॥ सार्यपति कहे वालही रे लो, तुम पियु गयो पर लोक रे ॥ च० || हवे मुऊने त्र्यंगीकरों रे लो, शीयो मूत्रानो शोक रे ॥ च० ॥ ० ॥ १६ ॥ चिंते ए माटीपणे रे
'जो, करशे शीन विनाश ॥ च० ॥ काल विलंबने कारणें रे लो, उत्तर बालु
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श्री शांतिनाथनो रास खंम बीजो. खास रे ॥ ५० ॥ ख ॥ १७ ॥ यकृतं ॥ क्षणेन सन्यते यामो, यामेन लन्यते दिनम् ॥ दिनेन सन्यते कालः, कालः कालोनविष्यति ॥ १ ॥ पूर्व दास ॥ मुज पियु मरवानो नहिं रे लो, रवणतणे प्रसाद रे ॥ १० ॥ तो उत्तर कहि कारिमो रे लो, करुं एहने थाहाद रे ॥ च ॥ खण् ॥ १७ ॥ तट जइ पुरना स्वामिनी रे लो, लहि अनुमति सदु साखरे ॥ च ॥ वयण तुमार माना रे लो, हरख्यो एम सुपी जाप रे ।। च ॥ ख० ॥ १ए ॥ निसुणो धनद तणी कथा रे लो, श्रोता बीजे खंग रे ॥ च ॥ ढाल कही उंगणीशमी रे लो, लेहो सुरक श्रखंम रे ॥ च०॥ खः ॥२०॥
॥दोहा ॥ ॥ पुर जइ नृपनें संतोका, धन देई थसमान ॥ चिंतित करा श्रा पा, चिंते ते यज्ञान ॥ १ ॥ पण जाणे नहिं बापडो, परशेहें केम काज । सिह थाये संसारमा, जेहयी प्रनु इतराज ॥ २ ॥ हवे धनद जलनिधि पख्यो, पूर्वजन कोई चान ॥ फलक वही श्राव्युं करें, अहो नदी पुण्यनिदान ॥ ३ ॥ ते अवलंबी चालियो, कबोलें लोलंत ॥ पंचम दिवस ते धनद, निजपुर निकट पहुंत ॥ ४ ॥ तट देखी दरख्यो दिये, जोये नयणंजाम ॥ मत्स्य महोटे फलके सहित, गत्यो प्रचिंतित ताम ॥ ५ ॥ थहो विषमी गति कर्मनी, कोण काली नवि जाय ॥ जे जे मनमा वितीये, ते ते निष्फल चाय ॥ ८ ॥ नरकोपम पडियो तदा, मत्स्य उदर मां तत् ।। चिंते ए शुंनीपन्यु. कर्मवों मुझ पह ॥ ॥ कष्ट हरण माणित मरणे, ते मत्स्य पीयरें यह ॥ उपकंवें श्राण्या तुरत, हिचा विदारण कीय ॥ ॥ उदरमध्ययी नीलग्यो. देखी दिच्य कुमार ॥ जलें नवरावी नेने, मुक्यो राजवार ॥ ९ ॥
॥ दाल चीशमी ' ॥ हारे नावा रे गती नदी यमुनानां नीर जो॥ ए देवी । हारे तय प्रने राजायचारिज वाली बात जा, नाइ मुल नांगोने । नुमची कथा रे लो। हारे रहियों ममय बदरमा लु नुस्मार जो, म सदेवाणी सय जीतं यया रेलो॥ ॥ तव गुमर रहे. राजन जन जोर जो, यांच्या गाडीने कमें जीपदी जो ॥ हार एकर प्रदेश कम अनंती यात जो, पापीनीzmi नयां अनुदिन जीजा सालार में
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६७ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. अनुनविया सुरख रखना बहुल विपाक जो, ते कहेतां नावे रे किमही ठेहडो रे लो ॥ हारे हवे मु नां तुफागल दुं राजान जो, पण संपें सांजल आणी नेहडो रे लो ॥ ३ ॥ हारे हुँ चढियो गर्थनें अर्थे प्रवहण मांहि जो, नांग्यु रे जरदरिये वाहन वेगलुं रे लो॥हारे एक लाध्युं फलक फप सकमांहे याव्यो पार जो, मस्ये रे उपकं महोटे मुफ गल्यो रे लो॥४॥ हारे ते धीवर हणियो हुँ उगरियो घाम जो, घाणीने तुम पागल मुझने रजू कस्यो रे लोगहारे ते निसुणीनूपति चिंते चित्तमांश्रामजो,नावी रे जोरावर जगमांहे ठस्यो रे लो ॥ ५ ॥ हारे हवे सोवननीरें नवरावी नरनाथ जो, नेहें रे निज पासें राख्यो तेहने रे लो ॥ हारे तस सन्मानी मत्स्योदर दीधुं नाम जो, चाहे रे सदु जिम आपाहें मेहने रे लो ॥ ६ ॥ हारे तब राजा बोले व्यो को लायक काम जो, लीधुं रे पद तेणें थगिधरनुं नबुरे लो। हारे जस तूग्यो राय अपावे पान जो, तेहने एवं आपे कारिज ऊजलुं रे लो ॥७॥ हारे एम दिवस गया केता इक नयर मकार जो, सांजलजो हवे मूकी विकथा वातने रे लो ॥ हारे हवे पहेलु प्रवहण जिहां बदु धन राशि जो, आव्या रे तिण बंदर जोरे वायने रे लो ॥॥ हारे तव बुटी नाल धडो धड ययो अवाज जो, जाण्युं रे पुरमा परदेशी आविया रे लो ॥ हारे तब हररव्यो मनमां मत्स्योदर गुणवंत जो, यावे जो मुज वैरी तो अमें फोविया रे लो ॥ ५ ॥ हारे हवे लेइ उपायन साथें सवल परिवार जो, याव्यो रे दरवारें नृपति नेटवा रे लो । हारे सेवक विनावियो जइ नमियो नरनाथ जो, याव्यो रे तुम नयरें दुःखडं मेटवा रे तो ॥ १० ॥ हारे अवनीपति आप्यां वदुला आदर मान जो, मत्स्यो दर मन साथै निज कुल उत्तरव्युं रे लो ॥ हारे तिहां देखी धनद सुदत्त श्रयो सशंक जो, मुखई रे फवाणू ते कुमरे उतरव्यु रे लो ॥ ११ ॥ हारे तिहां जया श्रामण दृमण श्रइनें शेठ जो, गये रे अपायुं बीहूं पान→ रे लो ॥ हारे तिहां कुमर गयो धापेवा हाथो दाय जो, जोड़ने उंगलियुं पातुं माननू रे लो ॥ १२ ॥ हार में नाख्यो कूपं सुखरूपं जलपूर जो, श्राव्यो रे मुफ श्रागल एकेम एकलो रे लो ॥ हारे नाइ जो
जो नारी कर्म तणो ए जोग जो, हाथे रे नवि हणियो हुँ ययो व थकलो , रे लो ॥ १३ ॥ हारे ते याव्यो नासी पुरवासीनी पास जो, पूर्व रे
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श्री शांतिनाथनो रास खंग बीजो... । नृपपा थगिधर कोण ते रे लो॥ हार शुं एवढं एदने राय तणं सन्मान जो, के मुरूती के नेमां कांहिं नूतनगुण ते रे लो॥१४॥ हारे तिणे मांसी द्वारख्यो सबलो तल अवदात जो, धनद सही मनमाह तत निश्च ययो रंतो॥ दारे हवे चिंते इट हियामां हलुइ बात जो, धननो रे अति जोनी नीचमति दुरे लो॥ १५ ॥ हारे नवि बीजे वमें राग अखंमें एह जो, लांग्वी रे एबीगमी दाल सोहामणी रे लो ॥ हारे श्री सुमति सुगुरुनो रामविजय कहे श्राम जो, जगमांह पुःखदाची लोन दशा घणी रे लो॥ १६ ॥ सर्व गाया ५५ ॥ श्लोक तथा गाया मली १ ॥
॥दोहा ।। ॥ srअवसर राजाननो, गायक गीतरति नाम ॥ याव्या जाणी सार्थपति तणं कन्यो प्रणाम ॥ १ ॥ गीत गाये उंचे स्वरें, रीयो श्राप दान ॥ तडि एकांतं तेह्ने, जांखे शेव अजाण ॥ २ ॥ जो मुफ एक कारज करो, तो यापुं बदु धन ॥ ते कहे कर जोडी श्री. सर नुम्ह बचन ॥ ३ ॥ राय यगीधरने जs, बोलाबो करि बंधु । म गजा नंदने, जेम थाये प्रतिबंध ॥ ४ ॥ वचन कबूल करी तिहां, पहोतो तृ पनी पान ॥ धनहती सवि संपजे, सदुये धनना दाल ॥ ५ ॥
॥ढाल एकवीशमी । ॥ कानुदो दवे वेण बजाये रे ॥ ए देशी ॥ गायक ज दग्यारे नाना, गावे गीत रसाला मादल ताल नफरी नरी, मकाम वीग रिमाल । गाय ॥ १ ॥ गुण गाने सदन मन नाचे. मंत्री नेई टेक ॥ गजन नछ विण को यमग्ने, नचि जा सुवियक ।। गा० ॥ ॥ ततो गजा मन मणि माणिक, प्रापअप धरीने ॥ ने नदि इस पान प्यराश, नामने मदर का मैन । गाः ॥ ३॥ कर वंचों की पान पाये. गजन ग सानो । म कोलोर कडे गायने. गजा माज वनीता ॥गा ॥ मनम्बोदर ग्राम्यो जा पाने, गई गजन्यो । हा बंधन में कम Hि जाप मच गा !घर पम कम मागदाणे. साप ननी जागा ! नीजी गंद नगीना, ये नानिमाया गाय
८६ पटका नगन लियो, में पाया। जात पंधर मोग. मानाया गया ! गा / गाना
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ना कोय तारे तोलादर कहे मुणो माता, कहेवो कुंवर
जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. गल सदु मन विस्मय, पामीने एम बोले ॥ फट मूरख तें सवल विटाल्या, नहिं कोय तारे तोलें ॥ गा० ॥ ॥ रे रे झुं साचुं ए नांखे, के वली थ थवा कूडं ॥ मत्स्योदर कहे सुणो माहाराजा, ए सवि लाखे रुडं ॥ गा ॥ ए ॥ जो जो हवे वु करी उत्तर, कहेवो कुंवर वाले ॥ वल बुद्धि कही वलवंती, जे उपजे तत्कालें ॥ गा० ॥ १० ॥ राजन एह नय रमां अमचो, जनक पिता मातंग ॥ प्रनु धागल नित्य गुण गावाने, था वंतो मन रंग ॥ गा० ॥ ११ ॥ तेहने घेर दोय दयिता रूडी, ते वेहुना अमें जाया ॥ अण मानीती मुफ माता तेणे, मुज वाणी न सुहाया ॥ गा० ॥ १२ ॥ एहनी माता हूती वहाली, ए पण वजन गाढो॥ एक दिन जनकने करुणा यावी, वोल दियो मुफ टाढो ॥ गा० ॥ १३ ॥ पंच र यण ले। मुज जंघामां, जनकें देप्यां जाणी॥ वत्त विपम वेलायें ए तुं, काढे मन हित आणी ॥ गा० ॥ १४ ॥राजन् सघले अवयव एहने, रयण अमूलक केपी ॥ वेदु सुत पासें प्रीति पटतर, कीधो सुमतिने रोपी ॥ गा० ॥१५॥जो नविमानो तो मुज परगट, जोवो नयण निहाली ॥ जंघा वेदी पंच रयण ते, देखाड्यां संजाली ॥ गा० ॥ १६ ॥ रायतणे मन वात वसी ए, सेवकनें कहे जालो॥अंग विदारी रयण लेश्ने, सघलां मुज देखाडो ॥ गा० ॥ १७ ॥ गीतरति जाण्युं गति विगडी, मलियो ए मा थानो ॥ में जाण्यं तर' एहने, न रह्यो दंन ए बानो । गा० ॥१७॥ धसिया सेवक तस जालेवा, ते कहे मुमने मूको॥धन कारण में कूड कयुं ए, स्वामी सवल हुँ चुक्यो । गा० ॥१॥ शेत सुदत्त अवे परदेशी, तेणें ए वात करावी ॥ सोवन इंट समपी मुऊने, लो, घणुं ललचावी ॥गा० ॥ २० ॥ राय मत्स्योदर साहामुं जोई, पूढे वात ए साची ॥ ते बोल्यो सुण तुं राजेश्वर, ए पण कांहिं न काची ॥ गा० ॥ २१ ॥ उनय वातनो मेल मले किम, कहे मुज धागल साचुं ॥ मुफ मननो ए संशय वारी, साचे मारग राचुं ॥ गा० ॥ २२॥ सुण राजेश्वर ए वहाएमां,अष्ट सहस्त प्रमाण ॥ सीवन संघाटक वे माहारा, तेहमां नहिं विनाण ॥ गा० ॥ २३ ॥ रयण असे वली तेहथी दृणां, एक सहसे ऊणां ॥ ते संघा टक मुफ नामांकित, ए साचां सवि वयणां ॥गा० ॥ २४ ॥ वात सुणी
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श्री शांतिनायनो रास खंग बीजो. एकविरामी ढालें. दारव्यो नृप मनमाय ॥ वीजे खंमें रामविजय कहे, जुवे सिमि न पाय |गाणार या सर्व गाथा ॥५७४ा श्लोक तथा गाधा १७
॥दोहा॥ 1 मातंगगृहयी मगाविया, संघाटक नृप चार ॥ दिया कराव्या नीतरें, धन दनाम सुविचार ॥१॥ रोपें चढयो राजा कहे, सेवकने तेगि वार ।। वचनृमें से जाने, करो हुने गर ॥ ५॥ पावंत कुमर वढो. लागी नृपने पाय॥ नोटाव्या ते जीवता, उत्तम नीच न बाय ॥ ३ ॥ यतं ॥ न भवति जयति च न वरं, नवति चिरं चेत्फलं विनंवदति ॥ कोपः सत्पुरुषाणां, तुल्यः स्नेहेन नीचानाम् ॥ १॥अंब न हो लीवडे.लीवे न दोय अंध ॥ सङ्गन ते पुर्जन नोहे, जो धरती होय श्रान ॥ ॥ सडान ऐसा कीजिये, जेसा पाणी कोश ॥ पगडूंती जो टेलीये, तोही नाणे रोप ॥ ५ ॥ सजान जाई मनाविये, जो रुसे तो बार ।। सहननो एक क्षण ननो, सरवनो जमवार ॥ ८॥ जो रुवे गुणवंतने. तोहे जे डाव मोट ॥ एक न देजे देव तुं, पुर्जन नायें गोठ ॥ ७ ॥ संगति कीजें सहना,जदयी लांजे नीड । उनी संगति नीचकी, नवी कपाई पीड ॥ बाद याद तडको को, महोटो ए गुणवंत ॥ अवगुण ऊपर गुण करे, तहज कहिये संत ॥ ५ ॥
दाल बावीगमी॥ ॥ देशी मृगानयणीना गीतनी॥ए वणिकने कातों कीयो गज, धन माल कजातीने लीधो राज ॥ नवि गुण्य तणां फन जोजो ॥ माल सॉप्यों धनवने दावे गल, मनायां ते नरनाथे गज । न ! ॥ पूर्व बघणं मान गन, गती वाध्युं बद्ध मन्मान गज ॥२०॥ जग कन्यानो कदेवाये गज, गृण के पूजा पाये राज ना कहे गजन यान प्रकामो गन. मांगो मुण्य लोदामो राज ।। न ॥ कहे कुमर सणो नमीमा गज, नांद मस परित जमीशन न० ॥ ॥ नुम नयग्नो वानी गज, रन्न पसरनी लन सुनितानी गज ॥ ॥ नामें ईधनद मा गज. बढ़ मान पिनानां चार गज Re | H |दिन पर गाया नी गन, मालकीनार में जाकी राजनामजताने दोसी गागजातो
ननमा ज नची पापा राज, बीमा पागज न० ॥ ना पाटी वी गन, मोदन ही न
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जेनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. दृक्यो राज ॥ ज० ॥ ६॥ तिहां कंचन रयण निपायुं राज, तेणें शेउनु चित्त लालचायुं राज ॥ ज० ॥ नाख्यो मुने कूप मकारी राज, परण्यो तिहां राजकुमारी राज ॥ ज० ॥ ७ ॥ नाखीने ए वलियो राज, देवदत्त आवी ने मलियो राज ॥०॥ कूपमांहेथी मुझने काढयो राज, नरदरिये वरत एवं वाढयो राज ॥ न ॥ ७ ॥ पडतां महोटे मत्स्य गलियो राज, श्हां याव्यो मनोरथ फलियो राज॥ना तिलकसुंदरी महारी राज, देवदत्ते राखी प्यारी राज ॥ न ॥ ए ॥ नाग्ययोगें जो इहां आवे राज, तो माहरो जोरो फावे राज ॥ ज० ॥ सुण स्वामी गुणमणिखाणी राज, में जांखी कर्म कहाणी राज ॥ ज० ॥ १० ॥ सुणी राजा विस्मय पाम्यो राज, सव जो तुज पुण्य सहायो राज ॥ न ॥ रहे नृपगेहें वडजागी राज, हवे पुण्यदशा शुन जागी राज ॥ ज० ॥ ११ ॥ तिहां देवदत्त सार्थवाहो राज ॥ मलवा आव्यो सोत्साहो राज ॥ ज० ॥ मल्यो नृपने रंगे धावी राज ॥ केम टाल्युं टले जे जावी राज ॥ न ॥ १२ ॥ उलखियो धनद कुमार राज, रह्यो ठानो गुप्ताकारें राज ॥ न ॥ नृप पूढे कुशल सवाया राज, कुण देशथी शेवजी याया राज ॥ ज० ॥ १३ ॥ वली साय ए कुण नारी राज, किम वेंढारो गुण सारी राज ॥ ज० ॥ कहे होत : कटाहयी आव्यो राज, व्यापारें वन धन पायो राज ॥ ॥ १४ ।। वलतां जलनिधिमां पाई राज, एकाकी ए चित्त सुहाई राज ॥ ज० ॥ करि वस्त्राचरण विनूपा राज, लाव्यो शहां निर्दोपा राज ॥ ज० ॥ १५ ॥ हवे तुम अनुमति प्राज राज, होशे मुफ घरणी माहाराज राज ॥ ज० ॥ लेतुम आपा कृत्य कीजें राज, तो सदुमां सुयश वरीजें राज ॥ ज० ॥ १६ ॥ निसुणी नृप चित्त विचारे राज, शी बात कही धूतारे राज ॥न ॥ कहे नृप जो तुमनें ए चाहे राज ॥ तो करो कारज उत्साह राज ॥ न ॥ १७ ॥ कहे तिलकसुंदरी स्वामी राज, नृपतिने महोटी खामी राज ॥ ॥ पररमपी परने हाथे राज, किम दीजे धनायना नायें राज ॥ न ॥ १७ ॥ ए करणी जगमां घुमी राज, परनारी नरकनी कूमी राज ॥ ॥ केम पागल रहीने अपायो राज, गुंठे
तुम नरकें जावो राज ॥ ज०॥ १९ ॥ करे पाप करावे जेह राज, - अनुमोदे त्रीजो तेह राज ॥ न० ॥ ए त्रणे कह्या गुणचोर राज,
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*** 3.1.7
श्री शांतिनायनो रास खंग बीजो.
१३
राणां राज
नहि एक नरक विए ठगेर राज || न० ॥ २० ॥ सुणि मन लजवाणो बोने चहु शेष जराणी राज ॥ ज० ॥ तुऊ श्राशय सेवा मार्ट राज, हुं बोल्ला बोल ए घाटे राज ॥ ज० ॥ २१ ॥ कुए ए तुक एहवं नांखे राज, सुरु या कहो सहु साखें राज ॥ ज० ॥ कहे सुंदरी खुणो सह कोई राज, ए जेहवो नीच न कोई राज ॥ ० ॥ २२ ॥ नवि एक मुख जीजें राज, परोही दूर करीज राज ॥ ज० ॥ नरदरिये सुख पति नाखां राज, में जिम तिम धापो राख्यो राज ॥ २० ॥ २३ ॥ कहे जगमां केम रहेवाय राज, एम मंमाणां श्रन्याय राज ॥ ज० ॥ ते मार्ट सुक्र सूकावी राज, एहने रुडे समजावो राज ॥ ज० ॥ २४ ॥ एम निर्माणी रहिया के राज का चंगुल मुहमा देई राज ॥ ज० ॥ जु माटुकार कवाई गज, करे एवं कर्मकमा राज ॥ ज० ॥ २५ ॥ एम बीजे बँकें गार्ड राज, दाल बाबीशमी सुखदायी राज ॥ ज० ॥ कहें राम करो कोइवानुं राज, पण कीधुं न रहे नानुं राज ॥नणार ॥ात नाम रा ॥ दोहा ॥
॥ तिलकसुंदरी नृपने नांखे थे कर जोति ॥ नृप व्यादेगे ताहरु, क पन कर मन कोड ॥ १ ॥ एवं में नांख्युं हतुं राखण चीन रतन्न ॥ ते में महारं जानत्र्यं. सूकरी जनन्न ॥ २ ॥ ते माटें करवी हवे, नज शरण सुरु देव ॥ शुं वालम विण जीव, गोधन ऊपर नेह ॥ ३॥ कहे नृपति मया त. साहस में कर सुजाण ॥ परां प्रीतम तुक नगी देखाई इ गए || ३ || वतुं बोले सानती, तु थियो प्रति पाच ॥ परे हुन नवि परवान ॥ ५ ॥ राजन क प रिन्यु तुं बुक बेदी || पणदेखाईने, निजकेच
॥ ॥ यो
तेने नाग्यो अधिकार ॥ कर्मप्रवेश निर्धार || ३ || राजकमी क देवराज ॥ सुंदरी नजरें निरखतजन ॥८॥ || राम ॥
॥देशन, निरखीने मनमा एम दिमाग || किं मनाये ॥ जन ॥ ॥ पत्र
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पण यां ग्रामों मानी एनी नां
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७४ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. स्वामी होशे जेह सूने मंदिर आव्यो ॥ हो ॥ निज वीतकनी वात , डी, वातडली निज केरी कहिने जस समजाव्यो । हो० ॥ ॥ खड्ग दियो एवं जेहनें, जेहनें एवं शान करी मंदिरमाहे राख्यो ॥ हो ॥ जेणें वलीये राहत नणी, रादसने रंजाडी हणीने दूरें नारख्यो ॥ हो ॥ ३ ॥ परणी जे0 ए पद्मिनी, पद्मिनीने परणीने रंगे वातो कीधी ॥ हो ॥ इत्यादिक अंतरंगनी, सहिनाणी सघली साची दीधी ॥ हो० ॥४॥ मन विकस्युं तन उन्नस्युं, उन्नसियां अंतरनां कुंपल हैडे ह . रखी । हो० ॥ सुःख दोहग दूरें गयां, दूर गयां सवि दुःखडां जोवे निरखी निरखी ॥ हो॥ ५ ॥नृप आदेशे कली रही, ऊनी रही जई जोडें प्रेमदा गुणनी खाणी ॥ हो ॥धन धन दंपती जोडली, जोडी ए घएं जीवो सुं. दर रूप समाए। ॥ हो ॥ ६ ॥ राज दुकम दु एहवो, एहवो जेणे की— तेहनें तुरत खपाडो ॥ हो ॥ उपकारी नर आवियो, आव्यो ते . उजाई हणतां वचमां आडो ॥ हो ॥ ७ ॥ धन धन तेहनी माडली, माडलीयें जेणें जायो नरमां रयण समायो । हो ॥ अपराधी बोडा वियो, बोडाव्यो जनमांहे सघले सहेर गवाणो ॥ हो० ॥ ॥ सजन थतिहि दूहव्यो, दुहव्यो पण नाणे हियडे मंश केवारें ॥ हो ॥ वेद्यो नेद्यो वंशने, वंशनो स्वर मीठो बोले वायु जेवारें ॥ हो ॥ ॥ अगर अनिमा खेपियो, खेप्यो पण शुनगंधे सदुकोनें संतोपे॥ हो॥ चंदन जो घसीय घj, घ[ये तो पण सहेजें शीतलताने पोपे ॥ हो॥ १०॥ वस्तु लिये सदु पापणी, आपणली केम होवे जे परनी लीध उधारी । हो॥ सदु कहे धर्म जय दुवे, जय दुवे परयुवती मुख न जोवे नाली ॥ हो ॥ ११ ॥ ढुं बलिहारी तेहने, तेह तपी परतरूपी परधनथी जे न्यारा ॥ हो ॥ ते सऊन मन माहरे, महारा ते मनमांहे लागे अतिहि प्यारा ॥ हो० ॥१२॥ यतः ॥ परदारपरश्व्य, परशेहपराङ्मुखः ॥ गंगाऽप्याद कदाप्येप, मामहो पावयिष्यति ॥ १ ॥ यः परवादे भूकः, परनारीवक्रवीद णेऽप्पंधः ॥ पंगुः परधनहरणे, स जयति लोके महापुरुपः ॥ २ ॥ रहे नृपदत्त थावासमां, आवासें दोच रहेतां एक दिवस बदु नेहें । हो० ॥ याण लही नरवर तणी, नरवरना सेवकमु थावे जनकनें गेहें। हो । ॥ १३ ॥ वीजे खंमें वीशमी. वीगमी ए दानें धन रमणी सघि
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श्री गांतिनायनो रास खंम बीजो. जय पामी ॥ हो || रामविजय कड़े पुण्ययी, पुल्यथी सुखमाहे न रहे कांड खामी ॥ हो० ॥१४॥ सर्व गाया ॥६४ १॥ श्लोक तथा गाथा मती ॥२०॥
॥ दोहा॥ ॥ रत्नसाग्ने मंदिर, श्राव्यो कुमर सुजाण ॥ राज्यमान जाएगी करी, शेत दिये बद्ध मान ॥ १ ॥ मांमयु, धासन बेसवा, आगत स्वागत कीध ।। तुम श्रावे या दिवसमां, सबलो लाहो लीध ॥ २ ॥ धन्य दुदु धन्यमां, नुम थावे माहाराज ॥ प्रगट्यां पूरव नवतणां, पुण्य श्रमारां श्राज ॥२॥ चिंते मन कारण फिस्यु,अंगण याव्यो एह ।। केम समाये बाघलो, मुज मोकरने गेह ॥ ॥ शेव कहे फरमाविय, जे मुफ लायक काम ।। कुमर कदे तुम तातजी, कम उर्वल तनु श्राम ॥ ५ ॥ नीशालो नारखी कहे, शेव सबल दिलगीर ॥ थंगज अमें रियादियो, गयो विदेश वीर ॥ ६ ॥ तुम दी ने सांलग्यो, श्रम जीवित श्राधार ॥ एम कहि रुदन करे घणं, नयण न खेंचे धार ।। ७॥ कारण मामीने का, धुरिदंती समजाय ॥ जाएं तुम तेहज सही, पण में केम कहेवाय || FM
॥ दाल चोवीशमी ॥ ॥ श्रावी यायो रे शामलीया कांड चालो । ए देशी ॥ रही रहो रे पिताजी कांड रढो, ते टुं तुम अंगज जथ्यो । तुम भीख न मानी में नि गुणे, पम कहीने पार पथ्यो सुगुगों ॥ १ ॥ श्रावो प्यानांतुननी नानकहा, एयांकणी । तुम पाग्ने सहियां बद्ध बडा। एम कहीने पुत्र पिता म जापा, घर दिवस तागा विग्दा टविया ॥ त्रा०॥ २ ॥ ३ जननीन देने मझियो, कारे ग्राज मनोग्य तक फनियो॥में नयाणं दी मुहमादी, मोरी शान्य कमल जिन गवाही ।। या ॥३॥ जननी पगे लाग्यो मोनागी, म. मा मुमायाज बना जागी ॥ पणे दिव नुम दर्शन पायो, महागे याज दिवस जेवं बायां ॥ ॥ ४ ॥ बेसार खोने नुतने, दयगरे धातुजन रेनने मापडी मन ने गाणं नी. मुप निरग्वे फरिफर सुन ij ngic ५॥ जन्म जान पाहो तुमची मत्वरी, गम बहादुर मयां nि नि मनि पान कारी तल महामं माटीमा al tan £ | मिनाम र पा जा , सपने मेरी सानो !गज नाजी, तुल नेटी
माया
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जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. ॥७॥गजवरनें बंधे बेसारी, नृप साथे कीधी असवारी ॥ बदु लोक खलक मलियो जोवा, वलगाडि वत्स न रहे दोवा ॥ आ ॥ ॥ कोई कामिनी पिरसंती धाई, उमंते अंबर कजाइ ॥ परवाल चढावीने के., कोई का मिनी जोवाने हीमे ॥ आ० ॥ ए ॥ एक थावे फूठे हाथे धसी, ऊजातां उढण जाय खसी ॥ एक आवे ऊमंती कवरी, मनु मुखकज ऊपर ए ब्र मरी ॥१०॥ एक अलते रंजीते करणा, पहेरे साडी ढे चरणा ॥ एक कुंकुम विंदी दे गालें, काजलनो विंड दिये जालें । आप ॥ ११ ॥ रहि रजसपणे पियुनी जोडें, कर ऊंचा करी आलस मोडे ॥ एक सुंदरी सामुं हेज धरी, मत्स्योदरने जोवे फरीय फरी ॥आ ॥ १२ ॥ तिहां मलिया वहु माणसवृंदा, वाजे वाजींतर नवनव बंदां ॥ शेठ महाजन
आगे रंग नरिया, अंगें पहेस्या वाधा केसरीया ॥धा ॥ १३ ॥ सदु बोले मुख जय जय वाणी, धन धनदकुमर ए धणियाणी ॥ धन्य जननी जेणे कुंवर जायो, कुल अंवर ए दिनमणि आयो ॥ या० ॥ १४ ॥ एम धामंचरें निज घर आया, सदु साजन जन मनमें नाया ॥ वदु साधे नृपति रंग रली, मंदिरमाहे वेग सुजन मली ॥या ॥ १५ ॥ करे . सेवा शेठ नरेश्वरनी, मुफ करुणा थइ परमेश्वरनी ॥ मुफ अंगरा जे नृपति आयो, नरि मोती थाल ए वधायो ॥ आ० ॥ १६ ॥ एहवे याव्यो मालाकार, नृप आगल फूल धयां सार । नत्संग राजकुमर वेठो, लिये फूल करीनिज कर तो ॥ आप ॥ १७ ॥ जब नाके वास लिये सारी, तब कुंवर ऊपयो पोकारी ॥ जु जुरे सेवक यह वहेला, ए फूलमांहे ठे शीरे वला ॥ श्रा० ॥ १७ ॥ तव जोवे सूक्ष्म नजरें करी, माहे देखे 'इयल अति निखरी ॥ ए राजसर्प सदु एम वोले, एहतुं विप नहिं कोड्ने तोलें ॥ या ॥ १५ ॥णे दीसे राजकुमर मग्यो, नृप मनमांहे दुःख
जोरें वस्यो ॥ धा धाउरे तेडो गारुडी, एम बोल्यो राजा पारडी ॥ • था ॥ २० ॥ कहे गारुडी ए अमथी न बले, ए मश्यो कुंवर अति सवले ॥ जोतां ततण मूवी धावी, न टने जे टाव्युं कोई जावी ॥ श्रा ॥ १॥ कहे धनंद करो तुमें शी चिंता, महाराज रहो यह निश्चिता ॥ . विहां गंटयुं देविदत्ते मणि नीर, तब ऊग्यो कुंवर वड वीर ॥ या० ॥२२॥ बडीपी वर्ष वयोमपी, वधी प्रीति मत्स्योदर' घणी ॥ निजमंदिर
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श्री शांतिनाथनो रास खंम वीजो. ១១ १. याव्यो नरवरू, सुरख विलसे धरि जेम सुरवरु ॥ श्रा० ॥ २३ ॥ दवे ii. मत्स्योदर विलसे जोगा, निजनारीगु लहि गुन योगा ॥ दीये दीन दुःखी 1 में अनुकंपा, गुजरीतें विचरे निःकंपा ॥ आ ॥ २४ ॥ ढाल वीजे खंमें । चोवीशमी, कहे रामविजय साकर समी ॥ गुन उदय यदा यावी मने, । तब एणी परें सवि चिंतित फले ॥धा॥२५॥ सर्वगाथा ॥६७४॥ श्लोक॥३॥
॥दोहा ।। ॥ राजकुमर यौवन लघु, सकल कलानो जाण ॥ मत्स्योदरसाथै घणो, राखे नेह सुजाण ॥ १ ॥ जाणे एणे जीवित दियु, उपकारी शिरताज ॥ मत्स्योदर आवे यदा, तब आधु चाले काम ॥ ॥ एक दिन रयवाडी चढयो, गज देसी नृपनंद ॥ पुरमांहे एक धवल गृह, दीतुं नयनानंद ॥ ३ ॥ शुरराजनी पुत्रिका, श्रीपेणा इति नाम ॥ कुमरें दीठी क्रीडती, सो धगवाद ताम ॥४॥ रूपं रति दासी करी,चंचल गति सुकुमार ॥ मृगनय पी मनमोहनी, फूली सुंरतरु माल ॥५॥ गति मूली ग्यो कुमरजी, सुरति रहि न लगार ॥ मन वेव्यु मन्मथ सुनट, नयावाण सविकार ॥ ६ ॥ गारंगी ते गोरडी, कालेजानी कोर ॥ कोरीने पेटी बचें, जुलम करे ते जोर ॥ ७॥ मन विण जश् पाठो वख्यो, वनइती नृपजात ॥
घर याच्या पाग कोइनो, न गमे तस संघात ॥GIN कुमरीना मनमां नहिं. . ते ऊपर लवलेश ॥ पण ते मूरख एकलो, रागं सहे कलेश ॥ ए॥
॥ ढाल पन्नीशमी ॥ ॥ महेतोजी खणावे वावडी ॥ ए देशी ॥ लहि मित्रमुखं ते चातडी, नृपति मंत्री बोलावे रे ॥ शूर समीपं मोकल्यो, जड वात सवे समजावे रे ॥ १ ॥ जगत मोह्यो विपयनी वासना ॥ ए यांकणी ॥ सबि जीव विषय ना दासो रे । सुर नर पण करे यहोनिश, मनमांहे विपयनी भागो रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ शर कहे लबे स्वामी,. तुमें ए श्रावी मुं दारव्यु रे । राज दुकाम शिर ऊपर, अमें बयण तुमारं सरयु रे ॥ ज० ॥३॥ कड़े कुमरी जो तुमें प्रापणा, तो पलकमां प्राणने काढी रे ॥ नावीन पाण ईनहिं वलं, ए राज कामर एम वाडी रे ॥०॥ ४ ॥ मंत्रीने मनमांद ऊपन्यो, यात नगी ने विषादो रे । कमरी तो इसे नहिं. जुई राजकुमर उन्मादो रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ मंत्री को मानाराजनें, नदि ते कन्यानो गगोरे ॥ नयण सुम्यु
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जैनकथा रत्नकोप नाग आरमो. में एहवं, जेहथी उपजे वैरागो रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ राय कहे नृपनी कनी, परणावू अपर सुकुमारी रे॥युं नीर्मोही ऊपरें, मोही रह्यो अंग निहाली रे ॥ ज० ॥ ७ ॥ कुमर न माने वातडी, कामिनीय कामण कीर्छ रे ॥ माहे पेशी माहरूं, एवं तन मन चोरी लीधुं रे ॥ ज० ॥ ७ ॥ विण प रणे अन्न न वावलं, पालव साह्या विण पाणी रे ॥ पीवू नहिं पण में कघु, नहिं ऊपर वोलो वाणी रे ॥ज॥ ॥ जु वात सवल वांधे पडी, वेदु पासें हठीलां एह रे ॥ पासें रही पीलायें, सुण मंत्रीश्वर गुणगेह रे ॥ ज ॥ १० ॥ कन्या नवि माने वापनु, मुफ कहण न माने पुत्र रे॥ एम हठ लीधे आकरे, केम मंमाशे घरसूत्र रे ॥ज ॥ ११ ॥ एहवे म त्स्योदर धावियो, कहे स्वामी सचिंता दीसो रे ॥ शे कारण मुफ धागलें, प्रकासो ते अवनीशो रे ॥ ज ॥ १२ ॥ समजावो जर तुम मित्रनें, हतीयें हन लीधो गाढो रे ॥ शीखामण देई करी, एहनी खटक हैयेथी काढो रे ॥ ज० ॥ १३ ॥ धनद कहे सुणो मित्रजी, श्यो एकपखो ए नेह रे ॥ ए चंचल तरुणी कारणे, कांइ सबल दफाडो देह रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ ॥ ढाल ॥ नदी यमुनाके तीर, उमे दो पंखीयां ॥ ए देशी ॥ सांजल मित्र कढुं, तुऊ आगल वीनती ॥ रखे मन राखो राग, रमणीनो एक रति ।। ए रमणी रमणीय, देवाडी नातिने ॥ चोरी ले चित्तमाल, लजावे जा तिनें ॥१॥ नाखे मुख निःश्वास, न यावे निड्डी ॥ उलस वालस थाय, के जक नहिं एक घडी ॥ मन्न रहे मलवाने, रात्रि दिवस रडी ॥ संघमांहे तस ध्याने, ते धारडी ॥ २ ॥ पामे अवस्था कंप, अने अम स्वेदनी ॥ मूळ ग्लानि बलदय, लघुता मेदनी ॥ अवगुण एम अनेक, देखीता ऊपजे । ते तरुणीनी संगते, गुण श्यो नीपजे ॥ ३ ॥ जण जण सेंती प्रीति, न कीजें प्रेमनी ॥ निखर कसोटी एह के, यातम हेमनी॥ दशमो ठायासुत, वेतो तेहनें ॥ पररमणीनी लालच, लागी जेहने ॥ ४ ॥ नावे तस विश्वास, न ईजत खलकमें ॥ परियागतनुं पाणी, उतारे पलकमें ॥ रात्रि दिवस गलियोमां, हीमो हेरतो॥ हियडामा पुाननी, माला फेरतो ।। ५ ॥राती देवावे रंग ज्यु,कण्वरनी कली ॥ विफरी को विपरीत, के वाघण ज्यु बली ॥ व्याधि महानिन म के, मदिरा दृष्टिकोणतेह
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श्री शांतिनाथनो रास खंग बीजोए ते काम, रीति माहाकएकी ॥ ६ ॥ संकट विपम सम राज, ढूंती पंथ जापीयें ॥ त्रिक तजवा एक पंथ, माहे मन आणीयें ॥ पर विनता विधवा निज, गणिका नारिथी ॥ पंथ होवे धन्य तेह जे, विरम्या चा रथी ॥ ७ ॥ सात व्यसनमां दोय, कह्यांचे नारिनां ॥ ग्रंथमाह वली चार, नरकनां वारणां ॥ तेमांहे पण बीजू, एह कहुं सही ॥ एम जोतां ए वातनी सघले ना कही ॥ ॥ धनद कहे सुण कुमर, कनकप्रन नूपना ॥ मूकी द्यो हत एह, घटे नहिं रूपना ॥ राम कहे नवि शीख, सुणीय इकमना ॥ मूको विषयनी देव, जिहां अवगुण घणा ॥ ५ ॥ इति शीखामपजकडी ॥ पूर्वढाल ॥ कहे राजकुमर उत्तर हवे, सुपो मत्स्योदर मन राखी रे ॥ दोप नहिं ए वातमां, जे परणीजें सदु सारवी रे ॥ ज० ॥ १५ ॥ वहेला थर हवे मुजनें, परणावो ए कनी सारी रे ॥ वारं वार गुं दाखवू, तुमें महोटा बो नपकारी रे ॥ ज० ॥ १६ ॥ मति भारत जाएी तेहनी, मणिसमरणथी ततकाल रे ॥ चित्त फयु कुमरी तणुं, वरवाने थइ उजमाल रे ॥ ज० ॥ १७ ॥ तव शुर कहे नृप श्रागलें, तुम सुत ऊपर रलियातो रे ॥ स्वामी सुता यह माहरी, सुणि हररव्यो साते धातो रे ।। ज० ॥ १७ ॥ लग्न लेइ ऊतावला, विवाह कयो मनरंगे रे ॥ धन वदुखें रायें तिहां, खरच्युं मन धरिजठरंगे रे ॥ ज० ॥ ॥ १ ॥ कहे धनद कुमरने राजवी. तुमें उपकारी शिन्ताजो रे ॥ जी वित प्राप्युं पुत्रने, सायां श्रम बांठित काजो रे ॥ ज० ॥ २० ॥ वीने खंमें पचवीशमी, ए दाल कही मुनि रामें रे ॥ सङ्गन ते जगमां सही, जे अवसर यावे कामें रे ॥ जप ॥२१॥ सर्वगाथा ॥७१३॥ श्लोक ॥२०॥
॥दोहा॥ एक दिवस नृपने शिरें. शूलव्यथा अति जोर ॥ ययावी तेणं अति घाणो. करे महीपति सोर ॥ १ ॥ रोग निवारण मणियकी, धन को करार ॥ नृप मान्यो सुतथी अधिक. जाणी तस उपकार ॥ २ ॥ अवसर तिण नयर चन, शीलंधर निधान ॥ मुनिवर श्राबी समो सम्पा, वात सुणी गजान ॥ ३ ॥ बद्ध परिमारे चांदवा. यावे धनद स मेत ॥ चांदीने वेता सये, मुनि कहे संकेन a !!
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១០ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
॥ ढाल बबीशमी ॥ ॥थान सखि शामलीयो ॥ए देशी ॥ अथवा ॥राग मारु॥ कहे मुनि । वरजी हितकारी, तुमें धर्म करो नर नारी ॥ एतो प्रवहणनी परें तारे, नवसायर पार उतारे ॥ १ ॥ एहनी वांहे वलग्या जेह, सुख सादि , अनंत लह्यां तेह ॥ जे ए सुखमा रह्या माता, ते नरने वेदु नवें शाता ॥ २ ॥ सागार अने यणागार, विडं ने कह्यो निर्धार ॥ कारण शिव पदनां दोय, परं पर अनंतर जोय ॥ ३ ॥ मन साथै कलंक लगावे, तो उरख मिश्रित सुख पावे ॥ महणाक परे ते माटें, निःकलंक करो सुख साटें ॥ ४ ॥ कहो स्वामी कवण महणाक, तुमें जांखो अनोपम वाक ॥ गुरु कहे जरतें गुन गम, एक रत्नपुरानिध गाम ॥ ५ ॥ निवसे गुनदत्त व्यवहारी, तस नारी वसुंधरा सारी ॥ तस कूरख सरोवरें जायो, महणानिध पुत्र सुहायो ॥ ६ ॥ ते याव्यो योवन रंगे, परण्यो रमपी सुख संगें ॥ रहे नामिनीगुं नित्य नीनो, जाये योवन पूर नदीनो ॥ ७ ॥ एक दिन रयनी असवारी, पहोतो उद्यान मकारि ॥ तिहां रंग रसे सदु रमिया. ममप बेसीने जमीया ॥७॥ फरी चाव्या वन जोवान, मुनि कनो दीठो ध्यानें ॥ रह्यो चंपक तरुनी गया, मुनि कंचन बरणी काया ॥ ॥ ॥ प्रमुगुं एक तान लगाया,नहिं मन ममता ने माया ॥ मन अानंद अधिको पाया, वंद्या मुनिवरना पाया ॥ १७ ॥ मुनि ध्यान संपूरण कीधो, उपदेश यथोचित दीधो ॥ शुद्ध देव धर्म गुरु तत्त्व, समकिन मा रग ए सत्य ॥ ११ ॥ समकित सुरसूद अमूल, मानिक सुख जस फूल ॥ शिवपद फल आपे साचो, समकित गुणमा नवि राची ॥ १५ ॥ नहिं ए उपरांत रतन्न, एहनां घपां करजो यतन्न ॥ नहिं एदयी वंचव दूजो, दरिसण गुणने नवि पूजो ॥१३॥ योपशम विचार, वेदक दायिक गुण सार । सास्वादन पंचम जाणं, समकितना नेद बखाणुं ॥ १४ ॥ मिश्र समकित मिय्या मोह, अणाचार सबल बलि जोह ॥ ए सातनाव
वसमयी, दायिक उपशम लहंती ॥ १५ ॥ वेद कह्यो ए चरम प्रदेणं. सास्वादन वमते देशे ॥ प्रदेश वेदन हूंते, खयोवसम कन्यु लगवंत ॥ १६ ॥ ए सहित थोडोदी धर्म, धाराथ्यो दे शिवगर्म ॥ महणाक गुणी प्रतिबुको, नमकित श्रावक व्रत सीधो ॥ १७ ॥ गुरु बांदी याव्यो निजपुरमां, जिन
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श्री शांतिनायनो रास खंम बीजो. तर धर्म वस्यो निज नरमां ।। ममाव्यो जिन प्रासाद, खरचे धन मन आ हाद ॥ १७ ॥ बदु धननो व्यय ययो जाणी, कर्म तस मति मूंकाणी ॥ जाण्यु थोडे थाशे श्रावू, खरचंतां न जोयुं पातुं ॥ १ ॥ नांग्यो । साह रीने, वेतो संतोप करीनें ॥ वली लोकाग्रहथी कदापि, प्रतिमा जिननी लेड स्थापी ॥ २० ॥ स्थापीने प्रतिष्ठा करावी, लीधो लाहो धनने वावी ॥ वली एक दिन चिंते हीणो, मन ध्यान गुमां लीणो ॥ २१ ॥ धन चोथो नाग ए धर्म, करवो एम कर्तुं शास्तरमें।ए तो अधिक शहां रखर चाणु, फलशे के नहिं शुं जाएं ॥ २२ ॥ एम संशय मनमां धरतो, जिन पूजादिक श्रादरतो । एक दिन मुनियुग घर आव्यु, जतीने तेणें पडि लान्यु ॥ २३ ॥ वलिया बलतुं मन नाव्यु, फल दीढं नहिं कां फाव्युं ।। . मलें मेनूं देखी मील, तेणें कीधी सुगंबा अवील ॥ २४ ॥ हा हा माह्या पण चूके, कोईने कर्म न मूके ॥ वली कीधो पश्चात्ताप, मुऊ म होटुं लाग्यु पाप ॥ २५ ॥ ए निर्मल अंग सदाइ, मुझने माठी मति धाई॥ एम गुन ने गुन वेदु वांधी, झदिनुवनपतिनी लाधी ॥ २६ ॥ चवीनं ययो धनद कुमार, जेम वांध्यु तिम लमु सार ॥ मन ऊहापोह करत, लघु जातिसमरण तंत ॥ २७॥ कहे मुनिने जोडी हाथ, जग रही अनायनो नाथ ॥ मुझ वीतक संघली वात, तुमें परकाशी नती नांति ।। २७ ॥ तुम ज्ञान तणी बलिहारी, नव पडतो राख्यो उपगारी॥ सेशुं दीक्षा तुम पासें. माय तायनें पूठी उन्नामें ॥२॥ ॥ मुनि वंदी, याव्यो गेह, ढाल बीगमी कहि एह ॥ रामविजय कही खंम चीजे, धन्य जे गुरुवचनें रीजे॥३०॥ सर्वगाया।।३४॥श्लोक तथागाथामली॥२०॥
॥दोहा॥ ॥ मत्स्योदर श्रावी कहे, पितर नणी कर जोडि ॥ अनुमति यापों माने, संयम लई मन कोडि ॥ १ ॥मात पिता कहे जातने, जिदा तुं निदां अमें साथ ॥ बाट जोवंतां धावियो, घणे दिहाडे हाथ ॥ २ ॥ नृपनि पण निलुणी कहे, वाहाला विण श्यो चान ।। हे उपगारी तादगे, हंबरी न महेलं पाम ॥३॥ तनकरन निज मग्ने, वेसागो नृप गज।। पोते सज घई नीनो , संयम वा काज ॥ ४ ॥ धनद धनावह पुत्रने,
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श् . जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. सोपी घरनो नार ॥ मात पिता नारी सहित, वरवा निवृति नार ॥ ५॥ वहु परिवार परवस्था, आव्या श्रीगुरु पास ॥ ऊना कर जोडी कहे, दीदा द्यो गुणराशि ॥ ६ ॥
॥ ढाल सत्त्यावीशमी॥ ॥पन देव मोरा हो ॥ ए देशी ॥ अव मोहि तारो हो, दयानिधि पार । उतारो हो।जवनयथी हुँऊनग्यो, आव्यो तुम नेरो हो॥०॥ दयानि०॥ ॥१॥ नाथ मुनि पट्कायना, कीजें मुने चेरो हो ॥ तारक जाणीने सही, मन मान्यो मेरो हो ॥ द० ॥ २ ॥ स्वामि धनादिनी मूढता, हूंती हुँ । घेखो हो ॥ अव तो विण ए बंदीने, कुण राखे अनेरो हो । द० ॥ ३ ॥ काज विचारी कीजियें, न पडे ज्युं फेरो हो ॥ कहे गुरु विलंब न कीजिये, होये कर्म निवेरो हो ॥६॥॥ चिहुँ जण सायें पंचमे, श्री धनद कुमारें हो ॥ दीदा गुरुपासें ग्रही, रहे जय विहारें हो ॥ द० ॥ ५ ॥ चारित्र चोखं पालतां, मुनि निरतिचारें हो ॥ साथें साधु तपी क्रिया, प्रमाद निवारे हो ॥ द ॥ ६ ॥ थिविर मुनि पासें नण्या, बागम आचारें हो । सपनपरें धोरी यया, धुरा धर्मनी धारे हो ॥ द० ॥ ७ ॥ करि थासण धाराधना, शुनध्याननी धारें हो ॥ काल करीने कंपन्या, सुरलोक मझारे हो ॥ १० ॥ ॥ सुख वैमानिक देवनां, रुडी परें पाले हो । बरस असं ख्य लगें तिहां, वलतां अवतारे हो ॥ १० ॥ ए ॥ तिहांयी विदेहे पंचमे, उत्तमकुलसारें हो ॥ मनुजपणे संयम ग्रही, पहोता शिवतारे हो ॥ द० ॥ १० ॥ ए मत्स्योदरनी कथा, मुनि कही मनोहारें हो ॥ अमिततेजा ये सांजली, मनने सुविचारें हो ॥ द॥ ११ ॥ तेमाटें तुमने कहूं, खेच र अवधार हो। धर्म निरंतर कीजिये, शिवसुख दातार हो । द० ॥ १२ ॥ गुरु वाणा शिर ऊपरें, राय धारी तेवारें हो ॥ साचे दिल अरिदं तनी, नक्ति सवाई धारे हो ॥ द० ॥ १३ ॥ ननमंमल मुनि चालीया, जिहां जनविहार हो ॥ अमिततेज श्रीविजयजी, मुख विलमे अपार हो ।। द० ॥ १४॥ ढाल थइ सत्त्यावीशमी, खंबीजे उदार हो ॥ रामविज य कहे ते जला, जे राखे याचार हो ॥ द० ॥१५॥ सर्वगाया ॥श्लोक २०॥
॥दोहा॥ ॥ अमिततेज श्रीविजयजी, ए वेद गजान ॥ राजनीति कडी पो,
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" श्री शांतिनायनो रास खम बीजो. ३ पाले सुगुणनिधान ॥ १ ॥ यात्र करे जिनवर तणी, वेदु प्रकारे तेह ॥ नंदीश्वर बेताढयनी, सीमा नगनी जेह ॥ २ ॥ वरस प्रत्ये महोटी करे, त्रण्य यात्र गुणवंत ।। दोय नंदीश्वर हीपनी, एक सामानिक संत ॥ ३ ॥ चैत्रमास उज्ज्वल पखें, तेम वली यासो मास ॥ नंदीश्वर उत्सव करे, थात दिवस उन्नास ॥ ४ ॥
॥ ढाल अग्यावीशमी ॥ ॥ अष्टापदगिरि यात्र करणकुं ॥ ए देशी ॥ नंदीश्वर वरहीप अनोपम, जिहां जिनगृह वावन्न ॥ तेह तणो संबंध संपें, कढुं सुणो सदु साजन ॥ ॥ नविका नाव धरीने सार, जिनवर यात्र करीजें ॥ टालि मिथ्या मति निर्धार, नरजव लाहो लीजें । एआंकणी॥ एकशत कोडी अने वली नेसत, कोडि चोराशी लाख ॥ योजन नंदीश्वर वर पहोलो, ए बागमनी सारख । न ॥ २ ॥ तेह तणे मध्ये अति महोटी, चिढं दिशे चिढं चिटुं वापी । जंबूदीप प्रमाण ए नारखी, उही नहिंय कदापि ॥ ॥ ३ ॥ एकेकी वापीने यंतरें, दधिमुख एक गणीजें । दधिवरणा शोले एक सरिखा, थागममांहे जणीजें ॥ न० ॥ ४ ॥ एकेकी वापीने अंतर, रतिकर दो दो कहा ॥ वर्ण कनकसरीखा सुंदर, वत्रीश चिद् दिश सहीयें ॥ ॥ ५ ॥ . . वायोनी वचमां चिढुं दिशे एक एक, अंजनगिरि एम चार ॥ सहस्त्र चो गशी योजन ऊंचा,थंजन जिम थाकार ॥ ज० ॥ ६ ॥ एवं बावन पर्वत उपरें, बावन जिन प्रासाद ॥ चोबारां ध्वज वापि विराजित, दीवडे दोय थाहादान ॥ ७ ॥ शतयोजन धायाम कहीजे, पचास योजन पहोला । वहोतेर योजन ऊंचां जिनघर, यात्र करे पुण्य बदुला ॥ ना ॥॥ चारे धार विराजे सुंदर, ऊंचा योजन शोल ॥ मुखमंगप रंग मंम्प कडा, दी दोवे रंगरोल ॥ ॥ ए॥ पूर्व दिशे रुपनानन सामी, दक्षिणे जिन वर्धमान ॥ पश्चिम दिशे वंशनन उत्तर, चारिपेण जग चान । न० ॥ १० ॥ चोगवशे ने वलि अडतातीश, प्रतिमा संख्या शादिय ।। पंचगत धनुष प्रमाणे ऊंची, जिनप्राणा गिर बहियें ॥ जल ।। ११ ॥ मृज गंजारे एकेक पाने, पडिमा सत्त्यावी ॥ चैत्ययून बिटुंनी गांस, एम एकसो चोवीरा ॥ ज० ॥ १२ ॥ ते चावन्न गुणी तव ..
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न जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. थाये, चोशनशे ने घडयाल ॥ संख्या नांखी आगममांहे, प्रचुंजी दीन दयाल ॥ज ॥ १३ ॥ तिहां श्रीविजय ने अमित नरेश्वर, बहुपरिवार थावे ॥ पात दिवस महोत्सव अहाही, पूजा विविध रचावे ॥ ॥१४॥ नक्ति करे जिननी नवरंगी, नव नव अंगें पूजी ॥ समकित निर्मल करवा नविने, ए साल करगी न दूजी ॥ ज० ॥ १५ ॥ पाबा फरि याची : मंदिरमां, जिनमंदिर जूहारे ॥ तत्ता थे। थे नाटक करतां, पाप पमलने । वारे ॥ न ॥ १६ ॥ एक दिन मेरुवनें नंदनमां, बाव्या जिन नमवाने । वेदु राजेसर अति अलवेसर, कर्मनी रज दलवाने ॥न॥ १७ ॥ जिणहर । चार जगीश विराजे, कंचपणे उनीश ॥ पचवीश योजन पहोलपणेते,यायत वली पंचास ॥ ज० ॥ १७ ॥ प्रतिमासंख्या एक प्रासादें, एकसो वीश गणि राखी ॥ नक्ति करे आवी तिहां राजा, बदु विद्याधर साखी ॥ जप ॥ १५ ॥ पंचमेरुचन संरख्या करतां, विंव उन्नुशे कहीयें ॥ ए जिन नित्य उतीने नमतां, नवियण शिवसुख लहियें ॥ ज ॥२॥नक्ति करीने नंदन - वनमां, फरता मुनिवर दीना ॥ जुमति विपुलमति इण नामें, जोतां लाग्या मीना ॥ ज० ॥ २१ ॥ हवे कहेशे मुनिवर उपयोगी, अग्यावीशमी ढाल ॥ वीजे खंमें रामविजय कहि, धन्य जस धर्मनो ढाल ॥ ॥२२॥
॥दोहा॥ ॥ अतिशय नाणी मुनि कहे, निसुणो तुमें राजिंद ॥ यायु अथिर जि नवर कयुं, श्यो तेहगुं प्रतिबंध ॥१॥ श्रायु अमूलक नरतगुं, जो धर्मे जो डाय ।। नहिंतर ए नव पूरणा, कोडी काम न थाय ॥२॥ ते माटें तुमने अमो, कहियें ये उपदेश ॥ चेताये तेम चेतजो,यायु रयुं लवलेश ॥ ३ ॥
॥ ढाल उगणत्रीशमी ॥ ॥ निश्डी वैरण दुइ रही ॥ ए देशी ॥ निड्डी मोहनी परिदरो, मत कंघो हो रहेजो सावधान ॥ कुमति रमणीने दृरे तजो, समतानो होनजो संग सुजाण ॥ निं०॥ १ ॥ श्रायु दिवस उबीशनु, रयुं तुमचूं दो निमुष्णो राजिंद ॥ तो अरथी तुम धर्मना, तिण कारण होयमें नरिव्यु नरिंद ॥ निं० ॥॥ यात तुणी गय चिंतवे, हे दास्यो हो एहलें अवतार ॥ धर्म करयो नदि चोंपा, मोहनृपं दो उलिया निरधार ॥ नि॥३॥ मम रह्याथमें मोहमां,
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रमणी/ करा , परमारथ हा हवे हाय
श्रीशांतिनाथनो रास खंमबीजो. तृप्लाना हो या सूधा दास ॥ नीशासो नारवी कहे, मुनिवरजी हो श्रम कोण हवाल ॥ निं० ॥ ४ ॥ पडतां जवजलकूपमा, कोण करो हो यमची संजाल ॥ रामत रमपीशुं करी, नवि जोयुं हो कांइ दीर्घ विमास ॥ निं ॥ ५ ॥ लालच लोनमांहे पडया, परमारथ हो न लह्यो मुनि राय ॥ हाय घसी मारवी परें, करा हो मुख कहे हवे हाय ॥ निं ॥ ६ ॥ मुनि कहे खेद करो रखे, नथी विणठं हो तुमचुं इजी कांय ॥ साधी संयम श्रादरें, प्राणा गुम हो जेहयी सुख थाय ॥ निं० ॥ ॥ एकदिननो गुचनावथी, धाराध्यो हो दे संयम सुरख ॥ तो तुमें शी चिंता करो, बढुदिन दो धरो मनमां सुख ॥ निं० ॥ ७ ॥ मुनि वंदी ऊता वला, राजेश्वर हो याव्या निजगेह ॥ राज ठवी निजपुत्रने, लिये संयम हो वेदुनृप ससनेह ॥ निं० ॥ ॥ अजिनंदन मुनिवर कनें, लीई दीदा हो शिक्षा ग्राहि सार ॥ अगसण वेदु मुनि श्रादरे, करे पुःकर हो तेहनी चतिहार ।। निं० ॥ १० ॥ लख चोराशी जीवनें, खमावे हो मूकी मन रीय ॥ शरणां चार करे वली, सहे परिसह हो मुनि चढती जगीश ॥ निं० ॥ ११ ॥ पादोपगम समाचघु, अमिततेजा हो श्रीविजय मुनीश ।। उकर तप साधे नता, सुर किन्नर हो नामे तस शीश ॥ निं० ॥ १२ ॥ कर्म बड़ों श्रीविजयजी, मन सांभरे दो निज जनकनी शहि ॥ मोह पिशाचे
यो तिहां, बांध्यु तिहां कणे हो नीया' अशुभ ॥ निं ॥ १३ ॥ उफर तप प्रनावधी, मुफ पितरनी हो सरिखों नूपाल ॥ होजो ढुं श्राव त नरें, एम चिंत्यु हो धिक् राग माल ॥ निं० ॥ १४ ॥ ययुःक्ष्य बेदु मुनि चवी, ते उपन्या हो प्राणत सुरलोक || जिनविमाने नुर यया, कीची किरिया दो नवि थाये फोक 110॥१५॥ नंदिकावन विमानमें, स्थमिततेजा दो र दुई दिव्यचूल ।। स्वस्तिकावनमां ऊपन्यो, श्रीविजय जी हो नामें मणिचूल ॥ निं ॥ १६ ॥ प्रीति घणी बेहुनें बनी. सुरव शिलने हो मनची परिवार ॥ नंदीश्वरादिक तीर्थनी, करे यात्रा हो शुभ नमक्ति धारारि ॥ पंचम नएम वापन्या. सर सुंदर दो गणत्रि शमी दाताबीज व सोहामाणी रामविजय हो नांगवी उजमातानिया
दाल त्रीशमी ॥ TI निल्या गुण नुम ताणाए देगी । ननियण निर्मल नाव ध
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Tige ryire
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जैनकथा रत्नकोप नाग आवमो. रीने, जिनगुणस्तवना कीजें रे। सांसारिक धंधो बोडीने, गु६ अनुजव रस पीजें रेज॥१॥ परमपदारथ सुस्तकतारथ, पुरुपारथ पामीज रे ॥ जिन गुण गातां निजगुणनोगी,अंतरमल सवि बीजे रे॥॥॥गंगाजल उज्ज्वल जग कीर्त्ति, परनवें सुगति वरीजें रे ॥ प्रमुगुण श्रवणे श्रवण करीने, या तम गुम करीजे रे ॥ न० ॥३॥ विकथा वारी गुरू विचारी, एकम ना चाखीजें रे ॥ जिनगुण मुनिगुण मेवा मीता, स्वाद हृदय राखीजे रे ॥ ज० ॥४॥ शांतिप्रनुनी स्तवना माला, गुण गूंथी धारंतां रे ॥ सुम ति सुगृहिणी साथें चेतन, क्रीडा करो मलपंता रे ॥ न ॥ ५॥ वैर न वाधे शिवसुख साधे, प्रमुगुण जे बाराधे रे ॥ शांतिप्रचुनें रासें रमतां, कीर्ति कमला वाघे रे ।। न० ॥ ६ ॥ पंचम जव एम प्रनुनी स्तवना, वीजे खंमें कीधी रे ॥ ए माहे जे न्यूनाधिक होवे, ते लेजो कवि शोधी रे ॥ ज०॥ ७ ॥ संवत सत्तर पंचाशीया वर्पे, राजनगरमांहे नेट्या रे॥ त्रिश लानंदन वीर जिनेश्वर, सुःख दोहग सवि मेटयां रे ॥ ॥ ७॥ तेष जुनी सान्निध्ये संपूरण, खम ययोसुप्रमाणो रे ॥ वीजो उज्ज्वल वीज शशी परें, चढती कला मन आयो रे ॥ न० ॥ ए॥ दाम न वेसे सुणतां जिनगुण, पावन तन मन याये रे ॥ लवकोटीसंचित नवि .जननां, पातक नासी जाये रे ॥ ज० ॥ १० ॥ तपगहनायक सूरि सवाई, श्री लक्ष्मीसागर सरि राजे रे ॥ श्रीगुरु सुमतिविजय कवि गिरुधा, महिमा अधिक विराजे रे॥न ॥ ११ ॥ तस पद पंकज मधुकर सरिखो, राम विजय कहे रसियो रे ॥ शांतिनिनेश्वर गुण गावाने, मुफ आतम उन्न सियो रे ॥न०॥ १२ ॥ सर्व मलीने त्रीशनी संख्यायें, ढाल कही ए खंमें रे ॥ एक मनें सांजलतां जिनगुण, सहियें सुख श्रखंमें रे ॥०॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥ २७ ॥ श्लोक तथा गाथा ॥ २० ॥ ढाल ॥ ३० ॥ प्रथम खंग गाथा ॥ ४३७ ॥ प्रथम खंम श्लोक तथा गाथा ॥ ४१ ॥ प्रथम खंम ढाल ॥ १७ ॥ ननयोः खमयोमिलित्वा गाया ॥ १५६५ ॥ उनयोः संयोमिलित्वा प्रास्ताविक लोक तथा गाया ॥ ६१ ॥ खंमध्यढाल ॥ ४७ ॥ इति श्रीशांतिजिनप्रबंधे प्राकृतप्रबंधे हादशनवनि बंधे सुरूतानुतंधे सत्यार्यसंधे दारिप्रतिदरिसंबंधक तितोमत्स्योदरसंबंधमिति तोविद्याधरसुरपदरुपनवध्यवर्णननामा दितीयः खंमः संपूर्णः ॥ २ ॥
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श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजो.. GS ॥प्रय तृतीयवंमस्य प्रारंनोऽयम्॥
॥ दोहा ॥ ॥ति नमु कर जोडिने, धरि मनमां यानंद ॥अंतर यातमजेहथी, . थायें पूर्णानंद ॥ १ ॥ प्रथम सयोगिपणुं जिणे, घनुनवियु नवमांय ॥ . उलटें नव कोडि लघु, दोय कोडि संख्याय ।। २ ॥ तस यागायें चालतां, मुनि नव कोडी सहस्स ॥ नमीयं दो कोडी सहस, लघु पद एह रहसत ॥ ३ ॥ सकलगुणें करि जे जया, मद नारख्या जेणें मोडि ॥ सकल. गुणीने दुं नमुं, नित्ये वे कर जोडि॥ ४ ॥ वरदायी वाघेश्वरी, कविजननी
आधार ॥ ते श्रुतदेवीने नमी, त्रीजो खंग कड़े सार ॥ ५ ॥ नवि निसुगो नावें करी, मूको कच पच वात ॥ कुण विमासण मन करे, पीतां दृधनी धात ॥ ६ ॥ कथा रसिक जिनशांतिनी, वक्ता रलिक हवंत ॥ पण श्रोता रसिया विना, केम आस्वाद लहंत ॥ ७ ॥ यतं ॥ उप्पय ॥ विप विनताने शोक्य, वली विप वयं रंमापण ॥ विष दारिशी गोष्टि, बली विप कुलने खंपण ॥ विप स्वामी अपमान, वली विप चंचल गोरी ।। विप गायनने खांसि, वली विप गलियों धोरी ॥ पूत कुपूत कुवास विष, विप विश्वास वेरी जना ॥ प्रीति कहे सुण चतुर नर, विप पंमित वचन अनावना ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ सक थइने सांजलो, मूको विकथा दूर ॥ जिन गुणरस अवणे सुणो, चिदानंद नरपूर ॥ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ ॥ माला फिहां ने रे ॥प देगी। पूर्व विदेहं मुगो नवि ने. रमणि विजयमा वारू रे ॥ लुनगा नाम पुरी सुरपुरना, सरखी यति दीदारु रे ॥ १ ॥ रंगें तुणीय रे, जिनगुण वात विनोद, शहानिग नणीये ।। ॥ श्रांकरणी ॥ ने नयरीमां नहिं बरीनो, वाचाट तपो न जोरो रे ॥ धर्म सदनी मीजी नीनी, नवि को दीम कोगरे ॥20॥ २॥ बंधन कुसुम गिना नहिं जनमां, नहिं स्नेदनो कप विण दीपं ॥ चेत्यशिविर विण देगा नदीने, न्पायनिपुण जन टीप रे ॥ २०॥ ३ ॥ जिहां व्यवहार गुणं करी सदा, निरमे व्यबदारी महोटा रे ॥ नयमारग चाले चनुगई, माहिं मनमांदे खोटारे ॥20॥ 4 ! एपरिवाः मृक सरीत्या. पर
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. गुण लेवा शूरा रे ॥ पंगु परनुं धन हरवाने, परमैश्वर्यना पूरा रे ॥२०॥ ॥ ५ ॥ तिण नगरीमा स्तिमितसागर इण, नामें नृपति गाजे रे ॥ स जान जन रंजन उपकारी, उःखीयानां उःख नांजे रे ॥ २० ॥ ६ ॥ न्यायें साजो बलयी ताजो, सवलो जेहनो बाजो रे ॥ पट् गुण जाणे सवि सुख मागे, न लहे कोइ तस माजो रे ॥ २० ॥ ७ ॥ शियलगुणें पूरी वलि वड नूरी, रमणी दोय अति रूडी रे ॥ मोहनगारी रमझम करती, हाये सोवन चूडी रे ॥ २० ॥ ७ ॥ एक वसुंधरा वीजी अनुधरा, चाले पतिने ठंदे रे ॥ धर्मे लीणी देव गुरुनें, नित्य नतीने वंदे रे ॥ २ ॥ए॥ हवे प्राण तथी अमिततेजानो, जीव चवीने अवतरियो रे ॥ वसुंधरानी कुखें बारु, जाग्यवशे गुण दरियो रे ॥ २० ॥ १० ॥ सूतां मध्यरयणीने स मयें, दीठा अति श्रीकारो रे ॥ गजवर पद्मसरोवर शशिधर, रूपन वली ए चार रे ॥२०॥ ११ ॥ हलधर जनम तणां ए सूचक, दीनां रमणी रूडां रे ॥ कंत कहे तुऊ उज्ज्वल वणे, सुत होशे नहिं कूडा रे ॥ २० ॥ १२ ॥ प्रसव्यो सुत तेणें पूरणमासे, उत्सव कीधा सवला रे ॥ सुत सोनागी कुलनो दीयो, चिरंजीवो कहे अवला रे ॥ २० ॥ १३ ॥ हपै धरीने "अपराजित" रूईं, नाम व्युं निज तातें रे ॥ बाधे उज्ज्वल वीज तणो जिम, अहोनिश रयणीकांत रे ॥ २० ॥ १४ ॥ बीजो ते सुर लोकथी चवियो, मणिचूलामर नामें रे ॥ राणी अनुधरा कूरखें श्राव्यो, रत्न ए पूरण कामें रे ॥ २० ॥ १५॥ सिंह तरणी पूर्णकुंन लक्ष्मी, रयासमुदय दरियो रे ॥ निर्धूम अनि ए साते देखे, जब कृरखें अवतरियो रे ॥ २०॥ १६ ॥ प्रीतमने परकाशे पद्मिनी, साच कहो मुज स्वामी रे ॥ वहालेश्वर रातें में दीवां, सुहणां नहिं कोई खामी रे ॥ २० ॥ १७ ॥ स्तिमितसागर नरवरें वोलाव्या, शास्त्र तणा बदु जाण रे ॥ बास देव सुत होतो वलियो, प्रकट्यो पुण्यनिधान रे ॥ २० ॥ १७ ॥ दान दे इने तेहनें बोलाव्या, अनुक्रमें सुत सोनागी रे ॥ मध्यनिगा प्रसव्या पुण्य वंतो, नाग्यदशा एम जागी रे ॥ २० ॥ १ ॥ नाम "अनंतवीर्य" तस स्थापे, हियडे हर्प धरीने रे। वेव सुतने उल्लंगे माता, तेडे लाम करीने रे ॥ २० ॥ २० ॥ पुत्र तमो उदरें अम अावी, दर्प घणा उपजाच्या रे ॥ सुतजी तुम मुख देखी अमचां, दुःख सवि दूर नसाव्यां रे ॥ २० ॥२१॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. नए - सकलकला शीखी लघुवयथी, अनुक्रमें बोवन यायो रे ॥ सुख विलसे - परणी नृपकन्या, दिन दिन चढत सवायो रे ॥ २० ॥ २२ ॥ त्रीजे खमें
पहेली ढालें, रामविजय कहे वाणी रे ॥ वेद बंधव सुख विलसे बहुला, नेह निविड गुण खाणी रं॥२३॥ सर्व गाथा॥३१॥श्लोक गाथा मलीने ॥१५॥
॥दोहा ॥ ॥ इस अवसर तिण नयरीय, उपशमजलें अगाध ॥ शमदमवंता याविया, नामें स्वयंप्रन साध ॥ १ ॥ समवसरया वननूमिका, मुनि म .
हंत महनीय ॥ शूरा थइ सूधा सहे, जे जे वे सहनीय ॥ २ ॥ एहवे .. रयवाडी चढ्यो, स्तिमितसागर राजान ॥ वसतां वीशामा जणी, थाव्यो
तिण उद्यान ॥ ३ ॥ दीगे मुनि कंकलितरु, नीचें निश्चल ध्यान ॥ साधे योगदशा नली, मुनि रहियो एक तान ॥ ४ ॥ वंदी कर जोडी कहे, धन्य धन्य गुणपात्र ॥ धन्य धरामां ते नरा, जे करे तुम्हारी यात्र ॥ ५॥ तुम पेखे पावन थयां, मुज लोचन माहाराज ॥ रुपा करी धो देशना. गिरधा गरिव निवाज ॥ ६ ॥ काउस्सग्गपारी प्रेमगुं, वेठा उत्तम ठाम ॥ कहे उपदेश सोहामायो, शमरसगुणना धाम ॥ ७ ॥
. दाल बीजी। ___॥ नणद हतीती ॥ ए देशी ॥ सुण सुण रे राजन रढियाला, कथा एकपायना चाला रे ॥ सुण राजन रदीयाला ॥ एयांकपी । सुवसन ने चली फुल, माणसने मेलें धूल रे । सु० ॥ इह जब परनय कुःखदायी, एह लाथें अनादि सगाई रे ॥ ॥१॥ दोय नामें जग धंधोल्यो, तव लिमितसागर नृप बोल्यो रे ॥ नु० ॥ प्रनु कहो एहना कति बेद, केम पाम्यो एनधी खेद रे ।। सु० ॥ ॥ कहे मुनिवर दोपथी हुवा चार, वाघ्यो एडनो विस्तार रे ॥ ४० ॥ पढेलो क्रोध ने बीजो मान, माया त्री जीने लोजन्यमान रे । सु० ॥ ३ ॥ तुकाधयकी सुंघाचे, श्रहोंनिश बातम थाटाने रे ।। सु० ॥ पन मानकी मति जावे, अठता पण गुण गवगवे ।। नु०॥ ॥ माया विषवेली लमाणी, तेगुण टंकप सुपरजाणीरे ॥ ५ ॥ लोन नघि टकवा ये मननें, जाणे मेलु मेनुं यदु धनने ॥ १० ॥ ५॥ एकेकना नेद ने चार, कहे मुनि करूणानंमार ॥ सु०॥ कोप पहेलो अनंतानुबंधी, न टले जेहनी के संधि रे ॥ ॥ ६ ॥ करे
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( जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. समकित गुणनो घात, एहथी होय नरकनिपात रे ॥ सु० ॥ कह्यो पवर । रेख समाणो, वर्जे एह ते धन्य जाणोरे ॥ सु० ॥७॥ बीजो क्रोध अप्रत्या ख्यान, पृथिविरेखा उपमान रे ॥९॥ रहे वरस लगें ए.नाडो,श्रावक व्रत । वेलायें धामो रे ॥ सु० ॥ ॥ तिर्यंचगतिमां पहोंचाडे, पढ़ें बदु नव । माहे जमाडे रे ॥ सु ॥ प्रत्याख्यानावरणीय ए त्रीजो, हणे साधुना । गुणतुं हेजो रे ।। सु ॥॥ वेलुनी रेखा सरिखो, थापे मनुज तणी गति निरखो रे ॥१॥ जलरेखा सम संज्वलणो, चोथो रोध करे ज्युं वलनो रे ॥ सु० ॥ १० ॥ न यावन दे यथारख्यात गुणने, सुधा पण समण माह पने रे ॥ सु ॥ गति नापे देवनी सारी, म करो ए क्रोधयु यारी रे ॥सु० ॥११॥ चारेनो एकज ढंग, विरुए साथै प्रसंग रे ॥ सु ॥ जन्म वर्ष धने चोमासी, पद स्थिति अनुक्रमें नासी रे ॥ सु० ॥ १२ ॥ स्थंज पापाण अस्थि ने काष्ठ, तृण सम चिहुं मान अनिष्ट रे ॥ सु०॥ वंश मूल । वली मीढसिंग, गोमूत्रा वलेह सुचंग रे ॥ सु० ॥ १३ ॥ माया चिटुं ने . नांखी, सुणो लोन उपम चित्त राखी रे ॥ सु० ॥ क्रमि राग अने वली पंक, अंजन हरिशनो रंग रे ॥ सु० ॥ १४ ॥ एम थाये नेद ए शोल; एह वरजे नाकमटोल रे ॥ सु० ॥ अति आदरथी जे सेवे, तेहने वदुनव मुख देवे. रे ॥ सु० ॥ १५ ॥ ते माटें कपाय न करवा, शिवनारी उपाय ए वरवा रे ॥ सु० ॥ थोडा पण ए सेव्या माता, नजरें जोतां के नाठा रे॥९॥ १६ ॥ मित्रानंदादिक नडिया, कपायतणे वश पडिया रे ॥ सु०॥ कहे स्तिमितसागर मुनिराया, कुण तेह जे तुमें गाया रे ॥ सुप ॥१७॥ कहे मुनि महानुनाव सुणीजें, सुणी झानतागुं फल लीजें रे ॥सु० ॥ मित्रानंदादिक वात, कपाय ऊपर अवदात रे ॥ सु० ॥ १७ ॥ त्रीजे खंमें वीजी ढाल, नांखी एरंगरंसाल रे ॥सु०॥ कहे रामविजय नवि प्राणी, मुजो सशुरुनी वाणी रे सु॥१॥ सर्वगाथा५॥श्लोक॥१॥ .
॥दोहा॥ ॥ कहे मुनि इजरतें नर्बु, थमरतिलक पुर सार ॥ अमरपुरी सम कपन्युं, जिहां धन धान्य अपार ॥ १ ॥ मुखीयां लोक सहू वसे, सुखी तणुं नहिं नाम । मकरध्वज नामें जनो, नूप गुणे श्रनिराम ॥ २ ॥ मद नसेना तस सुंदरी, राणी रूपनिधान ॥ सकलकलायें शोचती, प्रीतम
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श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजो. बदु मान ॥ ३ ॥ गुणवंती गोरी निपुण, चाले गजगति मत्त ॥ मानवती पण कंथने, चाले धनुदिन चित्त ॥ ४ ॥ यजुक्तं ॥ दोहो ॥ माणिणी तित माण करे, जीनत कंत सुहाय ॥ जे साखीणी वाणही, तोहि पहेरीजें पाय॥१॥ पूर्व दोहा॥ एम सागर कहपसमी,सुखमां वाहेकाला पण ते सबली चोरटी, पियुचित्त चोरणहार ॥ ५ ॥ सहि ए चोर ते मानियें, जे दुवे चित्तह चोर ॥ धण कण कंचन जे हरे, चोर नहिं ते ढोर ॥ ६ ॥ तेहनी कूखें ऊपन्यो, पद्मकेसर अनिधान ॥ राजकुमर रलीया मणो, सोहे मुगुणनिधान ॥ ७ ॥
॥ढालत्रीजी॥ अंबरीयोने दूजे रे नाटियाणी राणी वड चूवे ॥ ए देशी ॥ एक दिन योगें हो राजेश्वर राणीमहोलमें, वेठा रंग विलास ॥ केश समारे हो सुकुलिणी निज बालम तणा, धरती हियडे उल्लास ॥ १ ॥ जगमाहे जो जो हो जोरावर धाणा मोदनी ॥ ए श्रांकपी । दिलनर दंपती दोय ॥ रंगे रमाडे हो न जगाडे सूता जीवने, नाखे मुर्गति सोय ॥ ज० ॥ ५ ॥ पत्ती निहाली हो एक नामा नांखे नूपने, स्वामी दूत निहाल ॥ धान्यो अलवेसर हो आजुनो ए उतावलो, जोयुं चिद्धं दिशे लाल ॥ ज० ॥ ३ ॥ दूत को न यावे हो अलवेली एणे मंदिरे, चिटुं पामें रे जमार ॥ रहिया के चोकी दो लाउने माहरा, हाय ग्रही दीयार ! जए ॥ ४ ॥ हांसं, न कीजें हो रंगीली राणी रंगमें, उपजावी मुफ ब्रांति ।। तुं जो निदाले दो,तो मुज नजरें केम श्रावे नहिं, सबली कानुरुवात ॥ ज० ॥ ५ ॥ हेजें दरिगादी हो दांगीली दरखी न कहे. पियु गुं बोत्याजी बोल ॥ कदिये तुम पागल दो बालमजी में कौधी नहि, कूडी दासी निदो लज०॥६॥ गय विमासे हो तमाने बान फिनी कहे तब राणी गुन ग॥ लाई देखायों दो मननो संशय बारवा, शिरनो उज्ज्वल कंग ॥ ज० ॥ ७ ॥ दून जरानो को न्वामीजी प प्राव्यो नही, कदेवा करनी पान । सुशियार रहेजा हा ९ श्रावं वं उतारती, सुणि नृप चिंते विमाप्ति ॥ ज० ॥ 5 ॥ थिए धिक् मुगने दी में पूर्वजनि न पादरी,
लोनीमादजाद ।। पलीबांधी पहेला ही जे शधि मूकीने नीमा, शु नां शरे जीह ॥ ७० ॥ गजाधिनयनि' । दाग अपने न
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एक जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. दिन्नं चंगं, तवनियमेण न सोसियमंग ॥ नवि पुद्धिा नवि महण . समो, हा हा जम्म ग अकयो ॥ २ ॥ पूर्वढाल ॥ देखी चिंता तुर..
हो प्रीतमने पूरे पद्मिनी, पियु झुं चिंतो बो चित्त । मनगुं लाजो बो हो जराने आवीने जाणी, पण तुमें रहोजी निश्चित ॥ ज० ॥ १० ॥ पडह . वजडाशुं हो पुरमांहे एहवो, तुमनें कहेशे गरढाजी जेह ॥ तेहने ते ' डावी हो शिखामण सूधी आपा, मोकलमु यमगेह ॥ ज०॥ ११ ॥ एम न बोलीजें हो ए क्यण विवेकविहीननु, जरा थमनें शणगार ॥ यउक्तं ॥ अलंकरोति च जरा, राजामात्यनिषग्गुरून् ॥ विडंवयति पण्यस्त्री, मन्नगायनसेवकान् ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ पण नवि कीधो हो यो वनवयमा धर्म जे, ते मुफ शोच अपार ॥ ज० ॥ १२ ॥ दांसुं में कीg . हो वालमनी सहेजें तुम्ह तणुं, मत, धरजो मन खेद । रंगें रमीजें हो रसीला लीला प्रेमनी, न करो अंतर नेद ॥ ज० ॥ १३ ॥ कहे प्रिये थाश हो दुं तापस, वनमाहे जर, नवि करवी हवे वार ॥ कामिनी नि सुपी हो मनमांहे चिंते युं करूं, एकलडी निर्धार ॥ ज० ॥ १४ ॥ . राज सोपीने हो निज धंगजनें नृप नीतस्यो, चाली राणी संघात ॥ . वेदु जर लीधी हो दीदा तापसनी नली, बोडी अस्थिर सविधाथ ॥ ज '. ॥ १५ ॥ गूढ जे हतो दो राणीने गर्न समो तदा, न सह्यो तेहनोजी नेद ॥ दिन दिन वाध्यो हो चिंता वाधी चित्तमां, राय सुणी लो खेद ॥ ज० ॥ १६ ॥ कयुं कुलपतिने हो सघg समजावी सही, कहे मन करिय आलोच ॥ तापसीपासें हो मूको सचवाये सही, शो करवो हवे शोच ॥ ज० ॥ १७ ॥ अनुक्रमें जणीयो हो शुजलक्षण मुत सोहामगो, माने दुइ यसमाधि ॥ बनमांहे वाये हो चिटुं दिशिनो शीतल वायरो, वाधी थंगें हो व्याधि ॥ ज ॥ ॥ थयां सवि चिंतातुर हो तापस . मनमां चिंतवे, केम राखी\ ए वाल । मा विण सुतनी हो कहोने चिंता कुण लहे, ए 'ययो महोटो जंजाल ॥ ज० ॥ १॥ यतः ॥ गाया ॥ बाल स्तमाय मरणं, नहा मरणं च वणारंने ॥ बुस्स पुत्त मरणं, तिन्निधि गिरुथाई उरकाई ॥ ४ ॥ पूर्वढाल ॥ एड्वे तिहां श्राव्यां दो उजेपी
वासी वाणीयो, नामें देवधर शाह ॥ पाय लागीने हो पूरे तेहने प्रेममु, है, ", केम तुमें रहित उत्साह ॥ ज० ॥ २० ॥ कुलपति जाखे दो जो कुखीयों
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श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. ए३ तुं थम रखथी, तो ले जाउंजी बाल ॥ सुत ले चाल्यो हो व्यवहारी श्राव्यो निजपुरे, हर्प धरी उजमाल ।। ज ॥ २१ ॥ सुतने न देखे हो पासें मायडी मोदयी, पीडाणी असमाध ॥ काल करीने हो परलोके ते पहोती तदा, मोहनी महोटी आधि ॥ ज० ॥ २२ ॥ सुत लेइ यादी हो सोंप्यो शेठे नारीने, नाम अमरदत्त दीध ॥ पुत्री एक तेहनें हो नामें वे सुरसुंदरी, मनह मनोरय सि ॥ ज० ॥ २३ ॥ त्रीजे ए खंमें हो ढाल थइ त्रीजी नली, रामविजय कहे एम ॥ पूर्व बांध्यां हो जे रसनां कर्म जेपी परें, उदय यावेजी तेम ज०॥॥ सर्वगाथा।ताश्लोको॥५॥
॥दोहा॥ ॥तेदज नयरीमा वसे, सागरशेतनो पुत्र ॥ मित्रानंद नामें नलो, जे रावे घरसूत्र ॥ १ ॥ मात पिताने वनहो, सोजागी सुविनीत ॥ अ मरदन सायें वणी, बंधाणी तस प्रीत ॥ २ ॥ गुणवंता वेहू जला, श्रमर ने मित्रानंद ॥ धनवंत सुत जाणी नमे, सहुको धरि धानंद ॥३॥ यतः ॥ विगुणमविगुणं वा रुवहीणं विरम्म, जडमवि ममतं मंद
सनं य सरं ॥ अकुलमविकुलीणं तं पयंपत्ति लोया, नवकमलदलती 'ज विलोएइ लष्ठी ॥ १ ॥ चपीकालें एक दिन, क्रीडा करवा दोय ॥ ‘दिपा शेवलिनी तटें, रमे श्रणुलिया सोय ॥ ४ ॥ कवाली उंची तदा, मित्रानंदें त्यांहि ॥ मोई मुहमांहे पडी, वड वांध्यु शव ज्यांहि ॥ ५ ॥ ह सतो मित्र बली कहे, महोटुं कौतुक एह ।। अणचिंती ए श्रमोलिका, गवमुखमांदे पडे ॥ ६ ॥ कोप्युं शव बलतुं नणे, मित्रानंद म फूल ॥ ए बड बंधाश सदी. मुऊ जेस तुं मन नन ॥ ॥ वचन सुर्णी वि लग्यो थयो, नय लाग्यो मनमाहे ॥ दादा इण ए मु फयुं, रखे सार्नु ए चाय ॥ ॥ कहे अमर अपवित्र ए, थइ अमोलिका श्राज ॥ खो बीजी ए मादरी, गमत रमवा काज ॥ ॥ व्यय चपुं मन तेनं. दायाच्या फरिगेद ।। मित्रानंदने सानो, दारा क्षण शय व तेद ॥ १० ॥
॥ टाल गोरी ।। ॥सीपानी देवी ॥ स्यागीय सूता हो मित्रानंदने, नयणं न याने रे दाणु एक निंद । यही यही में झांसी या जागतां, कीवी - बनी धरिमन वेद ॥१॥ सुगृण सहारे हांसीन जियें करणी।
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ए४ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. हृदय विमासी रे जोय सुबंधो ॥ हांसी करत विखासी नीपजे, निबिड कर्मनो रे होवे बंधो ॥ सु० ॥ ३ ॥ अरुणोदये थावी मल्यो मित्रनें, पण मनमांहे उदास ते दीसे ॥ पूढे अमर कांइ दीसो उमणा, मित्र न ताहालं रे मुखडं हीसे ॥ सु० ॥ ३ ॥ नयण जराइ आव्यां थांसुयें, मुख करमाणुं रे कमलनुं फूल ॥ अहो जीवन बंधव ए ताहरु,याज का एहवू रे दीसे शूल ॥ सु ॥॥ गोप्य करी रह्यो वयण न उच्चरे, अ मर कहे मुजपागल नांखो। तुज मुजप्रीति बनी नरख मंस ज्युं, तो एवडो केम अंतर राखो ॥ सु० ॥५॥ वात कही मित्रानंदे मित्रनें, नयण करते रे घणुं दिलगीर ॥ निसुणी अमर कहे शब वोले नहिं, पण कोई चा लो रे अमरनो वीर ॥ सु० ॥ ६ ॥ मित्र म धर मनमां कायरपणुं, साह सथी सवि संपद लहियें ॥ पुरुपपणुं पौरुपथी संपजे; सुख दुःख दिल मां रे जाणी रहियें ॥ सु० ॥ ७ ॥ उद्यम साहस ने वली धीरता, व ल ने बुद्धिपराक्रम जेहने ॥ पड्गुण जे मानवमांहे वसे, देवने दानव रे गुं करे तेहने ॥ सु० ॥ ७ ॥ ज्ञानगर्न मंत्रीनी पूर्वे, थापद नाठी रे पुरुपा कारें ॥ सांजल कहूं तुज पागल ते कथा, धैर्य धरी सुणो मित्रकारे ।। सु ॥ ॥ एहिज जरतें चंपानयरीये, जितरिपु रायनो मंत्री मनोहर ॥ ज्ञानगर्न तस नारी गुणावली, सुबुद्धि तनय परनारी सहोदर ॥ १ ॥ ॥ १० ॥ एक दिवस राजा वेठो सना, याव्यो नैमित्तिक एक मुखाकर ॥ पूछे राजन तुंगुं युं लहे, वात कहो सुविवेक गुणाकर ॥ सु० ॥११॥ जीवि त मरण ने लानालानने, जाणुं गमागम सुख दुःख वातो ॥ राजन ए अष्टांग निमित्तनां, गुरु करुणाथी रे कहूँ अवदांतो ॥ सु० ॥ १५ ॥ राज न कहे महारा परिवारमां, पनर दिवसमां रे अभुत कोई ॥ जे थानार होवे ते दाखवो, चित्तमां धारी रे ग्रंथने जोई ॥ सु० ॥ १३ ॥ तुरा नरवर मंत्रीश कुटुंब ए, कष्ट लहेशे रे बहु मरणांत ॥ राजन जन दिल गीर थया सुपी, एम केम नांरव्यु रे एणे वृत्तांत ॥ सु ॥ १४॥ जतयों मंत्रीता) निमित्तीयो, तेडी पूढे रे तस एकांतं ॥ कोणथी कष्ट कहे ते सुतथकी, एहवू श्राव्यु रे मुफ लिदांतं ॥ सु० ॥ १५ ॥ कहे मंत्री सुत सांजल महाएं, कहण करे तो तुं एक विचारी॥ तो यापदधी गरिय सवे, सुत कहे लाखो रे मुग निरधारी ॥ सु० ॥ १६ ॥ पुरुप प्रमाण
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श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजो. एy अगावी पटिका, माहे स्थापी रे जात ने पाणी । सुत वेसारी मांदे वाहिर, तालक दे रे करि सहिनाणी ॥ सु० ॥ १४ ॥ राजन ए मंजूपा माहरी, माहे घरनों रे सार सवे वे ॥ यतें राखो नृप कहे गुं कलं, तुऊ विणधन ने रे जे मुऊ दे ते ॥ ९ ॥ १७ ॥ मंत्री कहे सेवकनो धर्म ए. कटें पडियो पण स्वामी न वंचे ॥ रायें रुडे स्थानक ते धरी, मंत्री पहोतो रे जिनगृह संचें । सु० ॥ १५ ॥ करे रे यहि महोत्सव श्रादरें, संघने पूजे रे दान दुःखीने ॥ पडह थमारीतगो बजडावीने, प्रणमे प्रेमें रे साधु शपिनं ।। सु ॥ २० ॥ चिटुंदिश सुलट रखाव्या सज क ग. पोते वेठो रे चैत्यने थागे॥ दिवस पनरमे रे राय अंतेनर, दाती बोली रे एहवे जंगे ।। सु० ॥ २१ ॥ धाउँ धाउलोका जुर्व मंत्रीनो, सुत राणीनी रे वेणी ग्रहीने ॥ वेदीने अलगो नासी गयो, मु हवे कहिये रे इदा कारो रदिने ॥ सुप ॥ २२ ॥ राय सुपीने कोप कलकल्यो, एवं मुज याणा रे पापीय लोपी ॥ रंक रमाई खोलो जरे हंगी, गये रीपं रे मति धारोपी । तु० ॥ २३ ॥ उठी तलार हणी ए सचिवने. मुन अपराधी रे जेहनो प्रेयो ॥ दोश्या सुनट सीपाइ सामटा, तुरत जाने मंत्री घेखो ॥ सुप ॥ २४ ॥ कहे मंत्री मुझने नृप धागल, तुमने जा रे तेणं तेम कीयो । नृप उपरांठो रोपें या रह्यो, कहे मंत्रीवर में गुंलीधो ॥ सु० ॥ ५५ ॥ पेटीगत सवि वस्तु तुमें लीयो, राय कहे मुफ नहिं धनकाम ॥ सचिव कहे मुक प्राण पतुक वश, हुं नवि था रे लग हराम ।। सु० ॥ ५५ ॥ पण एक वार निहालो पेटिका, गय उचाली ३ तालक नंजी। बीजे रवं बोथी दासमां, राम कहे सुणो मानन जी ॥ ॥ ५५ ॥ सर्वगाथा ॥ १२५ ॥ लोक तथा गाया मनी ॥ ६ ॥
॥दोहा॥ - वेगिर्दक वाम करें. दक्षिणकरें कपाग ॥ मुत देव निद सचिवनी,
सदको देगन ॥ १ ॥ गर कहे मंत्री किन्यु. ने कड़े न लहुँ सामि ।। तुम शाये पेटिका, में सांपी गुणधाम ॥ ५ ॥ गय मलड़ा यो घj, कंटे मंत्री मनात ॥ ने कहे कोई पची, स्पनरनों पात ॥३॥ नातिर म कम नपिन, गरज्यों पंटीमहि ॥ मनसंशय नांग्यो पगं, पायो परम जमात ॥ ४ ॥ बटु सन्मान्यां लचिवने, करें पंचांग
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जैनकया रत्तकोष नाग आठमो.
पसाय || हे मंत्रीश्वर ताहरु, फलियुं नाग्य सहाय ॥ ५ ॥ वात नही दैवज्ञयी, सुतदूंती ए कष्ट || राखी पेटीमां तनय, कयुं काम में इष्ट ॥ ६ ॥ श्रीजिनधर्मप्रभावथी, थई विघ्न उपशांति ॥ यवश टल्युं वेला वली, वाधी वमणी कांति ॥ ७ ॥ श्राव्यो एह निमित्तयी, मन वैराग्य पा
|| सुत स्थापी निजपद विन्हे, लीधो संयमनार ॥८॥ सुगतें गया वेहू मुनि, साध्यं व्यतम काज ॥ अमरदत्त कहे मित्र एम, व्यंतर घाणो वाज || || ॥ ढाल पांचमी ॥
॥ हांरे मोरा वालमा ॥ ए देशी ॥ कहे यमरदत्त सुण मित्रानंद, करशुं काम विमास || मोरा वालमा, हांरे मोरा बांधवा, हांरे मोरा साजना ॥ ए यांकी ॥ कलिया बलीया यागलें रे नाइ, जाये व्यंतर नासी ॥मो॥१॥ तुक उगारण काजें आपण, जागुं वे परदेश || मो० ॥ तुज मुफ प्रीति वनी प्रति गाढी, जिहां तुं तिहां सहि देश || मो० ॥ २ ॥ नाइ वेह न देवो तुमने, जिहां लगें घटमां प्राण । मो० ॥ शी चिंता चित्तमां घरो रे नाइ, मोजी तुं महेरा ॥ मो० ॥ ३ ॥ सात मगलानी प्रीतडी रे राखे, साजन जीवित सीम || मो० ॥ नेह करी दीये नेहजो रे वालमा, मित्र नहिं ते गनीम || मो० ॥ ४ ॥ मित्रानंद सुणी वोलियो रे | बंधवा ॥ तुं सुकुमार शरीर || मो० ॥ सुख मूकी परदेशडे रे ॥ बं० ॥ केम सहेवा शे पीड ॥ मो० ॥ ५ ॥ कहे अमर जे प्रीतिना रे || वं० ॥ बोल्या बहु परे बोल || मो० ॥ मुऊ घटमां तु नेहलो रे ॥ ०॥ वेठो जेम रंगचोल॥मो० ॥ ६ ॥ ए अवसर यावी पढये रे ॥ वं० ॥ केम रहुं नेहने नाखि || मो० ॥ तुम विपा सवि शूनुं इहां रे ॥ वं० ॥ तुं तो मोरी यांख ॥ मो० ॥ ७ ॥ एकमना थया ते बन्ने रे || बं० ॥ जु जु नेहनी वात ॥ मो० ॥ नेह निवेडे ते जना रे || वं० ॥ जननीलाया सुजात ॥ मो० ॥ ८ ॥ काम ! पडे कूदी चले रे ॥ वं० ॥ कलिमां जूवो कुजात ॥मो० ॥ कामवेला व्यावि मजे रे ॥ ॥ खाये मारी लात || मो० ॥ ए॥ माखण साजन वेमां रे ॥ ॥ सन यति सुकुमाल ॥ मो० ॥ तापं माखण वीघरे ॥ साजनां ॥ प्रतापे ततकाल ॥ मो० ॥ १० ॥ सोनुं सुपुरुष चंदना रे ॥ सा० ॥ श्रापण पीड खमंत ॥ मो० ॥ कुल कसबटें जापीयें रे ॥ सा० ॥ पर उपकार करंत || मो० ॥ ११ ॥ तूंच कटुक तंती नीरसा रे ॥ सा० ॥ दारुक शुकुं तेम ||मो| सर
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श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजो. थालापे मीण्डा रे ॥सा०॥ संयोगें गुण एम ॥ मो०॥ १२ ॥ नावेसु दचे सांनलो रेग्नाात्री पंचमी ढाल मुनाति मोगा रामविजय कहे रंग झुंरेता०॥ जगमा जोड लीजें जाति ॥मो॥१॥ सर्वगाथा ॥१५॥६॥
॥दोहा॥ ॥ करी विचार मनघू खरो, चाव्या बंधव दोय ॥ गना मातपिता थकी, कर्म करे सो होय ॥ १ ॥ जोतां पुर वन वाटिका, नव नव ख्याल विनोद ॥ अनुक्रमें वेदु धाविया, पाटली पुरें प्रमोद ॥ २ ॥ नाही पुष्क रिशीजन्लें, पावन कीधां भंग ॥ पुर पेसंता पेखीयो, एक प्रासाद सुचंग ॥३॥ दंम कलश ध्वज कोरपणी, सुंदर शोना सार ।। जिनप्रासाद करावियो, धन्य तेहनो अवतार ॥ ५ ॥ धर्मठामें धन वावरे, तो पाम्यं परमाण ॥ पामीनं ग्वरचे नहि, तस जीव्यु प्रमाण ॥ ५ ॥ जोतां शोना तेहनी, अमरदत्तं एक दीन ॥ पांचाली पापागनी, मनहुँ जाय वा ॥ ६ ॥ माप देखी रामा तणुं, चित्रं लवियु तेह् ।। श्रहो अजब गति · मोहनी, मनमा लाग्यो नेत् ।। ७ ॥
॥ ढाल वही ॥ ॥ रागी भयो । ए देशी ॥ मन लोनाणुं तेद, जोइ रह्यो थनि मेर | अंग अवयव निरखतो, नवि लाज गणंतो रेख रे ॥ १॥ बंधव मा जरा ।। णुं थयो मृट जाण रे, देवघर साहरा ॥ शा ढंग चतुर मुजाण रे, दीले ताहग ॥ ए श्रांकणी ॥ पापाण केरी पूतली रे. दीने ते सुंदरक. प । एमाहे युं मोहि रह्यो रे, में लाएं, ताहा रुप रे ॥०॥ २ ॥ स्थाज मोयो तुं प्रतजीरे, काले मोदी नारि ॥ तो केम पु तादरं रे, में पड़े मित्र विचार रे ॥ २० ॥३॥ परदेशे पंचें जानवरे, पग पग सुंदर नारी ॥ मित्र नजर न मानीय रे, एम्यापणी याचार के ।। 40 ॥ ५ ॥ तुं चाल महारा मित्र जी रे. एक बार नगर मजार ॥ तुनें रूप जो मांजरें रे, मुने नायलागीमापार रे ॥ २० ॥ ५ ॥ एच सम नहिं को जरारे, दारिद सम नाहिं कष्ट । मग लम नय को नहि रे. यणा नूप अनिष्ट । सा॥ ८ ॥ गरेकामा गुण मित्रजीरे में एक नवि मृकाय ॥ इहांची . पापानाने, मा मन एकताय ॥ ६॥ जो कमर गौन सम्पर, पहनाधर साज गुलाला एक नामाणिपाली नजीरे,
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
यहो जुन एहनुं जाल रे || वं० ॥ ८ ॥ तुने नख लागी वालहा रे, मुने नूख जागी जोइ ॥ क्षण एक एहनो संग न तजूं रे, मुऊने न कदेशो को रे ॥ चं० ॥ ए ॥ हुं देखी मोह्यो एहनें रे, महारे ए जीवनप्राण || सुण मित्र मनमां दुःख धरे रे, ए हुई कवण विन्नाय रे ॥ वं० ॥ १० ॥ मुक चिंता महारी वीसरी रे, ए थ सवली पीर ॥ एम हृदय जिंतर दुःख घरे रे, करे ते नयणे नीर रे ॥ बं० ॥ ११ ॥ वेडु गाढस्वरगुं रुवे रे. सवि सांनखां घरवार || वैरागरंगविना नहिं रे, कोइ मोहनो उपचार रे || वं० ॥ १५ ॥ तेह वेलामां व्यावियो रे, प्रासादकारक शेठ ॥ रोइने कांइ थाउ दुःखीया रे, कोण करो तुम वेठ रे ॥ वं० ॥ १३ ॥ हुं रत्नसारानिध नलो रे, तुमें दाख वो दुःख मुऊ ॥ वात विष नांखे ढुंते रे, केम जलाये प्रयुऊ रे ॥ वं० ॥ १४ ॥ हवे वात को चित्तनी रे, सुणो खंम त्रीजे ढाल ॥ राम कहे पर डुःख भंजन रे, धन्य धन्य जे उजमाल रे ॥ वं ॥ १५ ॥ सर्वगाथा १६० श्लोकप ॥ दोहा ॥
॥ मित्र कहे सुप तातजी, ए मुऊ मित्र अजाण ॥ गुं जाएं एहने शुं ययुं, मोह्यो रूप पहाण ॥ १ ॥ शेठें समजाबी कयुं, पण नवि मूके राग ॥ शेठ सचिंतो चिंतवे, थाली मन वैराग ॥ २ ॥ कामागारी का मिनी, मोह्यो सवलो लोक || सुर नर किन्नर नोलव्या, ए जग महोटो शोक ॥३॥ यक्तं ॥ तावन्मोनी यतिर्ज्ञानी, सुतपत्री जितेंयिः ॥ यावन्न योषितां दृष्टि, गोचरं याति पुरुषः ॥ १ ॥ दोहो सोरठी ॥ तप जप संयम ताम, नर साधे निरता वां ॥ हिये न लागे जाम, नयण्वाण नारी तणां ॥ ४ ॥ मित्रानंद कहे शेठजी, शो करगुंज उपाय | कुछ रमणीनुं रूप ए, मुऊने कहो समजाय ॥ ५ ॥
॥ दाल सातमी |
॥ नवण सनूणा नंदना रे लो ॥ ए देशी ॥ शेठ कहे सुणो चाइना रे लो, खरा दीसो तो रे काहिला रे जो ॥ खवर नहिं ए श्रमने रे लो, कोण रमणी कहुं तुमनें रे लो || १ | वे कारीगर एहनो रे लो, सोपारक पुर जेनो रे जो ॥ ग्रर नामें सुनवार ते रे लो, ते एहनी करनार ने रे लो ॥ २ ॥ मित्रानंद कहे एहनी रे लो, सार करो जो देहूनी रे ॥ खवर नेड़ या सही रे लो, शेठजी उत्तर यो वही रे लो ॥ ३ ॥ शेव करे
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श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजोए सुणी नाबिया रे लो, परदेशी तुमें आविया रे लो ॥ यावो अमारे घेर -- प्रादुणा रे लो, मत मनमाहे राखो मणारे लो ॥ ४ ॥ करणं तुम्हारी 7 चाकरी रे लो, जे श्रमथी थाशे रखरी रे लो ॥ोठे वात भंगी करी रे लो, - अमर ने मित्र कहे फरी रे लो॥ ५ ॥ जो तुमो श्रापो जी यागना रे ई लो, तो जड़ जोइ बाबु थंगना रे लो ॥ अमर कहे परदेशडे रे लो, केम - मूकाय इण वेगडे रे लो ।। ६ ॥ तुज व वातज सांजली रे लो, चूकी
जाय मोरी मागली रे लो ।। मुकुं तुज अलगो परो रे लो, ते उंच वेचीने उजागगे रे लो ॥ ४॥ तुऊथी अलगो हुँ नवि रखें रे लो, सुरव दुःखं वात कोने कहूँ रे लो ॥ जेम जीवाय तेम जीवगुं रेलो, श्वास तिहां लगें शीव शुरे लो ॥ ॥ मित्र कहे नांरव्यु ख रे लो, पण तुज पुरव टालु खरं रेलो ॥ पण में तुज पासे रही रे लो, भारत न समाये सही रे लो lry || श्रावीश दुं दो मासमां रे लो, मत मन पाडो विमासमां रे लो ॥ तुज पासें मुफ जीबडो रे लो, तुं मुझ हृदयनो दीवडो रे लो ॥ २०॥ कट समजाव्यो घायु रे लो, हा कही मन करी दुमा रे लो । अमरने सॉपी शेउने रे लो, पोतें चट्यो पुर वेगनें रे लो ॥ ११ ॥ जुप्रीति ए याकरी रे सो, परदेशमा एम चाकरी रेलो ॥ प्रीति ए बंदर दीवर्नु रे सो, प्रीति परम तुरव जीवर्नु रे लो ॥ १२ ॥ पदांतो तेह सोपारकें रे लो. पूर्वतो फरि घर पारके रे लो ॥ ढुंढता शूरने मांजस्यो रे लो, चिंते मनांग्य सहि फल्यो रे लो ॥ १३ ॥ करनी वेची मुश्वी रे लो, वेश श्रवल शिर पापड़ी रे लो ॥ गठ बनायो दीपतो रे लो, देवकमरने जीपतो रेलो ॥ १४ ॥ श्राव्यो रे उलट यापणे रेलो, शर सुतारने श्रांगणे रेशो ॥ उठीने ते ऊनो थयो रे लो, लान ग्राउ पग लादामो गयों लो ॥ १५ ॥ नाग्य जे गज पधारीया रेलो, काज कहो उपना रीपालो ॥ मित्र कहे दो प्रादर रेलो, देवकुल काज ने माइरे से लो॥ १८ ॥ नुमें कोई नाम कागिरी रेली, की दोय तो कहो ने खरी
जो ॥ कदे कारीगर तानमा रेसो, पामतीपुर ज्यानमां के लो। ॥ १३ ॥ देवज में मोदतं रेलो, देव दानव मन मोइनुरेखो। बौदाश शाहलोकमर कदे ना मानोलो ॥15॥ पण विहां पर पंचालिका लो, सुपई पी ए कोनी वानिशा को ।
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. शूर कहे महसेननी रे लो, पुत्र अवंतीना ईशनी रे लो ॥ १५ ॥ रत्न मंजरी कुंवरी नली रेलो, तस अनुसारें करी पूतली रे ॥ सुणी कहे म वा घणी रे लो, देवकुल मंमावा तगी रे लो ॥ २० ॥ अवसर तुम ने तेडावगुं रे लो, एम कही चाल्यो स्वजावा रे लो ॥ हर्प धरीने यावी यो रे लो, नयरि अवंती मन नावियो रे लो ॥ २१ ॥ सांजलो साहस वारता रे लो, जे शहां नीपजशे कथा रे लो ॥ त्रीजे खमें ढाल सातमीरे लो, साजन जन मन संक्रमी रे लो ॥ २२ ॥ सर्वगाथा ॥१६॥ श्लोक
॥दोहा॥ . ॥ संध्या समये यावियो, नयरि यवंती मजार ॥ पोलतणी रखवा लिका, देवीने दरवार ॥ १ ॥ पंथीडा देवल शरण, के सरोवरनी पाल । पंधी कोई दयामणा, जेम जेम पडे वियाल ॥ २ ॥ मनमांहे चिंते माह रा, बंधवनुं जो काम ॥ याये तो सुधी रहे, माहारी महोटी माम ॥३॥ इस अवसरे तिहां वाजतो, पडहो याव्यो एक ॥ पूढे दौवारिक प्रत्ये, पड ह तणो अ॒ विवेक ॥ ४ ॥ ते कहे सांजल पंथीया, ए नगरीनी वात ॥ मारीपराजव ठे घणो, तिणे न रहे शब रात ॥ ५ ॥ ईश्वरशेठ तणो जनक, सांज समे परलोक ॥ पहोतो पोल जडी तदा, मनमांहे धरि शोक ॥ ६ ॥ शबनें राखे रात्रिमा, साहसिक शिरदार ॥ देवं सहस दीनार तस, पडह तणो ए विचार ॥ ७॥ मित्रानंद मन चिंतवे, धन विण काज न होय ॥ तिण कारण अंगी करूं, अवसर एहवो जोय ॥७॥
॥ ढाल धामी॥ ॥ देशी अलबेलानी ॥ मित्रानंद कहे माहरे रे लाल, खोने घाला धन ॥ मन मान्या रे ॥ चार पहोर रयपी तणा रेलाल, शवनां करे यतन ॥ म ॥ ॥ साहसथी सवि संपजे रेलाल, साहसगुगर्नु गे ह ॥ म ॥ काने कुंमल रयणमय रे लाल, आंखे श्रांजण रेह ।। म० ॥सा॥शा धागलथी तस थापीयुं रे लाल, ईश्वर नाणुं थाध ॥ म० ॥ धैर्य धरी शव साचवे रे लाल, मित्रानंद निरावाच ॥ म ॥ सा० ॥ ३ ॥ जत पिशाच घणां तिहां रे साल, प्रगटयां रयामकार ॥ म० ॥दाकदंती । रहे वेगला रेसान, नत्रले कोइनो चार ॥ म ॥ सा० ॥ ॥ कायरने । करडे सदरेलाल,न हणे धीगनें कोय म॥ वति न दीये बलीया तणा
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श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. ११. रे लाल, यागें जगमां काय म सा ॥ ५ ॥ रचणी गइ रवि कगीयोरे वाल, शवनों को संस्कार म॥ शेष रघु नाडुं न दे रे लाल, ईश्वर खल शिरदार ॥ म सा० ॥ ६ ॥ मित्रानंद कहे जो हो रे लाल, एवं नगरी कोई राय म तो माहरु रहेको नही रे लाल, क्षे' हाक वजाय ॥म ॥ सा ॥७॥ ऊठी चाल्यो चदवटेरेसाल,सत्यदाता रेसार म॥ वनट वेग अनावीयो रेलाल,गयो गणिका घर वार ।। म ॥ सा॥ ॥तिलक मंजरी उनी प्यारेलाल, दी● बहु सन्मान मि०॥ याप्युं श्रासन वेसचा रेलाल, उनी जोड़ी पाण मासापापा राज पधाया प्रांगणे रे लाल, प्याज फली मोरी श्राश ॥म खोजमत करो ए सुता रे लाल, वसंतति लका खास ॥मासा॥१॥श्रावो मंदिर माहरे रेलाल, साची सुरतरू जेम ।। म० ॥ रंगे रमो इण मालिये रे लाल, जेम मन माने तेममा सा०॥ ११ ॥ श्रापे मनमोदें करी रे लाल, चारशे तस दीनार म॥ धन देखी रीमी घणुं रेलाल, धन मोदन संसार || म ॥ १२ ॥ जति युक्ति कीधी नली रे साल, दाली सुंदर सेज। म ॥ पुत्री पासे मोकली रे लाल, सांक समय घरि हेज मसा०॥१३॥ कनी श्रागन यावीने रेजान, सुररमणी अनुहार मा मधुरस्वरें बोले इसी रे लाल, मानिनी करे मनो झार ॥ मम ॥ सा ॥ २४ ॥ नयणाविनामें चालवे रे लाल, सुर नर श्रम रनां चिन ।। म ॥ नन नोलाच्या जामिनी रेलाल,ले ही तन मन वित्त । म मा०॥१५॥ जोर की युवती घणारे लाल, नारखे नयननां बाए । म ॥ पण नंबर दे नहिं रेलाल, चिंन एम सुजाण ॥ म०॥ सा॥ ॥१६॥ विषयानं वादीयां रेलाल, काम न पाये सिह म०॥ मन गरयु इटकी घा रेलाल, कडे उमर भरि वृद्धि म०॥ सा० ॥ १७ ॥ समरण करवं मारे रेखाल, सानो न्यानन एक । म ॥ मोवनपट मांगयो तिब्दा
लाल, बती निमा सविनेरु । मला ॥ोदलही नपर्ने रेलाल, येतो जपला जाप मा नाग देखाईनामिनी रेलाल, गगनकि माल्या त्राप | म ॥ ला एम ग्याणी बोली गान. प्रमदा
निगम म ॥ बन्य जगमा मालनी लातान गई रमणीपा Hot rate 21 बाल नामी रेवानीने माज HRUTमविजय हे मानला जालन्यागत म जमाखममा०॥!
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. ॥ दोहा ॥
॥ मा बागल पुत्री कहे, रात तणो विरतंत ॥ मुऊ सामुं नायुं नहिं, ध्यान धरूं एकांत ॥ १ ॥ कहे अक्का ऊलट धरी, पुत्री एह रतन्न ॥ लटप ट मांगी वश करो, एहनां घणां यतन्न ॥ २ ॥ वीजे दिन तिमहिज कयुं, पण नवि लोच्यो तेह ॥ अक्का रोपाणी कहे, श्यो पाखंम नित्य एह ॥ ३ ॥ राजकुमरने जेहनुं, दरिसण देवडलंन ॥ ए मुऊ तनुजा उतरी, स्व थकी मनु रंन ॥ ४ ॥ ते साहामुं निरखो नहिं, शी तुम मनमां यारा ॥ मन सुखी वातो करी, किम य रह्या उदास ॥ ५ ॥
॥ ढाल नवमी ॥
॥ वाले वेंपें वावरी नानी ॥ ए देशी ॥ कुमर कहे सवि रुडं थाशे, जे तुमें, कदेशो ते कर रे ॥ पण पूढं ते बात प्रकासो, बोलयकी नवि फरशुं ॥ १ ॥ सोहागण नांखोने, तुमें नृपकुमरीनें जाणो के, ना मुऊ दाखो ने ॥ एकणी ॥ ते सायें एक काम वे माहरे, कागलीयो वे देवो रे ॥ कांइ क संदेशो नांखीनें, पाठो पमुत्तर लेवो ॥ सो० ॥ २ ॥ कहे थक्का मुक पुत्री सायें, तेहने प्रीति वे जाकी रे ॥ कहो ते वात कहीनें धातुं, ए कामें हुं राजी ॥ ३ ॥ कुमरजी जांखोनें ॥ यम साथै जीवनजी ग्राज, अंतर मत राखोने ॥ ए यांकणी ॥ ते चागल जड़ने एम कहेतुं, गुण जेह ना सुणि उल्लसी रे ॥ तें जेहने कागल लखीयो तस, श्राव्यो मित्र बे मिलशी || कु० ॥ ४ ॥ अक्का राजकुमरीनी पासें, यावे राग धरीने रे ॥ कन्यायें चादर देव बोलावी, वोले प्रीति करीने || कु० ॥ ५ ॥ तुक वाजे सरनो संदेशी, हुं कदेवाने यावी रे ॥ विस्मित राजकन्या मन चिंते, एगुं बोले चावी ॥ सो० ॥ ६ ॥ कुए मुक्त वलन कुमरी जांखे, तव यक्का तिहां बोली रे || मित्रानंदे कहायुं सघनुं, नांख्युं मनडुं खोजी || सो० ॥ ७ ॥ कुमरी विमासे डुं कोण ते कोण, नाम अमरदत्त जेहनुं रे ॥ पण कां कूडी रचना दीसे, ठाम न जाएं तेहनुं ॥ सो० ॥ ८ ॥ पण जेणे कूड रचना कीधी, तेहने नजरें निहालुं रे ॥ एम विमानि श्रक्काने नांखे, वारु वयण रसालुं || सो० ॥ ए ॥ जेणें मुफ वन वात प्रकासी, तेहने तेडी लावो रे | गांव तो मार्ग रंगीलो, माहरे तेहणुं दावो ॥ सो० ॥ १० ॥ सुणी हरखी चक्का गइ गेहें, वात कुमरशुं कीधी रे || रात समे नेड़ी
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श्री शांतिनायनो रास खंत्रीजो. २०३ कुंवरने, आवी नोखे तीधी ॥ सो ॥ ११ ॥ वप्रवनय जिहां सात दिरा जे, राजमंदिर अति रूढुं रे ॥ तिहां ए कन्यामंदिर सुंदर, दीसे मोरनु हुँ ॥ सो० ॥ १२ ॥ तेहने गोख अडे मनमोहन, यहां जो तुमची जवाये रे। तो वहेला जावो मनोवांठित, कारिज सहेजें थाये ॥ तो ॥ १३ ॥ कुहिनीने वोलावी वलतो, प्लवंग परें दे फाल रे ॥ राज नुवनना कोट उतची, पहोतो न ततकाल ॥ सो ॥ १४ ॥ चिंते असा कोई अतुल व ल, पुरुपप्रधान ए दीले रे ॥ एम विंतवती गेहें आवी, धरती हियडे जगीश ॥ सो ॥ १५ ॥ कन्यामंदिर याव्या कुंवर, देखीने विस्मय पामी रे ॥ कोई सवल शूरीनो जायो, नहिं बलमांहे खामी ॥ तो ॥ १६ ॥ निश कपट करीने सूती, तस चर्याने धारे रे ॥ निशावर देखी नामांकित, कंकण करनुं उतारे ॥ तो० ॥ १७ ॥ तुरिका लेइ दक्षिण जं, त्रण करी तेणें रेख रे ॥ जेम आव्यो तेम पाठो वलियो, हियडे हर्ष अलेख ॥ सो० ॥ १७ ॥ कुमर ते नहिं सामान्य ए, पण में जावा दीयो रे ॥ माही हती पण सवली चूकी, नवि बोलायो सीधो । सो १॥ ॥ मित्रानंद जई देवकुलमां, रातें सुखमा सुतो रे ॥ कुमरी नयणधी निक्ष नाती, दिल तेमांहे खूतो ॥ लो० ॥ २० ॥ श्रावे नंच करावे सव ली, बये प्रजातं जाग्यो रे ॥ हीसे दर्प धरि हियडामां, पातो पडयो मुह माग्यो । सो ॥ ११ ॥त्रीने वंम नवमी ढालें, वात रसिक मुगोसावी रे। रामविजय कहे मित्रता न कही, काम पड़े जे काची॥तो॥२॥२५॥
॥दोहा॥ चिंते मित्रानंद ते. अर्धदाम अवशेष ॥ ईश्वर मुज दीधा नहिं, पण लेवा मीन न मेप ॥ १ ॥ जुबो ने उग मुझने मल्यो, नांग्या जेणें मुफ दाम ॥ पण दरबारे जानें, कर, ए में काम ॥ २॥ चिंती चल्यो उतावलो, या व्यो राज वार ॥ सदन करे महाटे स्वरें, उनी ते दरबार ॥ ३ ॥ गय सुणी तेडावियो, कां एम रडे अपार । न्याय नहिं इण नयरी, मुक धृत्या निर्धार ॥ ४ ॥
॥डाल दशमी ॥ । कर्म परीक्षा करण कुमर चल्यो । ए देगी। कहे गजाण पंथी वारसा रे, कम स्वे में ग्राम || झुं धृतीने लाधु ताहरु रे. कहे मुफ तेहतुं
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२०४ जैनकथा रत्नकोप जाग आठमो. नाम ॥ १ ॥ सुण राजेश्वर माहरी विनति रे, कहूँ तुम पागल वाच ॥ मात पिता नृप देव गुरु धागलें रे, नित्ये नाखवु साच ॥ सु० ॥ ॥ लोकपाल ताहरी नवि लेखवी रे, याणा जेणें उतार । देश तणो हां ईश्वर वाणीयो रे, ते सवलो धूतार ॥ सु० ॥ ३ ॥ रारव्युं रातें तेहना ता . तनुं रे, मडउं में माहाराज ॥ नांग्युं अर— नाडु माहरुं रे, वैद्य वैरी दुवे काल ॥ सु० ॥ ४ ॥ दुकम करो पारदक नर नणी रे, वांधी बाणो . थान ॥ दीयो शिखामण सूधी तेहने रे, जिए लोपी मुज लाज ।। सु०॥ ५ ॥ तेहवे निसुण्यं तेणे वापीये रे, फरीयादी दुर तेह ॥ ले दीनारने दोडी आवीयो रे, साहमो नृपनें गेह ॥ सु० ॥ ६ ॥ थाप्या हाथोहाथ तेहने रे, कहे नृपने कर जोडि ॥ ते दिवसें कारजनी व्यग्रता रे, नापि शक्यो ए खोड ॥ सु० ॥ ७ ॥ दिवस वेत्रण लगें लोकाचारमा रे, वी त्या ए मुफ वांक ॥ लोक सटु कहे सादुकारमा रे, श्राडो वाल्यो ग्रांक ॥ सु०॥ ॥रायें खुशाल यश वोलावीयो रे, ते पहोतो निज घेर ॥ नृप पूढे तव मित्रानंदने रे, शव राख्यु शी पेर ॥ सु०॥ ए ॥ कहे स्वामी सुण ते रयणी समे रे, शव रदपने देत ॥ वेठो तुरिका सेई दायमां रे, प्रथम प्रहरसंकेत ॥ सु ॥ १० ॥ दारुण फेरी विरव तव सांजव्यो रे, जिणे फूटे ब्रह्मांग ॥ प्रगटी पिंगलरोम शिवालिणी रे, ढुं रह्यो धीर चखं म ॥ सु० ॥ ११ ॥ बीजे प्रहरें प्रगटी रादती रे रूमवर्ण अति घोर ॥ मुक पासें वीटाणां चिटुं दिशे रे, पण न चल्यो तस शोर || सु० ॥ १२ ॥त्रीजे प्रहरे यावी शाकिनी रे, रे रे कुण तुं रंक ॥ में हांकी उड़ा की ते गई रे, जाणुं कोई त्रिवंक ॥ १० ॥ १३ ॥ चोये यामें वस्त्रवि जूपिता रे, दिव्यानरण अमूल ॥ तूटे केश कर काठी ग्रही रे, धीरज मेले धूल ।। सु० ॥ १४ ॥ में मन जाएघु ए मारी सही रे, जेहनो पुरमा सोर ॥ रिका ले दूं साहमो धश्यो रे, करगुं नाही जोर ॥ सु० ॥ १५ ।। नाला लागी कर वोडाविने रे, तस कंकण मुऊ हाय ॥ याव्या त्रण रेखा जांचे करी रे, तुरिकावे में नाथ ॥ सु० ॥ १८॥ नाती सू रज उग्यो एहवे. ढुं आध्यो तुम पास ॥ बचन सागी अचरिजनुं राजीया रे, बोल्यो चिन विमास । सु ॥ १७ ॥ वीर पुरुष मुफ देखा डो तुमो रे, कंकण देवीन मिन ॥ निजनामांकित देखीने तदा रे, राय
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श्री शांतिनाथनो रास खंग त्रीजो.
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दुई चलचित्त ॥ सु० ॥ १८ ॥ शुं मुऊ पुत्री दीसे मारिका रे, तस कंक ए सहि. एह ॥ देहचिंतामिपें करीने यावियो रे, नृप पुत्रीनें गेह ॥ सु० ॥ १ ॥ सूती दीठी विण कंकण वालिका रे, हा हा प्रगटट्यूँ पाप ॥ तिम वृस्थानक पाटो देखीनें रे, उपन्यो मन संताप || सु० ॥ २० ॥ हा हा कुल निर्मल मेनुं कियुं रे, इ पापिणीयें याज || लोक सहु मा स्वां हत्यारीयें रे, खोवरावी मुऊ लाज ॥ सु० ॥ २१ ॥ तेमादें वहेली चाहार करूं रे, नहिंतर सघलां लोक ॥ मारे ए चंमालिणी याकरी रे. श्यो हवे एहनो शोक ॥ सु० ॥ २२ ॥ राजसनायें पाठो वियो रे, वेो नृप उदास ॥ जोजो नवियण तुमें जावें करी रे, कडुन कर्मविलास ॥सु०॥ २३ ॥ त्रीजे खंमें दशमी ढालमां रे, चित्त फरियुं नरराज ॥ रामविजय कहे धूर्त्तकलायकी रे, विहि पण यावे वाज ॥ सु०॥२४॥ स ० ॥ २८०॥ श्लोक ॥ ७ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ नृपति ते वेसारियो, मित्रानंद नजीक ॥ शुं साहस के मंत्रवल, जांखो वचन तहकीक ॥ १ ॥ कुलकमागत माहरे, मंत्र अबे वलि एक ॥ पण साहस विए नवि फले, सुख राजन सुविवेक ॥ २ ॥ सभा विस aal तदा, वेदु वेग एकांत ॥ नृप कहे महारी पुत्रिका, मारी सही नहिं त्रांति ॥ ३ ॥ हवे उपकारी तुं मव्यो, तेहनो कर निस्तार ॥ कहे कुंवर तुम कुल ती, किम एहवी होय नारि ॥ ४ ॥ नूप जणे संशय किश्यो, जलद ऊपनी जोय ॥ जलवाला जननें हो, कहो कुप कारण सोय || ५ ॥ हिम सहेजें शीतल दुवे, पण वाले वनराई ॥ ए अंतरनी वारता, कोणें कली न जाय ॥ ६ ॥ जाएं कुलमां कपनी, कल्पवेली उपमान ॥ पण जनमूल उच्छेदवा, श्रइ कूहाडी समान ॥ ७ ॥ मित्र कहे माहाराजजी, म करो फिकर लगार || नजरें देखाडो मुने, करशुं तस उपचार ॥ ८ ॥ राय कहे जाई जुन, कन्या मंदिरमांहे ॥ सूती कवी सा जुए, व्यावंतो उत्साह || | || जेणें मुफ कंकण हसुं, बुरिप्रहार ए दीध ॥ ते ए नर होवे सही, एम मन निश्रय कीध ॥ १०॥ राजदुकम विल इल समे, या वे नहिं निःशंक || घासन मांमधुं चेतवा, मूकी मन निःशंक ॥ ११ ॥ ॥ दाल ग्यारसी ॥
|| देशी हमीरियानी ॥ कुमरी कहे कर जोडिनें, कुल काजें तुमें थान
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
॥ कुमरजी ॥ मंदिर याव्या माहरे, महेर करी माहाराज || कु० ॥ १ ॥ वात कहो मुऊ मन तणी ॥ ए यांकणी ॥ रातें याव्या तुमें रंगगुं, बल फोरवि श्रावास || कु०॥ कंकण लीधुं माहरु, काम कीधुं एखास ॥ कुणाचा ॥२॥ मत जाणो नंघी हती, हुं कपटें रही एम ॥ कु० ॥ पण परमंदिर पेशी ने, काम कर ए के || कु० ॥ वा० ॥ ३ ॥ जड़े में तुमनें दियो, कूडो एह कलंक | कु०॥ दोप सह ए माहरो, तु सुधी निकलंक ॥ रसीली ॥ वा० ॥४॥ राजा यापो तुऊ जणी, महारे हाथ सुजाण ॥ रसीली ॥ जो तुऊने गमतुं होवे, तो लेइ जानं गण ॥ र० ॥ वा० ॥ ५ ॥ जो न रुचे तो तुमनें, करूं निकलंक सनूर ॥ २० ॥ कहो मुऊ ए वेदु वातमां, गमती पुण्यपसूर ॥ २० ॥ वा० ॥ ६ ॥ सांगली कन्या चिंतवे, तजुण रंजी तोर ॥ २० ॥ प्रेम कृत्रिम एहनो, मुफ ऊपर प्रति जोर ॥ २० ॥ वा ॥ ७ ॥ अंगीकरीयें दुःखने, पण नवि मुकुं एह ॥ २० ॥ राजलान सोह जो कह्यो, डुलहो साजन नेह ॥ २० ॥ वा० ॥ ८ ॥ वलतुं बोले सुंदरी, सुनग सुपो यरदास || कु० ॥ प्राण ए प्राधीन ताहरे, जिहां तुं तिहां मुक वास || कु० ॥ वा० ॥ ए ॥ सिद्ध मनोरथ ते कहे, न ए अवधार ॥ २० ॥ तुक शिर जल हं यदा, तब मूके फिटकार || २० || वा० ॥ १० ॥ ते पण कुमरीयें यादयुं, हो यहो मोहनी बंध | कु० ॥ नेह सहे एम दुःखडा, जगमां ए महोटो धंध || कु० ॥ वा ॥ ११ ॥ रायसमीपें यवीयो, कहे कुमरी मुऊ साध्य || राजनजी ॥ कहे नृप हवे कतावला, काढो एह असाध्य ॥ साजनजी ॥ चा० ॥ १२ ॥ वाहन खाणो हवं, जाय निशा परदेश | रा० ॥ जो बचें सूरज कगशे, तो न्यावशे फरि देश || रा० ॥ वा० ॥ १३ ॥ राजा जय पास्यो घणों, वायुवेगा इ नाम || रा० ॥ जातीजी वडवा दिये, सवारीने काम ॥ रा० ॥ वा ॥ १४ ॥ संध्या समये नृपसुता, त्राणी को जानि ॥ रा० ॥ नृपत्र्यादेों सेवकें, सोंपी तेहने तत्काल || रा० ॥ बा० ॥ १५ ॥ सरशव वांटे तेहने, सामो करे फिटकार || २० || जय पायो नरवर तहां, भूजे थंग अपार ॥ २० ॥ वा ॥ १६ ॥ गाढसरे ही rिai, सायें शांत स्वभाव ॥ २० ॥ मंत्रशक्ति को थाकरी, सर्वलो एहनो प्रभाव ॥ २० ॥ वा० ॥ १७ ॥ ज्ञान करे राजा तिहां, एह न यचली
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. श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. १७ धात ॥ २० ॥ वाहाली पण वैरिणी थई, सवली कर्मनी वात ॥ २० ॥ वा० ॥ १७ ॥ वडवा उपर हाथरों, वेसारी ते वाल ॥र० ॥ साथ संप्रे डण चालियो, पोल सुधी नृपाल ॥ र ॥ वा ॥ १७ ॥ हवे चाल्यो ले। चोपरां, मित्रानंद कुमार ॥ २० ॥ मनमांहे चिंते मादरो, सफल थयो अवतार ॥ र ॥ वा ॥ २० ॥ वडवा चाले उतावली, सा कहे वेसो यावि ॥ कुण् ॥ कुमर कहे सीम संघीने, वेशिश दिल तुं नाव ॥ २० ॥ वा० ॥ २१ ॥ण एक पडखी कुंवरी, संघी देशनी सीम ॥ २० ॥ फरि . कहें वेसो इहां हवे, केम लेई रह्या नीम ॥ कुछ ॥ वा ॥ २२ ॥ कुमरी कहे कारण जे अने, प्रकासो हवे तेह ॥ कुछ ॥ अंतर में राख्यो नहिं, तो शियो पटंतर एह ॥ कु० ॥ वा० ॥ २३ ॥ में तुमने आण्यां सही, मूकावी कुललाज ॥ जानी जी ॥ मुफ अर्थ मत जाणजो, नाइ अमर दत्त काज ॥ २० ॥ वा ॥ २४ ॥ वात समय कही तिहां, मित्रानंद उदार ॥ ना ॥ मत चिंता करजो मनें, करगुं घपी मनोहार ॥ ना॥ वा० ॥ २५ ॥ तेमाटें एक धासने, वेसवु न घटे मुज ॥ ना० ॥ वात सुगी विस्मित यश, समजी सघर्बु गुध ॥जा ॥ वा० ॥ २६ ॥ मृग नयणी मन चिंतवे, अहो अहो पुरुपरतन ॥ देवरजी ॥ नाग्य मल्यो मुझने सही, उत्तम एहनुं जतन्न । कु० ॥ वा० ॥ २७ ॥ जे तरुणीने कारणें, मात पिता वली बंधु ॥ कु० ॥ वंचीने वांठे कामने, पुरुप घणा कामंध ॥ कुण् ॥ वा० ॥ २७ ॥ चूक न देखे दिवसमां, रात न देखे का क ॥ कु० ॥ कामी न देखे यहोनिशे, चीकणो विपयनो वांक । कु० ॥ वा ॥ २॥ ॥ मनोहर रूप ए माहरू, नरयोवन ए वेप ॥ कु० ॥ देखे पण मोले नहिं, ढुं जा पाय पडेश ॥ कु० ॥ वा० ॥ ३० ॥ स्वार्थ सहु को ख सहे, परा परमारथ कोय ॥ कु०॥ परशुःखें कुःखीया होये, ते जग विरसा जोय ॥ कु० ॥ वा ॥ ३१ ॥ यतः ॥ विरला जा एति गुणाः ॥ १ ॥ धन धन ए जग प्रीतडी, जेहवी दृध ने नीर ।। ! कु० ॥ श्राप उतां निज बंधुने, उपजावे नहिं पीर ॥ कुछ ॥ वा० ॥ ॥ ३२ ॥ वक्तं ॥ हीरेणात्मगतोदकाय हि गुणा दत्ताः पुरा तेऽरिवला, क्षीरे तापमवेक्ष्य तेनं पयसा ह्यात्मा कशानो दुतः ॥ गंतुं पावकमुन्म नास्तदन्नवदृष्ट्वा तु मित्रापदं, युक्तं तेन जलेन शाम्यति पुनमंत्री सतामी
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२७ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. दशी ॥ २ ॥ पूर्वढाल ॥ वात करें मनमोदा, धन धन मुक अवतार ॥ . ॥ कु०॥ जे तुमें मुफ यावी मल्या, ते त्रूत्यो किरतार ॥ कुछ ॥ . वा० ॥ ३३ ॥ रत्नमंजरी साथे हवे, चालतां अनुक्रमें सोय ॥ कु० ॥ पामलीपुर निरख्यु तिहां, नयणां हर्पित होय ॥ कु ॥ वा० ॥ ३४ ॥ त्रीजे खंमें अग्यारमी, रामविजय कही ढाल ॥ रंगीली ॥ अमर तणो हवे हर्प गुं,सुणो संबंध रसाल ॥रावा॥३यासर्व गाथा ॥३२५॥ श्लोक ||
॥दोहा॥ ॥अमरदत्ते इण अवसरें, प्रतिदिन जोई वाट ॥ पण बंधव आव्यो । नहिं, मनमां सवल उच्चाट ॥ १ ॥ चिंते चित्तमां माहरो, मित्र गयो पर देश ।। कागल कोइ आव्यो नहिं, वली नाव्यो संदेश ॥ ३॥ हा हा गुं होशे थयु, नाव्यो मित्र अमूल्य ॥ वेवा में पेदा कयुं, पेटने मशली शूल . ॥३॥ हुँ जेहवो मूरख नहिं, जगमां को वे शुछ ॥ धागलवुद्धि कुल । उपन्यो, पण ययो पाउलवुद्धि ॥४॥ जोप तुमें जुड़ जोपिया, यावे । किवारे मित्र ॥ आज काल सदु एम कहे, पण न पड़े खरि रीत ॥ ५ ॥ मास दोय पूरा दुवा, रत्नसारने आम ॥ अमर कहे हवे माहरे, जीव्या नुं नहिं काम ॥ ६ ॥ शेव कहे वत्स शुं कहूं, तुझने वयण अनिष्ट ॥ वहेलो मल ताहरो, मित्रानंद अनीट ॥ ७ ॥
॥ ढाल वारमी॥ ॥ राउत कहे उनी रहो । ए देशी ॥ अमर कहे सुरा तातजी, मुक मित्र न थाव्यो । पूया पंथें पंथीया, पण केणें न बताव्यो । अम० ॥ एयांकणी ॥ १ ॥ गुं ते राह नूल्यो हो, किहां नो क्याहिं जाशे ॥ मं दिर मारा प्रेमनो, मन घj अकलाशे ॥॥॥ में सुखकारण मृकीयो, सुख लीधुं उदेरी॥ ते मुज काजे विदेशमां, देतो हो फेरी॥ ॥३॥ स्वार्थ कीधो वालही, पण मित्र न कीधो ॥ पण ए देव ते पाधरी, व . , मणो रख दीधो ॥ १० ॥ ४ ॥ नीसरयो हुँ जस मुखना, वीसारण मा टें । साहमो पायो ते मित्रने, सबलें उच्चाटें । श्रम ॥ ५॥ दवे बहेली । विरचो चिता, काष्ठ नक्षण करवू ॥ मुज माटे मूड ते सही, माहरे पण मर, ॥ य० ॥ ६ ॥ शेने घणी ना ना कही, हतीय द लीयो । यति थायह देखी करी, तव धाकंद कीयो ।अ० ॥ ॥ लोक मल्या बदलां
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श्री शांतिनाथनो रास खंम त्रीजो.
१०० तिहां, सहुए एम वारे ॥ पण राख्यो न रहे किमे, कुंवर ते तिवारें ॥ ० ॥ ७ ॥ वनमांहे काष्ठचिता रची, बहु नागर सायें ॥ चाल्यो चिता पासें करो, जाल्यो न रहे वायें ॥ ॥ एए ॥ लोक कहे धाज अवधि नो, बेल्लो दिन रहीने ॥ कालें पढी करजो तुमें जाणो तिम वहीने ॥ अ० ॥ १० ॥ मान्युं कहण ए लोकनुं, हरख्यो सहु कोई ॥ ते वेहू जल यावतां, रह्यां ति दिशें जोइ ॥ ० ॥ ११ ॥ मित्रानंद उतावलो, याव्य तेनी पासें ॥ लोक कहे कोइ पंथीडो, धश्यो यावे उल्लासें ॥ श्र० ॥ १२ ॥ अमर सुली साहमुं जुवे, दीगे अलगेयी ॥ चाल दीसे माहरा मित्रनी, के होशे को पंथी ॥ ० ॥ १३ ॥ क्यांयी यावे ते वालहो, जोईतो व्याज ॥ जबक नजिक चाव्यो जिस्यो, निरख्यो सवि साज ॥
० ॥ १४ ॥ उलखी सामो यावीयो, बेदु बंधव मलीया ॥ घणा दिव सरा विरहरा, यांस तव गलीयां ॥ ॥ १५ ॥ यहो बंधव तें यावतें, मुऊ जीवतो राख्यो ॥ तुज दीठे दुःखपुंज ए, सवि अलगो नाख्यो ॥
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० ॥ १६ ॥ कहे मित्रानंद बांधवा, जोवो ए सारी ॥ रत्नमंजरी ला वियो, चित्त चोरणहारी ॥ ० ॥ १७ ॥ अमर कहे तें साचलुं तुक नाम निपायुं ॥ मित्रने न्यानंद जेहथी, मित्रानंद गायुं ॥ ० ॥ १८ ॥ लोक कहे एहनां रूपनें, मोह्यो ते न्यायी ॥ मधुकर मालती मोहियो, नवि बावल जाइ ॥ ० ॥ १९ ॥ पुण्य उदय थयो वारमी, ढालें सुणो लोका | रामविजय कहे सांगतो, हवे पुण्यशलोका ॥ ० ॥ २० ॥३५॥ ॥ दोहा ॥
॥ सनेानंद उपन्यो, देखी चरिज वात ॥ मित्र मन्यो विरो टल्यो, रोम रोम सुखशात || १ || तिहां नाह यया पढ़ी, अमरद तिण वेल || नाग्य जोगें जे नीपन्युं, ते निसुलो मन मेन ॥ ३ ॥ नवरनो राजीयो, पुत्रीयो तिए काल ॥ मरण लह्यो मंत्र प्रमुख, करे राज्यनी नाल ॥ ३ ॥ पंच दिव्य अधिवासीयां, मत्र्यां लोकना द के रूबे के हसे, महामोहनो फेद ॥ ४ ॥ त्रिक चतुष्कने वावरे, बेल गुणवंत ॥ हस्ती हीं हृषेनुं, चिहुं पासें निरवंत ॥ ५ ॥ ज जोये जे साहसुं, तब ते दिशिनां लोक ॥ निरखे गज हरखी हिये, जेम सुरजने कोक ॥ ६ ॥
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१२० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
. ॥ढाल तेरमी॥ ॥ कहो कुण ए आवे ॥ ए देशी ॥ पुरबाहिर गज आवियो, अतु लीवल मलपंतो रे ॥ लोक मव्यां जिहां सामटां, तिहां आवे नलसंतो रे ॥१॥ अहो अहो पुण्यनी प्रबलता,पुण्यथकी सुःख नासे रे॥ पुण्ये सुर नर संपदा, आवे सघली पासें रे ॥ अ० ॥ ॥ बंधव वेदु जोडें रह्या, साह - सीया शिरदारो रे ॥ सिंहपरें साहमा थया, गज आव्यो तिण तारो रे ॥ ॥ अ॥ ३ ॥ अमर कुमर शिर ऊपरें, ढाल्यो कलश सुचंगो रे ॥ करे ग' ललाट ए हर्षनो, हेपा ताम तुरंगो रे ॥ अ० ॥ ४ ॥ आतपवारण शिर । थयु, चामर तिहां विकाणां रे ॥ वाजां वाजिन रंगनां, धवल मंगल मंमा पां रे ॥ अ० ॥ ५ ॥कपाडी निजगुंढथी, गज आरोपे खंधे रे ॥ राज लघु अण चिंतव्युं, मागध गाये प्रबंधे रे ॥ ॥ ६ ॥ चिरंजीवो तुमें , राजीया, कोडा कोडी वर्षों रे ॥ कर जोडी आवी नमे, राजकुली बत्रीशो रे ॥ ॥ ७ ॥ बहु आवरें नृप करे, नयरीमांहे प्रवेशो रे ॥ वधावे गजमोतीयें, सोहव सुंदरवेपो रे ॥ अ० ॥ ७ ॥ कोई रमणी कहे मात में, मा ए कुरा अनिरामो रे ॥ कुण गुणवंतीनो नाहलो, रूपें जेहवो का मो रे ॥ अ० ॥ ए ॥ मात कहे महोटे स्वरें, रयणमंजरीनो कंत रे ॥ मि त्रानंदनो बंधवो, एह अमर नूकंतो रे ॥ अ० ॥ १० ॥ धन्य जननी जेणें । जनमीयो, ए नर रयण सरीसो रे ॥ चिरं जीवो एह जोडली, एम दीये आशीपो रे ॥ ॥ ११॥ कोइ कहे धन्य एहनो, बंधव मित्रानंदो रे ॥ जेणें मेली मृगलोचना, जाग्यपरें अमंदो रे ॥ अ॥ १२ ॥ कोइ कहे । धन्य शेग्नें, पुत्रपरें जेणे पाल्यो रे ॥ अपजाण्या नेहो प्राणीने, निजघर मांहे घाल्यो रे ॥ अण् ॥ १३ ॥ एम श्रवणें सुणतो थको, पुरप्रमदानी वाणी रे ॥प्रीत मनें धन वरसतो, आवे ते गुणखाणी रे ॥०॥ १५ ॥ स्तंवेरमथी हो कतरी, पेतो मंझपमाही रे ॥ करे उत्सव अनिपेकनो, नृप मंमल मलि त्यांही रे ॥॥१५॥ रयणमंजरी स्थापी तिहां, पट्टराणी गुण ' गेहो रे ॥ मित्रानंदने सोंपीयो, सदु अधिकार सनेहो रे ॥ १० ॥ १६ ॥ स्थाप्यो जनकनें स्थानकें, शेव जणी गुणवंतो रे ॥ कीधुं यथोचित एम सद्ध, पाले राज्य महंतो रे ॥ ॥ १७ ॥ मामी वात कही सवे, मि त्रानंद मनोहारी रे ॥ मुणि राजेश्वर रंजियो, तुज साहस वतिहारी रे ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. १११ ॥ १० ॥ १७ ॥ मित्र नणी माने घशो, जाणे जीव समानो रे ॥ राणी पण तेहने सदा, आपे वहु सन्मानो रे ॥ ७ ॥ १ ॥ वेदु बंधव सुख जोगवे, राज्य रमणी रस राता रे ॥ इति गइ निजदेशथी, सहुने वरती शाता रे ॥ अ० ॥ २० ॥ ढाल नणी ए तेरमी, त्रीजे खमें विचारी रे ॥ राम कहे तस सदु नमे,पुण्यदशा जस सारी रे॥॥१॥ सर्वगाथा ॥३॥
॥दोहा॥ ॥श्रमरदत्त सुख जोगवे, निजनारीनी साथ ॥ दोगुंदक सुरनी परें, न लहे दिवस ने रात ॥१॥ मन मान्या गोठडी, पुण्य विना नवि होय ।।
जे दिन सजन मेलावडो, जग जीवित फल सोय ॥२॥ आए अखम वहे : सवल, सीमाडा राजान ॥ सप्त अंग शोने जलां, दिन दिन चढते वान
॥३॥ मित्रानंद तणे मने, शववाणीनी खटक ॥ पलक एक नहिं वीसरे, । अहोनिश एह अटक ॥ ४ ॥ अहोनिश रहे उदासमां, न गमे कोई वि । लास ॥मरण समो जय को नहीं, जीवित सम नहिं आश ॥ ५॥ कहेय । मरने साहिवा, मुज मन महोटी नीति ॥ रखे थावे व्यंतर इहां, उपजावे । अप्रीति ॥ ६ ॥ नूमिपति कहे मित्र तुं, जय न करे मनमांही ॥ दूर
रह्या व्यंतर किस्यु, करशे आवी यांही ॥ ७॥ मित्रानंद कहे खरं, पण । नजीक ए देश ॥ तेमाटें मुज बंधवा, मूको कोई परदेश ॥ ७ ॥
॥ढाल चोदमी। ॥सुण बहेनी पियुडो परदेशी ॥ ए देशी ॥ सुण बंधव जब तुं परदेशी, तव मुफ केम सरेशी रे ॥ दण दण तोरो विरह दहेशी, केम मुज बोडि चलेशी रे॥ सु० ॥ १॥ नयण करे आंसूनी धारा, सुण सुण मारा प्या
रा रे ॥ तुंमुळ धातमना आधारा, मम करो एह विचारा रे ॥ सु॥ ___॥ ५॥ मित्र कहे गमतुं नयी मुमने, जे मूकी जा तुमने रे ॥ पण श : चश्या दहे मुफ तननें, सबल विमासा मनने रे ॥ सु० ॥ २ ॥ रयण
मंजरी कहे अमने वर्जी, किम जाशो देवरजी रे॥ सुख सुख वात करेगु नेली, मनडा' मन मेली रे ॥सु॥४॥ पण तस मनमा वातन श्रावी, टायु टले किम जावी रे ॥ बात करे जन सहस बनावी, पण कर्मन से वे बचावी रे ॥सु ॥ ५ ॥ राय कहे सुण मित्र सोनागी, सेवका बड नागी रे ॥ वर्ततपुर जाउँ गुणरागी, तिहां रहेजो यनुरागी रे ॥नु ।
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२१३ - जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ॥ ६ ॥ सेवक मोकलजो मुज पासें, देवा खबर उल्लासें रे ॥ जिहां लगें नहिं भावो आवासें, तिहां लगे उंचे श्वासें रे ॥ सु० ॥ ७ ॥ बंधव चित्त हूंती न विसरशो, हण कामां सांजरशो रे ॥ मंगलकमलाने तुमो वरशो, का फिकर न करशो रे ॥ सु ॥ ७ ॥ राय चल्यो संप्रेडण साथें, वेदु जण वलग्या हाथे रे ॥ वलतां कहे नृप मलिने बाथें, कां एम कयुं जग नाथें रे ॥ सु० ॥ ए ॥ नृप वोलावी पाडो वलीयो, आव्यो गृह जलफ लीयो रे ॥ मित्र विरह कुःखदाधि नहलियो, चाष थई नीकलीयो रे ॥ सु ॥ १० ॥ न गमे राजविनोदनी लीला, सांबरे मित्रनी पीडा रे ॥ जे साथें करी बहु सुखकीडा, केम ते विसरे सखीडां रे ॥ सु० ॥ ११ ॥. मंत्रीश्वर आदें सदु मलिया, कहे नृपनें तुमें बलीया रे ॥ एम नवि थाई में प्रनु गलिया, कर्म न जाये कलियां रे ॥ सु० ॥ १२ ॥ कांक शोच निवारी राज्ये, बेला श्रावी समाजे रे ॥ सुख संपत्ति विलसे सवि साजें, पण कुःख मनमां दाफे रे ॥ सु० ॥ १३ ॥ दिवस थया बदु चर को ना व्यो, तव बीजो दोडाव्यो रे ॥ ते पण तिहां जा पाडो भाव्यो, कहे तस खबर न पायो रे ॥ सु ॥ १४ ॥ एम निसुगी संत्रांत थक्ने, कहे रा गीने जश्ने रे ॥ आव्यो चर पाडो पण वहीने, खबर न पामी तेहने रे ॥ सु॥ १५ ॥ कहे राणी अवधारो कंता, ए वातनी महोटी चिंता रे ॥ जो झानी आवे गुणवंता, तो सवि नांजे व्रता रे ॥ सु० ॥ १६ ॥ वात करी नृप बाहिर थाव्यो, तव वनपालो जायो रे ॥ नृपति पासें श्वास जरायो,अवल वधामणी लायो रे ॥ सु० ॥ १७ ॥ साहिव जीवो कोडि वरीसा, दिन दिन चढती जगीशा रे ॥ तुम वन समवसस्या मुनि इस्या, श्रीधर्मघोष सूरीशा रे ॥ सु० ॥ १७ ॥ अशोक तिलक उद्यानमां किरिया, गुणरयणे करि नरिया रे॥प्रांशुक जूमि आवी समोसरिया,अतिश य झानना दरिया रे ॥ सु० ॥ १५ ॥ शम संवेगादिक थादरिया, बहु मुनिगुं परवरिया रे ॥ दूर कस्या रागादिक अरिया, ताया जिण निज . परिया रे ॥ सु ॥ २० ॥ समयागमन सुणी चित्त तरियां, नरवर नावें नरिया रे ॥ राणी संघातें तेणें वरिया, गुरुवंदन नीसरिया रे ॥ सु ॥ २१ ॥ साचवी पंचानिगम उन्नासें, याव्यो नृप गुरुपासें रे ॥ दे३ प्रद क्षिण एपिपरे जासे,तुमें न पड्या जवपाशे रे ॥ सु० ॥ २२ ॥ त्रीजे खंमें
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श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो.. ११३ र चोदमी जाणो, ढाल ए दिलमा आयो रे ॥ कहे गुरु नृप निसुणे सपरा णो, करि निज आतम शायो रे ॥सु॥२३॥ सर्वगाथा ॥१०॥ श्लोकाए
॥दोहा॥ ॥ धर्मघोप मुनिवर कहे, देशन अमृतरूप ॥ जे निसुणी देखे प्रकट, छ । घटमां सकल स्वरूप ॥१॥ अतिशय नाणी कर्मनो, जांखे सवि विस्तार ॥ वंध हेतु दाखे वली, तिम तेहनो निस्तार ॥ ॥
॥ढाल पन्नरमी॥ १ ॥राग मलार ॥ चेतन कर्मकी चाल विनावे॥ नरक निगोद तिरियग्ग । तिमें, रमो नहिं कवढं सजावें ॥ चे० ॥ १ ॥ धनी 'अधनी अकुली न
कुलीनो, रूप कुरूप गिणावे ॥ ईश्वर दास सुखी तिम असुरखी, नाम अने । क धरावे ॥ चे ॥ २ ॥ आठ नाम उनके गुन जूदे, सत्वकुं धाण मना
वे ॥ हे रूपी पण अकल सरूपी, नजरें कोउ न पावे ॥ चे ॥३॥ में चार चारके थोक बने दो, घाति अघाति फिरावे ॥ उनमें मोह सवल
मतवालो, जीनंकों जोर करावे ॥चे ॥४॥ मिथ्या अविरति योग कपा 1 या, चनबंध हेव कहावे ॥ पंच ज्वालस पनर पणवीसा, नेद सत्तावन
थावे ॥ चे ॥ ५ ॥ लदु दीसे ए बंधनकालें, बदु दुःखकों उपजावे ।। 1 जीवको रोकि रवी पंजरमें, उलटी चाल चलावे ॥ चे ॥६॥ पाडयो । नर्म मर्म न पिगणे, उनको गायो गावे ॥ जिनकू करि जाणे जीउ मेरो,
ऊही नरक पनावे ।। चे० ॥ ॥ तुं नहिं तेरो नहिं ए कोइ, युं मन मांहे नावे ॥ फिरत फरे मतवाला जेसो, कहा सद्गुरु बतलावे ॥ चे० || | निजगुण त्यागी मोहके रागी, उनको शीख सुगावे ॥ देखत ख्या ल ए मोद नटायो, तुमको परमें रे जरावे ।। चे० ॥ ए ॥ निजकुं निज जातो तुम चेतन, और गीनो परजावें ॥जात इंदीन पर नोहे अपने, बद्ध री कहा तुं कहावे ॥ चे० ॥ १० ॥ सुण गुरुकी बानी नवि प्राणी, मोह की नाक मिटावे ॥ रामविजय कहे तेही जगतमें, साचा पुरुप सुहावे ॥ चे० ॥ ११ ॥ इतिगुरुपदेशगीतं ॥ दोहा ॥ वचन मणी गुरुजी तणां, सम ज्या चतुर सुजाण ॥ मोद् मटयो मनधी परो, मानी सगुरु थाण ॥ २ ॥ अशोकदत्त शग अवसरें, व्यवहारी कर जोडि ॥ पूरे मुज पुत्री तने, केम श्राची ए खोड ॥ ५ ॥ सकल थंग रोग जरी, नहिं विचिकित्सा
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. २१४ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
साध्य ॥ कुण कमैं मुफ दाखवो, विरुई वलगी व्याधि ॥ ३ ॥ गुरु उपयो, गे.जाणीने, नांखे तस अवदात ॥ राजादिक सवि सांजले, विस्मय वा ली वात ॥ ४ ॥ जुवनसुंदरी, जयसुंदरी, श्यामा रे लो ॥ ए देशी ॥ कहे । सद्गुरु वाणी, सुणो नवि प्राणी, कर्म कहाणी रे लो ॥ नविका सुपीयें जीरे लो॥नूतशाला गामें, जूतदेव नामें, शेठ सदु कामे रे लो॥ १ ॥ कडु'. न जपीयें जी रे लो॥ ए आंकणी ॥ क्रूरमति तस नारी, देवमती सारी, वढू . सुविचारी रे लो ॥०॥ एक दिन मंजारी पीयूं धारी, दूध निरधारी रे लो , ॥क ॥ ५ ॥ कहे सासू जृमी, उमति कूमी, क्रोधे उमी रे लो ॥ ज० ॥ . झुं शाकिनी फाली, जेह विमाली, ते नवि मारी रे लो ॥ कण ॥३॥ . एम कहेतां तत्क्षण, वढू नयनीषण, ग्रही कोइ शाकणी रे लो॥ ज० ॥ . तस क्यणें वलगी, न रहे अलगी, आग ज्युं सलगी रे लो ॥ कम् ॥ ॥४॥ सासू चिंतातुर, तेडे आतुर, वैद्य निरंतर रे लो ॥ जण ॥ पण न । थई साजी, कर्मनी वाजी, भावी वाजें रेलो ॥ क० ॥ ५ ॥ एक आव्यो योगी, अग्निनियोगी, तेडी मातंगी रे लो ॥ ज० ॥ कहे किहां तुं एहनें, व लगी देहनें, मूक सनेहने रे लो ॥ क ॥ ६ ॥ कहे सास वाणी, विहिनी जाणी, में ग्रहि ताणी रे लो ॥ ज० ॥ खलजिह्वा सास, लोक तमासु, कहे अविमास्सू रे लो ॥ क० ॥ ७ ॥ वदुअर नीरोगी, कीधी योगी, थइ सुख रोगी रे लो ॥ ज० ॥ सास रंजाडी, जात पाडी, खरीय नवा डी रे लो ॥ कण् ॥ ७ ॥ संयतिनी पासें, सासु विमासे, व्रत लेवासी रे लो ॥ ज ॥ चारित्र पालेश, अपघालोइ, गई सुरलोइ रे लो ॥ कण ॥ ए ॥ तिहां देव थइने, वलीय चवीने, इहां आवीने रे लो ॥ ज० ॥ तुक पुत्री रूडी, चवीने कूडी, यइ सासुडी रे लो ॥ क० ॥ १० ॥ कडवू जे जांख्यु, मनमा रारव्यु, गुरुने न धारव्युं रे लो ॥ज ॥ ननदेवी रोपें, पूरव दोपें, एहनें जोशे रे लो ॥ क० ॥ ११ ॥ कन्या इहां लावो, . सवि समजावो, पूरवनावो रे लो ॥न ॥ जातिस्मरण लहेशे, मुख सवि कहेशे, आण वहेशे रेलो ॥ कण्॥ १२ ॥ गुरुचरणे आणी, देवी उजाणी, न रही शागी रे लो ॥ ज० ॥ थइ साजी कुमरी, निजनव समरी, सुधी समरी रेलो ॥ कण् ॥ १३ ॥ कहे तन रोमांचू, स्वामी साचूं,झान तुमार रे लो।॥ करि कर्मपरीक्षा, लेगुं दीदा, सहेगुं शिका रे लो॥ क० ॥
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.. श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. १२५ ॥ १४ ॥ कहे गुरुनपगारी,सुण तुं सारी, वात अमारी रे लो ॥०॥ सुख जोगने कर्मे, रहे तुं घरमें, हमणां शरमें रे लो कण॥ १५ ॥ पठी थाइश श्रमणी, वात ए गमणी, निसुणी समणी रे लो॥ ॥ वच तहत्त करीने, पाठी फरीने, आवी घरमें रे लो ॥क ॥ १६ ॥ देखीने नृपति, थयो विस्मित, तेवे समय रे लो ॥ ज०॥ मुज मित्र न आयो, खवर न पायो, किणे नरमायो रे लो । क० ॥ १७ ॥ पन्नरमी पूरी, ढाल सनूरी, वात थ धूरी रेलोनियात्रीने खंमेंसरि,उःख सवि चूरी,कहेशे पूरी रे लोक ॥१७॥
॥दोहा॥ ॥ कहे गुरु सांजल नृपति, विपम कर्मनी वात ॥ अणचिंती याची नडे, कोणें कली न जात ॥१॥ एह कर्मनी घागलें, जोरावर नहिं कोय । मान म करशो मानवी, कर्म करे सो होय ॥ ५ ॥
॥ ढाल शोलमी ॥ ॥ठोडी हो प्रिया, टोडी चल्यो वनवास ॥ए देशी॥ सांनल हो राजा सांनल ते तुज मित्र, चाल्यो हो राजा चाल्यो शीख मागी करी जी॥ संघी हो राजा लंधी हो जलनो मुर्ग, पहोतो हो राजा पहोतो स्थल उरग तरी जी ॥ १ ॥ तिहां एक हो राजा तिहां गिरिनदीने प्रपात, रहिया हो राजा रहिया हो नोजन कारणे जी॥धावी हो राजा यावी हो जिन्न नी धाड, नाता हो राजा नाग सेवक न रह्या रणे जी ॥ २ ॥ ताहरो हो राजा ताहो बंधव तेह, एकण हो राजा एकण दिशि नजाश्यो जी। लाज्यो हो राजा ताज्यो हो सेवक तुऊ, पाटो हो राजा पाठो फरी कोई नावीयो जी ॥ ३ ॥ मित्रं हो राजा मित्रे उजातां एक, दीतुं हो राजा दी सगेवर जल नहुंजीपीधुं हो राजा पीधुं शीतल नीर, बडतलें हो राजा बडतलें शयन तेणे कम्युंजी ॥४॥ पडते हो राजा पडते पडतुं होय, कोटरें हो राजा कोटरेंची अहि नीलखो जी ॥ मंश्यो हो गजा मंन्यो तेहन अंग, तापस हो राजा तापस एके विप यो जी ॥५॥ पूरे हो राजा पूने तापस कोण, नारखी हो राजा जांखी चथारथ वारता जी ।। तापस दो गजाना पल गयो निज गण, चिंते दो राजा चिंते हो मित्र यई वारता जी ॥८॥ हतीयो हो गजा ढुं हतीयो थयो जोर. मान्यु हो गजा मान्यु हो फहण न मित्रनुं जी॥धातम हो गजायातम उपरे याज, कोई हो राजा
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
कीधुं काम शत्रुनुं जी ॥ ७ ॥ जाउँ हो राजा जावं हो मित्रनी पास, सुखी यो हो राजा सुखीयो थाइश तस संगें जी ॥ चिंती हो राजा चिंती हो चाल्यो कवी, पडियो हो राजा पडियो चोर कुसंगतें जी ॥ ८ ॥ काली हो राजा काली गया निज पाल, जोजो हो राजा जोजो एम जावी नडे जी ॥ सां नरे हो राजा सांजरे ताहरो प्रेम, मनमां हो राजा मनमां महोटे स्वरें रडे जी ॥ ए ॥ वेच्यो हो राजा वेच्यो हो निल्लें तेह, लीधो हो राजा लीधो एक व्यवहारीये जी ॥ यापद हो राजा यापद पडी तस एम, निसुली हो राजा निसुणी दीये नवि हारीयें जी ॥ १० ॥ कीधां हो राजा कीधां न टूटे कोय, जाणी हो राजा जाणी कर्म न कीजीयें जी ॥ साचो हो राजा साचो एक जिनधर्म, जेहथी हो राजा जेहथी शिवसुख लीजीयें जी ॥ ११ ॥ तिहांथी हो राजा तिहांथी हो पारसकूल, चाव्यो हो राजा चाल्यो वणिक तस लेने जी ॥ वचमां हो राजा वचमांहे यावी नके ण, रातें हो राजा रातें रह्यो सुख वेइनें जी ॥ १२ ॥ वंधण हो राजा वंधण बोडी तुक, नागे हो राजा नागे हो मित्र नयरी नगी जी ॥ खाजें हो राजा खाजें थने तेह, पेसे हो राजा पेसे होंश घरनी घणी जी ॥ १३ ॥ सुणजो दो राजा सुराजो हो तेणें प्रस्ताव, नयरमां हो राजा arrai airat aय घणो जी ॥ बानो हो राजा बानो फरे कोटवाल, क रडो हो राजा करो हो अमल तेह तपो जी ॥ १४ ॥ काल्यो हो राजा फाल्यो ते ततकाल, जाएयुं हो राजा जाएयुं हो चोर ए आकरो जी ॥ वांध्यो हो राजा बांध्यो मयूरनें बंध, कीधो हो राजा कीधो प्रहारें जाजरो जी ॥ १५ ॥ सोंप्यो हो राजा सोंप्यो शेठनें ताम, कीधो हो राजा कीधो दु कम महोटो घणो जी ॥ दिप्रा हो राजा दिप्रातटें वडवृछ, बांधी हो राजा बांधी ए अपराधी हणो जी ॥ १६ ॥ काव्यो हो राजा फाली चव्या नर तेह, चिंते हो राजा चिंते हो मनमां तिए समे जी ॥ साधुं हो राजा साधुं वयण ययुं तेह, नांख्युं हो राजा नांख्युं शर्वे जे पूरवें जी ॥ १७ ॥ जाणी हो राजा जाणी जिहां तिहां जाउ, जावी हो राजा जावी किहां छूटे नहीं जी ॥ कीजें हो राजा कीजें हो कोडि उपाय, कडवां हो राजा कडवा हो कर्म नडे सही जी ॥ १८ ॥ यक्तं ॥ विभवोनिर्धनत्वं च, बंधनं मरणं तथा ॥ येन यत्र यदा लव्धं, तस्य तत्र तदा भवेत् ॥ १ ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम त्रीजो.
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याति दूरमसो जीवः पापस्थानानयतः ॥ तत्रैवानीयते नूयो, जिनव प्रौढकर्मणा ॥ २ ॥ ढाल पूर्वनी ॥ म म कर हो जीव म म कर रोप ल गार, उपरे हो जीव ए अपराधी ऊपरें जी ॥ ए सदु हो जीव ए सहुता हरो दोप, परनवें हो जीव परनवें सुख तुं नवि करे जी ॥ १९॥ श्राव्यो हो राजा याव्यो हो एम शुभ नाव, वांध्यो हो राजा बांध्यो वडें वि वांक गुं जी ॥ यावे हो राजा यावे हो साहमे पूर, डियुं हो राजा प्रडियुं प्रगुन नृप रांकशुं जी ॥ २० ॥ एक दिन हो राजा एक दिन रमतां हो गोप, मोई हो राजा मोई पडी मुख उच्चली जी ॥ ताहरा हो राजा ता हरा बंधवनी वात, नीपनी हो राजा नीपनी कर्म माहावली जी ॥ २१ ॥ शोलमी हो जवि शोलमी चीजे खंम, जांखी हो राजा नांखी ढाल ए कर्मनी जी ॥ साखी हो राजा साखी होवे एक धर्म, धर्मयी हो राजा ध मैथी प्रापति शर्मनी जी ॥ २२ ॥ सर्वगाथा ॥ ४६ ॥ श्लोक ॥ ११ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ गुरु मुखथी एम सांजली, धमरदन नूपाल ॥ प्रेमतो वश वलवले, पड्यो मोहनी जाल ॥ १ ॥ गुण संनारे तेहना, निर्मल गंगा नीर ॥ हडकूद लागी हीये, नय चाव्यां नीर ॥ २॥ पर उपगारी शिरोमणि, हा बंधव हा त्रात ॥ वहेला यावो वाहला, करवा मोनुं वात ॥ ३॥ में तुमनें वास्यो घणुं, मित्र म जाने विदेश || पण तें कहा न मानीयुं, किदांयी हवे संदेश ॥४॥ सजनीयां साले घणुं, संनारो सो वार || जे विएा घडी न चालतुं, केम चलो जमवार ||५|| हियडा हवे तुं गुं रयुं, गयो ते तुक व्याधार ॥ मित्रानंद मले किन्हांयकी, जीडनो जंजणहार || ६ || एहवा बंधव दो दिला, जेहनी शीतल वाच ॥ काम पडे बिड्डे नहीं, बंधव बीजी वांहि उ ॥ दाल सत्तरमी ॥
॥ पुण्य प्रशंसी ॥ ए देशी ॥ रत्नमंजरी सुषि एवं रे, मूहगत प ताम ॥ हा हा ए गुं नीपन्युं रे, यणचिंत्युं क्ली ग्राम रे ॥ १ ॥ देवर माहरा | एम नवि दीजें बेहरे, गुण बढ्नु ताहरा ॥ एव्यांकणी || तुं मुक ने घणो वाहनों से यात्मनो व्यापार | एम किम वेखी रह्या रे, यो दर्शन एक बार रे || दे० ॥ एम० ॥ २ ॥ जब मुक्तेाणी हां व कीया कई उपाय | याप विपत्तिवेला सही रे, कि सति निर्माय रे
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११७ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ॥ दे ॥ ए ॥३॥ तुमें अमने विसारीयां रे, वसिया तुमें अम्ह चित्त ॥ अध वच्चें मूकी प्रीतडी रे, नहिं ए उत्तम रीत रे ॥ दे ॥ ए० ॥ ४ ॥ हा हा दैव अटारडो रे, सुखमां उपायुं शूल ॥ हरे एवा गुणवंतने रे,पडो । तेहनें मुख धूल रे ॥ दे० ॥ ए ॥ ५ ॥ एम विलाप करे घणा रे, नय. ऐ नीर प्रवाह ॥ हियडं धीर धरे नहीं रे, ते केम विसरे दाहो रे ॥ दे० ॥ ए० ॥ ६ ॥ राय राणी एम कुःख धरे रे, सुःखीयो सदु परिवार ॥ गुरु .. कहे शोक न कीजीयें रे, ए संसार असार रे ॥ ७ ॥ सुण सुण प्राणीया, परिहर मोहविकार रे, गुनगुण तापीया ॥ ए आंकणी ॥ स्थिर न रह्यो । कोण जगें रे, नागें इं ने चंद ॥ परमारथ सदु कारि, रे,महोटो ए मोहनो फंद रे ॥ सु ॥ ५० ॥ ७ ॥ सुख निरंतर किहांथकी रे, फूल्युं । ते करमाय ॥ जे कगे ते बाथमे रे, जे जायुं तेह जाय रे ॥ सु० ॥ प० ॥ ए ॥ अनित्यपणे जाण्या होवे रे, जो पुजल परजाव ॥ शाने रडे एम जीवडो रे, नित्य एक आप स्वनाव रे ॥ सु० ॥ ५० ॥ १० ॥ मात पिता नगिनी सुता रे, कामिनी सुत अवतार ॥ वार अनंत ए ताहरे रे, तुं एहने निर्धार रे ॥ सु ॥ प० ॥ ११ ॥ जीव जिके षट्कायना रे, ते यया ताहरा रे बंधु ॥ मायाकल्पित ए सवे रे, जगमांहे संबंध रे ॥ सु० ॥१०॥ १२ ॥ कोइ न एवो जगतमां रे, मरण न पाम्यो रे जेह ॥ राज मारग एह जागीय रे, केहो शोक सनेहो रे ॥सु० ॥७॥१३॥ शोक हरो नद्यम करो रे, धर्म करो तुमें राय ॥ जिम जनमंतर एहवं रे, दुःख फरी नवि थाय रे ॥ सु० ॥५०॥ १४ ॥ राजा कहे में संग्रह्यो रे, धर्म करेवो सार ॥ पण कहो मारा मित्रनो रे, कोण थयो अवतार रे ॥सु०॥५॥ ॥ १५॥ कहे गुरु तुझ रमणी तपी रे, कूचे ते उत्पन्न ॥ गुननावना यो । गथी रे, थाशे पुत्र रतन्न रे ॥ सुप॥ १६ ॥ कमलपत्र लोचन नलां रे, होशे माहावलवंत ॥ रांजधुरंधर ताहरो रे, याशे ते गुणवंत रे ॥ सु० । ॥॥१७॥ वात सुणी हरख्यो घणुं रे,धन्य प्रलु तुमचुं रे ज्ञान ॥ देशना देश उइयो रे, मुफ जेहवो अझानो रे ॥सु॥०॥१॥ वली तुमने पू प्रनो रे, किम देवीने कलंक ॥ वंधुवियोग ए किम थयो रे, कहो कारण निकलंक रे ॥सुगापार ॥ निरपराध पण वंचता रे, किम पाम्यो जेम . । ., चोर ॥ संशय टालो माहरो रे, श्यां ए कर्म कठोर रे ।। सु० ॥७॥ २० ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. ए त्रीजे सत्तरमी ढालमा रे, कह्यो बंधव अधिकार ॥ रामविजय कहे जाणजो रे, महोटो गुरुउपगारो रे ॥९॥॥१॥ सर्वगाथा ॥४७॥ श्लोक ॥११
॥दोहा॥ - ॥ पूरवनय गुरु उपदिसे, योगत्रिकें बंधाय ॥ कर्मकटुक फलने दिये, एम बोले जिनराय ॥ १ ॥ आ नवथी त्रीजे नवें, बांध्यो निम तुमें बंध ।। ते या नवें भावी मल्यो, सद् सरिखो संबंध ॥ २ ॥
॥ ढाल अढारमी॥ ॥अरणिक मुनिवर चाट्या गोचरी ॥ ए देशी ॥ पूरव नव कौटुंबिक तुं हतो, देमंकर ण नामें जी ॥ सत्यश्री घरणी गुण धारिणी, धरणीप्रतिष्ठि त ग्रामें जी ॥ १ ॥ वयण विचारी रे प्राणी उच्चरो ॥ ए बांकणी ॥ जो वांठो सुख सारं जी॥यविचायुं बोलतां जीवडो, फरे चनगति संसारो जी ॥ ॥ २ ॥ सकल क्रियापटु सेवक तेहनें, चंमसेनानिध एको जी॥ कारज सोप्यु रे तेहने देत्रनु, रखवालें सुविवेको जी ॥व० ॥ ३ ॥ एक दिन परने रे क्षेत्रं पंथीयो, रीवा ग्रहतो देखी जी ॥ कहे संबायो रे जाडे एहनें, पण तेणें मूक्यो उवेखी जी॥ व॥४॥ तिण वयरों उहवाणो पंथीयो, कर्म करे तिण वेला जी ॥ उष्टवचनथी रे बांध्यु आकरूं, न करो' एम अवहेला जी ॥ व ॥ ५ ॥ सत्यश्रीनी रे बदुअर एकदा, महोटो कव ल उपाडी जी ॥ महोमां मूक्यो रे ते बलग्यो गले, तब सार एम वाडी जी । व० ॥६॥ शुं एम जुजे रे पापी निशाचरी, लघुकवलें जम्य लोइजी ।। जेस नहिं बलगे रे के ताहरे, बांध्यु कर्म विगोई जी ॥ व० ॥ ७ ॥ एक दिन देमंकर कहे नृत्यनें, मूके गामें उजाइ जी ॥ जा वहेलो कारज करी याव्य तुं, देणुं पठी बधाई जी ॥ ३० ॥ ७॥ ते कदे बंधवने मलवे करी, में न जचाये स्वामी जी ॥ देमंकर कहे मत मलग्यो नुनें, स्वजन कवार हरामी जी ॥ ७ ॥ ॥ सहेजे एम बंधाये बोलतां, कर्म कविन एम के जी॥ पण रस चिकण बंध प्रदेशथी, विणसे विपाकने देई जी ॥ 4 ॥ १७ ॥ एक दिन श्राव्या रे मुनिवर विहरता, गोचरी गुणगेही जी॥ देमंकर सूधा संयमी, गुण संपूरण देहो जी ॥७॥१२॥ पीयर सूधा रे मुनि पदकायना, धूलर दृष्टिनिहाले जी ॥ श्रांगण यावी रे जंगम तुरतरु, दंपनी दिलनर लाले जी॥ ३० ॥ १२ ॥ कहे हेमंकर पडि -
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२२० जैनकथा रत्नकोप जाग आठमो. लानो प्रिये, पात्र युगल ए याव्युं जी ॥ हर्ष धरिने रे तेणें पडिलानिया, नृत्ये एम मन नाव्युं जी॥ व ॥ १३ ॥ धन अहो दंपती दोये जणां, दी, मुनिवर दानो जी ॥ पुण्याइ विण पात्र किहांथकी, एम मलेय नि , दानो जी ॥ व ॥ १४ ॥ वेदु जण नावें रे दीधं साधुने, त्रीजो तिम अनुमोदे जी ॥ त्रिदुं जण उपरें तव चपला पडी, हूंती जे यंजोदें जी॥ व ॥ १५ ॥ पहेले सुरलोकें थया देवता, मित्रपणे ननरंगें जी ॥ सुख विलसे वैमानिकनां घणां, लीलालहेर अनंगें जी ॥ २० ॥ १६ ॥ देमं कर चवि तुं नरवर थयो, सत्यश्री तुम नारी जी ॥ सुर त्रीजो चवि धावी कपन्यो, मित्रानंद मनोहारी जी ॥ व ॥ १७ ॥ जेणें वांध्यु रे जेवं पूरवें, तिम पाम्युं तेणें सीधुं जी ॥ राजन भावे रे उदय एणी परें, कडवे वयणे कीg जी॥ व ॥ १७ ॥ गुरुनी वाणी रे निसुणी ते सवे, मन पाम्यां वैरागो जी ॥ कर्म कमाइ रे के. आपणी, धारो धर्मशुं रागो जी॥ व० ॥ १५ ॥ महापोह विचारें आपणी, पूर्वजात संजारी जी॥ कहे गुरुजीने नृप चरणे नमी, जा तुम वलिहारी जीव० ॥ २० ॥ मुफ पतितने रे प्रनु पावन करो, देश यथोचित धर्मो जी ॥ गुरु कहे चारित्रनी नहिं योग्यता, हजी वदु जोगनुं कर्मो जी ॥ व ॥ २१ ॥ तनय थया पनी संयम आवशे, हमणां गृहिवत वारु जी ॥ तहत्ति करी ने रे श्रावकव्रत लीये, गुरुपासें गुणकारु जी ॥व० ॥ ॥ पुनरपि पूढे रे वात शवें कही, ते कुण कारण स्वामी जी ॥ सवि ग्रही रे गुरु कहे पंथीयो, नूरिजवें गति पामी जी ॥ व ॥ २३ ॥ वडपासें थयो व्यंतर ते मरी, मित्रानंदने देखी जी ॥ वैर संजारी रे पूरनव तणु, थयो ते उपर पी जी ॥ व ॥ २४ ॥ शवना मुखमांहे तेणें संक्रमी, वात ए पणी परें दाखी जी ॥ संशय वारण नवजल तारिणी, धर्मकथा मुनि नावी जी ॥व० ॥ २५॥ प्रतिवृज्या के निसुणी प्राणीया, मुनिवर कीध वि हारो जी ॥ मुनि वांदीने मंदिर आवियो, नृपति समकित धीरो जी॥ व ॥ २६ ॥ पाले राज्य नली परें आपणुं, एह अढारमी ढालो जी ॥ त्रीजे खमें रे रामविजय कहे, धर्मे सुख विशालो जी ॥ ३० ॥ २७ ॥
॥दोहा॥ ॥ गर्न वधे हवे अनुक्रमें, युवती हपे धरंत ॥ जे जे मोहला ऊपजे,
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श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजो. ११ ते ते पूरे कंत ॥ १ ॥ गुन वेला गुन दिन घडी, गुन मुहर्त संयोग ॥ रत्न मंजरीये सुत जण्यो, सुंदर तन नीरोग ॥॥ राय करे उत्सव घणो,खरचे
व्य अपार ॥ धवलमंगल गावे जलां, वेठी सोहव नार ॥ ३ ॥ पंच धाव पाली जतो, नाम कमलपत्राद ॥ शैशव वय लंघी करी, पाम्यो यौवन दद ॥ ४ ॥ राज्यनार धोरी थयो, सघनी बातें सकळ ॥ हवे राजा मन चिंतवे, लढुं संयम तजि रत ॥ ५ ॥
॥ ढाल उंगणीशमी। ॥ थारे माथे पचरंगी पाघ, सोनारो बोगलो॥मारु जी ॥ ए देशी॥ दवे एक दिन तेह मुनीश्वर,याव्या सांजली ।। राजाजी ॥ सोपी पुत्रने राज्यनो नार, चल्यो वनमां रुली ॥ रा० ॥ ग्रहे गुरुजीने हाथे दीद, प्रिया साथें वली ॥ रा० ॥ लीयो गुदमाहाव्रतनार, थया धतुली वली ॥ रा० ॥ ॥ १ ॥ तेने दृढ करवा काज, कहे श्रुत केवली ॥ रा ॥ तुमें चालजो सूधे पंथ, मूकी मद आवली ॥ राम ॥ नव अंबुधि तारण एह, प्रव्रज्या ठे जली रा॥ तेमाटें मूकी राग, ते पालजो साचली ॥राण ॥ २ ॥ लेइ दीदा विषयने वांडे, जे मुनि कायरा ॥ वारुजी ॥ नवि कहीये ते नव जलना, संयम वाहरा ॥ तारु जी ॥ ते विपयें नेह न करे, जी हेजाहरा ॥ वा० ॥ ते मुनि परमार्थ सुखना, दरिया माहरा ॥ वा ॥३॥ जिनरक्षित जिनपालनो, शहां नावजो ॥ मुनिवरजी ॥ संबंध अनोपम उपनय, मनमां लावजो ॥ मुखकर जी ॥ तव कहे राजर्पि मनमां, हर खी ते कहो ॥ सशुरुजी ॥ नावी ते वात कढुं, सघली तुमें सहहो ॥ मु० ॥ ४ ॥ चंपानयरीमा माकंदी, नामें माहाधनी ॥१॥ शनामें तस नारी, नली सुगुणी बनी ॥ मु० ॥ जिनपालित ने जिनरहित, सुत अधि काचनी ॥ सु०॥ करे वहाणनो रोजगार, वरीलही घणी ।। मु० ॥ ५॥ तेवारे विचार मनोरथ, वाहनो करे ।। मु० ॥ घणुं पारे तेढ्ने पितर, कत्यु चित्त नवि धरे ।। मु० ॥ चहिया कग्विाणुं लेश, जोई वाहाण गिरे ॥ मु० ॥ नरदरिये नांग्युं वाहाण. फलकने श्राशरे ॥ मु० ॥ ६ ॥ विद्धं दिवमें रचणनो छाप, लही ते नीसग्या ॥ मु० ॥ जल पीधुं फल ना लियर, नवीने ते गया | मु० ॥ एहवे ते छीपनी देवी, देवीने यरन खा ॥ मु० ॥ कहे मुज साथै नुमें सेवो, विषयसुख का मरया ॥ मु० ॥
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
७ ॥ तो थाशे प्राणने कुशल, मानो कयुं माहरूं ॥ मु० ॥ नहिंतर एलें खजें, बेदिश डुं शिर थाहरुं ॥ मु० ॥ जयजीत कहे परमाण, कयुं एम ता हरुं ॥ मु० ॥ कहे मत वीहो तुमें अंश, हुं बुं तुम वाहरु ॥ मु० ॥ ८ ॥ सुख विलसंतां ते सायें, गया वहु वासरा ॥ मु० ॥ एक दिन यावी कहे ते, रहेजो तुमें पांशरा ॥ मु० ॥ ढुं सुस्थितने यादेशें, शोधवा सायरा ॥ मु० || जानं बुं कारण माटें, म याशो कायरा ॥ मु० ॥ ए ॥ खाजो फल फूल तुमें, रमजो पूरव वनें ॥ मु० ॥ न साथ तो उत्तर पश्चिम, जा जो कामनें ॥ मु० ॥ वारुं बुं दक्षिण वन, रखे धरता मनें ॥ मु० ॥ तिहां के दृष्टिविप नाग, देशे दुःख तुमनें ॥ मु० ॥ १० ॥ गइ देवी कुमर वे, त्रिदु वनमा रमे ॥ मु० ॥ फल फूल घणां नली जाते, तिहां पण नवि गमे ॥ ० ॥ चिंते मनमांहे न जाये, वासर ए किमे ॥ मु० ॥ सांजरे मनमां निज गए, हेरान थया में ॥ मु० ॥ ११ ॥ वली वली निरखियें दक्षिण, वारिधि नेहगुं || || चिंते जइ चलो नाइ, तिहां दिल उल्लस्युं ॥ सु० ॥ हमयां दोडीनें तमासो, जोई यावचं ॥ मु० ॥ चिंता एटलशे दूर, अमल चेन पासचं ॥ मु० ॥ १२ ॥ गया ते दिशें जाम, खत्र गंध उबली ॥ मु० ॥ वस्त्रे आबादी नाक, जोइ खाघा वली ॥ मु० ॥ देखी नर त्यां एक रंक, थया मन व्याकुली ॥ मु०॥ एहवे शूलागत मनुज, दीगे गया ऊलफली ॥ मु० ॥ १३ ॥ पूब्युं तेहनें जइ कुण, कमाइ शी करी ॥ मु० ॥ ते बोल्यो सांजलो मित्र, दशा महारी फरी ॥ मु० ॥ मुऊ वाहण नांग्युं कर्म, ए लाग्युं नीसरी ॥ मु० ॥ रत्ना अनुरागें कांइक, सेवा वीसरी ॥ मु० ॥ १४ ॥ मुक्त डःख एगें दीधुं; माहारुं कीधुं में लधुं ॥ मु० ॥ तेणें नर विपसाड्या कष्टें, पाढ्या हुं गुं कहुं ॥ मु० ॥ कहो वात तुम्हारी मुकनें, सारी सद्दढुं ॥ मु० ॥ धुरिती जांखी कांइ न, रा खी ए सहु ॥ मु० ॥ १५ ॥ करी करुणा कांहि उपाय, कहो जीव्या तणो ॥ मु० ॥ कहे ते नर शैलक यह, इहां सोहामणो ॥ मु० ॥ करें यश्वनुं रूप ए पर्व, दिने वोले घणो ॥ मु० ॥ कहो कुपने राखुं कुराने, पालुं ते जणो ॥ मु० ॥ १६ ॥ तमें जार्ज तेहनी पास, करो सेवा नली ॥ मु० ॥ ते द्याव्या यह समीप, सहु आशा फली ॥ मु० ॥ उगणीग़मी ढाल कही, त्री जे खंमें रली ॥ मु०॥ जे विपयथकी रह्या दूर, तेहनी सुदशा वली १७
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श्री शांतिनाथनो रास खंत्रीजो. १२३
॥ दोहा ॥ ॥ यदतणी सेवा करे, कुसुमें पूजे पाय ।। राख राख स्वामी हवे, तुं श्रम माय ने ताय ॥१॥ पर्वदिने वोल्यो यदा, यद तेह नजमाल | बंधव कर जोडी कहे, राख राख अम्ह पाल ॥ २ ॥ यह कहे ते वेदुने, निस्तार निर्धार ॥ पण निश्चल था सांजलो, महारो एक विचार ॥ ३ ॥ तुम जा तां ते यावशे, पापिणी पूवें सोय ॥ कहेहो तुमने ते घj, सुनजरें साहा मुं जोय ॥ ४ ॥ ते ऊपर धरशो तदा, जो अनुराग लगार ॥ तो उलाली तुमने, नारवीश समुइ मजार ॥ ५ ॥ जो रहेशो निरपेक्ष्यी , तो तुमने त तकाल ॥ पहोंचाडीश चंपा पुरी, लहेशो सुरक रसाल ॥ ६ ॥
॥ ढाल वीशमी ॥ ॥ मजरो व्यो ने जालम जाटडी ॥ ए देशी ॥ कुमर कहे तस संगर्नु, फल दीढं माहाराज ॥ ए साहामुं निरखं नहिं, सो वानां करे थाज ॥ ॥१॥ हवे अम तारोजी साहिबा ॥ ए बांकणी ॥ वलग्या तुमारेजी पा य ॥ शरण ययुं एक ताहरूं, अवर नहिं को उपाय ॥ ॥२॥ खंधे चडावीने चालीयो, दरियामां यदाज ॥ वे वांधव हरख्या घj, फलीयां बांठित काज ॥ह० ॥ ३ ॥ हवे देवी निजमंदिरे, नवि दीपा दोय बंधु ॥ जाए\ झाने ते यदजी, जाय चढावीने खंध ॥ ह ॥ ४ ॥ खड्ग लेने के थइ, क्रोध नराणी जी जोर ॥ थावो वांडोजी जीवद्, एम कहे करती जी सोर ॥ ३० ॥ ५ ॥ नहिंतर एणे खहें सही, करा तुम शिरछेद ।। यद कहे रहो रंगयुं, अंश न करशो जी खेद ॥ ४० ॥ ६ ॥ जाए. न मग्या ए चित्तथी, मामी माया जीनूर ।। मुफ मुकीनं एकाकिनी, केम जादोजी दूर ॥ ॥ ७ ॥ वाहालपएं तुम किहां गयुं, एमनधि दीजें जी ह ॥ रंगरमें रम्या मंदिरे, ते विलाखोजी नेद । ह ॥७॥ चित्त चल्यां नहिं तेहनां, खेद सही मनमाहे ॥ कहे जिनरहितने घj, वाहातो जोचितप्राण ॥ ६ ॥ ॥ दिए मान पालापनी, क्रिया सर खी जी दोय ॥ चित्ताहादक प्रेमनी, गति न्यारी ने जी कोय ॥ दम् ।। १०॥ तुज सायं मुफ गोवडी, वे अंतरनी जी सार ॥ ते जाणे मन माह सं, नहिं तुज हेजगार ॥ ॥११॥याचा मलो मुज वालहा, या संगमजी सुख ॥ नहिंतर पाए नजिश ई माहगं, दोहिखं घिरइनें
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१५८ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. मुःख ॥ ह ॥ १२ ॥ नाथ अनाथ परें मुने, मरती देखीने कंत ॥ कां -करुणा नथी धावती, निरखो नयणें संत ॥ हं ॥ १३ ॥ कूडो मोह देखाडी कामिनी, प्रगट पाड्योजी पास ॥ जिनरहित अवलोकियुं, मुख मुर्गति जिम तास ॥ ह ॥ १४ ॥ यदें नाख्योजो पूतथी, पडतां वींध्यो त्रिशूल ॥ फल पाम्यो मुझ वंचना, खड्ग हणीयोजी मूल ॥ ह ॥ १५॥ थइ के. जिनपालनें, वोले मीठा जी बोल ॥ गति होशे जेम बंधुनी, जो चित्त दुन मम मोल ॥ ह०॥ १६ ॥ कूड लही तेहनु रह्यो, निश्चल चित्त विचार ॥ यद संघातें जी मावियो, चंपावनह मकार ॥हा॥ १७॥पाबी वली गइ व्यंतरी, यद पण वलीयो जी तेह ॥ खम्यो कर जोडी जिनपा लने, आणी नक्ति सनेह ॥ ह ॥ १७ ॥ घरे आव्यो मलीयो निज तातनें, एक दिन वीर जिवंद ॥ आव्या पुत्र पिता गया वांदवा, थया प्रनु पासें मुणिंद ॥ ६ ॥ १५ ॥ जिनपालित मुनिवर जलो, कीधो उय । विहार ॥ तप तपीयां अति आकरां, कस्यो आतमनो उदार ॥हा॥ को संबंध मुनीश्वरें, अमरमुनिने हो काम ॥ कहे उपनय हवे एहनो, ते निसुणो मन ताम ॥ ह ॥ २१ ॥ ढाल कही ए वीशमी, त्रीजे खंमें रसाल ॥रामविजय कहे धन्य मुनि, बेदी विषयनी जाल ह॥२॥५७६॥
॥दोहा॥ दोय वणिक. जिम जीवडा, सवि संसारी जाण ॥ रत्ना देवी जेम वली, अविरति वार वखाण ॥ १ ॥ अविरतिथी जे उपन्यो, सुःख तणो समु दाय ॥ शवगृलागत नर इहां, जाणो मनमां नाय ॥२॥ जेम स्वरूप तेणें कद्यु, निज अनुभूत अशेप ॥ तेम अविरति दुःख दावे, गुरुनपगार विशेप ॥३॥ जेम शैलक तारक थयो, तेम संयमगुण सार ॥ सुःखीयानां सुख उहरे, ऊतारे नवपार ॥ ४ ॥ जेम देवीने वश पड्यो, जिम रदित दु:ख दीत ॥ तेम अविरति वश जीवडो, देखे दुःख धनीठ ॥ ५ ॥ दूर रह्यो देवीथकी, नवी लोपी यदवाण ॥ कुशलें आव्यो निजपुरि, ते जिनपाल सुजाण ॥ ६ ॥ अविर तिथी विरम्यो रहे, न विराधे चारित्र ॥ निःकर्मा थप नीपजे, मुनि शिवसुरक पवित्र ॥ ७ ॥ ते माटें वत्स सांजलो, विरु विषय विलास ॥ सुमणे मनमा नापजो, जो शिवपुरनी आश ॥॥ सूधा संयम धर यया, निसुणी गुरु उपदेश । शुद्ध आचारे संचरे, नहिं कपाय लवलेश
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श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजो. १२५ ॥ ॥ ॥ रत्नमंजरी साधवी, बेदु जण सुमनोनाव ॥ घातिकर्मक्ष्य उपन्यो, केवलगुरू स्वनाव ॥ १७ ॥ मुगतें गयां ते दो जणां, जिहां अनंत सुख राशि ॥ प्रणमुं प्रेमें सिह प्रनु, अनुलव लीलविलास ॥ ११ ॥
॥ ढाल एकवीशमी ॥ ॥जय सुरपादप जंतुना ॥ए देशी ॥ स्वयंप्रन मुनिमुखथी सुपी, सबली वात वैराग्य ॥ स्तिमितसागर नरवर कहे, पाम्यो धर्मनो राग॥१॥ वलिहारी तुम झानने ॥ एयांकणी ॥ तुमें महोटा मुनिराज॥ सबल कपाय वशे कस्या, ली, त्रिजुवनराज ॥व०॥ २ ॥ राज्य वेसारी रे पुत्रने, लेई अनुमति तास ॥ तुम पासें नवतारिणी, लेगुं दीदा ननास ॥ व०॥ ३ ॥ घरे यावीने हो थापीयो, अनंतवीर्यने पाट ॥ अपर कुमारपर्दे उवे, मूकी मननो सञ्चाट ॥ ब० ॥ ४ ॥ चारित्र लीधुं रे मुनि कनें, पाले पंचाचार ॥ समिति गुप्ति सूधी धरे, मार्गखांमानी धार ॥व० ॥ ५ ॥ कांक अंते विराधीयो, मन साथें मुनिधर्म ॥ असुर अधिप चमरें जी, ते यया जिहां वदु शर्म ॥व० ॥ ६ ॥ दवे बंधव अपराजिता, अनंतवीर्य अनिधान ॥ राजलीला सुख जोगवे, दिन दिन चढते रे वान ॥ ३० ॥ ७ ॥ खेचर कोइ आवी मल्यो, एकदिन पुण्यसहाय ॥ प्रीति बनी तेहगुं घणी, उदय अचिंतित थाय ॥ ब० ॥ ॥ गगने जवाय हो जेहथी, विद्या दीधी रे सार ॥ विधि सघली रे साधन तणी, तेणें दावी सुनकार ॥ व० ॥ ए ॥ नामें चिलाती ने वर वरी, नाटयकलानी रे जाण ॥ तेउन दोय दासी नली, रूपकला गुण खाण ॥ ३० ॥ १० ॥ एकदिन राजसना मली, निरखे नाटक ख्यात ।। नाचे चिलाती ने वरवरी, चोवन रुप रसाल ॥ व ॥ ११ ॥ कोकिल कंती रे कामिनी, कामकलानी रे धाम ॥ नाव देखाडे हो अति जना, मोघा महिपति ताम ॥ व ॥ १५ ॥ रंगरमें नीना सवे, नाद तणा जेह जाण ॥ नाद निसुणी जे रीज्यों नहिं, ते जगमांहे अजाण ॥ वर ॥ १३ ॥ यजुकं ॥ मुत्तारितेन गीतन, युवतीनां च लीलया ॥ मनोननि घने यन्य, स योगी हायवा पशुः ॥ १ ॥ पूर्वद्वान ॥ ब्रह्मचारी कलहागरो, नारदमुनि ननवार ॥ श्राव्योपण रदेव्यो नहि. महोटो मोदविकार ॥२०॥ ItA ॥ नारद मुनि को चढ्यो. गणीयों मुनें प्राज्ञ ॥ चेटीने ना टके मोहीया, गयी नाहिं मुजाज ॥ ३० ॥ १५ ॥ ॥ गुणयंती रे
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जैनकथा रत्नकोष नाग प्राठमो.
गोरडी, जीवनप्राण आधार || मूंज्या हो एहनां मोहमां, न लहे एह व्यव हार ॥ ० ॥ १६ ॥ हरण करा हो एहनुं, कोइ बलवंतनी पास ॥ जेम एहनो मद कतरे, जंतुं हो एम विमास ॥ ० ॥ १७ ॥ त्रिदु खंम के हो राजियो, विद्याधरनो रे नाथ || प्रतिहरि दमितारि यबे, बलीयो जेहनो रे साथ ॥ व ॥ १८ ॥ तास सनामांहे यावियो, उठी दे बहु मान || जलें याव्या रे पावन कखा, तुम यावे वच्यो वान || ब० ॥ १९ ॥ कहो कां अद्भुत वारता, ते कहे सु रे राजें ॥ सुनगा पुरीना रे राजीया, तेजें जाणे दिद ॥ व ॥ २० ॥ अनंतवीर्य अपराजिता, तस घर दासी रे दोय ॥ नामें चिलाती ने बरबरी, जगमा जोड न कोय ॥ व० ॥ २१ ॥ नाट्यकलाकुशली घणुं, ते नावंती रे याज || दीवी हो वि स्मय कारिणी, ते विष गुं तुम राज || व० ॥ २२ ॥ एम कही मुनि उतपत्यो, प्रतिहरि मोह्यो नाम ॥ मोहनगारी रे मानिनी, मोहतणुं ए धाम ॥ ० ॥ १३ ॥ नाम सुणी रे यारति करे, दीठी हरि ले रे चित्त ॥ स्पर्शी हूंती हो वल हरे, संगमें वीरज वित्त ॥ व ॥ २४ ॥ पण नावी नटले किमे, याव्यो संबंध नजीक ॥ चित्त चल्युं रे लेवा जणी, मूके दूत अनीक ॥ व ॥ २५ ॥ हवे जवियण तुमें सांनलो, एह संबंध रसाल ॥ त्री जे खंमें एकवीशमी, रामविजय कही ढाल ॥ ६० ॥ २६ ॥ ६१३ ॥ १२ ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ दूत चाल्यो दमितारिनो, सुनगा पुरी संपत्त ॥ साहिव वल वलीयो थको, पहोतो सना तुरन्त ॥ १ ॥ रयण योग्य मुऊ स्वामिने, नहिं तुम लायक एह || यो चेटी म ईशनें, वाधे सवल सनेह ॥ २ ॥ वे बंधव चलतुं कहे, कर काम विमासि ॥ जा सीताव स्वामी कनें, दीयो वधाइ तास ॥ ३ ॥ दूत वोलावी चिंतवे, वे बंधव मनमांहे || करे पराजय ए सही, नवि मोकलीयें त्यांहि ॥ ४ ॥ ते माटें जइ साधीयें, विद्या खेचरें दीव || दर्प टले जो एहनो, तो थाये कारिज सि5 ||५|| पूर्वजन्म साधि त तिसें धागे कभी श्राय ॥ विद्या सिद्ध थई कहे, म करो चिंता कांय ॥ ६ ॥ कारिज सिद्ध होगे सवे, जे चिंतवश चित्त ॥ नक्ति करे विद्या तणी, गंध माल्य सुपवित्त ॥ ७ ॥ इण प्रवसरें फरि घ्यावीयो, दमितारिनो दूत ॥ कोपें धडहडतो कहे, वढो जाऐ यमदूत ॥ ८ ॥ रे चेटी नवि
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श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. १२७ मोकली,कां मरवानी हूंश ॥ रूग्यो स्वामी न मूकशे, जूत कहूँ तो सूंस ॥
॥ ढाल बावीशमी ॥ करेलडां घड दे रे ॥ए देशी ॥ कहे वंधव दोय ले चलो, दासीरूप निधा न॥ एहनी स्वामी ऊपरें, प्राण करे कुरबान ॥१॥ वचन अम सुण ले रे ॥ ए थांकणी ॥ रूप करी दासी तणु, विद्यावल वलवान ॥ तुरत जई पहोता तिहां, जिहां प्रतिहार राजान ॥ व ॥ २ ॥ कर जोडी ऊनी रही, मृग नयणी मनोहार ॥ दमितारि देखी कहे, अहो अहो अभुत नारी ॥ व ॥ ३ ॥ नाटक मांमयु मानिनी, मोह्यो नरशिरदार ॥ हाव नाव दाखे जला, लटपटाइ लीयो नारि ॥ 4 ॥ ४ ॥ देखी कलाकुशलीपगुं, बोल्यो एहवा बोल ॥ रूप सुगुण नारी इसी, नहिं कोई जगमां अमोल ॥ २० ॥ ५॥ कनक सरीखे मंदिरें, जाइ रहो मनमोद ॥ राग कला सवि शीखवो, नव नव नांति विनोद ॥ व ॥ ६ ॥ ज्युं पयनाजन नालवे, हर्पित होय विमाल ॥ तेम नृपनी लही आगना, थया मनमांहे खुशाल ॥ व ॥७॥ देखी ते रंजा जिसी, रूपवंत अनिराम ।। कुमरी गुगनी उरडी, मोही रह्या गुणधाम ॥ व ॥ ॥ गीतकला गुण केलवे, नाटक नव नव नांति ॥ प्रीति बनी पासे रहे, ते दासी दिन रात ॥ ३० ॥ ए ॥ ले वीणा निज हाथमां, तंती चढाची धून ॥ विच विच गाये तानमें, अनंतवीर्यके गुन ।। 40 ॥ १० ॥ मुख पूनम मानु शशी, अर्धचंद सम लाल ॥ लोचन पंकज पांखमी, थधर ते लाल गुलाल ॥ व ॥ ११ ॥ अहो विधिना ए नर घट्यो, दी नांजे रे नूख ॥ मानु महियल ए फल्यो, कल्पतरुको संख ॥ ५० ॥ १२ ॥ कहे दासी प्यासी नई, देवन उन दीदार ॥थनंतवीर्यके कपर, तन मन धन ए वार ॥ व ॥ १३ ॥ जिणे उनको देख्यो नहिं. मुखपंकजको कृत ।। लो नारी लेखे नहिं, जीवित तिन• कबूल ॥ व 1 १HI| अपराजित रूपें रही. कहे दासी गुण एम ॥ सुणत नइ ते रागि रणी, वाध्यो विषयना प्रेम ॥ ॥ १५ ॥ त्रीजे खमें वावीशमी, ढाल नली सुरसाल ॥ गम कहे जग को नहिं. प्रेम समो कोऽ साल ॥ ब० ॥ ॥ १६ ॥ गग नेग्य | मने का नगमे ।। ए देगी। मुजकुं याण मिला
गो. मनमोहनने गजन ।। मुफ ॥ए यांकणी ॥ कनफलिरी कदे सहि — यर मारी, मोदी रायु मार्न मन ।। मु० ॥ १ ॥ अनंती रजपून रंगी
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१२० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. लो, अणीयाला लोचन ॥ मु० ॥ ॥ गुण निसुणी न व्याकुल वि नता, तरसे मोरं मन ॥ मु० ॥ ३ ॥ प्राण करुं कुरवान ए उपर, साचो ए साजन ॥ मु० ॥ ४ ॥ दिन रयणी दिलथ्यानें लीनो, थावे एह सुपन ॥ मु० ॥ ५ ॥ सागरजल सम तिहां मुज नेलो, सुरसरिता ज्युं धन्य ॥ मु॥ ६ ॥ कहुँ कर जोडी सयानी मोरी, वात सुणो एक तन ॥ मु ॥ ७ ॥ स्तिमितसागर कुल शुचि वयरागर, उपन्यु एह रतन्न ॥ मु ॥ ७॥ मुफ मुःस्थितने आपो आणी, नहिंतर शरण अगन्न ॥ मु० ॥ ए ॥ नइ प्यासी उनको मुख देखन, चातक चाहे ज्युं धन ॥ मु०॥ १० ॥ उन विण र सवे मन मेरे,जनक सहोदर सन ॥ मु० ॥ ११ ॥ लगन लगी मोहे उनके गुनकी, कहा रे कडं वचन ॥ मुण ॥ १२ ॥ में सोंप्युं सवि सहायर एदने, माहीं तन मन धन ॥ मु॥ १३ ॥ जो न मिले मन मोहन मेरो, जाउंगी होय योगन ॥ मु० ॥ १४ ॥ कनक सरिखो पूरण पेखी, प्रगट दुवे परसन ॥ मु०॥ १५॥ कर जोडी कहे हाजर बंदी, अब में तुम आधीन ॥ मु० ॥ १६ ॥ राग विक लता कारक एसो, नांख्यो श्री जगवन्न ॥ मु० ॥ १७ ॥ वात सुणो अव धागे रसीली, कान धरी सूरि जन्न ॥मु॥१॥सर्व०॥६५॥श्लोक॥१२॥
. ॥ दोहा ॥ ॥ कहे हरि जो मुझ नपरें, तुझ मन मान्यु एम ॥ चालो जयें निज पुरी, वेसी विमानें देम ॥१॥ कनकसिरी वलतुं कहे, करे माहरो तात ।। तुमने परानव अति घणो, तेणें मुफ मन शंकात ॥ २ ॥ वोव्या ते वेदु जणा, मत वीहे मनमांहे ॥ अम आगल शो पाशरो, ए कुए गणती माहे ॥ ३ ॥ वचन सुणी विस्मित दुई, पडी प्रेमके पास ॥ रूप शौर्य गुण मोहिता, साथें चली बन्नास ॥ ४ ॥ विद्यावलें की, नवं, सुंदर एक विमान ॥ संचलावे नृप लोकने, उंचा रही असमान ॥ ५ ॥ जो भो सा मंतादिको, सवल सेन जूफार ॥ हरी जाउं दुं नृपसुता, पी कीजो वाहार ॥ ६ ॥ सुणि ततखेव को चढ्यो, कहे प्रतिहरि दमितारि॥रे रे सुजट शीपाइयो, जान न पावे गमार ॥७॥ कनकसिरीको ले चल्यो, तुरत विमान उमाइ ॥ पूंसें वाहर चढी, लियो लपेट अव जा॥ ७ ॥
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श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजो. शए
॥ ढाल त्रेवीशमी॥ ॥ कंदर्पना शर रे कांई करे, कटकें सुगुण राण सधीर ॥ ए देशी ॥ वालम देख रे कां चढयो कटकाइ, जनक राण सधीर । मारशे तोकुं थाइ अडियो, सवल मोकू पीर ॥ वालम ॥ १ ॥ चढयो दल चिढुं पासें हूंती, मेघ ज्युं गंजीर ॥ गाजे धन नीशान गाजे, तीर वरसत नीर ॥ वा० ॥ २ ॥ कुंत चमके थपी जवके, निसुण नएदल वीर ॥ मार्नु चपला चलत चिहुँ दिशि, थाइ पढुंचे वीर ॥ वा० ॥ ३ ॥ सुलट दूर उ मीय दृश्ने, हाको ज्युं हमीर ॥ देखी निजनट हटत पी, थाव्यो प्रति हरि पीर ॥ वा ॥ ४ ॥ रे रंक तुं कित जात लेकें, सुता रुचिर शरीर ॥ मारके चक चूर करसी, बडे एह अमीर ॥ वा० ॥ ५ ॥ ध्रुनंती तव देखे थर थर, कहे हरि सुण नारी ॥ सिंह अंके फिकर तनकी, कांड करत वि चार ॥ वा ॥ ६ ॥ दे धाश्वासन एणी परे, सेन्य सजीयुं जोर ॥ दोडी चिटुं दिशि वीर धाये, तब मच्यो रासोर वाणाजट मह तब उहली, दमितारि सेना साथ ॥ देखी निज बल मंद चिंते, शोचशुं हरि नाथ ॥ वा० ॥ ७ ॥ प्रगट हुए रत्न तताण, शंख धनु वनमाल ॥ गदा मणि उर वह देखत, दुए दोय उजमाल ॥ वा ! ए ! शंख लेइ करि पूरीयो तब, जोरसे नरसिंह ॥ सैन्य मूर्चित नई रिपुकी, आप फोज अवीह ॥ वा ॥ १० ॥ प्रतिहरि तब थाइ दूक्यो, बेर लेग विचार ॥ रथ चढी रणखेत दोडे, दोय बंधु तिवार ॥ बा० ॥ ११ ॥ नजरें नजरें मल्या दुशमन, चढयो क्रोध कराल | रंगे रणमेदान झटपट, लडे दोनं, व्याल ॥ वा ॥ १२ ॥ शस्त्रनी जलधार बरसे, रोपगुं दमितारि ॥ शस्त्र तो सब नये निःफल, खलें ज्युं उपकार ॥ वा० ॥ १३ ॥ शस्त्र तृटे फरिय पूजें, देखी प्रतिहार दीन ॥ चक्र समन्युं धाय वेलु, करें कदे सुण दीन ।। बाप ॥ १४ ॥ देइ तनुजा पा पर श्रव, का मरत थकाल ॥ मर दिखा बत सोहग्य, वडो तुं कंगाल । वा ॥ १५ ॥ कनकलिरि तर कंपनी युं, धरत मनमा खेद ॥ हा कंत्त प्राणाधार केरो, करेगी शिरवेद ॥ चार ॥ १६ ॥ म र मनमा कत बोले, देख तुं क्या होय ।। क बोटयुं तेणे हरिकर, प्राय पे सोय ॥ ना० ।। १3 ॥ कडे हरिदमितारि सुण तं, म मर जोगव्य राज ॥ कनालिरिक्तात उमली, गई कीनी बाज॥
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१३० जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. . वा ॥ १७ ॥ मान धरि करवाल ले कर, दोडियो आकाश ॥ श्रावतो । देखी चक्रसें हरि, बेदियुं शिर तास ॥ वा ॥१॥ दु जयजयकार गगर्ने, कुसुमको वरसात ॥ अनंतवीरय स्वामी तेरो, प्रबल पुण्य संघात ॥ वा॥ .. ॥२०॥ विजयधैं वासुदेवो, अपर ए बलदेव ॥ चिरं जीवो कोडि खेचरा, .. करण लागे सेव ॥ वा० ॥२१॥ जीत दुइ तब अनंतवीरय, उदय ए बल.. वान ॥ ढाल त्रेवीशमी त्रीजे खंमें, सुपो सुगुण निधान वा ॥२॥६६॥ .
॥दोहा॥ ॥ कनकसिरी मन चिंतवे, नागे मुज आचार ॥ बनी आवी तातथी, में कियो कुलसंहार ॥१॥ धिक् धिक माहापण माहरु, धिक् धिक् माहरु रूप ॥ जोतां मुज आगल इस्युं, कारिज थयुं विरूप ॥ २ ॥ कुल खंपण ढुं कुंवरी, कां अवतरी जगमाय ॥ जनक अने वली बंधुनो, कयो विना शण नाय ॥३॥ वे बांधव चाल्या तुरत, वेसी विमान मजार ॥ कनकसिरीकों साथ लर, बदु खेचर परिवार ॥ ४ ॥ निज नगरीनणी चालतां, विच कनकादि नदार ॥ याव्यो तब खेचर कहे, यहां के जैन विहार ॥५॥ चैत्य जुहारी जिन तणांवलतां दीनो साध ॥ कीर्तिधर नामें जलो, गुणमणि नखो अगाध ॥ ६ ॥ वरसी तपसी पामियो, उज्ज्वल केवल नाण ॥ दोय नरेश्वर पद नमी, करे मुनि तणां वखाण ॥ ७ ॥ धरा पीठ वेता विदु, कर जोडीने ताम ॥ नविक जीव प्रतिवोधवा, कहे मुनि देशन धाम ॥ ७ ॥
॥ढाल चोवीशमी॥ ॥ तुंगीया गिरि शिखर सोहे ॥ ए देशी ॥ कहे मुनिवर वात मीठी, सां जलो नवि वृंद रे ॥ पामियो ए उलह नरजव, करो धर्म अमंद रे ॥ का ॥ १ ॥ प्रथम चुल्लक अने पाशक, धान्य द्यूत विचार रे ॥ रयण सुमिण ते चक जाणो, कूर्म युग तिम धार रे ॥ कम् ॥ २ ॥ दशमे परमाणु वरखा पो, एह दश दृष्टांत रे ॥ जाणि उर्लन एह जुगतें, मनुज नवनी वात रे । ॥ क० ॥३॥ देश आरिज कुल अरोगी, नाव उलह सहाव रे ॥ लही योग ए वंध कारण, दूर ठम्य विनाव रे ॥ क० ॥ ४ ॥ मिथ्याल 'अविरति उष्ट योगा, तिम कपाय प्रमाद रे ॥ कह्या पंच ए वंध हेतु, तजो मन उन्माद रे ॥ क० ॥ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म केरा, संगसें मिय्यात
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श्री शांतिनाथनो रास खंग त्रीजो.
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रे ॥ पाप विरमण नहिं तिल नर, कही यविरति जात रे ॥ क० ॥ ६ ॥ क्रोध मानो माय लोनो, मूल चार कपाय रे || खंति द्यार्जव मुक्ति मार्दव, ए विपर्यय याय रे ॥ क० ॥ ७ ॥ कहुं मदिरा विषय निश, तिम कपाय निवार से || पंचमी विकथा ठांम परही, ए प्रमाद म वधार रे ॥ क० ॥ ७ ॥ योग मन वच काय केरा, जालवो तुमें सार रे ॥ तेरमा गुल गण सुधी, जे रहे निर्धार रे || क॥ ए ॥ हेतु छूटे गुण प्रगटे, करो तास उपाय रे || कहे केवली धर्मनी मति, करो जिम सुख याय रे ॥ क० ॥ १० ॥ नव स्वरूपें अंधकूप, मोह नूपें पाश रे ॥ विषयनामें मांहे पडि या, होय गति मति नाश रे ॥ क० ॥ ११ ॥ एक विषय विलास देतें, जे हणे बहु लोक रे ॥ तेहनां फल दोहिलां ते, सहे परनव रोक रे ॥ क० ॥ १२ ॥ शैव्य सरिखा कह्या विप सम, कामिनीना जोग रे ॥ सुख माने मूढ न लहे, धनादिनो रोग रे ॥ कण् ॥ १३ ॥ एह सुख मधुविंड सरिखुं, ते कटुक विपाक रे || धन्य एथी रह्या लगा, जाली फल किं पाक रे ॥०॥ १४ ॥ कनकसिरि कर जोडी जंपे, कहो सत्य व्यवदात रे ॥ विषय चिंतनयकी दुःख दे, सेविया शी वात रे ॥ क० ॥ १५ ॥ पण कहो कुप कर्म दू, पितर बंधु वियोग रे ॥ कहे नापी सुपो प्राणी, कर्म सब जो रोग रे ॥ क० ॥ १६॥ ढाल चोवीशमी त्रिजे खंकें, रंगें दाखी एह रे ॥ रामविजय कहे सुपो हवे, पूर्वभव सस्नेह रे ॥ क० ॥ १७ ॥ १११ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ कहे कीरतिघर केवली, शुद्ध नाथ उपयोग ॥ देवाप्पिय सांजलो, पुरवकतनी जोग ॥ १ ॥
|| दाल पचीगमी ॥
॥ प्रथम हिरावण दीवो ॥ ए देशी ॥ पूरव धातकीख, शंखपुर नरतं श्र खं ॥ चन्निवंश एक नारी, श्रीदत्ता निरधारी ॥ १ ॥ परवरे करे नित्य काम. यवना खनुं ए चाम ॥ कर्म कमाइनी योग, न मजे वांनि न लोग ॥ २ ॥ एकदिने मुनिवर मलिया, मनह मनोग्य फलिया || कड़े सामी हित दाखां, सुजने जीवती राखो ॥ ३ ॥ कहे मुनि धर्मचक्र बाल, तप करो यजमान ॥ प्रयमम दोष करी, सादीन चोथ पादरी ॥ ४ ॥ देव शुरु क्ति व्यति सारी पूजा सतर प्रकारी ॥ धन
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२३३ . जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. होय तो एम कीजें, दान संपत्ति सारु दीजें ॥ ५ ॥ गुरु दीर्छ तप लीधु, माने कारिज सीधुं ॥ धन्य गुरु मुज समजावी, सूधी राह वतावी . ॥ ६ ॥ गुरु वंदी घरे आवी, कहे पाडोशण जावी ॥ तप करे मन हित - घाणी, लोकें उत्तम जाणी ॥ ॥ पारणे खवर ले सारी, ए गुं करशे । विचारी ॥ तप महोटुं जिन साध्यु, बातम गुणथी ए वाध्यु ॥ ७ ॥ सात्त्विक राजसी जोय, तामस त्रीजु ए होय ॥ दोय तजी एक करीयें, सहेजें शिवसुख वरीयें ॥॥ तपस्वी घणी थइ नारी,एक दिन निंत मका री॥ जोतां कंचन पायो, हियडे हेज न मायो ॥ १० ॥ वाधी तपनी प्रतीति, उजमणुं करे रीति ॥ जिनवर पूजा रचावे, साहामी तेडी जिमा ॥ ११ ॥ तप ऊजमणुं ए कीधुं, मपुज जन्म फल लीधुं ॥ तप उजमणा । थी वाधे, निज उत्साह जो साधे ॥ १२ ॥ तपथी होवे व्यवदान, तप .. ए मुक्ति निदान ॥ तप तपीयु ए नीराशी, प्रगटे निजगुण राशि ॥ १३ ॥ यमुक्तं ॥ यदूरं यमुरा० ॥१॥ मासखमण उपवासी, समगुणनो जल राशि ॥ एहवे एक मुनि आव्यो, श्रीदत्ता मन जाव्यो ॥ १४ ॥ उठी गई तस सामी, पाउ धारो मुफ स्वामी ॥ पतितने पावन कीजें, आहार निरवद्य लीजें ॥ १५ ॥ पडिलाने मुनि नावें, अशनादिक वहोरावे ॥ कहे कृतकृत्य हुँ बाज, संतोष्या मुनिराज ॥ १६ ॥ धर्म कहो मुझ मीठो, फल जस नयाले दीगो ॥ पाली पोरसी थाइ, सुराजो धर्म : सखाइ॥ १७ ॥ मुनिवरें कीधो थाहार, मास खमण चोविहार ॥ धास्यो दिवस वीजाथी, सूधो मुक्तिनो साथी ॥ १७ ॥ श्रीदत्ता तिहां यावे, मुनि वर वांद्या ते ए नावें ॥ मुनि कहे जिनवर धर्म, निसुणो एहनो मर्म ॥१॥ त्रीजा मित्र समान, आपे शिवसुखदान ॥ एहना तीन प्रकार, सुणजो ते निर्धार ॥ २० ॥ प्रथम त्वचागत कहीये, दिलमांहे वहीये ॥ बीजो अ. स्थिगत साचो, पण परमारथ काचो ॥ २१ ॥ त्रीजो मजामां नेदो, धर्म । न जाये उठेद्यो ॥ प्राणांतें नवि मूके, कष्ट पडे नवि चूके ॥ २२ ॥ एह । यर्थ एम ध्यावे, परधनर्थ मन लावे ॥केम अमूरत धर्मे, अस्थि मऊ कहो ...
मम ॥ १३ ॥ इहां उपनय वतलावे, मुनि हवे एम समजावे ॥ कही पच . " वीशमी ढाल, त्रीजे खमें रसाल ॥२॥ सर्वगाथा॥७३६॥ श्लोक ॥१॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. १३३
॥ दोहा ॥ ॥ कहें मुनि उपनय एहवो, नयरी उलेणी नाम ॥ नृप जितरिषु धारिणी तनय, नरसिंह सुत अनिराम ॥ १ ॥ सकलकला पूरण शशी, योवनरूप रसाल ॥ कन्या परणावी पिता, हात्रिंशत सुकुमार ॥२॥ अतुली वल सुख नोगवे, मनोवांवित संयोग ॥ मात पिता मनवानहो, विलसे विपयिक लोग ॥३॥
॥ ढाल दीशमी ॥ ॥ मगध देशको राज राजेश्वर ।। ए देशी॥ एकदिवस ते पुरनें परिसरें, थाव्यो हो वननो हाथी ॥ उज्ज्वल वर्णे गज तिम उंचो, नृपनें कयुं कोई साथी के ॥ १ ॥ राजन घरज सुणो एक मोरी ॥ ढुं बलिहारी तोरी ॥ वा लेसर ॥ ॥ ए श्रांकणी ॥ गज कोप्यो जन विप्लव करतो, राख हो आमचा स्वामी ॥ श्रमो अनाथ अशरण कोण धागे, कहिये जइ शिर नामी के । रा० ॥ २ ॥ सुणि राजा सेना दोडावी, सवल राणीना जाया ॥ देखी गज मदमत्त मदोत, दीन घर फरी आया के ॥रा ॥३॥ थाप थयो यसवार नरेश्वर, पहेरी सन्नाह ते शूरो ॥धावी नमे नरसिंह कुम रजी, चोले एम गुणपूरो के ॥ रा ॥ ४ ॥ राज बिराजो महोलें बाजो, दुकम करो अब अमने ॥ फरमावो तेहनें बांधीने, गुजराईले स्थाने के ॥ राम ॥ ५॥ दुकम दुबो गज लावो हो जाली, दोड्यो घा असवार ॥ केसरीया रजपुत रढियाला, सायें सबल परिवार ॥रा ॥ ॥ ६ ॥ दीदो गज नव हाथनो लांबो, सात उन्नत त्रण पहोलो ॥ दीर्घ वंत कर पिंगल नयणे. दरिसण जेहनो न सोदिलो के ॥रा० ॥3॥ चारशे चालीश लक्षणे पूरो, दीगो गयंद कुमार ॥ सिंधुर राजकुमर जणी धसियो, लोक सहूको बारे ॥ ७॥ कुमरजी ए गज काल्यो न जाय ॥ देखि ततवेव ए यमना सरिखो, ए पास जाय वलाय ॥ कुम० ॥ ए| कमर कहे नुमें दूर रहो सथि, ए गजने नलाई ॥ तो जितरि कुलनो ई जायो, गज आएं ग्रही चाहूं के ॥ रा ० ॥ चक्रपरें गजन फेरथियो, यमच्यो हो तेदनें गादो ॥ चरणे खेदाणी याने नराणो, उनो गयो पा टाढा के ॥ ॥ १० ॥ जई चने ऊपर लघु सजग, चनीयां राजकुमार ॥ विस्मय पाम्पा यातानं भावों, बरत्यो जय जप .
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१३३ जैनकथा रत्नकोष नाग आग्मो. होय तो एम कीजें, दान संपत्ति सारु दीजें ॥ ५ ॥ गुरु दीधुं तप लीधु, माने कारिज सीधुं ॥ धन्य गुरु मुज समजावी, सुधी राह वतावी ॥ ६ ॥ गुरु वंदी घरे आवी, कहे पाडोशण नावी ॥ तप करे मन हित प्राणी, लोकें उत्तम जाणी ॥ ७ ॥ पारणे खवर ले सारी, ए गुं करशे. विचारी ॥ तप महोटुं जिन साध्यु, आतम गुणथी ए वाध्युं ॥ ७ ॥ सात्त्विक राजसी जोय, तामस त्रीजुं ए होय ॥ दोय तजी एक करीयें, . सहेजें शिवसुख वरीयें ॥॥ तपस्वी घणी थइ नारी,एक दिन निंत मजा री ॥ जोतां कंचन पायो, हियडे हेज न मायो ॥ १० ॥ वाधी तपनी प्रतीति, उजमणुं करे रीति ॥ जिनवर पूना रचावे, साहामी तेडी जिमा ॥ ११ ॥ तप जमणुं ए कीg, मपुज जन्म फल लीg ॥ तप उजमणा थी वाधे, निज उत्साह जो साधे ॥ १२ ॥ तपथी होवे व्यवदान, तप ए मुक्ति निदान॥ तप तपीयुं ए नीराशी, प्रगटे निजगुण राशि ॥ १३ ॥ यउक्तं ॥ यदूरं यजुरा० ॥ ॥ मासखमण उपवासी, समगुणनो जल राशि ॥ एहवे एक मुनि आव्यो, श्रीदत्ता मन नाव्यो ॥ १४ ॥ उठी गई तस सामी, पाउ धारो मुफ स्वामी ॥ पतितने पावन कीजें, प्राहार निरवद्य लीजें ॥ १५ ॥ पडिलाने मुनि नावें, अशनादिक वहोरावे ॥ कहे कतरुत्य हुँ अाज, संतोष्या मुनिराज ॥ १६ ॥ धर्म कहो मुज मीठो, फल जस नयणले दीठो ॥ पाली पोरसी बाइ, सुपजो धर्म . सखाइ ॥ १७ ॥ मुनिवरें कीधो थाहार, मास खमण चोविहार ॥ धायो । दिवस वीजाथी, सूधो मुक्तिनो साथी ॥ १७ ॥ श्रीदत्ता तिहां यावे, मुनि वर वांद्या ते ए नावें ॥ मुनि कहे जिनवर धर्म, निसुणो एहनो मर्म ॥१॥ . त्रीजा मित्र समान, आपे शिवसुखदान ॥ एहना तीन प्रकार, सुजो ते । निर्धार ॥ २० ॥ प्रथम त्वचागत कहीये, दिलमांहे वहीयें ॥ वीजो य' स्थिगत साचो, पण परमारथ काचो ॥ २१ ॥त्रीनो मझामां जेदो, धर्म । न जाये उच्छेद्यो ॥ प्राणांतें नवि मूके, कष्ट पडे नवि चूके ॥ २२ ॥ एह . अर्थ एम ध्यावे, परधनर्थ मन लावे ॥ केम अमूरत धर्मे, अस्थि मज कहो . मम ॥ १३ ॥ इहां उपनय बतलावे, मुनि हवे एम समजावे ॥ कही पच - वीशमी ढाल, त्रीजे खमें रसाल ॥२४॥ सर्वगाथा ॥७३॥ श्लोक ॥१॥
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श्री शांतिनायनो रास खंग त्रीजो. ॥ दोहा ॥
॥ कहें मुनि उपनय एहवो, नयरी उद्रेणी नाम ॥ नृप जितरिपु धारिणी तनय, नरसिंह सुत अभिराम ॥ १ ॥ सकलकला पूरण शशी, यौवनरूप रसाल ॥ कन्या परणावी पिता, क्षत्रिंशत सुकुमार ॥ २ ॥ तुली चल सुख भोगवे, मनोवांबित संयोग || मात पिता मनवनहो, विलसे विषयिक जोग ॥ ३ ॥
॥ ढाल तवीशमी ॥
॥ मगध देशको राज राजेश्वर || ए देशी || एकदिवस ते पुरने परिसरें, थाव्यो हो वननो हाथी ॥ उज्ज्वल वर्षे गज तिम उंचो, नृपने कर्तुं कोई साथी के ॥ १ ॥ राजन अरज सुणो एक मोरी ॥ हुं वलिहारी तोरी ॥ वा लेसर ॥ एयांकणी ॥ गज कोप्यो जन विप्लव करतो, राख हो श्रमचा स्वामी || अमो अनाथ अशरण कोण यागें, कहियें नइ शिर नामी के ॥ रा० ॥ २ ॥ सुपि राजा सेना दोडावी, सवल राणीना जाया || देखी गज मदमत्त मदोश्त, दीन या फरी व्याया के ॥ रा० ॥ ३ ॥ याप यो सवार नरेश्वर, पहेरी सन्नाह ते शूरो ॥ यावी नमे नरसिंह कुम रजी, बोले एम गुणपूरो के ॥ रा० ॥ ४ ॥ राज विराजो महोलें ठाजो, हुकम करो व अमने || फुरमावो तेहनें वांधीने, गुजरातुं नेइ स्थानें के ॥ रा० ॥ ५ ॥ हुकम दुवो गज जावो हो जाली, दोड्यो य
सवार ॥ केसरीया रजपुत रढियाला, सायें सवाल परिवार ॥ रा० ॥ ॥ ६ ॥ दीठो गज नव हाथनो लांबो, सात उन्नत त्रण पहोलो ॥ दीर्घ दंत फर पिंगल नयरों, दरिसए जेहनो न सोहिलो के || रा० ॥ ७ ॥ चारों चाली लक्षणे पूरो, दीठो गर्दन कुमारें | सिंधुर राजकुमर जणी धतियों, लोक सहूको बारे ॥ ८ ॥ कुमरजी एगज काल्यो न जाय ॥ देखि ततखेव ए यमना सरिखो, ए पासें जाय बजाय ॥ कुमः ॥ ए० ॥ कुमर कड़े तु दूरे रहो सवि, ए गजने नसाहुं ॥ तो जितरिपु कुलतो कुं जायो गज याएं यही चाके ॥ ० ॥ ए ॥ चक्रपरे गजने treat, or a ते गाढी ॥ चरणों खेदाणो वा नराणां, यादो के || रा० ॥ १० ॥ नई वो ऊपर लघु कलर्श, जीयाँ राजकुमार ॥ विस्मयं पापा यावानं श्राप्यो बत्यो जय जय
प्रध
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१३४ . जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कार के ॥ राम् ॥ ११ ॥ जनक समीपें श्राव्यो कर जोडी, विनयें नामे शीश ॥ सदु आशिष दीये चिरं जीवो, कुंवर कोटि वरीस के ॥ रा॥ १२ ॥ चिंतवे नरवर राजधुरंधर, पुत्र सुकुल मुह आगे ॥ न घटे मुजने राज्यमा रहेवू, अाव्यु मन वैराग्य के ॥ रा॥ १३ ॥ यमुक्तं ॥ नारं खमे वि पुत्ते, जो नियनारं विजु निश्चंतो ॥ न य साहेइ सकङ, सो मुरकसिरो मणि जणि ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ लहि सम्मति सुत राज्ये थापी, नृप जयंधर मुनि पासेंलोच करी मन शोप हरीने, चारित्र पाले नन्नासें के ॥ रा० ॥ ॥१४॥चंपकवरणी काया हो कोमल, कीधो उग्र विहार ।। पंच समितित्रण गुप्ति संजाले, पाले पंचाचार के ॥ रा ॥ १५ ॥ हवे नरसिंह नरेसर रूडे, पाले प्रजाने प्रेमें ॥ न्यायमार्ग नवि चूके कोर, सदुको व्रतें देम के ।। राण ॥ १६ ॥ अन्य दिवस अतिमायी प्रकट्यो, पाकरो चोर प्रचंम् ॥ नगर मुष्यु सघलृ तिण धूर्ते, कोई न देई शके दंम के ॥ रा ॥ १७ ॥ महाजन लोक मलीने आवे, राजन किम रहेवाये ॥ धोले दहाडे धूते हो धूरत, रातें वाहार न जाय केरा॥१७॥ दे दिलासो महाजन वास्यो, आरक्क रखवालें ॥ पुनरपि महाजन फरियाद कीधी, कां नृप अम नवि पाले के ॥ राम् ॥ १ए ॥ नहिंतर स्थानक आपो अलगं, तिहां जानें अमें वसीयें ॥ तिहां पारदक कामो कीधो, बोलाव्यो रायें रसीये के ॥ रा० ॥ २० ॥ कहे महाजन राजन इहां एहनो, वांक न कांई दीसे ॥ वर्धर वेटी जाय उकेटी, धूरत रात न दीसे के ॥ रा०॥ २१ ॥ ए कोश वलीयो ने वली बलियो, को प्रपंचें जीताये ॥ कहे राजा करिश ढुं रूड़, महाजन कीg विदाय ॥रा॥२॥ कहे सुव्रत श्रीदत्ता सुण हवे,यस्थि म जानी वात॥त्रीजे खंमें ढाल बबीशमी, सांजलो मूकी वात के ॥२३॥७६२॥
॥दोहा॥ ॥ वंठ वेप धरि नीलस्यो, रातें ते राजान ॥ सघले शंका स्थानकें, भ्रम ण करे धरि शान ॥ १ रात्रिमांहे वाहिर दिने, फरे अहोनिश ते नूप ॥ पण किहांये दीतुं नहिं, तस्करतणुं स्वरूप ॥ २ ॥ अन्य दिवस संध्या समय, वेतो तरुतलें राय ॥ वस्त्र कपाय त्रिदमियो, दीठो मारगमांय ॥ ३ ॥ निज समीप आव्यो यदा, नम्यो नरेश्वर ताम ॥ कुण तुं किहांथी धावीयो, तिणे पण पूज्यु बाम ॥ ४ ॥
ATM
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श्री शांतिनाथनो रास खंग त्रीजो.
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॥ ढाल सत्त्यावीशमी ॥
|| देशी ऊकडीनी ॥ सुए योगींदा वे, वात कहुं अब मेरी ॥ धनके कारण वे बहुत देर में फेरी ॥ ० ॥ फेरी दीधी देश विदेशें, बहुत दिव स दूया मोकुं ॥ नूख्या तरप्या धन मेलाकुं, बहुत क्या में कहुं तोकुं ॥ पण उपगारी को न मलिया, जासुं टले ए दुःखदंदा || थाका व्याया देखी तरुठाया, सुख पाया सुप योगींदा || सुण योगींदा वे ॥ १ ॥ धन मन मानुं वे, और कहा जगमांये ॥ धनसं इकत वे, जिहां जावे वहां पावे ॥ त्रूणा पाइ इकत दोलत दुनियां, धन विष्णु काज न कोइसरे ॥ निर्धन र मृत दोच बरोबर, कवि ग्रंथांतर युं उन्चरे ॥ परणी धरणी ते पण ढंगे, फरे कुलीन पण श्रयमान्युं ॥ न गए कोइ प्रतीति ते नरनी, ते माटें धन मन मान्युं ॥ ६० ॥ २ ॥ व तुं पाया थे, जाग्यदशा मुक्त जागी ॥ कर सुपसाया वे हो मुऊ उपर रागी ॥ ० ॥ रागी होइ करो मुऊ करुणा, करणी तुमची प्रति सारी ॥ अवधूत कहावो व्यलक जगावो, दुनिया में तुम गति न्यारी ॥ चालसुन्या घर घ्यावी गंगा, रंग नया मोरे मन नाया || दरि ःख नेहा जोय नमेहा, ताप टले व तुं पाया ॥॥ ३ ॥ कहे ते रखी कुणकुण देश तें देखे || कहो मुऊ न्यागे थे, वात विचार गुं लेखे ॥ ० ॥ लेखे बात विचारी पंथी, कहे चोराशी फरि व्यायो ॥ कुण कुछ तेह बताव ते मोकुं, जांखे कनट मन पायो || सेनी देखे देश है, उनकी रीति मिले सरखी ॥ तामें जाणुं तरत पिठाणुं, साची ते कह ते रखी || क० || ४ || सोरठ देख्यो वे, चतुर जिहां नर नारी ॥ मधुरं घोले थे, भानुं सुर अवतारी ॥ ० ॥ सुरप्रवतारी जिहां दो तीरण, शत्रु जय गढ़ गिरनारी ॥ यादीश्वर म्यलवेसर स्याप्या, जाउं उनकी बनिहारी ॥ कोडा कोडि व्यनंता सिद्धा, जिहां मुनिवर सो में पंख्या || बहु दिन वहां फरिया बहु नीलरीया, योगीश्वर सोरठ देख्या ॥ सो॥ ५ ॥ कुंकण देख्या मैं जिहां पग पग पनवाडी || नालीयेर कदली थे, जोजन सुंदर गाजी ॥ ॐ ॥ वाली नोजन चतुरविचकूण, लोक सहको नदियां ॥ गयो गुजरान कर दे, तोनी में न जय तुखयो || काम समोर ॥ कटुंतागुण तुं मिना, ऐसों में कुंणों ॥ ॥ ॥ बहुतेरे ते कनिंग ॥ वाट
,
चदुत
Tapes
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र१६. जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कुलाला वे, मरुधर गुजार चंगा ॥ ॥ चंगा देश जिहां नवरंगा, गंगा निर्मल नीर वहे ॥ काशी देश सुवेशा मानव, जिप दी आनंद लहे॥नव : नव नाषा नव नव शाखा, दाखी सुण सांई मेरे ॥ धन नवि पायो काल गमायो, देखे देश युं बहुतेरे ॥ दे ॥ ७ ॥ धूरत चिंते वे, साचु एणे नां स्युं ॥ करशे महारं वे, कारिज पासें रा ॥ ॥ राख्या पासें एम
विमासे, मत फिकर मनमांहे धरे ॥ मन चाहे सो लडमी लेना, पण ... कहुँ सो तुं काज करे ॥ अंगीकार कयुं तस जांरव्यु, जाण्यो चोर ए सही "
चित्तें ॥रात पडी पसयुं तम बहुलुं, तब मनमां धूरत चिंते ॥धू ॥७॥ , सुण वैदेशी वे, तस्करने जे प्यारी ॥ सन्मुख आवी वे, रयणी ए अंधारी ॥॥ रात अंधारी आपण प्यारी, ले कृपाण करमें तेरा ॥ चाल नयरमां
ईश्वर घरमां, धन लावे जश् वदुतेरा ॥ सत्त्यावीशमीत्रीजे खंमें, ढाल . कही जकडी देशी ॥ याव्युं पाप उदय हवे एहनु, राम कहे सुग 'वैदेशीक ॥ ए ॥ सर्वगाथा ॥ ७७५ ॥ श्लोक तथा गाथा मत्ती॥१५
॥दोहा॥ ॥ काढयुं खङ्गग पडिहारथी, जबके ज्योति अपार ॥ चिंते नृप एहने हां, वली मन करे विचार ॥ १ ॥ एक वार जोकं चरित, हगवो महारे हाथ ॥ एम चिंतीने चालीयो, नृपति तेहनी साथ ॥ २ ॥ धूरत मन शोचे इस्युं, नहिं खड्ग सामान्य ॥ण खतें जाएं सही, दीसे ले राजान ॥३॥ तो उपाय कांक करी, कूटी मारु राय ॥ वेदु धूर्ते धूर्तज मल्या, जोजो अ॒ हवे थाय ॥ ४ ॥ आघो जइ पानो वट्यो, कहे धूरत पुरलोक ॥ हमणां जागे ने यहां, सूजें गतशोक ॥ ५ ॥ राजायें दोय कीधला, पत्न व संस्तर ताम ॥ एकण वीशामो स्वयं, वीजे चोर हराम ॥ ६ ॥
॥ ढाल अग्यावीशमी॥ ॥ मूकी द्यो मति दननी जी ॥ ए देशी ॥ चोर विचारे चित्तमां जी, मुक माथानो एह ॥ मुज जागतां ए केम मरे, नवि सूवे कपटनुं गेह रे - ॥ १ ॥ चोर कला नवि कीजीयें जी॥ ए यांकणी ॥ चोरीये जय नवि थाय ॥ धन मेले धती घणुं रे, प. जीवथी जाय रे ॥ चो० ॥
॥३॥ लांवो ने जी तिवार ॥ एम तल ताके २ . रे, नर्षि
॥ ३॥ नृप हलवे .
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___ श्री शांतिनायनो रास खंमत्रीजो १३७ अग्यो तिहां जी, जाण्युं लाकड एक ॥ निजस्थानक मूकी करी २, तरु कोटरें रह्यो धरि टेक रे ।। चो० ॥ ४ ॥ उग कती जोयुं जिस्य जी, सूतो जाणी तास ।। खहें दणी कस्या खंम वे रे, नृपत्रांत रे अधिमास रे ।। चो ॥५॥ पट परद्धं करी जोइयुं जी, अहो अहो ठगीयो मुजा पश्चाताप करे घणो जी, नवि जाण्युं रे में एहनुं गुफ रे ॥ चो० ॥ ६ ॥ राजन कहे सुण पापीया जी, थाजे हवे दुशियार ॥ पापनों घट पूरण दुरे, नहिं मूकुं रे हवे निर्धार रे ॥ चो० ॥ ७ ॥ नटुं नर्बु कहेतां सामुहो जी, थयो जाली तरवार ॥ खडाखड़े तेहतुं रे, युझ मातुं रे थयुं बहु बार रे ॥ चो० ॥ ॥ कल पामीने राजवी जी, चोरने हणीयो मर्म ॥ लडथड तो जोंये पढ्यो रे, एम श्राव्यु रे उदय निज कर्म रे ॥ चो० ॥ ५ ॥ विधु र थयो ते घातथी जी, नूपप्रत्ये कहे वात ॥ वीर तन्यु पुर ताहनं रे, तो पाम्यो रे अचिंत्यो घात रे॥ चो॥ १० ॥ मुण मरवू सही मारे जी, ए देवलनी पून ॥ पाताल मंदिर वे जलु रे, तुमें जाउ रे सिताबी ऊव रे ॥ चो० ॥ ११ ॥ वद् नयरनी नारीयां जी, घाली लुमि मकार ॥ इव्य थो बलि त्यां घणुं रे, तुमें करजो रे हो तेहनी सार रे ॥ चो० ॥ १२ ॥ खाइ जाउ माह जी, देजो हो विवरें साद ॥ तुरत यावीने उघाड शेरे, निसुणीने रे तुमारो नाद रे ॥ दो० ॥ १३ ॥ मरण कहेंजो माहरु जी, देलो खद्ग निशानि । हार उघाडी ताही रे, एह सेवा करने सुजाए रे ॥ चो ॥ १४ ॥ खड्ग लेई नृप चालीयो जी. पहोतो नुबन धार | सवि वृत्तांत सुपी करी रे, पेसाग्यो रे नुबन मकार रे ॥ चो० ॥ १५ ।। ण पर्यकें मादिवा जी, वेसो भावी राज ॥ तुम दर्शनयी माइगरे, सबि सीध्यां रे वांचित काज रे ॥ चो0 ॥ १६ ॥धर देईया मुं तदा जी, प्रसन्न जोतां रे दीत ॥ ता शंकी नृपं नयी रे, करे कांड रेप अनीह रे । चो० ॥१७॥ निज पचानने स्थापीने जी, श्राप दीप गन बाय ॥ रदियो यंत्रशिला तदा रे. नेण मृकी के निणगय ॥ चो. ॥ १७ ॥ शम्या गतस्पमित्त या जी, ताली देनी ताम ॥ श्रदो मुक बंध र तणारे, चरी रेकी काम ॥ चो० ॥ ? | दोडी राजा प्राचीन जी, केशे गाली प्रचंम ॥ हर पहोंचाटुं तुनें रे, निजधर दे माग रंग ।। मो० ॥ २० ॥ दीन वचन मुन्प बोलती जी, जीवनी मृकी मां ॥ धार
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
उघाडी यावियो रे, निजमंदिर रे नृप उत्साह रे || चो० ॥ २१ ॥ प्रात थयो रवि कगीयो जी, पुरजन साधें राय ॥ यावे तिहां कतावलो रे, कहे सहुने रे जोवो याय रे ॥ चो० ॥ २२ ॥ जे जेहनुं होय ते ग्रहो जी, नारी ने धनराशि || लेई सहु पुर यावीया रे, नृप वाध्यो रे सुजसविलास रे ॥ चो० ॥ २३ ॥ जे नारी घाणी घरे जी, ते रति न लहे लगार || दस्यु उपर मोही रही रे, दोडी जावे रे चोरके ठार रे ॥ चो० ॥ २४ ॥ जन यावी कहे रायनें जी, रायें बोलाव्या वैद्य ॥ कहे उप चार ते कीजियें रे, गुटिकादि करे वलि नैवेद्य रे ॥ चो० ॥ २५ ॥ ते कहे काम चूरणें जी, या परवश ए बाल ॥ निजचूरण यापी करी रे, करूं साजी रे हुं ततकाल रे ॥ चो० ॥ २६ ॥ राजदुकम वैद्ये करी जी, ते सवि मूल स्वभाव ॥ एक रही कांगडुं परें रे, नवि बांगे रे तेह विनाव रे ॥ चो० ॥ २७ ॥ विस्मय पाम्यो राजीयो जी, पूबे हो कारण तेह || वैद्य कहे सुप साहिबा रे, कहुं कारण रे ढुं सस्नेह रे || चो० ॥ २८ ॥ ढाल जी ययावीशमी जी, त्रीजे खंमें विचार ॥ कहेशे राजा घागलें रे, चूर्णनो रे हवे अधिकार रे ॥ चो० ॥ २९॥ सर्वगाथा ॥ १०॥ श्लोक १५ ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ चूर्णथी रे वासी त्वचा, कोइकनी माहाराज ॥ मांस रुधिर कोइक तयां, वास्यां गरिव निवाज ॥ १ ॥ ते में सवि प्रतिचूर्णथी, करी नीरो मी काय ॥ पण एहनी अस्थिमजा, वासी बे माहाराज ॥ २ ॥ ते माढें दस्यु तणां, अस्थि घसीनें पाय ॥ तो राजन ए कामिनी, सहेजें साजी थाय ॥ ३ ॥ ते तिम राय करावियुं निर्विकार थइ ताम ॥ सकल लोक यानंद नयो, चिरं जीवो ए स्वामि ॥ ४ ॥
॥ ढाल गणत्रीशमी ॥
॥ राजुल वेठी मालीये ॥ ए देशी | इस अवसरें तिहां यावीया, निजजनकना हे दीक्षा गुरुराज के ॥ श्रीजयंधरनामें जला, नवजलनिधि हो तारना जहाऊ के ॥ १ ॥ नरसिंह नृप वैरागीयो, गुणसागर हे सुतने देश राज के || पोतें संयम यादयो, गुण गीरुन हे निज ध्यातम काज के ॥ न० ॥ २ ॥ पंचाचार विचारना, गुण पाले हो चाले गुरू पंथ के ॥ मारग मुनिवरनो जलो, खाराधे हो नहि कोइ पलिमंथ के ॥ न०
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श्री शातिनाथनो रास खंत्रीजो. १३ए ॥३॥ तप करी काया शोषवी, हालतां हे वाजे वलि हाड के ॥ सहे परीसह याकरा, तूरव तृपा है वली ताप ने टाढ के ॥ न० ॥ ४ ॥ घाती कर्मव्ययी लह्या, नाए पचम हे पंचमगति वास के ॥ करुं कर जोडी बंदणा, सिरुपी हे या लीलविलास के ॥ २० ॥ ५ ॥ कहे सुव्रत जेम योगीने, चूरणे करी हे वासी तस मीज के ॥ तेम धर्म ए धातमा, या सीजे हे पाणी गुदरीज के ॥ न० ॥ ६ ॥ एम उपदेश सुणी जलो, श्रीदत्ता है यहे आवकधर्म के ॥ मुनि बंदी मंदिर वली, मनमांहे हे जाण्या व्रतमर्म के ॥ न० ॥ ७ ॥ सामायिक पोसह करे, उछ अहम हे. यांबिल उपवास के ॥ नित्ये विगय न वावरे, गुन नावना हे नावे उल्ला स के ॥ न ॥ ॥ एक दिन कर्म तणे वशे, मनमांहे हे श्राव्युं तस एम के || गु फल होशे के नहिं, पालुं हुं हो सुधो धरी प्रेम के ॥ नए ॥ ॥ विचिकित्सा एहवी करी, चवि तिहांथी है जिहां उतपन्न के ॥ कहे कीनियर केवली, ते दार हे मुणो राजन के । न० ॥ १७ ॥ण विजय वैतादयमां, सुरमंदिरे हे नगरें गुणवंत के ॥ कनकपूज्य राजा नतो, वायुवेगा हे राणीनो कंत के ॥ न० ॥ ११ ॥ कीर्निधर सुत जेहनो, नरयोवन हे श्राव्यो नृपाल के । अनिलवेगा मुज कामिनी. गुप वंती दे रुप रतियाल के ॥ न० ॥ १५ ॥ कुंन तपन गजराजने, स्वप्न
ये हो सूचित्त सुत सार के । प्रसव्यो वागल ने थयो, जोरावर दे प्रतिदरि दमितारि के ॥ न० ॥ १३ ॥ बदुकन्या परणावियो, में सोप्यु हो तेदने निजराज्य के ।। गुरुपाने नागारता, में सीधी हो वा शिवराज के ॥ न ॥ १४ ॥ ते दमितारिनी बनना, मर्दै राती दो करखें सजात के ।। कनकालिरी पुत्री नानी, तुं हुई हे इहां गुण विख्यात के ॥ न० ॥ १५॥ करी विचिकिया पूर्वे, तेमाटें हे थयो बंचुबियोग के ॥ सकस कमाइ यापणी, जग मदोटो हेप कर्मनो रोग के ॥ न० ॥ १८॥ निज पुरच जर सांनी, मुनि मुम्बधी दो पामी चराग्य के ॥ धिन धिक विषयों जीवने, विग्यायो नाचे नवताग के.॥ न ॥ ७ ॥ वेद बंधवने दिन थे, जो अनुमति दे यापी मुक श्राज के। तो दीवा जिनराजनी, घड़ी रार हे भानमनां काज के न ॥ १॥ अनंनवीर्य अपरा जिता, कदे सुना हे सनमा पुरी जाय के ॥ सपंधन जिनपासें तुमें,
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जेइ दीक्षा हे करजो शुचि काय के ॥ न० ॥ १५ ॥ तेह तपोधनने नमी, वे बंधव हे कनकश्री साथ के ॥ बेसी विमानें चालीया, सुनगा पुरी हे श्राव्या नरनाथ के ॥ ना० ॥ २० ॥ लाख बर्हेतालीश गज नंला, तेता वली हे रथ तुरग वखाप के ॥ सोल सहस्र सेवे जला, अतुली बल हे महोटा राजान के ॥ न० ॥ २१॥ वे बांधव धरा जोगवे, अतुलीबल हे बे वासु देव के ॥ वत्रिश सहस्र अंतेवरी, हरिनें घर हे सुर सारे सेव के ॥ न० ॥ २२ ॥ हवे कनक सिरीनो सुणो, सुननावें हे दीक्षा अधिकार के | त्रीजे उगणत्रीशमी, दाल नांखी हे रामविजय नदार के || ||२३|| ८३७ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ हवे यावी समोसा, श्रीस्वयंप्रन जिनराज ॥ चच विह देहें परवखा, साथै वदु मुनिराज ॥ १ ॥ पावन करता पाउने, गुण अनंत धरिहंत ॥ समवसरण देवेंरच्युं, नामंगल जलकंत ॥ २ ॥ वेगें दीधि वधामणी, वनपालक ते िवार ॥ लाघो साडावार लाख, सोवनो अंबार ॥ ३॥ वे बंधव वंद चव्या, कनकसिरी सुरंग ॥ सेना लइ चतुरंगिणी, श्राव्या श्री जिनसंग ॥ ४ ॥ समवसरण दीतुं तिहां, वाध्या मनना कोड || वेहु | वंधव यावी करी, वंदे बिदु कर जोडि ॥ ५ ॥ जिन देखीनें उल्लस्या, जिम ! कोकिल मकरंद ॥ करे स्तवन जिनराजनुं, मनमां घरे यानंद ॥ ६ ॥ अथ श्री जिनस्तुतिः ॥ भुजंगीचंद ॥ जगन्नाथनें ते नमे हाथ जोडी, करे वीनति नक्ति शुं मान मोडी ॥ कृपानाथ संसारकूपार तारु, लधुं पुण्यथी याज दीदा र तहारुं ॥ १ ॥ सोहिलो मिले राजदेवादि नोगो, परं दोहिलो एक तुक नक्तियोगो ॥ घणा कालथी तुं लह्यो स्वामी मीठो, प्रनो पारगामी सह दुःख नीठो ॥ २ ॥ चिदानंदरूपी परब्रह्म लीला, विलासी विनो त्यक्तकामानि कीला ॥ गुणाधार योगीश नेता अमायी, जय त्वं विनो नूतले सौख्य दायी ॥ ३ ॥ न दीवी जेणें ताहरी योगमुड़ा, पढ्या रात दिवसें महा मोह निश || किसी तास होशे गति ज्ञानसिंधो, जमंतां नवें हे जगजीव वंधो ॥ ४ ॥ सुवास्पंदि ते दर्शनं नित्य देखे, गणुं तेहनो हुं विनो जन्म लेखें । त्वदाज्ञावरों जे रह्या विश्वमांहे, करे कर्मनी हानि कण एक मां हे ॥ ५ ॥ जिनेशाय नित्यं प्रनाते नमस्ते, नवे ध्यान होजो त्वदीयं सम स्ते || स्तवी देवनां देवने हर्ष पूरे, मुखांनोज जाने नजी हेज करें ॥६॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंमत्रीजो. १४१ कहे देशना स्वामी वैराग्य केरी, सुगे पर्पदा बार बैठी जलेरी । सुधांनोद धारा समी ताप टाले, बंदु बंधवा सानले एक ढालें ॥ ७ ॥ सुणे वाणी वैराग्यनी चित्त चंगें, कहे सोवनश्री दिवो दीद रंगे ॥ हतो नावचारित्र थन्यास पूरो, हवे सायो योग करि चित्त शूरो ॥ ७ ॥ ग्रही भागना श्री हरि शोरि पासे, वरे उत्सवें साधुधर्म नन्नासें ॥ नमी नाथने तेह निज गेह थाव्या, जिनध्यानथी पूर्णानंद पाव्या ॥॥ करे एक चिनें तपस्या थ माया, गुनध्यानयी कर्मघाती खपाया । बढी श्रेणिमां केवलज्ञान पाया, नमुं साहुणी सोवनश्री सुहाया ॥१॥ सहे मोदनां सौख्य लीला धनंती, वर दायिक झान नावें लसंती ॥ चिदानंद चित्तें धरो ध्येय जाणी, कहे राम नित्य जपो जनवाणी ॥ ११ ॥ इति श्रीजीनस्तुतिसंदर्नित कनकधी स्तुतिः ॥ पूर्वदोहा ॥ बल अपराजितने घरे, विरता नामें नारि ॥ गुणवंती गुण थागती, गुणमणिनो मार ॥ 9 ॥ सुमति ये नामें दुश्, तेहने पुत्री एक ॥ नामें परिणामें समी, जाणे सवल विवेक ।। ।। सशुरुनी संग ति सहे, तत्त्वाऽत्तत्त्व विचार | तप करवे गरी घj, बालपणाची सार II | जैनग्रंथ जाणे जना. सूधी समकितवंत ।। नृपण पंच समाचरे, टाने पण नंत ॥ १० ॥ यावश्यक बिदु टंकनां, साचवती शुन चित्त । नामाधिक सूचां धरे, जाणे सदु जग मित्त ॥ ११ ॥ दृपण टाले तेहनां, बोल्या जेवत्रीशाकामिनी चिंते घरतणां, न धरे मनमा रीश ॥१२॥ एक दिन चोयनें पारणे, याव्यो मुनि तल गेद । कतीने झनी था, थाणी धर्म सनेह ॥ १३ ॥
॥ ढाल त्रीशमी ॥ ॥ देशी चांदनीयानी ॥ण प्रांगणीये पाउ धागे, सामजी मुजसाधारो, जाजतनिधि पार उतारो रे ॥ मुनिवरजी ॥१॥ नरियाल उपाडीने लाव), मांगयो पडयो समनाची, कहे जावेंजीनी यावी रे | मु० ॥ २॥ मुक पमिनने पावन झीजें, मटजी न्याहारलीजें, तुम दी दिलाई गीत रे ।मु० ॥ ३ ॥धाज नामपदमा मुज जागी, तुम दर्शननी सगा गगे पायन नगी ॥ मु॥ ४ ॥ दीये बजट नावे दान, फरती लाली गुणगान, हिय भोपं असमान ॥ मु॥ १५ ॥ तम मान पना गया. पन दिब्य को मर जाव्या, अशा मोटा मुनि पदिलाया
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रे ॥ मु० ॥ ६ ॥ निथ पधास्था वनमां, दरखी सुमति कनी मनमां, उलट नवि माये तनमां रे ॥ मु० ॥ ७ ॥ वल केशव निसुणी वात, चिंते धन्य कुमरी जात, जरयौवन यावी जात रे ॥ मु० ॥ ८ ॥ माहानंद मंत्री सुविचारी, मांमयो स्वयंवर गुण धारी, थाव्या भूमिपति जारी रे ॥ मु० ॥ ए ॥ नामांकित व्यासन उली, वेसे नरवरनी टोली, वाघा कस्या केशर घोली रे ॥ मु० ॥ १० ॥ कन्या लेइ वरमाला, सखीसायें बाइ सुकुमारा, घनमां मनुं ए जलवाला रे ॥ मु० ॥ ११ ॥ पूरव जव साख जीव, एहवे द्यावे तिहां देव, पहेलां संचित देव रे ॥ मु० ॥ १२ ॥ सदु सांजलतां ते यावी, कहे कुमरीने समजावी, जीव ए विषयानो जावी रे ॥ मु० ॥ १३ ॥ जोगवीया वार अनंत, तृप्तो न थयो ए जंत, विषयामिप जोग डरंत रे ॥ मु० ॥ १४ ॥ हुं पहेला नवनी सासू, याराध्युं संयम पासु, पद पायुं वैमानिक खासुं रे ॥ मु० ॥ १५ ॥ कुमरी निसुली कहे साचं, ए सुख सांसारिक काचुं, हवे हुं एहथी नवि राचुं रे ॥ मु० ॥ १६ ॥ कहे नूपने आणा आलो, संयम लेतां मत वालो, हवे मूकीश कमालो रे ॥ मु० ॥ १७ ॥ बलन मुरारि विचारी, कहे तनया तुक मति सारी, धन धन तुं बालकुमारी रे ॥ मु० ॥ १८ ॥ अनुमति प्रापी निज तातें, पंचशत कुमरी संघातें, ग्रयुं संयम सुव्रता हाये रे ॥ मु० ॥ १९ ॥ तप तपती ते प्रति सारां, वाधी निर्मल ध्याननी धारा, कीथा तेणें कय विहारा रे ॥ मु० ॥ २० ॥ करी घाती कर्म क्ष्य पामी, केवललीला सुख कामी, अनुक्रमें दुइ शिवगतिगामी रे ॥ मु०॥२१॥ खंम त्रीजे त्रीशमी ढाल, गुण गाया सतीना रसाल, रामविजय कही उजमान रे ॥ मु०॥२२॥८८३ ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ हवे मुरारि ऋद्धि जोगवे, खंम त्रिहूंनी सार ॥ रणरसमां बांधी ari faar कर्म अपार ॥ १ ॥ यटुक्तमागमे ॥ चत्तारि सूरा पन्नत्ता तं जहा, खंतिसूरा तवसुरा जुवखरा दाणखरा खंतिसूरा अरिहंता जगवंता तवसुरा धागारा जुधसुरा वासुदेवा दाणखरा वेसमणा ॥ इति पूर्व दोहा ॥ प्रीति घणी वेदु बंधुने, रमतां रंगें काल ॥ घणो गयो जाएयो नहिं, मोह वडो जंजाल ॥ १ ॥ चोराज्ञी लक्ष पूर्वनुं, पाली पूरण प्राय ॥ ते हरि चवियो व्यवतस्यो, पहेली नरके जाय ॥ ३ ॥ सहस बर्हेतालीश वर्षेनुं, मध्यम त्र्यायु उप्पन्न ॥
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श्री शांतिनायनो रास खंत्रीजो. १४३ पराजित ताल विरदथी, मनमां वणुं विविन्न ॥ ४ ॥ शांक धरे मनमा घाणो, बंधवतणे वियोग ॥ गीत गान न गमे किस्यु, न रुचे रमणीनोग ॥ ५॥ नीतिचतुर मंत्री घणो, समकाव्यो सुविवेक ॥ मोहपिशाच ठले किस्युं, तुम जेदवाने चेक ॥ ६ ॥ वचन सुणी कांक श्रयो, गतशोको लूपाल । नाम यशोधर गणधरा, याच्या तिहां तिण काल ॥ 3 ॥
॥ ढाल एकत्रीशमी ॥ ॥ यांगी श्रवस बनीले रे ॥ए देशी॥ गणधर याव्या ते जी रे, बनमां वंदनने जइये ॥ यशोधर नामें वे नीरेपावन देखीने थायें ॥ ए थांकणी ॥ शांश सहस्त्र राजेश्वर ताथें, गणधरनें वांदेवा रे ॥ श्राव्यो तीन प्रदक्षिणा देई, मणमी सारे सेवा ॥ ग ॥ १ ॥ देशन निमुणे मुनि घर केरी, करसंपुटने मेली रे ॥ अपराजित शोचे मनमांहे, गयो मुफ वं धव बेली ॥ १० ॥ ५ ॥ योगीश्वर कहे श्ष्ट वियोग,शोक दुवे जगमांदेरे।।। पण परिदरवों माझे पुरु, जाणी रूप उत्साहें॥ ग० ॥ ३ ॥ प्रगट मेल पिशाच पसे ए, नामांतर नीपायो रे ॥ तरुणपणो विषयानो विरु. जग मां पद गवायो । ग७ ॥ ॥ इष्टवियोगें गेंगें नडिया कीजे श्रीपय सानूं रे ॥ सुचत नारयुं किरिया गरयु, धर्मयोपट ए साचुं | ग॥ ५ ॥ शोक रोग याये नहिं नेडो, जो मन शुझे करीय ॥ जिनवर वद्य ती प्राणा ये, महेजें शिवमुख वरीय ॥ ग० ॥ ६ ॥ मुनिवर वाणी मंत्र महातम, गोकपिमात्र पागात्यो रे ॥ गुन सावन फुले बहुमूलें, निज यातमने वा ग्यो । ग० ॥ 3 ॥ घर भावी सुक्त राज्य नजानी व्रत लेवा नीसरीयो रे ।। नृपमंगल नंगाने महोटो, मंचमात वादग्यो रे ॥ १०॥ ॥ खनी देना घडगुणवंता, उपगम सना दरिया रे॥ जयणायें मुनि मारग पाने, चो बीजेदनी निरिया ॥ 70 II II सिंदपाले बन पहेला, सिंहपरं ते पाने समिति गुति सधी संजाते. प्रतमां दुपए टाक्षे ॥ग 101. पन्य मुनि जे ए गुण नाघे, म्यानमवीरज वाधे रे ॥ मनमा नां दे सणा दृणी, नत्र पाणी तारे ॥ ॥ !! ॥ तप तपीया तर यदुनंग. गुण व्यापार निम्यारे॥ उपती नेपनी जननी, विषय कराययो नि Air ॥ १२॥ गणना थंने करीने प्रयत. क साना बानी में जन मुनिवरजी दवा, नुना पानी ॥ ॥ ?
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चीजे खमें रामविजय कहे, सुणो एकत्रीशमी ढालें रे || धन्य प्राणी एस शोक तजीनें, धर्मै मनडुं वाले ॥०॥१४॥ सर्वगाथा || ८०४ ॥ श्लोक ॥ १५ ॥ दोहा ॥
॥ सुणो वेहू बंधव तो, कहुं संयोग संबंध ॥ बीजे नवें जेला थया, सुणो तेह प्रबंध ॥ १ ॥ जंबूदीपें जरतमां, नगर वैताढ्य उदार ॥ दक्षिण श्रेणें दीपतुं, गगनवलन पुर सार ॥ २ ॥ मेघवाहन विद्याधरो, मेघमालिनी नारि ॥ दंपती दोय सुख जोगवे, दोगुंदक अवतार ॥ ३ ॥
॥ ढाल बत्रीशमी ॥
॥ वे वे मुनिवर विहरण पांगुखा जी ॥ ए देशी ॥ अनंतवीर्यनो जीव हवे चवी जी, पहेली नरकहूंती ते ताम रे ॥ याव्यो मेघवाहन मेघमालि ने जी, वंशें उपन्यो मेघनाद नाम रे ॥१॥ अनंतवीर्यनो जीव हवे चवी जी ॥ ए यांकणी ॥ पाम्यो यौवन वय रलीयामणुं जी, जेहवो रति रमणी नो कंत रे ॥ परणाव्यो कुमरी खेचर तणी जी, पाट पितायें थाप्यो संत रे ॥ ० ॥ २ ॥ संयम लीधो मेघवाहन नृपें जी, पाले मुनिवर पंचा चार रे || करे रे क्रिया ते सुधि साधुनी जी, नित्य नित्य जश्यें तस वलि हार रे ॥ ० ॥ ३ ॥ श्रेणी वेदुनो स्वामी ते दुई जी, महोटो खेचर ते नृप मेघनाद रे || देश देशांतर सत्य ने दया जी, मनमांहे धरीने याह्लाद रे ॥ ० ॥ ४ ॥ एक दिन मेरुवनें यात्रा गयो जी, पूजे जिनपडिमा गु जनावरे ॥ तेम वली विद्या प्रज्ञप्ति नणी जी, महोटो जेहनो जग प्रना वरे ॥ ० ॥ ५ ॥ एहवे यांव्या सुर सर्वे कल्पना जी, जिनयात्रा नंद न वनमांहे रे ॥ दीठो अच्युत हें जिन पूजतो जी, बोलाव्यो धरि मन त्सादें रे ॥ ० ॥ ६ ॥ मनमां विस्मय तेहनें ऊपन्यो जी, केम बोलावे मुने एह रे ॥ कां मेघनाद तुं मुऊनें न उलखे जी, तुऊ मुऊ पूर्व जवनो नेह रे ॥ ० ॥ ७ ॥ नांखी पूर्व जवनी वारता जी, निसुणी पाम्यो मन बैरा ग्य रे || इंड् गया जिन पूजी स्थानकें जी, वेडु मनमां वस्यो त्र्यनुराग रे ॥ ० ॥ ८ ॥ याव्यो अपर वली निजमंदिरें जी, मन संचारे बंधव वात रे ॥ मुनि थया जश्ने व्यमर मुनि कने जी; उत्तम तेहनां कुल जात रे ॥ ० ॥ ए ॥ नंदनवनमां तप तपे चाकरुं जी, रह्या एक रयणी पडिमा तेह रे ॥ मेरुशिखर परें न चले चालव्यो जी, नहिं निजदेह ऊप
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श्री शांतिनायनो रास खं त्रीजो.
१४५ रं जस नेह रे ॥ घ० ॥ १० ॥ एहवे असुरकुमार निकायनो जी, अश्व ग्रीवना सुतनो जीव रे ॥ श्रमर यावीने पूरववैरथी जी, करे उपसर्ग मुनिनें प्रतीव रे ॥ ० ॥ ११ ॥ ए ए धीरपणुं मुनिवरतणुं जी, न चल्या ध्यानथकी तिलमात्र रे ॥ प्रगटे पुण्य जो पूरव नवतणां जी, तो मले एहवा मुनिनी यात्र रे ॥ अ० ॥ १२ ॥ यये रे प्रजातें प्रतिमा पारि जी, विचखा जगतीतल अणगार रे ॥ चरण धाराधी साधी ध्याननें जी, यंतें सण की उल्लास रे ॥ ० ॥ १३ ॥ पहोता ते पण अच्युत कल्पमां जी, सुर सामानिक इंड् समान रे ॥ विलसे वेदु वंधव ते सुख घणां जी, जगमां जोजो पुण्यप्रधान रे ॥ ० ॥ १४ ॥ सुखनर वावीश सागर यावसुं जी, वावीश सहस वरस एकवार रे || ले प्राजोग निव र्त्तित ते जलोजी, गुनचिंतित पुजल खाहार रे ॥ ० ॥ १५ ॥ वहु सुख पाम्या जव एम सातमे जी, सुणतां यातम निर्मल थाय रे ॥ ए खंग त्रीजे ढाल वत्रीशमी जी, रामविजय जिनना गुण गाय रे ॥ ॥ १६ ॥
॥ कलश ॥
॥ तूगे तूगे रे मुफ साहिब जगमां तूगे ॥ ए देशी || गावो गावो रे जि नराज तथा गुण गावो ॥ शांति प्रभु पूरव जव सुणतां, घर घर होवे वधावो रे ॥ जि० ॥ १ ॥ जिनगुणनी स्तुति मंगल नणतां कीर्त्तिस्थंन रोपावो ॥ शुं करे दोपी इशमन तेहनें, जस शिर ए प्रभु चावो रे || जि० ॥ २ ॥ इव्य नाव वेदु नेदनी नक्ति, होवे सुजस जमावो ॥ व्यच्युत शिवलीला सुख एहथी, पद उलटें पायो रे || जि० ॥ ३ ॥ हृदयमांदे प्रभुपदनें ध्या वो, प्रनुपर्दे हृदय लगावो ॥ जिहां लगें मुक्ति नहिं त्यां लगे ए, माहरे प्रभुशुं दावो रे || जि० ॥ ४ ॥ कामित पूरण संकट चूरण, प्रजुगुण ध्यान सुहायो ॥ एह तय सुखनुं कारण, यहोनिश दिलमां नावो रे ॥ ॥ जि० ॥ ५ ॥ चिरचित घघ टालणहारी, जनकथामांदे मावो ॥ एह रायण पामी प्रसादें. कां नवहारी जावो रे ॥ जि० ॥ ६ ॥ शांतिप्रन गुणनाम सुतां मंगलमाल उपावो ॥ त्रीजो खं थयो संपूरण, जंगी दोल बजायो रे ॥ जि० ॥ ७ ॥ हे नवें पराजित स्वामी, सातमे 5 जवाव्यो || इव्यनिक्षेप प्रध्यातम नावें, नणतां नाव जगावो रे | जि० ॥ ७ ॥ राजनगरमांदे पास चिंतामणि, प्रशुं तान मिलावो | दुइ
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२४६ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. तस सान्निध्य त्रीजे खंमें, पूरण कलश चढावो रे ॥ जि॥ ए॥ संवत.स तर पंचाशिया वर्षे, कीधो ढालबनावो ॥ शांति जिनेश्वररासने अवसर, ' परिगल वित्त ए पावो रे ॥ जि० ॥ १० ॥ श्रीगुरु सुमति विजय कवि सा निध्य, चिंतित संघलां गावो ॥ रामविजय कहे शांति प्रनुजी, मुझ मनमं . दिर आवो रे ॥ जि० ॥ ११ ॥ सर्वगाथा ॥ ३५ ॥ श्लोक तथा गाथा मली ॥ १५ ॥ सर्वढाल ॥ ३२ ॥ खंझ त्रय गाथा ॥ २०एए ॥ खंत्रय प्रास्ताविक श्लोक तथा गाथा ॥ ७६ ॥ खंत्रय ढाल ॥ ७ ॥ इति श्री शांतिजिनप्रबंधे प्राकृतवंधेछादशनवनिबंधे सत्यार्थसंधे कृतसुकतानुसंधे धम रदत्तमित्रानंदचरित्रानुविक्षपष्ठसप्तमनववर्णननामा तृतीयः खंमः समाप्तः३॥
॥अथ चतुर्थखमस्य प्रारंनोऽयम्॥
॥दोहा॥ ॥ चनविह चमुह जिन कह्यो, दान शील तप नाव ॥ धर्म ए चार प्रकारनो, प्रणमुं जवजल नाव ॥ १ ॥ ज्ञान अजय अन्न औपधे, चिटुं। जे होय दान ॥ ज्ञानवंत निर्नय दुवे, सुखी नीरोगी निदान ॥ २ ॥प्रय म दान अनुयें कह्यु,अर्थ सह्यातुं सार ॥ ते जो पात्रे दीजीयें, तो हुवे नव निस्तार ॥ ३ ॥ तत्त्व विचार ए वुदिफल, फल व्रतधारण देह ॥ पात्रदान ए अर्थफल, वचन प्रीतिकर जेह ॥ ४ ॥ शील कुलकम यात्मगत, त्रि विध होय जगमांहि ॥ वेदुथी यश सुख संपजे, त्रीजो मोद उपाय ॥५॥ सात्त्विक राजस तामसी, तप निहुँ ने होय ॥ दोय नेद किंचित् हो, सात्त्विकमां गुण जोय ॥ ६ ॥ नाव तणा बहु जेद वे, गुन यशुन वि स्तार ॥ शुन आदरवा जिन कह्या, अशुन तणो परिहार ॥ ७ ॥ चिटुं ने शुरू धर्मने, दुं नित्य करुं प्रणाम ॥ खेम कहूँ चोथो हवे, सुणो मन । राखी नाम ॥ ७ ॥ देवलोक सुख जोगवे, श्री अपराजित इंद ॥ हवे जिहां । आवी अवतरे, ते निसुणो जविवृंद ॥ ५ ॥
॥ ढाल पहेली॥ ॥ राणी पवे रायने ॥ ए देशी ॥ पूर्व विदेहें जंवतणो जी, सती नदीनी रे पास ॥ मध्यविजय मंगलावती जी, जिहां बहु मुगुणिनिवास ॥ १ ॥
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श्री शातिनाथनो रास खंम चोथो. १४७ नावि सुणो नव जिन शांतिनो जी ॥ ए आंकणी ॥ जिम दुवे लीलविलास ॥ दुरित दूरे टले जवतणां जी, संपजे वांवित आश ॥ ॥ २ ॥ तीर्थ कर आदि नर रयणनो जी, जिहांकणे संचय सार ॥ सूत्र विख्यात नयरी कही जी, रयणसंचय गुणधार ।। न० ॥ ३ ॥ चोरनुं जोर तिल जर नहीं' जी, वलि नहिं विटतणो वास ॥ नयरी न्याय वरते घणो जी, धन कण शदि निवास ॥ ज० ॥ ४ ॥ वारे पुर्नीतिने जे सदा जी, सकल . प्रजा करे देम ॥ नूप देमंकर जिनतणी जी, घाण माने सगु प्रेम ।। न० ॥ ५ ॥ म सुई उही त्रए ज्ञानना ज़ी, धारक त्रिद्वं जगमित्त ॥ पण निजकर्मने काढवा जी, रहे गृहवास गुनंचित्त ॥ ज० ॥ ६ ॥ तास घरे शीतगुण शोनती जी, उपती पुण्यनी राशि ॥ रत्नमाला रलियामणी जी, कामिनी गुण आवास ॥ ७॥ जीव अपराजितनो चवी जी, उपन्यो ते हनी कूरख ॥ सुपन तेणे चौद दीनां जलांजी, तेहिज रातें गतःख । न ॥ ७ ॥ प्रहसमे पियुकने प्रावीने जी, नांखियु सयल विरतंत ॥ पुत्र होशे सही ताहरे जी, दीपतो बदु गुणवंत ॥जाए। कंत देमंकर मुखथकी जी, सांजली यई सुप्रसन्न ॥ सकल होजो पियु तुम कह्यु जी, विकसीयां नयरा तन मन्न । न ॥ १० ॥ गर्न वाधे हवे अनुक्रमें जी, पूरण मासे सुत सार ।। जन्मीयो दीधी वधामणी जी, दासी हर्प अपार ॥ ज० ॥ ११ ॥ आपीयुं धन बहु तेहने जी, सात पेढी लगे जेह ॥ खरचंता के मे चूटे नहिं जी, राखियो अविड नेह ॥ ज० ॥ १२ ॥ जन्म उत्सव करे अति नलो जी, पन्नरमुं वजयायुध ॥ स्वप्न दी मायें तेणें धन्युं जी, नाम “बज्वायुध" गुड़ ॥ न० ॥ १३ ॥ गुक्त पद वीजनो चश्मा जी. दिनप्रत्ये जेम वावंत ॥ सकल जनना मन मोहतो जी, अभिनव मान, रतिकंत ॥ ॥ १३ ॥ रंगें रमाडे उत्संगमां जी, मायने मन घणी न्याश ॥ सुतमुख देखी मन हरखती जी, बोलती एणि परें नास ।। न० ॥ १५ ॥ सुत चिरंजीव रहो माहरा जी, ताहरा शमन दूर ॥ दिन दिन कल्पतरू परें फलो जी, श्रम मनोवांनित पूर ॥ न ॥ १६॥ अनु पम अंगें सदए धरे जी, अडदिय सहम उदार ॥ वय थयो वरल ए याउनो जी. शीखीयो शास्त्र विचार || न० ॥ १ ॥ जाए बढोनर कला नो गयो जी, सवि सहे जीवना जेद ॥ शुभ नवरी ते व्यवहारनी जी,
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२४७ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. दील वस्यो श्रीजिनवेद ॥ ज० ॥ १७ ॥ सात नय सप्तनंगी तणा जी, झायक जाण निजरूप ॥ नवि नमे एक श्रीजिनवर विना जी, समकित गुम स्वरूप ॥ ज० ॥ १ ॥ अनुक्रमें यौवन वय लह्यां जी, नाम लक्ष्मी वती एक ॥ नत्सव करी परणावियां जी, जोगवे सुख अतिरेक ॥०॥ २०॥ जीव अनंतवीरज तणो जी, सुरतनु नोगवी आय ॥ वावीश सागरें अवतस्यो जी, कूख लक्ष्मीवतीयाय ॥ न ॥ १ ॥ जन्मीयो कुंव र कुलकेसरी जी, नाम "सहस्रायुध” दीध ॥ पूरव नवतणो नेहलो जी, एहसंबंध प्रसिह ॥ज॥२॥ ढाल पहेली कही ए सही जी, खेम चोथा तणी सार ॥धातमे नवें चक्रधर दुवा जी, वरत्यो जयजयकार ॥॥२३॥३॥
॥दोहा॥ ॥ वालपणुं वीत्या पली, याव्युं यौवन पूर ॥ तरुणी मन मृगपाश ते, दिन दिन चढते नूर ॥ १ ॥ परणाव्यो प्रीतें करी, कनकसिरी सुकुमाल ।। कुमर सहस्रायुध सदा, विलसे लोग रसाल ॥ २ ॥ देमंकर नृप अन्यदा, पुत्र पौत्र परिवार ॥ सिंहासन वेगे करे, वंदीजन जयकार ॥३॥ बत्र धयुं शिर ऊपरें, वेदु पद चमर ढलंत ॥ युगल मनुं कलहंस, मुख अरविंद मिलंत ॥ ४ ॥ वासी कल्प ईशाननो, अमृताशन चित्रचूल ॥ आव्यो मि प्यात्वी तिहां, तिण अवसर प्रतिकूल ॥ ५ ॥ नहिं देव गुरु धर्म नहिं, नहीं पाप पर लोक ॥ ए वालक वीहामणां, वीहिनां सघलां लोक ॥ ६ ॥ मत थापे नास्तिक तणो, नहिं आस्तिक लगार ॥ पंचनूतथी ऊपन्यो, चेतनगुण सुविचार ॥ ७ ॥ वज्जायुध वलतो कहे, नहिं युक्त ए वात ॥ अनुमाने जोतां यकां, वली जोतां सादात ॥ ७ ॥
॥ ढाल वीजी॥ ॥ कपूर दुवे अति मजलो रे ॥ ए देशी ॥ वजायुध बलतुं कहे रे, सुण सुर मोरी वाण ॥ ए नास्तिकता नवि घटे रे, युक्ति रहित मन जाण रे ॥ १ ॥ प्राणी धरिये समकित शुरु ॥ सत्ता नवि टाली टले रे, जोय विचारी बुद्धि रे ॥
प्रा०॥ए बांकणी ॥ अहं सुखी अहं दुःखी रे, कुण जाणे विण जीव ॥ त्रिलु कालें अविविन्न वे रे, धारा डान सदैव रे ॥ प्रा० ॥२॥ नोक्ता ए जाग्यनो रे, उदनने दृष्टांत ॥ चेतन गुण जडमां नहिं रे, चेतन जीव कहंत रे ॥ प्रा० ॥ ३ ॥ अग्नि ज्युं धरणीकाप्टमा रे,
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श्री शांतिनाथनौ रास खंग चोयो..
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फूलमांहे जेम गंव ॥ जेम पथमां घृत तिम मव्यो रे, जीव पुजल संबंध रे ॥ प्रा० ॥ ४ ॥ प्रत्यक्ष इहां कने ताहरो रे, तुं दृष्टांत विचार ॥ जो पुण्य न करत पाठले रे, तो किहांथी सुर अवतार रे ॥ प्रा० ॥ ५ ॥ मनुज थयो तुं पूरवें रे, या नव थयो सुररूप ॥ जीव विना ए घटे नहिं रे, मान तुं जीव स्वरूप रे ॥ प्रा० ॥ ६ ॥ जम नांग्यो निज चित्तनो रे, प्रतिवृज्यो ते देव || सत्ता मानी जीवनी रे, कहे सुर करतो सेव रे ॥ प्रा० ॥ ७ ॥ साधु तुमें राख्यो मुनें रे, जवजल पडतां खाज ॥ देइ अव लंबन यो रे, साखुं प्रातमकाज रे ॥ प्रा ॥ ८ ॥ देवें समकित याद रे, वज्रायुधनी पास ॥ कहे स्वामी प्रिय शुं करूं रे, कहो कृत्य उचित विमास रे ॥ प्रा० ॥ ए ॥ निःस्पृह जाणीने तेहने रे, देइ प्रानरण यमूल ॥ सुर प्रणमी पाठो गयो रे, ईशानें अनुकूल रे ॥ प्रा० ॥ १० ॥ ईशानेंनी प्रागजे रे, सुर मांगी कहे वात ॥ सुरपति गुण रोज्यो कहे रे, सुए एह नो यवदात रे ॥ प्रा० ॥ ११ ॥ कोडी जिह्वा जो मुख दुवे रे, नव नव गुणवली गाय ॥ श्रम जेवानां यावखां रे, केई पूरा याय रे ॥ प्रा० ॥ १२ ॥ ए प्रभु इहांथी पांचमे रे, नवें शोलम जिनराज ॥ शांति जिनेश्वर नामथी रे, गुण गाशे सुरराज रे ॥ प्रा० ॥ १३ ॥ एम गुण गातां तेहना रे, समकित निर्मल कीध ॥ ईशानेंमें पूजीया रे, इव्यजिन जाणि प्रसिद्ध रे ॥ प्रा० ॥ १४ ॥ सुखकर कामी पुरुषने रे, एहवे मास वसंत || कोकिल कल कूजित करे रे, धाव्यो हेजें हसंत रे ॥ प्रा० ॥ १५ ॥ फल फूले जा रे घणुं रे, मोरी सवल वनराई ॥ गुंजे भ्रमर ए कामनी रे, फेरे मानुं डहाइ रे ॥ प्रा० ॥ १६ ॥ जोगी पुरुष वनमां घणा रे, जोवे नव नवा ख्याल || प्रवीन गुलाल उफाडता रे, गुणियल गाय धमाल रे ॥ प्रा० ॥ १३ || एहवे याची सुदर्शना रे, दासी लेई फूल || नेट करी एम विनवे रे, साहिब सुतुं मूल रे ॥ प्रा० ॥ १८ ॥ प्रीतिमती लक्ष्मीवती रे. रा ली तुमारी साथ ॥ वांधे लील वसंतनी रे, उपवन सूरिनिपात रे || प्रा० ॥ १५ ॥ सप्तशती राणी तणी रे, तेहमांहे शिरदार | लक्ष्मीवती राणी तो रे. पियुशुं प्रेम व्यपार रे || प्रा० ॥ २० ॥ चोये खं सोहा मणी रे, बोली वीजी हाल || रामविजय कहे सांजली रे, यागल वात रसाल रे || प्रा० ॥ २१ ॥ सर्व गाथा ॥ ६१ ॥
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१५ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
॥दोहा॥ ॥ श्रीवजायुध कुंवरजी, लालील जरि ॥ अंतेर लेइ संचयो, रम वा वनह मजार ॥१॥
॥ ढालत्रीजी॥ ॥ फागनी देशी ॥ श्रीवजायुध कुमर सुंदर रूप तरुण रसाल, चाल्यो हो वनमाहे रमवा मनमोहन उजमाल ॥ साथै सोहागण सारी प्यारी तन सुकुमाल, मोहनगारी कामिनी चालती गजगति चाल ॥ १ ॥ शिरसें थो नकवेसर केसर वरणी रे अंग, चंडमुखी मृगलोयणी पहेरण चीर सुरंग॥प्रीतम साथै पनोती पहोती वनहमकार, रंगें रमे मधुमासनी क्रीडा अनेक प्रकार ॥२॥ पिककंठी कंठीरव कटितट लंक कुलीन, मोह जीवाड, ए हारी नारी रमण आधीन ॥ जाइ जूई वर चंपक मोघर लाल गुलाल, दंपतीनां दिल मेलवे मन्मथ मांहे दयाल ॥३॥ वाजे चंग मृदंग अनंग तणो रस जोर, रंग रमाडे हसाडे वजाडे ए मोहनो तोर ॥ अलवेसर नरि केसर संगीयें बांटे रे नीर, केलि करे मन मेली रे वाय सुगंध समीर ॥४॥ सुरिनिपात उद्यानमां सील करे बदु लोक, फूति रही वनराई अंव कदंब अशोक ॥ कोकिल पंचमनाद विनोद सुणी ने रे साद, कामी जन मन मोहे रे वाधे विपय उन्माद ॥ ५ ॥ वर तरुणी संघातें रे वजा युध नृपनंद, वावमाहे जलक्रीडा रे करवा मन आनंद ॥ रस व्यापी जन वापी रे मांहे करे जलकेलि, लजाने संतापी हो नाती परी मन मेलि ॥ ६ ॥ एकरा पासें हो कंतजी बीजे पासें हो नारी, राग निरंतर ह दयगुं बंटे अन्यो अन्य वार ॥ रखे सूकाइ न जाये रे मांहे ए कामनो. राग, रंगें रसें एम रमतां हो पाम्यां ते जलनो ताग ॥ ७ ॥ इण अवसर दमितारिनो जीव जमी नवमांहे, कोक कर्मने योगें हो देव थयो जग माहे ॥ विद्युदंष्ट्र ए बलीयो रे जलक्रीडापर देख, पूर्ववेरें वजायुध ऊपर आव्यो क्षेप ॥ ७ ॥ मूके ए पर्वत पडतो रे वाव उपर एकंत, अध अहि पाशें वांधीयो करवाने तेहनो अंत ॥ जोजो रे नवि एम वर वधायुं करे रे जंजाल, वैर वैश्वानर व्याधि वधे जगमा ततकाल ॥ ५ ॥ बजायुध चक्रीतणे महा बलीयो दृढकाय, दोय सहस्र यदीवित सवलो पुण्य स खाय ॥ अहिवंधन सवि तोडियां नाखीयो पर्वत दूर, राणीगणे परवरियों
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श्री शांतिनाथनो रास खंग चोयो.
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रे नीसरीयो सुखपूर ॥ १० ॥ कृत अंग कुमार चिरं विचरयो वनमांहे, फूल लेइ तब पूजे हो नामिनी कंतनी बांहे | इस अवसर सुरनाथ वि देह नमी जिननाथ, नंदीश्वर वर चाल्यो हो देवदेवी वहुसाथ ॥ ११ ॥ पास बेदी नग नेदी रे सप्रिय निसखो जाए, इंड् जोइ बल तेहनुं मनमांहे दु हेरान || ज्ञान तो उपयोगें रे नावी हो जाली जिनंद, इंड् नमे कर जोडी हो धरतो अधिक व्यानंद ॥ १२ ॥ धन्य तुमें सुकुमार स्वयंगें महागु धार, सोलसमा जिनशांतिजी याशो हो नरतमजार || पावन दुई हुं देखी दो लोचन विकस्यां रे याज, जाल नमुं कर जोडी हो तुमने इव्यजिन राज ॥ १३ ॥ एम स्तवी सुर लोकनो नाय गयो निज ठाम, श्रीवजायुथ कुंवर प्राविया छापणे धाम ॥ वात सुली सवि नयरीयें वरत्यो जयजय कार, धवल मंगल गाय गोरडी बोले ए मंगल चार ॥ १४ ॥ हर्ष वधाम यां प्रति घणां यावे ए सोवन कोडी, स्वामी अमारा ए जीवजो, वरसनी कोडा कोडी ॥ राजलीला सुख भोगवे नामिनीगुं नर्त्तार, हवे देमंकर जि नतो सुपो दीक्षा अधिकार ॥ १५ ॥ चोथे खंमें रसीली ए त्रीजी ढाल रसाल, उत्तमना गुणगावतां वाधे मनोरथमाल ॥ रामविजय कहे रंगगुं धन्य एवंना अवतार, पुत्र पिता दोय जिनवर नामयकी जयकार ॥ १६ ॥ ७८ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ मंकर नृप एकदा, बेठा सजा मजार ॥ मुखागल थाये जलां, नाटक विविध प्रकारं ॥ १ ॥ नवस्वरूप नावे तदा, ए यनादिनो खेल || सो पर सायें ताहरे, ए विजातिनो मेल ॥ २ ॥ जाएयं श्रासनकंपथी, तब लोकां तिक देव || जिनकल्प यावी कहे, चूक चूक जिन देव ॥ ३ ॥ तारो त्रि वन लोकमें, उपगारी असमान ॥ धर्मतीये स्थापी करी, व्यापो शिवसुख दान || ४ || दीक्षा अवसर व्यापणुं, जाणी अवधिज्ञान ॥ वरिस लगे बालेसरु, दिये व्यवारित दान ॥ ५ ॥ घात लाख एक कोडीगुं, वरवरं एणे घोष || प्रतिदिन दे त्रिभुवन धणी, सहु जगनुं संतोष ॥ ६ ॥ त्र कोडि उपर वली, कोडि चवचाशी जाए || लाख एंशी ऊपर अधिक, वरसें दधुं दान ॥ ॥
॥ दाल चोथी ॥
|| जाजलीना गीतनी देशी ॥ राय वजायुधनं वि हो लाल, सह
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२५३ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. जगमें हितकार ॥ जिपंदजी॥ सुर नर असुर मल्या तिहां हो लाल, ले प्रनु संयम जार ॥ जि ॥ १ ॥ देसंकर जिन बंदीयें हो लाल ॥ वांदे शिव सुख थाय ॥ जि ॥ दोहग उरित दूरें टले हो ॥ दर्शन दोलत दाय ॥ ॥ जि० ॥ ३० ॥ २ ॥ सर्व सामायिक उच्चरे हो ॥ सिपने करे प्रणाम ॥ जि० ॥ मनःपर्यव तिहां उपन्युं हो॥ जाणे मन परिणाम ॥ जि०॥ के० ॥ ३ ॥ विचरे जिन पुहवीतले हो ॥ उपशम रसना सिंधु ॥ जि०॥ चाले र्या शोधता हो ॥ निरुपम जग जनवंधु ॥जि०॥ दे ॥॥ घाति कर्म दयें कपन्युं हो ॥ उज्ज्वल केवलरूप ॥ जि ॥ लोकालोक प्रका शतुं हो ॥ दायिक नाव स्वरूप ॥ जि ॥ ३० ॥ ५ ॥ वीश नुवनपति श्रावीया हो ॥ वत्रीश व्यंतर इंश् ॥ जि० ॥ दश वैमानिक ज्योतिपी, हो ॥ दोय चोश मली इंद ॥ जि ॥ दे ॥ ६ ॥ समवसरण देवें रज्युं होण॥ रचिया त्रण प्राकार ॥जि०॥ रौप्य कनक मणि रत्नना होगा ऊबके तेज अपार ॥ जि० ॥ दे ॥ ७ ॥ पूर्वछारें पेसीने हो ॥ सिंहा सन वेसंत ॥ जि० ॥ देमंकर अरिहंतजी हो ॥ देखी नवि उनसंत ॥ ॥ जि ॥ ० ॥ ॥ रयणसंचय पुरि परिसरें हो ॥ उत्सव अति मं माण ॥ जि ॥ श्राव्या वजायुध वांदवा हो ॥ नमे प्रनुचरण सुजाए ॥ जि ॥ ३० ॥ ए ॥ देमंकर जिन देशना हो ॥ नय उपनय अभुत ॥ नविक जीव ॥ कर जोडीने सांजले हो ॥ सवि सुर नर पद्त्त ॥ ॥ ज० ॥ के० ॥ १० ॥ कल्पतरु सुरधेनुथी हो ॥ अधिक महोदय हेतु ॥ ज० ॥ मूकी निज्ञ मोहनी हो ॥ धर्मगुं राखो हेत ॥ न ॥ ॥ ॥ ११ ॥ करीयें परीक्षा एहनी हो ॥ चिढुंने श्रुत शील ॥ न ॥ तप करुणा गुरू सेवतां हो० ॥ आपे शिवसुख लील ॥ ज० ॥ ३० ॥ १२ ॥ . जेम आयुर्वेदे कयुं हो० ॥ कर, पयर्नु पान ॥ न०॥ अविचारें थर्कादिनुं हो ॥ पीतां होवे गुणहानि ॥ न ॥ के० ॥ १३ ॥ बुध विचारे वेद्यतुं हो ॥ वायक पीवे तेह ॥ ज० ॥ वलपुष्टिकर धेनुनु हो ॥ पय मूकी संदेह ।। न० ॥ ३० ॥ १४ ॥ तेम यादरियं धर्मने हो० ॥ ए वायक थ विचार ॥ ज० ॥ माने निजकुल चालने हो० ॥ धर्म करी निधार ॥ न ॥ दे ॥ १५ ॥ धर्म यहिंसा लक्षण हो ॥ आतम गु-स्वनाव ॥न . परखी लीज प्रेमथी हो ॥ सहजगुरों सनाव ॥ ॥ दे ॥ १६ ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम चोथो. १५३ अविचास्युं करता थका हो । होवे दोप महंत । न ॥ काज विचारी जे करे हो ॥ तेहिज कहियें संत ॥ ३० ॥ १७ ॥ आम्रनिपाति नृपा दिना हो० ॥ इहां सुगवा दृष्टांत ॥ न ॥ तव पर्पद पूछे तिहां हो ॥ ते कुण कहो नगवंत ॥ ज० ॥ ३० ॥ १७ ॥ केम अविचारित कामथी हो ॥ श्यो तेहोनो दु दोप ॥ ॥ पूढे परिपद नावगुं हो ॥ कहे प्रनुजी गतदोप ॥ ज० ॥ ३० ॥ १५ ॥ ढाल ए चोथा खमनी हो ॥ ए संख्यायें जाण ॥ ज० ॥ रामविजय कहे सांजलो हो । कहेशे प्रनु हित आण ॥ ज० ॥ ३० ॥ २० ॥ सर्वगाथा ॥ १०५॥
॥ दोहा सोरती ॥ ॥ देमंकर जिनराज,नांखे नवियण हित जणी ॥ सुपीयें बातम काज, साधेवा सवि प्राणीया ॥१॥ उत्तम मुखनी वात, उत्तम कारज ऊपरें । सुणतां दिन ने रात, धर्मतणी दृढता दुवे ॥ २ ॥ परखी करतां धर्म, नर्म रहित नावें करी ॥लहिये शिव पद शर्म, मर्म लहेवो दोहिलो ॥ ३ ॥ जेम सुतने निज तात, अगुवरयण शंखा दीया ॥ जाणि अगुरू गुरू वात, ह टिपरीदा जब दुई॥॥अविमास्युं को काम, करतां पस्तावो घणो॥धान निपाती ताम, आदि तणो उपनय सुणो॥ ५ ॥
॥ढाल पांचमी॥ ॥सांनल सनतकुमार हो । राजेश्वर ॥ ए देशी ॥ देश अवंतिमाहे हो ॥ नवि प्राणी ॥ नयरी उजेपी नाम वखाणीयें ॥ तिहां जितशत्रुराय दो ॥ न ॥ वेरिंगज कंतीरव जाणीयें ॥ १ ॥ तस घर राणी अदन हो ॥जण ॥ नामें विजयसिरी सोहामणी ॥ कीधी दासी रंज हो ॥ ज० ॥ रूपें मंथरगति रलियामणी ॥ २ ॥ सुखसागरमां दोय हो ॥ ज०॥ रंगे रमे ते कचपनी परें । एक दिन हर्पित होय हो ॥ ॥ वेठो सनामां नृप यामबरें ॥३॥ दोवारिक तेणि वार हो । राजेश्वर ॥ धर्ज करे श्रावी नृप श्रागलें ॥ याव्या राय उवार हो ॥ न० ॥ ॥ कोइक चार पुरुप रूपं जने ॥ ४ ॥ तुम मलवानी श्राश हो ॥रा० ॥ दुकम हाये तो धारे अंदरं॥ कडे नृप तेडो ताल हो । दोवारिक ॥ध्यादर दीजे श्राव्यां मंदिरे ॥ ५ ॥ हुकम दुवो नृप जाम हो । रा० ॥ चार ते चनुर सनामा श्राविया ।। देखो याति ताम हो ॥रा० ॥ सकल सताना मनमां नावीया ॥ ६ ॥
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
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जाएयो उत्तम वंश हो ॥ रा० ॥ तांबूलादिक देश सन्मानिया ॥ बाना न रहे हंस हो ॥ रा० ॥ वगर कह्याथी सहुयें जाणीया ॥ ७ ॥ तो पण पूढे तास हो ॥ कुंवरजी ॥ कहो कुरा कारण किहांथी पधारिया || सुण स्वामी धरदास हो ॥ रा० ॥ देश अवंतिप्रनु उपगारिया ॥ ८ ॥ कहे तेहमां अनुजात हो ॥ रा० ॥ उत्तरपंथें यति रलीयामयुं ॥ कनकतिलक विख्यात हो ॥ रा० ॥ पुर अवनीमां उपे प्रति घणुं ॥ ए ॥ रिपुमर्दन तिहां राय हो ॥ रा० ॥ पाले निज प्रजा रंगें करी ॥ सबलो वरते न्याय हो ॥ रा० ॥ रूपवती तस राणी सुंदरी ॥ १० ॥ दंपती दोय रसाल हो ॥ रा० ॥ सुख विलसंतां सुत सोहामणा ॥ चार थया सुकुमार हो ॥ रा० ॥ रायें कीधां बहुत वधामणां ॥ ११ ॥ प्रथम दुर्ग देवराज हो || रा० ॥ वत्स ने कुर्लन कीर्त्तिथीवली ॥ जोडीजें पद राज हो ॥ रा० ॥ एम चिदु सुत देखी याशा फली ॥ १२ ॥ सकल कला अन्यास हो ॥ रा० ॥ जनकें शीखवीया यत्नें करी ॥ जर यौवनमां तूप हो ॥ रा० ॥ चारे पर पाव्या नृपदीकरी ॥ १३ ॥ इल प्रवसरें निजतात हो ॥ रा० ॥ यंगें निवर्तक रोगें पीडियो || राज्य प्रथमसुत हाथ हो ॥ रा० ॥ सोंपीयुं ते परजव हिंमियो ॥ १४ ॥ राज्य नहीं देवराज दो ॥ रा० ॥ पाले रूडी तें पणुं ॥ वलीया श्रम माहाराज हो ॥ रा० ॥ गोत्रीयें जोरो पहों चाड्यो घणो ॥ १५ ॥ पुण्यदशा यम ही हो ॥ रा० ॥ देश दुवा वश सढु दायादने ॥ नीसरीया थइ दीन हो ॥ रा० ॥ कीधां गुं दुवे ए वि पादने ॥ १६ ॥ दिन पतले सवि लोक हो ॥ रा० ॥ पाणी वलमां सदु ए पारकुं ॥ केहो कीजें शोक हो ॥ रा० ॥ धर्म समो नहिं कोई तारकु ॥ १७ ॥ विहडे सुत ने बंधु हो ॥ रा० ॥ विहडे वहाली परणी कामि नी ॥ पडिया कर्म बंध हो ॥ रा० ॥ एक न विहडे धर्म ए सुरमणि ॥ १८ ॥ ते माटें सुल राज हो || रा० ॥ याव्या तुम पासें कतावला ॥ बंधव ए देवराज हो ॥ रा० ॥ सेवा कारण दर्प समाकुला ॥ १९ ॥ तेच्या तुक गुण दूत हो ॥ रा० ॥ बांहे ग्रह्याने तुं तारे सही | मैं उत्तम कुल पुत्त हो ॥ रा० ॥ प्रारथीया साजण पीडे नहिं ॥ २० ॥ यतः ॥ पर पापवन्नं मा जणणि जोसि एरितं पुत्तं ॥ मा उयरेवि धरिकस, पछ.
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नंगी कर्ज जेा ॥ १ ॥ पूर्वढाल || कहे जितशत्रु नरिंद्र हो | रा० ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम चोयो. २५५ चिंता मत करजो चित्तमांहे तुमें ॥ रहो अम पासें धानंद हो ॥रा०॥ से वा थाशे ते करगुं अमें ॥ २१ ॥ तुम जेवा गुणवंत हो ॥ कुमरजी॥ श्राव्या आंवे ज्युं वायें कोकिला ॥ शरण ए संतने संत हो ॥ कुछ ॥ चं चल कमला स्थिर न रहे इसा ॥ २२ ॥ मत था दिलगीर हो ॥ कु०॥ वीर विराजो सुंदर मालीये ॥ अशन वसन वर चीर हो ॥ कु॥ यो तुमें सुखमांहे दीहा गालीयें ॥२३॥ बहुत करी सुपसाय हो । कु० ॥ सेवक थाप्या चोकी अंगनी ॥ वद् सन्मान्या राय हो । कुछ ॥ सुजस वाध्यो वेला उतरंगनी ॥४॥ चोथे खंमें रसाल हो ॥ नवि प्राणी ॥ ढाल जपीए रंगें पांचमी॥राम कहे उजमाल हो ॥ ॥धर्म करीजें परखी उद्यमी ॥२५॥
॥दोहा सोरती ॥ ॥ रात तणा चिटुं याम, चिढुं बंधव चोकी करे ॥ अनुक्रमें अनुक्रमें काम, राय नलाव्युं बादरें ॥ १ ॥ आप आपणे याम, तिलनर को कंधे नहिं ॥ दोहिली सेवा धाम, देव म देजे तुं सही ॥ ५ ॥ यतः ॥ थाहा रयति न स्वस्थो, विनिशे न प्रबुध्यते ॥ वक्ति न स्वेच्या किंचित्, सेवकः किं नु जीवति ॥ १ ॥ कष्टं जो सेवकानां तु, परबंदानुवर्तिनाम् ॥ स्वयं विक्रीतदेहस्य, सेवकस्य कुतः सुखम् ॥ ॥ दोहा ॥ जोडक सोनया दिये, तोहि न कर सेवाकर्म । नरने नारी एम जणे, झुं जीवितनुं शर्म ॥३॥ यतः॥ मौनान्मूकः प्रवचनपटुर्वातुलोजल्पकोवा, दांत्या नीरू यदि न सहते प्रायशोनानिजातः ॥ धृष्टः पार्वे वसति च यदा दूरतश्चाप्रग ब्लः. सेवाधर्मः परमगहनोयोगिनामप्यगम्यः ॥ ३॥ सोरती दोहो ॥ मू काव्यु निज राज, वेठ वलगाडी पापीयें ।। उष्ट देवयी घाज, राखें तिम रहीये सही ॥ ४ ॥
॥ ढाल नही॥ ॥ थारा महोला ऊपर मेह, मबूके वीजली ॥ हो राज ॥०॥ ए देशी ॥ लही नृपनो आदेश, के कोक कामने ॥ हो लाल के को॥ गयो एक दिन देवराज, नजीकने गामनें ॥हो॥ न० ॥ करि कारज मध्यान्ह, सम . य पाटो वयो । हो० ॥स०॥ विचमाहे वढीयो जोर, पवन धना मल्यो ... दो० ॥ ५० ॥१॥चाये वालीया कमे, धुल थोरण चढी । हो० ॥ ५० ॥ कंकर तप तिम पत्र, दोडी जाय ऊपही ॥ हो० ॥ दो ॥ घिडं
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- २५६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. दिशहूंती ताम, ती कादंबिनी ॥ हो ॥ ३० ॥ करे कडाको जोर, जबके दामिनी ॥ हो० ॥ ॥ २ ॥ वरसे वरसलो विंड, धरोपरि मोटका ॥ हो ॥ धण॥ क्षणमाहे रहि जाय, रमाडे गोटका ॥ होण॥ २० ॥ वली धावे दे दोट; लपेटे जूमिनें ॥ हो ॥ ल ॥ कां रमे ग्रीपम साथ, विसायो तें मुनें ॥ दो० ॥ वि० ॥ ३ ॥ वायु शीतल वाय, जलदधा रा घणी ॥ हो ॥ ज० ॥ थर थर धूजे अंग, विलूटे कंपनी ॥ हो ॥ वि० ॥ तव देवराज कुमार, विचारी वडतले ॥ हो ॥ वि० ॥ आवी कनो उढण, उढी निश्चलें ॥ दो ॥ ३० ॥ ४ ॥ वड उपरथी वाक्य, सुण्यं तव तिहांकणे ॥ दो० ॥ सु० ॥ मनमांहे चिंते एम, इहां ए कुण जणे ॥ दो० ॥ ३० ॥ निसुणुं मामी कान, जोर शुं उच्चरे ॥ हो ॥ जो ॥ सुणे पैशाची वाचे, पिशाच वातो करे ॥ हो ॥ पि ॥ ५ ॥ लांबी करीने वांह, गाहा एक कहे ॥ हो । गा ॥ बीजो मांझी कान, के साची सदहे ॥ हो ॥के०॥ त्रीजो चिंते ताम रह्यो हेग्ल थकी हो० ॥ र ॥ जोयुं अचरिज एह, कहेशे शी वकी। हो॥क ॥ ६ ॥ अत्र चरित्रोक्तं गायाध्यं ॥ फो फो जाणसि किंची, सो पनादिनो कदेहि मह किं तं ॥ जंप इमोवि अऊं, लहीए सो नरिंदोति ॥ ४ ॥ वीएण त पुझो, केण निमित्तेण की वेलाए ॥ सो जंप सप्पा, पढमे पहरं मिलती ए॥ ५ ॥ पूर्वढाल ॥ जाणे पिशाची वाणीनो, अर्थ ते आपथी । हो ॥ अ० ॥ हा हा माहारो स्वामि, मरशे सापथी । हो ॥म ॥ पहेला प्रहर मजार,दैवें गुं कीधळु ॥ हो ॥ दे॥ अथवा जलु लघु एह, में कारिज सी धनुं ॥ हो ॥ में ॥ ७ ॥ करीश हुँ एह उपाय, साहिव उगार' हो। सा ॥ यत्न करीने सर्पy, विघ्न निवारयुं ॥ हो० ॥ विण ॥ यागुं नहिं गुणचोर के, ढोर परें हवे ॥ हो ॥ढो॥ स्वामी जनक समान, सङ कवि श्म स्तवे ॥ हो ॥ स ॥ ७ ॥ यतः ॥ अन्नदः प्राएदश्चव, स्थानदोनय रक्कः ॥ झानदोजनकश्चैव, सप्तैते पितरः स्मृताः ।। ६ ॥ पूर्वढाल । एम चिंतवतो चित्त, आव्यो नृप यंतिकें ॥ हो ॥ या० ॥ वर्पा टाढ उकंट, चढ्यो शिर चिंतके ॥ हो ॥ च॥ सांऊ समयमां सनाने, विसर्जी राज वी होण्॥
विवादल घोर घटा घन, रहियो गाजवी ॥ हो० ॥ र ॥ ॥ए ॥ श्रावी निज यावास, नरेश्वर पोढीयो ॥ हो० ॥ न ॥ लांबो सो
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श्री शांतिनायनो रास खंग चोयो.
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डो ताणी, उपर पट उढीयो || हो० ॥ ० ॥ पासें रही पटराणी, वडी ते सेजमां ||हो ॥वण जीडी बिहु नृजबंध, ते सुतां हेजमां ॥ हो |ते | १० ॥ चाव्यो पहेले पहोर, चोकीने कारणें ॥ हो ||चो० ॥ जोवे ते देव राज, रह्यो गुह्य वारणें ॥ होणार ॥ अथ ऊपरें ते वास, भुवन नीहालतो ||हो॥०॥ वारी जाली गोंख, विवर सवि चालतो ॥ हो॥वि॥ ११ ॥ खग यही निजहाय, रह्यो एक मने ||हो ॥ र० ॥ चंशेदयने विवरें, ध हि लंबित तने ॥ हो ॥ ० ॥ देखी ग्रहियुं एक, करें मुख साहसी ॥ हो० क० ॥ वीजे करें दोय खंग, कस्या ग्रहीनें यति ॥ हो० ॥ क० ॥ १३ ॥ गोपविया एक वोर, जइ ते खंमने || हो ॥ ज० ॥ मन चिंते ययुं कारन, हणीयो लंग्ने हो | ह० ॥ निश विवसन देवी, नरःस्थल ऊपरें ॥ हो० ॥ ॥ ० ॥ देखी पढिया विंड, रुधिरना दुःख धरे ॥ हो० ॥ रु० ॥ १३ ॥ रखे विपसंक्रम होय, इस्युं मन चिंतवे ॥ हो० ||50|| लूंबे स्वामीनक्त, कलानें केलवे ॥ हो० ॥ क० ॥ निशदययी ताम, गुनना उदद्यथी ॥ हो० ॥
० ॥ कुच ऊपर कर देखी, शंक्यो नृप हृदययी ॥ हो० ॥ ० ॥ १४ ॥ क्रोध घरी मन चिंते, मारुं एहने ॥ हो० ॥ मा० ॥ शन वसन सवि पूरुं, नितप्रत्यें जेहनें ॥ हो |नि॥ कीधुं एणे हराम, सवि ते माहरूं ॥ हो० ॥ स० ॥ कीधुं कर्म कठोर, थड़ने वाहरु | हो० ॥ य० ॥ १५ ॥ हुं एहने विश्वास रहुं रयणी समे ॥ हो० ॥ र० ॥ करे ए एहवं काम, हवे मुख नवि गमे ॥ हो० ॥ ० ॥ प्रीति तयुं जिहां गम, तिहां त्रय टालीयें ॥ हो० ॥ ति० ॥ अर्थसंबंध विवाद, रमणी न निहालीयें || हो० ॥ २७ ॥ १६॥ यतः॥ यदीदिपुलां प्रीतिं त्रीणि तत्र निवारयेत् || विवादं चार्थ संबंध, परोचे दारदर्शनम् ॥ ७॥ पूर्वदा ॥ ब्रह्महत्या ने प्रजास, (प्रजासशब्देन साधारण इव्यं) दरि धन देवकुं ॥ हो ० ॥ ० ॥ गुरुपत्नी वली तेम, ए पातकका रकु ॥ हो । एनवि पामे ते स्वर्ग, नरक व्यधिकारिया ॥ हो ॥न ॥ वो जालो कृतगुण, जेणें विसारिया ॥ हो० ॥ जे० ॥ १ ॥ बली नृप चिंते एह, जोरावर ने बाएं || हो० ॥ जो ॥ कोण जाणे हणे एह, के हुं एहने हुएं || हो | के० ॥ माटें कोई उपाय करीने मारं ॥ हो० ॥ क० || बेरीने विपवेल, णी नवधारणं ॥ हो। न० ॥ १८ ॥ जोजो गुणनो दोप, यने नीप न्यो ||होणाय ॥ जननालेरकपूर, श्रकी विष कपन्यो । दो० ॥ ० ॥
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२५० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. सूतो फरीने राय, के निज्ञामिप करी ॥ दो॥॥ पहेलो पहोर व्यतीत, पूरी था चाकरी ॥ हो ॥ पू० ॥१॥ व्यो तव वत्सराज, कहे वंधव तुमें ॥ हो ॥ वं ॥ राज पधारो गेह, हवे रहेगुं अमें ॥हो ॥ ह ॥ निजमंदिरें देवराज, पहोंच्यो नई तिहां हो॥०॥ नृप पूजे पहोरायत, कोण अछे इहां होको॥२०॥ कहे स्वामी वत्सराज, हुँ सेवक राजनो ॥ हो ॥ ढुं० ॥ कनो सेवामांहे, के पूरो साजनो हो॥के॥ बही चोथे ढाल, सीराडे ए चढी॥ हो ॥ स० ॥ राम कहे क्रोधांध, न राखे प्रीतडी॥ हो ॥न॥१॥ सर्व गाथा ॥१६॥ श्लोक तथा गाथा ॥॥
॥ दोहा सोरती ॥ ॥ कहे नरवर एक काम, वत्स करीश तुं माहीं ॥ कहे शिर जोरें वा मि, वचन न लोपुं तुम्ह तणां ॥१॥ द्यो आदेश सुजाण, शी शंका मुफ थी करो ॥ प्रलु तुम वचन प्रमाण, शेप परें शिरें धरूं ॥ २ ॥ प्रेपण नृत्य परीक्ष, व्यसनें बंधव परखीयें ॥ आपत्तिकाल सरीख, विनवस्ये वलि नारजा ॥ ३ ॥ कहे राजा जो एम, तुम मनमां आवे अ ॥ कर . कारज तजी प्रेम, हण बंधव देवराजने ॥ ४ ॥
॥ ढाल सातमी ॥ ॥ नदी यमुनाके तीर, उमे दोय पंखीयां के ॥ उमे० ॥ ए देशी ॥ तहत्ति करी नृप आण, सुजाण ते नीलस्यो के ॥ सु०॥ मंदिरथी वत्स राज, हृदयथी थरहस्यो के ॥ 8 ॥ चिंते कोप्यो जोर, राजन देवराजनें के ॥राण ॥ विरुन करे निर्धार, ए वयणे आजने के ॥ ए० ॥ १ ॥ तनु दारा धन शेही, कपरें एहवो के ॥ ॥ कोप होय जगमांहे, ए दीसे तेहवो के ॥ ए ॥ पए मुफ बंधवमांहे, न को अवगुण थवे के ॥ न ॥ जे उत्तम होय तास, अकारिज नवि रुचे के ॥ध ॥ २ ॥ सऊन जन अपवाद, थकी रहे वीहता के ॥ थ० ॥ जेह जितेंश्यि तेह, अकाल न हिता के ॥ अ॥ मरण करे उकारें, न चाले उतपथें के ॥ न० ॥ लजावंत सुशील, सुलदाण संकये के ॥ सु० ॥ ३ ॥ यतः ॥ मनसि वचसि काये पुण्यपीयूपपूर्णा, स्त्रिनुवनमुपकारश्रेणिनिःप्रीयंतः।। परगुणपरमागून पर्वतीकृत्य नित्यं, निजहदि विकसंतः संति संतः कियंतः ॥ १ ॥ विपदि धेर्यमयान्युदये क्षमा, सदसि वाकपटुता युधि विक्रमः ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम चोयो. रपए यशसि चानिरतिर्व्यसनं श्रुतो, प्रतिसिमिदं हि महात्मनाम् ॥ २ ॥ चढाल ॥ मुज बांधव देवराज, ए सजन जातिनो के ॥ ए ॥ न मले ए हमां कोइ, विचार कुजातिनो के ॥ वि० ॥ केम कोप्यो नरराज, निवाजने स्थानकें के ॥ नि ॥ सवल विमासए ऊपनी, आज अचानकें के ॥श्राप ॥ ४ ॥ पण कुपरीक्षक राय, अज्ञानें आवस्यो के ॥ अ० ॥ विण परमारथ जाणे, दुकम एणे कयो के ॥ दु० ॥ पण इहां काल विलंब, करुं शुज कारणे के ॥ क० ॥ नांख्यो ग्रंथमा एहज, अगुन निवारण के ॥ ॥ ॥ ५ ॥ चिंतवी राय समीप, वही आव्यो वली. के ॥ व ॥ कां रे न लाव्यो तल शिर, युं तुज मति गली के ॥ ॥ कहे वत्सराज नरेश्वर, ते जागे सही के ॥ ते ॥ जागंतां देवराज, ह पाये नहिं सही के ॥ ह ॥ ६ ॥ मारीश ढुं निशनर, ते याशे यदा के ॥ते॥ नृपतियें पग वात, हृदय धारी मुदा के ॥ ॥ स्वामी विनिइ कहो कोइ, वात सोहामणी के आवा॥ वत्स कहे अहवा, निसुणो महारी नपी के ॥ सु० ॥ ॥ ७ ॥ वात विनोद विना ए, न जाये यामिनी के ॥ न० ॥ राय कहे तुं दाख, कथा मुफ कामनी के ॥ क० ॥ सुण नृपवर बदु नरवर, पाटली पुरमां के ॥ पा० ॥ पृथ्वीराज नरेश्वर, चावो शत्रुमां के ॥ चा० ॥ ॥ सुनगा सुनगा नामें, राणी तस वालही के ॥ त । रतिरमणी अनुहार के, रूप गुणें सही के ॥ रु. ॥ शेउ तिहां रत्न सार, वसे एक गुणनिलो के ॥ 4 ॥ सदु व्यवहारीमाहे के, सोहे शिर तिलो के ॥ सो० ॥ ॥ ॥ तस घर नारी सलका, नामें रखका के । ॥ ना० ॥ गोरंगी रतियंण, विचारनी पंजिका के ॥ वि०॥ धनदत्त नामें एक, तनय तस कूरखनो के ॥ त० ॥ मात पितानो जक्त, न रागी दोपनो के ॥ न० ॥ १० ॥ एकदिन रुतश्रृंगार, सुमित्रगुं परवखो के ॥ मु॥ श्राव्यो चटुटामांहे, ते धनमदयुं जयो के ॥ ते ॥ कोइ प्रशंसे धन्य ए, जोगी प्राणीया के ॥ लो० ॥ विलसे लछि विलास. सोनागी जागीया के ॥ सो० ॥ ११ ॥ तव चीजो कहे एह, नणी न बखाणीये के ॥ नए ॥ याप तणी उपराजिन, धाथ ए वाणीये के ॥श्रा०॥ बाप तणे परसाद, करे ते साहिबी के ॥ क० ॥ तो करे ने तान.वनी तननीबी के ॥ ५० ॥ ११ ॥ बात सुणी मनमांहे, सोचे ते इस्युं के ॥ शो० ॥
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२६० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. विण जुजवल नपराजण, मुफ जीव्युं किस्युं के ॥ मु० ॥ धन लावी करुधर्म, सुतामें वावरूं के ॥ सु० ॥ जय परदेशे कलंक ए, ऊतारं परं । के ॥ ए० ॥ १३ ॥ कमल उदधि हरिउरमां, वसे ए वारता के ॥ व पण व्यवसाय उदाधिमांदे, दीसे शाश्वता के ॥ दी ॥ ते माटे व्यापार, करी श्री जोडणुं के ॥ क ॥ एह तणुं सवि कहेण, एणी परें मोडगुं के ॥ ए. ॥ १४ ॥ यतः॥ या श्रीः सरोरुहांनोधि, विमोर्वदति सा श्रुतिः ॥ या पुनर्व्यवसायाधौ, लक्ष्मीः साध्यक्ष्मीदते ॥३॥ व्यापारे वस ते लक्ष्मीः, किंचित् किंचिञ्चकर्षणे ॥ अस्ति नास्तीव सेवायां, निदायां नैव संजवः ॥ ४ ॥ पूर्वढाल ॥ तेणें कह्यो निज आशय, मित्रनी आग के ॥ मि० ॥ ते पण कहे सुण साच, लरव्यु एम कागलें के ॥ ल ॥ नि जगुपथी विख्यात, कह्या उत्तम गुणी के ॥ ॥ वापरणें विख्यात, कीर्ति मध्यम तपी के ॥ की० ॥ १५ ॥ यतः॥ उत्तमाः स्वगुणैः ख्याताः,. मध्यमाश्च पितुर्गुणैः ॥ अधमामातुलैः ख्याताः, श्वसुरैश्चाऽधमाऽधमाः॥ ५ ॥ पूर्वढाल ॥ घरे आवी निजतातने, वात सर्वे कही के ॥ वा ॥ जाइश ढुं परदेश, रजा मुज यो वही के ॥ २० ॥ जनक हिये धरे कुख, कहे वत्स गुं कर्तुं के ॥ कण् ॥ व्यो ए धन अंबार, में ताहरु मन लयुं के ॥ में ॥ . ॥ १६ ॥ वित्तसो वांवित जोग, रमो रंग मालीये के ॥र ॥ चित्तढूंती परदेशनी,चिंता टालीयें के॥चिंाढाल कहीए चोथे,खमें सातमी के॥खं॥ कहे वत्स वात सुणो नृप, आगल मन गमी के॥या॥१७॥१७॥ १३ ॥
॥दोहा॥ ॥ धनद कहे सुणो तातजी, तुमें उपराजी लाल ॥ न घटे नोगववी । प्रनु, जेम विणसे सवि साच ॥ १ ॥ इण वचनें जाण्यु पिता, न रहें राख्यो एह ॥ शीख समपी पुत्रने, सिध्द करो गुणगेह ॥२॥ त्यागी कृपण थजो तुमें, निर्दय वली दयाल ॥ परदेशे होजो सही, यूर बने उजमाल ॥ ३ ॥ शिक्षा दीधा पुत्रनें, चाल्यो सबले साथ ॥ करियाएं लीधुं बदु, चित्त समरी जिननाथ ॥४॥
॥ ढाल थामी॥ ॥ देशी लुहारीनी ॥ हवे साथ संघातें हो, कुंवर हर्प धरी ॥ परदेश चाल्यो हो, मालें शकट जरी ॥ केतेएक दिवसे हो, श्रीपुर नयर सही ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम चोयो. १६१ परिसर ऊतरीया हो, सरोवर पास सही ॥ १ ॥ सारथपति वसिया हो, के उज्ज्वल वसन कुटी ॥ ध्वजनी सहिनाणी हो, के सोहे श्वेतपटी । तिण वेला कोइक हो, के भ्रूजतो धायो । नये चंचल लोचन हो, के शरणा गत आयो ॥२॥ मुझ राखो राखो हो, के करुणा स्वामी करो ॥ दु नानो घाव्यो हो, के शरणे महेर धरो ॥ मत वीहे वोले हो, के सारयवाह इस्यो ।। मुज आगल नांखो हो, के के अपराध किस्यो ॥ ३ ॥ एह जव पूरे हो, के तावत तुरत धस्या ॥ हणो हणो वोलंता हो, के आव्या सु जट कस्या ॥ धनदत्तने नांखे हो, के मूको एह नए ॥ अपराधी नृपनो हो, के महोटो ने श्रगुणी ॥ ४ ॥ दास ए घरनो हो, के नृप बाजरण हरी ॥ वटने काजें हो, के रामत नहिं सखरी ॥ ए व्यसनज नूंमं हो, के सातेमां राजा ॥ एहने सेवंतां हो, के यंगें नहिं साजा ॥५॥ नृप वात ए जाणी हो, के धारी तेडीलीधुं तिण वेला हो, के कान करीजेडी॥ हणो स्वामी शेही हो, के व्यसनी दास जणी ॥ मूको मत एहने हो, के रायनें रीप घणी ॥ ६ ॥ करुणा मन प्राणी हो, के कहे मंत्री स्वामी ।। कारामांहे राखो हो, के कहूँ तुम शिर नामी ॥ मंत्रीश्वर वयणे हो, के तालामाहे जब्यो।मूक्यो चर चोकी हो,के ठो रह्यो मांहे पज्यो॥७॥नांजी कारागृह हो, के सेवकने निहगी। नागे तुम पासें हो, के श्राव्यो वात नणी॥ तेमाडे काढी हो, के श्रापो चोर जलो ॥ नहिंतर माटें हो, के थाशे सहिय कलो ॥ ॥ कहे सारथवाहो हो, के वात खरी तुमची ॥ शरणागत श्राएं हो के शान नहिं अमची ॥ कहे सेवक नृपना हो, के अमें न्यादेशकरा ॥ जो लोपुं पाया हो, के कोपे घमउपरि ॥ ५ ॥ धनदन उपगारी हो, के कहे तूपति पासें ॥ चालो हुँ श्रायु हो. के नृपति श्रावासें ॥ श्रावी नृप धागे हो, के कनो कर जोडी ॥ ने एक मृकी हो, के रत्नायलि रूडी ॥ १० ॥ कोण देशथी श्राव्या हो, के निरु पम व्यवहारी ।। कहो कांश अपूरब हो, के बात सबल सारी ॥ धुर हंती मांगी हो, के निज रत्नांत कयो ।। राजेबर रूडो हो, के मानव तेद नयो ।॥ ११ ॥ सुरण साहिय मोरा हो, के नोरां चरण यहूं ॥ कर सदस नीदोरा दो, के चोरने मान लडं ॥ न्यानरण तुमा हो, के तुम हाये था , रणागत स्वामी हो, के चोरने हुँ पाउं ॥ १२ ॥ कहे राजा मृकण
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जैनकथा रत्नकोप नाग प्राठमो.
हो, के जोगो एह नहिं ॥ पण केम लोपाये हो, के तें जे वात कही ॥ में जा ए मूक्यो हो, के तु वक्कीस करो || सुणि धनदत्त बोले हो, के दिडे हेज रखो ॥ १३ ॥ महोटो ए मुऊनें हो, के तुमें सुपसाय को ॥ एम कही न याव्यो हो, के स्थानक तेह वस्त्रों ॥ संतोप्यो तेहनें हो, के जोजन देइ नलो ॥ चोरने शीखामण हो, के पे सुगुएा निलो ॥ १४|| राग प्राशावरी || क्या करूं मंदिर क्या करूं दमरा ॥ ए देशी ॥ व्य सन विचार सुणो मेरे जाइ, इह नव परनव हे दुःखदायी ॥ दोय नेद व्य नाव हे उनके, पार न पावे रे कोन उगुनके ॥ व्य० ॥ १ ॥ द्यूत मांस मदिरा र वेस्या करत याहेडी फिरत बनसा || चोरी परनारीसें यारी, इव्यसें सातो विसन कहे नारी ॥ व्य० ॥ ॥ द्यूत वडो कुलखंपण कहीयें, उनसें इकत कबहु न लहीयें ॥ हे सबदूमें ए सिरदारा, सोइ उत्तम जो इनसें न्यारा ॥ व्य० ॥ ३ ॥ करे जीववध डर मांसको चाहे, सो फरि फरि चिहुं गति अवगाहे ॥ जो मद्यपानें रहे मतवालो, चनकुं लग्यो मनुं व्यंत तर चालो ॥ व्य० ॥ ४ ॥ सब जग धूते जो गणिका निगुरी, उनसें मिले तिनकी गति बिगरी ॥ जो मृगजीव हनत वन पेठो, उनको माटीपनो जाउँ हेठो ॥ व्य० ॥ ए ॥ परके वाहिर प्रानको लेवें, अपने अंतरप्रान कों देवे ॥ कह्यो डुदुं लोक विराधक, उनको, चोरी करे सोही धिक् धिक् जनकों ॥ वि० ॥ ६ ॥ देखत परनारी रहे फिरते, जानत नांही ऊहेरसें मरते ॥ परनिजनारी देखे दुःख पावे, तो काहेकुं तुं परघर जावे ॥ व्य० ॥ ७ ॥ ए सातोसें जे रहे लगे, तुरत जइ सुरपदसों वलगे ॥ जो उनकों जावें करी ढंगे, तो सहजानंद सुखशुं मंमे ॥ व्य० ॥ ८ ॥ सोगठ सोल कपाय निवारी, राग छेप दोन पासा मारो || यारत ध्यान चोपाइ उपारो, घपने धानंद महोल सिधारो ॥ व्य० ॥ ॥ परपरिवाद ए कबहु न कीजें, कोपूठें पीठमांस नखीजें ॥ धन रमणी पर प्रेम न धारो, मोहमदिरा दिलमें न संजारो ॥ व्य० ॥ १० ॥ कुमति बडी धूनारी है वेस्या, उनको मत कोन करदो वेसासा ॥ जिए कीया सोइ बहु ःख पाये, बहु रिनह ज्युं ऊंचे न याये ॥ व्य० ॥ ११ ॥ मनमें याद हे याहेडो, इनकों निवारे में उनको चेरो ॥ चनविद् यदत्त निवारो चोरी, पर याशा परचंचल गोरी ॥ व्य० ॥ १२ ॥ ए सातों कहे नाव विचारी,
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श्री शांतिनायनो रास खंग चोथो.
१६३ जो बजे तिनकी बलिहारी ॥ रामविजय कहे एसे जगतमें, तुरत चढी वेसे ध्यानतखतमें ॥ व्य० ॥ १३ ॥ इति सप्तव्यसनोपरि अध्यात्म गीतं ॥ पूर्वढाल ॥ कहे धनदत्त प्यारा हो, के वारुं कुं तुमने ॥ चोरी मत करजे दो, के लाभ दियो मुऊनें ॥ पगे लागी पयंपे हो, के धन तुं उप गारी, तें गुण मुऊ कीधो हो, के लीधो कगारी ॥ १५ ॥ जग दोय विशा मा हो, के संसारें नारी ॥ अथनें बीजो हो, के सत्संगति सारी ॥ धारखां तुम चयणां हो, के रयण करी मनसां ॥ न धरूं वंकाइ हो, के या जयकी तनमां ॥ १६ ॥ यतः ॥ पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि, जलमन्नं सुभाषि तम् ॥ मूढैः पापाखमेपु, रत्नसंज्ञा विधीयते ॥ १ ॥ पूर्वढाल || हवे तुं मुफ स्वामी हो, के दास तुं तोगे ॥ कहुं कर जोडीने हो, के वचन करो मोरो ॥ वे एक मुक पासें हो, के मंत्र सवल काजू ॥ करे नूत पराजय हो, के शुं नांखुं जाजूं ॥ १७॥ तस यायह जाली हो, के मंत्र लियो कुमरें ॥ तस्कर निज स्थानक हो, के पहोतो तस समरे ॥ ढाल चोथे खमें हो, के श्रातमी एह कही || जे व्यसन न सेवे हो, तेणें नव निधि नहीं ॥ १८ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ सार्थवाह त्यांची चल्यो, जातां त्र्यनुक्रमें एक ॥ ऋटवी लही कादंबरी, उत्तरीयो सुविवेक ॥ १ ॥ जल स्थानक जोई ननुं करे रसोई तेह || एह वे याव्यो पारधी, कलवर्ण जस देह ॥ २ ॥ धनुप बाए हाथे यह्यां, सा रमेय दश पांच ॥ रुदन करे दुःखीयो घणुं, धनदत्त कहे एम वाच ॥ ३ ॥ केम दीसे एम दूमणो, कहे मुऊ घ्यागन याज ॥ ते कहे मुक स्वा मी 5वें, रोखुं हुं माहाराज || | || शामाटे तव ते कहे, गिरिकुमंगिका पानि ॥ तिहां पनीपति शूर ने, सवल शत्रु कंगाल ॥ ५ ॥ सिंहचं ना में नलो, सिंहवती तस नारी ॥ जीवित श्रुति वालही, रमणी गुणनंमा ॥॥ तेनें नही, तस विरहें श्रम नाथ ॥ मरगे तस इःख खी थो, हुं रूपन कर्म नाय ॥ ७ ॥ सार्यवाह कहें तेहने, एक बार मुक दृष्टि ॥ याणी तेहने राज कर्म, मंत्र सक्न मन इ ॥ ८ ॥ तेणें पत्नी पति कर्म याणी तेह तुरन || मंत्र साजी करी, घहो चपगार वि चित्र || २ || जीवित दान सुक्ने दियो बली जीवाडी गृह ॥ चरणे नमीने व्यायो, पतीति निज ॥ १० ॥ धनदन नित्रांची बाजीयो,
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२६४ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. गुणगिर गंजीर ॥ वेलाकुल गत पामीयो, पाटण पुर गंभीर ॥ ११ ॥
॥ ढाल नवमी॥ ॥ धणरा ढोला ॥ ए देशी ॥ साथ निवेश करी तिहां रे, वसीयो ते पंच रात ॥ धनरा रागी ॥ वस्तु लीये वेचे वहु रे, पुरमांहे दुइ ख्याति ॥ ध०॥ १॥ जू जून रे सुजाण ॥ वडनागी॥ नहिं धन जेहबुं प्रिय कोइ॥ सदु धनरागी॥ ए आंकणी ॥ तिहां मन मान्यो नवि 'थयो रे, व्यापारें धन लान ॥धण्॥ तृप्मा अनंती जिन कही रे, जेम जगमांहे पान ॥धाजू ॥ ॥ यउक्तमागमे ॥ सुवरम रुप्पस्त उपवया नवे, सयाहु कैलास समा असंखया ॥ नरस्त खुस्त न तेहि किंचि,बाहुँ यागास समाधणंतया ॥ १ ॥ दोहो ॥ तनकी तृमा सही सहे, सवाशेरके शेर ॥ मनकी तृष्मा नवि मटे, जो बाणे घर मेर ॥ २ ॥ पूर्वढाल ॥ पहिम रयणीय चिंत वे रे, करूं हवे जलनिधियात्र ॥ध ॥ इव्य घणुं लावु रली रे, हर्पे चढी यानपात्र ॥ ध० ॥ जू ॥ ३ ॥ थये प्रनातें धावियो रे, जोवा जलनिधि वेल ॥ ध० ॥ जल कनोल जिहां घणा रे, उबलता करे केल ॥ध ॥जू० ॥४॥ सार्थपति सरितापति रे, देखी सह्यो यानंद ॥ध०॥ चिंते ए सुप्रस न दुई रे, दूर टले मुःखदंद ॥ ध ॥जू॥ ५ ॥ गुणगणनो श्राधार जे रे, .. धीवर सेवित जेह ॥ ३० ॥ संसारांवुधि तारकू रे,नेगमयुत गुणगेह ॥ध ॥जूण् ॥६॥ देव अधिष्ठित सितपटें रे, स्फीत इस्युं एक यान ॥॥ जैनवा क्य परें संग्रह्यं रे, धन देई असमान ॥ ३० ॥०॥७॥ जांम सवे नरियुं ति हां रे, जे देशांतर योग्य ॥ध ॥ वहाण चढी चाट्यो सुखें रे, सवल पवन अनुकूल ॥ध ॥ ॥॥ उदधि घणो उल्लंघीयो रे, सढ प्रथा पवणेण ॥धावहाण चाले वेगगुं रे, जोयण जाय दणेण ॥ध जू०॥ ए॥ मार्गवळ एक सूयडो रे, मुख ग्रहि अंवफल सार ॥ ५० ॥ उडतो यंवर लडथडे रे, थाक्यो तेह अपार ॥ १० ॥ जू० ॥ १० ॥ धनदत्त धीवरनें कही रे, तेद अणाव्यो पास ॥ध॥ पंख उपर कर फेरियो रे, क्षण एक करि यावास ॥धाजू॥११॥ फल हेतुं मूकी कहे रे, मनुज परें गुक वाणि ॥७॥ हूँ
शिंगण ताहरो रे, किमही न यावं मुजाण ॥॥॥ १२ ॥ तुमें जी वित मुमनें दीयुं रे, कीयो बदु नपगार ॥ध॥ मुफ जीवे दोय जीवियां रे, वृक्ष पितर निर्धार ॥१०॥०॥ १३ ॥ तेमाटे कांइक करूं रे, तुमनं दुं प्र
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श्री शांतिनाथनो रास खंग चोथो. १६५ युपकार ॥ध ॥ गुण कीधो जाणे नहिं रे, ते सही मूढ गमार ॥ |ज॥१४॥ जेट करूं फल ए ग्रहो रे, साहिब चतुर सुजाण ॥ ध ॥ गुं अमें कीजें एहने रे, जदय ए तुऊ गुणखाण ॥०॥जू॥१५॥ लीयो अवर तुज जे रुचे रे, तब कहे गुक सुण स्वामि ॥ ५० ॥ बहु गुणकारक एह ते रे, एहनुं अमृतफल नाम ॥ धम् ॥॥ १६ ॥ सुण कारण एहतुं कई रे, विंध्य महीधर पास ॥ ३० ॥ विंध्या अटवी जुम वसे रे, कीरमिथुन एक खास ॥ध० ॥जू॥ १७ ॥ सुत हू हूं तेहने रे, नेड मूक दुयां तेह ॥ ५० ॥रूपणाथी आणीने रे,जदय यापुंसस्नेह ॥धान०॥ १७ ॥ अन्य दिवस एक श्रावियुं रे, अटवीयं मुनियुग मीठ ॥ ५० ॥ धानतरु तलें याविने रे, बेढं में नयरों दीव ॥ध ॥१॥ देखि विजन मुनिजन कहे रे, याम्र उपर एक बात ॥॥ पादशैल दरिया विचे रे, तिहां एक तरु विख्यात ॥ ५० ॥ २०॥ ते सहकार सदा फले रे, तस फल खाये जे एक ॥धा रोग पणासे अंगना रे. जाय जरा पण ठेक ॥धाज॥२१॥ तेज रूप सोनाग्यना रे, गुण वाधे श्रति जोर ॥ध॥ निसुणी हुं हर्पित दुयो रे,ज्युं चकवा दुवे जोर ॥ध ॥०॥ २२ ॥ मुनिवचन न होवे मृपा रे, फल श्राणायुं तेह ॥ १०॥ दिव्य लोचन होवे माहरां रे, तरुण पितर गुणगेह ॥ध॥ज०॥२३॥ फल सेवा कारण गयो रे, श्रावतां विचमां था ज ॥ ५० ॥ तें राख्यो मुफ जीवतो रे, जीव तुं गरिवनिवाज ॥ १० ॥ज० ॥ २४॥ बीजुं फन भागीने रे, देश मुक मावित्र ॥ १० ॥ फल राखो अनुयह करी रे, करो मुझ जन्म पवित्र ॥ध ॥ज॥ २५ ॥ फल देने कमियो रे, कीर विचारे शेठ ॥ध० ॥ धन्य पदी पण एहवो रे, गुणवंत दोनो ॥ध ॥ ज० ॥ २६ ॥ सार्थपतियें गोपव्यं रे, बहु उपगारीने देत ॥20॥ देकोइएक जपनं रे.धारी मन संकेत 12 ॥ २४ ॥ बनुकमें जातां पामीयो रे, दिन के परकृत ॥ ५० ॥ ३ नेटण जमि व्यो र, ने पुरनृप अनुकून ॥4॥०॥ १७ ॥ फल थायु तल गुण कह्यो ने गरें मृत्यु दाग । म ॥ महाप्रसाद कदीयाविचारे. सार्थपति निज गण ॥ ५० ॥ जू० ॥ २० ॥ लान प्रधिक तिहां कोलाह्या रे, नवमी रात रसाला ५॥ गम कहे नर ने नजारे, जर उपगारनो दाल 10 || ॥२०॥ सर्व गाया ॥२५॥ोक नया गाया ॥२६॥
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२६६ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
॥दोहा॥ ॥ वेची क्रियापक वली अवर, ग्रही तेह धनदत्त ॥ पाबो फरी केते दिने, पुर गंजीर पदुत्त ॥ १ ॥ साथ लेइ तिहाथी चल्यो, निजपुर ते उज माल ॥ विच अटवी कादंबरी, आवी ते विकराल ॥ २ ॥ रात रह्या सद् को तिहां, सुजट बदु परिवार ॥ रह्या चिहुँदिशि मोरचे, ग्रही विविध ह थियार ॥ ३ ॥ पाबले पहोरे रयणीने, हत हत करती धाड ॥ यावी पडी उतावली, अटवी जिहां ऊजाड ॥ ४ ॥ धनदत्त सजी साहामो थयो, साहसिक शिरदार ॥ वंदी कहे जय जय चिरं, श्रीधनदत्त कुमार ॥ ५ ॥ धाड स्वामी पश्निपतें, धनदत्त निसुण्यं नाम ॥ रखे होइ उपगा रीयो, जेणें सामु मुज काम ॥ ६ ॥ शस्त्र रहित नट वारिनें, साहामो पन्नीनाथ ॥ आव्यो तव वेदु उलखी, मलिया घाली वाथ ॥७॥ पूजे तव प्रेमें करी, कुशल देम विरतंत ॥ अहो बदु दिवसें वालहा, मलिया तुमें महंत ॥ 5 ॥ तुमझुं अज्ञानें इहां, कीधी घणी अयुक्त ॥ खमो अपराध ए माहरो, घणी करी प्रणपत्य ॥ ए ॥ तेडी लाव्या मंदिरें, कीधी जक्ति जुगत्त ॥ जोजन वस्त्रादिक तणी, करि मनुहार विचित्र ॥ १० ॥ तस याणा सेइ चालियो, निजपुर आव्यो देम ॥ मात पिता परिवारा, म लियो बहुले प्रेम ॥ ११ ॥
॥ ढाल दशमी॥ ॥ राग केदारो ॥ सुखदायी रे सुखदायी रे ॥ ए देशी ॥ पुर श्रावी रे पुर अावी रे, वदुयश कीर्ति उपजावी रे ॥ परिगल घरे संपद लावी रे, धन वावे सुदे हो जावी रे ॥ पु ॥ १ ॥ जिननुवन ते नविन करावे रे, बहु जीरणने समरावे रे ॥ जिनपडिमा अनेक नरावे रे, एम पाप अगुन दय जावे रे ॥ पु० ॥ २ ॥ करे ज्ञाननी नक्ति विशाला रे, होवे दूर अज्ञानतमजाला रे ॥ विरचे मुनिनक्ति रसाला रे, प्रगटे गुणमं गलमाला रे ॥ पु० ॥ ३ ॥ वली अऊवगुण संजाली रे, पडिलाने अशन गुरु नाली रे ॥ साहामी साहमिपी संतोपे रे, क्षेत्र साते . सुधां पोपे रे ॥ पु० ॥ ४ ॥ दीण दीन प्रत्ये उधारे रे, सुःखीयानां मुख, सवि वारे रे ॥ जिन वयण हिवामां धारे रे, जे सहेजें जवजन तारे रे । ॥ पु० ॥ ५ ॥ नृप दीधी नगरहोगई रे, अइ प्रगट सबल पुण्याई रे ॥ .
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श्री शांतिनाथनो रास खंम चोयो. २६७ एक दिन पुर उपवन थाइरे, मुनि समवसखा सुखदाची रे ॥ पु० ॥ ६ ॥ मुनि वांदीने देशन निसुपी रे, वधी वात वैराग्यनी बमणी रे ॥ तजी कंचन कोडी ने रमणी रे. मुनि दु माहातम सुगुणी रे ॥ पुण् ॥७॥ धनदत्त मुनि चारित्र पाली रे, कर्म कोडी सवे परजाली रे ॥ धनवाति कर्म त गाली रे, शिवरमणी वरी लटकाली रे ॥ पु० ॥ ॥ कहे राम विजय कर जोडी रे, तेहना पाय नमुंमद मोडी रे॥जेणे कंचन कामिनी तोडी रे,तस शिवसुख हाथ करोडी रे॥पुण्या इति सप्तदेवनाम स्तुतिः॥ ढाल ।। काहानजी मेहलाने कांवली रे ॥ए देशी॥ हवे ते फल ले राजवी रे, चिंते हो एम विचार ।। ए फल खाधे रे युं होवे रे, कीजें हो पर उपगार ॥ १ ॥ राजन सांजलो वातडी रे।। ए यांकणी ॥ कहे वत्सराज कुमार ॥ काज विचारिने जे करे रे, ते नर लहे सुख सार ॥रा० ॥ २ ॥ फल उपजावु बनु एहयो रे,यावे वहुने रे जोग ॥ तो महोटो गुण निपजे रे, सं नारे बदु लोग ।। रा० ॥ ३ ॥ सेवक तेडी एम नरो रे, ए फल वावो सुनाम ॥ चोकी करो नित्य एहनी रे, एह तुमारई काम ॥रा ॥ ४ ॥ वाव्यु उत्तम चाडी रे, जतन करंतां रे तास ॥ दिन केतेश्क निपन्यो रे, सुंदर आंबो रे खास ॥ रा० ॥ ५ ॥ यात सुणी फल फूलनी रे, रीज्यो राय अपार ॥ दान दीये रखवालने रे, रहेजो तुम दुशियार ॥ रा० ॥६॥ रात दिवस रहे पोपता रे, केड न मृके लगार ॥ देववशेरे एक रातमां रे, नूमि पड्युं फल सार । रा० ॥ ॥ दीतुं प्रजाते ते मेनके रे, फल परिपक्क रसाल ॥ नजरें का जइ रायने रे, नृपं लाएँ ततकाल ॥ रा० ॥ ७ ॥ तेडी पुरोहितने दी रे. ययो मनमांहे खुशाल ॥ घर जातेणं ते वावग्युं रे, ते पहोतो तर काल ॥ ॥ ॥ ॥ वात तुणी विलखा थयो रे, रायें धरयो मन शोच ॥ हा दा अकार्य कम आयु २, करे मनमांदे यालोच ।। ग ॥ १० ॥ ए विपस्दाज ने सही २, कोई वैरी मुश काज ॥ मूत्युं प्रपंच करी हा रे. गखे नदि श्राज ॥ ग ॥ ११ ॥ वेदोरे तुरन उतावला रे, काटो एदनी कंद ॥ कोपीयो राय शाम को हुना तबसो मतिमंद ॥ रा० ॥ १५ ॥ सेवक ले कुवारने ३. धापा दो नणरे स्थान मूल उद्दी पाटीयो रे, दा हा कीकाम ॥ २० ॥ १३ ॥ या समे रोगी कोटी नगरे, जीवितची निविंग ॥ विध
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२६७ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. फल जाणीने आवीया रे, मृत्युने काजें आसन्न ॥रा० ॥ १४ ॥ पक्क अपक्क ते वावरे रे, के फल फूल ने पान ॥ मंजर के जहण करे रे, रोग गयो वव्यो वान ॥रा ॥ १५ ॥ अनतरूप धारी थया रे, देखीने चिंते हो नूप ॥ अहो विपरीत सहकारनुं रे, दीसे ए का स्वरूप ॥ रा०॥ १६ ॥ जन सामान्यने गुण थयो रे, वेदनो जाण विपन्न ॥ एम चिंती चर तेडीयो रे, पूरे हो तेह राजन्न ॥ रा०॥ १७ ॥ शुं फल चूंटयु ए हा थथी रे, के पडीयुं स्वयमेव ॥ स्वामी पडधु अमें लावीया रे, साच कहूँ नरदेव ॥ रा० ॥ १७ ॥ वात सुणी राय चिंतवे रे, नूड़ पडे विषनाव ॥ - कोश्क जीव तयो थयो रे, तेणे धिक्जाति अनाव ॥रा ॥ १७ ॥ हा हा में अविचारिने रे, की, अकारिज एह ॥ रोपें अमृततरु बेदीयो रे, .. मूर्खमांहे दुं रेह ॥ रा० ॥ २० ॥ यतः ॥ सुगुणमपगुणं वा कुर्वता कार्य जातं० ॥ शोच घणो मनमां धरे रे, जेम जेम सांजरे वात ॥ विण परी दें क्रिया करे रे, तेहनें एह दृष्टांत ॥रा ॥ २१ ॥ ढाल नणी दशमी सही रे, चोथे खमें रे एह ॥ राम कहे नर ते जला रे, काज विचारी' करे जेह ॥रा ॥ २२ ॥ सर्व गाथा ॥एए॥ श्लोक तथा गाथा ॥१६॥
॥दोहा॥ ॥ जेम अपरीक्षित काजथी, शोच लह्यो तिण राय ॥ तेम अपरें कर, नहिं,कहे वत्स सुण नरराय ॥१॥ कथा कहेतां ए जली, वीजो पहोर व्यती त ॥ वत्स वव्यो आव्यो तदा, उर्जनराज विनीत ॥२॥ चिंते राजा चित्त मां, वत्स कही मुझ वात ॥ पण इणें कारिज नवि का, श्राव्यो एहनो घ्रात ॥ ३ ॥ तेहने पण तिमहिज कयुं, हा कही जग्यो ताम ॥ यायो जपाडो वव्यो, नृपनें करे सलाम ॥ ४ ॥ कां रे कारज नवि कयुं, ते कहे बंधव दोय ॥ जागे वे माहाराज मुज, किहांथी चिंतित दोय ॥ ५ ॥ ते माटे कांई कहो, वेला निर्गम थाय ॥ नहिंतर सांजल साहिवा, कटुं. कथा सुखदाय ॥ ६ ॥ राज दुकम टू नतो, कहो कथा सुविवेक ॥3 जैन धवसर जाणि तब, कहे कथा धरि टेक ॥ ७ ॥
॥ढाल अग्यारमा॥ ॥सहीयो मोरी राजलियो जीम वधाइखे ॥ ए देशी ॥ वाहाला स्वामी ॥ देव नरतमां उपतुं, राजपुर नवर महंत रे ॥ वा ॥ पर्वत उपरें
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श्रीशांतिनाथनो रास खंक चोथो, २६ए अति जलु, लोक बसे धनवंत रे॥१॥ वा ॥ वात विचारी कीजीयें, जेम लहीये यशोवाद रे । वा ॥ यविचायुं कारज करे, जनमां लहे थ पवाद रे ॥ २ ॥ वा वाणा शत्रुदमन नामें नलो, नरपति अति विकराल रेवारत्नमाला रलियामणी, राणी अति सुकुमार रे ॥३॥वागावापा एक दिवस वेगे सना, राजकुली त्रीश रे॥वा॥ एक बटुक धाव्यो तिहां, कनो दे धाशीप रे ॥४॥वागावाव्यग्रपणे नाल्यो नहिं, सना विसर्जी ताम रे । वा० ॥ अमहर स्नान कयुं नृपें, गयो देवसेवा काम रे ॥ ५॥ वा ॥ वा ॥ फूल थाणी मुह यागलें, बटुकें कस्यां तिहां नेट रे ॥वा देवसेवाने कारणे, रायें निहाल्यो मीट रे ॥६॥ वा ॥ वा० ॥ पूढे नक तुं कोण ठो, ते कहे सुण अवनीश रे ॥वा॥ नामें शुभंकर विप्र लु, यज्ञ दत्त सुत शिरे ॥७॥ वा ॥ वा ॥ वासी थरिष्ट पुरनो सही,नव नव देश विनोद रे ।। वा० ॥ जोतो यहां आव्यो प्रनु, देखी पाम्यो प्रमोद रे ॥॥ वावादेखि विनीत सोहामणो, दिलमांहे रीज्यो राय रे ॥वा ॥ निज पासें ते राखीयो, गुगथी धादर थाय रे ॥ए ॥ वा ॥ यतः ॥ शूरस्त्यागीविनीतश्चा, कतन्नोदृढसोहदः॥ विज्ञानी स्वामिनक्तव, सर्वत्र जनते यशः ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ वा ॥ गुण देखी गौरव करयो, अंतेवर थादेश रे 11 वा० ॥ विश्वासी जाणी करी, अंतर नहिं लवलेश रे ॥ १० ॥ वा ॥ । वा० ॥ एक दिवस पुर उपवनें, श्राव्यो एक मृगराज रे ॥ चा० ॥ व्याध कहेणधी नीसम्यो, नृप चतुरंग ले साज रे ॥११॥ वा ॥ वा ॥ फोज चढी चिटुं दिशि खडी, चढी कुंजर नरसिंह रे वागावेतो गुनंकर थागलें, अंकुश ले थवीद रे॥१२॥
यावा ॥धाव्यो उद्यान उतावलो, नरपति मृगपति पास गवाणा नृप ऊपर हरिश्रावियो, उछलतो श्राकाश रे॥१३॥ वाmon ताम गुनंकर तिवे, रखे करे स्वामिविनाश रे ॥वाणा अंकुश मुरपमा पीने, कीवो सिंहनो नाश रे ॥
रवा० ॥ वा०॥ नृप शुभंकरने फहे, सई न कोई एन रे ॥ वा० ॥ मुज चिंतित ए सिंद्ने, वचमा हरिण यो जहरे ॥ १५॥ वा ॥ चा०॥ ए हातां तें माहरो, सतु नृपमां यश वाद ॥ वा० ॥ कीधो कमी तो एम सन्नी, बटुक कहे तज विरपवाद रे ११०॥ गजयनने कारण, में निहलो हरिएन रे ॥वाot निजगकर्षन चिंतव्यो, सण साहिब गुणगेह रे ॥१३॥ वाचा ॥ तुम
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२७०
१६७ ,
शहरिया ॥ १४ ॥
फल जार्ण अपक्क ते
गयो वल दो जूप १६ ॥ चर ते
थथी
नरदे
को
.. ...11 AISA
...ania
जैनकथा रत्नको प्रजाव ए जाणवो, जे अंकुशे हरिघात गलें, नृपें टाल्यो उत्पात रे ॥१७॥ वादेखीने ऐ, नहिं त्रीजो हां कोय रे ॥वा॥ चप ॥ र न होय रे ॥१पावा॥ यतः॥ षट्कर्णोनियो एम विकर्णस्य च मंत्रस्य, ब्रह्माप्यंत न गवति ॥छूटयं कहे जो मंत्र ए, जेदाशे जनमाय रे ॥ वासा स्तरशे इण वाय रे ॥२०॥वा०॥वा०॥ कवि सोप्युं गुफ रे ॥ वा० ॥ वाहिर नेद लहे नहि,प्राएं ॥ वा० ॥ वा ॥ वात सुणी राय हर्षीयो, ग्रही वा ॥ सैन्य समीपें धावियो, वरत्यो जय जयका ढाल नगी अग्यारमी, चोथे खमें उदार रे ॥ वाण नहिं, धन्य तेहनो अवतार रे ॥३॥वाणासर्वगार
॥दोहा॥ कहे गुनंकर सुनटने, प्रचनो प्रबल प्रताप ॥ परग सवल संताप ॥ १ ॥ वात सुणी चित्त चमकिया, हो धहो जुजवल स्वामी, सहू वखाणे संत ॥ दिर नएी, वाजंते वाजिन ॥ पुरमांहे यश विस्तर ॥३॥ नगरमांहे उत्सव दु, चोके चोक ए नरपति हण्यो, रहेको जग यख्यात ॥ ४ ॥
॥ ढाल बारमी ॥ ॥ देशी आने लालनी ॥सना विसर्जी हो राय, था लाल ॥ पटराणी पायें पडे जी ॥ १ ॥थ साहिब नर शिरदार ॥ था ॥ वात कहो हेजें ह उत्सव माहाराज, नगरमांहे बहु आज ॥ प्यारे । जो घणो जी॥३॥ कहे वासम सुण नार, सार साल ॥ याज में हरि दणियो सही जी ॥४॥ करे सस्नेह ॥ नीके लाल ॥ को न करे ते में कयूं वो वसवंत. कोइ नहिं दृढचित्त ॥ प्यारे लाल ।। 4
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श्री शांतिनायनो रास खंग चोथो.
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पास्यो रे ॥ नृप नमतो तरथ्यो घणुं, वड हेवन जड़ वीशाम्यो रे ॥ सु० ॥ १० ॥ मनमां श्वे नीरने, वडशाखाहूंती हेते रे ॥ करता जल विंड जहुँ, मनमां एम चिंत्युं वेठे रे ॥ सु० ॥ ११ ॥ शाखाविच काबिल नसुं, वर्षा ऋतुनुं जल एह रे ॥ नाजन करीय पलाशनुं, जरी पान करूं सस्नेह रे ॥ ॥ ० ॥ १२ ॥ तिम करी जल पीवा जिस्ये, थयो नृपति उजमाल रे ॥ वट पंखी एक प्राचीने, करथी ढोल्युं ततकाल रे ॥ सु० ॥ १३ ॥ यइ वि लखो नरराजीयो, फरि नरीयुं ते जलपात्र रे ॥ तेम वली ढोल्युं पंखीय, नृप चिंते एह कुपात्र रे ॥ सु० ॥ १४ ॥ कोप्यो राय कशा यही, मन चिंते त्रीजी चार रे || घ्यावे तो मारुं सही, न करूं हवे हील लगार रे ॥ सु० ॥ १५ ॥ जल यय नाजन धर्खु, कर एकें पंखी विमासे रे । कोप्यो राय ए मारशे, नचि मूके विश्वा चीड़ों रे ॥ सु ॥ १६ ॥ पण मुऊ मरण जनुं इहां, नहिं मरण ननुं भूपालो रे ॥ ए जीव्ये बहु जीवशे, मुफ जेवा केइ कंगालो रे ॥ ० ॥ १० ॥ धन्य घरा जिहां एहवा, पंखी पण ते उपकारी रे || प्राण विगारे पारकां, ते जीव ती बनिहारी रे ॥ सु० ॥ १८ ॥ पत्रभाजन नरी जब पीये, तब ध्यायते नाख्यं उमाडी रे | पंखी कशाघातें हणी, नृप रीज्यो हे पाठी रे ॥ सु० ॥ १५ ॥ फरी पलाशनी पुट धरखो, जलविंड तिहां थी या रे || पडतां देखी चिंतवे, ए कौतुक सरिखुं लागे रे ॥ सु० ॥ १० ॥ वटशाखा जोवं चटी, तस्कोटर अजगर मातो रे || खतो गरल भु सी गजे, ते जोइ तिहांची नागे रे ॥ सु० ॥ २१ ॥ ए में पीधुं होत जो, तो मरत सही इस गामो रे ॥ जुड़े पंखी उपगारीये, अहो शुं कीधुं ए कामो रे || सु० ॥ २२ ॥ प्राण कस्यां श्रलखामणां, पण मुऊने ए उगायो रे || शान करी थावी घणी, पण मूढ हुं न रह्यो वायो रे | सु० ॥ २३ ॥ हा हा महोदुं पाप ए, मुक पापीने यावी लाग्युं रे || एह हवे कैम टूट को मुऊ मन ययुं कांगुं रे ॥ ० ॥ २४ ॥ एम मन शोक करे णो, तस सेना यात्री रे ॥ हर्पित थ पनि देखीने, afa बात की समजाची में || सु० ॥ २५ ॥ स्वस्य यर नरवर चलो, परवीन साथै लेई रे ॥ पुर याने चंदने, नस तनसंस्कार करेईरे ॥ जताजति यात्रियों नृप मंदिर ति दिलगी रे | नए निःकारण मुक वीरो रे || ३ || २३ || प्राथ
० ॥ २५ ॥
नृप
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जोडी ऊनो रही, पण कालविलंब करकम चढा
वारमा जागे थडे, व
२७२ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. तव, न थयुं नृपर्नु काज ॥ १ ॥ निजमंदिर जणी चालीयो, थाष्यो कीर्ति. राज ॥ कर जोडी आगल रह्यो, तव बोले नरराज ॥ ॥ कीर्तिराज सुण माहरूं, होशे तुझ्थी काम ॥ ते कहे हुँ सेवक किस्यो, जो न कहें काज तुज स्वामि ॥३॥ लेश्याव्य ऊतावलो, देवराजनुं शीश ॥ दुकम चढा वी शिर चल्यो, दीये नृपति आशीष ॥ ४ ॥ कालविलंब करी प., था व्यो नरपति पास ॥ कर जोडी ऊनो रही, एम करे अरदास ॥ ५ ॥ मुज, वंधव नागे अने, त्रले समरथ धीर ॥ केम हणाये माहरो, देवराज चड वीर ॥ ६ ॥ तिणे प्रस्तावें कीजगुं, ए तुमचो आदेश ॥ पण हमणां मुफ ने कहो, कोई संबंध उपदेश ॥ ७ ॥ नृपति कहे कोक तुमें, करो अपूरव वात ॥ कीर्तिराज कहे सांजलो, स्वामिन् एक अवदात ॥७॥
॥ढाल तेरमी॥ ॥ काया कामिनी वीनवे ॥ ए देशी।कीर्तिराज कहे सुणो, जरतें महाँ पुर नाम रे ॥ शत्रुजयानिध राजीयो, राणीनाम प्रियंगु अनिराम रे ॥२॥ सुगुण सनेहा एक वातडी॥ ए आंकणी ॥ अवधारो धंतर्यामी रे ॥ साचे - करीने जाणजो, मोरा साहिब कहुँ शिर नामी रे ॥ सु० ॥ २ ॥ एक दि. न ते नृपनी सजा, देशांतरथी नर आव्यो रे ॥ अश्वरयण धागल परयो देखी रायतणे मन जाव्यो रे ॥ सु० ॥३॥ चिंते नृप सोनागियो, ए. वारु तुरंगम दीसे रे ॥ रूप जिसी गति जो दुवे, तो महारं मनडुं हीसे रे ॥ सु० ॥ ४ ॥ यतः ॥ जवोहि सप्तेः परमं विनूपणं, त्रपांगनायाः कृशता तपस्विनः ॥ हिजस्य विद्येव मुनेरपि दमा, पराक्रमः शस्त्रवलोपजीवि नाम् ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ राय तुरंगम सज करी, पलाण उपर मंमावी रे ॥ गति विज्ञाननें जोयवा, गयो वाहिर ते दोडावी रे ॥ सु ॥ ५ ॥ सेन्य । सहू पूंठल रयुं, नृप यदृश्य थयो क्षणमाय रे ॥ सामंत चिंतातुर यया, । कहे ते नर धावी त्यांय रे ॥ सु० ॥ ६ ॥ वक्रशिदित ए अश्व ने, मुने कहे वीसरीयुं रे ॥ नक्ष्य जलादिक ले। करी, नृपपू सैन्य नीसरीयु रे । ॥ सु० ॥ ७ ॥ वेग जोइने वालवा, वलगा खेंची नरनायें रे ॥ तव पवन । परें दोडीयो, राख्यो न रहे जोर सायें रे । मु० ॥ ॥ उबंधी बद्ध भूमि का, नृप थाक्यो वलगा महेली रे॥ अश्व उनो रह्यो ततदणे, थयो शांत सनावें वेली रे ॥ सु०॥ ए ॥ नृपें पलाए उतारीयुं, हय जोड लही मृति
IndianRKAILamuON
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श्री शांतिनाथनो रास खंम चोथो. २७३ पाम्पो रे । नृप जमतो तरप्यो घj, वड हेतल जइ वीशाम्यो रे ॥४०॥ १०॥ मनमां के नीरने, वडशाखाहूती हेतु रे॥ करता जल विंड लडं, मनमा एम चिंत्युं वेते रे ॥ १०॥ ११ ॥ शाखाविच काबिल नयं, वर्षा स्तुनुं जल एह रे ॥ नाजन करीय पलाशनु, नरी पान करुं सस्नेह रे ॥ ॥॥ १२ ॥ तिम करी जल पीवा जिस्ये, थयो नृपति उजमाल रे ।। वट पंखी एक थावीने, करथी ढोट्युं ततकाल रे ॥ सु०॥ १३ ॥ थइ वि लखो नरराजीयो, फरि जरीयुं ते जलपात्र रे ॥ तेम वली ढोल्युं पंखीये, नृप चिंते एह कुपात्र रे ॥ सु०॥१४॥ कोप्यो राय कशा ग्रही, मन चिंते त्रीजी . चार रे ॥ यावे तो मारु सही, न करूं हवे ढील लगार रे ।। सुप॥ १५ ॥ .जल अर्थ नाजन धयुं, कर एकें पंखी विमासे रे ॥ कोप्यो राय ए मारो, नवि मूके विशवा बीशे रे ॥ सु०॥ १६ ॥ पण मुफ मरण नखं हां,नहिं मरण नहुँ नूपालो रे ॥ ए जीव्ये बदु जीवो, मुज जेवा के कंगालो रे सु०॥ १७॥ धन्य धरा जिहां एहवा, परवी पण ते उपकारी रे ॥ प्राण गारे पारकां, ते जीव तणी बलिहारी रे ॥मु०॥ १७ ॥ पत्रनाजन नरी जिव पीये, तब श्रावते नारव्यु उमाडी रे॥ पंखी कशाघातें हणी, नृप रीज्यो
तो पाडी रे ॥ सु० ॥रए । फरी पलाशनों पुट धस्यो, जलविंड तिहां श्री श्यागें रे ।। पडतां देखी चिंतवे. ए कौतुक सरिखं लागे रे ॥ मु०॥ २६ ॥ बटशाखा जोउ चटी, तस्फोटर थजगर मातो रे ॥ सूतो गरल मु स्वयी गले, ते जोइ तिहाथी नाठो रे ॥सु० ॥२१॥ ए में पीधु होत जो, तो मरत सही जण ठामो रे ॥ जून पंखी उपगारीये, अहो ' कीg मकामो रे ॥ सु० ॥ २२ ॥ प्राण करयां अलवामणां, पण मुऊने एवं उगाग्यो रे ।। शान करीयाची घणी, पण मृढ हुं न रह्यो वायो रे ॥ तु० ॥ २३ ॥ दा हा महोटुं, पाप ए, मुफ पापीने यावी लाग्यु रे ॥ एह हो केम टूटलं, को मुफ मन थयु काय रे ॥ ७ ॥ २४ ॥ एम मन शोक करे घणो, तस पंवत सेना यात्री रे । दर्पित था पति देखीने, समि गात कती समजावी रे ॥ १० ॥ २५ ॥ सस्य च नरवर चल्यो, पंग्लीशय साधे तेरे ॥ पुर उद्याने चंदने, तन तनसंस्कार करें रे॥ म ॥ २५ ॥ दे जातांजनियागियो. नृप मंदिर यति दिलगीरो रे ।। ना पाहे सिरश नहिं एनि:कारण मुज बोगरे ॥ तु० ॥ २३ ॥ प्राण
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. पोताना अवगुणी, मुफ जीवित वहालुं कीg रे ॥ ते वहालो नवि वीसरे, मुफ चित्तहुं चोरी लीधुं रे ॥ सु॥ २७ ॥ एहवा उपकारी जणी,में प्राण थकी चूकाव्यो रे ॥ एम वल वलतां रायनें, मंत्रीश्वर मति सममाव्यो रे ॥ सु० ॥ श्ए ॥ शोच किशो गतवस्तुनो, एम ग्रथांतर प्रकाश्यु रे ॥ वि न विपाद मटे नहि, पंखी गुण मनडुं वास्यु रे ॥ सु० ॥ ३० ॥ एम थ विमास्याथी घणो, ते नूप पड्यो पस्तावे रे ॥ तेम अवर पण एहवा, कारजथी सहि उःख पावे रे ॥ सु ॥ ३१ ॥ चोथे खमें तेरमी, ढालरामविजयें परकाशी रे ॥ सुयश महोदय ते लहे, जग जे करे काम वि' मासी रे ॥ सु० ॥ ३२ ॥ सर्व गाथा ॥३एका श्लोक तथा गाथा ॥२०॥
॥दोहा॥ ॥ कीर्तिराज जब कहि रह्यो, तव प्रनातनां तूर ॥ वाज्यां अति आनं द नर, प्रह गमते सूर ॥१॥ वंदीजन जय जय कहे, मंगल पाठ जवंत ॥ चिरंजीव तुं साहिवा, महोटा महिपति संत ॥ २ ॥ कीर्निराज मंदिर गयो, मन चिंते माहाराज ॥ एकचित्त चारे सही, चिंतित न कह्यु राज ॥ ३ ॥ जल ले दासी तदा, धावी दातण काज ॥ पावन करिगुनवेप धरि, वेगे आवी समाज ॥ ४ ॥ मो बागल यावी कहे, कर जो डी देवराज ॥ दुकम होय तो ढुं कहूँ, वात अपूरव याज ॥ ५ ॥रीप नयो राजा तदा, कीधी मुखनी शान ॥ नृप कोप्यो दीसे थडे, समज्यां सदु अनुमान ॥ ६ ॥
॥ ढाल चोदमी ॥ ॥ ढुंगाकी लकरी हो रसीया गांव गंगीली ॥ ए देशी ॥ हो रढीयाला राजन रीप न कीजें ॥ रीप न कीजें लालन रीफ धरीजें ॥ दो रढी० ॥ ए थांकणी ॥ गुण बोडी अवगुण नवि लीजें, वात सुणीने शाबाशी दो दीजें ॥ हो ॥१॥ बांहे ग्रह्यानी प्रनुजी लाज धरीजें, थवगुण होय तो एकांत कहीजें ॥ हो० ॥ साहिवकुं रे हम दास नतीजे, सेवा हो करतां दिलमां कांइन जीजे ॥ हो० ॥ ॥ नेह न तोडो साहिब वात न ताजी, मो पर दीसे इतनी क्युं इतराजी ॥ हो । गुनह न कोई कीयो में तुमचो, चारों वांधवमांहे दोप न यमचो ॥ हो ॥३॥ बात कही रे सवि मामी मंमाणे, वात पिशावनी निसुणी राणे ॥ हो० ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम चोथो. १७५ राजन सर्पना खेम ने दोय, जो नवि मानो तो नजरेंजी जोय ॥ दो० ॥४॥ यापी देखाच्या रे यहि दोय जाग, रायना मनमां रे कपन्यो राग ॥ दो० ॥ राजन विपसंक्रम जय जाणी, तन फरस्युं रे मुफ मात ए राए। हो ॥ ५॥ टलीया यंतर द्रमतमजाला, विकस्यां रे हृदय कमल ततकाला ॥ हो० ॥ तूगे राय विचारे मनगुं, एह उत्तम नर रार यतनद्यं ॥ हो० ॥ ६ ॥ अहो नपकारी उपर थयो रोपी, मुज जे वो जग कोइ न दोपी ॥ हो ॥ अहो एहना वांधव गुणवंता, कहेवा कहा मुऊन दृष्टांता ॥ हो ॥ ७॥ एह न मारयो ते ययुं घj सारु, राज दे व्रत से सधारूं ॥ हो० ॥ कहे परिवारने चार ए बंधु, गुणमणि रयण अगाध ए सिंधु ॥ हो० ॥ ॥ कुलदेवीयें एह धंगज दीधा, मुफ श्रपुत्रियानां वांवित सीधां ॥ हो ॥ राज्य स्थापी रे देवराज कुमार, सुथो ढुंलेश संयमनार ॥ हो । ए॥ कहे परिवार पडखो 4 च रात, चारित्र दोहिलं वय कोमल जात ॥ हो० ॥ कहे राजा मुज पूर्वज पहेला, पलित यया विण निसख्या बहेला ॥ हो ॥ १ ॥ पाम्या हो शिवपद हुँ मंदत्नागी, कटुकविषय ऊपर रह्यो रागी ॥ हो० ॥ हवे निों मुझ संयम लेवो, राज्य कुंवर देवराजने देवो ॥ हो ॥११॥ तद नंतर गुन दिन निरधारी, राज्य उत्र्यां देवराज विचारी ॥ हो ॥ पद युव राज वत्सराजने दीई, पुण्यं वांछित कारज सीधुं ॥ दो० ॥ १२ ॥ एहवे अवसर नंदन वनमां, श्रीदन सूरि धाव्या वाहाला रे मनमां ॥ हो । बनपालक जय राय वधाव्यो, मन मानी ते वधामणी पायो होगा। लेई परिवारने बंदण चाव्यो, मुनि नमवानी वेला मनमांहे माल्यो हो॥ धन्य दिवस मुजधाजनी वेला, प्रनु तुम दर्शनयी लहि लीला ॥ दी० ॥ १४ ॥ गुरु वंदी वेतो मन खां, मुनिदेसण नितुणे रे एकांत ॥ हो । चोये हो वा दाल चोदनी सारी, रामविजय कहे सुणो नर नारी 11 ॥दो० ॥ १५॥ सर्व गाथा ॥ ४२०॥ लोक तथा गाथा ॥२०॥
॥दोहा॥ __॥ योग्य जाणीने पर्वदा, दीये गुरुजी उपदेश ॥ नविक जीव दग्ने हिये, नांजे सकल कजे ॥ १ ॥
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
|| ढाल पन्नरमी ॥
॥ रंग बे जी रंग बे जी रंग बे जी राज ॥ ए देशी ॥ रहो ज्ञानमांहे रंग रली रंगरली रे, धर्मध्यानमांहे रंग रली रंग रली रे ॥ ए यांकी ॥ दुर्जन ए नर जब तुमें पायो, हाखो किदां लदेशो वली रे | लहेशो वली रे ॥२०॥ ॥ १ ॥ पुजलनाव विभाव ए टालो, साधो ए सहज दशा जली रे ॥ ५० ॥ २० ॥ २ ॥ क्ों हो वासित मनडुं रे वाली, करो किरिया गुणगुं मली रे ॥ गु० ॥ २० ॥ ३ ॥ एक दिवस संयम गुण साधे, धगुन कर्म जाये टली रे || जा० ॥ २० ॥ ४ ॥ ते परिणाम यशुद्धने त्यागें, या उजमा ल महावली रे ॥ म० ॥ २० ॥ ५ ॥ साधनयोगें एसाध्यनें लहेवा, पुण्ययोगें पाम्यो रली रे || पा० ॥ २० ॥ ६ ॥ या साधक हवे वाधक मूकी, पांच प्रमाद ए निर्दली रें ॥ यव नि० ॥ २० ॥ ७ ॥ कुमति कुना री संग निवारी, सुमतिवधू वरो निर्मली रे ॥ व० ॥ २० ॥ ७ ॥ होवो पटकाना पीयर सुधा, कां नव खोवो तो धनी, रे ॥ खो० ॥ २० ॥ || श्रीदत्त मुनि वाणी सुणी रोज्यो, मुनिपद कमल नर्म लली रे ॥ न० ॥ २० ॥ १० ॥ कहे नृप दीक्षा दीयो व मुने, योगदशा सुधी कली रे || सू० ॥ २० ॥ ११ ॥ रामविजय कहे धन्य ते मानव, मोह न जाये जेहने बली रे ॥ जे० ॥ २० ॥ १२ ॥ दोहो ॥ कर जोडी मुनिने कहे, जित शत्रु नूपाल ॥ न ययुं वचन पिशाचनुं, कारण कोण कृपाल ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ सालुडामां मोतीडो वन रहीयो ॥ ए देशी ॥ कहे मुनिवर सुल नूप रे || सूरिजन ॥ वैर न कीजें कोइगुं ॥ वैश्यने वंशे उपनी, रूपवती सु कुमाल रे || सु० ॥ वै० ॥ १ ॥ गोरी तुऊ घरणी दुइ, योवन रूप रसाल रे ॥ सू० ॥ तु मन मानेती घणुं, सद्रुमांहे शिरदार रे || सु० ॥ यवर श्र देखाई करे, पण ताहरो बहु प्यार रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ २ ॥ हांरे कोइक कर्मना दोपut, as दोनागण तेह रे ॥ सु० ॥ दीवी हो न गमे तुमने, मूक्यो तेहशुं नेह रे || सु० ॥ वै० ॥ ३ ॥ मनमांहे चिंते मानिनी, मुक मूकी जरतार रे ॥ सू० ॥ यवर सहूने यादरे, धिक् माहरो व्यवतार रे ॥ ॥ सू० ॥ वे० ॥ ४ ॥ मन वैराग्यें वालीएं, ज निजवापने गेह रे ॥ सु तप ज्ञानपणे करी, मरी थड़ व्यंतरी तेह रे ॥ सू० ॥ वे० ॥ ५ ॥ जव संजारी व्यापणे, संक्रमी सर्प शरीर रे ॥ सू० ॥ पेठी हो तहारा जव
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श्री शांतिनाथनो रास खंग चोयो. नमां, करवा तुमने पीर रे ॥ सु० ॥ वे ॥ ६ ॥ मार्स ए पूरवकंतने, परहरी पापीय एवं रे ॥ सू॥ वर ने जण जृनां नो हैं, मत बांधो ए ते ण रे ॥ सू० ॥ वे ॥ ७ ॥ एहवे तुज कुलदेवीये, करीव पिशाचर्नु रूप रे ।। स्० ॥ तुझ कट्यागने कारण, जपाव्यु ए स्वरुप रे ॥ सु० ॥ ० ॥ G॥ बात सुगी देवराजजी, टाब्यो तुझ अपाय रे ॥ सू० ॥ नाती हो देवी तेजयी, सवतो पुण्य सखाय रे ।। सू० ॥ वे ॥ ॥ वात सुपी नर राजीयो, कहे मुनिने कर जोडि रे ॥ सू० ॥ कष्ट गयुं मुफ जाग्यथी, हवे संयमनो कोट रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ १० ॥ कहे मुनि देवापुप्पिया, हए लावणो जाय रे ॥ सू० ॥ गयो पाठो आवे नहिं, धर्मे ढोल न खटाय रे ॥ व ॥ ३०॥ ११ ॥ यतः ॥ अऊं कल्लं परं परारि, पुरिसा चिंतीय अच संपनि ॥ अंजतिगयं व तोयं, गलतमा न पिवंति ॥ १ ॥ मासुध ग्रह ज० ॥ २ ॥ लोच कीधो वेद नेदयी, यहे संयम व्रतनार रे ॥ सू० ॥ धन्य धन्य सदु मुख उबरे, ए महोटो अणगार रे ॥ सू० ॥ वे ॥१२॥ गुमशिदा दिये तेहने, संघ चतुर्विध साख रे ।। सू० ॥ व्रत सीधां विस्तार जो, अनुनय रस मन राख रे ॥स० ॥२०॥ १३॥ नावि कथानक नेहने, नांवे गुस् हितकार रे ॥ सु० ॥ मगधे गजगृही बसे, शेत धनाव दमार रे ।। स ॥ ये ॥ १५ ॥ धारिणी तस घरणी तपा, कुंवर चार सुजाण रे । सू० ॥ धनपाल धनदेव धनपति, धनरहित तेम जाण रे ॥ सू० ॥ 4 ॥ १५ ॥ ते चिढुंने परणाविया, बारे बहू सुविचार रे ।। स० ॥ व विचारे विनमां, कुाग यश गृहनार रे ॥ सू० ॥ वे॥१६॥ ताम परीक्षा कारण, सजन जमाडी संच रे ॥ सु० ॥ सदु सावं चिद्धने टीया. शालि तमा कण पंचरे ॥ ॥20॥ १ ॥ मातेवार याप जो. पदीय विचारं नाम रे ।। सू० ॥ ससरोजी घेता यया, गुंगरख्या
कामरे ॥ मू० ॥ २० ॥ १७ ॥ अदाली नान्वी दिया, बीजीय खाधा नंद रे॥०॥ त्रीजीयें व गांपच्या, चोचीय बंधवगेह रे ॥ १० ॥ म ॥ १ बायाश्री साध्या पाणा, पंचम वर जो ॥१ ॥ पुन पिन कण मागीया, विलखीबदर जे ॥ ३० ॥ २०॥ ना ला मान्य ना. हान जना तामन पारा निण गंधण काम को बनासरे ।म ॥२३॥ र ओसरच्या नेने. सोप्या -
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१७७, जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ' हो सघलो माल रे ॥सू०॥ वृद्धि करी तेणें सदु शिरें, या चोथी सुकुमार रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ २२ ॥ नलिया जोगिया रस्किया, चोथी रोहिणी नाम .. रे ॥ सू० ॥ एह उपनय मुनि ऊपरें, गुरुजीयें दीधो ताम रे ॥ ॥ वै॥ २३ ॥ शेठ सुगुरु दीदित वढू, कण पंचक व्रत जाग रे ॥ सू० ॥ संघ स्वज :न मिलावडो, नारख्या ते उखरखाण रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ २४ ॥ केश करें . श्राजीविका, व्रत उलें अविनीत रे ॥ सू० ॥ के व्रत पाले मजलां, प्रति वोधी न शकंत रे ॥ सू० ॥ वै ॥ २५ ॥ वज्या वदुने बूजवे, रोहिणी सम मतिमंत रे ॥ सू॥ तेह परें विस्तारजो, व्रत गिरुया गुणवंत रे .. ॥सू॥ वै ॥२६॥ श्रीजिन वीरतणे समे, दोशे एह संबंध रे ॥सू॥ धन . झानी परकाशीयो, सुगी थया सदु दृढ संध रे ।। सू० ॥ वै ॥२७॥ शीख . लेश देवराजनी, मुनि विचरे उजमाल रे ॥ सु० ॥ संयम साधि अतिनलो, . कर्म कियां विसराल रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ २७ ॥ अनुक्रमें केवल पामीने, ' नृप साध्युंअरिहंत रे॥०॥ सिह यया जिहां सहजनां, शाश्वत सुरक अनंत रे ॥ सू० ॥ वे ॥ ए ॥ श्री देमंकर जिनवरें, जाख्यो ए अवदात रे .. ॥ सू० ॥ परखी लीजें हो प्राणीया, धर्मरयण एकांत रे ॥ सू० ॥ वैए ... ॥ ३० ॥ प्रथम अहिंसा तिम मृपा, स्तेय विषयनो त्याग रे ॥सू॥ परि .. ग्रह विरमण जाणीने, जे करे ते माहानाग रे ॥ ॥ वै० ॥३१॥ जिनवाणी निसुणी घणां, प्रतिव्रज्या जविवंद रे ॥ सूप ॥ संयम देशविर ति धरे, नइक गुण थानंद रे ॥ सु० ॥ वे॥ ३२ ॥ वज्जायुध जिन वां दीने, धर्म तणो लेलान रे ॥ सू० ॥ निज नयरीयें याविया, पाले रा. ज्य अदन रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ ३३ ॥ चोये खमें पन्नरमी, ढाल कही जि. नवाणी रे ॥ सू० ॥ रामविजय कहे सांजली, करो यातमहित नाणी रे। ॥ सू० ॥ वै ॥ ३४ ॥ सर्व गाथा ॥ ५६७ ॥ श्लोक तथा गाथा ॥२१॥
॥ दोहा ॥ ॥ संघ चतुर्विध स्थापियो, बदु साधु परिवार ॥ देमंकर थन्हिंतजी, पुहवी करे विहार ॥ १ ॥ हवे वसायुध राजियो, न्यायरीत चालंत ॥ वरी वश कीधा सवे, गुणमणि रोहण संत ॥२॥ अन्यदिन यायुधशा ।। लामां, चक ऊपन्यु सार॥असाही उत्सव करी,साध्या पट खंम सार ॥३॥ विजय नबुं मंगलावती, वरती सबने थाण ॥ लाख चोराशी गज तुरी
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श्री शांतिनाथनो रास खंम चोथो. २७॥ लख चोराशी निशाण ॥ ४ ॥ चोसन सहस यंतेवरी, रुपे रंन समा न ॥ जनपद सहस वत्रीश पति, वत्रीश सहस राजान ॥ ५॥ श्री बजायुध चक्रधर, वेग सनामकार ॥ तिरा अवसर जे नीपन्यु, ते निसुणो अधिकार ॥ ६ ॥
॥ ढाल शोलमी ॥ ॥ वृंदावनमां रे नाय पधारीया जी ॥ ए देशी ॥ इरा अवसर रे तिहां एक श्रावीयो जी, खेचर 5जते भंग ॥ सुण मंगलावती विजयना साहिया जी, शरण ग्रां तुज चंग ॥ १ ॥ प्रनुजी मुझ अनाथने उ
रो जी, कहे ननवर कर जोडि ॥ मरण समो जय जगमां को नहिं जी, हवे मुज बंधन ठोड ॥ ॥ २ ॥ एहवे भावी रे पूढे खेचरी जी, , खड्ग यही करमाहे ॥ वली तस पू विद्याधर परवडो जी, श्राव्यो गदा करें माहि ॥ प्र० ॥ ३ ॥ कहे विद्याधर चक्रायुध सुणो जी, ए पापीनी गात ॥ सुकाठ विजयमां वेताढा बमे जी, शुक्ला पुरी गुन ख्यात ।। प्र ॥ ॥ ॥ दन नरेश्वर विद्याधर तिहां जी, तेहनो ढुं सुत वायुवेग ॥ मुफ सुकांता कुरखनी अपनी जी, शांतिमती गुणदेग ॥ प्र० ॥ ५॥ एक दिवस में विद्या दिधली जी, प्रति इस नाम ॥ गइ मणिसागर पर्वत साथवा जी, साधे करि मन वाम ॥ प्र०॥ ॥ ८ ॥ विद्यासाधन करतां श्रावीयों जी, एविद्याधर ताम ।। रूपं मोह्यो पुत्री मुज हरी जी, लो जो घटनां काम ॥ ॥ 3 ॥ पुत्रीनक्तिये रीजी देवता जी, तुष्ट था तणि वार ।। नातों रे तिहाथी ए ऊतावलो जी, श्राव्यो इहां निधार ॥ ॥ ॥ तिना नवि दी। में पुत्री नदा जी, कडे धायो ९ वाज ॥ राजन् मृको यपराधी जागी जी, नहिं मृई माहाराज ॥ ॥ श्रमिलायी पुत्री मिलनंगना जी, करचो पहनों में अंत ॥ अवधि निदाने रे बजार विनु जी, परवनव निग्नेत ॥ ॥॥ १० ॥ कडे प्रतियां धने कारण नुमें रणों जी. नुगः पुत्री हरी जेद् ॥ पूज्यनयनों नेद न
यो हां जी, सांगली नदुजन पद ॥ ११ ॥ निज मनु हानी नाणी बरतीयानी, गया गया सावधान र उपयोगने बजाय सारे जी. गुप्ता नमें मांगीने कान || पोचे सौ रे राज. प.
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. १७G जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
हो सघलो माल रे ॥सू॥ वृद्धि करी तेणें सटु शिरें, थश्चोथी सुकुमार । रे ।। सू० ॥ वै० ॥ २२ ॥ उनिया नोगिया रस्किया, चोथी रोहिणी नाम । रे ॥ सू० ॥ एह नपनय मुनि ऊपरें, गुरुजीयें दीधो ताम रे ॥सू०॥ वै॥ २३ ॥ शेठ सुगुरु दीदित वढू, कण पंचक व्रत जाण रे ॥ सू० ॥ संघ स्वज न मिलावडो, नारख्या ते उखखाण रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ २४ ॥ केश करें। धाजीविका, व्रत उलें अविनीत रे ॥ सू० ॥ के व्रत पाले मजलां, प्रति । वोधी न शकंत रे ॥ सू० ॥ वै ॥ २५ ॥ ज्या वहुने बूमवे, रोहिणी । सम मतिमंत रे ॥ सू ॥ तेह परें विस्तारजो, व्रत गिरधा गुणवंत रे ॥ ॥ वै ॥२६॥ श्रीजिन वीरतणे समे, होशे एह संबंध रे ॥सू॥ धन ज्ञानी परकाशीयो, सुणी थया सदु दृढ संध रे ॥सू०॥वै ॥२७॥ शीख - लेश देवराजनी, मुनि विचरे नजमाल रे ॥ सू० ॥ संयम साधि अति जलो, कर्म कियां विसरात रे ॥ सू० ॥ वै ॥ २ ॥ अनुक्रमें केवल पामीने, नृप साध्युं अरिहंत रे॥॥ तिच थया जिहां सहजनां, शाश्वत सुरक अनंत रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ २ ॥ श्री देमंकर जिनवरें, जांख्यो ए अवदात रे । ॥ सू० ॥ परखी लीजें दो प्राणीया, धर्मरयण एकांत रे ॥ सू० ॥ वै० । ॥ ३० ॥ प्रथम अहिंसा तिम मृषा, स्तेय विपयनो त्याग रे ॥सू॥ परि ग्रह विरमण जाणीने, जे करे ते माहानाग रे ॥ सु० ॥ वै० ॥ ३१ ॥ .. जिनवाणी निसुणी घणां, प्रतिबूज्यां विद्वंद रे ॥ सू० ॥ संयम देशविर । ति धरे, नक गुण आनंद रे ॥ सू० ॥ वै॥ ३२ ॥ वज्जायुध जिन वां । दीने, धर्म तयो तेइ लान रे ॥ स ॥ निज नयरीये आविया, पाले रा। ज्य अदंन रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ ३३ ॥ चोथे खमें पन्नरमी, ढाल कही जि । नवाणी रे ॥ सू० ॥ रामविजय कहे सांजली, करो यातमहित जाए रे । ॥ सू० ॥ वै ॥ ३४ ॥ सर्व गाथा ॥ ४६७ ॥ श्लोक तथा गाथा ॥२१॥
॥दोहा॥ ॥ संघ चतुर्विध स्थापियो, वहु साधु परिवार ॥ देमंकर अरिहंतजी, पुहवी करे विहार ॥१॥ हवे वजायुध राजियो, न्यायरीतें चालंत ॥ वेरी वश कीधा लवे, गुणमणि रोहण संत ॥ २ ॥ अन्य दिन यायुधशा सामां, चक्र कपन्यु सार॥अहाही उत्सव करी,साध्या पट् खेम सार ॥३॥ विजय नखं मंगलावती, वरती सघले आण ॥ लाख चोराशी गज तुरी .
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श्री शांतिनायनो रास खंग चोथो.
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लख चोराशी निशाण || ४ || चोसव सहत अंतेवरी, रूपें रंन समा न ॥ जनपद सहस वत्रीश पति, वत्रीश सहस राजान ॥ ५ ॥ श्री वजायुध चक्रधर, वेग सनामकार || ति व्यवसर जे नीपन्युं, ते निखुषां अधिकार ॥ ६ ॥
॥ दाल शोलमी ॥
॥ वृंदावनमां रे नाथ पधारीया जी ॥ ए देशी | इस अवसर रे तिहां एक यात्रीयो जी, खेचर भूजते थंग || सुए मंगलायती विजयना साहिया जी शरण यसुं तुक चंग ॥ १ ॥ प्रभुजी मुऊ अनाथने व रोजी, कहे ननचर कर जोदि ॥ मरण समो जय जगमां को नहिं जी, वे मुक बंधन वोड ॥ प्र० ॥ २ ॥ एवे यावी रे पूर्वे खेचरी जी, वह यही करमांहे ॥ वल्ली तस पूठें विद्याधर परवडो जी, थाव्यो गदा करें सादि ॥ प्र० ॥ ३ ॥ कहे विद्याधर चक्रायुध सुणो जी, ए पापीनी वात ॥ सुक विजयमां वैताढ्ये वसे जी, शुक्ला पुरी गुन रख्यात ॥ प्र० ॥ | | | दत्त नरेश्वर विद्याधर तिहां जी, तेहनो हुं सुत वायुवेग ॥ मुक्त सुकांता कूपनी कंपनी जी, शांतिमती गुणदेग || प्र० || ५ || एक दिवस में विद्या दिवली जी, मइति इण नाम ॥ गइ मणिसागर पर्वत साधना जी, साधे करि मन ठाम ॥ प्र० ॥ ॥ ६ ॥ विद्यासाधन करतां यात्रीयो जी, ए विद्यावर ताम ॥ रूपे मोह्यां पुत्री मुऊ हरी जी, जो जो टनां काम ॥ प्र० ॥ ७ ॥ पुत्रीनकिये रीजी देवता जी. तुष्ट थ शिवार || नागे रे तिहांथी एकतावलो जी, श्राव्यां इहां निर्धार ॥ प्र० ॥ ८ ॥ तिनवि दीवी में पुत्री तदा जी, केहें धायो हुं व्याज || राजन को अपराधी जी जी, नहिं मुकुं माहाराज ॥ प्र० ॥ ५ ॥ धनिवापी स्त्रीनिंगनां जी, करवो एहनो में अंत || अवधि निहा बजार वितु जी, पूरनय विनेत ॥ प्र० ॥ ॥ १० ॥ कड़े प्रतियो धने कारण कुणी जी, तुक पुत्री घरी जेद ॥ पूरयनयनों ने न जी सांगतो तुजन एक ॥ प्र ॥ ११ ॥ निदानी जाणीवी भी. यया सुवा सावधान || देउपयोग जासुन हे जी तुप शुभे मामीने कान ॥ २० ॥ चे दात य
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२० जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. शोलमी जी, नवि सुणो वात रसाल ॥ रामविजय कहे धन्य उपगारीया जी, वजायुध रे नूपाल ॥ प्र ॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥ ४ ॥ २१ ॥ ..
॥ ढाल सत्तरमी॥ ॥ मलं रे सुहावा नयणडे ॥ ए देशी ॥ वात सुणो वैरागनी, कहे वजा : युध नरदेव ॥ वाहाला ॥ पूरवनव संबंधथी, होवे राग वैरागनी टेव ॥वा ॥ १ ॥ वात सुणो वैरागनी ॥ए आंकणी ॥ ऐरवतें जंबुद्धीपमा, एक वंध्य पुर नामें गाम ॥वा०॥ वंध्यदत्त राजा जलो,करे धर्म तणां गुन काम ॥वा ॥वा॥॥राणी सुलदाणा कूरखनो, एक तनय नलिनकेतु सार ॥वा॥मावि त्रने वहालो घj, नरयोवन कांति अपार ॥
वावा ॥३॥ तेहज नयर • माहे वसे, एक धनमित्र सारथवाह ॥ वा ॥ श्रीदत्ता नारी नली, दत्त ।
सुत जनम्यो उत्साह ॥ वा ॥वा० ॥ ४ ॥ यौवन वय परणावियो, तेह । मनोहर रूप निधान ॥ वा ॥ कन्या नामें प्रनंकरा, सवली अति सुंदर वान ॥ वा ॥ बा ॥ ५ ॥ जर यौवन नामिनी था, मन्मथ वसवाद् धाम ॥ वा ॥ प्रीतमसाथै प्रेमनी, करे क्रीडा अति अनिराम ॥ वा ॥ वा० ॥ ६ ॥ एक दिन मास वसंतमां, लेइ नारीप्रनंकरा साथ ॥ वा ॥ दत्त ते वनमांहे यावीयो, करे क्रीडा जलसंघात ॥वा ॥वा ॥७॥ देवकुंवर देवांगना, मार्नु उतरियां आकाश ॥ वा० ॥ दंपती दोय दिला मल्या, विरु एह विपयनो पास ॥ वा ॥ वा ॥ ७ ॥ तब राजकुंवर तिहां आवियो, तेह नलिनकेतु तिण गय ॥ वा ॥ देखी प्रनंकरा मोहि । यो, मन अटक रह्यं तिहां जाय ॥
वावा॥ए॥ मृगनयनी मनमोहनी, . मनमांहे वसी ते.आय ॥वा॥ शुद्धि बुद्धि सवि नूली गयो, रह्यो कुमर त्यां । लगन लगाय ॥वावा॥१॥ कामातुर सवलो थयो, तेणें लगा मूकी। दूर ॥वा०॥ विकल करे मागास जगी, ए प्रेमपयोनिधि पूर ॥वावा ॥ ११ ॥ यमुक्तं ॥ विकलयति कलाकुशलं, हसति शुचिं पंमितं विडंवयति ।। अधरयति धीरपुरुपं, ऐन मकरध्वजोदेवः ॥ १ ॥ कृशः कागः ॥ ॥ पूर्वढाल ।। योवनगर्वित राजगुं, कुल शील न कीय विचार ॥ वा० ॥ ते ह प्रनंकरा अपहरी, आव्यो गृह राजकुमार ॥वा० ॥ वा० ॥ १२ ॥ पियु तस टलवलतोरह्यो,अहोअहोजुजोरनी वात ॥वा॥ धींगो परधन नोगवे, लंत खाये दे लात ॥
वावा ॥१३॥ जुलम इस्यो जाणी करी,
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श्री शांतिनाथनो रास खंग चोयो. २१ चढ़ लोक थयां दिलगीर ॥ वा ॥ जोर न चाले रायगुं, तस विरह कंत अधीर ॥ वा ॥ वा० ॥ १४ ॥ हा हा प्रनंकरा कामिनी, तें अध
तुं की, केम ॥ वाहाली ॥ विरहव्यथामा नारखीयो, विसायो नवरस प्रेम ॥ चा० ॥ वा ॥ १५ ॥ एक दिन दन्न उद्यानमां. मुनि केवलझान दिणंद ॥ बाहाला ।। बांटीने निसुणी देशना, मन पाम्यो परमानंद ॥ वा ॥ वा० ॥ १८ ॥ देशन मुणी घरे धावियो, करि दानादिक शुनधर्म ॥ वा ॥ श्रायुःदयें चवि ऊपन्यो, फल विजयमांहे निज कर्म ॥ वाण ॥ वाम् ॥ १७ ॥ महंइविक्रम बेताब्यमा खेचर नृपति बसवंत ॥ वा० ॥ तास तणे कुनै उपन्यो, नाम अजितसेन गुणवंत ॥ चा0 ॥ वा० ॥ १७ ॥ कमला दो तस कामिनी यइ.हवे नलिनकेतु कुमार ॥वा० ॥ पितरतुं राज्य सदी करी, करे क्रीडा अनेक प्रकार ॥ चा० ॥ वा ॥ १ ॥ प्रनंकरामु रंग', नुख माणे रात ने दीस ॥वा०॥ वेगं सातमीतूमिका, एक दिन मन धरिय जगीग ॥ बावा ॥२०॥ पंच वरण बादल थयां, सोहे वावती रंग बनाव on नजरें निहाले दोय जणां, थयो कोतुक ख्याल जमाव ॥ बा ॥ वा० ॥ २१ ॥ ययां विसरात ते तताण, पवनें दल नारख्या दर ॥ वा ॥ स्वोपम एम देखिने, मन ग्रान्यु चराग्यनु पूर ॥वा ॥ ॥ वा० ॥ २२ ॥ धन योबन सवि काग्मुि, जेवं वादन, स्वरूप ॥ वा० ॥
तो जुर पहने कारणं. श्यां श्यां करे प्राणी विरुप || वा० ॥ या ॥ २३ ॥ पुगल एनवि कारिमा, सवि अस्थिर ए तन धन जोग । चा०॥ मावा करीने सत्या. दंनीनां नामिनी जोग । वा० ॥ वा ॥ २४ ॥ में मलिन यो निज श्रानमा, परतमणी केरे गग ॥ बा ॥ इणिक ए तुने कारण, बटु पाप का निनीय ॥ बा० ॥ वा० ॥ २५ ॥ पतिन घणों मऊ जन्मो, गुण तारे विए जिन माग ॥ वा ॥ दो संचम नप भादम, नरवा नवन्धुि यानाग | मारवा ॥ २६ ॥ निज मुन राज्य जयी करी. मंका मनुने द्वाय ।। गा॥ नलिन तुमन यादव, विन ritपा मुनिनाय ||
बागा l शाम दमयंती साधुजी, गि मग नंगार बा ॥ दो दिन श्राबार, मान पाने में चावार || ना ॥ २६ } नहिं मना निज देनी पद काय त
गोगा पाती बम प कंपनी, प मुनि गया मन
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२२ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. काल ॥ वा ॥ वा० ॥ ए ॥ नलिनीकेतु सिमने नमुं, ढुं कर जोडीने जाल ॥ वा० ॥ कर्मनो कचरो काढीयो, धरिये तस ध्यान त्रिकाल ॥वा ॥ वा॥३०॥ चोथे हो खमें सत्तरमी, कही रामविजयें एह ढाल वा॥ बलिहारी गुणवंतनी, जे राखे हो मनडुं वालि ॥
वावा॥३१॥५१॥
॥दोहा॥ ॥ वली वज्जायुध नृप कहे, प्रनंकरा जे नारि ॥ सुव्रता गुरुणीसंगते, चांशयण तप सार ॥ १ ॥ शुजनावें तप आदरी, मरण लही ते नारि ॥. शांतिमती दुइ ताहरी, पुत्री गुण नंमार ॥ ३ ॥ पूरवनव जरतार ए, य जितसेन ननचार ॥ दीठी विद्या साधती, प्रगट्यो मोह विकार ॥३॥. तिण कारण इण अपहरी, पवनवेग सुण साच ॥ कोप म कर ए कप रें, साचे मारग राच ॥ ४ ॥ शांतिमती तुं. पण निसुणी, मूक्य कोप वि ण काज ॥ वैर नेह जीरण नहिं, एम बोले मुनिराज ॥ ५ ॥
॥ ढाल अढारमी॥ ॥ म्हाने दीधो आइ जी आदेश के, हुँ बडी रामतमें रम्यां हो राज ॥ए देशी॥ निसुणी निसुणी वजायुधनी वात के, बिहु विद्याधर चिंतवे हो राज॥ धन धन एहनुंझान अपूरव जाति के,कर जोडीने वीनवे हो राज ॥ १ ॥ मलिया मलिया थें अमने महाराज के, दिन वलीया हवे माहरा हो राज टलिया टलिया नरम गरीवनिवाज के,में सेवक बां थाहरा हो राज ॥२॥ जांखे जांखे शांतिमती तजिरीप के, पूरव नवना नाथने हो राज ॥खमजो खमजो गुनहो मुफ नूमीश के, जे मूक्यो तुम साथने हो राज ॥३॥ कीयो कीयो विडं राजवीयें मेल के, श्री बजायुध पागलें हो राज ॥ सीधां सी धां मन कीधां नेलसेल के, साजन न रहे मामले हो राज ॥ ४ ॥ वोले । वोले श्री वज्जायुध राय के, सना सङ उद्देशीने हो राज ॥ एतो एहनो पूर - वनव कह्यो जाय के, हवे सुणो आगल वेसिने हो राज ॥ ५ ॥ लेशे लेहो.. शांतिमती ए दीख के, विद्धं विद्याधर' मली हो राज ॥ करशे करशे श्रव गुणने उवेखि के, निर्मल तप रत्नावली हो राज ॥ ६॥ पाली पाली अण सण साथक दोय के, सागर आउ ईशानमां हो राज ॥ होशे होशे इंश वडो । सुरलोक के, गुण गाशे सुर तानमां हो राज ॥ ७ ॥ तेणें अवसरें वायुवेग मुणिंद के, अजितसेन मुनिने वली हो राज ॥ परगट होशे केवल नाण
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श्री शांतिनाथनो रास खेम चोयो. १७३ दिवंद के, श्रावशे इंइ ए मन ग्ली हो राज ॥ ॥ करो करो उत्सव विविध प्रकार के, ईशानेजी ललि लली हो राज ॥ लेई लेई लान पा र के. सुग्लोके जाने वली हो राज ॥ ॥ ॥ इंश तिहांथी उत्तम कुल अव तार के, लहीने दीदा साधो हो राज ॥ करता करतां जय विहार के, गुन गुणठाणे वादो हो राज ॥१०॥ झोधी शोधी कमतयो करि अंत के, शिवलीलाने पामो हो राज ॥ धरो धरशे एहनुं ध्यान सुचिंत के,ते सवि
रवने वामशे दो गज ॥ ११ ॥ दारव्यु दारव्युं पट खंझ केरे नाथ के. श्र वधिज्ञाने बालहे दो राज ॥ सांजली सांजली सयलडो साथ के, हर्ष हिटले बहुलो लहे हो राज ॥ १२ ॥ साचुं साधु तुम्ह ताणू ज्ञान के,का मात्रय दीपक जिस्युं हो राज ॥ कीजे कीजे तास गुणज्ञान के, अवर कोर्नु नहिं इस्युं हो राज ॥ १३ ॥ शांतिमती ने वायुवेग महीश के,
अजितमेन श्रीजो सही हो राज || प्रणमी प्रगमी पाय चक्रीश के, निजस्थानक पहोता वही हो राज ॥ १४ ॥ कहे कडे राज्य दवे नरदेव के. पाने नित्य बहती कला दो गज ॥ कुंवर रुडा सहस्रायुध करे मंब के. विनय गुणं करी धागला हो राज ॥ १५ ॥ सदस्यायुध घरे नाम अपंतीनारी के, तेनी करवं ऊपन्यो हो गज ॥ रुडो रुडो कनकदाक्ति के मार के, नग्योवन वय नीपन्यो दो गज ॥ १६ ॥ परणावी तस कामि नी दोय रसात के, कनक वसंत जोटिवें दो राज ॥ माला सेना पद सुकमार के, ना नयाचे दोडियें हो राज ॥१७॥ सुख चिलसंतां गत ने दोन के, कान गयों केतो वही दो राज ॥ दाल ढारमी चांये खमंजगीदा पं. रामविजय जाखी सदी दो गज ॥ १७ ॥ मर्यगाथा ॥ ५५ ॥ २२ ॥
॥दोहा मोरनी॥ 1 कनकान्ति गुमार, नीनंघाने एकदा ॥ पदोनों गहन मगर, कोटा वाग्नी निनवी ॥ १ ॥ पतनोत्पतन कांत, कोइ नर वीठो मुंग ॥ विदा
नेपन को मुगा कारण किस्युं ॥ ॥ नंद कहे वनादन, यामी मनवाया। पण गुणरयाणाडा, विद्याप एक नतियों ।।।
जाफा, नवी नीची पदं समर कडे परकाम, पर .. नपा ३ ॥ पर अनुमा, पुरा प्रेममा पती ॥ निण स्वाति गा, गिया कुमारने ॥ ॥ ने प्रकानी गनि, विद्या
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२०४ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. साधी कुंवरें ॥ वेदु स्त्रीगुं गुनचित्त, मन मानी मोजें फरे ॥ ६ ॥ जमतो । हिमगिरि ताम, गयो कुमर ते अन्यदा ॥ दीठ विपुलमति नाम, मुनि वि। द्याधर वंशना ॥ ७ ॥ तास चरण प्रणमेवि, प्रिया सहित बहु प्रेममु ॥ वेसे कर जोडेवि, कनकशक्ति बहु विनयशुं ॥ ॥ धर्मतको उपदेश, मुनि । वरजी जांखे नलो ॥ दूरे होय किलेश, शिवसुखनो दायक सही ॥ ए॥ !
॥ ढाल गणीशमी ॥ ॥रे जीन जगत सुपनो जाण ॥ ए देशी ॥ कहे मुनिवर निसुण · प्राणी, कारिमो संसार ॥ ए रूप यौवन पूर जलनु, विसतां नहिं
वार ॥ मनमांहे आशा बहुत धरतो, फरत देश विदेश ॥ धन काज सारो दिवस धावे, धर्म नहिं लवलेश ॥ १ ॥रे जीव चेत चतुर सुजाण ॥ ए
आंकणी ॥ आए माने मोह केरी, जिण कीयो हेरान ॥ प्रपंच पुजल खेल न लहे, ए अनादि पुराण ॥ संयोग एह वियोग साथै, नित्य माने सोय ॥ भ्रम जाल पडियो प्राणीया, युंही गयो नव खोय ॥ रे जी० ॥ ॥ हे गुरू चेतन रूप तेरो, अनंतगुण पर्याय ॥ झदि घटमें प्रगट दीसे, करे सोइ उपाय ॥ निरावरण समाधि जोगी, योगसे चित्त लाय ॥ अानंदघन उपगार तेरो, तुंहि एक सहाय ॥ रे जी० ॥ ३ ॥ करि धर्मवस्तु सनाव जाणी, मोहमिथ्या दूर ॥ ध्येय ध्याता ध्यान एकी,नावथी सुखपूर ॥ नूर प्रगटे विषय विघटे, नेद जाये नासी ॥ यूं गुमधमै साध्य साधन, . । सहज लील विलास ॥ रे जी० ॥ ४ ॥ परजाव पुजन ऊंच कुलमां, रूप ।। लबी विलास ॥ वर कामिनीके नोग सुंदर, वदुरी दासी दास ॥ ठकुराइ चिंतित काम होवे, सवहि माने घाण ॥ धर्मसाधन करत ए फल, आनु । पंगिक जाण ॥ रे जी० ॥ ५ ॥ ज्युं पुण्यसार कुमार पायो, सर्व चिंतित । जोग ॥ वर दिलाधी कीर्ति वाधी, कामिनी संयोग ॥ कहे कनक . . शक्ति कुमार मुनिकों, कहो उनकी वात ॥ कहे ज्ञानी सुन हो प्रानी, पुण्य । सें सुखशात ॥ रे जी॥६॥ ढाल । त्रिभुवन तारण तीरथ पास चिंतामणि रे॥ए देशी ॥ गोपालक पुर क्षेत्र,जरतमां हे दीपतुं रे के॥जरतमाहे दीपतुं॥ सुंदर शोना सार,सवि पुर जीपतुं रे के ॥ स ॥ तिहां धर्मी शिरदार, पुरंदर नामथी रे के ॥ पु० ॥ शेठ वसे गुणवंत, प्रतिको दामथी रे के ॥ प्र० ॥ १ ॥ तस घर पुण्य सिरी इण, नामें पद्मिनी रे के ॥ नामें ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खेम चोयो. २५ प्रीतमा बदु नेद, सुरुप सोहागणी रे के ॥ मु० ॥ गुण सबला संतान, नहिं एक तेहन रे के ॥ न० ॥ एहिज महोटी खोट. चाहे जग जेदने रे के ॥ चा० ॥ २ ॥ पुत्र नणी बदु धाश, स्वजन प्रेरे घणुं रे के ॥ स्व० ।। नवी परणे रखे थाय, प्रिया दिल दृमणुं रे के ॥ प्रि० ॥ कुलदेवी श्राग ल जइ. बेदु एम उबरे रे के ॥ ये ॥ स्वामिनि मुतनी चिंता, एक पण सांगरे रे के ॥ ६ ॥ ३ ॥ कोण करो तुज नक्ति, विमासण ठे घाणीने के ॥ वि० ॥ यो ज्ञान प्रयुंजी. मया कगे श्रम नणी रे के । म ॥ देवी कहे गुण शेत, होडो सुत सुंदर रे के ॥ हो । पुण्य करतां गुणमणि, रोदण नृधरु रे के ॥ गे० ॥ ४॥ हर्पित दूर होत, पणुं मनमा रली रे के ॥ ५० ॥ चिंते मादरी वाजयी, जाग्यदशा वली रे के ना॥ गुण्य तणां करे काज. दयागुण यादरे रे के ॥ १० ॥ दीन दुःखी जे लोक. तेऽने उझरेरे के तं ॥ ५ ॥ पुण्यसिरी कुलदेवी, नारी हेज मांरे के ॥ सं० ॥ एक दिन रयणीममार के सती मेजमा रेके ।। सू०॥ दीत झोतकला. संपूरण चंदनी रे के ॥ पू०॥ विनबियो जड़ शेठ के,
एन लायो नतोरे ॥ सुप ॥ ८॥ होतो पुत्ररतन्त्र, मनोरथ पूरा रे के । म ॥ शेत कहे सुत याव्या, संकट चरशे रे के ॥ २ ॥ दी सही मनमांति, गर्न प्रतिमालना रे के ॥ ग ॥ कालें जनम्यो पुत्र, करे बद्ध वासना के | कर | 3}} उत्सव की अपार, अनेक बधामणरे के 11 १० ॥ नाम धणे पुण्यनार, माती माजन यागां के म० ॥ पति या मनोरथ मार के, मात पिता तणार के । मा० ॥ देखी मुतमुख चंट के, अपनी नमिणारे के द० ॥ ॥ पंच धाव मत कहें, चींटा रहेरेक॥नी ॥ चिरंजीवी सन एम. सह मुखी कदे के ॥ म ॥ पंच चरन थयां नाम, निगाले पाठव्यारे के नि1 सकल कला
न्याम, कनिन्दनिनयों के ॥ 2 ॥॥ ग्त्रलार एशेउ, तणी विहां की सेना रन्ननंदी ज्ञण नाम, नणे विहां गुणजी के
न घर जो बोडा, हे जग ना रे ! हो। मांडो मार हिसार, काने गुणनिती रे ! .. ॥ १८ ॥ चपजपायाची म., पोले यापली . चोर पसार मंगाने. जगडे घ्या
के ME भावना विवाद, परं यमाय चदीक फ॥
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. तिल नवि सांखे बोल के, वोले चडवडी रे के ॥ वो ॥ ११ ॥रीपायो । पुण्यसार, कुमार कहे इस्युं रे के ॥ कु० ॥ रे मुग्धा मुझ साथ, विवाद : करे किस्युं रे के ॥ वि० ॥ यद्यपि तुं गुणवंत, कलावंत पडवडी रे के ॥ क ॥ आखर परण्या पूंठे, पुरुष पग मोजडी रे के ॥ पु० ॥ १२ ॥ पुरुप . पनोता सार, कह्या संसारमां रे के ॥ कण ॥ दासीपरें घरकाज, करिश परिवारमा रे के ॥ क ॥ त्रटकी बोले बोल, चढावी रीपने रे के ॥च॥ कोक जाग्यविशालने, वरिश ढुं ईशने रे के ॥ व ॥ १३ ॥ तुज जेवा कंगाल, घणा जगमा फरे रे के ॥ १० ॥ मुफ जेवी गुणवंती, किमही न
आदरे रे के ॥ कि० ॥ वोल्यो ताम कुमार, वरु जो तुमने रे के ॥ व० ॥ जो करूं किंकरी तुज तो, माने मुझने रे के ॥ मा० ॥ १४ ॥ वोली चट की चम रे, मूरख गुंजवे रे के ॥ मूण् ॥ जोरें अनन्यप्रीति, दंपती केम संनवे रे के ॥ दं० ॥ थयो बहु वार विवाद, हैयाना रोषगुं रे के ॥ है ॥ कुंवर चिंते रीप ए, अवसरें पोपगुं रे के ॥अ॥१५॥जो जो बोले वोल, किहांनी किहां थइ रे के ॥ कि० ॥ विद्यावादनी वातें, वात हामें गई रे के ॥ वा० ॥ ते पुण्यसार कुमार, आव्यो निज घर जणी रे के ॥७॥ मुखपंकज थयुं म्लान, आरति मनमा घणी रे के ॥ आ ॥ १६ ॥ सूतो त्रूटी खाट, जर एकण दिशे रे के ॥ ज० ॥ शेठ पुरंदर जोजन, काज आव्या तिस्थे रे के ॥ का ॥ देखी पुत्रने सूतो, तेकाणे शून्यमां रे के ॥ ४० ॥ पूडे कारण कोण, शुं चिंतो मन्नमां रे के ॥ गुं० ॥ १७ ॥ वात कहे वत्स आज, विचार जे ताहरे रे के ॥ वि० ॥ जीवन प्राणा धार, तुं एकज माहरे रे के ॥ तुं० ॥ पूठ्युं आग्रह जोरें, तदा कहे तात जीरे के ॥ त ॥ रत्नसुंदरी परणावो, मुफ ए वातजी रे के ॥ मु० ॥ १७ ॥ रत्नसार व्यवहारी, नी ए अंगजा रे के ॥ नी ॥ ए परणावे पुष्ट, होशे महारी मजा रे के ॥ हो ॥ तात कहे सुण पुत्र, हजी तुं बाल ठे रे के ॥ ह ॥ तो हमणां शी वात, जण्यानो काल जे रे के ॥ ॥ १५ ॥ यौवन समयें तास, करेगुं विवाहलो रे के ॥ क० ॥ परणाव्या नो अम्ह, घणो वे नमाहलो रे के ॥ ५० ॥ परणवा माटें आम, थाये कां काहलो रे के ॥ था० ॥ नाग्यवती ते नारी. यश जस नाहलो रे के थ ॥ २० ॥ पुण्यसार कहे वात, न मानु ए सही रे के ॥न ॥ ते सा
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श्री शांतिनायनो गास रखम चोयो. २७० थे विवाह, मेलो हमाणां जाने के ॥ में ॥ पनें तुम सायें नोजन, कर हा इंचही रे के ॥ ० ॥ कई पुरंदर कठ, जमी हा कहीरे के ॥ जा ॥ २१ ॥ चोये खेमें ढाल, कही गणीशमी रे के ॥ का ॥ बालप जानी बात, कई। लाकर समीर के ॥ क० ॥ बुध श्रीसुमतिविजय कवि, सेवक विनवे रे के ॥ मे० ॥ रामविजय कहे धन्य, विचारी जे लवे के ॥ वि० ॥२॥ सर्वगाथा ॥५॥ लोक तथा गाया मली ॥२॥
॥दोहा॥ ॥ नोजन करि कन्या पठी. लइ सायें परिवार ॥ शेठ पुरंदर यावीचो, रखनार घरबार ॥ १ ॥ यादर मान दिये घणां, मां श्रासन सार ॥ स्वामी पचाया यांगणे, धन्य श्रमचा अवतार ॥ ५ ॥ कदो स्वा मी कारण किरयु, कहे पुरंदर वात ॥ रत्नमुंदरी तुम सुता, पुण्यसार प्रम जात ॥ ३ ॥ जोडी नली जगती ठे, मेनीनं विवाह || Sग का राण प्राच्या प्रा. मनमा धरि नत्साद ॥ ४ ॥ रनसार कहे तजी, ए नो महान काज ।। तुम कग्यु करुणा करि, मीधां बांठित गज ॥ ५ ॥ देवी नुम सुतने सता, रत्नमुंदरी सार । पुष्प बिना किदांयी मने, पुण्यसार नग्तार ॥ ८ ॥
॥ दाल वीगमी ।। |नेहो नांजी ॥ एदेशी ॥ तात नमी बेठी कन्या, धोने ग परें शाकी ।। ना ना ना पग' टुंएदने, वात एमुक न हावी ॥१॥ नाय
मोजी ॥ दो रेनुनीदने समजायो, यलगा रही जी रयांकानी । जाणोनेवर कोइन, नानजी मुफ परणायो । चरकुंवारी दिनात वारु, पण pra न गायो । नाय० ॥ २ ॥ शेउ पुग्दा चिंते मनमा, जु बोले शो यात्रा | मुगा सुग प्रागा कर पराया, पण खोटा गहना चाला। + !| গান r মা, বাসন মনমান{} গান मुर, मुनने, ला, न मने सम्पनी नानी ॥ ना || || रामार रामा योनजण पीत वाजविटनं यांगने पर मन नापन र समजानीक सभी, तुम तुलन Karnी कन्या महागामा जापनशाना
पानी गायी, विरोधमा एल सुमार
1.
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२७ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. • गें तेडी, जेद सहू समजाव्यो ॥ ना० ॥ ७ ॥ वत्स तुमने ए योग्य न कन्या, वालपणे वाचाली ॥ आगल थापे ए शिर बाणां, एहवी नजरें नाली ॥ ना ॥ ॥ यजुक्तं ॥ कुदेहां विगतस्नेहां, लजाशीलकुलोजि ताम् ॥ अतिप्रचंमां उस्तुंमां, गृहिणीं परिवर्जयेत् ॥ १ ॥ पूर्वढाल । पुण्य सार पुनरपि एम बोले, तात कह्यु ए साचुं ॥ पण परण्या विण मुज पिताजी,वचन ोय काचुं ।नागाणा बुद्धिमंत मनमांहे विचारे,व क न कां हिं पितानो ॥ अवर उपाय करी परणेगु,एम चिंती रह्यो बानो ॥ ना ॥ १० ॥ एक दिन जनकवयणथी नापी, सचोवाइ कुलदेवी ॥ कुरम धूपं नैवेद्य करीने, बहु आदरमु सेवी ॥ ना ॥ ११ ॥ कर जोडी आगल मद मोडी, कनो तन संकोडी ॥ मा ढुं ते पुण्यसार पनोतो, वर दीधो तें कोडि ॥ ना ॥१॥माटे मुज तरुणीनुं वांनित, जब पूरेशो माता॥ तव नतीश हूं इहांथी अलगो, थाशे मुज सुखशाता ॥ ना ॥ १३ ॥ करी प्रतिज्ञा अन्न जल त्यागें, वेतो धरि एकतारी ॥ कहे देवी हलवे तुज होशे, कारजसिदि विचारी ॥ ना० ॥ १४॥ चिंता म म कर मनमा कुँवर, कर पारण पुण्यसार ॥ नोजन कर ले तात अनुज्ञा, गयो निशा लें तिवार ॥ना ॥ १५ ॥ यह निश्चित करे अवशेपित, सकलकला अन्यास ॥ बालपणुं वीत्युं तव यौवन, पाम्यो लील विलास ॥ ना० ॥ १६ ॥ चोथे खमें वीशमी ढालें, रामविजय कहे वाणी ॥ जे संबंध होवे ते नटले,सांनलोओता प्राणी ॥ना॥१॥सर्वगाथा॥१॥श्लोक॥२३॥
॥दोहा॥ ॥ पुण्यसार कुंवर जलो, सकल कलानो जाण ॥ देवयोग वांछित दुन, द्यूतव्यसन सहिनाण ॥ १ ॥ लाग्यो रंग कुसंगनो, जिम उज्ज्वल
पट नील ॥ वासित बातम इव्यने, विसंतां नहिं ढील ॥ २ ॥ उर्जन - संग न कीजियें, जो लहियें सरक दीनार ॥ कीर्ति जाये कुल तणी, मेलो ... होय अवतार ॥ ३ ॥ वायुं मात पिता तणुं, न करे तेह लगार ॥ व्यसन
विलुको ते घणुं, धिक् धिक् कर्मविकार ॥ ४ ॥ लक्ष् मूव्यतुं एकदा, नृप ' वानरण यमूब ॥ निजगृहथी लेइ निसयो, पुण्यसार प्रतिकूल ॥ ५ ॥
पूतकारनुं लाख धन, माथे चढीयुं तास ॥ तेमांहे जइ सोंपियु, श्रा
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श्री शांतिनायनो रास खंग चोथो, ए नृपण उल्लास ॥ ६ ॥ एम धन विणसाड्युं घj, न गणे कोश्नी लाज ॥ द्युत समुं नहिं जगतमां, व्यसन कोई शिरताज ॥ ७ ॥
॥ ढाल एकवीशमी ॥ ॥ नानो नाहलो रे ॥ ए देशी ॥ मात पिता घाणुए कहे रे, पण वास्यो न रहे सोय ॥ धिक् धिक् कर्मन रे ॥ उलंना आवे घणा रे, अहोनिश फरे दोय ॥ धिम् ॥१॥जीवढूंती वाहालोधपो रे, पण थयो वरी समान ॥ धि० ॥ साजन बोलावे नहिं रे, न लहे धादर मान ॥ धि०॥शा एकदिवस नृपें मागीयु रे, नूपण शेग्नी पास ॥ धि० ॥ ज जोयुं आवासमां रे, न लघु चिंते विमाति ॥ धि० ॥ ३ ॥ पुण्यसारे ग्रां ए सही रे, नहिं बीजो लेवणहार धि०॥ गृढ वली अन्यवस्तुनो रे, एह विनाशणहार ॥वि०॥४॥ ए राखण योगो नहिं रे, पुत्ररूपें रिपु एह ॥धि०॥ घरहूंती हवे काढवी रेग्यो एन साथे नेह ॥धि॥५॥ यतः॥ यदर्थ विद्यते लोकेयत्नच क्रियते महान ॥ नेपि संतापदा एवं, पुत्रा हा नवंत्यहो ॥१॥ पूर्वढाल ॥ हाटें पुरंदर यावीयो रे.तिहां श्राव्यो पुण्यसार धिणा पूठी खबर अलंकारनी रे, जिम तिम लव्यो तशी बार ॥ धि० ॥ ६ ॥ कोप्यो होउ कहे इस्युं रे, जा जा सुट गमार ॥ धि ॥ ते नूपण लाव्या विना रे, नाविश मुफ घर चार ॥ धि० ॥ ॥ वचनें तरज्यो ते घणुं रे, निर्दय काली कंठ ॥ धिक ॥ वाहालो पण बेरी थयो रे. काढयो ते उलंठ॥ धि० ॥ ७ ॥ तातवचन सुणि नौसयो रे, पुरवाहिर तेणि वार ॥ धि ॥ सांऊ पड़ी दिन प्राथ म्यो रे, करे मनमाहे विचार ॥ धि० ॥ ॥ दवे किहां जाउं एकलो रे, न लडं मार्गनी शुद्धि ॥ धि० ॥ ग्रहो कुकर्म में शुं कन्यु रे. किदां गई मदारी बुद्धि । धि० ॥ १० ॥ एहवे एक बड देखीयो रे. कोटर बद्ध विस्तार ॥ पि ॥ निर्णय जाणी जायगा रे. पेठो तेद मकार ॥ वि० ॥ ११ ॥ शेव पुरंदर धावियो रे. सात नमे घरवार ॥ धि | जामिनी मंयने रे, पिहां पुनमार कुमार ॥ धि० ॥ ११ ॥ गजनृपागनी चार ता. मनि नखी ग्राम ॥ ॥ में शिक्षाने कारण रे, काढणे ने प्रतिकृत ॥ ॥ १३ ॥यान नागी पिल्लवी घरे, श्राच्यं ददर नगर cि \ मुख देखाडी मुने रे, कुन कादी संध्याप fron तन सुकुमार बानुनी गति दोशे नाम ।
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२ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. धि ॥ वल्लन केम लाजो नहिं रे, ते सुतने निष्कासि ॥ धिम् ॥ १५ ॥ जो तुम्हें काढयो पुत्रने रे, तो तुम्हें के. जावो ॥ धि॥ ते तेडीने माह । रा रे, मंदिरमांहे आवो ॥ धिम् ॥ १६ ॥ एम निब्धो नारीयें रे, . पुत्र संजारी चित्त ॥ धि० ॥ पुरमा जोवा नीसस्यो रे, बिरु मोहनी । रीति ॥ धि ॥ १७ ॥ पियु अंगज घर को नहिं रे, ऐकलडी रहि । नारि ॥ धि० ॥ मंदिर यूनुं देखीने रे, चालो आंसुनी धार ॥ धिo . ॥ १७ ॥ हा घरहूंती नाहलो रे, काढयो में रीसाल ॥ धि कंतें कोप करी घणो रे, काढयो वाल वियाल ॥ धि० ॥ १ ॥ एम य चिंत्यु झुं थयु रे, चिंतातुर चित्तमांहि ॥ धि ॥ कनी उंवर आवीने रे, जो आवंतो नाह ॥ धि ॥ २० ॥ चोथे खंमें एकवीशमी रे, राम । विजय कहि ढाल ॥ धिम् ॥ हवे संबंध पुण्यसारनो रे, सांजलो नदि । उजमाल ॥ धि॥२१॥सर्व गाथा ६२॥ श्लोक तथा गाथा मली ॥॥
॥दोहा॥ ॥ पुण्यसार तिण रातमा, वड उपरें दोय सार ॥ देवी दीती अति नली, तेज तणो नहिं पार ॥ १ ॥ मांहोमांहे वातो करे, निसुणे मांमी कान ॥ साहसिकमां शिरतिलो, पुण्यसार बलवान ॥ ॥ एक कहे वीजीप्रत्ये, सुण वहेनी गुणवंत ॥ रातें एह रमवा तणी, वेला डे एकांत ॥ ३ ॥ बीजी वोले दुवे, व्यर्थ जमे नूमांहि ॥ कौतुक देखीजें किहां, तो जश्ये उत्साहि ॥ ४ ॥ ते वोली सांजल वहेनी, वननि पुर परधान ॥ तिहां निवसे व्यवहारियो, धनप्रवर अनिधान ॥ ५॥ धन वती तेहनी जारजा, तस पुत्री के सात ॥ धर्मसुंदरी नयसुंदरी, काम सुंदरी विख्यात ॥६॥ मुक्तिसुंदरी मनमां वसी, जाग्यसुंदरी जाण ॥ सोना । ग्यसुंदरी सातमी, गुणसुंदरी खुणवाण ॥ ७ ॥ कन्या वरने कारण, धन शेजें वर मान ॥ तंबोदर आराधियो, देई मोदकदान ॥ ७ ॥ प्रत्यद .. थइ बोल्यो निपुण, आजथी सप्तम दीस ॥ लमवेलायें रातमां, धरतो अधिक जगीश ॥ ए ॥ वेदु स्त्रीपू यावशे, शेत तणो एक नंद ॥ ते । परणेो ताहरी, कन्या धरि आनंद ॥ १० ॥ आज दिवस सहि सातमो, .. जय जोवा काज ॥ कौतुक होशे यति नटुं, बहेनी तिहां कणे याज ।।
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श्री शांतिनायनो रास खंग चोथो.
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११ ॥ ए तरु उपर बेसीने, चालीजें व्याकाश ॥ जीव्यापें जोयुं ननुं, पुरीजें मन व्याग ॥ १२ ॥
॥ ढालवावीशमी ॥
॥ नोली नावजजी नावज महारी जात रंधाव्य, सेने मारुजी हो जात मंगावीयो जी ॥ ए देशी || सुणि वाणी जी वाणी सुपि ते पुण्य सार, मनडानी मांहे हां प्रति दर्पित हुई जी ॥ गुणखाली जी गुण खाणी ए देवी रे दोय, भाग्यें मनी मुकने चरिज जुने जी ॥ १ ॥ हवे जोवं जी जोवं रे हवे कौतुक बात, तेह जोनं वल्लनीपुर केहवो जी ॥ जोनं शे उने जी शेठ किस्यो धनवंत, कुमरे विचार कस्यो मन एवो जी ॥ २ ॥ दो देवी जी देवी की हुंकार, तेह वडपादप चाल्यो अंबरे जी ॥ as कोटर जी बडकोटर पुण्यसार, रह्यो रे प्रभुजीनुं समरण करे जी ॥ २ ॥ जो इहांयी जी जो इहांथी पहुं रे निर्धार. तो रे चेतन ताहरी गति श्री दुबे जी || शी चिंता जी रे जी रे चिंता एह योग, मजे तस जब प्रभुजी सहामुं जुबे जी ॥ ४ ॥ ऋणमांहे जी रे कृणमांहे ततकाल, ते चलनीपुर वन वढ प्रावीय जी ॥ दोष उतरी जी रे दोब उतरी देवी सुरंग, नवल free an aratवो जी ॥ ५ ॥ दी चाली जी रे चाली हो रमऊम गत, बात करती हो हसि हमि प्रेमनी जी ॥ तल पूर्व जीरे तल पूर्वे पुण्य सार चालो हो वानो जवतनु तवी बनी जी ॥६॥ लंबोदर जीरे लंबोदर हार, वैदिक परमप तिहां रच्यो जी ॥ सदु मनियां जी रे मनियां हो साजन, नव नव रंगे होरस सबली मच्चां जी ॥ तिहां कम हो जी तहां कुमरी हो सोने ने सात, मनुं सुरलोकयी यसरी कतरी जी॥ति को जी सोह गाये सोहला गीत दर्प हेज लिये बहुलो जी ॥ ॥ मंगनी होजी पनी रे पास, ते नारी जाती देखी रे चिस कम्पं जी ॥ पूर्वपूर्व दीव तेह कुमार, तिरखे दो ग्ढ लागे मतियो जी ॥ ॥ तुम्हें याव जी रे न्यावी महारे यांग थान, रजक तुमने कर जोन जी ॥ इति बोलो जी बोलो श्रम साथ बात कर मद मोडीने जी || : ॥ वैमारी जो दो वैलारी मानक एम निति जी ॥ संबोदरजी को संबो पत्नीति जी ॥ ११ ॥ एम कहने को जीएम
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रए जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कहिने गुज चीर, वसनयुगल तेहने पहेरावियां जी॥ लखमूल्यने दो जीलखमूल्यने अलंकार, सोहे कुंवर सदुने मन नाविया जी ॥ १५ ॥ गुन- . वेला जी हो शुज वेला रे मंमाण, धवल मंगल गाये सुंदर गोरडी जी॥ करमेलो हो जी करमेलो तिहां कीध, परण्यो कन्या साते गुण उरडी जी ॥ १३ ॥ मुज तातें जी हो मुज तातें नटुं कीध, रीप करी जे । मुफ उपर अति घणी जी ॥ नहिंतर मुज जी हो नहिंतर मुफ एह लान, होत किहांथी अचिंत्यो सुखणी जी ॥ १४ ॥ करि विवाहजी हो करि । विवाह मनरंग, वधूसहित ते शेठने मंदिरें जी॥ बहु उत्सव हो जी वदु उत्सव करे इन्य, प्रेमशुं पधराव्या सौध ऊपरें जी ॥ १५ ॥ सिंहास । न हो जी सिंहासन निज कंथ, रहि मुख आगल मनी कामिनी जी॥ कहो वालम हो जी कहो वालम अम अाज, सकल कला शीखी जेह । स्वामिनी जी ॥ १६ ॥ सुपो गोली हो जी जोली सुणो मोरी वात, एह कला मुज मनडे नवि गमे जी ॥ यमुक्तं ॥ अत्यंत विषां नैव, सुखं मूर्ख नृणां न हि ॥ अर्जनीया कलावनिः,सर्वथा मध्यमाः कलाः॥१॥पूर्वढाल ॥ एद पद्यनो हो जी पद्यनो अरथ विचार, करवा दो लागी कामिनी तिण समे जी ॥ १७ ॥ मन चिंते हो जी मन चिंते पुण्यसार, पद रखे जाये गगनें वही जी ॥ जो थाशे हो जी थाशे जी कालविलंब, तो ते देवी उमी जाशे सही जी ॥ १७ ॥ करे कुंवर हो जी कुंवर दिशि अवलोक, तव गुणवंती वोली गुणसुंदरी जी ॥ { स्वामी हो जी देहचिंता उत्पन्न, जे एम जूवो बो चिहुं दिशि फरी फरी जी ॥१॥ कहे एमहीज हो जी एम हीज मुझ मनमांहि, वात सुपी कहे ते निजस्वामीने जी॥ढुंआ, होजी प्रीतमजी तुम्ह साय,प्रेमगुं पाउधारीजें हो कामने जी ॥२॥ अघनमियें होजी रहि अवला एक पास, मनमां करे पुण्यसार विचारणा जी॥ खटिका हो जी एक लखीयो तिहां श्लोक, जारवटें करी सुधी धारणा जी ॥२१॥ यतः ॥ दोहो ॥ किहां गोवालो किहां वनही, किहां लंबोदर देव ॥ श्राव्यो वेटो विहिवसीण, गयो सत्त य परणेवि ॥१॥ पूर्वढाल ॥नामि नीने होजी कुमर कहे रहो दूर,देहचिंता जिम मुक सुखयी दुवे जी ।। गुण सुंदरी हो जी उनी रही तिण वाय, वाट तिहां वालमनी घणी जोवे जी॥२॥चोथे खं हो जी ए वावीशमी ढाल,रामविजय कहे नवि नावें सुपो जी॥ पुण्य उप
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श्री शांतिनाथनो रास खेम चोथो. रए रंदो जीए संबंध रसाल,आगत वात तणो रस वे घणोजी॥२३॥६६॥२५॥
॥दोहा॥ पुएबसार ऊतावलो, याव्यो वटतरु पास ॥ कोटरमा पेठो जई, पाम्यो चित्त उनास ॥ १ ॥ एहवे ते पण देवता, भावी नाग्यवशेण ॥ वड कप र ची चडी, वेती रंग रसेण ॥ ५ ॥ देवशक्तिये ते ममियो, वड अंबर श्रनिराम ॥ तुरत क्षेत्र जइ कतयो, पुर गोवाल बन नाम ॥ ३ ॥ एड्वे शहेर जमी घएं,तेह पुरंदर शेत ॥ थये प्रनातेधावीने, विशाम्योवड हेतु ॥३॥
॥ ढाल वीशमी॥ ॥श्राज रहो रंगमहोलमें केसरीया ॥ ए देशी ॥ रयणी विहाणी रवि ऊगीयो ॥ढुंवारी॥ पुवीय थयो प्रकाश रे ॥ टुं बारी लाल ॥ बोल ण लाग्यां पंखीयां ॥ ढुं० ॥ गयो अंधकार सबि नाश रे ।। ढुं वा ॥ १ ॥ वटकोटग्यी नीसग्यो । ढुं ॥ तब पुण्यसार कुमार रे ।। ९ ।। वस्वानर ण विराजतो ॥ ढुं० ॥ देवकुमर अवतार रे ॥ हुँ ॥॥ सुत देखी दिल नमस्युं । ढुं० ॥ वत्स बत्त कहेतो तात रे । ढुं० ॥ दोडीन भावी म यो । दु० ॥ हरखी साते धात रे ॥ ढुं० ॥ ३ ॥ वत्स तुऊ विण ए यामिनी ॥ ढुं० ॥ वरिणी गइ विकराल रे ॥ हुँ ॥ सूरज परें तुने देखीने ।। ९ ।। मुज मनकज उजमाल रे । ढुं० ॥ ४ ॥ वत्स धाग्यो तुं वातदो ॥ ढुं० ॥ फलियां वांगित श्राज रे ॥ टुं० ॥ में तुऊरीय करी धणी ।। ९ ।। नुज शीवामण काजरे ॥ ढुं० ॥५॥ पती मन पम्तागो पाणु ॥ ई० ॥ तुत विना शून्य संसार रे ॥ ९ ॥ तुम गुहिजेवानी मन्यो । ९० ॥ नमतां प्रदर गया चार रे ।। ढुं० ॥ ६॥ सुत कर जोटी नीनवे ॥ ९ ॥ नवलप महागे बांकरे ।। ९० ॥पगधीमांद में सही ॥ ९ ॥डो नाल्यो शांकरे ॥ १० ॥ ॥ गुना खोजी हवं माद गे ॥ ९० ॥ सुतवल्लल नुमें संत रे ॥ दु० ॥ पुत्र कुपुत्र जगमां दुवे ॥ Kv माविन नजि विहान ॥ ॥ ७ ॥ पुत्र पिता बेदु प्राविया !
॥ बिडे प न माय रे ॥ ९॥ जननीने सुत जमिन्यो ।।। याव्यां प्रांत, नगर ॥ ९० ॥ १५ ॥ सुन लो बनाने ॥ ९० ॥ ने.. पेली मार रे ।। ९ ।। मृत शोना ना बनी ॥ ॥ रिन्द्रां अs काही समजाय ॥ ६ ॥ १ ॥ मान पिना बेदमांनजे ॥ ९० ॥ कने
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रए जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. मांमी सवि वात रे ॥ ढुं० ॥ विस्मय मनमां ऊपन्यो ॥ ढुं० ॥ थहो - . अहो सुत अवदात रे ॥ दुं ॥ ११ ॥ नाग्य जु सुतनुं वडं ॥ ढुं० ॥ एहवी झदि विशाल रे ॥ ढुं० ॥ रातमांहे आवी मली ॥ हुँ । फलियो पुण्य रसाल रे ॥ ढुं० ॥ १२ ॥ कहे पुण्यसार तुम्ह शीखडी ॥ हुँ ॥ कल्पतरुनी वेल रे ॥ ढुं० ॥ वांबितदायक ए दुइ ॥ ॥ मूकी में व्यसननी हेल रे ॥ ढुं० ॥ १३ ॥ आनूपण लद मूल्यनुं ॥ ढुं० ॥ · तनहूंती ऊतार रे ॥ ढुंग ॥ देश द्यूतकारने लावियो । ढुं० ॥ नृपनूपण .
तेशिवार रे ॥ ढुं० ॥ १४ ॥ लइ नृपने ते सोंपियुं ॥ हुँ ॥ शेठ पुरंदरें ताम रे ॥ हूँ ॥ हवे पुण्यसार समाचरे ॥ ढुं० ॥ गृहीनां उत्तम .. काम रे ॥ हुँ ॥ १५ ॥ व्यसन निवास्यां वेगलां ॥ हुँ ॥ थयो सूधो शादुकार रे॥ ढुं० ॥ पितर हैये हरख्यां घणुं ॥ ढुं० ॥ सोंप्यो सवि व्यापार रे ॥ ढुं० ॥ १६ ॥ चोथे खंमें त्रेवीशमी ॥ ढुं० ॥ ढाल कही नित्यमेव रे ॥ ढुं० ॥ राम कहे नर ते जला ॥ ढुं० ॥ वारे व्यसननी टेव रे ॥ ढुं० ॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥ ६७६ ॥ श्लोक तथा गाथा ॥२५॥
॥ दोहा ।। ॥ हवे निसुणो नारी तपो, पूंचल जे अधिकार ॥ गुणसुंदरी पानी वली, आवी कहे विचार ॥ १ ॥ गयो मूकीने नाहलो, धूरत जिम धूतेवि ॥ खोटारे खोटुं कस्यु, चूंमी एहनी टेव ॥ ३ ॥
॥ ढाल चोवीशमी ॥ ॥ राम सीताने धीज करावें ॥ ए देशी ॥ सुणी वात सहू विलखाणी रे, टोलें मती श्वास जराणी ॥ फट जूमी ए युं कीधो रे, कंयने ते जावा दीधो ॥ १ ॥ केड कामगारानी मूकी रे, इण चातें सवली चूकी ॥ तुं तो हती घणुं माही रे, केम गइ एम एवं वाही ॥२॥ कहे वहेनड दूं तो नोली रे, में जाएयो रंग वे चोली ॥ नवि जाशे वाहालो उबेखी रे, दुं तो रही सामुं देखी ॥ ३ ॥अहो आपणी शी गति थाशे रे, कंय विण केम दीहा जाशे ॥ विरहातुर रोवे गाढी रे, ते नवपरिणीता लाडी ॥ ४ ॥ घयो सोर ते महोल मकारें रे,माय ताय याव्यां तिरा वारें ॥ कही वात घऐ दिलगीर रे, मूकी गयो नणदल वीर ॥ ५ ॥ तेह नाखंती घणा अांसु रे. बोले पुण्यसारनी सासू ॥ में गुणवंत जागी आपी रे, परणीने
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श्री शांतिनायनो रास खंग चोखो.
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तं संतापी ॥६॥ रामत रसमा रंगीलो रे, पियुशुं मेव्यो तुम्हें मेलो ॥ तुमें कां न कत्युं कर जाली रे, कंय जार्ज उत्तर याली ||3|| लंबोदर देवें दीधो रे, पण लक्षण ए नहिं सीधां ॥ व्यसनी दीसे ए माठो रे, धानूषण लेई नागे ॥ ८ ॥ कोण चागल वात ए कहिये रे, प्रभु जेम राखे तेम रहिये ॥ कहे जनक सुणो तुम्हें बेटी रे, सबली चूकी गुणपेटी ॥ ए ॥ पण वात करंतां मीठी रे, सहिनाली कांड़ तस दीठी ॥ नाम गम तुमें काहिं जाणो रे, सुक बागल तेह वखाणो ॥ १० ॥ कहे गुणसुंदरी गुण जाची रे, तात बात सुष्णो मुऊ साची । इस दीप तो परकारों रे, लख्युं नारवटे चला ॥ ११ ॥ परनातें वांचगुं जोई रे, नावी होवे ते होई ॥ न खियो ते लेख न चूके रे, ग्रणचिंत्यां प्राणी मूके || १२ || नवि जाये वैरिणी रात रे, दुःखणी थइ वेठीसात ॥ जुवो सुखमां शूल उपायुं रे, क याएं उदयें न्यायुं ॥ १३ ॥ प्रजात समय थये यांची रे, कहे ते गुण सुंदरी राची ॥ गोपालय पुरर्थी यावी रे, परणी गयो ते फरि नावी ॥ १४ ॥ सुप्पो तात ए देवने योग रे, यावी मलीयो ए जोग वेप नरनो मुकने श्रापो रे, बहु साथ संघातें थापी ॥ १५ ॥ ते नगर नगी डुं जावुं रे, पिपुडाने खोली लावुं ॥ पटमासमां करूं काम रे, नहिंतर मुक व दिनुं गम ॥ १५ ॥ लुणी वात पिता मन नावी रे, कन्या नरवेष व नावी ॥ बोजावी सबने साथ रे. हिवडे समरी जगनाथ ॥ १० ॥ गुप् सुंदर सारथवाह रे एम नाम धराव्युं उत्साह || गोपालय पुग्ने मार्ग रे. चाव्या दिवढे घरी राग ॥ १० ॥ केते दिवमें प्यायी रे, छ नया मेरा देवराव || वड् नेटणुं श्रुति बहु साल के नेटयों पुरनो नृपराल || १ || राय रीज्यो दे बदु मान रे. पावे वीडां पान || नजें थाव्या में व्यवहारी रे, दीमो वो मापास नारी ॥ २० ॥ रही श्रम नगरीमां काही रे, व्यापार करो लाही ॥ न करे तुम को तुंकार है, तुम्ह सा पन्यां श्रम प्यार || २१ || एक बार इन्हीं व्यावे, जे काज दो ने ॥ रहे ते नगरीमा रंगें में व्यापार करे सुणी गुणवंत है, प्रायो मनवाने संत ॥ मनिया द
।
सुंदर ने पार || १३ || 5 मांहोममित्रा वाई॥ माता मनमा दरखी में प्रीतम
॥ २२ ॥ एव
पार, प्र निरवी ॥
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ए जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. २४ ॥ चोवीशमी चोथे खमें रे,ढाल पूरण राग अखंमें ॥ कहि रामविजय सुविचारी रे,धन्य ए गुणसुंदरी नारी ॥२५॥सर्व गाथा॥७१३॥ श्लोक ॥२५॥ .
॥दोहा॥ - ॥ रात्रि दिवस नेलां रहे, प्रीति परस्पर जोर ॥ मुख हरखे देखी नजरें, जेणि परें चं चकोर ॥ १ ॥ अम नयरें जलें वीया, सजान त मो सुजाण ॥ तुम ऊपर रीफे घj, अहो अमारां प्राण ॥ ३ ॥ साहूका र तुमें सही, नाम धराव्युं नित्य ।। पण अमचित्त चोरी लियु, चोर परें तुमें मित्त ॥ ३ ॥ मित्र तुमें शहां कणे रहो, मत जाशो निज धाम ॥ फर मावो अम चाकरी, जे तुम होये काम ॥ ४ ॥
॥ ढाल पच्चीशमी॥ ॥ राजेंड़ मुने वहाला लागो ॥ ए देशी ॥ एवं अवसरे हवे सांगलो रे, रत्नसुंदरीनी वात ॥ यौवन आवी अति नली ॥ यौवन यावी
अति नली ॥ एतो कामरमणी सादात ॥ १ ॥ पिताजी हो वात सुणो • मुफ सार॥ए तो गुणसुंदर जरतार ॥ पिता० ॥ महारे अवर नहिं निरधार ॥ पि० ॥ महारं नर्बु रे की, किरतार ॥ पि०॥ मुने न गमे ए पुण्यसार ॥ पि ॥ घणुं गुं कहुँ वारंवार ॥पिणा एहनी याश खिजमतगार॥पिण॥ मुफ न फरे एह विचार॥पिणावा॥ए अांकणी॥नाव लही तनया तणो रे, गुणसुंदरनी पास ॥ रत्नसार आव्यो वही॥र०॥ एतो धरी मनमां नन्नास ॥ पि०॥२॥ ऊठी आसन आपीयु रे,पूब्यु कहो मुजकाज ॥ केम करुणा कीधी इहां ॥ के० ॥अम उपर एवडी आज ॥ पिता ॥३॥ रत्नसार कहे शेवजी रे, तुमगुं हो तनया रे मुज ॥ परणवा इवे यो रे ॥ ५० ॥ एतो करवा वातनुं गुज ॥ पिता ॥ 4 ॥ गुणसुंदर चित्त चिंतवे रे, खोटी हो एहनी रे आश ॥ विदु नारी विवाहथी रे ॥ वि० ॥ एतो केम चाले घरवास ॥ पि० ॥ ५ ॥ यत्किंचित् उत्तर दे रे, वारुं दो । एहने विमास ॥ नहिंतर जे गति माहरी रे ॥ न ॥ एतो होशे ते गति तास ॥ पि ॥ ६ ॥ एम चिंती कहे शेठने रे, जे तुमें कह्यो रे विचार ॥ विण पूढे मावित्रने रे ॥ वि० ।। ए तो न होय कुल आचार ॥ पि० ॥ ७॥ वासी हुँ देशांतरी रे, नवि जाएयुं मुफ नाम ॥ तो गुणवंती. नंदिनी रे ॥तो॥ एतो केम काढी द्योग्राम ॥ पि० ॥७॥ यतः ॥ कुग्राम
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श्री शांतिनायनो रास खंग चोथो.
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वासरस्य शूरमांका निलाषिणाम् || त्रिगुणाधिकवर्षाणां नैव देया एकं न्यका ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ रत्नसार कहे तुं सही रे. पुत्रीयें धाखो चित्त ॥ त्र्यवरनुं नाम न मांजरे ॥ ० ॥ एतो मानो बात एमित्त ॥ प० ॥ ए ॥ यतः ॥ श निरूपैः सा प्रतिा इःखसागरे ॥ या दत्ता हृदयानिष्ट, रमणस्य कुलांगना ॥ २ ॥ पूर्वदा ॥ चाययी तेणें मानीयुं रे, सबल नावीनो योग ॥ माह्या रे महापण करे रे | मा० ॥ एतो घ्यावी मजे ते योग ॥ पिo ॥ १० ॥ उत्सव की प्रति घणो रे, रत्नसारे तेलि वार || परणावी निज पुत्रिका रे ॥ प० ॥ ए तो गुणसुंदरने सार ॥ ११ ॥ सुपो जवि, नियति बडी संसार || मत करजो को प्रकार || सु० ॥ तमें बोलो बोल विचारि ॥ ० ॥ इहां न चले हो कोई उपचार || सु० || एहना व्यवर सखाइ चार ॥ सुनिना एत्रांकणी ॥ पुष्यसार ते जासीने रे, गयो कुलदेवी पास ॥ मात जुई ए गुं पयुं रे ॥ मा० ॥ मुफ महोटी हती तुक व्याय ॥ सु ॥ १२ ॥ दुवे महारे नहिं जीववुं रे, शिर छेदी दीयुं तुक || बोल गय हवे गुंर रे || वो० ॥ मुने कांइ पढे नहिं सुज ॥ सु ॥१३॥ देवी कहे कां व्याकलो रे तुं वत्स याचे एम ॥ रत्नसुंदरीगुं ते कहे रे ॥ रत्न० ॥ मुक्त चिंतित न हुई प्रेम ॥ ० ॥ १४॥ देवी कहे दीधी जिका रे, तेहमां नहिं संदेह ॥ दिए नावी ताहरी रे ॥ सा मम कर मन साहस एह ||१५|| पुण्यसार कहे नवि घंटे में संग्रहवी परनारि ॥ परणी एं सुंदरे रे || प० ॥ नहिं इहां कोई विचार || सु० ॥ १६ ॥ देवी कहे जी एवं रे, सुं समजे नहीं शान ॥ ए नही तहारी बघना रे ॥ || सुक नाख दीये एम ज्ञान || सु० ॥ १७ ॥ माये चटावीने दे नीरे, aaji मा || मन चिंते पुष्पसारजी रे ॥ न० ॥ शुक फलगे मनोरच सार ॥ सु ॥ १८ ॥ यये पंचमी है. दाल एक चिन ॥ गम कहें पीयु नारीनी रे ॥ ग० ॥ हये परगट दो प्रीति ॥ ० ॥१॥ सर्वगाया ॥३३॥ लोक तथा गाया ||२|
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|| ZTET || सुंदरीच चिंतये परगट न
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|| विग्य में कोन जात ॥ १ ॥ mafia टीवी, मेन
नाय ॥ न समाये टासी संपर च ॥ २ ॥ पुचादिर
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जैनकथा रत्नकोष जाग आठमो. चाल्यो तदा, वह्निप्रवेश निमित्त ॥ वात सकल पुर विस्तरी, जलें तेल जिम जत्त ॥ ३ ॥ सुंदर वाला वेशमां, गुणसुंदर मुखफूल ॥ कोकवेराग्यें नड्यो, मरण करे ने कबूल ॥ ४ ॥ जनमुखथी नृप सांजली, शेठ पुरंदर ले ॥ रत्नसार पुण्यसारगुं, आव्या तिहां दोडे ॥ ५ ॥ लोक मल्या लाखो गमे, कहे राजा सुण वत्स ॥ आण किणे तुज अवगुणी, नाखो करि मन स्वस्थ ॥ ६ ॥ म मर म मर वालुया, कां करे न क्षण काठ ॥ तुं माह्यो दूतो घणो, शो ए ताहारो नात ॥ ७ ॥ रत्नसार कहे माहरी, तनुजा अति सुकुमार ॥ कां संतापो तेहने, विसई विरहनी जाल ॥ ७ ॥ जो अपराध तिणें कियो, तो दाखो मुफ कां न ॥ रोप निवारो वालहा, आपो मुमने मान ॥ ए ॥ याण न लोपी माहरी, . नवि कोश्नो अपराध ॥ पण मुज इष्ट वियोगर्नु, मनमां मुःख अगाध । ॥ १० ॥ एम कहेतो मुख वाहिरें, नाखतो निःश्वास ॥ मतावलगुं या वीयो, कुमर चितानी पास ॥ ११ ॥
॥ ढाल बच्चीशमी ॥ ॥ सखणी योगिणी रूडी वे ॥ए देशी ॥राय विचाघु सहिए मरशे, जाव्यो न रहे जोर ॥वालेसर कोई एहवो डे, एम कहे करतो सोर ॥१॥सितावीयें कोइ राखो बे,अरे हां वालेसर ते मुक दाखो वे ॥एआंकणी ॥ जेह कहे ते काज करुं ढुं, कां मरे मुफ हजूर ॥ वाट जोतां हो एहनां, मावित्र रह्यां ते दूर ॥ सि ॥ २ ॥ अहो एहनुं मुखफूल सलूj, अहो एहनी तनुकांति ॥ विण कारण ए कां मरे एहनी, कल न पडे गति ब्रांति ॥ सि ॥ ३ ॥ नागर कहे पुण्यसार के एहनो, साचो अंतर मित्त ॥ वात माने ए एहनी, साहिव निसुणो सुप वित्त ॥ सि० ॥ ४ ॥ राय कहे पुण्य सार जश्ने, समजावो अविलंब ॥ मित्रनु कुःख एम देवीने, शा माटे करो ठो विलंब ॥ ति ॥ ५ ॥ पुण्यसार पासें जर तेहनी,एम करे अरदास ॥ या सुखलीला मूकीने, मरवानी कां करे आश ॥ सि ॥ ६ ॥ तरुणा पणे तुम रूप धनोपम, ठो संपद यावास ॥ मन मूकी मुफ यागलें, पुरखनु कारण प्रकाश ॥ लि० ॥ ७ ॥ सा कहे एहवो कोई न कहिये, जस आगल उरखवात ॥ हृदयथी कंठे याविने, पाठी फरी हृदयें जात ॥ सि ॥ ७ ॥ कहे पुण्यसार ए ताहरी चेष्टा, हास्य तणी करनार ।
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श्री शांतिनायनो रास वंम चोयो. मुफ पागल पढदो किस्यो कहो, जिम लद्धं सुरक अपार ॥ लिए ॥ ५ ॥ कहे प्रीतमने पुण्यपनोती, ते तंजलावी शलोक ॥ तुमें लरव्यो किंवा नहिंसाचु कहाँ मृकी शोक ॥लि॥१॥ कहे पुण्यसार सही में लखीयो. सा कहे ते ई नारी ।। गुणसुंदरी नामें तुम जे. मूकी तोगग हार ।। मि० ॥ ११ ॥ कंत तुमारे कारण सबलो, ए में कीच प्रयास ॥ वालेसर मृकी मने, जला श्राव्या तुमें इहां नासि ॥ लिए ॥ १२ ॥ करि प्रसाद मगावी श्रापो, मुझने दवे स्त्रीवेप ॥ कुंवर वात सुगी इली, मनमा समज्यो मुविशेष ॥ सि० ॥१३॥ वेप मगायो दो घायी वारू, विनतानो तेणि वार ॥ नन पहेग्यो शोजे नली, मान रंन तो श्रवतार ॥ लि० ॥ १४॥ रम जम नूपुर पाय मनोहर, कर चूडी उर दार ॥ तिलक बन्यु गिर झोनतुं, गोरी गुणनो नंमार ॥ सि ॥ १५ ॥ कहे पुएबमार नरपति धागल, वह चंदे नुम नेद् ॥ देखी सद्ध विस्मय लयु, श्रदो कोतुक मदाटुं एक ।। सि ॥ १८ ॥ ए कोण रुपवती श्रति रुडी, गमा रमा अनुहार ॥ सारयवाह केम यइ, रही ए नयर मकार ।। सि० ॥ १७ ॥ बात सद्ध पुएक्सार प्रकासी, धुरहूंती यामूल मानली लगुने उपन्योन्यानंद, ए वात अमूल्य ॥ नि ॥ १७ ॥ पाय लागी सासु सलगने, दीये एम ने प्राशीत ||घर चहनी जोडली. चिरंजीवो काडिवरीत सि ॥१॥ कुलवंती तुज पाखें कही कोण. गोधी तीये जरतार | ए चनुगड ताद री. नाशिदीतीअम नलार ॥ रि० ॥२०॥ ग्ननार वितखो या मनमां, वीनचियों पुर नृप ॥ मुगा पुत्री परणी एणं, तंदन, दवं कवण स्वरुप । लिए ॥ १ ॥ गय करे इहां मुंपूत, ते पण एहनी नारि ॥ जे माटे एभनी प्रिया, परणी प्रेम अपार ॥ नि ! ७५ ॥ एषदशा नृयों गम जार्गी, नांगी नायव तंत ॥ रखडेटरी जाग्जा, पुएपमार त्रयों सन गत || fre ||२२|| स ब धाच्या निज मंदिनकरन्या जय जर कार ॥ मान पिना दररयां पाणं, नवग्वनी पर मार लि ॥ २५ ॥ गोगामी दालें, श्री सुमतिविनर गुम गमविजय कम एपी पदोंन मन मयत जी frel 0123120
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गजनी, प्राट या नियंत मान र अंगना,
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
यावी तिहां गुणवंत ॥ १ ॥ सासु ससराने नमी, वे कर जोडी वाल ॥ मंदिर यावी कंतनें, पाय पडे ततकाल ॥ १ ॥ मोहनगारा नाहजी, dinी म निर्धार ॥ कोण नरोंसे मूकीने, इहां याव्या याधार ॥ ३ ॥ जाणी प्रीति तुमारडी, नर कोइना नवि थाय ॥ यमें घहेली गोरडी, जे रहियें एमवाय ॥ ४ ॥ पण पीयु सायें रूपएं, कीधे केही सिद्धि || शुं महापण तुम प्रागलें में अवला निर्बुद्धि ॥ ५ ॥ दोहा सोरठी ॥ पियु तुम साथै मान, अमने कर नवि घटे | पग पहेरी जें निदान, ला खेणी पण पानही ॥ ६ ॥ रत्नसुंदरी मनमांहे, चिंते इणे साधुं कयुं ॥ पुरुष वडा जगमांहि, गर्व कस्यो घेली थइ ॥ ७॥ महोटा बोल म बोल, कल न पडे कर्मनी ॥ माणस फूटा ढोल, ताणी वात करे जिके ॥ ॥ ढाल सत्त्यावीशमी ॥
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८ ॥
|| देशी चंशवलानी ॥ पुण्यसार माने घणुं रे, याठे नारी पनोती ॥ प्रीतम साधें प्रेमनी रे, वात करे मुख जोती ॥ ० ॥ वात करे मुख जोती रे श्यामा, हेज घणुं हैये धरती वामा ॥ दोगुंदकपरे ते सुख माणे, कग्यो प्राथम्यो दीह न जाणे ॥ १ ॥ जी वालेसरजी रे ॥ ए यां कणी ॥ कवही रमे रंग महोलमें रे, कवही वाडी जाय ॥ कवही जलक्रीडा करे रे, जामिनीगुं मन लाय ॥ जामिनीगुं मन लाइ रे नाइ, देखो पूरवली रे कमाइ ॥ यावी तेवारें यचिंती आई, दणमां दोलत इनियां पाई ॥ जी० ॥ २ ॥ पुरमां नामीचो थयो रे, पुण्ययकी पुण्यसार ॥ दोलतना दोरा तणो रे, वाथ्यो वहु विस्तार ॥ वाध्यो वहु विस्तार कमाई, करतां कंचन कोडि नपाई ॥ सहेर तणी पामी ग़वाई, जीधी इकत बहुत जलाई ॥ जी वा० ॥ ३ ॥ इण अवसरें नूमंमलें रे, बृजवता नवि जीव ॥ नवसारमां वूडतां रे, जेह असंदीन दीव || जेह संदीन दीवनी सरिखा, सूधी जीवाजीव परीक्षा || ज्ञानसागर मुनि वनमां यावे. राजा दिक सह वांदा जावे ॥ ४ ॥ जी मुनीश्वरजी रे | ए यांकणी ॥ जेठ पुरंदर यात्रीयो रे, सायें ने पुण्यसार ॥ गुरु वांदी सुणे देशना रे, चाणी नाव पार || प्राणी जाव व्यपार रे प्राणी, ए संसारने खांटो जाली ॥ कूडी काया कूडी माया, चाडो यावे ए धर्म सहाया ॥ जीरे मुनी ॥ ५|| विहडे सुत तन कंपन्यो रे, विहडे बंधव साचो ॥ विहडे ए संचि
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श्री शांतिनायनो रास खंग चोयो.
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यो रे, धर्म न विहडे जाचो ॥ साची धर्मतणी ए सगाई, इह जव परजव बहु सुखदायी ॥ मित्र जुहार समो ए कहियें, रात्रि दिवस ए ध्यानमां रहिये ॥ जीवाणा ने बेहु ने जांखीयो रे, श्रावक ने पगार || पहेलो परंपर हेतु ने रे, बीजो व्यनंतर सार ॥ बीजो अनंतर कारण कहियें, अंतर मुहूरतमां शिव लहियें ॥ उत्क करे जब सात घ्याव, एवो श्रीजिन श्रागमपात || जीवा ॥ ७ ॥ धर्म धर्म सहुको कहे रे, पण न लहे तस मर्म ॥ श्रातमवने श्रादरे रे नवि वंधाये कर्म ॥ नवि वंधाये कर्म ए नामें स्थापनाइव्ये सहु जग कामें ॥ जावनिकेपा नामे राची, तं मुनि मारगमांहे साचो || जी वा ॥ ८ ॥ पूत्रे सुणि गुरुदेशना रे, शेठ पुरंदर साधुं ॥ कहो पुण्यसारे गुं कर्तुं रे, पूरवजव पुष्प जाएं ॥ पूरवनवनुं पुण्य प्रकासो. कहे मुनिवर मत राखो सांसो | नीतिपुरे कोई कुलपून, पहेले नवें दूतो गतसुत ॥ जी वा० ॥ ए ॥ खेद लह्यो संसारथी रे, चरणयसुं गुरु पायें ॥ ल दीक्षा शिक्षा सहे रे, संयमपंथ
या ॥ संयम सुधो चाले, मंच समिति त्रण गुतिने पाले | कायति हता नहिं तेहवी. मुनिमारगमां दाखी जेवी ॥ जी वा० ॥ १० ॥ मंग मगादि परिसंह रे. कायोत्सर्ग मकार | स्थिरता न रहे मी रेवति यति वहेलो पारे । पारे वली बली बहेलो जेवा, नांखे नरु तैयारे || व्यावश्यक खंमन नवि कीजें, प्राण जते पण नवि चुकीनें ॥ जीवा ॥ ११ ॥ यतः ॥ वरमगिम्मि पवेसी, वरं विसु कम्मला मरणं ॥ सा हि यनंगो, माजीपं खनिय सर ॥ १ ॥ पूर्वदा ॥ फरि फरि मारग बोलि के हो न यावे हाये || शाता नामां परे, लकयुं जिननायें ॥ क साधुं जिन सरहिये जिम वेद ॥ व्रत पालतां नीम न तो शिव मां जये ॥ जीवा० ॥ १२ ॥ पापनीत नाय तो सद पण पाने ॥ निर्वaar, dear तंजावे ॥ यावन करे रानी पर मांजी नीनी ॥ मरण सही पर्या सुर सोधम्मै, विनय ॥ ० ॥ १० ॥ प्रवचन माना मानने में पानी देने सात प्रिया पर नेपाली एक काम नारी
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जैनकथा रत्नकोष नाग प्राठमो.
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माटें परमाद निवारी, संपूरण पालो सुविचारी ॥ जी वा० ॥ १४ ॥ शेव पुरंदर सांजली रे, मन पाम्यो वैराग्य ॥ ग्रहे दीक्षा गुरुजीकने रे, खाणी अनुभव राग ॥ अनुभव वात हैयामां राखी, पुण्यसार श्रावक मुनि साखी || वंदी जनक मुनि घर छाया, रात दिवस तेहना गुण गाया || जी वा० ॥ १५ ॥ श्रावक व्रत आराधतो रे, पाले शुद्ध प्राचार ॥ दान सुपात्रे दे जलां रे, पुण्य करे पुण्यसार || पुण्यसार करे पुण्य कमाई, या रमणी सायें उत्साही ॥ अनुक्रमें पुत्रने सोंपी जार, सजुरु पासें
या पगार ॥ जीवा ॥ १६ ॥ चारित्र पाली रूयडुं रे, नाव घरी नजमाल ॥ मुक्के गयो मुनिराजीयो रे, बढूं हुं त्रण काल ॥ वंदूं वात मुनीश्वरें नांखी, कनकशक्ति आागल हित राखी ॥ चोथे सत्त्यावीशमी ढाल, रामें मुनि गुण गाया रसाल ॥जी वा ॥ १ ॥इति पुण्यसार संबंधः ॥ १९७॥२८ ॥ दोहा ॥
॥ निसुणी श्री गुरुदेशना, कनकशक्ति नृपनंद ॥ संयम सुधुं छादरे, मनमां धरियानंद ॥ १ ॥ विपुलमति मुनि तेहने दे हितशिक्षा सार ॥ संयम मारग दोहिलो, जेदवी खंमाधार ॥ २ ॥ निरतिचारपणे तुमो, पालेजो निर्धार ॥ व्रत लेई पाले खरां, धन्य तेहनो अवतार ॥ ३ ॥ व्रतिनी विमलमति कने, दोय नारी लिये दिरक || तजि संसार विराग नजी, चाले रूडी शीख ॥ ४ ॥ कनकशक्ति मुनि विचरतो, सिद्धपर्वतें याय ॥ एक रात पडिमा रह्यो, शिला उपर गुन वाय ॥ ५ ॥ पूरव जवनो मत्सरी, हेमचूलानिध देव || करे उपसर्ग तिहां घणा, वैरजावनी देव ॥ ६ ॥ मुनि निश्चल ध्यानें रह्यो, जाणे सुरगिरि ट्रंक ॥ विद्याधर मलि वारियो, देव गयो मुनि मूक ॥ ७ ॥ प्रहसमे प्रतिमा पारिने, विचरंतो नृपीठ ॥ रत्नसंचया प्रवियो, गिरुडे सुगुण गिरिठ ॥ ८ ॥ सूरिनिपात उद्या नमां, काउस्सग्ग रहियो सोय ॥ मुनिध्यानें जीनो सवल, घातिकर्म मल धोय ॥ ए ॥ उज्ज्वल केवल ऊपन्युं, ऊलहल जागे दिद । सुर नर विद्या धर मली, उत्सव करे मंद ॥ १० ॥ वज्रायुध करि नक्ति बहु धन धन तुम्हो मुलिंद ॥ कर्मकटक जींत्युं सबल, निर्मल ज्ञान दिद ॥ ११. || देशन सुणि घेर याविया, वज्रायुध नरदेव ॥ यहोनिश सारे जेहनी, सोल सहस यह सेव ॥ १२ ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खेम चोथो. ०३
॥ ढाल अव्यावीशमी ।। .. || गुण गिधा गुण गिज्या गोडी पाम हो । ए देशी ॥ गुण नरिया गुण नग्यिा दरीयानी परें, मुनिजनने मुनिजनने बदु परिवार हो ।। जय चंता जयवंता हो जिनवर याविया जी ॥ वणुं प्यारा घएं प्यारा सदुमन जाविया जी ॥१॥ नव कमलें नव कमलें कनकने पद धरे, वर अतिशय वर अतिशय गुणनंमार हो ॥ जग बहाला जग वहाला जिणंद पधारीया जी॥ ५ ॥ तिण नयरीय तिण नवरी तिण उद्यानमां, तिण वेला तिण बेला त्रिभुवन जाण हो ॥ जगनायक जगनायक यावि समोलम्बा जी ३ ॥ सुर मतिया सुर मलिया चार निकायना, वर उँहि बर इंहि गयरा घुरंन हो । जगवडाला जग बहाता जिणंद पधारिया जी ॥ ॥ ॥ हम कर दमंकर जिननी वधामणी, वनपालक वनपालक दीधी तिवार हो । मनमोहन जगसोहन श्रीजिन श्रावीया जी ॥५॥ धन यापी धन श्राप बद्ध बनपालने नृप चाट्योनृप चाल्यो बंदन काज हो। मन मोदन जगलादन श्रीजिन प्यावीया जी॥ ८ ॥ प्रदक्षिणा परदक्षिागा त्राप दे करी, पर मेयर परमेश्वग्ने परणाम हो ॥ कर जोडी कर जोडी एम स्तवना करें जी॥७॥ त्रिगुणातम त्रिगुणातम त्रिगुण व्यतीत ठो,त्रिनुवनना विनुवनना नायक निद्ध काल दो। त्रिकरगणुंत्रिकरण दो में दिलमें धना जी 150 श्राज पावनमाज पावन थइ मुजदेवड़ी, जानें नेट्या नजें नेट्या श्रीजिन पंदहो । मुक दोग मुक दोग सरि नाजी गया जी 11 याज जाणं ग्राज जाणु फल्यो मुजप्रांगण. सरपाटप सुग्पादप तुफ दीदार दो शानयोग राजयोगको प्रनु नेटीवो जी ॥ १० ॥ नदि जिनन स्तनि जिन दो चना मागलं. रजापुर बजायुगजी का साटिनो । प्रन जांच मन नांगांनुसतना जी ॥११॥ नरम नरम हो मांटन भयो, नरिमाणन जाणे विपणनी पार हो ॥ पाणं गाना गाणं गना
समानीया सच या मोविश्य जिल्ला नाजान मां बननांनो मर्म र्मयादर
in : ये नये दाग के मया मित्रा सानो जानी
naitik TAL सामनाया, नरमा
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जैनकथा रत्नकोप जाग आठमो.
तेहमांए प्रतिहि यवन हो || मोहराजा मोहराजा ए रागरूपें रह्यो जी ॥ १५ ॥ कह्यो पहेलो को पहेलो हो थालस नामथी, मोह वीजे मोह वीजे हो त्रीजे वर्ण हो ॥ दंन चोथो दंन चोथो हो कोध ए पांच मो जी ॥ १६ ॥ बांमीजें बांमीजें प्रमाद बो सही, वली सत्तम वली सत्तम कृपणनो जाव हो ॥ जय अष्टम जय अष्टम शोक नवम कह्यो जी ॥ १७ ॥ वलि दशभुं वलि दशमं ज्ञानपणुं कयुं, अग्यारमो अ ग्यारमो को व्यादेप हो ॥ द्वादशमो द्वादशमो कुतूहल वारीयें जी ॥ १८ ॥ सदुयी ए सदुथी ए वलीयो कह्यो तेरमो, विपयानो विषयानो सवले वांक हो । काम जोगें काम जोगें ए दोय शवद नजे जी ॥ १९॥ यक्तमागमे ॥ जीवाणं नंते कामी जोगी गो० जीवा कामीवि जोगी वि से केाणं नंते एवं वुञ्चइ जीवा कामीवि जोगीवि सोतिंदिय चरिकं दिया ३ पडुच्चकामी जिनिंदिय घालिंदिय फासिंदियाइ पहुंच जोगी नेरइयाणं नंते कामी जोगी गो० नेरइया कामीवि जोगीवि एवं असुरकुमाराणं जीव थप
कुमाराणं पुढवीकाइयाणं नंते कामी जोगी गो० नोकामी जोगी नेर या एवं जाव तेइंद्रियाणं चचरिंदियाणं कामीवि जोगीवि एवं जीव वे माणियाणं इत्यादि ॥ पूर्वढाल ॥ क हि देशन कहि देशन केमंकर विजुजी, विषयानें विपयानें निवारो दूर हो तो शिवसुख तो शिवसुख पामी शाश्वतां जी ॥ २० ॥ प्रभुजीयें प्रभुजीयें प्रकाशी देशना, पडवीशमी घडवीशमी चोथे खंम हो ॥ ढाल निसुणी ढाल निसुणी हो हृदयमा राखजो जी ॥ २१ ॥ ८३ ॥ २ए ॥ दोहा ॥
|| इस अवसर पूढे तिहां, सहस्रायुध नृपनंद ॥ कर जोडी चरणे नमी, नांखो नयनानंद ॥ १ ॥ भगवन् तातें केम लही, पूर्व पर नववा त || वायुवेगादि खेचर तणी, ते नांखो यवदात ॥ २ ॥ ॥ ढाल रंगपत्रीशमी ॥
याज हजारी ढोलो खावशे ॥ ए देशी ॥ कहे एम देमंकर जगधणी, सांजल सहस्रायुध तूप || सुगुण प्राणीजी ॥ ज्ञानरयण जगमां बहुं ॥ तुक तातें हो यवधिज्ञानथी, नांख्युं ए नवनुं स्वरूप ॥ १ ॥ सुगुण ॥ ॥ ज्ञा० ॥ एांकणी ॥ प्रभु कहो केता नेद ते तेहना, करि करुणा जगदाधार ॥ जिद राय जी, बलिहारी प्रजुनामनी ॥ कहे नेद
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श्री शांतिनायनो रास खंम चोयो. २०५ अने पंच पदना, मति श्रुन ने अवधि मन धार ॥ मुए ॥हा॥ २ ॥ निम मनःपर्यव चोयं सही, पंचम केवल निःफलक ॥ तुः ॥ दीय नेदें परोदए जाणीव.प्रत्यक्ष विडं ने निःशंक। सु० ॥ ३॥ दोय विक व्य एक संकल्पथी, प्रत्यक्षमाहे बिटुं नेद ॥ १० ॥ नेद यहावीगप्रयमना, श्रुत चउदस जाणां प्रखेद ॥ माझा॥४॥ पट ने अवधि मन वाणी य, मनःपर्वर दोय विकल्प | सु० ॥ दायिक झान ते पाच मुं. तहमा नदि कोय मंकल्प ॥ सुझा ॥५॥ एम नेद एकावन झानना, मतिना तेहगां बद होय ।। नु० ॥ मतिपयोय घाणा श्रने, बुद्धि स्मृति प्रज्ञा जो व ॥ ॥झा ॥८॥ मति कहीये दो नावी कालनी. बुद्धि संप्रनिकालनी जाण ॥ सु ॥ स्मृति लीये काल अतीतनी, प्रझा बिटु काल वरवाण ।। तु० ॥०॥७॥वलीप चिटुं ने जाणीय.योत्पातिकी पदेली बुद्धि तनु । चनधिसी बीजी वली, कामगकी त्रीजी विशुद्ध ॥ ॥ज्ञाo150 चोची की पारिणामिकी, चुटिए निहुँ नेद विचार ॥ नु ॥ अगदीतुं श्राण सान. उपजे ते पहेली सार H ORT पर गंदा तागो, प्रल प्रयाने संबंध ॥ १० ॥ निसुण लपली ए पर्षदा, मति उपर ए प्रबंध ॥ सदा ॥१॥ यश गेहकनबंधः ॥ नयरि अवंतीमांदे बने, थरिकगरी नामें नरेश ॥ ॥ ने नवरीनी समीप ने, एक मोटी शिला विशेष ।। RO HE९१॥ नाम समीपं ही नटनागं, एक गाम ने इति ॥ मुः ॥ नट मगर यम निदानवान गुणी कलावंत ॥ KC 201१२॥ नन पान नांद्रामाणी, गंदर नामें एक बाल ॥ ॥ सगरमा माना
मनकापन्जायमाल II TO EITY011 मधिमणी नान बीजी ग नल जन को मार । म बोगन मद उन्मन ,न मा गहरा शगार ॥
१ १॥ गोपने गली नांगमा For लांडोष ॥१०॥ बालपणे माना मा. जगए सम बन जोय !! RITE? UI! गंजा विनोमानी जो मार Kamar ॥ Ferrम गगनी नीमानी मानसान IITER समान में मंना ॥ पण गागज TATAYE 1131
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नी मार!! शियम
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२०६ जैनकथा रत्नकोप नाग आवमो. जेवो हो नावे दाय ॥सुझा॥१॥ वचन सुणी अनिमाननु,मन चिंते रोहक वाल ॥ सु० ॥ विण मान उतारे हो एहनुं, मुज जन्म जीवित घाल ॥सु॥ज्ञा॥१॥ यतः॥अवंध्यकोपस्य निरंतुरापदां, नवंति वश्याः स्वयमेव संपदः ॥ अमर्षशून्येन जनस्य जंतुना, न जातहार्दैन नवि हिपा दरः॥ १ ॥ ज्वलितं न हिरण्यरेतसं, चयमास्कंदति नस्मनां जनः ॥ अनिनूतनयादसूनतः, सुखमुङति न धाममानिनः॥२॥ पूर्वढाल॥ अपराध देश्ने एह शिरें, मुफ जनकने करूं अनिष्ट ॥ सु० ॥ एह मान उतारू हो एहवं, तो मुफ चिंतित होवे इष्ट ॥ सु० ॥ झा० ॥२०॥ नवि सुणो हवे बुद्धि औत्पातिकी, करे रोहक ते अधिकार ॥सु॥ चोथे गणत्रीशमी ढालमां, मतिज्ञान तणो विस्तार॥सुणा झा॥१॥ सर्वगाथा ॥५३॥श्लोक ॥३१॥
॥दोहा॥ .. ॥ एक दिन घरने आगणे, सूता जनक ने जात ॥ यामिनिमां सहसा कहे, अहो अहो नर को जात ॥१॥ घरमांथी को नीसयो, कहे पिता देखाड ॥ ते कहे ते कमी गयो, पाड्यो पिता भ्रममांग ॥॥ रंगशर मन चिंतवे, अहो मुज कुलटा नारि ॥ वृक्षपणे परण्यो सही, मुफने पड्यो धिक्कार ॥३॥ यतः ॥ मूर्खस्य काव्यकरणं, गीतमकंठस्य द्यूतमधनस्य ॥ वृक्षस्य विपयवांबा, परिदासपदानि चत्वारि ॥ १ ॥ एकोगोत्रे स नवति पुमान् यः, कुटुंबं बिनर्ति, सर्वस्य हे सुमतिकुमती संपदापन्निमित्ते ॥ स्त्री पुंवच प्रनवतितरां तस्य गेहं विनष्टं,तो यूना सह परिचयात्त्यज्यते कामिनीनिः॥२॥ उप्पय ॥ एकांकरे अवाज,लाज एकांशुं मंमे॥एकांसोंप देह, नेह एकांमुबमे ॥ एकांकरे संकेत,एक जाली समजावे ॥ तन मन अंतर उर, एक शिर वाय ढोलावे ॥ कामिनी जाति अवगुण घणा,मीते वोलनधीजीयें । इसी निर्लज नफट नारियुं, कबू नेह न कीजीयें ॥१॥ कवित ॥ करिकोकन ॥ रविचरियं ॥ जलमये ॥ इस्युं विचारी नारिद्यु, थयो विरक्त मन तेह ॥ लाख कस्या गुण एहने, पण नहिं मुफ' नेह ॥ ४ ॥
॥ ढाल त्रीशमी ॥ ॥ नदयापुररी राजरंजा, म्हें दीना एक अचंना ॥ ए देशी ॥ रंगरर मन चिंतवे जी, जूती नारी जात ॥ मुह मीठी वातो करे जी, जहेर गले पुनि वात के ॥ १ ॥ रमणी रु.डी राज दीसे, पण ए खांटी विशवा
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श्रीशांतिनायनो रास खंक चोयो. बीशे ॥ गन्यांकाणी ॥ एम मनमान्यागुनदा जी, करनी होने केलि ॥ तो वेगमायें किसी जी.प्रीति ए विपनीवेल के |10 || २ ॥ कुन लक्षा लोपी sri जी, न गणी परनव जीनि । नारी वेद कुशीतिगी जी. एद थी [ विपरीत के । रम ॥ ३ ॥ यतः ॥ अनुमणों लोदा बनयारी, अकिंचागो मोह दिकधारी । लहाजुश्रा सोहः एकपत्नी, घुड़ी सो
गयमंतः ॥ १ ॥पूर्वदाला जोवो वातनी वातमा जी,चित्त फारिस ततकाला॥ ने मामु जोवे नहिं जी, 'ब्रांति बडी चंमाल के ॥ २० ॥ ४ ॥ नजर न मां नाइलो जी. केम दीसे दिल गेप ।। हनी न बोने देज जी, किरण कारण एशोप के ॥ र ॥ ५ ॥ श्राग न जोपी एदनी जी, चालतां एक चित्त ॥ ग्लमांहिं कम रुपणं जी, पडीयं व्याधि अचिंत के ॥ २० ॥ ५॥ पग्नर सायें नवि ग्मी जी, सूची निकलक || काली कीकी किम या जी, पंत तणी विग बंक के ॥ २० ॥ ॥ दिवस ये चार चया जिस्ये जी, नशम्यों गेप लगार ॥ लगी शच्या लेइ रह्यो जी, मन चे ना तार के 12007 ॥ यतः ॥ श्राज्ञानंगानरेशणां. गुरूणां मान मर्दनम् ॥ष्टय गच्या च नारीणा,मगन्त्रवध उचने ॥२॥ पूर्वढाल एम अरे चती जी, गलदो वे गाल ॥ एडवे रमतो श्राचीयों सी, नादानों रोमक वाल के ॥ २० ॥ याबीने कनो रयां जी, कां गये एम मान। नपने मुकर पाणु जी, ताणां नुकतात के ॥ १० ॥ १० ॥ यत्न कां जाएy दोचे जी, ना कहे मुशन लाच ॥ तादी गति तहिन लदे जी, काले कारनां वाच के 11 10 11 ११ ॥ चमकी चिन चिनमांजीदीमे एर बलाय ॥ कर जीटीएमवीन जी, गन्स ९ नारी माप के ॥ 10 शाम प्रनन्न नु नपरें जी, नदि लोई नुज प्राण अनुरस रिला भी मन महत्या में जाम के ॥२०॥ १३ ॥ गडी कदम गर्ग नमें जी, निता कि मनमांटि । पुनषि पुत्र पिना बनी , प्रवा रगती न्यारे॥२०॥१४॥ मटकी चिद दिशि नांदनी ती. मान में गोमाजी ना शाला जी, जाये नर माय. TE : ५६ जना किमान जी, देवानी ने नित । मनुमोदजी . चनजाने में 116 १८ गश भर मां
ने नरगहो पर में पूर्व परदनों
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
इज नर दीव के ॥ २० ॥ १७ ॥ रंगशूर मन चिंतवे जी, हा हा वालक बुद्धि ॥ वि वांके विनता तजी जी, सवल थयो निर्बुद्धि के ॥ २० ॥ १७ ॥ रोपशम्योमन मांहिलो जी, थयो रमणी अनुकूल ॥ चूक्यो सवल अजाणते जी में कीधुं प्रतिकूल के ॥ २० ॥ १५ ॥ इणमां नांग्यां रूपणां जी, जामिनी ने जरतार ॥ सुख बिलसे संसारनां जी, सफल गणे अवतार के ॥ २० ॥ २० ॥ रुक्मिणी रहे कर जोडीने जी, नक्ति करे भरपूर ॥ तुं वत्स मारे वालहो जी, तुक ला बला रहो दूर के ॥ २० ॥ २१ ॥ पण न करे वेसासडोजी, माय तणी जे शोक्य ॥ जो धीरुं हं एहने जी, तो फल पामुं रोक के ॥ २० ॥ २२ ॥ जोजन करवाने समे जी, वेसे जनकनी साथ ॥ पण मरती ते अहोनिशें जी, राखे सुतने हाथ के ॥ २० ॥२३॥ चोथे खंमें त्रीशमी जी, ढाल कही मन रंग ॥ हवे श्रोता निसुणो तुम्हें जी, यागल वहु उबरंग के ॥ २० ॥ २४ ॥ ८८ ॥ ३५ ॥ दोहा ॥
|| रोहक सायें एकदा, रंगशूर निज काम ॥ गयो ओली नयरीयें, जोवा सरिखुं गम ॥ १ ॥ चोरासी चहुटां जलां, दीपे प्रति मंमाण ॥ देवजुवन रलियामणां निरखे तेह सुजाण ॥ २ ॥ प्रातट वेसारीने, रोहक ने रंगशूर ॥ काज निमित्तें नयरमां, पहोता यानंदपूर || ३ || बुद्धि मंत रोहो तदा, नगरी तणुं स्वरूप ॥ श्रालेखे निज कलयी, दिप्रातदें अनूप ॥ ४ ॥ तस पोजे या पोलीयो, कनो रहियो श्राप ॥ रेणुमयी नगरी जोइ, मनमां नहिं संताप ॥ ५ ॥
॥ ढाल एकत्रीशमी ॥
॥ प्राख्याननी देशी ॥ तिल व्यवसर नयरीनो नरपति, चाव्यो अल्प परिवारें ॥ यश्व उपर चढियो अलवेसर, जोतो ख्याल तेवारें ॥ १ ॥ नयरी अवंती जिहां व्यालेखी, तिहां दोडीने घ्यावे ॥ तव रोहो यावीने प्राडो, नरपतिने समजावे ॥ २ ॥ हा हा किहां जाय ले ध सीयो, कां नगरीने जांजे ॥ बाल तुरंगम वहेलो पाठो गइ करूं वं लाजें ॥ ३ ॥ चित्त चमक्यो नरपति इम बोले, बाग तुरंगम केरी ॥ जो साहे तो निरखी जोवं नयरि उणि नजेरी ॥ ४ ॥ ते कहे हुं नहिं ताद्गे चाकर, जा चाव्यां इस वादें || एवं जे खाइजें जगमां, ते मीठाई माटें ॥ ५॥
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श्री शांतिनायनो रास खंग चौथो.
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खुशी यई नृपति एम पूर्व, व्यहो केहनो ए जावो ॥ सेवक कहे रंगशूर arat, a सुन रोक गावो ॥ ६ ॥ वाले वेशे बहु बुद्धिमंतो, सक कलानां जाता | बात गुणी नरपति मनमांहे पायो सनी याता || ३ || पैर थावी नरपति एम चिंते, बुद्धिपरीक्षा कीजें ॥ जो मन माने तो रोकने, मंत्रीवरपद दीजें ॥ ८ ॥ कवाड एक नर बातें, तिए गामें राजायें || बहु इच्यें तुम एक इव्य केरो, करो प्रासादलाई |||||| गाम लोक मनियां सह लां बात विचार एवंम ॥ जो नवि कहेवा शुं उत्तर मानशे नृपति मो ॥ १० ॥ पण कोड़ने मति एव न सूजे, चिंतातुर थ रहियां ॥ तो रोहक कहे जनकने, भूख न जाये सभी था ॥ ११ ॥ कहे रंग पढख बस मां विम नृप यादेश ॥ थायों से तम चिंता महोटी, कहे रोहक कहां लेग ॥ १२ ॥ वात कही सह एव वो एहमांहे गुं गूदा ॥ कठो जाई जोजन काजें, यता दिदा ॥ १३ ॥ पत्रे कहीश हुं उत्तर एहनी, सहु नोजन कर व्याव्या ॥ हापा तिर्णे नृपनरने, सह साखे समजाव्या ॥ १४ ॥ जा कलेजे तुक नरपति व्यागल, महाटी शिक्षा इहां एक ॥ नृपयोग्य मंदिर निपजणे, इव्य को सुत्रिये ॥ १५ ॥ हिरख्यां सहुये नृप घागल, जति सेवक नांगो ॥ कहे राजेश्वर एक प्रत्युत्तर, तुमने केणे ॥ १५ ॥ दीधी उत्तर वालक, बानी नृप हख्यो ॥ दान में, इस नाते ए परस्यां ॥ १३ ॥ एक दिवस नृप एक वस्तने, मेदीने नजावे ॥ सावजी ए चारे ने पाणी. तन मन न पावे ॥१७॥ पुत्रे मना कहे कपास हमें जतन की एसा ॥ १५ ॥ ने यादे प्रमाण कखार्थी, राय म जाणो | एक दिन एक कुटने सूरी, करे नृपति राणो ॥ २० ॥ गुहला र म परे ॥ न
॥ अधिक नजरें न
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संजय नांग्य॥ २ ॥ नंतर दि
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१० जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. पारीसे तेल समप्र्यो, सांजलि सद्धयें तोली ॥ २४ ॥ ते तिम कीg कारिज सीधु, राय तणुं दिल उन्नस्युं ॥ वली मगावे वाट वेलुनी, मूटक बंधन करगुं ॥ २५ ॥ रोहें कहाव्युं राजनुं कारिज, करवू अमें शिरजोरें । पण प्रमाण जोवा एक जीरण, मोकलो कटको कोर ॥ २६ ॥ एम प्रत्युत्तर दीधो पुनरपि, जीरण गज मोकलियो ॥ कहेवाडयुं यत्ने जाल वजो, ए हाथी सुत्रलीयो ॥ २७ ॥ एहनी हकीगत मुफ सोपवी, पण मू नवि कहेवो ॥ पालतां मू तव चिंते, लोक शो उत्तर देवो ॥ २७ ॥ रोहें कहायु ए तुम हस्ती, न लिये जल ने चारो ॥ नयणें न जोवे नृप कहे गुं मृत, जन कहे तुम अवधारो ॥३॥ नृप कहेवायुं कूप मोकलजो, ग्राम तणो एक मीठो ॥ रोहो कहे पुर कूपने मूको, एवं मारग नवि दीगे ॥ ३० ॥ नृप कह्यं अग्नि विना मुझ पायस, रांधीने तुमें आपो ॥ चूर्णक ऊपर पायस पाचवी, दीधुं टल्यो संतापो ॥ ३१ ॥ चोथे खंमें एकत्रीशमी ढालें, बुद्धि परीक्षा कीधी ॥ मति उपर देमंकर जिन जी, एहवी देशना दीधी ॥३२॥ सर्व गाथा॥१॥ श्लोक तथा गाया ॥३५॥
॥दोहा॥ ॥धिमंत जाणी नलो, नृप तेडाव्यो पास ॥ विरुक्ष व्यवस्थायें बावजे, सढुको सुणे उन्नास ॥१॥ स्नान करी मत आवजे,महेलो पण नावेश ॥ यान चढी नवि यावद्, पालो पण न चलेश ॥ २ ॥ ऊघाडे मत आवजे, नव शिर ढांक्युं जोय ॥ नवि रात नवि दिवसमां, विदु परकें एक न होय ॥ ३ ॥ नवि ठाया नवि ात, नवि खाली नवि नेट ॥ जो तुं बुझिवली असे, एम मुफ आवी नेट ॥ ४ ॥ गामर ऊपर ते चढ्यो, जतन धरतो पाय ॥ नाही चंदन लेपयुत, संध्या काल नत्साह ॥५॥ शुदि पडवे दिन चालणी, शिर परि धरी सुरंग ॥ माटी लेई हायमां, चाल्यो धरि उठरंग ॥ ६ ॥ नृपपर्पद ते आवीने, करे नृपने परणाम ॥ नेटए मूक्युं पागलें, माटीमय अनिराम ॥ ७ ॥
॥ढाल वत्रीशमी ।। ॥जामण कारिज कपने जी ॥ ए देशी ॥ नृप वे रोहाप्रत्ये जी, तें शुं सूक्युं रे एह ॥ ते कहे जगमा तावडी जी, ए माटी गुणगेह ॥ १ ॥ सुणो नर बुद्धि तणां ए काम, बुद्धि जग माने घणु जी, बुद्धियको लहे
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श्री शांतिनायनो रास खंग चोया : द्राम ॥ सुग्गो० ॥ श्रांकणी ॥ स्वागत पूती नृप घणु जी. दीर्छ बटु गन्मान ॥ पर्पदमाहे प्रशंतीयो जी,मबलो बुझिनिदान ।। सु० ॥ ५ ॥ बद्ध रत्ना वसुधा कदी जी, तेदमा नहिं नंदेह ।। नीतिशास्त्रमा एवं जी, बचन कार्य पनि नेह ॥१०॥३॥ यतः ॥ दाने तपसि जायें च, वि ज्ञान बिनये नये । विस्मयोनव कर्तव्यो, बहुग्दा वसुंधरा ॥१॥ वाजिवारणलोहानां, काष्ठपापागवाससाम् ॥ नारीपुरुपतोचाना, मंतरं मह दंतरम ॥ ५ ॥ पूर्वढाल | अंगरदक करी थापियो जी, रोहाने तिण रान ॥ नृप कपटें सूती तदा जी, ते सूतो नादात ।। सु० ॥ ४ ॥ पढेले पहारे जगादीयों जी, गेहा गंधेरे केम ॥ चिंतुं ९ कहो काग करे जी, बकरी तीमी एम नागो ॥ ५ ॥ कदे गेहा मुफ भागने जी, जो जाणी होय बात ॥ कहे गजन इम जागिवें जी. एहने कोठे बात ।। सुम् ॥ 11) बीजे पीपल पाननाजी, न्यादि अंत गुरुनाव ।। नृप पूरे निर्णय को जी. एबेदु नरवे नाव ॥ ॥ ॥ तिमहीज जीजा चाममा जी. पिलदडी मंद ॥चत व्याम तनु पुरानो जी, सम पण हे गण गेह ॥ २५ ॥ 7 ॥ नोये प्रहर कंटके जीवाध्या बोले ताम । पूर्व काही मुगा केटला जी,जनक नन्दाग म्यामि ॥ नु० ॥॥पापीj वा जीयो जी, केना जनक दवंत ॥ सत्य कई नादरेजी, पंच जनक ने संत ।मु०॥१७॥ ते केदा कहे गजची जी, धनद रजक अतिदोय ॥ कई
मानंग पांचमी जी, पनमा जव न कोय ॥ ॥ !! | कई नृप में केम जागीयानी. तुज गुपची गनिंद ने गुण कदा नर कडे, जी, गेलो परिमानंद ॥ १० ॥22॥ परजा पाने नृप सी जी, धनद यो धनधान र मर भनने हरेजी.कंटक यतिनं निदान ॥501) गाट कोप करवायही जी, फलैंचंगाल नरेश । निमय करता मायने जी, याची प मशीन ॥ ५ ॥ १४ मार कई माया पीजी, मम गाने सांप दीन । बजार प्रति ममजीपी जो, परिमन गEिure 14 | ग सामान्या जी, शनमंत्रीमान मुख्य ॥ नहने की
ही , म्या प क्ष. | F ॥ यदि जी पर म जी, नागंन ।
गोपनी जी. दात माग !! 20, म ! बा INTER
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
॥दोहा॥ ॥ बीजी वैनयिकी कही, गुरुविनये जे ढुंत ॥ थोडी पण दीसे घणी, गुरु उपकार महंत ॥ १ ॥ यतः ॥ गुचिपय ॥ विनय वडं कारण कह्यु, विद्याने अधिकार ॥ शोने विनययकी जएयु, शास्त्रमाहे ए सार ॥ २ ॥ यतः ॥ पुस्तकं प्रत्ययाधीतं, नाधीतं गुरुसन्निधौ ॥ सनामध्ये न शोनंते, जारगर्ना श्च स्त्रियः ॥ १ ॥ यमुक्तमागमे ॥ विषया नाणं हि, नाणादसणं दंसणाचरणं॥चरणेहिंतोमोरको,मोरके सुरकंबणावाहं ॥२॥ करिणीपदगायक तणा, बात्र तणो उपदेश ॥ ए बुद्धि पर जाजो, शास्त्रथकी सुविशेप ॥३॥ घट चित्रादि क्रिया जली, शिल्पी तणुं विन्नाण ॥ कर्मथकी जे ऊपजे, सा कार्मिकी वखाण ॥ ४ ॥ सर्ववस्तुरूत नि श्चया, जे परिणाम वशेण ॥ बुद्धि होय पारिणामिकी, वयरस्वामी परें जेण ॥ ५ ॥ सघली बुद्धि जपर कह्या, आगममां संबंध ॥ ग्रंथ तणुं गौरव दुवे, न कह्या तस परवंध ॥ ६ ॥ मति आव्ये सहचारियु, प्रगटे श्रुत घटमांहि ॥ वस्तु त्रैकालिक जे जणे, वेदीजें जगमांहि ॥७॥ काल असंख्य तपा लहे,अतीत अनागत नाव ॥ अवधि सहित चिर्दू दिशि दुवे,अवधिनाण सभाव ॥ ॥ नाव मनोगत जाणीयें, संही तणा अशेप ॥ जिने मनःपर्यव ते का, चोधू ज्ञान विशेष ॥ ए॥ नासक लोकालोकन, निरावरण निरुपाधि ॥ प्रगटे केवल पांचमुं, विलसे सहज समाधि ॥ १० ॥
॥ ढाल तेत्रीशमी ॥ ॥ राम जणे हरि कठीयें ॥ ए देशी ॥ देमंकर जिनजी कहे, सुण सहस्त्रायुध सार रे ॥ ज्ञान यवधियी रे जाणिया, वजायुधे अवतार रे ॥ तहत्ति करी तेणिवार रे, चरण नमे सुखकार रे, वज्जायुध हितकार रे, जवजल पार उतार रे ॥ १ ॥ सहज मुंहालो रे राजवी ॥ ए ग्रांकणी॥ प्रनु वांदी घरे आवीयो, वजायुध नरराय रे ।। पट खंम केगे रे राजियो, नवे सुतने निज नाच रे ॥ सहस्रायुध मुखदाय रे, पोतें श्रयो निर्माय रे, समता साथें सहाय रे, संयम लेवा उत्साह रे ॥ सहज ॥२॥ चार स हस राणी नली, राजन चार हजार रे ॥ साथै गुरा रे नीसम्या, धन्य तेहना अवतार रे ॥ जब ए जाण्यो असार रे, सातशे पुत्र परिवार रे,
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श्री शांतिनाथनो रास खंम चोयो. १३ याव्या वनह मकार रे, देव करे जयकार रे ॥ स ॥३॥ प्रजुचरणे कर जोडिने, कहे वजायुध नूप रे ॥ तारो त्रिनुवन तातजी, तहारुं अकल स्वरूप रे । पडिया जवजल कूप रे, तुं अवलंबनरूप रे ॥ केवलज्ञान अनूप रे, टाल्यो मोह विरूप रे ॥ स० ॥ ॥ ले दीक्षा प्रजुजी कने, वजायुध नरदेव रे ॥ राज्य तजी समता नजी, थथा तता धर्मदेव रे॥ सारे सुर नर सेव रे, नवि राखे अहमेव रे, साची जेहनी टेव रे, अहोनिश चरणनी हेव रे ॥ स ॥ ५ ॥ शम दमवंता रे साधु जी, विचरे मही ततकाल रे ॥ जय विहारने आदरी, पाले मुनि उजमाल रे ॥ षट कायना प्रतिपाल रे, विपयथकी मन वाल रे, मदने मीण ज्युं गाल रे, वयण न नांखे आल रे ॥ स ॥ ६ ॥ एक दिन मुनिवर आवीया, वजायुध ज्ञपिराय रे ॥ सिद्धगिरिनी हो ऊपरें, रहिया कानस्सग्ग वाय रे ॥ वज परें दृढकाय रे, टाव्या उरित अपाय रे, एकाकी असहाय रे, ध्यान धर्म चित्त लाय रे ॥ स ॥ ७ ॥ एक वरस पडिमा तणो, अनियह मनमाहे धार रे ॥ मेरु शिखर जेम स्थिर रह्या, वजमुनि गुणधार रे ॥ सूधा श्रीय एणगार रे,वंदू ढुं वारो वार रे,धन्य तेहनो जमवार रे,गुणमणिरयण नंमार रे ॥सा एहवे हयग्रीव सुत ढुंता, मणिकुंन मणिध्वज नाम रे॥ वदु नव जमता रे ते दुवा, सुर अनुपम तनु धाम रे ॥ तिण दीठो मुनि ताम रे, रह्यो निश्चल एक ठाम रे, जाग्युं वैर निकाम रे, करे उपसर्ग उद्दाम रे ॥ स० ॥ ए ॥ तीखी दाढे फाडता, मुख नीपण विकराल रे ॥ एक सिंह दूजो रे वाघलो, यश् याव्या ततकाल रे ॥ पडिया मुनिने ख्याल रे, दंतें नखेडे खाल रे, मुनि चिंते उजमाल रे, रखे जीव थाये सुकुमाल रे ॥ ॥ स ॥ १० ॥ मुनिवर धारा हो ध्याननी, तिम तिम वाधे रे जोर रे ॥ हाथी थ६ वली आविया, साथै बिद्ध करे सोर रे ॥ गुंदे दंतनी कोर रे, जीव तुं धाजे कठोर रे, सुःख सह्यां नरके घोर रे, कीधां कर्म ए दोर रे ॥ स ॥ ११ ॥ थया वली साप ने सापिणी,फण मांमी फुफुयाड रे ॥ थावी समीपं दो साधुने,पग वींटे जिम जाड रे ॥ कड कड लांजे हो हाड रे, मुनि रह्या ध्यानगुं माम रे, नाखे कर्म उपाड रे, पूरे मनहरुहाड रे ॥ स० ॥ १२ ॥ धन्य बजायुध साधुजी, नहिं मन रागनो अंश रे ॥ दूर करयो तिम क्रोधने, दीपायो निजवंश रे ॥ सकस मुनि अव
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो, तंस रे, गुण उज्ज्वल जिम हंस रे, नहिं प्रसादनो अंश रे, करे सद्ध जग प्रशंस रे ॥ स० ॥ १३ ॥ रावत ने वली रादती, रूप करी अति चम रे ॥ पासें यावी हो साधुने, वीवरावे परचम रे ॥ रोप चढ्या दोय लंह रे, साधु चिंते घमंम रे, निमित्त मव्युं नईम रे, कर्म कस्युं शत खंम रे, ॥स ॥ १४ ॥ एहवे आवी तिलोत्तमा, रंजा दोय रसाल रे ॥ इंश तणी रे इंशणीयो, रूपें काकजमाल रे ॥ वज्जायुध मुनि नाल रे, कर जोडी निज नाल रे, वंदन काज विशाल रे, आवी ते ततकाल रे ॥ स० ॥ १५ ॥ वीहिना देवी रे देखीने, नासण लाग्या रे ताम रे ॥ तरज्या देवी अति घणा, कां रे उष्ट अलाम रे ॥ की, तुमें कांइ काम रे, खोई निज नव माम रे, जाशो दुर्गति नाम रे, हेतां जा तुम नाम रे ॥ स० ॥ ॥ १६ ॥ वांदी मुनिवर पाउला, कनी जोडीने हाथ रे ॥ जय वजायुध मुनीश्वरा, शमतानारी नाथ रे ॥ क्रोध करयो जिण मात रे, साचा शिवपुर साथ रे, मद कीधो तुमें हाथ रे, तरिया जवजल पाथ रे ॥ स ॥ १७ ॥ मुनिगुण गाये रे मानिनी, नाटक करे बदु रंग रे, वीणा वंश ने वांसली, वाये बदु नवरंग रे ॥ वालीने निज अंग रे, मुनि मुख जोती सुचंग रे, बजायुधजी निःसंग रे, रहिया ध्यान अनंग रे । स० ॥ १७ ॥ मुनि स्तवना करि वंदीने,समकित निर्मल कीध रे ॥ ते देवी निजस्थानकें, पहोती कारज सिह रे ॥ वज्जायुध सुप्रसिद रे, त्रिदु नुवनें यश लीध रे, अनुनवरस वदु पीध रे, दान अनय जग दीध रे ॥ स० ॥ १५ ॥ एक वरस पडिमा रही, पारी विचरे मुनीश रे ॥ श्रीवजायुध साधु जी, नहिं जेहने मन रीश रे ॥ दिन दिन चढती जगीश रे, सेवे सुर नर ईश रे, साधु तणा अहोनिश रे,गुण धारे सत्तवीश रे ॥ स० ॥२०॥ चोथे खमें ते त्रीशमी, ढाल कही अनिराम रे॥ धन्य मुनि जे एहवा, तेहनां सिम काम रे॥ नित्य ती लीजें नाम रे, करो प्रनातें प्रणाम रे, शांतिप्रनु गुणगान रे, हर्षे करे मुनि राम रे ॥ स ० ॥१॥ सर्व गाथा ॥४॥ श्लोक ॥ ३ ॥
॥दोहा॥ ॥ श्री देमंकर जिनवरु, लद चोराशी मेल ॥ पूरब पाली धान, सिम यया गुणकेति ॥ १ ॥ सिझ बुझ परमातमा, पारंगत परमिह ॥ परमज्योति पावन पुरुष, प्रनु प्रामुं ते ३० ॥ २ ॥ चिदानंद चेतनध
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श्री शांतिनाथनो रास खंग चोथो.
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पी, एम अनेक जस नाम ॥ प्रह ऊठी नित्य समरतां, सीजे वांबित काम ॥ ३ ॥ पिहिताश्रव नामें जला, ते प्रजुना गणधार || एकदिन यावि समोसा, चरण करण गुणधार ॥ ४ ॥
॥ ढाल चोत्रीशमी ॥
॥ याज ढुं तो अलजइ रे बहेनी ॥ ए देशी || श्री सहस्रायुध रे स्वामी, तुम्हने अरज करूं शिर नामी ॥ श्री स० ॥ ए यांकणी ॥ वनपा 'लक उजाणो यावी, दीधी हर्ष वधामणी लावी || श्री स० ॥ १ ॥ याज मुज वनमां रे याव्या, श्रीपिहिताश्रव गणधर जाव्या ॥ श्री० ॥२॥ उपशम रसना रे दरिया, मुनि पटुकाय तथा पीयरीया ॥ श्री० ॥ ३ ॥ जोतां मुज मन रे वसीया, सांजलि नूरमणीना रसीया ॥ श्री० ॥ ४ ॥ राज्य सहु बे रे साऊं, पण ए मुनिनुं दरिस प्यारुं ॥ श्री० ॥ ५ ॥ वात सुणी सहस्रायुध राया, करवा निर्मल व्यापणी काया | श्री० ॥६॥ बहु जन साधें रे याया, वांदा श्री गणधरना पाया ॥ श्र० ॥ ७ ॥ तीन प्रक्षिण रे देवे, वांदी वेसे मुनिपद सेवे ॥ श्री० ॥ ८ ॥ कहे गए धर गुण धरीयें यंगें, परहरीयें परसाद प्रसंगें ॥ श्री० ॥ ए ॥ पंच ने यानी संख्यायें कहीयें, क्षेमंकर जिनवाणी सहीयें ॥ श्री ॥ १० ॥ एहने सेव्ये व या दुःखीया, जिलें ए मूक्या ते सतु सुखीया ॥ श्री० ॥ ११ ॥ यतः ॥ प्राणीनामंतरस्थायी, नह्यालस्य समोरिपुः ॥ नास्त्युद्यमसमं मित्र, यं कृत्वा नावसीदति ॥ १ ॥ पूर्वटाल ॥ रहे यनादिनो विपयनी वगमां, ते दनुं कारण कामिनी जगमां ॥ श्री० ॥ १२ ॥ यदुक्तं ॥ स्मितेन नावे न च लकया निया, पराजुखैरर्धकटाक्षवीदितैः ॥ वचोत्तिरीयकल हेन लीलया, समस्तनावः खलु बंधनं स्त्रियः ॥ २ ॥ सत्यं जना वच्मि न पक्षपाता, लोकेषु सर्वेष्वपि तथ्यमेतत् ॥ नान्यन्मनोहारि नितंचिनी न्यो, डुःखैकहेतुर्न च कचिदन्यः ॥ ३ ॥ पूर्वढाल || इपरे निसुणी गणधर वाणी, सहस्रायुध कहे जोडी पाणी ॥ श्री० ॥ १३ ॥ तुं मुफ तारक रे मलियो, याजयी महारो दाहाडो वलियो || श्री० ॥ १४ ॥ प्रभु मुकने कीजें हवे चेलो, बाधे माहरो पुण्यनो वेलो ॥ श्री० ॥ १५ ॥ अनुक्रमें तात साधुने मलीया, मनना सवल मनोरथ फलीया ॥ श्री०
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११६ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. ॥ १६ ॥ शतवल सुतने राज्य जलावी, ले सहस्रायुध संयम नावी ॥ श्री० ॥ १७ ॥ थ गीतारथ विचरे वसुधा, मुखथी बोले वाणी न मुधा ॥ श्री ॥ १७ ॥ श्रीवजायुध साथें विचरे, संवेगरंगमां हैयहूं पसरे ॥ श्री ॥ १५ ॥ करता विविध तपस्या सारी, प्रतिवोधंता बदु नर नारी ॥ श्री ॥ २० ॥ आव्या नगर पित्प्रागनार ॥ मुनिवर करता दोय विहार ॥ श्री ॥२१॥ चोये खंमें चोत्रीशमी ढालें, राम कहे धन्य जे एम पाले ॥ श्री० ॥ २२ ॥ सर्वगाथा ॥
१०॥ श्लोक तथा गाथा मलीने ॥४॥
॥अथ कलश ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ धन धन ए मुनिवर वड नागी ॥ श्रीवजायुध ने सहस्रायुध, शुद्ध किरिया गुणरागी ॥ध ॥ १ ॥ चोरासी लरख योनि ख मावी, सुमति दशा मति जागी॥ष्कृत पाप बालोई सघलां, चनशरणां करे त्यागी ॥ध ॥ ॥ अगसण पादपोपगम धाराधे, मुनिवर दोय वैरागी॥ अष्टम जव एम योग विलासी,कीर्ति जइ जग वागी॥०॥३॥ काल करी नवमे ग्रैवेयकें, शशिवदुली कर लागी॥ एकत्रीश सागर आयु उपना, वेदु थया सोनागी ॥३०॥॥ सुख विलसे अति सुंदर वांबित, जव नवमे अनुषंगी ॥ इव्य जिनेश्वरके गुण गावो, दरिसण गुणके प्रसंगी ॥ध ॥ ५ ॥ ते प्रचुके गुणराशिकी रचना, रास कीयो में उमंगी ॥ चोयो खंग संपूरण कीनो, सुगजो सदु एकरंगी ॥ध ॥ ६ ॥ मंगलमाला जाकजमाला, सुणतां होवे सुचंगी ॥ श्री सुमतिविजयगुरु चरण प सायें, कीर्ति कमला अनंगी ॥ध० ॥ ७ ॥ सर्वगाथा ॥ १७॥ श्लोक तथा गाथा ॥ ४२ ॥ प्रथम खंग गाथा ॥ ४३७ ॥ द्वितीय खंगाथा ॥ २८ ॥ तृतीयखंक गाथा ॥ ७३४ ॥ चतुर्थखम गाथा ॥ १० ॥ चारे खमनी गाथा ॥३१०६॥ चारे खंमना प्रास्ताविक लोक तया गाथा ॥ ११७ ॥ खंझ चारनी ढाल ॥ ११३ ॥ इति श्रीशांतिनाथप्रबंधे रासबंधे छादशनवनिबंधे थाम्रनिपात्याद्यनेका विमृश्यकारिनृपचरित्रानुविधपुण्यसा राधिकारसंबंधोऽष्टमनवमनववर्णननामा चतुर्थः खंमः संपूर्णः ॥ ४ ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो.
॥ अथ पंचमखंगस्य प्रारंभोऽयम् ॥ ॥ दोहा ॥
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२१७
|| विहरमान जिन वंदियें, सीमंधर जगवंत ॥ युगंधर वीजा नमुं, अतुली वल अरिहंत ॥ १ ॥ त्रीजा वादु जिदने, हुं नित्य करूं प्रणाम ॥ श्री सुजात स्वयंप्रन वली, कूपजानन गुणधाम ॥ २ ॥ अनंतवीर्य सूरि प्रनो, श्री विशाल जिनराज ॥ वज्रधर चंदनन नमो, चंवादु शिवकाज ॥ ३ ॥ श्री जुजंग ईश्वर विलु, नेमिप्रन वीरसेन || महान देवजस जयो, अजितवीर्य नसे ॥ ४॥ ए वीशे बंदी विभु, रचणुं पंचम खंग ॥ कान देइ श्रोता सुणो, ए संबंध खंम ॥ ५ ॥ जव दशमो श्री शांतिनो, सुतां मंगलमाल || निश विकया परहरी, निसुपो य उजमाल ॥ ६ ॥ जिनगुण सांभलतां थकां जन्म होय सुपवित्र ॥ बोधिवीज निर्मल करे, मुनिजन कहे महंत ॥ ७ ॥
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॥ ढाल पहेली ॥
॥ माली केरे वागमां, दोय नारिंग पक्के लो || दो० ॥ ए देशी ॥ जंबुपूर्व विदेहमां, पुष्कलावर विजया लो || अहो पुष्कलावर विजया लो || नयरी तिहां पुंमरिगिणी, दीपे प्रति विजया लो ॥ अहो० ॥ दी० ॥ १ ॥ लाब वसे वासो जिहां, सुख संपत्ति सघली लो ॥॥॥ चोराशी वाजारनी, दीपे कृति सबली लो ॥ णादीना ॥ तिहां राजे राजेश्वरु, घनरयजी नामें लो ॥॥॥ यरिहंत पदवीयें उपन्या, सुर नर शिर नामे जो ॥ ॥सु०॥ ॥ ३२ ॥ ग्रडहिय सहस लक्षण धरे, अंगें प्रति वारु लो ॥॥॥ अंतर लक्षण यति घणां, दीपे दीदारु रे लो ॥ णादी० ॥४॥ तस गृहिणी दोय सुंदरी, प्रीतिमती पहेली लो ॥ च० ॥ प्री० ॥ वीजी मनोहरी मानिनी, पियु नेहें घहेली लो ॥ ० ॥ पि० ॥ ५ ॥ हवे वज्रायुधजी चवी, प्रीतिमती नी कूखें जो ॥ ० ॥ प्री० ॥ मेघ सुपनसूचित सही, यवतरिया सदखें तो ॥ ॥ ६ ॥ स्यनुपनें सूचित नलो, सहस्रायुध यायो जो ॥ ० ॥ स॥ मनोहरी उयरमां उपन्यो, पुण्यवंत सुहायो लो ॥०॥ पु० ॥ ७ ॥ पूरण का पुत्र दो, दोय राणीयें जावा लो ॥ ० ॥ दो० ॥ उत्तम लक्षणें पता, कंचनवर्णकाया जो ॥ अ० ॥ कं ॥ ८ ॥ माचतणां मन मोहता,
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२७ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. रूपें रंगीला लो ॥ ॥ मुख पूरण शारदशशी, रतिकांत बवीला लो ॥अारायानामधरे उत्सव करी, "मेघरथ" "दृढरथजी" लोपामे॥ सऊन सहुने वालहा, टाले अनरथ जी लोणाटा॥१०॥ गिरि चंपक परें वाधता, पंच धावें पालीता लो॥अायोग्य कला धन्यासने, सुख मां लालिता लो ॥धातु ॥११॥ अध्यापक पासें वन्ने, जणवाने मूक्या लो ॥धान०॥ सकल कला शीखे तिहां, कोइ वात न चूक्या लो ॥ को० ॥ १२ ॥ पुरुप तणी वहोंतेर कला, रूडी अन्यासें लो ॥ अरू०॥ लिखित गणित भालेख्यनी, नाट्य गीत सरासें लोअाना॥१३॥ वादि त स्वर तिम द्यूत ए, अन्न पान विधि जाणो लो॥धाय॥ शयन आनू पणविधि नली, थार्या गाथा वरखाणो लो ॥॥ ॥१४॥ गीति प्रहे लिका श्लोक ए, गंधयुक्तिने कहीयें लो ॥अागं॥ तरुणीप्रसाधन ल दणे, नर स्त्री हय लहियें लो ॥अणान० ॥ १५॥ गजलक्षण वावीशमी, गोलदण रूडां जो ॥ अ० ॥गो॥ ताम्रचूड लदा जलां, मीढनां नहिं कूडां लो॥०॥ मी॥१६॥ चक्र बत्र मणि दमना, काकिनी असि केरा लो॥ ॥ का ॥ चर्मलदा ए ग्रंथमां, दाख्यां ले जलेरां लो ॥ दा॥ १७ ॥ चं सूरज ग्रह राहुना, लहे चरित्र विचारा लो ॥०॥ ला सूपकार विद्याकार वे, मंत्रगत निर्धारा लोधणाम॥१॥ रहगत व्यूह प्रतिव्यूहने, लहे चार प्रतिवारा लो ॥अल०॥ परिमाण स्कंधा चोरनु, पुर वास्तु स्कंधावारा लोण्यापुरा निवेश वली एवण्यना, हय गजनी शिदा लो ॥या ह॥ तत्त्ववाद नयशास्त्रमा, धनुर्वेद ददा . लोयाध॥२०॥ तेम मणि सोवननी कला, धातुर्वादे माह्या लोण. धा॥ वाद्दंम दृष्टि मुष्टिने, युझे जाये न वाह्या लो ॥०॥ यु० ॥२१॥ नियुछ वली वाग्युधमां, बेदु वांधव कुशला लो॥ध ॥ वे ॥ सर्प बहि जल स्थंननं, अंतर केणें न कल्या लो॥ ॥ ॥२॥ पत्रवेद वेदक तणी, कपि वाणिज्यकर्मनी लोक ॥ वली पलितनाशनकरी, कला कारक शर्मनी लोधक॥ २३ ॥ अथवा पदीरुत तणी, बहोतेरमी कहिये लोथ कला बहोचर नर तणी, प्रागमयी ए सहीयं तो ॥श्रया॥२४॥ जाण थया एहना घागुं, योवन वय पाया लोया यो॥ मनमोहन मनवालहा, सहुने मन नाया लो॥यास॥२५॥ सुमंदिर
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' श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. ए पुरनो धणी, निहतारि नरिंदनी लो॥ अनि ॥ प्रिय मित्रा ने मनोरमा, मेघरय वस्था सुकनी लो ॥णामे॥२६॥ तेहज नृपनी लघु कनी, दृढर थने आपी लो ॥॥॥ सुमतिनामें सुखदायिनी, रतिरसनी वापी लो ॥अ॥ र ॥॥ सुख विलसत संसारनां, मेघरथजीनी जाया लो ॥ अमे॥ सुत नंदिपेण मेघसेन , प्रसव्या सुखदाया लो ॥षाप्रण॥ २०॥ दृढरथने एक सुत थयो, रथसेन विचारी लो ॥ अण् ॥ र ॥ ते त्रणे नणे एकता, बुद्धि सहुनी सारी लो॥॥॥रए॥ सुख संपत्ति वि लसे घणी, अहो पुण्यनी लीला लो ॥॥॥ नेह घणो बदु वंधवने, रहे अहोनिश नेला लो ॥धारण॥३॥ पहेली हो पंचम खमनी, ढाल रूडी वखाणी लो ॥॥ ढा० ॥ श्री सुमतिसुगुरु सेवक कहे, धन्य एह कमाणी लो ॥ अ॥ध० ॥ ३१ ॥ सर्वगाथा ॥ ३ ॥
॥दोहा॥ ॥ धनरथ राजा एकदा, पुत्र पौत्र परिवार ॥ तखतें वेठा आवीने, सुंदर शोना सार ॥ १ ॥ मेघरथ जांखे तिण समे, निज पुत्रोने थाम ॥ वत्स कला मुज ागलें, परकासो गुणधाम ॥ २ ॥ प्रश्नोत्तर पूजो तुमो, कहो तस उत्तर सार । जनकवचन सुपी वोलियो, लघु बंधव तेणि वार ॥३॥ तद्यथा ॥ श्लोक ॥ कथं संबोध्यते ब्रह्मा,दानार्थे धातुरत्र कः॥ कः पर्यायश्च वाक्यानां,कोवाऽलंकरणं सताम् ॥१॥ ज्येष्ठ कहे सुण वांधवा,एहनो उत्तर खास ॥ “ कलान्यास " इति वली, कहे लघु वंधव उनास ॥४॥ श्लोक ॥ वित्तीय प्रश्नः ॥ दमनीतिः कथं पूर्वे,महारखेदे क उच्यते ॥ कोऽवलानां गतिर्लोक, पालः कः पचमोमतः॥॥ ज्येष्ठ कहे ए शुज कह्यु, “महिपति" एबुं नाम ॥ हवे हुँ पूडं ते कहो, मेघसेन धनिराम ॥५॥ तद्यथा तृतीयप्रश्नः॥ श्लोक। किमाशीवचनं राज्ञां,का शंजोस्तनुमंझनं ॥ कः कर्ता सुख दुःखानां, पात्रं च सुरूतस्य किम् ॥३॥ ए उत्तर देवा नणी, अजाण्या सद्ध कोय ॥ मेघरथजी तव कहे, "जीवरक्षा विधि" जोय ॥ ६ ॥ पुनरपि मेघरथेनोक्तं ॥ श्लोक ॥ सुखदा का शशांकस्य, मध्ये च नुवनस्य कः॥ निपेधवाचकः कोवा, का संसार विनाशिनी ॥ ४ ॥ कहे घनरथ जी "नावना", पद चिंटुं प्रश्नं थाय ।। उनर एवो सांजली,सदु हरख्या मनमांहि ॥७॥ण विनोद एहयो करयो, प्रश्नोत्तरनो सार ॥ण अवसर जेनीपन्यु, ते निसुणो नर नारि ॥ ७ ॥
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
॥ ढाल वीजी ॥
॥ चूडले जोवन ऊल रह्यो । ए देशी ॥ हो राजन ॥ गणिका एक यावी तिहां, कुर्कुट लेई एक ॥ राजन ॥ हारे न महारो कूकडो, कोइ खागल सुवि वेक || राजन ॥ १ ॥ वात सुणो वारू परें, न करो कोइ गुमान ॥ रा० ॥ जो कोइ गर्व करे मनें, तो त्राणो कूकड इस गए || रा० ॥ वा० ॥ २ ॥ हो राजन ॥ जो हारे मुऊ कूकडो, तो या धन लक्ष ॥ रा०॥ जो कोइ हारे अवरनो, तो लह लहुं प्रत्यक्ष ॥ रा० ॥ वा० ॥ ३ ॥ हो० ॥ गर्व घणो करती तदा, निसुली मनोरमा नारी ॥ रा० ॥ नृप दुकमथी मोक ब्यो, निज कुर्कुट तेलि वार ॥ रा० ॥ वा० ॥ ४ ॥ हो० ॥ जूऊल ला ग्या कूकडा, नृपागल दरवार ॥रा०॥ उलट पालट याये बने, चंचू चरण प्रहार ॥ रा० ॥वा॥५॥होणा अरुण नयण ततक्षण थयां, प्राथडिया जेम योध || रा० ॥ वाखा पण न रहे केसें, वैरथकी दुर्बोध ॥ रा० ॥ वा० ॥६॥ हो० ॥ त्रिदु ज्ञाने शोजित प्रभु, श्रीधनरथ राजान ॥ रा० ॥ कहे मेघर कुंवर जणी, सुण वत्स सुगुण निधान ॥ रा० ॥ वा० ॥ ७ ॥ हो० ॥ ए वे पंखीमांहिलो, नहिं हारे कोइ एक ॥ रा० ॥ कहे मेघरथ कारण किस्युं, कहे नृप वैर ए बेक ॥ रा० ॥ वा० ॥ ८ ॥ हो० ॥ ऐ रक्तानि देत्रमा, रत्नपुरें दोय सार ॥ रा० ॥ धनद सुदत्त नामें वसे, वणिक करे व्यापार ॥ रा० ॥ वा० ॥ ए ॥ हो० ॥ मित्राई वेदुने बनी, पण घरनामसकीन ॥ रा० ॥ मंत्रीयें जोडी बलदने, जाय पर गायें दीन ॥ ० ॥ वा० ॥ १० ॥ हो० ॥ चार नरे प्रतिही घणो, नूख तृपा वली तेम ॥ रा० ॥ बलद विचारा गुं करे, सहे निज कृतने एम ॥ रा० ॥ वा० ॥ ११॥ हो० ॥ मिथ्यात्वें मोह्या घणुं, कूड तोलां ने मान ॥ रा० ॥ करे अन्याय नपा, धन मेल्युं ए निदान || रा० ॥ वा ॥ १२ ॥ हो० ॥ एक दिवस धन कारणें, वढीया ते वेदु जोर || रा० ॥ अन्योन्ये एकेकने, दीघ प्रहार कठोर ॥ रा० ॥ चा० ॥ १३ ॥ हो० ॥ यास्तव्याने ते मुत्र्या, धन धनरथ करनार ॥ रा० ॥ नेह तोडावे पलक में, दुवे प्रत्यक्ष संहार || रा० ॥ वा० ॥ १४ ॥ हो० ॥ नरनव हारी ते दुवा, स्वर्णकुलाने कूल ॥ रा० ॥ दोय हस्ती सोहामणा, लोन वडो प्रतिकूल ॥ रा० ॥ वा० ॥ १५ ॥ हो० ॥ कंचनकलश पहेलो थयो,
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श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो. १ ताम्रकलश अनिधान ॥ रा० ॥ वीजो वेदु निज युना, थया स्वामी बलवान ॥ रा० ॥ वा० ॥ १६ ॥ हो ॥ एक दिवस तटिनीतटें, अटता दोय अमन ॥राण ॥ पडिया युद्धनी लालचें, नडिया ते जेम मन ॥ राण ॥ वा ॥ १७ ॥ हो ॥ पूरववैरें प्रेरिया, रोप चढ्या मदवंत ॥ रा० ॥ वींधाणा दंतोशलें, 'वेगु ते पास्या अंत ॥ रा० ॥ वा ॥ १७ ॥ हो ॥ नयरी अयोध्या कंपन्या, दोय सैरन नदंम ॥ रा ॥ नांदीमित्रने मंदिरे, शिंगाला परचम ॥राण ॥ वा ॥ १७ ॥ हो ॥ राजकुमरें ते संग्रह्या, वेदु लडाव्या ताम ॥रा॥ मरण लमु रोपें नखां, जोजो वैरनां का म ॥रा ॥ वा० ॥ २० ॥ हो ॥ तेहिज नयरमां ऊपन्या, दोय घेटा दृढकाय ॥ रा० ॥ नडता ते शृंगायगुं, निधन लह्या तिण नाय ।। रा॥ वा ॥१॥ हो ॥ कुर्कुट ए वेहू थया, प्रव नवने वैर ॥ रा ॥ रोपा रुण नयणां करी, यु६ करे एणि पेर ॥ राम् ॥ वा० ॥ ॥ हो । तेमाटे वेदुमांहीयी, कोइ न जीत्या जाय ॥ राम् ॥ वैर वधारयां जव नवें, आवी यामां थाय ॥ रा० ॥ वा ॥ २३ ॥ यतः ॥ वैरं विश्वानरो व्याधि, विपया व्यसनानि च ॥ महानाय जायंते, वकाराः पंच वर्धिताः ॥ ५ ॥ हो ॥ पंचम खंमें सोहामणी, वीजी ढाल विचार ॥ राम् ॥ वैर . न कीजें कोयु, समजानो ए सार ॥ रा० ॥ वा ॥ २४ ॥ ७० ॥ ५ ॥
॥ दोहो सोरती ॥ ॥ कहे मेघरथजी कुमार, धनरथजीने श्रादरें ॥ तात कयुं ते सार, वीजें पण कारण इहां ॥१॥ दोहो ॥ केवल वैर नहिं हां, वे वीजुं पण हेत ॥ कढुं पिताजी सांजलो, ते तुम्हने संकेत ॥ २ ॥
॥ ढाल त्रीजी ॥ . ॥ मोरा साहिब हो, श्री शीतल नाथ के ॥ ए देशी ॥ इह जरतें हो वरतें वैताढ्य के. नयर सुवर्णनान नामथी ॥ श्रेणि उत्तरें हो खेचर शिरदार के, गरुडवेग ने गुजमति ॥ १ ॥ तस अंगज हो चंद सूरथी दोय के, तिलक पदें तोह्यामणा ॥ जिनपडिमा हो सुरगिरिने ट्रक के, नमवा चाल्या दोजणा ॥ २ ॥ मुनि दीना हो तिहां सागरचंद के, चारण श्रमण गुणें नया ॥ प्रामीने हो वेला जइ पास के, सकल कलायें अलं
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जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. कस्खा ॥३॥ कर जोडी हो निसुणे मुनि वाणी के, पूरवनव पूजे किस्यो॥ कहे नाणी हो सुणो धातकी खंम के, ऐरवतें वजपुर इस्यो ॥ ॥ तिहां अनयथी हो घोपानिध राय के, हेमतिलकानो नाहलो ॥ दोय कुंवर हो जय विजयनो तात के, सोजागी महिमानिलो ॥ ५ ॥ शंखनूपति हो पुर एहवे सुवर्ण, के तस पृथिवीराणी जणी ॥ एक तनया हो - कंचनवर्ण के, पृथ्वीसेना वदु गुणी ॥६॥ आवी साहमी हो स्वयंवर था तेह के, परणी अजयघोष कंथने ॥ मृगनयणी हो मनोहर सुकु मार के, मन मानी घणुं संतने ॥ ७ ॥ वनमाहे हो अन्य दिवस वसंत के, नृप चाट्यो रमवा जणी ॥ शतराणी हो साथे उद्यान के, वनशोना जोवे घणी ॥ ॥ तिहां जोती हो वनतरुवरराजि के, पृथ्वीसेना पदमि पी॥ मुनि देखे हो दांत मदन महंत के, धन्य घडी मुज थाजनी ॥५॥ सुपी देशन हो पामी प्रतिवोध के,आण लही जरतारनी॥यहे दीक्षा हो शिक्षा धरे अंग के, समजावें नवतारिणी ॥ १० ॥ अनुमोदी हो वत्तीयो नूपाल के, निजपुरमांहे आवीयो ॥ पडिलाने हो एकदिन श्री अनंत के, जिन उद्मस्थनो जावियो ॥ ११ ॥ नृप आंगण हो प्रगट्यां पंच दिव्य के, जय जय सुर मुख उच्चरे ॥ लडें केवल हो जगवंत अनंत के, धनुक्रमें सुर सेवा करे ॥ १२ ॥ तस पासें हो वेदु तनय संघात के, दीख अजय घोप यादरे ॥ वीश स्थानक हो सेवे मुनिराय के, जिनपद नीकाचित करे ॥१३ ॥ सुत मुनिशुं हो अच्युत सुरलोक के, अजयघोप सुरवर थया ॥ तिहांथी चची हो श्री अजयघोपजीव के, राजा धनरथजी दुवा ॥१४॥ जय विजयना दो चवीया दोय जीव के, तुम्हें बंधव वेदु अवतस्खा ॥ एम नांव्युं हो सागरचंद साधु के, पूरवनव सुणी चित तस्यां ॥ १५ ॥ कहे मेवरथ हो ते खेचर दोय के, पूरवनव नेहें करी ॥ तुम नमवा हो मल वाने काज के, श्राव्या इहां चित्त हित धरी ॥ १६ ॥ चरणायुध हो ज. जता देखि के, बेदुजण वेदु अदिहिया॥ निज प्रातम दो गोपवीने यांहिं के, विद्यावलगुं पश्चीया ॥१७॥ नुपी ए हो मेवरथजीनुं वयण के,ते खे चर परगट या ।। कर जोडी दो धनरथजीना पाय के, प्रणमे हियडे गह गही ॥ १५ अम्ह पूरव हो नवचा तुम्हें तात के, जाग्यनने प्रल ने टीया ॥ ययां लीवन हो सफलां जगनाथ के, पुःख दोहग सवि मेटी
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पाचमो. २३ यां ॥ १५ ॥ नमी नेहें हो पहोता निज गेह के, गुरुपासें व्रत आदरी॥ तप उष्कर हो करे किरिया सार के, चरण नृपतिनी चाकरी ॥ २० ॥ घनघाती हो क्ष्य कीधां चार के, उज्ज्वल केवलसिरि वस्या ॥ सुख पाम्या हो शिवपदनां सार के, पलकमांहे नवजल तस्या ॥ २१ ॥ च रणायुध हो हवे ते निजवात के, पूरव जवनी सांजली ॥ मनमांहें हो कीधां निज पाप के, निंदे दोय वली वली ॥ २२ ॥ प्रणमीने हो धन रथ प्रनु पायके, अरज करे निज वाणी ॥ अपराधी हो स्वामी अम्हें जोर के, पाप प्रचुर कस्यां प्राणीयें ॥ २३ ॥ धनरथजी हो कहे समकित गुरु के, धर्म अहिंसा लक्षणें ॥ जावपूर्वक हो सदहिने दोय के, काल करे तिहां ततणे ॥ २४ ॥ नूताटवी हो मांहे ताम्रचूल के, स्वर्णचूल नामें नला ॥ देवयोनिमां हो थया ते नूतदेव के, अभुत रूपें कजला ॥ २५ ॥ उपयोगी हो झाने ते जोय के, वेसि विमाने आविया ॥ प्रण मीने हो घनरथना पाय के, कर जोडी कहे जाविया ॥ २६ ॥ धन्य स्वामी हो तुं जगदाधार के, अम्ह अनाथने उहया ॥ तुम्हें कीधो हो महोटो उपकार के, ध्येयपणे हवे बादस्खा ॥२७॥लहि आणा हो पहोता निज गय के, पांचमे त्रीजी ढालमां ॥ शुनसंगति हो करतां निश दीस के, फल लहीयें ततकालमां ॥२॥सर्व गाथा ॥१७॥ लोक तथा गाथा ५
॥दोहा॥ ॥हवे धनरथजी राज्यने, पालंतां एक दीस ॥ लव असारतामन वसी, चिंते एमजगदीश ॥१॥ विपय अनंता कालना,वलग्या ए जीव केड ॥ चेत चेत चेतन चतुर, देव विपयनी फेड ॥२॥ लोकांतिक सुर यावीया, इण अवसर उजमाल ॥ बूज बूज त्रिभुवनधणी, विपयथकी मन वाल ॥३॥ ती रथ स्थापी नविकने, करो क्षेम कल्याण ॥ जय जय प्रनु चिरनंद तुं, कहे सुर जोडी पाणि ॥४॥ दान देइ संवत्सरी, थापी मेघरथ पाट ॥ धनरथजी संयम लीये,मूकी सवि उच्चाट ॥५॥ केते काले पामियुं, उज्ज्वल केवल ना एनव्य जीव प्रतिवोधता, विचरे श्रीजिननाए ॥ ६॥ मेघरथजी सुख जोग वे, नयरी पुंमरिगिणीराज ॥ दृढरथ नाईगुंजलां, करे धर्मनां काज ॥ ७ ॥
॥ ढाल चोथी॥ ॥ वाडी फूली अति जली ॥ मन जमरा रे ॥ए देशी ॥ एक दिन नृप
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शश जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. मेघरथजी ॥ आणंदा रे ॥ बंधु रमणी परिवार ॥ घणुं सुखकंदा देवरमण उद्यानमां ॥ आणं ॥ आव्यो अवनि आधार ॥ घणुं ॥ शोके रहित अशोकने ॥ आप ॥ नीचे वेठो राय ॥ ध० ॥ ता जेम चश्मा ॥ अ० ॥ तिम शोने समुदाय ॥ध ॥ २ ॥ एहवे धावीने ॥ आ० ॥ मांमधु नाटक सार ॥ध ॥ चर्म वसन आयुध ॥ आ० ॥ नाचे विस्मयकार ॥ ध० ॥३॥ ते नाचतां आवीयुं ॥ एक विमान उत्तंग ॥ध ॥ सुंदर एक नरनारीनुं ॥ आ ॥ युगल सुचंग ॥ध० ॥ ४ ॥ नारी पूढे पियु कोण ए॥धा ॥ कर रथ मनरंग ॥ ध० ॥ सुण वैताढयथी उतरे ॥ आप ॥ नयरी अलक चंग ॥ध ॥ ५॥ विद्युतरथ कुल उपन्यो ॥ आ० ॥ ए खेचर रथ ॥ध ॥ वेगवती एहनी नारजा ॥ आप ॥ धर्म करण र ॥ध ॥ ६ ॥ धातकी खंमें जिन वांदवा ॥ आ दादार दंपती ॥ ध० ॥ वांदी पाबां चलता इहां ॥ आ॥ श्री वलीयो नूप । ॥ध ॥ ७ ॥ सहसा ए केम नीपन्युं ॥ आ गयाँ र के, जिन ध० ॥ सामान्य ए नरपति नहीं ॥ आप ॥ प्रितिष, जर ७ ॥ विमान तपी खलना दुई। आ० ॥ एहन सुमन में सु नूत रूप कीधा घणां ॥ आप ॥ नाटक करवा हर अनर राणी इण पूरवें ॥ आ० ॥ [ की, पियु पुण्य । वालिकाचित क पामीयो ॥ आ० ॥ कहो गुणरया अगण्य ॥
धारवर यया । पुरी॥ या ॥ कुलपुत्रक राजगुप्त ॥ ध० ॥ शंखिका दुवा ॥ २४ । आप ॥ निर्धनतायें विलुप्त ॥ध० ॥ ११ ॥ करे वतया ॥ एए ॥ था ॥ एक दिन काटने. 'ध ॥ गयां बन॥ १५ ॥ कर ॥ या ॥ तिहां दी Edurg ॥ १२ ॥ ममवा हो म श्रागलें ॥था० ॥ कहे मु.. -
मारणायुध हो ज याण ॥ दे मनोवांछित शर्म ॥
पोपवीने अनि था ॥ प्रनु कहाँ कोई उपाय:
के,ते से था० ॥ करो करुणा सुपसाय । ॥ या ॥ तप वत्रीश कल्याण ॥ ध० ॥ चार्थी, अहम दोय गुणवाणि ॥ ५० ॥ १५ ॥ गुरुदत्त
ए ॥ पूद्र ॥ जे एहवी झद्धिक नृप कहे सिंहपुर नारी तेहनी । परघरनी चाय न दुःखीयां वाय
नमि वेतन राध्यो सुरत "पती करा
धे
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. श्री शांतिनाथनो रास खंम पाचमो. २५ + पा० ॥ पारणे एक दिन साध.॥ ध० ॥ प्रारक अन्न ने पाणीयें ॥या॥ - पडिलान्यो निरावाध ॥ ५० ॥ १६ ॥ कालें ग्रहे अणगारता ॥ श्रा० ॥ ; नारी ने ते नाह ॥ध ॥ राजगुप्त गुरुयी सुरणे ॥ आ० ॥ तप अधिकार - उत्साह ॥ ध० ॥१७॥ तप कह्या विविध प्रकारनां ॥ आ० ॥ बोल्यां शक्ति = विशेप ॥ध ॥ पण आंविल वर्धमाननो ॥ आ० ॥ महिमा अधिको रेष = ॥ध० ॥ १७॥ एकेक वधते आंबिलें ॥आ ॥ शतसंख्या लगे सार - ॥ध ॥ उलीने बेहडे करे ॥ आप ॥ पारणुं निरतिचार ॥ध०॥ १५॥ . उती उलीने बेहडे । आ० ॥ एकेक कह्यो उपवास ॥ध० ॥ मन चढते अंतर विना ॥ आ॥ नहिंतर पारण खास ॥ध ॥ २० ॥ सहस पंच यांविल कह्यां ॥ आप ॥ तेम उपरें पंचास ॥ध० ॥ शत उपवास उली तणा ॥था ॥ ए तप कीजें नन्नास ॥ध ॥ २१ ॥ चौद वरस त्रण्य मासनी ॥ था ॥ नपरें दिन वलि वीश ॥ ध०॥मान कह्यु ए तप तणुं ॥ आ॥ सूत्रमाहे जगदीश ॥ध ॥ २२ ॥ राजगुप्त ऋषि आदरे ॥ आ० ॥ ए तप आनंद पूर ॥ध० ॥ शमतारसमा जीलतो ॥ था ॥ दिन दिन चढते नूर ॥ध० ॥२३॥ काल करी सुर जपन्यो ॥ आ० ॥ ते पंचम सुरलोक ॥ध ॥ तिहाथी चवी सिंहस्थ थयो ॥ आ ॥ ण नवें ए गतशोक ॥ध ॥ २४ ॥ शंखिका पण तिहां अवतरी ॥ था ॥ वेगवती थइ नारि ॥ ५० ॥ सिंहरथने वनन घj ॥ आ० ॥ पूरवनेह विचार ॥ ध० ॥ २५ ॥ मेघरथना मुखथी सुणी ॥ आ ॥ निज पूरव
अवदात ॥ध ॥ प्रतिज्यो सिंहस्थ तदा ॥ आ ॥ धन धन उत्तम जति ॥ ध० ॥ २६ ॥ मेघरयने वंदी वल्यो ॥धा ॥ सिंहरय निजघर रथ वि ॥ध ॥ तनयने राज्य वेसारिने ॥ आ० ॥ ग्रहे संयम समनाव सर ० ॥ २७ ॥ श्रीधनरथ जिनवरकनें ॥ श्रा० ॥ तप तपियां यसराल संयम ती! कर्म खपी केवल लही ॥ ॥ मुक्ति गया ततकाल ॥ध ॥ ए॥नव्य जीव प्ररथ नृप श्राविया ॥ प्रा० ॥ वनडूंती निज धाम ॥ धo वे,नयरी घुमरिगिणं नती ॥ या ॥ करे गुन धर्मनां काम ॥ध ॥ए ।
पंचमे ॥ धा० ॥ जव दशमो अधिकार ॥ध ॥ रामवि ॥ वाडी फूलीत आ॥ धागल बहु विस्तार ॥ध०॥ ३० ॥१३॥५॥
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२२६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
॥दोहा सोरती ॥ ॥ हवे एक दिन मेघरथ, पोपध व्रत लेवा नणी ॥ नूपए मूकि गरथ, आवे पौपधशालमां ॥१॥ वेठो आसन योग, योगीश्वर जिम मन रती॥ मूकी इंघिय नोग, पोपध व्रत लेई करी ॥ २ ॥ धर्म कहे एकचित्त, राजे श्वर आगें तदा ॥ एहिज डे जगमित्र, अवर न को कगारशे ॥३॥ जोतां ए संसार, लाग्युं जेतुं पलेंवर्ल्ड ॥ कोइ न तारणहार, जीवदया विण जीवने ॥ ४ ॥ मानी लीधुं सुख, मुज मनमा माने नहिं ॥ जस अंतें होय फुःख, ते सुख केहा कामनुं ॥५॥ सुख सहजें जे होय, जे उपाधि ते सुख नहीं ॥ ए गति न्यारी कोय, सुख दुःख पुजलयी लमु ॥ ६ ॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥ जगतगुरु हीरजी रे ॥ ए देशी॥ एणे अवसर एक पंखियो रे, थर थर धूजते अंग ॥ पारावत धावी पज्यो रे, नृप मेघरथने उत्संग॥ १ ॥ राजेश्वर राखीये रे ॥ तुं शरणागत साधार, घणुं झुं नांखीये रे ॥ ए यांकणी ॥ मनुज वाणी एम बोलतो रे, तरल नयन नयनीत ॥ मत वीहे तुं वापडा रे, नृप संतोपे हित रीत ॥रा ॥ २ ॥ एम नरपति बोलावियो रे, खेचर थयो निर्जीक ॥ तावत् त्यां एक धावियो रे, पंखी सिंचाणो नजीक ॥ रा० ॥ ३ ॥ सुण राजन तुम कोडमा रे,जे पंखी मुफ जद ॥ मूक मूक पारेवडो रे, हुं नूख्यो बुं घj दद ॥रा॥॥ कहे मेघरथ ए माहरे रे, शरणागत थयो जेह ॥ युक्त न काढी आपतां रे, जीवंतां ए देह ॥ राम् ॥ ५ ॥ दतहूंती राखे तेणें रे, दत्र कह्यं जगमांहि ॥ ते पद जो हूँ न जालवु रे, तो नामें गुं थाय ॥ रा ॥ ६ ॥ यतः ॥ दोहो ॥ केशरीकेश मुजंगमणि, गरणां ए सुहडांह ॥ सती पयोहर कृपण धन, चढशे हाथ मुवांह ॥१॥ पूर्वढाल ॥ परमाणे निजप्रा गर्नु रे, पोपण न घटे तुज ॥ नरक कारण हिंसा कही रे, कारज म कस्स अफ ॥ राम् ॥७॥ एक पिच ठेदे ताहरे रे,अंगें होय असमाधि । तेम वीजाने पण सही रे, हिंसा ए महोटो व्याधि ॥रा० ॥ ७ ॥ पल नखंतां एहनुं रे, तृप्ति होगे तिलमात्र ॥ पण पंखीना प्रापनी रे, झी गति होशे चात ॥ रा० ॥ ए ॥ वद्य पंचेंडियनो करे रे, महापरि ग्रह थारंन ॥ मांस तणा श्राहारथी रे, नरकायुनो प्रारंन ॥ राम् ॥ १० ।
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो.
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॥ यटुक्तमागमे ॥ कहां ते नेरश्या व्यत्ताए कम्मं पकरंति गो० चनहिं कारणेहिं नेरयिया जयत्ताए कम्मं पकरंति तं महारंजयाए महापरिग्गहि याए पंचिंदिय वहेणं कुणपाहारेणं ॥ २ ॥ इति जगवत्यां ॥ पूर्वढाल || हिंसा थकी निसुणो सही रे, नरकें गयो रे निपाद । जीवदयाथी वानरी रे, स्वरग गइ रे आह्लाद || रा० ॥ ११ ॥ कहो स्वामी ते कोण दुधारे, तव मेघरथ नूपाल ॥ श्येनपंखी प्रतिबोधवा रे, कहे उपदेश रसाल ॥ रा० ॥ १२ ॥ हरिकांता नामें जली रे, नयरी निरुपम ठाम ॥ त्यां दरिपाला निध नलो रे, राजेश्वर गुणधाम ॥ रा० ॥ १३ ॥ तिए न यरी परिसर घणां रे, शाखामृगनां रे वृंद ॥ वनमांहे क्रीडा करे रे, फल फूल खाइ ध्यानंद ॥ रा० ॥ १४ ॥ निर्दयते कृतघ्नी घणो रे, यम किंकर उपमान ॥ घातक नाम निवाद बेरे, ते नयरीमां अजाण ॥ रा० ॥ १५ ॥ व्यसन याहेडानुं घणुं रे, लाग्युं पूर्वनुं पाप ॥ नित्यप्रतें जीव हो बहु रे, उपजावे परिताप ॥रा० ॥ १६ ॥ श्यो मृगयामां दोप बे 'रे, ते बोले एम खान || निज खातमने पोपवा रे, कुष्ट घणुं नजमाल ॥ रा० ॥ १७ ॥ यक्तं मृगयानिलापुकैः ॥ अवलस्वकुलाशिनोऊषान्, निजनीडंडुम पीडिनः खगान् ॥ अनवद्यतृणार्दिनोमृगान्मृगयान्नून्नहि तां प्रताम् ॥३॥ पूर्वढाल ॥ तेहमां हरिप्रिया नामयी रे, वानरी जड़क एक ॥ मांसविरत माही घणुं रे, मनमांहे वस्यो रे विवेक ॥ रा० ॥ १८ ॥ हवे ते निपाद एकल समे रे, शस्त्र ग्रही निज पाणि ॥ वनमांहे मृगया था वीयो रे, करवा जीवनी हानि ॥ रा० ॥ १९ ॥ बागल जातां देखीयो रे, वाघ सवल विकराल || जय पामी वृछें चढ्यो रे, ते घातक तत्तकाल ॥ ० ॥ २० ॥ पादप ऊपर पूरवें रे, रहि कपिविनता तेह || वाघजयें मुख फाडिने रे, थर थर धूजे देह || रा० ॥ २१ ॥ ते देखी वीहिनो वली रे, तब वानरी निज रूप ॥ यइ तस पासें च्यावियो रे, तेह निपाद वि रूप ॥ ० ॥ २२ ॥ विश्वासें तस वानरी रे, जोवे शिरना केश || मस्तक मूकी उत्संगमां रे, सुतो विटप सन्निवेश ॥ रा० ॥ २३ ॥ वाघ जोइ नीचो रह्यो रे, निमांहे निषाद || वानरीने नांखे इस्युं रे, सुण मुग्धा गतसाद || रा० ॥ २४ ॥ शुं उपकार करण एवढो रे, नहीं कोई तस जाए || जे उपकारने उलखे रे, चाकरी तास प्रमाण || रा० ॥२॥ चली
नूनृ
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वाचता ॥दोहा न मजार
शत जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. विशे मानवी रे, जगमां हे गुणचोर ॥ सांजल दूं कहूँ तुमने रे, माण सथी जलां ढोर ॥ रा० ॥ २६ ॥ पंचमखमें पांचमी रे, ढाल कही मन रंग ॥ वातज कहेशे वाघलो रे, माणस ऊपर चंग ॥रा॥७॥१७॥॥
॥दोहा॥ ॥ वाघ कहे सुण वानरी, एकण ग्राम मकार ॥ शिवस्वामी नामें वसे, वाडव वेद विचार ॥ १ ॥ एक दिवस ते नीसयो, करवा तीरथ यात्र ॥ नमतां अटवीमा पड्यो, सूधो दुवो तृपाः ॥ २ ॥ जल खोलतां चिटुं दिशे, जीरण दीतो कूप ॥ जल कारण थाव्यो तिहां, वाडव आतुररूप ॥३॥ रङ्गु करी तृणमय तदा, करपत्रक तिहां वांधि ॥ जल कारण मांहे धखो, ब्राह्मण रूडी संधि ॥ ४॥ तिण दोरें वलगी तदा, कूपयकी कपि एक ॥ वाहिर आव्यो ते तदा, चिंते हिजवर क ॥ ५ ॥ सफल थयो आयास मुज, थयुं एहने आशान ॥ कूप पड्यो में उइयो, महोटुं जीवितदान ॥ ६ ॥ वीजी वारें नीसख्या, वाघ जुजंग संत्रांत ॥ दोडी ब्राह्मण पग पड्या, हररच्यां मन अत्यंत ॥७॥ उपगारी जाणी नमे,ते त्रि, मां कपि ताम ॥ जातिस्मृति अदर लखी, हिजने जपावे धाम ॥ ७॥ यहो मथुरा नगरी वसुं, अबुं तुम्हारे वश॥एक वार तिहां धाव, करछु नक्ति अवश्य ॥ ए ॥ वली तमने एक वीन, एहमां अवे मनुष्य ॥ ते मत काढो तुम्ह नणी, करशे अहित प्रत्यद ॥ १७ ॥
॥ ढाल नही॥ ॥काया कामिनी वे लाल ॥ ए देशी ॥ ते एम नांखी वे लाल, निज स्था नक गया॥हिन एम चिंतेवेलाल,ए उत्तम दुया॥ त्रूटक ॥ ए. दुया उत्तम मनुज सत्तम, सकल जीवमांहे शिरें ॥ मुज पास हूंतां एह मानव, कहो ने ते केम मरे ॥ १ ॥ कीजें सहुने बे लाल, शक्तिये उपकारडो॥ मानो बहुने वे लाल, जीवित प्यारडो॥ ० ॥ प्यारडो जीवित जगत जनने, तिहां नहिं संदेह ए॥ते माटें एहने करुं उपळति,सफल होवे एह ए ॥२॥ काढयो तेहने वे लाल, दोरी मूकी करी ॥ पामें आव्यो वे लाल, प्रणमें हित धरी ॥ त्रू० ॥ हित धरी प्रणमे चरण तेहनां, पूठियुं तुं कोण ॥ ते कहे मथुरा नयरिवासी, स्वर्णकार अटुं सचे ॥३॥ काज नदेशी व लाल, थाव्यो इहां कणे ॥ परदेशी वे लाल, कूपें जीरणे ॥ ४ ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. शशए जीरण कूपें जलहकानें, पड्यो तृप्मातुर थयो ॥ उगीयो कूपकमांहे तरुवर, शाखा अवलंबी रह्यो॥४॥ एहवे तरप्या वे लाल,अहिमुख आवीया॥ जल पीवाने वे लाल,कूप लंबावीया ॥ ॥ लंबाविया सम सुःख माटें,वैर बांमीने रह्या उगारीया तें सुगुण आवी,एह वीतक सवि कह्यां ॥५॥ सुण उपकारी वे लाल, मथुरा आवतुं ॥ अहोनिश तुम्हचुं वे लाल, समरण नाव . ॥ ॥ आवq अमचे नयर हिजवर, नक्ति करशुं तुम तणी ॥ इम कही चाव्यो तेह सोवन, कार नयरी आपणी ॥ ६ ॥ तीरथ करतां वे ‘लाल, ते हिज अनुक्रमें ॥ केते दिवसें वे लाल, मथुरा संक्रमे ॥ ॥ संक्रमे मथुरावनमांहि, यावीयो तव उलख्यो ॥ वानरो हरख्यो हृदय मांहे, तेह अनुमाने लव्यो ॥ ७ ॥ चरणे नमियो वे लाल, फल आगल धयां ॥ कहे उपशमियो वे लाल, तुम गुण सांजस्खा ॥ ॥ सांजस्या .... तेहवे वाघने पण, करे नक्तिनावें नस्यो । यझानथी वनराजसुतने, हणी नूपण ढग कस्यो॥॥ जू तिर्यंचें वे लाल,गुण नविउलव्यो ॥ वाचा पाली वे लाल, धिक् नरनो लव्यो ॥ ॥ जु नरनो लव्यो हवे तुम्हें, देश् या शिप पुर गयो ॥ करी तीरथयात्र पूजे, किहां नाडिंधम रह्यो । ए॥ खो ली काढयो वे लाल, तेह कलादने । नयणे निरखी वे लाल, लह्यो आ हादने ॥ ॥ थाह्लाद लहियो हिजे पण तिणे, निरखी नीचं नाली युं ॥ मनमांहि चितें रखे मागे, हेज सघर्बु गालीयुं ॥ १० ॥ बांजण वो व्यो वे लाल, नाडिंधम गुणी ॥ अ॒ नवि जाणो वे लाल, माया अवगुणी ॥ ॥ अवगुणी माया हवे जाया, अटवी तुम जूली गई ॥ सुपी ऊतयो तुरत प्रगमे, सुरत मुझने नवि रही ॥ ११ ॥ कहे कर जोडी वे लाल, परकासो मुने ॥ कारज वहालुं वे लाल, जे होये तुने ॥ ० ॥ ते कहे मुझने एह नूपण, किणही दी, दक्षिणा ॥ एहनुं मुफ मूख्य आपो, सुणि कलाद विचणा ॥ १२ ॥ तेहने सोंपी बे लाल, गयो तदिनीज में ॥ स्नान करेवा वे लाल, तन मेलो मलें ॥ ० ॥ मलें मेलो स्नान करवा, गयो हवे इण अवसरें । वाजतो पडहो देखी पासे, कान ते उंचा धरे ॥ १३ ॥ किणहिक माखो वे लाल, नृपयंगज नलो ।। नृपण काजें वे लास, ए कुल चांदलो ॥ ॥ चंदलासम ते होय दीठो, जेणें ते मावि दाखजो ॥ वध्य नर होशे नहीं तर, हियामां मत राखजो ॥ १४ ॥
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
सोनी चिंते वे लाल, ए महारुं घड्युं ॥ कर्म संयोगें वे लाल, कर यावी चढयुं ॥०॥ यावी चढयुं मुफ तेह महारो, नहिं गोत्री नहिं सगो ॥ तिल कारण कां करूं अनरथ, एम थयो मन कनगो ॥ १५ ॥ गुण वीसारी वे लाल, जइ पडहो बच्यो ॥ नूपण देइ वे लाल, नृप आगें लव्यो ॥ ० ॥ लव्यो ब्राह्मण वात दाखी, नृपें बांधी मगावीयो ॥ पृढीया पौराणिक घणा, श्यो दंग इ शिर यावियो ॥ १६ ॥ ते कहे स्वामी वे लाल, ज्ञाता वेदनो ॥ करता महोटो बे लाल, वंश उच्छेदनो ॥ ० ॥ वंशनो वेद करता, हयां नहिं कोई दोष ए ॥ रासनारोहण कस्यो ततऋण, नृप चढ्यो घण रोप ए ॥ १७ ॥ राजादेशें वे लाल, बाहिर काढीयो ॥ चंदन लेप वे लाल, बांध्यो गाढ़ीयो ॥ ० ॥ गाढीयो बांध्यो वध्य भूमि, लेई जाता चिंतवे ॥ मुक्त करयां पूरव उदय घाव्यां, रोये गुं होवे हवे ॥ १७ ॥ मुने मलियो वे लाल, कृतघ्न ए वडो ॥ वानर वाघें वे लाल को मुज परवडो ॥ ० ॥ परवडुं कयुं में न कीधुं, चिंती यापद नी ॥ कहे विजवर श्लोक दोय तिहां, सुणे खलक तिहां खड़ी ॥ १९ ॥ तद्यथा ॥ व्याघ्रवानरसर्पाणां यन्मया न कृतं वचः ॥ तेनाहं दुर्विनीतेन, कलादेन विनाशितः ॥ १ ॥ वेश्याऽहाराजचौराथ, नीरमार्जार मर्कटाः ॥ जातवेदा कलादव, नविश्वास्या इमे कचित् ॥ २॥ पूर्वढाल ॥ दोय पद्य जगतां वे लाल, श्रवणें सांगव्यां ॥ वाड विचालें वे लाल, भुजगें घट कल्यां ॥ ० ॥ टकल्यां भुजगें एह द्विजवर, जिणें अमने उदखा ॥ हा हा ते गुणवंत महोटा, याज एम कष्टें जखा ॥ २० ॥ उक्तं च ॥ उपकारिणि विश्रब्धे, साधुजने यः समाचरेत्पापम् ॥ तं जनमसत्यसंधं, नगवति वसुधे कथं वदसि ॥ ३ ॥ अशनमात्रकृतज्ञतया गुरोर्न पिशुनोपि शुनो जनते तुलाम् ॥ विपकते सखिता खले, न खल खेलति खेलतिका यथा ॥४॥ रूपवंत गुणहीन० ॥ पूर्वढाल ॥ यहि मन चिंतवे वे लाल, बहुगुण जेहनो ॥ कांइक थानं वे लाल, करण एहनो ॥ ० ॥ यानं करण मन विमासी, गयो वाडी क्रीडती ॥ तिहां राजकन्या मसी ततक्षण, पडी धव देश दोडती ॥ २१ ॥ दासीमुखथी वे लाल, नृप ए सांजक्युं ॥ हा हा नांखे वे लाल, मन थयुं व्याकुतुं ॥ ० ॥ व्याकुलुं मन करि चित्त चिंते, दुःख समकालें नड्युं ॥ हजी एकनो मुक पार नाव्यों, बीजुं एम
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. श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो. ३१ धावी पडद्यं ॥२२॥ नृपें वटु तेड्या वे लाल, तिहां कणे मांत्रिका ॥ जाण ने जोपी वे लाल, वदुला तांत्रिका ॥ ॥ तांत्रिका कोश्थी पार नाव्यो, कहे एम मंत्रवादीयो ॥ मुज अत्रे निर्मल झान सधु, नहिं दुं जन्मा दीयो ॥ २३ ॥ जेहने निहणे वे लाल, ते निकलंक डे ॥णे कांतारें वे लाल, नझरिया अजे ॥ ॥ नइस्या एवं व्याल वानर, वाघ नाडि धम वली ॥ ते इहां आव्यो पूजियो फल, फूलगुं कपि मन रली ॥ २४॥ तेम वली वा वे लाल, एहनी जक्तिने ॥ तुझ सुत हणियो वे लाल, वलीये शक्तिने॥॥शक्ति वलीये एह नूपण, आपीयु ले एहने ॥ ते माटें राजन कहूँ तुमने,म मारिश गुणगेहने ॥२५॥ इण हिज नोले वे लाल,मौष्टि कने कडें ॥ ते कृतघनथी वे लाल, तें सघलुं लघु ॥ ॥ लघु स घटुं पुष्ट जाणी, हुकम मारणनो कीयो ॥ विचमांहि जातां तेह नुजगें, एह इिंज अवलोकियो ॥ २६ ॥ मूकावणने वे लाल, तुम पुत्री मसी ॥ जो ए मूको वे लाल, तो जीवे हसी ॥ ७० ॥ हसी जीवे राय पूजे, कोण प्रत्यय ए सही ॥ अवतारीयो जिण मंत्रवादीयें, ते मुजंगम तिहां वसी ॥२७॥ तिणे सवि मान्युं वे लाल, हिज नृपें मेलीयो । सर्प चूशी वे लाल, विष पाटो लियो ॥ ० ॥ लीयो विप सा दूइ निर्विप, हर्प सदु कोई लह्या ॥ कहे मंत्रवादी निसुणि वाडव, धन्य अहि जातें कह्या ॥ २७ ॥ पंचम खंमें वे लाल, ठही ढालमां ॥ प्रत्युपकारी वे लाल, एहवी चालमां ॥ ॥ चाल एहवी जेह राखे,गुण कस्यो न विसारे ए॥ मुनि रामवाणी सुपो प्राणी, जश्ये तस बलिहार ए ॥ ॥ ॥ २०॥१॥
॥दोहा॥ ॥ कर जीव कृतगुण लहे,न लहे मनुष्य कतन्न । कगायो यहियें एने, करयुं कलाद विपन्न ॥१॥ वात सकल मामी कही, नृप यागल हिजराज ।। तुष्टचित्त राजा थइ, दीधुं देशराज ॥ २ ॥ शिवस्वामी हिज देश निज, पू जा नागविधान ॥ नागपंचमी पर्व-, बरताव्युं मंमाण ॥३॥ एह कथा वायें कही, वानरी आगे सार ॥ माणस जेहवो को नहिं, स्तन्न वडो गमार ॥ ४ ॥ जेम रख दी, लोनीय, ब्राह्मणने निर्धार ॥ तेम तुक पुःख देशे सही, एह निपाद विचार ॥ ५ ॥ नद महेल ए माहीं. शुं . कई वारो वार ॥ हरिप्रिया हर्षे करी, निज जीवित उगार ॥ ६ ॥ कपि
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२३२ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. नारी सारी घj, मूके नही निषाद ॥ विश्वासें रह्यो माहरे, उध्यो मन थाह्लाद ॥ ७॥ जो नाखुं दुं एहने, तो लागे मुफ पाप ॥ चिंती अबोली रही, नहिं मनमां संताप ॥ ७ ॥
॥ ढाल सातमी ॥ ॥ वीरमाता प्रीतिकारिणी ॥ ए देशी ॥ वाघ बेसी रह्यो तरुतलें, मन एम विमासे॥धन्य तिर्यच पण एहवी,धरे प्रीति नन्नासें ॥१॥ धन धन तेह जग प्राणीया, मल्या लेह जे नापे ॥ उर्जन कुष्ट नूंमा सही, प्रीति अधविच कापे ॥ध ॥ २ ॥ तेह निषाद जब जागीयो, तब वानरी सूती ॥ देश उत्संग शिर तेहनें, सुवे पुण्य पनोती ॥ध ॥३॥ व्याघ्र आवी समीपें कहे, सुण व्याध तुं वात ॥ म कर विश्वास वानरी तणो, सहि लहिश नपघात ॥ध ॥ ४ ॥ तुं सुखें जीव दीये मुझने, एह वान री बाला ॥ सप्तदिन कुधित आजीविका, शमे अनिनी ज्वाला ॥ध० ॥ ५ ॥ नहिं दीये तो तुजने सही, थशे फुःखनुं हेतु ॥ वानर जाति कोश्नी नो हे, जिम नूत ने प्रेत ॥ध ॥ ६ ॥ निसुण न सुण्यं पुररायने, हण्यो. वानरे मूडें ॥ कहे रे निषाद मुज आगलें, कहो वातए रूडे ॥ध ॥७॥ ते कहे नागपुर नयरमां, नृप पावक नामें ॥ एकदा वक्रतुरगें चढी, गयो केलि बारामें ॥ ध० ॥ ॥ अश्व दोडावतां अपहरी, गयो रायने लेई ॥ नमतां वनमां तृषातुर थयो,नदयें अगुज आवे ॥धाए॥ एक वानर मल्यो तेहने, फल उत्तम दीधां ॥ वारिसर तास देखाडीमु, नृप कारज सीधां ॥ धम् ॥ १० ॥ वारिपान फलनदण करी, तरु शीतल बांही ॥ राय वेगे तदा पूग्धी, सदु आवीयुं धाई ॥ध ॥ ११ ॥ सैन्य साथें नृप पुर व व्यो, यही वानर साथें ॥ जाणि उपकार आपे जला, फलमोदक हाथे ॥ध ॥ १२ ॥ पासें राख्यो नृपें तेहने, अंगसेवना काज ॥ मास वसं तमा एकदा, गयो वनंतर राज ॥ध० ॥ १३ ॥ केलिघर पुष्पक्रीडा करी, नृप शांत थइ सोवे ॥ अंगरदक कपि पासें ते, रह्यो चिटुं दिशि जोवे ॥ ध० ॥ १५ ॥ चमर गुंजित याव्यो तदा, नृप अंगपर वेटो । खगधारी तदा वानरें, निज नयणले दीतो ॥ध ॥ १५ ॥ स्वामिनी नक्ति करते थके, कपि बुद्धि नबेदी ॥ भ्रमर मारण मि रायनी, मूढे कंधरा दी॥, ध० ॥१६॥ जे दूतो अति हितकारीयो, थयो अतिहि सुखकारी ॥ जाति
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. ३३ ए मूढ वानर तणी, किसी एहगुं यारी ॥ ५० ॥ १७ ॥ वात निसुणी निपा करी, तदा वानरी नाखी ॥ वाघ आगल पडी वापडी, धिक् एह
वा सारखी ॥ ध० ॥ १७ ॥ वाघ कहे खेद नवि कीजियें, कस्यो जेहवो , संग ॥ तेह फल तुमने हू, नहिं नीचथी रंग ॥ ध० ॥ १५ ॥ यमुक्तं ॥ चोपा ॥ नीच तणो नव कीजें संग, जो कीजें तो होवे नंग॥ हाथ थंगारो ग्रहे जेकोय, का दाफे का कालो होय ॥ १ ॥ दोहो ॥ संगति की जें साधुकी, हरे उरकी व्याधि ॥ बी संगति नीचकी, बाते पहोर उपाधि ॥शाश्लोक। गुणिनः समीपवर्ती,पूज्योलोकेषु गुणविहीनोपि ॥ विमलेक्षण प्रसंगा,दंजनमाप्नोति काणादि ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ तब उत्पन्नमति वानरी, जणावे निज शाने ॥ हित कढुं प्राण ने माहरां, एह पुतने तारों ॥ध ॥२०॥ आगलथी ग्रहो एहने,पडे अंग तुज हाथे ॥ तेम कहुं तेणे देश पुनने, चढी वृदने माये ॥ध० ॥ २१ ॥ वाघ विलखो थश्ने वट्यो, थयो अदृश्य तिण वेला ॥ उत्तयां उदयी ततहणे, नर वानरी नेलां ॥ ध० ॥२॥ निजलतावास लेई गई, अवगुण न संजाखो ॥ धन्य जगत जिहां एहवां. करे पशु उपकारो ॥ध ॥२३॥ निज शिशु पास मूकी करी, गइ फुल फल लेवा ॥ उष्टं नूखें नरव्यां वाल ते, जून नीचना हेवा । ध ॥ २४ ॥ यउक्तं ॥ गाथा ॥ अलमेव वितुाणं. मुहमेव अहीए तय मंदस्त ॥ दिहि वियं पिसुणाणं, सचं सबस्त जयजयं ॥ ४ ॥ खमीकवि पजालीनवि चुप्लीकवि चुम व ॥ जीहाफलाइनवि दु, जणे दाहं अहो पिसुणो ॥ ५॥ दोहो ॥ जट्टा नूप नुयंगमह, ए मुह महिला इंति॥रीवींनी वाणीयो,पूलें दाह दियंत ॥६॥पूर्वढाला फल ले आवी ते वानरी, सूतो ते नर देखि ॥ पासें निजवाल दीतां नही, पडी ब्रांति सुवि शेप ॥ध ॥ २५ ॥ तोहि उठाडी तेहने दीयां, फल अति घण मीठां ॥ बाल जोवा जणी नीकली, तिए सायें नवि दीवां ॥२६॥ इदगारवाढूंती पूरवें, पापीयें पाडी ॥ वाल नक्षण करयां पण तदा, न बोली किस्युं श्राडी ॥ ३० ॥२७॥ जुवो गुणवंत तिर्यंचमां, कह्या सातमी ढालें ॥धन्य जेन कटयावी पडे,एम निज मन बाले०॥॥२४५॥१७॥
॥ दोहा सोरती ॥ ॥ चिंते उष्ट विचार, मनमां खेदाकुलयको ॥ थहो महारी व्यापार,
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পদপ
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
याज सकल निष्फल ययो ॥ १ ॥ खाली केम जानं गेह, बीजो को मलियो नहीं || एम चिंती हणि तेह, वानरी खंधें जेइ चल्यो ॥ २ ॥ जाये घर जी जाम, प्रकट थई कहे वाघलो || नीच कस्युं गुं काम, वि वांके ही वानरी ॥ ३ ॥ पुत्र तणी परें जेण, पापी तुमने पालियो || ह एतां केम करे, तुक दियडुं चाल्युं दहा ॥ ४ ॥ रे पापीया जाए, मुह लेईने जा परो ॥ कृतघ्नी तुक समान, अवर कोई दीठो नहिं ॥ ५ ॥ एम निर्नृबी वाघ, विटने मूकीने गयो | कुकर्मजलधि ताग, घेर याव्यो ते पापीयो ॥ ६ ॥
॥ ढाल प्राठमी ॥
॥ घरे यावोजी खांबो मोरीयो ॥ ए देशी ॥ वात सुणी जनमुख यकी, पुरनाथ कोप्यो ततकाल ॥ जग कडवां कर्म न कीजियें ॥ ए यांकणी ॥ डुं वानर प्रतिपालना, करुं एथयो वानरकाल ॥ ज० ॥ १ ॥ याए लोपी एणें माहरी, ग्रही लावो बांधी मुऊ पास ॥ ज० ॥ काम कर्तुं ए प्राकरूं, नवि जोयुं रे कांही विमासि ॥ ज० ॥ २ ॥ यदुक्तं ॥ याज्ञा जंगो० ॥ राजसेवकें जइ प्राणीयो, मायो महोकम तेणी वार ॥ ज० ॥ हुकम कस्यो मारवा तपो, लेइ चाव्या ते निरधार ॥ ज० ॥ ३ ॥ वाघ मल्यो मारग कहे, एहनुं मारण नहीं युक्त ॥ ज० ॥ सेवकें ज नृपने कयुं, धाव्यो कौतुकथी सुणि वक्ति ॥ ज० ॥ ४ ॥ वाघ कहे पापी घणुं मत मारो एहने राय ॥ ज० ॥ पापी पापें हो आपणे, जेवाये रे एम कहेवाय ॥ ज० ॥ ५ ॥ विस्मय नही राजा कहे, तुम्हें पशु रूपी नरवाणी ॥ ज० ॥ मुऊ मन ए कौतुक घणुं, परकासो तुम्हें गुण खाणी ॥ ज० ॥ ६ ॥ कहे वाघ उद्यानमां यावीया, मुनि नांखो मा हरी वात ॥ ज० ॥ एम कही गयो वाघलो, हरख्यो नृप सुणी अवदात ॥ ज०
|| देशयकी काढयो परो, नरपतियें तेह निपाद ॥ ज० ॥ वहु लोक निनूँढ्यो यति घणुं, गयो धरि मनमां विखवाद ॥ ज० ॥ ८॥ यागमन सुपि गुरुराजनुं, नृप याव्यो वंदन काज ॥ ज० ॥ वेगे यावी ने आगनें, गुरु देशन दे घनगाज ॥ ज० ॥ एए ॥ गुरु कहे शेह न कीजि यें, कोई ऊपर सुण नरचंद ॥ ज० ॥ वली विश्वासीनो शेह जे, सदु पातकमांहे इंद ॥ ज० ॥ १० ॥ नृप अंजलि जोड़ी कहे, प्रभु नांखो निर्म
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पाचमो. २३५ स झान ॥ ज० ॥ कपिनारी मरी किहां गइ, मुज दाखो मायं मान ॥ ज० ॥ ११ ॥ कहे गुरु सुण सावधानगुं, मरी तेह गई सुरलोक ॥ ज० ॥ यउक्तमागमे ॥गाथा॥ तव संजम दाग जुन,पगईए नदन किवालून ॥ गुरुव यण र निचं, मरी देवे सुरो जाई॥ १ ॥ पूर्वढाल | कहे पुनरपि नृप गुरु जणी, नांखो मुझने गतशोक ॥ ज० ॥ १२ ॥ विदु ने नीच निषाद ते, कुण गति लहेशे नगवंत ॥ ज ॥ कहे मुनि नरक विना नहिं, एह ने अन्य स्थानक संत ॥ ज० ॥ १३ ॥ पंचाश्रवने सेवतो, विपयें विव शीकत जेह जाकतघ्न निर्दय पापीयो, परोहकारीमा रेह ॥ज॥१४॥ उऱ्यांनी क्रूराशयी, नर नरक तणो अधिकारी ॥ ज० ॥ कहे मुनिवर प्र स्तावथी, बीजी दोय गति विस्तार ॥ ज० ॥ १५ ॥ माया नियडीने सेव तो, शउतारत होय सदाय ॥ ज० ॥ आध्यानमांहे मरी, जीव तिर्य चगतिमां जाय ॥ज॥१६॥ मार्दव आर्जव गुणनखो,गतदीप ने अल्पकपा - य ॥ ज० ॥ न्यायी गुणग्राही जीवडो, मरिने ते मानव थाय ॥ ज० ॥ १७॥ कहे नृप मुनिवरने वली, केम वाघ वोल्यो नरवोल ॥ ज० ॥ सुण नूप कारण एहनु, पहेले सुरलोकें अमोल ॥ ज० ॥ १७ ॥ सामा निक सुरनी प्रिया, चवी धावी मनुज मजार ॥ न ॥ देवी रखवाल सुरें मली, पूयुं देवी जरतार ॥ ज० ॥१॥ स्वामिन एह विमानमां, कुण देवी होशे या तार राजा कहे ते वननी एक वानरी,लेहेहो यावी अवतार ॥
॥ ज० ॥ २० ॥ तेमाहलो एक देवता, याव्यो करी वाघनुं रूप ॥ ज० . ॥ तास परीदा कारणें, वोल्यो नरवाणी अनूप ॥ ज० ॥ १ ॥ निपाद
धने वाली वानरी, तेह सायें वक्त विवाद ॥ ज० ॥ कस्यो वली दृष्टांत कह्यां घणां, मनमांहे धरि थाहाद ॥ ज० ॥ २२ ॥ वाघ स्वरूप गुरुयें कामु, नृप निसुणि सह्यो वैराग्य ज॥ निजसुतने राज्य जलाविने,नृप च रए यहे वडनाग्य ॥ ज० ॥ २३ ॥ राजज्ञपि हरिपालजी, पाली संयम व्रत सार ॥ ज० ॥ सौधर्म सुर लोकमांपाम्यो सुरनो अवतार ॥ ज० ॥ २३ ॥ पंचमे श्रातमी ढासमां, कही ए मेघरथजी वात ॥ ज ॥ राम विजय कहे सांनतो, हवे श्येनतणो अवदात ॥ ज० ॥ २५ ॥ इति निपाद वानरीकथा समाप्ता ॥ सर्वगाथा ॥२८॥ लोक तथा गाया मली ॥१५॥
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२३६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
॥दोहा॥ ॥ जीवहिंसाथी जिम लह्यो, नरक तणो अवतार ॥ ते निषाद परें ., पंखीया, कां जाये नव हारि ॥१॥ पाप करमथी पामियो, पंखीनव नवः । मांहि ॥ वली कुकर्म करवाथकी, दीसे नरकनी चाहि ॥२॥ तव सिंचाणो वोलीयो, तुं सुखीयो राजन्न ॥ धर्माधर्म विचारमां, वरते तहारं मन्न ॥३॥ . मुज नदें तुज शरणुं ग्रयुं, पण हवे शी मुफ पेर ॥ कुधा राक्षसी ढुं .. ग्रह्यो, जावं कोने घेर ॥ ४ ॥ सुण वलि शाह पुरूष तुं, वांडे नहिं विरू । प ॥ राख्यो नूरख्यो मुझने, सघले संत स्वरूप ॥ ५ ॥ नूरव्याने सूजे नहिं, कृत्याकत्यविचार ॥ सांजल झुं जाणे नहिं, नीतिशास्त्र अधिकार ॥ ६ ॥ यउक्तं ॥ विवेकोहीदयाधों, विद्यास्नेहश्च सौम्यता ॥ सत्त्वं च जायते नैव, दुधार्तस्य शरीरिणः ॥ १॥ प्रतिपन्नमति प्रायो, लुप्यते कुन्निपीडितैः॥ इत्यर्थे नीतिशास्त्रोक्तो, दृष्टांतः श्रूयतां प्रनो ॥ २ ॥
॥ ढाल नवमी ॥ ॥ वा रे अमने रेंटीयडे मंमाण्यां ॥ ए देशी ॥ सुण मेघरथ राजे श्वर वाहला,जीवदयाना रागी रे॥ नूख नपर एक नीतिशास्त्रनी, वात कहूँ वैरागी रे ॥ १ ॥ रायजी मुझने नूरखडली संतापे रे ॥ नूखडली नितुरता . नुं कारण रे, नूरखडली नेहढं निवारण रे ॥ रा ॥ ए आंकणी ॥ निर्जल मरुममलमां कून, प्रियदर्शन अहि निवसे रे ॥ नीर समीपें विलमां रहे तां, अहोनिश दिलमां मनसे रे ॥रा ॥ २ ॥ नेकादिक वदु जीवनुं न हाण, करतो तिहां सुखें रहेतो रे ॥ एक गंगदत्त दर्डर संघातें, प्रीति घणी ते वहेतो रे ॥रा ॥ ३ ॥ कूपमध्यवासी वली तिहांकणे, एक चित्र. लेखा नामें रे ॥ सारिका सुगुणा साथै अहिजी, वहालपणुं घj कामे रे ॥रा ॥ ४ ॥ एम करतां को कालें हादश, वार्पिक दुइ अनावृष्टि रे ॥ जल नीतुं कूपकनुं जलचर, जीव तणी नहिं सृष्टि रे ॥ राम् ॥ ५ ॥ वृत्ति - बेद अहिनो तब दूर्ग, गंगदत्त पंक खाई रे॥ वेला निर्गम करे एक दिन ते, जुजग कहे सुण नाई रे ॥ राम् ॥ ६॥ मित्र घणी पीडा ने मुझने, ते कहे गुं मुफ नांखो रे ॥ वहालेसर मन मलियुं तिहां कण, नाना गनी म राखो रे ॥ रा० ॥ ॥ दुधावेदना गाढी मुझने, मित्र दमे ले जाणो रे॥मरण समान नहिं जय महोटो, परनव दलित समाजो रे ॥ रा ॥७॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंग पांचमो. ३ पंथ समान जरा नहिं जगमा, नूरख समी नहिं वेयण रे ॥ ते माटें। वालेश्वर तिम करि, जिम थिर रहे मुज चेयण रे ॥रा ॥ ५ ॥ गंगदत्त चिंते इण कूपक, संघला जीव विणास्या रे ॥ ए उष्टातमनी मुफ कपर, हगवा दीसे आशा रे ॥रा० ॥ १० ॥ करि उपाय ए पुष्टातमथी, श्राप जणी कगारुं रे ॥ स्वारथ साधीजें आपणनो, नीतिवचन संनाऊं रे ॥ रा० ॥ ११ ॥ यतः ॥ स्वार्थ च साधयेधिमान्, स्वार्थब्रशोहि मू र्खतानास्त्युपायः स कोऽप्पत्र,येन सर्वोपि रज्यते ॥ ३ ॥पूर्वढाल।कहे प्रिय दर्शनने ते गंगदत्त,सुण स्वामी तुज काजरे॥ महानदीइहना ललचाची,जल चर लावू आज रे॥रा॥१२॥ पण तिहां जावा शक्ति नहिं मुज, चंचुपुटें चित्रलेखा रे ॥ जो ऊपाडी तिहां पहोंचाडे,करुं उपगार विशेपा रे ॥राण ॥ १३ ॥ थइ प्रसन्न जुजग आदेश, चित्रलेखा लेइ उमी रे ॥ कोइक महोटा इहमां महेली, वाट जोवे तट रूडी रे ॥ रा० ॥ १४ ॥ कहे सा रिका निसुयो गंगदत्त, कहो वेला केम कीजें रे ॥ स्वामी प्रियदर्शन नूरच्या बे, काज करी आवीजें रे॥रा ॥ १५ ॥ गंगदत्त कहे सुग चित्रलेखा, वात विचारी करीये रे ॥ नरव्या प्रियदर्शननी संगति, हवे केमही नादरीये रे ॥रा॥१६॥ सारिकां प्रति गंगदत्तः कथयति ॥श्लोक। बुदितः किं न करोति पापं, वीणा नरा निःकरुणा नवंति ॥ श्रा ख्याहि नई प्रियदर्शनस्य, न गंगदत्तः पुनरेति कूपम् ॥ ४ ॥ पूर्वढाल । ते माटे तुजने हुँ वारुं, म करिश संगति एहनी रे ।। नूख अने वली माकण वेदु, जगमां नोहे केहनी रे ॥ रा० ॥ १७ ॥ एम समजी ते मन मां पाठी, पाली फरि गइ गणे रे ॥ श्येन कहे मेघरथजी नूख्यो, कृत्या हत्य न जाणे रे ॥ रा ॥ १७ ॥ तमाटे मुजने संतोपो, कहे मेघरथ सुण नाई रे ॥ शामाटे तूं रहे ते नूरप्यो, देवं आहार मगाई रे । राण ॥ १४ ॥ कहे पंखी श्रामिप विण मुझने, अन्य ग्राहार न नावे रे ॥ कहे नृप ते मंगावी श्रापुं, एम कां याकुल बावे रे । रा० ॥२०॥ मुफ नजरें प्राणी तन दी, जो तुंबापे ताजू रे ॥ तो मुझ श्रातम संतोपाये, नमले नुक मुफबाजूं रेरा॥२१॥ पंचम वनवमी ढालें, याची मलिजुटापरे ।। वे मेघरयजीसत्य राखो, धागल तेह बरवाणू रे ॥7॥५॥३०॥२३॥
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ॥ दोहा ॥
॥ मेघरथजी मन चिंतवे, परने नव इवाय ॥ निज तनु बेदीने दीयुं, जिम ए संतोषाय ॥ १ ॥ कहे नृप सांजल श्येन तुं, ए पंखी नारोनार ॥ : मु तनुमांस तुला घरी, आपुं करि याधार ॥ २ ॥ वात पंखी तिल पडिवी, तुला मगावी ताम ॥ पारावत एक दिसे, मूक्यो लेइ निराम ॥ ३ ॥ तीखी बुरिकायें बेदीने, निज तनु मांसना खंम ॥ मूके बीजे त्राजुवे, धीरज धरी प्रखंम ॥ ४ ॥ देवमाया कोइ याकरी, न दुवे सरि खो तोल ॥ मांस खंम तिम तिम धरे, मनसा करी अमोल ॥ ५ ॥ तो पण सम थाये नहिं तव राजन निज अंग ॥ संकल्पी वेगे तुला, घहो दया चंग ॥ ६ ॥
॥ ढाल दशमी ॥
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॥ रंगीला राणा, रहो रहो सनतकुमार ॥ ए देशी ॥ अंतेवर सघलो मव्यो जी, मलीयो रे सवि परिवार ॥ श्रहो स्वामी गुं मांमीयो जी, जी वित त्याग विचार ॥ १ ॥ रंगीला राणा, रहो रहो मेघरथ राय ॥ वी ला स्वामी, कहो श्रम अवगुण कांय ॥ हतीला स्वामी, एम कैम बेदीयें काय ॥ ए की ॥ एक पंखीने कारणें जी, कां करो साहस एम ॥ तमें अमने घणुं वालहा जी, श्रविड तुमचं प्रेम || रंगीला० ॥ २ ॥ हा दा हा सहुये करे जी, नयण न खेंचे रे धार ॥ वालेसर केम वगणो जी, तु म्हें श्रम प्राण याधार ॥ रंगी० ॥ ३ ॥ ए दीसे कां कारिमो जी देवतणो रे प्रकार || नहिंतर एह कपोतमां जी, केम होवे एवडो नार ॥ रं० ॥ ४ ॥ ज्ञानवंत पण नवि लहे जी पर उपकार रसेण ॥ सरलपणे वेयुं न हिं जी, चिंतवे करुणा वशेण ॥ रं० ॥ ५ ॥ धन जगतीमां जे करे जी, अंगीकृत निर्वाह ॥ ए पुजल परकामने जी, घावे ए लान प्रथाह ॥ २० ॥ ६ ॥ दान सार बे वित्तनो जी, सत्य बे वचननो सार ॥ प्रायुसार ए कीर्त्ति बे जी, देहनो सार उपकार || रं० ॥ ७ ॥ स्वारथीयुं सहुये मत्युं "जी, वारे बे मुऊ याज ॥ पण ए प्राण नवोजवें जी, वार यनंती ए राज ॥ २० ॥ ७ ॥ मन देखी दृढ रायनुं जी, चलत कुंमलद्युति होय || भूषण अंगें विराजता जी, यावी नम्यो सुर कोय || || जो राजेश्वर धन्य तुं जी, धन धन तोरी रे माय ॥ धन तुम अन्वय कमलो जी,
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. २३ए धन्य धन्य धनरथ ताय ॥ २ ॥ १० ॥ वीरशिरोमणि तुं वडो जी, जी वित जन्म प्रमाण ॥ ईशाने तुम तणां जी, प्रनु आज कीध वखाण ॥ रं ॥ ११ ॥ अगसहेतो ते वर्णना जी, याव्यो परीक्षा काज ॥ वढता पूरव मत्सरें जी, दीना कपोत ने वाम ॥ २० ॥ १२ ॥ ते वेहुने में आश्र यी जी, आण्या तुम्हारी रे पास ॥ तुम पररव्या हरख्यो मनें जी, हवे तु म चरणनो वास ॥ रंग ॥ १३ ॥ हवे नृप पूढे एहने जी, वेर दु केम देव ॥ सुर कहे अनरथ कारिणी जी, माती ए लोननी टेव ॥ राजेश्वर महोटा, सुण सुण वैरनी वात ॥ १४ ॥ ए यांकणी ॥ एहिज नयरी मां दुवो जी, सागरदत्त अनिधान ॥ वणिक विजयसेना जली जी, घरपी ए सुगुण निधान ॥रा॥१५॥ युगल पणे तस उपन्या जी,धन नंदन सुत दोय ॥ यौवन वय धन कारणे जी, गया परदेशे रे दोय ॥ रा० ॥ १६ ॥ नागपुर नगरें गया जी, करताजी वणिक व्यापार ॥ वदुमूलु उपराजियु जी, रयण तिहां एक सार ॥ राम् ॥ १७ ॥ ते वेदु वंधव रयणने जी, जोनें पड्या रे निर्लजा ॥ मांहोमांहे एकेकनो जी, चिंतवे घात अकज ॥ रा० ॥ १७ ॥ एक दिन नदीये नाहतां जी, मांड्यो तिहां रे विवाद।। धिक् धरतीमां को नहिं जी. लोन समो उन्माद ॥ रा० ॥१ए ॥ एक कहे उपराजियुं जी. रयण ए में वद्रुमूल्य ॥ बीजो कहे महारी कला जी, जणियुं सवे तुज धूल ।। रा० ॥ २० ॥ रोप चढयो विदुने मनें जी, अरु ए नया धयां ताम ।। जल अगाधमां जूऊता जी, पडीया ते दोय घ काम ॥ रा० ॥ २१ ॥ धार्तध्याने ते मूवा जी, यया पंखी वनमांहि ॥ परवजय वरें मल्या जी, युद्ध करे मांहोमांहि ॥रा॥२॥ एम कही सुर लोके गयो जी,सुर करतो गुण्याम ॥ सङ्ग अंग नृप देखिने जी,हरख लह्यो मदु ताम ॥ रा० ॥ २३ ॥ पंचमे खंमें सांनतो जी, दशमी ढाल सुरंग ।। राम कहे धन्य जेहने जी, अविहड धर्मनो रंग ॥ रा ॥२४॥३३४॥२३॥
॥दोहा॥ ॥कदो स्वामी ए कोण हतो, निरपराध जे थाय ॥ एम तुमने संकट दियु, नारवा सद्ध समजाय ॥ १ ॥ कहे मेघरथ कीधा करम, पूरव वर निबंध ॥ नव जमनां श्रावे नदे. वतीयो अहो संबंध ॥ २ ॥श्रा नवयी जर पांचमे, नव दारि ने बलदेव ॥ अनंतवीय अपराजिता, ढुंता रुत
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२४७ जैनकथा रत्नकोष नाग आममो. सुरदेव ॥ ३ ॥ तिण नव अम्हचो रिपु हतो, दमितारि तनया अम्हें अपहरी, की, नबलु काम ॥ ४ ॥ ते नमी र बेदीने दीयु, नरताष्टापद पास ॥ तापस सुत तपि चालतप, थयो ईशान सुर लारानार ॥ इंप्रशंसा सांजली, अणसदहतो ताम ॥ इहां आवीने जे तिण नहिं धजाएयुं काम ॥ ६ ॥
॥ढाल अग्यारमी॥ मोजां मारे रे सालूडावाली ॥ ए देशी ॥ मेघरथजीना मुखथी निसुरि सना सदु जन वाणी ॥ धन धन ए राजेश्वर गिरुषा, मतीया अमने न तो रे ॥१॥ ए सुत रूडो रे घनरथजी वालो ॥ प्राण देश पोतानां परगट,पाहो कस्यो वहालो रे ॥ ए सुत ॥ ए बांकणी ॥ जीवदया कीधी जेणें वो ली, धन जननीनो जायो ॥ अंतेनर पुरजन सदु मलि मति, मेघरथजीने गायो रे ॥ ए० ॥२॥ वात सुणी निजनव सुरजवनी,पंखी वेदु समजाणा॥ जाति समरण पामी ततहण, क्रोध तजी दुआ शाणा रे ॥ ए० ॥ ३ ॥ कहे स्वामी अम्ह संवेग आव्यो, तुम्ह करुणाथी साचो ॥ हवे प्रकासो आतमने हित, जाण्यो जव करि काचो रे ॥ ए० ॥ ४ ॥ कहेमेघरथ मदयी मन वालो, समकित सधैं पालो ॥ पाप नाशन अपस एए संजालो, निज आतम अजुवालो रे ॥ ए० ॥ ५ ॥ बेतु पंखी करे अणसण किरिया, उपशमरसना दरीया ॥ संजारे मन पंचम किरिया, सुरजुवनें अवतरीया रे ॥ ए ॥ ६ ॥ पौपध पारीने की, पारगुं, रा ज्यलीला सुख विलसे ॥ पण जाणे प्रभाव पोतानो, नावमांहि दिल जनसे ॥ ए० ॥ ७ ॥ परिसह नपसगै नवि वीहे, संवेगवासी अदीणो ॥ . . एक दिन अहम करि पडिमायें, मुनि जेम ध्याने लीयो रे ॥ ए ॥ ७॥ अडविस लाख विमाननो स्वामी, अड इंशाणीनो कामी ॥ एंशी सहस सामानिक केरो, कहे अधिपति शिर नामी रे ॥ ए० ॥ ए ॥ निज माहा त्म्ये निर्जित सद् जग,गतकल्मप जितकामो॥नावी जिन तुमने कर जोडी, एह करुं परणामो रे ॥ ए ॥ १० ॥ पासें रही निसुणी कहे देवी, कुण गुणवंत निहाली ॥ स्वामी तुमें प्रणाम ए कीधो, कहो अम उत्तर वाली । रे ॥ ए ॥ ११ ॥ इंइ कहेसुण त्रैलोक्यसुंदरी, नयरी पुंमरिगिणीस्वामी ॥ । मेघरथ अहम तप रह्यो ध्याने, तात नम्यो शिर नामी रे ॥ ए० ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. श्वर धन्य धन्य धनरसीन रह्यो जेम योगी, कोइ चलावी न शके ॥ ईशादिक वित जन्म प्रमण, घंश न ध्यानथी चसके रे ॥ए॥१३॥ निसुणी सुरूपा रं ॥ ११ ; इंश्तपी इंशणी ॥ श्रावी चलावा मेघरथजीने, पासें ते पूरब म रे ॥ ए ॥ १४ ॥ रूप करी रमणीनुं वारू, कामणगारी यो । शोल श्रृंगार करीने सुंदरी, भावी उनी एकांतें रे ॥ ए० ॥१५॥ म सुकुमारी रूप रसाली, नमुह बनी अणियाली ॥ मेघरथजीने जोवे देव ], कामिनी घणुं लटकाली रे ॥ ए ॥ १६ ॥ तन बंगुक परहुँ करि महोनी, ऊनी अंगने मोडे ॥ मेघरथजीने निरखे सहामी, पण ते न मां, न जोडे रे ॥ ए० ॥ १७ ॥ अम्हें अमरी तुम ऊपर मोहन, भावी पनी मोही ॥ पूरो अम्हारो मनोरथ वहाला, एक वार साहामुं जोई रे ॥ ए० ॥ १७ ॥ तुज दरिसानी तरशी प्रीतम, ऊजाणी अम्हें यावी ॥ मूकी सुरपति जेवो स्वामी, तुम मुझ अम नावी रे ॥ ए० ॥१॥ नयण वयाना चाला करती, वलि वलि जोवे फरती ॥ मेघरथजीनी ध्यानदशा तब, नहिं तिलमात्र उसरती रे॥ ए॥ २० ॥ मुजधानि गन देती पासें, भावी कहे नहिं कूडं ॥ कहे मुखचुंबन करती प्रीतम, ए मुखपंकज रुडु रे ॥ ए० ॥ २१ ॥ हाव ने नाव विलास ने विन्रम, करि करिने ते थाकी । कीधा अनेक उपाय चलाववा,कांहिं न राख्युं वाकी रे ॥ ए० ॥ २२ ॥ एम अनुकूल कसा वदुतेरा, भावी रयण विहाणी ॥ श्रयो प्रजात मग्या नहिं ध्याने, तेह घणुं जखाणी रे ॥ ए ॥ २३ ॥ शांत थई निज रूप देखाडी,स्तुति करवाने लागी ॥ धन्य धन्य मेघरथजी तुम जीवित, रागदशा नवि जागी रे ॥ ए० ॥ २४ ॥ अम चेष्टायें लोह मची पण, पुरुप गलीने जाइ ॥ पण लवलेश चल्युं नहिं तुमचुं, चित्त ए अधिक वडाई रे ॥ ए० ॥ २५॥ धन्य तुम्हो कतपुण्य तुम्हो ठो, इंई व खाएवा तेहवा ॥ ममलयारवंमत सुगुणा,कोइ नहिं तुमजेहवा रे ॥ए॥ १६ ॥ खमो अपराध न करणू एहवं, पुनरपि काम कदापि ॥ मेवर यजी श्रमो घाएं पस्ताणी, तुमने यहां संतापी रे ॥ ए० ॥ २७ ॥ ते थमरी प होती निज स्थानक.मेवग्य पडिमा पारी ॥ करे पारण विधि बद्ध साथै, देव गुरुने संनारी रे ॥ ए० ॥ २७ ॥धन मनना बलीया इधर्मी,
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जैनकथा रत्नकोष नाग आग्मो. मेघरथजीने वंदो ॥ पंचम खंमें ढाल अग्यारमी, राम कहे चिर नंदो। रे ॥ ए० ॥ श्ए ॥ सर्वगाथा ॥ ३६ए ॥ श्लोक तथा गाथा मली ॥२३॥
॥दोहा॥ ॥ एक दिन राजसना जोडी, बेठा मेघरथ राय ॥ वनपालक वी करी, घरज करे सुखदाय ॥ १ ॥ स्वामिन तुम मनवनहा, वनमा बद्ध परिवार । समवसस्या घनरथ प्रनु, जगतीजन आधार ॥ २ ॥ दे पारितोषिक घj, धन हिरण्यनी राशि ॥ मेघरथजी परिवारा, वंदण . चट्या उल्लास ॥ ३ ॥ जिनवर वांदी नावगुं, बेठा मनने कोड ॥ दीये देशन प्रनु नवि जना, निसुणे वे कर जोडि ॥ ४ ॥
॥ ढाल बारमी ॥ ॥ देशी वणजारानी ॥ सुणो प्राणीजी॥ कहे घनरथजी नगवान् ,ध्यान धरो मन धर्मनो ॥ सुणो प्राणी जी ॥ सु० ॥ सदु आथ ए अथिर निदान, फलपाक ए शुज कतकर्मनो ॥ सु० ॥१॥ सु० ॥ मेली अनंती वार, पुजल राशि ए प्राणीये ॥ सु० ॥ सु० ॥ फरि फरि चाहे तास, शीमति तास वखाणीयें ॥ सु ॥ २ ॥ सु० ॥ नहिं कोतुं जग कोय, स्वारथनुं सहुये सरं ॥ सु० ॥ सु० ॥ जेहने मलीये आपणो जाणि, ते जाणे एहने नगुं ॥ सु ॥ ३ ॥ सु० ॥ नवि जाणे गातो आप, माया विजुको जीवडो ॥ सु० ॥ सु० ॥ एतो झाननयणे करी अंध, युं करे सशुरु दीवडो ॥ सु० ॥ ४ ॥ सु० ॥ उत्तहां जे चन अंग, तेहमां मूल तुम्हें लहो । सु० ॥ सु० ॥ हायुं न आवे हाथ, प. केदेशो जे नवि कह्यो ।सु॥५॥ सुण्॥ साथें न आवे कोय,धन रमणी नवि ताहरी ॥ सु ॥ सु० ॥ जाणे तुं मूढ सनाव,में मेली एमाहरी ॥ सु ॥६॥सु॥ मान चढयो मद जोर,. ढुं करतां ए नावनो ॥ सु ॥ सु० ॥ ए व्यवहारनी चाल, निश्चय आप स्वनावनो ॥ सु० ॥७॥ सु ॥ जो सुखनां रे सरीख, तो उःख कारण कां वहो ॥ सु० ॥ सु० ॥ ते सुखनुं एक हेतु,सार धर्म ते सदहो ॥ सु० ॥ ७ ॥ सु० ॥ परहरिने परमाद, धर्म करे जे नम्मह्या ॥ सु० ॥ सु० ॥ यापद पण होय सुख, शूर तणी परें सुख लह्यां ।। सु ॥ ए ॥ सु० ॥ ण अवसर गणधार, पूढे शूर कवण दु ॥ सु० ॥ सु० ॥ कहे धनरथजी अरिहंत, धर्म तणुं माहातम जू ॥ सु० ॥१०॥ सु० ॥ जंबूहीप मजार,
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो २४३ मध्य खममां जारतें ॥ सु ॥ सु० ॥ धरणीप्रतिष्टित नाम, पुर गुणसमु दायांचितें ॥ सु० ॥ ११ ॥ सु ॥ तिहां प्रजाप्रतिपाल, वीरसेन नामें जयो ॥ सु० ॥ सु० ॥ न्यायवंतमां लीह,धर्म करणने अलजयो । सु० ॥ १२ ॥ सु० ॥ धारिणी नामें देवि, मनुं देवी धरणी गता ॥ सु० ॥ सु॥ रायने वजन जोर, महियलमा मोहनलता ॥ सु० ॥ १३ ॥ सु० ॥ एक दिन सूती सेज, सुपर्नु लहे सुरराजनुं ॥ सु ॥ सु० ॥ कहे पियुनें धरि नेह,धन्य विहाणुंमुजधाजनुं ॥ सुणो स्वामीजी ॥१४॥ सुणो स्वामी जी॥में जातो दीगो इंद, मुह आगल फल झुं हो ॥ सुणो स्वामीजी ॥ सुणो राणीजी ॥ तुम सुत होशे बलवंत, नाव चलाचल पामशे ॥ सु०॥ १५ ॥ सु० ॥ राणी रे धावी धाम, नव मसवाडे सुत जण्यो ॥ सु० ॥ सु० ॥ " देवराज" इति नाम, दीध महोत्सव अति घणो ॥ सु० ॥१६॥ सु० ॥ ते वधते वली एक, रयणसमे वृप ऊजलो ॥ सु० ॥ सु० ॥ दीठो निज उत्संग,क्रीडा करतो अति नलो ॥ सु० ॥१७॥ सुगो राणी जी ॥ नितुणी कहे नरइंद, तुज सुत होशे सुंदरु ॥ सु० ॥ सु० ॥ तपन परें बलवंत, होशे राजधुरंधर ॥ सु० ॥१॥ सुपो प्राणी जी ॥ ययो जन्मसमय सुख कार, "वत्सराज" थनिधा उवी ॥सु ॥ सु ॥ वरत्यो जयजयकार, जाग्यदशा जागी नवी ॥ सु ॥ १५ ॥ सु० ॥ चरस थयां जब बात, तब नीशालें मूकीयो ॥ सु० ॥ १० ॥ सकल कला तिण सार, शीखी किहां नदि चूकीयो ॥ सु० ॥२०॥ सु० ॥ पुण्य तणी ए वात, पुत्र सुगुण एहवा मले ॥ सु० ॥ सु० ॥ पंचमे खंमें वारमी ढाल, पुण्ययकी वांछित फले ।। सु० ॥२१॥ सु० ॥ सर्वगाथा ॥३ए॥ श्लोक तथा गाथा॥२३॥
॥दोहा॥ ॥ वीरसेन नृप एकदा, दाघज्वरने रोग ॥ अति थातुर भंग थयो, स बल कर्मनो लोग ॥ १ ॥ पृथिवीपति पीडित थयो, तस ःखें परिवार ।। मुवीयो सवि एकत्र मलि, एणी परें करे विचार ॥ ५ ॥ वये बढी गुणे नानडो,देवराज नृपनंद ॥ पण गुण महोटो बय लघु वत्सराज सुख कंद ॥३॥ जगमांगु दीने वडा, गुण विए बड़ो न कोय ॥ बद्धो करंतां दीपने, जुवो घर कहे होय ॥ ४ ॥ वत्सराज होय तो जतो, नरपनि मचल सकड ॥ देवराज वयची वडो, योग्य नहिं ए र ॥ ५॥ देव
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२४४ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. राज एम सांजव्यो, लोक तणो आलोच ॥ रखे राजा वत्सराज दुवे, मनमां धरे संकोच ॥ ६॥ मंत्रीश्वर हाथे कयो, देई बहु सन्मान ॥ सैन्य गजादिक वश करी, आप थयो राजान ॥ ७ ॥
॥ ढाल तेरमी ॥ ॥ पंचसयां धण परहरी ॥ ए देशी ॥ नृप वीरसेनजी सांजल्युं, पुर। पति दुन देवराजो रे ॥ आधि ने व्याधि निपीडियो, कहे ए कीg अ , काजो रे ॥१॥धिक धिक राजनी मोहनी ॥ ए अांकणी ॥ न गणे बंधव लाजो रे ॥ नेह न राखे रे बापमु, एम कहे नरराजो रे ॥ धि ॥ २ ॥ गुणवंतो ए बेसी रह्यो, अगुणी आगल कीधो रे ॥ पण मुफ कां चले नहिं, चिंतित काज न सीधो रे ॥ धि० ॥ ३॥ राज लही देवराजीयो, थयो बलियो सपराणो रे ॥ सदु सामंतने वश करी, देशमाहे गवराणो रे ॥धि॥॥ जन अनुराग न को धरे,सदु वत्सराज वखाणे रे ॥ एक माता नारे उदरना, पण अंतर बदु जाणे रे ॥ धि० ॥५॥ राजसनामां रे नित्य प्रतें, वे वत्सराज कुमारो रे ॥ विनयी वडा बंधव तणो, विनय न चूके लगारो रे ॥ धि ॥६॥ कुण अांजे नयन मृगांगना, कोण चीतरे मोरनां पिंडो रे ॥ नत्पलदल संधि कुण रचे, एम उत्तम विनयने प्रीडो रे ॥ धि० ॥ ७ ॥ सहज विनयगुण देखिने, सकल प्रजा धरे रागो रे ॥ अहो वत्सराज समोवडे, नहिं नृपसुत वडनागो रे ॥ धि० ॥ ॥ पुष्ट हृदयनो रे चिंतवे, मंत्रीशुं देवराजो रे ॥ गुणें वधतो जन वालहो, वैरी ए वत्सराजो रे ॥ धि ॥ ए ॥ राज्य हरशे रे आपणुं, बांधव एह म जाणो रे ॥ शत्रु वध्यो गुण नवि करे, नीतिनुं वचन प्रमाणो रे ॥ धि०॥ १० ॥ वेदु मल्या उर्बुझ्यिा, वायु अनल जेम हो रे ॥ करे कुविकल्प नी कल्पना, कीजें उपाय ए कोई रे ॥ धि० ॥ ११ ॥ कहे मंत्री सुण साहिबा, जो इहां रहे वत्सराजो रे ॥ तो नहिं हित तुजने सही, एम जाणो महाराजो रे ॥ धिम् ॥ १२ ॥ काढो वाहिर एहने, पुरतूंती इण वारो रे ॥ करशे अनिष्ट कनिष्ट ए, पाम्युं राज म हारो रे ॥ धि० ॥ १३ ॥ नृप मनमां वसी वातडी, निर्लज थइ निगोरो रे ॥ वंधव तेहने अवगुणी, वोले वयण कठोरो रे ॥ धि० ॥ १४ ॥ तेडी कहे वत्सराजनें, जा मुऊ नयरने मूकी रे ॥ कुलनी लजा रे लोपिने, वोटयो नीतिने चू
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श्री शांतिनाथनो रास खं पांचमो.
श्४५
की रे ॥ ० ॥ १५ ॥ कहे वत्सराज विचारिने, वांधव घाण प्रमाणो रे ॥ श्राव्य मंदिर मातने, नमवा संत सुनायो रे ॥ धि० ॥ १६ ॥ चर ए नमी यागल रह्यो, बोले सुण गुणवाडी रे ॥ सगे रे सहोदरें काढी यो, देशदूंती मुने माडी रे ॥ धि० ॥ १७ ॥ वात सुणी दुःखणी थई, नया ऊरे बहु नीरो रे ॥ हृदय जरा रे यावीयुं, जूहे धांसूडां चीरो रे ॥ धि० ॥ १८ ॥ सुप वत्स तु विष माहरां, प्राण घणुं कलाये रे ॥ जीवन जाया रे तुज विना, घडी वरसां सो थाये रे ॥ धिः ॥ १९ ॥ तुम विष मंदिर मालीयां, ए मुऊ खावा धायो रे । तुऊ विए रयणी वैर थर, मुकने केमही न जायो रे ॥ धि० ॥ २० ॥ माटें वत्स सुग माहरा, प्राविश तहारी हुं सायें रे ॥ सुख दुःख सहेनुं रे एकai, ग्रही रही हाथे रे ॥ धि० ॥ २१ ॥ वत्स कहे सुल मावडी, प्रति विपमो परदेशी रे ॥ तुम्हें इस मंदिरमां रहो, यो मुकने प्रादेशो रे ॥ धि० ॥ २२ ॥ मात कहे सु बालुडा, शी ए वात प्रकाशो रे ॥ इहां रहेतुं मुफ नवि गमे, तु वासें मुफ श्वासो रे ॥ धि० ॥ २३ ॥ यस्य नहिं देवरा जनुं, जे तुने छपकारी रे || बहेन संघातें रे श्रावगुं, तुम सायें निर्धारी रे ॥ धि ॥ २४ ॥ सुत माडी मासी वली, कीध विचार विमासी रे ॥ राम कहे खंम पंचमे, तेरमी ढाल ए नासी रे ॥ धि० ॥ २५॥ सर्वगाया ॥ ४२६ ॥
मात
॥ दोहा ॥
॥ रोपं चढ्यो तब राजियो, देवराज तेलि वार | वाहन सवि खोंची लियां, माय तणां निर्धार ॥ १ ॥ वत्सराज वहालो कियो, इए मूक्यो मुफ श्राज || श्यानी ए मुफ मावडी, अंश न राखुं लाज || २ || जे कोइ जागे एहोनी, साधें सेवक याज ॥ तेहने में हावो सही, एम बोले देवराज ॥३॥ नहिं श्रानूपण तेहवां, नहिं वसन गुनपास ॥ उदाली लीयां सवे, हो यो कर्म विनास ॥ ४ ॥
॥ दाल चौदमी ॥
॥ मुःखनी मारी है. सुतीथी सरोवरियारी पाल है, कागदियो न न्यायो महाराराज, विष परदेशरो || ए देशी || दुःखनी मारी है, मायढी नवण करते नीर दे, सुतने रे लेड़ने बहेनी साथ, बाहर नीमरी ॥ पुरनां वा सी है. निसुणीने वात मल्यां नरवृंद है, हा हा ए दुबो करण प्रकार, सुध
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श्४६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो बुध वीसरी ॥ १ ॥ धिक् धिक् सुतने हे, नेहडलो बग्मीने दीधो ले । ह हे,नफट निहेजो महारा राज,राजा ए दुवो॥कांहिं न चाले हे,जोरावर जे . आपण कीधां कर्म हे, नदयें एम आवे महारा राज, प्रत्यद ए जुन ॥ २ ॥ कोई न करशो है, कोई न करशो गर्व गुमान है, साथें ने कमाइ महारा राज,आवे थाहरी ॥ सदु स्वारथना हे,स्वारथना सदु ए में जगमां मित्त में हे,पडती रेवेलामां महारा राज,नको पाहरी ॥३॥ रोयण लाग्यां है,पुरवा सी साजननां द्वंद दे, फट फट रे अन्यायी महारा राज, दैव तें झुं कस्युं ॥ वत्स सारीसा हे, वत्सने सारीसा कुमर सुजाण हे,वनमां रे काढतां यारं राज, काज किस्युं सयुं॥धासाजन महारा हे,में बां थाहारा पगनी रजने तोल दे,प्रजा पोकारे उनी राज,जीवनजी रहो ॥ साहिब महारा दे,ए दुः कवण विचार है, उना रे रहीने महारा राज, वातडली कहो ॥५॥ कुंवर बोले हे,सदुने जे महारो जुहार हे,गुनह खमेजो महारा राज,जे कीधो होय थाहरो॥ कुंवर बोले दे,वहेलां मिलस्यां ावी कहेस्यां वात हे,हमणां रेनट काये महारा राज,वीरो कोप्यो माहरो॥६॥ पुरशुं चाल्या हे,साथें माता ने मासी दोय हे,आगल चालतां वाटें राज,सवल वेला पडी ॥ कुंवर नानो है, साथे घरडी मोकरडी दोय नारी हे, मारगमांहे नूलां महारा राज, एम आपद नडी॥७॥कोने कहीयें हे,कोने कहियें सुख उखडानी वात हे,एवो रे नहिं कोइ महारा राज,कान देई सुणे ॥ त्रिदु जण चाले हे,त्रिदु जण किहां इक सरोवरीयारी पाल दे, ननां रे न राखे महारा राज, कोइ घर बांगणे ॥॥ मोशी महारी हे,दीसोबो सवल मुंहाली जाति हे,कहोने किण कार ए महारा राज,सुत लेइ नीसयां ॥ सुखनी मारी है, धारिणी राणी कहे ताम हे,अमें दोय मोशी महारा राज, मरमेश्वरनां विसस्यां ॥ए। दुःखनी मारी हे, कंथ विहूणी सुत लेइ साथ दे, चाल्या रे वर्तवा महारा राज, अमें परदेशमां ॥ उत्तर देवे हे,उत्तर देवे लोक जणी ते अाम हे,कोई नथी रे महारा राज,एवा वेशमां ॥१॥ अनुक्रमें आया हे, देश अवंतीमांहे नय रि उलेणी हे, वाडीमां वडनाया महारा राज, वीशामो लियो ॥ धारिणी चिंते हे,फट फट रे तें दैव की\ ए कीध है, मुने वीरसेनवधूने कष्ट सबल दीयो ॥११॥ नविका सुगजो है, कहे घनरथजी अरिहंत हे, कीधी रे क
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. ४ माइ महारा राज, एम आवे उदे ॥ पंचम खमें हे, राग अखंमें चौदमी ढाल हे, कविण न कीजें महारा राज रामविजय वदे ॥१॥४४॥२३॥
॥दोहा॥ . ॥ विमलाने कहे धारिणी, जाउँ नयर मकार ॥ जो आवो कोइ था शरो, बहेनी प्राणाधार ॥ १ ॥ तुं मुज जीवननी जडी, थइ सुखनी सा रीख ॥ साची तुं मानी जणी, जली कबूली जोख ॥ २ ॥ विमला श्रावी नयरमां, इत उत जोवे नाम ॥ पण कोइ वोलावे नहिं, बाई श्रावो आम ॥ ३ ॥ एक लक्ष्मी वा विना, धाइ न दे को मान ॥ जया शहेरमां नामिनी, फिरे विहूपी शान ॥ ४ ॥ सोमदत्तने मंदिरे, ना मिनी जमतीनूर ॥पहोतीप्रेमें पारखी, दीसे कोई सनूर ॥५॥ तात विदेशी j धमो, मुफ नगिनी जाणेज ॥ वसवानी कोइ जायगा, वतलावो धरि हेज ॥ ६ ॥ कहे शेठ प्रा उरडी, वसवानीठे खास ॥ पण नाडु देशो किस्युं, आगलपी परकाश ॥ ॥ विमला कहे गुं यापीयें, नाटक नहिं कां पास ॥ पण स्वामी घर ताहरे, थई रहेगुं दास ॥ ॥ नो जन अमने आपजो, शेत तमे शिरदार ॥ कुंजर मुखथी कण गिरे, कोडीने आधार ॥ ए॥ वात कबूल करी तेणे, यावी बहेनी पास ॥ तेडीलावी धारिणी, चंगज सहित नन्नास ॥ १० ॥
॥ढाल पन्नरमी॥ ॥ एण सुगरीये मन मोहियुं ॥ ए देशी ॥ धारिणी विमला वत्सराजगुं, तिहां ावी रही गुन लामो ॥ करे सोमदत्त शेतनी चाकरी, जुकर्म तणा ए कामो ॥ १ ॥ जग कीया हो कर्म न वृदिये ॥ एयांकगी। एम जांखे हो त्रिनुवन नाय ।। सुर असुर नरादिक सांजले, सद्ध सांगले मुनिवर साथ ॥ ज० ॥ २ ॥ जीहो उदरनर यति दोदिवं. करे परघर के काजो ॥ वत्सराज चिंते चित्तमां घj. हा हा किहां गयुं महानं राजोज॥३॥ जीदो मुज माडी माती बडी, करतां जेहनी बढ़ सेवो ।। ते पाणी नरें परवर रही, श्रदो अहो ए मु कयं देवो ॥ ज० ॥ ४ ॥ चन्तराज चरावे हो बारु,जेमतेम चाले गुजरानो॥ वनमा जमतां एकण दिने. वीशमियो शुन तस्वगणो ॥ ज० ॥ ५॥ राजकुंवग्ना गन्द सुण्या तिहां करे शन्य तणो अन्यात ॥ धेनु चरती हो मृकीने वत्सली,तिहां पहों
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तह देखी तिहां, यस समजाय ॥ ज कलाकुशल पाणतणा, अतिशनार
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श्वत जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. तो धरि ननासो ॥ ज० ॥ ६ ॥ तेहमांहे जइ कनो रह्यो, जोवे लक्ष्नो वेध सुजाणो ॥ यदि चूके समीपग नर तदा, तव थाये वदन' । मलाणो ॥ज॥७॥ जेह विंध्य न भूले हो तेहने, प्रशंसे थश्ने खुशालो॥ तेह देखी कलाचार्य चिंते, कोई दीसे कोविद बालो ॥ज ॥ तव पूज्यु कलाचारज तिहां, वत्स तुं कोण किहांथी रे आव्यो ॥ वत्सराज कहे हुँ तातजी, देशांतरी एम समजाव्यो ॥ ज ॥॥ कहे आचारज हर्षे करी, वत्स लेइ करे धनु तीरो ॥ देखाड कलाकुशल पणुं, अम पागल सा हस धीरो ॥ ज० ॥ १० ॥ अवसर जाणीने कला तणो, अतिशय प्र कासे वीरो ॥ जो कुंवर सद् चित्त चमकिया, अहो गुणजलनिधि गंजीरों ॥ ज० ॥ ११ ॥ जीरे जोजन याव्यां हो जावतां, राजकुंवरने काजें रसालो । गुणी जाणीने पासें बेसारीयो, जमाड्यो नाग्य विशालो ॥ जण ॥१२॥ यतः ॥ कला कलौ कामगवी समाना, सर्वार्थसंसाधनसाव धाना ॥ कला विदेशे परमं हि मित्रं, कलासमं नास्त्यमृतं पवित्रम् ॥१॥ पूर्वढाल ॥ जीरे संगति सरखानी मली, मन पाम्यो हो प्रीति अपारो ॥ गुणीने हो गुणीशुं गोठडी, सङ जाणे रे एह विचारो ॥ ज० ॥ १३ ॥ यतः ॥ मृगा मृगैः संगमनुव्रजति, गावश्चगोनिस्तुरगास्तुरंगैः ॥ मूर्खाश्च मूखैः सुधियः सुधीनिःसमानशीलव्यसनेषु सख्यम् ॥२॥ पूर्वढाल ॥ दिन वो वहि गयो वातमां,रखवाल विना वत्स तेहो। समकालेंवलि तेह आवियो, पुरमा सोमदत्तने गेहो ॥ ज० ॥ १४ ॥ कहे शेवजी विमलाने तिहां, आज वहेलां केम वत्स रूपो ॥ रखवाल एहनो क्यां गयो, वत्सराज ए कवर्ण सरूपो ॥ ज० ॥ १५ ॥ वाल नावे ए साथें रूडं नहीं, एम वात करतां तेहो ॥ वत्सराज अाव्यो संध्यासमे, मल्यो मायने अधिक सनेहो ॥ज॥१६॥ वत्त वेता केम य एवडी,कहे कल्पित वात विचारी ॥ मुक नंघ यावी वनमा घणी,रह्यो सूइतिहां निर्धारी ॥ज०॥१७॥ कोक यावीने जगाडीयो, हमणां ढुं आव्यो माडी ॥ वत्स एम असुर न कीजिये, कहे विमला हो प्रीति जाडी ॥ज॥१॥ तिम वली वीजे दिन एम रह्यो, तीजे दिन एमज कीg ॥ शेठे उतनो दीधो घणो, एहयी मुज काज न सीधं ॥ ज० ॥ १५ ॥ कहे रीप जराणी मावडी, परदेश याव्यां इण वामो ॥ परमंदिरवास ए कष्टथी, जोजन पर हाथ ए कामो ॥ज॥२॥
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श्रीशांतिनाथनो रास खंम पांचमो. ४ाए जीरे कर्मकरीनु याकरूं, मुफ माथे कलंक असारो ॥ वली लंना ए ताहरा,न खमाये वत्तकुमारो ॥ज॥२१॥ जीरे वयण सुणी माडी तणां, बोल्यो वत्सराज कुमारो ॥ माय वारुयां चारिश नहीं, नहिं महारो वंश गमारो ॥ ज० ॥ २२ ॥ ढाल ॥ नहिं चारू रे नव लख धेनु ॥ ए देशी ॥ नहिं चारं रे मोरी माय, ना रे मा नहिं चारुं ॥ महारे के. कोण उजाय ॥ना॥ हारे ए तो दोडीने थलगांजाय ॥ना॥हारे ए तो घटq उपवनमांय ॥ ना० ॥ ए आंकणी ॥ श्री वीरसेन नरेश्वर महारो, सबल पिता गुणधार रे ॥ धारिणी माता तहारो जायो, न करूं ए काम गमार ॥ ना० ॥ १ ॥ कड वांधी लइ लाकडी हाथे, पाखो दिन केड करवी रे ॥ वर नूरख्यो रहिश पण माडी, ए सेवा नादरवी ॥ ना० ॥ २॥ कला बहुतेरी महारी शीखी, सघली नली जवाय रे ॥ सुणो माडी मासी वलि महारी, ए मुझने न सोहाय ॥ ना ॥३॥ कहेवू ए सोमदत्तने अमचो, सुत वावरुयां न चारे रे ।। मन माने तेहने ए सोंपो, उलंनो न देशो लगारे ।। ना० ॥ ४ ॥ घणुं करो तव घर राखेशे,जेम सो तेम पचास रे॥माडीमनमां चिंता न करशो,शी करवी परथाश ॥ ना० ॥ ५ ॥ कहे माडी सुण वत्त वाचुडा, नोजन कि हाथी करशो रे। जो एहना मुख सामुंजोशो,तो कोइ दिन उदरने नरशो ।। ना ॥ ६ ॥ वत्स कहे हुं भाजयी भोजन, मन माने त्यां कर| रे ॥ पण एहनी वेशीवाल न राखू, जेमतेम करि निर्वहणुं ॥ ना ॥ ७ ॥ नित्य प्रत्ये राजकुमरनी पासें, जोजन करवा जाय रे ॥ वत्स अवेलो का एम आवे, घर तुं का नवि खाय ॥ ना० ॥ ॥ वत्स एम किम रीलाणे सरो, के अथवा जमे क्यांही रे ॥ बात कही माडीने मामी, दपं सही मनमांहि ॥नाया ढाल विचाने मात ने सुतनी वत्स चरावण वात रे ॥ लाखी रे निसुगा नवियण नावें, धन धन एदनी जाति ।। ना० ॥१०॥ दाल पूर्वनी ॥ जीरे एक दिन श्राव्यो होश्रांगण, देखें माय घj दिलगीर । तव पने हांशी तुम एचडी.दिलमांहे दीमे ते पीर ।। जल ॥ २३ ॥ वत्स नुं घरचिंता नवि करे, नहिं तुफ विण को वाधार ॥ राएं अन्य सर्व प्रलयं हां. नहिं घरमांहे इंधणजार ॥ज॥४॥ जीरे शहे रनो वास ए सांकडो, सवि वात तणी तंगास ॥ जीरे जल इंधण वली
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
दोहिलां, दोहिलानी न पूगे खाश ॥ ज० ॥ २५ ॥ जीरे कहे वत्स साहसिया शिरे, जइ लावुं इंधण चार ॥ मुक एक अपावो कुठारिका, कावा कृति तिम सुविचार ॥ ज० ॥ २६ ॥ प्रजात यये सवि तेम करूं थइ, पूरी ए पन्नरमी ढाल ॥ खं पंचमे रामविजय कहे, हवे या संबंध ॥ सर्व गाथा ॥ ४८५ ॥ श्लोक ॥ २५ ॥ ॥ दोहा ॥
रसाल ॥ ज० ॥ २७
॥ खांधे कुहाडी लेइ चव्यो, वनह जणी वत्सराज || नाना डुम जोतो थको, वन गह्वर तरुराज ॥ १ ॥ जो देखूं कोई सरल तरु, तो बेदी तस खंम ॥ कावा नरीने पूरुं हुं, मनोरथ माय प्रखंम ॥ २ ॥ तिहां एक दीतुं देवकुल, मांदे विराजे यह ॥ नक्ति करे नागर जना, महिमा जास प्रत्यक्ष् ॥ ३ ॥ तस खागल एक सरल बे, चंदनतरु सुगंध ॥ कुंवर विचारे बावना, चंदननो ए गंध ॥ ४ ॥ तस अनुसार तिहां गयो, साहसथी हिराज ॥ नासीने दूरें गया, कुमरनां सीध्यां काज ॥ ५ ॥ यनुं कानन जाणीने, किों नवि बेद्यो पूर्व ॥ ते तरु बेदीनें लिया, काष्टना खंम अपूर्व ॥ ६ ॥ कावा नरीने चालीयो, निज घर ते
जमाल || पुरपोजें याव्यो तदा, पोल जडी ततकाल ॥ ७ ॥ ते नगरी मांहे अबे, शाकिनीनुं जय जोर ॥ पुर कपाट नवि ऊघडे, रवि प्रगट्या वि कोर ॥ ८ ॥ रात पडी पाढो वल्यो, व्याव्यो यने ठाम ॥ कावा तरु अवलंबिने, मांहे पेठ तास ॥ ए ॥ देइ कपाट यामां तदा मूकी कुहाडी पास ॥ एकदेशें सूतो जई, वत्सराज सुविलास ॥ १० ॥ ॥ ढाल शोलमी ॥
॥ यावे रे उलगाणा तहारी कांकणीने कुंबे ॥ ए देशी || इस प्रव सर वैताढ्यथी रे, मध्यरात्रि मनोहार रे सोहे ॥ याव्यो रे तिहां खेच रीनो वृंद मन मोहे ॥ १ ॥ रम्य विमानयी ऊतरी रे द्यावी मंरुपमांहि रे नामा || यौवनना पुरमांहे शोभती ते श्यामा ॥ २॥ करि शृंगार टोलें मली रे, करे विनोदनी वात रे टवीली || सहीयो रे बाजनी ए यामिनी रंगीली ॥ ३ ॥ रस जरी रमियें रातमां रे, मनमां घरी आणंद रे टोल ॥ नृत्य कीजें अंग वाली आज नावनोली ॥ ४ ॥ घम घम घमके घूघरी रे, उम उम ठवती पाय रे बाला || हाथे विषा ताल बेड़ किन्नरी रसा
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श्री शांतिनाथनो रास खं पांचमो.
श्य
ला ॥ ५ ॥ जर कंचुक कसिया जला रे, उढा नवरंग चीर रे रूडी ॥ कर दीपे कंकणां ने सोवननी चूडी ॥ ६ ॥ ये ये करती नाचती रे, लीये घूमपली घेर रे माती ॥ विच विच जीणे स्वरें वांसलीने वाती ॥७॥ कुंचिका विवरें देखतो रे, मन हरखे वत्सराज रे वारु ॥ ननुं ययुं श्राज दीठो नाच में दीदारु ॥ ८ ॥ रमि रमि रंग जरी रातमां रे, स्वेदें जीनां चीर रे धामी ॥ द एक कामिनी ते नूतलें विशामी ॥ ए ॥ नूतन पहेरी वस्त्रने रे, मूकी जीनां चीर रे दोडी || रात थोडी जालिने उजाली जेम घोडी ॥ १० ॥ रजसपणे रथणें जड्यो रे, पडीयो कंचुक एक रे दीपे ॥ भूमितल शोजतो ए इंडविंव जींपे ॥११॥ वार उघाडी उतावलो रे. दोडी लोधो तेणें रे रंगें ॥ मांहे पेठगे द्वार देश बने प्रसंगं ॥ १२ ॥ थागत जातां सांजल्युं रे, मांहे प्रजावती ताम रे बोली | सहीचरो वारवाण माहरो ढुं नूनी ॥ १३ ॥ ते कहे जा उतावली रे, वेगवती तेइ साथ रे चावी ॥ बहेनी तुं चाल वेगें मीलि जेइ खावी ॥ १६ ॥ प्रावी तिहां जोवे घणुं रे, नव दीवो तिण ठाप रे चिंते ॥ किहां गयो नहिं कोइ मानवी एकांतें ॥ १५ ॥ गुं ययुं केणें लीथो हो रे, तेह
मूलक माल रे तहारो ॥ प्राणजीवन महारो ए कंचु घणुं प्यारो ॥ १६ ॥ कोण लीये एटली वारमां रे, लागी वेला नहिं कां रे वाली ॥ प्राणप्रिय देशे मुने धाज घणी गाली ॥ १७ ॥ कहे सखी धातुर चं
वे रे, नहिं इहां ग्राहक कोई रे धारखो | तें पण सहि इहां कंचु विसायो ॥ १८ ॥ खोली दमणां काढगुं रे, उमयो वायुथीवर रे दी ॥ धर मन धीरज विशवा विशे ॥ १९ ॥ जोती ताम विजयी रे, देखी विहंगिका एक तरुमाले || नर इहां गूढ कोई देवले निहाले ॥२०॥ वार देखी दृढ गर्ननां रे, बोली धवला दोय रे बाढी ॥ व्याप यम कंचु नुं हारने उचाई ॥ २१ ॥ मूरख को मरवा ती रे, होंश भई तुक याज रे पापी ॥ किai हवे जाइग श्रमने तुं संतापी ॥ २२ ॥ वयण सुणीपण एवां रे, नव्यो चिन लगार मे वीरो || वीरमेन वंशजात सालिक धीरो ॥१॥ चक्कू तो जय घाणीने नवि बचाडे द्वार से इ ॥ श्रावी वनवाहार ने मंत्र करे ||२४|| चालो नयरमा जो को हो रे मीठो | तेहनों बोलायो ए बोले नहीं थी
एनस ||२५|| चिंतीने
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यश जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. चाली खेचरी रे, नयरमां सुणवा साद रे उजाणी ॥ कर्मयोगे धावी जिहां धारिणी ने राणी ॥ २६ ॥ सुत विरहें रोवे घणुं रे, धारिणी विमला दोय रे राणी ॥ निश्डी हराम दुइ सुःखडे जराणी ॥ २७ ॥ हा वीरसेन नृपवंशना रे,साहसिया शिरदार रे जाया॥कोण कष्ट थयुं तुने मेलि केम माया ॥ २७ ॥ राज्य तजीने नीसयां रे, देशांतर परगेह रे वासें ॥. एह सवे आदस्यां अमें ताहरेजरोंसे ॥२॥ वत्त इंधणने मोकल्यो रे,अम्हें पापीपीयें आज रे जोरें ॥ मन धयुं दुःख अमें नेहडे रे तोरे ॥ ३० ॥ नाम सुणी वत्सराजनुं रे, खेचरी आवी दोय रे पानी ॥ देव कुलें मातरूपें एम बोले आबी ॥ ३१ ॥ हा वत्स जोतां तुं मल्यो रे, खोल्युं सारं शहेर रे जाई॥मुखडं देखाड आवी अम्हने उजाई ॥ ३५ ॥ वत्स विमासे चित्तमां रे,न घटे आणी वेल रे माडी ॥ किम आवे वेडमांही धावडी उजाडी ॥ ३३ ॥ मुफ माडी मासी नोहे रे, ए सही मायारूप रे जाण ॥ बोलतां में एहनी रे विक्रिया पिबाणी ॥ ३४ ॥ धैर्य धरी बोले नहीं रे, गुं करे एह कंगाल रे पाडी ॥वाज आवी आफ रडी जायशे रे त्राडी ॥३५॥ आण न सोपाई यदनी रे, बोली बोलीने ताम रे थाकी ॥ कथन रह्यं नहिं कहेणनुं रे वाकी ॥ ३६ ॥ रवि ऊग्यो रजनी गई रे, खेचरी गई निज ठाम रे रो ॥ जु एम नाइयो कर्म गति कोइ ॥ ३७ ॥ एम संबंध आवी मले रे, शुजनो उदय होवे जाम रे जोतें ॥ साहसिक नर वरे लाल एम पोतें ॥ ३८ ॥ यतः ॥ दोहो । साहसियां लबी मिले, नदु कायर पुरिसेह ॥ काने कुंमल रयरामय, अांखे अंजनरेह ॥ १ ॥ श्लोक ॥ उद्यमः साहसं धैर्य, वलवुदिपरा क्रमम् ॥ पडेते यस्य विद्यते, तस्मादेवोपि शंकते ॥२॥ पूर्वढाल ॥ पंचम खंमें शोलमी रे, ढाल कही सुखकार रे राची ॥ वात कहे श्री जिन घनर थजी साची ॥ ३ ॥ सर्वगाथा ॥ ५३७ ॥ श्लोक तथा गाथा ॥ २७ ॥
॥दोहा॥ ॥ थयुं प्रनात रवि प्रगटियो, विवर कुंचिकामध्य ॥ सूर्य रुचि नदी तदा, कुमर लही तव संधि ॥१॥ देवमंदिरथी नीसस्यो, ते कूसिक ले । श्रीखंझ तरुकोटर विचें, मूके यत्न करे ॥ २ ॥ कावड ला खंधे धरी, काष्ठ- खेम लेइ हाय ॥ निजपुरनणी ऊतावलो, चाल्यो जिम मृग
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श्री शांतिनायनो रास खंग पांचमो.
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नाथ ॥ ३ ॥ देइ प्रतोलीपालने, काष्ठखं ततकाल ॥ नयरमांहे ते संचस्त्रो, मलपंतो गजचाल ॥ ४ ॥ जातां परिमल कढल्यो, दिशि व्यव लोके लोक || गंध किहांथी एहवो, एम चिंते गतशोक ॥ ए ॥ ए कोइ इंधवाकु, जाये एम प्रवहील ॥ कोई तस बोलावे नहीं, ते पण चाल्यो सलील ॥ ६ ॥ निजमंदिर याव्यो वही, हरख्यां मासी मात ॥ वत्स जोवरावी वाटडी, एम केम मोरा जात || ७ || बात कही कंचुक विना, नारो मूकी घरमांहि ॥ खंम एक मासीकरें, दीघो ति उत्साहि ॥ ८ ॥ तस अनुमतथी वेचीयो, गांधीयापण तेह ॥ इव्य घाणीने यापीयुं, वत्स हाथ ससनेह ॥ ए ॥
॥ ढाल सत्तरमी ॥
॥ मुरली सांजलवा जयें || ए देशी ॥ वत्स कहे सुपो माडली, ए धन व्यो तुमें सार ॥ न कीजें चाकरी ॥ ए नीठे वली वरना, करजो दाम विचार ॥ न कीजें चाकरी ॥१॥ नाहुं घापजो शेठने, मत रहेजो या धीन ॥न की० ॥ हुं तो स्वेच्छायें क्रीडनुं, नयरमां धाखो दिन्न ॥०॥२॥ चेर त्र्याविश सुवा कारणें, म करशो फिकर लगार ॥ सलूणी मातजी ॥ शी चिंता तुमने हवे, धाव्यो यापद पार ॥ स० ॥ ३॥ एम कहीने घ्यावीयो, राजकुंवरनी पास || सलूणा साहिबा ॥ ते कहे काले कहो किरयुं, नाव्या अम घावास || सपा साहिबा ॥ ४ ॥ ते कहे मुऊ शरीरमां, कांक हूती व्याधि ॥ स० ॥ तेणें तुम पासें नावीयो, व्याज टली समाधि || स० ॥ ५ ॥ कहे पाठक वत्स ताहरु, कुण स्थानक मुने दाख ॥ स० ॥ कवा जनक माता दुवां, मुजगुं नेद म राख ॥ स० ॥ ६ ॥ कुंवर कड़े पो तातजी, हमणां म तो बात || स० ॥ प्रस्तावें सवि माहरी, नांखी हुं अवदात ॥ स० ॥ 3 ॥ नाव जाणीने तेहनो, ताली न पूठ्यं तास ॥ स० ॥ कुंवर ते थापे तेहने वसन ने जोजन खास || स० ॥ ८ ॥ पुण्यदशा जागी नली, मान बहे सवि गम ॥ ० ॥ पर पण पोतानां थयां, यहो हो पुण्यनां काम ॥ न० || ए || एक दिवस पाठकवर, ले सवि छात्र संघात ॥ स० ॥ चलग जणुं घ्यावीयो, नृप समीप विख्यात ॥ ० ॥ १० ॥ करी प्रणिपात पर्चा चितें वेव तेह कुमार || स० ॥ वत्सराज दी तदा देवकुमर व्यवत्ता
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जैनकथा रत्नकोष नाग आग्मो, कांश संपद वली तेम थाय ॥ सु० ॥ ३ ॥ पण आवी तुमेंज इहां रे, . रहियां गोपवी आप ॥ ते जेम जेम मुफनें सांजरे रे, कांश तेम तेम . होवे संताप ॥ सु० ॥ ४ ॥ आवे व्यसन एह दैवथी रे, नहिं शहां संतने लाज ॥ न लह्यां नयरीमा रह्यां रे, कांश ए में कीध अकाज ॥ सु० ॥ ५ ॥ हा परघरनी चाकरी रे, तुमें कीधी निर्धार ॥ गाल सबल शिर माहरे रे, कांश वेली ए जमवार ॥ सु० ॥६॥ जेम जेम तुम्ह मुःख सांजरे रे, तेम तेम हृदय नराय ॥ पण सदु ए वश कर्मने रे,कांश आपणुं की, न थाय ॥ सु० ॥ ७ ॥ किं वदुना हवे हाथणी रे, बहेनी वेसो आवि॥ कर जोडी करे विनति रे,कांश शेठ सोमदत सनाव ॥सु॥७॥ में अविनय कीधो घणो रे, हीन कराव्युं काम ॥ ते खमजो मुझ स्वामिनी रे, ढुंळ तुमारे नाम ॥ सु० ॥ ए ॥ ते कहे वांक नहिं किस्यो रे, तुमचो इहांकणे शेत ॥ केडे लाग्युं पापीयु रे, कांश पेट करावे वेत ॥ सु० ॥१॥ शहेरमां फरतां अम्ह नणी रे, दीधो तुमें आश्रम ॥ दोहिला दिन वोलावीया रे, कांश दियु अमें आशिप तुम ॥सु॥११॥ अहित थयुं होय अम्हथी रे, ते खमजो अपराध ॥ तुम्हें गिरुथा गुणवंत बो रे,कांश उपगारी वली साध ॥ सु० ॥ १२ ॥ खमी खमावी एगी परें रे, भावे नृप आवास ॥ त्रिदु वहेनी वत्सराजगुं रे, कांश धानंद अधिक नन्नास ॥ सु० ॥ १३ ॥ नृप उतरवा आपीयुं रे, मंदिर सुंदर एक ॥ सामग्री संयुत करी रे, कांश राख्यो सवल विवेक ॥ सु० ॥ १४ ॥ सुखें रहेतां वत्सने रे, कहे नृप शी तुम चाह ॥ जे मागे ते तुमने रे,कां आपुं धरि उत्साह ॥सु०॥१५॥ ते कहे मुझने ताहरी रे, सेवानो डे कोड ॥ रात दिवस तुम पागलें रे, कांइ रहेगुं वे कर जोडि ॥ सु० ॥१६॥ संध्यासमयें मुझने रे,मोकलजो मुक गेह ॥ एम कहीने करे चाकरी रे,कांश हियडे धरि वदु नेह ॥ सु० ॥ १७ ॥ मान घणुं महिपति तणुं रे, माने सघलां लोक ॥ कमलश्री पण नित्यप्रतें रे,कांश खवर लीये तजी शोक ॥ सु० ॥ १७ ॥ एक दिवस महिपाल जी रे, विण मोकले वत्सराज ॥ सूतो वासघरे जइ रे, कांइ सुरखमां नर शिरताज ॥ सु० ॥ १५ ॥ यामिक चिटुं दिशे धाविने रे, रहिया तिहां दुशीयार ॥ खड्ग ग्रही वत्सराजजी रे, पण रहियो घरने वार ॥ सु ॥ २० ॥ पंचम खंमें घढारमी रे, ढाल या सुवि
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श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो ५७ पार ॥रामविजय कहे वत्सना रे, कांश पुण्यतणो नहिं पार ॥सु॥२१॥६०५॥
॥दोहा॥ वेनयवंत ऊनो रह्यो, सेवकपरें वत्सराज ॥ मध्यरात्रि वोली जिस्यें, तव नाग्यो नरराज ॥ १ ॥ श्रवणे निसुएयु उखनु, कामिनीरुदन अपार ।। मन चिंते महाराजजी, होशे कवण प्रकार ॥ ५ ॥ वोलाव्या यामिक वणी, नरपति ऊंचे साद ॥ पण कोई वोल्या नहिं, कंध्या निंद प्रमाद ।। । ३ ॥ वत्सराज वोल्यो तदा, द्यो कारिज आदेश ।। नृप कहे हजी वेगे प्रठे, केम न गयो गृहदेश ॥४॥ विण दुकमें जाऊं नहिं, नृप कहे जा निजधाम ॥ प्रेष्यपणुं न घटे तुने, कहिश ए अवरने काम ॥ ५ ॥ पत्त कहे महाराजजी, फरमावो मुज बाज ॥ शिर जोरें करशुं सही, नहीं हां मुज लाल ॥ ६ ॥
॥ ढाल गणीशमी ॥ ॥ कहे सखि पीयुडे झुं कयुं । सहि मोरी रे ॥ ए देशी ॥ कहे नृप तुण वत्त माहरा ॥ गुण धोरी रे ॥ पलकमांहे मुज आज ॥ लीधुं चित्त चोरी रे ॥ तुज विण कुण रयणी समे ॥ गुण धोरी रे । पडिबजे पुष्कर काज ॥ लीधुं० ॥ १ ॥ वत्स जा उतावला ॥ गुण ॥ कोण रोवे ए नारि ॥जी॥ दुकम प्रमाए करी चल्यो । गुण ॥ साहसिक शिरदार ।ली ॥ २ ॥ शब्दतणा अनुसारथी ॥ गु० ॥ करी उलंघन वन । ती० ॥ गयो स्मशाननी लुमिका ॥ गु० ॥ सत्त्व संघातें दिन ॥ ली ॥ । ३ ।। एक प्रदेश सीमंतिनी ॥ गु० ॥ वसनाचरण विशेप ॥ ली ॥ शोने ते सकुमारिका ॥ गु० ॥ दीठी सुंदर वेश ॥सी० ॥ ४ ॥ पण होती थतिही घणुं ॥ गुण ॥ पूछे जश्ने कुमार ॥ ली०॥ बढेन गेवे किण कारणे ॥ गु० ॥ कहे मुफ ख विचार ॥ ली ॥ ५ ॥ चाल्यो जा परदे शीया । गु० ॥ गुंनुज पठण काज ॥ती० ॥ शक्ति विना नपकारने ॥ गु० ॥ इछे मूर्व शिरताज ॥ ली०॥ ६ ॥ वत्स कदे तुं दु:खिणी ॥गु०॥ में मूकी न जवाय ॥ ली० ॥ परःखें वीया कहा ॥ गु० ॥ सहन जन जगमांय ॥जी॥॥ सा कथयति ॥ यस्य कस्याप्य हवं न कथ्यते ॥ यह ॥ जो नदि पुरक पनी, जो नवि कस्ल निग्गन नम को ॥ जो नदि इदिए उदिळ, ता किन कहिडाए सुरकं ॥ १ ॥ वत्स
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मुफ तुं नाव व ॥ २० ॥ पण ते कोण गणतीमा ॥ २॥ पूर्वढाला
स्थत जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. राजेनोक्तं ॥ नई शृणु ॥ अहमवि उरकं पत्तो, अहमवि उरकस्स निग्गह समबो॥अहमवि उहिए मुहिन, ता अम्ह कहिलए सुरकं ॥ २॥ पूर्वढाल ॥ सा कहे सऊन ते जुवा ॥ गुण ॥ तुं कोण गणतीमांहे ॥ ली० ॥ श्राज्य सुगंध घणो दुवे ॥ गुण ॥ पण तेलने शो गुण थाय ॥ ली० ॥ ७ ॥ केम मुज तुं नवि लेखवे ॥गुण॥ श्यो अवगुण तें दीवाली॥ ते कहे बालक वेशमां ॥3॥ शुं तुमथी होवे इहली॥ ए ॥ कहे वत्स शुं न हणे धरा ॥ गुण ॥ तम ऊगंतो सूर ॥जी॥ नहानो पण हरिनो शिशु ॥ गुण ॥ नांजे मातंगपूर ॥ली ॥ १० ॥ शुं चिंतामणि नानडो ॥ गु० ॥ न करे दारिश दूर ॥ ली ॥ दीपक दीसे वालु ॥ गुण ॥ पण करे तम चकचूर ॥ली ॥ ११ ॥ एम नहानामां गुण घणा ॥ गु॥ तेम मुझने पण जाण ॥जी॥ बोली हसीने नामिनी ॥ गु० ॥ सांजल चतुर सुजाण ॥ ली ॥ १२ ॥ ए नयरीमांहे वसे ॥ गु०॥ मुफ पियु पुरुप रतन्न ॥ ली ॥ विण अपराधे नरेश्वर ॥ गु० ॥ शूलीय विध्यु ए तन्न ॥ ली ॥ १३ ॥ लेावी घृतपूरने ॥ गु० ॥ पियुमूख देपण काज ॥ ली० ॥ हाथ न पहोंचे माहरो ॥ गु०॥ रोचं तिण कारण आज ॥ ली ॥ १५ ॥ कहे वत्स संतशिरोमणि ॥ गु०॥ चढ मुफ कपर खंध ॥ ली० ॥ पूर समिहित ताहरूं ॥ गु० ॥ मुफ उपकारनी संधि ॥ ॥ ली० ॥ १५॥ वाली कबोटो परें । गु० ॥ गंची चढी विकराल ॥ ली० ॥ बेदे आमिपपिंमने ॥ गु० ॥ हाथ लई ते पालि ॥ली ॥ ॥ १६ ॥ ऊर्ध्व विलोके वत्सजी ॥ गु० ॥ दीतुं कुचेष्टित तास ॥ ली ॥ खड्ग खेंची कहे रंभिके ॥ गु० ॥ किहां जाइश हवे नाशि ॥ ली॥ १७ ॥ उंची उमंतां जेहनां ॥ गु० ॥ परिधान चीवर हाथ ॥ ती० ॥ रहियां ते नाशी गई॥ गुण॥ पापिणी जेम अनाथ ॥ ली०॥ १७ ॥ धनरथ जिनने एहवे ॥ गु० ॥ पूजे प्राणी कोय ली॥ नगवंत कुए ए कामिनी ॥7॥ कर्म करे गुण खोय ॥ती० ॥ १ ॥ कहे प्रलु देवी उष्ट ते ॥ गु० ॥ नर बलवाने अधर्म ॥ ली० ॥ करे अहोनिश शंके नहिं ॥ गु० ॥ कर ती एहवां कर्म ॥सी० ॥ २० ॥ कहे प्रनु जरुण नवि करे ॥ गु० ॥ मांस एह सुर जात ॥ ली ॥ पण क्रीडा ए तेहोनी ॥ गु० ॥ जाणे नर सादात ॥ ती ॥ २१ ॥ वत्सराज ले वस्त्र ते ॥ गुण ॥ आव्यो
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श्री शांतिनाथनो रास खंग पांचमो. इथए नेज थावास ॥ ली० ॥ शयन कमु सुखियो थयो ॥ गु० ॥ आनंद नील विलाल ॥ ली ॥ २२ ॥ पंचम खमें गणीशमी ॥ गुण ॥ ढाल
ही ससनेह ॥ ली० ॥ रामविजय कहे रंगमु ॥ गु० ॥ वत्त जयो पुणगेह ॥ ली० ॥ २३ ॥ सर्वगाथा ॥६३४॥ श्लोक तया गाथा ॥२॥
॥दोहा॥ ॥ वस्त्र लेई ते यावीयो, नृपपासें परमात ॥ करि प्रणाम कनो रह्यो, वर कुलविख्यात ॥१॥ नृप आगल सवि रातनो, नांख्यो तेणे विरतंत ॥ गत सुपी विस्मय लह्यो, मासो ते नूकंत ॥ २ ॥ वसन तेह देवीत', प्राप्युं नरपति हाथ ॥ रयजडित देखी करी, हरव्यो ते जूनाथ ॥ ३ ॥ राणीने ते सोपीयुं, हरखी मन अत्यंत ॥ पहेयुं पए कंचुक विना, शोना से न लहंत ॥ ४ ॥ राणी कहे प्रीतम नणी, ए सरिखो कूस ॥ पाणी थापो मुझने, प्राणेश्वर सुविलास ॥ ५ ॥ राय कहे वत्सराजने, पहेरण ।
वस्त्र समान ॥ जो कंचुक पाणी दीये, तो दुवे हर्प अमान ॥६॥ -- वचन प्रमाण कयुं तदा, जइ वन चंदनद ॥ कोटरथी खेचरी तj,
श्राएगी यापे दद ॥ ७ ॥ पहेरी सा परसन थर, मासी दें थाशीप ॥ वत्सराज चिरंजीव तुं, पूरी मनह जगीश ॥ ७ ॥
॥ ढाल वीशमी॥ ॥ नमो रे नमो श्री शत्रुजय गिरिवर ॥ ए देशी ॥ लाने लोन घणे रो वाधे, तृमा नवि योनाय रे । जेम जेम पूरणने धन सींचे, तेम तेम बदुली थाय रे ॥ १ ॥ लानें ॥ ए धांकणी ॥ ते वेदु चीवरने श्रण सरिर, निज उत्तरीय निहाजिरे ॥ कमल श्री करे मनमांहे थारति, कर देई निज नाल रे ॥ ला० ॥ २ ॥धारति धरती नृपति निहाली, पूठा यावी ताम रे ॥ श्याममुखी केम दीसे कामिनी, श्यो तुज मनमांह काम रे । ला ॥ ३॥ सुणो वालम कहेतां दुं लाजूं, कहे नृप झी मुक लाज रे ॥ तुण सुंदरी ते लाज न कीजें, जेहयी विणने काज रे ॥ ला ।। ५ ॥ गगी कहे उत्तरीय मजे जो,ए सरिखं अवनीश रे ॥ तो मुज मन संतोष लदे एम, कदे नामी निज शो रे ॥ ला० ॥ ५ ॥ नृपति चिते लोन तणोप, योन न दीसे कोय रे ॥ कामिनी जातें प्रयगुण माये, जगमां बद्धलो होय रे ॥ ला० ॥ ६ ॥ यतः ॥ यतृत साइत माया,
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१६० - जैनकथा रत्नकोष नाग आरमो. मूर्खत्वमतिलोनता ॥ अशौचं निर्दयत्वं च, स्त्रीणां दोषाः स्वनावजाः॥१॥ पूर्वढाल ॥ कहे राजन तुम सम नहिं कोई, अविवेकीण अविचारी रे ॥ व्यर्थ मनोरथ वस्तु असत्ता, ए मति नहिं तुज सारी रे ॥ला ॥ ७ ॥ । कहे राणी प्रीतम ए साचं, पण मुफ आणी आपो रे ॥ प्राणजीवन मनोवंबित पूरण, तुम ऊपर अम दापो रे ॥ ला० ॥ ॥ नोजन हत लेई रही राणी, नृप मन चिंता महोटी रे ॥ कोपमंदिरमां पेती कामिनी, लोजनी जाति ए खोटी रे ॥ ला ॥ ए ॥ मूरख बाल अने वनितानो, हत सवलो जग होवे रे ॥ घरनी चिंता चित्त न आणे, निज सुख साहा मुं जोवे रे ॥ ला० ॥ १० ॥ कहे राजा वत्सराजने तेडी, साहलिया शि . रदार रे ॥ दिव्य वसन पापीने मुझने, अनरथ कीध विचार रे ॥ला ॥ ११ ॥ ए तुझ मासी लोनें प्यासी, नहिं संतोष लगार रे ॥ उढणी का न लियो हत सबलो, नहिं कोई पूरणहार रे ॥ ला ॥ १२ ॥ कहेण न माने मानिनी माहरूं, लोनयी लक्षण ना रे ॥सात न पूराये ए नीति नां, वयण न दीसे मानां रे ॥ला ॥ १३ ॥ यतः॥ अनिर्विप्रोयमो राजा, समुनदरं गृहम् ॥ सप्तैतानि न पूर्यते, याचंति च दिने दिने ॥ २ ॥ ॥ पूर्वढाल ॥ वत्स विचारी कहे सुणो स्वामी, पूरवी मासी आशा रे ॥ पटमासान्यंतर जो न पूरुं, तो करुं अग्नि प्रवेशा रे ॥ ला ॥ १४ ॥ कहे राजन वत्स एम न कीजें, आकरी एह प्रतिज्ञा रे ॥ न कलाये विधि विविध कलाइ, नियति न वोले विज्ञा रे ॥ ला ॥ १५ ॥ ते कहे तुम प्रसादें रूडं, राजन् सघर्बु थाशे रे ॥ पण मुझने तुमें पापो आणा, नावीनाव जगाशे रे ॥ला ॥ १६ ॥ ले नृपयाणा मंदिर मांहे, जननी नमेवा आव्यो रे ॥ कर जोडी रहि आगाल कनो, सयल विचार सुणाव्यो रे ॥ ला ॥ १७ ॥ मोहवों माडी कहे तें वत्स, पुष्कर जंगी कीधो रे ॥ वत्स कहे हवे वात ए न फरे, वयणें वोल जे दीधो रे ॥ ला ॥ १७ ॥ कहे माडी मासी सुण अंगज, तुं अम्ह प्राणाधार रे ॥ केम परदेशनणी मूकाये, मारग विपम अपार रे ॥सा ॥ १५ ॥ कहे वत्स संघलुं रूडं थाशे, यो धाशीप पसाय रे ॥ चिंता मत करशो को महारी, साथे पुण्य सवाय रे ॥ ला ॥ २० ॥ धीर वीर जाणी कहे जननी, होजो तुम कल्याण रे ॥ वहेला काज करी वत्स वलजो, सुण
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श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो. २११ अम जीवन प्राण रे ॥ ला० ॥ २१ ॥ मायडी तिलक कयं कुंकुमर्नु, दीधु श्रीफल सार रे ॥ दधिनोजन करिने सिदि कीधी, श्री वत्सराज कुमार रे ॥ ला० ॥ २२ ॥ कांक संवल लेई साथें, पग पालो ते चा व्यो रे ॥ खड्ग खेटक संयुत दक्षिण दिशि, हीमे हर्पणुं माल्यो रे ॥ ला ॥ २३ ॥ नव नव जाति विनोदने जोतो, फरतो वहु पुर ग्रामें रे ॥ धाग ल एक घटवी तिहां यावी, नहिं मानवतुं नाम रे ॥ला ॥ २४ ॥ तिहां जातां प्राकार विराजित, लघुपत्तन एक दीढं रे ॥ देखी विजन वत्सराज विमासे, ए कां कोतुक मीतुं रे ॥ ला० ॥ २५ ॥ पंचम खंमें ढाल वीशमी, राममुनि एम जांखे रे ॥ धन्य एहवे तामें जे तिलनर, जय मनमा नवि राखे रे ॥ ला ॥२६॥ सर्वगाथा ॥६६॥ श्लोक ३१
॥ दोहा ॥ ॥ नूत प्रेत राइस त, दीसे पुर कोइ एह ॥ अथवा ए चिंता किसी, ज जो ससनेह ॥ १ ॥ नयरमांहिं जोवे जइ, महोढुं मंदिर एक ॥ लघु वीजां तस पाखती, निरखे ते सुविवेक ॥ २ ॥ सनामांहि वेतो तिहां, दी तो पुरुप प्रधान ॥ तस परिवारने पूठीयु, ए कोण सुगुण निधान ॥३॥ कुए नामें दीसे नगर, कुए स्वामी ए पास ॥ नर बोले ए नहिं नगर, नाहिं नरपतिनो वास ॥ ४ ॥ पण इहांधी नहिं ढूकडु,नहिं वेगखें सार ॥ नूति सकानिध पुर अ, नूरमपी उर हार ॥ ५॥ वेरसिंह नामें नलो, वेरी गज पंचास्य ।। रूपवती राणी तपो, प्रीतम लील विलास ॥ ६ ॥ तिण पुरमा रंगें रहे, दत्त नामें एक शेव ॥ दोलतने दोरे करी, सहुये जेहथी देव ॥ ४ ॥ श्रीदेवी नामें निपुण, नारी निरुपम रूप ॥ रति दासी कीधी जेणे, मोहन बेली अनूप ॥ ७ ॥ तेहनी कूखें उपनी, तनया अति सुधि नीत ॥ श्रीदत्ता नामें जली, मात पिताने चिंत ॥ ॥
॥ दाल एकवीशमी ॥ ॥ महाविदेद देव लोहामएं । ए देशी ॥ जर योवन थाची जनी, वाला तन सकुमाल लाल रे रूप कला गुण शोचती, चाले गजगति चात ॥ साल ॥ १ ॥ जुबो विपम गति कर्मनी ॥ ए श्रांकणी ॥ कोणे कती न जाय ॥ ला० ॥ कर्मवशे सद्ध जीवडा, सहे सुख दुख समुदाय ॥ सा ॥ जुवो ॥ २ ॥ श्रीदत्ता दुइ कर्मयी, दोपाक्रांत शरीराला ॥
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
जनक उपाय करे घणा, पण न टली तस पीर ॥ ला० ॥ जु० ॥ ३ ॥ मात पिता दुःखीयां थयां, चिंते मनमांदे एम ॥ सा० ॥ दोषी दैव ए रयानो, कहो हवे कीजें ए केम ॥ ला० ॥ जु० ॥ ४ ॥ यतः ॥ चंड़े. लांबनता हिमं हिमगिरौ कारं जलं सागरे, रुद्राचंदनपादपा विषधरैरंनो रुहं कंटकैः ॥ स्त्रीरनेषु जरा कुचेषु पतनं विधत्सु दारिता, सर्व रत्नमुप वेण सहितं दुर्वेधसा निर्मितम् ॥ १ ॥ पूर्वढाल || मूके नरने पाहरु, कुमरी सेवा काज ॥ ला० ॥ रातमांदे सही ते मरे, महोढुं एह काज ॥ जा० ॥ जु० ॥ ५ ॥ जो न रहे कोई पाहरु, ते कन्यानी पास ||ला० ॥ तो ते रयणीमां दुवे, सात पुरुषनो नाश ॥ ला० ॥ जु० ॥ ६ ॥ वात सुणी नरराजीये, तेडाव्यो ते दत्त ॥ ना० ॥ तु कन्या कुलखंपिणी, वात सुपी में मित्त ॥ ना० ॥ जु० ॥ ७ ॥ जा मूकी मुऊ नयरने, कोइक अटवी मजार ॥ ला० ॥ तु कन्यादोषें रखे, थाये बहुजन संहार ॥ ना० ॥ जु० ॥ ८ ॥ यइ दिलगीर ते नीसखो, लेई निज परिवार || ला० ॥ यावी घटवीमां रह्यो, घर करी सप्राकार ॥ ना० ॥
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० ॥ ए ॥ सेवक राख्या प्रति घण्णा, देई बहुला दाम || ला० ॥ नाम लखी गोला नखा, करे चिट्ठी वधकाम ॥ ला० ॥ जु० ॥ १० ॥ नामुं यावे जेहनुं, ते रहे चोकीदार ॥ जा० ॥ करे कन्यानी चाकरी, थाये तस संहार || ना० ॥जु ॥ ११ ॥ पण लोनें सढुको पडे, सहुने वहाना दाम ॥ ला ॥ दामथकी जगमां सही, पुष्कर पण करे काम ॥ ना० ॥ ॥ १२ ॥ क्तं ॥ यहुर्गामटवीमति विकटं कामंत देशांतरं गाहंते गहनं समुड्मतुलं क्लेशां रूपीं कुर्वते ॥ सेवंते कृपणं पतिं गजघटासंघट्ट5 स्तंचरं, सर्पति प्रधनं धनांधित धियस्तल्लोन विस्फूर्जितम् || २ || पूर्वढाल || ते नरमाथी सही, एकेको मरे नित्य ॥ ला० ॥ अवर कोइ न रहे इहां, सवली वरते ईति ॥ ला० ॥ जु० ॥ १३ ॥ ते माटे वारुं तुने, पंथी म जा इस गम ॥ ना० ॥ जिए स्थानक नय उपजे, तिहां जइयें शो काम ॥ ना० ॥ जु० ॥ १४ ॥ वात सुणी वत्सराजजी, उपगारी शिरदार ॥ जा० ॥ धैर्य धरीने यावीयो, दत्त समीपें उदार ॥ जा० ॥ जु० ॥ १५ ॥ उत्तम नर जाणी करी, वेसाखो व्यासन्न ॥ ला० ॥ पान वीsi यागल धस्त्रां, शेठ यई सुप्रसन्न ॥ ना० ॥ जु० ॥ १६ ॥ मुख देखी
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श्री शांतिनाथनो रास खंग पांचमो.
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रीज्यो घएं, पूठीयुं कुण तुमें संत || ला० ॥ परकासो श्रम धागलें, तुमें महोटा माहंत ॥ ला० ॥ जु० ॥ १७ ॥ वासी हुं उसे पिनो, धाव्यो कारण माट || खा० ॥ तुम दीठे याज माहरे, दूर गया उच्चाट || ला० ॥ जु० ॥ १८ ॥ बात करे दत्त प्रागले, जेहवे ताम पुमान ॥ ला॥ एक याव्यो रलियामणो, सुंदररूप जुवान ॥ ला०॥ जु०॥१॥ यावी उनो रह्यो यागले, मनमां घणुं विहाय ॥ ला॥ शेठ जणी पूठे तदा, केम ए नर कुम लाय ॥लाजु ॥ २० ॥ नाखी निशासो तब कहे, सुरा शा पुरुष विचार ॥ ला० ॥ कर्म कठिन धाव्यां वदे, चिकू महारो जमवार ॥ जा० ॥ जु० ॥ २१ ॥ गोपनीय पण ताहरी, न्यागल कहुं यवदात || ला० ॥ सुऊ तनयानी याकरी, कर्मकयानी वात ॥ सा० ॥ जु० ॥ २२ ॥ रय पीयें यामिक जे रहे, व्याकरो कोइक दोप || जा० ॥ रात समयमां ते मरे, न तो ए पोप ॥ जा० ॥ ० ॥ २३ ॥ श्राज ने वारक ए हनो, तेणें जंखाणी काय ॥ ना० ॥ मरण समो जय को नहिं, एम नांखे जिनराय || ला० ॥ जु० ॥ २४ ॥ वात कुणी वत्सराज बोलियो, पर उपकारने काज ॥ ला० ॥ मुऊहूंती ए वगरे, तो लढुं त्रिभुवनराज || ला० ॥ जु० ॥ २५ ॥ कहे वत्स मत वीहे मने, ताहरे सादें हुं जाइ ॥ जा० ॥ करिश कन्यानी सेवना, तुं रहे श्रानंदमां ॥ ला० ॥ जु० ॥ २६ ॥ शेठ कहे तुं प्राणो, करवुं घटे सन्मान ॥ जा० ॥ तुमने देवा ये नहिं. मरणतएं अपमान || ला० ॥ जु० ॥ २७ ॥ यतः ॥ गुरुरमि र्द्विजातीनां वर्णानां ब्राह्मणोगुरुः || पतिरेव गुरुः स्त्रीणां सर्वस्याच्यागतो गुरुः ॥ ३ ॥ पूर्वदा ॥ वत्स कहे तात ए में सही कीधुं अंगीकार ॥ ला० ॥ परपगारी नरें सही, एम कर्तुं शास्त्र मकार ||ला०॥ जु० ॥ २७ ॥ यतः ॥ कृतोपचारः सर्वोपि, करोत्युपकतिं जनः॥ विनोपचारं यस्त्राता, विपदः सोऽत्र सहनः ॥॥॥ धन्यास्ते पशवोनून, मुपकुर्वेति ये त्वचा ॥ परोपकारदीन म्यधिनुष्यस्य जीवितम् ||५|| देनं रक्षति पंचा, यह गतकोष्टी स्थितान कान हा ॥ देताच प्राणा, नरेश किं निरुपकारेण ॥ ६॥ किं तेन सुत जातेन येनात्मा पुर्नरः सदा ॥ समयनोपकाराय मातुजां तेन नेन किम. ॥ ७ ॥ पूर्वदा ॥ पंचम संग एकवीशमी, धन एवा गुणवंत ॥ ला० ॥ रामविजय कहे तेने, नित्यवती नमो संत ॥ सा० ॥ ॐ० ||२||उन्
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
॥ दोहा ॥
॥ हवे दत्त प्राणा नही, उपर भूमि वत्सराज ॥ कन्या । ३ ॥ यो, साहसिक शिरताज ॥ १ ॥ वत्स देखि चित्त चिंतवे, ए कोइक राजा तणो, दीसे कुंवर पहुत ॥ २ ॥
पी देव ः ॥ चंड़े पिधरैरंनो रत्नमुप
|| ढाल बावीशमी ॥
पाहरु,
॥ चतुर चोमासुं इण मुंगरीये न जइयें रे ॥ ए देशी ॥ चिंते सा बाली रे | नारी नहिं पण मारी हुं जाली रे ॥ ऊने चांगाली, मुऊ माथे महोटी ए गाली ॥ चतुर विचारी एकाज न करीयें रे, पातकडों न करीयें, वहाला मनडां मांदे मरीयें पाला॥ ए नररयण तणी हत्यारी रे, कां मुऊने इस कुलें अवतारी वात ॥ २ ॥ शां कां कर्म कठिन में जूंमां रे, के कस्यां कोणी, मां रे ॥ धि० ॥ ३ ॥ शाने घरी मुऊ कुखें तें माडी रे, एहवी, में तुमने लजाडी रे ॥ धि० ॥ ४ ॥ यइ मावित्रने हुं दुःखदाय शे काम यावी मुऊ चतुराई रे ॥ धि० ॥ ५ ॥ पास्यो मानव जव न आयो रे, कर्मों ए महोटो दोप लगायो रे ॥ धि० ॥ ६ ॥ हा हवे बूटीश ए पांपोरे, राखो रे मुकने कोइ माय बापो रे ॥ धि ॥ ७ ॥ एम चिंतवती हो अबला ते फुरे रे, नयों वदे यांसुडाने रे ॥ धिः ॥ ८ ॥ श्राव्यो कुंवर तब वेठो बीजी शय्या रे, कुमरी वो तव मूकीने लगा रे ॥ धि० ॥ ए ॥ हुं आव्यो याज तुम रखव रे, कुंवरी श्रीदत्ता मुऊने उत्तर वालो रे ॥ धि ॥ १० ॥ वात मनडांमांहे रीजी रे, वेहुनी नेदाणी कांहिं हैडानी मींजी रे ॥ध ११ ॥ रीजाणी चिंते एम घाटें रे, एहने उगारुं महारा जीवित साते ॥ धि० ॥ १२ ॥ एम चिंतवतां दो ततक्षण यावी रे, निंदरडी वैरा कुंवरी घेरावी रे ॥ धि० ॥ १३ ॥ बंधी जालीने वत्स अधोभूमि जा काष्ठ ले श्राव्यो एक बुद्धि सखाई रे ॥ धि० ॥ १४ ॥ काष्ठ सुवा प जेम दीसे रे, यही तरवार रह्यो एका दिशें रे ॥ धि० ॥ १५ ॥ Tilari रह्यो बलीयो रे, धारिणीजायो नवि जाये कोनो वलियो ॥ धि० ॥ १६ ॥ एणे अवसरें वातायन विवरें रे, मुख एक पेसंतुं दी तव कुमरें रे ॥ धि० ॥ १७ ॥ थइ सचेतो कुमर तब रहीयो रे, वज्र त
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. १६५ रीज्यो वएं, । यो रे ॥ धि०॥ १७ ॥ तेरों मुरचे वासघरने निहाली रे, .. महोटा माहंत कर ततकाली रे ॥ धि० ॥ १५ ॥ मुश अलंकृत अंगुलि कारण माट ॥ घिवलीये मंमित घणुं सोहे रे ॥ धि० ॥ २० ॥ फंकयकी ॥ जु० ॥ १७ ।'टारी रे, वासनुवनमा व्याप्यो अंधारो रे ॥ धि० ॥ श्राव्यो रलियामरसे जइ चामिक सेनें रे, तब कुंवरें हण्यो वनै सुतेजें रे श्राग,मनमां ॥ देवपनावे तस कर नवि पडियो रे, बोपधियुग पड्यो लाय लाणा रे ॥ धि० ॥ २३ ॥ एक धूमोपधि तेहमांहे ताजी रे, ॥ ला ॥ कोहणी साजी रे ॥ धि० ॥ २४ ॥ वेदना हाथ लीधो जु० ॥ २१ पी वोली हा हा मुझने वंची रे ॥ थि० ॥ २५॥ कहे कुंवर मुफ तनया दासी रे, हवे मुज आगें किहां जाइश नासी रे ॥ धिम् ।। गीय यानिज उपाडीने के उजागो रे, नाठी देवी तस ताप न खमाणो मरे, अ० ॥ २७ ॥ पुण्यवलीया अागल कोण मंझे रे, पुण्य प्रबल वेरी हनो खमेरे ॥ धि ॥ २७ ॥ पाने वाली श्राव्यो वत्सराजो रे,पुण्य पसा नसधि सीधलां काजो रे ॥ धि०॥ २५ ॥ यावी वेता जब कुंवर सवाया प,रयणी विहाणी तब वादाला बायां रे ॥ धि० ॥३०॥ पंचम खवावी ॥मी ढालें रे, उग्यो सूरज वत्स मुखइंनिहाले रे॥धि॥३१॥७३॥३०॥
॥ दोहा ॥ __ ण अवसर ते कन्यका, जागी जुवे जाम ॥ श्रदतांग दीयो कुंवर, हेड़े दरखी ताम ॥ १ ॥ तिववा लागी चिते. ए को पुरुपरतन्न ॥ स बल प्रनाव एदनो महि. इष्टयकी न विपन्न ॥ २ ॥अथवा जाग्युं नाग्य मुक, मलियो पुरुप प्रधान ॥ जो परणुं तो एहने, नहिं तो विपरपजरका
॥३॥ एम चिंती कदे मुंदरी, व्यसनथकी केम प्याज ॥ मृकाणा ते मुक कहो, गिरधा गरिव निवाज ॥ ४ ॥ सचल चात मामी कदी, नि सणी दरखी चाल || रोम रोम तन उमस्यु. मन विकम्युं ततकाल |॥ ५ ॥
॥ दान प्रवीशमी।। ॥ लादलदे मात मदार ॥ ए देशी ॥ दात करे वेदु तेह, दर्प धरी स सनेद ॥ याजायावी रे जन्त ने वाली कनी कने जी ॥ १ ॥ देखी श्रत वांग, पुस्प यो मन रंग या ॥ हादी रे याची दनोटनी याग में जी ॥ २ ॥ जय स्वामी मुकयाज, अरज सुनो महागज ॥ याका
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२६६ जैनकथा रत्नकोष नाग आवमो. लावी रे वधामणी नर कुशला तणी जी ॥३॥ हर्प हैये न समाय, उत्यो शेत तव धाय ॥आ॥ आव्यो रे ते पासें नयणें निरखतो जी ॥४॥ श्रीदत्ता गुणवाणि, कनी जोडी पाणि ॥ आ० ॥ आप्यु रे गुना सन जनकने वेसवा जी ॥ ५ ॥ कहे दत्त साहसधीर, सुण पुरुषोत्तम वीर ॥ आ ॥ रातें रे व्यसनांबुधि कहो केम निस्तस्यो जी ॥ ६ ॥ सत्त्व तणो आधार, मामी कहे सुविचार ॥आण॥ दरख्यो रे निसुणीने तेहनी वातडी जी ॥ ७ ॥ कहे दत्त सुण नरसिंह, महिमावंत अबीह ॥ था॥ दीधी रे में पुत्री तुमने माहरी जी ॥ ७ ॥ नहिं मुफ पाड सुजाण, तुऊ गुणकीता जाण ॥ आ ॥ तो पण रे व्यवहार ए मुफ कहेवा तणो जी ॥ ए॥ कुंवर करे सुणो स्वामि, न लहो मुफ कुल गम ॥ बा ॥ दीजें रे केम अजाण्याने दीकरी जी ॥ १० ॥ दत्त जणे कुल जात, लणथी लहि वात ॥ आप ॥ कलिमां रे कुण कुल कलहंस तणुं कहे
जी॥ ११ ॥ बानो न रहे सूर, तेज प्रताप पमूर ॥ आ ॥ पायो रे तुं • पुरुषशिरोमणि पुण्यथी जी ॥ १२ ॥ यतः॥ आकतिर्गुणसमृदिशंसिनी, नम्रता कुलविशुधिसूचिका ॥ वाक्क्रमः कथितशास्त्रसंक्रमः, सत्तमस्य नवतोविवोधकः ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ दीधुं कन्यादान, जे मुऊ जीव . समान ॥ ॥ आपुं रे झुं अधिकुं तुजने एहथी जी ॥ १३ ॥ करो करुणा वरो एह, नहिं अम मन संदेह ॥ आ० ॥ जाणुं रे तुमें अम कर चिंतामणि चढ्या जी ॥ १४ ॥ कुंवर कहे कयुं साच, पण निसुणो मुफ वाच ॥ आप ॥ जावू रे मुज गिरुवे कारज वेगलु जी ॥ १५ ॥ वलतो
आवीश धाम, करशुं जे कहेशो काम ॥ आप ॥ बोले रे दत्त वात कहो ते नवि मले जी ॥ १६ ॥ एक वार परणी एह, पढ़ें मन माने तेह ॥ या ॥ करजो रे कारिज ए अमची वीनति जी ॥ १७ ॥ कीg अं गीकार, हत जाणी निर्धार ॥ आप ॥ परणी रे श्रीदत्ता तिण दिन प मिनी जी ॥ १७ ॥ हरव्यां साजनवंद, उत्सव अति आनंद ॥ श्रा० ॥ रहीया रे एक रात्रि तिहां आवासमां जी ॥ १९ ॥ दंपती दिल जर प्रेम, दोगुंछुक सुर जेम ॥ आ ॥ रमतां रे रंगें' वोली रातडी जी ॥ २० ॥ जर यौवन वय पूर, दंपती चढते नूर ॥ आ ॥ परिगल रे पूण्याइ ए जोडी मली जी ॥ २१ ॥ बीजे दिन वत्सराज, कहे जामिनी
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श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो. हा मुणग्राज ॥श्रा०॥ महारे रे तुज प्राणा सिम करवी सही जी ॥२॥ कहे श्रीदत्ता नारी, वहालेसर अवधार ॥ श्राण ॥ तुमचो रे न खमाये विरहो बालहा जी ॥२३॥ विरहो मास वसंत,नवल नेह गुणवंतपथा॥ नूतन वय पंचम झर ए पांचे मल्या जी ॥ २४ ॥ पंचम अनि महंत, केम सहेवाये कंत ॥ श्रा० ॥ रमीय रे रंगीले रस नर मालीये जी ।। ॥ २५ ॥ विलसो नोग विलास, पूरो वांवित्त थाश ॥ श्रा० ॥ चिंता रे शी मनमां तुमने ते कहो जी ॥ २६ ॥ पंचम खमें ढाल, त्रेवीशमी सुर साल ॥ या ॥ होवे रे साहसयी संपद सहेलमां जी ॥२७॥७७१॥३॥
॥दोहा॥ ॥ कहे वत्स वनिताप्रत्ये, जावू न गमे मुफ ॥ पण सांजल तुम आ गानें, कहुँ माहरूं गुफ ॥ १ ॥ जो न जावं देशांतरें, तो दुवे श्रमिष वेश ॥ इहांकणे कांड संशय नहिं, माटें यो श्रादेश ॥२॥
॥ढाल चोवीशमी ॥ ॥देशी जत्तीनी ॥ जत्ती ॥ कहे कामिनी जोडी पाणि,निसुणोप्रीतमगुणवा गी॥ तुम विण मुक मन अकलाय,क्षण वरस बरोबर याय ॥१॥दोहो। सजान तुमें मिधावशो,बदुगुणवंता नाह ॥ पण महारी गति शी होशे, लं चां शोर यथाह ॥ २ ॥ यत्ती ॥ शोच मकर रे कामिनि कांहिं, तुझा मुज अंतर नाही ॥ में प्राण दीयां तुम हाथे, तुं रात दिवस मुज साथै ॥ ३ ॥ दोहो ॥ साथ तुमारो बानहा, में करवो निरधार ॥ अबला कवेखी जशी, शो तुम नेद विचार ॥ ४ ॥ यनी ॥ ने नवल निवाहो वहाला, दोहिलां मुफ विरहनां नाला ॥ कंत करुणा करो रस नीना, मुफ साय ल्यो चीर नणदीना ॥ ५॥ दोहों ।। सांनत ससनेही प्रिया, बहेलो चल नोग्रावि ॥ रम' रामत रंगनगे, नवरस नेह बनावि ॥ ६ ॥ यनी ॥ बनो तुज प्रीति जाजी, दे श्राणा मुफ थाने राजी॥रहेतां विणतशे नऊ काज, नुशी करवी लाज ॥ १ ॥ दोहो । सझा लोपीने कहे, नयाण जरत
नी॥ वदावर याच्या विना, नवत न पहचीर ॥ ॥ यत्ती ॥ चिर काम काजल रेहान से तुम विण व नेहा ॥ बलि कुसुमानरण यो सा, तुम याव्ये भोगेगरोला ! ॥दोहो । रंगीता वालम सही, ए मुगवाणीच ॥ तुम प्यावे हिज तृटश, एर यही में लंधि ॥ १०॥ यत्ती ।। -
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२६ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. संधा समरेजो स्वामी, विनवं वं अंतरजामी ॥ रहेगुं तनगुंण वेशें,-.. पण हृदय पियु जिण देशे ॥ ११ ॥ दोहो ॥ . जिण देशे पियु संचरो, तिए देशे होजो देम ॥ अवसरें मुफ संजारजो, मत वीसारो प्रेम ॥ १२ . ॥ यत्ती ॥ प्रेम मत विसारो पनोता, लही नव नवी नारी कंता ॥ वहेला . वलजो हितवंता, कर जोडी कहे श्रीदत्ता ॥ १३ ॥ दोहो ॥ श्रीदत्ता कहे । साहिवा, वहेलाही वलजोह ॥ मुंगरजीवी जीवजो, कंबर ज्युं फलजोह ॥ ॥ १४ ॥ यत्ती ॥ फलजो तुम कहुँ शिर नामी, नवि बोली जाणुं रति कामी ॥ जाउ एम कहेतां कातुं, मत जाउ वयण ए मातुं ॥ १५ ॥दोहो कानुं वयण न बोली, पीयु सीधावण वार ॥ जेम जाणो तेम युं कहे, नेह कवण जरतार ॥१६॥ यत्ती ॥ नेहें या संघातें ए वाणी, न चढे ए . पियुजी प्रमाणी ॥ माटें करी चिंतित काज, वहेलु दरिसण देजो राज ॥ १७ ॥ दोहो ॥ रीज्यो निसुणी नारीना, वयण अमीरस तोल ॥ वीस रशे नहिं वालही, ए तहरा मुफ बोल ॥ १७ ॥ जत्ती ॥ बोल दे लेइ शेत आणा, कुमरें तब कीध प्रयाणा ॥ जातां एक पागल धावी, थ टवी अति नीषण चावी ॥ १ए ॥ दोहो ॥ चावा नील घणा जिहां, पर्व त अति उत्तंग ॥ फांस जाड कग्यां घणां, नहिं जिहां सऊन संग ॥ २० ॥ यत्ती ॥ एहवी अटवीमाहे एक नाम, दीठी एक नयरी अनिराम ॥ घर अनलिह जिहां दीसे, जोतां मानव मन हीसे ॥ २१ ॥ दोहो ॥ वाहिर सरोवर पेखीयु, अति शीतल जल चंग ॥ चरणानन पावन करी, वेठो पालें मनरंग ॥ १२ ॥ यत्ती ॥ मनरंगें वेठो जइ पालें, चिटुं दिशे निरखीने नि हाले ॥ जल बहेती दीती वदु नारी, पूज्युं एकने जइ मति सारी ॥ २३ ॥ दोहो ॥ मतिसारी पूछे तिहां, कुण नयरी कुण नूप ॥ ढुं तुम पूर्बु प्रेमा, नांखो सकल स्वरूप ॥श्शायनी॥ नांखो सकल स्वरूप विचारी,कहेशे हवे . ते पनिहारी ॥ पंचमे चोवीशमी ढाल, कहे राम सुणो उजमाल ॥२५॥
॥दोहा॥ ॥ व्यंतर देवी वासियुं,ते कहे ए पुर सार ॥ क्रीडा करवा कारणों, सां नल चतुर कुमार ॥ १ ॥ अन्य नहिं राजा इहां, नहिं कोनो अधिकार॥ ने देवी धम स्वामिनी, धमें तेहनो परिवार ॥२॥ कुमर कहे साचु कडं, जल वहो के काज॥ते कहे सांजल सापुरुप, वयण माहरु धान ॥३॥
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श्री शांतिनायनो रास खं पांचमो.
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|| ढाल पन्नीशमी ॥
॥ शारद बुविदायी ॥ ए देशी ॥ कहे ते देवनारी, सांनल साहस धीर ॥ जननीना जाया, गिरुधा गुण गंभीर || पावन पुरुषोत्तम, अतु लीवल वढवीर ॥ यह सामीनी वेदन, हजीय न श्राव्यो तीर ॥ छूटक ॥ तीर न व्याव्यो एकए देगें, छम्ह स्वामिनी गइ हूती ॥ तिहां कोई पुरुष खड्ग प्रहारें, तेहने घणुं विती ॥ बांह ती पीडा बहुतेरी, केमे करार न थाय ॥ पीडा तेह निवारण काजें, नित्य जलथी सींचाय ॥ १ ॥ लिए कारण जलने, वहियें ए सुंदर जाए || हजी वेदन न शमी व ए कर्म विन्नाय ॥ वत्सराज विमासी, बोले एपिपरें वाली ॥ केम निज पीडाने, निवारण तेह जाण ॥ ० ॥ तेह जाण य केम बेटी, कहे देवी तु साधुं ॥ ते प्रहार दायक अंगरक्षक, देवतणुं बल जानुं ॥ तस प्रजावें एवेदन न समे, मत मानेजो काचुं ॥ देवप्रभावय की पण त्र्यधिको मानव महिमा राखुं ॥ २ ॥ वली औषधि युगल, हुतुं एहने कर एक ॥ सप्रनाव मनोहर, दीतुं म्हें सुविवेक || व्यंतरपति दधुं तुष्ट यईने ब्रेक ॥ फल देवी व्यागल, जांख्युं तेणें व्यतिरेक ॥ ऋ० ॥ व्यतिरेकें एक जग मोहे, वीजी बहु गुणकारी ॥ परघातोङ्गव पीड निवा रण, ए विदुपधि सार ॥ तेह पडी ख जिहां ताडी, श्रम स्वामि नी ःख पाइ ॥ धि पाडी लाज गमाडी, कीधी कर्म कमाई ॥ ३ ॥ वत्सराज पर्यषे, हुं हुं मानुष्य वैद्य | टालुं तस वेदन, एक साहित्यमांदे तय ॥ पशुं सुकदेशे, बोजे देवी चचन्न ॥ मन चिंतित पामीश, सां जल पुरुष रतन्न ॥०॥ पुरुषरतन्न गुणी मुक बाली, हुं जाउं बजाणी ॥ मुक सामिनी पनी था, इहां रहेजां गुणखाणी ॥ प्राची बात कहे सामने. ते कडी लावो ॥ दासी थावी कहे सुप मानव, तुमें मुकतायें श्रावो || | || मारगमां नांवे, स्वामिनी अंग करार ॥ यये ते got, an aपर निरधार ॥ तव मागजे व्यापो बुक कन्यायुग सार ॥ प्रासाद परें, जे वे तुमचे व्याधार ॥ ० ॥ तुम प्राचीन रूपे एक सपणो ॥ चिंतित नामें जे पहोंचाटे, नतणमां बजा यो || चली तुम पाथवे जे वाह, कामिक सार | एक पक मनोदर मुक ए, थापो वानां चार ॥ ५ ॥ एम शीव सायें, खेड़
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श जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. चाली तिण नाम ॥ आव्यो देवीनी, पासें गुण अनिराम ॥ आप्युं जा सन, वेसे धरि मन रंग ॥ कहे देवी जाणे, जो तुं वैदक अंग ॥ ॥ जो वैदक जाणे तो महारी, हस्य पीडा थ वहेलो ॥ वत्सराज आमंवर का रण, बोले वैदक पहेलो ॥धूम्रौषधियें धूम्र करीने, अन्यथकी हरे पीडा॥ वेदना सर्व शमी तस नुजनी, करवा लागी क्रीडा ॥ ६॥ तावत् ते वोली, नए तेहिज तुं होये ॥ मुफ घातनो दायक, बीजो नहिं हां कोय ॥ कहे हा ते साचु, दुश् हर्षित सुगी वाणी ॥ वत्स थइ हुँ सुप्रसन्न, तुज साह स गुण खाणी ॥ ॥ गुणवाणी मागो मन्न मान्युं, जेह कहो ते यापुं ॥ वांबित पूरूं दारिश् चूरूं, पुःख सघलु तुज कापुं ॥ पूर्वोदित माग्यु तेणे सघलु, ते कबूल सवि कीधो ॥ देवी चिंते गृहनेद महारो, किणहिक एहने दीधो ॥ ॥ सुण सुण तुं सुपुरुष, जा कन्यायुग दीध ॥ पण कहूं तस उत्पत्ति, सांजल तुं सुप्रसि ॥ मुज पासें ए बहु, दिन राखी में एह ॥ पुण्यवंत ए ताहरे, नोग्य हो ससनेह ॥ ॥ ससनेहा / सांजल तुम पागल, वात कहुँ यति मीठी ॥ पूर्ववैर तणी जगमांहे, कडु ३ करणी दीठी ॥ पंचम खंमें दुई पंचवीशमी, ढाल सुणो नर नारी॥ साहसिक नर संपति पामे, वत्सपरें सुविचारी ॥॥ सर्वगाथा ॥ ७ ॥
॥दोहा ॥ ॥ कहे व्यंतरी झानथी, निजकन्या अवदात ॥ वत्सराज हरखें सुणे, अचरिजवाली वात ॥ १ ॥
॥ ढाल बचीशमी ॥ ॥ कर्म न लूटे रे प्राणीया ॥ ए देशी ॥ गिरि वेताढयनी ऊपरें, चमर चंचा पुरी सार ॥ गंधवोहगति नामें राजीयो, विद्याधर शिरदार ॥ १ ॥ कर्म न टूटे रे जीवडा, जे जे बंध विचार ॥ नवि खूटे विण नोगव्यां, कीधां एह संसार ॥क ॥ ३ ॥ नाम सुवेगा रे कामिनी, वीजी मदन वेगा जोय ॥ प्रीतम बंदें रे चालती, रमणी रतिसम दोय ॥ क० ॥ ३ ॥ पहेली कूरखें रे ऊपनी, रयणचूला वर नाम ॥ वीजी सोवनचूलिका, जा गुणमणिधाम ॥ क ॥धा योवन धावी रे अति जली, मोहन गुण मणिगेह ॥ मात पिता मनमा धरे, वरचिंता अतिरेह ॥क ॥ ५ ॥ ॥ यतः ॥ जम्मंतीए सोगो, बढुंतीए वढए चिंता ॥ परणीयाए
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श्री शांतिनायनो रास खंग पांचमो. २७१ दमो, जुवइ पिया इरिकन निनं ।। १ ॥ निय घरसोमा परगे, हममणी कु तकलंक कलिनुवणं ॥ जेहिं न जाया धूया, ते मुहिया जीवलोगम्मि । ॥ ५॥ पूर्वटाल ॥ एक दिन एक मुनि प्राविया, विद्याधर गुणवंत ॥ प्रणमी पूरे रे जावगुं, मुझ जांखो नगवंत ॥ कर ॥ ६ ॥ मुझ पुत्री वर कोण हशे, कहे डानी भणगार ॥ होशे जा रे वेदुनो, श्रीवत्सराज कु मार ॥ क॥ ॥ नूचर बरशे रे एहने, पण नहिं तहारी रे पास ॥ नर पति कदे कोग एहनु, कारण स्वामी प्रकाश ॥क ॥ ७॥ मुनि कहे गुण नृप ताहरू, ते एक मास, थाय ॥ फरि पूटे रे विवाहनो,हवे कहो कोण उपाय ॥२०॥ ए ॥ मुनि कहे जगिनी रे ताहरी, नूचर शूर नरिंद॥ परागी प्रेमें रे तेदा, अधिकी प्रीति अमंद ॥ कम् ॥ १७ ॥ अन्य वली दुतेदने, रमणी रुपनिधान ॥ चित्त दरी लीयुं रायन. तुज नगिनी अपमान ॥ कण् ॥ ११ ॥ रंगें रमे राय तेहगुं,यदोनिय मंदिरमाय ।। तूट पडी तुज बहेनगुं, श्राव्यु उदे अंतगय ॥ 2 ॥ १२ ॥ दिसमें शो क्य साने घj. गोक्य समुं नहीं इव ॥ अहोनिग रहे उन ताकती, नाये निंद ने जरव क॥ १३ ॥आरति मनमां रे अति घणी, मुग उपर नहीं मान || तप नवि कीg रे पूग्नें, तो पामी अपमान ॥ कर ॥ १४ ॥ हवे नप कर कांड पावते. नवं पामुं कांड सुख ॥ एम जागी तप श्राद व, कांश गोक्यने :ख || क० ॥ १५ ॥ यतः ॥ श्राी देवान्नमस्पंति, तपः कुर्वति गंगिणः ॥ निर्धना विनयं यांति. वृक्षा नारी पतिव्रता ॥३॥ पूर्वदाल ॥ तप करी काल कम्यो नेणे, व्यंतरी जातिनी देव ॥ अटवीमाहे
कपनी. को बहु देवी रे सेव 10॥१६॥ शूर नरिंदनी गेहिनी, तेदनी शाक्य सुजाण ॥ दानादिक गुण श्रादरी, दन घरे गुणग्वाणि ॥ ॥ ॥ ११ ॥ य श्रीदनारे नामथी, कन्या गुणद नंमार ॥ पुरब चरी री, दे तसब अपार ॥ क० ॥ १७ ॥ यामिक नाने के नित्य हणे. अद्यापि गति ॥ देवीपाए मृकजी. कन्या धरि मन प्रीनि ॥ का ॥ 1 ! | सन्दतां पान तेहने प्राव बलराज । नरदय करती रे वा रो, चलो म्हची लाज | ग.० ॥ २० ॥ श्रीनाने पर विहांधी निसरीनेछ । देवीस्थान प्रावशे, याशे कारज एन | कल ॥ १ ॥ एम कड़ी मुनि पत्या. चरनारे यंग १ कन्या प्राणी गुणी हदों,
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श जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. मुफ पासें मन रंग ॥ क० ॥ ॥ विद्याधर तप आदरी, मासमांहे सुं खकार ॥ मरि थयो व्यंतर अधिपति, पाम्यो सुख श्रीकार ॥ क० ॥ २३॥ झाने जागी रे मुझने,हयरूपें यद एक ॥ किंकर मुझने रे पापियो, वारू करिय विवेक ॥ क० ॥ २४ ॥ औषधियुगल पल्यंक ए, कामित दायक . दीध ॥ ते में सघनुं रे तुज दी, वांबित कारज सि ॥ कण्॥ २५ ॥ पं चम खंमें बबीशमी, ढाल कही ए उदार ॥ रामविजय कहे देषनां, फल कडुवां निर्धार ॥क ॥२६॥ सर्वगाथा ॥३६॥ श्लोक तथा गाथा ॥४॥
॥दोहा॥ ॥ वात कही वत्सराजने,देवी मांमी सर्व ॥ परणावी दोय कन्यका, मूकी मननो गर्व ॥१॥ पुण्यपसायें सवि मिली, संपद नारी सार॥ सुख विलसे संसारनां, श्रीवत्सराज कुमार ॥ ॥ एक दिन रंगविलासमां, रमतां नारी साथ ॥ प्रेम सहित पूछे प्रिया, कहो अमने प्राणनाथ ॥३॥ । किम इहां कणे ययुं प्राव, तब कुमरें निज वात ॥ करी प्रतिझानी तिहां, सुणि हरखी ते धात ॥ ४ ॥ नारीयें कडं देवीने, जाणि प्रतिज्ञा तास ॥ . शीख दीधी वत्सराजने, प्रावण निज आवास ॥५॥
॥ढाल सत्त्यावीशमी॥ ॥जीहो जाण्यु अवधि प्रयुंजीने ॥ ए देशी ॥ जोहो विरहो असह ती थकी, जीतो पण दियो देवी आदेश ॥ जीहो प्रियासहित वत्सरा जने, जीहो आवजो वली इण देश ॥ १ ॥ सुगुण नर, तुमगुं प्रीति अपार ॥ सुगुण नर, तुम्हें कीधो उपकार ॥सु ॥ मत मेलो विसार ॥सु० ॥ धन्य जीव्युं तुम्ह सार ॥ ए आंकणी ॥ जीहो वेसी पल्यंकने चालियां, जीहो नन मारग पुण्यवंत ॥ जीहो चाले विमान तणी परें, जीहो आव्यां तेह तुरंत ॥ सु० ॥ ३॥ जीहो श्रीदत्ताने मंदिरें, जीहो आव्यां वही आकाश, जीहो जती प्रजातसमे तिस्यें ॥ जीहो श्रीदत्ता सुविलास ॥ सु० ॥३॥ जीहो देखी तुरंग पल्यंकने, जीहो अति विस्मित थ वाल ॥ जीहो केणें आएयो पर्यक ए, जीहो हय चढे केम ए ढाल ॥ सु० ॥ ४ ॥ जीहो जोवे नजरें निहालीने, जोहो दीतो तब निज कंत ॥ जीहो दोय नारीयुं क्रीडतो, जीहो शय्या गत गुणवंत ॥ सु ॥ ५॥ जीहो जइ कह्यु जनकनी पागलें, जोहो
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. ३ पति ऊपर श्रावास ॥ जोहो याव्यो ने इहां माहगे,जीहो उपन्यो संत्रम तास ॥ तु ॥ ६ ॥ शव्या तुरग तणी कही, जीहो वात सकल समजा ६।। जीहो हर्प धरीने आवियो, जीहो सप्तम ज़मीयं धा॥ सु०॥ ७॥ जीद्रो यायो जागी शेठने, जीहो नत्यो ताम कुमार ॥ जीहो यादरमा न देई घj, जीहो नारन्यो निज अधिकार ॥ सु० ॥ ७ ॥ जीहो चरित्र सुगी विस्मित अयो, जीहो नक्ति करे बदु नाच ॥ जीहो तेंदिन राख्या मंदिर, जीही उत्तम जास स्वनाव ॥सुराणा जीहो वीजे दिन लेइ घाझा, जीदो त्रिदु नारी संघात । जीहो शच्या उपर वेसीने, जीहो चाख्या थये प्रजात ॥ तु॥ १० ॥ जीहो ततामां ते आवियां, जीहो निज नयाँ ननचार ॥जीहो मंदिर याच्यां प्रापणे, जीहो उतरीयां ततकाल ॥ सु० ॥ ११ ॥ जीही चिटुंजण सूतां मेजमां,जोहो यावी घर एकांत ।। जीहो धारिणी विमला देखीने, जीदो चिंते कुण ए संत ॥ १० ॥ १२ ॥ जीहो ' ए शव्या नहिं धापणी, जीहां कांक ए विन्नाण ॥ जीदो चिंती पट
परदो करयो, जीहो दीगे कुमर सुजाण ॥ सु० ॥ १३ ॥ जोहो त्रण त रूपी सायें तिनां, जीदो निज कुंवर निरखंत ।। जीहो रोम रोम तन उ लस्यु, जोहो हेटुं हेजें दसंत ॥ सु ॥ १४ ॥जीहो जाती पानी बली, जीडो हलुवे हलवे ताम | जीहो इण अवसर ते जागीयो, जीही कुंवर गुणनुं गम ॥ ॥ १५ ॥ जीही माय मातीने पाउले, जीहो दोडी करे प्रणाम ॥ जोहो पूरे विमला धारिणी, जीतो कुण कुण कीयां काम ॥ मु० ॥ १६ ॥ जीदो बात करे माय लागलें, जोहो मामी बन्स कुमार ॥ जीहो जुवो पुण्याई पुत्रनी, जीहो पामी हर्प पार ।। सु ॥ ॥ १७ ॥ जीही कामितदायी पल्यंकी, जोहो ने उनीष थमुख्य ।। जीमो नस्पति पानं याचीयो, जीही वत्सकुमर अनुकृत ॥तु ॥ !! 1.0 ॥ जीडो गजेवर पृने तटा, जीही हेम कुमालनी बात ॥ जीदो यत्र जले प्राधियो, जोहो पाम्यां अमें सुख शात ॥ सु० ॥ १ ॥ जी माली चरणे नमी, जीदो करे उतरीयनी नेट ! जोहो कमल श्री कडे नुज बिना, जीझो बल्न कोण दीये मृग नेट ॥ तु ॥ ५० ॥ जोहो चिरंजीर बासुत्रा, सीहो मुकामित दातार ॥ जीही मा मीयं सनमान्यां पांजीही गजाय पण नेणि गार ॥ ॥ २१ ॥
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शष्ट जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. जीदो रायें पूर्दा वत्सने, जीदो वत्स किहां लाध्यु एह ॥ जीहो वात कहे वीतक तणी, जीहो पर्यक हय विण तेह ॥ सु ॥ २२ ॥ जीहो देवी दीधुं वस्त्र ए, जीहो सुणी हरव्या राजान ॥ जी ॥ जीहो धन्य धन्य - सदु को कहे, जीहो वलीयो सुगुण निधान ॥ सु ॥ २३ ॥ जीहो सुखें स माधे रहे तिहां, जीहो विलसे नव नव जोग ॥ जीहो निजनारीशुं रंगमां, जीहो सरिखो मल्यो संयोग ॥ सु०॥ २४ ॥ जीहो पंचम खमें सत्तवी
शमी, जीहो ढाल कही मनरंग ॥ जीहो रामविजय कहे पुण्य थी, जोहो • लहियें सुरक अनंग ॥ सु॥ २५ ॥ सर्व गाथा ॥ ७६६ ॥ श्लोक ॥४॥
॥दोहा॥ ॥ एक दिन कमलश्री तणे, अंगें उपन्यो व्याधि ॥ राय उपाय कस्या घणा, पण न टली असमाधि ॥ १ ॥ राणीःखें फुःखीयो, राय करे अ ति शोर ॥ नयायकी आंसू जरे, सवलृ मोहनुं जोर ॥ २ ॥ कला घणी नृप केलवी, लेखे न आवी कांय ॥ राणी परलोकें गइ, विरु कर्म वलाय ॥३॥ यतः॥ सा नबि कला तं न, कि उसहं तं न किंपि विन्नाणं ॥ जे सा धरिज काया, खजंति कालसप्पेण ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ तास वियोगें राजवी, पड्यो शोकने पूर ॥ वत्सराज आवी कहे, शोक निवारो दूर ॥४॥ इण जग चिर नवि को रह्यो, सदु अनित्य संसार ॥ तन धन यौवन कारिमो, रमणी झदि परिवार ॥ ५ ॥ यतः॥ कुसग्गे जह उस विंड़ए, योवं चि लवमाणए ॥ एवं मपुआण जीवियं, समयं गोयम मा पमायए ॥ २ ॥
॥ ढाल अग्यावीशमी ॥ वही नावन मन धरो ॥ ए देशी ॥ वत्स कहे नृप सांजलो, एह अनित्यपणुं संसारे रे ॥ शुं धारे रे, अस्थिरने स्थिर करी चित्तमा ए ॥ १ ॥ नाव अनित्य संसारना, जलविंदु विद्युत् सम जाणो रे ॥ गुं माणो रे, वर्ण गंध रस फरसमां ए ॥ २ ॥ उत्पाद व्यय ने ध्रुव तणी, सवि व्ये त्रिनंगी नारखी रे॥ ए राखी रे, न रहे स्थिति संसारनी ए॥३॥ जिनवर चक्री जे दुवा, ते पण इहां स्थिर नवि रहिया रे ॥ शुं मोहि या रे, पूरे तुं परनावने ए॥ ४ ॥ वार अनंत मल्यो सही,ते संबंधमां गूं राचे रे ॥ वली नाचे रे, तेहने लंदें नट परें ए ॥ ५ ॥ चंचल ए लही
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श्री शांतिनाथनो रास खंफ पांचमो. २७५ धाउर, जे धर्ममाहे सीदाय रे ॥ न कहाय रे, ते शापुरुष शिरो मणि ए ॥ ६ ॥ जिन अगदकारें कां, शोक रोग निवारणहार रे ।। सारं रे, धर्मापध करवं बुध ए ॥ 3 ॥ यतः ॥ नमिति पंमिताः कुयुः, अनुपात व मध्यमाः । श्रधमाश्च शिरोधातं, गोके धर्मविवेकिनः॥ ३ ॥ पूर्वढाल ।। इत्यादिक बचनामृतें, वत्सराजें नृप समजाव्या रे ॥ ए जाव्यो रे, मन उपदेश सोहामणो ए ॥ ॥ नारीशोक निवारिया, वत्सराज वचनथी वलीयो रे ॥ बलीयो रे, निज भातम तेणे करयो ए ॥ ॥ सुरखमा वाहे कालने, वत्सराज सबल सोजागी रे ॥ रागी रे, त्यागी जोगी थति घणो ए॥ १० ॥ एक दिवस यत्त नारी, मंदिरमांहि एम विमासे रे। नामे रे, सुणो सुंदरी सोहामणी ए॥ ११ ॥ जोजनने नृप तेडीयें,ए प्रीतिन लक्षण लही रे ॥ कहीं रे, नीतिशास्त्रमाहे एहवू ए॥ १२ ॥ यतं ॥ ददाति प्रतिगृह्णाति, गृहमारच्याति पतति ॥ नुंक्ते नोजयते चेच, पनि प्रीतिताणम् ॥ ४ ॥ पूर्वढाल ।। नृप आपण अनुरागीये, तडी जे ए बडनागी रे ॥ जागीरे, नाग्यदशा ए श्रापणी ए॥ १३ ॥ नारी कहे सण नादला, ए वात विचारी कीजे रे ॥ न लीजें रे, नृपने निज यावासमां ए ॥ १३ ॥ था। इहारी कीजिये, पण नृप यासंग न क रीय रे ॥ तो वरिय रे, सहेजें नुरव संसारमा । ॥ १५ ॥ विष दाह होय मापने. विप खलनी जीने लदीय रे ॥ कहिये. तम दृष्टि विप रायने ए ॥ १८ ॥ चतः ॥ वरिनारीनरंक्षणां, नागनीवनियोगिनाम ।। नखीनां च न विश्वालः, कर्तव्यः शुनकांक्षिणा ॥ ५॥ पूर्वदान ॥ ते माटं तुमने कद, नृपघर जोजन मूकीजे रे ॥ चूतीजे रे, नधि एलि बातें कंधजीए ॥ १ ॥ वल्न कडे सुगो बालही. पणी वातं गौरव न बचेरे ॥ अवध है, नेघा विण वाले नहीं ॥ १७ ॥ प्रायद जागी कंतनो, बजती ने बोजी नारी ॥ सारी. यात लागो तन्हें चातहा पाश्रमने मन
बाटो, पानी जम जागा नेम फरजो २ ॥ परजोर स्वामी श्रमागला गांना ॥ २० ॥ पंचम कम विरामी, सुणों दान कही प्रति मारी
नाचण हवामांगचि॥१॥ संबंगाधाम ||
कामिनी वाचा घाणं, पानगो वनाराज ॥ नोजन नरनो
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. तस्यो, वारू वयण समाज ॥ १ ॥ स्वामी पधारो बांगणे, करो पावन । मुज गेह ॥ अरज अमारी चित्त धरो, जो मुझ ऊपर नेह ॥ २ ॥ कहे । राजन तुमझुं सदा, नहिं अंतर वत्सराज ॥ माटें जोजननो किस्यो, अव ' सर घर आज ॥३॥ वत्सराज कहे साहिवा, ते गुज अवसर जाणि ॥ । जिए दिन राज पधारशो, मुफ बांगणे गुणवाणि ॥ ४ ॥ कृपा करीने . हा नगो, मुफ मन हर्पित होय ॥ हहूती नृप मानीयुं, निसुणी । हरव्यो सोय ॥ ५॥
॥ ढालगणत्रीशमी ॥ ॥ गेंउडानी देशी ॥ घरे आवी सवी वात प्रकाशी, मनमां धरी उ त्साह ॥ अलवेलो रंगीलो नाह, अलवेलो हनीलो नाह, अलवेलो बवीलो नाह ।। अलवेलो० ॥ ए आंकणी ॥१॥ वायुं अमारुं न करे वहालो, मन मां सुरखरी चाह ॥ अलवेलो॥ २ ॥ जामिनीशुं वनोपरिजूमें, लाग्यो क्रीडामांहि ॥ अल ॥ ३ ॥ रमपी साथें रसनी वातें, तिहां वेला बहु वही जाय ॥ अल ॥ ४ ॥ राजन चिंते हजी झुं न आव्यो, तेडण ए वत्स एण गय ॥ अल ॥ ५ ॥ नृप चिंते चित्तमां एहने घर, शी साम ग्री थाय ॥ अ०॥ ६ ॥ जोवा कारण चर एक मूक्यो, पोतानो तेणें राय ॥ ॥ ७ ॥ चर जोवे जइ घेर निहाली, नवि देखे रसवती कां ॥ अल ॥ ७ ॥ परकाशे नूपतिनी आगे, सेवक पाटो आई ॥ अ० ॥ ए॥ पुनरपि वीजो नर तिहां आवी, जुवे सजाइ तास ॥ अ० ॥ १० ॥ कहे नृपने घर धूम न दीसे, शी नोजननी पाश ॥ ५० ॥ ११ ॥ चिंते नृप जुन कीध नगाई, मनमांहि एम उदास ॥ अ॥ १२ ॥ तव ते नो जन अवसर जाणी, वत्स याव्यो सुविलास ॥ अ० ॥ १३ ॥ कहे राजेश्व रने कर जोडी, पाउधारो मुफ आवास ॥ अ० ॥ १४ ॥ याय हवे असुर नोजनने, उठोजी लील विलास ॥ १० ॥ १५ ॥ नृप कहे शी हांसी मुज साथें, मामी सुगुण निवास ॥ ॥ १६ ॥ विण सामग्री तेडे अ मने, ए तुमने सावाश ॥ अ० ॥ १७ ॥ कोइ न मल्युं बीजुं हांसीने, नांग्यो तुज विश्वास ॥ अ० ॥ १७ ॥ कहे वत्स तुं मुफ़ साहिब तहारो, ढुं हुं चरणनो दास ॥ १० ॥ १९ ॥ तुम हांसी करतां यहां महारी, कुजलजा जाय नासि.॥ य० ॥ २० ॥ गुं तुम रसवती के कारण,
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. श्रावो घरे नन्नास ॥ध ॥ २१ ॥ नृप जग्यो उत्साह धरीने, जे ढुंता निज पास ॥ अ॥ २२ ॥ याव्या सवि वत्सराजने मंदिर, जोवे नयणं तपास ।। अ॥ २३ ॥ देखी मंम्प अति रतीयालो, हैडे करेय विमास ॥यावा नहिं ए मानव माया दीमे देवतगी सुप्रकाश ॥णाशा पंचमे उंगरात्रीशमी ढालें, विस्त मोहविलास यामासमाए॥४॥
॥दोहा॥ ॥ यथायोग्य मांमयां घणां, बालन उतान ॥ नृप हरस्थो मन मां घj, देखी नाकम ठगेन ॥ १ ॥ किम एवं एती वारमा, सवि कीयो सामान ॥ ए कांई जोवा सारिखं, मन चिंते राजान ॥ १ ॥ नृप यावी वेगा सहू, ममिया लोवन घाल ॥ पीरसे बहु प्रेमें करी, जन पक्कान रसाल ॥३॥ सखर सवा सालणां, खाटां खारा सार ॥ रायंतां कोले नखां, मरचालां मनोहार ॥ ४ ॥ चारखी चाखी स्वादने, पाम्या परमानंद ॥ अहो अपूरव रसवती, करे प्रशंस नरिंद ॥ ५॥
॥ ढाल त्रीशमी ॥ ॥ नाग कुमर कहे रायनी ॥ ए देशी ॥ वत्स विचारे चित्तमां, उत्सव अति नारी ॥ विषु वनिता शोने नही, ए रसवती सारी ॥ १ ॥ मोहन गारी मानिनी, विषु तेह अतृणुं ॥ जोजन ए शोने नहिं, दीसे वे ऊ' ॥ २ ॥ तिवी मंदिर जपरें, वढीयो चोवारी ॥ श्रावतो देखी नाहने, कनी नारी ॥ ३ ॥ प्रापजीवन पाउधारीयें,धरा पावत की ।। नया सलपा नाहला, कांड दुकम करीजें ॥ ४ ॥ वहाली हो वेगें यावीने, नृप गौरव सारो ॥ तुम विण ए शोने नहिं. घर बांगण महारो ॥ ५ ॥ ते कुलवंती चिंतवे, स्त्रीने गुरु स्वामी ॥ वयण कहे जे कंतजी, कर, शिर नामी॥ ६॥ यनं ॥ गुस्रनिर्दिजातीनां, वर्णानां ब्राह्मणोगुरुः ॥ पति रेव गुरुत्वीणां सर्वस्थान्यागतो गुरुः ॥ १ ॥ पूर्वढाल | निजपियु धाग्रह जाणीने. उसी चालवेली ॥ श्रापा हो आपणा नायनी, नवि जाये तली ॥ ७ ॥ पण परिणाम नहुं नहिं. शें की हो बहेनी ॥ श्रापराने नि रखी करी, दृष्टि वजो दो एदनी ॥ ॥ मन पार ने मानिनी. शृंगार बनाये ॥ अनुपम रूप बनी मा, जस उपमा नावे ॥ ५ ॥ रम कम कर ती ग. पीरताने हो ग्रावी । जामिनी देखी जुपनी, गति नाति
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२६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. तखो, वारू वयण समाज ॥ १ ॥ स्वामी पधारो आंगणे, करो पावन मुक गेह ॥ अरज अमारी चित्त धरो, जो मुफ ऊपर नेह ॥ २ ॥ कहे राजन तुमगुं सदा, नहिं अंतर वत्सराज ॥ माटें नोजननो किस्यो, अब सर ने घर आज ॥३॥ वत्सराज कहे साहिवा, ते शुभ अवसर जाणि ॥ जिए दिन राज पधारशो, मुफ बांगणे गुणखाणि ॥ ४ ॥ कृपा करीने हा नणो, मुझ मन हर्षित होय ॥ हतहूंती नृप मानीयुं, निसुणी हरव्यो सोय ॥ ५ ॥
॥ ढालगणत्रीशमी ।। , ॥ गेंड्डानी देशी ॥ घरे आवी सवी वात प्रकाशी, मनमां धरी उ त्साह ॥ अलवेलो रंगीलो नाह, अलवेलो हठीलो नाह, अलवेलो बबीलो नाह ॥ अलवेलो० ॥ ए आंकणी ॥१॥ वायुं अमाहं न करे वहालो, मन मां सुखरी चाह ॥ अलवेलो॥ ३॥ नामिनी\ नुवनोपरिजूमें, लाग्यो क्रीडामांहि ॥ अल ॥ ३ ॥ रमणी साथें रसनी वातें, तिहां वेला वदु वही जाय ॥ अल० ॥ ४ ॥ राजन चिंते हजी गुं न आव्यो, तेडण ए वत्स एण नाय ॥ अल० ॥ ५ ॥ नृप चिंते चित्तमां एहने घर, शी साम ग्री थाय ॥ अ॥ ६ ॥ जोवा कारण चर एक मूक्यो, पोतानो तेणें राय ॥ अ॥ ७ ॥ चर जोवे ज घेर निहाली, नवि देखे रसवती कां ।। अल ॥ ७ ॥ परकाशे नूपतिनी बागें, सेवक पाडो या ॥ अ॥ ए॥ पुनरपि वीजो नर तिहां ावी, जुवे सजाइ तास ॥ अ० ॥ १ ॥ कहे नृपने घर धूम न दीसे, शी जोजननी बाश ॥ य० ॥ ११ ॥ चिंते नृप जुन की गाइ, मनमांहि एम नदास ॥ अ॥ १२ ॥ तव ते नो जन अवसर जाणी, वत्स आव्यो सुविलास ॥ अ० ॥ १३ ॥ कहे राजेश्व रने कर जोडी, पाउधारो मुफ आवास ॥ अ० ॥ १४ ॥ याय हवे असुर जोजनने, उगेजी लील विलास ॥ ॥ १५॥ नृप कहे शी हांसी मुक साथें, मांमी सुगुण निवास ॥ ॥ १६ ॥ विण सामग्री तेडे अ मने, ए तुमने सावाश ॥ अ॥ १७ ॥ कोइ न मन्युं वीजें हांसीने, नांग्यो तुज विश्वास ॥ अ० ॥ १७ ॥ कहे वत्स तुं मुज साहिब तहारो, ढुं तुं चरणनो दास ॥ ५० ॥ १ ॥ तुम हांसी करतां हां महारी, कुजलला जाय नासि ॥ अ॥ २० ॥ युं तुम रसवती के कारण,
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श्री शांतिनाथनो रास खंग पांचमो. २०७ थावो घरे उल्लास ॥ अ॥ २१ ॥ नृप मल्यो उत्साह धरीने, जे ढुंता निज पास ॥ अ० ॥ २२ ॥ आव्या सवि वत्सराजने मंदिर, जोवे नय तपास ॥ य० ॥ २३ ॥ देखी मंम्प अति रसीयालो, हैडे करेय विमास ॥ ॥२४॥ नहिं ए मानव माया दीसे,देवतणी सुप्रकाश ॥॥२५॥ पंचमे गात्रीशमी ढालें,विरुन मोहविलास ॥॥२६॥स ए३॥७॥
॥ दोहा ॥ ॥ यथायोग्य मांमयां घणां, आसन उलाल ॥ नृप हरव्यो मन मां घगुं, देखी गकम बोल ॥ १ ॥ किम एवं एती वारमा, सवि कीधो सामान ॥ ए कांश जोवा सारिखं, मन चिंते राजान ॥ २ ॥ नृप यावी वेगा सद, मांच्या सोवन याल ।। पीरसे बदु प्रेमें करी, जल पक्वान्न रसाल ॥ ३ ॥ सखर सवा सालणां, खाटां खारां सार ॥ रायंतां कोले जयां, मरचाला मनोहार ॥४॥ चारखी चाखी स्वादने, पाम्या परमानंद ॥ घहो अपूरव रसवती, करे प्रशंस नरिंद ॥ ५ ॥
॥ ढाल त्रीशमी ॥ ॥ नाग कुमर कहे रायजी ॥ ए देशी ॥ वत्स विचारे चित्तमां, उत्सव अति नारी ॥ विषु बनिता शोने नही, ए रसवती सारी ॥ १ ॥ मोहन गारी मानिनी, विषु तेह अलूएं । नोजन ए शोने नहिं, दीसे में जणुं ॥ २ ॥ चिंतवी मंदिर कपरें, चढीयो चोबारी ॥ आवतो देखी नाहने, ऊनी थइ नारी ॥ ३ ॥ प्रापजीवन पान धारीयें,धरा पावन कीजें ॥ नयण सलगा नाहला, कांश दुकम करीजें ॥ ४ ॥ वहाली हो वेगें यावीने, नृप गौरव सारो ॥ तुम विए ए शोने नहिं, घर प्रांगण महारो ॥ ५ ॥ ते कुलवंती चिंतवे, स्त्रीने गुरु स्वामी ॥ वयण कहे जे कंतजी, करवू शिर नामी ॥ ६ ॥ यमुक्तं ॥ गुरुरनिर्दिजातीनां वर्णानां ब्राह्मणोगुरुः ॥ पति रेव गुरुःस्त्रीणां, सर्वस्यान्यागतो गुरुः ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ निजपियु अाग्रह जाणीने, उठी अलवेली ॥ आणा हो श्रापणा नाथनी, नवि जाये तेली ॥ ॥ पण परिणामें रूईं नहिं, शुं कीजें हो बहेनी ॥ यापणने नि रखी करी. दृष्टि चलो हो एदनी ॥ ॥ मन पाखें ते मानिनी. शृंगार बनावे ॥ अनुपम रूप बनी रमा, जस उपमा नावें ॥ ॥ रम जम कर ती रंगणू, पीरसाने दो शावी । लामिनी देवी नृपनी, गति नांति .
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. जुलावी ॥ १० ॥ अहो अहो रूपनी उरडी, जर यौवन माती ॥ कामा " तुर थयो देखीने, रमणी रंग राती ॥ ११ ॥ धन्य जीवित वत्सराजर्नु, विलसे ए साथें ॥ मुज घरे एहवी एके नहिं, गुं कयुं जगनाथें ॥१२॥ जोजन जहेर समुं थयुं,तरुणीरंग लाग्यो । उतास्यो नवि कतरे, ए प्रेमनो । माघो ॥ १३ ॥ कामराग सरिरवो नहिं, जग कोई अटारो ॥ पेसंतां दी से नहिं, ए राग कटारो ॥ १४ ॥ जोजन करी नृप ऊतीयो, वत्से बहु सत्कायो ॥ काम वध्यो मन जेहने,ते न रहे वाखो ॥१५॥ मंदिर आव्यो नूपति, महिला मन ध्यातो ॥ आहट दोहटमा पड्यो, न गमे कां वातो ॥ १६ ॥ मंत्रीश्वर बोलावीने, वात मननी हो दावी ॥ तुम्हें मुऊ कदमी राजमां, सुख दुःखना सरिख। ॥ १७ ॥ मंत्रीश्वर पण तेहवा, नृप सरि खा हो विरुआ ॥ वाहिर मीठा नीतरें, कडुया विषतरुत्रा ॥ १७ ॥ मंत्री आलोची मनमां, माती मति रीफे ॥ राजन ए वत्स जीवतां, तुम काम न सीजे ॥१॥ माटें कोई उपायथी, वत्सराजने हणीयें ॥ कारिज .. साधन कारणे, पुण्य पाप न गपीयें ॥ २० ॥ हा हा एम करतां थकां, जग नीच न लाजे ॥ प्राण हणे खल पारका, पोताने काजें ॥ २१ ॥ वहेला था ए वत्सने, करी कोई उपाय ॥ पहोंचाडो यममंदिरे, जेम मने सुख थाय ॥ २२ ॥ रायें दुकम एहवो कस्यो, विपयारस वाह्ये॥ काम कुमाणसवें कह्यू, नरपति ए माह्ये ॥ २३ ॥ शो अनरथ नवि निप जे,विपयाथी हो वांको ॥ मति मूंजावे हो नर तणी,कुण राय ने रांको।
॥ पंचम खंत्रीशमी,ढाल रामें होनांखी ॥ विपययकी जय नविलहे, सुगो साजन साखी ॥२५॥ सर्व गाथा ॥५३॥ श्लोक तथा गाथा॥धन॥
॥दोहा॥ ॥ मंत्री मती विचारीयु, सिंहनामा सामंत ॥ ने जोरावर आजने, समये अति बलवंत ॥ १ ॥ तस थानक वेसारी, सनामांहे वत्सराज ॥ ... रुग्यो हो एहने, सिंह सरेशे काज ॥ २ ॥ सना जुडावी चौपगुं, वेठो नृप ततकाल ॥ वत्सराज याव्यो तदा, नृप नमवा उजमाल ॥३॥ वे साखो सिंहस्थानके, मंत्री मली महंत ॥ वत्सराज निर्नय यको, बेतो धीरजवंत ॥॥ सिंह तदा आव्यो तिहां,वेठो वत्सने देखि ॥ हैयडे को कलकल्यो, जोश रह्यो अनिमेप ॥ ५ ॥ सनामांहि वोल्यो नहीं, पाणी
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श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो. नए नृप याशंक ॥ नूप सना सरिखा सवे, कुण राजा कुण रंक ॥ ६ ॥ सना विसर्जी ततणे, नृप मनमांहि चूक ॥ वत्सराजने मारवो, जाणे आज अचूक ॥७॥ वत्सराज मंदिर नणी, चाल्यो निर्जय कठी ॥ मंत्री मनी वकारियो, सिंह तणी तस पूठ ॥ ७॥ सिंह नाम तुमचं सही, पण माटी पण शीयाल ॥ स्थानक वेठो तुम तणे, वत्सराज ए बाल ॥ए ॥ जीवंतां मृत सारिखा, तुम जेहवा वलवंत ॥ स्थानक खोवे थापगुं,ते कलि युं जीवंत ॥ ॥ १० ॥ वक्तं ॥ मा जीयाद्यः परा वज्ञा,उःखदग्धोपि जीवति ॥ तस्याजननीरेवास्तु, जननीक्लेशकारिणः ॥ १ ॥ नाकनो लोन करेह, सीस सलोनो ररिक ॥ तिण माणस जीवेह, कलिमां काटुं कीजसी ॥ २ ॥ पादाहतं यदाय, मूनिमधिमोहति ॥ स्वस्था देवापमानेपि, देहिनस्तरं रजः ॥ ३ ॥
॥ढाल एकत्रीशमी ॥ ॥ वासुपूज्य जिन वारमा जी ॥ ए देशी ॥ वात सुपी क्रोधे चढयो जी, सिंह सबल विकराल ॥ निज मेलापक ले तदा, मलीयो वत्सने ततकाल ॥ १ ॥ होजी था सन्मुख शीयालीयाजी ॥ नहिं महेबुं तुम याज ॥ श्रासन वेसी माहरे, तें उतारी मुऊ लाज ॥ हो० ॥ २ ॥ केम रूग्यो निज जीवनें जी,गुं न सुष्युं मुफ नाम ॥ एम अवहेला ते करी, कोई न करे ते कीg काम ॥ हो ॥ ३ ॥ वल पानो बल ताहरु जी, जोश्ये रणमेदान ॥ वत्स वव्यो वीरसेननो जायो, सुपी योध युवान ॥ हो ॥४॥जीम परें वेहू नया जी, अवसर लही वत्सराज ॥ नाख्यो बाली सिंहने,मृगपति परे करतो अवाज ॥ हो० ॥ ५॥ पहोंचायो यममंदिरें जी, जोतामां तेणि वार ॥ सुनट सवे नासी गया, दुन सिंहतो संहार ॥ हो० ॥ ६ ॥ परनें चिंतवीयें जिस्युं जी, तेह, थावे श्राप ॥ परम्न ताके पापीया ते, पामे एम संताप ॥ हो० ॥ ७ ॥ सिंहसेना नाती तदा जी, न खमाणो तस ताप ॥ जय पामी मुखें उबरे, कोइ राखो माय ने बाप ॥ हो ॥ ॥ नृपने शरणे श्रावीयो जी, राखो तुमें जूनाथ ॥ श्रम श्रशरणने उझरो. जांखे एम सिंहनों साथ ॥ हो गए। चन्स धाव्यो निजमंदिरे जी, वात कही मन मेनी ॥ फल पाम्यो एह सिं हलो,जो कीधी मुफ अवहेल हो॥१०॥ कहे विद्याधर वंशनी जी,नार!
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១០០ जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. मुगुण निधान ॥ श्रम विद्या परजावथी, तुम्हें नतायुं तस मान ॥ होगा । ११ ॥ तुमें खोटुं कर्तुं साहिबा जी, अमने देखाडी दृष्टि ॥ कामकशे ए राजियो, करशे तुमने ए अनिष्ट ॥ हो ॥ १२ ॥ पण स्वामी मत धी रजो जी, किसिय न करशो चिंत ॥ अहि वश करवो सोहिलो, पण राय न होवे मित्त ॥ हो ॥ १३ ॥ यमुक्तं ॥ काके शौचं द्यूतकारेषु सत्यं,सर्प दांतिः स्त्रीषु कामोपशांतिः ॥ क्लीवे धैर्य मद्यपे तत्त्वचिंता, राजा मित्रं केन दृष्टं श्रुतं वा ॥ ४ ॥ पूर्वढाल ॥ हवे एक दिन ते मंत्रीशुं जी, राय करे आलोच ॥ काज न सीम्युं आपणुं, सामो नपजाव्यो शोच ॥ हो ॥ १४ ॥ सिंह गयो मुफ काजनो जी, रह्यो वैरी वत्सराज ॥ कहो मंत्री ए झुं थयुं, न थयुं का चिंतित काज ॥ हो ॥ १५ ॥ पण तुं मित्र जो माहरे जी, नहिं मुज उर्लन काय ॥ जेहने मित्र महोदधि, सुल जा तस लहे। थाय ॥ हो ॥ १६ ॥ सचिव कहे वाघण तणुं जी, दूध मगावो स्वामि ॥ मानधनी ए मानो, सहेजें सरशे ए काम ॥ हो ॥ १७ ॥ दरवारे वत्स आवीयो जी, कृत्य कर्तुं नृप एह ॥ करी प्रणाम पाबो वट्यो, आव्यो चिंतातुर गेह ॥ हो ॥ १७ ॥ नारी कहे तुमने दीयो जी, वाघरा मुग्धादेश ॥ चित्तमां एहनी शोचना, शी शोचो बो प्राणे श ॥ हो ॥ १५ ॥ कुमर कहे तमें केम लही जी, घर वे एह वात ॥ स्वामी अमें अंतरिक्ष थइ, नित्य यावं तुमारी संघात ॥ हो । २० ॥ स्वामी अम्हें जाएयु हतुं जी, करशे ए तुमझुं कूड ॥ पण नि श्चय पियु जाणजो, पडशे एहने मुख धूड ॥ हो० ॥ २१ ॥ कहेण सुणो अमचं तुमें जी, दैवत तुरगारूढ ॥ अटवीमां जा तुमें, वे एक देवी तिहां गूढ ॥ हो ॥ २२ ॥ माता अमारी देवता जी, तेहनी सखी ते देवी ॥ तुरगथी उलखो सही, करो तुमची बदु सेव ॥ हो० ॥ २३ ॥ कहेजो कारिज तेहने जी, थाशे वाघण रूप ॥ तुम साथें सही यावशे, देवीनां अकल स्वरूप ॥ हो० ॥ २४॥ याणी रायने सोंपजो जी, वधशे तुमारी लाज ॥ चढी तुरंगें चाव्यो वही, रमणी वयणें वत्स राज ॥ हो ॥ २५ ॥ अटवीमांहे मूकीयो जी, जिहां देवीनुं नाम ॥ दय अहिनाणे उजवी, कीधुं तस चिंतित काम ॥ हो ॥ २६ ॥ वा घण या साथें चली जी, थावी नयरीमकार ॥ कान साहीने लावीयो
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पाचमो. सर . जी, तेहने वत्स नृपदरवार ॥ हो० ॥ २७ ॥ व्यंतरी वाघण उबली जी, दे दोट तेवार ॥ कुमतिदायक मंत्री तणो, कीधो ततक्षण संहार ॥ हो ॥ २७ ॥ नृप विहीनो मनमां घणुं जी, हां हां हां वत्सराज ॥ कां मुझने मारे इहां, नहिं महारे दूधनुं काज ॥ हो ॥ ए॥ दीन वयण सुपी रायनां जी, वाघण कानें साहि ॥ निजघरे लाव्यो तेहनी, करे कामिनी नक्ति उत्साहि ॥ हो. ॥ ३० ॥ हर्षित यश निजस्थानकें जी, व्यंतरी गइ ततकाल ॥ पंचम खंग एकत्रीशमी, कहि काम उपर ए ढाल ॥ हो ॥ ३१ ॥ सर्वगाथा ॥ एए४ ॥ श्लोक तथा गाथा मली ॥५शा
॥दोहा॥ ॥ नरपति मनमां चिंतवे, जय सबलो गयो जांजि ॥ साहसथी सवि संपजे, पण नावीनं वाज ॥ १ ॥ पुनरपि मंत्रीगुं मली, नरपति करे वि चार ।। तेडी कहे वत्सराजने, जल्पतुं लावो वारि ॥ ५ ॥ अंगरोग महा रो टले, वधे तेजनुं पूर ।। तुफ विण कुण आणे अवर, एक तुज मुख पर नूर ॥ ३ ॥ कहे ते पाणी किहां अडे, वंध्याटवीमकार ॥ वेदु पर्वत , विच कूप एक, तिहां जल्पतुं वारि ॥ ४ ॥ करे सर्वदा ते गिरि, संगम अपगम नाव ॥ मीलन उन्मीलनपणे, जिम ते नयण स्वनाव ॥ ५ ॥ वचे तक जोइ पेसवू, शीघ्र याग, वारि ॥ पुष्कर पण अंगीकयुं कुम ₹ काम उदार ॥ ६ ॥ घर आवी नारी प्रत्ये, वात कही चित्त लाय ॥ ते कहे वात ए सहेल ने, चिंता म करो काय ॥ ७ ॥
॥ ढाल वत्रीशमी ॥ ॥प्राणी गिरिवरघु मन लावो ॥ए देशी ॥ अव धारोही तिहां पीयु जान, शकुनिकारुपं सारी ने एक देवी बहेन धमारी, वांठितनी दातारी रे ॥ १ ॥ विसई, विपयदशा जग दीठी ॥ करे अकारिज ए घट प्रकटी, काम अनि धंगीती रे ॥ विरुई ॥ ए यांकपी॥ अव चढीप दोतो तिण वामें, श्री वत्सराज कुमार ॥ शकुनिका जागी सखीनों व चन, प्रने सुख समाचार रे ॥ विस० ॥ ५॥ कुमर कह्यायी तुंबन रीने, दीई ढील न कीधी ॥ पाठो वलियो जल लेईने, वांगित कारिज सिदि रे ॥ वि० ॥ ३ ॥ निजपुर धावी नृपने याप्युं, देवतणे परना चं ॥ सद्ध सांजलता बोलया लाग्यु, तुंचमाहे सना रे ॥ वि० ॥ ४ ॥
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១ច? जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कहे राजन् तुमने तुफ मंत्री, कुमति तणो दातार ॥ वेदुमाहे कहे तेहरें : जदया, करुं एम बोले वारि रे ॥ वि० ॥ ५ ॥ नीरवचन निसुणी सवि। पर्षद, विस्मय पामी चिंते ॥ पाणी ए केम बोले रे नाई, ए तो काइ विपरीत रे ॥ वि० ॥ ६ ॥ म्लान थयो राजा एम चिंते, काज न सिम्युं महारं ॥ कांक वदन विकासी जंपे, धन्य वत्स धीरज तहारू रे । ॥ वि० ॥ ७ ॥ घेर विसर्जि वत्सने विमासे, मंत्री साईं मलीने ॥ यहो असाध्य नहिं कांश एहने, जुवनमां जाग्यवलीने रे ॥ वि० ॥ ॥ ॥ मंत्री चार मल्या नृप जेहवा, परघर जांजण लीणा ॥ कूड कपट बल बने हो नरिया, धिक् मानव जग हीणा रे ॥ वि० ॥ ए ॥ कहे राज न मन गुं रह्या मूंजी, जुवो अमची बुद्धि केही ॥ एक अछे ए केडे न कोइ, रमणी तुमची एही रे ॥ वि० ॥ १० ॥ देवी श्रीकन्या विवाहनो, मिप करीने एक कीजें ॥ दक्षिण दिशि एक यमघर महोटुं, तिहां वत्स पेसारीले रे ॥ वि० ॥ ११ ॥ यम निमंत्रण करवा काजें, रायें वात व खाणी ॥ तुमें सवला मुक चिंताना कारक, सेवक गुणमणिवाणि ॥ वि० ॥ १२ ॥ रायें एक गा निपजावी, दक्षिण दिशे अविचारी ॥ कामें धंध श्यो धंध न मामे, काम कुगतिदातारी रे ॥ वि० ॥ १३ ॥ अग्नि प्रजाली तिहां नृप आव्यो, सुनट सहू तेडाव्या ॥ वत्सनणी बोलाव्यो ते पण, चोंप धरीने आव्या रे ॥ वि० ॥ १४ ॥ नाम ले सुनटोने नांखे, तुमें कदमी मुफ खासा ॥ काम कयुं जोश्ये एक इहांकण, जो करो अमची आशा रे ॥ वि० ॥ १५ ॥ फरमावो सदु कहे कर जोडी, यम तेडाने जावु ॥ श्रीदेवी विवाहनी नपरें, नृप कहे सुनटने चावू रे ॥ वि० ॥ १६ ॥ अग्निपूरित ए गामार्ग, थइ यममंदिर जाय ॥ यम . ने निमंत्रण जे कर आवे, ते मुफ साचो सखाय रे ॥ वि० ॥ १७ ॥ वात को सघला कहे स्वामी, ए अमथी नवि सीजे ॥ जाणो तेहएं पुष्कर वीजें, कारिज अमने दीजे रे ॥ वि० ॥ १७ ॥ नृपें वत्सराजनी सहामुं नाव्यु, स्वामी दुकम मुफ कीजें ॥ तुम आणा फुलमालतणी परें, शिर ऊपर धारीजें रे ॥ वि०॥ १ए ॥ जइ यमने तुमें नोतरी श्रावो, की, अंगीकार ॥ घर यावीने कामिनी आगल,मामी कह्यो ए विचार रे॥ वि०॥२०॥ पंचम खंमें दाल वत्रीशमी,धिक् धिक् विषय विकार ॥ राम कहे
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श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो. ३ जे विषयमांराता,ते नर मूढ गमार रे ॥वि०॥२१॥ सर्वगाथा॥१॥२॥५॥
॥दोहा॥ ॥ कामिनी कहे तब कंतने,गुं लीधुंए काम ॥ ए नृप तुम के. थयो, मारणने सुपो स्वामि ॥ १ ॥ उगसाथें ठग थाश्य,धूतारे धूतार ॥ श्यो ख लने उपकार ए, सुगुणा कंत विचार ॥२॥ कहे वत्सराज खरुं कहो, पण की, अंगीकार ॥ मिथ्या में थाये नहि, श्यो हवे एह विचार ॥३॥ यतः ॥ जिद्वेकवसतामुने ॥ अन्यच्च ॥ वयणे नणियं खग्गं, कग्ग क केण संधियं वाणं ।। सुंदरि मुन काठ, मूत्रा ते वयण चुकश्या ॥१॥ अलसायं ते एवि स, जाणेण जे घरकरा समुल्लविया ॥ ते पत्रटंक किरि,य व नदु अन्नहा हुँति ॥ २॥ पूर्वदोहा ॥ ते माटें अंगीकघु, पा लेई में सार ॥ वचनचूक जीव्या तणो, स्वाद किस्यो संसार ॥ ४ ॥ कहे कामिनी आधार एम, चिरं जीवो महाराज ॥ एवं विराजो मालिये, उपकारी शिरताज ॥ ५ ॥
॥ ढाल तेत्रीशमी ॥ ॥ लांध्या तोडा तोड रे राज, लांघी नदी रे बनास ॥ ए देशी ॥ कहे कामिनी विद्याधरी राज, अलवेसर अम कंत ॥ सुख विलसो संसारनां राज, शी मनमां धरो चिंत ॥१॥ साहिवो रे महारो, उपगारी शिरताज ।। साहिबो रे महारो, गिरु गरीव निवाज ॥ साहिवो रे महारो, मोजी वडो महाराज ॥ साहिवा रे जोवो,धणरो तमासो धान ॥ ए बांकणी ॥ किंक ररूपं यदने राज, कहे तेडी एम वाणी ॥ कंतरूप धरी कारिमुं राज, जा नृपपासें सुजाण ॥ सा० ॥॥ जे कहे ते करजो तुम्हें राज, मत कहेजो नाकार ॥ साहिवरो पापी रहे राज, वरतवू तेम निर्धार ॥ सा ॥ ३ ॥ रूप धरी वत्सराजनुं राज, श्राव्यो नरपति पास ॥ दुक म करो थे राजवी राज, म्हाने सुगुण आवास ॥ सा० ॥ ४ ॥ जावो में महारी बती राज, यमने करि मनोहार ॥ मासमांहे शहां लावलो राज, कांश कहां वारं वार ।। सा० ॥ ५ ॥ लोक सहूको देखतां राज,अग्निमांहे प्रवेग ॥ कीधो सद्ध हा हा करे राज, धिक् धिक् राय श्रादेश सा॥६॥ गुणरचरों गाढो नयो राज, वत्स तरीसो कुमार ॥ नृप निंदय दुवो घणो राज, माखो ए निर्धार ॥ सा ॥ ७ ॥ इस बातें रुटुं नहिं राज, याव्यो
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
हो रायनो अंत ॥ काम कियो चांमालनो हो राज, न करे इस्यो कोइ प्रांत ॥ सा० ॥ ७ ॥ शोच करे सद्को जना राज, नृप हर्षित दुउ ताम ॥ कहे मंत्रीने यापरो हो राज, चढियो सिराडे काम ॥ सा० ॥
|| प्राणो हवे ते सुंदरी राज, म करो विलंब लगार ॥ तव मंत्री कर, जोडीने राज, कहे नरपति अवधार ॥ सा० ॥ १० ॥ सकल प्रजा तुम उपरें राज, रागरहित ने स्वामि ॥ जो तेडावशो ए कामिनी राज, तो वि एसो काम ॥ सा० ॥ ११ ॥ संपद राग प्रजातणे राज, विण संपद श्यो राज ॥ राज विना रमणी किसी राज, सुण सुप गरिबनिवाज ॥ सा० ॥ १२ ॥ यतः ॥ विनयेन जवति गुणवान्, गुणवति लोकोऽनुरज्यते नित्य म् ॥ अनुरक्तस्य सहायाः, ससहायो युज्यते लक्ष्म्या ॥ ३ ॥ पूर्वढाल || ते माढें तुमने कहां राज, पडखो तुमें एक मास || प्रति उत्सुक दुवे दुते. राज, होवेजी काज विनाश ॥ सा० ॥ १३ ॥ यतः ॥ काज विचारी जे करे | मंत्री वाखो नृप रह्यो राज, मास लगें जेम तेम ॥ वोले मासे कामयी राज, अंध हुकम करे एम ॥ सा० ॥ १४ ॥ तेडी चार प्रधा नने राज, कम करे नृप जाम ॥ जाये जेवा नारीने राज, चतुर विचारी ताम ॥ सा० ॥ १५ ॥ यह मूकी पातलथी राज, पूरव जवनोजी बाप ॥ व्यंतरपति तेडावियो राज, ते पण प्राव्योजी याप ॥ सा० ॥ १६ ॥ तसारणें शोनावीने राज, हय वेसारीने हेज || मोकल्यो कंतने नृप कने, राज, व्यंतरपति शुं सतेज ॥ सा० ॥ १७ ॥ चटामांदे संचस्त्रो राज, लोक मल्यां लख कोडि || प्रहो पुयाइ एहनी राज, पूग्याजी वांबित कोड ॥ सा० ॥ १८ ॥ दरवारें नृप यागलें राज, कनोजी जोडी हाय || देखी विस्मय पामीयो राज, मन चिंते नूनाथ ॥ सा० ॥ १५ ॥ वीर एणें कीधुं वृथा राज, एक सुनापित सार || दिन रयणी यावे गले राज, नावे मुजे वीजी वार ॥ सा० ॥ २० ॥ यतः ॥ पुनर्दिवा पुनारात्रिः, पुनः सूर्यः पुनः शशी ॥ पुनः संजायते सर्व, न कोप्येति पुनर्मृतः ॥ ४ ॥ पूर्वढाल || पूढे नृप वत्सराजने राज, कुशली यमदेव || महिमा जेहनो घ्याकरो राज, करे वहु सुर जस सेव ॥ सा० ॥ २१ ॥ पूठ्युं मुऊने तुम सखाराज, केम बहु दिवसें प्राज || तुम स्वामी संचारीयो राज, मित्र डुं ते वत्सराज ॥ सा० ॥ २२ ॥ कयुं तव में सुण साहिबा राज, उत्स
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श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो. जय व उपर आज ॥ तेडण मुझने मोकल्यो राज, पान धारो महाराज || सा ॥ २३ ॥ य हर्पित मुमने तेणें राज, अंग आनूपण दीध ॥ कहेवाड्यु तुमने यमें राज, काज जलु ए कीध ॥ सा ॥ २४ ॥ तेडाव्या अमने तुमें राज, पण अमथी न अवाय ॥ इंश दुकमथी माहरे राज, फुरसद
पानी न थाय ॥ सा० ॥ २५॥ ते माटें तुमें आवईं राज, एक वार मिलाने काज ॥ मुफ साथें ए मोकल्यो राज, निज दौवारिक आज ।।
सा ॥ २६ ॥ देखी अनिमेप नयाने राज, रायें मान्युं सवि साच ॥ व्यंतरपति तब वोलीयो राज, रायप्रत्ये एम वाच ॥सा॥ २७ ॥ दंगधरें फरमावियुं राज, तुम सेवक मुज पास। खासा होवे ते मूकजो राज,खवर देवाने नन्नास ॥साारण॥ करगुंतेहनी चाकरी राज, यमयी थशे ते सार ॥ एम सुणी सेवक सदु राज,जावा थया दुशीयार ॥ सा ॥ ए॥ कहे प्रति हार ते मोकलो राज, खासा जे होय तुम यार ॥ यमगृहपासें भावी या राज, राजन सक्नु परिपार ॥ सा ॥ ३० ॥ पंचमखमें तेत्रीशमी राज, ढाल जणी सुविचार ।। पाप तणां फल पामशे राज, हवे ते जो जो चार ॥ला०॥३१॥ सर्व गाथा ॥१५॥ श्लोक तथा गाया मली ॥५६॥
॥दोहा॥ ॥ वेत्री कहे राजन सुणो,विपमो अमचो स्वामि ॥ रीतें तिहाकण जाइये, तो सीके सवि काम ॥ १ ॥ मानीताने मोकलो, पहेला महारी साथ ॥ पठे राजा के. प्रजा, एम सद्ध आवो साथ ॥ २ ॥ चार सचिव तब चिंतवे, पहेलां गमने इष्ट ।। फल होवे चिंतित सही, लोजन लहियें मिष्ट ॥३॥ यतः ॥ दाने याने शयने,व्याख्याने नोजने सजास्थाने ॥ कय विक्रयेऽतिथित्वे, राजकुले पूर्णफल याद्यः ॥ १ ॥ शून्येऽरएये जवने, ग्रामे तोये नये च संग्रामे॥धारोहेप्यवरोहे, पुरस्तरेन्न पथि रात्री च ॥॥ पूर्व दोहा । वेत्री पेगे धागमां,सदुलोकनी सारख ॥ पूठे पडीया चार ते, कहि नरपतिने नांव ॥ ४ ॥ पडतखेव दुवा जस्ममय, निन अनिलाप समे त ॥ परलोके गया पापीया, पापतणे संकेत ॥ ५ ॥
॥ ढाल चोत्रीशमी ॥ ॥ होरे लाल ॥ मरोवर पाणी चीखलो रे लाल ॥ ए देशी ॥ होरे लाल ॥ राजा पण रंगे कल्यो रे लाल, पतंगललित करे जाम ।। हो० ॥
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जैनकथा रत्नकोष जाग आाठमो.
हो रायनो अंत ॥ काम कियो चांमालनो हो राज, न करे इस्यो को प्रांत ॥ सा० ॥ ८ ॥ शोच करे सहको जना राज, नृप हर्पित दु ताम ॥ कहे मंत्रीने यापरो हो राज, चढियो सिराडे काम ॥ सा० ॥ ए || प्राणो हवे ते सुंदरी राज, म करो विलंब लगार ॥ तव मंत्री कर जोडीने राज, कहे नरपति अवधार ॥ सा० ॥ १० ॥ सकल प्रजा तुम उपरें राज, रागरहित वे स्वामि ॥ जो तेडावशो ए कामिनी राज, तो वि
सशे काम ॥ सा० ॥ ११ ॥ संपद राग प्रजातणे राज, विण संपद श्यो. राज ॥ राज विना रमणी किसी राज, सुण सुरा गरिवनिवाज ॥ सा० ॥ १२ ॥ यतः ॥ विनयेन जवति गुणवान्, गुणवति लोकोऽनुरज्यते नित्य म् ॥ अनुरक्तस्य सहायाः, ससहायो युज्यते लक्ष्म्या | ३ || पूर्वदाल ॥ ते माटें तुमने कहां राज, पडखो तुमें एक मास ॥ अति उत्सुक दुवे दुते, राज, होवेजी काज विनाश ॥ सा० ॥ १३ ॥ यतः ॥ काज विचारी जे करे | मंत्री वायो नृप रह्यो राज, मास लगें जेम तेम ॥ वोले मासे कामथी राज, अंध हुकम करे एम ॥ सा० ॥ १४ ॥ तेडी चार प्रधा नने राज, हुकम करे नृप जाम ॥ जाये लेवा नारीने राज, चतुर विचारी ताम ॥ सा० ॥ १५ ॥ यह मूकी पातलयी राज, पूरव जवनोजी वाप ॥ व्यंतरपति तेडावियो राज, ते पण याव्योजी आप ॥ सा० ॥ १६ ॥ तारणें शोजावीने राज, हय वेसारीने हेज || मोकल्यो कंतने नृप कनेराज, व्यंतरपति शुं सतेज ॥ सा० ॥ १७ ॥ चटामांहे संचखो राज, लोक मल्यां लख कोडि || अहो पुण्याई एहनी राज, पूग्याजी वांवित कोड ॥ सा० ॥ १८ ॥ दरवारें नृप यागलें राज, कनोजी जोडी हाथ || देखी विस्मय पामीयो राज, मन चिंते नूनाथ ॥ सा० ॥ १९ ॥ वीर एणें कीधुं वृथा राज, एक सुनापित सार || दिन रयणी यावे गळे राज, नावे मु बीजी वार ॥ सा० ॥ २० ॥ यतः ॥ पुनर्दिवा पुनारात्रिः, पुनः सूर्यः पुनः शशी ॥ पुनः संजायते सर्व, न कोप्येति पुनर्मृतः ॥ ४ ॥ पूर्वढाल || पूठे नृप वत्सराजने राज, वे कुशली यमदेव || महिमा जेहनो याकरो राज, करे वहु सुर जस सेव ॥ सा० ॥ २१ ॥ पूठ्युं मुने तुम सखा राज, केम बहु दिवसें श्राज || तुज स्वामी संचारीयो राज, मित्र ढुं ते वत्सराज ॥ सा० ॥ २२ ॥ कयुं तव में सुप साहिबा राज, उत्स
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श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो. ज्य व उपर आज ॥ तेडण मुंजने मोकव्यो राज, पाउ धारो महाराज ॥ सा ॥ २३ ॥ थर हर्पित मुझने तेणें राज, अंग भानूपण दीध ॥ कहेवाडयु तुमने यमें राज, काज जलु ए कीध ॥ सा ॥ २४ ॥ तेडाव्या अमने तुमें राज, पण अमथी न अवाय ॥ इंश दुकमथी माहरे राज, फुरसद
पनी न थाय ॥ सा ॥ २५ ॥ ते माटें तुमें आवg राज, एक वार मिलाने काज ॥ मुज साथै ए मोकल्यो राज, निज दौवारिक आज ॥ सा ॥ २६ ॥ देखी अनिमेप नयणने राज, रायें मान्युं सवि साच ॥ व्यंतरपति तब वोलीयो राज, रायप्रत्ये एम वाच ॥ सा ॥ २७ ॥ दंमधरें फरमावियुं राज, तुम सेवक मुऊ पास। खासा होवे ते मूकजो राज,खवर देवाने नन्नास॥सा॥॥ करगुंतेहनी चाकरी राज, अमथी थशे ते सार ॥ एम सुणी सेवक सहु राज,जावा थया दुशीयार ॥ सा ॥ २५॥ कहे प्रति हार ते मोकलो राज, खासा जे होय तुम यार ॥ यमगृहपासें यावी या राज, राजन सदु परिपार ॥ सा ॥ ३० ॥ पंचमखमें तेत्रीशमी राज, ढाल नणी सुविचार ॥ पाप तणां फल पामशे राज, हवे ते जो जो चार सा॥३१॥ सर्व गाथा ॥१०५॥ श्लोक तथा गाया मली ॥५६॥
॥दोहा॥ ॥ वेत्री कहे राजन सुणो,विपमो अमचो स्वामि ॥ रीतें तिहाकण जायें, तो सीजे सवि काम ॥ १ ॥ मानीताने मोकलो, पहेला महारी साथ ॥ पर्ने राजा के. प्रजा, एम सद्ध श्रावो साथ ॥ ५ ॥ चार सचिव तब चिंतवे, पहेलां गमने श्ट ॥ फल होवे चिंतित सही, जोजन लहियें मिष्ट ॥३॥ यतः ॥ दाने याने शयने,व्यारव्याने नोजने सनास्थाने ॥ कय विक्रयेऽतिथित्वे, राजकुले पूर्णफल प्रायः ॥ १ ॥ शुन्येऽरएये जवने, यामे • तोये नये च संग्रामे॥धारोहेप्यवरोहे, पुरस्सरेन्न पथि रात्री च ॥२॥ पूर्व
दोहा॥ वेत्री पेनो थागमां,सदुलोकनी साख ॥ पूढे पडीया चार ते, कहि · नरपतिने नांव ॥ ४ ॥ पडतखेव दुवा नस्ममय, निज अजिलाप समे त ॥ परलोके गया पापीया, पापतणे संकेत ॥ ५ ॥
॥ ढाल चोत्रीशमी ॥ ॥ होरे लाल ॥ सरोवर पाणी चीरवतो रे लाल ॥ ए देशी ॥ होरे साल ॥ राजा पण रंगे कल्यो रे लाल, पतंगललित करे जाम ॥ हो ॥ .
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६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. अग्नि जलतमां आकरो रे लाल, ग्रह्यो वत्सराजे ताम ॥१॥ होरे लाल । काज विचारी कीजीयें रे साल ॥ सुण पृथिवीपति पाल ॥ हो० ॥ नीरखी परखीने जे करे रे लाल, न दुवे तस जंजाल ॥ हो ॥ काज वि० ॥ ॥ हो ॥ मत जाणो ए मनमां रे लाल, मुन जीवे कोय हो॥ ए पटु नाटक में सही रे लाल,तुमने देखाडधुं जोय ॥ हो ॥ काज० ॥ ३ ॥हो॥ ए सवि मंत्री कुबुझ्यिा रे लाल, कूड तणा कर नार ॥ हो ॥ मुझने प्राणांत कष्ठमें रे लाल, नाख्यो मलि बदु वार ॥ हो ॥ का ॥ ४ ॥ हो ॥ देवतणा परनावथी रे लाल, पूगाड्या में एह ॥ हो ॥ अग्निमांहि होमावीया रे लाल, रह्यो ढुं अखंमित देह ॥ हो० ॥ का० ॥ ५ ॥ यतः ॥ कृते प्रतिकृतं कुर्यात्, नुचिते प्रतिबुंचितम् ॥ त्वया झुंचापिताः पदा, मया मुंमावितं शिरः॥ ३ ॥ दोहो । धुत्तह कीजें धूतिया, बालह दिड घाल ॥ मित्तह किऊँ मिनडी, एम गमिङों काल ॥॥ पूर्वढाल ॥ हो ॥ म म जीवो जे जला था रे लाल,दिये परने उर्बु वि ॥ दो० ॥ परशेहें परधन नारीने रे लाल, चाहे ते उर्बुधि ॥ हो । का॥ ६ ॥ हो० ॥ नृप बारिज कहो झुं करे रे लाल, जिहां मंत्री होये कुजात ॥ हो ॥ नृप जूमो पण गुं करे रे लाल, जिहां मंत्रीश सुजात ॥हो॥ का ॥ ७ ॥हो॥ तुं स्वामी ने माहरो रे लाल, नाख्यो में नवि जाय ॥ हो ॥ स्वामिशेहन मोटकुं रे लाल, जगमां पाप कहाय ॥ हो ॥ का ॥ ७ ॥ हो० ॥ नमो पण शेह अन्यनो रे लाल, दिये : खनो संदोह ॥ हो ॥ स्वामी मित्र गुरुतणो रे लाल, अति मागे करो शेह ॥ दो० ॥ का० ॥ ए ॥ हो ॥ वात सुपी नरराजीयो रे लाल, चित्तमा ताज्यो जोर ॥ हो॥ मुज चेष्टित एवं लघु रे लाल,में कयुं कर्म कठोर ॥ दो० ॥ का ॥ १० ॥ हो ॥ एवं विध अपराधने रे लाल,शक्ति उतें सह्या जेण ॥ हो० ॥ राज्य न लीवू न बालीयो रे लाल,पर उपकारी गुणे ॥ हो ॥ का ॥ ११ ॥यतः॥ स्वयमदमः समयं, मते दमया न लाति चान्यर्दिम् ॥ न नवं तत् क्षमताया,मिदं हिलोकोत्तरं चरितम् ॥५॥ अस्योत्तमस्य परमा,प्रकतिः प्राणांतगस्य न हि विपमा ॥ तस्याधमाधमोऽहं, कथमनृणीनावमाप्तोस्मि ॥ ६ ॥ पूर्वढाल ॥ दो० ॥ इत्यादिक निज निं इतो रे लाल,प्रशंसतो वत्सराज ॥ हो ॥ जवनिर्विम तपी परें रे लाल,
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो.
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मंदिर गयो महाराज || हो० ॥ का० ॥ १२ ॥ हो० ॥ लोक गया सहु स्थानकें रे लाल, धरतां विस्मय चूरि ॥ हो० ॥ एह निमित्तथी रायने रे लाल, वाध्युं वैरागनुं पूर ॥ हो० ॥ का० ॥ १३ ॥ हो० ॥ चिंते पाप घणुं करे लाल, परदारानी धारा ॥ हो० ॥ प्रातमलघुता में करी रे लाल, वांध्यो पापनो राशि || हो० ॥ का० ॥ १४ ॥ हो० ॥ एम चिंती निजवालिका रे लाल, परलावे भूपाल | हो० ॥ राज्य दीयुं करमोचनें रे लाल, महेली मन ढक चाल ॥ हो० ॥ का० ॥ १५ ॥ हो० ॥ नृप ऋषि मूकी निसखो रे लाल, थयो तापस वनमांय ॥ हो० ॥ करे तप वहु ज्ञानथी रे लाल, नवि संजाले कांय ॥ हो० ॥ का० ॥ १६ ॥ ॥ दो० ॥ राजा थयो वत्सराजनी रे लाल, वीरसेन नृपनो नंद ॥ ॥ हो० ॥ सकल गुणें करी शोभतो रे लाल, दिन दिन व्यधिक यानंद ॥ हो० ॥ का० ॥१७॥ हो० ॥ देश घणा साध्या तेणें रे लाल, वरती चिहुं खं प्राण ॥ हो० ॥ नूप सवे यावी नम्या रे लाल, हुकम करे परमाण हो० ॥ का० ॥ १८ ॥ हो० ॥ चिहुं राणीगुं भोगवे रे लाल, इंडियसुख सुविलास || हो० ॥ इति निवारी वेगली रे लाल, पूगी मनडानी श्राश ॥ हो० ॥ का० ॥ १७ ॥ हो० ॥ कीर्त्ति पसरी चिहुं दिनों रे लाल, ढांकी ते नरहंत ॥ हो० ॥ वात विद्या कस्तूरिका रे लाल, यापेंही प्रगटंत ॥ हो० ॥ का० ॥ २० ॥ यक्तं ॥ वार्त्ता च कौतुकवती विशदा च विद्या, लोको तरः परिमलव कुरंगनानेः ॥ तैलस्य विंडरिव वारिणि, दुर्निवार एतत्रयं प्रसर तीत मित्र चित्रम् ॥ ७ ॥ हो० ॥ पंचमखमें ए कही रे लाल, ढाल चो त्रीशमी रंग ॥ हो० ॥ रामविजय कहे हेजगुं रे लाल, कीजें पुण्य प्र संग || हो० ||का||२१|| सर्वगाथा || १०८४ ॥ श्लोक तथा गाया ॥ ६३ ॥ ॥ दोहा ॥
|| इस अवसर निज नयरीयें, पसरी बात पर ॥ वत्सराज राजा थयो, कविनी वड नूर ॥ १ ॥ नख्यो लेख परजा मली, नृप वत्सराज ने ग्राम || बहेला बलजो साहिबा, ग्रम प्रतिपालन काम ॥ २ ॥ वृत खेख लेई चच्यो, प्राव्यो नयरी उकेण ॥ नृप चमराजने सॉपियो, थावी हर्षे नरेण ॥ ३ ॥
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॥ ढाल पांत्रीशमी ॥ ॥ राग सिंधूडो ॥ तथा॥प्रवलकाल तणो पयोनिधि,गाजतो गंजीर ॥ ए. देशी॥ लेख लीधो हाथ ततहण, दीध वांचक हाथ ॥ उखेलीने ते स्वयं वांचे, सानले नूनाथ ॥ स्वस्ति नायिनी पुरी जिहां,नृप वसे वत्सराज ॥ क्षितिप्रतिष्ठित नगरहूंती, लखे लेख समाज ॥१॥ वहेला बावजो रे, वार म लावजो रे, राजेश्वर नावजो रे, जग जस पावजो रे॥ए आंकणी ॥ ग्रीष्म . अर्दित मेघ चाहे, शीतपीडित आग ॥ जेम संनारे सहूनो, तेम तुझगुं राग ॥ शीघ्र आवो था अमचा, स्वामी तुम वडनाग ॥ अन्यथा अमने . इहांकणे, नहिं रह्यानो लाग ॥ वहेला ॥ ३ ॥ देवराज ए सुखदायी, करे सवल अन्याय ॥ सुख नहीं ए नयरमांहे, जिहां एहवो राय ॥ झुं घणुं तुम दाखीयें मत, ढील करजो कांय ॥ वत्स सघली वात निसुणी, मेलियो समुदाय ॥ वहेला ॥ ३ ॥ तिहां सुनट नट कोटि मलिया, वाजते निशाण ॥ सैन्यनार ए धरा न खमे, चढयो नृप वडराण ॥ पर धानने निज राज्य सोंपी, साथै सवल मंमाण ॥ वितिप्रतिष्ठित नयर य नुक्रमें, बावियो दुइ जाण ॥व०॥४॥ मोकल्यो देवराजने एक, दूत वत्सें ताम ॥ जाणियुं वत्सराज आव्यो, करणने संग्राम ॥ दु लडवा काज, तत्पर, देवराज अनाम ॥ सैन्य लइ वाहेर आव्यो, वडो तेह हराम ॥ ॥ व ॥ ५ ॥ सामंत सघला नहिं रागी, वत्स ऊपर प्रेम ॥ कोइ तन देवे ही तिहां, देवराजने तेम ॥ वदन फीके चित्तमांहि, तेह चिंते एम ॥ फयु सेना सदु लश्कर, रणें जीतीयें केम ॥ व ॥ ६ ॥ रात लेई तेह नाटो, देवराज नरिंद ॥ वत्स सहामो चढी आव्यो, वीरसेन फरजंद ।। हाथ जोडी पाय लागी, सचिव नृत्य अमंद ॥ चिरं जीवो स्वामि अमचा, सहू कहे आनंद ॥ व ॥ ७ ॥ लोक हर्पित दुवां सघलां, महोत्सव वद्ध थाय ॥ वाजते नीशाण पुरमां, करे परवेश राय ॥ बोले वंदीजन जयारव, हैडे हर्प न माय ॥ श्राव्यो प्रजापाल नृपति, टल्या दूर अन्याय ॥ व०॥ ॥ ॥ तखत ऊपर आवी वेग, वखत वलीयो सार ॥ सद्ध हाथ जोडी पाय लाग्या, दु जय जयकार ॥ राज्य वेद नलां पाले, व्यसन सात निवार ॥ पुहवी वत्स नरेश आया, वधी वद् विस्तार ॥ व ॥ ए॥ ना रिचिटुं संघात विलसे, देवनी परें नोग ॥ पुण्यथी सवि बावि मलीया, सर्व
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो.
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गुन संयोग | राज्य साते यंग शोजित, अंग तेम नीरोग ॥ वाधीयो यशोवाद जगमां, दुई धर्मने योग ॥ व ॥ १० ॥ एहवे एक दिवस याव्या, वनमां गणधार ॥ धर्मरुचि मुनिराज रूडा, करे किरिया सार ॥ कर्म कीपण काज पाले, शुद्ध पंचाचार ॥ चारज्ञानी गुडध्यानी, समो सखा अणगार ॥ व ॥ ११ ॥ यावी वनपालक वधामणी, दीधी तेली वार || चिरं जीवो स्वामि मोरा, प्रजाना आधार ॥ यावीया उद्यानमांहे, मुनि बहु परिवार || निसुणी तेहने दान च्यापे, दरखि वार हजार ॥ व ॥ १२|| लेइ सवि परिवार न्यावे, वांदवा उजमाल ॥ वत्सराज नरिंद्र महोटो, ऋषि काक ऊमाल ॥ थावी गुरुनां चरण वंदे, खंग पंचमे ढाल ॥ पांत्री शमी कही रामविजयें, धन्य ए नूपाल ॥ व० ॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥ ११०० ॥ ॥ दोहा ॥
प्राणी
॥ पंचानिगम प्रणाम करि, वेगे शुद्ध चूनाग ॥ कहे मुनिवर हवे देश ना आणी अनुभव राग ॥ १ ॥ सुकतें रत नरपति प्रणत, उदेशी गुरुरा ज ॥ चाहें नवि धर्म करो तुमें, जेम नहो शिवपदराज || २ || तेह धर्म दोय नेट बे, सागार ने घणागार || जीवदया तस मूल बे, एहनो यवर विस्तार ॥ ३ ॥ सर्वविरति निर्वाहने, सुनि धाराधे तेह ॥ ते वि श्राराधन नोहे, तेहनुं सुरा गुणगेह ॥ ४ ॥ यतिधमें समरथ नहिं ते गुगृहीनो धर्म | पडिवतो परंपर लहे सिद्ध स्वरूप कर्म ॥ ५ ॥ द्वादश व्रत रूपं नलो, ते नांख्यो भगवंत ॥ यादरीयें छादर करी, जिम हुवे सुरक अनंत ॥ ६ ॥ केइक जोजन लालची, बहु नर नारीरत ॥ माल्य विलेपन जोगीया, दीसे घणा जगत ॥ ७ ॥ गीत तथा थय घणा, घृत कथा रसलील || केक वाहन गज वृपन, रतिया दीसे दीप ॥ ७ ॥ पण जे व्यसनी धर्मना, तेहना नमीयें पाय ॥ धन्य तेह धरणी तजें, पावन तेहनी काय ॥ ए ॥
|| ढाल वत्रीशमी ॥
॥ हर्पनर हमगुं बोलजो जी ॥ ए देशी ॥ देशन सुणी गुरु वंदीने रे. कड़े वत्सराज नरेश | तारक नवमां तुं मल्यो रे, साचो तुम उप देश || १ || सुगुरु मुज, तारक मजियो श्राज || सुगुरु मुऊ, सारी वांद्रित कान || सुगुरु तुम, पालव वलग्यो बाज | सुगुरु मुक्त, साचो जंगी कहा
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शप जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. ज॥ए आंकणी ॥ चरणधर्म प्रनु दोहिलो रे, मुझढूंती न सधाय ॥ श्रावक व्रत उच्चरावीयें रे, मुझने करि सुपसाय ॥ सु० ॥ ५ ॥ गुरु कहे देवाणु । प्पिया रे, ढमाये तेम गंम ॥ आरंज के. अनादिनो रे, लागी रह्यो जीन - मामि ॥ सु ॥ ३ ॥ व्रत वारे गुरुजी मुखें रे, नचरियां वत्सराज ॥ या कृतारथ आवीयो रे, निजमंदिर महाराज ॥सु ॥४॥ मास कल्प करीने तिहां रे, गुरु विचस्या अन्य देश ॥ श्रावकव्रत आराधतो रे, नृप पाले निजदेश ॥ सु० ॥ ५ ॥ चैत्य करावे जिन तणां रे, विंव जरावे . सार ॥ दान सुपात्रं दे जला रे, करे सफलो अवतार ॥ सु ॥ ६ ॥ व . ली तेहज मुनि धाविया रे, विचरंता तेणें नाम ॥ वत्सराज वंदण चल्योः . रे, जइ वंद्या गुणधाम ॥ सु ॥ ७ ॥ देशन सुणी पूरे प्रजु रे,कहो पूरव अवदात ॥ आपद टली संपद दुई रे, कोण कर्मनी वात ॥ सु० ॥७॥ गुरु कहे सांजल राजिया रे, जंबू जरतमजार ॥ पुर वसंतपुरमा वसे रे, शूर नृपति सुखकार ॥ सु० ॥ ए ॥ सरलातम सोहामणो रे, दाक्षिण्य - गुण संयुक्त ॥ निर्लोनी सहेजें जलो रे, देव गुरुनो नक्त ॥ सु० ॥१०॥ दान सुःखीने आपतो रे, निज संपद नूपाल ॥ पाले प्रजा रूडी परें रे, न्यायरीतें उजमाल ॥ सु ॥ ११ ॥ इत्यादिक गुणे शोजतो रे, पण शीलालंकार ॥ शोजित दानगुणें करी रे, पसस्यो यशविस्तार ॥ सु॥ १२ ॥ तस अंतेवरमां शिरें रे, शूरवेगा वर नारी ॥ विद्याधरकुल ऊप नी रे, चाले पति आचार ॥ सु ॥ १३ ॥ ते ऊपर वीजी वरी रे, रति चूला नृपजात ॥ तस रूपें रीज्यो घणुं रे, न लहे दिह ने रात ॥ सु०॥ १४ ॥ रायें अवरने परहरी रे, वात जे ए उपरांत ॥ देवीये तुफ पागल कडं रे, सघखें तस वृत्तांत ॥ सु ॥ १५ ॥ गंधवाहनगतिनी सुता रे, परणावी जेणें दोय ॥ ते देवीना कहेगथी रे, तुमें जाणो सङ कोय ।। सु० ॥ १६ ॥ शूर नृपति चवि तुं ययो रे नृपनंदन वत्सराज ॥ दाना दिक गुन कृत्यथी रे, पाम्यो अतुलवल राज ॥ सु० ॥ १७ ॥ कयुं पूर्व ईश्वरपणे रे, कोक अंतरायनुं कर्म ॥ राज्यनुशादिक तें लघु रे, पूर्व वयमां अशर्म ॥ सु० ॥ १७ ॥ गुरु वयगां एम सांजली रे, जातिस्म रण सार ॥ जेम जारव्युं तेम सांजघु रे, सह्यो वैराग्य अपार ॥सु॥१॥ धन्य ज्ञानी तुम ज्ञाननें रे, कही साची ए वाणी ॥ तुम विण कुण एम
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. उपदिसे रे, गिरधा गुणनी खाणि ॥ सु० ॥ २० ॥ स्थापी राज्ये तनयने रे, थाइश हुँ तुम शिष्य ॥ वांदीने घरे आवियो रे, नरपति सवल जगीश ॥ सु० ॥ २१ ॥ श्रीशेखर निजपुत्रने रे, सोंपी राज्यनो नार ॥ चिटुं नारी राजीयो रे, थयो सूधो अपगार ॥ सु० ॥ २२ ॥ वत्सराज ज्ञपिराजियो रे, चाले कम विहार ॥ चोखू चारित्र पालीने रे, पाम्या सुरपद सार ॥ सु ॥ २३ ॥ देवलोकहूंती चवी रे, करो नरनव एक ।। कर्म खपी केवल लही रे, लहेशे मुक्ति सुविवेक ॥ सु ॥ २४ ॥ धनरथ प्रजुजी कह्यो रे,शूर तणो संबंध ॥ यापद टली संपद थई रे, पुण्य तो अनुबंध ॥ सु० ॥ २५ ॥ इति वत्सराजसंबंधः ॥ पंचम खमें बनीशमी रे, ढाल कही सुणो संत ॥ रामविजय कहे सांजलो रे, जिनगुण एका चित्त ॥सु॥ २६ ॥ सर्वगाया।॥ ११३५॥ श्लोक तथा गाथा मली॥६॥
॥ दोहा ॥ ॥ देशन सुपी जिनराजनी, श्री मेघरथ जूपाल ॥ चारित्रने उत्सुक थयो, तजी मोह जंजाल ॥ १ ॥ घर आवी दृढरथ जणी, कहे बंधव व्यो राज ।। प्रनुपासें हुँ व्रत ग्रही, सारिश यातम काज ॥ २ ॥ कहे दृढरथ सुण वंधवा, ए नरकांतज राज ॥ एहने कारण काजं हूं, नवि विणसाडं थाज ॥३॥ तेणें निज थंगज स्थापियो, मेघसेन अनिधान ॥ रथ सेन दृढरयसुत जणी, युवराजा पद ताण ॥ ४ ॥
॥ ढाल साडत्रीशमी॥ ॥ तुमने न श्राव्या कहियें जी, यूलिन जलें याव्या ॥ ए देशी ॥ मेघग्य घनरथ जिन बांदे जो ॥ अनुजी सोनागी ॥ मुफ थापो चरण श्रानंद जी ॥ वारु. बड नागी ॥ १ ॥ मुझ मनना मनोरथ फलिया जी ॥अनु0 आज देवाधिदेव मुक मलिया जी ॥ वारु.॥ २ ॥ मुफ चारित्र श्रापो चोखू जी ॥ प्र० ॥ निज श्रातमगुपपने पोरवू जी ॥ वा० ॥ ३ ॥ मुफ जवजलहूंती तारो जी ॥ प्र॥ वनरय जिन मुझ उगारो जी। पा०॥ 1 ॥ नृप चार सड्स संघातें जी ।। प्र० ॥ सुत सुंदर सातो साथै जी॥ वा० ॥ ॥ बंधव दृढरधनी जोडी जी ॥०॥ लिये चारित्र मदने मोदी जी ॥वा०॥६॥ ब्रही श्रीजिनदाये दीदा जी श्राराये जिननी शिक्षा जी॥ वा०॥ ॥ पंच समिति गृति रखवाले जी ॥ ॥
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जैनकया रत्नकोष नाग आाठमो.
पटुकाय जणी प्रतिपाले जी ॥ वा० ॥ ८ ॥ दोष रहित लीये खाहार जी ॥ प्र० ॥ मुनि पाले पंचाचार जी ॥ वा० ॥ ए ॥ कहुं मुनिनी किर्त्तिकेती जी ॥ प्र० ॥ व्रत पाले जावनसेंती जी ॥ वा० ॥ १० ॥ श्री घनरथ जिन उपकारी जी ॥ प्र० ॥ प्रतिवोध्यां वहु नर नारी जी ॥ वा० ॥ ११ ॥ नव क मल वे प्रभु पाया जी ॥ प्र० ॥ सुर असुर मली गुण गाया जी ॥ वा० ॥ १२ ॥ मल धोई घाती केरो जी ॥ प्र० ॥ जिन लह्यो शिव वाम नलेरो जी ॥ वा० ॥ १३ ॥ हवे मेघरथ मुनि निर्मायी जी ॥ प्र० ॥ करे सुधी साधुकमाई जी ॥ वा ॥ १ || राधे स्थानक वीश जी ॥ प्र० ॥ बांधे जिननाम जगीश जी ॥ वा० ॥ १५ ॥ अरिहंत सिद्ध प्रवचन नाम जी ॥ प्र० ॥ गुरु शिविर साधु गुणग्राम जी ॥ वा० ॥ १६ ॥ वा त्सव्य एहोनां करवां जी ॥ प्र० ॥ बहुश्रुत तपस्वी चित्त धरवा जी ॥वा० ॥ १७ ॥ शुद्ध ज्ञानतणो उपयोग जी ॥ प्र० ॥ दर्शन गुण विनयनो योग जी ॥ वा० ॥ १८ ॥ आवश्यक शीलव्रत लेखे जी ॥ प्र० ॥ रहे निरति चार विशेपें जी ॥ वा० ॥ १९ ॥ दल जव तप त्याग विचारो जी ॥ ॥ प्र० ॥ वैयावच्चें समाधि गुण धारो जी ॥ वा० ॥ २० ॥ ग्रहे ज्ञान अपूरव होंगें जी ॥ प्र० ॥ श्रुतनक्ति करे सुविशेपें जी ॥ वा० ॥ २१ ॥ प्रवचन प्रभावना सारी जी ॥ प्र०॥ विशमे वोले निर्धारी जी ॥वा ॥२२॥ करे सिंहनिकीडित साधुं जी ॥ प्र० ॥ तप जेवुं कंचन जाचुं जी ॥ वा० ॥ २३ ॥ करे किरिया मुनिवर साची जी ॥ प्र० ॥ जिनपद बांधयुं नि काची जी ॥ वा० ॥ २४ ॥ लाख वरस चरण प्राराधी जी ॥ प्र० ॥ चढती गुणश्रेणी वाधी जी ॥ वा ॥ २५ ॥ निजकाय प्रथाम ए जाली जी ॥ प्र० ॥ दृढरथ मुनि सुगुण खाणी जी ॥ वा० ॥ २६ ॥ तिलका चल उपरें वेही जी ॥ प्र० ॥ गुद्ध भूमितल पडिलेही जी ॥ वा० ॥ २७ ॥ लख चोराशीने खमावी जी ॥ प्र० ॥ मन वैराग्य जावना नावी जी ॥ वा० ॥ २८ ॥ शरणां चार उदार जी ॥ प्र० ॥ करे असल गुणनं मार जी ॥ वा ॥ २७ ॥ वोसिरावी तेणें निज काया जी || || नहिं मन ममता ने माया जी ॥ वा० ॥ ३० ॥ मनमांहे समाधिने साथी जी ॥ प्र० ॥ सर्वारिय सिद्धि ऋद्धि लाधी जी ॥ वा० ॥ ३१ ॥ तेत्री सहस व र्ष जाय जी ॥ प्र० ॥ तव नूखनी इहा याय जी ॥ वा० ॥ ३२ ॥ ते
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श्री शांतिनाथनो रास खंम पाचमो.
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त्री पखवाडे उल्लास जी ॥ प्र० ॥ एक वार जे श्वासोवास जी ॥ वा० ॥ ३३ ॥ चंद्रोदय रुचि उद्योत जी ॥ प्र० ॥ तिहां चोसह मनुं मोती जी ॥ वा० ॥ ३४ ॥ चिहुं पासें चार ते सोहे जी ॥ प्र० ॥ वत्रीश म एनां मन मोहे जी ॥ वा० ॥ ३५ ॥ याव शोल मणां कह्यां वारु जी ॥ प्र ॥ तस पापतीयां मनोहारु जी ॥ वा० ॥ ३६ ॥ शोल यात म पानी ने जी ॥ प्र० ॥ ग्रागममांहि प्रभु एम वोले जी ॥ पाठांतर ॥ ते दीपे तेज मोजें जी ॥ वा ॥ ३७ ॥ चिहुं मानां मोती वत्रीश जी ॥ चोसठ दोय मलीयां जगीश जी ॥ वा० ॥३८॥ एक शो अडवीस चखाणो जी ॥ प्र० ॥ एक मणीयां मोती जाणो जी ॥ वा० ॥ ३५ ॥ एम दो य त्रेपन होय जी ॥ प्र० ॥ मुक्ताफलसंख्या जोय जी ॥ वा० ॥ ४० ॥ समकितदृष्टि मति सारी जी ॥ प्र० । सहुये जिहां एकाव तारी जी || वा० ॥ ४१ ॥ लवसत्तमिया एणें नामें जी ॥ प्र० ॥ देव सर्वा रथसिद्ध गमे जी ॥ वा० ॥ ४२ ॥ प्रभु तिहां जइ लीये श्रवतार जी ॥ प्र० ॥ व्यगियारमे जव अधिकार जी ॥ वा० ॥ ४३ ॥ दृढरथ मुनि पण तिहां जाय जी ॥ प्र० ॥ नही सुरपदवी सुखदाय जी ॥ वा० ॥ ४४ ॥ खंम पांच साडत्रीशमी ढाल जी ॥ प्र० ॥ कहे रामविजय उज माल जी ॥ वा० ॥ ४५ ॥
॥ ढाल ॥ चोपाई ॥ खं खं चतुराई घणी, शांति प्रभुरामें में सुणी ॥ तेह तो ए पंचम संग, पूरण हूर्व राग व्यखं ॥ १ ॥ संवत सत्तर पं चाशिये सही, राजनगर चोमा रही || श्री संभवजिनने सुपसाय, पंचम खं रच्यो सुखदाय ॥ २ ॥ सागरराव उदयाचलनाण. श्रीनीसागर सूरि सुगुणनिधान ॥ तेह तो राज्य प्रतिचंग, राम ख्यो में धरि मन रंग || || श्रीगुरु सुमतिविजय कविराज, उपकारीमांदे गिरताज ॥ तास शिष्य एम द नणे. गतिमनुने जाने नाम ॥४॥ सर्वगाथा ॥११७॥ श्लोक तथा गाया मली ॥६३॥ संग पांचेनी गाया ॥ ४२५४ ॥ संग पनेिना प्रास्ता विक लोक तथा गाया ॥ १०१ ॥ पांचे खंमनी हाल ॥ १५०॥ इति श्री शांतिजिनप्रबंधे राधे नानुमचे नवनिबंधे देवराजवत्सगजसंव घोपबृंहितदशमैकादश नववननामा पंनमः संमः समतिमगमत् ॥ ॥ ॥
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शुण्य
जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. ॥अथ षष्ठखंमस्य प्रारंनोऽयम्॥
॥दोहा॥ ॥ सुखकर साहिब सेवियें, त्रेवीशम जिन पास ॥ श्रीशंखेश्वर प्रगट प्रनु, नामें लीलविलास ॥ १ ॥ वासवपूजित चरणकज,वंदू दीनदयाल ॥ परगट परतो पूरवा, चिंतामणि सुरसाल ॥ २ ॥ ही अहँ पासजी, मूलमंत्रनो जाप ॥ धापद सवि दूरे टले, मटे मोह संताप ॥ ३ ॥ अश्व सेनकुलदिनमणि, वामामात महार ॥ ते जिन प्रणमीने कहुँ, बहो खंम सुखकार ॥ ४ ॥ जिनगुण केरी संकथा, करतां नासे पाप ॥ उग्ध सिता चित्त विषु पीये, तोहि नासे सवि ताप ॥ ५ ॥ शांतिनाथ शोलम। विलु, कहेतां तास चरित्र ॥ नवकोटिक पातक टले, थाये जन्म पवित्र ॥ ६ ॥ सर्वारथ सुख जोगवी, तेत्रिश सागर थाय ॥ चवि तिहाथी जिहां। अवतरे, ते निसुणो चित्त लाय ॥ ७ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ ॥ चिंतामणि स्वामी, सच्चा साहिब मेरा ॥ ए देशी ॥ जंवुदीपमां ददि । ण जरतें, आदि जिणंद सुखकारी ॥ तेहनी संततिमां दुन रे, कुरुनामें नृ. पति सुविचारी ॥ १ ॥ शांतीश्वर जिनकी, सुणो कीर्ति सारी ॥ ए श्रांक णी ॥ तिण नामें कुरुदेश अनोपम, दुर्ग संपद गुणधारी ॥ तास तनय हस्ती तेणें नामें, हस्तिनापुर अवतारी ॥ शांतीश्वर ॥ २ ॥ ते दक्षिणा नर सुरपुरसुंदर, शोना समुदयनारी ॥ चोराशी वाजार विराजित, दीपे यति मनोहारी॥ शां० ॥३॥ एक भूमि दोयनूमि त्रिनूमिक,चन पंच जूमि प्रकारी ॥ सुर आवास जिस्यां जिहां मंदिर, निवसे सुखी नर नारी ॥ शां० ॥ ४ ॥ सदु जिनधर्मी जिनेश्वर गुणने, गाये नित्य अगारी ॥ दान दया धर्म जिहां अति दीपे, सदु कोई शुन आचारी ॥ शां० ॥ ५ ॥ इक्ष्वाकुवंशी तिहां विश्वसेना, निध नरपति रतिकारी ॥ न्यायें राज्य प्र जापति पाले, दुरे इति निवारी ॥ शां० ॥ ६ ॥ स्वामी अमात्य सुखद बल शोजित, कीर्ति कामणगारी ॥ चिटुं दिशिमाहे वध्यो जस महिमा, रेख नहिं कांड कारी ।। शां० ॥ ॥ तस घर रमणी रूप यरुत, रति रंना पण हारी ।। अचिरा नामें सती सत्यवंती, दान अजयदातारी
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. शय ॥ शां० ॥ 5 ॥ एकदा नाइपदें वदि पदें, सप्तमी तिथि अंधियारी ॥ नर गीगत चंई मेघरथजीनो, जीव ते रयणी मजारी ॥ शां० ॥ ए ॥ सरवा रथ सिढूंती चवियो,यचिरा उयरें सुविचारी॥ गुनवेला श्रावी ऊपन्यो, पुत्रपणे अवतारी ॥शां०॥१॥ कांइक सूती कांक जागती,सुपन लहे दश चारे ॥ पहेला हो गजवर तपन ए वीजे, चिंतित कान सुधारी॥ शां० ॥ ११ ॥ त्रीजे सिंहप लक्ष्मी चोथे, सदु सुखनी करनारी ॥ पंचमे माला हो हे निशाकर, दीठो हो धारति टाली ॥ शां० ॥१५॥ सातमे सुरज आ में ध्वजवर, कीर्ति कांति वधारी ॥ नवमे कलश सरोवर दामे, पेखे हो हर्प अपारी ॥ शा० ॥ १३ ॥ सिंधु अग्यारमे वारमे अमरतुं, मंदिर दीतुं उदारी ॥ रत्ननो राशि ए तेरमे चनदमे, निर्धूम अनि विचारी ॥ शां० ॥ १४ ॥ हर्पनरें जागी सा सुंदरी, सुपन देखि दुःखवारी ॥ श्रावी हो कंत समीपं जगाडे, पीयुने हो अचिरा प्यारी ॥ शां० ॥ १५ ॥ विश्वसेन जा ग्या तब देखे, यागें मोहनगारी ॥ श्रासन आप्यु हो वेसण काजें, वे हो अचिरा नारी ॥ शां०॥ १६ ॥ वालमजी मध्यरात्रिनी वेला, उहिरमाणी करारी ॥ दीनां हो चनदे सुपन मनोहर, फल कहो श्रुत अनुसारी ।। शां० ॥ १३ ॥ राय सुणी हरव्यो मनमांहे, सुपन सबल सुरवकारी ॥ मतिपूर्वक निज बुद्धि विन्नाणे, अर्थ कटे तिए वारी ।। शां० ॥ १७ ॥ नुत हो। कुलदीपक रुडो, सद्ध जगने उपकारी ॥ कहे राणी तुम बचन ए मुफने. सफल होजो हितकारी । शां० ॥ १५ ॥ लेइ श्रा या निजसेजें यावी, अचिरा हो मंथरचारी ॥ कहे मुफ सुपन रखे ए ह गाये, अगुने हो एम निर्धारी ॥ शां० ॥ २० ॥ देव गुरु संबंध कथायें, करे जागरण संनारी ॥ ययो प्रजान दुवो जय जय रख, बंदीजन जयका री ॥ शां० ॥ २१ ॥ वहे हो खमें पहेली टालें, करे जिनगुणयुं चारी ॥ राममुनि कहे ते धन जगमां, जाउं उनकी बलिहारी । शां० ॥२२॥२॥
॥दोहा॥ ॥ विश्यमेन राजा मना, बेवो प्राधि उमंग ॥ सुपनवाबना जाणने, नेहाचे मन रंग ॥१॥ ग्राउ जणा तब प्राविया,निमित्त यंग अह जाग । देश यागिप वेना सवे. प्रामन प्रति मंमाण ॥२॥ सामान्या या. पूरे सुपनविचार । कड़े सुपनपाठक तदा, शास्त्र तामा थधिकार ॥३॥
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. सुपन कह्यां वायाल सवि, त्रीश मोटकां तेम ॥ राजन सुणो अम्ह ग्रंथ मां, अ वहोंत्तेर एम ॥ ४ ॥
॥ ढाल वीजी॥ ॥ वीर जिनवर रे, गोयम गणहरने कहे ॥ ए देशी ॥ सुणि राजन रे, त्रीशमांहे चनदश शिरें ॥ दीवां राणी रे, मध्यरयणीने याशरे ॥ होशे सुपनयी रे,सुत सोजागी सुंदरू ॥ जगपालक रे,नमशे आवि पुरंदरू॥ ॥ त्रूटक ॥ पुरंदरा सवि आवि नमो, चक्री जिनवर होयशे ॥ तुऊ जाग्य महोटुं सुण नरेश्वर, जुःख सघर्बु खोयशे ॥ दुवे चजद सुपर्ने , चक्र जिनवर, सातथी हरिपद धणी ॥ चार बलनइ एक मंमलिक, वात . ए शास्त्रे जणी ॥१॥ ते माटें रे, राजन अचिरा राणीयें ॥ गुन सुहणां रे, दीनां मन सुख आणीयें ॥ सुणि राजन रे, दान दीये घणुं तेहने ॥ सन्मानी रे, पहोंचाज्या निज गहने ॥ ० ॥ निज गेह पहोता सुपन पाठक, राय राणीने कहे ॥ वात सघली सुपन केरी, निसुणी सा आनंद लहे ॥ निजगेह आवे थई हर्पित, गर्ननी प्रतिपालना ॥ करे राणी शा स्ववाणी, चित्त बापी वासना ॥ २ ॥ अति स्नेहल रे, अति मधुरं नवि वावरे । अति खारं रे, अति ती तेम परिहरे ॥ अति कडवू रे, नवि लेवे सा गुण नरी ॥ मुखहूंती रे, थोडं बोले सा सुंदरी ॥ ॥ : सुंदरी अचिरा अति न वोले, अति न गाये तिम वली ॥ नवि सुवे । अगासें जरीच श्वासे, नवी दोडे मन रली ॥ खाट हिंमोला चढीने, वूमणी न लिये तथा ॥ अति क्रोध न करे गर्नपालन,करे ग्रंथमांहे यथा ॥३॥ तिहां पूर्वे रे, अशिव घणो पुरमा हतो ॥ मांद्यदोपें रे, लोक घणो प्रलयं गतो ॥ अवतारें रे, जिण दिनथी प्रनु धावियो ॥ तिण दिनथी रे, अशिव सहू ते नसावीयो ॥ ७ ॥ नसावीयो सवि अशिव एणे, अहो महिमा सुत तणो ॥ मनमांहे माता पिता चिंते, जाग्य सवलो थापणो ॥ गर्नमांहिज रह्या सुतनो, जु अतिशय एवडो ॥ पण किम्यु अचरिज गर्न दिनथी, प्रगत सुत ३ वडो ॥ ४ ॥ एह प्रणमी रे, याप पने पण प्रणमियां ॥ ३ आवी रे, सुख दोहग सवि वामीयां ।। एह जन्में रे, हर्प घणो थाशे सही ॥ एह हर्पनी रे, बात न जाये मुख कही ॥ ॥ मुख कही बात न जाय यंतर, हर्षे हई गहगहे ।
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श्री शांतिनाथनो रास खंग वो.
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एम गर्न वाधे सुकत साधे, मात गुन दोहाला लहे ॥ वरदान दीजें लान लीजें, धर्म कीजें मन धसी ॥ मन जेह इवा कपजे ते, राय पूरे नसी ॥ ५ ॥ एम अनुक्रमें रे, मास यथा नव निर्मला || साठा दिन रे, सात थया उपरें जला ॥ जेठ मासनी रे, कुम्म त्रयोदशीने दिने । नरणी 5 रे, व्यो निशाकर शुन मनें ॥ ० ॥ शुन मनें सघलां लोक सुखीयां, नहीं जगमां को दुःखी ॥ यह यया गोचर ऊंच सवला, नीपनी सबली रुपी ॥ गुन लमवेला नजे मुहूरत, वाय अनुकूल वायते ॥ मध्यरात्रिसमयें वर्ण सोवन, कांतिपुंज विराजते ॥ ६ ॥ श्रारोगा रे, घचिरा माडीयें जाईयो || सुत नीरोग रे, त्रण जग हर्प उपाइयो ॥ थयो ज्योत रे, नारकीने पण सुख ययुं ॥ सचराचर रे, सहु जंतुनुं दुःख गयुं ॥ ० ॥ डुःख गयुं सवलुं ह प्रगट्यो, थवधिज्ञानें जाणीयो ॥ जिनजन्म केरो उपन कुमरी, हर्ष देई थालियो || प्राठ व गजदंत गिरिनी, कंदराथी श्रावि ए ॥ वली व्याव नं दन कूटती, घ्यावे धरि मन जाव ए ॥ ७ ॥ प्रत्येकें रे, रुचकगिरि निवा सिनी || यावे व यात रे, दिराहूंती ते सुवासिनी ॥ तेम चारे रे, रुचक विदिशिनी जालीयें ॥ द्वीप मध्यम रे, रुचकनी चार वखालियें ॥ नृ० ॥ वखालीयें उप्पन्न मलिने, हूइ सवली ते सुरी ॥ नवृं निर्मित एकयो जन, मित विमानें संचरी ॥ चार सायें महत्तरिका, चार सहस सामा निका ॥ पोड सहसा अंगरक्षक, साथ बेई सेनिका ॥ ८ ॥ तिहां श्रावी रे, जिनजननीने पाये नमी ॥ करें वैकिय रे, वात संवर्तक मन रमी | बरसावे रे, जलद वली प्राठे चली ॥ धरे दर्पण रे, प्रा जणी क लटणी ॥ ० ॥ घणे कलट घरी कलशा, रहे जिननी सामुही || कर श्राव जेई तालता, जांबे जिनमुखई रहीं ॥ श्रात चामर घरे चतुरा. चार तेम दवीधरा ॥ स्वाविधानादिक करे बली. चार देवी जाउग || || एम सह मली रे, सूतीकर्म करे जिन तणो ॥ सनमांहे रे, सहने यानंद प्रति घणो ॥ धन्य धन्य धन्य रे, प्राज ती ए वामिनी ॥ जहि सेवा रे, शोलम जिनवर स्वामीनी ॥०॥ स्वामीनी मेचा जाग्ये पामी, प्याज घलेन प्रति नी ॥ त्रिहं जगत के नाथ नेटयो, या सम कित निर्माण || म दाबीजी कही गमविजय इसी ॥ एम उप्पन्न कुमरी स्तवी जितने गई निजस्थानक ही ॥ १० ॥ सर्वगाथा ॥ ७२ ॥
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शएन जैनकथा रत्नकोष नाग आरमो.
॥दोहा॥ ॥ण अवसर सौधर्मपति, निज आसन चल जाणि ॥ ज्ञान अवधि उपयोगथी, लघु जन्म कल्याण ॥ १ ॥ मन विकस्युं तन उन्नस्यु, पायो प रम करार ॥ तेडी हरिणगमेपीने, दुकम करे तेणि वार ॥ ५ ॥
॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ गुन नव अमृतवेलीकंदो ॥ ए देशी ॥ इंश कहे हरिणगमेपीने, सुख लहियें प्रनु देखीने रे॥ जिन जायो नगीनो ॥ जगको सुःख दूरें कीनो रे ॥ प्रनु जायो नगीनो ॥ ए आंकणी ॥ १ ॥ वा सुघोपा घंट ए ताजी, रहे सोहम सुरलोक गाजी रे ॥ जिन ॥ ३ ॥ पांचशे सुर मली घंटा वाइ, सघली घंटा रणजण थाई रे ॥ जि ॥ ३ ॥ खवर दुई सौध, मके वासी, मलिया ए तुरत उनासी रे ॥ जि० ॥ ४ ॥ कहे हरि जि॥ जन्मोत्सव काजें, जामु क्षेत्र जरतें शुजसाजें रे ॥ जि० ॥ ५ ॥ अचिरंप राणीको नंदन नीको, जिन शोलम त्रिभुवनटीको रे ॥ जि ॥६॥ करि जन्मोत्सव व सुख पागुं, अमो लान अनंत उपायुं रे ॥ जि ॥ ७ ॥ पालक योजन लाख विमान, तेणें वेसे इंश सुझान रे ॥ जि ॥ ॥ साथै सहस चोराशी सामान्य, अंगरक्षक चढ गुण मान रे ॥ जि० ॥ ॥ अयमहिषी आते गुणवंती, पियु साथें चली पुण्यवंती रे ॥ जि० ॥ १० ॥ वत्रीश लाख विमानके स्वामी, सदु आइ मिले शिर नामी रे ॥ जि० ॥ ११ ॥ को यारों को पूर्वसें थावे, मारग विच जिन गुण गावे रे ॥ जि ॥ १२ ॥ पडखे नहिं को सेवक स्वामी, जिननक्ति मांहे नहिं खामी रे ॥ जि० ॥ १३ ॥ हर्प जयो प्रनुको मुख जोवा, निज पातक मेलने धोवा रे ॥ जि० ॥ १४ ॥ आइ उजाय नंदीश्वरही, उहां आवि विमान संपें रे ॥ जि ॥ १५ ॥ आवे जरत गजपुर जाणा, प्रनु देखण दर्प नराणा रे ॥ जि० ॥ १६ ॥ आवी नमे जिन जिनजननीकों, कहे तें सुत जायो नीको रे ॥ जि० ॥ १७ ॥ हर्प कियो त्रिदु लोकके मांई, हम वांटी स्वर्ग वधाई रे ॥ जि ॥ १७ ॥ माई तेरे सुतकुं ले जाणू, सुरगिरि शिखरें नवरायु रे ॥ जि० ॥ र ए ॥ करा समकित निर्मल साचु, प्रनु देखि देखि अमें राचुं रे ॥ जि॥ ५० ॥ जिन प्रतिरूप मेहले मायपासें, अवस्वापिनी दे उन्नासें रे ॥ जि० ॥ २१ ॥
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श्री शांतिनायनो रास खंभ हो. एए करि पंच रुप मुरेश्वर चाले, प्रनुकुं एकरूपें काले रे ॥ जि० ॥ २२ ॥ दोय रूपं हरि चामर ढाले, एक उत्र धरे नजमाले रे ॥ जि० ॥ २३ ॥ बज जेई प्रजु यागल दोडे, एक रूप हरि मन कोडें रे ॥ जि० ॥ २४ ॥ मेरुशिखर ले आव्या रंगें, मलिया चोसत मन रंगे रे ॥ जि॥ २५॥ वीश नुवनपति स्वामी कहीजें, वत्रीश व्यंतर विनु लीजें रे ॥ जिजाश६॥ दोय रवि शशी ज्योतिपके इंदा,दश वैमानिक प्रानंदा रे ॥ जि०॥ २७॥ सांधर्म लिये नत्संगें, प्रजु स्नात्र करणकं उमंगें रे ॥जि० ॥ २० ॥ सोवनरुप मणि माटीना, कलशा वलि कीधा नवीना रे ॥ जि० ॥ २॥ एक सहस ऊपर तेम थात, एक जातिना अड जाति ठाउ रे ॥ जि ॥ ३० ॥ होय एक कोडी थने सात लाख, कलशा ए शास्वनी सारख रे ॥ प्राजि० ॥३१॥ पणवीश योजन कलशा उंचा, वार योजन पहोला ठिया रे ॥ जि० ॥ ३२ ॥ नाखूवां एक योजननां रे जाव्यां, कलशानीरें नरीसाव्या रे ॥ जि० ॥३३॥ अञ्युत यादि नवे सुरस्वामी, प्रनु न्हवा करे शिर नामी रे ॥ जि ॥ ३४ ॥ स्थापी ईशान इंनी गोदें, करे शक नमाण मन मोर्दै रे ॥ जि० ॥ ३५ ॥ वस्त्रे हो लूंची प्रमुढें धंग, गुचि चंदने नेपे सुचंग रे ॥ जि० ॥ ३६ ॥ नव नव नक्ति करे तिहां देवा, प्रनु गुण गाइ करे सेवा रे ॥ जि० ॥ ३७ ॥ धारति मंगल दीप उतारे, प्रनु तो विण कुण हम तारे रे ॥ जि ॥३॥ तहे हो त्रीजी ढाल ए बोली, कहे ने राम दिल खोली रे ॥जि॥३॥ जिनगुण जगतां पावन जीहा, . सफला दोय रात ने दीहा रे ॥ जि० ॥ ४० ॥सर्वगाया ॥७॥ श्लोक ॥
॥दोहा॥ ॥ ३ करे जिनवर तणी, स्तुति जोडी दोई हाथ ॥ नवसमुश्मा वडतां. मल्यो जहाज तुं नाथ ॥१॥ जय अचिरा राणी कयरें, सरोवर हंस समान ॥ नव्यकुमुदवनचंमा, अतुलीवल नगवान ॥ २ ॥ जय श्र नादि ग्रंजन रहित, निराकार निरुपाधि ॥ ज्योतिरुप जगदीश तुं, प्रगटी सहज समाधि ॥ ३ ॥ करवा पावन पतितने, तंलीधो अवतार 15 स्तर जगलायन्यका तार तार प्रनु तार ॥४॥ धन्य दुरुतपुण्य एं, दी दरिमा श्राज ॥ एमरुस्यन नंसारमां, तुं सुरतर जिनगन ॥ ५॥ इत्यादिक वचन करी, नमी स्ती नुरराय ॥ मेरुशिखरची श्रा
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३७.0 जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. पीने, प्रनु सोंपें निजमाय ॥ ६ ॥ निश पाली संहरी, जाग्या अचिरा माय ॥ सुत सुरपूजित देखिने, हैडे हर्प न माय ॥ ७ ॥ इंइ कहे उंचे स्वरें, सहु सांजलतां वाणि ॥ जिन जिनजननी ऊपरें, जे चिंतवशे ज्याण ॥ ७ ॥ तस मस्तक तेम फूटशे, जेम ऊनाने जाण ॥ एरंमफल फूटे सही, इम • कहे इंश सुजाण ॥ए ॥ वृष्टि करी तिहां रयानी, अंगण कोडि व त्रीश ॥ सौधर्माधिप चालियो, प्रजुने नामी शीश ॥ १०॥ नंदीश्वर ही जई, यात्र करे सङ इंद ॥ निज निज स्थानक सदु गया, धरता मन आनंद ॥ ११ ॥
॥ ढाल चोथी॥ , ॥ हमचडीनी देशी ॥ सुत सोजागी सुरवरपूजित, निज नयणे नि हाली । अचिरानी दासी उजाणी, वात कहण उजमाली रे ॥ १ ॥ हमचडी ॥ ए आंकणी ॥ जय जय स्वामी कहुँ शिर नामी, सुण सुग अंतरजामी ॥ अचिरा राणी अंगज प्रसव्यो, इप्ट सुणो यशकामी रे ॥ हम॥ २ ॥ बप्पन्न दिशिकुमरी प्रनु आवी, जिनजन्मोत्सव करवा ॥ सूती कर्म कयुं जिनजीनु, सुरुतनंमारने जरवा रे ॥ ह ॥ ३ ॥ इंई पण थनिपेक करीने, मेरु शिखरें फल लीधुं ॥ एहवो सुत अचिरायें जन्म्यो, पुण्ये वांछित सीधुं रे ।। ह ॥ ४ ॥ सुत सहेजें संसारें वहाला, न हाना महोटा कुलना ।। पण चोसन सुरपतिपूजित सुत, पार नहीं पुण्यवलना रे ॥ ह ॥ ५ ॥ वात सुणी विश्वसेन नरेश्वर, हरख्यो अति मनमाहे ॥ धाराहत जेम नीपकुसुम तेम, रोमांचित थयो काय रे ।। ह ॥ ६ ॥ अंगतणुं आनूपण संघ, मुकुट विना तस आप्यु ।। संतति सात लगें नवि खूटे, धन दे दारिद काप्यु रे ॥ ६ ॥ ७ ॥ तत्र तले तेहने नवरावी, दासीविरुद उताऱ्या ॥ त्रिजुवनपति सुत हर्प वधाई, दायक मान वधायुं रे ॥ ह ॥ ७ ॥ राय कहे पुरमांहे महोत्सव, सुत जन्म्यानी के. ॥ कारागार सकल शोधावी, दीन दुःखी मुख फेडे रे ॥ हा ॥ ॥ मान अने जन्मान वधारयां, अकर अनट परवेश ॥ गजपुर न गर दुवं सवि सुखीयु, नहिं कोई वेर किलेश रे ॥ ४० ॥ १० ॥ माणिक माट वधाई श्रावे. लाख सहसने लेखे ॥ तेम वनि तेहने यापे नरपति, चिंतित दान अलेखे रे ॥ हा ॥ ११ ॥ त्रीजे दिवस कराव्युं दरिसण,
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३०१ रवि शशीनें स्वामीने ॥ नही जागरण सदु जाग्या, गायो शिवगामीने . रे ॥३०॥ १५ ॥ काढी अगुचि कर्ममंदिरथी, नीपाई पकान्न ॥ सक न कुटुंब सहुने पोपे, रंगेंगु राजान रे ॥ ४० ॥ १३ ॥ शांति एवं बरता वी जगमां, " शांति कुमर" घणुं जीवो ॥ नाम ठवे मदु कोइनी साखें, कुंवर ए जगदीवो रे ॥ ९ ॥ १४ ॥ अमृत अंगूठे हरि वियो, तेहथी होय श्राहार ।। स्तनपान न करे मातानु, शुचितानो नहिं पार रे ॥ हा ॥ १५ ॥ यमुक्त ॥ ददृशेऽशनमंवयार्पितं, नहि नीहार विधिश्च जन्मतः ॥ शु चित्ता भुवनेप्यनुनरा, यदहो स्तन्यमपीश नापिवः ॥१॥ पूर्वढाल ॥ अनुपम रूप मनोहर वाघे, प्रनु मनमोहन नीको ॥ सहस अगेत्तर लक्षण शो नित, तीन नुवनको टीको रे ॥ ॥ १६ ॥ स्नेहल मुख मुकुरोपम दीपे, पद कूर्मोन्नत धारो ॥ एपीजंव सरीरवी जंघा, उरु करिकर आका रो रे ॥ ३० ॥ १७ ॥ विस्तीरण प्रजुजीनुं कटितट, दीठे मनई मोहे ॥ दक्षिण श्रावते गंजीरा, नानि अंग अति सोहे रे ।। द० ॥ १७ ॥ वज सरीतुं मध्य विराजे, पुरकपाट परें पहोळ ॥ वदास्थल पुरन्धर्गल कप म. प्रभुनं वाढुजुअल रे । ह ॥ १५ ॥ ग्रीवा कंबुसरीखी सुंदर, अधर होत गुजाला ॥ कुंदतणा कुम्मल परें उज्ज्वल, दीसे दंतनी माला रे ॥ इ० ॥ २० ॥ उतुंग सरलो नासावंशो, सजानन न्युं नालो ॥ पद्मपत्र लरिग्वां दोय लोचन, अष्टमिशशिसम नालो रे ॥हा॥ २१ ॥ दोला कार श्रवणयुग प्रनुना, मस्तक त्राकारं ॥ स्निग्धा अलिकृत श्यामल कुंतत. गजे रुप उदारं रे ॥ ९ ॥ २२ ॥ पद्मगंध सरिखो प्रनुश्वासो, कनकवी जस काया ॥ अप्सर इंशाणी दुलरावे, सबली प्रभुशुं माया रे ॥ ॥ २३ ॥ त्रिक ज्ञाने संयुक्त विद जगना, नायने नवरों निरखे ॥ श्रानंद धरी इंशणी पोते, रत्न ज्यु फरि फरि परवे रे ॥ ॥ २४ ॥ एक महियर ले प्रतु चंधोते. वीजीने एम बोले ॥ कनकलता तुं जो रे मलन, बदन पूनम विधु तोले रे ।। ६० ॥ २५ ॥ को कई सुणों सदी घर माग, मनु उपर घणं मोदी । घरबंधो मुमने विसरीयां, दि मनु मुखाई जोई रे ॥०॥ २६ ॥ सदिय समागी बालीनाली, बात को बागाली । अनु विग निरचे जे निन्य जमतो. ने नहिं यापणी प्यासी
॥ २३ ॥ एक करची चीजे कर ले.नं पर पग न बरं । चग्ना
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३० जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. सवि बंधा विसारी, नित्य प्रजुगुणने समरे रे ॥ ६ ॥ २७ ॥ बडे खंमें ढाल ए चोथी, प्रनु जायो जगस्वामी ॥ रामविजय कहे ए प्रनुजीने, हुं प्रणमुं शिर नामी रे ॥ हा ॥ २९ ॥ सर्वगाथा ॥१२४॥ श्लोक ॥ १ ॥
॥दोहा॥ ॥ गिरिकंदरचंपक परें, वीज तणो जिम चंद ॥ प्रनु वाधे मन मोह तो, सदुजन नयनानंद ॥ १ ॥ हर्षे दुलरावे रंगयुं, अचिरा प्रेम पमूर ॥ रोम रोम तन उन्नस्युं, निरखी सुत मुखनूर ॥ २ ॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥ माय कहे मेरी बगनां मगनां ॥ ए देशी ॥ कहे सुतने हो एम अ चिरा माता, तुज आवे मुफ थइ सुखशाता॥मुख दी गयां पातक धूजी, तुम पूजे हुँ पण सुरें पूजी ॥ १ ॥ तुं मुफ प्राणतणो अाधार, तुऊ उपर वारी वार हजार॥सुण मुफ लाडकडा सुत मीठा, पूरव पुण्ये तुफ मुख दीठां. ॥ ॥ लाम लमावे हो अपणी रे माडी, नवपल्लव दुइ सुतगुण वाडी ॥ हाथे जडाव सोवननी हो कमली,अंगें वनी करवाफ अंगडली ॥३॥ पहे राव्यांकानें गुचि मोती,तृप्ति न पामे हो मुखडु जोतीरामणि माणक मोती की दो टोपी, हर्पगुं ले सुतशिर आरोपी ॥४॥ कंठे हो तावित सोवन केरां, पहेरावे अचिराजी जलेरां ॥ कामणगारो ने वलि शणगायो, ठमक तमक चाले लागे हो प्यारो ॥ ५॥ मुख मधुरी वोले सुत वाणी, चिरंजीयो कहे अचिराजी राणी ॥ सुर वालकरूपें थइ यावे, रागें हो शांति कुमर कुं खेलावे ॥ ६ ॥ एगीपरें वाधे हो प्रच सोजागी, सदु कोश्ने जोवा रढ लागी ॥ आवे सनामांहे बापके आगे, सगुकोई ऊठी के पाउ लागे ॥ ७ ॥ आवो पधारो हमारे हो स्वामी, हो त्रिदुजगके अंतर्यामी॥ तुम हो जगत्सल नपकारी, तुम सूरत लागत हम प्यारी ॥ ७ ॥ पाठ वरस प्रनुकुं नये जागी, तब वोले मावित्र गुं वाणी ॥ सुत निशाल वीजें हो सारो, शास्त्र जणावण मोहनगारो ॥ ॥ नरपति उत्सव मां हो जारी, धवल मंगल गाये सोहव नारी ॥ तनु नपरा जूपित ठवी सारी, प्रल कीनी गजकी असवारी ॥ १० ॥ बदु यावर साथें हो थावे, पाठक मनमांहे आनंद पावे ॥ण अवसरें चव्यां आसन इंदा, खबर दुई देख्यो ज्ञानदिणंदा ॥ ११ ॥ प्रनुकुंनी निशाल पावे, मोह महाबलवा
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श्री शांतिनाटयनो रास खंम बहो. ३०३ न कहावे ।। देवों जगशुरु झानके दरीया, मुहसे न बोने गंजीरिम नरि या ॥ १२ ॥ बहुत आमंबर होवे दो जिनको, मत जाणो परमारथ उन को ॥ नहिं सोवन ध्वनि तेदवी वजावे, जेहवी हो कांस्यके पात्रमें यावे ॥१३॥ काल त्रिहूंको झाता हो स्वामी, नहिं जिनकी प्रनुतामांहे खामी। अविनय एद दुवे जिनवरको, आव्यो वेश लइ हिजबरको ॥ १४ ॥ अनुकुं वेगवे सिंहासन सोई, देखी सवे मन अचरिज हो । पाठक पागल रह्यो कर जोडी, मन करे मद मत्सर मोडी ॥ १५ ॥ मन संदेह टल्यो तव साचो, पातक जाएयु ए पंमित पाठो ॥ पाउ पडे मन मान निवारी, तुम हो बडे जगगुरु उपकारी ॥ १६ ॥ इं नमी निजस्थानक जावे, प्रजुजी फरि निजमंदिर श्रावे ॥ देखो जाग गंजीर ए केसे, दीनदयाल होवे जग ऐसे ॥ १७ ॥ अनुक्रमें योवन पाम्या दो सांई, रुपकला अधिकी चतुराई ॥ बरस पंचवीश सहस वय आये, तब प्रनुकुं लेइ गज्य बनाये ॥ १७ ॥ परणाचे प्रनुकुं बढ़तेरी, नृपकन्या गुणरुप जलेरी ॥ सकल, झं तेउरमां रतिकारी, नामें यशोमती राणी सारी ॥ १ ॥ प्रनु विलने तिण सायें जोगा, सहु मलिया मनोवांछित योगा | चाले पद्मिनी पतिने हो ठंदें, घर घर बग्ते हो अति श्रानंदे ॥२०॥ व खंमें दो पंचमी दाल, गम कवि कहे अति उजमाल ॥ धागल सांजलजो वे लोका, बाघोज गमांडे पुण्यशलोका ॥२१॥ सर्वगाथा ॥ १४॥ लोक तथा गाया ॥१॥
॥दोहा सोरठी ॥ ॥ दवे हदग्थनो जीव. सरवाग्ध सिध्या चवी ॥ पुराण यायु अ नीच, श्रावीने तिदां जपजे ॥ १ ॥ यगोमतीनी कृग्व. गुनवेलायें श्रय तग्यो । पूर्ण समय गनख. चक सुपन चित जएयो ॥ २ ॥ कन्या महान्लव सार, नवरमांद बद हर्षा ॥ "चक्रायुध" गाणधार. नाम व्यु नरपति मही ॥३॥ सुत वाधे श्रीकार. रुप कक्षा गुण मानतो । जे गम सुरतम मार, नरनारी मन मोहतो ॥ ॥ जीवण कला विचार, नीशाले में पारच्यो । पत्रीक्षण धार. मकजगार ननयों ॥ ।। ॥ ॥ यौवनपयें कुमार, नृपमन्या गणानीयो ! म गुण जिनमार, . सुग्ध चिलन नमारनां ५ ६ ॥
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३०४ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
॥ ढाल बही॥ ॥ पांच सोपारी लेइ हाथ ॥ ए देशी ॥ हवे एक दिवसने योग, था. युधशालामां ऊपन्यु ॥ चक रतन उत्पन्न, भार सहनै हो शोनतुं ॥ १ ॥ उपन्यो हर्प अपार, सेवक दीध वधामणी ॥ आयुधशालामां चक्र, उपन्युं जयजय जगधणी ॥ ५ ॥ प्रनु निसुणी दिये दान, बात दिवस उत्सव करे, चक्र तणो गुणवाणि, जयकमला कारण शिरें ॥ ३ ॥ चक्र असि बत्र दम, आयुधशालमां ऊपजे ॥ मणि कांगिणी ने हो चर्म, निधि सिरि गेहें नीपजे ॥ ४ ॥ पुरोहित वार्षिकी जाण, सेनापति गाथापति ।। निज नगरें ए चार, रयण तणी कही उत्पत्ति ॥५॥ राजकुलें स्त्रीरत्न, गिरि वैताढये हो गज तुरी ॥ रयण ए जस दश चार, केम टके तेहना अरि ॥ ६॥ आयुधधरथी हो चक्र,चाल्युं वही पथ अंबरें। के. हो शांति दयाल, रयण कटक लेइ संचरे ॥७॥ यद सहस्र समेत,चाल्युं प्रथम पूरव दिशे॥ मागधतीर्थ धासन्न, वेलाकुलें सेना वसे ॥॥ वार्षिकी करे तत्काल, पुर . झादश योजन तणुं ॥ सैन्यने रहेवा हो काज, अतिसुंदर शोना घणुं ॥॥ शुन बासन चक्रधार, वेसे हो मागध सन्मुखें । त्रिदु जगनो रे आधार, जस नामें सदु जग सुखी ॥ १० ॥ ते प्रजुने अनुनाव, जलमांहे झादश योजनें ॥ मागध सुरनु हो ताम, आसन चलियुं चिंते मनें ॥ ११ ॥ जाण्यु अवधि उपयोग, जिनचक्रो इहां धाविया ॥ साधन जरतना खंम, जे सुरपति मन नाविया ॥ १२ ॥ नाग्य सवल मुज याज, जे जिनराज पधारिया ॥ आराधनने हो काल, जानं अगुज निवारीया ॥ १३ ॥ ले धानरण अमूल्य, वस्त्र वली सुरनां नलां ॥ यावे हो बदु परिवार, प्रनु नक्ति जयां देयडलां ॥ १४ ॥ कर जोडी कहे देव, नाथ सुणो त्रिभुवन तणा ॥ ढुं तुम किंकर स्वामी, मुजमां अवगुण घणा ॥ १५ ॥ कर'तु मारी हो सेव,दास थ रहेगुं श्हां । तुम आणा परमाण, रहेगुं हो राखेशो जिहां ॥ १६ ॥ प्रनु सन्मानी हो तास, जक्तवत्सल नगवंत जी ॥ मोक लियो निज गम, पहोतो प्रनु समरंत जी ॥ १७ ॥ नेम दक्षिण दिशि चक्र, चाल्युं हो वाटें धाकाशनी ॥ याव्या दक्षिण दधि तीर, तीरय वर दाम थासनी ॥ १७ ॥ तेन आव्यो सुर तेह, कर जोडी आगल रह्यो । तुं साहिब गुणगेह, तुम दरितण नाग्य लह्यो ॥ १५ ॥ तहने स्थापी
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. तेणें गम, वारुणीदिश प्रनु चालिया ॥ साधण देव प्रनास, दलनारें नग हालिया ॥ १० ॥ तेह नम्यो ततकात, याची जगतगुरु पाउले ॥ उत्तर पंथ निहालि, चाव्यु हो चक्र उमाहले ॥ २१ ॥ याव्या नदीतट सिंधु, जवसिंधु तारक विशु जी, सिंधुदेवी ततकाल, भावी कहे जय जय प्र जुजी ।। २२ ।। स्नाननु पीठ सुचंग, कलश कनकमयरूपने ॥ स्नानसा मग्री हो जेह, नेट करे जगनूपने ॥ २३ ॥ कहे स्वामी कर जोडि, उलग फरी हो ताहरी ॥ करुणानजरें महाराज, नाग्यदशा जागी माहरी ॥ २४ ॥ मुफ लायक खिजमत, प्रनु फरमाविय हित धरी॥लही यागा निजधाम, सिंधु गई हर्षे नरी ॥ २५ ॥ तेडी सेनानी ताम, दुकम करे चक्री इस्यो । सिंधुनो पश्चिम खम, साधि श्रावो सुणि उन्नस्यो । २६ ॥ चर्मरन धरि मेन, सिंधु तरी परतट गयो । खलनव्या तिहांना रे नृप, तस सहामो कोइ नवि थयो ॥ २७ ॥ प्रावि नम्या सद्ध पाय, साथ सेइने हो धाविया ।। नेट दुई जिनराय, चरण नमे नृप ना विया ॥ २७ ॥ सबढुं पुण्यनुं जोर, सहसगमे नृप सेवता ॥ श्रावि नमे कर जोडिकोडि गमे जस देवता ॥३॥ हे खमें हो ढाल,नही कही रलि बामणी ॥ सुपो नवि उजमाल,शांति प्रनु कीर्ति घण॥३०॥१७॥१॥
॥दोहा॥ ॥ चक्र चल्युं ननमंझलें, पूढे गांति नरिंद ॥ अनुक्रमें जातां पामि यो, शुचि वैताद्वय गिरिंद ॥ १ ॥ श्राची नम्यो प्रनुपुस्य थी, वैताढवाडि कुमार || वशयनी थइ एम कहे. जय करुणानंमार ॥ २ ॥ गुफा तमि स्वानं तदा, स्वयमुद्घाटी हार ॥ वैताढयपाल सुर चरण नमी, कहे जय जगदावार ॥ ३ ॥
॥ दाल सातमी॥ ॥ मन मोदना लाल ॥ए देगी। श्रमचारी गजराजकी। मनमोहना साल ॥ीनी गांनि दयाल दो। जन रंजनां सालान फरे शिर करें ॥ म० ॥ तीन नगन रखनाल दो ॥ ज० ॥ ॥ मणि रया गजराज के । म ॥ नम्यान धणं मारो ॥ ज०॥ शर जोयण लगे तेस श्री रे ॥मः ॥दर करें धकार हो । ज० ॥ ३ ॥ कांगिणी हाय मारे । म ॥ यो मंगस तमदार हो ॥10॥ गणपचास प्रालि
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३७६ जैनकया रत्नकोष नाग आठमो. खे रे ॥म ॥ सेन कानें चक्रधार हो ॥ ज० ॥ ३ ॥ वचें नन्मना नि । नगा रे । म ॥ निर्मना तेम जाण हो ॥ज॥ वार्षिकी पाज करे तिहां । रे ॥म ॥ पामी प्रजुनी आण हो ॥ ॥ ४ ॥ सैन्य सदु तिहां उतरे । रे ॥ म ॥ जुन जुन पुण्य प्राग्नार हो ॥ ज ॥ तमिस्रगुहाथी नीसस्या , रे । म ॥ बाहिर जगदाधार हो ॥ ज ॥ ५ ॥ तत्रापातचिलातका रे .. ॥ म ॥ म्ले तणा मलि नूप हो ॥ ज ॥ चिंते ए कुए आवियो रे ॥ म० ॥ वैरी सैन्य विरूप हो ॥ ज०॥ ६ ॥ युछ तेहो साथै वाफियु रे ॥ जीडे सुनटनी कोड ॥जण ॥ देवी म्लेबने आकरा रे ॥ म ॥ सैन्य रघु मचकोड हो ॥ जण॥ ॥ सेनानी सुणी आवियो रे ॥ म ॥ थ तुरग . अस्वार हो ॥ ज० ॥ दमरत्न ग्रही हाथमां रे ॥ म ॥ धायो यम था कार हो ॥ ज० ॥ ७ ॥ जट कोटी तव ऊबले रे ॥ म० ॥ स्वामिवलें बलवान हो ॥ ज ॥ नागि पडी म्लेबां तणी रे ॥ म ॥ नाता ते गत शान हो ॥जण॥ ए॥ केश पड्या के आखड्या रे ॥म०॥ केश दुवा संहार - हो ॥ ज० ॥ सहामुं को जाले नहिं रे ॥ म० ॥ दुइ म्लेबांनी हार हो ॥ ज० ॥ १० ॥ नासी सिंधुतटें गया रे ॥ म ॥ तजि पाहार स्वयमेव हो ॥ ज ॥ वारिद नामें कामने रे ॥ म०॥ तेह आराधे देव हो । ज० ॥ ११ ॥ तुष्ट थइ कहे म्लेबने रे ॥ म ॥ अमें कुणमात्र अनाथ हो ॥ ज० ॥ पशुं अम चाले नहिं रे ॥ म ॥ ए त्रिदु जगको नाथ हो ॥ ज० ॥ १२ ॥ म्लेन कीयो यह घणो रे ॥ म० ॥ वरसावे जलधार हो ॥ ज० ॥ किमही तेह न उसरे रे ॥ म ॥ वरसे मूलधार हो । ज० ॥ १३ ॥ जिनचकीसेना वहे रे । म ॥ वाध्युं पाणीपूर हो ॥ जम् ॥ कहे प्रधान सुण साहिवा रे ॥मा राख राख वडनूर हो ॥ ज० ॥ १४॥ चर्मरत्न प्रनुजी धस्युं रे ॥म॥ वार जोयण विस्तार दो ॥ज०॥ जल वूमती नदरी रे ॥म ॥ सेना जगदाधार हो ॥ ज० ॥ १५ ॥ दंमरत्न उपरें ठव्युं रे ॥ म० ॥ त्ररत्न सुखकार हो ॥ ज ॥ कोश घडतालीश उपरें रे ॥म० ॥ न तो विस्तार हो ॥ ज० ॥ ॥ १६ ॥ करे प्रकाश मणि रयणगुंरे ॥म० ॥ जाणे अग्यो सूर हो ज० ॥ कण नीपावे कर्पणी रे ॥म॥ रख दारिश करे दूर हो ॥ ज० ॥ १७ ॥ एम निजसेना उरी रे ॥मा जल नवि खेंचे धार हो ॥ ज० ॥
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श्री शांतिनायनो रास खंग चहो.
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सात दिवस या वरसतां रे || म० ॥ करे चक्रीश विचार हो ॥ ज० ॥ ॥ १८ ॥ शोल सहस यह स्वामी के रे ॥ म० ॥ श्रंग अलग करनार हो || ज० ॥ यही हथीयारने धाइया रे || स० ॥ जिहां वे जलद कुमार हो ॥ ज० ॥ १५ ॥ रे पापी तमें गुं करो रे ॥ म० ॥ वि खुटे मरणाश हो ॥ ज० ॥ विरमो नहिंतर पामशो रे ॥ म० ॥ तुमें ग्रम्हहंती विनाश हो ॥ ज० ॥ २० ॥ जय पामीने उसखा रे ॥ म० ॥ जइ नमीया प्रनुपाय हो ॥ ज० ॥ में अपराधी याकरा रे ॥ म० ॥ तुम्ह गिरु या जिनराय हो ॥ ज० ॥ २१ ॥ तृण लेई मुखमां सवेरे ॥ म० ॥ करे घरवास हो ॥ ज० ॥ गुनह खमो ए अम तपो रे ॥ भ० ॥ तुम साहिब हम दास हो ॥ ज० ॥ २२ ॥ नतवत्सल भगवंत जी ॥ म० ॥ गुनह करे वकसीत हो ॥ ज० ॥ हय गजवर मणि भेटणां रे ॥ म० ॥ मूकी नामें शीश हो ॥ ज० ॥ २३ ॥ सेनानीने मूकियो रे || म० ॥ बीजो निष्कृट सिंधु हो ॥ ज० ॥ साथीने घावो वही रे ॥ म० ॥ हुकम करे जगबंधु हो ॥ ज० ॥ २४ ॥ जइ सेनानी साधिया रे || म० ॥ तिहांना देश अनेक हो ॥ ज० ॥ ते संघला छावी नम्या रे || ज० ॥ मनमां धरिव विवेक हो ॥ ज० ॥ २५ ॥ जइ रुपनकूट शांति जीरे ॥ म० ॥ लम्बे पोतानुं नाम हो ॥ ज० ॥ शांति साहिबी रे ॥ म० ॥ सीध्यां वांवित काम हो || ज० ॥ २६ ॥ गंगोत्तर निष्कृट तिहां रे ॥ म० ॥ नाथै सेनानी जाय हो ॥ ज० ॥ संप्रपात गुहा श्राविया रे । म० ॥ कृतमाल सुर विष्ठाय हो ॥ ज० ॥ २५ साधीने मनु नि सख्या रे || म० || गंगातट श्रदिवाण हो ॥ ज० ॥ गंगा घ्यावीने कदे रे ॥ म० ॥ जय जय श्री जिननाण हो ॥ त० ॥ २८ ॥ न खं सातमी रे ॥ म० ॥ हाल नाणी सुखकार हो ॥ ज० ॥ रामविजय कहे पुण्ययी रे || म० ॥ जहिये जय जयकार हो ||ज||२५|| सर्व गाया ||२१||| लोक || दोहो सोरठी ||
॥ गंगानदें निवास, सामी करे मेनातणो ॥ दवे जुने पुष्यविलास, जी तां ॥ १ ॥
जे प्रकटे
|| हाल प्याम्मी ||
देश
॥ रवि राय,
|| देशी ॥ वादन योजनने श्रायाम,
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३०८
जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
विस्तर नव योजन हितकाम ॥ शांतीश्वर राय, साध्या देश सदु ॥ ए यांकणी ॥ याव योजन उंचा निरधार, नवनिधि मंजूपा याकार ॥ शां० ॥ १ ॥ वैमूर्य मणिमय जटित कपाट, प्रगट्या निधि तेहनो सुपो घाट | शां० ॥ नैसर्पक पहेलो चित्त धार, पांशुक वीजो निधि सुखकार ॥ शां० ॥ २ ॥ पिंगल त्रीजुं सर्वरतन, चोयुं महापद्म पंचम मन्न ॥ शां० ॥ काल महाकाल मानव शंख, चार एवं नवनिहि गुख संख ॥ शां० ॥ ३ ॥ स्कंधावार ने नगरनिवेश, पहेला निधिमा सयल निवेश ॥ शां० ॥ धान्य बीजनी सवि संपत्ति, बीजे दुवे एहनी उत्पत्ति ॥ शां० ॥ ४ ॥ नर महिला हय हाथीना जाए, खानूपणविधि त्रीजे वखाण ॥ शां० ॥ चचद रत्न हुवे चोथे निधान, पांचमुं वस्त्र विविधनी खाए ॥ शां० ॥ ५ ॥ बहे कालत्रयनुं ज्ञान, महाकालें निसुणो मति मान् ॥ शां० ॥ सुवन रूप्प मणि लोह प्रवाल, एग्नो संभव सातमे नाल ॥ शां० ॥ ६ ॥ युद्धनीति सघना हथियार, योधता अष्टम यव धार ॥ शां० ॥ चनविध काव्य ने तुर्यनां अंग, नाट्य नाटक विधि नवमे रंग ॥ शां० ॥ ७ ॥ पल्योपम जीवित सुरवास, ए नवनिधिसंबंध व ल्लास ॥ शां० ॥ नवसहस निधि सुर कहे छाय, जय जय चक्री त्रिभु वनराय ॥ शां० ॥ ॥ मन माने तेम विलसो स्वामि, निधि घट तुम्हारे नाम ॥ शां० ॥ प्रगटयां पूरव पुण्य प्रमाण, व जगवतुम्हारी पट || शां० ॥ ए ॥ निधि उत्सव कीधो तेणी ववरसप्रजुना पुएध तपो नहिं पार | शां०॥ गंगा पूरव निष्कूट नाग, व्याप वशे को वडाग ॥ शां० ॥ १० ॥ साधी पट् खंग भारत वास, प्रभु वलियो मिस सुर नर दास ॥ शां० ॥ नहिं प्रजुने मन मोहविकार, उदय महाबल वान विचार ॥ शां० ॥ ११ ॥ विणु उदयें नवि जोगव्यां जाय, विष्णु नोकवियां मोह न थाय ॥ शां० ॥ यारों वरसें साथी हो देश, प्रभु यो वेि निज न यर उदेश ॥ शां० ॥ १२ ॥ दुइ हवियावर घर घर वा याव्यो सा aa जग विख्यात ॥ शां० ॥ बांध्यां तरियां तोरण बार, मुहोब बोले सह मंगल चार ॥ शां० ॥ १३ ॥ करि ज' वरी जयश्रेणिर यावे प्रभु गजपुर बहुसेन ॥ जके हो घाट, या में बजे क तेती हो जाए, प्रो जुजी वडो
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श्रीशांतिनायनो रास खंमच्छो. ३०ए मोजी महिराण ॥ शां० ॥ वाजे लाख चोराशी निशाण, जित दुई त्रिनु बन सुलतान ॥ शां० ॥ १५॥ कोडि श्रढार साथै अस्वार, उन कोडी पायक दल सार ॥शांपा चन्द रयण नवनिधि संवात, बहु थामंचर थ चिरानो जात ॥ शां० ॥ १६ ॥ गुन दिन गजपुर करे प्रवेश, दूर टव्या जनना संक्लेग ॥ शां० ॥ बंदीजन बोले जयवाणि, पागल नाट करे कल्या पण ॥ शां० ॥ १७ ॥ सोहव नरि जरि मोती याल, प्रनुको वधावे या उन माल ॥ शां० ॥ निजमंदिर आये तूपाल, सुरवीयो सगु तिहां बाल गोपाल ॥ शां० ॥ १७ ॥ खंमें दो प्रातमी दाल, आये जगत्प्रनु दीनदयाल ॥ झांग ॥ रामविजय कहे पुण्यसंयोग, आइ मिने सवि वांनित योग ॥शां॥१॥ सर्वगाया ॥३५॥ लोक तथा गाथा मनी ॥
॥दोहा॥ ॥ वासी नारत वर्पना, मलीया देवी देव ॥ वत्रीश सहस नरेश्वरा, सारे प्रचुनी सेव ॥१॥ करे अनिपेक चक्रीतगो, बार वरस ममास ॥ विद्याधर नूचर मली, सर्व समयना जाण ॥ २ ॥ करे उत्सव अभिपे फनो, नित्य एक एक राजान ॥ परणाये दोय पुत्रिका, रूपे रंन समान ॥ ३ ॥ चोसव सहस अंतेवरी, एणी पेरें दूइ उदार ॥ दो दो तस वारां गना, एक लद वाणुं हजार ॥ ४ ॥
॥ ढाल नवमी॥ ॥ दरपी जब चरे ललनां । ए देशी।प्रबल पुण्याइ शांतिकी सतनां ॥ लता हो कदेतां नाचे पार ॥ साहिब सेबीये जलनां ॥ १ ॥ एथ्यांकरगी। फिरत दहाइ देशमां ॥ ॥लला हो सहस चत्रीगने मेल ॥ सा० ॥ पत्रीश सहस नरिंद' । ल । सलादो करे यहोनिश प्रभु केलि ।साए ॥ १ ॥ सहस बहोतर पुरवरा ॥ ज० ॥ ॥ नोहे कति कमाल ।। मा० ॥ पाटग संख्या दो सांजली ॥ ल ॥०॥वात सहस डिवाल
सा॥३॥ कोहि तन्नु वर गामना । ल । जोगवे लोग रमाल ॥ सा ॥ शोल सहत यद पागलें ॥ 30॥ रहे कर जोडी जान मा
दोष सहत अंगरक्षका ॥ त ल ॥ मर करे दिल नाच || Re } चोतव इंदाजर पडे ॥ल ॥ कोई न लाप नाच ॥ सा० ॥ ५ ॥ ददा कोडि प्रलंबनाचा ॥१ ॥
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
दवीधरा पांच लाख ॥ सा० ॥ साठ सहस दरवारमां ॥ ल० ॥ ० ॥ पंति पूरे साख ॥ सा० ॥ ६ ॥ साठ सहस बिरुदावली ॥ ज० ॥०॥' प्रतिदिन वोले जाट ॥ सा० ॥ त्रण लाख मंत्रीश्वर कह्या ॥ ल० ॥ ल० ॥ अंश नहिं उच्चाट || सा० ॥ ७ ॥ बत्रिश सहस नाटक जलां ॥ ल० ॥ ल० ॥ नव नव लील विलास ॥ सा० ॥ वीश सहस यागर तपो ॥ ज० ॥ ज० ॥ चाल्यो यावे धनराशि ॥ सा० ॥ ८ ॥ अक्षय खजीनों जेहनो || ल० ॥ ० ॥ किमही न छूटे सोइ ॥ सा० ॥ प्रमुदित सवि परजा जइ ॥ ल० ॥ ल० ॥ शांतिप्रमुख जोइ ॥ सा० ॥ ए ॥ चोसत सहस करे नवां ॥ ० ॥ ० ॥ नित्यप्रत्यें रूप दयाल ॥ सा० ॥ वर तरुणी के विलासमां ॥ ल० ॥ ज० ॥ जातो न जाणे काल ॥ सा० ॥ ॥ १० ॥ विश्वसेन कुल दिनमणि ॥ ल० ॥ ज० ॥ अचिरामात महार ॥ सा० ॥ कंचनवर्ण तनु जेहनुं ॥ ल० ॥ ० ॥ निरखत हर्ष पार ॥ सा० ॥ ११ ॥ सात ईति विरमी सही ॥ ल० ॥ ० ॥ सहु सुखीयो संसार ॥ सा० ॥ शांति प्रभुके राजमां ॥ ज० ॥ ल० ॥ वरत्यो जय जय कार ॥ सा० ॥ १२ ॥ वरस सहस पचवीश थयां ॥ ज० ॥ ल० ॥ च कीपद पालंत ॥ सा० ॥ अतिशय ज्ञानें हो यापणो ॥ ज० ॥ ल० ॥ नंव देखे जगवंत ॥ सा० ॥ १३ ॥ निर्मोही थश्ने रह्या ॥ ज० ॥ ज० ॥ नोग उपर अरिहंत ॥ सा० ॥ नव लोकांतिक देवनां ॥ ल० ॥ ल० ॥ चलियां प्रासन तंत ॥ सा० ॥ १४ ॥ यावे तिहां उतावला ॥ ज० ॥ ल० जिहां प्रभु शांति जिद ॥ सा० ॥ वृक बृज जगवंत जी ॥ ज० ॥ परिहर मोहनो फंद ॥ सा० ॥ १५ ॥ स्थापो तीरथ त्रिभुवनपति ॥ ल० ॥ ० ॥ लोक सदू हितकार ॥ सा० ॥ चौदराजके चोकमें ॥ ल० ॥ ० ॥ चैर न तारणहार ॥ सा० ॥ १६ ॥ एम सुर विनवियो विनु || ल० ॥ ज० ॥ यापे वरसीदान ॥ सा० ॥ करण कीध वसुंधरा ॥ ० ॥ ल० ॥ करे सुर नर गुण गान ॥ सा०॥ १७ ॥ चक्रायुध अंगज नणी ॥ ल० ॥ ज० ॥ स्थापे राज्य दयाल ॥ सा० ॥ प्राप यया अलवे श्वरु ॥ ० ॥ ० ॥ दीक्षाने उजमाल ॥ सा० ॥ १८ ॥ यासन चलियां इंइनां ॥ ल० ॥ ल० || जाएयुं प्रवधिज्ञान ॥ सा० ॥ संयमसिरि वरचा जयी ॥ ल० ॥लणा यया उत्सुक भगवान ॥ सा० ॥ १७ ॥ चोरात सुर
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श्री शांतिनाथनो रास खंग हो. ३११ पति धाविया ॥ लम् ॥ ॥ देव देवी परिवार ॥सा प्रशु प्रणमी करे पशुं ॥ ल ल ॥दीदा महोत्सव सार ॥ सा ॥ २० ॥ सरवार अनामें जली ॥ ॥ स ॥ शिविका रची तेणि बार ॥ सा ॥ वेग जगनुरु ऊपरें लालम् ॥ जगजनके श्राधार ॥ सा० ॥२१॥ चामर बजे सुरपति ॥ ल ल०॥ न धस्यं शिरदार ॥सा०॥ प्रथम उपाड़े मा नवी ।। स || लम् ॥ नग्नो प्रथम अधिकार ।। सा० ॥ २२ ॥ सुर थ सुरें बहे पठी ॥ ल ल ॥ गरुन अने नागें ॥ सा० ॥ शिधिका उपाडे जिनतएी ॥ ॥ ॥ धरता मन थानंद ॥ सा ॥ २३ ॥ के गाये वाये रंगणुं ॥ ल ल ॥ के नाटक करे सार ॥ सा ॥ नाट परे विरुदावली लाल०सदु कहे जय जयकार ॥ सा ॥२४॥ नुवनोनर गुणवर्णना ॥ल ॥ लम्॥ करे सुरपति ससनेह ॥ सा ॥ रासदायक नर श्रागलें ॥ लम् ॥ ॥ नृत्य करे गुणगेह ॥ सा ॥ २५॥ नंना तेरी मृदंगनां ॥ल० ॥ ल० ॥ चाज चालित्र सार ॥ सा ॥ ननमंमल गाजी रयुं ॥ ल ल ॥ उनिध्वनि मनोहार ।। मा० ॥ २६ ॥हाहाहद वर गायना ॥ लाल नाटकबंध संगीत ॥ सा० ॥ रंना निलोत्तमा नर्वशी ॥ लम् ॥ ल० ॥ नाचती अनुनय रीत ॥ ॥ २७ ॥ उत्सवणुं प्रनु याविया ॥ लम् ॥ ॥ गजपुर नगर गयान ॥सा ॥ सहस्त्राय वनमांहे श्रावीने ॥लाला अत्तरिया जगवान ॥ सा ॥२७॥धानपण उतारियां ॥ ॥०॥ मुक्यो परिग्रह नार ॥ सा० ॥ पंच मुष्टि करे केशनो ॥ ॥ ॥ सोच सहल परि चार | सा० ॥ २॥ ॥ बन्त्रांचल ३ लीया ॥ ल० ॥ ज० ॥ झीजनधि मांडे केश ॥ मा० ॥ बदेवाच्या रखे पदनी ॥ ॥ ॥ श्रागात न होय लेग ॥ मा० ॥ ३० ॥ नुमुल निवारे को सुरविनु ॥ ॥
॥ बरे अनुनिति सुनाशि ॥ ना० ॥ ज्येष्ट शित चनदशी दिने । ल ॥ ॥ जगगन विधुचार ॥ मा० ॥ ३१ ॥ मुखें "नमोति हाणं " नगी ।। ॥ ॥ अन निये नयमनार ||सा० ॥ पाउला मानिस 1300वहनन चौविहार १३॥ मनःपर्यन नामें
ल मनोगन नाव सा ॥ जाणे दो जही FREE RL ! 70 | नगर नि प्रन्नाव।। सा० ॥२॥ वना
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
णी प्रभु विचरिया || ल० ॥ ल० ॥ नहिं मन मोहविकार ॥ सा० ॥ प्रभु निर्मोही वंदीने ॥ ० ॥ ० ॥ पाठो वल्यो परिवार ॥ सा० ॥३४॥ इंशदिक सहु देवता || ल० ॥ ल० ॥ नंदीश्वर करे यात्र ॥ सा० ॥ गणतां सुरसुख तृण समुं ॥ ल० ॥ ल० || पावन कीधां गात्र ॥ सा० ॥ ३५ ॥ खं हे नवमी जली || ल० ॥ ० ॥ ढाल दीक्षा अधिकार ॥ सा० ॥ राम कहे सुतां सही ॥लणाल॥ लहियें नव निस्तार ॥ सा ॥ ३६ ॥ २७५॥ ॥ दोहा ॥
॥ वीजे दिन जिन शांतिजी, कोइ सन्निवेश मजार ॥ परमान्नें करें पारणं, सुमित्रतणे घरवार ॥ १ ॥ पंच दिव्य परगट दुवां, साठी बारह कोडि || वृष्टि यई सोवन तणी, पहोता वांबित कोड ॥ २ ॥ यक्तं ॥ तेरस कोडी, नकोसा तब होइ वसुधारा || तेरस लरका, जन्निया होइ वसुधारा ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ ग्रामाकर पुर विचरतां, शांतीश्वर जिन चंद ॥ प्रतिबंध पट् कायना, पालक महामुदि ॥ ३ ॥ ॥ ढाल दशमी ॥
॥ आज सखी शंखेश्वरो ॥ ए देशी ॥ चननाणी चोखे चित्तें, मं मलमांहे ॥ सम तृण मणि नावे विनु, विचरे उत्साहै ॥ १ ॥ कल्पाती तपणुं नजे, कुविकल्प निवारी || योगस्वरूपी योगना, धारक ब्रह्मचारी ॥ २ ॥ वरते शुद्ध मुनि जावमां, विरता दमवंता ॥ साधक शिवपदपं थना, सुधा गुणवंता ॥ ३ ॥ अमल प्रमायी अंतरें, खंतीगुण पूरा ॥ पडिमा व्यनिग्रह धारता, मौनी प्रभु शूरा ॥ ४॥ याव मास ब्रद्मस्थमां, विचरी प्रभु चाव्या ॥ गजपुर नयरें तिल वनें, जगतीजन जाव्या ॥ ५ ॥ पत्र फूल फलें नंदतो, नंदी तरु सोहे ॥ तिहां प्रभुजी पान धारीया, जविजन मन मोहे ॥ ६ ॥ शुक्लध्यानमां वर्त्तता, तप व चोविहार | पोप नवमी तिथि कजली, निर्मल गुणधार ॥ ७ ॥ नरणी उरु राशी श्रावियो, गुन वेला स्वामी ॥ निर्मल ध्यानदशा वधी, चढते परिणामी ॥ ८ ॥ घाती कर्म दय घातियां, व्यविनाशी नावें || उज्ज्वल केवल कपन्युं, निरुपाधि वनावें ॥ए॥ नासक लोकालोकनुं, ति वेला प्रगटयं ॥ दोष ढारनुं तिल समे, बल सवलुं विघटयुं ॥ १० ॥ अंतराय लगा थया, दुःखदायी माठा ॥ हास्य रति रति वेगली, जय सघलां घाठां ॥ ११ शोक डुगंठा सा
॥
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__ श्री शांतिनायनो रास खेम कहो. ३१३ मटी, मिथ्यात्वने काम ॥ वास्या बैरी अनादिना, दायिकगुणधाम || १२ ॥ श्राबादन धज्ञान,, उमाडी नारव्यु ॥ निश नाती बापडी, थनुनव सुरव चारव्यु ॥ १३॥ अधिरति नवि कनी रही, अलगांथी जांखी ॥ गग हेप वेता वरी, हथियारने नारखी ॥ १४ ॥ दोप थढारथी वेगखो, प्रनु शांति जिणंदो ॥ तिण वेला अनुनावथी, चलियांसन इंदो ॥ १५॥ सुर मलिया चार निकायना, ततण तिहां थावे ॥ वायुकु मारा नृमिनो, योजन समरावे ॥ १६ ॥ मेघसरा गंधोदकें, रजनूमि समारे ।। मणिमय पीठ रचे तिहां, अति हर्प पमाडे ॥ १७ ॥ नुवनपति ने ज्योतिषी, वैमानिक देवा ॥ रूप कनक मणि रयणना, विरचे गढ़ देवा ॥ १८ ॥ चिटुं दिशि चार विराजती, तोरणनी माला ॥ सुरनर मन मोही रहे, अति काक ऊमाता ॥ १५ ॥ पावदियां गोने जलां, वीश सहसनी संख्या । जव तरप लागे नहीं, ते नयण देख्यां ॥ २० ॥ हादश गुण प्रच अंगथी, तेह मध्य अशोक ॥ जे नजरें दी थके, नासे सवि शोक ॥ २१ ॥ चिटुं दिशि सिंहासन जलां, नत्रय चारु ॥ चामर सुर व्यं तर सये, विरचे दीदारु ॥ २२ ॥ अचिरानंदन शांति जी, पूरव दिशि छारें ॥ पेले तीर्थ नमस्करी, सुर नेवा सारे ॥ १३ ॥ पूर्वदिश सिंहासने, वेसे जिनदेवा ॥ प्रनु, प्रतिरूप करी उवे, निढुं दिशि तिहां देवा ॥ २४ ॥ नाममल पूर्व घरगुं, करे कुसमनी दृष्टि । जानुप्रमाण निरंतरें, थइ मन संतुष्टि ॥ २५ ॥ थंवर वाजे उनि, नो नो नवि लोका ॥ जाण करे ग्याची नमो. ज्युं था अगोका ॥ २६ ॥ पारे परिपद तिहां मले, जिन वानी लुणेवा ॥ कर जोर्डी नावें रही, नवनय श्रवगणया ॥ २२ ॥ मुर वनिता मुनि माधयी, त्रिज्ञ अग्नि निकोणे॥ध्यंतर भुवन ने ज्योतिषी, त्रय नेत जाणे ॥ २ ॥ ते सुर वायव्य कृपामां, बमानिक निदगा ॥ ना नारी ईशानमां, त्रिदं पर्षद मुगा ॥ २ ॥ एनवी बारे पपंदा, मला गटमां ने ॥ चीज्ञा गरमांद सवे, तियन शुचिदेशे ॥३०॥ गेप्य माणा गामा रहे, वाहन मवि जननां ॥ प्रनु दारितणधी नविग्ने, म सर निज मनना ॥ २१ ॥ एम. ॥ नारंगी निंद्रमा राति सुतधिया
नमिनी यामपान, माजगि नया प्रयपग्निदाकरिता जुर्ज .
नगपाजन्मजातान्यपि जिनमदा जनगाव यजनि, मिला
वनिता am na" पर्षद मुयमा
विदेशे ॥३
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
साम्यैकरूढप्रशमितकलुषं योगिनं क्षीणमोहम् ॥ २ ॥ पूर्वढाल ॥ सा रंगी हरिवालने, सुतनी परें फरसे ॥ वाघशिगुने नंदिनी, चाटे प्रति हर्षे ॥ ३२ ॥ मांजारी हंसवालगुं, रमे हर्षे जेली ॥ मोरवधू यदि करे, क्रीडा मन मेली ॥ ३३ ॥ वैर टले याजन्मनां प्रजुने महिमायें ॥ देव ख़वर कोई एहवो, नवि दीठो महिमांये ॥ ३४ ॥ यक्तं ॥ तीर्थकराया. साम्राज्यं० ॥ समवसरणस्थिति तेहवी, लवलेशथी दाखी ॥ हवे नि सुपो नवि देशना, जिनजी जे नांखी ॥ ३५ ॥ दशमी बघा खंमनी, कही ढाल सुरंगी || रामविजय कहे सांजलो, प्रभु देशना रंगी ॥ ३६ ॥ ३१४॥४॥ ॥ दोहा ॥
॥ नामधेय कल्याण एक, यावी पुरुषरतन्न ॥ चक्रायुध खागल कहे, वात करी स्थिर मन्न ॥ १ ॥ समवसस्था यावी इहां, श्रीशांति जिणंद दयाल || प्रभु ए हर्ष वधामणी, हुं लाव्यो नेपाल ॥ २ ॥ वात सुली हर्पित थयो, देश यथोचित दान || प्रभुवंदनने निसरखो, चक्रायुध राजान ॥ ३ ॥ पांचे निगम साचवी, प्रभु वांदे नूपाल ॥ कर जोडी उनो रही, स्तवना करे रसाल ॥ ४ ॥ जय स्वामिन् जगदीश्वरु, जय त्रिभुवनजन बंधु || नव प्रगाधतारक विभु, जय गुणमणिना सिंधु ॥ ५ ॥ नवजल पडतां जीवने, तारक तुम्हो जहाऊ ॥ पूरण पुष्यें मुऊने, मलिया श्री जिनराज ॥ ६ ॥ ध्येय अनंतर सांभरो, ध्यायकने निजनाव ॥ दायक मुऊ ऊपर करो, प्रभुजी करुणानाव ॥ ७ ॥ बे अनंत गुण ताहरा, तेह मां एक गुण मुक्त || देतां सेवक दुःख टले, दाम न वेसे तु ॥ ८ ॥ दी. नोवरण धुरंधरा, हे अनाथना नाथ || देखी हुं तुम मुखकमल, जगमां दुवो सनाथ ॥ ए ॥ नमी स्तवी जिनराजने, नातिदूर नवि पास || वेसी निसुले देशना, चक्रायुध उल्लास ॥ १० ॥
॥ ढाल ग्यारमी ॥
॥ हस्तीनागपुर वर ननुं ॥ ए देशी ॥ वर पांत्रीश वाणीगुणें, संयुत य तिशयनंमार रे ॥ प्रजु वरसे तिहां देशना, जेम जग पुष्कर जलधार रे ॥टक ॥ जेम जगपुष्कर जलधार इसी, जिनदेशना सुखकार रे ॥ सुखकार सुणो च चिकार, निरामयकारिणी सुविचार रे ॥नि॥१ ॥ एत्र्यांकणी ॥ राजन वाह्य ए शत्रुनुं, सवलुं तें टाल्युं जोर रे ॥ पण अद्यापि न वश करवा, निज
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श्री शांतिनाथनों रास खंम हो. ३१५ देहमां इंडिय चोर रे ॥4॥ निजदेहमां इंडिय चोर करे,अनरथ घणो गुण काजें रे॥गुणकाज अनादिनो जीव फिरे,जग वानलो गतसाज रे जा॥ शब्द रूप रसगंधना, वाह्या वली फरस ने फंद रे॥जाण अजाण थई रह्या, एह सेवे ते सहि मंद रे ॥॥ एह सेवे ते सही मंद कह्या, जिनधागमें गुणहीन रे ॥ गुणहीन ए दीन थइने फरे, रोप रागमें जयतीन रे ॥ रोग ॥३॥ व्याधि लहे ते व्याधनां, जेम निसुणी गीत सराग रे ॥ मरण लहे ते हरिणलो, तेम रागी सुणो वडनाग रे ॥ ॥ तेम रागी सुणो वडनाग वैराग्यने, बादरो गुणवंत रे ॥ गुणवंत न कीजे कंत शब्द, सुणी आदरो मतिमंत रे ॥ सु० ॥ ४॥ लोचन इंख्यि चपलता,चलता मननी बहु थाय रे ॥ मनचंचलतायें जीवडो, फरि फरि चिटुं गतिमां जाय रे ॥ ८ ॥ फरि फरि चिढुं गतिमां जाय नयण रस, राचियां जग नूंब रे ॥ जग नंब लहे ते मृत्यु पतंग, ज्युं वंचिया नहिं जंच रे ॥ ज्यु ॥ ५ ॥ स्वादेजे गुन रस तणी, रसनावशवर्ती जीव रे॥ कटुक विपाक लहे घणा, परजव नरकें करे रीव रे ॥॥ परनवें नरकें करे रीव सदेव, ते सुखीया जगमांही रे।। जगमां मरे मीन तणीपरें, ते सही मुखिया गतताय रे ॥ ते ॥६॥ गंध शुनागुन कारणे, बदु जीव तणो करे नाश रे॥ पोपे हो इंख्यि नालिका, नवि जोवे मूढ विमास रे ॥॥ नवि जोवे मूढ विमासी, वांधे राशि पापनी जेम मुंग रे ॥ जेम मुंग लह्यो सुःख तेम गंधे, गति आपणी मति नंग रे गण॥७॥ फरस घाउमाहे जिके, ललचाणा लालवपूर रे॥ बहु आरंज करे सदा, तेहने सद्गति रही दूर रे ॥॥ तेहने सजति रही दूर सही जेम, हाथीयें पर हाथ रे॥ परहाथ लही जेम वेयण तिम, नृप जीवडोए अनाथ रे॥॥॥ जे गुणगण ते मूल . जे मूल ते वलि गुणगण रे ॥ हेतु हेतुमभावथी, बीजांकरन्याय सुजाण रे ॥ ॥ वीजांकूरन्याय सुजाण, यजाण ए आदरे निरुपाय रे ॥ निरुपाय करे जिनधर्म ते, सही सुखने वरे शिवताय रे ॥ स० ॥ ए ॥ धारवर ए सही विणतो, वेह देई जाशे एह रे ॥ त्यारे तुं फरीश अति घणो, माटें म कर विषय सनेह रे ॥ ॥ माटें मम कर विषय सनेह चकायुध, राजीचा गुणगेह रे ॥ गुणगेह अ देहने नेह, रमो रस रंजीया शुचिदेह रे ।। र० ॥ १० ॥ एहवा जाणीने जेणं तज्यां, तेहनां जग सरियां काल रे । जेम गुणधर्म कुमार जी, तनी
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जैनकथा रत्नकोष भाग आठमो.
विषय लधुं शिवराज रे ॥ ० ॥ तजि विषय लधुं शिवराज कहे, एम शां तिजी भगवान रे ॥ तव चक्रायुध कर जोडी कहे, कहो तातजी उपमान रे॥॥ ११ ॥ कुण गुणधर्म किहां थयो केम, विषय तज्या तेणें स्वामी रे ॥ तास कथा मुऊने कहो, केम याव्यो गुनपरिणाम रे ॥ ॥ केम श्राव्यो शुभ परिणाम कहे, तब केवली भगवंत रे ॥ जगवंत अनंत गुणाकर, कहे मननी रली सुणो संत रे ॥ क० ॥ १२ ॥ नरतें सोरीपुर नयरमां, दृढधर्म टू रा जान रे ॥ तस घरणी शीलशालिनी निज, पीथुनुं लहे बहुमान रे ॥०॥ निज पियुनुं लहे बहु मान अमान, गुणें जरी वर नारी रे ॥ वर नारी ल कालु विनीत, गुणाकर सुंदरी सुखकार रे || गु० ॥ १३ ॥ सुख भोगवतां कंतयुं, सुत जायो एक रतन्न रे ॥ नामें नलो गुणधर्मजी, मायडी करे तास जतन्न रे ॥ ० ॥ मायडी करे तास जतन्न, कला सघली नएयो गुए वंत रे || गुणवंत महंत दुर्ग सत्यवंत, सोहामणो बलवंत रे ॥सो०॥१४॥ यौवन वयमां घ्यावीयो, तेह सकल कलानो जाए रे || मात पिता मन वालहो, गुणधर्म कुंवर कुलना रे ॥ ० ॥ गुणधर्म कुंवर कुलनाथ, सुनग सरलाशयी प्रियवाप रे || प्रियवाण हिताहित जाण, सऊन जन याश्रमी गुणखाण रे ॥ स०॥१५॥ नयर वसंत पुरें बसें, इण समे नृप ईशा नचंद्र रे ॥ कनकवती कनी तेहनी, तस स्वयंवर मांमयो नरिंद्र रे ॥ ० ॥ तस स्वयंवर का दूत समाजें, यावी यो उजमाल रे ॥ चनमाल सुणी गुणधर्म, कुमार जी चालीयो ततकाल रे ॥ कु०॥१६॥ याव्यो वसंतपुरें तदा, रहे ते नृप दत्त आवास रे || एकदिन स्वयंवर देखवा, गुणधर्म गयो उल्लास रे ॥ ॥ गुणधर्म गयो तिहां पण तेह यावी, नृपनी कनी तेणी वार रे | तेली वार जोतां तुरंत, लागी दृष्टि रागनी निर्धार रे ॥ ला० ॥ १७ ॥ नयरों य ने प्रीतडी, पेठी ते यडामांय रे ॥ चित्तमांहि लागी चटपटी, तेह निज निज मंदिर जाय रे ॥०॥ तेह निज निज मंदिर जाय के नेह, नयणतो जण दोय रे ॥ जण दोय चितारे चित्त, एकेकने प्रतिघणे मन मोह रे ॥ ए॥ ॥१८॥ उठे धगीयारमी ढालमां, कहे शांतिजिणंद दयाल रे ॥ काम महाग्रह जेहने, तस न मटे कल्पनाजाल रे ॥० ॥ तस न मटे कल्पनाजाल, विषय विरु सहि दुःखदाय रे || दुःखदाय को जिनराय ए, वात जूठी नही जगमांय रे ||१|| सर्वगाथा ||३४३ ॥ श्लोक तथा गाथा मलो ॥४॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो.
॥दोहा॥ ॥ कनकवती चित्तमां वस्यो, श्री गुणधर्म कुमार ॥ रात दिवस तस रूपमां, मोही मोहविकार ॥ १ ॥ प्रेमसमो पावक नहिं, प्रेम समुं नहिं पाप ॥ प्रेम वडूं परवशपणुं, ए सम नहिं संताप ॥ २ ॥ प्रेम तणो “प्रे" तेश्ने, यमनो ले " मे "कार, “प्रेम” शब्द एम निपन्यो, जिणथी मुःख दातार ॥ ३ ॥ कनकवती मन समरतो, श्रीगुणधर्म कुमार ॥ निज उता रे आवीयो, पण जक नहिं लगार ॥ ४ ॥ रातें मूकी कुमरीयें, दासी तेह नी पास ॥ एक पाटी चित्रामनी, कर दीधी तस खास ॥५॥ कुमरें दीठी पट्टिका, तिहां कलहंसी रूप ॥ श्लोक एक तेहने तलें, वांचे कुमर स्वरूप ॥ ६ ॥ तद्यथा ॥ आदौ दृष्टप्रिया सानु, रागाऽसौ कलहंसिका ॥ पुनस्तद शेनं शीघ्र, वांवत्येव वराक्यहो ॥१॥ पूर्वदोहा । नावाशय लही तेहने, रीज्यो कुमर अपार ॥ रूप लखी कलहंसन,श्लोक लखे तेणि वार ॥७॥ तद्यथा॥ कलहंसोऽप्यसौ सुन्नु, दणं दृष्ट्वानुरागवान् ॥ पुनरेव प्रियां दृष्ट, महो वांडत्यनारतम् ॥ २ ॥ पूर्वदोदा ॥ कनकवती कुमरी वली, सरस सुगंधां फूल ॥ दासी साधे मोकले, विलेपन तांबूल ॥ ७॥ पुष्प लेइ शिर पर धयां, मुख चावे तांबूल ॥ अंगविलेपन चोपडद्यु, कुंवर गुणें अमूल्य ॥ए ॥ दान दिये संतोपर्नु, उज्ज्वल मोतीहार ॥ ते कहे सुग कन्या तणो, एक संदेशो सार ॥ १० ॥
॥ ढाल वारमी॥ ॥ कालानां गीतनी देशी ॥ कहे कर जोडी राजने ॥ वाहालेश्वर ॥ मुऊ स्वामिनी अरदास ॥ पियु तुम प्रेमपयोधिमां ॥ वा० ॥ मन नई सुविलास ॥ १ ॥ रात दिवस मुफ हृदयमां ।। वा० ॥ मोरने ज्यु जलधा र॥लागी मुफ तुज मोहनी ॥ वा०॥ न गमे हो अवर विचार ॥ ॥ में तुम कंवें स्थापवी । वा० ॥ परमातें वरमाल ॥ को दिन विपयने पडखवो ॥ वा ॥ थावु न अति उजमाल ॥ ३ ॥ कुमरें हो मानी वातडी ॥ वा० ॥ दासी थावी फरी गेह ॥ कनकवतीने मामीने ॥वा० ॥ वात कही ससनेह ॥ ४ ॥ हरिणादी हरखी हैये ॥ वा ॥ प्रगट दूर्ग पर नात ॥ स्वयंवर यावी रंगशुं ॥ वा ॥ वस्यो गुणधर्म सुजात ॥ ५ ॥ साजन जन सदु हर खियां ।। वा० ॥ हरख्यां हो माय ने तात ॥ सरखी
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३१७ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. . मती ए जोडली ॥ वा ॥ उलट यंग न मात ॥ ६ ॥ करे उत्सव विवा हना ॥ वा ॥ ईशानचंद नूपाल ॥ परणावी निजपुत्रिका ॥ वा ॥ वरती हो मंगलमाल ॥ ७ ॥ ससरे बहु धन धापीयुं ॥ वा ॥ मणिमय नूपण सार ॥ हय गय रथ दीधा घणा ॥ वा ॥ कहे सदु जय जयकार ॥ ॥ वोलावे निज कुंवरी ॥ वा ॥ शुजदिन जोइ विशेष ॥ शिखाम ण देई घणी ॥ वा ॥ मात पिता हित लेख ॥ ए ॥ नक्ति करेजो कंत नी ॥ वा ॥ धाण वहेजो अखम ॥ संगति मत करजो कदा ॥ वा ॥ जे होवे उर्जन संत ॥ १० ॥ सासु ससराजी तो ॥ वा ॥ विनय म चूकीश सार ॥ नोजन तुं करजे प॥ वा ॥ जमी रहे सवि परिवार ॥ ११ ॥ तुंकारो नवि दीजियें ॥ वाण ॥ कहिये न मर्म निटोल ॥ वैर वंधाये धाकरां ॥ वा० ॥ बोलतां कडवा रे वोल ॥ १२ ॥ सऊन ज ननी सेवना ॥ वा ॥ कीजें हो हप॑ रे धाय ॥ नीच निखर व्यसनी तणी ॥ वा ॥ उना न रहीये रे नाय ॥ १३ ॥ शील अखंमित पालजे ॥ वा० ॥ कुलवधू नाम धराय ॥ शोना सवल नपराजजे ॥ वा० ॥ वहे ली हो मलजे रे आय ॥ १४ ॥ सूजे पियु सूता पठी ॥ वा० ॥ ज़ागजे पहेली प्रजात ।। शोक्य सहूमांहे सही ॥ वा ॥ नाम धरावे सुजात ॥ १५ ॥ शुं तुमने कहीयें घj ॥ वा ॥ सहजगुणें तुं सुशील ॥ दान देवाने अवसरें ॥ वा ॥ वाम थाजे वखील ॥ १६ ॥ गुण सविधारे अंगमांगवाणाअवगुण अलगा निवार ॥ देव गुरुना विनयमां ॥वा०॥ खा मी न करशो लगार ॥ १७ ॥ नणंद जेनापीगुं नमी ॥ वा ॥ चालजे ए अम शीख ॥ विनय वडानो जालवे ॥ वा० ॥ कोनी मनांजीश जीव ॥ १७ ॥ शिख धरी शिर ऊपरें । वा० ॥ चाली हो कंतनी साथ ॥ सद्ध गुं जुहार करी चल्यां ॥ वा० ॥ दंपती दोय सनाथ ॥ १५ ॥ अनुक्रम श्राव्यां निजपुरें ॥ वा ॥ जामिनी ने जरतार ॥ नृप परिजन आनंदी था ।। वा० ॥ वाध्यो हो प्रेम अपार ॥ २० ॥ उतारी एक मंदिरें । वा० ॥ कनकवती नृपनंद ॥ प्रेमविलुछो हो प्राणीयो । वा० ।। महोटो ए मोहनो फंद ॥॥ मनमा बसी ते मानिनी ।। वा०॥ पण मुखधीन कहाय ।। एक दिन देखी कंतनें ॥ वा ॥ कामिनी उनी रे थाय ॥२॥ मांमधु प्रासन वेसवा ॥ बा ॥ कनी हो जोडी हाथ ।। चित्त चंचल
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३१७ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.. .. मली ए जोडली ॥ वा० ॥ उलट अंग न मात ॥ ६ ॥ करे उत्सव वि हना ॥ वा ॥ ईशानचंद नूपाल ॥ परणावी निपुत्रिका ॥ वाण वरती दो मंगलमाल ॥ ७ ॥ ससरे वदुधन आपीयुं ॥ वा० ॥ मणिम् नूपण सार ॥ हय गय रथ दीधा घणा ॥ वा० ॥ कहे सद्गु जय जयक ॥ ७ ॥ वोलावे निज कुंवरी ॥ वा ॥ शुनदिन जोइ विशेष ॥ शिख ण देई घणी ॥ वा० ॥ मात पिता हित लेख ॥ ए॥ जक्ति करेजो व नी॥ वा० ॥ याण वहेजो अखम ॥ संगति मत करजो कदा ॥ वा० जे होवे उर्जन संत ॥ १० ॥ सासु ससराजी तो ॥ वा ॥ विनय चूकीश सार ॥ भोजन तुं करजे पडें ॥ वा ॥ जमी रहे सवि परिव ॥ ११ ॥ तुंकारो नवि दीजियें ॥ वा ॥ कहिये न मर्म निटोल ॥ बंधाये आकरां ॥ वा० ॥ वोलतां कडुवा रे बोल ॥ १२ ॥ सजन ननी सेवना ॥ वा० ॥ कीजें हो हर्षे रे धाय ॥ नीच निखर व्यसन तणी॥ वा ॥ नना न रहीये रे बाय ॥ १३ ॥ शील अखंमित पाल ॥ वा० ॥ कुलवधू नाम धराय ॥ शोना सवल नपराजजे ॥ वा ॥ व ली हो मलजे रे थाय ॥ १४ ॥ सूजे पियु सूता पनी ॥ वा ॥ जाग पहेली प्रनात ॥ शोक्य सहूमाहे सही ॥ वा० ॥ नाम धरावे सुजात १५ ॥ तुमने कहीयें घणुं ॥ वा ॥ सहजगुरों तुं सुशील ॥ दा देवाने अवसर ॥ वा० ॥ वाइ म याजे वखील ॥ १६ ॥ गुण सविधा यंगमांगवासाअवगुण अलगानिवार ॥ देव गुरुना विनयमांवा०॥ रस मी न करशो लगार ॥ १७ ॥ नणंद जेगणीगुं नमी ॥ वा ॥ चालए यम शीख ॥ विनय वडानो जालवे ॥ वा ॥ कोनी म नांजीश जी ॥ १७ ॥ शिख धरी शिर ऊपरें ॥ वा० ॥ चाली हो कंतनी साय ।। स गुजहार करी चल्या ॥ वा० ॥ दंपती दोय सनाय ॥१५॥ अनुक्र याव्यां निजपुरें ॥ वा ॥ नामिनी ने जरतार ॥ नृप परिजन थान या ॥ वा० ॥ वाध्यो हो प्रेम अपार ॥ २० ॥ उतारी एक मंदिरें वा० ॥ कनकवती नृपनंद ॥ प्रेमविलुको हो प्राणीयो ॥वा० ॥ महोट ए मोहनो फंद ॥२१॥ मनमां वसी ते मानिनी ॥ वा०॥ पण मुखथी - कहाय ।। एक दिन देखी कंतनें ॥ वा० ॥ कामिनी उनी रे याय ॥
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३२० जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. हैये हर्ष बदु धरी, वोलाव्यो ते आदर करी ॥२॥ कहे विनीत गुण " धर्मकुमार, जगवन् न घटे ए आचार ॥ गुरु सम आसन वेसे जेह, । सुर्विनीत नर कहिये तेह ॥ ३ ॥ तमें महोटा योगीश्वर जाण, अमने मानेवी तुम ाण ॥ तुम तूते आपद सवि टले, मनोवांछित आवीने मले ॥४॥ निज पदाति वस्त्रोपरि तेह, वेगे कुमर धरी मन नेह ।। मुफ नगरी पाउ धारो बाज, सवल वधारो महारी लाज ॥ ५ ॥ कहे .. योगी सुण राजकुमार, तुं मुफ मान्य सही निर्धार ॥ पण नि:किंचन ई . महाराज, शी तुम नक्ति करुं हुं आज ॥ ६ ॥ कहे कुमर तुमची धाशीप, ए अम लद कोटी बकशीस ॥ कहे योगी ते साधु कयुं, पण लौकिकमां एवं लघु ॥ ७ ॥ यतः ॥ नक्तिः प्रेम प्रियालापः, सन्मानं विनयस्तथा ॥ : दानेन हि विना लोके, सर्वमेतन्न शोनते ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ कहे कुमर पुन रपि एम वाणी, सुनजरें जुवो तमें गुणखाण ॥ करो आझा अमने जे संत, ए तुम कहियें दान महंत ॥ ७ ॥ कहे योगी सुण न कुमार, डे मुज पासें मंत्र उदार ॥ बाठ वरस थयां करतां जाप, श्रम कीधो में वदुलो याप ॥ ए॥ तास विधन प्रतिघातक थाय, जो तुं एकरयण इण गय ॥ तो प्रयास सफलो होवे सही, एह वात नैरव मुख कही ॥ १० ॥ कहे कुमर कर जोडी ताम, ढुं बुं स्वामि तुमारे नाम ॥ कहो तेणें दिन याएँ तुम पास, साधो मंत्र तमें उनास ॥ ११ ॥ कहे योगी कालीचर दशी, प्रेतवने भावे निशि ॥, ढुं पण त्रिदु शिष्यनी संघात, आवीश तिहां निसुणी एम वात ॥ १२॥ कुंवर प्रणाम करी घेर गयो, योगी मने अति हर्पित थयो । घर जश् चनदश दिवस सुजाण, याव्यो मसा णे कुंवर अलिपारा ॥ १३ ॥ शिष्य संघातें योगी ताम, आव्यो कुंवर करे परणाम ॥ कहे योगी थाजे दशियार, मुज राखणने साहस धार ॥ १४ ॥ कहे कुमर चिंता मत
तमें करो ॥ कुण तुम साहामुं नाली शके, खग " उनो न ।१५ ॥ मंगल कर। एक शव स्थापियो, अमि म वि ॥ इण असर प्रकट्यो निर्यावधिर ... लिए वार, नी
च घयो तिहां
nate
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३३० जैनकथा रत्नकोष नाग आग्मो. हैये हर्ष बदु धरी, वोलाव्यो ते यादर करी ॥ ॥ कहे विनीत गुण . धर्मकुमार, जगवन न घटे ए याचार ॥ गुरु सम आसन वेसे जेह, . सुविनीत नर कहियें तेह ॥३॥ तमें महोटा योगीश्वर जाण, अमने मानेवी तुम प्राण ॥ तुम तूठे बापद सवि टले, मनोवांडित यावीने । मले ॥४॥ निज पदाति वस्त्रोपरि तेह, वेगे कुमर धरी मन नेह ॥ मुज नगरी पान धारो आज, सवल वधारो महारी लाज ॥ ५ ॥ कहे योगी सुप राजकुमार, तुं मुज मान्य सही निर्धार ॥ पण निकिंचन कुं महाराज, शी तुम नक्ति करुं हुं आज ॥ ६ ॥ कहे कुमर तुमची वाशीप, ए अम लद कोटी बकशीस ॥ कहे योगी ते साचुं कह्यु, पए लौकिकमां । एवं लडं ॥ ७ ॥ यतः ॥ नक्तिः प्रेम प्रियालापः, सन्मानं विनयस्तथा ॥ दानेन हि विना लोके, सर्वमेतन्न शोनते ॥ ॥पूर्वढाल ॥ कहे कुमर पुन रपि एम वाणी, सुनजरें जुवो तमें गुणखाण ॥ करो आज्ञा अमने जे संत, ए तुम कहियें दान महंत ॥ ॥ कहे योगी सुण जर कुमार, डे मुज पासें मंत्र नदार ॥ यात वरस थयां करतां जाप, श्रम कीधो में वहुलो आप ॥ए॥ तास विघन प्रतिघातक थाय, जो तुं एकरयण गय ॥ तो प्रयास सफलो होवे सही, एह वात नैरव मुख कही ॥ १० ॥ कहे कुमर कर जोडी ताम, ढुं बुं स्वामि तुमारे नाम ॥ कहो तेणें दिन यावं तुम पास, साधो मंत्र तमें उल्नास ॥ ११ ॥ कहे योगी कालीच दशी, प्रेतवने यावेई निशि ॥, ढुं पण त्रिदु शिष्यनी संघात, यावीश तिहां निसुणी एम वात ॥ १२ ॥ कुंवर प्रणाम करी घेर गयो, योगी मनें यति हर्पित थयो ॥ घर जश् चनदश दिवस सुजाण, याव्यो मसा णे कुंवर यलिपाण ॥ १३ ॥ शिष्य संघातें योगी ताम, याव्यो कुंवर करे परणाम ॥ कहे योगी याजे दुशियार, मुझ राखणने साहस धार ॥ १४ ॥ कहे कुमर चिंता मत धरो, सुखें तमें मंत्रसाधन करो ॥ कुण, तुम साहामुं नाली शके, खग जाली उनो नवि चके ॥ १५ ॥ मंगल कर। एक शव स्थापियो, यनि प्रजाली होमविधि कियो । इण यसरें प्रकटयो निर्यात, विश्व बधिर करतो सादात ॥ १६ ॥ यश धिा धरती तिण वार, नीतरियो जीपण याकार ॥ काल कराल बडो यमदूत, प्रकट थयो तिहां एक यजुत ॥ १७ ॥ शुं तं नवि जाण्यो मेवनाद, देवपाल
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मुणगुण राजशक्ति का । कहे योग्यासापा, हा ॥
जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. हैये हर्ष वदु धरी, वोलाव्यो ते आदर करी ॥ ॥ कहे विनीत गुण धर्मकुमार, जगवन् न घटे ए आचार ॥ गुरु सम बासन वेसे जेह, मुर्विनीत नर कहियें तेह ॥३॥ तमें महोटा योगीश्वर जाण, थमने मानेवी तुम प्राण ॥ तुम तू बापद सवि टले, मनोवांछित थावीने मले ॥४॥ निज पदाति वस्त्रोपरि तेह, वेठो कुमर धरी मन नेह ॥ मुफ नगरी पान धारो आज, सबल वधारो महारी लाज ॥ ५ ॥ कहे योगी सुण राजकुमार, तुं मुफ मान्य सही निर्धार ॥ पण नि:किंचन हुँ महाराज, शी तुम नक्ति करुं दुं आज ॥ ६॥ कहे कुमर तुमची बाशीप, ए अम लद कोटी वकशीस ॥ कहे योगी ते साचुं कर्तुं, पण लौकिकमां एवं लयुं ॥ ७ ॥ यतः ॥ नक्तिः प्रेम प्रियालापः, सन्मानं विनयस्तथा ॥ दानेन हि विना लोके, सर्वमेतन्न शोनते ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ कहे कुमर पुन रपि एम वाणी, सुनजरें जुवो तमें गुणखाण ॥ करो आझा अमने जे संत, ए तुम कहियें दान महंत ॥ ॥ कहे योगी सुण न कुमार, ने मुज पासें मंत्र उदार ॥ आठ वरस ययां करतां जाप, श्रम कीधो में बदुलो याप ॥ ए॥ तास विधन प्रतिघातक थाय, जो तुं एकरयण इण ठाय ॥ तो प्रयास सफलो होवे सही, एह वात नैरव मुख कही॥१०॥ कहे कुमर कर जोडी ताम, ढुं स्वामि तुमारे नाम ॥ कहो तेणें दिन . धावू तुम पास, साधो मंत्र तमें उनास ॥ ११ ॥ कहे योगी कालीच दशी, प्रेतवने यावेQ निशि ॥, ढुं पण त्रिदु शिष्यनी संघात, आवीश तिहां निसुणी एम वात ॥ १२ ॥ कुंवर प्रणाम करी घेर गयो, योगी मनें अति हर्पित थयो । घर जश् चनदश दिवस सुजाण, आव्यो मला ऐ कुंवर असिपाण ॥ १३ ॥ शिष्य संघातें योगी ताम, आव्यो कुंवर करे परणाम ॥ कहे योगी थाजे दुशियार, मुफ राखणने साहस धार ॥ १४ ॥ कहे कुमर चिंता मत धरो, सुखें तमें मंत्रसाधन करो ।। कुण तुम साहामुं नाली शके, खड्ग काली उनो नवि चके ॥ १५ ॥ मंगल कर। एक शव स्थापियो, यनि प्रजाली होमविधि कियो ॥ इण असर प्रकटयो निर्घात, विश्व बधिर करतो सादात ॥ १६ ॥ यह हिंधा धरती तिण वार, नीसरियो नीपण श्राकार ॥ काल कराल बडो यमदूत, प्रकट थयो तिहां एक यत ॥ १७ ॥ शुं तें नवि जाण्यो मेघनाद, देवपाल
तिहां निसुणी पथयो । घर जय शिष्य संघात
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श्री शांतिनायनो रास खंम हो. ३२१ ' कहे महोटे साद ॥ मुफ पूजा विण कीधे एम, मंत्रसिदि तुं चाहे केम
॥ १७ ॥ ए पण राजतनय अज्ञान, तें जोलवियो मति विज्ञान ॥ एम कही तेणें कियो सिंहनाद, क्षेत्रपालें मांझयो नन्माद ॥ १५ ॥ ते त्रए शिष्य योगीना जेह, पडिया उबलीने नूयें तेह ॥ बोल्यो कुंवर मन सा हस धरी, फोकट युं गाजे मति फरी ॥ २० ॥ जो त्रिपाल तुं अति वलवंत, तो यु६ कर मुझ साथें महंत ॥ तेहने निरायुध देखी कुमार, मूके खड्ग दूरे तेणी वार ॥ २१ ॥ वेदु सन्मुख आवीने अज्या, नुज दंमें मांहोमांहे नड्या ॥ वेदु वलीया कोइ नवि लडथडे, पगपडबंदें धर धडहडे ॥ २२ ॥ वजसार निजनुज जीडियो, कुमरे क्षेत्रपाल पीडियो ॥ तस साहस देखी थयो तुष्ट, वोल्यो माग माग वत्स इष्ट ॥ २३ ॥ कहे कुमर मूकी जो देव, थया सुप्रसन्न मुफ उपरें देव ॥ तो मुफ ऊपर करुणा धरो, योगीनुं मनोवांबित करो ॥ २४ ॥ कहे देवपाल एहनो सि६ मंत्र, थयो तुज महातम गुणवंत ॥ सकल समीहितने पूरशे, चिंता सवि मननी चूरशे ॥ २५॥ पण तुं मनोवांवित मुज पास, माग माग वत्स सुगुण निवास ॥ महानाग्य दरिसण देवर्नु, निष्फल नवि थाये नीपन्युं ॥ २६ ॥ कहे कुमर तो तेम करो स्वामि, कनकवती होवे माहरे नाम ॥ परणी पण वांजे नवि जोग, कर्म तणो ए महोटो रोग ॥ २७ ॥ कहे झानें जोई क्षेत्रपाल, वश थाशे तहारे नूपाल ॥ मुफ प्रनाव कामितरूप हशे, तेहथी काज सकल सीको ॥ २७ ॥ वर देइ पहोत्यो निज ठाम, योगी प्रशंसे कुमरने ताम ॥ साहसिक तुमथी मुफ काम, सीध्यु राखी तें मुफ माम ॥ ए ॥ अवसर मुझने संचारजो, काम काज बलि फरमावजो॥ एम कहीने योगी चालियो, कुंवर निजमंदिर दालियो ॥ ३० ॥ निज थावास कुंवर यावियो, साजन जन मनमां जा वीयो ॥ ढाल ठठे वंमें तेरमी, सांजलतां श्रोता मन गमी ॥३१॥४२१॥७॥
॥दोहा ।। ॥ धंग परखाली यापणुं, धरतो हर्प अत्यंत ॥ बीर वेप मूकी शयन, की, यह निश्चित ॥ १ ॥ हवे बीजे दिन यामिनी, पहार एक गइ जाम ।। अश्य रूप ले रमपी, मंदिर पहोतो ताम ॥ ५ ॥ कनकवती दीती तिहां, दोय दासी वेदु पास ।। वात करे ते रंगनी, निमुणे कुमर उल्लास ॥३॥
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. हैये हर्ष वदु धरी, वोलाव्यो ते आदर करी ॥२॥ कहे विनीत गुण धर्मकुमार, जगवन् न घटे ए आचार ॥ गुरु सम आसन से जेह, सुविनीत नर कहिये तेह ॥ ३ ॥ तमें महोटा योगीश्वर जाण, थमने मानेवी तुम धाण ॥ तुम तूठे आपद सवि टले, मनोवांबित आवीने मले ॥४॥ निज पदाति वस्त्रोपरि तेह, वेठो कुमर धरी मन नेह ॥ मुफ नगरी पाउ धारो बाज, सवल वधारो महारी लाज ॥ ५ ॥ कहे योगी सुण राजकुमार, तुं मुफ मान्य सही निर्धार ॥ पण निःकिंचन हुँ महाराज, शी तुम नक्ति करुं हुं आज ॥ ६ ॥ कहे कुमर तुमची याशीप, ए अमलद कोटी वकशीस ॥ कहे योगी ते साचुं का, पण लोकिकमां एवं लघु ॥ ७ ॥ यतः ॥ नक्तिः प्रेम प्रियालापः, सन्मानं विनयस्तथा ॥ दानेन हि विना लोके, सर्वमेतन्न शोनते ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ कहे कुमर पुन रपि एम वाणी, सुनजरें जुवो तमें गुणखाण करो आज्ञा अमने जे संत, ए तुम कहियें दान महंत ॥ ॥ कहे योगी सुण जर कुमार, जे मुज पासें मंत्र उदार ॥ पाठ वरस थयां करतां जाप, श्रम कीधो में बदुलो धाप ॥ ए॥ तास विधन प्रतिघातक याय, जो तुं एकरयण ण गाय ॥ तो प्रयास सफलो होवे सही, एह वात नैरव मुख कही॥ १० ॥ कहे कुमर कर जोडी ताम, ढुं बुं स्वामि तुमारे नाम ॥ कहो तेणें दिन श्रा, तुम पास, साधो मंत्र तमें उन्नास ॥ ११ ॥ कहे योगी मालीच दशी, प्रेतवने आवे, निशि ॥, ढुं पण त्रिदु शिष्यनी संघात, आवीश तिहां निसुणी एम वात ॥ १२ ॥ कुंवर प्रणाम करी घेर गयो, योगी मनें अति हर्पित थयो ॥ घर जा चदश दिवस सुजाण, घाव्यो मता णे कुंवर असिपाण ॥ १३ ॥ शिष्य संघातें योगी ताम, याव्यो कुंवर करे परणाम ॥ कहे योगी थाजे दुशियार, मुम राखणने साहस धार ॥ १४ ॥ कहे कुमर चिंता मत धरो, सुखें तमें मंत्रसाधन करो ॥ कुण तुम साहामुं नाली शके, खग काली उनो नवि चके ॥ १५ ॥ मंगल कर। एक शब स्थापियो, अनि प्रजाली होमविधि कियो ॥ इण यसरें प्रकटयो निर्घात, विश्व बधिर करतो सादात ॥ १६ ॥ यह धिा धरती तिण वार, नीसरियो नीपण श्राकार ॥ काल कराल वडो यमदूत, प्रकट थयो तिहां एक अभुत ॥ १७ ॥ युं तें नवि जाप्यो मेघनाद, देवपाल
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३२० जैनकया रत्नकोप नाग आठमो. हैये हर्ष वदु धरी, वोलाव्यो ते आदर करी ॥२॥ कहे विनीत गुण . धर्मकुमार, नगवन न घटे ए आचार ॥ गुरु सम आसन वेसे जेह, मुर्विनीत नर कहिये तेह ॥ ३ ॥ तमें महोटा योगीश्वर जाण, अमने मानेवी तुम ाण ॥ तुम तूते आपद सवि टले, मनोवांनित श्रावीने मजे ॥ ४ ॥ निज पदाति वस्त्रोपरि तेह, वेतो कुमर धरी मन नेह ॥' मुफ नगरी पान धारो बाज, सवल वधारो महारी लाज ॥ ५॥ कहे योगी सुण राजकुमार, तुं मुफ मान्य सही निर्धार ॥ पण नि:किंचन डं महाराज, शी तुम नक्ति करुं ढुंबाज ॥ ६॥ कहे कुमर तुमची आशीप, ए यम लद कोटी बकशीस ॥ कहे योगी ते साचुं कह्यु, पण लौकिकमां एबुं लघु ॥ ७ ॥ यतः ॥ नक्तिः प्रेम प्रियालापः, सन्मानं विनयस्तथा ॥ दानेन हि विना लोके, सर्वमेतन्न शोनते ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ कहे कुमर पुन रपि एम वाणी, सुनजरें जुवो तमें गुणखाण ॥ करो याज्ञा यमने जे संत, ए तुम कहियें दान महंत ॥ ७॥ कहे योगी सुण नइ कुमार, ने मुफ पास मंत्र उदार ॥ आठ वरस थयां करतां जाप, श्रम कीधो में वदुला थाप ॥ ए॥ तास विघन प्रतिघातक थाय, जो तुं एकरयण श्ण गय ॥ तो प्रयास सफलो होवे सही, एह वात जैरव मुख कही ॥ १०॥ कहे कुमर कर जोडी ताम, ढुं स्वामि तुमारे नाम ॥ कहो तेणं दिन या, तुम पास, साधो मंत्र तमें उन्नास ॥ ११ ॥ कहे योगी मालीचठ दशी, प्रेतवने यावेg निशि ॥, ढुं पण त्रिदु शिष्यनी संघात, यावीश तिहां निसुपी एम वात ॥ १२ ॥ कुंवर प्रणाम करी घेर गयो, योगी मने यति हर्पित ययो ॥ घर जश् चनदश दिवस सुजाण, याव्यो मसा एवं कुंवर यसिपाए ॥१३॥ शिष्य संघातें योगी ताम, याव्यो कुंवर करे परणाम ॥ कहे योगी थाजे दुशियार, मुफ राखणने साहस धार ॥ १४ ॥ कहे कुमर चिंता मत धरो, मुखें तमें मंत्रसाधन करो ॥ कुण तुम साहामुं नाली शके, खड्ग फाली ननो नवि चके ॥ १५ ॥ ममन कर। एक शव स्थापियो, यमि प्रजाली होमविधि कियो ॥ ए यमर प्रकट्यो निर्घात, विश्व बधिर करतो सादात ॥ १६ ॥ यह हिंधा धरत! तिण वार, नीतरियो जीपण याकार || काल कराल वडो यमदूत, प्रकट थयो तिहां एक यत ॥ १७ ॥ शुं तं नवि जाण्यो मेवनाद, देवपाल
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३२० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. हैये हर्ष वद्ध धरी, वोलाव्यो ते आदर करी ॥ २॥ कहे विनीत गुण धर्मकुमार, जगवन् न घटे ए आचार ॥ गुरु सम बासन वेसे जेह, सुर्विनीत नर कहियें तेह ॥ ३ ॥ तमें महोटा योगीश्वर जाण, अमने मानेवी तुम ाण ॥ तुम तूठे आपद सवि टले, मनोवांछित थावीने मले ॥४॥ निज पदाति वस्त्रोपरि तेह, वेठो कुमर धरी मन नेह ॥ मुफ नगरी पान धारो आज, सवल वधारो महारी लाज ॥ ५॥ कहे योगी सुण राजकुमार, तुं मुफ मान्य सही निर्धार ॥ पण निःकिंचन हुँ महाराज, शी तुम नक्ति करुं हुं आज ॥ ६ ॥ कहे कुमर तुमची धाशीप, ए अम लद कोटी वकशीस ॥ कहे योगी ते साचु कडं, पण लोकिकमां एवं लमु ॥ ७ ॥ यतः ॥ जक्तिः प्रेम प्रियालापः, सन्मानं विनयस्तथा ॥ दानेन हि विना लोके, सर्वमेतन्न शोलते ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ कहे कुमर पुन रपि एम वापी, सुनजरें जुवो तमें गुणखाण करो आज्ञा अमने जे संत, ए तुम कहिये दान महंत ॥ ७ ॥ कहे योगी सुण नइ कुमार, ने मुज पासें मंत्र नदार ॥ पाठ वरस थयां करतां जाप, श्रम कीधो में बदुलो धाप ॥ ए॥ तास विधन प्रतिघातक थाय, जो तुं एकरयण ण वाय ॥ तो प्रयास सफलो होवे सही, एह वात नैरव मुख कही ॥ १० ॥ कहे कुमर कर जोडी ताम, ढुं बुं स्वामि तुमारे नाम ॥ कहो तेणें दिन धावू तुम पास, साधो मंत्र तमें उनास ॥ ११ ॥ कहे योगी कालीचर दशी, प्रेतवने आवेवु निशि ॥, ढुं पण त्रिदु शिप्यनी संघात, आवीश तिहां निसुणी एम वात ॥ १२ ॥ कुंवर प्रणाम करी घेर गयो, योगी मने यति हार्पित थयो ॥ घर जइ चनदश दिवस सुजाण, आव्यो मला णे कुंवर अलिपाण ॥ १३ ॥ शिष्य संघातें योगी ताम, आव्यो कुंवर करे परणाम ॥ कहे योगी याजे दुशियार, मुज राखणाने साहस धार ॥ १४ ॥ कहे कुमर चिंता मत धरो, सुखें तमें मंत्रसाधन करो ॥ कुष्ण तुम साहामुं नाली शके, खड्ग फाली उनो नवि चके ॥ १५ ॥ मंगल कर। एक शव स्थापियो, थग्नि प्रजाली होमविधि कियो ॥ इण असर प्रकट्यो निर्घात, विश्व बधिर करतो सादात ॥ १६ ॥ था किंधा धरती तिण वार, नीसरियो जीपण याकार ॥ काल कराल बडो यमदूत, प्रकट थयो तिहां एक अन्त ॥ १७॥ गुंते नवि जास्यो मेघनाद, क्षेत्रपाल
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श्री शांतिनायनो रास खंम हो. ३२१ में कहे महोटे साद ॥ मुफ पूजा विण कीधे एम, मंत्रसिदि तुं चाहे केम
॥ १७ ॥ ए पण राजतनय अज्ञान, तें जोलवियो मति विज्ञान ।। एम कही तेणें कियो सिंहनाद, क्षेत्रपालें मांमयो उन्माद ॥ १९ ॥ ते त्रण शिष्य योगीना जेह, पडिया नबलीने नूयें तेह ॥ वोल्यो कुंवर मन सा हस धरी, फोकट झुं गाजे मति फरी ॥ २० ॥ जो देवपाल तुं अति बलवंत, तो युद्ध कर मुझ साथै महंत ॥ तेहने निरायुध देखी कुमार, मूके खड्ग दूरे तेणी वार ॥ २१ ॥ वेदु सन्मुख आवीने अड्या, नुज दमें मांहोमांहे नया ॥ वेदु वलीया को नवि लडथडे, पगपडबंदें धर धडहडे ॥ २२ ॥ वजसार निजनुज जीडियो, कुमरें क्षेत्रपाल पीडियो ॥ तस साहस देखी थयो तुष्ठ, वोल्यो माग माग वत्स इष्ट ॥ २३ ॥ कहे कुमर मूकी जो देव, यया सुप्रसन्न मुफ उपरें देव ॥ तो मुझ ऊपर करुणा धरो, योगीनुं मनोवांनित करो ॥ २४ ॥ कहे क्षेत्रपाल एहनो सिह मंत्र, थयो तुझ महातम गुणवंत ॥ सकल समीहितने पूरशे, चिंता सवि मननी चूरशे ॥ २५॥ पण तुं मनोवांछित मुफ पास, माग माग वत्स सुगुणनिवास ॥ महानाग्ये दरिसण देवनु, निष्फल नवि थाये नीपन्युं ॥ २६ ॥ कहे कुमर तो तेम करो स्वामि, कनकवती होवे माहरे नाम ॥ परणी पण वांडे नवि जोग, कर्म तणो ए महोटो रोग ॥ २७ ॥ कहे ज्ञानें जोई क्षेत्रपाल, वश थाशे तहारे भूपाल ॥ मुज अनाव कामितरूप हशे, तेहथी काज सकल सीजनशे ॥ २ ॥ वर दे पहोत्यो निज ताम, योगी प्रशंसे कुमरने ताम ॥ साहसिक तुमयी मुफ काम, सीध्यु राखी तें मुज माम ॥ ॥ ॥ अवसर मुजने संनारजो, काम काज वलि फरमावजो॥ एम कहीने योगी चालियो, कुंवर निजमंदिर हालियो ॥ ३० ॥ निज धावास कुंवर याचियो, साजन जन मनमांना वीयो । ढाल ठठे खमें तेरमी, सांजलतां श्रोता मन गमी ॥३१॥४१॥७॥
॥दोहा॥ - ॥ अंग पखाली आपणुं, धरतो हर्प अत्यंत । वीर वेप की शयन, कीधुं यह निश्चिंत ॥ १ ॥ हवे बीजे दिन यामिनी, पहार एक गई जाम । अदृश्य रूप ले रमणी, मंदिर पहोतो ताम ॥ २ ॥ कनकवती दीती तिहां, दोय दासी वेद पास ॥ बात करे ते रंगनी, निमुणे कुमर उल्लास ॥ ३ ॥
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३५२ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
॥ ढाल चौदमी॥ । ॥ वीर जिरोसर चरणकमल ॥ ए देशी ॥ कनकवती राणी तदा । चित्त चंचल जागी ॥ कारण कांइक ए सही, कुमरे पहिचाणी ॥१॥ चरित्र जो नारीतणां, किहां जाये एह ॥ विपय न वांडे मुजा, केम चंचल तेह ॥ २ ॥ पासें आवी उनो रह्यो, पण सा नवि देखे ॥ कनक : वती दासी जणी, पूढे सुविशेपें ॥ ३ ॥ रात गइ बे केटली, कहे स्वामिनि । वेला ॥ तिहांकणे जावानी थर, हवे को सलीला ।। ४ ॥ तुरत उनी । उतावली, नाही मन रंगें ॥ अंग विलेपन अति जलां, दीपे शुचि धंगें। ॥५॥ वस्त्र नलां पहेयां वली, आजरण अमूल ॥ हार हैये सोहे नवलखो, । नाके नथफूल ॥ ६ ॥ घम घम घमके घूघरी, नूपुर पाय सोहे ॥ शोल - शृंगार कस्या जला, रूपें मन मोहे ॥ ७ ॥ देवकुंवरी सम उपती, रूप वंती रामा ॥ जर यौवनमांहे नामिनी, शोने घणुं श्यामा ॥ ॥ देवा वास समान एक, रचीयु ए विमान ॥ कुंवर जोड्ने थयो, मनमा हे रान ॥ए आवी वेसे कामिनी, दासी संघातें ॥ कुंवर चिंते चित्तमां, जो एकांतें ॥ १० ॥ एता दिन हूँ जाणतो, ए दीसे सुहाली ॥ पण जोरावर ए घj, नजरें में नाली॥ ११ ॥ कामिनी न होय केहनी, वानां सो कीजें ॥ पण एहना अंतरंगनी, नवि वात लहीजें ॥ १२ ॥ यतः ॥ रवि चरियं ॥ जलमले ॥ मुख वोले मीठी घj, मनमांहे धीठी ॥ लारी सरीखी कामिनी, सृष्टियें अवली न दीती ॥१३॥ यतः ॥ यावर्त्तः संशया नां ॥ नर नोलाने नोलवे, मानिनी मतवाली ॥ विफरी वाघणनी परें, वि सई विकराली॥ १४ ॥ पण जो एक वार दूं, जाये जिहां चाची ॥ केड न मू• एहनी, थाशे जे नावी ॥ १५ ॥ एम विमासी विमानमां, वेतो' एक देशे ॥ बात करे त्रणे मली, चाली आकाशे ॥ १६ ॥ दुरे रह्यो सवि सांजले, गुणधर्म सोजागी ॥ नारीचरित्र जोवा तणी, मनमा रढ लागी ॥ १७ ॥ उत्तर दिशे उतावलु, ते चाल्युं विमान ॥ कुंवर मन माहे धरे, नगवंतनुं ध्यान ॥ १७ ॥ दूरे जश्ने उतमु, आकाशथी हेतुं । वन अशोकने अांतरे, एक सरोवर दीतुं ॥ १५ ॥ स्थानक ते रलिया मगुं, शोना अति सारी ॥ देखीने ते उतरी. दासी नारी ॥ २० ॥ एक विद्याधर तिहां अवे, यावी तस पासे । कनकवती कर जोडीने, प्रणम ।
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श्री शांतिनाथनो रास खंम उचो. ३२३ । उल्लासें ॥ १ ॥ पासें वेती कामिनी, कुंवर पण वेगे। चिंते कौतुक ' एहवो, किहांये नवि दीठो ॥ ॥ २२ ॥ अन्य वली यावी तिहां, रामा । त्रण रूडी ॥ ते विद्याधरने नमी, बेटी नहीं कूडी ॥ २३ ॥ अन्य वली
याव्या तिहां, खेचर वा बलिया ॥ ते विद्याधरशुं सवे, यावीने मलीया ॥ २४ ॥ ते वनमा एक देहरं, आदीश्वर केरुं ॥ दम कलश ध्वजे शोनतुं, दीपे ते जलेलं ॥ २५॥ ते सहुये तिहां आवीयां, जिन नक्तिने काजें ॥ नाटक वारक केहनो, पूज्यु खेचरराजें ॥ २६ ॥ कनक वती उती तिहां, परिधान समारी ॥ मांझे ते मनमोदलं, नाटकविधि सारी ॥ २७ ॥ हाव नाव दाखे जला, नाचे तन वाली ॥ थे थे पाठ मुखें जणे,चंगें सुकुमाली ॥रात्रणे सही जोडें रही, एके वीणा वा॥वीजी वेणु वजाडती, जिनना गुण गाइ ॥ २ ॥ त्रीजी ताल देई करी, गाये तस जोडें ॥ गुणवंती चारे मली, नाचे मन कोडें ॥ ३० ॥ पास रह्यो देखे सद्ध, गुणधर्म कुमार ॥ विस्मय पाम्यो चित्तमां, जोइ नाटक सार ॥ ३१ ॥ नाच करंतां नारीनी, पडी किंकणी माला ॥ लघुकला कुं वरें ग्रही, करहुं तेणी वेला ॥३॥ नाटक यंतें जोश्यु, नवि दीठी तेणें ॥ मनमांहे चिंता उपनी, एह लीधी केणें ॥ ३३ ॥ निज निज स्थानक सदु गया, नारी संघातें ॥ कुंवर निजपुर आवीयो, तेह पाउली रातें ॥ ३५ ॥ निज घर यावी विमानथी, उतरी ते वेला ॥ हा सूतो जइ, कुंवर निजशाला ॥ ३५॥ के खेमें चौदमी, ढालें सुणो साचुं ॥ राम कहे विपया समुं, काम कोई न काचुं ॥ ३६ ॥ सर्वगाथा ॥ ४६० ॥ ७ ॥
॥दोहा॥ ___॥ परनातें तेडी कुमर, मंत्रीसुत निज मित्र ॥ श्रापी किंकणीमा लिका, समजावी सवि सूत्र ॥ १ ॥ तुम पासें ए राखजो, बंधव सुणो विचार ॥ अवसर जोई आपजो, कनकवतीने सार ॥ २ ॥ एम शिक्षा दे करी, मित्रसाथे गुणधर्म ॥ नारीमंदिर भावीयो, करवा चिंतित कर्म ॥३॥ उतीने उनी थई. प्रमदा गुणनी खाण ।। आप्युं यासन वेसवा, प्रागन रही सुजाण ॥ ४ ॥ कुमर कहे मांझो तमे, रामत पासा सार ।। रमवा वेता वितु जणा. याणी हर्ष अपार ॥ ५ ॥
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३१४ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
॥ ढाल पन्नरमी॥ ॥ रूडी रूडी रामतडीने रसें परवश थयो रे लाल ॥ ए देशी ॥ रंग : जरी रूडी रे वेदु रामत रमे रे लाल, खेले खेले कनकवती ने कंत ॥ रंग रंगीला रे पासा सोगवां रे लाल, हसी हसी नाखे दाव उलसंत ॥१॥ रंगनरी ॥ जेल बबीलां रे वेदु जोडें रह्यां रे लाल, जोली जोली न लहे... मनडानी वात करि करि चतुराइ दावने चालवे रे लाल, जोइ जोइ दावें - कीयो पियु मात ॥ रंग ॥ २॥ हेजें हरिणादी रे कहे निज कंतने रे । लाल, पियु एक ग्रहणक मुझने सार ॥ मित्रनी सहामुं रे तेणें अवलो कीयुं रे लाल, आपी आपी मित्र हो माला तेवार ॥ रंग ॥३॥ देखीने बोली रे किंकणीमालिका रे लाल, आवी वी किहांथी तुमारे हाथ ।। कहे प्रीतम तुमें ए पाडी किहां रे लाल,न लढुं न लढुं किहां पाडी प्राणनाथ ॥ रंग ॥ ४ ॥ वालम मुझने दाखो ए किहांयकी रे लाल, साधी साधी
आज तुम्हें अवनीश ॥ कुमर कहे मुफ मित्र लहे सदु रे लाल, कहेो कहो तुमने धरीय जगीश ॥ रंग ॥ ५॥ चे नैमित्तिक माहरो मित्रजी रेलाल, जाणे जाणे एह सयल अवदात ॥ ते कहे कनकवतीने हुँ सही रे लाल, धारी धारी कालें कहीश अवदात ॥ रंग ॥ ६ ॥ ते वेहु। आव्या रे आपण मंदिरें रे लाल, कनकवती कहे रे एम ॥ सहीयर बानी । रे वात ए आपणी रे लाल, वहेली वहेली कंतजीयें लही केम ॥ रंग ।। ॥ ७ ॥ जागी होशे गुं माहरी वातडी रे लाल, चोले वोले कनकवती एम बोल ॥ दीसे अजब गति एहनी अनिनवी रे लाल, नहिं नहिं कोई जग एहनी तोल ॥ रंग ॥ ॥ रात पडी तेणें चेत्ये तेम गयो रे लाल; रंगे रंगे कनकवतीनी साथ ॥ वीणा वातां रे तास चरणतणुं रे लाल, श्राव्यु श्राव्यु एक नूपुर तस हाथ ।। २०॥ ए ॥ घणु वली खोल्यु रे तेम लाध्यु नहीं रे लाल, यथइमनमाहे दिलगीर ॥ मंदिर भावी रे कुंवर घरे गयो रे लाल, सूतो सुतो धरी दीलडामां हे धीर ॥ २० ॥ १७ ॥ यये प्रजात रे मित्रशुं आवीयो रे लाल, वेठो वेतो श्रीगुणधर्म कुमार ॥ गोष्टि करीने रे पियुगुं प्रेमनी रे साल,पूठे पूठे मित्र नगी तेणी वार ॥ २० ॥ ११ ॥ ते पण बोले रे निमित्त त बले रे लाल, जाण्युं जाएयुं गयुं जयाग बली श्राज। मन शंकाणी रे बात सुपी करी रे लाल, कहे कहें फोगट ए श्याय
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श्री शांतिनाथनो रास खंम वहो. ३२५ वाज ॥ २०॥ १२॥ वातडली जो जाणी रे होय तो कहो युं गयुं रे रे लाल, मानु मानुं वात तुमारी साच ॥ आपण वीती रे वात न केम लहे रे लाल, जांखे नांखे कुमर एणी परें वाच ॥२॥१३॥ माया गाली रे वोले मानिनी रे लाल, सुण सुण साहिव चतुर सुजाण ॥ में नवि जाएयु रे पियुडा माहरु रे लाल, खोयुं खोयु ए नूपुर किण गण ॥रं ॥ १४ ॥ मर्म ने मोसा रे पीयुजी न बोली रे लाल ॥ नहिं नहिं दुं कांइ तेहवी नार ॥ राज दुकमथी रे इण मंदिर रहुँ रे लाल, महेन्युं महेट्युं में नवि घरनुं वार ॥२०॥१५॥ प्राण न लोपी रे पीयुडा ताहरी रे लाल, साधु साचु कुमर कहे कहो एह ॥ कोइके आवी रे मुजने एम कडं रे लाल, टालो टालो मुझ मनडानो संदेह ॥ २० ॥ १६ ॥ सुण सुण गुणधर्म कुमारजी ताहरी रे लाल, वारू वारू कनकवती वर नारि ॥ दूर जातीनुं रे नूपुर पगतणुं रे लाल, पडद्यं पडयुं नीकलीने तेणी वार ॥२०॥ १७ ॥ जेणें जे0 ए जी, रे तेहने जाएं सही रे लाल, लीधुं लीधुं फुटावी तरस पास ॥ वात कहीने रे अणवोल्यो रह्यो रे लाल, चिंते चिंते कनकवती ते उदास ॥२०॥ १७ ॥ सही मुज साथै रे याव्यो नाहलो रे लाल, करी करी को प्रयोगविशेप ॥ मुफ जरतारें रे सघलो माहरो रे लाल, दीतो रात तणो सवि दोप ॥२०॥ १५ ॥ यतः ॥ करनई कला चांझी, चोरिकाक्रीडितानि च ॥ प्रकटानि तृतीयेऽन्हि, सुचिन्हें सुरूतानि च ।। ॥ १ ॥ पूर्वढाल | चिंतीने कनकवती कहे माहरु रे लाल, आपो चापो ते नूपुर मुज नाथ ॥ कुमर कहाथी रे मतिसागर तदा रे लाल, सोप्यु सोंग्यु कनकवतीने रे हाथ ॥ २०॥ २ ॥ पुनरपि वोली रे कनकवती तदा रे लाल, साचुं साधु कहो मुझने तुमें कंय ॥ फिदायी जडयु रे ए नूपुर माहरु रे लाल, नांखो नाखो तेह तणुं विरतंत ॥ २०॥ २१ ॥ खं रे ढाल ए पन्नरमी रे लाल, दावी दाखी रामविजय सुरसाल ॥ जगमांहि महोटी रे माया नारीनी रे ताल, धन्य धन्य जेणे वरजीए जाल ॥ २० ॥ २२ ॥ सर्वगाया ॥४७॥ लोक तथा गाया मली ॥७॥
॥दोहा ।। ॥ कनकवती कहे जिहां काणे, पडियुं नूपुर स्वामि ॥ ते स्थानक दी तुमें, के निसुएयुं तस नाम ।। २ ।। कनकवती कहे कंतजी, ए दीतुं तमें
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३२६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. रीज ॥ पण अन्ये जो कह्यु होवे, तो करूं अग्निनी धीज ॥ २ ॥ एमकही चिंतातुर थइ, दे गलहबो गाल ॥ गत उत्साहा कामिनी, नीचं रही। निहाल ॥ ३ ॥ चिंताजलनिधिमां पडी, नयण करे बहु नीर ॥ देखीने कायर थयो, कुंवर घणो दिलगीर ॥ ४ ॥ मोहनगारी मानिनी, मोह्यो संघलो लोक ॥ साहमा उशियाला करे, जव ले वेसे शोक ॥ ५ ॥ वा त करे कुंवर हसी, नयरा सलूणे ताम ॥ रोप न कीजे वालही, प्रेम त णे ए ताम ॥ ६ ॥ दोप नहिं तुझमां किस्यो, ढुं जाणुं निर्धार ॥ वात सुगी हर्पित थइ, कनकवती तेणि वार ॥ ७ ॥
॥ ढाल शोलमी॥ ॥नयर रतनपुर जाणीयें ॥ ए देशी ॥ कुंवर निजमंदिर गयो, मित्र सहित हर्पित थयो, नवि नयो, रोप किश्यो लवलेशथी ए॥ १ ॥ रातें - बली गुणधर्म ए, आव्यो नारीघरमें ए, शमै ए, एकांतें उनो रह्यो ए ॥२॥ - - वात करे ते दासी ए, सुण स्वामिनि नन्नासी ए, जासी ए, तिहां क्यारें वेला दुई ए॥३॥ वेलातिकम थाशे ए, तो विद्याधर रीसाशे ए, गाशे ए, तुज विण तिहां कुण गीतने ए॥॥ निसासो तव नाखे ए, कनकवती एम जांखे ए, राखे ए, लाज शहां प्रनु माहरी ए॥५॥ मंदनाग्य धपीयाणी ए, कठिन ए कर्म कमाणी ए, जागी ए, कीधी थावे आपणी ए॥६॥जनक घरे विद्याधरें, एवं मुजने अति आदरें, खेचरें, पूर्वे शपथ करावियो ए॥ , ॥७॥ मुफ आदेश यया विना, कांत म सेवे एकमना, रीफना, वोल में बोलिश कंतमु ए ॥॥ रातें वेसी विमानमां, आवेवं मुफ शानमां,तानमां, मन रहे मानिनी ए॥ ए ॥ एह कह्या उपरें वली, ए दी थइ व्याकुली, मन रुली, परण्यो ए राजकुमारने ए ॥ १० ॥ ए पियु मुज वजन घj, एहनी उपमा शी जणुं, मन तणुं, चिंतित माहाँ मन लहे ए ॥११॥ पण ... तिहां जाती एवं सही. जाणी वात सकल सही, बली कही, वात ते एवं वातडी ए ॥ १२ ॥ विद्याधर दीठो तिहां, नित प्रति जा ढुं जिहां, कहो किहां, वात लही ए माहरी ए ॥ १३ ॥ कुण जाणे मुफ पीयु नणी, . विद्याधर दणे निर्गुणी, अवगुणी, के अथवा मुमने दो ए ॥ १४ ॥ था शंका मुक मोटी ए, बहेनी चित्तमा खोटी ए, चोटी ए, दीधी खेचर हाथमा ए ॥१५॥ यावन काल नवीन ए, बहुल उपाय अधीन ए, अदीन
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ए, उत्तम कुल ए माहरूं ए ॥ १६ ॥ लोक विपम ए वांको ए, जेम तेम सवय निःशंको ए,आंको ए, कोइ नहिं सुफ कर्मनो ए॥ १७ ॥ तथा च श्लोकक्ष्यं ॥ नवीनोयौवनारंनो, वह्वपायः प्रवर्तते ॥ उत्तमे च समा ख्याते, पितृश्वसुरयोः कुले ॥१॥ अत्यंतविपमोलोको, या तछा प्रज पति ॥ कार्याणां गहनत्वेना, कुलीतूतास्मि सर्वथा ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ वात सुणी दासी कहे,स्वामिनी आज तुं इहां रहे, मत बीहे, याज तुं हूँ जाइश एकली ए ॥ १७ ॥ कहिश हुँ माहरी ते सखी, कांक मीलें सुःखी, मन रखे, रोप हैयामां लावता ए॥ १ ॥ कनकवती कहे तुज विना, कुण पूरे मुफ कामना, नामना, ताहरी माहरे मन वसी ए ॥ २० ॥ रचिय विमान ते सोंपीयुं, जे जोश्ये ते आपीयु, स्थापियुं, प्रेम घणे ते नपरें ए ॥ २१ ॥ कुमर विचारे एहनो, राग ए सवल सनेह नो, मेहनो, दरिसण जेम चातक मनें ए॥ २२ ॥ दासीसाथै बाज ए, जाइ करुं निज काज ए, लाज ए, हवे एहनी राखु नहिं ए ॥ २३ ॥ स्त्री नाटक जोवा तपी, होंप हैये एहने घणी, नवि गणी, लाज एणे निज कुल तणी ए ॥ २४ ॥ परनारीने पाप ए,लहियें बदु संताप ए, आप ए, जगगुरु एम जांखे सुपो ए ॥ २५ ॥ यतः ॥ पंढत्वमिडियवेदं, दोनोग्य च नवे नवे ॥ नवेन्नराणां स्त्रीणां चा, न्यकांतासक्तचेतसाम् ॥३॥ पूर्व ढाल ॥ काढुं कूटी वांक ए, ए मुफ पागल वाक ए, लांक ए, जो एह नी केडनो ए ॥ २६ ॥ वेठो तेह विमानमां, मी चाल्युं असमानमां, ता नमां, तुरत जइ पहोच्युं तिहां ए ॥ १७ ॥ चेटी विमानथी उतरी, खेचर ने प्रणिपत करी, यादरें, उनी जिनालय प्रावीने ए ॥ २७ ॥ खेचर पूछे एवडी, कां रे तुज वेला चढी. परवडी, तुज स्वामिनी दीसे नहिं ए ॥२॥ कहे कांक तन काहेलो,मर्म कह्यो में माहिलो, बाहलो, सुणी वेरी था चोलीयो ए॥ ३० ॥ स्नान करो तुमें खेचरा, ए पापिणी दासी वरा, सा दरा. करं चिकित्सा एहनी ए ॥ ३१ ॥ एम कहीने केश यही, दासी वि चारी जोइ रही, कोई नहीं. जे तोडावे तेहने ए ॥ ३२ ॥ खड्ग नगामीने रह्यो, नवि माने कोइनो कहो. नवि नह्यो, परमारथ पर मन तणो ए॥ ३३ ॥ स्त्रीहल्या महोटी कदी, क्रोध चढयो जाणे नहिं, जग सही, क्रोध यमि ए श्राफरी ए ॥ ३४ ॥ समर समर जे ताहरे, दासी कहे एक मा
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३७ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. हरे, वाहारें, श्री गुणधर्म कुमारजी ए ॥ ३५ ॥ त्रिनुवनपूज्य ए जिनवरु, महारे एह परमेश्वरु, सुरखकरु, आ नव परनव ए सही ए ॥ ३६॥ ते समस्यो जिन चित्तथी, हवे न चूकुं ध्यानथी, कोहि नथी, मुज चिंता मर वा तणी ए ॥ ३७ ॥ नहिं को मात ने नात ए, महारो सगो सुजात ए, वात ए, एक गुणधर्मनी माहरे ए ॥ ३० ॥ खड्ग उपाडे जाम ए, कुम रें हांक्यो ताम ए, काम ए, नीच तणुं मांमधु किस्मु ए ॥ ३ ॥ प्रकट थइने एम कहे, नारीवध नव नव दहे, सदहे, सजान गुरुनी शीखडी . ए॥ ४० ॥ यमुक्तं ॥ विश्वस्ते व्याकुले लोके, बालवमाऽवलाजने ॥ प्रह रंति च ये पापा, ध्रुवं ते यांति उगतिम् ॥ ४ ॥ पूर्वढाल ॥ स्त्रीहत्या पात क तणा, कारक सांजल निर्गुणा, तुफ तणा, अवगुण हुँ केता कहुँ ए॥ ४१॥ प्रायश्चित्तनो दाता ए, मलियो ढुं विख्याता ए, झाता ए, जेम जग माहे गुरु कह्यो ए ॥ ४२ ॥ विद्याधर तव वोलीयो, अंतरपट सवि खोलीयो, मलीयो, मनोवांनित सवि माहरो ए ॥ ४३ ॥ जेहनो घात में ध्याइयो, ते मुज सहामो वीयो, पाइयो, तुं कीy हवे ताहरूं ए॥ ४४ ॥ सहामा वेदु आवी घड्या, वलीया बहु रोपें चड्या, ते लज्या, एक कामिनीने कारणे ए ॥ ४५ ॥ अवसर लही कुमार ए, कीधो तेहने प्रहार ए, सार ए, शिर उद्यं खेचर तणुं ए॥ ४६ ॥ सेवक सहु तस ना ना ए, कर दीता घणुं काता ए, मान ए, कर्म कखां आवे नदे ए॥ ४७॥ सहुने दीध दिलासो ए, शा माटें तुमें नासो ए, सांसो ए, मत क रशो कोई रागनो ए ॥ १७ ॥त्रण वाला आवी नमी, अमें परवशता बदु खमी,सवि शमी,थापद याज अमारडी ए ॥४॥ बहे खंमें शोलमी, ढाल सऊन मन संक्रमी, नवि गमी,राग दशा परनारीनी ए॥५॥५४॥१॥
॥दोहा॥ ॥ अमने मूकावी तम्हें, विद्याधरयी याज॥ बोडावे जीव पापथी, जे म गुरु गरीव निवाज ॥ १ ॥ कहे गुणधर्म कुमार जी, कुण तुमचो अव दात ॥ एक चतुरा वोली तिहां, सुरा स्वामी मुज वात ॥ २ ॥ शंखपुरा निध नयरनो, राजा उसनराज ॥ पुत्री कमलवती अg, तेहनी हुँ महा राज ॥ ३ ॥ जय एहने में वनहो, वांग्यो नहिं लगार ॥ कुमर कहे जय नेहथी, किंवा कोप विकार ॥ ४ ॥ कुमरी कहे ए उपरें, नहिं नेह तिल
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श्री शांतिनायनो रास खंम हो. ३शए मात ॥ रमती मुमने अपहरी, कुटिमयकी कुजात ॥५॥ निजरसना बेदन जपी, ढुं तव थइ उजमाल ॥ तब खेचर मुझने कहे, म मर म मर सुण वाल ॥ ६ ॥ रमण कह्या विण माहरे,पडिवजवो नहिं प्रेम । मुफ समी - प नित्य थाव, रजनीमांहे देम ॥ ७ ॥ तुज सुशीलने होयशे, मुज
अनुनाव विमान ॥ शीखवगुं नाटककला, करे मुफ आगल गान ॥ ७ ॥ एम जो बाणा माहरी, माने तुं निर्धार ॥ तो मूकुं तुज जीवती, में मा न्यु तेण वार ॥ ए ॥ एम बीजी त्रीजी तया, वश कीधा एवं स्वामि ॥ तुमें एहने हणतां यकां, सास्युं अमाझं काम ॥ १० ॥
॥ढाल सत्तरमी॥ ॥ पंथीडा रे संदेशडो ॥ ए देशी ॥ कुमर सुणी एम वातडी, कहे तेह नेजी धाम ॥ जा तुमें निजमंदिरे, करो उत्तम काम ॥ १ ॥ नाग्य - चलें वालम वडो, मल्यो पुण्यनें योग । चेटी मन हरखी घj, मुज स्वा मिनी योग ॥ नाग्य० ॥ ॥ दासी संघातें हो आवीयो, कुंवर निज धाम ॥ कनकवती दासी जणी, पूरे एम ताम ॥ जाग्य० ॥ ३ ॥ शुं मु ज कंतें मारियो, ते खेचर उष्ट ॥ वात कही सवि मांमिने, थइ सांजली तुष्ट ॥ ना० ॥ ४ ॥ निज पियु पौरुप सांजली, नुजवल परशंस ॥ करती हो कंतने पय नमे,हरख्यो निज हंस ॥ ना ॥ ५ ॥ वात करे रसरंगनी, नामिनी जरतार ॥ मूकीहो मननो अांतरो, गणे धन्य अवतार ॥ना॥ ६ ॥ गोष्टि करे मन मेलिने, हैडे धरी हेज ॥ रात समे तेणे मंदिरे, पो ढयां सुख सेज ॥ ना० ॥ ७॥ सूतां हो यावी निड्डी, रमतां तेणें रात ॥रा असरें जे नीपनी, निसुणो ते वात ॥ जाण ॥ ७ ॥ हतवि याधर बंधवो, अनुजात ते वार ॥ निजवंधव माख्यो सुणी, चढ्यो क्रोध अपार ॥ ना० ॥ ए ॥ श्राव्यो हो री दोडीने, जिहां सूतां हो दोय ॥ जुदा हो वेदुने समुश्मा, नाखे खेचर सोय ॥ ना० ॥ १० ॥ जुवो हो विपयनी वारता, अनरथ एम थाय । विपय विलुशं मानवी, फरे चिद्धं गतिमांय ॥ ना० ॥ ११ ॥ नाग्यसंयोग हो पामीयो, गुणधर्म कुमार ॥ फलक कोई वाहण तj, जसमां तेणी वार || ना ॥ १२ ॥ वेलें तणा तो दो चालियो.यति पुरवीयो हो दीन ॥ ज़रव्यो तरप्यो हो अति घणो, सद्ध कर्म याधीन || नाम् ॥ १३ ॥ सातमे दिवस हो कुमरजी, जलनि
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३३० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. धितट दीव ॥ पार लही जमतां थका, तापस एक दीत ॥ ना ॥१॥ प्रणिपत्य करी वेठो तिहां, आवी दुःखिणी हो ताम ॥ कनकवती निज . वनना, मन चिंते हो आम ॥ ना ॥ १५ ॥ [ ए कनकवती होवे, आ. वी हशे केम ॥ कुमरनो संशय वारवा, कुलपति कहे एम ॥ ना ॥ १६ ॥ याजयकी त्रीजे दिने, पहेलां सुण हि ॥ वनमांहे भावी ए कामिनी, धरती उःख अथाह ॥ जाण ॥ १७ ॥ तरुशाखायें निज यातमा, बांधीने हो तेह ॥ मरवाने उद्यत थई, तुज विरहें हो एह ॥ ना० ॥१॥ पाश बेदी में जीवती, राखी ए बाल ॥ आश्रम आणी हो माहरे, साले प्रेमनुं साल ॥ ना० ॥१॥ जाणी आगमन निमित्तथी,ताहरु ण ठार ॥ । राखी दिलासो में देने,ताहरी ए नारि ॥ ना० ॥ २० ॥ वात सुणी हर्षि त थयो, मिव्यां दंपती दोय॥ विरह टल्यो शाता थर, करे कर्म सो होय ॥ नाम् ॥ २१ ॥ कदली आदिक तरुफलें, करी प्रागनी वृत्ति ॥ रातें हो सूतां लतागृहें, वेदु थइ निश्चिंत ॥ ना ॥ २२ ॥ सात दिवस जलमां गया, सात वरस समान ॥ वहाली हो ताहरा विरहनु, थयुं उःख असमान ॥ जा ॥२३॥ आज वियोगनुं सुख टल्यु, यो शीतल अंग ॥ पुण्यसंयोगें हो ताहरो, मल्यो मुझने हो संग ॥ना ॥ २४ ॥ सुख निज्ञमांहे पोढियां, जूवो कर्म विलास ॥ खेचर आव्यो हो तिहांकणे, विरुई विपयनी आश ॥ जाण ॥ २५ ॥ पुनरपि वेदुने उपाडीने, नारख्यां समुश्मकार ॥ वैर वधे जेहथी घणां, बंको विषय विकार ॥ ना० ॥२६॥ घायु जोरावर वेदुनु,तरी फलकें हो नीर॥वेदु मट्यां वली एकतां,पामीज लनिधि तीर ॥ जाण ॥ २७ ॥ कुमर कहे सुण कामिनी, विधिविलसित ।। एह ॥ विषयासक्त ए जीवने, शो विपत्ति संदेह ॥ना॥२॥ यतः॥अनेनैव विरागेण, त्यक्ताशेषपरिग्रहाः ॥ निर्ममत्वान्महासत्त्वा, स्तपः कुर्वति साधवः ॥१॥पूर्वढाल॥ कनकवती कहे कंतने, श्यो खेद ए नाथ ॥ पौरुपढूंते विपा द कां, करो जेम अनाथ ॥ जा ॥२॥ यतः॥ दीनोधारोन विदधे, नैक बत्रा कता मही ॥ विपया नोपजुक्ताश्च, प्रकामं खिद्यसेंग किम् ॥ २॥पूर्व ढाल॥वात रमणीनी हो सांजली,गुणधर्म कुमार॥नारिसंघातें हो रातमां, रहे ते दुशीयार ॥ना॥३०॥ के. विद्याधर यावियो, वैर लेवा काज ॥ जा इश किहां वलि पापीया, नहिं महेनुं आज ॥ ना॥ ३१ ॥ साहस धरी
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३३१ सहामो थयो, जोरावरकाय ॥ विद्याधरने हो जिंतीयो, तेणें लीलामाय ॥ जाण ॥ ३२ ॥ जीवतो महेट्यो हो तेहने, नम्यो कुमरने पाय ॥ श्राप श्रखंग रह्यो तिहां, निरुपम याय ॥ जाण ॥ ३३ ॥ बछे हो खमें स त्तरमी, नांखी ए ढाल ॥ राम कहे धन्य ते जेणे, तजी विपयनी जाल । ना० ॥ ३४ ॥ सर्वगाथा ॥ ५ ॥ श्लोक तथा गाथा मली ॥१४॥
॥दोहा॥ ॥ स थाणा कुलपति तणी, श्रीगुणधर्म कुमार ॥ प्रिया सहित कोई पुर जपणी, चाल्यो हर्प अपार ॥ १ ॥ जातां पुर वनमा मल्या, गुणरत्नो दधि साध ॥ शांतमूर्ति सोहे चला, वरते सहज समाधि ॥ २ ॥ प्रिया सहित प्रणमे जई, ते मुनिवरना पाय ॥ धन्य गणे निज धातमा, थयो रोमांचित काय ॥ ३॥ योग्य जीव जागी करी, मुनिवर पाणी नाव ॥ धर्म कहे जिनवर तणो, विषय रहित समनाव ॥ ४ ॥
॥ ढाल अढारमी ॥ ॥ रंगीले आतमा ॥ ए देशी ॥ कहे मुनिवरजी देशना, देशना सांनलो जवि चित्त लाय ॥ वैरागीयातमा॥चौद राजके चोकमें, चोकमें नव नव वेश चनाय ॥१॥ वैरागीयातमा॥ लाख चोराशी योनिमां, योनिमां रहीयो काल अनंत ॥ वे ॥ एथिवी पाणी तेउमां, तेउमा वायु कह्यो जगवंत ।। वै० ॥ २ ॥ सात सात लद एहोनी, एहोनी योनि कही जिनराज ॥ वे ॥ वण प्रत्येकमां जीवनी, जीवनी दश लद योनि समाज ॥ वे ॥३॥ साधारणमा जागीय, जाणियें चोदश लाख विचार ॥ वै० ॥ विति चउ इंडिय जीवनी, जीवनी दो दो कहि निरधार ॥ वै० ॥ ४ ॥ देव धने वली नारकी, नारकी योनि कही चन चार ।। वै ॥ पंचेंश्यि तिर्यंचमां.तिर्यंचमां चन लद चोनि संचार ॥ वे ॥ ५ ॥ चदश जद मनुजनी, मनुंजनी तेम जाणो गुणवंत ॥ वे ॥ फिरतां लक्ष् चोराशीमें, चोराशीमें वीत्यो काल धनंत ॥ 4 ॥ ६ ॥ जाति ने योनि रही नहिं. रही नहिं जिहां नवि यायो ए जीव ॥ ॥ जन्म मरण कीयां घणां,कीर्धा घणां दुःखीयो एह अतीच ॥ २० ॥७॥ ॥ नमा जान सा जोगीन नं नाणं न तं कुलं ।। न जाया न मुन्धाजल, सा जीवा थपंतसो ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ यं सोये तुं रुगग्में, गरम
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जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. त्रिदु जण लाग्या केड ॥ वै ॥ चेतन चेतो हो चित्तमां, चित्तमा ए उशमनकुं फेड ॥ वै ॥ ७ ॥ खावंद माल अनंतके, अनंतके क्युं रहे होय दिलगीर ॥ वै ॥ आप दशा परगट करो, परगट करो ज्यु जांजे . नवनीर ॥ वै ॥ ए॥ साहिब दास ज्यु दुइ रह्यो, दुइ रह्यो इंख्यिके . आधीन ॥ वै ॥ पान करी मदमोह को, मदमोहको क्युं वेठो मिश कीन ॥ वै० ॥ १० ॥ यतः॥ आत्मनूपतिरयं चिरंतनः, पीतमोहमदि : राविमोहितः ॥ किंकरस्य मनसोपि किंकर, रिंडियैरदह किंकरीकतः ॥॥ पूर्वढाल ॥ चेतन तेरे राजमें, राजमें विषय करे क्युं जोर ।। वै० ॥ मित्र . दुश् याइ मिले, आइ मिले ए पांचोंही चोर ॥ वै० ॥ ११ ॥ क्षण सुख तोकू चखायकें, चखायके नाखेंगे ले दूर ॥ वै ॥ ए संसार अनादिको, अनादिको वहे विषयाके पूर ॥ वै ॥ १२ ॥ यउक्तमागमे ॥ दणमित्त सुरका वहुकाल उरका ॥ निंद निवारो हो मोहकी, मोहकी आलस अलगुं नाखि ॥ वै ॥ घटमें ज्ञानदीपक करो, दीपक करो सुमति उघाडो आंख ॥ वै ॥ १३ ॥ देशन सुणी गुरुराजकी, गुरुराजकी श्री गुणधर्म कुमार ॥ वै० ॥ मोह मट्यो ममता घटी, ममता घटी नागे विपय विकार ॥ वै ॥ १४ ॥ कनकवती निज नारीने, नारीने कहे लीजें अब दीख ॥ वै० ॥ संयम मारग आदरी, आदरी चलियें सजुरु शीख ॥ वै ॥ १५ ॥ सा कहे विषय निवारणी, निवारणी नवयौवन वय एह ॥ वै० ॥ सुख विलसो संसारनां, संसारनां दोहिलो ए नवल सने ह ॥ वै० ॥ १६ ॥ वृक्षपणामां वालहा, वालहा कीजें योग अन्यास ॥ वै० ॥ योगदशा यावे नहीं, आवे नहीं जिहां लगें विपयपिपास ॥ वैग ॥ १७ ॥ यउक्तं ॥ शैशवेऽज्यस्तविद्यानां, यौवने विषयैषिणाम् ॥ वार्धके मुनिवृत्तीनां, योगेनांते तनुत्यजाम् ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ कहे गुणधर्म ए धर्मनो, धर्मनो वृक्षपणे नहिं लाग ॥ वै ॥ जर्जर वय तनु वल घटे, बल घटे वाधे तृष्णा अताग ॥ वे० ॥ १७ ॥ यमुक्तं ॥ घायुग़लत्यागु न पापबुद्धि, गैतं वयो नो विपयानिनापः ॥ यत्नश्च नैपज्य विधौ न धर्म, स्वामिन्नहो मोहविडंवना मे ॥ ४ ॥ अंगं गलितं पलितं मुंमं, दशनविहीनं जातं तुंमम् ॥ तृशोयाति गृहीत्वा दम, तदपि न मुंचत्याशापिमम् ॥ ५ ॥ पूर्वढाल ॥ यौवनमां पण कोइने, कोइने थावे वैराग्यनो नाव ॥ वे ॥
अखाडो थांख ॥ ॥ मोह मध्यो बता निज नारीने, चलिये सजुर
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३३३ तंत नही ए वय तपो, वय तणो धर्म विपे मन नाव ॥ वै० ॥ १५ ॥ कनकवती कहे पूठीने, पूढीने घायु तणुं अवसान ॥ वै ॥ आदरजो तमें दिरकने, दिरकने यो एवं मुज मान ॥ वै० ॥ २० ॥ मन विषु मानी वातने, वातने वांदी गुरुना पाय ॥ वै ॥ नगर जणी चाल्यो तदा, चाल्यो तदा जोजन पान नपाय ॥ वै० ॥ २१ ॥ काननमां मूकी करी, मूकी करी कनकवती तरु हेठ ॥वै ॥ राजकुमर तिहां आवीयो, धावियो गुणचंई सा दीत ॥ वै० ॥ २२ ॥ राग लह्यो देखी करी, देखी करी मा निनी मोहनगार ॥ वे ॥ पूढे हो आवी तेहने, तेहने तुं केनी घरनारि ॥ वै० ॥ २३ ॥ किण कारण इहां एकली, एकली योवनरूप रसाल ॥ ॥ वे० ॥ तुज जरतार किहां अडे, किहां अछे कहो मुझने इण काल ॥ ॥ वै० ॥ २४ ॥ राग सही ते कुमरनो, कुमरनो निज जरतार वैराग्य ।। ॥ वै ॥ निज वृत्तांत कयुं सवि, कमु सवि मोही रही तस राग ॥ वै ॥ २५ ॥ लागी नयनी धाशकी, याशकी जोइ रह्यां अनिमेप ॥ वै०॥ नयण कमलदल पांखडी, पाखडी मोह्यो कुंवर ते देखि ॥ वै० ॥ २६ ॥ यतः ॥ दोहो । नयण पदारथ नयारस, नयरों नयण मिलंत ॥अगजा एयायु प्रीतडी, पहेलां नयण करंत ॥ ६ ॥ पूर्वढाल ।। नोग तपी करेप्रा र्थना, प्रार्थना करे गुणचंद कुमार ॥ वै०॥ यावो हो मानिनी मुफ घरे, मुजवरे सफल करो अवतार ॥ वे ॥ २७ ॥ प्राणप्रिया करि रावा, राख' देगुं नहिं क्षण देह ॥ वै ॥ अवर जणी नवि यादरूं, धादरूं तुझ कपर मुफ नेह ॥ वै० ॥ २७ ॥ कनकवती मन चिंतवे, चिंतवे श्यो पीयुगुं हवे नेह ॥ वै० ॥ उघडशे नहिं माहरू, माहरूं भारवर ए निः स्नेह ॥ वै० ॥ २ ॥ जावं ए राजकुंवर घरे, कुंवर घरे नोग, लीलवि लास ॥ वे ॥ कहे बंची जरतारने, जरतारने याविश ढुं तुम पास ॥ ।। वै ॥ ३० ॥ राजकुंवर गयो मंदिरे, मंदिरें मोह्यो तेहने रूप ॥ वै॥ जगमाहे विषय समो नहिं, समो नहिं महोटो कोई विरूप ॥ वै॥३१॥ के दो खेमें अढारमी, अटारमी ढाल विचारो एह रावणा राम कदे जग कारिमो, कारिमो धिन धिक् नारीनेह ॥३०॥३॥ सर्वगाथा ॥६॥२०॥
॥दोहा सोरठी ॥ ॥ हवे गुणधर्म कुमार, पुरमा जइ उना रह्यो । को न दिये धावकार,
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३३४ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. बाथ विना आदर किस्यो ॥ १ ॥ मनमांद चिंते नारि, नूरखी होशे मा हरी ॥ करूं इहां कवण प्रकार, धन विण जोजन किहांथकी ॥॥ यतः॥ पुत्ताय सोसाय ॥ मंगाये नहीं जीख, नूरख्यां रहेवाये नहीं ॥ न रही मनमां शीख, रमवा वेठो जूवटे ॥३॥ कांइक धन उपारजि, तुरत करावी रसवती ॥ लेई मंमक साज, उद्याने आवे वही ॥ ४ ॥
न रही मनमा लेई मंझक मागणीशमी नडीयां ॥ ए.
॥किण वाटें गया वनमाली रे॥बाइ महारी बहेनडीयां ॥ ए देशी ॥ वन मांहे आव्यो उजाई रे ॥ नारी मोरे मन वसीयां ॥ कहे जोजन लाव्यो ढुं धाई रे ॥ नारी नवि उन्नसियां ॥ कहे कुमर सुणो सुकुमाली रे ॥ नारी मो० ॥ तुने जूखें घणुं परजाली रे ॥ ना ॥ १ ॥ श्रावी कुंवर वेठो जोडें रे ॥ नारी ॥ आपण कीजें जोजन कोडें रे ॥ ना ॥ मन विण भोजन वेठी रे ॥ ना० ॥ पण मनमांहे चिंता पेवी रे ॥ ना ॥२॥ . नवि बोले रसीली वातो रे ॥ना॥ प्रिय चिंते एहनी फरि धातो रे ॥ना॥ वोले नेहविहूणी वाणी रे ॥ ना ॥ कुंवरें तस वात पिजाणी रे ॥ ना ॥३॥ एणे मुफा मोह ततायो ॥ना॥ बीजो कोक दिलमांहे धास्यो रे ॥ ना ॥ धिक् धिक् धिक् नारीनेहा रे ॥ ना० ॥ दणमांहि देखाडे बेहा रे ॥ ना ॥४॥ जाणतो हतो प्यारी रे ॥ ना ॥ पण एह सवल धूतारी रे ॥ ना ॥ में पाप कटुंण माटें रे ॥ ना ॥ उर्गति परणी ए साटें रे ॥ना॥५॥ करी एहने में साव सोनानी रे ॥ना॥ पण न रही जाति ए बानी रे ॥ ना० ॥ मुफ सम नहिं कोई अज्ञानी रे ॥ ना ॥ . समजाव्यो हतो मुफ ज्ञानी रे ॥ना॥६॥ वनमां को मिप करी चाव्यो रे ॥ ना ॥ बागल एक पुरुप निहाल्यो रे ॥ ना ॥ तेणें पूज्यु कुमरने थाई रे ॥ ना० ॥ ॥ गयो राजकुंवर गुंजाई रे ॥ ना ॥ ७ ॥ कहे राज कुंवर कोण आयो रे ॥ ना० ॥ इहां जे तुमें मुझने वतायो रे ॥ ना० ॥ कहे ते नर सुण विदेशी रे ॥ ना ॥ इहां याव्यो कुमर अम देशी रे ॥ ना० ॥ ॥ नृपनंदन गुणचंड नामें रे ॥ ना ॥ श्राव्यो वन जो वा कामें रे ॥ ना ॥ ते साथें नारी एक वोली रे ॥ ना ॥ करी वात ते मनडं खोली रे ॥ ना० ॥ ए ॥ तस घाणायें अलगो जाई रे ॥ ना० ॥ श्राव्यो हां कणे नाई रे ॥ ना० ॥ ते माटें पूढे वात मीही रे ॥ ना०॥ .
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श्री शांतिनायनो रास खंग उठो.
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नारी तस घर जाती दीवी रे ॥ ना० ॥ १० ॥ ते गइ एम उत्तर दीधो रे ॥ ना० ॥ ते चाल्यो नगर नली सीधो रे ॥ ना० ॥ मनमांहे करे एव चार रे ॥ ना० ॥ कनो गुणधर्म कुमार रे ॥ ना० ॥ ११ ॥ तद्यथा ॥ दध्यो च नोपकारेण, नांजसा दंत योषितः ॥ गृह्यंते न कुलं शीलं, मर्यादां गणति च ॥ १ ॥ रहोन जायते यावत्, ऋणस्यार्थयिता न च ॥ सतित्वं तावदेतासां, नारीणां नारदोऽवदत् ॥ २ ॥ पूर्वढाल || एम चिंती कुमर तिहां खावी रे ॥ ना० ॥ तेहने एम तेणें समजावी रे ॥ ना० ॥ कहे तो तुक मोशाल मूकूं रे ॥ ना० ॥ हुं नवनावतथी चूकूं रे ॥ ना० ॥ १२ ॥ तिहां पासें नगरमा यावी रे ॥ ना० ॥ तेहने मातुलघरे वो लावी रे || ना० ॥ जइ तेह मुनिनी पासें रे || ना० ॥ ग्रहे चारित्र दिल उल्लासें रे ॥ ना० ॥ १३ ॥ करे किरिया तप तपे काठां रे ॥ नाणा घणां कर्म खपाड्यां मागं रे ॥ ना० ॥ थयो तेह माहाव्रत धोरी रे | ना० ॥ चढती परिणामनी दोरी रे | ना० ॥ १४ ॥ करि यास सुरपद लीधुं रे ॥ ना० ॥ तेहनुं वांबित कारज सीधुं रे ॥ ना० || तिहांथी चवि नर जव पामी रे ॥ ना० ॥ ते थाशे शिवगतिगामी रे ॥ ना० ॥ १५ ॥ वे कनकवतीनी कहाणी रे ॥ ना० ॥ निसुणो तुमें सहुये प्राणी रे ॥ ना० ॥ श्रावी मातुलघरथी रीसाथी रे ॥ ना० ॥ थइ गुणचंदनी थपि चाणी रे ॥ ना० ॥ १६ ॥ राजकुमरने ते घणुं प्यारी रे | ना० ॥ तेणे मूकी वर विसारी रे | ना० ॥ तव चिंते हो पहेली राणी रे ॥ ना० ॥ एणें नारी कुजात ए प्राणी रे ॥ ना० ॥ १७ ॥ एणें कामण मोहन कीधो रे ॥ ना० ॥ महारो पियुडो वश करि लीधो रे || ना० ॥ जगमांहि खार ए महोटो रे ॥ ना० ॥ परनवडुःखदायी खोटो रे ॥ ना० ॥ १८ ॥ तेणें नोजनमां विष दीधुं रे ॥ ना० ॥ मारी कनक वतीने वेर लीधुं रे ॥ ना० ॥ ध्यान रोमांहे ते मूई रे ॥ ना० ॥ पोथी नरके नारकपणे दूई रे ॥ ना० ॥ १५ ॥ जुवो उत्तम कुननी जाई रे ॥ ना० ॥ शी कीधी कर्मकमाई रे ॥ ना० ॥ दुःखमांहे काल निर्गमशे रे ॥ ना० ॥ तिहांथी नव बहुला नमो रे ॥ ना० ॥ २० ॥ कहे प्रभुजी शांति जिलंदा रे ॥ ना० ॥ विरुथा ए विषयना फंदा रे || ना० ॥ दुःखदायी ए विषयमादो रे ॥ ना० ॥ महोटी जग ए उन्मा
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
दो रे ॥ ना० ॥ २१ ॥ ए वर्जे ते सुख पावे रे || ना० ॥ सुर नर मली तस गुण गावे रे || ना० ॥ ए विषय उपर वीतरागें रे ॥ ना० ॥ कही वात सवल वैरागें रे ॥ ना० ॥ २२ ॥ बहे खंमें जंगलीशमी दाखी रे ॥ ना० ॥ ए वात हैयामां राखी रे | ना० ॥ कहे राम जे करशे करणी रे ॥ ना० ॥ वरशे शिवलीला गृहिणी रे ॥ ना० ॥ २३ ॥ इति विषये गुणधर्मकनकवती संबंधः ॥ १ ॥ सर्वगाथा ॥ ६५१ ॥ श्लोक तथागाथा ॥२२॥ ॥ दोहा ॥
॥ कहे प्रभु चक्रायुध निसुण, एह विषय अधिकार || दवे कपाय क पर कहुँ, नागदत्त विस्तार ॥ १ ॥ वईमान जिनवर तणे, वारे होो तेह ॥ यागामिक हमणां कहुं, वात सुखो ससनेह ॥ २ ॥ नहिं कषाय विष्णु विषय को, तस नाशें जवनाश || जवनाशें शिव संपजे, सहजानंद विलास ॥ ३ ॥ करे चक्रायुध स्वामीने, कर जोडी अरदास ॥ नागदत्त संबंध मुज, जगङ्गुरु परकाश ॥ ४ ॥ ॥
॥ ढाल वीशमी ॥
॥ म म करो माया काया कारमी ॥ ए देशी ॥ वसंतपुर नरत जंबू तणे, समृद्ध वसुदत्त दोय नंद रे ॥ सरलमन शांतगुण शोनता, मधुर मुख वाणी सुखकंद रे ॥१॥ शांति जिनराज एम उपदिशे ॥ ए व्यांकणी ॥ सवि सुणो पर्पदा वार रे || कटुक फल एह कपायनां, जाणी वर्जों सुविचार रे ॥ शांति ॥ २ ॥ व्यवहरे तेह मैत्रीपणे, मन कह्यो निश्चय एम रे ॥ एक जे कारिज यादरे, प्रवर पण प्राचरे तेम रे ॥ शां० ॥ ॥ ३ ॥ दोय ज्यानमां यवीया, एक दिन मुनिवर दीठ रे ॥ वज्रगुप्तानिव गुप निलो, दरिसण प्रति घणुं मीठ रे || शां० ॥ ४ ॥ करिय प्रणिपत्य मुनि वरप्रत्यें, दोय कहे कहो हित शीख रे || देशना दीध जवतारिणी, नि सुणी लीधी दोय दिरक रे || शां० ॥ ५ ॥ बंधन बोडी संसारनां, दोय दुवा श्रम गुणधार रे || यंते अनशन करी उपन्या, दोय सुरलोक म जार रे || शां० ॥ ६ ॥ पण कस्युं दोय देवें तिहां, जे चवे पहेल इण वाम रे | तेणें वीजो प्रतिबोधवो, धर्मसंकेतने काम रे || शां० ॥ ७ ॥ समृद्ध दत्त जीव तिहांथी चव्यो, नरतमां प्रवतस्त्रो प्राय रे || सागरदत्तने मंदि रें, धरणिनिवास पुर वाय रे || शां० ॥ ७ ॥ धनदत्ता नारी वरकूखमां,
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श्री शांतिनाथनो रास खंग बो.
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नागसुरदत्त वर योग रे ॥ सुत थयो नागदत्तानिधो, पूर्व सुकतनो जोग रे ॥ शां० ॥ ए ॥ सकल शीख्यो कला नर तणी, जाण गांधर्वनो जोर रे ॥ चतुर पण सकल पुरजन तथा, चित्तनो ते थयो चोर रे ॥ शां० ॥ १० ॥ नाम गांधर्व पूर्वक ययुं, नागदत्त तेहनुं ताम रे ॥ कुशल वीणा कलामां घणो, गारुडीमां शिरें नाम रे || शां० ॥ ११ ॥ एक दिन तेह न यानमां, मित्र संघातें नागदत्त रे ॥ क्रीड करवा जणी चालीयो, मन धरी हर्ष अत्यंत रे ॥ शां० ॥ १२ ॥ वसुदत्त सुरें प्रतिबोधियो, बंधवा बुक तुं वूऊ रे ॥ मेल कपायने वेगला, विपयरसमां मत मूंऊ रे ॥ शां० ॥ १३ ॥ पण मनमांहि यावे नहिं इंडियें जनित सुख दास रे ॥ धर्म तीय नवि नजे, यहो हो विषय सुखपाश रे || शां० ॥ १४ ॥ जिहां लगे कष्ट दीतुं नहिं, तिहां लगें नवि करे धर्म रे ॥ चिंति एम रूप मुनिनुं करे, जुजु मित्रनो मर्म रे || शां० ॥ १५॥ सर्पकरंमक कर ग्रह्मो, नहिं रजोहरण मुखवस्त्र रे || नागदत्त पासें तें धावियो, मुनिवररूप नहिं शस्त्र रे ॥ शां० ॥ १६ ॥ पृठीयुं एह करंममां, गुं वे तव कहे तेहरे ॥ नाग क्रीडा तथा एहमां, सांजन वे गुणगेह रे || शां० ॥ १७ ॥ वोलियो नाग वृत्त माहरा, नाग क्रीडाव तुं याज रे ॥ ताहरा नाग खेलावनुं, होंशथी हुं मुनिराज रे || शां० ॥ १८ ॥ कहे ऋषि वात म करिश इसी माहरा ना गत रे ॥ क्रीडव्या जाय कोणें नहिं, एह विषधर बलवंत रे || शां० ॥ १९ ॥ देव पण ए यही नवि शके, तो इहां तुं कोणमात्र रे ॥ मंत्र यौ पथ विना ताहरे, वश न दूवे यहिजात रे || शां० ॥ २० ॥ नाग वोल्यो अभिमान, मूक जो यहि यहुं केम रे । के वली तुं यहे माहरा, सुर कहे मुक तुं देम रे || शां० ॥ २१ ॥ नागदत्त सूकिया पन्नगा, वलगीया सुरतले यंग रे || वेदना अंश नवि करि शके, दिव्य प्रभाव ए चंग रे || शां० ॥ २२ ॥ नागदत्त कोषीयो एम जणे, मूक हवे ताहरा नाग रे ॥ जोवं केहवा श्रने जालमी, नहिं इहां विलंबनो लाग रे ॥ शां० ॥ २३ ॥ मेल इहां स्वजन सविताहरां, कर इहां पंचनी साख रे ॥ गारुडिक सुरखच सांनजी, मेनि यां सजन हित दाखि रे || शां० ॥ २४ ॥ कहे सुर कंचस्वरणी तदा, नागदन मुक यहि साथ रे ॥ क्रीडवा चित्त चाहे धणुं, पण नहिं यहि मुळ हाय रे ॥ ० ॥ १५ ॥ दोष देवों नहिं मुक्ने, जो से एहने श्रा
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३३० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ज,रे ॥ स्वजन जन सदु मल्यां वारवा, म म कर एह थकाज रे ॥ शां० ॥२६॥ वारियो पण नवि विरमीयो, मूकीया नाग विरूप रे ॥ सोय यहि वाहक एम कहे, सुणो मुंज नुजग स्वरूप रे ॥ शां ॥ २७ ॥ रक्तलो चन विष पूरितो, क्रूर दोय जीन विकराल रे ॥ क्रोध अनिधान पूरव दि शे, प्रथम एह जग संजाल रे ॥ शां० ॥ २७ ॥ आठ फणाटोप नीष ण घणो, स्तब्धतनु याम्यदिशि जाए रे ॥ यम समानो महोरग कह्यो, जेहतुं मान अनिधान रे ॥ शां० ॥ ए ॥ वंचनाकुशल जे अति घणो, पश्चिमें वक्रगति धार रे ॥ एह माया नुजंगी वडी, धरिय नवि जाय नि र्धार रे ॥ शां० ॥ ३० ॥ उत्तरदिशे वडो जालमी, लोचनामें अहि राज रे ॥ एह मशिया नरा जगतमां, पूर्ण थाये निधन राज रे ॥ शां०॥ ३१ ॥ जेहने चार ए अहिमसे, तस पड्यानुं किस्युं चित्त रे ॥ रहित या संबनें जे नरा, ते लहे कुःख विचित्र रे ॥ शां० ॥ ३ ॥ नागदत्त तेहने तव कहे, श्यो करे वातविस्तार रे॥मूक मुफ नपरें शीघ्र तुं, म कर मुज फिकर लगार रे ॥ शां० ॥ ३३ ॥ मूकीया तेणें उतावला, मंत्र औषधे नहिं साध्य रे ॥ तनु मस्युं शेठना सततj, नूमि पड्यो थश्ने असाध्य रे॥ शां० ॥३४॥ मित्र उपचार बदुला किया, नवि वली चेतना तास रे॥ एह जीवाडो एम सदुमली, वीनवे करि अरदास रे ॥ शां० ॥ ३५ ॥ तेह अहिवाहक बोलीयो, तो रहे जीवतो एह रे ॥ जे कढुं ते किरिया करे, पुष्कर घणो ससनेह रे ॥ शां० ॥ ३६ ॥ दुं पण पूरवें इण मस्यो, तास विप वारवा हेत रे ॥ कष्ट किरिया करूं एहवी, सांजलो तास संकेत रे ।। शां० ॥ ३७ ॥ केश बुंचावु निज शिरतणा,जीरण श्वेत मित मान रे॥ वस्त्र शोना विना वावलं, तप करूं शुक्ष अनिदान रे ॥ शां० ॥ ३८ ॥ उछ अच्म उपवासने, पारणे खूद थाहार रे ॥ नवि लीचं नक्त धाकंचता,पट रस विगय निवार रे ॥शां०॥ ३५ ॥ जो एम नवि करुं दुं कदा, तेह विप उदय फरी थाय रे ॥ कोइ समे वन गृह शून्यमां, जमुं नहिं मुफ एक वाय रे ॥ शां० ॥ ४० ॥ एम किरिया करतां यकां, मुज नो हे एह विप जार रे ॥ स्तोक निश करूं वली अमो, लीजियें स्तोक आहार रे ॥ शां० ॥४१ ॥ बोलीय स्वल्प मितधर्मर्नु, वाक्य मनमांहे विचार रे ॥ एम करे उष्ट ए यहितगुं, नवि चले जोर तिसनार रे ॥ शां० ॥ ४२ ॥
औषधे
मली, वानवडला किया, नाम पच्या या
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श्री शांतिनाथनो रास खंग बडो.
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'एहवी जो क्रिया ए करे, तो सही जीवे एम जाणो रे || नहिंतर ए मरो इस्युं, साजन सहु मन थालो रे || शां० ॥ ४३ ॥ कहे जन एम करशे क्रिया, तुमें करो एहने सऊ रे ॥ प्रौढमंगल तिहां यालखी, उच्चरे पाठ न क रे || शां० ॥ ४४ ॥ सिद्ध सदुने प्रणमी करी, करें मुखें एम उचार रे || सर्वथी प्राणातिपातने, सर्वथी अलिय तिम धार रे ॥ शां० ॥ ४५ ॥ सर्वथी प्रदत्त मैथुन वली, सर्व परिग्रह तेम जाए रे ॥ जावजीव नागदत्त कुमर ए, एहनां करे पञ्चरका रे ॥ शां० ॥ ४६ ॥ वार त्रण दमक एम जणी, त्र्यंतें स्वाहा पद पाठ रे || शेवसुत तेह साजो कस्यो, सुर तेणें करिय एम गठ रे ॥ शां० ॥ ४७ ॥ जा गियो स्वजन हरख्यां सवे, दाखवी तस सवे वात रे || सहदी नवि तेणें तर, सवल वली तस धात रे || शां० ॥ ४८ ॥ घर नली नीसखो तब वली, भूमि पडियो ततकाल रे || पुनरपि सयाना कहेायी, तेह जीवाडियो वाल रे || शां० ॥ ४५ ॥ वार त्रीजी वली एम सही, निश्चय कीलो जाम रे || नागदतें बात मानी तदा, देवचिंतित ययुं काम रे ॥ शां० ॥ ५० ॥ देव वनमांहि तस थालिने, निज कही पूर्वजव वात रे ॥ सुपि तेणें जातिसमरण लघुं, प्रत्येक बुध मुनि जात रे || शां० ॥ ५१ ॥ देव तस चरण वंदी करी, गयो निज ठाम घरि हर्ष रे ॥ नाग दत्त मुनि मही विचरतो, पाले याचार उत्कर्ष रे || शां० ॥ ५२ ॥ देerinuी बाहिरें, नीसरवा न दे जेह रे ॥ चार कपाय हिने सदा, एहवो मुनि गुणगेह रे ॥ शां० ॥ ५३ ॥ नागदत्त मुनि धनुक्रमें हुवा, संयमश्रेणि गुण धार रे ॥ घातिकर्मयें उपन्युं, केवलज्ञान उदार रे || शां० ॥ ५४ ॥ अनुक्रमें मुक्तिनारी वस्या, एम कहे शांति जिनचंद रे ॥ एकपायातमा वश करे, प्रगट होय सहज धानंद रे || शां० ॥ ५५ ॥ दाल के सुणो वीशमी, रामविजयें कहीं एह रे || शांति प्रभु देशना सांगली, समजजो नवि गुणगेह रे || शां० ॥ ७६ ॥ इति क पायप्रमादोपरि नागदत्तसंबंधः ॥ २ ॥ सर्वगाथा ||३१|| लोक ॥ २२ ॥ ॥ थथ प्रथम प्राणातिपात विरमणव्रतसंबंधः ॥ ॥ दोहा ॥
|| सुण राजन ए व्यादि दे, पंच प्रकार प्रमाद || परिहरो सविवे
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३४० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कीयें, मूकी मन विषवाद ॥ १ ॥ धर्म करेंवो धसमसी, नेद चार जस सार ॥ दान शील तप नावना, मोद तणां ए हार ॥ ५ ॥ नेद दोय ते धर्मना, सागार ने अणगार ॥ दशविध कह्यो अणगारनो, धर्म मुक्ति दातार ॥३॥ वीश वसा जिहां पालवी, जीवदया जली जाति ॥ ते मुनि धर्म आराधतां, करे कर्मनो घात ॥ ४ ॥ तेहथी कतरतो कह्यो, कायरने सागार ॥ बार नेद डे तेहना, समकित मूल उदार ॥ ५ ॥ दर्शन मोह कर्मोपशम, आदिथकी उत्पन्न ॥ जीवादिक श्रमान शुरू, समकित वडूं रतन्न ॥ ६ ॥ यक्तं ॥ जिथ अजिथ पुण्य पावा, सव संवर बंध मुरक निकरणा॥जेणं सदहा तयं,सम्म खगाइ बहु नेथा ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ तत्त्वत्रयनो जे सदा, अध्यवसाय विवेक ॥ ते समकित कहीयें वली; तेहना नेद अनेक ॥ ७ ॥ उक्तं च ॥ अरिहं देवो गुरुणो ॥ सम कित अरिहंत धर्मनुं, मूलचूत निर्धार ॥ ग्रंथमांहे एहनो घणो, नांरख्यो ने विस्तार ॥ ॥ मुविध उविध इत्यादिकें, हादश व्रत आचार ॥ सम कित उत्तर गुण सहित, नंग एहना धार ॥ ए॥ कोडि तेरों उपरें, तेम चोराशी कोडि ॥ वार लाख तस ऊपरें, सहस सत्त्यावीश जोडि ॥ १० ॥ दोय शत दोय कह्या वली, नंग एटला जाण ॥ ए सवैमांही शिरें, समकित प्रथम वरखाण ॥११॥ ए विण एके नंगनो, संजव नो हे तेम ॥ ते माटे अनुजी कह्यु, आगममांहे एम ॥ १२ ॥ अतएवोक्तं ॥ मूलं दार पहाणं, आहारो जायणं निहि ॥ उबकस्लावि धम्मस्त, स म्मत्तं परिकित्तियं ॥पूर्वढाल ॥ कारक रोचक दीपकें, समकित त्रिदुं प्रकार ॥ चारित्री अविरति तथा, मिथ्यादृष्टि विचार ॥ १३ ॥ पंच दोप एहना कह्या, शंका कंख विगिह ॥ तेम पसंत संथव कह्यो, वर्जे समकित संच ॥ १४ ॥ मूल एह साजूं करे, पागल होय विस्तार ॥ समकित मूल व्रत वार जे, एह धर्म सागार ॥१५॥ हवे प्रथम व्रत उपरें, नांखे प्रनु अवदात ।। ते नवियण तुमें सांजलो, मूकी विकथा वात ॥ १६ ॥
॥ ढाल एकवीशमी ॥ ॥ घरे थावी जननी नमे ॥ ए देशी ॥ शांति जिनेश्वर एम कहे, नि सुणो तुमें सार ॥ नरनव हास्यो नवि मले, एह बीजी वार ॥शां॥ १ ॥ व्रत पहेलुं सागारनु, स्थूलप्राणातिपात ॥ विरमण करीये तेहतुं, कहे त्रिल
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श्री शांतिनायनो रास खंम छो. ३४१ वन तात ॥ शां॥ २ ॥ प्राणीवध वदु नेद , दोयशे ताल ॥ नव त्रि कछु गुणतां थकां, सत्त्यावीशज नाल ।। शां॥ ३ ॥ करण करावण धनु मतें, एक्याशी विचार॥लेखवतां त्रिदुकालथी, संख्या अवधार ॥शां॥४॥ यतः ॥ नू जल जलणानिल वण, विति चन पंचिंदिएहिं नव जीवा ॥ मण वय काय गुणिया,हवंति ते सत्तवीसत्ति॥३॥श्कासी इसा करण,कारणा पुमइ ताडिया हो ॥ सच्चिय तिकाल गुणिया, उन्निसया हुँति तेयाला ॥४॥ पूर्वढाल ॥ ए सवि हिंसानेदथी, विरम्या थपगार ॥ वीश वसा तेजने कही, दया संयम सार ॥ शां० ॥ ५ ॥ यूल नगारे दश रह्या, था रंने हो पंच ॥ सापराध सापेक्षथी, अई थईनो संच ॥ शां० ॥ ६ ॥ यतः ॥ थूल सुदुमा जीवा, संकप्पारंज थ ते ऽविहा ॥ सावराह निर वराहा, सावरका चेव निरवरका ॥५॥ पूर्वढाल ॥ एम सागारी सवा वसो, फरुणा पालंत ॥ अच्युत सुर लगि घायुखं, वांधे गुणवंत ॥ शां० ॥ ७॥ पंच अतिचार एहना, वह बंधना विवेद ॥ अतिनारारोपण वली, नात पाणी विछेद ॥ शां० ॥ ॥ ए मुख्य व्रतने पालवा, वीजा वाड समान ।। जीवदया व्रत मूलगु,नांखे जगवान ।। शां०॥ ए॥ यउक्तं ॥ देवपूजागुरू
पास्ति, दीनमध्ययनं तपः ॥ सर्वमप्येतदऽफलं, हिंसा चेन्न परित्यजेत् ।। । ॥ ६ ॥ जं धारुग्ग० ॥ योदयात् ॥ निरतिचार ए पालतां, लहे लील विलास ॥ श्ह नव परनव सुख घणां, जेम ते यमपाश ॥ शां० ॥ ॥ १८ ॥ चक्रायुध पूरे जिन कहे, वरते सुखवास ॥ नयरी वाणारसीथ तिनली, नहिं दरि निवास ॥ शां० ॥ ११ ॥ उर्मर्पण राजा तिहां, न्या ची गुणवंत ॥राणी कमतश्री नली, शीलें शोनंत ॥ शां० ॥ १२॥ नामें सुमंजरी धाकरो, तिण नयरी तलार ॥ यमपाश जाति चांमाल, नहिं कम लगार ।। शां० ॥ १३ ॥ एक नलदामा वाणीयो,निवसे तिहां संत॥ नाम सुमित्रा रोहिनी, दंपती एक चिन ॥ शां० ॥ १४ ॥ तस घर मम्म - लुत ठे, सह्यो योवनपूर ॥ सुख बिलले संसारनां, चढतुं जस नूर ॥ शां० ॥ १५ ॥ एक दिन एक हय ऊपरें, थयो नृप असवार ॥ चरी मुरे ते याश्रयो, हयने तेणी वार ॥ शां० ॥ १६ ॥ उत्पतियो बेगें तदा गगने हय तेह ॥ दृरे ना ज़मि पडयो, नृप कोइ बननेह ।। मां०॥ १॥ हर पदोती परलोकमां, नृप श्रायुने योग । चंच्यो ते वनमा जमे, नानी
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३४२ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कर्मने नोग ॥ शां॥ १७ ॥ नूख तृषा लागी घणी, नृप चिंते हो एम॥ पाणीविना प्राण माहरां, इहां रहेको हो केम ॥ शां० ॥ १५ ॥ एहवे. एक मृग भावीयो, नूपतिनी पास ॥ पूरव नव तस सांजस्यो, नृप देखी। नन्नास ॥ शां० ॥ २ ॥ अदर लखी शिला उपरें, जणावे हो तेह ॥ देवलनामें हो ताहरो, सेवक गुणगेह ॥ शां० ॥ १ ॥ पार्तध्यानमांहे . मरी, थयो मृग वनमांहिं ॥ तुफ दी मुज सांजस्यो,पूरव नव हि ॥ ॥ २२ ॥ नीर देखाडयुं नृप नणी, जल पीधुं तेवार ॥ स्वस्थ थयो मन चिंतवे, मृगनो उपकार ॥ शां० ॥ २३ ॥ सेना पूवें संचरी, करी नरपति : केड ॥ वन वन जोतां नृप जणी,धावी तेण वेड ॥ शां० ॥ २४ ॥ सैन्य संघातें हो यावीयो, मृग लेई साथ ॥ दान अनय दई मूकीयो, पुरमांतू नाथ ॥ शां०॥ २५ ॥ फिरतां हो एक दिन आवीयो, मृग मम्मण दाट। पूरव मत्सरनावथी, नल्यो लें। लाति ॥ शां० ॥ २६॥ तातने कहे अप राधीयो, मृग मारीश बाज ॥ जनक कहे नवि कीजियें, एह सबल थ काज ॥ शां० ॥ २७ ॥ जीव कोइ हपीयें नहीं, वली एह विशेष ॥ नृप तिने मन मानियो, उपकारी रेख ॥शां॥॥ जनकनो वास्यो नवि रह्यो, . रोपें हो सोय ॥ मम्मए थयो विलखो घणुं, चाव्युं कहण न कोय ॥शां० । ॥श्णा यमदमें तेण अवसरे,वीनवीयो राय ॥ कर्म कघु ण मम्मों , नि। र्दय मन थाय ॥शां॥३०॥ राय कहे कुण साखीयो, कहे ते तस बाप ॥ नृप पूढे साचं कहे, आवी ते आप ॥ शां ॥३१॥ रीज्यो राय मनें घj, सत्यवादी जाण ॥ मान सहित बोलावीयो, घर ते गुणवाणि ॥ शां० ॥ ३ ॥ कहे तेडी यमपाशने, मम्मणने हो मार ॥ कहेतो हिंसा नवि करूं,नरपति अवधार ॥ शां॥ ३३ ॥ तुं हिंसा न करे किस्यु, जातें चांमाल ॥ ते कहे राजन् माहरे, नहिं हिंसा ढाल ॥ शां० ॥ ॥ ३४ ॥ कारण सुण तेहर्नु कहुँ, साहिब उजमाल ॥ हस्तिशीर्ष पुर ठे जलु, सोहे सुविशाल ॥ शां ॥ ३५ ॥ दमदंत नामें वाणीयो, सुणि वापी अनंत ॥ जिनवर पासें पादयो, संयम गुणवंत ॥ शां० ॥ ३६॥ तप अनावथी उपनी, तस लब्धि अनेक ॥ ते विचरंतो यावीयो, वनमां सुविवेक ॥ शां० ॥ ३७ ॥ रह्यो कानस्सग्ग स्मशानमां, तपीयो या गार ॥ जिण दीठे पावन होये, मानव अवतार ॥ शां० ॥ ३० ॥ण
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श्री शांतिनाथनो रास खंम छो. ३४३ श्रवसरें सुत माहरो, नामें अतिमुक्त ।। बहु रोगे ते पीडियो, न लहे ते _ सक्त ॥ शां० ॥ ३५ ॥ तेह गयो समशानमां, दीना मुनिराज ॥ कर जोडी
पाये नम्यो, कहे सीध्यां काज ॥ शां० ॥ ४० ॥ अवर नहीं कोई तुम विना, मुफ राखणहार ॥ तुं प्रनु नयणें निरखीयो, करुणा नंमार ॥ शां ॥४१ ॥ मुनि परजावें ते थयो, यंगें नीरोग ।। वात आवी घरे मुज कही, गयो माहरो रोग ॥ शां० ॥ ४२ ॥ कुटुंब सहित रोगें दम्यो, नम्यो हुँ मुनिपाय ॥ ते मुनिचरणप्रनावथी, थया नीरोगी काय ॥ शां० ॥ ४३ ॥ ते मुनिवर मुज देशना, कहे करुणाखाणि ॥ जीवदया तुम्हें पालजो, प्रातम हित जाणि ॥ शां० ॥ १४ ॥ रोग सोग नावे कदा, दोहिल सुःखराशि ॥ धर्म अहिंसा सेवतां, होवे शिवपुरवास ॥ शां० ॥ ॥ ४५ ॥ श्रावक धर्म में आदस्यो, करि हिंसा त्याग ॥ मन वच कायें नादरूं, निसुणो वडनाग ॥ शां० ॥ ४६॥ कृत्रिम कोप करी कहे, राजा तव एह ॥ कारिज कर नहिं तो तुने, मूकीश यमगेह ॥ शां० ॥ ५७ ॥ ते कहे मर एकदा, नहिं बीजी वार ॥ पण निज व्रत नांग्या तणा, पुरखनो नहिं पार ॥ शां० ॥ ४७ ॥ यमुक्तं ॥ वरमग्गिम्मि प वेसो, वरं विसुदेण कम्मणा मरणं ॥ मा गहिय वयनंगो, मा जीये ख लिय सीलस्स ॥ ७ ॥ पूर्वढाल ॥ राय सुणी दरख्यो घj, मूक्यो यम पाश ॥ सन्मानी वोलावियो, परशंस्यो तास ॥ शां० ॥ ४ ॥ माते गनो स्वामी कयो, करे उत्तम काम ॥ श्रायु पूरे यमपाश ते, पहोतो सुर गम ॥ शां० ॥ ५० ॥ अपर अंत्यज नृप दुकमथी, करयो मम्मण नाश ॥ फल कडुयां हिंसा तयां, सह्यां नरक निवास ॥ शां० ॥ ५१ ॥ एम जे ए व्रत साचवे, तस लील विलास ॥ सुख पामे सुर शिव तपां, जेम ते यमपाश ।। शां० ॥ ५२ ॥ व खमें एकवीशमी, प्र लाखे दयाल ॥ पहेलु व्रत एम पालतां, लहे सुख रसात शां॥५३॥ सर्वगाथा ॥४॥ इति प्राणातिपात प्रथमवतसंबंधे यमपाशकथानकम् ॥१॥ ॥घ हित्तीय मृपावाद विरमानवतसंबंधः ।।
॥ दोहा ।। ॥ दवे घीजा अणुव्रत तगो, कहे जगगुरु अधिकार ॥ चक्रायुध नृप यागले. ते निमुणो अधिकार ॥१॥ कोष मान माया वली, लोन
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
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त्रिविध तेम राग ॥ द्वेष हास्य जय व्रीडथी, क्रीडा विकथा लाग ॥ २ ॥ रति परति दाक्षिण्य तेम, मुखरपणुं इत्यादि ॥ एह कारणथी संनवे, जगमां मिरपावाद ॥ ३ ॥ पीडाकारक जगतमां, सत्यवाद पण तेम ॥ मृषावाद तेहने कह्यो, नहिं परिणामें देम ॥ ४ ॥ यतः ॥ यलियं न जा सियां, यहिहुं सवं वि जं न वत्तवं ॥ सच्चंपि जं न सबं, जं परंपीडा' करं वय ॥ १ ॥ पूर्वढाल || ते डुविध जिनवर कह्यो, स्थूल सूक्ष्म अव धार || परिहासादिकथी सुदुम, तस यतना सागार ॥ ५ ॥ स्थूल तीव्र संक्पथी, ते परिहरवो नित्य ॥ अवगुण जेहमां यति घणा, एहज वडुं अकृत्य ॥ ६ ॥ यदावश्यकचूर्णीकृत् ॥ जेण नासिये अप्पो परस्स वा यतीव वाघातो वा प्रतिसंकिलेसो य जायते हाए हाएवाल वपत्ति ॥ २ ॥ पूर्वदोहा ॥ कन्या गो चूमीतएं, नव्य अतिक निवार ॥ - थापण उलवियें नहीं, कूडी साख मधार ॥ ७ ॥ तथा च लौकिकं वचः ॥ कूटसाही सुहृदोही, कृतघ्नोदीर्घरोषिवान्ः॥ चत्वारः कर्मचांमालाः, पंचमो जातिसंभवः ॥ ३ ॥ तथा ॥ हस्ते नरकपालं० ॥ चांमाली प्राह ॥ मित्र दोही० ॥ कूटसाही मृषावादी, पक्षपाती जगत्रये ॥ कदाचिच्चलितो मार्गे, ते० ॥ ४ ॥ पूर्वदोहा ॥ सत्यमूल बे जस तयुं, तेम विश्वास निदा न ॥ सत्य स्वर्गनुं वारणुं, सत्य सिद्धिसोपान ॥ ८ ॥ मंत्रयोग सत्यें फले, धर्मार्थ ने काम ॥ सत्यवंत दुःख नवि लहे, पडियां विषमे ठाम ॥ ॥ ॥ ढाल बावीशमी ॥
॥ नोकरवाली वंदीयें ॥ ए देशी ॥ शांतिजिणेसर एम कहे, सवि सदहे रेनवियण जिनवाणी ॥ व्रत वीजुं तुमें यादरो, मृषावादनुं रे कीजें पच रका ॥ १ ॥ धन्य जिनवाणी जे सुऐ ॥ ए यांकली ॥ नवि बोले रे कुटुं लवलेश ॥ ते सुखीया सोनागीया, नवि पामे रे परनव संक्वेश ॥ घ० ॥ ॥ २ ॥ पंच प्रतिचार एहना, वर्जीजें रे सहसान्याख्यान ॥ प्रणश्रालो ची कोइने, नवि दीजें रे अठतां अपमान ॥ ६० ॥ ३ ॥ वात एकांत नी कोइने, नवि कहीयें रे रहयन्याख्यान ॥ जेद स्वंदारामंत्रनो, नवि क रिये रे जेहथी होय हाल ॥ ध० ॥ ४ ॥ मोसुवएस दीजें नहीं, बिदु
तां रे कांहिं कूडिबुद्धि ॥ कूड लेख लखवो नहिं, मन याणिये रे धरि समताशुद्धि ॥ ध० ॥ ५ ॥ ए व्रत यादरिया विना, नवि यावे रे
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३४५ लेखे व्रत कोई ॥ धूरत श्रावकसुतनो, मृपा उपरें रे इहां उपनय होय ॥५०॥ ६ ॥ जे पारदारिक दस्युनी,प्रतिकिरिया रे जे बोले अलीक ॥ तस प्रतिकार न को मिले, ए धारजो रे मनमां तहकीक ॥ ४० ॥ ७ ॥ चार थाश्रवनु एकण दिशे, दिशि एकण रे मृपावादनु पाप ॥ जारे अस त्यनुं त्राजवू, एम बोले रे श्रीजगगुरु आप ॥ध ॥ ॥ वायसपद जेम एकलु, सामुश्कि रे लणनां लद ॥ अप्रमाण करे तेम इहां, जूत जाखवू रे गुणगरा प्रत्यद ॥ ध० ॥ ए ॥ यतः ॥ सुग्गंधो पूश्यहो, धषिध्वयो अफरुस वयपोय ॥ जल एल मूध मम्मपा, अलिथ चयण जंपणे दोसा ॥ १ ॥ इह लोए बिय जीवा, जीहानेहं वहं च बंधं वा ॥ अयसं धणनासं वा, पावंति य यलिय चयणा ॥ ॥ पूर्व ढाल ॥ कूडनांखी उपरें कह्यो, नशेतनो रे प्रमुजी दृष्टांत ॥ निसुणे बारे पर्पदा, गुण अर्थी रे मन धरि एकांत ॥ध ॥ १० ॥ धरणीप्रति हित नयरमां, धनवर्जित रे दोय वणिक वसंत ॥ उटवुद्धि सुबुद्धि जतो, धन कारण रे परदेश लमंत ॥ध ॥ ११ ॥ कोइक पुरमांहे गया, लालहेते रे रह्या केता दीह ॥ देहचिंता टालण जणी, एक दिन गयो तेह सुबुद्धि अवीह ॥ध ॥ १२ ॥ खंमित घरमांहे खोदतां, जाग्य योगेरे जडओँ तास निधान ॥ वेदु मली जोवे बदा, एक सहसज रे दीनारनुं मान ॥ १३ ॥ कृतकृत्य था निजपुर वल्या, श्रावी उप बनें रे करे एम विचार ॥ नयरमेलें जातां यकां, ए वातनो रे वधशे विस्तार ॥ ध० ॥ १४ ॥ इष्टवुद्धि कहे ए सवि, धन दाटिये रेमिमां sm वाम ॥ गत एकेकने घागरे, ले जाये रे आपण निजधाम ॥ धo ॥ १५ ॥ सरलपणे वीजे सवे, बात मानी रे कीधुं ते काम ॥ वट पानं धन दाटीने, परनातें रे श्राच्या ते निज ताम ॥ ध० ॥ १६ ॥ गत दीनार ते ऽटनी, दिन केने रे नाती तत्काल ॥ पुण्य बिना स्थिर नधि रहे, एह संपद रे सुणो जति उजमाल ॥ धि० ॥ १५ ॥ यतः ।। ननिमिनहिषां देम. नायुर्वेद्यकविहियाम् ॥ न श्रीनीतिध्यिामेक, मपि प्रमहरा न हि ॥३॥ पूर्वदाल ॥ पुनरपि बंदु मनी एकवा, जs माया रेगन मनदीनार ॥ श्रन्य दिवस हि ते. मनमांद में करे एम विचार |५० ॥ १७ ॥ बंधी बहिने एकलो, जइ लाई रे सपनो
Autammanduad
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३४६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ते माल ॥ शुं न करे धन लालची, धन सम नहिं रे जगमां कोई साल ॥ध ॥ १ ॥ रातें जइ सवि सामटुं, धन लाव्यो रे कपटी ते कु जात ॥ बल करी सरलने तरी, धनलोनी रे वंचे निजतात ॥ध ॥ २० ॥ साथें तेडी जर तेहने, पत्रे जोयु रे तेणें धनगण ॥ मां कांहिं दीसे नहीं, कपटीनां रे जुन एह विन्नाण ॥ध ॥ २१ ॥ हा हा उर्बुदि कहे, मुज वंची रे कोइ धूरत एह ॥ माल ले गयो माहरो, हैयुं कूटे रे हाथे तेह ॥ध ॥ २२ ॥ चिंते सुबुद्धि चित्तमा, एह धूरत रे एहनां सवि काम ॥ धुत्ता होय सुलदाणा, जगमाहे रे कहेवाये आम ॥ ५० ॥ २३ ॥ अम विदु विण को नवि लहे, एह स्थानक रे त्रीजो जन मात्र ॥ सही लीधु आवी एणे, एह जेहवो रे जग नहिं कमजात ॥ध . ॥॥ खम बरे वावीशमी, ढाल जांखी रे निसुणो गुणवंत ॥ इव्य समो नहिं को रिपु, जेणें मेहव्यु रे धन तेह सत्यवंत ॥ध० ॥ २५ ॥ ७१७ ॥३६
॥ दोहा ॥ ॥ कहे सुवुधिने पापीयो, तें सही लीधुं एह ॥ वीलु कोइ जाणे नहीं, तुं थयो सहि निःस्नेह ॥ १ ॥ कहे सुवुदि उर्चुदि सुण, मुज मन एह हूंत ॥ तो एकांतें ए ल , शाने तुफ सोपंत ॥ ॥ पण वंचक तुहिज सही, गमांहे शिरदार ॥ तुजविण दूजो को नहीं, ए निधान सेनार ॥ ३ ॥ प्रीति रही नहिं तेजने, कलहो लाग्यो जोर ॥ मांदोमांहि धन कारणे, वोले वयण कठोर ॥ ४ ॥ ऊगडंता वेदु धाविया, नरपतिने दरवार ॥ अरज करे ऊंचे स्वरें, उष्टवुदि तेणि वार ॥ ५ ॥
॥ ढाल त्रेवीशमी ।। ॥ देराणी जेवाणीना गोखला ॥ ए देशी ॥ राजन् अम वेदु पामीया, निधि कोश्क नाम उदार रे ॥ साहिव सुणो विनति ॥ ए करणी॥ तुम जयथी अमें वडतलें, लेइ संताडयुं निर्धार रे ॥ सा ॥ १ ॥ मुफ वंची एवं नियु, नहिं नूमिमांहे ते निधान रे ॥ सा ॥ तुज विण कुण मुज सांजले, फरियाद ए सुगुणनिधान रे ॥ सा० ॥ ॥ तुम वे ए नयरमां, वरते जो एहवो अन्याय रे ॥ सा० ॥ तो अम जेहवा अना थनी, कहोने हवे शी गति थाय रे ।। सा० ॥ ३ ॥ कहे राजन साखी हां, वे कोइ के कल्पितवात रे ॥ सा ॥ धन कारण वद्ध केलवे, एम
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३४७ . कृड घणां कमलात रे ॥ सा० ॥ ४ ॥ कहे वुदि यहां सारखीयो, जे वट बिटप माहाराज रे ॥ सा ॥ ते लो साख जरे इहां, तो देजो सावाश रे ॥ सा० ॥ ५ ॥ लीधुं सुबुड़िये वित्त ए, एम जो कहे ए वड वाणी रे ॥ सा ॥ तो मुझ साचो जागजो, घणुं मु कहूँ तुमने ताणी रे ॥ सा ॥ ६ ॥ कहे नृपति जो एम हो, तो पामिश बदु सन्मान रे ॥ सा० ॥ जो जूतो थाइश हां, तो दुःख लहिश असमान रे ॥ सा० ॥ ॥ चुद्धि कहे रायने, करगुं प्रनातें ए काज रे ॥ सा ॥ नरवर कहे ते बेदुने, जाउ दे जमान घर आज रे ॥सा ॥ ७॥ ते बिटु निजमं दिर गया, मनमांहे विमासे सुबुदिरे ॥ सा ॥ उर्घट काम एवं पडि बज्ज्युं, कल शी केलवशे वुदि रे ॥सा॥ ए॥अथवा जय होवे धर्मथी, नहीं खोटुं शहां तिलमात रे ॥ सा ॥ श्यो जय मनमांहे प्राणवो, जिहां कूड त्यां धूड कहात रे ॥ सा ॥ १७ ॥ उर्बुदि जइ निजघरे, कहे तातप्रत्ये समजाय रे ॥ सा ॥ लायो निधान हुँ रातमां, ऊगडो मंमागो आय रे ॥ सा ॥ ११ ॥ नशेत वलतुं कहे, हवे करचो कोण उपाय रे ॥ सा ॥ धन वाहालुं एका दिशे, एकदिशि इजात कहे वाय रे ॥ सा० ॥ १२ ॥ पुत्र कहे निर्धन तणी, इजत श्ये श्रावे काम रे | सा० ॥ धनहूंती इजात घी, बली बाधे जगमाहे माम रे ॥ सा ॥ १३ ॥ माटें वटकांटर बचें, पेशा रहो रातें तात रे ।। सा० ॥ मनातें कहेजो तुम्हें, धन लीधुं सुबुझे एम बात रे ॥ सा० ॥ १४ ॥ सुत उपरोधं मानी. तेणे इष्कर पण काम रे ॥ सा० ॥ अतिलोनी नर जे हुये. तेहनी न रहे जगमां माम रे ॥ सा ॥ १५ ॥ गते रह्यो बह कोटरे, प्रनातें मयां जनरंद रे ॥ सा ॥ महीपति पण तिहां या वियों, जुवा कपटीनो दवे फंद रे ॥ सा ॥ १६ ॥ पुरजन नृप सद्ध दे रवत्ता, बटतरु पूजे उजमाल रे ॥ सा ॥ उष्टबुति एम उबरे, कहो इयनी श्रमने लाल रे ॥सा ॥ १४ ॥ नेत्रमाणात साचलो, तुम उपर एक विवाद रे ॥ मा० ॥ सयले मतीने वेगवियो, कह्यो जेम दोष प्रम शाहाद रे ॥ सा ॥ १॥ बटकोटरमाहे रह्यो, सद्ध सांगतता जोत रे ॥ सा ॥ फहे निगो सद्ध को तुम्हें, ए काम मुनि उन रे | सा० ॥ १० ॥ राय कहे ते मुवक्षिने, निधि लीयो मुत देखा
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३४७ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. ड रे ॥ सा० ॥ चिंते सुवुद्धि तरु नवि कहे, सुर्बुद रज्युं सवि बाल ' रे ॥ सा ॥ २० ॥ वटकोटरथी नीलरी, वाणी नरनी ए याज रे ॥ . सा० ॥ सांकेतिक सही इहांकणे, कोइ नरथी थयु ए काज रे ॥ सा ॥ . २१ ॥ कर जोडी कहे नूपने, में देवं धन उल्लास रे ॥ सा ॥ पण जो दुकम होय राउलो, तो ढुं करूं एक अरदास रे ॥ सा ॥ २२ ॥ कहे राजा सुखें विनवो, कहे में लीधुं धन तेह रे ॥ सा ॥ पण ए तरुको टर विचें, मूकीने गयो निजगेह रे ॥ सा ॥ २३ ॥ एक दिन सेवा आ । आवियो, तब दीगो इहां अहि एक रे ॥ सा ॥ फण मांझी ऊपर रह्यो, जयंकर दीसे अति डेक रे ॥ सा ॥ २४ ॥ मुफ धन अधिष्ठायक थई, रह्यो जो कहो तो हणुं देव रे ॥ सा ॥ राय अनुज्ञा तब दुई, करो कारिज . वहेला हेव रे ॥ सा० ॥ २५ ॥ शर्पण गण लेई घणां, तरुकोटर पूरे सुवुद्धि रे ॥ सा ॥ अमिथी धूम थयो घणो, गइ न तणी शुद्ध बुदिरे ॥ सा० ॥ ३६॥ लोचन अकुलाणां घj, पड्यो नबलीने नूपीत रे॥ सा० ॥ पुरपति पुरजन सदु मल्यां, जोतने प्रत्यद दीत रे ॥ सा ॥ . २७ ॥ पूढे सकौतुक सदु तिहां, कहे सुत कुष्ठं मुफ लाज रे ॥ सा ॥ खोवरावी सहु शहेरमां, एवं की, नीच अकाज रे ॥ सा० ॥ ॥ कूडी साख जरावीने, जव इजातनो कस्यो नाश रे ॥ सा ॥ मुज जेवो जड को नहिं, पड्यो मोहतणे ढुं पाश रे ॥ सा ॥ २ए । वाक्य अ लिक मुऊने फल्यु, एहिज जवमां नरदेव रे ॥ सा ॥ एम जाणीने सद्ध तुम्हें, मत राखो अलिकनी टेव रे ॥सा० ॥ ३० ॥ जश्नणी राय मू कियो, तस सुत तेडी नूपाल रे ॥ सा ॥ धन सघर्बु ले करी, पुर वा हिर कस्यो तत्काल रे ॥ सा० ॥ ३१ ॥ सुवुद्धिजणी सन्मानियो, दे वस्त्रानरण अमूल्य रे ॥ सा ॥ नृप जन सदु घर यावीयां, जग एहवं असत्यनुं गुल रे ॥ सा ॥ ३ ॥ इह परनव उःखदायकु, जाणीने असत्य तजो दूर रे ॥ सा ॥ सुण चक्रायुध राजीया, सत्ययी होय सुख जरपूर रे । सा० ॥ ३३ ॥ व्रत बीजा उपरें कह्यो, प्रनुजीय संबंध रसान रे ॥ सा० ॥ठ खंमें त्रेवीशमी,कही रामविजयें ए ढाल रे ॥सा॥३०॥ इति मृपावाद विरमणहितीयव्रते नवेष्टिकथानकं॥॥सर्वगाथा॥५॥३६
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श्री शांतिनायनो रास खंम व्हो. ३४ए ॥ अथ तृतीयस्थूल अदत्तादानविरमण व्रतसंबंधः ॥
॥दोहा॥ ॥ स्थूल अदत्त परित्यागर्नु, व्रत त्रीजुं कहे स्वामि ॥ चक्रायुध नृप या गले, सवि नविजन हितकाम ॥१॥ स्वामी जीव गुरु तीर्थकर, अदत्त कह्यु चव जेद ॥ चग्नेदें ए साधुने, तजq तजि मन खेद ॥ ॥ कनकादिक स्वामी अदत्त, नवि लीजें कोई वार ॥ सचित्त फलादिक नेदतां, जीवादत्त वि चार ॥ ३ ॥ तेह फलादिक जीवडे, नवि दीयां निज प्राण ॥ तेह नगी लेवु नहिं, सचित्त फलादिक जाण ॥ ४ ॥ गृही दीg पण साधुने, प्राधा कर्मी जेह ॥ तीर्थकर आणा नहिं, अदत्त तीर्थकर तेह ॥ ५ ॥ श्रावकने प्रागुक वली, अनद ने काय अनंत ॥ वावरतां तीर्थकरें, यदत्त कह्यु जगवंत ॥ ६ ॥ सर्वदोप निर्मुक्त पण, अनिमंत्री गुरु सार ॥ जे मुंजीजे ते कह्यो, गुरु यदत्त सुविचार ॥७॥ स्वामि यदत्तनो इहां कणे, स्यूलबतें थधिकार ॥ यत्न करीने जालवो, ए व्रत निरतिचार ॥॥ चौरानीत न लीजियें, चौरप्रयोग निवार ॥ सरस नीरस वेदु नेलीने, नवि कीजें व्यापार ॥ ॥ ॥ राज्यविरु६ न कीजिये, कृटतुला ने मान ॥ पंच दोप ए टालतां, शु६ व्रत कयुं निदान ॥ १० ॥यक्त। चौरश्चौरार्पको मंत्री, नेद ः काणकक्रयी ॥ अन्नदः स्थानदश्शेति, चोरः सप्तविधः स्मृतः ॥ १ ॥
॥ दाल चोवीशमी॥ ॥ न्यादि ए यादि जिणेसर, नानिनरिंद मल्हार ॥ ए देशी ॥ शांति जिनेश्वर एम कहे, सांजसो सधि नर नारी ॥ एह अतिचार टालवा. चारप्रसूति निवार ॥ नलवु ए कुगलनु पूल, संडाकरण सुविचार ।। राजनोग्य धननिद्रव, अवलोकन तेम धार ॥ १ ॥ पहुं थमार्गनुं दर्शन, शल्यासमर्पण जाणो ॥ पदलंग जाणीये श्राठमो, विश्राम नवम गवाणो ॥ पादपतन थासन तिम, गोपन मन नवि यायो, बम रखा दन माहाराजिक, बजे ए मुगुण सुजाणो ॥ ५॥ पद हितकारक पय, उसण जन तेल न दीजें ॥ पाकने कारण यामिनु. दान कदापि न कीजें॥पानने प्रथ शीतल जल, दीधे ए लान न लीजें ॥ पशुबंधनने र रकन, दान देतां गुण वीजे ॥३॥ चौरप्रसूति न्यदार , जागी करे जंद त्याग ॥ सुजत महोदय ते लते, दिन दिन यधिक सोनाग ।
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३४७ जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. ड रे ॥ सा ॥ चिंते सुबुद्धि तरु नवि कहे, सुर्बु रच्युं सवि आल । रे ॥ सा ॥ २० ॥ वटकोटरथी नीसरी, वाणी नरनी ए आज रे ॥ सा ॥ सांकेतिक सही इहांकणे, कोइ नरथी थयु ए काज रे ॥ सा ॥ २१ ॥ कर जोडी कहे जूपने, में देवं धन नन्नास रे ॥ सा ॥ पण जो दुकम होय राउलो, तो ढुं करूं एक अरदास रे ॥ सा० ॥ ॥ कहे राजा सुखें विनवो, कहे में लीधुं धन तेह रे ॥ सा० ॥ पण ए तरुको टर विचें, मूकीने गयो निजगेह रे ॥ सा ॥ २३ ॥ एक दिन लेवा था धावियो, तब दीतो इहां अहि एक रे ॥ सा ॥ फण मांझी कपर रह्यो, नयंकर दीसे अति लेक रे ॥ सा ॥ २४ ॥ मुफ धन अधिष्ठायक यई, रह्यो जो कहो तो हणुं देव रे ॥सा ॥ राय अनुज्ञा तब दुई, करो कारिज - वहेला हेव रे ॥ सा ॥ २५ ॥ शर्पण गण लेई घणां, तरुकोटर पूरे सुबुद्धि रे ॥ सा ॥ अग्मियी धूम थयो घणो, गइ न तणी शुद्ध बुद्धि रे ॥ सा ॥ ३६॥ लोचन अकुलाणां घj, पड्यो उबलीने नूपीठ रे ॥ सा ॥ पुरपति पुरजन सदु मल्यां, नशेठने प्रत्यक्ष दीप रे ॥ सा० ॥ २७ ॥ पूढे सकौतुक सद् तिहां, कहे सुत कुष्ठं मुफ लाज रे ॥ सा ॥ खोवरावी सदु शहेरमां, एवं की, नीच अकाज रे ॥ सा ॥ २ ॥ कूडी साख जरावीने, जव इजातनो कस्यो नाश रे ॥ सा ॥ मुफ जेवो जड को नहिं, पड्यो मोहतणे ढुं पाश रे ॥ सा ॥ ए ॥ वाक्य अ लिक मुझने फल्युं, एहिज नवमां नरदेव रे ॥ सा ॥ एम जाणीने सदु तुम्हें, मत राखो अलिकनी टेव रे ॥ सा० ॥ ३० ॥ जश्नणी राय मू कियो, तस सुत तेडी नूपाल रे ॥ सा० ॥ धन सघळु ले करी, पुर वा हिर कयो तत्काल रे ॥ सा ॥३१॥ मुहि जणी सन्मानियो, दे वस्वानरण अमूल्य रे ॥ सा ॥ नृप जन सहु घर भावीयां, जग एह असत्यतुं शूल रे ॥ सा० ॥ ३२ ॥ इह परनव दुःखदायकु, जागीने असत्य तजो दूर रे ॥ सा ॥ सुण चक्रायुध राजीया, सत्यथी होय सुख नरपूर रे ॥ सा ॥ ३३ ॥ व्रत वीजा उपरें कह्यो, प्रनुजीये संबंध रसाल रे ॥ सा ॥ हे खमें त्रेवीशमी,कही रामविजयें ए ढाल रे ॥सा॥३४॥ , इति मृपावादविरमपाहितीयव्रते नश्लेष्ठिकथानकाशासर्वगाया५॥३६
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श्री शांतिनाथनो रास खंग बो.
॥ अथ तृतीयस्थूल दत्तादानविरमण व्रतसंबंधः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ स्थूल दत्त परित्यागनुं, व्रत त्रीजुं कहे स्वामि ॥ चक्रायुध नृप या गर्ने, सविनविजन हितकाम ||१|| स्वामी जीव गुरु तीर्थकर, यदत्त क च नेद ॥ चचनेदें ए साधुने, तजवुं तजि मन खेद ॥ २ ॥ कनकादिक स्वामी दत्त, नवि लीजें कोई वार ॥ सचित्त फलादिक भेदतां, जीवादत वि चार || ३ || तेह फलादिक जीवडे, नवि दीधां निज प्राण ॥ तेह नली जेवुं नहिं, सचित्त फलादिक जाण ॥ ४ ॥ गृही दीधुं पण साधुने, याथा कमी जेह ॥ तीर्थकर थापा नहिं यदत्त तीर्थकर तेह ॥ ए ॥ श्रावकने प्रागुक वली, नक्ष ने काय अनंत ॥ चावरतां तीर्थकरें, दत्त कयुं भगवंत ॥ ६ ॥ सर्वदोष निर्मुक्त पण, प्रनिमंत्री गुरु सार || जे जंजीजें ते को, गुरु दत्त सुविचार || ७ || स्वामि प्रदत्तनो इहां कणे, स्यूजवतें अधिकार ॥ यत्न करने जालवो, ए व्रत निरतिचार ॥ ८ ॥ चौरानीत न लीजियें, चौरप्रयोग निवार || सरस नीरस वेदु नेलीने, नवि कीजें व्यापार || ए || राज्यविरुद्ध न कीजियें, कूटतुला ने मान ॥ पंच दोप ए टालतां शुद्ध व्रत कयुं निदान ॥ १० ॥ तं ॥ चौरश्रोरार्पको मंत्री, नेद शः काकक्रयी ॥ यन्नदः स्थानदश्वेति चौरः सप्तविधः स्मृतः ॥ १ ॥ ॥ हाल चोवीशमी ॥
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॥ ध्यादि ए यादि जिणेसर, नानिनरिंद मल्हार || ए देशी || शांति जिनेश्वर एम कहे, सांजलो सवि नर नारी ॥ एह यतिचार टालवा. चौरसूति निवार ॥ जलवं ए कुशलनं पृतनुं संज्ञाकरण सुविचार || राजनोग्य धननिद्रव, श्रवलोकन तेम धार ॥ १ ॥ बहुं धमार्गनुं दर्शन, शय्यासमर्पण जालो | पदभंग जालीयें ग्राम्मो, विश्राम नवम खाणे || पादपतन शासन तिम, गोपन मन दन माहाराजिक, बर्जे ए सुगुणं तुजाणो ॥ २ ॥ पद हितकारक पय जल तेल न दीजें ॥ पाकने कारण यत्रिनुं दान कदापि न कीनें ॥ पानने ग्रंथ शीतल जल, दीघे एलान न लीजें | पशुबंधनने ए रहनुं दान देतां गुण तीजे ॥ ३ ॥ प्रसूति यदार ए. जामी करे जेह त्याग ॥ सुजस महोदय ते जसे दिन दिन aftaar |
नवि थाणो, खं खा
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___३५० जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
॥ अथ चौरप्रसूतिकास्वरूपं गाथानिर्लिख्यते ॥ जलनं कुशलं तर्जा, राज नागोवलोकनम् ॥ अमार्गदर्शनं शय्या, पदनंगस्तथैव च ॥ १ ॥ विश्राम पादपतनं, चासनं गोपनं तथा ॥ खंमस्य खादनं चैव, तथान्यन्माहा राजिकम् ॥ ॥ पद्यायुदकरना, प्रदानं ज्ञानपूर्वकम् ॥ एताः प्रसूतयोझेया, अष्टादश मनीविनिः ॥३॥ पूर्वढाल ॥ एह अदत्त निवा रीने, साधे जे मुक्तिनो माग ॥ ते गृही उत्तमगति लहे, आगल शिव गति लाग ॥ ४ ॥ यमुक्तं ॥ खिते खले अरन्ने, दिायरा व सब घाए वा ॥ अबो से न विएस्सइ, अचोरिबाए फलं एयं ॥ ४ ॥ गामागर नगराणं, दोण सुह मंमवं पट्टणाणं च ॥सुरं हवंति सामी, अचोरिया ए फलं एयं ॥ ५ ॥ पूर्वढाल ॥ ए व्रत पालवू यत्नथी, जिनदत्त परें सुखकार ॥ चक्रायुध नृप आगलें, कहे प्रनु तस अधिकार ॥ नयर वसंतपुरें वसे, जिनदास श्रावक सार ॥ जीवाजीवादिक तत्त्वना, जाणे ए अर्थ विचार ॥ ६ ॥ जिनदत्त नामें ए नंदन, जन आनंदन जाचो । जिनवर धर्म समाचरे, जाणे ए मारग साचो ॥ कुल कन्या विवाहनी, वातमांहे हवे राचो ॥ मात पिताने जिनदत्त, कहे संसार ए काचो ॥ ७ ॥ मित्रमंमलगुं परवस्यो, एकदिन उपवन जाय ॥ देखि उत्तंग मनोहर, जिनगृह हर्पित थाय ॥ मित्र संघातें ए आवे रे, नाव धरी मनमांहि ॥ पूजा करी जिनराजनी, चैत्यवंदन करे त्यांहि ॥ ७ ॥ अथ चैत्यवंदनं ॥ जय जय तुं जिनराज आज, मलियो मुफ खामी ॥ अविनाशी अकलंक, रूप जग अंतर्यामी ॥ रूपारूपी धर्म, देव यातम धारामी ॥ चिदानंद चेतन अचिंत्य, शिवलीला पामी ॥ सिदि बुद्धि तुम वंदतां ए, सकल सिदि वर बुद्धि ॥ राम प्रनु ध्याने करी, प्रगटे पातम दि॥१॥ काल वहु स्थावर घरे, जमीयो नवमांहि ॥ विकश्यि मांहि स्यो, स्थिरता नहीं क्यांही ॥ तिरि पंचेंश्यि मांहि देव, कर्मे हूँ आयो । अर कुकर्म नरकें गयो, दरिसन नवि पायो । एम अनंत कालें करी ए, असो नर अवतार ॥ हवे जगतारण तुं मिल्यो, नवजल पार उतार जरपूर इति चैत्यवदनं ॥ अथ स्तवनं ।। श्री राग ॥ मुनि ध्येय नमोसुर
रे ॥ साणे, पतितपावन शुचि नाम नमो ॥ चिंतित सकल मनोरथ पूरण, .शत मृपा परिणाम नमो ॥ मु० ॥ १॥ जिनमुनिनाथ जिनेश्वर शं
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श्री शांतिनायनो रास खंग उठो. ३५१ कर, परमातम अरिहंत नमो ॥ पारंगत परमेष्टि यधीश्वर, जयनंजन जगवंत नमो ।। मु०॥ २ ॥ शंनु स्वयं जगत्पनु अनयद, वीतराग गुण सिंधु नमो ॥ बोधिदायक त्रिदु कालके ज्ञायक, अशरण शरण सुबंधु नमो ॥ मु० ॥३॥ केवलकमलाकंत महोदय, सिम वुझ सर्वज्ञ नमो ।। तीर्थकर तीर्थेश्वर ईश्वर, पुरुपोत्तम परमज्ञ नमो । मु० ॥ ४ ॥ प्राप्त अनंत अचिंत्य गुणाकर, निमोदी अविकार नसो ॥ पूर्णानंद स्वयंधुः साहिव, योगीश्वर जितमार नमो ॥ मु ॥ ५ ॥ लोकालोक प्रकाशक नासक, आनंदघन यविनाश नमो ॥ देवाधिदेव शरण एक तेरो, दायिक नावविलास नमो ॥ मु० ॥ ६ ॥ इत्यादिक गुन नामके धारक, कलं प्रशिपत्य त्रिद्वं कालनमो ॥ राम कहे करो सेवक कपर, करुणादीन दयाल नमो ॥ मु० ॥ ७ ॥ इति श्रीजिनस्तुतिः ॥ पूर्वढाल ॥ एहवे तिहां एक याची ए, नावी कनी मन रंगे ॥ यावन रुप रसाली, मनोहर वाणी सुचंगे ॥ निज उत्तरीय करी मुख, कोश धरी मन नाव ॥ जिनमुख मंगन करती, मनोहर रंग बनाव ॥ ए॥ यंगें ए श्रांगी अनोपम, उपती कांति व्यपार | केसर घन घनसारा, विरचे ए विविध प्रकार ॥ पत्रवली रचना वली, नवली कपोलें ए सारी॥ करती श्रीजिनविंचने, कुमरे निहाली ए नारी ॥ १० ॥ जिनदत्त कहे निजमित्रने, कोण कनी ए सारी॥ जति करे जगवंतनी, मित्र कहे सुविचारी ॥ प्रिय मित्र सारयवादनी, नंदनी जिनमती नामें ।। गुजतण संपूरणा. सृष्टं घडी एह कामं ॥ ११ ॥ रूए सरिवी रे ताहरे, जोडी मिले गृहवास ॥ तो सफलो होय विधि तणो, ए निर्माणप्रयास ॥ जिनदत्त कदे जिनचुवनमां, हास्य न की ए नाई। याशातन होय जिनतणी, विपयकया दुःखदायी ॥१२॥ जयन्य तोरि जिनगदे दश धागातना वहीनीयाः। तद्यथा ॥ नंबोल पाण नावण, चाणद मेहूण सवाए निवप ॥ मुनुचारं जूयं, बड़े जिगनाइ जगए 1211 उत्कृष्टतचतुरशीतिसंग्ग्यया न्यागातना वर्जनीयाः। तद्यथा ॥ खेल ? कति कजि ३ पला मुलनायं ५ तंबाल ६ मुगालयं गाली संगुली चा सरीरधवर्ण २० कने १५ न १२ माहियं १३ ॥ नती र ४ सनम १५५ पिन १६ बनि बसणा १८ विन्तामणं १ दाम ५०, दंत !
२२ नह २३ गत २४ नातिन्त्र २५ तिरो २६उन २३ सही २७
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३५२ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. मलं ॥ ॥ मंतं श्ए मीलण ३० लिरिकयं ३१ विजजणं ३२ नंमार ३३ उघासणं, ३४ बाणी ३५ कप्पड ३६ दालि ३७ पप्पड ३० वडी ३ए विस्तारणं नासणं ४ ॥ अकंदं ४१ विकहं ४२ सरबघडणं ४३ तेरितसंगवणं, ४५ अग्गीसेवण ४५ रंधणं ४६ परिखणं ४७ निस्सी हियानंजणं ४७ ॥ ७ ॥ बत्तं भए वाहाण ५० सब ५१ चामर ५२ मणो रोगत ५३ मजिंगणं, ५५ सञ्चित्ताण ५५ मचायचायमजिए ५६ दिही नोअंजली ५७ ॥ साडेगत्तरसंगनंग ५७ मनडं, एए मोलि ६० सिरे सेहरं ६१ दुमा ६२ जिंमुह ६३ गिनीयाश्रमणं ६४ जोहार ६५ नंड किचं ६६ ॥ ए ॥ रिकारं ६७ धरणं ६७ रणं ६ए विवरणंवालाण ७० पनविध ७१, पाक ७२ पायपसारणं ७३ पुडपुडी ७४ पंकं ७५ र ७६
मेहुणं ७७॥ जूनं ७ जेमण पए जुङ ७ विङ ७१ वणिज ७२ सिङ ७३ ... जले मजणं, ७४ एमाई अमवऊ का मुजु व जिणंदालए ॥१०॥इति
चतुरशीति पाशातना विचारः ॥१०॥ पूर्वढाल ॥ जाणो ए आशय माहरो, दद तमे गुणवंता॥ चारित्र लेइ ए नर नव, दुं करशुं फलवंता ॥ जिनमुख मंझन चातुरी, जाव लही पूयु एह ॥ नहिं लवलेशथी माहरे, एह उपर कां नेह ॥ १३ ॥ कीजें ए केम जिनमंदिर, नारिकथा सुणो ना ॥ एम कहीने रह्यो जिनदत्त, जिनमुख दृष्टि लगाइ ॥ जिनदत्त कुमर निहालतां, थयो मनमां अनुराग ॥ गुन आकार ए जो वरुं, तो महारं वड जाग्य ॥१॥ जाण्युं सखीजन स्वामिनी, जिनदत्त उपरें मोही ॥ मेल मले किम वातनो, कुंवर ए निर्मोही। जिनमती पण घरे आवी रे, पितरने कहे सरवी बात ॥ ते निसुणी मन रीफिया, थइ सुखिणी सवि धात ॥१५॥ जिनदत्त पण घरे आवीयो, करे वारू व्यवहार ॥ न्याय मारग नवि लोपे ए, पाले अखंम आचार ॥ खंझ ब ए चोवीशमी, ढाल कही मनरागें ॥ राम कहे हवे एहनी, वात सुगो नवि आगें ॥ १६ ॥ सर्वगाथा ॥ए ॥ ४ ॥
॥दोहा लोरती॥ ॥ प्रिय मित्र सारथ वाह, गयो जिनदासने मंदिरें । मेलणने विवाह, हर्प धरी हेजालु ॥ १ ॥ तेहने दीधो ताम, जिनदामें यादर घणो ॥ पूग्यु, कहो कुण काम, पाउचाखा अम यांगणे ॥ २॥ ते कहे कन्यादान, देवाने ढुं यावीसो ॥ तुम सुत सुगुणनिधान, थम मनमां घणुं नावि
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श्री शांतिनाथनो रास खंभ हो. .३५३ यो ॥ ३ ॥ कीधी वात प्रमाण, जिनदत्तने जनके तिहां ॥ श्राव्यो घरे नुजाण, मुह माग्या पासा ढल्या ॥ ४ ॥ जिनदत्त मंदिरमांहि, श्राव्यो वात कही सवे ॥ पण संयमनी चाह, नवि इवे विवाहने ॥ ५॥ जिनमंदिरनी वात, मामीने सपती कही ॥ पण ते निसुगी जात, मोन धरी मनमा रह्यो ॥ ६ ॥
॥ ढाल पन्नीशमी ॥ ॥ चांदलीयोने उग्यो रे हरणी श्राथमी रे ॥ ए देशी ॥ जिनमती बोले रे सहीयर माही रे, मन हरी जिनदत्तं लीध ॥ रवणी न जाये रे चरिणी यइ रही रे, कां मुफ कामण कीध ॥ जि० ॥ १ ॥ चंदनशीतल चंनी चंडिका रे, मुफ तन दहे रे थपार ।। रात दिवस मुने वचन सांगरे रे, श्वासमांहे सो वार | जि ॥ ३॥ वर वसाव्यु रे एहने निरखता रे, नवि लही प्रीतिनी रीत ॥ बाहेर दीसे रे शीतल ए सही रे, पण ते एन्ध मिनी मित्त ॥ जि० ॥३॥ माया लगाडी रे जिनघरे थावीने रे, पण न हिं मुक्त' रे राग ॥ हुँ तस कारण यहोनिश टलवलुं रे, पण मिल होवे जाग्य | जि० ॥४॥ निसुल्यो चरागी रे में तेहने सही रे, एक पखी रे एह प्रीत ॥ केम जोडाशे रे सहीयर माही रे, सवल विमासण चित्त ।। नि०॥ ५ ॥ सहीयर बोले रे धर धीरज मनें रे, मिलो हो वालिम तेह ॥ तुजयो विवाहनी वातने सांजली रे, मौन धरी रह्यो तेद ।। जिस ॥ ५ ॥ एम अनुरागे रे दिवस घणा गया रे, एक दिन घरथी रे तेत् ।। निसरती नीरवी रे पुररक्षक रे, वसुदने ससनेह ॥ जि० ॥ ॥ मोहन गारी रे निरखी मानिनी रे, मनमाहे माहो अत्यंत ॥ जनकने नारखे रे परगायो मुने रे, जिनमती पद एकांत ॥ जि० ॥ ॥ नियमित्र बोने
ए जिनदत्तने रे. दीधी यम्हें सुनो तंत ॥ माटें कई इवेशा काम . रे, पिण नेद केय धरंत ॥ जि० ॥ ॥ ॥ पुष्ट रोलाणो रे जिनदत्त कपरें रे, विपर एनरथ मृत ॥ विषय विजुझारे जगमाहे मानवी रे, गति मनि मिले सविधल ॥ नि ॥ १० ॥ एक कनक रे द्रजी कामिनी रे, दोष घाटी विकराल ।। बद्ध वाणा रे एहमांहे बापटा रे, तर नदि सार मजाल । जि० ॥ ११ ॥ प्रारक्षक दत ताक योनिशे रे. जिनदत्त दाणवाने कान ॥ मनमाहिरिने रे मारे धके रे, तही मुजसरों
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३८४.
जैनकथा रत्नकोप नाग आाठमो.
रे काज ॥ जि० ॥ १२ ॥ एम निष्कारण जगमांहे पापीया रे, बांधे हो कर्मनो राशि || सरल स्वभावी रे जिनदत्तने मनें रे, वरते हो नाव उदास ॥ जि० ॥ १३ ॥ एक दिवस नृप रहवाडी चढ्यो रे, गयो उद्यान मकार ॥ वलतां विचाले रे कुंमल काननुं रे, पडीयुं रे कोइक वार ॥ जि० ॥ १४ ॥ घरे प्रवीने रे रायें जालीयुं रे, कीधो हुकम कोटवाल || कुंमल जोवा रे तुरत ते चालीयो रे, वसुदत्त थइ उजमाल || जि० ॥ १५ ॥ कर्म संयो गें रे कोइक कारणें रे, तिए वादें जिनदत्त ॥ प्रागल चाल्यो रे बाहिर ति समे रे, जो जो नावीनिमित्त ॥ जि० ॥ १६ ॥ कुंमन दीव्रं रे तेणें मारग पड्युं रे, तजि मारग तेली वार ॥ दूर थइने रे लगो नीसखो रे, सामुं न जोयुं लगार ॥ जि० ॥ १७ ॥ यतः ॥ श्रात्मवत्सर्वभूतानि पर इव्याणि लोष्टवत् ॥ मातृवत्परदारांध, यः पश्यति स पश्यति ॥ १ ॥ यः प वादे ॥ पूर्वढाल ॥ वसुदत्त याव्यो रे फिरतो तिहां कने रे, पडीयुं कुं मल देखि ॥ तुरत जेइने नृपने सोंपीयुं रे, नृप लह्यो हर्ष विशेष ॥ जि० ॥ १८ ॥ नरपति पूबे रे किहां ए पामीयुं रे, ते कहे जिनदत्त हाथ ॥ जिनदत्त शाक रे परधन नवि हरे रे, एम बोले पुरनाथ || जि० ॥ १९ ॥ कहे वसुदत्त ए सरिखो को नहिं रे, चोर ावर रे संसार | धर्मी नाम धरावी धीरवे रे, पश्यतोहर ए धूतार ॥ जि० ॥ २० ॥ नाम न लीजें रे साहेव एहनुं रे, एहवो नीच न कोय ॥ दुर्जन याव्या रे दावने चाल वेरे, रूयो नृप सुणी सोय ॥ जि० ॥ २१ ॥ वध यादेश को कोटवा लने रे, काने काचा हो राय ॥ जो जो विपयथकी विप निपन्युं रे, कीधां कर्म न जाय ॥ जि० ॥ २२ ॥ क्रोधवशें वसुदत्तें वांधीयो रे, जिनदत्तने ततकाल ॥ पुरमा सदु कोय हा हा रव करे रे, ए धुं ययुं रे अकाल ॥ जि० ॥ २३ ॥ जिनदत्त जेवो धर्मी को नहिं रे, न करे एम अन्याय ॥ पण डर्जन वसुदत्त जंजेरीयो रे, शान विद्वणो ए राय ॥ जि० ॥ २४ ॥ कहेा न मोने रे राजा कोइनुं रे, वसुदत्त रोप अपार ॥ रक्तचंदनें जेपी तनु तेनुं रे, यो कणवीर सिंगार ॥ जि० ॥ २५ ॥ रासन उपरें ते चढा वीयो रे, जे चाल्यो वसुदत्त | जुन जिनदत्त व्यवस्था शी नही रे, कर्म उ दय बलवंत ॥ जि० ॥ २६ ॥ विरस वजाडे रे मिंमिम यागले रे, पडे बहु वांसे हो मार ॥ ॥ नागर जन परिजन रोवे घणुं रे, ए गुं कस्युं किरतार
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श्री शांतिनायनो रास खंम व्हो. ३५५ ॥ जि० ॥ २४ ॥ एहवा पुरुपरयणने मारतां रे,केम वहे नीचना हाथ ॥ केम एहवी गुरावंतने थापदा रे, जो दीधी जगनाथ ॥ जि० ॥ २७ ॥ चोक महेल गोंखे रही मानिनी रे, जोवे जिनदत्तरुप ॥ गति एहनी नारी नी शी हो रे, थयु ए अकाज विरुप ॥ जि ॥ ५ ॥ यायो प्रिय मित्र सारथवाहने रे, मंदिर हे रे तास ॥ सुणी कोलाहल आवी गों स्वमा रे, जिनमती सुदती उन्नास ॥ जि० ॥ ३० ॥ दीठो रे जेहवे ते जिनदत्तने रे, रुदन करे तेणि वार ॥ हा मुज वालेसर जिनदत्तने रे, कां रूतो किरतार ॥ जि० ॥ ३१ ॥ हैयहूं जरा रे याव्यु हेजयी रे, नयण बहे जलधार ॥ शोकपयोनिधि वेल वधी घणुं रे, अहो अहो मोह प्रकार ॥ जि० ॥ ३५ ॥ कां मुझ उपरें देवज कोपीयो रे,जे मुफ जीवन प्राण ।। ए जिनदनने जो ते एम कम्युं रे, दवे जीव्युं चप्रमाण ॥ जि ॥ ३३ ॥ एम विलपंती दीती ते सती रे, मन चिंते जिनदत्त ॥ पार नहीं कांइए हनी प्रीतिनो रे, मुफ कपर एक चित्त ॥ जि ॥ ३४ ॥ मुफ पुरख देखी रे पुरवणी ए घएं रे,यहो ए नेह अवेह ॥ जो मुज आवे रे पुःखनो ठे इलो रे, तो करूं एहदी सनेह ।। जि० ॥ ३५ ॥ नहिंतर मुझने सागारी हजो रे, अणसए परनव सार ॥ एम चिंतवतां रे बाण्यो तेहने रे, वध म्यानक तेणी वार ॥ जि० ॥ ३६ ॥ प्रियमित्र सारश्रवानी पुत्रिका रे. जयग्रहे चत्यमकार || जय जिनवर आगल प्रणामी करी रे. करे एम म नपुं विचार ॥ जि० ॥ ३ ॥ में मुज बालेसर जिनदन रे, कष्ट टले निधार ॥ एह काउन्सग्ग तो पारेचो सही रे,रही उनी तिरा तार ॥ जि० ॥ २७ ॥ वित्त' चिंती शासनदेवता रे, करजो मुफने सदाय ॥ जो लै साची इंजिनगासने रे, तो मुज राखजो लाज ॥ जि० ॥ ३॥ तुष्ट यह तत शीलनजावधी रे, शासनदेवी ते वार ॥ याचे निहाँ शुली नांजी पड़ी रे, तृणपरें तेणे ब्रश वार ॥ जि०॥ ४० ॥ तरूबांध्या त्रुटी तब दोन का रे, करे तर बामहार ॥ कुसुमतणी माला जेमते थयो रे. लवनों शीत प्राधार ॥ जि० ॥४१॥ जयाग्दक नरें नृप विनव्या रे. जयधि स्मन मन थामि ॥ याव्यो निहां घोडी तायलों रे, जय जय तुं गुग्गधार |जि ॥ ४२ {1 गज चेमारी प्राम्पो शहरमा रे,सद्ध कहे जयजयकार!!
पनि पुनरे सुग्इंनी कायों रे, सुदामना अधिकार | Go | १३ ॥ न
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- जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. रपति कोप्यो वसुदत्त उपरें रे, मूकाव्यो जिनदत्त ॥ सऊन जिनशासन
आराधतां रे, सदु नपरें सम चित्त ॥ जि० ॥ ४ ॥ जिनदत्तनी परशंसा बदु वधी रे,धन्य धन्य ए जिनधर्म ॥ राजदुकमथी मंदिर आवियो रे, सदु साजन लयां शर्म ॥ जि० ॥ ४५ ॥ वात सुगीने कानस्लग्ग पारियो रे, जिनमती हर्ष न माय ॥ धन्य जिनशासननी रखवालिका रे, शासनदेवी तुं माय ॥ जि ॥ ४६॥ वात सुगी प्रियमित्रना मुखथकी रे, हरख्यो मनमांहि तेह ॥ परणी शुज मुहूरत सा सुंदरी रे, वाध्यो सबल सनेह ॥ . ॥ जि० ॥ ४ ॥ नोग्य विषयसुख जोगवीयां घणां रे, जिनमतीशुं मन रंग ॥ एक दिवस मुनि सुस्थितनी कनें रे, ल्ये संयम मन बरंग ॥ जि ॥ ४ ॥ चारित्र चोखू पाली चित्त चोखे बन्हे रे, थयां सुरवर सुरलोक ॥ शांतिप्रनु त्रीजा व्रत उपरें रे, कह्यो उपनय गतशोक ॥ जि० ॥ ४ए ॥ बहे खंमें रे ढाल पचवीशमी रे, रामविजय कही सार ॥ परधन परनारी थी वेगला रे, तेहना धन्य अवतार ॥ जि० ॥ ५० ॥ इति परश्व्यापहार विरमणे तृतीयं जिनदत्तकथानकं ॥३॥ सर्वगाथा एज॥ श्लो० ॥४॥ ॥अथ चतुर्थ मैथुनविरमणबत संबंधः ॥
॥ दोहा ॥ ॥ शांतिनाथ जिनवर कहे, सुण चक्रायुध नूप ॥ बालस अलगुं पर हरी, हवे अब्रह्म सरूप ॥ १ ॥ स्थूल सूक्ष्म ने कह्यु, मेथुन दोय प्र कार ॥ सूक्ष्म पित् कामथी, इंडियजनित विकार ॥२॥औदारिक वैकि य तथा, स्त्रीसाथें संजोग ॥ स्यूल कह्यो ते जिनवरें, मन वच काया योग ॥३॥ मैथुन विरमरूप ते, ब्रह्मचर्य दोय नेद ॥ सर्वदेशथी आगमें, नारस्युं प्रलु गतवेद ॥४॥ सर्वनारी परिहार जे, सर्वथकी ते ब्रह्म ॥ इत रदेशथी जाणीयें, ए सागारी धर्म ॥ ५ ॥
॥ ढाल ठवीशमी॥ ॥धादर जीव दमागुण आदर ॥ ए देशी ॥ शांतिप्रनु जिनराज पयं पे, ए व्रत निरतिचार जी ॥ पालंतां शिवपद पामीजें, सुणो हवे तास वि चार जी ॥ १ ॥म कर विपयविप याश ए विरुइ, कहे अचिरानो नंद जी ॥कर जोडी वर्षद सवि जावें, निसुणे धरि यानंद जी ॥ म० ॥ २ ॥ अपरगृहीता विधवा कन्या, दिक पर नहीं एम जाण जी ॥ तास गमन क
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श्री शांतिनायनो रास खंम को. ३५७ रता होय पहेलो, नांखे बिनुवनलाण नीम ॥ ३ ॥ इत्खर जाटी दे वदा कीधी, किणहिक गणिका नारी जी ॥ स्वल्पकाल साधारण वुझे,गमने वीजो अतिचार जी ॥ म ॥ ४ ॥ अनंग तपी क्रीडा नवि करवी, पर नारी संघात जी ॥ अधरदशन कुचमर्दन चुंबन, तजी आलिंगन वात जी ॥ म० ॥ ५ ॥ परनारीनां थंग मनोहर, नवि निरखे सविकार जी। शीलवंत श्रावकने नांरव्यु, एम कहे जगदाधार जी । म०॥ ६ ॥ यतः ।। पर उन्नंग दंसणेश, गोमुत्त ग्गहण कुसुमिणे चेव ॥ जयाणा सबब करे, इंदिश अवलोयणे अतहा ॥१॥ पूर्वढाल ॥ ढांक्यां अंग नारीनां जोतां, उलटे राग अताग जी ॥ फरसे तेम वली वाधे बमणो, वरजे तेह महा जाग जी ॥म० ॥ ७ ॥ नजरें श्रावे रूप कदाचित्, न धरे राग ने क्षेप जी ॥ गोमूत्रादिक ग्रहतां न करे, मर्दन योनिविशेष जी ॥ म ॥७॥ शयन करतां पहेलु चिंते, शल्य विपोपम काम जी ॥ खिणमित्त सुख बद्ध काल लगें उख, मन चिंतवीय धाम जी ॥ म ॥ ॥ ॥ एम जावन वै गग्य सूतां, कुसुमिण नावे रात जी ॥ मोह उदयथी कदाचित् श्रावे, तो निसुगो तस बात जी ॥ म ॥ १० ॥ ऊठी इरियावही पडिकमीय, निंद तजी ततकाल जी ॥ काउस्लग्ग कीजें चर लोगस्सनो, नावें या उनमा स जी॥ म॥११॥ इश्यि अवलोकननी जपणा, दृष्टिनिवर्तन रुप जी ॥ यः ॥ गुयोरुवयकरको रु यंतरे तह यणंतरे दिई ।ता हरत दिति, नय बंध दिहिए दिहि ॥ २॥ पूर्वढाल ॥ अनंगकीड वपर ए वि तर, नांखे श्रीजिननप जी ॥ म० ॥ १२ ॥ श्रथना निजनारी थातुर, नावविषय थलमान जी । चोगशी थासन यामवन, न करे अक्षावान जी।। म ॥ १३ ॥ पुरुष नपुंसक मेवन तिम वली, दलकर्म परिहार
जी ॥ काट चर्म फल माटी घटित जे, कामोपगरण धार जी ॥म०॥ - ॥ १ ॥ एलयकी जे कीडा करवी,ते पण त्रीजो जाण जी ॥ दवे विवा सनगो कई चोथो, ने निणो गुणरवाण जी म ॥ १५॥ कन्या पल शिष्मायें परना, बालस्नो विवाद जी । निजदाग संतोपरी न करे, गुणी तस मम उत्ताद जी ॥ 2 ॥ १८ ॥ निज दारा संतांनी निन Fam, नपरे पर विचार जी ॥ परवाग पनी निज वेश्या, निणु नहीं विषयविकार जी॥ म १२ ॥ अचरथी मनचकायें न न न क
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३५७ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. . . रावु ए प्रसंग जी ॥ जो जोडे विवाह ते परना, मैथुन कारण नंग जी ॥ म० ॥ १७ ॥ हुँ विवाह कारक नहीं मैथुन, कारक एवं नाव जी ॥ व्रत सापेद अनंग विचारी, नंगानंग विनाव जी ॥ म० ॥ १५ ॥ निज अपत्य नछाहनी चिंता, पण न करे सुश्रा जी ॥ जो चिंता कारक होवे कोश, ते जग विरला लाध जी ॥ म ॥ २०॥ अथवा सऊ निज नारी दुते, परणे वीजी जेह जी ॥ पर विवाह करे ते चोथो, अतिचार सुणो नेह जी ॥ म० ॥ २१ ॥ तीवकाम उपर नवि कीजें, अध्यवसाय अत्यंत जी ॥ मुखकदोपस्थादि न सेवे, चिरंकाल एक चित्त जी॥ म० ॥ ॥ २२ ॥ केशाकर्षण दंत नखदत, करिन जगाडे काम जी ॥ कामवृद्धि कारी गुटिकादिक, केरुं न लीये नाम जी ॥ म० ॥ २३ ॥ वेदोदय असहि पापणाथी, निजनारी भागार जी ॥ मैथुनमाने वेदोपशमन, नहिं अवर विस्तार जी.॥ म० ॥ २४ ॥ अधिक कुचेष्टाथी गुण न दुवे, साहमुं वल क्ष्य थाय जी॥परदारा वर्जी पंच वरजे,अवरने त्रएय कहाय जी ॥म॥२५ ॥ उक्तं च ॥ परदारवलियो पं,च हुँति तिन्निन सदार संतु॥श्लीतिन्नि पंचव, नंगविगप्पे हि नायव्वा ॥ ३ ॥ स्वदारसंतोषिण स्तुत्रय एवां त्याः॥
आद्यौ तु नंगावेवेति ॥पूर्वढाल ॥ एम नारीने पण वर्जेवा,अतिचार जन्मा द जी ॥ परपुरुप निजपति ब्रह्मचारी, अजिसरतां होय आद जी ॥ म० ॥ २६ ॥ परिगृहीत वारक दिन शोक्यें, निज पियुशुं तेण दीस जी॥ शो क्य तणो वारक लोपंते, वीजो होय जगीश जी ॥म ॥ १७ ॥ एम पंचे जाणेवा जुगतें, नारीने अतिचार जी ॥ निजदारा संतोपीने पण, पंच जे अवर प्रकार जी ॥ म ॥ २७ ॥ पोतें नाटक दे ग्रहीने, गणि का लही निजनारी जी ॥ गमन करतां वीजो होवे, तेहने पण अतिचार जी ॥ म ॥ २ए । अनानोग अतिक्रम आदिकथी, पहेलो पण को वार जी ॥ त्रण पूर्व दारव्या ते तेहिज, एम कह्या पंच अतिचार जी ॥ म॥ ३० ॥ तथा च सूत्रं ॥ सदार संतोसिस्त श्मे पंच अश्यारा जा पियवा से समायरियवेति ॥ एतद्वतफलमाह। पूर्वढाल ॥ कनक चेत्य निप जावे कोश, आपे कनकनी कोडी जी ॥ तेहतुं पण फल शीलवतनी, .
न करे जगमों होड जी ॥ म० ॥ ३१ ॥ यतः ॥ जो देश कणय कोडी, । यहवा कारे रुणयलिए सुवणं ॥ तस्त न तत्तिय पुरणं, जत्तिय वनबए
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श्री शांतिनाथनो रास खंग हो.
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धरिए || ४ || परसमयेषि ॥ एकरात्र्युपितस्यापि या गतिर्ब्रह्मचारिणः ॥ नसा सहस्त्रे, वक्तुं शक्या युधिष्ठिर ॥ ५ ॥ एकतचतुरोवेदा, ब्रह्मच ये तु एकः ॥ एकतः सर्वपापानि मयं मांसं तु एकतः॥ ६ ॥ पूर्वटाल निन्नेदिय दो नाग जगंदर, कुरुव नपुंसक रंग जी ॥ वंध्या निंदू विषकन्या तिम, दोये कुशीत जगनंम जी ॥ म० ॥ ३२ ॥ देवव्यने जण कर वे, परनारीने पाएं जी ॥ सात वार सप्तमीयें पहोंचे, एम कहे जिनवर व्याप जी ॥ म० ॥ ३३ ॥ परेषादुः ॥ तस्मादर्मार्थिनिस्त्याज्यं, परदारो पसेचनम् ॥ नयंति परदारस्तु नरकानेकविंशतिं ॥ ७ ॥ पूर्वढाल || निजदारा संतोषीने पण, पर्वदिवस सुविशेष जी ॥ विषय तो परिहार करेवो. पर मतमां पण देख जी ॥ म० ॥ ३४ ॥ यक्तं ॥ विलुपुराणे ॥ चतुर्दश्य टमी चैवा, मावास्या चैत्र पूर्णिमा । पर्यायेतानि राजेंड, रविसंका तिरेव
|| || तैस्त्री मांगसंजोगी, पर्वस्वेतेषु वै पुमान || विएसूत्रनोजनं नाम, प्रयाति नरकं मृतः ॥ ए ॥ पूर्वहाल ॥ वत्रीस उपम कहीं ए व्रत नी, सांजन तस अधिकार जी || नवियण दशमा यंग मकारें, चोथे संवर द्वार जी ॥ म० ॥ ३५ ॥ उहे में ढाल वीशमी, चोया व्रत त्र्यधिकार जी ॥ राम कड़े ए व्रत पालंतां, होवे जयजयकार जी ॥ म० ॥ ३६ ॥ || दाल ॥ सारो सोरत देश देखाउ रखीया ॥ ए देशी || शीलवंत सुगु मोरे मन बसिया ॥ वत्रीश कपम गुणयुत धारी, नाम जपे रे जाये पाप नखीयां रे || श्री० ॥ १ ॥ मुकुट ने कॉम वसन फूल श्वन्न, चंदनम गोसीत रसियां रे || शी० ॥ २ ॥ चं लवण रचणावर रुडो, मणि बैंकर्य
सीयां रे || शी॥ ३ ॥ श्रपवियें करी हेमगिरि मदोटो, सिंधुमांनी चोदा सिरियां रे || शी० || | || दशमे संपेन रमल जलनिधिमां. चनुल नगमां रुचक गिरियां रे ॥ ० ॥ ५ ॥ गजमांहि ऐगवत हरि मृगम, सुरमा वेणुदेव वरिया रे || दी० ॥ ६ ॥ पनरमी उपमनुवनपतिमां, धरणीपर जैम गुण नरिया रे ॥ ० ॥ ७ ॥ सह समदे जेम सोधी, असुर लोकमां सुग्वकरियां रे || जी० ॥ ८ ॥ स्थिति महोटी ब चमसुरी, दानम दान नगरीयां रे ॥ श्री० ॥ २ ॥ दीधमी उपम रंगमांत किती, कही न जाये उत्तरीयां रे ॥ श्री० ॥ १० ॥ वज taarna, हणमहि समयनीयां ॥
० ॥ ११ ॥
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३६० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ध्यानमां ध्यान शुक्ल मन मान्युं, ज्ञानमां केवल पारसीयां रे ॥ शी॥ ॥ १२ ॥ पचवीशमी उपम लेश्यामां, गुकलथी कर्म कतिन खसियां रे ॥ शी० ॥ १३ ॥ मुनिमां जेम तीर्थकर स्वामी, सुर नर आवी नमे घसी या रे ॥शी ॥ १४ ॥ देव विदेह ज्युं क्षेत्रमें महोटुं, मेरु महिधरमां लसीया रे ॥ शी० ॥ १५ ॥ वनमांहि नंदनवन जेम महोटुं, तरुमां जंबू . उकसिया रे ॥ शी० ॥ १६ ॥ जेम हय गज नर सैन्यमां महोटो, जग च. कीश्वर गुन वसिया रे ॥ शी॥ १७ ॥ जेम रथमां हरिनो रथ महोटो, तेम व्रतमांहि शील कसिया रे ॥ शी० ॥ १७ ॥ बत्रीश उपम चोथा व तनी, जाणी पालो व्रत धसमसीयां रे ॥ शी० ॥ १ए ॥ १00७ ॥ ५॥
॥दोहा॥ ॥ ए व्रत पुष्कर पालतां, पहोंचे सयस जगीश ॥ परदारा लंपट तिके, पुःख पामे निशदीस ॥ १ ॥ यतः ॥ मेरु गरिको जह पबयाणं, एरावणो सार वलो गयाणं ॥ सिंहो वलिछो जह सावयाणं, तहेव शीलं पवरं वयाणं ॥१॥ अन्यच्चोतं ॥ नपुंसकत्वं तिर्यक्त्वं, दौनांग्यं च नवे नवे ॥ नवेन्न राणां स्त्रीणांचा, न्यकांतासक्तचेतसाम् ॥ २॥ पूर्वदोहा ॥ परनारीलोलुप थके, करालपिंग फुःख दी ॥ कहे चकायुध स्वामीने, कवण दुकहो - ३० ॥३॥ प्रजु संबंध कहे तेहनो, करालपिंग जस नाम ॥ पर्षद स्थिर चित्त सांजले, करीय प्रनुने प्रणाम ॥ ४ ॥
॥ढाल सत्त्यावीशमी॥ ॥ देशी रसियानी ॥ कुंथु जिणेसर केसर जीनी देहडी रे लो॥ ए देशी ॥ नवियण, विषय न सेवो विरु दुःखदायी घणुं रे लो॥ कहे जिनशांतिजी रे लो॥ना क्षेत्र जरतमा नलपुर पुर सोहामणुं रे लो । सुणो मन खाते जी रे लो॥ न० ॥ तिहां नलपुत्र नरेश्वर राज्य करे गुणी रे लोक ॥ ॥ ज० ॥ नज्ज्वल जेहनी कीर्ति चिटुं दिशिमां सुणी रे लो॥सुणो मन ॥ १॥ न ॥ तेहने पापाजीष्ट पुरोहित वे जलो रे लो ॥ कल ॥ ज०॥ नाम करालथी पिंग घडे तस निर्मलो रे लो। सु ॥ ज० ॥ शांति कर म मांहे माह्यो अति रलियामणो रे लो ॥ कण ॥ ज० ॥ रायतणे मन मान्यो लोक नमे घणो रे लो ॥ सु० ॥ २ ॥ ॥ तिण पुरमा एक न्यतनय वासो वसे रे लोक ॥ ॥ नामें ते पुष्पदेव पने करी
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श्री शांतिनायनो रास खंम छो, ३६१ उनसे रेलो || सु ॥ ॥ तेहने पुरोहित सायें, प्रीति थडे घणी रे सो ॥ क० ॥ ज० ॥ रात दिवस रहे नेला, होश हैवा तणी रे लो ॥४॥ ॥३॥ न० ॥ ते व्यवहारी घरे, नारी सारी अछे रे लो ॥ क० ॥ ज० } रुपयंती गुणवंती, पति मनमा रुचे रे लो ।। सु ॥ न ॥ नामें ते प्रद्यु म्न, सिरी रति सारसी रे लोक०॥ न० ॥ देखी ते पुरोहितना,मनमाहे वसी रे लो ॥ सु० ॥ ४ ॥ ज० ॥ थयो विषया अनितापी, नारवी लाज ने रे लोक० ॥ ज० ॥ रात दिवस ते दोडे,नरवर काजने रे लो ।। ४० ॥०॥ एक दिवस ते उपर,नृपरीज्यो यति रे लोक ॥ ॥ मागो मनोवांवित कहे, हप॑ नृपति रे लो ॥ मु० ॥ ५ ॥ ॥ विपयानो उमाह्यो, बाह्यो ते धसी रे लो ॥ कर ॥ गजन मनोवांछित बर यापो, छाले इसी रे लो ॥ सु ॥ राजन पुरमा मन मानीती, नारीj मुंरे लो। क० ॥ राजन् मन मान्या सुखमांहि, काल हूं निर्गमुं रेलो ॥ सु॥ ६ ॥ गए ॥ मन शरमाणो बोलें, बंधाणो कहे रे लो। क० ॥ सांनत बात पुरोहित तुऊ, साथै दिल जे बहे रे लो। नु० ॥ कहे नृप ते सायं तुझ रमई, अवर न नवीरे लोक ॥ घरजे वात पुरोहित एद, कही जे पीलवी रेलो ॥ ॥ ॥ कहे नृप एथी जो विपरीत नु,चालीश एकदा रेलो ॥ कर ॥ कहें नृप करा नुश शिर दंम, प्यन्यायी पर तदा रे लो ॥ सुप ॥ मानी नृपनी चाणी निर्गत.ते पुरमा यो रे लो।। 20 ॥ धागल तंचो उंट वली ते, नकारडे गयों रे लो ॥ ४० ॥ ॥जमतो मुरमां ते दिन रात के, माता लांद जयं
लो ॥ ७ ॥ करतो परनारी केलि, कुशागत मवि तन्यु रे सा ।। सु । एकदिन मोया ते पुष्पवनी, नारी कपालो ||क० ॥ गगंध पयों से चिंते, निनने अंतरे लो || Rail ty | कम ए नारी मारी न्यारी, मलारे या धोरेलो ॥20॥ देखी पहना मुख मल के. मुरु लिमलमलो ॥ ॥ ज०म चिंती तन वानी, दासी मनी
लोप ॥ दावी नबनी गत सपनी बात मान लो ! सु !! नई तम कर जेम तुम स्वामिनी, मुाने चादर मा । 11 मा
सारीपार, लियामा खानाम: आतिशबाद पाड निरंनर, जीविजनिक स
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३६२ - जैनकथा रत्नकोष नाग आवमो. मुफ उपर अनुकूल, मनावी उलगे रे लो ॥ सु० ॥ ११ ॥ पामी यव सर तेणी दासीयें, वात सवे कही रे लोक ॥ निसुणी शीलवती ए वात, निखर मानी नहीं रे लो। सु० ॥ रे रे धिक् मी गुं बोली, वोल - तुं एहवा रे लो ॥ क ॥ जुमा पुरमांहे बदु विटल, वसे ए जेहवा रे ॥ सु ॥ १२ ॥ दूवे मुख एहवानुं जोइ, पापी आतमा रे लो ॥ क० ॥ . वहेनी चिरंजीवो मुफ वालम, अवरनी नही तमा रे लो ॥ सु० ॥फरीने दासी कहे तुज वात,न माने ए किमे रे लोक०॥ कहेण न चाले यहां मुऊ, कांइ करो तुमें जे गमे रे लो ॥ सु ॥ १३ ॥ पामी अवसर एक दिवस ते, आवीने कहे रे लो ॥ क ॥ वहेली करो करुणा मुज उपर, विरहें तन दहे रे लो ॥ सु० ॥ कहेवा लागी ते एम न घटे, तुमने बोल रे लो ॥ क० ॥ जो जाणे तुम मित्र तो थाये,इहां कांइ अजिनवू रेलो ॥ सु ॥ १४ ॥ ज० ॥ निसुणी वाणी पुरोहित, थयो मनमा खुशी रे लो ॥ क० ॥ न ॥ जाणी ते अनुकूल, कहे फरीने हसी रे लो॥ सु० ॥ ॥ कहे तेहने एम करवू, जेम तुम नाहलो रे लो ॥ कण ॥ सुंदर तो पूराये आपण,चित्त उमाहलो रेलो ॥ सु० ॥१५॥ न ॥ कही एकांतें तेणें निज, कंतने वातडी रे लो॥ का ॥ न ॥ निसुणी मनमा सुधी,तस ईर्ष्या चढी रे जो ॥
सुन॥॥ मन नांग्युं दिलमांहे, रीज रही नहिं रे लोक ॥॥ जगमां एह शिरें,नमी करणी सही रेलो ॥ सुप ॥ १६ ॥ ॥ हवे तेरों कीधी नृप शिर,वेदन याकरी रे लो कान॥ मंत्रवलें करे पासें,पुरोहित चाकरी रे लो॥सुजाना कहे राजन पुरोहित, टालो वेदनी रे ॥क ज॥ करोउपकार ए मुफ तो, विलसुं मेदिनी रे लो॥सु॥१॥ज॥ मंत्रथकी तेणी वारें,वेदन ततदणे रे लो कान०॥ तुष्ट थयो राजेश्वर, वर मागो नणे रे लो ॥ सु० ॥ न ॥ विप्र कहे सुण राजन, माहरी विनति रे लो ॥ क ॥ साहेव मुफने एह मगावी,
आपो करूं विनति रे लो ॥ सु० ॥ १७ ॥ राजन वे किंजल्पही, सुस्वर पंखीयां रे लो ॥ क ॥रा० ॥ नामयकी किंजल्प, बहु में परखियां रे लो ॥ सु० ॥ रा ॥ ए पुप्पदेवने मृको, जश्ने सावशे रे लो ॥ क ॥ रा०॥ चोप करी करि कारज, वहेलो यावशे रेलो ॥ सु० ॥ १ ॥ रा० ॥ कहे तेडी पुष्पदेवने, काज करो तुम्हें रे लो ॥ कण ॥ राम ।।
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श्री शांतिनाथनो रास खंग हो. ३६३ तुम आदेश प्रमाण, जइ लावू अमें रे लो ॥ सु ॥ जय ॥ वेर आवी एक जृमि, गृह सत्वर कयो रे लो ॥ क० ॥ ज० ॥ ते उपर एक यंत्र पल्यंक लेई धयो रे लो ।।सुगा॥ ज० ॥ शीखवियु सेवकने, जब यावे रही रे लो ॥ कप ॥ ज० ॥ यंत्रशच्या वेसारी,नाखेजो महिं रे लो। तुम ॥ न ॥ ते बानो मुज पासें, पुरोहित लावजो रे लो । क ॥ ज० ॥ काम करीने जिहां .तिहां तुमें आवजो रे लो ॥॥१॥॥ चालणने मिप जइते,वनमां कतयो रे लो ॥ कल ॥ ज० ॥ ततहण तेह पुरोहित, हर्प हेये जयो रे लो ॥ सु० ॥ न ॥ पुष्पदेवने मंदिर, ते याव्यो वही रेलो ॥ क० ॥ ॥ कूडतणी रचना तेणे, मूर्ख नवि लही रे लो॥ सु ॥ २२ ॥ जय ॥ पद्मसिरीयें यंत्र, पल्यं बेसारीयो रे लो ॥ क० ॥ न ॥ ततदण ते उठलीने, जोय लिधावियो रेलो ॥ सु ॥ ज० ॥ नां ग्युं तेहढं अंग, ययुं सवि लाजलं रे लो ॥ क ॥ ज ॥ बकाणी सवि संधि ज्युं,जूनुं खांजलं रे लो ॥ सु ॥३॥ ज० ॥ वांधी मयूरने बंधे,शेव ने यापीयो रे लो कान॥ उपाडी कठ पंजरमां, तत्त स्थापियो रेलो ॥सु ॥ ॥ चाव्या कोई देशांतर, खटमासी रह्या रे लोक ॥ नम् ॥ काज करीने वलीया, नवि कोणं सह्या रे लो॥ ॥ ४ ॥ ना ॥ निजपुर आवी मीरों, लेप कस्यो तने रे लोक ॥ न ॥ चहो ज्यां पंचवरणनां, पिंगं अति वने रे लो ॥ सु० ॥ ज० ॥ जइ दरवारें जेट,कस्यो ते चूपने रे लोक ॥ ज० ॥ रीज्यो राजा जोर, देखी तस रुपने रे लो ।मु० ॥ २५ ॥ राजन बदु ग्रहियां पण मारग, माहे मरी गयां रे लो । क ॥ रा ॥ धाव्यो ए इहां कणे एक ए, हिज वगुदिन थया रे लो ॥ सुप ॥ राजन कहे ए पंखी माणस, सरियो केम य र लोक ॥राण॥ कहे बोलावो एहने, मुफ मनमा रुचे रे लो ॥ नु० ॥ २६ ॥ ॥ लइ करमा ते प्राजन, धार दीये घणुंदे लोक ॥ ॥ वोल तुं पंखी नृप या,गल वढु मुन' रे तो ॥ सु० ॥ न ॥ ते कहे किंजपामी, तस वाणी सुणी रे लो । क० ॥ राजन हिज उनखीयो जांखे, वजतुं तेजणी रे लो ॥ सु० ॥ २३ । रा० ॥ कहे पुप्पदेव ए मुक्त, पुरोहित सारिसोरेलो ॥ क० ॥ राजन हाथ तणे प्रारीने, करकंकण किन्यो रेलो ॥ सु० ॥ राजन
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
जूवो निरखी जेम, संदेह टले परो रे लो || क० ॥ रा० ॥ परखीने निरवंतां, ते जाएयो खरो रे जो ॥ सु० ॥ २८ ॥ रा० ॥ पूढे ए चुं कारण, मुऊ दाखो तुमें रे जो ॥ क० ॥ रा० ॥ कहे पुष्पदेव कहंतां, लाजूं
मेंरे जो ॥ सु० ॥ रा० ॥ वात सुणीने मनमां, नृप कोप्यो घणो रे लो ॥ क० ॥ रा० ॥ कहे व्यारक्षक नरने, जइ एहने हो रे जो ॥ सु० ॥ २७ ॥ ज० ॥ करीय कदर्थना पुर, शेरीमां फेरीयो रे लो ॥ क० ॥ ज० ॥ जइ वधमें नृप, सुनटें ते मारीयो लो || सु० ॥ ज० ॥ गयो नरकावनि ताजी, जिहां प्रयपूतली रे लो ॥ क० ॥ ० ॥ लिंगावे
सुर, पचारे वली वली रे लो ॥ सु० ॥३०॥ ज० ॥ नमो ते बहुकाल, लगे संसारमां रे लो ॥ क० ॥ ज० ॥ रहे एम विषय नड्या जव, कारा गारमां रे लो || सु० ॥ ज० ॥ बडे खंमें ढाल, कही सत्तवीशमी रे लो ॥ क० ॥ ० ॥ शांतिप्रजुनी देशन, सुष्णो साकर समी रे लो || सु० ॥ ३१ ॥ इति चतुर्थव्रतोपरि कराल पिंगलपुरोहित कथानकम् ॥ ४ ॥ सर्व गाया || १०४३ ॥ श्लोक तथा गाया मनी ॥ ५ ॥
॥ अथ पंचम परिग्रहपरिमाणत्रत संबंधः ॥ ॥ दोहा ॥
|| हवे पंचम व्रत जिन कहे, परिग्रहनुं परिमाण || तेम इवापरिमाण वली, जांखे श्री जिनना ॥ १ ॥ सचित्त चित्त मिश्र जाणीयें, परि ग्रहना त्रण नेद ॥ नव चेंदें होय तिम वली, एम नांखें गतवेद ॥ २ ॥ क्षेत्र वासु धन धान्य तेम, रुप्य कूप्य ने हेम || द्विपद चतुष्पदनो सदा, मन राखीजें प्रेम् ॥ ३ ॥ परिग्रह वाध्यो ए घणुं, होय बहु दुःखदातार ॥ सिद्धांतें एहना छठे, चली अनेक प्रकार ॥ ४ ॥ धान्य रत्न स्थावर हिवद, चपद कुप्पविचार || सामान्यें पट् नेद एम, उत्तर चोस चार ॥ ५ ॥ धान्यनेद चोवीश वे, १ जवश्गहूं ने वली ३शानि ॥ ४विहि एसडी ६ कुछ वा, उयपुत्र्या कंगू एरान ॥ ६ ॥ १०तिल ११ मुग १२मासा १३ श्रत सि तिम, १४ हरिमय १ त्रिपुट १६निपाव ॥ १०मठ १८चोला १एयरटी नली, २० मसुर २१ तुंवरि तिम जाव ॥ ७ ॥ २२कुलठी २३धन्नय २४वृत्त चनक, धान्य भेद चोवीश ॥ रत्न जाति वली तेटली, एम नांखे जगदीश ॥ ८ ॥ १सोवन श्त्रपु श्त्रांं धरजत, पलोह ६सीस उमुहिर ||
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पुस तेमा ने कहूं, नमी घरातम, २वड्यौपए तम
- श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३६५ . पापाण एवज १ मणि ११मौक्तिका, १२प्रवाल १३शंख तिम गमि ॥ ए ॥ १५तिणि सागरु १६चंदण वली,१७ वस्त्र १ जन तेम १ एकाष्ठ ॥ २०चर्म २१दंत श्वाल २३गंध तिम, श्वव्यौषध ए काष्ट ॥ १० ॥ स्थावर त्रिढुं ने कह्यु, नमी घर तरु जाणि ॥ हिपद दोय चकारवंध, मा पुस तेम वरवाए ॥ ११ ॥ चकारवंधो गंव्यादि ॥ मानुष्यं दासादीति ।। चोपद दश ने कह्यांगो महिपी तिम नट्ट॥अज एलग आस पासतरग, हय रासन ने करट्ट ॥ १३ ॥ नानाविध उपगरणना,नेद अनेक विचार ॥ कुप्प कह्यो चोसहिमो,परिग्रह नेद उदार ॥१३॥ लोन अल्प जेम जेम हो ये, जेम जेम अल्पारंन ॥ तेम तेम सुख वाधे घणुं, धर्मसिद्धि प्रारंन । १५ ॥ नरनव सार थारोग्यता, धर्म एह सत्य सार ॥ सुख ए संतोप सार ने, विद्यानिश्चय सार ॥ १५ ॥ यतः ॥ ब्रह्मज्ञानविवेकनिर्मतधियः कुर्वत्यहो पुष्कर, यन्मुंचंत्युपनोगनांज्यपि धनान्येकांततोनिःस्टहाः ॥ न प्रप्तानि पुरा न संप्रति न च प्राप्तौ दृढप्रत्ययौ, वांबामात्रपरिग्रहाण्यपि वयं त्यक्तुं न तानि दमाः ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ परिग्रहथी विरम्या नहिं, ते लहे सुःख समुदाय ॥ श्रावक सुलस तणी परें, कहे एगी परें जिनराय ॥ १६ ॥ कहे चक्रायुध स्वामिने, सुलस कहो कुण तेह ॥ पंचम व्रत उपर प्रच, परकाशो तुमें जेह ॥ १७ ॥
॥ ढाल अन्यावीशमी ॥ ॥जरत नृप जावद्यु ए ॥ ए देशी ॥ शांति जिणेसर एम कहे ए, सुग चक्रायुध राय॥परिग्रह सुःख दीये ए ॥ नयर अमरपुर जरतमा ए,सवि शो ना समुदाय ॥ परि० ॥ १ ॥ अमरसेन तिहां राजीयो ए, शेत झपनद न सार । प० ॥ श्रावक समकित धारकू ए, जिनगुरु पूजपहार ॥ १० ॥ २ ॥ जिनदेवी तस नारजा ए, रूपें रंजसमान ॥ ५० ॥ सुनस नामें सुत यति नलो ए,सोहे सुगुण निधान ॥ ५० ॥३॥ यौवनवय परणावी यो ए, जिनदास तनया सार ॥ १० ॥ पतिवंदे चाले जनी ए, नामें सुत्नश नारि ॥ प० ॥ ४ ॥ जनक कहेगथी एकदा ए, गुरुपासें ते सुजा ण ॥ ५० ॥ श्रादरे आवक व्रत विना ए. एक परिग्रह परिमाण ॥ प० ॥ ५ ॥ रसिक कलानो अति घपो ए, विपय न वेसे चित्त ॥ ५० ॥ मात विचारे मन्नमां ए, सुत ए शूनो जीत ॥ १७ ॥ ६ ॥ नवि वोले निज
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.३६६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
नारिघु ए, न जुए दृष्टि सराग ॥ प० ॥ न करे उद्यम वणिजनो ए, रहे. शे ए नि ग्य ॥ १० ॥ ७ ॥ जिनदेवी कहे कंतने ए, निःस्टह सरीखो पूत ॥ ५० ॥ विषय न वांजे चित्तशुं ए, केम चलशे घर सूत ॥ १० ॥ ७ ॥ तेम करो जेम ए विषयने ए, वां वालम नंद ॥ ५० ॥ शेठ कहे नारी जणी ए, बोल मां एम मतिमंद ॥ १० ॥ ए ॥ के. काल अना दिना ए, लाग्या रिपु थइ जेह ॥ ५० ॥ ते रिपुर्ने सुत सोपतां ए, श्यो मावित्र सनेह ॥ ५० ॥ १० ॥ यतः ॥ जोगा न चुक्तावयमेवमुक्ता, स्तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः ॥ कालोन यातोवयमेव याता, स्तृष्णा न जीर्ण वयमेव जीर्णाः॥ ॥ पूर्वढाल ॥विण शीखवीयां बावडे ए,आहार विषय विकार ॥ १० ॥ पण अनादिनो दोहिलो ए, धर्मतणो व्यापार ॥ १० ॥ ११ ॥ नवि मूके कामिनी ए, सीधी शेवनी केड ॥ १० ॥ पाड्या पण मुंगर पडे ए, जावी न जाये फेडि ॥ १० ॥ १२ ॥ शेवें नट विट तेडी या ए,जूधारी कमजात ॥ ५० ॥ चतुराई शीखण नणी ए, सोंप्यो तेहने जात ॥ ५० ॥१३॥ लही कुसंगति तेहनी ए,वीसारी सवि वात ॥ ५० ॥ नातर तेणें विसारीयुं ए,इंख्यि सुखनी धात ॥ ५० ॥१४॥ कौतुक हास्य विनोदनी ए.सुणतां वात रसाल ॥ ५० ॥ मन विंधाएं तेहढं ए, पडीयो विषयनी जाल ॥ १० ॥ १५ ॥ निर्वल संगतिथी निपन्यो ए, वेश्यागु संयोग ॥॥ हाव नाव करी नोलव्यो ए, विलसे विपयिक जोग ॥ १० ॥ ॥ १६ ॥ मात पिता धन मोकले ए, मोकले मन धरी नेह ॥ १० ॥ सु त वेगो विलसे तिहां ए, मोह तणी गति एह ॥ १० ॥ १७ ॥ घरहूंती नवि नीसरे ए, लाग्यो गणिका रंग ॥ ५० ॥ विपय अग्निमां जीवडा ए, पडीया जेम पतंग ॥ ५० ॥ १७ ॥ यतः ॥ लोलेदपावक्रनिरीक्षणेन ॥ मात पिता बहु मोकले ए, जन तेडांने काज ।। प० ॥ पण गणिका जावा न दे ए, नवि लोपे तस साल ॥ १० ॥ १५ ॥ लालच नंगी विषयनी ए, उमी अतिहि अगाध ॥ प० ॥ संसारी एहमां पच्या ए, न लहे सुख निरावाध ॥ १० ॥ २० ॥ मात पिता फूरे घj ए, सुतने संना री जोर ॥ १० ॥ नव कीयां या नवें ए, श्राव्यां कर्म कठोर ॥ प० ॥ २१ ॥ वांक नहिं इहां कोनो ए, सहामो चढावी पाड ॥ १० ॥ विटल पुरुपने सोंपीयो ए, कीधां ए सुतने लाड ॥ ५० ॥ २२ ॥ खाम ख
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३६७ णी आपण सही ए,पडीयां आपण मांहि ॥ पण ॥ नीसासा नाखे घणा . ए,पण चिंत्यु नवि थाय ॥ १० ॥ २३ ॥ सोल वरस लगें तिहां रह्यो ए, मात पिता थयां दीण ॥ प० ॥ आरतध्यानमां बेदु जणां ए, गयां पर लोकें दीण ॥ ५० ॥ २४ ॥ गुणवंती तस नारजा ए, तेम धन महेले तास ॥ ५० ॥ ह न आपे कंतने ए, अहो अहो मोह विलास ॥ पण ॥ २५॥ धन नीतुं तव तेणियें ए,निज आपण सार ॥ ५० ॥ दासी सं घातें मोकट्या ए, अक्कायें चिंत्यु तिवार ॥ प० ॥ २६ ॥ धन नीतुं एहना घर तणुं ए, मोकल्यो निज शणगार ॥ १० ॥ ए मुफ राख, नवि घटें ए, फरी मोकल्युं सुविचार ॥ १० ॥ २७ ॥ हवे अक्का मन चिंतवे ए, श्यो निर्धनगुं नेह ॥ १० ॥ कहे पुत्रीने एहमु ए, हवे श्यो करवो सनेह ।। प० ॥ २७ ॥ ढाल कही अडवीशमी ए, बहा खंम मजार ॥ ५० ॥ राम विजय कहे धन वडुं ए, स्वारथी ए संसार ॥ प० ॥ २ए ॥१०णा६१॥
॥दोहा॥ कहे पुत्री माताप्रतें, वहु धननो दातार ॥ सोल वरस लगें जेह , विलस्या नोग नदार ॥ १ ॥ केम बंमाये वालहो, प्राणथी अ धिको एह ॥ सोप्यां में हाथे करी,जेहने धन मन देह ॥ २ ॥ कहे पक्का पुत्री सुणो, तुम कुल ए आचार ॥ निर्धनिया नर परिहरे, धनवंतशू व्यव हार ॥३॥ तस मन जाणी पंच दिन, अक्का पडखी जेह ॥ इद्ध मगावे एक दिन, दिये कूचा धरि नेह ॥४॥ मा ए झुं हुँ ढोर बं, निःपीडित इतु दक ।। जे ते मुफ प्रागें धखा, अक्का कहे कुरंग ॥ ५ ॥ जो ए चाव्ये रस होवे, तो सेवे सुलस कुमार ॥ सांगो चूसी रस लीयो, बोता बोड गमार ॥ ६ ॥ पुत्री कहे कृचा घणे, कामें यावे माय ॥ घेर घालाथी दोरनी, नूरख एहथी जाय ॥ ७ ॥ रस लेई पोथी तो, नीरस थापे हाथ ॥ रीसाणी पानी दीये, झुं मुफ दीठ अनाथ ॥ ७ ॥ मा कहे नी रस पोथी ए, जिमन रंगाये पाय ॥ तेम ए निर्धन सुलसथी,कोडी काम न थाय ॥ ॥ ॥ कहे पुत्री पोथी नीरस, पण दसा दीप होय ॥ तेम ए निर्धन सुखसमां, गुण केता एक जोय ॥ १० ॥ राग लही पुत्री तणो, गनी रही तेवार ॥ विण पूल्ये एकाढवो, मनमां कस्यो विचार ॥ ११ ॥
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३६७ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
॥ ढालगणत्रीशमी ॥ पूरचे सुकत न में कीयो ॥ ए देशी ॥ अक्का कहे उतावली, आवि ते सुलसनी पास ॥ तुमें नूमि देता ऊतरो, जे कारिज रे उपर आवास ॥ १ ॥ धिक् धिक् उर्जन प्रीतडी रे ॥ जे आपे रे बटकीने बेह ॥ रंग कुसुंन तो जिस्यो, जेम न टके रे जग तारनो त्रेह ॥ धि ॥ २ ॥ मनमांहि कुंवर चिंतवे, युं हशे एहने काज ॥ सोल वरसमांहि एहवं, नवि सुपीयुं रे संजलाव्युं ते आज ॥ धि० ॥ ३ ॥ दासी कहे तव आवीने, झुं रह्यो मूढ विमासि ॥ निर्लज थश्ने केम रह्यो, नहीं ताहरे रे कोडी एक पास ॥ धि० ॥ ४ ॥ आथ विना आदर नहिं, मनमा विचारी जोय ॥ ए वेश्या मंदिर नवि शूनां, प्रीति सूखी रे इहां कण नधि होय ॥धि ॥ ५॥ सुलस निज मंदिर जपणी, निसखो न लहे माग ॥ मन खेद पामे अति घणो, एह देखी रे उपजे वैराग्य ॥ धि० ॥ ६ ॥ अषुसार मारग समरतो, आव्यो निजगृह पास ॥ चिटुं पासें पड़ी युं जीर्ण ते, गृह देखी रे थयो मन नदास ॥ धि० ॥ ७ ॥ बगेह सवि उखडी गश्, नलियां तणी नही शुदिनांगे कपाटे उइंस जिस्यो, तेह देखी रे नूली गयो बुद्धि ॥ धिम् ॥ ७ ॥ पूबीयुं पाडोशी जणी, घर स्वामी, झुं नाम ॥ ते कहे ताहरे झुं अजे, ए नामर्नु रे पूब्यानुं काम ॥ वि० ॥ ए ॥ ते कहे सहेजें पूबीयुं, ए कषनदत्तनुं गेह ।। आम अ वस्था का थर,जीवे डे के वली मूतेह ॥ धि० ॥ १७ ॥ ते कहे शेव ने तस प्रिया, वेदु पदुतलां परलोक ॥ घर पडद्यं संजाल्या विना, एम निसु पी रे मनमां धरे शोक ॥ धि० ॥ ११ ॥ धिक् व्यसन मुक वेश्यात[, हुँ थयो मूढ गमार ॥ मृत पितर में नवि जाणियां, नवि गणीयो रे अपयश अपकार ॥ धि० ॥ १५ ॥ धन धूलमांहे मेलीयु, सेवियां सात व्यसन्न ॥ शुं काम में रुडं कह्यु,देखाईं रे हवे केम वदन्न ॥धि॥१३॥ घर जोइन पाटो बढ्यो, यावीयो जीर्णोद्यान ॥ खर ताड पत्रे तुरीकया, तेणें लखीया रे अदर धरि शान ॥ धिम् ॥ १४ ॥ सुलस श्रीजिनवर नमी, लखे जामिनीने लेख ॥ आल्हाद सहित उतावलो, तुं वांचे मृगन यणी विशेप ॥ धि० ॥ १५ ॥ हूँ आज गणिकायस्थकी, नीसरी याव्यो गेह ॥ मृत पितर निसुणी लाजियो, तुझ न मल्यो रे आव्यो
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श्री शांतिनाथनो रास खंम ठहो. ३६ए बन एह ॥ धि ॥ १६ ॥ हवे आजथी ढुं समजियो, परदेश जइ करी काज ॥ आविश वहेलो ढुं सहि, तुं राखजे रे रूडी मुफ घरलाज ॥ धि ॥ १७ ॥ लखी लेख करमां धस्यो, दैवानुयोगें तत्र ॥ निजनारी दासी तिहां कणे, आवी तेहने रे सोप्यो तेणें पत्र ॥ धि ॥ १७ ॥ इष्ट समरी चालीयो, ते सुलस कोइएक देश ॥ परिधान जूनां चीवरां, नहिं पासें रे धन का लव लेश ॥ धि ॥१॥ आथने अरथें जमे, परदेशमा उजमाल ॥ एक नगर जीर्णोद्यानमां, जई पहोंच्यो रे थाक्यो असराल ॥ धि० ॥ २० ॥ तिहां ब्रह्मतरु अंकुर नीरखी, चिंतवे चित्तमांहि ॥ ए विनव विष्णु होवे नहिं, जइजो रे मन धरिय तम्माह॥ धि ॥१॥ जइ खो दीयुं ते ताण ततदाण, सहस एक दिनार ॥ नीसयो निधि तिहां हर्ष पाम्यो, मन चिंते रे तून्यो किरतार धिणार॥ संगोप्य करी पुरमांहि धाव्यो, सुलस धरी आनंद ॥ ढाल गणत्रीशमी, खेम बहे रे सुणो साज नवृंद ॥धार॥ सर्वगाथा ॥११२३॥ श्लोक तथा गाथा मली॥६॥
॥दोहा॥ - ॥ पुरमांहे एक वणिकने, वेतो आवी हाट ॥ वीसामो सेवा नणी, मूकी मन नच्चाट ॥ १ ॥ ग्राहक वदुला आवीयां, देखी व्याकुल तास ।। सुलस करे साहाय्य तस,माह्यो मन उन्नास ॥२॥ तस महापणने देखीने, रीज्यो शेठ अपार ॥ पूरे किहांथी वीया, नश्क अहो कुमार ॥३॥ तुम याव्ये आज माहरे, लाज थयो अचिंत ॥ कहो मुफ आगल मामीने, संघलो तुम वृत्तांत ॥ ४ ॥ वासी अमरपुरी तणो, प्राघूर्णक गुणधाम । ते कहे मंदिर तुम तणे, आव्यो लु ढुं स्वामि ॥ ५ ॥ शेते मं दिर तेडीने, न्हवराव्यो नलि जात ॥ जीमाड्यो नोजन सरस, वे सारी मन खांत ॥ ६॥
॥ ढाल त्रीशमी ॥ ॥ देशी जमारुतीनी ॥ शेव कहे कुण कारण याव्या ॥ जमारुती ॥ सुखस कहे निज काज ॥ तातजी दुशहां श्रावीयो तो ॥ ज० ॥ धन नपराजए आज ॥ १ ॥ नहीं हां कोई माहरो सगो तो ॥ ज० ॥ तुम्हें बो पिताने रे नाम ॥ करो करुणा मुळ उपरें तो ॥ ॥ कोई अपावो सुधाम ॥ २॥ दाट अपाव्युं नाटके तो ॥ ज० ॥ करे तिहां वणिज
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
व्यापार || लालच मनमां प्रति घणी तो ॥ ज० ॥ जेम तेम धन मेलुं सार ॥ ३ ॥ पट महिना त्यां प्रतिक्रम्या तो ॥ ज० ॥ वमणा यया रे दिनार ॥ लानें लोन वध्यो घणो तो ॥ ज० ॥ मनमांहि करे रे विचार ॥ ४ ॥ जेइ करियाएं सामटुं तो ॥ ज० ॥ सुजस चल्यो तेइ साथ ॥ || तिलकपुरें ते यावियो तो ॥ ज० ॥ रलवाने बहुली रे याथ ॥ ५ ॥ मन चिंतित नवि पामीयो तो ॥ ज० ॥ लान तिहां पण तेह ॥ चाहए माल जरी चढ्यो तो ॥ ज० ॥ रत्नदीपें गुण गेह ॥ ६ ॥ नेट ल नृपने मल्यो तो ॥ ज० ॥ दाल अर्ध मेल्युं राय ॥ खादर मान दीधुं घणुं तो ॥ ज० ॥ की महा सुपसाय ॥ ७ ॥ लान घणो तिहांकणे थयो तो ॥ ज० ॥ फली मनोरथमाल ॥ निजपुरने जावा नली तो ॥ ज० ॥ सुलस ययो नजमाल ॥ ८ ॥ तेइ लक्ष्मीने चालीयो तो ॥ ज० ॥ वाह वेसी कुमार ॥ जर दरीये नांग्युं तदा तो ॥ ज० ॥ यहो हो कर्म विकार ॥ ए ॥ मन चिंते बहु जीवडो तो ॥ ० ॥ उदय वडो वलवान | कोडी उपाय करे कोई तो ॥ ज० ॥ फले कृतकर्म निदान ॥ १० ॥ श्रायु जोरावर सुलसनुं तो ॥ ज० ॥ चढीयुं रे फलक हाथ ॥ पंचम दिवसें पामीयो तो ॥ ज० ॥ किहांएक तीर अनाथ ॥ ११ ॥ वन देखी कदली तणां तो ॥ ज० ॥ कखो तस फलयी याहार ॥ वि शाम्यो जइ तरुतलें तो ॥ ज० ॥ मनमांहि घरे रे विचार ॥ १२ ॥ कष्ट स ह्यां में यति घणां तो ॥ ज० ॥ मेली ऋषि थपार ॥ पण मुऊ हाथ रही नही तो ॥ ज० ॥ कर्म कठिन निर्धार ॥ १३ ॥ अथवा देव उल्लंधीने तो ॥ ज० ॥ कीजें क्रिया जग जेह ॥ न फले सरजन चातकें तो ॥ ज० ॥ यतुं गले नीसरे तेह ॥ १४ ॥ यक्तं ॥ दैवमुध्य यत्कार्य, क्रियते फल वन्न तत् ॥ सरोंचात केनातं, गलरंध्रेण निर्गतम् ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ तो पण में नवि बांडुं तो ॥ ज० ॥ साहस सुखनुं रे हेत || वाहला वंधवनी परें तो ॥ ज० ॥ कढ़िय ए बेह न देत ॥ १५ ॥ सुलस विचारी चित्तमां तो ॥ ज० ॥ प्रागल चाल्यो ए जाम ॥ पंखी समूहें चुंयीयुं तो ॥ ज० ॥ शब एक दीतुं रे ताम ॥ १६ ॥ ते नर शववसनांचलें तो ॥ ज० ॥ वांधी रे दीवी गांव || ते सुलसें ठोडी जड़ तो ॥ ज० ॥ लीधां पण रचण व कि ॥ १७ ॥ दधुं जेवुं नहिं तो ॥ ज० ॥ एह प्रतिज्ञा रे मुऊ ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंग बडो.
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पण ए निःस्वामिक बे तो ॥ ज० ॥ यहुं नवि लहे कोई गुव ॥ १८ ॥ चैत्य करावीश निवां तो ॥ ज० ॥ करइयुं ए जीर्ण नद्धार ॥ पुष्य ए एहना स्वामीने तो ॥ ज० ॥ होो नहिं जस पार ॥ १९ ॥ एम चिंती लीधां तेणें तो ॥ ज० ॥ कोडीना मूल्यनां पंच ॥ ताणी गांठे बांधीयां तो ॥ ज० ॥ सुलसें करि रूडो संच ॥ २० ॥ वेलाकुल पुर यावीयो तो ॥ ज० ॥ जलनिधि तट सुखकार || श्रीसार शेठने मंदिरें तो ॥ ज० ॥ याव्यो ते सुलस कुमार ॥ २१ ॥ खागत स्वागत बहु करी तो ॥ ज० ॥ शेठ दीये सन्मान || बहु कोडें दोय वेचियां तो ॥ ज० ॥ रयण दो तेज य मान ॥ २२ ॥ नांग यही बहु तेहनां तो ॥ ज० ॥ निजपुर चालण प्रेम ॥ साथ संघातें चालीयो तो ॥ ज० ॥ मनमांहे चिंते रे एम ॥ २३ ॥ मलशुं जइ घर नारीचं तो ॥ ज० ॥ करचुं ए लील विलास ॥ स्वजन सदु सायें मले तो ॥ ज० ॥ पूरचं मंदिरवास ॥ २४ ॥ एक महोटी ख वी तिहां तो ॥ ज० ॥ जातां ए यावि विचाल || एक प्रदेश तेहने तो ॥ ज० ॥ उतरखो साथ विशाल ॥ २५ ॥ धान्यपाक सदुको करे तो ॥ ज० ॥ प्रावि कजाती ए धाड ॥ थइ सन्नद्ध सहामो थयो ॥ ज० ॥ पूरवा वैरीनां लाड ॥ २६ ॥ रणमांहे नासी गया तो ॥०॥ सुलसना सुनट
नेक ॥ रह्यो तिहां कणे एकलो तो ॥०॥ सुलस धरीमन टेक ॥२७॥ वांध्यो पाठा वादुयें तो ॥ ज० ॥ लूंटी लीयो सवि माल ॥ कर्म दशा जब पालटी तो ॥ ० ॥ नर होय जेम कंगाल ॥ २८ ॥ ते लेइ चाव्या सुल सने तो ॥ ज० ॥ वेच्यो ए वलिकने हाय | तेणें जड़ पारसकूलमां तो ॥ ज० ॥ थाप्यो ए सुलस अनाथ ॥ २५ ॥ रुधिर तो काजें लीयो तो ॥ ज० ॥ जुन जुन पूरवपाप || वंधातां मालिम नहिं तो ॥ ज० ॥ उदये लहे रे संताप ॥ ३० ॥ त्र्याकर्षी नर तनुथकी तो ॥ ज० ॥ रुधिर नरे कुंम के || तेमांहे तिहां उपजे तो ॥ ज० ॥ जीव घणा लघुदेहि ॥ ३१ ॥ कमीराग तेहनो नीपजे तो ॥ ज० ॥ वसन रंगाये रे तेण ॥ रंग न तेहनी उतरे तो ॥ ज० ॥ दाधे ए पण जलोष ॥ ३२ ॥ सुलस सहे दुःख तेहवां तो ॥ ज० ॥ रुधिरशुं खरड्यां रे यंग || पड्यो व्यचेत भूमि तले तो ॥ ज० ॥ विरु ए कर्मप्रसंग ॥ ३३ ॥ नारंग एक तिहां या थियो तो ॥ ज० ॥ चंचुमां यही तस सार | लेइ उठ्यो थंबरतलें तो
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३श जैनकथा रत्नकोष भाग आठमो. . ॥ ज० ॥ नहीं को राखणहार ॥ ३४ ॥ रोहणगिरि जइ ततस्यो तो ॥ न० ॥ मूकी शीला तल जाम ॥ जाणने उद्यत थयो तो ॥ ज०॥ नारंम वीनो रे ताम ॥ ३५ ॥ आव्युं जदय देखी करी तो ॥ ज० ॥ तेणे पण दीधी रे दोट ॥ माहोमांहे वलग्या वन्हे तो ॥ ॥ करे , एक एकने चोट ॥ ३६ ॥ अहो संसार विडंबना तो ॥ ज० ॥ मत्स्यगला गल एह ॥ कोइ केहy वहालुं नहिं तो ॥ ज० ॥ स्वारथ साथ सनेह ॥३७ ॥ कलह करंतां देखिने तो ॥ ॥ लघुकलयुं ततकाल ॥ तेह' सुलस नासी करी तो ॥ ज० ॥ पेठो गिरिविवर विचाल ॥३७॥ ते वेदु . पंखी जव गया तो ॥ न ॥ निसस्यो सुतस कुमार ॥ गिरिनिर्जर ' निर्मल करे तो ॥ ज० ॥ निजतनु लेने वारि ॥ ३५ ॥ व्रणरोहि पीने रसें तो ॥ ॥ व्रण कस्यां साजां तेण ॥ गिरि उपरथी उतखो तो ॥ न ॥ सुलस ते जाग्यवशेण ॥ ४० ॥ नूमितलें जब आवीयो तो ॥ ज० ॥ गर्ता रेयुत्कर दीठ ॥ नर बहु खणता देखीया तो ॥ ज० ॥ मन चिंते कौतुक मीठ ॥१॥ब खंमें त्रीशमी तो ॥नवि सुणो॥ परिग्रह एम सुःखदाय ॥ राम कहे परिग्रहथकी तो ॥ नवि सुगो ॥ विरमे महासुरव याय ॥ ४२ ॥ सर्व गाथा ॥११७१॥ श्लोक तथा गाथा॥६॥
॥दोहा॥ ॥ सुलस देखि तिहां पंचकुल, हरख्यो चित्त अपार ॥ पूछे हवे ज ते हने, कवण देश आचार ॥ १ ॥ ले खनित्र करमा खणे, किण कारण ए संधि ॥ कुण पर्वत ए दाखवो, मुमने सवि संबंध ॥ २ ॥ तेनर कहे सुण पंथिया, जे देशांतर जाय ।। ते माह्या सघलु लहे, तुं एम घेलो काय ॥ ३ ॥ झुं आकाशयकी पढ्यो, जे न लहे कांई वात ॥ सुलस कहे ते पण खलं, निसुणो मुफ अवदात ॥ ४ ॥ एक विद्याधर माहरे, सुधो जीवन प्राण ॥ मेरु गिरि देखाडवा, मुफ ले चल्यो सुजाण ॥ ५ ॥ देव योग वचमां मल्यो,रिपु विद्याधर एक ॥ युद्ध ययुं ते वेदुने, ढुं पडीयो तब ठेक ॥६॥ नाग्य योगें रह्यो जीवतो, जे तुम्हें कह्यं ते साच ॥ माटें तुम पूर्व घटुं, कहो मुज साची वाच ॥ ७ ॥ ते कहे रोहणनामथी, पर्वतने ए देश ॥ वज्रसार नरराजीयो,तेह तणे यादेश ॥ ७ ॥ ए नर नूमि खणी घणी, काढेरयण घंवार ॥ कर देई राजा प्रतें,लेइजाये घर वार ए तास
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श्री शांतिनाथनो रास खंम छो. ३३. वचन सांजली सुलस,मनमां थयो खुशाल ॥ धन उपराजण ए जलो,लह्यो उपाय सुविशाल ॥ १० ॥ रत्नपुंज पुरमा रहि, १६ वणिकने गेह ॥ नर साथै गर्ता जइ, मेले रयण सनेह ॥ ११ ॥ एक बहुमूलुं पामीयो, रयण गोपवी धंग ॥ वीजास्यगनो नाग देश, चाट्यो धरि मन रंग ॥ १२ ॥
॥ ढाल एकत्रीशमी ॥ ॥ कानें मुश शिर जटा ॥ ए देशी ॥ सुलस तिहाथी चालीयो । सुणो जवि जावें लाल ॥ लोन महाकुःखदायकु ॥ जज जगवंतकुं वे ॥ मायानो वांध्यो प्राणीयो ॥ सु० ॥ पग पग पामे अपायकुं ॥न ॥१॥ श्रीमंतपुरमांहे आय के ॥ सु० ॥ वेची रयण कस्या दाम के ॥ ॥ करीयाj बहु लेइ चल्यो ॥ सु० ॥ चिंते थयुं मुज काम के ॥ ज० ॥शा मारगमांहि आवतां ॥सु०॥ अटवी प्रावी विकराल के न०॥ दव लाग्यो तिहां जोरशुं ॥ सु० ॥ पवनें हो पसरी जाल के ॥ ज० ॥ ३ ॥ करियाणुं दाधुं सवे ॥ सु० ॥ कर्म सवल प्रतिकूल के ॥न ॥ जीव लेइ नागे तिहां ॥ सु० ॥ लोन ए कुःखनुं मूल के ॥ न० ॥ ४ ॥ कोइक गामने परिसरें ॥ सु० ॥ नमतां हो तापस दीव के ॥ ज० ॥ कर जो डी तेहने नम्यो ।सु॥ पासें जश्न पवित के॥ ॥॥तापस कहे तव सुलसकुं । सु ॥ कोन मूलकसें घाया श्हां ॥ ज० ॥ फिकर करे क्यु चित्तमां ।। सु० ॥ वत्स तें जावेगा किहां ॥ ज० ॥ ६ ॥ सुलस कहे सां
सुणो ॥ अवे उपकारी लाल ॥ धन कारण जगती जम्यो ॥ ज० ॥ पार न पायो दलिको ॥ अवे ॥ काल बहु युं निर्गम्यो ॥ ज० ॥ ७॥ अव सांई मुफकों मीले अ॥ नाग्य फल्या मेरा सही ॥न॥ तुम जेसे मोकुं मिले ॥५०॥ उरकुंचव जाचुं नहिं ॥ना काहे पूकारतव्यकुं॥ अवे सुगा बाबू लाल ॥ धन हम धूल समा गिने ॥ ज० ॥ ए मायाके खेल हे ॥ श्रब० ॥ सो योगी वर्जे जिणे ॥ न ॥ए । दोलत उनियां कारि मी ॥ ॥ विसंतां नहिं वार के ॥ ॥ मस्त रहो प्रनुध्यानमां ।। य० ॥ धरो एक योगसे प्यार के ॥ न ॥ १० ॥ सुलस कहे तुम सच कहा । अचे सुरण सांइ लाल ॥ मार्ग योगाज्यासका ॥ ॥ पण जग . उनियादारकुं॥ अ० ॥ बंधन याशापाशका ॥ ॥ ११ ॥धन विणुं जगत चले नहिं ॥ थवे० ॥ धन मूल ए संसार के ॥जम् ॥ करो
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३७४ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. करुणा मो नपरें ॥ १०॥ तुम हो वडे सिरदार के ॥ न ॥१२॥ कहे .. परिव्राजक काहेकुं ॥ अ० ॥ शोच करत दिल जीतरें ॥ ज० ॥ धन बहु . तेरा हे इहां ॥ अ॥ जिनमें दारिश दूर करे ॥न ॥ १३ ॥ सुलस . कहे मोकुं कहो ॥ १० ॥ धन मिले कोन उपायसें ॥ ज० ॥ रसकूपी । रस जो मिले ॥ अ० ॥ कंचन होवे आयसें ॥ ज० ॥ १४ ॥ सुलस कहे . फुरमावीयें ॥ अ० ॥ मुज लायक होवे काज के ॥ ॥ महिपीपुन कों आणि के ॥॥ तैलमें देपो आज के ॥ज॥१५॥ मृत महिषीपुल ले इधयुं ॥ अ० ॥ तैलमांहे षट्मास के पन॥ सुलसको किणहीके घरे ॥ अ० ॥ जिमाडे सो नन्नास के ॥ न ॥ १६ ॥ षटमासें दोय नीसरे ॥ य० ॥ पुस्तक पुन ले हाथ के ॥ज०॥ दोय तुंबी दोरी ग्रही ॥०॥ . मंचिका सीधी साय के ॥ ज० ॥ १७ ॥ गिरिविवरें दोय आवीया ॥९॥ यद पडिमा पूजी करी ॥ ॥ वलि देवे जूतदेवको ॥ सु ॥ आगे च ले दोनुं फिरी ॥ न ॥१॥ दीप कीयो उन पुलको ॥ सु० ॥ दोक जन आगे गये ॥ ज० ॥ चोरस रसकूप देखि के ॥ ॥ दो दीसमें हर्पित . जये ॥ ज० ॥ १५ ॥ वति देई कहे सुलसकों ॥ सु ॥ इस मांची पर वेत के ॥ ज० ॥ तुंव लेई दोन हाथमें ॥ अव ॥ जा रस लेणको तेल के ॥ न० ॥ २० ॥ सुलस गयो रसकूपमें ॥ सु० ॥ मुख समरे नवकार के ॥ ज० ॥ रस लेवा उद्यत थयो । सु ॥ शब्द सुएयो तेणी वार के । नम् ॥ २१ ॥ ए रस कोढी हे वूरो ॥ सु० ॥ मत करसें फरसो तुमें ॥ न ॥ तुं साधर्मिक माहरो ॥ सु० ॥ उनसें वारत हे अम्हें ॥ ज० ॥२॥ तनु रस लागेसें होवे ॥ सु० ॥ बिनमें प्रानको नाश के ॥ न० ॥ धाराधक जिनधर्मको ॥ सु० ॥ तुं यायो धनधाश के ॥ ज० ॥ २३ ॥ लावो तुंबक रस जरी देवं ॥सु॥ करूं तुमकुं साहाज के ॥ ज० ।। सुलत कहे तुमवंदन ॥अवे धर्म वांधवलाल ॥ वात कहो तुम थान के न॥४॥ बोखंमें एकत्रीशमी॥॥ढालकही धननपरेंनि॥ धन निज संकट थव गुणी॥ य० ॥ जे एकज उपकति करे ॥ ज० ॥२५॥ सर्व० ॥ १२ ॥
॥दोहा॥ ॥ कहे धर्म वांधव सुणो, लोन वडो जगमांहि ॥ लोनवशे ए जीवडो, पामे उरख यथाह ॥१॥ नयरी विशालामां वसुं, जिनशेखर थनिधान।
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श्री शांतिनाथनो रास खंग बो.
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समु चढ्यो धनकारणें, जांज्युं यधविच यान || २ || उदधि तस्यो फल हक नही, मतां वीमांहि ॥ परिव्राजक मुऊने मल्यो, नाख्यो कूपक मांहि ॥ ३ ॥ तुंबक जरी कंठें गयो, जे तुंवक तेणें नीच ॥ दोर बेदी नाख्यो सुनें, पडीयो रस ध बीच ॥ ४ ॥ जाणुं तुमने पण तेणें, बेत रीयो सहि याज ॥ जो सुश्रावक मत करो, तस विश्वास गुन काज ॥ ५ ॥ सुलसे पण संबंध निज, दाख्यो तेणें रस तुंब ॥ दोय नरी दीघां तिहां, न कस्यो कांइ विलंब ॥ ६ ॥ मांची तल वांधी निविड, सुलसें दला वी दोर ॥ कूपकं लगें तालीयो, योगीयें करी जोर ॥ ७ ॥ दे तुंबक मुकने प्रथम, ते कहे बांध्यां तापी ॥ मांचि तले छूटे नहिं, यापीश प बें सुजाण ॥ ८ ॥ तेणें जाएयुं नेदू मल्यो, न उगाये हवे एह ॥ तुंव स हित तेणें सुलसने, नाख्यो कूप निःस्नेह ॥ ए ॥ कूप मूकी योगी गयो, नि ठुर नीच कुपात्र || सुलस कूप मेखल पड्यो, अक्षत रहियुं गात्र ॥ १० ॥ सुलस गाढ स्वर उच्चरे, पंचपरमेष्ठिजाप ॥ कहे चेतन ए ताहरां, उदयें याव्यां पाप ॥ ११ ॥ जो परिग्रह यागलथकी, मूलथी मेल्यो होत ॥ तो एवडुं श्याने इहां, दुःख हुं नजरें जोत ॥ १२ ॥ अधुना पण प्राणी इहां,
इ चारित्र उदार ॥ करि घासण आराधना, जिम दुवे तुम नार ॥ १३ ॥ जिनशेखर तब सांजली, कहे म म चिंतव एम ॥ कहुं निस्सरण व पाय हुं, सांजल धरि मन प्रेम ॥ १४ ॥ एक गोधा थावे थवे, रस पी वाने पत्र ॥ तस पुत्र वलगी तुं जजे, ते जिहां जाये तत्र ॥ १५ ॥ कहे जिनशेखर माहरु, अल्पायु अवशेष || कर उपकार तुं मुकने, देई धर्म उपदेश ॥ १६ ॥
॥ ढाल वत्रीशमी ॥
॥ महाविरजीनी देशना ॥ ए देशी ॥ सुलस कहे हवे तेहने ए, जिन शेखर व्यवधार तो ॥ चिहुं गतिमां लाइ जीवडो ए, जमतां न श्राव्यो पार तो ॥१॥ श्रीजिनवरनी देशना ए ॥ ए यांकी | पांचे ए याश्रव से लवे ए, पहेले ए प्राणातिपात तो || बीजो मृपावाद परिहरो ए, प्रदत करे गुणवात तो ॥ श्रीजि॥२॥ मैथुन परिग्रहमां वणुं एलपटाई रह्यो जी च तो ॥ नोगवे नरक निगोदमां ए. करतो वेदने ए रीच तो ॥श्रीनि ॥३॥ एक समरे धरिहंतने ए. सिद्ध नजे गुणवंत तो ॥ याचारिज उवद्यायने
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जैनकथा रत्नकोप नाग प्राठमो.
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ए, समरे महामुनि संत तो ॥ श्रीजि० ॥ ४ ॥ ए पंच मंगल मूलगाँए, ध्यातां हो जवनिस्तार तो ॥ शरण नहिं कोइ ए विना ए, नवमांहे रा खणहार तो ॥ श्रीजि ॥५॥ शरण हजो वली तुक नली ए, अरिहंत सिद्ध सुसाध तो ॥ केवलिनापित धर्मनुं ए, राखजो दिनमां समाध तो ॥ श्रीजि० ॥ ६ ॥ तुं कोनो नहिं ताहरु ए, कोइ नहिं जगमांहे तो ॥ एक जिनधर्म ने ताहरो ए, वलगजे एहिनी बांहे तो ॥ श्रीजि० ॥ ७ ॥ लख चोराशी खामजे ए, म धरिश कोइचं वैर तो ॥ स्वारथीयुं सहको म क्युं ए, वाहनां हो वहेती सेर तो ॥ श्री० ॥ ८ ॥ सगपण ए संसारनां ए, दूवां वनंती वार तो ॥ वहांलो वैरी थइ अवतरे ए, वैरी वहालो सं सार तो ॥ श्रीणा|| मिय्याः कृत दीजीयें ए, सेव्यां ए पाप प्रढार तो ॥ या जव परनव सेवीयां ए, दोष अनेक प्रकार तो ॥ श्री० ॥ १० ॥ जे तें कां वली कारव्यां ए, पनर ए कर्मादान तो ॥ त्रिविध त्रिविध वोसिरावजे ए, दुर्गतिनां ए निदान तो श्री० ॥ ११ ॥ सांजल या हारीपणुं ए, लाग्युं प्रनादिनुं केड तो ॥ क्यांहि रह्यो नहिं ए विना ए, हवे तस मूर्छा फेड तो ॥ श्री० ॥ १२॥ चार प्रकार याहारना ए,तुं वोसि रावजे श्राज तो ॥ रथ सरे जेम ताहरो ए, बलीयो य कर काज तो ॥ श्री० ॥ १३ ॥ शूर यजे तुं इष समे ए, म करीश कायर नाव तो || असुरसुरादिक स्थिर नहिं ए, ए संसार स्वभाव तो ॥ श्री० ॥ १४ ॥ जिनशेखर मनशुद्धि ए, सदहिया सवि वोल तो ॥ ध्यान धरे नवका रनुं ए, रह्यो मनें यह अमोल तो ॥ श्री० ॥ १५ ॥ पट्कायना जीव कपरें ए, राग ने द्वेष निवार तो ॥ या पूरुं करी प्रवतो ए, अष्टम कल्पमकार तो ॥ श्री० ॥ १६ ॥ न दीये हुंकारो यदा ए, जाएयुं गयो परलोक तो ॥ सुलस रुवे कंठ मूकीने ए, धर्म बांधवने शोक तो ॥ श्री० ॥ १७ ॥ हा जिनशेखर वांचवा ए, साधर्मिक गुणधार तो ॥ मुक मूकीने किहां गयो ए, यो उत्तर एली वार तो ॥ श्री० ॥ १८ ॥ धर्माराधनरहु श्री ए, मूकीने दुःखकूप तो ॥ सुरपदवी सहि पामीया ए, जाएं एमति थि स्वरूप तो ॥ श्री० ॥ १९ ॥ एणे व्यवसरे यात्री गोधिका रे, रस पीवा ति ठाय तो || पान करी पाठी वली ए, पुछें हो बलग्यो जाय नो ॥ श्रीणा२॥ किहां सुवे वेसे किन्हां ए, किहाइ बनो एए मेल तो ॥
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श्री शांतिनायनो रास खंम हो. ३७७ थी वाहेर नीसयो ए, जू जूठ कर्मना खेल तो ॥ श्री ॥ २१ ॥ रवि पर्वत देखी करी ए, मूकी हो तेहy पुत्र तो॥ एकदिशि लेने चालियो ए, सुलस धरी मति उंच तो ॥ श्री० ॥ २२ ॥ आगे जातां एक हाथीयो ए, साहामो धायो विकराल तो ॥ सुलस विचारे हो चित्तमा ए, मूके नहिं ए व्याल तो ॥ श्री० ॥ २३ ॥ अंत नायो एक मुःखनो ए, बाजु आयु सन्मुख तो ॥ में बदु पाप समाचघु ए, पूरव जव कोइ तिरक तो ॥ श्री० ॥ २४ ॥ नातो ते गज नयथकी ए. करी प्राव्यो तत्काल तो॥ करें काली उजालीयो ए, चिंतित थयुं विसराल तो ॥ श्री० ॥ २५ ॥ पडतां हो नाग्यवशे तिहां ए,तरु उपर पड्यो आय तो ॥ माया मरे नहीं ते सही ए, जस निरुपक्रम घायु तो ॥ श्री ॥२६॥ शाखा हो अवलंबी रह्यो ए, दृढचित्त सुलस कुमार तो ॥ गज तरु धंधोले रह्यो ए, थर थर भ्रूजे अपार तो ॥ श्री० ॥ २७ ॥ सिंह तिहां कणे आवीयो ए, गज हणीयो एमांय तो ॥ आमिष तस नदण करे ए, मत्स्य ज्यु ए नव न्याय तो ॥ श्री० ॥२७॥ वाघ जोरावर तिहां वली ए, धाव्यो हो मांस उद्देश तो ॥ एक इव्य कारण बिदु जया ए, वढीया ते सुविशेष तो ॥श्री ॥ २५ ॥ यु-६ करतां वेदुने ए, रात पडी तिण गर तो ॥ सुलस विचारे चित्तमा ए, नाव्यो ए कर्मनो पार तो ॥ श्री ॥ ३० ॥ तरु शाखायें ए कण दिशें ए, दीतो उद्योत अत्यंत तो ॥ सुलस विचारे ए गुं दो ए, जो जइटले ब्रांति तो ॥ श्री० ॥ ३१ ॥ जोतां हो एक माला विचे ए, दीतो मणि तिहां एक तो ॥ पासें जुजगस्थानक वली ए. देखी चिंते सुविवेक तो ॥ श्री० ॥ ३२ ॥ विषअपहर ए भुजंग, ए, शिरमणि र यण ए होय तो ॥ ले करतल ते उतखो ए, हर्षे ते मणि जोय तो ॥ श्री० ॥ ३३ ॥ वाघ हरि दोय नासीया ए, ते मणिने नद्योत तो॥ रात गइ रवि उगीयो ए, प्रगटीपूर्वदिशें ज्योति तो ॥ श्री० ॥ ३४ ॥ खम बत्रीशमी ए, ढाल जणी मनरंग तो ॥ पुःख जग जीव सहे घणा ए, परिग्रहने परसंग तो ॥ श्री० ॥३५॥ सर्वगाथा ॥१२५णा श्लोक ॥१२॥
॥दोहा॥ ॥ यये प्रनाते मणिरयण ते, गांठे बांधी सार ॥ चाल्यो अति नता बलो, सुलस श्ररण्य मकार ॥ १ ॥ नरव्यो तरप्यो प्रति घणो, सहतो
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३७त जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. पुःख 'अपार ।। साते दिवसें पामीयो, ते अटवीनो पार ॥ ॥ सप्तम दिन एक पर्वते, दीगो अग्नि प्रकाश ॥ तस अनुसारें तिहां गयो, मनमां मुलस विमासि ।। ३ ॥ धातुर्वादी बदु मिट्या, करे धातुरस योग ॥ सुलस तिहां ऊजो जइ, पूर्व कर्मने जोग ॥ ४ ॥ आदर देई स्थापीयो, तेणें तेहने निज पास ॥ जोजन आपे जावतां, सुलस लो विश्वास ॥ ५ ॥ सूतां एक दिन तेहनी, गांठें देखी गरब ॥ बानो बोडीने लियो, अर्थ करे अनरब ॥ ६ ॥ तस ठामें बांध्यो अवर, तत्प्रमाण पाषाण ॥ बल कारक एम बल करी, परधन हरे अजाण ॥ ७ ॥
॥ ढाल तेत्रीशमी॥ ॥ सामि सोहंकर, श्रीशेरीश ए॥ ए देशी ॥ पाली रयणी रे, सुलस ते जागीयो ॥ धातु धमंतां दुं रह्यो निनांगीयो ॥ त्रूटक ॥ निर्नागीयो इहां अर्थ केरी, आश महारी नवि फली ॥ बदु दिवस थया मुऊ धातु धमतां, इव्य कोडी नवि मिती ॥ ए इव्य अर्थी करे व्यर्थी, अनिकिरिया अति घणी ॥ वदु पाप कर्मी नहिं धर्मी, पाश एहोनी सवि हणी ॥ १॥ यतः ॥ धातु धमे विषु जा धाशा, सिर मुंभे विषु जा रुवासा ॥ वेश धरे विणु जा घराशा, एतिनिवि आशा हू निराशा ॥ १ ॥ पूर्व ढाल ॥ प्रह नतीने रे, सुलस ते चालीयो ॥ मारगमाहे रे, वदु कुःख सालीयो ॥ ॥ सालीयो वहु उःख तास मनमां, अर्थ विषु बहु वन जमे ॥ पूरखें खोया अरथ केरी, चिंत सघली चित्त दमे ॥ मनमांहे आशा अर्थ केरी, करुं उपराजण नवी ॥ आवीयो अटवी शीपुरमां, सबल शोना अनिनवी ॥ २ ॥ मणि वेचणने रे, बोडे गंती ए॥ पापाण देखी रे, पड्यो नूपीठ ए ॥ ॥ नूपीठ पडियो करे हाहा, मुस्यो मुझने अति घणो ॥ ते धातुवादीये ठगी अनुपम, रयण लीधो मुफ तणो ॥ अथवा नहीं तस कांश दूपण, दोप सवि मुफ कर्मनो ।। मन चिंतव्युं तस होय क्याथी, लेश नहिं जस धर्मनो ॥ ३ ॥ पूरव नव में रे, कर्म कीधा घणां ॥ केश रण नांज्यां रे, होशे जन तणां ॥३०॥ जनतणां जांज्यां तेम रण वली, देवश्व्य साधारणा ॥ में नया होडो ते विगोशे, काल बदु नव पूरणा ॥ अथवा दरिडी नारी विधवा, इव्य हो। यावस्यां ॥ ते कर्म मुफने उदयें या नव, यावियां महारां करयां ॥ ४ ॥
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श्री शांतिनाथनो रास खंम बनो. ३७ए मन एम चिंते रे, गुंण जीवितें ॥ मुःखीयो कीयो रे, मुफने देव तें ॥
॥ देव तें जो कीध मुःखीयो,प्राण तजवां में हवे ॥ कृष्ण चनदिशि रयण पितृवन, जई गाढस्वरें चवे ॥वैताल नूत पिशाच निसुणो, मांस वहें मुज तणुं ॥ तुमें जेम जाणो तेम आवी, करो नदण तनु तणुं ॥५॥ कर ले। काती रे, बद्ध आव्या तीहां ॥ वैतालादि रे, सुलस अबे जीहां ॥ ॥ जिहां सुलस डे ते तिहांकणे, आवी एणिपरें उच्चरे ॥ वैराग्यथी जो मांस विक्रय, करे ने तुं आदरें ॥ तो नियत इहांकणे जूमि उपरें, पज्यो ते निर्जय था ॥ सदु पासें विंटाइ वव्यां हवे, वात सुणो तिहां जे दुइ ॥ ६ ॥ एहवे अवसर रे, जिनशेखर जयो ॥ अवधि ज्ञाने रे, जो अल जीयो ॥ ॥ अलजीयो जो तुरत सोइ, सुलस पासें आवीयो ॥ ते नूत नानां हतां माठां, तास जइ बोलावीयो ॥ नो सुलस श्रावक अहं तुज प्रति, नमुं हुं कर जोडीने, ते मुफ आराधन सुणावी, बूजीयो मद बोडीने ॥ ७ ॥ थयो सुरलोकें रे, अष्टमे दुं सही ॥ ६६ सामानिकनी, कधि में लही ॥ ॥ में लही झदि ए तुम प्रसादे, धर्मगुरु मुफ तुं थयो ॥ उप कार ताहरो अछे सबलो, ते न जाये में कह्यो । एम निसुणी ते पण सु लस जल्यो, जाणी जिनशेखर सुरो ॥ कहे धर्मबांधव तुजने पण, हूँ नमुं बु सादरो ॥ ॥ देव तव वोले रे, झुं तुम प्रिय करुं ॥ सुलस कहे तुम रे, दी दिल तयं ॥॥ दिल तयुं तो पण कहो मुझने, कर्म हवे केतुं रह्यं ॥ निविड ए अंतराय केलं, ज्ञानथी जे तुम्हें लघु ॥ कहे देव ए तुम दीण सरिखं, कर्म रह्यं लवलेशथी ॥ पण नोगकर्म अ घणुं तेणें,चरण ह मणां तुऊ नथी या माणिक्य सोवन रे, धनराशि घणी ॥ सुर बहु ढोरे, तेहना गुण जणी ॥ ४० ॥ गुण नणी ढोइ साथ साथें, नयर तस पहों चाडियो । सुर शीख मागी गयो स्थानक, गुनें अगुन नसाडियो । पुर माहे सघले वात पसरी, नवरपति साहमो जय ॥ वदु करी उत्सव न यरमांहे, लाविया हार्पित थइ ॥१०॥ निजघरे धाव्या रे, साथ स्व जन घणां ॥ सदु जन बोले रे, दर्प वधामणां ॥ ॥ वधामणां लीये जामणां तेम,प्रथम नारी पीयु तणांबद दिवस वहालेसर पधाया, यान उलट यति घणा ॥ कंत कामिनी दोय मलियां, दिवस वलीया मु खना॥ थंतराय माग सवे घाग, दिवस नाग उःखना ॥ ११ ॥ कामप
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३०० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ताका रे, पण अनुरागिणी ॥ वेणीवंधे, मितांशुकनागिणी ॥ ॥'ला गिणी देखी तेहने पण, करी राखी गेहिनी ॥ दोय नारीसाथै नोग वि लसे, विमल कीर्ति जेहनी ॥ एक दिवस चिंते चित्तमांहे, जीव परिग्रह . मिति विना॥ते दुःख वदुला सह्यां परिग्रह, व्रत लीधां एकमना ॥ १२ ॥ इव्य अनेरुं रे, धर्मव्यय करे ॥ साते देने रे, परिगल वावरे ॥३॥ वावरे साते क्षेत्रं वदुर्बु, वित्त तेम विलसे वली ॥ एक दिवस अगुनना उदययी तस, इव्य खूटयु अति मली ॥ दिलमाहे विलखो थयो सुलस ते, इव्य चाहे जेटले ॥ आवमा सुरलोकथी सुर, आवी पूरे तेटले ॥ १३ ॥ कहे मुफ वेगं रे, तुम चिंता किसी ॥ जे तुम जोश्ये, ते लेजो उनसी ॥ ॥ ननसी जो दृष्टि करीने, कहे सोवन राशिनी ॥ तेणें निजपरिग्रह विरति माफक, लीयुं नहिं मति आशनी ॥ सुर कहे सुलसने एह रूडं, कऱ्या बातमहित नगी ॥ ए च्य विण परिमाण कीधे, दीये वेदन अति घणी॥ १५ ॥ यतः ॥ यथा यथा व्योलोजः स्था, दल्पारंपरिग्रहैः ॥ तथा तथा सुखं नृणां, धर्मासिदिः प्रजा यते ॥ २ ॥ पूर्वढाल ॥ वांडित धन देश, सुलसने ते गयो । हर्प हि । यामां रे, तस बमणो थयो ॥ ॥ यो वमो सुलस एक दिन, गयो । वाडी मन रुली ॥ तिहां कर्मयोगें निधान देखी, चित्तमां चिंते वली ।। ए इव्य न घटे मुफ लेवू, व्रतनंग ते आदस्यो ॥ मन एम चिंती निरखी। नजरें, सुलस पाठो उसयो ॥ १५ ॥ दीतुं रायने रे, सुनटें तिहां कणे ॥ पुरमा जश्ने रे,नृप आगे नणे ॥ ॥ श्रागें जणे तुमें रही बाना, सुल सनी परीक्षा करो ॥ तेणें सात दिवसा लगी परख्यो, जाणीयो गुण मणि जयो।नृप तेडि पूढे कहो मुने,केम निधि लीधो नहीं । कहे सुलस माहरे नियम उपर, लीये व्रत नांजे सही ॥ १६ ॥ गुणवंत जाणी रे, निज नंमारनी ॥ दूंची सोंपी रे, नृप दरवारनी ॥ ॥ दरवारनी सवि वात नृपति, सुलसने पूठी करे ॥ पुरमांहे सघले सुजस पसखो, कीर्ति सद्ध मुख उच्चरे ॥ ढाल उठे खंम तेत्री, शमी संपूरण थई । एम नियम पाले धन्य ते नर, नमो तेहने पढ़ें जय ॥ १७ ॥ सर्वगाथा॥१२॥६॥
॥दोहा ॥ ॥ण अवसर तिहां आविया, अमरचंड मुनिराय ॥ यावी नर
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. . ३र कमु सुलसने, कीधो तास पसाय ॥ १ ॥ सुलसें जइ रायने केयुं, राय घणे परिवार ॥ गुरुवंदणने आवीयो, तिण उद्यान मकार ॥ २ ॥ पांचे अनिगम साचवी, करि पंचांग प्रणाम ॥ गुरु वांदी बेना सवे, तिहां यथोचित स्थान ॥३॥
॥ ढाल चोत्रीशमी॥ ॥ मोरी मातजी रे, अनुमति यो व्रत धादरं रे ॥ ए देशी ॥ गुरु नांखे ।। तिहां देशना रे, मीठी अमीय समाणी रे ॥ ए नरनव दोहिलो लह्यो रे, कां इहारो गुणखाणी रे ॥१॥ मोरा प्राणीया रे, एह धर्म नित्य आदरो २॥ गुनगुण ठाणीया रे, मत प्रमाद समाचरो रे ॥ ए बांकणी ॥ धूणा कर न्यायें करी रे, ए सामग्री लाधी रे ॥ ते हवे तुमें सफली करो रे, जैनकियाने साधी रे ॥मोरा ॥२॥ आयु उजाएं जाय रे, न लीये लगार विसामो रे ॥ काल कुलालना चक्र ज्यु रे, एह फिरे थ । विरामो रे ॥ मो० ॥३॥ पंच प्रमादमाहे पड्या रे, बाप सवारथ मा ह्या रे ॥ काल उजातो नवि लहे रे, मोहपिशाचें वाह्या रे ॥ मो० ॥ ॥ ४ ॥ सूर्यगतागत आउखु रे, प्रतिदिन ए क्ष्य पामे रे ॥ जन्म जरा दिक देखीने रे, क्षण निर्वेद न कामे रे ॥ मो० ॥ ५ ॥ मोहमद्यपाने करी रे, जग मतवालुं दीसे रे॥ आत्मतत्त्व न उलखे रे, सामु ए विश वा वीशे रे ॥ मो० ॥ ६ ॥ गुरुवाणी निसुणी सवे रे,जीव नविक मन ह . रख्या रे ॥ देव धर्म गुरुतत्त्वने रे, सूधे लक्षण पररव्या रे ॥ मो० ॥७॥ इण अवसरें पूछे तिहां रे, मुनिने सुलस शिर नामी रे ॥ केम न रही प्रनु माहरे रे, संपद कटें पामी रे ॥ मो० ॥ ७ ॥ देश झान उपयोगने रे, नांखे एम चननाणी रे ॥ संपद आवीने गई रे, सुण हेतु तस गुणवा पी रे ॥ मो० ॥ ॥ ताम्राकर गामें हतो रे, तारचंझ थनिधानो रे ॥ . कौटुंबिक कुलमां बडो रे, क्षावान ते दानो रे ॥ मो० ॥ १० ॥ याचक श्रमणादिक नणी रे, दान अवारित प्रापे रे ॥ श्रावक दुतो थहोनिों रे, मन गुनकरणीमा स्थापे रे। मो० ॥ ११ ॥ एक दिन अगुनना योगयी रे, तस मनमा एम श्राव्यु रे ॥ हा दीर्धं में अति घणुं रे, पण तस फल नवि पाव्युं रे ॥मो॥१२॥ गुं दीधे गुण नीपन्यो रे, थाज पठी नवि देवू रे ॥ गुणकीर्ति वोले नहीं रे, पाहुं कां न लेवं रे ॥मो॥१३॥ दानादिक
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
तस दीजीयें रे, जे मुख कीर्त्ति बोले रे ॥ गुं दीधे होये साधुने रे, जे वातें ख्याति न खोले रे || मो० ॥ १४ ॥ एम विच विच वांध्यां तेणें रे, कर्म कठिन अंतरायो रे ॥ वली देखी मुनि धन्यदा रे, दान देवा मति थायो रे ॥मो ॥१५॥ एम अनेक वारे तेणें रे, दीधुं खंमधुं दानो रे ॥ अंते समाधि मरी थयो रे, सुर सौधर्म विमानो रे || मो० ॥ १६ ॥ तिहांथी चविने तुं दुवो रे, इन्य नंदन गुणवंतो रे || जेम दीधुं तेम पामीयो रे, वात करी मुनि तंतो रे ॥ मो० ॥ १७ ॥ ते माटें मनगुद्धिथी रे, देवुं दान विवेकें रे || पांचे दूपण मांहिले रे, लांबित न करीयें एके रे || मो० ॥ १८ ॥ दान शील तप ए जलां रे, मन गुर्दे होय लेखें रे ॥ जो प्रादरीयें नावथी रे, तो फल यापे विशेष रे ॥ मो० ॥ १७ ॥ सुलस सुणी प्रतिबूजीयो रे, राय कहे यो शीखो रे || जवजलनिधिनी तारिणी रे, लेइश हुं हवे दीखो रे ॥ मो० ॥ २० ॥ राय कहे हुं पण सही रे, लेइश व्रत तुक साथ रे ॥ जोड मि ती जुगतें नली रे, जनुं कर्तुं जगनायें रे ॥ मो० ॥ २१ ॥ गुरु चांदी घरे यावीयो रे, पुत्रने सोंपी राजो रे ॥ वेदु जपें संयम श्रादयुं रे, साखां यातमकाजो रे || मो० ॥ २२ ॥ संवेग रसमां जीवता रे, तप तपता च ति गाढां रे || गुन जावनमां वर्त्तता रे, सफल करे रात दहाडा रे || मो० ॥ २३ ॥ व्रतजावन जावे जली रे, समतावंत संतोषी रे ॥ मुनिमारग छव गाहतो रे, यातमगुणनो पोप रे || मो० ॥ २४ ॥ सुलस मुनि केवल लसुं रे, घातिकर्म दय घाती रे ॥ दुःखदायी ए अनादिनो रे, जाएयो परिग्रह साथी रे || मो० ॥ २५ ॥ कहे नविकजन यागलें रे, एह परि यह मूको रे ॥ धनमूर्छा उतारीने रे, जैनधर्ममां टूको रे || मो० ॥ ॥ २६ ॥ खुलल मुनि मुक्त गया रे, अनंत चतुष्टयधारी रे || सादि अनंत जागे रह्या रे, तेह नमो सुविचारी रे ॥ मो० ॥ २७ ॥ ए पंचम व्रत उपरे रे, सुण चक्रायुध राजा रे || शांति प्रभुजी एम कहे रे, व्रत पाले शिवराजा रे || मो० ॥ २८ ॥ उठे खंम चोत्रीशमी रे, ढालें सुलस व्यव दात रे ॥ राम कहे व्रत पालतां रे, वाघे जग याख्याति रे || मो० ॥२॥ इति पंचमपरिग्रहपरिमाणव्रतोपरि सुजसकथानकं समाप्तम् ॥ इति पंच व्रतकथानकानि ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ १३१५॥ श्लोक तथा गाथा ||६|||
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श्री शांतिनाथनो रास खंगहो. ॥ अथ पष्टदिशिपरिमाण व्रतसंबंधः ॥
॥दोहा॥ ॥ पंच अणुव्रत इम कह्यां, हवे त्रण गुणव्रत तंत ॥ चक्रायुध नरवर सुणे, कहे शांति नगवंत ॥ १ ॥ दिशिपरिमाण कयुं प्रथम, नोगोपनोगनुं मान ॥ अनर्थदमविरमण वली, ए त्रय गुणवत जाण ॥२॥ ऊर्ध्व अधो तीही दिशे, अधिकगमन अनाजोग ॥ अतिचार त्रण ए कह्या, सुरj वीजा दोय योग.॥ ३ ॥ क्षेत्र वृद्धि चोथो कह्यो, स्मृतिनुं अतर्ध्यान । अतिचार ए टालीने, पालो दिशिपरिमाण ॥ ॥ लोनोदधि संके लीयो, जेणें ग्रह्यु ए व्रत सार ॥ त्रस थावर वटु जीवने, ते अनय तणो दातार ॥ ५॥ तप्तलोह गोलक समुं, अविरतिपाप ए जीव ॥ सकल जीवप्रत्ये दहे, तेणें प्रारंन अतीव ॥ ६ ॥ यद्यपि सघले गमननी, शक्ति नथी इणे देह ॥ तो पण अवर निबंध तस, होवे नहीं संदेह ॥ ७ ॥ दिशिपरिमाण कस्या विना, पामे वदु :खराशि ॥ जेम स्वयंनू देवनी, नवि पहोती मन आश ॥ ७ ॥ चक्रायुध कहे स्वामीने, कोण स्व यंजू देव ॥ किहां थयो किणि परें सुःख लघु, ते नांखो जिनदेव ॥ ए ॥
॥ढाल पांत्रीशमी॥ ॥ उठ कलालण जर घडो हे ॥ ए देशी॥ शांतिप्रनु कहे जलो हे, गंगातट 0 नाम॥गाम सुदंत सोहामणुं हे. राजा तिहां अनिराम ॥१॥ नवियण नावें सांनलो हे ॥ दिशिपरिमाण विचार ॥ पालतां सुख पा मीयें है, लहिये नव निस्तार ॥ न ॥ २ ॥ नाम स्वयंजूदेव ये है, तिहां कौटुंबिक एक ॥ करे रूपि कारंजनुं दे, नही संतोप विवेक ॥ ज० ॥ ॥३॥ निशविरामे एकदा हे, ते चिंते एम रात ॥ मनोवांवित न दुन कदा है, लान ए कर्मनी बात ॥ जण ॥ ४ ॥ गमन करूं देशांतरें हे, लावू बहु धन कोडि ॥ जेम पूराये माहरा हे, सबला वांवित कोड ॥ न ॥ ५ ॥ करी सामग्री चालीयो हे, उत्तर पंथ अपार ॥ लक्ष्मीशी पंकपुर गयो हे, करवा वणिज व्यापार ॥ ॥ ६ ॥ तेह् नयरमांहे वसी हे, करे व्यवसाय उपाय ॥ लान दुई निज कर्मने है, अनुसारें तिण वाय ॥ ज०॥ ७ ॥ पण तृप्तो नहिं जीवडो हे. देखी बदु धन वंत ॥ परदेशी पने घणा हे. कुण कुण देश महंत ॥ ॥ ॥ वात
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
सुणी तेहोने मुखें हे, नव नवी होंश धरंत ॥ प्रायें नव नव देशनो है, लोनीने लोन दवंत ॥ ज० ॥ ए ॥ यक्तं ॥ श्रूयमाणाः शुनादेशा, रा जानः सेवितास्तथा ॥ सर्वे दूर स्थितं वस्तु, स्यात्प्रायो विस्मयावहम् ॥ १ ॥ पूर्वढाल || कोइक नगरें खावीनें हे, पूढे वणिकनी पास ॥ किहांथी तुमें धन लावीया हे, ते परकाशो उल्लास ॥ ज० ॥ १० ॥ तें कहे देश चिलात मांहे, बहु मेलीने याज ॥ यमो याव्या दर्षे इहां दे, सीधां वांछित काज ॥ ज० ॥ ११ ॥ कांइक संबल लेने हे, चाल्यो चिलातनी वाट ॥ साथ सहित थर सावदो है, जुन नवि लोननो ठाठ ॥ ज० ॥ १२ ॥ तप्तवालुका नामनी हे, विचि उल्लंघी रे पंथ ॥ हिम शीतल मारग चढ्यो हे, जिहां वह ले उत्पंथ ॥ ज० ॥ १३ ॥ तिहांथी गिरिमार्गे गयो हे, घटवी विपम व्यपार || लोनवरों शुं नवि करे हे प्राणी अं गीकार ॥ ज० ॥ १४ ॥ एसी परें जमतो एकदा है, पहोतो देश चिला त || राजविरोध तिहां घणो हे, म्लेबने अन्य संघात ॥ ज० ॥ १५ ॥ साथ चिलानो जाणीने हे, लुंटी लीयो सवि सार ॥ सायने पाठो वा लीयो हे, निज मंदिर तिलवार ॥ ज० ॥ १६ ॥ नजर वंचीने तेहोनी हे, नागे स्वयं देव ॥ मन चिंते महोकम थयो हे, करचं वांवित देव ॥ ज० ॥ १७ ॥ करम संयोगें जइ पड्यो है, शवर शिशुने रे पास ॥ कर चरणें तेथे बांधियो है, रुधिर विलंब्यो रे तास ॥ ज० ॥ १८ ॥ नाख्यो जटवी वचें है, ऊकडी करी यंग जोर ॥ मृत जाली गृध्र पंखीयां हे, यया करे वहु सोर ॥ ज० ॥ १९ ॥ चंचुप्रहारें चूंटिने हे, तस नक्षल करे तेह || मन चिंत्युं मनमां रधुं हे, यति लोनें गति एह ॥ ज० ॥ ॥ २० ॥ गृधने धाव्या जाणीने हे, लगायी निल्लवाल ॥ वाणे ते पंखी हणे हे, जुजु कर्म चंमाल ॥ ज० ॥ २१ ॥ सांऊ पड्ये ते स्वयंजुने हे, तेडी लावे रे गेह ॥ वंध ठोडी वेसारिने है, जीमाडे ससनेह ॥ ज० ॥ २२ ॥ रात राखी स्वयंजुने हे मंदिरमांहे प्रजात ॥ वनमां नाखे बांधीने हे जुन जुन कर्मनी वात ॥ ज० ॥ २३ ॥ एम दुःख सहेतां एक दिनें है, वनमां वावण एक ॥ थावी सूखी यति घएं है, नाग शवर शिशु बेक ॥ ज० ॥ २४ ॥ वाघण ले स्वयंजुने हे, चाली वन विकराल || निजस्थानक ते प्राणीयो हे, मूख्यां जालीने बाल ॥ न०
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श्री शांतिनाथनो रास खंग बडो.
३त्य
॥ २५ ॥ बंधन बोडी तेहनां हे, मूकी ते मृतप्राय || निज बालकने खोलवा हे, वाघण चाली वनमांय ॥ ज० ॥ २६ ॥ पूर्वे अवसर पामीने हे, नागे स्वयं रे कठ ॥ नाही नदीमां जड़ मिल्यो हे, केइक साथनी पं ॥ ० ॥ २७ ॥ अनुक्रमें मंदिर यावियो है, इम चिंतवतो रे चित्त ॥ धनलोनें बहु धरा जम्यो है, न गइ दारि ईति ॥ ० ॥ २ ॥ तिलोनी यति दुःख लहे हे, तेहमां नहिं संदेह ॥ जेहवो गयो तेवो यावियो हे, जीव फरी तुं गेह ॥ ० ॥ २५ ॥ धिक् तुऊने संसारमा हे, रहेता कवण सवाद || नित्य नवी निजवंधुमां है, तुम अवगुण अप वाद ॥ ज० ॥ ३० ॥ नाग्यसंयोगें मुनि मव्या है, लीधो संयमनार ॥ मुनिवर मारग पालतो है, लोन न राखें लगार ॥ ज० ॥ ३१ ॥ स मता सुधी मन धरे हे पाले गुद्धाचार ॥ साधु स्वयंनु पामिया है, सुरपदवी अवतार ॥ ज० ॥ ३२ ॥ दिशिविरमणें नीवडो हे लहे एली परें बहु दुःख || एम जाए। ए व्रत धरो हे, जेम लहो अविचल सुख ॥ ज० ॥ ३३ ॥ बहे खमें पांत्रीशमी है, ढाल बहे व्रत जाण ॥ राम कहे गुणवंतनां हे, करो नित्य नवी वखा ॥ च॥३४॥ इति पष्ठ दिशिविरमणव्रते स्वयं देवकथानकम् ॥६॥ सर्वगाथा ॥ १३८ ॥ श्लोक तथा गाथा मली ॥ ६५॥ ॥ अथ सप्तम जोगोपभोग विरमणव्रत संबंधः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ बारमाहे व्रत सातमुं, गुणव्रत वीजुं सार ॥ कहे प्रभु चक्रायुध प्रत्ये, जविक जीव उपकार ॥ १ ॥ जोजन ने बली कर्म थी, बिदु ने कत्युं तेह || जोग धने उपभोगनुं, मान करो गुणगेह ॥ २ ॥ अनंतकाय वली नयनुं, जोजन वजें जाणि ॥ तेह तो लवलेशी, सुण विस्तार सुजाण ॥ ३ ॥ नक्ष्य तजे सवलुं तज्युं, तेहनां वावीश नाम ॥ पपंचुं वरि एचच विगइ तेम १० हिम वरजो गुणधाम ॥ ४ ॥ ११ विष १श्करगा सवि १३ मृत्तिका, १४रयणीनोजन जाए || १५वदुवीजां मत वावरो, तेम १६नंत १३ संधाए ॥ ५ ॥ १८घोलवडा १ एवायंगणां, २० चणजाएयां फले फूल ॥ ५१ तुफल वलि २श्चलितरस, वर्जे होय सवि शून ॥ ६ ॥ उत्तम गृही न वावरे, ए वावीश अजय || एकावश गुण पूरो सही, कहिये ते सुद ॥ ७ ॥ काय अनंत न वावरे, जिहां अनंतजीव
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
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घात || सिद्धथकी पण अनंत गुण, जेहमां जीवसंघात ॥ ८ ॥ यतः ॥ नृच्योनैरविकाः सुराश्च निखिलाः पंचाछतिर्यग्गणोपाद्याज्वलनोयथोत्तर ममी संख्यातिगा जापिताः ॥ तेयोनूजलवायवः समधिकाः प्रोक्ता यथानु क्रमं सर्वेन्यः शिवगा अनंतगुणितास्तेयोप्यनंतांशगाः ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ नाम कह्यां वत्री तस, प्रारिजदेश प्रसिद्ध ॥ गुणव्रतबीजे धारीने, परिह रियें मति शुद्ध ॥ ए ॥। १ सुरणकंद निवारीयें, श्वज्रकंद तेम धार ॥ राईहरिश परिहरो, शृंगवेर विनिवार ॥ १० ॥ पचाईकचूर पशता वली, ७ विरालिका दोय वेलि ॥ तिम कुंवार स्योदर १०गलो, ११ लगुन कंदने मेल ॥ ११ ॥ १२वंशकरेल १३गऊर वली, जे वली १४साजी याय || ते लवकने वरजियें, एम वोले जिनराय ॥ १२॥ लोटक१ एपद्मि निकंद तेम १६ गिरिकर्णिका विचार ॥ १७ किसलय पत्र १८खरिंशुका, १ एथेगकंद अवधार ॥ १३ ॥ २० आईमोथ ए वीरामी, २१ भ्रमर वृनी बाल || लोकप्रसिद्धां २२ खिल्लहड, २३ अमृतवेलीने टाल ॥ १४ ॥ २४ मूलकंद निवारीयें, चोवीशमो ए बोल || जाली जेनक्षण करे, ते नर सही निटोल ॥ १५ ॥ २५भूमिरूहां बत्रक कह्यां, वर्षाकालें होय ॥ भूमिफोट सहु को कहे, धोजे व जोय ॥ १६ ॥ धान्य विदल जे अंकु रित, ते विसदा कहेवाय || शाक जाति २६टंक वाधुलो, खातां अवगुण थाय ॥ १७ ॥ २७शुक्रवल्लि १८ पल्यंक तेम, शाक नेद अवधार || कोमल तिम वली ३०वली, अब 5 अस्थि निर्धार ॥१८॥ ३१धालुक ३पिंमा लुक कह्या, कंदनेद तेम जाए || ए वत्रीशे परिहरे, श्रावक तेह सुजाण ||१|| १ सचित्त चित्त मिश्र जाणी यें, तेम ३ पक्क धपक्क ॥ पतुञ्चोपधि नक्षण तथा, न करे मतिपरिपक्क ||२०|| प्रतिचार ए वारतां, ए होय निरति चार ॥ कर्मथकी हवे सांजलो, ए व्रतनो विस्तार ॥ २१ ॥ ॥ दाल बत्रीशमी ॥
कूड़ा कानजी रे, महारी लोवडी तुं लाव ॥ ए देशी ॥ कर्मथकी खर कर्म सघनां, दूर ढंके जाए ॥ तास अतिचार पन्नर, नांखे श्री जिन जाण ॥ १ ॥ कहे जिनशांतिजी रे ॥ नविजन नावथी तुं धार ॥ धरो मन खांते जी रे, कठिन कर्म दूरें मार ॥ ए यांकणी ॥ पन्नर कर्मादान वारो, कर्मनुं यादान ॥ धातमाने एम तारो, नजो श्री भगवान ॥ कहे ०
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३७७ ॥शा इंगाल कर्म वारा ने, वन्न बमो दूर ॥ शकट नाटी स्फोट महेलो, . सुख होवे पूर ॥ क० ॥ ३ ॥ करम पंच बांमियें, पांच वणिज वार ॥ दांतनो व्यापार चूमो, नाख दूरे मार ॥ क० ॥ ४ ॥ रस केश विष केरो, वपिन निखरी बम ॥ पापनो परिहार कीजें, धर्म साथें मांग ॥ क० ॥ -५॥ यंत्रपीलण ने निलंबन, पापकारण जाण ॥ दाव अग्नि दान देतां, होय गुणनी हाणि ॥ क० ॥ ६ ॥ शोपवे जल घाणगुंथी, नीचमा शिरदार ॥ असतीपोपण वारीयें तो, पामी गति सार ॥ कण ॥ ७॥ एह पन्नर पंच जोगें, वीश अतिचार ॥ एहनो व्यासंग महेलो, कहिये वारं वार ॥ क० ॥ ७ ॥ जोग उपरे जावीयें, जितशत्रुनो दृष्टांत ॥ दा खीये नित्यमंमिता, उपनोग ऊपर वात ॥ कल ॥ ए ॥ कहे प्र नु ए जरतमां, वसंतपत्तन नाम ॥ राजवी जितशत्रु रूडो, नामने परि णाम ॥ क० ॥ १० ॥ नाम सुबुद्धि मंत्री साईं, अश्व जोवा काम ॥ चा लीयो जितशत्रु राजा, अश्व खेज्यो ताम ॥ क० ॥ ११॥ वाग खेंचे पवननी परें,दोडीया हय दोय ॥ राजा ने मंत्रीश दोनू,नारखे जंगल सोय ॥ क० ॥ १२ ॥ तीन दिवस वनमांहे, न मव्युं तेहने नीर । केडेथी सवि सैन्य श्राव्यु, पुरमा धाएया वीर ।। कल ॥ १३ ॥ जोजन कीयांना वता, थाकंठ नूरव्ये जोर ॥ माय नहीं उडकार मांहे, एहवो जिम्यो घोर ॥क० ॥ १४ ॥ रातमा थाहार वाहिर, वमनमागे जाय ।। पेटमांहे चूक उठी, धालस विलस थाय ॥०॥१५॥ राय ते परलोकमांहे, गयो तेणी वार ॥ धार्तध्याने ते मरीने, थयो व्यंतर सार ॥॥१६॥ जोगना परिमाण पाखे, एहवी गति होय ॥ गति मति खोइ वेसे,हसे सङ कोय ॥ ० ॥ १७ ॥ सजिलो परिनोग नपरें, कहे श्रीजिनशांति ॥ नित्य मंमिता नारि केरी, वात सुणो खांति ।। क० ॥ १७ ॥ एहिज नगरमाहे हून, यग्निदेव विन ॥ वेदनो ते जाण सूधो, करम करे दिन ॥ कल ॥ १ए । तेहने घरे वे सुनंदा, नामथी वर नारि ॥ कंतने थतिवालही, प्राणनो अाधार ।। क७ ॥ २० ॥ तेह बांगण लोकपूजित, बिन पाम्यो नूरि ॥ अंगनृपण नारीने एणे,कीधां श्रानंदपुर । क० ॥ २१ ॥ अंगथी
ण मात्र थलगां,न उतारे तेह ।। कंतजी तो नित्य वारे, पहेरमा नुं पह ॥ कर ॥ २२ ॥ कोइ पर्व पट्टेरीयें ए, चोर, शहां जोर ॥ कंतने करे
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
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नहिं उतारुं, श्यो करो हो सोर ॥ क० ॥२३॥ राग खाणी तेह ताली, फरि न वोल्वो वोल ॥ कामिनीनो प्रेम गाढो, रंग रातो चोल ॥ क० ॥ २४ ॥ एक दिवस धाड यावी, बोलती मुख मार ॥ कर्मना संयोगहूंती, विप्र ने घरवार || क० ॥ २५ ॥ कतरे नहीं नारी केरां, भूषण तेणी वार ॥ बेदियां तस यंग सुंदर, खड्ग तीखी धार ॥ क० ॥ २६ ॥ वलवले. ते नारी कभी, करे लोहीधार ॥ चरण वेदे भूमि ऊपर पडी ते निरधार ॥ ०॥ १७॥ प्राचां एमवे उदयें, नहिं को राखणहार ॥ राखो राखो मुखें नांखे, नित्यमंदिता नारि ॥ क० ॥ २८ ॥ कंथ तेहनो नासी पेठो, कोइ नाव्यं पास || रौड़ध्यानें ते मरिने, गई नरकावास ॥ क० ॥ २७ ॥ एम जे परिभोग उपरें, राखे माया नूरि ॥ तेहनी एह गति होवे, बांगो माया दूर ॥ ० ॥३०॥ उठे खमें ए उत्रीशमी, ढाल नांखी सार || शांतिप्रजुनी देशनाथी, पामियें नवपार ॥ क० ॥ ३१ ॥ इति सप्तमभोगोपभोगो परि जितशत्रु नित्यमं मिताकथानके ॥ ३२ ॥ सर्व० ॥ १४१० ॥ श्लो० ॥ ६६ ॥ ॥ अथाष्टम अनर्थदंम विरमणव्रत संबंधः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ हवे त्रीजुं गुणव्रत प्रभु, कहे शांति जिनराज ॥ अनर्थदं विरमण करो, जिम सिके यातमकाज ॥ १ ॥ अपध्यान पहेलुं वली, पाप तलो उपदेश || हिंस्र प्रदान त्रीजुं कयुं, दुःखदायी सुविशेष ॥ २ ॥ तेम याच रण प्रमादनुं, चोथो नेद वखाण || चार नेद एम नीपजे, श्रोता सुणो सु जाण ॥ ३ ॥ पंच यतिचार एहना, प्रथम कह्यो कंदर्प ॥ रागें दास्या दिक वचन, बोले जे घरी दर्प ॥ ४॥ कौकुचपएं निवारीयें, मुख च नेत्र विकार || हास्य जनक विटनी परें, ते वीजो अवधार ॥ ५ ॥ ए प्रमा दथी नीपजे, मुखरपणुं तेम टाल ॥ संब-जापी घणो, जेम तेम बोले यात ॥६॥ महानर्थनुं हेतु ए, पहेलो पाप उपदेश ॥ ए बर्जे जे मानवी, न लहे तेह किलेश ॥ ७ ॥ यक्तं ॥ बहूनां समवाये हि, सिद्धे कार्ये समं फलम् ॥ यदि कार्यविपत्तिः स्या, न्मुखरस्तत्र वाध्यते ॥ १ ॥ अन्यत्र ॥ श्रविद्या लिय पहावं, पर चित्तमरिककण जं नणियं ॥ किंपावयरतत्तोवि, दुऊ ग्रन्नपि लोगंमि ॥ २ ॥ पूर्वदाल ॥ वली चतुर्थ यधिकरणनो, हल कुवार शकटादि ॥ सद्ध करी मेहने नहिं, तेम नवि
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श्री शांतिनाथनो रास खंम उद्यो. ३तए जोडे आदि ॥७॥ यज्क्तं ॥ कार्ये गुनेऽगुनेवापि प्रतियः कृतादितः ॥ । नेद्यास्ते तस्य कर्तारः, पश्चादप्युपचारतः ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ उपनोग परिजोग वस्तुने, अधिक न मेले जाण ॥ अधिक माग्य आपतां, होय अनर्थ गुणहाणि ॥ ए ॥ एह अतिचार पांचमो, वो निरतीचार ॥ ए यष्टम व्रत पालतां, लहियें नवनो पार ॥१॥ एह उपर प्रनुजी कहे, समृदिदत्त संबंध ॥ चकायुध नृप सांजले, नाव नक्ति अनुबंध ॥ ११ ॥
॥ ढाल साडत्रीशमी॥ . ॥जीरे जी॥ ए देशी ॥ जीरे धातकी खंम मकार, देव नरत रैपुर नटुं जीरे जी ॥ जीरे तिहां रिपुर्मदन राय,यश जगतमां मजदूं ॥ जीरे जी ॥१॥ जीरे समृद्धिदत्त सुविचार,कौटुंबिक तिण पुर वसे ॥जि॥ जीरे कुटुंबतो स्वामि, हर्षे हियामां उनसे ॥जी॥॥ जीरे एक दिन सूतो सेज,मनमांहे एम चिंतये ॥जी॥जीरे जो हुँ या नूप, जरत खेम साधु सवे ॥जी॥३॥ जीरे साधतो जानं वैताढय,दे विद्या ननचर नली॥जी॥जीरे विद्यावल श्राकाश, तब कहुं हूँ मन रली ॥जी॥॥ जीरे एम चिंतवतो ताम,सेजश्री उचो उदयो । जी० ॥ जीरे पडतो ते नूपीत, पडियो गृहमानवें कल्यो ॥ जी० ॥ ५ ॥ जीरे पीडाणो तन जोर, करे याकंद अति घणो ॥जी॥ जीरे स्वजन मिल्यां तव धाइ, मु ययुं तुम अमने जपो ॥ जी० ॥ ६ ॥ जीरे रहिया मुफ मनमांहे, मनह मनोरथ मादरा ॥ जी० ॥ जीरे उठ ली मूढ गमार. पग नांज्या ते ताहरा ॥जी॥७॥ जीरे घाणू निब्यो तास, केतक दिने साजो थयो ॥ जी० ॥ जीरे पाले ते निजगेह, दिव डामा हर्पित दुई ॥जी॥ ७ ॥ जीरे एक दिन ली, तेण, खग अमू . तक उपतुं ॥जी॥ जीरे जे खनन तेज.अवर नहिं कोई जीपतुं ॥ जी ।। (y l जीरे पुरमां पसरी वात. खग तणी अतिही घणी ॥ जी ॥ जीर एक दिन पुग्ने नृप, सनामां बेठे सुणी ॥ जी० ॥ १० ॥ जीरे एक दिन वहरतन्न. प्रमादयकी तस बिसयुं ॥जी॥ जीरे गृहयंगण ते मृकि, मांदे डायन जई कायं ॥जी॥११॥ जीरे सांजग्युं तस मध्यराति. पण प्रमादेन श्राणियो । जी० ॥ जीरे चिंत कुण ले जाय, रह्यो निधितो प्राणीयो । जी० ॥ १२ ॥ जीरे चोरें दो तेणी गति, खह लेने ते चल्यो । जी० ॥ जीरे शेडनो मुत्त ग्रही वंदि, जानां नृप सेवक मिल्या ।। जी ॥
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३त - जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. नहिं उतार,श्यो करो बो सोर ॥ कल ॥२३॥ राग पाणी तेह तापणी, फरि: न वोल्यो बोल ॥ कामिनीनो प्रेम गाढो, रंग रातो चोल ॥ कण् ॥ २ ॥ एक दिवस धाड आवी, वोलती मुख मार ॥ कर्मना संयोगद्रंती, विष ने घरवार ॥ क० ॥ २५ ॥ ऊतरे नहीं नारी केरां, नूषण तेणी वार ॥ बेदियां तस अंग सुंदर, खड्ग तीखी धार ॥ कण् ॥ २६ ॥ वलवले ते नारी कनी, फरे लोहीधार ॥ चरण दे नूमि कपर,पडी ते निरधार ॥॥ २७॥ आचस्यां एम आवे उदयें, नहिं को राखणहार ॥ राखो राखो मुरखें - जांखे, नित्यमंमिता नारि ॥ क ॥ २७ ॥ कंथ तेहनो नासी पेतो, कोई नाव्युं पास ॥ रौऽध्याने ते मरिने, गई नरकावास ॥ क ॥ २५ ॥ एम , जे परिनोग उपरें, राखे माया नरि ॥ तेहनी एह गति होवे, मो माया - दूर ॥ क ॥३०॥ बछे खमें ए नत्रीशमी,ढाल नाखी सार ॥ शांतिप्रनुनी . देशनाथी, पामियें जवपार ॥ कण् ॥ ३१ ॥ इति सप्तमनोगोपनोगो परि जितशत्रुनित्यमंमिताकथानके ॥ ३२ ॥सर्व ॥१४१० ॥श्तो॥६६॥ ॥अथाष्ठम अनर्थदमविरमाबत संबंधः ॥
॥दोहा॥ ॥हवे त्रीजु गुणवत प्रनु, कहे शांति जिनराज ॥ अनर्थदम विरमण करो, जिम सिजे आतमकाज ॥ १ ॥ अपध्यान पहेलु वली, पाप तणो उपदेश ॥ हिंस्रप्रदान त्रीजुं कह्यु, सुःखदायी सुविशेष ॥ २ ॥ तेम पाच रण प्रमादन, चोथो नेद वखाण ॥ चार नेद एम नीपजे, श्रोता सुणो सु जाण ॥ ३ ॥ पंच अतिचार एहना, प्रथम कह्यो कंदर्प ॥ रागें हास्या दिक वचन, बोले जे धरी दर्प ॥४॥ कौकुचपणुं निवारीये, मुख च नेत्र विकार ॥ हास्य जनक विटनी परें, ते वीजो अवधार ॥ ५ ॥ए प्रमा दथी नीपजे, मुखरपणुं तेम टाल ॥ असंवचनापी घणो, जेम तेम बोले बाल ॥६॥ महायनर्थ हेतु ए, पहेलो पाप उपदेश ॥ ए वर्जे जे मानवी,न लहे तेह किलेश ॥ ७ ॥ यमुक्तं ॥ बहूनां समवाये हि, सिमे कार्य समं फलम् ।। यदि कार्य विपत्तिः स्या, न्मुखरस्तन वाध्यते ॥ १ ॥ यन्यन ॥ अवियाणिय पहावं, पर चिनमतरिकका जं जपियं ।। किंपावयरतत्नोवि, दुङ अन्नपि लोमि ॥ २ ॥ पूर्वढाल ॥ वली चतुर्य अधिकरणनो, हल कुगर शकटादि ॥ सङ्ग करी मेहले नहि, तम नवि
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श्री शांतिनायनो रास खंम हो. ३ए __जोडे श्रादि । यउक्तं ॥ कार्य शुनेऽगुनेवापि प्रतियः कृतादितः ।।
॥द्यास्ते तस्य कर्तारः, पश्चादप्युपचारतः ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ उपनोग परिलोग वस्तुने, अधिक न मेले जाण ॥ अधिके माग्युं यापतां, होय थनर्थ गुणहाणि ॥ ए ॥ एह अतिचार पांचमो, वर्नो निरतीचार ।। ए अष्टम व्रत पालतां, लहियें नवनो पार ॥१॥ एह उपर प्रचजी कहे, - समृद्धिदन संबंध ॥ चक्रायुध नृप सांजले, नाव नक्ति अनुबंध ॥ ११ ॥
॥ ढाल साडत्रीशमी॥ ॥जीरे जी ॥ ए देशी ॥ जीरे धातकी खंम मकार, देव नरत रैपुर जलु ॥ - जीरे जी ॥ जीरे तिहां रिपुर्मदन राय,यश जगतमां कजलृ ।। जीरे जी ॥१॥ - जीरे समृद्धिदत्त सुविचार,कोटुंबिक तिण पुर वसे ॥जि॥ जीरे कुटुंबतपो स्वामि, ह हियामां ननसे ॥जी॥शा जीरे एक दिन सूतो सेज,मनमांदे एम चिंतवे ॥जी॥जीरे जो दूं थानं नूप, नरत खंम साधं सवे ॥जी॥३॥ जीरे साधतो जानं वैताढय,दे विद्या ननचर नली। जी ॥जीरे विद्यावल
आकाश, तव कहुं हुं मन रती ॥जी ॥ जीरे एम चिंतवतो ताम,सेजथी उंचो चल्यो । जी० ॥ जीरे पडतो ते नूपीत, पडियो गृहमानवें कल्यो ॥ जी० ॥ ५॥ जीरे पीडापो तन जोर, करे याकंद अति घणो ॥जी॥ जीरे स्वजन मिट्यां तव धाइ, युं थयुं तुम अमने जपो ॥ जी ॥ ६ ॥ जीरे रहिया मुझ मनमांदे, मनह मनोरथ मादरा ॥ जी० ॥ जीरे उन ली मूढ गमार, पग जांच्या तें ताहरा ॥ जी० ॥७॥ जीरे घाणू नियों तास, केतेक दिने साजो थयो । जी ॥ जीरे पाले ते निजगेह, हिय डामा हर्षित दु जी ॥ ॥ जीरे एक दिन लीधुं तेए, खड्ग यमू सक पतु ॥जी॥ जीरे जे खड्नुं तेज.अवर नहिं कोई जीपतुं ॥जी॥ ए॥ ॥ जीरे पुरमां पसरी वात, खड्ग तणी अतिही घणी ॥ जी ॥ जीरे एक दिन पुरने नूप, सनामां बेठे सुणी ॥ जी ॥ १० ॥ जीरे एक दिन खारतन्न, प्रमादयकी तस बिसऱ्या ॥जी॥ जीरे गृहधंगण ते मृकि, माहे भयन जई कम्यं नी॥११॥ जीरे सांजग्यं तस मध्यराति, पण प्रमादेन , श्राणियो । जी० ॥ जीरे चिंते कुए ले जाय, रह्यो निश्चितो प्राणीयो। जी० ॥ १२ ॥ जीरे चोरें दायु तेषी राति, खह लेने ते चल्यो । जी० ॥ जीरे शेरनो सुत ग्रही बंटि, जातां नृप सेवक मिया ॥ जी ॥'
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३ए जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. १३ ॥ जीरे जोर कल्यं नृप लोक, निधन पमाड्यो चोरने ॥जी॥ जीरे चोरें मरतां तेह, माखो शेव किशोरने ॥जी० ॥ १४ ॥ जीरे खा , ग्रही प्रजात, नेट कयुं जय रायने ॥जी॥ जीरे समृद्धिदत्तने कोध, नांखे नृप वोलाइने ॥जी॥१५॥ जीरे केम कीधो ते अन्याय, खड्ग एह ताहारु : सही ॥ जी० ॥ जीरे वात कही समजाय, पण नृप कहे मेनुं नहिं ॥जी० ॥ १६ ॥ जीरे रायें दमयो तास, केम प्रमाद तें यादस्यो । । जी० ॥ जीरे निर्धन कर घर वार, मूक्यो ते शोके नखो ॥ जी० ॥ १७ ॥ जीरे एक दिन तेण अयाण, विष वेचातुं कोश्ने ॥जी॥ जीरे.. दीधुं धनने लोन, नृपवैरीने जोक्ने ॥ जी० ॥ १७ ॥ जीरे ले तेणें चंमाल, सरवरमां विप घातियुं ॥ जी० ॥ जीरे ते पीधे के लोक, पुरमा हे मृत्यु पामियुं ॥ जी० ॥ १ए ॥ जीरे नृप जाणी ते वात, जल पीधे बदु नर मूत्रा॥जी॥जीरे रायें कढावी शुद्धि, कहो एकुण कारण दुयां ॥जी॥॥ जीरे कोकथी सही वात, विषप्रयोगनी मांदिली ॥जी॥ जीरे रायें तेड्यो तेह, तुरत न कीधी काहेली ॥जी॥१॥ जीरे पूडे नर तेडावि,को पासें तें विष लियु ॥जी॥ जीरे [ हवे जूते याय,समृदिदा मु. ऊने दियुं ॥जी॥ २२ ॥ जीरे राये जाणी अनीति, समृद्धिदत्तने दमियो ॥जी॥ जीरे पुरमा तस अप्रीति, सदुको जाणे लंगियो ॥जी॥३॥ जीरे वती एक दिनने योग, कौटुंबिक कोइ आवियो ॥जी॥ जीरे नूतन वत्स युग एक,ते संघातें जावीयो । जी॥२४॥ जीरे समृधिदत्त तेणि वार,पूने तेहने प्रेमj ॥जी॥ जीरे ए वत्स दमवा योग्य, दमता नथी कारण कि - इयुं ॥ जी० ॥ २५ ॥ जीरे आर कशा ने घात, निर्दयपरिणामें करी ॥ जी० ॥ जीरे वत्स दमो सुविशेप, लघुवयमां कलट धरी ॥जी० ॥ २६ ॥ जीरे वात सुपी रूप दोय,नी उपर कोप्या घj ॥ जी० ॥ जीरे नाम थकी पण एह, प्राणीने दुःख अलखामणुं ॥ जी० ॥ २७ ॥ जीरे ते 0 नइते वत्स दोय, दमवा मांमधा निर्दयी ॥जी॥ जीरे ते सुकुमार शरीर, वेदन सहे वापी नहिं ॥ जी ॥ २७ ॥ जीरे तनु ल य तेह, एक दिन काल कस्यो वने ॥ जी० ॥ जीरे अकामनिर्जरायोग, थया व्यंतर सुर एक मनें ॥ जी० ॥ २५ ॥ जीरे झान तणे उपयोग, अहित कारक तस जाणीयो । जी जीरे धावी तिहां सुर दोय, सबलो तेने
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३१ ताणियो । जी० ॥ ३० ॥ जीरे मार पड्यो तस जोर, मुखहूंती सुर एम कहे ॥ जी० ॥ जीरे का दीधो उपदेश, लीनथकी जीव व लहे ॥ जी० ॥ ३१ ॥ जीरे चरण नमीने तेह, निज अपराध खमावतो ॥जी॥ जीरे टलवलतो ते देखी, सुरें मूक्यो तेने जीवतो ॥ जी० ॥ ३२ ॥ जीरे समृदिदत्त मनमांहे, चिंते में मातुं कयुं ॥ जी० ॥ जीरे अनर्थदंम एके क, कीधाथी बदु :ख वयुं ॥ जी० ॥ ३३ ॥ जीरे मन आव्यो वैराग्य, नावें तेणें संयम ग्रह्यो ॥जी॥ जीरे पाले निरतिचार, सुर वैमानिक सुख लघु ॥ जी ॥३॥ जीरे पामी नर अवतार, समृदिदत्त संयम ग्रही। जी० ॥ जीरे धागामिक नव सार, शिवलीला लहेशे सही ॥ जी० ॥ ३५ ।। जीरे शांतिप्रचुयें ए वात, यष्ठम व्रत उपर कही ॥ नी० ॥ जीरे व्रतपालण उनमाल, नवियण तुम्हें थाजो वही ॥ जी ॥३६ ॥ जीरे बरे खमें एह, दास कही साडत्रीशमी ॥जी॥ जीरे रामप्रनुनी वाणी, नवियण मन साकरसमी ॥जी॥३७॥ इत्यष्टमानर्थदंमविरमणवतोपरिसर विदत्तकथानकम् ॥॥ इति त्रीणि गुणवतकथानकानि ॥सण॥१५॥६ए।
॥अथ नवम सामायिकव्रत संबंधः ॥
॥दोहा॥ ॥ हवे शिक्षाबत जिन कहे,चन संख्यायें सार । सामायिक व्रत प्रथम तिहां, कहे प्रनु जगदाधार ॥ १ ॥ साम अने सम तिम वली, सम्यग एक विचार ॥ सामायिक एक अर्थ ए, नारख्यो सूत्र मकार ॥ २ ॥ नाम स्थापना इव्यथी, नाव निदेपा चार ॥ प्रनुनी नांखे तेहनो, अर्थ अनोपम सार ॥३॥ यतः॥ मदुरपरिणाम सामं,समं तुला सम्म खीर खंग जुई। दोरे दारस्सतिग,धम्मे धाई तु दबंमि ॥ १॥ यावमा परारक मकरणं राग दोत मावे ॥ नागाइतिगं तसाइ, पोसणं जावसामाई ॥ २ ॥ पूर्वदोहा ॥ मन बच काया योगनो, इष्टप्रयोग निवार ॥ अनव स्थान चोथो वली,स्मृतिविहीन तेम धार ॥४॥ अतिचार पंच एहना,तेम बली दोष वनीश ॥ सामाविकमा टालिये,तो लहिये सयल जगीश ॥ ५ ॥
॥ ढाल धाडत्रीशमी ।। ॥ सामायिक छात्रिशदोपस्वरूपं कथ्यते ॥ चोपाई। यात रोश्तणो परि हार,यतिथि सीम संयमाचार ॥ यायो समतानो परिणाम, सामायिक
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
करवो धनिराम ॥ १ ॥ तेह तथा जे दोष वत्रीश, ते पनणिगुं मन घरीय जगीश ॥ ते सांगली श्रावक खप करे, लीलें जिम नवसायर तरे ॥ २॥ वस्त्रे वांदे वाली पालवी, प्रथम दोष ए जुगतो नथी ॥ प्रातुं पातुं यासन याय, वीजुं ए दूपण कहेवाय ॥ ३ ॥ दृष्टि न राखे एके दिरों, जोवे चपलप चितुं दिशें ॥ त्रीजो दोष सामायिक जाण, व्रतधर परिहर हियडे खाए ॥४॥ अल्प बहुल लागे सावऊ, चोथे दोप निवारो कऊ ॥ पूठें जींत पाटी ने यंन, पंचम दोप जे जे अवष्टंन ॥ ५ ॥ प्रति संकोडे अंग नवंग, बो दोप करे व्रतनंग ॥ खालस मोडे ए सातमो, जांजे करडक ए यांग्मो ॥ ६ ॥ नवमो मल उतारे जेह, मीलतणो व्रत दूपे तेह || खण खणे ए दशमो जाए, टालंतां व्रत कहे प्रमाण ॥ ७ ॥ यंगें विश्रामण कारवे, दोष ग्यारसे व्रत हारवे || वारम दोप जे निश करे, चार दोप, कायना. परिहरे ॥ ८ ॥ वचन तथा दश दोष पिठाण, परिहर चतुरपणुं चित्त - या | वोले कुवचन पहेलो दोप, लाग्यो जाए म घर संतोष || || वीजो म जणीश सहसात्कार, यार्त्तस्वर दुवे त्रीजे वार ॥ याप दें जे बोलीयें, चोथो दोप विपे तो लीये ॥ १० ॥ जयतां सूत्र म कर संदेप, पंचम दोप तयो निक्षेप | कलह में मंमिश जा व्रत सार, बघा दोष तो परिहार ॥ ११ ॥ विकथा सप्तम दोष निवार, पर उपहास प्राठमो विचार | संपद पद विणु उतावलो, म जो नवम दोपथी दलो ॥ १२ ॥ जाव याव एम कहियें नहिं, दशम दोष परहरियें सही ॥ वचन तथा ए जाली दोप, टाली करो सामाविक पोप ॥ १३ ॥ मनना दोष हवे सां जली, परिहर नविय दूरें रली ॥ प्रथम दोष मन नहिंय विवेक, नदु जाणो को अतिरेक ॥ १४ ॥ जस कीर्त्ति वांटे अति घणी, करे सामा विक जे तेह जली | वीजो दोप ए धागम कह्यो, नवियण जाणीने नवि यो ॥ १५ ॥ हियडे वांठे धननो लाह, त्रीजो दोष घणो गुल दाह ॥ चोथो दोष जे करे गर्व, एहथी निर्गमियुं फल सर्व ॥ १६ ॥ करे सा मायिक जे विहतो, वारे दोप सुगुण ईहतो || पुत्र धनादिक तणुं नि दान, करतां वो दोष निदान ॥ १७ ॥ सामायिक फल विधि जे कही, शुं जाएं होगे वा नहिं ॥ एम संशय हिडे प्राणिय, सप्तम दोषने श्रुति जाणीयें ॥ १६ ॥ अष्टम करे मन छापी रोप, व्यविनय करतां नवमो
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श्री शांतिनाथनो रास खंग न ३३ दोपानकि हीण ए दशमोसही,श्रावक ए चादरवा नहिं ॥१॥इति सामा यिकछात्रिंशदोपस्वरूपं ॥काव्यंगबत्तीसदोसेहिं विसुहिमेअंकरिङ सामाश्य मप्प मत्तो ॥ निचं नरो जो निस दीस कालं,वरित तं मुत्तिरमा कमेणं ॥१॥ ॥ दोहो ॥ ए व्रत ऊपर जिन कहे, सिंहश्रावक अवदात ॥ न विक जीव सदु सांजले, करि निजमन एकांत ॥ १ ॥ ढाल ॥ स वाइ गुरु वाहणनी परें तारे ॥ए देशी ॥ जरते रमणीय इए नाम,पुर सुंदर शोजा गम, बहु जंतुनो विश्राम ॥ १ ॥ जिपंदराय देशना देई तारे, नव जलनिधि पार उतारे ॥ जि ॥ ए आंकणी ॥ तिहां हेमांगद अनि धान, राजा बहु बुदिनिधान, सुंदर तन शोने वान ॥ जि० ॥ ॥ हे मश्री तेहने राणी, रूपें जीती इंशपी, वली लावण्यगुणमणि खाणी ॥ जि० ॥ ३ ॥ श्रावक जिनदेव विचारी, जिनदासी तस घर नारी, शी लादि गुणें करि सारी ॥ जि ॥ ४ ॥ सिंह नामें दो धंगज सोहे, रूपें साजन मन मोहे, कदिये ते न रहे कोहें ॥ जि० ॥ ५ ॥ नीवाऽजीवा दिक जाण, समजु सवलो गुणखाण, मावित्रने जीवनप्राण ॥ जिप ॥ ६ ॥ विदु टंक आवश्यककारी, सूधो सामायिकधारी, रुडो श्रावक श्राचारी ॥ लिए ॥ ७ ॥ इक दिन सारथ संघातें,चाव्यो व्यापारने हेतें, सिंह लइ करियाणुं खंत ॥ जि ॥ ७ ॥ साथ उतखो घटवीमाहे, तटिनीतट जोइ उत्साहें, लीधुं सामाविक सिंह शाह ॥ नि ॥ ए ॥ सघलो प्रारंन निवारी, मुनिनी परें समताधारी, करि मन वच तन एक तारी ॥ जि ॥ १० ॥ तटिनी जल शीतल वासें, बदु कडे मशकनी गों, करयो धूम बदु तब त्रासें ॥ जि० ॥ ११ ॥ रह्यो सिंह थचल गुरा गेह, सहे मशकपरीतह देह, न चले मेरु जिम तेह ॥ जि ॥ १२ ॥ बदु मशक समूह विंटाणो, थावी मलियो तब टाणो, ध्यान दीपक नवि उजवाणो ॥ जि० ॥१३॥ त्वच नेदीने मुख माहे घाली,पीये रुधिर ते मश कनी थाली, सिंह काया न संजाली ॥ जि० ॥ १४ ॥ जाणे ए पुल सार, प्रत पालीजें निर्धार, ए विषु जम्यो बहु संसार ॥ जि० ॥ १५ ॥ फानो नहिं तु तुझ कोइ, मत रहे तन उपर मोही, रखे जातो ए व्रत खोइ ॥ जि ॥ १६ ॥ निश्चत परिणाम रहियो, परिसह उत्कट तेणं साहियो, एडवो सिंहो जन कहियो ॥ जि०॥ १॥ याव्यो दक्षिण
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
करवो यजिराम ॥ १ ॥ तेह तथा जे दोप वत्रीश, ते पनलिनुं मन धरीध जगीरा || ते सांगली श्रावक खप करे, लीलें जिम जवसायर तरे ॥ ॥ व वांदे वाली पालवी, प्रथम दोप ए जुगतो नथी । याधुं पाहूं चासन याय, बीजुं ए दूषण कहेवाय ॥ ३ ॥ दृष्टि न राखे एके दिनों, जोवे चपलपणेचिहुं दिशें ॥ त्रीजो दोष सामायिक जाण, व्रतधर परिहर हियडे याप ॥४॥ प्ररूप बहुल लागे सावऊ, चोथे दोष निवारो कऊ ॥ पूछें जींत पाटी ने यंन, पंचम दोष जे जे अवष्टंन ॥ ५ ॥ अति संकोडे अंग नवंग, बहो दोष करे व्रतनंग ॥ आलस मोडे ए सातमो, जांजे करडक ए याम्मो ॥ ६ ॥ नवमो मल उतारे जेह, मीलतणो व्रत दूषे तेह || खण खणे ए दशमो जाए, टालंतां व्रत कहे प्रमाण ॥ ७ ॥ यंगें विश्रामण कारवे, दोष म्यार मे व्रत हारवे ॥ वारम दोप जे निश करे, बार दोप. कायना परिहरे ॥ ८ ॥ वचन तथा दश दोष पिठाण, परिहर चतुरपणुं चिस या || वोले कुवचन पहेलो दोष, लाग्यो जाण म घर संतोष || || वीजो म नीश सहसात्कार, स्वर दुवे त्रीजे वार ॥ प्रापण बंदें जे बोलीयें, चोथो दोप विषे तो लीये ॥ १० ॥ चणतां सूत्र म कर संदेप, पंचम दोष तो निक्षेप | कलह में मंमिश जा व्रत सार, हा दोष तो परिहार ॥ ११ ॥ विकथा सप्तम दोष निवार, पर उपहास आठमो विचार | संपद पद विणु उतावलो, म जो नवम दोपथी टलो ॥ १२ ॥ जाव याच एम कहियें नहिं, दशम दोष परहरिये सही || वचन तथा ए जाली दोप, टाली करो सामायिक पोप ॥ १३ ॥ मनना दोप हवे सां नजी, परिहर नवियण दूरें रली ॥ प्रथम दोप मन नहिंय विवेक, नदु जाणो को प्रतिरेक ॥ १४ ॥ जस कीर्त्ति बांबे यति घणी, करे सामा यिक जे तेह जली | वीजो दोष ए श्रागम कह्यो, नवियल जाणीने नवि यो ॥ १५ ॥ हियडे वांठे धननो लाह, त्रीजो दोष घणो गुल दाह ॥ चोथो दोष जे करे गर्व, एहथी निर्गमियं फल सर्व ॥ १६ ॥ करे सा मायिक जे विहतो, वारे दोप सुगुण ईहतो || पुत्र धनादिक तणुं नि दान, करते वो दोष निदान ||१७|| सामायिक फल विधि जे कही, जाएं होगे वा नहिं ॥ एम संशय हियडे व्यापियें, सप्तम दोषने श्रुति जालीयें ॥ १६ ॥ यष्ठम करे मन थापी रोप, व्यविनय करतां नवमो
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श्री शांतिनाथनो रास खंग हो.
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दोष ॥ जक्ति ही ए दशमो सही, श्रावक ए च्यादरवा नहिं ॥१॥ इति सामा किद्वात्रिंशदोष स्वरूपं ॥ काव्यं ॥ वत्तीस दोसे हिं विशुद्धि मेथं, करित सामाइय मप्प मत्तो ॥ निचं नरो जो निस दीस कालं,वरित तं मुत्तिरमा कमेणं ॥ १ ॥ ॥ दोहो ॥ ए व्रत ऊपर जिन कहे, सिंहश्रावक यवदात ॥ ज विक जीव सह सांगले, करि निजमन एकांत ॥ १ || ढाल || स वाइ गुरु वाहनी परें तारे ॥ ए देशी ॥ नरतें रमणीय इस नाम, पुर सुंदर शोना गम, वहु जंतुनो विश्राम ॥ १ ॥ जिणंदराय देशना देई तारे, नव जलनिधि पार उतारे || जि० ॥ ए यांकणी || तिहां हेमांगद खनि धान, राजा बहु बुद्धिनिधान, सुंदर तन शोने वान || जि० ॥ २ ॥ हे मश्री तेहने राणी, रूपें जीती इंझणी, वली लावण्यगुणमणि खाणी || जि० ॥ ३ ॥ श्रावक जिनदेव विचारी, जिनदासी तस घर नारी, शी लादि गुणें करि सारी ॥ जि० ॥ ४ ॥ सिंह नामें हो थंगज सोहे, रूपें साजन मन मोहे, कढ़िये ते न रहे कोहें ॥ जि० ॥ ५ ॥ जीवाऽजीवा दिक जाए, समजु सबलो गुणखाण, मावित्रने जीवनप्राण ॥ जि० ॥ ६ ॥ बिंदु टंक यावश्यककारी, सुधो सामायिकधारी, रूडो श्रावक याचारी ॥ नि० ॥ ७ ॥ इक दिन सारथ संघातें, चाल्यो व्यापारने हेतें, सिंह लइ करियाएं खतं ॥ जि० ॥ G ॥ साथ उतस्त्रो घटवीमांहे, तदिनीतट जोड़ उत्साहें, जीधुं सामायिक सिंह शार्हे ॥ नि० ॥ ए ॥ सचलो प्रारंभ निवारी, मुनिनी परें समताधारी, करि मन वच तन एक तारी ॥ जि० ॥ १० ॥ तटिनी जल शीतल वासें, बहु कडे मशकनी राों को धूम बहु तव त्रास ॥ जि० ॥ ११ ॥ रह्यो सिंह यचल गुण गेह, सहे मशकपरीसह देह, न चजे मेरु जिम तेह || जि० ॥ १२ ॥ तुमशक समूहें विंटालो, यावी मलियो तव टालो, ध्यान दीपक नवि जवाणो ॥ जि० ॥ १३ ॥ त्वच नेदीने मुख मांहे घाली, पीये रुधिर ते मश कनी थाली, सिंह काया न संभाली ॥ जि० ॥ १४ ॥ जाऐ ए पुनन सार व्रत पालीजें निर्धार, ए विष्णु जम्यो बहु संसार || जि० ॥ १५ ॥ कोइनो नहिं तु तु कोई, मत रहे तन उपर मोही, रखे जातो ए व्रत खोइ ॥ ज० ॥ १६ ॥ निश्रत परिणामे रहियो, परिसह उत्कट तेों सहियो, पदवी सिंदो जन कहियो ॥ जि० ॥ १७ ॥ घायोि
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. दिशि वात, कमी गयो मशकनो त्रात, सूपी याव्यां तस गात ॥ जिल ॥ १७ ॥ उपसर्ग टल्यो थइ शाता, पारे सामायिक गुणवंता, एम काम पंडे रह्यो तंत ॥ जिप ॥ १७॥ अनुक्रमें देशांतरें जाय, बदु लालीनो सान उपाय, घर आव्यो सिंह कमाय ॥ जि० ॥२॥ साते देवें वित्तने ।' वावे, लखमी सुरुतारथ थावे, देशमा वदुलो यश पावे ॥ जि० ॥ २१॥ . गृहिधर्म रूडी परें पाली, अंते अगसण संजाली, गयो सुरलोकें रुचि शाली ॥ जि ॥ २२ ॥ लहेशे एक नर अवतार, आदरशे संयमनार,, । होशे सिक्ष्विधू जरतार ॥ जि ॥२३॥ एम ए व्रत पाल्युं सार,आपे नव जलनो पार,जब क्षण तव ए गुण धार ॥ जि० ॥ २४ ॥ बधाडत्रीशमी । ढाल,कहे रामविजय उजमात,व्रतवंतने नमो त्रण काल ॥ जि ॥ २५ ॥ : इति नवमसामायिकत्रते सिंहश्रावक कथानकम् ॥ ए ॥ १५ ॥ ७ ॥ ॥अथ दशम देशावका शिकत्रतसंबंधः ॥
॥दोहा॥ ॥ वीजुं शिकावत हवे, व्रत दशमुं तेम जाण ॥ शांति प्रनुजी एम। कहे, नवियणने हित प्राण ॥ १ ॥ जावजीव दिशिविरतिद्वं, जे व्रत बहुं सार ॥ तेमांहे प्रतिदिन धारवो, संदेपें सुविचार ॥ ५ ॥ सर्व व्रत संदे ।' पथी,अथवा ए व्रत जाण ॥ मुदुत दिवस वली पदता,ए व्रतनुं परिमाण ॥ ३ ॥ यमुक्तं ॥ एग मुदत्तं दिवसं, राई पंचाहमेव परके वा ॥ वयमिह .. धारेह दढं, जावई यं उनहे कालं ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ एवं सघना व्रत नियमनो, प्रतिदिन करे संदेप ॥ चनद नियम संजारतां, संपतां निलेप ॥ ४ ॥ अतएव ॥ सञ्चित्त व विगई, वाहण तंबोल वह कुसु मेसु ॥ वाराह सयरा विजेवण, वंज दिसि न्हाण नसु ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ पंच अतिचार एदना, प्रथमानयन प्रयोग ॥ प्रेप्यप्रयोग बीजो वली, शब्दानुपाती तिम योग ॥ ५ ॥ रूपानुपाती चोयो कह्यो, पंचम पुगत देप ॥ दशमा व्रतमाहे कहे, श्री जिनवर गतलेप ॥ ६ ॥ गंगदत्त श्रा वकपरें, पालीजें निर्धार ॥ परंपरायें ए व्रत सही, शिवमुखन दातार ॥ ७ ॥ कहे चक्रायुध कुण विनो, गंगदत्त गुणवंत ॥ पर्षद वारे श्रागलें, जांखे श्री नगवंत ॥ ७ ॥
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. श्री शांतिनायनो रास खंम उद्यो. ३५ . . . ॥ ढाल गणचालीशमी ॥
॥रहो. रहो रे यादव दो घडीयां ॥ ए देशी ॥ सुपो सुपो रे प्राणी शीखडीयां ॥१०॥ अक्ष्य निधि जिनधर्म ए पामी,काहेकुं मागत नीरखडियां ॥सु ॥ ॥ ए आंकणी ॥ शंखपुरें गंगदत्त व्यवहारी, वास वसे गुन चोघडीयां ॥सु ॥ २ ॥ जिनवर धर्म करे मन शुद्धे, जाणे ए चिं तामणि जडियां ॥ सु० ॥ ३ ॥ देशावकाशिक एक दिन घरनु, लीधुं न निसलं शेरडीयां ।। सु ॥४॥ साथ बदु आव्यो जाणीने, मित्र आवी कहे धारडियां ॥॥५॥ साथै चलो बहु लाज होवेगो,कहे गंगदत्त मुज प्रारखडियां ॥ सु० ॥ ६ ॥ मित्र कहे व्रत काले करेजो, लान बदु बाज
सांपडियां ॥ सु० ॥ ७ ॥ कहे गंगदत्त ए लाज न लेखे, व्रत नवि बोडं ___पा घडियां ॥ सु० ॥ ७ ॥ धन पुजल बदु बेर मिलेगो, धर्म करो दिन रातडियां ॥
सु धाज अ व्रत देशावकाशिक.मूको विकथा वातडियां ॥सु॥१०॥ मित्र लही तस निश्चय निज घर,आवे उत्साह विषु अडवडि यां ।। सु॥११॥ दु प्रजातें निश्चय पूरो,करि थावश्यक पडवडियां ॥ सुप ॥ १३ ॥ साथमें श्रावे वणिज करणकुं, करियाणां बहु ढग पड़ियां ।। सु ॥ १३ ॥ लिये लाखोके माल मुलावी, उनमें लान बहुत जडियां ॥ सु० ॥ १४ ॥ चिंते सवि ए धर्म महातम, दरिक्ष उडी जाये ज्यु चिडियां ॥ सु० ॥ १५ ॥ लानके धनसें चत्यनक्ति उर, साहामीवत्स लस जुडियां ।। सु० ॥ १६ ॥ बदु दिन श्रावक व्रत प्राराधी, चाखत थनुनव सेलडियां ॥ सु०॥ १७ ॥ अंतें घासण करि सुरलोकें, विलसे अप्सर गोरडियां ।। सु० ॥ १७ ॥ ॥ एक अवतार करी लहि केवल, च डशे शिवपुर पावड़ियां ॥सु॥रा दशमा व्रत उपर ए जिनवर,कह्यो संबंध रसवे डिलयां।सु॥२०॥ गएचालीशमी खं ढाल सिराडे ए चड़ियां धातु ॥२१॥ राम कहे व्रतपालक नरकुं, नवनिधि श्रावी रहे खडियां।।सु० || २२ ॥ इति दशम देशावकाशिकवते गंगदत्तकथानकम् ॥१०॥१५३॥
॥थकादश पोपवतसंबंधः ॥
॥दोहा॥ ॥ त्रीजं शिक्षवत हवे, कहे जिनत्रिवन नारा ॥ व्रतमाहे चम्यारमुं, पापचवत मन स्याण ॥ १ ॥ पुष्ट करे जे धर्मने, यादरिय तिथि पर्व ।।
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
ते पोपचारातां, लहियें वांबित सर्व ॥ २॥ प्रथम पौषध आहारनो, देश सर्व दोय भेद || चोविहार निवी प्रमुख, तपथी कह्यो गतवेद ॥ ३॥ वीजो देह सत्कारनो, सर्वदेशथी जोय ॥ ब्रह्मचर्य पौषध तिमज, व्यापार तिम होय ॥ ४ ॥ पंच प्रतिचार एहना, वर्जो चतुर सुजाण ॥ नाम कहे प्रभु तेनां, शांतिनाथ भगवान ॥ ५ ॥ यत्सूत्रं ॥ अप्पडिले दिय डुप्पडिले दिय सिद्धा संथारए || १ || अप्पमजिय डुप्पमजिय सिद्धा संथारा ॥ ॥ चप्पडिले दिय डुप्प डिजेहिय उच्चारपासवणभूमी ॥ ३ ॥ अप्पमडिय डुप्पमयि उच्चारपासवरामी ॥ ४ ॥ पोसहोववासस्त सम्मं श्रणषु पालया ॥ ५ ॥ पूर्वदोहा ॥ ए व्रत पालंतां नल, सफल होय दिन रात ॥ श्रावक साधु जेहवो, निर्मल गुण अवदात ॥ ६ ॥ यक्तं ॥ सामा विय पोसहसं, तियस्त जीवस्स जाइ जो कालो | सो सफलो बोधवो, सेसो संसारफलहेक ॥ १ ॥ ए व्रत उपरें जिन कहे, जिनचं नो दृष्टांत ॥ चक्रायुध नृप सांनजे, जाव घरी एकांत ॥ ७ ॥
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॥ ढाल चालीशमी ॥
|| मेरे जीनमें लागी श्राशकी ॥ ए देशी ॥ सुप्रतिष्ठपुरमा दुवो नृप अनंतवीर्य बलवान रे ॥ रूपवती राणी मनमोहन, कमनीय कंत सुजाण रे ॥ १ ॥ नवि जीनमें व्रत गुण धारियें ॥ जेम सफल फले सवि यारा रे || एकमनां ए व्रत पालतां होय आनंद लील विलास रे || ज० ॥ २ ॥ श्रावक जिनचंद नामथी, तिहां निवसे निश्चलधर्म रे || सुंदर व्याकृति सुंदरी नामें करे गेहिनी गुन कर्म रे ॥ ज० ॥ ३ ॥ जिनमत शुद्ध जाणे जलो, जीवाऽजीवादिक तत्त्व रे ॥ समकित मूल श्रावक व्रत पाले, टाले मिथ्यामति तंत रे ॥ ज० ॥ ४॥ एक दिन पध लेइ वेठो, पोपधशाला मकार रे || सावद्ययोग पच्चरकाण करीने, एकमने निरतिचार रे || न० ||५|| इण अवसर पहेले सुरलोकें, हरि निरखे जिन चंद रे ॥ यहो हो धन धन एह महामति, एम प्रशंसे इंद रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ पूने तत्र सुर सेवक स्वामी, श्यो गुप्ण दीगे तास रे ॥ इंश् कहे पोसह व्रत एहनो, अविचल लीलविलास रे ॥ ज० ॥७॥ एक सुर मिथ्यावचन मिध्यात्वी करवा याव्यो ताम रे ॥ श्रावक जिनचंइपासें थावी, बहेन यह कहे आम रे ॥ ज० ॥ ॥ सूरज उदय का कीधो, सुप बांधव
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३ए · · गुणवंत रे ॥ नोजन दुलावी तुम कारण, पारणुं करो सत्यवंत रे ॥
रे ॥ ज० ॥ ॥ वचन सुणी मनमांहे विचारी, केम एम दुवो प्रत्नात रे ॥ धर्म ध्यानादिक करणीने, अनुसारे हजी रात रे ॥ ज० ॥ १० ॥ कारण कांइक ए संनवीयें,कौतुकवाली वात रे ॥ कोक देवतणी ए लीला, रखे चलतो तिल मात रे ॥ ॥ ११ ॥ मौन सही रहियो मनमांहे, धरि अरिहंतनुं ध्यान रे ॥ जीव रखे व्रत कर तुं काचुं, एम नांरव्युं श्री नगवान रे ॥ ॥ १२ ॥ मित्र. थइ कर लेइ विलेपन, वली सुगंधां फूल रे ॥ावी जनो जिनचं बागें, ग्रहो ए मित्र अमूल रे ॥०॥ १३ ॥ ॥ तुं मुफ जीवन हूं तुज वहालो, लाव्यो नक्तिने काज रे ॥ थं गीकार करो मुफ वाधव, जेम था सुखीया बाज रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ जिनचं चित्तमा एम विमासे, न घटे ए मुफ फास रे ॥ गंध विलेपन कु सुम ए खेतां, होय पोपध व्रतनाश रे ॥ न० ॥ १५ ॥ रही घणवोल्यो ध्याने विचारे, रखे धरे पुलाश रे ॥ मायाजालें म पड मनपंखी, कां थाय तृष्णादास रे ॥ न० ॥ १६ ॥ देवें जाए\ चित्त नवि चलीयु, करी तव पुरुपर्नु रूप रे ॥ तस कामिनी लइ जातो देखे, जिनचंद एह स्वरूप रे ॥ ज० ॥ १७ ॥ निजनारीनी विडंबन देखे, मृकावो प्राणनाथ रे ॥ पण ते ध्यानयकी नदि चूके,समरे एक जगनाथ रे ॥०॥१७॥ एम अनुकूलयकी नवि चलियो, तव सुर करे विकराल रे ॥ सिंह पिशा चादिक अति विसयां, रूप घणां ततकाल रे ॥ ॥ज ॥ १५ ॥ ते तिल मात्र न होन्यो मनमां,देखी जयंकर रूप रे ॥ देहनो नेह न राखे हृदयें, स्मरे एक शु६ स्वरुप रे ॥ ज० ॥ २० ॥ निश्चल जाणी प्रगट थइ तेसर नामे निज शीश रे ॥ जय जय तुं पहेले सुरलोके, स्तवियो थमारे ईश रे ॥ ज० ॥ २१ ॥ धन्य तुम्ही रुतपुण्य तुम्हालं, जीवित जन्म प्रमाण रे ॥ कहो मुज लायक कांइक कारज, शिर बढुं तुमची थाणरे ॥ ना ॥ २२ ॥ कहे जिनचं निरीह सुमतिधर, नहिं मुज लालच कोय रे ॥ जो कहो तो तो तिम करो जिम, शासन बन्नति होय रे॥ नम्॥ २३ ॥ अंगीकार करीने सुरवर, यात दिवस लगी सार रे । हामही सद जिनमंदिर, मां नक्ति उदार रे । न० ॥ २४ ॥ धूप कुनम बर गंध विलेपन, करे जिननति रसाल रे ।। पूजा सत्तर प्रकारनी विरची नाटक
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. ते पौधयाराधतां, सहियें वांनित सर्व ॥२॥ प्रथम पोपट पाहारनो, देश सर्व दोय नेद ॥ चोविहार निवी प्रमुख,तपथी कह्यो गतवेद ॥३॥ वीजो देह - सत्कारनो, सर्वदेशथी जोय ॥ ब्रह्मचर्य पौषध तिमज, अव्यापार तिम होय ॥ ४ ॥ पंच अतिचार एहना, व| चतुर सुजाण ॥ नाम कहे प्रनु तेहनां,शांतिनाथ नगवान ॥ ५ ॥ यत्सूत्रं ॥ अप्पडिलेहिय उप्पडिले हिय सिजा संथारए ॥१॥ अप्पमङिय उप्पमडिय सिझा संथारए । २॥ अप्पडिले हिय उप्पडिलेहिय वचारपासवणनमी ॥३॥ अप्पमडिय सुप्पमडिय उच्चारपासवपतमी ॥४॥ पोसहोववासस्त सम्म अण्णु पालगया ॥ ५॥ पूर्वदोहा ॥ ए व्रत पालतां जलां, सफल होय दिन रात ॥ श्रावक साधु जेहवो,निर्मल गुण अवदात ॥ ६ ॥ यक्तं ॥ सामा यिय पोसहसं, वियस्त जीवस्त जाइ जो कालो ॥ सो सफलो वोधनो, सेतो संसारफलहेक ॥ १ ॥ए व्रत उपरें जिन कहे, जिनचंश्नो दृष्टांत ॥ चक्रायुध नृप सांजले, नाव धरी एकांत ॥ ७ ॥
॥ ढाल चालीशमी॥ .. ॥ मेरे जीउमें लागी धाराकी ॥ ए देशी ॥ सुप्रतिष्टपुरमा दुवो, नृप अनंतवीर्य वसवान रे॥ रूपवती राणी मनमोहन, कमनीय कंत सुजाण रे ॥ १॥ नवि जीवमें व्रत गुण धारियें ॥ जेम सफल फले सवि आश रे ॥ एकमनां ए व्रत पालतां, होय धानंद लील विलास रे॥ नम् ॥ ५ ॥ श्रावक जिनचंड नामथी, तिहां निवसे निश्चलधर्म रे ॥ सुंदर आरुति सुंदरी नामें, करे गेहिनी गुन कर्म रे ॥ ज० ॥३॥ जिनमत शु- जाणे जलो, जीवाऽजीवादिक तत्त्व रे ॥ समकित मूल श्रावक व्रत पाले, टाले मिथ्यामति तंत रे ॥न ॥४॥ एक दिन पाप . ले। वेठो, पौपधशालामकार रे ॥ सावद्ययोग पञ्चरकाण करीने, एकमने निरतिचार रे ॥ न० ॥५॥ण अवसर पहेले सुरलोकें, हरि निरखे जिन चंड रे ॥ यहो थहो धन धन एह महामति, एम प्रशंसे इंद रे ॥ ना ॥ ६ ॥ पूरे तब सुर सेवक स्वामी,श्यो गुण दीठो तास रे ॥ इंश कहे पोसह व्रत एहनो, अविचल लीलविलास रे ॥ न ॥७॥ एक सुर मिथ्यावचन : मिध्यावी, करंचा थाव्यो ताम रे ॥ श्रावक जिनचंपासें श्रावी, बहेन . थइ कहे थाम रे ॥ ज० ॥ ॥ सूरज उदय धकालें कीधो, सुण बांधव
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श्री शांतिनाथनो रास खंग रहो. गुणवंत रे ॥ जोजन हुँ लावी तुम कारण, पार' करो सत्यवंत रे ॥ रे ॥ ज० ॥ ए ॥ वचन सुणी मनमांदे विचारी, केम एम दुवो प्रनात रे ॥ धर्म ध्यानादिक करणीने, अनुसारें हजी रात रे ॥ न ॥ १० ॥ कारण कांक ए संनवीयें,कौतुकवाली वात रे ॥ कोक देवतणी ए लीला, रखे चलतो तिल मात रे ॥ न ॥ ११ ॥ मौन सही रहियो मनमांहे, धरि अरिहंतनुं ध्यान रे ॥ जीव रखे व्रत कर तुं काचुं, एम नारख्यं श्री नगवान रे॥०॥ १२ ॥ मित्र था कर लेइ विलेपन, वली सुगंधां फ्रल रे ॥ आवी मनो जिनचंद यागें, ग्रहो ए मित्र अमूल रे ॥ न०॥ १३ ॥ ॥ तुं मुझ जीवन हुँ तुम वहालो, लाव्यो नक्तिने काज रे ।। अं गीकार करो मुफ वाधव, जेम था सुखीया धाज रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ जिनचं चित्तमा एम विमासे, न घटे ए मुफ फास रे ॥ गंध विलेपन कु सुम ए खेतां, होय पोपध व्रतनाश रे ॥ ज० ॥ १५ ॥ रही घाबोल्यो ध्याने विचारे, रखे धरे पुजलधाश रे ॥ मायाजालें म पड मनपंखी, का थाय तृष्णादास रे ॥ ज० ॥ १६ ॥ देवें जाएयु चिन नवि चलीयुं, करी तव पुरुपर्नु रूप रे ॥ तस कामिनीला जातो देखे, जिनचंद एह स्वरूप रे ॥ ज० ॥ १७ ॥ निजनारीनी विडंबन देखे, मुकायो प्राणनाथ रे॥ पण ते ध्यानथकी नवि चूके,समरे एक जगनाथ रे नि॥१७॥ एम श्रनुकूलयकी नवि चलियो, तव सुर करे विकराल रे ।। सिंह पिशा चादिक अति विरुषां, रूप घणां ततकाल रे ॥ ॥ न ॥ १५ ॥ ते तिल मात्र न दोन्यो मनमां,देखी जयंकर रूप रे ।। देहनो नेह न राखे हृदयें, स्मरे एक गु६ स्वरूप रे ॥ न० ॥ २० ॥ निश्चल जाणी प्रगट य ते.सुर नामे निज शीश रे ॥ जय जय तुं पहेले सुरलोके, स्तवियो धमारे ईश रे॥०॥ २१ ॥ धन्य तुम्ही कृतपुण्य तुम्हार, जीवित जन्म प्रमाण रे ॥ कहो मुफ लायक कांक कारल, शिर बढुं तुमची श्राण रे ।। जय ॥ २२ ॥ कहे जिनचं निरीह सुमतिधर, नहिं मुज लालच कोय रे ।। जो कहो वो तो तिम करो जिम, शासन गन्नति होय रे ॥ न० ।। २२ ॥ अंगीकार करीने नुरवर, यात दिवस लगी सार रे ॥ श्राइमहो
सच जिनमंदिर, मांगे जति उदार रे । न० ॥ २४ ॥ धूप कसम वर गंध विलेपन, करे जिननक्ति रसाल रे ॥ पूजा सनर प्रकारनी विरची, नाटक
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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
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नक्ति विशाल रे ॥० ॥ २५॥ प्रभु यागल नाचे ते सुरवर, थेइ थेइ शब्द कहंत रे ॥ तार तार करुणारससागर, जगतवत्सल जयवंत रे ॥ ज० ॥ २६ ॥ तुहि तत्त्व परमहितकारी, परमनक्तप्रतिपाल रे || देव निररंजन निरुपा धिक गुण, जय जय देव दयाल रे ॥ ज० ॥ २७ ॥ लोक सदू देखी चित हरख्यां धन जिनशासन एह रे ॥ जिहां एहवा प्रजुने दरवारें, नाचे देव सनेह रे ॥ ॥ २८ ॥ देव कहे चिंतामणि सुलहो, कल्पडुम सुरकुंन रे ॥ पल ए जैनधर्म प्रति लहो, लही सेवो निर्देन रे ॥ ज० ॥ २७ ॥ ये ए गुर शिवपद सुख शाश्वत, सुलि एमकेइ नविवृंद रे ॥ वृज्या धर्म नजी जिनव रनो, खाणी मन थानंद रे ॥॥ ३० ॥ करी प्रभावना शासन केरी, सुर पहोतो निज नाम रे || इंड्ने कहे जे तुमो परकाश्यो, ते नर गुणमलि धाम रे ॥ ॥ ३१ ॥ इणी परें पोपधत्रत व्याराधो, नवि चालीजें चित्त रे ॥ तो सुर शिवपद सुख पामीजें, कहे जगगुरु सुपवित्त रे ॥०॥३२॥ उद्वे
में चालीशमी ढालें, पोपवत्रत अधिकार रे ॥ रामविजय कहे एम व्रत निर्मल, पालतां नवनिस्तार रे ॥ ॥ ३३ ॥ इति एकादश पौषभवते जिनचं कथानकम् ॥११॥ सर्वगाथा ॥१५७८ ॥ श्लोक तथागाथा मली ॥ ७६ ॥ ॥ अथ द्वादश व्यतितिसंविभागत्रत संबंधः ॥ ॥ दोहा ॥
|| वे अतिथि संविभागनुं, द्वादश व्रत अनिराम || शिक्षाव्रत चोयुं सही कहे शांति भगवान ॥ १ ॥ लौकिक तिथि पर्वादिनो, जिणें वरज्यो व्यव हार ॥ जोजन का यावियो, यतिथि कहियें सार ॥२॥ उक्तं च ॥ तिथि पर्वोत्सवाः सर्वे त्यक्ता येन महात्मना ॥ अतिथि तं विजानीयावेपमन्यागतं विशुः ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ साधुयतिथि को श्राद्धने, तस निरवद्य श्राहार ॥ संविभाग कीजें जलो, इण व्रतें लहे नवपार ॥३॥ प्रथम यतिने ग्रापीने, पढ़ें बावरे याप ॥ मुनि न मले तो पण करे, दिशालोक गतपाप ॥ ४ ॥ यकं ॥ पढमं जई दाउरा, अप्पणा पणमिण पारेई || यस सु विडिया, नुजेश् य कय दिसालोई ॥ २ ॥ श्रन्यत्राप्युक्तं ॥ [श्रद्न्यः प्रथ मं निवेद्य सकलं संत्साधुवर्गाय च प्राप्ताय प्रविभागतः शुचिधिया दत्वा यथाशक्तितः ॥ देशात सधर्मचारिभिरलं, सार्धं च काले स्वयं, मुंजीत सुजाजनं गृहवतां पुष्पं जिनेवितम् ॥ ३ ॥ पूर्वदोहा ॥ पंच व्यतिचार
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श्री शांतिनायनो रास खेम व्हो. ३॥ एहना, सचित्त उपरें निदेप ॥ सचिनें तिम ढांके वली, बीजो कहे गत लेप ॥५॥ निजने अणदेवानगी, बुझे कहे परकीय ॥ मत्सर चोयो जिन कहे, कालातिकम होय ॥ ६ ॥ शूरपाल परें पालियें, ए व्रत निरतिचार ॥ पूछे चक्रायुध तदा,कहे जिन जगदाधार ॥ ७ ॥
॥ ढाल एकतालीशमी ॥ घरज घरज सुणोने रुडा राजीया होजी॥ ए देशी ॥ कहे जिन कहे जिन एहिज जरतमां होजी, नयर कंचनपुर नाम ॥ तिहां नृप तिहां नृप जित रिपु नामथी होजी, गिरुळ गुण धनिराम ॥ १ ॥ सुगुएरा सु गुण सनेहा सुपो वातडी होजी, कहे प्रनु शांति दयाल ॥ देता देतां हो दान सुपात्रने होजी, सवि सुख लहियें रसाल ॥ सु ॥ २ ॥ ए आंक एपी॥ तस घर तस घर राणी सुलोचना होजी, रमणी रुपनंमार ॥ तिहां एक तिहां एक महिपाल नामथी दोजी, कृत्रिय निवसे नदार ॥ सु० ॥ ३॥ करे नित्य करे नित्य कर्षण कर्मने होजी, तस घर धारिणी नार ॥ तेहनी तेहनी हो कुरखना उपन्या होजी, थंगज ते तस चार ॥ सु० ॥ ४ ॥ पहेलो हो पहेलो हो धीरपाल नामथी होजी, पच्ची पाल सुजाण ॥ देवपाल देवपाल त्रीजो हो जाएगीय होजी, गुरपाल चोयो वरवाण ॥सु०॥५॥ अंगज अंगज ए सोदामणा होजी,चारे चतुर वि नीत ॥ रू. रूपें हो अति रलियामणा हो जी, शेगवनाव व्यतीत ॥ सु० ॥ ६ ॥ यौवन योवन वय परणाविया होजी, चारेने वर नारी । पहे ली पहेलीहो चंमती सती होजी,कीर्तिमती सुविचार ॥४०॥७॥ त्रीजी त्रीजी हो शांतिमती नगी होजी, शीलमती गुणगेत् ॥ निजघर निजघर काम करे जला होजी, धरती अविड नेह ।। सु० ॥5एकदिन एकदिन चर्याकालमा दोजी, चारे महिपाल नंद ।। पादती पाठली रच पीयें उठीने हो जी, क्षत्रं गया सुखकंद ॥ तु ॥ ॥ तत तसवी तम कामिनी दोजी, नात लेने हो चार ॥ बाली चाली हो चतुरा चमकती दोजी, क्षेत्र नगी सुविचार ।। नु० ॥ १७ ॥ मारग माग्गमा यत्नयो दोजीचिटुंदिशियी जलधार ॥ गडगड़ गडगड ग्रन गाजे यां मोजी, चम्म यवमित्त धार ॥ सु०॥ ११ ॥ पवन पवन ककोले प्रति पणो होजी, फड़ी मामी रे चालार ॥ कंजुक कंचुक चीर नीनां घाण हो
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जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
जी, तव ते चतुरा हो चार ॥ सु० ॥ १२ ॥ वडतलें वडतलें याची उनी रही होजी, घहेरी जेहनी हो बाय ॥ टप टप जल बिंडु चूवे होजी, वाये शीतल वाय ॥ सु० ॥ १३ ॥ वात करे बात करे उनीथकी होजी, मानिनी हसि हसि तेह || एहवे एहवे हो महिपाल पूतथी होजी, खाव्यो तिहां ससनेह ॥ सु० ॥ १४ ॥ जातां जातां हो क्षेत्रनणी तिहां होजी, मार्गे जलदने जोर ॥ ते पण ते पण वडतरुने तलें होजी, बानो रह्यो एक ठोर ॥ सु० ॥ १५ ॥ उथें उथें रहीने सांभले होजी, ते वदूध रनी रे वात || विजन विजन लहीने निराकुली होजी, पहेली बोले निश्चिंत ॥ सु० ॥ १६ ॥ अवसर अवसर याज मल्यो जलो होजी, कहो मन जे दुवे इष्ट || माही माही मापण केलवी होजी, वढूार वोले कनिष्ट ॥ सु० ॥ १७ ॥ सुपियें सुलियें हो एवं संसारमां होजी, वाडीने पण दुवे कान || न घटे न घटे स्वनावनुं नांखतुं होजी, मुफ मनमांहे ए शान ॥ ० ॥ १० ॥ यतः ॥ दिवा निरीक्ष्य वक्तव्यं, रात्रौ नैव च नैव च ॥ संचरति महाधूर्त्ताः, वटे वररुचिर्यथा ॥ ४ ॥ पूर्वदाल || बोले बोले हो चंद्रवती तिहां होनी, नहिं इहां कोइनो प्रचार ॥ गोष्टि गोष्टि करीजें दिल खोलीने होजी, मुकने हर्ष व्यपार ॥ सु० ॥ १७ ॥ कहे तब कहे तब शीलवती सती होजी, कहो अनुक्रमें तुमें एह ॥ वारक वारक या वे माहरे होजी, बात कहिश ससनेह ॥ सु० ॥ २० ॥ पहेली पहेली कहे मन माहरे होजी, घृत ताव्युं ततकाल ॥ जो जले जो जले प्रि चट कप्णमां होजी, तो जमुं थइ उजमाल ॥ सु० ॥ २१ ॥ वली तेम वली तेम शिराववी जली होजी, सुंदर दहिंने संयोग || मालती मलती हो घ्याम्रकचूरिशुं होजी, जोजन ए देवयोग ॥ सु० ॥ २२ ॥ वीजी बीजी हो कीर्तिमती कहे होजी, सुलो मुऊ मननी रे याश || बहेनी बनी हो होंश हिडे रहे होजी, कहियें कोने एजास ||सु०॥ २३ ॥ साव साव दूध खीर खांशुं होजी, मांगा सुंदर जोडि ॥ सरहां सरहां घृत शाल दालगुं होजी, मुफ जीमणनो रे कोड ॥ सु० ॥ २४ ॥ त्रीजी त्रीजी हो शांतिमती कहे होजी, मुऊ मोदकनी रे धारा ॥ व्यवर व्यवर बली सुखनहिका हो जी, मुफ मन जावे मिठाश || सु० ॥ २५ ॥ वतुं वन तुं हो शीलवती वदे होनी, नहिं मुफ जोजन प्रेम ॥ खाधुं खाधुं हो
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श्री शांतिनायनो रास खंग बठो.
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वेसी रहे नहिं होजी, सुपो: मुफ मनमांहे एम ॥ सु० ॥ २६ ॥ नाही नाही हो निर्मल नीरगुं होजी, चंदन चर्चित अंग || पहेरी पहेरी हो वसन सोहामणां होजी, भूषण नूपित चंग ॥ सु० ॥ २७ ॥ मांझ्या मां मया हो थाल सोहामा होजी, कनक कचोलां रे मांहे || पिरसुं पिरसुं मुसर जेठ कंतने होजी, नोजन मनने उत्साह || सु० ॥ २० ॥ पोपी पोपी हो गृहनन सर्वने होजी, देइ दीनादिक दान || केहें कैडे हो निकुत्सित जे रधुं होजी, प्रशन ने वली पान ॥ २५ ॥ जमतां ज मतां ते जोजन मुज मनें होजी, होवे हर्प अपार || नांख्यो नांख्यो हो व्यनिप्राय आपणो होजी, शीलवती तिए वार ॥ सु०॥३०॥ निसुणी निसु पी हो कान मांगी करी होजी, सुसरे सघली रे वात || त्रिदु जी त्रिदुजली फरि बोले तिहां होजी, नवली ताहरी रे धात || सु० ॥ ३१ ॥ श्रापण
पण कौटुंबिक घरें होजी, प्रशनादिक रे फुलंन ॥ वसन वसनप्रानृपण चातडी होजी, करवी एह प्रचंन ॥ सु० ॥ ३२ ॥ करिये करिये मनोरथ एहवो होजी, जेहत्र्यापणुं नाग्य || कर कर हो कपेण कर्मनुं होजी, किहांथी एह मिले लाग ॥ सु० ॥ ३३ ॥ चिंते चिंते महिपाल मनमां होजी, मुऊ घर नारी कुहाड ॥ जोजन जोजन वढूने छापे नहिं होनी, न सरे मननी रुंहाडि || सु ॥ ३४ ॥ घर जइ घर जड़ने निज नारीने होजी, समजाविश सुविचार ॥ पृरिश पूरिश ए त्रिदु बहूना दोजी, मन चिं तित रे याहार ॥ सु० ॥ ३५ ॥ बोले बोले समंजस बोलडा होजी, चोथी वहू कम जात || केवल केवल एहने पूर्खु हांजी, कुल्लित नंदन जात ॥ ० ॥ ३६ ॥ विरमी विरमी हो वृद्धि गइ क्षेत्रमां होजी, बहू थर ते गुणवंत ॥ यावी याची महिपाल नारीने होजी, वान कही सवि नंत || सु० ॥ ३७ ॥ कहिने कहिनँ गयो निज क्षेत्रमा दोजी, जुनो नावीस बंध ॥ न तेन टले हो टालो कोइनो हो जी जी करें कोटि प्रबंध || सुनाश्ता संग म ब दाल ए नणी दोजी, एकतालीशमी सार ॥ राम राम कहे जग दोहिला होजी, गुणना जाणणहार ॥३१६माणा ॥ दोहा ॥
॥ बर जब वेला घई, तब यावी निज घेर | सालये पहेली करो, ते नोजननी पेर ॥ १ ॥ जमवा बेलारी नवे सदर ||
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४०२ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. नोजन पिरसे नावतां, धापी आनंदपूर ॥ ॥त्रणे जपी मन चिं तबे, मन चिंतित थाहार ॥ केम मलियो अणचिंतव्यो, ए थयो क . वण प्रकार ॥ ३ ॥ शीलवतीने सासुयें, पिरस्युं पाणी कदन्न । पंक्ति नेद जाणी करी,विलखं थयुं वदन्न ॥॥ में काही विणसाड्यं नहिं न लही. कारणहि ॥त्रणे जणी पण चिंतवे, खोटी सासु बुधि ॥ ५ ॥ जमी .. उठी चारे जणी, पण मन विस्मय नारि ॥ पुनरपि कारजने वशे, चाली. देत्र मजार ॥ ६॥
॥ ढाल वहेंतालीशमी ॥ ॥ सुग्रीव नयर सोहामणुं जी ॥ ए देशी ॥ मारगमाहे चिदु जपी जी, करती एम विचार ।। मन गमतो आवी मल्यो जी, पापणने आहार , रे ॥१॥ वहेनी,ए थयो कवण प्रकार ॥ चिंतित फलियुं सार रे ॥ ७ ॥ ए ॥ ए थांकणी ॥ शीलवतीने सर्वे कहे जी, चिंतित सरिखं रे थाय ॥ तें कदशन जो चिंतव्युं जी, तेवु मलियुं प्राय रे ॥व० ॥ २ ॥ कीजे मनोरथ महोटको जी, तुन न धरिये रे चित्त ॥ शीलवती कहे सांजलो जी, शी ए वात विचित्र रे ॥ ३० ॥ ३ ॥ जोजन सार असार नो जी, उदरें एकज नाव ॥ { फूलो नोजन सही जी, शो ए तुम्ह स्व नाव रे ॥व० ॥ ४ ॥ मन गमतुं जब माहरे जी, थाशे कारिज तेह ॥ लेखे जनम तब धाव जी, म म घरजो संदेह रे ॥ ब० ॥ ५ ॥ नि त्यप्रत्ये नोजन जावतां जी, पीरसे सासु रे तास ॥ तब त्रिदुजपीने . जीमतां जी, मनमां दुइ विमास रे ॥ व ॥ ६ ॥ पूढे सासूने किस्यो । जी, शीलवतीनो रे दोप ॥ जोजन थंतर एवडो जी, नवि की धरि शो . परे ॥ ३० ॥ ७ ॥ कहि सास्ये मूलथी जी, वडनीचे करी जेह ॥ वा त सुपीने सा दुई जी, म्लानमुखी गुणगेह रे ॥॥॥ नित्य प्रत्यं रहे ते फूरती जी,न वले तननो रे वान । मुख करमाएं फूल स्युं जी,पामी ते अपमान रे ॥व०॥ यतः ॥ चितान्योऽप्यधिका चिंता, लोके जानामि निश्चितम् ॥ चित्ता दहति निर्जीवं,चिंता दहति सजीवकम् ॥१॥ पूर्वढाल ॥ एक दिन कंतें पूर्वायुं जी, कां तुं उर्बल काय ॥ शी तुझ चिंता उपनी जी, मुझ मन धारति थाय रे ॥ वहाली, ए थयो कवण प्रकार ॥ १०॥ . ढलक ढलक यांस ढले जी, कां एवढी दिलगीर ॥ नीलामो नारखी कहे
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श्री शांतिनायनो रास खंम हो. ४३ जी, यांस लूही चीर रे ॥ व ॥ ११ ॥ वात सवे मांझी कही जी, धुर हूंती आमूल ।। गुरपाल मनमा ययो जी, वात सुणी प्रतिकूल रे ॥ २७ ॥ १२ ॥ यहो गुणवंती ऊपरें जी, एहवो अनादर नाव ॥ निर्गुण मुक माता पिता जी, जे विपरीत स्वनाव रे ॥ व ॥ १३ ॥ एह मनो - रथ अति जलो जी, यागन ए अनुसार ॥ थाझे सदु नारीशिर जी, ए महारी घरनार रे ॥ व ॥१॥ ते माटें देशांतरें जी, जय मेधुं धन कोडि ॥ थोडे दिवसें नारीना जी, पूरुं वांठित कोड रे ॥ व ॥ १५ ॥ एम चिंती कहे नारीने जी, जाइश हूं परदेश ॥ तुज मनोरथ पूरवा जी, मत मुख धरे लवलेश रे ॥ १६ ॥ स्वामी, तुम विपु घडी रे मास ॥ ए अकए। ॥ शीलवती कहे साहिबा जी, वहालेसर अवधार । तुमें चाले देशांतरें जी, मुझने कोण आधार रे ॥ स्वामी० ॥ १७ ॥ सा त जनुं पण सासरूं जी, पीयर तेम मोशात ॥ पण प्रीतम विना नारी नी जी, न लिये कोई संजाल रे ।। स्वा० ॥ १७ ॥ यौवन जर मुझ देह डी जी, दोषी लोक अनेक ॥ वालम परदेशे चले जी, करि पग पग मुज ठेक रे ॥ स्वा० ॥१॥ यलगीन रहुँ अध घडी जी,यावीश तुम संघात ।। गया थलगी नवि रहे जी, देहयकी तिल मात रे ॥ वा ॥ ५० ॥ कहे प्रीतम सुण कामिनी जी, तुझ पाने मुज प्राण ॥ अंतर नहिं तुफ मुक विचे जी, मुंदरी मुगुणनिधान रे ॥ वहा ॥ १ ॥ पगबंधन परदेशमा जी, केम सचवाये नारी ॥ ते मार्ट मंदिर रहो नी, द्यो श्रादेश विचार रे ॥वहा०॥२२॥ ना कहेतां रूईनहिं जी,जाकहेतां निःस्नेह ॥ जाम जा एम कटुंजी, उदासीन पद एह रे ॥ स्वा० ॥ २३ ॥ नयरों जल चा व्यां वही जी, हियाई न धरे रे धीर ॥ शी गति दोशे मादरी जी, नगदसरा वीर रे ॥ स्वा० ॥ २४ ॥ तुमें गुणवंता नाहना जी, जिहां जा शो तिहां इति ॥ रखे मुझने वीसारता जी, पियु पामीनब निधि रे ॥ ला० ॥ २५ ॥ सुण सुंदरी नवि विसरे जी, तुझ गुए बानिया रे चिन !! चिन गपंदा मावतां जी, उतरे नदि कपांत रे ॥ सा ॥ २६ ॥ तुम याचे ए नोटको जी, कंचुक वेणीयंध ॥ एम प्रतिद्वा न्यादरी जी. महोटी मोर प्रतिबंध रे ॥ ला ॥ २३ ॥ मुगुण बन्दा सादिवा जी. बदलान। बालोद ॥ मुंगरजीवी जीवजो जी, बर व्यं फजजोद में ला "
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जैनकथा रत्नकोप नाग प्रातमो २ ॥ नारी मनावी निसयो जी, मंदिरथी शूरपाल ॥ खड्ग लेइ एकण दिशे जी, हवे जुवो नाग्यविशाल रे ॥ स्वा० ॥ श्ए ॥ बहेंतालीशमी - " ढालमां जी, नर नारीने रे राग ॥ परदेशे एम नीसयो जी, आगल फलो नाग्य रे॥स्वा॥३०॥ सर्वगाथा॥१६६॥ श्लोक तथा गाथा मती ॥१॥ -
॥दोहा॥ ॥ शीलवतीमन मुख धरे, पियु चाल्यो परदेश ॥ हडकूदण लागी हिये, . रति न लहे लवलेश ॥ १ ॥ स्वोचित गृहकारज करे, पण मन चिंता वंत ॥ दण दण हियडे सांगरे, शूरपाल निज कंत ॥ ५ ॥ मात पिता । ये पूनियु, किहां गयो सुत शूरपाल ॥ सऊन सदु को एम कहे, नहिं ते : हनी कांई नाल ॥ ३ ॥ शोध करी तेहनी घणी, मात पिता तेणी वार॥ पण किहांय लाध्यो नहिं, धरे मन खेद अपार ॥ ४ ॥ करे मांहोमांदे मंत्र', केरों उहावियो तेह ॥ जे एम रीसावी गयो, कोश्क कारण एह ॥ ५ ॥ आपण उहावियो नहिं, ते कनिष्ठ गुणगेह ॥ सदुने वाहालो । जीव जेम, केम तेणें दीधो वेह ॥ ६ ॥ पूजे शीलवती जणी, नई तुज सं घात ।। झुं रीसापो वनहो, ते दाखो अम वात ॥७॥याण न लोपी' कंतनी, में काई तिजमात्र ॥ पण मुफ वेणी ए वनहे, हाथे गूंथी रात्र। ॥ ७ ॥ कयुं मुजने आव्या विना, नवि बोडेवी वेण ॥ वीजें कां जाएं। नहिं, कयुं मुफ कारण केण ॥ ५ ॥
॥ढाल तालीशमी॥ ॥ नारी रे निरुपम नागिला ॥ ए देशी ॥ वात सुणी रे करे मंत्रएं, बांधव मली माय ताय रे ॥ यापण किणे उहव्यो नहिं, केम गयो एम ... रीताय रे ॥१॥ हा शूरपाल तुं किहां गयो,मोहें कहे एम माय रे ॥ तेम महिपाल पण वसवले, हियडलांयाव्यां जराय रे ।।दा ॥ १ ॥ बांधव बिदु एम चिंतये, नारी के अपमान रे ॥णे न सहेवाणु रे बांधचे, ग यो मन धरि अनिमान रे ॥ हा० ॥ ३ ॥ जननी जनक धन बंधुने, त जे पत्तकमांहे सोय रे ॥ न सहे तूंकार कोइनो वली, मानधन जे ज ग होय रे ॥ दा० ॥ ४ ॥ ए परानव सहि तेदने, जे कन्यो रे तस ना रीरे ॥ मानवन पुरुप सांखे नहिं नारी अपमान निधार रे ॥ हा० ॥५॥ विरहातुर घणुं दुःख नयां, नवि सहि बांधवशोध रे ॥ जेम अति क्लेश!
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श्री शांतिनाथनो रास खेम बहो. ४५ नवि लहे, प्रथमगुणवाणीया बोधि रे॥ हा ॥ ६ ॥ हवे शुरपाल ते 'चालीयो, जोवतो गिरि वन नाम रे ॥ अनुक्रमें नयर एक आवियु, महा शाल जेह नाम रे ॥ हा ॥ ७ ॥ जंबुतरु हेवल विश्रम्यो, वसन ना खी धरापीठ रे ॥ शयन कीg अमातुर जणी, उघ यावी अति मीठ रे - ॥ हा ॥ ॥ तास प्रनाव तरुनायडी, तेम रही दिवस मध्याह्न रे ।। अहो थहो पुण्य प्रगट दुयुं, ते सुपो सदु सावधान रे ॥ हा ॥ ए ॥ ते ह नगरी तयो राजियो, काल पहोतो ततकाल रे ॥ पंचदिव्य मंत्री य विवालियां, पुरमाहे फरे उजमाल रे ॥ हा० ॥ १० ॥ जाग्यने योगें ति हां थावीया, पोढीयो जिहां शूरपाल रे ॥ हाथीय कलशलो ढालियो, जागीयो जाग्यविशाल रे ॥ दाम् ॥ ११ ॥ हरखी हेपारव हब करे, चा मर बत्र धरंत रे ॥ गजवरें खं| वेसारियो, बंदीजन विरुद्ध उजरंत रे ॥ हा० ॥१२॥ सर्व सामंत श्रावी नम्या, देखीयो लणवंत रे ॥ स्वामी श्र मनाग्य बल ए कयुं,मलीयो तुं गुणवंत रे । हा०॥ १३ ॥ धाविया बहु तथावरे, वाजते हर्प निशाण रे ॥ स्वामी अमचा घणुं जीवजो, वरस कोडाकोडि मान रे ॥ हा० ॥ १४ ॥ एम थाशीप दिये गोरडी, धवल गा ती सुकुमार रे ॥ करिव अनिपेक बेसारियो, तरन्त कपर ततकाल रे ॥ दा० ॥ १५ ॥ वखत फलियो बलें वाधीयो,सीमना सविनम्या राय रे ॥ सवन धरा धिंग यइ जोगवे, प्रवल जस पुण्य सरवाय रे ॥ दा० ॥ १६ ॥ एक दिन नारी तस सोनरी, निसयो जेहने काजरे ॥ स्वजन सद्धको वलीसांनयां, चिंतवे एम नरराज रे ॥हा॥ १७ ॥ मादरी प्राथ श्या कामनी, जोगवू एकलो ग्राम रे ॥ पूरखं जो नहिं नारीनां, सकल मनोवांवित काम रे ॥ हा० ॥ १७ ॥ यतः ॥ किं तया क्रियते लक्ष्म्या , विदेशागतया ननु । धरयों यां न पश्यति, बंधुनियों न नुन्यते ॥ १ ॥ पूर्वदास ॥ एम चिंती नृपं दाय, लल्यो निजनारीने लेन्ज रे ॥ राज्य पाभ्यो पाग ताहर. पामीश सुख मुख देखि रे॥हा० ॥ १ ॥ लेख यापी नृपं मोकल्या, सेवको नेडया काजरे ॥ तुरत करनपुर ते गया. स्वागताधाविया बाज॥दा ॥ २० ॥ पण महिपाल जाधों नहिं, को एक नयग्ने लोक ॥ काज निक्षमा ने गयो. हायसी घरि मन भाकरे ॥ हा ॥ २१ ॥ तह सह कुटुंब किदां गयां, खबर नहि
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४०६ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. '
हां कोई तास रे ॥ एम सुणि तेह वलिया सवे, याविया नृपतिपास - रे ॥ हा ॥ १२ ॥ वात सुगी राय विलखो थयो, चिंतवे चित्तमा एम रे ॥ अहो अहो माहरां सयण ते, वरततां दशे कहो केम रे ॥हा॥ . २३ ॥ राज्य पाम्यो पण रति नहिं,सांनली सयणर्नु मुख रे ॥ एह वेदण" रहे थति घणी,जुन जुन कर्म अति तिरक रे ॥हा॥२४॥ खम बछे कही क मनी, अनवगति ढाल ताल रे ॥ राम कहे सांजलो हवे कहूँ, जे लघु ते । महिपाल रे॥हा॥२५॥ सर्व गाथा॥१६ए॥श्लोक तथा गाथा मली॥
॥दोहा॥ ॥जिण वरसें ते नीलस्यो,गेहथकी शूरपाल ॥ तेहथकी बीजे वरस,काठो पड्यो कुष्काल ॥ १ ॥ मूलथकी वूतो नहीं, पड्यो काल विकराल ॥ ज़रि लोक क्ष्य नीपन्यो, वहेचे नूखें वाल ॥ २ ॥ मारग संचर दुवा, फरे तस्करनां बूंद ॥ नूरव्या नर ना करे, मानवप्रत्ये घबद ॥३॥ कप्टथकी पामे तिहां, मुनिवर पण आहार ॥ रंक मला लिये कँटीने, एहवो हाहाकार ॥॥ परणी पण तरुणी तजे,निःस्नेहीजरतार ॥ नेहरहे नहिं कोश्नो, न पले निज प्राचार ॥ ५॥ गति मति सवि जाये गली, एहवो जाणी काल ॥ निजकुटुंब लेइ नीसखो, मंदिरथी महिपाल ॥ ६ ॥
॥ ढाल चुम्मालीशमी ॥ ॥ हो सायर सुत सोहामणा ॥ ए देशी ॥ दो महिपाल परिवारा, प रिवारयुं रे हो नीसरियो परदेश ॥ हो संबल नहिं एक दिवसनो,एक दिव सनो रे हो नहिं समाधि लवलेश ॥१॥ निजकृत्य आगे रे कोइ बलीयो नहीं रे॥ ए श्रांकणी॥ हो गाम नयरपुरमा जमे, पुरमां जमे रे हो कोण दिये श्रावकार ॥ लोक कहे परदेशीया, परदेशीया रे हो कना न रहो इण तार नि०॥शाहो शून्य मंदिरयावी रहे,आवी रहे हो जुरख्यां नजाये रात ॥ हो निंद न श्रावे नयणले,नयणले रे हो उसी चले प्रनात ॥ नि० ॥ ३ ॥हो पंथे पग चाले नहीं, चाले नहिं रे हो सानले कुवचन तास ।। करे गुजरान फल फूला,फल फूला रे हो चिंते चित्त उदास । नि० ॥ ४ ॥ हो केम कुटुंब जीवाडगुं. जीवाड' रे हो नहिं कोडी पेदास ॥ सूरज उग्ये उतीने, उ जतीने रे दो करवी परनी याश ॥नि०॥५॥ दो जेमतेम करतां अनुक्रमें, अनुको रे हो थाच्या पुर महाशात ।। लोक वमे सुखीयां घणां, सुखीयां
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ४ घणारे हो देखी थयां उजमाल ॥ नि० ॥ ६ ॥ हो करे पुरमा बाजी विका, श्राजीविका रे हो चाले सुखें गुजरान ॥ शीलवती कारन करे, कारज करे रे हो पति विषु न जहे मान ॥ नि ॥ ॥ हो एक दिन सास एम कहे, एम कहे रे हो जीरण कंचुक कतार । वेपी बोडाच तुं शिर तणी, शिर तणी रे हो कहेण न माने लगार ॥ नि ॥ ॥ हो सासू ससरो थाक्यां कही, याक्यां कही रे हो पण ते हठीली नाण ॥ हो थइ सहुने अलरखामणी, अलवामणी रे हो कर्म करे ते प्रमाण ॥नि ॥ ॥ हो पतिविरहें या दूबली, दूबली रे हो बीज चांदनीया रेत् ॥ हो ण ण प्रीतम सांजरे, सांगरे रे हो साले नवल सनेह ।। नि ॥ १० ॥ हो मुखहूंती बोल्ने नहि, बोले नहिं रे दो करे सविशेषु काम ॥ हो कुलला राखे जली, राखे नली रे हो शीलवती निज माम ॥ नि ॥ ११ ॥ हो हवे सुपो ते पुरराजीयो, राजीयो रे हो शूर पाल अनिधान ॥ लोक सहू हितकारणे, कारणे रे हो सरोवर मांमधु सुजाण ॥ नि ॥ १२ ॥ हो निर्धन जन थावे घणां, थावे घणां रे हो तिहां कणे करवा काम ॥ स्थित लोक मजरियां, मजुरीयां रेहो पामे खासा दाम ॥ नि० ॥१३॥ होचात नगरमां विस्तरी, विस्तरी रे हो थयों जापी रोजगार ।। हो महिपाल पण यावीयो, श्रावीयो रे हो लेई साधे परिवार ॥नि ॥ १४ ॥ हो करे रोजगार मजूरनो, मजुरनो रे हो उदरभरण सुरखें थाय ॥ हो वान बल्यो वेला वली, वेता वली रे हो दिवस सुरखें तस जाय ॥ नि ॥ १५॥ हो एक दिन गज चढी रा जीयो, राजीयो रे हो सरोवर जोबा काज ।। हो तेजी तुरिय पलाणिया, पलानिया रे दो साथै सबलो साज ॥ नि ॥ १६॥ हो नवरंग नेजा फरदरे, फरहरे रे दो नोचन धुरे रे निशाण ॥ हो पइ थस्वार ते या चीयो, श्रावीयो रे हो जाला फलदल जाण ॥ नि ॥ १७॥ दो गज बंधे चढ्यो राजवी, राजवीरे दो कनी मुनटनी कोहि ॥ हो कोम जरी मजुरीयां, मजरीयां रे दो चाप धरी मन कोड ॥ नि० ॥१७॥ को निरबले नजरें निहालाने. निदालीने रे दो तय दौठो महिपाल । हो शीलवती बीवी प्रिया, टीजी प्रिया रे हो चली चिरहनी जाल पनि Hit हो परनरने निग्ये नहिं, निगरचे नहिं में दो शीलवती सुकुमार न
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។ ចq जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. जर न मांमे कोइगुं, कोयुं रे हो काम करे उजमाल ॥ नि ॥२०॥ हो बांधव माता तेम वली,तेम वली रे हो करतां देखी काम ॥ थइ दिलगीर मन चिंतवे,चिंतवे रे हो मुज कुटुंब थयुं धाम ॥ नि ॥ २१ ॥ हो कर्म । कमाइ जोगवे, नोगवे रे हो नहिं हां कोइनो चार ॥ हो गर्व म करशो मानवी, मानवी रे हो खोटो अथिर संसार ॥ नि० ॥ २२ ॥ हो राय .. कहे पंचकुलप्रत्ये, कुलप्रत्ये रे हो \ लहे कर्म करे एह ॥ रूपक एक . दिन दिन प्रत्ये, दिन दिन प्रत्ये रे हो पामे एम कहे तेह ॥ नि ॥ २३ ॥ हो साहिब तुमची आणथी,आणथी रे हो मध्यम आहे रे थाहार ॥ कहे नृप कुटुंब उद्देशिनें,उद्देशिने रे हो पंचकुलने तेणि वार नि॥४॥ दो ए माणस घणां कामनां,कामनां रे हो करे मजूरी खास ॥ हो वमणुं वधतुं एहोने, एहोने रे हो यो जेम वधे उल्लास ॥ नि ॥२५॥ यतः ॥ साध्व - साधुजने स्वामी, निर्विशेपो यदा नवेत् ॥ तदा साधुगुणोत्साहः, साधो रपि न वईते ॥१॥ पूर्वढाल हो जात उत्तम देवु वली,देवु वली रे हो प्रनु आदेश प्रमाण हो कहे तेडीमहिपालने,महिपालने रे हो कहे अम तुग्यो राण ॥नि॥२६॥ हो करि सलाम मुखें उच्चस्यो,उचयो रे हो महाप्रसाद महाराज ॥ ते पण तेमहिज मुखें कहे, मुखें कहे रे हो सीध्यां वांछित काज नि॥२७॥ हो पहिपालने नृप कहे,नृप कहे रे हो केता तुम थंग. जाताहोते कहेसाहिब माहरी,माहरी रे हो सांजन सघलीवातानि॥२॥ हो चार तनय प्रनु माहरे,माहरे रे हो वदूधर तेहनी ए चार ॥ एक गयो परदेशमां, परदेशमां रे हो रीसावी निर्धार ॥ नि० ॥ २७ ॥ हो ते प्रमने वहालो घणुं,वहालो वणुं रे हो तो जीवन प्राण ॥ हो ते परदेश गया पठी, गया पढी रे हो दुवां अमे घाणुं हेरान ॥ नि० ॥ ३० ॥ हो कोण नगरथी धाविया, यावीया रे हो कंचनपुर थमवास ॥ हो तुऊ वाया आवी रह्या, भावी रह्या रे हो सुण साहिव अरदास ॥ नि ॥ ३१ ॥ हो कहे नरपति महिपालने, महिपालने रे हो ए लघु बहू अम गेह ॥ तक लेवाने मूकजो, मूकजो रे हो मत करजो संदेह ।। नि० ॥ ३२ ॥ हो नृप निजमंदिर आवियो, भावीयो रे हो एम कही तस अादेश ॥ लोक तह विस्मय लयां, विस्मय ब्रह्मां रे दो श्रव रिज एद विशेष ॥ नि० ॥ ३३ ॥ हो कोइ साथै बोले नहीं, बोले नहीं
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श्री शांतिनाथनो रास खंमनछोए .. रे हो थापणो ए राजान॥दो एह कर्मकर नपरें, नपरे रे दो एवई केमस
न्मान ॥ नि ॥ ३४ ॥ हो चुम्मालीशमी ढालमां. ढासमां रे हो प्र कव्यो पुण्य विलास ॥ हो रामविजय कहे सांजलो, सांजलो रे हो मन माहे धरि उन्नास ॥ नि० ॥ ३५॥ सर्व गाया ॥ १७३५ ॥ लोका७ि३॥
॥दोहा॥ . ॥ घर आवी सुसरो कहे, शीलवतीने एम ॥ जीरण कंचुक परहरी, पहेर नवो धरि प्रेम ॥ १ ॥ जातां नृप भावालमां, पोसाये निर्धार ।। एक नूर कह्यो श्रादमी, कपई नर हजार ॥ ३ ॥ पण नदि माने ते कहण, सतां सुखमांहे राति ॥ बास लेवाने मोकली, ते कग्ये परनात ॥३॥ राजनुबन ऊनी रही,नूतन जाणी तास । प्रतिहारिणी तब जइ, नृपने करे घरदास ॥ ४ ॥ नृप श्रावी कहे तेहने, कां तुज एहवो वेश ।। जीरण कंचुक केम धरे, लाजे नहिं सुविशेष ॥ ५ ॥ लाजें नीचे जोवती, नवि बोले ते लगार ॥ कंतें सूधी उलरवी, सती शीरोमणि लार ॥ ६॥ राजायें देवरावी, गोरस वदुर्बु तास ॥ यावी मंदिर लेश्ने, धरती अंग उनास ॥ ॥ बीजे दिन तेमहिज गइ, शीलवती नृपगेह ।। नृप कहे मुफ अर्पित ग्रहो, वारवाण धरि नेह ॥ ७ ॥ ते न लिये तब रो पी, बोल्यो राजा एम ॥ कहेण न मानिश माहरूं, तोनहिं तुजने हम ॥ ॥ ॥ सा बोली सुंदर अहव, दोय असुंदर देव ॥ पण निचे खं नहि, जीव जाय नित्यमेव ॥ १० ॥ यतः ॥ श्रावातु यातु लक्षीचा, पत्ता चदता ऊनः ॥ जीनितं मरणं चाऽस्नु, सतां धर्मान्न विध्युतिः ॥ ॥ १ ॥
॥ दाल पिस्तालीशमी ॥ ॥मानां दरजणनी लंकानो राजा ॥ए देशी । कत्रिम कोप की कहे रे.मेचकने तब ज़प ॥ यापनमाने मादरी,ए नारीनुं अफल स्वरूप रे ॥१॥ .. दियडानी बातो,नृप रीज्यो रे ए निरखी धातो, मन मानी र मनमानी ए नारी सुजातो. रे हियडानी बातो ॥ एयांकणी ॥ देयों ए कारागारमा रे यजर न करो शान ॥ नृपयाणा निनुपी धन्या, इ चाव्या के रत दिवाज दिए ॥ २॥ पण न चली निज चिनी, गीजवनी गुणवंत ॥ नुष्ट २ पानी तिहां नडाचे ने निज कंन ।
दिन व कारा प्रिये. नवि मृक गारवाण ॥ चरुप्यकारफ, एहकैम
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--MIRRORARoman. ...
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जैनकथा रत्नकोष नाग प्राठमो.
रीजी रही तुं बजाए रे || हि० ||४|| शीलवती कहे माहरे रे, वालमजी निज हाथ ॥ वेणी रची ए प्रेमनुं, पहेराव्यो कंचुक नाथ रे || हि० ॥ ५|| पियुहाये ए उतरे रे, शाने कहो कां वात ॥ कंत विना हुं कोइनुनवि, मानुं कहे तिलमात रे || हि ॥ ६ ॥ राय कहे हुं ताहरो रे, जा नामिनी वुं जरतार ॥ शीलवती कहे स्वामीने, न घटे कहेवो ए वि चार रे ॥ हि० ॥ ७ ॥ सकल प्रजा रक्षक तुम्हें रे, पंचम बो लोकपाल ॥ करतां ए धन्यायने, पृथिवी जाय रसाताल रे | दि० ॥ ८ ॥ जे दुः शील परानवी रे, सतीयोनो खाधार ॥ ते जो शील खंमन करे तो, नहिं कोइ राखणहार रे ॥ हि० ॥ ए ॥ जेहनी रक्षा तेहथी रे, जय उपजे जगमांहे ॥ वाड नखे जो चीजडां तो, कुण करे एहनो न्याय रे ॥ हि० ॥ १० ॥ यक्तं ॥ गोत्रं विगोपितं तेन, पौरुपं चरितं तथा ॥ त्रा मितोमेदिनीपीठे, ऽयशःपटहकोऽखिले ॥ २ ॥ महार्घ्यमपि तेन स्वं विहितं रजसा समं ॥ परस्त्रीसेवनं येन, निर्लओन कृतं खलु ॥ ३ ॥ युग्मं ॥ पूर्व दाल || पासें वाणी तब कहे रे, सुए नई उजमाल ॥ सदु बांटे जे हने त्रिया, तु वांबे ते नृपाल रे ॥ हि० ॥ ११ ॥ शीलवती कहे मुफ तन्नने रे, कंत ने के गन्न ॥ ते विष्णु कोइ मे नहीं, साधुं मानजो मन्न रे ॥ हि॥ १२॥ यतः ॥ दोहो || केसरि केश यंग मणि, सरणाइ सुहडांद ॥ सती पयोधर कृपण धन, चढो हाथ मुछांह ॥४॥ पूर्वढाल || राय कहे संकेतनां रे. वचन प्रतीतिने काज ॥ साहामुं जोइ निहाल तुं, खोटं कहेतां मुज लाज रे ॥ हि० ॥ १३ ॥ आव्यो इहां हुं एकलो रे, शूरपाल ध्यनि धान || राय पुत्रियो इहां मूत्र, या वेठो हुं राजान रे || हि० ॥ १४ ॥ प्रत्यय सहित सुणी करी रे; वयण विमासे नारि ॥ कंत सही ए माहरो, जाणे इंगित कर रे || हि० ॥ १५ ॥ तव सन्मुख निरख्युं तेणें रे, अलखियो निज कंत || मन विकस्युं तन उन्नस्युं, नाठी मनडानी जांति रे ॥ हि० ॥ १६ ॥ सा हर्पित मनमां हुई रे, ययुं रोमांचित थंग ॥ जेम धनदर्शन मोरडी, तेम वाथ्यो अंतररंग रे ॥ हि० ॥ १७ ॥ दासीने फरमावीयुं रेखासी करो एहनी मेव | ए गुणवंती स्वामिनी, सेवो एहने जैम देव रे || हि० ॥ १८॥ स्नान कराव्युं तेहने रे, चंदन तनु चरचाय ॥ पांशुक पहेवियां, वर थापण शोनाय रे ॥ हि० ॥ १५ ॥ श्यामा ते
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श्री शांतिनायनो रास खेम बहो. ४११ - शोने घणु रे, रूपवती रति रंज ॥ जूषण बधि शोने घणी, दी होय न । रने अचंन रे ॥ हि ॥ २० ॥रमऊम करती कामिनी रे, प्राचीन । पति पास ॥ नृप आदर आपे घणो, दीधुं असिन तास रे ॥ हि ॥
२१ ॥ सामंत मंत्रीश्वर सवे रे, उती करे प्रणाम ॥ तिरा दिन शांति मती हती, साधे वली गई निजधाम रे ॥ हि ॥ २२ ॥ गुप्तदेप वेला तदा रे. नासी गई निजगह ॥ निज कुटुंबनी आगलें, वात धावी कही सवि तेह रे ॥ हि ॥ २३ ॥ निज हत्थी हरिणी सही रे. वेती हो का रागार ॥ सदु कहे जुगतुंएहने,कीर्छ एवं किरतार रे ॥ हि ॥२॥ जे हत वादी घणुं होवे रे, ते पामे सुख एम ॥ वृक्ष कडे जे मानशे. ते पग पग लेहो देम रे ॥हिणाश्या बो थाती ए पाधरी रे, मु बोडाव्यानुं काम ॥
एह हीली, हवे, मत लेजो को नाम रे ॥ हि ॥ २६ ॥ एक दिन . ते महिपालने रे, नृपें तेड्यो सकुटुंब ॥ भोजन कारण आवियां, निज . जनक ने वंधव अंब रे॥ हि ॥ २७ ॥ स्नान कराव्यां तेहोने रे, व . सन जलां अति चंग ॥ आनूषण पहेरावियां, राजा धरी मन रंग रे ॥हिए ॥ ॥ मनमां महिपासादिका रे. वारु विमासे विचार ॥
आपणने ए राजियो, केम एम करे उपचार रे ॥ हि ॥ २५ ॥ जेने जे .. यी रे लहेणुं होवे रे, निर्गुण पण तस पास ॥ पामे लान अचिंतव्यो,
- नहिं यहां कोई अवर विमास रे ॥ हि ॥ ३० ॥ घासन रम्य वेसा - रियां रे, भोजन काज ते वार ॥ बाल विचित्र मंझावीने. नृप पण वेठो
गुणधार रे ॥ हि ॥ ३१ ॥ नृप आदेश यावे तिहां रे, शीलवती वर नारी ॥ पूर मनोरथ आपणा, प्रिये चिरतंचित्त इण वार रे ॥ हि ॥ ३२ ॥ पिरसे जोजन प्रेममुरे, अहो अहो जति अपार ॥. चिंते महि पाल चित्तगुं, सही इहां कणे कोई विचार रे॥हिए ॥ ३३ ॥ जोजन करि उत्तयां सर्व रे. वेता घासन्न ॥ शूरपाल महिपालने रे. धरणे नमे घई प्रसन्न रे॥ हि ॥३४॥ तात ते दुं तुम चंगजो रे. नामें जे गुरपाल ॥ मात पिता तुम्हें माहरां, मलियां मुफ नाग्य विज्ञात रे॥ हि ॥ ३५ ॥ राज्य अचिंतित में लघु रे, ए सवि तुम्ह प्रसाद ॥ हुँ में वक राउतो. मनमा म धरो विपाद रे ॥ हि ॥३६॥ जाणीने पण . नुमकने रे नीच कराव्युं काम ॥ ते गुनहो सवि माहरो,खमनो तमं कई
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४१५ जैनकथा रत्नकोष जाग आठमो. शिर नामि रे ॥ हि० ॥ ३९ ॥ शीलवती कर जोडीने रे, नाखे हो' नामी शीश ॥ खमजो मुफ अपराध ए, तुमने जे चढावी रीप रे ॥ हि ॥३७॥ तुम वचनें नवि मूकियो रे,में कंचुक तेरा नाय ॥ ते मुज आदेश कंतनो, कुलवती केम लोपाय रे ॥ हि ॥३णा महिपाल पण हरखियो - रे, उलस्वियो निज नंद ॥ नाग्य वटुं वत्स ताहरूं, दी थयो धानंद रे॥' हि ॥ ४० ॥ तुज देखी मुफ मने रे, वाध्या हर्षकबोल ॥ सिंधु उदय शीतांगुने, जेम पसरे जग कलोल रे ॥ हि ॥ ४१ ॥ कर जोडी ऊनो रह्यो रे, जनक बागल गुणवंत ॥ जनक उपाडी गुरने, सिंहासन ले
वंत रे ॥ हि ॥ ४२ ॥ सुसरो शीलवती नगी रे, कहे पुत्री तुं धन्य धन्य ॥ जीवलोकमां तुझ समी,नवि दीवी में कोइअन्य रे॥ हि ॥४३॥ जेह मनोरथ ताहरा रे, होता घणुं असंभाव्य ॥ तुज नाग्य थचिं तव्या, थया संपूर्ण समाव रे ॥ हि ॥ ४ ॥ राख्युं शील ते आपणुं रे,नवि लोपी पियु आण ॥ तो सवि नारीमां शिरें तुं,बेटी था गुणखाण रे ॥ हि ॥४५॥ पग पग तुमने दुहवी रे,ते खमजे थपमान ॥ शीलवती । कहे तातजी,तेहथी मुज वाध्यो वान रे ॥ हि० ॥४६॥ मात पिता सुसरा तपी रे, शीख कल्पतरु ठाय !। मुझने मानेवी घटे,जेहथी वांडित सुख , थाय रे ॥हि॥४७॥ सङ परिवार मल्यो तिहां रे, आनंद यंगन माय ।। पिस्तालीशमी ढासमां, एम प्रगट्यो पुण्य पसाय रे ॥ हि ॥४७॥१७॥३॥
॥दोहा॥ ॥ शूरपाल नृपति हवे, तेड्या सवि सामंत ॥ कहे महिपाल ए मुफ जनक,ए मुफ बांधव गुणवंत ॥१॥ ए माताजी माहरी, ए नोजाई सार ॥ कर जोडी प्रणमो तुम्हें,एमाहरो परिवार ॥२॥ एम कह्याथी सवि नम्या, स्वामी आग प्रमाए ॥नयरमांहे उत्सव दुवो, वाज्यां ढोल निशान ॥३॥ निजबांधवने मानगुं, भूरि देश→ राज्य ॥ श्रापीने हर्पित कल्या, सीयां वांवित काज ॥ ४ ॥ पुण्य पसायें जोगवे, मनोवांगित वर लोग ॥ . शीलवतीये प्रीति बदु, सरिखो मन्यो संयोग ॥ ५ ॥
॥ ढाल तालीशमी ॥ ____॥होजी खंबा वा वरतीतो मेह, श्राजूनो ददाढोरे धणरीत्रीजनो । दो लाल ॥ ए देशी ॥ दोजी जोगवे ते सुख जोग,न्यायधर्म वरते घणी ॥
स्वामी प्राण प्रमाण
देश- राज्य ॥ श्रापमानवाहित बर
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ४१३ । हो लाल ॥ होजी पुण्य तणे संयोग,तेज सवल ते नृप तणो ॥ हो लाल ॥१॥ होजी वैरी नम्या सवि पाय, आवी करे सदु चाकरी ॥ हो । होजी एके रे दोय, पाणी पिये वाघ वाकरी ॥ हो ॥ २ ॥ होजी
वलीयो सूरपाल राय,माय तायनी करे सेवना ॥ हो० ॥ होजी साते व्य . सन निवार, पद प्रणमे जिनदेवना ॥ हो ॥३॥ होजी एक दिवस , उद्यान, श्रुतसागर मुनि धाविया ॥ हो ॥ होजी षट्कायना रखवाल, -- सदु ऊपर सम नाविया ॥ हो ॥ ४ ॥ होजी वंदन काज नरें, तात
प्रिया साथें चट्या ॥ हो ॥ होजी आवी वनह मकार, गुरु वंदे हेजें ह - व्या ॥ हो० ॥ ५ ॥ दोजी गुरु दिये देशन सार, ए संसार अशाश्वतो ॥ - हो ॥ होजी एक जिनधर्म ए सार, करो दिल राखी हिंसतो ॥ हो ।
॥ होनी तन धन यौवन एह,जाय नदीना पूर ज्यु ॥ हो ॥ दोजी का - रिमो सयण सनेह, उमी जाये अर्कतूल ज्युं ॥ हो ॥ ७ ॥ होजी कू ___डो ए राज्यविलास, आश किसी करो एहन। ॥ हो ॥ होजी जलमां
जेम पतास, तेम पुजलबबि देहनी ॥ हो० ॥ ७ ॥ होजी ग्रहे श्रावकनो धर्म, निसुणी गुरुनी देशना ॥ दो० ॥ होजी पूढे कहो मुज मर्म,कर्म क खां श्यां क्वेशनां ॥ हो ॥ ए॥ होजी केम मुखने वली सुख, पाम्यो प्रनु परकाशियो ॥ हो० ॥ होजी गुरु कहे सुण राजें, दानगुरों चित्त वासियो ॥ हो० ॥ १० ॥ होजी कस्यो तें अतिथिसंविनाग, पूरवनव ते सांजलो ॥ हो ॥ दोजी कहे मुनिवर वडनाग, सुणे नृप मूकी मामलो ॥ हो ॥ ११ ॥ होजी जरतें नूमिप्रतिष्ठ, नयरें वीरदेव नामथी हो॥ होजी निवसे आवक एक, जस मनमा शंका नथी । हो ॥ १२ ॥ हो जी तस घरे सुव्रता नारी, चित्त चोखी शुद्ध श्राविका ॥ हो ॥ होजी मा ने निजगुरु प्राण, समजू सूधी नाविका ।। हो ॥ १३ ॥ होजी अष्टमी दिन एक वार, वीरदेव पौषध पादयो । हो ॥ होजी पारण दिन नज माल, चिंते एम हर्षे नस्यो । हो ॥ १४ ॥ दोजी जगमा ते नर धन्य, . पोपधवतने पारणे ॥ दो० ॥ होजी पडिलाने शुद्ध अन्न, मुनिवरने हित कारणें ॥ हो ॥ १५ ॥ होजी ऊती दिशि अवलोक, करवा लाग्यो चिटुं: दिशे ॥ हो ॥ होजी धावतुं मुनियुग दीत, देखी दिनडे उनसे । हो० ॥ १६ ॥ होजी सहामो जश् वीरदेव, पडिलाने मुनि नावयु ॥ हो ॥ हो
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४१२ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. शिर नामि रे ॥ हि ॥ ३५ ॥ शीलवती कर जोडीने रे, नांखे हो। नामी शीश ॥ खमजो मुफ अपराध ए, तुमने जे चढावी रीप रे ।। हि ॥३७॥ तुम वचने नवि मूकियो रे,में कंचुक तेण नाय ॥ ते मुफ आदेश कंतनो, कुलवती केम लोपाय रे ॥ हि ॥३॥ महिपाल पण हरखियो रे, उत्तखियो निज नंद ॥ नाग्य चहुं वत्स ताहरू, दी थयो आनंद रे॥ हि ॥ ४० ॥ तुज देखी मुफ मने रे, वाध्या हर्पकल्लोल ॥ सिंधु उदय .. शीतांगुने, जेम पसरे जग कल्लोल रे ॥ हि ॥ १ ॥ कर जोडी कनो रह्यो रे, जनक आगल गुणवंत ॥ जनक उपाडी शूरने, सिंहासन ले। तवंत रे ॥ हि ॥ ४२ ॥ सुसरो शीलवती नए रे, कहे पुत्री तुं धन्य धन्य ॥ जीवलोकमां तुऊ समी,नवि दीठी में कोइअन्य रे ॥ हि ॥४॥ जेह मनोरथ ताहरा रे, होता घणुं असंनाव्य ॥ तुज नाग्य थचिं.' तव्या, यया संपूर्ण सनाव रे ॥ हि ॥ १४ ॥ राख्यं शील ते आपणुं रे,नवि लोपी पियु घाण ॥ तो सविनारीमां शिरें तुं,बेटी थइ गुणखाण रे ॥ हि० ॥४५॥ पग पग तुमने दुहवी रे,ते खमजे अपमान ॥ शीलवती , कहे तातजी,तेदयी मुजवाथ्यो वान रे ॥ हि ॥४६॥ मात पिता सुसरा तणी रे, शीख कल्पतरु गाय ॥ मुझने मानेवी घटे,जेहथी वांडित सुख थाय रे ॥हि॥७॥ सङ परिवार मल्यो तिहां रे, आनंद यंगन माय ॥ पिस्तालीशमी ढालमां, एम प्रगट्यो पुण्य पसाय रे ॥ हि ॥15॥१७॥
॥दोहा॥ ॥ शूरपाल नृपति हवे, तेच्या सवि सामंत ॥ कहे महिपाल ए मुफ : जनक,ए मुफ वांधव गुणवंत ॥१॥ ए माताजी माहरी, ए नोजाई सार ॥ कर जोडी प्रणमो तुम्हें,एमाहरोपरिवार ॥२॥ एम कह्याथी सवि नम्या, स्वामी प्राण प्रमाण ॥ नयरमांहे नत्सव दुवो, वाज्यां ढोल निशान ॥३॥ निजबांधवने मानगुं, नूरि देशनुं राज्य ॥ आपीने हर्पित कन्या, सीध्यां .' बांठित काज ॥ ४ ॥ पुण्य पसायें जोगवे, मनोवांछित वर जोग ॥ शीलवतीलं प्रीति बहु, सरिखो मब्यो संयोग ॥ ५ ॥
॥ ढाल तालीशमी ॥ ___॥ होजी झुंबा बा बरसीलो मेह, पाजूनो दहाडो रे धपारी त्रीजनो हो लाल ॥ ए देशी ॥दोजी जोगवे ते सुख जोग,न्यायधर्म वरते घणो ।
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ४१३ ।। दो लाल ॥ दोजी पुण्य तणे संयोग,तेज सवल ते नृप तणो ॥ हो लाल ॥१॥ दोजी वैरी नम्या सवि पाय, आवी करे सदु चाकरी ॥ हो ॥ होजी एके आरे दोय, पाणी पिये वाघ वाकरी ॥ हो ॥ २ ॥ दोजी बलीयो शूरपाल राय,माय तायनी करे सेवना ॥ हो ॥ होजी साते व्य सन निवार, पद प्रणमे जिनदेवना ॥ हो ॥ ३ ॥ होजी एक दिवस उद्यान, श्रुतसागर मुनि आविया ॥ हो ॥ होजी षट्कायना रखवाल, सदु कपर सम नाविया ॥ हो ॥ ४ ॥ होजी वंदन काज नरें, तात प्रिया साथै चट्या ॥ दो० ॥ होजी आवी वनह मकार, गुरु वंदे हेजें ह व्या ॥ हो० ॥ ५ ॥ होजी गुरु दिये देशन सार, ए संसार अशाश्वतो ॥ हो ॥ होजी एक जिनधर्म ए सार, करो दिल राखी हिंसतो ॥ दो० ॥ ६॥ होजी तन धन यौवन एह,जाय नदीना पूर ज्यु ॥ हो ॥ होजी का रिमो सयण सनेह, नमी जाये अर्कतूल ज्युं ॥ हो ॥ ७ ॥ होजी कू डो ए राज्यविलास, प्राश किसी करो एहन। ॥ हो ॥ होजी जलमां जेम पतास, तेम पुजलबबि देहनी ॥ हो ॥ ७ ॥ होजी ग्रहे श्रावकनो धर्म, निसुणी गुरुनी देशना ॥ हो ॥ दोजी पूढे कहो मुज मर्म,कर्म क खां श्यां क्वेशनां ॥ हो ॥ ए ॥ होजी केम रखने वली सुरव, पाम्यो प्रनु परकाशियो ॥ दो० ॥ होजी गुरु कहे सुण राजें, दानगुणे चित्त वासियो ॥ हो० ॥ १० ॥ दोजी कयो तें अतिथिसंविनाग, पूवजव ते सांजलो ॥ हो ॥ होजी कहे मुनिवर वडनाग, सुणे नृप मूकी मामलो ॥ हो ॥ ११ ॥ होजी जरतें जूमिप्रतिष्ठ, नयरें वीरदेव नामथी हो०॥ होजी निवसे श्रावक एक, जस मनमा शंका नथी । हो ॥ १२ ॥ हो जी तस घरे सुव्रता नारी, चित्त चोखी शु६ आधिका ॥ हो ॥ होजीमा ने निजगुरु प्राण, समजू सूधी नाविका ॥ हो० ॥ १३ ॥ होजी अपनी दिन एक वार, वीरदेव पौषध आदस्यो ॥ हो० ॥ होजी पारण दिन उज माल, चिंते एम हर्षे नयो ॥ हो ॥ १४ ॥ होजी जगमा त नर धन्य. पोपधनतने पारणे ॥ हो ॥ होनी पडिलाने गु६ अन्न, मुनिवरने हित कारणें ॥ हो० ॥ १५ ॥ होजी ऊठी दिशि अवलोक, करवा लाग्यो चिदं दिशं ॥ हो ॥ होजी धावतुंमुनियुग दीत, देखी दिलडे उनसे ॥ हो। १६ ॥ होजी सहामो ज वीरदेव, पडिलाने मुनिनावगुं॥हो॥हो
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४२३ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. जीअनुमोदे तस नारी, दान मुनि, मन वस्युं ॥ हो ॥ १७ ॥ होजी . थयां सुरुतारथ दोय, मुनिवर वोरीने वल्या ॥ हो ॥ होजी दंपतीना तिः । णि वार,मनह मनोरथ सवि फल्या॥हो॥१७॥होजी पाल्युं तेणें वहुकाल, आवकवत जावें करी॥ हो ॥ दोजी करि असण अंतकाल, गयां ईशाने : ते मरी ॥ हो० ॥ १७ ॥ हजी तिहाथी चवी नरदेव, शूरपाल थयो तुं . सही ॥ हो० ॥ होजी नारीनो ते जीव, शीलमती इहांकणे थ॥ हो. ॥२०॥होजी पूरवनव दत्त दान,तास प्रनावें पामिया॥होगा होजी चिंतित धन सन्मान, तुम्हें लह्यां सवि सुख कामियां ॥ हो ॥२१॥ होजी एम सांजली ततकाल, जातिसमरण उपन्युं ॥ हो ॥ होजी दीतुं सवि शूर . पाल, पूरवनवरुत आपणुं ॥ हो ॥ २२ ॥ होजी चंपाल सुतने राज्य, सोपी जनक नारी सही ॥ हो० ॥ होजी त्रिदु जरों लीधी दीख, क्रोध कपाय धरे नहिं ॥ दो० ॥ २३ ॥होजी पाली विशुद्ध चारित्र, पाती करम क्ष्य घातियां ॥ हो ॥ होजी त्रिदु जण लही वर नाण, मुक्ति गयां नव जीतियां ॥ हो० ॥ २४ ॥ दोजी कहे एम शांति नगवान, अ तिथिसंविनाग व्रत ऊपरें । हो ॥ होजी निसुणे पर्पद वार, जिनवर वा पी ए आदरें ॥ दो० ॥ २५ ॥ होजी के कही ए ढाल,हर्षे उतातीशमी ॥हो॥होजी राम कहे नजमाल,नवि सुपजो साकर समी॥हो॥२६॥ इति द्वादश अतिथिसंविनागव्रते भरपालकथानकम् ॥ १२ ॥ १७२४ ॥
॥दोहा॥ ॥ एम व्रत वारे जिन कह्यां,श्रावकनां अतिसार ॥ चक्रायुध नृप श्राग लें, नविजनने उपगार ॥ १ ॥ धर्म गृहीनो साधतां, करे निज यातम शुदि ॥ चढते परिणामें चढी, संयम ग्रहे विबुध ॥ २ ॥ अथवा एकादश . वती,पडिमा बहे मुजाण ॥ अंते अगसण यादरे,श्रावक तेह सुजाण ॥ ३॥ त्रिधा चतुर्धाबादरे,अगसण ने सागार ॥ वर्धमान परिणामथी,पाले निरतिचार ॥ ४॥ इह लोकाशंमा प्रथम, तिम परलोकाशंस ॥ जी वितथागंसा कही. तेम बली मरणाशंस ॥ ५ ॥ काम जोग वांठे नहिं. पंच दोष ए टास ॥ धाराधे संलेखना, आवक था नजमाल ॥६॥ जघन्य श्रायु सौधर्म,अच्युत मुर नल्लष्ट ।। सुरलोके मुख जोगवी,शिवपद सहे थनीट ॥७॥ धर्म एह आवकतगो,बीजो मुनिवर धर्म ॥ पंच समिति
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श्री शांतिनाथनो रास खंग बो.
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गुप्तिगुं, साध्यो दे शिवशर्म ॥ ८ ॥ एह अनंतर हेतु बे, शिवपदनो मुनिधर्म ॥ निश्चय समकित धरखो, कणमें दे शिवशर्म॥ ॥ यतः॥ एग दिवसंपि जीवो ॥ ॥ ढाल सडतालीशमी ॥
॥ नलराजारे देश, दोजी पुंगलदूंती पल्हाणीया ॥ देश ॥ निसुलि श्री जिनवाण, होजी कहे चक्रायुध नूपति ॥ तारो हो त्रिभुवन स्वामि, हो जी द्यो मुफ दीक्षा जिनपति ॥ १ ॥ नमियो जवमां जोर, होजी चोर कर्म प्रायां ॥ कड्या कठिन कषाय, होजी काल अनादिना रहे नव्या ॥ २ ॥ जांजो ए दुशमन जोर, होजी कगारो अरिहंत जी ॥ करूँ प्रभु तुमने निहोर, होजी नक्तवत्सल भगवंत जी ॥ ३ ॥ जन्मजरा मरणादि, होजी अंगने दीपित प्रति घणुं ॥ नवगृहथी निस्तार, होजी प्रभुजीगुं तुम यति जणुं ॥ ४ ॥ प्रभु कहे करुणावंत, होजी धर्मे विलंब न कीजीयें ॥ जो मनडुं होय वाम, होजी तो गुचि संयम लीजियें ॥ ५ ॥ सु त स्थापी निज पाट, होजी पत्रीश नृपशुं परवखो ॥ चक्रायुध जिन हाथ, होजी नावें संयम यादवो ॥ ६ ॥ दीधी जिनजीयें दीख, दोजी शीख ग्रहे जिनवर कने || कर जोडी प्रभु पास, होजी पूबे तत्त्व कहो मुने ॥ ७ ॥ तत्त्व कहे उत्तपत्ति, होजी जइ एकांतें चिंतवे ॥ समयसमय ए जीव, नारकी व्यादिक संवे ॥ ८॥ एम उपजता तेह, भुवनत्रय माये नहिं ॥ एम घरी संशय चित्त, होजी प्रभु पासें पूछे जइ ॥ ए ॥ प्रभु प्रकाशो तत्त्व, होजी विगम कहे त्रिभुवन धणी | पुनरपि जर एकांत, होजी विगम विचारे बहुगुणी ॥ १० ॥ सर्व विगम जो होय, हो शून्यपएं तो जग नजे ॥ न रहे जगमां को, होजी वस्तु विगमने उपजे ॥ ११ ॥ पुनरपि पूर्व तत्त्व, होजी स्थिति नांखे शासनपति ॥ समज्या सकल स्वरूप, होजी संशय न रह्यो एक रति ॥ १२ ॥ त्रिपदीने अनुसार, होजी अंग डवालस ते रचे ॥ एम सघलांएक रीति हो द्वादशांग विरचे रुचें ॥१३॥ यावे पठे प्रनुपास, दोजी व्यासनथी जिन उठीया ॥ इ यावे नरि थाल, होजी वासें मन संतुप्रिया ॥ १४ ॥ वास ने प्रभु हाथ, होजी यापे संघने मन रुली ॥ दीये प्रदक्षिणा तीन, होजी प्रभु पूर्वे ते लली लली ॥ १५ ॥ तस शिर स्थापे वास, होजी संघ सहित जिनवर मुद्रा || गए धरपद अधिवास, होजी एम सदुनो कीधो मुदा ॥ १६ ॥ अवर वली
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४१६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. नर नार, होजी प्रनुजीये बदु दीक्षित कखां ॥ ग्रहिया संयमनार, होजी । सहेजें जव सायर तया ॥ १७ ॥ चरण सहस नर नारि, होजी ते दुवा आवक श्राविका ॥ शुरू समकित व्रतधार, होजी ते सद्ये मन नाविका ॥ १७ ॥ एम चतुर्विध संघ, होजी शांतिजिणेसर स्थापियो । समकित रयण अमूल, होजी प्रजुजीयें सदुने आपीयो ॥ १५ ॥ पोरिसि अंतें जिनजाण,होजी देववंदक मांहे बाविया ॥ बीजा वप्र मजार,होजी जगगुरु । सदु मन नावीया ॥२०॥ जिनवरने पाद पीठ,वेसे प्रथम तिहां गणधरु ॥ वीजी पोरसीमांहे, होजी करे व्याख्यान मनोहरु ॥२१॥ संघनी थागल म, होजी कहे कथा अघहारिणी ॥ अंतरंग वात विनोद, होजी धर्म नी स्थिरता कारिणी ॥ २५ ॥ सडतालीशमी ढाल, होजी बठेखमें सोहा मणी॥रामविजय कहे एम,होजी सांजलो पातम हितनणी॥२३॥१७५६॥
॥ दोहो॥ __॥ मोहराजके राजमां, धर्मराजकी थाण ॥ वर्तावे चेतन तदा, जी वित जन्म प्रमाण ॥ १ ॥
॥ढाल घडतालीशमी ॥ ॥ हो प्रतु महेर कर महाराज ॥ ए देशी ॥ देव मानव लोकमांहे, देह नयर मंमाण ॥ मोहनामा वडो नरपति, जगत सदु जस बाण ॥ १ ॥ रे जीव समज सुगुण सुजाण ॥ तुंतो म धर मोहनी घाण, हारे जेम लहे कोडि कल्याण ॥ रे जीव ॥ ए बांकणी ॥ मोद घरणी रंगें परणी माया नामें नारि ॥ तेह वेदुथी उपन्यो सुत,सवल मदन कुमार ॥ रे जी०॥ २ ॥ लोन नामें महामंत्री,क्रोध उबर पास ॥राग हेप महारथी दो, मिथ्यात्व जास खवास ॥ रे जी० ॥३॥ मान नामें वडो गजवर,मोह वाहन जोर ॥ वड्यो इंडियन्यव उपर,करत सवलो शोर ।। रे जी० ॥४॥ विपय त्रवीश मोह धागल,खडे रहत चोवदार । एक एक उमराव पोडे, चढत पाप अहार ॥ रे जी ॥ आठ बांधव राज विलसे, रूप शत अ इवन्न ॥ एक पूढे अनंत वर्गण, मेन चढत गरम ॥ रे जी० ॥ ६ ॥ प्राण वाणिज वमे उनमें, चिन पुर पारद ॥ राज सबलो मोह केरो, माचवे व दह ॥ रे जी० ॥ ७ ॥ नितुणी गुरु उपदेश नींतर, फिरे म , नारद ॥ देहपुरमा धर्म नृपति. लहे प्रवेश प्रत्यद ॥रे जी० ॥ ७॥ ५
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श्री शांतिनाथनो रास खंम बहो. ४२७ वृत्ति आर्जवनामे राणी, तेहेनी मनोहारि ॥ धर्म नृपति कंत सायें, रहे अनेद विचार ॥ रे जी ॥ ए ॥ सचिव महोटो सवल गुणवंत, नामथी संतोप ॥ अहोनिशे निज स्वामीसेंती, वाध्यो प्रेमनो पोप ॥ रे जी० ॥ १० ॥ ममलेश्वर अ आगे, नाम समकित धीर ॥ सामंत व्रत गुण मूल केरा, रहत पास अनीरु ॥ रे जी० ॥ ११ ॥ अणुव्रतादिक पत्ति व दुला, रहत जास समीप ॥ मातंग मार्दव नाम गर्जत, वडो ए अवनीप ॥रे जी० ॥ १५ ॥ योध उपशम आदि जिनके, बहुत हे जूंकार ।। चारित्ररथ चढी चलत आगे, श्रुत सेनानी सार ॥ रे जी० ॥ १३ ॥ करी मानस हाथ अपने, सवल धर्मनरिंद ॥ देहपुरमा आय अ पनी, वसति करे अहमिंद ॥रे जी० ॥ १४ ॥ निर्धाटियो तव मोह नृपकों, वरती अपनी प्राण ॥ मोहकों अवकाश कोइ, देहु मत गुण खाणि ॥रे जी ॥ १५ ॥ वदुत दिनकी आण उनकी, करत हूवे हे रान ॥ विश्वास ए अन्याय नृपको, म कर चतुर सुजाण ॥रे जी० ॥ १६ ॥ जो कदाचित् मोहके वश, होत ए अज्ञान ॥ कर्मपरिणति फेरि ननकों, लेइ स्थापे गण ॥रे जी० ॥ १७ ॥ जेम अनीतिपुरें विप त्तिमां, वणिकसुत बुद्धि दान ॥ रत्नचूडने उदयो यम, घंट गणिका जाण ॥रे जी० ॥ १७ ॥ कुण दु ते कवण गामें, कहे संघ कर जोडि ॥ कहे गणधर प्रथम तेहनी, कथा मनने कोड ।। रे जी० ॥१॥ खेम बहे एह नांवी, ढाल ए अडयाल ॥ रत्नचूड तणुं हवे नवि, सुणो चरित नजमाल ॥रेजी० ॥ २० ॥ सर्व गाथा ॥१७७७॥ श्लोक ॥७॥
॥दोहा॥ ॥ जरतदेत्रमा अति नली, वहु इन्यनो वास ॥ तामलित्ती नगरी 'घएं, दी होय उनास ॥ १ ॥ गढ़ मढ मंदिर मालीयां, चोराशी वा जार ॥ अमरपुरी मर्नु अवतरी, मानव लोकमकार ॥ २ ॥ सदाचार वासे वसे, रत्नाकर तिहां शेत ॥ दोलतने दोरें करी, वीजा सा ए देव ॥ ३ ॥ तस घरपी पुण्यातमा, लावण्यरुप निधान ॥ सरस्वती नामें जली, प्रीतमनुं बदु मान ॥४॥ निजकरगत महारत्न शिरव, उद्योतित निजधाम ॥ निशा शेष देखी सुपन. कहे पियुने अनिराम ॥ ५ ॥ प्रिये तनय होशे नलो, हरवी निसुणी वाणि ॥ सुत जन्म्यो समय तिणे,
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४२७ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. चनचूड अनिधान ॥ ६॥ वालपणे शीखी कला, सकल करी तेणें । चूंप ॥ यावन वय मन मोहतो, मानिनी तणां अनूप ॥ ७ ॥
॥ढाल उगएपञ्चासमी॥ ॥ मन मोहन लाल ॥ ए देशी ॥ एक दिवस हट शहेरमा रे ॥ मन मोहना लाल ॥ चाल्यो रत्नचूड ताम हो ॥ जनरंजनां लाल ॥ मारगमां । सामी मली रे ।। म ॥ सोनाग्यमंजरी नाम हो ॥ जन॥ १ ॥ नृप मन मानीती घणुं रे ॥ म० ॥ गणिका ते मदवंत हो ॥ ज० ॥ खंधे तेणें दूहबी रे ॥म ॥ बोले ते एम तंत हो ॥ ज ॥ २ ॥ पालव साही . तेहनो रे ॥म ॥ बोली करी उपहास्य हो ॥ ज० ॥ नंदन सुण तुं शेग्ना रे ॥ म ॥ पंमित जननी जास हो ॥ न० ॥ ३ ॥ धनें अनेड मूकापणुं रे ॥म ॥ पश्यतने पण दोय हो ॥ ज० ॥ जे तुं बाल दिवसमां रे ॥म ॥ न चले सहामुं जोय हो ॥ ज० ॥४॥ देखे नहिं मुफ श्रावती रे ॥ म ॥ धनमद न घटे ए तुक हो ॥ ज० ॥ ते माटें कहे नीतिनां रे ॥ म ॥ जाए वचन ए गुऊ हो ॥ ज० ॥५॥ जनक उपार्जित वित्तगुं रे ॥ म ॥ न करे कोण विलास हो ॥ ज० ॥ निजलुज अर्जित संपदा रे ॥ म ॥ विलसे तस सावाश हो ॥ ज० ॥ ॥ ६ ॥ एम कही स्थानक गई रे ॥म० ॥ गणिका गुणर्नु पात्र हो . ॥ ज० ॥ रत्नचूड मन चिंतवे रे । म ॥ करूं हवे परदेशयात्र हो ॥ जय ॥ ७ ॥ सत्यवचन करतुं सही रे॥ म० ॥ एहनुं में धनत हो ॥ ज० ॥ धन धापी परदेशथी रे ॥म० ॥ करुं पूर्ण संकेत हो ॥ ज० ॥ ७॥ घर थाव्यो रत्नचूडजी रे ॥म ॥ मन धरतो विपवाद हो ॥ ज० ॥ पूरे पिता श्रावी तदा रे ॥ म० ॥ धरतो मन आल्हाद हो ॥ ज० ॥
॥ श्याम बदन केम ताहरू रे ॥ मा दीसे कां दिलगीर हो ॥ ज० ॥ किसी अनुरति ताहरे रे ॥ म० ॥ तुं मुझ मनडानो हीर हो ॥ ज० ॥ ॥ १० ॥ तात जश परदेशमा रे ॥ म ॥ धन उपराजण काज हो ॥ ज० ॥ चौवनवय निज जनकनी रे ॥ म० ॥ ऋषि जोगवतां लाज हो ॥ ज० ॥ ११ ॥ कहे रत्नाकर वत्स तुं रे ॥ म ॥ नानडियो मुकु मार हो ॥ ज०॥ केम परदेश एकलो रे ॥म ॥ में मोकनाये बाल हो । ज ॥ १२ ॥ वत्स विलसो सुख मंदिर रे ॥ म ॥ नित्य नवला'
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श्री शांतिनायनो रास खंग बहो.
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ए जोग हो ॥ ज० ॥ बेगं तुक केम उपन्यो रे ॥ म० ॥ परदेशें ज वानो रोग हो ॥ ज० ॥ १३ ॥ विषमपंथ परदेशनो रे ॥ म० ॥ इंडिय
वश होय जास हो ॥ ज०॥ नारी लालचें नवि पडे रे || || बोले वचन विमास हो ॥ ज० ॥ १४ ॥ ते परदेशें संचरे रे ॥ म० ॥ वत्स ए 5 ष्कर वात हो ॥ ज० ॥ रत्नचूड कहे माहरो रे ॥ म० ॥ न चले नि श्चय तात हो ॥ ज० ॥ १५ ॥ इव्य लक जेइ तातनुं रे ॥ म० ॥ उधारे परदेश हो ॥ ज० ॥ चाले करियाएं ग्रही रे ॥ म० ॥ कोइक वाहण बेसि हो ॥ ज० ॥ १६ ॥ शेठ शीखामण दे घणी रे ॥ म० ॥ वत्स रहेजो दुशियार हो ॥ ज० ॥ पुर अनीति मत जायजो रे ॥ म ॥ ज्यां नहिं न्याय विचार हो ॥ ज० ॥ १७ ॥ तिहां नृपति अन्याय बे रे ॥ म० ॥ अवि चारित प्रधान हो ॥ ज० ॥ सर्वग्राह्य यारको रे ॥ म० ॥ लहे नृ पनुं बहुमान हो ॥ ज० ॥ १८ ॥ नाम शांति पुरोहितो रे ॥ म० ॥ गृहितक शेठ हो ॥ ज० ॥ मूल नाश सुत तेनो रे ॥ म० ॥ नय रमांहे बहु वेंट हो ॥ ज० ॥ १९ ॥ रघंटा गणिका तिहां रे ॥ म० ॥ यमघंटा तस माय हो ॥ ज० ॥ द्यूतकार चोरादिका रे ॥ म० ॥ बहु निवसे दुःखदाय हो ॥ ज० ॥ २० ॥ लोक वसे तिहां प्रति घणां रे ॥ म० ॥ उंचा जस प्रावास हो ॥ ज० ॥ जे अजाण जाये तिहां रे ॥ म० ॥ पाडे तेहने पास हो ॥ ज० ॥ २१ ॥ एवं अनीतिपुर मुकीने रे ॥ म० ॥ करजो सुखें व्यवसाय हो ॥ ज० ॥ जनक शीखामण चित्त धरी रे ॥०॥ चाल्यो ते सुसहाय हो ॥ ज० ॥ १२ ॥ शकुन जलां ययां तेहने रे ॥ म० ॥ वेगं प्रवहण तेह हो ॥ ज० ॥ सुखें रे ॥ म० ॥ धरता हर्ष अबेह हो ॥ ज० ॥ छीपने रे ॥ म० ॥ व्यता रे ॥ म० ॥ याव्या अनीतिपुर वाय हो ॥ ज० ॥ २४ ॥ पोत देखी ते प्रातुं रे ॥ म० ॥ हरख्यां सघलां लोक हो ॥ ज० ॥ हेरि कोटऊंची करी रे ॥ म० ॥ रविदरिसा जेम कोक हो ॥ ज० ॥२५॥ विय तुम्हें सांजलो रे ॥ म० ॥ ए संबंध रसाल हो ॥ ज० ॥ पचास रे || || राम कहे उजमाल हो ॥ ज० ॥ ३६ ॥ ११० ॥
चाव्या जलनिधिमां २३ ॥ धीवर इवित
चलव्यां पण ते वाय हो ॥ ज० ॥ जोरावर नवित
हवे न
बहे जंग
८७ ॥
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ទូច जैनकथा रत्नकोप भाग आठमो.
॥दोहा॥ ॥ वंदरकांठे नांगरं, वाहण तेणी वार ॥ कोइक नरने पूजी, होप . नयर आचार ॥ १ ॥ चित्रकूट ए हीप , पूर्वोदित अनिधान ॥न गरादिकनुं दाखव्यु, चमक्यो सुणी सुजाण ॥२॥ अहो अजास्यो . याज ढुं, आव्यो एवं नाम ॥ जिहां जनके वास्यो हतो, न थयुं चिंतित काम ॥ ३ ॥ पण मुज एक आधार ने, रे शकुनपवन अनुकूल ॥ मन । उत्साह तेम माहरो, गुं करो प्रतिकूल ॥ ॥ शोच किस्यो करवो . हवे, याशे सघलु श्ष्ट ॥ पुण्यदशा जव पाधरी, दूरें टले अनिष्ट ॥५॥ एम धीरज मनमां धरी, उतरिया तेणी वार ॥ रत्नचूड वेलातटें, करे निवास नदार ।। ६ ॥ नाम नतास्यां यानथी,दिये शुल्क धन तास ॥राज पंचकुलने तिहां, रत्नचूड सुविलास ॥ ७ ॥
॥ढाल पञ्चासमी॥ ॥ जोरावर हाडाना गीतनी देशी॥ तिण अवसर तेणि नाय रे, पुरमाथी आया,धन काज उमाह्या, चारे समनाया, निगुणाकुःखदाया,आवीने उना रे चारे वापीया रे ॥१॥ पूछे कुशल देम वात रे, जाइन आव्या, देखी सुख पाव्या, साजनजी सोहाव्या, कहोने झुं लाव्या, लावो रे करियाणु ते लेछु अम्हें रे ॥ २ ॥ निसुगी एहवी वात रे, दररज्यो मनमांहे, चिंते रे उत्साहें, दीसे ए शाहें, कूडी नहिं प्राहें, मुश रे दीसे वे शादुकारनी रे ॥ ३ ॥ कहे धूर्त ते चार रे, वाहालेसर मोरा, करीये ठेथे निहोरा, मुण साजन बोरा, करियाणां तोरां, लेगुं रे रंगेंगें सघलाही अम्हें रे ॥ ४ ॥ देj एहनु मूल रे, जेवू तमने गमशे, दारि निगमशे, धारति सवि सम शे, वांठित सवि सरो, देगुं रे नरी वाहण जे कहेशो तेणे रे ॥ ५ ॥ धाप्यो सघनो माल रे, लेइने ते चाल्या, मनमाहे माल्या, रंगेगुं रेट्या, याव्या पुर तेल्या, माल बहेंची ने घेरे लइ गया रे ॥ ६ ॥ दवे रत्नचूड कु मार रे, मन धरी थानंदा, देखे नरवंदा, मुख पूनमचंदा, साजन सुख कंदा,थावे रे नंयरीनो नरपति नेटवा रे ॥ ॥ विचमांहे कारुक एक रे, सहामो तस प्रायो, धींगड मध्न धायो, प्रणमी कहे पायो, कंवरजी लायो, यवल तुमारे काजे पाका रे ॥ ७॥ देवरावी तंबोल रे कहे कुंवर रंग,मनने उठरंगें, निसुणो एकगे, जागो ए यनंग, करीश खुशाल .
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श्री शांतिनाथनो रास खेम बहो. ४२१ ढुं जातां तुमने रे ॥ ए ॥ धागल चाल्यो कुमार रे, कोई सहामो याव्यो,
धूरतमां चावो, काणे कस्यो दावो, मुज लोचन लावो, सहसमाटें रे - सोप्युं तदारा बापने रे ॥ १० ॥ एम कही आप्युं धन तास रे, हियडामां चिंते, कुंवर एकांतें; बोले ए संतें, गिरुन गुणवंतें, जांखे रे आवासें लेवा बावजो रे ॥ ११ ॥ आगल जातां चार रे, व्यंसक वलि मलिया, बोले जल फलिया, मांदोमांहे जलिया, कुंवर सांजलिया, वात करे रे वाद तणी तिहां रे ॥ १२ ॥ एक कहे समुनुं नीर रे, गंगाना कणीया, एले अणंगणिया, बुद्धिमंत बहु नणिया, तेणें न जाये गणिया, पण नं गणीजें रे वनिताहृदयने रे ॥ १३ ॥ बीजो बोले उक्ति रे, एहवी ए जांखी, हियडामा राखी, सुंरगजो सदु सारखी, कामित आंकांखी, ग्रंथने नारी हृदय न को लहे रे ॥ १४ ॥त्रीजो बोले ताम रे, कपटी सिरदार, वयणां निर्धार, खोटां न लगार, जाणे ए सार, शुक्र गुरुनी सरिखो बुजे दुवे रे ॥ १५॥ चोथो बोले लेक रे, परदेशथी आयो, मोरे मनं जायो, बालक ए कहायो, सूधो डे माह्यो, जाणे रे सघली ए सुना पित वारता रे ॥ १६ ॥ वोल्यो अन्य तब दूरें रे, ए गंगा दीसे, मनहुँ केमे हींसें, साचुं कहीसें, माह्यो जाणीसें, मान करावो रे सायर जल तणुं रे ॥ १७ ॥ एम कयो तेणें हववाद रे, उजम उपायो, न रह्यो मन साह्यो; अंमर्ष मन आयो, ना एम न कदायो, कुंवर तेणें रे वात अंगी करी रे ॥ १७ ॥ सायर जलतणुं मान रे, अमने करि आपो, तुमें वोल ए थापों, संशयने कापो, अम धन तुम दापो, नहिंतर लेगुं रे ताहरी संपदा रे ॥ १५ ॥ एम कही लीये तस बोल रे,ताली त्रण दीधी, प्रतिज्ञा कीधी, कारिज थइ सिद्धि, जुवो ठग पुर्बुद्धि, चाल्यो ते तिहाथी कुंवर बागलें रे ॥ २० ॥ चिंते मनमा एम रे, सदु ए ठग दीठा, हियडाना मीठा, मु हडाना मीठा, लागे ए अनीता, माहरे रे जनकें ए कहिया तेहवा रे ॥ २१ ॥ ए कारिज निर्वाह रे; कहोने केम करगुं, कोने नइ कहेगु, न तर श्यो देशू, यश केम शहां लहेगु, चिंते रे चित्तमांहे रत्नचूड एहवं रे ॥ २२ ॥ चिंते एक उपाय रे, गणिका घरे जावं, बुद्धि को उपावं, जेम सुखीयो थालं, माणसमां था, इस्युं विमासी गयो गणिकाघरे रे ॥२३॥ बठे पञ्चासमी ढाल रे,नवियण सांजलजो,कू९ मत लवजोग बुद्धि
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४२५ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. म घरजो, हिवडामां मरजो, ढुं बलिहारी रे जावं तेहनी रे॥२॥१४॥
॥दोहा॥ ॥ रत्नचूड गणिका घरे, श्रावी मनो जाम ॥ रघंटा ऊनी थइ, था. दर दीधो ताम ॥ १ ॥ गौरव सहित जमाडियो, देई बहु सन्मान ॥ वात : करे ते प्रेमनी, प्रमदा गुगनी खाण ॥ २ ॥ संध्या काल थयो तदा, सखर विवावी सेज ॥ सार श्रृंगार नसा कीया, गणिकायें धरि हेज ॥३॥ मन खोलीने प्रेमनी, करवा लागी वात ॥ मन पाखें उत्तर दीये, रत्नसार अंगजात ॥ ४ ॥ चिंतायें न गमे किसी, मीठी पण कोइ वात ॥ । जेम तावीला पुरुपने,लागे कटुक निवात ॥ ५ ॥ शेठ सुणो एणिपरें नणे, पूडं तमने एक ॥ ए विवादनी उपरें, कहो उत्तर मुफ क ॥६॥ ए. निर्वाह यया विना, न गमे रंगविलास ॥ प्रेम धरी मुझने तुम्हें, बुद्धि कहो सुविलास ॥ ७ ॥ तव वोले गणिका तिहां, सोनल चतुर सुजा । ण ॥ देवयोग ण बंदरें, आवे को अजाण ॥ ७ ॥ सर्व मली ए तेह ना, से वंचीने दाम ॥ एक अंश ते इव्यनो, पहोंचाडे नृपधाम ॥ ए॥ चीजो जाग प्रधाननो, शेतनोत्रीजो अंश ।। चोथो धारदक तणो, थधि कारी निस्त्रिंश ॥ १० ॥ लीये पुरोहित पांचमो, ठहो महारी माय ॥ मति प्रवण ते पागलें, सदु थावे चित्त लाय ॥ ११ ॥ ते माटे तुमने तिहां, तेडी जावं याज ॥ सांजलजो तुमें चित्त धरी, सहेजें सरशे काज ॥१२॥
पूठणना श्राज ॥ साना दान एकाए देशी
॥ उचुं देहरू धारि । हाल एकावनमा सहज सरशे काज ॥१२॥
॥उचुं देहरं आदिनाथर्नु रे जोजो ॥ ए देशी ॥ रणघंटा कहे ते हने रे श्रावो, करी नारीनु रूप । मोरा साहेबा रे॥ काम सवल ए बुद्धिं रे जोजो ॥ ए आंकणी ॥ था नारी गयो तेहने रे जोजो, के. ते न वल स्वरूप । मोरा साहेबा रे ॥ का० ॥ १ ॥ करी प्रणाम अक्का जणी रे जोजो, पामें वेती तेह ।। मो० ॥ पूरे तेहने ताहरी रे के, कोण ए रुपनुं गेह । मो० ॥ २ ॥ ते कहे श्रीदत्तशेठनी रे माता, रूपवती कन। एह ॥ मो० ॥ एह सही ने माहरी रे माता, एह' निविड सनेह ।। मो० ॥ ३ ॥ एक बार एहने मल्या विना रे माता, कल न पड़े मुज काय ।। मो० ॥ ए पण वेठी मंदिरें रे माता, अहानिश मुफ गुण गाय ॥ मो० ॥ ४॥ हमणां ए लिप करी मुझने रे माता, मलवा थावी
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श्री शातिनाथनो रास खेम बहो. ४२३ एणी वार ॥ मो० ॥ तेडी लावी एहने रे माता, ए ने मुझ आधार ॥ मो० ॥ ५॥ एहवे वणिक ते आवियो रे जोजो, प्रणमे अक्का पाय ॥ मो० ॥ वात कही रत्नचूडनी रे जोजो, धुरिहूंती समजायः ॥ मो० ॥ ॥ ६॥ ग्रयुं करियाणक एहनुं रे जोजो, अम्हें करी कूड उपाय ॥ मो० ॥ कहे अक्का तुम अम्हमां रे जोजो, कोडी लान न थाय ॥ ॥ मो० ॥ ७ ॥ ते कहे केम अमने कहो रे जोजो, सा कहे नांरव्यु
आम ॥ मो० ॥ तुम चिंतित करियाणगुं रे जोजो, पूरझुं यान निकाम ॥ मो० ॥॥ ना अनेक प्रकारनी रे जोजो,कहेशे मशकने हाड मो॥ पूरो ए प्रवहण माहरू रे जोजो, तो केम पूरशो लाड ॥ मो० ॥ए॥ चार वणिक तब बोलीया रे तेहने, एवडी किहांथी बुद्धि ॥ मो० ॥ कहे अक्का मत जाजो रे नाइ, बाल माटे निर्बुदि। मो० ॥ १० ॥ ए धूरत पुर आवियो रे होशे, तेह धूरत शिरदार ॥ मो० ॥ कोश्क माथानो मिले रे नो हे, सघला एक प्रकार ॥ मो० ॥ ११ ॥ लान थायजो तुम्ह ने रे नाई, तो होय मुफनें लाह ॥ मो० ॥ पण मनमांमम राखशो रे नाई, मनडामांहे चाह ॥ मो० ॥१॥ तेह गया निज मंदिरें रे आव्यो, कारुक दोडी ताम ॥ मो० ॥ विकसित मुख बोले हसी रे अक्का, आज थयुं मुफ काम ॥ मो० ॥ १३ ॥ आज व्यवहारी आवियो रे कोड, नेट उपानह कीध ॥मोण॥ करिश खुशाल ढुं तुमने रे तेणें, एहईं वचन मुज . दीध ॥ मो० ॥ १४ ॥ तस सर्वस्व लीधे सही रे थायुं, ढुं खुशाल दिल माहे ॥ मो० ॥ ए कहेवाने धावियो रे पासें, तुमचे धरि उत्साह ॥ मो० ॥ १५॥ कहे अक्का सुण कारुया रे कीजें, मनोरथ आप समान ॥ मो० ॥ अजुगत एह, मागतां रे माथे, पडशे ताहरे उपान ।। मो० ॥ १६ ॥ कहेशे ए नरिंदने रे दूळ, मंदिरमा सुत आज ॥ मो० ॥ तुं खु शाल किंवा नहीं रे त्यारे, आफरडो आवीश वाज ॥ मो० ॥ १७ ॥ .. ते पण सुणि विलखो थइ रे पाबो, आव्यो निज घरवार ॥ मो० ॥धू . रत एकहग आवियो रे करतो, आपणो गुण विस्तार ॥ मो० ॥ १७ ॥ यमघंटा वोली हसी रे कूडी, ताहरी शी ए बुद्धि ॥ मो० ॥ आगलथी धन आपीयु रे मातुं,कीg किहां गइ शुद्धि ॥ मो॥ १५ ॥ कहे तस धन लेवा तणो रे ए में, कीधो सत्यंकार ॥ मो॥ कहे अक्का ण वातथी रे व
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४४ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. हेलो, थाइझ सही तुं खुवार ॥ मो० ॥ २० ॥ अन्य लोचन अथवा किसी रे तेहवी, वस्तु देखाडशे तुज ॥ मो० ॥ तुं मति केलविने तदा रे तेहने, कहिश नहिं ए मुफ ॥ मो० ॥ २१ ॥ कहेशे ते तोलन यंत्रथीरे लेइ, . तुज लोचनगु तोलि ।। मो० ॥ सरि थाय तो ताहरुं रे लेजो,श्यो तब उत्तर बोल ॥ मो० ॥ २२ ॥ कहे कितव तुम एहवं रे सफे, नहिं तस वोलण याय ॥ मो० ॥ तेमाटें धन एहनुं रे माहरे, हाथे थाव्याप्राय ॥ मो० ॥ २३ ॥ ते पण नतीने गयो रे आव्या, व्यंसक ते वली चार ॥ मो० ॥ कहेवा लाग्या धापणी रे यावी, वात सकल विस्तार । मो० ॥ २४ ॥ कहे अक्का तुम वातमां रे कांड, देखं नहीं सकार ॥ मो० ॥ ते बुद्धिमंतनी बाग. रे कां, नहिं तुम जोर लगार मो॥२५॥ कहेशे सा यर नीरनु रे माहरे, करवू सहि परिमाण । मो० ॥ पण नदीयोनां नीरने रे जा, करो अलगुं तुमें जाण ॥ मो० ॥ २६ ॥ ते नहिं याये तुम्दयी रे त्यारे, खोशो घरनी आथ ॥ मो० ॥ खोटो विचार न कीजियें रे जेहथी, न रहे शरम निजहाथ ॥ मो० ॥ २७ ॥ ते पण उठीने गया रे द रव्यो, शेतनंदन गुणवंत ॥ मो० ॥ हे एकावनमी जणी रे जोजो, बुधिलियो बलवंत ॥ मो० ॥२॥ सर्व गाथा ॥१एन१॥ श्लोक ॥७॥
॥दोहा॥ ॥रणघंटा' उतीयो, शेठ नंदन गुणरवाणि ॥ तस मंदिरमा धावियो, । करतो तास वरखाण ॥ १॥ ले अनुमति तेहनी, आव्यो निज यावास ॥ यका कथित उपाययी, कारिज करे उल्लास ॥ ५॥ नांमग्राही वणिजो यकी, ली, धन चन लद ॥ वारिधि जल मितकारथी, तावत् वली प्रत्य ६ ॥३॥ तिण व्यतिकरथी ते दुन, पुरमांहे परसि६ ॥ अन्यदिवस ले नेट[, गयो नरपतिने सविच ॥ ४ ॥ करि प्रणाम ऊनो रह्यो, पूरे नृप वृत्तांत ॥ रत्नचम मामी कह्यो, सघलो ते अवदात ॥ ५॥ नरपति मन चिंते इस्यु, अनुत एहनु नाग्य ॥ ग श्रम नगरीलोकने, जेणे व गिया ए काग ॥ ६ ॥ माग माग राजा कहे, थयो तुज कपर तुष्ट ॥ चु दिमंत तुक देखिने, 'यह मुफ मनसुख पुष्टि ॥ ७ ॥रएघंटा मुझने दियो, प्राणवलना थाय ।। गजदुकमधी गेदिनी, थ गणिका मुखदाय ॥ ७ ॥ यत्वानरा दीधांधणां,पूरी मननीरुहांड ॥ रघटानां रंगा,पुरुषां सघलां
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श्री शांतिनाथनो रास खंग बहो.
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लाम ॥ ए ॥ नान थयो बहु तेहने, नरि करियाऐं यान ॥ रत्नचूड निज पुर जली, चाल्यो सुगुणनिधान ॥ १० ॥ थोडे दिवसें खावियो, रत्नचूड निजगेह || रत्नाकर हरख्यो घणुं, सुत ऋद्धि देखि ह ॥ ११ ॥ प्रणमे चरण पिता तणां, माताना वली पाय ॥ सुत जीवो युग कोडि लगें, ये खाशीप पसाय ॥ १२ ॥ मांगीने सधनुं कयुं निजवृत्तांत शेष ॥ रत्नाकरना हृदयमां, हर्ष थयो सुविशेष ॥ १३ ॥ ईषत् तस गुणवर्णना, पिता करे तेपि वार ॥ पुत्रप्रशंसा नवि करे, गुरुजन एम व्यवहार ॥ १४ ॥ यतः ॥ प्रत्यके गुरुवः स्तुत्याः परोचे मित्रबांधवाः ॥ कर्मते दासनृत्याश्च पुत्रा नैव मृताः स्त्रियः ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ श्राव्यां घणां वधा मां, साजन हर्ष पार || पुत्र पिता वेढू मव्या, वरत्यो जय जयकार ॥ १५ ॥ यावी सौभाग्यमंजरी, तस देखने काज ॥ रत्नचूड आसन वी, बहुत बधारी लाज ॥ १६ ॥ न तुऊ उपदेशथी, उपराजी बहु ऋद्धि ॥ जइ परदेश कमाइयो, थइ मुऊ कारिज सिद्धि ॥ १७ ॥ ॥ ढाल बावनमी ॥
॥ कंसार ते सुधो कैलव्यो ॥ ए देशी ॥ सौभाग्यमंजरी कहे एहवं, तुम जाग्य हतुं ययुं तेहबुं ॥ तुम शोना यावी यति नली, तुम कीर्त्ति वाधी कजली ॥ १ ॥ तुम ऊपर मोही हुं घणुं, तुम गुणसमुदाय केता जणुं ॥ प्राण जीवन तुम एक माहरे, गृहिणी थाइश घर ताहरे ॥ २ ॥ लेइ भेट्यो उपायन नूपति, घणुं रीज्यो देखि तेहनी रति ॥ हर्षित नृ पनीयाणा वरी, घर राखी सौभाग्यमंजरी ॥३॥ धन प्राप्युं पितानुं मूलगुं, कर जोडी थइ रह्यो उलगुं ॥ भुज उपराज्यं इव्य वावरे, वहु त्याग ने जोग समाचरे ॥ ४ ॥ अन्य पण परणी तेणें कामिनी, गुणवंती जे गज गामिनी ॥ करे पुण्यनां काम ते प्रति घणां, जिनचैत्य करावे सोहा मणां ॥ ५ ॥ विलसे रूडी जोगसंपदा, सुहणामांहे नहिं चापदा ॥ सुखमांहे काल गयो घणो, यश चावो चिहुं दिशि तेह तणो ॥ ६ ॥ एक दिवस मुनीश्वर याविया, राम दमवंता समजाविया ॥ रत्नचूडें जई मुनि वंदिया, गुरुदेशना सुणी प्रानंदिया ॥ ७ ॥ लीये संयम मुनि वरजी कने, पाले निरतिचार रूडे मनें ॥ करे किरिया मुनिवर निर्मली, शुनाव सहित मननी रली ॥ ८ ॥ यं ते स चादरी, सुर
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________________ 46 जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. लोकनी लीला तेणें वरी // पद पाम्या माहानंद अनुक्रमें, धन्य ते जे एहवा मुनि नमे // ए॥ हवे निसुयो उपनय ए सही, अयंतरनी वातो कही // कुल उत्तम मानव नव लह्यो, नविजीव वणिकनो सुत / कह्यो // 1 // हितकारक श्रीगुरु जागीये, ते तेहनो तात वखाणीयें / / . श्रमादि जनित प्रोत्साहना, ते वेश्यावचन निदाननां // 11 // पुण्य लक्ष्मी उपचयकारिणी, धागल पण नवजल तारिणी // मूलभव्य चा रित्र गुरुयें दियु, ते राखे ठेकाणे सहजीयु // 12 // पुर वायु अनीतिनुं जे तदा, गुरु सारण वारण दे मुदा // संयम प्रवहण ऊपम लही, जब सायर तरवो ये सही // 13 // कर्णधारक तुल्य विमलमना, साधर्मिक साथ तपोधना // नवितव्य नियोगान जागीयें, प्रमाद जे हयमां या एपीयें // 14 // पुर पाम्युं अनीतिना नामर्नु, कुप्रवृत्तितणुं जे प्रवर्तनु / मोहनूपति नाम अन्यायीयो, पुरमा सघ जे गायो॥ 15 // जांमग्राहि वणिक सम नांखिया, चार उष्ट कपाय ते राखिया // हरे इव्यविवेक ते पापीया, एवं लोक घणा संतापीया // 16 // विषयाशा हो वेश्या सम कही, तेहने जाय मले जीवडो सही // कर्मपरिणति अक्का यति जली, शुनमतिदायक कृत पूर्वती // 17 // उल्नंघी अगुन सवि ते हथी, प्राणी मलियो निजगेहथी // धर्ममारगमा फरि धावियो, जन्म नमिपरें सुख पामियो // 17 // एह उपनय दिलमांहे धारीयें, गुण श्रादरी अवगुण वारिये / कीजे धर्मनुं कारिज धसमसी, धन्य वात ए जेहने मन वसी // 1 // चक्रायुध गणधर उपदिस्यो, श्रीसंघतागा दिलमां वस्यो ॥ए उपनय दिलमा राखजो, नवि अनुनव स्वादने चाखजो // 20 // बावनमी ढाल ठके सुपी, अंतर उपनय दारव्यो मुनि // कहे गम विजय सदु सांजलो,नवि धर्म करो तजि आमलो // 21 // 201MIGG // ॥दोहा॥ // दीधी गणधर देशना, सामाचारी सार // साधुने सवि दाखवी, जेहथी जवनिस्तार // 1 // यिविरकल्प प्रकाशियो, श्रुत केवली जग वान // श्रीचक्रायुध गणधरु, नविकज सूर समान // 2 // प्रतु विचरे पु हवीतले, पद धरता कज हेम // सुर नर कोडें परिवरखा, बरत्युं जगमा हम // 3 // केक दीदा थादरे, के ग्रहे श्रावकधर्म // कपरिणा
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________________ श्री शांतिनाथनो रास खंग हो. 4 मी थया, केक तजी विकर्म // 4 // तम नातुं सवि जगतनु, कग्यो जि नवर जाण // कौशिक जिम एक अनव्यने, न थयुं का कल्याण // 5 // अग्निये पण सीके नहिं, जे करडू कण होय // तेम अनव्यने तारवा, सम रथ नहिं जिन कोय // 6 // उपर नूमि न नीपजे, जेम जगमां का धान्य // बोधि न होय अनव्यने, तेम जिनदेशन वाणि // 7 // अति शयवंत माहामुनि, महागोप अनिधान // गुण अनंत जिनवरतया, कुण कही शके सुजाण // 7 // ॥ढाल त्रेपनमी॥ // त्रिपदीनी देशी // चोत्रीश अतिशयवंत मुणिंद, महीममल विचरे जिनचंद, नवियण मन आनंद तो॥१॥जयो जयो नवियण मन आणंद ॥ए आंकणी // स्वेद मल रोग रहित प्रनु अंग,श्वास पद्मगंध होय सुचंग, मांस रुधिर सितरंग तो // जयो // // नवि देखे थाहार नीहार, यति शय जन्म तणा ए चार,होवे अंग मजार तो // ज० // 3 // योजन नूमि सुर नर तिरि कोड, वेसे निराकुल मननें कोड, कुण करे एहनी होड तो // ज० // 4 // सदु समजे योजन लगें वाणी, जलके नामंगल नीशाणी, श्रीजिनगुगनी खाणि तो // ज० // 5 // पंचशत कोश लगें मुर्निद, रोग ' वैर इति मारी प्रत्यद, अति वर्षण ने अवर्ष तो // ज० // 6 // स्वपर चक्र नय वोल ए आउन दुवे ए आगमनो पाठ, एम अग्यारनो गाठ तो॥ ज० // ७॥घातिकर्मक्ष्यथी एअग्यार, हवे देवकत उगणीश विचार, मुणिये नवि निर्धार तो // ज० // // धर्मचक्र प्रनु आगल सोहे, चामरयुग नविजन मन मोहे, मणि सिंहासन जोय तो // ज॥ ए // त्रत्रय इंध्वज प्रवर, हेमकमल विरचे तिहां सुरवर, त्रिदु गढ अतिहि मनोहर तो // ज० ॥१॥चनमुह रचना धर्म प्रकास, चेश्यतरु दी उल्लास,अधो होय कंटक आस्य तो // ज० // 11 // तरु नमन मुनि ध्वनि सारी, पृष्ठानुपाती पव न निर्धारी, अतिशय गुण वलिहारी तो // ज० // 12 // पंखी पण प्र दक्षिणा दिती, गंध जलष्टि तिहां कणे ढुंती, कुसुमवृष्टि विरचंती तो // जा // 13 // व्रत सीधे नवि वाधे केश, जघन्यथकी सुरकोटि प्रवेश, श तु अनुकूल अशेष तो // ज० // 14 // ए जंगणीश अतिशय सुर कीधा, एम चोत्रीश थया परतिक्षा, सघला कारिज सिद्धां तो // ज० // 15 //
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________________ भG जैनकथा रत्नकोप भाग आठमो. गुण अनंत जिनजीना दीसे, जोतां नवियणनां मन हिंसे, दिन दिन - चढती जगीश तो // ज // 16 // अतिशय गुण जिनजीना जेह, जिन विए बीजो न लहे तेह,महिमा अतुल अवेह तो // ज० // 17 // विच रे महि अचिरानो जायो, चोसर 3 मली गुण गायो, त्रिजुवनजन म न जायो तो // ज० // 17 // चक्रायुध गणधर अनुसाथ, सेवे प्रनुने जोडी हाथ, जय शिवपुरना साथ तो // ज० // 15 // जाणत पण पूरे कर जोडी, गणधर प्रजुजीने मद मोडी, पहोंचे नवियण कोडि तो // ज० // 20 // बछे खमें त्रेपनमी ढाल,शांतिप्रनु अतिशय गुणमाल, नवि यण सुणो उजमाल तो // ज० // 1 // सर्वगाथा / / 2047 // 7 // ॥दोहा॥ // विश्वसेन कुलचंदलो, यचिरा मात मल्हार // सोलम जिन त्रिजुवन धणी, नोधारा श्राधार // 1 ॥जक्तवत्सल नावट हरण, सेवकजन सा . धार // करुणारस लायर प्रनु, कहुँ तेहनो परिवार // 3 // // ढाल चोपनमी / / // केवलीने मुख सांजली ॥ए देशी // नवियण वंदो रे नावा,प्रजुनो परिवारो रे // गुणवंतजीना गुण स्तव्ये,लहियें नवजल पारो रे॥नवियण वंदो रे जावगुं ॥ए आंकणी॥१॥ गुण सत्त्याविश शोनता, शमरस नं मारो रे // प्रनुजीना मुनिवर नमुं, बासठ हजारो रे // 2 // एकसत सहस गुणे जरी, पट्शत अधिकरी रे॥हस्तदीक्षित नमुं साधवी, गुणशील जलेरी रे। न० // 3 // शुभ समकित गुणधारका, वारे व्रत पाले रे // न चले चलाव्या धर्मथी, व्रत दूपण टाले रे // ज // 4 // रागे रंगाणा घ मैने, जिनधर्म ए जाणे रे // सार ए अवर असार वे, न मगे कोई टागो रे / जम् // 5 // चन्दश श्रामिने दिने, करे पोसह नावें रे // शुक्ष अश नादिक साधुने, हर्पे पडिलाने रे // नम् // 6 // शांतिप्रवाणी सुणी, सूत्रा प्रतिक्षा रे // साधुनी संगत मूकीने,न रहे ते जूदा रे // ज० // 7 // दोय लाख उपर वली,ने, सहल सुणीजें रे // एहवा श्रावक जिन तणा, नित्य प्रत्ये समरीज रे // ज० // // गुणवंती दुइ श्राविका, त्राम्य ला ख उदार रे // त्राएं सहत उपर वली, प्रणमो नर नारी रे // ज० // // जिन नहिं पग जिन सारिखा, बिटु कालना हाता रे // यात सह
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________________ श्री शातिनाथनो रास खंम बहो. ए स श्रुत केवली, षट्कायना त्राता रे // न० // 10 // नव संख्यात मनु प्यनां, रूपी व्यने देखे रे // अवधिज्ञानी मुनिवरा, त्रण सहसने लेखे रे // ज० // 11 // समय क्षेत्रमांहे संझिता, मननावने जाणे रे // मनःप र्यवनाणी मुनि, सहस चार वखाणे रे // ज० // 12 // केवलझाने जाणता, सदु लोक अलोक रे // चार सहस त्रणशे वली, वंदो गतशोकें रे // ज०॥ 13 // वैक्रियलब्धिधरा जला, षट्सहस मुणिंद रे // चार शें दोय सहस नमो, वादी पाणंद रे // ज० // 14 // ए परिवार जिएं दनो, कर जोडी जालें रे // मुक्तिमार्ग साधे जलो, वंदो त्रिदु कालें रे॥ न० // 15 // वैयावृत्य करे जलु, सद् विघ्न निवारे रे // यद गरुड नामें न लो, प्रजुसेवा सारे रे // न० // 16 // जक्त तणी सान्निध्य करे, निर्वाणी नामें रे // शांति प्रनुशासन सुरी, समरो गुजकामें रे // ज० // 17 // मुख्य सदुमांहे शिरें, चक्रायुध जात रे॥ कोणाचल नृप स्वामीनी, करे सेव सुजात रे // ज० // 17 // चालिश धनुपनी देहडी,मृगलांबन स्वामी रे॥ कांचनवर्ण तनु शोनतुं, प्रणमो शिर नामी रे // ज०॥ १ए // अप्रति रूप जिपंदन, वपु सुंदर दीपे रे // एक मनें अवलोकतां, सवि पातक बीपे रे // न० // 20 // जुवनत्रय प्रजुता तणां, सूचक नत्किहां रे // धात अशोकादिक तणां, प्रातिहारज दीवां रे // न० // 21 // यतः // अशोकवृदः सुरपुष्पवृष्टि,दिव्यध्वनिश्वामरमासनं च // नाममलं उंछ निरातपत्रं, सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् // 1 // पूर्वढाल // एम प्रनु प्रजुता जोगवे, त्रिदुं जगत प्रतिपाल रे // सहजसमाधिनी लीलमां, विचस्या बदु काल रे ॥न // 22 // सौरव्य अतींश्यिना धणी, वर ते समजावें रे // साधक बाधकता मटी, सहजातम नावें रे // ज० // 23 // घट घट व्यापक जे विलु, अविकल अविनाशी रे // परमातम प्रग टी कला, गुन ज्योति विलासी रे ॥नाश्॥ चोपनमी ए ढालमां, खम बठे सुणीजें रे॥ शांतिप्रनु पद सेवतां,जन्म सफल गणीजें रे // // 25 // ॥दोहा॥ // वरिस पंचविंशति सहस, कुमरपणे जगदीश // मात पिता यां गल रह्या, दिन दिन अधिक जगीश // 1 // सामानिक राजाप', वरिस तेटलां जाण // सुखलीला प्रनु नोगवी, अतिशय गुणमणि
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________________ 430 जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. खाण // 3 // सहत पंचविंशति वली, चक्रवर्तिपद जोग // बरस पंचोतेर सहल एम, रहिया प्रलु गृहयोग // 3 // पणवीस सहस बर सज लगें, चारित्र पाल्युं सार // वरस न्यून तेतां वरस, केवलीपणे उ दार // 4 // वर्ष लद एम पाउ, नोगवियु जिनराज // हवे कहूँ अधि कार ते, जेम पाम्या शिवराज // 5 // // ढाल पंचावनमी // ॥आपो आपोने राज, मोघां मूलां मोती // ए देशी // सेवो सेवोने राज, शांतिजिनेश्वर स्वामी // सोलम जिनवर सोलम सोवन, वरणे शिव गतिगामी / / सेवो सेवोने राज // शां० // ए प्रांकणी // जगगुरु जगलो चन जगदीपक, जगतारण हितकारी // जगजीवन जगबंधव जिनवर, वंदो सवि नर नारी // सेवो० // 1 // निज निर्वाणसमय अनु जाणी, बदु साधु परिवारें // समेतशिखरें पधाया प्रचजी, आप तरे पर तारे // सेवो० // 2 // मनुं शिव चढवानी नीसरणी, समेतशिखर गिरिंदा / थारोहे यलवेसर जिनवर, यघिरा राणीनंदा / / सेवो० // 3 // पद्मासन पूरी परमेश्वर, वेठा ध्यान समाधि // सुरवर समवसरण तिहां विरचे, हेजा हियडु वाधे // से० // 4 // तिहां वेसी उपदेश दिये प्रनु, निसुणे असुर सुरिंदा // नाव अनित्य सकल नवमांदे, दीसे ए सवि फंदा // से० // 5 // म म करशो ममता मनमांदे, सदु संबंधे मलियुं / राखो नवमांहे रोकीने, कर्मकटक ए वनियुं // सेवो० // 6 // तुं कुण घरनो चेतन तहारी, समता सुंदरी नारी / / { लाग्यो ममता गणिका'. होय रह्यो नीवारी // से० // // चेतन संग तजो ममतानो, करो नम तागुं चारी // जातें जाति मिले होय युगतुं, असरिस संग निवारी / / से // 7 // काम करो कोई एह धारी, बंधनो हेतु निवारी // जेम नव स्थिति वांमी प्रति जारी, वरीये मुक्ति सुनारी / मे० // // तब गणधर गिर गुणवंता, चक्रायुध मद मोढी // लिम्रस्वरूप कही मनु मुझने, पूने चंदु कर जोडी // से० // 17 // कहे प्रनु देवथकी जोवंतां, खद पणया निस मानें // सिहशिना पुढवी ठे उपर, उज्ज्वल कंचन वान // से / 11 // उत्तान उत्र तणे याकारें, समयदेव परिमाणें // मध्यपिंग ण्यात योजन जेहनो, ज्ञानी विण कुण जाणे / / से० // 12 // माखी करी
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________________ श्री शांतिनाथनो रास खेम बहो. 431 पांख तणी परें, तनु अंतें तें दीसे // जांखे शांतिप्रनु निसुणीने, नविय णनां मन हीसे // से // 13 // जे ऊपर योजन चोवीसम, जागे सिम विराजे॥ज्योतिगुं ज्योति मली परमातम, लील अनंती बाजे ॥से॥१॥ सिम अनंत चतुष्टय प्रगट्यु, विरम्यो सकल उपाधि // एक नेद पन्नर उपचारें, सिह नमो सुसमाधि // से // 15 // नहिं जिहां जन्म जरा दिक दुःखडां, अनंत अतींख्यि सुखडां // निराकार निर्देन विलासी, सिम जपे शुचिमुखडां ॥से // 16 // मुग्ध लोक अनुमानें एहनी, उपमा जग कहेवाय // पण परमारथ सौख्य अतीप्रिय, केम पुजल जोडाय // . से // 17 // जिम सांकेतपुरपति रिपुमर्दन, आण्यो पुलिंदने पुरमां // उपकारी जाणीने हर्षे, राख्यो ते निज घरमां // से // 17 // उत्तम अंशुक तस पहेराव्यां, आभूषण अति वारू // मेवा मीठाई वरनोजन, करतां ययो दीदारु // से // 15 // एक दिन वर्षाकालें विरहें, थयो कामातुर गाढो // वनमाहे रमतो क्रीडा करतो, सांजव्यो निज आपाढो . // से० // 20 // यामिकने वंचीने निशिमा,नग्न थई नीसरियो // वनमांहे आव्यो निज परिकरने, मलियो सुःख विसरियो // से० // 21 // वर्ण फिरे नवि ते उत्लखाणो, कोण तुं किहांथी आव्यो // ते कहे दुं तुमचो संबंधी,नेद सकल वतलाव्यो / से० // 22 // ते पूढे कहेवां सुख दीवां, श्यो कीधो आहार // ते कहे कहेणीमांहे न आवे, विण उपमा निर्धार // से // 23 // तस प्रतीति ऊपमथी कहेवा, मांझी सुखनी वात // फल सुखाद कंदादिक जेहवी, मीती मोदकजाति // से // 24 // शाल्यादिक नीवार सरीखां, में तिहां नदण कीयां // गुंदी पत्रोपम अति सुंदर, पत्र अशन प्रसिकां // से० // 25 // शाल्मलिकंदोपम पूगी फल, वसन ए वल्कल सरिसां // पहेखां कुसुम तणी जेम माला, तेम आनूषण सरसां ॥से // 26 // गिरिकंदरसम वर आवासें, वसियो हुँ वा वेला // तेम असार सुखशुं तेणी उपमा, दीधी तेणी वेसा ॥से // 2 // एम सांसारिक लोकनी बागल,अमें शिवसुरख वर्णवियें // लोक तणे अनुमाने पण ए, नवि कहेवाये न मवियें ॥से // 2 // काम जोग संबंधी जे सुख, तेहथी दिव्य सुख महोटुं। सि६ प्रनुने अनंतगणुं सुख, एह वयण नवि खोटुं ॥से // 2 // ए सुखलीला आगल नवनां, सुख सघलाही
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________________ ___432 जैनकथा रत्नकोप जाग आठमो. फीकां // जात्यमणि आगल नवि शोने, तुब प्रसार अकीकां // से० // // 30 // उठे पंचावनमी ढालें, देशना दीधी जिणंदे // रामविजय कहे अहोनिश दिलमां, धरिये मन आनंदें // से // 31 // 2111 // 7 // ॥दोहा॥ // देई एणी परें देशना, जतचा त्रिनुवननाण // शिखर चढ्या शिरवरी '. तणे, जागी निजनिर्वाण // 1 // केवलझानी साधुजी, नवशे साथ मुणिंद // अणसण कियुं अरिहंतजी, एकमासिक सुखकंद // // सपरि वार सुरपति सवे, जगत प्रनुनी पास // परम प्रीति संपन्न ते, करे सेवना खास // 3 // ज्येष्ठ श्याम तेरश दिने, जरणी उस विधुयोग // गुक्त चरम नेद ध्यावतां, लहे गुणगए अयोगि // // चरिम समय अयोगीने, करी वहोत्तरनो नाश // चरम समय ते खेपवी, पहोता शिवपुरवास // 5 // समय पएसंतर वली,पण फरसीने ताम // गति परिणामे पंचमी, गति सही त्रि सुबनस्वामि // 6 // अनुक्रमें साधु सवि तिहां, पाम्या परमानंद॥सिहपाएं पाग्या मुनि, मोडी जवनयफंद // 7 // नाय थयो शिवनारीनो, जाणीने जगनाथ // अश्रुजलाविल लोचनें, रुदन करे सुरनाथ // // गुणा संजारे स्वामीना, श्राव्यां हृदय नराय // हा! प्रनु तुम विरहो पढ्यो, कहो हवे केम खमाय // // संशयतिमिर विनाशवा, हा! दिनकर उपमान // अमने मूकी अनाथपरें, किहां गया हे नगवान! // 10 // सदु नापा संवादिनी, गाजत जेम घनमेह // तुम विण कुरा दर देशना, हरशे अम संदेह // 11 // उर्निदादिक अशिव सवि, पीडाकर जग माहे // तस उपशम करशे कवण, तुम विगुं तिथपनाह // 12 // काज तजी देवलोकनां, महियल आवी स्वाम // करयुं कोनी चाकरी,नुम विपुं प्रनु गुणधाम // 13 // धरता एम मन खेदने, इंइ सवे तेणि बार / / करे उत्सव निर्वाणनो, हवे निमुणो अधिकार // 14 // // ढाल ठप्पनमी॥ // महारी सही रे समापी // ए देशी // जिनवर मुक्त पधाग्या जाणी, मन खेद धरे नविप्राणी रे // प्रनु मुक्ति पधाग्या / प्रनु जगजीवन जड़ शिव वरिया, श्रया निरुपाधिक सुखदरिया रे // प्र० // 1 // पतित पावन परमातम नामें, यह वेठो अविचल धामें रे // 30 // मार न
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________________ श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. 433 से हवे सेवक केरी, रह्यो आपणने मोह घेरी रे // // 2 // कुण करशे अम सार संजाल, प्रजु तुम विणुं दीनदयाल रे // // नक्त वत्सल प्रनु नाम धरावी, नपगार करो प्रनु आवी रे ॥प्र० // 3 // झुं कहेवू वीतरागने एह, जेहना मनमां नहिं नेह रे ॥प्र०॥ चार निकाय तणा सुर मलिया, जिननक्ति करण जल फलिया रे ॥प्र० // 4 // हीरोदधिनां हो नीर मगावी, पहेलां प्रजुने नवरावी रे ॥प्र० // गो शीर्ष चंदन घसि रंगे, सुर लेप करे जिन अंगें रे // // 5 // मुख म हेली कर्पूर सुवास, पहेरावे देवपुष्य वास रे // // अगरु उखेवे नक्ति महमूर, पसरे तस परिमल पूर रे // प्र० // 6 // मंदार पारिजा तकसंतान, फूलें पूजे जगवान रे // // शिविका रयण तणी विर चावे, प्रजुजी तनु तिहां पधरावे रे // प्र० // 7 // इंशदिक शिविका क पाडे, नैऋत कूणे पहोंचाडे रे // प्र० // चंदनदारुचिता तिहां विरची, प्रनुअंग धयुं तिहां अर्ची रे ॥प्र० // // अपर चिता अणगारने हेते, सुरें कीधी मननी प्रीतें रे ॥प्र० // अग्निकुमार सुरें तिहां ावी, मुखें अनि तिहां सलगावी रे // // // वायुकुमार विकूा वाय, प्रजाली प्रनुनी काय रे // // दाधां शोणित मांसने जाणी, मेघ सुर वरसावे पाणी // प्र० // 10 // चिताअनल शमियो तिण वेला, सदु इंश् यया तिहां नेला रे // // दक्षिण कवंदाढ सुचंगा, ग्रहे पति सौधर्म सुरंगा रे ॥प्र० // 11 // चमर अपर यह दक्षिण केरी, दाढा धरी नक्ति घणेरी रे // // वाम दाढा अध उपर दो, ईशान बलीइ ले सोइ रे ॥प्र० // 12 // शेष अत्यावीश दंत सुरिंदा, लिये धरि मनमां यानंदा रे // // शेप अस्थि अनिमेप विचारी, लिये जा वगुं करि एक तारी रे // // 13 // विद्याधर नर ऊना जोडें, चिता नस्म ग्रहे मन कोडें रे ॥प्र० // सकल नपश्व टालाहारी, प्रजुन क्तिनी जावं वलिहारी रे // // 14 // एम संस्कार करी प्रलु अंगें, करे धूप तिहां मनरंगे रे // // सोवन स्थगनुं काम विराजे, दी। नवजावत नांजे रे // प्र॥ 15 // ते ऊपर जिनपडिमा स्थापे, दरि साथी उरितने कापे रे // 10 // केसर सुरवडगुंजे पूजे सकि, अगुन कर्म तस धूजे रे ॥प्र० // 16 // नक्ति करे जिनपडिमानी सारी, ज
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________________ 434 . जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. गमा धन्य ते नर नारी रे // // करी निर्वाणमहोत्सव महाल्या, नंदीवर चात्रायें चाख्या रे // // // 17 // करि जिननक्ति तिहां जले , जावे, कर जोडी जिनगुण गावे रे ॥प्र० // वावन प्रासादे जिनराया, प्रजी करे निर्मल काया रे // // 17 // प्रचुगुणझानमां तान व नावी, घणी वार त्यां नावना जावी रे // प्र // निज निज स्थानक ते सुर जावे, दिलमा प्रचुके गुण ध्यावे रे // 0 // 1 // समकितवंत तणी ए करणी, नवसायरपार उतरणी रे // प्र० // कुगति हरी दिये मुक्ति सहेली, प्रनुपूजायें दरिसण नेली रे // // 20 // ढाल ठप्पनमी खंमें बहे, अनु पूजो चित्त अकुंठे रे ॥प्र० // रामविजय कहे उत्तम तेह, जेहने प्रनु साथै सनेह रे // प्र० // 21 // सर्वगाथा // 2146 // // दोहा // ॥जिनवर मुक्ति पधारिया, चक्रायुध गराधार // प्रगुण समरंता / मनें, महियल करे विहार // 1 // साधु संघातें परिवस्या, सुधा समता वंत // नविकजीव प्रतिवोधता, सुरनरसेवित संत // // गुण सत्या वीश साधुना, अंगें धरे अागार // समतारसमाहे फीलता, नहिं ममता अहंकार // 3 // धरति निवारी चित्तथी, रतिपति न लहे लाग॥ चक्रायुध गराधर तj, जग प्रसयुं सोजाग्य // 4 // प्रातम गुण वाडी जली, सींचे उपशम नीर // वानर इंडिय चपलता, काढी मूके धीर // // 5 // कटुक जाड काढयां परां, क्रोधादिक जस नाम // वाडी नली वे राग्यनी, चोपर अजिराम // 6 // शांतिनाथ जिनराजनी, शिरपर धारे याण // न्याहाद मत उपदिसे, नय गम नंग प्रमाण // 7 // इव्ये गुण पर्यायनु, चिंतन करे सुधर्म // अप्रमत्तता नृमिमां, निबिड खपाध्यां कर्म // 7 // नर्म मट्यो मोहरायनो, चेतन कीधी केडि / / करणशस्त्र करमां ग्रही, नाल्यो मोह उखेडि // ए // श्रेणि चढी गुरागणमां, बरतावे निजाण // वीतरागना नावथी, पाम्यो केवलनाण // 17 // रथ सुरादिक सवि मिट्या, उत्सव करे अपार // गगनें गाजे इंडन्नि, बरत्यो जय जयकार // 11 // नवस्वरूप नाटक समुं, दीहूं नजरें ताम // जव्य जीवनी यागलें, दिये देशना श्राम // 12 //
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________________ श्रीशांतिनाथनो रास खंम बहो. 435 // ढाल सत्तावनमी॥ // उत्तहो मानवनव लाधो // ए देशी // कहे चक्रायुध केवल नाणी, सांजलो सदु नवि प्राणी॥जव अनादि संयोग ए दीसे,गुं देखि देखी हीसे रे॥१॥ जविका, धर्म करो मद मूकी॥ नतिर जाशो नव चूकी रे॥॥ ए आंकणी // मनमांहे चिंते मात पिता मुफ, नाई ने जोजाई // पण को काम पड़े नवि आवे, साथै आप कमाई रे ॥न // 5 // लोन घणो म नमांहे राखे, मेले धन के लाख // पाप परिग्रह नेलो कीधो, पण अंतें सद् राख रे // 0 // 3 // मनमांहे जाणे मान तणे वश,पूरूं दुं सदु / नुं पा९॥ शीख देयंतां नागे अवलो, बोले वायक डेरे // // 4 // वेदु प्रकारे वालपणुं निज, पोपे बहु थारंनी // निष्कारण जगमांहे बांधे, कर्म कतिन सारंजी रे // ज० // 5 // पुगलनी मू माहे पडियो, पाप कर्म करे के // करे अन्याय रहे वलि अलगो, परने माथे देई रे // ज० // 6 // त्रीश महामोहस्थानक वारो, निज आतम साधारो॥ कहे चक्रा युध गणधर गिरुन, ते नवि हृदयमा धारो रे // // // जलमांहे पेसी जे हो त्रसने, मत्स्यादिकने जलशस्त्रे // पादादिक आक्रमण करीने, प्रथम स्थानक कह्यु शास्त्रे रे ॥ज॥७॥ वाध लीले त्रस जीवने वींटी,जे हणे ते दुःख लहेशे // हाथे मुख रूंधी हणे त्रसने, कहो तस शी गति हो रे // // ए॥ मंझप वाडादिकमांहे केपी, धूमाकूल करि मारे // महा मोहस्थानक सेवंतो, रुले चिढुंगति संसारें रे // न // 10 // उष्ट मने असि मुजर शस्त्रे, उत्तम अंग विदारे // निर्दय परिणामी त्रस ऊपर, करतो ए कर्म वधारे रे // ज० // 11 // मायायें वेश लेई वणिजादिक, पंथ चलीने सायें // वचमांहे गलकर्तन करे पापी, जूमा कह्या जगनायें रे॥०॥ 12 // गूढाचार निगृहे नूंमो, मायायें परमाया / आबादे जिम शकुन विघातक,बद ढांके निज काया रे // न // 12 // ए बहुं स्थानक मत सेवो, हवे सप्तम सुणो प्राणी // असत्यवादी सुत्रारथ निहव, कह्यो जिन अवगुण खाणी रे // ज० // 14 // उष्टाचरण रहितने अंते, याप करे अपराधे // बायानश करे ते पापी, आतमगुणथी न वाधे रे // // न // 15 // नवमे जाग दूं तो पर्षदमां,साचां जूतां जे बोले // कल . हथकी अणविरम्यो मानव, नावे कोडी मूलें रे // ज० // 16 // नाय
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________________ जैनकया रत्नकोप नाग आरमो. क रहित सचिव नरपतिनो,राज कलत्र विधंसी // अर्थावगम उपाय जणी तेम, ध्वंसे ते पूरो कंशी रे // न॥ 17 // सामंतादिक परिकर नेदे, तस थधिकार पडावी // धिग यश् हरे जोगने परना, शुनमति मूके मावी रे // ज० // 17 // नहिं कुमार कहे बालकुमारो, ब्रह्मचारी लोक आगें // स्त्री . वशवर्ती अग्यारसुं स्थानक, सेवतो जाणशे धागे रे // ज० // 1 // न / हिं ब्रह्मचारी कहे ब्रह्मचारी, बारमुं स्थानक माटुं / जस निष्ठा विचरे ते हनुं धन, ताके ते पातक का रे // ज० // 20 // अगईश्वर ईश्वर जेणे कीधो, परिगल वित्त घर पामी // ईर्ष्या क्षेप धरे स्वामीगुं, तेहमां महोटी खामी रे // ज० // 21 // जेम सापिण अंमकपुट निहणे, तेम पोपकने मारे // सेनापति शास्तार प्रत्ये ते, रूढो नहिं आचारें रे // ज० // 22 // . देश तयो नायक जे दीसे, निगम तणो अधिकारी // शेव वदुयशने जे मा रे, शोलमुं ए नाग नारी रे // ज० // 23 // बहुजनना नेता प्राणीने,त्रा एजे हीप समान // प्रावचनी नरने जे निहणे, सत्तरमुं कर्तुं गण रे / / न० // 24 // संवतविरति उपस्थित तपसी, धर्मयकी चूकावे // महा मोहनो वंध करे ते, मुफ मनमां न सुहावे रे // न // 25 // जिन य नंत नापी वरदंशी, तेहनो अपयश वोले // एकोनविंशतितम ए स्थान क, सेवतो कहो कुण तोल्ने रे // // 26 // नैयायिक मारग अपका री, बदु जनने नंगेरे / जावयतिनिंदी ए महेलो, फरशे चिटुं गति फेरे रे // // 27 // आचारिज उवजायें जणाच्यो, सवल थयो श्रुतपाती / / वाल करे खिंसा वली तेहोनी, मति तेहनी घणुं माती रे // // 27 // आचारिज उवमायने न करे, सम्यग् जे उपगार // अप्रतिपूजक तेहनो जे नर, तास अकज अवतार रे॥ना // 2 // त्रेवीशमुं स्यानक अवदुश्रुत, वश्रुत नाम धरावे॥चोवीगमे अत्तवस्ती तपीयो, हुँ एम कीर्ति गवावे रे ते // ज० // 30 // ग्लानतवेवावच न करे, समरथ इंतो जेह // एवं न क नवि करो ए माहरे, महामोद वांधे तेद् रे // ज० // 31 // जे ह कथा याधिकरण प्रयुंजे, तीरय नेद करंतो // तबीश, महामोदन स्या नक, बोधि न पामे मरतो रे // न // 32 // जे याचर्मिक योग प्रयुंजे, निमित्त वशीकरणादि // लाया मित्र तणे वली देतें, महामोहनी उ न्माद रे // न० // 33 // जे मानुष्यक नोग अतृप्तो, पारलौकिकने चाहे //
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________________ ___ श्री शांतिनाथनो रास खंग हो. 437 अग्यावीशमुं मोहवें स्थानक, ए दारव्युं जिननाहें रे // ज० // 34 // देव तणी द्युति झदि ने वीरज, बल यश वर्णविशेप // तास अवर्ण जे बालम ति कहे, नहिं तेहमा गुणरेख रे ॥न // 35 // नवि देखे ने कहे दुं देखु, देव अने वली यह // अज्ञानी जन पूजा अर्थी, बांधे मोह प्र त्यद रे // ज० // 36 // ए त्रीशे स्थानक सेवंतो, महामोहनो अधि कारी // जाणीने तुमें विरमो एहथी, कहे गणधर नपकारी रे // // 37 // ढाल सत्तावनमी खंम बछे, गणधर देशना दीधी // समकितष्ठि जे नर नारी, श्रवणपुटें करी पीधी रे // ज० // 3 // सर्वगाथा // 21 ए६॥ ॥दोहा॥ // श्रीचक्रायुध केवली, देशन अमृतसार // नविक जीव के बू जवी, कतास्या नवपार // 1 // आयु जाणी अवशेष निज, थोडं गण धर देव // बदु साधुगुं परिवस्या, सारे सुर नर सेव // // जरत देत्र मध्य खममां, पावन तीरथ सार // कोटिशिलानिध ने नलुं, नामें नव निस्तार // 3 // श्री चक्रायुध केवली, विचरंता मुनि साथ // कोटिशिलायें धाविया, जगतारण जगनाथ // 4 // असा की, तिहां कणे, बद्ध केवलिपरिवार // श्री चक्रायुध गणधरु, पाम्या शिवपद सार // 5 // कालें कोटिशिलाविपे, सिदा मुनिवर कोडि // चक्रायुध सिक्षा पनी, वंदूं वे कर जोडि // 6 // // ढाल अभवनमी॥ // षन जिणंदा कपन जिणंदा॥ ए देशी // तीरथ वंदो ए तीरथ वंदो, कोटिशिलानिध जेम चिर नंदो // कोडि गमे गया जिहां मुनि मुक्ते, ते तीर्थ प्रगमो नवि नक्तं // ती० // 1 // श्री चक्रायुध गणधर सिक्षा, शांतिप्रनुवारें परसिक्षा // ते पूठे मुनि संख्यात कोडि, मुक्तं गया प्रणमुं कर जोडी // ती० // 2 // कुंथु जिणंद दुधा जगवंता, सत्तरमा जिन गिरुया गुणवंता // संरख्यात कोडी तस तीरथ सिक्षा, मुनि वंदो गुण रयण समिक्षा // ती० // 3 // श्रीधरनाथें तीरथ तरिया, द्वादश कोडि मुनि शिवपद वरिया // एह शिला उपरें पुःख वारी, सिम यया जा बलिहारी॥ती० // 4 // मनि जिणेसर त्रिनुवन स्वामी, सुर नर यावी नमे शिर नामी // ए प्रनु तीरथें मुनि पढ़ कोडी, शिव पाम्या प्रामो
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________________ अमए मुनि हाट कहिये, ए तीता थधिकार - 437 जैनकया रत्नकोप नाग आठमो, मन कोडि // ती० // 5 // श्रीमुनिसुव्रत वारे ए कहिये, कोटिशिला देखी गहगहिये, त्रण कोडि मुनिवर मुक्ति पधाया, ते वंदीने नव पुरव वास्यां / / ती० // 6 // नमि जिन तीरथमां गुण नरिया, एक कोडि मुनि पटकाय पीहरिया॥एह शिला उपर बातोटी, पाम्या हो शिव पदवी महोटी // ती० // 7 // एम अवर पण मुनिवर सिक्षा, पण ते शहां गएनायें न लीधा // कोटि अन्यूना जेहने वारे, सिमा तेहनो इहां अधिकारें ॥ती // // कोटिशिला तिण माटें कहिये, ए तीरथ सेव्ये सुख लहियें // चारण अमण मुनि इहां आवे, सुर नर किन्नर मलि गुण गावे // ती० // ए // जिहां एक मुनिनु होय निर्वाण, ते तीरथ नमे कोडि कल्याण // जिहां मुनि मुक्ति गया के कोडि, ते तीरथ प्रगमो कर जोडी // ती० // // 10 // कोटिशिलानिध तीरथ दीसे, जोतांजवि जननां मन हीसे // तीरय बंदो ए जरतमां वारु,राम कहे सुगणे सुगुण श्रोतारु ॥ती॥११॥२२१३॥ // ढाल // // राग धन्याश्री // शांति जिन शांति जिन शांति जिन राजीया, पुण्यथी आज तुज सेव पामी // गायतां स्वामिगुण रासलीला घणी, थाजथी गुन दशा सरस जामी॥ शां० // 1 // मात थचिरातो तनय सोहामणो, तुम तणां जामणां नित्य लीजें // रायविश्वसेसना कुमर कुलचंदला, ताहरे नाम गुनकाज सीजे // शां० // 2 // धन्य तुं धन्य तुं धन्य हूं धन्य हूं, जाग्ययी सरस तुम दरिस दीठो // शोलमा जिन वरा दुःखहरा शंकरा, भाजयी माहरो पाप नीठो // शां० // 3 // दिव्य कंचनवने यजब शोजा वनी, धनुप चालीश तनुमान सामी // देवना देव तुज सेवना मन वसी, माहरां सुरूतमां नहींय खामी // शांग॥ 4 // दिव्य अनुपम घj रूप रलीयामएं,तुम तणू नयण जोतां निहाली / हरित दूर टने लह बदुली मले, सुजस वेला बले यति र साली // शां० // 5 // ताहरु नाम वरमंत्र मन जेहने, तेहने रिपु परा जब न लागे // सिदि नव निधि वर चुदि विलसे तिहां, नविजना ने रहे तुज रागें // शां० // 6 // गाजती गजघटा तास घर आंगणे, नृपति सेवे घई दास नित्ये // विमल कमला बरे कीर्ति जग विस्तरे, जे जना तुम
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________________ __ श्री शांतिनाथनो रास खंग हो. ४३ए जपे नाम चित्तें // शां० // 7 // शांतिजिन सांजलो एक मुफ वीनति, हुँ / नति वदु करी एम दाखं / नेक नजरें करी निरखो मुज सामुहूं, तुम विना अवर दिलमां न राखं // शां० // 7 // हुँ सयोगी अयोगी प्रनु तुं जयो, ढुं सरागो तुमें वीतरागो // ढुं सदाशी नीराशी तुमें साहिवा, मेलव्यो मेल तुझ नक्तिरागो // शां० // ए॥ मुफ सम सेवका स्वामी ताहरे घणा, तुज सम अवर नहिं कोइ महारे // शरण ढुं धावियो सेव करवा नणी, नक्तवत्सलतणुं विरुद तहारे // शां० // 10 // प्र तुम गुण तणो रास रंगे रच्यो, हर्षा हुँ मच्यो एह गातां // वोधिप्राप्ति महो दय घणी संपदा, पलक नहिं वार तुम चरण ध्यातां // शां० // 11 // सतर संवत जयो वरस पंचाशियो, राजनगरें रह्या अधिक हेजें // आदिजिन शांतिजिन पार्श्वजिन वीरजिन, चार प्रनु दीपता सहज तेजें // शां० // 12 // तेह प्रनु सान्निध्ये रास रचना करी, अतिहि आ नंद मनमांहे धारी // श्री सुमतिविजय सुगुरुचरणसुपसायथी, रामप्रनु शांतिजिन सौख्यकारी // शां // 13 // इति शांतिजिनस्तुतिः // 2226 // // ढाल // // शांतिप्रनु जामणे जावं // ए देशी॥ नवियण नाव धरीने श्रावो // शांति प्रनु गुण गाउ रे // मोती थाल नरीने लावो, प्रमुगुणरास वधावो रे // ज० // 1 // जगमांहे अधिक अडे मीठाइ, जाति विविध मन नाई रे // तेहथी एहमां अधिक सरसाइ, स्वाद ए शिवसुखदायी रे // ज० // 3 // पहेले जव श्रीपेण नरिंदा,वीजे युगल सुखकंदा रे // त्रीजे सुरसौधर्म सुरिंदा, सुख विलसे आनंदा रे // ज० // // 3 // चोथे विद्याधरकुलें आया, अमिततेज गुण गाया रे // पांचमे प्राणत सुरपद पाया, बछे राम कहाया रे // ज० // 4 // सातमे थ व्युत इंश कहीजें, श्रातमे चक्री सुपीजे रे // नवमे ग्रैवेयक निसुगीजें, नवमे नाम जपीजे रे // // 5 // दशमे मेघरथ राय अदीनो, दान अनय जिणें दीनो रे // करे प्रशंसा स्वामी शचिनो, जस गुण रसमां नीनो रे // ज० // 6 // सर्वारथसिम सुर अवतारें, सुख पाम्या श्री कार रे / जव अग्यारमे वारमे जरतें,थयो जिन जगदाधार रे // // // शांति अनुना गुपनी माला, गातां रंग रसाला रे॥ मनोवांछित लहे सही
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________________ 447 जैनकथा रत्नकोप भाग आठमो. विशाला, मंदिर काक जमाला रे // // 7 // दुःख दोहग सवि दूर प ये, जे ए प्रनुगुण गाये रे // दोपी कुश्मन नाशी जाये, जन्म कृताः थाये रे / / नग॥ ए // जिनगुण गातां नावें जणतां, श्रवणें तेम सार तां रे ॥थलवे अलगां होय अणमिलता, आवि मले सवि चलता रे न // 10 // मूकी विकथा वात अनेरी, जिनगुण वात जलेरी रे // कर कुगति न जूवे हेरी, लाहिये मुक्तिनी शेरी रे // ज० // 11 // तपगब यक सुगुरु मुणिंदा, श्रीहरि विजय सूरिंदा रे // बूजव्यो अकबर शाह न दा, मोहनवनीकंदा रे // 0 // 12 // पडह अमारी तणा वजडार जजिया कर बोडाया रे // मावर सरोवर जाल मुकाया, महियल सुज गवाया रे // ज० // 13 // साह कुंयरकुल साहस धीरा, नाथीकूखें रा रे // प्रगट्या पूरव पुण्य अंकूरा, धर्म करण थया शूरा रे // ज० 14 // अकबर शाह कयो जेणें सीधो, वीरुद जगगुरु दीधो रे // महि लमांहे सवलो यश लीधो, चिंतित कारिज कीधो रे // ज० // 15 // विजयदान गुरु पाट पटोधर,उदयो अधिक सवाई रे // पंच विषय परिह करखो जेणे, तप तपिया सुखदायी रे // न० // 16 // दोय सहस यां ल जस कीधां, तिम नीवी तिम जाणो रे ॥त्रण सहस पट् शत वर उपरें, तप उपवास वखागो रे // 0 // 17 // चार कोडि संख्या कीधो, श्रीसहगुरु सद्यायो रे // अष्टोत्तरशत मुनि जिणें दीरव्या, ए ग पुण्यें पायो रे / न // 17 // पंच शत संरख्या जस उपदेश, देहरा प्रासादो रे // नविजन नाव धरीने मांमया, दीछे दुवे आनंदो रे // // 15 // विप्रतिष्ठा कीधी गुरुजी, पचास बार उदारो रे / / पाटण मुख नयर बहु उत्सव, वरत्यो जय जयकारो रे // // 50 // यात्र दोय सि-हाचल केरी, दोय गिरनारे कीधी रे // लाख बिंब जुदायां। ननां, महियल त लीधी रे // ज० // 21 // मान तजी ऋषि मेघन नामें, सूका मतनो स्वामी रे // जिनप्रतिमा धागधक हू, दीर गुरुने : मी रे // न० // 22 // मागशिर शुदि नवमी दिन सुंदर, साळुयर कु. थायो रे // पन्नर यासीय पालणपुरमां, नाथायें कुंवर जायो रे न० // 23 // पन्नर नन्नुयें कार्निक बदिमां, वीजें दीक्षा लीधी रे // संवगोल साते नागारे, पंमित पदवी दीधी 3 // // 24 // संबत शो
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________________ श्री शांतिनायनो रास खंम छो. 441 था वाचकपद, माहागुदि पंचमी दीधुं रे // विजयदान सूरीश्वर उत्तम, चिंतित कारिज की, रे // ज० // 25 // सोल दाहोत्तरें शीरोहीमां, आ चारिज पद पायुं रे // सोनागी महिमानिधि महोटा, जिनशासन दीपायु रे॥ // 26 // समिति गुप्ति सूधी गुरु धारे, समतारस नंमारो रे // जेणें ए गुरुजी नयणें निरख्या, धन्य तेहनो अवतारो रे // न // 27 // श्रीहीरविजयगुरु पाट पटोधर, साह कमा कुलचंदो रे॥मात कोमा कुखें उप्पन्ना, श्रीविजयसेनसरि वंदो रे // ज० // 27 // शाह मनामांहे वाद करीने, जिनमत स्थिरता स्थापी रे // बिरुद सवाइ जगजुरु पायो, कीर्ति लता आरोपी रे // न // ए // तास पाट उदयाचल उदयो, शुक्ष्प्ररू पणकारी रे // श्री राजसागरसूरि जग जयवंता, नवियणने उपकारी रे // न० // 30 // देवीदास अंबर कुलदिनमणि, मात कोडिमदे जायो रे॥ मनमोहन सोनागी सद्गुरु, महिमानिधि मुनिरायो रे // न // 31 // संवत सोल बाशीया वरसें, आचारिज पद पायो रे // श्रीराजसागरसूरि नाम जयंकर, सागर गह दीपायो रे // न० // 32 // शाह शिरोमणि सहसकिरणसुत, शांतिदास सुजाणे रे // जस उपदेशे वहु धन खरच्यु, लख अग्यार प्रमाणे रे // न० // 33 // कीर्त्तिकमला श्रीगुरुजीनी, जग महि घणुं पसरी रे // नवियण मनमांहे अति हर्षे, जस गुणमाला समरी रे // ज० // 34 // तेह गुरुपाट पटोधर प्रगट्या, श्रीक्षिसागर सारदा रे // पंचाचार विचारे चतुरा,मोहनवनीकंदा रे // नम्॥३५॥ रूप अनोपम अंगें विराजे, गुन लक्षण अति रूडां रे // वतु नर नारी - जेणे प्रतिवोध्यां, वय न नांखे कूडा रे // न० // 36 // गुणनिधि तेह ने पाट विराजे. श्रीलमीसागर सरि बाजे रे॥ कीर्ति जेहनी जगमोहे गाजे. नवि मन संशय नांजे रे ॥न // 3 // संप्रतिमानविजय ते गुरुजी,सोनागी शरदारा रे // वैरागी वहाला नविजनने, शमतारस मारा रे॥ // 27 // तेह तवं राज्ये ए रचियो, शांतिप्रचनो रासो रे // नविय नाव घरिने निसुगो.लहियें सुरक विलासो रे // ज० // 35 // 2275 // ॥ढाल // // राग धन्याश्री // श्रीगुरु हीरसूरीश्वर शिप्या // ए आंकणी // कल्या सावजय उवद्याय पुरंदर, दिन दिन चढत जगीशा / / श्रीगु० // 1 //
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________________ 442 जैनकया रत्नकोष नाग आठमो. शा दरखानंदन सोनागी,साचो वड वैरागी // सम्मति अर्थविचारी सरु, ' साचो शुनमति रागी // श्री० // // मात पुंजीबाई कूरखें जायो, नामें नवनिधि थाइ // वाचक धर्मविजय वर तेहना, दीपे अधिक सवाई। श्री० // 3 // तस यंतेवासी गुपनरिया, बोल न वोले विरुया // श्रीजय विजय विबुध श्रुतदारिया, पाले सूधी किरिया // श्री० // 4 // तस पदपंकज चमर सरीखा, श्रीगुजविजय कवीशा // गुणगंनीरिम मेरुगिरीशा, श्रुतजलसिंधु मुनीशा // श्री० // 5 // तस चरणांबुज सेवक सुंदर, शुनकिरियागुणशूरा // साधे योगान्यास अखंमित, नहिं गुणरयणे अधूरा // श्री०॥ 6 // महिमावंत महंत मुनीश्वर, चरण नमे अवनीशा // श्रीगुरु सुमतिविजय उपगारी, प्रतपो कोडि वरीसा // श्री० // 7 // ते श्रीगुरु महिमानिधि सानिध्य, रास रसिक में निपायो / शांति अनुगुणराशि नणंतां, नवनिधि आनंद पायो // श्री० // ॥पूर्व चरित्र तणे अनु सारे, ए संबंध बनाया // लान अनंत लह्यो ए रचतां, दिन दिन सुजस सवाया // श्री० // // // सकल संघने मंगलकारी, शांति जिणंद सुखदाया // रामविजय कहे ए जिनवरके, हर्प धरी गुण गाया // श्री. // 10 // संवत सत्तर पंचाशीया वर्षे, वैशाख मास कहाया // गुदि सप्तमी गुरु पुष्य संयोगें, पूरण कलश चढाया // श्री० // 11 // अधिक न्यून जे कांड एणीमें, अण उपयोगे लिखाया // ते सुकवि सवि शोधी लेजो, करि सुनजर सुपसाया // श्री० // 12 // श्रीराजनगरनो संघ सोनागी,तेहने प्रथम सुणाया // इति वृद्धि प्रगटी अधिकरी, आनंद अधि क उपाया // श्री० // 13 // इति श्रीशांतिजिनप्रबंधे रासवंधे मुलतानुसंधे प्रनोरक्तारजन्म जन्ममहोत्सव नामस्थापन लेखकशालामहोत्सव पावन वयःप्रापण राज्यस्थापन राजकनीपाणिग्रहण चक्ररत्नोत्पत्ति परवंसा धन चक्रवर्तिराज्यानिपेकोत्सव पट्खमपालन जवाऽसारतानासन, वार्षि कदानसमर्पण चारित्रग्रहण केवलोत्पत्ति चतुःपष्टिसुरमिलन समवसरण निमांपश तर्णन देशनादान तन्मध्ये पंचेंश्यिविषयवान, तऽपरि गुराध मकुमारसंबंधकथन,तदनंतर कपायोपरि नागदत्तसंबंधकयन तदनंतर विस्त रतः लम्यतमूलपाइादशवतकथन तन्मध्ये प्रथमव्रतोपरि यमपाश संबंध तदनंतर तिीयव्रतोपरि नत्रेष्टिसंबंधकथन तदनंतर तृतीयत्रतो
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________________ 42 . श्री शांतिनाथनो रास खंमो . 443 परि जिनदत्तकथानक चतुर्थव्रतोपरि करालपिंगलपुरोहितसंबंध पंचमत्र तोपरि सुलससंबंध पठनते स्वयंचदेवसंबंध सप्तमव्रतोपरि जितशत्रुनृपनि त्यमंमितानारीदृष्टांतनिरूपण अष्टमव्रते समृध्दत्तसंबंधोपदेश नवमव्रते सिंहावकावदातवर्णन दशमदेशावकाशिकवते गंगदत्तसंबंधवर्णन, एकादश पोपधव्रतोपरि जिनदत्तसंबंध हादशवतोपरि शूरपालनृपसंबंधवर्णन इति श्रावतसंवधकथनानंतर गुध्यतिधर्मस्वरूपश्रवणतः प्रतिवुश्चक्रायुधन पचारित्रग्रहण गणधरपदस्थापन हादशांगिरचन पाश्चात्यपौरुषसंघस्याये गणधरदेशनासमर्पण तन्मध्ये अंतरंगस्वरूपकथन, तपरि रत्नचूडसंबंधनि रूपण तउपनयमेलन तदनंतर प्रविहारावसरे चतुस्त्रिंशदतिशयवर्णन प्रनुपरिवारसंख्याकथन अष्टमहाप्रातिहार्यवर्णन आयुधसंबंधमिलन निजा युरवशेपवदुपरिवारेण सम्मेतगिरिगमन तत्र चतुःषष्ठिसुरेंमिलन प्रनु देशनाश्रवण तन्मध्ये सिस्वरूपवर्णनावसरे सिघसुखष्टया वनचरसंबं धकथन तदनंतर नवशतकेवलज्ञानिसाधुनिरनशनविधान निर्वाणपदप्रा पण निर्वाणकल्याणिकोत्सवकरण तदनंतर चक्रायुध गणधरकेवलोप्तत्तिव न देशनायां त्रिंशन्महामोहस्थापननिरूपण अनेकजव्यजीवप्रतिवोधन कोटिशिलातीर्थगमन तत्र मुक्तिपदप्रापण कोटिशिलातीर्थस्तवन शांति जिनराजस्तुतिमाहात्म्यवर्णनायनेकसंबंधोपटंहितः पष्ठः खंमः समाप्तिम गमत् // तत्समप्तो च समाप्तोऽयं शांतिजिनरासः // शुनं नवतु श्री श्रमणसं घस्य // गुनं स्तानेखकपाठकयोः॥ सर्वगाथा // 22 // प्रस्ताविक श्लोक तथा गाथा // 7 // प्रथम खमे ढाल // 1 // द्वितीयखमे ढाल // 30 // तृतीयखमे ढाल // 33 // चतुर्थखमे ढाल // 3 // पंचमखमे ढाल ॥३॥पष्ट खेमे ढाल // 1 // सर्वस्मिन् नूत्वा ढाल // 13 // प्रथमखमे गाथा // 43 // वितीयखमे गाथा // 2 // तृतीयखमे गाथा // 35 // चतुर्थखंभे गाथा // 10 // पंचमखमे गाथा // 11 // पष्ठखमें गाया // २२ए / सर्व स्मिन् सूत्वा गाथासंख्या ॥६५७३॥प्रथम खेमे प्रस्ताविक श्लोकगाथा // 4 // हितीवरखमें प्रस्ताविक श्लोक गाथा // 20 // तृतीवरखंमें प्रस्ताविक श्लोक गाथा // 6 // तुर्यखमे प्रस्ताविक श्लोक गाथा // 42 // पंचमखमें प्रस्ताविक लोक गाथा // 63 ॥पष्टव में प्रस्ताविक लोक गाथा //
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________________ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. // GG || सर्वस्मिन् नूत्वा प्रस्ताविक श्लोक तथा गाया // 330 // इति : पंमित श्रीरामविजय विरचित शांतिनाथनगवाननो रास समाप्त // ॥अथ स्त्रीने शीलपालवाना यत्किंचित वोलो लखीये ये॥ 1 पिता वांधव प्रमुख कोइपण पुरुपनी कोटें वलगी मलq नहिं. 2 कोई परपुरुपने न्हवराववो नहिं. 3 कोई परपुरुपर्नु उवटणादिकथी थंगमर्दन करवं नहिं. 4 कोई परपुरुप सायें पत्रादिकथी खेलतुं नहिं. 5 कोइ पर पुरुपनो वेडो पकडी वात करवी नहिं. 6 कोई परपुरुषसाथें हसीने हाथ ताली लेवी नहिं. 7 कोई परपुरुपनी वेणी गुंथवी नहिं. 7 कोई परपुरुपनां अंग चांपां नहिं. ए कोई परपुरुपना हाथनी पाननी वीडी लेवी नहिं. 10 कोई परपुरुपसाबें एक शच्यायें बेस बने सुवु नहिं. 11 वाटें शेरीयें पुरुपना संघमां जावु नहिं. 12 घोडा वगेरे आमश विनाना वाहनपर वेसवु नहिं. 13 ज्येष्ट, ससरो, सासु तथा सासरामां कोई मोटेरानी साथें हा वाजी करवी नहिं. 15 कोई परपुरुप साधे एकांतमा रहे नहिं. 15 परपुरुपयी दृष्टि मेलाची सरागथी जोवु नहिं. 16 कोई परपुरुपसाय सांकेतिक नापाथी वोल नहिं. 17 योगी, जरडा, निदाचर, तेनी सायें नापण करवू नहिं. 17 कोई पुरुप देखे तेम वडीनीति लघुनीति करवी नहिं. १ए ज्यां पुरुप सुता होय, त्यां अनर्गल था फरवू नहिं. 20 पुरुप देखतां बालस मरडवू नहिं. 21 तेम शरीरना अवयव उघाडा करी वता ववा नहिं.२५ अत्यंत मिष्ट पदार्थ खावापर प्रीति राखवी नही.२३ नोज न अल्प करवू.२४ महोटे स्वरथी हत, नहिं. 25 अजाणे घेर जावु नहिं. 26 पीयर जाजु रहेवू नहिं. 27 घरनी वात कोइन कहेवी नहीं, 27 सासरा नुव्य कपटथी पियरीयाने यापवूनही, धीरा तथा नीचा स्वरथी बोलवु. 30 अंग सर्व मंमित राखq.३१ पोताना स्वामीन धपमान थाय त्यांजवू नहि. Recepper20REEEEEEEEEEEE // इति श्री जैनकधारनकोयत्याष्टमी / जागः समानिमगमत // - pr .. rahe -ital MARA SA AMA
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