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श्री शांतिनायनो रास खंग चोथो.
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लख चोराशी निशाण || ४ || चोसव सहत अंतेवरी, रूपें रंन समा न ॥ जनपद सहस वत्रीश पति, वत्रीश सहस राजान ॥ ५ ॥ श्री वजायुध चक्रधर, वेग सनामकार || ति व्यवसर जे नीपन्युं, ते निखुषां अधिकार ॥ ६ ॥
॥ दाल शोलमी ॥
॥ वृंदावनमां रे नाथ पधारीया जी ॥ ए देशी | इस अवसर रे तिहां एक यात्रीयो जी, खेचर भूजते थंग || सुए मंगलायती विजयना साहिया जी शरण यसुं तुक चंग ॥ १ ॥ प्रभुजी मुऊ अनाथने व रोजी, कहे ननचर कर जोदि ॥ मरण समो जय जगमां को नहिं जी, वे मुक बंधन वोड ॥ प्र० ॥ २ ॥ एवे यावी रे पूर्वे खेचरी जी, वह यही करमांहे ॥ वल्ली तस पूठें विद्याधर परवडो जी, थाव्यो गदा करें सादि ॥ प्र० ॥ ३ ॥ कहे विद्याधर चक्रायुध सुणो जी, ए पापीनी वात ॥ सुक विजयमां वैताढ्ये वसे जी, शुक्ला पुरी गुन रख्यात ॥ प्र० ॥ | | | दत्त नरेश्वर विद्याधर तिहां जी, तेहनो हुं सुत वायुवेग ॥ मुक्त सुकांता कूपनी कंपनी जी, शांतिमती गुणदेग || प्र० || ५ || एक दिवस में विद्या दिवली जी, मइति इण नाम ॥ गइ मणिसागर पर्वत साधना जी, साधे करि मन ठाम ॥ प्र० ॥ ॥ ६ ॥ विद्यासाधन करतां यात्रीयो जी, ए विद्यावर ताम ॥ रूपे मोह्यां पुत्री मुऊ हरी जी, जो जो टनां काम ॥ प्र० ॥ ७ ॥ पुत्रीनकिये रीजी देवता जी. तुष्ट थ शिवार || नागे रे तिहांथी एकतावलो जी, श्राव्यां इहां निर्धार ॥ प्र० ॥ ८ ॥ तिनवि दीवी में पुत्री तदा जी, केहें धायो हुं व्याज || राजन को अपराधी जी जी, नहिं मुकुं माहाराज ॥ प्र० ॥ ५ ॥ धनिवापी स्त्रीनिंगनां जी, करवो एहनो में अंत || अवधि निहा बजार वितु जी, पूरनय विनेत ॥ प्र० ॥ ॥ १० ॥ कड़े प्रतियो धने कारण कुणी जी, तुक पुत्री घरी जेद ॥ पूरयनयनों ने न जी सांगतो तुजन एक ॥ प्र ॥ ११ ॥ निदानी जाणीवी भी. यया सुवा सावधान || देउपयोग जासुन हे जी तुप शुभे मामीने कान ॥ २० ॥ चे दात य