________________ श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. 433 से हवे सेवक केरी, रह्यो आपणने मोह घेरी रे // // 2 // कुण करशे अम सार संजाल, प्रजु तुम विणुं दीनदयाल रे // // नक्त वत्सल प्रनु नाम धरावी, नपगार करो प्रनु आवी रे ॥प्र० // 3 // झुं कहेवू वीतरागने एह, जेहना मनमां नहिं नेह रे ॥प्र०॥ चार निकाय तणा सुर मलिया, जिननक्ति करण जल फलिया रे ॥प्र० // 4 // हीरोदधिनां हो नीर मगावी, पहेलां प्रजुने नवरावी रे ॥प्र० // गो शीर्ष चंदन घसि रंगे, सुर लेप करे जिन अंगें रे // // 5 // मुख म हेली कर्पूर सुवास, पहेरावे देवपुष्य वास रे // // अगरु उखेवे नक्ति महमूर, पसरे तस परिमल पूर रे // प्र० // 6 // मंदार पारिजा तकसंतान, फूलें पूजे जगवान रे // // शिविका रयण तणी विर चावे, प्रजुजी तनु तिहां पधरावे रे // प्र० // 7 // इंशदिक शिविका क पाडे, नैऋत कूणे पहोंचाडे रे // प्र० // चंदनदारुचिता तिहां विरची, प्रनुअंग धयुं तिहां अर्ची रे ॥प्र० // // अपर चिता अणगारने हेते, सुरें कीधी मननी प्रीतें रे ॥प्र० // अग्निकुमार सुरें तिहां ावी, मुखें अनि तिहां सलगावी रे // // // वायुकुमार विकूा वाय, प्रजाली प्रनुनी काय रे // // दाधां शोणित मांसने जाणी, मेघ सुर वरसावे पाणी // प्र० // 10 // चिताअनल शमियो तिण वेला, सदु इंश् यया तिहां नेला रे // // दक्षिण कवंदाढ सुचंगा, ग्रहे पति सौधर्म सुरंगा रे ॥प्र० // 11 // चमर अपर यह दक्षिण केरी, दाढा धरी नक्ति घणेरी रे // // वाम दाढा अध उपर दो, ईशान बलीइ ले सोइ रे ॥प्र० // 12 // शेष अत्यावीश दंत सुरिंदा, लिये धरि मनमां यानंदा रे // // शेप अस्थि अनिमेप विचारी, लिये जा वगुं करि एक तारी रे // // 13 // विद्याधर नर ऊना जोडें, चिता नस्म ग्रहे मन कोडें रे ॥प्र० // सकल नपश्व टालाहारी, प्रजुन क्तिनी जावं वलिहारी रे // // 14 // एम संस्कार करी प्रलु अंगें, करे धूप तिहां मनरंगे रे // // सोवन स्थगनुं काम विराजे, दी। नवजावत नांजे रे // प्र॥ 15 // ते ऊपर जिनपडिमा स्थापे, दरि साथी उरितने कापे रे // 10 // केसर सुरवडगुंजे पूजे सकि, अगुन कर्म तस धूजे रे ॥प्र० // 16 // नक्ति करे जिनपडिमानी सारी, ज