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श्री शांतिनायनो रास खंम पांचमो ५७ पार ॥रामविजय कहे वत्सना रे, कांश पुण्यतणो नहिं पार ॥सु॥२१॥६०५॥
॥दोहा॥ वेनयवंत ऊनो रह्यो, सेवकपरें वत्सराज ॥ मध्यरात्रि वोली जिस्यें, तव नाग्यो नरराज ॥ १ ॥ श्रवणे निसुएयु उखनु, कामिनीरुदन अपार ।। मन चिंते महाराजजी, होशे कवण प्रकार ॥ ५ ॥ वोलाव्या यामिक वणी, नरपति ऊंचे साद ॥ पण कोई वोल्या नहिं, कंध्या निंद प्रमाद ।। । ३ ॥ वत्सराज वोल्यो तदा, द्यो कारिज आदेश ।। नृप कहे हजी वेगे प्रठे, केम न गयो गृहदेश ॥४॥ विण दुकमें जाऊं नहिं, नृप कहे जा निजधाम ॥ प्रेष्यपणुं न घटे तुने, कहिश ए अवरने काम ॥ ५ ॥ पत्त कहे महाराजजी, फरमावो मुज बाज ॥ शिर जोरें करशुं सही, नहीं हां मुज लाल ॥ ६ ॥
॥ ढाल गणीशमी ॥ ॥ कहे सखि पीयुडे झुं कयुं । सहि मोरी रे ॥ ए देशी ॥ कहे नृप तुण वत्त माहरा ॥ गुण धोरी रे ॥ पलकमांहे मुज आज ॥ लीधुं चित्त चोरी रे ॥ तुज विण कुण रयणी समे ॥ गुण धोरी रे । पडिबजे पुष्कर काज ॥ लीधुं० ॥ १ ॥ वत्स जा उतावला ॥ गुण ॥ कोण रोवे ए नारि ॥जी॥ दुकम प्रमाए करी चल्यो । गुण ॥ साहसिक शिरदार ।ली ॥ २ ॥ शब्दतणा अनुसारथी ॥ गु० ॥ करी उलंघन वन । ती० ॥ गयो स्मशाननी लुमिका ॥ गु० ॥ सत्त्व संघातें दिन ॥ ली ॥ । ३ ।। एक प्रदेश सीमंतिनी ॥ गु० ॥ वसनाचरण विशेप ॥ ली ॥ शोने ते सकुमारिका ॥ गु० ॥ दीठी सुंदर वेश ॥सी० ॥ ४ ॥ पण होती थतिही घणुं ॥ गुण ॥ पूछे जश्ने कुमार ॥ ली०॥ बढेन गेवे किण कारणे ॥ गु० ॥ कहे मुफ ख विचार ॥ ली ॥ ५ ॥ चाल्यो जा परदे शीया । गु० ॥ गुंनुज पठण काज ॥ती० ॥ शक्ति विना नपकारने ॥ गु० ॥ इछे मूर्व शिरताज ॥ ली०॥ ६ ॥ वत्स कदे तुं दु:खिणी ॥गु०॥ में मूकी न जवाय ॥ ली० ॥ परःखें वीया कहा ॥ गु० ॥ सहन जन जगमांय ॥जी॥॥ सा कथयति ॥ यस्य कस्याप्य हवं न कथ्यते ॥ यह ॥ जो नदि पुरक पनी, जो नवि कस्ल निग्गन नम को ॥ जो नदि इदिए उदिळ, ता किन कहिडाए सुरकं ॥ १ ॥ वत्स
रे।
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