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जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. ए कीच हो ॥ क० ॥ १४ ॥ पडतां गाथा चित्त धरे ॥ मु ॥ इहां नहि कोइनो दोप हो ॥ कूपमेखल ऊपर पज्यो ॥ सु० ॥ न धरे जीवमां शोष हो ॥ क० ॥ १५॥ दीनां पावडीयां तिहां ॥ सु० ॥ कौतुक दीसे कोय हो ॥ नीचो थश्ने अतस्यो । सु० ॥ आगल पहोंच्यो सोय हो ॥ का ॥ १६ ॥ मनमांहे विस्मय पामतो ॥ सु० ॥ पन्नरमी वीजे ढाल हो । रामविजय कहे रंगगुं ॥ सु० ॥ वारू वात रसाल हो ॥ क० ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ ॥ पागल जातां देखीयु, देवल एक विशाल ॥ शोना अति दीसे नली, मोहन काक जमाल ॥ १ ॥ ते मांहे दीठी तिहां, चक्रा नामें देवि ॥ जिन शासन रखवालिका, सुर नर सारे सेव ॥५॥चरण नमी चक्री तणां, ऊनो वेदु कर जोडीहा स्तवना करे,मान रहित मद मोडि ॥३॥ अथ चके श्वरी स्तुतिः ॥ राग टोडी ॥ जय जय तुं चक्री अमरी रे, श्रीधादीश्वर पद पंकजमें, रसिक वसे तिम ज्युं चमरी रे ॥ ज०॥ ए ग्रांकणी ॥ गरुडासन वेठी गुणवंती, सुर नर कोडि सदा समरी रे ॥जे तुज ध्यान धरे एक चित्ते, तस घर फूले तुरंग करी रे ॥ ज० ॥१॥ चक्रायुध विपमुं कर लीधु, उष्ट निवा रण साची सुरी रे ॥ वावन वीर रहे तुझ धागे, कर जोडी करे सेव खरी रे॥ ज०॥ ॥ अनाथ तुम चरणें आयो, कर उपगार तुं महेर करी रे ॥ विहि नडियो सुःखकूपें पडियो, हवे मुझ वांबित द्यो नहरी रे ॥ज ॥ ३ ॥ कर जोडी रह्यो दास हुँ तोरो, मात मया कीजै सखरी रे ॥ दवे मुज शरण ए चरणज तोरां, एसी करो ज्युं नासे अरि रे ॥ज॥ ॥ इति चक्रेश्वरीस्तुतिः ॥पूर्वदोहा॥जक्त वचन एम सांजली, देवी थई प्रसन्न । वत्स माग्य जे वर रुचे, बोले इम सुवचन ॥ ४ ॥ तुम दीवे मुझ सधि मल्युं,फली मनोरथ माल ।। मात जवानी शंकरी,तुक दर्शन देवि रसाल ॥५॥
॥ ढाल शोलमी ॥ ॥ कंत तमाकू परिहरो॥ ए देशी ॥ पंच रतन यापे खरां, देवीधरी कलट। मोरा लाल ॥ फल दाखे तस रु.यडां, धनद सुणे परगट मो॥१॥ जो जो नवि फल पुण्यनां ॥ए यांकणी ॥ पुण्यं वांछित थाय ।मो॥ पुण्य करो रे प्राणीया, इह परनवें सुखदाय ॥ मो० ॥ जो ॥शाप्रयम रयण सोजाग्य दे, वीजे लक्ष्मीराशि ॥ मो० ॥ रोग हरे त्रीजु वली, चोथे विपनो नाम