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श्री शांतिनाथनो रास खंम पांचमो. उपदिसे रे, गिरधा गुणनी खाणि ॥ सु० ॥ २० ॥ स्थापी राज्ये तनयने रे, थाइश हुँ तुम शिष्य ॥ वांदीने घरे आवियो रे, नरपति सवल जगीश ॥ सु० ॥ २१ ॥ श्रीशेखर निजपुत्रने रे, सोंपी राज्यनो नार ॥ चिटुं नारी राजीयो रे, थयो सूधो अपगार ॥ सु० ॥ २२ ॥ वत्सराज ज्ञपिराजियो रे, चाले कम विहार ॥ चोखू चारित्र पालीने रे, पाम्या सुरपद सार ॥ सु ॥ २३ ॥ देवलोकहूंती चवी रे, करो नरनव एक ।। कर्म खपी केवल लही रे, लहेशे मुक्ति सुविवेक ॥ सु ॥ २४ ॥ धनरथ प्रजुजी कह्यो रे,शूर तणो संबंध ॥ यापद टली संपद थई रे, पुण्य तो अनुबंध ॥ सु० ॥ २५ ॥ इति वत्सराजसंबंधः ॥ पंचम खमें बनीशमी रे, ढाल कही सुणो संत ॥ रामविजय कहे सांजलो रे, जिनगुण एका चित्त ॥सु॥ २६ ॥ सर्वगाया।॥ ११३५॥ श्लोक तथा गाथा मली॥६॥
॥ दोहा ॥ ॥ देशन सुपी जिनराजनी, श्री मेघरथ जूपाल ॥ चारित्रने उत्सुक थयो, तजी मोह जंजाल ॥ १ ॥ घर आवी दृढरथ जणी, कहे बंधव व्यो राज ।। प्रनुपासें हुँ व्रत ग्रही, सारिश यातम काज ॥ २ ॥ कहे दृढरथ सुण वंधवा, ए नरकांतज राज ॥ एहने कारण काजं हूं, नवि विणसाडं थाज ॥३॥ तेणें निज थंगज स्थापियो, मेघसेन अनिधान ॥ रथ सेन दृढरयसुत जणी, युवराजा पद ताण ॥ ४ ॥
॥ ढाल साडत्रीशमी॥ ॥ तुमने न श्राव्या कहियें जी, यूलिन जलें याव्या ॥ ए देशी ॥ मेघग्य घनरथ जिन बांदे जो ॥ अनुजी सोनागी ॥ मुफ थापो चरण श्रानंद जी ॥ वारु. बड नागी ॥ १ ॥ मुझ मनना मनोरथ फलिया जी ॥अनु0 आज देवाधिदेव मुक मलिया जी ॥ वारु.॥ २ ॥ मुफ चारित्र श्रापो चोखू जी ॥ प्र० ॥ निज श्रातमगुपपने पोरवू जी ॥ वा० ॥ ३ ॥ मुफ जवजलहूंती तारो जी ॥ प्र॥ वनरय जिन मुझ उगारो जी। पा०॥ 1 ॥ नृप चार सड्स संघातें जी ।। प्र० ॥ सुत सुंदर सातो साथै जी॥ वा० ॥ ॥ बंधव दृढरधनी जोडी जी ॥०॥ लिये चारित्र मदने मोदी जी ॥वा०॥६॥ ब्रही श्रीजिनदाये दीदा जी श्राराये जिननी शिक्षा जी॥ वा०॥ ॥ पंच समिति गृति रखवाले जी ॥ ॥