________________ श्री शातिनाथनो रास खंम बहो. ए स श्रुत केवली, षट्कायना त्राता रे // न० // 10 // नव संख्यात मनु प्यनां, रूपी व्यने देखे रे // अवधिज्ञानी मुनिवरा, त्रण सहसने लेखे रे // ज० // 11 // समय क्षेत्रमांहे संझिता, मननावने जाणे रे // मनःप र्यवनाणी मुनि, सहस चार वखाणे रे // ज० // 12 // केवलझाने जाणता, सदु लोक अलोक रे // चार सहस त्रणशे वली, वंदो गतशोकें रे // ज०॥ 13 // वैक्रियलब्धिधरा जला, षट्सहस मुणिंद रे // चार शें दोय सहस नमो, वादी पाणंद रे // ज० // 14 // ए परिवार जिएं दनो, कर जोडी जालें रे // मुक्तिमार्ग साधे जलो, वंदो त्रिदु कालें रे॥ न० // 15 // वैयावृत्य करे जलु, सद् विघ्न निवारे रे // यद गरुड नामें न लो, प्रजुसेवा सारे रे // न० // 16 // जक्त तणी सान्निध्य करे, निर्वाणी नामें रे // शांति प्रनुशासन सुरी, समरो गुजकामें रे // ज० // 17 // मुख्य सदुमांहे शिरें, चक्रायुध जात रे॥ कोणाचल नृप स्वामीनी, करे सेव सुजात रे // ज० // 17 // चालिश धनुपनी देहडी,मृगलांबन स्वामी रे॥ कांचनवर्ण तनु शोनतुं, प्रणमो शिर नामी रे // ज०॥ १ए // अप्रति रूप जिपंदन, वपु सुंदर दीपे रे // एक मनें अवलोकतां, सवि पातक बीपे रे // न० // 20 // जुवनत्रय प्रजुता तणां, सूचक नत्किहां रे // धात अशोकादिक तणां, प्रातिहारज दीवां रे // न० // 21 // यतः // अशोकवृदः सुरपुष्पवृष्टि,दिव्यध्वनिश्वामरमासनं च // नाममलं उंछ निरातपत्रं, सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् // 1 // पूर्वढाल // एम प्रनु प्रजुता जोगवे, त्रिदुं जगत प्रतिपाल रे // सहजसमाधिनी लीलमां, विचस्या बदु काल रे ॥न // 22 // सौरव्य अतींश्यिना धणी, वर ते समजावें रे // साधक बाधकता मटी, सहजातम नावें रे // ज० // 23 // घट घट व्यापक जे विलु, अविकल अविनाशी रे // परमातम प्रग टी कला, गुन ज्योति विलासी रे ॥नाश्॥ चोपनमी ए ढालमां, खम बठे सुणीजें रे॥ शांतिप्रनु पद सेवतां,जन्म सफल गणीजें रे // // 25 // ॥दोहा॥ // वरिस पंचविंशति सहस, कुमरपणे जगदीश // मात पिता यां गल रह्या, दिन दिन अधिक जगीश // 1 // सामानिक राजाप', वरिस तेटलां जाण // सुखलीला प्रनु नोगवी, अतिशय गुणमणि