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६ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. अग्नि जलतमां आकरो रे लाल, ग्रह्यो वत्सराजे ताम ॥१॥ होरे लाल । काज विचारी कीजीयें रे साल ॥ सुण पृथिवीपति पाल ॥ हो० ॥ नीरखी परखीने जे करे रे लाल, न दुवे तस जंजाल ॥ हो ॥ काज वि० ॥ ॥ हो ॥ मत जाणो ए मनमां रे लाल, मुन जीवे कोय हो॥ ए पटु नाटक में सही रे लाल,तुमने देखाडधुं जोय ॥ हो ॥ काज० ॥ ३ ॥हो॥ ए सवि मंत्री कुबुझ्यिा रे लाल, कूड तणा कर नार ॥ हो ॥ मुझने प्राणांत कष्ठमें रे लाल, नाख्यो मलि बदु वार ॥ हो ॥ का ॥ ४ ॥ हो ॥ देवतणा परनावथी रे लाल, पूगाड्या में एह ॥ हो ॥ अग्निमांहि होमावीया रे लाल, रह्यो ढुं अखंमित देह ॥ हो० ॥ का० ॥ ५ ॥ यतः ॥ कृते प्रतिकृतं कुर्यात्, नुचिते प्रतिबुंचितम् ॥ त्वया झुंचापिताः पदा, मया मुंमावितं शिरः॥ ३ ॥ दोहो । धुत्तह कीजें धूतिया, बालह दिड घाल ॥ मित्तह किऊँ मिनडी, एम गमिङों काल ॥॥ पूर्वढाल ॥ हो ॥ म म जीवो जे जला था रे लाल,दिये परने उर्बु वि ॥ दो० ॥ परशेहें परधन नारीने रे लाल, चाहे ते उर्बुधि ॥ हो । का॥ ६ ॥ हो० ॥ नृप बारिज कहो झुं करे रे लाल, जिहां मंत्री होये कुजात ॥ हो ॥ नृप जूमो पण गुं करे रे लाल, जिहां मंत्रीश सुजात ॥हो॥ का ॥ ७ ॥हो॥ तुं स्वामी ने माहरो रे लाल, नाख्यो में नवि जाय ॥ हो ॥ स्वामिशेहन मोटकुं रे लाल, जगमां पाप कहाय ॥ हो ॥ का ॥ ७ ॥ हो० ॥ नमो पण शेह अन्यनो रे लाल, दिये : खनो संदोह ॥ हो ॥ स्वामी मित्र गुरुतणो रे लाल, अति मागे करो शेह ॥ दो० ॥ का० ॥ ए ॥ हो ॥ वात सुपी नरराजीयो रे लाल, चित्तमा ताज्यो जोर ॥ हो॥ मुज चेष्टित एवं लघु रे लाल,में कयुं कर्म कठोर ॥ दो० ॥ का ॥ १० ॥ हो ॥ एवं विध अपराधने रे लाल,शक्ति उतें सह्या जेण ॥ हो० ॥ राज्य न लीवू न बालीयो रे लाल,पर उपकारी गुणे ॥ हो ॥ का ॥ ११ ॥यतः॥ स्वयमदमः समयं, मते दमया न लाति चान्यर्दिम् ॥ न नवं तत् क्षमताया,मिदं हिलोकोत्तरं चरितम् ॥५॥ अस्योत्तमस्य परमा,प्रकतिः प्राणांतगस्य न हि विपमा ॥ तस्याधमाधमोऽहं, कथमनृणीनावमाप्तोस्मि ॥ ६ ॥ पूर्वढाल ॥ दो० ॥ इत्यादिक निज निं इतो रे लाल,प्रशंसतो वत्सराज ॥ हो ॥ जवनिर्विम तपी परें रे लाल,