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२० जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. शोलमी जी, नवि सुणो वात रसाल ॥ रामविजय कहे धन्य उपगारीया जी, वजायुध रे नूपाल ॥ प्र ॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥ ४ ॥ २१ ॥ ..
॥ ढाल सत्तरमी॥ ॥ मलं रे सुहावा नयणडे ॥ ए देशी ॥ वात सुणो वैरागनी, कहे वजा : युध नरदेव ॥ वाहाला ॥ पूरवनव संबंधथी, होवे राग वैरागनी टेव ॥वा ॥ १ ॥ वात सुणो वैरागनी ॥ए आंकणी ॥ ऐरवतें जंबुद्धीपमा, एक वंध्य पुर नामें गाम ॥वा०॥ वंध्यदत्त राजा जलो,करे धर्म तणां गुन काम ॥वा ॥वा॥॥राणी सुलदाणा कूरखनो, एक तनय नलिनकेतु सार ॥वा॥मावि त्रने वहालो घj, नरयोवन कांति अपार ॥
वावा ॥३॥ तेहज नयर • माहे वसे, एक धनमित्र सारथवाह ॥ वा ॥ श्रीदत्ता नारी नली, दत्त ।
सुत जनम्यो उत्साह ॥ वा ॥वा० ॥ ४ ॥ यौवन वय परणावियो, तेह । मनोहर रूप निधान ॥ वा ॥ कन्या नामें प्रनंकरा, सवली अति सुंदर वान ॥ वा ॥ बा ॥ ५ ॥ जर यौवन नामिनी था, मन्मथ वसवाद् धाम ॥ वा ॥ प्रीतमसाथै प्रेमनी, करे क्रीडा अति अनिराम ॥ वा ॥ वा० ॥ ६ ॥ एक दिन मास वसंतमां, लेइ नारीप्रनंकरा साथ ॥ वा ॥ दत्त ते वनमांहे यावीयो, करे क्रीडा जलसंघात ॥वा ॥वा ॥७॥ देवकुंवर देवांगना, मार्नु उतरियां आकाश ॥ वा० ॥ दंपती दोय दिला मल्या, विरु एह विपयनो पास ॥ वा ॥ वा ॥ ७ ॥ तब राजकुंवर तिहां आवियो, तेह नलिनकेतु तिण गय ॥ वा ॥ देखी प्रनंकरा मोहि । यो, मन अटक रह्यं तिहां जाय ॥
वावा॥ए॥ मृगनयनी मनमोहनी, . मनमांहे वसी ते.आय ॥वा॥ शुद्धि बुद्धि सवि नूली गयो, रह्यो कुमर त्यां । लगन लगाय ॥वावा॥१॥ कामातुर सवलो थयो, तेणें लगा मूकी। दूर ॥वा०॥ विकल करे मागास जगी, ए प्रेमपयोनिधि पूर ॥वावा ॥ ११ ॥ यमुक्तं ॥ विकलयति कलाकुशलं, हसति शुचिं पंमितं विडंवयति ।। अधरयति धीरपुरुपं, ऐन मकरध्वजोदेवः ॥ १ ॥ कृशः कागः ॥ ॥ पूर्वढाल ।। योवनगर्वित राजगुं, कुल शील न कीय विचार ॥ वा० ॥ ते ह प्रनंकरा अपहरी, आव्यो गृह राजकुमार ॥वा० ॥ वा० ॥ १२ ॥ पियु तस टलवलतोरह्यो,अहोअहोजुजोरनी वात ॥वा॥ धींगो परधन नोगवे, लंत खाये दे लात ॥
वावा ॥१३॥ जुलम इस्यो जाणी करी,