________________ श्री शांतिनाथनो रास खेम बहो. 431 पांख तणी परें, तनु अंतें तें दीसे // जांखे शांतिप्रनु निसुणीने, नविय णनां मन हीसे // से // 13 // जे ऊपर योजन चोवीसम, जागे सिम विराजे॥ज्योतिगुं ज्योति मली परमातम, लील अनंती बाजे ॥से॥१॥ सिम अनंत चतुष्टय प्रगट्यु, विरम्यो सकल उपाधि // एक नेद पन्नर उपचारें, सिह नमो सुसमाधि // से // 15 // नहिं जिहां जन्म जरा दिक दुःखडां, अनंत अतींख्यि सुखडां // निराकार निर्देन विलासी, सिम जपे शुचिमुखडां ॥से // 16 // मुग्ध लोक अनुमानें एहनी, उपमा जग कहेवाय // पण परमारथ सौख्य अतीप्रिय, केम पुजल जोडाय // . से // 17 // जिम सांकेतपुरपति रिपुमर्दन, आण्यो पुलिंदने पुरमां // उपकारी जाणीने हर्षे, राख्यो ते निज घरमां // से // 17 // उत्तम अंशुक तस पहेराव्यां, आभूषण अति वारू // मेवा मीठाई वरनोजन, करतां ययो दीदारु // से // 15 // एक दिन वर्षाकालें विरहें, थयो कामातुर गाढो // वनमाहे रमतो क्रीडा करतो, सांजव्यो निज आपाढो . // से० // 20 // यामिकने वंचीने निशिमा,नग्न थई नीसरियो // वनमांहे आव्यो निज परिकरने, मलियो सुःख विसरियो // से० // 21 // वर्ण फिरे नवि ते उत्लखाणो, कोण तुं किहांथी आव्यो // ते कहे दुं तुमचो संबंधी,नेद सकल वतलाव्यो / से० // 22 // ते पूढे कहेवां सुख दीवां, श्यो कीधो आहार // ते कहे कहेणीमांहे न आवे, विण उपमा निर्धार // से // 23 // तस प्रतीति ऊपमथी कहेवा, मांझी सुखनी वात // फल सुखाद कंदादिक जेहवी, मीती मोदकजाति // से // 24 // शाल्यादिक नीवार सरीखां, में तिहां नदण कीयां // गुंदी पत्रोपम अति सुंदर, पत्र अशन प्रसिकां // से० // 25 // शाल्मलिकंदोपम पूगी फल, वसन ए वल्कल सरिसां // पहेखां कुसुम तणी जेम माला, तेम आनूषण सरसां ॥से // 26 // गिरिकंदरसम वर आवासें, वसियो हुँ वा वेला // तेम असार सुखशुं तेणी उपमा, दीधी तेणी वेसा ॥से // 2 // एम सांसारिक लोकनी बागल,अमें शिवसुरख वर्णवियें // लोक तणे अनुमाने पण ए, नवि कहेवाये न मवियें ॥से // 2 // काम जोग संबंधी जे सुख, तेहथी दिव्य सुख महोटुं। सि६ प्रनुने अनंतगणुं सुख, एह वयण नवि खोटुं ॥से // 2 // ए सुखलीला आगल नवनां, सुख सघलाही