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१० जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
॥दोहा॥ ॥ सुतजन्मोत्सव बदु कस्यो, खरची इव्य अपार ॥ सुपन जणी अनि.. धा नवे, मंगलकलश कुमार ॥ १ ॥ पंचधावें पाली जतो, बीज तणो जिम। चंद ॥ माय ताय मन वनहो, जीवन नयणानंद ॥ ॥ सुत दुल । रावे दर्पयुं, यापी निज उत्संग ॥ दे आशीष एणी परें, माता मनने रंग ॥ . ३ ॥ चिरं जीवो मुफ नानडा, वाहालेसर सुकुमार ॥ तुक अला वला जइ. पडो, खारा समुझ मजार ॥४॥ यो पंच वरष तगो, पाठवियो नीशाल ॥ मूकी विकथा गुरु कने, शास्त्र जणे उजमाल ॥ ५॥ निज नद्यमगति सुगुरु, चिंता रहित सुदेह ॥ विनय शास्त्र जरावा तणां, कारण सघलां एह ॥ ६ ॥ यतः ॥ आचार्य पुस्तक निवास सहाय वासो, बाह्या इमे पान पंचगुणा नराणाम् ॥ आरोग्य बुद्धिविनयोद्यमशास्त्ररांगा, अन्यंतराः पतन पंचगुणा नवंति ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ नणि प्रवीण पोढो थयो, आठ वरसनो जाम ॥ वाडी जातां जनकनी, साथै चाट्यो ताम ॥ ७ ॥ साथे . जइ लाव्यो कुसुम, पूज्या श्रीजिनराज ॥ प्रतिदिन लावे जइ तिहां, फुल सेवानें काज ॥ ७॥ वाडीमा जइ एकलो, लावे कुसुम सुवास ॥ कहेग न माने तातm,हियडे जिनगुणवास ॥ ए ॥ एम चिदु दिन वीत्या पली, एक दिवसने योग ॥ जेह थयुं ते सांजलो, गुननावीने नोग ॥ १०॥
॥ ढाल बही ॥ केसरवरणो हो,काढ कसुवो ॥ माहारा लाल ॥ए देशी ॥ जंवू ही हो, दक्षिण जरतें। माहारा लाल ॥चंपा नामें हो, अंगें वर्ते ॥मा॥ तिहां सुर सुंदर हो, राजा राजे ॥ मा० ॥ नामें गुणावली हो, राणी बाजे ॥ मा ॥ १ ॥ पुत्री रूडी हो, तेहनी जाय ॥ मा० ॥ त्रैलोक्यसुंदरी हो, विधि निपाई ।। मा० ॥ रूपें सारी हो, रंजा हारी ॥ मा ॥ गजगति सारी हो, : मोहनगारी॥ मा० ॥ २ ॥ तनु सुकुमाली हो, अंग निहाली ॥ मा० ॥ सुर नर मोहे हो, मुरखडं जाली ॥मा०॥ वेण संहाली हो, नागण काली
मा० ॥ मदमतिवाली हो, वाणी रसाली ॥मा०॥ ३ ॥ जर योवनमां । हो, लामा यावी ॥ माम् ॥ राजसनामां हो, राय बुलावी ॥ मा० ॥ पुत्रीने हें हो, मन बंधागो म चिंती नृपति हो, मन सपराणों ॥ मा० ॥ ४॥ यापुंघलगी हो, तो दरिसण उत्तहो । मा० ॥ ण न खमाये ,