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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो.
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गुन संयोग | राज्य साते यंग शोजित, अंग तेम नीरोग ॥ वाधीयो यशोवाद जगमां, दुई धर्मने योग ॥ व ॥ १० ॥ एहवे एक दिवस याव्या, वनमां गणधार ॥ धर्मरुचि मुनिराज रूडा, करे किरिया सार ॥ कर्म कीपण काज पाले, शुद्ध पंचाचार ॥ चारज्ञानी गुडध्यानी, समो सखा अणगार ॥ व ॥ ११ ॥ यावी वनपालक वधामणी, दीधी तेली वार || चिरं जीवो स्वामि मोरा, प्रजाना आधार ॥ यावीया उद्यानमांहे, मुनि बहु परिवार || निसुणी तेहने दान च्यापे, दरखि वार हजार ॥ व ॥ १२|| लेइ सवि परिवार न्यावे, वांदवा उजमाल ॥ वत्सराज नरिंद्र महोटो, ऋषि काक ऊमाल ॥ थावी गुरुनां चरण वंदे, खंग पंचमे ढाल ॥ पांत्री शमी कही रामविजयें, धन्य ए नूपाल ॥ व० ॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥ ११०० ॥ ॥ दोहा ॥
प्राणी
॥ पंचानिगम प्रणाम करि, वेगे शुद्ध चूनाग ॥ कहे मुनिवर हवे देश ना आणी अनुभव राग ॥ १ ॥ सुकतें रत नरपति प्रणत, उदेशी गुरुरा ज ॥ चाहें नवि धर्म करो तुमें, जेम नहो शिवपदराज || २ || तेह धर्म दोय नेट बे, सागार ने घणागार || जीवदया तस मूल बे, एहनो यवर विस्तार ॥ ३ ॥ सर्वविरति निर्वाहने, सुनि धाराधे तेह ॥ ते वि श्राराधन नोहे, तेहनुं सुरा गुणगेह ॥ ४ ॥ यतिधमें समरथ नहिं ते गुगृहीनो धर्म | पडिवतो परंपर लहे सिद्ध स्वरूप कर्म ॥ ५ ॥ द्वादश व्रत रूपं नलो, ते नांख्यो भगवंत ॥ यादरीयें छादर करी, जिम हुवे सुरक अनंत ॥ ६ ॥ केइक जोजन लालची, बहु नर नारीरत ॥ माल्य विलेपन जोगीया, दीसे घणा जगत ॥ ७ ॥ गीत तथा थय घणा, घृत कथा रसलील || केक वाहन गज वृपन, रतिया दीसे दीप ॥ ७ ॥ पण जे व्यसनी धर्मना, तेहना नमीयें पाय ॥ धन्य तेह धरणी तजें, पावन तेहनी काय ॥ ए ॥
|| ढाल वत्रीशमी ॥
॥ हर्पनर हमगुं बोलजो जी ॥ ए देशी ॥ देशन सुणी गुरु वंदीने रे. कड़े वत्सराज नरेश | तारक नवमां तुं मल्यो रे, साचो तुम उप देश || १ || सुगुरु मुज, तारक मजियो श्राज || सुगुरु मुऊ, सारी वांद्रित कान || सुगुरु तुम, पालव वलग्यो बाज | सुगुरु मुक्त, साचो जंगी कहा
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