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२४४ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. राज एम सांजव्यो, लोक तणो आलोच ॥ रखे राजा वत्सराज दुवे, मनमां धरे संकोच ॥ ६॥ मंत्रीश्वर हाथे कयो, देई बहु सन्मान ॥ सैन्य गजादिक वश करी, आप थयो राजान ॥ ७ ॥
॥ ढाल तेरमी ॥ ॥ पंचसयां धण परहरी ॥ ए देशी ॥ नृप वीरसेनजी सांजल्युं, पुर। पति दुन देवराजो रे ॥ आधि ने व्याधि निपीडियो, कहे ए कीg अ , काजो रे ॥१॥धिक धिक राजनी मोहनी ॥ ए अांकणी ॥ न गणे बंधव लाजो रे ॥ नेह न राखे रे बापमु, एम कहे नरराजो रे ॥ धि ॥ २ ॥ गुणवंतो ए बेसी रह्यो, अगुणी आगल कीधो रे ॥ पण मुफ कां चले नहिं, चिंतित काज न सीधो रे ॥ धि० ॥ ३॥ राज लही देवराजीयो, थयो बलियो सपराणो रे ॥ सदु सामंतने वश करी, देशमाहे गवराणो रे ॥धि॥॥ जन अनुराग न को धरे,सदु वत्सराज वखाणे रे ॥ एक माता नारे उदरना, पण अंतर बदु जाणे रे ॥ धि० ॥५॥ राजसनामां रे नित्य प्रतें, वे वत्सराज कुमारो रे ॥ विनयी वडा बंधव तणो, विनय न चूके लगारो रे ॥ धि ॥६॥ कुण अांजे नयन मृगांगना, कोण चीतरे मोरनां पिंडो रे ॥ नत्पलदल संधि कुण रचे, एम उत्तम विनयने प्रीडो रे ॥ धि० ॥ ७ ॥ सहज विनयगुण देखिने, सकल प्रजा धरे रागो रे ॥ अहो वत्सराज समोवडे, नहिं नृपसुत वडनागो रे ॥ धि० ॥ ॥ पुष्ट हृदयनो रे चिंतवे, मंत्रीशुं देवराजो रे ॥ गुणें वधतो जन वालहो, वैरी ए वत्सराजो रे ॥ धि ॥ ए ॥ राज्य हरशे रे आपणुं, बांधव एह म जाणो रे ॥ शत्रु वध्यो गुण नवि करे, नीतिनुं वचन प्रमाणो रे ॥ धि०॥ १० ॥ वेदु मल्या उर्बुझ्यिा, वायु अनल जेम हो रे ॥ करे कुविकल्प नी कल्पना, कीजें उपाय ए कोई रे ॥ धि० ॥ ११ ॥ कहे मंत्री सुण साहिबा, जो इहां रहे वत्सराजो रे ॥ तो नहिं हित तुजने सही, एम जाणो महाराजो रे ॥ धिम् ॥ १२ ॥ काढो वाहिर एहने, पुरतूंती इण वारो रे ॥ करशे अनिष्ट कनिष्ट ए, पाम्युं राज म हारो रे ॥ धि० ॥ १३ ॥ नृप मनमां वसी वातडी, निर्लज थइ निगोरो रे ॥ वंधव तेहने अवगुणी, वोले वयण कठोरो रे ॥ धि० ॥ १४ ॥ तेडी कहे वत्सराजनें, जा मुऊ नयरने मूकी रे ॥ कुलनी लजा रे लोपिने, वोटयो नीतिने चू