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श्री शांतिनाथनो रास खंम चोथो. २७॥ लख चोराशी निशाण ॥ ४ ॥ चोसन सहस यंतेवरी, रुपे रंन समा न ॥ जनपद सहस वत्रीश पति, वत्रीश सहस राजान ॥ ५॥ श्री बजायुध चक्रधर, वेग सनामकार ॥ तिरा अवसर जे नीपन्यु, ते निसुणो अधिकार ॥ ६ ॥
॥ ढाल शोलमी ॥ ॥ वृंदावनमां रे नाय पधारीया जी ॥ ए देशी ॥ इरा अवसर रे तिहां एक श्रावीयो जी, खेचर 5जते भंग ॥ सुण मंगलावती विजयना साहिया जी, शरण ग्रां तुज चंग ॥ १ ॥ प्रनुजी मुझ अनाथने उ
रो जी, कहे ननवर कर जोडि ॥ मरण समो जय जगमां को नहिं जी, हवे मुज बंधन ठोड ॥ ॥ २ ॥ एहवे भावी रे पूढे खेचरी जी, , खड्ग यही करमाहे ॥ वली तस पू विद्याधर परवडो जी, श्राव्यो गदा करें माहि ॥ प्र० ॥ ३ ॥ कहे विद्याधर चक्रायुध सुणो जी, ए पापीनी गात ॥ सुकाठ विजयमां वेताढा बमे जी, शुक्ला पुरी गुन ख्यात ।। प्र ॥ ॥ ॥ दन नरेश्वर विद्याधर तिहां जी, तेहनो ढुं सुत वायुवेग ॥ मुफ सुकांता कुरखनी अपनी जी, शांतिमती गुणदेग ॥ प्र० ॥ ५॥ एक दिवस में विद्या दिधली जी, प्रति इस नाम ॥ गइ मणिसागर पर्वत साथवा जी, साधे करि मन वाम ॥ प्र०॥ ॥ ८ ॥ विद्यासाधन करतां श्रावीयों जी, एविद्याधर ताम ।। रूपं मोह्यो पुत्री मुज हरी जी, लो जो घटनां काम ॥ ॥ 3 ॥ पुत्रीनक्तिये रीजी देवता जी, तुष्ट था तणि वार ।। नातों रे तिहाथी ए ऊतावलो जी, श्राव्यो इहां निधार ॥ ॥ ॥ तिना नवि दी। में पुत्री नदा जी, कडे धायो ९ वाज ॥ राजन् मृको यपराधी जागी जी, नहिं मृई माहाराज ॥ ॥ श्रमिलायी पुत्री मिलनंगना जी, करचो पहनों में अंत ॥ अवधि निदाने रे बजार विनु जी, परवनव निग्नेत ॥ ॥॥ १० ॥ कडे प्रतियां धने कारण नुमें रणों जी. नुगः पुत्री हरी जेद् ॥ पूज्यनयनों नेद न
यो हां जी, सांगली नदुजन पद ॥ ११ ॥ निज मनु हानी नाणी बरतीयानी, गया गया सावधान र उपयोगने बजाय सारे जी. गुप्ता नमें मांगीने कान || पोचे सौ रे राज. प.