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. श्री शांतिनाथनो रास खंम पहेलो. हो, एदनो बिरहो ॥ मा ॥ रागी साथें हो, एम निरधारी ॥ मा० ॥ तेव्यो मंत्री हो, सुबुद्धि विचारी मा॥५॥ तुफ अंगजने हो, आपुं वेटी ॥ मा० ॥ वदु धन साथें हो, गुणनी पेटी ॥ मा० ॥ राजन मूको हो, एह गाइ ॥ मा० ॥ सरखा सरखी हो, होवे सगाई ।। मा० ॥६॥ ढुंतुक पायक हो, तुं मुज स्वामी॥ मा० ॥ जोडीन जुगति हो, कहुँ शिर नामी । मा० ॥ सरिखा कुलगु हो, संबंध कीजें ॥ मा० ॥ यश जगमाहे हो, स बलो लीजें ॥ मा० ॥ ७ ॥ यतः ॥ कुलं च शीलं च सुनाथता च, विद्याच वित्तं च वपुर्वयश्च ।। बरे गुणाः सप्त विलोकनीया, स्ततः परं नाग्यव शा हि कन्या ॥ २ ॥ पूर्वढाल ।। राजन बोले हो, मनहुँ राजी ॥ मा० ॥ तोवलि एहमां हो, शुं करे काजी मा॥ एह उखाणो हो, साचो जाणी ॥ मा० ॥ बोल न बोलो हो. अम्हगुं ताणी ॥मा ॥ ७ ॥ पुत्री देवी हो, अवश्य अमारे ॥ मा० ॥ मनमां चिंते हो, सचिव तिवारें ॥ मा०॥ व्याघ्रतटीनो हो, न्याय ए श्राव्यो ॥ मा ॥ न रहे राजा हो, में सम काव्यो । मा० ॥ ए ॥ रति रंनासी हो, रायनी तनया ॥ मा० ॥ मुक्त सुत कुष्ठी हो, सबलो अन्या ॥ मा० ॥ योग बेदुनो हो, कहो किम म लगे। मा० ॥ अथवा नावी हो, कहो केम टलो ॥ मा० ॥ १० ॥ यवा कुलानी हो. देवी साधी । मा० ॥ करयुं कारज हो, में मति लाची ॥ मा० ।। मानी वातज दो, ते घर वलियो । मा० ॥ नृप राणीनो दो, चांछित फलियो | मा० ॥ ११ ॥ मंदिर थावी हो, देवी समरी ॥ मा॥ हरल्यो जाणी हो, श्रावी श्रमरी ॥ मा० ॥ पूरे कारण हो, किम सं नारी ॥ मा० ॥ सुत मंदिरमा हो, कोढी जारी ॥ मा० ॥ १२ ॥ गुंत वेचं दो, कगे नीरोगी ॥ मा० ॥ गनो राल्यो हो, बहु दिन रोगी । माप ॥ नारचे देवी हो, कर्म जे कीधा ॥ मा० ॥ चीकण रसनां हां, न जाये लीयां ॥ मा० ॥ १३ ॥ यतः ॥ रुतकर्मदायोनास्ति, कल्पको दिशतरपि ॥ अवश्यमेव नोक्तव्यं, कनं कर्म गुनागुनम ॥३॥या बतु गिरिशिखरं, समुश्मुसंध्य यान पातालम् ॥ विधिलिग्यिताक्षरमानं, फलति कपात न नृपालः ॥ ४ ॥ नमस्यामां देवान्ननु इतविधस्तपि नागा. विनियः गोपि प्रतिनियतकमफलदः ॥ फले कर्मायनं व विकिममरेः किं च विधिना, नमस्तसामन्यो विधिपि नयेन्यः प्रनानि ।।