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ចុចទី जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो.
॥ ढाल पांत्रीशमी ॥ ॥ राग सिंधूडो ॥ तथा॥प्रवलकाल तणो पयोनिधि,गाजतो गंजीर ॥ ए. देशी॥ लेख लीधो हाथ ततहण, दीध वांचक हाथ ॥ उखेलीने ते स्वयं वांचे, सानले नूनाथ ॥ स्वस्ति नायिनी पुरी जिहां,नृप वसे वत्सराज ॥ क्षितिप्रतिष्ठित नगरहूंती, लखे लेख समाज ॥१॥ वहेला बावजो रे, वार म लावजो रे, राजेश्वर नावजो रे, जग जस पावजो रे॥ए आंकणी ॥ ग्रीष्म . अर्दित मेघ चाहे, शीतपीडित आग ॥ जेम संनारे सहूनो, तेम तुझगुं राग ॥ शीघ्र आवो था अमचा, स्वामी तुम वडनाग ॥ अन्यथा अमने . इहांकणे, नहिं रह्यानो लाग ॥ वहेला ॥ ३ ॥ देवराज ए सुखदायी, करे सवल अन्याय ॥ सुख नहीं ए नयरमांहे, जिहां एहवो राय ॥ झुं घणुं तुम दाखीयें मत, ढील करजो कांय ॥ वत्स सघली वात निसुणी, मेलियो समुदाय ॥ वहेला ॥ ३ ॥ तिहां सुनट नट कोटि मलिया, वाजते निशाण ॥ सैन्यनार ए धरा न खमे, चढयो नृप वडराण ॥ पर धानने निज राज्य सोंपी, साथै सवल मंमाण ॥ वितिप्रतिष्ठित नयर य नुक्रमें, बावियो दुइ जाण ॥व०॥४॥ मोकल्यो देवराजने एक, दूत वत्सें ताम ॥ जाणियुं वत्सराज आव्यो, करणने संग्राम ॥ दु लडवा काज, तत्पर, देवराज अनाम ॥ सैन्य लइ वाहेर आव्यो, वडो तेह हराम ॥ ॥ व ॥ ५ ॥ सामंत सघला नहिं रागी, वत्स ऊपर प्रेम ॥ कोइ तन देवे ही तिहां, देवराजने तेम ॥ वदन फीके चित्तमांहि, तेह चिंते एम ॥ फयु सेना सदु लश्कर, रणें जीतीयें केम ॥ व ॥ ६ ॥ रात लेई तेह नाटो, देवराज नरिंद ॥ वत्स सहामो चढी आव्यो, वीरसेन फरजंद ।। हाथ जोडी पाय लागी, सचिव नृत्य अमंद ॥ चिरं जीवो स्वामि अमचा, सहू कहे आनंद ॥ व ॥ ७ ॥ लोक हर्पित दुवां सघलां, महोत्सव वद्ध थाय ॥ वाजते नीशाण पुरमां, करे परवेश राय ॥ बोले वंदीजन जयारव, हैडे हर्प न माय ॥ श्राव्यो प्रजापाल नृपति, टल्या दूर अन्याय ॥ व०॥ ॥ ॥ तखत ऊपर आवी वेग, वखत वलीयो सार ॥ सद्ध हाथ जोडी पाय लाग्या, दु जय जयकार ॥ राज्य वेद नलां पाले, व्यसन सात निवार ॥ पुहवी वत्स नरेश आया, वधी वद् विस्तार ॥ व ॥ ए॥ ना रिचिटुं संघात विलसे, देवनी परें नोग ॥ पुण्यथी सवि बावि मलीया, सर्व