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. १७G जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
हो सघलो माल रे ॥सू॥ वृद्धि करी तेणें सटु शिरें, थश्चोथी सुकुमार । रे ।। सू० ॥ वै० ॥ २२ ॥ उनिया नोगिया रस्किया, चोथी रोहिणी नाम । रे ॥ सू० ॥ एह नपनय मुनि ऊपरें, गुरुजीयें दीधो ताम रे ॥सू०॥ वै॥ २३ ॥ शेठ सुगुरु दीदित वढू, कण पंचक व्रत जाण रे ॥ सू० ॥ संघ स्वज न मिलावडो, नारख्या ते उखखाण रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ २४ ॥ केश करें। धाजीविका, व्रत उलें अविनीत रे ॥ सू० ॥ के व्रत पाले मजलां, प्रति । वोधी न शकंत रे ॥ सू० ॥ वै ॥ २५ ॥ ज्या वहुने बूमवे, रोहिणी । सम मतिमंत रे ॥ सू ॥ तेह परें विस्तारजो, व्रत गिरधा गुणवंत रे ॥ ॥ वै ॥२६॥ श्रीजिन वीरतणे समे, होशे एह संबंध रे ॥सू॥ धन ज्ञानी परकाशीयो, सुणी थया सदु दृढ संध रे ॥सू०॥वै ॥२७॥ शीख - लेश देवराजनी, मुनि विचरे नजमाल रे ॥ सू० ॥ संयम साधि अति जलो, कर्म कियां विसरात रे ॥ सू० ॥ वै ॥ २ ॥ अनुक्रमें केवल पामीने, नृप साध्युं अरिहंत रे॥॥ तिच थया जिहां सहजनां, शाश्वत सुरक अनंत रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ २ ॥ श्री देमंकर जिनवरें, जांख्यो ए अवदात रे । ॥ सू० ॥ परखी लीजें दो प्राणीया, धर्मरयण एकांत रे ॥ सू० ॥ वै० । ॥ ३० ॥ प्रथम अहिंसा तिम मृषा, स्तेय विपयनो त्याग रे ॥सू॥ परि ग्रह विरमण जाणीने, जे करे ते माहानाग रे ॥ सु० ॥ वै० ॥ ३१ ॥ .. जिनवाणी निसुणी घणां, प्रतिबूज्यां विद्वंद रे ॥ सू० ॥ संयम देशविर । ति धरे, नक गुण आनंद रे ॥ सू० ॥ वै॥ ३२ ॥ वज्जायुध जिन वां । दीने, धर्म तयो तेइ लान रे ॥ स ॥ निज नयरीये आविया, पाले रा। ज्य अदंन रे ॥ सू० ॥ वै० ॥ ३३ ॥ चोथे खमें पन्नरमी, ढाल कही जि । नवाणी रे ॥ सू० ॥ रामविजय कहे सांजली, करो यातमहित जाए रे । ॥ सू० ॥ वै ॥ ३४ ॥ सर्व गाथा ॥ ४६७ ॥ श्लोक तथा गाथा ॥२१॥
॥दोहा॥ ॥ संघ चतुर्विध स्थापियो, वहु साधु परिवार ॥ देमंकर अरिहंतजी, पुहवी करे विहार ॥१॥ हवे वजायुध राजियो, न्यायरीतें चालंत ॥ वेरी वश कीधा लवे, गुणमणि रोहण संत ॥ २ ॥ अन्य दिन यायुधशा सामां, चक्र कपन्यु सार॥अहाही उत्सव करी,साध्या पट् खेम सार ॥३॥ विजय नखं मंगलावती, वरती सघले आण ॥ लाख चोराशी गज तुरी .