________________ 430 जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. खाण // 3 // सहत पंचविंशति वली, चक्रवर्तिपद जोग // बरस पंचोतेर सहल एम, रहिया प्रलु गृहयोग // 3 // पणवीस सहस बर सज लगें, चारित्र पाल्युं सार // वरस न्यून तेतां वरस, केवलीपणे उ दार // 4 // वर्ष लद एम पाउ, नोगवियु जिनराज // हवे कहूँ अधि कार ते, जेम पाम्या शिवराज // 5 // // ढाल पंचावनमी // ॥आपो आपोने राज, मोघां मूलां मोती // ए देशी // सेवो सेवोने राज, शांतिजिनेश्वर स्वामी // सोलम जिनवर सोलम सोवन, वरणे शिव गतिगामी / / सेवो सेवोने राज // शां० // ए प्रांकणी // जगगुरु जगलो चन जगदीपक, जगतारण हितकारी // जगजीवन जगबंधव जिनवर, वंदो सवि नर नारी // सेवो० // 1 // निज निर्वाणसमय अनु जाणी, बदु साधु परिवारें // समेतशिखरें पधाया प्रचजी, आप तरे पर तारे // सेवो० // 2 // मनुं शिव चढवानी नीसरणी, समेतशिखर गिरिंदा / थारोहे यलवेसर जिनवर, यघिरा राणीनंदा / / सेवो० // 3 // पद्मासन पूरी परमेश्वर, वेठा ध्यान समाधि // सुरवर समवसरण तिहां विरचे, हेजा हियडु वाधे // से० // 4 // तिहां वेसी उपदेश दिये प्रनु, निसुणे असुर सुरिंदा // नाव अनित्य सकल नवमांदे, दीसे ए सवि फंदा // से० // 5 // म म करशो ममता मनमांदे, सदु संबंधे मलियुं / राखो नवमांहे रोकीने, कर्मकटक ए वनियुं // सेवो० // 6 // तुं कुण घरनो चेतन तहारी, समता सुंदरी नारी / / { लाग्यो ममता गणिका'. होय रह्यो नीवारी // से० // // चेतन संग तजो ममतानो, करो नम तागुं चारी // जातें जाति मिले होय युगतुं, असरिस संग निवारी / / से // 7 // काम करो कोई एह धारी, बंधनो हेतु निवारी // जेम नव स्थिति वांमी प्रति जारी, वरीये मुक्ति सुनारी / मे० // // तब गणधर गिर गुणवंता, चक्रायुध मद मोढी // लिम्रस्वरूप कही मनु मुझने, पूने चंदु कर जोडी // से० // 17 // कहे प्रनु देवथकी जोवंतां, खद पणया निस मानें // सिहशिना पुढवी ठे उपर, उज्ज्वल कंचन वान // से / 11 // उत्तान उत्र तणे याकारें, समयदेव परिमाणें // मध्यपिंग ण्यात योजन जेहनो, ज्ञानी विण कुण जाणे / / से० // 12 // माखी करी