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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो.
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मंदिर गयो महाराज || हो० ॥ का० ॥ १२ ॥ हो० ॥ लोक गया सहु स्थानकें रे लाल, धरतां विस्मय चूरि ॥ हो० ॥ एह निमित्तथी रायने रे लाल, वाध्युं वैरागनुं पूर ॥ हो० ॥ का० ॥ १३ ॥ हो० ॥ चिंते पाप घणुं करे लाल, परदारानी धारा ॥ हो० ॥ प्रातमलघुता में करी रे लाल, वांध्यो पापनो राशि || हो० ॥ का० ॥ १४ ॥ हो० ॥ एम चिंती निजवालिका रे लाल, परलावे भूपाल | हो० ॥ राज्य दीयुं करमोचनें रे लाल, महेली मन ढक चाल ॥ हो० ॥ का० ॥ १५ ॥ हो० ॥ नृप ऋषि मूकी निसखो रे लाल, थयो तापस वनमांय ॥ हो० ॥ करे तप वहु ज्ञानथी रे लाल, नवि संजाले कांय ॥ हो० ॥ का० ॥ १६ ॥ ॥ दो० ॥ राजा थयो वत्सराजनी रे लाल, वीरसेन नृपनो नंद ॥ ॥ हो० ॥ सकल गुणें करी शोभतो रे लाल, दिन दिन व्यधिक यानंद ॥ हो० ॥ का० ॥१७॥ हो० ॥ देश घणा साध्या तेणें रे लाल, वरती चिहुं खं प्राण ॥ हो० ॥ नूप सवे यावी नम्या रे लाल, हुकम करे परमाण हो० ॥ का० ॥ १८ ॥ हो० ॥ चिहुं राणीगुं भोगवे रे लाल, इंडियसुख सुविलास || हो० ॥ इति निवारी वेगली रे लाल, पूगी मनडानी श्राश ॥ हो० ॥ का० ॥ १७ ॥ हो० ॥ कीर्त्ति पसरी चिहुं दिनों रे लाल, ढांकी ते नरहंत ॥ हो० ॥ वात विद्या कस्तूरिका रे लाल, यापेंही प्रगटंत ॥ हो० ॥ का० ॥ २० ॥ यक्तं ॥ वार्त्ता च कौतुकवती विशदा च विद्या, लोको तरः परिमलव कुरंगनानेः ॥ तैलस्य विंडरिव वारिणि, दुर्निवार एतत्रयं प्रसर तीत मित्र चित्रम् ॥ ७ ॥ हो० ॥ पंचमखमें ए कही रे लाल, ढाल चो त्रीशमी रंग ॥ हो० ॥ रामविजय कहे हेजगुं रे लाल, कीजें पुण्य प्र संग || हो० ||का||२१|| सर्वगाथा || १०८४ ॥ श्लोक तथा गाया ॥ ६३ ॥ ॥ दोहा ॥
|| इस अवसर निज नयरीयें, पसरी बात पर ॥ वत्सराज राजा थयो, कविनी वड नूर ॥ १ ॥ नख्यो लेख परजा मली, नृप वत्सराज ने ग्राम || बहेला बलजो साहिबा, ग्रम प्रतिपालन काम ॥ २ ॥ वृत खेख लेई चच्यो, प्राव्यो नयरी उकेण ॥ नृप चमराजने सॉपियो, थावी हर्षे नरेण ॥ ३ ॥
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