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श्री शांतिनाथनो रास खंम पदेलो. ए . पूजी जिन मंदिरमां, जाये मननी खांत ॥ प्री ॥ ११ ॥ पंचानिगमें त्रए त्रण निसिही, दशत्रिक जाणी उरमां ॥ परमेश्वर यागल परकासे, चैत्यवंदन जिन घरमां। प्री॥ १२ ॥ अथ चैत्यवंदन ॥ परमेश्वर परमा तमा, पाचन परमिह ॥ जय जगगुरु देवाधिदेव, नयणे में दिक॥ अचल अकल अविकार सार, करुणारस सिंधु ॥ जगतीजन आधार एक, निका रण बंधु ॥ गुण अनंत प्रतु ताहरा ए, किमही कट्या न जाय ॥ रामप्र जिनध्यानथी, चिदानंद सुख थाय ॥२॥निजरूपें शिवस्थानकें, इव्ये पण तिमही ॥ नाम स्थापना नेदथी, प्रगट जगमांही। अध्यातमथी जोडियें, निदेपा चार ॥ तो प्रनुरूप समान नाव, पामे निरधार ॥ पावन यातमनें करे ए. जन्म जरादिक दूर ॥ ते प्रनु पूजा ध्यानथी, राम कहे सुखपूर ॥ ॥ इति चेत्यवंदन ॥ पूर्वढाल ॥ शक्रस्तव पनणे कर जोडी, जाव धरी निज मनमा । स्तवन करे प्रनुनु लेखवतो, निज आतमने धन्यमां ॥जी॥ १३ ॥ अथ स्तवन ॥ राग सारंग ।। मन मोयुं प्रनु गुगतानमा ।। काल अनंत न जाण्यो जातो, मोहसुराके पानमां ॥म ॥ १ ॥ एक यि विति चरिंघियमां,काल गयो अज्ञानमां ॥ हवे कोक पुण्योदय प्रग ट्यो, श्राय मिलो प्रल ध्यानमां ॥ म०॥ २॥ धंतर नर्म गयो सवि दरें, तत्त्व सुधारसपानमा ॥ प्रनु तुम दृष्टि नई मोहि ऊपर, धंतर बातम शानमां ॥म ॥ ३ ॥ दरस सरस देख्यो जिनजीको, लम लगी तुक
झानमां ॥ केवल कमलाकंत रूपानिधि, उर न देखो जिहानमां ॥म० ।। ___५ ॥ शरणशरण जगत उपगारी, परमातम शुचि वानमां ॥ राम कहे
तुम या नवोनव. धारी नयर प्रमाणमां ॥ म ॥ ५ ॥ इति साधरण जिनस्तुतिः ॥ पूर्वढाल ॥ एम गुनध्याने जिनगुण धुणतां, नुगतां सशुरु वाणी ॥ पानें दान दिये जाने जावें, धनदन धन गुणवाणी प्री॥१४॥ धर्म प्रजावें शासनदेवी, तुष्ट थई एम बोले ॥ श्राप्यो सुत वर शेठ विचारे, नहिं कोई धर्मनें तोले । प्रो० ॥ १५ ॥ सत्यनामा रचणी दी], मंगल कालगनुं सुना ॥ मन चिंतें कतरो महार, वांजणी, लहि मदेणु ॥प्री०
॥ १७ ॥ पुराण नव मासे प्रसव्यो, सत संदर सोनागी ॥ पंचमीटार राम 'जिजय कदे, धर्म करो वरनानी प्री ॥ १३ ॥ सर्व गाया ! १२५ ।।