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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो २४३ मध्य खममां जारतें ॥ सु ॥ सु० ॥ धरणीप्रतिष्टित नाम, पुर गुणसमु दायांचितें ॥ सु० ॥ ११ ॥ सु ॥ तिहां प्रजाप्रतिपाल, वीरसेन नामें जयो ॥ सु० ॥ सु० ॥ न्यायवंतमां लीह,धर्म करणने अलजयो । सु० ॥ १२ ॥ सु० ॥ धारिणी नामें देवि, मनुं देवी धरणी गता ॥ सु० ॥ सु॥ रायने वजन जोर, महियलमा मोहनलता ॥ सु० ॥ १३ ॥ सु० ॥ एक दिन सूती सेज, सुपर्नु लहे सुरराजनुं ॥ सु ॥ सु० ॥ कहे पियुनें धरि नेह,धन्य विहाणुंमुजधाजनुं ॥ सुणो स्वामीजी ॥१४॥ सुणो स्वामी जी॥में जातो दीगो इंद, मुह आगल फल झुं हो ॥ सुणो स्वामीजी ॥ सुणो राणीजी ॥ तुम सुत होशे बलवंत, नाव चलाचल पामशे ॥ सु०॥ १५ ॥ सु० ॥ राणी रे धावी धाम, नव मसवाडे सुत जण्यो ॥ सु० ॥ सु० ॥ " देवराज" इति नाम, दीध महोत्सव अति घणो ॥ सु० ॥१६॥ सु० ॥ ते वधते वली एक, रयणसमे वृप ऊजलो ॥ सु० ॥ सु० ॥ दीठो निज उत्संग,क्रीडा करतो अति नलो ॥ सु० ॥१७॥ सुगो राणी जी ॥ नितुणी कहे नरइंद, तुज सुत होशे सुंदरु ॥ सु० ॥ सु० ॥ तपन परें बलवंत, होशे राजधुरंधर ॥ सु० ॥१॥ सुपो प्राणी जी ॥ ययो जन्मसमय सुख कार, "वत्सराज" थनिधा उवी ॥सु ॥ सु ॥ वरत्यो जयजयकार, जाग्यदशा जागी नवी ॥ सु ॥ १५ ॥ सु० ॥ चरस थयां जब बात, तब नीशालें मूकीयो ॥ सु० ॥ १० ॥ सकल कला तिण सार, शीखी किहां नदि चूकीयो ॥ सु० ॥२०॥ सु० ॥ पुण्य तणी ए वात, पुत्र सुगुण एहवा मले ॥ सु० ॥ सु० ॥ पंचमे खंमें वारमी ढाल, पुण्ययकी वांछित फले ।। सु० ॥२१॥ सु० ॥ सर्वगाथा ॥३ए॥ श्लोक तथा गाथा॥२३॥
॥दोहा॥ ॥ वीरसेन नृप एकदा, दाघज्वरने रोग ॥ अति थातुर भंग थयो, स बल कर्मनो लोग ॥ १ ॥ पृथिवीपति पीडित थयो, तस ःखें परिवार ।। मुवीयो सवि एकत्र मलि, एणी परें करे विचार ॥ ५ ॥ वये बढी गुणे नानडो,देवराज नृपनंद ॥ पण गुण महोटो बय लघु वत्सराज सुख कंद ॥३॥ जगमांगु दीने वडा, गुण विए बड़ो न कोय ॥ बद्धो करंतां दीपने, जुवो घर कहे होय ॥ ४ ॥ वत्सराज होय तो जतो, नरपनि मचल सकड ॥ देवराज वयची वडो, योग्य नहिं ए र ॥ ५॥ देव