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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ३४५ लेखे व्रत कोई ॥ धूरत श्रावकसुतनो, मृपा उपरें रे इहां उपनय होय ॥५०॥ ६ ॥ जे पारदारिक दस्युनी,प्रतिकिरिया रे जे बोले अलीक ॥ तस प्रतिकार न को मिले, ए धारजो रे मनमां तहकीक ॥ ४० ॥ ७ ॥ चार थाश्रवनु एकण दिशे, दिशि एकण रे मृपावादनु पाप ॥ जारे अस त्यनुं त्राजवू, एम बोले रे श्रीजगगुरु आप ॥ध ॥ ॥ वायसपद जेम एकलु, सामुश्कि रे लणनां लद ॥ अप्रमाण करे तेम इहां, जूत जाखवू रे गुणगरा प्रत्यद ॥ ध० ॥ ए ॥ यतः ॥ सुग्गंधो पूश्यहो, धषिध्वयो अफरुस वयपोय ॥ जल एल मूध मम्मपा, अलिथ चयण जंपणे दोसा ॥ १ ॥ इह लोए बिय जीवा, जीहानेहं वहं च बंधं वा ॥ अयसं धणनासं वा, पावंति य यलिय चयणा ॥ ॥ पूर्व ढाल ॥ कूडनांखी उपरें कह्यो, नशेतनो रे प्रमुजी दृष्टांत ॥ निसुणे बारे पर्पदा, गुण अर्थी रे मन धरि एकांत ॥ध ॥ १० ॥ धरणीप्रति हित नयरमां, धनवर्जित रे दोय वणिक वसंत ॥ उटवुद्धि सुबुद्धि जतो, धन कारण रे परदेश लमंत ॥ध ॥ ११ ॥ कोइक पुरमांहे गया, लालहेते रे रह्या केता दीह ॥ देहचिंता टालण जणी, एक दिन गयो तेह सुबुद्धि अवीह ॥ध ॥ १२ ॥ खंमित घरमांहे खोदतां, जाग्य योगेरे जडओँ तास निधान ॥ वेदु मली जोवे बदा, एक सहसज रे दीनारनुं मान ॥ १३ ॥ कृतकृत्य था निजपुर वल्या, श्रावी उप बनें रे करे एम विचार ॥ नयरमेलें जातां यकां, ए वातनो रे वधशे विस्तार ॥ ध० ॥ १४ ॥ इष्टवुद्धि कहे ए सवि, धन दाटिये रेमिमां sm वाम ॥ गत एकेकने घागरे, ले जाये रे आपण निजधाम ॥ धo ॥ १५ ॥ सरलपणे वीजे सवे, बात मानी रे कीधुं ते काम ॥ वट पानं धन दाटीने, परनातें रे श्राच्या ते निज ताम ॥ ध० ॥ १६ ॥ गत दीनार ते ऽटनी, दिन केने रे नाती तत्काल ॥ पुण्य बिना स्थिर नधि रहे, एह संपद रे सुणो जति उजमाल ॥ धि० ॥ १५ ॥ यतः ।। ननिमिनहिषां देम. नायुर्वेद्यकविहियाम् ॥ न श्रीनीतिध्यिामेक, मपि प्रमहरा न हि ॥३॥ पूर्वदाल ॥ पुनरपि बंदु मनी एकवा, जs माया रेगन मनदीनार ॥ श्रन्य दिवस हि ते. मनमांद में करे एम विचार |५० ॥ १७ ॥ बंधी बहिने एकलो, जइ लाई रे सपनो
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