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श्री शांतिनाथनो रास खंग बहो.
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लाम ॥ ए ॥ नान थयो बहु तेहने, नरि करियाऐं यान ॥ रत्नचूड निज पुर जली, चाल्यो सुगुणनिधान ॥ १० ॥ थोडे दिवसें खावियो, रत्नचूड निजगेह || रत्नाकर हरख्यो घणुं, सुत ऋद्धि देखि ह ॥ ११ ॥ प्रणमे चरण पिता तणां, माताना वली पाय ॥ सुत जीवो युग कोडि लगें, ये खाशीप पसाय ॥ १२ ॥ मांगीने सधनुं कयुं निजवृत्तांत शेष ॥ रत्नाकरना हृदयमां, हर्ष थयो सुविशेष ॥ १३ ॥ ईषत् तस गुणवर्णना, पिता करे तेपि वार ॥ पुत्रप्रशंसा नवि करे, गुरुजन एम व्यवहार ॥ १४ ॥ यतः ॥ प्रत्यके गुरुवः स्तुत्याः परोचे मित्रबांधवाः ॥ कर्मते दासनृत्याश्च पुत्रा नैव मृताः स्त्रियः ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ श्राव्यां घणां वधा मां, साजन हर्ष पार || पुत्र पिता वेढू मव्या, वरत्यो जय जयकार ॥ १५ ॥ यावी सौभाग्यमंजरी, तस देखने काज ॥ रत्नचूड आसन वी, बहुत बधारी लाज ॥ १६ ॥ न तुऊ उपदेशथी, उपराजी बहु ऋद्धि ॥ जइ परदेश कमाइयो, थइ मुऊ कारिज सिद्धि ॥ १७ ॥ ॥ ढाल बावनमी ॥
॥ कंसार ते सुधो कैलव्यो ॥ ए देशी ॥ सौभाग्यमंजरी कहे एहवं, तुम जाग्य हतुं ययुं तेहबुं ॥ तुम शोना यावी यति नली, तुम कीर्त्ति वाधी कजली ॥ १ ॥ तुम ऊपर मोही हुं घणुं, तुम गुणसमुदाय केता जणुं ॥ प्राण जीवन तुम एक माहरे, गृहिणी थाइश घर ताहरे ॥ २ ॥ लेइ भेट्यो उपायन नूपति, घणुं रीज्यो देखि तेहनी रति ॥ हर्षित नृ पनीयाणा वरी, घर राखी सौभाग्यमंजरी ॥३॥ धन प्राप्युं पितानुं मूलगुं, कर जोडी थइ रह्यो उलगुं ॥ भुज उपराज्यं इव्य वावरे, वहु त्याग ने जोग समाचरे ॥ ४ ॥ अन्य पण परणी तेणें कामिनी, गुणवंती जे गज गामिनी ॥ करे पुण्यनां काम ते प्रति घणां, जिनचैत्य करावे सोहा मणां ॥ ५ ॥ विलसे रूडी जोगसंपदा, सुहणामांहे नहिं चापदा ॥ सुखमांहे काल गयो घणो, यश चावो चिहुं दिशि तेह तणो ॥ ६ ॥ एक दिवस मुनीश्वर याविया, राम दमवंता समजाविया ॥ रत्नचूडें जई मुनि वंदिया, गुरुदेशना सुणी प्रानंदिया ॥ ७ ॥ लीये संयम मुनि वरजी कने, पाले निरतिचार रूडे मनें ॥ करे किरिया मुनिवर निर्मली, शुनाव सहित मननी रली ॥ ८ ॥ यं ते स चादरी, सुर
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