________________ ___432 जैनकथा रत्नकोप जाग आठमो. फीकां // जात्यमणि आगल नवि शोने, तुब प्रसार अकीकां // से० // // 30 // उठे पंचावनमी ढालें, देशना दीधी जिणंदे // रामविजय कहे अहोनिश दिलमां, धरिये मन आनंदें // से // 31 // 2111 // 7 // ॥दोहा॥ // देई एणी परें देशना, जतचा त्रिनुवननाण // शिखर चढ्या शिरवरी '. तणे, जागी निजनिर्वाण // 1 // केवलझानी साधुजी, नवशे साथ मुणिंद // अणसण कियुं अरिहंतजी, एकमासिक सुखकंद // // सपरि वार सुरपति सवे, जगत प्रनुनी पास // परम प्रीति संपन्न ते, करे सेवना खास // 3 // ज्येष्ठ श्याम तेरश दिने, जरणी उस विधुयोग // गुक्त चरम नेद ध्यावतां, लहे गुणगए अयोगि // // चरिम समय अयोगीने, करी वहोत्तरनो नाश // चरम समय ते खेपवी, पहोता शिवपुरवास // 5 // समय पएसंतर वली,पण फरसीने ताम // गति परिणामे पंचमी, गति सही त्रि सुबनस्वामि // 6 // अनुक्रमें साधु सवि तिहां, पाम्या परमानंद॥सिहपाएं पाग्या मुनि, मोडी जवनयफंद // 7 // नाय थयो शिवनारीनो, जाणीने जगनाथ // अश्रुजलाविल लोचनें, रुदन करे सुरनाथ // // गुणा संजारे स्वामीना, श्राव्यां हृदय नराय // हा! प्रनु तुम विरहो पढ्यो, कहो हवे केम खमाय // // संशयतिमिर विनाशवा, हा! दिनकर उपमान // अमने मूकी अनाथपरें, किहां गया हे नगवान! // 10 // सदु नापा संवादिनी, गाजत जेम घनमेह // तुम विण कुरा दर देशना, हरशे अम संदेह // 11 // उर्निदादिक अशिव सवि, पीडाकर जग माहे // तस उपशम करशे कवण, तुम विगुं तिथपनाह // 12 // काज तजी देवलोकनां, महियल आवी स्वाम // करयुं कोनी चाकरी,नुम विपुं प्रनु गुणधाम // 13 // धरता एम मन खेदने, इंइ सवे तेणि बार / / करे उत्सव निर्वाणनो, हवे निमुणो अधिकार // 14 // // ढाल ठप्पनमी॥ // महारी सही रे समापी // ए देशी // जिनवर मुक्त पधाग्या जाणी, मन खेद धरे नविप्राणी रे // प्रनु मुक्ति पधाग्या / प्रनु जगजीवन जड़ शिव वरिया, श्रया निरुपाधिक सुखदरिया रे // प्र० // 1 // पतित पावन परमातम नामें, यह वेठो अविचल धामें रे // 30 // मार न