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श्री शांतिनाथनो रास खंग चोयो. २१ चढ़ लोक थयां दिलगीर ॥ वा ॥ जोर न चाले रायगुं, तस विरह कंत अधीर ॥ वा ॥ वा० ॥ १४ ॥ हा हा प्रनंकरा कामिनी, तें अध
तुं की, केम ॥ वाहाली ॥ विरहव्यथामा नारखीयो, विसायो नवरस प्रेम ॥ चा० ॥ वा ॥ १५ ॥ एक दिन दन्न उद्यानमां. मुनि केवलझान दिणंद ॥ बाहाला ।। बांटीने निसुणी देशना, मन पाम्यो परमानंद ॥ वा ॥ वा० ॥ १८ ॥ देशन मुणी घरे धावियो, करि दानादिक शुनधर्म ॥ वा ॥ श्रायुःदयें चवि ऊपन्यो, फल विजयमांहे निज कर्म ॥ वाण ॥ वाम् ॥ १७ ॥ महंइविक्रम बेताब्यमा खेचर नृपति बसवंत ॥ वा० ॥ तास तणे कुनै उपन्यो, नाम अजितसेन गुणवंत ॥ चा0 ॥ वा० ॥ १७ ॥ कमला दो तस कामिनी यइ.हवे नलिनकेतु कुमार ॥वा० ॥ पितरतुं राज्य सदी करी, करे क्रीडा अनेक प्रकार ॥ चा० ॥ वा ॥ १ ॥ प्रनंकरामु रंग', नुख माणे रात ने दीस ॥वा०॥ वेगं सातमीतूमिका, एक दिन मन धरिय जगीग ॥ बावा ॥२०॥ पंच वरण बादल थयां, सोहे वावती रंग बनाव on नजरें निहाले दोय जणां, थयो कोतुक ख्याल जमाव ॥ बा ॥ वा० ॥ २१ ॥ ययां विसरात ते तताण, पवनें दल नारख्या दर ॥ वा ॥ स्वोपम एम देखिने, मन ग्रान्यु चराग्यनु पूर ॥वा ॥ ॥ वा० ॥ २२ ॥ धन योबन सवि काग्मुि, जेवं वादन, स्वरूप ॥ वा० ॥
तो जुर पहने कारणं. श्यां श्यां करे प्राणी विरुप || वा० ॥ या ॥ २३ ॥ पुगल एनवि कारिमा, सवि अस्थिर ए तन धन जोग । चा०॥ मावा करीने सत्या. दंनीनां नामिनी जोग । वा० ॥ वा ॥ २४ ॥ में मलिन यो निज श्रानमा, परतमणी केरे गग ॥ बा ॥ इणिक ए तुने कारण, बटु पाप का निनीय ॥ बा० ॥ वा० ॥ २५ ॥ पतिन घणों मऊ जन्मो, गुण तारे विए जिन माग ॥ वा ॥ दो संचम नप भादम, नरवा नवन्धुि यानाग | मारवा ॥ २६ ॥ निज मुन राज्य जयी करी. मंका मनुने द्वाय ।। गा॥ नलिन तुमन यादव, विन ritपा मुनिनाय ||
बागा l शाम दमयंती साधुजी, गि मग नंगार बा ॥ दो दिन श्राबार, मान पाने में चावार || ना ॥ २६ } नहिं मना निज देनी पद काय त
गोगा पाती बम प कंपनी, प मुनि गया मन