________________ भG जैनकथा रत्नकोप भाग आठमो. गुण अनंत जिनजीना दीसे, जोतां नवियणनां मन हिंसे, दिन दिन - चढती जगीश तो // ज // 16 // अतिशय गुण जिनजीना जेह, जिन विए बीजो न लहे तेह,महिमा अतुल अवेह तो // ज० // 17 // विच रे महि अचिरानो जायो, चोसर 3 मली गुण गायो, त्रिजुवनजन म न जायो तो // ज० // 17 // चक्रायुध गणधर अनुसाथ, सेवे प्रनुने जोडी हाथ, जय शिवपुरना साथ तो // ज० // 15 // जाणत पण पूरे कर जोडी, गणधर प्रजुजीने मद मोडी, पहोंचे नवियण कोडि तो // ज० // 20 // बछे खमें त्रेपनमी ढाल,शांतिप्रनु अतिशय गुणमाल, नवि यण सुणो उजमाल तो // ज० // 1 // सर्वगाथा / / 2047 // 7 // ॥दोहा॥ // विश्वसेन कुलचंदलो, यचिरा मात मल्हार // सोलम जिन त्रिजुवन धणी, नोधारा श्राधार // 1 ॥जक्तवत्सल नावट हरण, सेवकजन सा . धार // करुणारस लायर प्रनु, कहुँ तेहनो परिवार // 3 // // ढाल चोपनमी / / // केवलीने मुख सांजली ॥ए देशी // नवियण वंदो रे नावा,प्रजुनो परिवारो रे // गुणवंतजीना गुण स्तव्ये,लहियें नवजल पारो रे॥नवियण वंदो रे जावगुं ॥ए आंकणी॥१॥ गुण सत्त्याविश शोनता, शमरस नं मारो रे // प्रनुजीना मुनिवर नमुं, बासठ हजारो रे // 2 // एकसत सहस गुणे जरी, पट्शत अधिकरी रे॥हस्तदीक्षित नमुं साधवी, गुणशील जलेरी रे। न० // 3 // शुभ समकित गुणधारका, वारे व्रत पाले रे // न चले चलाव्या धर्मथी, व्रत दूपण टाले रे // ज // 4 // रागे रंगाणा घ मैने, जिनधर्म ए जाणे रे // सार ए अवर असार वे, न मगे कोई टागो रे / जम् // 5 // चन्दश श्रामिने दिने, करे पोसह नावें रे // शुक्ष अश नादिक साधुने, हर्पे पडिलाने रे // नम् // 6 // शांतिप्रवाणी सुणी, सूत्रा प्रतिक्षा रे // साधुनी संगत मूकीने,न रहे ते जूदा रे // ज० // 7 // दोय लाख उपर वली,ने, सहल सुणीजें रे // एहवा श्रावक जिन तणा, नित्य प्रत्ये समरीज रे // ज० // // गुणवंती दुइ श्राविका, त्राम्य ला ख उदार रे // त्राएं सहत उपर वली, प्रणमो नर नारी रे // ज० // // जिन नहिं पग जिन सारिखा, बिटु कालना हाता रे // यात सह